बेवफाई का बदला : क्या था बच्ची का कसूर – भाग 1

दिल्ली के पुल प्रह्लादपुर में रहने वाली विवाहिता गीता के नाजायज संबंध पड़ोसी कालूचरण से हो गए थे, जिस की वजह से उस ने अपने पति घनश्याम से भी दूरी बना ली थी. इसी दौरान ऐसा क्या हुआ कि कालूचरण ने गीता को सबक सिखाने के लिए उस की 6 साल की बेटी गुनीषा की हत्या कर दी…

समय- रात साढ़े 3 बजे

दिन-29 मई, बुधवार

स्थान- राजस्थान का कोटा शहर

कोटा के तुल्लापुर स्थित पुरानी रेलवे कालोनी के सेक्टर-3 के क्वार्टर नंबर 169 से गुनीषा नाम की 6 साल की बच्ची गायब हो गई. यह क्वार्टर श्रीकिशन कोली का था जो रेलवे कर्मचारी था.

6 वर्षीय गुनीषा श्रीकिशन की बेटी गीता की बेटी थी. रात को जब परिवार के सभी सदस्य गहरी नींद में थे, तभी कोई गुनीषा को उठा ले गया था. बच्ची के गायब होने से सभी हैरान थे, क्योंकि गीता अपनी बेटी गुनीषा के साथ दालान में सो रही थी. क्वार्टर का मुख्य दरवाजा बंद था. किसी के भी अंदर आने की संभावना नहीं थी.

श्रीकिशन के क्वार्टर में शोरशराबा हुआ तो अड़ोसपड़ोस के सब लोग एकत्र हो गए. पता चला घर में 9 सदस्य थे, जिन में गुनीषा गायब थी. जिस दालान में ये लोग सो रहे थे, उस के 3 कोनों में कूलर लगे थे. रात में करीब एक बजे गीता की मां पुष्पा पानी पीने उठी तो उस ने गुनीषा को सिकुड़ कर सोते देखा. कूलरों की वजह से उसे ठंड लग रही होगी, यह सोच कर पुष्पा ने उसे चादर ओढ़ा दी और जा कर अपने बिस्तर पर सो गई.

रात को साढ़े 3 बजे गीता जब बाथरूम जाने के लिए उठी तो बगल में लेटी गुनीषा को गायब देख चौंकी. उस ने मम्मीपापा को उठाया. उन का शोर सुन कर बाकी लोग भी उठ गए. गुनीषा को घर के कोनेकोने में ढूंढ लिया गया, लेकिन वह नहीं मिली. उन लोगों के रोनेचीखने की आवाजें सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

मासूम बच्चियों के साथ हो रही दरिंदगी की सोच कर लोगों ने श्रीकिशन कोली को सलाह दी कि हमें तुरंत पुलिस के पास जाना चाहिए.

पड़ोसियों और घर वालों के साथ श्रीकिशन कोली जब रेलवे कालोनी थाने पहुंचा, तब तक सुबह के 4 बज चुके थे. गुनीषा की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अनीस अहमद ने इस की सूचना एसपी सुधीर भार्गव को दी और श्रीकिशन के साथ पुलिस की एक टीम घटनास्थल की छानबीन के लिए भेज दी.

अनीस अहमद ने पुलिस कंट्रोल रूम को सूचना देते हुए अलर्ट भी जारी करवा दिया. मौके पर पहुंची पुलिस टीम ने पूरे मकान को खंगाला. पुलिस टीम को श्रीकिशन की इस बात पर नहीं हुआ कि मकान का मुख्य दरवाजा भीतर से बंद रहते कोई अंदर नहीं आ सकता. लेकिन जब पुलिस की नजर पिछले दरवाजे पर पड़ी तो उन की धारणा बदल गई.

पिछले दरवाजे की कुंडी टूटी हुई थी. दरवाजा तकरीबन आधा खुला हुआ था. 3 कमरों वाले उस क्वार्टर में एक रसोई के अलावा बीच में दालान था. मकान की छत भी करीब 10 फीट से ज्यादा ऊंची नहीं थी. पूरे मकान का मुआयना करते हुए एसआई मुकेश की निगाहें बारबार पिछले दरवाजे पर ही अटक जाती थीं.

इसी बीच एक पुलिसकर्मी रामतीरथ का ध्यान छत की तरफ गया तो उस ने श्रीकिशन से छत पर जाने का रास्ता पूछा. लेकिन उस ने यह कह कर इनकार कर दिया कि ऊपर जाने के लिए सीढि़यां नहीं हैं.

आखिर पुलिसकर्मी कुरसी लगा कर छत पर पहुंचा तो उसे पानी की टंकी नजर आई. उस ने उत्सुकतावश टंकी का ढक्कन उठा कर देखा तो उस के होश उड़ गए. रस्सियों से बंधा बच्ची का शव टंकी के पानी में तैर रहा था.

बच्ची की लाश देख कर पुलिसकर्मी रामतीरथ वहीं से चिल्लाया, ‘‘सर, बच्ची की लाश टंकी में पड़ी है.’’

रामतीरथ की बात सुन कर सन्नाटे में आए एसआई मुकेश तुरंत छत पर पहुंच गए. यह रहस्योद्घाटन पूरे परिवार के लिए बम विस्फोट जैसा था. बालिका की हत्या और शव की बरामदगी की सूचना मिली तो थानाप्रभारी अनीस अहमद भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने देखा कि बच्ची का गला किसी बनियाननुमा कपड़े से बुरी तरह कसा हुआ था. गुनीषा की हत्या ने घर में हाहाकार मचा दिया.

यह खबर कालोनी में आग की तरह फैली. पुलिस टीम ने गुनीषा के शव को कब्जे में कर तत्काल रेलवे हौस्पिटल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बच्ची की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने के बाद पुलिस ने यह मामला धारा 302 में दर्ज कर लिया.

एडिशनल एसपी राजेश मील और डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़ भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. पुलिस ने मौके पर पहुंचे अपराध विशेषज्ञों तथा डौग स्क्वायड टीम की भी सहायता ली. लेकिन ये प्रयास निरर्थक रहे. न तो अपराध विशेषज्ञ घटनास्थल से कोई फिंगरप्रिंट ही उठा सके और न ही खोजी कुत्ते कोई सुराग ढूंढ सके.

लेकिन एडिशनल एसपी राजेश मील को 3 बातें चौंकाने वाली लग रही थीं, पहली यह कि जब घर में पालतू कुत्ता था तो वह भौंका क्यों नहीं. इस का मतलब बच्ची का अपहर्त्ता परिवार के लिए कोई अजनबी नहीं था.

दूसरी बात यह थी कि गीता का अपने पति घनश्याम यानी गुनीषा के पिता से तलाक का केस चल रहा था. कहीं इस वारदात के पीछे घनश्याम ही तो नहीं था. श्रीकिशन कोली ने भी घनश्याम पर ही शक जताया. उस ने मौके से 3 मोबाइल फोन के गायब होने की बात बताई. राजेश मील यह नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर उन मोबाइलों में क्या राज छिपा था कि किसी ने उन्हें गायब कर दिया.

गुरुवार 30 मई को पोस्टमार्टम के बाद बच्ची का शव घर वालों को सौंप दिया गया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची का गला घोंटा जाना ही मृत्यु का मुख्य कारण बताया गया.

जिस निर्ममता से बच्चों की हत्या की गई थी, उस का सीधा मतलब था कि किसी पारिवारिक रंजिश के चलते ही उस की हत्या की गई थी. पुलिस अधिकारियों के साथ विचारविमर्श के बाद एसपी सुधीर भार्गव ने एडिशनल एसपी राजेश मील के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में डीएसपी भगवत सिंह हिंगड़, रोहिताश्व कुमार और सीआई अनीस अहमद को शामिल किया गया.

पूरे घटनाक्रम का अध्ययन करने के बाद एएसपी राजेश मील ने हर कोण से जांच करने के लिए पहले श्रीकिशन के उन नातेरिश्तेदारों को छांटा, जो परिवार के किसी भलेबुरे को प्रभावित कर सकते थे. साथ ही इलाके के ऐसे बदमाशों की लिस्ट भी तैयार की, जिन की वजह से परिवार के साथ कुछ अच्छाबुरा हो सकता था.

साजन की सहेली : वंदना कैसे बनी शिकार – भाग 1

या‘कांटा बुरा करैत का और भादों की घाम, सौत बुरी हो चून की और साझे का काम’.

कहावत सौ फीसदी सच है लेकिन 36 वर्षीय हनीफा बेगम पर यह कहावत लागू नहीं हुई. उस के पति अंसार शाह ने जब वंदना सोनी के बारे में उसे बताया कि उस से उस के शारीरिक संबंध हैं और वह भी बीवी जैसी ही है तो न जाने क्यों हनीफा उस पर भड़की नहीं थी, न ही उस ने मर्द जात को कोसा था. और न ही उस के सुहाग पर डाका डालने वाली वंदना को भलाबुरा कहा था. भोपाल इंदौर हाइवे के बीचोबीच बसे छोटे से कस्बे आष्टा को देख गंगाजमुनी तहजीब की यादें ताजा हो जाती हैं. इस कस्बे के हिंदू मुसलिम बड़े सद्भाव से रहते हैं और आमतौर पर दंगेफसाद और धार्मिक विवादों से उन का कोई लेनादेना नहीं है.

मारुपुरा आष्टा का पुराना घना मोहल्ला है. अन्नू शाह यहां के पुराने बाशिंदे हैं, जिन्हें इस कस्बे में हर कोई जानता है. उन का बेटा अंसार शाह बस कंडक्टर है. अंसार बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं लेकिन आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक है. 3 बच्चों के पिता अंसार की जिंदगी में सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन करीब 3 साल पहले वंदना उस की जिंदगी में आई तो जिंदगी के साथसाथ दिल में भी तूफान मचा गई.

34 वर्षीय वंदना भरेपूरे बदन की मालकिन होने के साथ सादगी भरे सौंदर्य की भी मिसाल थी. मूलरूप से भोपाल के नजदीक मंडीदीप की रहने वाली वंदना ने इस उम्र में आ कर भी शादी नहीं की थी. वह अभी घरगृहस्थी के झंझट में इसलिए भी नहीं पड़ना चाहती थी ताकि घर वालों की मदद कर सके. उस के परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी. दोनों बड़ी बहनों की शादियों में मांबाप का जमा किया हुआ सारा पैसा लग गया था.

पढ़लिख कर वंदना ने नौकरी के लिए हाथपांव मारे तो उसे स्वास्थ्य विभाग में अपनी मां की तरह एएनएम के पद पर नौकरी मिल गई. एएनएम गैरतकनीकी पद है जिसे आम लोग नर्स ही कहते और समझते हैं. आजकल सरकारी नौकरी चाहे जो भी हो, किसी भी बेरोजगार के लिए किसी वरदान से कम नहीं होती. नौकरी लग गई तो वंदना जिंदगी भर के लिए बेफिक्र हो गई. एएनएम की नौकरी हालांकि बहुत आसान नहीं है, क्योंकि इस में अपने क्षेत्र के गांवगांव जा कर काम करना पड़ता है.

वंदना को इस में कोई खास कठिनाई नहीं हुई क्योंकि उसे इस नौकरी के बारे में बहुत कुछ पहले से ही मालूम था. कठिनाई तब पेश आई जब उस का तबादला आष्टा हो गया. चूंकि मंडीदीप में रह कर कोई 75 किलोमीटर दूर आष्टा में नौकरी करना मुश्किल था, इसलिए वंदना ने आष्टा में ही किराए का मकान ले लिया. कुछ ही दिनों में उसे आष्टा के सरकारी अस्पताल और शहर की आबोहवा समझ आ गई.

सरकारी योजनाओं के प्रचारप्रसार और ग्रामीणों को स्वास्थ्य जागरुकता के लिए प्रेरित करने के लिए उसे आसपास के गांवों में भी जाना पड़ता था. कई गांव ऐसे थे, जहां वह अपनी स्कूटी से नहीं जा सकती थी, इसलिए उस ने बस से आनाजाना शुरू कर दिया.

फील्ड की नौकरी करने वाली अधिकांश लड़कियां बस से ही सफर करती हैं, यही वंदना भी करने लगी. यह भी इत्तफाक की बात थी कि जिन गांवों की जिम्मेदारी उसे मिली थी, वहां वही बस जाती थी, जिस में अंसार कंडक्टर था. बस से अपडाउन करने वाली लड़कियों की एक बड़ी परेशानी सीट और जगह का न मिलना होती है, जिसे उस के लिए अंसार ने आसान कर दिया.

जब भी वंदना बस में चढ़ती थी तो अंसार बड़े सम्मान और नम्रता से उस के लिए सीट मुहैया करा देता था. इतना ही नहीं, बस स्टैंड के अलावा सफर के दौरान भी वह वंदना का पूरा खयाल रखता था कि उसे किसी किस्म की दिक्कत न हो. चायपानी वगैरह का इंतजाम वह दौड़ कर करता था, जिस से वंदना का दिल खुश हो जाता था. जैसा कि आमतौर पर होता है, साथ चलते और वक्त गुजारते दोनों में बातचीत होने लगी.

एक अविवाहित युवती जिस ने पहले कभी प्यार न किया हो, वह पुरुष के जिन गुणों पर रीझ सकती है वे सब अंसार में थे. धीरेधीरे कैसे और कब वह उस की तरफ आकर्षित होने लगी, इस का अहसास भी उसे नहीं हुआ. प्यार शायद इसीलिए अजीब चीज कही जाती है कि इस के होने का अहसास अकसर होने के बाद ही होता है. इधर अंसार भी देख रहा था कि वंदना मैडम का झुकाव उस की तरफ बढ़ रहा है तो पहले वह हिचकिचाया.

कम पढ़ेलिखे अंसार की हिचकिचाहट की वजहें भी वाजिब थीं. पहली वजह तो यह कि वह मुसलमान था, दूसरी यह कि वह शादीशुदा और 3 बच्चों का बाप था और तीसरी यह कि सरकारी नौकरी वाली लड़की का इश्क की हद तक झुकाव ही उस के लिए ख्वाब सरीखा था. शायद उस के बारे में जान कर अपने पांव पीछे खींच ले, इसलिए उस ने वंदना को पहले ही अपने बारे में सब कुछ बता दिया था.

अंसार के प्यार में अंधी हो चली वंदना अपनीजिंदगी के पहले और अनूठे अहसास की हत्या शायद नहीं होने देना चाहती थी, इसलिए उस ने सब कुछ कबूल कर लिया.

आग दोनों तरफ बराबरी से लगी हो तो इश्क की आंधी में अच्छेअच्छे उड़ जाते हैं. यही वंदना और अंसार के साथ हो रहा था. दोनों अब बेतकल्लुफ हो कर एकदूसरे से हर तरह की बातें करने लगे थे. मिलने की तो कोई दिक्कत थी ही नहीं. दोनों बसस्टैंड और बस में साथ रहते थे.

चाहत जब बातचीत, हंसीमजाक और कसमों वादों से आगे बढ़ते हुए शरीर की जरूरत तक आ पहुंची तो दोनों को लगा कि मोहब्बत का अलिफ बे तो बहुत पढ़ लिया, लेकिन अब मोहब्बत को उस के मुकम्मल सफर तक पहुंचा दिया जाए.

लेकिन वहां तक पहुंचने के लिए एकांत का होना जरूरी था, जिस से दोनों पूरी तरह एकदूसरे के हो सकें यानी एकदूसरे में समा सकें. छोटे घने कस्बे में एकांत मिलना आसान काम भी नहीं था, लेकिन छटपटाते इन आशिकों ने उस का भी रास्ता निकाल लिया.

4 साल बाद : क्यों किया प्रेमिका से किनारा – भाग 1

इलाहाबाद (प्रयागराज) के वेणीमाधव मंदिर के आसपास का इलाका धनाढ्य लोगों का है. इसी इलाके की वेणीमाधव मंदिर वाली गली में उमा शुक्ला का परिवार रहता था. उन के 3 बच्चे थे, एक बेटा भोला और 2 बेटियां निशा और रचना. पति की मृत्यु के बाद परिवार को संभालने की जिम्मेदारी उमा ने ही उठाई. जब बेटा भोला बड़ा हो गया तो उमा शुक्ला को थोड़ी राहत मिली.

रचना उमा शुक्ला की छोटी बेटी थी, थोड़े जिद्दी स्वभाव की. उस दिन साल 2016 के अप्रैल की 16 तारीख थी. समय सुबह के 10 बजे. रचना जींस और टौप पहन कर कहीं जाने की तैयारी कर रही थी. मां ने पूछा तो बोली, ‘‘थोड़ी देर के लिए जाना है, जल्दी लौट आऊंगी.’’

उमा शुक्ला कुछ पूछना चाहती थीं, लेकिन रचना बिना मौका दिए अपनी स्कूटी ले कर बाहर निकल गई. बड़ी बेटी निशा पहले ही कालेज जा चुकी थी.

थोड़ी देर में लौटने को कह कर रचना जब 2 घंटे तक नहीं लौटी तो उमा शुक्ला को चिंता हुई. उन्होंने फोन लगाया तो वह स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद तो उमा का फोन बारबार रिडायल होने लगा. उन्होंने रचना के कालेज फ्रैंड्स को भी फोन किए, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

शाम होतेहोते जब बेटा भोला शुक्ला और बेटी निशा लौट आए तो उन्होंने सुबह गई रचना के अभी तक नहीं लौटने की बात बताई. निशा और भोला ने भी रचना का फोन ट्राई किया, उस के दोस्तों से भी पता किया लेकिन रचना का पता नहीं चला.

रचना को इस तरह लापता देख भोला ने थाना दारागंज में उस की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी. मां, बेटा और बहन निशा रात भर इस उम्मीद में जागते रहे कि क्या पता रचना आ जाए.

अगले दिन 17 अप्रैल को अखबारों में एक खबर प्रमुखता से छपी कि प्रतापगढ़-वाराणसी मार्ग पर हथीगहां के पास एक लड़की की अधजली लाश मिली है. लाश का जो हुलिया बताया गया था, वह काफी हद तक रचना से मिलता था.

यह खबर पढ़सुन कर उमा शुक्ला का कलेजा दहल गया. फिर भी मन में कहीं थोड़ी सी उम्मीद  थी कि संभव है, लाश किसी और की हो. कई बार निगाहें धोखा खा जाती हैं.

इसी के मद्देनजर भोला अलगअलग 4-5 अखबार खरीद लाया था ताकि खबरों और फोटो को ठीक से जांचापरखा जा सके. अखबारों में छपी खबर और फोटो में कोई फर्क नहीं था. इस से उमा शुक्ला और भोला इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि लाश रचना की है.

इस पर मांबेटे सारे अखबार ले कर थाना दारागंज जा पहुंचे और तत्कालीन थानेदार विक्रम सिंह से मिले. उमा शुक्ला ने जोर दे कर विक्रम सिंह को बताया कि लाश उन की बेटी रचना की है और उस का हत्यारा है सलमान.

उन्होंने यह भी कहा कि अगर सलमान को पकड़ कर ठीक से पूछताछ की जाए तो सच्चाई सामने आ जाएगी. लेकिन विक्रम सिंह हत्या के मामले में पूरी तरह आश्वस्त नहीं थे, वह यह मान कर चल रहे थे कि रचना जिंदा भी तो हो सकती है. उन्होंने उन दोनों को समझा दिया कि हथिगहां में मिली लाश रचना की नहीं है. वह जिंदा होगी और लौट आएगी.

विक्रम सिंह ने उमा शुक्ला से एक लिखित शिकायत ले ली और मांबेटी को समझा कर घर भेज दिया. लेकिन आरोपी का नाम बताने के बावजूद पुलिस ने अगले 2-3 दिन तक रचना के मामले में कोई रुचि नहीं ली. इस पर उमा शुक्ला और भोला एसपी (सिटी) बृजेश श्रीवास्तव से मिले. दोनों ने उन्हें पूरी बात बताई तो बृजेश श्रीवास्तव ने थानाप्रभारी विक्रम सिंह को इस मामले में तुरंत काररवाई करने को कहा.

इस का लाभ यह हुआ कि पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट को अपहरण की धाराओं 363, 366 में तरमीम कर के सलमान व अन्य को आरोपी बना दिया.

पुलिस का ढुलमुल रवैया

मुकदमा तो दर्ज हो गया, लेकिन पुलिस ने किया कुछ नहीं. आरोपी सलमान की गिरफ्तारी तो दूर पुलिस ने उस से पूछताछ तक नहीं की. इस की वजह भी थी. सलमान इलाहाबाद के रईस व्यवसायी साजिद अली उर्फ लल्लन का एकलौता बेटा था.

पुलिस और नेताओं तक पहुंच रखने वाले लल्लन मियां अपने परिवार के साथ थाना दारागंज क्षेत्र के मोहल्ला बक्शी खुर्द में रहते हैं. उन के पास पैसा भी था और ऊपर तक पहुंच भी.

बात 2015 की है. जब भी रचना किसी काम से घर से बाहर निकलती थी, तो इत्तफाकन कहिए या जानबूझ कर सलमान उस के सामने पड़ जाता था. जब भी वह खूबसूरत रचना को देखता तो उस पर फब्तियां कसता, छेड़छाड़ करता. उस समय उस के साथ कई दोस्त होते थे. यह सब देखसुन कर रचना चुपचाप निकल जाती थी.

सलमान के खास दोस्तों में मीरा गली का रहने वाला लकी पांडेय और सलमान का ममेरा भाई अंजफ थे. अंजफ पहले सलमान के पड़ोस में रहता था. बाद में उस का परिवार कर्नलगंज थाना क्षेत्र के बेलीरोड, जगराम चौराहा के पास रहने लगा था. तीनों हमप्याला, हमनिवाला थे. तीनों साथसाथ घूमते थे. लकी पांडेय और अंजफ सलमान के पैसों पर ऐश करते थे.

रचना सलमान की आए दिन छेड़छाड़ से तंग आ गई थी. एक दिन उस ने मां को सलमान द्वारा छेड़ने की बात बता दी. किसी तरह यह बात भोला के कानों तक पहुंच गई. यह सुन कर उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने बहन को परेशान करने वाले सलमान को सबक सिखाने की ठान ली.

एक दिन भोला ने सलमान को रास्ते में रोक कर उग्रता से समझाया, ‘‘जिस लड़की को तुम जातेआते छेड़ते हो, वो मेरी छोटी बहन है. अपनी आदत सुधार लो सलमान, तुम्हारी सेहत के लिए अच्छा रहेगा. मैं तुम्हें पहली और आखिरी बार समझा रहा हूं.’’

सलमान को किसी ने पहली बार उसी के इलाके में धमकाया था. वह ऐसी धमकियों की चिंता नहीं करता था. भोला के चेताने पर भी सलमान पर कोई असर नहीं हुआ. अब राह में जातीआती रचना को वह पहले से ज्यादा तंग करने लगा.

जब पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा तो रचना से सहन नहीं हुआ. उस ने सलमान के खिलाफ थाना दारागंज में छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. लेकिन सलमान के पिता साजिद अली की पहुंच की वजह से पुलिस उस पर हाथ डालने से कतराती रही. भोला के कहनेसुनने पर पुलिस ने दोनों पक्षों के बीच समझौता करा दिया.

समझौते के बाद भोला और उस की मां उमा शुक्ला ने बेटी की इज्जत की खातिर पिछली बातों को भुला दिया. लेकिन घमंडी सलमान इसे आसानी से भूलने वाला नहीं था. उस के मन में अपमान की चिंगारी सुलग रही थी.

बहरहाल, मार्च 2017 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तो उमा शुक्ला को उम्मीद की किरण दिखाई दी. उम्मीद की इसी किरण के सहारे उमा शुक्ला ने योगी आदित्यनाथ को एक शिकायती पत्र भेजा. योगीजी ने उस पत्र का संज्ञान लिया और रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच स्पैशल टास्क फोर्स से कराने के आदेश दे दिए. थाना पुलिस ने रचना शुक्ला कांड की फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी थी.

एसटीएफ ने रचना शुक्ला अपहरण कांड की जांच शुरू तो की, लेकिन बहुत धीमी गति से. फलस्वरूप नतीजा वही रहा ढाक के तीन पात. एसटीएफ भी यह पता नहीं लगा सकी कि रचना जिंदा है या मर चुकी. अगर जिंदा है तो 3 साल से कहां है या आरोपी ने उसे कहां छिपा रखा है.

एसटीएफ की जांच की गति देख कर उमा शुक्ला का इस जांच से भी भरोसा उठ गया. अब उन के लिए न्यायालय ही एक आखिरी आस बची थी. उमा शुक्ला ने दिसंबर, 2019 के दूसरे सप्ताह में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की. याचिका में उन्होंने लिखा कि उन की बेटी का अपहरण हुए 4 साल होने वाले हैं. पुलिस अब तक बेटी के बारे में पता नहीं लगा सकी. आरोपी समाज में छुट्टे घूम रहे हैं.

बदले पे बदला : प्रेम की आग – भाग 1

नए साल का पहला दिन हर किसी के लिए खास होता है. तरुण के लिए इस साल का पहला दिन कुछ ज्यादा ही खास था, क्योंकि इस दिन उस की प्रेमिका मेघा उसे अपना सब कुछ सौंप देने वाली थी. मेघा के बारे में सोचसोच कर तरुण पर तरुणाई सवार होती जा रही थी. दिसंबर 2018 के आखिरी दिन उस ने गिनगिन कर कैसे काटे थे, यह वही जानता था.

जवानी की दहलीज की सीढि़यां चढ़ रही मेघा बेहद खूबसूरत और छरहरी थी. साथ ही इतनी सैक्सी भी कि उस से अपने यौवन का भार उठाए नहीं उठता था. यही हाल 24 वर्षीय तरुण का भी था, जिस के लबों पर बरबस ही यह गाना रहरह कर आ जाता था, ‘उम्र ही ऐसी है कुछ ये तुम किसी से पूछ लो, एक साथी की जरूरत होती है हर एक को…’

पहली जनवरी को तरुण पर्वतों से टकराने नहीं बल्कि एक ऐसा पर्वत चढ़ने जा रहा था, जिस की ख्वाहिश हरेक युवा को होती है. फिर उसे तो बगैर कोई खास कोशिश किए अपनी प्रेमिका से सब कुछ मिलने जा रहा था. उस के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

सुबह जब दुनिया भर के लोग नए साल के जश्न की तैयारियों में लगे थे, तब तरुण खासतौर से सजसंवर कर घर से निकला. उस दिन मोबाइल पर मेघा से उस की कई बार बात हुई थी.

उस से मिलने को बेचैन तरुण हर बार घुमाफिरा कर यह जरूर कंफर्म कर लेता था कि मेघा का सैक्सी पार्टी देने का मूड कहीं बदल तो नहीं गया. हर बार जवाब उम्मीद के मुताबिक मिलता तो उस का हलक सूखने लगता और सीने में दिल की धड़कन बढ़ जाती.

तरुण खुद भी कम हैंडसम नहीं था. लंबे चेहरे पर हलकी सी दाढ़ी और सिर पर घने घुंघराले बालों वाले तरुण के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. अपने मातापिता का एकलौता और लाडला बेटा था वह, जिसे काम भी अच्छा मिल गया था. वह बिलासपुर की ट्रैफिक पुलिस के लिए सीसीटीवी कैमरे ठेके पर चलाता था, जिस से उसे खासी आमदनी हो जाती थी.

सुबह ही सजसंवर कर तैयार हो गए तरुण ने मां राजकुमारी को पहले ही बता दिया था कि साल का पहला दिन होने के चलते काम ज्यादा है, इसलिए वह आज थोड़ी देर से आएगा.

राजकुमारी ने अपने पति शांतनु के साथ दोपहर तक तरुण का इंतजार किया, लेकिन खाने के तयशुदा वक्त पर वह नहीं आया तो उन्होंने उस के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन हर बार उन के हाथ निराशा ही लगी. क्योंकि तरुण का फोन बंद था. पतिपत्नी दोनों ने बेटे को हरसंभव जगह पर देखा, लेकिन वह नहीं मिला तो वे चिंतित हो उठे.

बात थी भी कुछ ऐसी कि उन का चिंतित होना स्वाभाविक था, इसलिए सूरज ढलने से पहले तक दोनों ने तरुण को ढूंढा और जब उस की कोई खबर नहीं मिली तो दोनों रात 10 बजे सरकंडा थाने जा पहुंचे और बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी.

यहां तक बात सामान्य थी, लेकिन जब राजकुमारी ने प्रभात चौक निवासी अपनी ही पड़ोसन बेबी और उस के पति बालाराम मांडले पर तरुण के अपहरण का शक जताया तो पुलिस वालों का माथा ठनका.

पुलिस वालों का माथा ठनकने के पीछे ठोस वजह भी थी, जो शुरुआती जांच और पूछताछ में ही सामने आ गई थी. यह वजह तरुण के अपहरण से ज्यादा महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प थी, साथ ही चिंताजनक भी.

हुआ यूं था कि कुछ साल पहले बेबी प्रभात चौक चिंगराजपुरा में रहने आई थी. उस का घर शांतनु रातड़े के घर से लगा हुआ था. 40 साल की बेबी 3 जवान होते बेटों की मां थी. उस के भरेपूरे और गदराए बदन को देख शायद ही कोई मानता कि वह 40 साल की है. लेकिन यह मीठा सच था.

एक प्राइवेट अस्पताल में काम करने वाली बेबी मांडले की खूबसूरती और जिस्मानी कसावट किसी सबूत की मोहताज नहीं थी.

अपनी इस नई पड़ोसन पर शांतनु खुद को मर मिटने से रोक नहीं पाया और जल्द ही दोनों में शारीरिक संबंध बन गए. यह सब अचानक नहीं हुआ, बल्कि दोनों परिवारों में पहले निकटता बढ़ी और फिर सभी सदस्य एकदूसरे के यहां आनेजाने लगे.

शांतनु बेबी के चिकने जिस्म की ढलान पर फिसला तो शुरुआती मौज के बाद जल्दी ही दुश्वारियां भी पेश आने लगीं. शांतनु और बेबी का वक्तबेवक्त मिलना दोनों के घर वालों खासतौर से बेटों को रास नहीं आया तो निकटता की जगह कलह ने ले ली.

अधेड़ उम्र के शांतनु और बेबी के रोमांस के किस्से चिंगराजपुरा में चटखारे ले कर कहे सुने जाने लगे. लेकिन उन दोनों पर जगहंसाई और कलह का कोई खास फर्क नहीं पड़ा. दोनों एकदूसरे में समा जाने का मौका कब कैसे निकाल लेते थे, इस की हवा भी किसी को नहीं लगती थी.

घर वालों का ऐतराज बढ़ने लगा तो इन अधेड़ प्रेमियों ने सब को चौंकाते हुए साथ रहने का फैसला ले लिया. पत्नी बेबी का यह रूप देख उस का पति बालाराम अपने बेटों को ले कर राजकिशोर यानी आर.के. नगर में जा कर रहने लगा. राजकुमारी भी तरुण को ले कर पति से अलग रहने लगी.

उधर शांतनु और बेबी बिना शादी किए पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे, जिन की मौजमस्ती के सारे बैरियर खुद उन के रास्ते से हट गए थे.

हालांकि जब भी राजकुमारी और बेबी मोहल्ले में आमनेसामने पड़ जातीं तो उन में खूब कलह होती थी. दोनों बीवियों की इस लड़ाई से शांतनु कोई वास्ता नहीं रखता था, उस का मकसद तो बेबी का शरीर था, जिस पर अब उस का पूरी तरह मालिकाना हक था.

कातिल हसीना : लांघी रिश्तों की सीमा – भाग 1

उस दिन फरवरी 2020 की 7 तारीख थी. सुबह के 8 बजे थे. घना कोहरा छाया हुआ था, जिस से सूरज अपनी चमक नहीं बिखेर पा रहा था. उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के तेंदुआ बरांव गांव का रहने वाला सुंदर सिंह अपने खेतों की ओर जा रहा था.

जब वह प्राथमिक विद्यालय के पूर्वी छोर पर अपने खेतों के पास पहुंचा तो वहां एक युवक की लाश देख कर वह ठिठक गया. फिर वह उल्टे पैर गांव की ओर दौड़ पड़ा. गांव पहुंच कर उस ने लाश पड़ी होने की जानकारी गांव वालों को दी. उस के बाद तो गांव में कोहराम मच गया. कुछ ही देर में लाश के पास ग्रामीणों की भीड़ जुट गई.

लाश पड़ी होने की खबर जब इसी गांव के रहने वाले वकील सिंह को लगी तो उस का माथा ठनका. क्योंकि उस का भाई कंधई सिंह बीती रात से घर से गायब था. पूरा परिवार रात भर उस की तलाश में जुटा रहा, परंतु उस का कुछ पता नहीं चल पाया था. अत: वह बदहवास हालत में घटना स्थल पर पहुंचा.

शव औंधे मुंह पड़ा था. उस ने जैसे ही शव को पलटा वैसे ही उस की चीख निकल पड़ी. क्योंकि वह शव उस के भाई कंधई सिंह का ही था. किसी ने बड़ी बेहरमी से की थी. इस के बाद बड़ी उस के परिवार में कोहराम मच गया. मृतक की मां कमला देवी और पत्नी राधा भी मौके पर आ गईं और शव से लिपट कर दोनों रोने लगीं.

इसी दौरान किसी ने फोन कर के शव मिलने की सूचना थाना मल्हीपुर में दे दी. हत्या की खबर पाते ही थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय पुलिस टीम के साथ ले तेंदुआ बरांव गांव की तरफ चल दिए. इस बीच उन्होंने यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी थी.

जब पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तब तक वहां ग्रामीणों की भीड़ जुट गई थी. थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने में जुट गए. कंधई सिंह के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर के उसे मौत के घाट उतारा था. चेहरे पर भी प्रहार कर उस की पहचान मिलाने की कोशिश की गई थी.

सिर व चेहरे पर गहरी चोट के निशान थे. कपड़े, खून से तरबतर थे. जमीन पर भी खून फैला था, जिसे मिट्टी ने सोख लिया था. हत्यारे ने मृतक के गुप्तांग को भी कुचला था. उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि हत्या अवैध रिश्तों के चलते की गई है. मृतक की उम्र यही कोई 30 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अनूप कुमार सिंह, एएसपी वी.सी. दूबे तथा सीओ हौसला प्रसाद घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी वहां से साक्ष्य जुटाए. घटनास्थल पर एक टूटा हुआ मोबाइल भी पड़ा मिला था जिसे थानाप्रभारी ने जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने मृतक की पत्नी राधा को सांत्वना देने के बाद उस से पूछताछ की. राधा ने बताया कि बीती रात 8 बजे उस ने पति के साथ खाना खाया. उस के बाद वह बरतन साफ करने लगी, तभी पति के मोबाइल फोन पर किसी का फोन आया. नंबर देख कर वह घर के बाहर निकले और बात करने के बाद वापस आए. फिर बोले कि जरूरी काम से जा रहे हैं, कुछ देर में आ जाएंगे, पर वह वापस नहीं आए.

खोजने पर नहीं मिला

तब रात 11 बजे राधा ने अपनी सास कमला को जगा कर यह जानकारी दी. कमला ने भी कंधई का फोन मिलाया, लेकिन उस का मोबाइल बंद था. उस के बाद घर वाले उसे रात भर खोजते रहे, पर उस का पता नहीं चला. सुबह मालूम हुआ कि किसी ने उसे मार डाला है.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एएसपी वी.सी. दूबे ने मृतक की मां कमला देवी से पूछा.

‘‘नहीं, साहब, हमें किसी पर शक नहीं है. हमारा न किसी से लेनदेन का झगड़ा है और न ही जमीन जायदाद का. मैं तो खुद हैरान हूं कि मेरे बेटे को किस ने और क्यों मार डाला?’’ कमला ने बताया.

परिवारजनों से पूछताछ के बाद एसपी अनूप कुमार सिंह ने हत्या का परदाफाश करने तथा कातिलों को पकड़ने के लिए एक पुलिस टीम का गठन किया. इस टीम में मल्हीपुर थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय, सीओ (जमुनिहा) हौसला प्रसाद, सीओ (भिनगा), जंग बहादुर सिंह, एसआई किसलय मिश्र, ए.के. सिंह (क्राइम ब्रांच) आदि को शामिल किया गया. टीम की कमान एएसपी वी.सी. दूबे को सौंपी गई.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर तेंदुआ बरांव गांव के विभिन्न वर्गों के लोगों से घटना के संबंध में पूछताछ की. इस पूछताछ से पता चला कि मृतक कंधई सिंह रंगीनमिजाज था. घर में खूबसूरत पत्नी होने के बावजूद वह बाहर ताकझांक करता था. इसी बात को ले कर कई साल पहले उस की कहासुनी गांव के ही भीखू से हुई थी. कंधई सिंह भीखू की बेटी मुनकी से छेड़छाड़ करता था. भीखू ने बेटी की शादी कर दी, इस के बाद भी कंधई सिंह ने उस का पीछा नहीं छोड़ा और उस की ससुराल आनेजाने लगा था.

पुलिस टीम को लाश के पास से जो टूटा हुआ मोबाइल मिला था, उस का सिम सहीसलामत था, पुलिस ने उस फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि वह फोन मृतक का ही था. काल डिटेल्स से जानकारी मिली कि 7 फरवरी की रात 8.58 बजे कंधई सिंह के मोबाइल पर आखिरी काल जिस मोबाइल नंबर से आई थी वह नंबर राजेश पुत्र धनीराम निवासी बालकरामपुरवा, मजरा रामपुर, थाना मल्हीपुर जिला श्रावस्ती का था. राजेश भीखू का दामाद था, उस समय उस की कंधई से एक मिनट बात हुई थी.

अब पुलिस को राजेश से बात करना जरूरी हो गया. लिहाजा पुलिस टीम राजेश के घर पहुंची, लेकिन उस के घर पर ताला लगा था. राजेश और उस के घर वालों के फरार होने से पुलिस का शक और पुख्ता हो गया. इस के बाद पुलिस ने राजेश के ससुर भीखू सिंह के घर पर छापा मारा. भीखू भी परिवार सहित फरार था.

उन दोनों की तलाश में पुलिस टीम ने कई संभावित ठिकानों पर छापे मारे लेकिन उन का पता नहीं चला. आखिर में पुलिस टीम ने राजेश व अन्य की टोह में अपने खास मुखबिर लगा दिए.

तीनों हुए गिरफ्तार

पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर नासिर गंज चौराहे से भीखू, राजेश और उस की पत्नी मुनका देवी को हिरासत में ले लिया. थाने में पुलिस जब राजेश, भीखू तथा मुनकी देवी से कंधई सिंह की हत्या के संबंध में पूछताछ की तो वे तीनों एक सुर हो कर मुकर गए, लेकिन जब उन पर सख्ती बरती गई तो वह तीनों टूट गए और कंधई सिंह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड भी बरामद कर ली, जो राजेश ने अपने घर में छिपा दी थी.

पुलिस टीम ने कंधई सिंह की हत्या का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी अनूप कुमार सिंह को दी. जानकारी पाते ही वह थाना मल्हीपुर आ गए. उन्होंने अभियुक्तों से विस्तृत पूछताछ की. फिर खुलासा करने वाली पुलिस टीम की पीठ थपथपाई और 15 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की.

इस के बाद उन्होंने पुलिस सभागार में प्रैस वार्ता की और हत्यारोपियों को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा किया.

चूंकि उन तीनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और हत्या में प्रयुक्त आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी देवेंद्र पांडेय ने मृतक के भाई वकील सिंह को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत भीखू, राजेश तथा मुनकी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद उन लोगों से विस्तार से पूछताछ की गई तो एक हसीना की कातिल चाल का सनसनीखेज खुलासा हुआ.

उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती जिले के मल्हीपुर थाने के अंतर्गत एक गांव है तेंदुआ बरांव. भीखू अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी सोमवती के अलावा 2 बेटियां थीं, जानकी और मुनकी. भीखू मेहनतमजदूरी कर अपने परिवार का पालनपोषण करता था. बड़ी बेटी जानकी जवान हुई तो उस ने उस का विवाह कर दिया. वह अपनी ससुराल में खुशहाल थी.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

आनंद का आनंद लोक : किरण बनी शिकार – भाग 1

जो शादीशुदा जवान घर और पत्नी से दूर रहते हैं, उन में कई ऐसे भी होते हैं, जो घरवाली को भूल बाहर वाली ढूंढने लगते हैं. कुछ इस में कामयाब भी हो जाते हैं. लेकिन कभीकभी यह गलती इतनी भारी पड़ती है कि जान के लाले पड़ जाते हैं. किरन और आनंद के मामले में भी…

ताजनगरी आगरा. आगरा ताजमहल के लिए ही प्रसिद्ध नहीं है. बस लोगों के देखने का अपनाअपना नजरिया है, क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो आगरा को जूतों के लिए भी जानते हैं. बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड के जूते यहीं बनवाती हैं. रामसिंह एक बड़ी जूता कंपनी में काम करते थे. उन का घर आगरा प्रकाश नगर पथवारी बस्ती में था. रामसिंह के परिवार में उन की पत्नी सरोज, 3 बेटियां थीं. बेटा एक ही था सागर.

2007 में राम सिंह ने बड़ी बेटी लता का विवाह फिरोजाबाद के गांव हिमायूं पुर निवासी शशि पंडित से कर दिया. एकलौता बेटा सागर जूता फैक्टरी में जूतों के लिए चमडे़ की कटिंग का काम करता था. विवाह की उम्र हो गई तो 2012 में रामसिंह ने सागर का विवाह कर दिया. विवाह के बाद उस के 2 बच्चे हुए.

2014 में सागर का बाइक से एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की दांई आंख में चोट लगी, जिस से उस की आंख खराब हो गई, उसे नकली आंख लगवानी पड़ी.

अपने एकलौते बेटे सागर की ऐसी हालत देख कर राम सिंह भी  बीमार पड़ गए. वह तनाव में रहने लगे. नतीजा यह निकला कि वह हारपरटेंशन के मरीज हो गए और उन्हें घर में रहने को मजबूर होना पड़ा.

दूसरी ओर सागर ठीक हो कर काम पर जाने लगा. लेकिन बड़े परिवार में अकेले उस की आय से क्या होता. घर के खर्चे, किरन की पढ़ाई का खर्च, पिता की दवाई का खर्च अलग, ऐसे में वह धीरेधीरे कर्ज में डूबने लगा. इसी बीच राम सिंह की मृत्यु हो गई.

राम सिंह की मौत के बाद एक समय वह भी आया जब सागर को अपना घर बेचने की सोचनी पड़ी. सागर ने मकान बेच कर कर्जे चुकाए. 8 माह किराए पर रहने के बाद उस ने अपने पहले मकान के पास ही मकान ले लिया. उस मकान में 2 ही कमरे थे. जगह की कमी की वजह से सागर ने देवनगर नगला छउआ में किराए का एक और कमरा ले लिया. वहां वह अपनी पत्नी व बच्चों के साथ रहने लगा.

सागर की मां सरोज घरों में झाड़ूपोछे का काम कर के घर का खर्च चलाने लगी.

सागर की बहन किरन ने जीजान से पढ़ाई की. बीए करने के बाद उस ने बीएड भी कर लिया.

आनंद उर्फ अतुल किरन की बड़ी बहन लता की ससुराल के पास रहता था. 35 वर्षीय अतुल न केवल शादीशुदा था बल्कि उस के 3 बच्चे भी थे. बीएससी पास आनंद खुराफाती दिमाग का था. उस ने फिरोजाबाद में फाइनेंस कंपनी खोली और लोगों को लालच दे कर खूब लूटा. जब लोग उसे तलाशने लगे तो वह आगरा भाग आया था.

आनंद ने लता के पति शशि से कहा कि उसे कहीं नौकरी पर लगवा दे. शशि उसे अच्छी तरह जानता था कि वह किस तरह का इंसान है, फिर भी उस की मदद की.

शशि ने उसे आगरा के एक डाक्टर के यहां नौकरी पर लगवा दिया. इस के बाद आनंद ने बदलबदल कर 2-3 जगह और नौकरी की. फिर वह थाना जगदीशपुरा के गढ़ी भदौरिया स्थित ‘खुशी नेत्रालय’ में बतौर कंपाउंडर काम करने लगा. नेत्रालय में बने कमरे में ही वह रहता भी था.

आनंद की तलाश में घर में घुस  आनंद ने शशि पंडित की ससुराल यानी किरन के घर आनाजाना शुरू कर दिया. वहां वह किरन से मिलने आता था.

सांवले रंग की किरन आकर्षक नयननक्श वाली नवयुवती थी. सांचे में ढला उस का बदन किसी मूर्तिकार के हाथों का अद्भुत नमूना जान पड़ता था.

25 वर्षीय किरन पूरी तरह जवान हो गई थी. उस का पूरा यौवन खिल कर महकने लगा था. उस के ख्यालों में भी सपनों का राजकुमार दस्तक देने लगा था.

अकेले बिस्तर पर पड़ी वह उसके ख्यालों में ही खोई रहती थी. सोचतेसोचते कभी हंसने लगती थी तो कभी लजा जाती थी. वह उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां ऐसा होना स्वाभाविक था.

आनंद की नजर किरन पर पड़ी तो वह उस पर आसक्त हो गया. किरन के परिवार के बारे में वह सब कुछ जान गया था. ऐसे में वह किरन को अपने प्रेमजाल में फंसाने के जतन करने लगा. यह सब जानते हुए भी कि वह विवाहित है और किरन अविवाहित. आनंद ने अपने विवाहित होने की बात किरन और उस के घरवालों को नहीं बताई थी.

जब भी वह किरन के पास आता तो उस के आगे पीछे मंडराता रहता. उस की यह हरकत किरन से छिपी न रह सकी. किरन उस का विरोध नहीं कर सकी, क्योंकि कहीं न कहीं आनंद भी उसे पसंद आ गया था.

दोनों के दिलों में प्रेम की भावना जन्म ले रही थी. लेकिन दोनों ने अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं होने दिया था. एक दिन किरन जब बाजार जाने के लिए बाहर निकली तो आनंद ने रास्ते में रोक कर उस की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया.

किरन ने उस की दोस्ती सहर्ष स्वीकार कर ली. दोनों की दोस्ती परवान चढ़ने लगी. दोनों साथ घूमते और मटरगश्ती करते. इस से दोनों में हद से ज्यादा अपनापन और घनिष्ठता आ गई.

दोनों में से अगर कोई एक न मिलता तो दूसरे को अच्छा नहीं लगता था. चेहरे से जैसे खुशी की रेखाएं ही मिट जाती थीं. दोनों की आंखें एकदूसरे को अहसास कराने लगीं कि वे एकदूसरे से प्यार करने लगे हैं. लेकिन इस अहसास के बावजूद दोनों यह दर्शाते थे जैसे उन को कुछ पता ही नहीं है. दोनों को एकदूसरे की बहुत चिंता रहती थी. अब जरूरत थी तो इस प्यार को शब्दों में पिरो कर इजहार कर देने की.

आनंद ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए प्रेमपत्र लिखने की सोची. वह किरन के सामने कहने से बचना चाह रहा था और मोबाइल पर प्रेम की बात कहने में मजा नहीं आता. इसलिए प्रेमपत्र में वह अपने जज्बातों को शब्दों में पिरो कर किरन तक पहुंचाना चाहता था, जिस से किरन उस के लिखे एकएक शब्द में छिपे प्रेम को दिल से समझ सके.

प्रेमिका की हत्या कर सुहागरात की तैयारी

‘‘रानी, यह दूरदूर की मुलाकात में मजा नहीं आता, चल कहीं बाहर चलते हैं’’ पप्पू राव ने अपनी आवाज में शहद घोल कर फोन पर प्रेमिका रानी से कहा.

‘‘रोज ही तो मिलती हूं तुझ से, दूर कहां हूं,’’ रानी ने भी उतनी ही मोहब्बत से पप्पू से सवाल कर डाला.

‘‘नहीं, अभी तू मुझ से बहुत दूर है. अगर तू सचमुच मुझ से प्यार करती है तो मेरे से बाहर मिल. मैं तुझे बहुत सारा प्यार करना चाहता हूं. बहुत सारी बातें करना चाहता हूं.’’ पप्पू बेसब्री से बोला.

अपने प्रेमी की इतनी रोमांटिक बातें सुन कर रानी फोन पर शरमा गई. कुछ पल तो मुंह से बोल ही नहीं फूटे. पप्पू ने सोचा कि शायद वह नाराज हो गई. वह बेचैनी से बोला, ‘‘क्या तू मुझ से प्यार नहीं करती रानी? तुझे मुझ पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘बहुत प्यार करती हूं पप्पू, पूरा भरोसा है तुझ पर. बता, कहां आना है?’’

पप्पू राव के चेहरे पर विजयी मुसकान तैर उठी. वह रानी को अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो गया. उस की मेहनत सफल हो गई. रानी उस के साथ बाहर जाने को तैयार हो गई. अब वह अपनी सारी हसरतें पूरी करेगा.

दूसरे दिन पप्पू अपनी प्रेमिका रानी को मोटरसाइकिल पर बिठा कर शहर की तरफ उड़ा जा रहा था. शहर पहुंच कर उस ने एक सस्ते से होटल में कमरा लिया और दोनों दिन भर के लिए उस में बंद हो गए.

शुरू में रानी ने पप्पू को रोकने की बड़ी कोशिशें कीं, मगर जब पप्पू ने शादी का वादा किया और साथ जीनेमरने की कसमें खाईं तो रानी का सारा ऐतराज समर्पण में बदल गया.

होटल के कमरे में दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. वे दो जिस्म एक जान हो गए. ऐसा एक बार नहीं, कई बार हुआ. महीनों तक हुआ.

बीते एक साल में पप्पू रानी को ले कर गांव के आसपास के कई शहरों में गया. बगहा से ले कर गोरखपुर तक. वहां कई होटलों में अपनी रातें गुलजार कीं. वह रानी को शादी के सपने दिखाता और हसरतें पूरी करता.

रानी शादी की कल्पनाओं में डूबी पप्पू के हाथों तब तक लुटती रही, जब तक उसे यह सूचना नहीं मिली कि पप्पू की शादी तो कहीं और तय हो गई है.

पप्पू मैट्रिक फेल मगर चलतापुरजा था. वैसे तो फिलहाल घर पर रह कर खेतीबाड़ी देख रहा था, मगर पाइप फिटर के काम के लिए वह ठेके पर कई बार विदेश जा चुका था.

बाहर की दुनिया उस ने खूब देखी थी, जेब में पैसा भी था, इसलिए लड़कियों के साथ धोखाधड़ी और अय्याशी उस की फितरत बन गई थी.

उधर रानी 8वीं पास गरीब परिवार की लड़की थी. रानी के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. उस के पिता बीमार रहते थे. घर में खाने वाले ज्यादा थे और कमाई कम. रानी के 6 भाई और एक बहन थी. इसलिए रानी आगे नहीं पढ़ पाई और स्कूल छोड़ कर घरगृहस्थी और खेती के काम में मां का हाथ बंटाने लगी.

उस के परिवार को जब उस के और पप्पू के रिश्ते के बारे में पता चला तो पहले तो मांबाप ने जातपांत, ऊंचनीच समझाई, मगर रानी को पप्पू पर इतना विश्वास था कि उस के आगे सभी हार मान गए.

इधर काफी दिनों से पप्पू रानी से नहीं मिला. वह उस का फोन भी इग्नोर कर रहा था. वाट्सऐप मैसेज का जवाब भी नहीं दे रहा था. तब रानी के दिमाग में शक पैदा हुआ.

उस ने पता लगवाया तो मालूम हुआ कि पप्पू की शादी दूसरे गांव में तय हो गई है, जहां से उसे मोटा दहेज मिल रहा है. इतना पता चलते ही रानी के तो पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

रानी पप्पू के हाथों अपना सब कुछ लुटा बैठी थी. बस उस के इसी वादे पर कि वह उस से शादी करेगा. दुलहन बना कर अपने घर ले जाएगा. मगर यह क्या, वह तो किसी और लड़की को अपनी दुलहन बनाने की फिराक में था.

रानी इतना बड़ा धोखा कैसे बरदाश्त कर सकती थी. उस ने पप्पू की बेवफाई की कहानी रोरो कर अपने घर वालों से बयां कर डाली.

रानी और पप्पू की प्रेम लीला घर वालों से छिपी तो थी नहीं, मगर जब पप्पू की करतूत उन को पता चली तो पहले तो मांबाप ने रानी को ही खूब बुराभला कहा. मगर बाद में बेटी के गम में वे भी शरीक हो गए.

रानी हार मानने वाली नहीं थी. कहते हैं कि प्यार में धोखा खाने वाली औरत चोट खाई नागिन की तरह बन जाती है. रानी का भी हाल कुछ ऐसा ही था. वह फुंफकारते हुए सीधे पप्पू के घर पर धमक पड़ी. वहां 13 फरवरी, 2022 को पप्पू की सगाई हो चुकी थी. अब उसे शादी कर के दुलहन लाने और उस के साथ सुहागरात मनाने का इंतजार था. उस का पूरा घर नातेरिश्तेदारों से भरा हुआ था. दूरदूर से रिश्तेदार आए हुए थे.

उन सब के बीच पहुंच कर रानी ने हंगामा खड़ा कर दिया. वह दनदनाती हुई घर में दाखिल हुई और एक कमरे में कब्जा कर के बैठ गई. पीछे उस के घर वाले भी थे. इस के बाद वहां पर खूब हाईवोल्टेज ड्रामा चला. दोनों पक्षों में जम कर कहासुनी हुई.

रानी ने साफ कह दिया कि पप्पू राव की बीवी सिर्फ और सिर्फ वह है. और पप्पू की शादी सिर्फ और सिर्फ उस से ही होगी. वह अब इस घर को छोड़ कर नहीं जाएगी. रानी के घर वालों ने भी उस का सपोर्ट किया. वह रानी को पप्पू के घर छोड़ कर चले गए, मगर उस से फोन पर लगातार संपर्क में रहे.

यह 15 फरवरी, 2022 की बात है. पप्पू के घर में घुसने से पहले रानी ने महिला थाने में जा कर पप्पू और उस के घरवालों के खिलाफ रिपोर्ट भी करवाई थी. पुलिस ने उसे काररवाई का आश्वासन भी दिया था.

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मामला प्यार में धोखाधड़ी का था. शादी का सपना दिखा कर एक लड़की की इज्जत लूटी गई थी. रानी को उम्मीद थी कि पप्पू के घर में उस के होने से उस की शादी टूट जाएगी, मगर ऐसा हुआ नहीं. पप्पू के घर वाले 16 फरवरी को बारात ले जाने की तैयारियों में जुटे रहे. रानी के रोनेधोने का उन पर कोई असर नहीं हुआ.

बिहार के बगहा जिले में में भैरोगंज थाना क्षेत्र  के सिरिसिया गांव में अपने बेवफा प्रेमी के घर में धरने पर बैठी रानी का फोन 16 फरवरी को रात 10 बजे अचानक बंद हो गया. उस के भाई ने बड़ी कोशिश की, मगर रानी से कोई संपर्क नहीं हो पाया.

घर वाले भागेभागे पप्पू के घर पहुंचे. मगर रानी वहां भी नहीं थी. जिस कमरे में वह धरना दे रही थी, उस कमरे के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. पप्पू के घर वाले ठीक से जवाब नहीं दे रहे थे. कोई कह रहा था, ‘वो चली गई. कहां गई यह हमें क्या पता.’

रानी के घर वाले पूरे गांव में उसे ढूंढते रहे. मगर उस का कुछ अतापता नहीं चला. घर वालों को उस की हत्या का शक हुआ तो उन्होंने फिर भैरोसिंह थाने में जा कर गुहार लगाई. पुलिसकर्मी तब भी उन्हें आश्वासन देते रहे कि हम काररवाई करेंगे.

कोई काररवाई न होते देख रानी के घर वालों ने बगहा के एसडीपीओ कैलाश प्रसाद से गुहार लगाई. मामला जब एसडीपीओ के कान में पड़ा तो उन्होंने भैरोगंज थाने के प्रभारी लालबाबू प्रसाद से जवाब तलब किया.

लालबाबू प्रसाद ने कहा कि मुझे घटना की कोई सूचना नहीं है. लालबाबू ने बड़े ठंडे लहजे में कहा कि 15 फरवरी को उन्हें सूचना मिली थी कि प्रेम प्रसंग को ले कर युवती द्वारा विवाद किया जा रहा है. इस मामले की जांच चल रही है.

एसडीपीओ कैलाश प्रसाद ने डांट पिलाई तो थानाप्रभारी एक्शन में आए और रानी के गायब होने के 3 दिन बाद टीम बना कर पप्पू के घर पर दबिश दी गई, जहां पप्पू शादी कर के दुलहनिया घर ले आया था और बस सुहागरात मनाने की तैयारी में था.

पुलिस पप्पू को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. उस के साथ उस की मां और चचेरे भाई को भी गिरफ्तार किया गया. पहले तो तीनों जवाब देने में आनाकानी करते रहे, मगर जब हवालात में तीनों से सख्ती की गई तो उन की जुबान खुल गई.

आरोपियों ने बताया कि रानी को वे जबरन एक बोलेरो गाड़ी में बिठा कर सुदूर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के चिउटहां के जंगल में ले गए थे, जहां गला घोट कर उस की हत्या करने के बाद उस के शव को एक जगह गड्ढा खोद कर उन्होंने दफना दिया है.

पप्पू की निशानदेही पर पुलिस उस स्थान पर पहुंची, जहां रानी की लाश गाड़े जाने की बात आरोपियों ने कही थी. पुलिस ने उस जगह की खुदाई करवाई तो कुछ ही देर में तेज बदबू के साथ रानी का शव दिख गया.

गड्ढे के अंदर और शव के चारों ओर काफी मात्रा में नमक डाला गया था ताकि शव जल्दी गल जाए. इस से यह पता चला कि रानी की हत्या से पहले पूरी प्लानिंग की गई थी.

जंगल में जगह तलाशना, वहां गहरा गड्ढा खोदना, नमक की बोरियां ला कर उस में डालना आदि बताता है कि पूरे कांड को कई लोगों की मदद से अंजाम दिया गया होगा.

पूछताछ में पता चला कि रानी की हत्या में पप्पू के परिवार के उदय प्रताप राव, सुशील राव, बलदेव राव के अलावा कुछ और लोग शामिल थे. मगर पुलिस सिर्फ 3 लोगों को ही गिरफ्तार कर सकी थी.

पुलिस ने वह बोलेरो गाड़ी भी जब्त कर ली, जिसे रानी को जंगल ले जाने में इस्तेमाल किया गया था.

गांव वालों ने बताया कि शादी के झांसे में ले कर पप्पू ने इस से पहले भी 3 लड़कियों के साथ संबंध बनाए थे. जिस में से एक मामले में शिकायत भी हुई थी.

मगर उस की फितरत नहीं बदली और उस ने रानी के साथ फिर वही हरकत की. लेकिन रानी ने जब हंगामा किया और उस के घर में घुस कर बैठ गई तो वह गुस्से से भर गया. अगले दिन उस की शादी भी होनी थी. इसलिए रानी से मुक्ति पाने के लिए उस ने हमेशा के लिए उसे सुला दिया.

इस पूरे मामले में पुलिस की हीलाहवाली और महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद तुरंत कोई काररवाई न होने से पीडि़त लड़की की हत्या हो गई.

अगर महिला थाने में केस दर्ज होने के तुरंत बाद पुलिस ने काररवाई की होती और आरोपियों को थाने बुला कर पूछताछ शुरू कर दी गई होती तो पप्पू और उस के घर वालों का हौसला इतना न बढ़ता कि लड़की को कार में डाल कर जंगल ले जाएं और मार कर दफना दें. जबकि रानी के घर वाले और पूरा गांव जानता था कि रानी पप्पू के घर में है.

पूरा गांव वहां हुए तमाशे का साक्षी था, बावजूद इस के गांवदेहातों में पुलिस की निष्क्रियता इतनी ज्यादा है कि किसी के मन में कानून को ले कर कोई डर नहीं है.

ऊंची जाति के लड़के नीची जाति की लड़कियों का शारीरिक शोषण करते हैं, उन्हें बरगलाते हैं, भगा ले जाते हैं और कुछ दिन के मनोरंजन के बाद छोड़ देते हैं. अधिकांश मामलों में तो शिकायत ही दर्ज नहीं होती. मगर जब कोई

लड़की हिम्मत कर के शिकायत दर्ज करवाती भी है तो पुलिस की उदासीनता के चलते उस का अंजाम यही होता है जो रानी का हुआ.

आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी – भाग 3

नई प्रेमिका का साथ मिलने पर वह कुकुकोवा को समय नहीं दे पा रहे थे. इतना ही नहीं, वह मारिया को अपना जीवनसाथी भी बनाना चाहते थे. कुकुकोवा अपनी उपेक्षा को महसूस कर रही थी. यह सब मारिया की वजह से हुआ था, इसलिए इस का दोषी वह मारिया को मान रही थी.

वह मारिया से ईर्ष्या करने लगी थी. इस की वजह से वह हमेशा तनाव में भी रहने लगी थी. और तो और वह फोन, ईमेल और डेटिंग ऐप के जरिए उस का पीछा भी करती थी. इस की शिकायत मारिया ने बुश से भी की थी. बुश को भी कुकुकोवा की यह हरकत पसंद नहीं आई. नतीजतन उन दोनों के बीच जबतब तकरार होने लगी. कुकुकोवा उन पर अपना एकाधिकार बनाए रखने की कोशिश करती थी.

एल्ली का कहना था कि कुकुकोवा बहुत जल्द गुस्से में आ जाती थी. दुकान की महंगी चीजों को फर्श पर फेंक देती थी. कई बार तो वह बुश का मोबाइल तक फेंक देती थी, पासपोर्ट छिपा देती थी और उन की गैरमौजूदगी में उन का पर्सनल कंप्यूटर चेक करती थी.

इसी तरह का एक वाकया एल्ली के जन्मदिन के अवसर पर भी हुआ. एल्ली अपने 18वें जन्मदिन के मौके पर पिता और कुकुकोवा के साथ दुबई में थी. एक मौल में महंगी खरीदारी को ले कर कुकुकोवा ने न केवल हंगामा खड़ा कर दिया था, बल्कि गुस्से में उस ने बुश पर अपना बैग फेंक कर हमला भी किया था.

बुश ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर उस ने उसी दिन बुश का लैपटौप भी तोड़ डाला था. उस की वजह से एल्ली के जन्मदिन की खुशियों भरे माहौल में खलल पड़ गया. इंगलैंड वापस लौट कर बुश ने दुबई की घटना को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा.

कुकुकोवा की अजीबोगरीब आदतों को झेलना बहुत ही मुश्किल हो गया था. वह हमेशा तेवर में रहती थी. सितंबर, 2013 में कुकुकोवा बगैर कुछ बताए बुश के यहां से चली गई. वह एक जगह स्थिर नहीं रहती थी. एक शहर से दूसरे शहर घूमती रहती थी. बुश ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन कुकुकोवा को लगता था कि बुश उसे फिर से अपना लेगा. इस के लिए वह अपने फेसबुक एकाउंट पर प्रेमसंबंधों का सबूत देने वाले चुंबन और गले लगने के वीडियो अपलोड करती रहती थी.

कुकुकोवा के परिजनों के अनुसार, हत्या की घटना के 2 सप्ताह पहले वह अपना पुश्तैनी घर छोड़ गई थी. उस वक्त उस के पिता बीमार चल रहे थे. बुश की हत्या की खबर जब अखबारों की सुर्खियां बन गईं और उस की पूर्व पत्नी समेत दूसरे परिजनों ने हत्या का आरोप सीधे तौर पर कुकुकोवा पर लगाया.

इस के बाद स्पेन समेत स्लोवाकिया की पुलिस भी सक्रिय हो गई और बुश की हत्या के 2 दिनों बाद ही कुकुकोवा को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे न्यायिक हिरासत में ले कर मलागा के निकट अल्हउरा डेला टोर्रो जेल में डाल दिया गया. उस की गिरफ्तारी से उस की मां लुबोमीर कुकुका (50) और पिता दानक कुकुकोवा (51) को काफी दुख हुआ. उन्हें लगा जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई है.

कुकुकोवा की वजह से उस के मातापिता की पूरे इलाके में काफी बदनामी हुई. इस के बावजूद वे बेटी को बचाने की कोशिश के लिए स्पेन गए. उन्होंने एक महंगा वकील किया, जिस की फीस जुटाने में उन का पुश्तैनी मकान तक बिक गया.

पुलिस के अनुसार, घटना वाली रात को कुकुकोवा बुश के उसी घर में थी, जिस में बुश ने अपनी नई प्रेमिका मारिया कोरातेवा को बुला रखा था. मारिया किसी वजह से कुछ देर के लिए बाहर चली गई थी. संभवत: वह वापस जाना चाहती थी. थोड़ी देर में ही उस ने गोली चलने की आवाज सुनी. यही गवाही मारिया ने कोर्ट में दी थी.

बुश के स्मार्टफोन पर डेटिंग ऐप के जरिए कुकुकोवा को पता चल चुका था कि बुश और मारिया 5 अप्रैल, 2014 की रात अपनी मुलाकात का पांचवां महीना पूरा होने पर जश्न मनाने वाले हैं. इस के लिए स्पैनिश विला कोस्टा डेल सोल में खास किस्म का रोमांटिक आयोजन किया गया था. इस से पहले ब्रिस्टल हवाई अड्डे पर बुश ने मारिया को 10,000 पाउंड की हीरे की एक अंगूठी भेंट की थी. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि वे विला पर उस से एक खास बात पर चर्चा करना चाहते हैं.

घटना के बारे में मारिया ने बताया, ‘‘5 अप्रैल की सुबह जब हम लोग (मैं और बुश) विला पहुंचे, तब सूर्योदय नहीं हुआ था. हम लोगों ने एकदूसरे का हाथ थामे प्रेमी युगल की तरह हंसहंस कर बातें करते हुए विला में प्रवेश किया. विला के कर्मचारियों ने हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. हम सहज भाव से कमरे में चले गए.’’

मारिया ने आगे बताया, ‘‘बुश ने कमरे की बत्ती जलाई. मुझे कमरे में कुछ अच्छा नहीं लगा. मैं ने दरवाजे के पास एक रैक में ‘ब्रा और किंकर्स’ टंगे देखे. यह देख कर मैं समझ गई कि निश्चित तौर पर यहां पहले से कोई औरतें आती होंगी. मैं बुश से थोड़ा आगे बढ़ी तो कुछ दूरी पर फर्श पर एक अधखुला सूटकेस पड़ा था, जिस में 2 कटार रखे दिखे. उसे देख कर मैं घबरा गई. मैं उलटे पैर मुड़ कर ऊपर की सीढि़यों पर चली गई.

‘‘जब मैं सब से ऊपर पहुंची, तब देखा कि वहां कुकुकोवा बिलकुल शांत, स्थिर एकदम चट्टान की तरह खड़ी थी. वह मुझे ही घूर रही थी. उस ने अपने बाल नीचे किए हुए थे और पाजामा पहन रखा था. ऊपर वह शार्ट्स पहने हुए थी. मैं ने पलभर के लिए उसे देखा और चिल्लाती हुई वहां से भाग कर घर से बाहर आ गई.’’

इसी बीच कुकुकोवा ने बुश पर 3 गोलियां दाग दीं. मारिया ने समझा कि टीवी या सीढि़यों से कोई भारी सामान गिर गया है. कुछ मिनट बाद ही कुकुकोवा बाहर आई तो उस के हाथ में गाड़ी की चाबी थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘कार से दूर हट जाओ.’’

उस वक्त वह बहुत ही शांत थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि बुश ने उसे अपनी हमर कार की चाबी कैसे दे दी. इस से मारिया को शक हुआ. जब तक वह घर में जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी, तब तक कुकुकोवा कार को तेजी से ड्राइव करते हुए फरार हो गई. मारिया विला के अंदर पहुंची तो बुश की रक्तरंजित लाश देख कर घबरा गई.

मारिया ने तुरंत बुश की बहन रशेल और पुलिस को बुलाया. पुलिस के साथ आई डाक्टरों की टीम ने बुश को मृत घोषित कर दिया.

बुश की हत्या के बाद जहां मारिया के सपने साकार होने से पहले ही चूरचूर हो गए, वहीं कुकुकोवा को पूरी जवानी जेल की सलाखों के पीछे गुजारनी होगी. उस के मातापिता पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा है. न तो बुढ़ापे का कोई सहारा है और न ही सिर छिपाने को छत बची है. सब कुछ बेटी को जेल जाने से बचाने में खत्म हो गया है. रही बात एल्ली और बहन रशेल की, तो उन को बुश की यादों के सहारे जीना होगा.