पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भाई का गोवा में मर्डर – भाग 3

नरोत्तम ढिल्लों को कैसे फंसाया जाल में

इस काम के लिए उस ने नवीन नगर, ऐशबाग, भोपाल निवासी अपनी गर्लफ्रेंड नीतू शंकर राहुजा से नरोत्तम सिंह ढिल्लों की पहचान कराई. उस ने अपनी गर्लफ्रेंड नीतू राहुजा को बताया था कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों बहुत ही पैसे वाला आदमी है, तुम उन के साथ कुछ वक्त बिता लेना. इस से खुश हो कर ढिल्लों तुम्हें करोड़ों कपए दे देंगे, लेकिन इस के विपरीत उस ने नरोत्तम सिंह ढिल्लों को बताया था कि नीतू उन से विशेष रूप से प्रभावित है और वह अपनी इच्छा से उन से मिलने आ रही है.

शनिवार 3 फरवरी, 2024 की रात 2 बजे तक सभी पार्टी करते रहे. इसी बीच नरोत्तम सिंह ढिल्लों जितेंद्र साहू के इशारे पर नीतू के करीब आने लगे, तभी नीतू राहुजा ने ढिल्लों के गलत मंसूबे समझ कर उन की हरकतों का विरोध करना शुरू कर दिया.

नीतू ने जोर से धक्का दे कर नरोत्तम सिंह ढिल्लों को जमीन पर गिरा दिया. विवाद बढऩे पर जितेंद्र ने नीतू और अपने साथी की मदद से ढिल्लों का गला घोंट कर हत्या कर दी और उस के बाद करीब 45 लाख रुपए की नकदी व जेवर ले कर खिड़की के रास्ते वहां से फरार हो गए.

जितेंद्र साहू और नीतू राहुजा भोपाल के रहने वाले थे. जितेंद्र साहू स्टौक मार्केट में ट्रेडिंग का काम करता था, जबकि नीतू राहुजा एक इलेक्ट्रौनिक्स शोरूम में काम करती थी. नीतू राहुजा ने गोवा पुलिस को बताया कि जितेंद्र उस के ही मकान में अपनी मां के साथ रहता था. जबकि नीतू अपने मातापिता और भाई के साथ रहती थी. कुछ समय बाद एक ही मकान में रहने की वजह से उन में नजदीकियां बढऩे लगीं और फिर वे दोनों एकदूसरे से प्रेम करने लगे थे.

पूर्व मुख्यमंत्री के भाई थे नरोत्तम सिंह

पूछताछ के दौरान नीतू ने पुलिस को बताया कि 3-4 फरवरी की रात को ढिल्लों ने उस के साथ छेड़छाड़ की थी, जिस के कारण उन दोनों के बीच काफी विवाद हो गया था. उस के बाद उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर ढिल्लों की हत्या कर दी और वहां से नकदी व जेवर ले कर फरार हो गए थे. 4 फरवरी, 2024 की सुबह ढिल्लों के विला की मैनेजर सीमा सिंह ने उन्हें मृत देख कर गोवा पुलिस को सूचना दी थी.

मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों के पास एक समय में अमेरिका में फेरारी की डीलरशिप थी. वह वर्तमान में भारत में आतिथ्य, रियल एस्टेट, लग्जरी विला और कारों को किराए पर देने के व्यवसाय में थे. गोवा में उन से मिलने आए उन के रिश्तेदारों के अनुसार निम्स ढिल्लों विलासितापूर्ण जीवन जीने के शौकीन थे और अपनी संपत्तियों पर मेहमानों की मेजबानी करना पसंद करते थे.

नरोत्तम सिंह ढिल्लों पर 1990 के दशक में लग्जरी फेरारी कारों की बिक्री और खरीद पर कर चोरी कर के अमेरिकी सरकार को धोखा देने का आरोप लगाया गया था, जिसे उन्होंने एक बार झूठा मामला करार दिया था. नरोत्तम सिंह ढिल्लों को 2003 में पंजाब सतर्कता ब्यूरो ने शिमला के एक अपार्टमेंट से गिरफ्तार किया था.

वह अमेरिका में बादल परिवार का कारोबार देखते थे और उन के ऊपर हवाला के जरिए उन की संपत्ति विदेश ले जाने का आरोप था. बाद में उन्हें अदालत द्वारा बरी कर दिया गया था.

पंजाब की लांबी पुलिस ने उस समय कथित तौर पर नकली मुद्रा का उपयोग करने, नशीले पदार्थों का कारोबार करने, विस्फोटक अधिनियम, शस्त्र अधिनियम और विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत उन के खिलाफ मामला दर्ज किया था, लेकिन उन से कोई भी बरामदगी नहीं हो पाई थी.

मेजर भूपिंदर सिंह ढिल्लों जोकि पूर्व में प्रकाश सिंह बादल के राजनीतिक सचिव के रूप में काम कर चुके हैं और बादल परिवार के सब से पुराने सदस्यों में से एक हैं, ने कहा, ”नरोत्तम सिंह ढिल्लों के पास कई संपत्तियां हैं. उन की नृशंस हत्या से पूरा परिवार सदमे में है.’’

इसी बीच मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों के चचेरे भाई पवनप्रीत सिंह बादल उर्फ बौबी ने कहा, ”निम्स के पास एक समय अमेरिका में फेरारी कार शोरूम था. इस से पहले वह कनाडा में बस गए थे. पिछले कुछ सालों से वह ज्यादातर समय गोवा में ही रह रहे थे. उन की पत्नी और बेटा दिल्ली में रहते हैं. उन की बेटी की शादी विदेश में हुई है. उन का बेटा कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने और निम्स का पार्थिव शव लेने गोवा गया था.’’

पवनप्रीत सिंह बादल ने आगे कहा, ”हमें इस की जानकारी नहीं है कि उन की किसी से भी दुश्मनी थी या नहीं. उन का मुख्य व्यवसाय गोवा, दिल्ली और शिमला में था. इस के अलावा उन के पास पंजाब के बादल गांव में कृषि भूमि और एक घर भी है.

”पुलिस ने महाराष्ट्र में एक युवा जोड़े को गिरफ्तार किया है, जो कथित तौर पर उन की हत्या की रात गोवा में उन के विला में रुके थे और उन की किराए की कार में भागने की कोशिश की थी. कार के जीपीएस से पुलिस को उन्हें पकडऩे में मदद मिली. ऐसा लग रहा था जैसे निम्स का गला घोंट दिया गया हो.’’

तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर गोवा पुलिस ने यह मामला आईपीसी की धारा 302 और 392 के तहत दर्ज कर लिया है. पुलिस ने आरोपी 32 वर्षीय जितेंद्र रामचंद्र साहू और 22 वर्षीया नीतू राहुजा को गोवा कोर्ट में पेश कर 10 दिन की रिमांड में ले कर उन से विस्तृत पूछताछ कर रही थी.

मर्डर केस का एक अन्य आरोपी कुणाल, जोकि उत्तर प्रदेश के झांसी का रहने वाला है, कथा लिखे जाने तक वह फरार था, जिसे गोवा पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही थी.

आज के दौर में आए दिन सोशल मीडिया की दोस्ती के साइड इफेक्ट मीडिया के माध्यम से जानने सुनने को मिलते रहते हैं.

कुछ दिनों की सोशल मीडिया की चकाचौंध और दिखावटी, चिकनी चुपड़ी दोस्ती के कारण शादीशुदा महिला या पुरुष अपनी बरसों पुरानी शादी, लोकलाज व बच्चों की परवाह किए बगैर दूसरों के साथ भाग जाने के लिए तत्पर हो जाता है. यह सब आखिर क्यों होता जा रहा है?

—कहानी पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भाई का गोवा में मर्डर – भाग 2

कपल कार ले कर क्यों हुआ फरार

ऐसे में गोवा पुलिस भी इन दोनों मामलों को एकदूसरे से जोड़ कर देखने लगी थी और पुलिस ने फौरन कार के बारे में पता लगाना शुरू कर दिया.

जांच में पता चला कि कार उस समय महाराष्ट्र के नवी मुंबई से मुंबई की तरफ दौड़ रही थी. एक बार फिर गोवा पुलिस ने कत्ल के एकदूसरे मामले में मुस्तैदी की वैसी ही मिसाल पेश की थी. इस बार गोवा पुलिस ने एक अमीर कारोबारी के कत्ल के सिलसिले में गोवा से करीब 470 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र के पेण इलाके से 2 संदिग्ध कातिलों को धर दबोचने में सफलता प्राप्त की.

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जब गोवा पुलिस ने नवी मुंबई पुलिस से संपर्क कर उन्हें उस संदिग्ध कार की जानकारी दी, जिस में संदिग्ध कातिल फरार हुए, उन का लोकेशन भी बताई. उस के तुरंत बाद नवी मुंबई अपराध शाखा इकाई-1 की टीम ने कार को ट्रैक करना शुरू कर दिया और आखिरकार उसे महाराष्ट्र के ही रायगढ़ जिले के अतर्गत पेण इलाके से कार में बैठे लोगों को हिरासत में ले लिया.

गोवा पुलिस की शिकायत के मुताबिक नवी मुंबई पुलिस को कार में एक संदिग्ध जोड़ा मिला, जिन्हें पुलिस ने फौरन गिरफ्तार कर लिया. वैसे तो इस जोड़े के साथ कार में एक और शख्स भी था, जो उन के साथ गोवा गया था, लेकिन वह पहले ही वहां से भाग निकला था.

इस के बाद शुरू हुआ पूछताछ का सिलसिला. मुंबई पुलिस दोनों से कार ले कर भागने की वजह जानने के साथसाथ नरोत्तम सिंह ढिल्लों के मर्डर के एंगल से भी पूछताछ करने लगी.

पहले तो काफी देर तक दोनों ने कत्ल वाली बात से इंकार किया, लेकिन जब उन की तलाशी में मृतक ढिल्लों के पास से लूटे गए गहने बरामद हो गए तो सारा मामला साफ हो गया था.

पकड़े गए जोड़े की हुई पहचान

नवी मुंबई पुलिस द्वारा पकड़े गए जोड़े की पहचान 32 वर्षीय जितेंद्र साहू और उस की 22 वर्षीय प्रेमिका नीतू शंकर राहुजा के तौर पर हुई, लेकिन दोनों से शुरू हुई पूछताछ के बाद एक कहानी जो निकल कर सामने आई, उस ने नवी मुंबई पुलिस से ले कर गोवा पुलिस तक का दिमाग ही घुमा दिया था. इस कातिल जोड़े के अनुसार कि इस कत्ल के पीछे सिर्फ लूटपाट की वजह नहीं, बल्कि धोखे और बदतमीजी की कहानी छिपी थी.

कपल ने पुलिस को बताया कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों से उन की मुलाकात सोशल मीडिया के माध्यम से हुई थी. ढिल्लों ने उन्हें अपना परिचय देते हुए गोवा में पार्टी करने के लिए और मिलने के लिए बुलवाया था. मध्य प्रदेश के भोपाल की रहने वाली यह जोड़ी नरोत्तम सिंह ढिल्लों के बुलावे पर गोवा में उन के विला होरीजंस अजर्ड पर पार्टी करने पहुंची थी.

दोनों ने पुलिस को बताया कि 3 फरवरी, 2024 की रात को पार्टी के बाद नरोत्तम सिंह ढिल्लों अपनी मेहमान लड़की से बदतमीजी पर उतर आए थे. उस के बाद जब कपल ने उन का विरोध किया तो ढिल्लों अपने रसूख का हवाला दे कर डराने धमकाने पर उतर आए थे.

बस ठीक उस के बाद गुस्से में उन की ढिल्लों से लड़ाई हो गई और इसी लड़ाई के दौरान अपना बचाव करते हुए उन के हाथों नरोत्तम सिंह ढिल्लों का अनजाने में मर्डर हो गया था. पोस्टमार्टम जांच में मौत का कारण गला घोंटना बताया गया था.

उधर नवी मुंबई अपराध शाखा इकाई-1 के वरिष्ठ निरीक्षक अबासाहेब पाटिल ने बताया, ”गिरफ्तार किए गए दोनों आरोपियों ने दावा किया है कि ढिल्लों ने आरोपी महिला का यौन उत्पीडऩ किया था, इसलिए हम दोनों आरोपियों के फोटो उजागर करने में असमर्थ हैं.

गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने दावा किया है कि युवती के साथ यौन उत्पीडऩ करने की कोशिश करने के बाद उन्होंने नरोत्तम सिंह ढिल्लों का गला घोंट दिया था. फिर उन्होंने उन की सोने की चेन, सोने का कड़ा और मोबाइल लूट लिया. उस के बाद एक किराए की एसयूवी में मुंबई की ओर भाग गए. वे इस बात से अनजान थे कि कार में एक जीपीएस ट्रैकिंग सिस्टम लगा हुआ है.’’

पुलिस को कई सवालों के जवाबों की थी तलाश

दोनों आरोपी कत्ल करने के बावजूद मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों पर ही बदतमीजी करने और यौन उत्पीडऩ करने का आरोप लगा रहे थे. जाहिर सी बात है कि एक सवाल यह भी था कि अगर वाकई गुस्से में आ कर ही ढिल्लों को जान ली तो फिर कत्ल के बाद उन्होंने ढिल्लों के जेवर और मोबाइल फोन जैसी कीमती चीजें क्यों लूट ली थीं?

गोवा पुलिस असल बात की तह तक पहुंचना चाहती थी कि कहीं कत्ल का मकसद केवल लूटपाट करना ही तो नहीं था? कहीं ऐसा तो नहीं है कि वे लूटपाट के अपने मकसद को छिपाने के लिए ढिल्लों के उत्पीडऩ या छेड़छाड़ वाली काल्पनिक कहानी सुना रहे हैं. गोवा पुलिस ने अब दोनों से इसी संबंध में अलगअलग विस्तृत पूछताछ करनी शुरू कर दी, जिस का नतीजा भी जल्द ही सामने आ गया था.

गोवा में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के चचेरे भाई नरोत्तम सिंह ढिल्लों उर्फ निम्स ढिल्लों की रहस्यमयी हत्या के आरोप में गिरफ्तार भोपाल का 32 वर्षीय जितेंद्र रामचंद्र साहू ही इस मामले का मास्टरमाइंड निकला. गोवा पुलिस के अनुसार जितेंद्र साहू पूर्व में नरोत्तम सिंह ढिल्लों का मैनेजर भी रह चुका था.

जितेंद्र साहू को इस बात का पता था कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों पंजाब में राजनीतिक रसूख रखने वाले परिवार से दूर अकेले रह कर गोवा में शाही जिंदगी जीते हैं. गोवा में उन के नाम पर विलाज और होटल भी हैं. जितेंद्र विला को हड़पना चाहता था और ढिल्लों से करोड़ों रुपए हड़पना चाहता था, इसलिए उस ने नरोत्तम सिंह ढिल्लों को हनीट्रैप के जाल में फंसाने की एक फुलपू्रफ योजना बनाई थी.

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री के भाई का गोवा में मर्डर – भाग 1

विला के अंदर नरोत्तम सिंह ढिल्लों की लाश उन के बिस्तर पर पड़ी थी, चारों तरफ खून बिखरा हुआ था. उन के कपड़े भी अस्तव्यस्त नजर आ रहे थे और लाश पर कुछ चोटों के निशान भी मौजूद थे. देखने से साफ साफ लग रहा था कि ढिल्लों की मौत कोई सामान्य मौत नहीं है, बल्कि मौत से पहले उन के साथ मारपीट और ज्यादती की गई थी.

पुलिस ने लाश का जब बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि नरोत्तम सिंह ढिल्लों का मोबाइल फोन और उन के सोने के जेवर भी नदारद थे. नरोत्तम सिंह ढिल्लों आमतौर पर सोने का कड़ा, सोने की चेन और सोने की बेशकीमती कई अंगूठियां पहनते थे, लेकिन हत्यारों ने हत्या करने के साथसाथ उन से लूटपाट भी की थी.

77 वर्षीय नरोत्तम सिंह ढिल्लों उर्फ निम्स ढिल्लों पंजाब के दिवंगत मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के चचेरे भाई और शिरोमणी अकाली दल प्रमुख सुखबीर सिंह बादल के भतीजे थे. नरोत्तम सिंह ढिल्लों पंजाब मुक्तसर के बादल गांव के मूल निवासी थे.

उत्तरी गोवा का पिलेर्ने मार्रा इलाका गोवा में अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है. वैसे तो पूरा का पूरा गोवा ही एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन के तौर पर दुनिया भर में मशहूर है, लेकिन गोवा का पिलेर्ने मार्रा इलाका अपने हाईप्रोफाइल विलाज और अपनी शानदार हौस्पिटैलिटी के लिए अपनी एक अलग पहचान रखता है.

रविवार दिनांक 4 फरवरी को सुबह लगभग साढ़े 7 बजे इसी पिलेर्ने मार्रा इलाके से सुबहसुबह गोवा के पारवोरिम थाने में पुलिस को सूचना मिली कि यहां होरीजंस अजर्ड विला में एक शख्स की संदिग्ध हालत में मौत हो गई है. मरने वाला विला का मालिक है, नरोत्तम सिंह ढिल्लों हैं.

77 वर्षीय नरोत्तम सिंह उर्फ निम्स ढिल्लों की गिनती इलाके के रईसों में होती थी, जो इस पिलेर्ने मार्रा इलाके में सिर्फ एक नहीं, बल्कि 3-3 आलीशान विलाज के मालिक थे. इन में एक विला का इस्तेमाल वह खुद करते थे, जबकि बाकी के 2 विलाज को उन्होंने गेस्टहाउस बना रखा था.

नरोत्तम सिंह ढिल्लों की इस के अतिरिक्त एक और भी विशिष्ट पहचान थी, वह यह थी कि वे पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के चचेरे भाई थे. अब इतने अमीर और प्रभावशाली कारोबारी की रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत की खबर अपने आप में काफी गंभीर बात थी. लिहाजा यह खबर मिलते ही पोखोरिम थाने के एसएचओ राहुल परब ने इस की सूचना तुरंत अपने उच्चाधिकारियों को दे दी.

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एसपी नार्थ गोवा निधिन वालसन

अगले ही पल एसपी नार्थ गोवा निधिन वालसन और पारवोरिम थाने के इंसपेक्टर राहुल परब अपनी पुलिस टीम के साथ आननफानन में ढिल्लों के विला में पहुंच गए.

अब तक घटनास्थल पर पुलिस के अलावा फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड भी पहुंच चुके थे. कत्ल की खबर वाकई एकदम सही थी.

विला में पहुंची पुलिस, पुलिस के खोजी कुत्ते और फोरैंसिक टीम ने अपनेअपने स्तर पर अज्ञात कातिलों के बारे में सुराग इकट्ठा करने की कोशिश की, लेकिन इस शुरुआती कोशिश में कत्ल के पीछे का मोटिव लूटपाट का ही नजर आया.

 क्यों किया गया नरोत्तम सिंह ढिल्लों का मर्डर

यह भी एक अजीब सा इत्तेफाक था कि लाश मिलने और नरोत्तम सिंह की कत्ल की जांच करने से अलग उत्तरी गोवा के ही पारवोरिम पुलिस स्टेशन में बीती रात यानी कि 3 फरवरी, 2024 की रात को एक और शिकायत मिली थी. ये दूसरी शिकायत ‘रेंट ए कार’ के तहत अपनी कार किराए पर देने वाले एक शख्स ने पुलिस से की थी.

उस ने अपनी शिकायत में कहा था कि एक दिन पहले एक कपल ने उस से एक कार किराए पर ली थी. रेंट ए कार के तहत ग्राहक कार ले कर स्टेट से यानी गोवा से बाहर नहीं जा सकता, लेकिन शिकायतकर्ता का कहना था कि कार ले कर जाने वाले लोग न सिर्फ सिर्फ गोवा से बाहर मुंबई की तरफ जा रहे हैं, बल्कि बारबार फोन करने पर भी वे लोग उस का फोन नहीं उठा रहे हैं.

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होरीजंस अजर्ड’ विला

पुलिस नरोत्तम सिंह ढिल्लों हत्याकांड की जांच बड़ी सूक्ष्मता और बारीकी से कर रही थी, लेकिन इस बीच ‘होरीजंस अजर्ड’ विला की छानबीन करतेकरते पुलिस की नजर एक सीसीटीवी फुटेज पर पड़ गई, जोकि एक पास की दूसरी बिल्डिंग के कैमरे में कैद हो गई थी.

इस फुटेज की जब गोवा पुलिस ने गहनता से जांचपड़ताल की तो पाया कि 3 फरवरी, 2024 की रात को तकरीबन साढ़े 3 बजे मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों के होरीजंस अजर्ड विला से एक कार रवाना हुई थी.

सीसीटीवी फुटेज से मिला सुराग

छानबीन करने पर गोवा पुलिस को यह बात भी पता चली कि एक नौजवान कपल 3 फरवरी, 2024 की रात को उन के निजी विला पर पार्टी के लिए पहुंचा था. नरोत्तम सिंह ढिल्लों और उन के उन मेहमानों ने रात को करीब 2 बजे डिनर लिया था यानी कि कत्ल से पहले वाली रात को मृतक नरोत्तम सिंह ढिल्लों कुछ लोगों को होस्ट कर रहे थे और उन की मेहमानवाजी में लगे थे.

जाहिर सी बात है कि ऐसी परिस्थिति में पुलिस का शक अब उन मेहमानों पर ही जा टिका था, जो नरोत्तम सिंह ढिल्लों के होरीजंस अजर्ड में बीती रात को पार्टी करने पहुंचे थे. अभी पुलिस उन लोगों के बारे में और अधिक जानकारी जुटाने की कोशिश कर ही रही थी, तभी पुलिस को एक विशेष बात पता चली कि बीती रात उन के घर निकलने वाले लोगों ने मेनगेट का नहीं, बल्कि एक खिड़की का सहारा लिया था.

Khidki jaha se qatil bhage the

असल में ‘होरीजंस अजर्ड’ विला के कर्मचारियों को 4 फरवरी, 2024 की सुबह वह खिड़की खुली हुई मिली, जबकि वह आमतौर पर बंद ही रहती थी, जबकि मेनगेट बंद था. इस तरह अब तक की सारी तफ्तीश नरोत्तम सिंह ढिल्लों के अनजान मेहमानों पर पूरी तरह से टिक चुकी थी, लेकिन वो मेहमान कौन थे, कहां से आए थे, कहां गए, उन की पहचान आखिर क्या थी, ये अभी तक राज बना हुआ था.

इन दोनों ही मामलों में कुछ अजीब से इत्तफाक भी थे. अव्वल तो कार ले कर भागने वाला भी एक कपल था और नरोत्तम सिंह ढिल्लों के कत्ल में भी कपल के हाथ होने का शक था. कार की चोरी भी तकरीबन उसी दौरान हुई थी, जिस दौरान ढिल्लों की हत्या हुई थी, सब से बड़ी और खास बात तो यह थी कि दोनों ही मामले गोवा के पारवोरिम थाना इलाके में हुए थे.

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अब तक के वैवाहिक जीवन में उन्हें इस तरह कभी दोबारा बैंक जाने की जरूरत नहीं पड़ी थी. आज चैक के नाम पर वह लीना को बेवकूफ बना रहे थे. राजकुमार को तिजोरी की चाभी ले कर आने को कहते हैं, तो लीना समझ जाएगी कि जरूर कोई गड़बड़ है. उसे इस हालत में चिंता में डालना ठीक नहीं है.

उन्हें लगा कि फोन कर के लीना को बता दें कि सैवी उन के साथ है. इस से लीना उस के लिए परेशान नहीं होगी. रात में वह लौटेंगे, तो सैवी उन के साथ होगी. जनार्दन ने गाड़ी आगे बढ़ाई. कालोनी से बाहर आ कर उन्होंने पार्क के पास सड़क के किनारे कार रोक दी. दुकान पर काफी भीड़भाड़ थी, इसलिए वहां से उन्होंने फोन करना ठीक नहीं समझा. उन्होंने पार्क की ओर देखा, कालू माली गेट पर खड़ा सिगरेट पी रहा था. उस की निगाहें उन्हीं पर जमी थीं.

पार्क में खेलने वाले बच्चे अपने अपने दादी दादा या मम्मियों के साथ चले गए थे या जा रहे थे. जनार्दन पार्क की ओर बढ़े. उन्हें अपनी ओर आते देख मुंह से सिगरेट का धुआं उगलते हुए कालू ने पूछा, ‘‘कोई काम है क्या साहब?’’

‘‘मेरी थोड़ी मदद करो कालू. मैं मोबाइल घर में भूल आया हूं. लौट कर जाऊंगा तो समय लगेगा. मुझे जल्दी से कहीं पहुंचना है. एक जरूरी फोन करना था. पार्क के फोन से एक फोन कर लूं?’’

कालू ने सिगरेट का एक लंबा कश लिया और मुंह से सिगरेट हटा कर धुआं उगलते हुए कहा, ‘‘क्या बात करते हैं साहब, यह भी कोई पूछने की बात है? आप का काम मेरा काम. यह फोन सरकार ने आप लोगों के लिए ही तो लगवाया है. फोन कमरे में मेज पर रखा है. जाइए, कर लीजिए.’’

पार्क के गेट के पास ही बाईं ओर 2 कमरों का एक छोटा सा बरामदे वाला मकान था. वही कालू का घर, औफिस स्टोर सब कुछ था. आगे वाले कमरे में कोने में रखी एक छोटी सी मेज पर फोन रखा था. पास ही टूटी हुई मूर्ति रखी थी. जनार्दन को याद आया, जब पार्क में फव्वारा बना था, तब उस में यही मूर्ति लगी थी. लेकिन कुछ ही दिनों में मूर्ति को बच्चों ने तोड़ दिया था.

जनार्दन को लगा, मूर्ति मेज के पीछे ठीक से नहीं रखी थी. स्वभाववश छोटीछोटी बातों का ध्यान रखने वाले जनार्दन ने मूर्ति को उठा कर ठीक से रखा. मूर्ति को ठीक करने के बाद उन्होंने फोन करने के लिए जैसे ही रिसीवर उठाया, उन्हें झटका सा लगा. रिसीवर को गौर से देखा, उस पर उन्हें काले काले दाग दिखाई दिए. वह सोच में डूब गए. उन्हें कुछ याद आने लगा, जिसे वह रिसीवर से जोड़ने की कोशिश कर रहे थे.

अचानक दिमाग में बिजली सी कौंधी. समस्या के सारे समाधान अपने आप अपनी अपनी जगह फिट होते चले गए. एक ही झटके में उन की समझ में आ गया कि सैवी का अपहरण कोई देख क्यों नहीं सका. उन्हें विश्वास हो गया कि सैवी के अपहरण के किए गए फोनों से आने वाली आवाज कालू की थी. इस का मतलब सैवी को यहीं कहीं होना चाहिए. माली ने अपने इसी मकान में उसे कहीं छिपा रखा होगा.

मारे गुस्से के जनार्दन का शरीर कांपने लगा. लेकिन उन्होंने तुरंत अपने गुस्से को काबू में किया. दिमाग शांत और तीक्ष्ण बन गया. आखिर एक बैंकर का दिमाग था. वह जानते थे कि पहलवानी वाले शरीर का मालिक कालू काफी ताकतवर था. अब तक पार्क में सिर्फ कुछ बुजुर्ग और 2-4 महिलाएं बची थीं. वहां ऐसा कोई नहीं था जो कालू को रोक पाता, इसलिए जनार्दन कुछ ऐसा करना चाहते थे कि कालू भाग न सके. यही सोच कर उन्होंने आराम से रिसीवर रख दिया और मेज के पीछे रखी कांसे की मूर्ति उठा ली.

मूर्ति के वजन का अंदाजा लगा कर जनार्दन ने तुरंत कालू पर हमले की योजना बना ली. कालू पार्क की ओर मुंह किए बरामदे में खड़ा था. जनार्दन दबे पांव फुर्ती से 3 कदम आगे बढ़े और कालू की गर्दन पर मूर्ति का तेज प्रहार कर दिया. एक ही वार में कालू जमीन पर गिरा और बेहोश हो गया. जनार्दन ने तुरंत वहां पेड़ों को बांधने के लिए रखी प्लास्टिक की रस्सी उठाई और पीछे कर के उस के दोनों हाथ बांधने लगे. कालू की चीख सुन कर पार्क में बैठे बुजुर्ग और टहल रही महिलाएं वहां आ गईं. लेकिन तब तक जनार्दन कालू के हाथ बांध चुके थे.

उन लोगों से शांति से खड़े रहने को कह कर जनार्दन कालू के क्वार्टर में घुसे. पीछे के बंद कमरे में पड़ी चारपाई पर सैवी पड़ी थी. उस के मुंह पर कपड़ा बंधा था. उस भीषण गर्मी में अंदर का पंखा भी बंद था. जनार्दन ने जल्दी से मुंह पर बंधा कपड़ा खोला और बेटी को सीने से लगा कर बाहर आ गए.

जनार्दन के साथ पसीने से लथपथ उन की बेटी को देख कर लोग हैरान रह गए. रोने से सैवी की आंखों से बहे आंसुओं की लाइन गालों पर साफ नजर आ रही थी. सैवी को देख कर सभी समझ गए कि मामला क्या था.

पुलिस कंट्रोल रूम को फोन किया गया, कंट्रोल रूम की जीप पास में ही कहीं थी, 5 मिनट में आ गई. अब तक कालू को होश आ गया था. जनार्दन की गोद में सैवी को और पुलिस को देख कर वह समझ गया कि उस की पोल खुल चुकी है. थोड़ी देर में कंट्रोल रूम से सूचना पा कर थाना पुलिस भी आ गई.

कालू को हिरासत में ले कर थानाप्रभारी ने जनार्दन से पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आप की बेटी का अपहरण कालू ने किया है?’’

बेटी की पीठ सहलाते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘इंसपेक्टर साहब, मैं यहां फोन करने न आया होता तो कालू की करतूत का पता न चलता. अपहर्त्ता मेरे आसपास ही है, इस बात का अंदाजा तो मुझे पहले ही हो गया था. लेकिन थोड़ी देर पहले एक घटना घटी थी, जिस की वजह से कालू पकड़ा गया.

‘‘शाम को एक बच्चे के घुटने में लगा सड़क का तारकोल कालू ने अपने अंगौछे से पोंछा था. उस के बाद इस ने मुझे फोन किया, इस ने अपनी आवाज बदलने के लिए रिसीवर पर अंगौछा रखने की युक्ति अपनाई थी. उसी समय इस के अंगोछे का तारकोल रिसीवर में लग गया होगा. वही दाग मैं ने रिसीवर पर देखा तो समझ गया कि जिस अंगोछे से बच्चे के घुटने का तारकोल साफ किया गया था, वही अंगोछा इस रिसीवर पर रखा गया था, जिस का तारकोल इस में लग गया है.’’

पुलिस कालू को पकड़ कर ले जाने लगी तो सैवी ने कहा, ‘‘डैडी, अब आप हमें पार्क में खेलने के लिए कभी नहीं आने देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं आने देंगे बेटा,’’ जनार्दन ने बेटी का गाल चूमते हुए कहा, ‘‘बिलकुल आने दूंगा. बेटा हर आदमी कालू की तरह खराब नहीं होता. और जो खराब होता है, वह कालू की तरह जेल जाता है.’’

बेटी के अपहरण और बरामद होने की जानकारी लीना को हुई तो उस ने बेटी को सीने से लगा कर अपना सिर जनार्दन के कंधे पर रख दिया, ‘‘इतना बड़ा संकट आप ने अकेले कैसे झेल लिया. बेटी को मिलने में देर होती तो क्या करते?’’

‘‘कह देता कि वह मेरे साथ है. मैं जरूरी काम से बैंक में हूं. वह मिल जाती, मैं तभी घर लौटता.’’ जनार्दन ने लीना का सिर सहलाते हुए कहा.

अपहरण : कैसे पहुंचा एक पिता अपनी बेटी के अपहर्ता तक? – भाग 2

जनार्दन ने बाथरूम से बाहर आ कर ड्राइंगरूम की खिड़की खोली. सिर बाहर निकाल कर इधरउधर देखा. उस गली में कुल 12 मकान थे. 6 एक तरफ और 6 दूसरी तरफ. उन के मकान के बाईं ओर एक मकान था. जबकि दाहिनी ओर 4 मकान थे. उस के बाद पार्क था. उसी तरह सामने की लाइन में 6 मकान थे. पार्क के आगे वाले हिस्से में माली का क्वार्टर था. उसी के सामने एक दुकान थी. इस इलाके में घर के रोजमर्रा के सामानों की वही एक दुकान थी.

कालोनी के अन्य 11 मकानों में रहने वालों को जनार्दन अच्छी तरह जानते थे. उन्हें लगता नहीं था कि इन लोगों में कोई ऐसा काम कर सकता है. दुकान का मालिक पंडित अधेड़ था. उसे भी जनार्दन अच्छे से जानते थे. उन्हें पूरा विश्वास था कि पंडित इस तरह का काम कतई नहीं कर सकता.

चाय पी कर वह बाहर निकलने लगे तो लीना ने कहा, ‘‘सैवी अभी तक नहीं आई. जाते हुए जरा उसे भी देख लेना.’’

‘‘आ जाएगी. अभी तो कालोनी के सभी बच्चे खेल रहे हैं. और हां, खाना खाने की इच्छा नहीं है, इसलिए खाना थोड़ा देर से बनाना.’’

लीना ने जनार्दन के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘आज तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

‘‘आज काम थोड़ा ज्यादा था, इसलिए भूख मर सी गई है.’’ जनार्दन ने सफाई दी तो लीना बोली, ‘‘इस तरह काम करोगे, तो कैसे काम चलेगा.’’

खिड़की से हवा का झोंका आया. उस में ठंडक थी. नहीं तो पूरे दिन आकाश से लू बरसी थी. पत्थर को भी पिघला दे, इस तरह की लू. जनार्दन सैवी के बारे में सोच रहे थे. बदमाशों ने उसे न जाने कहां छिपा रखा होगा? उस के हाथ पैर बांध कर इस भीषण गर्मी में कहीं फर्श पर फेंक दिया होगा. जनार्दन का मन द्रवित हो उठा और आंखें भर आईं.

‘‘मैं जरा चैक के इस बारे में पता कर लूं.’’ दूसरी ओर मुंह कर के जनार्दन घर से बाहर आ गए. गली सुनसान थी. वह पंडित की दुकान पर जा कर बोले, ‘‘कैसे हो पंडितजी, आज इधर कोई अनजान आदमी तो दिखाई नहीं दिया?’’

पंडित थोड़ी देर सोचता रहा. उस के बाद हैरान सा होता हुआ बोला, ‘‘नहीं साहब, कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया.’’ इस के बाद उस ने मजाक किया, ‘‘बैंक मैनेजर अब नौकरी बचाने के लिए खातेदारों की तलाश करने लगे हैं क्या?’’

पंडित के इस मजाक का जवाब दिए बगैर जनार्दन आगे बढ़ गए. वह पलट कर चले ही थे कि पंडित के दुकान में लगे फोन की घंटी बजी. पंडित ने रिसीवर उठाया, उस के बाद हैरानी से बोला, ‘‘अरे पांडेजी, आप का फोन है. ताज्जुब है, फोन करने वाले को यह कैसे पता चला कि आप यहां हैं?’’

जनार्दन ने फुर्ती से पंडित के हाथ से रिसीवर ले कर कहा, ‘‘हैलो.’’

वही पहले वाली जानी पहचानी घुटी हुई अस्पष्ट आवाज, ‘‘पांडेजी आप अपनी बेटी को जीवित देखना चाहते हैं, तो मैं जैसा कहूं, वैसा करो. देख ही रहे हो. आजकल एक्सीडेंट बहुत हो रहे हैं, आप की बेटी का भी हो सकता है. याद रखिएगा 9 बजे.’’

‘‘मुझे पता कैसे चलेगा…?’’ जनार्दन ने कहा. लेकिन उन की बात सुने बगैर ही अपहर्त्ता ने फोन काट दिया. उन्होंने तुरंत रिसीवर रख दिया और उत्सुकता की उपेक्षा कर के आगे बढ़ गए.

अब उन्हें 9 बजे का इंतजार करना था. वह परेशान हो उठे. इतनी देर तक वह अपना क्षोभ और सैवी के अपहरण की बात कैसे छिपा पाएंगे. क्योंकि घर पहुंचते ही लीना बेटी के बारे में पूछने लगेगी. उन्हें लगा लीना को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी. यही सोचते हुए वह कालोनी के गेट की ओर बढ़े. तभी उन्होंने देखा, कालू माली 2 बच्चों को गालियां देते हुए दौड़ा रहा था.

शायद उन्होंने फूल तोड़ लिए थे. गेट के बाहर आते ही एक बच्चा सड़क पर गिर पड़ा. भयंकर गर्मी से सड़क का पिघला तारकोल अभी ठंडा नहीं पड़ा था. वह बच्चे के घुटने में लग गया तो वह कुछ उस से और कुछ कालू माली के डर से रोने लगा. बड़बड़ाता हुआ कालू उस की ओर दौड़ा. उस ने बच्चे को उठा कर खड़ा किया और उस के घुटने में लगा तारकोल अपने अंगौछे से साफ कर दिया. तारकोल पूरी साफ तो नहीं हुआ फिर भी बच्चे को सांत्वना मिल गई. उस का रोना बंद हो गया.

कालू अपना अंगौछा रख कर खड़ा हुआ, तब तक जनार्दन उस के पास पहुंच गए. उन्हें देख कर वह जानेपहचाने अंदाज में मुसकराया. जनार्दन ने पूछा, ‘‘कालू, इधर कोई अनजान आदमी तो नहीं दिखाई दिया?’’

‘‘नहीं साहेब, अनजान पर तो मैं खुद ही नजर रखता हूं. आज तो इधर कोई अनजान आदमी नहीं दिखा.’’

जनार्दन घर की ओर बढ़े. अब 9 बजे तक इंतजार करने के अलावा उन के पास कोई दूसरा चारा नहीं था. वह जैसे ही घर पहुंचे, फोन की घंटी बजी. जनार्दन चौंके. अपहर्त्ता ने तो 9 बजे फोन करने को कहा था. फिर किस का फोन हो सकता है. कहीं अपहर्त्ता का ही फोन तो नहीं, यह सोच कर उन्होंने लपक कर फोन उठा लिया.

उन के ‘हैलो’ कहते ही इस बार अपहर्त्ता ने कुछ अलग ही अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने 9 बजे फोन करने को कहा था. लेकिन 9 बजे फोन करता, तो आप के पास मेरी योजना को साकार करने के लिए समय कम रहता. इसलिए अभी फोन कर रहा हूं. मेरी बात ध्यान से सुनो, जैसे ही बात खत्म हो, कार से बैंक की ओर चल देना.

‘‘बैंक के पीछे वाले दरवाजे से अंदर जाना और उसे खुला छोड़ देना. गार्ड को कहना वह आगे ही अपनी जगह बैठा रहे. तुम तिजोरी वाले स्ट्रांगरूम में जाना और तिजोरी खुली छोड़ देना. तिजोरी और स्ट्रांगरूम का दरवाजा खुला छोड़ कर तुम जा कर अपने चैंबर में बैठ जाना.

चैंबर का दरवाजा अंदर से बंद कर के साढ़े 10 बजे तक वहीं बैठे रहना. उस के बाद तुम्हें जो करना हो करना, मेरी ओर से छूट होगी.’’

‘‘और उस की सलामती का क्या?’’ जनार्दन ने लीना के आगे सैवी का नाम लिए बगैर पूछा, ‘‘मुझे कैसे विश्वास हो कि उस का कुछ…’’

अपहर्त्ता ने जनार्दन को रोक लिया, ‘‘मैं तुम्हें एक बात की गारंटी दे सकता हूं. अगर हमारी योजना में कोई खलल पड़ी, हमारे कहे अनुसार न हुआ या हमें रात 11 बजे तक पैसा ले कर शहर के बाहर न जाने दिया गया, तो तुम अपनी बेटी को जीवित नहीं देख पाओगे.’’

जनार्दन का कलेजा कांप उठा. उन्होंने स्वयं को संभाल कर कहा, ‘‘तुम जो कह रहे हो, यह सब इतना आसान नहीं है. तिजोरी में 2 चाभियां लगती हैं, एक चाभी मेरे पास है, तो दूसरी हमारे चीफ कैशियर राजकुमार के पास.’’

‘‘मुझे पता है. इसीलिए तो अभी फोन किया है और कार ले कर चल देने को कह रहा हूं. राजकुमार से मिलने का अभी तुम्हारे पास पर्याप्त समय है. उस से कैसे चाभी लेनी है. यह तुम्हारी जिम्मेदारी है.’’

‘‘अगर वह घर में न हुआ तो…?’’

‘‘वह घर में ही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मैं ने इस बारे में पता कर लिया है. नहीं भी होगा तो फोन कर के बुला लेना.’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया.

रिसीवर रखते हुए जनार्दन का हाथ कांप रहा था. लीना ने पूछा, ‘‘यह सब क्या है? तिजोरी की चाभी की क्या बात हो रही थी?’’

‘‘अरे उसी चैक की बात हो रही थी,’’ जनार्दन ने सहमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे अभी बाहर जाना होगा. थोड़ी परेशानी खड़ी हो गई है, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है.’’

‘‘सैवी अभी तक नहीं आई है. जाते समय उसे घर भेज देना. बहुत खेल लिया.’’

सैवी का नाम सुनते ही जनार्दन का दिल धड़क उठा. उन्होंने घर से बाहर निकलते हुए कहा, ‘‘ठीक है, भेज दूंगा.’’

जनार्दन ने कार निकाली. थोड़ी देर स्टीयरिंग पर हाथ रखे चुपचाप बैठे रहे. अपहर्त्ता की बात मानना उन की मजबूरी थी. उन्होंने समय देखा, राजकुमार शहर के दूसरे छोर पर रहता था. शाम के ट्रैफिक में आने जाने में कितना समय लग जाए, कहा नहीं जा सकता. उन्हेंने उसे फोन कर के चाबी के साथ बैंक में ही बुलाने की सोची.

असहाय क्रोध की एक सिहरन सी पूरे शरीर में दौड़ गई. लेकिन उस समय शांति और धैर्य की जरूरत थी. उन्होंने बड़ी मुश्किल से क्रोध पर काबू पाया. घर से तो राजकुमार को फोन किया नहीं जा सकता था. मोबाइल फोन भी वह घर पर ही छोड़ आए थे. जिस से लीना फोन करे, तो पता चले कि फोन तो घर पर ही रह गया है. उस स्थिति में वह न उन के बारे में पता कर पाएगी, न सैवी के बारे में.

अपहरण : कैसे पहुंचा एक पिता अपनी बेटी के अपहर्ता तक? – भाग 1

जनार्दन जिस समय अपनी कोठी पर पहुंचे, शाम के 6 बज रहे थे. उन्होंने बिना आवाज दिए बड़ी सहजता से दरवाजा बंद किया. ऐसा उन्होंने इसलिए किया था, ताकि लीना जाग न जाए. डाक्टर ने कहा था कि उसे पूरी तरह आराम की जरूरत है. आराम मिलने पर जल्दी स्वस्थ हो जाएगी. लेकिन अंदर पहुंच कर उन्होंने देखा कि लीना जाग रही थी. वह अंदर वाले कमरे में खिड़की के पास ईजी चेयर पर बैठी कोई पत्रिका पढ़ रही थी.

‘‘आज थोड़ी देर हो गई.’’ कह कर जनार्दन ने पत्नी के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से पूछा, ‘‘अब तबीयत कैसी है?’’

लीना कोई जवाब देती, इस से पहले ही फोन की घंटी बजने लगी. जनार्दन ने रिसीवर उठा कर कहा, ‘‘जी, जनार्दन पांडेय…’’

दूसरी ओर से घुटी हुई गंभीर अस्पष्ट आवाज आई, ‘‘पांडेय… स्टेट बैंक के मैनेजर…?’’

‘‘जी आप कौन?’’ जनार्दन पांडे ने पूछा.

‘‘यह जानने की जरूरत नहीं है मि. पांडेय. मैं जो कह रहा हूं, ध्यान से सुनो, बीच में बोलने की जरूरत नहीं है.’’ फोन करने वाले ने उसी तरह घुटी आवाज में धमकाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी बेटी मेरे कब्जे में है. इसलिए मैं जैसा कहूंगा, तुम्हें वैसा ही करना होगा. थोड़ी देर बाद मैं फिर फोन करूंगा, तब बताऊंगा कि तुम्हें क्या करना है.’’

दूसरी ओर से फोन कट गया. जनार्दन थोड़ी देर तक रिसीवर लिए फोन को एकटक ताकते रहे. एकाएक उन की मुखाकृति निस्तेज हो गई. पीछे से लीना ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

जनार्दन ने गहरी सांस ले कर कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं थी.’’

जनार्दन पत्नी से सच्चाई नहीं बता सकते थे. क्योंकि उस की तबीयत वैसे ही ठीक नहीं थी. यह सदमा सीधे दिमाग पर असर करता. इस से मामला और बिगड़ जाता. जनार्दन रिसीवर रख कर पूरे घर में घूम आए, सैवी कहीं दिखाई नहीं दी. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘सैवी घर में नहीं है, लगता है पार्क में खेलने गई है?’’

‘‘हां, आप के आने से थोड़ी देर पहले ही निकली है,’’ लीना खड़ी होती हुई बोली, ‘‘मैं ने तो चाय पी ली है, आप के लिए बनाऊं?’’

जनार्दन ने चाय के लिए मना कर दिया. घड़ी पर नजर डाली, सवा 6 बज रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘अभी नहीं, थोड़ी देर बाद चाय पिऊंगा. अभी एक आदमी से मिल कर उस के एक चैक के बारे में पता करना है.’’

दरवाजा खोलते हुए उन के दिमाग में एक बात आई तो उन्होंने पलट कर लीना से पूछा, ‘‘इस के पहले तो मेरे लिए कोई फोन नहीं आया था?’’

‘‘नहीं, फोन तो नहीं आया.’’ लीना ने कहा.

जनार्दन ने राहत की सांस ली. लेकिन इसी के साथ ध्यान आया कि अगर सैवी के अपहरण का फोन पहले आया होता, तो घर में हड़कंप मचा होता. वह सोचने लगे कि इस मामले से कैसे निपटा जाए. उन्हें लगा कि कहीं बैठ कर शांति से विचार करना चाहिए.

वह घर से बाहर निकले और सोसाइटी के बाहर बने सार्वजनिक पार्क में फव्वारे के पास बैठ कर सोचने लगे. उन्हें लगा कि सैवी के अपहरण की योजना बहुत सोचसमझ कर बनाई गई थी. उस ने फोन भी मोबाइल के बजाए लैंडलाइन पर किया. क्योंकि मोबाइल पर नंबर आ जाता और वह पकड़ा जाता.

शायद उसे हमारे घर का नंबर ही नहीं, यह भी पता है कि हमारे फोन में कौलर आईडी नहीं है. अपहर्त्ता न जाने कब से सैवी के अपहरण की योजना बना रहे थे. योजना बना कर ही उन्होंने आज का दिन चुना होगा. आज बैंक की तिजोरी में पूरे 80 लाख की रकम रखी है.

लगता है, अपहर्त्ताओं को कहीं से इस की जानकारी मिल गई होगी. यह भी संभव है कि आज इतने रुपए आना और सैवी का अपहरण होना, महज एक संयोग हो. अगर यह संयोग नहीं है, तो इस अपहरण में बैंक का कोई कर्मचारी भी शामिल हो सकता है?

यह बात दिमाग में आते ही जनार्दन का मूड खराब हो गया. वह सोचने लगे कि बैंक का कौन सा कर्मचारी ऐसा कर सकता है. तभी उन्हें लगा कि मूड खराब करना ठीक नहीं है. मूड ठीक रख कर शांति से सोचना विचारना चाहिए. अपहर्त्ताओं के चंगुल में फंसी बेटी और लीना की बीमारी को भूल कर गंभीरता से विचार करना चाहिए. वह बैंक के एकएक कर्मचारी के बारे में सोचने लगे कि उन में कौन अपहर्त्ता हो सकता है या कौन मदद कर सकता है. उन्हें लगा कि मोटे कांच का चश्मा लगाने वाला चीफ कैशियर उन की मदद कर सकता है.

जनार्दन पांडेय अपने कर्मचारियों में बिलकुल प्रिय नहीं थे. पीछेपीछे उन्हें सभी ‘जनार्दन….’ कहते थे. इस की वजह यह थी कि वह छोटीछोटी बातों पर सभी से सतर्क रहने को कहते थे और जरा भी गफलत बरदाश्त नहीं करते थे.

वह झटके से उठे, क्योंकि उन के पास समय कम था. घटना कैसे घटी, इस के बारे में जानकारी जुटाना जरूरी थी. फिर दूसरे फोन का भी इंतजार करना था. अगर फोन आ गया और उन की गैरमौजूदगी में लीना ने फोन उठा लिया, तो…तभी उन्हें लगा कि एक बार वह पार्क में घूम कर सैवी को देख लें.

उन्होंने पार्क में खेल रहे बच्चों पर नजर डाली, सैवी दिखाई नहीं दी. फोन पर घुटी हुई अस्पष्ट आवाज सुनाई दी थी. ऐसा लग रहा था, जैसे आवाज को दबा कर बदलने की कोशिश की जा रही हो. शायद रिसीवर पर कपड़ा रख कर अस्पष्ट बनाने की कोशिश की गई थी. लेकिन उस का कहने का ढंग जाना पहचाना लग रहा था.

उस समय जनार्दन याद नहीं कर पाए कि वह आवाज किस की हो सकती थी. जनार्दन के घर में कदम रखते ही फोन की घंटी बज उठी. यह संयोग था या उन पर कोई नजर रख रहा था कुछ भी हो सकता था. फोन कहीं आसपास से ही किया जा रहा था और फोन करने वाले को अपनी आवाज पहचाने जाने का डर था, इसीलिए वह अपनी आवाज को छिपा रहा था. जनार्दन ने लपक कर फोन उठा लिया.

उन के कुछ कहने के पहले ही दूसरी ओर से पहले की ही तरह कहा गया, ‘‘बेटी को सब जगह देख लिया न? अब मेरी बात पर विश्वास हो गया होगा. खैर, मेरे अगले फोन का इंतजार करो.’’

फोन की घंटी सुन कर लीना भी कमरे में आ गई थी. जनार्दन के फोन रखते ही उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था? आप का काम हो गया?’’

पहले सवाल के जवाब को गोल करते हुए जनार्दन ने कहा, ‘‘वह आदमी घर में नहीं था. अभी फिर जाना होगा.’’

कह कर जनार्दन ने बाहर जाने का बहाना बना दिया.

‘‘मैं चाय बनाए देती हूं. चाय पी कर जाना.’’ लीना ने कहा. लीना बीमार थी, लेकिन घर के काम करती रहती थी.

जनार्दन ने बाथरूम में जा कर ठंडे पानी से मुंह धोया. मन में उथलपुथल मची थी. फोन पड़ोस के मकान से हो सकता है या फिर ऐसी जगह से, जहां से उन के घर पर ठीक से नजर रखी जा सकती थी. उन्हें पूरी संभावना थी कि ये फोन उन्हीं की सोसाइटी के किसी मकान से आ रहे थे.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 5

मैं 2 घंटे बाद अपने औफिस आया, गामे शाह अभी नहीं आया था. आमना आ चुकी थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘आमना, मेरे दिल में तुम्हारे लिए हमदर्दी पैदा हो गई थी, लेकिन तुम ने सच फिर भी नहीं बोला और कहा कि पता नहीं मंजूर कहां गया था. जबकि तुम ने ही उसे रशीद के पास भेजा था.’’

आमना की हालत रशीद की तरह हो गई. मैं ने उस का हाथ अपने हाथों में ले कर कहा, ‘‘आमना, अब भी समय है. सच बता दो. मैं मामले को गोल कर दूंगा.’’

‘‘अब यह बताओ, तुम्हारा पति अपने दुश्मन के पास गया था, वह सारी रात वापस नहीं लौटा. क्या तुम ने पता करने की कोशिश की कि वह कहां गया है और क्या रशीद ने उस की हत्या कर के कहीं फेंक न दिया हो?’’

आमना का चेहरा लाश की तरह सफेद पड़ गया. मैं ने उस से 2-3 बार कहा लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘तुम कयूम को बुला कर उस से कह सकती थी कि मंजूर बाग में गया है और वापस नहीं आया. वह उसे जा कर देखे.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया?’’

मुझे उस की हालत देख कर ऐसा लगा जैसे उस का दम निकल जाएगा.

‘‘तुम ने मंजूर को सलाह दी थी कि वह शाम को बाग में जाए. उस की हत्या के लिए तुम ने रास्ते में एक आदमी बिठा रखा था ताकि जब वह लौटे तो वह मंजूर की हत्या कर दे. वह आदमी था कयूम.’’

वह चीख पड़ी, ‘‘नहीं…नहीं, ऐसा बिलकुल नहीं है.’’

‘‘क्या रशीद ने उस की हत्या की है?’’

‘‘नहीं…’’ यह कह कर वह चौंक पड़ी.

कुछ देर चुप रही. फिर बोली, ‘‘मैं घर पर थी, मुझे क्या पता उस की हत्या किस ने की?’’

‘‘मेरी एक बात सुनो आमना,’’ मैं ने उस से प्यार से कहा, ‘‘मुझे तुम से हमदर्दी है. तुम औरत हो, अच्छे परिवार की हो. मैं तुम्हारी इज्जत का पूरा खयाल रखूंगा. मुझे पता है कि हत्या तुम ने नहीं की है. आज का दिन मैं तुम्हें अलग किए देता हूं. खूब सोच लो और मुझे सच सच बता दो. तुम्हें इस केस में बिलकुल अलग कर दूंगा. तुम्हें गवाही में भी नहीं बुलाऊंगा.’’

उस की हालत पतली हो चुकी थी. उस ने मेरी किसी बात का भी जवाब नहीं दिया. मैं ने कांस्टेबल को बुला कर कहा, इस बीबी को अंदर ले जाओ और बहुत आदर से बिठाओ. किसी बात की कमी नहीं आने देना. पुलिस वाले इशारा समझते थे कि उस औरत को हिरासत में रखना है.

गामे शाह आ गया. मेरा अनुभव कहता था कि हत्या उस ने नहीं की है. लेकिन हत्या के समय वह कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था? मैं ने उसे अंदर बुला कर पूछा कि कुल्हाड़ी ले कर कहां गया था.

उस ने एक गांव का नाम ले कर बताया कि वह वहां अपने एक चेले के पास गया था. मैं ने एक कांस्टेबल को बुलाया और गामे शाह के चेले का और गांव का नाम बता कर कहा कि वह उस आदमी को ले कर आ जाए.

‘‘जरा ठहरना हुजूर, मैं उस गांव नहीं गया था. बात कुछ और थी.’’ उस ने कहा.

वह बेंच पर बैठा था. मैं औफिस में टहल रहा था. मैं ने उस के मुंह पर उलटा हाथ मारा और सीधे हाथ से थप्पड़ जड़ दिया. वह बेंच से नीचे गिर गया और हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया.

असल बात उस ने यह बताई कि वह उस गांव की एक औरत से मिलने गया था, जिसे उस से गांव से बाहर मिलना था. कुल्हाड़ी वह अपनी सुरक्षा के लिए ले गया था. अब हुजूर का काम है, उस औरत को यहां बुला लें या उस से किसी और तरह से पूछ लें. मैं उस का नाम बताए देता हूं. किसी की हत्या कर के मैं अपने कारोबार पर लात थोड़े ही मारूंगा.

दिन का पिछला पहर था. मैं यह सोच रहा था कि आमना को बुलाऊं, इतने में एक आदमी तेजी से आंधी की तरह आया और कुरसी पर गिर गया. वह मेज पर हाथ मार कर बोला, ‘‘आमना को हवालात से बाहर निकालो और मुझे बंद कर दो. यह हत्या मैं ने की है.’’

वह कयूम था.

वह खुशी और कामयाबी का ऐसा धचका था, जैसे कयूम ने मेरे सिर पर एक डंडा मारा हो. यकीन करें, मुझ जैसा कठोर दिल आदमी भी कांप कर रह गया.

मैं ने कहा, ‘‘कयूम भाई, थोड़ा आराम कर लो. तुम गांव से दौड़े हुए आए हो.’’

उस ने कहा, ‘‘नहीं, मैं घोड़ी पर आया हूं, मेरी घोड़ी सरपट दौड़ी है. तुम आमना को छोड़ दो.’’

वह और कोई बात न तो सुन रहा था और न कर रहा था. मैं ने प्यार मोहब्बत की बातें कर के उस से काम की बातें निकलवाई. पता यह चला कि मैं ने आमना को जब हिरासत में बिठाया था तो किसी कांस्टेबल ने गांव वालों से कह दिया था कि आमना ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया है और उसे गिरफ्तार कर लिया गया है. गांव का कोई आदमी आमना के घर पहुंचा और आमना के पकड़े जाने की सूचना दी. कयूम तुरंत घोड़ी पर बैठ कर थाने आ गया.

‘‘कयूम भाई, अगर अपने होश में हो तो अकल की बात करो.’’

उस ने कहा, ‘‘मैं पागल नहीं हूं, मुझे लोगों ने पागल बना रखा है. आप मेरी बात सुनें और आमना को छोड़ दें. मुझे गिरफ्तार कर लें.’’

कयूम के अपराध स्वीकार करने की कहानी बहुत लंबी है. कुछ पहले सुना चुका हूं और कुछ अब सुना रहा हूं. मंजूर रशीद से बहुत तंग आ चुका था. वह गुस्सा अपने अंदर रोके हुए था. एक दिन आमना ने कयूम से कहा कि रशीद की हत्या करनी है. उसे खूब भड़काया और कहा कि अगर रशीद की हत्या नहीं हुई तो वह मंजूर की हत्या कर देगा.

कयूम आमना के इशारों पर नाचता था. वह तैयार हो गया. मंजूर से बात हुई तो योजना यह बनी कि रशीद बाग से शाम होने से कुछ देर पहले घर आता है. अगर वह रात को आए तो रास्ते में उस की हत्या की जा सकती है. उस का तरीका यह सोचा गया कि मंजूर रशीद के बाग में जा कर नाटक खेले कि वह दुश्मनी खत्म करने आया है और उसे बातों में इतनी देर कर दे कि रात हो जाए. कयूम रास्ते में टीलों के इलाके में छिप कर बैठ जाएगा और जैसे ही रशीद गुजरेगा तो कयूम उस पर कुल्हाड़ी से वार कर देगा.

यह योजना बना कर ही मंजूर रशीद के पास बाग में गया था. कयूम जा कर छिप गया. अंधेरा बहुत हो गया था. एक आदमी वहां से गुजरा, जहां कयूम छिपा हुआ था. अंधेरे में सूरत तो पहचानी नहीं जा सकती थी, कदकाठी रशीद जैसी थी.

कयूम ने कुल्हाड़ी का पहला वार गरदन पर किया. वह आदमी झुका, कयूम ने दूसरा वार उस के सिर पर किया और वह गिर कर तड़पने लगा.

कयूम को अंदाजा था कि वह जल्दी ही मर जाएगा, क्योंकि उस के दोनों वार बहुत जोरदार थे. पहले वह साथ वाले बरसाती नाले में गया और कुल्हाड़ी धोई. फिर उस पर रेत मली. फिर उसे धोया और मंजूर के घर चला गया.

वहां उस ने अपने कपड़े देखे, कमीज पर खून के कुछ धब्बे थे जो आमना ने तुरंत धो डाले. कुल्हाड़ी मंजूर की थी. आमना और कयूम बहुत खुश थे कि उन्होंने दुश्मन को मार गिराया.

उस समय तक तो मंजूर को वापस आ जाना चाहिए था. तय यह हुआ था कि मंजूर दूसरे रास्ते से घर आएगा. वह अभी तक घर नहीं पहुंचा था. 2-3 घंटे बीत गए. तब आमना ने कयूम से पूछा कि उस ने रशीद को पहचान कर ही हमला किया था. उस ने कहा कि वहां से तो रशीद को ही आना था, ऐसी कोई बात नहीं है कि वह गलती से किसी और को मार आया हो.

जब और समय हो गया तो उस ने कयूम से कहा कि जा कर देखो गलती से किसी और को न मारा हो. वह माचिस ले कर चल पड़ा. जा कर उस का चेहरा देखा तो वह मंजूर ही था.

कयूम दौड़ता हुआ आमना के पास पहुंचा और उसे बताया कि गलती से मंजूर मारा गया. आमना का जो हाल होना था वह हुआ, लेकिन उस ने कयूम को बचाने की तरकीब सोच ली.

उस ने कयूम से कहा कि वह अपने घर चला जाए और बिलकुल चुप रहे. लोगों को पता ही है कि रशीद की मंजूर से गहरी दुश्मनी है. मैं भी अपने बयान में यही कहूंगी कि मंजूर को रशीद ने ही मारा है.

कयूम को गिरफ्तार कर के मैं ने आमना को बुलाया और उसे कयूम का बयान सुनाया. कुछ बहस के बाद उस ने भी बयान दे दिया.

उन्होंने जो योजना बनाई थी, वह विफल हो गई. आमना का सुहाग लुट गया. लेकिन उस ने इतने बड़े दुख में भी कयूम को बचाने की योजना बनाई. मंजूर को लगा था कि वह रशीद की इस तरह से हत्या कराएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा कि हत्यारा कौन है.

मैं ने आमना और कयूम के बयान को ध्यान से देखा तो पाया कि आमना ने पति की मौत के दुख के बावजूद अपने दिमाग को दुरुस्त रखा और मुझे गुमराह किया. कयूम को लोग पागल समझते थे, लेकिन उस ने कितनी होशियारी से झूठ बोला.

मैं ने हत्या का मुकदमा कायम किया. कयूम ने मजिस्ट्रैट के सामने अपराध स्वीकार कर लिया. मैं ने आमना को गिरफ्तार नहीं किया था और कयूम से कहा था कि आमना का नाम न ले. यह कहे कि उसे मंजूर ने हत्या करने पर उकसाया था. कयूम को सेशन से आजीवन कारावास की सजा हुई, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे शक का लाभ दे कर बरी कर दिया.

एक हत्या ऐसी भी : कौन था मंजूर का कातिल? – भाग 4

रात को मैं थाने आ गया, जिन की जरूरत थी, उन सब को थाने ले आया. उन में रशीद भी था. रशीद मेरे लिए बहुत खास संदिग्ध था.

रात काफी हो चुकी थी. मैं आराम करने नहीं गया, बल्कि रशीद को लपेट लिया. उस की ऐसी हालत हो गई जैसे बेहोश हो जाएगा. मैं ने अपना सवाल दोहराया, तो उस की हालत और बिगड़ गई.

मैं ने उस का सिर पकड़ कर झिंझोड दिया, ‘‘तुम मंजूर के जाने के बाद जब बाग से निकले तो तुम्हारे हाथ में कुल्हाड़ी थी और तुम ने मुझे बताया कि सूरज डूबते ही तुम घर आ गए थे. मुझे इन सवालों का संतोषजनक जवाब दे दो और जाओ, फिर मैं कभी तुम्हें थाने नहीं बुलाऊंगा.’’

उस ने बताया, ‘‘हत्या करने से मुझे कुछ नहीं मिलना था. हुआ यूं था कि वह सूरज डूबने से थोड़ा पहले मेरे पास आया था. मैं उसे देख कर हैरान हो गया. मुझे यह खतरा नहीं था कि वह मेरे साथ झगड़ा करने आया था, सच बात यह है कि मंजूर झगड़ालू नहीं था.’’

‘‘क्या वह कायर या निर्लज्ज था?’’ मैं ने पूछा.

‘‘नहीं, वह बहुत शरीफ आदमी था. अब मुझे दुख हो रहा है कि मैं ने उस के साथ बहुत ज्यादती की थी. परसों वह मेरे पास आया था, मैं क्यारियों में पानी लगा रहा था. मंजूर ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कमरे के ऊपर ले गया. मैं समझा कि वह मुझ से बंटवारे की बात करने आया है. मैं ने सोच लिया था कि उस ने उल्टीसीधी बात की तो मैं उसे बहुत पीटूंगा, लेकिन उस ने मुझ से बहुत नरमी से बात की.

‘‘उस ने कहा, ‘हम लोग एक ही दादा की संतान हैं. हमें लड़ता देख कर दूसरे लोग हंसते हैं. मैं चाहता हूं कि हम सब भाइयों की तरह से रहें.’ मैं ने उस से कहा कि बाद में फिर झगड़ा करोगे तो उस ने कहा, ‘नहीं, मैं ये सब बातें भूल चुका हूं.’ वह रात होने तक बैठा रहा और जाते समय हाथ मिला कर चला गया.

‘‘मैं उस के जाने के आधे घंटे बाद बाग से निकला. उस वक्त मेरे हाथ में एक डंडा था, वह मैं आप को दिखा सकता हूं. मेरा रास्ता वही था, जहां मंजूर की लाश पड़ी थी. मैं उस जगह पहुंचा और माचिस जला कर देखा तो वह मंजूर की लाश थी. हर ओर खून ही खून फैला था.

‘‘मैं ने माचिस जला कर दोबारा देखा तो मुझे पूरा यकीन हो गया. दूर जहां से घाटी ऊपर चढ़ती है, मैं ने वहां एक आदमी को देखा. मैं उस के पीछे दौड़ा, हत्यारा वही हो सकता था. लेकिन वह अंधेरे में गायब हो चुका था. आगे खेत थे, मुझे इतना यकीन है कि वह आदमी गांव से ही आया था.’’

‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘यही बात तो मुझे फंसा रही है,’’ उस ने कहा, ‘‘मेरा फर्ज था कि मैं आमना को बताता, फिर अपने घर वालों को बताता. शोर मचाता, थाने जा कर रिपोर्ट करता, लेकिन मुझे एक खतरा था कि मंजूर की मेरे साथ लड़ाई हुई थी. सब यही समझते कि मैं ने उसे मारा है.

‘‘पैदा करने वाले की कसम, हुजूर मैं ने सारी रात जागते हुए गुजारी है. जब आप ने बुलाया तो मेरा खून सूख गया कि आप को पता लग गया है कि मरने से पहले मंजूर मेरे पास आया था.’’

मैं ने कहा, ‘‘दुश्मनी के कारण बहुत से होते हैं, हत्याएं हो जाती हैं.’’

‘‘हां हुजूर, जमीन के बंटवारे के अलावा मैं ने आमना पर भी बुरी नजर रखी थी. उस की इज्जत पर भी हाथ डाला था. मंजूर की जगह कोई और होता तो मेरी हत्या कर देता. सच बात तो यह है कि हत्या मेरी होनी थी, लेकिन मंजूर की हो गई.’’

मैं उठ कर बाहर गया और एक कांस्टेबल से कहा कि वह आमना को ले कर आ जाए. फिर अंदर जा कर रशीद का बयान सुनने लगा. वह सब बातें खुल कर कर रहा था. मुझे आमना से यह पूछना था कि वास्तव में उस ने मंजूर को रशीद के पास भेजा था, जबकि उस ने यह कहा था कि उसे पता ही नहीं था कि मंजूर कहां गया था.

‘‘एक बात सच सच बता दो रशीद, आमना कैसे चरित्र की है?’’

‘‘आप ने लोगों से पूछा होगा आमना के बारे में, सब ने उसे सज्जन ही बताया होगा. मेरी नजरों में भी आमना एक सज्जन महिला है, क्योंकि उस ने मुझे दुत्कार दिया था. लेकिन उस ने अपनी संतुष्टि के लिए एक आदमी रखा हुआ है, वह है कयूम.’’

‘‘कयूम तो पागल है.’’

‘‘पागल बना रखा है,’’ उस ने कहा, ‘‘लेकिन अपने मतलब भर का.’’

‘‘मैं ने सुना है कि उसे कोई भी अपनी बेटी का रिश्ता नहीं देता, क्योंकि वह पागल है?’’

‘‘यह बात नहीं है हुजूर, बेटियों वाले इसी गांव में हैं. वे देख रहे हैं कि कयूम आमना के जाल में फंसा हुआ है.’’

बहुत से सवालों के जवाब के बाद मुझे यह लगा कि रशीद सच बोल रहा है, लेकिन फिर भी मुझे इधरउधर से पुष्टि करनी थी. रशीद यह भी कह रहा था कि उसे हवालात में बंद कर के तफ्तीश करें.

गामे के 3 आदमी थाने में बैठे थे, मैं ने उन्हें बारी बारी बुला कर पूछा कि हत्या की पहली रात गामे कहां था और क्या उन्हें पता है कि मंजूर की हत्या गामे शाह या तुम में से किसी ने की है.

मैं ने पहले भी बताया था कि ऐसे लोगों से थाने में पूछताछ दूसरे तरीके से होती है. ये तीनों तो पहले ही थाने के रिकौर्ड पर थे. मैं ने एक कांस्टेबल और एक एएसआई बिठा रखा था. मैं एक से सवाल करता था और फिर उन्हें इशारा कर देता था, वे उसे थोड़ी फैंटी लगा देते थे.

सुबह तक यह बात सामने आई कि गामे शाह दूसरी औरतों की तरह आमना को भी खराब करना चाहता था. गामे शाह ने उन तीनों को तैयार करना चाहा था कि वे मंजूर की हत्या कर दें, लेकिन वे तैयार नहीं हुए. उस के बाद वह आमना का अपहरण कर के उसे बहुत दूर पहुंचाना चाहता था, लेकिन हत्या कोई मामूली बात नहीं थी, जो ये छोटेमोटे जुआरी करते.

कोई भी तैयार नहीं हुआ तो गामे शाह ने कहा कि वह खुद बदला लेगा. तीनों ने बताया कि उस शाम जब वे गामे शाह के मकान पर गए तो वह घर पर नहीं मिला. वे वहीं बैठ गए. बहुत देर बाद गामे शाह आया तो उस के हाथ में कुल्हाड़ी थी. उन्होंने उस से पूछा कि वह कहां गया था, उस ने कहा कि एक शिकार के पीछे गया था. इस के अलावा उस ने कुछ नहीं बताया.