जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 2

फार्महाउस के अहाते पर कांटेदार तार लगा हुआ था. अंदर दो मंजिला खूबसूरत मकान बना था जो बाहर से ही दिख रहा था. मैं बेहिचक गेट खोल कर अंदर दाखिल हो गया. अंदर एक कोने में हैंडपंप लगा था. मैं ने बेताब हो कर पानी निकाला और मुंह हाथ धो कर जीभर के पानी पिया. फिर वहीं रखी एक बाल्टी भर कर घोड़े के आगे रख दी.

फार्महाउस में मक्की की फसल लगी थी. हैंडपंप के पास ही भुट्टे के छिलके और पौधों के तने पड़े थे. मैं ने घोड़े को उस ढेर के पास खड़ा कर दिया ताकि वह पेट भर सके. मैं खुद भी भुट्टा तोड़ कर खाने लगा ताकि कुछ सुकून मिले.

अभी मैं भुट्टा खा ही रहा था कि घोड़े के हिनहिनाने की आवाज सुन मैं ने मुड़ कर देखा. एक हट्टाकट्टा मजबूत जिस्म का व्यक्ति मेरे ऊपर बंदूक ताने खड़ा था मुझे लगा जैसे अभी गोली चलेगी और मेरा काम तमाम हो जाएगा. वह मुझे घूरते हुए बोला, ‘‘कौन हो तुम? बिना इजाजत अंदर कैसे आ गए?’’

मैं ने उसे गौर से देखा, तांबे सा चमकता रंग, भूरे घुंघराले बाल, जो गर्दन तक लटके हुए थे. उस के चेहरे और जिस्म से ऐसी मर्दाना खूबसूरती नुमाया हो रही थी जो औरतों के लिए खास कशिश रखती है.

मैं ने नरम लहजे में कहा, ‘‘मैं बहुत प्यासा था, पानी की तलाश में यहां आ गया. मैं किसी गलत मकसद से यहां नहीं आया हूं.’’

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘जी, शमशेर.’’

उस ने मुझे घूरते हुए पूछा, ‘‘तुम कहां से आ रहे हो? जाना कहां है?’’

मैं ने अपने शहर का गलत नाम बता कर कहा, ‘‘मैं काम की तलाश में निकला हूं. अगर आप को मेरा आना नागवार लगा है तो मैं तुरंत वापस चला जाता हूं. आसपास कोई आश्रय ढूंढ़ लूंगा.’’ लेकिन मेरी बात से वह संतुष्ट नहीं हुआ और डपट कर बोला, ‘‘तुम्हारे पास कोई हथियार हो तो चुपचप निकाल कर दे दो.’’

मजबूरी थी, मैं ने अपना कट्टा और चाकू उसे दे दिया. इस के बाद उस के तेवर कुछ नरम पड़े. उस ने बंदूक से इशारा करते हुए कहा, ‘‘अपने घोड़े को इस पेड़ से बांध दो ताकि फसल में न घुसे और अंदर चलो.’’

मैं ने घोड़ा बांधा और उस के साथ मकान के अंदर दाखिल हो गया. मकान अंदर से बहुत अच्छा था, खूबसूरत फर्नीचर से सजा हुआ. पर इस से भी खूबसूरत वह औरत थी जो वहां मौजूद थी. उस ने खुला ढीला सा सुर्ख गाउन पहन रखा था. गुलाबी बेदाग रंगत, चमकती नीली आंखें, सुडौल जिस्म, उस की नीली आंखें बड़ी सर्द सी लगी. औरत और उस व्यक्ति का हुलिया यह बताने के लिए काफी था कि कुछ देर पहले दोनों अंदर किस तरह की स्थिति में रहे होंगे.

औरत ने उस व्यक्ति की तरफ देख कर कहा, ‘‘इसे अंदर लाने की क्या जरूरत थी?’’

‘‘जरूरत थी जानेमन.’’ उस ने मुसकुरा कर कहा और औरत का हाथ पकड़ कर दूसरे कमरे में चला गया. घर की सजावट और रहनसहन से लग रहा था कि वे काफी अमीर लोग हैं.

वह व्यक्ति मेरे हथियार अंदर रख कर बाहर आया तो उस के चेहरे पर मुसकुराहट और संतोष के भाव थे. अब उस का अंदाज ही बदला हुआ था. उस ने नरम लहजे में मुझ से कहा, ‘‘माफ करना शमशेर, हम लोग चूंकि वीराने में रहते हैं इसलिए जल्दी से किसी पर एतबार नहीं करते. कस्बा अजीरा भी यहां से थोड़ी दूरी पर है.’’

उस की बात सुन कर मैं ने इत्मीनान की सांस लेते हुए कहा, ‘‘यानि अब आप को यकीन आ गया कि मैं जरूरतमंद हूं.’’

वह कुछ नहीं बोला तो मैं ने कहा, ‘‘खैर, आप का शुक्रिया. अब अगर आप मेरे हथियार मुझे लौटा दें तो मैं जाना चाहूंगा.’’

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है? बैठो अभी.’’

इस बीच वह औरत भी ढंग के कपडे़ पहन कर आ गई थी. नीले रंग के सलवार कुर्ते में वह गजब ढा रही थी. इस से ज्यादा हसीन औरत मैं ने पहले कभी नहीं देखी थी. मैं भले ही सब तरह के गुनाहों में डूबा था, पर औरत से दूर रहा था. पर उस औरत को देख कर मेरा दिल अजब से अंदाज में धड़कने लगा था.

औरत ने मुसकुरा कर कहा, ‘‘खाने का वक्त है, मेरे हाथ का खाना तुम्हें पसंद आएगा.’’

मैं भूख से बेहाल था. मैं ने मुसकरा कर उस की पेशकश कुबूल कर ली.’’ वह व्यक्ति बोला. ‘‘मेरा नाम आहन है. ये मेरी बीवी तूबा है.’’

मैं ने खुशदिली से कहा, ‘‘इतना खूबसूरत जोड़ा मैं ने पहली बार देखा है. आप जैसे लोगों की मेहमाननवाजी मेरी खुशनसीबी है.’’

तारीफ सुन कर तूबा के गाल सुर्ख हो गए. वह खाना लगाने अंदर चली गई. इस बीच आहन शराब के 2 पेग बना लाया. शराब बड़ी जायकेदार थी, जल्द ही हम दोनों अच्छे दोस्तों की तररह पीते पीते बातें करने लगे. उस ने बताया कि वह फार्म में मक्की, गेहूं और सब्जियां उगाता है. मैं ने उस से बच्चों के बारे में पूछा तो वह कहकहा लाते हुए बोला, ‘‘फिलहाल हम दोनों अकेले हैं और जिंदगी का आनंद ले रहे हैं. बच्चे तो हो ही जाएंगे, पर ये हसीन पल फिर कहां आएंगे.’’

खाना बेहद मजेदार था, मटन टिक्के बड़े लजीज लगे. मैं ने जी भर खाया. खानेपीने के बाद मैं ने उस से करीबी शहर के बारे में पूछा.

‘‘फाटक के सामने की सड़क पर बाईं तरफ सीधे चले जाओ. रात तक तुम बहादुरगढ़ पहुंच जाओगे. वह एक बड़ा शहर है, वहां काम मिल जाएगा.’’ उस ने मुझे रास्ता बताया.

मैं ने उस से अपने हथियार मांग लिए जिन्हें देने में उस ने कोई आनाकानी नहीं की. मैं ने हथियार और पानी साथ रख लिया. घोड़ा भी खापी कर ताजादम हो चुका था. मैं ने अपना घोड़ा उस के बताए रास्ते पर डाल दिया. सूरज की तपिश कम हो चुकी थी. मैं दोढाई घंटे का सफर तय कर चुका था. अचानक मेरे पेट में तेज दर्द उठा. ऐसा लगा जैसे आंतें फटी जा रही हों. निस्संदेह वह जानलेवा दर्द था. तभी एकाएक मुझे उबकाई के साथ उलटी हो गई. सारा खायापीया बाहर आ गया.

उल्टी में खून देख कर मैं डर गया. उल्टी के बाद थोड़ा आराम जरूर मिला पर कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही थी, सिर चकरा रहा था. घोड़े पर बैठे रहना मुश्किल हो रहा था. दोनों हाथों से घोड़े की गरदन पकड़ कर मैं उस पर गिर सा गया. मेरा वफादार घोड़ा खुद ब खुद आगे बढ़ता रहा. पता नहीं मैं कब होशो हवास से बेगाना हो गया.

‘‘ऐ, होश में आओ.’’ किसी ने मेरे गाल पर थपकी मार कर कहा तो धीरेधीरे मेरी आंखें खुल गईं. मुझे अपने आसपास रोशनी सी महसूस हुई. कुछ देर में मुझे होश आ गया. उस वक्त मैं एक बग्घी में था जिस की छत पर रेशम का कपड़ा मढ़ा हुआ था. जो चेहरा मेरे सामने आया वह किसी अधेड़ उम्र के आदमी का था. हल्की खिचड़ी दाढ़ी, गोरा रंग, नरम चेहरा, सोने के फ्रेम का चश्मा. उस आदमी ने मुझ से बड़े प्यार से पूछा, ‘‘अब तुम कैसा महसूस कर रहे हो?’’

‘‘कमजोरी कुछ ज्यादा ही लग रही है. मैं कहां हूं?’’

उस ने जवाब में कहा, ‘‘मैं डा. जव्वाद हूं. तुम्हें किसी ने जहर दिया था. शुक्र है कि मैं वक्त पर पहुंच गया और तुम बच गए. मैं ने ही तुम्हारा इलाज किया है. गनीमत रही कि तुम्हें उल्टी हो गई थी जिस से जहर का असर कम हो गया था और मेरी दवा की खुराक कारगर साबित हुई. बच गए जनाब तुम.’’

मैं ने हैरानी से पूछा, ‘‘मुझे जहर दिया गया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे पेट में जहर था. एक जंगली जहरीली बूटी है जिस का पाउडर जहर का काम करता है. उस का कोई खास स्वाद या गंध नहीं होती. पानी में डालो तो हलका बादामी रंग झलकता है, शराब या किसी शरबत में तो पता भी नहीं चलता. खासियत यह है कि इस जड़ी को खाने के 2 ढाई घंटे बाद असर होता है.’’

मेरा दिमाग आहन द्वारा खाने के समय दी गई शराब की तरफ चला गया. शराब तो हम तीनों ने पी थी पर शायद उस ने मेरे गिलास में जहरीला पाउडर मिला दिया था. मैं ने पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि मुझे जहर दिया गया है?’’

‘‘ये तुम्हारी खुशनसीबी थी. ये जहरीली बूटी इसी इलाके में ही पाई जाती है और मैं इस के इलाज का एक्सपर्ट हूं. तुम्हारी कमीज पर जो उल्टी गिरी थी उस में खून भी था. उसे देख कर मुझे पता चल गया कि तुम्हें जहर दिया गया है. इसलिए मैं ने फौरन इलाज शुरू कर दिया था.’’

मैं सोचने लगा कि सचमुच यह इत्तेफाक ही है कि इस वीराने में ये रहमदिल डाक्टर मिल गया और उस के इलाज से मेरी जान बच गई. वरना मौत यकीनी थी. डाक्टर ने मुझे सोच में पड़ा देख पूछा, ‘‘तुम जा कहां रहे थे?’’

‘‘बहादुरगढ़.’’

‘‘पर तुम तो बहादुरगढ़ की उल्टी दिशा में सफर कर रहे थे?’’

‘‘या तो मेरा घोड़ा गलत दिशा में निकल आया होगा या फिर बताने वाले ने गलत दिशा बताई होगी.’’

मुझे अपने घोड़े की याद आई तो मैं ने पूछा, ‘‘मेरा घोड़ा कहां है?’’

‘‘वह देखो पीछे बंधा है.’’ उस ने इशारा कर के कहा, ‘‘दाना खा रहा है.’’ अपने घोड़े को देख मुझे बड़ी तसल्ली मिली.

सुहागन से पहले विधवा बनी स्नेहा – भाग 2

पुलिस ने बरामद कीं दोनों दोस्तों की लाशें

फिर देर किस बात की थी. पुलिस रायल गेस्टहाउस पहुंच गई, जो मौके से कुछ ही दूरी पर स्थित था. गेस्टहाउस पहुंच कर इंसपेक्टर सिंह अमर यादव को पूछते हुए सीधे अंदर घुस गए. मैनेजर वाले कमरे में एक 23 वर्षीय सांवले रंग का दुबलापतला गंदलुम कपड़े पहने युवक बैठा मिला. सामने पुलिस को देख उस को पसीना छूट गया.

”अमर यादव तुम हो?’’ गुर्राते हुए इंसपेक्टर सिंह बोले.

”हां जी सर, मैं ही अमर यादव हूं.’’ बेहद सम्मानित तरीके से उस ने जवाब दिया था, ”बात क्या है, क्यों मुझे खोज रहे हैं.’’

”अभी पता चल जाएगा बेटा. राहुल और गुलशन कहां हैं? तुम ने कहां छिपा कर दोनों को रखा है? सीधे तरीके से बता दे वरना…’’

”बताता हूं सर, बताता हूं. दोनों अब इस दुनिया में नहीं हैं,’’ बिना किसी डर के वह आगे कहता गया, ”मैं ने अपने साथियों के साथ मिल कर दोनों को मौत के घाट उतार दिया है और मैं करता भी क्या. मेरे पास इस के अलावा कोई और रास्ता भी नहीं बचा था.

”राहुल मेरे प्यार को मुझ से छीनने की कोशिश कर रहा था, इसलिए मैं ने अपने रास्ते का कांटा सदा के लिए हटा दिया. यहीं नहीं जो जो भी मेरे प्यार के रास्ते का रोड़ा बनेगा, मैं उसे ऐसे ही मिटाता रहूंगा.’’ और फिर अमर ने पूरी पूरी घटना विस्तार से उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने अमर यादव को गिरफ्तार कर लिया और उसी की निशानदेही पर 3 और आरोपियों अभिषेक राय, अनिकेत उर्फ गोलू और नाबालिग मनोज को शेषपुर से गिरफ्तार कर लिया. चारों को हिरासत में ले कर पुलिस ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल के पास बहने वाले कक्का धौला बुड्ढा नाला (भामियां) पास पहुंची, जहां आरोपियों ने हत्या कर राहुल और गुलशन की लाश कंबल में लपेट कर बोरे में भर कर फेंकी थीं.

थोड़ी मशक्कत के बाद राहुल और गुलशन गुप्ता की लाशें बरामद कर ली थीं. इस के बाद दोहरे हत्याकांड की घटना पल भर में समूचे लुधियाना में फैल गई थी. घटना से जिले में सनसनी फैल गई थी. लोगबाग कानूनव्यवस्था पर सवाल उठाने लगे थे.

खैर, इस घटना की सूचना मिलते ही पुलिस कमिश्नर मनदीप सिंह सिद्धू, डीसीपी (ग्रामीण) जसकिरनजीत सिंह तेजा, एडीसीपी (सिटी-2) सुहैल कासिम मीर और एसीपी (इंडस्ट्रियल एरिया-15) संदीप बधेरा मौके पर पहुंच गए थे.

खुशियां कैसे बदलीं मातम में

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया. दोनों में से राहुल की लाश विकृत हो चुकी थी. हत्यारों ने धारदार हथियार से उस की गरदन पर हमला किया था. उसे इतनी बेरहमी से मारा था कि उस की बाईं आंख बाहर निकल गई थी.

मौके पर मौजूद मृतक राहुल के पापा ने दिल पर पत्थर रख कर बेटे की पहचान कर ली थी. 4 महीने बाद उस की शादी होने वाली थी, उस से पहले ही वह दुनिया से विदा हो गया. घर में शादी की खुशियां मातम में बदल गई थीं. घर वालों का रोरो कर हाल बुरा हुए जा रहा था.

बहरहाल, पुलिस ने दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए लुधियाना जिला अस्पताल भेज दिया और चारों आरोपियों को अदालत में पेश कर उन्हें जेल भेज दिया. आरोपियों से की गई कड़ी पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी पुलिस के सामने आई, वह मंगेतर के बीच मोहब्बत की जंग पर रची हुई थी.

25 वर्षीय राहुल सिंह मम्मीपापा का इकलौता था. वही मांबाप के आंखों का नूर था और उन के जीने का सहारा भी. वह जवान हो चुका था और एक प्राइवेट कंपनी में एचआर की नौकरी भी करता था. अच्छा खासा कमाता था.

चूंकि राहुल जवान भी हो चुका था और कमा भी रहा था, इसलिए पापा अशोक सिंह ने सोचा कि बेटे की शादी वादी हो जाए. घर में बहू आ जाएगी तो उस की मम्मी को भी सहारा हो जाएगा. यही सोच कर अशोक सिंह ने अपने जानपहचान और रिश्तेदारों के बीच में बेटे की शादी की बात चला दी थी कि कोई अच्छी और पढ़ीलिखी बहू मिले जो घरगृहस्थी संभाल सके.

जल्द ही राहुल के लिए कई रिश्ते आए. उन में से जमालपुर थाना क्षेत्र स्थित मुंडिया कलां के रहने वाले अजय सिंह की बेटी स्नेहा घर वालों को पसंद आ गई. खुद राहुल ने भी उसे पसंद किया था.

स्नेहा पढ़ीलिखी और सुंदर थी. 2 बहनों और एक भाई में वह सब से बड़ी थी. राहुल और स्नेहा की शादी पक्की हो गई और फरवरी 2023 में दोनों की मंगनी भी हो गई और शादी फरवरी 2024 में होने की बात पक्की हुई.

इंस्टाग्राम के किस फोटो को ले कर हुई कलह

अपनी शादी तय होने से राहुल बहुत खुश था. अपने दिल का हर राज अपने खास दोस्तों गुलशन और सूरज के बीच शेयर करता था. मंगनी के दिन राहुल ने स्नेहा को देखा तो अपनी सुधबुध खो दी थी. वह थी ही इतनी सुंदर. उस की सुंदरता पर वह फिदा था.

उस के बाद दोनों के बीच फोन पर अकसर दिल की बातें होती रहती थीं. वह अपने दिल की बात स्नेहा से करता और स्नेहा अपने दिल की बातें मंगेतर से करती. धीरेधीरे दोनों के बीच प्यार हो गया था और वे चाहते थे कि उन का मिलन जल्द से जल्द हो जाए.

लेकिन उन का मिलन होने में अभी 4 महीने बचे थे. जैसे तैसे वे अपने दिल पर काबू किए थे. वह जून-जुलाई, 2023 का महीना रहा होगा, जब राहुल के परिवार पर दुखों के बादल मंडराने लगे थे.

एक दिन की बात थी. इंस्टाग्राम पर गुलशन अपना अकाउंट देख रहा था. अचानक उस की एक नजर ठहर गई और 2 फोटो देख कर वह चौंक गया.फोटो में स्नेहा किसी अमर यादव के साथ गलबहियों में चिपकी पड़ी थी. फिर उस ने फोटो का स्क्रीनशौट ले कर सेव कर लिया और सूरज को दिखाया. फोटो देख कर वह हैरान था, ये तो राहुल की होने वाली पत्नी स्नेहा है. उस के पीठ पीछे क्या गुल खिलाया जा रहा है. दोनों ने राहुल से सारी बातें साफसाफ बता दीं.

फिर राहुल ने समझदारी का परिचय देते हुए इंस्टाग्राम पर स्नेहा का अकाउंट चैक किया तो बात सच साबित हो गई थी. इस के बाद उस ने स्नेहा से बात की.

स्नेहा अपनी ओर से सफाई देती हुई बोली, ”आप ने जिस फोटो को देखा था, वो उस का अतीत था. कभी अमर नाम के लड़के से वह प्यार करती थी, लेकिन शादी पक्की होने के बाद से उस ने उस से अपनी ओर से रिश्ता तोड़ लिया है. वह अब अमर से नहीं मिलती. पुरानी बातों को मुद्दा बना कर वह उसे हर समय परेशान करता रहता है.’’

पूर्व प्रेमी और मंगेतर के बीच बढ़ता गया विवाद

राहुल को अपनी मंगेतर स्नेहा की बातों पर पूरा विश्वास हो गया था कि वह जो कह रही है, सच कह रही है. उस के बाद राहुल ने अमर यादव को सावधान करते हुए पोस्ट लिखा कि स्नेहा उस की होने वाली पत्नी है. आने वाले साल 2024 में हमारी शादी होनी है. तुम उस का पीछा करना छोड़ दो. उसे बदनाम न करो वरना इस का परिणाम बुरा हो सकता है.

इस पर अमर यादव ने भी पलट कर जवाब दिया था, ”स्नेहा उस का प्यार है. उसे वह टूट कर प्यार करता है. तेरे कारण उस ने उस से बात करनी बंद कर दी है और दूरदूर रहती है. मुझ से इस की जुदाई, उस की तन्हाई जीने नहीं देती. मेरे और मेरे प्यार के बीच में जो भी रोड़ा बनने की कोशिश करेगा, उसे हमेशा हमेशा के लिए मिटा दूंगा और तू भी समझ ले, अभी वक्त है हम दोनों के बीच से हट जा, उसी में तेरी भलाई है. नहीं तो मैं किस हद तक चला जाऊंगा, मुझे खुद भी नहीं पता.’’

उस दिन के बाद राहुल और अमर यादव के बीच स्नेहा को ले कर वर्चस्व की टेढ़ी लकीर खिंच गई थी. बारबार राहुल इंस्टाग्राम पर फोन कर के स्नेहा से दूर रहने को धमकाता था. वहीं अमर भी स्नेहा से दूर हट जाने को धमकाता था.

लिवइन पार्टनर का यह कैसा लव – भाग 1

ऋषभ सिंह और रिया के बीच 2-4 मुलाकातों में ही प्यार के बीज अंकुरित हो गए. ऋषभ रहने वाला प्रतापगढ़ का था, लेकिन लखनऊ में किराए पर फ्लैट ले कर पढ़ाई कर रहा था. उस के पिता सिंचाई विभाग में क्लर्क थे और बड़ा भाई प्रतापगढ़ में ही एक प्राइवेट स्कूल चलाता था. ऋषभ ने एमएससी तक की पढ़ाई की थी और एसएससी की तैयारी कर रहा था.

रिया और ऋषभ के बीच जैसेजैसे प्यार गहराता गया, वे एकांत में भी मिलने लगे. रिया ऋषभ के कमरे पर भी आनेजाने लगी. उसी दौरान ऋषभ को रिया के शराब पीने की आदत के बारे में भी मालूम हुआ. रिया शराब पीने के लिए क्लब जाती थी. ऋषभ को भी शराब पीने का शौक था, इसलिए ऋषभ ने उस की इस कमजोरी में अपने शौक को शामिल कर दिया. गाहे बगाहे दोनों शराब के लिए साथसाथ क्लब जाने लगे.

दोनों के एक साथ पीने पिलाने का एक असर यह हुआ कि वे एकदूसरे की अच्छाइयों और कमजोरियों से भी वाकिफ हो गए. वे आपस में बेहद प्यार करने लगे थे. रिया ने ऋषभ में एक जिम्मेदार मर्द की खूबियों के अलावा भविष्य में सरकारी नौकरीशुदा मर्द की पत्नी होने के सपने देखे. ऋषभ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए प्रतापगढ़ से लखनऊ आ गया था. वहीं के सुशांत गोल्फ सिटी में स्थित एक फ्लैट में रह रहा था.

बात 17 अगस्त, 2023 की शाम की है. करीब 3 बजे थे. उस दिन उस का मन कुछ उखड़ाउखड़ा था, लेकिन अपने दोस्त अमनजीत को ले कर फ्लैट में आया था. कालबेल दबाने वाला ही था कि उसे ध्यान आया कि वह तो पिछले कई दिनों से खराब है. अचानक उस का एक हाथ हैंडल पर चला गया और दूसरे हाथ से दरवाजे पर थपकी देने लगा. हैंडल के घूमते ही दरवाजा खुल गया. उस ने सोचा कि शायद भीतर की कुंडी ठीक से नहीं लगी होगी.

फ्लैट के अंदर पैर रखते ही उस ने दोस्त को ड्राइंगरूम में बिठा दिया और ‘रिया… रिया’ आवाज लगाई. कुछ सेकेंड तक रिया की आवाज नहीं आई, तब वह बोला, ”रिया! कहां हो तुम? देखो, आज मेरे साथ कौन आया है?’‘

फिर भी रिया की कोई आवाज नहीं आई. तब अमनजीत की ओर मुंह कर धीरे से बोला, ”शायद अपने कमरे में सो रही है…देखता हूं.’‘

इसी के साथ वह सीधा रिया के बेडरूम में चला गया. वहां रिया को बेसुध सोई हुई देख कर उसे नींद से जगाना ठीक नहीं समझा. जबकि सच तो यह था कि वह उसे जगाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था.

इस का कारण बीती रात रिया के साथ हुई उस की तीखी नोकझोंक थी. साधारण सी बात पर शुरू हुई नोकझोंक में जितना ऋषभ ने रिया को भलाबुरा कहा था, उस से कहीं अधिक जलीकटी बातें रिया ने सुना दी थीं. एक तरह से रिया ने अपना पूरा गुस्सा उस पर उतार दिया था. इस कारण वह रात को न तो ठीक से खाना खा पाया था और न ही सो पाया था.

सुबह होने पर ऋषभ ने रिया को नाराजगी के मूड में ही पाया. गुमसुम बनी रसोई का काम निपटाने लगी थी. इस दौरान न तो ऋषभ ने रिया से एक भी शब्द बोला और न ही रिया ने अपनी जुबान खोली. उस ने अनमने भाव से नाश्ता किया.

ऋषभ बीती रात से ले कर सुबह तक की यादों से तब बाहर निकला, जब अमन ने आवाज लगाई, ”ऋषभ! क्या हुआ सब ठीक तो है न! रिया कहीं गई है क्या?’‘

”अरे नहीं यार, अभी वह सो रही है, लगता है गहरी नींद में है! किसी को नींद से जगाना ठीक नहीं होता.’‘ ऋषभ वहीं से तेज आवाज में बोला.

”कोई बात नहीं तुम यहां आ जाओ.’‘ अमन बोला और ऋषभ ने बेडरूम का दरवाजा खींच कर बंद कर दिया. संयोग से दरवाजे के हैंडल पर उस का हाथ तेजी से लग गया और दरवाजा खट की तेज आवाज के साथ बंद हो गया. इसी खटाक की आवाज में रिया की नींद भी खुल गई.

रिया और ऋषभ में क्यों होता था झगड़ा

ऋषभ ड्राइंगरूम में अमन के पास आ गया था. कुछ सेकेंड में ही रिया भी आंखें मलती हुई किचन में चली गई थी. किचन में जाते हुए उस की नजर अमनजीत पर भी पड़ गई थी. अमनजीत ने भी उसे देख लिया था और तुरंत बोल पड़ा, ”भाभीजी नमस्ते! कैसी हैं!’‘

थोड़ी देर में ही रिया ने एक ट्रे में पानी भरे 2 गिलास ला कर अमनजीत की ओर बढ़ा दिए थे. अमनजीत ने भी पानी पी कर खाली गिलास ट्रे में रख दिया था.

रिया अमनजीत से परिचित थी और यह भी जानती थी कि वह ऋषभ का जिगरी दोस्त है. इस कारण उस के मानसम्मान में कोई कमी नहीं रखती थी. अमन से औपचारिक बातें करने के बाद दोबारा किचन में चली गई.

कुछ मिनटों में ही रिया अमन और ऋषभ के पास 3 कप चाय ट्रे में ले कर उन के सामने स्टूल पर बैठ गई थी. वास्तव में अमन को ऋषभ के साथ आया देख कर रिया कुछ अच्छा महसूस कर रही थी. वह भी बीती रात से ले कर कुछ समय पहले तक के मानसिक तनाव से उबरना चाह रही थी.

चाय का कप उठा कर मुसकराते हुए अमन की ओर बढ़ा दिया. अमन कप पकड़ता हुआ बोला, ”भाभीजी, आप ठीक तो हैं न! कैसा हाल बना रखा है, लगता है सारी रात ठीक से सो नहीं पाईं?’‘

रिया चुप बनी रही. ऋषभ भी चुप रहा. कुछ सेकेंड बाद रिया धीमी आवाज में बोली, ”यह अपने दोस्त से पूछो, तुम्हारे सामने तो बैठे हैं.’‘

”क्यों भाई ऋषभ,’‘ अमन दोस्त की ओर मुखातिब हो कर बोला.

”अरे, यह क्या बोलेंगे. इन्होंने तो मेरी जिंदगी में भूचाल ला दिया है…अब बाकी बचा ही क्या है. इसे तुम ही समझाओ.’‘ रिया थोड़ी तल्ख आवाज में बोली.

”क्या बात हो गई. तुम दोनों के बीच फिर कुछ तकरार हुई है क्या?’‘ अमनजीत बोला.

”तकरार की बात करते हो, युद्ध हुआ है युद्ध. बातों का युद्ध.’‘ रिया नाराजगी के साथ बोली.

थोड़ी सांस ले कर फिर बोलना शुरू किया, ”कई साल मेरे साथ गुजारने के बाद कहता है कि शादी नहीं कर सकता. इस के चक्कर में मैं ने अपने घर वालों को छोड़ दिया. …और अब यह कह रहा है कि शादी नहीं कर सकता, अब तुम्हीं बताओ कि मैं कहां जाऊं? क्या करूं? जहर खा लूं क्या, इस के नाम का?’‘

”भाभी जी ऐसा नहीं कहते. जान लेनेदेने की बात तो दिमाग में आने ही न दें.’‘ अमन ने रिया को समझाने की कोशिश की.

”यही तो मेरी जिंदगी बन गई है. कहां तो मुझ पर बड़ा प्यार उमड़ता था. कहता था, तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, एक पल भी नहीं गुजार सकता. जल्द शादी कर लेंगे, अपनी नई दुनिया बसाएंगे. कहां गईं वे प्यार की बातें? कहां गए वायदे…जिस के भरोसे मैं बैठी रही.’‘

रिया ने जब अपने मन की भड़ास पूरी तरह से निकाल ली तब अमन ऋषभ सिंह से बोला, ”क्यों भाई ऋषभ, ये क्या सुन रहा हूं? रिया जो कह रही है क्या वह सही है? अगर हां तो तुम्हें इस की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था.’‘

ऋषभ अपने दोस्त की बातें चुपचाप सुनता रहा. उस की जुबान से एक शब्द नहीं निकल रहा था. उस की चुप्पी देख कर अमन फिर बोलने लगा, ”तुम रिया से शादी क्यों नहीं कर रहे हो? उस की उपेक्षा कर तुम एक औरत की जिंदगी के साथ खिलवाड़ कर रहे हो… देखो भलाई इसी में है कि तुम जितनी जल्द हो सके, रिया से शादी कर लो और इसे समाज में सिर उठा कर चलने का मानसम्मान दो.’‘

मानसम्मान की बात सुनते ही ऋषभ बिफर पड़ा. कड़वेपन के साथ बोला, ”तुम किस मान सम्मान की बात कर रहे हो, इस ने आज तक मेरा सम्मान किया है? …भरी पार्टी में शराब पी कर मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ा चुकी है. शादी की बात करते हो! इसे तो शादी के बाद मेरे मम्मीपापा के साथ रहना भी पसंद नहीं है. उस के लिए साफ मना कर चुकी है…तो इस के साथ कैसे शादी कर सकता हूं?’‘

अमन को ऋषभ की बातों में दम नजर आया. वह इस सच्चाई से अनजान था. अजीब दुविधा में फंसा अमन समझ नहीं पा रहा था कि आखिर वह किस का पक्ष ले और किसे कितना समझाए? फिर भी उस रोज अमन ने दोनों को सही राह पर चलने और जल्द से जल्द किसी सम्मानजनक नतीजे पर पहुंचने की सलाह दी.

जिंदगी के रंग निराले : कुदरत का बदला या धोखे की सजा? – भाग 1

मेरा नाम शमशेर है. जो बात मैं बताने जा रहा हूं वह 35-40 साल पुरानी है. मेरा बाप तांगा चलाता था. इस काम में हमारी अच्छे से गुजरबसर  हो जाती थी. जब मैं 11-12 साल का था, मेरा बाप एक एक्सीडेंट में चल बसा. मां ने तांगा घोड़ा किराए पर चलाने को दे दिया. वह बड़ी मेहनती औरत थी और घर में बैठ कर सिलाई का काम करती थी. इस तरह हमारी जिंदगी की गाड़ी चलने लगी.

मां मुझे पढ़ाना चाहती थी. पर मेरा पढ़ाई में जरा भी मन नहीं लगता था. वैसे मुझे अंगरेजी जरूर अच्छी लगती थी. अंगरेजी को मैं बड़े ध्यान से पढ़ता और सीखता था. इसी वजह से 9वीं क्लास में मैं अंगरेजी के अलावा सारे विषयों में फेल हो गया.

फेल होने के बाद स्कूल से मेरा मन एकदम उचाट हो गया था. मैं ने पढ़ाई छोड़ दी. उन्हीं दिनों मेरी दोस्ती गलत किस्म के कुछ युवकों से हो गई. दोस्तों के साथ रह कर मुझे कई तरह के ऐब लग गए. सिगरेट पीना, ताश खेलना, होटलों में जाना मेरी आदतों में शामिल हो गया. इस के लिए पैसे की जरूरत होती थी. पैसे के लिए मैं दोस्तों के साथ मिल कर हाथ की सफाई भी करने लगा.

इस में कोई दो राय नहीं कि बुराई शैतान की आंत की तरह होती है. एक बार शुरू हो जाए तो रुकना आसान नहीं होता. मां ने मुझे फिर से स्कूल भेजने की बहुत कोशिश की पर गुनाह की आदत ने मुझे पीछे नहीं लौटने दिया.

धीरेधीरे मैं जुए में माहिर हो गया. मेरे पास पैसे की रेलपेल होने लगी. ताश के पत्ते मेरे हाथ में आते ही जैसे मेरे गुलाम हो जाते थे. मेरी चालाकी ने मुझे जीतने का हुनर सिखा दिया था. जीतने की कूवत ने मेरी मांग भी बढ़ा दी और शोहरत भी. अब बाहर की पार्टियां भी मुझे बुला कर जुआ खिलवाने लगीं. इस काम में मुझे अच्छाखासा पैसा मिल जाता था. जिंदगी ऐश से गुजर रही थी.

देखतेदेखते मैं 23 साल का गबरू जवान बन गया. मेरी मां से मेरी बरबादी बरदाश्त न हुई और एक दिन वह सारे दुखों से निजात पा गई. मां की मौत के बाद मुझे कोई रोकने टोकने वाला नहीं था. जुए की महारत ने जहां कई दोस्त बनाए वहीं बहुत से दुश्मन भी बन गए. दोस्त तो पैसे के यार होते हैं. मैं ने ऐसे ही दोस्तों के साथ छोटा सा एक गिरोह बना लिया ताकि दुश्मनों से निपटा जा सके. हम लोग अपने पास चाकू कट्टे भी रखने लगे.

एक दिन मैं जुआखाने में एक बड़े गिरोह के सूरमा के साथ जुआ खेल रहा था. शुरू में वह जीतता रहा फिर अचानक बाजी पलट गई. मैं लगातार जीतने लगा,  नोटों का ढेर बढ़ता गया. यह देख उस के साथी गाली गलोच पर उतर आए. गुस्से में मैं ने खेल रोक कर जैसे ही नोट समेटने चाहे उन लोगों के हाथों में चाकू और पिस्तौल चमकने लगे. मेरे साथियों ने भी हथियार निकाल लिए. गोलियों चलने लगीं.

उसी दौरान एक गोली मेरे बाजू से रगड़ती हुई निकल गई. इस से मुझ पर जुनून सा तारी हो गया. हम 4 लोग थे और वो 7-8. दोनों तरफ से घमासान शुरू हो गया. 3 लोग जमीन पर गिर कर तड़पने लगे. दूसरे लोग चीखतेचिल्लाते हुए बाहर भागे. मैं और मेरे साथी भी सारे नोट समेट कर वहां से भाग लिए. अंधेरे ने हमारा साथ दिया. पीछे से पकड़ो पकड़ो की आवाजों के साथ गोलियां चल रही थीं. भागते भागते मेरा एक साथी भी चीख कर ढेर हो गया.

मैं ने जल्दी से रास्ता बदला और एक तंग गली से होता हुआ एक टूटीफूटी वीरान बिल्डिंग के जीने के नीचे दुबक गया. मेरे साथी पता नहीं किधर निकल गए. मैं घंटों वहां बैठा रहा. रात का गहरा सन्नाटा फैल चुका था. कहीं कोई आहट नहीं थी. मैं छिपते छिपाते घर पहुंचा और अपना घोड़ा ले कर एक अनजानी दिशा की तरफ बढ़ गया.

मैं मौत के मुंह से निकला था और बुरी तरह घबराया हुआ था. जुए से कमाए पैसे मैं ने घर के अंदर कपड़ों में छिपा कर रख रखे थे. मुझ में इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि उन पैसों को ले आता. अभी तक मैं ने चोरी, लूट और जुआ जैसी छोटीछोटी वारदातें की थीं. मेरे हाथों कत्ल पहली बार हुआ था. मैं ने अपराध भले ही किए थे, लेकिन अभी तक मेरे अंदर का इंसान मरा नहीं था. मेरे हाथों किसी की जान गई है, यह अहसास मुझे मन ही मन विचलित कर रहा था.

मुझे ये पता नहीं था कि मेरे हाथों से कितने लोग मरे हैं, पर मेरा निशाना चूंकि अच्छा था इसलिए मुझे लग रहा था कि कत्ल मेरे हाथों ही हुआ होगा. एक मरे या दो, गुनाह तो गुनाह है और इस गुनाह की सजा मौत है. अगर मैं पुलिस के हाथ लग जाता तो वह मेरी एक नहीं सुनती क्योंकि पुलिस में भी मेरा रिकौर्ड खराब था.

जुए में जीतने की मेरी शोहरत की वजह से मेरे दुश्मनों की कमी नहीं थी. निस्संदेह वे मेरे खिलाफ गवाही दे कर मेरी मौत का सामान कर देते और अगर मैं इत्तफाक से सूरमा के गिरोह के हाथ लग जाता तो वे लोग मेरे टुकड़ेटुकड़े करने में जरा भी देर नहीं लगाते क्योंकि उन के 3-4 आदमी मरे थे.

मुझे जल्द से जल्द वहां से बहुत दूर चले जाना था इसलिए मैं ने जंगल का सुनसान रास्ता पकड़ा. पता नहीं मैं कब तक घोड़ा दौड़ाता रहा. जब घोड़े ने थक कर आगे बढ़ने से इनकार कर दिया और मैं भी भूखप्यास और थकान से पस्त हो गया तो एक साफ जगह देख कर रुक गया. तब तक दिन का उजाला फैलने लगा था. मैं ने घोड़े को एक पेड़ से बांधा और उसी पेड़ के नीचे लेट गया.

जिस वक्त सूरज की तेज तपिश से मेरी आंखें खुलीं तब तक दिन काफी चढ़ आया था. घोड़ा भी आसपास की घासपत्ती खा कर ताजादम हो गया था.

मैं ने पानी की तलाश में आसपास नजर दौड़ाई, लेकिन दूरदूर तक छितराए पेड़ों और झाडि़यों के अलावा कुछ नजर नहीं आया. वह पूरा इलाका सूखा बंजर सा था. मजबूरन मैं ने फिर से अपना सफर शुरू कर दिया. मैं जानबूझ कर बस्तियों से बच कर चल रहा था इसलिए कोई कस्बा या शहर भी रास्ते में नहीं आया. दोपहर तक भूख ने मेरी हालत खराब कर दी. इस के बावजूद मैं किसी ऐसी जगह पहुंच कर रुकना चाहता था जहां मेरे दुश्मन मुझ तक न पहुंच सकें. अब तक मैं काफी दूर निकल आया था. इसलिए जंगल का रास्ता छोड़ कर मैं सड़क पर आ गया.

भूखप्यास बरदाश्त से बाहर होती जा रही थी. मुझे लग रहा था कि अगर कुछ देर और दानापानी नहीं मिला तो घोड़ा भी नहीं चल पाएगा. मैं ने लस्तपस्त हो कर अपना सिर घोड़े की पीठ पर रख दिया और सोचने लगा कि पता नहीं जिंदगी मिलेगी या मौत. घोड़ा धीमी गति से चलता रहा. कुछ देर बाद मैं ने भूख और धूप से चकराया हुआ अपना सिर उठाया तो सामने एक फार्म हाउस देख कर आंखों पर यकीन नहीं हुआ.

सुहागन से पहले विधवा बनी स्नेहा – भाग 1

23 वर्षीय गुलशन गुप्ता ड्यूटी से थकामांदा कुछ ही देर पहले घर पहुंचा था, तभी उस ने फोन देखा तो पता चला कि उस के जिगरी यार राहुल सिंह का कई बार फोन आ चुका था. उस ने सोचा कि पता नहीं राहुल ने क्यों फोन किया है.

झट से उस ने राहुल को फोन कर वजह पूछी तो राहुल बोला, ”गुलशन, तू घर पहुंच गया हो तो मेरे घर आ जा, कहीं चलना है.’’

”ठीक है, मैं आता हूं.’’ गुलशन ने कहा और उस ने अपनी मम्मी से चाय बनवाई.

वह चाय की चुस्की ले फटाफट हलक के नीचे गरमागरम उतारता गया. मिनटों में चाय की प्याली खाली कर अपनी बाइक निकाली और मम्मी को दोस्त राहुल के घर जाने की बात कह कर चल दिया. कुछ देर बाद वह राहुल के घर पहुंच गया था. यह बात 16 सितंबर, 2023  की है.

गुलशन गुप्ता पंजाब के लुधियाना जिले की डाबा थानाक्षेत्र के न्यू गगन नगर कालोनी में मम्मी सोनी देवी और 3 बहनों के साथ रहता था. उस के पापा की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. मां सोनी देवी और खुद गुलशन यही दोनों मिल कर परिवार की जिम्मेदारी संभाले हुए थे.

गुलशन का दोस्त 25 वर्षीय राहुल सिंह लुधियाना के माया नगर में अपने मम्मीपापा के साथ रह रहा था. वह अपने मम्मीपापा की इकलौती संतान था. सब का लाडला था. उस की एक मुसकान से मांबाप की सुबह होती थी. वह अपनी जो भी ख्वाहिश उन के सामने रखता था, वह पूरी कर देते थे. पापा अशोक सिंह एक प्राइवेट कंपनी में थे, पैसों की उन के पास कोई कमी नहीं थी, बेटे पर वह अपनी जान छिड़कते थे.

गुलशन को देख कर राहुल का चेहरा खुशी से खिल उठा था तो गुलशन ने भी उसी अंदाज में राहुल के साथ रिएक्ट किया था. वैसे ऐसा कोई दिन नहीं होता था, जब वे एकदूसरे से न मिलते हों. इन की यारी ही ऐसी थी कि बिना मिले इन्हें चैन नहीं आता था. ये जिस्म से तो दो थे, लेकिन जान एक ही थी.

खैर, राहुल गुलशन के ही आने का इंतजार कर रहा था. उस के आते ही उस की बाइक अपने घर के सामने खड़ी कर दी और बाहर खड़ी अपनी एक्टिवा ड्राइव कर गुलशन को पीछे बैठा कर मम्मी से थोड़ी देर में लौट कर आने को कह निकल गया.

दोनों दोस्त कैसे हुए लापता

राहुल सिंह के साथ गुलशन गुप्ता को निकले करीब 4 घंटे बीत गए थे, लेकिन न तो राहुल घर लौटा था और न गुलशन ही घर लौटा था. और तो और दोनों के सेलफोन भी बंद आ रहे थे.

राहुल के जितने भी दोस्त थे, पापा अशोक सिंह ने सब के पास फोन कर के उस के बारे में पूछा. यही नहीं लुधियाना में रह रहे अपने रिश्तेदारों और चिरपरिचितों से भी राहुल के बारे में पूछ लिया था, लेकिन किसी ने भी उस के वहां आने की बात नहीं कही.

दोनों के घर वालों ने रात आंखों में काट दी थी. अगले दिन 17 सितंबर को सुबह 10 बजे राहुल के पापा अशोक सिंह और गुलशन की मम्मी सोनी देवी दोनों डाबा थाने जा पहुंचे. उन्होंने राहुल और गुलशन के गायब होने की पूरी बात बता दी. गुलशन की मम्मी सोनी देवी ने बताया कि सर, हमें पूरा यकीन है कि हमारे बच्चों का अमर यादव ने अपहरण किया है.

”क्या..?’’ सोनी देवी की बात सुन कर इंसपेक्टर सिंह उछले, ”अमर यादव ने आप के बच्चों का अपहरण किया है? लेकिन यह अमर यादव है कौन और उस ने दोनों का अपहरण क्यों किया?’’

अमर यादव पर क्यों लगाया अपहरण का आरोप

सोनी देवी ने राहुल और गुलशन के अपहरण किए जाने की खास वजह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को बता दी. उन की बातों में दम था. फिर इंसपेक्टर ने राहुल और गुलशन की एक एक फोटो मांगी तो उन्होंने दोनों के फोटो उन के वाट्सऐप पर सेंड कर दिए.

सोनी ने लिखित तहरीर इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को सौंप दी थी. इस बीच एक जरूरी काल आने के बाद अशोक सिंह वहां से जा चुके थे. उधर कुलदीप सिंह ने सोनी देवी से तहरीर ले कर अपने पास रख ली और आवश्यक काररवाई करने का आश्वासन दे कर उन्हें वापस घर भेज दिया था.

राहुल सिंह के पिता अशोक सिंह को एक परिचित ने फोन कर के बताया कि टिब्बा रोड कूड़ा डंप के पास लावारिस हालत में राहुल की एक्टिवा खड़ी है और वहीं मोबाइल फोन भी पड़ा है. यह सुन कर वह इंसपेक्टर कुलवीर सिंह से टिब्बा रोड चल दिए थे. वह जैसे ही वहां पहुंचे, सफेद एक्टिवा और मोबाइल देख कर अशोक पहचान गए, दोनों ही चीजें उन के बेटे राहुल की थीं.

अभी वह खड़े हो कर कुछ सोच ही रहे थे कि उसी वक्त एक और चौंका देने वाली सूचना उन्हें मिली. टिब्बा रोड से करीब 2 किलोमीटर दूर वर्धमान कालोनी से गुलशन का मोबाइल फोन बरामद कर लिया गया.

राहुल की एक्टिवा और दोनों के लावारिस हालत में पड़े हुए फोन की सूचना अशोक ने डाबा थाने के इंसपेक्टर कुलवीर सिंह को फोन द्वारा दे दी थी. सूचना मिलने के बाद कुलवीर सिंह मय दलबल के मौके पर पहुंच गए, जहां अशोक सिंह खड़े उन के आने का इंतजार कर रहे थे.

दोनों मोबाइल फोन बंद थे. इंसपेक्टर कुलवीर सिंह ने दोनों फोन औन किए. उन्होंने राहुल के फोन की काल हिस्ट्री चैक की तो पता चला कि बीती रात साढ़े 5 बजे के करीब उस के फोन पर एक नंबर से फोन आया था. उसी नंबर से 15 सितंबर को करीब 3 बार काल आई थी.

इंसपेक्टर सिंह ने इस नंबर पर काल बैक किया तो वह नंबर लग गया. काल रिसीव करने वाले से उस का नाम पूछा गया तो उस ने अपना नाम अमर यादव बताया और टिब्बा रोड स्थित रायल गेस्टहाउस का कर्मचारी होना बताया.

अमर यादव का नाम सुन कर वह चौंक गए, क्योंकि सोनी देवी ने भी बच्चों के अपहरण करने की अपनी आशंका इसी के प्रति जताई थी और राहुल के फोन में आखिरी काल भी अमर यादव की ही थी. इस का मतलब था कि राहुल और गुलशन के गायब होने में कहीं न कहीं से अमर यादव का हाथ हो सकता है.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 3

सुबहसुबह साल्वी का फोन घनघना उठा. सोहम का एक दोस्त जो उस के साथ वाले फ्लैट में रहता था, उस ने जो बताया, सुन कर साल्वी के पैरों तले से जमीन खिसक गई. अकबकाई सी वह जिन कपड़ों में थी, उन्हीं कपड़ों में भागी. उस के साथ निधि भी थी.

दोनों सोहम के कमरे पर पहुंच गईं. वहां जा कर देखा तो सोहम बेहोशी की हालत में पड़ा था. इस हालत में उसे देख कर साल्वी घबरा गई. दोनों किसी तरह उसे पास के अस्पताल में ले गईं. मगर डाक्टर ने यह कह कर इलाज करने से मना कर दिया कि यह पुलिस केस है. जब तक पुलिस नहीं आ जाती, वह इलाज नहीं कर सकते.

अस्पताल से पुलिस को फोन कर दिया गया. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. साल्वी का तो रोरो कर बुरा हाल था. अगर निधि वहां नहीं आती तो पता नहीं कौन उसे संभालता. इस बीच उस के दोस्त ने बताया कि रात को उस ने बड़े अनमनेपन से थोड़ा सा खाना खाया था. उस ने पूछा भी कि सब ठीक तो है, कोई परेशानी तो नहीं पर वह सब ठीक है कह कर कमरे में जा कर सो गया.

जब कुछ देर बाद वह भी कमरे में गया तो दंग रह गया क्योंकि वहां नींद की गोलियों की खाली शीशी पड़ी थी और सोहम अचेत पड़ा हुआ था. उसे समझते देर नहीं लगी कि सोहम ने नींद की गोलियां खा ली हैं लेकिन उस की सांसें चल रही थीं. कुछ न सूझा तो घबरा कर उस ने साल्वी को फोन कर दिया था.

घंटों इंतजार के बाद जब डाक्टर ने आ कर बताया कि सोहम खतरे से बाहर है और पुलिस उस का बयान ले सकती है, तो सब की जान में जान आई.

पुलिस पूछताछ के दौरान सोहम बस यही कहता रहा कि किसी ने उसे मरने पर मजबूर नहीं किया, बल्कि उस ने अपनी मरजी से यह फैसला लिया था, क्योंकि थक चुका था वह अपनी जिंदगी से.

पूछताछ कर के पुलिस तो चली गई लेकिन साल्वी यह मानने को तैयार नहीं थी कि सोहम जो बोल रहा है, वह सच है. कोई तो बात जरूर है, जो वह सब से छिपा रहा है.

अस्पताल से आने के बाद साल्वी ने उस से पूछा, ‘‘क्यों किया तुम ने ऐसा सोहम? क्या एक बार भी तुम्हें अपने मातापिता का खयाल नहीं आया? तुम ने यह नहीं सोचा कि तुम्हारी 2-2 जवान बहनें हैं, उन का क्या होगा? बताओ न क्यों किया तुम ने ऐसा? जानती हूं कोई तो ऐसी बात है जो तुम हम से छिपा रहे हो. बोलो, क्या बात है, तुम्हें मेरी कसम. हमारे प्यार की कसम.’’

यह सब सुनने के बाद सोहम अपने आंसुओं का सैलाब रोक नहीं पाया और एकएक कर साल्वी को सारी बातें बता दीं. सुन कर साल्वी का पूरा शरीर कंपकंपा गया.

‘‘इतनी बड़ी बात हो गई और तुम ने मुझे बताना जरूरी नहीं समझा. लेकिन तुम ने आत्महत्या करने की कोशिश क्यों की? यह नहीं सोचा कि उस नागिन को सजा दिलवानी है.’’ साल्वी हैरानी से सवाल पर सवाल किए जा रही थी और सोहम अपने बहते आंसू पोंछे जा रहा था.

‘‘अब बच्चों की तरह रोना बंद करो और मेरी बात सुनो. वह तुम्हें फिर बुलाएगी और तुम जाओगे. हां, जाओगे तुम. लेकिन ऐसे नहीं पूरी तैयारी के साथ. उस से पहले हमें पुलिस के पास जा कर सारी सच्चाई बतानी होगी.’’

साल्वी के समझाने के बाद सोहम थाने पहुंच गया और एकएक कर सारी बातें पुलिस को बताईं. हकीकत जानने के बाद थानाप्रभारी समझ गए कि मामला गंभीर है. इसलिए उन्होंने सोहम को फिर मनोरमा के पास जाने को कहा, मगर पूरी तैयारी के साथ, जिस से सबूत के साथ उसे पकड़ा जा सके.

4-5 दिन बाद मनोरमा ने सोहम को फोन किया, ‘‘सोहम, कहां थे तुम इतने दिनों तक? अपना फोन भी नहीं उठा रहे हो. एक काम करो, आज रात यहां आ जाओ. एक जगह माल पहुंचाना है.’’

योजनानुसार सोहम उस के यहां पहुंच गया. उस ने वहां जा कर फिर से वही बात छेड़ी, ‘‘नहीं, अब मैं आप की एक भी बात नहीं मानने वाला और क्या लगता है आप को, आप अपनी अंगुलियों पर मुझे नचाती रहेंगी और मैं नाचता रहूंगा. नहीं, अब ऐसा नहीं होगा मैडम.’’

‘‘पता भी है तुम्हें, तुम क्या बोल रहे हो? एक मिनट भी नहीं लगेगा मुझे तुम्हें सलाखों के पीछे पहुंचाने में. समझ रहे हो तुम?’’ मनोरमा ने धमकी दी.

‘‘हां, मैं सब समझ रहा हूं और देख भी रहा हूं कि एक औरत ऐसी भी हो सकती है. आप को पता है न आंटी, उस वीडियो में जो भी है, वह गलत है. मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरी बेहोशी का फायदा उठाया और मेरे साथ…’’

‘‘चुप क्यों हो गए, बोलो न कि मैं ने तुम्हारा रेप किया. हां, किया ताकि तुम्हें अपनी मुट्ठी में कर सकूं.’’ बोलते बोलते मनोरमा ने अपने ड्रग्स के सालों से चले आ रहे धंधे के बारे में भी बोलना शुरू कर दिया. वह बोलती चली गई, मगर उसे यह नहीं पता था कि उस की सारी बातें रिकौर्ड हो रही थीं और बाहर खड़ी पुलिस भी उस की बातें सुन रही थी.

‘‘देख लिया न इंसपेक्टर साहब, इस औरत का असली चेहरा?’’ पुलिस के साथ अंदर आते ही साल्वी ने कहा.

अचानक पुलिस को अपने सामने देख कर मनोरमा के होश फाख्ता हो गए. जुबान तो जैसे हलक में ही अटक गई. किसी तरह मुंह से कुछ शब्द निकाल पाई, ‘‘आ…प आप यहां किसलिए इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप को नमस्ते करने के लिए मैडम.’’ कह कर जब इंसपेक्टर ने लेडीज कांस्टेबल को उसे हथकड़ी लगाने को कहा तो वह चीख उठी, ‘‘किस जुर्म में आप मुझे हथकड़ी लगा रहे हैं? पता भी है आप को, मैं कौन हूं? ’’ अपने रुतबे की धौंस दिखाते हुए मनोरमा चीखी.

‘‘मैं बताता हूं कि तुम कौन हो? तुम निहायत ही बदचलन और बददिमाग औरत हो.’’ कह कर सोहम ने एक जोर का थप्पड़ उस के गाल पर दे मारा और कहने लगा, ‘‘तुम्हें क्या लगा, तुम बच जाओगी और यूं ही मुझे इस्तेमाल करती रहोगी. आज तुम्हारे कारण मेरा परिवार अनाथ हो जाता. अगर साल्वी न होती तो शायद आज मैं इस दुनिया में ही नहीं होता. बचा लिया इस ने मुझे और मेरे परिवार को भी. शर्म नहीं आई तुम्हें अपने बेटे जैसे लड़के के साथ संबंध बनाते हुए?’’

गुस्से से आज सोहम की आंखें धधक रही थीं. उस के शरीर का खून इतना उबल रहा था कि वश चलता तो वह खुद ही मनोरमा की जान ले लेता. पर कानून को वह अपने हाथों में नहीं लेना चाहता था.

‘‘इंसपेक्टर साहब ले जाइए इसे और इतनी कड़ी सजा दिलवाइए कि यह अपनी मौत की भीख मांगे और इसे मौत भी नसीब न हो.’’ गुस्से से साल्वी ने कहा, ‘‘इसे ऐसी सजा दिलाना कि अब ये मुट्ठी भर उजियारे के लिए तरसती रह जाए.’’ कह कर वह सोहम का हाथ पकड़ कर वहां से निकल गई.

प्राथमिक पूछताछ में गिरफ्तार मनोरमा ने पुलिस को बताया कि वह सालों से नेपाल से ड्रग्स मंगवा कर महानगर के विभिन्न बड़े क्लबों, रेव पार्टियों व अन्य रेस्तराओं में सप्लाई करती आ रही थी. वह कुछ युवकों को गुप्त तरीके से नेपाल भेज कर ड्रग्स मंगवाती थी.

सोहम से मिल कर उसे लगा कि यह लड़का उस के धंधे को और आगे तक ले जा सकता है, इसलिए पहले उस ने उसे अपने जाल में फंसाया और फिर उस का इस्तेमाल करती रही. मनोरमा के साथ इस धंधे में और कौन कौन लोग जुड़े थे, पुलिस ने उन का भी पता लगा लिया.

खुद को बचाने और निर्दोष साबित करने के लिए मनोरमा ने एड़ीचोटी का जोर लगाया, लेकिन असफल रही. क्योंकि पुलिस के पास उस के खिलाफ पक्के सबूत और गवाह थे.

मनोरमा को अब मौत की सजा मिले या उम्रकैद, सोहम और साल्वी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. साल्वी के लिए तो बस इतना काफी था कि सोहम को इंसाफ मिल गया और मनोरमा को उस के कर्मों की सजा.

सोहम को आज साल्वी पर गर्व महसूस हो रहा था. सोच रहा था कि उस के लिए इस से अच्छा जीवनसाथी कोई हो ही नहीं सकता. उधर साल्वी भी सोहम की बांहों में मंदमंद मुसकरा रही थी. खुले आसमान के नीचे दो मुट्ठी उजियारा उन के लिए काफी था.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 2

एग्जाम्स के बाद साल्वी और पीजी की सारी लड़कियां और सोहम के दोस्त अपने अपने घर चले गए. मगर सोहम नहीं गया. पार्टटाइम नौकरी करने की वजह से वह अहमदाबाद में ही रुक गया था. साल्वी के यहां न रहने पर सोहम कभीकभार मनोरमा के घर चला जाता था और वह भी तब जब मनोरमा किसी काम के लिए उसे बुलाती थी, वरना वह व्यस्त रहता था.

एक रोज सोहम के पास मनोरमा का फोन आया, ‘‘हैलो सोहम, मैं मनोरमा आंटी बोल रही हूं. कहीं बिजी हो क्या?’’

‘‘नहीं तो आंटी, कहिए न?’’ सोहम बोला.

‘‘बस ऐसे ही बेटा, अगर फुरसत मिले तो आ जाना. लेकिन अगर बिजी हो तो रहने दो.’’ मनोरमा बड़ी धीमी आवाज में बोली.

‘‘नहींनहीं आंटी, कोई बात नहीं. बस थोड़ा काम है, खत्म कर के अभी आता हूं.’’ सोहम ने कहा और कुछ देर बाद ही वह मनोरमा के घर पहुंच गया.

‘‘क्या बात है आंटी, आज मुझे कैसे याद किया?’’ अपनी आदत के अनुसार हंसी बिखेरते हुए सोहम ने कहा.

‘‘मैं तो तुम्हें हमेशा याद करती हूं पर तुम ही अपनी आंटी को भूल जाते हो. वैसे जब साल्वी रहती है तब तो खूब आते हो मेरे पास.’’ मनोरमा हंसते हुए बोली.

सोहम झेंप गया और कहने लगा कि ऐसी कोई बात नहीं है. बस काम और पढ़ाई के चक्कर में वक्त नहीं मिलता.

‘‘अरे, मैं तो मजाक कर रही थी बेटा, पर तुम तो सीरियस हो गए. अच्छा बताओ क्या लोगे, चाय, कौफी या फिर कोल्ड ड्रिंक्स लाऊं तुम्हारे लिए?’’

‘‘कुछ भी चलेगा आंटी.’’ कहते हुए सोहम टेबल पर रखी मैगजीन उठा कर उलटने पलटने लगा, ‘‘अरे क्या बात है आंटी, आप भी सरिता मैगजीन पढ़ती हो? मेरी मां तो इस मैगजीन की कायल हैं. पता है क्यों, क्योंकि सरिता धर्म की आड़ में छिपे अधर्म की पोल खोलती है इसलिए.

‘‘मां के साथसाथ हम भाईबहनें भी इसे पढ़ने के आदी हो गए हैं और चंपक मैगजीन की तो पूछो मत आंटी. हम भाईबहनों में लड़ाई हो जाती थी उसे ले कर कि पहले कौन पढ़ेगा.’’ बोलते हुए सोहम की आंखें चमक उठीं.

चाय पी कर वह जाने को हुआ तो मनोरमा ने उसे रोक लिया और कहा कि अब वह रात का खाना खा कर ही जाए. सोहम ने मना किया पर मनोरमा की जिद के आगे उस की एक न चली. खाने के बाद एकएक कप कौफी हो जाए कह कर मनोरमा ने फिर उसे कुछ देर रोक लिया.

लेकिन कौफी पीतेपीते ही अचानक सोहम को न जाने क्या हुआ कि वह वहीं सोफे पर लुढ़क गया. इस के बाद क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं चला. सुबह उस ने जो दृश्य देखा, उस के होश उड़ गए. रोरो कर मनोरमा कह रही थी कि उस ने जिसे बेटे जैसा समझा और उसी ने उस का ही रेप कर डाला.

‘‘पर आंटी, मम..मैं ने कुछ नहीं किया.’’ सोहम मासूमियत से बोला.

सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह सब क्या हो रहा है और आंटी ऐसा क्यों बोल रही हैं.

‘‘तो किस ने किया? कौन था यहां हम दोनों के सिवा. तुम्हें पता है कि रात में तुम ने पी कर कितना तमाशा किया था. मैं लाख कहती रही कि तुम्हारी मां जैसी हूं पर तुम ने मेरी एक नहीं सुनी. मुझे कहीं का नहीं छोड़ा तुम ने सोहम.’’ कह कर सिसकते हुए मनोरमा ने अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया.

अपने कमरे में आ कर वह 2 दिन तक यूं ही पड़ा रहा. न तो वह कालेज जा रहा था और न ही काम पर. वह अपने किसी दोस्त से भी बातचीत नहीं कर रहा था, क्योंकि वह खुद में ही शर्मिंदा था. एक ही बात उस के दिल को मथे जा रही थी कि उस से इतनी बड़ी गलती कैसे हुई. धिक्कार रहा था वह खुद को. उधर मनोरमा ने भी इस बीच न तो उसे कोई फोन किया और न ही उसे मिलने के लिए बुलाया.

लेकिन एक दिन मनोरमा ने उसे खुद फोन कर अपने घर बुलाया. वह वहां जाना तो नहीं चाह रहा था, पर डरतेसहमते चला गया.

‘‘आ गया सोहम.’’ मनोरमा ने उस से ऐसे बात की, जैसे उन दोनों के बीच कुछ हुआ ही न हो.

‘‘ये बैग तुम्हें इस होटल में पहुंचाना होगा. ये रहा होटल का पता. देखो, इस नाम के आदमी के हाथ में ही बैग जाना चाहिए, समझे?’’  आज मनोरमा का व्यवहार और उस की बातें सोहम को कुछ अटपटी सी लग रही थीं.

बड़ी हिम्मत कर उस ने पूछ ही लिया, ‘‘इस बैग में है क्या और इतनी रात को ही क्या इसे उस आदमी तक पहुंचाना जरूरी है?’’

‘‘ज्यादा सवाल मत करो. जानना चाहते हो इस बैग में क्या है, तो सुनो, इस में ड्रग्स और अफीम है.’’ सुनते ही सोहम के रोंगटे खड़े हो गए और बैग उस के हाथ से छूट कर जमीन पर गिर गया.

‘‘अरे, इतना पसीना क्यों आ रहा है तुम्हारे माथे पर. बैग उठाओ और जाओ जल्दी, वह आदमी तुम्हारा इंतजार कर रहा होगा.’’ इस बार मनोरमा की आवाज जरा सख्त थी.

‘‘ऐसे क्या देख रहे हो सोहम. क्या उस रात के बारे में सोच रहे हो. भूल जाओ उस बात को और जैसा मैं कहती हूं, वैसा ही करो. ऐसी छोटीमोटी गलतियां तो होती रहती हैं इंसान से.’’

मनोरमा की बातें और हरकतें देख सोहम दंग था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि यह वही औरत है जिसे वह एक अच्छी और सच्ची औरत समझता था. इस तरह मजबूरी में ही कई बार वह ड्रग्स से भरा बैग यहांवहां लोगों के पास पहुंचाता रहा. लेकिन उस ने सोच लिया कि अब वह यह गलत काम नहीं करेगा. मना कर देगा मनोरमा को.

एक दिन सोहम ने कह ही दिया, ‘‘नहीं मैडम, अब मुझ से यह गंदा काम नहीं होगा. कल को अगर मैं पुलिस के हत्थे चढ़ गया तो क्या आप बचाने आएंगी मुझे? और क्यों करूं मैं यह काम?’’

कह कर वह वहां से जाने लगा तो मनोरमा ठठा कर हंसी और कहने लगी, ‘‘तुम ने मुझे क्या बेवकूफ समझ रखा है? क्या सोचा मैं भूल गई उस रात की बात? नहीं सोहम, मैं उन लोगों में से नहीं हूं. देखो, गौर से देखो इस वीडियो को. इस में साफसाफ दिख रहा है कि तुम मेरे साथ जबरदस्ती कर रहे हो और मैं तुम से बचने की कोशिश कर रही हूं. समझ रहे हो इस का क्या मतलब हुआ?’’

वीडियो देख कर सोहम के होश उड़ गए. वह समझ गया कि यह कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि मनोरमा की सोचीसमझी चाल थी, जो उस ने उसे फंसाने के लिए चली थी. वह बोला, ‘‘तो यह सब आप की सोचीसमझी साजिश थी और रेप मैं ने नहीं, बल्कि आप ने मेरा किया है.’’

‘‘हां, पर वीडियो तो यही बता रहा है कि रेप तुम ने किया. तुम्हें पता है सोहम, अगर मैं चाहूं तो यह वीडियो पुलिस तक पहुंचा सकती हूं. लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगी, क्योंकि मैं तुम्हारी लाइफ बरबाद नहीं करना चाहती और फिर तुम्हारी 2 जवान बहनें हैं. उन का क्या होगा? कौन शादी करेगा उन से?

‘‘तुम्हारे बूढ़े मांबाप उन का क्या होगा? यह सब सोच कर मैं ने ऐसा कुछ नहीं किया. पर तुम मुझे ऐसा करने पर मजबूर कर रहे हो.’’  मनोरमा का चेहरा उस समय किसी विलेन से कम नहीं लग रहा था.

‘‘पर क्यों, क्या बिगाड़ा था मैं ने आप का? मैं तो आप को अपनी मां समान समझता था और आप ने…’’ सोहम चीखते हुए बोला. आज उसे साल्वी की कही बातें याद आने लगीं कि इस मनोरमा मैडम को कम मत समझना. बिना अपने मतलब के कुछ नहीं करती. पर मैं ही बेवकूफ था, उसे ही चुप करा दिया था.

‘‘अब छोड़ो ये सब बातें और चलो अपने काम पर लग जाओ. कल एक रेव पार्टी में तुम्हें एक बैग पहुंचाना है. समय से आ जाना.’’

सोहम मनोरमा के जाल में इस तरह से फंस चुका था कि उसे निकलने का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था. एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई वाला हाल हो गया था उस का. हंसने और सब को हंसाने वाला सोहम अब चुप रहने लगा था. अपने सारे दोस्तों से भी वह कटाकटा सा रहने लगा था. उस से कोई कुछ कहतापूछता तो वह चिढ़ कर उसी से लड़ पड़ता.

अपने आप को वह एक हारे हुए इंसान के रूप में देखने लगा था जो मुट्ठी भर उजियारा तलाशने यहां आया था, अब उसे अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा था. कभी वह सोचता कि सारी बातें साल्वी को बता दे, लेकिन फिर मनोरमा की धमकी उसे याद आने लगती थी और वह सहम कर मुंह सिल लेता.

‘‘सोहम, क्या हो गया है तुम्हें, जब से आई हूं देख रही हूं कि न तो मुझ से मिलने आते हो और न ही कभी फोन करते हो. जब मैं फोन करती हूं तो बाद में करता हूं, कह कर फोन काट देते हो. बोलो न, हो क्या गया है तुम्हें सोहम?’’ तैश में आ कर साल्वी ने पूछा.

‘‘हां, नहीं बोलना. मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूं कि जब तुम बुलाओ दौड़ा चला आऊं तुम्हारे पास? अरे मैं यहां पढ़ने आया हूं, तुम्हारा दिल बहलाने नहीं, समझीं. बड़ी आई.’’ कह कर सोहम वहां से चलता बना और साल्वी अवाक उसे देखती रह गई. सोहम ने एक बार पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा कि वह उसे ही देखे जा रही है.

जब भी साल्वी उस से बात करने की कोशिश करती, चुप्पी साधने का कारण पूछती तो वह झुंझला जाता. इतना ही नहीं, वह उसे अनापशनाप बोलने लगता था. धीरेधीरे साल्वी का मन भी उस से खट्टा होने लगा. उस ने अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया.

इस बीच कई महीनों तक दोनों के बीच कोई खास बातचीत नहीं हुई. बस ‘हां..हूं..’ में ही बातें हो जातीं कभीकभार. सोहम तो जान रहा था कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, पर साल्वी नहीं समझ पा रही थी कि अचानक ऐसा क्या हो गया जो सोहम उस से कटाकटा रहने लगा है. एक दिन साल्वी ने सोहम को मनोरमा मैडम के घर से निकलते देखा तो वह हैरान रह गई. साल्वी ने उस से पूछा भी कि वह यहां क्या कर रहा था.

‘‘मैं कुछ भी कर रहा हूं, तुम्हें इस से क्या मतलब?’’ सोहम ने कहा तो साल्वी चुप हो गई.

सोहम के जाने के बाद साल्वी सोचने लगी, ‘अच्छा, तो अब मुझ से ज्यादा मनोरमा मैडम उस की अपनी हो गई.’

दूसरी ओर सोहम एक पंछी की तरह बंद पिंजरे से निकलने के लिए फड़फड़ा रहा था. एक तो साल्वी के लिए उस की बेरुखी और ऊपर से मनोरमा मैडम का उसे जबतब बुला कर उस का यूज करना, अब उस के बरदाश्त के बाहर हो रहा था. लेकिन उस दिन बड़ी हिम्मत कर के उस ने बड़ा फैसला ले लिया कि अब वह मनोरमा की एक भी बात नहीं मानेगा, चाहे जो भी हो जाए.

जैसे ही मनोरमा का फोन आया, सोहम ने कहा, ‘‘नहीं, मैं नहीं करूंगा अब ये काम. आप क्या समझती हैं कि आप इस तरह से मुझे अपनी कैद में रख पाएंगी. दिखा दो जिसे भी वीडियो दिखाना हो. एक काम करो, मुझे वह वीडियो भेजो, मैं खुद ही उसे वायरल कर देता हूं. अब सारी सच्चाई दुनिया वालों के सामने आ ही जानी चाहिए. नहीं डरना अब मुझे किसी से भी, जो होगा देखा जाएगा.’’

कह कर सोहम ने फोन काट दिया और साल्वी को सब कुछ बताने के लिए फोन कर ही रहा था कि उस की मां का फोन आ गया. मां कहने लगीं कि उस की बहन का रिश्ता तय हो गया है, वह घर आ जाए. इधर मनोरमा मैडम उसे फोन पर धमकी दिए जा रही थी कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह उस वीडियो को पुलिस को सौंप देगी.

ऐसे में सोहम की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सोचने लगा कि फिर क्या होगा उस की बहन का?

सोचतेसोचते सोहम को लगा कि उस का दिमाग फट जाएगा. मन तो कर रहा था कि वह कहीं भाग जाए या मर जाए. हर तरफ बस अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था. आखिर उस ने एक फैसला ले ही लिया.

मुट्ठी भर उजियारा : क्या साल्वी सोहम को बेकसूर साबित कर पाएगी? – भाग 1

अहमदाबाद में इंजीनियरिंग पढ़ने आई साल्वी ने कई पीजी देखे, पर उसे एक भी पसंद नहीं आया. किसी में सुबह का नाश्ता नहीं मिलता था तो कहीं किराया उस के अनुरूप नहीं था. जो पीजी उसे पसंद आता, वह उस के कालेज से कई किलोमीटर दूर पड़ता था. देखते भालते आखिरकार उसे एक पीजी मिल ही गया जो उस के कालेज से नजदीक भी था और उस के अनुरूप भी.

‘‘यहां तुम्हें साढ़े 8 हजार में 2 शेयरिंग वाला रूम मिलेगा. इन्हीं पैसों में तुम्हें सुबह का नाश्ता, दोपहर और रात के खाने के अलावा लौंड्री की भी सुविधा मिलेगी.’’ पीजी की मालकिन मनोरमा ने कहा.

‘‘जी मैडम,’’ साल्वी बोली.

‘‘यह मैडम मैडम नहीं चलेगा, दीदी बोलो मुझे, जैसे यहां की सारी लड़कियां बोलती हैं.’’ मनोरमा ने कहा, ‘‘और हां, एक महीने का भाड़ा एडवांस डिपौजिट करना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक दीदी, मैं कल ही सारे पैसे दे दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हूं…और एक बात, रात के 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है. बहुत हुआ तो साढ़े 9 बजे तक, उस से ज्यादा नहीं, समझी? वैसे कोई बौयफ्रैंड का चक्कर तो नहीं है न?’’ मनोरमा ने पूछा तो साल्वी ने ‘न’ में सिर हिला दिया.

‘‘वैरी गुड, वैसे कहां से हो तुम? हां, तुम्हारा कोई लोकल गार्जियन है?’’

‘‘जी, मैं पटना से हूं और मेरा कोई लोकल गार्जियन नहीं है दीदी,’’ अपने आप को खुद में समेटते हुए साल्वी ने कहा.

‘‘ठीक है तो फिर…’’ कह कर मनोरमा मुसकरा दी.

वैसे तो मनोरमा 44-45 साल की थी, पर उस ने अपने आप को इतना मेंटेन कर रखा था कि 30-32 से ज्यादा की नहीं लगती थी. देखने में भी वह किसी हीरोइन से कम नहीं लगती थी. ठाठ तो ऐसे कि पूछो मत. इतना बड़ा घर, 2-2 गाडि़यां, नौकरचाकर सब कुछ था उस के पास.

होता भी क्यों न, मनोरमा के पति का अमेरिका में अपना बिजनैस था. एक बेटा भी था जो मैंगलूर रह कर पढ़ाई कर रहा था. जब भी मौका मिलता, बाप बेटा मनोरमा से मिलने आ जाते थे. मनोरमा का भी जब मन होता, उन से मिलने चली जाती थी.

मनोरमा से बात कर के साल्वी अपने कमरे में पहुंची तो वहां उस की रूममेट निधि मिली. निधि ने मुसकरा कर साल्वी का स्वागत किया. आपसी परिचय के बाद निधि ने पूछा, ‘‘साल्वी, तुम कहां से हो?’’

‘‘जी, मैं पटना से.’’ साल्वी ने जवाब दिया.

‘‘ओह, और मैं इंदौर से.’’ कह कर निधि मुसकराई तो साल्वी भी मुसकरा दी.

‘‘यहां पढ़ने आई हो या नौकरी करने?’’ निधि ने सवाल किया.

‘‘जी, यहां के एक कालेज से मैं इंजीनियरिंग करने आई हूं और आप?’’ साल्वी बोली.

‘‘मैं नौकरी करती हूं,’’ निधि ने कहा.

साल्वी के साथ सोहम नाम का एक लड़का भी बीटेक कर रहा था. उस के साथ साल्वी की अच्छी दोस्ती हो गई थी. अच्छी दोस्ती होने का एक कारण यह भी था कि दोनों बिहार से थे. साल्वी ने जब यह बात अपने मम्मी पापा को बताई तो जान कर उन्हें बहुत अच्छा लगा कि चलो इतने बड़े अनजान शहर में कोई तो है अपने राज्य का.

सोहम ने ही साल्वी को बताया था कि उस से बड़ी उस की 2 बहनें हैं, जिन की अभी शादी होनी बाकी है. उस के पापा रेलवे में फोरमैन हैं और किसी तरह अपने परिवार का पालनपोषण कर रहे हैं. पिता को सोहम से उम्मीद है कि एक न एक दिन वह अपने घर की गरीबी जरूर दूर करेगा और उन का सहारा बनेगा.

‘‘लेकिन तुम्हारी पढ़ाई के खर्चे? वह सब कैसे हो पाता है?’’ साल्वी ने पूछा.

‘‘वैसे तो मेरा इस कालेज में मेरिट पर एडमिशन हुआ है, लेकिन फिर भी एडमिशन के वक्त पापा को जमीन का एक टुकड़ा बेचना पड़ा था, जो उन्होंने दीदी की शादी के लिए रखा था. फिर भी रहनेखाने के लिए भी तो पैसे चाहिए थे न, इसलिए मैं ने पार्टटाइम नौकरी कर ली. उस से मेरे पढ़ने और रहने खाने के खर्चे निकल जाते हैं.’’ सोहम ने चेहरे पर स्माइल लाते हुए बताया.

सोहम के बारे में जानने के बाद साल्वी उस से बहुत प्रभावित हुई, क्योंकि आज से पहले वह उस के बारे में इतना ही जान पाई थी कि वह बहुत बड़बोला और मस्तीखोर लड़का है. लेकिन आज उसे पता चला कि कालेज के बाद वह अपने दोस्तों के साथ टाइम पास नहीं करता, बल्कि कहीं पार्टटाइम नौकरी पर जाता है.

‘‘हैलो,’’ साल्वी के आगे चुटकी बजाते हुए सोहम ने पूछा, ‘‘कहां खो गईं मैडम?’’

‘‘मैडम!’’ अपने मोबाइल पर नजर डालते हुए साल्वी चौंक कर उठ खड़ी हुई.

‘‘मैडम से याद आया कि साढ़े 9 बजे के बाद पीजी से बाहर रहना मना है और देखो 10 बजने जा रहे हैं. अब मैं चलती हूं.’’

‘‘अरे 10 बज गए तो क्या हो गया? कौन सा आसमान फट गया? चलो, मैं तुम्हें पीजी तक छोड़ आता हूं और तुम्हारी उस मैडम से भी मिल लूंगा. वैसे भी तुम्हारा पीजी यहां पास में ही तो है.’’ कह कर सोहम उस के साथ चल दिया.

पीजी के नजदीक पहुंचते ही साल्वी ने उस से कहा, ‘‘सोहम, अब तुम यहां से लौट जाओ क्योंकि मनोरमा मैडम ने मुझे सख्त हिदायत दी है कि कोई लड़का पीजी के आसपास भी दिखाई नहीं देना चाहिए.’’ कह कर जैसे ही वह मुड़ी, मनोरमा मैडम बालकनी से उसे ही घूर रही थीं.

मैडम को देखते ही साल्वी घबरा गई. घबराहट के मारे उस की जुबान तालू से चिपक गई तो सोहम नीचे से बोला, ‘‘नमस्ते मैडम, हम एक ही कालेज में पढ़ते हैं इसलिए हमारी दोस्ती हो गई. वैसे भी मैं यहीं पास में ही रहता…’’ बोलते बोलते सोहम की भी घिग्घी बंध गई, जब मनोरमा की घूरती हुई नजर उस पर आ टिकी.

‘‘तुम ने तो कहा था कि तुम्हारा कोई बौयफ्रैंड नहीं, फिर?’’ मनोरमा साल्वी को घूरते हुए बोली.

‘‘नहीं दीदी, आप जैसा समझ रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है. हम लोग बस दोस्त हैं.’’ किसी तरह साल्वी बोल पाई.

‘‘देखो, बौयफ्रैंड रखना गलत बात नहीं है पर झूठ मुझे पसंद नहीं और वक्त तो देखो. वैसे लड़का अच्छा है.’’ कह कर मनोरमा मुसकराई तो दोनों की जान में जान आई.

‘‘कोई बात नहीं, तुम भी अंदर आ जाओ.’’ हुक्म मिलते ही सोहम भी साल्वी के पीछे लग गया.

‘‘साल्वी, तुम तो कहती थीं कि तुम्हारी मैडम बड़ी सख्त है, पर ये तो बड़ी रहमदिल है.’’ सोहम ने फुसफुसाते हुए कहा तो साल्वी ने उसे कोहनी मार कर चुप करने को कहा. यह करते हुए मनोरमा ने उसे देख लिया.

वह बोली, ‘‘क्या बातें हो रही हैं?’’

‘‘कुछ नहीं दीदी, यह कह रहा था कि अब मैं चलता हूं और कुछ नहीं.’’ साल्वी ने सोहम को इशारे से जाने के लिए कहा.

‘‘अरे इस में क्या है, आया है तो बैठने दो थोड़ी देर.’’ मनोरमा बोली.

सोहम यहां कब से है, कहां रहता है, किस चीज की पढ़ाई कर रहा है और उस के घर में कौनकौन हैं. यह सब जानने के बाद मनोरमा उस से काफी इंप्रैस हुई. फिर वह अपने बारे में भी बताने लगी, ‘‘तुम्हारी ही उम्र का मेरा भी एक बेटा है, जो मैंगलूर में मैडिकल की पढ़ाई कर रहा है.’’

धीरेधीरे सोहम की भी मनोरमा मैडम से अच्छी बनने लगी. अब वह जब भी वक्त मिलता बेधड़क मनोरमा मैडम के घर चला आता.  मनोरमा को भी उस का आना अच्छा लगता था. कुछ न कुछ छोटे मोटे काम, जो भी मनोरमा कहती, वह इसलिए कर दिया करता, क्योंकि कहीं न कहीं उस में उसे अपनी मां की छवि दिखाई देती थी.

फिर मनोरमा भी तो उसे अपने बेटे की तरह ही समझती थी. मनोरमा ने उस से यह भी कहा था कि वह उस के लिए एक अच्छी नौकरी देखेगी, जहां उसे ज्यादा सैलरी मिले और उस की पढ़ाई में भी हर्ज न हो. शायद इस लोभ से भी वह मनोरमा का कोई भी काम, जो वह कहती, हंसतेहंसते कर देता था.

जब सोहम का मनोरमा के यहां आनाजाना बढ़ गया तो एक दिन साल्वी बोली, ‘‘सोहम, क्या बात है, आजकल मनोरमा मैडम से बड़ी पट रही है तुम्हारी. कहीं कोई लोचा तो नहीं. देखो, उस औरत को कम मत समझना. मुझे तो वो बड़ी शातिर दिखती है और वैसे भी बिना अपने फायदे के वह किसी की भी मदद नहीं करती.’’

‘‘तुम लड़कियां भी न, कितनी बेकार की कहानियां बनाती हो. कितना अच्छा तो व्यवहार है उस का और तुम कहती हो कि बड़ी सख्त है.’’ कह कर सोहम ठहाका लगा कर हंसने लगा.

‘‘अच्छा छोड़ो ये सब बातें. चलो, आज हम कहीं बाहर खाना खाते हैं.’’

‘‘हांहां चलो, वैसे भी पीजी का खाना खा खा कर बोर हो गई हूं. मगर पैसे मैं दूंगी.’’ साल्वी बोली.

‘‘हां, ठीक है.’’

इस के बाद दोनों ने एक अच्छे होटल में जा कर खाना खाया. कुछ देर बातें कीं. फिर अपनेअपने रास्ते चल दिए. दोनों ऐसा अकसर छुट्टी के दिन करते थे. दोनों की छुट्टी बड़े मजे से गुजर जाती थी. इन की दोस्ती और पढ़ाई का भी हंसते खेलते एक साल चुटकियों में निकल गया. अब दूसरे साल का एग्जाम भी नजदीक था, सो सोहम और साल्वी अपनी अपनी पढ़ाई में जुट गए.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 3

तुषार ने 4-5 दिनों में पेपर तैयार कर के दीपिका को दिए तो वह धर्मसंकट में पड़ गई कि सिग्नेचर करूं या न करूं. इसी उधेड़बुन में 3 दिन बीत गए तो घर में झाड़ूपोंछा लगाने वाली सरोजनी अचानक उस से बोली, ‘‘मेमसाहब, सुना है कि आप बैंक से लोन ले कर तुषार बाबू को देंगी?’’

‘‘तुम्हें किस ने बताया?’’ दीपिका ने हैरत से पूछा.

‘‘कल आप के घर से काम कर के जा रही थी तो बरामदे में तुषार बाबू और उस की मां के बीच हुई बात सुनी थी. तुषार बाबू कह रहे थे, ‘चिंता मत करो मां. लोन ले कर दीपिका रुपए मुझे दे देगी तो उसे घर में रहने नहीं दूंगा. उस पर तरहतरह के इल्जाम लगा कर घर से बाहर कर दूंगा.’’

सरोजनी चुप हो गई तो दीपिका को लगा उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी. पर जल्दी ही उस ने अपने आप को संभाल लिया. सरोजनी को डांटते हुए कहा, ‘‘बकवास बंद करो.’’

सरोजनी डांट खा कर पल दो पल तो चुप रही. फिर बोली, ‘‘कुछ दिन पहले मेरे बेटे की तबीयत बहुत खराब हुई थी तो आप ने रुपए से मेरी बहुत मदद की थी. इसीलिए मैं ने कल जो कुछ भी सुना था, आप को बता दिया.’’

वह फिर बोली, ‘‘मेमसाहब, तुषार बाबू से सावधान रहिएगा. वह अच्छे इंसान नहीं हैं. उन की नजर हमेशा अमीर लड़कियों पर रहती थी. उन्होंने आप से शादी क्यों की, मेरी समझ से बाहर की बात है. इस में भी जरूर उन का कोई न कोई मकसद होगा.’’

शक घर कर गया तो दीपिका ने अपने मौसेरे भाई सुधीर से तुषार की सच्चाई का पता लगाने का फैसला किया. सुधीर पुलिस इंसपेक्टर था. सुधीर ने 10 दिन में ही तुषार की जन्मकुंडली खंगाल कर दीपिका के सामने रख दी.

पता चला कि तुषार आवारा किस्म का था. प्राइवेट जौब से वह जो कुछ कमाता था, अपने कपड़ों और शौक पर खर्च कर देता था. वह आकर्षक तो था ही, खुद को ग्रैजुएट बताता था. अमीर घर की लड़कियों को अपने जाल में फांस कर उन से पैसे ऐंठना वह अच्छी तरह जानता था.

दीपिका को यह भी पता चल चुका था कि उस से 50 लाख रुपए ऐंठने का प्लान तुषार ने अपनी मां के साथ मिल कर बनाया था.  मां ऐसी लालची थी कि पैसों के लिए कुछ भी कर सकती थी. उस ने तुषार को दीपिका से शादी करने की इजाजत इसलिए दी थी कि तुषार ने उसे 2 लाख रुपए देने का वादा किया था. विवाह के एक साल बाद तुषार ने अपना वादा पूरा भी कर दिया था.

तुषार पर दीपिका से किसी भी तरह से रुपए लेने का जुनून सवार था. रुपए के लिए वह उस के साथ कुछ भी कर सकता था.  तुषार की सच्चाई पता लगने पर दीपिका को अपना अस्तित्व समाप्त होता सा लगा. अस्तित्व बचाने के लिए कड़ा फैसला लेते हुए दीपिका ने तुषार को कह दिया कि वह बैंक से किसी भी तरह का लोन नहीं लेगी.

तुषार को बहुत गुस्सा आया, पर कुछ सोच कर अपने आप को काबू में कर लिया. उस ने सिर्फ  इतना कहा, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी.’’

कुछ दिन खामोशी से बीत गए. तुषार और उस की मां ने दीपिका से बात करनी बंद कर दी.

दीपिका को लग रहा था कि दोनों के बीच कोई खिचड़ी पक रही है. पर क्या, समझ नहीं पा रही थी.

एक दिन सास तुषार से कह रही थी, ‘‘दीपिका को कब घर से निकालोगे? उस ने तो लोन लेने से भी मना कर दिया है. फिर उसे बरदाश्त क्यों कर रहे हो?’’

‘‘उस से तो 50 लाख ले कर ही रहूंगा मां.’’ तुषार ने कहा.

‘‘पर कैसे?’’

‘‘उस का कत्ल कर के.’’

उस की मां चौंक गई, ‘‘मतलब?’’

‘‘मुझे पता था कि फरजी कागजात पर वह लोन नहीं लेगी. इसलिए 7 महीने पहले ही मैं ने योजना बना ली थी.’’

‘‘कैसी योजना?’’

‘‘दीपिका का 50 लाख रुपए का जीवन बीमा करा चुका हूं. उस का प्रीमियम बराबर दे रहा हूं. उस की हत्या करा दूंगा तो रुपए मुझे मिल जाएंगे, क्योंकि नौमिनी मैं ही हूं.’’

तुषार की योजना पर मां खुश हो गई. कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘अगर पुलिस की पकड़ में आ जाओगे तो सारी की सारी योजना धरी की धरी रह जाएगी.’’

‘‘ऐसा नहीं होगा मां. दीपिका की हत्या कुछ इस तरह से कराऊंगा कि वह रोड एक्सीडेंट लगेगा. पुलिस मुझे कभी नहीं पकड़ पाएगी. बाद में गौरांग का भी कत्ल करा दूंगा.’’

कुछ देर चुप रह कर तुषार ने फिर कहा, ‘‘दीपिका की मौत के बाद अनुकंपा के आधार पर बैंक में मुझे नौकरी भी मिल जाएगी. फिर किसी अमीर लड़की से शादी करने में कोई परेशानी नहीं होगी.’’

दीपिका ने दोनों की बात मोबाइल में रिकौर्ड कर ली थी. मांबेटे के षडयंत्र का पता चल गया था. अब उस का वहां रहना खतरे से खाली नहीं था.

इसलिए एक दिन वह बेटे गौरांग को ले कर किसी बहाने से मायके चली गई. सारा घटनाक्रम मम्मीपापा को बताया तो उन्होंने तुषार से तलाक लेने की सलाह दी. दीपिका तुषार को सिर्फ तलाक दे कर नहीं छोड़ना चाहती थी. बल्कि वह उसे जेल की हवा खिलाना चाहती थी. यदि उसे यूं छोड़ देती तो वह फिर से किसी न किसी लड़की की जिंदगी बरबाद कर देता.

फिर थाने जा कर दीपिका ने तुषार के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई. सबूत में मोबाइल में रिकौर्ड की गई बातें पुलिस को सुना दीं. तब पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर तुषार को गिरफ्तार कर लिया. कुछ महीनों बाद ही दीपिका ने तुषार से तलाक ले लिया. इस के बाद पापा ने उसे फिर से शादी करने का सुझाव दिया.

शादी के नाम का कोई ठप्पा अब दीपिका नहीं लगाना चाहती थी. पापा को समझाते हुए बोली, ‘‘मुझे किस्मत से जो मिलना था, मिल चुका है. फिलहाल जिंदगी से बहुत खुश भी हूं. फिर शादी क्यों करूं. आप ही बताइए पापा कि इंसान को जीने के लिए क्या चाहिए? खुशी और संतुष्टि, यही न? बेटे की परवरिश करने से जो खुशी मिलेगी, वही मेरी उपलब्धि होगी. फिर मैं बारबार किस्मत आजमाने क्यों जाऊं?’’

पापा को लगा कि दीपिका सही रास्ते पर है. फिर वह चुप हो गए.

फिर क्यों? : दीपिका की बदकिस्मती – भाग 2

5 दिन बाद दीपिका जब कुछ सामान्य हुई तो मां ने उसे समझाते हुए गर्भपात करा कर दूसरी शादी करने की सलाह दी.

कुछ सोच कर दीपिका बोली, ‘‘मम्मी, गलती मैं ने की है तो बच्चे को सजा क्यों दूं. मैं ने फैसला कर लिया है कि मैं बच्चे को जन्म दूंगी. उस के बाद ही भविष्य की चिंता करूंगी.’’

दीपिका को ससुराल आए 20 दिन हो चुके थे तो अचानक तुषार आया. वह बोला, ‘‘मुझे विश्वास है कि तुम बदचलन नहीं हो. तुम्हारे पेट में मेरे भाई का ही अंश है.’’

‘‘जब तुम यह बात समझ रहे थे तो उस दिन अपना मुंह क्यों बंद कर लिया था, जब सभी मुझे बदचलन बता रहे थे?’’ दीपिका ने गुस्से में कहा.

‘‘उस दिन मैं तुम्हारे भविष्य को ले कर चिंतित हो गया था. फिर यह फैसला नहीं कर पाया था कि क्या करना चाहिए.’’ तुषार बोला.

दीपिका अपने गुस्से पर काबू करते हुए बोली, ‘‘अब क्या चाहते हो?’’

‘‘तुम से शादी कर के तुम्हारा भविष्य संवारना चाहता हूं. तुम्हारे होने वाले बच्चे को अपना नाम देना चाहता हूं. इस के लिए मैं ने मम्मीपापा को राजी कर लिया है.’’

औफिस और मोहल्ले में वह बुरी तरह बदनाम हो चुकी थी. सभी उसे दुष्चरित्र समझते थे. ऐसी स्थिति में आसानी से किसी दूसरी जगह उस की शादी होने वाली नहीं थी, इसलिए आत्ममंथन के बाद वह उस से शादी के लिए तैयार हो गई.

दीपिका बच्चे की डिलीवरी के बाद शादी करना चाहती थी, लेकिन तुषार ने कहा कि वह डिलीवरी से पहले शादी कर के बच्चे को अपना नाम देना चाहता है. ऐसा ही हुआ. डिलीवरी से पहले उन दोनों की शादी हो गई.

जिस घर से दीपिका बेइज्जत हो कर निकली थी, उसी घर में पूरे सम्मान से तुषार के कारण लौट आई थी. फलस्वरूप दीपिका ने तुषार को दिल में बसा कर प्यार से नहला दिया और पलकों पर बिठा लिया. तुषार भी उस का पूरा खयाल रखता था. घर का कोई काम उसे नहीं करने देता था. काम के लिए उस ने नौकरी रख दी थी. तुषार का भरपूर प्यार पा कर दीपिका इतनी गदगद थी कि उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

डिलीवरी का समय हुआ तो बातोंबातों में तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘तुम अपने बैंक की डिटेल्स दे दो. डिलीवरी के समय अगर मेरे एकाउंट में रुपए कम पड़ जाएंगे तो तुम्हारे एकाउंट से ले लूंगा.’’

दीपिका को उस की बात अच्छी लगी. बैंक की पासबुक, डेबिट कार्ड और ब्लैंक चैक्स पर दस्तखत कर के पूरी की पूरी चैकबुक उसे दे दी.

नौरमल डिलीवरी से बेटा हुआ तो उस का नाम गौरांग रखा गया. 6 महीने बाद तुषार ने हनीमून पर शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया तो दीपिका ने मना नहीं किया.  वहां से लौट कर आई तो बहुत खुश थी. तुषार का अथाह प्यार पा कर वह विक्रम को भूल गई थी.

गौरांग एक साल का हो गया था. फिर भी दीपिका ने तुषार से डेबिट कार्ड और दस्तखत किए हुए चैक्स वापस नहीं लिए थे. इस की कभी जरूरत महसूस नहीं की थी. तुषार ने उस के अंधकारमय जीवन को रोशनी से नहला दिया था. ऐसे में भला वह उस पर अविश्वास कैसे कर सकती थी.

जरूरत तब पड़ी, जब एक दिन दीपिका के पिता को बिजनैस में कुछ नुकसान हुआ और उन्होंने उस से 3 लाख रुपए मांगे. तब दीपिका ने पिता का एकाउंट नंबर तुषार को देते हुए कहा, ‘‘तुषार, मेरे एकाउंट से पापा के एकाउंट में 3 लाख रुपए ट्रांसफर कर देना.’’

इतना सुनते ही तुषार ने दीपिका से कहा, ‘‘डार्लिंग, तुम्हारे एकाउंट में रुपए हैं कहां. मुश्किल से 2-4 सौ रुपए होंगे.’’

दीपिका को झटका लगा. क्योंकि उस के एकाउंट में तो 12 लाख रुपए से अधिक थे. आखिर वे पैसे गए कहां.

उस ने तुषार से पूछा, ‘‘मेरे एकाउंट में उस समय 12 लाख रुपए से अधिक थे. इस के अलावा हर महीने 40 हजार रुपए सैलरी के भी आ रहे थे. सारे के सारे पैसे कहां खर्च हो गए?’’

तुषार झुंझलाते हुए बोला, ‘‘कुछ तुम्हारी डिलीवरी में खर्च हुए, कुछ हनीमून पर खर्च हो गए. बाकी रुपए घर की जरूरतों पर खर्च हो गए. तुम्हारे पैसों से ही तो घर चल रहा है. मेरी सैलरी और पापा की पेंशन के पैसे तो शिखा की शादी के लिए जमा हो रहे हैं.’’

तुषार का जवाब सुन कर दीपिका खामोश हो गई. पर उसे यह समझते देर नहीं लगी कि उस के साथ कहीं कुछ न कुछ गलत हो रहा है.  डिलीवरी के समय उसे छोटे से नर्सिंगहोम में दाखिल किया गया था. उस का बिल मात्र 30 हजार रुपए आया था. हनीमून पर भी अधिक खर्च नहीं हुआ था. जिस होटल में ठहरे थे, वह बिलकुल साधारण सा था. उन का खानापीना भी सामान्य हुआ था.

जो होना था, वह हो चुका था. उस पर बहस करती तो रिश्ते में खटास आ जाती. लिहाजा उस ने भविष्य में सावधान रहने की ठान ली.

तुषार से अपनी बैंक पास बुक, चैकबुक और डेबिट कार्ड ले कर उस ने कह दिया कि वह घर खर्च के लिए महीने में सिर्फ 10 हजार रुपए देगी. सैलरी के बाकी पैसे गौरांग के भविष्य के लिए जमा करेगी और शिखा की शादी में 2 लाख रुपए दे देगी.  दीपिका के निर्णय से तुषार को दुख हुआ, लेकिन वह उस समय कुछ बोला नहीं.

अगले दिन ही दीपिका ने बैंक से ओवरड्राफ्ट के जरिए पैसे ले कर अपने पिता को दे दिए. पर उन्हें यह नहीं बताया कि तुषार ने उस के सारे रुपए खर्च कर दिए हैं.

कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा. उस के बाद अचानक तुषार ने उस से कहा, ‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है.’’

‘‘क्यों?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘बिजनैस करना चाहता हूं. इस के लिए तैयारी कर ली है, पर तुम्हारी मदद के बिना नहीं कर सकता.’’

‘‘तुम्हारी मदद हर तरह से करूंगी. बताओ, मुझे क्या करना होगा?’’ दीपिका ने पूछा.

‘‘तुम्हें अपने नाम से 50 लाख रुपए का लोन बैंक से लेना है. उसी रुपए से बिजनैस करूंगा. मेरा कुछ इस तरह का बिजनैस होगा कि लोन 5 साल में चुकता हो जाएगा.’’

‘‘इतने रुपए का लोन मुझे नहीं मिलेगा. अभी नौकरी लगे 5 साल ही तो हुए हैं.’’

‘‘मैं ने पता कर लिया है. होम लोन मिल जाएगा.’’

‘‘होम लोन लोगे तो बिजनैस कैसे करोगे. इस लोन में फ्लैट या कोई मकान लेना ही होगा.’’ दीपिका ने बताया.

‘‘इस की चिंता तुम मत करो. मैं ने सारी व्यवस्था कर ली है. तुम्हें सिर्फ होम लोन के पेपर्स पर दस्तखत कर बैंक में जमा करने हैं.’’

‘‘मैं कुछ समझी नहीं, तुम करना क्या चाहते हो. ठीक से बताओ.’’

तुषार ने अपनी योजना दीपिका को बताई तो वह सकते में आ गई. दरअसल तुषार ब्रोकर के माध्यम से फरजी कागजात पर होम लोन लेना चाहता था. इस में उसे 3 महीने बाद पूरे रुपए कैश में मिल जाता. बाद में ब्रोकर अपना कमीशन लेता. दीपिका ने इस काम के लिए मना किया तो तुषार ने उसे अपनी कसम दे कर कर अंतत: मना लिया.