Top 10 Gangster Crime Story In Hindi : टॉप 10 गैंगस्टर क्राइम स्टोरी हिंदी में

Top 10 Gangster Crime Story of 2022 : इन गैंगस्टर क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि समाज में कैसे ये बदमाश लोग अपने डर से और लोगो को डरा कर अपना हक बढ़ाते जा रहे है. और समाज को अपराधियों और आतंकियों से भरते जा रहे है. जिससे समाज का विकास होने की बजाए वो पिछड़ता जा रहा है. अपने और अपने परिवार को ऐसे ही बदमाश गैंगस्टरों से बचाने के लिए पढ़े मनोहर कहानियां की ये Top 10 Gangster Crime story in Hindi

  1. बेखौफ गैंगस्टर दो पुलिस अफसरों की हत्या

बदमाशों की तलाश में भागदौड़ कर रही पुलिस को कुछ ही देर बाद मोगा रोड पर एक ढाबे के बाहर वह ट्र्रक खड़ा मिल गया, जिसे बदमाश भगा ले गए थे. ट्र्रक में अफीम और चिट्टा बरामद हुआ. ट्र्रक के पिछले हिस्से में तलाशी के दौरान पुलिस को कई ब्रांडेड कपड़े मिले. इस से यह अंदाज लगाया गया कि ट्र्रक में कई लोग सवार थे. पुलिस ने वह ट्र्रक जब्त कर लिया.

ट्र्रक के नंबर की जांचपड़ताल की, तो वह फरजी निकला. यह नंबर फरीदकोट के एक जमींदार की मर्सिडीज कार का निकला. जांच में पता चला कि यह ट्र्रक मोगा के गांव धल्ले के रहने वाले एक शख्स के नाम पर था. उस ने ट्र्रक दूसरे को बेच दिया. इस के बाद भी यह ट्र्रक 2 बार आगे बिकता रहा.

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2. गैंगस्टरों का गढ़ बनता पंजाब और पुलिस की बढ़ती परेशानी

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सभी गैंगस्टर कमोवेश जवान हैं और उन के काम करने का स्टाइल फिल्मों से प्रभावित लगता है. वे सोशल मीडिया पर पुलिस को खुल्लमखुल्ला चुनौती देते हुए विरोधी ग्रुप के लोगों की हत्या करने और जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ाने जैसी बात कहने लगे हैं. पुलिस ने शुरू में ऐसी धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. आतंकवाद जैसा गंभीर समस्या का सामना कर चुकी पंजाब पुलिस का खयाल था कि गैंगस्टरों में इतनी हिम्मत नहीं कि जेलों में बंद अपने साथियों को जेल से छुड़ा सकें.

पुलिस का उक्त खयाल उस की खुशफहमी ही साबित हुआ. गैंगस्टरों ने जैसा कहा, वैसा कर के दिखा भी दिया. आतंकवादी भी ऐसी हिम्मत कर सके थे, जैसी हिम्मत इन गैंगस्टरों ने कर दिखाई. पंजाब की नाभा जेल काफी सुरक्षित मानी जाती रही है.

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3. गैंगस्टरों का खूनी खेल

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जिम का मेनगेट खुला था. तीनों युवक जिम के औफिस में चले गए. जिधर एक्सरसाइज करने की मशीनें लगी हुई थीं, वहां के दरवाजे का लौक बायोमेट्रिक तरीके से बंद था. इस गेट के पास सोफे पर ट्रेनर साजिद सो रहा था. उन तीनों युवकों में से एक युवक ने साजिद को जगाया और उसे पिस्तौल दिखाते हुए गेट खोलने को कहा. साजिद ने मना किया तो उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी. डर की वजह से घबराए साजिद ने बायोमेट्रिक मशीन में अंगुली लगा कर गेट खोल दिया.

गेट खुलते ही 2 युवक जिम के अंदर घुस गए और तीसरे युवक ने साजिद से उस का मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. फिर तीसरा युवक भी जिम में घुस गया. जिम के अंदर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन मशीनों पर एक्सरसाइज कर रहा था. ज्यादा सुबह होने के कारण उस समय जिम में वह अकेला ही था.

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4. दाऊद इब्राहिम से जुड़ी ये बातें क्या जानते हैं आप

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दाऊद कानून से बचने के लिए 1986 में ही दुबई चला गया था. वह शारजाह में होने वाले क्रिकेट मैच के दौरान भी स्टेडियम में दिखाई देता था. लेकिन 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट के बाद उसकी कोई फोटो सामने नहीं आई. वह पब्लिक फंक्शन्स में भी जाने से बचने लगा. पाकिस्तान ने बाद में उसे अपने मुल्क में रहने की इजाजत दी.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, उसे आईएसआई से भी सिक्युरिटी मिली. पाकिस्तान 23 साल से इस आतंकी को अपने यहां पनाह देने की बात नकारता रहा है. उसकी पहली पासपोर्ट साइज फोटो पिछले साल अगस्त में और पहली फुल लेंथ फोटो शुक्रवार को सामने आई.

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5. अधूरी रह गई डौन बनने की चाहत

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव की अधिसूचना जारी होने के दूसरे दिन हुई इस घटना ने पूरी पुलिस फोर्स के साथ सरकार को भी झकझोर दिया था. इस घटना से शेखावटी में फिर गैंगवार होने की आशंका बढ़ गई थी. इस का कारण यह था कि पुलिस जो प्राइवेट स्कौर्पियो ले कर गैंगस्टर अजय चौधरी और उस के साथियों को पकड़ने के लिए निकली थी, उस गाड़ी को संभवत: अजय ने मनोज स्वामी की समझा था. अजय ने पुलिस के सहयोग से मनोज द्वारा उसे पकड़वाए जाने की आशंका से ही फायरिंग की थी.

दूसरे दिन इस घटना के विरोध में फतेहपुर कस्बा बंद रहा. राजस्थान के डीजीपी ओ.पी. गल्होत्रा, एटीएस के एडीशनल डीजीपी उमेश मिश्रा सहित जयपुर से आला पुलिस अफसर फतेहपुर पहुंच गए.

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6. लेडी डौन बनने की चाहत : कैसा जाल बिछाती थी प्रिया

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पहली मुलाकात में ही अपनी मोहक मुस्कान दिखा कर वह 20-25 हजार रुपए आराम से झटक लेती थी. बीच में कुछ समय के लिए वह दिल्ली और नोएडा में जा कर रहने लगी थी, लेकिन वहां से जल्दी ही वापस जयपुर लौट आई.

अब वह जयपुर के व्यवसायी दुष्यंत शर्मा की हत्या के मामले में अपने बौयफ्रैंड और एक दोस्त के साथ सलाखों के पीछे है. 3 बार पहले भी वह गिरफ्तार हो चुकी है. उसे ना तो दुष्यंत की हत्या का मलाल है और ना ही कोई अपराधबोध.

प्रिया कुख्यात लेडी डौन बनना चाहती है. वह कहती है, ‘मैं ने दुनिया का कोई पहला मर्डर नहीं किया है.’ शायद उसे पता नहीं है कि कोई मर्डर पहला या आखिरी नहीं होता. प्रिया कहती है, ‘मुझे सिर्फ  दौलत चाहिए. मैं पैसे की बदौलत वे सब चीजें खरीदना चाहती हूं, जिस की मुझे ख्वाहिश है.’ वह यह भी कबूलती है कि 2 साल में उस ने डेढ़ करोड़ रुपया कमाया है.

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7. दुनिया का सिरदर्द बने भगोड़े अपराधी

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यह कहानी महज एक भगोड़े की है. जबकि हकीकत यह है कि देश में हजारों की तादाद में भगोड़े हैं, जिन में मुट्ठीभर भगोड़े विदेश भी भाग चुके हैं और 99 प्रतिशत से ज्यादा भगोड़े देश के अंदर ही कानून के लंबे हाथों और उस की गहरी निगाहों को चकमा दे कर मौजूद हैं. वैसे तो गृह मंत्रालय के पास बिलकुल अपडेट आंकड़े नहीं हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, देश में 5 हजार से ज्यादा भगोड़े हैं.

हैरानी की बात यह है कि देश में जिस जेल से सब से ज्यादा अपराधी फरार हुए हैं, वह कोई बिहार या छत्तीसगढ़ की जेल नहीं है बल्कि देश की सब से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाली राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल है. तिहाड़ जेल प्रशासन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 15 सालों में यहां से 915 अपराधी फरार हो चुके हैं.

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8. नेस्तनाबूद हुआ मेरठ का चोरबाजार

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एएसपी सूरज राय ने उसी दिन अपने सर्किल के तीनों थानों के प्रभारी और वहां तैनात सबइंसपेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई. उन्होंने सभी से एकएक कर सोतीगंज के बाजार के बारे में जानकारी ली कि आखिर वहां क्या होता है, क्यों इस इलाके के बारे में लोगों की धारणा इतनी गलत है.

इस के बाद उन के सामने जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर तो एएसपी सूरज राय को लगा कि मानो वे मुंबई के कौफर्ड मार्केट के बारे में कोई कहानी सुन रहे हैं, जहां चोरी व तसकरी कर के लाया गया इंपोर्टेड सामान खुलेआम मिलता है.

सूरज राय ने जब अपने मातहत अफसरों से पूछा कि सोतीगंज बाजार के कबाडि़यों के खिलाफ वे काररवाई क्यों नहीं करते तो कारण भी पता चल गया कि इस बाजार में सब कुछ इतना संगठित तरीके से होता है कि पुलिस को कोई सबूत हाथ नहीं लगता.

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9. सूरत की ब्यूटी लेडी डौन : अस्मिता ने मचाया आतंक

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चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

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10. अपराधियों के बुलंद हौंसले : कोर्ट रूम में क्यों हुई गैंगवार

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सादुलपुर के अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश की अदालत ने अजय को इस मामले में 14 नवंबर, 2017 को 7 साल की सजा सुनाई थी. इसी साल 5 जनवरी को ही हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई थी. इस के 12 दिन बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

हरियाणा के अनिल जाट गैंग ने 2 दिन पहले ही अजय जैतपुरा को धमकी दी थी. दरअसल, हरियाणा के 2 लाख रुपए के इनामी बदमाश अनिल जाट को हरियाणा पुलिस ने 25 जून, 2015 को एनकाउंटर में मार गिराया था. यह एनकाउंटर हरियाणा के ईशरवाल गांव में हुआ था.

अनिल जाट के गिरोह के सदस्यों को शक था कि उन के बौस का एनकाउंटर कराने में अजय जैतपुरा और चूरू जिले के थाना राजगढ़ के सिपाही नरेंद्र का हाथ था. अजय ने ही फोन कर के अनिल को बुलाया था. उस की मुखबिरी पर ही पुलिस ने अनिल को घेर कर मार दिया.

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काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया – भाग 3

बहरहाल, पिछले साल फरवरी में भागने के बाद काला जठेड़ी विदेशों के दूसरे गैंगस्टरों के साथ जुड़ा रहा. उन में वीरेंद्र प्रताप उर्फ काला राणा (थाईलैंड से संचालित), गोल्डी बराड़ (कनाडा में स्थित) और मोंटी (यूके से संचालित) हैं. उन के साथ वह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अपराध गठबंधन का नेतृत्व कर रहा था.

अनुराधा का मिला साथ

पुलिस के अनुसार उन का गठबंधन हाईप्रोफाइल जबरन वसूली, शराब के प्रतिबंधित राज्यों में शराब का अवैध,  अंतरराज्यीय व्यापार, अवैध हथियारों की तसकरी और जमीन पर कब्जा करना शामिल था.

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काला जठेड़ी के साथ सक्रियता के साथ काम करने वालों में शिक्षित युवती अनुराधा भी थी. उस के काला जठेड़ी के साथ लिवइन रिलेशन थे.  पूछताछ में काला जठेड़ी ने अनुराधा के संपर्क में आने का कारण बताया.

दरअसल, लारेंस बिश्नोई ने काला जठेड़ी को निर्देश दिया कि वह लेडी डौन अनुराधा की मदद करे. आनंदपाल सिंह की दोस्त अनुराधा से उस की मुलाकात कब प्यार में बदल गई उसे भी नहीं पता चला.

हालांकि बताते हैं दोनों ने हाल में ही शादी भी कर ली थी. लेडी डौन के नाम से कुख्यात अनुराधा के खिलाफ भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो काला जठेड़ी के नाम पर करती रही. यहां तक कि भारत से भागने की कहानी भी उसी ने फैलाई. कहने को तो उस की योजना काला जठेड़ी के साथ कनाडा में शिफ्ट होने की थी, किंतु इस में सफलता नहीं मिल पाई.

गैंगस्टर काला जठेड़ी के साथ लेडी डौन अनुराधा की गिरफ्तारी के बाद कई नए खुलासे हुए. वैसे तो कई ऐसे राज का परदाफाश होना अभी बाकी है, लेकिन दोनों के संबंधों और कुख्यात साजिशों के बारे में जो कुछ सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. उसे सुन कर सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को उन्होंने बताया कि दोनों बतौर पतिपत्नी कनाडा में शिफ्ट होने के लिए नेपाल से पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में थे. इस के लिए उन्होंने शादी रचाई थी.

पुलिस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अनुराधा पूछताछ के दौरान जांच अधिकारियों से सिर्फ फर्राटेदार अंगरेजी में ही बात करती है. खाली वक्त में अंगरेजी की किताब मांगती है.

पूछताछ में अनुराधा ने बताया कि उसी ने काला जठेड़ी को हुलिया बदलने के लिए कहा था. उल्लेखनीय है कि जब काला जठेड़ी पकड़ा गया था, तब वह सिख के वेश में था. उस के कहने पर ही जठेड़ी ने सरदार का हुलिया बना लिया था.

मंदिर में शादी के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे और अपनी पहचान बदल कर फरजी आईडी पर दोनों ने अपना नाम पुनीत भल्ला और पूजा भल्ला रख लिया था.

स्पैशल सेल के सूत्रों के अनुसार, जब अनुराधा राजस्थान के गैंगस्टर आंनदपाल सिंह के साथ काम करती थी, तब उस समय उस का भी हुलिया उस ने ही बदलवाया था. आंनदपाल के कपड़े पहनने, रहनसहन और बौडी लैंग्वेज के अनुसार बोलचाल आदि की भी ट्रेनिंग दी थी. यहां तक कि अपना जुर्म का काला धंधा कैसे चलाए, इस का फैसला भी अनुराधा ही करती थी.

बताते हैं कि अनुराधा की ही प्लानिंग थी कि पुलिस की नजरों में काला जठेड़ी का ठिकाना विदेश बताया जाए. उस ने ही काला जठेड़ी के गैंग के सभी सदस्यों को यह कह रखा था कि अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाएं तो पुलिस को यही बताएं कि काला जठेड़ी अब विदेश में है और वहीं से अपना गैंग औपरेट कर रहा है.

यह सब एक सोचीसमझी प्लानिंग थी. अनुराधा जानती थी कि जुर्म की दुनिया में अगर पुलिस को थोड़ी सी भी भनक लग गई तो काला जठेड़ी का हाल भी आंनदपाल जैसा हो सकता है.

गैंगस्टर ने पूछताछ में बताया है कि उस के गुर्गे दिल्ली और देश के कई अन्य राज्यों में फैले हुए हैं. उस के बाद से दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल अब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत अन्य राज्यों में इन गुर्गों की तलाश में जुट गई है. उन में हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला मनप्रीत राठी व बच्ची गैंगस्टर, गोल्डी बरार, कैथल निवासी मंजीत राठी और झज्जर का रहने वाला दीपक है.

पिछले दिनों ओलंपिक में मेडल जीतने वाले सुशील कुमार पर भी हत्या का आरोप लगा था और उस का नाम भी गैंगस्टर में शामिल हो गया था.

गिरफ्तारी से पहले सुशील कुमार ने भी दिल्ली में जमीन की खरीदफरोख्त सहित अन्य काले कारनामों के लिए जठेड़ी के साथ हाथ मिला लिया था. बाद में दोनों में दुश्मनी हो गई.

दिल्ली के स्टेडियम में पहलवान सागर धनखड़ की पिटाई के बाद मौत के मामले में सुशील गिरफ्तार हो गया. सागर के साथ सोनू महाल नामक शख्स की भी पिटाई हुई थी, जो रिश्ते में काला जठेड़ी का भांजा होने के साथ ही दाहिना हाथ भी माना जाता है.

बनना चाहता था सिपाही

पूछताछ में काला जठेड़ी ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया. उस ने बताया कि वह दिल्ली पुलिस का सिपाही बनना चाहता था. इस के लिए उस ने परीक्षा भी दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाया था. उस ने हरियाणा पुलिस में भी सिपाही का आवेदन किया था, लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ.

उस ने बताया कि अगर उस का सपना न टूटा होता तो वह अपराधी भी नहीं होता. उस के बाद ही वह बदमाशों के संपर्क में आ गया और कई राज्यों का वांछित बदमाश बन गया.

इस बारे में उस ने स्पैशल सेल को बताया कि वर्ष 2002 में सोनीपत आईटीआई से सर्टिफिकेट कोर्स कर रहा था. उसी दौरान उस ने पुलिस में सिपाही बनने के लिए आवेदन किया था. इस के लिए उस ने दिल्ली

और हरियाणा पुलिस में सिपाही भरती में हिस्सा लिया. दोनों ही जगह परीक्षा पास नहीं कर सका.

सिपाही में भरती न हो पाने के बाद वह परिजनों से कुछ रुपए ले कर दिल्ली आ गया. यहां आ कर वह छोटेछोटे अपराध में लिप्त हो गया.

वर्ष 2004 में दिल्ली के समयपुर बादली थाना पुलिस ने पहली बार मोबाइल झपटमारी में काला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. झपटमारी में जमानत मिलने पर वह वापस गांव लौट आया. वहीं खेती में पिता का हाथ बंटाने के साथ केबल कारोबार में लग गया.

बहरहाल, काला जठेड़ी भले ही जेल में हो, लेकिन उस के गैंग के कई राज्यों में फैले हुए गुर्गे उस के इशारे पर कब किसी अपराध को अंजाम दे दें कहना मुश्किल है.

शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर : ड्रग सामाज्य की मल्लिकाशार्ट स्टोरी – भाग 3

आज से तकरीबन 7 साल पहले अप्रैल, 2015 में बेबी एक लग्जरी बस में कराड से मुंबई आ रही थी. किसी ने उसे देख लिया और मुंबई क्राइम ब्रांच को खबर कर दी. तब उसे उसी बस में नवी मुंबई के पनवेल से पहले गिरफ्तार कर लिया गया.

जब उस से पूछताछ हुई तो उस ने सिर्फ धर्मराज से ही नहीं, पुलिस डिपार्टमेंट में कई और लोगों से भी अपनी दोस्ती जाहिर कर दी. उस ने दावा किया कि खंडाला में धर्मराज कालोखे के ठिकाने पर ड्रग्स होने की टिप उसी ने किसी के जरिए पुलिस को दी थी.

आखिर उस ने ऐसा क्यों किया? इस पर बेबी पाटणकर ने पुलिस को बताया कि खंडाला में 9 मार्च, 2015 को जो ड्रग जब्त की गई, उसे वह कुछ महीने पहले मुंबई लाई थी. कुछ दिन तक उस ने इसे मुंबई के अपने वर्ली वाले घर में रखा. बाद में उस ने धर्मराज से इसे अपने किसी ठिकाने पर छिपाने को कहा.

धर्मराज कालोखे ने इसी शर्त पर यह ड्रग छिपाने का भरोसा बेबी को दिया कि वह बदले में उसे 25 लाख रुपए देगी. धर्मराज कालोखे ड्रग को कुछ महीने पहले खंडाला ले गया. लेकिन बेबी ने वादे के बावजूद उसे 25 लाख रुपए नहीं दिए.

धर्मराज कालोखे पुणे में किसी प्रौपर्टी में उन 25 लाख रुपयों को निवेश करना चाहता था. उस ने एक बिल्डर को डेढ़ लाख रुपए एडवांस में भी दे दिए थे, लेकिन बेबी की इस वादाखिलाफी की वजह से उस की पुणे की वह प्रौपर्टी खतरे में पड़ गई थी.

बेबी ने पुलिस को बताया कि उस के बेटे गिरीश ने धमकी दी थी कि अगर अब वह इस धंधे में रही तो वह खुदकुशी कर लेगा. पर धर्मराज उस पर ड्रग रैकेट में बने रहने का दबाव बना रहा था.

बेबी पर साल 2001 में एक एफआईआर हुई थी, उस के बाद 2014 में वर्ली और वसई में 2 एफआईआर दर्ज हुईं. एकाएक उस पर हुई 2 एफआईआर से उस का शक धर्मराज  कालोखे पर बढ़ गया.

शक इसलिए भी था कि अभी तक मुंबई में बेबी की मंगाई ड्रग्स ही बाजार में सब से ज्यादा सप्लाई होती थी, लेकिन जब खंडाला में 110 किलोग्राम से भी ज्यादा ड्रग को छिपाने के बावजूद मुंबई में ड्रग की सप्लाई बढ़ती रही तो बेबी को लगा शायद धर्मराज कालोखे ने किसी और ड्रग तसकर को मुंबई के बाजार में उतार दिया है.

खंडाला और मरीन लाइंस में जो ड्रग्स जब्त की गई थी. पुलिस का कहना था कि वह मेफेड्रोन ड्रग थी, लेकिन फोरैंसिक रिपोर्ट के आधार पर इस केस में आरोपी पुलिस वालों ने कोर्ट में इसे अजीनोमोटो बताया, जोकि चाइनीज खानों में स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

बेबी की वजह से कई पुलिस अधिकारी पहुंचे जेल

 

अपने इन पुलिस वाले दोस्तों की मदद से बेबी ने मुंबई, पुणे, लोनावला, कोंकण में कई बंगले बनवाए. बेबी के 22 बैंक अकाउंट और 1.45 करोड़ की मेफेड्रोन होने की बात अधिकृत रूप से सामने आई थी. उस ने शराब की कुछ दुकानें और आलीशान गाडि़यां भी खरीदी थीं. खास बात यह है कि बेबी की किराए की कई गाडि़यां सरकारी विभाग, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में भी चलती थीं.

मेफेड्रोन ड्रग की तसकरी के आरोप में गिरफ्तार हो कर हवालात में जाने के बाद  शशिकला पाटणकर उर्फ बेबी ने अदालत में शिकायत की थी कि हवालात में उस की जान को खतरा है. उसे धमकाया जा रहा है कि अगर ड्रग्स मामले में मुंबई पुलिस के अफसरों का नाम लिया तो अच्छा नहीं होगा.

बेबी ने सातारा के डीएसपी दीपक डुंबरे  का नाम ले कर शिकायत की थी कि मरीन ड्राइव पुलिस स्टेशन में आ कर उन्होंने उसे धमकाया. कहा कि तुम्हारी वजह से पुलिस का सिपाही भी पकड़ा गया.

अदालत ने बेबी की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए पुलिस को आदेश दिया कि महिला अधिकारी की मौजूदगी में ही बेबी से पूछताछ की जाए और जांच अधिकारी ही उस से पूछताछ करें. इस के साथ ही अदालत ने 2 मई तक बेबी की पुलिस हिरासत भी बढ़ा दी थी.

इस के बाद यह खबर फैल गई कि कुछ और पुलिस वाले बेबी के काले धंधे में शामिल हो सकते हैं. तकरीबन 8 पुलिस वाले शक के दायरे में थे, जिन में बेबी पाटणकर से 5 लाख रुपए की रिश्वत मांगने वाले सातारा के वाई डिवीजन के डीएसपी दीपक विठोबा डुंबरे डुंबरे (50) और निजी आपदा प्रबंधन ठेकेदार 43 वर्षीय युवराज धमाल भी थे.

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की मुंबई इकाई ने 7 मई, 2016 को मुंबई में मादक पदार्थ मामले के संबंध में एक ‘अनुकूल रिपोर्ट’ दर्ज करने के लिए 5 लाख रुपए की रिश्वत मांगने के आरोप में सातारा के डीएसपी दीपक विठोबा डुंबरे और एक आपदा प्रबंधन ठेकेदार युवराज धमाल को गिरफ्तार किया. इस में ड्रग तसकर शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर भी शामिल थी.

अप्रैल, 2015 में हिरासत में जाने के बाद जिन 5 पुलिस वालों को जमानत मिली, उस के बाद अदालत के जरिए बेबी पाटणकर को भी  5 लाख रुपयों के बेल बांड पर जमानत मिल गई. गौरतलब है कि शशिकला बेबी पाटणकर मामले में 2 प्रयोगशालाओं (मुंबई और हैदराबाद) द्वारा किए गए फोरैंसिक परीक्षणों से पता चला कि 9 मार्च, 2015 को कन्हेरी गांव में धर्मराज कालोखे के ठिकाने से जब्त की गई सामग्री खाद्य योजक सोडियम ग्लूटामेट थी, जिसे लोकप्रिय रूप से अजीनोमोटो के नाम से जाना जाता है.

उस मामले से बरी होने से बेबी खुश है, जिस में वह 2015 से जमानत पर आज भी बाहर है. शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर और पुलिस कांसटेबल धर्मराज कालोखे के साथ तामिलनाडु से हिरासत में लिया गया पौलराज दुराईस्वामी उर्फ पौल भी अपराधी बना.

इस के अलावा सीनियर पुलिस इंसपेक्टर सुहास गोखले, इंसपेक्टर गौतम गायकवाड, एसआई सुधाकर सारंग, एपीआई ज्योतीराम माने जैसे सरकारी मुलाजिम भी अपराधी बन कर अपना सब कुछ गंवा बैठे.

‘कांटे’, ‘मुंबई सागा’ और ‘शूटआउट’ जैसी अपराध जगत और गैंगस्टरों की दुनिया को फिल्मों के जरिए दिखाने वाले निर्देशक संजय गुप्ता अब ड्रग्स क्वीन बेबी पाटणकर पर वेब सीरीज बनाएंगे.

यह सीरीज उन के प्रोडक्शन हाउस व्हाइट फेदर फिल्म्स की डिजिटल डेब्यू होगी, जिस का शीर्षक ‘बेबी पाटणकर: नारकोटिक्स क्वीन औफ इंडिया’ रखा गया. उन्होंने

इस सीरीज को ले कर अपना बयान भी जारी किया था. अपराध की गठजोड़ से संबंधित इस सीरीज की कहानी दर्शकों को जरूर आकर्षित करेगी.

भूषण कुमार की अगुवाई वाली टी-सीरीज कंपनी इस सीरीज का सहनिर्माण करेगी. इस सीरीज के कलाकारों के बारे में अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है. सीरीज का प्रसारण किसी बड़े ओटीटी प्लेटफार्म पर हो सकता है.

राजू ठेहठ : अपराध की दुनिया का बादशाह – भाग 3

राजस्थान में गैंगस्टर्स आनंदपाल सिंह और राजू ठेहठ में करीब 2 दशक वर्चस्व की लड़ाई चली थी. आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व हो गया. जेल में बंद होने के दौरान भी राजू ठेहठ के रंगदारी वसूलने के कई मामले सामने आए थे.

दिसंबर 2021 में राजू ठेहठ 8 साल बाद जमानत पर जेल से बाहर आया. जमानत पर बाहर आने के बाद वह गैंग को बढ़ाने में लग गया. उस ने अपना वर्चस्व तो बना लिया. लोगों में सक्रिय रहने के लिए वह रील बना कर सोशल मीडिया पर भी एक्टिव हो गया.

उस ने कभी अकेले बाइक राइडिंग के तो कभी नई लग्जरी कार चलाते हुए वीडियो शूट किए. अपने गनमैन और कारों के काफिले के साथ वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड किए.

गैंगस्टर राजू ठेहठ बीजेपी नेता प्रेम सिंह बाजौर के जिस मकान में रह रहा था, वह महेशनगर थाने की चौकी से महज 100 मीटर की दूरी पर है. बीट प्रणाली की बात करें या संदिग्धों व बदमाशों को निगरानी की, महेशनगर थाना पुलिस फेल नजर आ रही है.

राजस्थान का एक बड़ा गैंगस्टर खुलेआम काफिले और अकेले रोड पर घूमता, लेकिन थाना पुलिस तो दूर सीएसटी और डीएसटी तक को पता नहीं चला.

सोशल मीडिया पर सक्रिय राजू ठेहठ ने भरतपुर के जिला प्रमुख राजवीर, जयपुर के सांगानेर पंचायत समिति के ग्राम पंचायत पवालियां सरपंच रामराज चौधरी और चाकसू विधानसभा यूथ कांग्रेस अध्यक्ष कैलाश चौधरी के साथ फोटो शेयर कर रखी हैं.

माना जा रहा है कि राजू ठेहठ राजनीति में सक्रिय अपने परिचितों से संपर्क साध कर चर्चा करता रहता है और वह राजनीति में जल्द से जल्द सक्रिय होना चाहता है. उस के राजनीतिक लोगों के साथ मीटिंग के दौरान शूट किए गए फोटो भी चर्चा में बने रहते हैं. बदमाशों की टोली के साथ घूमने, खानेपीने की फोटो भी राजू ठेहठ ने शूट कर शेयर की हैं.

राजस्थान के सीकर जिले के जीणमाता के पास स्थित अरावली शिक्षण संस्थान की फरजी कार्यकारिणी बनाने के मामले में गैंगस्टर राजू ठेहठ का मामला भी सामने आया.

बताया जाता है कि संस्थान की आईडी और पासवर्ड लेने के लिए राजू ठेहठ ने संचालक को अपने घर बुला कर धमकाया था. साथ ही आईडी पासवर्ड नहीं देने पर जान से मारने की धमकी दी थी. इस मामले में भी पुलिस को राजू की तलाश है. राजू ठेहठ की जान लेने के लिए उस के दुश्मन तैयार बैठे हैं. बलबीर बानूड़ा का बेटा और भतीजे भी मौके की तलाश में हैं.

चाचा की मौत का बदला लेने की फिराक में है पवन

इस कहानी की शुरुआत करीब साढ़े 8 साल पहले हुई थी. 14 साल का बच्चा था सुभाष. 10वीं की पढ़ाई कर रहा था. बौक्सिंग  में स्टेट चैंपियनशिप खेल चुका था. स्किल्स में और निखार लाने के लिए हिसार में बौक्सिंग की ट्रेनिंग ले रहा था. इसी तरह सुभाष का बड़ा भाई पवन इलाहाबाद बैंक में नौकरी कर रहा था.

6 महीने ही हुए थे नौकरी लगे. एक महीने पहले शादी हुई थी. जिंदगी में सब कुछ सही चल रहा था, लेकिन फिर आया 23 जुलाई, 2014 का वह खौफनाक दिन. बीकानेर जेल में गोलियां चलीं और दोनों भाइयों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल दी.

दोनों भाइयों के नाम के आगे लगे बौक्सर और बैंकर शब्द हट गए. एक कालिख उन के नाम के साथ जुड़ गई. और दोनों भाई बन गए गैंगस्टर. इस के बाद वह अपराध के दलदल में ऐसे फंसे कि घर छूटा, सरकारी नौकरी चली गई. भूखा तक रहना पड़ा. अच्छीखासी जिंदगी बिखर गई.

23 जुलाई, 2014 को राजस्थान के बीकानेर जेल में 2 खूंखार गैंगस्टर आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा पर अटैक हुआ था. बलबीर की गोली लगने से मौत हो गई थी. बलबीर बानूड़ा की मौत ने एक झटके में उस के परिवार के पैरों तले की जमीन खींच ली.

जयपुर से 135 किलोमीटर दूर सीकर में बानूड़ा गांव है. बानूड़ा गांव से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर एक ढाणी में 4 घर बने हुए हैं. यहीं है बलबीर बानूड़ा का मकान. मनोहर कहानियां की टीम वहां पहुंची तो वहां बलबीर की मां और पत्नी मिलीं. जब उन से बात की तो बलबीर के घर वालों ने कहा कि परिवार ने बहुत दुख झेला है, जख्मों को कुरेदने से कोई फायदा नहीं है.

बलबीर बानूड़ा का बेटा सुभाष फरार है. पवन जोकि बलबीर का भतीजा है, वह भी अपने चाचा बलबीर की मौत का बदला राजू ठेहठ से लेना चाहता है. बलबीर का बेटा सुभाष बानूड़ा भी अपने पिता के हत्यारों राजू ठेहठ गैंग से बदला लेना चाहता है.

सुभाष के बड़े भाई पवन ने बताया, ‘‘काका बलबीर को बीकानेर जेल में मार दिया, तभी तय कर लिया था कि बदला लूंगा.’’

राजू ठेहठ राजनीति में कूदने को है लालायित

पवन का कहना है कि पुलिस ने उस पर कई झूठे मुकदमे लगा दिए हैं. 4 महीने पहले भी लड़ाईझगड़े में मुकदमा लगा दिया. इस की जांच चल रही है. कहीं कुछ भी होता है तो पवन का नाम लगा देते हैं. पवन को जेल से छूटे 21 महीने हो गए हैं. मनोज ओला पर फायरिंग की थी. जेल से आने के बाद 3 से 4 बार ही घर गया हूं. रात को घर जा कर सुबहसवेरे घर से निकलना पड़ता है.

पवन के पिता प्रिंसिपल हैं. परिवार पूरी तरह से संपन्न है. खुद का भी काम ठीक चल रहा है. पवन के 2 बेटियां हैं और एक बड़ा भाई है. सुभाष का भाई विकास दुबई में रहता है. मांबाप काफी समझाते हैं, लेकिन अब क्या करें. अब तो काका की हत्या का बदला ले कर ही मानेंगे.

आनंदपाल और राजू ठेहठ गैंग में कट्टर दुश्मनी हो गई. शेखावटी में 2016 तक 15 से ज्यादा हत्याएं हो चुकी थीं. आनंदपाल और बलबीर बानूड़ा की मौत के बाद राजू ठेहठ का वर्चस्व बरकरार है.

राजू ठेहठ जेल जाता है और बाहर आने के बाद फिर से गलत धंधे करता है. बस, पुलिस उसे फिर जेल में डाल देती है. राजू ठेहठ निकट भविष्य में राजनीति में आ सकता है. मगर राजू ठेहठ के इतने दुश्मन पैदा हो चुके हैं कि वे उस की जान लेने पर आमादा हैं.

गैंगस्टर का जीवन वैसे भी दुश्मन की गोली या फिर पुलिस की गोली से ही समाप्त होता है. ऐसा कोई विरला गैंगस्टर आज के युग में होगा कि वह अपनी मौत मरे.

राजू ठेहठ अपराध की दुनिया का चमकता गैंगस्टर बन कर कभी जेल तो कभी बाहर आ कर ऐशोआराम से जी रहा है. देखना होगा कि भविष्य में राजू ठेहठ क्या कुछ नया करता है. राजू ठेहठ पर ढाई दरजन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हैं.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 3

करोड़ों की जमीन ने दोस्ती में डाली दरार

लगभग 4 करोड़ की जमीन छिन जाने के डर से प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता घबरा गया. उस ने तब क्षेत्र के कुख्यात गैंगस्टर आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट से मुलाकात की. उस ने पप्पू स्मार्ट को अपनी समस्या बताई और पिंटू सेंगर से जमीन वापस दिलाने की गुहार लगाई.  पप्पू स्मार्ट ने 40 लाख रुपया मनोज से लिया और उसे जमीन वापस दिलाने का भरोसा दिया.

पप्पू स्मार्ट ने अपने दोस्त पिंटू सेंगर से जमीन को ले कर बातचीत की और मनोज गुप्ता को जमीन वापस करने की बात कही. लेकिन दोस्ती के बावजूद पिंटू सेंगर ने पप्पू स्मार्ट की बात नहीं मानी और जमीन वापस करने से साफ इंकार कर दिया. बस, यहीं से दोनों दोस्त एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए.

पिंटू सेंगर के साथ उन्नाव में तैनात सिपाही श्याम सुशील मिश्रा काम करता था. उस ने सरकारी, गैरसरकारी जमीनों पर कब्जा किया और फिर बिक्री कर करोड़ों कमाए. आय से अधिक संपत्ति के मामले में उसे निलंबित कर दिया गया था. उस का भूमाफिया और हिस्ट्रीशीटरों से गठजोड़ था.

पिंटू सेंगर के माध्यम से उस ने 6 करोड़ की जमीन का सौदा किया था. लेकिन श्याम सुशील यह रकम पिंटू सेंगर को देना नहीं चाहता था. उसे जब पिंटू और पप्पू की दुश्मनी का पता चला तो वह पप्पू स्मार्ट का वफादार बन गया.

रूमा की 5 बीघा जमीन को लेकर पप्पू और पिंटू में अब अकसर तकरार होने लगी थी. चकेरी में एक रोज पिंटू सेंगर का सामना पप्पू स्मार्ट व उस के साथी सऊद अख्तर से हुआ तो जमीन को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इसी कहासुनी में पप्पू स्मार्ट ने पिंटू सेंगर पर फायर कर दिया. पिंटू घायल हो गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. बाद में पिंटू सेंगर ने चकेरी थाने में पप्पू स्मार्ट व उस के साथी सऊद अख्तर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

पप्पू ने पिंटू सेंगर की दी सुपारी

जेल से बाहर आने के बाद पप्पू स्मार्ट ने पिंटू सेंगर को ठिकाने लगाने की ठान ली. उस ने अपराधी जाजमऊ निवासी तनवीर बादशाह से बातचीत की. तनवीर बादशाह जेल में बंद मुख्तार अंसारी का गुर्गा था.

तनवीर बादशाह ने पप्पू स्मार्ट की मुलाकात साफेज उर्फ हैदर से कराई. हैदर ने 40 लाख रुपए में बसपा नेता व भूमाफिया पिंटू सेंगर की हत्या की सुपारी ली. पप्पू ने 8 लाख रुपए पेशगी दिए और शेष रकम काम हो जाने के बाद देने का वादा किया.

साफेज उर्फ हैदर ने रकम मिलने के बाद 2 लाख रुपए से 4 शार्प शूटरों का इंतजाम किया तथा 2 लाख रुपयों से पिस्टल व कारतूसों का इंतजाम किया. पप्पू स्मार्ट व उस के गैंग के सदस्य पिंटू सेंगर की गतिविधियों पर नजर रखने लगे. साफेज उर्फ हैदर ने भी बबलू सुलतानपुरी को पिंटू की रेकी के लिए लगा दिया.

20 जून, 2020 की सुबह साफेज उर्फ हैदर को पता चला कि पिंटू सेंगर दोपहर को जेके कालोनी आशियाना स्थित सपा के पूर्व जिला अध्यक्ष चंद्रेश सिंह के घर जमीनी समझौते के लिए जाएगा. वहां दूसरा पक्ष मनोज गुप्ता भी आएगा.

यह पता चलते ही हैदर ने शार्प शूटरों को सतर्क कर दिया. शार्प शूटर सलमान बेग, फैसल, एहसान कुरैशी व राशिद कालिया 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर चंद्रेश के घर के पास पहुंच गए और पिंटू सेंगर के आने का इंतजार करने लगे.

इधर लगभग 12 बजे पिंटू सेंगर अपनी इनोवा कार से चंद्रेश के घर जाने के लिए अपने घर से निकला. कार उन का ड्राइवर रूपेश चला रहा था. चंद्रेश के घर के सामने पहुंचने पर फोन पर बात करते हुए पिंटू सेंगर कार से उतरा और सड़क किनारे खड़े हो क र बात करने लगा.

इसी बीच 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए 4 बदमाशों ने पिंटू पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर उस के शरीर को छलनी कर दिया और फरार हो गए. पिंटू की मौके पर ही मौत हो गई.

बसपा नेता व भूमाफिया की हत्या से कानपुर शहर में सनसनी फैल गई. तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार पी, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, डीएसपी (कैंट) आर.के. चतुर्वेदी तथा इंसपेक्टर आर.के. गुप्ता मौकाएवारदात पर पहुंचे और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पप्पू स्मार्ट की संपत्ति पर चला बुलडोजर

पुलिस अधिकारियों ने मृतक के भाई धर्मेंद्र सिंह सेंगर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के भाई पिंटू सेंगर की हत्या गैंगस्टर आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट ने शार्प शूटरों से कराई है. हत्या में उस के भाई व गैंग के अन्य सदस्य भी शामिल हैं. हत्या सुनियोजित ढंग से की गई है.

धर्मेंद्र सिंह की तहरीर पर थाना चकेरी इंसपेक्टर आर.के. गुप्ता ने आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट, उस के भाई तौफीक उर्फ कक्कू, आमिर उर्फ बिच्छू, प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता, श्याम सुशील मिश्रा, सऊद अख्तर, तनवीर बादशाह, सलमान बेग, एहसान कुरैशी, मो. फैजल, महफूज, टायसन, वीरेंद्र पाल, गुलरेज, बबलू सुलतानपुरी सहित 15 लोगों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस टीमों ने संभावित ठिकानों पर दबिश डाल कर एक के बाद एक सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जिला जेल भेज दिया. पप्पू स्मार्ट, सऊद अख्तर, एहसान कुरैशी, फैसल जैसे कुख्यात अपराधियों पर गुंडा एक्ट तथा रासुका भी लगाई गई ताकि उन की जमानत न हो सके.

इधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फरमान जारी हुआ कि अपराधियों की संपत्ति जब्त की जाए तथा अवैध निर्माण को जमींदोज कर दिया जाए.

इस फरमान के तहत कानपुर नगर निगम ने हिस्ट्रीशीटर पप्पू स्मार्ट की जांच कराई तो उस का हरजेंद्र नगर चौराहे वाला मकान अवैध तथा बिना नक्शे का बना पाया गया. जाजमऊ पुराना गल्ला मंडी में निर्मित 7 दुकानें भी अवैध पाई गईं.

19 मई, 2022 को डीसीपी (पूर्वी) प्रमोद कुमार की अगुवाई में नगर निगम का दस्ता बुलडोजर ले कर हरजेंद्र नगर चौराहा पहुंचा और गैंगस्टर पप्पू स्मार्ट का मकान ध्वस्त कर दिया. इस के बाद दस्ते ने गल्ला मंडी स्थित उस की सभी दुकानें भी गिरा दीं. उस की तथा उस के भाइयों की अन्य संपत्तियां भी जब्त कर ली गईं.

पप्पू स्मार्ट ने जाजमऊ के राजा ययाति के किले पर कब्जा कर वहां की भूमि टुकड़ों में बेच दी, जिस पर अवैध बस्ती बस गई. इस बस्ती को खाली कराने की प्रक्रिया भी कानपुर विकास प्राधिकरण तथा पुरातत्त्व विभाग ने शुरू कर दी है.

वहां के बाशिंदों को नोटिस जारी किया जा रहा है कि वे अपना मकान खाली कर दें अन्यथा उसे ध्वस्त कर दिया जायेगा. विरोध करने पर सख्त से सख्त काररवाई की जाएगी.

बहरहाल, हत्यारोपियों में से 5 आरोपियों सऊद अख्तर, टायसन, तनवीर बादशाह, गुलरेज तथा बबलू सुलतानपुरी की जमानत हाईकोर्ट से हो गई थी. पप्पू स्मार्ट व उस का भाई आमिर उर्फ बिच्छू जेल में है.

उस के एक भाई तौफीक उर्फ कक्कू की जेल में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. शार्प शूटर सलमान बेग, फैसल, एहसान कुरैशी और साफेज उर्फ हैदर भी जेल में है. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुभाष सिंह ठाकुर उर्फ बाबा : अंडरवर्ल्ड डौन का भी महागुरु – भाग 3

नारियल के पेड़ से होना था जेजे शूटआउट

सुभाष ठाकुर ने इब्राहिम कासकर के दोनों कातिलों को जेजे अस्पताल में पुलिस की कस्टडी में मारने के लिए शूटरों की बड़ी फौज तैयार की थी, जिस में सुभाष सिंह के साथ बृजेश सिंह, कदीर, सलीम कुत्ता, सुनील सावंत, फारुख टकला उर्फ फारुख मोहम्मद यासीन मंसूरी जैसे खतरनाक शूटरों समेत 3 दरजन से भी अधिक बदमाशों को शामिल किया गया था.

मुंबई के सब से चर्चित शूटआउट के बारे में लोगों को इस बात की कम ही जानकारी है कि जब सुभाष ठाकुर ने इस शूटआउट की तैयारी की थी तो जेजे अस्पताल के बाहर लगे एक पेड़ पर बैठ कर टेलिस्कोपिक राइफल से अपने शिकार को निशाना बनाने की योजना थी.

12 सितंबर, 1992 को हुए इस शूटआउट में 2 पुलिस वाले शहीद हो गए थे, जबकि एक घायल हो गया था. पुलिस की तरफ से हुई जवाबी काररवाई में दाऊद के 4 लोग घायल हो गए थे. जब इस केस में कई आरोपी गिरफ्तार हुए तो उन्होंने पूछताछ में बताया कि उन्होंने वारदात से पहले अस्पताल के अंदर और बाहर की कई बार रेकी की थी.

इसी रेकी में उन्हें पता चला था कि गवली गैंग का बिपिन शेरे अस्पताल के पहले माले के 4 नंबर वार्ड में भरती है, जबकि उस के दूसरे साथी शैलेश हलदनकर का तीसरे माले पर 18 नंबर वार्ड में इलाज चल रहा है.

रेकी के दौरान शूटरों ने नोट किया कि पहले माले की खिड़की के बाहर कुछ दूरी पर नारियल का एक बड़ा पेड़ है. उन्होंने तय किया कि इस पेड़ पर चढ़ कर पहले बिपिन शेरे का काम तमाम करेंगे और फिर नीचे से सीधे तीसरे माले पर शैलेश हलदनकर के वार्ड में घुसेंगे. लेकिन पहले माले पर भरती एक मरीज ने उन की सारी रणनीति पर पानी फेर दिया.

उस दिन तेज हवा चल रही थी, इसलिए उस मरीज ने हवा और ठंड से बचने के लिए खिड़की का परदा गिरा दिया, इस वजह से शूटरों को अंदर का कुछ दिखाई नहीं पड़ा. इस कारण शूटर 6 प्रकार के अत्याधुनिक हथियारों से लैस रात 3 बज कर 38 मिनट पर अस्पताल में सीधे तीसरे माले पर घुसे और फिर पूरे 50 सेकें ड तक अस्पताल में अंधाधुंध गोलीबारी होती रही.

शूटआउट में कभी आरोपियों की तरफ से तो कभी पुलिस की तरफ से गोलियां चल रही थीं. शूटरों में सुभाष ठाकुर व बृजेश के बारे में बताया गया कि वे बुलेटप्रूफ जैकेट पहने हुए थे. बुलेटप्रूफ जैकेट की कहानी इसलिए पता चली, क्योंकि तीसरे माले पर वार्ड नंबर 18 में तैनात पुलिस अधिकारी कृष्ण अवतार गुलाब सिंह ठाकुर ने जब एक शूटर को महज एक फीट की दूरी से यानी पौइंट ब्लैंक से गोली मारी तो भी वह घायल नहीं हुआ था.

शूटर सिर्फ बुलेटप्रूफ जैकेट में ही नहीं थे, कुछ के पास साइलेंसर भी थे, ताकि गोलियों की आवाज सुनाई ही न पड़े. बहरहाल, जिस मकसद के लिए ये शूटआउट हुआ था वो काम पूरा हो गया और गवली गिरोह का सब से खतरनाक शूटर शैलेश हलदनकर मारा गया.

सुभाष ठाकुर को हुई सजा

बाद में पुलिस की जांचपड़ताल में जेजे अस्पताल शूटआउट में कुल 24 लोगों को आरोपी बनाया गया. इन में से 9 अभी भी वांटेड हैं. इस केस के एक आरोपी सुनील सावंत उर्फ सावत्या का दुबई में मर्डर हो गया, जबकि सुभाष सिंह ठाकुर को पहले फांसी की सजा हुई, बाद में अपील करने पर उस की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया.

उसी के बाद से सुभाष ठाकुर इस जेल से उस जेल तक सफर करते हुए वाराणसी जेल में पहुंचा, जहां आज भी उस का दरबार ऐसे लगता है मानो वह अपने अड्डे पर दरबार लगाता हो. दिल्ली हो या मुंबई, सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा ठाकुर के काम वैसे ही होते हैं, जैसे पहले होते थे.

उस के गुर्गे मुंबई में आज भी उस के इशारे पर पहले की तरह बिल्डरों से वसूली और लोगों को मारने की सुपारी लेते हैं. लेकिन इस दौरान एक खास बदलाव यह आया कि कभी उस के खास रहे दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन से अब उस का वास्ता नहीं रहा.

वैसे दाऊद इब्राहिम से सुभाष ठाकुर और छोटा राजन ने अपना रिश्ता तभी खत्म कर लिया था, जब जेजे अस्पताल शूटआउट होने के एक साल बाद दाऊद इब्राहिम ने बाबरी मसजिद विध्वंस का बदला लेने के लिए मुंबई में आईएसआई के साथ मिल कर सीरियल बम धमाकों की वारदात को अंजाम दिया था.

इन धमाकों में 257 से अधिक बेगुनाह लोगों की जान गई थी. इस घटना के बाद भारत के लिए दाऊद इब्राहिम दुश्मन नंबर वन और मोस्ट वांटेड अपराधी बन गया था.

सब को मालूम था कि दुनिया के कुख्यात अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम का गुरु सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा है. यही कारण रहा कि मुंबई में हुए सीरियल ब्लास्ट में सुभाष ठाकुर के ऊपर भी आरोपों के छींटे पड़े. सुभाष ठाकुर ने यहीं से दाऊद के साथ हमेशा के लिए अपने रिश्ते खत्म कर लिए. बाबा ठाकुर देश से गद्दारी करने वालों से दोस्ती नहीं निभाना चाहता था.

बाबा ठाकुर का दोस्त से दामन छुड़ाना शायद दाऊद को रास नहीं आया. इसीलिए सुभाष ठाकुर के जेजे अस्पताल शूटआउट में पकड़े जाने के बाद दाऊद गिरोह उस की जान के पीछे पड़ गया.

एक जमाने का शिष्य गुरु का जानी दुश्मन बन गया. यही कारण था कि छोटा राजन की राहें भी दाऊद से जुदा हो गईं और दोनों में दुश्मनी हो गई.

बहरहाल, दाऊद से अलग हो जाने के बाद सुभाष ठाकुर ने दाऊद के दुश्मन बन चुके छोटा राजन का साथ नहीं छोड़ा, जिस कारण दाऊद से उस की दुश्मनी और गहरी हो गई. गिरफ्तारी के बाद अपनी जान को खतरा बताते हुए साल 2017 में सुभाष ठाकुर ने वाराणसी कोर्ट में एक याचिका दायर कर बुलेटप्रूफ जैकेट और सुरक्षा की मांग की थी.

जेल से ही होता है गैंग का संचालन

सुभाष ठाकुर जब तक जेल से बाहर अपराध की दुनिया में सक्रिय रहा, उस के काम करने के तरीके सब को हैरान करते रहे. लेकिन पिछले कई सालों से वह जेल में है, लेकिन इस के बावजूद भी जेल से बाहर

सक्रिय उस के गुर्गे गुनाह की ऐसी वारदातों को अंजाम देते रहते हैं कि सुभाष ठाकुर उर्फ बाबा के दामन पर भी गुनाह के छींटे पड़ जाते हैं.

ऐसे ही एक अपराध का किस्सा बेहद मशहूर हुआ था. मुंबई से सटे पेल्हार के चर्चित शुभम हत्याकांड का किस्सा कुछ ऐसा ही है.

सालों पहले जब सुभाष सिंह ठाकुर वसई-विरार इलाके में रहता था, तब उस ने उस इलाके में अपने बहुत से गुर्गों के अड्डे बनवा दिए. उन्हीं में से एक था आशुतोष मिश्र. जिसे लोकल पंटर बौस के नाम से पुकारते हैं.

इसी लोकल बौस के अंडर में कैलाश वाघ, दीपक मलिक और अनिल सिंह भी काम करते थे. ये सब के सब बौस के साथ डौन सुभाष सिंह ठाकुर से अकसर नैनी जेल में मिलने के लिए आया करते थे, जो उन दिनों वहां बंद था. गुर्गे कई बार न सिर्फ खुद उस से मिले बल्कि वसई-विरार के कई लोगों को भी नैनी जेल में ले जा कर मिलवा चुके थे.

सुभाष सिंह ठाकुर के इन लोगों को वसई-विरार के कुछ बिल्डरों ने दूसरे बिल्डरों की सुपारी दी थी. जिन की सुपारी दी गई थी, उन में से कई के दफ्तरों में ये आरोपी जाते थे, उन्हें सुभाष सिंह ठाकुर से नैनी जेल में मिलने को कहते थे.

कुछ लोग मान जाते थे और सुभाष सिंह के पास जेल पहुंच जाते और चढ़ावा चढ़ा देते या मांग पूरी कर देते. कुछ वहां जाने के लिए न कर देते थे. जो न कर देते थे वे लोग तो सुभाष सिंह ठाकुर के टारगेट पर आ जाते थे.

जो लोग नैनी जेल जा कर भी सुभाष सिंह की हां में हां नहीं मिलाते थे, उन की भी टारगेट लिस्ट बनाई जाती थी और फिर ‘बौस’ यानी आशुतोष को सौंपी जाती थी.

आशुतोष एक बार वसई-विरार इलाके पेल्हार के वनोठा पाड़ा में ठिकाना बने एक घर में कैलाश वाघ, दीपक मलिक और अनिल सिंह के साथ पार्टी कर रहा था. उस दिन ‘बौस’ यानी आशुतोष मिश्र पार्टी के बाद कहीं चला गया. उस पार्टी में शामिल लोगों में कैलाश वाघ का एक परिचित शुभम राम भी था.

जेल में रहते हुए भी लगे मुकदमे

आशुतोष के जाने के बाद इस पार्टी में कैलाश के रिवौल्वर से अचानक गलती से गोली चल पड़ी और शुभम की मौत हो गई. कैलाश ने इस के बाद अपने ‘बौस’ यानी आशुतोष मिश्र को फोन किया. उस ने लाश ठिकाने लगाने को कहा.

कैलाश वाघ ने अपने 2 साथियों दीपक मलिक और अनिल सिंह को बोरा लाने के लिए बाहर भेज दिया. इस बीच कैलाश डर गया कि लाश कहीं सड़ न जाए और इस वजह से उस की दुर्गंध घर के बाहर न आ जाए. इसीलिए उस ने लाश घर के फ्रिज में रख दी.

इधर शुभम अगले दिन सुबह भी वापस घर नहीं आया, तो उस की बहन को घबराहट हुई. उस ने शुभम का फोन न लगने पर कैलाश को फोन लगा दिया. कैलाश ने उस से कहा कि शुभम तो उस के पास कुछ मिनट के लिए आया था. उस के साथ कोई लड़की थी, उस के साथ वह कहीं चला गया.

बहन को कुछ शक हुआ. उस ने और शुभम की मां ने पुलिस में जाने का फैसला किया. पुलिस टीम पहले से ही सुभाष सिंह ठाकुर के लोगों को पकड़ने का ट्रैप लगाए हुए थी. जब मां से पुलिस को शुभम का मोबाइल नंबर मिला और वह बंद मिला तो उस नंबर का आखिरी लोकेशन निकाला गया. वह पेल्हार में वनोठा पाड़ा का ही मिला.

इस के बाद पुलिस टीम ने दबिश दे कर कैलाश, अनिल सिंह व दीपक मलिक को पकड़ लिया. पुलिस ने इस मामले में जब फ्रिज से शुभम की लाश बरामद कर सख्त पूछताछ की तो केस की परत दर परत खुलने के बाद पता चला कि ये सभी नैनी जेल में बंद डौन सुभाष सिंह ठाकुर के पंटर हैं.

हालांकि सुभाष ठाकुर न तो इस अपराध में शामिल था और न ही उसे इस की जानकारी थी, लेकिन फिर भी पुलिस ने इस केस में सुभाष ठाकुर को हत्या की साजिश रचने का आरोपी बना दिया था.

भले ही सुभाष ठाकुर आज जेल की सलाखों के पीछे है, लेकिन यूपी की जेल में बैठ कर उम्रकैद की सजा काट रहे बाबा ठाकुर के गैंग की मुंबई में ऐसी धमक है कि बिल्डर के बीच मांडवाली हो या जमीन जायदाद के विवाद, बाबा ठाकुर के एक फोन से सारे मसले हल हो जाते हैं. दरअसल, ये सुभाष ठाकुर की उस समय की धमक का नतीजा है जब आज के सब से बड़े डौन दाऊद और छोटा राजन जैसे डौन भी उस के साथ रह कर अपराध के गुर सीखते थे.

(कथा पुलिस अभिलेखों में दर्ज सुभाष ठाकुर के अपराधों की जानकारी पर आधारित)

बदन सिंह बद्दो : हौलीवुड एक्टर जैसे कुख्यात गैंगस्टर – भाग 2

पहली हत्या और फिर हत्याओं का सिलसिला

बदन सिंह बद्दो की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक, उस पर पहला आपराधिक मामला साल 1988 में दर्ज हुआ था, जब उस ने एक जमीन विवाद में मेरठ के गुदरी बाजार कोतवाली इलाके में राजकुमार नाम के व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद उस का नाम मेरठ से निकल कर हापुड़, गाजियाबाद और बागपत तक पहुंच गया.

बदमाशों के बीच चर्चा शुरू हो गई कि बदन सिंह नाम का नया गैंगस्टर आ गया है, जिसे ‘न’ सुनना पसंद नहीं है. बद्दो को इस अपराध में पुलिस ने एक राइफल और 15 जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था. वह कुछ समय तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद तो उस की हिम्मत और बढ़ गई.

1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा.

बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया.

पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. यह केस कई साल चलता रहा. इस बीच बद्दो ने जमानत करवा ली और अपने आपराधिक कारनामे बदस्तूर चलाता रहा.

उस के क्राइम का ग्राफ दिनबदिन बढ़ता ही चला गया.

2011 में जहां उस ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य संजय गुर्जर की गोली मार कर हत्या की, वहीं साल 2012 में उस ने केबल नेटवर्क के एक संचालक पवित्र मैत्रेय की हत्या कर दी.

इन हत्याओं के अलावा बदन सिंह के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में किडनैपिंग, जमीन कब्जाने के कई केस दर्ज हुए.

मेरठ जिले के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजेश दीवान से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में भी बद्दो के खिलाफ परतापुर और लालकुर्ती थाने में मुकदमे दर्ज हुए. इस मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है.

सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों का खास उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में उस पर हत्या, वसूली, लूट, डकैती के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सुपारी किंग के नाम से मशहूर हो चुके बदन सिंह बद्दो ने सुपारी ले कर कई हत्याएं करवाईं.

उस से यह सेवा लेने वाले कई सफेदपोश नेता भी हैं, जिन्होंने बद्दो के जरिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करवाया. बदले में बद्दो को मोटी रकम मिली. राजेंद्र पाल हत्या के मामले में 21 साल बाद वर्ष 2017 में बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो की दोस्ती के ख्वाहिशमंद सिर्फ अपराध की दुनिया के लोग ही नहीं थे, बल्कि बड़ेबड़े कारोबारी, सफेदपोश नेता और पुलिस अधिकारी भी उस से अच्छे रिश्ते बना कर रखते थे. बद्दो भी इन तमाम लोगों का खास खयाल रखता था. खासतौर से पुलिस के साथ तो उस का दोस्ताना साफ दिखाई देता था. इस की एक बानगी देखिए.

2012 में बद्दो को पुलिस ने धमकी देने के एक मामले में गिरफ्तार किया. उसे लालकुर्ती थाने ले जाया गया. बद्दो जैसे ही थाने पहुंचा, थानेदार उछल कर अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. थानेदार के मुंह से एकाएक निकला, ‘अरे बद्दो तुम यहां कैसे?’

बद्दो ने उसे देखा और मुसकरा कर सामने पड़ी कुरसी पर फैल कर बैठ गया. उस को थाने ले कर आने वाले एसआई और सिपाही इस बदली सिचुएशन से सकपका गए. बद्दो अभी थाने में बैठा ही था कि एसएसपी समेत कई बड़े कारोबारी थाने पहुंच गए. अब एफआईआर हुई थी तो पुलिस को काररवाई तो दिखानी थी.

अगले दिन जब बद्दो को कचहरी ले जाया गया तो शहर के सारे बड़े कारोबारी उस के पीछे चल रहे थे. साल 2000 के बाद से बदन सिंह बद्दो नेताओं को मोटी फंडिंग करने वाला बन गया था. यही कारण था कि उस के धंधों पर हाथ डालने से पुलिस अधिकारी पीछे हटने लगे.

वकील हत्याकांड में हुई उम्रकैद की सजा

21 साल बाद 31 अक्तूबर, 2017 को वकील राजेंद्र पाल हत्याकांड में गौतमबुद्धनगर के जिला न्यायालय ने 9 गवाहों की गवाही के बाद बदन सिंह बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई. उस दिन बद्दो कोर्ट में मौजूद था. सजा का ऐलान होते ही वह रो पड़ा.

इस से पहले 13 अक्तूबर को बदन सिंह बद्दो ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. उस में लिखा था, ‘जब गिलाशिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली, अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं.’

उस को जानने वाले कहते हैं कि इस मामले में उसे सजा का एहसास हो गया था. कोर्टरूम में सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बद्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो 2 साल जेल में रहा. जेल के अंदर से भी उस के काले कारनामे बदस्तूर चलते रहे, जिन्हें बाहर उस का खास दोस्त सुशील मूंछ संभालता रहा.

28 मार्च, 2019 का दिन था जब बद्दो को फतेहगढ़ जेल से एक पुराने मामले में पेशी के लिए गाजियाबाद कोर्ट ले जाना था. पुलिस का दस्ता बख्तरबंद गाड़ी में बद्दो को ले कर गाजियाबाद पहुंचा और कोर्ट में उस की पेशी हुई. वापसी में बद्दो ने पुलिसकर्मियों को कुछ देर के लिए मेरठ चलने के लिए राजी कर लिया. एवज में बड़ी रकम का लालच दिया गया.

काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया – भाग 2

मोबाइल स्नैचिंग की छोटी सी सजा काट कर जेल से छूटने के बाद उस ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा लिया. कई तरह के अपराध करने लगा, जिस में स्नैचिंग के साथसाथ हिंसा भी शामिल हो गई.

उस की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई, किंतु जल्द ही वह शार्पशूटर बन गया. वह एक गैंग में शामिल हो गया और अपना आदर्श लारेंस बिश्नोई को मान लिया.

पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई.

अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है.

इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

फिर कुछ साल बाद ही हरियाणा के सांपला और फिर गोहाना में हुई हत्याओं में उस का नाम आ गया. उस के बाद उस ने मुड़ कर नहीं देखा. और फिर जठेड़ी का नाम 2012 में हरियाणा पुलिस के मोस्टवांटेड अपराधियों की सूची में तब जुड़ गया, जब उस ने 3 सहयोगियों के साथ मिल कर हरियाणा के झज्जर जिले में दुलिना गांव के पास एक जेल वैन को ट्रक से टक्कर मार दी थी.

यह टक्कर जानबूझ कर मारी गई थी. उस का मकसद उस में सवार कैदियों को मारना था. इस वारदात में उस ने 3 कैदियों की गोली मार कर हत्या कर दी थी और 2 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे.

बताते हैं कि वे कैदी उस के दुश्मन थे. बाद में जठेड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

दरअसल, वर्ष 2012 में काला जठेड़ी को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जेल में उस की मुलाकात गैंगस्टर नरेश सेठी से हो गई. उस ने काला जठेड़ी को राजू बसोडी से मिलवाया.

राजू बसोडी ने उक्त परिवार के छठे भाई को 2018 में मरवा दिया. उस समय काला जठेड़ी जेल में ही था. गैंगस्टर नरेश सेठी के जीजा को उस ने इसलिए मार डाला, क्योंकि उस ने नरेश की बहन को मार दिया था.

जेल में रहने के दौरान ही काला जठेड़ी की दोस्ती लारेंस बिश्नोई से हो गई थी.  वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. लारेंस ने ही उसे पुलिस हिरासत से फरवरी, 2020 में फरार करवाया था. उस के बाद से ही वह लगातार फरार चल रहा था और उस के नाम साल भर में 20 से ज्यादा हत्याओं को अंजाम देने का आरोप लग चुका था.

हत्या समेत अपहरण की वारदातों को तो काला जठेड़ी जेल में रह कर ही अंजाम दे दिया करता था. जेल से बाहर उस ने अपना जबरदस्त गिरोह बना रखा है. उन में 100 से अधिक शूटर हैं. गैंग के लोग दिल्ली समेत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान में सक्रिय हैं. वे एक इशारे पर मरनेमारने को तैयार रहते हैं.

रंगदारी वसूलने में भी माहिर

वे बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम देने में माहिर हैं. रंगदारी का एक मामला मोहाली के कारोबारी का सामने आया, जिसे उस ने जेल में रहते हुए अंजाम दिया. वह पंजाब के लारेंस बिश्नोई के 7 सहयोगियों में एक खास बदमाश है.

बात  2021 की है. पंजाब की मोहाली पुलिस को एक ईंट भट्ठा कारोबारी कुदरतदीप सिंह ने शिकायत लिखवाई कि 8 अक्तूबर को काला जठेड़ी ने उस से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है.

इस शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 387 के तहत मोहाली पुलिस ने काला जठेड़ी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. तब तक काला जठेड़ी एक कुख्यात अपराधी घोषित हो चुका था. उस के खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के करीब 40 मामले दर्ज थे.

काला जठेड़ी गैंग के गुर्गे भी कुछ कम शातिर नहीं हैं. एक गुर्गे अक्षय अंतिल उर्फ अक्षय पलड़ा की हिम्मत देखिए, उस ने जेल में एक सिपाही से सिमकार्ड मांगा. वहां से ही एक कारोबारी को फोन कर उस से 5 करोड़ की रंगदारी मांग ली. दिल्ली पुलिस जब इस मामले में सक्रिय हुई तब काला जठेड़ी गैंग से जुड़े अक्षय अंतिल को गिरफ्तार कर लिया गया.

हैरानी की बात यह थी कि 22 साल का अक्षय दिल्ली की मंडोली जेल में बंद था और वहीं से काला जठेड़ी का भय दिखा कर दिल्ली के करोलबाग के एक कारोबारी से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी.

उस के बाद पुलिस ने मंडोली जेल से फिरौती के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के साथ एक एप्पल आईफोन12 मिनी फोन भी बरामद किया है. इस का खुलासा तब हुआ, जब करोलबाग के एक कारोबारी ने 30 मई, 2021 को शिकायत दे कर बताया कि उसे 5 करोड़ रुपए की रंगदारी के लिए धमकी भरे काल आ रहे हैं. फोन करने वाले ने खुद को लारेंस बिश्नोई गैंग का शार्पशूटर बताया था.

जांच में पता चला कि काल बीएसएनएल सिम वाले फोन का उपयोग कर मंडोली जेल दिल्ली से की गई थी. ब्यौरा लेने के बाद मेरठ के एक दुकानदार और सिम जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आईडी वाले ग्राहक का पता लगाया गया.

उन से गहन पूछताछ में पता चला कि थाना कंकड़खेड़ा, मेरठ, यूपी में तैनात एक कांस्टेबल ने एक सीएनजी मैकेनिक के नाम से यह सिम लिया था. तकनीकी जांच में पता चला कि काल मंडोली जेल से अक्षय पलड़ा द्वारा की गई थी.

इस मामले के संदर्भ में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस को ले कर भी कान खड़े हो गए. उस में बिश्नाई जठेड़ी गैंग की भूमिका होने की आशंका जताई है.

पूछताछ के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ कि पूरी साजिश अक्षय और नरेश सेठी ने मिल कर रची थी. दोनों काला जठेड़ी गैंग से जुड़े हैं.

इस के लिए उन्होंने काला जठेड़ी गैंग के एक अन्य सदस्य राजेश उर्फ रक्का के माध्यम से 2 सिम कार्ड (बीएसएनएल और वोडाफोन) और 2 मोबाइल एप्पल के मिनी और छोटे चाइनीज कीपैड वाले फोन हासिल किए थे.

बीएसएनएल सिमकार्ड को एप्पल आईफोन12 मिनी में और वोडाफोन सिम को चाइनीज फोन में लगाया गया था.

अक्षय हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला है और काला जठेड़ी गिरोह का शातिर शार्प शूटर है. उस पर कत्ल, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं. उस का नाम मूसेवाला हत्याकांड में भी एक संदिग्ध के रूप में सामने आया है.

राजू ठेहठ : अपराध की दुनिया का बादशाह – भाग 2

कांवडि़ए के रूप में किया गिरफ्तार

उस के साथ जाने वाले पुलिसकर्मी भी बुलेटप्रूफ जैकेट व आधुनिक हथियार से लैस होते थे. राजू ठेहठ और उस का साथी मोहन मांडोता को विजयपाल की हत्या के आरोप में एटीएस ने 16 अगस्त, 2013 को झारखंड के देवघर से गिरफ्तार किया था. उस

समय राजू ठेहठ और मोहन मांडोता पीले कपड़े पहन कर कांवड़ ला रहे थे. एटीएस ने पकड़ कर दोनों को रानोली थाना पुलिस को सौंप दिया था.

दोनों आरोपियों ने विजयपाल की हत्या के बाद असम, बंगाल, झारखंड, महाराष्ट्र सहित देश के अलगअलग स्थानों पर 8 साल तक फरारी काटी. आरोपियों की गिरफ्तारी के बाद पूछताछ कर के न्यायिक हिरासत में जेल भेजा गया.

आखिर जेल से ही वे पेशी पर आतेजाते रहे. उन्हें उम्रकैद की सजा होने के बाद पहले सीकर और फिर जयपुर जेल में रखा गया. मगर राजू ठेहठ ने वहीं जेल से गैंग को संचालित कर रखा था.

जमानत के बाद बनाया नया ठिकाना

राजू ठेहठ ने जयपुर जेल में उम्रकैद की सजा काटने के दौरान विवादित जमीनों और सट्टा कारोबार से जुड़े बदमाशों से संपर्क बढ़ाए. सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए वह गैंग के लोगों को आदेश देता था.

वह जयपुर को अपना नया ठिकाना बना रहा है. ऐसी जानकारी पुलिस को लगी. इसी दौरान करीब 8 साल बाद राजू ठेहठ को दिसंबर 2021 में जमानत मिली. विजयपाल की हत्या के बाद गिरफ्तार होने के दिन यानी 16 अगस्त, 2013 से राजू ठेहठ जेल में ही बंद था. उस की जमानत हुई तो वह बड़ी ठसक के साथ बाहर आया.

पुलिस उस पर कड़ी निगाह रखे थे कि वह क्या कुछ नया गुल खिलाता है. जमानत पर बाहर आ कर राजू ठेहठ ने जयपुर के महेशनगर स्थित स्वेज फार्म में बीजेपी नेता (पूर्व विधायक) प्रेम सिंह बाजोर के मकान को ठिकाना बनाया था.

सुरक्षा के लिए घर पर 30 से ज्यादा सीसीटीवी कैमरे लगाए थे. 3 गनमैन भी राजू ठेहठ के साथ रहते थे.

6 फरवरी, 2022 को राजू ठेहठ ने गृह प्रवेश किया था. इस से पहले राजू ठेहठ ने कालोनी के गेट को गली के कोने से हटवा दिया था. यह गेट गैंगस्टर ठेहठ के जमानत पर आने के बाद से ही लौक कर दिया गया था. खास मेंबर की एंट्री के लिए ही यह गेट खोला जाता था. वहां पास के खाली प्लौट में गाडि़यां पार्क कराई जाती थीं.

सुरक्षा की दृष्टि से गेट के अलावा राजू ठेहठ ने कई तरह के और इंतजाम किए थे. मकान के चारों ओर निगाह रखने के लिए 30 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे. इस के जरिए आसपास की हर छोटीबड़ी गतिविधियों पर निगाह रखी जाती थी. बिना नंबर की सफेद फौर्च्युनर में बैठ कर ही राजू ठेहठ आताजाता था.

राजू ने स्वेज फार्म को ठिकाना बनाया है. इस के बारे में जब लोगों को पता चला तो पूरे इलाके में दहशत का माहौल बन गया. हमेशा गनमेन राजू ठेहठ के साथ घूमते रहते थे. इस की वजह से आसपास के लोग उधर से निकलने से कतराते थे. ज्यादातर समय राजू ठेहठ स्वेज फार्म में ही रहता था.

मानसरोवर के मांग्यावास पर बने फार्महाउस पर लोगों से मुलाकात करता था. राजू ठेहठ ने विवादित जमीन और सट्टा कारोबार पर ध्यान देना शुरू किया.

जमीनें कब्जाने पर देने लगा ध्यान

सीकर के बाद जयपुर में अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए जमानत मिलने पर सीकर के बजाय जयपुर में ही रहने लगा. इन लोगों के साथ गैंग बनाने की योजना बनाने लगा. जमानत पर बाहर आते ही राजू ठेहठ गैंग को सक्रिय कर जमीनों पर कब्जे करने लगा था.

मार्च 2022 के पहले हफ्ते में जयपुर के भांकरोटा थाने में मानसर खेड़ी बस्सी निवासी 57 वर्षीय रामचरण शर्मा ने एक मामला दर्ज कराया था. रिपोर्ट में बताया कि वह कालोनाइजर है. साल 2004 में रामचंदपुरा में 9 बीघा 17 बिस्वा जमीन खरीदी थी, जिस की देखभाल बनवारीलाल कर रहा था.

कुछ समय पहले मांगीलाल यादव ने जमीन के कुछ हिस्से पर कब्जा कर लिया. थाने में आरोपी मांगीलाल के खिलाफ मामला दर्ज कराया था.

24 फरवरी को बनवारी के मोबाइल पर के.के. यादव नाम के व्यक्ति ने काल कर राजू ठेहठ का आदमी बता कर मांगीलाल के खिलाफ बयान देने को ले कर धमकाया, जिस के बाद दोबारा फोन आया. फोन करने वाले ने अपना नाम राजू ठेहठ बताया.

उस ने मांगीलाल से सेटलमेंट कर रुपए दिलवाने का दबाव बनाया. पीडि़त की शिकायत पर पुलिस ने मांगीलाल, के.के. यादव, जगदीश ढाका और राजू ठेहठ के खिलाफ मामला दर्ज किया.

इस के बाद राजू ठेहठ सहित 8 साथियों को शांति भंग करने के आरोप में महेशनगर थाना पुलिस ने गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

लग्जरी लाइफ जीने का है शौकीन

स्वेज फार्म स्थित मकान में रहने के दौरान राजू ठेहठ से कई लोग मिलने आते थे. एडिशनल कमिश्नर अजयपाल लांबा का कहना है कि राजू ठेहठ से मिलने आए लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है.

जयपुर (साउथ) एसपी मृदुल कच्छावा के नेतृत्व में गठित टीम घर में लगे सीसीटीवी फुटेजों के आधार पर मिलने आए उन सभी लोगों की पहचान कर रही है, जिस के बाद सभी लोगों की भूमिका और गतिविधियों की जांच करेगी.

गैंगस्टर राजू ठेहठ लग्जरी लाइफ जीने का शौकीन है. वह महंगी कार और बाइक पर काफिले के साथ घूमता था. गैंगस्टर राजू ठेहठ को सीकर बौस के नाम से बुलाया जाने लगा है. उसे जयपुर के स्वेज फार्म में जिस मकान से पकड़ा, उस की कीमत 3 करोड़ रुपए बताई जा रही है.

शशिकला उर्फ बेबी पाटणकर : ड्रग सामाज्य की मल्लिकाशार्ट स्टोरी – भाग 2

सौरव टूर्स एंड ट्रैवल्स के नाम से बेबी पाटणकर का एक चालू खाता था. मुंबई की वर्ली पुलिस ने 30 दिसंबर, 2014 को बेबी की बहू सारिका और उस के भतीजे को 24 ग्राम मेफेड्रोन के साथ गिरफ्तार करने के बाद इस खाते से लगभग 37 लाख रुपए जब्त किए थे. उस मामले में बेबी पाटणकर वांछित थी.

उन दिनों मुंबई क्राइम ब्रांच के एक अधिकारी ने कहा था, ‘यह स्पष्ट है कि बेबी के खातों में पाया गया पैसा ड्रग्स से कमाया गया है, क्योंकि चारपहिया वाहनों को किराए पर देने के धंधे से इतना मुनाफा कमाना संभव नहीं है.’

बेबी पाटणकर मुंबई वर्ली के सिद्धार्थ नगर झुग्गियों में 4 कमरों के घर में बेटों सतीश और गिरीश, बहुओं और पोतेपोतियों के साथ रहती थी. उस के 5 भाई हैं- अर्जुन, किशन, भरत, वसंत और शत्रुघ्न उर्फ बादशाह पीर खान. जबकि भरत और वसंत अब नहीं रहे, किशन कल्याण जेल में एक हत्या के मामले में बंद है जिस के लिए अर्जुन और शत्रुघ्न ने जेल की सजा काट ली है.

मुंबई के तत्कालीन पुलिस उपायुक्त (क्राइम ब्रांच) धनंजय कुलकर्णी ने कहा कि बेबी पाटणकर के धर्मराज  कालोखे के साथ नाजायज रिश्ते  थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों से (उन दिनों) उन के संबंधों में खटास आ गई थी.

मुंबई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी ने सुशांत सिंह राजपूत केस में रिया चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया, उसी का डीआईजी साजी मोहन कभी ड्रग्स का बड़ा कारोबारी था. अभी वह 12 साल से जेल की सजा काट रहा है. और जिस मुंबई पुलिस ने कंगना रनौत के कथित ड्रग कनेक्शन की जांच शुरू की है, उस का ट्रैक रिकौर्ड समझना हो तो हमें बेबी पाटणकर के बारे में जानना होगा.

5 साल पहले जब बेबी पकड़ी गई तो उस केस में पहले ही कई पुलिस वाले पकड़े जा चुके थे. कई अफसरों की नौकरी से छुट्टी हो गई थी. यह देश का शायद पहला मामला था, जब पुलिस स्टेशन में बने लौकर से ड्रग्स बरामद की गई थी. बेबी के दोस्त और कांस्टेबल धर्मराज कालोखे ने इसे अपने लौकर में रखा था.

बेबी यानी शशिकला पाटणकर का बचपन मुंबई के वर्ली, कोलीवाडा में बीता. इस इलाके में मारिया नाम का एक चर्चित गुंडा रहता था. किसी बात पर बेबी के भाइयों का उस से झगड़ा हुआ और उन्होंने मारिया का कत्ल कर दिया. इस केस में चारों भाइयों को जेल हो गई.

भाइयों की गिरफ्तारी के 2 महीने के अंतराल में बेबी की मां केशरबाई और पिता पांडुरंग माझगांवकर की मौत हो गई.

तब बेबी 6 साल की थी. ऐसी हालत में उस ने घरघर जा कर काम करना शुरू कर दिया, जबकि उस के एक और भाई अर्जुन ने किसी गैराज में नौकरी कर ली. मारिया के मर्डर में अर्जुन गिरफ्तार नहीं हुआ था. दोनों की रोजमर्रा का जीवनबसर बस किसी तरह चल रहा था.

15 साल की उम्र में बेबी की शादी वर्ली कोलीवाडा के ही रमेश पाटणकर से हो गई. वह शराबी था. लेकिन 1991 में रमेश को दिल का दौरा पड़ा जिस से उस की मौत हो गई. इस के बाद बेबी ने 5 साल तक मुंबई की मशहूर साधना मिल में काम किया. बाद में वह मिल भी बंद हो गई.

अयूब से सीखा ड्रग्स का धंधा

बेबी फिर से घरों में काम करने लगी. इसी बीच उस के भाइयों की मारिया मर्डर केस में सजा पूरी हो गई और वे जेल से छूट कर वापस आ गए. इस के बाद उस के एक भाई भरत ने अच्छा जीवन जीने का फैसला कर अपने इलाके की ही भारती से शादी कर ली और वर्ली के सिद्धार्थनगर इलाके में रहने लगा. तब बेबी भी उस के बगल वाले घर में रहने लगी. भरत और भारती के घर में भारती का भाई बल्लू भी रहता था, जो ड्रग्स ले कर नशे का आदी हो चुका था. वह पड़ोसी अयूब से ड्रग खरीदता था.

साल 1996 में जब एक दिन बेबी अपने भाई के घर पर थी, तब उस के घर में चोरी हो गई. इस की उस ने वर्ली थाने में एफआईआर दर्ज करवाई. कुछ देर बाद उस के घर वर्ली पुलिस थाने  की टीम पहुंची. इस में कांस्टेबल धर्मराज कालोखे भी था. चोरी के बहाने बेबी के घर हुई मुलाकात में धर्मराज की बेबी से हद से कुछ ज्यादा नजदीकियां बढ़ीं.

बेबी भी अयूब के साथ ड्रग बेचने लगी. तब बल्लू को भी ड्रग्स की अपनी तलब पूरी करने में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं हुई. अयूब को जब मुंबई से बाहर जाना होता था तो वह ड्रग्स बेबी के घर में रख देता था. तब बेबी ही उसे बेचती थी.

अयूब की साल 1997 में ब्लड प्रेशर बढ़ने से मौत हो गई. अयूब का बचा माल बेबी ने बेचा और फिर उस की मां से यह पता किया कि वह ड्रग्स कहां से मंगाता था.

इस के बाद बेबी अपनी भाभी भारती और उस के भाई बल्लू के साथ वर्ली में ड्रग्स का धंधा करने लगी. वर्ली पुलिस स्टेशन के नजदीक एंटी नार्कोटिक्स सेल की यूनिट भी है. जब वहां के कुछ सिपाहियों को बेबी के कारोबार का पता चला तो उन्होंने बेबी से अपना हफ्ता तय कर लिया.

पुलिस वालों और बेबी के रिश्तों का यह मामला कई सालों तक छिपा रहा. पर 9 मार्च, 2015 को महाराष्ट्र के सातारा पुलिस ने खंडाला में मुंबई के मरीन लाइंस के पुलिसकर्मी धर्मराज कालोखे के ठिकाने पर छापा मारा तो वहां से 110 किलोग्राम ड्रग मिली.

अगले दिन धर्मराज के मरीन लाइंस पुलिस स्टेशन में उस के लौकर से भी 12 किलोग्राम ड्रग्स बरामद हुई तब धर्मराज कालोखे धरा गया, लेकिन पुलिस स्टेशन के अंदर ड्रग्स मिलने से पूरे देश में हंगामा मच गया.

उस तहकीकात में धर्मराज ने बेबी पाटणकर का नाम लिया, लेकिन कई दिन तक बेबी किसी को मिली नहीं. हां, बेबी की फोन मीडिया में आने पर सब उसे पहचान जरूर गए थे.