लालची मामा का शिकार हुई एक भांजी

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले की सोहागपुर तहसील में जमीनों के दाम उम्मीद से कहीं ज्यादा बढ़े हैं, क्योंकि यह सैरसपाटे की मशहूर जगह पचमढ़ी के नजदीक है. इस के अलावा सोहागपुर से चंद किलोमीटर की दूरी पर एक और जगह मढ़ई तेजी से सैलानियों की पसंद बनती जा रही है. इस की वजह वाइल्ड लाइफ का रोमांच और यहां की कुदरती खूबसूरती है. सैलानियों की आवाजाही के चलते सोहागपुर में धड़ल्ले से होटल, रिसोर्ट और ढाबे खुलते जा रहे हैं.

दिल्ली के पौश इलाके वसंत विहार की रहने वाली 40 साला लीना शर्मा का सोहागपुर अकसर आनाजाना होता रहता था, क्योंकि यहां उस की 22 एकड़ जमीन थी, जो उस के नाना और मौसी मुन्नीबाई ने उस के नाम कर दी थी.

लीना शर्मा की इस जमीन की कीमत करोड़ों रुपए में थी, लेकिन इस में से 10 एकड़ जमीन उस के रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने दबा रखी थी. 21 अप्रैल, 2016 को लीना शर्मा खासतौर से अपनी जमीन की नपत के लिए भोपाल होते हुए सोहागपुर आई थी.

23 अप्रैल, 2016 को पटवारी और आरआई ने लीना शर्मा के हिस्से की जमीन नाप कर उसे मालिकाना हक सौंपा, तो उस ने तुरंत जमीन पर बाड़ लगाने का काम शुरू कर दिया.

दरअसल, लीना शर्मा 2 करोड़ रुपए में इस जमीन का सौदा कर चुकी थी और इस पैसे से दिल्ली में ही जायदाद खरीदने का मन बना चुकी थी. 29 अप्रैल, 2016 को बाड़ लगाने के दौरान प्रदीप शर्मा अपने 2 नौकरों राजेंद्र कुमरे और गोरे लाल के साथ आया और जमीन को ले कर उस से झगड़ना शुरू कर दिया.

प्रदीप सोहागपुर का रसूखदार शख्स था और सोहागपुर ब्लौक कांग्रेस का अध्यक्ष भी. झगड़ा इतना बढ़ा कि प्रदीप शर्मा और उस के नौकरों ने मिल कर लीना शर्मा की हत्या कर दी.

हत्या चूंकि सोचीसमझी साजिश के तहत नहीं की गई थी, इसलिए इन तीनों ने पहले तो लीना शर्मा को बेरहमी से लाठियों और पत्थरों से मारा और गुनाह छिपाने की गरज से उस की लाश को ट्रैक्टरट्रौली में डाल कर नया कूकरा गांव ले जा कर जंगल में गाड़ दिया.

लाश जल्दी गले, इसलिए इन दरिंदों ने उस के साथ नमक और यूरिया भी मिला दिया था. हत्या करने के बाद प्रदीप शर्मा सामान्य रहते हुए कसबे में ऐसे घूमता रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो. जाहिर है, वह यह मान कर चल रहा था कि लीना शर्मा के कत्ल की खबर किसी को नहीं लगेगी और जब उस की लाश सड़गल जाएगी, तब वह पुलिस में जा कर लीना शर्मा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा देगा. लेकिन उस ने ऐसा नहीं किया.

लीना शर्मा की जिंदगी किसी अफसाने से कम नहीं कही जा सकती. जब वह बहुत छोटी थी, तभी उस के मांबाप चल बसे थे, इसलिए उस की व उस की बड़ी बहन हेमा की परवरिश मौसी ने की थी.

मरने से पहले ही मौसी ने अपनी जमीन इन दोनों बहनों के नाम कर दी थी. बाद में लीना शर्मा अपनी बहन हेमा के साथ भोपाल आ कर परी बाजार में रहने लगी थी.

लीना शर्मा खूबसूरत थी और होनहार भी. लिहाजा, उस ने फौरेन ट्रेड से स्नातक की डिगरी हासिल की और जल्द ही उस की नौकरी अमेरिकी अंबैसी में बतौर कंसलटैंट लग गई. लेकिन अपने पति से उस की पटरी नहीं बैठी, तो तलाक भी हो गया. जल्द ही अपना दुखद अतीत भुला कर वह दिल्ली में ही बस गई और अपनी खुद की कंसलटैंसी कंपनी चलाने लगी.

40 साल की हुई तो लीना शर्मा ने दोबारा शादी करने का फैसला कर लिया, लेकिन शादी के पहले वह सोहागपुर की जमीन के झंझट को निबटा लेना चाहती थी, पर रिश्ते के मामा प्रदीप शर्मा ने उस के मनसूबों पर पानी फेर दिया.

लीना शर्मा की हत्या एक राज ही बन कर रह जाती, अगर उस के दोस्त उसे नहीं ढूंढ़ते. जब लीना शर्मा तयशुदा वक्त पर नहीं लौटी और उस का मोबाइल फोन बंद रहने लगा, तो भोपाल में रह रही उस की सहेली रितु शुक्ला ने उस की गुमशुदगी की खबर पुलिस कंट्रोल रूम में दी.

पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए प्रदीप शर्मा से संपर्क किया, तो वह घबरा गया और भांजी के गुम होने की रिपोर्ट सोहागपुर थाने में लिखाई, जबकि वही बेहतर जानता था कि लीना शर्मा अब इस दुनिया में नहीं है. देर से रिपोर्ट लिखाए जाने से प्रदीप शर्मा शक के दायरे में आया और जमीन के झगड़े की बात सामने आई, तो पुलिस का शक यकीन में बदल गया.

मामूली सी पूछताछ में प्रदीप शर्मा ने अपना जुर्म कबूल कर लिया, लेकिन शक अब लीना शर्मा की बहन हेमा पर भी गहरा रहा है कि वह क्यों लीना शर्मा के गायब होने पर खामोश रही थी? कहीं उस की इस कलयुगी मामा से किसी तरह की मिलीभगत तो नहीं थी? इस तरफ भी पुलिस पड़ताल कर रही है, क्योंकि अब उस पर सच सामने लाने का दबाव बढ़ता जा रहा है.

लीना शर्मा के दिल्ली के दोस्त भी भोपाल आ कर पुलिस के आला अफसरों से मिले और सोहागपुर भी गए. हेमा के बारे में सोहागपुर के लोगों का कहना है कि वह एक निहायत ही झक्की औरत है, जिस की पागलों जैसी हरकतें किसी सुबूत की मुहताज नहीं. खुद उस का पति भी स्वीकार कर चुका है कि वह एक मानसिक रोगी है.

अब जबकि आरोपी प्रदीप शर्मा अपना जुर्म कबूल कर चुका है, तब कुछ और सवाल भी मुंहबाए खड़े हैं कि क्या लीना शर्मा का बलात्कार भी किया गया था, क्योंकि उस की लाश बिना कपड़ों में मिली थी और उस के जेवर अभी तक बरामद नहीं हुए हैं?

आरोपियों ने यह जरूर माना कि लीना शर्मा का मोबाइल फोन उन में से एक ने चलती ट्रेन से फेका था. लाश चूंकि 15 दिन पुरानी हो गई थी, इसलिए पोस्टमार्टम से भी बहुत सी बातें साफ नहीं हो पा रही थीं. दूसरे सवाल का ताल्लुक पुश्तैनी जायदाद के लालच का है कि कहीं इस वजह से तो लीना शर्मा की हत्या नहीं की गई है?

प्रदीप शर्मा ने अपनी भांजी के बारे में कुछ नहीं सोचा कि उस ने अपनी जिंदगी में कितने दुख उठाए हैं और परेशानियां भी बरदाश्त की हैं. लीना शर्मा अगर दूसरी शादी कर के अपना घर बसाना चाह रही थी तो यह उस का हक था, लेकिन उस की दुखभरी जिंदगी का खात्मा भी दुखद ही हुआ.

जेल से बड़ा जुर्म : परिवार ही बना शिकार

52 साल के सत्यपाल शर्मा को गांव में हर कोई जानता था. वे उत्तर प्रदेश के बागपत जनपद के गांव सिंघावली अहीर के रहने वाले थे और नजदीक के ही एक गांव खिंदौड़ा में बने आदर्श प्राइमरी स्कूल में हैडमास्टर थे. गांव में उन की खेतीबारी भी थी. उन के परिवार में पत्नी उर्मिला के अलावा एक बेटा सोनू व एक बेटी सीमा थी.

23 अप्रैल, 2016 की सुबह सत्यपाल शर्मा रोजाना की तरह मोटरसाइकिल से स्कूल गए थे. सुबह के तकरीबन पौने 10 बजे थे. लंच ब्रेक का समय था.

सत्यपाल शर्मा स्कूल के बरामदे में कुरसी डाल कर बैठे हुए थे, तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार 3 नौजवान स्कूल परिसर में आ कर रुके. उन में से एक नौजवान मोटरसाइकिल के पास ही खड़ा रहा, जबकि 2 नौजवान पैदल चल कर सत्यपाल शर्मा के नजदीक पहुंच गए.

उन्होंने नमस्कार किया, तो सत्यपाल शर्मा ने पूछा, ‘‘कहिए?’’

उन में से एक नौजवान ने पूछा, ‘‘क्या आप ही मास्टर सत्यपाल हैं?’’

‘‘जी हां, मैं ही हूं. आप लोग कहां से आए हैं?’’

‘‘हम तो नजदीक के गांव से ही आए हैं मास्टरजी.’’

सत्यपाल शर्मा ने उन्हें बैठने का इशारा किया, तो वे पास रखी कुरसियों पर बैठ गए. इस बीच तीसरा नौजवान भी टहलता हुआ वहां आ गया.

सत्यपाल शर्मा उन नौजवानों को पहचानते नहीं थे. वे कुछ जानसमझ पाते कि उस से पहले ही कुरसी पर बैठे दोनों नौजवान बिजली की सी फुरती से खड़े हुए और उन्होंने अपने हाथों में तमंचे निकाल लिए.

सत्यपाल शर्मा सकते में आ गए. पलक झपकते ही एक नौजवान ने उन्हें निशाना बना कर गोली दाग दी. गोली उन के पेट में लगी और खून का फव्वारा छूट गया.

सत्यपाल शर्मा समझ गए थे कि वे नौजवान उन के खून के प्यासे हैं. वे जान बचाने के लिए चिल्लाते हुए परिसर में तेजी से भागे, लेकिन तकरीबन 50 मीटर ही भाग पाए थे कि बदमाशों ने उन पर 2 और फायर झोंक दिए. इस से वे लहूलुहान हो कर जमीन पर गिर पड़े.

गोलियां चलने से स्कूल के टीचरों व बच्चों में चीखपुकार और भगदड़ मच गई. स्कूल चूंकि गांव के बीच में था, इसलिए आसपास के गांव वाले भी इकट्ठा होना शुरू हो गए.

यह देख कर गोली मारने वाले बदमाशों के पैर उखड़ गए. घिरने का खतरा देख कर मोटरसाइकिल वाला बदमाश अकेला ही भाग गया, जबकि एक बदमाश दीवार कूद कर खेतों की तरफ और तीसरा बदमाश गांव के रास्ते की तरफ भाग निकला.

जो बदमाश गांव की तरफ भागा था, गांव वालों ने उस का पीछा कर कुछ ही दूर जा कर उसे पकड़ लिया था. गांव वालों ने पीटपीट कर उसे लहूलुहान कर दिया. उधर बदमाशों की गोली से घायल सत्यपाल शर्मा की मौके पर ही मौत हो गई.

इस सनसनीखेज वारदात की सूचना पा कर थाना सिंघावली अहीर के थाना प्रभारी सुभाष यादव अपने दलबल के साथ मौके पर पहुंच गए.

हत्या की इस वारदात से गांव वालों में भारी गुस्सा था. लिहाजा, एसपी रवि शंकर छवि, कलक्टर हृदय शंकर तिवारी, एएसपी अजीजुलहक, सीओ कर्मवीर सिंह व दूसरे थानों का पुलिस बल भी वहां आ पहुंचा. पुलिस को मौके से एक तमंचा व खाली कारतूस बरामद हुए.

उधर सत्यपाल शर्मा की मौत की खबर से उन के परिवार में कुहराम मच गया था. उन की पत्नी उर्मिला व बेटा सोनू भी वहां आ पहुंचे थे. थाना पुलिस को गांव वालों के आरोपों के साथ विरोध का सामना करना पड़ रहा था.

इस विरोध की भी वजह थी. लोगों का आरोप था कि कुछ दिनों पहले कुछ बदमाशों ने सत्यपाल शर्मा पर उन के घर पर हमला किया था. उन्होंने इस की शिकायत थाने में की थी और जान का खतरा बता कर सिक्योरिटी की मांग की थी, लेकिन थाना प्रभारी सुभाष यादव ने इस मामले में घोर लापरवाही दिखाते हुए नजरअंदाज कर दिया था.

पूछताछ में पुलिस को पता चला कि सत्यपाल शर्मा की जमीन को ले कर अपने ही परिवार के लोगों से रंजिश चली आ रही थी. इस रंजिश का शिकार हुए अपने बेटे सतीश के लिए सत्यपाल शर्मा इंसाफ की जंग लड़ रहे थे, इसीलिए उन की भी हत्या कर दी गई थी.

गांव वालों का गुस्सा पकड़े गए बदमाश पर उतर रहा था. वह अधमरी हालत में पहुंच गया था. पुलिस ने उस से पूछताछ की, तो उस ने अपना नाम सोनू बताया, जबकि अपने साथियों के नाम गौरव व रोहित बताए.

सोनू गांव निरपुड़ा का रहने वाला था, जबकि गौरव उस का चचेरा भाई था और रोहित शेरपुर लुहारा गांव का रहने वाला था.

पुलिस सोनू को अस्पताल में दाखिल कराती, उस से पहले ही उस की मौत हो गई. पुलिस ने सत्यपाल शर्मा व बदमाश सोनू की लाशों का पंचनामा कर के पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस मामले में पुलिस ने सत्यपाल शर्मा के बेटे सोनू की तरफ से मारे गए व भागे बदमाशों के साथ ही विरोधी पक्ष के राजकरण, उस के भाई रामकिशन व आनंद, राजकरण के 2 बेटों पंकज पाराशर, दीपक, आनंद के बेटों मोहित, रोहित, बेटी पूजा, आनंद की पत्नी बबली, राजकरण की पत्नी कौशल्या, राजकरण के बेटे ईशान व रामकिशन के बेटे महेश के खिलाफ धारा 302 व 120बी के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया गया.

मामला बेहद गंभीर था. एसपी रवि शंकर छवि ने थाना प्रभारी सुभाष यादव को तत्काल प्रभाव से सस्पैंड कर दिया और थाने का प्रभार चंद्रकांत पांडेय को सौंप दिया. उन्होंने आरोपियों की गिरफ्तारी के निर्देश देने के साथ ही हत्या की साजिश का खुलासा करने के निर्देश भी दिए.

पुलिस ने सत्यपाल शर्मा की पत्नी उर्मिला व बेटे सोनू के साथसाथ गांव वालों से भी पूछताछ की. मामला सीधेतौर पर रंजिश का था.

दरअसल, सत्यपाल शर्मा की राजकरण व आनंद से जमीन की डोलबंदी को ले कर तकरीबन 10 साल से रंजिश चली आ रही थी. इसी रंजिश में 4 जुलाई, 2014 को सत्यपाल शर्मा के  जवान बेटे सतीश की सुबह तकरीबन 8 बजे उस वक्त गोली मार कर हत्या कर दी गई थी, जब वह खेत में काम करने के लिए गया था. सत्यपाल शर्मा ने इस मामले में 11 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था.

पुलिस ने इस मामले में आनंद व उस के बेटे मोहित को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया था. आनंद के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल किया गया तमंचा व कारतूस भी बरामद हुए थे, जबकि बाकी आरोपियों को पुलिस ने जांच के दौरान क्लीनचिट दे दी थी. इस मामले में पुलिस मिलीभगत के आरोपों का सामना कर रही थी.

बेटे सतीश की मौत से दुखी हो कर सत्यपाल शर्मा ने सोच लिया था कि वे उस के कातिलों को सजा दिला कर रहेंगे, इसलिए वे आएदिन कचहरी जा कर मुकदमे को मजबूत करने के लिए पैरवी करते थे. उन की पैरवी का ही नतीजा था कि जेल में बंद आरोपियों को जमानत नहीं मिल पा रही थी.

सत्यपाल शर्मा की इसी पैरवी से चिढ़ कर 26 मार्च की रात उन पर उस समय हमला किया गया था, जब वे घर पर थे. बदमाश गोली चला कर भाग गए थे. सत्यपाल शर्मा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था. जब उन्होंने जान का खतरा बता कर पुलिस से सिक्योरिटी मांगी थी, तब थाना पुलिस ने न जाने किन वजहों से अपने फर्ज से मुंह मोड़ लिया था.

पुलिस दोनों पक्षों की रंजिश से वाकिफ थी. बाद में इस मामले में सत्यपाल शर्मा की तहरीर पर राजकरण व रोहित के खिलाफ धारा 452 व 523 के तहत मुकदमा तो लिख लिया गया था, लेकिन कोई कार्यवाही नहीं की गई थी. इस के बाद सत्यपाल शर्मा की हत्या हो गई थी.

पुलिस सत्यपाल शर्मा के हत्यारों की तलाश में जुट गई. अगले दिन पुलिस ने इस मामले में नामजद रोहित व उस की बहन पूजा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ की गई, तो एक चौंकाने वाला खुलासा यह हुआ कि इस हत्या की योजना लाखों रुपए की सुपारी के बदले मेरठ जेल में बनाई गई थी. पुलिस ने जरूरी सुराग हासिल कर के उन दोनों को जेल भेज दिया और दूसरे आरोपियों की तलाश में लग गई.

26 अप्रैल, 2016 को पुलिस ने एक शूटर गौरव व एक औरत किरन को गिरफ्तार कर लिया. दोनों से पूछताछ हुई, तो पुलिस भी चौंक गई, क्योंकि आरोपी परिवार की औरतों से ले कर गिरफ्तार की गई औरत ने भी हत्या की इस साजिश में अहम भूमिका निभाई थी. पूछताछ में सत्यपाल शर्मा की हत्या का हैरान करने वाले सच सामने आया.

दरअसल, सत्यपाल शर्मा अपने बेटे सतीश की हत्या की जिस तरह से पैरवी कर रहे थे, उस से आनंद व उस के बेटे मोहित को चाह कर भी जमानत नहीं मिल पा रही थी. उन्होंने अपनी जमानत के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील कर दी थी.

31 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में उन की जमानत पर सुनवाई होनी थी. सत्यपाल शर्मा इस का कानूनी तरीके से विरोध कर रहे थे. आरोपियों को लगने लगा था कि सत्यपाल शर्मा के रहते उन्हें कभी जमानत नहीं मिल पाएगी और उन्हें सजा हो कर रहेगी.

सत्यपाल शर्मा के पैरवी बंद कर देने से उन की राह आसान हो सकती थी, लेकिन ऐसा हो नहीं सकता था. आनंद की पत्नी बबली अपने पति व बेटे से अकसर जेल में मुलाकात के लिए जाती थी. उस ने आनंद व मोहित को उकसाया कि वे किसी भी तरह सत्यपाल का कोई इलाज करें. जितने रुपए कोर्टकचहरी में खर्च हो रहे हैं, उतने में तो उसे मरवाया जा सकता था.

आनंद और मोहित को बबली की बात ठीक लगी. जेल की बदहाल जिंदगी से वे पहले ही परेशान थे. बबली अपनी जेठानी कौशल्या से इस संबंध में अकसर बात करती थी.

आनंद ने जेल में रहते बदमाश अमरपाल उर्फ कालू व अनिल से बात की. अमरपाल बागपत के ही छपरौली थाना क्षेत्र के शेरपुर लुहारा गांव का रहने वाला था, जबकि अनिल सूप गांव का बाशिंदा था. वे दोनों भी हत्या के मामले में मेरठ जेल में बंद थे. दोनों के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.

आनंद व उस का परिवार सत्यपाल शर्मा को रास्ते से हटाना चाहता था. दोनों बदमाशों ने इस काम के लिए हामी भर ली. साढ़े 6 लाख रुपए में उन का सौदा तय हो गया.

अमरपाल ने इस मामले में अपने ही गांव के रोहित को जेल में बुलवा कर उस से बात की. उस से रुपयों के बदले में सत्यपाल शर्मा की हत्या करना तय हो गया. रोहित ने इस काम के लिए अपने दोस्तों सोनू राणा उर्फ शिशुपाल उर्फ अमरीकन व उस के चचेरे भाई गौरव को भी तैयार कर लिया.

अमरपाल जेल में जरूर था, लेकिन उस के गैरकानूनी कामों को उस की पत्नी किरन उर्फ बाबू पूरा करती थी.

इस मामले में भी अमरपाल ने सुपारी के लेनदेन से ले कर हथियार मुहैया कराने  तक की जिम्मेदारी किरन को ही सौंप दी और उस की मुलाकात आनंद की पत्नी बबली से करा दी. सुपारी की रकम हत्या के बाद दी जानी थी.

11 अप्रैल को किरन, रोहित, गौरव व सोनू जेल में जा कर अमरपाल व अनिल से मिले. आनंद व उस की पत्नी बबली की भी उन से मुलाकात हुई और हत्या का प्लान तैयार कर लिया गया. इस के बाद रोहित अपने साथियों के साथ किरन के संपर्क में रहने लगा.

हत्या के लिए किरन ही उन्हें हथियार देने वाली थी. हत्या किस तरह करनी है, इस की पूरी कमान अब बबली व किरन ने संभाल ली थी.

किरन अपने मायके मुजफ्फरनगर जिले के टयावा गांव में रह रही थी. अमरपाल के कई साथी, जो जेल से बाहर थे, किरन उन के संपर्क में थी. उन से बात कर के उस ने 3 तमंचों और कारतूसों का इंतजाम कर लिया था.

14 अप्रैल को रोहित, गौरव व सोनू बबली से उस के घर जा कर मिले. बबली ने उन्हें खर्च के लिए 10 हजार रुपए दिए. तीनों ने बबली व कौशल्या से सत्यपाल शर्मा के बारे में जानकारियां जुटा लीं.

इस के बाद किरन ने उन्हें 3 तमंचे व 17 कारतूस सत्यपाल शर्मा की हत्या के लिए दे कर ताकीद कर दिया कि वह किसी भी सूरत में बचना नहीं चाहिए.

इस के बाद कई दिनों तक उन्होंने रेकी कर के सत्यपाल शर्मा की पहचान के साथसाथ स्कूल आनेजाने का समय भी पता कर लिया.

23 अप्रैल को उन्होंने योजना को आखिरी रूप देने का फैसला किया. 22 अप्रैल की शाम को वे मोटरसाइकिल से बबली के घर पहुंच गए. किसी को शक न हो, इसलिए उन के सोने का इंतजाम एक ट्यूबवैल पर कर दिया गया. बबली और उस के बेटेबेटी ने उन के खानेपीने व सोने का भी इंतजाम किया था.

23 अप्रैल की अलसुबह वे वहां से निकल गए. उन्होंने सत्यपाल शर्मा को रास्ते में ही स्कूल जाते वक्त मारने की योजना बनाई. वे खिंदौड़ा वाले रास्ते की एक पुलिया पर खड़े हो गए. सत्यपाल शर्मा अपनी मोटरसाइकिल पर तेजी से आए और निकल गए, इसलिए उन का प्लान चौपट हो गया.

इस के बाद वे तीनों बदमाश इधरउधर टहलते रहे. बाद में उन्होंने स्कूल जा कर ही सत्यपाल शर्मा की हत्या करने का मन बनाया.

सत्यपाल शर्मा को मारने में गलती न हो, इसलिए सोनू व रोहित ने पहले उन से नाम पूछा और इस के बाद उन तीनों ने गोली मार कर उन की हत्या कर दी. शोरशराबा होने पर वे घबरा गए और मजबूरन उन्हें अलगअलग रास्ते से भागना पड़ा. सोनू भीड़ के गुस्से का शिकार हो गया.

पुलिस ने गौरव की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हुआ तमंचा व मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली. इस के साथ ही पुलिस ने मुकदमे में किरन, उस के हिस्ट्रीशीटर पति अमरपाल व दूसरे बदमाश अनिल का नाम भी बढ़ा दिया.

एसपी रवि शंकर छवि ने किरन व गौरव को मीडिया के सामने पेश कर के हत्याकांड का खुलासा किया. उन दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

बेबी को पति नहीं प्रेमी पसंद है

14 नवंबर, 2016 की शाम उत्तर प्रदेश के जिला इलाहाबाद के थाना नैनी के मोहल्ला करबला का रहने वाला मोहम्मद हुसैन रोज की अपेक्षा आज कुछ जल्दी ही घर आ गया था. हाथमुंह धोने के बाद वह चाय पी कर टीवी देखते हुए 2 साल की बेटी शैजल के साथ खेलने लगा तो पत्नी बेबी ने पास आ कर कहा, ‘‘लगता है, अब आप को कहीं नहीं जाना?’’

‘‘क्यों, कोई काम है क्या?’’

‘‘हां, अगर आप को कहीं नहीं जाना तो चल कर मेरे मोबाइल का चार्जर खरीदवा लाओ. कितने दिनों से खराब पड़ा है. दूसरे का चार्जर मांग कर कब तक काम चलेगा.’’

हुसैन बेबी की बात को टाल नहीं सका और फौरन तैयार हो गया. बेबी को भी साथ जाना था, इसलिए वह भी फटाफट तैयार हो गई. बेटी को उस ने सास के हवाले किया और पति के साथ बाजार के लिए चल पड़ी.

मोबाइल शौप उन के घर से महज 2 सौ मीटर की दूरी पर थी. जैसे ही दोनों दुकान के सामने पहुंचे, एक मोटरसाइकिल उन के सामने आ कर रुकी. मोटरसाइकिल सवार हेलमेट लगाए था, इसलिए कोई उसे पहचान नहीं सका. पतिपत्नी कुछ समझ पाते, उस के पहले ही उस ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और हुसैन के सीने पर रख कर गोली दाग दी.

गोली लगते ही हुसैन जमीन पर गिर पड़ा. शाम का समय था इसलिए बाजार में काफी भीड़भाड़ थी. पहले तो लोगों की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ. लेकिन जैसे ही लोगों को सच्चाई का पता चला, बाजार में अफरातफरी मच गई. धड़ाधड़ दुकानों के शटर गिरने लगे. इस अफरातफरी का फायदा उठा कर बदमाश भाग गया. कोई भी उसे पकड़ने की हिम्मत नहीं कर सका.

हुसैन का घर घटनास्थल के नजदीक ही था, इसलिए उसे गोली मारे जाने की सूचना जल्दी ही उस के घर तक पहुंच गई. खून से लथपथ जमीन पर पड़ा हुसैन तड़प रहा था. बेबी उस का सिर गोद में लिए रो रही थी.

सूचना मिलते ही आननफानन में हुसैन के घर वाले और पड़ोसी आ गए थे. घटना की सूचना पा कर थाना नैनी की पुलिस भी आ गई थी. चूंकि हुसैन की सांसें चल रही थीं, इसलिए पुलिस और घर वाले उसे उठा कर पास के एक नर्सिंगहोम में ले गए. उस की हालत काफी नाजुक थी, इसलिए नर्सिंगहोम के डाक्टरों ने उसे स्वरूपरानी नेहरू जिला चिकित्सालय ले जाने की सलाह दी. लेकिन हुसैन की हालत प्रति पल बिगड़ती ही जा रही थी.

पुलिस हुसैन को ले कर जिला अस्पताल ले गई लेकिन वहां पहुंचतेपहुंचते उस की मौत हो चुकी थी. वहां के डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया. हुसैन की मौत की जानकारी होते ही उस के घर में कोहराम मच गया. मां और पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. इस हत्या की सूचना पा कर एसपी (गंगापार) ए.के. राय, सीओ करछना बृजनंदन एवं नैनी समेत कई थानों की पुलिस आ गई थी.

हुसैन के बड़े भाई नफीस की तहरीर पर थाना नैनी पुलिस ने हुसैन की बीवी बेबी और उस के प्रेमी सल्लन मौलाना के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर बेबी को तुरंत हिरासत में ले लिया था.

अगले दिन पोस्टमार्टम के बाद हुसैन का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया था. उस के अंतिम संस्कार के बाद बेबी से पूछताछ शुरू हुई. पहले तो वह खुद को निर्दोष बताती रही, लेकिन जब पुलिस ने मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए सवालों की झड़ी लगाई तो वह असलियत छिपा नहीं सकी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने पति की हत्या उस के दोस्त सल्लन मौलाना से कराई थी. इस के बाद पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर 16 नवंबर को छिवकी जंक्शन से सल्लन को भी गिरफ्तार कर लिया था.

थाना नैनी के थानाप्रभारी इंसपेक्टर अवधेश प्रताप सिंह और अन्य पुलिस अधिकारियों की उपस्थिति में मृतक हुसैन की पत्नी बेबी बेगम और दोस्ती में दगा देने वाले सल्लन ने हुसैन की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी—

इलाहाबाद में यमुनापार स्थित थाना नैनी के मुरादपुर करबला निवासी मोहम्मद हुसैन का निकाह सन 2013 में कोरांव गांव की रहने वाली बेबी के साथ हुआ था. हुसैन औटो चलाता था. वह इतना कमा लेता था कि परिवार हंसीखुशी से रह रहा था. शादी के करीब साल भर बाद ही वह बेटी शैजल का बाप बन गया तो उस का परिवार भरापूरा हो गया.

हुसैन की दोस्ती मोहल्ला लोकपुर के रहने वाले सल्लन से थी, जो थाना नैनी का हिस्ट्रीशीटर था. मुरादपुर अरैल में उस की तूती बोलती थी. वह मौलाना के नाम से मशहूर था. सल्लन मोहम्मद हुसैन के घर भी आताजाता था. इसी आनेजाने में कब सल्लन और हुसैन की पत्नी बेबी की आंखें चार हो गईं, हुसैन को पता नहीं चला. क्योंकि वह तो अपने दोस्त सल्लन पर आंखें मूंद कर विश्वास करता था.

आंखें चार होने के बाद सल्लन अपने दोस्त हुसैन की अनुपस्थिति में भी उस के घर आनेजाने लगा. जैसे ही हुसैन औटो ले कर घर से निकलता, बेबी सल्लन को फोन कर के घर बुला लेती. इस के बाद दोनों ऐश करते. ऐसी बातें छिपी तो रहती नहीं, सल्लन और बेबी के संबंधों की जानकारी पहले मोहल्ले वालों को, उस के बाद हुसैन तथा उस के घर वालों को हो गई.

लेकिन सल्लन के डर से कोई सीधे उस से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. लेकिन जब मोहल्ले वाले हुसैन और उस के घर वालों पर तंज कसने लगे तो घर वालों ने हुसैन पर सल्लन से दोस्ती खत्म कर के उस के घर आनेजाने पर पाबंदी लगाने को कहा. उन का कहना था कि अगर इसी तरह चलता रहा तो बेबी नाक कटवा सकती है.

उस समय तो हुसैन कुछ नहीं बोला, लेकिन पत्नी की बेवफाई पर वह तड़प कर रह गया. दोस्त सल्लन की करतूत सुन कर उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इतना सब जानने के बाद भी उस ने सल्लन से कुछ नहीं कहा. इसलिए उस की और सल्लन की दोस्ती में कोई फर्क नहीं पड़ा. अलबत्ता हुसैन ने बेबी पर जरूर शिकंजा कसा. उस ने उसे समझाया कि वह जो कर रही है, वह ठीक नहीं है.

बेबी ने हुसैन को सफाई दी कि लोग उसे बिनावजह बदनाम कर रहे हैं. कभीकभार सल्लन उसे पूछने घर आ जाता है तो क्या वह उसे घर से भगा दे. बेबी ने सफाई भले दे दी, लेकिन वह समझ गई कि पति को उस के और सल्लन के संबंधों का पता चल गया है. यही नहीं, उसे यह भी पता चल गया था कि इस की शिकायत हुसैन के भाई हसीन ने की थी. इसलिए उस ने सल्लन से उसे सबक सिखाने के लिए कह दिया ताकि दोनों आराम से मौजमस्ती कर सकें.

हसीन ने जो किया था, वह सल्लन को बुरा तो बहुत लगा लेकिन न जाने क्यों वह शांत रहा. शायद ऐसा उस ने हुसैन की वजह से किया था. उस के बाद उस ने हुसैन के घर भी आनाजाना कम कर दिया था. लेकिन मौका मिलते ही बेबी से मिलने जरूर आ जाता था. इसी का नतीजा यह निकला कि एक दिन हुसैन दोपहर में घर आ गया और उस ने बेबी व सल्लन को रंगेहाथों पकड़ लिया.

सल्लन तो सिर झुका कर चला गया, लेकिन बेबी कहां जाती. पत्नी की कारगुजारी आंखों से देख कर हुसैन का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया. क्योंकि उस पर भरोसा कर के उस ने घर वालों तक की बात नहीं मानी थी. उस गुस्से में हुसैन ने बेबी की जम कर पिटाई कर दी. इस के बाद बेबी ने कान पकड़ कर माफी मांगी कि अब वह इस तरह की गलती दोबारा नहीं करेगी.

हुसैन ने पत्नी को माफ तो कर दिया, लेकिन अब उसे न तो पत्नी पर भरोसा रहा और न दोस्त सल्लन पर. इसलिए वह दोनों पर नजर रखने लगा. बेबी ने पति से माफी जरूर मांग ली थी, लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आई.

चोरीछिपे वह सल्लन से फोन पर बातें करती रहती. इस का नतीजा यह निकला कि सन 2016 के जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में वह सल्लन के साथ भाग गई. इस से मोहल्ले और रिश्तेदारी में काफी बदनामी हुई. इस के बाद दोनों के घर वालों के बड़ेबुजुर्गों के हस्तक्षेप के बाद हुसैन और उस के घर वाले बेबी को अपने घर ले आए.

दरअसल, बेबी के मायके वालों को उस की यह हरकत काफी बुरी लगी थी. वे नहीं चाहते थे कि बेबी अपना अच्छाखासा बसाबसाया घर बरबाद कर के एक गुंडे के साथ रहे. क्योंकि इस से उन की भी बदनामी हई थी. सब के दबाव में हुसैन बेबी को घर तो ले आया था लेकिन घर आने के बाद उस ने उस की जम कर धुनाई की थी.

महीने, 2 महीने तक तो सब ठीक रहा, लेकिन इस के बाद बेबी फिर पहले की तरह फोन पर अपने यार सल्लन से बातें करने लगी. शायद उसी के कहने पर सल्लन ने हुसैन के छोटे भाई पर गोली चलाई थी, जिस में वह बालबाल बच गया था. हसीन ने इस वारदात की रिपोर्ट दर्ज करानी चाही तो इस बार भी बड़ेबुजुर्गों ने बीच में पड़ कर दोनों पक्षों का थाने में समझौता करा दिया.

बेबी से सल्लन की जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही थी. यही हाल सल्लन का भी था. दोनों ही एकदूसरे के बिना रहने को तैयार नहीं थे. लेकिन बेबी ऐसा नाटक कर रही थी, जैसे हुसैन ही अब उस का सब कुछ है.

पत्नी में आए बदलाव से हुसैन पिछली बातें भूल कर उसे माफ कर चुका था. हुसैन की यह अच्छी सोच थी, जबकि बेबी कुछ और ही सोच रही थी. अब वह पति को राह का कांटा समझने लगी थी, जिसे वह जल्द से जल्द निकालने पर विचार कर रही थी. क्योंकि अब वह पूरी तरह सल्लन की होना चाहती थी.

मन में यह विचार आते ही एक दिन उस ने प्रेमी से बातें करतेकरते रोते हुए कहा, ‘‘सल्लन, अब मुझ से तुम्हारी जुदाई बरदाश्त नहीं होती. हुसैन मुझे छूता है तो लगता है कि मेरे शरीर पर कीड़े रेंग रहे हैं. अब तुम मुझे हुसैन से मुक्त कराओ या मुझे मार दो. ये दोहरी जिंदगी जीतेजीते मैं खुद तंग आ गई हूं.’’

बेबी की बातें सुन कर सल्लन तड़प उठा. उस ने कहा, ‘‘तुम्हें मरने की क्या जरूरत है. मरेंगे तुम्हारे दुश्मन. बेबी, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. तुम कह रही हो तो मैं जल्दी ही प्यार की राह में रोड़ा बन रहे हुसैन को ठिकाने लगाए देता हूं.’’

इस के बाद बेबी और सल्लन ने मोबाइल फोन पर ही हुसैन को ठिकाने लगाने की योजना बना डाली. उसी योजना के अनुसार, 14 नवंबर, 2016 की शाम बेबी हुसैन को चार्जर खरीदवाने के बहाने लोकपुर मोहल्ला स्थित मोबाइल शौप पर ले आई, जहां पहले से घात लगाए बैठे सल्लन मौलाना ने गोली मार कर हुसैन की हत्या कर दी.

सल्लन की निशानदेही पर थाना नैनी पुलिस ने 315 बोर का देसी पिस्तौल और एक जिंदा कारतूस बरामद कर लिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने सल्लन और बेबी को इलाहाबाद अदालत में पेश किया था, जहां से दोनों को जिला कारागार, नैनी भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक किसी की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस्म की मौज में मौत की छाया

13 जनवरी, 2016 की दोपहर के यही कोई साढ़े 3 बजे बंगलुरु के थाना सोलादेवनहल्ली पुलिस को सप्तगिरि अस्पताल से सूचना मिली कि कुछ देर पहले श्रुति गौड़ा नाम की एक महिला शहर के जानेमाने एडवोकेट अमित मूर्ति को अस्पताल में इलाज के लिए लाई थी. उन की छाती में गोलियां लगी थीं.

डाक्टरों ने उन्हें बचाने की काफी कोशिश की, लेकिन वह बच नहीं सके. उन्हें लाने वाली श्रुति पैसों और खून का इंतजाम करने गई थी लेकिन लौट कर नहीं आई. सूचना के अनुसार, मामला आपराधिक यानी हत्या का लग रहा था, इसलिए थाना पुलिस ने तुरंत मामले की डायरी तैयार की. पुलिस अस्पताल जाने की तैयारी कर ही रही थी कि तभी 2 लोग थाने में दाखिल हुए. उन में एक नौजवान था और दूसरा बुजुर्ग.

नौजवान बुजुर्ग के हाथों से रिवौल्वर छीनने की कोशिश कर रहा था. वह रिवौल्वर छीन पाता, उस के पहले ही बुजुर्ग ने रिवौल्वर थानाप्रभारी की मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘सर, आप मुझे गिरफ्तार कर लीजिए. मैं ने इस रिवौल्वर से एडवोकेट अमित मूर्ति की हत्या की है.’’

‘‘नहीं सर, यह सच नहीं है. एडवोकेट अमित मूर्ति की हत्या इन्होंने नहीं, मैं ने की है.’’ नौजवान ने कहा.

थानाप्रभारी बुजुर्ग को भी जानते थे और युवक को भी. बुजुर्ग का नाम गोपालकृष्ण गौड़ा था. नौजवान उन का बेटा राजेश गौड़ा था. गोपालकृष्ण को इलाके में कौन नहीं जानता था. वह समाजसेवक तो थे ही, एक राजनीतिक पार्टी से भी जुड़े थे. इसलिए थानाप्रभारी को एकबारगी विश्वास नहीं हुआ कि बापबेटे जिस हत्या की बात कर रहे हैं, ऐसा सचमुच कर सकते हैं.

लेकिन थोड़ी ही देर पहले ही उन्हें सप्तगिरि अस्पताल से एडवोकेट अमित मूर्ति की हत्या की सूचना मिल चुकी थी, इसलिए उन्होंने सवालिया नजरों से गोपालकृष्ण की ओर देखा तो उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘‘सर, मेरा बेटा झूठ बोल कर मुझे बचाना चाहता है. उस की हत्या मैं ने ही की है.’’

इस के बाद राजेश ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘सर, मेरे पिता निर्दोष हैं. एडवोकेट अमित मूर्ति को मैं ने ही गोलियां मारी हैं, क्योंकि वह निहायत ही गिरा हुआ आदमी था. उस के मेरी पत्नी श्रुति गौड़ा से अवैध संबंध थे.’’

राजेश के इतना कहते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला क्या था और एडवोकेट अमित मूर्ति की हत्या किस ने की है. फिर भी सच्चाई सामने लाने के लिए उन्होंने एक परीक्षा ली. उन्होंने कहा, ‘‘गुनहगार तो आप दोनों ही हैं, लेकिन असली गुनहगार कौन है, यह अभी साफ हो जाएगा.’’

अपनी बात कह कर उन्होंने मेज पर रखा रिवौल्वर गोपालकृष्ण गौड़ा के हाथों में देते हुए थोड़ी दूर पर रखी किसी चीज पर निशाना लगाने को कहा. जब वह उस चीज पर निशाना नहीं लगा सके तो साफ हो गया कि हत्या उन्होंने नहीं, उन के बेटे राजेश गौड़ा ने की थी. वह बेटे को बचाने के लिए झूठ बोल रहे थे. थानाप्रभारी ने दोनों को हिरासत में ले लिया और आगे की जांच के लिए सप्तगिरि अस्पताल जा पहुंचे.

अस्पताल में थानाप्रभारी ने डाक्टरों का बयान ले कर मृतक अमित मूर्ति की लाश कब्जे में लेने की काररवाई पूरी की. तभी उन्हें पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना मिली कि हिसार घाट स्थित तीनसितारा होटल राजबिस्टा की तीसरी मंजिल पर स्थित कमरा नंबर 301 में एक महिला ने आत्महत्या कर ली है.

थानाप्रभारी हत्या के एक मामले की जांच कर ही रहे थे, ऐसे में आत्महत्या की इस दूसरी घटना की सूचना पा कर वह थोड़ा खीझ से उठे. लेकिन वह कर ही क्या सकते थे. अपनी ड्यूटी तो उन्हें निभानी ही थी. उन्होंने फोन द्वारा इस घटना की जानकारी अधिकारियों को देने के साथ क्राइम टीम को भी बता दिया और तत्काल वहां की काररवाई निपटा कर होटल राजबिस्टा जा पहुंचे.

थानाप्रभारी के पहुंचने तक पुलिस अधिकारियों के साथ क्राइम टीम भी वहां पहुंच चुकी थी. रिसैप्शन पर पूछताछ में पता चला कि रजिस्टर में आत्महत्या करने वाली महिला का नाम श्रुति गौड़ा लिखा है. थानाप्रभारी श्रुति का नाम सुबह से कई बार सुन चुके थे, इसलिए उन्हें मृतका की शिनाख्त की जरूरत नहीं पड़ी.

वह समझ गए कि आत्महत्या करने वाली श्रुति गौड़ा कोई और नहीं, थोड़ी देर पहले हिरासत में लिए गए गोपालकृष्ण गौड़ा की बहू यानी राजेश गौड़ा की पत्नी है, जिस ने मृतक एडवोकेट अमित मूर्ति को सप्तगिरि अस्पताल में भरती कराया था.

थानाप्रभारी ने अधिकारियों की उपस्थिति में ही घटनास्थल की सारी काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने आ गए. अब तक मिली जानकारी से स्पष्ट हो गया था कि मामला प्रेमत्रिकोण का है. इस प्रेमत्रिकोण में क्या और कैसे हुआ, इस बात की जानकारी राजेश गौड़ा से पूछताछ के बाद ही पता चल सकता थी. थाने में राजेश गौड़ा से की गई पूछताछ में इस मामले में जो सच्चाई सामने आई, वह इस प्रकार थी—

बंगलुरु-कोयंबटूर नेशनल हाईवे के किनारे स्थित कगलीपुर गांव के रहने वाले थे 78 वर्षीय गोपालकृष्ण गौड़ा. सुखी और संपन्न होने के साथसाथ वह समाजसेवी भी थे. साथ ही वह एक राजनीतिक पार्टी से भी जुड़े थे. यही वजह थी इलाके में उन्हें हर कोई जानता था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा एक ही बेटा था राजेश गौड़ा.

राजेश गौड़ा स्वस्थसुंदर और पढ़ालिखा युवक था. पढ़ाई पूरी होते ही उसे एक जानीमानी रियल एस्टेट कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई थी. सम्मानित परिवार का होने और बढि़या नौकरी मिलने के बाद राजेश के लिए तमाम रिश्ते आने लगे थे. आखिरकार गोपालकृष्ण ने रामनगर रामोहल्ली के रहने वाले एक कारोबारी की बेटी श्रुति को पसंद कर राजेश से उस की शादी कर दी थी.

श्रुति भी राजेश से किसी मामले में कम नहीं थी. वह सुंदर तो थी ही, उस की नौकरी भी राजेश से अच्छी थी. वह सरकारी नौकरी में थी. उस का पद था पंचायत डेवलपमेंट अफसर का. उसे सरकारी गाड़ी और मकान मिला हुआ था. साथ ही घर का काम करने के लिए सरकारी नौकर भी. श्रुति जैसी पढ़ीलिखी और कमाऊ पत्नी पा कर राजेश खुश ही नहीं था, बल्कि गर्व भी महसूस कर रहा था.

राजेश की तरह उस के मांबाप भी श्रुति को बहुत मानते थे. धीरेधीरे 4 साल बीत गए. इस बीच श्रुति 2 बच्चों की मां बन गई. लेकिन यह भी सच है कि समय कभी किसी का नहीं हुआ. कब किस का समय बदल जाए, कोई नहीं जानता.

पंचायत डेवलपमेंट अफसर होने की वजह से श्रुति को कभीकभी क्षेत्र के लोगों के कामों के लिए पुलिस और वकीलों से भी मिलना होता था. उन्हीं वकीलों में एक अमित मूर्ति भी था. उसी से मिलतेमिलाते श्रुति के कदम बहक गए.

अमित के रौबदार चेहरे, स्वस्थ व सुंदर कदकाठी और व्यवहार ने श्रुति को काफी प्रभावित किया था. यही हाल एडवोकेट अमित मूर्ति का भी था. 2 बच्चों की मां होने के बावजूद श्रुति की सुंदरता पर वह मर मिटा था. इस में उस का दोष भी नहीं था, खूबसूरत श्रुति की बातचीत करने की अदा ही कुछ ऐसी थी कि किसी को भी मन भा जाए.

अमित के पिता बंगलुरु के जानेमाने वकील तो थे ही, बार एसोसिएशन के अध्यक्ष भी थे. अमित उन का एकलौता बेटा था. उस की शादी ही नहीं हो चुकी थी, बल्कि वह 3 साल के एक बेटे का पिता भी था. अमित पिता के साथ ही वकालत कर रहा था. पिता उसे अपनी ही तरह अच्छा वकील बनाना चाहते थे, शायद इसीलिए उन्होंने उसे पढ़ने के लिए अमेरिका भेजा था.

अमित और श्रुति दोनों के ही मनों में एकदूसरे के लिए चाहत पैदा हो चुकी थी, इसलिए वे अपनीअपनी गरिमा भूल कर एकदूसरे से मिलनेजुलने लगे थे. श्रुति को मोटरसाइकिल की सवारी बहुत पसंद थी, इसलिए अकसर वह अमित के साथ मोटरसाइकिल से लंबी ड्राइव पर निकल पड़ती थी. चोरीचोरी दोनों ही जिंदगी का लुत्फ उठा रहे थे.

लेकिन यह भी सच है कि कोई भी काम कितना ही छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन वह लोगों की नजरों में आ ही जाता है. राजेश गौड़ा को भी पत्नी की इस हरकत का पता चल गया. श्रुति की हकीकत जान कर राजेश के होश उड़ गए. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक सभ्य परिवार की शिक्षित बहू, जो 2 बच्चों की मां भी थी, इस तरह की हरकत कर सकती है.

चूंकि राजेश का परिवार समाज में प्रतिष्ठित था, इसलिए उस ने पत्नी को समझाना चाहा तों श्रुति ने लापरवाही से हंसते हुए कहा कि जैसा वह सोच रहा है, ऐसा कुछ भी नहीं है. अमित से सिर्फ उस की दोस्ती है और वह उस से काम के सिलसिले में मिलतीजुलती रहती है.

श्रुति ने भले ही सफाई दे दी थी, लेकिन राजेश को पत्नी की इस सफाई पर विश्वास नहीं हुआ था. इसलिए वह श्रुति पर नजर रखने लगा था. इस का नतीजा यह निकला कि एक दिन उस ने श्रुति को अमित मूर्ति के साथ एक होटल में बैठी पकड़ लिया. राजेश ने उसे जलील करते हुए कहा, ‘‘अगर तुम्हें अमित इतना ही पसंद है तो तुम इस के साथ चली क्यों नहीं जाती.’’

‘‘ठीक है, अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो मैं तुम्हें तलाक दिए देती हूं.’’ श्रुति ने कहा और अमित के साथ होटल से बाहर निकल गई.

श्रुति की यह बात सुन कर राजेश तिलमिला उठा. उसे श्रुति से ऐसी उम्मीद बिलकुल नहीं थी. यह बात उस ने अपने घर वालों को बताई तो सभी परेशान हो उठे. जब इस का पता श्रुति के मातापिता को चला तो उन्होंने उस से बात की और अमित से संबंध खत्म करने का दबाव डाला. आखिर मांबाप के दबाव में श्रुति ने अपने मोबाइल से अमित का नंबर डिलीट करते हुए वादा किया कि अब वह अमित से कोई संबंध नहीं रखेगी.

मांबाप के दबाव में श्रुति ने अमित से न मिलने का वादा तो कर लिया, लेकिन वह मांबाप से किया वादा निभा नहीं सकी. किसी को संदेह न हो, इस के मद्देनजर श्रुति ने अमित मूर्ति से मिलनेजुलने का स्थान और समय बदल दिया. अब वे ऐसी जगह मिलते थे, जहां कोई नहीं जाता था. शहर से दूर निर्जन स्थानों पर जा कर दोनों निश्चिंत हो जाते थे.

लेकिन राजेश निश्चिंत नहीं था. वह श्रुति पर नजरें जमाए था. श्रुति अकसर घर से जल्दी निकल जाती थी तो देर से लौट कर आती थी. पूछा जाता तो वह कह देती कि औफिस में काम ज्यादा था, इसलिए देर हो गई.

इसी बीच राजेश ने श्रुति के मोबाइल पर अमित का कोई संदेश पढ़ लिया. उस ने जब श्रुति से उस संदेश के बारे में पूछा तो उस ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि अमित ने उसे परेशान करने के लिए संदेश भेजा है.

चूंकि राजेश को श्रुति की बातों पर विश्वास नहीं था, इसलिए उस ने उस पर नजर रखने के लिए जनवरी, 2017 के पहले सप्ताह में उस की कार में चुपके से जीपीएस लगवा कर उसे अपने मोबाइल से कनेक्ट करवा लिया.

13 जनवरी, 2017 को श्रुति 1 बजे के करीब राजेश से यह कह कर घर से निकली कि वह एक जरूरी मीटिंग के लिए औफिस जा रही है, वापस आने में देर हो सकती है.

श्रुति के जाने के बाद राजेश ने मोबाइल में उस की लोकेशन देखी तो पता चला कि उस की कार औफिस की ओर जाने के बजाय रिंग रोड की ओर जा रही है. इस से राजेश का खून खौल उठा. उस ने अपने ड्राइवर कुमार से कार निकलवाई और श्रुति का खेल खत्म करने के लिए जाने लगा. उस के पिता गोपालकृष्ण गौड़ा भी यह कहते हुए कार में बैठ गए कि उन्हें बाजार से मकर संक्रांति की पूजा के लिए कुछ सामान खरीदना है.

श्रुति की कार की लोकेशन आचार्य पीयूष कालेज के करीब मिली थी, इसलिए राजेश ने ड्राइवर से कार पीयूष कालेज की ओर ले चलने को कहा. राजेश की कार कालेज के करीब पहुंची तो उसे सुनसान जगह पर श्रुति की कार खड़ी दिखाई दे गई. राजेश ने अपनी कार रुकवाई और श्रुति की कार की ओर चल पड़ा.

कार से निकलते ही उस ने रिवौल्वर निकाल ली थी, जिसे गोपालकृष्ण गौड़ा ने देख लिया था. उन्हें किसी अनहोनी की आशंका हुई, इसलिए वह ड्राइवर कुमार के साथ राजेश की ओर दौड़े. उन के पहुंचने से पहले ही राजेश श्रुति की कार के पास पहुंच गया था. कार में श्रुति के साथ अमित को देख कर वह आपा खो बैठा और अमित के सीने को निशाना बना कर 2 गोलियां दाग दीं.

वह श्रुति पर भी गोली चलाना चाहता था, लेकिन गोपालकृष्ण और ड्राइवर ने उसे पकड़ लिया. पिता ने उस के हाथ से रिवौल्वर छीन कर श्रुति से कहा कि वह घायल अमित को तुरंत अस्पताल ले जाए. इस के बाद उन्होंने ड्राइवर से थाने चलने को कहा.

यह संयोग ही था कि श्रुति राजेश के हाथों से मरतेमरते बच गई थी. लेकिन दुर्भाग्य ने उस का पीछा नहीं छोड़ा. डरीसहमी श्रुति ने घायल अमित को साथ ले जा कर सप्तगिरि अस्पताल में भरती कराया. अस्पताल से वह बाहर निकली तो उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? क्योंकि अब वह किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रह गई थी.

आखिर उस ने एक खतरनाक फैसला ले लिया और अपने मातापिता को इस घटना की सूचना दे कर वह होटल राजबिस्टा पहुंची. वहां अपना पैनकार्ड दिखा कर उस ने कमरा बुक कराया, जिस में जा कर उस ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली. इस तरह एक प्रेमकहानी का अंत हो गया.

14 जनवरी, 2017 को सोलादेवनहल्ली पुलिस ने गोपालकृष्ण गौड़ा और राजेश गौड़ा को अदालत में पेश किया, जहां से गोपालकृष्ण गौड़ा को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. जबकि सबूत जुटाने के लिए पुलिस ने राजेश गौड़ा को 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने पर राजेश को दोबारा अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

मोहब्बत पर भारी पड़े अरमान

श्वेता पांडेय

शाम सुरमई हो चली थी. थकाथका सा निढाल सूरज धीरेधीरे पश्चिम दिशा में डूब रहा था. उस की सिंदूरी किरणें वातावरण में फैली हुई थीं. तहसील बिलाईगढ़ के एक गांव के बाहर अमराई में 2 युवा जोड़े प्रेमालाप में मशगूल थे. आम के दरख्तों की टहनियों में बौर निकल आए थे. टहनियों के बीच कंचे के बराबर अमियां हवा के झोंके से झूम उठा करती थीं. कोयलों की कूक और अमियों की सुगंध से नंदिनी खगेश्वर के प्यार में बढ़ोत्तरी ही हुई थी.

नंदिनी खगेश्वर की बांहों से खुद को आजाद करती हुई हांफ उठी थी. खुद को संभालते हुए और अपनी अनियंत्रित सांसों को काबू करती हुई फुसफुसा कर खगेश्वर प्रसाद से बोली, ‘‘तोषू (खगेश्वर को वह प्यार से तोषू कहती थी), बहुत देर हो गई है, अब मुझे जाने दो. घर वालों को कहीं शक न हो जाए. तुम्हें पता नहीं कि मैं दिशामैदान के बहाने बड़ी मुश्किल से निकल पाई हूं.

‘‘जब भी दिशामैदान की बात आती है, घर वाले कहा करते हैं कि घर में शौचालय स्नानागार की पूरी सुविधा है, इस के बावजूद भी तुम नहाने तालाब पर और दिशामैदान के लिए बाहर जाती हो. ऐसा क्यों करती हो. बस, यही कहती हूं कि घर में रहेरहे हाथपैरों की वर्जिश नहीं हो पाती, इसलिए इसी बहाने बाहर हो आया करती हूं. अब तुम बताओ कि हमेशा तो मैं ऐसा कर नहीं पाऊंगी.’’

खगेश्वर उर्फ तोषू ने फिर से नंदिनी को अपनी बांहों में लेना चाहा, लेकिन नंदिनी खुद को बचाती हुई बोली, ‘‘किसी रोज हम पकड़े जाएंगे, मुझे हमेशा अनजाना सा डर लगा रहता है. आखिर हम कब तक ऐसे ही लुकछिप कर मिला करेंगे?’’

‘‘कुछ महीनों की बात है, मैं ने कुछ रुपए इकट्ठे कर रखे हैं. कुछ रुपए और हो जाएं तो यह लुकछिप कर मिलने वाली बात ही नहीं रहेगी. हम यहां से निकल कर कहीं भी जाएंगे तो सब से पहले सिर ढकने को छत चाहिए. 2-4 महीने के खर्च के लिए रुपए भी चाहिए. इस के लिए मैं कोशिश कर रहा हूं. रायपुर के जयहिंद चौक शीतला मंदिर के पीछे लोधी पारा में मैं ने सभी सुविधाओं वाला एक घर देख रखा है.’’ तोषू गंभीर होता हुआ बोला.

नंदिनी जरा नागवारी के अंदाज में बोली, ‘‘महीनों से सुन रही हूं घर रुपए, घर रुपए. तुम मुझे यहां से ले चलो, दोनों इकट्ठे मिल कर कमाएंगे, 12वीं तक मैं भी तो पढ़ी हूं. 12-15 हजार रुपए मैं खुद कमा सकती हूं. 10-12 हजार तुम कमा लोगे. 20-25 हजार में दालरोटी तो चल ही जाएगी.’’

तोषू बोला, ‘‘मेरा वादा है, अगले महीने की 25 तारीख को हम दोनों यहां से निकल चलेंगे. लेकिन मेरी शर्त है, मैं अपने वादे पर तभी अमल करूंगा जब तुम मुझे…’’ कहते हुए तोषू ने निश्चिंत खड़ी नंदिनी के मुखड़े को हथेलियों के बीच लेते हुए भरेभरे होंठों का चुंबन लिया, गहरा और चटख चुंबन.

‘‘अब मैं तुम से 25 तारीख को ही मिलूंगी,’’ नंदिनी मीठी झिड़की लगाती हुई बोली.

‘‘25 तारीख आने में अभी एक महीना बाकी है मेरी जान, तब तक मैं कैसे गुजारूंगा?’’ तोषू तुरंत मनुहार करते हुए बोला.

‘‘ये तुम जानो, मैं चली. याद रखना, 25 यानी 25.’’

फिर नंदिनी वहां रुकी नहीं. तोषू पीछे से पुकारता रह गया, ‘‘सुनो तो…सुनो नंदिनी.’’

नंदिनी को रुकना नहीं था, वह वहां रुकी नहीं. इस के बाद नंदिनी ने किसी भी बहाने अब घर से निकलना बंद कर दिया.

नंदिनी कोसरिया और खगेश्वर कोसरिया उर्फ तोषू छत्तीसगढ़ के जिला बलौदाबाजार के कस्बा बिलाईगढ़ के रहने वाले थे. दोनों ही एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. लेकिन मुलाकात न हो पाने की वजह से तोषू अधजले परवाने की तरह छटपटाने लगा.

नंदिनी भी अंदर ही अंदर छटपटाती रही लेकिन तोषू से मिलना उचित नहीं समझा. ऐसा उस ने इसलिए किया कि यदि वह तोषू से मिल लेती तो तोषू फिर अपने वादे पर कायम नहीं रह पाता. प्यार में तड़प जरूरी थी. भले ही वह तोषू से मिलने के लिए मन ही मन व्याकुल हुए जा रही थी.

नंदिनी से मुलाकात करने के लिए उस ने बहुतेरे प्रयास किए लेकिन असफल ही रहा. तोषू अपने घर के बरामदे में उदास बैठा हुआ था कि एक 10-12 साल की एक लड़की दौड़ती हुई आई और तोषू के हाथ में एक कागज थमा गई. उसी पैर लौटने हुए वह बोली, ‘‘नंदिनी दीदी ने तुम्हें देने को कहा है.’’

फिर वह अबोध लड़की वहां ठहरी नहीं, कुलांचे भरती हुई वहां से निकल गई. तोषू वापस लौट कर बरामदे में बैठा और तह किए हुए उस कागज की परतें खोलीं. उस खत में कुछ ही लाइनें लिखी थीं.

वह इस राइटिंग को बखूबी पहचानता था. वह उस की प्रेमिका नंदिनी की थी. लिखा था, ‘तोषू जान, जुदाई के ये पल आत्मा को लहूलुहान कर रहे हैं. मुझे अहसास है कि इस पीड़ा से तुम भी घायल जरूर हो गए होगे. 23 तारीख को वहीं मुलाकात होगी. उम्मीद है भविष्य में साथ रह सकें, तैयारी तुम्हारी ओर से पूरी हो गई होगी. मैं ने अभी से पैकिंग करनी शुरू कर दी है. बस, मुझे तुम्हारे पैरों के निशां पर कदम बढ़ाना है. तुम्हारी नंदिनी.’

तोषू की आंखों में आंसू झिलमिला उठे. खत में उसे नंदिनी का चेहरा उभरता दिख रहा था. उस ने कई बार खत को उस रात पढ़ा. नंदिनी के शब्दों पर उस ने दीवानों की तरह चुंबन लगाए. 2 दिन बचे थे. नंदिनी के दिए गए समय को आने में 2 दिन उस ने जैसे अंगारों पर लोट कर समय गुजारा.

इस बीच उसे अपनी शेव करने का खयाल भी नहीं आया. पहले से मुकर्रर मिलने की जगह पर तोषू पहुंच कर प्रेमिका का इंतजार करने लगा. उस ओर टकटकी लगाए हुए निहार रहा था, जिस रास्ते से नंदिनी को वहां पहुंचना था.

शाम को धुंधलका काबिज हो चुका था. कोहरे ने बिलाईगढ़ कस्बे को अपने में समेटने का भरसक प्रयास किया था. शाम होने के पहले ही शाम का आभास वातावरण में व्याप्त था.

उस ने देखा, कोहरे की धुंध को चीरती हुई कोई चली आ रही है. कदकाठी और चलने के अंदाज ने उसे इस बात का अहसास करा दिया कि आने वाली उस की जाने जिगर, जाने तमन्ना नंदिनी है.

तोषू ने कोहरे में ही हाथ हिला कर अपनी मौजूदगी का भान नंदिनी को करवाने का प्रयास किया. नंदिनी दूर से ही तोषू को पहचान चुकी थी. पहचानती भी क्यों नहीं, 7 महीने से दोनों प्रेम के झूले में जो झूल रहे थे.

नंदिनी तोषू के करीब पहुंची. दौड़ कर नंदिनी अपने तोषू के कंधे से जा लगी. सिसक जो पड़ी नंदिनी. अनायास तोषू के हाथ गर्दिश करने लगे.

सुबकती हुई नंदिनी बोली, ‘‘कैसे मैं ने इतने दिन गुजारे तोषू, अब मैं तुम से एक पल को अलग नहीं रहूंगी. तुम्हारी कसम तोषू, जुदाई के पल कितने गहन और भयावह हुआ करते हैं, सोचने से ही कलेजा मुंह को आ जाता है.’’

अपने से दूर करता हुआ भर्राई आवाज में तोषू बोला, ‘‘मेरी भी स्थिति तुम से अलग नहीं रही है. जुदाई के गम को किसी तरह बरदाश्त करता रहा हूं.’’

दोनों वहीं एक पत्थर की आड़ ले कर बैठ गए. उन दोनों में भविष्य को ले कर बातचीत होने लगी. बातचीत में यह बात उन लोगों के बीच मुख्य रही कि कब, कहां और कितने बजे मिलना है.

उस दिन लुकाछिपी का उन का यह मिलन आखिरी था. रात के चौथे पहर में नंदिनी घर छोड़ कर निकल गई. अलसुबह आवागमन का साधन तो था नहीं, पहले से ही खगेश्वर ने अपने दोस्त से एक बाइक की व्यवस्था कर ली थी.

बाइक पर सवार हो कर वह बिलाईगढ़ से बलौदा बाजार पहुंचा. बाइक को वह कहां खड़ी करेगा, कहां रखेगा, बाइक की चाबी किस को सौंपेगा, यह सब उस ने अपने दोस्त को पहले से ही बता दिया था.

बलौदा बाजार से सुबहसुबह बस पकड़ कर वे दोनों रायपुर पहुंचे. यहां पर खगेश्वर उर्फ तोषू ने पहले से ही लोधीपारा शीतला मंदिर के पास किराए का कमरा ले रखा था. लिहाजा खगेश्वर को नंदिनी को यहांवहां ले कर भटकना नहीं पड़ा.

मकान मालिक अरुण जहोल को उस ने नंदिनी का परिचय अपनी पत्नी के रूप में कराया. पहचान के लिए उस ने मकान मालिक को आधार कार्ड दिखाया. संतुष्ट होने के बाद अरुण जहोल ने किराए पर उन दोनों को कमरे की चाबी दे दी.

हफ्ते 15 दिन तक दोनों भयभीत रहे. दोनों के घर वालों को यह समझते देर नहीं लगी कि दोनों गांव छोड़ कर चल गए हैं. थोड़ा होहल्ला हुआ गांव में.

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चूंकि दोनों एक ही जाति के थे, इसलिए यह मामला विशेष तूल नहीं पकड़ा. दोनों के घर वालों को यह समझने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई कि नंदिनी खगेश्वर के साथ भाग गई है.

नंदिनी के पिता ने बेटी के गायब होने की थाने में रिपोर्ट तक नहीं लिखाई. जो होना था, वह हो चुका था. सांप निकल चुका था. लकीर पीटने से हालात सुधर नहीं सकते थे. लिहाजा दोनों पक्षों ने खामोशी से समझौता कर लिया था.

इधर दूसरी ओर खगेश्वर कब तक घर में बैठा रहता. उस ने एक कपड़े की दुकान में नौकरी कर ली. खगेश्वर जब काम पर चला जाता, तब नंदिनी घर में अकेली बैठी बोर होती.

खगेश्वर से उस ने एक बार कहा, ‘‘तुम्हारे काम पर चले जाने के बाद घर में मैं अकेली बोर हो जाया करती हूं. अगर तुम कहो तो मैं भी कहीं कुछ काम कर लूं. इस से आमदनी तो बढ़ेगी, साथ ही मेरी बोरियत भी दूर हो जाएगी.’’

पहले तो खगेश्वर ने उसे नौकरी के लिए मना किया लेकिन नंदिनी के काफी मनुहार और बोरियत का हवाला देने पर किसी तरह से वह राजी हो गया.

इस दिशा में नंदिनी को बहुत ज्यादा भटकना नहीं पड़ा. उसे सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिल गई. आय का जरिया भी बढ़ गया और नंदिनी की बोरियत भी दूर हो गई.

सब कुछ अच्छाअच्छा गुजरने लगा. दोनों को साथ रहते हुए एक साल गुजरने को था. दोनों के घर वाले भी कभीकभी उन से मिलने लोधीपारा आनेजाने लगे थे. उन के घर वालों को यह देख कर संतोष मिलता था कि चलो दोनों कमाखा रहे हैं, सुखी हैं.

दोनों के घरवालों को किसी तरह का किसी से कोई गिलाशिकवा नहीं रह गया था. जब सब कुछ अच्छा गुजरने लगा तो एक नया ही फितूर नंदिनी पर काबिज होता चला गया.

जब भी वह टीवी पर शादी से संबंधित रस्मोरिवाज होते हुए देखती तो उसे खुद से मलाल होने लगता था. अकसर वह खगेश्वर उर्फ तोषू से इस बात का जिक्र कर बैठती कि काश! हमारी भी ऐसी ही धूमधड़ाके से शादी हुई होती.

तुम बारात ले कर आते, मंडप सजा होता, सहेलियों के बीच मैं छिपी होती. एक रस्म तुम्हें मालूम है तोषू, जिस पत्तल पर वधू खाना खाती है, उसी पत्तल को लपेट कर छिप कर उस से वर को मारती भी है.

‘‘जब होना था, तब तो हुआ नहीं और अब लाख चाहने के बावजूद यह संभव नहीं है. ऐसी बातें सोच कर क्यों अपना दिल दुखाती हो और मेरा मूड भी खराब करती हो.’’ खगेश्वर ने समझाया.

दोनों के बीच और कई तरह के मुद्दों को ले कर अकसर तकरार होने लगती थी. मोहल्ले के लोग समझाबुझा कर दोनों को शांत करा दिया करते थे. अकसर उन दोनों में इन्हीं बातों को ले कर जबतब कलह हो जाती थी.

एक रोज खगेश्वर अपने दोस्त की शादी में गया हुआ था. अपने मोबाइल पर उस ने शादी के रस्मोरिवाजों को शूट किया. शूट किए हुए मोबाइल की वीडियो उस ने नंदिनी को दिखाईं तो उस के सोए अरमान फिर जाग उठे. उसी मुद्दे को ले कर वह तकरार करने लगी.

उस ने उलाहना देते हुए खगेश्वर से कहा, ‘‘लोग अपनी माशूका के लिए चांदसितारे तोड़ लाने का माद्दा रखते हैं और तुम हो कि मेरी एक इच्छा भी पूरी नहीं कर सकते.

‘‘सुनो, मैं आसमां को बांहों में समेटने को नहीं कह रही हूं. सिर्फ इतना चाहती हूं कि हम दोनों एक बार रस्मोरिवाजों के मुताबिक शादी कर लेते. अच्छी सी पार्टी देते. ढेर सारे मेहमान आते. कितना अच्छा लगता.’’

तोषू दिन भर का थकामांदा आया था. इस वक्त दोनों खाना खा कर बैड पर लेटे हुए बातें कर रहे थे, ‘‘यार, तुम समझती नहीं हो. अब न तुम माशूका रह गई और न मैं आशिक. हम दोनों का रिश्ता पतिपत्नी का हो चुका है.’’

‘‘वक्त गुजर गया, इन सब बातों के लिए. कैसी बातें कर रहे हो. कौन सा हम लोग बुड्ढे हो गए हैं या हमारे 4-6 बच्चे हो गए हैं. सच्ची कह रही हूं तोषू, मेरी यह इच्छा पूरी कर दो.’’ वह मनुहार से बोली, ‘‘2 ही साल तो हुए हैं हमें पतिपत्नी बने हुए.’’

‘‘यार, मेरा मूड खराब मत किया करो.’’

‘‘मैं कहां खराब कर रही हूं. पैसों को ले कर तुम चिंता मत करो, मेरे पास पैसे हैं. बस तुम हां कह दो.’’

माहौल तल्ख होता चला गया. तूतूमैंमैं पर दोनों उतर आए. दोनों के बीच तकरार इतनी बढ़ गई कि हालात बेकाबू होते चले गए.

बात 2 मार्च, 2022 की है. जिले के थाना पंडरी के थानाप्रभारी उमाशंकर राठौर के पास एक युवक बदहवास सा तेजी के साथ थाने में आया. ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उस युवक को रोकना चाहा लेकिन वह रुका नहीं.

युवक सीधे थानाप्रभारी उमाशंकर राठौर के सामने जा कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम खगेश्वर कोसरिया है. मैं ने अपनी पत्नी नंदिनी को मार डाला. मैं बीवी का हत्यारा हूं. उस की लाश कमरे में पड़ी है.’’

उस की बात सुन कर थानाप्रभारी चौंक गए. उन्होंने उस से पूरी बात विस्तार से बताने को कहा. इस के बाद खगेश्वर उर्फ तोषू सब कुछ सिलसिलेवार बताता चला गया.

पूरी बात सुनने के बाद राठौर ने यह बात एसपी प्रशांत अग्रवाल एएसपी तारकेश्वर पटेल को भी बता दी. उन के निर्देश पर खगेश्वर को गिरफ्तार कर लिया.

इस के बाद पुलिस खगेश्वर को साथ ले कर उस के कमरे पर पहुंची तो वहां नंदिनी की लाश पड़ी थी. खगेश्वर ने बताया कि उस ने नंदिनी का गला घोटा था. सामाजिक रीतिरिवाज से शादी करने को ले कर उस ने उस का जीना हराम कर दिया था, इसलिए गुस्से में उसे मार डाला.

पुलिस ने मौके की काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी और खगेश्वर उर्फ तोषू से पूछताछ के बाद उसे हत्या के  आरोप में 2 मार्च, 2022 को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

बाप का इश्क बेटी को ले डूबा – भाग 3

7 सालों का समय कुछ कम नहीं होता. संतोष और अनीता के संबंधों की सारी जानकारी उस के परिवार वालों को हो चुकी थी. वे लोग अब उस पर शादी करने का दबाव बनाने लगे थे. अनीता भी अब और ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती थी.

वह भी अपने और संतोष के प्यार को रिश्ते का नाम देने के लिए दबाव बनाए हुए थी. वह उस से शादी कर के अपना एक घर बनाना चाहती थी. इस से संतोष की परेशानी बढ़ गई थी.

संतोष शादीशुदा और एक बच्ची का बाप था. वह अनीता की वजह से अपने परिवार की शांति भंग नहीं करना चाहता था. लेकिन जब पानी संतोष के गले तक आ गया तो मजबूरन उसे अनीता के सामने अपना मुंह खोलना पड़ा. अनीता को एक अच्छे माहौल में ले जा कर उस ने अपने शादीशुदा होने की बात बता दी.

उस ने कहा कि उस की शादी गांव और जाति के रस्मोरिवाज से बचपन में ही हो गई थी और अब वह एक बच्ची का पिता भी है.

ऐसे में अगर वह दूसरी शादी करेगा तो उस की ब्याहता का क्या होगा. उस ने साफ कह दिया कि अब वह दूसरी शादी नहीं कर सकता. लेकिन वह चाहे तो उस के साथ जीवन भर रह सकती है. उसे किसी भी तरह की परेशानी नहीं होने देगा.

यह जान कर अनीता सन्न रह गई. उसे लगा कि उस के ऊपर कोई पहाड़ गिर पड़ा. उसे लगा कि मानो उस का अस्तित्व ही खत्म हो गया. कुछ समय के लिए तो वह एक मूर्ति जैसी बन गई, लेकिन जब होश आया तो वह पागल सी हो गई थी. उस दिन अनीता और संतोष के बीच काफी कहासुनी और लड़ाईझगड़ा हुआ था.

संतोष की इस बात से अनीता काफी आहत हुई थी. उस के दिल में संतोष के प्रति नफरत हो गई. जाहिर सी बात है कोई भी लड़की तलाकशुदा या विधवा हो कर रह सकती है, लेकिन रखैल बन कर रहना पसंद नहीं करेगी.

काफी सोचनेविचारने के बाद अनीता ने यह तय किया कि बच्चे और प्यार का गम क्या होता है, अब वह संतोष को समझाएगी. जिस तरह से उस ने उस के 2-2 बच्चों का खून किया था, उस का बदला वह उसी तरह से चुकाएगी. तब उसे यह एहसास होगा कि बच्चा चाहे गर्भ में हो या गर्भ से बाहर, उसे खोने में कितना दर्द होता है.

अनीता ने संतोष की बेटी अंजलि के प्रति एक खतरनाक योजना बना कर उस के घर और स्कूल का पता लगा लिया और उस की अच्छी तरह रेकी की. पहले उस की योजना अंजलि को स्कूल से उठाने की थी, लेकिन स्कूल की चाकचौबंद सुरक्षा और अकसर मां के साथ होने के कारण उस का प्लान सफल नहीं हो सका.

इस के बाद उस ने संतोष के घर के पास से ही अंजलि को उठा लिया था. अंजलि को उठाने के पहले वह उस जगह पर आ कर बैठ जाती थी, जहां अंजलि बच्चों के साथ खेला करती थी.

मौका देख कर वह अंजलि को अपने पास बुला कर टौफी और चौकलेट दिया करती थी. 2-4 दिनों में जब अंजलि उस के काफी करीब आ गई तो वह उसे अपनी मीठीमीठी बातों में बहला कर अपने साथ ले कर चली गई.

अंजलि को पहले वह लोकमान्य तिलक स्कूल तक पैदल ले कर आई. फिर आटोरिक्शा से नालासोपारा रेलवे स्टेशन ले गई. वारदात को अंजाम देने के लिए उस ने अपने पास चाकू रख लिया था.

नालासोपारा स्टेशन से बोरीवली स्टेशन और फिर वहां से एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ कर वह गुजरात के नवसारी रेलवे स्टेशन पहुंची. वहां मौका देख कर वह अंजलि को बाथरूम में ले गई और उस 5 वर्षीय बच्ची का गला काट कर हत्या कर दी.

अपने इंतकाम का बदला लेने के बाद अनीता सुबह की गाड़ी से अपने घर लौट आई थी. वह निश्चिंत थी कि पुलिस उस के पास तक नहीं पहुंच सकेगी. लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई.

अनीता वाघेला से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 302, 362 के तहत मुकदमा दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे तलोजा जेल भेज दिया गया.

अंजलि सरोज की हत्या की कहानी जब लोगों के सामने आई तो उस के परिवार वालों को तो क्या पूरे इलाके के लोगों को एक धक्का सा लगा. एक मासूम बच्ची अपने पिता के इश्क की भेंट चढ़ गई थी.

कथा लिखे जाने तक अनीता वाघेला जेल में बंद थी. आगे की जांच पीआई के.डी. कोल्हे कर रहे थे.

सिरकटी लाश ने पुलिस को कर दिया हैरान – भाग 4

‘‘मैं अकेली लड़की क्या कर सकती थी? डर के मारे मेरे मुंह से आवाज तक नहीं निकली. लेकिन अब मैं उसे जिंदा नहीं रहने दूंगी. बस, तुम्हें मेरा साथ देना होगा.’’ यवनिका ने गुस्से में कहा.

इस के बाद दोनों ने जग्गी मेहता की हत्या की योजना बनाने के साथ शामला और सुनील से बात की. चारों ने इस मुद्दे पर एक अनूठी योजना तैयार की. उसी योजना के तहत लोहे का एक बड़ा ट्रंक खाली कर लिया गया. करंट लगा कर मारने के लिए बिजली के तार की भी व्यवस्था कर ली गई. लेकिन यवनिका को यह योजना पसंद नहीं आई.

इस के बाद खूब सोचसमझ कर जो योजना तैयार की गई, उस के अनुसार 14 जुलाई की दोपहर यवनिका ने जग्गी के घर फोन कर के बैंक का नंबर ले लिया. इस के बाद बैंक फोन किया. जिस आदमी ने फोन उठाया, उस ने लड़की की आवाज सुन कर कहा, ‘‘जग्गी का रोज का यही हाल है, कभी सविता का फोन आता है तो कभी किसी और का.’’

इस के बाद उस ने जग्गी मेहता को आवाज लगाई. जग्गी मेहता ने पहले यवनिका के पिता का हालचाल पूछा. इस के बाद जीरकपुर वाली घटना का जिक्र कर के उसे उकसाने की कोशिश करने लगा. इस के बाद यवनिका ने उसे रात में अपने घर आने को कह दिया. जग्गी ने किसी होटल में चलने को कहा तो यवनिका ने घर में ही रात बिताने को कहा.

उसी रात साढ़े 10 बजे जग्गी मेहता ने यवनिका को फोन किया. एक बार फिर उस ने रात कहीं बाहर बिताने को कहा तो यवनिका ने साफसाफ कहा, ‘‘आना हो तो घर आ जाओ. मैं बाहर नहीं जाऊंगी. घर में कोई खतरा नहीं है. घर में शामला और मैं ही हूं.’’

‘‘ठीक है. मैं रात 12, साढ़े 12 बजे के बीच आ जाऊंगा.’’

इस के बाद योजना के अनुसार, सुनील बाजार से शराब ले आया. अमित ने नशे की गोलियों का इंतजाम किया. जिस कमरे में जग्गी मेहता को जाना था, वहां पड़े बैड पर सुनील चादर ओढ़ कर लेट गया. घर का दरवाजा खुला छोड़ दिया गया.

एकदम सही समय पर जग्गी पहुंच गया. अमित रसोई में छिप गया. शामला और यवनिका जग्गी को प्यार से अंदर ले आईं. जग्गी अपने भाग्य पर इतराते हुए शहंशाहों की तरह आया. कमरे में पहुंच कर बैड पर किसी को लेटा देख कर पूछा, ‘‘यह कौन लेटा है?’’

‘‘दादी अम्मा हैं. अभी कुछ देर पहले अचानक आ गईं. लेकिन तुम्हें घबराने की जरूरत नहीं है. अफीम खा कर आराम से पड़ी रहती हैं. फिर तुम जरा धीरे बोलना.’’ यवनिका ने कहा.

इस के बाद वहीं से सुरजीत सिंह को फोन किया. फोन करने के बाद यवनिका ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, उधर दीवान पर चलो. अगर कपड़े उतारना चाहो तो उतार लो.’’

जग्गी अपनी जगह से उठ कर दीवान पर इत्मीनान से बैठ गया. शराब की बोतल पहले ही वहां रखी गई थी. बोतल देख कर उस ने यवनिका से गिलास लाने को कहा. नशे की गोलियां पीस कर यवनिका ने पहले से ही स्टील के गिलास में डाल रखी थीं. जग्गी के पास आ कर उस ने खुद ही गिलास में शराब डाली और उसे हिलाते हुए जग्गी की ओर बढ़ा दिया.

जग्गी पहले ही शराब पी कर आया था. यवनिका के हाथों उस ने 2 पैग और चढ़ा लिए. वह भी नशीली दवा के साथ. थोड़ी ही देर में वह नशे में झूमने लगा. उस के बाद यवनिका और शामला से बोला, ‘‘तुम दोनों भी मेरे साथ थोड़ी पियो.’’

यवनिका रसोई में गई और 2 गिलासों में थम्सअप ले आई. रसोई में जाते समय वह शराब की बोतल साथ ले गई थी. इसलिए उन्हें थम्सअप पीते देख कर जग्गी को लगा कि वे भी शराब पी रही हैं. अब तब झूमते हुए उस ने अपने कपड़े उतार दिए.

जग्गी मेहता ने जैसे ही कपड़े उतारे सुनील ने जल्दी से सामने आ कर उस की फोटो खींच ली. ठीक उसी समय अमित भी वहां आ गया. कैमरे की फ्लैश से जग्गी की आंखें चुंधिया गईं. अमित और सुनील को सामने पा कर वह आंखें मलते हुए चिल्लाया, ‘‘कबाब में हड्डी बनने के लिए तुम लोग यहां क्यों आए हो? दिनरात तुम लोग ऐश करते हो, मैं ने कभी अड़ंगा डाला है?’’

‘‘नहीं तो. मैं ने कब इस से दुष्कर्म किया?’’

‘‘जीरकपुर के ब्रिस्टल होटल के कमरे में यवनिका को ले जा कर तुम ने इस के साथ क्या किया था?’’

‘‘जो भी किया, उस से क्या हो गया? तुम उस के साथ क्या करते हो? मैं ने तो कभी कुछ नहीं पूछा. और तुम लोग मेरा यह फोटो खींच कर क्या करोगे?’’

‘‘उस का क्या होगा, यह बाद की बात है.’’ यवनिका ने उस के सामने आ कर कहा, ‘‘अभी तो मुझ से आंख मिला कर बताओ कि ब्रिस्टल होटल में तुम ने मेरे साथ जबरदस्ती की थी या नहीं?’’

यवनिका के यह कहते ही जग्गी उस के पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा. शायद उसे इस बात का आभास हो गया था कि उसे वहां मौजमस्ती के लिए नहीं, किसी साजिश के तहत बुलाया गया है.

जग्गी माफी मांग ही रहा था कि अमित ने जग्गी के मुंह पर हाथ रख कर दूसरे हाथ से उस की गरदन में चाकू घुसेड़ दिया. ठीक उसी समय सुनील ने दूसरा चाकू भी उस की गरदन में दूसरी ओर से घुसेड़ दिया.

2 चाकुओं के वार से बिना चीखेचिल्लाए जग्गी छटपटाने लगा. फिर तो उन्होंने उस पर और भी कई वार किए. कुछ देर बाद जब उन्हें लगा कि जग्गी मर गया है तो उसे कपड़े और जूते पहना कर दीवान पर बिछे गद्दे में लपेट कर घर में रखी साइकिल पर लाद कर रेलवे लाइन पर फेंक आए. संयोग से उस समय तेज बारिश हो रही थी, इसलिए रेलवे लाइन तक लाश ले जाते समय उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई.

इस के बाद उन्होंने गद्दा और चाकू पास के गंदे नाले में फेंक दिया. वहीं साइकिल भी छिपा दी. घर लौट कर खून के छींटे और धब्बे साफ कर दिए गए.

दीवार पर खून साफ करने से जो धब्बे बन गए थे, उसे सहज बनाने के लिए यवनिका ने वहां सरसों का तेल गिरा दिया ताकि देख कर लगे कि किसी से तेल की शीशी गिर गई है.

यह सब करतेकरते 5 बज गए. इस के बाद यवनिका और शामला पहले चंडीगढ़ स्थित पीजीआई गईं और मातापिता से मिल कर हरिद्वार चली गईं. जबकि मातापिता से बताया था कि अंबाला जा रही हैं.

पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर खून लगा गद्दा, साइकिल और हत्या में प्रयुक्त दोनों चाकू बरामद कर लिए गए. रिमांड अवधि समाप्त होने पर उन्हें फिर से अदालत में पेश कर सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

विवेचक सतीश मेहता ने निर्धारित अवधि में इन के खिलाफ आरोप पत्र तैयार कर निचली अदालत में पेश कर दिया. अंबाला की जिला अदालत में 3 साल तक केस चला. बाद में सेशन से चारों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित