अविवेक ने उजाड़ी बगिया

जीजा साली का जुनूनी इश्क – भाग 3

घर की कलह और रोजरोज की मारपीट से आजिज आ कर शादी के एक साल बाद पूजा मायके आ कर रहने लगी. कुछ दिन बाद पति ओमप्रकाश उसे मनाने आया लेकिन पूजा ने ससुराल जाने से साफ मना कर दिया.

अधिकांश मांबाप को बेटी का गुस्से में ससुराल छोड़ कर आना अच्छा नहीं लगता. जगराम सिंह और मीना को भी यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने पूजा को समझाया परंतु पूजा ने साफ कह दिया कि वह जहर खा कर मर जाएगी पर ससुराल नहीं जाएगी. इसके बाद मांबाप भी बेबस हो गए.

जब मनोज को पता चला कि पूजा गुस्से में ससुराल से मायके आ गई है तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने ससुराल आ कर पूजा से मुलाकात की. उस ने पूजा द्वारा उठाए गए कदम को सही ठहराया और उस की हर संभव मदद करने का भरोसा दिया. पूजा की मदद के बहाने मनोज अब फिर ससुराल आने लगा. उस ने फिर से पूजा से नाजायज संबंध बना लिए.

ओमप्रकाश ने पूजा को जितना प्रताडि़त किया था, वह उस के बदले उसे सबक सिखाना चाहती थी. इस के लिए उस ने जीजा मनोज के सहयोग से नौबस्ता थाने में पति ओमप्रकाश के खिलाफ दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने ओमप्रकाश को दहेज उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ओमप्रकाश कुछ दिनों बाद किसी तरह जमानत करा कर जेल से बाहर आ गया.

जमानत मिलने के बाद ओमप्रकाश ने बड़े भाई तेजबहादुर पर मामले को रफादफा करने का दबाव डाला, लेकिन तेजबहादुर ने साफ मना कर दिया. तब ओमप्रकाश ने बडे़ भाई से जम कर झगड़ा और मारपीट की. तेजबहादुर उस की ससुराल वालों के पक्ष में था.

पूजा को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश बढ़ गई. हां, इतना जरूर था कि ओमप्रकाश की बहन ऊषा तथा भाई छोटू व प्रमोद उस के पक्ष में थे और उस की हर संभव मदद करते थे.

ओमप्रकाश दहेज उत्पीड़न का मुकदमा वापस लेने के लिए पत्नी पर भी दबाव डाल रहा था. वह उसे हर तरह से ठीक प्रकार रखने का आश्वासन भी दे रहा था. लेकिन पूजा उस की बात नहीं मान रही थी. पूजा के पति से साफ कह दिया कि उसे उस पर भरोसा नहीं रहा. इसलिए मुकदमा वापस नहीं लेगी. ओमप्रकाश को शक था पूजा को उस का जीजा मनोज ही भड़का रहा है जिस से वह उस की बात नहीं मान रही.

पूजा ने पति की बात नहीं मानी तो ओमप्रकाश ने दूसरा रास्ता निकाला. अब वह जब भी ससुराल जाता तो नशे में धुत होता. वह घर में देखता कि कहीं मनोज तो पूजा के साथ रंगरलियां मनाने नहीं आया. पूजा रोकती टोकती तो वह उसे गाली बकता. उस का साला राजकुमार कुछ कहता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस से राजकुमार को भी ओमप्रकाश से नफरत हो गई.

ऐसे ही एक रोज ओमप्रकाश ससुराल पहुंचा तो घर के अंदर मनोज था. ओमप्रकाश को शक हुआ कि सूने घर में मनोज पूजा के साथ रंगरलियां मना रहा होगा. उस ने खा जाने वाली नजरों से मनोज को देखा, फिर पूजा को बुरी तरह मारापीटा.

इस के बाद उस ने मनोज को घर से चले जाने को कह दिया, ‘‘हमारा तुम्हारा रिश्ता साढू का है. तुम पूजा की बहन के सुहाग हो. इसलिए बख्श रहा हूं. कोई दूसरा होता तो इस कमरे से उस की लाश बाहर जाती. कान खोल कर सुन लो. आइंदा पूजा से मिलने की जुर्रत मत करना वरना…’’

मनोज को गुस्सा तो बहुत आया. लेकिन वह अपराधबोध से सिर झुकाए चला गया.

उसी शाम मनोज के मोबाइल पर पूजा का फोन आया, ‘‘मैं तुम्हें बड़ा तीसमार खां समझती थी, पर तुम तो नामर्द निकले. ओमप्रकाश मुझे पीटता रहा और तुम खड़ेखड़े तमाशा देखते रहे. तुम्हें तो उसे वहीं पटक कर जान से मार देना चाहिए था.’’

पूजा की ललकार से मनोज की मर्दानगी जाग गई. खुद का अपमान भी उसे याद आने लगा. गुस्से से तिलमिला कर वह बोला, ‘‘मैं ने ओमप्रकाश को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि वह तुम्हारा पति है. तुम ने मेरी मर्दानगी को ललकारा है इसलिए अब मैं उसे जान से मार कर ही तुम्हें मुंह दिखाऊंगा.’’

‘‘हां, मार दो.’’ पूजा ने गुस्से की आग में घी डाला, ‘‘जब तक ओमप्रकाश नहीं मरेगा मेरा कलेजा ठंडा नहीं होगा.’’

इस के बाद मनोज ने ओमप्रकाश की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने साले राजकुमार तथा ओमप्रकाश के बड़े भाई तेजबहादुर को भी शामिल कर लिया.

चूंकि ओमप्रकाश कई बार तेजबहादुर को पीट चुका था और उसे बेइज्जत भी किया. इसलिए वह भाई की हत्या में मनोज का साथ देने को राजी हो गया. राजकुमार को अपनी बहन की प्रताड़ना व बेइज्जती बरदाश्त नहीं थी इसलिए वह भी उस का साथ देने को राजी हो गया.

6 नंवबर, 2018 को तेजबहादुर ने रात आठ बजे मनोज को मोबाइल फोन पर बताया कि ओमप्रकाश विधनू में पप्पू रिपेयरिंग सेंटर पर अपनी मोटरसाइकिल ठीक करा रहा है. वहां से वह बहन ऊषा के घर पतारा जाएगा. तुम पहुंचो, पीछे से मैं भी आ रहा हूं. आज उचित मौका है.

मनोज ने साले राजकुमार को साथ लिया और विधनू पहुंच गया जहां ओमप्रकाश अपनी मोटरसाइकिल ठीक करा रहा था. योजना के अनुसार मनोज अपनी मोटरसाइकिल से विधनू के रिपेयरिंग सेंटर पर पहुंच गया. वहां मनोज ने ओमप्रकाश से दुआसलाम की फिर अपने किए की माफी मांगी. मनोज झुका तो ओमप्रकाश भी नरम पड़ गया.

वैसे भी मनोज कोई गैर नहीं, साढ़ू था. इसलिए ओमप्रकाश ने उसे माफ करते हुए कहा, ‘‘ठीक है भाई साहब, मैं ने तुम्हें माफ किया. मगर गलती दोहराने की कोशिश मत करना.’’

‘‘ठीक है, आइंदा गलती नहीं होगी, लेकिन मैं चाहता हूं कि इस खुशी में आज तुम मेरे साथ पार्टी करो. तब मैं समझूंगा कि तुम ने दिल से मुझे माफ कर दिया है.’’

‘‘जब तुम यह बात कह रहे हो तो मुझे मंजूर है.’’ इस के बाद मनोज और ओमप्रकाश ने ठेके पर जा कर शराब पी. मनोज ने जानबूझ कर ओमप्रकाश को कुछ ज्यादा पिला दी. घर वापसी में मनोज ने शंभुआ हाइवे पुल पर मोटरसाइकिल रोक दी. ओमप्रकाश भी रुक गया. इस के बाद मनोज ने तेज बहादुर को भी बुला लिया.

योजना के मुताबिक राजकुमार ने ओमप्रकाश की मोटरसाइकिल हाईवे किनारे पलट दी. फिर मनोज व तेज बहादुर ने ओमप्रकाश को दबोच लिया और दोनों ने मिल कर चाकू से ओमप्रकाश की गरदन रेत दी.

दुर्घटना दर्शाने के लिए उन लोगों ने उस के शव को सड़क किनारे फेंक दिया. इस के बाद मनोज, राजकुमार के साथ ससुराल पहुंचा और पूजा को उस के पति की हत्या कर देने की जानकारी दी. तेज बहादुर भी अपने घर हंसपुरम आ गया.

7 नवंबर की सुबह शंभुआ हाईवे पुल पर दुर्घटना की सूचना विधनू थानाप्रभारी संजीव चौहान को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. इसी भीड़ में से एक शख्स सामने आया और उस ने बताया कि उस का नाम तेजबहादुर है और वह नौबस्ता थाने के हसंपुरम का रहने वाला है. मृतक उस का छोटा भाई ओमप्रकाश है. वह उसे खोजता हुआ यहां पहुंचा था. बीती शाम ओमप्रकाश बहन ऊषा के घर गया था. शायद वहीं से घर लौटते समय उस का एक्सीडेंट हो गया.

चूंकि शव की शिनाख्त हो गई थी इसलिए थानाप्रभारी संजीव चौहान ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दूसरे रोज जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट उन्होंने पढ़ी तो वह चौंक गए. क्योंकि ओमप्रकाश की मौत सड़क दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि गला काट कर हत्या करने के बाद उसे सड़क पर डाला गया था ताकि मामला दुर्घटना का लगे.

इस के बाद थानाप्रभारी संजीव चौहान ने मृतक के भाई तेजबहादुर, प्रमोद व छोटू तथा बहन ऊषा से पूछताछ की. तेजबहादुर तो पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन प्रमोद, छोटू व उषा ने शक जाहिर कर दिया. उन्होंने बताया कि ओमप्रकाश की शादी पूजा से हुई थी.

पूजा के अपने बहनोई मनोज से नाजायज संबंध थे. ओमप्रकाश इस का विरोध करता था. पूजा नाराज हो कर मायके चली गई थी. इतना ही नहीं उस ने भाई के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा दिया था. उन्होंने कहा कि मनोज व पूजा ने ही भाई की हत्या की है.

मनोज शक के घेरे में आया तो थानाप्रभारी संजीव चौहान ने उसे थाने बुलवा लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. मनोज ने ओमप्रकाश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मनोज ने बताया कि उस ने अपने साले राजकुमार व मृतक के बड़े भाई तेज बहादुर के साथ मिल कर ओमप्रकाश की हत्या की थी. मनोज ने यह भी स्वीकार किया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के नाजायज संबंध हैं. उसी के उकसाने पर ओमप्रकाश की हत्या की गई थी.

हत्या का राज खुला तो पुलिस ने मृतक की पत्नी पूजा तथा भाई तेजबहादुर को भी हिरासत में ले लिया. किंतु राजकुमार फरार हो गया. मनोज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया, जिसे उस ने घर में छिपा दिया था.

थानाप्रभारी संजीव चौहान ने मृतक के छोटे भाई प्रमोद की तरफ से मनोज, पूजा, तेजबहादुर व राजकुमार के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के उन्हें विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

14 नवंबर, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी मनोज, पूजा व तेज बहादुर को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. जबकि राजकुमार फरार था.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जीजा साली का जुनूनी इश्क – भाग 2

एक रात अचानक पूजा के पिता जगराम सिंह की नींद खुल गई. उन्हें बेटी के कमरे से खुसरफुसर की आवाजें आईं. जिज्ञासावश उन्होंने बेटी के कमरे में खिड़की से झांका तो छोटी बेटी पूजा को दामाद के साथ देख कर उन का खून खौल गया.

किसी तरह उन्होंने गुस्से पर काबू कर के दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलना मजबूरी थी, पूजा ने डरते सहमते दरवाजा खोल दिया, सामने पिता को देख कर वह घबरा गई. मनोज माफी मांगते हुए ससुर के पैरों में गिर गया.

बहरहाल, उस समय जगराम ने उन से कुछ नहीं कहा. सुबह होने पर जगराम ने रात वाली बात अपनी पत्नी मीना को बताई. बदनामी के भय से जगराम सिंह व मीना ने शोरशराबा नहीं किया. उन दोनों ने पूजा और मनोज को धमकाया. दोनों सिर झुकाए अपनी फजीहत कराते रहे. कुछ देर बाद मनोज वहां से अपने घर लौट गया.

जगराम सिंह और मीना ने बड़ी बेटी ममता के दांपत्य को कड़वाहट से बचाने के लिए उस के पति की करतूत छिपाए रखी. ससुराल की बात ससुराल में ही दबी रही और वह पूजा के लिए लड़का देखने लगे ताकि जल्द उस के हाथ पीले कर सकें. लेकिन दामाद की करतूत छिपाना जगराम को महंगा पड़ा हुआ.

मनोज के मन में जो डर था वह धीरे धीरे दूर हो गया. एक दिन पूजा ने मनोज को फोन कर के बता दिया कि उस के पिता उस के लिए लड़का ढूंढ रहे हैं. यह जानकारी मिलते ही मनोज एक दिन ससुराल पहुंच गया. उस ने सास ससुर से अपनी गलती की माफी मांग ली. साथ ही यह भी कहा कि आइंदा वह पूजा को साली नहीं बल्कि छोटी बहन मानेगा.

वह उस के साथ वैसा ही व्यवहार करेगा, जैसा एक भाई, अपनी बहन से करता है. जगराम सिंह और मीना के लिए यही बहुत था कि दामाद को अपनी गलती का अहसास हो गया था और उस ने पूजा को बहन मान लिया था. अत: दोनों ने सच्चे दिल से मनोज को माफ कर दिया.

मौका मिलने पर मनोज ने पूजा को बताया, ‘‘तुम्हारी शादी भले ही कहीं हो जाए, मेरे संबंध तुम्हारे साथ पहले की तरह ही रहेंगे.’’ इस पर पूजा ने भी कह दिया, ‘‘मैं भी तुम्हें प्यार करती रहूंगी. तुम्हें कभी नहीं भुला सकूंगी.’’

इस के बाद मनोज अपने ससुर के साथ मिल कर पूजा के लिए लड़का खोजने लगा. इसी बीच जगराम सिंह की मुलाकात तेज बहादुर से हुई. तेजबहादुर कानपुर शहर के हंसपुरम (नौबस्ता) में रहता था. वह जगराम के बड़े भाई सुखराम का दामाद था. उस के साथ सुखराम की बेटी अनीता ब्याही थी. इस नाते वह उस का भी दामाद था.

जगराम ने उस से अपनी बेटी पूजा के लिए कोई लड़का बताने को कहा तो उस ने बताया कि उस का छोटा भाई ओमप्रकाश ब्याह लायक है. ओमप्रकाश कार चालक है और अच्छा कमाता है. तेज बहादुर ने यह भी बताया कि ओमप्रकाश के अलावा उस के 2 अन्य भाई छोटू व प्रमोद हैं. सभी लोग साथ रहते हैं.

चूंकि पुरानी रिश्तेदारी थी. अत: जगराम सिंह ने ओमप्रकाश को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गया. पूजा के इस रिश्ते को मनोज ने भी सहमति दे दी. क्योंकि पूजा कहीं दूर नहीं जा रही थी. आपसी सहमति के बाद जगराम सिंह ने 16 फरवरी, 2016 को पूजा का विवाह ओमप्रकाश के साथ कर दिया.

शादी के बाद पूजा अपनी ससुराल हंसपुरम पहुंच गई. पूजा खूबसूरत थी, इसलिए ससुराल में सभी ने उस की सुंदरता की तारीफ की. ओमप्रकाश भी खूबसूरत बीवी पा कर खुश था. चूंकि पूजा और अनीता चचेरी बहनें थीं और एक ही घर में दोनों सगे भाइयों को ब्याही थीं. इसलिए दोनों में खूब पटती थी. पूजा ने अपने व्यवहार से पूरे परिवार का दिल जीत लिया था. वह पति के अलावा जेठ तेजबहादुर तथा देवर प्रमोद व छोटू का भी पूरा खयाल रखती थी.

पूजा ससुराल चली गई तो मनोज उस से मिलने के लिए छटपटाने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूजा से बात की फिर वह उस की ससुराल जा पहुंचा, चूंकि मनोज, ओमप्रकाश का साढ़ू था, सो सभी ने उस की आवभगत की.

इस आवभगत से मनोज गदगद हो उठा. इस के बाद वह अकसर पूजा की ससुराल जाने लगा. आतेजाते मनोज ने पूजा के जेठ तेजबहादुर से अच्छी दोस्ती कर ली. दोनों की साथसाथ भी महफिल जमने लगी.

मनोज जब भी पूजा की ससुराल पहुंचता तो वह उस के आसपास ही घूमता रहता था. वह उस से खूब हंसीमजाक करता और ठहाके लगा कर हंसता. उस की द्विअर्थी बातों से कभीकभी पूजा तिलमिला भी उठती और उसे सीमा में रहने की नसीहत दे देती.

ओमप्रकाश को साढ़ू का रिश्ता पंसद नहीं था. न ही उसे मनोज का घर आना और पूजा से हंसीमजाक करना अच्छा लगता था. वह मन ही मन कुढ़ता था. लेकिन विरोध नहीं जता पाता था.

एक रोज ओमप्रकाश ने मनोज के आनेजाने को ले कर अपनी पत्नी पूजा से बात की और कहा कि उसे आए दिन मनोज का यहां आनाजाना पसंद नहीं है. न मैं उस के घर जाऊंगा और न ही वह हमारे घर आया करे. मुझे उस की बेहूदा बातें और भद्दा हंसीमजाक बिलकुल पसंद नहीं है. तुम उसे यहां आने से साफ मना कर दो.

लेकिन पूजा ने मनोज को मना नहीं किया. वह पहले की तरह ही वहां आता रहा. बल्कि अब वह कभीकभी रात को वहां रुकने भी लगा था. मनोज की गतिविधियां देख कर ओमप्रकाश का माथा ठनका. उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने गुप्त रूप से पता लगाया तो जानकारी मिली कि शादी के पहले से ही पूजा और मनोज के बीच नाजायज संबंध थे.

मनोज ने इस बारे में पूजा से बात की तो कड़वी सच्चाई सुन कर पूजा उखड़ गई. उस ने साफ कहा कि उस के और जीजा के बीच कोई नाजायज संबंध नहीं थे और न हैं. कोई उन दोनों को बदनाम करने के लिए इस तरह की बातें कर रहा है. पूजा ने भले ही कितनी सफाई देने की कोशिश की लेकिन उस के पति के दिमाग में तो शक का बीज अंकुरित हो चुका था.

नतीजा यह हुआ कि इन बातों को ले कर उन के घर में कलह होने लगी. कभीकभी कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि नौबत मारपीट तक जा जाती थी. इस कलह की जानकारी मनोज को हुई तो उस ने पूजा की ससुराल जाना बंद कर दिया. लेकिन पूजा के जेठ तेजबहादुर से उस ने नाता नहीं तोड़ा और दोनों घर के बाहर महफिल जमाते रहे.

मनोज का घर आनाजाना बंद हुआ तो पूजा खिन्न रहने लगी. वह अपने पति से बातबेबात झगड़ने लगती. दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगीं. इस का परिणाम यह हुआ कि ओमप्रकाश ने शराब पीनी शुरू कर दी. वह देर रात नशे में चूर हो कर घर लौटता तो आते ही पत्नी को गालियां बकनी शुरू कर देता था. उस पर चरित्रहीनता का लांछन लगाता.

पूजा कुछ बोलती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पूजा की चीखपुकार सुन कर उस का जेठ तेजबहादुर बीचबचाव करने आता तो ओमप्रकाश बडे़ भाई से भी भिड़ जाता था. इतना ही नहीं वह उस के साथ भी मारपीट करने लगता.

जीजा साली का जुनूनी इश्क – भाग 1

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नौबस्ता थाने के अंतर्गत एक कालोनी है खाड़ेपुर. यह कालोनी  कानपुर विकास प्राधिकरण ने मध्यमवर्गीय आवास योजना के तहत विकसित की थी. इसी कालोनी के बी-ब्लौक में जगराम सिंह अपने परिवार के साथ रहता था.

उस के परिवार में पत्नी मीना सिंह के अलावा 2 बेटियां ममता, पूजा के अलावा एक बेटा राजकुमार था. जगराम सिंह पनकी स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री से मिलने वाली तनख्वाह से उस के घर का खर्च आसानी से चल जाता था.

बड़ी बेटी ममता की इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद जगराम सिंह ने उस की शादी कानपुर के कठारा निवासी मनोज से कर दी. मनोज 3 बहनों का एकलौता भाई था. पिता अपनी पुश्तैनी जमीन पर सब्जियां उगाते थे. मनोज उन सब्जियों को टैंपो से नौबस्ता मंडी में थोक में बेच आता था. इस से अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था.

मनोज गांव से टैंपो पर सब्जी लाद कर नौबस्ता मंडी लाता था. नौबस्ता से खाडे़पुर कालोनी ज्यादा दूर नहीं थी. इसलिए वह हर तीसरेचौथे दिन ससुराल पहुंच जाता था.

नईनई शादी हुई हो तो दामाद के लिए ससुराल से बेहतरीन कोई दूसरा घर नहीं होता. इस का एक कारण भारतीय परंपरा भी है. दामाद घर आए तो सभी लोग उस के आगमन से विदाई तक पलक पावड़े बिछाए रहते हैं. खूब स्वागतसत्कार होता है. विदाई के समय उपहार भी दिया जाता है. यह उपहार सामान की शक्ल में भी होता है और नकदी के रूप में भी.

मनोज की ससुराल में दिल लगाने, हंसीमजाक और चुहल करने के लिए एक जवान और हसीन साली भी थी पूजा. हालांकि एक साला राजकुमार भी था, मगर मनोज उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाता था. उस की कोशिश पूजा के आसपास बने रहने और उस के साथ चुहलबाजी, छेड़छाड़ करते रहने की होती थी. पूजा भी उस से खुल कर हंसीमजाक करती थी. दोनों में खूब पटती थी.

पूजा के घर वाले पूजा और मनोज की चुहलबाजी को जीजासाली की स्वाभाविक छेड़छाड़ मानते थे और उन दोनों की नोकझोंक पर खुद भी हंसते रहते थे. ससुराल वाले मनोज को दामाद कम बेटा अधिक मानते थे. दरअसल मनोज ने अपने कुशल व्यवहार से अपनी सास व ससुर का दिल जीत लिया था. वह उन के घरेलू काम में भी मदद कर देता था. इसी के चलते वह मनोज पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करने लगे थे.

मनोज जब ससुराल में ज्यादा आनेजाने लगा तो उस का धंधा भी प्रभावित होने लगा. पिता ने डांटा तो उस के दिमाग से ससुराल का नशा उतरने लगा. जिंदगी की ठोस हकीकत सामने आनी शुरू हुई तो मनोज का ससुराल में जल्दीजल्दी आनाजाना बंद हो गया. हां, फुरसत मिलने पर वह ससुराल में हो आता था.

पत्नी चाहे जितनी खूबसूरत हो, उस का नशा हमेशा नहीं रहता. वह जितनी तेजी से चढ़ता है उतनी ही तेजी से उतरने भी लगता है. शादी के 2 साल बाद ही मनोज को ममता बासी और उबाऊ लगने लगी. पत्नी से मन उचटा तो कुंवारी और हसीन साली पूजा में रमने लगा.

मन नहीं माना तो मनोज ने फिर से ससुराल के फेरे बढ़ा दिए. पर इस बार मनोज का ससुराल आना बेमकसद नहीं था. उस का मकसद थी पूजा. लेकिन ममता को पति के असली इरादे की भनक नहीं थी. वह तो यही समझती थी कि मनोज उस के परिवार का कितना खयाल रखता है, जो वह उस के मातापिता की मदद करने के लिए उस के मायके चला जाता है. पत्नी के इसी विश्वास की आड़ में मनोज अपना मकसद पूरा करने में लगा था.

ससुराल पहुंचने पर मनोज की आंखें साली को ही खोजती रहती थीं, वह पूजा से मौखिक छेड़छाड़ तो पहले से करता था, अब उस ने मौका मिलने पर शारीरिक छेड़छाड़ भी शुरू कर दी थी. पूजा को यह सब अजीब तो लगता था मगर वह जीजा का विरोध नहीं करती थी. वह सोचती थी कि कहीं जीजा बुरा न मान जाएं.

एक दिन मनोज मर्यादा की हद लांघ गया. उस दिन पूजा के मातापिता कहीं गए थे और भाई राजकुमार अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए निकल गया.

घर में केवल पूजा और मनोज ही थे. अच्छा मौका पा कर मनोज ने पूजा को आलिंगबद्ध कर लिया. पूजा उस के चंगुल से छूटने को कसमसाई तो वह उस के गालों पर होंठ रगड़ने लगा. इस के बाद उस ने पूजा की गरदन को गर्म सांसों से सहला दिया.

यह पहला मौका था, जब किसी पुरुष ने पूजा को मर्दाना स्पर्श की अनुभूति कराई थी. मनोज के स्पर्श से वह रोमांच से भर गई. इस के बावजूद किसी तरह उस ने मनोज को अपने से दूर कर दिया. पूजा ने नाराजगी से मनोज को देखते हुए कहा, ‘‘जीजा, पिछले कुछ दिनों से मैं ने नोट किया है कि तुम कुछ ज्यादा ही शरारत करने लगे हो.’’

‘‘तुम ने सुना ही होगा कि साली आधी घर वाली होती है.’’ मनोज ने भी बेहयाई से हंसते हुए कहा, ‘‘तो मैं तुम पर अपना अधिकार क्यों न जताऊं.’’

‘‘नहीं जीजा, यह सब मुझे पसंद नहीं है.’’ वह बोली.

‘‘सच कहता हूं पूजा, तुम ममता से ज्यादा खूबसूरत और नशीली हो.’’ कहते हुए मनोज ने उस का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया, ‘‘मेरी बात का यकीन न हो तो इस दिल से पूछ लो, जो तुम्हें प्यार करने लगा है. काश, मेरी शादी ममता के बजाए तुम से हुई होती.’’

‘‘जीजा, तुम हद से आगे बढ़ रहे हो,’’ कह कर पूजा ने हाथ छुड़ाया और वहां से चली गई. मनोज ने उसे रोकने या पकड़ने का प्रयास नहीं किया. वह अपनी जगह पर खड़ा मुसकराता रहा.

पूजा पत्थर हो, ऐसा नहीं था. जीजा की रसीली बातों और छेड़छाड़ से उस के मन में भी गुदगुदी होने लगी थी.

बहरहाल, उस दिन के बाद से मनोज पूजा से जुबानी छेड़छाड़ कम और जिस्मानी छेड़छाड़ ज्यादा करने लगा. अब वह उस का विरोध भी नहीं करती थी. पूजा का अपने जीजा से लगाव बढ़ गया. वह स्वयं सोचने लगी कि शादी जब होगी, तब होगी. क्यों न शादी होने तक जीजा से मस्ती कर ली जाए. परिणाम वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है.

शादी के पहले ही पूजा ने खुद को जीजा के हवाले कर दिया. इस के बाद तो वह जीजा की दीवानी हो गई. मनोज भी आए दिन ससुराल में पड़ा रहने लगा. रात को अपने बिस्तर से उठ कर वह चुपके से पूजा के कमरे में चला जाता और सुबह 4 बजे अपने बिस्तर पर आ जाता था.

अदालत में ऐसे झुकी मूछें

ऐसी बेटी किसी की न हो

पैसा बना जान का दुश्मन

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 3

सुनील की कमाई का एकमात्र जरिया टैंपो ही थे. अचानक से दोनों टैंपो ने जवाब दे दिया. जिस से जो पैसे घर में आ रहे थे, वो आने बंद हो गए. अचानक आई मुसीबत से सुनील की गृहस्थी की गाड़ी डगमगा गई थी. रेनू के ब्यूटीपार्लर से इतनी कमाई नहीं हो पा रही थी कि गृहस्थी की गाड़ी चल सके. जबकि खर्चे अपनी जगह पूरे थे. ऐसे में घर का खर्च चल पाना मुश्किल हो गया था.

अचानक आई मुसीबत से पति और पत्नी परेशान हो गए. सुनील को कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि वह करे तो क्या करे. टैंपो बंद हो जाने के बाद सुनील घर में मुट्ठी बंद कर के बैठ गया. उस ने बाहर कहीं हाथपांव मारने की कोशिश नहीं की. पति की उदासीनता देख कर रेनू के हाथपांव फूल गए कि गृहस्थी की गाड़ी कैसे चलेगी?

आगे का जीवन कैसे कटेगा. ये सोचसोच कर रेनू चिड़चिड़ी हो गई थी. वह पति को कहीं और जा कर नौकरी करने की सलाह देती. पत्नी की सलाह सुनील को अच्छी नहीं लगती थी. वह महसूस करता कि पत्नी उसे अपनी तरह से हांकना चाहती है. इसलिए वह उस पर बिगड़ जाता था. तब पति को डराने के लिए रेनू अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि उस की बात नहीं मानी तो वह भाई से कह कर उसे जेल भेजवा देगी.

पत्नी की धौंस सुन कर सुनील गुस्से के मारे लाल हो जाता था. अब तो बातबात पर पतिपत्नी के बीच तूतू मैंमैं होने लगी थी. दोनों के बीच प्रेम की जगह नफरत खड़ी हो गई. एक ही छत के नीचे रह कर दोनों किसी अजनबी की तरह जीवन के दिन काटने लगे.

दोनों के बीच बातचीत भी कम होने लगी थी. इस का सीधा असर उन के बेटे शिवम पर पड़ रहा था. शिवम बड़ा हो चुका था और समझदार भी. मांबाप के रोजरोज के झगड़े से वह आजिज आ चुका था. इस से उस की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा था.

बेटे के भविष्य को देखते हुए रेनू ने फैसला किया कि वह बेटे को अपने पास नहीं रखेगी. इस से उस के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है. इसलिए इंटरमीडिएट परीक्षा पास कर लेने के बाद आगे की तैयारी के लिए रेनू ने बेटे को दिल्ली भेज दिया. शिवम दिल्ली में रह कर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने लगा था. ये बात जून, 2018 की है.

इसी बीच रेनू बीमार पड़ गई. अकसर उस के पेट में असहनीय दर्द रहने लगा था. डाक्टर से चैकअप कराने पर पता चला उसे एपेंडिक्स हुआ है. उस के औपरेशन और दवा के खर्च में करीब 15-20 हजार रुपए तक खर्च आ सकते हैं. यह सुन कर सुनील अपना माथा पकड़ कर बैठ गया.

वह समझ नहीं पा रहा था कि इलाज के लिए पैसे कहां से आएंगे? खैर, जो भी हो, रेनू थी आखिर उस की पत्नी. भले ही वह एक छत के नीचे अजनबियों की तरह रह रहे थे, लेकिन पत्नी की अस्वस्थता देख कर उस का मन पसीज गया था. पत्नी को तकलीफ में जीता हुआ वह नहीं देख सकता था. इस बीमारी ने दोनों के सारे गिलेशिकवे भुला कर दोनों को एकदूसरे के करीब ला दिया था. दोनों एकदूसरे के करीब भले ही आ गए थे लेकिन उन के मन की कड़वाहट अभी भी ताजा बनी हुई थी.

सुनील ने जैसे तैसे रुपयों का बंदोबस्त किया और जून, 2018 में पत्नी का औपरेशन करवा दिया. डाक्टर ने रेनू को पूरी तरह बेड रेस्ट करने की सलाह दी. दिन भर चहलकदमी करने वाली रेनू बैड पर पड़ीपड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी. पति की किसी भी बात को सुनते ही उस पर झल्ला उठती थी. ये लगभग रोज की ही उस की आदत बन गई थी.

अब तो वो किसी भी बात को ले कर इंसपेक्टर भाई की धौंस दे देती थी कि तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो भैया से शिकायत कर के तुम्हें जेल भिजवा दूंगी. पत्नी के व्यवहार से सुनील सिंह बुरी तरह दुखी था और टूट भी गया था.

पत्नी के रवैये से आजिज आ कर सुनील उस से छुटकारा पाने की युक्ति सोचने लगा कि कैसे इस से जल्द से जल्द मुक्ति पा सके. पत्नी से छुटकारा पाने के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हो गया था.

बात 11 सितंबर, 2018 की है. पत्नी को दिखाने सुनील को डाक्टर के पास जाना था. सुनील ने रेनू से कहा कि वह किसी जानने वाले से कार ले कर आता है. उसी से सुनील ने डाक्टर के पास चलने की बात कही तो रेनू भड़क गई. उस ने कह दिया कि वह मांगी हुई कार से चेकअप कराने नहीं जाएगी. चाहे कुछ भी हो जाए. कार अपनी होनी चाहिए. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच जो झगड़ा शुरू हुआ तो वो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

देखा जाए तो इस बात में कोई दम नहीं था लेकिन रेनू ने तो उसे एक इश्यू बना लिया था. शाम में झगड़ा शुरू हुआ तो रात के 12 बजे तक चला. घर में चूल्हा तक नहीं जला. दोनों भूखे ही रहे. सुनील को पत्नी से छुटकारा पाने का ये मौका बेहतर लगा.

गुस्से में आपा खोए सुनील ने सिलबट्टे से रेनू के सिर के पीछे ऐसा वार किया कि वह फर्श पर जा गिरी और छटपटाने लगी. फिर धीरेधीरे वह मौत की आगोश में समाती चली गई.  खून देख कर सुनील के होश उड़ गए. डर के मारे वह कांपने लगा था. उस की आंखों के सामने जेल की सलाखें नजर आने लगी थीं. पुलिस से बचने के लिए उस ने एक अनोखी कहानी गढ़ डाली.

हत्या को लूट का रूप देने के लिए उस ने फर्श पर पड़े खून को गीले कपड़े से साफ कर दिया. फिर पत्नी की लाश को खींच कर बेड पर लिटा दिया. अलमारी के सामान को चौकी और फर्श पर बिखेर दिया. फिर पत्नी के गले और कान की बालियां निकाल लीं. एक बाली को फर्श पर ऐसे गिरा दिया जैसे लगे कि बदमाशों से जाते समय लूटे गए सामान से वह बाली गिर गई.

क्राइम औफ सीन को उस ने ऐसा बनाने की कोशिश की, जिस से लगे कि लूट के लिए बदमाशों ने रेनू की हत्या की हो. सुनील ने पत्नी की हत्या कर बड़ी सफाई से सबूत मिटा दिए थे. लेकिन सीसीटीवी कैमरे ने उस की सारी कहानी से परदा उठा दिया. पतिपत्नी अगर आपस में सामंजस्य बना कर रहते तो रेनू जीवित रहती और सुनील को जेल भी नहीं जाना पड़ता. लेकिन दोनों के अविवेक ने हंसतेखेलते घर को उजाड़ दिया.

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 2

पुलिस सुनील से यह जानने में जुटी हुई थी कि घटना वाली रात साढ़े 4 बजे वह किस रास्ते से और कहां तक टहलने गया था? आनेजाने में उसे कुल कितना समय लगा था? इन सवालों की बौछार से सुनील के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. वह सकपका गया और दाएंबाएं देखने लगा. पुलिस ने उस के चेहरे की हवाइयों को पहचान लिया कि वह वास्तव में जरूर कुछ छिपा रहा है.

सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस सीसीटीवी कैमरे की तलाश में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई. सुनील के घर से करीब 500 मीटर दूर कालोनी के ही सूरजकुंड ओवरब्रिज के पास एक सीसीटीवी कैमरा लगा मिल गया.

पुलिस ने उस सीसीटीवी कैमरे की फुटेज खंगाली तो खुद सुनील हाथ में एक झोला लिए कहीं जाता हुआ दिखा. झोले में कुछ वजनदार चीज प्रतीत हो रही थी. थोड़ी देर बाद जब वह वापस लौटा तो उस के हाथ में झोला नहीं था. हाथ खाली था. सुनील जिन 3 संदिग्यों के होने का दावा कर रहा था, उस घटना वाली रात कैमरे में वह नहीं दिखे.

अब सीसीटीवी कैमरे से तसवीर साफ हो चुकी थी. यानी सुनील झूठ बोल रहा था. पुलिस के शक के दायरे में सुनील आ चुका था.

14 सितंबर की सुबह पत्नी के दाह संस्कार के वक्त पुलिस राजघाट श्मशान पहुंच गई और क्रियाकर्म हो जाने के बाद पुलिस ने सुनील को हिरासत में ले लिया. थाने पहुंचने पर पुलिस ने सुनील से गहनतापूर्वक पूछताछ की. पुलिस के सवालों के आगे वह एकदम टूट गया और पत्नी की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने बताया, ‘‘सर मैं उसे मारना नहीं चाहता था. पर उस ने मेरी जिंदगी एकदम से नरक से भी बदतर बना दी थी. बातबात पर अपने इंसपेक्टर भाई की धौंस देती थी, जेल भेजवाने की धमकी तो उस की जबान पर हर समय रहती थी. इस के चलते मेरा कामकाज सब ठप्प पड़ गया था. उस की हरकतों की वजह से मैं इतना मजबूर हो गया था कि मुझे ऐसा कदम उठाना पड़ा. इस बात का दुख मुझे भी है और जीवन भर रहेगा.’’ इतना कह कर सुनील रोने लगा.

आखिर सुनील किस बात को ले कर मजबूर हुआ कि उसे ऐसा खतरनाक कदम उठाना पड़ा. पूछताछ करने पर इस की जो वजह सामने आई, इस प्रकार निकली.

45 वर्षीय सुनील सिंह मूलत: संतकबीर नगर जिले के धनघटा के मटौली गांव का रहने वाला था. उस के पिता कालिका सिंह को गोरखुपर के गोला क्षेत्र के नेवास गांव में नेवासा मिला हुआ था. सासससुर और संपत्ति की देखभाल के लिए पत्नी और बच्चों के साथ कालिका सिंह ससुराल में जा कर बस गए थे. गांव में रह कर बच्चे पले और बड़े हुए और उन्होंने उसी इलाके के विद्यालयों से पढ़ाई की.

कालिका सिंह मिलनसार स्वभाव के थे. अपने बच्चों को भी वह अच्छी शिक्षा और अच्छी सीख दिया करते थे. सुनील खुली आंखों से सरकारी अफसर बनने के सपने देखा करता था. इस के लिए वह दिन रात जीतोड़ मेहनत करता था. लेकिन वह कोशिश करने के बाद भी सरकारी मुलाजिम नहीं बन सका.

भाग्य और किस्मत के 2 पाटों के बीच में पिसे सुनील ने सरकारी नौकरी का ख्वाब देखना छोड़ दिया और उस ने खुद का कोई कारोबार करने की योजना बनाई. इसी बीच उस के जीवन में एक नई कहानी ने जन्म लिया. खूबसूरत रेनू सिंह के साथ वह दांपत्य जीवन में बंध गया. कुछ सालों बाद सुनील एक बेटे शिवम का बाप बन गया.

खुद्दार और मेहनतकश सुनील मांबाप के सिर पर कब तक बोझ बन कर जीता. अब वह अकेला नहीं बल्कि परिवार वाला हो चुका था. जीवन की गाड़ी चलाने के लिए उस ने कुछ न कुछ करने का फैसला ले लिया. सन 2008 में सुनील परिवार को ले कर गोरखपुर आ गया. सूरजकुंड कालोनी में उस का साला अजीत सिंह रहता था. अजीत ने ही सुनील को कालोनी में एक किराए का कमरा दिलवा दिया.

शहर में रहना तो आसान होता है लेकिन खर्चे संभालना आसान नहीं होता. वह भी तब जब कमाई का कोई जरिया न हो. ऐसा ही हाल कुछ सुनील का भी था. शुरुआत में सुनील के पिता ने उसे आर्थिक सहयोग किया.

बेटे का स्कूल में दाखिला कराने के बाद सुनील ने पिता के सहयोग से भाड़े पे चलाने के लिए 2 टैंपो खरीद लिए. टैंपो उस ने भाड़े पर चलवा दिए. टैंपो से उस की अच्छी कमाई होने लगी. दोनों ड्राइवरों को दैनिक मजदूरी देने के बाद सुनील के पास अच्छी बचत हो जाती थी.

पैसा आने लगा तो उस की जरूरतें भी बढ़ने लगीं. धीरेधीरे शिवम भी स्कूल जाने लायक हो चुका था. शिवम उस का इकलौता बेटा था. उसे वह अच्छी से अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था. इसलिए सुनील ने बाद में शहर के अच्छे स्कूल में उस का दाखिला करा दिया.

सुनील और रेनू दोनों ने मिल कर तय किया कि जब शहर में ही रहना है तो भाड़े के मकान में कब तक सिर छिपाएंगे. थोड़ा पैसा इकट्ठा कर के मकान बनवा कर आराम से रहेंगे और कमाएंगे खाएंगे.

यह बात रेनू ने अपने बड़े भाई अजीत से कही तो उस ने बहन की बातों को काफी गंभीरता से लिया और अपने मकान से थोड़ी दूरी पर उसे एक प्लौट खरीदवा दिया. इस के बाद सुनील ने इधरउधर से पैसों का इंतजाम कर के उस प्लौट पर मकान बनवा लिया. फिर वह अपने मकान में रहने लगा.

पति की आमदनी से रेनू खुश नहीं थी. वह जान रही थी कि टैंपो की कमाई स्थाई नहीं है. आज सड़क पर दौड़ रहा है तो पैसे आ रहे हैं, यदि कल को वह खराब हो जाए तो क्या होगा? फिर पैसे कहां से आएंगे. कहां तक घर वालों के सामने हाथ फैलाए खडे़ रहेंगे.

रेनू ने सोचा कि वह भी कुछ ऐसा काम करे जिस से 2 पैसे घर में आएं तो अच्छा ही होगा. वह पढ़ीलिखी तो थी ही अपनी शिक्षा और व्यक्तित्व के अनुरूप ही काम करना चाहती थी.

बहुत सोचनेविचारने के बाद उसे ब्यूटीपार्लर का काम अच्छा लगा. पति से सलाह ले कर ब्यूटीपार्लर का कोर्स कर लिया फिर घर में ही ब्यूटीपार्लर की दुकान खोल ली. मोहल्ले में होने के नाते उस का पार्लर चल निकला. दोनों की कमाई से बड़े मजे से परिवार की गाड़ी चल रही थी. कुछ दिनों बाद ही पता नहीं किस की नजर लगी कि परिवार से जैसे खुशियां ही रूठ गईं.

अविवेक ने उजाड़ी बगिया – भाग 1

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के थाना तिवारीपुर के एसओ रामभवन यादव रात्रि गश्त से लौट कर अपने आवास पर पहुंचे ही थे कि उन के मोबाइल फोन की घंटी बज उठी. उस समय सुबह के 5 बजे थे. बेपरवाही से उन्होंने फोन स्क्रीन पर नजर डाली. काल किसी बिना पहचान वाले नंबर से आई थी. उन्होंने काल रिसीव कर जैसे ही हैलो कहा तो दूसरी तरफ से आवाज आई. मैं एसओ साहब से बात करना चाहता हूं.

‘‘जी बताइए, मैं एसओ तिवारीपुर बोल रहा हूं.’’ रामभवन यादव ने कहा, ‘‘बताइए क्या बात है, आप इतना घबराए हुए क्यों हैं?’’

‘‘सर, मैं सुनील सिंह बोल रहा हूं और सूर्य विहार कालोनी में रहता हूं.’’ फोन करने वाले व्यक्ति ने आगे कहा, ‘‘सर, गजब हो गया. कुछ बदमाश मेरे घर में घुस कर मेरी पत्नी रेनू सिंह की हत्या कर के फरार हो गए.’’ इतना कह कर सुनील सिंह फफकफफक कर रोने लगा. इस के बाद उस ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

सुबहसुबह हत्या की खबर सुन कर एसओ रामभवन यादव चौंक गए.  मामला गंभीर था. इसलिए वह फटाफट टीम को साथ ले कर सूर्य विहार कालोनी की तरफ रवाना हो गए. इसी बीच गोरखपुर जीआरपी थाने के इंसपेक्टर अजीत सिंह का फोन भी उन के पास आ चुका था. उन से बात कर के पता चला कि मृतका रेनू सिंह अजीत सिंह की सगी बहन थी.

यहां बात विभाग की आ गई. एसओ रामभवन यादव ने इंसपेक्टर अजीत सिंह को भरोसा दिया कि उन के साथ पूरा न्याय होगा. अपराधी चाहे जो भी हो उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. उधर इंसपेक्टर अजीत सिंह ने भी केस के खुलासे में अपनी तरफ से पूरी मदद करने को कहा.

तिवारीपुर थाने से घटनास्थल करीब 2 किलोमीटर दूर था इसलिए एसओ यादव 10-15 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए. पुलिस के पहुंचने के बाद ही कालोनी के लोगों को जानकारी हुई कि बदमाशों ने सुनील के यहां लूटपाट कर उस की पत्नी की हत्या कर दी है.

इस के बाद तो सुनील के घर के सामने कालोनी के लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई. एसओ रामभवन यादव जब सुनील के घर में गए तो उस की पत्नी रेनू सिंह की खून से सनी लाश बेड पर पड़ी हुई थी. लग रहा था कि बदमाशों ने उस के सिर के पीछे कोई भारी चीज मार कर घायल किया था.

वार से सिर की हड्डी भी भीतर की तरफ धंसी हुई थी. सिर पर चोट के अलावा रेनू के शरीर पर चोट का और कोई निशान नहीं था. कमरे में रखी लोहे की अलमारी खुली हुई थी और उस का सामान फर्श पर बिखरा पड़ा था.

कमरे में फर्श पर कान का एक झुमका गिरा पड़ा था. शायद लूटपाट के बाद बदमाशों के वहां से भागते समय लूटे गए गहनों में से झुमका गिर गया था. एसओ ने उस झुमके के बारे में सुनील से पूछा तो सुनील झुमका देखते ही रोते हुए कहने लगा कि यह झुमका उस की पत्नी रेनू का ही है.

इस बीच एसओ रामभवन यादव ने फोन कर के एसएसपी शलभ माथुर, एसपी (सिटी) विनय कुमार सिंह, एसपी (क्राइम), सीओ (क्राइम) प्रवीण सिंह को सूचित कर दिया था. सूचना मिलने के बाद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंच गए थे.

इन अधिकारियों के अलावा सीओ (बांसगांव) वीवी सिंह, सीओ (कोतवाली), एसओ (सहजनवां) सत्य प्रकाश सिंह, स्वाट टीम के इंचार्ज वीरेंद्र राय, एसआई मनोज दुबे, क्राइम ब्रांच के सिपाही वीपेंद्र मल्ल, राजमंगल सिंह, शशिकांत राय, राशिद अख्तर खां, शिवानंद उपाध्याय, कुतुबउद्दीन, राकेश, विजय प्रकाश के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौके पर पहुंच गई.

चूंकि यह मामला पुलिस विभाग से जुड़ चुका था, इसलिए पुलिस वर्क आउट करने में कोई चूक नहीं करना चाहती थी. अधिकारियों ने मौके का गहनता से निरीक्षण किया. कमरे की हालत देख कर पहली नजर में यह मामला लूट का लग रहा था.

फोरैंसिक टीम मौके से सबूत जुटा रही थी. फोरैंसिक टीम ने कमरे में रखी लोहे की अलमारी की जांच की तो अलमारी का लौक कहीं से टूटा हुआ नजर नहीं आया. ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने अलमारी को चाबी से खोला हो. ये देख कर फोरैंसिक टीम हैरान रह गई.

सुनील ने पुलिस को बताया था कि बदमाशों ने अलमारी तोड़ कर जेवर गहने लूटे थे. जबकि घटनास्थल पर इस तरह के कोई निशान नहीं मिले. ये मामला पूरी तरह संदिग्ध लगने लगा और शक के दायरे में कोई अपना ही नजर आने लगा. इसे पुलिस पूरी तरह गोपनीय रखे रही. पुलिस ने उस समय सुनील से कुछ नहीं कहा.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर रेनू की लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भेजवा दी. सुनील की तहरीर पर अज्ञात बदमाशों के खिलाफ लूट के लिए हत्या करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. यह बात 12 सितंबर, 2018 की है.

अगले दिन 13 सितंबर को रेनू सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. रिपोर्ट में रेनू सिंह की मौत हेड इंजरी के कारण बताई गई. यही नहीं उस की मौत का जो समय बताया गया था वह सुनील के दिए गए बयान से कतई मेल नहीं खा रहा था.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची थी तो उस समय रेनू की डैडबौडी अकड़ चुकी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि अमूमन इस तरह के लक्षण किसी बौडी में मौत के करीब 4 घंटे बाद देखने को मिलते हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, रेनू की मौत 11-12 सितंबर की रात के 12 बजे के करीब हो चुकी थी. जबकि सुनील ने बयान दिया था कि उस ने भोर के साढ़े 4 बजे के करीब 3 संदिग्धों को घर की तरफ से जाते हुए देखा था. उन्हीं तीनों ने घटना को अंजाम दिया था.

सुनील के बयान और मौके के हालात तथा पोस्टमार्टम रिपोर्ट आपस में कहीं भी मेल नहीं खा रहे थे. इस का मतलब साफ हो चुका था कि सुनील घटना में शामिल  था या फिर वह पुलिस से कुछ छिपा रहा है. सुनील के बयान को तसदीक करने के लिए पुलिस टीम उन तीनों संदिग्धों की तलाश में जुट गई, जिन पर सुनील को शक था.