सहनशीलता से आगे : जब पत्नी ने लिया बदला – भाग 3

लवकुश शुक्ला और अविनाश यादव मूलत: उत्तर प्रदेश के निवासी थे. लवकुश काफी समय से के. विश्वनाथ शर्मा और उन की पत्नी को जानता था. वह शर्मा दंपति के पंडरी स्थित दुबे नगर के मकान में बतौर किराएदार रहता था. शुक्ला जिंदगी में कुछ कर गुजरना चाहता था. उस की इच्छा थी कि वह फिल्मों में अभिनय करे.

शुक्ला पुणे स्थित फिल्म इंस्टीट्यूट भी गया था ताकि वहां एडमिशन ले कर अभिनय की बारीकियां सीख सके. लेकिन वहां एडमिशन के लिए उसे 5 लाख रुपयों की जरूरत थी. इसी दरम्यान एक दिन मकान मालिक वमसी लता को उस ने अपनी समस्या बताई और भाग्य का रोना भी रोया.

उस की आवश्यकता को ध्यान में रख कर वमसी लता ने उसे औफर दिया और बोली, ‘‘मैं तुम्हारे लिए पैसों का इंतजाम कर सकती हूं.’’ यह सुन कर लवकुश बहुत खुश हुआ. उस ने कहा, ‘‘दीदी, मैं आप का यह अहसान जिंदगी भर नहीं भूलूंगा.’’

‘‘मगर तुम्हें मेरा एक काम करना होगा.’’ वमसी लता ने कहा.

‘‘बताइए, एक क्या 2 काम करूंगा.’’

‘‘सोच लो, मैं पैसे काम होने पर दूंगी, पहले एडवांस में भी कुछ नहीं.’’

थोड़ी देर सोच कर लवकुश ने कहा, ‘‘ठीक है, मुझे आप पर पूरा भरोसा है, मैं तैयार हूं.’’

यह सुन वमसी लता ने उसे अपने भाई जैसा होने का वास्ता दे कर अपनी तारतार जिंदगी का रोना रोते हुए कहा, ‘‘भैया, मैं सीमा के पापा से हद दर्जे तक परेशान हूं. तुम चाहो तो मुझे उन से मुक्ति दिला सकते हो.’’

‘‘मैं समझा नहीं,’’ लवकुश ने कहा.

‘‘तुम्हें उन को मेरे रास्ते से हटाना होगा.’’ वमसी लता ने कहा तो लवकुश अंदर ही अंदर कांप कर रह गया. लेकिन उस की आंखों के आगे 5 लाख रुपए नाच रहे थे. उसे अभिनेता बनने का अपना ख्वाब पूरा होता दिखाई दिया. इसलिए वह मान गया.

उस ने वमसी लता के साथ बैठ कर फूलप्रूफ योजना बनानी शुरू कर दी. के. विश्वनाथ को कब और कैसे रास्ते से हटाया जाए, दोनों ने उसी दिन से सोचना शुरू कर दिया. लवकुश यह अच्छी तरह जानता था कि वह अकेले यह काम नहीं कर सकता, क्योंकि के. विश्वनाथ उस से बलिष्ठ थे. उन के सामने वह बहुत कमजोर था.

इसलिए उस ने इस काम के लिए अपने नौकर अविनाश यादव से बात करने का निश्चय किया. एक दिन अविनाश ने उस से रुपयों की मांग की, क्योंकि उस की बहन रुकमणी का विवाह होना था और इस के लिए उसे मोटी रकम की जरूरत थी.

बहन की शादी के लिए ली सुपारी

अविनाश की जिंदगी अंधेरों से घिरी लौ की तरह टिमटिमा रही थी. नौकरी कर के वह जैसेतैसे परिवार का भरणपोषण करता था. एक बहन थी, रुकमणी जो विवाह योग्य हो चुकी थी. मां को उस की चिंता रहती थी. अविनाश को बहन के ब्याह के लिए डेढ़ लाख रुपयों की जरूरत थी.

एक दिन दुकान पर अच्छा मूड देख कर उसने मालिक लवकुश से अपना दुखड़ा रो कर मदद मांगी. संयोग से लवकुश तैयार हो गया. मगर उस ने कहा, ‘‘अविनाश, इस के बदले तुम्हें एक काम करना होगा. बोलो कर पाओगे?’’ लवकुश ने उसे पूरी योजना बता दी. उस की योजना सुन कर अविनाश घबराया नहीं बल्कि तैयार हो गया.

लवकुश ने उसे आश्वस्त कर कहा, ‘‘सिर्फ एक आदमी को रास्ते से हटाना है. हटाओ और डेढ़ लाख रुपए ले लो.’’

हालात ने बना दिया हत्यारा

अविनाश इस काम के लिए तैयार था. लवकुश ने अविनाश को के. विश्वनाथ शर्मा के संबंध में एकएक कर सारी बातें समझा दीं. इस के बाद दोनों वमसी लता से मिले. बातचीत में तय हुआ कि रात को वे दोनों आएंगे और विश्वनाथ का काम तमाम कर देंगे.

‘‘कैसे किस तरह?’’ लता ने पूछा तो लवकुश ने अविनाश की तरफ देख कर कहा, ‘‘यह जांबाज लड़का है, ऐसे छोटेमोटे काम इस के बाएं हाथ का खेल है. बस दीदी, आप को घर का दरवाजा खुला रखना है. बाकी सब यह देख लेगा.’’

वमसी लता तैयार हो गई. योजनानुसार उस दिन रात को लगभग एक बजे अविनाश और लवकुश को घर के पीछे वाले दरवाजे से प्रवेश करना था. वमसी को केवल पीछे वाला दरवाजा खुला छोड़ देना था. लेकिन योजना में ऐन वक्त पर परिवर्तन हो गया.

लवकुश ने अविनाश के सामने 2 लाख का औफर रखते हुए कहा, ‘‘अविनाश, यह काम अब तुम अकेले करो, और 2 लाख रुपए ले लो. मैं वहां नहीं जाऊंगा.’’

लवकुश के हाथ खड़े करने पर भी अविनाश पीछे नहीं हटा. बल्कि यह सोच कर खुश हुआ कि अब उसे 2 लाख रुपए मिलेंगे. वह अकेला 5 किलो का लोहे का घन ले कर एक्टिवा से विश्वनाथ शर्मा के घर के पिछवाड़े पहुंच गया.

योजना के मुताबिक वहां दरवाजा खुला होना चाहिए था, लेकिन वह बंद था. अविनाश ने वहीं से लवकुश को मोबाइल पर काल की और दरवाजा बंद होने की जानकारी दी. लवकुश ने कहा, ‘‘तुम वहीं रुको मैं अभी बताता हूं, क्या करना है.’’

लवकुश ने मोबाइल पर वमसी लता से बातचीत की तो उस ने कहा, ‘‘दरवाजा नहीं खुलेगा, अविनाश से कहो, बाउंड्री कूद कर आ जाए.’’ लवकुश ने अविनाश को यह बता दिया.

अविनाश बाउंड्री कूद कर घर में पहुंच गया. फिर वह के. विश्वनाथ के कमरे में घुस गया, जिस का दरवाजा वमसी ने पहले ही खुला छोड़ दिया था.

अविनाश ने देखा के. विश्वनाथ अर्द्धनिद्रा में थे और इधरउधर करवट बदल रहे थे. वह घबरा कर बाहर आ गया तो सामने लता खड़ी मिली, उस ने यथास्थिति बताई. लता ने उसे आश्वस्त किया कि शर्माजी शराब पिए हुए हैं और नशे में हैं. तुम अपना काम कर सकते हो. यह सुन कर अविनाश ने कमरे में घुस कर उन के सिर पर घन से 5-6 वार किए. नींद की वजह से विश्वनाथ अपना बचाव भी नहीं कर सके और चीख कर अचेत हो गए.

अविनाश ने खून से लथपथ विश्वनाथ को देख सोचा कि वह मर गए हैं. इस के बाद वह वहां से निकल गया. घन वह अपने साथ घन लेता गया.

तहकीकात के बाद पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त घन शहर के बूढ़ापारा तालाब के पास से बरामद कर लिया. वहीं से 5 मोबाइल और एक एक्टिवा जब्त की गई.

पुलिस ने मृतक के. विश्वनाथ की हत्या की आरोपी मृतक की पत्नी के. वमसी लता, किराएदार लवकुश शुक्ला और नौकर अविनाश यादव को गिरफ्तार कर लिया.

तीनों के खिलाफ रायपुर के गुढि़यारी थाने में भादंवि की धारा 302, 34 के तहत केस दर्ज किया गया. लवकुश शुक्ला उत्तर प्रदेश के गांव बड़ी के मोहल्ला शुक्लान का रहने वाला था. अविनाश भी उत्तर प्रदेश का ही रहने वाला था. उस का घर जिला भदोही के गांव लोहारा, दुर्गागंज में था. पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को रायपुर कोर्ट के न्यायिक दंडाधिकारी के सामने पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

–  कथा पुलिस सूत्रों से बातचीत के आधार पर

कहानी सौजन्य-मनोहर कहानियां

मामा का खूनी सिंदूर : परिवार ही बना निशाना – भाग 4

प्रवींद्र की छेड़छाड़ से संगीता भी रोमांचित हो उठी. उस ने भी अपनी बांहें फैला दीं. इस के बाद कमरे में सीत्कार की आवाजें गूंजने लगीं.उसी समय ऊषा की आंखें खुल गईं. वह बाथरूम जाने को आंगन में आई तो उसे संगीता के कमरे से अजीब सी आवाजें सुनाई दीं. वह जान गई कि कमरे में बेटी के साथ कोई और भी है. वह दबेपांव कमरे में पहुंची और दोनों को रंगरलियां मनाते रंगेहाथ पकड़ लिया. ऊषा ने संगीता की चोटी पकड़ कर खींची और गाल पर तड़ातड़ तमाचे जड़ दिए. उसी समय प्रवींद्र ने बहन ऊषा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘आज तुझे विरोध बहुत महंगा पड़ेगा.’’

इस के बाद प्रवींद्र और संगीता ने ऊषा को दबोच लिया और कमरे में पड़ी चारपाई पर गिरा कर उस के हाथपैर रस्सी से बांध दिए. फिर वे दोनों उस कमरे में पहुंचे, जहां रमेशचंद्र तख्त पर सो रहे थे. उन दोनों ने मिल कर रमेश के भी हाथपांव रस्सी से बांध दिए. इस के बाद संगीता फावड़ा ले आई.उस ने मां की गरदन पर फावड़े से कई वार किए, जिस से उस की गरदन कट गई और बिस्तर खून से तरबतर हो गया. ऊषा की हत्या करने के बाद दोनों रमेश के पास पहुंचे. वहां प्रवींद्र ने फावड़े से गरदन पर वार कर उसे भी मौत की नींद सुला दिया.

2-2 हत्याओं को अंजाम देने के बाद प्रवींद्र और संगीता ने मिल कर पूरे घर को खंगाला. कमरे में रखे बक्सों में लगे तालों की चाबी से खोला. फिर उस में रखी नकदी व जेवर को अपने कब्जे में कर लिए. इस के बाद दोनों इत्मीनान से घर से फरार हो गए.दूसरे दिन सुबह 10 बजे तक जब रमेशचंद्र के घर में कोई हलचल नहीं हुई तो पड़ोसियों में चर्चा शुरू हुई. इसी बीच पड़ोसी राजू गौतम ने थाना गुरसहायगंज पुलिस को मोबाइल द्वारा सूचना दे दी.सूचना पाते ही कोतवाल नागेंद्र पाठक पुलिस टीम के साथ गौरैयापुर गांव स्थित रमेशचंद्र दोहरे के मकान पर आ गए. उन्होंने पुलिस के साथ घर में प्रवेश किया तो अवाक रह गए. 2 अलगअलग कमरों में ऊषा और रमेशचंद्र की निर्मम हत्या की गई थी.

दोनों के हाथपैर भी बंधे हुए थे. खून से सना फावड़ा कमरे में पड़ा था. जाहिर था कि दोनों की हत्या फावड़े से वार कर के की गई थी. कमरे में रखे बक्सों के ताले खुले पड़े थे, सामान बिखरा था. ऐसा लग रहा था जैसे बदमाशों ने हत्या के बाद लूटपाट भी की थी. घर से मृतक दंपति की जवान बेटी संगीता गायब थी.

शुरू में पुलिस भी हुई गुमराह

कोतवाल नागेंद्र पाठक ने डबल मर्डर की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर बाद एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह तथा एएसपी के.सी. गोस्वामी भी आ गए. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का मुआयना किया वहीं फोरैंसिक टीम ने साक्ष्य जुटाए. पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना कर दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए कन्नौज भिजवा दिया और हत्या में इस्तेमाल रस्सी व फावड़ा जाब्ते में शामिल कर लिए.

एसपी अमरेंद्र प्रसाद सिंह को जांच के बाद लगा कि दोहरे हत्याकांड को अंजाम बदमाशों ने दिया है और उस की बेटी संगीता का अपहरण कर लिया है, अत: उन्होंने इसी दिशा में जांच शुरू कराई.

जांच आगे बढ़ी तो पता चला कि मृतका ऊषा देवी के भाई प्रवींद्र का घर में आनाजाना था. यह भी पता चला कि प्रवींद्र भी घर से फरार है. एक बात और भी चौंकाने वाली पता चली. वह यह कि प्रवींद्र और संगीता, जो रिश्ते में मामाभांजी हैं, के बीच नाजायज रिश्ता था और रमेश इस का विरोध करते थे.
प्रवींद्र और संगीता पुलिस की रडार पर आए तो उन की तलाश शुरू हुई. उन की लोकेशन पता करने के लिए पुलिस ने दोनों के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिए. लेकिन मोबाइल बंद होने से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. पुलिस ने उन की खोज दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ आदि संभावित स्थानों पर की, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब पुलिस ने दोनों पर 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया.

इधर प्रवींद्र और संगीता डबल मर्डर करने के बाद बस द्वारा कानपुर आए. फिर ट्रेन से मुंबई पहुंचे. वहां वे एक हजार रुपए दे कर शमशाद नाम के  आटो ड्राइवर की झोपड़ी में रात भर रुके. फिर वहां से ट्रेन द्वारा हुगली शहर आए. हुगली शहर के भद्रेश्वर थानाक्षेत्र के आरबीएस रोड पर प्रवींद्र ने एक झोपड़ी किराए पर ले ली. झोपड़ी मालकिन नगमा को उस ने बताया कि वे दोनों पतिपत्नी हैं. प्रवींद्र वहां मेहनतमजदूरी कर अपना व संगीता का भरणपोषण करने लगा. धीरेधीरे 3 माह बीत गए.

नए साल में प्रवींद्र ने अपने मजदूर साथी से 500 रुपए में एक मोबाइल फोन खरीदा और उस में अपना सिम कार्ड डाल कर चालू किया. मोबाइल फोन चालू होते ही पुलिस को उस की लोकेशन पता चल गई. उस की लोकेशन हुगली शहर की थी. यह जानकारी जब एसपी अमरेंद्र प्रसाद को मिली तो उन्होंने एक पुलिस टीम हुगली रवाना कर दी. वहां पुलिस ने प्रवींद्र व संगीता को हिरासत में ले लिया.

8 जनवरी, 2020 को थाना गुरसहायगंज पुलिस ने अभियुक्त प्रवींद्र तथा संगीता को जिला अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

माशूका की खातिर : अपनी ही गृहस्थी को क्यों उजाड़ा – भाग 3

राजेंद्र काफी समझदार और सुलझे हुए इंसान थे. इस बात को वह अच्छी तरह से समझ रहे थे कि दामाद ने जो किया है, वह उचित नहीं है. लेकिन गलतियां इंसान से ही होती हैं.

उस से भी एक भूल हुई है. निश्चय ही उस की यह पहली गलती है, अपनी भूल को सुधारने के लिए उसे एक मौका देना चाहिए. उन्होंने बेटी को समझाया. जमाने भर की उसे नसीहत दी, तब जा कर वह पति के पास लौट जाने को तैयार हुई.

माफी मांगने के बाद भी मिलता रहा प्रेमिका से

उस के बाद राजेंद्र ने इस संबंध में दामाद से बात की. उसे समझाया कि उस ने जो किया है, वह गलत है. फिर कहा, ‘‘तुम्हारा भरपूरा परिवार है. पत्नी और 2 बच्चे हैं. उन मासूम बच्चों का तनिक भी खयाल नहीं आया.’’

ससुर की बात सुन कर भैरव काफी शर्मिंदा हुआ. उस ने ससुर से वादा किया कि उस से दोबारा ऐसी गलती नहीं होगी. यह जून, 2017 की बात है.

एक महीने अनुपमा मायके में रही. पिता के समझाने के बाद वह बच्चों को ले कर पति के पास धनबाद लौट आई. भैरवनाथ ने पत्नी को भरोसा दिया कि दोबारा ऐसा नहीं होगा. लेकिन कुछ दिनों बाद भैरव फिर पुरानी हरकतें करने लगा. लेकिन इस बार सजग हो कर और पत्नी से छिप कर प्रेमिका रूपा से बातें करता था. फिर भी अनुपमा को पति पर शक हो गया कि वह अभी भी रूपा से बातें करता है.

इस बार अनुपमा ने हजारीबाग के रेवाली के रहने वाले अपने ममेरे भाई विवेक राय से बात की. वह भी धनबाद में ही रहता था. विवेक ने किसी तरह उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि भैरव किसी एक नंबर पर ज्यादा बातें करता है. उस नंबर पर विवेक ने काल की तो उसे एक महिला ने रिसीव किया. यह बात विवेक ने अनुपमा को बता दी. अब अनुपमा का शक यकीन में बदल गया कि भैरव के अभी भी रूपा से संबंध बने हुए हैं.

इस के बाद रूपा को ले कर अनुपमा का पति से रोज झगड़ा होने लगा. घर की सारी बातें भैरव रूपा से बता देता था. उसे रूपा दिलोजान से मोहब्बत करती थी. उस से अलग रहने की बात वह सोच भी नहीं सकती थी. ऐसा ही हाल भैरव का भी था. वह रूपा के बिना जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता था.

एक दिन रूपा भैरव के साथ रहने की जिद पर अड़ गई लेकिन पत्नी अनुपमा इस के लिए कतई तैयार नहीं थी. भैरव भारी दबाव में था. इस कारण वह तनाव में रहने लगा. वह किसी भी हालत में रूपा को नहीं छोड़ना चाहता था.

अपनी पत्नी और बच्चे उसे रास्ते का कांटा दिखने लगे क्योंकि उन के होते हुए वह रूपा को घर नहीं ला सकता था. अंत में उस ने पत्नी और बच्चों को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया. इस के लिए उसे बेटे अभय के जन्मदिन का मौका सब से अच्छा लगा.

3 अक्तूबर, 2017 को भैरव के बेटे अभय का जन्मदिन था. उस ने एक पार्टी का आयोजन किया. पार्टी में उस के मांबाप, मकान में रह रहे अन्य किराएदार, कुछ रिश्तेदारों, मोहल्ले वालों के अलावा रूपा भी आई थी. रूपा को जैसे ही अनुपमा ने देखा, उस का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. तब पार्टी का मजा किरकिरा हो गया. अनुपमा आगबबूला हो गई और रूपा से उलझ गई. दोनों में काफी झगड़ा हुआ.

वह कभी नहीं चाहती थी कि उस की सौतन बनी रूपा उस के पति के गले की हड्डी बन जाए. रूपा समझ गई थी कि अनुपमा उसे देख कर खुश नहीं है. लेकिन उसे इस से कोई फर्क पड़ने वाला नहीं था.

वह अपनी राह के रोड़े को जल्द से जल्द हटा हुआ देखना चाहती थी. रूपा पार्टी के दौरान भैरव को बारबार उकसाती रही कि मौका अच्छा है, हाथ से जाना नहीं चाहिए. बहरहाल, रात साढ़े 9 बजे केक कटा और खुशी का माहौल था. पार्टी के बाद बाहर के आए लोग अपने घरों को चले गए. रात साढ़े 12 बजे बिजली गुल हो गई, जो करीब 2 बजे आई. तब तक घर के लोग जागे हुए थे. बिजली आने के बाद परिवार के सभी लोग अपनेअपने कमरों में सो गए.

आभा और अभय दादी गायत्री देवी के कमरे में सो रहे थे. भैरव ने दादी के पास सो रहे बच्चों को अपने बैडरूम में पत्नी के पास ला कर सुला दिया. क्योंकि उसे अपनी योजना को अंजाम जो देना था. उधर रूपा के आने से नाखुश अनुपमा पहले ही कमरे में आ कर सो गई थी. बिजली आने के बाद रूपा अपने दूसरे रिश्तेदार के यहां चली गई ताकि उस पर कोई संदेह न करे.

ऐसे दिया वारदात को अंजाम

योजना के अनुसार, तड़के 3 बजे के करीब भैरवनाथ दबेपांव बिस्तर से नीचे उतरा. कमरे से निकल कर बाहर आया. दूसरे कमरे में सो रहे मांबाप के दरवाजे पर उस ने सिटकनी चढ़ा दी. फिर लौट कर वह अपने कमरे में आया, जहां पत्नी और बच्चे गहरी नींद में सो रहे थे. उस ने जूते के फीते से पत्नी का गला उस वक्त तक दबाए रखा, जब तक उस की मौत नहीं हो गई. फिर बाजार से खरीद कर लाए चाकू से पहले बेटी आभा फिर अभय का गला रेत कर मौत के घाट उतार दिया.

उस नराधम का ऐसा करते हुए एक बार भी हाथ नहीं कांपा. फिर साक्ष्य छिपाने और खुद को बचाने के लिए अपने हाथों से लिखे 3 पन्नों के लेटर को बैड के पास ऐसे मोड़ कर रखा ताकि किसी की भी नजर उस पर आसानी से पड़ जाए.

घटना को अंजाम देने के बाद भैरवनाथ भोर में 4 बजे के करीब भाग कर धनबाद रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से होते हुए रांची चला गया. वहां से पटना होते हुए मुंबई चला गया. मुंबई में ठिकाना नहीं मिलने पर फ्लाइट से फिर पटना लौटा और पटना से रांची होते हुए 14 अक्तूबर को बोकारो के जैनामोड़ पहुंचा.

उस के पास के सारे पैसे खत्म हो चुके थे, इसलिए वहां के एक दुकानदार के पास अपना मोबाइल गिरवी रख दिया. उस ने खुदकुशी के इरादे से जैनामोड़ में ही सल्फास की 4 गोलियां खा लीं और अपने घर पहुंचा. घर पहुंचते ही तबीयत बिगड़ने पर परिजनों ने उसे बीजीएच हौस्पिटल में भरती करा दिया, जहां से धनबाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उस से सल्फास की गोलियों के बारे मे पूछताछ की तो उस ने मोबाइल गिरवी रख कर सल्फास खरीदे जाने की बात बताई. पुलिस उसे ले कर उस दुकान पर पहुची, जहां उस ने अपना फोन गिरवी रखा था. भैरवनाथ की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त जूते का फीता और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने हत्या के लिए उकसाने के आरोप में रूपा देवी को उस की ससुराल भाटडीह, मुदहा से 24 अक्तूबर, 2017 को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ में उस ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. दोनों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. केस की जांच थानाप्रभारी मनोज कुमार कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों और सोशल मीडिया पर आधारित

प्यार की भूल : सब्र की सीमा ने किया परिवार तबाह – भाग 3

इंसपेक्टर सुखबीर सिंह ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी. भोली के बयान के आधार पर पुलिस ने नरेंदर चौहान और उस की मां सुदेश चौहान के खिलाफ भादंवि की धारा 302/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर तहकीकात शुरू कर दी.

3 डाक्टरों के पैनल ने शमा की लाश का पोस्टमार्टम कर जो रिपोर्ट दी, उस में उन्होंने साफ लिखा था कि शमा एक किन्नर थी और उस की मौत गला घोंटने और गरदन पर कोई तेज नुकीली चीज के वार से हुई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने नरेंदर की तलाश शुरू कर दी. इस के लिए पुलिस की टीमें लगातार छापेमारी कर रही.

खास मुखबिर भी नरेंदर की तलाश में दिनरात एक किए हुए थे. 7 जुलाई 2017 को एक मुखबिर ने सूचना दी कि नरेंदर अपनी मां के साथ दिल्ली के सब्जीमंडी क्षेत्र में छिपा हुआ है.

सूचना मिलते ही पुलिस टीम दिल्ली रवाना हो गई और मुखबिर द्वारा बताए पते पर दबिश दे कर नरेंदर को गिरफ्तार कर के दिल्ली से जालंधर ले आई. उस समय वहां उस की मां मौजूद नहीं थी.

नरेंदर को अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया पर रिमांड अवधि में उस ने अपना मुंह नहीं खोला. तब 10 जुलाई को उसे फिर से अदालत में पेश कर 3 दिन के रिमांड पर ले कर सख्ती से पूछताछ की गई.

आखिर उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही शमा की हत्या की थी. पुलिस अधिकारियों के सामने अपनी कहानी बताते हुए वह जोरजोर से दहाड़ें मार कर रोने लगा. उस ने उस की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

नरेंदर अपनी मां के साथ दिल्ली में रह रहा था और औटो चला कर अपना गुजारा कर रहा था, जबकि शमा जालंधर में आर्केस्ट्रा का काम करते हुए अपनी मां और भाईबहनों के साथ रह रही थी. इत्तफाक से दिल्ली में नरेंदर की मां बीमार रहने लगी थी उस की सेवा के लिए नरेंदर का काम प्रभावित होने लगा था.

मां के इलाज पर भी काफी खर्च आ रहा था. ऐसे में जालंधर में रहने वाले नरेंदर के भाई सुरेंदर ने उसे सलाह दी कि वह मां को ले कर जालंधर चला आए. दोनों भाई मिल कर मां का इलाज भी करवा लेंगे और कामधंधा भी प्रभावित नहीं होगा.

भाई की सलाह मान कर नरेंदर मां को साथ ले कर दिल्ली छोड़ कर जालंधर की बस्ती शेख में किराए का कमरा ले कर रहने लगा यहां भी उस ने औटो चलाना शुरू कर दिया था.

यह लगभग 3 महीने पहले की बात है. तब तक न शमा जानती थी कि नरेंदर इन दिनों जालंधर में है और न ही नरेंदर यह बात जानता था कि शमा अब जालंधर में रहती है. नरेंदर शमा को एक दु:स्वप्न समझ कर पूरी तरह भुला चुका था.

30 अप्रैल, 2017 की बात है. उस दिन शाम के समय शमा को नरेंदर के चाचा का लड़का छिंदा बाजार में मिल गया था. दोनों बड़े दिनों बाद मिले थे, इसलिए भीड़ से हट कर आपस में बातें करने लगे. बातोंबातों में छिंदा ने उसे बता दिया कि आजकल नरेंदर भाई भी यहीं रह रहे हैं. शमा ने छिंदा से नरेंदर का फोन नंबर ले लिया.

अगले दिन शमा ने नरेंदर को फोन कर के मिलने की इच्छा जताई तो पहले नरेंद्र ने मिलने से इनकार कर दिया. उस ने कहा, ‘‘अब हमारे बीच कुछ नहीं बचा है, मैं तुम्हें भूल भी चुका हूं इसलिए मिलने का क्या फायदा?’’

‘‘सिर्फ एक बार मैं तुम से मिलना चाहती हूं.’’ शमा ने कहा तो वह तैयार हो गया. उसी दिन पहली मई को शमा रात करीब 8 बजे नरेंदर से मिलने उस के घर पहुंच गई.

शमा को देखते ही नरेंदर का खून खौल उठा. उस की आंखों के सामने बीते दिनों की बातें किसी चलचित्र की तरह दिखाई देने लगी थीं. बड़ी मुश्किल से उस ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए ठंडे लहजे में कहा, ‘‘शमा, तुम्हें यहां मेरे पास नहीं आना चाहिए था. याद है, मैं ने अलग होते समय तुम से क्या कहा था?’’

शमा मुसकरा कर बोली, ‘‘अभी भी गुस्सा हो मुझ से?’’

तभी नरेंदर ने कहा, ‘‘अच्छा, जो हुआ सो हुआ. शायद यही नियति ने लिखा था. अब एक काम करते हैं तुम आर्केस्ट्रा का काम छोड़ दो. हम दोनों अपने प्यार से मिल कर एक नई दुनिया बसाते हैं. रहा सवाल संतान का तो हम कहीं से कोई बच्चा गोद ले लेंगे.’’

‘‘नहीं नरेंदर, अब चाह कर भी मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती और न ही आर्केस्ट्रा का काम छोड़ सकती हूं. मेरे इसी काम से मेरे परिवार का खर्च चलता है. मैं उन्हें भूखा नहीं मार सकती.’’ शमा बोली.

नरेंदर को गुस्सा आ गया. वह उसे गालियां देते हुए बोला, ‘‘तो मेरे पास यहां क्या करने आई है? याद है, मैं ने क्या कहा था. जिस दिन तू मेरे सामने आएगी, मैं तुझे खत्म कर दूंगा.’’ नरेंदर ने उसे जोरदार थप्पड़ रसीद करते हुए कहा, ‘‘मैं सब कुछ भूलभाल कर तुझे अपनाने को दोबारा तैयार हो गया और तू है कि अपने बहनभाई और रंडियों वाले नाचगाने का पेशा छोड़ने को तैयार नहीं है. आज मैं तुझे जिंदा नहीं छोड़ूंगा.’’

कह कर नरेंदर वहां से उठ कर दूसरे कमरे में गया और अपनी मां को उठा कर जबरदस्ती बाथरूम में बंद कर दिया. इस के बाद वह शमा के पास पहुंचा और उसी के दुपट्टे से उस ने उस का गला घोंट दिया. कहीं वह जिंदा न रह जाए, यह सोच कर उस ने एक तेजधार चाकू का भरपूर वार शमा की गरदन पर किया था.

उस की हत्या करने के बाद उस ने बाथरूम का दरवाजा खोल कर अपनी मां को बाहर निकाला. मां सुदेश ने बाहर आ कर जब शमा की लाश देखी तो उसे माजरा समझते देर नहीं लगी. सुदेश ने नरेंदर को काफी भलाबुरा कहा. पर अब कुछ नहीं हो सकता था. इस के बाद वह मां को ले कर दिल्ली चला गया. पर पुलिस ने उसे वहीं से ढूंढ निकाला.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद उसे अदालत में पेश किया गया और अदालत के आदेश पर उसे जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक सुदेश गिरफ्तार नहीं हो सकी थी.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चाओं पर आधारित

प्यार नहीं वासना के अंधे – भाग 3

सादिक अकसर उसे नशीले पदार्थ मुहैया कराता था. कभीकभार जरूरत पड़ने पर नशीले पदार्थ लेने अनूप रुखसार के घर भी जाता था और जब भी जाता था, तब उस का दिल रुखसार को देख कर बेकाबू होने लगता था, एक तो अधेड़, ऊपर से मामूली शक्लसूरत वाले अनूप को रुखसार पसंद नहीं करती थी इसलिए अनूप की दाल उस के सामने कभी नहीं गली.

सादिक और अनूप की मेल मुलाकातें बढ़ने लगीं और दोनों अकसर साथ बैठ कर नशा भी करने लगे. ऐसे में ही एक दिन जज्बाती हो कर सादिक ने उसे सब कुछ बता दिया कि तलाक के बाद भी वह रुखसार के पास जाता है और सेक्स सुख लेता है.

यह सुनते ही अनूप के खुराफाती दिमाग में यह खयाल आया कि अगर सादिक को शीशे में उतार लिया जाए तो रुखसार के संगमरमरी जिस्म पर फिसलने का मौका मिल सकता है. इतना सोचना था कि वह एकाएक अपने इस नशेड़ी दोस्त पर जरूरत से ज्यादा मेहरबान हो उठा और उस पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. दोनों साथसाथ पार्टी करने लगे.

अनूप का पैसा सादिक के लिए सहूलियत वाली बात थी, इसलिए वह उससे दबने लगा और यही अनूप की मंशा भी थी. फिर एक दिन अनूप ने अपनी दिली ख्वाहिश भी सादिक पर जाहिर कर दी कि उसे भी एक बार रुखसार का सुख चाहिए.

इस पर सादिक तुरंत तैयार हो गया और उसे एक बार रुखसार से हमबिस्तर कराने का वादा भी कर डाला. सादिक का डर यह था कि अगर वह न कहेगा तो अनूप पैसे लुटाना बंद कर देगा और वैसे भी रुखसार अब उस की बीवी नहीं थी.

सादिक ने जब रूख्सार को अनूप की मंशा पूरी करने को कहा तो वह नागिन की तरह फुफकार उठी कि वह उसे कतई पंसद नहीं, चाहे कुछ भी हो जाए वह उस के सामने कभी नहीं बिछेगी. इस पर सादिक को खेल बिगड़ता नजर आया जो यह मान कर चल रहा था कि पैसों की खातिर रुखसार इस पेशकश पर इनकार नहीं करेगी.

अकसर अनूप उससे पूछता रहा कि कब मौज करवा रहे हो और हर बार सादिक उसे हिम्मत बंधाता रहता था कि जल्द ही करवा दूंगा, कोशिश कर रहा हूं तुम सब्र रखो. रुखसार कोई ऐसी वैसी औरत नहीं है, इसलिए मनाने में कुछ वक्त तो लगेगा.

लेकिन वह वक्त कभी नहीं आया जब भी सादिक रुखसार से अनूप को खुश करने की बात कहता तो उस का मूड खराब हो जाता था और वह उसे बुरी तरह दुत्कार देती थी. इसी तरह लंबा वक्त गुजर गया तो अनूप को लगा कि रुखसार के साथ सैक्स करने की उस की ख्वाहिश ख्वाब ही रहेगी.

इसलिए एक दिन उस ने थोड़ी कड़ाई से सादिक से बात की तो दोनों ने एक योजना बना डाली कि जब सीधी अंगुली से घी न निकले तो उसे टेढ़ी कर के घी निकाल लेना चाहिए.

इस योजना में तय हुआ कि सादिक रुखसार को नशे में इतना धुत कर देगा कि उसे होश ही न रहे, फिर अनूप अपनी ख्वाहिश पूरी कर लेगा. अनूप पर रुखसार को पाने की जिद सवार थी इसलिए वह कुछ भी करने के लिए तैयार बैठा था.

योजना के मुताबिक पहली अक्तूबर सादिक रुखसार को नशा पार्टी की बात कह कर उसे अनूप के पत्तीपुरा वाले मकान में ले गया, जहां तीनों ने जम कर नशा किया और जानबूझ कर रुखसार को ज्यादा डोज दी. रुखसार को नशे में डूबते देख सादिक ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश शुरू कर दी. नशे में धुत रुखसार भी उत्तेजित हो गई और यह भूल गई कि अनूप भी घर में ही है.

जल्द ही दोनों निर्वस्त्र हो कर एकदूसरे में समाने लगे. यह दृश्य देख कर अनूप की कनपटियां गर्म हो उठीं, गला खुश्क होने लगा और नसों में खून 240 की स्पीड से दौड़ने लगा. रुखसार निर्वस्त्र हो कर बिना किसी शर्मोहया के सादिक से संबंध बना रही थी.

हल्की रोशनी में उस का दूधिया बदन अनूप की आंखों के सामने था. यह सोच कर उस का दिल धाड़धाड़ करता सीने के बाहर आने को बेताब हुआ जा रहा था कि सादिक के फारिग होने के बाद उस का नंबर है.

थोड़ी देर बाद सादिक और रुखसार अलग हुए तो वासना की आग में जलता अनूप रुखसार के नजदीक पहुंच गया और उस से संबंध बनाने की कोशिश करने लगा. रुखसार नशे में तो थी लेकिन इतनी भी नहीं कि यह न समझ पाती कि अनूप क्या करने की कोशिश कर रहा है.

रुखसार को अनूप की यह हरकत बेहद नागवार गुजरी तो वह गुस्से से भर उठी और नशे में ही एक जोरदार लात अनूप को मार दी. लड़खड़ाए अनूप ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और वह फिर उस पर छा जाने की कोशिश करने लगा, लेकिन हाथपैर मारती रुखसार ने उसे कामयाब नहीं होने दिया.

अब तक चुपचाप तमाशा देख रहे सादिक को भी गुस्सा आ गया और वह अनूप की मदद के लिए आगे गया. उस ने सख्ती से रुखसार के दोनों पैर पकड़ लिए लेकिन रुखसार में जाने कहां से इतनी हिम्मत और ताकत आ गई थी कि उस ने फिर विरोध किया, जिस से अनूप की मंशा अधूरी रह गई.

वासना में डूबे आदमी की हालत क्या हो जाती है, यह उस वक्त अनूप की हालत देख कर समझी जा सकती थी, जो कभी ताकत से रुखसार को हासिल करने की कोशिश कर रहा था और कामयाब न होने पर उस के सामने गिड़गिड़ा भी रहा था कि बस एक बार…

लेकिन जब उसे समझ आ गया कि रुखसार कैसे भी नहीं मानने वाली तो गुस्से में आ कर उस ने रुखसार का गला दबाना शुरू कर दिया, जिस से कुछ ही देर में वह लाश में तब्दील हो गई.

रुखसार के दम तोड़ते ही अनूप ने सादिक की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘तू चिंता मत कर मैं इस की लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर दूंगा, तू बस इन्हें ठिकाने लगा देना.’’

ऐसा हुआ भी सादिक ने अपनी बीवी के लाश के टुकड़ेटुकड़े कर डाले, जिन्हें थैलों में भर कर अनूप नाले के पास फेंक आया. चूंकि एक दिन में यह काम मुमकिन नहीं था इसलिए टुकड़ों को ठिकाने लगाने में 2 दिन लग गए.

पुलिस की जांच में यह सब कुछ उस वक्त उजागर हो गया जब एक सीसीटीवी फुटेज में अनूप थैला ले जाते तो दिखा लेकिन वापस लौटते वक्त उस के हाथ खाली थे. दोनों एक एक कर गिरफ्तार हुए तो पुलिस की सख्ती के सामने उन्होंने सारी कहानी सुना डाली.

इस तरह रुखसार की कहानी और जिंदगी दोनों खत्म हो गए. अपने अंजाम की एक हद तक वह खुद भी जिम्मेदार थी. शादी के बाद वह पति की कमजोरी से समझौता कर उसे कामधंधा करने को तैयार कर लेती तो शायद इस तरह मरने से बच जाती.

सादिक भी कम गुनहगार नहीं जो अपने निकम्मेपन के चलते नशे के कारोबार और लत में अच्छाबुरा सब कुछ भुला कर अपनी ही तलाकशुदा बीवी को दूसरे के हवाले करने को न केवल तैयार हो गया, बल्कि इस के लिए उस ने अनूप की पूरी मदद भी की.

पुलिस ने घटनास्थल से वह धारदार चाकू और सुपारी काटने का सरौता भी बरामद कर लिया, जिस से सादिक ने रुखसार के जिस्म के टुकड़े किए थे. रुखसार की कान की बालियां भी बरामद हो गईं. घटनास्थल पर उस का खून भी फोरैंसिक जांच के लिए भेजा गया. अब दोनों जेल में हैं और तय है उन्हें सजा होगी, क्योंकि जुर्म वे स्वीकार कर चुके हैं और सिलसिलेवार उस की कहानी भी सुना चुके हैं.

अनूप शायद ही कभी समझ पाए कि त्रियाचरित्र को त्रियाचरित्र क्यों कहा जाता है. जो रुखसार उस की मंशा पूरी करने को राजी नहीं हुई तो नहीं हुई. उसे मरना गवारा था, लेकिन अपनी मरजी के खिलाफ उस के साथ हमबिस्तर होना नहीं. नशे की लत आदमी से क्या कुछ नहीं करवा देती, यह भी इस वारदात से समझ आता है.