फोन बना दोधारी तलवार

पूनम का मूड सुबह से ही ठीक नहीं था. बच्चों को स्कूल भेजने का भी उस का मन नहीं हो रहा था. पर बच्चों को स्कूल भेजना जरूरी था, इसलिए किसी तरह उस ने बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज दिया. पूनम के चेहरे पर एक अजीब सा खौफ था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी परेशानी किस से कहे. वह सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गई.

पूनम का मूड खराब देख कर उस के पति विनय ने हंसते हुए पूछा, ‘‘डार्लिंग, तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. आखिर बात क्या है?’’

पूनम ने पलकें उठा कर पति को देखा. फिर उस की आंखों से आंसू बहने लगे. वह फूट फूट कर इस तरह रोने लगी, जैसे गहरे सदमे में हो.

विनय ने करीब आ कर उसे सीने से लगा लिया और उस के आंसुओं को पोंछते हुए कहा, ‘‘क्या हुआ पूनम, तुम मुझ से नाराज हो क्या? क्या तुम्हें मेरी कोई बात बुरी लग गई?’’

‘‘नहीं,’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

‘‘तो फिर क्या बात है, जो तुम इस तरह रो रही हो?’’ विनय ने हमदर्दी दिखाई.

पति का प्यार मिलते ही पूनम ने मोबाइल की ओर इशारा कर के सुबकते हुए बोली, ‘‘मेरी परेशानी का कारण यह मोबाइल है.’’

विनय ने हैरत से एक नजर मेज पर रखे मोबाइल फोन पर डाली, उस के बाद पत्नी से मुखातिब हुआ, ‘‘मैं समझा नहीं, इस मोबाइल से तुम्हारी परेशानी का क्या संबंध है? साफसाफ बताओ, तुम कहना क्या चाहती हो?’’

पूनम मेज से मोबाइल उठा कर पति के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘आप खुद ही देख लो. इस के मैसेज बौक्स में क्या लिखा है?’’

विनय की उत्सुकता बढ़ गई. उस ने फटाफट फोन के मैसेज का इनबौक्स खोल कर देखा. जैसे ही उस ने मैसेज पढ़ा, उस के चेहरे पर एक साथ कई रंग आए गए.

मैसेज में लिखा था, ‘मेरी जान, तुम ने मुझे अपने रूप का दीवाना बना दिया है. मैं ने जब से तुम्हें देखा है, चैन से जी नहीं पा रहा हूं. मैं तुम्हें जब भी विनय के साथ देखता हूं, मेरा खून खौल जाता है. आखिर तुम उस के साथ जिंदगी कैसे गुजार रही हो. मैं ने जिस दिन से तुम्हें देखा है, मेरी आंखों से नींद उड़ चुकी है.’

मैसेज पढ़ कर विनय को गुस्सा आ गया. फोन को मेज पर रख कर उस ने पत्नी से कहा, ‘‘ये सब क्या है?’’

‘‘मैं कुछ नहीं जानती.’’ पूनम दबी जुबान से बोली.

विनय कुछ देर सोचता रहा, फिर उस ने पत्नी की आंखें में झांका. उसे लगा कि पत्नी सच बोल रही है, क्योंकि अगर वह उस के साथ गेम खेल रही होती तो इस तरह परेशानी और रुआंसी नहीं होती. उसे लगा कि वाकई कोई उस की पत्नी को परेशान कर रहा है.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कल्याणपुर थाने का एक मोहल्ला है शारदानगर. इसी मोहल्ले के इंद्रपुरी में विनय झा अपने परिवार के साथ रहता था. उस का अपना आलीशान मकान था, जिस में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उस का हौजरी का व्यवसाय था. इस से उसे अच्छीखासी आमदनी होती थी, जिस से उस की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी.

विनय झा इस से पहले अपने भाइयों के साथ दर्शनपुरवा में रहता था. वहां उस का अपना छोटा सा कारखाना था. उस का परिवार काफी दबंग किस्म का था. दबंगई से ही इन लोगों ने पैसा कमाया और फिर उसी पैसे से हौजरी का काम शुरू किया. व्यवसाय अच्छा चलने लगा तो विनय ने इंद्रपुरी में मकान बनवा लिया.

पूनम से विनय की शादी कुछ साल पहले हुई थी. पूनम बेहद खूबसूरत थी. पहली ही नजर में विनय उस का दीवाना हो गया था. उस की दीवानगी पूनम को भी भा गई. दोनों की पसंद के बाद उन की शादी हो गई. दोनों ही अपने गृहस्थ जीवन में खुश थे. 8 साल के अंतराल में पूनम 2 बच्चों की मां बन गई.

ससुराल में सभी भौतिक सुखसुविधाएं थीं. उसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी. पति भी चाहने वाला मिला था. सब कुछ ठीक चल रहा था कि अचानक पूनम को अश्लील मैसेज तथा प्रेमप्रदर्शन वाले फोन आने लगे. पूनम पति का गुस्सा जानती थी, अत: पहले तो उस ने पति को कुछ नहीं बताया, पर जब अति हो गई तो मजबूरी में बताना पड़ा.

विनय झा ने जब पत्नी के फोन में आए हुए मैसेज पढ़े तो उस की आंखों में खून उतर आया. जिस फोन नंबर से मैसेज आए थे, विनय ने उस नंबर पर काल की तो फोन रिसीव नहीं किया गया. इस पर विनय गुस्से में बड़बड़ाया, ‘‘कमीने…तू एक बार सामने आ जा. अगर तुझे जिंदा दफन न कर दिया तो मेरा नाम विनय नहीं.’’

गुस्से में कांपते विनय ने पूनम से पूछा, ‘‘क्या वह तुम्हें फोन भी करता है?’’

‘‘हां,’’ पूनम ने सिर हिलाया.

‘‘क्या कहता है?’’

‘‘नाजायज संबंध बनाने को कहता है. अब कैसे बताऊं आप को, इस ने तो मेरी जान ही सुखा दी है. लो, आप दूसरे मैसेज भी पढ़ लो. इन से पता चल जाएगा कि उस की मानसिकता क्या है.’’

‘‘अच्छा, यह बताओ कि वह तुम्हें फोन कब करता है या मैसेज कब भेजता है?’’ विनय ने पूछा.

‘‘जब आप घर पर नहीं होते, तभी उस के फोन आते हैं. जब आप घर पर होते हो तो न फोन आता है न मैसेज.’’ वह बोली.

‘‘इस का मतलब यह हुआ कि वह मुझ पर निगाह रखता है. उसे मेरे घर जानेआने का वक्त भी मालूम है.’’ कहते हुए विनय ने मैसेज बौक्स खोल कर दूसरे मैसेज भी पढ़े. एक मैसेज तो बहुत जुनूनी था, ‘‘तुम मुझ से क्यों नहीं मिलतीं? रात को सपने में तो खूब आती हो. अपने गोरे बदन को मेरे बदन से सटा कर प्यार करती हो. आह जान, तुम कितनी प्यारी हो. एक बार मुझ से साक्षात मिल कर मेरी जन्मों की… नहीं तो समझ लेना मैं तुम्हारी चौखट पर आ कर जान दे दूंगा. अभी तो मैं इसलिए चुप हूं कि तुम्हें रुसवा नहीं करना चाहता.’’

मैसेज पढ़ कर विनय की मुट्ठियां भिंच गईं, ‘‘कमीने, तेरी प्यास तो मैं बुझाऊंगा. तू जान क्या देगा, मैं ही तेरी जान ले लूंगा.’’

पति का रूप देख कर पूनम का कलेजा कांप उठा. उसे लगा कि उस ने पति को बता कर कहीं गलती तो नहीं कर दी. विनय ने डरीसहमी पत्नी को मोबाइल देते हुए समझाया, ‘‘अब जब उस का फोन आए तो उस से बात करना. मीठीमीठी बातें कर के उस का नाम व पता हासिल कर लेना. इस के बाद मैं उस के सिर से प्यार का भूत उतार दूंगा.’’

पति की बात पर सहमति जताते हुए पूनम ने हामी भर दी.

एक दिन विनय जैसे ही घर से निकला, पूनम के मोबाइल पर उस का फोन आ गया. पूनम के हैलो कहते ही वह बोला, ‘‘पूनम, तुम मुझे भूल गई, लेकिन मैं तुम्हें नहीं भूला और न भूलूंगा. याद है, हम दोनों की पहली मुलाकात कब और कहां हुई थी?’’

पूनम अपने दिमाग पर जोर डाल कर कुछ याद करने की कोशिश करने लगी. तभी उस ने कहा, ‘‘2 साल पहले, जब मैं तुम्हारे घर फर्नीचर बनाने आया था. याद है, उस समय मैं तुम्हारे इर्दगिर्द रहा करता था. तुम्हारी खूबसूरती को निहारता रहता था. तुम इतराती इठलाती होंठों पर मुसकान बिखेरती इधर से उधर निकल जाती थी और मैं तड़पता रह जाता था.’’

‘‘अच्छा, तब से तुम मेरे दीवाने हो. पागल, तब प्यार का इजहार क्यों नहीं किया? अच्छा, तुम्हारा नाम मुझे याद नहीं आ रहा, अपने बारे में थोड़ा बताओ न.’’ पूनम खिलखिला कर हंसी.

‘‘हाय मेरी जान, तुम हंसती हो तो मेरे दिल में घंटियां सी बज उठती हैं. सो स्वीट यू आर.’’ उधर से रोमांटिक स्वर में कहा गया, ‘‘मैं तुम्हारा दीवाना विजय यादव बोल रहा हूं.’’

विजय यादव का नाम सुनते ही पूनम चौंकी. अब उसे उस की शक्लसूरत भी याद आ गई. इस के बाद पूनम ने उसे समझाया, ‘‘देखो विजय, अब बहुत हो गया. मैं किसी की पत्नी हूं, तुम्हें ऐसे मैसेज भेजते हुए शर्म आनी चाहिए. मैं कह देती हूं कि आइंदा मुझे न फोन करना और न मैसेज करना, वरना अंजाम अच्छा नहीं होगा.’’

पूनम ने फोन काटा ही था कि उस का पति विनय आ गया. उस ने पूछा, ‘‘किस का फोन था?’’

‘‘उसी का जो फोन करता है और अश्लील मैसेज भेजता है. आज मैं ने जान लिया कि वह कौन है.’’ पूनम ने विनय को बताया, ‘‘विजय यादव जो अपने यहां फर्नीचर बनाने आया था, वही यह सब कर रहा है. वैसे मैं ने उसे ठीक से समझा दिया है, शायद अब वह ऐसी हरकत न करे.’’

विजय यादव उर्फ   के पिता रामकरन यादव रावतपुर क्षेत्र के केशवनगर में रहते थे. रामकरन फील्डगन फैक्ट्री में काम करते थे. उन के 3 बेटों में इंद्रबहादुर मंझला था. वह बजरंग दल का नेता था और प्रौपर्टी तथा फर्नीचर का व्यवसाय करता था. ब्रह्मदेव चौराहा पर उस की फर्नीचर की दुकान थी. दुकान पर करीब आधा दर्जन से ज्यादा कारीगर काम करते थे.

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इंद्रबहादुर आर्थिक रूप से संपन्न होने के साथ दबंग भी था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटियां थीं. वह बजरंग दल का जिला संयोजक था. उस की एक बड़ी खराब आदत थी उस का अय्याश होना. घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद वह इधर धर मुंह मारता रहता था.

करीब 2 साल पहले इंद्रबहादुर इंद्रपुरी में  विनय झा के घर फर्नीचर बनाने आया था. उस समय जब उस ने खूबसूरत पूनम को देखा तो वह उस पर मर मिटा. उस ने उसी समय उसे अपने दिल में बसा लिया. उस के बाद वह किसी न किसी बहाने उस के आगे पीछे मंडराने लगा. किसी बहाने से उस ने पूनम का फोन नंबर ले लिया. फिर वह उसे फोन करने लगा और अश्लील मैसेज भेजने लगा.

पूनम के समझाने के बाद वाकई कुछ दिनों तक इंद्रबहादुर ने उसे न तो फोन किया और न ही मैसेज भेजे. इस से पूनम को तसल्ली हुई. पर 15-20 दिनों बाद उस की यह खुशी परेशानी में बदल गई. वह फिर से उसे फोन करने लगा.

एक रोज तो विजय ने हद कर दी. उस ने फोन पर पूनम से कहा कि अब उस से रहा नहीं जाता. उस की तड़प बढ़ती जा रही है. वह उस से मिल कर अपने अरमान पूरे करना चाहता है. गुरुदेव चौराहा आ कर मिलो. उस ने यह भी कहा कि अगर वह नहीं आई तो वह खुद उस के घर आ जाएगा.

इंद्रबहादुर की धमकी से पूनम डर गई. वह नहीं चाहती थी कि वह उस के घर आए. क्योंकि वह पति व परिवार के अन्य सदस्यों की निगाहों में गिरना नहीं चाहती थी. इसलिए वह उस से मिलने गुरुदेव चौराहे पर पहुंच गई. वहां वह उस का इंतजार कर रहा था. पूनम ने उस से घरपरिवार की इज्जत की भीख मांगी, लेकिन वह नहीं पसीजा. वह एकांत में मिलने का दबाव बनाता रहा.

इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. इंद्रबहादुर जब बुलाता, पूनम डर के मारे उस से मिलने पहुंच जाती. इस मुलाकात की पति व परिवार के किसी अन्य सदस्य को भनक तक न लगती. एक दिन तो इंद्रबहादुर ने पूनम को जहरीला पदार्थ देते हुए कहा, ‘‘मेरी जान, तुम इसे अपने पति को खाने की किसी चीज में मिला कर खिला देना. कांटा निकल जाने पर हम दोनों मौज से रहेंगे.’’

पूनम जहरीला पदार्थ ले कर घर आ गई. उस ने उस जहर को पति को तो नहीं दिया, लेकिन खुद उस का कुछ अंश दूध में मिला कर पी गई. जहर ने असर दिखाना शुरू किया तो वह तड़पने लगी. विनय उसे तुरंत अस्पताल ले गया, जिस से पूनम की जान बच गई. विनय ने पूनम से जहर खाने की बाबत पूछा तो उस ने सारी सच्चाई बता दी.

इस के बाद पूनम को ले कर इंद्रबहादुर और विनय में झगड़ा होने लगा. दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे. इसी झगड़े में एक दिन आमनासामना होने पर इंद्रबहादुर ने छपेड़ा पुलिया पर विनय के पैर में गोली मार दी. विनय जख्मी हो कर गिर पड़ा. उसे अस्पताल ले जाया गया. वहां किसी तरह विनय की जान बच गई.

विनय ने थाना कल्याणपुर में इंद्रबहादुर के खिलाफ भादंवि की धारा 307 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. विनय ने घटना के पीछे की असली बात को छिपा लिया. उस ने लेनदेन तथा महिला कर्मचारी को छेड़ने का मामला बताया. पुलिस ने भी अपनी विवेचना में पूनम का जिक्र नहीं किया. पुलिस ने इंद्रबहादुर को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

लगभग 10 महीने तक इंद्रबहादुर जेल में रहा. इस के बाद 9 अक्तूबर, 2017 को वह कानपुर जेल से जमानत पर रिहा हुआ. जेल से बाहर आने के बाद वह फिर पूनम से मिलने की कोशिश करने लगा. लेकिन इस बार पूनम की ससुराल वाले सतर्क थे. उन्होंने पूनम का मोबाइल फोन बंद करा दिया था और घर पर कड़ी निगरानी रख रहे थे.

काफी मशक्कत के बाद भी जब वह पूनम तक नहीं पहुंच पाया, तब उस ने एक षडयंत्र रचा. षडयंत्र के तहत उस ने एक लड़की को सेल्सगर्ल बना कर विनय के घर भेजा और उस के जरिए पूनम को अपने नाम से लिया गया सिमकार्ड और मोबाइल फोन भिजवा दिया. पूनम के पास फोन पहुंचा तो विजय एक बार फिर पूनम के संपर्क में आ गया.

अब वह दिन में कईकई बार पूनम को फोन करने लगा. दोनों के बीच घंटों बातचीत होने लगी. बातचीत में विजय पूनम से एकांत में मिलने की बात कहता था. पूनम ने उसे उस की शादीशुदा जिंदगी और परिवार की इज्जत का हवाला दिया तो वह पूनम को बरगलाने की कोशिश करने लगा.

उस ने पूनम को समझाया कि वह अपने पति विनय की कार में चरस, स्मैक और तमंचा रख दे. यह सब चीजें वह उसे मुहैया करा देगा. इस के बाद वह पुलिस को फोन कर के विनय को पकड़वा देगा. विनय के जेल जाने के बाद दोनों आराम से साथ रहेंगे.

पूनम ने इंद्रबहादुर द्वारा फोन देने तथा बातचीत करने की जानकारी पति विनय को नहीं दी थी. दरअसल पूनम डर रही थी कि पति को बताने से वह भड़क जाएगा और उस से झगड़ा करेगा. इस झगड़े और मारपीट में कहीं उस के पति की जान न चली जाए. क्योंकि इंद्रबहादुर गोली मार कर विनय को पहले भी ट्रेलर दिखा चुका है.

इधर पति का साथ छोड़ने और अवैध संबंध बनाने की बात जब पूनम ने नहीं मानी तो इंद्रबहादुर ने एक और षडयंत्र रचा. उस ने पूनम को बदनाम करने के लिए रिचा झा और राधे झा नाम की फरजी आईडी से फेसबुक एकाउंट बना लिया. इस के बाद इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव ने पूनम के साथ अपनी अश्लील फोटो फेसबुक पर अपलोड कर इस की जानकारी उस के पति विनय, परिवार के अन्य लोगों तथा रिश्तेदारों को दे दी, ताकि वह बदनाम हो जाए.

विनय झा ने जब पूनम के साथ इंद्रबहादुर की अश्लील फोटो फेसबुक पर देखी तो उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पूनम से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी सच्चाई विनय को बता दी.

सच्चाई जानने के बाद विनय ने इस गंभीर समस्या पर अपने बड़े भाई विनोद झा और भतीजे सत्यम उर्फ विक्की से बात की. विनोद व सत्यम भी फेसबुक पर पूनम अश्लील फोटो देख चुके थे. वे दोनों भी इस समस्या का निदान चाहते थे. गहन मंथन के बाद पूनम, विनय, विनोद तथा सत्यम उर्फ विक्की ने इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव की हत्या की योजना बनाई. हत्या की योजना में विनय ने अपने मामा के साले के लड़के अनुपम को भी शामिल कर लिया.

अनुपम गाजियाबाद का रहने वाला था. उस का आपराधिक रिकौर्ड था. वह पूर्वांचल के एक बड़े माफिया के संपर्क में भी रहा था. इस के बाद अनुपम ने पूनम, विनय, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की के साथ विजय की हत्या की अंतिम रूपरेखा तैयार की और हत्या के लिए एक चापड़ खरीद कर रख लिया. इस के बाद अनुपम वापस गाजियाबाद चला गया.

24 सितंबर, 2017 को अनुपम अपने एक अन्य साथी के साथ कानपुर आया और विनय झा के घर पर रुका. उस ने इंद्रबहादुर की हत्या के संबंध में एक बार फिर पूनम, विनोद व सत्यम उर्फ विक्की से विचारविमर्श किया. इस के बाद वह उन के साथ वह जगह देखने गया, जहां इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव को षडयंत्र के तहत बुलाना था.

शाम पौने 6 बजे पूनम झा ने योजना के तहत इंद्रबहादुर को फोन किया. उस ने उसी मोबाइल से बात की, जो उस ने पूनम को भिजवाया था. फोन पर पूनम ने उस से कहा कि वह पति विनय को फंसा कर जेल भिजवा कर उस के साथ रहने को तैयार है, लेकिन इस से पहले वह उस की सारी योजना समझना चाहती है, इसलिए वह उस से मिलने अरमापुर थाने के पीछे मजार के पास आ जाए. चरस, स्मैक व असलहा भी साथ ले आए, ताकि मौका देख कर वह उस सामान को पति की गाड़ी में रख सके.

पूनम की बातों में फंस कर इंद्रबहादुर उर्फ विजय यादव अपनी बोलेरो गाड़ी से अरमापुर थाने के पीछे पहुंच गया. यह सुनसान इलाका है. वहां पूनम व उस का पति तथा अन्य साथी पहले से मौजूद थे. इंद्रबहादुर पूनम से बात करने लगा. उसी समय अनुपम ने रेंच से विजय के सिर पर पीछे से वार कर दिया. विजय लड़खड़ा कर जमीन पर गिरा तो पूनम के पति विनय झा, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा अनुपम ने उसे दबोच लिया.

उसी समय पूनम विजय की छाती पर सवार हो गई और बोली, ‘‘कमीने, तूने मेरी और मेरे परिवार की इज्जत नीलाम कर बदनाम किया है. आज तुझे तेरे पापों की सजा दे कर रहूंगी.’’ कहते हुए पूनम ने चापड़ से विजय की गरदन पर वार कर दिया. गरदन पर गहरा घाव बना और खून बहने लगा. इस के बाद विनय ने चापड़ से कई वार किए. इस के बाद वे सब उसे मरा समझ कर वहां से भाग निकले. चापड़ उन्होंने पास की झाड़ी में छिपा दिया.

इंद्रबहादुर गंभीर घायलावस्था में पड़ा कराह रहा था. कुछ समय बाद उधर से एक राहगीर निकला तो इंद्रबहादुर ने आवाज दे कर उसे रोक लिया. उस ने राहगीर को अपने बड़े भाई वीरबहादुर यादव का नंबर दे कर कहा कि वह फोन कर के उसे उस के घायल होने की सूचना दे दे. उस राहगीर ने वीरबहादुर को सूचना दे दी.

सूचना पाते ही वीरबहादुर अपने साथियों के साथ वहां पहुंच गया. गंभीर रूप से घायल इंद्रबहादुर ने अपने बड़े भाई को बता दिया कि उस की यह हालत पूनम झा, उस के पति विनोद, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की तथा रिश्तेदार अनुपम व उस के साथी ने की है. यह बता कर विजय बेहोश हो गया. वीरबहादुर ने भाई विजय यादव के बयान की मोबाइल पर वीडियो बना ली थी.

वीरबहादुर अपने घायल भाई इंद्रबहादुर को साथियों के साथ हैलट अस्पताल ले गया. पर उस की हालत गंभीर बनी हुई थी, इसलिए उसे वहां से रीजेंसी अस्पताल भेज दिया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. बजरंग दल के नेता इंद्रबहादुर की हत्या की खबर फैली तो हड़कंप मच गया.

उस के सैकड़ों समर्थक अस्पताल पहुंच गए. एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा को खबर लगी तो वह भी रीजेंसी अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने मृतक के परिजनों व समर्थकों को आश्वासन दिया कि हत्यारों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा.

मीणा ने अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता को आदेश दिया कि वह शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाएं तथा रिपोर्ट दर्ज कर अभियुक्तों के खिलाफ सख्त काररवाई करें. मीणा ने घटनास्थल का भी निरीक्षण किया और पोस्टमार्टम हाउस व अस्पताल के बाहर भारी पुलिस फोर्स भी तैनात कर दिया.

एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा का आदेश पाते ही अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता ने मृतक विजय यादव के भाई वीरबहादुर यादव से घटना के संबंध में बात की. उस ने भाई के मरने से पहले रिकौर्ड किया वीडियो उन्हें सौंप दिया.

वीरबहादुर की तहरीर पर पुलिस ने भादंवि की धारा 302 के तहत पूनम झा, उस के पति विनय, जेठ विनोद झा, भतीजे सत्यम उर्फ विक्की, रिश्तेदार अनुपम तथा उस के साथी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

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चूंकि हत्या का यह मामला हाईप्रोफाइल था, इसलिए नामजद अभियुक्तों की गिरफ्तारी के लिए एसएसपी ने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में अरमापुर थानाप्रभारी समीर गुप्ता, क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर मनोज मिश्रा, क्राइम ब्रांच प्रभारी विनोद मिश्रा, सर्विलांस सेल प्रभारी देवी सिंह, कांस्टेबल चंदन कुमार गौड़, देवेंद्र कुमार, भूपेंद्र कुमार, धर्मेंद्र, ललित, राहुल कुमार तथा महिला कांस्टेबल पूजा को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने ताबड़तोड़ छापे मार कर 25 नवंबर की दोपहर पूनम झा, उस के पति विनय झा, जेठ विनोद झा तथा भतीजे सत्यम उर्फ विक्की को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उन से पूछताछ की गई.

प्रारंभिक पूछताछ में आरोपी खुद को बेकसूर बताते रहे, लेकिन जब पुलिस ने पूनम झा के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगाली तो उस में इंद्रबहादुर से घंटों बातचीत होने और घटना से पहले भी इंद्रबहादुर से बातचीत होने का रिकौर्ड सामने आ गया.

इस के बाद सख्ती करने पर सभी आरोपी टूट गए और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन की निशानदेही पर झाडि़यों में छिपाया गया चापड़ तथा पूनम ने अपनी साड़ी बरामद करा दी, जो उस ने हत्या के समय पहनी थी.

पुलिस टीम ने सभी आरोपियों को एसएसपी अखिलेश कुमार मीणा के सामने पेश किया. मीणा ने आननफानन प्रैस कौन्फ्रैंस बुला कर पत्रकारों के समक्ष घटना का खुलासा कर दिया. आरोपी विनय ने पत्रकारों को बताया कि इंद्रबहादुर जबरन उस की पत्नी के साथ संबंध बनाना चाहता था. इस के लिए वह पूनम पर दबाव बना रहा था. वह पूनम की मार्फत उसे तथा उस के परिवार को गलत धंधे में भी फंसाना चाहता था.

पूनम जब तैयार नहीं हुई तो उस ने फरजी फेसबुक आईडी बना कर पूनम को बदनाम किया. इसी के बाद उस ने विजय की हत्या की योजना बनाई और उसे मौत की नींद सुला दिया.

पुलिस ने 26 नवंबर, 2017 को सभी अभियुक्तों को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अभियुक्त अनुपम व उस का साथी फरार था. पुलिस उन की गिरफ्तारी का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

समाज की डोर पर 2 की फांसी

डेयरी संचालक भूरा राजपूत अपना काम निपटा कर वापस घर आया तो उस की नजर घरेलू कामों में लगीं बेटियों पर पड़ी. उन की 4 बेटियों में 3 तो घर में थीं लेकन सब से बड़ी बेटी शैफाली घर में नजर नहीं आई. उन्होंने पत्नी से पूछा, ‘‘रेनू, शैफाली दिखाई नहीं दे रही. वह कहीं गई है क्या?’’

‘‘अपनी सहेली शिवानी के घर गई है. कह रही थी, उस की किताबें वापस करनी हैं.’’ रेनू ने पति को बताया.

पत्नी की बात सुन कर भूरा झल्ला उठा, ‘‘मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया है कि शैफाली को अकेले घर से मत जाने दिया करो, लेकिन मेरी बात तुम्हारे दिमाग में घुसती कहां है. उसे जाना ही था तो अपनी छोटी बहन को साथ ले जाती. उस पर अब मुझे कतई भरोसा नहीं है.’’

पति की बात सही थी. इसलिए रेनू ने कोई जवाब नहीं दिया.

शैफाली सुबह 10 बजे अपनी मां रेनू से यह कह घर से निकली थी कि वह शिवानी को किताबें वापस कर घंटा सवा घंटा में वापस आ जाएगी. लेकिन दोपहर एक बजे तक भी वह घर नहीं लौटी थी. उसे गए हुए 3 घंटे हो गए थे. जैसेजैसे समय बीतता जा रहा था, वैसेवैसे रेनू और उस के पति भूरा की चिंता बढ़ती जा रही थी.

रेनू बारबार उस का मोबाइल नंबर मिला रही थी, लेकिन उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. जब भूरा से नहीं रहा गया तो शैफाली का पता लगाने के लिए घर से निकल पड़ा. उस ने बेटे अशोक को भी साथ ले लिया था.

शैफाली की सहेली शिवानी का घर गांव के दूसरे छोर पर था. भूरा राजपूत वहां पहुंचा तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था. भूरा ने दरवाजा खटखटाया तो कुछ देर बाद शिवानी के भाई संदीप ने दरवाजा खोला. शैफाली के पिता को देख कर संदीप घबरा गया. लेकिन अपनी घबराहट को छिपाते हुए उस ने पूछा, ‘‘अंकल आप, कैसे आना हुआ?’’

भूरा गुस्से में बोला, ‘‘शैफाली और शिवानी कहां हैं?’’

‘‘अंकल शैफाली तो यहां नहीं आई. मेरी बहन शिवानी मातापिता और भाई के साथ गांव गई है. वे लोग 2 दिन बाद वापस आएंगे.’’ संदीप ने जवाब दिया.

संदीप की बात सुन कर भूरा अपशब्दों की बौछार करते हुए बोला, ‘‘संदीप, तू ज्यादा चालाक मत बन. तू ने मेरी भोलीभाली बेटी को अपने प्यार के जाल में फंसा रखा है. तू झूठ बोल रहा है कि शैफाली यहां नहीं आई. उसे जल्दी से घर के बाहर निकाल वरना पुलिस ला कर तेरी ऐसी ठुकाई कराऊंगा कि प्रेम का भूत उतर जाएगा.’’

‘‘अंकल मैं सच कह रहा हूं, शैफाली नहीं आई. न ही मैं ने उसे छिपाया है.’’ संदीप ने फिर अपनी बात दोहराई.

यह सुनते ही भूरा संदीप से भिड़ गया. उस ने संदीप के साथ हाथापाई की. फिर पुलिस लाने की धमकी दे कर चला गया. उस के जाते ही संदीप ने दरवाजा बंद कर लिया. यह बात 13 जून, 2019 की है. भूरा राजपूत लगभग 2 बजे पुलिस चौकी मंधना पहुंचा.  संयोग से उस समय बिठूर थाना प्रभारी विनोद कुमार सिंह भी चौकी पर मौजूद थे.

भूरा ने उन्हें बताया, ‘‘सर, मेरा नाम भूरा राजपूत है और मैं कछियाना गांव का रहने वाला हूं. मेरे गांव में संदीप रहता है. उस ने मेरी बेटी शैफाली को बहलाफुसला कर अपने घर में छिपा रखा है. शायद वह शैफाली को साथ भगा ले जाना चाहता है. आप मेरी बेटी को मुक्त कराएं.’’

चूंकि मामला लड़की का था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस के साथ कछियाना गांव निवासी संदीप के घर जा पहुंचे. घर का मुख्य दरवाजा बंद था. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने दरवाजे की कुंडी खटखटाई, साथ ही आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई.

संदीप के दरवाजे पर पुलिस देख कर पड़ोसी भी अपने घरों से बाहर आ गए. वे लोग जानने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर संदीप के घर ऐसा क्या हुआ जो पुलिस आई है. जब दरवाजा नहीं खुला तो थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ पड़ोसी विजय तिवारी की छत से हो कर संदीप के घर में दाखिल हुए.

घर के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर सभी पुलिस वाले दहल उठे. कमरे के अंदर संदीप और शैफाली के शव पंखे के सहारे साड़ी के फंदे से झूल रहे थे. इस के बाद गांव में कोहराम मच गया. भूरा राजपूत और उस की पत्नी रेनू बेटी का शव देख कर फफक पड़े. शैफाली की बहनें भी फूटफूट कर रोने लगीं. पड़ोसी विजय तिवारी ने संदीप द्वारा आत्महत्या करने की सूचना उस के पिता दिनेश कमल को दे दी.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने प्रेमी युगल द्वारा आत्महत्या करने की बात वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ देर बाद एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ अजीत कुमार घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया.

उस के बाद पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और फंदों से लटके शव नीचे उतरवाए. मृतक संदीप की उम्र 20-22 वर्ष थी, जबकि मृतका शैफाली की उम्र 18 वर्ष के आसपास. मौके पर फोरैंसिक टीम ने भी जांच की.

टीम ने मृतक संदीप की जेब से मिले पर्स व मोबाइल को जांच के लिए कब्जे में ले लिया. मृतका शैफाली की चप्पलें और मोबाइल भी सुरक्षित रख ली गईं. पुलिस टीम ने वह साड़ी भी जांच की काररवाई में शामिल कर ली जिस से प्रेमीयुगल ने फांसी लगाई थी.

दोनों के परिजनों ने लगाए एकदूसरे पर आरोप

अब तक मृतक संदीप के मातापिता  व भाईबहन भी गांव से लौट आए थे और शव देख कर बिलखबिलख कर रोने लगे. संदीप की मां माधुरी गांव जाने से पहले उस के लिए परांठा सब्जी बना कर रख कर गई थी. संदीप ने वही खाया था.

पुलिस अधिकारियों ने मृतकों के परिजनों से घटना के संबंध में पूछताछ की और दोनों के शव पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपत राय अस्पताल कानपुर भिजवा दिए. मृतकों के परिजन एकदूसरे पर दोषारोपण कर रहे थे, जिस से गांव में तनाव की स्थिति बनती जा रही थी. इसलिए पुलिस अधिकारियों ने सुरक्षा की दृष्टि से गांव में पुलिस तैनात कर दी. साथ ही आननफानन में पोस्टमार्टम करा कर शव उन के घर वालों को सौंप दिए.

कानपुर महानगर से 15 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. जो थाना बिठूर के क्षेत्र में आता है. मंधना कस्बे से कुरसोली जाने वाली रोड पर एक गांव है कछियाना. मंधना कस्बे से मात्र एक किलोमीटर दूर बसा यह गांव सभी भौतिक सुविधाओं वाला गांव है.

भूरा राजपूत अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता है. उस के परिवार में पत्नी रेनू के अलावा एक बेटा अशोक तथा 4 बेटियां शैफाली, लवली, बबली और अंजू थीं. भूरा राजपूत डेयरी चलाता था. इस काम में उसे अच्छी आमदनी होती थी. उस की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

भाईबहनों में बड़ी शैफाली थी. वह आकर्षक नयननक्श वाली सुंदर युवती थी. वैसे भी जवानी में तो हर युवती सुंदर लगती है. शैफाली की तो बात ही कुछ और थी. वह जितनी खूबसूरत थी, पढ़ने में उतनी ही तेज थी. उस ने सरस्वती शिक्षा सदन इंटर कालेज मंधना से हाईस्कूल पास कर लिया था. फिलहाल वह 11वीं में पढ़ रही थी.

पढ़ाई लिखाई में तेज होने के कारण उस के नाज नखरे कुछ ज्यादा ही थे. लेकिन संस्कार अच्छे थे. स्वभाव से वह तेजतर्रार थी, पासपड़ोस के लोग उसे बोल्ड लड़की मानते थे.

कछियाना गांव के पूर्वी छोर पर दिनेश कमल रहते थे. उन के परिवार में पत्नी माधुरी के अलावा 2 बेटे थे. संदीप उर्फ गोलू, प्रदीप उर्फ मुन्ना और बेटी शिवानी थी. दिनेश कमल मूल रूप से कानपुर देहात जनपद के रूरा थाने के अंतर्गत चिलौली गांव के रहने वाले थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. जिस में अच्छी उपज होती थी. दिनेश ने कछियाना गांव में ही एक प्लौट खरीद कर मकान बनवा लिया था. इस मकान में वह परिवार सहित रहते थे. वह चौबेपुर स्थित एक फैक्ट्री में काम करते थे.

दिनेश कमल का बेटा संदीप और बेटी शिवानी पढ़ने में तेज थे. इंटरमीडिएट पास करने के बाद संदीप ने आईटीआई कानपुर में दाखिला ले लिया. वह मशीनिस्ट ट्रेड से पढ़ाई कर रहा था.

शैफाली की सहेली का भाई था संदीप

शिवानी और शैफाली एक ही गांव की रहने वाली थीं, एक ही कालेज में साथसाथ पढ़ती थीं. अत: दोनों में गहरी दोस्ती थीं. दोनों सहेलियां एक साथ साइकिल से कालेज आतीजाती थीं. जब कभी शैफाली का कोर्स पिछड़ जाता तो वह शिवानी से कौपी किताब मांग कर कोर्स पूरा कर लेती और जब शिवानी पिछड़ जाती तो शैफाली की मदद से काम पूरा कर लेती. दोनों के बीच जातिबिरादरी का भेद नहीं था. लंच बौक्स भी दोनों मिलबांट कर खाती थीं.

एक रोज कालेज से छुट्टी होने के बाद शिवानी और शैफाली घर वापस आ रही थीं. तभी रास्ते में अचानक शैफाली का दुपट्टा उस की साइकिल की चेन में फंस गया. शैफाली और शिवानी दुपट्टा निकालने का प्रयास कर रही थीं, लेकिन वह निकल नहीं रहा था.

उसी समय पीछे से शिवानी का भाई संदीप आ गया. वह मंधना बाजार से सामान ले कर लौट रहा था. उस ने शिवानी को परेशान हाल देखा तो स्कूटर सड़क किनारे खड़ा कर के पूछा, ‘‘क्या बात है शिवानी, तुम परेशान दिख रही हो?’’

‘‘हां, भैया देखो ना शैफाली का दुपट्टा साइकिल की चेन में फंस गया है. निकल ही नहीं रहा है.’’

‘‘तुम परेशान न हो, मैं निकाल देता हूं.’’ कहते हुए संदीप ने प्रयास किया तो शैफाली का दुपट्टा निकल गया. उस रोज संदीप और शैफाली की पहली मुलाकात हुई. पहली ही नजर में दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. खूबसूरत शैफाली को देख कर संदीप को लगा यही मेरी सपनों की रानी है. हृष्टपुष्ट स्मार्ट संदीप को देख कर शैफाली भी प्रभावित हो गई.

सहेली के भाई से हो गया प्यार

उसी दिन से दोनों के दिलों में प्यार की भावना पैदा हुई तो मिलन की उमंगें हिलोरें मारने लगीं. आखिर एक रोज शैफाली से नहीं रहा गया तो उस के कदम संदीप के घर की ओर बढ़ गए. उस रोज शनिवार था. आसमान पर घने बादल छाए थे, ठंडी हवा चल रही थी. संदीप घर पर अकेला था. वह कमरे में बैठा टीवी पर आ रही फिल्म ‘एक दूजे के लिए’ देख रहा था. तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. संदीप ने दरवाजा खोला तो सामने खड़ी शैफाली मुसकरा रही थी.

‘‘शिवानी है?’’ वह बोली.

‘‘वह तो मां के साथ बाजार गई है, आओ बैठो. मैं शिवानी को फोन कर देता हूं.’’ संदीप ने कहा.

‘‘मैं बाद में आ जाऊंगी.’’ शैफाली ने कहा ही था कि मूसलाधार बारिश शुरू हो गई.

‘‘अब कहां जाओगी?’’

‘‘जी.’’ कहते हुए शैफाली कमरे में आ गई और संदीप के पास बैठ कर फिल्म देखने लगी.

कमरे का एकांत हो 2 युवा विपरीत लिंगी बैठे हों, और टीवी पर रोमांटिक फिल्म चल रही हो तो माहौल खुदबखुद रूमानी हो जाता है. ऐसा ही हुआ भी शैफाली ने फिल्म देखते देखते संदीप से कहा, ‘‘संदीप एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो?’’

‘‘प्यार करने वालों का अंजाम क्या ऐसा ही होता है.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं.’’ संदीप ने कहा, ‘‘प्यार  करने वाले अगर समय के साथ खुद अनुकूल फैसला लें और समझौता न कर के आगे बढ़ें तो उन का अंत सुखद होगा.’’

‘‘अपनी बात तो थोड़ा स्पष्ट करो.’’

‘‘देखो शैफाली, मैं समझौतावादी नहीं हूं. मैं तो तुरत फुरत में विश्वास करता हूं और दूसरे मेरा मानना है कि जो चीज सहज हासिल न हो उसे खरीद लो.’’

‘‘अच्छा संदीप अगर मैं कहूं कि मैं तुम से प्यार करती हूं, तब तुम मेरा प्यार हासिल करना चाहोगे या खरीदना पसंद करोगे?’’

शैफाली के सवाल पर संदीप चौंका. उस का चौंकना स्वाभाविक था. वह यह तो जानता था कि शैफाली बोल्ड लड़की है, लेकिन उस की बोल्डनैस उसे क्लीन बोल्ड कर देगी, वह नहीं जानता था. संदीप, शैफाली के प्रश्न का उत्तर दे पाता, उस के पहले ही शिवानी मां के साथ बाजार से लौट आई. आते ही शिवानी ने चुटकी ली, ‘‘शैफाली, संदीप भैया से मिल लीं. आजकल तुम्हारे ही गुणगान करता रहता है ये.’’

‘‘धत…’’ शैफाली ने शरमाते हुए उसे झिड़क दिया. फिर कुछ देर दोनों सहेलियां हंसी मजाक करती रहीं. थोड़ा रुक कर शैफाली अपने घर चली गई.

बढ़ने लगा प्यार का पौधा

उस दिन के बाद दोनों में औपचारिक बातचीत होने लगी. दिल धीरेधीरे करीब आ रहे थे. संदीप शैफाली को पूरा मानसम्मान देने लगा था. जब भी दोनों का आमना सामना होता, संदीप मुसकराता तो शैफाली के होंठों पर भी मुसकान तैरने लगती. अब दोनों की मुसकराहट लगातार रंग दिखाने लगी थी.

एक रविवार को संदीप यों ही स्कूटर से घूम रहा था कि इत्तेफाक से उस की मुलाकात शैफाली से हो गई. शैफाली कुछ सामान खरीदने मंधना बाजार गई थी. चूंकि शैफाली के मन में संदीप के प्रति चाहत थी. इसलिए उसे संदीप का मिलना अच्छा लगा. उसने मुसकरा कर पूछा, ‘‘तुम बाजार में क्या खरीदने आए थे?’’

‘‘मैं बाजार से कुछ खरीदने नहीं बल्कि घूमने आया था. मुझे पंडित रेस्तरां की चाय बहुत पसंद है. तुम भी मेरे साथ चलो. तुम्हारे साथ हम भी वहां एक कप चाय पी लेंगे.’’

‘‘जरूर.’’ शैफाली फौरन तैयार हो गई.

पास ही पंडित रेस्तरां था. दोनों जा कर रेस्तरां में बैठ गए. चायनाश्ते का और्डर देने के बाद संदीप शैफाली से मुखातिब हुआ, ‘‘बहुत दिनों से मैं तुम से अपने मन की बात कहना चाह रहा था. आज मौका मिला है, इसलिए सोच रहा हूं कि कह ही दूं.’’

शैफाली की धड़कनें तेज हो गईं. वह समझ रही थी कि संदीप के मन में क्या है और वह उस से क्या कहना चाह रहा है. कई बार शैफाली ने रात के सन्नाटे में संदीप के बारे में बहुत सोचा था.

उस के बाद इस नतीजे पर पहुंची थी कि संदीप अच्छा लड़का है. जीवनसाथी के लिए उस के योग्य है. लिहाजा उस ने सोच लिया था कि अगर संदीप ने प्यार का इजहार किया तो वह उस की मोहब्बत कबूल कर लेगी.

‘‘जो कहूंगा, अच्छा ही कहूंगा.’’ कहते हुए संदीप ने शैफाली का हाथ पकड़ा और सीधे मन की बात कह दी, ‘‘शैफाली मैं तुम से प्यार करने लगा हूं.’’

शैफाली ने उसे प्यार की नजर से देखा, ‘‘मैं भी तुम से प्यार करती हूं संदीप, और यह भी जानती हूं कि प्यार में कोई शर्त नहीं होती. लेकिन दिल की तसल्ली के लिए एक प्रश्न पूछना चाहती हूं. यह बताओ कि मोहब्बत के इस सिलसिले को तुम कहां तक ले जाओगे?’’

साथ निभाने की खाईं कसमें

‘‘जिंदगी की आखिरी सांस तक.’’ संदीप भावुक हो गया, ‘‘शैफाली, मेरे लफ्ज किसी तरह का ढोंग नहीं हैं. मैं सचमुच तुम से प्यार करता हूं. प्यार से शुरू हो कर यह सिलसिला शादी पर खत्म होगा. उस के बाद हमारी जिंदगी साथसाथ गुजरेगी.’’

शैफाली ने भी भावुक हो कर उस के हाथ पर हाथ रख दिया, ‘‘प्यार के इस सफर में मुझे अकेला तो नहीं छोड़ दोगे?’’

‘‘शैफाली,’’ संदीप ने उस का हाथ दबाया, ‘‘जान दे दूंगा पर इश्क का ईमान नहीं जाने दूंगा.’’

शैफाली ने संदीप के होंठों को तर्जनी से छुआ और फिर उंगली चूम ली. उस की आंखों की चमक बता रही थी कि उसे जैसे चाहने वाले की तमन्ना थी, वैसा ही मिल गया है.

शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी शुरू हो चुकी थी. गुपचुप मेलमुलाकातें और जीवन भर साथ निभाने के कसमेवादे, दिनों दिन उन का पे्रमिल रिश्ता चटख होता गया. दोनों का मेलमिलाप कराने में शैफाली की सहेली शिवानी अहम भूमिका निभाती रही.

एक दिन प्यार के क्षणों में बातोंबातों में संदीप ने बोला, ‘‘शैफाली, अपने मिलन के अब चंद महीने बाकी हैं. मैं कानपुर आईटीआई से मशीनिस्ट टे्रड का कोर्स कर रहा हूं. मेरा यह आखिरी साल है. डिप्लोमा मिलते ही मैं तुम से शादी कर लूंगा.’’

संदीप की बात सुन कर शैफाली खिलखिला कर हंस पड़ी.

संदीप ने अचकचा कर उसे देखा, ‘‘मैं इतनी सीरियस बात कर रहा हूं और तुम हंस रही हो.’’

‘‘बचकानी बात करोगे तो मुझे हंसी आएगी ही.’’

‘‘मैं ने कौन सी बचकानी बात कह दी?’’

‘‘शादी की बात.’’ शैफाली ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘बुद्धू शादी के बाद पत्नी की सारी जिम्मेदारियां पति की हो जाती हैं. एक पैसा तुम कमाते नहीं हो, मुझे खिलाओगे कैसे? मेरे खर्च और शौक कैसे पूरे करोगे?’’

‘‘यह मैं ने पहले से सोच रखा है,’’ संदीप बोला, ‘‘डिप्लोमा मिलते ही मैं दिल्ली या नोएडा जा कर कोई नौकरी कर लूंगा. शादी के बाद हम दिल्ली में ही अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

बनाने लगे सपनों का महल

संदीप की यह बात शैफाली को मन भा गई. दिल्ली उस के भी सपनों का शहर था. इसीलिए संदीप ने उस से दिल्ली में बसने की बात कही तो उस का मन खुशी से झूम उठा.

संदीप और शैफाली का प्यार परवान चढ़ ही रहा था कि एक दिन उन का भांडा फूट गया. हुआ यूं कि उस रोज शैफाली अपने कमरे में मोबाइल पर संदीप से प्यार भरी बातें कर रही थी. उस की बातें मां रेनू ने सुनीं तो उन का माथा ठनका. कुछ देर बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘शैफाली, ये संदीप कौन है? उस से तुम कैसी अटपटी बातें करती हो?’’

शैफाली न डरी न लजाई, उस ने बता दिया, ‘‘मां संदीप मेरी सहेली शिवानी का भाई है. गांव के पूर्वी छोर पर रहता है. बहुत अच्छा लड़का है. हम दोनों एकदूसरे से प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं.’’

रेनू कुछ देर गंभीरता से सोचती रही, फिर बोली, ‘‘बेटी अभी तो तुम्हारी पढ़ने लिखने की उम्र है. प्यारव्यार के चक्कर में पड़ गई. वैसे तुम्हारी पसंद से शादी करने पर मुझे कोई एतराज नहीं है. किसी दिन उस लड़के को घर ले अना, मैं उस से मिल लूंगी और उस के बारे में पूछ लूंगी. सब ठीकठाक लगा तो तुम्हारे पापा को शादी के लिए राजी कर लूंगी.’’

3-4 दिन बाद शैफाली ने संदीप को चाय पर बुला लिया. होने वाली सास ने बुलाया है. यह जान कर संदीप के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. उसे विश्वास हो था कि शैफाली के घर वालों की स्वीकृति के बाद वह अपने घर वालों को भी मना लगा. उस ने अभी तक अपने मांबाप को अपने प्यार के बारे में कुछ भी नहीं बताया था. घर में उस की बहन शिवानी ही उस की प्रेम कहानी जानती थी.

शैफाली की मां रेनू ने संदीप को देखा तो उस की शक्ल सूरत, कदकाठी तो उन्हें पसंद आई. लेकिन जब जाति कुल के बारे में पूछा तो रेनू की आंखों के आगे अंधेरा छा गया. संदीप दलित समाज का था.

नहीं बनी शादी की बात

संदीप के जाने के बाद रेनू ने शैफाली को डांटा, ‘‘यह क्या गजब किया. दिल लगाया भी तो एक दलित से. राजपूत और दलित का रिश्ता नहीं हो सकता. तू भूल जा उसे, इसी में हम सब की भलाई है. समाज उस से तुम्हारा रिश्ता स्वीकर नहीं करेगा. हम सब का हुक्कापानी बंद हो जाएगा. तुम्हारी अन्य बहनें भी कुंवारी बैठी रह जाएंगी. भाई को भी कोई अपनी बहनबेटी नहीं देगा.’’

शैफाली ने ठंडे दिमाग से सोचा तो उसे लगा कि मां जो कह रही हैं, सही बात है. इसलिए उस ने उस वक्त तो मां से वादा कर लिया कि वह संदीप को भूल जाएगी. लेकिन वह अपना वादा निभा नहीं सकी. वह संदीप को अपने दिल से निकाल नहीं पाई.

संदीप के बारे में वह जितना सोचती थी उस का प्यार उतना ही गहरा हो जाता. आखिर उस ने निश्चय कर लिया कि चाहे जो भी हो, वह संदीप का साथ नहीं छोड़ेगी. शादी भी संदीप से ही करेगी.

भूरा राजपूत को शैफाली और संदीप की प्रेम कहानी का पता चला तो उस ने पहले तो पत्नी रेनू को आड़े हाथों लिया, फिर शैफाली को जम कर फटकार लगाई. साथ ही चेतावनी भी दी, ‘‘शैफाली, तू कान खोल कर सुन ले, अगर तू इश्क के चक्कर में पड़ी तो तेरी पढ़ाई लिखाई बंद हो जाएगी और तुझे घर से बाहर जाने की इजाजत नहीं मिलेगी.’’

घर वालों के विरोध के कारण शैफाली भयभीत रहने लगी. वह अच्छी तरह जान गई थी कि परिवार वाले उस की शादी किसी भी कीमत पर संदीप के साथ नहीं करेंगे. उस ने यह बात संदीप को बताई तो उस का दिल बैठ गया. वह बोला, ‘‘शैफाली घर वाले विरोध करेंगे तो क्या तुम मुझे ठुकरा दोगी?’’

‘‘नहीं संदीप, ऐसा कभी नहीं होगा., मैं तुम से प्यार करती हूं और हमेशा करती रहूंगी. हम साथ जिएंगे, साथ मरेंगे.’’

‘‘मुझे तुम से यही उम्मीद थी, शैफाली.’’ कहते हुए संदीप ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. उस की आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे.

रेनू अपनी बेटी शैफाली पर भरोसा करती थीं. उन्हें विश्वास था कि समझाने के बाद उस के सिर से इश्क का भूत उतर गया है. इसलिए उन्होंने शैफाली के घर से बाहर जाने पर एतराज नहीं किया. लेकिन उस का पति भूरा राजपूत शैफाली पर नजर रखता था. उस ने  पत्नी से कह रखा था कि शैफाली जब भी घर से निकले, छोटी बहन के साथ निकले.

संदीप ने बुला लिया शैफाली को

13 जून, 2019 की सुबह 8 बजे संदीप के पिता दिनेश कमल अपनी पत्नी माधुरी बेटी शिवानी तथा बेटे मुन्ना के साथ अपने गांव चिलौली (कानपुर देहात) चले गए. दरअसल, बरसात शुरू हो गई थी. उन्हें मकान की मरम्मत करानी थी. उन्हें वहां सप्ताह भर रुकना था. जाते समय संदीप की मां माधुरी ने उस से कहा, ‘‘बेटा संदीप, मैं ने पराठा, सब्जी बना कर रख दी है. भूख लगने पर खा लेना.’’.

मांबाप, भाईबहन के गांव चले जाने के बाद घर सूना हो गया. ऐसे में संदीप को तन्हाई सताने लगी. इस तनहाई को दूर करने के लिए उस ने अपनी प्रेमिका शैफाली को फोन किया, ‘‘हैलो, शैफाली आज मैं घर पर अकेला हूं. घर के सभी लोग गांव गए हैं. तुम्हारी याद सता रही थी. इसलिए जैसे भी हो तुम मेरे घर आ जाओ.’’

‘‘ठीक है संदीप, मैं आने की कोशिश करूंगी.’’ इस के बाद शैफाली तैयार हुई और मां से प्यार जताते हुए बोली, ‘‘मां, कुछ दिन पहले मैं अपनी सहेली शिवानी से कुछ किताबें लाई थी. उसे किताबें वापस करने उस के घर जाना है. घंटे भर बाद वापस आ जाऊंगी.’’ मां ने इस पर कोई ऐतराज नहीं किया.

शैफाली किताबें वापस करने का बहाना बना कर घर से निकली ओर संदीप के घर जा पहुंची. संदीप उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही संदीप ने उसे बांहों में भर कर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद दोनों प्रेमालाप में डूब गए.

दोनों ने लगा लिया मौत को गले

इधर भूरा राजपूत घर पहुंचा तो उसे अन्य बेटियां तो घर में दिखीं पर शैफाली नहीं दिखी. उस ने पत्नी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह सहेली के घर किताबें वापस करने लगने लगी थी. यह सुनते ही भूरा का मथा ठनका. उसे शक हुआ कि शैफाली बहाने से घर से निकली है और प्रेमी संदीप से मिलने गई है.

भूरा ने कुछ देर शैफाली के लौटने का इंतजार किया, फिर उस की तलाश में घर से निकल से निकल पड़ा. वह सीधा संदीप के घर पहुंचा. संदीप घर पर ही था. शैफाली के बारे में पूछने पर उस ने भूरा से झूठ बोल दिया कि शैफाली उस के घर नहीं है. शैफाली को ले कर भूरा की संदीप से हाथापाई भी हुई फिर वह पुलिस लाने की धमकी दे कर वहां से पुलिस चौकी चला गया.

संदीप ने शैफाली को घर में ही छिपा दिया था. पिता की धमकी से वह डर गई थी. उस ने संदीप से कहा, ‘‘संदीप, घर वाले हम दोनों को एक नहीं होने देंगे. और मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकती. अब तो बस एक ही रास्ता बचा है वह है मौत का. हम इस जन्म में न सही अगले जन्म में फिर मिलेंगे.’’

संदीप ने शैफाली को गौर से देखा फिर बोला, ‘‘शैफाली मैं भी तुहारे बिना नहीं जी सकता. मैं तुम्हारा साथ दूंगा. इस के बाद दोनों ने मिल कर पंखे के कुंडे से साड़ी बांधी और साड़ी के दोनों किनारों का फंदा बनाया, एकएक फंदा डाल कर दोनों झूल गए. कुछ ही देर में उन की मौत हो गई.

इधर भूरा राजपूत अपने साथ पुलिस ले कर संदीप के घर पहुंचा. बाद में पुलिस को कमरे में संदीप और शैफाली के शव फंदों से झूले मिले. इस के बाद दोनों परिवारों में कोहराम मच गया.

संतान प्राप्ति के लिए नरबलि, दोषियों को उम्रकैद

उस दिन कानपुर देहात की माती अदालत में आम दिनों से कुछ ज्यादा ही भीड़ थी. सर्दी होने के बावजूद लोग 10 बजे से पहले ही कचहरी पहुंच गए थे. अपर जिला जज-13 पोक्सो वाकर शमीम रिजवी की अदालत के बाहर सब से ज्यादा भीड़ मौजूद थी. भीड़ में आम लोगों के अलावा वकील भी शामिल थे.

अदालत में भीड़ जुटने का कारण यह था कि उस दिन कानपुर देहात के बहुचर्चित मासूम मानसी अपहरण हत्याकांड का फैसला सुनाया जाना था. इसलिए मानसी के मातापिता के अलावा उन के कई परिचित भी अदालत में आए हुए थे.

भीड़ में इस बात को ले कर खुसरफुसर हो रही थी कि अदालत क्या फैसला सुनाएगी. कोई कह रहा था कि आरोपियों को फांसी होगी तो कोई उम्रकैद होने का अनुमान लगा रहा था. दरअसल, इस मामले से कानपुर देहात की जनता का भावनात्मक जुड़ाव रहा था. इसलिए कानपुर देहात की जनता की नजरें फैसले पर टिकी हुई थीं.

अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी नियत समय पर कोर्टरूम आ कर अपनी कुरसी पर बैठ गए. उन के कुरसी पर बैठते ही अदालत में सन्नाटा छा गया. आरोपी परशुराम, सुनैना, अंकुल व वीरन अदालत के कटघरे में मौजूद थे. जज ने बारीबारी से उन पर नजर डाली. मृतका मानसी के घर वाले, शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय तथा विपक्ष के वकील ताराचंद्र व रवि तिवारी भी अदालत में मौजूद थे.

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अदालत में शांति बनाए रखने का आदेश देने के बाद अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने दंड के रूप में दी जाने वाली सजा पर दोनों पक्षों को ध्यान से सुना. अभियुक्तों के वकीलों का तर्क था कि इस से पहले अभियुक्तों ने कोई भी अपराध नहीं किया है. उन के खिलाफ अपराध भी पहली बार सिद्ध हुआ है, जो जघन्य से जघन्यतम नहीं है. इसलिए उन के करिअर, उम्र व भविष्य को देखते हुए उन्हें दिए जाने वाले दंड में नरमी बरती जानी चाहिए.

जबकि अभियोजन पक्ष की तरफ से जिला शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने उन की बात का विरोध करते हुए कहा कि 6 वर्षीय बच्ची की हत्या कर उस का कलेजा निकाल कर खाना बेहद क्रूरतम अपराध है.

उस की हत्या के पीछे तंत्रमंत्र बड़ा कारण था. इसलिए पैरों पर महावर लगाई गई थी. यह रेयरेस्ट औफ रेयर मामला है. इसलिए आरोपियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए, इन्हें कम से कम फांसी की सजा दी जानी चाहिए.

वकीलों की दलीलें सुनने के बाद जज साहब ने शाम 4 बजे दोषियों को सजा सुनाने की बात कही. इस के बाद वह अपने चैंबर में चले गए. यह बात 16 दिसंबर, 2023 की है.

मासूम मानसी कौन थी? उस का अपहरण व हत्या क्यों की गई? यह सब जानने के लिए हमें करीब 3 साल पीछे जाना होगा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर एक बड़ा कस्बा है-घाटमपुर. इस कस्बे से कुछ दूरी पर स्थित है-भदरस गांव. कमल कुरील इसी दलित बाहुल्य गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयश्री के अलावा 2 बेटियां थीं, जिन में मानसी बड़ी थी. कमल कुरील किसान था. खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. मानसी 6 वर्ष की थी, जबकि छोटी बेटी 4 वर्ष की.

किस ने दी बच्ची की बलि

14 नवंबर, 2020 को दीपावली का त्योहार था. शाम को नए कपड़े पहनकर मानसी व दया घर के बाहर अपनी सहेली के साथ खेल रही थीं. कुछ देर बाद दया तो घर वापस आ गई, लेकिन मानसी घर वापस नहीं आई. कमल व उस की पत्नी जयश्री तब मानसी की खोज में जुट गए.

अड़ोसपड़ोस के लोगों को मासूम मानसी के गायब होने की जानकारी हुई तो वे भी उस के मातापिता के साथ उस की खोज में जुट गए. उन्होंने गांव की हर गली, कोना छान मारा. खेतखलिहान, बागबगीचा भी खंगाला, तालाब, कुआं भी देखा, लेकिन मानसी का कुछ भी पता न चला.

सुबह 5 बजे कुछ लोग गांव के बाहर स्थित भद्रकाली मंदिर की तरफ गए तो उन्होंने मासूम मानसी की लाश भद्रकाली मंदिर के पास पड़ी देखी. हालात देख कर लग रहा था कि वहां उस की बलि दी गई थी. कमल व उस की पत्नी जयश्री को खबर लगी तो दोनों नंगे पांव ही भागे.

इसी बीच गाँव के किसी व्यक्ति ने दीपावली की रात गांव के कमल कुरील की 6 वर्षीय बेटी मानसी की बलि देने की सूचना थाना घाटमपुर के इंसपेक्टर राजीव सिंह को दे दी.

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खबर पाते ही एसएचओ पुलिस टीम के साथ भदरस गांव पहुंच गए. भद्रकाली मंदिर गांव के बाहर था. वहां भारी भीड़ जुटी थी. दरअसल, मासूम बच्ची की बलि चढ़ाए जाने की बात भदरस ही नहीं, बल्कि अड़ोस पड़ोस के गांवों तक फैल गई थी. अत: सैकड़ों लोगों की भीड़ वहां जमा थी.

भीड़ देख कर राजीव सिंह के हाथपांव फूल गए. क्योंकि वहां मौजूद लोगों में गुस्सा भी था. लोगों ने साफ कह दिया था कि जब तक एसएसपी घटनास्थल पर नहीं आएंगे, तब तक वह बच्ची के शव को नहीं उठने देंगे. इंसपेक्टर राजीव सिंह ने यह जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे दी, फिर जांच में जुट गए.

मानसी की नग्न लाश भद्रकाली मदिर के पास नीम के पेड़ के नीचे गन्नू तिवारी के खेत में पड़ी थी. शव के पास मृत बच्ची का पिता कमल कुरील बदहवास खड़ा था और उस की पत्नी जयश्री कुरील दहाड़ मार कर रो रही थी. घर की महिलाएं उसे संभालने की कोशिश कर रही थीं.

मासूम का पेट किसी नुकीले व धारदार औजार से चीरा गया था और पेट के अंदर के अंग दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें तथा किडनी गायब थीं. बच्ची के गुप्तांग पर चोट के निशान थे. माथे पर तिलक लगा था और पैरों पर महावर लगी थी. देखने से ऐसा लग रहा था कि नरपिशाचों ने बलि देने से पहले मासूम के साथ दुराचार भी किया था. शव के पास ही मृतका की चप्पलें, जींस तथा अन्य कपड़े पड़े थे. नमकीन का एक खाली पैकेट भी वहां पड़ा मिला.

इंसपेक्टर सिंह ने वहां पड़ी चीजों को साक्ष्य के तौर पर सुरक्षित कर लिया. उसी दौरान एसएसपी प्रीतिंदर सिंह, एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव तथा सीओ (घाटमपुर) रवि कुमार सिंह भी वहां आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम तथा कई थानों की फोर्स बुलवा ली. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित भीड़ को आश्वासन दिया कि जिन्होंने भी दिल को झकझोर देने वाली इस घटना को अंजाम दिया है, वे जल्द ही पकड़े जाएंगे और उन्हें सख्त से सख्त सजा दिलाई जाएगी.

अधिकारियों के इस आश्वासन पर लोग नरम पड़ गए, उस के बाद उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया. बालिका का शव देख कर पुलिस अधिकारी भी सिहर उठे.

एसएसपी के बुलावे पर डौग स्क्वायड भी घटनास्थल पर पहुंची. डौग स्क्वायड प्रभारी अवधेश सिंह ने जांच शुरू की. उन्होंने नीम के पेड़ के नीचे पड़ी बालिका के खून के अंश व उस की चप्पलें खोजी कुतिया यामिनी को सुंघाई. उसे सूंघने के बाद यामिनी खेत की पगडंडी से होते हुए गांव की ओर दौड़ पड़ी.

कई जगह रुकने के बाद वह सीधे मृतक बच्ची के घर पहुंची. यहां से बगल के घर से होते हुए गली के सामने बने एक घर पर पहुंची. 4 घरों में जाने के बाद गली के कोने में स्थित एक मंदिर पर जा कर वह रुक गई.

टीम ने पड़ताल की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. इस के बाद यामिनी गांव का चक्कर लगा कर घटनास्थल पर वापस आ गई. यामिनी हत्यारों तक नहीं पहुंच सकी.

मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर एक पैर पर दौड़ी पुलिस

निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका मानसी के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय कानपुर भिजवा दिया. मोर्चरी के बाहर भी भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था.

उधर नरबलि की खबर न्यूज चैनलों तथा इंटरनेट मीडिया पर वायरल होते ही कानपुर से ले कर लखनऊ तक सनसनी फैल गई.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद इस दुस्साहसिक वारदात को संज्ञान में लिया. मुख्यमंत्री ने मंडलायुक्त, डीएम व एसएसपी से वार्ता की और तुरंत आरोपियों के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई करने का आदेश दिया.

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उन्होंने दुखी परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की और 5 लाख रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की. उन्होंने कहा, ”सरकार इस प्रकरण की फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई करा कर अपराधियों को जल्द सजा दिलाएगी.’’

मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई तो प्रशासन एक पैर पर दौडऩे लगा. आननफानन में 3 डाक्टरों का पैनल गठित किया गया और शव का पोस्टमार्टम कराया गया. मासूम के शव का परीक्षण करते समय पोस्टमार्टम करने वाली टीम के हाथ भी कांप उठे थे.

मासूम के पेट के अंदर कोई अंग था ही नहीं. दिल, फेफड़े, लीवर, आंतें, किडनी, स्प्लीन और इन अंगों को आपस में जोड़े रखने वाली मेंब्रेंन तक गायब थी. मासूम के निजी अंगों में चोट के निशान थे, जिस से दुष्कर्म की पुष्टि हुई थी.

बच्ची के पेट में कुछ था या नहीं, आंतें गायब होने से इस की पुष्टि नहीं हो सकी. पोस्टमार्टम के बाद मानसी का शव उस के पिता कमल कुरील को सौंप दिया गया.

इधर रात 10 बजे एसडीएम (नर्वल) रिजवाना शाहिद के साथ तत्कालीन विधायक (घाटमपुर क्षेत्र) उपेंद्र पासवान भदरस गांव पहुंचे और मृतका मानसी के पिता कमल कुरील को 5 लाख रुपए का चैक सौंपा. उन्हें 2 बीघा कृषि भूमि का पट्टा दिलाने का भी भरोसा दिया गया.

चैक लेते समय कमल व उन की पत्नी जयश्री की आंखों में आंसू थे. उन्होंने नरपिशाचों को जल्द गिरफ्तार करने की मांग की.

चूंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मामले को वर्कआउट करने में देरी पर नाराजगी जताई थी, इसलिए एसएसपी प्रीतिंदर सिंह व एसपी (ग्रामीण) ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव ने थाना घाटमपुर में डेरा डाल दिया और डीएसपी रवि कुमार सिंह के निर्देशन में खुलासे के लिए पुलिस टीम गठित कर दी.

इस टीम ने भदरस गांव पहुंच कर अनेक लोगों से गहन पूछताछ की. गांव के एक झोलाछाप डाक्टर ने गांव के गोंगा के मझले बेटे अंकुल कुरील पर शक जताया. पड़ोसी परिवार की एक बच्ची ने भी बताया कि शाम को उस ने मानसी को अंकुल के साथ जाते हुए देखा था.

अंकुल कुरील पुलिस की रडार पर आया तो पुलिस टीम ने उसे घर से उठा लिया. उस समय वह ज्यादा नशे में था. उसे थाना घाटमपुर लाया गया. उस से कई घंटे तक पूछताछ की, लेकिन अंकुल नहीं टूटा.

आधी रात के बाद जब नशा कम हुआ, तब उस से सख्ती के साथ दूसरे राउंड की पूछताछ की गई. इस बार वह पुलिस की सख्ती से टूट गया और मासूम मानसी की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

अंकुल ने जो बताया, उस से पुलिस अधिकारियों के रोंगटे खड़े हो गए और मामला ही पलट गया. अंकुल ने बताया कि उस के चाचा परशुराम व चाची सुनयना ने 1,500 रुपए में मासूम बच्ची का कलेजा लाने की सुपारी दी थी.

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                           आरोपी अंकुल कुरील और बीरन

उस के बाद उस ने अपने दोस्त वीरन के साथ मिल कर कमल की बेटी मानसी को पटाखा देने के बहाने फुसलाया. उसे वे गांव से एक किलोमीटर दूर भद्रकाली मंदिर के पास ले गए. वहां दोनों ने पहले उस बच्ची के साथ दुराचार किया फिर अंगौछे से उस का गला घोंट दिया.

उस के बाद चाकू से उस का पेट चीर कर अंगों को निकाल लिया गया. उस ने कलेजा पौलीथिन में रख कर चाची सुनयना को ले जा कर दे दिया. सुनयना और परशुराम ने कलेजे के 2 टुकड़े किए और कच्चा ही खा गए, ऐसा उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए किया था. इस के बाद वादे के मुताबिक चाची ने 500 रुपए मुझे तथा हजार रुपए वीरन को दिए. फिर हम लोग घर चले गए.

16 नवंबर, 2020 की सुबह 7 बजे पुलिस टीम ने पहले वीरन, फिर परशुराम तथा उस की पत्नी सुनयना को गिरफ्तार कर लिया. सुनयना के घर से पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त अंगौछा तथा 2 चाकू बरामद कर लिए. चाकू को सुनयना ने भूसे के ढेर में छिपा दिया था.

उन तीनों को थाने लाया गया. यहां तीनों की मुलाकात हवालात में बंद अंकुल से हुई तो वे समझ गए कि अब झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं है. अत: उन तीनों ने भी पूछताछ में सहज ही मानसी की हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया.

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पुलिस ने जब परशुराम कुरील से कलेजा खाने की वजह पूछी तो उस के चेहरे पर पश्चाताप की जरा भी झलक नहीं थी. उस ने कहा कि सभी जानते हैं कि किसी बच्ची का कलेजा खाने से निस्संतानों के भी बच्चे हो जाते हैं. वह भी निस्संतान था. उस ने बच्चा पाने की चाहत में कलेजा खाया था.

चूंकि सभी ने जुर्म कुबूल कर लिया था और आलाकत्ल भी बरामद करा दिया था. इसलिए इंसपेक्टर राजीव सिंह ने मृतका के पिता कमल कुरील की तहरीर पर भादंवि की धारा 302/201/120बी के तहत अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और सभी को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. अंकुल व वीरन के खिलाफ दुराचार तथा पोक्सो ऐक्ट के तहत भी मुकदमा दर्ज किया गया.

पुलिस पूछताछ में आरोपियों ने दिल कंपा देने वाली घटना का खुलासा किया.

बच्चा पैदा होने की लालसा में दी थी बलि

परशुराम कुरील भदरस गांव में ही कमल कुरील के घर के पास ही रहता था. परशुराम की शादी सुनयना के साथ लगभग 15 साल पहले हुई थी. परशुराम के पास कृषि भूमि नाममात्र की थी. वह साबुन का व्यवसाय करता था. वह गांव कस्बे में फेरी लगा कर साबुन बेचता था. इसी व्यवसाय से वह अपने घर का खर्च चलाता था.

भदरस और उस के आसपास के गांवों में अंधविश्वास की बेल खूब फलतीफूलती है, जिस का फायदा ढोंगी तांत्रिक उठाते हैं. भदरस गांव भी तांत्रिकों के मकडज़ाल में फंसा है. यहां घरघर कोई न कोई तांत्रिक पैठ बनाए हुए है.

बीमारी में तांत्रिक अस्पताल नहीं मुरगे की बलि, पैसा कमाने को मेहनत नहीं, बकरे की बलि, दुश्मन को ठिकाने लगाने के लिए शराब और बकरे की बलि, संतान के लिए नरबलि की सलाह देते हैं. इन तांत्रिकों पर पुलिस भी काररवाई करने से बचती है. कोई जघन्य कांड होने पर ही पुलिस जागती है.

परशुराम और उस की पत्नी सुनयना भी तांत्रिकों के मकडज़ाल में फंसे हुए थे. महीने में एक या 2 बार उन के घर तंत्रमंत्र व पूजापाठ करने कोई न कोई तांत्रिक आता रहता था.

दरअसल, सुनयना की शादी को 15 वर्ष से अधिक का समय बीत गया था. लेकिन उस की गोद सूनी थी. पहले तो उस ने इलाज पर खूब पैसा खर्च किया, लेकिन जब सफलता नहीं मिली तो वह अंधविश्वास में उलझ गई और तांत्रिकों और मौलवियों के यहां माथा टेकने लगी.

तांत्रिक उसे मूर्ख बना कर पैसे ऐंठते. धीरेधीरे 5 साल और बीत गए, लेकिन सुनयना की गोद सूनी की सूनी ही रही.

सामाजिक तिरस्कार से टूट गई थी सुनयना

सुनयना की जातिबिरादरी के लोग उसे बांझ समझने लगे थे और उस का सामाजिक बहिष्कार करने लगे थे. समाज का कोई भी व्यक्ति परशुराम को सामाजिक कार्य में नहीं बुलाता था. कोई भी औरत अपने बच्चे को उस की गोद में नहीं देती थी, क्योंकि उसे जादूटोना करने का शक रहता था.

परिवार के लोग उसे अपने बच्चे के मुंडन, जन्मदिन आदि में भी नहीं बुलाते थे, जिस से उसे पीड़ा होती थी. सामाजिक तिरस्कार से सुनयना टूट जरूर गई थी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी थी.

10 सालों से उस का तांत्रिकों के पास आनाजाना बना हुआ था. एक रोज वह विधनू कस्बे के एक तांत्रिक के पास गई और उसे अपनी पीड़ा बताई. तांत्रिक ने उसे आश्वासन दिया कि वह अब भी मां बन सकती है, यदि वह एक उपाय कर सके.

” कौन सा उपाय?’’ सुनयना ने उत्सुकता से पूछा.

”यही कि तुम्हें दीपावली की रात 10 साल से कम उम्र की एक बालिका की पूजापाठ कर बलि देनी होगी. फिर उस का कलेजा निकाल कर पतिपत्नी दोनों को आधाआधा खाना होगा. बलि देने तथा कलेजारूपी प्रसाद चखने से मां काली प्रसन्न होंगी और तुम्हें संतान प्राप्ति होगी.’’

”ठीक है बाबा, मैं उपाय करने का प्रयत्न करूंगी. अपने पति से भी रायमशविरा करूंगी.’’ सुनयना ने तांत्रिक से कहा.

उन्हीं दिनों परशुराम के हाथ ‘कलकत्ता का काला जादू’ नामक तंत्रमंत्र की एक किताब हाथ लगी. इस किताब में भी संतान प्राप्ति के लिए उपाय लिखा था और मासूम बालिका का कलेजा कच्चा खाने का जिक्र किया गया था.

परशुराम ने यह बात पत्नी सुनयना को बताई तो वह बोली, ”विधनू के तांत्रिक ने भी उसे ऐसा ही उपाय करने को कहा था.’’

अब परशुराम और सुनयना के मन में यह अंधविश्वास घर कर गया कि मासूम बच्ची का कच्चा कलेजा खाने से उन को संतान हो सकती है. इस पर उन्होंने गंभीरता से सोचना शुरू किया तो उन्हें लगा अंकुल उन की मदद कर सकता है. अंकुल परशुराम के बड़े भाई गोंगा कुरील का बेटा था. 3 भाइयों में वह मंझला था. वह नशेबाज और निर्दयी था, गंजेड़ी भी. अपने भाईबहनों के साथ मारपीट और हंगामा भी करता रहता था.

अपने स्वार्थ के लिए परशुराम ने भतीजे अंकुल को मोहरा बनाया. अब वह उसे घर बुलाने लगा और मुफ्त में शराब पिलाने लगा. गांजा फूंकने को पैसे भी देता. अंकुल जब हां में हां मिलाने लगा, तब एक रोज सुनयना ने उस से कहा, ”अंकुल, तुम्हें तो पता ही है कि हमारे पास बच्चा नहीं है. लेकिन तुम चाहो तो मैं मां बन सकती हूं.’’

”वह कैसे चाची?’’

”इस के लिए तुम्हें मेरा एक काम करना होगा. आने वाली दीपावली की रात तुम्हें किसी बच्ची का कलेजा ला कर देना होगा. देखो ‘न’ मत करना. यदि तुम मेरा काम कर दोगेे तो हमारे घर में भी खुशी आ सकती है.’’

”ठीक है चाची, मैं तुम्हारे लिए यह काम कर दूंगा.’’

अंकुल राजी हो गया तो उन लोगों ने मासूम बच्ची पर मंथन किया. मंथन करते करते उन के सामने मानसी का चेहरा आ गया. मानसी कमल कुरील की बेटी थी. उस की उम्र 7 साल थी. कमल परशुराम के घर के पास रहता था.

वीरन कुरील अंकुल का दोस्त था. पारिवारिक रिश्ते में वह उस का भाई था. वीरन भी नशेड़ी था, सो उस की अंकुल से खूब पटती थी. अंकुल ने वीरन को सारी बात बताई और उसे भी अपने साथ मिला लिया था. अब अंकुल के साथ वीरन भी परशुराम के घर जाने लगा और नशेबाजी करने लगा.

14 नवंबर, 2020 को दीपावली थी. अंकुल और वीरन शाम 5 बजे परशुराम के घर पहुंच गए. परशुराम ने दोनों को खूब शराब पिलाई. सुनयना ने दोनों को कलेजा लाने की एवज में 1500 रुपए देने का भरोसा दिया.

इस के बाद उस ने अंकुल व वीरन को गोश्त काटने वाले 2 चाकू दिए. इन चाकुओं को पत्थर पर घिस कर दोनों ने धार बनाई. सुनयना ने महावर की एक शीशी अंकुल को दी और कुछ आवश्यक निर्देेश दिए.

शाम 6 बजे अंकुल और वीरन परशुराम के घर से निकले, तब तक अंधेरा घिर चुका था. वे दोनों जब कमल के घर के सामने आए तो उन की निगाह मासूम मानसी पर पड़ी. वह नए कपड़े पहने पेड़ के नीचे एक बच्ची के साथ खेल रही थी. अंकुल ने मानसी को बुलाया और पटाखों का लालच दिया.

मानसी पर मौत का साया मंडरा रहा था. वह मान गई और अंकुल के साथ चल दी. दोनों मानसी को ले कर गांव के बाहर आए और फिर भद्रकाली मंदिर की ओर चल पड़े. मानसी को आशंका हुई तो उस ने पूछा, ”भैया, कहां ले जा रहे हो?’’

यह सुनते ही अंकुल ने उस का मुंह दबा दिया और वीरन ने चाकू चुभो कर उसे डराया, जिस से उस की घिग्घी बंध गई. फिर वे दोनों मानसी को भद्रकाली मंदिर के पास ले गए और नीम के पेड़ के नीचे पटक दिया.

उन दोनों ने मानसी के शरीर से कपड़े अलग किए तो उन के अंदर का शैतान जाग उठा. उन्होंने बारीबारी से उस के साथ दुराचार किया. इस बीच मासूम चीखी तो उन्होंने अंगौछे से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई.

इस के बाद सुनयना के निर्देशानुसार अंकुल ने मानसी के पैरों में लाल रंग लगाया तथा माथे पर टीका किया. फिर चाकू से उस का पेट चीर डाला. अंदर से अंग काट कर निकाल लिए और कलेजा पौलीथिन में रख कर वहां से निकल लिए. रास्ते में पानी भरे एक गड्ढे में बाकी अंग फेंक दिए और कलेजा ला कर परशुराम को दे दिया.

शराब से धो कर दोनों ने खाया कलेजा

परशुराम ने कलेजे को शराब से धोया फिर चाकू से उस के 2 टुकड़े किए. उस ने एक टुकड़ा स्वयं खा लिया तथा दूसरा टुकड़ा पत्नी सुनयना को खिला दिया. सुनयना ने खुश हो कर 500 रुपए अंकुल को और 1,000 रुपए वीरन को दिए. उस के बाद वे दोनों अपनेअपने घर चले गए.

इधर दीया जलाते समय कमल को मानसी नहीं दिखी तो उस ने खोज शुरू की. कमल व उस की पत्नी जयश्री रात भर बेटी की खोज करते रहे. लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला. सुबह गांव के कुछ लोगों ने उसे बेटी की हत्या की जानकारी दी. तब वह वहां पहुंचा. इसी बीच किसी ने घटना की जानकारी थाना घाटमपुर पुलिस को दे दी थी.

17 नवंबर, 2020 को पुलिस ने अभियुक्त अंकुल, वीरन, परशुराम व सुनयना को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन चारों को जिला जेल भेज दिया गया.

जेल जाने के बाद आरोपियों ने अपने वकीलों के माध्यम से जमानत पाने का प्रयास किया, लेकिन उन के खिलाफ ठोस सबूत मिल जाने से उन को जमानत नहीं मिली. इस चर्चित कांड में मुकदमे के विवेचना अधिकारी इंसपेक्टर राजीव सिंह ने विवेचना कर के सबूतों सहित सभी साक्ष्य जुटा कर आरोपियों के खिलाफ गैंगरेप, हत्या, शव गायब करने तथा पोक्सो एक्ट सहित अन्य धाराओं में 37 दिन में अदालत में आरोप पत्र दाखिल कर दिया.

अदालत में करीब 3 साल तक इस बहुचर्चित मामले की काररवाई चलती रही, जिस में 10 गवाहों के बयान भी दर्ज किए गए. इन गवाहों में अदालत ने गांव के झोलाछाप डाक्टर रवि तथा मृतका के साथ खेल रही पड़ोस की लड़की का बयान अहम माना. इन दोनों ने ही आरोपी अंकुल का नाम पुलिस को बताया था.

पोस्टमार्टम करने वाले 2 डाक्टरों की गवाही को भी अदालत ने अहम माना. शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने भी केस की जम कर पैरवी की. न्यायालय में पेश हुए साक्ष्यों के आधार पर ही अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने आरोपियों को दोषी ठहराया.

सजा सुनाने के लिए अपर जिला जज साहब शाम 4 बजे कोर्ट में पहुंच गए. उस समय आरोपियों के अलावा मामले से जुड़े सभी वकील व मानसी के मातापिता तथा अन्य लोग भी कोर्टरूम में मौजूद थे.

अपर जिला जज वाकर शमीम रिजवी ने बिना कोई भूमिका बनाए सीधे फैसला सुनाते हुए कहा, ”अभियुक्त अंकुल व वीरन ने अमानवीय तथा हृदयविदारक जघन्य अपराध किया था. अपराध प्रवृत्ति को देखते हुए दोनों समाज के लिए खतरा हैं. ऐसे हालात में उन के साथ नरमी का रुख अपनाए जाने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.

”6 साल की मासूम बच्ची का अपहरण कर गैंगरेप करना फिर हत्या कर कलेजा निकालना जघन्य अपराध माना जाना न्यायोचित प्रतीत होता है. इसलिए अभियुक्त अंकुल व वीरन को उम्रकैद की सजा दी जाती है. सजा के साथ दोनों को 45-45 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है. अर्थदंड न देने पर 6 माह की सजा और भुगतनी होगी.’’

कुछ क्षण रुकने के बाद जज साहब ने कहा, ”आरोपी दंपति परशुराम व सुनयना ने नियोजित तरीके से षडयंत्रपूर्वक अपराध किया था. उन दोनों ने संतान पाने के लिए 7 साल की बच्ची का कलेजा सहयोगियों के मार्फत मंगवाया और फिर खाया. उन का यह अपराध अतिगंभीर व हृदयविदारक है.

उन के खिलाफ नरमी का रुख अपनाया जाना न्यायोचित नहीं होगा. अत: उन्हें उम्रकैद की सजा दी जाती है. सजा के साथ दोनों को 20-20 हजार रुपए के अर्थदंड से भी दंडित किया जाता है. अर्थदंड न देने पर 6 माह की सजा और भुगतनी होगी.’’

अदालत का फैसला आते ही कमल व उस की पत्नी जयश्री की आंखें छलक पड़ीं. शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय के साथ मौजूद कमल ने रुंधे गले से कहा कि हमें सजा से संतोष तो है, लेकिन दोषियों को फांसी होती तो हमारे कलेजे को और ठंडक मिल जाती.

शासकीय अधिवक्ता प्रदीप पांडेय ने कहा कि उन्होंने कोर्ट से केस के रेयरेस्ट औफ द रेयर होने की बात कह कर फांसी की सजा की मांग की थी, लेकिन कोर्ट का फैसला उम्रकैद आया. हम अध्ययन करेंगे और यदि कुछ बिंदु निकलते हैं तो फांसी के लिए हाईकोर्ट में अपील भी करेंगे.

सजा सुनाए जाने के बाद चारों दोषियों परशुराम, सुनयना, अंकुल व वीरन को कानपुर देहात की माती जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक चारों दोषी माती जेल में बंद थे.

—कथा अदालत के फैसले पर आधारित. कथा में मानसी, कमल और जयश्री परिवर्तित नाम हैं.

आग बनी शोला : जब पति और बेटे बने जान के दुश्मन

उस दिन जून 2019 की 10 तारीख थी. रात के 10 बज रहे थे. कानपुर के थाना अनवरगंज के थानाप्रभारी रमाकांत  पचौरी क्षेत्र में गश्त पर थे. गश्त करते हुए जब वह डिप्टी पड़ाव चौराहा पहुंचे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई.

उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं गुरुवतउल्ला पार्क के पास से पप्पू बोल रहा हूं. हमारे घर के सामने पूर्व सभासद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन किराए के मकान में रहती है. उस के घर के बाहर तो ताला बंद है, लेकिन घर के अंदर से चीखने चिल्लाने की आवाजें आ रही हैं. लगता है, उस घर के अंदर किसी की जान खतरे में है. आप जल्दी आ जाइए.’’

डिप्टी पड़ाव से गुरुवतउल्ला पार्क की दूरी ज्यादा नहीं थी. अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी चंद मिनटों बाद ही बताई गई जगह पहुंच गए. वहां एक मकान के सामने भीड़ जुटी थी.

भीड़ में से एक व्यक्ति निकल कर बाहर आया और बोला, ‘‘सर, मेरा नाम पप्पू है और मैं ने ही आप को फोन किया था. अब घर के अंदर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आनी बंद हो चुकी हैं.’’

रमाकांत पचौरी ने सहयोगी पुलिसकर्मियों की मदद से उस मकान का ताला तोड़ा फिर घर के अंदर गए. कमरे में पहुंचते ही पचौरी सहम गए. क्योंकि कमरे के फर्श पर एक महिला की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. पड़ोसियों ने बताया कि यह तो शहला परवीन है. इस की हत्या किस ने कर दी.

शव के पास ही खून सनी ईंट तथा एक मोबाइल फोन पड़ा था. लग रहा था कि उसी ईंट से सिर व मुंह पर प्रहार कर बड़ी बेरहमी से उस की हत्या की गई थी. शहला की उम्र यही कोई 35 साल के आसपास थी. पुलिस ने लाश के पास पड़ा फोन सबूत के तौर पर सुरक्षित कर लिया.

घनी आबादी वाले मुसलिम इलाके में पूर्व पार्षद नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन की हत्या की सूचना थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी तो कुछ ही देर में एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (क्राइम) राजेश कुमार, एसपी (पूर्वी) राजकुमार, सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह तथा सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एसएसपी अनंतदेव ने फारैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. बढ़ती भीड़ तथा उपद्रव की आशंका को देखते हुए एसएसपी ने रायपुरवा, चमनगंज तथा बेकनगंज थाने की फोर्स भी बुलवा ली. पूरे क्षेत्र को उन्होंने छावनी में तब्दील कर दिया.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो वह भी आश्चर्यचकित रह गए. शहला परवीन की हत्या बड़ी ही बेरहमी से की गई थी. उस के शरीर पर लगी चोटों के निशानों से स्पष्ट था कि हत्या से पहले शहला ने हत्यारों से अपने बचाव के लिए संघर्ष किया था.

कमरे के अंदर रखी अलमारी और बक्सा खुला पड़ा था, साथ ही सामान भी बिखरा हुआ था. देखने से ऐसा लग रहा था कि हत्या के बाद हत्यारों ने लूटपाट भी की थी. शहला का शव जिस कमरे में पड़ा था, उस का एक दरवाजा पीछे की ओर गली में भी खुलता था.

पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि वारदात को अंजाम देने के बाद हत्यारे पीछे वाले दरवाजे से ही फरार हुए होंगे और इसी रास्ते से अंदर आए होंगे. पुलिस अधिकारियों के मुआयने के बाद फोरैंसिक टीम ने भी जांच की और साक्ष्य जुटाए. टीम ने अलमारी, बक्सा, ईंट आदि से फिंगरप्रिंट भी उठाए.

भाई ने बताए हत्यारों के नाम

अब तक सूचना पा कर मृतका का भाई तारिक शादाब भी वहां आ गया था. बहन की लाश देख कर वह फफकफफक कर रोने लगा. थानाप्रभारी ने उसे धैर्य बंधाया फिर पूछताछ की. तारिक शादाब ने बताया कि उस की बहन की हत्या उस के पति मोहम्मद शाकिर और बेटों शाकिब व अर्सलान उर्फ कल्लू ने की है. उस ने कहा कि हत्या में शाकिर का बहनोई गुड्डू भी शामिल है, जो कुख्यात अपराधी है.

पुलिस अधिकारियों ने पड़ोसी पप्पू से पूछताछ की. उस ने भी बताया कि शहला के पति व बेटों को उस ने शहला के घर के आसपास देखा था. उस ने उन्हें टोका भी था. तब उन्होंने उसे धमकी दी थी कि टोकाटाकी करोगे तो परिणाम भुगतोगे.

उन की धमकी से वह डर गया था. पप्पू ने भी शहला के पति व बेटों पर शक जाहिर किया. कुछ अन्य लोगों ने बताया कि शहला का पति उस के चरित्र पर शक करता था. शायद अवैध संबंधों में ही उस के पति ने उसे हलाल कर दिया है.

अब तक हत्या को ले कर वहां मौजूद भीड़ उत्तेजित होने लगी थी. अत: पुलिस अधिकारियों ने आनन फानन में शहला परवीन के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. बवाल व तोड़फोड़ की आशंका को देखते हुए घटनास्थल के आसपास पुलिस तैनात कर दी.

चूंकि मृतका शहला परवीन के भाई तारिक शादाब ने अपने बहनोई व भांजे पर हत्या का शक जाहिर किया था, अत: थानाप्रभारी रमाकांत पचौरी ने तारिक शादाब की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद शाकिर, उस के दोनों बेटे शाकिब, अर्सलान तथा शाकिर के बहनोई गुड्डू हलवाई के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद हत्यारोपियों को पकड़ने के लिए एसएसपी अनंतदेव ने एसपी (क्राइम) राजेश कुमार की अगुवाई में एक पुलिस टीम गठित कर दी. टीम में थानाप्रभारी रमाकांत, सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन, एसआई राम सिंह, देवप्रकाश, कांस्टेबल अतुल कुमार, दयाशंकर सिंह, राममूर्ति यादव, मोहम्मद असलम तथा अब्दुल रहमान को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतका के भाई तारिक शादाब से विस्तृत जानकारी हासिल कर उस का बयान दर्ज किया. पुलिस ने मृतका के पड़ोसी पप्पू से भी कुछ अहम जानकारियां हासिल कीं. इस के बाद पुलिस टीम मृतका शहला परवीन की मां नफीसा बाजी (पूर्व पार्षद) के घर दलेलपुरवा पहुंची. नफीसा बाजी बीमार थीं. बेटी की हत्या की खबर सुन कर उन की तबीयत और बिगड़ गई. पुलिस ने जैसे तैसे कर के उन का बयान दर्ज किया.

चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस ने आरोपियों की तलाश के लिए उन के घर दबिश दी तो वह सब घर से फरार मिले. पुलिस टीम ने उन्हें तलाशने के लिए उन के संभावित ठिकानों पर ताबड़तोड़ दबिश दी. लेकिन आरोपी पकड़ में नहीं आए. तब इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी ने अपने कुछ खास मुखबिरों को आरोपियों की टोह में लगा दिया और खुद भी उन्हें तलाशने में लगे रहे.

12 जून, 2019 की दोपहर को मुखबिर ने थानाप्रभारी को आरोपियों के बारे में खास सूचना दी. मुखबिर की सूचना पर थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ तुरंत हमराज कौंप्लैक्स पहुंच गए.

जैसे ही उन की जीप रुकी तो वहां से 3 लोग चाचा नेहरू अस्पताल की ओर भागे, लेकिन पुलिस टीम ने उन को कुछ ही दूरी पर धर दबोचा. उन से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम मोहम्मद शाकिर, शाकिब तथा अर्सलान उर्फ कल्लू बताए. इन में शाकिब तथा अर्सलान शाकिर के बेटे थे. पुलिस उन तीनों को थाने ले आई. उन की गिरफ्तारी की खबर सुन कर एसपी (क्राइम) राजेश कुमार और सीओ सैफुद्दीन भी थाने पहुंच गए.

थाने में एसपी (क्राइम) राजेश कुमार तथा सीओ सैफुद्दीन ने उन तीनों से शहला परवीन की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की तो वे टूट गए और उन्होंने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मोहम्मद शाकिर ने बताया कि उस की पत्नी शहला परवीन चरित्रहीन थी. उस की बदलचलनी की वजह से समाज में उस की इज्जत खाक में मिल गई थी. हम ने उसे बहुत समझाया, नहीं मानी तो अंत में उस की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा. हम तो उस के आशिक रेहान को भी मार डालते, लेकिन वह बच कर भाग गया.

चूंकि मोहम्मद शाकिर तथा उस के बेटों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था. अत: पुलिस ने उन तीनों को हत्या के जुर्म में विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच तथा अभियुक्तों के बयानों के आधार पर एक ऐसी औरत की कहानी सामने आई, जिस ने बदचलन हो कर न सिर्फ अपने शौहर से बेवफाई की बल्कि बेटों को भी समाज में शर्मसार किया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के अनवरगंज थानांतर्गत एक मोहल्ला है दलेलपुरवा. इसी मोहल्ले में हरी मसजिद के पास मोहम्मद याकूब अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी नफीसा बाजी के अलावा 2 बेटे तारिक शादाब, असलम और एक बेटी शहला परवीन थी. मोहम्मद याकूब का कपड़े का व्यापार था. व्यापार से होने वाली आमदनी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. व्यापार में उन के दोनों बेटे भी उन का सहयोग करते थे.

मोहम्मद याकूब जहां व्यापारी थे, वहीं उन की पत्नी नफीसा बाजी की राजनीति में दिलचस्पी थी. वह समाजवादी पार्टी की सक्रिय सदस्य थीं. दलेलपुरवा क्षेत्र से उन्होंने 2 बार पार्षद का चुनाव लड़ा, पर हार गई थीं. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. वह पार्टी के साथसाथ समाजसेवा में जुटी रहीं. तीसरी बार जब उन्हें पार्टी से टिकट मिला तो वह पार्षद का चुनाव लड़ीं. इस बार वह जीत कर दलेलपुरवा क्षेत्र की पार्षद बन गईं.

नफीसा बाजी की बेटी शहला परवीन भी उन्हीं की तरह तेजतर्रार थी. वैसे तो शहला बचपन से ही खूबसूरत थी, लेकिन जब वह जवान हुई तो वह पहले से ज्यादा खूबसूरत दिखने लगी थी. जब वह बनसंवर कर घर से निकलती तो देखने वाले देखते ही रह जाते. शहला पढ़ने में भी तेज थी. उस ने फातिमा स्कूल से हाईस्कूल तथा जुबली गर्ल्स इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी.

शहला शादी लायक हो चुकी थी, मोहम्मद याकूब उस का निकाह कर उसे मानमर्यादा के साथ ससुराल भेजना चाहते थे. एक दिन मोहम्मद याकूब ने अपने पड़ोसी जावेद खां से बेटी के रिश्ते के बारे में बात की तो वह उत्साह में भर कर बोला, ‘‘याकूब भाई, मेरी जानपहचान में एक अच्छा लड़का है मोहम्मद शाकिर. वह चमनगंज में रहता है और कपड़े का व्यवसाय करता है. जिस दिन फुरसत में हो, मेरे साथ चमनगंज चल कर उसे देख लेना. सब कुछ ठीक लगे तो बात आगे बढ़ाएंगे.’’

शाकिर से हो गया निकाह

एक सप्ताह बाद मोहम्मद याकूब जावेद के साथ चमनगंज गए. मोहम्मद शाकिर साधारण शक्ल वाला हंसमुख युवक था. उस में आकर्षण जैसी कोई बात नहीं थी. परंतु वह कमाऊ था, उस का परिवार भी संपन्न था. इस के विपरीत शहला परवीन चंचल व खूबसूरत थी.

कहीं बेटी गलत रास्ते पर न चल पड़े, सोचते हुए मोहम्मद याकूब ने शाकिर को अपनी बेटी शहला परवीन के लिए पसंद कर लिया. इस बारे में उन्होंने बेटी की राय लेनी भी जरूरी नहीं समझी. इस के बाद आगे की बातचीत शुरू हो गई. बातचीत के बाद दोनों पक्षों की सहमति से रिश्ता पक्का हो गया.

तय तारीख को मोहम्मद शाकिर की बारात आई, निकाह हुआ और शहला परवीन शाकिर के साथ विदा कर दी गई. यह सन 1998 की बात है.

सुहागरात को शहला परवीन ने अपने शौहर शाकिर को देखा तो उस के अरमानों पर पानी फिर गया. पति मोहमद शाकिर किसी भी तरह से उसे पसंद नहीं था. उस रात वह दिखावे के तौर पर खुश थी, पर मन ही मन कुढ़ रही थी.

सप्ताह भर बाद शहला का भाई तारिक उसे लेने आ पहुंचा. तभी मौका देख कर शाकिर ने शहला से कहा, ‘‘दुलहन का मायके जाना रिवाज है. रिवाज के मुताबिक तुम्हें मायके भेजना ही पड़ेगा. खैर तुम जाओ. तुम्हारे बिना किसी तरह हफ्ता 10 दिन रह लूंगा.’’

शहला परवीन ने शौहर को घूर कर देखा और कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अपनी यह मनहूस सूरत ले कर मेरे मायके मत आना. नहीं तो तुम्हें देख कर मेरी सहेलियां हंसेंगी. कहेंगी देखो शहला जैसी हूर का लंगूर शौहर आया है.’’

यह सुन कर शाकिर को लगा, जैसे किसी ने उस के कानों में गरम शीशा उड़ेल दिया हो. वह पत्नी को देखता रहा और वह भाई के साथ मायके चली गई. 8-10 दिन बाद जब शहला को विदा कर लाने की तैयारी शुरू हुई तो शाकिर ने घर वालों के साथ ससुराल जाने से इनकार कर दिया. तब घर वाले ही शहला को विदा करा लाए.

शाकिर को विश्वास था कि ससुराल आ कर शहला शिकायत करेगी कि सब आए पर तुम नहीं आए. लेकिन ऐसा कुछ कहने के बजाए शहला ने उलटा शौहर की छाती में शब्दों का भाला घोंप दिया, ‘‘अच्छा हुआ तुम नहीं आए, वरना तमाशा बन जाते और शर्मिंदा मुझे होना पड़ता.’’

छाती में शब्दों के शूल चुभने के बावजूद शाकिर चुप रहा. उस का विचार था कि वह अपने प्रेम से शहला का दिल जीत लेगा और खुदबखुद सब ठीक हो जाएगा. शहला को उस की जो शक्ल बुरी लगती है, वह अच्छी लगने लगेगी.

शाकिर ने की दिल जीतने की कोशिश

शाकिर पत्नी को प्यार से जीतने की कोशिश करता रहा और शहला उसे दुत्कारती रही. इस तरह प्यार और नफरत के बीच उन की गृहस्थी की गाड़ी ऐसे ही चलती रही.

समय बीतता गया और शहला 2 बेटों शाकिब व अर्सलान की मां बन गई. शाकिर को विश्वास था कि बच्चों के जन्म के बाद शहला के व्यवहार में कुछ बदलाव जरूर आएगा, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. उस का बर्ताव पहले जैसा ही रहा.

वह बच्चों की परवरिश पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देती थी और अपनी ही दुनिया में खोई रहती थी. उसे घर में कैद रहना पसंद न था, इसलिए वह अकसर या तो मायके या फिर बाजार घूमने निकल जाती थी. शाकिर रोकटोक करता तो वह उस से उलझ जाती और अपने भाग्य को कोसती.

शहला परवीन की अपने शौहर से नहीं पटती थी. इसलिए दोनों के बीच दूरियां बनी रहती थीं. शहला का मन पुरुष सुख प्राप्त करने के लिए भटकता रहता था, लेकिन उसे कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था.

उन्हीं दिनों शहला के जीवन में मुबीन ने प्रवेश किया. मुबीन अपराधी प्रवृत्ति का था. अनवरगंज क्षेत्र में उस की तूती बोलती थी. व्यापारी वर्ग तो उस के साए से भी डरता था.

वह व्यापारियों से हफ्ता वसूली करता था. शाकिर का कपड़े का व्यवसाय था. मुबीन शाकिर से भी रुपए वसूलता था. शहला परवीन मुबीन को अच्छी तरह जानती थी लेकिन शौहर के रहते वह उस के सामने नहीं आती थी.

एक रोज शहला घर में अकेली थी, तभी मुबीन उस के घर में बेधड़क दाखिल हुआ और दबे पांव जा कर शहला के पीछे खड़ा हो गया. शहला किसी काम में ऐसी व्यस्त थी कि उसे भनक तक नहीं लगी कि कोई उस के पीछे आ खड़ा हुआ है. शहला तब चौंकी जब मुबीन ने कहा, ‘‘शहला भाभी नमस्ते.’’

शहला फौरन पलटी. मुबीन को देख कर उस का चेहरा फूल की तरह खिल गया. वह अपने चेहरे पर मुसकान बिखरते हुए बोली, ‘‘नमस्ते मुबीन भाई, तुम कब आए, मुझे पता ही नहीं चला. बताओ, कैसे आना हुआ? तुम्हारे भैया तो घर पर हैं नहीं.’’

‘‘भैया नहीं हैं तो क्या हुआ. क्या भाभी से मिलने नहीं आ सकता?’’ मुबीन भी हंसते हुए बोला.

‘‘क्यों नहीं?’’ कहते हुए शहला उस के पास बैठ कर बतियाने लगी. बातों ही बातों में मुबीन बोला, ‘‘भाभी, एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी.’’

‘‘एक नहीं चार कहो, मैं बिलकुल बुरा नहीं मानूंगी.’’ शहला ने कहा.

‘‘भाभी, कसम से तुम इतनी खूबसूरत हो कि कितना भी देखूं, जी नहीं भरता.’’ वह॒ बोला.

‘‘धत…’’ कहते हुए शहला के गालों पर लाली उतर आई. कुछ देर बतियाने के बाद मुबीन वहां से चला गया.

इस के बाद मुबीन का शहला के घर आनेजाने लगा. दोनों एकदूसरे की बातों में रमने लगे. शहला और मुबीन हमउम्र थे, जबकि शहला का पति शाकिर उम्र में उस से 6-7 साल बड़ा था. मुबीन शरीर से हृष्टपुष्ट तथा स्मार्ट था. क्षेत्र में उस की हनक भी थी, सो शहला उस से प्यार करने लगी. वह सोचने लगी कि काश उसे मुबीन जैसा छबीला पति मिलता.

मुबीन भी शहला को चाहने लगा था. आते जाते मुबीन ने शहला से हंसीमजाक के माध्यम से अपना मन खोलना शुरू किया तो शहला भी खुलने लगी. आखिर एक दिन दोनों के बीच नाजायज संबंध बन गए. इस के बाद जब भी मौका मिलता, दोनों शारीरिक भूख मिटा लेते. शहला को अब पति की कमी नहीं खलती थी.

शहला और मुबीन के नाजायज रिश्ते ने रफ्तार पकड़ी तो पड़ोसियों के कान खड़े हो गए. एक आदमी ने शाकिर को टोका, ‘‘शाकिर भाई, तुम दिनरात कमाई में लगे रहते हो. घर की तरफ भी ध्यान दिया करो.’’

‘‘क्यों, मेरे घर को क्या हुआ? साफ साफ बताओ न.’’ शाकिर ने पूछा.

‘‘साफ साफ सुनना चाहते हो तो सुनो. तुम्हारे घर पर बदमाश मुबीन का आना जाना है. तुम्हारी लुगाई से उस का चक्कर चल रहा है.’’ उस ने सब बता दिया.

उस की बात सुन कर शाकिर का माथा ठनका. जरूर कोई चक्कर है. अफवाहें यूं ही नहीं उड़तीं. उन में कुछ न कुछ सच्चाई जरूर होती है.

शाम को शाकिर जब घर लौटा तो उस ने पत्नी से पूछा, ‘‘शहला, मैं ने सुना है मुबीन तुम से मिलने घर आता है. वह भी मेरी गैरमौजूदगी में.’’

शहला न डरी न घबराई बल्कि बेधड़क बोली, ‘‘मुबीन आता है पर मुझ से नहीं तुम से मिलने आता है. तुम नहीं मिलते तो चला जाता है.’’

‘‘तुम उसे मना कर दो कि वह घर न आया करे. उस के आने से मोहल्ले में हमारी बदनामी होती है.’’

‘‘मुझ से क्यों कहते हो, तुम खुद ही उसे क्यों नहीं मना कर देते.’’

‘‘ठीक है, मना कर दूंगा.’’

इस के बाद शाकिर मुबीन से मिला और उस ने उस से कह दिया कि वह उस की गैरमौजूदगी में उस के घर न जाया करे.

शाकिर की बात सुनते ही मुबीन उखड़ गया. उस ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई. शाकिर डर गया और अपनी जुबान बंद कर ली. मुबीन बिना रोकटोक उस के घर आता रहा और शहला के साथ मौजमस्ती करता रहा.

मुबीन ने जब शाकिर का सुखचैन छीन लिया तब उस ने अपने रिश्तेदारों को घर बुलाया और इस समस्या से निजात पाने के लिए विचार विमर्श किया. आखिर में तय हुआ कि इज्जत तभी बच सकती है, जब मुबीन को ठिकाने लगा दिया जाए.

इस के बाद शाकिर के भाई, शहला के भाई और मामा ने मिल कर दिनदहाड़े खलवा में मुबीन की हत्या कर दी. हत्या के आरोप में सभी को जेल जाना पड़ा. यह बात सन 2012 की है.

इस घटना के बाद करीब 4 साल तक घर में शांति रही. शहला का शौहर के प्रति व्यवहार भी सामान्य रहा. अब तक शहला के दोनों बेटे शाकिब और अर्सलान भी जवान हो गए थे. बापबेटे रोजाना सुबह 10 बजे घर से निकलते तो फिर देर शाम ही घर लौटते थे. कपड़ों की बिक्री का हिसाब किताब लगा कर, खाना खा कर वे सो जाते थे.

शहला परवीन न शौहर के प्रति वफादार थी और न ही उसे बेटों से कोई लगाव था. वह तो खुद में ही मस्त रहती थी. बनसंवर कर रहना और घूमना फिरना उस की दिनचर्या में शामिल था. उस का बनाव शृंगार देख कर कोई कह नहीं सकता था कि वह 2 जवान बच्चों की मां है.

शहला को घर में सभी सुख सुविधाएं हासिल थीं पर शौहर की बांहों का सुख प्राप्त नहीं हो पाता था. शाकिर अपने धंधे में लगा रहता था. काम की वजह से बीवी से भी दूरियां बनी रहती थीं. दूसरी ओर शहला उसे पसंद भी नहीं करती थी. वह तो किसी नए प्रेमी की तलाश में थी. हालांकि इस खेल में उसे शौहर तथा जवान बच्चों का डर लग रहा था.

उसी दौरान उस की नजर रेहान पर पड़ी. रेहान गम्मू खां के अहाते में रहता था और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता था. वह उस का दूर का रिश्तेदार भी था. उस का जब तब शहला के यहां आनाजाना लगा रहा था. वह हैंडसम था.

शहला परवीन का दिल रेहान पर आया तो वह उसे खुला आमंत्रण देने लगी, आंखों के तीरों से उसे घायल करने लगी. खुला आमंत्रण पा कर रेहान भी उस की ओर आकर्षित होने लगा. जब भी उसे मौका मिलता, शहला के साथ हंसीमजाक और छेड़छाड़ कर लेता. शहला उस की हंसीमजाक का जरा भी बुरा नहीं मानती थी. दोनों के पास एकदूसरे का मोबाइल नंबर था. जल्दी ही दोनों की मोबाइल पर प्यारभरी बातें होने लगीं.

आदमी हो या औरत, मोहब्बत होते ही उस का मन कल्पना की ऊंची उड़ान भरने लगता है. रेहान और शहला का भी यही हाल था. दोनों मोहब्बत की ऊंची उड़ान भरने लगे थे. आखिर एक रोज रेहान ने चाहत का इजहार किया तो शहला ने इकरार करने में जरा भी देर नहीं लगाई. इतना ही नहीं, शहला ने उसी समय अपनी बांहों का हार रेहान के गले में डाल दिया.

इस के बाद दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता बनते देर नहीं लगी. एक बार अवैध रिश्ता बना तो उस का दायरा बढ़ता गया. शहला अब पति की कमी प्रेमी से पूरी करने लगी. उसे जब भी मौका दिखता, फोन कर रेहान को अपने यहां बुला लेती और दोनों रंगरलियां मनाते.

कभी कभी रेहान शहला को होटल में भी ले जाता था, जहां वे मौजमस्ती करते. शहला परवीन रेहान के साथ घूमने फिरने भी जाने लगी. रेहान उसे कभी बाहर पार्क में ले जाता तो कभी तुलसी उपवन. वहां दोनों खूब बतियाते.

पर एक दिन शाकिर ने शहला और रेहान को अपने ही घर में आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. वे दोनों एकदूसरे की बांहों में इस कदर मस्त थे कि उन्हें खबर ही नहीं हुई कि दरवाजे पर खड़ा शाकिर उन की कामलीला देख रहा है.

घर में अनाचार होते देख शाकिर का खून खौल उठा. उस ने दोनों को ललकारा तो रेहान सिर पर पैर रख कर भाग गया लेकिन शहला कहां जाती. शाकिर ने सारा गुस्सा उसी पर उतारा. उस ने पीट पीट कर पत्नी को अधमरा कर दिया.

शाकिर ने शहला को रंगे हाथों पकड़ने की जानकारी अपने दोनों बेटों को दी तो बेटों ने भी मां को खूब लताड़ा. शौहर और बेटों ने शहला को जलील किया. इस के बावजूद उस ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा.

कुछ दिनों बाद ही वह घर से बाहर रेहान से मिलने लगी. चोरी छिपे मिलने की जानकारी शाकिर को हुई तो उस ने फिर से शहला की पिटाई की. इस के बाद तो यह सिलसिला ही चल पड़ा.

जब भी शाकिर को दोनों के मिलने की जानकारी होती, उस दिन शहला की शामत आ जाती. लेकिन पिटाई के बावजूद जब शहला ने रेहान का साथ नहीं छोड़ा तो आजिज आ कर शाकिर ने शहला को तलाक दे दिया. तलाक के मामले में बेटों ने बाप का ही साथ दिया. यह बात जनवरी, 2018 की है.

शौहर से तलाक मिलने के बाद शहला कुछ महीने मायके दलेलपुरवा में रही. उस के बाद उस ने अनवरगंज थाना क्षेत्र के डिप्टी पड़ाव में गुरुवतउल्ला पार्क के पास किराए पर मकान ले लिया और उसी में रहने लगी. इस मकान में उस का प्रेमी रेहान भी आने लगा. शहला को अब कोई रोकने टोकने वाला नहीं था, सो वह प्रेमी के साथ खुल कर मौज लेने लगी.

रेहान के पास पैसों की कमी नहीं थी, सो वह शहला पर दिल खोल कर खर्च करता था. पे्रमी के आनेजाने की जानकारी पड़ोसियों को न हो, इस के लिए वह मकान के आगे वाले गेट पर ताला लगाए रखती थी और पीछे के दरवाजे से आती जाती थी. इसी पीछे वाले दरवाजे से उस का प्रेमी रेहान भी आता था.

शहला और रेहान के अवैध संबंधों की जानकारी शाकिर के घर वालों व नाते रिश्तेदारों को भी थी. इस से पूरी बिरादरी में उस की बदनामी हो रही थी. उस के दोनों बेटे शादी योग्य थे. पर मां शहला की चरित्रहीनता के कारण बेटों का रिश्ता नहीं हो पा रहा था. आखिर आजिज आ कर शाकिर ने शहला और रेहान को सबक सिखाने की योजना बनाई. अपनी इस योजना में शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई तथा दोनों बेटों को भी शामिल कर लिया.

बन गई हत्या की योजना

10 जून, 2019 की रात 8 बजे शाकिर को एक रिश्तेदार के माध्यम से पता चला कि शहला के घर में रेहान मौजूद है और वह आज रात को वहीं रुकेगा. यह खबर मिलने के बाद शाकिर ने अपने बहनोई गुड्डू हलवाई को बुला लिया. फिर बहनोई व बेटों के साथ शाकिर शहला के घर जा पहुंचा. घर के बाहर गेट पर ताला लगा था. वे लोग पीछे के दरवाजे से घर के अंदर दाखिल हुए.

घर के अंदर कमरे में रेहान और शहला आपत्तिजनक अवस्था में थे. शाकिर ने उन दोनों को ललकारा और सब मिल कर रेहान को पीटने लगे. प्रेमी को पिटता देख शहला बीच में आ गई. वह प्रेमी को बचाने के लिए पति और बेटों से भिड़ गई. दोनों बेटे मां को पीटने लगे. इसी बीच मौका पा कर रेहान वहां से भाग निकला.

रेहान को भगाने में शहला ने मदद की थी, सो वे सब मिल कर शहला को लात घूंसो से पीटने लगे. इसी समय शाकिर की निगाह वहीं पड़ी ईंट पर चली गई. उस ने लपक कर ईंट उठा ली और उस से शहला के सिर व मुंह पर ताबड़तोड़ प्रहार किए. जिस से शहला का सिर फट गया और खून बहने लगा.

कुछ देर तड़पने के बाद शहला ने दम तोड़ दिया. हत्या के बाद उन सब ने मिल कर अलमारी व बक्से के ताले खोले और उस में रखी नकदी तथा जेवर निकाल लिए तथा सामान बिखेर दिया. फिर पीछे के रास्ते से ही फरार हो गए.

इधर पड़ोसी पप्पू ने शहला के घर चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी तो उस ने थाना अनवरगंज पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही इंसपेक्टर रमाकांत पचौरी घटनास्थल पर आए और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या का परदाफाश हुआ और कातिल पकड़े गए.

13 जून, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त मोहम्मद शाकिर, उस के बेटों शाकिब और अर्सलान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. एक अन्य अभियुक्त गुड्डू हलवाई फरार था. पुलिस उसे पकड़ने का प्रयास कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कुत्ते वाली मैडम के काले कारनामे

कानपुर के साकेत नगर के डब्ल्यू ब्लौक के रहने वाले लोग कुत्ते वाली मैडम से  बहुत परेशान थे. सीमा तिवारी नाम की वह महिला संदीप अग्रवाल के मकान में किराए पर रहती थी. उस ने विदेशी नस्ल का कुत्ता पाल रखा था. वह कुत्ता था तो छोटा सा, लेकिन अकसर भौंकता रहता था. जिस से मोहल्ले वाले डिस्टर्ब होते थे.

इस के अलावा सीमा तिवारी के घर शाम ढलते ही लड़के और लड़कियों की आवाजाही शुरू हो जाती थी. कालोनी के लागों को शक था कि सीमा के घर जरूर कोई गैरकानूनी काम होता है. कुछ लोगों को लगता था कि सीमा चकला घर चलाती है. इस मामले में पुलिस ने काररवाई कराने के लिए कुछ लोग एसपी (साउथ) रवीना त्यागी से मिले.

रवीना त्यागी ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और आश्वासन दिया कि यदि जांच में यह सूचना सही पाई गई तो सीमा तिवारी व अन्य दोषियों के खिलाफ जरूरी काररवाई की जाएगी.

उन के जाने के बाद रवीना त्यागी ने तत्काल किदवई नगर के थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को अपने कार्यालय बुलवा लिया. उन्होंने मिश्रा से कहा कि तुम्हारे थाना क्षेत्र के डब्ल्यू ब्लौक, साकेत नगर में कालगर्ल का धंधा होने की जानकारी मिली है. जांच कर इस मामले में जरूरी काररवाई करो.

कप्तान साहिबा को मिलने के बाद थानाप्रभारी सीधे साकेत नगर पुलिस चौकी पहुंचे. उन्होंने चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह से इस बारे में बात की और इस शिकायत की गोपनीय जांच करने को कहा.

चूंकि मामला कप्तान साहिबा ने सौंपा था इसलिए थानाप्रभारी और चौकी प्रभारी ने अपने मुखबिरों को लगा दिया. इस के 2 दिन बाद ही एक खास मुखबिर ने आ कर बताया कि डब्ल्यू ब्लौक साकेत नगर में टेलीफोन एक्सचेंज के पास वाले मकान में जिस्मफरोशी का धंधा होता है. इस रैकेट की संचालिका सीमा तिवारी है, जो कुत्ते वाली मैडम के नाम से जानी जाती है. सीमा का पति भी इस धंधे में दलाली करता है.

थानाप्रभारी ने इस जानकारी से एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को अवगत करा दिया. चूंकि दबिश के दौरान सीओ स्तर के पुलिस अधिकारी की मौजूदगी जरूरी होती है, इसलिए एसपी ने सीओ मनोज कुमार के नेतृत्व में एक टीम गठित की. इस टीम में थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा, चौकी इंचार्ज डी.के. सिंह के साथसाथ कुछ हैडकांस्टेबल और सिपाहियों को शामिल किया गया.

11 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम ने सीमा तिवारी के अड्डे पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर पुलिस चौंकी. कमरे में 2 अर्धनग्न महिलाएं बिस्तर पर चित पड़ी थीं. उन के साथ 2 युवक कामक्रीड़ा में लीन थे.

पुलिस पर निगाह पड़ते ही दोनों युवकों ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया पर दरवाजे पर खडे़ पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में एक युवती सजी संवरी बैठी थी. शायद उसे ग्राहक के आने का इंतजार था.

महिला सिपाही ने उसे भी हिरासत में ले लिया. कमरे में तलाशी के दौरान सैक्सवर्धक दवाएं तथा कई आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई. पुलिस ने ऐसी सभी चीजें अपने कब्जे में ले लीं. छापे में सरगना के अलावा 3 युवतियां, 2 ग्राहक तथा एक दलाल पकड़ा गया. इन सभी को गिरफ्तार कर पुलिस थाने ले आई.

जिस मकान में सैक्स रैकेट चल रहा था, वह संदीप अग्रवाल का था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. संदीप अग्रवाल के पकड़े जाने से हड़कंप मच गया. कई रसूखदार लोगों ने थानाप्रभारी कुंज बिहारी मिश्रा को फोन किया और संदीप अग्रवाल को निर्दोष बताते हुए उसे छोड़ने के लिए दबाव डाला.

लेकिन मिश्राजी ने जांच में दोषी न पाए जाने के बाद ही रिहा करने की बात कही. पूछताछ में संदीप अग्रवाल ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि वह व्यापारी है. हर साल हजारों रुपया टैक्स देता है. उस ने तो मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. हर पहलू से जांच के बाद जब संदीप अग्रवाल बेकसूर लगा तो पुलिस ने 2 दिन बाद उसे क्लीन चिट दे दी.

सीओ मनोज कुमार ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवक, युवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपने नाम सीमा तिवारी, खुशी, विविता तथा मंतसा बताए. इन में सीमा तिवारी सैक्स रैकेट की संचालिका थी. युवकों ने अपने नाम महेश, शैलेंद्र तथा चंद्रेश तिवारी बताए. इन में चंद्रेश तिवारी सीमा का पति था और वह दलाल भी था.

चूंकि सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए सीओ मनोज कुमार ने वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8 और 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. पूछताछ में देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनीअपनी अलगअलग मजबूरी बताई.

सैक्स रैकेट की संचालिका सीमा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के कुमऊपुर गांव की रहने वाली थी. उस के पिता बाबूराम तिवारी किसान थे. उन के 3 बच्चों में सीमा सब से छोटी थी.

बाबूराम के पास मात्र 2 बीघा खेती की जमीन थी. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. वह एक बेटे तथा एक बेटी की शादी कर चुके थे. सीमा भी शादी योग्य थी, इसलिए वह उस की शादी के लिए प्रयासरत थे.

सीमा तिवारी साधारण परिवार में पलीबढ़ी जरूर थी लेकिन वह थी खूबसूरत. सीमा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. कालेज में कई लड़कों से उस की दोस्ती हो गई थी. उन के साथ वह घूमती और मौजमस्ती करती थी. घर वाले देर से घर आने को टोकाटाकी करते तो सीमा कोई न कोई बहाना बना देती थी.

जवान बेटी कहीं बहक न जाए इसलिए उन्होंने उस के लिए लड़का देखने के प्रयास तेज कर दिए. थोड़ी दौड़धूप करने के बाद घाटपुरम का चंद्रेश तिवारी उन्हें पसंद आ गया. उन्होंने सीमा का विवाह चंद्रेश तिवारी के साथ कर दिया.

सीमा ससुराल में कुछ समय तक ठीक रही, फिर धीरेधीरे वह खुलने लगी. दरअसल सीमा ने जैसे सजीले युवक से शादी का रंगीन सपना देखा था, चंद्रेश वैसा नहीं था. चंद्रेश एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. उस की आमदनी भी सीमित थी. सीमा न तो पति से संतुष्ट थी और न ही उस की आमदनी से. उस की जरूरतें पूरी नहीं होती थीं. इसे ले कर घर में आए दिन कलह होने लगी.

चंद्रेश चाहता था कि सीमा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन सीमा को बंधन मंजूर नहीं था. वह चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका, सासससुर और पति का कठोर बंधन पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर चंद्रेश व सीमा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. आजिज आ कर सीमा पति का साथ छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी.

सीमा को मनाने चंद्रेश कई बार ससुराल आया लेकिन सीमा उसे हर बार दुत्कार कर भगा देती थी. यद्यपि सीमा के मातापिता चाहते थे कि वह  उन की छाती पर मूंग न दले और पति के साथ चली जाए. मांबाप ने सीमा को बहुत समझाया लेकिन जिद्दी सीमा ने उन की बात नहीं मानी. सीमा मायके में पड़ीपड़ी जब बोर होने लगी तो उस ने कानपुर शहर में नौकरी करने की सोची.

कानपुर शहर के जवाहर नगर मोहल्ले में सीमा की मौसी रहती थी. एक रोज वह सीमा से मिलने गई. सीमा पढ़ीलिखी भी थी और खूबसूरत भी. उसे विश्वास था कि जल्द ही कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयापन मजे से होने लगेगा. सीमा ने नौकरी के बाबत मौसी से राय मांगी तो मौसी ने भी उसे नौकरी की इजाजत दे दी.

सीमा नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. सीमा को लगा कि उस का नौकरी का सपना पूरा नहीं होगा.

लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी. आखिर उस का सपना पूरा हुआ. उसे कपड़े की एक फर्म में नौकरी मिल गई. सीमा का काम था सजसंवर कर काउंटर पर बैठना और बिक्री का लेनदेन करना. सीमा अब नोटों की चकाचौंध में रहने लगी थी.

मौसी को जब पता चला कि सीमा और उस के पति चंद्रेश के बीच विवाद है तो विवाद को सुलझाने के लिए मौसी ने पहले सीमा से बात की. फिर उस के पति चंद्रेश को अपने घर बुलवाया. इस के बाद दोनों को आमनेसामने बैठा कर विवाद को सुलझा दिया. फलस्वरूप दोनों साथसाथ रहने को राजी हो गए.

विवाद सुलझाने के बाद सीमा तिवारी पति चंद्रेश के साथ बर्रा 2 में रहने लगी. दोनों की जिंदगी एक बार फिर ठीक से व्यतीत होने लगी. इधर सीमा को फर्म में नौकरी करते  3 महीने ही बीते थे कि उस पर फर्म के मालिक की नीयत खराब हो गई. वह उसे ललचाई नजरों से देखने लगा और एकांत में बुला कर छेड़छाड़ भी करने लगा.

सीमा ने उस की हरकतों का विरोध करना बंद कर दिया तो फर्म मालिक का हौसला बढ़ गया. आखिर एक रोज उस ने सीमा को अपनी हवस का शिकार बना लिया. सीमा रोती रही, गिड़गिड़ाती रही, लेकिन उस हवस के दरिंदे को जरा भी दया नहीं आई.

सीमा का मुंह बंद करने के लिए उस ने 2 हजार रुपए उस के हाथ में थमा दिए. इस के बाद तो यह सिलसिला सा बन गया. जब भी उसे मौका मिलता सीमा से भूख मिटा लेता. आखिर सीमा ने सोचा कि जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी करने की क्या जरूरत है.

इन्हीं दिनों सीमा की मुलाकात अंजलि से हुई. अंजलि बर्रा 2 में रहती थी और सैक्स रैकेट चलाती थी. वह खूबसूरत मजबूर लड़कियों को अपने जाल में फंसाती थी और उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देती थी. सीमा ने अपनी व्यथा अंजलि को बताई तो उस ने सीमा को जिस्मफरोशी का धंधा अपनाने की सलाह दी.

सीमा ने अंजलि की बात मान ली और उस के धंधे से जुड़ गई. सीमा खूबसूरत और जवान थी. ऐसी लड़कियों या औरतों को ग्राहकों की कोई कमी नहीं रहती थी. शुरूशुरू में सीमा को इस धंधे से झिझक हुई. लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई.

सीमा जब जिस्मफरोशी करने लगी और खूब पैसा कमाने लगी तो उसके पति चंद्रश्े को उस पर शक हुआ. क्योंकि वह देर रात घर आती तो कभी पूरी रात नहीं आती थी. चंद्रेश पूछता तो अंजलि सहेली के घर रुकने का बहाना बना देती. लेकिन एक रोज जब चंद्रेश ने सख्ती से पूछा तो उस ने सब सचसच बता दिया. उस ने चंद्रेश से भी अनुरोध किया कि वह भी उस के धंधे में सहयोग करे.

सीमा की बात सुन कर चंद्रेश हक्काबक्का रह गया. उस ने कभी सोचा भी नहीं था कि सीमा इतना गिर सकती है. उसे लगा कि अब सीमा को समझाना व्यर्थ है. क्योंकि उसे नोटों और परपुरुष की लत लग चुकी है. चंद्रेश की पैट्रोल पंप वाली नौकरी छूट गई थी. वह बेरोजगार हो गया था.

पत्नी की कमाई से उसे खाना और पीने को शराब मिल रही थी. सो सीमा के अनैतिक काम का विरोध करने के बजाए वह उस के धंधे का सहयोगी बन गया. अब चंद्रेश भी ग्राहक ढूंढ कर लाने लगा. कह सकते हैं कि वह बीवी का दलाल बन गया.

सीमा तिवारी ने सैक्स रैकेट संचालिका अंजलि के साथ जुड़ कर जिस्मफरोशी के सारे गुर सीख लिए थे. अब वह खुद ही रैकेट चलाने लगी. उस ने अपने जाल में कई और लड़कियां फंसा लीं और जिस्म का सौदा करने लगी.

इस ध्ांधे में उसे अच्छी आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह मकान किराए पर लेती और खूबसूरत व जमान युवतियों को सब्ज बाग दिखा कर अपने जाल में फांसती फिर उन्हें देह व्यापार में उतार देती. वह ज्यादातर साधारण परिवार की उन युवतियों को फंसाती जो अभावों में जिंदगी गुजार रही होती थीं.

सीमा तिवारी खूबसूरत के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्दी ही प्रभावित कर लेती थी. यही कारण था कि ग्राहक एक बार उस के अड्डे पर आता तो वह बारबार आने लगता था.

सीमा वाट्सऐप के जरिए युवतियों की फोटो अपने ग्राहकों को भेजती. फिर पसंद आने पर उन के जिस्म की कीमत तय करती. उस के यहां 500 से 5 हजार रुपए तक की कीमत तय होती. वह टूर बुकिंग भी करती थी, लेकिन उस की कीमत ज्यादा होती थी. उस का पुराना ग्राहक ही नए ग्राहक लाता था.

अलग सैक्स रैकेट चलाने के बावजूद सीमा, अंजलि के संपर्क में रहती थी. वह सीमा के अड्डे पर लड़कियां व ग्राहक भेजती रहती थी. इस के बदले में वह उस से कमीशन लेती थी. सीमा का पति चंद्रेश भी दलाल बन गया था, वह भी ग्राहक लाता था.

सीमा अब बेहद चालाक हो चुकी थी. वह एक क्षेत्र में कुछ माह ही अपना धंधा चलाती थी. जैसे ही क्षेत्र के लोगों को उस के धंधे की सुगबुगाहट होने लगती, वह जगह बदल देती थी. अंजलि अकसर ऐसा मकान या फ्लैट किराए पर लेती थी, जिस में कोई दूसरा किराएदार न रहता हो.

पहले वह बर्रा क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और पनकी क्षेत्र में देहव्यापार चलाने लगी. वहां उस का टकराव एक स्थानीय गुंडे से हो गया था. दरअसल वह गुंडा सीमा से टैक्स वसूलना चाहता था. इस के अलावा वह अय्याशी भी करना चाहता था. सीमा इस गुंडे से परेशान थी और अड्डा बदलना चाहती थी.

मार्च 2019 में सीमा ने किदवई नगर थाना क्षेत्र के डब्लू ब्लौक साकेत नगर में 15 हजार रुपए महीना किराए पर एक मकान ले लिया. यह मकान व्यापारी संदीप अग्रवाल का था, जो किदवई नगर स्थित अपने दूसरे मकान में रहते थे. इस मकान में रह कर सीमा अपने पति चंद्रेश की मदद से सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस के अड्डे पर नए पुराने ग्राहक तथा युवतियों आने जाने लगीं. बर्रा की अंजलि भी उस के अड्डे पर युवतियां और ग्राहक भेजने लगी.

सीमा के पास एक विदेशी नस्ल का कुत्ता था. छोटे कद का वह कुत्ता बहुत तेज था. इस कुत्ते को उस ने प्रशिक्षित कर रखा था. वह पूरे मकान में रेकी करता था.

जैसे ही कोई मकान के गेट पर आता, वह तेज आवाज में भौंकने लगता था. कुत्ते की आवाज सुन कर सीमा सतर्क हो जाती और छिप कर देखती थी कि गेट पर कौन आया है. कुछ ही समय में सीमा तिवारी उस ब्लौक में कुत्ते वाली मैडम के नाम से मशहूर हो गई.

सीमा के घर युवक युवतियों का देर रात आनाजाना शुरू हुआ तो पासपड़ोस के लोगों का माथा ठनका. वह आपस में चर्चा करने लगे कि कुत्ते वाली मैडम के यहां युवक युवतियां क्यों आते हैं. उन्होंने निगरानी रखनी शुरू कर दी तो उन्हें शक हो गया कि मैडम सैक्स रैकेट चलाती है. इन्हीं संभ्रांत लोगों ने एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय में शिकायत की थी.

देहव्यापार अड्डे से पकड़ी गई 22-23 साल की खुशी बर्रा 4 की कच्ची बस्ती में रहती थी. गरीब परिवार में पली खुशी बेहद खूबसूरत थी. उस की सहेलियां महंगे कपड़े पहनती थीं और ठाठबाट से रहती थीं. उन के पास एक नहीं 2-2 मोबाइल होते थे. वह मोबाइल पर बात करतीं और खूब हंसतीबतियातीं. खुशी जब उन्हें देखती तो सोचती काश ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.

एक रोज बर्रा सब्जी मंडी से लौटते समय खुशी की मुलाकात अंजलि से हुई. दोनों की बातचीत हुई तो अंजलि समझ गई कि खुशी महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में आसानी से फंस सकती है.

इस के बाद अंजलि उसे अपने घर बुलाने लगी और उस की आर्थिक मदद भी करने लगी. धीरेधीरे अंजलि ने खुशी को अपने जाल में फंसा लिया और उसे देह व्यापार के धंधे में उतार दिया. छापे वाली रात अंजलि ने ही सौदा कर खुशी को सीमा के घर भेजा था. जहां वह पकड़ी गई. उस समय वह कमरे में ग्राहक के इंतजार में बैठी थी.

पुलिस छापे के दौरान पकड़ी गई विविता भी बर्रा 4 में रहती थी. उस का शौहर साजिद अली शराबी था. वह विविता को मारतापीटता था. विविता पति से परेशान थी और कहीं नौकरी कर अपना गुजरबसर करना चाहती थी. एक रोज सीटीआई टैंपो स्टैंड पर विविता की बातचीत अंजलि से हुई तो उस ने उसे नौकरी दिलाने का भरोसा दिलाया.

एक सप्ताह बाद अंजलि उसे नौकरी दिलाने के बहाने लखनऊ ले गई. वहां उसने एक जानेमाने सफेदपोश नेता के साथ विविता का सौदा कर दिया. विविता को जिस्म के बदले नोट मिले तो वह इसी धंधे में रम गई. पुलिस छापे वाली रात अंजलि ने ही विविता के जिस्म का सौदा तय कर ग्राहक महेश के साथ सीमा के मकान पर भेजा था, जहां दोनों रंगे हाथों पकड़े गए थे.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई मंतसा जवाहर नगर निवासी अली अहमद की पत्नी थी. उस के शौहर ने उसे तलाक दे कर दूसरा निकाह कर लिया था. मंतसा ने कुछ रुपए जोड़ कर सब्जी बेचने का काम शुरू कर दिया, लेकिन उसे यह काम रास नहीं आया. उस ने एक रिश्तेदार से कर्ज लिया तो वह रिश्तेदार उस के पीछे पड़ गया. कर्ज के बदले उस ने मंतसा को अपनी हवस का शिकार बनाया.

वह रिश्तेदार बड़ा चलाक निकला. उस ने खुद तो हवस पूरी कर ली, अब वह उस का सौदा दोस्तों से भी करने लगा. मंतसा जवान और खूबसूरत थी. उसे ग्राहकों की कमी नहीं थी, पर उस के पास जगह नहीं थी. इसी बीच उसे पता चला कि साकेत नगर में रहने वाली सीमा तिवारी सैक्स रैकेट चलाती है.

मंतसा ने सीमा से मुलाकात की और अपनी मजबूरी बताई. मजबूरी का फायदा उठा कर सीमा तिवारी ने मंतसा को अपने रैकेट में शामिल कर लिया. छापे वाली रात सीमा ने मंतसा के जिस्म का सौदा व्यापारी शैलेंद्र के साथ किया था. पुलिस रेड में वे दोनों रंगेहाथों पकड़े गए थे.

पुलिस छापे में पकड़ा गया महेश व्यापारी है. उस का प्लास्टिक का व्यवसाय है. वह अपनी कमाई का आधे से ज्यादा भाग अय्याशी और शराब में खर्च कर देता था. शादीशुदा होते हुए भी वह दूसरी औरतों की बाहों में सुख खोजता था. उस की अय्याशी से उस की पत्नी बेहद परेशान थी. उस ने पति को बहुत समझाया, लेकिन पति सुधरने के बजाय उलटे उस की पिटाई कर देता था.

एक रोज महेश को पता चला कि बर्रा-2 में रहने वाली अंजलि लड़कियां भी उपलब्ध कराती है और जगह भी. यह पता चलते ही महेश ने अंजलि से मुलाकात की और अच्छी लड़की के बदले मुंहमांगी रकम देने को कहा. अंजलि ने उसे जगह और युवती उपलब्ध करा दी.

इस के बाद वह अंजलि का ग्राहक बन गया. छापे वाली रात अंजलि ने ही महेश से रकम तय करने के लिए विविता को उस के साथ सीमा तिवारी के अड्डे पर भेजा था. जहां महेश, विविता के साथ रंगेहाथ पकड़ा गया था.

देह व्यापार के अड्डे से पकड़ा गया शैलेंद्र भी बर्रा में ही रहता था और महेश का दोस्त था. दोनों का व्यापार भी एक था. दोनों साथसाथ शराब पीते थे और अय्याशी करते थे. छापे वाली रात महेश ही शैलेंद्र को सीमा के अड्डे पर ले गया था. सीमा ने मंतसा को दिखा कर उस का सौदा शैलेंद्र से किया था. चंद्रेश तिवारी को पुलिस ने निगरानी करते पकड़ा था.

सीमा की सहयोगी अंजलि को पकड़ने के लिए पुलिस ने बर्रा स्थित उस के किराए वाले मकान पर छापा मारा लेकिन वह पकड़ी नहीं जा सकी. पुलिस का कहना है कि जब वह पकड़ी जाएगी, तब उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई की जाएगी.

12 अप्रैल, 2019 को थाना किदवई नगर पुलिस ने देह व्यापार में पकड़ी गई सीमा तिवारी, विविता, मंतसा, खुशी तथा ग्राहक महेश, शैलेंद्र व दलाल चंद्रेश तिवारी को गिरफ्तार कर कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नफरत की आग : महिला वकील की बेटी की निर्मम हत्या

बात 18 फरवरी, 2019 की है. शाम करीब 5 बजे रमाशंकर गुप्ता एडवोकेट पदमा गुप्ता  के केशव नगर स्थित घर पहुंचे तो उन के मकान का मेनगेट बंद था. गेट के बाहर 2 युवक खड़े थे. दोनों आपस में बतिया रहे थे. रमाशंकर ने उन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम क्रमश: मोहित और शुभम बताए.

उन्होंने बताया कि वे दोनों औनलाइन शौपिंग कुरियर डिलिवरी बौय हैं. स्नेह गुप्ता ने औनलाइन कोई सामान बुक कराया था, वह उस सामान को देने आए हैं. लेकिन आवाज देने पर वह न तो गेट खोल रही हैं और न ही फोन रिसीव कर रही हैं.

रमाशंकर गुप्ता स्नेह के मौसा थे. वह उसी से मिलने आए थे. कुरियर बौय मोहित की बात सुन कर रमाशंकर का माथा ठनका. उन्होंने भी स्नेह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ. इस के बाद रमाशंकर ने स्नेह की मां एडवोकेट पदमा गुप्ता को फोन किया. वह उस समय कचहरी में थीं. पदमा गुप्ता ने उन्हें बताया कि स्नेह घर पर ही है. शायद वह सो गई होगी, जिस की वजह से काल रिसीव नहीं कर रही होगी.

रमाशंकर गुप्ता ने किसी तरह गेट खोला और अंदर गए. उन्होंने स्नेह को कई आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मेनगेट से लगा बरामदा था. बरामदे में पदमा का पालतू पामेरियन कुत्ता टहल रहा था. 2 कमरों के दरवाजे भी खुले थे.

रमाशंकर स्नेह को खोजते हुए पीछे वाले कमरे में पहुंचे तो उन के मुंह से चीख निकल गई. स्नेह खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उस की सांसें चल रही थीं या थम गईं, कहना मुश्किल था. स्नेह की यह हालत देख कर कुरियर बौय मोहित व शुभम भी घर के अंदर पहुंच गए. कमरे में एक लड़की की लाश देख कर वह भी आश्चर्यचकित रह गए.

रमाशंकर ने पुलिस को खबर देने के लिए कई बार 100 नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया तो वह डिलिवरी बौय की मोटर साइकिल पर बैठ कर उस्मान पुलिस चौकी पहुंचे और उन्होंने वारदात की सूचना दी. चौकी से सूचना थाना नौबस्ता को दे दी गई. उस के बाद थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह पुलिस टीम के साथ डब्ल्यू ब्लौक केशव नगर स्थित एडवोकेट पदमा गुप्ता के घर पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी.

थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जहां 24 वर्षीय स्नेह खून से लथपथ पड़ी थी. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. स्नेह के पैर दुपट्टे से बंधे थे और दोनों हाथों की कलाइयां किसी तेजधार वाले हथियार से काटी गई थीं. सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से सिर फट गया था. गरदन को रेता गया था और चेहरे पर भी कट का निशान था.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने स्नेह के दुपट्टे से बंधे पैर खुलवाए फिर जीवित होने की आस में एंबुलैंस मंगवा कर तत्काल चकेरी स्थित कांशीराम ट्रामा सेंटर भिजवाया. लेकिन वहां डाक्टरों ने स्नेह को देखते ही मृत घोषित कर दिया था. थानाप्रभारी ने पदमा गुप्ता की बेटी की घर में घुस कर हत्या करने की जानकारी पुलिस के बड़े अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया.

इधर पदमा गुप्ता कचहरी से सीधे अपने साथियों के साथ कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंचीं और बेटी का शव देख कर गश खा कर गिर पड़ीं. महिला पुलिसकर्मी व उन के सहयोगी वकीलों ने उन्हें संभाला. होश आने पर वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

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                                         रोती बिलखती एडवोकेट पदमा गुप्ता

चूंकि मामला एक वकील की जवान बेटी की हत्या का था. अत: सूचना पाते ही एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी अनंत देव ने मौके पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

सूचना पा कर आईजी आलोक सिंह अस्पताल पहुंचे और उन्होंने पदमा गुप्ता को धैर्य बंधाया. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि हत्यारा कितना भी पहुंच वाला क्यों न हो, बच नहीं पाएगा. इस के बाद आईजी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में खून ही खून फैला था. कमरे में अंदर रखी अलमारी खुली थी और सामान पलंग पर बिखरा पड़ा था. पालतू कुत्ता बरामदे से ले कर गेट तक चहलकदमी कर रहा था. वह डरासहमा नजर आ रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने अलमारी खुली होने व सामान बिखरे पड़े होने से अनुमान लगाया कि हत्या शायद लूट के इरादे से की गई होगी. शव के पास मृतका का मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने अपने पास सुरक्षित रख लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. टीम ने अलमारी व पलंग और कई जगह से फिंगरप्रिंट लिए. घटनास्थल के पास ही खून सनी एक ईंट पड़ी थी. इस ईंट से भी टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जांच हेतु ईंट को भी सुरक्षित कर लिया. टीम को वाशिंग मशीन पर रखा पानी से धुला एक चाकू मिला. इस धुले चाकू की जब टीम ने जांच की तो पुष्टि हुई कि उस पर लगा खून धोया जा चुका है. टीम ने चाकू को भी अपने पास सुरक्षित कर लिया.

खोजी कुतिया ‘जूली’ घटनास्थल को सूंघ कर भौंकते हुए पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी के घर जा घुसी. उस के घर के अंदर चक्कर काटने के बाद जूली वापस आ गई. पुलिस ने संदेश चतुर्वेदी से बात की लेकिन उन से हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी मृतका की मां पदमा गुप्ता से पूछताछ करना चाहते थे. अत: वह कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंच गए. वह बेटी के शव के पास बदहवास बैठी थीं. उन के आंसू थम नहीं रहे थे. उस समय उन की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन से कुछ पूछताछ की जा सके. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को इस बात का अंदेशा था कि कहीं वकील उग्र न हो जाएं, अत: उन्होंने पोस्टमार्टम हाउस पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दूसरे दिन 3 डाक्टरों के पैनल ने स्नेह का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ राकेशपति तिवारी, कांशीराम ट्रामा सेंटर के डा. अभिषेक शुक्ला और विधनू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डा. श्रवण कुमार शामिल रहे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर के पीछे भारी वस्तु के प्रहार करने, चाकू से गले पर वार करने के 3 निशान और चेहरे पर एक निशान मिला. इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस के दोनों हाथों की कलाइयां चाकू से काटी गई थीं. बताया कि स्नेह की मौत खून ज्यादा मात्रा में निकलने की वजह से हुई थी. वहीं दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइडें भी बना ली गईं.

महिला एडवोकेट की बेटी की हत्या का समाचार दैनिक समाचार पत्रों की सुर्खियां बना तो कानपुर कचहरी खुलते ही वकीलों में रोष छा गया. एडवोकेट पंकज कुमार सिंह, ताराचंद रुद्राक्ष, रतन अग्रवाल, टीनू शुक्ला, डी.एन. पाल, संजीव कनौजिया, शरद कुमार शुक्ला आदि अधिवक्ता भवन पर एकत्र हुए.

इस के बाद इन वकीलों ने हत्या के विरोध में न्यायिक काम ठप करा दिया. इस के बाद वकीलों ने एसएसपी कार्यालय के बाहर सड़क पर वाहन खड़े कर रास्ता बंद कर दिया, जिस से लंबा जाम लग गया.

एसएसपी अनंत देव ने सीओ (कोतवाली) राजेश पांडेय को प्रतिनिधि के रूप में वकीलों के पास भेजा. श्री पांडेय ने उग्र वकीलों को आश्वासन दिया कि स्नेह के हत्यारे जल्द ही पकड़ लिए जाएंगे. इस आश्वासन पर वकील शांत हुए.

कानपुर बार एसोसिएशन ने इस बात का भी फैसला लिया कि स्नेह के हत्यारोपियों की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा. अब तक पदमा गुप्ता सामान्य स्थिति में आ चुकी थीं. अत: एसपी (साउथ) रवीना त्यागी उन से पूछताछ करने उन के आवास पर पहुंचीं.

पूछताछ में पदमा गुप्ता ने बताया कि 18 फरवरी की सुबह सब कुछ सामान्य था. बेटी स्नेह ने खाना बनाया और उसे टिफिन लगा कर दिया. इस के बाद वह कोर्ट चली गईं. शाम सवा 5 बजे बहनोई रमाशंकर द्वारा ही उन्हें बेटी की हत्या के बारे में सूचना मिली.

‘‘आप की बेटी की हत्या किस ने की? आप को किसी पर शक है?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, मुझे 2-3 लोगों पर शक है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

‘‘किस पर?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी और उस के बेटे सूरज तथा मोहल्ले के शोहदे अन्नू अवस्थी पर.’’

‘‘वह कैसे?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

पदमा गुप्ता ने बताया, ‘‘संदेश चतुर्वेदी और उस का बेटा पिछले 3 महीने से उन के साथ विवाद कर रहे हैं. दोनों बापबेटे हर समय झगड़ा व मारपीट के लिए उतारू रहते हैं. इन लोगों ने सन 2012 में उन पर जानलेवा हमला भी करवाया था और मोहल्ले का शोहदा अन्नू अवस्थी उन की बेटी से छेड़छाड़ करता था. लोकलाज के कारण उस की शिकायत नहीं की. इन्हीं कारणों से इन लोगों पर शक है.’’

‘‘घर में क्या लूटपाट भी हुई?’’ एसपी रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी से कुछ गहने व मामूली नकदी गायब है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

पदमा गुप्ता से पूछताछ के बाद एसपी रवीना त्यागी ने स्नेह की हत्या के खुलासे के लिए एक विशेष टीम गठित की. इस टीम में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम व सिविल पुलिस के तेजतर्रार दरजन भर पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पदमा गुप्ता ने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी, उस के बेटे सूरज तथा एक अन्य युवक अन्नू अवस्थी को उठा लिया. पुलिस टीम को यह भी संदेह था कि किसी बेहद नजदीकी ने ही स्नेह की हत्या की है.

अत: पुलिस ने मृतका स्नेह के मौसा रमाशंकर को भी उठा लिया. क्योंकि रमाशंकर ही सब से करीबी रिश्तेदार थे और उन का स्नेह के घर आनाजाना था. दूसरे वह अचानक घटना वाले दिन स्नेह के घर पहुंचे भी थे.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर संदेश चतुर्वेदी ने पदमा गुप्ता से विवाद की बात तो स्वीकार की लेकिन हत्या करने या कराने से साफ इनकार कर दिया. पूछताछ और बौडी लैंग्वेज से पुलिस को भी लगा कि संदेश व उस के बेटे सूरज का स्नेह की हत्या में हाथ नहीं है. अत: इस हिदायत के साथ उन्हें छोड़ दिया कि जरूरत पड़ने पर उन्हें फिर से थाने आना पड़ सकता है.

शोहदे अन्नू अवस्थी से भी टीम ने सख्ती से पूछताछ की. अन्नू ने स्वीकार किया कि वह स्नेह से एकतरफा प्यार करता था. उस ने उस के साथ एकदो बार छेड़खानी भी की थी, पर हत्या जैसा जघन्य अपराध उस ने नहीं किया है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को चैक किया तो घटनास्थल वाले दिन उस की लोकेशन स्नेह के घर के आसपास की मिली. इस शक के आधार पर पुलिस टीम ने पुन: उस से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पुलिस किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजना चाहती, अत: अन्नू अवस्थी को भी हिदायत के साथ छोड़ दिया.

रमाशंकर गुप्ता, मृतका स्नेह का मौसा थे और वह बेहद करीबी रिश्तेदार भी थे. पुलिस ने जब उन से पूछा कि घटना वाले दिन वह अचानक स्नेह के घर क्यों और कैसे पहुंचे.

इस पर रमाशंकर ने बताया कि स्नेह ने उन से मोबाइल पर बतियाते हुए कहा था कि 20 फरवरी को उस के इंस्टीट्यूट में कोई कार्यक्रम है. उसे भी कार्यक्रम में हिस्सा लेना है, अत: कुछ पैसे चाहिए. मैं ने उसे पैसे देने का वादा कर लिया था.

18 फरवरी को वह रतनलाल नगर आए थे. यहीं उन्हें याद आया कि स्नेह ने उन से पैसे मांगे थे. इसलिए वह रतनलाल नगर से सीधा डब्ल्यू ब्लौक केशवनगर स्थित स्नेह के घर पहुंचे. वहां 2 युवक कुरियर लिए खड़े थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि वह काफी देर से गेट खटखटा रहे हैं. न तो दरवाजा खुल रहा है और न ही स्नेह फोन रिसीव कर रही है. इस के बाद जब वह घर में गए तो वहां स्नेह की लाश देखी.

रमाशंकर पुलिस की निगाह में संदिग्ध थे. इसलिए उन की सच्चाई जानने के लिए पुलिस टीम ने पदमा गुप्ता से उन के बारे में जानकारी ली. पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट देते हुए कहा कि वह उस की बहन का सुहाग है. समयसमय पर वह उन की मदद करते रहते हैं. स्नेह को वह बेटी जैसा प्यार करते थे. स्नेह भी उन से खूब हिलीमिली थी. वह उन से अकसर फोन पर बतियाती रहती थी.

पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट दी तो पुलिस ने भी रमाशंकर को छोड़ दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने कुरियर बौय मोहित और शुभम को उठाया. पुलिस को शक था कि कहीं वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाहर तो नहीं आ गए और तभी रमाशंकर के आ जाने पर उन्होंने कहानी बनाई हो.

पुलिस ने मोहित से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किदवईनगर में रहता है, जबकि उस का साथी शुभम यशोदा नगर में रहता है. स्नेह ने औनलाइन कोई सामान मंगाया था. उसी का पैकेट ले कर वह दोनों उस के घर गए थे. पैकेट पर स्नेह का मोबाइल नंबर लिखा था. उस नंबर को उस ने कई बार मिलाया. लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की.

वे दोनों जाने ही वाले थे कि रमाशंकर आ गए. उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. पुलिस को कुरियर बौय की बातों पर विश्वास हो गया तो दोनों कुरियर बौय की डिटेल्स ले कर उन्हें भी थाने से भेज दिया.

स्नेह के मोबाइल से पुलिस टीम को 10 संदिग्ध फोन नंबर मिले. जांच करने पर पता चला कि यह नंबर स्नेह के घर काम कर चुके राजमिस्त्री, मजदूर, टिन शेड डालने वाले लोगों के थे. पुलिस ने इन नंबरों पर बात की और एकएक को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

इन में से एक नंबर ऐसा था, जो बंद था. इस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया तो पता चला कि यह नंबर घटना वाली शाम से बंद है. लेकिन उस रोज उस नंबर से दूसरे एक नंबर पर बात हुई थी. इस नंबर को पुलिस ने ट्रैस किया तो पता चला कि यह नंबर दबौली निवासी अमित का है. पुलिस टीम अमित की तलाश में जुट गई.

आखिर टीम ने नाटकीय ढंग से अमित को धर दबोचा. थाना नौबस्ता ला कर जब अमित से सख्ती से पूछताछ की तो अमित टूट गया. उस ने बताया कि बंद मोबाइल नंबर जुबेर आलम का है, जो मेहरबान सिंह पुरवा में रहता है. रतनलाल नगर में उस की वैल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान है. जावेद ने उसे बताया कि उस ने स्नेह की हत्या कबाड़ी सुरेश वाल्मिकी की मदद से की थी.

अमित के बयान से पुलिस टीम की टेंशन दूर हो गई. अमित के सहयोग से पुलिस ने महादेव नगर निवासी सुरेश वाल्मिकी को पकड़ लिया. पुलिस ने उस के पास से सोने के 4 कंगन भी बरामद कर लिए, जो उस ने पदमा गुप्ता के यहां से चुराए थे.

इस के बाद पुलिस टीम ने जुबेर आलम के मेहरबान सिंह पुरवा स्थित किराए के मकान पर छापा मारा लेकिन वह वहां नहीं मिला. वहां पता चला कि जुबेर आलम मकान खाली कर मुरादाबाद में अपने किसी रिश्तेदार के घर चला गया है. अब जुबेर आलम को पकड़ने के लिए पुलिस टीम ने गहरा जाल बिछाया. साथ ही मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

7 मार्च, 2019 को प्रात: 8 बजे एक खास मुखबिर से पुलिस टीम को पता चला कि जुबेर आलम अपनी दुकान का सामान निकालने व उसे बेचने आया है. वह इस समय चिंटिल इंग्लिश मीडियम स्कूल के पास मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस वहां पहुंच गई और घेराबंदी कर उसे दबोच लिया.

थाने में जब उस का सामना सुरेश वाल्मिकी से हुआ तो वह सब समझ गया. फिर उस ने बिना किसी हीलाहवाली के पदमा गुप्ता की बेटी स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल लिया. जुबेर आलम ने चुराए गए जेवरों में से झुमका और एक अंगूठी दबौली के एक ज्वैलर्स के यहां बेची थी. पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से अंगूठी व झुमके बरामद कर लिए. साथ ही जुबेर के पास से 900 रुपए भी बरामद कर लिए.

चूंकि सुरेश और जुबेर आलम ने स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और उन से जेवर, नकदी भी बरामद हो गई थी, इसलिए पुलिस ने स्नेह की हत्या के जुर्म में जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को गिरफ्तार कर लिया.

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            पुलिस हिरासत में अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी

यह जानकारी एसएसपी अनंतदेव तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को हुई तो दोनों अधिकारी थाने पहुंच गए और उन्होंने टीम की सराहना करते हुए 25 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की. फिर एसएसपी अनंतदेव ने प्रैस वार्ता कर इस चर्चित हत्याकांड का खुलासा पत्रकारों के समक्ष किया. पत्रकार वार्ता के दौरान अभियुक्तों ने स्नेह की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला केशवनगर पड़ता है. इसी मोहल्ले के डब्ल्यू ब्लौक में एडवोकेट पदमा गुप्ता अपनी बेटी स्नेह के साथ रहती थीं. यह उन का निजी मकान था. पदमा गुप्ता के पति राजकुमार गुप्ता अलग रहते हैं. दांपत्य जीवन में मनमुटाव के चलते उन्होंने पदमा को तलाक दे दिया था.

पदमा गुप्ता कानपुर कोर्ट में वकालत करती हैं. स्नेह की उम्र जब एक साल से भी कम थी, तभी उन के पति ने उन का साथ छोड़ दिया था.

पिता के प्यार से वंचित स्नेह की पदमा गुप्ता ने बड़े ही लाड़प्यार से परवरिश की थी. स्नेह बेहद खूबसूरत थी. पढ़ाई में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. इस के बाद उस ने पौलिटेक्निक में प्रवेश पा लिया था. वह महिला पौलिटेक्निक से फार्मेसी की पढ़ाई कर रही थी.

पदमा गुप्ता अपने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी से दुखी रहती थीं. वह और उस का बेटा सूरज हमेशा झगड़े पर उतारू रहते थे. पदमा गुप्ता मोहल्ले के अन्नू अवस्थी से भी परेशान थीं. पौलिटेक्निक आतेजाते वह स्नेह को परेशान करता था.

हालांकि स्नेह कड़े मिजाज की थी और वह अन्नू को पास नहीं फटकने देती थी. लेकिन अन्नू एकतरफा प्यार में पागल था, जिस से वह उस से छेड़छाड करने से बाज नहीं आता था. पदमा गुप्ता अन्नू को सबक तो सिखाना चाहती थीं, किंतु लोकलाज के कारण चुप बैठ जाती थीं.

पदमा गुप्ता की बहन जरौली निवासी रमाशंकर गुप्ता को ब्याही थी. रमाशंकर पीओपी कारोबारी थे. उन का पदमा गुप्ता के घर आनाजाना था. घर बाहर का कोई काम हो वह रमाशंकर के बिना नहीं कराती थी.

अक्तूबर 2018 में पदमा गुप्ता ने अपने मकान का निर्माण कराया था. इस में राजमिस्त्री, मजदूर, कारपेंटर आदि की व्यवस्था रमाशंकर ने ही कराई थी. प्लास्टिक की शेड डालने का ठेका रमाशंकर ने जुबेर आलम को दिया था. जुबेर आलम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर हापुड़ का रहने वाला था. कानपुर में वह परिवार सहित रहता था.

रतनलाल नगर में उस की वेल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान थी. वह शेड डालने का भी काम करता था. पदमा गुप्ता के घर शेड डालने का ठेका उस ने 14 हजार रुपए में लिया था. काम खत्म होने पर जुबेर आलम को पदमा गुप्ता ने 12 हजार रुपए दे कर उस के 2 हजार रुपए रोक लिए थे.

पदमा गुप्ता के घर के सामने शशि शुक्ला का मकान था. काम के दौरान पदमा गुप्ता ने जुबेर आलम को उन के यहां लोहे की जाली लगाने का ठेका दिलवा दिया था. साथ ही तय रकम भी दिलवा दी थी. लेकिन जुबेर आलम ने आधा काम किया. शशि शुक्ला पदमा को उलाहना देती थी. स्नेह के पास सभी कामगारों के फोन नंबर थे. वह जब भी जुबेर आलम को शशि शुक्ला के यहां जाली लगाने का काम पूरा करने को कहती तो वह बहाना बना देता था.

जुबेर आलम का एक दोस्त सुरेश वाल्मिकी था. सुरेश कबाड़ का काम करता था. सुरेश जुबेर की दुकान से भी कबाड़ खरीदता था. सो दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों की अकसर शराब की महफिल जमती थी.

दोनों पर लाखों का कर्ज था. सुरेश को कबाड़ के काम में घाटा हो गया था जबकि जुबेर आलम का बेटा बीमारी से जूझ रहा था, जिस से उस पर कर्ज हो गया था. दोनों कर्ज चुकाने की जुगत में परेशान रहते थे.

इधर एकडेढ़ माह से जुबेर आलम अपने 2 हजार रुपए मांगने स्नेह के घर आने लगा था. स्नेह उसे यह कह कर पैसा देने से मना कर देती थी कि पहले शशि आंटी के घर का काम पूरा करो. बारबार पैसा मांगने पर जब स्नेह ने पैसे नहीं दिए तो वह नफरत से भर उठा.

वह सोचने लगा कि वकील की लड़की जानबूझ कर उस की बेइज्जती कर रही है और उसे उस की मेहनत का पैसा नहीं दे रही. उस ने इस बाबत दोस्त सुरेश से सलाहमशविरा किया फिर निश्चय किया कि इस बार अगर उस ने पैसे देने से इनकार किया तो वह अपनी बेइज्जती का बदला ले कर ही रहेगा. इस के बाद उस ने 2 दिन स्नेह के घर की रेकी कर सुनिश्चित कर लिया कि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच स्नेह घर में अकेली रहती है.

18 फरवरी, 2019 की दोपहर जुबेर आलम स्कूटर से अपने दोस्त सुरेश के साथ स्नेह के घर पहुंचा. जुबेर आलम ने गेट खटखटाया तो स्नेह ने गेट खोला. स्नेह उस समय घर पर अकेली थी. उस की मां पदमा गुप्ता कोर्ट गई हुई थीं.

जुबेर आलम का साथी सुरेश गेट के बाहर स्कूटर लिए खड़ा रहा और जुबेर आलम बरामदे में पहुंच गया. जुबेर को देख कर स्नेह का कुत्ता भौंका तो स्नेह ने इशारा कर के कुत्ते को शांत करा दिया. फिर स्नेह ने जुबेर से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘बेबी, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हिसाब का बाकी 2 हजार रुपए लेने आया हूं.’’

‘‘देखो जुबेर, तुम्हें बाकी पैसा तभी मिलेगा जब तुम शशि शुक्ला आंटी का काम पूरा कर दोगे. वैसे भी मां घर पर नहीं हैं. शाम को जब वह आ जाएं, तब हिसाब लेने आ जाना.’’ स्नेह कड़ी आवाज में बोली.

जुबेर गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘बेबी, मेरा बेटा बीमार है. उसे दिखाने डाक्टर के पास जाना है. पूरा पैसा न सही 500 रुपए ही दे दो.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बेटे की बीमारी से क्या लेनादेना. इस समय मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगी. समझे.’’ वह बोली.

स्नेह की बात सुन कर जुबेर तिलमिला उठा. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक उठी. जुबेर अभी यह सोच ही रहा था कि वह इस बदमिजाज लड़की को सबक कैसे सिखाए, तभी स्नेह बोल पड़ी, ‘‘जुबेर, मुझे पलंग के पास एक अलमारी बनवानी है. उस की नाप ले लो.’’

इस के बाद वह जुबेर को अंदर के कमरे में ले गई. जुबेर ने स्नेह को इंचटेप पकड़ाया और वह पलंग पर चढ़ कर नाप लेने लगी. इसी समय नफरत से भरे जुबेर आलम की नजर जीने में रखी ईंट पर पड़ गई. उस ने लपक कर ईंट उठाई और भरपूर वार स्नेह के पीछे सिर में किया. स्नेह का सिर फट गया और वह पलंग के नीचे आ गिरी.

इसी समय खून से लथपथ पड़ी स्नेह के पैर उस ने उसी के दुपट्टे से बांध दिए. फिर रसोई में जा कर चाकू उठा लाया. इस के बाद उस ने चाकू से उस के गले को रेत दिया तथा दोनों हाथों की कलाइयों की नसें काट दीं. उस ने उस के चेहरे पर भी चाकू से वार कर दिया.

स्नेह को मौत के घाट उतारने के बाद जुबेर ने अलमारी का सामान पलंग पर बिखेर दिया और अलमारी से सोने के 4 कंगन, एक जोड़ी झुमके, एक अंगूठी और 900 रुपए निकाल लिए. यह सब ले कर वह घर के बाहर आ गया.

बाहर उस का दोस्त सुरेश स्कूटर स्टार्ट किए खड़ा था. इस के बाद स्कूटर से दोनों भाग गए. लेकिन शास्त्री चौक पर उस का स्कूटर खराब हो गया. तब उस ने मोबाइल फोन पर अपने एसी मैकेनिक दोस्त दबौली निवासी अमित को सारी घटना बताई और मोटरसाइकिल ले कर आने को कहा. लेकिन अमित घबरा गया. उस ने दोबारा फोन न करने की चेतावनी दे कर अपना फोन बंद कर दिया.

इस के बाद सुरेश ने स्कूटर ठीक कराया और जुबेर को उस के घर छोड़ा. जुबेर ने 4 कंगन तो सुरेश को दे दिए तथा झुमके और अंगूठी उस ने उसी शाम दबौली के ज्वैलर के यहां 24 हजार रुपए में बेच दिए और रात में ही मिनी ट्रक पर सामान लाद कर पत्नी बच्चों सहित मुरादाबाद में रिश्तेदार के यहां रवाना हो गया. इधर घटना की जानकारी तब हुई जब कुरियर देने मोहित व शुभम आए.

8 मार्च, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अमित को पुलिस ने सरकारी गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मोहम्मद सहवान हत्याकांड : बेमेल शादी बनी बरबादी

मोहम्मद सहवान हत्याकांड : बेमेल शादी बनी बरबादी – भाग 4

नमरा और सहवान की मोहब्बत की जानकारी समराना को हुई तो उसे अपने पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई. समराना ने इस बेमेल मोहब्बत का विरोध किया तो पतिपत्नी में झगड़ा होने लगा. एक रोज झगड़े के दौरान ही सहवान ने समराना को 3 तलाक कह दिया.

इस के बाद मार्च, 2017 में समराना अपने मायके बेकनगंज चली गई. वह अपने साथ बेटी अंसरा को भी ले आई थी. समराना अपने बेटे अयान को भी साथ लाना चाहती थी लेकिन सहवान व उस के घर वालों ने बेटे को नहीं जाने दिया. मायके में रहते समराना ने शौहर सहवान, उस के मातापिता तथा भाइयों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न तथा घरेलू हिंसा का मुकदमा दर्ज करा दिया. साथ ही गुजारा भत्ता भी मांगा.

लेकिन सहवान ने मुकदमे की परवाह नहीं की और अपनी उम्र से आधी उम्र की नमरा खान से 21 जुलाई, 2018 को निकाह कर लिया. इस प्रेम विवाह की जानकारी जब नमरा के पिता शहंशाह खान को हुई तो उन्होंने बेटी को समझाया. लेकिन सहवान के प्यार में अंधी नमरा ने पिता की बात नहीं मानी.

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निकाह के बाद नमरा और सहवान केशवपुरम स्थित नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 612 में रहने लगे. शादी के 4 महीने तो सब कुछ ठीक रहा लेकिन उस के बाद दोनों के बीच तनाव बढ़ने लगा. तनाव का पहला कारण बना सहवान का 8 वर्षीय बेटा अयान.

मासूम अयान नमरा के प्यार के क्षणों में दखल देता था सो वह उसे पीट देती थी. अयान को पीटना सहवान को खलता था. नमरा का अत्याचार जब ज्यादा बढ़ा तो सहवान ने अयान को मछरिया वाले घर में अपने मातापिता के पास छोड़ दिया.

तनाव का दूसरा कारण बना उम्र का अंतर. नमरा जवानी के उस दौर में थी, जहां उसे रात दिन शौहर का साथ चाहिए था. वह उसे नींबू की तरह निचोड़ना चाहती थी. लेकिन सहवान के पास वक्त नहीं था. उसे कोचिंग से ही फुरसत नहीं थी. यही कारण था कि जब सहवान रात को सोता तो वह उसे नोचतीखसोटती और हिंसक हो जाती. गुस्से में उसे जो भी सामान दिखता, तोड़ देती थी.

तनाव का तीसरा कारण था एकदूसरे पर शक करना. नमरा की कामेच्छा पूरी नहीं होती तो उसे शौहर पर शक होता कि उस का झुकाव कहीं और है. सहवान जब नमरा को गैरमर्दों से मोबाइल पर बात करते देखता तो उसे शक होता कि नमरा किसी अन्य के प्यार के जाल में फंसी हुई है.

नमरा और सहवान दोनों स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहते थे. दोनों जिम जाते थे. नमरा रोज जिम जाती थी. जबकि सहवान कभीकभी जाता था. जिम ट्रेनर हंसमुख और मृदुभाषी था. नमरा की उस से खूब पटती थी. वह अपनी परेशानी उस से साझा कर लेती थी. जब वह जिम से नौकरी छोड़ कर नोएडा चला गया तो नमरा ने भी जिम जाना छोड़ दिया. लेकिन उस से फोन पर बात करना बंद नहीं किया.

नमरा सहवान को नोचती खसोटती ही नहीं थी, बल्कि भद्दी व गंदी गालियां भी बकती थीं. उस के इस व्यवहार से सहवान टूट चुका था. उसे लगता था कि वह या तो कहीं भाग जाए या फिर नमरा को ही सबक सिखा दे.

सहवान को अब आभास होने लगा था कि उस ने समराना को तलाक दे कर अच्छा नहीं किया. वह समराना से समझौते का प्रयास करने लगा था. बेटी से बात करने के बहाने वह उसे फोन करता था. उस ने एक रोज कहा था कि अगर उसे कुछ हो जाए तो सारी संपत्ति उसी (समराना) की होगी. नौमिनी वही है. बच्चों का खूब खयाल रखे और उन्हें पढ़ाएलिखाए.

नमरा खान तो दिन में सो लेती थी, लेकिन दिन में काम करने वाले सहवान को रात में सोने नहीं देती थी. वह उस के सीने पर सवार हो कर नोचती भद्दी गालियां देती तथा पानी उड़ेल देती थी. कभीकभी गुस्से में सहवान उसे पीट देता था. दोनों के बीच दिन पर दिन तनाव बढ़ा तो सहवान को लगने लगा कि अब उस का नमरा के साथ रहना संभव नहीं है.

खतरनाक स्थितियां नमरा ने ही बनाई थीं

28 अप्रैल, 2019 की रात सहवान की आंख खुली तो नमरा दूसरे कमरे में जिम ट्रेनर से बतिया रही थी. वह उस से प्रात: 5 बजे तक बतियाती रही. सुबह सहवान ने फोन पर बात करने के बारे में पूछा तो नमरा उस से भिड़ गई और हिंसा पर उतर आई. उस ने नाखूनों से सहवान का चेहरा, गरदन और पीठ नोच डाली.

गुस्से में सहवान गाड़ी ले कर घर से निकल गया. उस ने सोच लिया कि वह या तो नमरा को मार देगा या फिर खुद जहर खा कर मर जाएगा. यही सोच कर वह रावतपुर बीज भंडार पर गया और सल्फास की 4 पुडि़या खरीद कर ले आया. उस रोज वह कोचिंग भी नहीं गया. देर शाम उस ने बेटी अंसरा से बात की और फोन पर रोया भी.

रात पौने 9 बजे सहवान अपने फ्लैट पर लौट आया. कुछ देर बाद नमरा ने कौफी बनाई और सहवान से कौफी पीने के लिए पूछा लेकिन सहवान ने मना कर दिया. इस पर नमरा गुस्सा हो गई और अपशब्द बकने लगी. फिर वह पलंग पर आ कर बैठ गई. सहवान गुस्से में था ही, उस ने किचन में रखा नया कुकर उठाया और लपक कर नमरा के सिर पर वार कर दिया. भरपूर वार से नमरा का सिर फट गया और वह बेहोश हो कर पलंग के नीचे आ गिरी. कुछ ही पल में उस ने दम तोड़ दिया.

नमरा की हत्या के बाद सहवान घबरा गया. वह अपने बचाव का प्रयत्न करने लगा. वह रसोई से चाकू ले आया और हाथ की नस काटने का प्रयास किया पर हिम्मत नहीं जुटा पाया. कुछ देर वह नमरा के शव के पास बैठा रहा, फिर उस ने नमरा का मोबाइल अपनी जेब में रख लिया.

बचाव का कोई उपाय नहीं सूझा तो उस ने सल्फास की एक पुडि़या चाय वाले कप में पानी में घोली और किसी तरह आधीअधूरी पी ली. फिर रात 12.10 बजे वह स्कोडा कार से घर से निकला और नवाबगंज क्षेत्र में घूमता रहा. उस ने दोनों फोन तोड़ कर फेंक दिए. रात पौने 4 बजे उसने 100 नंबर डायल कर के पुलिस कंट्रोल रूम को पत्नी की हत्या की सूचना दे दी. लेकिन सही पता न होने से पुलिस वहां तक नहीं पहुंच पाई. प्रात: 5 बजे मोहम्मद सहवान धौरसलार रेलवे स्टेशन क्रौसिंग पहुंचा.

सड़क किनारे उस ने गाड़ी खड़ी की और सल्फास की तीनों पुडिया एक के बाद एक फांक कर पानी पी लिया. कुछ देर बाद ही जहर ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. उसे कार में ही उल्टियां होने लगीं. बेचैनी और घबराहट में सहवान गाड़ी से बाहर आ गया.

उसी समय श्याम मिश्रा नाम का युवक वहां से गुजरा. सहवान ने उसे भाई का मोबाइल नंबर बताया और फोन करने को कहा. लेकिन श्याम सही नंबर नोट नहीं कर पाया. तब तक सहवान बेहोश हो कर सड़क किनारे गिर गया था. इस पर श्याम मिश्रा ने थाना बिल्हौर जा कर सूचना दी. सूचना के बाद बिल्हौर पुलिस ने सहवान को हैलट अस्पताल में भरती कराया, जहां उस ने दम तोड़ दिया.

इधर नमरा की हत्या की जानकारी तब हुई जब नौकरानी राधा फ्लैट में काम करने आई. उस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. थाना काकादेव पुलिस मौके पर आई और शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की. जांच में दोनों लोगों की मौत की वजह बेमेल विवाह निकला.

थाना काकादेव पुलिस ने मृतका नमरा के पिता शहंशाह खान को वादी बना कर भादंवि की धारा 302 के तहत मोहम्मद सहवान के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर ली. लेकिन सहवान द्वारा स्वयं आत्महत्या कर लेने से पुलिस ने इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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मोहम्मद सहवान हत्याकांड : बेमेल शादी बनी बरबादी – भाग 3

पुलिस टीम ने इस चर्चित हत्याकांड की तह तक पहुंचने के लिए एक सप्ताह से अधिक गहन जांचपड़ताल की. इस बीच पुलिस ने दरजनों लोगों से पूछताछ की. उन के मोबाइल की कालडिटेल्स भी खंगाली. सहवान की पहली पत्नी समराना से भी कई राउंड पूछताछ की गई. सीसीटीवी कैमरे से छेड़छाड़ की जांच भी हुई तथा श्याम मिश्रा का बयान भी दर्ज किया. उस ने ही सहवान को सब से पहले कार से नीचे उतरते समय तड़पते देखा था.

सिमराना ने पुलिस को वह रिकौर्डिंग भी सौंपी, जिस में सहवान ने कहा था कि यदि मुझे कुछ हो जाए तो सारी प्रौपर्टी तुम्हारी होगी. नौमिनी तुम ही हो. बच्चों को अच्छी तालीम देना. जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि नमरा की हत्या सहवान ने ही की थी. फिर बचाव का कोई रास्ता न देख कर स्वयं भी सल्फास खा कर आत्महत्या कर ली थी.

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सहवान की पृष्ठभूमि

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला है मछरिया. मुसलिम बाहुल्य मछरिया के सी ब्लौक में मोहम्मद रमजान सिद्दीकी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी हाजरा खातून के अलावा 4 बेटे मोहम्मद सहवान सिद्दीकी, मोहम्मद इरफान, मोहम्मद इमरान, मोहम्मद जिबरान तथा एक बेटी नूरजहां थी. मोहम्मद रमजान सिद्दीकी एक्सपोर्ट कंपनी में नौकरी करते थे. उन्हें जो वेतन मिलता था, उसी से वह परिवार का भरणपोषण करते थे.

मोहम्मद रमजान सिद्दीकी खुद तो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं थे लेकिन वह अपने बच्चों को अच्छी तालीम देना चाहते थे. इस के लिए वह खानपान व अन्य घरेलू खर्चों में कटौती कर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करते थे. वैसे तो उन के चारों बच्चे पढ़ने में होशियार थे लेकिन बड़ा बेटा मोहम्मद सहवान पढ़ाई में कुछ ज्यादा ही तेज था.

मोहम्मद सहवान का सपना आईआईटी करना था. उस ने इस की तैयारी शुरू की. फलस्वरूप उस का चयन आईआईटी रुड़की में हो गया. उस ने जी जान से पढ़ाई की और सन 1998 में आईआईटी रुड़की से कंप्यूटर साइंस से बीटेक पास किया. यही नहीं वह अपने बैच का टौपर भी बना.

साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद सहवान ने बीटेक करने के बाद सन 2003 में कोचिंग मंडी काकादेव में हार्वर लिमिट क्लासेज नाम से कोचिंग इंस्टीट्यूट खोला. शुरुआत में उस के इंस्टीट्यूट में छात्रों की संख्या कम रही लेकिन बाद में बढ़ती गई. सहवान ने एक बार इस क्षेत्र में कदम रखा तो फिर आगे और आगे बढ़ता गया. अपने काम की बदौलत उसे इज्जत, शोहरत और नाम मिला. वह मैथ का जानामाना टीचर था.

कोचिंग इंस्टीट्यूट चल जाने के बाद उस का ध्यान अपने भाइयों की ओर गया. उस ने एक भाई इरफान को अपने इंस्टीट्यूट का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया, जबकि अन्य 2 भाइयों इमरान व जिबरान को पहले एक प्राइवेट संस्थान से बीटेक कराया फिर अपने ही इंस्टीट्यूट में जौब दे दी. इमरान फिजिक्स पढ़ाता था जबकि जिबरान कैमिस्ट्री का टीचर था.

पूरी तरह सेटल होने के बाद मोहम्मद सहवान ने अगस्त 2007 में समराना से निकाह कर लिया. समराना रेडीमेड मार्केट बेकनगंज निवासी नासिर की बेटी थी. समराना पढ़ी लिखी व खूबसूरत थी. उस ने क्राइस्ट चर्च कालेज से एमएससी किया था. निकाह के बाद समराना मछरिया स्थित अपनी ससुराल में रहने लगी.

समराना अपने शौहर के प्रति पूर्णरूप से समर्पित थी और उस का हर तरह से खयाल रखती थी. मोहम्मद सहवान भी समराना को बहुत चाहता था. दोनों की जिंदगी खुशहाल थी. समय के साथ समराना एक बेटे अयान और एक बेटी अंसरा की मां बन गई.

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                                               सहवान की पहली बीवी समराना

समराना लकी चार्म थी सहवान की

समराना सहवान के घर साक्षात लक्ष्मी बन कर आई थी. जब से वह उस के घर आई थी, तभी से उस की आय, इज्जत और शोहरत बढ़ती गई. मोहम्मद सहवान ने अब तक हार्वर लिमिट क्लासेज कोचिंग को बंद कर ग्लोबल कैरियर एकेडमी के नाम से 3 कोचिंग सेंटर खोल लिए थे. इन में एक काकादेव, दूसरा गोविंदनगर तथा तीसरा साकेत नगर में था.

इन कोचिंग सेंटरों पर हजारों की संख्या में छात्रछात्राएं आते थे. बेहतरीन गणित पढ़ाने के चलते सहवान ने कोचिंग के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल कर लिया था. उस की कोचिंग आईआईटी, जेईई की तैयारी के लिए गणित के साथ ही फिजिक्स, कैमिस्ट्री ही नहीं एनडीए, सीडीएस, एसएसबी, नेवी, एयरफोर्स, एसएससी, बैंक आदि की तैयारी के लिए भी मशहूर थी.

मोहम्मद सहवान ने कोचिंग से बहुत पैसा कमाया. इस कमाई से उस ने कई फ्लैट, फार्महाउस, करोड़ों का बैंक बैलेंस और जगुआर, स्कोडा, एंडेवर, इंडिगो जैसी महंगी कारें खरीदीं. उस के पास जो जगुआर कार थी, उस की कीमत 1.31 करोड़ रुपए थी.

सहवान ने कानपुर की आवास विकास कालोनी केशवपुर के नागेश्वर अपार्टमेंट में 5 फ्लैट खरीदे. जिस में एक उस के भाई इरफान, दूसरा समराना तथा तीसरा खुद उस के नाम है. नागेश्वर अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर 612 में सहवान पत्नी सिमराना के साथ रहने लगा. फ्लैट नंबर 610 में उस का भाई इरफान अपनी पत्नी निदा के साथ रहता था. फ्लैट नंबर 309 जो समराना के नाम था, उस में ताला लगा दिया था.

समराना शौहर के साथ खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रही थी, लेकिन सन 2016 में उस की जिंदगी में एक ऐसा तूफान आया कि उस का सब कुछ तहस नहस हो गया. दरअसल सन 2016 में नमरा खान उस के शौहर सहवान की काकादेव स्थित ग्लोबल कैरियर एकेडमी में कोचिंग के लिए आई.

18 वर्षीया नमरा खान उन्नाव के बांगरमऊ कस्बा निवासी शहंशाह खान की बेटी थी. वह धनाढ्य परिवार की थी. नमरा के पिता शहंशाह खान सपा के दबंग नेता तथा चर्चित व्यापारी थे. नमरा के बाबा जुम्मन खान बांगरमऊ नगर पालिका के चेयरमैन रहे थे.

नमरा खान कानपुर के शारदा नगर स्थित गर्ल्स हौस्टल में रह कर बीटेक की पढ़ाई कर रही थी. वह छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय की छात्रा थी. साथ ही आईआईटी की भी तैयारी कर रही थी. इस के लिए उस ने कोचिंग जौइन की थी.

40 वर्षीय मोहम्मद सहवान अपने पहनावे, शारीरिक फिटनैस व लाइफस्टाइल के लिए छात्राओं के बीच चर्चित था. नमरा खान भी उस के लाइफस्टाइल से प्रभावित थी और मन ही मन अपने सहवान सर से मोहब्बत करने लगी थी.

नमरा की खतरनाक एंट्री

मोहम्मद सहवान के पास कुछ स्टूडेंट्स एक्स्ट्रा क्लास के लिए आते थे. इन में नमरा खान भी थी. एक रोज पढ़ने के बाद अन्य छात्र छात्राएं तो चले गए लेकिन नमरा खान नहीं गई. उस रोज उस ने हिम्मत जुटा कर सहवान से अपने प्यार का इजहार कर दिया. इतना ही नहीं, उस ने यह भी कह दिया कि वह उस से शादी करना चाहती है.

नमरा खान की बात सुन कर सहवान चौंक पडे़, ‘‘तुम यह कैसी बातें कर रही हो? मैं शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप हूं. मेरी तुम्हारी उम्र में दोगुना का अंतर है. इसलिए तुम मुझे पाने का खयाल दिल से निकाल दो और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो. पहले कैरियर सुधारो फिर शादी की सोचना.’’

‘‘सर, मैं बहुत जिद्दी हूं. मैं ने आप को दिल में बसा लिया है तो हासिल कर के ही दम लूंगी.’’ वह बोली.

उस रोज के बाद नमरा सहवान के पीछे पड़ गई. इस के बाद सहवान के दिल में भी हलचल होने लगी. दरअसल 18 वर्षीय नमरा बेहद खूबसूरत व हंसमुख थी, जबकि उस की पत्नी समराना की उम्र ढल चुकी थी. नमरा के आगे वह उसे फीकी लगने लगी थी. सहवान ने नमरा के प्यार को स्वीकारा तो इस प्यार के चर्चे आम होने लगे.

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आत्महत्या ही ठीक लगी सहवान को

चूंकि प्रार्थनापत्र में थाना कल्याणपुर का जिक्र था, अत: कल्याणपुर के सीओ को सूचना दी गई. इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने मोहम्मद सहवान के शव को मोर्च्युरी में रखवा दिया. फिर कार से बरामद कागजात व सल्फास की खाली पुडि़या अपने कब्जे में ले कर वापस लौट आए.

पांडेय ने सारी जानकारी पुलिस के आला अधिकारियों को दी और कार से मिले कागजात उन्हें सौंप दिए. अधिकारियों ने निरीक्षण हेतु मृतक सहवान की स्कोडा कार यूपी 78सीबी 6040 को भी थाना कल्याणपुर मंगवा लिया.

अब तक घटनास्थल पर मृतका नमरा खान के पिता शहंशाह खान तथा मृतक सहवान की पहली पत्नी समराना भी आ गई थी. नौकरानी राधा तथा मृतक के भाई इरफान, इमरान तथा जिबरान पहले से ही पुलिस की निगरानी में थे.

पुलिस अधिकारियों ने सारे सबूत एकत्र कर मृतका नमरा खान के शव को पोस्टमार्टम के लिए हैलट अस्पताल भिजवा दिया. उधर इंसपेक्टर अश्वनी पांडेय ने हैलट अस्पताल की मोर्च्युरी में रखे मृतक सहवान के शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

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दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने के बाद पुलिस अधिकारियों ने मामले की तह तक जाने के लिए सब से पहले मृतक के भाई इरफान से पूछताछ की. इरफान ने अधिकारियों को बताया कि भैया भाभी में आपस में नहीं बनती थी. उन में अकसर झगड़ा होता रहता था. उस से लड़ाई झगड़े की बात सहवान भाई बताया करते थे, लेकिन वह उन दोनों के बीच पड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था.

इमरान ने बताया कि उस की पत्नी निदा गर्भवती थी. 2 दिन पहले वह उसे छोड़ने ससुराल मसवानपुर गया था और वहां से आज सुबह ही लौटा था. कोचिंग जाने के लिए निकला तो पार्किंग में सहवान भाई की कार न देख कर गार्ड से जानकारी ली. लेकिन वह सही जवाब नहीं दे पाया.

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                                    नमरा और सहवान

इसी बीच अपार्टमेंट में हत्या का शोर मचा. लोगों ने बताया कि फ्लैट नंबर 612 में एक महिला की हत्या हो गई है. चूंकि यह फ्लैट उस के भाई का था, सो वह तुरंत वहां पहुंचा. नौकरानी राधा वहां बदहवास हालत में खड़ी थी. उस ने राधा से बातचीत की, फिर भाभी की हत्या की जानकारी थाना कल्याणपुर पुलिस को दी.

इरफान के भाई इमरान व जिबरान ने बताया कि वह मांबाप के साथ मछरिया नौबस्ता में रहते हैं. वे दोनों सहवान की काकादेव स्थित कोचिंग में पढ़ाते थे. उन दोनों को पढ़ाने के एवज में सहवान 40-40 हजार रुपए प्रतिमाह देते थे. उन की निजी जिंदगी के बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. आज जब वे दोनों कोचिंग में थे, तभी इरफान भाई द्वारा नमरा की हत्या और सहवान भाई द्वारा आत्महत्या किए जाने की जानकारी मिली. इस के बाद दोनों यहां आ गए.

राधा ने बताया कलह के बारे में

नौकरानी राधा ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि साहब और मेमसाहब के बीच बहुत खराब रिश्ता था. दोनों अकसर मारपीट करते रहते थे. झगड़ा ज्यादातर रात में होता था. सुबह जब वह काम करने आती थी तो फर्श पर ग्लास या फूलदान टूटा मिलता था. एक दिन तो टीवी बिखरा पड़ा था. आज सुबह जब वह काम पर आई तो दरवाजा बंद था, लेकिन चाबी लौक में फंसी थी.

पहले तो उस ने घंटी बजाई लेकिन जब जवाब नहीं मिला तो वह दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हुई. फर्श पर मेमसाहब की खून से लथपथ लाश देख कर उस के मुंह से चीख निकल गई. तब वह बाहर आई और यह जानकारी लोगों को दी.

मृतक सहवान की पहली पत्नी समराना ने पुलिस अधिकारियों को बताया कि सन 2007 में उस का निकाह मोहम्मद सहवान से हुआ था. शादी के बाद उस के 2 बच्चे भी हुए. वह शौहर के साथ खुशहाल जिंदगी गुजार रही थी. लेकिन उस के जीवन में ग्रहण लगा वर्ष 2016 में जब नमरा खान कोचिंग में पढ़ने आई.

पढ़ने के दौरान उस के और सहवान के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं, जो बाद में प्यार में तब्दील हो गईं. इस के बाद नमरा को ले कर उस के और शौहर सहवान के बीच झगड़ा होने लगा. फिर एक दिन नमरा के उकसाने पर सहवान ने उसे तलाक दे दिया.

वह बेटी अंसरा के साथ मायके जा कर रहने लगी. फिर नमरा और सहवान ने शादी कर ली. नमरा उस के बेटे अयान को मारती पीटती थी, जिस की वजह से सहवान ने बेटे को अपने मांबाप के पास छोड़ दिया था.

इस के बावजूद दोनों में लड़ाई होती थी. नमरा के व्यवहार से सहवान बहुत दुखी रहते थे. उस के और सहवान के बीच गुजाराभत्ता तथा उत्पीड़न का मुकदमा चल रहा था, फिर भी  वह उस से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगे थे. वह बेटी अंसरा से मिलने के बहाने घर आते थे. बेटी से वह फोन पर भी बात किया करते थे. उन्हें लगने लगा था कि नमरा से दूसरा निकाह कर के उन्होंने भारी भूल की है.

29 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सहवान ने उसे फोन किया और बेटी अंसरा से बात कराने को कहा. उस ने अंसरा से उन की बात करा दी. सहवान ने अंसरा से कहा था कि बेटी मैं तुम को बहुत मिस करता हूं. आई लव यू.

अंसरा ने भी आई लव यू पापा कहने के साथ फल और कुछ सामान ले कर आने को कहा था. सहवान ने उसे जल्द आने का भरोसा दिया था. सहवान तो नहीं आए लेकिन आज उन की मौत की खबर जरूर आ गई. इतना कह कर समराना फफक पड़ी.

पुलिस अधिकारियों ने मृतका नमरा खान के पिता शहंशाह खान से पूछताछ की तो वह रो पड़े और बोले, ‘‘नमरा ने अगर उन की बात मानी होती तो वह जिंदा होती. नमरा छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से बीटेक की पढ़ाई कर रही थी. वह काकादेव स्थित सहवान की कोचिंग में पढ़ाई करने जाती थी. पढ़ाई के दौरान ही नमरा को सहवान से मोहब्बत हो गई और दोनों ने शादी रचा ली.

जब यह जानकारी उन्हें हुई तो वह नमरा को बांगरमऊ, उन्नाव स्थित अपने घर ले आए. उन्होंने नमरा को समझाया कि सहवान शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता है. उम्र में भी वह उस से दोगुना बड़ा है. लेकिन सहवान के प्रेम में अंधी नमरा ने उन की बात नहीं मानी. मजबूर हो कर बेटी की जिद के आगे उन्हें झुकना पड़ा.’’

नमरा की हत्या की तसवीर तो साफ हो गई लेकिन कई सवाल खड़े हो रहे थे. नमरा खान की हत्या की तसवीर अब तक काफी साफ हो चुकी थी. फिर भी पुलिस के मन में काफी आशंकाएं पनप रही थीं. जैसे सीसीटीवी कैमरा किस ने बंद किया और फिर किस ने चालू किया. नमरा की हत्या की सूचना थाना पुलिस को देर से क्यों दी गई. सहवान ने अगर घर में जहर पीया तो वह इतनी देर तक कैसे जिंदा रहा. क्या नमरा की हत्या में कोई और भी शामिल था, जो नमरा की हत्या कर सहवान को उतनी दूर तक ले गया था?

अभी तक पुलिस को दोनों मृतकों के मोबाइल फोन नहीं मिले थे. पुलिस को शक था कि दोनों मोबाइलों को सहवान ने कहीं फेंक दिया होगा. पुलिस ने दोनों मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि रात 12.10 बजे अपार्टमेंट से निकलने के बाद सहवान कार से नवाबगंज क्षेत्र में घूमता रहा.

सुबह पौने 4 बजे उस की लोकेशन चिडि़याघर के पास मिली. 4 बजे रानीघाट तथा 4 बज कर 8 मिनट पर उस की लोकेशन गंगा बैराज के पास की थी. पुलिस को शक हुआ कि उस ने गंगा बैराज के पास ही दोनों मोबाइल तोड़ कर फेंक दिए होंगे.

नमरा के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उसने 28 अप्रैल की रात 3 बजे से 5 बजे के बीच लगातार एक नंबर पर बात की. उस के बाद उस के नंबर पर कोई बात नहीं हुई. नमरा ने जिस नंबर पर बात की थी, उस की लोकेशन उस समय दिल्ली से सटे नोएडा की थी.

पुलिस ने उस नंबर को डायल किया तो पता चला कि वह नंबर एक जिम ट्रेनर का था. वह जिम टे्रनर पहले कल्याणपुर में रहता था और एक जिम में ट्रेनर था. इस जिम में नमरा हर रोज तथा सहवान कभीकभी कसरत करने जाते थे. इसी जिम में नमरा की मुलाकात जिम ट्र्रेनर से हुई थी. बाद में अकसर दोनों के बीच बातचीत होने लगी थी. कुछ दिन पहले जिम ट्रेनर नौकरी छोड़ कर नोएडा चला गया था, तब भी नमरा की उस से बात होती रहती थी.

सीओ अजय कुमार ने जब इस जिम ट्रेनर से नमरा के बारे में जानकारी चाही तो उस ने बताया कि नमरा और सहवान का वैवाहिक जीवन सही नहीं चल रहा था. दोनों के विचारों में अहं और विरोधावास था. दोनों एक दूसरे के चरित्र पर शक करते थे. इस सब का जिक्र नमरा उस से फोन पर करती रहती थी. वह अपनी हर बात उस से शेयर करती थी.

जांचपड़ताल से पुलिस को यह भी पता चला कि सहवान ने पत्नी की हत्या करने के बाद चिडि़याघर पहुंचने पर पुलिस के 100 नंबर पर भी फोन किया था. उस ने कहा था कि मैं सहवान बोल रहा हूं. मैं ने अपनी पत्नी की हत्या कर दी है. उस की लाश केशवपुरम के फ्लैट नंबर 612 में पड़ी है.

इस सूचना पर पुलिस केशवपुरम तक गई थी लेकिन अपार्टमेंट का सही नाम मालूम न होने के कारण वापस लौट आई थी. पुलिस ने पलट कर वही नंबर डायल किया, लेकिन नंबर बंद मिला. पुलिस ने समझा कि किसी ने मजाक किया होगा क्योंकि पुलिस कंट्रोल रूम को आए दिन झूठी काल मिलती रहती हैं.

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