Top 10 Fiction Crime Story In Hindi : टॉप 10 फिक्शन क्राइम स्टोरी हिंदी में

Top 10 Fiction crime story of 2022 : इन फिक्शन क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि समाज में कब और कैसे अंधविश्वास और छल से लोगों को ठगा जा रहा है और समाज के नागरिक उसमे फसते ही जा रहे है तो स्वयं को और स्वयं से जुड़े लोगों को इन सब से बाहर निकालने और जागरूक करने के लिए पढ़े ये स्पेशल और जानकारियों से भरपूर कहानियों का भण्डार मनोहर कहानियों के स्पेशल सेगमेंट Top 10 Fiction crime story in Hindi

  1. दिल का तीसरा कोना : कैसे बदली प्यार को लेकर कुहू की सोच

 मोनिका इतना ही सोच पाई थी कि उस के विचारों पर विराम लगाते हुए कुहू ने दरवाजा खोला तो उस के चेहरे पर मुसकान खिली हुई थी. कुहू ने मोनिका का हाथ पकड़ कर खींचते हुए कहा, ‘‘अरे कब आई तुम, लगता है कई बार बेल बजाना पड़ा. मैं बैडरूम में थी, इसलिए सुनाई नहीं दिया.’’

उस के चेहरे पर भले ही मुसकान खिली थी, पर उस की आवाज से मोनिका को समझते देर नहीं लगी कि वह खूब रोई थी. उस के चेहरे पर उदासी के भाव साफ दिख रहे थे. मोनिका ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘एक बात तो उमंग बिलकुल सच कहता है कि रोने के बाद तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हो जाती हैं.’’

बातें करते हुए दोनों ड्राइंगरूम में जा कर बैठ गईं. मोनिका के चेहरे पर कुहू से मिलने की खुशी और उसे देख कर अंदर उठ रहे सवालों के जवाब की चाह नजर आ रही थी.

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  1. अंजाम : स्वामी जी के चंगुल से कैसे निकली सुचित्रा

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वाइस प्रेसीडेंट बनने से पहले औफिस से शाम के 6 बजे तक घर आ जाती थी. अब रात के 10 बजे से पहले शायद ही कभी आई हो.  कपड़े चेंज करने के बाद बिस्तर पर ऐसे गिर पड़ती थी जैसे सारा रक्त निचुड़ गया हो. ऐसी बात नहीं थी कि वह उसे सिर्फ रात में ही मनाने की कोशिश करते थे. छुट्टियों में दिन में भी राजी करने की कोशिश करते थे, पर वह बहाने बना कर बात खत्म कर देती थी.

कभी बेटी का भय दिखाती तो कभी नौकरानी का. कभीकभी कोई और बहाना बना देती थी.  ऐसे में कभीकभी उन्हें शक होता था कि उस ने कहीं औफिस में कोई सैक्स पार्टनर तो नहीं बना लिया है.

ऐसे विचार पर घिन भी आती थी. क्योंकि उस पर उन का पूरा भरोसा था.  कई बार यह खयाल भी आया कि सुचित्रा उन की पत्नी है. उस के साथ जबरदस्ती कर सकते हैं, लेकिन कभी ऐसा किया नहीं.

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  1. दो गज जमीन के नीचे : क्यों बेमौत मारा गया वो शख्स

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8 फ्लैटों के समूह वाली बिल्डिंग का नाम ‘भव्य निलय’ और पीछे वाली दुमंजिली बिल्डिंग का नाम ‘निरंजन कोठी’ है. निरंजन कोठी का मालिक निरंजन बत्रा 52 साल का एक हट्टाकट्टा अधेड़ है, जिस के चलनेफिरने और बात करने का लहजा मात्र 35 साल के व्यक्ति जैसा है.

उस की पहचान में शायद ही कोई ऐसी युवती हो जो उस के शोख लहजों पर फिदा न हो. उस की एक खास विशेषता यह भी है कि वह अपना कारोबार बहुत बदलता है. कभी टूरिज्म ट्रैवल, कभी साइबर कैफे और मोबाइल शौप, कभी स्टेशनरी तो कभी ठेकेदारी, बंदा बड़ा अनप्रेडिक्टेबल है. कहूं तो रहस्यमय भी. वो अकेला जीना और अकेला राज करना चाहता है, लेकिन उसे स्त्रियों की कमी नहीं है. लिहाजा वह उन का उपयोग कर के फेंकने से नहीं कतराता.

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  1. नोक वाला जूता : कैसे सामने आया उदयन का सच

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‘‘सर, मैं सुनयन हाउसिंग सोसाइटी से सिक्योरिटी गार्ड बोल रहा हूं. यहां 8वें माले के फ्लैट नंबर 3 में रहने वाले सुरेशजी ने खुद को आग लगा ली है. आत्महत्या का मामला लगता है. आप तुरंत आ जाइए.’’ सूचना देने वाले ने कहा.

‘‘सुरेशजी की मौत हो गई है या अभी जिंदा हैं?’’ राजेश कदम ने पूछा.

‘‘सर, लगता तो ऐसा ही है.’’ फोन करने वाले ने जवाब दिया.

‘‘ठीक है, हम वहां पहुंच रहे हैं. ध्यान रखना कोई भी व्यक्ति अंदर ना जाए और न ही कोई किसी चीज को हाथ लगाए.’’ राजेश कदम ने निर्देश दिया.

दोपहर के करीब पौने 3 बज रहे थे. सुनयन हाउसिंग सोसायटी पुलिस स्टेशन से ज्यादा दूरी पर नहीं थी. सूचना मिलने के लगभग 10 मिनट के अंदर ही राजेश कदम अपनी पुलिस टीम के साथ सुनयन हाउसिंग सोसायटी पहुंच गए.

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  1. समंदर से सागर तक : क्या पूरा हो पाया सरिता का प्यार

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‘‘एक बात आप अच्छी तरह जान लीजिए. बिना किसी नाम का दिशाहीन संबंध मुझे पसंद नहीं है. हमेशा दुविधा में रहना अच्छा नहीं लगता. पिछले 3 दिनों से आप के संदेश की राह देख रही हूं. गुस्सा तो बहुत आता है पर आप पर गुस्सा करने का हक है भी या नहीं, यह मुझे पता नहीं. आखिर मैं आप के किसी काम की या आप मेरे किस काम के..?

‘‘आप के साथ भी मुझे मर्यादा तय करनी है. है कोई मर्यादा? आप को पता होना चाहिए, अब मैं दुविधा में नहीं रहना चाहती. मैं आप को किसी संबंध में बांधने के लिए जबरदस्ती मजबूर नहीं कर रही हूं. पर अगर संबंध जैसा कुछ है तो उसे एक नाम तो देना ही पड़ेगा. खूब सोचविचार कर बताइएगा.

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  1. रहस्यमय हवेली : आखिरी क्या था उस हवेली का राज

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विवेक और सुदर्शन, दोनों बचपन के दोस्त थे. स्कूल से ही लंगोटिया यार, पेशे से आर्किटेक्ट, एक साथ पार्टनरशिप में काम करते थे. दोनों ने एक महीने पहले ही उदयपुर में एक हवेलीनुमा कोठी का नक्शा बनाया था. जब कोठी बन कर तैयार हुई, तो उस की जम कर तारीफ हुई. आज के आधुनिक युग में पुरानी हवेली जैसी कोठी का निर्माण विवेक और  सुदर्शन की देखरेख में हुआ.

पुराने नक्शे में कोठी के अंदर सभी आधुनिक सुविधाएं इस तरह से दी गईं कि हवेली का अंदाज बरकरार रहे. गृह प्रवेश पर हवेली के मालिक ने एक शानदार दावत दी, जिस में राजस्थान के धन्ना सेठों की पूरी बिरादरी आई थी. विवेक और सुदर्शन के काम से प्रभावित हो कर सेठ पन्नालाल ने उन्हें अपनी हवेली के निर्माण का कार्य सौंपा था.

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  1. दर्द आशना : सच्चे प्यार की खातिर क्या किया आजर ने

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आजर कम बोलने वाला सुलझा हुआ लड़का था. जबकि जोया को मां के बेजा लाड़प्यार ने जिद्दी और खुदसर बना दिया था. शायद यही वजह थी कि दोनों साथसाथ खेलतेखेलते झगड़ने लगते थे. जो खिलौना आजर के हाथ में होता, जोया उसे लेने की जिद करती और जब तक आजर उसे दे नहीं देता, वह चुप न होती.

उस दिन तो हद हो गई. आजर पुरानी कौपी का उधड़ा हुआ कवर लिए था. कवर पर कोई तसवीर बनी थी, शायद उसे पसंद थी. जोया की नजर पड़ गई, वह चिल्लाने लगी, ‘‘वह मेरा है…उसे मैं लूंगी.’’

आजर भी बच्चा था. बजाए उसे देने के दोनों हाथ पीछे करके छिपा लिए. वह चीखती रही, चिल्लाती रही यहां तक कि बड़े लोग आ गए.

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  1. सास अच्छी तो बहू भी अच्छी : नए जमाने के नए रिश्ते

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फिल्म पूरी तरह पारिवारिक मामलों से लबरेज थी जिस में ललिता पवार बहुओं को प्रताडि़त करने के लिए बेटी दामाद को भी मिला लेती है. नीलू फुले इस फिल्म में एक धूर्त और अय्याश दामाद के रोल में थे जो ललिता पवार को बहलाफुसला कर उन की सारी जायदाद अपने नाम करवा कर उन्हें ही गोदाम में बंद कर देते हैं.

चूंकि हिंदी फिल्म थी, इसलिए अंत सुखद ही हुआ. सास को अक्ल आ गई, अच्छेबुरे की भी पहचान हो गई और क्रूर सास को बहुओं ने मांजी मांजी कहते माफ कर दिया.

लेकिन अब ऐसा नहीं होता. आज की बहू सास की क्रूरता और प्रताड़ना को न तो भूलती है और न ही उसे माफ करती है. बदले दौर में सासें भी हालांकि समझदार हो चली हैं और जो ललिता पवार छाप हैं,

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  1. बातों बातों में : क्यों सुसाइड करना चाहती थी अवनी

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जवाब देने के बजाय युवक जोर से हंसा. उस की इस ढिठाई पर अवनी तिलमिला उठी. उस ने गुस्से में कहा, ‘‘न तो मैं ने इस समय हंसने वाली कोई बात कही, न ही मैं ने कोई जोक सुनाया, फिर तुम हंसे क्यों? और हां, तुम अपना नाम तो बता दो कि कौन हो तुम?’’

‘‘एक मिनट मेरी बात तो सुनो. जिंदगी के आखिरी क्षणों में मेरा नाम जान कर क्या करोगी. लेकिन अब तुम ने पूछ ही लिया है तो बताए देता हूं. मेरा नाम अमन है.’’

‘‘मुझे अब किसी की कोई बात नहीं सुननी. तुम यह बताओ कि हंसे क्यों?’’

‘‘तुम्हें जब किसी की कोई बात सुननी ही नहीं है तो मैं कैसे बताऊं कि हंसा क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मैं यह कह रही थी कि…’’ अवनी थोड़ा सकपकाई.

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  1. पत्थर दिल : प्यार की अजब कहानी

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आप से 10 साल छोटी युवती आप से जबरदस्त रूप से प्रभावित हो और आप संन्यासी जैसा व्यवहार करें, यह संभव नहीं है. मैं ने भी खुद को काबू में रखने की कोशिश की थी, पर मेरी यह कोशिश बनावटी थी, क्योंकि शायद मैं उस से दूर नहीं रह सकता था. कोशिश की ही वजह से आकर्षण घटने के बजाय बढ़ता जा रहा था. लगता था कि यह छूटेगा नहीं. उस की नौसिखिया लेखकों जैसी कहानियां को मैं अस्वीकृत कर देता, वह शरमाती और निखालिस हंसी हंस देती. फिर फटी आंखों से मुझे देखती और अपनी कहानी अपने ही हाथों से फाड़ कर कहती, ‘‘दूसरी लिख कर लाऊंगी.’’

कह कर चली जाती. हमारे बीच किताबों का लेनदेन होने लगा था. उस की दी गई किताबें ज्यादातर मेरी पढ़ी होती थीं. कुछ मुझे पढ़ने जैसी नहीं लगती थीं, मैं उन्हें वापस कर देता था.

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पत्थर दिल: प्यार की अजब कहानी

मैंने मोबाइल में समय देखा. 6 बजने में 5 मिनट बाकी थे. सुधा को अब तक आ जाना चाहिए था, वह समय की बहुत पाबंद थी. मेरी नजर दरवाजे पर टिकी थी. डेढ़, पौने 2 साल से यही क्रम चला आ रहा था. इस का क्या परिणाम होगा, मैं भी नहीं जानता था. फिर भी मैं सावधान रहता था. जो भी हो रहा था, वह उचित नहीं था, यह जानते हुए भी मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था.

माना कि वह मुझ पर मुग्ध थी, पर शायद मैं कतई नहीं था. मेरा हराभरा, भरापूरा संसार था. सुंदर, सुशील, गृहस्थ पत्नी, 2 बच्चे, प्रतिष्ठित रौबदाब वाली नौकरी.

15 साल के वैवाहिक जीवन में पत्नी से कभी किसी तरह की कोई किचकिच नहीं. यह अलग बात है कि कभी पल, 2 पल के लिए किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई हो. फिर भी अंदर से व्यवहारिक गृहस्थ कट रहा था कि अभी समय है, यहीं रुक जाओ, वापस लौट आओ.

वैसे सुधा के साथ मेरे जो संबंध थे, वे इतने छिछोरे नहीं थे कि एक झटके में तोड़े जा सकें या अलग हुआ जा सके. सब से बड़ी बात यह थी कि हम ने कभी मर्यादा लांघने की कोशिश नहीं की. हमारे रिश्ते पूरी तरह स्वस्थ और समझदारी भरे थे. कुछ हद तक मेरे बातचीत करने के लहजे और कलात्मक स्वभाव की वजह से वह मेरी ओर आकर्षित हुई थी. इस में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था.

आप से 10 साल छोटी युवती आप से जबरदस्त रूप से प्रभावित हो और आप संन्यासी जैसा व्यवहार करें, यह संभव नहीं है. मैं ने भी खुद को काबू में रखने की कोशिश की थी, पर मेरी यह कोशिश बनावटी थी, क्योंकि शायद मैं उस से दूर नहीं रह सकता था. कोशिश की ही वजह से आकर्षण घटने के बजाय बढ़ता जा रहा था. लगता था कि यह छूटेगा नहीं. उस की नौसिखिया लेखकों जैसी कहानियां को मैं अस्वीकृत कर देता, वह शरमाती और निखालिस हंसी हंस देती. फिर फटी आंखों से मुझे देखती और अपनी कहानी अपने ही हाथों से फाड़ कर कहती, ‘‘दूसरी लिख कर लाऊंगी.’’

कह कर चली जाती. हमारे बीच किताबों का लेनदेन होने लगा था. उस की दी गई किताबें ज्यादातर मेरी पढ़ी होती थीं. कुछ मुझे पढ़ने जैसी नहीं लगती थीं, मैं उन्हें वापस कर देता था.

वह मेरे अहं को झकझोरती रहती थी. शायद मैं उसे हैरान करने वाली युक्तियों से ठंडक पहुंचाता रहता था. क्योंकि मैं पुरुष था. हमारे संबंध यानी रिश्ते भले ही चर्चा में नहीं थे, पर खुसरफुसर तो होने ही लगी थी. यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि हमारे बीच किसी भी तरह का शारीरिक संबंध नहीं था. इस तरह के रिश्ते के बारे में हम ने कभी सोचा भी नहीं था.

सुधा से इस तरह की मैं ने कभी अपेक्षा भी नहीं की थी. न ही मेरा कोई इरादा था. उस से मेरा रिश्ता मानसिक स्तर का था. जिस तरह लोगों के बीच समान स्तर का होता है, उसी तरह मेरा और उस का बौद्धिक रिश्ता था. ऐसा शायद समाज के डर से था, पर मैं उस से रिश्ता तोड़ने से घबरा रहा था. हमारा समाज स्त्रीपुरुष की दोस्ती को स्वस्थ नजरों से नहीं देखता. यह सत्य भी है, पर ये रिश्ते स्थूल थे. धरातल के थे. यह मान लेना चाहिए कि मेरे और सुधा के बीच रिश्ते पवित्र थे. उस के मन में मेरे प्रति जो आदर था, उसे मैं सस्ते में नहीं ले सकता था. इस बात पर मुझे जरा भी विश्वास नहीं था. कल शाम उस का फोन आया, ‘‘सर, कल शाम को 6 बजे मिल सकते हैं?’’

मना करने का मन था, इसलिए मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्या काम है?’’

‘‘काम हो तभी मिल सकते हैं क्या सर?’’

‘‘ऐसा तो नहीं है, पर… ओके मिलते हैं, बस.’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

मेरे फोन रखते ही पत्नी ने पूछा, ‘‘कौन था?’’

मैं कुछ जवाब दूं, उस के पहले ही बोली, ‘‘सुधा ही होगी?’’

‘‘हां, मिलना चाहती है.’’

‘‘तुम नहीं मिलना चाहते?’’ बेधड़क सवाल. पत्नी के इस सवाल का जवाब हां या न में नहीं दिया जा सकता था.

मैं ने कहा, ‘‘डरता हूं सुरेखा, वह भी मेरी तरह लेखक बनना चाहती है. स्त्रीपुरुष का भेद किए बगैर मुझे उस की मदद करनी चाहिए, पर…’’

‘‘वह स्त्री है और सुंदर भी, इसीलिए तुम उदार बन रहे हो न? अगर ऐसा है तो घमंडी कहलाओगे.’’ कह कर पत्नी हंस पड़ी. 10वीं पास गांव की पत्नी का अलग ही रूप.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या करूं?’’   ‘‘मिलने के लिए तो कह चुके हो, अब पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं उस अर्थ से नहीं पूछ रहा, मैं पूछ रहा हूं कि उस के साथ के रिश्ते को कैसे रोकूं सुरेखा. मुझे मेरी नहीं, उस की चिंता है. उसकी अभी नईनई शादी हुई है, वह मुझ पर मुग्ध है. उस की यह मुग्धता उस के दांपत्य में आग लगा सकती है. आई एम रियली कंफ्यूज्ड सुरेखा. वह बहुत ही प्यार करने वाली है.’’

‘‘स्पष्ट और सख्ती से कह दो, तुम्हें फोन न करे. जितना हो सके, उतना दूर रहो उस से.’’ पत्नी की सलाह व्यवहारिक थी.

मेरे भीतर का व्यवहारकुशल आदमी उस की बात से सहमत था पर बवाली मन? वह नहीं चाहता था. उसे इस बात में बिलकुल विश्वास नहीं था. वह सोच रहा था, जो तुम्हें पवित्रता से चाहे, तुम्हारा आदर करे, तुम्हारी दोस्ती के बदले गर्व महसूस करे, उस का अपमान, उस की उपेक्षा ठीक नहीं. इस तरह के आदमी की फिक्र तो सामान्य आदमी भी नहीं करता, तुम तो लेखक हो. लेखक तो समाज से ऊपर उठ कर सोचता है.

उस रात नींद नहीं आई. पूरी रात करवटें बदलता रहा. दिन में औफिस के समय बेध्यान हो जाता. पौने 6 बजे डायरेक्टर से अनुमति ले कर कौफी हाउस के लिए निकल पड़ता. कौफी हाउस नजदीक ही था. मैं गाड़ी से 5 मिनट में पहुंच गया. 6 बजने में 5 मिनट बाकी थे. मैं ने 2 कप कौफी का और्डर कर दिया.

‘अभी तक आई क्यों नहीं?’ मैं ने घबरा कर मोबाइल देखा. मुझे वहां आए करीब 10 मिनट हो गए थे. कोई मुश्किल तो नहीं आ गई. आजकल के पतियों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. जबरदस्त नजर रखते हैं पत्नियों पर. मोबाइल पर रिसीव्ड और डायल्ड नंबर चैक करते हैं. वाट्सऐप और फेसबुक पर फ्रैंड लिस्ट के साथ मैसेंजर चैक करते हैं. कोई गलत संदेश तो नहीं भेज रहा.

मैं ने माथे का पसीना पोंछा. दरवाजे की तरफ देखा. खिड़की की तरफ ताका तो शाम की गुलाबी धूप छंटने लगी थी. मैं ने सामान्य हो कर बैठने की कोशिश की. आनेजाने वाले असहजता भांप सकते. आखिर 6 बज कर 10 मिनट पर सुधा आई. ब्लैक टीशर्ट और गाढ़ी नीली जींस में आकर्षक लग रही थी. मैं ने मन को लताड़ा, ‘‘तू तो कहता है कि शारीरिक आकर्षण नहीं है, मानसिक दोस्ती है तो फिर…’’

‘‘सौरी सर, आई एम लेट.’’

‘‘बैठो, मैं ने कौफी का और्डर कर दिया है.’’

‘‘थैंक्स सर, सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘पर ज्यादा समय तक नहीं रहेगा.’’

वातावरण भारी हो उठा. इतना कह कर मैं चुप हो गया था. वह भी चुप थी. थोड़ी देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं आप को परेशान करती हूं न? सौरी सर, न चाहते हुए भी मैं ने आप को फोन किया. बात यह है कि एक सप्ताह के लिए मैं बाहर घूमने जा रही हूं, इसलिए सोचा कि सर को…’’

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘जी गुजरात. द्वारिकाधीश.’’

‘‘पति के साथ जा रही हो, साथ में और कौनकौन जा रहा है?’’ मैं ने पूछा.

इसी के साथ मैं ने लंबी सांस छोड़ी. बेयरा 2 कप कौफी रख गया था. एक कप अपनी ओर खिसका कर दूसरा कप उस की ओर खिसका दिया. उसे कौफी ठंडी कर के पीने की आदत थी. मैं ने अपना कप उठा कर मुंह से लगाया.

कप टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘एंजौय करने का टाइम है, करो.’’

‘‘ईर्ष्या हो रही है क्या? मैं तो वही करना चाहती हूं, जो आप को अच्छा लगे. पर पास रहती हूं तो भी आप को अच्छा नहीं लगता और दूर जा रही हूं तो भी आप को अच्छा नहीं लग रहा. आखिर मैं करूं तो क्या करूं, मर जाऊं?’’

‘‘कौफी अच्छी है.’’ कह कर मैं ने चुस्की ली.

वह वैसे ही बैठी रही. वह कौफी ठंडी कर रही थी. मैं अपनी कौफी पी गया. कप टेबल पर रख कर उस की ओर देखा. पत्नी की याद आ गई. मन में आया कि कह दूं कि यह हमारी अंतिम मुलाकात है. अब हम आगे से नहीं मिलेंगे. तुम अपने परिवार में मन लगाओ, मैं अपने परिवार के साथ खुश सुखी हूं. तुम भी अपने परिवार के साथ खुश और सुखी रहो.

अब हमारी उम्र तुम्हारे साथ फाग गाने की नहीं रही. तुम मेरी आंखों के नीचे गड्ढे देख सकती हो. फैलते रेगिस्तान जैसा मेरा सिर. अब इस की विशालता पर गर्व महसूस नहीं किया जा सकता. मेरी बदरूपता का ढिंढोरा पीटता मेरा यह पेट…यह सब तो ठीक है, पर मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति हूं सुधा.

‘‘कुछ मंगाना है गुजरात से? नमकीन, किताबें या कुछ और?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं मंगाना.’’

‘‘कोई ख्वाहिश…मन्नत..?’’

‘‘कौन पूरी करेगा?’’

‘‘द्वारिकाधीश.’’ कहते हुए उस की आंखों में सावित्री की श्रद्धा थी.

मैं खिलखिला कर हंस पड़ा. पर उस की श्रद्धा की ज्योति जरा भी नहीं डगमगाई.

‘‘आप को हंसी आ रही है?’’ उस ने एकदम शांति से पूछा, धैर्य खोए बिना. एकदम अलग रूप. उस समय उस की आधुनिकता अदृश्य थी. मेरी नास्तिकता से वह अंजान नहीं थी. फिर भी उस का इस तरह से कहना मुझे हंसने के लिए प्रेरित कर रहा था. इस में कुछ अस्वाभाविक भी नहीं था. पढ़ीलिखी महिलाओं की इस तरह की इच्छाओं को मैं हंसी में उड़ाता था.

‘‘बोलो, क्या चाहते हो?’’ वह अभी भी पहले की ही तरह गंभीर थी.

मुझे मजाक सूझा, ‘‘मांगूं?’’

उस ने आंखों से ही ‘हां’ कहा.

‘‘सुधा, तुम मुझे पसंद नहीं या तुम्हारे प्रति आकर्षण नहीं, यह कह कर मैं खुद के साथ छल नहीं करूंगा. भगवान के प्रति मुझे जरा भी श्रद्धा नहीं है, पर तुम्हारी श्रद्धा की भी हंसी उड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है. मुझे अब कोई लालसा नहीं है. मुझे जो मिला है, वह बहुत है. पत्नी, बच्चे, प्रतिष्ठा, पैसा और…’’

‘‘…और?’’

‘‘तुम्हारी जैसी सहृदय मित्र. आखिर और क्या चाहिए? बस, मुझे तुम से एक वचन चाहिए.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हमारे बीच यह पवित्रता इसी तरह बनी रहे. हमारी इस विरल मित्रता के बीच शरीर कभी न आए. मित्रता की पवित्रता हम इसी तरह बनाए रखें. हमारे बीच नासमझी की दीवार न खड़ी हो. बोलो, यह संभव है?’’

मेरे इतना कहतेकहते उस की आंखें भर आईं. कौफी का कप खिसका कर वह बोली, ‘‘मुझ पर विश्वास नहीं है सर, आप ने मुझे बहुत सस्ती समझा. स्त्री हूं न, इसीलिए. पर चिंता मत कीजिए, मैं वचन देती हूं कि…’’

इस के बाद बची कौफी एक बार में पी कर बोली, ‘‘आप लेखक हैं. हैरानी हो रही है कि आप लेखक हो कर भी कितने कठोर हैं. लेखक तो बहुत कोमल होता है. आप की तरह पत्थर दिल नहीं.’’

मैं सन्न रह गया. शायद अस्वस्थ भी. मैं ने अपना हाथ छाती पर रख कर देखा, दिल धड़क रहा है या नहीं.

कुकर्मी बाप की बेटियां

महाराष्ट्र के सतारा जिले की रहने वाली योगिता की शादी करीब 5 साल पहले संजय देवरे से हुई थी. पतिपत्नी दोनों पढ़ेलिखे थे और कमाते भी थे. संजय एक अच्छी कंपनी में काम करता था, तो बीकौम की पढ़ाई कर चुकी योगिता एक एकाउंटेंट के यहां नौकरी करती थी.

जब दोनों कमा रहे थे तो उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चलनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं था. भले ही दोनों पढ़ेलिखे थे लेकिन उन के विचारों में काफी अंतर था. दोनों छोटीछोटी बात पर बहस करने लगते थे, जिस से उन के बीच विवाद हो जाता था.
जिस से संजय योगिता की पिटाई कर देता था. यह बात योगिता को बहुत बुरी लगती थी. योगिता ने पति के साथ गृहस्थी को चलाने के तमाम सपने देखे थे. लेकिन शादी के कुछ ही दिनों बाद उसे पति से प्यार के बजाए पिटाई मिल रही थी. जिस से उस के सारे सपने बिखरते दिख रहे थे. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि वह ऐेसे पति के साथ नहीं रहेगी.

इसी दौरान योगिता ने एकाउंटेंट के यहां से नौकरी छोड़ कर एक बिल्डर के यहां नौकरी करनी शुरू कर दी. वहीं पर उस की मुलाकात सुशील मिश्रा नाम के युवक से हुई. सुशील मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. वह काम की तलाश में मुंबई आया था और अपनी बीवी बच्चों के साथ पालघर जिले के नालासोपारा में रहता था.

जिस बिल्डर के यहां योगिता नौकरी करती थी, सुशील उस के यहां बिल्डिंग बनाने का ठेका लेता था. इस वजह से सुशील का योगिता से अकसर मिलनाजुलना होता रहता था. बातूनी स्वभाव के सुशील ने जल्दी ही योगिता से दोस्ती कर ली. इस के बाद योगिता उस से अपने सुखदुख की बातें शेयर करने लगी.

सुशील अय्याश प्रवृत्ति का था. पार्वती नाम की एक महिला के साथ भी उस के अवैध संबंध थे. पार्वती बिल्डरों के यहां बेगार करती थी.

खिलाड़ी था सुशील

शादीशुदा पार्वती शराबी पति से त्रस्त हो कर पति और बच्ची को गांव में छोड़ कर अकेली ही नालासोपारा में रहने लगी थी. पार्वती अकेली ही रहती थी. सुशील ने उस के अकेलेपन का फायदा उठाया. पार्वती से नजदीकियां बन जाने पर जब उस का मन होता वह पार्वती के कमरे पर मौजमस्ती करने चला जाता था. कभीकभी वह उसे खर्चे आदि के पैसे भी दे देता था.

सुशील का मन पार्वती से भर चुका था, इसलिए अब वह योगिता से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश में जुट गया. वह योगिता से इस तरह बात करता कि योगिता को भी उस में अपनापन झलकने लगा.

एक दिन योगिता ने उसे पति से दूर रहने की वजह बता दी. सुशील ने उस से सहानुभूति जताते हुए कह दिया कि वह खुद को अकेला महसूस न करे. कभी भी किसी भी चीज की जरूरत हो तो उसे बता दे. जब भी वह उसे याद करेगी, हाजिर हो जाएगा.

योगिता को सुशील पसंद आ गया. जिस तरह के सुख व सहानुभूति वह पति से चाहती थी, वह सारे सुशील दे सकता था. लिहाजा एक दिन योगिता ने सुशील के सामने अपने प्यार का इजहार कर दिया. सुशील की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.
मौका देख सुशील ने उस से कहा, ‘‘योगिता मैं भी तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं, लेकिन मेरे साथ समस्या यह है कि मैं शादीशुदा और 2 बेटियों का पिता हूं और उन्हें छोड़ नहीं सकता.’’

यह सुन कर योगिता कुछ पल चुप रहने के बाद बोली, ‘‘कोई बात नहीं, मुझे मंजूर है. यदि आप मेरे साथ शादी नहीं करोगे तब भी मैं बिना शादी के आप के साथ रह लूंगी. आप अपनी पत्नी को गांव छोड़ देना, यहां पर मैं दोनों बेटियों को अच्छे से संभाल लूंगी.’’

योगिता के इस प्रस्ताव से सुशील मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह योगिता के प्यार में इतना डूब चुका था कि उस ने पार्वती के पास जाना बंद कर दिया.
पार्वती इस बात को समझ गई थी कि योगिता ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया है, इसलिए वह योगिता से नफरत करने लगी.

दूसरी ओर सुशील पत्नी को गांव भेजने का उपाय खोजने लगा. एक दिन उस ने पत्नी को विश्वास में लेते हुए कहा, ‘‘गांव में मातापिता की तबीयत खराब है. ऐसा करो, तुम उन की देखभाल के लिए गांव चली जाओ. यहां बच्चों को मैं संभाल लूंगा, वैसे भी हमारी दोनों बेटियां अब बड़ी हो चुकी हैं.’’

पत्नी ने सुशील की बात मान ली तो वह उसे गांव छोड़ आया. इस के बाद योगिता अपने पति को कुछ बोल कर अपने कपड़े आदि ले कर सुशील के घर चली आई. उसे आया देख सुशील की लड़कियां समझ गईं कि इसी महिला के लिए उन के पिता ने मां को गांव का रास्ता दिखा दिया.

उस दिन सुशील को योगिता के साथ अपनी हसरत पूरी करनी थी, इसलिए शाम का खाना खाने के बाद वह योगिता को ले कर बेडरूम में घुस गया. रात में दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. इस से दोनों ही खुश थे.

अब योगिता सुशील के घर पत्नी की तरह रहने लगी. उसे वहां रहते हुए लगभग एक साल हो चुका था. योगिता का व्यवहार भी बदल चुका था जो सुशील की बेटियों को पसंद नहीं था. जब सुशील घर पर नहीं होता तब दोनों लड़कियां योगिता से झगड़ा मोल लेती थीं. शाम को जब सुशील घर लौटता तब योगिता उस से उन दोनों की शिकायत करती थी.

योगिता की बात पर वह बच्चों को ही डांट देता था. पिता के इस रवैये से दोनों लड़कियां काफी दुखी थीं. दोनों यही सोचती रहती थीं कि इस औरत से कैसे छुटकारा पाया जाए. क्योंकि उसी की वजह से उन की मां उन से दूर चली गई थी.

उसी की वजह से उन्हें रोजाना पिता की डांट भी सुननी पड़ती थी. सुशील की बड़ी बेटी सुधा और छोटी बेटी सुजाता (काल्पनिक नाम) की एक दिन पार्वती माने से जानपहचान हो गई थी.

फिर दोनों बहनों ने पार्वती को अपना दुखड़ा सुनाया और उस से योगिता को घर से बाहर करने का उपाय पूछा.

योगिता का बुरा वक्त

पार्वती भी योगिता से चिढ़ी हुई थी. क्योंकि उस ने उस के प्रेमी सुशील को उस से छीन लिया था. इसलिए वह दोनों बहनों की मदद करने को तैयार हो गई. पार्वती ने कहा कि इस का एक ही उपाय है कि योगिता का पता ही साफ कर दिया जाए. एक दिन सुशील को शादी के किसी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए गुजरात जाना पड़ा. अच्छा मौका देख पार्वती, सुजाता और सुधा के प्रेमी शैलेश काले ने मिल कर योगिता की हत्या की साजिश रच डाली.

वारदात के दिन पार्वती और शैलेश काले सुजाता के घर के नजदीक पहुंचे. इमारत के गेट पर मौजूद सुरक्षा गार्ड को शराब का लालच दे कर वे दोनों इमारत में प्रवेश कर गए. उस वक्त योगिता कमरे में बेड पर गहरी नींद में सोई थी. उसी का फायदा उठा कर उन्होंने नींद में ही योगिता का गला चुनरी से घोंट दिया.

उस की हत्या करने के बाद शैलेश काले ने सुजाता के प्रेमी नीरज मिश्रा को फोन कर के आटो रिक्शा लाने को कहा. उस ने नीरज को बताया कि योगिता की तबीयत खराब है, उसे डाक्टर के पास ले जाना है. फिर पार्वती ने योगिता की लाश एक कंबल में लपेट कर आटो रिक्शा में रख दी. उन्होंने जंगल में ले जा कर लाश फेंक दी.

पहली अप्रैल, 2019 को किसी शख्स की नजर लाश पर गई तो उस ने फोन पर यह जानकारी पुलिस को दे दी. सूचना पा कर थाना तुलिंज के सीनियर पीआई डानियल बेन, पीआई राकेश, हवलदार दीपक पाटिल, नायक नवनाथ वारडे को ले कर मौके पर पहुंच गए. लाश किसी महिला की थी और छिन्नभिन्न अवस्था में थी.

मौके की काररवाई के बाद पुलिस ने लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन मृतका को कोई नहीं पहचान पाया. तब पुलिस ने लाश मोर्चरी में रखवा दी. हत्यारों तक पहुंचने से पहले महिला की लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने जिस जगह पर लाश मिली, उस जगह के सारे रास्तों के सीसीटीवी फुटेज की जांच की. इस में पुलिस को सफलता मिल गई.

फुटेज में एक आटोरिक्शा दिखाई दिया, जिस पर जाह्नवी लिखा था. पता लगाने पर जानकारी मिली कि आटोरिक्शा नीरज नाम के युवक का था. पुलिस ने नीरज को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो उस ने सारी कहानी बता दी. इस के बाद पुलिस ने पार्वती माने को भी हिरासत में ले लिया.

पार्वती ने पुलिस के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने पुलिस को योगिता की हत्या की सारी कहानी सुना दी. जिस के बाद पुलिस ने 3 अप्रैल, 2019 को शैलेश काले, सुधा और सुजाता को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने सभी को कोर्ट में पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक दोनों बहनों की जमानत हो चुकी थी. मामले की तफ्तीश पीआई राकेश के. जाधव कर रहे थे.

सौजन्य- मनोहर कहानियां, मई 2019

स्वामी चिन्मयानंद: एक और संत जेल में

सब से पहले वह अपने लिए सुख वैभव के साधन तैयार करता है, फिर उसे देह सुख भी सामान्य लगने लगता है. स्वामी चिन्मयानंद के साथ भी ऐसा ही कुछ था, जिस की वजह से…

हाल ही में कानून की छात्रा कामिनी द्वारा स्वामी चिन्मयानंद पर लगाया गया यौनशोषण और बलात्कार का आरोप खूब चर्चाओं में रहा. छात्रा द्वारा निर्वस्त्र स्वामी की मसाज करने के वायरल वीडियो ने भी स्वामी की हकीकत खोल कर रख दी. यौनशोषण और बलात्कार की यह कहानी पूरी तरह से फिल्मी सैक्स, सस्पेंस और थ्रिल से भरी हुई है. शाहजहांपुर के सामान्य परिवार की कामिनी स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज से एलएलएम यानी मास्टर औफ ला की पढ़ाई कर रही थी.

हौस्टल में रहने के दौरान नहाते समय उस का एक वीडियो तैयार किया गया और उसी वीडियो को आधार बना कर उस का यौनशोषण शुरू हुआ. शोषण से मुक्ति पाने के लिए लड़की ने भी वीडियो का सहारा लिया. लेकिन इस प्रभावशाली संत और पूर्व केंद्रीय मंत्री को कटघरे में खड़ा करना आसान नहीं था. फिर भी लड़की ने हिम्मत से काम लिया और अंत में संत को विलेन साबित कर के ही दम लिया. यह संत थे स्वामी चिन्मयानंद.

अटल सरकार के बाद हाशिए पर चले गए स्वामी चिन्मयानंद 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रयासरत थे. वह राज्यसभा के जरिए संसद में पहुंचना चाहते थे. इस के पहले कि उन के संसद जाने का सफर पूरा होता, उन के ही कालेज में पढ़ने वाली लड़की कामिनी ने उन का चेहरा बेनकाब कर दिया.

कानून की पढ़ाई करने वाली 24 वर्षीया कामिनी ने जब मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाया तो पूरा देश सन्न रह गया.

एक लड़की के लिए ऐसे आरोप लगाना और साबित करना आसान काम नहीं था. इस का कारण यह था कि पूरा प्रशासन स्वामी चिन्मयानंद को बचाने में लगा था. इस के बावजूद पीडि़त लड़की और चिन्मयानंद के बीच शह और मात का खेल चलता रहा.

स्वामी चिन्मयानंद का रसूख लड़की पर भारी पड़ रहा था, जिस के चलते शोषण और बलात्कार का आरोप लगाने वाली लड़की के खिलाफ 5 करोड़ की रंगदारी मांगने का मुकदमा कायम कर के उसे जेल भेज दिया गया.

लड़की को जेल में और आरोपी को एसी कमरे में रहने को सुख मिला. शोषण और बलात्कार के मुकदमे में हिरासत में लिए गए स्वामी चिन्मयानंद को जेल में 2 रात रखने के बाद सेहत की जांच को ले कर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के पीजी अस्पताल भेज दिया गया था.

शह और मात के खेल में बाजी किस के हाथ लगेगी, यह तो अदालत के फैसले पर निर्भर करेगा. लेकिन धर्म के नाम पर कैसेकैसे खेल खेले जाते हैं, यह समाज ने खुली आंखों से देखा. नग्नावस्था में लड़की से मसाज कराते वीडियो के सामने आने पर खुद स्वामी चिन्मयानंद ने जनता से कहा, ‘वह अपने इस कृत्य पर शर्मिंदा हैं.’

चिन्मयानंद से पहले सन 2015 में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर की ही रहने वाली एक लड़की ने भी आसाराम बापू के खिलाफ ऐसे ही आरोप लगाए थे. आसाराम और चिन्मयानंद में केवल इतना ही फर्क है कि आसाराम केवल संत थे, जबकि चिन्मयानंद संत के साथसाथ भाजपा के सांसद और मंत्री भी रह चुके हैं.

चिन्मयानंद के जेल जाने के समय भाजपा के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा कि स्वामी चिन्मयानंद भाजपा के सदस्य नहीं हैं. वह इस बात का जवाब नहीं दे सके कि यदि वह सदस्य नहीं हैं तो उन्हें भाजपा की सदस्यता से कब निकाला गया था.

स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के सहारे अपनी राजनीति शुरू की थी. वह राममंदिर आंदोलन के दौरान देश के उन प्रमुख संतों में थे, जो मंदिर निर्माण की राजनीति कर रहे थे. भाजपा ने स्वामी चिन्मयानंद को 3 बार लोकसभा का टिकट दे कर सांसद बनाया और अटल सरकार में उन्हें मंत्री बनने का मौका भी दिया.

चिन्मयानंद भाजपा में उस समय के नेता हैं, जब संतों को राजनीति में शामिल कर के सत्ता का रास्ता तय किया गया था. उस समय लालकृष्ण आडवाणी, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, कल्याण सिंह, महंत अवैद्यनाथ जैसे संत और नेताओं का भाजपा में बोलबाला था.

ऐसे कद्दावर स्वामी चिन्मयानंद की सच्चाई तब खुली, जब 24 अगस्त, 2019 को उन के ही स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज में एलएलएम में पढ़ने वाली कामिनी ने उन के खिलाफ यौनशोषण और बलात्कार का आरोप लगाते हुए वीडियो जारी किया.

स्वामी शुकदेवानंद ला कालेज मुमुक्षु आश्रम की शिक्षण संस्थाओं में से एक है. इस कालेज की स्थापना शाहजहांपुर और उस के आसपास के इलाकों के छात्रों को कानून की शिक्षा देने के लिए हुई थी.

पीडि़त कामिनी इसी कालेज में एलएलएम की पढ़ाई कर रही थी. वह यहीं के हौस्टल में रहती थी. हौस्टल में रहने के दौरान ही स्वामी चिन्मयानंद की उस पर निगाह पड़ी. फलस्वरूप पढ़ाई के साथसाथ उसे कालेज में ही नौकरी दे दी गई. कामिनी सामान्य कदकाठी वाली गोरे रंग की लड़की थी.

कालेज में पढ़ने वाली दूसरी लड़कियों की तरह उसे भी स्टाइल के साथ सजसंवर कर रहने की आदत थी. चिन्मयानंद ने उस के जन्मदिन की पार्टी में भी हिस्सा लिया और केक काटने में हिस्सेदारी की. वैसे कामिनी और चिन्मयानंद की नजदीकी बढ़ने की अपनी अलग कहानी है.

कामिनी का कहना है कि उसे योजना बना कर फंसाया गया. जब वह हौस्टल में रहने आई तो एक दिन नहाते समय चोरी से उस का वीडियो बना लिया गया. इस के बाद उस वीडियो को वायरल कर के उसे बदनाम करने की धमकी दी गई. फिर स्वामी चिन्मयानंद ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बलात्कार की भी उन्होंने वीडियो बनाई. इस के बाद उस के शोषण का सिलसिला चल निकला.

चिन्मयानंद को मसाज कराने का शौक था. मसाज के दौरान ही कभीकभी वह सैक्स भी करते थे. अपने शोषण से परेशान कामिनी ने स्वामी की तर्ज पर उन की मसाज और सैक्स के वीडियो बनाने शुरू कर दिए. वह जान गई थी कि स्वामी चिन्मयानंद के जाल से निकलने के लिए शोषण की कहानी को दुनिया के सामने लाना होगा.

पीडि़त कामिनी ने स्वामी चिन्मयानंद के तमाम वीडियो पुलिस को सौंपे हैं. इन में से 2 वीडियो वायरल भी हो गए. वायरल वीडियो में चिन्मयानंद नग्नावस्था में कामिनी से मसाज करा रहे थे. इस में वह कामिनी से आपसी संबंधों की बातें भी कर रहे थे. उन की आपसी बातचीत से ऐसा लग रहा था, जैसे दोनों के बीच यह सामान्य घटना हो.

इस दौरान कामिनी की तबीयत और नया मोबाइल खरीदने की बात भी हुई. कामिनी ने काले रंग की टीशर्ट पहनी थी. उस ने मसाज वाले दोनों वीडियो अपने चश्मे में लगे खुफिया कैमरे से तैयार किए थे. खुद को फ्रेम में रखने के लिए उस ने अपना चश्मा मेज पर उतार कर रख दिया था, जिस से स्वामी चिन्मयानंद के साथ वह भी कैमरे में दिख सके.

यह कैमरा कामिनी के नजर वाले चश्मे के फ्रेम में नाक के ठीक ऊपर इस तरह लगा था जैसे कोई चश्मे की डिजाइन हो. कामिनी ने यह चश्मा औनलाइन शौपिंग से मंगवाया था.

मसाज करने के बाद जब कामिनी हाथ धोने बाथरूम में गई तो शीशे में उस का अपना चेहरा भी कैमरे में कैद हो गया था. पूरी तैयारी के बाद उस ने स्वामी चिन्मयानंद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लेकिन उस की तैयारी के मुकाबले स्वामी का प्रभाव भारी पड़ा.

खुद को फंसता देख स्वामी चिन्मयानंद ने कामिनी और उस के 3 दोस्तों पर 5 करोड़ की फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस काम में स्वामी चिन्मयानंद का रसूख काम आया.

कामिनी की कोशिश के बावजूद स्वामी चिन्मयानंद पर उत्तर प्रदेश में मुकदमा दर्ज नहीं हो सका. लेकिन पुलिस ने कामिनी पर फिरौती मांगने का मुकदमा दर्ज कर उस की तलाश शुरू कर दी. कामिनी अपने दोस्त के साथ राजस्थान के दौसा शहर चली गई थी. वहां उस ने सोशल मीडिया पर अपनी दास्तान सुनाई. जनता और सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान लेने के बाद उस का मुकदमा दिल्ली में दर्ज किया गया.

उत्तर प्रदेश सरकार ने आननफानन में स्पैशल जांच टीम बना कर पूरा मामला उस के हवाले कर दिया. भारी दबाव के बाद आखिर चिन्मयानंद को 19 सितंबर, 2019 की सुबह करीब पौने 9 बजे एसआईटी ने गिरफ्तार कर लिया. जिस समय चिन्मयानंद को गिरफ्तार किया गया, उस समय वह अपने आश्रम में ही थे.

शाहजहांपुर के मुमुक्षु आश्रम को मोक्ष प्राप्त करने का स्थान बताया जाता है. शाहजहांपुर उत्तर प्रदेश के पिछडे़ जिलों में गिना जाता है. करीब 30 लाख की आबादी वाले इस जिले की साक्षरता 59 प्रतिशत है. मुमुक्षु आश्रम भी यहां की धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र माना जाता था.

शाहजहांपुर बरेली हाइवे पर स्थित यह आश्रम करीब 21 एकड़ जमीन पर बना है. इस के परिसर में ही इंटर कालेज से ले कर डिग्री कालेज तक 5 शिक्षण संस्थाएं हैं. मुमुक्षु आश्रम का दायरा शाहजहांपुर के बाहर दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश तक फैला है.

मुमुक्षु आश्रम की ताकत का लाभ ले कर वर्ष 1985 के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म के साथसाथ अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाई. वह 3 बार सांसद और एक बार केंद्र सरकार में गृह राज्य मंत्री बने. दूसरों को मोक्ष देने का दावा करने वाला मुमुक्षु आश्रम स्वामी चिन्मयानंद को मोक्ष की जगह जेल भेजने का जरिया बन गया.

मुमुक्षु आश्रम में संत के रूप में रहने आए चिन्मयानंद मुमुक्षु आश्रम के अधिष्ठाता बन गए थे. अधिष्ठाता बनने के बाद चिन्मयानंद खुद को भगवान समझने लगे. अहंकार का यही भाव उन के पतन का कारण बना.

श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी ने स्वामी चिन्मयानंद को अखाड़ा परिषद से बाहर कर दिया है. अखाड़ा सचिव महंत स्वामी रामसेवक गिरी ने कहा कि चिन्मयानंद के कारण संत समाज की छवि धूमिल हुई है.

मुमुक्षु आश्रम की स्थापना सन 1947 में स्वामी शुकदेवानंद ने की थी. शुकदेवानंद शाहजहांपुर के ही रहने वाले थे. उन की सोच हिंदूवादी थी. उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में ‘गांधी फैज-ए-आजम’ नाम से कालेज की स्थापना हुई थी. शुकदेवानंद को यह कालेज मुसलिमपरस्त लगा.

शुकदेवानंद को लगा कि इस के जवाब में संस्कृत का प्रचार करने के लिए इसी तरह से दूसरे कालेज की स्थापना होनी चाहिए, जिस से हिंदू संस्कृति का प्रचारप्रसार किया जा सके. इस के बाद शुकदेवानंद ने 1947 में श्री दैवी संपदा इंटर कालेज और 1951 में दैवी संपदा संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की.

स्वामी शुकदेवानंद पोस्ट ग्रैजुएट कालेज की स्थापना सन 1964 में हुई. छात्रों की संस्कृत में विशेष रुचि न होने के कारण यहां पढ़ने वाले छात्रों की संख्या काफी कम थी. पोस्टग्रैजुएट कालेज खुल जाने के बाद यहां के इंटर कालेज और डिग्री कालेज के छात्रों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिस से कालेज में पैसा आने लगा.

देखते ही देखते शुकदेवानंद का प्रभाव बढ़ने लगा. शाहजहांपुर के बाद दिल्ली, हरिद्वार, बद्रीनाथ और ऋषिकेश में शुकदेवानंद आश्रम बन गए. शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के नाम पर शुकदेवानंद ट्रस्ट की स्थापना हुई. सभी कालेज और आश्रम इसी के आधीन आ गए.

शुकदेवानंद के निधन के बाद उन के आश्रम और बाकी काम की जिम्मेदारी स्वामी धर्मानंद ने संभाली. धर्मानंद स्वामी शुकदेवानंद के शिष्य थे और उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले थे. स्वामी धर्मानंद ने भी अपने समय में शिक्षा के माध्यम से हिंदू संस्कृति को ले कर काम किया. बीमार रहने के कारण कुछ सालों बाद उन का भी देहांत हो गया. धर्मानंद के बाद चिन्मयानंद ने गद्दी संभाली.

चिन्मयानंद का जन्म सन 1947 में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में परसपुर क्षेत्र के त्योरासी गांव में हुआ था. उन का असल नाम कृष्णपाल सिंह है. 1967 में 20 साल की उम्र में संन्यास लेने के बाद वह हरिद्वार पहुंचे, जहां संत समाज ने उन का नाम चिन्मयानंद रखा.

चिन्मयानंद का परिचय भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी से था. राजनीतिक रुचि के कारण चिन्मयानंद उन के करीबी बन गए. इस के बाद चिन्मयानंद उत्तर प्रदेश में प्रमुख संत नेता के रूप में उभरने लगे. इसी के चलते वह विश्व हिंदू परिषद के संपर्क में आए.

यही वह समय था जब विश्व हिंदू परिषद राममंदिर को ले कर उत्तर प्रदेश में आंदोलन चला रहा था. उस के लिए मठ, मंदिर और आश्रम में रहने वाले संत मठाधीश बहुत खास हो गए थे.

विश्व हिंदू परिषद के अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने उत्तर प्रदेश में जिन आश्रम के लोगों को राममंदिर आंदोलन से जोड़ा, उन में गोरखपुर जिले के गोरखनाथ धाम के महंत अवैद्यनाथ, शाहजहांपुर के स्वामी चिन्मयानंद और अयोध्या से महंत परमहंस दास प्रमुख थे.

जब देश में हिंदुत्व की राजनीतिक लहर बनी, तब चिन्मयानंद विश्व हिंदू परिषद के साथसाथ भाजपा के भी कद्दावर नेता बन गए. विश्व हिंदू परिषद ने जब राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का गठन किया तो स्वामी चिन्मयानंद को उस का राष्ट्रीय संयोजक बनाया गया. राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति का राष्ट्रीय संयोजक बनने के बाद

स्वामी चिन्मयानंद के नेतृत्व में संघर्ष समिति का दायरा बढ़ाने का काम किया गया. इस से उन की पहचान पूरे देश में प्रखर हिंदू वक्ता के रूप में स्थापित हुई.

हिंदुत्व के सहारे देश की सत्ता हासिल करने का सपना देख रही भाजपा ने साधुसंतों को संसद पहुंचाने की योजना बनाई. इसी के चलते चिन्मयानंद को लोकसभा का चुनाव लड़ाने की योजना बनी. सन 1990 में भाजपा ने केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले कर देश को मध्यावधि चुनाव में धकेल दिया तो 1991 में चिन्मयानंद को शरद यादव के खिलाफ बदायूं से टिकट दिया गया.

चुनाव में स्वामी चिन्मयानंद ने शरद यादव को 15 हजार वोटों से पटखनी दे दी. इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने 1998 में मछलीशहर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

इस के बाद स्वामी चिन्मयानंद ने धर्म और सत्ता का तालमेल बैठा कर आगे बढ़ना शुरू किया. सन 1992 में जब बाबरी मसजिद ढहाई गई तब स्वामी चिन्मयानंद भी वहां मौजूद थे. लिब्रहान आयोग ने जिन लोगों को आरोपी माना था, उस में चिन्मयानंद का नाम भी शामिल था.

बाबरी मसजिद ढहाए जाने से 9 दिन पहले चिन्मयानंद ने सुप्रीम कोर्ट के सामने उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर एफिडेविट में बताया था कि 6 दिसंबर, 1992 को सिर्फ कार सेवा की जाएगी और अयोध्या में इस से कानूनव्यवस्था के लिए किसी तरह का खतरा नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने उन की बातों पर विश्वास भी किया, लेकिन बाबरी मसजिद ढहा दी गई. सन 2009 में लिब्रहान आयोग ने अपनी रिपोर्ट में

कहा था कि कार सेवा के बहाने मसजिद गिराने का प्लान पहले से तय था और इस की भूमिका में परमहंस रामचंद्र दास, अशोक सिंघल, विनय कटियार, चंपत राय, आचार्य गिरिराज, वी.पी. सिंघल, एस.सी. दीक्षित और चिन्मयानंद शामिल थे.

1990 के दशक में राजनीतिक रूप से स्वामी चिन्मयानंद अपना रसूख काफी मजबूत कर चुके थे. देश के हिंदुत्व के नायकों में से उन की गिनती होने लगी. 12वीं लोकसभा (1998) में उन्होंने अपने आप को सामाजिक एवं राजनीतिक कार्यकर्ता और धार्मिक गुरु बताया था. चिन्मयानंद 30 से अधिक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थाओं के साथ जुड़े थे.

चिन्मयानंद और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच गहरा रिश्ता है. 1980 के दशक में राममंदिर आंदोलन के दौरान स्वामी चिन्मयानंद और योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ ने मंदिर निर्माण के लिए कंधे से कंधा मिला कर काम किया था. दोनों ने मिल कर राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति की स्थापना भी की थी. उन के बीच करीबी रिश्ता था.

अटल सरकार में मंत्री पद से हटने के बाद स्वामी चिन्मयानंद का राजनीतिक रसूख हाशिए पर सिमट गया था. 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने तो स्वामी चिन्मयानंद का रसूख फिर से बढ़ गया. उन का दरबार सजने लगा था. तमाम नेता और अफसर वहां शीश झुकाने जाने लगे. मुमुक्षु आश्रम का दरबार एक तरह से सत्ता का केंद्र बन गया था.

कामिनी के पिता की तरफ से चिन्मयानंद उर्फ कृष्णपाल सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 376सी, 354बी, 342, 306 के तहत मुकदमा लिखाया गया. दूसरी ओर स्वामी चिन्मयानंद के वकील की तरफ से कामिनी और उस के दोस्तों संजय सिंह, सचिन और विक्रम के खिलाफ भादंवि की धारा 385, 506, 201, 35 और आईटी ऐक्ट 67ए के तहत 5 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा दर्ज कर लिया गया.

दोनों ही मुकदमों में गिरफ्तारी हो चुकी है. जानकार लोगों का मानना है कि रंगदारी के मुकदमे के सहारे यौनशोषण और बलात्कार के मुकदमे को कमजोर करने का प्रयास किया जा रहा है.

पुलिस द्वारा आरोप लगाने वाली कामिनी के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज कर उसे 24 सितंबर को पकड़ कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद विरोधी दलों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर चिन्मयानंद को बचाने के आरोप लगाए.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में कामिनी नाम परिवर्तित है.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

प्यार की कीमत 4 लाशें: प्रेम की खातिर गंवाई जान

परेशानी की हालत में हरमन सिंह कुएं के चारों ओर चक्कर लगाते हुए गहरी सोच में डूबा हुआ था. नवनीत कौर उर्फ बेबी कुएं की मुंडेर पर बैठी थी. उस के चेहरे पर भी चिंता के बादल मंडरा रहे थे. दोनों ही सोच में डूबे थे पर किसी से कुछ कह नहीं पा रहे थे. अचानक हरमन रुका और उस ने बेबी के नजदीक जा कर कहा, ‘‘हमारे पास इस समस्या का और कोई इलाज नहीं है, सिवाय इस के कि हम घर से भाग कर शादी कर लें. बाद में जो होगा, देखा जाएगा.’’

‘‘नहीं हरमन, हम ऐसा नहीं कर सकते.’’ चिंतित बेबी ने डरते हुए कहा. अपनी बात जारी रखते हुए उस ने आगे बताया, ‘‘मैं ने अपनी मां से अपनी शादी के बारे में बात की थी. मां ने वादा किया था कि वह बापू को मना लेगी. मेरे खयाल से हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए.’’

‘‘मैं ने भी अपने बापू को सब कुछ बता दिया है. शायद वह राजी हो जाएं. पर समस्या यह है कि तेरे बापू ने तेरे लिए जो लड़का ढूंढा है, जिस से अगले हफ्ते तेरी सगाई हो रही है. उस वक्त हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’ हरमन ने चिंतातुर होते हुए कहा.

‘‘मैं फिर कहती हूं कि हमें कुछ दिन और इंतजार करना चाहिए. अगर कोई चारा न बचा तो हम घर से भाग कर शादी कर लेंगे.’’ बेबी ने इतना बता कर बात खत्म कर दी. इस के बाद  दोनों अपनेअपने रास्ते चले गए. यह बात 2 अगस्त, 2019 की है.

भारतपाक सीमा पर स्थित तरनतारन के गांव नौशेरा के निवासी थे सरदार जोगिंदर सिंह. वह खेतीबाड़ी का काम करते थे. उन के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. सब से बड़ी बेटी सरबजीत कौर की शादी उन्होंने कर दी थी. उस से छोटा बेटा 22 वर्षीय हरमन अपने पिता के साथ खेतों में काम करता था.

हरमन से छोटी थी 19 वर्षीय प्रभदीप कौर, जिस की शादी के लिए वर की तलाश की जा रही थी. इन सब से छोटा 16 वर्षीय पवनदीप सिंह था. यह परिवार अपने आप में मस्त मगन रहने वाला शांत स्वभाव का था.

4 साल पहले जोगिंदर सिंह की पत्नी अमरजीत कौर की मृत्यु हो गई थी. उस समय गांव के ही बीर सिंह ने जोगिंदर सिंह और उस के परिवार का बड़ा ध्यान रखा था. बीर सिंह भले ही छोटी जाति का मजहबी सिख था, पर बीर सिंह और जोगिंदर सिंह की आपस में बड़ी गहरी दोस्ती थी.

पूरा गांव उन की दोस्ती की मिसाल देता था. दोनों एकदूसरे को भाई मानते थे, पर यह बात कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर उन की दोस्ती एक ऐसे मुकाम पर जा पहुंचेगी कि जिस की कीमत लहू दे कर चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह भी नौशेरा ढाला गांव का निवासी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. बड़ी बेटी की उस ने शादी कर दी थी और बाकी बच्चे अभी अविवाहित थे. बीर सिंह और जोगिंदर के आपस में अच्छे संबंध होने के कारण दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर काफी आनाजाना था.

इसी आनेजाने के दौरान जोगिंदर के बेटे हरमन की आंखें बीर सिंह की बेटी नवनीत कौर उर्फ बेबी से लड़ गईं. दोनों बचपन से साथ खेलेबढ़े थे, युवा होने पर जब दोनों ने एकदूजे को देखा तो अपनाअपना दिल हार बैठे.

गांव के बाहर खेतों में किसी न किसी बहाने से दोनों की मुलाकातें होने लगीं. दिन पर दिन उन का प्यार परवान चढ़ने लगा और फिर अंत में वह दिन भी आ गया, जिस की दोनों ने कल्पना भी नहीं की थी.

बीर सिंह ने अपनी बेटी बेबी के लिए लड़का खोज लिया था और वह जल्द ही उस के हाथ पीले करना चाहता था. हरमन और बेबी के प्रेम संबंधों की दोनों परिवारों को भनक तक नहीं थी. बहरहाल, बेबी के कहने पर उस की मां ने अपने पति बीर सिंह से जब हरमन के रिश्ते की बात की तो उस ने साफ और कड़े शब्दों में इनकार कर दिया.

इस के बाद हरमन और बेबी के पास शादी करने के लिए घर से भागने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं बचा था. सो आपस में सलाह कर वे दोनों अगस्त के पहले सप्ताह में घर से भाग गए. हरमन ने अपनी बड़ी बहन की सहायता से गुरुद्वारा साहिब में बेबी से शादी कर ली.

दोनों ने जाति की दीवार तोड़ कर एक साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए शादी तो कर ली, पर उन्हें क्या पता था कि इस की कीमत हरमनजीत सिंह के पूरे परिवार को चुकानी पड़ेगी.

बीर सिंह और उस के बेटों को जब इस बात का पता चला तो उन का खून खौल उठा. उन्होंने हरमन और बेबी को तलाशने की बहुत कोशिश की पर वे नहीं मिले. इस बीच गांव वालों के सामने बलबीर सिंह बीरा, उस के बेटों वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह की ओर से हरमन और उस के परिवार को धमकाया जा रहा था.

शादी के बंधन में बंध जाने के बाद घर की जिम्मेदारी के चलते हरमन कोई भी विवाद नहीं चाहता था. इसी कारण लगभग डेढ़ महीने पहले विवाह के तुरंत बाद वह गांव छोड़ कर चला गया था.

29 जुलाई, 2019 को बीर सिंह और उस के बेटों को खबर मिली कि हरमन बेबी के साथ 2 दिनों से अपने घर आया हुआ है. यह खबर मिलने के बाद वे लोग पूरी तैयारी के साथ रात होने का इंतजार करने लगे. इस से पहले बीर सिंह के बेटे वरदीप सिंह, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह हाथों में नंगी तलवारें ले कर जोगिंदर के घर के आसपास मंडराते रहे थे.

खतरे का अंदेशा भांप कर हरमन ने चुपके से अपनी पत्नी बेबी को अपने घर से निकाला और बहन के गांव पहुंचा दिया. घटना वाली रात 29 तारीख को रात का खाने के बाद हरमन अपने पिता जोगिंदर सिंह के साथ छत पर सोने चला गया. उस का छोटा भाई पवनदीप सिंह और बहन प्रभदीप कौर नीचे कमरे में सो गए थे.

रात करीब डेढ़ बजे हरमन को अपने घर की चारदीवारी के पास कुछ आहट सुनाई दी. उस ने नीचे झांक कर देखा तो दंग रह गया. बीर सिंह अपने बेटों और कुछ अन्य लोगों के साथ घर की चारदीवारी फांदने की कोशिश कर रहा था.

यह देख वह घबरा गया और उस ने अपने पिता को जगा कर सचेत किया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसे संकट में वह अपने परिवार को बचाने के लिए क्या करे. तब तक बीर सिंह अपने लोगों के साथ चारदीवारी फांद कर घर के आंगन में दाखिल हो चुका था.

हरमन ने छत से गली में छलांग लगाई और ‘बचाओ बचाओ’ का शोर मचाते हुए अपने ताया बलकार सिंह के घर की तरफ दौड़ा. तब तक कुछ और गांव वाले भी उठ कर अपने घरों से बाहर निकल आए और हरमन को भागते हुए देखा पर किसी की समझ में यह बात नहीं आई कि हरमन क्यों भाग रहा है.

हरमन ने अपने ताया को जा कर पूरी बात बताई. वह अपने छोटे भाई और बेटों के साथ तुरंत भाई जोगिंदर सिंह के घर की ओर दौड़े पर जब वह वहां पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी.

बीर सिंह अपने बेटों, दामाद और अपने साथियों के साथ हरमन के परिवार की लाशें बिछा कर जा चुका था. शोर सुन कर पड़ोसी भी जमा हो गए थे. हरमन के ताऊ चाचा और पड़ोसियों ने पूरे गांव में बीर सिंह और उस के बेटों की तलाश की, पर वे गांव से फरार हो गए थे. बीर सिंह ने छत पर सो रहे जोगिंदर सिंह तथा नीचे कमरे में सो रहे पवनदीप सिंह और प्रभदीप कौर की बड़ी बेरहमी से हत्या कर दी थी.

सुबह जैसेजैसे दिन का उजाला फैलता गया, गांव में दहशत का माहौल बनता गया. इस तिहरे हत्याकांड ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया था. घटना की सूचना मिलते ही एसपी हरजीत धारीवाल, डीएसपी कमलजीत सिंह औलख और थाना सराय अमानत खां के प्रभारी इंसपेक्टर प्रभजीत सिंह क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम सहित मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

शुरुआती जांच में सामने आया कि किसी तेज धार और नुकीले हथियारों से इस वारदात को अंजाम दिया गया था. सब से अधिक घाव जोगिंदर सिंह के सीने और गरदन में पाए गए जबकि बेटी प्रभदीप कौर की छाती और पेट पर वार किए गए थे.

16 वर्षीय मासूम पवनदीप सिंह के सिर के पीछे गहरे घाव पाए गए. तीनों लाशों का पंचनामा कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया गया.

पुलिस को बयान दर्ज करवाते समय हरमनजीत सिंह इस कदर सहमा हुआ था कि करीब से मौत को देखने के बाद उसे अपने व अपनी पत्नी बेबी के भविष्य की चिंता सता रही थी. वह बारबार सुरक्षा के लिए पुलिस अधिकारियों के समक्ष हाथपांव जोड़ रहा था.

हरमन और उस की पत्नी बेबी की सुरक्षा के लिए पुलिस ने उन्हें 2 गनमैन दिए. हरमन के बयानों पर थाना सराय अमानत खां में आरोपियों के खिलाफ 30 जुलाई को 11 आरोपियों बलबीर सिंह उर्फ बीरा, अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज कर के गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू कर दी गई.

तीनों शवों का पोस्टमार्टम सिविल अस्पताल तरनतारन में 3 डाक्टरों के पैनल से करवाया गया. डीएसपी कमलजीत सिंह औलख की अगुवाई में बनाई गई विशेष टीम द्वारा दिनरात एक कर दिया गया. जिस के चलते 2 अगस्त, 2019 को इस हत्याकांड से जुड़े 3 आरोपी बीर सिंह, उस का दामाद जोबनजीत सिंह और बेटा वरदीप सिंह पुलिस के हाथ लग गए.

इस हत्याकांड का मास्टरमाइंड बीर सिंह का दामाद जोबनजीत सिंह था. नाबालिग वरदीप सिंह को जुवेनाइल एक्ट के तहत अदालत में पेश कर के बाल सुधार गृह फरीदकोट भेज दिया गया. जबकि बीर सिंह व उस के दामाद को 2 दिन के रिमांड पर ले कर पूछताछ की गई.

गिरफ्तारी के बाद पूछताछ के दौरान बीर सिंह ने बताया कि उस का रिश्ता जोगिंदर सिंह के साथ भाइयों जैसा था. लेकिन जोगिंदर के बेटे ने हमारी इज्जत खराब कर दी. जिस की वजह से वह समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रह गया था. तब मजबूरी में उसे अपराध के लिए मजबूर होना पड़ा था.

बीर सिंह और उस के दामाद जोबन सिंह की निशानदेही पर पुलिस ने वह तेजधार चाकू और हथियार बरामद कर लिए, जिन से जोगिंदर सिंह और उस के परिवार को मौत के घाट उतारा गया था. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद बीर सिंह और जोबन को अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया गया था.

कथा लिखे जाने तक पुलिस बाकी फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी. इस मामले से जुड़े अभी 11 आरोपी अर्शदीप सिंह, सुखदीप सिंह, गोविंदा, हैप्पी, मनी, बिक्रम सिंह, बिचित्र सिंह, जोगा सिंह व 3 अज्ञात लोगों का कथा लिखने तक सुराग नहीं लग पाया था.

दूसरी ओर हरमनजीत सिंह के साथ प्रेम विवाह करने वाली नवनीत कौर बेबी का कहना है कि अभी केवल मेरे पिता की ही गिरफ्तारी हुई है. पुलिस को चाहिए कि इस मामले से जुड़े सभी आरोपियों को पकड़ कर जेल में डाले.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019