उम्मीदों से दूर निकला लिवइन पार्टनर – भाग 2

एसएचओ सत्यप्रकाश पुलिस टीम के साथ वहां आए थे. वह भीड़ को हटा कर मकान में घुसे तो राकेश उन के सामने आ गया, ‘‘सर, मैं ने ही आप को फोन किया था.’’

एसएचओ ने उस पर एक उचटती सी नजर डालते हुए पूछा, ‘‘वह कुरसी कहां है जिस पर खून लगे होने की बात तुम कह रहे थे?’’

‘‘यह है सर,’’ राकेश ने दरवाजे के बाहर रखी कुरसी की ओर इशारा किया.

एसएचओ सत्यप्रकाश ने कुरसी का मुआयना किया. उस के हत्थे पर खून लगा हुआ था. सामने दरवाजे पर ताला लगा देख उन्होंने राकेश की तरफ देखा, ‘‘इस दरवाजे पर ताला किस ने लगाया है?’’

‘‘मालूम नहीं सर,’’ राकेश बोला, ‘‘मैं नीतू के फोन करने पर यहां आया हूं. आप को नीतू बता सकती है.’’

एसएचओ सत्यप्रकाश नीतू की तरफ पलटे ही थे कि डीसीपी (पश्चिम) घनश्याम बंसल और एसीपी एस.पी. सिंह फोरैंसिक टीम के साथ वहां आ गए.

एसएचओ ने दोनों उच्चाधिकारियों को सैल्यूट करने के बाद वहां की स्थिति के विषय में बताते हुए कहा, ‘‘सर, कुरसी के हत्थे पर लगे खून से मुझे संदेह है कि यहां कोई खूनी वारदात हुई है.’’

डीसीपी घनश्याम बंसल ने दरवाजे पर लगा ताला देख कर आदेश दिया, ‘‘आप ताला खुलवा कर अंदर देखिए.’’

‘‘जी सर,’’ एसएचओ ने कहने के बाद राकेश और नीतू से ताले की चाबी के बारे में पूछा तो नीतू ने बताया, ‘‘इस की चाबी तो अंकल मनप्रीत या मां के पास रहती है. मां सुबह से बाजार गई हुई हैं और अंकल भी दिखाई नहीं दे रहे हैं.’’

‘‘ताला तोड़ दो,’’ घनश्याम बंसल ने कहा.

इशारा मिला तो एक कांस्टेबल ताला तोड़ने में जुट गया. थोड़ा प्रयास करने पर ताला टूट गया. एसएचओ ने जैसे ही दरवाजा खोला, अंदर का दृश्य देख कर वह चौंक गए, ‘‘अंदर फर्श पर महिला की लाश पड़ी है सर,’’ एसएचओ के मुंह से निकला.

डीसीपी घनश्याम बंसल और एसीपी एस.पी. सिंह ने सावधानी से कमरे में प्रवेश किया. उन के पीछे एसएचओ भी अंदर आ गए.

कमरे के फर्श पर एक महिला की रक्तरंजित लाश औंधे मुंह पड़ी हुई थी. लाश के पास खून फैला हुआ था. फोरैंसिक टीम को अंदर बुला कर सब से पहले वहां की गहन जांच करवाई गई. फिर एसएचओ ने लाश को सीधा किया. लाश की हालत रोंगटे खड़े कर देने वाली थी.

उस के चेहरे, जबड़े और गरदन पर चाकू के गहरे घाव थे. महिला का बड़ी बेरहमी से कत्ल किया गया था.

एसएचओ ने महिला को पहचान करने के लिए राकेश को कमरे में बुला लिया. लाश को देखते ही राकेश रोने लगा. रोते हुए ही उस ने बताया कि यह लाश उस की ताई रेखा रानी की है. पुलिस को भी यही अंदेशा था कि यह लाश सुबह से लापता रेखा की ही हो सकती है.

राकेश द्वारा लाश पहचान लिए जाने पर यह स्पष्ट हो गया था कि रेखा बाजार नहीं गई थी, उसे कत्ल कर के कमरे में डाल दिया गया था और कमरे का दरवाजा बाहर बंद कर दिया गया था.

डीसीपी घनश्याम बंसल इस मामले को बड़ी संजीदगी से देख रहे थे. कुछ सोच कर उन्होंने क्राइम ब्रांच के डीसीपी रोहित मीणा को फोन कर के इस कत्ल के विषय में बताया और उन्हें सहयोग करने के लिए कहा.

रोहित मीणा ने क्राइम ब्रांच के एसीपी यशपाल के नेतृत्व में एक टीम तुरंत गणेश नगर के लिए रवाना कर दी. इस टीम में तेजतर्रार इंसपेक्टर सुनील कुमार भी थे.

क्राइम ब्रांच की टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. सुनील कुमार ने सब से पहले लाश का निरीक्षण किया. रेखा को जिस बेरहमी से मारा गया था, उस से यह अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे ने अपना सारा गुस्सा रेखा पर उतारा है.

आसपास ऐसा सूत्र उन्हें नहीं मिला जो हत्यारे द्वारा वहां छोड़ा गया हो, लेकिन अनुभवी सुनील कुमार इस बात को समझ गए थे कि हत्यारा मृतका महिला को अच्छी तरह पहचानता था. वह कौन हो सकता है, यही सुनील कुमार को मालूम करना था.

वह कमरे के बाहर आ गए. राकेश और नीतू एकदूसरे के गले लग कर फूटफूट कर रो रहे थे. सुनील कुमार उन के पास आ कर ठहर गए.

उन्होंने नीतू और राकेश के सिर पर प्यार से हाथ रख कर सहानुभूति दर्शाते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे दुख को समझ सकता हूं बच्चो, लेकिन रो कर जी को हलका कर लेने से मृतका की आत्मा को शांति नहीं मिलेगी. उसे शांति तब मिलेगी, जब उस का हत्यारा फांसी के फंदे पर झूलेगा.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं सर,’’ राकेश अपने आंसू पोंछते हुए बोला, ‘‘मेरी ताई के हत्यारे को गिरफ्तार कर के आप कड़ी से कड़ी सजा दिलवाइए.’’

‘‘हां, मैं ऐसा ही करूंगा. तुम बताओ, तुम्हारी ताई की हत्या कौन कर सकता है?’’ सुनील कुमार ने पूछा.

‘‘मैं क्या बताऊं सर, ताई बहुत अच्छी थीं, सब से प्यार से पेश आती थीं. उन का कोई दुश्मन भी नहीं था, लेकिन…’’ राकेश कहतेकहते रुक गया.

‘‘लेकिन क्या?’’ सुनील कुमार ने राकेश के चेहरे पर गहरी दृष्टि डाली, ‘‘देखो, तुम्हारे मन में जो भी बात हो, वह मुझे खुल कर बताओ.’’

राकेश ने गहरी सांस ली, ‘‘सर, मेरी ताई मनप्रीत के साथ लिवइन में रहती थीं. शुरू में तो मनप्रीत अंकल ताई को बहुत खुश रखता था लेकिन इधर कुछ समय से उस का ताई के साथ झगड़ा होता रहता था. वह गुस्से में ताई को पीट भी देता था. मुझे मनप्रीत बिलकुल पसंद नहीं था, इसलिए मैं यहां कम आता था.’’

‘‘मनप्रीत…’’ सुनील बुदबुदाए. राकेश की बात से उन्होंने तुरंत अनुमान लगा लिया कि रेखा रानी के कत्ल में मनप्रीत का ही हाथ है. उन्होंने राकेश के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘बेटे, क्या मनप्रीत यहां मौजूद है? देख कर बताओ.’’

‘‘नहीं है सर,’’ राकेश ने वहां खड़े तमाम लोगों पर नजरें दौड़ा कर कहा, ‘‘मैं जब यहां आया था तब भी वह यहां नहीं था. मेरी बहन नीतू ने बताया है कि जब वह सो कर उठी थी, मनप्रीत कुरसी पर बैठा हुआ था. उस ने नीतू को धमका कर उस के कमरे में भेजा था. नीतू कमरे में जा कर सो गई थी, वह जब दोबारा सो कर उठी तो उसे मनप्रीत कहीं नजर नहीं आया, वह ताई के कमरे का ताला लगा कर चला गया था.’’

‘‘हूं.’’ इंसपेक्टर सुनील कुमार ने सिर हिलाया. उन्होंने वहां खड़ी नीतू से प्यार से कुछ सवाल कर के यह जानकारी हासिल कर ली कि मनप्रीत उस से और उस की मां रेखा से कैसा व्यवहार करता था.

नीतू ने बताया कि वह मनप्रीत को पसंद नहीं करती थी. वह उसे और उस की मां को पीटता था. मां से झगड़ा करता रहता था. मनप्रीत नशा भी करता था. उस के रूखे व्यवहार के कारण और घर में होने वाले क्लेश से वह हमेशा परेशान रहने लगी थी.

अपना घर लूटा, पर मिली मौत – भाग 2

पिता की बात सुन कर वह भी बुरी तरह परेशान हो गया. उस ने माना भी कि इस में कोई दोराय नहीं है. जसपिंदर के साथ कोई अनहोनी घटना घट सकती है क्योंकि उसे गायब हुए 14 दिन बीत चुके थे और अब तक उस का कहीं पता नहीं चला था. फिर उस के पास सोने के जेवरात और नकदी भी तो थे, जो अनहोनी का कारण बन सकते थे.

इस के बाद बिना समय गंवाए बापबेटा सीधे हठूर थाने जा पहुंचे और इंसपेक्टर जगजीत सिंह को पूरी बात बताई कि फिलीपींस की राजधानी मनीला में रहने वाले रिश्तेदार हरपिंदर सिंह ने उन्हें बेटी की हत्या हो जाने की जानकारी है. उस ने वह स्थान भी बताया जहां बेटी की लाश दफनाए जाने की संभावना थी.

जेसीबी से खुदाई कर दफनाई थी लाश

कमलजीत सिंह की बात सुन कर इंसपेक्टर जगजीत सिंह चौंक गए. आननफानन में उन्होंने धारा 364, 120बी आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया और उन के बताए गए चारों आरोपियों परमप्रीत सिंह उर्फ परम, भवनप्रीत सिंह उर्फ भवना, एकमप्रीत सिंह और हरप्रीत सिंह को सुधार, घुमाण और मंसूरा से हिरासत में ले कर पूछताछ के लिए हठूर थाने ले आए.

इंसपेक्टर जगजीत सिंह ने चारों आरोपियों से बारीबारी से कड़ाई से पूछताछ करनी शुरू की तो चारों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया कि उन्होंने 24 नवंबर, 2022 को दिन में ही जसपिंदर का कत्ल कर दिया था और राज छिपाने के लिए उसे दफना दिया था. इस के बाद उन्होंने पूरी घटना का खुलासा कर दिया.

चूंकि जसपिंदर की लाश जमीन में दफनाई गई थी इसलिए उस की खुदाई के लिए मौके पर एक मजिस्ट्रैट का मौजूद रहना अनिवार्य था. फिर चारों आरोपियों से पूछताछ करतेकरते रात काफी हो चुकी थी, इसलिए बाकी की काररवाई अगले दिन के लिए छोड़ दी गई.

5 दिसंबर, 2022 को सुबह करीब 10 बजे ड्यूटी मजिस्ट्रैट एवं सिधवां बेट के नायब तहसीलदार मलूक सिंह, डीएसपी (रायकोट) रछपाल सिंह ढींढसा, एसएसपी हरजीत सिंह और हठूर थाने के एसएचओ जगजीत फार्महाउस पर पहुंच चुके थे और चारों आरोपी भी वहां लाए गए थे. मौके पर फोरैंसिक टीम भी आ चुकी थी और मिट्टी खुदाई के लिए जेसीबी भी बुला ली गई थी.

आरोपी परमप्रीत और भवनप्रीत की निशानदेही पर उस जगह की मिट्टी की खुदाई शुरू हुई, जहां जसपिंदर की लाश दफनाई गई थी. करीब 10 फीट लंबाई और 10 फीट चौड़ाई और 5 फीट गहराई तक मिट्टी निकाली गई तो वहां से तेज भभका उठने के साथ ही एक सड़ीगली लाश बरामद हुई.

लाश इस कदर सड़ गई थी कि पहचानी नहीं जा रही थी कि वह लाश किस की है. लेकिन कपड़ों के आधार पर कमलजीत और उन के बेटे शमिंदर ने उस की पहचान जसपिंदर कौर के रूप में कर ली थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने पंचनामा तैयार कर लाश पोस्टमार्टम के लिए सुधार स्थित जिला अस्पताल भिजवा दी. आगे की कागजी काररवाई पूरी कर के चारों आरोपियों को ले कर इंसपेक्टर जगजीत सिंह थाने पहुंच गए थे.

पहले की लगाई गई धारा 364, 120बी के साथ हत्या की धाराओं 302 आईपीसी भी जोड़ दी गई. फिर उन्हें अदालत में पेश कर ताजपुर रोड स्थित सेंट्रल जेल लुधियाना भेज दिया. चारों आरोपियों से की गई पूछताछ के बाद इस हत्या के पीछे की प्रेम कहानी कुछ ऐसे सामने आई थी—

24 वर्षीय जसपिंदर कौर मूलरूप से लुधियाना जिले के हठूर थानाक्षेत्र स्थित गांव रसूलपुर की रहने वाली थी. पिता कमलजीत सिंह के 2 बच्चों शमिंदर सिंह और जसपिंदर में वह छोटी और सब की लाडली थी.

वैसे भी पंजाब खेतीबाड़ी के मामले में अग्रणी माना जाता है. कमलजीत सिंह किसान थे. बापबेटे दोनों मिल कर अपने खेतों में अथक मेहनत करते थे, जिस की बदौलत ही खेतों में इतना अनाज पैदा हो जाता था कि साल भर खाने के अनाज रख लेने के बाद बाकी बचे अनाज को बाजार में बेच देते थे. उन पैसों से उन की और परिवार की ठाठ से जिंदगी कट रही थी.

बच्चों के पसंद की हर चीज घर में उपलब्ध थी. अपनी समझ से कमलजीत सिंह किसी चीज की कमी नहीं रखते थे. बच्चों की एक फरमाइश पर उन के मनपसंद की हर चीज मिल जाती थी. उन के मनपसंद खानेपीने से ले कर पहननेओढ़ने तक सब उपलब्ध रहता था, वह भी उन की एक फरमाइश पर.

कमलजीत सिंह बेहद सीधे और सच्चे इंसान थे. जैसे वह खुद थे, बच्चों से भी वैसी ही उम्मीद करते थे कि वह भी उसी तरह बनें. लेकिन बिगड़े परिपाटी और टेलीविजन सभ्यता में यह संभव नहीं था.

शमिंदर और जसपिंदर भी इसी आधुनिक युग में जन्मे और पलेबढ़े थे तो संस्कार भी टेलीविजन वाले ही ग्रहण किए. दोनों बच्चे कमलजीत सिंह के विश्वास पर खरे नहीं उतरे, इस का मलाल उन्हें था.

जसपिंदर कौर थी तो दुबलीपतली, लेकिन तीखे नाकनक्श की थी. काले घने लंबे बाल कमर तक, सुराही की तरह पतली गरदन, गोलमटोल गोरा चेहरा, सिंदूरी सुर्ख गाल, गुलाब की नाजुक पंखुडि़यों के समान सुर्ख होंठ, झील सी गहरी कालीकाली आंखें. बलखा कर जब वह चलती थी तो दीवानों के मुंह से आह निकलती थी.

उन दीवानों में एक नाम परमप्रीत सिंह उर्फ परम का भी लिखा था, जो जसपिंदर कौर के दिल पर अपना नाम लिखने के लिए बेताब था. परम के प्रेम को जसपिंदर ने अपने दिल के कोरे पन्ने पर लिख लिया था. खैर, उन की उम्र के साथसाथ उन का प्यार भी जवां होता जा रहा था.

इसी जिले के सुधार थानाक्षेत्र स्थित वासी के मूल निवासी परमप्रीत उर्फ परम का दूसरा भाई भवनप्रीत उर्फ भवना और एक बहन परमिंदर थी. भाईबहन में परम बीच का था. सब से बड़ा भवनप्रीत था और सब से छोटी परमिंदर. परमिंदर अपनी ससुराल में थी.

परमप्रीत के पिता हरपिंदर सिंह एक एनआरआई थे. वह फिलीपींस की राजधानी मनीला में पत्नी के साथ रहते थे. दोनों बेटों को उन्होंने यहीं पढ़ने और खेतीबाड़ी की देखरेख करने के लिए छोड़ दिया था.

परमप्रीत और भवनप्रीत में बड़ा भवना की हरपिंदर सिंह ने गृहस्थी बसा दी थी. सिर्फ उन की जिम्मेदारी में परमप्रीत ही रह गया था. उस की भी शादी के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों के बीच में बात छेड़ दी थी कि कोई अच्छी खानदानी लड़की हो तो बताना. उस के साथ मंझले बेटे परमप्रीत की शादी कर देंगे. उन्होंने नातेरिश्तेदारों के बीच बात छेड़ तो दी थी लेकिन कोई बात बनी नहीं.

इधर परमप्रीत की मोहब्बत उसी के पिता के रिश्तेदार कमलजीत सिंह की सुंदर बेटी जसपिंदर कौर के साथ जवां हो रही थी. परम और जसपिंदर एकदूसरे से प्रेम करते थे. इस की जानकारी जसपिंदर के घर वालों को थी. उन्होंने बेटी पर परम से दूरी बनाए रखने के लिए उस पर कड़े पहरे लगाए लेकिन वह उन की हर बंदिशों को तोड़ कर अपने प्यार परम से मिलती ही थी.

ASI के फरेेबी प्यार में बुरे फंसे थाना प्रभारी – भाग 2

इसी सिलसिले में यह भी बात सामने आई कि रंजना टीआई को ब्लैकमेल कर 50 लाख रुपए वसूल चुकी थी. वह उस का इकलौता शिकार नहीं थे, बल्कि पहले भी 3 पुलिसकर्मियों पर दुष्कर्म का आरोप लगा कर उन से लाखों रुपए वसूल चुकी थी. रंजना खांडे मूलरूप से खरगोन के धामनोद की रहने वाली थी.

उस के बाद ही करीब 3 बजे पुलिस कमिश्नर के औफिस के बाहर गोलियां चली थीं. टीआई पंवार इस वारदात को ले कर घर से ही पूरा मन बना कर आए थे. यहां तक कि वह अपनी पत्नी तक से आक्रोश जता चुके थे. उन्होंने कहा था कि गोविंद जायसवाल से पैसे ले कर ही लौटेंगे.

कपड़ा व्यापारी गोविंद को उन्होंने 25 लाख रुपए दिए थे, जो लौटाने में आनाकानी कर रहा था. उन्होंने पत्नी लीलावती उर्फ वंदना से यह भी कहा था कि यदि उस ने पैसे नहीं दिए तो वह उसे मार डालेंगे. बात नहीं बनी तो अपनी जान भी दांव पर लगा देंगे.

58 साल के हाकम सिंह पंवार की नियुक्ति इसी साल 6 फरवरी को भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में हुई थी. इस से पहले वह गौतमपुर, खुडेल, सर्राफा थाना, इंदौर कोतवाली, खरगोन, भिकमगांव महेश्वर, राजगढ़ में पदस्थापित रह चुके थे.उन का निवास स्थान वटलापुर इलाके में था. वहां उन्होंने एक फ्लैट किराए पर ले रखा था, लेकिन रहने वाले मूलत: उज्जैन जिले के तराना कस्बे के थे. वह भोपाल में अकेले रहते थे. मध्य प्रदेश पुलिस में वह सन 1988 में कांस्टेबल के पद पर भरती हुए थे. बताया जाता है कि उन्होंने 5 शादियां कर रखी थीं.

पहली शादी उन्होंने लीलावती उर्फ वंदना से की थी. बताया जाता है कि दूसरी शादी उन्होंने सीहोर की रहने वाली सरस्वती से की. गौतमपुरा में पोस्टिंग के दौरान उन की मुलाकात रेशमा उर्फ जागृति से हुई जो मूलरूप से इंदौर की पुरामत कालोनी की रहने वाली थी. वह उन की तीसरी पत्नी बनी.

मजीद शेख की बेटी रेशमा ने टीआई हाकिमसिंह पंवार पर अपना इस तरह प्रभाव जमा लिया था कि वह उनसे जब चाहे तब पैसे ऐंठती रहती थी. चौथी प्रेमिका के रूप में रंजना खांडे उन के जीवन में आई. हाकमसिंह की सर्विस बुक में लता पंवार का नाम है. चर्चा यह भी है कि भोपाल में तैनाती के दौरान उन्होंने माया नाम की महिला से शादी की थी. पुलिस इन सब की जांच कर रही है.

रंजना 3 पुलिस वालों से ऐंठ चुकी थी ,70 लाख रुपए जांच में पता चला कि सन 2012 में मध्य प्रदेश पुलिस में भरती हुई रंजना धार जिले के कस्बा धामनोद की रहने वाली थी और मौजूदा समय में इंदौर की सिलिकान सिटी में रह रही थी. उस की पंवार से अकसर मुलाकात महेश्वर थाने में होती थी.

वह महेश्वर थाने पर पंवार से मिलने के लिए 12 किलोमीटर की दूरी तय कर आती थी. रंजना के साथ उसका भाई कमलेश खांडे भी पंवार से मिलता रहता था.

रजंना और कमलेश ने मिल कर ब्लैकमेलिंग का तानाबाना बुना था. 28 वर्षीय कमलेश रंजना का भाई था. उस के बारे में मालूम हुआ कि वह एक आवारा किस्म का व्यक्ति था.3 पुलिसकर्मियों को ब्लैकमेल करने में उस की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी. तीनों से दोनों बहनभाई ने करीब 70 लाख रुपए की वसूली की थी. उन का तरीका एक औरत के लिए शर्मसार करने वाला था, लेकिन रंजना को इस से कोई फर्क नहीं पड़ता था. वह पैसे की इस कदर भूखी थी कि उस ने अपनी इज्जत, शर्म और मानमर्यादा को ताक पर रख दिया था.

एएसआई रंजना की दिलफेंक अदाओं पर पंवार तभी फिदा हो गए थे, जब वह पहली बार महेश्वर थाने में मिली थी. दरअसल, रंजना 2018 में थाने के काम से महेश्वर आई थी, वहां उस की मुलाकात टीआई पंवार से हुई थी.पंवार ने उस की मदद की थी, जिस से रंजना ने उसे साथ कौफी पीने का औफर दे दिया था. पंवार उस के औफर को ठुकरा नहीं पाए थे. उन के बीच दोस्ती की पहली शुरुआत कौफी टेबल पर हुई, जो जल्द ही गहरी हो गई.

साथ में पैग छलका कर टीआई से बनाए थे शारीरिक संबंध फिर एक दिन अपने भाई के साथ पंवार के कमरे पर आ धमकी. उस ने बताया कि उस के भाई का बिजनैस में किसी के साथ झगड़ा हो गया है. मामला उन्हीं के थाने का है. वह चाहें तो मामले को निपटा सकते हैं. इस संबंध में पंवार ने रंजना को मदद करने का वादा किया. इस खुशी में रंजना ने उन्हें एक छोटी सी पार्टी देने का औफर दिया और भाई से शराब की बोतलें मंगवा लीं. कमलेश विदेशी शराब की बोतलें और खाने का सामान रख कर चला गया.

पंवार के सामने शराब और शबाब दोनों थे. वह उस रोज बेहद खुश थे. उन की खुशी को बढ़ाने में रंजना ने भी खुले मन से साथ दिया था. देर रात तक शराब का दौर पैग दर पैग चलता रहा. इस दरम्यान रंजना ने टीआई हाकम सिंह पंवार के लिए न केवल अपने दिल के दरवाजे खोल दिए, बल्कि पंवार के सामने कपडे़ खोलने से भी परहेज नहीं किया.

बैडरूम में शराब की गंध के साथ दोनों के शरीर की गंध कब घुलमिल गई, उन्हें इस का पता ही नहीं चला. बिस्तर पर अधनंगे लेटे हुए जब उन की सुबह में नींद खुली, तब उन्होंने एकदूसरे को प्यार भरी निगाह से देखा. आंखों- आखों में बात हुई और एकदूसरे को चूम लिया. कुछ दिनों बाद रंजना पंवार से मिलने एक बार फिर अपने भाई के साथ आई. उस ने पंवार को धन्यवाद दिया और कहा कि उस की बदौलत ही उस का मामला निपट पाया. इसी के साथ रंजना ने एक दूसरी घरेलू समस्या भी बता दी. वह समस्या नहीं, बल्कि पैसे से मदद करने की थी.

रंजना ने बताया कि उस के परिवार को तत्काल 5 लाख रुपए की जरूरत है. पंवार पहले तो इस बड़ी रकम को ले कर सोच में पड़ गए, किंतु जब उस ने शराब की बोतल दिखाई तब वह पैसे देने के लिए राजी हो गए. टीआई पंवार ने उसी रोज कुछ पैसे अपने घर से मंगवाए और कुछ दोस्तों से ले कर रंजना को दे दिए.

बदले में रंजना को पहले की तरह ही रात रंगीन करने में जरा भी हिचक नहीं हुई. इस तरह पंवार को रंजना से जहां यौनसुख मिलने लगा, वहीं रंजना के लिए पंवार सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन चुके थे. धीरेधीरे रंजना उन से लगातार पैसे की मांग करने लगी. पंवार भी उस की पूर्ति करते रहे. लेकिन आए दिन की जाने वाली इन मांगों से पंवार काफी तंग आ चुके थे.

हद तो तब हो गई जब रंजना ने एक बार पूरे 25 लाख रुपए की मांग कर दी. उस ने न केवल रुपए मांगे, बल्कि भाई के लिए एक कार तक मांग ली. इस मांग के बाद पंवार का पारा बढ़ गया. वह गुस्से में आ गए. फोन पर ही धमकी दे डाली. किंतु रंजना ने बड़ी शालीनता से उन की धमकी का जवाब एक वीडियो क्लिपिंग के साथ दे दिया.

रासिला ने ऐसा सोचा भी न था

आईटी क्षेत्र में बंगलुरु की इंफोसिस सौफ्टवेयर कंपनी का एक बड़ा नाम है. केरल की रहने वाली रासिला ओ.पी. इसी कंपनी के पुणे फेज-2 स्थित कंपनी में नौकरी करती थी. वह सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. इस कंपनी के प्रोजेक्ट इतने महत्त्वपूर्ण होते हैं कि उन्हें पूरा करने के लिए कर्मचारियों और अधिकारियों को कभीकभी 24-24 घंटे तक काम करना पड़ता है. 29 जनवरी को रविवार था.

शहर के अधिकांश औफिस और प्रतिष्ठान बंद थे. लेकिन इंफोसिस कंपनी का एक प्रोजेक्ट इतना अर्जेंट था कि उसे पूरा करने के लिए कर्मचारियों को रविवार को भी औफिस आना पड़ा था. इस प्रोजेक्ट को पूरा करने की जिम्मेदारी पुणे और बंगलुरु टीम को सौंपी गई थी. रासिला भी उस दिन इसी प्रोजेक्ट की वजह से औफिस आई थी. बंगलुरु में कुछ कर्मचारी अपनेअपने घरों में बैठ कर उस की मदद कर रहे थे.

कंपनी का प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो गया था. केवल कुछ ही औपचारिकताएं बाकी रह गई थीं कि शाम 7 बजे अचानक रासिला और बंगलुरु टीम के बीच फोन और ईमेल से होने वाली बातचीत बंद हो गई. बंगलुरु के कर्मचारी समझ नहीं पाए कि अचानक यह क्या हो गया.

तमाम कोशिशों के बाद भी रासिला और बंगलुरु के कर्मचारियों के बीच जब संपर्क नहीं हो पाया तो उन के मन में तरहतरह की आशंकाएं जन्म लेने लगीं. उन्होंने पुणे के बड़गांव में रहने वाले इंफोसिस सौफ्टवेयर के सीनियर एसोसिएट कंसलटेंट और रासिला के प्रोजेक्ट रिपोर्टिंग मैनेजर अभिजीत कोठारी को फोन किया.

उन्हें सारी बातें बता कर रासिला के विषय में पता लगाने के लिए कहा. अभिजीत ने उसी वक्त रासिला को फोन लगाया. उस के फोन की घंटी तो बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रही थी. इस के बाद उन्होंने पुणे फेज-2 स्थित कंपनी के औफिस के लैंडलाइन पर फोन किया.

फोन एक सिक्योरिटी गार्ड ने उठाया. उस ने अभिजीत को बताया कि वह ड्यूटी पर अभीअभी आया है. उस के पहले ड्यूटी पर सिक्योरिटी गार्ड भावेन सैकिया था. वह अपनी ड्यूटी पूरी कर के अपना चार्ज उसे दे कर चला गया है. अभिजीत कोठारी ने जब ड्यूटी पर मौजूद गार्ड से रासिला के बारे में पूछा तो गार्ड रासिला की केबिन में गया. इस के बाद उस गार्ड ने जो जानकारी दी, उसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

फिर क्या था, कुछ ही देर में अभिजीत कोठारी इंफोसिस के औफिस पहुंच गए. उन्होंने देखा कि औफिस के अंदर रासिला की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. शव के आसपास काफी खून फैला था. चेहरा पूरी तरह किसी भारी और ठोस वस्तु से कुचला गया था. अभिजीत कोठारी ने मामले की जानकारी कंपनी के प्रमुख अधिकारियों और रासिला के परिवार वालों को देने के बाद थाना हिंजवाली पुलिस को दे दी थी.

थाना हिंजवाली के थानाप्रभारी अरुण वायकर अपने सहायकों के साथ तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गए. हत्या की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे कर वह मामले की जांच में जुट गए. वह घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि पुणे शहर के डीसीपी गणेश शिंदे, एसीपी वैशाली जाधव भी घटनास्थल पर आ गईं.

उन के साथ डौग स्क्वायड और फिंगरप्रिंट ब्यूरो के अधिकारी भी आए थे. सभी ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि रासिला की हत्या की बड़ी बेरहमी से की गई थी. उस के गले में एक पीले रंग का तार लपेटा हुआ था. वह कंप्यूटर का तार था. पुलिस यह जानने की कोशिश करने लगी कि ऐसा कौन व्यक्ति हो सकता है, जिस ने इस की हत्या के बाद चेहरा तक कुचल दिया.

घटनास्थल की काररवाई पूरी कर के पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के मसन अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद कंपनी के प्रोजेक्ट मैनेजर अभिजीत कोठारी की ओर से रासिला की हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. शुरुआती जांच में पुलिस को पता चला कि रासिला जिस केबिन में बैठती थी, वह बेहद सुरक्षित थी.

उस का दरवाजा एक विशेष कार्ड के टच होने पर ही खुलता था. इस से पुलिस को यही लगा कि उस की हत्या में किसी ऐसे आदमी का हाथ है, जिस का उस केबिन में आनाजाना था. इस संबंध में पुलिस ने कंपनी के कर्मचारियों से पूछताछ की तो कंपनी का सिक्योरिटी गार्ड भावेन सैकिया पुलिस के शक के दायरे में आ गया. इस के बाद कंपनी के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गई तो स्पष्ट हो गया कि सिक्योरिटी गार्ड भावेन ने ही रासिला की हत्या की थी.

एसीपी वैशाली जाधव के निर्देशन में जब पुलिस टीम सिक्योरिटी गार्ड भावेन के घर पर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. उस के घर के दरवाजे पर ताला लगा था. पड़ोसियों ने बताया कि भावेन की मां की तबीयत अचानक खराब हो गई थी, इसलिए वह अपने गांव चला गया है. जिस सिक्योरिटी एजेंसी में उस की नियुक्ति थी, उस से संपर्क कर पुलिस ने भावेन के बारे में सारी जानकारी ले ली.

जहांजहां से भावेन के गांव जाने के साधन मिलते थे, उन सभी रास्तों पर नाकेबंदी करवा दी गई. इस के अलावा जांच टीम को 7 भागों में विभाजित कर उन्हें महानगर मुंबई और पुणे के विभिन्न इलाकों के लिए रवाना कर दिया गया. रासिला की हत्या पुणे पुलिस के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुकी थी. क्योंकि पिछले साल आईटी प्रोफेशनल महिला ज्योति कुमारी, नयना पुजारी, दर्शना टोगारी और अंतरा दास की कंपनी के सिक्योरिटी गार्डों द्वारा जिस तरह हत्याएं की गई थीं, उसे देख कर आईटी कंपनियों में काम करने वाली महिलाओं के भीतर डर का माहौल बन गया था.

इसलिए इस मामले का खुलासा करने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर दबाव बढ़ गया था. यही वजह थी कि एसीपी वैशाली जाधव ने इस मामले की जांच अपने हाथों में ले ली थी. आखिरकार एसीपी वैशाली जाधव और उन की टीम की मेहनत रंग लाई और 8 घंटे की कोशिश के बाद सौफ्टवेयर इंजीनियर रासिला के हत्यारे भावेन सैकिया को महानगर मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार कर लिया गया.

पुलिस टीम जिस समय छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन पहुंची थी, उस समय रात के लगभग 3 बज रहे थे. भावेन सैकिया अपना पूरा चेहरा कंबल के नीचे ढक कर टिकट खिड़की के पास बैठा खिड़की के खुलने का इंतजार कर रहा था. मुखबिर के इशारे पर पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था.

सिक्योरिटी गार्ड भावेन सैकिया को ले कर पुलिस पुणे आ गई. उस से थोड़ी पूछताछ कर के उसे पुणे के प्रथम श्रेणी दंडाधिकारी ए.एस. वारूलकर के सामने पेश कर 4 फरवरी, 2017 तक की रिमांड पर ले लिया. पूछताछ में उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने इस हत्याकांड की जो कहानी बताई, इस प्रकार निकली.

27 वर्षीय भावेन सैकिया मूलरूप से असम के गांव ताती विहार का रहने वाला था. उस के पिता ने 3 शादियां की थीं. भावेन सैकिया उन की तीसरी पत्नी का बेटा था. भावेन महत्त्वाकांक्षी के साथ पढ़ाईलिखाई में भी होशियार था.

उस का स्वभाव उग्र था. इस वजह से उस की अपने सौतेले भाइयों से नहीं पटती थी. 12वीं कक्षा में अच्छे अंक पाने के बाद उस ने स्नातक की पढ़ाई करनी चाही पर उस के सौतेले भाई नहीं चाहते थे कि वह पढ़े. किसी न किसी बात को ले कर वह उस से झगड़ने लगते थे. फिर एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि सन 2013 में उस ने अपने सौतेले भाई की हत्या कर दी. हत्या के बाद वह घर से फरार हुआ तो वापस गांव नहीं लौटा.

सन 2014 में वह पुणे पहुंच गया और वहां की एक सिक्योरिटी एजेंसी में सिक्योरिटी गार्ड के पद पर उस की नौकरी लग गई. कंपनी की तरफ से भावेन की तैनाती इंफोसिस सौफ्टवेयर कंपनी के औफिस में हो गई. उस ने औफिस के पास ही हिजवाड़ी जयरामनगर के फेज-3 में एक कमरा किराए पर ले लिया.

नौकरी के दौरान उस में काफी परिवर्तन आ गया था. औफिस में काम करने वाली लड़कियों को वह चाहत की निगाहों से देखता. खूबसूरत लड़कियां उस की कमजोरी बन गई थीं. किसी न किसी बहाने वह उन से बातें करता और उन्हें छूने की कोशिश करता था. इसी प्रकार की कोशिश जब उस ने रासिला ओ.पी. के साथ की तो उस ने भावेन की बात अनदेखी नहीं की, बल्कि उस से अपनी नाराजगी भी जता दी.

घटना के 2 दिन पहले रासिला ने भावेन सैकिया को अपने केबिन में बुला कर काफी डांटाफटकारा और उस की हरकतों की शिकायत ईमेल द्वारा उस की सिक्योरिटी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारियों से करने की भी धमकी दी. इस धमकी से भावेन काफी डर गया था. उसे लग रहा था कि रासिला उस की शिकायत जरूर कर देगी. उस की शिकायत पर उसे अपनी नौकरी जाने का डर था.

24 वर्षीय रासिला ओझम पोईल पुराईत उर्फ रासिला ओ.पी. मूलरूप से केरल राज्य के कालीकट जिले के गांव कुदमंगलम की रहने वाली थी. उस के पिता ओझम पोईल पुराईत उर्फ राजू ओ.पी. होमगार्ड में एक तृतीय श्रेणी कर्मचारी थे. परिवार में उस के और पिता के अलावा एक बड़ा भाई तेजस कुमार ओ.पी. था. मां पुष्पलता का देहांत उस समय हो गया, जब छोटी थी. दोनों भाईबहन का बचपन बहुत ही गरीबी में बीता था. पिता से ही दोनों को मां का प्यार मिला था. घर की परिस्थतियों को देखते हुए दोनों बच्चों ने मन लगा कर पढ़ाई की.

रासिला और तेजस कुमार दोनों ने 98 प्रतिशत अंकों से 12वीं की परीक्षा पास की. इंजीनियरिंग की परीक्षाएं भी दोनों ने प्रथम श्रेणी से पास की थीं. इंजीनियरिंग के बाद तेजस कुमार को आबूधाबी की एयरलाइंस कंपनी में और रासिला की बंगलुरु की इंफोसिस सौफ्टवेयर कंपनी में असिस्टैंट इंजीनियर के पद पर नौकरी लग गई. अपने बच्चों को अच्छी जगह और अच्छे पद पर देख कर राजू ओ.पी. की सारी चिंताएं दूर हो गईं. रासिला की अच्छी पोस्ट देख कर तो उस की शादी के रिश्ते भी आने शुरू हो गए थे.

रासिला खूबसूरत तो थी ही, साथ ही वह कंपनी की जिस पोस्ट पर काम करती थी, उस की जिम्मेदारी भी अच्छी तरह निभा रही थी. अपने काम और व्यवहार से उस ने कंपनी के कई वरिष्ठ अधिकारियों के दिल में एक खास जगह बना ली थी. इस श्रेणी में एक बड़ा अधिकारी ऐसा था जो रासिला को अपने दिल में एक खास जगह देना चाहता था, पर रासिला को वह पसंद नहीं था. जिस के कारण वह अधिकारी रासिला से चिढ़ गया और उसे किसी न किसी बहाने परेशान करने लगा.

उस अधिकारी से परेशान हो कर रासिला ने कुछ वरिष्ठ अधिकारियों से उस की शिकायत कर दी. साथ ही अपना इस्तीफा भी दे दिया. लेकिन कंपनी ने उस का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. बल्कि कंपनी ने रासिला का ट्रांसफर इंफोसिस कंपनी की पुणे ब्रांच में कर दिया और पुणे के हिजवाड़ी के जयरामनगर फेज-1 में उस के रहने की व्यवस्था भी कर दी. पुणे ब्रांच में रासिला को आए अभी 5 महीने ही हुए थे कि उसे औफिस के सिक्योरिटी गार्ड भावेन सैकिया से दोचार होना पड़ा.

घटना के दिन सारा औफिस बंद होने के बावजूद भी कंपनी द्वारा सौंपे गए प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए रासिला को अपने औफिस आना पड़ा था. दिन के 2 बजे जब वह अपने औफिस में पहुंची तो काफी खुश थी. उस समय सिक्योरिटी गार्ड भावेन अपनी ड्यूटी पर तैनात था. रासिला ने अपने एक्सेस कार्ड से केबिन का लौक खोला और केबिन के अंदर जा कर अपने बंगलुरु ब्रांच के कुछ साथियों के साथ औनलाइन जुड़ कर अपने प्रोजेक्ट की तैयारी में जुट गई थी.

इधर रासिला की धमकी और अपनी नौकरी को ले कर भावेन काफी परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे क्या न करे. शिकायत को अपने वरिष्ठ अधिकारियों तक जाने से कैसे रोके इसी बारे में वह सोचने लगा. सोचविचार करने के बाद उस ने खतरनाक फैसला ले लिया.

उस समय रासिला औफिस में अकेली थी. बातचीत करने के लिए मौका अच्छा था. अपनी हरकतों की माफी मांगने के बहाने वह रासिला के केबिन में जाने में कामयाब हो गया. केबिन के अंदर पहुंचते ही उस ने रासिला से कहा, ‘‘मैडम, आप मेरी शिकायत मेरे अधिकारियों से नहीं करना वरना मेरी नौकरी चली जाएगी और मैं बेकार हो जाऊंगा.’’ वह गिड़गिड़ाया.

रासिला ने एक बार गार्ड के चेहरे को देखा. जिस पर मिलेजुले खौफ का असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था. हालांकि रासिला ने उस की हरकतों को नजरअंदाज कर दिया था. लेकिन वह उसे थोड़ा और सबक सिखाना चाहती थी, जिस से वह सुधर जाए. इसलिए वह गंभीर होते हुए बोली, ‘‘नौकरी चली जाएगी, बेकार हो जाओगे तो मैं क्या करूं. तुम्हें  लड़कियों को परेशान करने का बड़ा शौक है न, अब भुगतो, मैं ने तो तुम्हारी शिकायत तुम्हारी कंपनी के सीनियर अधिकारियों को ईमेल से कर दी है. अब जाओ गांव में ही बैठना.’’

यह सुन कर भावेन का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा. अपने आपे से बाहर होते हुए उस ने इंटरनेट का वायर खींच कर रासिला के गले में डालते हुए कहा, ‘‘मैडम, यह तुम ने अच्छा नहीं किया. अब तुम्हें इस की सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी.’’

रासिला उस का इरादा जान कर अपने बचाव के लिए काफी चीखीचिल्लाई. पर उस वक्त उस की मदद के लिए वहां कोई नहीं था. उस ने उस इंटरनेट वायर से रासिला का गला घोंट दिया. उस की हत्या करने के बाद उस ने अपने बूटों से ठोकरें मारमार कर उस का चेहरा लहूलुहान कर दिया.

रासिला की हत्या करने के बाद जब भावेन का गुस्सा शांत हुआ तो वह बाहर आ कर आराम से अपनी जगह बैठ गया. उसे पुलिस और कानून का डर लगने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब कहां जाए. गांव जा नहीं सकता था, क्योंकि उस पर सौतेले भाई की  हत्या का आरोप था. पुणे और गांव की पुलिस से बचने के लिए उस के पास कोई रास्ता नहीं था. ऐसे में उसे बस आत्महत्या के अलावा और कोई चारा नहीं दिखा.

उस की ड्यूटी का टाइम भी पूरा हो चुका था. जैसे ही दूसरा सिक्योरिटी गार्ड शिफ्ट बदलने आया तो उसे जिम्मेदारी सौंप कर भावेन औफिस से निकल गया. आत्महत्या करने के लिए वह पुणे रेलवे स्टेशन पर पहुंचा ताकि किसी टे्रेन के सामने कूद कर जीवनलीला खत्म कर ले लेकिन ऐसा करने की उस की हिम्मत नहीं हुई.

फिर उस ने आत्महत्या करने के बजाय किसी दूसरे शहर में जाने का इरादा बनाया. अपने कमरे से उसे कुछ जरूरी सामान भी साथ लेना था. इसलिए कमरे पर पहुंच कर उस ने पड़ोसियों से झूठ कह दिया कि उस की मां की तबीयत खराब है. बैग में कपड़े आदि भर कर वह महानगर मुंबई के छत्रपति शिवाजी रेलवे स्टेशन पहुंचा. वहां से टिकिट ले कर उसे अपनी किसी मंजिल की ओर रवाना होना था. पर इस के पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. भावेन मराली सैकिया से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने न्यायालय में पेश कर उसे जेल भेज दिया.

पुलिस ने रासिला ओ.पी. के शव को पोस्टमार्टम के बाद उस के पिता राजू ओ.पी. और परिजनों को सौंप दिया. पिता और परिवार वालों का कहना था कि रासिला की हत्या एक साजिश के तहत इंफोसिस कंपनी के ही एक बड़े अधिकारी ने कराई है, जिस की शिकायत उन्होंने हिजवाड़ी पुलिस थाने में दर्ज करवा दी.

पुलिस ने उन्हें भरोसा दिया कि रासिला की हत्या के मामले में जो भी दोषी होगा, उस के खिलाफ सख्त काररवाई की जाएगी. मामले की जांच थानाप्रभारी अरुण वायकर कर रहे थे. कथा लिखे जाने तक भावेन सैकिया की जमानत नहीं हो सकी थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मोहब्बत की परिणति : क्या कहानी है इस परिवार की

रविवार 21 जनवरी, 2018 का अलसाया हुआ दिन था. बसंत ऋतु ने दस्तक दे दी थी, लेकिन सूरज की किरणों में फिर भी तेजी नहीं आई थी. सिहराती सर्द हवाओं के बीच आसमान दिन भर मटमैले बादलों से ही अटा रहा. लेकिन मौसम की बदमिजाजी से लोगों की आमदरफ्त में कोई तब्दीली नहीं आई थी.

कोटा स्टेशन की बाहरी हदों से शुरू होने वाले बाजार में रोजमर्रा की रौनक जस की तस कायम थी. अगर कोई फर्क था तो इतना कि लोगों के चेहरों पर कशमकश के भाव थे और शौपिंग की बजाय उन की उत्सुकता चोपड़ा फार्म जाने वाली गली नंबर-2 की तरफ थी, जिसे पूरी तरह पुलिसकर्मियों ने घेर रखा था.

तेज होती खुसुरफुसुर से ही पता चला कि किसी ने एक महिला और उस के बेटे की हत्या कर दी है. यह वारदात वहां रहने वाले चर्चित भाजपा नेता नीरज पाराशर के परिवार में हुई थी. बदमाशों ने घर में घुस कर नीरज पाराशर की पत्नी सोहनी और 12 साल के बेटे पीयूष को गोली मार दी थी.

बेटी तान्या वारदात का शिकार होने से बच गई थी. दरअसल, गोली लगने से पहले ही सोहनी ने उसे घर से बाहर फेंक दिया था. शोर मचा तो आसपास के रहने वाले लोग फौरन मौके पर पहुंच गए, लेकिन बदमाश तब तक भाग चुके थे.

खबर मिलने पर भीममंडी के थानाप्रभारी रामखिलाड़ी पुलिस बल के साथ वहां पहुंच गए थे. इस दोहरे हत्याकांड की खबर जब उन्होंने आला अधिकारियों को दी तो एएसपी समीर कुमार, डीएसपी शिवभगवान गोदारा, राजेश मेश्राम भी वहां आ गए. 10 मिनट बाद आईजी विशाल बंसल और एसपी अंशुमान भोमिया भी वहां पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों के सामने जो चुनौती मुंह बाए खड़ी थी, उस से निपटना आसान नहीं था. क्योंकि कुछ ही दिनों पहले स्टेशन क्षेत्र में एक और भाजपा नेता की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी. इस के अलावा शहर में हत्या की और भी कई वारदातें अनसुलझी पड़ी थीं. इस सब को ले कर एसपी साहब के चेहरे पर तनाव साफ दिखाई दे रहा था.

केस बड़ा पेचीदा था. पुलिस इस बात पर भी हैरान थी कि इस चहलपहल वाले इलाके में नीरज पाराशर के मकान में बदमाश बेखौफ हो कर आए और मांबेटे को गोलियों से भून कर चले गए.

सोहनी की करपटी और उस के बेटे पीयूष के सीने में गोलियां लगी थीं. लग रहा था जैसे उन्हें गोली बहुत करीब से मारी गई थी. एक गोली कमरे की दीवार पर भी लगी थी, दीवार पर गोली टकराने का निशान बन गया था. पुलिस ने मौके से गोली का खोल भी बरामद कर लिया.

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सूचना मिलने पर पुलिस फोटोग्राफर, क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम, डौग स्क्वायड और एफएसएल की टीमें भी वहां पहुंच गई थीं. सभी टीमें अपनेअपने ढंग से काम कर के लौट गईं. थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा ने शवों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और आगे की जांच में जुट गए.

उन्होंने नीरज पाराशर से बात की तो उस ने बताया कि घटना के वक्त वह सब्जी लेने के लिए बाजार गया हुआ था. सरेआम हुई इस वारदात ने पूरे इलाके में सनसनी फैला दी थी. गोली चलाने वाले कौन थे, किस तरफ भागे थे, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज भी खंगाले, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

पुलिस ने पड़ोसियों से बात की तो उन्होंने बताया कि हम ने गोलियां चलने की आवाज तो नहीं सुनी अलबत्ता मार दिया…मार दिया… की चीखपुकार जरूर सुनी थी. जिस के बाद वे लोग पाराशर के मकान की तरफ दौड़े. हालांकि कुछ लोगों ने पाराशर के मकान से एक आदमी को भागते देखा, लेकिन वह कौन था, कैसे आया और कहां गया, इस बाबत कुछ नहीं बता पाए.

पुलिस पूछताछ में रोताबिलखता नीरज ठीक से कुछ नहीं बता पा रहा था. टुकड़ों में जो कुछ वह कह रहा था, उस से पुलिस सिर्फ इतना समझ पाई कि उस की पत्नी सोहनी मुरैना की रहने वाली थी, जहां पड़ोस में रहने वाले चंद्रकांत पाठक उर्फ दिलीप से उस का अफेयर था. 2 महीने पहले सोहनी उस के साथ भाग गई थी, जिस की गुमशुदगी की सूचना उस ने थाना भीममंडी में दर्ज करा रखी थी.

पिछले दिनों उसे सोहनी के मुरैना में होने का पता चला तो वह मुरैना जा कर उसे ले आया. नीरज ने पुलिस को बताया कि वारदात करने वाला चंद्रकांत पाठक के अलावा कोई नहीं हो सकता. थानाप्रभारी ने यह सारी जानकारी एसपी अंशुमान भोमिया को दे दी.

इन सब बातों से अंशुमान भोमिया को लगा कि पूरे घटनाक्रम में सोहनी की कोई महत्त्वपूर्ण भूमिका रही होगी. इसलिए उन का पूरा ध्यान उस के अतीत और उस के प्रेमी चंद्रकांत पाठक पर अटक गया.

नीरज ने एसपी साहब से मुलाकात की. उस ने उन्हें एक नई जानकारी यह दी कि चंद्रकांत पाठक ने चेतन शर्मा के नाम से एक फरजी फेसबुक आईडी बना रखी थी. चंद्रकांत एक उच्चशिक्षित युवक था, साथ ही अच्छा शूटर भी. मध्य प्रदेश में उसे शार्पशूटर का अवार्ड मिल चुका था.

पुलिस ने नीरज से इस बारे में विस्तार से जानकारी मांगी कि सोहनी कब और कैसे गायब हुई थी? इस पर नीरज ने बताया, ‘‘नवंबर, 2017 में मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ अपनी ससुराल मुरैना गया था. वहां से 20 नवंबर को हम कोटा लौट आए थे. 22 नवंबर को मैं गोवर्धन परिक्रमा के लिए वृंदावन चला गया था.

मेरी गैरमौजूदगी में चंद्रकांत पाठक आया और जबरन पत्नी को ले कर चला गया. उस समय दोनों बच्चे भी घर पर थे, जो सो रहे थे. बाद में जब बेटा पीयूष सो कर उठा और उस ने मां को नहीं देखा तो उस ने मुझे फोन किया. तब मैं ने पत्नी की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कराई और अपने स्तर पर भी उस की तलाश करता रहा, लेकिन निराशा ही हाथ लगी.’’

उस ने आगे बताया, ‘‘सर, जनवरी, 2018 में अचानक मेरे पास पत्नी का फोन आया. उस ने किसी और के मोबाइल से फोन किया था. पत्नी ने मुझे बताया कि चंद्रकांत ने उसे कैद कर रखा है, आ कर उसे छुड़ा लें. यह जानने के बाद मैं मुरैना गया और पत्नी को साथ ले कर कोटा आ गया. चंद्रकांत पत्नी से कोई संपर्क न कर सके, इसलिए मैं ने पत्नी का फोन नंबर भी बदल दिया था. इस से खीझ कर एक दिन चंद्रकांत ने मुझे फोन पर ही धमकी दी कि सोहनी से बात करवा दो वरना पूरे परिवार को जान से मार देगा.’’

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नीरज से पूछताछ के समय एसपी अंशुमान भोमिया भी वहीं मौजूद थे. उन्होंने नीरज को तीखी नजरों से देखा, वह उन से आंखें नहीं मिला सका. नीरज के हावभाव और बातों से उन्हें उसी पर शक होने लगा था. लेकिन उन्होंने जानबूझ कर उसे ज्यादा कुरेदना उचित नहीं समझा. इसी बीच एक नई जानकारी ने पुलिस की तहकीकात का रुख मोड़ दिया.

पता चला कि चंद्रकांत पाठक शनिवार 20 जनवरी, 2018 की देर रात कोटा पहुंचा था और स्टेशन क्षेत्र के ही एक होटल में ठहरा था. पुलिस का मानना था कि निश्चित रूप से उस ने अगले रोज 21 जनवरी को दिन भर नीरज के घर के आसपास रेकी की होगी और जैसे ही उसे मौका मिला, वह वारदात को अंजाम दे कर भाग गया.

पुलिस ने नीरज और सोहनी की फेसबुक देखी तो इस प्रेम कहानी का काफी कुछ खुलासा हो गया. फेसबुक पर मोहब्बत और नफरत के जज्बात साथसाथ मौजूद थे. पत्नी के इस तरह छोड़ कर चले जाने से नीरज पाराशर इस हद तक परेशान था कि उस की यादें सहेजने के लिए पुराने फोटो शेयर करने के साथ मोहब्बत और हिकारत दोनों उगल रहा था.

15 दिसंबर, 2017 को नीरज ने अपनी फेसबुक पर लिखा, ‘आई हेट सोहनी पाराशर एंड माई लाइफ…’ 28 दिसंबर को सुर बदला तो उस के मन में सोहनी के लिए  तड़प पैदा हुई. उस ने लिखा, ‘आप कहां हो सोहनी, कम बैक प्लीज…’

31 दिसंबर को मोहब्बत ने जोर मारा तो नए साल की मुबारकबाद देते हुए लिखा, ‘विश यू ए हैप्पी न्यू ईयर सोहनी पाराशर’. 5 जनवरी को वैराग्य का भाव जागा तो कुछ अलग ही असलियत उजागर हुई, ‘सोहनी पैसे की दीवानी थी’. नीरज ने आगे लिखा, ‘इस दुनिया में कोई रिश्ता इंपोर्टेंट नहीं है, सब कुछ केवल पैसा है.’

पुलिस ने चंद्रकांत पाठक के फरजी नाम चेतन शर्मा की फेसबुक सर्च की तो चंद्रकांत और सोहनी की तूफानी मोहब्बत खुल कर सामने आ गई. 15 जनवरी को चंद्रकांत ने सोहनी के साथ करीब डेढ़ सौ फोटो शेयर किए थे, जो होटलों में मौजमस्ती और घूमनेफिरने की तस्दीक कर रहे थे.

17 जनवरी, 2018 को चंद्रकांत ने जो कुछ फेसबुक पर लिखा, उस ने उस के इरादों पर मुहर लगा दी. चंद्रकांत ने लिखा था, ‘इस दुनिया को अलविदा, मेरी जिंदगी यहीं तक थी. माफ कर देना, सभी का दिल दुखाया, बट गलत  मैं था. माफ कर देना… लव यू आल…सौरी.’

टूटे हुए दिल से निकले अल्फाज चंद्रकांत की उस मनोदशा की तसदीक कर रहे थे, जब कोई शख्स खुदकुशी का फैसला करता है जबकि सोहनी का कत्ल तो कुछ और ही कहानी की तरफ इशारा कर रहा था.

मामला काफी संदिग्ध था. नीरज अपनी बात पर अडिग था कि उस की पत्नी सोहनी की हत्या चंद्रकांत पाठक ने की है. लेकिन एसपी अंशुमान भोमिया के इस सवाल का उस के पास कोई जवाब नहीं था कि अगर तुम्हारी पत्नी से उस का अफेयर था तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि वह उस की हत्या करने पर आमादा हुआ और मासूम बच्चे से चंद्रकांत की क्या दुश्मनी थी जो उस ने उसे भी गोली मार दी?

नीरज इस बाबत भी चुप्पी साधे रहा. एसपी अंशुमान भोमिया ने अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक समीर कुमार की अगुवाई में तेजतर्रार अफसरों डीएसपी शिवभगवान गोदारा, राजेश मेश्राम और भीमंडी नयापुरा और रेलवे कालोनी के थानाप्रभारियों को शामिल कर के एक पुलिस टीम बनाई और चंद्रकांत की तलाश में भेज दी. इस टीम ने उसे बिलासपुर, श्योपुर और देहरादून में तलाशा.

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पुलिस की यह कोशिश रंग लाई. चंद्रकांत को मध्य प्रदेश के श्योपुर से गिरफ्तार कर लिया गया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह उच्चशिक्षित था. उस ने मैथ्स, कैमिस्ट्री और कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री प्राप्त की थी. पीजीडीए किए चंद्रकांत पाठक के पास मास्टर औफ फाइन आर्ट्स की भी डिग्री थी.

इतना ही नहीं, वह सटीक निशानेबाज भी था. उसे बेस्ट शूटर का प्रोसीडेंट अवार्ड भी मिल चुका था. वह एनसीसी का सी सर्टिफिकेट होल्डर भी था.

एसपी भोमिया ने उस से पूछा कि इतना क्वालीफाइड हो कर भी उस ने इतनी संगीन वारदात को अंजाम कैसे दिया. इस बारे में उस ने जो कुछ बताया, उस से पूरी कहानी मोहब्बत पर आ कर सिमट गई.

चंद्रकांत पाठक उर्फ दिलीप उर्फ चेतन शर्मा मूलरूप से मुरैना के दत्तपुरा का रहने वाला था. सोहनी का परिवार उस के घर के ठीक सामने ही रहता था. दोनों का बचपन एक साथ खेलतेपढ़ते बतियाते बीता था. बचपन की यह दोस्ती कब प्यार में बदल गई, दोनों ही नहीं समझ सके. अलबत्ता दोनों मोहब्बत में इस कदर डूबे थे कि एकदूसरे के बिना रहने की कल्पना करना भी उन्हें गवारा नहीं था.

लेकिन पारिवारिक बंदिशों के कारण यह मोहब्बत जीवनसाथी की डोर में नहीं बंध पाई. कालांतर में सोहनी का विवाह कोटा के नीरज पाराशर से हो गया और चंद्रकांत ने भी परिवार की जिद के आगे सिर झुका कर कहीं दूसरी जगह शादी कर ली.

दोनों अलगअलग रिश्तों की डोर में बंध तो गए, लेकिन आशिकी खत्म नहीं हुई. चंद्रकांत के पिता का मुरैना में डीजे का काम था. वह पिता के काम में ही हाथ बंटाने लगा. बाद में चंद्रकांत के भी एक बेटा हो गया और सोहनी भी 2 बच्चों की मां बन गई.

इस के बावजूद सोहनी और चंद्रकांत के संबंध बने रहे. सोहनी अपने मायके मुरैना आती तो वह चंद्रकांत से जरूर मिलती. किसी तरह नीरज को इस बात की भनक लग गई. इस के बाद दोनों ने मिलने में ऐहतियात बरतनी शुरू कर दी. चंद्रकांत का कहना था, ‘कोई 2 महीने पहले मैं बिलासपुर में था. सोहनी वहीं आ गई थी. सोहनी अपनी ससुराल वालों को बिना बताए आई थी. इस के बाद चंद्रकांत ने सोहनी के साथ रहना शुरू कर दिया था.

‘इसी दौरान चंद्रकांत ने 20 लाख रुपए में अपनी दुकान बेची थी. वह रकम उस के पास मौजूद थी. इस बीच सोहनी उस की गैरहाजिरी में अपने पति के साथ कोटा चली गई. जाते समय वह मेरे 2 लाख रुपए और गहने अपने साथ ले गई थी. सोहनी ने मेरे साथ फरेब किया था.’

‘‘सोहनी के कत्ल की नौबत क्यों आई? अगर फरेब की कोई वजह थी तो उस मासूम बच्चे को क्यों मारा?’’ एसपी भोमिया ने पूछा.

‘‘नहीं सर, मेरा इरादा ऐसा नहीं था. मैं नीरज की गैरमौजूदगी में ही सोहना से मिलना चाहता था. ऐसा मैं ने किया भी.’’ एक पल रुकते हुए चंद्रकांत ने कहना शुरू किया, ‘‘मैं ने अपनी रकम और जेवरात सोहनी से मांगे तो वह उल्टे मुझ पर ही बरस पड़ी. मैं ने उसे डराने के लिए पिस्टल दिखाई, लेकिन अचानक बच्चा मेरे ऊपर झपट पड़ा और पिस्टल छीनने की कोशिश करने लगा. इस छीनाझपटी में ही ट्रिगर दब गया और बच्चे को गोली लग गई.

‘‘सोहनी को तो मुझे मजबूरी में मारना पड़ा. उसे नहीं मारता तो वह बेटे की हत्या की गवाह बन जाती. बेटे की मौत से सोहनी को अपनी बेटी की जान भी खतरे में नजर आई तो उस ने बच्ची को दरवाजे की तरफ फेंक दिया. सोहनी पर मैं ने 2 गोलियां चलाईं. अफरातफरी में निशाना चूक गया और एक गोली दीवार में धंस गई. एक गोली उस की कनपटी पर लगी थी. उस के बाद मैं बुरी तरह दहशत में आ गया था. इस के बाद मैं पहले दिल्ली चला गया फिर श्योपुर आ गया.’’

पुलिस ने उस से पूछताछ करने के बाद उसे भादंसं की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. 2 लाख की रकम और जेवरात अभी पुलिस बरामद नहीं कर पाई. कथा लिखे जाने तक चंद्रकांत जेल में बंद था.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

फरेबी प्यार में हारी अय्याशी – भाग 2

पुनीत तिवारी के इस तरह प्यार का इजहार करने से अंजू ने कुछ न कहते हुए मुसकरा दिया. इस से पुनीत का हौसला बढ़ गया. उस ने दोस्तों से सुन रखा था कि लड़की हंसी तो समझो फंसी. पुनीत ने धीरे से उस का हाथ पकड़ा और मंडप के पीछे ले जा कर बोला, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘अंजू नाम है मेरा और तुम्हारा?’’ शरमाते हुए अंजू बोली.

‘‘मेरा नाम पुनीत है. मैं आंचलखेड़ा गांव में रहता हूं. मैं अपने दोस्त की बारात में आया हूं,’’ पुनीत बोला.

‘‘मैं सोहागपुर से मौसी की लड़की की शादी में यहां आई हूं,’’ अंजू ने भी अपने बारे में बताया.

लोग वरमाला मंडप में फोटोग्राफी में लगे हुए थे, उधर पुनीत और अंजू के दिलों में प्यार के बीज अंकुरित हो रहे थे.

प्रेम की आग एक बार लग जाए तो बुझाए नहीं बुझती. पुनीत और अंजू के साथ भी यही हुआ. पुनीत अंजू से मिलने सोहागपुर आने लगा. इधर अंजू के पिता राजाराम गोस्वामी उस के लिए लड़का तलाश रहे थे.

एक दिन मुलाकात के दौरान जब अंजू ने पुनीत को यह बात बताई कि उस के घर वाले शादी के लिए लड़का खोज रहे हैं तो पुनीत ने उस से कहा, ‘‘अंजू, कोई तुम्हें मुझ से नहीं छीन सकता, तुम से तो शादी मैं ही करूंगा.’’

‘‘पर पुनीत हम दोनों एक ही जातिबिरादरी के नहीं है, घरपरिवार के लोग हमारी शादी को राजी कैसे होंगे?’’ अंजू ने चिंतित होते हुए कहा.

‘‘तुम घरपरिवार के लोगों की चिंता मत करो, यदि मुझ से सच्चा प्यार करती हो तो मेरे संग चलने को तैयार हो जाओ, मैं तुम्हें पलकों पर बिठा कर रखूंगा.’’ पुनीत ने उस के सिर पर हाथ रखते हुए कहा.

अंजू ने सिर हिला कर अपनी मौन सहमति दी और अपना सिर पुनीत की गोद में रख दिया. पुनीत ने अंजू के होंठों पर होंठ रख दिए और उस के केशों में हाथ घुमाते हुए कहा, ‘‘कल रात को तुम तैयार रहना. रात 12 बजे के बाद जब घर के लोग सो जाएं, तब मुझे मिस काल करना, मैं तुम्हारे घर के बाहर बाइक ले कर खड़ा मिलूंगा.’’

अंजू ने पुनीत को भरोसा दिलाया और योजना के मुताबिक एक रात वह पुनीत के साथ भाग खड़ी हुई. दोनों ने होशंगाबाद जा कर कोर्टमैरिज कर ली. फिर वह पतिपत्नी के रूप में रहने लगे.

पुनीत ने परिवार के खिलाफ जा कर प्रेम विवाह किया था. इसी वजह से राजाराम गोस्वामी का परिवार पुनीत से खुन्नस रखता था.

इतना ही नहीं, राजाराम के बड़े बेटे का निधन बुधनी के पास एक ऐक्सीडेंट में हो गया था, परंतु राजाराम के परिवार के लोगों का शक था कि उस के बेटे मुकेश का ऐक्सीडेंट नहीं हुआ, बल्कि उसे पुनीत ने साजिश के तहत मारा है. जिस के लिए पूरा परिवार पुनीत को ही जिम्मेदार मान रहा था.

अंजू का छोटा भाई प्रदीप इस बात को ले कर ज्यादा दुखी था, क्योंकि पुनीत ने अंजू से मेलमुलाकात करने के लिए प्रदीप से दोस्ती बढ़ाई थी, जिसे वह समझ नहीं पाया. अपनी बहन के पुनीत के साथ भाग जाने से प्रदीप के यारदोस्त उस का मजाक उड़ाते थे, यह बात उसे नागवार गुजरती थी.

राजाराम का बेटा भले ही नाबालिग था, परंतु उस की दोस्ती अपने से बड़ी उम्र के युवकों से थी. प्रदीप की दोस्ती नवल गांव के 30 साल के राजेंद्र उर्फ राजू रघुवंशी से थी. राजू भी प्रदीप की बहन अंजू की खूबसूरती का दीवाना था और उस से शादी करने के ख्वाब देखता था. परंतु अंजू का प्यार पुनीत के साथ परवान चढ़ चुका था, इस वजह से वह उसे घास नहीं डालती थी.

प्रदीप किशोरावस्था की दहलीज पर खड़ा अपना दिल अपने से उम्र में बड़ी लड़की नूरजहां उर्फ अनन्या को दे चुका था. उम्र में छोटा होने की वजह से कोई उस पर शक भी नहीं करता था.

22 साल की नूरजहां सोहागपुर गांधी वार्ड में ही रहने वाले मुबारक शाह की बेटी थी. विवाह के कुछ ही समय बाद उस का अपने शौहर से तलाक हो गया था. तलाक के बाद  उस ने कुंवारे प्रदीप पर डोरे डालने शुरू कर दिए.

किशोरावस्था में प्रदीप को मिले इस तरह के प्रेम निवेदन को वह कैसे इंकार करता. दोनों प्रेम के रंग में डूब गए. नूरजहां प्रदीप के बालिग होने का इंतजार कर रही थी. उस के बाद उस का इरादा धर्म परिवर्तन कर प्रदीप के साथ शादी करने का था.

एक दिन प्रदीप ने नूरजहां से कहा, ‘‘पुनीत ने मेरी बहन से शादी कर के हमारे पिता की बदनामी कराई है, मैं उस से बदला लेना चाहता हूं.’’

इस पर नूरजहां ने साथ देते हुए कहा, ‘‘जरूर लो बदला, आखिर उस ने दोस्तों में तुम्हारी इज्जत पर भी तो बट्टा लगाया है.’’

‘‘नूरजहां, तुम्हें इस काम में मेरा साथ देना होगा.’’

‘‘प्रदीप, आखिर इस में मैं क्या मदद कर सकती हूं?’’ आश्चर्य व्यक्त करते हुए नूरजहां बोली.

‘‘नूरजहां, मैं पुनीत को अच्छी तरह से जानता हूं, वह किसी एक खूंटे से बंधा नहीं रह सकता. खूबसूरत लड़कियों को देख कर उस का मन डोलने लगता है. तुम किसी तरह उस से नजदीकियां बढ़ाओ और अपने प्रेम का प्रदर्शन करो तो वह तुम्हारे जाल में फंस जाएगा,’’ प्रदीप बोला.

‘‘ना बाबा ना, तौबातौबा आखिर इस से क्या हासिल होगा?’’ नूरजहां डरते हुए बोली.

‘‘मेरा पूरा प्लान तो सुनो पहले. जब पुनीत तुम्हारे प्रेम जाल में फंस जाएगा तो उसे मिलने कहीं एकांत में बुला लेना, उस के बाद हम उस का काम तमाम कर देंगे.’’ प्रदीप ने अपना प्लान समझाते हुए कहा.

‘‘मगर इस में तो खतरा बहुत है, पकड़े गए तो जेल में चक्की पीसेंगे.’’ नूरजहां ने शंका व्यक्त की.

‘‘नूरजहां तुम फिक्र मत करो, तुम तो पुनीत को बुला कर वहां से भाग जाना. मैं और मेरा दोस्त लकी उसे ठिकाने लगा देंगे, किसी को भनक भी नहीं होगी.’’

इस तरह प्रदीप ने नूरजहां, राजू रघुवंशी और दोस्त लकी कहार के साथ मिल कर अपने बहनोई पुनीत तिवारी की हत्या की खौफनाक साजिश रची.

आरोपी राजू रघुवंशी की नजर शादी से पहले से ही अंजू पर थी. राजू का प्रदीप के घर आनाजाना रहता था और वह मन ही मन अंजू से प्यार करने लगा था. राजू अपने प्रेम का इजहार कर पाता, इस के पहले ही पुनीत अंजू को भगा कर ले गया. कुछ समय के बाद पुनीत और अंजू ने कोर्टमैरिज कर ली.

रिश्तों पर भारी पड़ी मोहब्बत – भाग 1

‘‘मियां, क्या बात है बड़े खुश नजर आ रहे हो आजकल? मुझे नहीं बताओगे अपने दिल की

बात?’’ दाऊद ने अपने दोस्त नदीम को छेड़ा.

‘‘तुम्हीं तो मेरे हमदम, मेरे दोस्त हो. अपने दिल की बात तुम से नहीं बताऊंगा तो और किसे बताऊंगा.’’ नदीम ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

‘‘तो दिल की बात कह भी डालो यार, अब और बरदाश्त नहीं होता.’’

‘‘बताता हूं, बताता हूं, थोड़ा सब्र करो भाई. मैं सब बताता हूं.’’

‘‘भाई, कहीं इश्कविश्क का चक्कर तो नहीं है?’’

‘‘हां दाऊद भाई, मुझे किसी से इश्क हो गया है. बेपनाह इश्क. मैं उसे चाहने लगा हूं, वो भी मुझे चाहती है.’’

‘‘कौन है वो खुशकिस्मत, जिस से मेरा यार दिल लगा बैठा है? मुझे उस के बारे में नहीं बताएगा?’’

‘‘भाई, बताऊंगा भी और मुलाकात भी कराऊंगा. बस, सही वक्त आने दो मेरे यार.’’

‘‘नाम क्या है उस नाजनीन का और कहां रहती है?’’ दाऊद ने बेसब्री से पूछा.

‘‘नुसरत जहां.’’ नदीम ने जवाब दिया.

‘‘नुसरत जहां! कौन नुसरत जहां?’’

‘‘अरे वो ही वकील इम्तियाजुल की बेगम, जहां बच्चों को अरबी की ट्यूशन पढ़ाने जाता हूं.’’

‘‘अच्छा तो मियां बच्चों की अम्मी से दिल लगा बैठे?’’

‘‘क्या करूं यार, पहल तो नुसरत ने की थी. और फिर मैं ठहरा बांका जवान. उस के प्यार को अपनी जवानी की जंजीर से कैद न करता तो मुझे नामर्द समझती. मैं ऐसावैसा थोड़े न हूं. लपक कर उसे अपनी बाहों में भर लिया.’’

इस के बाद नदीम अहमद और दाऊद घंटों नुसरत को ले कर बातें करते रहे. यहां बता दें कि नदीम अहमद एक मसजिद का मुअज्जिन (सेवादार) था और नुसरत जहां के बच्चों को उस के घर अरबी की तालीम देता था जबकि दाऊद उसी मसजिद का इमाम था. हमउम्र होने के नाते दोनों के बीच गहरा याराना था.

नदीम उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले की दरगाह शरीफ थाना के मुसल्लमपुर राम गांव  का रहने वाला था, जबकि दाऊद कोतवाली नगर थाने के काजीपुरा में रहता था. दोनों एक ही मसजिद के सेवक थे. वहीं दोनों का आपस में परिचय हुआ था.

बहरहाल, 17 अक्तूबर, 2022 की तारीख थी उस दिन और सुबह के यही कोई 8 बज रहे थे. दरगाह शरीफ थाने के मुंशी और दीवान औफिस में आ चुके थे और अपने काम में जुट गए थे. तभी एक महिला, जिस की उम्र 35-36 साल के आसपास थी, थाना परिसर में रोतीबिलखती दाखिल हुई.

महिला के रोने की आवाज सुन कर दीवान (हैडकांस्टेबल) दयाराम की नजर औफिस से बाहर गेट की ओर गई तो उन्होंने संतरी दिनेश को आवाज दे कर महिला को औफिस भेजने के लिए कहा.

2 मिनट बाद महिला दीवान दयाराम के सामने खड़ी थी. दीवान ने उस से रोने का कारण पूछा तो महिला ने रोते हुए बताया, ‘‘साहब, मैं तो लुट गई बरबाद हो गई.’’

‘‘अरे भई, पहले रोनाधोना बंद करो. जो पूछता हूं उसे साफसाफ बताओ. तुम्हारे साथ क्या हुआ? तुम्हारा नाम क्या है और कहां रहती हो?’’

‘‘नुसरत जहां नाम है मेरा. मैं सलारगंज की जमील कालोनी में रहती हूं. मैं अपने शौहर और बच्चों के साथ बरामदे में सो रही थी. रात में न जाने कब किसी ने मेरे शौहर की गला काट कर हत्या कर दी साहब. मैं तो बरबाद हो गई. मेरे दोनों छोटेछोटे बच्चे बिखर गए.’’ इतना कह कर नुसरत जहां दहाड़ मार कर फिर से रोने लगी थी.

दीवान दयाराम ने समझाबुझा कर किसी तरह उसे चुप कराया.

हत्या की बात सुनते ही दीवान दयाराम बुरी तरह चौंक गए. फौरन उन्होंने इस की सूचना एसएचओ मनोज कुमार को दी. हत्या की सूचना मिलते ही मनोज कुमार हैरान रह गए. गश्त कर के सुबहसुबह लौटे थे और सो रहे थे जैसे ही सूचना मिली. नींद आंखों से कोसों दूर हो गई थी.

एसएचओ मनोज फटाफट बिस्तर से उतरे और हाथमुंह धो कर बिना चाय पीए ही टीम के साथ घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. घटनास्थल की दूरी थाने से 7-8 किलोमीटर रही होगी. थोड़ी देर में ही वह टीम के साथ वहां पहुंच गए और जांच में जुट गए.

मरने वाले का नाम था इम्तियाजुल हक और वह पेशे से सिविल कोर्ट बहराइच में वकील थे. पुलिस जांच में जुटी हुई थी. हत्यारों ने बड़ी बेरहमी से गला रेत कर उन की हत्या की थी. सिर के पिछले हिस्से में भी किसी भारी चीज से वार किया था.

लेकिन हैरान करने वाली बात यह थी कि बीवी पास में सोई थी और उसे घटना की भनक तक नहीं लगी. ऐसा कैसे हो सकता है? यह सोच कर एसएचओ मनोज कुमार का माथा ठनक गया.

उन्होंने घटना की जानकारी एसपी केशव कुमार चौधरी और एएसपी कुंवर ज्ञानंजय सिंह को दे दी थी. साथ ही डौग स्क्वायड और फोरैंसिक टीम को सूचना दे कर मौके पर बुला लिया था. दोनों टीमें मौके पर पहुंच कर जांच में जुट गई थीं.

इसी दौरान एसपी केशव कुमार चौधरी और एएसपी कुंवर ज्ञानंजय सिंह भी मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल में जुट गए थे. घटनास्थल की जांच के बाद दोनों पुलिस अधिकारियों के मन में भी वही सवाल उठा था, जो इंसपेक्टर मनोज कुमार के मन में उठ चुका था.

खैर, लाश का पंचनामा कर उसे पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया गया और मृतक की पत्नी नुसरत जहां की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ हत्या की धारा 302 आईपीसी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

पुलिस के घटनास्थल पर पहुंचने के बाद बार एसोसिएशन के अध्यक्ष गयाप्रसाद मिश्र और मृतक के तमाम साथी वकील भी मौके पर पहुंच गए थे.

मौके पर मृतक का छोटा भाई रिजवानुल हक भी मौजूद था. गयाप्रसाद ने एसपी केशव कुमार चौधरी को चेतावनी दी कि अगर जल्द से जल्द इम्तियाजुल हक के कातिल नहीं पकड़े गए तो सारे वकील हड़ताल पर बैठ जाएंगे.

वकीलों की इस चेतावनी का पुलिस पर गहरा असर पड़ा. एसपी केशव कुमार चौधरी ने आननफानन में पुलिस की 4 टीमें गठित कर दीं, जिस में एक टीम दरगाह शरीफ, दूसरी एसओजी, तीसरी स्वाट विभाग और चौथी टीम सर्विलांस की बनाई थी.

एसपी ने शाम को चारों टीमों के साथ अपने आवास पर बैठक की. बैठक में घटना की समीक्षा की. उसी बैठक में एक बात खुल कर सामने आई कि जब पति और पत्नी एक ही बिस्तर पर साथसाथ सो रहे थे तो इतनी बड़ी वारदात की जानकारी पत्नी को क्यों नहीं हुई. इस प्रश्न ने मृतक की पत्नी नुसरत जहां को शक के दायरे में ला कर खड़ा कर दिया था.

130 मिस्ड काल का रहस्य

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की एक तहसील है मोहनलालगंज, जो लखनऊ से 23 किलोमीटर दूर है. तहसील में कोषागार यानी ट्रेजरी होने की वजह से वहां सिपाहियों की ड्यूटी लगती है. उस रात कोषागार की सुरक्षा के लिए सिपाही रामकिशोर और रामप्रकाश वर्मा की ड्यूटी थी.

रात ढाई बजे के करीब सिपाही रामकिशोर की नींद खुली तो वह लघुशंका के लिए बाहर निकला. उस की नजर तहसील परिसर में बने कुएं की ओर गई तो उस ने देखा कि कुएं के ऊपर लगे लोहे के जाल पर उस का साथी सिपाही रामप्रकाश वर्मा लटक रहा है.

यह देख रामकिशोर स्तब्ध रह गया. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. रामप्रकाश वर्मा बहुत ही खुशदिल युवा सिपाही था. उस से ऐसी उम्मीद कतई नहीं थी. रामकिशोर कुएं के नजदीक पहुंचा तो पता चला कि मफलर का फंदा बना कर रामप्रकाश वर्मा ने आत्महत्या कर ली है.

कोतवाली परिसर में सिपाही द्वारा आत्महत्या करने की घटना ने उसे परेशान कर दिया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. उस ने यह बात कोतवाली जा कर सभी को बताई. घटना के बारे में पता चलते ही इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा और सीओ राजकुमार शुक्ला वहां पहुंच गए.

सिपाही की लाश देख कर हंगामा मच चुका था. तरहतरह की बातें होने लगी थीं. लोगों को लगा कि किसी दुश्मन ने सिपाही को मार कर इस तरह लटका दिया है. पुलिस ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, लेकिन कुछ पता नहीं चल सका. इस के बाद पुलिस रामप्रकाश के बारे में व्यक्तिगत जानकारी जुटाने में लग गई.

रामप्रकाश वर्मा उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ के भोगापुर गांव का रहने वाला था. वह मध्यमवर्गीय परिवार का था. घर वालों को उस से बहुत उम्मीदें थीं. सन 2015 में 21 साल की उम्र में रामप्रकाश वर्मा की भरती उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के रूप में हुई थी. वह उपासना नाम की एक लड़की (बदला हुआ नाम) से प्यार करता था. उस ने उपासना से वादा किया था कि नौकरी लगते ही वह उस से शादी कर लेगा.

उपासना और रामप्रकाश वर्मा की शादी में परेशानी यह थी कि दोनों अलगअलग जाति के थे, जिस की वजह से उपासना के घर वाले रामप्रकाश वर्मा से उस की शादी के लिए तैयार नहीं थे. शादी को ले कर दोनों के बीच कभीकभी झगड़ा भी हो जाता था.

रामप्रकाश की मौत के बाद आसपास रहने वालों ने बताया कि पिछली रात वह बारबार किसी को फोन कर रहा था और बेचैन सा इधरउधर घूम रहा था. पुलिस ने रामप्रकाश वर्मा का मोबाइल फोन अपने कब्जे में ले कर जांच की तो पता चला कि उपासना के नंबर से शाम 8 बज कर 38 मिनट से ले कर रात 11 बज कर 51 मिनट तक 130 बार काल की गई थीं. मोबाइल से साफ पता चल रहा था कि रामप्रकाश वर्मा ने उस से बात नहीं की थी. उपासना के नंबर से 7 मैसेज भी आए और रामप्रकाश ने भी 17 मैसेज किए.

पुलिस को रामप्रकाश के फोन में एक रिकौर्डिड मैसेज भी मिला. यह रात को 11 बज कर 33 मिनट पर रिकौर्ड हुआ था. मैसेज में कहा गया था, ‘तुम मुझे भूल जाना. हम मर जाएंगे, जो होगा वह तुम्हें सुबह पता चल जाएगा.’

सिपाही रामप्रकाश वर्मा की जेब से पुलिस को एक लवलेटर भी मिला. यह उपासना का लिखा हुआ था, जिस में कहा गया था, ‘तुम मुझे भूल जाना.’ जानकारों के मुताबिक रामप्रकाश वर्मा और उपासना को यह पता चल चुका था कि परिवार वालों की मरजी से उन की शादी नहीं हो सकती. इसलिए वे एकदूसरे को भूल जाने की सलाह दे रहे थे. रामप्रकाश को जब उपासना का पत्र मिला तो वह दुखी हो गया. इस के बाद उस ने तय किया कि अब वह उस से बात नहीं करेगा.

उपासना को लग रहा था कि पत्र पा कर उस को दुख होगा, क्योंकि वह बहुत ही सीधा सरल और भावुक था. ऐसे में वह कोई भी फैसला ले सकता था. इसी डर से वह रामप्रकाश को बारबार फोन कर रही थी. रामप्रकाश को लग रहा था कि अगर अब उस ने बात की तो वह अपने मन के भावों को छिपा नहीं पाएगा. ऐसे में उस के सामने एक ही रास्ता था कि वह आत्महत्या कर ले.

गुस्से में उसे यह भी नहीं सूझ रहा था कि इस बात को कैसे बताए. अंतत: उस ने रिकौर्डिड मैसेज में उपासना को यह बात बताई. अपनी बात कहने के बाद रामप्रकाश ने गले में मफलर का फंदा डाल कर आत्महत्या कर ली.

रामप्रकाश की मौत की जिम्मेदार जातिवादी सोच है. आज भी समाज में ऊंचीनीची जाति का फर्क बना हुआ है. इस के साथ ही जिन परिवारों के बच्चे सरकारी नौकरी में आ जाते हैं, उन की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है. उन के परिवार वाले दिल में दहेज की चाहत ले कर बैठ जाते हैं. सामाजिक प्रतिष्ठा, दहेज और जातिवाद जैसी सोच हमारे समाज में अभी भी दिलों में गहरे तक बैठी है.

यही वजह है कि युवा अपनी पसंद की शादी नहीं कर पाते. कुछ मामलों में जब लड़के या लड़की की मनपसंद शादी नहीं हो पाती तो वे भावुक हो कर आत्महत्या जैसे फैसले कर लेते हैं. रामप्रकाश वर्मा के सामने यही परेशानी थी. वह योग्य था, उपासना को पसंद था, पर उपासना के घर वाले रुढि़वादी सोच का शिकार थे. ऐसे में वह उस से अपनी लड़की की शादी करने को तैयार नहीं थे.

रामप्रकाश अपनी इस सोच के आगे खुद को मजबूर पा रहा था. ऐसे में वह न तो उपासना को कुछ कह पा रहा था और न ही खुद कुछ कर पा रहा था. आखिर उस ने परेशान हो कर खुद की जान देने का फैसला कर लिया.

रामप्रकाश वर्मा की मौत ने एक बार फिर से यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि योग्य लड़के भी मानसिक दबाव का शिकार हो कर मौत को गले लगा रहे हैं. जबकि आमतौर पर यह समझा जाता है कि केवल टीनएज लड़के ही प्रेम संबंधों के दबाव में आ कर आत्महत्या जैसे फैसले कर लेते हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.