अंजाम-ए-साजिश : एक निर्दोष लड़की की हत्या

 रेलवे लाइनों के किनारे पड़ी बोरी को लोग आश्चर्य से देख रहे थे. बोरी को देख कर सभी अंदाजा लगा रहे थे कि बोरी में शायद किसी की लाश होगी. मामला संदिग्ध था, इसलिए वहां मौजूद किसी शख्स ने फोन से यह सूचना दिल्ली पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी.

कुछ ही देर में पुलिस कंट्रोलरूम की गाड़ी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने जब बोरी खोली तो उस में एक युवती की लाश निकली. लड़की की लाश देख कर लोग तरहतरह की चर्चाएं करने लगे.

जिस जगह लाश वाली बोरी पड़ी मिली, वह इलाका दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना सरिता विहार क्षेत्र में आता है. लिहाजा पुलिस कंट्रोलरूम से यह जानकारी सरिता विहार थाने को दे दी गई. सूचना मिलते ही एसएचओ अजब सिंह, इंसपेक्टर सुमन कुमार के साथ मौके पर पहुंच गए.

एसएचओ अजब सिंह ने लाश बोरी से बाहर निकलवाने से पहले क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम को मौके पर बुला लिया और आला अधिकारियों को भी इस की जानकारी दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी चिन्मय बिस्वाल और एसीपी ढाल सिंह भी वहां पहुंच गए. फोरैंसिक टीम का काम निपट जाने के बाद डीसीपी और एसीपी ने भी लाश का मुआयना किया.

मृतका की उम्र करीब 24-25 साल थी. वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका तो यही लगा कि लड़की इस क्षेत्र की नहीं है. पुलिस ने जब उस के कपड़ों की तलाशी ली तो उस के ट्राउजर की जेब से एक नोट मिला.

उस नोट पर लिखा था, ‘मेरे साथ अश्लील हरकत हुई और न्यूड वीडियो भी बनाया गया. यह काम आरुष और उस के 2 दोस्तों ने किया है.’

नोट पर एक मोबाइल नंबर भी लिखा था. पुलिस ने नोट जाब्जे में ले कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस के सामने पहली समस्या लाश की शिनाख्त की थी. उधर बरामद किए गए नोट पर जो फोन नंबर लिखा था, पुलिस ने उस नंबर पर काल की तो वह उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी में रहने वाले आरुष का निकला. नोट पर भी आरुष का नाम लिखा हुआ था.

सरिता विहार एसएचओ अजब सिंह ने आरुष को थाने बुलवा लिया. उन्होंने मृतका का फोटो दिखाते हुए उस से संबंधों के बारे में पूछा तो आरुष ने युवती को पहचानने से इनकार कर दिया. उस ने कहा कि वह उसे जानता तक नहीं है. किसी ने उसे फंसाने के लिए यह साजिश रची है.

आरुष के हावभाव से भी पुलिस को लग रहा था कि वह बेकसूर है. फिर भी अगली जांच तक उन्होंने उसे थाने में बिठाए रखा. उधर डीसीपी ने जिले के समस्त बीट औफिसरों को युवती की लाश के फोटो देते हुए शिनाख्त कराने की कोशिश करने के निर्देश दे दिए. डीसीपी चिन्मय बिस्वाल की यह कोशिश रंग लाई.

पता चला कि मरने वाली युवती दक्षिणपूर्वी जिले के अंबेडकर नगर थानाक्षेत्र के दक्षिणपुरी की रहने वाली सुरभि (परिवर्तित नाम) थी. उस के पिता सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करते हैं. पुलिस ने सुरभि के घर वालों से बात की. उन्होंने बताया कि नौकरी के लिए किसी का फोन आया था. उस के बाद वह इंटरव्यू के सिलसिले में घर से गई थी.

पुलिस ने सुरभि के घर वालों से उस की हैंडराइटिंग के सैंपल लिए और उस हैंडराइटिंग का मिलान नोट पर लिखी राइटिंग से किया तो दोनों समान पाई गईं. यानी दोनों राइटिंग सुरभि की ही पाई गईं.

पुलिस ने आरुष को थाने में बैठा रखा था. सुरभि के घर वालों से आरुष का सामना कराते हुए उस के बारे में पूछा तो घर वालों ने आरुष को पहचानने से इनकार कर दिया.

नौकरी के लिए फोन किस ने किया था, यह जानने के लिए एसएचओ अजब सिंह ने मृतका के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस में एक नंबर ऐसा मिला, जिस से सुरभि के फोन पर कई बार काल की गई थीं और उस से बात भी हुई थी. जांच में वह फोन नंबर संगम विहार के रहने वाले दिनेश नाम के शख्स का निकला. पुलिस काल डिटेल्स के सहारे दिनेश तक पहुंच गई.

थाने में दिनेश से सुरभि की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कबूल कर लिया कि अपने दोस्तों के साथ मिल कर उस ने पहले सुरभि के साथ सामूहिक बलात्कार किया. इस के बाद उन लोगों ने उस की हत्या कर लाश ठिकाने लगा दी.

उस ने बताया कि वह सुरभि को नहीं जानता था. फिर भी उस ने उस की हत्या एक ऐसी साजिश के तहत की थी, जिस का खामियाजा जेल में बंद एक बदमाश को उठाना पड़े. उस ने सुरभि की हत्या की जो कहानी बताई, वह किसी फिल्मी कहानी की तरह थी—

दिल्ली के भलस्वा क्षेत्र में हुए एक मर्डर के आरोप में धनंजय को जेल जाना पड़ा. जेल में बंटी नाम के एक कैदी से धनंजय का झगड़ा हो गया था. बंटी उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी क्षेत्र का रहने वाला था.

बंटी भी एक नामी बदमाश था. दूसरे कैदियों ने दोनों का बीचबचाव करा दिया. दोनों ही बदमाश जिद्दी स्वभाव के थे, लिहाजा किसी न किसी बात को ले कर वे आपस में झगड़ते रहते थे. इस तरह उन के बीच पक्की दुश्मनी हो गई.

उसी दौरान दिनेश झपटमारी के मामले में जेल गया. वहां उस की दोस्ती धीरेंद्र नाम के एक बदमाश से हुई. जेल में ही धीरेंद्र की दुश्मनी बुराड़ी के रहने वाले बंटी से हो गई. धीरेंद्र ने जेल में ही तय कर लिया कि वह बंटी को सबक सिखा कर रहेगा.

करीब 2 महीने पहले दिनेश और धीरेंद्र जमानत पर जेल से बाहर आ गए. जेल से छूटने के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक कमरे में साथसाथ संगम विहार इलाके में रहने लगे.

उन्होंने बंटी के परिवार आदि के बारे में जानकारी जुटानी शुरू कर दी. उन्हें पता चला कि बंटी के पास 200 वर्गगज का एक प्लौट है. उस प्लौट की देखभाल बंटी का भाई आरुष करता है. कोशिश कर के उन्होंने आरुष का फोन नंबर भी हासिल कर लिया.

इस के बाद दिनेश और धीरेंद्र एक गहरी साजिश का तानाबाना बुनने लगे. उन्होंने सोचा कि बंटी के भाई आरुष को किसी गंभीर केस में फंसा कर जेल भिजवा दिया जाए. उस के जेल जाने के बाद उस के 200 वर्गगज के प्लौट पर कब्जा कर लेंगे. यह फूलप्रूफ प्लान बनाने के बाद वह उसे अंजाम देने की रूपरेखा बनाने लगे.

दिनेश और धीरेंद्र ने इस योजना में अपने दोस्त सौरभ भारद्वाज को भी शामिल कर लिया. पहले से तय योजना के अनुसार दिनेश ने अपनी गर्लफ्रैंड के माध्यम से उस की सहेली सुरभि को नौकरी के बहाने बुलवाया. सुरभि अंबेडकर नगर में रहती थी.

गर्लफ्रैंड ने सुरभि को नौकरी के लिए दिनेश के ही मोबाइल से फोन किया. सुरभि को नौकरी की जरूरत थी, इसलिए सहेली के कहने पर वह 25 फरवरी, 2019 को संगम विहार स्थित एक मकान पर पहुंच गई.

उसी मकान में दिनेश और धीरेंद्र रहते थे. नौकरी मिलने की उम्मीद में सुरभि खुश थी, लेकिन उसे क्या पता था कि उस की सहेली ने विश्वासघात करते हुए उसे बलि का बकरा बनाने के लिए बुलाया है.

सुरभि उस फ्लैट पर पहुंची तो वहां दिनेश, धीरेंद्र और सौरभ भारद्वाज मिले. उन्होंने सुरभि को बंधक बना लिया. इस के बाद उन तीनों युवकों ने सुरभि के साथ गैंपरेप किया. नौकरी की लालसा में आई सुरभि उन के आगे गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उन दरिंदों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

चूंकि इन बदमाशों का मकसद जेल में बंद बंटी को सबक सिखाना और उस के भाई आरुष को फंसाना था, इसलिए उन्होंने सुरभि के मोबाइल से आरुष के मोबाइल नंबर पर कई बार फोन किया. लेकिन किन्हीं कारणों से आरुष ने उस की काल रिसीव नहीं की थी.

इस के बाद तीनों बदमाशों ने हथियार के बल पर सुरभि से एक नोट पर ऐसा मैसेज लिखवाया जिस से आरुष झूठे केस में फंस जाए. उस नोट पर इन लोगों ने आरुष का फोन नंबर भी लिखवा दिया था.

फिर वह नोट सुरभि के ट्राउजर की जेब में रख दिया. सुरभि उन के अगले इरादों से अनभिज्ञ थी. वह बारबार खुद को छोड़ देने की बात कहते हुए गिड़गिड़ा रही थी. लेकिन उन लोगों ने कुछ और ही इरादा कर रखा था.

तीनों बदमाशों ने सुरभि की गला घोंट कर हत्या कर दी. बेकसूर सुरभि सहेली की बातों पर विश्वास कर के मारी जा चुकी थी. इस के बाद वे उस की लाश ठिकाने लगाने के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस की लाश एक बोरी में भर दी.

इस के बाद इन लोगों ने अपने परिचित रहीमुद्दीन उर्फ रहीम और चंद्रकेश उर्फ बंटी को बुलाया. दोनों को 4 हजार रुपए का लालच दे कर इन लोगों ने वह बोरी कहीं रेलवे लाइनों के किनारे फेंकने को कहा.

पैसों के लालच में दोनों उस लाश को ठिकाने लगाने के लिए तैयार हो गए तो दिनेश ने 7800 रुपए में एक टैक्सी हायर की. रात के अंधेरे में उन्होंने वह लाश उस टैक्सी में रखी और रहीमुद्दीन और चंद्रकेश उसे सरिता विहार थाना क्षेत्र में रेलवे लाइनों के किनारे डाल कर अपने घर लौट गए.

लाश ठिकाने लगाने के बाद साजिशकर्ता इस बात पर खुश थे कि फूलप्रूफ प्लानिंग की वजह से पुलिस उन तक नहीं पहुंच सकेगी, लेकिन दिनेश द्वारा सुरभि को की गई काल ने सभी को पुलिस के चंगुल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा हो जाने के बाद एसएचओ अजब सिंह ने हिरासत में लिए गए आरुष को छोड़ दिया.

दिनेश से की गई पूछताछ के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर उस के अन्य साथियों सौरभ भारद्वाज, चंद्रकेश उर्फ बंटी और रहीमुद्दीन उर्फ रहीम को भी गिरफ्तार कर लिया. पांचवां बदमाश धीरेंद्र पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका, वह फरार हो गया था. गिरफ्तार किए गए बदमाशों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

पुलिस को इस मामले में दिनेश की प्रेमिका को भी हिरासत में ले कर पूछताछ करनी चाहिए थी, क्योंकि सुरभि की हत्या की असली जिम्मेदार तो वही थी. उसी ने ही सुरभि को नौकरी के बहाने दिनेश के किराए के कमरे पर बुलाया था.

बहरहाल, दूसरे को फांसने के लिए जाल बिछाने वाला दिनेश खुद अपने बिछाए जाल में फंस गया. पहले वह झपटमारी के आरोप में जेल गया था, जबकि इस बार वह सामूहिक बलात्कार और हत्या के आरोप में जेल गया. पुलिस मामले की जांच कर रही है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नोक वाला जूता: कैसे सामने आया उदयन का सच

राजनगर पुलिस स्टेशन के इंचार्ज इंसपेक्टर राजेश कदम थाने में चहलकदमी कर रहे थे. उन के चेहरे पर परेशानी के भाव नहीं थे. इस की वजह यह थी कि पिछले 4-6 दिनों से मेट्रो सिटी के इस थाने में कोई गंभीर घटना नहीं हुई थी. अलबत्ता छोटीमोटी चोरी, मारपीट, जेबतराशी वगैरह की घटनाएं जरूर हुई थीं. इंसपेक्टर राजेश कदम अपनी कुरसी पर बैठने ही वाले थे कि अचानक फोन की घंटी बज उठी.

‘‘हैलो, राजनगर पुलिस स्टेशन से बोल रहे हैं?’’ फोन करने वाले ने प्रश्न किया.

‘‘जी, मैं बोल रहा हूं.’’ राजेश कदम ने जवाब दिया.

‘‘सर, मैं सुनयन हाउसिंग सोसाइटी से सिक्योरिटी गार्ड बोल रहा हूं. यहां 8वें माले के फ्लैट नंबर 3 में रहने वाले सुरेशजी ने खुद को आग लगा ली है. आत्महत्या का मामला लगता है. आप तुरंत आ जाइए.’’ सूचना देने वाले ने कहा.

‘‘सुरेशजी की मौत हो गई है या अभी जिंदा हैं?’’ राजेश कदम ने पूछा.

‘‘सर, लगता तो ऐसा ही है.’’ फोन करने वाले ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, हम वहां पहुंच रहे हैं. ध्यान रखना कोई भी व्यक्ति अंदर ना जाए और न ही कोई किसी चीज को हाथ लगाए.’’ राजेश कदम ने निर्देश दिया.

दोपहर के करीब पौने 3 बज रहे थे. सुनयन हाउसिंग सोसायटी पुलिस स्टेशन से ज्यादा दूरी पर नहीं थी. सूचना मिलने के लगभग 10 मिनट के अंदर ही राजेश कदम अपनी पुलिस टीम के साथ सुनयन हाउसिंग सोसायटी पहुंच गए. फ्लैट के बाहर 15-20 लोग खड़े थे. लोगों में ज्यादातर महिलाएं थीं, क्योंकि पुरुष अपनेअपने काम पर गए हुए थे. गार्ड समेत 4 पुरुष और थे.

‘‘जी, नमस्कार. मेरा नाम सुरजीत है और मैं इस सोसायटी का सेक्रेटरी हूं.’’ एक 55-60 साल के आदमी ने आगे आ कर अपना परिचय दिया.

‘‘आप को इस घटना की सूचना कब और कैसे मिली?’’ इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘जी, करीब आधे घंटे पहले गार्ड राम सिंह ने राउंड लेते समय नीचे से देखा कि इस फ्लैट से काफी धुआं निकल रहा है तो उस ने इस की सूचना मुझे दी. हम लोग तुरंत यहां आए, लेकिन फ्लैट में औटो लौक होने की वजह से दरवाजा बंद था. सोसायटी औफिस में रखी मास्टर की से जब फ्लैट खोला गया तो यह नजारा था. सुरेश के बदन में आग लगी हुई थी, वह जमीन पर पड़ा हुआ था.

‘‘हम ने उसे काफी आवाजें दीं लेकिन कोई हलचल न होते देख हम ने समझ लिया कि यह मर चुका है. इस के बाद मैं ने आप को सूचना दी. साथ ही किसी को भी अंदर नहीं जाने दिया ताकि किसी चीज से किसी तरह की छेड़छाड़ न हो.’’ सुरजीत ने सारा विवरण एक ही बार में सुना दिया.

‘‘गुड,’’ इंसपेक्टर राजेश ने प्रशंसात्मक स्वर में कहा, ‘‘वैसे यह फ्लैट क्या सुरेश का खुद का है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘नहीं, इस फ्लैट के मालिक तो मिस्टर परेरा हैं, जो पुणे में रहते हैं. सुरेश किसी इंपोर्ट एक्सपोर्ट बिजनैस में डील करता था. जब कभी कोई शिपमेंट होता, तब वह 15-20 दिन यहां रहता था.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘मिस्टर परेरा से तो हम बाद में बात करेंगे. वैसे आप का व्यक्तिगत मत क्या है, आप को क्या लगता है?’’ राजेश ने सुरजीत से पूछा.

‘‘ऐसा लगता है जैसे सिगरेट सुलगाते समय गलती से पहने हुए कपड़ों में आग लग गई. अचानक लगी आग से धुआं उठा और दम घुटने की वजह से सुरेश सिर के बल फ्लोर पर गिरा. सिर पर गहरी चोट लगने के कारण बेहोश हो गया और आग से उस की मौत हो गई. देखिए, उस के पास जली हुई सिगरेट भी पड़ी हुई है.’’ सुरजीत ने आशंका जाहिर की.

‘‘अच्छा औब्जर्वेशन है आप का मिस्टर सुरजीत. वैसे आप करते क्या हैं?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘जी, मैं एक प्राइवेट कंपनी में सिस्टम एनालिस्ट था, अब रिटायर हो चुका हूं.’’ सुरजीत ने बताया.

‘‘गुड एनालिसिस.’’ राजेश ने फिर तारीफ की और अपने साथ आए फोटोग्राफर को अलगअलग एंगल से फोटो लेने को कहा. अपनी टीम से लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने और जांच पूरी होने तक किसी भी चीज के साथ छेड़छाड़ न करने की हिदायत दे कर इंसपेक्टर राजेश कदम थाने लौट आए.

अगले दिन इंसपेक्टर कदम अपने सहयोगी एसआई आदित्य वर्मा के साथ बैठे थे. दोनों के बीच मेज पर घटनास्थल और सुरेश की लाश के फोटो फैले थे, जिन्हें वह बड़े ध्यान से देख रहे थे. बीते दिन घटनास्थल और लाश की सारी औपचारिकताएं वर्मा ने ही पूरी की थीं.

इंसपेक्टर कदम ने वर्मा से पूछा, ‘‘आप का क्या विचार है, इस केस के संदर्भ में मिस्टर वर्मा?’’ फोटोग्राफ्स को देखते हुए इंसपेक्टर राजेश कदम ने पूछा.

‘‘मैं भी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत की राय से सहमत हूं. यह एक एक्सीडेंट है, जो लापरवाही से सिगरेट जलाने के कारण हुआ.’’ एसआई वर्मा ने अपनी राय दी.

‘‘अब सिगरेट कंपनियों को अपनी चेतावनी के साथ यह भी लिखना चाहिए कि सिगरेट सावधानीपूर्वक सुलगाएं वरना आप की जान भी जा सकती है.’’ पास खड़े फोटोग्राफर ने मजाक में कहा.

‘‘वैसे आप का औब्जर्वेशन क्या है, सर?’’ वर्मा ने राजेश कदम से पूछा.

‘‘मेरा औब्जर्वेशन कहता है कि सुरेश सिगरेट पीता ही नहीं था.’’ राजेश ने जवाब दिया.

‘‘क्या?’’ वर्मा व फोटोग्राफर दोनों चौंक कर आश्चर्य से राजेश का मुंह देखने लगे.

‘‘आप यह बात कैसे कह सकते हैं?’’ वर्मा ने प्रश्न किया.

‘‘इन फोटोग्राफ्स को ध्यान से देखिए. अगर सिगरेट सुलगाने से कपड़ों ने आग पकड़ी होती तो आसपास कहीं माचिस या लाइटर जरूर होता. पर यहां पर दोनों ही चीजें दिखाई नहीं पड़ रहीं, जली हुई भी नहीं. दूसरे सुलगाते समय सिगरेट या तो होठों के बीच होती या हाथों की अंगुलियों के बीच, जो जल चुकी होती और हम उस की राख भी नहीं देख पाते. पर यहां पर सिगरेट लाश से 2 फीट की दूरी पर पड़ी है. अगर आग लगाने की वजह से सिगरेट फेंकी गई होती तो उसे पूरी ताकत लगा कर फेंका गया होता. उस कंडीशन में सिगरेट को कम से कम 4-5 फीट की दूरी पर गिरना चाहिए था.

‘‘तीसरी बात जिस तेजी से आग फैली और काला धुआं निकला, वह सिर्फ तन के कपड़ों के जलने से नहीं निकल सकता. सब से महत्त्वपूर्ण बात धुएं से जो काले निशान जमीन पर पड़े, उस में एक हलका सा निशान जूतों का दिखाई पड़ रहा है. जोकि नुकीली नोक वाले जूते का है. सुरेश ने मरते समय घर में पहनी जाने वाली स्लीपर पहनी हुई थी, जूते नहीं.’’ राजेश कदम ने दोनों को अपनी विवेचना के बारे में विस्तार से बताया.

‘‘मतलब यह एक मर्डर केस है?’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘बिलकुल. सिगरेट तो हमें बहकाने के लिए डाली गई है.’’ राजेश ने पूरे विश्वास के साथ कहा.

‘‘पर वहां जलाने के लिए पैट्रोल, डीजल, केरोसिन आदि किसी भी ज्वलनशील पदार्थ की कोई गंध नहीं है. यहां तक कि स्निफर डौग भी इस तरह की किसी गंध को आइडेंटीफाई नहीं कर पाया.’’ फोटोग्राफर ने प्रश्न किया.

‘‘यही इनवैस्टीगेट तो करनी है.’’ राजेश ने कहा.

‘‘कहां से शुरू करें सर.’’ वर्मा ने पूछा.

‘‘देखो, मर्डर दोपहर के 2 बजे के करीब हुआ है. कामकाज और औफिस वर्कर्स तो सुबह जल्दी ही निकल जाते हैं. बाहर का कोई आया भी होगा तो अपने पर्सनल व्हीकल से ही आया होगा. हमें ध्यान यह रखना होगा कि सिर्फ संकरी टो के जूते वाले को ही ट्रेस करना है. एक बजे से शाम तक सोसायटी में आने वाले सभी व्हीकल की बारीकी से जांच होनी चाहिए.’’ राजेश ने कहा.

‘‘सर, अभी सोसायटी के सेक्रेटरी सुरजीत से बात करता हूं. 2 घंटे में सीसीटीवी फुटेज मिल जाएंगे.’’ वर्मा ने कहा और सोसायटी के लिए रवाना हो गए.

‘‘वेरी गुड वर्मा. बेस्ट औफ लक.’’ राजेश ने उन का उत्साहवर्धन किया.

आदित्य वर्मा 2 घंटे से पहले ही लौट आए. आते ही इंसपेक्टर राजेश से बोले, ‘‘लीजिए सर, ये रही सीसीटीवी फुटेज. घटना चूंकि मिड औफिस आवर्स की है, इसीलिए मोमेंटम बहुत ही कम है. टोटल 22 व्हीकल आए या गए. इन में से भी ज्यादातर उन महिलाओं की कारें हैं, जो दोपहर को फ्री आवर्स में शौपिंग के लिए जाती हैं.

‘‘कुल 6 गाडि़यों से पुरुष आए या गए. इन में से भी एक गाड़ी इलेक्ट्रिकल इंसपेक्टर की है, जो उस वक्त मीटर रीडिंग के लिए आया हुआ था.

‘‘बची हुई 5 गाडि़यों में एक मिस्टर खन्ना की गाड़ी ही ऐसी है, जो लगभग एक बजे आई और 3 बजे के आसपास वापस गई. ध्यान देने वाली बात यह है सर, कि मिस्टर खन्ना 10 बजे औफिस जाने के बाद फिर आए थे. परंतु उन के जूते फुटेज में साफ दिखाई दे रहे हैं.’’

‘‘जहां शक है, वहां पुलिस है. खन्ना के बारे में डिटेल्स में कुछ पता चला है?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सर, खन्ना उसी सोसायटी में छठे फ्लोर पर रहते हैं. वह बिजनैसमैन हैं.’’ वर्मा ने बताया.

‘‘ठीक है, उन्हीं से पूछताछ करते हैं. किस समय मिलते हैं खन्ना साहब?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘शाम को 8-साढ़े 8 तक मिल जाते हैं सर.’’

‘‘ठीक है या तो शाम का चाय नाश्ता उन के घर पर करते हैं या रात का खाना उन्हें थाने में खिलाते हैं.’’ राजेश ने कहा.

शाम को इंसपेक्टर राजेश कदम और आदित्य वर्मा सुनयन हाउसिंग सोसायटी में जा पहुंचे. उन्होंने फ्लैट की घंटी बजाई तो एक महिला दरवाजे पर आई. राजेश ने कहा, ‘‘हमें खन्ना साहब से मिलना है.’’

‘‘जी, अंदर आइए.’’ पुलिस की यूनिफार्म देख कर महिला ने कुछ नहीं पूछा.

‘‘गुड इवनिंग सर, मेरा नाम खन्ना है.’’ 5 मिनट में ही सिल्क का कुरता पायजामा पहने, हल्की सी फ्रेंच कट दाढ़ी वाला एक सुदर्शन आदमी अंदर से आ कर बोला. उस के चेहरे से ही रईसी झलक रही थी.

‘‘गुड इवनिंग मिस्टर खन्ना, मेरा नाम राजेश कदम है. मैं आप के एरिए के थाने का इंचार्ज हूं. यहां एक केस की तहकीकात के लिए आप के पास आया हूं. मुझे विश्वास है आप हमें कोऔपरेट करेंगे.’’ राजेश ने अपना परिचय देते हुए आने का मकसद बताया.

‘‘यस…यस श्योर.’’ खन्ना बोला.

बैठ कर औपचारिक बातों के बाद राजेश कदम ने यूं ही पूछ लिया, ‘‘एक सिगरेट मिल सकती है?’’

‘‘जी हां लीजिए,’’ कहते हुए खन्ना ने अपने कुरते की जेब से सिगरेट का केस निकाल कर आगे बढ़ाया. सिगरेट केस पर गोल्डन पौलिश थी और चमक बिखेर रहा था.

‘‘काफी लंबी सिगरेट है.’’ राजेश ने सिगरेट निकालते हुए कहा.

‘‘जी हां, 120 एमएम की है. मेरे पापा भी इसी ब्रांड की सिगरेट पीते थे, इसीलिए मुझे भी यही पसंद है. वैसे आप किस केस के सिलसिले में आए हैं.’’

‘‘आप सुरेश को कब से जानते थे?’’ राजेश ने पूछा.

‘‘सुरेश…कौन सुरेश?’’ खन्ना ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘वही सुरेश जो आठवें माले पर रहते थे, जिन का मर्डर हुआ है.’’ राजेश ने स्पष्ट किया.

‘‘अच्छा, सुरेश नाम था उस बंदे का. मुझे तो अभी पता चला. मैं ने तो आज तक कभी उस की शक्ल तक नहीं देखी. नाम भी आप के मुंह से सुन रहा हूं. उस के मर्डर केस में मुझ से पूछताछ, आश्चर्य है. मुझ से पूछताछ का कोई आधार है आप के पास.’’ खन्ना अपनी भाषा पर पूरा संयम रखते हुए बोला.

‘‘शक का कारण यह है कि आप अकेले ऐसे शख्स थे, जो दोपहर को एक बजे अपने औफिस से वापस घर आए और 3 बजे वापस चले गए. मर्डर इन्हीं 2 घंटों के दौरान हुआ, इसलिए आप से पूछताछ तो बनती है.’’ राजेश ने स्थिति को और स्पष्ट किया.

‘‘अच्छाअच्छा, तो इसलिए शक कर रहे हैं आप. दरअसल, मुझे एक गवर्नमेंट औफिस में कुछ डाक्यूमेंट्स सबमिट करने जाना था. सारे डाक्यूमेंट मेरे लैपटौप में सेव थे, लेकिन उन्हें हार्ड कौपी भी चाहिए थी, जो घर पर रखी हुई थी. वही लेने घर आया था. घर में श्रीमतीजी ने रिक्वेस्ट की, इसीलिए उन के साथ लंच के लिए रुक गया. आप चाहें तो ये डाक्यूमेंट्स चैक कर सकते हैं, जिन पर मैं ने रिसिप्ट ली है.’’ खन्ना ने जल्दी आने के संदर्भ में अपनी सफाई पेश की.

‘‘वह तो मैं आप की सिगरेट देख कर ही समझ गया था क्योंकि जो सिगरेट लाश के पास मिली है, वह सिक्स्टी नाइन एमएम की ही है.’’ राजेश अपने शक को गलत साबित होते देख निराश भाव से बोले, ‘‘वैसे घटना उसी समय की है. हो सकता है, आप की नजर से ऐसी कोई घटना या शख्स गुजरा हो, जिस से पूछताछ की जा सके.’’

‘‘ऐंऽऽऽ कुछकुछ याद आ रहा है. उस समय मुझे लिफ्ट में उदयन मिला था. वह भी ऊपर कहीं से आ रहा था और उस के पीले जूतों पर कुछ कालिख लगी हुई थी. वह उस पैर को उठा कर दूसरे पैर की पैंट के पायचे से साफ करने की कोशिश कर रहा था.’’ खन्ना ने बताया.

‘‘उदयन…कौन उदयन? कौन से फ्लैट में रहता है?’’ एक महत्त्वपूर्ण सुराग मिलते ही राजेश उछल पड़े. उन्होंने खन्ना पर सवालों की झड़ी लगा दी.

‘‘उदयन एक इंश्योरेंस एजेंट है जो यहां से एक्सपोर्ट किए जाने वाले मटीरियल का इंश्योरेंस करता है. इस सोसायटी में ज्यादातर लोग इंपोर्टएक्सपोर्ट से जुड़े हैं, इसलिए वह घर पर ही आ कर डील कर लेता है.’’ खन्ना ने उदयन के बारे में जानकारी दी.

‘‘उदयन के औफिस का एड्रैस या फोन नंबर है क्या आप के पास?’’ राजेश ने कुछ आशा के साथ खन्ना से पूछा.

‘‘अगर मैं उदयन जैसे लोगों के नंबर सेव करने लगा तो मेरी फोन बुक एजेंटों के नाम से ही भर जाएगी. वैसे उस का विजिटिंग कार्ड मेरे औफिस में रखा है.’’ खन्ना ने बताया.

महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलने के बाद राजेश सीधे सिक्युरिटी औफिस गए. वहां पर वह उदयन के नाम की एंट्री खोजने लगे. मगर उसे इस नाम की कोई एंट्री नहीं मिली.

‘‘उदयन नाम का आदमी कल सोसायटी में आया था लेकिन उस के नाम की कोई एंट्री दिखाई क्यों नहीं पड़ रही है?’’ राजेश ने रजिस्टर चैक करते हुए गार्ड से सख्ती दिखाते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि रजिस्टर में सिर्फ व्हीकल से आए हुए लोगों की ही एंट्री की जाती है. अगर पैदल आए लोगों की भी एंट्री करेंगे तो काम बहुत बढ़ जाएगा. वैसे भी हमारे पास इतने आदमी नहीं हैं. घरों में कितने ही नौकर काम करने के लिए आते हैं, सभी की एंट्री संभव नहीं है.

‘‘हम चेहरे से सभी को पहचानते हैं. उदयन भी पैदल ही आता है, हर 2-3 दिन में. शायद इसीलिए उस की एंट्री नहीं की गई होगी.’’ गार्ड ने जवाब दिया, ‘‘वैसे उदयन का औफिस यहां से कुछ ही दूरी पर है. पहले मैं उसी बिल्डिंग में ड्यूटी करता था.’’ गार्ड ने आगे बताया.

गार्ड से उदयन के औफिस का पता ले कर राजेश व उन की टीम वहां पहुंच गई. उस औफिस के चौकीदार से उन्हें उदयन के घर का पता मिल गया. राजेश ने चौकीदार को भी अपने साथ ले लिया ताकि वह उदयन को फोन कर के सूचना न दे सके. दूसरे उदयन की शिनाख्त भी उसी को करनी थी.

घर की घंटी बजने पर उदयन ने ही दरवाजा खोला. चौकीदार के साथ पुलिस को आया देख वह समझ गया कि उस का राज खुल चुका है. उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर लिया.

पुलिस उसे थाने ले आई. थाने में सामने बैठा कर इंसपेक्टर राजेश कदम ने उस से पूछा, ‘‘तुम ने सुरेश का मर्डर क्यों किया?’’

‘‘उस की वादाखिलाफी मेरी तरक्की में बाधा बन रही थी. सुरेश का एकएक शिपमेंट 15 से 20 करोड़ की कीमत का होता था. ऐसे में उस से बिजनैस मिलने से मुझे अच्छे प्रमोशंस मिल सकते थे. पिछले 6 महीनों में उस ने मुझ से 2 बार कोटेशंस ले कर कौन्ट्रैक्ट दिलवाने का वादा किया था. लेकिन उस ने काम किसी दूसरे को दिलवा दिया था.

‘‘तीसरी बार भी उस ने फिर वादाखिलाफी की. यह कौन्ट्रैक्ट न मिलने की वजह से मुझे मिलने वाले सारे प्रमोशंस रुक गए और औफिस में मेरा मजाक बना अलग से. अपने अपमान का बदला लेने के लिए मैं ने उसे जला कर मार डाला. पुलिस को गुमराह करने के लिए वहां सिगरेट भी मैं ने ही डाली थी.’’ बोलतेबोलते उदयन गुस्से से भर उठा था.

‘‘पर तुम ने उसे जलाया कैसे, वहां पर तो पैट्रोल, डीजल, केरोसिन जैसी किसी भी चीज की गंध नहीं थी?’’ एसआई वर्मा ने पूछा.

‘‘मैं विज्ञान का विद्यार्थी रहा हूं. मैं ने पढ़ा था कि एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन जैसे आर्गेनिक कैमिकल्स होते हैं, जो अत्यंत ज्वलनशील होते हैं. उन की गुप्त ऊष्मा भी बहुत अधिक होती है. इस से भी बड़ी विशेषता यह कि जलने के बाद इन की गंध नहीं आती.

‘‘2 दिनों पहले ही मुझे एक बौडी स्प्रे बनाने वाली कंपनी ने अपना प्रोडक्ट एक्सपोर्ट क्वालिटी चैक करने और सैंपल देने की दृष्टि से 1 लीटर मटीरियल दिया था. मैं ने उसी मटीरियल का इस्तेमाल सुरेश को जलाने के लिए किया.’’

‘‘सुरेश को परफ्यूम लगाने का बहुत शौक था, इसीलिए उसे बातों में उलझा कर और भीनी खुशबू का हवाला दे कर उस पर एक लीटर परफ्यूम डाल दिया और अपने लाइटर से आग लगा दी.’’

उदयन ने आगे बताया, ‘‘अत्यधिक फ्लेम होने के कारण उसे तुरंत ही चक्कर आ गया और वह सिर के बल गिर कर बेहोश हो गया.’’

‘‘उदयन, तुम ने योजना तो खूब अच्छी बनाई थी. एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन का इग्नीशन तो तुम्हें याद रहा लेकिन जलने के बाद ओमिशन औफ कार्बन को भूल गए. एक्यूमुलेटेड कार्बन में वहां तुम्हारे जूतों के निशान बन गए और तुम हमारे मेहमान.’’ राजेश कदम ने मुसकराते हुए कहा.

दर्द आशना: सच्चे प्यार की खातिर क्या किया आजर ने

‘‘तुम गई नहीं..?’’

‘‘कहां?’’

‘‘आजर भाई को देखने…’’

‘‘मैं क्यों जाऊं?’’

‘‘घर के सब लोग जा चुके हैं लेकिन तुम हो कि अभी तक नहीं गई. आखिर वह तुम्हारे मंगेतर हैं.’’

‘‘मंगेतर…मंगेतर थे. लेकिन अब नहीं. एक अपाहिज मेरा मंगेतर नहीं हो सकता. मुझे उस की बैसाखी नहीं बनना.’’

वह आईने के सामने खड़ी बाल संवार रही थी और अपनी बहन के सवालों के जवाब लापरवाही से दे रही थी. जब बाल सेट हो गए तो उस ने आईने में खुद को नीचे से ऊपर तक देखा और पर्स नचाती हुई दरवाजे से बाहर निकल गई.

आजर के यहां का दस्तूर था कि रिश्ते आपस में ही हुआ करते थे. और शायद इसी रिवायत को जिंदा रखने के लिए मांबाप ने बचपन में उस का रिश्ता उस के चाचा की बेटी से तय कर दिया था.

आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद हो गई. आजर पुरानी कौपी का उधड़ा हुआ कवर लिए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी, शायद उसे पसंद थी. जोया की नजर पड़ गई, वह चिल्लाने लगी, ‘‘वह मेरा है…उसे मैं लूंगी.’’

आजर भी बच्चा था. बजाए उसे देने के दोनों हाथ पीछे करके छिपा लिए. वह चीखती रही, चिल्लाती रही यहां तक कि बड़े लोग आ गए.

‘‘तौबा है दफ्ती के टुकड़े के लिए जिद कर रही थी. अभी ये आजर के हाथ में न होता तो रद्दी होता. क्या लड़की है, कयामत बरपा कर दी.’’ बड़ी अम्मी बड़बड़ाईं और अपने बेटे आजर को ले कर चली गईं.

यूं ही लड़तेझगड़ते दोनों बड़े हो गए. बचपन पीछे छूट गया. दोनों उम्र के उस मुकाम पर थे, जहां जागती आंखें ख्वाब देखने लगती हैं. और जब आजर ने जोया की आंखों में देखा तो हया की लाली उतर आई.

नजर अपने आप झुकती चली गई. शायद उसे मंगेतर का मतलब समझ आ गया था. अब वह आजर की इज्जत करती, उस की बातों में शरीक होती, उस के नाम पर हंसती. घर वालों को इत्मीनान हो गया कि चलो सब कुछ ठीक हो गया है.

बड़ी अम्मी इन दिनों मायके गई हुई थीं और जब लौटीं तो उन के साथ एक दुबलीपतली सी लड़की थी. जिस की मां बचपन में गुजर चुकी थी. बाप ने दूसरी शादी कर ली थी. अब उस के भी 4 बच्चे थे. बेचारी कोल्हू के बैल की तरह लगी रहती. बिस्तर पर जाती तो बिस्तर बिछाने का होश न रहता. पता नहीं कब सुबह हो जाती.

दादा से पोती की हालत देखी न जाती. दादा बड़ी अम्मी के रिश्ते के चचा थे, जब बड़ी अम्मी उन से मिलने गईं तो पोती का दुखड़ा ले कर बैठ गए.

‘‘अल्ला न करे किसी की मां मरे.’’ बड़ी अम्मी ने ठंडी सांस ली.

‘‘आप उसे हमारे साथ भेज दीजिए.’’ बड़ी अम्मी ने कुछ सोच कर कहा.

अंधा क्या चाहे दो आंखें, वह खुशीखुशी राजी हो गए. लेकिन बहू का खयाल आते ही उन की सारी खुशी काफूर हो गई. वह ले जाने देगी या नहीं. और जब नजर उठी तो वह दरवाजे में खड़ी थी. उस ने सारी बातें सुन ली थीं.

बड़ी अम्मी कब हारने वाली थीं. उन्होंने अपने तरकश से एक तीर छोड़ा, जो सही निशाने पर बैठा. उन्होंने हर महीने कुछ रकम भेजने का वादा किया और उसे अपने साथ ले आईं.

सना ने आते ही पूरा घर संभाल लिया था. इतना काम उस के लिए कुछ नहीं था. वह घर का काम आंखें बंद कर के कर लेती. उसे सौतेली मां के जुल्म व सितम से निजात मिल गई थी. अर्थात वह यहां आ कर खुश थी.

अगर कभी घर में गैस खत्म हो जाती तो लकडि़यों के चूल्हे पर सेंकी हुई सुर्खसुर्ख रोटियां और धीमीधीमी आंच पर दम की हुई हांडी की खुशबू फैलती तो भूख अपने आप लग जाती.

चाची की तरफ मातम बरपा होता. अरे गैस खत्म हो गई…अब क्या करें…भाभी सिलेंडर वाला आया क्या? फिर बाजार से पार्सल आते तब जा कर खाना नसीब होता.

और अगर कभी मिरची पाउडर खत्म हो जाता, सना साबुत मिर्च निकालती. सिलबट्टे पर पीस कर खाना तैयार कर देती. सालन देख कर अम्मी को पता चलता कि मिरची खत्म हो गई है.

और चाची की तरफ ऐसा होता तो जोया कहती, ‘‘न बाबा न मेरे हाथ में जलन होने लगती है. हया तुम पीस लो.’’ हया भी साफ मना कर देती.

सना तुम कौन हो…कहां से आई हो…सादगी की मूरत…वफा का पैकर…जिंदगी का आइडियल, सना तुम्हारी सना (तारीफ) किन लफ्जों में करूं. आजर का दिल बिछबिछ जाता. फिर उसे जोया का खयाल आता.

वह तो उस का मंगेतर है. कल को उस से उस की शादी हो जाएगी, फिर ये कशिश क्यों. मैं सना की तरफ क्यों खिंचा जा रहा हूं. अकसर तनहाई में वह उस के बारे में सोचता रहता.

आजर एक दिन लौंग ड्राइव से लौट रहा था. उस का एक्सीडेंट हो गया. अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने कहा, ‘‘अब ये अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे.’’

सारा घर जमा था. सब का रोरो कर बुरा हाल था. जब से आजर का एक्सीडेंट हुआ था, जोया ने अपने कालेज के दोस्तों से मिलना शुरू कर दिया था. आज भी वह तैयार हो कर किसी से मिलने गई थी. हया के लाख समझाने पर भी उस पर कोई असर न हुआ था.

आजर अस्पताल के बैड पर दोनों पैरों से माजूर लेटा हुआ था. हर आहट पर देखता, शायद वह आ जाए, जिस से दिल का रिश्ता जुड़ा है. वफा के सिलसिले हैं, जीने के राब्ते हैं, जो उस का मुस्तकबिल है, लेकिन दूर तक उस का कहीं पता न था.

एक आहट पर उस के खयालात बिखर गए. अम्मी आ रही थीं. उन के पीछे सना थी. अम्मी ने इशारा किया तो वह सामने स्टूल पर बैठ गई.

अम्मी रात का खाना ले कर आई थीं. आजर खाना खा रहा था और कनखियों से उसे देख रहा था. फुल आस्तीन की जंपर, चूड़ीदार पजामा, सर पर पल्लू डाले वह खामोश बैठी थी. काश! इस की जगह जोया होती, उस ने सोचा.

फिर जल्दी से नजरें झुका लीं. कहीं उस के चेहरे से अम्मी उस का दर्द न पढ़ लें. वह मुंह में निवाला रख कर चबाने लगा. जब खाने से फारिग हो गया तो अम्मी बरतन समेटने लगीं.

‘‘अम्मी, आप रहने दीजिए मैं कर लूंगी.’’ उस की महीनमहीन सी आवाज आई.

उस ने बरतन समेट कर थैले में रखे और खड़ी हो गई. जब वह बरतन उठा रही थी तो खुशबू का झोंका उस के पास से आया और आजर को महका गया. अम्मी उसे अपना खयाल रखने की हिदायत दे कर चली गईं.

आज आजर को डिस्चार्ज मिल गया था. बैसाखियों के सहारे जब वह अंदर आया तो अम्मी का कलेजा मुंह को आने लगा. लेकिन होनी को कौन टाल सकता है. सना आजर का पहले से ज्यादा खयाल रखती. बहरहाल दिन गुजरते रहे.

एक दिन देवरानीजेठानी दरम्यानी बरामदे में बैठी हुई थीं. देवरानी शायद बात का सिरा ढूंढ रही थी.

‘‘भाभी, हम आप से कुछ कहना चाहते हैं.’’ उन्होंने उन की आंखों में देखा.

‘‘जोया ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया है. वह आजर से रिश्ता नहीं करना चाहती, क्योंकि आजर तो…’’ उन्होंने जुमला अधूरा छोड़ दिया. वह जबान से कुछ न बोलीं और उठ कर चली आईं.

आजर ने नोटिस किया था, अम्मी बहुत बुझीबुझी सी रहती हैं. आखिर वह पूछ बैठा, ‘‘अम्मी क्या बात है, आप बहुत उदास रहती हैं.’’

‘‘कुछ नहीं, बस ऐसे ही, जरा तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘मैं जानता हूं आप क्यों परेशान हैं, जोया ने इस रिश्ते से मना कर दिया है.’’

अम्मी ने चौंक कर बेटे की तरफ देखा.

‘‘हां अम्मी, मुझे मालूम है. वह मुझे देखने तक नहीं आई. अगर रिश्ता नहीं करना था, तो न सही. लेकिन इंसानियत के नाते तो आ सकती थी, जिस का इंसानियत से दूरदूर तक वास्ता न हो, मुझे खुद उस से कोई रिश्ता नहीं रखना.’’

‘‘मेरे बच्चे…’’ अम्मी की आंखों से बेअख्तियार आंसू निकल पडे़. उन्होंने उसे गले से लगा लिया.

‘‘अम्मी मेरी शादी होगी…उसी वक्त पर होगी..’’ अम्मी ने उसे परे करते हुए उस की आंखों में देखा. जिस का अर्थ था अब तुझ से कौन शादी करेगा.

‘‘अम्मी, मैं सना से शादी करूंगा. सना मेरी शरीकेहयात बनेगी…मैं ने सना से बात कर ली है.’’ यह सुन कर अम्मी ने फिर उसे गले से लगा लिया.

शादी की तैयारियां होने लगीं. और जो वक्त जोया के साथ शादी के लिए तय था, उसी वक्त पर आजर और सना का निकाह हो गया. आजर को याद आया, एक बार जोया ने बातोंबातों में कहा था, शादी के बाद वह हनीमून के लिए स्विटजरलैंड जाएगी. आजर ने ख्वाहिश जाहिर की तो अम्मी ने उसे जाने की इजाजत दे दी.

आज वह हनीमून से लौट रहा था. सना अंदर दाखिल हुई तो कितनी निखरीनिखरी, कितनी खुश लग रही थी. फिर उस ने दरवाजे की ओर मुसकरा कर देखा, ‘‘आइए न…’’

इतने पर आजर अंदर दाखिल हुआ.

उसे देख कर अम्मी की आंखें हैरत से फैलती चली गईं. वह अपने पैरों पर चल कर आ रहा था.

‘‘बेटे, ये सब क्या है?’’ उन्होंने बढ़ कर उसे थाम लिया.

‘‘बताता हूं…पहले आप बैठिए तो सही.’’ उस ने दोनों बांहें पकड़ कर उन्हें बिठा दिया.

‘‘आप वालिदैन अपने बच्चों के फैसले तो कर देते हैं लेकिन यह भूल जाते हैं कि बड़े हो कर उन की सोच कैसी होगी. उन के खयालात कैसे होंगे. उन का नजरिया कैसा होगा.

‘‘और मुझे सच्चे दर्द आशना की तलाश थी. जिस के अंदर कुरबानी का जज्बा हो, एकदूसरे के लिए तड़प हो. …और ये सारी खूबियां मुझे सना में नजर आईं, इसलिए मैं ने डाक्टर से मिल कर एक प्लान बनाया.

‘‘वह एक्सीडेंट झूठा था. मेरे पैर सहीसलामत थे. ये मेरा सिर्फ नाटक था, नतीजा आप के सामने है. जोया ने खुद इस रिश्ते से इनकार कर दिया. सना ने मुझ अपाहिज को कबूल किया. मैं सना का हूं, सना मेरी है.’’

जोया ने सारी बातें सुन ली थीं. उस का जी चाह रहा था सब कुछ तोड़फोड़ डाले.

शाहिद का दांव

रमेश गौतम का परिवार इसी कालोनी में रहता था. उस की पत्नी रेखा (45 वर्ष) आलमबाग स्थित एक निजी क्लिनिक में वार्ड आया की नौकरी करती थी, जबकि उस का पति रमेश आटो मैकेनिक था. रेखा रोजाना सुबह के समय अपनी ड्यूटी के लिए निकलती थी और ड्यूटी पूरी कर के नियत समय पर घर लौट आती थी.

16 अक्तूबर, 2019 की शाम को रमेश घर लौटा तो पत्नी रेखा को घर न पा कर उस ने बेटी रीतू गौतम से पूछा, ‘‘अभी तक तुम्हारी मम्मी घर नहीं आई है?’’

‘‘नहीं पापा, मम्मी अभी नहीं आई है. पता नहीं आज कैसे इतनी देर हो गई?’’ रीतू ने बताया.

‘‘हो सकता है आज क्लिनिक में कोई जरूरी काम आ गया हो.’’ रमेश ने सोचा और पत्नी का इंतजार करने लगा.

काफी रात तक इंतजार करने के बाद भी रेखा नहीं आई तो रमेश पत्नी को देखने उस के क्लिनिक पहुंच गया. वहां उसे पता चला कि रेखा अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद शाम को घर चली गई थी. क्लिनिक के कर्मियों से पूछने पर रमेश को पता चला कि रेखा कृष्णानगर में टीपू नामक व्यक्ति से पैसे लेने की बात कह रही थी.

जब देर रात तक रेखा घर वापस नहीं लौटी तो रमेश गौतम ने अगले दिन दोपहर तक उसे परिचितों के यहां तलाशा. इस के बाद भी जब उस का कोई सुराग न लगा तो उस ने थाना पारा पहुंच कर पत्नी की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

अगले दिन 17 अक्तूबर, 2019 को थाना पारा के एसएसआई संतोष कुमार को एक दुखद सूचना मिली. पता चला कि वहां से 25 किलोमीटर दूर थाना सरोजनी नगर के अंतर्गत आने वाले कालिया खेड़ा गांव के पास वन विभाग के जंगल में एक महिला का शव मिला है. पता चला कि वह शव पोस्टमार्टम हाउस की मोर्चरी में रखा हुआ है.

चूंकि थाना पारा में रमेश गौतम ने पत्नी की गुमशुदगी दर्ज कराई थी, इसलिए एसएसआई संतोष कुमार ने अज्ञात लाश मिलने की सूचना रमेश गौतम को दे दी. रमेश गौतम मोर्चरी पहुंच गया. जब उसे सरोजनी नगर थाना पुलिस द्वारा बरामद की गई महिला की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी पत्नी रेखा के रूप में कर दी. फिर पोस्टमार्टम के बाद रेखा का शव रमेश को सौंप दिया गया.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने रमेश गौतम की बेटी रीतू गौतम की तहरीर पर भादंवि की धारा 302, 201 के अंतर्गत टीपू निवासी कृष्णानगर के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.

टीपू को गिरफ्तार करने के लिए थानाप्रभारी प्रमेंद्र सिंह ने अतिरिक्त थानाप्रभारी अरविंद कुमार पांडेय, एसआई संजय कुमार सिंह, दिनेश बहादुर आदि के साथ उस के घर दबिश दी. वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में टीपू से पूछताछ की गई तो उस ने रेखा की हत्या में अपना हाथ होने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन उस ने पुलिस को कुछ ऐसे सुराग दे दिए, जिस से पुलिस रेखा के सही कातिल तक पहुंच गई.

टीपू द्वारा पुलिस को ज्ञात हुआ कि रेखा का पड़ोस में रहने वाले शाहिद अली से आपसी मनमुटाव लगभग 10 महीने पहले हो गया था. शाहिद अली रेखा से रंजिश रखता था.

मांगने पर रमेश गौतम ने पुलिस को रेखा गौतम और शाहिद अली के मोबाइल नंबर उपलब्ध करा दिए. पुलिस ने दोनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन का अध्ययन किया तो पता चला कि शाहिद अली ने 16 अक्तूबर, 2019 को रेखा को फोन किया था.

यह जानकारी मिलने पर पुलिस शाहिद अली की तलाश में लग गई. इसी दौरान मुखबिर से पता चला कि शाहिद अली सरोजनी नगर इलाके में शहीद पथ तिराहे के पास मौजूद है. यह सूचना मिलने के बाद पुलिस टीम शहीद पथ तिराहे पर पहुंच गई.

वहां शाहिद अली मिल गया. पुलिस टीम ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने रेखा गौतम की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस ने उस की हत्या की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

शाहिद अली मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा की तहसील कर्नलगंज के गांव बाबूदास भयापुरवा का रहने वाला था. शाहिद जब जवान हुआ तो उसे रोजगार की चिंता होने लगी. गांव में रोजगार का कोई साधन न होने की वजह से शाहिद कामधंधे की तलाश में लखनऊ आ गया. यह बात सन 2016 की है.

शाहिद अली ने लखनऊ में कामधंधा तलाश किया. उस ने लखनऊ की डूडा कालोनी में किराए का एक कमरा ले लिया. वहां रह कर उस ने टैंपो चलाना शुरू किया. जब उस की आमदनी बढ़ी तो उस ने डूडा कालोनी में अपने नाम एक फ्लैट आवंटित करा लिया और अपनी पत्नी व बच्चों को लखनऊ बुला लिया.

उस के फ्लैट के पास रमेश गौतम का फ्लैट था. रमेश गौतम के परिवार में पत्नी रेखा गौतम के अलावा 2 बच्चे थे. रेखा गौतम आलमबाग में स्थित एक क्लिनिक में आया थी.

आसपास रहने के कारण शाहिद अली की रमेश गौतम से अच्छी जानपहचान हो गई थी. दोनों के परिवार भी आपस में घुलमिल गए थे, जिस की वजह से दोनों परिवार एकदूसरे के घर आतेजाते थे. शाहिद अली सीधा व सरल स्वभाव का था, इसी वजह से रेखा उसे पसंद करती थी.

रेखा गौतम बेहद चालाक व शातिर किस्म की महिला थी. उस ने शाहिद अली को अपने झांसे में ले लिया. शाहिद ने अपने परिवार के गुजरबसर के लिए रमेश गौतम से एक विक्रम टैंपो किराए पर दिलाने या खरीद कर देने की पेशकश की. उस ने रमेश को भरोसा दिलाया कि वह हर महीने टैंपो की किस्त का भुगतान करता रहेगा.

रमेश गौतम ने शाहिद की यह बात रेखा को बताई तो वह कुछ देर तक सोचती रही. फिर उस ने हां में सिर हिला दिया और सहानुभूति दिखाते हुए शाहिद को एक पुराना टैंपो दिलवा दिया. रेखा ने वह टैंपो कुछ दिनों पहले ही किसी और से खरीदा था. यह सन 2017 की बात है.

शाहिद अली अवध अस्पताल इको गार्डन से ले कर पारा कालोनी होता हुआ बुद्धेश्वर चौराहे तक टैंपो चलाने लगा. धीरेधीरे पुलिस की मिलीभगत से यह टैंपो डग्गामारी में कई महीने तक चलता रहा.

अचानक एक बार नहरिया अस्पताल के निकट शाहिद का टैंपो पुलिस ने चैकिंग के दौरान पकड़ा गया. पुलिस ने उस के कागज मांग कर छानबीन की तो टैंपो चोरी का निकला. रेखा ने शाहिद को उस टैंपो के फरजी कागज बना कर दिए थे. दरअसल, रेखा ने किसी को थोड़ीबहुत कीमत दे कर वह टैंपो खरीद लिया था, जो बाद में उस ने 60 हजार रुपए में शाहिद अली को बेच दिया.

लेकिन शाहिद अली इस बात से बिलकुल अंजान था कि रेखा ने उस के साथ धोखा किया है. सन 2017 में शाहिद अली इसी टैंपो की चोरी के आरोप में जेल चला गया, जहां वह 3 महीने से अधिक जेल में रहा.

शाहिद के जेल जाने के बाद उस की पत्नी मेहरुन्निसा (परिवर्तित नाम) बेसहारा हो गई और उस की गुजरबसर की समस्या सामने आ खड़ी हुई. रेखा ने शाहिद की पत्नी को सहानुभूतिवश आर्थिक सहायता की.

शाहिद जब जेल से छूट कर बाहर आया तो उसे पता चला कि उस की पत्नी मेहरुन्निसा रेखा से काफी घुलमिल गई है. इतना ही नहीं, उस ने मेहरुन्निसा के कानों में शाहिद के खिलाफ उलटी सीधी बातें भी भर दीं. इस का नतीजा यह निकला कि शाहिद के जेल से आने के बाद मेहरुन्निसा उस से तलाक देने की बातें करने लगी थी.

शाहिद रेखा से बहुत खफा था लेकिन वक्तबेवक्त उस के द्वारा मदद करने के कारण वह उस के अहसानों से दबा हुआ था. इसलिए उस की करतूतों और अपनी पत्नी का विरोध खुल कर नहीं कर पाता था, बल्कि वह पत्नी को सचेत करता रहता था कि कहां तुम रेखा के चक्कर में पड़ी रहती हो. वह बहुत शातिर किस्म की औरत है.

लेकिन मेहरुन्निसा पति की एक भी बात नहीं सुनती थी. कहनेसुनने का पत्नी पर कोई फर्क न पड़ते देख शाहिद अली परेशान हो गया. उस की बेटी पर रेखा का कोई गलत प्रभाव न पड़े, इसलिए वह मजबूरीवश अपनी पत्नी और बेटी को अपने पैतृक गांव बाबूदास भयापुरवा, जिला गोंडा में छोड़ आया.

इस के अलावा उस ने अपनी दूसरी बेटी फातिमा (18 वर्ष) को अपने बहनोई मुजीबुल्ला के घर छोड़ दिया. बहनोई का घर उस के डूडा कालोनी स्थित घर से कुछ दूर दरोगाखेड़ा में था.

कुछ समय के बाद शाहिद को पता चला कि रेखा फातिमा से मिलने दरोगाखेड़ा जाती है और उसे लालच दे कर अपने साथ बाहर घुमाने भी ले जाती है. शाहिद ने बेटी को समझाया और रेखा से दूर रहने को कहा लेकिन फातिमा ने रेखा का साथ नहीं छोड़ा.

शाहिद दिन भर किराए का टैंपो चला कर मजदूरी कर के अपना पेट पालता था. वह अपना टैंपो ले कर सुबह निकल जाता और देर रात लौटता था. वह फातिमा के दिन भर के क्रियाकलापों से अंजान था.

शाहिद अली जून, 2018 में अपने पैतृक निवास बाबूदास भयापुरवा आया हुआ था. इसी दौरान 30 जून, 2018 को उस की बेटी फातिमा दरोगाखेड़ा से कहीं गायब हो गई. शाहिद अली को शक हुआ कि रेखा ही उस की बेटी को बरगलाती रहती थी. उस ने ही फातिमा को कहीं गायब किया होगा. इसलिए उस ने लखनऊ आ कर रेखा से फातिमा के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में अनभिज्ञता जता दी.

शाहिद पुलिस को सूचना दिए बगैर खुद ही बेटी को ढूंढता रहा, पर उस का पता नहीं चला. शाहिद रेखा की करतूतों से काफी तंग आ चुका था. उस की ही वजह से वह टैंपो चोरी के आरोप में जेल गया था और अब उस ने उस की बेटी को कहीं गायब करा दिया था. इस के अलावा वह उस की पत्नी मेहरुन्निसा को भी सिखापढ़ा कर घर को बरबाद करने पर तुली हुई थी. इन्हीं सब बातों को देखते हुए उस ने रेखा को सबक सिखाने का निर्णय ले लिया.

अपने मकसद में कामयाब होने के लिए उस ने रेखा से दोस्ती गांठ कर अपने संबंध प्रगाढ़ एवं विश्वसनीय बना लिए. अब रेखा उस पर विश्वास करने लगी. शाहिद कभी रेखा को उस के क्लिनिक से टैंपो में बिठा कर उस के घर छोड़ आता था और कभी घर से उसे बाजार भी ले जाता था.

धीरेधीरे रेखा को शाहिद पर इतना विश्वास हो गया कि शाहिद उसे फोन कर के कहीं बुलाता तो वह वहीं चली जाती थी. रेखा भी क्लिनिक से घर वापस आने के लिए शाहिद को फोन करती तो शाहिद टैंपो ले कर पहुंच जाता था.

16 अक्तूबर, 2019 को शाम शाहिद अली ने रेखा को फोन कर के नादरगंज टैंपो स्टैंड पर बुलाया तो रेखा क्लिनिक से सीधे शाहिद अली की बताई गई जगह पर पहुंच गई. शाहिद ने अपना टैंपो नादरगंज में आटो मैकेनिक की दुकान पर खड़ा कर दिया था और उस ने कुछ देर के लिए मैकेनिक की बाइक मांग ली.

वह रेखा को बाइक पर बैठा कर नादरगंज तिराहे से टीएस अस्पताल के निकट कलियाखेड़ा गांव की ओर जाने वाले सुनसान रोड पर ले गया. वहां एक जगह उस ने बाथरूम के बहाने बाइक रोकी. तभी उस ने बाइक की डिक्की से बांका निकाल कर रेखा के सिर और चेहरे पर हमला कर दिया.

रेखा घायल हो कर नीचे गिर पड़ी तो गुस्से से भरे शाहिद ने उसी के दुपट्टे से गला कस कर उस की हत्या कर दी. बाद में उस के शव को खींच कर वन विभाग के जंगल में डाल दिया, जबकि बांका और रेखा का दुपट्टा वहीं कुछ दूरी पर छिपा कर फरार हो गया.

पुलिस ने शाहिद की निशानदेही पर 22 अक्तूबर, 2019 को हत्या में प्रयुक्त बांका, मृतका का दुपट्टा, प्रयोग में लाई गई बाइक बरामद कर ली. 23 अक्तूबर को सीजेएम न्यायालय में पेश करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.

पुलिस को इस जांच के दौरान ही पता चला कि शाहिद की बेटी फातिमा का पड़ोस में रहने वाले आलम नाम के युवक से प्रेम प्रसंग चल रहा था. वह 30 जून, 2018 को उस के साथ ही घर से भाग गई थी.

उस ने उस के साथ निकाह कर लिया था. बहरहाल, जिस बेटी के गायब कराने के शक में शाहिद ने रेखा की हत्या की थी, वह बेटी प्रेमी से पति बने आलम के साथ मौजमजे से रह रही है.

 

सौजन्य- सत्यकथा, फरवरी 2020

बालिका सेवा के नाम पर

31जनवरी, 2019 की शाम जावरा क्षेत्र में पिपलोदा रोड स्थित कुटीर बालिका गृह के बाहर अफरातफरीका माहौल था. बालिका गृह के गेट पर औद्योगिक क्षेत्र के टीआई बी.एल. सोलंकी, एसआई मधु राठौर और पुलिस बल के साथ खड़े थे.
भारी पुलिस बल को देख कर लोगों की भीड़ जुटने लगी थी. उसी समय पूर्व संचालिका रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश भारतीय के साथ बालिका गृह से बाहर निकल आई.
रचना भारतीय अपने पति ओमप्रकाश के साथ आश्रम के प्रांगण में स्थित घर में रहती थी. रचना ने टीआई सोलंकी से आने की वजह जाननी चाही तो टीआई ने बताया कि वह जिला कलेक्टर के आदेश पर आश्रम में रहने वाली बच्चियों को वहां से हटा कर रतलाम के वन स्टाफ सेंटर में ले जाने के लिए आए हैं.
रचना और उस के पति ओमप्रकाश ने इस बात का विरोध करना चाहा लेकिन पुलिस के सामने उन की एक नहीं चली. पुलिस ने आश्रम में रह रही करीब 300 बालिकाओं को बसों में बैठाया. इतना ही नहीं टीआई बी.एल. सोलंकी ने रचना भारतीय व ओमप्रकाश को भी हिरासत में ले लिया. इस के बाद वह उन्हें ले कर थाने लौट आए. उन्होंने सभी बालिकाओं को रतलाम के वन स्टाफ सेंटर भेज दिया.
रचना और ओमप्रकाश भारतीय को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने की बात जल्द ही पूरे जावरा शहर में फैल गई. पर पुलिस की काररवाई चलती रही. टीआई सोलंकी ने अगले दिन क्षेत्र के 2 और चर्चित व्यक्तियों कुंदन वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सुदेश जैन और सचिव दिलीप बरैया को भी गिरफ्तार कर लिया.
दरअसल इन की गिरफ्तारी की वजह यह थी कि कुटीर आश्रम से 24 जनवरी, 2019 को 5 बालिकाएं बालिका गृह का रोशनदान तोड़ कर फरार हो गई थीं.
आश्रम से बालिकाओं के भागने की सूचना मिलते ही पुलिस और बाल कल्याण समिति सक्रिय हो गई. जिस के चलते ये सभी बालिकाएं शाम को मंदसौर में मिल गईं. बालिकाओं से पूछताछ की गई तो पता चला कि रचना और उस का पति अन्य लोगों के साथ मिल कर इन लड़कियों का शारीरिक शोषण करते थे.

कलेक्टर ने दिए थे जांच के आदेश

यह जानकारी जब रतलाम की कलेक्टर रुचिका चौहान को मिली तो उन्होंने जावरा क्षेत्र के एसडीएम एम.एल. आर्य को संस्था में रह रही दूसरी लड़कियों से पूछताछ करने के निर्देश दिए. एसडीएम ने आश्रम जा कर वहां रह रही करीब 300 लड़कियों से पूछताछ की तो उन्होंने आपबीती एसडीएम साहब को बता दी.
एसडीएम ने अपनी रिपोर्ट कलेक्टर रुचिका चौधरी को सौंप दी. इस के बाद ही कलेक्टर रुचिका चौहान ने आदेश दिया कि कुटीर बालिका गृह में रह रही सभी बच्चियों को वहां से वन स्टाफ सेंटर रतलाम शिफ्ट कर दिया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त काररवाई की जाए.
जिला कलेक्टर के आदेश पर ही पुलिस ने बालिका गृह की पूर्व संचालिका रचना भारतीय तथा उस के पति ओमप्रकाश भारतीय, संस्था के वर्तमान अध्यक्ष और सचिव सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया के खिलाफ भादंवि की धारा 354, 376, 324 एवं बालकों की देखरेख संरक्षण अधिनियम की धारा 75, पोक्सो 5डी, 4, 7/8 के तहत मामला दर्ज कर लिया.
जांच में पुलिस को पता चला कि रचना भारतीय पूर्व में इस बालिका गृह की संचालिका के पद पर थी. वह अपने पति ओमप्रकाश के साथ बालिका गृह के एक हिस्से में रहती थी. बाद में अपनी राजनैतिक पकड़ के चलते उसे बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया था.

चूंकि वह एक साथ 2 पदों पर नहीं रह सकती थी, लिहाजा उस ने बालिका गृह की संचालिका का पद छोड़ना जरूरी समझा. यह पद छोड़ने के बाद रचना ने अपने विश्वसनीय सुदेश जैन और दिलीप बरैया को संस्था का अध्यक्ष और सचिव बनवा दिया था. पद छोड़ने के बाद भी रचना अपने पति के साथ इसी आश्रम में रहती थी.
सुदेश जैन और दिलीप बरैया नाम के ही पदाधिकारी थे. बालिका गृह से जुड़े सारे फैसले रचना और उस का पति ही लेते थे.
बहरहाल पुलिस ने दूसरे दिन सभी आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जहां से रचना भारतीय को रतलाम एवं ओमप्रकाश भारतीय, सुदेश जैन तथा दिलीप बरैया को जावरा जेल भेज दिया गया.
अदालत में पेश करने से पहले सुदेश जैन एवं दिलीप बरैया की मौजूदगी में टीआई बी.एल. सोलंकी तथा हुसैन टेकरीजहां के तहसीलदार के सामने आश्रम की सील तोड़ कर दस्तावेजों की जांच की गई.
साथ ही लापरवाही बरतने के आरोप में महिला सशक्तिकरण अधिकारी रहे एवं वर्तमान में महिला बाल विकास विभाग के सहायक संचालक रविंद्र मिश्रा को निलंबित कर दिया गया.
इस के अलावा रचना को बाल कल्याण समिति के अध्यक्ष पद से भी हटा दिया गया. बालिका गृह में लड़कियों के साथ किए जाने वाले शोषण की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

कई साल पहले जावरा नगर पालिका के अध्यक्ष हुआ करते थे कुंदनमल भारतीय. ओमप्रकाश भारतीय कुंदनमल का ही बेटा था. जबकि रचना ओमप्रकाश भारतीय की पत्नी थी. कुंदनमल की मृत्यु के बाद सन 2015 में रचना ने कुंदन बेलफेयर सोसाइटी का गठन कर उस के अंतर्गत पिपलौदा रोड पर कुंदन कुटीर नाम से बालिका गृह का संचालन किया.

राजनैतिक पहुंच का उठाया लाभ

रचना और उस के पति की राजनीति में अच्छी पकड़ थी जिस के चलते जल्द ही इस बालिका गृह को शासन से मोटा अनुदान मिलने लगा. जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल में ही शासन की तरफ इस बालिका गृह को करीब 38 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली थी. सूत्रों की मानें तो इस अनुदान राशि के अलावा रचना प्रदेश भर से काफी बड़ी रकम दान के रूप में बेटोर रही थी.
जो 5 लड़कियां बालिका गृह से भागी थीं, उन्होंने बताया कि हम सभी रचना को मम्मा कहते थे और उस के पति को पापा. लेकिन उन की नीयत लड़कियों के प्रति अच्छी नहीं थी. पापा रोज शराब पीते थे और रचना मम्मा इस दौरान हम में से किसी एक लड़की को शराब के पैग तैयार करने का काम सौंप देती थी. मम्मा खुद भी शराब पीती थी और दूसरे लोग भी रोज आश्रम में आ कर उन दोनों के साथ शराब पीते थे.
रात के समय आश्रम में आने वाली एक महिला भी शराब पीए होती थी. मम्मा एक गुप्त रास्ते से लड़कियों के कमरों में आती थी. रात के खाने में हमें कुछ मिला कर खिलाया जाता था, जिस के बाद हम उठ ही नहीं पाते थे.
यह भी पता चला कि सन 2018 में लड़कियों की शिकायत पर बाल संरक्षण अधिकारी पवन कुमार सिसौदिया ने जांच कर के अपनी रिपोर्ट रतलाम में संबंधित विभाग के 2 अधिकारियों को सौंपी थी. लेकिन उन की जांच रिपोर्ट पर कोई काररवाई नहीं की गई.
शिकायत में बच्चियों ने आरोप लगाए कि रचना मम्मा का व्यवहार काफी खराब है. वह बातबात पर हम लोगों से मारपीट करती हैं. समय पर खाना भी नहीं दिया जाता. लड़कियों ने बताया कि रचना के पति हम लोगों के शरीर पर गलत नीयत से हाथ फेरते थे. मना या विरोध करने पर हमारे साथ मारपीट की जाती थी. वह कभीकभी किचन में आ कर लड़कियों के पैर में हाकी डाल कर उन्हें अपनी तरफ खींच लेते.

बहरहाल अब शासन ने पूरे मामले को गंभीरता से लेते हुए न केवल 4 आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है बल्कि रचना के आश्रम में रहने वाली सभी बच्चियों को रतलाम और उज्जैन के आश्रमों में शिफ्ट कर दिया है, दूसरी तरफ रतलाम कलेक्टर के निर्देश पर पुलिस उन तमाम बच्चियों से संपर्क कर उन के बयान लेने की कोशिश कर रही हैं, जो कभी न कभी रचना के आश्रम में रही थीं.
कुंदन कुटीर बालिका गृह मामले में एक युवती से वीडियो बनवाने के संबंध में करीब 2 महीने से फरार चल रहे नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस से निष्कासित यूसुफ कड़पा को पुलिस ने गिरफ्तार कर भी लिया. गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने आरोपी को आननफानन में कोर्ट में पेश किया, जहां से कोर्ट ने उसे जमानत पर रिहा कर दिया.इस मामले में पुलिस ने कोर्ट में आरोपी के पुलिस रिमांड की मांग भी नहीं की. पुलिस ने कोर्ट से उसे जेल भेजने का आग्रह किया, लेकिन कोर्ट ने आरोपी के आवेदन पर उसे कोर्ट से ही जमानत पर रिहा कर दिया.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

500 टुकड़ों में बंटा दोस्त

मुंबई के विरार (पश्चिम) में स्थित है ग्लोबल सिटी. यहीं पर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट बने हुए हैं. जिन में सैकड़ों लोग रहते हैं. 20 जनवरी, 2019

को इस सोसाइटी में रहने वाले लोग जब नीचे आ जा रहे थे, तभी उन्हें तेज बदबू आती महसूस हुई. वैसे तो यह बदबू पिछले 2 दिनों से महसूस हो रही लेकिन उस दिन बदबू असहनीय थी.

कई दिन से बदबू की वजह से लोग नाक बंद कर चले जाते थे. उन्हें यह पता नहीं लग रहा था कि आखिर दुर्गंध आ कहां से रही है. सोसाइटी के गार्डों ने भी इधरउधर देखा कि कहीं कोई बिल्ली या कुत्ता तो नहीं मर गया, पर ऐसा कुछ नहीं मिला.

20 जनवरी को अपराह्न 11 बजे के करीब सोसाइटी के लोग इकट्ठा हुए और यह पता लगाने में जुट गए कि आखिर बदबू आ कहां से रही है. थोड़ी देर की कोशिश के बाद उन्हें पता चल गया कि बदबू और कहीं से नहीं बल्कि सेप्टिक टैंक के चैंबर से आ रही है. किस फ्लैट की टायलेट का पाइप बंद है, यह पता लगाने और उसे खुलवाने के लिए सोसाइटी के लोगों ने 2 सफाईकर्मियों को बुलवाया.

सफाई कर्मचारियों ने चैक करने के बाद पता लगा लिया कि सोसाइटी की सी विंग के फ्लैटों का जो पाइप सैप्टिक टैंक में आ रहा था, वह बंद है. सी विंग में 7 फ्लैट थे, उन्हीं का पाइप नीचे से बंद हो गया था. पाइप बंद होना आम बात होती है जो आए दिन फ्लैटों में देखने को मिलती रहती है.

सफाई कर्मियों ने जब वह पाइप खोलना शुरू किया तो उस में मांस के टुकड़े मिले. पाइप में मांस के टुकड़े फंसे हुए थे, जिन की सड़ांध वहां फैल रही थी.

सोसाइटी के लोगों को यह बात समझ नहीं आ रही थी कि किसी ने मांस डस्टबिन में फेंकने के बजाए फ्लैट में क्यों डाला. जब पाइप में मांस ज्यादा मात्रा में निकलने लगा तो सफाईकर्मियों के अलावा सोसाइटी के लोगों को भी आश्चर्य हुआ. शक होने पर सोसाइटी के एक पदाधिकारी ने पुलिस को फोन कर इस की जानकारी दे दी.

सूचना मिलने पर अर्नाला थाने के इंसपेक्टर सुनील माने पैराडाइज सोसाइटी पहुंच गए. पाइप में फंसा मांस देख कर उन्हें भी आश्चर्य हुआ. उसी दौरान उन्हें उस मांस में इंसान के हाथ की 3 उंगलियां दिखीं.

उंगलियां देखते ही उन्हें माजरा समझते देर नहीं लगी. वह समझ गए कि किसी ने कत्ल कर के, लाश के छोटेछोटे टुकड़े कर के इस तरह ठिकाने लगाने की कोशिश की है. जल्दी ही यह बात पूरी सोसाइटी में फैल गई, जिस के चलते आदमियों के अलावा तमाम महिलाएं भी वहां जुटने लगीं.

मामला सनसनीखेज था इसलिए इंसपेक्टर माने ने फोन द्वारा इस की सूचना पालघर के एसपी गौरव सिंह और डीवाईएसपी जयंत बजबले के अलावा अपने थाने के सीनियर इंसपेक्टर घनश्याम आढाव को दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम में यह सूचना प्रसारित होने के बाद क्राइम ब्रांच की टीम भी मौके पर पहुंच गई. पुलिस ने मांस के समस्त टुकड़े अपने कब्जे में लिए. पुलिस की समझ में यह बात नहीं आ रही थी कि जिस की हत्या की गई है, वह इसी सोसाइटी का रहने वाला था या फिर कहीं बाहर का.

जिस पाइप में मांस के टुकड़े फंसे मिले थे वह पाइप सी विंग के फ्लैटों का था. इस से यह बात साफ हो गई थी कि कत्ल इस विंग के ही किसी फ्लैट में किया गया है. सी विंग में 7 फ्लैट थे. पुलिस ने उन फ्लैटों को चारों ओर से घेर लिया ताकि कोई भी वहां से पुलिस की मरजी के बिना कहीं न जा सके. फोरेंसिक एक्सपर्ट की टीम भी बुला ली गई थी.

रहस्य फ्लैट नंबर 602 का वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने उन सभी फ्लैटों की तलाशी शुरू कर दी. तलाशी के लिए पुलिस फ्लैट नंबर 602 में पहुंची. वह फ्लैट बाहर से बंद था. लोगों ने बताया कि वैसे तो इस फ्लैट की मालिक पूनम टपरिया हैं लेकिन कुछ दिनों पहले उन्होंने यह फ्लैट किशन शर्मा उर्फ पिंटू नाम के एक आदमी को किराए पर दे दिया था. वही इस में रहता है.

किशन शर्मा उस समय वहां नहीं था इसलिए सोसाइटी के लोगों की मौजूदगी में पुलिस ने उस फ्लैट का ताला तोड़ कर तलाशी ली तो वहां इंसान की कुछ हड्डियां मिलीं. इस से इस बात की पुष्टि हो गई कि कत्ल इसी फ्लैट में किया गया था. कत्ल किस का किया गया था यह जानकारी किशन शर्मा से पूछताछ के बाद ही मिल सकती थी. बहरहाल, पुलिस ने मांस के टुकड़े, हड्डियां आदि अपने कब्जे में ली.

थोड़ी कोशिश कर के पुलिस को किशन शर्मा उर्फ पिंटू का फोन नंबर भी मिल गया था. वह कहीं फरार न हो जाए इसलिए पुलिस ने बड़े रेलवे स्टेशनों, बस अड्डे व हवाई अड्डे पर भी पुलिस टीमें भेज दीं.

इस के अलावा सीनियर पुलिस इंसपेक्टर घनश्याम आढाव ने किशन शर्मा का मोबाइल नंबर मिलाया. इत्तेफाक से उस का नंबर मिल गया. उन्होंने अपनी पहचान छिपाते हुए किसी बहाने से उसे एक जगह मिलने के लिए बुलाया. उस ने आने के लिए हां कर दी तो वहां पुलिस टीम भेज दी गई. वह आया तो सादा लिबास में मौजूद पुलिस कर्मियों ने उसे दबोच लिया.

40 वर्षीय किशन शर्मा को हिरासत में ले कर पुलिस थाने लौट आई. एसपी गौरव सिंह की मौजूदगी में जब उस से उस के फ्लैट नंबर- 602 में मिली मानव हड्डियों और मांस के बारे में पूछताछ की गई तो थोड़ी सी सख्ती के बाद उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने अपने 58 वर्षीय लंगोटिया यार गणेश विट्ठल कोलटकर की हत्या की थी.

पुलिस ने मृतक के शरीर के अन्य हिस्सों के बारे में पूछा तो किशन ने बताया कि उस ने गणेश की लाश के करीब 500 टुकड़े किए थे. कुछ टुकड़े टायलेट में फ्लश कर दिए और कुछ टुकड़े टे्रन से सफर के दौरान फेंक दिए थे. किशन के अनुसार, उस ने सिर तथा हड्डियां भायंदर की खाड़ी में फेंकी थीं.

गणेश विट्ठल किशन शर्मा का घनिष्ठ दोस्त था तो आखिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों के बीच दुश्मनी हो गई. दुश्मनी भी ऐसी कि किशन शर्मा ने उस की हत्या कर लाश का कीमा बना डाला. इस बारे में पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ की तो इस हत्याकांड की दिल दहला देने वाली कहानी सामने आई—

किशन शर्मा मुंबई के सांताक्रुज इलाके की राजपूत चाल के कमरा नंबर 4/13 में अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ रहता था. उस ने मुंबई विश्वविद्यालय से मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान में सर्टिफिकेट कोर्स किया था.

लेकिन अपने कोर्स के मुताबिक उस की कहीं नौकरी नहीं लगी तो वह शेयर मार्केट में काम करने लगा. करीब 8 महीने पहले उस की मुलाकात थाणे जिले के मीरा रोड की आविष्कार सोसाइटी में रहने वाले गणेश विट्ठल कोलटकर से हुई जो बाद में गहरी दोस्ती में तब्दील हो गई थी. गणेश की अपनी छोटी सी प्रिंटिंग प्रैस थी.

एक दिन गणेश ने किशन शर्मा से कहा कि अगर वह प्रिंटिंग प्रैस के काम में एक लाख रुपए लगा दे तो पार्टनरशिप में प्रिंटिंग प्रैस का धंधा किया जा सकता है. किशन इस बात पर राजी हो गया और उस ने एक लाख रुपए अपने दोस्त गणेश को दे दिए. इस के बाद दोनों दोस्त मिल कर धंधा करने लगे. किशन मार्केट का काम देखता था.

कुछ दिनों तक तो दोनों की साझेदारी ईमानदारी से चलती रही पर जल्द ही गणेश के मन में लालच आ गया. वह हिसाब में हेराफेरी करने लगा. किशन को इस बात का आभास हुआ तो उस ने साझेदारी में काम करने से मना करते हुए गणेश से अपने एक लाख रुपए वापस मांगे. काफी कहने के बाद गणेश ने उस के 40 हजार रुपए तो वापस दे दिए लेकिन 60 हजार रुपए वह लौटाने का नाम नहीं ले रहा था.

किशन जब भी बाकी पैसे मांगता तो वह कोई न कोई बहाना बना देता था. वह उसे लगातार टालता रहा. इसी दौरान किशन को सूचना मिली कि गणेश 56 साल की उम्र में शादी करने वाला है. इस बारे में किशन ने उस से बात की तो गणेश ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. पहले वह शादी करेगा. इस के बाद पैसों की व्यवस्था हो जाएगी तो दे देगा.

गणेश की यह बात किशन को बहुत बुरी लगी. वह समझ गया कि गणेश के पास पैसे तो हैं लेकिन वह देना नहीं चाहता. लिहाजा उस ने दोस्त को सबक सिखाने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह गणेश को ठिकाने लगाएगा.

योजना बनाने के बाद उस ने विरार क्षेत्र की पैराडाइज सोसाइटी में फ्लैट नंबर 602 किराए पर ले लिया. वह फ्लैट पूनम टपरिया नाम की महिला का था. किशन कभीकभी अकेला ही उस फ्लैट में सोने के लिए चला आता था.

योजना के अनुसार 16 जनवरी, 2019 को किशन शर्मा अपने दोस्त गणेश विट्ठल कोलटकर को ले कर पैराडाइज सोसाइटी के फ्लैट में गया. फ्लैट में घुसते ही किशन ने उस से अपने 60 हजार रुपए मांगे. इसी बात पर दोनों के बीच झगड़ा हो गया. झगड़े के दौरान किशन ने कमरे में रखा डंडा गणेश के सिर पर मारा. एक ही प्रहार में गणेश फर्श पर गिर गया. कुछ ही देर में उस की मौत हो गई.

गणेश की मौत हो जाने के बाद किशन के सामने सब से बड़ी समस्या उस की लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने असिस्टेंट पुलिस इंसपेक्टर अश्वनि बिदरे गोरे की हत्या से संबंधित जानकारियां इकट्ठा कीं, ताकि पुलिस को आसानी से गुमराह किया जा सके. उस ने यूट्यूब पर भी डैड बौडी को ठिकाने लगाने के वीडियो देखे. उन में से उसे एक वीडियो पसंद आया जिस में लाश को छोटेछोटे टुकड़ों में काट कर उन्हें ठिकाने लगाने का तरीका बताया गया था.

यह तरीका उसे आसान भी लगा. क्योंकि वह मानव शरीर रचना एवं क्रिया विज्ञान की पढ़ाई कर चुका था. इस के लिए तेजधार के चाकू की जरूरत थी. किशन शर्मा सांताकु्रज इलाके की एक दुकान से बड़ा सा चाकू और चाकू को तेज करने वाला पत्थर खरीद लाया.

खरीद लाया मौत का सामान फ्लैट पर पहुंच कर किशन शर्मा ने सब से पहले गणेश विट्ठल कोलटकर की लाश का सिर धड़ से अलग कर उसे एक पालीथीन में रख लिया. इस के बाद उस ने लाश के 500 से अधिक टुकड़े कर दिए. शरीर की हड्डियों और पसलियों को उस ने तोड़ कर अलग कर लिया था.

वह मांस के टुकड़ों को टायलेट की फ्लश में डालता रहा. सिर और हड्डियां उस ने भायंदर की खाड़ी में फेंक दीं. कुछ हड्डियां उस ने पालीथिन की थैली में भर कर ट्रेन से सफर के दौरान रास्ते में फेंक दी थी. उस का फोन भी उस ने तोड़ कर फेंक दिया था.

उधर गणेश विट्ठल कई दिनों से घर नहीं पहुंचा तो उस की बहन अनधा गोखले परेशान हो गई. उस ने भाई को फोन कर के बात करने की कोशिश की लेकिन उस का फोन बंद मिला. फिर वह 20 जनवरी को मीरा रोड के नया नगर थाने पहुंची और पिछले 4 दिनों से लापता चल रहे भाई गणेश विट्ठल की गुमशुदगी दर्ज करा दी.

पुलिस ने किशन शर्मा से पूछताछ के बाद गणेश विट्ठल का सिर बरामद करने की कोशिश की लेकिन वह नहीं मिला. अंतत: जरूरी सबूत जुटाने के बाद हत्यारोपी किशन शर्मा को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

वेलेंसिया की भूल : दोस्ती पड़ी भारी

वेलेंसिया अपनी फ्रैंड रीमा वलीप के माध्यम से शैलेश वलीप के संपर्क में आई. उस ने शैलेश से दोस्ती भी की और बात 7 जून, 2019 की है. उस समय सुबह के यही कोई 4 बजे थे. सैलानियों के लिए स्वर्ग कहे जाने वाले गोवा राज्य के मडगांव की रहने वाली जूलिया फर्नांडीस अपने साथ 4-5 रिश्तेदारों को ले कर कुडतरी पुलिस थाने पहुंची. वह किसी अनहोनी की आशंका से घबराई हुई थी.

थाने में मौजूद ड्यूटी अफसर ने जूलिया से थाने में आने की वजह पूछी तो उस ने अपना परिचय देने के बाद कहा कि उस की बहन वेलेंसिया फर्नांडीस कल से गायब है, उस का कहीं पता नहीं लग रहा है.

‘‘उस की उम्र क्या थी और कैसे गायब हुई?’’ ड्यूटी अफसर ने पूछा.

‘‘वेलेंसिया की उम्र यही कोई 30 साल थी. रोजाना की तरह वह कल सुबह 8 बजे अपनी ड्यूटी पर गई थी. वह मडगांव के एक जानेमाने मैडिकल स्टोर पर नौकरी करती थी. अपनी ड्यूटी पर जाते समय वेलेंसिया काफी खुश थी. क्योंकि आज से 10 दिनों बाद उस का जन्मदिन आने वाला था, उन का परिवार उस के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाता था.

‘‘घर से निकलते समय वह कह कर गई थी कि आज उसे घर लौटने में देर हो जाएगी. फिर भी वह 9 बजे तक घर पहुंच जाएगी. उस का कहना था कि ड्यूटी के बाद वह मौल जा कर जन्मदिन की पार्टी की कुछ शौपिंग करेगी.

‘‘मगर ऐसा नहीं हुआ. रात 9 बजे के बाद भी जब वेलेंसिया नहीं आई तो घर वालों की चिंता बढ़ गई. उस के मोबाइल नंबर पर फोन किया गया तो उस का फोन नहीं मिला. इस के बाद सारे नातेरिश्तेदारों और उस की सभी सहेलियों को फोन कर के उस के बारे में पूछा गया. लेकिन कहीं से भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.’’ जूलिया फर्नांडीस ने बताया.

जूलिया फर्नांडीस और उन के साथ आए रिश्तेदारों की सारी बातें सुन कर ड्यूटी अफसर ने वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर इस की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम को भी दे दी. इस के बाद उन्होंने वेलेंसिया का फोटो लेने के बाद आश्वासन दिया कि पुलिस वेलेंसिया को खोजने की पूरी कोशिश करेगी.

वेलेंसिया की गुमशुदगी की शिकायत को अभी 4 घंटे भी नहीं हुए थे कि वेलेंसिया के परिवार वालों को उस के बारे में जो खबर मिली, उसे सुन कर पूरा परिवार हिल गया.

दरअसल, सुबहसुबह वायना के कुडतरी पुलिस थाने से लगभग 7 किलोमीटर दूर रीवन गांव के जंगल में कुछ लोगों ने सफेद रंग की चादर में एक लाश देखी तो उन में से एक शख्स ने इस की जानकारी गोवा पुलिस के कंट्रोलरूम को दे दी. पुलिस कंट्रोलरूम ने वायरलैस द्वारा यह सूचना शहर के सभी पुलिस थानों में प्रसारित कर दी.

जिस जंगल में लाश मिलने की सूचना मिली थी, वह इलाका मडगांव केपे पुलिस थाने के अंतर्गत आता था, सूचना मिलते ही केपे थाने की पुलिस लगभग 10 मिनट में मौके पर पहुंच गई. पुलिस को वहां काफी लोग खड़े मिले.

इस बीच जंगल में लाश मिलने की खबर आसपास के गांवों तक पहुंच गई थी. देखते ही देखते वहां काफी लोगों की भीड़ एकत्र हो गई. पुलिस ने मुआयना किया तो सफेद रंग की चादर में बंधे शव के थोड़े से पैर दिखाई दे रहे थे, जिस से लग रहा था कि शव किसी महिला का हो सकता है. जब पुलिस ने चादर खोली तो वास्तव में शव युवती का ही निकला.

मृतका के हाथपैर एक नायलौन की रस्सी से बंधे थे और गले में उस का दुपट्टा लिपटा हुआ था. लेकिन हत्यारे ने उस का चेहरा इतनी बुरी तरह से विकृत कर दिया था कि उसे पहचानना आसान नहीं था. हत्यारे ने यह शायद इसलिए किया होगा ताकि उस की शिनाख्त न हो सके.

फिर भी पुलिस को अपनी काररवाई तो करनी ही थी. सब से पहले मृतका की शिनाख्त जरूरी थी, लिहाजा पुलिस ने मौके पर मौजूद लोगों से मृतका के बारे में पूछा, लेकिन कोई भी उसे पहचान नहीं सका. मृतका के कपड़ों की तलाशी लेने के बाद कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को मामले की सूचना देने के बाद केपे पुलिस ने मौके पर फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड टीम को भी बुला लिया. खोजी कुत्ते से पुलिस को एक साक्ष्य मिल गया. शव सूंघने के बाद वह वहां से कुछ दूर झाडि़यों में पहुंच कर भौंकने लगा. पुलिस ने वहां खोजबीन की तो एक मोबाइल फोन मिला. जिसे पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया.

केपे थाना पुलिस घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रही थी कि दक्षिणी गोवा के एसपी अरविंद गावस अपने सहायकों के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने शव और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और केपे थाने के थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर लौट गए.

इस के बाद थानाप्रभारी ने जरूरी काररवाई कर युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए गोवा के जिला अस्पताल भेज दी.

थाने लौट कर थानाप्रभारी ने मृतका की शिनाख्त पर जोर दिया. क्योंकि बिना शिनाख्त के मामले की तफ्तीश आगे बढ़ना संभव नहीं थी. इस के लिए थानाप्रभारी ने गोवा शहर और जिलों के सभी पुलिस थानों में मृतका का फोटो भेज कर यह पता लगाने की कोशिश की कि कहीं किसी पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है.

कुडतरी थाने में जब लाश की फोटो हुलिए के साथ पहुंची तो वहां के थानाप्रभारी को एक दिन पहले अपने थाने में दर्ज वेलेंसिया फर्नांडीस की गुमशुदगी की सूचना याद आ गई. बरामद लाश का हुलिया वेलेंसिया के हुलिए से मिलताजुलता था. कुडतरी थानाप्रभारी ने उसी समय केपे के थानाप्रभारी को फोन कर इस बारे में बात की.

इस के बाद उन्होंने तुरंत वेलेंसिया के परिवार वालों को थाने बुला कर उन्हें लाश की शिनाख्त करने के लिए केपे थाने भेज दिया. केपे थानाप्रभारी ने जिला अस्पताल की मोर्चरी ले जा कर युवती की लाश वेलेंसिया के घर वालों को दिखाई. चेहरे से तो नहीं, लेकिन कपड़ों और चप्पलों को देखते ही घर वाले फूटफूट कर रोने लगे. उन्होंने लाश की शिनाख्त वेलेंसिया फर्नांडीस के रूप में की.

थानाप्रभारी ने उन्हें सांत्वना दे कर शांत कराया. इस के बाद उन से पूछताछ की. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उन्होंने केस की जांच शुरू कर दी. घटनास्थल पर बंद हालत में मिले मोबाइल की सिम निकाल कर उन्होंने दूसरे फोन में डाली और मोबाइल की काल हिस्ट्री खंगालने लगे. इस जांच में एक नंबर संदिग्ध लगा.

वह नंबर शैलेश वलीप के नाम पर लिया गया था. शैलेश वलीप ने 7 जून, 2019 को ही वेलेंसिया से बातें की थीं. पुलिस टीम जब शैलेश वलीप के घर पहुंची तो वह घर पर नहीं मिला. घर पर मिली उस की बहन भी उस के बारे में कोई जानकारी नहीं दे सकी. पुलिस ने जब उस की बहन से बात की तो वेलेंसिया और शैलेश वलीप के संबंधों की पुष्टि हो गई.

पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि वेलेंसिया की हत्या में जरूर शैलेश का हाथ रहा होगा. इसलिए उस की तलाश सरगरमी से शुरू हो गई. थानाप्रभारी ने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया.

एक मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने शैलेश को गोवा के अमोल कैफे में दबोच लिया. पुलिस टीम ने जिस समय उसे गिरफ्तार किया, उस समय वह शराब के नशे में धुत था.

जब नशा उतर जाने के बाद थाने में उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश करते हुए वेलेंसिया हत्याकांड से खुद को अनभिज्ञ और बेगुनाह बताता रहा. लेकिन जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने अपना गुनाह स्वीकार करते हुए हत्याकांड में शामिल रहे अपने सहयोगी देवीदास गावकर का भी नाम बता दिया. शैलेश वलीप की निशानदेही पर पुलिस टीम ने देवीदास गांवकर को भी गिरफ्तार कर लिया.

इन दोनों से पूछताछ करने के बाद वेलेंसिया फर्नांडीस की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

30 वर्षीया वेलेंसिया फर्नांडीस दक्षिणी गोवा के मडगांव के थाना कुडतरी गांव मायना की रहने वाली थी. वह अपनी चारों बहनों में तीसरे नंबर की थी. उस के पिता जोसेफ फर्नांडीस एक सीधेसादे और सरल स्वभाव के थे. वह अपनी बेटियों में कोई भेदभाव नहीं रखते थे.

वेलेंसिया फर्नांडीस की दोनों बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. वे अपने परिवार के साथ अपनी ससुराल में खुश थीं. वेलेंसिया अपनी छोटी बहन जूलिया फर्नांडीस के साथ रहती थी. उस की सारी जिम्मेदारी वेलेंसिया पर थी. वेलेंसिया ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब नौकरी की कोशिश की तो उसे बिना किसी परेशानी के गोवा मडगांव के एक जानेमाने बड़े मैडिकल शौप में सेल्सगर्ल की नौकरी मिल गई.

वेलेंसिया देखने में जितनी सुंदर थी, उतनी ही वह महत्त्वाकांक्षी भी थी. जिस मैडिकल शौप में वह काम करती थी, वहां रीमा वलीप नाम की लड़की भी काम करती थी. वह वेलेंसिया की अच्छी दोस्त बन गई थी.

रीमा वलीप अपने बड़े भाई शैलेश वलीप के साथ गोवा के मडगांव के संगम तालुका में रहती थी. परिवार के नाम पर वह सिर्फ बहनभाई ही थे. रीमा का भाई शैलेश वलीप भी उसी शौप में सिक्योरिटी गार्ड था. लेकिन वह आपराधिक प्रवृत्ति का था.

यह बात जब शौप मालिक को पता चली तो उस ने शैलेश को नौकरी से निकाल दिया. इस के बाद वह घर पर ही रहने लगा. उस का सारा खर्च रीमा पर ही था. वह बहन से पैसे लेता और सारा दिन अपने आवारा दोस्तों के साथ इधरउधर मटरगश्ती करता था. कभीकभी वह बहन रीमा से मिलने मैडिकल शौप पर भी जाता था.

वहीं पर उस की मुलाकात वेलेंसिया फर्नांडीस से हुई थी. पहली ही नजर में वह उस पर फिदा हो गया था. चूंकि उस की बहन रीमा वलीप की दोस्ती वेलेंसिया से थी, इसलिए उसे वेलेंसिया के करीब आने में अधिक समय नहीं लगा.

अब वह जब भी अपनी बहन से मिलने मैडिकल स्टोर आता तो वेलेंसिया से भी मीठीमीठी बातें कर लिया करता था. सहेली का भाई होने के नाते वह शैलेश से बात कर लेती थी.

कुछ ही दिनों में शैलेश वेलेंसिया के दिल में अपनी एक खास जगह बनाने में कामयाब हो गया था. वेलेंसिया जब उस के करीब आई तो शैलेश की तो जैसे लौटरी लग गई थी. क्योंकि वेलेंसिया के पैसों पर शैलेश मौज करने लगा था. इस के अलावा जब भी उसे पैसों की जरूरत पड़ती तो वह उधार के बहाने उस से मांग लिया करता था.

वेलेंसिया उस के भुलावे में आ जाती थी और उसे पैसे दे दिया करती थी. इस तरह वह वेलेंसिया से लगभग एक लाख रुपए ले चुका था. वेलेंसिया उसे अपना जीवनसाथी बनाने का सपना सजा रही थी, इसलिए वह शैलेश को दिए गए पैसे नहीं मांगती थी.

अगर वेलेंसिया के सामने शैलेश की हकीकत नहीं आती तो पता नहीं वह वेलेंसिया के पैसों पर कब तक ऐश करता रहता. सच्चाई जान कर वेलेंसिया का अस्तित्व हिल गया था. वह जिस शख्स को अपना जीवनसाथी बनाने का ख्वाब देख रही थी, स्थानीय थाने में उस के खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज थे.

यह जानकारी मिलने के बाद वेलेंसिया को अपनी गलती पर पछतावा होने लगा. उसे शैलेश से नफरत होने लगी और वह उस से दूरियां बनाने लगी.

इसी बीच नवंबर, 2018 में एक दिन वेलेंसिया का रिश्ता कहीं और तय हो गया. शादी की तारीख सितंबर 2019 तय हो गई. शादी तय हो जाने के बाद वेलेंसिया ने शैलेश वलीप से अपनी दोस्ती खत्म कर दी और उस से अपने पैसों की मांग करने लगी.

एक कहावत है कि चोट खाया सांप और धोखा खाया प्रेमी दोनों खतरनाक होते हैं. वेलेंसिया को अपने से दूर जाते हुए देख शैलेश का खून खौल उठा. एक तो वेलेंसिया ने उसे उस के प्यार से वंचित कर दिया था, दूसरे वह उस से उधार दिए पैसे की मांग कर रही थी.

पैसे लौटाने में वह सक्षम नहीं था. इसलिए आजकल कर के वह वेलेंसिया को टाल देता था. शैलेश अब वेलेंसिया से निजात पाने का उपाय खोजने लगा. इसी दौरान योजना बनाने के बाद उस योजना को अमलीजामा पहनाने का सही मौका मिला 6 जून, 2019 को.

6 जून को जब उसे यह जानकारी मिली कि वेलेंसिया आज अपनी ड्यूटी के बाद मौल से शौपिंग करेगी. इस के लिए उस ने एटीएम से पैसे भी निकाल लिए हैं. इस के बाद शैलेश का दिमाग तेजी से काम करने लगा.

अपनी योजना को साकार करने के लिए शैलेश अपने दोस्त देवीदास गावकर के पास गया और उस से यह कह कर उस की स्कूटी मांग लाया कि उसे एक जरूरी काम से गोवा सिटी जाना है. स्कूटी की डिक्की में उस ने वेलेंसिया की मौत का सारा सामान, नायलौन की रस्सी और प्लास्टिक की एक बड़ी थैली रख ली थी.

स्कूटी से वह वेलेंसिया के मैडिकल शौप के सामने पहुंच कर उस का इंतजार करने लगा. उस ने वहीं से वेलेंसिया को फोन मिलाया तो न चाहते हुए भी उस ने शैलेश की काल रिसीव कर ली. शाम 8 बजे वेलेंसिया अपनी ड्यूटी पूरी कर शौप से बाहर निकली तो वह स्कूटी ले कर उस के पास पहुंच गया और उस का पैसा लौटाने के बहाने उसे अपनी स्कूटी पर बैठा लिया.

पैसे मिलने की खुशी में वेलेंसिया अपने जन्मदिन की शौपिंग करना भूल गई. अपनी स्कूटी पर बैठा कर वह उसे एक सुनसान जगह पर ले गया. रास्ते में उस ने वेलेंसिया को जूस में नींद की गोलियों का पाउडर डाल कर पिला दिया, जिस के कारण वेलेंसिया जल्द ही बेहोशी की हालत में आ गई थी.

वेलेंसिया के बेहोश होने के बाद शैलेश ने उस के हाथपैर अपने साथ लाई नायलौन की रस्सी से कस कर बांध दिए और उस के गले में उस का ही दुपट्टा डाल कर उसे मौत की नींद सुला दिया.

वेलेंसिया को मौत के घाट उतारने के बाद शैलेश वलीप ने उस के पर्स में रखे रुपए निकाल कर उस का मोबाइल फोन कुछ दूर जा कर झाडि़यों में फेंक दिया था.

शैलेश वलीप अपनी योजना में कामयाब तो हो गया था लेकिन अब उस के सामने सब से बड़ी समस्या थी, शव को ठिकाने लगाने की. शव गांव के करीब पड़ा होने के कारण उस के पकड़े जाने की संभावना ज्यादा थी और बिना किसी की मदद के अकेले उसे ठिकाने लगाना उस के लिए संभव नहीं था.

ऐसे में उसे अपने दोस्त देवीदास गावकर की याद आई. वह तुरंत गांव वापस गया. देवीदास को पूरी बात बताते हुए जब उस ने शव ठिकाने लगाने में उससे मदद मांगी तो देवीदास गावकर के चेहरे का रंग उड़ गया. पहले तो देवीदास इस के लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन जब शैलेश ने उसे 2 हजार रुपए शराब पीने के लिए दिए तो वह फौरन तैयार हो गया.

उस ने अपने घर से एक सफेद चादर ली और घटनास्थल पर पहुंच कर वेलेंसिया का चेहरा बिगाड़ कर उस के शव को पौलीथिन में डाला. फिर वह थैली चादर में लपेट ली और उसे स्कूटी पर रख कर घटनास्थल से करीब 10 किलोमीटर दूर ले जा कर केपे पुलिस थाने की सीमा में फातिमा हाईस्कूल के जंगलों में डाल दिया.

शैलेश वलीप और देवीदास गावकर से पूछताछ कर उन के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें मडगांव कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

—कथा के कुछ नाम काल्पनिक हैं

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019   

सास अच्छी तो बहू भी अच्छी: नए जमाने के नए रिश्ते

साल 1980 में प्रदर्शित फिल्म ‘सौ दिन सास के’ में ललिता पवार द्वारा निभाया गया भवानी देवी का किरदार हिंदी फिल्मों की सासों का प्रतिनिधित्व किरदार था. ललिता पवार एक नहीं बल्कि कई फिल्मों में क्रूर सास की भूमिका में दिखी थीं.

एक दौर में तो वे क्रूर सास का पर्याय बन गई थीं और आज भी जिस किसी बहू को अपनी सास की बुराई करना होती है, वह ये पांच शब्द कह कर अपनी भड़ास निकाल लेती है ‘वह तो पूरी ललिता पवार है.’

60 साल बाद भी यह फिल्म प्रासंगिक है तो महज इस वजह के चलते कि पहली बार एक क्रूर सास को सबक सिखा कर सही रास्ते पर लाने वाली बहू मिली थी. ललिता पवार अपनी बड़ी बहू आशा पारेख पर बेइंतहा अत्याचार करती रहती है.

क्योंकि वह गरीब घर की थी और बिना दहेज के आई थी. छोटी बहू बन कर रीना राय घर आती है तो उस से जेठानी पर हो रहे अत्याचार बरदाश्त नहीं होते और वह क्रूरता का बदला क्रूरता से लेती है.

फिल्म पूरी तरह पारिवारिक मामलों से लबरेज थी जिस में ललिता पवार बहुओं को प्रताडि़त करने के लिए बेटी दामाद को भी मिला लेती है. नीलू फुले इस फिल्म में एक धूर्त और अय्याश दामाद के रोल में थे जो ललिता पवार को बहलाफुसला कर उन की सारी जायदाद अपने नाम करवा कर उन्हें ही गोदाम में बंद कर देते हैं.

चूंकि हिंदी फिल्म थी, इसलिए अंत सुखद ही हुआ. सास को अक्ल आ गई, अच्छेबुरे की भी पहचान हो गई और क्रूर सास को बहुओं ने मांजी मांजी कहते माफ कर दिया.

लेकिन अब ऐसा नहीं होता. आज की बहू सास की क्रूरता और प्रताड़ना को न तो भूलती है और न ही उसे माफ करती है. बदले दौर में सासें भी हालांकि समझदार हो चली हैं और जो ललिता पवार छाप हैं, उन्हें समझदार हो जाना चाहिए नहीं तो बुढ़ापे में या अशक्तता में बहू कोई रहम न कर के अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का सूद समेत बदला लेने से नहीं चूकेगी.

ऐसा ही एक दिलचस्प मामला इंदौर का है, जिस में सासबहू की लड़ाई थाने तक जा पहुंची. रिटायर्ड सीएसपी प्रभा चौहान का अपनी सबइंसपेक्टर बहू श्रद्धा सिंह से विवाद हो गया. सास ने थाने में रिपोर्ट लिखाई तो बहू ने अपनी बहन और मां के साथ एक दिन देर रात घर में आ कर उन्हें पीटा और हाथ में काटा भी.

अब बहू भी भला क्यों खामोश रहती, उस ने भी सास के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी कि सास ने अपने बेटे यानी उस के पति और ननद के साथ मिल कर उस की मां और बहन को घर में घेर कर मारापीटा.

बकौल श्रद्धा घटना की रात जैसे ही वह घर में दाखिल हुई तो सास के गालियां देने पर विवाद हुआ. मैं ने उन्हें शालीलता से बात करने को कहा तो विवाद घर की दहलीज पार कर थाने तक जा पहुंचा. बात सिर्फ आज की नहीं है बल्कि सास शादी के बाद से ही उसे प्रताडि़त करती थी.

इस मामले में दिलचस्पी वाली एकलौती बात यही है कि बहू ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार पर सास को माफ नहीं किया.

मुमकिन है कि कुछ गलती उस की भी रही हो, लेकिन इंदौर की ही एक काउंसलर की मानें तो आजकल की बहुएं आशा पारेख और रीना राय की तरह सास को माफ नहीं करतीं बल्कि ऐसे टोनेटोटकों से परेशान कर देती हैं कि उसे छठी का दूध याद आ जाता है. उसे पछतावा होता है कि काश शुरू में बहू को परेशान न किया होता तो आज ये दिन नहीं देखने पड़ते और बुढ़ापा चैन से कट रहा होता.

भोपाल की एक प्रोफेसर सविता शर्मा (बदला नाम) की मानें तो उन की शादी कोई 25 साल पहले हुई थी. शादी के बाद सास का व्यवहार ललिता पवार जैसा ही रहा. वह बातबात पर टोकती थी और हर काम में मीनमेख निकालती थी.

पति के प्यार और उन के मां से लगाव होने के कारण वह अलग नहीं हो पाई और सास के बर्ताव से समझौता कर लिया लेकिन शुरुआती दिनों के दुर्व्यवहार को वे भूल नहीं पाईं.

सविता के मुताबिक मैं ने उस की (उन की नहीं) हर ज्यादती बरदाश्त की लेकिन जब वह मेरे मम्मीपापा को भलाबुरा कहतीं तो मेरा खून खौलता कि जो कुछ कहना है मुझ से कहो, मांबाप को तो बीच में मत घसीटो.

अब हालत यह है कि उन की सास पैरालिसिस के चलते बिस्तर में पड़ी कराहती रहती हैं और चायपानी तक के लिए उन की मोहताज रहती हैं. सविता कहती हैं, ‘उन की इस हालत को देख कर मुझे खुशी भी होती है और कभीकभी दुख भी होता है. मैं चाह कर भी उन की वैसी सेवा नहीं कर पाती जैसी कि एक बहू को करनी चाहिए.’

यूं पति ने मां की सेवा के लिए नौकरानी रखी है लेकिन वह चौबीसों घंटे तो नहीं रह सकती. जब वे मुझ से चाय मांगती हैं तो मुझे शादी के बाद के वे शुरुआती दिन याद हो आते हैं, जब मैं खुद की चाय बनाने के लिए उन की इजाजत की मोहताज रहती थी.

कई बार तो बिना चाय पिए ही कालेज चली जाती थी. अब जब वे 4-5 बार आवाज लगा कर चाय मांगती हैं तब कहीं जा कर उन के पलंग के पास स्टूल पर चाय रख कर पांव पटक कर चली आती हूं, ताकि उन्हें अपना किया याद आए. मैं समझ नहीं पा रही कि ऐसा करने से सुख क्यों मिलता है और मैं बीती बातों को भुला क्यों नहीं पा रही.

यानी सविता वही कर रही हैं जो सास ने उन के साथ किया था. इस से साफ लगता है कि वे अभी तक आहत हैं और सास को अपने किए की सजा नहीं दे रहीं तो अहसास तो करा ही रही हैं कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे.

सविता के बेटे की भी 2-3 साल में शादी हो जाएगी. वे कहती हैं मैं ने अभी से तय कर लिया है कि अपनी बहू के साथ वैसा व्यवहार नहीं करूंगी जो मेरी सास ने मेरे साथ किया था. जाहिर है सविता अपनी सास की हालत को देख कर कहीं न कहीं दुखी भी हैं कि अगर वे कांटे बोएंगी तो उन्हें भी कांटों का ही गुलदस्ता मिलेगा.

समाजशास्त्र की प्रोफेसर सविता मानती हैं कि आजकल की बहुएं ज्यादा बंदिशें बरदाश्त नहीं करतीं. वे आजाद खयालों की होती हैं. बहू चाहेगी तो उसे मैं जींसटौप पहनने दूंगी. बेटे के साथ घूमनेफिरने जाने देने से रोकूंगी नहीं, क्योंकि यह उस का हक भी है और इच्छा भी.

भावुक होते वे कहती हैं कि मैं उसे इतना प्यार दूंगी कि अगर कभी मुझे पैरालिसिस का अटैक आ जाए तो मांगने के पहले वह खुद चाय दे और कुछ देर मेरे पास बैठ कर बतियाए भी.

इंदौर की प्रभा और श्रद्धा की तरह आए दिन सासबहू के विवाद कलह और मारापीटी के मामले हर थाने में दर्ज होते हैं जिन की असल वजह अधिकतर मामलों में सास का वह व्यवहार होता है जो उस ने शादी के बाद बहू से किया होता है.

इसलिए सविता जैसी सास बनने जा रही महिलाओं ने अच्छी बात यह सीख ली है कि उन्हें अपनी बहू के साथ वह व्यवहार नहीं करना है, जिस से बुढ़ापे में उन्हें बहू की प्रताड़नाएं झेलनी पड़ें.

जाहिर है अच्छी सास बनने के लिए आप को बहू का खयाल रखना पड़ेगा. बहू जब शादी कर घर में आती है तो उस के जेहन में सास की इमेज ललिता पवार या शशिकला जैसी होती है, जबकि वह चाहती है कि निरुपा राय, कामिनी कौशल, उर्मिला भट्ट और सुलोना जैसी सास जो हर कदम पर बहू का खयाल रखते हुए उस का साथ दें.

इसलिए अगर बुढ़ापा सुकून से काटना है तो बहू को सुकून से रखना ही बेहतर भविष्य सुखशांति और सेवा की गारंटी है. वैसे भी आजकल एकल होते परिवारों में सास का एकलौता सहारा आखिर में बहू ही बचती है. अगर उस से भी संबंध शुरू से ही खटास भरे होंगे तो उन का अंत हिंदी फिल्मों जैसा सुखद तो कतई नहीं होगा.

इस में कोई शक नहीं कि सासें अब बदल रही हैं. क्योंकि उन्हें अपने बुढ़ापे की चिंता है और यह भी मालूम है कि बहू ही वह एकलौता सहारा होगी जो उसे सुख आराम दे पाएगी. तो फिर खामख्वाह क्यों ललिता पवार जैसा सयानापन दिखाते हुए बेवजह का पंगा लिया जाए.

यानी बहू बुढ़ापे और अशक्तता के दिनों के लिए एक ऐसा इंश्योरेंस है, जिस में प्रीमियम प्यार और अपनेपन के अलावा आत्मीयता का भरना है, इस से रिटर्न अच्छा मिलेगा. हालांकि हर मामले में ऐसा होना जरूरी नहीं लेकिन बहू से अच्छा व्यवहार करना कोई हर्ज की बात नहीं. यह वक्त की मांग भी है जिस से घर में सुखशांति बनी रहती है और बेटा भी खुश और बेफिक्र रहता है. शादी के बाद के शुरुआती दिन बहू के लिए तनाव भरे होते हैं, वह सास के व्यवहार को ले कर स्वभावत: आशंकित रहती है.

ऐसे में अगर आप उसे सहयोग और प्यार दें तो वह यह भी नहीं भूलती कि सास कितनी भली है, लिहाजा बुढ़ापे में वह पैर भले ही न दबाए, लेकिन पैर तोड़ेगी नहीं, इस की जरूर गारंटी है.

प्रभा सिंह और सविता की सास ने अगर शुरू में बहू को अच्छे से रखा होता तो आज वे एक सुखद जिंदगी जी रही होतीं, प्यार दिया होता तो प्यार ही मिलता.

राजनीति की तरह घर की सत्ता भी पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती रहती है लेकिन जो सासें इमरजेंसी लगा कर तानाशाही दिखाती हैं, उन्हें जेल की सी ही जिंदगी जीना पड़ती है इसलिए जरूरी है कि परिवार में भी लोकतंत्र हो, आजादी हो, अधिकारों पर अतिक्रमण न हो और कमजोर पर अत्याचार न हों.

क्योंकि जो बहू आज कमजोर है कल को सत्ता हाथ में आते ही ताकतवर हो जाएगी और बदला तो लेगी ही. इसलिए अभी से संभल जाइए और बहू को बजाए क्रूरता के प्यार से अपने वश में रखिए.

यह इनवैस्टमेंट अच्छे दिनों की गारंटी है खासतौर से उस वक्त की जब आप अशक्त, असहाय बीमार और अकेली पड़ जाती हैं, तब वह बहू ही है जो उसी तरह आप का ध्यान रखेगी जैसा शादी के बाद आप ने उस का रखा था.

मौज मस्ती के खेल में हत्या: रास न आया अवैध रिश्ता

मुंबई से सटे कल्याण तहसील के गांव राया के पुलिस चौकीदार किरण जाधव को किसी ने बताया कि गांव के बाहर नाले के किनारे बोरी में किसी की लाश पड़ी है. चूंकि किरण जाधव गांव में पुलिस की तरफ से चौकीदार था, इसलिए वह इस खबर को सुनते ही मौके पर पहुंच गया.

उसे जो सूचना दी गई थी, वह बिलकुल सही थी. इसलिए चौकीदार ने फोन कर के यह खबर टिटवाला थाने में दे दी. यह बात 23 जून, 2019 की है. थानाप्रभारी इंसपेक्टर बालाजी पांढरे को पता चला तो वह एसआई कमलाकर मुंडे और अन्य स्टाफ के साथ मौके पर पहुंच गए.

थानाप्रभारी जब मौके पर पहुंचे तो उन्हें वहां एक युवती की अधजली लाश मिली, जो एक बोरी में थी. बोरी और लाश दोनों ही अधजली हालत में थीं. मृतका की उम्र यही कोई 25-30 साल थी. लाश झुलसी हुई थी. उस की कमर पर काले धागे में पीले रंग का ताबीज बंधा था. जिस बोरी में वह लाश थी, उस में मुर्गियों के कुछ पंख चिपके मिले.

थानाप्रभारी ने यह खबर अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ ही देर में फोरैंसिक टीम के साथ एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ और क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

तब तक वहां तमाम लोग जमा हो चुके थे. पुलिस अधिकारियों ने उन सभी से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. फोरैंसिक टीम का जांच का काम निपट जाने के बाद थानाप्रभारी ने लाश मोर्चरी में सुरक्षित रखवा दी और अज्ञात के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर लिया.

इस ब्लाइंड मर्डर केस को सुलझाने के लिए ठाणे (देहात) के एसपी डा. शिवाजी राठौड़ ने 2 पुलिस टीमें बनाईं. पहली टीम का गठन एसडीपीओ आर.आर. गायकवाड़ के नेतृत्व में किया. इस टीम में थानाप्रभारी बालाजी पांढरे, एसआई कमलाकर मुंडे, जितेंद्र अहिरराव, हवलदार अनिल सातपुते, दर्शन साल्वे, सचिन गायकवाड़ और तुषार पाटील आदि को शामिल किया गया.

दूसरी टीम क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर व्यंकट आंधले के नेतृत्व में बनाई गई. इस टीम में एपीआई प्रमोद गढ़ाख, एसआई अभिजीत टेलर, बजरंग राजपूत, हेडकांस्टेबल अविनाश गर्जे, सचिन सावंत आदि थे. दोनों टीमों का निर्देशन एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील कर रहे थे.

मृतका के गले में जो ताबीज था, पुलिस ने उस की जांच की तो उस पर बांग्ला भाषा में कुछ लिखा नजर आया. उस से यह अंदाजा लगाया गया कि युवती शायद पश्चिम बंगाल की रही होगी. जिस बोरी में शव मिला था, उस बोरी में मुर्गियों के पंख थे, जिस का मतलब यह था कि बोरी किसी चिकन की दुकान से लाई गई होगी.

पुलिस टीमों ने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच शुरू की. पुलिस ने टिटवाला में चिकन की दुकान चलाने वालों को अज्ञात युवती की लाश के फोटो दिखाए तो पुलिस को सफलता मिल गई. एक दुकानदार ने फोटो पहचानते हुए बताया कि वह टिटवाला के खड़वली इलाके में रहने वाली मोनी है, जो अकसर बनेली के चिकन विक्रेता आलम शेख उर्फ जाने आलम के यहां आतीजाती थी.

पुलिस टीम आलम शेख की चिकन की दुकान पर पहुंच गई. लेकिन आलम दुकान पर नहीं था. पुलिस ने उस के नौकर से पूछा तो उस ने बताया कि आलम शेख पश्चिम बंगाल स्थित अपने घर गया है. पुलिस ने आलम की दुकान की जांच की. इस के बाद पुलिस खड़वली इलाके में उस जगह पहुंची, जहां मोनी रहती थी. वहां के लोगों से बात कर के पुलिस को जानकारी मिली कि मोनी और आलम शेख के बीच नाजायज संबंध थे.

अवैध संबंधों और आलम शेख के दुकान से फरार होने से पुलिस समझ गई कि मोनी की हत्या में आलम शेख का ही हाथ होगा. पुलिस ने किसी तरह से आलम शेख का पश्चिम बंगाल का पता हासिल कर लिया. वह पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला था.

एडिशनल एसपी संजय कुमार पाटील ने एक पुलिस टीम बंगाल के सदईपुर भेज दी. वहां जा कर टिटवाला पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से आलम शेख को हिरासत में ले लिया.

आलम शेख को स्थानीय न्यायालय में पेश कर पुलिस ने उस का ट्रांजिट रिमांड ले लिया और थाना टिटवाला लौट आई. पुलिस ने आलम शेख से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने मोनी के कत्ल की बात स्वीकार कर ली. उस से पूछताछ के बाद मोनी की हत्या की  कहानी इस प्रकार निकली—

मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला वीरभूम के गांव सदईपुर का रहने वाला 33 वर्षीय आलम शेख उर्फ जाने आलम टिटवाला क्षेत्र में चिकन की दुकान चलाता था. करीब 4-5 महीने पहले उस की मुलाकात खड़वली क्षेत्र की रहने वाली मोनी से हुई.

मोनी आलम की दुकान पर चिकन लेने गई थी. पहली मुलाकात में ही आलम उस का दीवाना हो गया. उसी दिन बातचीत के दौरान आलम ने मोनी से उस का मोबाइल नंबर भी ले लिया.

इस के बाद मोनी अकसर उस की दुकान से चिकन लेने जाने लगी. नजदीकियां बढ़ाने के लिए आलम ने उस से चिकन के पैसे लेने भी बंद कर दिए. धीरेधीरे दोनों के संबंध गहराते गए और फिर जल्दी ही उन के बीच शारीरिक संबंध बन गए.

कुछ दिनों बाद आलम शेख ने मोनी को खड़वली क्षेत्र में ही किराए का एक मकान भी ले कर दे दिया, जिस में मोनी अकेली रहने लगी. उस के अकेली रहने की वजह से आलम की तो जैसे मौज ही आ गई. जब उस का मन होता, मोनी के पास चला जाता और मौजमस्ती कर दुकान पर लौट आता.

उन के संबंधों की खबर मोहल्ले के तमाम लोगों को हो चुकी थी. आलम मोनी को आर्थिक रूप से भी सहयोग करता था. धीरेधीरे मोनी की आलम से पैसे मांगने की आदत बढ़ती गई. वह उस से ढाई लाख रुपए ऐंठ चुकी थी.

इतने पैसे ऐंठने के बाद भी वह उसे ब्लैकमेल करने लगी. वह आलम को धमकी देने लगी कि अगर उस ने बात नहीं मानी तो वह उस के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट दर्ज करा देगी. मोनी की धमकी से आलम परेशान रहने लगा.

अंत में आलम शेख ने मोनी को रास्ते से हटाने की ठान ली. एक दिन आलम ने अपनी इस पीड़ा के बारे में अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को बताया और साथ ही मोनी की हत्या करने में उस से मदद मांगी. मनोरुद्दीन ने आलम को हर तरह का सहयोग देने की हामी भर दी. इस के बाद दोनों ने मोनी का काम तमाम करने की योजना बनाई.

योजना के अनुसार 22 जून, 2019 की रात को आलम शेख गले में अंगौछा बांध कर दुकान पर पहुंचा और वहां से एक खाली बोरी ले कर मोनी के घर पहुंच गया. उस वक्त मोनी सोई हुई थी. आलम ने आवाज दे कर दरवाजा खुलवाया. इस के बाद दोनों बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे. उसे अपनी बातों में उलझा कर आलम मौका देख रहा था. फिर मौका मिलते ही उस ने अंगौछा मोनी के गले में डाल कर पूरी ताकत से खींचना शुरू करदिया.

मोनी ज्यादा विरोध नहीं कर सकी. कुछ देर बाद जब उस की सांसें बंद हो गईं तब आलम ने मोनी के गले का अंगौछा ढीला किया. इस के बाद आलम ने अपने दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी वहां बुला लिया.

दोनों ने साथ में लाई बोरी में शव डाला. फिर आलम शेख और मनोरुद्दीन उस बोरी को मोटरसाइकिल से ले कर निकल पड़े. रास्ते में उन्होंने एक पैट्रोलपंप से एक डिब्बे में पैट्रोल भी लिया. फिर उन्होंने शव को राया गांव के पास एक नाले के किनारे डाल दिया और पैट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की. पर शव झुलस कर रह गया. लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों वहां से चंपत हो गए.

आलम शेख उर्फ जानेआलम से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के दोस्त मनोरुद्दीन शेख को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों को भादंवि की धारा 302, 201 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

कथा लिखने तक दोनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी. मामले की जांच इंसपेक्टर बालाजी पांढरे कर रहे थे.

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

ऊंची उड़ान : जिम्मेदारियों के बनाया शिकार

घटना 13 नवंबर, 2018 की है. तृप्ति जय तेलवानी जिस समय अपने 3 साल के बेटे के साथ पुणे शहर के थाना चिखली पहुंची, उस वक्त दोपहर का एक बजने वाला था. महिला एसआई रत्ना सावंत उस समय किसी पुराने मामले की फाइल देख रही थीं. घबराई और रोती हुई तृप्ति जब उन के पास पहुंची तो वह समझ गई कि इस के साथ जरूर कुछ गलत हुआ है.

उन्होंने तृप्ति को सामने कुरसी पर बैठा कर उस से इत्मीनान से बात की. उस ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘मैडम मेरा नाम तृप्ति जय तेलवानी है. मैं चिखली के घरकुल इलाके की साईं अपार्टमेंट सोसायटी में पति के साथ रहती हूं.’’ कह कर तृप्ति फिर से रोने लगी.

एसआई रत्ना सावंत ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा, ‘‘देखिए, आप रोइए मत. आप के साथ जो भी हुआ है, मुझे विस्तार से बताएं ताकि मैं आप की मदद कर सकूं.’’

रत्ना सावंत की सहानुभूति पर तृप्ति अपने आंसू पोंछते हुए बोली, ‘‘मैडम, मैं बरबाद हो गई हूं. मेरी तो दुनिया ही उजड़ गई. मेरे पति ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली है.’’

तृप्ति की बात सुन कर एसआई रत्ना सावंत चौंकी. वह उसी समय पुलिस टीम के साथ मौके की ओर रवाना हो गईं. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी.

एसआई रत्ना सावंत अपनी टीम के साथ जब मौके पर पहुंचीं तो वहां लोगों की भीड़ लगी थी. मृतक जय तेलवानी के मातापिता और अन्य लोग भी वहां मौजूद थे.

पुलिस जब बैडरूम  में पहुंची तो बैड पर जय तेलवानी का शव पड़ा था. मांबाप और अन्य लोग उस के शव के साथ लिपट कर रो रहे थे. एसआई रत्ना सावंत ने जब लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर फंदे का निशान देख कर उन्हें पहली नजर में मामला आत्महत्या का लगा.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक की पत्नी तृप्ति जय तेलवानी से इस संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से अपनी लाइलाज बीमारी से परेशान थे. इन्हें ब्लड कैंसर था. आज सुबह जब मैं 11 बजे अपने बच्चे को लेने स्कूल गई तो ये ठीक थे, लेकिन जब स्कूल से लौटी तो दरवाजा अंदर से बंद मिला.

कई बार कालबैल बजाने और आवाज देने के बाद भी जब दरवाजा नहीं खुला, न कोई आहट हुई तो मैं घबरा गई. मैं ने दूसरी चाबी ला कर दरवाजा खोला तो मेरी चीख निकल गई. जय गले में साड़ी बांध कर पंखे से लटके हुए थे.

चीखनेचिल्लाने की आवाजें सुन कर पड़ोसी फ्लैट में आ गए. उन्होंने पति को नीचे उतार कर बैड पर लिटा दिया और अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस भी मंगा ली, लेकिन तब तक उन की मौत हो चुकी थी.

पुलिस की जांच में आत्महत्या के निशान तो मिल रहे थे, लेकिन आत्महत्या का कारण समझ नहीं आ रहा था. तृप्ति तेलवानी अपने बयान में जिस लाइलाज बीमारी की बात कह रही थी, उस बीमारी के संबंध में वह यह भी नहीं बता सकी कि जय का किस अस्पताल में इलाज चल रहा था.

यह बात पुलिस के गले नहीं उतर रही थी. जब मृतक को ब्लड कैंसर था तो उस का किसी अस्पताल में इलाज क्यों नहीं कराया. और फिर बिना जांच कराए यह कैसे पता चला कि जय को ब्लड कैंसर है. उसी दौरान थानाप्रभारी बालाजी सोनटके मौकाएवारदात पर पहुंच गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी.

मौकामुआयना करने के बाद अधिकारियों ने मृतक के घर वालों से इस बारे में पूछताछ की. इस के बाद वह थानाप्रभारी को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर चले गए.

वरिष्ठ अधिकारियों के जाने के बाद थानाप्रभारी बालाजी सोनटके ने मौके की काररवाई पूरी कर के जय तेलवानी के शव को पोस्टमार्टम के लिए पुणे के सेसून डाक अस्पताल भेज दिया. थानाप्रभारी ने इस मामले की जांच एसआई रत्ना सावंत को सौंप दी.

एसआई रत्ना सावंत ने मृतक जय तेलवानी की कैंसर की बीमारी के संबंध में आसपड़ोस के लोगों से बात की. उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्हें वाट्सऐप मैसेज द्वारा ही जानकारी मिली थी कि जय तेलवानी को ब्लड कैंसर है. लेकिन यह बात जय तेलवानी ने नहीं बताई, वह तो एकदम स्वस्थ दिखता था.

अगले दिन पुलिस के पास पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कैंसर जैसी घातक बीमारी का कोई जिक्र नहीं था. इस का मतलब यह था कि सोशल मीडिया पर जय तेलवानी को कैंसर रोगी होने की बात किसी ने एक सोचीसमझी साजिश के तहत फैलाई थी. यह बात फैला कर किसे लाभ हो सकता है, पुलिस इस की जांच में जुट गई.

इसी दौरान जय तेलवानी के मातापिता पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने थानाप्रभारी बालाजी सोनटके को बताया कि उन के बेटे की आत्महत्या की जिम्मेदार उन की बहू तृप्ति है. इस के बाद पुलिस ने अपनी तफ्तीश का रुख तृप्ति की तरफ मोड़ दिया.

तृप्ति पर नजर रख कर जांच अधिकारी उस वीडियो की तलाश में जुट गईं जो सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इस वीडियो में जय तेलवानी को कैंसर रोगी बता कर आर्थिक सहायता की मांग की गई थी.

बताया जाता है कि यह वीडियो देख कर जय तेलवानी मानसिक रूप से परेशान हो गए थे. चूंकि वह भलेचंगे स्वस्थ थे और किसी ने उन का कैंसर रोगी का वीडियो बना लिया. वह वीडियो क्लिप जांच अधिकारी रत्ना सावंत को को भी मिल गई थी.

पुलिस की आईटी टीम ने जब उस वीडियो की जांच की तो पता चला कि तृप्ति ने ही उसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म टिकटौक पर अपलोड किया था. तृप्ति के खिलाफ सबूत मिल गया तो पुलिस ने उसे पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. वीडियो के आधार पर जब तृप्ति तेलवानी से पूछताछ की गई तो पहले तो वह साफ मुकर गई, लेकिन बाद में उस ने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया.

21 वर्षीय तृप्ति तेलवानी ने बताया कि अपनी महत्त्वाकांक्षा और ख्वाहिशें पूरी करने के लिए उस ने सोशल मीडिया का सहारा लिया था. पूछताछ में यह बात सामने आई है कि पूछताछ में यह बात सामने आई है कि वह पुणे के छोटे से गांव की रहने वाली थी लेकिन उस के सपनों की उड़ान ऊंची थी. उस ने अपने दोस्तों और सहेलियों के बीच अपना एक क्रेज बना कर रखा था.

कालेज समय में नित नए फैशन के कपड़े पहनना, दिल खोल कर पैसे खर्च करना उस का शौक बन गया था. उस के इस अनापशनाप खर्च और मांग पर मांबाप परेशान रहते थे.

उन्हें चिंता इस बात की भी थी कि आगे चल कर इस लड़की का क्या होगा. वह तृप्ति को समझाने की काफी कोशिश करते थे पर तृप्ति ने मांबाप की सलाह को कभी गंभीरता से नहीं लिया.

तृप्ति के लक्षणों को देखते हुए मांबाप ने 16 साल की उम्र में ही उस की शादी पिपरी चिचवड़, पुणे के रहने वाले देवीदास तेलवानी के बेटे जय तेलवानी के साथ कर दी. यह 2017 की बात है. जय तेलवानी उस परिवार का एकलौता बेटा था.

25 वर्षीय जय तेलवानी सीधासादा युवक था. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने एक रिश्तेदार के प्लंबिंग बिजनैस में सहयोगी था.

तृप्ति को बहू के रूप में पा कर देवीदास और सभी घर वाले खुश थे. उन्हें क्या पता था कि तृप्ति के सुंदर चेहरे के पीछे उस की कितनी गंदी सोच छिपी है. इस का एहसास उन्हें धीरेधीरे होने लगा था.

आजादी के साथ रहने वाली तृप्ति को ससुराल जेल की तरह लगती थी. वह वहां से बाहर निकलने के लिए फड़फड़ाने लगी तो सास ने उसे समाज की मर्यादा का पाठ पढ़ाया. उस ने सास की सीख न सिर्फ हवा में उड़ा दी बल्कि वह उन से झगड़ने भी लगी.

बातबात पर वह जय तेलवानी के मांबाप और परिवार वालों से लड़ बैठती थी, जिसे ले कर जय परेशान हो जाता था. जब वह तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो उस का सीधा जवाब होता, ‘‘मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई है, तुम्हारे मांबाप और परिवार वालों के साथ नहीं.’’

आखिरकार रोजरोज की किचकिच से तंग आ कर जय के परिवार वालों ने तृप्ति जो चाहती थी, वही कर दिया. उन्होंने उसे चिखली के साईं अपार्टमेंट घरकुल सोसायटी में एक किराए का फ्लैट ले कर दे दिया. अब तृप्ति पूरी तरह से आजाद थी. उस के मन में जो आता, वह करती थी. अनापशनाप खर्चा, पार्टी और सहेलियों दोस्तों के साथ कंपीटिशन करना उस की आदत में शुमार हो गया.

इस बीच वह एक बच्चे की मां भी बन गई थी. फिर भी उस की आदतों में कोई सुधार नहीं आया था. वह जब तृप्ति को समझाने की कोशिश करता तो वह यह कह कर उसे चुप करा देती कि भगवान ने जिंदगी दी है तो ऐश करो.

तृप्ति का मन घर के कामों के बजाए सोशल मीडिया पर अधिक लगता था. वह फेसबुक, वाट्सऐप पर अपने नएपुराने मित्रों के साथ चैटिंग में लगी रहती थी.

पति से नईनई फरमाइश करती थी. नहीं मिलने पर उस से झगड़ा करती थी. लाचार जय किसी तरह उस की मांगें पूरी करता. पैसे न होने पर वह दोस्तों से पैसे उधार लेता. इस के लिए कर्जदार भी हो गया. लाखों रुपए का कर्जदार होने के बावजूद भी तृप्ति के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आया था.

हर रोज नएनए फैशनपरस्त कपड़े पहन कर वह अलगअलग ऐंगल से फोटो खींच कर उन्हें फेसबुक और वाट्सऐप पर डालती और यह दिखाने की कोशिश करती कि वह भी किसी से कम नहीं है.

इस के लिए जब पति मना करता तो वह जय से झगड़ा कर के मारपीट पर उतर आती थी. इतना ही नहीं, वह पति पर व्यंग्य कसते हुए कहती, ‘‘तुम्हारी तरह मेरे दोस्त और सहेलियां भिखारी नहीं हैं. वे सब मेरे फोटो लाइक करते हैं. मुझ से फेसबुक और वाट्सऐप पर बातें करते हैं. देशविदेश की सैर करते हैं. वहां के खूबसूरत फोटो भेजते हैं. तुम ने आज तक मेरे लिए क्या किया है? देशविदेश तो छोड़ो, कभी पुणे तक में नहीं घुमाया. पता नहीं मेरे मांबाप ने तुम में क्या देखा था. मेरी तो किस्मत ही फूट गई है. तुम में मेरे शौक पूरे कराने की भी हैसियत नहीं है.’’

‘‘तृप्ति जब तुम यह सब जानती हो तो हैसियत से बड़े सपने क्यों देखती हो? हमारी आर्थिक स्थिति तुम्हारे दोस्तों जैसी नहीं है. मैं एक मामूली इंसान हूं. तुम्हारे लिए मैं लाखों रुपए का कर्ज तो पहले ही ले चुका हूं. अब और कर्ज नहीं ले सकता.’’ जय तेलवानी बोला.

इस बात पर तृप्ति को इतना गुस्सा आया कि उस ने अपने पति के गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया और कहा, ‘‘चुपचाप रहो, मूर्ख इंसान. तुम क्या जानो सपना क्या होता है?’’

तृप्ति के इस व्यवहार से जय सन्न रह गया. उसे तृप्ति से ऐसी आशा नहीं थी. उसे गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कड़वा घूंट समझ कर पी गया. उस ने सोचा बात बढ़ाने से क्या फायदा, बदनामी उस की ही होगी.

लेकिन उस की इस चुप्पी से तृप्ति का हौसले बुलंद हो गए. वह आए दिन जय से छोटीछोटी बातों को ले कर उलझ जाती थी. इतना ही नहीं, वह सोशल मीडिया पर अपने पति की बुराई कर सहानुभूति बटोरती थी.

उस ने और ज्यादा सहानुभूति पाने के लिए अपना टिकटौक एकाउंट खोला और उस पर नईनई वीडियो बना कर अपलोड करने लगी. बिना यह सोचे कि आगे चल कर इस का क्या नतीजा निकलेगा.

तृप्ति का सोशल मीडिया पर इतना ज्यादा एक्टिव होना जय और उस के परिवार वालों को बुरा लगता था. तृप्ति पति पर बुरी तरह हावी थी. ऊपर से सोशल मीडिया में जय की जो बदनामी हो रही थी, वह अलग बात थी. जय ने जबजब पत्नी को समझाने की कोशिश की, तबतब वह भड़क जाती थी. कहती थी कि क्या अच्छा है, क्या बुरा मैं सब समझती हूं. मैं जो कर रही हूं करने दो. तुम लोग हमारे बीच में मत पड़ो. नहीं तो मैं कुछ कर लूंगी तो पछताओगे.

तृप्ति की आत्महत्या करने की धमकी से जय और उस का पूरा परिवार डर गया था. तृप्ति अपने दोस्तों के साथ नएनए वीडियो तैयार करती और सोशल मीडिया पर अपलोड कर देती. इस से उसे सहानुभूति तो मिलती ही थी, एकाउंट में अच्छाखासा पैसा भी आ जाता था. जिन्हें वह अपने शौक और यारदोस्तों के साथ पार्टियों में खर्च करती थी.

घर और परिवार की बदनामी से तृप्ति का कोई लेनादेना नहीं था. हद तो तब हो गई जब एक दिन तृप्ति ने जय से बड़ी रकम की मांग कर दी. उस ने पैसे देने में असमर्थता जताई तो तृप्ति ने योजना बना कर अपने पति पर एक वीडियो बनाई.

उस वीडियो में उस ने पति को ब्लड कैंसर का मरीज बताया. फिर उस वीडियो में उस ने किसी दूसरे की आवाज डाल कर के सोशल मीडिया पर डाल दिया. साथ ही उस ने आर्थिक मदद करने का भी अनुरोध किया.

इस से तृप्ति को ढेर सारी सहानुभूति तो मिली ही, साथ ही उस के एकाउंट में काफी पैसा भी आया. लेकिन इस से जय को जिस मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा, उसे वह बरदाश्त नहीं कर पाया. उस की सारे दोस्तों और नातेरिश्तेदारों में काफी बदनामी हुई.

पत्नी के इस कृत्य से वह अपनों से नजरें नहीं मिला पा रहा था, क्योंकि अब वह लोगों की नजरों में कैंसर का ऐसा मरीज बन गया था, जो लोगों से इलाज के लिए पैसे मांग रहा था. लोग उसे सहानुभूति की नजरों से देखते और धीरज बंधाते थे.

वह उस बीमारी को ले कर जी रहा था, जिस का उसे पता ही नहीं था. वह तृप्ति के व्यवहार से बुरी तरह टूट गया था. अंतत: उस ने एक दिन दिल दहला देने वाला निर्णय ले लिया. अपने मांबाप से फोन पर बात करने के बाद जय ने मौत को गले लगा लिया.

जय तेलवानी के परिवार वालों की शिकायत और सोशल मीडिया की जांचपड़ताल कर एसआई रत्ना सावंत ने तृप्ति से पूछताछ कर उसे विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. उस के विरुद्ध भादंवि की धारा 306 के तहत मामला दर्ज कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे यरवदा जेल भेज दिया गया.

सौजन्य- सत्यकथा, सितंबर 2019