
प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’
इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई.उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया.
2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी.सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी.
दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.
शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह
कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए.
एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.
जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे.
प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.
इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए.
नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.
8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
राजेंद्र काफी समझदार और सुलझे हुए इंसान थे. इस बात को वह अच्छी तरह से समझ रहे थे कि दामाद ने जो किया है, वह उचित नहीं है. लेकिन गलतियां इंसान से ही होती हैं.
उस से भी एक भूल हुई है. निश्चय ही उस की यह पहली गलती है, अपनी भूल को सुधारने के लिए उसे एक मौका देना चाहिए. उन्होंने बेटी को समझाया. जमाने भर की उसे नसीहत दी, तब जा कर वह पति के पास लौट जाने को तैयार हुई.
माफी मांगने के बाद भी मिलता रहा प्रेमिका से
उस के बाद राजेंद्र ने इस संबंध में दामाद से बात की. उसे समझाया कि उस ने जो किया है, वह गलत है. फिर कहा, ‘‘तुम्हारा भरपूरा परिवार है. पत्नी और 2 बच्चे हैं. उन मासूम बच्चों का तनिक भी खयाल नहीं आया.’’
ससुर की बात सुन कर भैरव काफी शर्मिंदा हुआ. उस ने ससुर से वादा किया कि उस से दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. यह जून, 2017 की बात है.
एक महीने अनुपमा मायके में रही. पिता के समझाने के बाद वह बच्चों को ले कर पति के पास धनबाद लौट आई. भैरवनाथ ने पत्नी को भरोसा दिया कि दोबारा ऐसा नहीं होगा. लेकिन कुछ दिनों बाद भैरव फिर पुरानी हरकतें करने लगा. लेकिन इस बार सजग हो कर और पत्नी से छिप कर प्रेमिका रूपा से बातें करता था. फिर भी अनुपमा को पति पर शक हो गया कि वह अभी भी रूपा से बातें करता है.
इस बार अनुपमा ने हजारीबाग के रेवाली के रहने वाले अपने ममेरे भाई विवेक राय से बात की. वह भी धनबाद में ही रहता था. विवेक ने किसी तरह उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि भैरव किसी एक नंबर पर ज्यादा बातें करता है. उस नंबर पर विवेक ने काल की तो उसे एक महिला ने रिसीव किया. यह बात विवेक ने अनुपमा को बता दी. अब अनुपमा का शक यकीन में बदल गया कि भैरव के अभी भी रूपा से संबंध बने हुए हैं.
इस के बाद रूपा को ले कर अनुपमा का पति से रोज झगड़ा होने लगा. घर की सारी बातें भैरव रूपा से बता देता था. उसे रूपा दिलोजान से मोहब्बत करती थी. उस से अलग रहने की बात वह सोच भी नहीं सकती थी. ऐसा ही हाल भैरव का भी था. वह रूपा के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.
एक दिन रूपा भैरव के साथ रहने की जिद पर अड़ गई लेकिन पत्नी अनुपमा इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. भैरव भारी दबाव में था. इस कारण वह तनाव में रहने लगा. वह किसी भी हालत में रूपा को नहीं छोड़ना चाहता था.
अपनी पत्नी और बच्चे उसे रास्ते का कांटा दिखने लगे क्योंकि उन के होते हुए वह रूपा को घर नहीं ला सकता था. अंत में उस ने पत्नी और बच्चों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उसे बेटे अभय के जन्मदिन का मौका सब से अच्छा लगा.
3 अक्तूबर, 2017 को भैरव के बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने एक पार्टी का आयोजन किया. पार्टी में उस के मांबाप, मकान में रह रहे अन्य किराएदार, कुछ रिश्तेदारों, मोहल्ले वालों के अलावा रूपा भी आई थी. रूपा को जैसे ही अनुपमा ने देखा, उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तब पार्टी का मजा किरकिरा हो गया. अनुपमा आगबबूला हो गई और रूपा से उलझ गई. दोनों में काफी झगड़ा हुआ.
वह कभी नहीं चाहती थी कि उस की सौतन बनी रूपा उस के पति के गले की हड्डी बन जाए. रूपा समझ गई थी कि अनुपमा उसे देख कर खुश नहीं है. लेकिन उसे इस से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था.
वह अपनी राह के रोड़े को जल्द से जल्द हटा हुआ देखना चाहती थी. रूपा पार्टी के दौरान भैरव को बारबार उकसाती रही कि मौका अच्छा है, हाथ से जाना नहीं चाहिए. बहरहाल, रात साढ़े 9 बजे केक कटा और खुशी का माहौल था. पार्टी के बाद बाहर के आए लोग अपने घरों को चले गए. रात साढ़े 12 बजे बिजली गुल हो गई, जो करीब 2 बजे आई. तब तक घर के लोग जागे हुए थे. बिजली आने के बाद परिवार के सभी लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.
आभा और अभय दादी गायत्री देवी के कमरे में सो रहे थे. भैरव ने दादी के पास सो रहे बच्चों को अपने बैडरूम में पत्नी के पास ला कर सुला दिया. क्योंकि उसे अपनी योजना को अंजाम जो देना था. उधर रूपा के आने से नाखुश अनुपमा पहले ही कमरे में आ कर सो गई थी. बिजली आने के बाद रूपा अपने दूसरे रिश्तेदार के यहां चली गई ताकि उस पर कोई संदेह न करे.
ऐसे दिया वारदात को अंजाम
योजना के अनुसार, तड़के 3 बजे के करीब भैरवनाथ दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा. कमरे से निकल कर बाहर आया. दूसरे कमरे में सो रहे मांबाप के दरवाजे पर उस ने सिटकनी चढ़ा दी. फिर लौट कर वह अपने कमरे में आया, जहां पत्नी और बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. उस ने जूते के फीते से पत्नी का गला उस वक्त तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. फिर बाजार से खरीद कर लाए चाकू से पहले बेटी आभा फिर अभय का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.
उस नराधम का ऐसा करते हुए एक बार भी हाथ नहीं कांपा. फिर साक्ष्य छिपाने और खुद को बचाने के लिए अपने हाथों से लिखे 3 पन्नों के लेटर को बैड के पास ऐसे मोड़ कर रखा ताकि किसी की भी नजर उस पर आसानी से पड़ जाए.
घटना को अंजाम देने के बाद भैरवनाथ भोर में 4 बजे के करीब भाग कर धनबाद रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से होते हुए रांची चला गया. वहां से पटना होते हुए मुंबई चला गया. मुंबई में ठिकाना नहीं मिलने पर फ्लाइट से फिर पटना लौटा और पटना से रांची होते हुए 14 अक्तूबर को बोकारो के जैनामोड़ पहुंचा.
उस के पास के सारे पैसे खत्म हो चुके थे, इसलिए वहां के एक दुकानदार के पास अपना मोबाइल गिरवी रख दिया. उस ने खुदकुशी के इरादे से जैनामोड़ में ही सल्फास की 4 गोलियां खा लीं और अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही तबीयत बिगड़ने पर परिजनों ने उसे बीजीएच हौस्पिटल में भरती करा दिया, जहां से धनबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस से सल्फास की गोलियों के बारे मे पूछताछ की तो उस ने मोबाइल गिरवी रख कर सल्फास खरीदे जाने की बात बताई. पुलिस उसे ले कर उस दुकान पर पहुची, जहां उस ने अपना फोन गिरवी रखा था. भैरवनाथ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त जूते का फीता और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.
इस के बाद पुलिस ने हत्या के लिए उकसाने के आरोप में रूपा देवी को उस की ससुराल भाटडीह, मुदहा से 24 अक्तूबर, 2017 को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. केस की जांच थानाप्रभारी मनोज कुमार कर रहे हैं.
– कथा पुलिस सूत्रों और सोशल मीडिया पर आधारित
इंसपेक्टर सुखबीर सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी. भोली के बयान के आधार पर पुलिस ने नरेंदर चौहान और उस की मां सुदेश चौहान के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर तहकीकात शुरू कर दी.
3 डाक्टरों के पैनल ने शमा की लाश का पोस्टमार्टम कर जो रिपोर्ट दी, उस में उन्होंने साफ लिखा था कि शमा एक किन्नर थी और उस की मौत गला घोंटने और गरदन पर कोई तेज नुकीली चीज के वार से हुई थी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने नरेंदर की तलाश शुरू कर दी. इस के लिए पुलिस की टीमें लगातार छापेमारी कर रही.
खास मुखबिर भी नरेंदर की तलाश में दिनरात एक किए हुए थे. 7 जुलाई 2017 को एक मुखबिर ने सूचना दी कि नरेंदर अपनी मां के साथ दिल्ली के सब्जीमंडी क्षेत्र में छिपा हुआ है.
सूचना मिलते ही पुलिस टीम दिल्ली रवाना हो गई और मुखबिर द्वारा बताए पते पर दबिश दे कर नरेंदर को गिरफ्तार कर के दिल्ली से जालंधर ले आई. उस समय वहां उस की मां मौजूद नहीं थी.
नरेंदर को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया पर रिमांड अवधि में उस ने अपना मुंह नहीं खोला. तब 10 जुलाई को उसे फिर से अदालत में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले कर सख्ती से पूछताछ की गई.
आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही शमा की हत्या की थी. पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी कहानी बताते हुए वह जोरजोर से दहाड़ें मार कर रोने लगा. उस ने उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—
नरेंदर अपनी मां के साथ दिल्ली में रह रहा था और औटो चला कर अपना गुजारा कर रहा था, जबकि शमा जालंधर में आर्केस्ट्रा का काम करते हुए अपनी मां और भाईबहनों के साथ रह रही थी. इत्तफाक से दिल्ली में नरेंदर की मां बीमार रहने लगी थी उस की सेवा के लिए नरेंदर का काम प्रभावित होने लगा था.
मां के इलाज पर भी काफी खर्च आ रहा था. ऐसे में जालंधर में रहने वाले नरेंदर के भाई सुरेंदर ने उसे सलाह दी कि वह मां को ले कर जालंधर चला आए. दोनों भाई मिल कर मां का इलाज भी करवा लेंगे और कामधंधा भी प्रभावित नहीं होगा.
भाई की सलाह मान कर नरेंदर मां को साथ ले कर दिल्ली छोड़ कर जालंधर की बस्ती शेख में किराए का कमरा ले कर रहने लगा यहां भी उस ने औटो चलाना शुरू कर दिया था.
यह लगभग 3 महीने पहले की बात है. तब तक न शमा जानती थी कि नरेंदर इन दिनों जालंधर में है और न ही नरेंदर यह बात जानता था कि शमा अब जालंधर में रहती है. नरेंदर शमा को एक दु:स्वप्न समझ कर पूरी तरह भुला चुका था.
30 अप्रैल, 2017 की बात है. उस दिन शाम के समय शमा को नरेंदर के चाचा का लड़का छिंदा बाजार में मिल गया था. दोनों बड़े दिनों बाद मिले थे, इसलिए भीड़ से हट कर आपस में बातें करने लगे. बातोंबातों में छिंदा ने उसे बता दिया कि आजकल नरेंदर भाई भी यहीं रह रहे हैं. शमा ने छिंदा से नरेंदर का फोन नंबर ले लिया.
अगले दिन शमा ने नरेंदर को फोन कर के मिलने की इच्छा जताई तो पहले नरेंद्र ने मिलने से इनकार कर दिया. उस ने कहा, ‘‘अब हमारे बीच कुछ नहीं बचा है, मैं तुम्हें भूल भी चुका हूं इसलिए मिलने का क्या फायदा?’’
‘‘सिर्फ एक बार मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’ शमा ने कहा तो वह तैयार हो गया. उसी दिन पहली मई को शमा रात करीब 8 बजे नरेंदर से मिलने उस के घर पहुंच गई.
शमा को देखते ही नरेंदर का खून खौल उठा. उस की आंखों के सामने बीते दिनों की बातें किसी चलचित्र की तरह दिखाई देने लगी थीं. बड़ी मुश्किल से उस ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए ठंडे लहजे में कहा, ‘‘शमा, तुम्हें यहां मेरे पास नहीं आना चाहिए था. याद है, मैं ने अलग होते समय तुम से क्या कहा था?’’
शमा मुसकरा कर बोली, ‘‘अभी भी गुस्सा हो मुझ से?’’
तभी नरेंदर ने कहा, ‘‘अच्छा, जो हुआ सो हुआ. शायद यही नियति ने लिखा था. अब एक काम करते हैं तुम आर्केस्ट्रा का काम छोड़ दो. हम दोनों अपने प्यार से मिल कर एक नई दुनिया बसाते हैं. रहा सवाल संतान का तो हम कहीं से कोई बच्चा गोद ले लेंगे.’’
‘‘नहीं नरेंदर, अब चाह कर भी मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती और न ही आर्केस्ट्रा का काम छोड़ सकती हूं. मेरे इसी काम से मेरे परिवार का खर्च चलता है. मैं उन्हें भूखा नहीं मार सकती.’’ शमा बोली.
नरेंदर को गुस्सा आ गया. वह उसे गालियां देते हुए बोला, ‘‘तो मेरे पास यहां क्या करने आई है? याद है, मैं ने क्या कहा था. जिस दिन तू मेरे सामने आएगी, मैं तुझे खत्म कर दूंगा.’’ नरेंदर ने उसे जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘मैं सब कुछ भूलभाल कर तुझे अपनाने को दोबारा तैयार हो गया और तू है कि अपने बहनभाई और रंडियों वाले नाचगाने का पेशा छोड़ने को तैयार नहीं है. आज मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’
कह कर नरेंदर वहां से उठ कर दूसरे कमरे में गया और अपनी मां को उठा कर जबरदस्ती बाथरूम में बंद कर दिया. इस के बाद वह शमा के पास पहुंचा और उसी के दुपट्टे से उस ने उस का गला घोंट दिया. कहीं वह जिंदा न रह जाए, यह सोच कर उस ने एक तेजधार चाकू का भरपूर वार शमा की गरदन पर किया था.
उस की हत्या करने के बाद उस ने बाथरूम का दरवाजा खोल कर अपनी मां को बाहर निकाला. मां सुदेश ने बाहर आ कर जब शमा की लाश देखी तो उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. सुदेश ने नरेंदर को काफी भलाबुरा कहा. पर अब कुछ नहीं हो सकता था. इस के बाद वह मां को ले कर दिल्ली चला गया. पर पुलिस ने उसे वहीं से ढूंढ निकाला.
उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे अदालत में पेश किया गया और अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक सुदेश गिरफ्तार नहीं हो सकी थी.
–कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चाओं पर आधारित
सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.
सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सेक्स सुख लेता है.
यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.
अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.
इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.
सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.
अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.
लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.
इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.
इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.
योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.
जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.
हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.
थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.
रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.
अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.
वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…
लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.
रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’
ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी के लाश के टुकड़ेटुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.
पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.
इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.
सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.
पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.
अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.
लेकिन खैरनगर नहर पुल पर उस के कोई परिचित मिल गए. उन का कोई जरूरी काम था, जिस की वजह से वह उन्हीं के साथ चला गया था. यह बात उसे पिंकी ने बताई थी. उस की हत्या किस ने और क्यों कर दी, उसे जानकारी नहीं है.
पिंकी से पूछताछ की गई तो उस ने बताया कि उसे कई रोज से बुखार था. भैया आज सुबह 5 बजे उसे दवा दिलाने उमर्दा के लिए निकले थे. हम दोनों जब खैरनगर पुल पर पहुंचे तो भैया के 2 परिचित मिल गए. उन में एक तो भैया की उम्र का था, जबकि दूसरा 40-42 साल का था.
भैया उसे चाचा कह कर बतिया रहे थे. वह उन दोनों को पहचानती नहीं है. उन दोनों को भैया की मदद की जरूरत थी, इसलिए भैया ने उस से कहा कि दवा शाम को दिला देंगे. इस के बाद वह उसे गांव के बाहर छोड़ कर उन दोनों के साथ चले गए. भैया की हत्या किस ने की, उसे पता नहीं.
लायक सिंह और उस की बेटी पिंकी से पूछताछ के बाद सीओ सुबोध कुमार जायसवाल ने वहां मौजूद अन्य लोगों से भी बात की, लेकिन हत्यारों के बारे में कोई सुराग नहीं लगा. इस के बाद पुलिस ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज के सरकारी अस्पताल भेज दी. थानाप्रभारी ने लायक सिंह की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा लिया और जांच शुरू कर दी.
थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा ने बलराम यादव के हत्यारों की टोह में ताबड़तोड़ दबिशें दे कर पुराने कई अपराधियों को हिरासत में लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की, लेकिन न तो हत्या का रहस्य खुला और न ही हत्यारे पकड़ में आए. बलराम हत्याकांड अखबारों में छाया हुआ था, जिस से पुलिस अधिकारी भी परेशान थे.
जब 3 दिन बीत जाने के बाद भी बलराम हत्याकांड का खुलासा नहीं हुआ तो एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह ने एएसपी विनोद कुमार की देखरेख में खुलासे के लिए एक विशेष टीम का गठन किया. इस टीम में ठठिया थानाप्रभारी विजय बहादुर वर्मा, सीओ (तिर्वा) सुबोध कुमार जायसवाल, स्वाट टीम प्रभारी राकेश कुमार तथा सर्विलांस टीम को शामिल किया गया.
टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट को देखा समझा. रिपोर्ट के मुताबिक मृतक के शरीर पर 18 घाव पाए गए थे. बलराम की मौत अधिक खून बहने, आंतों के जख्मी होने तथा गले की नस कटने से हुई थी. स्पष्ट था कि हत्यारे बलराम से बहुत ज्यादा नफरत करते थे.
पुलिस टीम ने इस बारे में लायक सिंह से पूछताछ की तो उस ने परिवार के ही एक युवक पर शक जताया. पुलिस ने उस युवक को हिरासत में ले लिया और 2 दिनों तक कड़ाई से पूछताछ की. उस युवक ने जब खुद को फंसता देखा तो उस ने चौंकाने वाली बात बताई.
उस ने पुलिस टीम को जानकारी दी कि बलराम की हत्या का रहस्य उस की बहन सावित्री उर्फ पिंकी के पेट में छिपा है. यदि उस पर सख्ती की जाए तो वह हत्या का परदाफाश कर सकती है.
उस की बात पुलिस टीम को हजम तो नहीं हुई, फिर भी पूछा, ‘‘भला बहन अपने सगे भाई के कत्ल में कैसे शामिल हो सकती है. और फिर वह तो अभी कुल 16 साल की लड़की है.’’
‘‘नहीं सर, आप उस की मासूमियत पर मत जाइए,’’ उस युवक ने अपनी बात मजबूती से कही.
‘‘तुम यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि पिंकी गुनहगार है?’’ पुलिस ने पूछा.
‘‘सर, पिंकी के घर पर कुछ दिन तक जेसीबी चालक प्रदीप यादव रहा था और उसी के घर में खातापीता था. इसी दौरान उस ने पिंकी को अपने प्यार के जाल में फंसा लिया. पिंकी भी उस की दीवानी बन गई, जिस के चलते दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए.
‘‘दोनों के संबंधों की जानकारी पिंकी के भाई बलराम को हुई तो उस ने प्रदीप को अपमानित कर घर से भगा दिया. लेकिन घर से भगाए जाने के बावजूद पिंकी और प्रदीप के संबंध खत्म नहीं हुए थे.
‘‘प्रदीप व पिंकी हर रोज फोन पर संपर्क में रहते थे. प्रदीप ने ही पिंकी को मोबाइल खरीद कर दिया था. चूंकि बलराम दोनों के प्यार में बाधक था, इसलिए पिंकी और प्रदीप ने ही बलराम को ठिकाने लगाया होगा.’’
उस युवक ने बलराम की हत्या का जो कारण बताया, वह पुलिस टीम को इसलिए ठीक लगा क्योंकि ऐसा संभव था. अभी तक पुलिस टीम विपरीत दिशा में जांच में जुटी थी, लेकिन अब जांच की दिशा प्रेम संबंधों में उलझ गई.
16 वर्षीया सावित्री उर्फ पिंकी यादव पुलिस टीम के रेडार पर आई तो पुलिस ने उस से फिर से पूछताछ की. लेकिन पिंकी ने अपना पुराना बयान ही दोहरा दिया. इस बीच पुलिस टीम ने बहाने से पिंकी का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया था.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सामने आया कि सोनू के सिर व गले पर तेज धारदार हथियार से 20 से ज्यादा वार किए गए थे. बेटे व बेटी के सिर पर भी धारदार हथियार के 12 से 15 निशान मिले.
शव सौंपे जाने पर अंत्येष्टि को ले कर डा. प्रकाश सिंह और उन की पत्नी के पक्ष के बीच विवाद हो गया. सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ने कहा कि वह सोनू और दोनों बच्चों के शवों की अंत्येष्टि दिल्ली ले जा कर करेंगी. इस पर डा. प्रकाश के परिजन बिफर गए. उन की बहन शकुंतला ने कहा कि अंत्येष्टि कहीं भी करो, लेकिन चारों की एक साथ ही होनी चाहिए.
बाद में अन्य लोगों के दखल पर यह तय हुआ कि चारों की अंत्येष्टि गुरुग्राम में सेक्टर-32 के श्मशान घाट में की जाए. बाद में जब मुखाग्नि देने की बात आई तो इस बात को ले कर भी विवाद होतेहोते बचा. आपसी सहमति से सोनू, अदिति व आदित्य के शव को मुखाग्नि सीमा अरोड़ा के परिवार वालों ने दी. जबकि डा. प्रकाश के शव को उन की बहन के परिवार वालों ने मुखाग्नि दी.
उत्तर प्रदेश में वाराणसी के रघुनाथपुर गांव के रहने वाले डा. प्रकाश सिंह के पिता रामप्रसाद सिंह उर्फ रामू पटेल एक किसान थे. प्रकाश ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई की थी. सोनू सिंह भी उन के साथ ही पढ़ती थीं, इसलिए दोनों में जानपहचान हो गई. फिर वे एकदूसरे से प्यार करने लगे.
बाद में दोनों ने ही रसायन विज्ञान में एम.एससी. की. एम.एससी. में दोनों ने गोल्ड मैडल हासिल किए थे. इस के बाद दोनों ने डाक्टरेट की डिग्री हासिल की. डाक्टरेट की पढ़ाई के दौरान दोनों ने अपनेअपने घर वालों की इच्छा के खिलाफ 1996 में शादी कर ली.
दोनों ने भले ही शादी कर ली, लेकिन इस के बाद दोनों के ही परिवारों के बीच गांठ बन गई, जो नाराजगी के रूप में शवों की अंत्येष्टि के दौरान नजर आई.
विवाह के बाद डा. प्रकाश की पत्नी डा. सोनू ने पहले बेटी अदिति को जन्म दिया. इस के करीब 6 साल बाद बेटा हुआ. उस का नाम आदित्य रखा. डा. प्रकाश सिंह ने सब से पहले बेंगलुरु में नौकरी की थी. इस के बाद से ही उन का पैतृक गांव रघुनाथपुर में आनाजाना कम हो गया था.
करीब 12 साल पहले डा. प्रकाश और डा. सोनू सिंह नौकरी के सिलसिले में दिल्ली आ गए. दिल्ली में डा. प्रकाश ने रैनबैक्सी फार्मा कंपनी में नौकरी शुरू की. कुछ समय बाद वे गुरुग्राम आ कर बस गए और डा. प्रकाश सिंह सन फार्मा में नौकरी करने लगे. गुरुग्राम में उन्होंने ‘उप्पल साउथ एंड’ नाम की सोसायटी में फ्लैट ले लिया.
डा. प्रकाश की अच्छीखासी नौकरी थी. घर में सुखसुविधाओं और पैसे की कोई कमी नहीं थी. पतिपत्नी दोनों ही उच्चशिक्षित थे, इसलिए कोई परेशानी भी नहीं थी. डा. सोनू सिंह ऐशोआराम की जिंदगी जीने के बजाए सामाजिक कार्यों में रुचि लेती थीं. इसलिए एक एनजीओ बना कर उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने और उन का जीवनस्तर ऊंचा उठाने का बीड़ा उठाया.
सोनू सिंह ने करीब 8 साल पहले गुरुग्राम के फाजिलपुर में किराए का भवन ले कर गरीब बच्चों के लिए क्रिएटिव माइंड स्कूल खोला था. बाद में उन्होंने सेक्टर-49 में ‘दीप प्ले हाउस’ नाम से दूसरा स्कूल खोल लिया. सोनू सिंह के एनजीओ के माध्यम से इन दोनों स्कूलों का संचालन केवल गरीब बच्चों के उत्थान के लिए किया जाता था.
रसायन वैज्ञानिक होने के बावजूद डा. प्रकाश सिंह भी बच्चों को पढ़ाने का शौक रखते थे, इसलिए उन्होंने सोहना में ‘क्रिएटिव माइंड स्कूल’ खोला. यह स्कूल बिना लाभहानि के चलाया जाता था. डा. प्रकाश ने अप्रैल 2018 में पलवल में व्यावसायिक नजरिए से एन.एस. पब्लिक स्कूल खोल लिया. पहले यह स्कूल एग्रीमेंट पर लिया गया और बाद में दिसंबर, 2018 में इसे रजिस्ट्री करवा कर खरीद लिया गया.
डा. प्रकाश सिंह की बेटी अदिति जामिया हमदर्द से बी.फार्मा की पढ़ाई कर रही थी. इस साल वह अंतिम वर्ष की छात्रा थी. उस ने पढ़ाई के साथ सन फार्मा कंपनी में इंटर्नशिप भी शुरू कर दी थी. अदिति ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर पिछले साल सोप डायनामिक्स नाम से स्टार्टअप शुरू किया था. डा. दंपति का सब से छोटा बेटा गुरुग्राम के ही डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 9 में पढ़ रहा था.
डा. प्रकाश और उन की पत्नी सहित परिवार के चारों सदस्यों की मौत हो जाने से चारों स्कूलों के संचालन पर सवालिया निशान लग गए हैं. चारों स्कूलों में डेढ़ सौ से अधिक शैक्षणिक और गैरशैक्षणिक स्टाफ है. इन कर्मचारियों को वेतन और भविष्य की चिंता है. इस क ा मुख्य कारण यह है कि इन में 2 स्कूलों में खर्चे जितनी भी आमदनी नहीं होती.
पुलिस को जांचपड़ताल में पता चला कि डा. प्रकाश के घर उन के रिश्तेदारों का बहुत कम आनाजाना था. ज्यादातर सोनू सिंह की बहन सीमा अरोड़ा ही आती थीं. घटना से 10 दिन पहले भी वह परिवार के साथ यहां आई थीं. सीमा अरोड़ा के मुताबिक उस समय ऐसी कोई बात नजर नहीं आई थी, जिस का इतना भयावह परिणाम सामने आता.
डा. प्रकाश के परिवार से बहुत कम लोग कभीकभार ही यहां आते थे. डा. प्रकाश की मां अपने अंतिम समय में कुछ दिन उन के पास रही थीं. डा. प्रकाश 5 भाईबहनों में तीसरे नंबर के थे. 2 बहनें उन से बड़ी थीं और 2 छोटी. इन में एक बड़ी बहन का निधन हो चुका है. एक बहन परिवार के साथ नोएडा में और 2 बहनें बनारस में रहती हैं. डा. प्रकाश के मातापिता का निधन हो चुका है.
पुलिस दूसरे दिन भी वैज्ञानिक के परिवार की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटी रही. हालांकि मौके के हालात और सुसाइड नोट से साफ था कि डा. प्रकाश ने पत्नी, बेटी व बेटे की हत्या के बाद खुद आत्महत्या की थी. लेकिन फिर भी पुलिस यह सोच कर हर एंगल से जांच करती रही कि कहीं यह कोई साजिशपूर्ण तरीके से किसी बाहरी व्यक्ति की ओर से की गई वारदात तो नहीं है.
मामले की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस को डा. प्रकाश के घर में बाथरूम में मिले 3 मोबाइल फोन से मदद मिलने की उम्मीद थी, इसलिए इन मोबाइलों की काल डिटेल्स निकलवाई गई. इस के अलावा इन मोबाइलों का डेटा रिकवर करने का प्रयास भी किया गया.
रोजी उसे कम खानापीना देती थी. चाय भी छोटी सी प्याली में मिलती थी. उसे रात के खाने में अधिकांशत: दोपहर का बासी खाना दिया जाता था. खाना मांगने पर वह अकसर कहा करती थी, ‘तुम खाने के लिए जानवरों की तरह बोलते हो और जानवरों की तरह ही खाते हो.’
पिता के मरने के बाद राजेश के सामने यह समस्या आ खड़ी हुई थी कि रोजी उसे गिन कर 4-5 रोटियां देती थी, जिस में से एक रोटी वह अपने दिवंगत पिता के नाम की निकाल कर कुत्तों को खिला देता था. इसलिए उस की एक रोटी और कम होने लगी थी. पहले ही 4 रोटी से उस का पेट नहीं भरता था, अब तो उसे पता भी नहीं चलता था कि उस ने खाना खाया भी है या नहीं.
घटना वाले दिन 16 मई, 2019 को भी यही हुआ था. सुबह 7 बजे से काम करतेकरते दोपहर को जब उसे भूख लगी तो उस ने खाना मांगा. इस पर मालकिन रोजी ने उस से कहा, ‘‘खाना अभी बना नहीं है. दीपांशु के आने के बाद बनेगा. तभी मिलेगा.’’
इस पर राजेश ने हाथ जोड़ कर निवेदन करते हुए कहा, ‘‘भाभीजी, साहब लोग पता नहीं कब तक आएंगे, लेकिन भूख से मेरी जान निकल रही है. यदि आप खाना नहीं बना सकतीं तो मैं खुद बना कर खा लूंगा.’’
रोजी ने तब उसे रटेरटाए शब्द सुनाए कि तुम खाने के लिए जानवरों की तरह बोलते हो और जानवरों की तरह खाते हो. हर बार यह बातें सुनतेसुनते इस बार राजेश को गुस्सा आ गया था. बात उस की बरदाश्त से बाहर चली गई थी.
वह उसी समय रसाई में गया और वहां से सब्जी काटने वाला चाकू उठा लाया. उस समय रोजी कमरे में बैठी मोबाइल फोन पर गेम खेलने में व्यस्त थी. दबे पांव वह उस के पीछे पहुंचा और बाएं हाथ से उस का गला कस कर पकड़ लिया और दाहिने हाथ से गरदन पर वार चाकू से करने लगा.
अचानक हुए इस हमले से रोजी घबरा गई. फिर जल्द ही उस ने अपने आप को उस के चंगुल से छुड़ाने के प्रयास शुरू कर दिए. चीखनेचिल्लाने के साथ उस ने अपनी गरदन छुड़ाने के लिए राजेश के हाथ पर अपने दांतों से काटना शुरू कर दिया था. उस ने राजेश के हाथ की 2 अंगुलियों पर अपने दांत गड़ा दिए.
इस के बावजूद भी राजेश ने पकड़ ढीली नहीं की. अधिक देर तक संघर्ष न कर सकी. तब तक राजेश ने चाकू से उस की गरदन रेत दी. इस के बाद वह कटे हुए वृक्ष की तरह लहराते हुए फर्श पर गिरी और कुछ देर तड़पने के बाद हमेशा के लिए शांत हो गई.
रोजी की हत्या करने के बाद उस ने चाकू को धो कर रसोई में रख दिया और वहां से फरार हो गया. बड़े गेट पर खून के निशान न आएं इसलिए वह छोटे गेट के ऊपर से कूद कर बाहर अपने कमरे में पहुंच गया. उस ने खून से सने कपड़े भी धो दिए. किसी को उस पर शक न हो इस के लिए उस ने खुद ही रोजी के पति दीपांशु उर्फ मोंटी को फोन कर के बताया था कि उसे वाशिंग मशीन में कपड़े सुखाने हैं, लेकिन भाभी जी गेट नहीं खोल रही हैं.
नौकर राजेश ने रोजी की हत्या प्रोफेशनल हत्यारों जैसे तरीके से की थी. राजेश के बयान कलमबद्ध करने के बाद जगाधरी सिटी एसएचओ इंसपेक्टर राजेश और इंसपेक्टर श्रीभगवान यादव ने 18 मई, 2019 को आरोपी को एसीजेएम (जगाधरी) गगनदीप मित्तल की अदालत में पेश कर 5 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान उसे मनोरोग चिकित्सक को भी दिखाया पर किसी ने यह बात दावे के साथ नहीं कही कि वह साइको है या नहीं.
रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद 21 मई, 2019 को अभियुक्त राजेश को जब दोबारा अदालत में पेश किया गया तब अचानक इस मामले में एक चौंका देने वाला मोड़ सामने आया.
शहर के चर्चित हाईप्रोफाइल रोजी सिक्का मर्डर केस के आरोपी नौकर राजेश उर्फ विलट पासवान ने एक बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि उस ने रोजी की हत्या उस के ससुर राजिंदर सिक्का के कहने पर की थी. राजिंदर सिक्का ने उसे 50 हजार रुपए का लालच दे कर यह हत्या करवाई थी.
दोपहर बाद आरोपी को एसीजेएम गगनदीप मित्तल की अदालत में पेश किया गया. जब वह अदालत से बाहर निकला तो उस ने सीआईए-2 स्टाफ की मौजूदगी में पूरी मीडिया के सामने अपने मालिक पर कई गंभीर आरोप जड़े. उस ने कहा कि उस पर दबाव बनाया गया था कि वह रोजी की हत्या करे. यह सारी योजना हत्या से एक रात पहले ही बना ली गई थी.
नौकर राजेश के अनुसार राजिंदर सिक्का ने उस से कहा था कि घर में इतना पैसा आता है पर पता ही नहीं चलता कि वह जाता कहां है. उन्हें पैसों का कोई हिसाबकिताब नहीं मिलता.
राजेश के अनुसार उस ने रोजी की हत्या करने से मना कर दिया था. तब उन्होंने उसे धमकी दी कि यदि तू यह काम नहीं करेगा तो तू मरेगा. इसलिए अपनी सुरक्षा के लिए उस ने यह काम किया था.
राजिंदर सिक्का ने उसे विश्वास दिलाया था कि तुझे कुछ नहीं होगा. यदि कोई बात होती है तो तू रोजी द्वारा रोटी कम देने की बात बता देना. राजेश के अनुसार इस काम के लिए उसे कोई एडवांस धनराशि नहीं दी गई थी. यह कहा गया था कि अगले साल जब तुम शादी करोगे तो तुम्हें तुम्हारे 50 हजार रुपए मिल जाएंगे.
नौकर के इस सनसनीखेज बयान से केस में नया ट्विस्ट आ गया था. पुलिस जहां अब राजिंदर सिक्का को हिरासत में ले कर पूछताछ करेगी तो मृतका के पति दीपांशु उर्फ मोंटी ने सीधेसीधे पुलिस पर आरोप लगाया कि वह जानबूझ कर उस के पिता को फंसाने की कोशिश कर रही है.
उधर 4 जून, 2019 को रोजी के पिता जनकराज और मां सीमारानी ने एसपी को दी गई शिकायत में आरोप लगाया कि दीपांशु ने 9 मई, 2019 को उन्हें फोन कर के 10 लाख रुपए की मांग की थी. जिस पर उन्होंने उस से कहा कि उन्होंने अपनी जमीन का सौदा कर दिया है, जिस की रजिस्ट्री अभी नहीं हुई है. रजिस्ट्री होते ही वह पैसे दे देंगी.
16 मई यानी घटना वाले दिन दीपांशु ने फिर फोन कर के पैसे मांगे थे. मना करने पर कुछ घंटे बाद ही रोजी की हत्या की खबर आ गई. उन्होंने आरोप लगाया कि बेटी की हत्या में राजिंदर सिक्का और दीपांशु भी शामिल हैं. उन्होंने केस की सीबीआई जांच कराने की मांग की.
पुलिस की तरफ से नौकर राजेश द्वारा दिए गए बयानों की पुलिस ने जांच शुरू कर दी गई, पर कथा संकलन तक इस मामले में कुछ नया सामने नहीं आया था.
रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद अभियुक्त राजेश को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया और पुलिस मामले की जांच कर रही थी.