Kanpur News : कंपनी के घाटे से परेशान फर्टिलाइजर कंपनी के डायरेक्‍टर ने बाथरूम में खुद को मारी गोली

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन ने कंपनी के उच्चाधिकारियों के साथ एक अहम मीटिंग फिक्स की थी, जिस में कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड केमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी विशेष मंत्रणा के लिए बुलाया गया था. सुनील जोशी मीटिंग के लिए गेस्टहाउस पहुंचे भी लेकिन…

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर ने कंपनी के उच्चाधिकारियों की एक अहम बैठक बुलाई थी. यह बैठक कानपुर (कैंट) स्थित कंपनी के आलीशान गेस्टहाउस में दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी. बैठक में शामिल होने के लिए चेयरमैन मनोज गौर के अलावा वाइस चेयरमैन ए.के.जैन, प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन, डायरेक्टर स्तर के पदाधिकारी रमेश चंद्र तथा वीरेंद्र सिंह गेस्टहाउस आ चुके थे. वे सब मीटिंग की तैयारी में व्यस्त थे. इसी अहम बैठक में जेपी गु्रप की कंपनी कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड कैमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी शामिल होना था. जोशी स्वरूपनगर स्थित रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट के प्रथम तल पर अपने परिवार के साथ रहते थे.

मीटिंग को ले कर वह सुबह से ही उलझन में थे. पति को परेशान देख उन की पत्नी मेनका ने पूछा भी पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया. हां, इतना जरूर कहा कि आज वह एमडी से बात कर ही लेंगे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने उलझन के कारण नाश्ता भी नहीं किया और प्रात: 9 बजे अपनी निजी कार से गेस्टहाउस के लिए रवाना हो गये. 20 मिनट बाद वह कैंट स्थित कंपनी के गेस्टहाउस पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद कर्मचारी से मनोज गौर के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि चेयरमैन साहब रात को ही गेस्टहाउस आ गए थे. इस समय वह बाथरूम में हैं. मीटिंग 12 बजे के बाद शुरू होगी.

इस के बाद सुनील कुमार जोशी कमरे में चले गए. उन्होंने कर्मचारी गौतम राजपूत से पानी लाने को कहा. गौतम पानी लेने चला गया, लेकिन उस के आने से पहले ही वह बाथरूम चले गए. कुछ देर बाद ही बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई. आवाज सुन कर किचन में नाश्ता तैयार कर रहे बुद्धराम कुशवाहा, गौतम राजपूत व जितेंद्र रूम में आ गए. उन तीनों ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उन के होश गुम हो गए. बाथरूम के अंदर सुनील कुमार जोशी खून से लथपथ मरणासन्न स्थिति में पड़े थे. कर्मचारियों ने तुरंत जा कर प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन को घटना की जानकारी दी.

मामला गंभीर देख कर अनिल मोहन फौरन वहां जा पहुंचे, जहां सुनील कुमार जोशी खून के सैलाब में डूबे पड़े थे. उन की हालत गंभीर थी. अनिल मोहन ने कर्मचारियों की मदद से उन्हें कार में बिठाया और कानपुर के चर्चित अस्पताल रीजेंसी ले गए. चूंकि सुनील कुमार जोशी की हालत नाजुक थी, अत: उन्हें गहन चिकित्सा यूनिट में भरती किया गया. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए. सुनील जोशी द्वारा खुदकुशी की कोशिश किए जाने की जानकारी मिलते ही उन की पत्नी मेनका जोशी तत्काल रीजेंसी अस्पताल पहुंचीं. लेकिन वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि उन के पति की मृत्यु हो गई है. इस सदमे को बरदाश्त कर पाना मेनका जोशी के लिए बहुत मुश्किल था.

परिवार की महिलाओं व कंपनी के बड़े अधिकारियों ने जैसेतैसे उन्हें धैर्य बंधाया. इस के बाद मेनका अस्पताल से घटनास्थल गेस्टहाउस को रवाना हो गईं. इधर प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ने डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी द्वारा गोली मार कर आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना कैंट पुलिस को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आदेश चंद्र पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी इस घटना के बारे में सूचित कर दिया था. थाने से कंपनी का गेस्टहाउस दो किलोमीटर दूर था. अत: पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. चूंकि गेस्टहाउस में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक थी, अत: भीड़ ज्यादा नहीं थी. गेस्टहाउस के कर्मचारी, पदाधिकारी तथा मृतक के परिजन ही वहां मौजूद थे.

थानाप्रभारी आदेशचंद्र घटनास्थल पर पहुंचे ही थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा डीएसपी अरविंद कुमार चतुर्वेदी भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. अधिकारियों की उपस्थिति में फोरैंसिक टीम ने जांच शुरू की. कमरे से अटैच बाथरूम में खून फैला हुआ था. वहीं पिस्टल भी पड़ी थी. जांच से पता चला कि डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने .30 बोर की इंग्लिश पिस्टल से खुद को गोली मारी थी. टीम ने जांच के लिए ब्लड सैंपल और पिस्टल से फिंगरप्रिंट ले लिए. पास ही कारतूस का खोखा पड़ा था. टीम ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. फोरैंसिक टीम ने पिस्टल से मैगजीन निकाली तो उस में 5 गोलियां मौजूद थीं. सभी बरामद वस्तुओं को टीम ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें कमरे में मृतक सुनील कुमार जोशी का मोबाइल फोन रखा मिल गया. एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल ने मोबाइल फोन खंगाला तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. मृतक सुनील कुमार जोशी ने प्रात: 9 बज कर 26 मिनट पर एग्जीक्यूटिव कमेटी के वाट्सऐप गु्रप में जो मैसेज किया, उस से साफ जाहिर था कि उन की मनोदशा ठीक नहीं थी. मैसेज में उन्होंने लिखा था कि 30 साल से कंपनी की सेवा कर रहा हूं. अच्छे और बुरे दिन देखे. लेकिन अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं है.

घटनास्थल (गेस्टहाउस) पर जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि घटना के वक्त वह अपने रूम के बाथरूम में थे. इसी दौरान अनिल मोहन सुनील को अस्पताल ले जा चुके थे. गेस्टहाउस कर्मचारियों से उन्हें घटना की जानकारी हुई तो वह अवाक रह गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बताया कि फर्टिलाइजर कंपनी में करोड़ों का स्क्रैप बेचा गया था, जिसे बिना किसी लिखापढ़ी तथा कंपनी के अधिकारियों को जानकारी दिए बिना उठवा दिया गया था. इसी को ले कर कंपनी में विवाद की स्थिति थी. मनोज गौर ने बताया कि इस मामले को ले कर उन्होंने कई बार सुनील जोशी से बात करने की कोशिश की, मगर वह उन का फोन ही नहीं उठाते थे और बात करने से बचते थे.

स्क्रैप बिक्री घोटाले को ले क र ही उन्होंने आज कानपुर स्थित कंपनी के गेस्टहाउस में मीटिंग रखी थी. शायद वह इस मीटिंग को फेस करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. गेस्टहाउस आए जरूर पर उन्होंने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. गेस्टहाउस में ही मनोज गौर का सामना सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी से हो गया जो रिश्ते में उन की भतीजी लगती थी. गमगीन भतीजी को देख कर चेयरमैन मनोज गौर भावुक हो गए और बोले, ‘‘सुनील से गलती हो गई थी, तो मुंह छिपाने से क्या फायदा था. कंपनी के जिम्मेदार पद पर हो कर भी फोन नहीं उठा रहे थे. सामने आ कर स्थितियां स्पष्ट करते तो कोई रास्ता निकाला जाता.’’

मेनका जोशी ने अपने फूफा मनोज गौर की बात को गौर से सुना जरूर, पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. जाने वाला हमेशा के लिए जा चुका था. अब कुछ कहनेसुनने से क्या फायदा था. वह चुपचाप सुबकती रही और आंखों से आंसू बहाती रहीं. एसएसपी अनंत देव तिवारी इस हाईप्रोफाइल मामले पर पैनी नजर रखे हुए थे और बड़ी बारीकी से जांच में जुटे थे. इसी कड़ी में उन्होंने प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि घटना के समय वह अपने रूम में थे. तभी 3 कर्मचारी बदहवास हालत में उन के रूम में आए और बताया कि डायरेक्टर सुनील जोशी ने बाथरूम में खुद को गोली मार ली है. वह लहूलुहान बाथरूम में पड़े हैं. यह सुनते ही वह अवाक रह गए. फिर वह सुनील जोशी को कार से रीजेंसी अस्पताल ले गए और भरती कराया. उस के बाद थाना छावनी पुलिस तथा सुनील की पत्नी मेनका को इस घटना के बारे में सूचना दी.

अनंत देव तिवारी ने गेस्टहाउस के कर्मचारियों से पूछताछ की तो गौतम राजपूत, बुद्धराम कुशवाहा तथा जितेंद्र ने बताया कि वे तीनों रसोइया हैं. उस वक्त वे किचन में नाश्ता तैयार कर रहे थे. जब बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई तो उन लोगों ने वहां पहुंच कर देखा कि सुनील जोशी तड़प रहे थे. शायद उन्होंने खुद को गोली मार ली थी. वे तीनों घबरा गए और तुरंत जा कर अनिल मोहन को जानकारी दी. फिर वही घायल सुनील जोशी को अस्पताल ले गए. कंपनी के गेस्टहाउस (घटनास्थल) में मृतक सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी, उन का साला सोनू तथा परिवार के अन्य लोग मौजूद थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब मेनका जोशी से पूछताछ की तो वह बोलीं कि उन के पति ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उन की हत्या की गई है. वह रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग करेंगी. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से सुनील की पिस्टल के संबंध में पूछा तो मेनका ने बताया कि इंगलिश पिस्टल लाइसेंसी है तथा उन के पति सुनील की है. मृतक सुनील जोशी के साले सोनू का आरोप था कि जिस बाथरूम में सुनील को गोली लगी थी, वहां खून की मोटी परत जमी थी. इस से जाहिर है कि गोली लगने के बाद वह काफी देर तक फर्श पर पड़े रहे और खून निकलता रहा. उन्हें तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया.

सोनू ने यह भी आरोप लगाया कि जब गेस्टहाउस में आधा दर्जन से अधिक उच्चपदस्थ अधिकारी मौजूद थे तब गोली लगने के बाद सुनील को अस्पताल ले जाने के लिए अकेले प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ही आगे आए. बाकी अस्पताल में उन्हें देखने तक नहीं गए. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग की जाएगी. सुनील जोशी के परिवार के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि कंपनी का निदेशक मंडल अपने कारनामों को सुनील पर थोप कर बचने का प्रयास कर रहा था. किस ने गलत किया है, इस का फैसला करने के लिए ही बैठक बुलाई गई थी. अपने ऊपर लगे आरोपों से सुनील बेहद नाराज थे. मीटिंग से पहले आत्महत्या की बात गले नहीं उतर रही. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर जांच की मांग करेंगे.

घटनास्थल पर जांचपड़ताल तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारी सर्वोदय नगर स्थित रीजेंसी अस्पताल पहुंचे, जहां मृतक सुनील जोशी का शव रखा था. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पाया कि सुनील ने दाईं कनपटी में पिस्टल सटा कर गोली मारी थी, जो बाईं कनपटी से पार हो गई थी. मृतक सुनील की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट थे. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सुनील के शव का पंचनामा भरवा कर तथा सीलमोहर करा कर पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारी इस मामले पर आपस में गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुनील जोशी ने आत्महत्या ही की है. कारण उन पर करोड़ों रुपए का स्क्रैप बेचने तथा रुपयों का जमा खर्च का हिसाब न देने का आरोप कंपनी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने लगाया था. इसी की जवाबदेही के लिए कानपुर में बैठक बुलाई गई थी. सुनील गेस्टहाउस आ गए, लेकिन वह बैठक में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और खुदकुशी कर ली. फिर भी मृतक के घर वाले यदि कोई तहरीर देते हैं, तो रिपोर्ट दर्ज कर जांच की जाएगी.

पुलिस जांच से इस रहस्यमयी आत्महत्या की जो घटना प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है—कानपुर महानगर का एक पौश इलाका है स्वरूप नगर. स्वरूप नगर में ज्यादातर बंगले औद्योगिक घरानों के हैं. क्षेत्र में कई अपार्टमेंट भी हैं, जिन में संपन्न परिवार रहते हैं. स्वरूप नगर में ही रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट है. इस अपार्टमेंट के भूतल पर कानपुर फर्टिलाइजर के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मेनका जोशी के अलावा एक बेटा और बेटी हैं. मेनका के पिता अनिल कुमार शर्मा कानपुर शहर के संपन्न और सम्मानित व्यक्ति थे. वह कानपुर के पूर्व मेयर रह चुके थे. मेनका के बाबा रतन लाल शर्मा भी मेयर रह चुके थे. पितापुत्र के कार्यकाल को आज भी लोग याद करते हैं.

अनिल कुमार शर्मा ने अपनी बहन की शादी जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के साथ की थी, जबकि बेटी मेनका की शादी डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी के साथ की थी. इस तरह रिश्ते में मनोज गौर मेनका के फूफा थे. कानपुर के औद्योगिक क्षेत्र पनकी में फर्टिलाइजर कंपनी की स्थापना कब और कैसे हुई, इस के लिए अतीत की ओर जाना होगा. विदेशी कंपनी आईसीआई ने पनकी में उर्वरक कारखाना लगाया था. इस का उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 6 दिसंबर, 1969 को किया था. उस समय यह देश का पहला यूरिया बनाने वाला कारखाना था, जो नेप्था से चलता था.

वर्ष 1993 में विदेशी कंपनी आईसीआई ने कारखाना गोयनका गु्रप को बेच दिया. तब इस का नाम डंकन्स फर्टिलाइजर लिमिटेड किया गया. घाटे के कारण वर्ष 2002 में गोयनका ने कारखाना बंद कर दिया. इस के बाद जनवरी, 2012 में जेपी गु्रप के चेयरमैन जे.पी. गौर व मनोज गौर ने डंकन्स को खरीद लिया और नाम रखा कानपुर फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल लिमिटेड. यह उत्तर भारत का सब से बड़ा संयंत्र है. इस की उत्पादक क्षमता 2200 टन प्रति दिन है. कारखाने में 1000 कुशल श्रमिक कार्य करते है. प्लांट में ऊर्जा संरक्षण का पूरा सिस्टम लगाया गया है तथा प्लांट को गेल से सीधे प्राकृतिक गैस सप्लाई होती है.

सुनील कुमार जोशी कानपुर फर्टिलाइजर के ही डायरेक्टर नहीं थे, बल्कि 9 अन्य कंपनियों के भी डायरेक्टर थे. उन का जीवन हर तरह से खुशहाल था. उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से और डायरेक्टर जैसे पदों पर रह कर खूब दौलत कमाई. सुनील को लग्जरी कारों और आलीशान घर का बहुत शौक था. वह हर साल लग्जरी कारों पर करोड़ों रुपए खर्च करते थे. उन्होंने दिल्ली और कानपुर में 2 आलीशान बंगले बनवाए थे. उन के शौक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दिल्ली वाले बंगले का रेनोवेशन कराने के नाम पर ही 5 करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया था.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को फिल्मों में भी दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्होंने बौलीवुड में भी निवेश किया था. उन्होंने बौलीवुड हस्तियों के मैनेजर रहे अनिदा सील के साथ मिल कर एक कंपनी बनाई, जिस में उन की पत्नी मेनका जोशी निदेशक थीं. कंपनी की पहली फिल्म में गोविंदा का लीड रोल था. लेकिन फिल्म बौक्स औफिस पर औंधे मुंह गिरी. पहली ही फिल्म में हुए घाटे को ले कर उन का विवाद भी हुआ था. जिसे खत्म करने के लिए गोविंदा कई दिन कानपुर में रहे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी और जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के बीच दूरियां तब बढ़ीं, जब सुनील जोशी ने सतना के एक ठेकेदार के मार्फत कंपनी का 10 करोड़ का स्क्रैप बेच दिया. स्क्रैप बेचे जाने की जानकारी उन्होंने चेयरमैन मनोज गौर को भी नहीं दी और न ही यह बताया कि रुपया कब, कहां और कैसे खर्च किया.

कानपुर फर्टिलाइजर कंपनी में जब स्क्रैप बेचने को ले कर स्थितियां स्पष्ट हुईं तो सुनील जोशी और मनोज गौर के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई. कंपनी की माली हालत को ले कर चेयरमैन मनोज गौर पहले से ही तनाव में थे ऊपर से करोड़ों का स्क्रैप बिक जाने के मामले ने आग में घी का काम किया. हालात यहां तक आ गए थे कि मनोज गौर, सुनील जोशी से स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानना चाह रहे थे. मगर दोनों के बीच बात नहीं हो पा रही थी. इसी तनाव के बीच जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने फर्टिलाइजर कंपनी को बंद करने का फैसला कर लिया. दरअसल कंपनी को यूरिया खाद बनाने के एवज में सरकार से सब्सिडी मिलती है, तभी कम दाम पर किसानों तक खाद पहुंचती है.

पिछले 8 महीने से करीब 1200 करोड़ की सब्सिडी सरकार ने रोक दी थी, जिस से कंपनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और 1000 कामगारों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया था. यद्यपि कंपनी में उत्पादन ठीक हो रहा था. स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानने तथा कंपनी में तालाबंदी को लेकर ही जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने 18 मार्च को बैठक बुलाई थी. चूंकि सुनील जोशी को मीटिंग में स्क्रैप बिक्री का हिसाब देना था. साथ ही वह तालाबंदी भी नहीं चाहते थे, अत: वह परेशान हो उठे. जैसेजैसे बैठक की तारीख नजदीक आती जा रही थी, उन की उलझन बढ़ती जा रही थी.

18 मार्च, 2020 की सुबह सुनील जोशी जल्दी ही उठ गए. उन्होंने रात में ही निश्चय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. उलझन के चलते वह बैठक में जाने को तैयार हुए, फिर बिना खाएपिए ही अपनी कार से गेस्टहाउस के लिए निकल गए. सुबह 9:20 पर वह गेस्टहाउस के रूम में पहुंच गए. उन्होंने कर्मचारी से पानी मांगा, लेकिन पानी पिए बिना ही वह बाथरूम में चले गए. फिर उन्होंने कंपनी गु्रप पर एक मैसेज डाला, जिस में उन्होंने लिखा—

‘डियर आल, जिंदगी ने बीते 30 सालों में मुझे बहुत कुछ सिखाया. इस दौरान बहुत से उतारचढ़ाव देखे. जिंदगी में बहुत से अच्छेबुरे लोग भी आए. हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी कुछ बुरा नहीं दिखाएगी. व्यापारिक परिवेश में पैदा होने के कारण हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी ऐसे ही उतारचढ़ाव के साथ ही चलती है. पर जब हमारे पास परिवार होता है, तो जिंदगी के उतार बहुत परेशान करते है. बहुत सारे लोगों ने मुझे प्यार व इज्जत दी है. मैं ने हमेशा संतुलित जीवन जीने का प्रयास किया है. आज मेरे लिए रास्ते बंद हो चुके हैं और इस अंधेरी गुफा में मुझे कोई रोशनी दिखाई नहीं दे रही है. मेरे पास संसाधन नहीं है कि मेरा परिवार मेरे बगैर जिंदगी गुजार सके. एक घर दिल्ली में और एक घर कानपुर में ही है.

मैं श्री मनोज गौर से निवेदन करना चाहता हूं कि वह मेरा कर्ज चुकाने में मेरे परिवार की मदद करें. इस के लिए वह दिल्ली वाला मकान बेच दें. जो पैसा बचे उसे वह एफडी करा दें, जिस से मेरा परिवार जीवनयापन कर सके. इतना सब करने के लिए 12 माह का समय लगेगा. इतने समय के लिए कंपनी के निदेशकों से निवेदन है कि अगले 15 माह के लिए मेरा वेतन मुझे मिलता रहे. मेरे बच्चे अभी छोटे हैं और उन्हें अभी बहुत सारा समर्थन चाहिए. यह मेरे परिवार की गलती नहीं कि मैं जीवन में फेल हो गया. सभी को प्रेम और समर्थन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. लव यू आल. सुनील जोशी.’

इस मैसेज को भेजने के बाद सुनील जोशी ने अपनी लाइसैंसी इंग्लिश पिस्टल निकाली और दाईं कनपटी में सटा कर गोली दाग दी. गोली उन की बाईं कनपटी को पार कर बाहर निकल गई और वह फर्श पर गिर पड़े. बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. जांचपड़ताल के दौरान मृतक सुनील की पत्नी मेनका, साले सोनू और परिवार के एक अन्य सदस्य ने पुलिस को दिए बयान में सुनील जोशी द्वारा आत्महत्या किए जाने की बात को नकार कर उन की हत्या की आशंका जताई थी. साथ ही रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही थी. लेकिन हफ्ता 2 हफ्ता बीत जाने के बाद भी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई. अत: पुलिस इस मामले को आत्महत्या मान कर फाइल बंद करने की तैयारी पूरी कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : शादी से इनकार करने पर प्रेमी ने प्रेमिका का गला कैंची से काट डाला

UP Crime : अगर किसी युवक या युवती का प्रेम मिलन हुआ हो, लेकिन बाद में राहें अलगअलग हो गई हों तो कभी आमनेसामने पड़ने पर उन की मोहब्बत के मुरझाए फूल फिर से मुसकराने लगते हैं. लेकिन शादीशुदा होने की स्थिति में यह घातक होता है. सोना और आशीष को भी पहली मोहब्बत का…

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था. आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ.  ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था. खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं. कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे. मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी. सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था. उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी. पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं.

लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी. आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है. सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की. एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया.

लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली. इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला. सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे.

वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती. पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी. पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं.

इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया. सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की. लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है. आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है.

घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे. पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है. पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई. थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था. आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया. शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने के बाद वह फरार हो गया था.

चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था. मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.

सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’

उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी. सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी. निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.

अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ. आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.

सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी. प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी. कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते.

आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है. एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’

गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया. गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’

गीता का पति मुन्नालाल सफाईकर्मी था और शराब पीने का आदी. स्वभाव से वह गुस्सैल था. इसलिए गीता ने सोना की असलियत उसे नहीं बताई. इस के बजाए उस ने पति पर सोना का विवाह जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया. इसी के साथ गीता ने सोना का फैक्ट्री जाना भी बंद करा दिया और उस पर कड़ी नजर रखने लगी. उस ने अपनी बहू ज्योति तथा बेटों को भी सतर्क कर दिया था कि वह जहां भी जाए, उस के साथ कोई न कोई रहे. मांभाइयों के कड़े प्रतिबंध के कारण सोना का आशीष से मिलन बंद हो गया. इस से सोना और आशीष परेशान हो उठे. दोनों मिलन के लिए बेचैन रहने लगे.

सोना को इस बात की भनक लग चुकी थी कि उस के घर वाले उस की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. जबकि सोना के सिर पर अब भी आशीष के प्यार का भूत सवार था. इधर मुन्नालाल की खोज भीमसागर पर समाप्त हुई. भीमसागर का पिता रामसागर दादानगर फैक्ट्री एरिया के मिश्रीलाल चौराहे के निकट रहता था. नहर की पटरी के किनारे उस का मकान था. रामसागर लकड़ी बेचने का काम करता था. उस का बेटा भीमसागर भी उस के काम में मदद करता था. मुन्नालाल ने भीमसागर को देखा तो उसे सोना के लिए पसंद कर लिया. हालांकि सोना ने शादी से इनकार किया, लेकिन मुन्नालाल ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: सन 2017 के जनवरी महीने की 10 तारीख को सोना का विवाह भीमसागर के साथ कर दिया गया.

भीमसागर की दुलहन बन कर सोना ससुराल पहुंची तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. सुंदर पत्नी पा कर भीमसागर भी खुश था, वहीं उस के मातापिता भी बहू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. सब खुश थे, लेकिन सोना खुश नहीं नहीं थी. सुहागरात को भी वह बेमन से पति को समर्पित हुई. भीमसागर तो तृप्त हो कर सो गया, पर सोना गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही. न तो उस के जिस्म की प्यास बुझी थी, न रूह की.  उस रात के बाद हर रात मिलन की रस्म निभाई जाने लगी. चूंकि सोना इनकार नहीं कर सकती थी, सो अरुचि से पति की इच्छा पूरी करती रही.

घर वालों की जबरदस्ती के चलते सोना ने विवाह जरूर कर लिया था, पर वह मन से भीमसागर को पति नहीं मान सकी थी. अंतरंग क्षणों में वह केवल तन से पति के साथ होती थी, उस का प्यासा मन प्रेमी में भटक रहा होता था. 3-4 महीने तक सोना ने जैसेतैसे पति से निभाया, उस के बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. कलह का पहला कारण सोना का एकांत में मोबाइल फोन पर बातें करना था. भीमसागर को शक हुआ कि सोना का शादी से पहले कोई यार था, जिस से वह चोरीछिपे एकांत में बातें करती है. दूसरा कारण उस की फैशनपरस्ती तथा घर से बाहर जाना था. भीमसागर के मातापिता चाहते थे कि बहू मर्यादा में रहे और घर के बाहर कदम न रखे.

लेकिन सोना को घर की चारदीवारी में रहना पसंद नहीं था. वह स्वच्छंद हो कर घूमती थी. इन्हीं 2 बातों को ले कर सोना का भीमसागर और ससुराल के लोगों से झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साल बीततेबीतते सोना ससुराल छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी.  गीता ने सोना को बहुत समझाया और ससुराल भेजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. 6 महीने तक सोना घर में रही, उस के बाद उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में आया की नौकरी कर ली. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती, फिर शाम 5 बजे तक वापस आती. इस तरह वह मांबाप पर बोझ न बन कर खुद अपना भार उठाने लगी.

एक शाम सोना स्कूल से लौट रही थी कि दादानगर चौराहे पर उस की मुलाकात आशीष से हो गई. बिछड़े प्रेमी मिले तो दोनों खुश हुए. आशीष उसे नजदीक के एक रेस्तरां में ले गया, जहां दोनों ने एकदूसरे को अपनी व्यथाकथा सुनाई. बातोंबातों में आशीष उदास हो कर बोला, ‘‘अरमान मैं ने सजाए और तुम ने घर किसी और का बसा दिया.’’

सोना के मुंह से आह सी निकली, ‘‘हालात की मजबूरी इसी को कहते हैं. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना शादी कर दी. मैं ने मन से उसे कभी पति नहीं माना. साल बीतते उस से मेरा मनमुटाव हो गया और मैं उसे छोड़ कर मायके आ गई.’’ आशीष मन ही मन खुश हुआ. फिर बोला, ‘‘क्या अब भी तुम मुझे पहले जैसा प्यार करती हो?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. सच तो यह है कि मैं तुम्हें कभी भुला ही नहीं पाई. सुहागरात को भी तुम्हारी ही याद आती रही.’’ इस के बाद सोना और आशीष का फिर मिलन होने लगा. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी बन गया. आशीष कभीकभी सोना के घर भी जाने लगा. गीता को आशीष का घर आना अच्छा तो नहीं लगता था, पर उसे मना भी नहीं कर पाती थी. हालांकि गीता निश्चिंत थी कि सोना की शादी हो गई है. अब आशीष जूठे बरतन में मुंह नहीं मारेगा. पर यह उस की भूल थी. सोना के कहने पर आशीष ने अगस्त, 2019 में दबौली (उत्तरी) में किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा पसंद करने सोना भी आशीष के साथ गई थी. उस ने मकान मालकिन को बताया कि सोना उस की पत्नी है. मकान में अन्य किराएदार थे, उन को भी आशीष ने सोना को अपनी पत्नी बताया था.

सोना अब इस कमरे पर आशीष से मिलने आने लगी. सोना के आते ही रूम का दरवाजा बंद हो जाता और शारीरिक मिलन के बाद ही खुलता. किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था, क्योंकि उन की नजर में सोना उस की पत्नी थी. आशीष के रूम में आतेजाते सोना को एक रोज एक फोटो हाथ लग गई, जिस में वह एक युवती और एक मासूम बच्चे के साथ था. इस युवती और बच्चे के संबंध में सोना ने आशीष से पूछा तो वह बगलें झांकने लगा. अंतत: उसे बताना ही पड़ा कि वह शादीशुदा है और तसवीर में उस की पत्नी व बच्चा है.

लेकिन मनमुटाव के चलते पत्नी घाटमपुर स्थित अपने मायके में रह रही है. यह पता चलने के बाद सोना का आशीष से झगड़ा हुआ. लेकिन आशीष ने किसी तरह सोना को मना लिया. आशीष को लगा कि सच्चाई जानने के बाद सोना कहीं उस का साथ न छोड़ दे. इसलिए वह उस पर दबाव डालने लगा कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन सोना ने यह कह कर मना कर दिया कि पहले तुम अपनी पत्नी को तलाक दो. तभी मैं अपने पति से तलाक लूंगी. इस के बाद तलाक को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा.

17 मार्च की दोपहर 12 बजे सोना दबौली स्थित आशीष के रूम पर पहुंची. आशीष ने उसे फोन कर के बुलाया था. सोना के आते ही आशीष ने रूम बंद कर लिया फिर दोनों में बातचीत होने लगी. बातचीत के दौरान आशीष ने सोना से कहा कि वह अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले, पर सोना इस के लिए राजी नहीं हुई. उलटे पलटवार करते हुए वह बोली, ‘‘पहले तुम अपनी पत्नी से तलाक क्यों नहीं लेते, एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी?’’

तलाक को ले कर दोनों में गरमागरम बहस होने लगी. बहस के बीच आशीष ने प्रणय निवेदन किया, जिसे सोना ने ठुकरा दिया. इस पर आशीष जबरदस्ती पर उतर आया और सोना के कपड़े खींच कर उसे अर्धनग्न कर दिया. सोना भी बचाव में भिड़ गई. तलाक लेने से इनकार करने और शारीरिक संबंध न बन पाने से आशीष का गुस्सा आसमान पर जा पहुंचा. उस ने दीवार में बनी अलमारी में रखी कैंची उठाई और सोना के पेट में घोंप दी. सोना पेट पकड़ कर फर्श पर तड़पने लगी. उसी समय आशिष ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. सोना पेट पकड़ कर तड़पने लगी. उसी समय उस ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. कुछ देर बाद सोना ने दम तोड़ दिया.

सोना की हत्या करने के बाद आशीष ने कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद की और मकान के बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने सोना की भाभी ज्योति को सोना की हत्या की जानकारी दी, फिर फरार हो गया. इस घटना का भेद तब खुला, जब मकान मालकिन पुष्पा पहली मंजिल पर स्थित आशीष के कमरे पर पहुंची. पुष्पा ने इस घटना की सूचना थाना गोविंद नगर को दे दी. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या की बात सामने आई.  20 मार्च, 2020 को थाना गोविंद नगर पुलिस ने अभियुक्त आशीष सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Love Crime Story : सगाई वाले दिन ही प्रेमिका का किया मर्डर

Love Crime Story : शादीशुदा युवराज उर्फ जुगराज सिंह ने हरप्रीत को प्यार के जाल में फांस तो लिया, लेकिन जब बात शादी तक पहुंची तो वह परेशान हो गया. गले में अटकी इस हड्डी को निकालने के लिए युवराज ने अपने दोस्तों सुखचैन सिंह व सुखविंदर के साथ ऐसी योजना बनाई कि…

कानपुर के जवाहर नगर निवासी सरदार गुरुवचन सिंह की 22 वर्षीय बेटी हरप्रीत कौर श्रमशक्ति एक्सप्रेस से दिल्ली जाने के लिए रात 9 बजे घर से निकली. रात 10 बजे कानपुर सेंट्रल पहुंचने पर हरप्रीत ने अपनी मां गुरप्रीत को फोन पर बताया कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है, उसे आसानी से सीट मिल जाएगी. बेटी की बात से संतुष्ट हो कर गुरप्रीत कौर निश्चिंत हो गई. दरअसल, 13 दिसंबर को कानपुर में हरप्रीत कौर की रिंग सेरेमनी थी. उस का मंगेतर युवराज सिंह दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. हरप्रीत कौर की भाभी व भाई सुरेंद्र सिंह भी दिल्ली में ही रहते थे. हरप्रीत भाई से मिलने तथा अपनी सगाई का सामान खरीदने के लिए 9 दिसंबर, 2019 की रात घर से निकली थी.

बेटी सफर में अकेली हो तो मांबाप की चिंता स्वाभाविक है. गुरुवचन सिंह को भी बेटी की चिंता थी. अत: हालचाल जानने के लिए उन्होंने रात 12 बजे बेटी को काल लगाई, पर उस का फोन स्विच्ड औफ था. उन्होंने सोचा कि वह सो गई होगी. लेकिन मन में शक का बीज पड़ गया था, जिस ने सवेरा होतेहोते वृक्ष का रूप ले लिया. सुबह 7 बजे उन्होंने फिर से हरप्रीत को काल लगाई, पर फोन अब भी बंद था. इस से गुरुवचन सिंह की चिंता और बढ़ गई. उन्होंने दिल्ली में रहने वाले बेटे सुरेंद्र सिंह को फोन पर सारी बात बताई. सुरेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि हरप्रीत कौर अभी तक यहां नहीं पहुंची है. इस के बाद सुरेंद्र सिंह बहन की खोज में निकल पड़ा.

सुरेंद्र सिंह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंचा क्योंकि श्रमशक्ति एक्सप्रैस नई दिल्ली तक ही आती है. वहां उस ने स्टेशन का हर प्लेटफार्म छान मारा लेकिन उसे हरप्रीत कौर नहीं दिखी. उस ने वेटिंग रूम में भी चेक किया, पर हरप्रीत कौर वहां भी नहीं थी. सुरेंद्र सिंह ने सोचा कि हो न हो, हरप्रीत अपने मंगेतर युवराज सिंह के पास चली गई हो? मन में यह विचार आते ही सुरेंद्र सिंह ने हरप्रीत के मंगेतर युवराज से फोन पर बात की, ‘‘युवराज, हरप्रीत तेरे पास तो नहीं आई?’’

‘‘नहीं तो,’’ युवराज ने जवाब दिया. फिर उस ने पूछा, ‘‘सुरेंद्र बात क्या है, हरप्रीत को ले कर तू इतना परेशान क्यों है?’’

‘‘क्या बताऊं… हरप्रीत कल रात कानपुर से दिल्ली आने को निकली थी, पर वह अभी तक यहां नहीं पहुंची. स्टेशन पर आ कर मैं ने चप्पाचप्पा छान मारा पर वह कहीं नहीं दिख रही. मैं बहुत परेशान हूं. समझ में नहीं आ रहा कि हरप्रीत गई तो कहां गई?’’

‘‘तुम परेशान न हो. मैं तुम्हारे पास आ रहा हूं.’’ युवराज बोला और कुछ देर बाद वह नई दिल्ली स्टेशन पहुंच गया. वह भी सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की खोज करने लगा. दोनों ने नई दिल्ली स्टेशन का कोनाकोना छान मारा, लेकिन हरप्रीत का कुछ पता न चला. दिल्ली में सुरेंद्र व युवराज के कुछ परिचित थे. हरप्रीत भी उन्हें जानती थी. उन परिचितों के यहां भी सुरेंद्र सिंह ने बहन की खोज की, पर उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. सुरेंद्र सिंह के पिता गुरुवचन सिंह मोबाइल पर उस के संपर्क में थे. सुरेंद्र पिता को पलपल की जानकारी दे रहा था. जब सुबह से शाम हो गई और हरप्रीत का कुछ भी पता नहीं चला तो गुरुवचन सिंह चिंतित हो उठे. तब वह कानपुर रेलवे स्टेशन पर स्थित जीआरपी (राजकीय रेलवे पुलिस) थाना पहुंच गए.

उन्होंने थानाप्रभारी को बेटी के लापता होने की बात बताते हुए बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह की बात को तवज्जो नहीं दी. उन्होंने यह कह कर उन्हें वापस भेज दिया कि बेटी जवान है हो सकता है किसी के साथ सैरसपाटा के लिए निकल गई हो, 1-2 रोज इंतजार कर लो. उस के बाद न लौटे तो हम गुमशुदगी दर्ज कर लेंगे. गुरुवचन सिंह बुझे मन से वापस घर आ गए. गुरुवचन सिंह और उन की पत्नी गुरप्रीत कौर ने वह रात आंखों ही आंखों में काटी. दोनों के मन में तरहतरह की आशंकाएं उमड़नेघुमड़ने लगी थीं. अब तक गुरुवचन सिंह की युवा बेटी के गायब होने की खबर कई गुरुदारों तथा सिख समुदाय में फैल गई थी. लोगों की भीड़ उन के घर पर जुटने लगी थी.

गुरुद्वारे के जत्थे की महिलाएं भी आ गई थीं. सभी तरहतरह के कयास लगा रही थीं. गुरुवचन सिंह ने अपने खास लोगों से बंद कमरे में विचारविमर्श किया और जीआरपी थाने जा कर हरप्रीत की गुमशुदगी दर्ज कराने का निश्चय किया. 11 दिसंबर, 2019 की दोपहर गुरुवचन सिंह अपने परिचितों के साथ एक बार फिर कानपुर जीआरपी थाने पहुंचे. इस बार दबाव में बिना नानुकुर के थाना पुलिस ने हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुरुवचन सिंह एवं उन के परिचितों ने पुलिस से सीसीटीवी की फुटेज दिखाने का अनुरोध किया. इस पर पुलिस ने व्यस्तता का हवाला दे कर फुटेज दिखाने को इनकार कर दिया लेकिन जब दवाब बनाया गया तो फुटेज दिखाई.

फुटेज में हरप्रीत कौर स्टेशन की कैंट साइड से बाहर निकलते दिखाई दी. उस के बाद पता नहीं चला कि वह कहां गई. गुरुवचन सिंह जवाहर नगर में रहते थे. यह मोहल्ला थाना नजीराबाद के अंतर्गत आता है. शाम 5 बजे वह परिचितों के साथ थाना नजीराबाद जा पहुंचे. उस समय थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी थाने पर ही मौजूद थे. गुरुवचन सिंह ने उन्हें अपनी व्यथा बताई और बेटी की गुमशुदगी दर्ज करने की गुहार लगाई. थानाप्रभारी ने तत्काल गुरुवचन सिंह की बेटी हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. उन्होंने बेटी को तलाशने में हर संभव कोशिश करने का आश्वासन दिया. इधर 12 दिसंबर की अपराह्न 3 बजे कानपुर के ही थाना महाराजपुर की पुलिस को हाइवे के किनारे झाडि़यों में एक युवती की लाश पड़ी होने की सूचना मिली. सूचना पाते ही थानाप्रभारी ए.के. सिंह कुछ पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

लाश तिवारीपुर स्थित राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय के समीप हाइवे किनारे झाडि़यों में पड़ी थी. उन्होंने घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया. मृतका की उम्र 22 साल के आसपास थी. उसे देखने से लग रहा था कि उस की हत्या 2-3 दिन पहले कहीं और कर के लाश वहां डाली गई थी. मृतका के शरीर पर कोई जख्म वगैरह नहीं था जिस से प्रतीत हो रहा था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई होगी. उस के पास ऐसी कोई चीज नहीं मिली जिस से उस की शिनाख्त हो सके. थानाप्रभारी ने हुलिए सहित एक युवती की लाश पाए जाने की सूचना वायरलेस द्वारा कानपुर नगर तथा देहात के थानों को प्रसारित कराई ताकि मृतका की पहचान हो सके. इस सूचना को जब नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी ने सुना तो उन का माथा ठनका. क्योंकि उन के यहां भी एक दिन पहले 22 वर्षीय युवती हरप्रीत कौर की गुमशुदगी दर्ज हुई थी.

उन्होंने आननफानन में हरप्रीत कौर के पिता गुरुवचन सिंह को थाने बुलवा लिया. फिर उन्हें साथ ले कर वह महाराजपुर में मौके पर पहुंच गए. गुरवचन सिंह उस लाश को देखते ही फफक पड़े, ‘‘सर, यह शव हमारी बेटी हरप्रीत का ही है. इसे किस ने और क्यों मार डाला?’’

हरप्रीत की लाश पाए जाने की सूचना जब अन्य घरवालों को मिली तो घर में कोहराम मच गया. मां, बहन, भाई व परिजन घटनास्थल पर पहुच गए. हरप्रीत का शव देख कर सभी बिलख पड़े. थानाप्रभारी ने हरप्रीत कौर की हत्या की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी. कुछ ही देर बाद एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह भी मौके पर पहुंच गईं. मौके से साक्ष्य जुटाए गए. खोजी कुत्ता शव को सूंघ कर राधाकृष्ण मुन्नीदेवी महाविद्यालय की ओर भौंकता हुआ आगे बढ़ा फिर कुछ दूर जा कर वापस आ गया.

खोजी कुत्ता हत्या से संबंधित कोई साक्ष्य नहीं जुटा पाया. घटना स्थल से न तो मृतका का मोबाइल फोन बरामद हुआ और न उस का बैग. निरीक्षण के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दिया. 13 दिसंबर, 2019 को हरप्रीत हत्याकांड की खबर समाचारपत्रों में सुर्खियों में छपी तो सिख समुदाय के लोगों में रोष छा गया. सुबह से ही लोग पोस्टमार्टम हाउस पहुंचने लगे. दोपहर 12 बजे तक पोस्टमार्टम हाउस पर भारी भीड़ जुट गई. सपा विधायक इरफान सोलंकी तथा अमिताभ बाजपेई भी वहां पहुंच गए. विधायकों के आने से भीड़ ज्यादा उत्तेजित हो उठी. लोगों में पुलिस की लापरवाही के प्रति गुस्सा था.

अत: पुलिस विरोधी नारेबाजी शुरू हो गई. यह देख कर थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी के हाथपांव फूल गए. उन्होंने घटना की जानकारी आला अधिकारियों को दी तो एडीजी प्रेम प्रकाश, आईजी मोहित अग्रवाल, एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता, तथा सीओ गीतांजलि सिंह लाला लाजपतराय अस्पताल आ गईं. वहां जुटी भीड़ को देखते हुए एसएसपी ने मौके पर नजीराबाद, स्वरूप नगर, फजलगंज, काकादेव थाने की फोर्स भी बुला ली. बवाल की जानकारी पा कर जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत भी मौके पर आ गए. सपा विधायक माहौल को बिगाड़ न दें, इसलिए पुलिस अधिकारियों ने भाजपा विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा, कानपुर के नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह को वहां बुलवा लिया. भाजपा विधायक व पुलिस अधिकारियों ने मृतका के परिजनों से बातचीत शुरू की.

मृतका के पिता गुरुवचन सिंह ने आरोप लगाया कि पुलिस ने बेहद लापरवाही की. पुलिस यदि सक्रिय होती, तो शायद आज उन की बेटी जिंदा होती. वह थानों के चक्कर लगाते रहे, कहते रहे कि जल्द से जल्द उन की बेटी के हत्यारों को गिरफ्तार किया जाए. उन्होंने जिलाधिकारी के समक्ष तीसरी मांग यह रखी कि उन्हें कम से कम 5 लाख रुपए की आर्थिक मदद दी जाए. गुरुवचन सिंह की इन मांगों के संबंध में विधायक सुरेंद्र मैथानी तथा गुरु सिंह सभा नगर अध्यक्ष सिमरन जीत सिंह ने जिलाधिकारी तथा पुलिस अधिकारियों से विचारविमर्श किया. अंतत: उन की सभी मांगें मान ली गईं. अधिकारियों के आश्वासन के बाद माहौल शांत हो गया.

3 डाक्टरों के एक पैनल ने हरप्रीत कौर के शव का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ डा. ए.बी. मिश्रा, डा. कृष्ण कुमार तथा डा. एस.पी. गुप्ता को शामिल किया गया. पोस्टमार्टम के दौरान वीडियोग्राफी भी की गई. डाक्टरों ने विसरा के साथ ही स्लाइड बना कर डीएनए सैंपल जांच के लिए सुरक्षित रख लिए. पोस्टमार्टम के बाद हरप्रीत के शव को जवाहर नगर गुरुद्वारा लाया गया. यहां जत्थे की महिलाओं की पुलिस से झड़प हो गई. सीओ गीतांजलि सिंह ने किसी तरह महिलाओं को समझाया. उस के बाद मृतका के शव को कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बर्रा स्थित स्वर्गआश्रम लाया गया. जहां परिजनों ने उसे नम आंखों से अंतिम विदाई दी.

दरअसल हरप्रीत कौर की 13 दिसंबर को कानपुर में रिंग सेरेमनी थी. सगाई वाले दिन ही उस की अर्थी उठी. इसलिए जिस ने भी मौत की खबर सुनी, उस की आंखें आंसू से भर आईं. यही कारण था कि उस की शवयात्रा में भारी भीड़ उमड़ी. भीड़ में गम और गुस्सा दोनों था. गम का आलम यह रहा कि सिख समुदाय के अनेक घरों तथा गुरुद्वारे में खाना तक नहीं बना. एसएसपी अनंतदेव तिवारी ने हरप्रीत हत्याकांड को बेहद गंभीरता से लिया. उन्होंने हत्या के खुलासे की जिम्मेदारी एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को सौंपी. अपर्णा गुप्ता ने खुलासे के लिए एक स्पैशल टीम गठित की.

इस टीम में नजीराबाद थानाप्रभारी मनोज रघुवंशी, सीओ गीतांजलि सिंह, कई थानों के तेजतर्रार दरोगाओं तथा कांस्टेबलों को सम्मिलित किया गया. अब तक थानाप्रभारी ने गुमशुदगी के इस मामले को भा.द.वि. की धारा 302, 201 के तहत अज्ञात हत्यारों के विरूद्ध तरमीम कर दिया था. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता द्वारा गठित टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया, फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट का अध्ययन किया. रिपोर्ट के मुताबिक हरप्रीत की हत्या गला दबा कर की गई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइड बनाई गई थी तथा जहर की आशंका को देखते हुए विसरा भी सुरक्षित कर लिया गया था. स्लाइड व विसरा को परीक्षण हेतु लखनऊ लैब भेजा गया.

टीम ने मृतका के पिता गुरुवचन सिंह का बयान दर्ज किया. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी बेटी हरप्रीत कौर का रिश्ता दिल्ली के बंगला साहिब गुरुद्वारा में क्लर्क के पद पर सेवारत युवराज सिंह के साथ तय हुआ था. 13 दिसंबर को उस की सगाई थी. वह सामान की खरीदारी करने 9 दिसंबर को दिल्ली जाने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन पहुंची थी. बेटी तो दिल्ली नहीं पहुंची, अपितु उस की मौत की खबर जरूर मिल गई.

‘‘हरप्रीत का मंगेतर युवराज कहां है? क्या वह तुम से मिलने तुम्हारे घर आया है?’’ थानाप्रभारी ने गुरुवचन सिंह से पूछा.

‘‘नहीं, वह मौत की खबर पा कर भी कानपुर नहीं आया. 12 दिसंबर को उस से बात जरूर हुई थी. उस के बाद उस से संपर्क नहीं हो पाया. युवराज का मोबाइल फोन भी बंद है.’’ गुरुवचन सिंह ने पुलिस को जानकारी दी. गुरुवचन सिंह की बात सुन कर मनोज रघुवंशी का माथा ठनका, इस की वजह यह थी कि जिस की होने वाली पत्नी की हत्या हो गई हो, वह खबर पा कर भी न आए, यह थोड़ा अजीब था. ऊपर से उस ने अपना मोबाइल भी बंद कर लिया था. इन सब वजहों से उन्हें लगा कि कुछ तो गड़बड़ है. हरप्रीत कौर घर से कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंची थी. स्टेशन से ही वह गायब हुई थी. पुलिस टीम जांच करने स्टेशन पहुंची.

कानपुर रेलवे स्टेशन की जीआरपी पुलिस की मदद से सीसीटीवी फुटेज देखे गए तो हरप्रीत कौर स्टेशन से कैंट साइड में बाहर जाते दिखी. इस के बाद पुलिस ने रेल बाजार के हैरिशगंज क्षेत्र के एक सीसीटीवी फुटेज की जांच की तो इस फुटेज में 9 दिसंबर की रात 10 बजे हरप्रीत के अलावा 3 अन्य लोग कार में बैठे दिखे. पुलिस ने उन की पहचान कराने के लिए यह फुटेज गुरुवचन सिंह को दिखाई तो उन्होंने उन में से एक युवक की तत्काल पहचान कर ली. यह कोई और नहीं बल्कि हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह था. 2 अन्य युवकों को वह नहीं पहचान पाए. युवराज सिंह पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस ने युवराज तथा हरप्रीत के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि 9 दिसंबर को युवराज और हरप्रीत के बीच कई बार बात हुई थी.

हरप्रीत ने अपने मोबाइल फोन से उसे आखिरी मैसेज भी भेजा था. लेकिन उस ने हरप्रीत से अपने एक दूसरे फोन नंबर से बात की थी. उस के पहले उस के फोन की लोकेशन 9 दिसंबर की रात दिल्ली की ही मिल रही थी. पुलिस टीम को समझते देर नहीं लगी कि युवराज सिंह शातिर दिमाग है. उस ने ही अपने साथियों के साथ मिल कर अपनी मंगेतर हरप्रीत की हत्या की है. पुलिस को उस पर शक न हो इसलिए वह अपना एक मोबाइल फोन दिल्ली में ही छोड़ आया था. हत्या में कार का प्रयोग भी हुआ था. इस का पता लगाने पुलिस टीम बारा टोल प्लाजा पहुंची. क्योंकि इसी टोल प्लाजा से कानपुर शहर का आवागमन दिल्ली आगरा की ओर होता है.

पुलिस टीम ने बारा टोल प्लाजा के सीसीटीवी फुटेज देखे तो हैरान रह गई. दिल्ली नंबर की टैक्सी वैगन आर कार 7 घंटे में 4 बार टोल से इधर से उधर क्रास हुई थी. 9 दिसंबर की रात साढ़े 8 बजे वह टैक्सी कानपुर शहर आई. रात 12.36 बजे वह वापस दिल्ली की तरफ गई. फिर 45 मिनट बाद रात 1.19 बजे कार वापस कानपुर की तरफ आई. इस के बाद रात 3.36 बजे वापस बारा टोल प्लाजा क्रास कर दिल्ली की ओर चली गई. इस बीच पुलिस ने डाटा डंप करा कर कई संदिग्ध नंबर निकाले तथा इन नंबरों की जानकारी जुटाई. कार पर अंकित नंबर डीएल1आरटीए 5238 की आरटीओ कार्यालय से जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि कार का रजिस्ट्रैशन तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के नाम है.

एक अन्य संदिग्ध मोबाइल नंबर की जानकारी जुटाई गई तो पता चला कि वह नंबर अमृतसर (पंजाब) जिले के जुगावा गांव निवासी सुखचैन सिंह का है. हरप्रीत का मंगेतर युवराज सिंह भी इसी जुगावा गांव का रहने वाला था. पुलिस टीम जांच के आधार पर अब तक हरप्रीत कौर हत्याकांड के खुलासे के करीब पहुंच चुकी थी. अत: टीम ने जांच रिपोर्ट से एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता को अवगत कराया तथा युवराज सिंह तथा उस के साथियों की गिरफ्तारी की अनुमति मांगी. अपर्णा गुप्ता ने जांच रिपोर्ट के आधार पर गिरफ्तारी का आदेश दे दिया. इस के बाद पुलिस पार्टी हत्यारों की गिरफ्तारी के लिए दिल्ली व पंजाब रवाना हो गई.

15 दिसंबर, 2019 को पुलिस टीम युवराज सिंह की तलाश में दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारा पहुंची. पता चला कि युवराज सिंह का असली नाम जुगराज सिंह है. 5 दिसंबर से वह ड्यूटी पर नहीं आ रहा है. गुरुद्वारे में वह क्लर्क के पद पर तैनात था. युवराज सिंह जब गुरुद्वारे में नहीं मिला तब पुलिस टीम ने युवराज सिंह व उस के दोस्त सुखचैन सिंह की तलाश में उस के गांव जुगावा (अमृतसर) में छापा मारा. लेकिन वह दोनों अपनेअपने घरों से फरार थे. उन का मोबाइल फोन भी बंद था, जिस से उन की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. युवराज सिंह तथा सुखचैन सिंह जब पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े तो पुलिस टीम को निराशा हुई लेकिन टीम ने हिम्मत नहीं हारी. इस के बाद टीम ने रात में तरसिक्का (अमृतसर) निवासी सुखविंदर सिंह के घर दबिश दी.

सुखविंदर सिंह घर में ही था और चैन की नींद सो रहा था. पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और उस की कार भी अपने कब्जे में ले ली. पुलिस टीम कार सहित सुखविंदर सिंह को कानपुर ले आई. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता तथा सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह ने थाना नजीराबाद में सुखविंदर सिंह से हरप्रीत कौर की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने हत्या में शामिल होना कबूल कर लिया. कार की डिक्की से उस ने मृतका हरप्रीत का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया. सुखविंदर सिंह ने बताया कि हरप्रीत कौर की हत्या उस के मंगेतर जुगराज सिंह उर्फ युवराज सिंह ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह के साथ मिल कर रची थी. हत्या में वह भी सहयोगी था.

हत्या के बाद शव को ठिकाने लगाने के बाद वह तीनों रात में ही दिल्ली के लिए रवाना हो गए थे. कार उस की खुद की थी. दिल्ली में वह उस कार को टैक्सी के रूप में चलाता था. सुखविंदर सिंह ने बताया कि वह हत्या करना नहीं चाहता था, लेकिन दोस्त जुगराज सिंह की शादीशुदा जिंदगी तबाह होने से बचाने के लिए वह हत्या जैसे जघन्य अपराध में शामिल हो गया. चूंकि सुखविंदर सिंह ने हत्या का परदाफाश कर दिया था और हत्या में प्रयुक्त कार भी बरामद करा दी थी. साथ ही मृतका का ट्रौली बैग तथा मोबाइल फोन भी बरामद करा दिया था. अत: एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने सीओ गीतांजलि सिंह के कार्यालय परिसर में आननफानन में प्रैस वार्ता की.

पुलिस ने कातिल सुखविंदर सिंह को मीडिया के समक्ष पेश कर घटना का खुलासा कर दिया. पुलिस पूछताछ में प्यार में धोखा खाई एक युवती की मौत की सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नजीराबाद थाना अंतर्गत एक मोहल्ला है जवाहर नगर. इसी मोहल्ले में स्थित गुरुद्वारे में गुरुवचन सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी गुरप्रीत कौर के अलावा 2 बेटे सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह तथा 2 बेटियां जगप्रीत व हरप्रीत कौर थीं. गुरुवचन सिंह गुरुद्वारा में ग्रंथी व सेवादार थे. उन की अर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी पर मानसम्मान बहुत था. भाईबहनों में हरप्रीत कौर सब से छोटी थी. हरप्रीत जितनी सुंदर थी, पढ़ने में वह उतनी ही तेज थी.

उस ने ग्रैजुएशन तक पढ़ाई की थी. शारीरिक सौंदर्य बनाए रखने हेतु वह गतिका सीखती थी. गुरुद्वारे में वह सेवादार भी थी. जत्थे की महिलाओं का उस पर स्नेह था. हरप्रीत कौर का एक भाई सुरेंद्र सिंह दिल्ली के चांदनी चौक में अपने परिवार के साथ रहता था. हरप्रीत का अपने भैयाभाभी के घर आनाजाना बना रहता था. भाई के घर रहने के दौरान कभीकभी वह मत्था टेकने बंगला साहिब गुरुद्वारा भी चली जाती थी. हरप्रीत कौर धार्मिक प्रवृत्ति की थी. धर्मकर्म में उस की विशेष रुचि थी. गुरुनानक जयंती व गुरु गोविंद सिंह के जन्म पर्व पर वह बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती थी.

एक बार हरप्रीत अपने मातापिता के साथ बंगला साहिब गुरुद्वारा अपने भाई महिंद्र सिंह के लिए लड़की देखने गई. यहीं उस की मुलाकात एक खूबसूरत सिख युवक युवराज सिंह से हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे के प्रति आकर्षित हो गए थे. इस के बाद दोनों की अकसर मुलाकातें होने लगीं. बाद में मुलाकातें प्यार में तब्दील हो गईं. दोनों एकदूसरे को टूट कर चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो दोनों एकदूजे का होने के लिए उतावले हो उठे. युवराज सिंह मूलरूप से पंजाब प्रांत के अमृतसर जिले के गांव जुगावा का रहने वाला था. वह शादीशुदा तथा एक बच्चे का पिता था. उस का परिवार तो गांव में रहता था, जबकि वह स्वयं दिल्ली स्थित बंगला साहिब गुरुद्वारे में रहता था. उस के मांबाप भी गुरुद्वारे में सेवादार थे. वह महीनोंमहीनों गुरुद्वारे में रहते थे.

युवराज सिंह छलिया आशिक था. उस का असली नाम जुगराज सिंह था. उस ने जानबूझ कर हरप्रीत कौर से अपनी पहचान, नाम व शादी वाली बात छिपा रखी थी. युवराज सिंह के प्यार में हरप्रीत ऐसी अंधी हो गई थी कि वह उस से ब्याह रचाने के सपने संजोने लगी. युवराज सिंह भी हरप्रीत से प्यार का ऐसा दिखावा करता था कि उस से बढ़ कर कोई आशिक हो ही नहीं सकता. उस ने हरप्रीत को कभी आभास ही नहीं होने दिया कि वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. हरप्रीत जब तक भाई के घर रहती, युवराज के साथ प्यार की पींगें बढ़ाती, जब वापस कानपुर आती तब मोबाइल फोन द्वारा दोनों घंटों तक बतियाते. हरप्रीत ने अपने मातापिता को भी अपने और युवराज के प्यार के संबंध में जानकारी दे दी थी. भाई सुरेंद्र सिंह को भी दोनों का प्यार पनपने की जानकारी थी.

एक रोज जब सुरेंद्र सिंह का दिल्ली में एक्सीडेंट हो गया, तब हरप्रीत अपने मांबाप के साथ भाई को देखने दिल्ली आ गई. हरप्रीत के दिल्ली आने की जानकारी पा कर युवराज भी सुरेंद्र सिंह को देखने आया. यहां भाई के घर पर हरप्रीत ने युवराज सिंह की मुलाकात अपने मांबाप से कराई. चूंकि युवराज सिंह देखने में स्मार्ट था, सो गुरुवचन सिंह ने उसे बेटी के लिए पसंद कर लिया. उन्होंने उसी समय युवराज सिंह को शगुन भी दे दिया. किंतु इन्हीं दिनों युवराज सिंह के छलावे की बात खुल गई. हरप्रीत को पता चला कि युवराज सिंह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप है. इस छलावे को ले कर हरप्रीत और युवराज सिंह के बीच जम कर झगड़ा हुआ. उस ने शिकवाशिकायत की, लेकिन युवराज  सिंह ने उस से माफी मांग ली.

हरप्रीत कौर, युवराज सिंह के प्यार में अंधी हो चुकी थी. वह प्यार की सब से ऊंची सीढ़ी पर पहुंच चुकी थी, जहां से नीचे उतरना उस के लिए संभव नहीं था. अत: शादीशुदा वाली बात जानने के बावजूद भी वह उस से शादी करने को अडिग रही. यद्यपि उस ने युवराज के शादीशुदा होने वाली बात अपने मातापिता से छिपा ली. हरप्रीत को शक था कि भेद खुल जाने से कहीं युवराज सिंह सगाई से मुकर न जाए. अत: वह युवराज सिंह पर जल्द सगाई करने का दबाव डालने लगी. उस ने अपने मांबाप पर भी सगाई की तारीख तय करने का दबाव बनाया.

दबाव के चलते युवराज सिंह सगाई करने को राजी हो गया. हरप्रीत के मांबाप ने सगाई की तारीख 13 दिसंबर, 2019 नियत कर दी. इस के बाद वह बेटी की सगाई की तैयारी में जुट गए. तय हुआ कि जवाहर नगर, कानपुर गुरुद्वारे में दोनों की सगाई होगी. युवराज सिंह हरप्रीत कौर से प्यार तो करता था, लेकिन सगाई नहीं करना चाहता था. क्योंकि सगाई से उस की खुशहाल जिंदगी तबाह हो सकती थी. उस ने हरप्रीत से 1-2 बार सगाई का विरोध भी किया था, लेकिन हरप्रीत ने उसे यह धमकी दे कर उस का मुंह बंद कर दिया कि वह सारी बात बंगला साहिब गुरुद्वारा तथा उस के परिवार में सार्वजनिक कर देगी. तब उस की नौकरी भी चली जाएगी और परिवार में कलह भी होगी. हरप्रीत की इसी धमकी के चलते वह उस से सगाई को राजी हो गया था.

युवराज ने हामी तो भर दी लेकिन वह किसी भी कीमत पर हरप्रीत से सगाई नहीं करना चाहता था, अत: जैसेजैसे सगाई की तारीख नजदीक आती जा रही थी, वैसेवैसे युवराज की चिंता बढ़ती जा रही थी. आखिर उस ने इस समस्या से निजात पाने के लिए अपनी प्रेमिका हरप्रीत कौर को शातिराना दिमाग से ठिकाने लगाने की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने गांव के दोस्त सुखचैन सिंह तथा दिल्ली के दोस्त सुखविंदर सिंह को एकएक लाख रुपए का लालच दे कर शामिल कर लिया. सुखविंदर सिंह मूलरूप से तरसिक्का (अमृतसर) का रहने वाला था. दिल्ली में वह पांडव नगर के पास गणेश नगर में रहता था. उस के पास वैगनआर कार थी, जिसे वह दिल्ली में टैक्सी के रूप में चलाता था.

हत्या की योजना बनाने के बाद युवराज सिंह हरप्रीत कौर व उस के मातापिता से मनलुभावन बातें करने लगा, ताकि उन्हें किसी प्रकार का शक न हो. बातचीत के दौरान युवराज सिंह को पता चला कि हरप्रीत 9 दिसंबर को भाई से मिलने तथा खरीदारी करने घर से दिल्ली को रवाना होगी. अत: युवराज सिंह ने 9 दिसंबर की रात ही उसे ठिकाने लगाने का निश्चय किया. उस ने इस की जानकारी अपने दोस्तों को भी दे दी. 9 दिसंबर, 2019 की सुबह 11 बजे युवराज सिंह व सुखचैन सिंह, सुखविंदर सिंह की कार से दिल्ली से कानपुर को रवाना हुआ. युवराज सिंह ने अपना एक मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया ताकि उस की लोकेशन ट्रेस न हो सके. रास्ते में सुखचैन सिंह के मोबाइल से हरप्रीत व उस की मां से बतियाता रहा.

हालांकि उस ने यह जानकारी नहीं दी कि वह कानपुर आ रहा है. रात 8 बज कर 31 मिनट पर उस की कार ने बारा टोल प्लाजा पार किया, फिर साढ़े 9 बजे वह रेलवे स्टेशन से कैंट साइड में पहुंच गया. इधर हरप्रीत कौर भी दिल्ली जाने को कानपुर सेंट्रल स्टेशन पहुंच गई थी. यह बात युवराज सिंह को पता थी. उस ने फोन कर के हरप्रीत को स्टेशन के बाहर कैंट साइड में बुलवा लिया. हरप्रीत उसे देख कर चौंकी तो उस ने कहा कि वह उसे ही लेने आया है. इस के बाद हरप्रीत ने मां को झूठी जानकारी दी कि उस का टिकट कंफर्म हो गया है.

रात 10 बजे युवराज सिंह ने हरप्रीत को कार में बिठा लिया. फिर चारों गोविंदनगर आए. यहां सभी ने अनिल मीट वाले के यहां खाना खाया और कोल्डड्रिंक पी. युवराज सिंह ने चुपके से हरप्रीत की कोल्डड्रिंक में नशीली दवा मिला दी थी. हरप्रीत ने कोल्डड्रिंक पी तो वह कार में बेहोश हो गई. कार इटावा हाइवे की तरफ बढ़ी और उस ने रात 12:36 बजे बारा टोल प्लाजा पार किया. चलती कार में युवराज सिंह व सुखचैन सिंह ने शराब पी. युवराज सिंह ने दोस्तों को हरप्रीत के साथ दुष्कर्म करने को कहा लेकिन सुखचैन सिंह व सुखविंदर सिंह ने इस औफर को ठुकरा दिया. लगभग 45 मिनट बाद कार फिर कानपुर की तरफ वापस हुई और उस ने रात 1 बज कर 19 मिनट पर टोल प्लाजा को पार किया. फिर कार कानपुर हाइवे पार कर महराजपुर थाना क्षेत्र के तिवारीपुर गांव के समीप पहुंची. यहां युवराज सिंह ने सुनसान जगह पर हाइवे किनारे कार रुकवा ली.

इस के बाद बेहोशी की हालत में कार में बैठी हरप्रीत को युवराज सिंह ने दबोच लिया. सुखचैन सिंह तथा सुखविंदर सिंह ने हरप्रीत के पैर पकड़े तथा युवराज सिंह ने उस का गला घोंट दिया. हत्या करने के बाद तीनों ने मिल शव को हाइवे किनारे झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद ये लोग कार से दिल्ली की ओर चल पड़े. उन की कार ने रात 3:36 बजे बारा टोल प्लाजा को पार किया. दिल्ली पहुंच कर युवराज सिंह हरप्रीत के भाई सुरेंद्र सिंह के साथ हरप्रीत की तलाश का नाटक करता रहा. 12 दिसंबर को वह पकड़े जाने के डर से फरार हो गया. उस ने अपना मोबाइल फोन भी बंद कर लिया था.

सुखविंदर सिंह को गिरफ्तार कर पुलिस ने उसे 17 दिसंबर, 2019 को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट बी.के. पांडेय की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Kanpur Crime : कुंभ स्नान ले जाने के बहाने पत्नी और बेटे का कर दिया कत्ल

Kanpur Crime : सुमन ने अपने मातापिता की इज्जत की परवाह न कर के अमित वर्मा से प्रेम विवाह किया था. लेकिन जब अमित वर्मा की जिंदगी में खुशी आई तो उसे प्रेमिका से पत्नी बनी सुमन आंखों में खटकने लगी. आखिरकार…

31 जुलाई, 2019 का दिन था. सुबह के  करीब 10 बज रहे थे. कानपुर जिले की एसपी (साउथ) रवीना त्यागी अपने कार्यालय में मौजूद थीं, तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उन के पास आया. वह बेहद मायूस नजर आ रहा था. उस के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थीं. वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा है. मैं नौबस्ता थाने के राजीव विहार मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बेटी सुमन ने करीब 8 साल पहले राजेश वर्मा के बेटे अमित वर्मा के साथ प्रेम विवाह किया था. चूंकि बेटी ने यह काम हम लोगों की मरजी के खिलाफ किया था, इसलिए हम ने उस से नाता तोड़ लिया था.

बच्चों के लिए मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. 2 साल पहले जब वह घर लौटी तो हमें अच्छा ही लगा. तब से बेटी ने हमारे घर आनाजाना शुरू कर दिया था. उस के साथ उस का बेटा निश्चय भी आता था. उस ने हमें बताया था कि वह रवींद्रनगर, नौबस्ता में अमित वर्मा के साथ रह रही है. पर दिसंबर, 2018 से वह हमारे घर नहीं आई. हम ने उस के मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उस का मोबाइल भी बंद मिला. हम ने बेटी सुमन व नाती निश्चय के संबंध में दामाद अमित वर्मा से फोन पर बात की तो वह पहले तो खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘ससुरजी, अपनी बेटी और नाती को भूल जाओ.’’

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा ने बताया कि अमित वर्मा की बात सुन कर मेरा माथा ठनका. हम ने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह से सुमन अपने बेटे के साथ घर से लापता हैं. यह भी जानकारी मिली कि 3 माह पहले अमित ने खुशी नाम की युवती से दूसरा विवाह रचा लिया है. वह हंसपुरम में उसी के साथ रह रहा है. मकसूद ने एसपी के सामने आशंका जताई कि अमित वर्मा ने सुमन व नाती निश्चय की हत्या कर लाश कहीं ठिकाने लगा दी है. उस ने मांग की कि अमित के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर उचित काररवाई करें. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की बातों से एसपी रवीना त्यागी को मामला गंभीर लगा. उन्होंने उसी समय थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह यादव को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि इस मामले की तुरंत जांच करें और अगर कोई दोषी है तो उसे तुरंत गिरफ्तार करें. एसपी साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी मकसूद प्रसाद को साथ ले कर थाने लौट गए और उन्होंने मकसूद से इस संबंध में विस्तार से बात की. इस के बाद उन्होंने उसी शाम आरोपी अमित वर्मा को थाने बुलवा लिया. थाने में उन्होंने उस से उस की पत्नी सुमन और बेटे निश्चय के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 24 दिसंबर, 2018 की रात सुमन अपने बेटे को ले कर बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी. अमित वर्मा के अनुसार, उस ने उन दोनों को हर संभावित जगह पर खोजा, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब उस ने 28 दिसंबर को नौबस्ता थाने में पत्नी और बेटे के गुम होने की सूचना दर्ज करा दी थी.

यही नहीं, शक होने पर उस ने पड़ोस में रहने वाली मनोरमा नाम की महिला पर कोर्ट के माध्यम से पत्नी व बेटे को गायब कराने को ले कर उस के खिलाफ धारा 156 (3) के तहत कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज कराया था लेकिन पुलिस ने जांच के बाद उसे क्लीन चिट दे दी थी. थानाप्रभारी ने अमित वर्मा की बात की पुष्टि के लिए थाने का रिकौर्ड खंगाला तो उस की बात सही निकली. थाने में उस ने पत्नी और बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई थी और पड़ोसी महिला मनोरमा पर कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था. चूंकि मनोरमा पर आरोप लगा था, अत: थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने मनोरमा को थाने बुलवाया.

उन्होंने उस से सुमन और उस के बेटे निश्चय के गुम होने के संबंध में सख्ती से पूछताछ की. तब मनोरमा ने उन्हें बताया कि अमित वर्मा बेहद शातिरदिमाग है. वह पुलिस को बारबार गुमराह कर के उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है. जबकि वह बेकसूर है. मनोरमा ने थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह को यह भी बताया कि 23 दिसंबर, 2018 को उस की सुमन से बात हुई थी. उस ने बताया था कि वह अपने पति के साथ कुंभ स्नान करने प्रयागराज जा रही है. दूसरे रोज वह अमित के साथ चली गई थी. लेकिन वह उस के साथ वापस नहीं आई. शक है कि अमित ने पत्नी व बेटे की हत्या कर उन की लाशें कहीं ठिकाने लगा दी हैं. मनोरमा से पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया गया.

अमित वर्मा की ओर शक की सुई घूमी तो थानाप्रभारी ने सच का पता लगाने के लिए अपने मुखबिर लगा दिए. साथ ही खुद भी हकीकत का पता लगाने में जुट गए. मुखबिरों ने राजीव विहार, गल्लामंडी तथा रवींद्र नगर में दरजनों लोगों से अमित के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा मुखबिरों ने अमित पर भी नजर रखी. मसलन वह कहां जाता है, किस से मिलता है और उस के मददगार कौन हैं. 11 अगस्त, 2019 की सुबह 10 बजे 2 मुखबिरों ने थानाप्रभारी को एक चौंकाने वाली जानकारी दी. मुखबिरों ने बताया कि सुमन और उस के बेटे निश्चय की हत्या अमित वर्मा ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर की है. दरअसल, अमित वर्मा के नाजायज संबंध देवकीनगर की खुशी नाम की युवती से बन गए थे. इन रिश्तों का सुमन विरोध करती थी. खुशी से शादी रचाने के लिए सुमन बाधक बनी हुई थी.

यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने अमित वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और पत्नी सुमन तथा बेटे निश्चय की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि पत्नी और 6 साल के बेटे की हत्या उस ने देवकीनगर निवासी संजय शर्मा तथा कबीरनगर निवासी मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री की मदद से की थी. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ने पुलिस टीम के साथ संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब दोनों का सामना अमित वर्मा से हुआ तो उन्होंने भी हत्या का जुर्म कबूल लिया.

पूछताछ करने पर अमित वर्मा ने बताया कि उस ने सुमन व उस के बेटे की हत्या कौशांबी जिले में लाडपुर के पास एक सुनसान जगह पर की थी और वहीं सड़क किनारे लाशें फेंक दी थीं. दोनों की हत्या किए 7 महीने से ज्यादा बीत गए थे, इसलिए मौके पर लाशें नहीं मिल सकती थीं. उम्मीद थी कि लाशें संबंधित थाने की पुलिस ने बरामद की होंगी. यह सोच कर थानाप्रभारी तीनों आरोपियों और शिकायतकर्ता मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा को साथ ले कर कौशांबी के लिए निकल पड़े. सब से पहले वह लाडपुर गांव की उस पुलिया के पास पहुंचे, जहां आरोपियों ने सुमन को तेजाब से झुलसाने के बाद गला दबा कर उन की हत्याएं कीं और लाशें फेंक दी थीं.

पुलिस ने सड़क किनारे झाडि़यों में सुमन की लाश ढूंढी लेकिन वहां लाश मिलनी तो दूर, उस का कोई सबूत भी नहीं मिला. तीनों आरोपियों ने बताया कि 6 वर्षीय निश्चय की हत्या उन्होंने लोडर के डाले से सिर टकरा कर की थी. इस के बाद उसे निर्वस्त्र कर लाश पुलिया से करीब एक किलोमीटर दूर चमरूपुर गांव के पास सड़क किनारे फेंकी थी. पुलिस उन्हें ले कर चमरूपुर गांव के पास उस जगह पहुंची, जहां उन्होंने बच्चे की लाश फेंकने की बात बताई थी. पुलिस ने वहां भी झाडि़यों वगैरह में लाश ढूंढी, लेकिन लाश नहीं मिल सकी. जिन जगहों पर दोनों लाशें फेंकी गई थीं, वह क्षेत्र थाना कोखराज के अंतर्गत आता था. अत: पुलिस थाना कोखराज पहुंच गई.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने कोखराज थाना पुलिस को सुमन व उस के बेटे की हत्या की बात बताई. कोखराज पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो पता चला 25 दिसंबर, 2018 की सुबह क्षेत्र के 2 अलगअलग स्थानों से 2 लाशें मिली थीं. एक लाश महिला की थी, जिस की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस का चेहरा तेजाब डाल कर जलाया गया था. दूसरी लाश निर्वस्त्र हालत में एक बालक की थी, जिस की उम्र करीब 6 वर्ष थी. इन दोनों लाशों की सूचना कोखराज गांव के प्रधान गुलेश बाबू ने दी थी. दोनों लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाने पर अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

थाना कोखराज पुलिस के पास दोनों लाशों के फोटोग्राफ्स मौजूद थे. फोटोग्राफ्स मकसूद प्रसाद को दिखाए तो वह फोटो देखते ही फफक कर रो पड़ा. उस ने बताया कि फोटो उस की बेटी सुमन तथा नाती निश्चय के हैं. सिंह ने उसे धैर्य बंधाया और थाने का रिकौर्ड तथा फोटो आदि हासिल कर थाना नौबस्ता लौट आए. थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने सारी जानकारी एसपी रवीना त्यागी को दे दी और मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की तरफ से अमित वर्मा, संजय शर्मा और मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 326 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता आयोजित कर मीडिया के सामने इस घटना का खुलासा किया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी—

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कस्बा नौबस्ता में एक मोहल्ला है राजीव विहार. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा एक बेटी सुमन और 2 बेटे थे. मेहनतमजदूरी कर के वह जैसेतैसे अपने परिवार को पाल रहा था. मकसूद प्रसाद की बेटी सुमन खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. एक रोज सुमन छत पर खड़ी अपने गीले बालों को सुखा रही थी. तभी उस के कानों में फेरी लगा कर ज्वैलरी की सफाई करने वाले की आवाज आई.

उस की आवाज सुनते ही सुमन छत से नीचे उतर आई. उस की चांदी की पायल गंदी दिख रही थी, वह उन की सफाई कराना चाहती थी, इसलिए फटाफट बक्से में रखी अपनी पायल निकाल कर साफ कराने के लिए ले गई. ज्वैलरी की सफाई करने वाला नौजवान युवक था. खूबसूरत सुमन को देख कर वह प्रभावित हो गया. उस ने सुमन की पायल कैमिकल घोल में डाल कर साफ कर दीं. पायल एकदम नई जैसी चमकने लगीं. पायल देख कर सुमन बहुत खुश हुई. पायल ले कर वह घर जाने लगी तो कारीगर बोला, ‘‘बेबी, पायल पहन कर देख लो, मैं भी तो देखूं तुम्हारे दूधिया पैरों में ये कैसी लगेंगी.’’

अपने पैरों की तारीफ सुन कर सुमन की निगाहें अनायास ही कारीगर के चेहरे पर जा टिकीं. उस समय उस की आंखों में प्यार का समंदर उमड़ रहा था. कारीगर की बात मानते हुए सुमन ने उस के सामने बैठ कर पायल पहनीं तो वह बोला, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत पैरों में पायल खूब फब रही हैं. वैसे बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो, क्या जानना चाहते हो?’’ वह बोली.

‘‘तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘मेरा नाम सुमन है.’’ कुछ पल रुकने के बाद सुमन बोली, ‘‘तुम ने मेरा नाम तो पूछ लिया, पर अपना नहीं बताया.’’

‘‘मेरा नाम अमित वर्मा है. मैं राजीव विहार में ही रहता हूं. राजीव विहार में मेरा अपना मकान है. मेरे पिता भी यही काम करते हैं. फेरी लगा कर जेवरों की सफाई करना मेरा पुश्तैनी धंधा है.’’

पहली ही नजर में सुमन और अमित एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. फिर सुमन घर चली गई. अमित भी हांक लगाता हुआ आगे बढ़ गया. उस रोज रात में न तो सुमन को नींद आई और न ही अमित को. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचते रहे. दोनों के दिलों में चाहत बढ़ी तो उन की मुलाकातें भी होने लगीं. मोबाइल फोन पर बात कर के मिलने का समय व स्थान तय हो जाता था. इस तरह उन की मुलाकातें कभी संजय वन में तो कभी किदवई पार्क में होने लगीं. एक रोज अमित ने उस से कहा, ‘‘सुमन, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

सुमन कुछ पल मौन रही. फिर बोली, ‘‘अमित, मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं.’’

सुमन और अमित का प्यार परवान चढ़ ही रह था कि एक रोज उन के प्यार का भांडा फूट गया. सुमन के भाई दीपू ने दोनों को किदवई पार्क में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी. कुछ देर बाद सुमन वापस घर आई तो मां कमला ने उसे आड़े हाथों लेते हुए खूब डांटाफटकारा. इस के बाद घर वालों ने सुमन के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन सुमन को प्रतिबंध मंजूर नहीं था. वह अमित के प्यार में इतनी गहराई तक डूब गई थी, जहां से बाहर निकलना संभव नहीं था. आखिर एक रोज सुमन अपने मांबाप की इज्जत को धता बता कर घर से निकल गई. फिर बाराह देवी मंदिर जा कर अमित से शादी कर ली. अमित ने सुमन की मांग में सिंदूर भर कर उसे पत्नी के रूप में अपना लिया.

सुमन से शादी करने के बाद अमित, सुमन को साथ ले कर अपने राजीव विहार स्थित घर पहुंचा तो उस के मातापिता ने सुमन को बहू के रूप में स्वीकारने से मना कर दिया. क्योंकि वह उन की बिरादरी की नहीं थी. हां, उन्होंने दोनों को घर में पनाह जरूर दे दी. सुमन ने अपनी सेवा से सासससुर का मन जीतने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुई. अमित के पिता राजेश वर्मा को सदैव इस बात का भय बना रहता था कि सुमन को ले कर उस के घर वाले कोई बवाल न खड़ा कर दें. अत: उन्होंने राजीव विहार वाला अपना मकान बेच दिया और नौबस्ता गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

चूंकि पिता का मकान बिक चुका था, इसलिए अमित भी नौबस्ता के रवींद्र नगर में किराए पर मकान ले कर सुमन के साथ रहने लगा. इधर सुमन के मातापिता भी गायब हुई बेटी को अपने स्तर से ढूंढ रहे थे. उन्होंने बदनामी की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं की थी. कुछ समय बाद उन्हें जानकारी हुई कि सुमन ने अमित के साथ ब्याह रचा लिया है. इस का उन्हें बहुत दुख हुआ. इतना ही नहीं, उन्होंने सुमन से नाता तक तोड़ लिया. उन्होंने यह सोच कर कलेजे पर पत्थर रख लिया कि सुमन उन के लिए मर गई है. अमित सुमन को बहुत प्यार करता था. वह हर काम सुमन की इच्छानुसार करता था. सुमन भी पति का भरपूर खयाल रखती थी. इस तरह हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इन 3 सालों में सुमन ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम निश्चय रखा गया.

बेटे के जन्म के बाद सुमन के घरआंगन में किलकारियां गूंजने लगीं. निश्चय जब 3 साल का हुआ तो सुमन ने उस का दाखिला विवेकानंद विद्यालय में करा दिया. सुमन ही निश्चय को स्कूल भेजने व छुट्टी होने पर घर लाने का काम करती थी. कुछ समय बीतने के बाद स्थितियों ने करवट बदली. धीरेधीरे सुमन की मुसकान गायब हो गई. पति न केवल उस से दूर भागने लगा बल्कि बातबात पर उसे डांटनेफटकारने भी लगा. वह देर रात घर लौटता था. कभीकभी तो पूरी रात गायब रहता. यह सब सुमन की चिंता का कारण बन गया.  वह हमेशा उदास रहने लगी. वह सब कुछ सहती रही. आखिरकार जब स्थिति सहन सीमा से बाहर हो गई, तब उस ने पति के स्वभाव में इस परिवर्तन का पता लगाने का निश्चय किया.

सुमन को यह जान कर गहरा सदमा लगा कि उस का पति खुशी नाम की युवती के प्रेम जाल में फंस गया है. उसे खुशी के बारे में यह भी पता चला कि वह जितनी सुंदर है, उतनी ही चंचल और मुंहफट भी है. वह देवकीनगर में किराए के मकान में रहती है. उस के मांबाप नहीं हैं. एक भाई है, जो शराबी तथा आवारा है. बहन पर उस का कोई नियंत्रण नहीं है. फेरी लगाने के दौरान जिस तरह अमित ने सुमन को फांसा था, उसी तरह उस ने खुशी को भी फांस लिया था. वह उस का इतना दीवाना हो गया था कि अपनी पत्नी और बच्चे को भी भूल गया. हर रोज घर में देर से आना और पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देना, उस की दिनचर्या बन गई थी.

सुमन पहले तो अमित की बातों पर विश्वास कर लेती थी किंतु जब असलियत का पता चला तो उस का नारी मन विद्रोह पर उतर आया. भला उसे यह कैसे गवारा हो सकता था कि उस के रहते उस का पति किसी दूसरी औरत की ओर आंख उठा कर देखे. वह इस का विरोध करने लगी. लेकिन अमित अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उलटे वह सुमन को ही प्रताडि़त करने लगा. खुशी से नाजायज रिश्तों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. पतिपत्नी आए दिन एकदूसरे से झगड़ने लगे. इस तनावपूर्ण वातावरण में एक बुराई और घर में घुस आई. अमित को शराब की लत पड़ गई.

शराब पीने के बाद वह सुमन को बेतहाशा पीटता पर सुमन थी कि सब कुछ सह लेती थी. उस के सामने समस्या यह भी थी कि वह किसी से अपना दुखदर्द बांट भी नहीं सकती थी. मांबाप से उस के संबंध पहले ही खराब हो चुके थे. एक दिन तो अमित ने हद ही कर दी. वह खुशी को अपने घर ले आया. उस समय सुमन घर पर ही थी. खुशी को देख कर सुमन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पति को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उस ने खुशी की बेइज्जती करते हुए उसे भी खूब लताड़ा. बेइज्जती हुई तो खुशी उसी समय वहां से चली गई. उस के यूं चले जाने पर अमित सुमन पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. सुमन रोतीतड़पती रही.

सुमन की एक पड़ोसन थी मनोरमा. अमित जब घर पर नहीं होता तब वह मनोरमा के घर चली जाया करती थी. सुमन उस से बातें कर अपना गम हलका कर लेती थी. एक रोज मनोरमा ने सुमन से कहा कि बुरे वक्त में अपने ही काम आते हैं. ऐसे में तुम्हें अपने मायके आनाजाना शुरू कर देना चाहिए. मांबाप बड़े दयालु होते हैं, हो सकता है कि वे तुम्हारी गलती को माफ कर दें. पड़ोसन की यह बात सुमन को अच्छी लगी. वह हिम्मत जुटा कर एक रोज मायके जा पहुंची. सुमन के मातापिता ने पहले तो उस के गलत कदम की शिकायत की फिर उन्होंने उसे माफ कर दिया. इस के बाद सुमन मायके आनेजाने लगी. सुमन ने मायके में कभी यह शिकायत नहीं की कि उस का पति उसे मारतापीटता है और उस का किसी महिला से चक्कर चल रहा है.

इधर ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों खुशी अमित के दिलोदिमाग पर छाती जा रही थी. वह खुशी से शादी रचा कर उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था, लेकिन इस रास्ते में सुमन बाधा बनी हुई थी. खुशी ने अपना इरादा जता दिया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. यानी जब तक सुमन उस के साथ है, तब तक वह उस की जीवनसंगिनी नहीं बन सकती. खुशी का यह फैसला सुनने के बाद अमित परेशान रहने लगा कि वह किस तरह इस समस्या का समाधान करे. अमित वर्मा का एक दोस्त था संजय शर्मा. वह देवकीनगर में रहता था और केबल औपरेटर था. वह भी अमित की तरह अपनी पत्नी से पीडि़त था. उस की पत्नी संजय को छोड़ कर मायके में रह रही थी.

उस ने संजय के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा भी दर्ज करा रखा था. अमित ने अपनी परेशानी संजय शर्मा को बताई तो संजय ने सलाह दी कि वह अपनी पत्नी सुमन व उस के बच्चे को खत्म कर दे. तभी उस की समस्या का निदान हो सकता है. खुशी से विवाह रचाने के लिए अमित पत्नीबेटे की हत्या करने को राजी हो गया. उस ने इस बारे में संजय से चर्चा की तो उस ने अमित की मुलाकात मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री से कराई. अख्तर नौबस्ता क्षेत्र के कबीरनगर में रहता था. वह लोडर चलाता था. साथ ही लोडर मिस्त्री भी था. मोहम्मद अख्तर मूलरूप से कौशांबी जिले के कोखराज थाना क्षेत्र के गांव मारूकपुरवा का रहने वाला था. उस की पत्नी मेहरुन्निसा गांव में ही रहती थी.

अमित, संजय व मोहम्मद अख्तर ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई. संजय ने गुड्डू मिस्त्री से सलाह मशविरा कर अमित से 35 हजार रुपए में हत्या का सौदा कर लिया. अमित ने संजय को 10 हजार रुपए एडवांस दे दिए. चूंकि अब योजना को अंजाम देना था, इसलिए अमित ने सुमन के साथ अच्छा बर्ताव करना शुरू कर दिया. वह उस से प्यार भरा व्यवहार करने लगा. उस ने सुमन से वादा किया कि अब वह खुशी के संपर्क में नहीं रहेगा. पति के इस व्यवहार से सुमन गदगद हो उठी. उस ने सहज ही पति की बातों पर भरोसा कर लिया. यही उस की सब से बड़ी भूल थी.

योजना के तहत 23 दिसंबर, 2018 को अमित वर्मा और संजय मूलगंज बाजार पहुंचे. वहां से अमित ने एक बोतल तेजाब खरीदा. शाम को अमित ने सुमन से कहा कि कल हम लोग कुंभ स्नान को प्रयागराज जाएंगे. सुमन राजी हो गई. उस ने रात में ही प्रयागराज जाने की सारी तैयारी कर ली. योजना के मुताबिक 24 दिसंबर, 2018 की शाम 7 बजे अमित, पत्नी सुमन व बेटे निश्चय को साथ ले कर रामादेवी चौराहा पहुंचा. पीछे से मोहम्मद अख्तर भी लोडर ले कर रामादेवी चौराहा पहुंच गया. उस के साथ संजय शर्मा भी था. लोडर अमित के पास रोक कर अख्तर ने उस से पूछा कि कहां जा रहे हो तुम लोग॒. तब अमित ने कहा, ‘‘हम कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जा रहे हैं.’’

‘‘मैं भी लोडर ले कर प्रयागराज जा रहा हूं, उधर से वापसी के समय लोडर में पत्थर लाऊंगा. अगर तुम लोग चाहो तो मेरे साथ चल सकते हो.’’ मोहम्मद अख्तर बोला.

अमित ने सुमन से कहा कि लोडर चालक उस का दोस्त है. वह प्रयागराज जा रहा है. ऐतराज न हो तो लोडर से ही निकल चलें. किराया भी बच जाएगा. सुमन को क्या पता थी कि यह अमित की चाल है और इस में उस का पति भी शामिल है. वह तो पति पर विश्वास कर के राजी हो गई. उस के बाद अमित वर्मा, पत्नी व बेटे के साथ लोडर में पीछे बैठ गया, जबकि संजय आगे बैठा. उस के बाद मोहम्मद अख्तर लोडर स्टार्ट कर चल पड़ा. मोहम्मद अख्तर ने जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर लोडर रोक दिया. वहां अमित, संजय व गुड्डू ने खाना खाया तथा शराब पी. अधिक सर्दी होने का बहाना बना कर अमित ने सुमन को भी शराब पिला दी. इस के बाद ये लोग चल दिए. कौशांबी जिले के लाडपुर गांव के पास पहुंच कर मोहम्मद अख्तर ने एक पुलिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

संजय और मोहम्मद अख्तर उतर कर पीछे आ गए. इस के बाद संजय व मोहम्मद अख्तर ने सुमन को दबोच लिया और अमित ने सुमन कोतेजाब से  नहला दिया. सुमन जलन से चीखी तो अमित ने उसे गला दबा कर मार डाला. मां की चीख सुन कर 6 साल का बेटा निश्चय जाग गया. संजय ने बच्चे का सिर लोडर के डाले से पटकपटक कर उसे मार डाला. इन लोगों ने सुमन की लाश लाडपुर पुलिया के पास सड़क किनारे फेंक दी तथा वहां से लगभग एक किलोमीटर आगे जा कर निश्चय की निर्वस्त्र लाश भी फेंक दी. इस के बाद तीनों प्रयागराज गए. वहां से दूसरे रोज लोडर पर पत्थर लाद कर वापस कानपुर आ गए.

25 दिसंबर, 2018 की सुबह कोखराज के ग्रामप्रधान गुलेश बाबू सुबह की सैर पर निकले तो उन्होंने लाडपुर पुलिया के पास महिला की लाश तथा कुछ दूरी पर एक मासूम बच्चे की लाश देखी. उन्होंने यह सूचना कोखराज थाना पुलिस को दी. पुलिस ने दोनों लाशें बरामद कर उन की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं पहचान सका. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. गुलेश बाबू को वादी बना कर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इधर शातिरदिमाग अमित वर्मा ने दोस्त संजय की सलाह पर 28 दिसंबर को थाना नौबस्ता में तहरीर दी कि उस की पत्नी सुमन 24 दिसंबर की रात अपने बेटे निश्चय के साथ बिना कुछ बताए घर से चली गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है. इस तहरीर पर पुलिस ने साधारण पूछताछ की, फिर शांत हो कर बैठ गई.  इस के बाद अमित ने पड़ोसी महिला मनोरमा को फंसाने के लिए 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा कायम करा दिया. उस ने मनोरमा पर आरोप लगाया कि उस की पत्नी व बच्चे को गायब करने से उस का ही हाथ है. पर जांच में आरोप सही नहीं पाया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मनोरमा को छोड़ दिया. अप्रैल, 2019 को अमित ने खुशी से शादी कर ली और हंसपुरम में उस के साथ रहने लगा.

सुमन, महीने में एक या 2 बार मायके आ जाती थी. पर पिछले 7 महीने से वह मायके नहीं आई थी, जिस से सुमन के पिता मकसूद प्रसाद को चिंता हुई. उस ने दामाद अमित से बात की तो उस ने बेटी नाती को भूल जाने की बात कही. शक होने पर मकसूद ने 31 जुलाई, 2019 को एसपी रवीना त्यागी को जानकारी दी. इस के बाद ही केस का खुलासा हो सका. 12 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अमित वर्मा, संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर को कानपुर कोर्ट के रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Police Story : SP सुरेंद्र दास ने आत्महत्या करने के लिए जहर क्यों खाया

Police Story : सुरेंद्र कुमार दास कानपुर के एसपी पद पर थे. उन के जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं था. इस के बावजूद भी ऐसी क्या वजह रही जो उन्हें खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’

पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दीपुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया. पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था. स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी. यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी

रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गएमुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.

जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी. सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे. नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थीवैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं थावह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थेकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी .के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था. अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी. इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना हैरवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते. एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया. रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया. बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.    

Crime story : आशिक ने माशूका के चेहरे को चाकू से गोद डाला

Crime story : मार्निंग वौक पर निकले कुछ लोगों ने हाईवे के किनारे एक महिला की लाश पड़ी देखी तो उन्होंने  इस बात की सूचना थाना नौबस्ता पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. वहां काफी लोग इकट्ठा थे, लेकिन उन में से कोई भी महिला की शिनाख्त नहीं कर सका. मृतका की उम्र 35 साल के आसपास थी. वह साड़ीब्लाउज और पेटीकोट पहने थी. उस के सिर पर गंभीर चोट लगी थी, चेहरा किसी नुकीली चीज से Crime story गोदा गया था. गले में भी साड़ी का फंदा पड़ा था.

लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई कर के उसे पोस्टमार्टम के लिए कानपुर स्थित लाला लाजपत राय चिकित्सालय भिजवा दिया. लेकिन घटनास्थल की काररवाई में पुलिस ने काफी समय बरबाद कर दिया था, इसलिए देर हो जाने की वजह से उस दिन लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो सका. यह 5 जुलाई, 2014 की बात थी.

अगले दिन यानी 6 जुलाई को कानपुर से निकलने वाले समाचार पत्रों में जब एक महिला का शव नौबस्ता में हाईवे पर मिलने का समाचार छपा तो थाना चकेरी के मोहल्ला रामपुर (श्यामनगर) के रहने वाले शिवचरन सिंह भदौरिया को चिंता हुई. इस की वजह यह थी कि उस की पत्नी नीलम उर्फ पिंकी पिछले 2 दिनों से गायब थी. इस बीच उस ने अपने हिसाब से उस की काफी खोजबीन की थी, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला था. अखबार में समाचार पढ़ने के बाद शिवचरन सिंह अपने दोनों बेटों, सचिन और शिवम को साथ ले कर थाना नौबस्ता पहुंचा और थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह को बताया कि उस की पत्नी परसों से गायब है. वह हाईवे के किनारे मिली महिला की लाश को देखना चाहता है.

चूंकि शव पोस्टमार्टम हाऊस में रखा था, इसलिए थानाप्रभारी ने उन लोगों को एक सिपाही के साथ वहां भेज दिया. शिवचरन सिंह बेटों के साथ वहां पहुंचा तो लाश देखते ही वह फूटफूट कर रो पड़ा. क्योंकि वह लाश उस की पत्नी नीलम की थी. उस के दोनों बेटे सचिन और शिवम भी मां की लाश देख कर रोने लगे थे. इस तरह हाईवे के किनारे मिले महिला के शव की शिनाख्त हो गई थी. लाश की शिनाख्त कर शिवचरन सिंह बेटों के साथ थाने आ गए. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने शिवचरन से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस की पत्नी नीलम 4 जुलाई की शाम 4 बजे से गायब है. घर से निकलते समय उस ने बच्चों से कहा था कि वह उन की स्कूली ड्रेस लेने दर्जी के यहां जा रही है. उधर से ही वह घर का सामान भी ले आएगी. लेकिन वह गई तो लौट कर नहीं आई.

आज सुबह उस ने अखबार में महिला के शव मिलने की खबर पढ़ी तो वह थाने आया और पोस्टमार्टम हाउस जा कर देखी तो पता चला कि उस की तो हत्या हो चुकी है.

‘‘हत्या किस ने की होगी, इस बारे में तुम कुछ बता सकते हो?’’ थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, हमें संदेह नहीं, पूरा विश्वास है कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है. वह हमारे बड़े भाई का चचेरा साला है. उस का हमारे घर बहुत ज्यादा आनाजाना था. उस के नीलम से अवैध संबंध थे. पीछा छुड़ाने के लिए उसी ने उस की हत्या की है. वह अपने परिवार के साथ बर्रा में रहता है. इन दिनों उस की तैनाती लखनऊ में है.’’

शिवचरन सिंह ने जैसे ही कहा कि नीलम की हत्या सबइंसपेक्टर जगराम सिंह ने की है, थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने उसे डांटा, ‘‘तुम्हारा दिमाग खराब है. नीलम की हत्या नहीं हुई है. मुझे लगता है, उस की मौत एक्सीडेंट से हुई है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आएगी तो पता चल जाएगा कि वह कैसे मरी है.’’

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार, नीलम की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस की मौत सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. उस के चेहरे को चाकू की नोक से गोदा गया था. गला भी साड़ी से कसा गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से साफ हो गया था कि नीलम की हत्या हुई थी. इस के बावजूद थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने हत्या की रिपोर्ट दर्ज नहीं की. इस का मतलब था कि जगराम सिंह ने सिफारिश कर दी थी. विभागीय मामला था, इसलिए थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह उस का पक्ष ले रहे थे.

हत्या के इस मामले को दबाने की खबर जब स्थानीय अखबारों में छपी तो आईजी आशुतोष पांडेय ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने इस मामले को ले कर थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह से 2 बार बात की, लेकिन उस ने उन्हें कोई उचित जवाब नहीं दिया. इस के बाद उन्होंने क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश को इस मामले की जांच कर के तुरंत रिपोर्ट देने को कहा.

क्षेत्राधिकारी ओमप्रकाश ने उन्हें जो रिपोर्ट दी, उस में सबइंसपेक्टर जगराम सिंह पर हत्या का संदेह व्यक्त किया गया था. थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह ने जो किया था, उस से पुलिस की छवि धूमिल हुई थी, इसलिए आईजी आशुतोष पांडेय ने उन्हें लाइनहाजिर कर दिया और खुद 10 जुलाई को थाना नौबस्ता जा पहुंचे. उन्होंने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को थाने बुला कर पूछताछ की और उसे साथ ले कर घटनास्थल का निरीक्षण भी किया.

मृतका नीलम और जगराम सिंह के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो उस में नीलम के मोबाइल फोन पर अंतिम फोन जगराम सिंह का ही आया था. दोनों के बीच बात भी हुई थी. इस के बाद नीलम का फोन बंद हो गया था. नीलम के मोबाइल फोन की अंतिम लोकेशन थाना चकेरी क्षेत्र के श्यामनगर की थी. काल डिटेल्स से पता चला कि जगराम और नीलम की रोजाना दिन में कई बार बात होती थी. कभीकभी दोनों की घंटों बातें होती थीं.

सारे सुबूत जुटा कर आईजी आशुतोष पांडेय ने सबइंसपेक्टर जगराम सिंह से नीलम की हत्या के बारे में पूछा तो उसने स्वीकार कर लिया कि साले की मदद से उसी ने नीलम की Crime story हत्या की थी और लाश ले जा कर नौबस्ता में हाईवे के किनारे फेंक दी थी. जगराम सिंह ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया तो थाना नौबस्ता पुलिस ने शिवचरन सिंह भदौरिया की ओर से नीलम की हत्या का मुकदमा सबइंसपेक्टर जगराम सिंह और उस के साले लक्ष्मण सिंह के खिलाफ दर्ज कर लिया. इस के बाद जगराम सिंह ने नीलम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह जिस्म के नाजायज रिश्तों में जिंदगी लेने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के कस्बा खागा के रहने वाले राम सिंह के परिवार में पत्नी चंदा के अलावा 2 बेटे पप्पू, बब्बू और बेटी नीलम उर्फ पिंकी थी. राम सिंह पक्का शराबी था. अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा वह शराब में उड़ा देता था. बाप की देखा देखी बड़े बेटे पप्पू को भी शराब का शौक लग गया. जैसा बाप, वैसा बेटा. पप्पू कुछ करता भी नहीं था.

नीलम उर्फ पिंकी राम सिंह की दूसरे नंबर की संतान थी. वह सयानी हुई तो राम सिंह को उस की शादी की चिंता हुई. उस के पास कोई खास जमापूंजी तो थी नहीं, इसलिए वह इस तरह का लड़का चाहता था, जहां ज्यादा दानदहेज न देना पड़े. उस ने तलाश शुरू की तो जल्दी ही उसे कानपुर शहर के थाना चकेरी के श्यामनगर (रामपुर) में किराए पर रहने वाला शिवचरन सिंह भदौरिया मिल गया. शिवचरन सिंह शहर के मशहूर होटल लिटिल में चीफ वेटर था. राम सिंह को शिवचरन पसंद आ गया. उस के बाद अपनी हैसियत के हिसाब से लेनदेन कर के उस ने नीलम की शादी शिवचरन सिंह के साथ कर दी.

नीलम जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर शिवचरन बेहद खुश था.  से समय गुजरने लगा. समय के साथ नीलम 2 बेटों सचिन और शिवम की मां बनी. बच्चे होने के बाद खर्च तो बढ़ गया, जबकि आमदनी वही रही. शिवचरन को 5 हजार रुपए वेतन मिलता था, जिस में से 2 हजार रुपए किराए के निकल जाते थे, हजार, डेढ़ हजार रुपए नीलम के फैशन पर खर्च हो जाते थे. बाकी बचे रुपयों में घर चलाना मुश्किल हो जाता था. इसलिए घर में हमेशा तंगी बनी रहती थी.

पैसों को ले कर अक्सर शिवचरन और नीलम में लड़ाईझगड़ा होता रहता था. रोजरोज की लड़ाई और अधिक कमाई के चक्कर में शिवचरन ने नीलम की ओर ध्यान देना बंद कर दिया. पत्नी की किचकिच की वजह से वह तनाव में भी रहने लगा. इस सब से छुटकारा पाने के लिए वह शराब पीने लगा. संयोग से उसी बीच शिवचरन के घर उस के बड़े भाई के चचेरे साले यानी नीलम की जेठानी प्रीति के चचेरे भाई जगराम सिंह का आनाजाना शुरू हुआ.

जगराम सिंह अपने परिवार के साथ बर्रा कालोनी में रहता था. वह हेडकांस्टेबल था, लेकिन इधर प्रमोशन से सबइंस्पेक्टर हो गया था. उस की ड्यूटी लखनऊ में दर्जा प्राप्त राज्य मंत्री सुदीप रंजन सेन के यहां थी. नीलम जगराम सिंह की मीठीमीठी बातों और अच्छे व्यवहार से काफी प्रभावित थी. एक तरह से नीलम उस की बहन थी, लेकिन 2 बच्चों की मां होने के बावजूद नीलम की देहयष्टि और सुंदरता ऐसी थी कि किसी भी पुरुष की नीयत खराब हो सकती थी. शायद यही वजह थी कि भाई लगने के बावजूद जगराम सिंह की भी नीयत उस पर खराब हो गई थी.

घर आनेजाने से जगराम सिंह को नीलम की परेशानियों का पता चल ही गया था, इसलिए उस तक पहुंचने के लिए वह उस की परेशानियों का फायदा उठाते हुए हर तरह से मदद करने लगा. नीलम जब भी उस से पैसा मांगती, वह बिना नानुकुर किए दे देता. अगर कभी शिवचरन पैसे मांग लेता तो वह उसे भी दे देता. शिवचरन भले ही जगराम की मन की बात से अंजान था, लेकिन नीलम सब जानती थी. वह जान गई थी कि जगराम उस पर इतना क्यों मेहरबान है. उस की नजरों से उस ने उस के दिल की बात जान ली थी. एक तो नीलम को पति का सुख उस तरह नहीं मिल रहा था, जिस तरह मिलना चाहिए था, दूसरे जगराम अब उस की जरूरत बन गया था.

इसलिए उसे जाल में फंसाए रखने के लिए नीलम उस से हंसी मजाक ही नहीं करने लगी, बल्कि उस के करीब भी आने लगी थी. आसपड़ोस में सभी लोगों को उस ने यही बता रहा था कि यह उस के जेठानी का भाई है. इसलिए नीलम को लगता था कि उस के आने जाने पर कोई शक नहीं करेगा. नीलम की मौन सहमति पा कर एक दिन उसे घर में अकेली पा कर जगराम सिंह ने उस का हाथ पकड़ लिया. बनावटी नानुकुर के बाद उस ने जगराम को अपना शरीर सौंप दिया. जगराम से उसे जो सुख मिला, उस ने रिश्तों की मर्यादा को भुला दिया.

इस के बाद नीलम और जगराम जब भी मौका पाते, एक हो जाते. नीलम को जगराम सिंह के साथ शारीरिक सुख में कुछ ज्यादा ही आनंद आता था, इसलिए वह उस का भरपूर सहयोग करने लगी थी. कभीकभी तो जगराम से मिलने वाले सुख के लिए वह बच्चों को बहाने से घर के बाहर भी भेज देती थी. कुछ सालों तक तो उन का यह संबंध लोगों की नजरों से छिपा रहा, लेकिन जगराम सिंह का शिवचरन के घर अक्सर आना और घंटो पड़े रहना, लोगों को खटकने लगा. नीलम और उस के सबइंसपेक्टर भाई के हावभाव और कार्यशैली से लोगों को विश्वास हो गया कि उन के बीच गलत संबंध है.

जगराम सिंह बेहद चालाकी से काम ले रहा था. वह जब भी शिवचरन की मौजूदगी में आता, काफी गंभीर बना रहता. वह इस बात का आभास तक न होने देता कि उस के और नीलम के बीच कुछ चल रहा है. तब वह पूरी तरह से रिश्तेदार बना रहता. लेकिन एकांत मिलते ही वह रिश्तेदार के बजाय नीलम का प्रेमी बन जाता. जब मामला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया तो पड़ोसियों ने शिवचरन के कान भरने शुरू किए. उसने अतीत में झांका तो उसे भी संदेह हुआ. फिर एक दिन जगराम घर आया तो वह होटल जाने की बात कह कर घर से निकला जरूर, लेकिन आधे घंटे बाद ही वापस आ गया. उस ने देखा कि दोनों बेटे बाहर खेल रहे हैं और कमरे की अंदर से सिटकनी बंद है.

उस ने सचिन से पूछा, ‘‘क्या बात है, कमरे का दरवाजा क्यों बंद है, तुम्हारी मम्मी कहां हैं.?’’

‘‘मम्मी और मामा कमरे में हैं. हम कब से उन्हें बुला रहे हैं, वे दरवाजा खोल ही नहीं रहे हैं.’’ सचिन ने कहा.

शिवचरन को संदेह तो था ही, अब विश्वास हो गया. वह नीलम को आवाज दे कर दरवाजा पीटने लगा. अचानक शिवचरन की आवाज सुन कर दोनों घबरा गए. वे जल्दी से उठे और अपने अपने कपड़े ठीक किए. इस के बाद नीलम ने आ कर दरवाजा खोला. नीलम की हालत देख कर शिवचरन सारा माजरा समझ गया. उसे कुछ कहे बगैर वह कमरे के अंदर आया तो देखा जगराम सोने का नाटक किए चारपाई पर लेटा था. शिवचरन खून का घूंट पी कर रह गया. उस समय उस ने न तो नीलम से कुछ कहा और न ही जगराम सिंह से. लेकिन उस के हावभाव से नीलम समझ गई कि उस के मन में क्या चल रहा है. उस ने अपने भयभीत चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन तनाव में होने की वजह से सफल नहीं हो पाई.

शिवचरन सोच ही रहा था कि वह क्या करे, तभी जगराम जम्हुआई लेते हुए उठा और शिवचरन को देख कर बोला, ‘‘अरे तुम इतनी जल्दी कैसे आ गए, तबीयत तो ठीक है?’’

शिवचरन ने जगराम सिंह के चेहरे पर नजरें जमा कर दबे स्वर में कहा, ‘‘तबीयत तो ठीक है, लेकिन दिमाग ठीक नहीं है.’’

इतना कह कर ही शिवचरन बाहर चला गया. उस ने जिस तरह यह बात कही थी, उसे सुन कर जगराम ने वहां रुकना उचित नहीं समझा और चुपचाप बाहर निकल गया. उस के जाते ही शिवचरन वापस लौटा और नीलम की चोटी पकड़ कर बोला, ‘‘बदलचन औरत, इस उम्र में तुझे यह सब करते शरम भी नहीं आई? वह भी उस आदमी के साथ जो तेरा भाई लगता है.’’

नीलम की चोरी पकड़ी गई थी, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई. गुस्से में तप रहे शिवचरन ने नीलम को जमीन पर पटक दिया और लात घूसों से पिटाई करने लगा. नीलम चीखतीचिल्लाती रही, लेकिन शिवचरन ने उसे तभी छोड़ा, जब वह उसे मारते मारते थक गया. इस के बाद शिवचरन नीलम पर नजर रखने लगा था. उस ने बेटों से भी कह दिया था कि जब भी मामा घर आए, वे उस से बताएं. जिस दिन शिवचरन को पता चलता कि जगराम आया था, उस दिन शिवचरन नीलम पर कहर बन कर टूटता था. अब जगराम और नीलम काफी सावधानी बरतने लगे थे. वह तभी नीलम से मिलने आता था, जब उसे पता चलता था कि घर पर न बेटे हैं और न शिवचरन.

इसी बात की जानकारी के लिए जगराम सिंह ने नीलम को एक मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया था. इस से दोनों की रोजाना बातें तो होती ही रहती थीं, इसी से मिलने का समय भी तय होता था. एक दिन शिवचरन ने नीलम को जगराम से बातचीत करते पकड़ लिया तो मोबाइल फोन छीन कर पटक दिया. लेकिन अगले ही दिन जगराम ने उसे दूसरा मोबाइल फोन खरीद कर दे दिया. काफी प्रयास के बाद भी शिवचरन नीलम और जगराम को अलग नहीं कर सका तो उस ने जगराम के घर जा कर उस की पत्नी लक्ष्मी से सारी बात बता दी. इस के बाद जगराम के घर कलह शुरू हो गई. यह कलह इतनी ज्यादा बढ़ गई कि लक्ष्मी ने बच्चों के साथ आत्मदाह करने की धमकी दे डाली.

पत्नी की इस धमकी से जगराम डर गया. उस ने पत्नी से वादा किया कि अब वह नीलम से संबंध तोड़ लेगा. उस ने नीलम से मिलना कम कर दिया तो इस से नीलम नाराज हो गई. इधर उस ने पैसों की मांग भी अधिक कर दी थी, जिस से जगराम को परेशानी होने लगी थी. एक ओर जगराम सिंह अपनी पत्नी और बच्चों को छोड़ नहीं सकता था. दूसरी ओर अब नीलम से भी पीछा छुड़ाना आसान नहीं रह गया था. वह बदनाम करने की धमकी देने लगी थी. उस की धमकी और मांगों से तंग आ कर जगराम सिंह ने नीलम से पीछा छुड़ाने के लिए अपने साले लक्ष्मण के साथ मिल कर उसे खत्म करने की योजना बना डाली.

संयोग से उसी बीच नीलम ने बच्चों की ड्रेस, फीस, कापीकिताब और घर के खर्च के लिए जगराम से 10 हजार रुपए मांगे. जगराम ने कहा कि पैसों का इंतजाम होने पर वह उसे फोन से बता देगा. 24 जुलाई, 2014 की शाम 4 बजे जगराम सिंह ने नीलम को फोन किया कि पैसों का इंतजाम हो गया है, वह श्यामनगर चौराहे पर आ कर पैसे ले ले. फोन पर बात होने के बाद नीलम ने बेटों से कहा कि वह उन की ड्रेस लेने दर्जी के पास जा रही है और उधर से ही वह घर का सामान भी लेती आएगी.

नीलम श्यामनगर चौराहे पर पहुंची तो जगराम अपने साले लक्ष्मण सिंह के साथ कार में बैठा था. नीलम को भी उस ने कार में बैठा लिया. कार चल पड़ी तो नीलम ने जगराम से पैसे मांगे. लेकिन उस ने पैसे देने से मना कर दिया. तब नीलम नाराज हो कर उसे बदनाम करने की धमकी देने लगी. नीलम की बातों से जगराम को भी गुस्सा आ गया. वह उस से छुटकारा तो पाना ही चाहता था, इसलिए पैरों के नीचे रखी लोहे की रौड निकाली और नीलम के सिर पर पूरी ताकत से दे मारा. उसी एक वार में नीलम लुढ़क गई. इस के बाद जगराम ने नीलम की साड़ी गले में लपेट Crime story कर कस दी. नीलम मर गई तो चाकू से उस के चेहरे को गोद दिया.

जगराम अपना काम करता रहा और लक्ष्मण कार चलाता रहा. चलती कार में नीलम की बेरहमी से हत्या कर के जगराम और लक्ष्मण ने देर रात उस की लाश को नौबस्ता ले जा कर हाईवे के किनारे फेंक दिया और खुद कार ले कर अपने घर चले गए.

पूछताछ के बाद 10 जुलाई, 2014 को थाना नौबस्ता पुलिस ने अभियुक्त सबइंसपेक्टर जगराम सिंह को कानपुर की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उस की जमानत नहीं हुई थी. उस का साला लक्ष्मण फरार था. पुलिस उस की तलाश में जगहजगह छापे मार रही थी.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Top 5 Cyber Crime Story : टॉप 5 साइबर क्राइम स्टोरी हिंदी में

Top 5 Cyber Crime Story  : आजकल साइबर क्राइम बहुत तेजी से बढ़ रहा है जिसके कारण कई लोग इसका शिकार भी बने है और कुछ लोगो को जान गंवानी पढ़ी. तो खुद को इस ठगी और धोखाधड़ी से बचाने के लिए और समाज को इस साइबर क्राइम से जागरूक करने के लिए पढ़ें ये Top 5 Cyber Crime Story in Hindi में पढ़े.

साइबर फ्रौड से बचने के लिए किए जा रहे तमाम सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं. देश भर में साइबर फ्रौड की घटनाएं आए दिन बढ़ती जा रही हैं. साइबर क्रिमिनल्स लोगों को अलगअलग तरीकों से अपना शिकार बना रहे हैं. पुलिसिया सिस्टम आखिर इस पर अंकुश लगाने में नाकाम क्यों है?

राजस्थान के जोधपुर में प्रभाव नगर के रहने वाले नरेश कुमार बैरवा अपने मोबाइल में सोशल मीडिया साइट्स पर बिजी थे, तभी उन के पास एक फोन काल आई तो उन का ध्यान उधर चला गया. नरेश कुमार ने जैसे ही काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से आवाज आई, ”मैं सीबीआई औफिस से बात कर रहा हूं. अगस्त महीने में आप के आधार कार्ड द्वारा जो सिम कार्ड लिया गया है, उस मोबाइल नंबर का इस्तेमाल मुंबई में मनी लांड्रिंग में हुआ है.’’

”लेकिन सर, मैं तो पिछले 20 सालों से मुंबई गया ही नहीं हूं, फिर यह कैसे संभव है.’’ नरेश कुमार घबराते हुए बोले.

”ज्यादा चालाक बनने की कोशिश मत करो, जो पूछा जाए, उस का सहीसही जबाब दो. लो, हमारे सर से बात करो.’’ फोन करने वाले ने धमकाते हुए कहा.

”हमारे रिकौर्ड के मुताबिक आप का मोबाइल नंबर मनी लांड्रिंग केस में उपयोग हुआ है. सचसच बताइए, नहीं तो हमारी टीम जल्द ही आप के बैंक अकाउंट और प्रौपर्टी की जांच करने आप के घर पहुंच रही है.’’ दूसरे व्यक्ति ने कड़क आवाज में कहा.

”लेकिन सर… मेरी बात तो सुनिए…’’

”हमें कुछ नहीं सुनना, अपने बैंक अकाउंट के नंबर और उस में जमा पैसों का पूरा विवरण दो. तुम्हें पता नहीं इस मामले में बड़े लोग जुड़े हुए हैं और वो तुम्हारी जान भी ले सकते हैं, इसलिए जो कहा जा रहा है, वो करो. एक बात और ध्यान से सुनो कि काल डिस्कनेक्ट नहीं करना.’’ जान का खतरा होने का डर दिखाते हुए फोन करने वाले व्यक्ति ने कहा.

नरेश कुमार बुरी तरह डर गए और अपनी बैंक डिटेल्स उन्होंने फोन करने वाले लोगों को बता दी. यह घटना 25 नवंबर, 2024 की थी. अगले दिन 26 नवंबर की सुबह सीबीआई औफिसर बन कर मनी लांडिंग का केस बताया और फरजी सेटअप लगा कर नरेश कुमार से पूछताछ शुरू कर दी. पूछताछ के नाम पर सीबीआई अफसर बताने वाले अधिकारी ने कहा, ”आप के बैंक अकाउंट में करोड़ों रुपया आया है. यह पैसा बैंक मैनेजर ने गलती से आप के अकाउंट में ट्रांसफर किया है. बैंक स्टेटमेंट में इस की एंट्री भी आप को दिखाई नहीं देगी.’’

”लेकिन सर, मुझे तो इस की कोई जानकारी ही नहीं है, किस ने मेरे अकाउंट में रुपए भेजे हैं?’’

अफसर ने झांसा देते हुए कहा, ”अगर इस पूरे मामले में आप का इन्वौल्वमेंट नहीं है तो आप को डरने की कोई जरूरत नहीं है. यदि आप देशभक्त हो तो इस तरह की ठगी को ले कर आप को सहयोग करना होगा, जिस से गलत ट्रांजैक्शन करने वाले बैंक मैनेजर के खिलाफ काररवाई की जा सके.’’

इस के बाद नरेश कुमार को रिजर्व बैंक औफ इंडिया के नाम से एक फार्म औनलाइन भेजा गया और उस पर साइन करवाए गए. इस में यह लिखवाया कि यदि इस में मेरा इन्वौल्वमेंट नहीं होता है तो मेरी पूरी जमापूंजी 24 घंटे में रिटर्न कर दी जाएगी. अगले 3 दिन अफसरों ने नरेश कुमार से अलगअलग धनराशि के 11 चैक बनवा लिए, जिस में कुल जमा रुपए एक करोड़ 84 लाख 50 हजार थी. नरेश कुमार चैक जमा कराने घर से 2 किलोमीटर दूर स्टेट बैंक औफ इंडिया (स्क्चढ्ढ) की ब्रांच में जाते रहे. उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह बात किसी को बताई तो जांच में समस्या आ सकती है और असली आरोपी अलर्ट हो सकता है. इसी वजह से वह चुपचाप बैंक में चैकजमा करवा कर लौट आते.

61 साल के नरेश कुमार बैरवा इंडियन आयल कारपोरेशन लिमिटेड में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर काम करते थे. लगातार स्वास्थ्य खराब रहने से साल 2020 में उन्होंने वीआरएस ले लिया था. रिटायरमेंट पर उन्हें बड़ी रकम विभाग की तरफ से मिली थी. नरेश कुमार जोधपुर में किराए के मकान में रह कर अपना इलाज करवा रहे थे. तथाकथित अफसरों के बताए अनुसार नरेश 24 घंटे बाद रुपया अकाउंट में वापस आने का इंतजार करते रहे, लेकिन 30 नवंबर तक जब पैसा वापस नहीं आया तो नरेश कुमार ने उसी नंबर पर काल कर रुपयों की मांग की तो फिर से उन्हें धमकाया गया और कहा गया, ”आप को अपने भाई का नंबर भी देना होगा. उन की जान को भी खतरा है.’’

परिवार को जान से मारने की धमकी सुन कर नरेश और ज्यादा घबरा गए और अपने भाई का नंबर भी दे दिया. इस के बाद भाई को भी काल कर के कहा कि आप का भाई किसी मुसीबत में फंस गया है. जल्दी नजदीकी थाने जा कर उन की मदद करो. परंतु भाई उस तथाकथित अफसर के झांसे में नहीं आया और फोन काट दिया. इस के बाद भाई ने नरेश से बात कर के  बताया कि ये ठगी करने वाले लोग हैं. तब जा कर उन्हें समझ आया कि उन के साथ साइबर फ्रौड हुआ है. फिर दोनों भाइयों ने थाने जा कर मामला दर्ज करवाया.

विदेश में रहने वाली महिला डाक्टर से कानपुर में ठगी

इसी तरह कानपुर में ग्वालटोली की रहने वाली डा. आभा गुप्ता ने ग्वालटोली थाने में 4 अक्तूबर, 2024 को शिकायत दर्ज कराई कि नौबस्ता में रहने वाले राहुल कटियार, पनकी रतनपुर में रहने वाली नेहा तिवारी और बैंक कर्मचारी रजत सिंह ने उन की बहन के साथ Top 5 Cyber Crime Story फरजीवाड़ा किया है. शिकायत में बताया गया कि तीनों ने विदेश में रहने वाली उन की बहन डा. प्रतिभा रोहतगी के नाम पर डेढ़ करोड़ रुपए का लोन ले कर हड़प लिया. नेहा तिवारी और राहुल कटियार फाइनैंस सेक्टर में काम करते थे. ये दोनों डा. प्रतिभा का भी अकाउंट देखते थे. इसी का फायदा उठा कर उन्होंने विदेश में रहने वाली डा. प्रतिभा के दस्तावेजों के सहारे डेढ़ करोड़ का लोन करा लिया था.

ग्वालटोली में रहने वाली  92 साल की डा. प्रतिभा रोहतगी ‘आभा नर्सिंग होम’ चलाती थीं. पिछले 4 सालों से वह अल्जाइमर से पीडि़त हैं और इस के चलते उन्होंने पावर औफ अटार्नी अपनी छोटी बहन डा. आभा गुप्ता के नाम पर कर दी थी. इस के बाद से वह कैलिफोर्निया में शिफ्ट हो गईं. उन के ग्वालटोली वाले घर में देखभाल के लिए कुछ कर्मचारी रहते हैं. प्रतिभा के एक कंपनी में शेयर फंसे थे. साल 2021 में उसी सिलसिले में प्रतिभा की मुलाकात राहुल कटियार और नेहा तिवारी से हुई थी. धीरेधीरे दोनों डा. प्रतिभा का फाइनैंस का काम देखने लगे थे.

इन दोनों ने बैंक कर्मचारियों की मदद से प्रतिभा के नाम पर किदवई नगर स्थित एचडीएफसी बैंक में फरजी दस्तावेजों से खाता खुलवा लिया. इस काम में बैंक के कर्मचारी रजत सिंह ने भी उन का साथ दिया, फिर इसी बैंक की दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कालोनी स्थित ब्रांच में औनलाइन खाता खुलवा कर ब्रांच से डेढ़ करोड़ का लोन ले लिया. लोन की यह रकम उन्होंने किदवई नगर वाले खाते में ट्रांसफर करा ली.

इस के बाद जब लोन की किस्तें नहीं भरी गईं तो बैंक से उन के पास नोटिस आ गया. इस के बाद बहन डा. आभा को पूरा मामला समझ आया. उस समय आभा अमेरिका में थी. आभा ने अमेरिका से ही कानपुर के पुलिस कमिश्नर से शिकायत की. पुलिस कमिश्नर ने एसीपी (कर्नलगंज) से गोपनीय जांच कराई तो पूरे खेल का खुलासा हुआ. डा. प्रतिभा रोहतगी के नाम से डेढ़ करोड़ का लोन लेने के बाद शातिरों ने रुपए निकालने के लिए भी बेहद चालाकी भरा रास्ता चुना. आरोपियों ने दिल्ली की न्यू फ्रेंड्स कालोनी स्थित ब्रांच में खाता खुलवाने के बाद रुपए किदवई नगर ब्रांच में खोले गए डा. प्रतिभा के फरजी अकाउंट में ट्रांसफर करा लिए.

फिर आभा नर्सिंग होम के पास स्थित एक एटीएम से कई बार में पूरे रुपए निकाल लिए, जिस से अगर भविष्य में यह बात खुले तो कह सकें कि डा. प्रतिभा ने ही अपने नजदीकी एटीएम से रुपए निकाले हैं. डा. आभा ने बताया कि बहन प्रतिभा ने साल 2020 में ही पावर औफ एटार्नी मेरे नाम कर दी थी. इस वजह से किसी भी खाते से एक भी रुपए का लेनदेन बिना मेरी इजाजत के नहीं हो सकता. डेढ़ करोड़ की ठगी की मास्टरमाइंड नेहा तिवारी ने अपने पति से भी धोखाधड़ी कर के लाखों रुपए हड़प लिए थे. किदवई नगर में रहने वाले विशाल पांडे से 5 मई, 2018 को नेहा की शादी हुई थी. विशाल को शादी के बाद से ही नेहा की गतिविधियां संदिग्ध लगने लगी थीं.

अलगअलग लोगों से मिलना, पार्टी करना और देर रात घर आना नेहा का शौक बन गया था. उस ने धोखाधड़ी कर के पति से भी लाखों रुपए हड़प लिए तो दोनों के बीच झगड़ा हुआ और नौबत तलाक तक आ गई. नेहा तिवारी ने फरवरी, 2021 में विशाल के खिलाफ दहेज का मुकदमा दर्ज करा दिया. डीसीपी (सेंट्रल) दिनेश त्रिपाठी ने बताया कि पूछताछ में नेहा ने यह बात कुबूल की है कि ठगी की रकम से उस ने हाईवे पर 2 बीघा जमीन खरीदी और उस पर बड़ा ढाबा खोल दिया. इस में ठगी में शामिल राहुल भी पार्टनर है. नेहा ने ठगी की रकम से अपने भाई के नाम पर भी जमीन खरीदी थी.

2 महीने से कानपुर पुलिस को चकमा दे रही शातिर ठग नेहा तिवारी को आखिरकार पुलिस ने पहली दिसंबर, 2024 को गिरफ्तार कर लिया. नेहा के एक साथी राहुल कटियार को पुलिस पहले ही गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी है. नेहा उस का भी फाइनेंस मैनेज करती थी. इन दोनों के साथ एक बैंक कर्मचारी रजत भी शामिल था.

राजस्थान में बुजुर्ग दंपति को लगाई एक करोड़ की चपत

राजस्थान के श्रीगंगानगर साइबर थाने में 16 नवंबर, 2024 को चूनावढ़ क्षेत्र गांव के  रहने वाले बुजुर्ग दंपति 69 वर्षीय जसविंदर कौर पत्नी सोहन सिंह ने भी उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर एक करोड़ रुपए की चपत लगाने की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. बुजुर्ग दंपति के 2 बेटे हैं. एक बेटा हरप्रीत सिंह कनाडा में और दूसरा बेटा पवनदीप सिंह आस्ट्रेलिया में रहता है. दोनों बेटों के विदेश चले जाने के बाद 3 साल पहले बुजुर्ग दंपति अपनी 32 बीघा जमीन की देखभाल नहीं कर पा रहे थे, इसलिए उन्होंने जमीन बेच कर इस के एवज में मिली लगभग एक करोड़ से अधिक रकम अलगअलग बैंक Top 5 Cyber Crime Story अकाउंट्स में जमा कर दी.

15 नवंबर, 2024 को जसविंदर कौर के मोबाइल पर एक कालर ने फोन करते हुए खुद को दिल्ली में सीबीआई अधिकारी बताते हुए परिचय दिया. उस ने धमकाते हुए कहा, ”आप के बैंक अकाउंट्स में फरजी तरीके से काफी धनराशि जमा हुई है. जमा के संबंध में सीबीआई की ओर से केस दर्ज किया जा रहा है.’’ तकरीबन घंटे भर की बातचीत में बुजुर्ग दंपति को उलझा कर सीबीआई अफसर बने कालर ने बातचीत के दौरान फैमिली के सदस्यों के बारे में पूरी डिटेल्स मांग ली.

बैंकिंग के बारे में बुजुर्ग दंपति को ज्यादा जानकारी नहीं थी. इसी का फायदा उठाते हुए जालसाज ने 16 नवंबर को उन्हें बारबार फोन किया और धमकी दी कि अगर उन्होंने अपनी पूरी जमा राशि 3 अलगअलग खातों में ट्रांसफर नहीं की और पुलिस को इस की वास्तविकता सत्यापित करने की परमिशन नहीं दी तो उन्हें 7 साल के लिए जेल भेज दिया जाएगा. जालसाज ने उन्हें भरोसे में लेते हुए कहा, ”अगर जांच में यह पाया गया कि आप के अकाउंट में जमा यह रकम जैनुइन तरीके से कमाई की है तो कुछ दिनों के भीतर यह रकम आप के खाते में सुरक्षित रूप से रिफंड कर दी जाएगी.’’

अगले दिन इस कालर ने एक बैंक अकाउंट भी दिया. यह अकाउंट भोपाल के शाहपुरा के बैंक का था. उस के बताए अनुसार उन्होंने उस अकाउंट में एक करोड़ 5 लाख 59 हजार 960 रुपए जमा करवा लिए. जब इस घटना के बारे में जसविंदर ने अपने परिचितों को बताया, तब उन्हें अपने साथ ठगी होने का अहसास हुआ. मोबाइल फोन पर फरजी सीबीआई अफसर बन क र बुजुर्ग महिला और उस के पति को डिजिटल अरेस्ट कर लगभग एक करोड़ 5 लाख रुपए ठग लिए. जैसे ही उन्हें अहसास हुआ कि वे डिजिटल फ्रौड का शिकार हो गए हैं, उन्होंने मामले की सूचना साइबर सेल को दी. जिस के बाद गंगानगर के एसपी गौरव यादव ने जांच शुरू की. जांच के दौरान पुलिस को पता चला कि भोपाल में 2 बैंक अकाउंट्स में 18 लाख रुपए जमा किए गए थे.

पुलिस टीम ने तुरंत बैंक अधिकारियों से संपर्क किया और खातों को फ्रीज कर दिया, ताकि कोई लेनदेन न हो सके. गंगानगर साइबर थाने में 18 नवंबर को मामला दर्ज होने के बाद आखिरकार साइबर पुलिस ने इस गैंग के 3 सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया. डीवाईएसपी कुलदीप वालिया और एसआई चंद्रभान की अगुवाई में टीम ने जयपुर से 3 युवकों को दबोचा. जयपुर के सुंदरनगर सांगानेर निवासी अजय प्रजापति, सांगानेर लक्ष्मी कालोनी निवासी मोहित सोनी और दौसा जिले के गांव माहरिया हाल निवासी किशन सिंह राजावत को गिरफ्तार किया. जांच अधिकारी ने बताया कि आरोपी मोहित सोनी ने अपने साथियों से करीब 10-15 हजार रुपए ले रखे थे.

आरोपियों को 6 दिसंबर, 2024 को अदालत में पेश कर 3 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया गया है. मामला दर्ज होते ही जांच अधिकारी डीवाईएसपी कुलदीप वालिया ने एक करोड़ 5 लाख रुपए डाले गए बैंक अकाउंट की डिटेल्स निकाली तो सामने आया कि यह मध्य प्रदेश में चल रहा भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) का अकाउंट है.

जांच में सामने आया कि इस अकाउंट में पीडि़त दंपति के एक करोड़ 5 लाख रुपए ही नहीं बल्कि उसी 16 नवंबर को 24 घंटों के दौरान 5 करोड़ 5 लाख 95 हजार रुपए की रकम साइबर फ्रौड के जरिए जमा हुई थी. आप को यह जान कर हैरानी होगी कि साइबर ठगों का यह मकडज़ाल इतना बड़ा है कि खाली इसी केस की स्टडी की तो सामने आया कि ठगी की यह रकम 24 घंटे के भीतर देश के 15 दूसरे राज्यों के 40 जिलों में  80 से अधिक बैंक अकाउंट्स में भेज दी गई. ठगी का यह गेम 24 घंटे के दौरान ही खेला गया.

मोहित ने बताया कि उस ने अपने साथियों की उधारी रकम चुकाने के लिए अपना बैंक अकाउंट आरोपी किशन सिंह को किराए पर दिया था. आरोपी किशन सिंह के कहे अनुसार मोहित के खाते में 5 लाख रुपए जमा हुए थे. इसी प्रकार अजय प्रजापति के बैंक अकाउंट में 5 लाख रुपए जमा किए गए. किशन सिंह ठेकेदारी के रूप में काम करता था. आरोपी उन लोगों को झांसे में लेता था, जो 10-12 लाख रुपए में अपना बैंक अकाउंट किराए पर देते थे.

पढ़ेलिखे लोग ठगों को आसानी से कैसे दे देते हैं करोड़ों रुपए

रूआबांधा सेक्टर भिलाई के रहने वाले इंद्रप्रकाश कश्यप पश्चिम बंगाल के खडग़पुर स्थित रश्मि ग्रुप औफ कंपनीज के वाइस प्रेसिडेंट हैं. 7 नवंबर, 2024 को उन के मोबाइल पर अज्ञात नंबर से एक वाट्सऐप काल आया. उन्होंने जैसे ही काल रिसीव किया तो दूसरी तरफ से बात करने वाले शख्स ने कहा, ”मैं टेलीकाम रेग्युलेटरी अथौरिटी औफ इंडिया (ट्राई) से बोल रहा हूं. आप इंद्रप्रकाश बोल रहे हैं न?’’

”हां जी, मैं इंद्रप्रकाश ही बोल रहा हूं.’’ जबाब देते हुए उन्होंने कहा.

”आप के आधार कार्ड से जो सिम ली गई है, उस से 29 लोगों को आपत्तिजनक मैसेज भेजे गए हैं.’’ इस के बाद इसी दौरान उस व्यक्ति ने मुंबई के कथित साइबर ब्रांच के अधिकारी को फोन ट्रांसफर कर दी.

उस अधिकारी ने उन से कहा, ”आप के आधार कार्ड से मलाड मुंबई के केनरा बैंक में एक अकाउंट खोला गया है और उस अकाउंट से करोड़ों रुपए का सस्पेक्टेड ट्रांजैक्शन की गई है. साइबर ब्रांच को उस में जेट एयरवेज के संस्थापक नरेश गोयल के खाते से भी रुपयों का लेनदेन मिला है. जिस के आधार पर सीबीआई कोलाबा ने एफआईआर की है और सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में गिरफ्तारी वारंट जारी किया है.’’

इंद्रप्रकाश ये बातें सुन कर डर गए, जिस का फायदा उठा कर आरोपियों ने कहा कि जांच होने तक वे उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर रहे हैं. इस के बाद वह व्यक्ति समयसमय पर वीडियो काल कर उन की गतिविधि पर नजर रखने लगे. फिर इंद्रप्रकाश से कहा गया कि वे एक एसएसए (सीक्रेट सुपरविजन अकाउंट) खोल रहे हैं, जिस में उन्हें अपने सभी खातों में जमा रुपयों को ट्रांसफर करना होगा, जिसे जांच के 2 दिन बाद उन्हें वापस कर दिया जाएगा. उन को पूरी तरह से अपने जाल में फंसाने के लिए आरोपियों ने उन्हें वीडियो काल पर एक फरजी कोर्ट रूम भी दिखाया, जहां पर जज बन कर बैठे व्यक्ति के सामने उन की पेशी कराई गई. जज बने व्यक्ति ने पीडि़त को डिजिटल अरेस्ट करने का आदेश दिया, जिस के बाद पीडि़त इंद्रप्रकाश कश्यप पूरी तरह से आरोपितों के चंगुल में फंस गए थे.

इंद्रप्रकाश के अकाउंट्स से संबंधित डाक्यूमेंट्स भिलाई में थे तो आरोपियों ने उन्हें भिलाई जाने के लिए कहा. ट्रेन में भी आरोपी उन पर नजर रखे रहे. इस के बाद पीडि़त 11 नवंबर को भिलाई आए और उन के बताए हुए बैंक अकाउंट में 49 लाख एक हजार 190 रुपए ट्रांसफर कर दिए. बाद में जब इंद्रप्रकाश को ठगी का अहसास हुआ तो उन्होंने थाने में मामला दर्ज कराया. पुलिस ने इंद्रप्रकाश के मोबाइल पर आने वाले वाट्सऐप नंबरों एवं बैंक अकाउंट के संबंध में जानकारी खंगाल कर काल डिटेल्स निकाली और ठगी में उपयोग किए बैंक अकाउंट्स के स्टेटमेंट प्राप्त कर लिए.

इनवैस्टीगेशन के बाद पता चला कि आरोपी बापू श्रीधर भराड़ ने औरंगाबाद के आईसीआईसीआई बैंक के एक अकाउंट का यूज किया था. इस के बाद पुलिस की एक टीम औरंगाबाद (महाराष्ट्र) भेजी गई, जहां  पहुंच कर पता चला कि अकाउंट का यूज वैष्णवी आटो स्पेयर, दिशा कामर्शियल कौंप्लेक्स बजाज नगर, औरंगाबाद के नाम पर किया गया था.

उक्त कंपनी 4-5 साल पहले तक चल रही थी, वर्तमान में कहीं और चले जाने का पता चला. इस के बाद टीम श्रीधर भराड़ के निवास के एड्रैस अक्षय तृतीया अपार्टमेंट पहुंची, जहां से कोई जानकारी नहीं मिल पाई. आखिर में पुलिस टीम ने बैंक में मोबाइल टावर के डंप डाटा के आधार पर महाराष्ट्र औरंगाबाद बजाज नगर एमआईडीसी आरएल 96/1 निवासी बापू श्रीधर भराड़ (40 वर्ष) को राहेगांव से अरेस्ट कर लिया. उस से अन्य आरोपियों के बारे में पतासाजी करने लगी.

भिलाई के एडीशनल एसपी सुखनंदन राठौर ने बताया कि आरोपी ने पूछताछ में स्वीकार किया है कि उस ने अपने कारपोरेट बैंक अकाउंट को 20 प्रतिशत के कमीशन पर जालसाजों को दिया था और उस व्यक्ति का नाम बताया तथा यह भी कुबूल किया कि उस के अकाउंट से 2 करोड़ रुपए का ट्रांजेक्शन 2 बार में हुआ है. ठगी करने वाले गिरोह के बारे में उसे जानकारी नहीं है. डिजिटल अरेस्ट मामले में अकाउंट होल्डर को गिरफ्तार किया है.

पूछताछ में जो डिटेल मिली है, जिस अकाउंट पर आरोपी के खाते से ट्रांजैक्शन हुए हैं, उस अकाउंट के आधार पर पतासाजी की जा रही है  जल्द ही पूरे गिरोह का परदाफाश किया जाएगा.

ठगों ने डीसीपी पर भी फेंका ठगी का जाल

साइबर फ्रौड करने वाले क्रिमिनल्स के हौसले इतने बुलंद हैं कि उन्हें पुलिस तक का खौफ नहीं है. 24 नवंबर, 2024 को इंदौर क्राइम ब्रांच के एडीशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया पुलिस कंट्रोल रूम स्थित क्राइम ब्रांच में मीडिया ब्रीफिंग कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर फोन नंबर 1(684) 751-6466 से आटो रिकार्डेड काल आया. काल करने वाले ने एडिशनल डीसीपी को बताया कि वह रिजर्व बैंक औफ इंडिया (आरबीआई) का औफिसर है. ठग ने कहा कि आप के नाम से जारी आधार कार्ड का दुरुपयोग हुआ है और उस से एक लाख रुपए का संदिग्ध ट्रांजैक्शन हुआ है, इसलिए आरबीआई द्वारा आप के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है. साथ ही 11 हजार 930 रुपए की पेनल्टी भी लगाई है.

ठग ने केस के संबंध में बयान दर्ज कराने और एक्सप्लेनेशन के लिए 2 घंटे में मुंबई में अंधेरी ईस्ट थाना पुलिस के सामने पेश होने को कहा. मोबाइल नंबर देख कर और ठग की बात सुनते ही एडिशनल डीसीपी समझ गए कि उन्हें डिजिटल अरेस्ट करने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने तुरंत मीडियाकर्मियों को इशारा कर ठग की बातचीत रिकौर्ड करानी शुरू कर दी. ठग ने उन से बाकायदा पुलिस अधिकारी के अंदाज में बात की और हाजिर होने का आदेश दिया. औनलाइन बयान दर्ज करने के नाम पर ठग ने जैसे ही वीडियो काल लगाया एडिशनल डीसीपी वरदी में दिखे, तब ठग ने मीडियाकर्मियों की भीड़ देख कर पूछा, ”ये आसपास कौन खड़े हैं?’’

एडीसीपी ने जब अपना परिचय दिया और कहा, ”मैं खुद एक पुलिस अधिकारी हूं और मैं ने तुम्हारी करतूत कैमरे में रिकौर्ड कर ली है.’’

इतना सुनते ही ठग ने फोन कट कर दिया.

क्यों बढ़ रहे हैं साइबर फ्रौड के मामले

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले कुछ सालों में साइबर क्राइम के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. आंकड़ों पर नजर डालें तो साल  2017 में 3,466 मामले, 2018 में 3,353, 2019 में 6,229, 2020 में 10,395, 2021 में 14,007 और 2022 में 17,470 मामले दर्ज किए गए. फरवरी 2024 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में बताया था कि साल 2023 में साइबर धोखाधड़ी की 11,28,265 शिकायतें मिली थीं. इंटरनेट यूजर्स की बढ़ती संख्या के साथ साइबर फ्रौड का खतरा पिछले कुछ सालों में बढ़ा है. सूचना और प्रसारण सचिव संजय जाजू ने हाल ही में कहा है कि 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स के साथ भारत ने डिजिटल इंडिया के तहत असाधारण डिजिटल विकास को देखा है, लेकिन इस विकास के साथ साइबर धोखाधड़ी की चुनौतियां भी आई हैं, जिन से निपटने में सरकार नाकाम रही है.

डिजिटल अरेस्ट में स्कैमर आडियो या वीडियो काल के दौरान लोगों को डराने के लिए कभी सीबीआई तो कभी कस्टम अधिकारी तो कभी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अधिकारियों के तौर पर बात करते हैं और लोगों को गिरफ्तारी का डर दिखा कर उन्हें उन के ही घर में कैद कर के पैसे ऐंठते हैं. मार्च 2024 में गृह मंत्रालय ने एक प्रैस विज्ञप्ति जारी कर लोगों को पुलिस अधिकारियों, सीबीआई, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई), प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और अन्य जांच एजेंसियों के नाम पर फरजी काल करने वाले ब्लैकमेलर्स के प्रति सतर्क किया था.

इन धोखाधड़ी करने वालों का तरीका आमतौर पर पीडि़तों से संपर्क करना और दावा करना होता है कि पीडि़त ने या तो नशीले पदार्थ, नकली पासपोर्ट या अन्य प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे अवैध सामानों वाला एक पार्सल भेजा है या प्राप्त करने वाला है. कुछ मामलों में वे आरोप लगाते हैं कि पीडि़त का कोई करीबी रिश्तेदार या दोस्त किसी क्राइम या दुर्घटना में शामिल रहा है और अब हिरासत में है. तथाकथित मामले को सुलझाने के लिए धोखाधड़ी करने वाले पैसे की मांग करते हैं. कुछ मामलों में पीडि़तों को एक ‘डिजिटल अरेस्ट’ से गुजरने के लिए बरगलाया जाता है, उन्हें स्काइप या अन्य वीडियो कौन्फ्रेंसिंग प्लेटफार्म के जरिए लगातार निगरानी में तब तक रखा जाता है, जब तक कि उन क्रिमिनल्स की मांगें पूरी नहीं हो जातीं.

फ्रौड करने वाले क्रिमिनल पुलिस थानों और गवर्नमेंट औफिस के दिखाने के लिए स्टूडियो का इस्तेमाल करते हैं और रियल औफिसर दिखने के लिए वे वरदी भी पहनते हैं. यह एक तरह का संगठित औनलाइन आर्थिक क्राइम है. हालांकि, पुलिस अधिकारियों का कहना है कि कानून में ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसी कोई चीज नहीं है, फिर भी शिक्षित व्यक्ति लगातार इन फ्रौड करने वालों के Top 5 Cyber Crime Story झांसे में आ रहे हैं. इंडियन साइबर क्राइम कोआर्डिनेशन सेंटर ने एक एडवाइजरी जारी की है, जिस में कहा गया है कि सीबीआई, पुलिस या ईडी किसी भी अपराधी को  वीडियो काल पर गिरफ्तार नहीं करते हैं.

साइबर क्राइम से बचने के लिए क्या करें

साइबर सिक्योरिटी से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि साइबर क्राइम में वृद्धि के लिए कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ सरकारी तंत्र भी दोषी है, जो इस खतरे को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा. साइबर फ्रौड करने वाले क्रिमिनल बेखौफ हो कर लंबे समय से वित्तीय धोखाधड़ी करते आ रहे हैं. यह सरकारी नीतियों की विफलता है, जिस के कारण ये क्रिमिनल अब निडर हो गए हैं. सरकार की ओर से ऐसे क्राइम को रोकने के लिए उठाए गए कदम केवल कागजों पर ही हैं. मन की बात कार्यक्रम में साइबर फ्रौड को ले कर कही गई बातें देश के प्राइम मिनिस्टर की लाचारी को दर्शाती हैं. देश के मध्यमवर्गीय परिवारों के बैंक अकाउंट की निगरानी के लिए आधार और पैन नंबर की लिंकिंग साइबर ठगों को मालामाल कर रही है.

फोन पर किसी से भी बैंक डिटेल्स साझा न करें, किसी के भी डराने पर घबराएं नहीं बल्कि पुलिस को सूचना दें. अपने परिचितों की आवाज में पैसे ट्रांसफर करने वालों से सावधान रहें, अन्य नंबरों से इस की जांच करें. वाट्सऐप के नए अनजान ग्रुपों में यदि कोई शामिल करता है तो उसे तुरंत ब्लौक कर दें. यदि फोन पर कोई खुद को बैंककर्मी, पुलिसकर्मी या फिर कोई और सरकारी कर्मी बता कर निजी जानकारी मांगे तो हरगिज न दें. फोन पर आने वाले स्पैम मेल, मैसेज आदि पर क्लिक न करें बल्कि इन्हें तुरंत डिलीट कर दें. लोगों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि कभी भी पुलिस, सीबीआई, ईडी, आरबीआई या कस्टम अधिकारी वीडियो काल के जरिए आप से पूछताछ या बयान दर्ज करने की काररवाई नहीं करते.

इसलिए जब भी इस तरह कोई वीडियो काल करे और आप को धमकाने या डराने की कोशिश करे तो सब से पहले तो ऐसी काल को तुरंत डिसकनेक्ट कर दें. कोई भी अनजान व्यक्ति आप के बैंक अकाउंट की डिटेल के लिए फोन, एसएमएस या ईमेल करे तो इसे इग्नोर कर दें. इस के बावजूद भी यदि कोई साइबर फ्रौड का शिकार हो जाए तो सब से पहले बैंक को सूचना दे कर नजदीकी पुलिस स्टेशन में अपनी शिकायत दर्ज कराएं. साइबर फ्रौड के शिकार होने या ऐसे फ्रौड काल आने पर व्यक्ति को तुरंत साइबर क्राइम हेल्पलाइन नंबर 1930 पर घटना की सूचना देनी चाहिए और अपने नजदीकी थाने में संपर्क करना चाहिए.

साइबर क्राइम और पीछा करने से ले कर आर्थिक क्राइम तक, कोई भी साइबर क्राइम के लिए राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल (www.cybercrime.gov.in) पर रिपोर्ट की जा सकती है.

—कथा मीडिया रिपोट्र्स पर आधारित

 

 

एक ऐसी भी औरत : पति और प्रेमी से बेवफाई का अंजाम

बीना कानपुर शहर के मोहल्ला दीनदयालपुरम की केडीए कालोनी निवासी मेवालाल की बड़ी बेटी थी. बीना के अलावा उस की 2  और बेटियां थीं. बेटियों से छोटा एक बेटा था करन. मेवालाल की पत्नी कुसुम घरेलू महिला थी जबकि वह फेरी लगा कर कपड़े बेचा करता था.

बीना जवान हो चुकी थी. मेवालाल चाहता था कि कोई सही लड़का मिल जाए तो वह उस के हाथ पीले कर दे. थोड़ी खोजबीन के बाद उसे कानपुर देहात के कस्बा मूसानगर निवासी भीखाराम का बड़ा बेटा रामबाबू पसंद आ गया. भीखाराम के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी और कस्बे के मुर्तजा नगर में अपना मकान भी था.

रामबाबू व उस के घर वालों ने जब खूबसूरत बीना को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गई. बीना को देख कर भीखाराम बिना किसी दहेज के बेटे की शादी करने के लिए तैयार हो गया. अंतत: सामाजिक रीतिरिवाज से 10 जून, 2008 को बीना और रामबाबू का विवाह हो गया. इस शादी से रामबाबू भले ही खुश था लेकिन बीना खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि बीना ने जिस तरह पढ़ेलिखे और स्मार्ट पति के सपने संजोए थे, रामबाबू वैसा नहीं था.

बीना ससुराल में हफ्ते भर रही, पर वह पति के साथ भावनात्मक रूप से नहीं बंध सकी. हफ्ते बाद वह मायके आई तो उस का चेहरा उतरा हुआ था. कुसुम ने कारण पूछा तो वह रोआंसी हो कर बोली, ‘‘मां, तुम लोगों ने सिर्फ ये देखा कि वे दहेज नहीं मांग रहे, पर यह नहीं देखा कि लड़का कैसा है.’’

‘‘सब कुछ तो है उन के पास, तुझे किस चीज की कमी है. तुझे तो पता है कि अभी तेरी 2 बहनें और हैं. हमें उन्हें भी ब्याहना है.’’ कुसुम ने अपनी मजबूरी जाहिर की तो बीना चुप हो गई.

मां के इस जवाब के बाद बीना ने हालात से समझौता कर लिया. वह ससुराल में पति के साथ रहने लगी. ससुराल का वातावरण दकियानूसी था. बातबात पर रोकटोक होती थी. पति की कमाई भी सीमित थी, जिस के कारण बीना को अपनी इच्छाएं सीने में ही दफन करनी पड़ती थीं.

वक्त के साथ बीना 2 बच्चों शिवम और शिवानी की मां बन गई. परिवार बढ़ा तो खर्चे भी बढ़ गए. जब बीना को लगा कि रामबाबू की कमाई से घर का खर्च नहीं चल पाएगा तो उस ने पति को कानपुर शहर जा कर नौकरी या कोई काम करने की सलाह दी. पत्नी की यह बात रामबाबू को भी ठीक लगी.

रामबाबू का एक दोस्त था सजीवन, जो कानपुर शहर की योगेंद्र विहार कालोनी में रहता था. वह किसी फैक्ट्री में काम करता था. कहीं काम दिलाने के संबंध में उस ने सजीवन से बात की. सजीवन ने उसे सुझाव दिया कि वह साइकिल मरम्मत का काम शुरू करे. पंक्चर लगाने आदि से उसे अच्छी कमाई होने लगेगी.

रामबाबू को दोस्त की सलाह पसंद आ गई, उस ने खाडे़पुर कालोनी मोड़ पर साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली और योगेंद्र विहार कालोनी में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगा.

रामबाबू का साइकिल रिपेयरिंग का काम अच्छा चलने लगा. पैसा आने लगा तो रामबाबू पत्नी और बच्चों को भी शहर ले आया. शहर आ कर बीना खुश थी. शहर आने के बाद वह बनसंवर कर रहने लगी. बीना ने घर के पास ही स्थित शिशु मंदिर में बच्चों का दाखिला करा दिया. बच्चों को स्कूल भेजने व लाने का काम वह खुद करती थी.

पिंटू नाम का एक युवक रामबाबू की दुकान पर अपनी साइकिल रिपेयर कराने आता था. पिंटू बर्रा 8 में रहता था और नौबस्ता स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करता था. पिंटू की रामबाबू से दोस्ती हो गई. जरूरत पड़ने पर रामबाबू पिंटू से पैसे भी उधार ले लेता था. कभीकभी दोनों साथ बैठ कर शराब भी पी लेते थे. पीनेपिलाने का खर्च पिंटू ही उठता था.

एक दिन पिंटू दुकान पर आया तो रामबाबू बोला, ‘‘पिंटू, आज मेरे बेटे शिवम का जन्मदिन है. मेरी तरफ से आज तुम्हारी दावत है. शाम को फैक्ट्री से सीधे घर आ जाना, भूलना मत.’’

‘‘ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ कहते हुए पिंटू फैक्ट्री चला गया. शाम को पिंटू गिफ्ट ले कर रामबाबू के घर पहुंच गया. रामबाबू उस का ही इंतजार कर रहा था. उस ने पिंटू को गले लगाया फिर पत्नी को आवाज दी, ‘‘बीना, देखो तो कौन आया है.’’

बेटे का जन्मदिन होने की वजह से बीना पहले से ही सजीधजी थी. पति की आवाज सुन कर वह आ गई. वह पिंटू की ओर देख कर बोली, ‘‘मैं ने आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘भाभीजी, जब मैं आप के घर कभी आया ही नहीं तो पहचानेंगी कैसे? मैं रामबाबू भैया का दोस्त हूं, नाम है पिंटू.’’ वह बोला.

पिंटू की बीना से यह पहली मुलाकात थी. पहली ही मुलाकात में बीना पिंटू के दिलोदिमाग पर छा गई. रामबाबू ने पिंटू की खूब खातिरदारी की. उस समय बीना भी मौजूद रही. इस के बाद पिंटू ने ठान लिया कि वह किसी भी तरह बीना को हासिल कर के रहेगा.

वह उसे हासिल करने का प्रयास करने लगा. पिंटू जानता था कि बीना तक पहुंचने का रास्ता रामबाबू ही है. अत: उस ने रामबाबू को शराब का आदी बनाने की सोची. इसी के चलते वह शराब की बोतल ले कर रामबाबू के घर जाने लगा. घर में दोनों बैठ कर शराब पीते फिर खाना खाते. इस बीच पिंटू की निगाहें बीना के जिस्म पर ही गड़ी रहती थीं. शराब के नशे में पिंटू कभीकभी बीना से मजाक व छेड़खानी भी कर लेता था.

बीना जल्द ही पिंटू के आने का मकसद समझ गई थी. वह बीना की आर्थिक मदद भी करने लगा. बच्चों की जरूरत का सामान और खानेपीने की चीजें भी लाने लगा. धीरेधीरे पिंटू ने अपने अहसानों व लच्छेदार बातों से बीना के दिल में जगह बना ली. अब बीना भी पिंटू से खुल कर हंसनेबोलने लगी थी.

एक दिन बीना सजधज कर बाजार के लिए घर से निकलने वाली थी, तभी पिंटू आ गया. वह बीना को एकटक देखता रहा, फिर बोला, ‘‘भाभी बनठन कर किस पर बिजली गिराने जा रही हो?’’

‘‘मक्खनबाजी बंद करो, अभी मुझे कहीं जाना है. बाद में बात करेंगे. ओके…’’ कहते हुए बीना बाजार के लिए चल दी. पिंटू भी वहां से चला गया.

एक दिन बीना का पति रामबाबू मूसानगर गया हुआ था और बच्चे स्कूल. बीना घर के काम निपटाने के बाद बच्चों को स्कूल से लाने की तैयारी कर रही थी, तभी पिंटू आ गया. इस अकेलेपन में पिंटू खुद को रोक नहीं सका और उस ने बीना को अपनी बांहों में भर लिया. बीना ने कसमसा कर हलका प्रतिरोध किया, लेकिन पिंटू की पकड़ मजबूत थी सो वह छूट नहीं सकी.

हकीकत में बीना पिंटू की बांहों में एक अकल्पनीय सुख महसूस कर रही थी. यही वजह थी कि उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. वह भी पिंटू से अमरबेल की तरह लिपट गई. इस के बाद उन्माद के तूफान में उन की सारी मर्यादाएं बह गईं.

उस दिन बीना तो मर्यादा भूल ही गई थी, पिंटू भी भूल गया था कि वह अपने दोस्त की गृहस्थी में आग लगा रहा है. जल्दी ही बीना पिंटू के प्यार में इतनी दीवानी हो गई कि वह पति से ज्यादा प्रेमी का खयाल रखने लगी. पिंटू भी अपनी कमाई बीना पर खर्च करने लगा. बीना जो भी डिमांड करती, पिंटू उसे पूरी करता. रामबाबू उन दोनों के मिलन में बाधक न बने, इसलिए पिंटू रामबाबू को शराब की दावत दे कर उस का विश्वासपात्र दोस्त बना रहता था.

ऐसे रिश्तों को ज्यादा दिनों तक छिपा कर नहीं रखा जा सकता, देरसबेर पोल खुल ही जाती है. जब पिंटू का रामबाबू की अनुपस्थिति में बीना के यहां ज्यादा आनाजाना हो गया तो पड़ोसियों को शक होने लगा. कालोनी में उन के संबंधों को ले कर कानाफूसी शुरू हो गई. किसी तरह बात रामबाबू के कानों तक भी पहुंच गई. रामबाबू अपने दोस्त पिंटू पर अटूट विश्वास करता था, इसलिए उस ने सुनीसुनाई बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. लेकिन उस के मन में शक का कीड़ा जरूर कुलबुलाने लगा.

शक के आधार पर एक रोज रामबाबू ने बीना से पिंटू के बारे में पूछा तो वह तुनक कर बोली, ‘‘पिंटू तुम्हारा दोस्त है. तुम्हीं उसे ले कर घर आए थे. वह आता है तो मैं उस से हंसबोल लेती हूं. पासपड़ोस के लोग जलते हैं, पड़ोसियों की झूठी बातों में आ कर तुम भी मुझ पर शक करने लगे.’’

‘‘मैं शक नहीं कर रहा, केवल पूछ रहा हूं.’’ रामबाबू प्यार से बोला.

‘‘पूछना क्या है, अगर तुम्हें मुझ से ज्यादा पड़ोसियों की बातों पर भरोसा है तो पिंटू को घर आने से मना कर दो. लेकिन सोच लो, पिंटू हमारी मदद भी करता है और तुम्हारी पार्टी भी. तुम्हारी कमाई से मकान का किराया, बच्चों की फीस और घरगृहस्थी का खर्च क्या चल पाएगा?’’

पत्नी की बात पर विश्वास कर रामबाबू शांत हो गया.

एक दिन रामबाबू दुकान पर गया और काम भी किया. लेकिन 2 घंटे बाद उसे लगा कि बदन टूट रहा है और बुखार है. वह दुकान बंद कर के घर पहुंच गया. कमरा अंदर से बंद था. कुंडी खुलवाने के लिए उस ने जंजीर की ओर हाथ बढ़ाया ही था कि तभी उसे कमरे के अंदर से पत्नी के हंसने की आवाज आई. रामबाबू ने अपना हाथ रोक लिया. उस ने दरवाजे की झिर्री से देखा तो दंग रह गया. उस की पत्नी आपत्तिजनक स्थिति में थी.

रामबाबू का खून खौल उठा. लेकिन उस समय वह बोला कुछ नहीं. वह कुछ देर जड़वत खड़ा रहा. फिर खटखटाने पर दरवाजा खुला तो उसे देख कर बीना व पिंटू अपराधबोध से कांपने लगे. दोनों ने रामबाबू से माफी मांगी और भविष्य में ऐसी गलती न दोहराने का वादा किया.

दोनों को माफ करने के अलावा रामबाबू के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं था. पत्नी की बेवफाई से रामबाबू को गहरी ठेस लगी थी. उसे अब अपनी इज्जत बचानी थी, इसलिए उस ने कानपुर शहर छोड़ कर घर जाने का निश्चय कर लिया.

बीना को घर वापस जाने की बात पता चली तो उस ने बच्चों की पढ़ाई का सवाल उठाया. लेकिन रामबाबू मानने को तैयार नहीं हुआ. पत्नी और बच्चों को साथ ले कर वह मूसानगर स्थित अपने घर आ गया. रामबाबू खेतीकिसानी व मजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. उस ने दोनों बच्चों का दाखिला कस्बे के प्राइमरी स्कूल में करा दिया.

बीना के गांव चले जाने के बाद पिंटू परेशान हो उठा. उसे बीना की याद आने लगी. पिंटू से जब नहीं रहा गया तो वह बीना की ससुराल पहुंच गया. वहां रामबाबू ने उसे बेइज्जत किया और बीना से नहीं मिलने दिया. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. पिंटू आता और बेइज्जत हो कर वापस हो जाता.

कुछ महीने ससुराल में रहने के बाद बीना ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल बीना ससुराल में कैदी जैसा जीवन व्यतीत कर रही थी. घर से बाहर निकलने पर पाबंदी थी, जबकि वह स्वतंत्र विचरण करना चाहती थी. साथ ही वह अभावों से भी जूझ रही थी.

एक दिन बीना ने रामबाबू से साफ कह दिया कि वह शहर जा कर खुद कमाएगी और अपना व बच्चों का पालनपोषण करेगी. रामबाबू ने विरोध किया लेकिन वह नहीं मानी. बीना ससुराल छोड़ कर कानपुर शहर चली गई.

नौबस्ता थाने के अंतर्गत धोबिन पुलिया कच्ची बस्ती में किराए पर मकान ले कर वह अकेली ही रहने लगी. उस ने नौकरी के लिए दौड़धूप की तो उसे आवासविकास नौबस्ता स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में नौकरी मिल गई.

नौकरी मिल जाने के बाद बीना अपने दोनों बच्चों को भी साथ रखना चाहती थी. लेकिन रामबाबू ने बच्चों को उस के साथ भेजने से साफ इनकार कर दिया. लेकिन बच्चों के लिए उस का मन तड़पता तो वह जबतब बच्चों से मिलने जाती और उन्हें खर्चा दे कर चली आती. कभीकभी वह बच्चों से मोबाइल पर भी बात कर लेती थी.

पिंटू को जब पता चला कि बीना वापस कानपुर शहर आ गई है तो उस ने फिर से बीना से मिलनाजुलना शुरू कर दिया. पर बीना ने उसे पहले जैसी तवज्जो नहीं दी.

बीना जिस प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करती थी, वहीं पर 25-26 साल का सुनील भी काम करता था. सुनील बीना के घर से कुछ दूरी पर कच्ची बस्ती में ही रहता था. बीना और सुनील हंसमुख स्वभाव के थे, इसलिए दोनों में खूब पटती थी. छुट्टी वाले दिन वह सुनील के साथ घूमने भी जाती थी, सुनील उसे चाहने लगा था.

धीरेधीरे सुनील और बीना नजदीक आते गए और दोनों में नाजायज संबंध बन गए. सुनील सुबह बीना के घर आता. दोनों साथ चायनाश्ता करते और फिर साथसाथ फैक्ट्री चले जाते. शाम को भी सुनील बीना का घर छोड़ देता. कभीकभी वह बीना के घर रुक जाता, फिर रात भर दोनों मौजमस्ती करते.

बीना के सुनील के साथ संबंध बन गए तो उस ने पहले प्रेमी पिंटू को भाव देना बंद कर दिया. अब पिंटू जब भी उस के पास आता तो बीना विरोध करती. वह उसे घर में शराब पीने को भी मना करती.

पिंटू को वह अपने पास फटकने नहीं देती थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि बीना में इतना बड़ा बदलाव कैसे आ गया. उस ने गुप्त रूप से पता किया तो सच्चाई सामने आ गई. उसे पता चल गया कि बीना के सुनील से संबंध बन गए हैं.

सुनील को ले कर बीना और पिंटू में झगड़ा होने लगा. पिंटू बीना पर दबाव डालने लगा कि वह सुनील का साथ छोड़ दे लेकिन बीना इस के लिए तैयार नहीं थी. प्रेमिका की इस बेवफाई से पिंटू परेशान रहने लगा.

10 फरवरी, 2018 को पिंटू रात 8 बजे शराब के ठेके से बोतल खरीद कर बीना के घर पहुंचा तो वहां सुनील मौजूद था. सुनील वहां से चला गया तो पिंटू ने बीना से सुनील के बारे में पूछा. बीना ने उसे सब कुछ सच बता दिया. इस पर पिंटू को गुस्सा आ गया.

पिंटू ने तेज धार वाला चाकू साथ लाया था. उस ने चाकू निकाला और उस की गरदन पर वार कर दिया. बीना जमीन पर गिर गई. उस के बाद पिंटू बीना के सीने पर बैठ गया और यह कहते हुए उस की गरदन रेत दी कि बेवफाई की सजा यही है. बीना की हत्या करने के बाद पिंटू ने शराब पी फिर बाहर से दरवाजे की कुंडी बंद कर फरार हो गया.

11 फरवरी की सुबह सुनील बीना के घर पहुंचा तो दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी. वह कुंडी खोल कर कमरे में गया तो उस के होश उड़ गए. फर्श पर बीना की खून से सनी लाश पड़ी थी. सुनील ने पहले पासपड़ोस के लोगों फिर थाना नौबस्ता पुलिस को सूचना दी.

सूचना पाते ही नौबस्ता थानाप्रभारी अखिलेश जायसवाल पुलिस टीम के साथ आ गए. उन्होंने महिला की हत्या की सूचना अपने अधिकारियों को दे दी. कुछ देर बाद ही एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा, एसपी (साउथ) अशोक कुमार वर्मा वहां पहुंच गए.

मृतका की उम्र 32 वर्ष के आसपास थी. फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर जांच की. पुलिस अधिकारियों ने सूचना देने वाले सुनील तथा मृतका के पति रामबाबू से पूछताछ की. रामबाबू ने पत्नी की हत्या का शक अपने दोस्त पिंटू करिया पर जताया. रामबाबू की तहरीर पर पुलिस ने पिंटू करिया के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया और उस की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी.

शाम करीब 5 बजे नौबस्ता थानाप्रभारी अखिलेश जायसवाल ने मुखबिर की सूचना पर पिंटू करिया को नौबस्ता के दासू कुआं के पास से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने सहज ही अपना जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि बीना ने उस के साथ विश्वासघात किया था. इसी खुन्नस में उस ने उसे मार डाला.

पुलिस ने पिंटू की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. पूछताछ के बाद पुलिस ने 12 फरवरी, 2018 को उसे कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

अवैध संबंधों में हुई थी भाजपा नेता की हत्या

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को दोपहर 12 बजे के करीब थाना फीलखाना से सूचना मिली कि भाजपा के दबंग नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर माहेश्वरी मोहाल में जानलेवा हमला किया गया है. दोनों को मरणासन्न हालत में हैलट अस्पताल ले जाया गया है.

मामला काफी गंभीर था, इसलिए वह एसपी (पूर्वी) अनुराग आर्या को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल पर थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह मौजूद थे. सत्तापक्ष के नेता पर हमला हुआ था, इसलिए मामला बिगड़ सकता था.

इस बात को ध्यान में रख कर एसएसपी साहब ने कई थानों की पुलिस और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुला लिया था. माहेश्वरी मोहाल के कमला टावर चौराहे से थोड़ा आगे संकरी गली में बालाजी मंदिर रोड पर दिनदहाड़े यह हमला किया गया था. सड़क खून से लाल थी. अखिलेश कुमार मीणा ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. इस के बाद फोरैंसिक टीम ने अपना काम किया.

घटनास्थल पर कर्फ्यू जैसा सन्नाटा पसरा हुआ था. दुकानों के शटर गिरे हुए थे, आसपास के लोग घरों में दुबके थे. वहां लोग कितना डरे हुए थे, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि वहां कोई कुछ भी कहने सुनने को तैयार नहीं था. बाहर की कौन कहे, छज्जों पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था. यह 29 नवंबर, 2017 की बात है.

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घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद अखिलेश कुमार मीणा हैलट अस्पताल पहुंचे. वहां कोहराम मचा हुआ था. इस की वजह यह थी कि जिस भाजपा नेता सतीश कश्यप तथा उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय पर हमला हुआ था, डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था. पुलिस अधिकारियों ने लाशों का निरीक्षण किया तो दहल उठे.

मृतक सतीश कश्यप का पूरा शरीर धारदार हथियार से गोदा हुआ था. जबकि ऋषभ पांडेय के शरीर पर मात्र 3 घाव थे. इस सब से यही लगा कि कातिल के सिर पर भाजपा नेता सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन को मारने का जुनून सा सवार था.

अस्पताल में मृतक सतीश कुमार की पत्नी बीना और दोनों बेटियां मौजूद थीं. सभी लाश के पास बैठी रो रही थीं. ऋषभ की मां अर्चना और पिता राकेश पांडेय भी बेटे की लाश से लिपट कर रो रहे थे. वहां का दृश्य बड़ा ही हृदयविदारक था. अखिलेश कुमार मीणा ने मृतकों के घर वालों को धैर्य बंधाते हुए आश्वासन दिया कि कातिलों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक सतीश कश्यप की पत्नी बीना और बेटी आकांक्षा से हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो आकांक्षा ने बताया कि उस के पिता की हत्या शिवपर्वत, उमेश कश्यप और दिनेश कश्यप ने की है. एक महिला से प्रेमसंबंधों को ले कर शिवपर्वत उस के पिता से दुश्मनी रखता था. उस ने 10 दिनों पहले धमकी दी थी कि वह उस के पिता का सिर काट कर पूरे क्षेत्र में घुमाएगा.

मृतक सतीश कश्यप ने इस की शिकायत थाना फीलखाना में की थी, लेकिन पुलिस ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया और एक महिला सपा नेता के कहने पर समझौता करा दिया. अगर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लिया होता और शिवपर्वत पर काररवाई की होती तो आज भाजपा नेता सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय जिंदा होते.

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अखिलेश कुमार मीणा ने मृतक ऋषभ के घर वालों से पूछताछ की तो उस की मां अर्चना पांडेय ने बताया कि उन का बेटा अकसर नेताजी के साथ रहता था. वह उन का विश्वासपात्र था, इसलिए वह जहां भी जाते थे, उसे साथ ले जाते थे. आज भी वह उन के साथ जा रहा था. ऋषभ स्कूटी चला रहा था, जबकि नेताजी पीछे बैठे थे. रास्ते में कातिलों ने हमला कर के दोनों को मार दिया.

मृतक सतीश कश्यप की बेटी आकांक्षा ने जो बताया था, उस से साफ था कि ये हत्याएं प्रेमसंबंध को ले कर की गई थीं. इसलिए एसएसपी साहब ने थानाप्रभारी देवेंद्र सिंह को आदेश दिया कि वह लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर तुरंत रिपोर्ट दर्ज करें और हत्यारों को गिरफ्तार करें.

मृतक सतीश कश्यप के घर वालों ने शिवपर्वत पर हत्या का आरोप लगाया था, इसलिए देवेंद्र सिंह ने सतीश कश्यप के बड़े भाई प्रेम कुमार की ओर से हत्या का मुकदमा शिवपर्वत व 2 अन्य अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर काररवाई शुरू कर दी.

जांच में पता चला कि बंगाली मोहाल का रहने वाला शिवपर्वत नगर निगम में सफाई नायक के पद पर नौकरी करता था. वह दबंग और अपराधी प्रवृत्ति का था. उस के इटावा बाजार निवासी राकेश शर्मा की पत्नी कल्पना शर्मा से अवैधसंबंध थे. इधर कल्पना शर्मा का मिलनाजुलना सतीश कश्यप से भी हो गया था. इस बात की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो वह सतीश कश्यप से दुश्मनी रखने लगा. इसी वजह से उस ने सतीश की हत्या की थी.

शिवपर्वत को गिरफ्तार करने के लिए एसपी अनुराग आर्या ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में उन्होंने थाना फीलखाना के थानाप्रभारी इंसपेक्टर देवेंद्र सिंह, चौकीप्रभारी फूलचंद, एसआई आशुतोष विक्रम सिंह, सिपाही नीरज, गौतम तथा महिला सिपाही रेनू चौधरी को शामिल किया.

शिवपर्वत की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए, लेकिन वह पकड़ा नहीं जा सका. इस के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगाया तो उस की लोकेशन के आधार पर उसे फूलबाग चौराहे से गिरफ्तार कर लिया गया. शिवपर्वत को गिरफ्तार कर थाना फीलखाना लाया गया.

एसपी अनुराग आर्या की मौजूदगी में उस से पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी बहानेबाजी के सीधे सतीश कश्यप और ऋषभ पांडेय की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि उस की प्रेमिका कल्पना शर्मा की बेटी की शादी 30 नवंबर को थी. इस शादी का खर्च वही उठा रहा था, जबकि सतीश कश्यप भी शादी कराने का श्रेय लूटने के लिए पैसे खर्च करने लगे थे. यही बात उसे बुरी लगी थी.

उस ने उन्हें चेतावनी भी दी थी, लेकिन वह नहीं माने. उस की नाराजगी तब और बढ़ गई, जब कल्पना शर्मा ने सतीश कश्यप को भी शादी में निमंत्रण दे दिया. इस के बाद उस ने सतीश कश्यप की हत्या की योजना बनाई और शादी से एक दिन पहले उन की हत्या कर दी. ऋषभ को वह नहीं मारना चाहता था, लेकिन वह सतीश कश्यप को बचाने लगा तो उस पर भी उस ने हमला कर दिया. इस के अलावा वह जिंदा रहता तो उस के खिलाफ गवाही देता.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उस से हथियार, खून सने कपड़े बरामद कराने के लिए कहा तो उस ने फेथफुलगंज स्थित जगमोहन मार्केट के पास के कूड़ादान से चाकू और खून से सने कपडे़ बरामद करा दिए. बयान देते हुए शिवपर्वत रोने लगा तो अनुराग आर्या ने पूछा, ‘‘तुम्हें दोनों की हत्या करने का पश्चाताप हो रहा है क्या?’’

शिवपर्वत ने आंसू पोंछते हुए तुरंत कहा, ‘‘सर, हत्या का मुझे जरा भी अफसोस नहीं है. मैं यह सोच कर परेशान हो रहा हूं कि मेरी प्रेमिका इस बात को ले कर परेशान हो रही होगी कि पुलिस मुझे परेशान कर रही होगी.’’

सतीश कश्यप और ऋषभ की हत्याएं कल्पना शर्मा की वजह से हुई थीं, इसलिए पुलिस को लगा कि कहीं हत्या में कल्पना शर्मा भी तो शामिल नहीं थी. इस बात का पता लगाने के लिए पुलिस टीम ने कल्पना शर्मा के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना से पहले और बाद में शिवपर्वत की उस से बात हुई थी.

इसी आधार पर पुलिस पूछताछ के लिए कल्पना को भी 3 दिसंबर, 2017 को थाने ले आई, जहां पूछताछ में उस ने बताया कि सतीश कश्यप उर्फ छोटे बब्बन की हत्या की योजना में वह भी शामिल थी. इस के बाद देवेंद्र सिंह ने उसे भी साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. शिवपर्वत और कल्पना शर्मा से विस्तार से की गई पूछताछ में भाजपा नेता सतीश कश्यप और उन के सहयोगी ऋषभ पांडेय की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

महानगर कानपुर के थाना फीलखाना का एक मोहल्ला है बंगाली मोहाल. वहां की चावल मंडी में सतीश कश्यप अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी बीना के अलावा 2 बेटियां मीनाक्षी, आकांक्षा और एक बेटा शोभित उर्फ अमन था.

सतीश कश्यप काफी दबंग था. उस की आर्थिक स्थिति भी काफी अच्छी थी, इसलिए वह किसी से भी नहीं डरता था. इस की वजह यह थी कि उस का संबंध बब्बन गैंग के अपराधियों से था. इसीलिए बाद में उसे लोग छोटे बब्बन के नाम से पुकारने लगे थे.

इसी नाम ने सतीश को दहशत का बादशाह बना दिया था.फीलखाना के बंगाली मोहाल, माहेश्वरी मोहाल, राममोहन का हाता और इटावा बाजार में उस की दहशत कायम थी. लोग उस के नाम से खौफ खाते थे. उस पर तमाम मुकदमे दर्ज हो गए. वह हिस्ट्रीशीटर बन गया. 10 सालों तक इलाके में सतीश की बादशाहत कायम रही. लेकिन उस के साथ घटी एक घटना से उस का हृदय परिवर्तित हो गया. उस के बाद उस ने अपराध करने से तौबा कर ली.

दरअसल उस के बेटे का एक्सीडेंट हो गया, जिस में उस की जान बच गई. इसी के बाद से सतीश ने अपराध करने बंद कर दिए. अदालत से भी वह एक के बाद एक मामले में बरी होता गया.

अपराध से किनारा करने के बाद सतीश राजनीति करने लगा. पहले वह बसपा में शामिल हुआ. सपा सत्ता में आई तो वह सपा में चला गया. सपा सत्ता से गई तो वह भाजपा में आ गया. राजनीति की आड़ में वह प्रौपर्टी डीलिंग का धंधा करता था. वह विवादित पुराने मकानों को औने पौने दामों में खरीद लेता था. इस के बाद उस पर नया निर्माण करा कर महंगे दामों में बेचता था. इस में उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

ऋषभ सतीश कश्यप का दाहिना हाथ था. उस के पिता राकेश पांडेय इटावा बाजार में रहते थे. उन के परिवार में पत्नी अर्चना के अलावा बेटा ऋषभ और बेटी रेनू थी. वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करते थे. 8वीं पास कर के ऋषभ सतीश कश्यप के यहां काम करने लगा था.

वह उम्र में छोटा जरूर था, लेकिन काफी होशियार था. सतीश कश्यप का सारा काम वही संभालता था. हालांकि सतीश का बेटा अमन और बेटी आकांक्षा भी पिता के काम में हाथ बंटाते थे, लेकिन ऋषभ भी पूरी जिम्मेदारी से सारे काम करता था. इसलिए सतीश हमेशा उसे अपने साथ रखते थे. एक तरह से वह घर के सदस्य जैसा था.

बंगाली मोहाल में ही शिवपर्वत वाल्मीकि रहता था. उस के परिवार में पत्नी रामदुलारी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह नगर निगम में सफाई नायक था. उसे ठीकठाक वेतन तो मिलता ही था, इस के अलावा वह सफाई कर्मचारियों से उगाही भी करता था. लेकिन वह शराबी और अय्याश था, इसलिए हमेशा परेशान रहता था. उस की नजर हमेशा खूबसूरत महिला सफाईकर्मियों पर रहती थी, जिस की वजह से कई बार उस की पिटाई भी हो चुकी थी.

एक दिन शिवपर्वत इटावा बाजार में बुटीक चलाने वाली कल्पना शर्मा के घर के सामने सफाई करा रहा था, तभी उस की आंख में कीड़ा चला गया. वह आंख मलने लगा और दर्द तथा जलन से तड़पने लगा. उसे परेशान देख कर कल्पना शर्मा ने रूमाल से उस की आंख साफ की और कीड़ा निकाल दिया. कल्पना शर्मा की खूबसूरत अंगुलियों के स्पर्श से शिवपर्वत के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई. वह भी काफी खूबसूरत थी, इसलिए पहली ही नजर में शिवपर्वत उस पर मर मिटा.

इस के बाद शिवपर्वत कल्पना के आगेपीछे घूमने लगा, जिस से वह उस के काफी करीब आ गया. वह उस पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. कल्पना अनुभवी थी. वह समझ गई कि यह उस का दीवाना हो चुका है. कल्पना का पति राजेश कैटरर्स का काम करता था. वह अकसर बाहर ही रहता था. ज्यादातर रातें उस की पति के बिना कटती थीं, इसलिए उस ने शिवपर्वत को खुली छूट दे दी, जिस से दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

नाजायज संबंध बने तो शिवपर्वत अपनी पूरी कमाई कल्पना पर उड़ाने लगा, जिस से उस के अपने घर की आर्थिक स्थिति खराब हो गई. पत्नी और बच्चे भूखों मरने लगे. पत्नी वेतन के संबंध में पूछती तो वह वेतन न मिलने का बहाना कर देता. पर झूठ कब तक चलता. एक दिन रामदुलारी को पति और कल्पना शर्मा के संबंधों का पता चल गया. वह समझ गई कि पति सारी कमाई उसी पर उड़ा रहा है.

औरत कभी भी पति का बंटवारा बरदाश्त नहीं करती तो रामदुलारी ही कैसे बरदाश्त करती. उस ने पति का विरोध भी किया, लेकिन शिवपर्वत नहीं माना. वह उस के साथ मारपीट करने लगा तो आजिज आ कर वह बच्चों को ले कर मायके चली गई. इस के बाद तो शिवपर्वत आजाद हो गया. अब वह कल्पना के यहां ही पड़ा रहने लगा. उस की बेटी उसे पापा कहने लगी.

खूबसूरत और रंगीनमिजाज कल्पना शर्मा की सतीश कश्यप से भी जानपहचान थी. सतीश की उस के पति राजेश से दोस्ती थी. उसी ने कल्पना से उस को मिलाया था. उस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई थी. लेकिन ये संबंध ज्यादा दिनों तक नहीं चल सके. दोनों अलग हो गए थे.

कल्पना शर्मा की बेटी सयानी हुई तो वह उस की शादी के बारे में सोचने लगी. बेटी की शादी धूमधाम से करने के लिए वह मकान का एक हिस्सा बेचना चाहती थी. सतीश कश्यप को जब इस बात का पता चला तो वह कल्पना शर्मा से मिला और उस का मकान खरीद लिया. मकान खरीदने के लिए वह कल्पना शर्मा से मिला तो एक बार फिर दोनों का मिलना जुलना शुरू हो गया. सतीश ने उसे आश्वासन दिया कि वह उस की बेटी की शादी में हर तरह से मदद करेगा.

मदद की चाह में कल्पना शर्मा का झुकाव सतीश की ओर हो गया. अब वह शिवपर्वत की अपेक्षा सतीश को ज्यादा महत्त्व देने लगी. एक म्यान में 2 तलवारें भला कैसे समा सकती हैं? प्रेमिका का झुकाव सतीश की ओर देख कर शिवपर्वत बौखला उठा. उस ने कल्पना शर्मा को आड़े हाथों लिया तो वह साफ मुकर गई. उस ने कहा, ‘‘शिव, तुम्हें किसी ने झूठ बताया है. हमारे और नेताजी के बीच कुछ भी गलत नहीं है.’’

कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी तय कर दी थी. शादी की तारीख भी 30 नवंबर, 2017 रख दी गई. गोकुलधाम धर्मशाला भी बुक कर लिया गया. वह शादी की तैयारियों में जुट गई. शिवपर्वत शादी की तैयारी में हर तरह से मदद कर रहा था. लेकिन जब उसे पता चला कि सतीश कश्यप भी शादी में कल्पना की मदद कर रहा है तो उसे गुस्सा आ गया.

शिवपर्वत ने कल्पना शर्मा को खरीखोटी सुनाते हुए कहा कि अगर सतीश उस की बेटी की शादी में आया तो ठीक नहीं होगा. अगर उस ने उसे निमंत्रण दिया तो अनर्थ हो जाएगा. प्रेमिका को खरीखोटी सुना कर उस ने सतीश को फोन कर के धमकी दी कि अगर उस ने कल्पना से मिलने की कोशिश की तो वह उस का सिर काट कर पूरे इलाके में घुमाएगा. देखेगा वह कितना बड़ा दबंग है.

शिवपर्वत सपा का समर्थक था. सपा के कई नेताओं से उस के संबंध थे. उस के भाई भी सपा के समर्थक थे और उस का साथ दे रहे थे. सतीश ने शिवपर्वत की धमकी की शिकायत पुलिस से कर दी. सीओ कोतवाली ने शिवपर्वत को थाने बुलाया तो वह सपा नेताओं के साथ थाने आ पहुंचा. सपा नेताओं ने विवाद पर लीपापोती कर के समझौता करा दिया.

शिवपर्वत के मना करने के बावजूद कल्पना शर्मा ने बेटी की शादी का निमंत्रण सतीश कश्यप को दे दिया था. जब इस की जानकारी शिवपर्वत को हुई तो उस ने कल्पना शर्मा को आड़ेहाथों लिया. तब कल्पना ने कहा कि सतीश कश्यप दबंग है. उस से डर कर उस ने उसे शादी का निमंत्रण दे दिया है. अगर वह चाहे तो उसे रास्ते से हटा दे. इस में वह उस का साथ देगी.

‘‘ठीक है, अब ऐसा ही होगा. वह शादी में शामिल नहीं हो पाएगा.’’ शिवपर्वत ने कहा.

इस के बाद उस ने शादी के एक दिन पहले सतीश कश्यप की हत्या करने की योजना बन डाली. इस के लिए उस ने फेरी वाले से 70 रुपए में चाकू खरीदा और उस पर धार लगवा ली. 29 नवंबर की सुबह सतीश किसी नेता से मिल कर घर लौटे तो उन्हें किसी ने फोन किया. फोन पर बात करने के बाद वह ऋषभ के साथ स्कूटी से निकल पड़े. पत्नी बीना ने खाने के लिए कहा तो 10 मिनट में लौट कर खाने को कहा और चले गए.

करीब 11 बजे वह बालाजी मंदिर मोड़ पर पहुंचे तो घात लगा कर बैठे शिवपर्वत ने स्कूटी रोकवा कर उन पर हमला कर दिया. सतीश कश्यप सड़क पर ही गिर पड़े. सतीश को बचाने के लिए ऋषभ शिवपर्वत से भिड़ गया तो उस ने उस पर भी चाकू से वार कर दिया. ऋषभ जान बचा कर भागा, लेकिन आगे गली बंद थी. वह जान बचाने के लिए घरों के दरवाजे खटखटाता रहा, लेकिन किसी ने दरवाजा नहीं खोला.

पीछा कर रहे शिवपर्वत ने उसे भी घायल कर दिया. ऋषभ जमीन पर गिर पड़ा. इस पर शिवपर्वत का गुस्सा शांत नहीं हुआ. लौट कर उस ने सड़क पर पड़े तड़प रहे सतीश कश्यप पर चाकू से कई वार किए. एक तरह से उस ने उस के शरीर को गोद दिया. इस के बाद इत्मीनान से चाकू सहित फरार हो गया.

शिवपर्वत ने इस बात की सूचना मोबाइल फोन से कल्पना शर्मा को दे दी थी. इस के बाद रेल बाजार जा कर कपड़ों की दुकान से उस ने एक जींस व शर्ट खरीदी और सामुदायिक शौचालय जा कर खून से सने कपड़े उतार कर नए कपड़े पहन लिए और फिर रेलवे स्टेशन पर जा कर छिप गया.

इस वारदात से इलाके में दहशत फैल गई थी. दुकानदारों ने शटर गिरा दिए थे और गली के लोग घरों में घुस गए थे. लेकिन किसी ने घटना की सूचना पुलिस और सतीश कश्यप के घर वालों को दे दी थी.

खबर पाते ही सतीश कश्यप की पत्नी बीना अपनी दोनों बेटियों मीनाक्षी और आकांक्षा तथा बेटे अमन के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचीं. उन की सूचना पर ऋषभ के पिता राकेश और मां अर्चना भी आ गईं. थाना फीलखाना के प्रभारी देवेंद्र सिंह भी आ गए. उन्होंने घायलों को हैलट अस्पताल भिजवाया और वारदात की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

पूछताछ के बाद थाना फीलखाना पुलिस ने अभियुक्त शिवपर्वत और कल्पना शर्मा को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानतें नहीं हुई थीं. कल्पना शर्मा के जेल जाने से उस की बेटी का रिश्ता टूट गया.

सोचने वाली बात यह है कि शिवपर्वत को मिला क्या? उस ने जो अपराध किया है, उस में उसे उम्रकैद से कम की सजा तो होगी नहीं. उस ने जिस कल्पना के लिए यह अपराध किया, क्या वह उसे मिल पाएगी? उस ने अपनी जिंदगी तो बरबाद की ही, साथ ही कल्पना और उस की बेटी का भी भविष्य खराब कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गेमिंग ऐप्स : निश्चित है हार

जब शरद ने अपने घर से पैसे नहीं मंगाए तो उस के साथियों ने मिल कर उस की पिटाई करनी शुरू कर दी, साथ ही उस की पिटाई का वीडियो भी बनाते रहे.

पहले तो वे उसे ऐसे ही पीटते रहे. जब इस पर भी शरद ने घर से पैसे नहीं मंगाए तो उस के कपड़े उतार कर उस के साथ मारपीट की. फिर उसे स्प्रे फ्लेम से जलाया. यही नहीं, हद तो तब हो गई जब शरद से कहा गया कि वह अपने गुप्तांग में खुद ही ईंट बांध कर उठक बैठक करे. शरद को डर के मारे यह भी करना पड़ा.

शरद के साथ यह सब एकदो दिन नहीं, पूरे 11 दिनों तक होता रहा और वह इन लोगों के सामने रोताबिलखता और गिड़गिड़ाता रहा, पर इन लोगों को उस पर जरा भी दया नहीं आई.

उत्तर प्रदेश के जिला इटावा के थाना लवेदी का रहने वाला 17 साल का शरद (बदला हुआ नाम) 12वीं पास करने के बाद नीट (डाक्टरी की प्रवेश परीक्षा) की तैयारी करने के लिए कानपुर आ गया था. कानपुर के थाना काकादेव के अंतर्गत आने वाली एक कोचिंग में उस ने एडमिशन लिया और वहीं पास ही एक मकान में किराए का कमरा ले कर रहने लगा.

इटावा के और भी तमाम लड़के कानपुर में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे. घर से दूर अकेले रह रहे शरद की ऐसे ही कुछ लड़कों से दोस्ती हो गई.

किसी अन्य शहर में कोई अपने इलाके का मिल जाता है तो वह अपना ही लगने लगता है. वे लड़के शरद से उम्र में बड़े और समझदार थे, इसलिए जब कभी समय मिलता, शरद उन के कमरे पर चला जाता. उन से मिल कर दिमाग पर जो पढ़ाई का बोझ होता था, वह भी थोड़ा हलका हो जाता था और उन से कुछ सीखने को भी मिल जाता था.

21 अप्रैल, 2024 को कोचिंग की छुट्टी थी. शरद पढ़ते पढ़ते ऊब गया था, इसलिए उस ने सोचा कि क्यों न दोस्तों के पास जा कर मूड थोड़ा हलका कर ले. वह काकादेव के पांडुनगर में ही रहने वाले अपने दोस्तों शिवा और केशव के यहां चला गया.

शरद के ये दोनों दोस्त शिवा और केशव भी इटावा के थाना बकेवर के रहने वाले थे. दोनों ही कानपुर के काकादेव पांडुनगर में रह कर एसएससी की तैयारी कर रहे थे. बातचीत में जब शरद ने कहा कि उस के पास पैसे नहीं है तो शिवा और केशव ने कहा, ”तुम औनलाइन गेम क्यों नहीं खेल लेते, तुरंत पैसे मिल जाएंगे.’’

”पहली बात तो यह कि मैं ने कभी औनलाइन कोई गेम खेला नहीं है. फिर हार गया तो जो पैसे हैं, वे भी चले जाएंगे. मैं नहीं खेलता कोई गेमवेम.’’ शरद बोला.

”कोई नहीं हारता. अगर सभी हारते रहते तो अब तक ये सारे गेम कब का बंद हो गए होते. देखते नहीं बड़ेबड़े क्रिकेटर और हीरो इन गेम का प्रचार करते हैं. एक बार खेल कर तो देखो. थोड़े पैसे लगाना. जीत जाना तो आगे खेलना, वरना बंद कर देना.’’ केशव ने कहा.

शरद अभी नासमझ ही तो था. दोस्तों के कहने में आ गया. उस ने एविएटर गेम डाउनलोड किया और खेलना शुरू किया. शुरूशुरू में वह जीता. इस गेम में फाइटर विमान उड़ाना होता है. इस में कई लोग एक साथ खेलते हैं. गेम खेलने वाला खुद अपने साथी चुन सकता है. जिस का विमान सब से पहले क्रैश हो जाता है, वह हार जाता है.

शुरू में शरद भी जीतता रहा. उस ने करीब 50 हजार रुपए जीते, लेकिन जब हारने लगा तो जीते हुए 50 हजार रुपए तो हार ही गया, दोस्तों के भी करीब 20 हजार रुपए हार गया.

इस के बाद दोस्तों ने उस से अपने रुपए मांगने शुरू किए. कुछ दिन तो शरद टालता रहा. पर जब ज्यादा दिन हो गए तो एक दिन उस के दोस्तों शिवा और केशव ने अपने कुछ अन्य दोस्तों तन्मय चौरसिया, संजीव यादव, अभिषेक कुमार वर्मा और योगेश कुमार विश्वकर्मा के साथ मिल कर शरद को पकड़ कर अपने कमरे पर बंधक बना लिया.

इन में तन्मय चौरसिया कानपुर के काकादेव के रानीगंज का रहने वाला था. बीफार्मा की पढ़ाई कर के वह एक कोचिंग संचालक की कार चलाता था. जबकि जौनपुर का रहने वाला संजीव कानपुर के काकादेव में ही रह कर यूपीएससी की तैयारी कर रहा था.

वहीं महोबा के श्रीनगर कोतवाली क्षेत्र का रहने वाला अभिषेक कुमार वर्मा काकादेव के आर.एस. पुरम में रह कर नीट की तैयारी कर रहा था. उसी तरह सिद्धार्थनगर भिटिया का रहने वाला योगेश कुमार विश्वकर्मा भी काकादेव में रह कर नीट की तैयारी कर रहा था.

इन सभी लोगों का पूरा एक ग्रुप था. ये सभी मिल कर अपने से छोटे बच्चों को इसी तरह गेम खिला कर उन से पैसे ऐंठते थे. शिवा और केशव ने शरद को दिए तो थे 20 हजार रुपए, पर ब्याज जोड़ कर उस से 50 हजार रुपए मांग रहे थे. इन सभी का लीडर तन्मय चौरसिया था.

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इन छहों लोगों ने शरद से कहा कि वह अपने घर से पैसे मंगा कर उन के पैसे दे. जब उस ने ऐसा नहीं किया तो उन्होंने शरद को प्रताडि़त कर पिटाई भी की.

इन लोगों ने शरद के साथ जो मारपीट की थी, उस की जो वीडियो बनाई थी, उन वीडियो को वायरल करने की धमकी दे कर उसे प्रताडि़त करते रहे और अपने पैसे मांगते रहे. आखिर 11 दिन बाद यानी 5 मई, 2024 को इन लोगों ने शरद के साथ मारपीट की वीडियो वायरल कर दी.

जब इस बात की जानकारी शरद को हुई तो उसे लगा कि जिस इज्जत को बचाने के लिए उस ने इतनी प्रताडऩा सही, वह तो अब सब खत्म हो गई. तब 5 मई की शाम को शरद ने अपने घर वालों को फोन कर के सारी बात बता दी.

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                                                       गिरफ्तार आरोपी

इस के बाद 6 मई की सुबह थाना काकादेव में शरद के घर वालों ने 6 लोगों— शिवा, केशव, तन्मय, संजीव, योगेश और अभिषेक के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस के पहुंचने से पहले ही ये सभी आरोपी फरार हो गए थे. लेकिन काकादेव पुलिस ने शाम तक सभी को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पूछताछ में सभी अभियुक्तों ने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया था.

शरद का कहना था कि 4 लोगों ने उस के साथ कुकर्म भी किया था. उस की भाभी ने भी मीडिया से बातचीत करते समय यह बात कही थी, पर पुलिस ने कुकर्म की धारा नहीं जोड़ी है. पुलिस ने छहों आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 34, 343, 323, 500, 506, 307, 7/8 पोक्सो ऐक्ट और 67ख आईटी ऐक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया है.

अंत में प्रैस कौन्फ्रेंस के दौरान थाना काकादेव के एसएचओ के.पी. गौड़ ने कहा कि नाबालिग युवक बहुत मजबूत था. मैडिकल में उस के पूरे शरीर पर चोट के निशान मिले. 11 दिनों तक बंधक बना कर उसे बड़ी बेरहमी से मारापीटा गया. लड़का हिम्मत वाला था, वरना मर जाता. उसे इस तरह यातना दी गई थी कि केवल उस की जान जानी बाकी थी.

औनलाइन गेम खेलने के बाद इतनी यातना सहनी होगी, शरद ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा. बहरहाल, उसे यातना देने वाले अब जेल पहुंच गए हैं.

ऐसा ही कुछ रूपेश के साथ भी हुआ था. 6 महीने पहले ही रूपेश का विवाह हुआ था. पत्नी प्रिया एक आईटी कंपनी में नौकरी करती थी. प्रिया की अकसर नाइट शिफ्ट होती थी, इसलिए वह दिन में घर में रहती थी. रूपेश भी एक कंपनी में नौकरी करता था. उस की ड्यूटी दिन की होती थी, इसलिए रात में वह अकेला ही घर में रहता था.

एक दिन उस के मोबाइल पर एक मैसेज आया, जिस में एक गेमिंग एप्लीकेशन का लिंक था. उस ने सोचा कि चलो खेल कर देखते हैं कि इस में क्या होता है. उस गेम का नाम था ‘रमी लोटस’. यह एक स्लाइडिंग गेम था. एक जैसी स्लाइड आती थीं. जीतने पर कुछ रिवाड्र्स मिलते थे. शुरुआत में वह जीतने लगा. उस ने 500 रुपए लगाए तो उसे 700 रुपए मिले. एक हजार रुपए लगाए तो 15 सौ रुपए मिले. इसी तरह लगभग एक सप्ताह चला.

खाते में पैसे आने लगे तो लालच बढ़ता गया. वह अधिक पैसे लगाने लगा. इस में भी वह न जीत की स्थिति में होता था और न हार की स्थिति में यानी वह न जीतता था और न हारता था. इस तरह 12 से 15 दिन बीत गए.

रूपेश को एप्लीकेशन पर विश्वास हो गया तो वह बड़ी रकम लगाने लगा. अचानक वह हारने लगा. हारी गई रकम वापस पाने के लिए वह और अधिक रुपए लगाता गया और वह लगातार हारता रहा. इस तरह उस ने करीब ढाई लाख रुपए गंवा दिए. यह उस की पिछले ढाईतीन साल की बचत थी. वह पैसे वापस पाने के लिए अधिक रुपए लगाता रहा और लगातार हारता रहा.

जब पास का सारा पैसा खत्म हो गया तो उस ने क्रेडिट कार्ड से पैसा निकाला, शेयर मार्केट से पैसा लिया. जब सब जगह से उम्मीदें खत्म हो गईं तो रूपेश को चिंता हुई. जिस यूपीआई से वह पैसे ट्रांसफर करता था, उस ऐप कंपनी के कुछ लोगों के नाम उसे मिले. वे लोग बेंगलुरु, इंदौर और मुंबई के थे. रूपेश ने उन्हें मेल किया, ‘आप लोगों ने गेम को इस तरह सेट किया है कि मेरा सारा पैसा डूब गया.’

उन लोगों ने रूपेश को जवाब भेजा कि ‘आप जीता हुआ पैसा तुरंत वापस कर दीजिए, उस के बाद ही आप द्वारा लगाई गई रकम वापस की जाएगी.’

उन के इस जवाब से रूपेश समझ गया कि उसे एक बार फिर फंसाने की कोशिश की जा रही है. रूपेश ने जवाब दिया, ‘अब मैं कोई रकम लौटा नहीं सकता.’

रूपेश ने थाने जा कर पुलिस से मदद मांगी. पर पुलिस ने मदद करने की कौन कहे, उस की शिकायत तक नहीं दर्ज की. पुलिस का कहना था कि जिस ऐप पर उस ने अपने पैसे गंवाए हैं, वह मान्यता प्राप्त एप्लीकेशन है. वह औनलाइन शिकायत दर्ज कराए तो कुछ हो सकता है.

रूपेश ने औनलाइन शिकायत की. पर कुछ नहीं हुआ. 3 महीने तक वह भागदौड़ करता रहा, काफी परेशान हुआ. लेकिन कहीं से उसे कोई मदद नहीं मिली. अब उस ने अपना पूरा ध्यान अपनी नौकरी पर लगा दिया है.

विवेक भी कैसे हारा पौने 3 करोड़

अब बात करते हैं इंदौर के विवेक की, जिस की कहानी रूपेश से बिलकुल अलग और भयानक है. विवेक ने बीकौम तक की पढ़ाई की थी. पिता की सोनेचांदी के गहनों की दुकान थी. पिता की मौत के बाद वह अपनी पुश्तैनी दुकान संभालने लगा. दुकान का मालिक बनते ही वह औनलाइन गेमिंग ऐप पर सट्टा लगाने लगा. इस में उस का करीब 12 लाख रुपए का नुकसान हुआ.

इस नुकसान की भरपाई के लिए उस ने अधिक पैसा लगाया. इंदौर में उस की एक प्रौपर्टी 2 करोड़ 57 लाख रुपए में बिकी थी. उस ने सारा पैसा औनलाइन गेमिंग में लगा दिया और अंत में वह सारा पैसा हार गया. 10 लाख रुपए उस ने 20 प्रतिशत ब्याज पर उधार लिए. उन्हें भी वह हार गया. उधार न दे पाने की वजह से लोगों ने उस पर ठगी के मुकदमे दर्ज करा दिए.

विवेक की बहन सौफ्टवेयर इंजीनियर थी. पति की मौत के बाद वह यूके चली गई थी. वह वहां से वापस आई तो उसे भाई के बारे में पता चला. उस ने विवेक को रिहैबिलिटेशन सेंटर में भरती कराया. 15 महीने उस का इलाज चला. इलाज के बाद वह सेंटर से बाहर आ गया है और अब उस की स्थिति पहले से काफी ठीक है.

एक भाई ने गंवाए 40 लाख तो दूसरे ने कैसे गंवा दिए 7 करोड़

पिछले साल मुंबई से 28 साल के रोहित को इंदौर के अंकुर रिहैबिलिटेशन सेंटर में लाया गया था. उसे औनलाइन गेमिंग की ऐसी लत लगी थी कि वह 40 लाख रुपए हार गया था. रिहैब सेंटर में उस के रिश्तेदार ले कर आए थे. इलाज के बाद स्थिति में सुधार हुआ. इस साल उस के छोटे भाई को उसी रिहैब सेंटर में लाया गया है.

बड़े भाई की अपेक्षा छोटा भाई औनलाइन गेमिंग में बहुत बुरी तरह फंसा था. उस ने 7 करोड़ रुपए गंवाए थे. इतना पैसा गंवाने के बाद उस ने आत्महत्या की कोशिश की. इन दोनों भाइयों के पिता की मौत हो चुकी है और मां यूएस में रहती हैं. छोटे भाई का इलाज अभी भी रिहैब सेंटर में चल रहा है.

लखनऊ के एक डाक्टर ने ‘द लायन वेबसाइट’ में पैसा लगाया था. यह वेबसाइट क्रिकेट, फुटबाल, टेनिस, पोकर, तीन पत्ती और कैसिनो द्वारा गैंबलिंग कराती है. डाक्टर ने 50 हजार रुपए लगाए और 2 लाख रुपए जीते. जीतने के बाद उन्हें 2 लाख 50 हजार रुपए मिलने थे, पर मिले नहीं.

कंपनी के लोग उन्हें वाट्सऐप चैट पर पैसा देने के लिए अलगअलग तारीखें देते रहे. बाद में उन्हें बताया गया कि उन के नाम से किसी और ने कंपनी से पेमेंट ले लिया है. इस के बाद जवाब देना बंद कर दिया गया.

डाक्टर के पास पेमेंट नंबर और चैट के सारे सबूत हैं, लेकिन अब सारे नंबर बंद हो चुके हैं. इसलिए वह कुछ नहीं कर पा रहे हैं. पुलिस के पास जाने से भी घबराते हैं, क्योंकि पुलिस तो यही कहेगी कि आखिर जुआ खेलने की क्या जरूरत थी.

किस तरह फंसाया जाता है लोगों को

अब आइए यह जानते हैं कि यह औनलाइन सट्टेबाजी होती कैसे है? इस के लिए वेबसाइट भले ही किसी देश में रजिस्टर्ड हो, पर हर देश के हर राज्य में इन की एक टीम होती है, जिसे लौगइन आईडी बनाने का टारगेट दिया जाता है. डाटाबेस कंपनी द्वारा ही दिया जाता है, जिस में देश भर के लोगों के मोबाइल नंबर होते हैं.

टेलीकालिंग के लिए अलग लोग होते हैं. इंस्टाग्राम, फेसबुक और टेलीग्राम ऐप को प्रमोट करने के लिए अलग लोग होते हैं. ग्राहकों को मैसेज और काल द्वारा डायरेक्ट लिंक्स भेजी जाती हैं. क्योंकि इन टीमों का काम केवल लोगों तक लिंक्स पहुंचाना होता है. बाकी ये लोग किसी को फंसाते नहीं, लालच में लोग खुद ही फंसते हैं.

हां, अपने प्रचार के लिए ये लोग फेक काल कर के यह जरूर कहते हैं कि तमाम लोगों को इतने दिनों में इतना लाभ मिला है. इस के बाद कोई भी व्यक्ति एक बार इन का गेम खेल लेता है तो उस की सारी जानकारी कंपनी के पास पहुंच जाती है. फिर कंपनी की ओर से दबाव डाला जाता है कि वह आदमी किसी भी तरह गेम खेले.

इन वेबसाइटों के डोमेन विदेशों में बुक होते हैं. ये सारी वेबसाइटें विदेशी सर्वर पर ही चलती हैं. साथ में ऐसी कोडिंग की जाती है कि एक लिमिट के बाद कंपनी को ही लाभ हो और यूजर हारे.

कंपनी के पास सौफ्टवेयर इंजीनियर्स और डेवलपर्स की टीम होती है. अगर कोई साइट ब्लौक कर दी जाती है तो तुरंत समान नाम वाली दूसरी साइट पर काम शुरू कर दिया जाता है. जिस खाते में पैसा आता है, उस से पैसा निकालने के लिए अलग टीम होती है. कभी भी एक खाते में पैसा नहीं रखा जाता. ये खाते नकली नाम से खुलवाए गए होते हैं.

इधर तमाम लोग इस तरह के ऐप की फ्रेंचाइजी लेने लगे हैं. इस में लाइसैंस मुख्य कंपनी के नाम होता है. बाकी के लोगों को बिजनैस के हिसाब से कमीशन मिलता है. फ्लैट या किसी कमरे से 2-2, 4-4 लोग ऐप चला रहे हैं. इस में किसी बड़े सेटअप की जरूरत नहीं होती.

छत्तीसगढ के महादेव सट्टेबाजी ऐप का खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार ने 122 गैंबलिंग ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया था. लेकिन ऐसे सैकड़ों ऐप अभी भी चल रहे हैं. इस के अलावा गेम के नाम पर तमाम गैंबलिंग वाली वेबसाइटें भी बड़ी संख्या में चल रही हैं.

गेमिंग ऐप कैसे करते हैं काम

पहले लोगों को अधिक से अधिक पैसा कमाने का लालच दिया जाता है. इस के लिए फेसबुक, टेलीग्राम और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म का उपयोग किया जाता है. सेलेब्स द्वारा प्रमोशन किया जाता है. यूजर केवल वाट्सऐप नंबर पर ही संपर्क कर सकता है. संपर्क करने पर उसे 2 नंबर दिए जाते हैं. इस में एक नंबर पैसा जमा कराने के लिए होता है. दूसरा नंबर यूजर आईडी का होता है, जिस के द्वारा बेटिंग की जाती है.

यूपीआई द्वारा प्रौक्सी बैंक खाते में पेमेंट लिया जाता है. प्रौक्सी खाते में आने वाली रकम हवाला, क्रिप्टो और अन्य गैरकानूनी तरीके से ट्रांसफर की जाती है. भारतीय बैंक के खातों से जुड़े पेमेंट प्रौक्सी को बदल देते हैं. इसलिए जिस रास्ते से ट्रांजेक्शन होता है, उसे जाना नहीं जा सकता. रास्ता कहीं और दिखाता है और पेमेंट कहीं और होता है.

इस तरह की ज्यादातर वेबसाइटें साइप्रस, माल्टा, कुराकाओ, मोरेशियस और केमेन आइलैंड जैसे देशों में रजिस्टर्ड हैं, क्योंकि यहां सट्टेबाजी कानूनी है.

गैंबलिंग औफर करने वाली वेबसाइटों के डोमेन विदेशों में बुक होते हैं. इन के सर्वर भी वहीं होते हैं. क्योंकि इन देशों में जुआ कानूनी है और टैक्स भी कम है. वहां बैठ कर भारत में गैंबलिंग कराई जाती है. जांच से पता चला है कि गेमिंग के नाम पर सट्टेबाजी कराने वाले ज्यादातर मोबाइल ऐप्स महादेव बेटिंग, महादेव बुक या रेड्डी अन्ना बुक के नाम दर्ज हैं.

इस पूरी सांठगांठ के पीछे सब से बड़ा खिलाड़ी महादेव है. इस ग्रुप के पास विविध नामों से 5 हजार से अधिक वेबसाइटें हैं. पता चला है कि ज्यादातर वेबसाइटें महादेव बुक के लाइसैंस पर चल रही हैं. महादेव ने कुराकाओ से लाइसैंस लिया है. ज्यादातर कंपनियों ने इस लाइसैंस के साथ ओरिजोना में रजिस्टर्ड कराया है.

टेक एक्सपर्ट के अनुसार अगर औनलाइन जुए को स्किल बेस्ड गेम माना जाता है तो ऐप एल्गोरिदम पूरे गेम को कंट्रोल करता है. यह इस तरह सिंक्रनाइज होता है कि कंपनी खिलाडिय़ों की अपेक्षा अधिक फायदा करती है. अगर इसे कौशल्य खेल के रूप में वर्गीकृत किया जाए तो इस में विश्लेषण के आंकड़े और डाटा अध्ययन का समावेश होना चाहिए. अनुमान पर आधारित निर्णय को कौशल्य नहीं माना जा सकता.

अभिनेता क्यों कर रहे हैं ऐप का प्रचार

क्रिकेटबेट9 यह क्रिकेटबज की मिरर वेबसाइट है. क्रिकेटबज पर प्रतिबंध लगा दिया गया तो इस के संचालकों ने क्रिकेटबेट9 वेबसाइट शुरू कर दी. इसे मुख्यत: औपरेट चंडीगढ़ से किया जा रहा है. इन के पास भी महादेव बुक का लाइसैंस है.

महादेव बुक ने खुद अनेक वेबसाइटों को अपने नाम का लाइसैंस दिया है. इस ने भारत में नहीं, कुराकाओ में रजिस्ट्रेशन कराया है. इसलिए ठगी करने के बाद भी कंपनियां बच जाती हैं. इस तरह की कंपनियां 150 से 2 सौ तक वेबसाइटें लांच करती हैं. एक पर प्रतिबंध लगने के बाद दूसरी में शिफ्ट हो जाती हैं. इसे एक्सचेंज कहा जाता है.

ये ऐप्स अपनी इस तरह ब्रांडिंग करते हैं जैसे वे गेम खेला रहे हैं. जबकि ये सब सट्टेबाजी होती है. हर व्यक्ति ऐप पर बेटिंग करता है. ये ऐप्स अल्गोरिदम्स द्वारा नियंत्रित होते हैं. शुरुआत में जीतते हैं, जिस से यूजर्स आदी हो जाता है, बाद में उसे लूट लिया जाता है.

अल्गोरिदम मशीन लर्निंग पर चलती है. उसे जिस तरह कंप्यूटर में फीड किया जाएगा, वह उसी तरह काम करेगा. वह इस तरह डिजाइन किया जाता है कि कंपनी का फायदा हो और यूजर्स हारें. ये ऐप्स ह्यूमन इंटरफेस से गुजरते हैं. इस पर हमेशा नजर रखी जाती है.

कितना बड़ा है गेमिंग ऐप का बाजार?

पिछले कुछ सालों में भारत में फैंटेसी ऐप की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. लाखों यूजर्स ड्रीम11, माई सर्कल11, एमपीएल जैसे प्लेटफार्म पर पहुंच रहे हैं. इंडियन प्रीमियर लीग यानी कि आईपीएल के 16वें सीजन में फैंटेसी गेमिंग ऐप शिखर की विज्ञापन की थी. टीएएम मीडिया रिसर्च के एडवरटाइजिंग के अनुसार इन का हिस्सा पिछले आईपीएल की अपेक्षा 15 प्रतिशत से बढ़ कर 18 प्रतिशत हो गया है.

सौरव गांगुली, कपिल शर्मा, हरभजन सिंह, विराट कोहली, शुभमन गिल, हार्दिक पांडया, आमिर खान, आर. माधवन, शरमन जोशी इन गेमिंग ऐप्स का प्रचार करते हैं. कंसल्टेंसी रेडसकर की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 की अपेक्षा 2023 में फैंटेसी गेमिंग प्लेटफार्म की आमदनी में 24 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. यह अब 341 मिलियन डालर अथवा 28 सौ करोड़ हो गया है. इस दौरान 6 करोड़ यूजर्स ने फैंटेसी गेमिंग प्रवृत्तियों में भाग लिया, जिस में 66 प्रतिशत लोग छोटे शहरों से आते हैं.

ये गेमिंग ऐप्स यूजर्स से एंट्री फीस वसूल करते हैं. इन की टीम अंडर परफार्म करेगी तो पैसा खोने का डर है. ड्रीम11 भारत का सब से बड़ा फैंटेसी स्पोट्र्स प्लेटफार्म है. इस के 20 करोड़ रजिस्टर्ड यूजर्स हैं. एमपीएल9 करोड़ और माई सर्कल11 अपने पास 4 करोड़ यूजर्स होने का दावा करता है.

गेमिंग ऐप द्वारा जुए को क्यों नहीं रोका जा सकता

भारत में फैंटेसी गेमिंग ऐप को नियंत्रित करने के लिए पब्लिक गैंबलिंग अधिनियम 1867 का उपयोग होता है. यह अधिनियम देश में तमाम तरह के गैंबलिंग को प्रतिबंधित करता है. जबकि इन कौशल्य वाले खेलों को नहीं रोकता. इन के विज्ञापन भ्रम में डालने वाले होते हैं. जिन में ज्यादा से ज्यादा पैसा जीतते हुए दिखाया जाता है. जबकि सच्चाई यह है कि ज्यादातर खिलाड़ी बहुत छोटा एमाउंट जीतते हैं.

मनोचिकित्सकों के अनुसार हमारे दिमाग में एक रिवार्ड सेंटर है. वहां से हमें आनंद मिलता है, अच्छा लगता है. यह फूड, सैक्स और सिद्धियों से क्रिएट होता है. औनलाइन सट्टेबाजी में शुरुआत में लोग जीतते हैं, जिस से उन्हें अच्छा लगता है. यह एक तरह की बीमारी है, जिसे मनोचिकित्सा में पैथोलौजिकल गैंबलिंग कहा जाता है.

इस में रोगी कुछ सोचेविचारे बिना काम करने लगता है. शुरू में वह कमाई करने के लिए खेलता है. पर औनलाइन गेम इस तरह प्रोग्राम किया जाता है कि वह खेलने वाले को औड और इवन क्रम में जिताता और हराता है. अंत में यूजर हार जाता है. दिमाग के अंदर एक रिवार्डिंग कैमिकल डोपामाइन होता है. एक बार रिवार्ड मिलने पर बारबार रिवार्ड प्रयास करते हैं. पैसे हार जाने के बाद शरम लगती है. जिस की भरपाई करने के लिए खेलने वाला अधिक पैसे लगाता है.

दरअसल, सट्टा तो पहले भी लोग खेलते थे. पर पहले लोग हिसाब रखते थे. औनलाइन गेमिंग ने ऐसी स्थिति खड़ी कर दी है कि युवा किसी भी तरह का हिसाब रखे बिना पैसा लगाते हैं.

छत्तीसगढ़ में महादेव सट्टेबाजी ऐप का खुलासा होने के बाद केंद्र सरकार के इलेक्ट्रौनिक्स और इनफौर्मेशन मंत्रालय ने 122 गैरकानूनी सट्टेबाजी ऐप्स को प्रतिबंधित कर दिया है. महादेव ऐप पर तरहतरह के गेम खेलाए जाते थे. जिस में कार्ड गेम, चांस गेम, क्रिकेट, बैडमिंटन, टेनिस, फुटबाल शामिल थे. इस के द्वारा यूजर आईडी बना कर सट्टेबाजी की जाती थी. मनी लौंड्रिंग होती थी और पैसा बेनामी खाते में जाता था.

ईडी ने भी कहा है कि महादेव ऐप के प्रमोटर ने यूएई से 508 करोड़ रुपए कुरिअर द्वारा छत्तीसगढ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को दिए थे. इस के पहले मार्च, 2023 में आईटी मंत्रालय ने 138 सट्टेबाजी और जुए के ऐप पर प्रतिबंध लगाया था.

केंद्र सरकार ने इन सट्टेबाजी ऐप्स पर भले ही प्रतिबंध लगा दिया है, पर अभी भी सट्टेबाजी के अनेक ऐप्स चल रहे हैं. यह उसी पैटर्न पर काम कर रहे हैं, जिस तरह महादेव बेटिंग ऐप काम करता था.

नोट: कहानी में कुछ पात्रों के नाम बदल दिए गए हैं.