इश्क में राहुल ने उजाड़ दिया पूरा परिवार

8 जनवरी, 2017 को दोपहर बाद की बात है. 34 साल का राहुल माटा पूर्वी दिल्ली के मधु विहार स्थित अजंता अपार्टमेंट के गेट पर पहुंचा. इसी अपार्टमेंट के फ्लैट नंबर-32 में उस के मातापिता रहते थे. लेकिन राहुल की गलत आदतों की वजह से उस के पिता रविंद्र माटा ने उसे घर से बेदखल कर दिया था. इस के बाद उस के सोसाइटी में घुसने तक पर रोक लगा दी गई थी. जाहिर है, राहुल की कोई न कोई बात उस सोसाइटी के पदाधिकारियों को बुरी लगी होगी, तभी तो गेट पर तैनात गार्डों से भी कह दिया गया था कि उसे किसी भी सूरत में सोसाइटी के अंदर न आने दिया जाए.

उस दिन राहुल अपने फ्लैट पर जाने के लिए सोसाइटी के गेट पर पहुंचा तो वहां मौजूद सुरक्षागार्ड नंदन सहाय ने उसे रोक दिया. गार्ड ने कहा कि सोसाइटी के पदाधिकारियों के आदेश पर ही वह यह कर रहा है. एक सुरक्षागार्ड की राहुल के सामने भला क्या औकात थी. गार्ड द्वारा रोकने की बात राहुल को बुरी लगी. वह गार्ड को डांटते हुए आगे बढ़ा तो गार्ड ने इस का विरोध किया. क्योंकि उसे तो अपनी ड्यूटी करनी थी. राहुल को गार्ड की यह जुर्रत नागवार लगी और वह गार्ड से झगड़ने लगा तथा उस की पिटाई कर दी.

शोरशराबा सुन कर सोसाइटी के कई लोग अपनेअपने फ्लैट से निकल आए. उन लोगों ने भी सुरक्षागार्ड का पक्ष लिया, पर राहुल सभी की बात अनसुनी कर के जबरदस्ती आगे बढ़ गया. तब तक राहुल के 63 वर्षीय पिता रविंद्र माटा भी फ्लैट से बाहर निकल आए थे. बेटे का गार्ड से झगड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगा. उस से बात करने के लिए वह उस की तरफ बढ़े. चूंकि वह उसे संपत्ति से पहले ही बेदखल कर चुके थे, इसलिए राहुल ने उन से झगड़ना शुरू कर दिया.

उसी दौरान राहुल ने अपने साथ लाए नारियल काटने वाले चापड़ से पिता पर हमला कर दिया. वहां जितने भी लोग मौजूद थे, उन में से किसी की भी इतनी हिम्मत नहीं हो सकी कि वह रविंद्र माटा को बचा सकते. बल्कि वह अपनी जान बचाने के लिए अपने फ्लैटों में चले गए और दरवाजे बंद कर लिए. राहुल पिता पर करीब ढाई मिनट तक चापड़ से वार करता रहा और वह जमीन पर गिर कर तड़पते रहे. इस दौरान किसी ने पुलिस के 100 नंबर पर फोन कर के वारदात की जानकारी देने का साहस जरूर कर दिया था.

राहुल को जब लगा कि उस के पिता मर चुके हैं तो वह खून से सना चापड़ हाथ में थामे अपने फ्लैट पर पहुंचा. पर उस की मां विभा माटा ने पहले ही दरवाजा बंद कर लिया था. राहुल ने मां को आवाज देते हुए कई बार दरवाजा खटखटाया, पर विभा ने दरवाजा नहीं खोला. राहुल को अब इस बात का डर लगा कि कहीं सोसाइटी के लोग उसे पकड़ न लें. इसलिए खुद को बचाने के लिए वह किसी दूसरे फ्लैट में जा रहा था, तभी रास्ते में रेनू बंसल नाम की महिला मिलीं, जो पास के फ्लैट में ही रहती थीं. राहुल ने चापड़ से उन्हें भी घायल कर दिया. रेनू को घायल करने के बाद वह तीसरी मंजिल स्थित फ्लैट नंबर 35 में घुस गया.

यह फ्लैट फिल्म अभिनेता वी.के. शर्मा का था. उस समय वह अपने बेटे कशिश के साथ मौजूद थे. राहुल के हाथ में खून से सना चापड़ देख कर वह भी डर गए. राहुल ने दोनों बापबेटों को धक्का दे कर कहा, ‘‘मेरे पास मत आना, वरना मार डालूंगा.’’

वी.के. शर्मा ने अपनी फिल्मी लाइफ में फिल्मी गुंडों को देखा था पर अब तो राहुल उन के सामने सचमुच का गुंडा था. उस से कोई पंगा लेने के बजाए उन्होंने खुद को बचाना जरूरी समझा और बेटे के साथ खुद को एक कमरे में बंद कर लिया. राहुल उन के किचन में चला गया और अंदर से किचन का दरवाजा बंद कर लिया. तब तक मधु विहार थाने की पुलिस अजंता अपार्टमेंट पहुंच चुकी थी. गेट से कुछ कदम दूर रविंद्र माटा की लहूलुहान लाश पड़ी थी. सोसाइटी के लोगों ने बताया कि इन की हत्या इन के बेटे राहुल ने की है जो फ्लैट नंबर 35 में छिपा है.

पुलिस टीम फ्लैट नंबर 35 में पहुंची. उस फ्लैट का किचन और एक कमरा अंदर से बंद था. पुलिस ने दोनों जगह दस्तक दी तो पुलिस का नाम सुनते ही अभिनेता वी.के. शर्मा ने दरवाजा खोल दिया. सामने पुलिस देख कर उन्होंने राहत की सांस ली. उन्होंने बताया कि राहुल उन के किचन में है.

पुलिस ने किचन का दरवाजा खटाखटा कर राहुल से दरवाजा खोलने को कहा. पर राहुल ने दरवाजा नहीं खोला. उसे डर था कि पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेगी. इसलिए वह अपने बचाव का रास्ता खोजने लगा. पर उसे ऐसा कोई रास्ता नहीं मिला. जब काफी देर तक राहुल ने दरवाजा नहीं खोला तो पुलिस ने दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया.

तब राहुल ने रसोई गैस (पीएनजी) खोल कर पुलिस को धमकी दी. इतना ही नहीं उस ने आग भी लगा दी. रसोई गैस की आग ने पूरे किचन को चपेट में ले लिया. पुलिस ने दरवाजा तोड़ कर किचन की आग की लपटों में घुस कर राहुल माटा को बाहर निकाल लिया. उस समय तक राहुल काफी जल गया था. राहुल को सुरक्षित निकालने में 10 पुलिसकर्मी भी झुलस गए. झुलसे हुए पुलिसकर्मियों में इंसपेक्टर मनीष जोशी, एसआई संजय, निशाकर, अंशुल, मनीष, एएसआई सुनील कुमार, चंद्रघोष, हैडकांस्टेबल रामकुमार, कांस्टेबल सुधीर, गजराज शामिल थे. खुद के घायल होने के बावजूद भी पुलिस राहुल को मैक्स अस्पताल ले गई.

तब तक आग पूरे फ्लैट में फैल चुकी थी. फायर ब्रिगेड की 10 गाडि़यां मौके पर पहुंच गईं. घंटे भर की मशक्कत के बाद आग पर काबू पाया जा सका. पर आग में अभिनेता वी.के. शर्मा के फ्लैट का सारा सामान स्वाहा हो चुका था. उन्हें उत्कृष्ट अदाकारी के लिए संगीत नाटक अकादमी से मिला पुरस्कार भी स्वाहा हो गया था.

बचाव के दौरान पुलिसकर्मियों के झुलसने की बात सुन कर डीसीपी ओमवीर सिंह बिश्नोई भी अस्पताल पहुंच गए. आरोपी राहुल माटा और 4 पुलिसकर्मियों की हालत गंभीर होने पर उन्हें सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. राहुल 40 प्रतिशत जल चुका था. घायल पुलिसकर्मियों को देखने के लिए पुलिस आयुक्त आलोक वर्मा भी अस्पताल पहुंचे.

राहुल ने रेनू बंसल नाम की जिस महिला को घायल किया था, उसे भी 26 टांके लगे थे. राहुल की हालत सामान्य होने के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से विस्तार से पूछताछ की तो चौंकाने वाली कहानी सामने आई—

राहुल माटा एक धनाढ्य परिवार से था. उस के पिता रविंद्र माटा का कनाडा में अपना बिजनैस था. करीब 20 साल पहले वह कनाडा चले गए थे. परिवार में पत्नी विभा माटा के अलावा 2 बेटे ही थे. एक राहुल माटा और दूसरा मुकुल माटा. दोनों बच्चों की प्रारंभिक पढ़ाई दिल्ली में हुई थी. विभा दिल्ली में सरकारी नौकरी करती थीं. स्कूली शिक्षा पूरी  करने के बाद राहुल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक किया. आगे की पढ़ाई के लिए पिता ने उसे अमेरिका भेज दिया. सन 1995 से 1999 तक उस ने अमेरिका में पढ़ाई की.

इस के बाद सन 2000 में उस ने अमेरिका की ही एक बैंक में नौकरी कर ली. 8 सालों तक वहां काम करने के बाद वह पिता के पास कनाडा चला गया. पिता को कनाडा की नागरिकता मिली हुई थी. कनाडा में उस ने मर्चेंट नेवी में नौकरी की पर अनुशासनहीनता के आरोप में उसे सन 2011 में नौकरी से निकाल दिया गया.  कनाडा की एक लड़की से छेड़छाड़ के आरोप में राहुल को जेल जाना पड़ा, जिस में उसे 2 साल की सजा भी हुई. इस आरोप की वजह से राहुल को कनाडा से डिपोर्ट कर भारत भेज दिया गया.

बाद में सन 2014 में उस का मर्चेंट नेवी का लाइसैंस भी निरस्त हो गया. तब मर्चेंट नेवी में नौकरी करने का उस का रास्ता भी बंद हो गया.

रविंद्र माटा ने अपने छोटे बेटे मुकुल माटा को भी कनाडा बुला लिया था. उस की वहां एक मोबाइल फोन कंपनी में नौकरी लग गई थी. दोनों बापबेटे कनाडा में रहते थे, जबकि राहुल अपनी मां विभा के साथ दिल्ली के अजंता अपार्टमेंट के फ्लैट में रहता था. अब से करीब 2 साल पहले विभा भी रिटायर हो गई थीं. अजंता अपार्टमेंट का यह फ्लैट रविंद्र ने सन 1994 में खरीदा था.

दिल्ली में कोई कामधाम करने के बजाय राहुल दिन भर दोस्तों के साथ घूमता रहता था. खर्च के लिए पैसे मां से ले जाता था. विभा जब उसे कोई काम करने को कहतीं तो वह काम न मिलने का बहाना बना देता. इस के बावजूद भी मां उसे समझाती रहतीं. पर वह उन की सलाह को अनसुना कर देता था.

जिस अपराध की वजह से राहुल को कनाडा छोड़ना पड़ा था, उसी तरह का आरोप उस पर सोसाइटी की एक महिला ने भी लगाया था. राहुल पर बारबार इस तरह के आरोप लगने के बाद भी मांबाप ने उस की शादी नहीं की. इस का नतीजा यह हुआ कि राहुल 2 बच्चों की मां निशा के चक्कर में पड़ गया. निशा के 15 और 16 साल के 2 बच्चे थे. वह एक स्कूल में टीचर थी. राहुल निशा के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगा. एक दिन राहुल ने यह बात मां को बताई तो उन्हें यह बात बड़ी नागवार गुजरी. उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना.

इतना ही नहीं, वह निशा को मां के पास फ्लैट पर भी लाने लगा. विभा ऐतराज जताती रहीं और उसे फ्लैट पर लाने के लिए मना करती रहीं. मां की आपत्ति पर राहुल ने कहा कि उस ने उस के साथ मंदिर में शादी कर ली है. यह सुन कर विभा के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने यह जानकारी कनाडा में रह रहे पति को दे दी, साथ ही यह भी कह दिया कि मना करने के बावजूद राहुल जबरदस्ती निशा को फ्लैट पर लाता है.

तब वीडियो कौन्फ्रैंसिंग कर रविंद्र ने भी बेटे राहुल को समझाने की कोशिश की, लेकिन उस पर तो प्यार का फितूर चढ़ा था. वह भी अपनी जिद पर अड़ा था. राहुल की जिद से रविंद्र माटा और उन की पत्नी को इस बात की आशंका होने लगी कि कहीं बिना शादी की हुई यह महिला और उस के बच्चे उन के फ्लैट पर कब्जा न कर लें.

राहुल की हठधर्मिता से विभा का उस के प्रति व्यवहार भी बदल गया. हर महीने वह उसे खर्च के जो पैसे देती थीं, उन्होंने देने बंद कर दिए. तब राहुल उन से झगड़ता और उन की पिटाई तक कर देता. कभीकभी तो मांबेटे के बीच झगड़ा इतना बढ़ जाता कि पड़ोसियों को बीचबचाव के लिए आना पड़ता.

उस के हिंसक मिजाज से सोसाइटी के लोग भी परेशान थे. एकदो बार पड़ोसियों ने हस्तक्षेप किया तो राहुल ने उन के साथ भी बदतमीजी की. विभा के परिवार में कलह लगातार बढ़ती जा रही थी. फोन कर के वह कनाडा में बैठे पति को सब बताती रहती थीं. बेटे के आचरण से रविंद्र माटा भी परेशान हो गए.

12 अक्तूबर, 2016 को वह कनाडा से दिल्ली आ गए. उन्होंने एक बार फिर बेटे राहुल को समझाया. उन्हें लगा कि राहुल सुधरने वाला नहीं है तो उन्होंने उसे अपनी चलअचल संपत्ति से पूरी तरह से बेदखल करने की चेतावनी दे दी और कह दिया कि वह आइंदा उन के फ्लैट पर न आए.

सोसाइटी वाले तो राहुल के व्यवहार और उस के शोरशराबा करने से पहले परेशान थे. ऊपर से रविंद्र माटा ने सोसाइटी के सचिव जे.एल. गुप्ता से कह दिया कि राहुल को उन के फ्लैट में आने की अनुमति न दी जाए. इस के बाद अजंता रेजीडैंशियल सोसाइटी के सचिव जे.एल. गुप्ता ने गेट पर तैनात सुरक्षागार्डों को राहुल की एंट्री पर बैन लगाने की हिदायत दे दी.

बेटे से खतरे को देखते हुए रविंद्र माटा ने अपने फ्लैट की एंट्री और बालकनी में लोहे के ग्रिल और दरवाजे भी लगवा दिए. बेटे के तेवर देखते हुए उन्होंने इस की शिकायत थाने में भी कर दी थी. सीनियर सिटिजन सेफ्टी के लिहाज से पुलिस ने उन्हें कुछ सेफ्टी टिप्स दिए, साथ ही पुलिस ने पड़ोसियों से भी उन का ध्यान रखने को कह दिया. बहरहाल रविंद्र माटा और विभा अब सतर्क रहने लगे. हालात सामान्य होने पर रविंद्र माटा का कनाडा लौटने का कार्यक्रम निश्चित था.

घर से बेदखल होने के बाद राहुल निशा के साथ पूर्वी दिल्ली के पांडव नगर में रहने लगा था. अब उसे अपने मांबाप दुश्मन लगने लगे. इतना ही नहीं, उस ने दोनों की हत्या करने की ठान ली. इस के लिए उस ने बाजार से एक चापड़ खरीद लिया. चापड़ अपने साथ ले कर वह 8 जनवरी को दोपहर के समय अजंता अपार्टमेंट पहुंच गया. वह जैसे ही गेट पर पहुंचा, वहां तैनात सुरक्षागार्ड नंदन सहाय ने उसे रोक लिया और बता दिया कि उस के अपार्टमेंट में घुसने पर बैन लगा है.

सुरक्षागार्ड के इतना कहते ही राहुल उस से उलझ गया और अपना रौब दिखाने लगा. गार्ड तो अपनी ड्यूटी कर रहा था, पर राहुल नहीं माना. सुरक्षागार्ड की पिटाई करने के बाद राहुल अपने फ्लैट की तरफ जाने लगा. इस के बाद शोर सुन कर बाहर आए पिता को उस ने चापड़ से वार कर मौत के घाट उतार दिया.

पिता की हत्या करने के बाद वह मां की हत्या करने के लिए फ्लैट पर गया. फ्लैट का दरवाजा बंद होने पर उस ने दूसरी बड़ी वारदात को अंजाम दे दिया.

रेनू बंसल को घायल करने के बाद वह फिल्म अभिनेता वी.के. शर्मा के फ्लैट में घुस गया और खुद को बचाने के चक्कर में उन के घर को आग के हवाले कर दिया. वी.के. शर्मा पिछले 15 सालों से इस फ्लैट में रह रहे थे.

राहुल माटा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 9 जनवरी, 2017 को कड़कड़डूमा अदालत में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश किया. राहुल ने जज को बताया कि उस ने अपने पिता की हत्या नहीं की और वी.के. शर्मा के फ्लैट में आग उस ने नहीं, बल्कि पुलिस ने लगाई थी. बहरहाल पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद उसे जेल भेज दिया. मामले की जांच इंसपेक्टर अजीत सिंह कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, निशा परिवर्तित नाम है.

शक की पराकाष्ठा : परिवार में कैसे आया भूचाल – भाग 1

उत्तर प्रदेश के जिला मुरादाबाद की तहसील ठाकुरद्वारा से लगभग 8 किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में स्थित है गांव निर्मलपुर. वैसे तो इस गांव में हर वर्ग के लोग रहते हैं, लेकिन यहां ज्यादा आबादी मुसलिम वर्ग की है. 9 जून, 2019 को रात के कोई साढ़े 10 बजे का वक्त रहा होगा. उसी समय अचानक इसी गांव में रोहताश के घर से चीखनेचिल्लाने की आवाजें आने लगीं.

चीखने की आवाज सुन कर गांव के लोग चौंक गए, क्योंकि रोहताश का घर वैसे भी गांव के पूर्व में बाहर की ओर था. लोगों ने सोचा कि रोहताश के घर में शायद बदमाश घुस आए हैं. इसलिए पड़ोसी अपनीअपनी छतों पर चढ़ कर उस के घर की स्थिति का जायजा लेने लगे. लेकिन रात के अंधेरे में कुछ भी मालूम नहीं पड़ रहा था. इसी कारण कोई भी उस के घर पर जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

रोहताश के घर से लगा हुआ उस के छोटे भाई छतरपाल का मकान था. छतरपाल का बड़ा बेटा सुनील प्रजापति अपने ताऊ के घर से चीखपुकार की आवाजें सुन कर समझ गया कि वहां कुछ तो गड़बड़ है. जानने के लिए वह अपनी छत पर चढ़ गया. उस ने देखा कि एक आदमी उस की ताई पर लिपट रहा है. यह देख कर वह तैश में आ गया.

वह फुरती से अपने घर की दीवार लांघ कर ताऊ रोहताश के घर में जा पहुंचा. वहां का मंजर देख कर वह डर के मारे थर्रा गया. उस वक्त उस ने देखा कि उस के ताऊ रोहताश के हाथ में कैंची है, जिस से वह ताई को मारने की कोशिश कर रहा था. वह उसी कैंची से अपने चारों बच्चों को पहले ही लहूलुहान कर चुका था.अपने सामने खड़े शैतान बने ताऊ को देखते ही उसे डर तो लगा लेकिन फिर भी उस ने जैसेतैसे कर हिम्मत जुटाई और फुरती दिखाते हुए उस ने अपने ताऊ को दबोच लिया. उस ने ताकत के बल पर उस के हाथ से वह कैंची भी छीन कर नीचे फेंक दी.

सुनील की हिम्मत को देखते हुए पड़ोसी भी घटनास्थल पर इकट्ठे हो गए. उसी दौरान रोहताश वहां से फरार हो गया. वहां पर मौजूद लोगों ने देखा कि उस के 4 बच्चे 18 वर्षीय सलोनी, 16 वर्षीय शिवानी, 14 वर्षीय बेटा रवि और सब से छोटा 10 वर्षीय बेटा आकाश बुरी तरह से लहूलुहान पड़े हुए चीख रहे थे. उन की नाजुक हालत देखते हुए गांव वालों के सहयोग से सुनील ने उन्हें ठाकुरद्वारा के सरकारी अस्पताल में पहुंचाया. रवि को देखते ही डाक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया.

तीनों बच्चों की बिगड़ी हालत को देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें काशीपुर के हायर सेंटर रेफर कर दिया. काशीपुर में उन्हें एक निजी अस्पताल में भरती कराया गया, जहां पर 2 बच्चों की हालत ज्यादा नाजुक बनी हुई थी. अगले दिन ही सोमवार को इस मामले के सामने आते ही ठाकुरद्वारा पुलिस ने काशीपुर पहुंच कर घायल बच्चों की स्थिति का जायजा लिया. पुलिस ने रोहताश की पत्नी कलावती से जानकारी हासिल की.

पुलिस पूछताछ में कलावती ने बताया कि उस का पति रोहताश शराब पीने का आदी था. वह अपनी कमाई के ज्यादातर पैसे शराब पीने में ही खर्च कर देता था. वह और उस के बच्चे जब कभी भी उस से खर्च के लिए पैसों की मांग करते तो वह पैसे देने के बजाए उन्हें मारनेपीटने पर उतारू हो जाता था.

कलावती ने पुलिस को बताया कि रविवार की शाम जब पति देर रात घर वापस लौटा तो काफी नशे में था. खाना खा कर सभी लोग छत पर सो गए. रात में उठ कर रोहताश ने गहरी नींद में सोए बच्चों पर कैंची से हमला करना शुरू कर दिया. उस ने चारों बच्चों को इतनी बुरी तरह गोदा कि उन की आंतें तक बाहर निकल आईं.

बच्चों के चीखने की आवाज सुन कर कलावती जाग गई. उस ने बच्चों को बचाने की कोशिश की तो वह उस पर भी कैंची से हमला करने लगा. उसी दौरान किसी तरह सुनील आ गया. यदि वह नहीं आता तो बच्चों की तरह वह उस का भी यही हाल कर देता.

पुलिस ने रोहताश के भाई विजयपाल सिंह की तहरीर पर रोहताश के खिलाफ हत्या और हत्या का प्रयास करने का मुकदमा दर्ज कर लिया. मामले की विवेचना कोतवाली प्रभारी मनोज कुमार सिंह ने स्वयं ही संभाली.

कलावती से पूछताछ के बाद कोतवाली प्रभारी मनोज कुमार सिंह को पता चला कि रोहताश के परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी. कलावती के पास बच्चों का इलाज कराने के लिए पैसे भी नहीं थे. इस स्थिति को देखते हुए कोतवाल ने उसी वक्त घायल बच्चों के इलाज के लिए 50 हजार रुपए की मदद कलावती को की. उन्होंने 50 हजार रुपए कलावती के खाते में डलवा दिए.

घटना को अंजाम देने के बाद से ही रोहताश फरार हो गया था. उस का पता लगाने के लिए 3 पुलिस टीमें गठित की गईं. पुलिस टीमें रोहताश को हरसंभव स्थान पर खोजने लगीं. लेकिन उस का कहीं भी अतापता नहीं था.

इस केस की गहराई तक जाने के लिए पुलिस ने रोहताश के परिजनों के साथसाथ उस के कुछ खास रिश्तेदारों से भी पूछताछ की. लेकिन इस पूछताछ में पुलिस के हाथ कोई ऐसा सुराग नहीं लगा, जिस के आधार पर पुलिस की जांच आगे बढ़ सके.

उसी दौरान पुलिस को पता चला कि रोहताश काफी दिनों से परेशान दिख रहा था. उसे तांत्रिकों के पास चक्कर लगाते भी देखा गया था. तांत्रिक का नाम सामने आते ही पुलिस ने कयास लगाया कि कहीं यह सब मामला तांत्रिक से ही जुड़ा हुआ तो नहीं है.

पुलिस ने उस की बीवी कलावती से इस बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उसे किसी के द्वारा जानकारी तो मिली थी कि वह आजकल किसी तांत्रिक के पास जाता है. क्यों जाता था, यह पता नहीं. गांव के कुछ लोगों ने पुलिस को बताया कि रोहताश अकसर किसी खजाने के मिलने वाली बात कहा करता था.

उस ने गांव के कई लोगों के सामने कहा था कि उसे बहुत जल्दी खजाना मिलने वाला है. उस खजाने के मिलते ही उस की सारी गरीबी खत्म हो जाएगी. लेकिन उस ने कभी भी इस बात का जिक्र नहीं किया था कि उसे खजाना किस तरह से मिलने वाला है.

28 साल बाद मिला न्याय : बलात्कार से पैदा बेटे का ‘मिशन मदर’ – भाग 1

विकास अग्निहोत्री जब भी शाहजहांपुर में मातापिता के दूसरे रिश्तेदारों से मिलता था, तब उसे अकसर ताने सुनने को मिलते थे, ‘‘तुम्हारे असली मांबाप तो कोई और हैं. तुम गोद लिए हुए नकली बेटे हो.’’ जबकि वह अग्निहोत्री दंपति की 3 संतानों में दूसरे नंबर पर था. ‘नकली बेटा’ शब्द कानों में गर्म शीशे की तरह पड़ते थे और मन कचोटने लगता था.

जब वह 10 साल का हुआ, तब एक बार पिता राजेश अग्निहोत्री से उस ने जानने की जिद कर दी कि उस के असली मांबाप कौन हैं? उस की जिद पर राजेश ने असली मां का पता बता दिया, जो लखनऊ में रहती थी. उस के असली बाप के बारे में उन्हें भी कोई जानकारी नहीं थी.

विकास ने राजेश को साथ ले जा कर अपनी मां से मिलवाने के लिए कहा. किंतु  राजेश ने आजकल करते हुए 2 साल निकाल दिए. एक दिन राजेश को कुछ बताए बगैर विकास खुद लखनऊ जा पहुंचा.

बताए गए पते पर वह पहुंचा तो वहां क्षमा सिंह मिली. विकास ने जब उन्हें राजेश अग्निहोत्री के बारे में बताया तब उसे देख कर वह हतप्रभ रह गई. झट से गले लगा लिया. विकास को समझते देर नहीं लगी. भावुक हो गई. आंखों से आंसू निकल आए. खुशी के आंसू विकास की आंखों से भी निकलने लगे.

क्षमा सिंह से रोते हुए विकास ने बताया कि वह अब उन के पास रहने के लिए आया है. अब राजेश अग्निहोत्री के घर नहीं जाएगा. उस ने यह भी बताया कि वह जहां था, वहां उसे जरा भी प्यार नहीं मिलता था. सभी उसे दुत्कारते रहते थे. यहां तक कि राजेश भी उसे पापा कह कर बुलाने से मना करते थे.

यह सुन कर क्षमा का दिल और भर आया. पहली बार गले लगे बेटे विकास से बोली, ‘‘कोई बात नहीं बेटा, अब तुम यहीं रहना.’’

इस तरह विकास की नई जिंदगी शुरू हो गई. उसे अपनी मां मिल गई थी और परिवार में उस से 2 साल कम उम्र का एक भाई भी मिल गया था.

लखनऊ में क्षमा सिंह अपने 5 साल के बेटे के साथ रहने के लिए आई थी. जीविका चलाने के लिए ब्यूटीपार्लर में काम करती थी. विकास जल्द ही परिवार में घुलमिल गया था. क्षमा भी 2 बेटों को पा कर खुद को धन्य महसूस करने लगी.

विकास के मन में एक जिज्ञासा पिता को ले कर अभी भी बनी हुई थी, जिस का घर में कोई नामोनिशान नहीं था. उस बारे में विकास ने कई बार मां से जानना चाहा, लेकिन हर बार वह कुछ भी बताने से कतराती रही.

बहुत जिद करने पर उस ने एक दिन बताया कि उस का पिता उस के जन्म से पहले ही काम के सिलसिले में पंजाब गया था और वापस नहीं लौटा है. पता नहीं जिंदा है भी या नहीं. उस के बारे कोई जानकारी नहीं है.

अब वह उस का नाम तक नहीं लेना चाहती है. उसी के चलते उस का दूसरा बसाबसाया परिवार भी उजड़ गया. बहनों की बदौलत दूसरी शादी हो गई थी. फिर से उस के छोटे भाई की मां बनी, लेकिन उस ने भी उसे ठुकरा दिया.

विकास उन दिनों मैट्रिक की पढ़ाई कर रहा था. उसे बोर्ड परीक्षा के लिए लखनऊ के किसी स्कूल में प्राइवेट रूप से परीक्षा दिलवाने के लिए दाखिला करवाना था. सक्सेना इंटर कालेज में नाम लिखवाने के समय जब पिता का नाम पूछा गया, तब क्षमा सिंह निरुत्तर हो गई. फूटफूट कर रोने लगी. मां को रोता देख विकास गुमसुम बना रहा.

मां ने खोल दी बंद किताब

मांबेटे स्कूल से बाहर आ गए. चाय की एक दुकान के बाहर बेंच पर जा कर उदास बैठ गए. मां को इस हाल में देख कर विकास हतप्रभ था. उस ने मां को एक गिलास पानी पीने को दिया. फिर चाय पिलाई.

चाय पी कर जब क्षमा का मन थोड़ा हलका हुआ, तब सीधे लहजे में बताया कि वही उस की मां और पिता भी है. खैर! पिता की जगह मां ने उस वक्त अभिभावक के तौर पर एक रिश्तेदार का नाम लिखवा दिया था.

बात यहीं खत्म नहीं हुई थी. घर आते ही क्षमा सालों से सीने में छिपाए दर्द को बेटे के सामने उड़ेलने से खुद को नहीं रोक पाई. उस ने विकास के सामने अपनी बंद किताब खोल कर रख दी.

बताया कि उस का पिता इस दुनिया में हो कर भी नहीं है. उस के लिए मृत समान है. वहशी दरिंदे थे दोनों, जिन की बुरी नजरों और दुष्कर्म की वह शिकार हो गई थी. उस के साथ उन दिनों तब अनेक बार बलात्कार हुआ था, जब वह मात्र 13 साल की ही थी. और फिर वह कुंवारी मां बन गई थी.

किसी तरह समाज की बदनामी से बचते हुए उस ने बच्चे को जन्म दिया था. अब उसे संतोष सिर्फ इस बात का है कि उस ने तब दुष्कर्म से पैदा हुए बच्चे को अपने गांव के ही एक बेटी के पिता राजेश अग्निहोत्री के हवाले कर उसे नाजायज कहलाने से बचा लिया था.

हसबैंड की प्रेमिका : ये कहानी आपकी आंखों में आंसू ला सकती है

इस कहानी में सिर्फ 3 कैरेक्टर हैं, मैं यानी पत्नी, मेरे पति और उन की प्रेमिका. 3 किरदारों की कहानी क्या होगी, यह सुन कर आप को थोड़ा अजीब जरूर लगेगा,

लेकिन सच मानिए आप बोर नहीं होंगे. सब से पहले मैं आप को अपना परिचय देती हूं. मेरा नाम विधि है. इस कहानी में दूसरे अहम किरदार यानी मेरे पति का नाम देव है और कहानी के तीसरे और सब से खास किरदार, जिस की वजह से कहानी में विभिन्न मोड़ आए, वह एक प्रेमिका है, जिस के किरदार के बारे में आप को आगे पता चलेगा.

देव से मेरी शादी को अभी केवल एक साल हुआ था. हमारी अरेंज मैरिज थी. मैं बनारस की हूं और देव मेरठ के. वह मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी में गणित के प्रोफेसर हैं. देव के और मेरे पिता बड़े गहरे दोस्त हैं. सच तो यह है कि देव के पिता को मैं बचपन से पसंद थी और वह चाहते थे कि मेरी और देव की शादी हो जाए. देव सुंदर भी थे और होनहार भी, इसलिए शादी में कोई प्रौब्लम नहीं थी.

सच तो यह है कि शादी के बाद देव ने मुझे जितना प्यार दिया, मैं निहाल हो गई. मुझे लगा ही नहीं कि हमारी अरेंज मैरिज है. सब कुछ लव मैरिज जैसा था. हम हनीमून के लिए उत्तराखंड की पहाडि़यों में गए और वहां हम ने खूब एंजौय किया. देव भले ही गणित के प्रोफेसर थे, लेकिन गणित की तरह बोरिंग बिलकुल नहीं थे. वह मुझे जोक्स सुनासुना कर हंसाते रहते थे. मुझे कई बार आश्चर्य होता था कि उन जैसे जिंदादिल व्यक्ति ने गणित जैसा बोरिंग सब्जेक्ट क्यों चुना?

देव हमेशा बहुत खुशखुश नजर आते थे. एक दिन अचानक मुझे उन की खुशी के पीछे छिपे दर्द का पता चला. यह वाकई बहुत चौंका देने वाला था.

देव के कालेज में एनुअल फंक्शन था. उसी फंक्शन में मेरी मुलाकात सांची नाम की एक लड़की से हुई. सांची देव की स्टूडेंट थी. उस के साथ बातचीत में ही मुझे पता चला कि उस कालेज में इंग्लिश की एक प्रोफेसर थी रोशेल, जो सांस्कृतिक विभाग की अध्यक्ष भी थीं. कालेज में जितनी भी कल्चरल एक्टिविटीज होती थीं, प्रमुख बन कर सब रोशेल ही करवाती थीं. इतना ही नहीं, कालेज के एनुअल फंक्शन में रोशेल गिटार भी बजाती थीं, जबकि देव गाना गाते थे.

देव गाना भी गाते हैं, जान कर मैं चौंकी. मेरा चौंकना स्वाभाविक ही था, क्योंकि इतनी अवधि में मैं इस बात को नहीं जान सकी थी. देव जोक्स बहुत अच्छे सुनाते हैं, यह तो मैं जानती थी. लेकिन वह गाते भी बहुत अच्छा हैं, मुझे जरा भी मालूम नहीं था. मैं ने कभी उन्हें गाते सुना भी नहीं था. बाथरूम सिंगर के तौर पर भी नहीं.

मैं ने जब इंग्लिश की उस प्रोफेसर रोशेल के बारे में सांची से कुछ और जानना चाहा तो वह थोड़ी असमंजस में पड़ गई. मुझे लगा कि सांची मुझ से कुछ छिपा रही है. बहुत पूछने पर उस ने केवल इतना ही बताया कि जब से रोशेल कालेज छोड़ कर गई है, तब से देव ने कभी किसी फंक्शन में गाना नहीं गाया.

यह सुन कर मेरी बेचैनी बढ़ गई. मुझे किसी अनजाने खतरे की गंध आने लगी.

अगले दिन ही मैं ने सांची को घर बुलाया. मेरा सामना करते हुए वह असहज महसूस कर रही थी. शायद वह भी मेरे मन में चल रहे विचारों को भांप गई थी. देव घर पर नहीं थे. मैं ने सांची के लिए कौफी बनाई और फिर उस के साथ बातचीत का सिलसिला शुरू किया. वह मुझ से जल्द ही खुल गई. उस ने देव को कुछ ना बताने की कसम ले कर मुझे जो बताया, वह चौंका देने वाला था.

दरअसल, देव और रोशेल एकदूसरे से बहुत प्यार करते थे. उन की लव स्टोरी पूरे कालेज में प्रसिद्ध थी. कालेज के स्टूडेंट उन के प्यार के किस्से बडे़ चटखारे लेले कर बयान करते थे. वे दोनों कालेज में लव बर्ड के नाम से मशहूर थे.

‘‘अगर ऐसा था तो दोनों ने शादी क्यों नहीं की?’’ मैं ने बेचैनी से पूछा.

‘‘मैं ज्यादा तो नहीं जानती, बस कालेज में यह अफवाह थी.’’ सांची थोड़ा हिचकिचाते हुए बोली, ‘‘प्रोफेसर साहब के पिता ने उन का रिश्ता आप के साथ पक्का कर दिया था, यही वजह थी उस संबंध के टूटने की. प्रोफेसर साहब अपने पिता की बहुत इज्जत करते थे, इसलिए उन्होंने पिता को कभी भी रोशेल के बारे में नहीं बताया. बस, उस के बाद रोशेल मैम कालेज छोड़ कर चली गई थीं.’’

‘‘अब कहां हैं रोशेल?’’

‘‘वह नोएडा के एक कालेज में शिफ्ट हो गई थीं. मुझे तो बस इतना पता है कि उन दोनों के प्यार के टूटने से पूरा कालेज दुखी था.’’

सांची की बात सुन कर मैं सन्न रह गई.

देव सचमुच बहुत अच्छे इंसान थे. उन्होंने मुझे कभी इस बात का अहसास तक नहीं होने दिया था कि वह कभी किसी और से प्यार करते थे. रोशेल को पूरी तरह भुला कर उन्होंने मुझ से सच्चा प्यार किया था.

एकाएक मैं खुद को अपराधी महसूस करने लगी, क्योंकि मैं उन दोनों के प्यार के बीच आ गई थी. शाम को देव आए. वह हमेशा की तरह बड़े खुश थे. मेरे लिए नई साड़ी लाए थे. आते ही उन्होंने मुझे गले लगाया, फिर मुझे नई साड़ी पहन कर दिखाने को कहा, साथ ही जोक्स भी सुनाए.

उन में कुछ नहीं बदला था. शायद मेरे अंदर ही कुछ बदल गया था. उस रात मैं सो न सकी. मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे वह प्यार रोशेल का था, जिसे मैं ने छीन लिया था.

काश! मैं सांची से न मिली होती. काश! मैं ने उस से वह सब कुछ न पूछा होता.

एकाएक मेरा मन रोशेल से मिलने के लिए छटपटाने लगा.

अगले दिन मैं फिर सांची से मिली और उस से कहा कि मैं नोएडा जा कर एक बार रोशेल से मिलना चाहती हूं. सांची ने मुझ से मना करते हुए कहा भी कि मुझे यह सब नहीं करना चाहिए. लेकिन मैं उस की कोई बात सुनने को तैयार नहीं थी. आखिर मैं ने सांची को अपने साथ नोएडा चलने के लिए तैयार कर ही लिया.

2 दिनों बाद हम नोएडा में थे. मैं ने देव से बहाना बना दिया था कि मेरी एक फ्रैंड की बर्थडे पार्टी है. मैं पूरा दिन उसी में व्यस्त हूं. देव ने मुझ से कोई पूछताछ नहीं की. सुबह ही मैं और सांची नोएडा के लिए निकल गए. मेरठ से नोएडा की दूरी करीब 3 घंटे की है. नोएडा में हम सीधे रोशेल के कालेज पहुंचे.

सांची ने भी रोशेल को जल्दी ढूंढ निकाला. वह तभी अपना लेक्चर खत्म कर के स्टाफ रूम में आई थी. मैं ने रोशेल को देखा तो बस देखती रह गई.

सच में वह बहुत खूबसूरत थी. उस ने केप शर्ट और लाइट ब्लू कलर की नैरो जींस पहन रखी थी. बालों की हाई पोनी बांधी हुई थी और साइड फ्लिक्स निकली थी. बात करते हुए वह बीचबीच में हंसती थी तो उस की साइड फ्लिक्स उस के गालों को छू जाती थी.

सांची को देखते ही वह पहचान गई और उस से बड़ी गर्मजोशी से मिली. आखिर सांची ने रोशेल से 2 साल इंग्लिश पढ़ी थी. सांची से मिलते ही रोशेल ने पूछा कि उस की पढ़ाई कैसी चल रही है?

उस के बाद सांची ने रोशेल से मेरा इंट्रोडक्शन भी कराया. उस ने मेरा परिचय कराते हुए बताया कि ये प्रोफेसर देव की वाइफ विधि हैं. नोएडा किसी पर्सनल काम से आई थीं तो मेरे साथ यूनिवर्सिटी भी आ गईं.

‘‘देव की वाइफ…’’ सुन कर रोशेल चौंकी.

इस के बाद उस ने बड़े अलग तरह से मेरी तरफ देखा. कुछ सैकेंड के लिए रोशेल की नजरें मेरे चेहरे पर ही जमी रहीं.

‘‘मैं ने सांची से आप की बहुत तारीफ सुनी थी,’’ मैं ने उस मौन को तोड़ा, ‘‘इसलिए आप से मिलने से खुद को रोक नहीं पाई.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है.’’ वह मुसकराई. लेकिन उस की मुसकराहट छनी हुई थी, ‘‘तारीफ के लायक तो आप हैं.’’

मैं कुछ नहीं बोली.

इस के बाद हम दोनों के बीच बातचीत का लंबा सिलसिला शुरू हो गया. बात करतेकरते बीचबीच में उस के बालों की फ्लिक्स उस के चेहरे पर आ जाती तो वह और खूबसूरत लगने लगती.

वह जैसे भूल गई थी कि मेरे साथ सांची भी है. जल्दी ही हम दोनों अच्छी दोस्त बन गईं. रोशेल मुझे और सांची को अपने घर ले गई और हमें लंच कराया.

घर बहुत साफसुथरा और करीने से सजा हुआ था. घर की दरोदीवार और कर्टंस के कलर रोशेल के क्लासिक टेस्ट का बखान कर रहे थे.

तब तक शायद उसे यह मालूम नहीं था कि मैं उस के और देव के प्रेमप्रसंग के बारे में काफी कुछ जानती हूं. हम दोनों आपस में कुछ इस तरह घुलमिल गए थे, जैसे बचपन की बिछड़ी 2 सहेलियां हों.

मैं जब उस के घर से विदा हुई तो मैं ने उसे मेरठ आने का इनविटेशन दे दिया. वैसे भी 2 दिन बाद मेरी फर्स्ट मैरिज एनिवर्सरी थी.

मेरठ आने के नाम पर वह फिर थोड़ा अनइजी हो गई. लेकिन जब मैं ने उस पर दबाव डाला तो वह मान गई. इस बीच चुपचाप बैठी सांची हम दोनों को देख रही थी.

जब हम नोएडा से वापस मेरठ लौट रहे थे तो सांची ने मुझ से थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा, ‘‘मैम, यह आप ठीक नहीं कर रही हैं.’’

‘‘क्या?’’

‘‘रोशेल मैम को अपने घर बुला कर. प्रोफेसर और रोशेल मैम जब इतने टाइम बाद फिर मिलेंगे, तो…’’

‘‘हूं… मैं सब समझती हूं.’’ मेरी आवाज में गंभीरता थी, ‘‘सच कहूं सांची, जब से मुझे यह बात पता चली है, मुझे लग रहा है जैसे मैं अपराधी हूं. मेरी वजह से ही देव और रोशेल अलग हुए. वे दोनों ही कितने अच्छे हैं. अगर उन की शादी हुई होती तो कितने खुश रहते.’’

‘‘यह आप क्या कह रही हैं मैम?’’ सांची बुरी तरह चौंक गई, ‘‘कहीं आप उन दोनों को मिलाने के बारे में तो नहीं सोच रही हैं?’’

‘‘अगर वे दोनों मिल गए…’’ मैं खोएखोए अंदाज में बोली, ‘‘तो सब से अच्छा मुझे लगेगा सांची.’’

‘‘मैमऽऽ’’ हैरानी से सांची की चीख निकल गई, ‘‘आप भूल रही हैं, आप की प्रोफेसर देव से शादी हो चुकी है. आप पत्नी हैं उन की.’’

‘‘पत्नी हूं, इसीलिए तो यह बात कह रही हूं. पत्नी का अर्थ है अर्द्धांगिनी. पति के सुखदुख में आधेआधे की साथी. पत्नी का मतलब यह नहीं कि वह अपने पति को सिर्फ अपने पल्लू से बांध कर रखे. पत्नी का मतलब यह भी है कि वह पति के सुख का ध्यान रखे. और इस में हर्ज ही क्या है? ऐसे कितने परिवार हैं, जहां एक ही घर में एक आदमी के साथ 2 पत्नियां रहती हैं. रोशेल से मिल कर मुझे पूरा भरोसा हो गया है कि हम दोनों एक घर में 2 अच्छी बहनों की तरह रह सकती हैं.’’

‘‘मैम…’’ सांची को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था, ‘‘मुझे उम्मीद नहीं थी कि आप अपने हाथों से अपने हंसतेखेलते परिवार को तबाह करेंगी. इस से तो अच्छा होता कि मैं इस बारे में आप को कुछ बताती ही नहीं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है सांची,’’ मैं उस की तरफ देख कर मुसकराई, ‘‘तुम सच में एक अच्छी लड़की हो, केयरिंग. लेकिन मुझे मेरे एक सवाल का जवाब दो, तुम्हारे प्रोफेसर ने मुझे आज तक हर खुशी दी. मुझ से उतना ही प्यार किया, जितना वह शायद रोशेल से करते. मुझे कभी इस बात का अहसास तक नहीं होने दिया कि उन की जिंदगी में कोई और लड़की भी थी.

‘‘उन्होंने अपने पति होने का फर्ज पूरी तरह निभाया. लेकिन आज जब मुझे पता चला कि उन की जिंदगी में कोई और लड़की थी तो तुम्हीं बताओ, एक पत्नी होने के नाते मेरा क्या फर्ज है? मैं अपनी मांग में जो सिंदूर भर रही हूं, गले में जो मंगलसूत्र पहन रही हूं, उस पर पहला हक किसी और का था. तो क्या एक अच्छी पत्नी होने के नाते मेरा फर्ज नहीं बनता कि मैं अपने पति को उस लड़की से मिलाऊं?’’

सांची मेरी बात सुन कर निरुत्तर हो गई. शायद मैं जिस तरह की बात कर रही थी, वह बात कोई साधारण लड़की नहीं कर सकती थी. इसीलिए वह चौंक रही थी. इस के बाद मेरे जीवन के अगले कुछ दिन बहुत चौंका देने वाले थे.

रोशेल मेरे इनविटेशन पर घर आई. हमारी मैरिज एनिवर्सरी के उपलक्ष्य में वह फूलों का एक बड़ा सुंदर बुके भी लाई. रोशेल को अचानक अपने घर पर देख कर देव चौंके. मैं ने देव को बताया, ‘‘सांची के जरिए हम दोनों की मुलाकात हुई थी और हम पहली ही मुलाकात में बड़े अच्छे दोस्त बन गए थे.’’

रोशेल कोई एक घंटा घर पर रही और वह सारे समय बस मुझ से ही बातें करती रही. देव की तरफ उस ने निगाह उठा कर भी नहीं देखा. बस, उन दोनों के बीच सामान्य हायहैलो हुई. कुछ ऐसे जैसे एकदूसरे को पहचानते ही न हों.

इस के बाद रोशेल चली गई. फिर कुछ दिनों बाद मैं देव को बहाने से नोएडा ले गई. अब मैं अकसर उन दोनों को मिलाने के बहाने खोजती रहती थी. उन दोनों को पता ही नहीं था कि मेरे मन में क्या चल रहा है.

रोशेल के बर्थडे पर भी हम मिले. मैं ने देव से कुछ गुनगुनाने का आग्रह किया तो रोशेल भी खुद को गिटार बजाने से नहीं रोक पाई. वह यादगार शाम थी. अब वे दोनों एकदूसरे से हलकीफुलकी बात भी कर लिया करते थे. लेकिन फिर भी उन दोनों के बीच एक अनदेखा, अनकहा सा फासला था.

कहते हैं, प्यार एक आग का दरिया होता है और मैं उस आग को हवा दे रही थी. देव के प्यार ने मेरे अंदर एक अजीब सा हौसला भर दिया था. मुझे किसी बात का डर नहीं रहा था. मैं तो चाहती थी कि बस देव खुश रहे. लेकिन मेरी चालाकी ज्यादा दिनों तक नहीं चली. जल्द ही देव को पता चल गया कि मुझे उस के और रोशेल के प्यार के बारे में सब कुछ मालूम है.

फिर तो सारी परिस्थितियां बड़ी तेजी से बदलीं. मेरे लिए वह सब से बड़ा झटका था, जब एकाएक रोशेल गायब हो गई. मुझे उस का एक लैटर मिला. लैटर बहुत संक्षिप्त सा था. रोशेल ने लिखा था—

विधि,

तुम से मिली, अच्छा लगा. मुझे लगता था कि देव का और मेरा प्यार अद्भुत है. लेकिन गलत थी मैं. तुम से मिल कर लगा कि देव सचमुच बहुत सौभाग्यशाली हैं, जो उन्हें तुम्हारे जैसी पत्नी मिली. तुम ने मुझे और देव को मिलाने की जो कोशिश की, वह शायद ही दूसरी कोई पत्नी कर पाती. मैं भी नहीं.

इसी से साबित होता है कि देव की खुशियां तुम्हारे लिए कितना मायने रखती हैं. देव के साथ तुम बहुत खुश रहोगी और देव तुम्हारे साथ. मैं नोएडा से कहीं दूर जा रही हूं, कहां, मुझे खुद नहीं मालूम. मुझे तलाशने की भी कोशिश मत करना. पहले सिर्फ देव की यादें थीं, अब तुम्हारी यादें भी साथ हैं. मैं उन यादों के सहारे जिंदगी गुजार लूंगी.

—तुम्हारी रोशेल

उस पत्र को पढ़तेपढ़ते मेरी आंखों में आंसू आ गए. देव ने भी वह पत्र पढ़ा, वह भी भावुक हो उठे. फिर हम दोनों ने रोशेल को सब जगह तलाशने की कोशिश की, लेकिन वह हमें कहीं नहीं मिली.

आज इस घटना को कई साल बीत चुके हैं. अब देव की और मेरी एक बेटी भी है. रोशेल तो फिर हमें कभी नहीं मिली, लेकिन उस की यादें आज भी हमारे साथ हैं. रोशेल आज भी हमारे परिवार का एक हिस्सा है. उस का प्यार मेरे और देव के साथसाथ है.

आखिर क्या था बेलगाम ख्वाहिश का अंजाम – भाग 1

हमसफर मनपसंद हो तो गृहस्थी में खुशियों का दायरा बढ़ जाता है. जमाने की नजरों में दीपिका और राजेश भी खुशमिजाज दंपति थे. करीब 8 साल पहले  कालेज के दिनों में दोनों की मुलाकात हुई थी. पहले उन के बीच दोस्ती हुई फिर कब वे एकदूसरे के करीब आ गए, इस का उन्हें पता ही नहीं चला. वे सचमुच खुशनसीब होते हैं जिन्हें प्यार की मंजिल मिल जाती है. प्यार हुआ तो खूबसूरत दीपिका ने राजेश के साथ उम्र भर साथ निभाने की कसमें खाईं. दोनों के लिए जुदाई बरदाश्त से बाहर हुई तो परिवार की रजामंदी से दोनों वैवाहिक बंधन में बंध गए. एक साल बाद दीपिका एक बेटे की मां भी बन गई.

राजेश का परिवार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रायपुर थानाक्षेत्र स्थित तपोवन एनक्लेव कालोनी में रहता था. दरअसल राजेश के पिता प्रेम सिंह राणा मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर के गांव सबदलपुर के रहने वाले थे, लेकिन बरसों पहले वह उत्तराखंड आ कर बस गए थे. दरअसल वह देहरादून की आर्डिनेंस फैक्ट्री में नौकरी करते थे. उन के परिवार में पत्नी और राजेश के अलावा 5 बेटियां थीं, जिन में से 2 का विवाह वह कर चुके थे.

सन 2000 में पत्नी की मृत्यु के बाद उन्होंने किसी तरह खुद को संभाला और 3 बेटियों के हाथ पीले किए. राजेश और दीपिका एकदूसरे को चाहते थे इसलिए प्रेम सिंह ने सन 2007 में उन के प्यार को रिश्ते में बदल दिया. आजीविका चलाने के लिए राजेश ने घर के बाहर ही किराने की दुकान कर ली थी. दीपिका का मायका भी देहरादून में ही था. प्रेम सिंह व्यवहारिक व्यक्ति थे. इस तरह बेटाबहू के साथ वह खुश थे.

4 मार्च की दोपहर के समय दीपिका काफी परेशान थी. शाम होतेहोते उस की परेशानी और भी बढ़ गई. जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो वह थाना रायपुर पहुंची. उस ने थानाप्रभारी प्रदीप राणा से मुलाकात कर के बताया कि सुबह से उस के पति और ससुर लापता हैं.’’

थानाप्रभारी के पूछने पर दीपिका ने बताया कि आज सुबह वे दोनों अपनी सैंट्रो कार नंबर यूए07एल 6891 से बुलंदशहर जाने की बात कह कर घर से गए थे, लेकिन न तो अभी तक वापस आए और न ही उन का मोबाइल लग रहा है. दीपिका के अनुसार, 65 वर्षीय प्रेम सिंह शहर में रह जरूर रहे थे लेकिन कभीकभी वह बुलंदशहर स्थित गांव जाते रहते थे.

दीपिका से औपचारिक पूछताछ के बाद थानाप्रभारी ने उस के पति और ससुर की गुमशुदगी दर्ज कर ली. थानाप्रभारी ने भी राजेश और उस के पिता के फोन नंबरों पर बात करने की कोशिश की पर दोनों के फोन स्विच्ड औफ ही आ रहे थे.

उसी रात करीब 2 बजे जब देहरादून के दूसरे थाने डोईवाला की पुलिस इलाके में गश्त पर थी तभी पुलिस को देहरादून-हरिद्वार हाईवे पर कुआंवाला के पास सड़क किनारे एक कार खड़ी दिखी. पुलिस वाले कार के नजदीक पहुंचे तो पता चला कि कार के दरवाजे अनलौक्ड थे.

कार की पिछली सीट पर नजर दौड़ाई तो उस में 2 लोगों की लाशें पड़ी थीं जो कंबल और चादर में लिपटी हुई थीं. कंबल और चादर पर खून लगा हुआ था. गश्ती दल ने फोन द्वारा यह सूचना थानाप्रभारी राजेश शाह को दे दी. 2 लाशों के मिलने की खबर सुन कर थानाप्रभारी उसी समय वहां आ गए.

पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की. दोनों की हत्या बेहद नृशंस तरीके से की गई थी. उन के शवों पर चाकुओं के दरजनों निशान थे. दोनों की गरदन और शरीर के अन्य हिस्सों पर अनेक वार किए गए थे. दोनों के गले में रस्सी कसी हुई थी.

थानाप्रभारी ने दोहरे हत्याकांड की सूचना आला अधिकारियों को दी तो एसएसपी स्वीटी अग्रवाल, एसपी (सिटी) अजय सिंह व एसपी (देहात) श्वेता चौबे मौके पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने जब कार का निरीक्षण किया तो कार पर आग से जले के भी निशान मिले. इस से पता चला कि शवों को कार समेत जलाने की कोशिश की गई थी.

निरीक्षण से यह बात भी साफ हो गई थी कि दोनों की हत्या कार में नहीं की गई थी. हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के शव वहां लाए गए थे. सुबह होने पर आसपास के लोगों को कार में लाशें मिलने की जानकारी मिली तो तमाम लोग वहां जमा हो गए. पर कोई भी लाशों की शिनाख्त नहीं कर सका. आखिर पुलिस ने शवों का पंचनामा भर कर उन्हें पोस्टमार्टम हेतु भेज दिया. पुलिस ने कार के बारे में जानकारी की तो वह दीपिका राणा के नाम पर पंजीकृत निकली जो तपोवन कालोनी में रहती थी.

तपोवन कालोनी शहर के ही रायपुर थाने के अंतर्गत आती थी. इसलिए थानाप्रभारी राजेश शाह ने रायपुर थाने से संपर्क किया. वहां से पता चला कि दीपिका ने अपने पति और ससुर के लापता होने की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. यह भी बताया था कि वे दोनों कार से ही बुलंदशहर के लिए निकले थे.

कार में 2 लाशें मिलने की सूचना पर थानाप्रभारी प्रदीप राणा को शक हो गया कि कहीं वे लाशें उन्हीं बापबेटों की तो नहीं हैं. उन्होंने खबर भेज कर दीपिका को थाने बुला लिया. थानाप्रभारी प्रदीप राणा दीपिका को पोस्टमार्टम हाउस पर ले गए, जहां लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेजी थीं. दीपिका लाशें देखते ही दहाड़ें मार कर रोने लगी. कुछ देर बाद दीपिका के नातेरिश्तेदार भी एकत्र हो गए.

दोनों शवों की शिनाख्त हो गई. दीपिका इस स्थिति में नहीं थी कि उस से उस समय पूछताछ की जाती, लेकिन हलकी पूछताछ में उस ने किसी से भी अपने परिवार की रंजिश होने से इनकार कर दिया. बड़ा सवाल यह था कि जब उन की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी तो उन की हत्या क्यों और किस ने कर दी.

एसएसपी स्वीटी अग्रवाल ने इस मामले की जांच में एसपी (क्राइम) तृप्ति भट्ट व एसओजी प्रभारी अशोक राठौड़ को भी लगा दिया. पुलिस की संयुक्त टीम हत्याकांड की वजह तलाशने में जुट गई. जहां कार मिली, वहां आसपास के लोगों से पूछताछ करने पर पता चला कि कार वहां पूरे दिन खड़ी रही थी लेकिन किसी ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया था. इस से साफ था कि हत्याएं पहले ही की गई थीं और कार सुबह किसी समय वहां छोड़ दी गई थी.

पत्नी की खूनी साजिश : प्यार में पागल लड़की ने प्रेमी से करवाई पति की हत्या – भाग 1

22 अप्रैल, 2017 की रात करीब 2 बजे की बात है. उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना कैंट के मोहल्ला हादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर 1 के रहने वाले देवेंद्र प्रताप सिंह अपने घर में सो रहे थे. अचानक घर की डोलबेल बजी तो वह बड़बड़ाते हुए दरवाजे पर पहुंचे कि इतनी रात को किसे क्या जरूरत पड़ गई? चश्मा ठीक करते हुए उन्होंने दरवाजा खोला तो बाहर पुलिस वालों को देख कर उन्होंने हैरानी से पूछा, ‘‘जी बताइए, क्या बात है?’’

‘‘माफ कीजिए भाईसाहब, बात ही कुछ ऐसी थी कि मुझे आप को तकलीफ देनी पड़ी.’’ सामने खड़े थाना कैंट के इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

‘‘जी बताएं, क्या बात है?’’ देवेंद्र प्रताप ने पूछा.

‘‘आप की बहू और बेटा कहां है?’’

‘‘ऊपर अपने कमरे में पोते के साथ सो रहे हैं.’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा.

अब तक परिवार के बाकी लोग भी नीचे आ गए थे. लेकिन न तो देवेंद्र प्रताप सिंह का बेटा विवेक प्रताप सिंह आया था और न ही बहू सुषमा. इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने थोड़ा तल्खी से कहा, ‘‘आप को पता भी है, आप के बेटे विवेक प्रताप सिंह की हत्या कर दी गई है?’’

‘‘क्याऽऽ, आप यह क्या कह रहे हैं इंसपेक्टर साहब?’’ देवेंद्र प्रताप सिंह ने लगभग चीखते हुए कहा, ‘‘वह हम सब के साथ रात का खाना खा कर पत्नी और बेटे के साथ ऊपर वाले कमरे में सोने गया था. अब आप कह रहे हैं कि उस की हत्या हो गई है? ऐसा कैसे हो सकता है, इंसपेक्टर साहब?’’

‘‘आप जो कह रहे हैं, वह भी सही है और मैं जो कह रहा हूं वह भी. आप जरा अपनी बहू को बुलाएंगे?’’ इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा.

इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को बिलकुल यकीन नहीं हुआ था. उन्होंने वहीं से बहू सुषमा को आवाज दी. 3-4 बार बुलाने के बाद ऊपर से सुषमा की आवाज आई. उन्होंने सुषमा को फौरन नीचे आने को कहा. कपड़े संभालती सुषमा नीचे आई तो वहां सब को इस तरह देख कर परेशान हो उठी. उस की यह परेशानी तब और बढ़ गई, जब उस की नजर पुलिस और उन के साथ खड़े एक युवक पर पड़ी. उस युवक को आगे कर के इसंपेक्टर ओमहरि ने कहा, ‘‘सुषमा, तुम इसे पहचानती हो?’’

उस युवक को सुषमा ने ही नहीं, सभी ने पहचान लिया. उस का नाम कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू था. वह सुषमा के मायके का रहने वाला था और अकसर सुषमा से मिलने आता रहता था. सभी उसे हैरानी से देख रहे थे.

सुषमा कुछ नहीं बोली तो इंसपेक्टर ओमहरि वाजपेयी ने कहा, ‘‘तुम नहीं पहचान पा रही हो तो चलो मैं ही इस के बारे में बताए देता हूं. यह तुम्हारा प्रेमी डब्लू है. अभी थोड़ी देर पहले यह तुम्हारे पति की हत्या कर के लाश को मोटरसाइकिल से ठिकाने लगाने के लिए ले जा रहा था, तभी रास्ते में इसे हमारे 2 सिपाही मिल गए. उन्होंने इसे और इस के एक साथी को पकड़ लिया. अब ये कह रहे हैं कि पति को मरवाने में तुम भी शामिल थी?’’crime story

ओमहरि वाजपेयी की बातों पर देवेंद्र प्रताप सिंह को अभी भी विश्वास नहीं हुआ था. वह तेजतेज कदमों से सीढि़यां चढ़ कर बेटे के कमरे में पहुंचे. बैड के एक कोने में 5 साल का आयुष डरासहमा बैठा था. दादा को देख कर वह झट से उठा और उन के सीने से जा चिपका. वह जिस बेटे को खोजने आए थे, वह कमरे में नहीं था. देवेंद्र पोते को ले कर नीचे आ गए. अब साफ हो गया था कि विवेक के साथ अनहोनी घट चुकी थी.

हैरानी की बात यह थी कि विवेक के कमरे के बगल वाले कमरे में उस के चाचा कृष्णप्रताप सिंह और चाची दुर्गा सिंह सोई थीं. हत्या कब और कैसे हुई, उन्हें पता ही नहीं चला था. सभी यह सोच कर हैरान थे कि घर में सब के रहते हुए सुषमा ने इतनी बड़ी घटना को कैसे अंजाम दे दिया? मजे की बात यह थी कि इतना सब होने के बावजूद सुषमा के चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं थी.

सुषमा की खामोशी से साफ हो गया था कि यह सब उस की मरजी से हुआ था. उस के पास अब अपना अपराध स्वीकार कर लेने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था. उस ने घर वालों के सामने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. सच्चाई जान कर घर में कोहराम मच गया. देवेंद्र प्रताप सिंह के घर से अचानक रोने की आवाजें सुन कर पड़ोसी उन के यहां पहुंचे तो विवेक की हत्या के बारे में सुन कर हैरान रह गए. उन की हैरानी तब और बढ़ गई, जब उन्हें पता चला कि यह काम विवेक की पत्नी सुषमा ने ही कराया था.

पुलिस सुषमा को साथ ले कर थाना कैंट आ गई. कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के एक साथी राधेश्याम पकड़े जा चुके थे. पता चला कि उस के 2 साथी अनिल मौर्य और सुनील भागने में कामयाब हो गए थे.

ओमहरि वाजपेयी ने रात होने की वजह से सुषमा सिंह को महिला थाने भिजवा दिया. रात में कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू और उस के साथी राधेश्याम मौर्य से पुलिस ने पूछताछ शुरू की. दोनों ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

अगले दिन यानी 23 अप्रैल, 2017 की सुबह मृतक विवेक प्रताप सिंह के पिता देवेंद्र प्रताप सिंह ने थाना कैंट में बेटे की हत्या का नामजद मुकदमा 6 लोगों कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू, राधेश्याम मौर्य, अनिल मौर्य, सुनील तेली, सुषमा सिंह और मुकेश गौड़ के खिलाफ दर्ज कराया.

पुलिस ने यह मुकदमा भादंवि की धारा 302, 201, 147, 149 के तहत दर्ज किया था. इस मामले में 3 लोग पकड़े जा चुके थे, बाकी की तलाश में पुलिस निकल पड़ी. पूछताछ में गिरफ्तार किए गए कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू ने विवेक की हत्या की जो कहानी सुनाई थी, वह इस प्रकार थी—

32 साल की सुषमा सिंह मूलरूप से जिला देवरिया के थाना गौरीबाजार के गांव पथरहट के रहने वाले सुरेंद्र बहादुर सिंह की बेटी थी. उन की संतानों में वही सब से बड़ी थी. बात उन दिनों की है, जब सुषमा ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा था. सुषमा काफी खूबसूरत थी, इसलिए उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. उस के चाहने वालों की संख्या तो बहुत थी, लेकिन वह किसी के दिल की रानी नहीं बन पाई थी. इस मामले में अगर किसी का भाग्य जागा तो वह था कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू.

32 साल का कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू उसी गांव के रहने वाले दीपनारायण सिंह का बेटा था. उन की गांव में तूती बोलती थी. गांव का कोई भी आदमी दीपनारायण से कोई संबंध नहीं रखता था. उस के किसी कामकाज में भी कोई नहीं आताजाता था. डब्लू 18-19 साल का था, तभी वह भी पिता के नक्शेकदम पर चल निकला था. वह भी अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था.crime story

पुलिस सूत्रों के अनुसार, कामेश्वर सिंह उर्फ डब्लू इंटर तक ही पढ़ पाया था. इस के बाद वह अपराध में डूब गया. जल्दी ही आसपास के ही नहीं, पूरे जिले के लोग उस से खौफ खाने लगे. डब्लू का बड़ा भाई बबलू पुलिस विभाग में सिपाही था. वह शराब पीने का आदी था. उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया था.

मोहब्बत रास न आई – भाग 1

पहली सितंबर, 2022 की सुबह जगदीश चंद्र अपने काम पर निकला था. वह ठेकेदार कविता मनराल के ठेके में ‘हर घर नल, हर घर जल’ अभियान के तहत काम करता था. लेकिन देर रात तक वह घर नहीं पहुंचा तो उस की पत्नी गीता परेशान हो उठी. उस के बाद गीता ने किसी के माध्यम से ठेकेदार कविता मनराल से बात की.

ठेकेदार कविता मनराल ने जगदीश चंद्र का पता किया तो जानकारी मिली कि कुछ लोग उसे अपनी गाड़ी में बैठा कर ले गए हैं. जिस के कारण कविता मनराल को उस के अपहरण होने की शंका हुई. उसी शंका के आधार पर कविता मनराल ने तुरंत ही इस की सूचना स्थानीय प्रशासन को दी.

जगदीश चंद्र के अपहरण की सूचना मिलते ही एसडीएम शिप्रा जोशी ने इस की सूचना राजस्व विभाग पुलिस और नियमित पुलिस को दी. उस के बाद संयुक्त टीमों ने जगदीश चंद्र की खोजबीन शुरू की. रात के कोई 10 बजे सिनार मोटर मार्ग पर पुलिस को सामने से एक मारुति वैन आती दिखाई दी.

पुलिस ने उसे रोक कर उस की चैकिंग की तो उस में बेल्टी गांव निवासी जोगा सिंह, उस की पत्नी भावना देवी व बेटा गोविंद सिंह सवार थे. पुलिस ने मारुति कार की तलाशी ली तो उसी गाड़ी में जगदीश चंद्र बेहोशी की हालत पड़ा मिला.

पुलिस को देख कर जोगा सिंह, उस की पत्नी और बेटा घबरा गए. वे जगदीश चंद्र के बेहोश होने के बारे में कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. तब पुलिस ने उन तीनों को हिरासत में ले लिया. पुलिस जगदीश चंद्र को तुरंत ही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भिकियासैंण ले जाया गया, जहां पर डाक्टरों ने उसे देखते ही मृत घोषित कर दिया.

जगदीश चंद्र का अपहरण करने के बाद हत्या करने की सूचना से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई. जगदीश चंद्र क्षेत्र में एक सम्मानित व्यक्ति था. उस ने इसी वर्ष सल्ट सीट से उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था.

जगदीश चंद्र की हत्या की खबर की सूचना मिलते ही उस के गांव पनुवाधोखन में मातम छा गया था. उस की बूढ़ी मां का रोरो कर बुरा हाल था. वहां पर मौजूद सभी लोग उस की हत्या से स्तब्ध थे. जगदीश ने अभी 12 दिन पहले ही गीता के साथ शादी की थी. उस की हत्या की सूचना सुनते ही गीता बेहोश हो गई थी.

उस के बाद पुलिस तीनों आरोपियों को भिकियासैंण पटवारी चौकी ले कर गई. वहां पुलिस ने उन से जगदीश के बारे में पूछताछ की. पूछताछ के दौरान तीनों ने उस का अपहरण कर उसे पीटपीट कर मार डालने की बात स्वीकार की.

इस घटना से संबधित सभी तथ्य जुटाने के बाद पुलिस ने जगदीश के शव को पोस्टमार्टम के लिए भिकियासैंण के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया था. डा. संदीप कुमार दीक्षित और डा. दीप प्रकाश पार्की के पैनल ने शव का पोस्टमार्टम किया.

पोस्टमार्टम के बाद रिपोर्ट में बताया कि मृतक के सिर व पूरे शरीर पर 27 से अधिक चोटें पाई गईं. उस की बाईं कलाई की दोनों हडिड्यां, पैर की बाईं एड़ी व नाक की हड्डी टूटने के साथ ही 4 पसलियां व एक जबड़ा भी टूटा हुआ पाया गया. वही सब उस की मौत का कारण भी बनी. जगदीश चंद्र के शव का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद पुलिस ने उस का शव उस के परिवार को सौंप दिया.

आरोपियों से पूछताछ के बाद जगदीश चंद्र की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तराखंड राज्य में एक जिला है अल्मोड़ा. अल्मोड़ा में ही भिकियासैंण तहसील का एक गांव है बेल्टी. इसी गांव में रहता था नंदन सिंह का परिवार. नंदन सिंह का मेहनतमजदूरी करना मुख्या पेशा था. नंदन सिंह का छोटा परिवार था. उस की पत्नी भावना, बेटी गीता उर्फ गुड्डी, 2 बेटे ललित और कैलाश.

नंदन सिंह की शराब पीने की आदत थी. वह दिनभर में जो कुछ कमाता था, उस का आधा हिस्सा शराब पीने में खर्च कर डालता था. बच्चे बड़े हुए, खर्च बढ़ा तो उस का परिवार आर्थिक तंगी से गुजरने लगा. उस के बाद घर में पतिपत्नी में विवाद रहने लगा. धीरेधीरे विवाद ने इतना बढ़ गया कि एक दिन नंदन सिंह ने बच्चों सहित पत्नी को ही घर से बाहर निकाल दिया.

नंदन सिंह के घर से निकालते ही भावना देवी के सामने संकट आ खड़ा हुआ था. उस के बाद उस ने कई रिश्तेदारों व जानपहचान वालों से नंदन को समझाने के लिए दबाव डाला, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उस ने भावना और बच्चों को अपने घर में रखने से साफ मना कर दिया था.

फिर भी भावना ने हिम्मत नहीं हारी और बच्चों को साथ ले कर मेहनतमजदूरी के उद्देश्य से भिकियासैंण जा पहुंची. वहां पर उस की मुलाकात जोगा सिंह से हुई.

जोगा सिंह के पास खेतीबाड़ी थी. उस के साथ ही उस ने कुछ जानवर भी पाल रखे थे. जोगा सिंह की पत्नी किसी बीमारी के चलते मर चुकी थी. उस के पास एक ही बेटा था गोविंद सिंह. घर पर काम अधिक होने के कारण उसे एक व्यक्ति की सख्त जरूरत थी.

भावना देवी ने अपनी परेशानी जोगा सिंह के सामने रखी तो वह उसे अपने घर पर रखने को तैयार हो गया. उस के बाद भावना देवी अपने बच्चों को साथ ले कर जोगा सिंह के साथ ही रहने लगी थी.

जोगा सिंह के घर पर रहते हुए भावना देवी ने उसके घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी. जिस से जोगा सिंह भी बहुत ही खुश हुआ था. धीरेधीरे जोगा सिंह ने भावना देवी को अपनी पत्नी का दरजा देते हुए एक पत्नी के सारे अधिकार भी सौंप दिए थे. भावना देवी अपने बच्चों और जोगा सिंह के साथ हंसीखुशी से दिन बिताने लगी थी.

उस समय गीता कक्षा 8 में पढ़ती थी. लेकिन जोगा सिंह के घर आने के बाद उस की पढ़ाई बंद करा दी गई. हालांकि गीता पढ़लिख कर भविष्य में कुछ बनना चाहती थी. लेकिन जोगा सिंह ने उस की पढ़ाई पर पाबंदी लगा दी थी.

जोगा सिंह का कहना था कि हमारे घर पर ही इतना कामधंधा है. उसे करने के लिए भी घर पर कोई चाहिए. फिर पढ़लिखकर वह कौन सी नौकरी करने वाली है.

उस वक्त गीता का बचपना था. फिर भी उसे उचित और अनुचित की समझ तो थी. लेकिन इस वक्त उस का परिवार दूसरे के यहां शरण लिए हुए था. यही उस की सब से बड़ी विवशता थी. फिर उस ने अपने भाग्य का लेखा समझते हुए पढ़ाई की तरफ से मुंह फेर लिया. गीता की पढ़ाई छुड़ाते ही जोगा सिंह ने उसे खेती के काम में लगा दिया था.

गीता उस समय बालिका थी. वह अपनी क्षमता के अनुसार बहुत काम कर लेती थी. लेकिन उस के बावजूद भी उस के सौतेले बाप जोगा सिंह ने उसे बैलों से खेत जुताई करना तक सिखा दिया था.

वह बैलों से खेती भी करने लगी. उस के बावजूद भी उस की थोड़ी सी गलती पर जोगा सिंह और उस का बेटा गोविंद सिंह उसे बुरी तरह से मारनेपीटने लगे थे.

बंधुआ मजदूर की तरह करती थी काम

शुरूशुरू में तो उस की मां भावना यह सब सहन करती रही. लेकिन जब वे लोग हदें पार करने लगे तो भावना को भी बुरा लगने लगा था. उस ने बेटी के पक्ष में बोलना शुरू किया तो जोगा सिंह और उस का बेटा गोविंद उसे भी भलाबुरा कहने लगे. लेकिन भावना उन के अहसानों के तले दबी थी. यही कारण था कि उन की हर बात सहन करना उस की मजबूरी थी.

दिल के टुकड़ों का रिसना – भाग 1

दोपहर का वक्त था. कुसुम रसोई में खाना बना रही थी. पति अर्जुन और ससुर दीपचंद खेतों पर थे, जबकि देवर अशोक उर्फ जग्गा कहीं घूमने निकल गया था. खाना बनाने के बाद कुसुम भोजन के लिए पति, देवर व ससुर का इंतजार करने लगी. तभी किसी ने दरवाजे पर दस्तक दी.

कुसुम ने अपने कपड़े दुरुस्त किए और यह सोच कर दरवाजे पर आई कि पति, ससुर भोजन के लिए घर आए होंगे. कुसुम ने दरवाजा खोला तो सामने 2 जवान युवतियां मुंह ढके खड़ी थीं. कुसुम ने उन से पूछा, ‘‘माफ कीजिए, मैं ने आप को पहचाना नहीं. कहां से आई हैं, किस से मिलना है?’’

दोनों युवतियों ने कुसुम के सवालों का जवाब नहीं दिया. इस के बजाय एक युवती ने अपना बैग खोला और उस में से एक फोटो निकाल कर कुसुम को दिखाते हुए पूछा, ‘‘आप इस फोटो को पहचानती हैं?’’

‘‘हां, पहचानती हूं. यह फोटो मेरे देवर अशोक उर्फ जग्गा का है.’’ कुसुम ने बताया.

‘‘कहां हैं वह, आप उन्हें बुलाइए. मैं जग्गा से ही मिलने आई हूं.’’ युवती ने कहा.

‘‘वह कहीं घूमने निकल गया है, आता ही होगा. आप अंदर आ कर बैठिए.’’

दोनों युवतियां घर के अंदर आ कर बैठ गईं. कुसुम ने शिष्टाचार के नाते उन्हें मानसम्मान भी दिया और नाश्तापानी भी कराया. इस बीच कुसुम ने बातोंबातों में उन के आने की वजह जानने की कोशिश की लेकिन उन दोनों ने कुछ नहीं बताया.

चायनाश्ते के बाद वे दोनों जाने लगीं. जाते वक्त फोटो दिखाने वाली युवती कुसुम से बोली, ‘‘जग्गा आए तो बता देना कि 2 लड़कियां आई थीं.’’

दोनों युवतियों को घर से गए अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि जग्गा आ गया. कुसुम ने उसे बताया, ‘‘देवरजी, तुम से मिलने 2 लड़कियां आई थीं. मैं ने उन का नामपता और आने का मकसद पूछा, पर उन्होंने कुछ नहीं बताया. वे पैदल ही आई थीं और पैदल ही चली गईं.’’

अशोक समझ गया कि उस से मिलने उस की प्रेमिका अपनी किसी सहेली के साथ आई होगी. वह मोटरसाइकिल से उन्हें खोजने निकल गया. कुसुम खाना खाने के बहाने उसे रोकती रही, पर वह नहीं रुका. यह बात 27 अगस्त, 2019 की है. उस समय अपराह्न के 2 बजे थे.

जग्गा के जाने के बाद दीपचंद और अर्जुन भोजन के लिए घर आ गए. कुसुम ने पति व ससुर को भोजन परोस दिया. फिर खाना खाने के दौरान कुसुम ने पति को बताया कि अशोक की तलाश में 2 लड़कियां घर आई थीं. उस वक्त अशोक घर पर नहीं था, सो वे चली गईं. अशोक बाइक ले कर उन्हीं से मिलने गया है.

अर्जुन अभी भोजन कर ही रहा था कि कोई जोरजोर से दरवाजा पीटने लगा, ‘‘अर्जुन भैया, जल्दी दरवाजा खोलो.’’

अर्जुन समझ गया कि कुछ अनहोनी हो गई है. उस ने निवाला थाली में छोड़ा और लपक कर दरवाजे पर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खोला तो सामने जग्गा का दोस्त लखन खड़ा था. उस के पीछे गांव के कुछ अन्य युवक भी थे.

अर्जुन को देखते ही लखन बोला, ‘‘अर्जुन भैया, जल्दी चलो, नहर की पटरी पर तुम्हारा भाई जग्गा खून से लथपथ पड़ा है. किसी ने उस के पेट में चाकू घोंप दिया है.’’

लखन की बात सुन कर घर में कोहराम मच गया. अर्जुन अपने पिता दीपचंद व लखन के साथ मनौरी नहर की पटरी पर पहुंचा. वहां खून से लथपथ पड़ा जग्गा तड़प रहा था. लोगों की भीड़ जुट गई थी. वहां तरहतरह की बातें हो रही थीं.

अर्जुन ने बिना देर किए पिता दीपचंद और गांव के युवकों की मदद से जग्गा को टैंपो में लिटाया. वे लोग जग्गा को प्रकाश अस्पताल ले गए. अशोक की मोटरसाइकिल उस से थोड़ी दूरी पर खड़ी मिली थी, जिसे उस के घर भिजवा दिया गया था. लेकिन अशोक की नाजुक हालत देख कर डाक्टरों ने उसे जिला अस्पताल ले जाने की सलाह दी. लेकिन जिला अस्पताल पहुंचतेपहुंचते जग्गा ने दम तोड़ दिया.

डाक्टरों ने जग्गा को देखते ही मृत घोषित कर दिया. जग्गा की मौत की सूचना गांव पहुंची तो मरूखा मझौली गांव में कोहराम मच गया. कुसुम भी देवर की मौत की खबर से सन्न रह गई. वह रोतीपीटती अस्पताल पहुंची और देवर की लाश देख कर फफक पड़ी.

पति अर्जुन ने उसे धैर्य बंधाया. हालांकि वह भी सिसकते हुए अपने आंसुओं को रोकने का असफल प्रयास कर रहा था. दीपचंद भी बेटे की लाश को टुकुरटुकुर देख रहा था. उस की आंखों के आंसू सूख गए थे.

कुछ देर बाद जब दीपचंद सामान्य हुआ तो उस ने बेटे अशोक की हत्या की सूचना थाना हलधरपुर पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा पुलिस बल के साथ मऊ के जिला अस्पताल पहुंचे. उन्होंने घटना की सूचना बड़े पुलिस अधिकारियों को दे दी, फिर मृतक अशोक के शव का बारीकी से निरीक्षण किया.

अशोक उर्फ जग्गा के पेट में चाकू घोंपा गया था, जिस से उस की आंतें बाहर आ गई थीं. आंतों के बाहर आने और अधिक खून बहने की वजह से उस की मौत हो गई थी. जग्गा की उम्र 24 साल के आसपास थी, शरीर से वह हृष्टपुष्ट था.

थानाप्रभारी अखिलेश कुमार मिश्रा अभी शव का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी अनुराग आर्य व एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव जिला अस्पताल आ गए. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस अधिकारी मनौरी नहर पटरी पर उस जगह पहुंचे, जहां अशोक को चाकू घोंपा गया था. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. आलाकत्ल चाकू बरामद करने के लिए पटरी के किनारे वाली झाडि़यों में खोजबीन कराई, लेकिन चाकू बरामद नहीं हुआ.

घटनास्थल पर पुलिस को आया देख लोगों की भीड़ जुट गई. एएसपी शैलेंद्र श्रीवास्तव ने कई लोगों से पूछताछ की. उन लोगों ने बताया कि वे खेतों पर काम कर रहे थे. यहीं खड़ा अशोक 2 लड़कियों से बातचीत कर रहा था. किसी बात को ले कर एक लड़की से उस की तकरार हो रही थी.

इसी बीच अशोक की चीख सुनाई दी. चीख सुन कर जब वे लोग वहां पहुंचे तो अशोक जमीन पर खून से लथपथ पड़ा तड़प रहा था. उस के पेट में चाकू घोंपा गया था. हम लोगों ने नजर दौड़ाई तो 2 लड़कियां पुराना पुल पार कर मोटरसाइकिल वाले एक युवक से लिफ्ट मांग रही थीं. उस ने दोनों लड़कियों को मोटरसाइकिल पर बिठाया, फिर तीनों मऊ शहर की ओर चले गए.

औनर किलिंग के जरिए प्यार की बलि – भाग 1

गर्म और उमस भरी रात थी. रात के एक बजे थे. मोनू चौहान बिस्तर पर करवटें बदल रहा था. आंखों से नींद गायब थी. उसे बस रीना की चिंता खाए जा रही थी. बारबार रीना का चेहरा उस की आंखों के सामने घूम रहा था. सोच रहा था, ‘‘पता नहीं किस हाल में होगी वह? उस पर क्या बीत रही होगी?’’

उस का चिंतित होना स्वाभाविक था. खुद को कोस रहा था, क्योंकि उस ने ही उसे घर से भागने के लिए उकसाया था. भाग कर अलग दुनिया बसाने की उसी ने सलाह दी थी और रीना थी कि उस की बातों में तुरंत आ गई थी. बगैर आगेपीछे सोचेविचारे 2-3 जोड़ी कपड़े और मां के कुछ गहने ले कर उस के साथ घर से भाग गई थी.

रीना और मोनू बचपन से ही साथ खेलेकूदे और एक ही कक्षा में पढ़ाई करते हुए जवान हुए थे. एक वक्त ऐसा भी आया, जब जवां दिलों की धड़कनें उन्हें काफी करीब ले आई थीं. उन की धड़कनें एक साथ धड़कने को बेताब थीं. वे शादी करना चाहते थे.

यह कहें कि प्रेम संबंध को परिणय सूत्र से बांध लेना चाहते थे, लेकिन उन के घर वालों को यह मंजूर नहीं था. खासकर रीना के घर वाले इस के विरोधी थे. सामाजिक कारण था उन के परिवारों के गोत्र का एक होना, जबकि वे एक ही बिरादरी के थे.

मोनू ने जिस 17 वर्षीय रीना के साथ शादी के सपने देखे थे, वह विगत 3 दिनों से गायब थी. उस का मोबाइल फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था. रीना से उस के प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता 8 महीने पहले और अधिक आ गई थी. उन के मधुर संबंध उस के और रीना के घर वालों को भी पसंद नहीं थे. दोनों एक ही गोत्र के थे. इस कारण उन के घर वालों और समाज की निगाह में वे भाईबहन थे.

जब रीना और मोनू को पक्का विश्वास हो गया कि उन के घर वाले उन की किसी भी सूरत में शादी नहीं होने देंगे, तब वे घर से भाग कर देहरादून चले गए थे. हालांकि उन्हें देहरादून पहुंचते ही इस बात का तुरंत अहसास भी हो गया था कि रीना को शादी के लिए बालिग होने में अभी 3 माह बचे हुए थे.

इस कारण वे बैरंग लिफाफे  की तरह अपनेअपने घर लौट आए. उन के लौटने के बाद से मोनू की रीना से 3 दिनों तक कोई बात नहीं हो पाई थी. इसी चिंता में मोनू उस रात करवटें बदलता हुआ सुबह होने का इंतजार कर रहा था.

रीना का परिवार उत्तराखंड के हरिद्वार जिले की लक्सर कोतवाली के अंतर्गत स्थित रामपुर रायघटी गांव का रहने वाला है. यह गांव हरिद्वार से बिजनौर की ओर बहती गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. इस क्षेत्र के अधिकतर लोग खेतीकिसानी करते हैं. उन का मुख्य कार्य खेती के अलावा गंगा की तलहटी से रेत निकालने का भी है. रीना और मोनू के घर वालों का भी मुख्य पेशा खनन के कारोबार का था.

रीना और मोनू की दोस्ती बीते 6 साल पहले तब हुई थी, जब वे गांव के ही स्कूल में एक ही कक्षा में पढ़ते थे. मोनू पहले तो अकसर रीना को केवल निहारा करता था, लेकिन जल्द ही उन के बीच दोस्ती भी हो गई थी.

कुछ सालों तक उन के बीच हायहैलो और स्कूली किताबों एवं पढ़ाईलिखाई के संबंध में सीमित बातचीत की दोस्ती चलती रही. लेकिन उन की वही दोस्ती कब प्यार में बदल गई, पता ही नहीं चला.

फिर तो वे एकदूसरे के गजब के दीवाने बन गए. जिस दिन वे आपस में बातें नहीं कर लेते, उस दिन उन्हें कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. साथसाथ उठनाबैठना, खानापीना, घंटों बैठ कर इधरउधर की बातें करना आम बात हो गई थी. उन के बीच जिंदगी की फिलास्फी के साथसाथ घरपरिवार, गांव, खेतखलिहान, सिनेमा, फैशन हीरोहीरोइनों आदि की बातें होने लगी थीं.

फिर तो दोनों की हालत ऐसी हो गई थी कि वे एक दिन भी एकदूसरे को देखे बगैर नहीं रह पाते थे. दोनों एकदूसरे के साथ शादी करने के सपने देखने लगे थे, किंतु तब कोरोना का दौर था. उन का स्कूल जाना बंद हो चुका था और प्यार के पंख लगने के बावजूद उड़ान नहीं भर पा रहे थे.

पाबंदियों और परेशानियों से भरा यह दौर 2021 का अंत आतेआते तब खत्म हुआ, जब एक रोज रीना ने ही मोनू से फोन पर कहा, ‘‘हम लोग कब तक मिलने की आस लगाए लौकडाउन में कैद बने रहेंगे?’’

‘‘थोड़ा और धैर्य रखो, कोई न कोई रास्ता निकल आएगा,’’ मोनू ने फोन पर ही उसे आश्वासन दिया था.

किंतु रीना ने बताया कि उस ने अगर जल्द कोई कदम नहीं उठाया, तब उस के खिलाफ घर वाले कुछ भी कदम उठा सकते हैं.

यह बात मोनू के दिमाग में घर कर गई और उस ने रीना को साथ ले कर देहरादून चले जाने की योजना बना ली थी. वे सुनियोजित कार्यक्रम के अनुसार देहरादून चले तो गए थे, लेकिन अगले ही रोज लौट भी आए थे.

रीना की चिंता में मोनू को कब नींद लग गई, पता ही नहीं चला. सुबह जब आंखें खुलीं, तब उस का सिर भारीभारी लग रहा था. उस के अनापशनाप अनहोनी जैसे विचार दिमाग में कौंध रहे थे. उसे सपने में रीना बेहाल दिखी थी. सपने के दृश्य किसी हौरर मूवी की तरह अभी भी उस के दिमाग में गड्डमड्ड हो गए थे.

वह उसे एकदूसरे से जोड़ कर उस का अर्थ समझने की कोशिश करने लगा. उस ने सपने में रीना को बेतहाशा दौड़तेभागते देखा था. वह ऐसे भाग रही थी मानो कोई उसे भगा रहा हो, भगाने वाले कोई नहीं दिखे थे. वह पानी की लहर पर भागती जा रही थी.

मोनू समझ गया कि इसी सपने की वजह से उस का सिर भारी लग रहा है. दिन का सूरज भी निकल आया था. बिस्तर से उठने के बाद वह सीधा बाथरूम गया. फ्रैश हो कर नाश्ता किया और हिम्मत जुटा कर लक्सर कोतवाली की ओर चल पड़ा.

करीब 15 मिनट में वह कोतवाली पहुंचा. वहां उसे कोतवाल यशपाल सिंह बिष्ट और एसएसआई अंकुर शर्मा मिले. उन्होंने मोनू से आने का कारण पूछा. सकपकाया और थोड़ा डरा हुआ मोनू कुछ समय तक उन के सामने नि:शब्द खड़ा रहा.

एक मौका और दीजिए : बहकने लगे सुलेखा के कदम – भाग 1

नीलेश शहर के उस प्रतिष्ठित रेस्टोरेंट में अपनी पत्नी नेहा के साथ अपने विवाह की दूसरी सालगिरह मनाने आया था. वह आर्डर देने ही वाला था कि सामने से एक युगल आता दिखा. लड़की पर नजर टिकी तो पाया वह उस के प्रिय दोस्त मनीष की पत्नी सुलेखा है. उस के साथ वाले युवक को उस ने पहले कभी नहीं देखा था.

मनीष के सभी मित्रों और रिश्तेदारों से नीलेश परिचित था. पड़ोसी होने के कारण वे बचपन से एकसाथ खेलेकूदे और पढ़े थे. यह भी एक संयोग ही था कि उन्हें नौकरी भी एक ही शहर में मिली. कार्यक्षेत्र अलग होने के बावजूद उन्हें जब भी मौका मिलता वे अपने परिवार के साथ कभी डिनर पर चले जाते तो कभी किसी छुट्टी के दिन पिकनिक पर. उन के कारण उन दोनों की पत्नियां भी अच्छी मित्र बन गई थीं.

मनीष का टूरिंग जाब था. वह अपने काम के सिलसिले में महीने में लगभग 10-12 दिन टूर पर रहा करता था. इस बार भी उसे गए लगभग 10 दिन हो गए थे. यद्यपि उस ने फोन द्वारा शादी की सालगिरह पर उन्हें शुभकामनाएं दे दी थीं किंतु फिर भी आज उसे उस की कमी बेहद खल रही थी. दरअसल, मनीष को ऐसे आयोजनों में भाग लेना न केवल पसंद था बल्कि समय पूर्व ही योजना बना कर वह छोटे अवसरों को भी विशेष बना दिया करता था.

मनीष के न रहने पर नीलेश का मन कोई खास आयोजन करने का नहीं था किंतु जब नेहा ने रात का खाना बाहर खाने का आग्रह किया तो वह मना नहीं कर पाया. कार्यक्रम बनते ही नेहा ने सुलेखा को आमंत्रित किया तो उस ने यह कह कर मना कर दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है पर उसे इस समय देख कर तो ऐसा नहीं लग रहा है कि उस की तबीयत खराब है. वह उस युवक के साथ खूब खुश नजर आ रही है.

नीलेश को सोच में पड़ा देख नेहा ने पूछा तो उस ने सुलेखा और उस युवक की तरफ इशारा करते हुए अपने मन का संशय उगल दिया.

‘‘तुम पुरुष भी…किसी औरत को किसी मर्द के साथ देखा नहीं कि मन में शक का कीड़ा कुलबुला उठा…होगा कोई उस का रिश्तेदार या सगा संबंधी या फिर कोई मित्र. आखिर इतनेइतने दिन अकेली रहती है, हमेशा घर में बंद हो कर तो रहा नहीं जा सकता, कभी न कभी तो उसे किसी के साथ की, सहयोग की जरूरत पड़ेगी ही,’’ वह प्रतिरोध करते हुए बोली, ‘‘न जाने क्यों मुझे पुरुषों की यही मानसिकता बेहद बुरी लगती है. विवाह हुआ नहीं कि वे स्त्री को अपनी जागीर समझने लगते हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है नेहा, तुम ही तो कह रही थीं कि जब तुम ने डिनर का निमंत्रण दिया था तब सुलेखा ने कह दिया कि उस की तबीयत ठीक नहीं है और अब वह इस के साथ यहां…यही बात मन में संदेह पैदा कर रही है…और तुम ने देखा नहीं, वह कैसे उस के हाथ में हाथ डाल कर अंदर आई है तथा उस से हंसहंस कर बातें कर रही है,’’ मन का संदेह चेहरे पर झलक ही आया.

‘‘वह समझदार है, हो सकता है वह दालभात में मूसलचंद न बनना चाहती हो, इसलिए झूठ बोल दिया हो. वैसे भी किसी स्त्री का किसी पुरुष का हाथ पकड़ना या किसी से हंस कर बात करना सदा संदेहास्पद क्यों हो जाता है? फिर भी अगर तुम्हारे मन में संशय है तो चलो उन्हें भी अपने साथ डिनर में शामिल होने का फिर से निमंत्रण दे देते हैं…दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.’’

नेहा ने नीलेश का मूड खराब होने के डर से बीच का मार्ग अपना लेना ही श्रेयस्कर समझा.

‘‘हां, यही ठीक रहेगा,’’ किसी के अंदरूनी मामले में दखल न देने के अपने सिद्धांत के विपरीत नीलेश, नेहा की बात से सहमत हो गया. दरअसल, वह उस उलझन से मुक्ति पाना चाहता था जो उस के दिल और दिमाग को मथ रही थी. वैसे भी सुलेखा कोई गैर नहीं, उस के अभिन्न मित्र की पत्नी है.

वे दोनों उठ कर उन के पास गए. उन्हें इस तरह अपने सामने पा कर सुलेखा चौंक गई, मानो वह समझ नहीं पा रही हो कि क्या कहे.

‘‘दरअसल सुलेखा, हम लोग यहां डिनर के लिए आए हैं. वैसे मैं ने सुबह तुम से कहा भी था पर उस समय तुम ने कह दिया कि तबीयत ठीक नहीं है पर अब जब तुम यहां आ ही गई हो तो हम चाहेंगे कि तुम हमारे साथ ही डिनर कर लो. इस से हमें बेहद प्रसन्नता होगी,’’ नेहा उसे अपनी ओर आश्चर्य से देखते हुए भी सहजता से बोली.

‘‘पर…’’ सुलेखा ने झिझकते हुए कुछ कहना चाहा.

‘‘पर वर कुछ नहीं, सुलेखाजी, मनीष नहीं है तो क्या हुआ, आप को हमेंकंपनी देनी ही होगी…आप भी चलिए मि…आप शायद सुलेखाजी के मित्र हैं,’’ नीलेश ने उस अजनबी की ओर देखते हुए कहा.

‘‘यह मेरा ममेरा भाई सुयश है,’’ एकाएक सुलेखा बोली.

‘‘वेरी ग्लैड टू मीट यू सुयश, मैं नीलेश, मनीष का लंगोटिया यार, पर भाभी, आप ने कभी इन के बारे में नहीं बताया,’’ कहते हुए नीलेश ने बडे़ गर्मजोशी से हाथ मिलाया.

‘‘यह अभी कुछ दिन पूर्व ही यहां आए हैं,’’ सुलेखा ने कहा.

‘‘ओह, तभी हम अभी तक नहीं मिले हैं, पर कोई बात नहीं, अब तो अकसर ही मुलाकात होती रहेगी,’’ नीलेश ने कहा.

अजीब पसोपेश की स्थिति में सुलेखा साथ आ तो गई पर थोड़ी देर पहले चहकने वाली उस सुलेखा तथा इस सुलेखा में जमीनआसमान का अंतर लग रहा था…जितनी देर भी साथ रही चुप ही रही, बस जो पूछते उस का जवाब दे देती. अंत में नेहा ने कह भी दिया, ‘‘लगता है, तुम को हमारा साथ पसंद नहीं आया.’’

‘‘नहीं, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, तबीयत अभी भी ठीक नहीं लग रही है,’’ झिझकते हुए सुलेखा ने कहा.

बात आईगई हो गई. एक दिन नीलेश शौपिंग मौल के सामने गाड़ी पार्क कर रहा था कि वे दोनों फिर दिखे. उन के हाथ में कुछ पैकेट थे. शायद शौपिंग करने आए थे. आजकल तो मनीष भी यही हैं, फिर वे दोनों अकेले क्यों आए…मन में फिर संदेह उपजा, फिर यह सोच कर उसे दबा दिया कि वह उस का ममेरा भाई है, भला उस के साथ घूमने में क्या बुराई है.

मनीष के घर आने पर एक दिन बातोंबातों में नीलेश ने कहा, ‘‘भई, तुम्हारा ममेरा साला आया है तो क्यों न इस संडे को कहीं पिकनिक का प्रोग्राम बना लें. बहुत दिनों से दोनों परिवार मिल कर कहीं बाहर गए भी नहीं हैं.’’

‘‘ममेरा साला, सुलेखा का तो कोई ममेरा भाई नहीं है,’’ चौंक कर मनीष ने कहा.

‘‘पर सुलेखा भाभी ने तो उस युवक को अपना ममेरा भाई बता कर ही हम से परिचय करवाया था, उसे सुलेखा भाभी के साथ मैं ने अभी पिछले हफ्ते भी शौपिंग मौल से खरीदारी कर के निकलते हुए देखा था. क्या नाम बताया था उन्होंने…हां सुयश,’’ नीलेश ने दिमाग पर जोर डालते हुए उस का नाम बताते हुए पिछली सारी बातें भी उसे बता दीं.

‘‘हो सकता है, कोई कजिन हो,’’ कहते हुए मनीष ने बात संभालने की कोशिश की.

‘‘हां, हो सकता है पर पिकनिक के बारे में तुम्हारी क्या राय है?’’ नीलेश ने फिर पूछा.

‘‘मैं बाद में बताऊंगा…शायद मुझे फिर बाहर जाना पडे़,’’ मनीष ने कहा.

नीलेश भी चुप लगा गया. वैसे नीलेश की पारखी नजरों से यह बात छिप नहीं पाई कि उस की बात सुन कर मनीष परेशान हो गया है. ज्यादा कुछ न कह कर मनीष कुछ काम है, कह कर उस के पास से हट गया. उस दिन उसे पहली बार महसूस हुआ कि दोस्ती चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो पर कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें व्यक्ति किसी के साथ शेयर नहीं करना चाहता.