पतंगे से हारी रोशनी: शादीशुदा प्रेमी का धोखा

स्वप्नरोहिदास के लिए महानगर मुंबई एक अच्छा शहर था. खुले विचारों आधुनिकता और ग्लैमर के आवरण में लिपटा शहर. मुंबई आ कर उसे आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाने वाली एक कंपनी में काम मिल गया था. वहां काम करतेकरते वह ज्वैलरी बनाने का अच्छा कारीगर बन गया था.

इस कंपनी की डिजाइन की गई ज्वैलरी फिल्म और सीरियल बनाने वाली प्रोडक्शन कंपनियों के लिए भी सप्लाई की जाती थी. स्वप्न को अच्छी सैलरी मिल रही थी, जिस से वह खुश रहता था.

स्वप्न के मातापिता पश्चिम बंगाल स्थित गांव में रहते थे. स्वप्न हर महीने अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा उन्हें भेज देता था. बाकी बचे पैसे वह अपने ऊपर खर्च करता था. वह पैसे खानेपीने और अपनी मौजमस्ती पर खर्च करता था.

स्वप्न दिन भर काम करने के बाद शाम को जब अपने आवास पर आता तो फ्रैश हो कर अमूमन घूमने के लिए निकल जाता था उस की मंजिल ज्यादातर बीयर बार होती थी. देर रात तक बीयर बार में बैठना जैसे उस की दिनचर्या बन चुकी थी. उस का पसंदीदा बार संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट था. यह बीयर बार उसे इसलिए पसंद था क्योंकि वहां कई महिला वेटर बंगाल की थीं.

एक रात स्वप्न रोहिदास बीयर बार में बैठा बीयर पी रहा था, तभी अचानक उस की निगाह एक खूबसूरत और कमसिन बाला पर गई, जो बंगाली थी और बार में बैठे कस्टमर को मुसकरा कर बीयर सर्व कर रही थी. उस के कपड़े आधुनिक और ग्लैमर से भरपूर थे.

वह स्वप्न की आंखों के रास्ते दिल में उतर गई. जब तक वह बीयर बार में रहा, उस की निगाहें उस बाला का ही पीछा करती रहीं. जब वह बार से लौटा तो घर में उसे चैन नहीं मिला. उस रात चाह कर भी वह सो नहीं सका. रात भर उस की आंखों के सामने वही बार बाला घूमती रही. वह यह भी भूल गया था कि उस की शादी हो चुकी है और वह एक बेटी का पिता है.

अगले दिन वह थोड़ा जल्दी संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट पहुंच गया और उसी टेबल पर जा कर बैठा, जिसे वह लड़की अटेंड करती थी. स्वप्न के बैठते ही वह लड़की उस के पास आई और अपनी चिरपरिचित मुसकान के साथ उस के सामने मेन्यू कार्ड रख कर और्डर देने का आग्रह किया.

उस की मीठी आवाज सुन कर एक मिनट के लिए स्वप्न को कुछ नहीं सूझा फिर अपने आप को संभाल कर उस ने अपनी मनपसंद व्हिस्की के साथसाथ खाने का भी और्डर दे दिया. खानेपीने के बाद स्वप्न ने उस लड़की को अच्छी टिप दी और घर लौट आया.

घर लौट कर वह बिस्तर पर लेटा तो जरूर, लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. नशे की हालत में भी उस बाला का मुसकराता हुआ चेहरा सामने आ जाता था. वह उस की नजरों से एक मिनट के लिए भी ओझल नहीं हो पा रही थी. रात तो रात उसे दिन में भी चैन नहीं आया.

काम के दौरान बारबार उस की छवि उस के सामने आ जाती थी. स्वप्न रोजाना बार में जा कर उसी टेबल पर जा कर बैठता और मौका मिलने पर उस बारबाला से बात करने की कोशिश करता.

उस बाला से परिचय हुआ तो पता चला उस का नाम रोजीना शेख उर्फ रोशनी है और वह उसी प्रांत और जिले की रहने वाली है, जहां का स्वप्न रोहिदास था.

जानकारी के बाद तो उस का दिल बल्लियों उछलने लगा. वह अपने आप को रोक नहीं पाया, उस ने भी रोजीना शेख को अपना परिचय दे दिया. इतना ही नहीं उस ने रोशनी के सामने दोस्ती का प्रस्ताव भी रख दिया.

स्वप्न रोहिदास रोजीना शेख की नजर में अच्छा युवक था. हैंडसम होने के साथ वह अच्छा पैसा भी कमाता था, इसलिए उस के साथ दोस्ती करने में उसे कोई संकोच नहीं हुआ. उस ने मुसकराते हुए स्वप्न का दोस्ती का आमंत्रण स्वीकार कर लिया. रोजीना शेख उर्फ रोशनी ने सोचा भी नहीं था कि अचानक उस की जिंदगी में कोई युवक आएगा और उस के दिलोदिमाग पर छा जाएगा.

उस दिन के बाद रोजीना और स्वप्न अकसर रोज मिलनेजुलने लगे. पहले तो उन का मिलने का ठिकाना संदेश बीयर बार ही था. दोनों रेस्टोरेंट चालू होने के पहले ही पहुंच जाते थे और मौका मिलने पर वहीं बातें हो जाती थीं. जब रोजीना की ड्यूटी खत्म हो जाती तो स्वप्न उसे उस के घर छोड़ कर आता था. जिस दिन रोजीना की छुट्टी होती, उस दिन स्वप्न उस के साथ ही रहता था.

वह उसे रेस्टोरेंट, मौल ले जा कर उस पर खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. इस के अलावा उसे महंगे उपहार देता. यह सिलसिला कई महीनों तक चलता रहा.

रोजाना  ने देखा एक सपना

रोजीना उसे अपना एक सच्चा दोस्त मानती थी, इसलिए वह दिन प्रतिदिन उस के करीब आती गई. वह स्वप्न के इतना करीब आ गई कि उस के साथ अपनी गृहस्थी बसाने के सपने देखने लगी.

एक दिन अपने दिल की यह बात उस ने स्वप्न को बताई तो उस का अस्तित्व डगमगा गया, क्योंकि वह पहले से ही शादीशुदा था. वह रोजीना के साथ टाइम पास और मौजमस्ती के लिए जाता था. इस के अलावा उस का और कोई मकसद नहीं था. इसलिए वह रोजीना की बात को बड़ी सफाई से टाल गया, जिस से रोजीना के सारे सपने कांच की तरह टूट कर बिखर गए. उसे गहरा झटका तब लगा, जब उसे पता चला कि उस का प्रेमी शादीशुदा ही नहीं, बल्कि एक बच्ची का पिता भी है.

इस के बाद रोजीना ने स्वप्न से दूरियां बनानी शुरू कर दीं. अब वह बार में स्वप्न का उतना ही सहयोग करती थी, जितना वह अपने अन्य ग्राहकों का करती थी. चूंकि स्वप्न ने रोजीना के साथ खूब मौजमस्ती की थी, इसलिए उस ने तय कर लिया कि वह स्वप्न से इस का हरजाना वसूल करेगी. वह स्वप्न रोहिदास को धमकी देने लगी कि वह उस की पत्नी और परिवार वालों को अपने प्रेम और अवैध संबंधों की बात बता देगी.

32 वर्षीय स्वप्न रोहिदास पश्चिम बंगाल के जिला हावड़ा के तालुका शहापुर आमरदाहा गांव के रहने वाले परेश रोहिदास का बेटा था. उन का पूरा परिवार खेती पर निर्भर था. लेकिन महत्त्वाकांक्षी स्वप्न रोहिदास को खेती का काम पसंद नहीं था. वह ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था लेकिन आकांक्षाएं ऊंची थीं. वह शहर में रह कर नौकरी करना चाहता था. उस के गांव के कई दोस्त मुंबई में रहते थे. उन से बात कर के वह मुंबई आ गया था.

दोस्तों ने उस की मदद की और आर्टिफिशियल ज्वैलरी बनाने वाली एक कंपनी में उस की नौकरी लगवा दी. वहां काम करतेकरते वह ज्वैलरी डिजाइन का काम सीख कर कुशल कारीगर बन गया. उसे वहां से अच्छी तनख्वाह मिलने लगी. रहने के लिए उस ने दहिसर रावलपाडा में किराए का कमरा ले लिया था.

स्वप्न जब ठीकठाक कमाने लगा तो घर वालों ने अपने इलाके की एक लड़की से उस की शादी कर दी. खूबसूरत पत्नी को पा कर स्वप्न खुश था. शादी के महीना भर बाद वह मुंबई चला गया क्योंकि उसे नौकरी भी करनी थी. लेकिन वह महीने 2 महीने में अपने घर आता रहता था. इसी तरह कई साल बीत गए और वह एक बेटी का पिता भी बन गया.

अकेले रहने का फायदा उठाया स्वप्न ने

स्वप्न मुंबई में अकेला रहता था. दिन में तो वह काम पर चला जाता था, लेकिन उस के लिए रात मुश्किल हो जाती थी. वह परिवार, पत्नी और बच्ची से दूर था. रंगीन तबीयत का होने की वजह से उसे अकसर पत्नी की याद सताती थी.

जवान खून था, ऊपर से कमाई भी अच्छी थी उस ने जल्द ही मन बहलाने का रास्ता खोज लिया. काम से छूटने के बाद वह घर आता और फ्रैश हो कर मन बहलाने के लिए बीयर बारों के चक्कर लगाता. जल्द ही वह दिन भी आ गया, जब बीयर बार स्वप्न को मौजमस्ती के लिए अच्छी जगह लगने लगे. वहां जा कर वह 2-4 पैग ले कर खाना खाता और घर आ कर के सो जाता. उसी दौरान उस की दोस्ती रोजीना शेख उर्फ रोशनी से हो गई जो बाद में प्यार में बदल गई.

मुसलिम समुदाय की खूबसूरत रोजीना शेख उर्फ रोशनी भी पश्चिम बंगाल के हुगली जिले की रहने वाली थी. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां के अलावा उस की एक छोटी बहन थी. पिता की मौत के बाद घर की सारी जिम्मेदारियां उस की मां के कंधो पर आ गई थीं. मां ने मेहनतमजदूरी कर जैसेतैसे दोनों बेटियों को पाला.

बालिग होने के बाद रोजीना अपनी एक सहेली रुबिका के साथ मुंबई आ गई थी. जिस सहेली के साथ वह आई थी, वह मुंबई के दहिसर में रह कर बीयर बारों में काम करती थी.

पहले तो रोजीना शेख को बीयर बार के कामों में रुचि नहीं थी,लेकिन घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए वह बीयर बारों में अपना नाम बदल कर नौकरी करने लगी. इधरउधर कई बारों में काम करने के बाद वह दहिसर के संदेश बीयर बार ऐंड रेस्टोरेंट में आ गई, जहां उस की अच्छी कमाई हो जाती थी. अपनी कमाई का आधा हिस्सा वह अपनी मां के पास भेज देती थी. दहिसर की जनकल्याण सोसायटी में उस ने 7 हजार रुपए महीना किराए पर एक कमरा ले लिया था.

उस दिन रविवार था, स्वप्न रोहिदास की छुट्टी का दिन. उस ने रोजीना को फोन किया लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की. कई बार फोन करने के बाद जब रोजीना ने फोन उठाया तो स्वप्न ने उसे तय जगह पर मिलने के लिए बुलाया, पर वह नहीं आई. इस पर स्वप्न को गुस्सा आ गया.

हार गई रोशनी

शाम को स्वप्न ने दहिसर की एक शराब की दुकान से बीयर की एक बोतल खरीदी और रोजीना शेख उर्फ रोशनी के घर पहुंच गया. उस ने वहीं बैठ कर बीयर पी. फिर उस ने रोजीना से उस के बुलाने पर न आने का कारण पूछा तो रोजीना ने उसे दोटूक जवाब दिया, ‘‘मेरा मूड ठीक नहीं था. गांव से मां का फोन आया था. मुझे पैसों की सख्त जरूरत है. बताओ, क्या तुम मेरी मांग पूरी कर सकते हो?’’

‘‘तुम ने मुझे क्या बैंक समझ रखा है, जब देखो तुम पैसों की मांग करती रहती हो?’’ स्वप्न के दिमाग पर बीयर का सुरूर चढ़ चुका था.

उस की यह बात सुन कर रोजीना ने भी उस की ही भाषा में जवाब दिया, ‘‘तो तुम ने क्या मुझे अपनी बीवी समझ रखा है कि मैं तुम्हारी हर बात मानूं?’’

इन बातों को ले कर बात इतनी बढ़ी कि स्वप्न अपना विवेक खो बैठा और पास रखी तौलिया उठा रोजीना के गले में डाल कर कस दी. थोड़ी देर में दम घुटने से रोजीना की मृत्यु हो गई.

रोजीना उर्फ रोशनी की हत्या के बाद जब उस का गुस्सा शांत हुआ तो उस के हाथपैर फूल गए. हाथ में हथकड़ी और कानून के डर से वह बुरी तरह घबरा गया.

पुलिस से बचने और कानून को गुमराह करने के लिए उस ने घटना का रुख चोरी की तरफ मोड़ने की कोशिश की. उस ने कमरे की अलमारी खोल कर सारा सामान इधरउधर डाल दिया और उस में रखे कीमती गहने, पौने 2 लाख नगदी के अलावा कमरे में रखे 2 मोबाइल फोन अपने पास रख लिए और वहां से भाग कर अपने कमरे पर जा पहुंचा. फिर वहां से वह पश्चिम बंगाल स्थित अपने गांव चला गया.

29 दिसंबर, 2019 को रोजीना ने अपना रूम नहीं खोला तो उस की नौकरानी को दाल में कुछ काला नजर आया. वह 2 बार रोशनी के घर पर आ कर लौट गई थी. तीसरी बार जब वह आई, तब भी रोजीना का फ्लैट बंद पा कर उस ने यह बात पड़ोसियों और फ्लैट मालिक सुनील सखाराम को बताई.

फ्लैट मालिक सुनील सखाराम ने डुप्लीकेट चाबी से जब घर का दरवाजा खोला तो अंदर का दृश्य देख हैरान रह गया. पड़ोसियों के भी होश फाख्ता हो गए. मामला गंभीर था, अत: उन्होंने इस की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम के साथसाथ थाने को भी दे दी.

वह इलाका दहिसर पुलिस थाने के अंतर्गत आता था. थाने की ड्यूटी पर तैनात एसआई सिद्धार्थ दुधमल ने तुरंत मामले की जानकारी इंसपेक्टर मराठे, असिस्टेंट इंसपेक्टर जगदाले को दे दी और घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. घटनास्थल पर पहुंच कर पुलिस ने कमरे का सरसरी निगाहों से निरीक्षण किया.

एसआई सिद्धार्थ ने पूछताछ की प्रक्रिया अभी शुरू ही की थी कि मामले की जानकारी पा कर थानाप्रभारी एम.एम. मुजावर, इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े (क्राइम) घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के साथसाथ मुंबई के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त दिलीप सावंत, डीसीपी डा. डी.एस. स्वामी और एसीपी सुहास पाटिल के अलावा फोरैंसिक टीम भी मौकाएवारदात पर पहुंच गई.

अधिकारियों ने घटनास्थल का फौरी तौर पर निरीक्षण कर थानाप्रभारी एम.एम. मुजावर को आवश्यक दिशानिर्देश दिए. घटनास्थल की सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद मामले की तफ्तीश की जिम्मेदारी इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े को सौंपी गई.

अपने वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े ने अपनी जांच टीम का गठन किया, जिस में असिस्टेंट इंसपेक्टर डा. चंद्रकांत धार्गे, ओम टोटावर, विराज जगदाले, एसआई सिद्धार्थ दुधमल, कांस्टेबल परब, जगताप, नाइक, तटकरे आदि को शामिल किया गया. टीम ने सरगरमी से मामले की जांच शुरू कर दी.

पुलिस ने रोजीना उर्फ रोशनी के मोबाइल  फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. साथ ही कमरे में मिली बीयर की बोतल के बैच नंबर के आधार पर उस शराब की दुकान का पता लगा लिया, जहां से वह बोतल खरीदी गई थी. इस के बाद घटनास्थल और शराब की दुकान के पास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज से पता चल गया कि रोशनी की हत्या स्वप्न रोहिदास ने की थी.

फोन कंपनी से उस के पश्चिम बंगाल स्थित घर का पता लग गया था. लिहाजा पुलिस टीम फ्लाइट से उस के गांव पहुंच गई. वह अपने घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस मुंबई लौट आई.

दहिसर पुलिस की गिरफ्त में आए स्वप्न रोहिदास ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना गुनाह स्वीकार कर लिया. जांच अधिकारी इंसपेक्टर सुरेश रोकड़े ने उस से विस्तृत पूछताछ के बाद उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

मजबूर औरत की यारी : प्रांशु के कत्ल का राज

रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र में एक गांव है गुरदीन का पुरवा मजरा रसूलपुर. गंगाघाट के पास खेल रहे कुछ बच्चों ने वहां एक युवक की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने लाश देखी तो शोर मचा कर आसपास के लोगों को बुला लिया. कुछ ही देर में यह खबर दूरदूर तक फैल गई. खबर सुन कर रसूलपुर गांव के प्रधान भी वहां पहुंच गए. उन्होंने फोन कर के घटना की सूचना डलमऊ थाने को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर श्रीराम पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक की उम्र लगभग 20-25 साल थी. उस के गले पर रस्सीनुमा किसी चीज से कसे जाने के निशान थे, शरीर पर भी चोट के निशान थे.

घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से लगभग 2 किलोमीटर दूर हीरो कंपनी की एक बाइक लावारिस खड़ी मिली. संभावना थी कि वह मृतक की ही रही होगी.

इसी बीच सीओ (डलमऊ) आर.पी. शाही भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया, वहां मौजूद लोगों से लाश की शिनाख्त कराई, लेकिन कोई भी लाश को नहीं पहचान सका. पुलिस अभी अपना काम कर ही रही थी कि एक व्यक्ति कुछ लोगों के साथ वहां पहुंचा. उस ने लाश देख कर उस की शिनाख्त अपने 20 वर्षीय बेटे प्रांशु तिवारी के रूप में की. यह बात 25 फरवरी, 2020 की है.

शिनाख्त करने वाले मदनलाल तिवारी थे और वह डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहते थे. मदनलाल तिवारी ने बताया कि प्रांशु एक दिन पहले 24 फरवरी की शाम 7 बजे घर से निकला था.

उसे उस के दोस्त पिंटू जोशी और पप्पू जोशी बुला कर ले गए थे. ये दोनों डलमऊ में टिकैतगंज में रहते हैं. संभवत: उन्होंने ही प्रांशु को मारा होगा. मदनलाल तिवारी से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

थाने आ कर इंसपेक्टर श्रीराम ने मदनलाल की लिखित तहरीर पर पिंटू जोशी व पप्पू जोशी के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

इंसपेक्टर श्रीराम ने केस की जांच शुरू की. सब से पहले उन्होंने गांव के लोगों से पूछताछ की. पता चला मृतक प्रांशु तिवारी के सुरजीपुर गांव की राधा नाम की महिला से नाजायज संबंध थे. जब इस बात की और गहराई से छानबीन की गई तो राधा के प्रांशु के अलावा प्रांशु के पड़ोसी अशोक निषाद उर्फ कल्लन से भी नाजायज संबंध होने की बात सामने आई.

इस बात को ले कर दोनों में विवाद भी हो चुका था. यह जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर श्रीराम ने सोचा कि कहीं प्रांशु की हत्या इसी महिला से संबंधों के चलते तो नहीं हुई. पुलिस को यह भी पता चला कि पिंटू जोशी और पप्पू जोशी आपराधिक प्रवृत्ति के हैं.

इंसपेक्टर श्रीराम का शक तब और मजबूत हो गया, जब कल्लन अपने घर से फरार मिला. पिंटू और पप्पू भी फरार थे. इंसपेक्टर श्रीराम ने उन का पता लगाने के लिए अपने विश्वस्त मुखबिरों को लगा दिया.

घटना से 2 दिन बाद यानी 27 फरवरी को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर आरोपी पिंटू जोशी, पप्पू जोशी और अशोक निषाद उर्फ कल्लन को सुरजीपुर शराब ठेके के पीछे मैदान से गिरफ्तार कर लिया.

कोतवाली में जब उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो तीनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया और अपने चौथे साथी डलमऊ के भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार का नाम भी बता दिया.

राधा उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के डलमऊ थानाक्षेत्र के गांव सुरजीपुर में रहती थी. 35 वर्षीय राधा 2 बच्चों की मां थी. उस के पति का नाम बबलू था जो कहीं बाहर रह कर नौकरी करता था. अपनी नौकरी से वह इतने पैसे नहीं जुटा पाता कि उस के बीवीबच्चों का खर्च चल सके. बड़ी मुश्किल से परिवार की दोजून की रोटी मिल पाती थी.

एक तो पति घर से दूर और उस पर आर्थिक अभाव. दोनों ही बातों ने राधा को परेशान कर रखा था. शरीर की आग तो बुझना दूर पेट की आग को शांत करने तक के लाले पड़े थे. ऐसे में राधा का तनमन बहकने लगा. बड़ी उम्मीद ले कर वह अपनी जरूरत के पुरुष को तलाशने लगी.

अशोक निषाद उर्फ कल्लन डलमऊ कस्बे के शेरंदाजपुर मोहल्ले में रहता था. कल्लन के पिता राजेंद्र शराब के एक ठेके पर सेल्समैन थे. कल्लन के 2 भाई और एक बहन थी. कल्लन सब से बड़ा था.

22 वर्षीय कल्लन भी सुरजीपुर के शराब ठेके पर सेल्समैन की नौकरी करता था. डलमऊ से सुरजीपुर की दूरी महज 2 किलोमीटर थी. काम पर वह अपनी बाइक से आताजाता था.

कल्लन ने राधा के हुस्न को देखा तो उसे पाने की चाहत पाल बैठा. उस के पति के काफी समय से दूर होने और आर्थिक अभाव के बारे में कल्लन जानता था. राधा से नजदीकी बढ़ाने के लिए वह उस से हमदर्दी दिखाने लगा.

राधा कल्लन के बारे में सब जानती थी. वह उस से 12 साल छोटा था. राधा को समझते देर नहीं लगी कि कल्लन उस से क्यों हमदर्दी दिखा रहा है. यह बात समझते ही उस के चेहरे पर मुसकान और आंखों में चमक आ गई. फिर उस का झुकाव भी कल्लन की ओर हो गया.

एक दिन कल्लन राधा के घर के सामने से जा रहा था तो राधा घर की चौखट पर बैठी थी. उस समय दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था. अच्छा मौका देख कर कल्लन बोला, ‘‘राधा, मुझे तुम्हारे बारे में सब पता है. तुम्हारी कहानी सुन कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी जिंदगी में सिर्फ दुख ही दुख है.’’

‘‘कल्लन, मैं ने तुम्हारे बारे में जो सुन रखा था, तुम उस से भी कहीं ज्यादा अच्छे हो, जो दूसरों का दुख बांटने की हिम्मत रखते हो. वरना इस जालिम दुनिया में कोई किसी के बारे में कहां सोचता है.’’

‘‘राधा, दुनिया में इंसानियत अभी भी जिंदा है. खैर, तुम चिंता मत करो. आज से मैं तुम्हारा हर तरह से खयाल रखूंगा. चाहो तो बदले में तुम मेरा कुछ काम कर दिया करना.’’

‘‘ठीक है, तुम मेरे बारे में इतना सोच रहे हो तो मैं भी तुम्हारा काम कर दिया करूंगी.’’

यह सुन कर कल्लन ने राधा के कंधे पर सांत्वना भरा हाथ रखा तो राधा ने अपनी गरदन टेढ़ी कर के उस के हाथ पर अपना गाल रख कर आशा भरी नजरों से उस की तरफ देखा. कल्लन ने मौके का फायदा उठाने के लिए राधा के हाथों पर 5 सौ रुपए रखते हुए कहा, ‘‘ये रख लो, तुम्हें इन की जरूरत है.’’

राधा तो वैसे भी अभावों में जिंदगी गुजार रही थी, इसलिए उस ने कल्लन द्वारा दिए गए पैसे अपनी मट्ठी में दबा लिए. इस से कल्लन की हिम्मत और बढ़ गई. वह हर रोज राधा से मिलने उस के घर जाने लगा.

वह राधा के बच्चों के लिए खानेपीने की चीजें ले कर आता था. कभीकभी वह राधा को पैसे भी देता था. इस तरह वह राधा का खैरख्वाह बन गया.

राधा हालात के थपेड़ों में डोलती ऐसी नाव थी, जिस का मांझी उस के पास नहीं था. इसलिए वह कल्लन के अहसान अपने ऊपर लादती चली गई.

स्वार्थ की दीवार पर अहसानों की ईंट पर ईंट चढ़ती जा रही थी, जिस के चलते राधा भी कल्लन का पूरा ख्याल रखने लगी थी. वह उसे खाना खाए बिना नहीं जाने देती थी. लेकिन कल्लन के मन में तो राधा की देह की चाहत थी, जिसे वह हर हाल में पाना चाहता था.

एक दिन उस ने कहा, ‘‘राधा, तुम खुद को अकेली मत समझना. मैं हर तरह से तुम्हारा बना रहूंगा.’’

यह सुन कर राधा उस की तरफ चाहत भरी नजरों से देखने लगी. कल्लन समझ गया कि वह पूरी तरह शीशे में उतर चुकी है, इसलिए उस के करीब आ गया और उस के हाथ को अपनी दोनों हथेलियों के बीच दबा कर बोला, ‘‘सच कह रहा हूं राधा, तुम्हारी हर जरूरत पूरी करना अब मेरी जिम्मेदारी है.’’

हाथ थामने से राधा के शरीर में भी हलचल पैदा हो गई थी. कल्लन के हाथों की हरकत बढ़ने लगी थी. इस का नतीजा यह निकला कि दोनों बेकाबू हो गए और अपनी हसरत पूरी कर के ही माने.

कल्लन ने राधा की सोई हुई भावनाओं को जगाया तो उस ने देह सुख की खातिर सारी नैतिकताओं को ठेंगा दिखा दिया. कल्लन और राधा के अवैध संबंध बने तो फिर बारबार दोहराए जाने लगे.

राधा को कल्लन के पैसों का लालच तो था ही, अब वह उस से खुल कर पैसे मांगने लगी. कल्लन चूंकि उस के जिस्म का लुत्फ उठा चुका था, इसलिए पैसे देने में कोई गुरेज नहीं करता था. इस तरह एक तरफ राधा की दैहिक जरूरतें पूरी होने लगी थीं तो दूसरी तरफ कल्लन उस की आर्थिक जरूरतें पूरी करने लगा था. काफी अरसे बाद राधा की जिंदगी में फिर से रंग भरने लगे थे.

डलमऊ के शेरंदाजपुर मोहल्ले में कल्लन के पड़ोस में मदनलाल तिवारी का परिवार रहता था. मदनलाल पूर्व सैनिक थे. वह सन 2003 में सेना से रिटायर हुए थे. परिवार में उन की पत्नी अनीता के अलावा एक बेटी व 3 बेटे प्रांशु, अजीत और बऊआ थे.

20 वर्षीय प्रांशु बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रहा था. उस की और कल्लन की अच्छी दोस्ती थी. दोनों साथ खातेपीते थे.

एक दिन शराब के नशे में कल्लन ने प्रांशु को अपने और राधा के संबंधों के बारे में बता दिया. यह सुन कर प्रांशु चौंका. यह उस के लिए चिराग तले अंधेरा वाली बात थी.

कुंवारा प्रांशु किसी भी औरत के सान्निध्य के लिए तरस रहा था. राधा की हकीकत पता चली तो उसे अपनी मुराद पूरी होती दिखाई दी. राधा अपने शबाब का दरिया बहा रही थी और उसे खबर तक नहीं थी. वह भी राधा से बखूबी परिचित था.

प्रांशु के दिमाग में तरहतरह के विचार आने लगे. वह सोचने लगा कि जब कल्लन राधा के साथ रातें रंगीन कर सकता है तो वह क्यों नहीं.

अगले दिन प्रांशु कल्लन से मिला तो बोला, ‘‘तुम राधा से मेरे भी संबंध बनवाओ, नहीं तो मैं तुम्हारे संबंधों की बात पूरे गांव में फैला दूंगा.’’

कल्लन का राधा से कोई दिली लगाव तो था नहीं, वह तो उस की वासना की पूर्ति का साधन मात्र थी. उसे दोस्त के साथ बांटने में कोई परेशानी नहीं थी. वैसे भी प्रांशु का मुंह बंद करना जरूरी था.

इसलिए उस ने राधा को प्रांशु की शर्त बताते हुए समझाया, ‘‘देखो राधा, अगर हम ने उस की बात नहीं मानी तो वह हमारी पोल खोल देगा. पूरे गांव में हमारी बदनामी हो जाएगी. इसलिए तुम्हें उसे खुश करना ही पड़ेगा.’’

राधा के लिए जैसा कल्लन था, वैसा ही प्रांशु भी था. उस ने हां कर दी. इस बातचीत के बाद कल्लन ने यह बात प्रांशु को बता दी. फलस्वरूप वह उसी दिन शाम को राधा के घर पहुंच गया. दोनों पहले से ही बखूबी परिचित थे, दोनों में बातें भी होती थीं.

सारी बातें चूंकि पहले से तय थीं, इसलिए दोनों के बीच अब तक बनी संकोच की दीवार गिरते देर नहीं लगी. प्रांशु से शारीरिक संबंध बने तो राधा को एक अलग तरह की सुखद अनुभूति हुई. प्रांशु कल्लन से अधिक सुंदर, स्वस्थ था और बिस्तर पर खेले जाने वाले खेल का भी जबरदस्त खिलाड़ी था.

जोश में भी वह होश व संयम से खेल को देर तक खेलता था. जबकि कल्लन इस के ठीक विपरीत था.

राधा की ख्वाहिशों का उसे बिलकुल भी ख्याल नहीं रहता था. ऐसे में राधा प्रांशु के ज्यादा नजदीक आने लगी और कल्लन से दूरी बनाने लगी. प्रांशु के संपर्क में आने के बाद वह कल्लन को और उस के अहसानों को भूलने लगी.

कल्लन को भी समझते देर नहीं लगी कि राधा प्रांशु की वजह से उस से दूरी बना रही है. यह बात उसे अखरने लगी. राधा को फंसाने की सारी मेहनत उस ने की और प्रांशु बिना किसी मेहनत के फल खा रहा था. इस बात को ले कर प्रांशु और कल्लन में मनमुटाव रहने लगा.

इसी बीच कल्लन का रोड एक्सीडेंट हो गया और उस के एक पैर में फ्रैक्चर हो गया. जब उस का प्रांशु से विवाद हुआ तो प्रांशु ने कल्लन से कहा कि वह उस की दूसरी टांग भी तुड़वा देगा. कल्लन को उस की यह धमकी चुभ गई. इस के बाद उस ने कांटा बने प्रांशु को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

कल्लन की दोस्ती डलमऊ के ही मोहल्ला टिकैतगंज में रहने वाले शातिर अपराधी पिंटू जोशी और पप्पू उर्फ गिरीश जोशी से थी. ये दोनों प्रांशु के भी दोस्त थे.

कल्लन ने पिंटू जोशी से प्रांशु की हत्या करने को कहा. उस ने हत्या की एवज में 25 हजार रुपए देने की बात भी कही. पिंटू तो अपराधी था ही, इसलिए वह प्रांशु की हत्या करने को तैयार हो गया. उस की सहमति के बाद कल्लन ने सुपारी की रकम के आधे पैसे यानी साढ़े 12 हजार रुपए पिंटू को दे दिए.

पिंटू ने पप्पू के साथसाथ इस योजना में भीमगंज मोहल्ला निवासी राजकुमार को भी शामिल कर लिया. चारों ने मिल कर प्रांशु की हत्या की योजना बनाई.

24 फरवरी की शाम 7 बजे पिंटू और पप्पू जोशी कल्लन की बाइक से प्रांशु के घर पहुंचे. पार्टी देने की बात कह कर वे प्रांशु को सुरजीपुर ले गए.

वहां ये लोग शराब के ठेके के पीछे खाली पड़े मैदान में पहुंचे तो वहां कल्लन और राजकुमार पहले से मौजूद थे. सब ने वहां बैठ कर शराब पी और खाना खाया गया. पिंटू कल्लन और प्रांशु के बीच सुलह कराने का नाटक करते हुए प्रांशु को मनाने लगा. इस बात पर प्रांशु और कल्लन के बीच देर रात तक बहस चलती रही. फिर प्रांशु के शराब के नशे में होने पर सब ने मिल कर क्लच वायर से गला कस कर उस की हत्या कर दी.

पिंटू और पप्पू कल्लन की बाइक पर प्रांशु की लाश रख कर उसे गुरदीप का पुरवा में गंगाघाट के किनारे ले गए. उन्होंने उस की लाश फेंक दी और फरार हो गए. घटना के बाद से सभी अपने घरों से फरार हो गए थे. लेकिन मुखबिर की सूचना पर गिरफ्तार कर लिए गए.

पुलिस ने अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हीरो बाइक नंबर यूपी33क्यू 6990 भी बरामद कर ली. हत्या में प्रयुक्त क्लच वायर भी बरामद कर लिया गया. फिर आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक अभियुक्त राजकुमार को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर पाई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य: सत्यकथा, मई 2020

दो पाटों के बीच : जितेंद्र ने दी प्यार की कुर्बानी

जितेंद्र सरिसाम और राधा कहार पैसों से भले ही गरीब थे, लेकिन सैक्स के मामले में किसी रईस से कम नहीं थे. भोपाल के पौश इलाके बागमुगालिया की रिहायशी कालोनी डिवाइन सिटी के एक 2 मंजिला बंगले में रहने वाले 26 वर्षीय जितेंद्र को अकसर अमीरों जैसी फीलिंग आती थी. भले ही वह जानतासमझता था कि इस महंगे डुप्लेक्स मकान में वह कुछ दिनों का मेहमान है, इस के बाद तो फिर किसी झोपड़े में आशियाना बनाना है.

दरअसल, जितेंद्र पेशे से मजदूर था. चूंकि रहने का कोई ठिकाना नहीं था, इसलिए ठेकेदार ने उसे इस शानदार मकान में रहने की इजाजत दे दी थी, जो अभी बिका नहीं था. यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि जहांजहां भी कालोनियां बनती हैं, वहांवहां ठेकेदार या कंस्ट्रक्शन कंपनी मजदूरों को बने अधबने मकानों में रहने को कह देती हैं. इस से मकान और सामान की देखभाल भी होती रहती है और मजदूरों के वक्तबेवक्त भागने का डर भी नहीं रहता.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले छिंदवाड़ा की तहसील जुन्नारदेव के गांव गुरोकला का रहने वाला जितेंद्र देखने में हैंडसम लगता था और उन लाखों कम पढ़ेलिखे नौजवानों में से एक था, जो काम और रोजगार की तलाश में शहर चले आते हैं.

इन नौजवानों के बाजुओं में दम, दिलों में जोश और आंखों में सपने रहते हैं कि खूब मेहनत कर वे ढेर सा पैसा कमा कर रईसों सी जिंदगी जिएंगे. यह अलग बात है कि अपनी ही हरकतों और व्यसनों की वजह से वे कभी रईस नहीं बन पाते.

जितेंद्र भोपाल आया तो उस के सामने भी पहली समस्या काम और ठिकाने की थी. जानपहचान के दम पर भागदौड़ की तो न केवल मजदूरी का काम मिल गया बल्कि ठेकेदार ने रहने के लिए एक अधबना मकान भी दे दिया.

यह कमरा जितेंद्र के लिए जन्नत से कम साबित नहीं हुआ. आने के 4 दिन बाद ही उसे पता चला कि बगल वाले कमरे में एक अकेली औरत रहती है, जिस का नाम राधा है. बातचीत हुई और पहचान बढ़ी तो उसे यह जान कर खुशी हुई कि राधा भी उस की तरह न केवल अकेली है, बल्कि उस के ही जिले यानी छिंदवाड़ा की रहने वाली है.

35 वर्षीय राधा को देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वह 13 साल के एक बेटे की मां भी है. गठीले कसे बदन की सांवली छरहरी राधा जैसी पड़ोसन पा कर जितेंद्र खुद को धन्य समझने लगा. जल्द ही दोनों में दोस्ती हो गई.

इस इलाके के लोग जब बाहर निकलते हैं तो उन की बातें अपने इलाके के इदगिर्द घूमती रहती हैं. जितेंद्र को राधा ने बता दिया कि उस की शादी कोई 15 साल पहले मदन कहार से हुई थी, जिस ने उसे छोड़ दिया है.

बेटा उस के पिता यानी अपने नाना के घर रहता है और जिंदगी गुजारने की गरज से वह भी उस की तरह मजदूरी कर रही है. कुल मिला कर वह इस दुनिया में अकेली है.

ऐसी ही बातों के दौरान एक दिन जितेंद्र ने उस से कहा, ‘‘अकेली कहां हो, मैं जो हूं तुम्हारा.’’

इतना सुनने के बाद राधा बहुत खुश हुई और उसी रात दोनों एकदूसरे के हो भी गए. आग और घी पास रखे जाएं तो नतीजा क्या होता है, यह जितेंद्र और राधा की हालत देख कर समझा जा सकता था. जितेंद्र ने पहली बार और राधा ने मुद्दत बाद देहसुख का आनंद लिया तो दोनों एकदूसरे की उम्मीदों पर पूरी तरह खरे उतरे.

दोनों दिन भर मजदूरी करते थे और शाम के बाद रात को एकदूसरे में समा जाते थे. धीरेधीरे दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे चूल्हाचौका एक हो गया, गृहस्थी के लिए आने वाला राशनपानी एक हो गया, खर्चे एक हो गए. फिर देखते ही देखते बिस्तर भी एक हो गया. यानी दोनों लिवइन रिलेशन में रहने लगे. दूसरे नए मजदूर साथी इन्हें मियांबीवी ही समझते थे, लेकिन पुराने जानते थे कि हकीकत क्या है.

प्यार और शरीर सुख में डूबतेउतराते जितेंद्र और राधा को दुनिया जमाने की परवाह नहीं थी कि कौन क्या कहतासोचता है. वे तो अपनी दुनिया में मस्त थे, जहां तनहाई थी, सुकून था और प्यार के अलावा रोज तरहतरह से किया जाने वाला सैक्स था,जो मजे को दो गुना, चार गुना कर देता था.

देखा जाए तो दोनों वाकई स्वर्ग की सी जिंदगी जी रहे थे, जिस में कोई बाहरी दखल नहीं था. न तो कोई कुछ पूछने वाला था और न ही कोई रोकनेटोकने वाला. इन्हें और इन की जिंदगी देख कर कोई भी रश्क कर सकता था कि जिंदगी हो तो ऐसी, प्यार और शरीर सुख में डूबी हुई जिस में गरीबी या अभाव आड़े नहीं आते.

राधा को एक गबरू जवान का सहारा मिल गया था तो जितेंद्र को ऐसी पड़ोसन मिल गई थी, जो रोज उसे तरहतरह से कुछ इस तरह प्यार देती थी कि वह निहाल हो उठता था. और कभी थकता या ऊबता नहीं था. एक मर्द और औरत को भरपेट खाने के बाद इस से ज्यादा कुछ और ख्वाहिश भी नहीं रह जाती.

राधा पर भले ही कोई बंदिश नहीं थी, लेकिन जितेंद्र पर थी. इस साल की शुरुआत से ही उस के घर वाले उस पर शादी कर लेने का दबाव बना रहे थे, जिसे शुरू में तो वह तरहतरह के बहाने बना कर टरकाता रहा, लेकिन घर वालों खासतौर से गांव में रह रहे पिता भारत सिंह को उस की दलीलों और बहानों से कोई लेनादेना नहीं था.

उन की नजर में बेटा ठीकठाक कमाने लगा था, इसलिए अब उसे शादी के बंधन में बांधना जरूरी हो चला था, जिस से वह घरगृहस्थी बसाए और बहके नहीं.

लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि बेटा 4 साल पहले भोपाल आने के तुरंत बाद ही बहक चुका था. घर वालों का दबाव जितेंद्र पर बढ़ा तो उस ने शादी के बाबत हां कर दी.

लेकिन उस ने जब यह बात राधा को बताई तो वह बिफर उठी. उस ने साफसाफ कह दिया कि वह उसे किसी दूसरी औरत, चाहे वह उस की ब्याहता ही क्यों न हो, से बंटते नहीं देख सकती.

राधा की बात सुन कर जितेंद्र सकपका उठा. घर वालों को वह शादी के लिए न कहता तो वे भोपाल आ टपकते और राधा उस की मजबूरी को समझने के लिए तैयार नहीं थी.

अब एक तरफ कुआं था तो दूसरी तरफ खाई थी. धर्मसंकट में पड़े जितेंद्र ने राधा को तरहतरह से समझाया. घर वालों की दुहाई दी और यह वादा भी कर डाला कि वह होने वाली पत्नी रिनिता को भोपाल नहीं लाएगा, बल्कि बहाने बना कर उसे गांव में ही रहने देगा. अपने आशिक की इस मजबूरी से समझौता करते हुए राधा को आखिर तैयार होना ही पड़ा.

मई के महीने में जितेंद्र अपने गांव गुरीकला गया और सलैया गांव की रिनिता से उस की शादी हो गई. रिनिता काफी खूबसूरत भी थी और मासूम और भोली भी, जो शादी तय होने के बाद से ही सपने देख रही थी कि शादी के बाद वह पति के साथ भोपाल जा कर रहेगी. जब वह काम से लौटेगा तो उस के लिए अच्छाअच्छा खाना बना कर खिलाएगी और दोनों भोपाल घूमेंगेफिरेंगे.

इधर राधा चिलचिलाती गरमी के अलावा ईर्ष्या की आग में भी जल रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि नईनवेली पत्नी के चक्कर में फंस कर जितेंद्र उसे भूल जाए और 4 साल सुख भोगने के बाद वह फिर अकेली रह जाए.

रहरह कर उसे दिख रहा था कि जितेंद्र रिनिता की मांग में सिंदूर भर रहा है, उसे मंगलसूत्र पहना रहा है और उस के साथ सात फेरे लेने के बाद सुहागरात मना रहा है.

वह जलभुन कर खाक हुई जा रही थी. राधा के पास सांत्वना देने वाली एकलौती बात यह और थी कि जितेंद्र पत्नी को साथ ले क र नहीं आएगा और फिर दोनों पहले की तरह मौजमस्ती में डूब जाएंगे.

ऐसा हुआ भी, जितेंद्र शादी के कुछ दिनों बाद जब भोपाल आया तो उस समय वह अकेला था. यह देख राधा खुशी से फूली न समाई और उस की बांहों में झूल गई.

दोनों फिर अपनी दुनिया में मशगूल हो गए. शादी के बाद रिनिता के साथ सैक्स में जितेंद्र को वह मजा कतई नहीं आया था, जो भोपाल में राधा के साथ आता था. रिनिता शर्मीली थी और सैक्स के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानती थी, जबकि जितेंद्र पक्का खिलाड़ी था, जिसे नाजनखरे, मनाना और देरी बिलकुल पसंद नहीं आती थी.

बहाने बना कर वह रिनिता को घर छोड़ आया. जब उस ने रिनिता की कोई खोजखबर नहीं ली तो पिता भारत को चिंता हुई. लिहाजा 3 महीने इंतजार करने के बाद उन्होंने रिनिता को भोपाल भेज दिया.

अपने पिता से डरने वाला और उन का लिहाज करने वाला जितेंद्र रिनिता को भोपाल आया देख सकते में आ गया. जबकि राधा के तो मानो तनबदन में आग लग गई. लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए वह कसमसा कर रह गई.

कुछ दिन तो दोनों सब्र का दामन थामे एकदूसरे से बेमन से दूर रहे, लेकिन अगस्त के महीने की बारिश राधा के तनमन को कुछ इस तरह सुलगा रही थी कि उस से जितेंद्र की दूरी बरदाश्त नहीं हो रही थी.

इधर रिनिता खुश थी. भीड़भाड़ वाले शहर की रौनक, मौसम और अपना घर इस नईनवेली को उत्साह और रोमांस से भर रहे थे लेकिन पति की बेरुखी की वजह से वह समझ नहीं पा रही थी. राधा को उस ने दूर से देखा भर था, जिस ने पड़ोसन होने का शिष्टाचार भी नहीं निभाया था. इसे वह शहर का दस्तूर मान कर चुप रही और रोज सजसंवर कर पति का दिल जीतने की कोशिश करती रही.

 

2 सितंबर को वह उस वक्त सन्न रह गई, जब उस ने दिनदहाड़े पति को राधा के साथ एकदम निर्वस्त्र हालत में रंगरलियां मनाते देख लिया. रिनिता पर बिजली सी गिरी. पति और पड़ोसन की बेशरमी और बेहयाई के दृश्य देख उस का सब कुछ लुट चुका था. पति की हकीकत उस के सामने थी कि क्यों वह पहले ही उस से खिंचाखिंचा रहता था.

जितेंद्र राधा के साथ रासलीला मना कर वापस आया तो भरी बैठी रिनिता ने उस से सवालजवाब करने के साथसाथ उस के नाजायज संबंधों पर पर भी सख्त ऐतराज जताया. पहले तो जितेंद्र ने सफाई दे कर उसे तरहतरह के बहाने और दलीलें दे कर बहलाने फुसलाने की कोशिश की, लेकिन कुछ देर पहले ही रिनिता ने जो देखा था, उस से कोई भी पत्नी समझौता नहीं कर सकती.

लिहाजा वह पति पर भड़क गई. बात बढ़ते देख रिनिता ने उसे धमकी दे दी कि सुबह होते ही वह ससुर को उस की सारी करतूत बता देगी.

इस पर जितेंद्र की रूह कांप उठी. उसे मालूम था कि सख्त और उसूलों के धनी उस के पिता को यह सब पता चलेगा तो वह उसे यहीं से छिंदवाड़ा तक घसीटते हुए ले जाएंगे और उस का जो हाल करेंगे, वह नाकाबिले बरदाश्त होगा.

पतिपत्नी में तूतू मैंमैं चल ही रही थी कि उसी समय राधा भी वहां आ पहुंची और जितेंद्र के पक्ष में बोलने लगी. राधा और रिनिता दोनों खूंखार बिल्लियों की तरह लड़ते हुए एकदूसरे को दोषी ठहराने लगीं.

इसी दौरान जितेंद्र ने फैसला ले लिया कि रिनिता उसे वह सुख नहीं दे सकती जोकि राधा देती है. लिहाजा उस ने उसी समय दोनों में से राधा को चुनने का फैसला ले लिया.

इस के बाद जितेंद्र ने पत्नी रिनिता की गरदन दबोच ली. राधा भी उस का साथ देने आ गई और दोनों ने उस का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटा कर रिनिता वहीं लुढ़क गई.

हत्या तो कर दी, लेकिन इस के बाद जितेंद्र और राधा दोनों घबरा उठे कि अब लाश का क्या करें, लेकिन कुछ तो करना ही था. उन्होंने उस की लाश बोरे में भर कर एक नाले में फेंक दी.

फिर 5 सितंबर को खुद को हैरानपरेशान दिखाता हुआ जितेंद्र बागमुगालिया थाने पहुंचा और अपनी पत्नी रिनिता की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई.

टीआई शैलेंद्र शर्मा को उस ने बताया कि उस की 22 वर्षीय पत्नी रिनिता 3 दिनों से गायब है, जिस की वह हर मुमकिन जगह तलाश कर चुका है लेकिन वह नहीं मिली. अनुभवी शैलेंद्र शर्मा ने जब सारी जानकारी ली तो उन्हें लगा कि आमतौर पर नवविवाहितों के नैतिकअनैतिक संबंध हादसे की वजह होते हैं.

उन्होंने जब और गहराई से जितेंद्र से सवालजवाब किए तो यह जान कर हैरान रह गए कि रिनिता तो भोपाल में एकदम नई थी. इसी पूछताछ में राधा का और जिक्र आया तो उन्हें कहानी कुछकुछ समझ आने लगी.

रिपोर्ट दर्ज कर टीआई ने जितेंद्र को जाने दिया, लेकन उस के पीछे अपने मुलाजिम लगा दिए, जो जल्द ही काम की यह जानकारी खोद कर ले आए कि जितेंद्र और राधा के कई सालों से नाजायज संबंध हैं और दोनों पतिपत्नी की तरह रह रहे हैं.

मामला जब भोपाल (साउथ) एसपी संपत उपाध्याय के पास पहुंचा तो उन्होंने एएसपी संजय साहू और एसडीपीओ अनिल त्रिपाठी को इस मामले की छानबीन के लिए लगा दिया.

पुलिस वालों को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ी. 6 दिसंबर को इसी इलाके की एक और कालोनी रुचि लाइफस्केप के चौकीदार गोवर्धन साहू ने पुलिस को इत्तला दी कि कालोनी के पास बहने वाले नाले में एक बोरे में लाश तैर रही है.

लाश बरामद करने के लिए पुलिस टीम नाले के पास पहुंची तो लाश के बोरे के बाहर झांकते पैर साफ बता रहे थे कि वह किसी युवती की है. पुलिस बोरा खोल पाती, इस के पहले ही जितेंद्र वहां पहुंच गया और बिना लाश देखे ही कहने लगा कि यह उस की पत्नी रिनिता की लाश है.

बात अजीब थी लेकिन एक तरह से खुद जितेंद्र ने जल्दबाजी में अपने गुनाह की पोल खोल दी थी. फिर कहनेकरने को कुछ नहीं बचा था. अनिल त्रिपाठी ने जितेंद्र को बैठा कर पुलिसिया अंदाज में पूछताछ की तो उस ने सब कुछ उगल दिया, जिस की बिनाह पर राधा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

दरअसल, सितंबर के पहले सप्ताह में भोपाल में जोरदार बारिश हो रही थी. हत्या के बाद जितेंद्र और राधा ने रिनिता की लाश को बोरे में बंद कर यह सोचते हुए घर से कुछ ही दूरी पर नाले में फेंक दी थी कि वह पानी में बह जाएगी और कुछ दिनों में सड़गल जाएगी. फिर किसी को हवा भी नहीं लगेगी कि रिनिता कहां गई. बाद में जितेंद्र घर वालों के सामने उस के गायब होने का कोई भी बहाना बना देगा. इस के बाद दोनों पहले जैसी ही जिंदगी जिएंगे.

 

पर लाश नहीं बही तो दोनों को चिंता हुई. जितेंद्र जिस ने 3 दिन बाद पत्नी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाई थी, वह दरअसल बोरे की निगरानी कर रहा था कि बोरा वहां से बहे तो पिंड छूटे. 6 दिसंबर को जब चौकीदार ने पुलिस को नाले में लाश पड़ी होने की खबर दी तो वह पुलिस टीम के पीछेपीछे ही पहुंच गया और बोरा खुलने से पहले लाश की पहचान भी कर ली.

अब राधा और जितेंद्र जेल में बैठे अपने मौजमस्ती के दिन याद करते कलप रहे हैं. दोनों को सजा होनी तय है, लेकिन बड़ी गलती जितेंद्र की है, जिस ने अधेड़ प्रेमिका की हवस के लिए बेगुनाह बीवी को ठिकाने लगाना ज्यादा बेहतर समझा.

नाजायज संबंधों का ऐसा अंजाम नई बात नहीं है, लेकिन अगर जितेंद्र घर वालों से बगावत कर के और उन की परवाह न करते हुए राधा से ही शादी कर लेता तो दोनों शायद हत्या के गुनाह से भी बच जाते.

लगता नहीं कि दोनों यह सब सोच रहे होंगे, बल्कि वे सोच रहे होंगे कि रिनिता की लाश बह कर सड़गल जाती तो रास्ते का कांटा निकल जाता.

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

रोमा के कई रंग : क्यों किया इतने लोगों का क़त्ल

8सितंबर, 2019 का दिन था. उस समय सुबह के करीब पौने 9 बजे थे. तभी जिला हरिद्वार के रुड़की स्थित थाना सिविललाइंस के थानाप्रभारी अमरजीत सिंह के पास शेरपुर गांव के पूर्वप्रधान अनुज का फोन आया.

उस ने बताया कि शेरपुर बाजुहेड़ी मार्ग पर एक आदमी की लाश पड़ी है, जो खून से लथपथ है. लाश मिलने की खबर सुनते ही थानाप्रभारी सबइंसपेक्टर अंकुर शर्मा, सिपाही अरविंद व आशुतोष को साथ ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

उन्होंने इस मामले की सूचना सीओ चंदन सिंह बिष्ट, एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर तथा एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. को दे दी. घटनास्थल कोतवाली से मात्र 2 किलोमीटर दूर था. इसलिए वह 10 मिनट में ही मौके पर पहुंच गए.

लाश गांव के मुखिया दयाराम सैनी के गन्ने के खेत में पड़ी थी. अच्छी बात यह थी कि पुलिस के आने से पहले ही मृतक की शिनाख्त हो चुकी थी. शव मिलने की सूचना पर जब गांव शंकरपुरी के लोग मौके पर पहुंचे तो उन्होंने उस की शिनाख्त शंकरपुरी निवासी बोरवैल ठेकेदार सुदेश पाल के रूप में कर दी.

तब तक वहां मृतक सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी भी पहुंच गई थी. देशो देवी ने थानाप्रभारी को बताया कि आज सुबह 8 बजे सुदेश मोबाइल पर किसी व्यक्ति से बात करते हुए घर से बाहर चले गए थे. इस के बाद गांव के कुछ लोगों ने सुदेश को 2 युवकों के साथ बाइक पर बैठ कर शेरपुर गांव की ओर जाते देखा था.

इसी बीच सीओ चंदन सिंह बिष्ट भी घटनास्थल पर पहुंच गए. दोनों अधिकारियों ने जब सुदेश पाल के शव का गहन निरीक्षण किया तो पाया कि हत्यारों ने सुदेश का गला किसी धारदार हथियार से रेता था. लाश की स्थिति देखनेसमझने के बाद सीओ चंदन सिंह ने वहां मौजूद देशो देवी व अन्य लोगों से सुदेश के बारे में पूछताछ की.

घटनास्थल की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने सुदेश की लाश को पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल भेज दिया.

सुदेश पाल की हत्या से उस के परिवार में  कोहराम मच गया था. गांव वाले भी इस बात से हैरान थे कि उस की हत्या आखिर किस ने की. इस हत्या के विरोध में सैकड़ों गमजदा ग्रामीण थाना सिविललाइंस पहुंच गए. थानाप्रभारी से मुलाकात कर उन्होंने हत्यारों को तत्काल गिरफ्तार कर कड़ी सजा दिलवाने की मांग की.

पुलिस ने सुदेश पाल की पत्नी देशो देवी की ओर से आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी. पोस्टमार्टम के बाद दोपहर बाद सुदेश पाल का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया.

उसी शाम एसपी (देहात) नवनीत सिंह ने सुदेश पाल की हत्या के खुलासे के लिए सीओ चंदन सिंह बिष्ट के नेतृत्व में एक टीम का गठन किया, जिस में थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सहित एसएसआई प्रमोद चौधरी, थानेदार अंकुर शर्मा व संजय नेगी सहित अपराध अन्वेषण यूनिट प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती, जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री आदि को शामिल किया गया. जांच टीम ने सब से पहले घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज चैक किए.

इस के बाद पुलिस टीम ने मुखबिरों से क्षेत्र में सुरागरसी कराई. मृतक के परिजनों से भी व्यापक पूछताछ की गई. पूछताछ के दौरान टीम को जानकारी मिली कि सुदेश सीधासादा व्यक्ति था.

वह बोरवैल का ठेकेदार था. गांव में उस की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी. उस के छोटे भाई अर्जुन की पत्नी रोमा के पास विकास नाम के युवक का आनाजाना था, जिस का सुदेश अकसर विरोध करता था.

विकास मूलरूप से गांव मांडला थाना पुरकाजी, जिला मुजफ्फरनगर का रहने वाला था. मगर वह पिछले 8 सालों से हरिद्वार के थाना रानीपुर क्षेत्र के गांव रावली महदूद में रह रहा था. यह जानकारी मिलते ही जांच टीम के शक की सुई विकास की ओर घूम गई. पुलिस ने जब विकास से संपर्क करने का प्रयास किया तो पता चला कि वह सुदेश की हत्या के बाद से ही घर से गायब है.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि सुदेश की हत्या के तार अवश्य ही विकास से जुड़े हुए हैं. इस के बाद जांच टीम ने विकास को गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया.

पुलिस को सुदेश की जो पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली थी, उस में उस की मौत का कारण गला घोंटना व धारदार प्रहारों के कारण शरीर से ज्यादा खून बहना बताया गया था.

11 सितंबर, 2019 को थानाप्रभारी अमरजीत सिंह सुबह 11 बजे अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी उन के खास मुखबिर ने सूचना दी कि सुदेश पाल की हत्या का आरोपी विकास थोड़ी देर पहले अपने एक साथी के साथ पल्सर बाइक पर बहादराबाद क्षेत्र में देखा गया था. यह सूचना महत्त्वपूर्ण थी.

अमरजीत सिंह ने तत्काल एसएसआई प्रमोद चौधरी, एसआई संजय नेगी, अंकुश शर्मा, सीआईयू प्रभारी रविंद्र कुमार, एएसआई देवेंद्र भारती व सिपाही जाकिर, अशोक, महीपाल, रविंद्र खत्री, नीरज राणा व सचिन अहलावत को साथ लिया और 15 मिनट में बहादराबाद पहुंच गए.

वहां पहुंच कर उन्होंने पुलिस की 2 टीमें बनाईं. अमरजीत सिंह ने पुलिस की एक टीम को सिडकुल-सलेमपुर रोड पर वाहन चैकिंग के लिए लगाया और दूसरी टीम को बहादराबाद हाइवे पर काले रंग की पल्सर बाइक की तलाश में लगा दिया.

लगभग 2 घंटे बाद पुलिस टीम को काले रंग की पल्सर बाइक सिडकुल सलेमपुर रोड पर आती दिखाई दी. बाइक पर 2 युवक सवार थे. पुलिस ने जब उन्हें रुकने का इशारा किया, तो वे सकपका गए.

दोनों युवकों ने पीछे मुड़ कर भागने का प्रयास किया तो पीछे से एक ट्रक आ जाने के कारण वे भाग न सके और हड़बड़ाहट में बाइक सहित सड़क के बीच में गिर पड़े. इस के बाद पुलिस टीम ने फुरती के साथ उन्हें पकड़ लिया.

पूछताछ में दोनों युवकों ने अपने नाम पते विकास व कपिल निवासी गांव मांडला, थाना पुरकाजी, मुजफ्फरनगर व हाल निवासी गांव रावली महदूद बताए.

इस के बाद पुलिस दोनों को ले कर रुड़की कोतवाली पहुंची और उन से सुदेश पाल की हत्या की बाबत पूछताछ की. पहले तो विकास और कपिल पुलिस को टरकाते रहे, मगर जब कोतवाल अमरजीत सिंह ने सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली. विकास ने पुलिस को जो जानकारी दी, वह इस प्रकार थी.

विकास कई सालों से सिडकुल स्थित महिंद्रा कंपनी में नौकरी कर रहा था. पिछले 4 सालों से अंगरेश नाम की एक युवती उस के मकान में किराए पर रह रही थी. इसी वजह से अंगरेश के भाई अर्जुन व उस की पत्नी रोमा का उस के यहां आनाजाना लगा रहता था.

उसी दौरान विकास की मुलाकात रोमा से हो गई, जो बाद में प्यार में बदल गई. दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए थे. उन के अवैध संबंधों के बारे में जब विकास के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उसे समझाया. इस के बाद विकास ने रोमा का साथ छोड़ दिया.

यह बात 2 साल पहले की है. इस के बाद रोमा रावली महदूद छोड़ कर शंकरपुरी में आ कर रहने लगी.

4 महीने पहले गांव शंकरपुरी के आकाश ने विकास को बताया कि रोमा रिश्ते में उस की मौसी लगती है और उस के मन में अभी भी उस के लिए पहले जैसा प्यार है.

यह सुनते ही विकास के मनमस्तिष्क में रोमा की यादें ताजा हो गईं. वह रोमा से मिलने पहुंच गया. नतीजा यह हुआ कि विकास और रोमा दोबारा छिपछिप कर मिलने लगे. इसी दौरान विकास ने रोमा को अपने नाम से खरीद कर एक मोबाइल फोन व सिमकार्ड दे दिया था. रोमा और विकास की मोबाइल पर अकसर बातें होती रहतीं.

एक दिन रोमा ने विकास को बताया कि उस के अपने जेठ सुदेश पाल के साथ भी अवैध संबंध थे, लेकिन अब वह सुदेश पाल को पसंद नहीं करती. जबकि सुदेश पाल अब भी उस के साथ जबरन संबंध बनाने के लिए परेशान करता रहता है.

रोमा ने बताया कि सुदेश पाल को हमारे अवैध संबंधों की भी जानकारी हो गई है. अब वह हमारे बीच में दीवार बन कर खड़ा हो गया है. अगर तुम सुदेश को निपटा दो तो हम दोनों एक हो सकते हैं. रोमा की यह बात सुन कर विकास को गुस्सा आ गया. उस ने अपने दोस्त आकाश व रोमा से मिल कर सुदेश पाल की हत्या की योजना बनाई.

हत्या करने के बाद वे जेल न जा सकें, यानी पुलिस से बचने के लिए उन्होंने यूट्यूब पर हत्या से संबंधित कई वीडियो देखीं. उन से पता चला कि हत्या करने के बाद पुलिस से बचने के लिए क्या करना चाहिए.

पूरी योजना बनने के बाद रोमा ने सुदेश पाल का मोबाइल नंबर भी उपलब्ध करा दिया. योजना के अनुसार इस हत्या में उन्हें किसी लूटे हुए मोबाइल फोन का प्रयोग करना था.

इस बारे में विकास ने अपने परिचित कपिल से बात की तो उस ने पहली सितंबर, 2019 को लूटा हुआ एक मोबाइल फोन उपलब्ध करा दिया. फिर 4 सितंबर को आकाश ने ही उस के व कपिल के साथ जा कर घटनास्थल की रेकी कराई.

आकाश व रोमा ने ही विकास को बताया था कि सुदेश पाल बोरवैल लगाने का काम करता है और तुम भी उसे इसी बहाने अज्ञात जगह ले जा कर उस की हत्या कर देना.

8 सितंबर को विकास व कपिल सुबह 7 बजे काले रंग की पल्सर बाइक से रावली महदूद से चले. शंकरपुरी पहुंचने के बाद विकास ने उसी लूटे हुए मोबाइल से सुदेश पाल को फोन किया और बोरवैल के लिए जगह दिखाने की बात की. धंधे का मामला था, बोरवैल की जगह देखने के लिए सुदेश पाल गांव के बाहर आ गया.

इस के बाद विकास और कपिल सुदेश पाल को अपनी बाइक पर बैठा कर गांव शेरपुर-बाजुहेड़ी मार्ग के निकट एक खेत में ले गए. वहां पहुंचते ही उन दोनों ने क्लच के तार का फंदा बना कर सुदेश पाल के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया. इस के तुरंत बाद उन्होंने चाकू से उस का गला भी रेत डाला. जिस से उन दोनों के कपड़ों पर खून के धब्बे भी लग गए.

गांव रावली महदूद वापस जाते समय उन्होंने अपने कपड़े व चाकू मेहवड़ पुल के पास ईंट भट्ठे की ओर वाली झाडि़यों में छिपा दिए. इस के बाद दोनों पुलिस से छिपते घूम रहे थे.

पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर सुदेश पाल की हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने कपड़े, काले रंग की पल्सर बाइक तथा हत्या में इस्तेमाल किए गए 3 मोबाइल फोन भी बरामद कर लिए.

इस के बाद एसएसपी सेंथिल अवुदई कृष्णराज एस. ने थाने में प्रैसवार्ता कर के सुदेश पाल हत्याकांड का खुलासा किया और आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया. पुलिस ने रोमा को भी हिरासत में ले लिया. उस ने भी पुलिस के सामने सुदेश पाल की हत्या की साजिश रचने में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली.

अगले दिन यानी 12 सितंबर, 2019 को सुदेश पाल की हत्या का तानाबाना बुनने वाले आरोपी आकाश को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. मृतक सुदेश पाल 5 बेटियों का पिता था. जिन में से वह भारती, आरती व साक्षी की शादी कर चुका था. बेटा न होने के कारण उस ने अपने भाई अर्जुन के बेटे प्रभात को गोद ले लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपीगण विकास, कपिल, आकाश और रोमा जेल में थे. थानाप्रभारी अमरजीत सिंह इस प्रकरण की जांच पूरी करने के बाद आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेजने की तैयारी में लगे थे.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2019

 

जीजा पर पड़ी भारी, ब्लैकमेलर साली

शर्मा आटो गैराज में काम करने वाला उत्तम कृष्ण करीब 11 बजे जब गैराज पर पहुंचा तो शटर गिरा हुआ मिला. उसे आश्चर्य हुआ, क्योंकि गैराज के मालिक जितेंद्र शर्मा रोजाना 9 बजे ही गैराज खोल देते थे. उत्तम कृष्ण इस गेराज में एक साल से काम कर रहा था, लेकिन उसे सुबह को कभी भी गैराज बंद नहीं मिला था.

जितेंद्र को कभी आने में देर हो जाती तो वह उत्तम को फोन पर सूचना दे कर गैराज खोलने के लिए बोल देते थे. उत्तम सोच रहा था कि जितेंद्र अभी तक क्यों नहीं आए. वह गैराज के बाहर ही उन के आने का इंतजार करने लगा. तभी उत्तम का ध्यान दुकान पर लगने वाले तालों पर गया तो वह चौंका शटर के दोनों ताले खुले थे.

उत्तम ने आगे बढ़ कर शटर ऊपर उठा दिया. उस की नजर गैराज के अंदर गई तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. जितेंद्र शर्मा का शव दुकान के अंदर लगे लोहे के पिलर पर रस्सी के फंदे से झूल रहा था.

अपने मालिक की लाश लटकते देख कर उत्तम के मुंह से चीख निकल गई. उस के चीखने की आवाज सुन कर आसपास के दुकानदार जमा हो गए. घटना की सूचना थाना नीलगंगा के टीआई संजय मंडलोई को दे दी गई.

धन्नालाल की जिस चाल में शर्मा गैराज था, वह इलाका थाना नीलगंगा में आता था. कुछ ही देर में टीआई संजय मंडलोई एसआई जयंत सिंह डामोर, प्रवीण पाठक आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस ने जरूरी जांच के बाद शव को फंदे से उतारा और प्राथमिक काररवाई के बाद पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पुलिस ने गैराज की तलाशी ली तो वहां 5 पेज का एक सुसाइड नोट मिला. सुसाइड नोट के 3 पेजों पर जितेंद्र ने देवास में रहने वाली अपनी चचेरी साली का जिक्र किया था. सुसाइड नोट के हिसाब से जितेंद्र शर्मा ने चचेरी साली की ब्लैकमेलिंग से तंग आ कर आत्महत्या की थी.

जितेंद्र ने अपने सुसाइड नोट के एक पेज पर पत्नी शोभा को मायके जा कर रहने व दूसरी शादी करने की सलाह दी थी. पुलिस ने सुसाइड नोट हैंडराइटिंग की जांच के लिए एक्सपर्ट के पास भेज दिया. सुसाइड नोट में साली का जिक्र आया था, इसलिए पुलिस ने पूछताछ के लिए देवास में रहने वाली जितेंद्र की साली के बारे में पता किया तो वह घर से लापता मिली.

उज्जैन के एसपी सचिन अतुलकर के निर्देश पर टीआई संजय मंडलोई ने जांच की जिम्मेदारी एसआई जयंत सिंह डामोर को सौंप दी. मृतक का क्रियाकर्म हो जाने के बाद जांच शुरू करते हुए एसआई डामोर ने मृतक की पत्नी शोभा से पूछताछ की. उस ने अपने पति द्वारा चचेरी बहन पर लगाए आरोपों को सच बताया.

शोभा ने पुलिस को यह भी बताया कि घटना से एक दिन पहले जितेंद्र ने अदिति शर्मा के साथ अपने संबंध और उस के द्वारा ब्लैकमेल करने की बात उसे तथा अपने पिता को बताई थी. जिस पर हम ने उन्हें काफी समझाया था, लेकिन इस के बावजूद उन्होंने ऐसा कदम उठा लिया. मृतक के पिता ने भी माना कि जितेंद्र अदिति शर्मा द्वारा ब्लैकमेल किए जाने से परेशान था. उन्होंने उसे समझाया था कि सब ठीक हो जाएगा.

पुलिस ने अदिति शर्मा की तलाश में अपने मुखबिर सक्रिय कर दिए थे. घटना के लगभग 10 दिन बाद अदिति शर्मा के देवास में होने की जानकारी मिली तो पुलिस की एक टीम ने वहां जा कर उसे गिरफ्तार कर लिया.

लेकिन तब तक अदिति शर्मा ने इस मामले में हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले ली थी, इसलिए थाने में उस के बयान दर्ज करने के बाद पुलिस ने उसे जाने दिया. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार से सामने आई—

उज्जैन निवासी लक्ष्मण शर्मा कारों के पुराने मैकेनिक हैं. पिता के साथ काम सीखने के बाद जितेंद्र उर्फ जीतू ने महापौर निवास के सामने अपना अलग गैराज खोल लिया था. 26 नवंबर, 2015 को जितेंद्र की शादी देवास की रहने वाली शोभा से हुई थी. शादी के कुछ समय बाद जितेंद्र सेठी नगर में किराए का मकान ले कर अपने परिवार से अलग रहने लगा था.

कुछ साल पहले जितेंद्र की पत्नी का परिवार देवास छोड़ कर गुजरात वापस चला गया. जितेंद्र की चचेरी साली अदिति शर्मा (24) देवास की एक निजी कंपनी में नौकरी करती थी, इसलिए परिवार के साथ न रह कर वह देवास में ही किराए के मकान में रहने लगी थी.

रविवार या अन्य छुट्टियों में वह अपना दिन बिताने अकसर बहन शोभा के घर उज्जैन आ जाती थी. जितेंद्र के साथ उस का हंसीमजाक का रिश्ता था, सो खुले विचारों वाली अपनी इस साली से जितेंद्र की जल्द ही काफी अच्छी बनने लगी.

अदिति शर्मा के बयानों को सच मानें तो जितेंद्र मौका मिलने पर उस के साथ छेड़छाड़ कर लेता था. अदिति शर्मा उस की इस छेड़छाड़ का बुरा नहीं मानती थी, इसलिए जितेंद्र की हिम्मत बढ़ने लगी थी. अदिति शर्मा ने बताया कि 2018 में जीजू एक रोज उस के घर देवास आ धमके. उन्हें देवास में कुछ काम था. उस रोज जीजू ने जानबूझ कर देर कर दी और फिर लेट हो जाने का बहाना बना कर रात में मेरे घर पर रुक गए.

अदिति शर्मा के अनुसार, ‘देर रात तक हम दोनों बात करते रहे, उस के बाद मुझे नींद आने लगी और मैं सो गई. कुछ देर बाद मुझे अपने शरीर पर किसी के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ. मैं ने आंखें खोल कर देखा तो जितेंद्र मेरे शरीर से छेड़खानी कर रहे थे.

‘मैं उठ कर बैठ गई और उन की इस हरकत के लिए नाराजगी व्यक्त की. लेकिन वह नहीं माने और उस रात उन्होंने जबरन मेरे साथ संबंध बना लिए. इस के बाद वह अकसर देवास आ कर मेरे साथ मौजमस्ती करते थे और लौट जाते थे.’

अदिति शर्मा ने माना कि कुछ समय पहले उस की नौकरी छूट गई थी, जिस से वह आर्थिक परेशानी में आ गई थी. इस के चलते उस ने जितेंद्र जीजू से कुछ पैसा उधार लिया था लेकिन बाद में वापस लौटा दिया था.

जबकि जितेंद्र के सुसाइड नोट के अनुसार अदिति शर्मा अकसर उसे खुला आमंत्रण देती रहती थी. लेकिन उस ने कभी गौर नहीं किया. बाद में एक दिन देवास में देर हो जाने के कारण उसे रात में अदिति शर्मा के घर पर रुकना पड़ा.

घर में दोनों अकेले थे, सो ऐसे में अदिति शर्मा रात में खुद चल कर उस के बिस्तर में घुस आई और उस से बुरी तरह लिपट कर प्यार करने लगी. अदिति शर्मा की पहल पर उस रात उस के और अदिति शर्मा के बीच शारीरिक संबंध बन गए थे.

इस घटना के बाद जितेंद्र अपराधबोध से ग्रस्त हो गया था. उस ने अदिति शर्मा से फिर कभी अकेले में न मिलने की कसम भी खा ली थी. लेकिन अदिति शर्मा ने खुद आगे बढ़ कर उसे अपने साथ फिजिकल होने को उकसाया था, इस का खुलासा कुछ दिन बाद तब हुआ, जब अदिति शर्मा ने जरूरत बता कर उस के सामने कुछ पैसों की मांग की. जितेंद्र ने उसे पैसे दे दिए तो वह आए दिन कभी 2 हजार तो कभी 5 हजार तो कभी 10 हजार रुपयों की मांग करने लगी.

वह बिना सोचेसमझे उस की मदद करता रहा, लेकिन जब अदिति शर्मा लगातार उस से ज्यादा रकम मांगने लगी तो उस ने पैसे न होने का बहाना बनाना शुरू कर दिया. जिस पर एकदो बार तो अदिति शर्मा ने कुछ नहीं कहा लेकिन एक दिन जब जितेंद्र ने उसे पैसे देने से मना किया तो वह धमकी देने लगी. उस ने कहा कि अगर उस की बात नहीं मानी तो वह सारी बात शोभा दीदी को बता देगी.

उस दिन के बाद तो अदिति शर्मा जितेंद्र को सीधेसीधे धमका कर पैसों की मांग करने लगी. अदिति शर्मा को लगातार पैसा देने के कारण जितेंद्र की आर्थिक स्थिति भी बिगड़ने लगी थी, जिस से वह परेशान रहता था. जितेंद्र सोचता था कि कुछ दिनों बाद अदिति शर्मा की शादी हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन अदिति शर्मा शादी करने को तैयार नहीं थी. बताते हैं कि एक बार जितेंद्र ने उसे शादी कर लेने की सलाह दी तो अदिति शर्मा ने उस से कहा, ‘‘लड़की 2 जरूरतों के लिए शादी करती है. पहली जरूरत तन की भूख मिटाने की और दूसरी पेट की भूख मिटाने की. इन दोनों जरूरतों के लिए तुम हो तो मैं शादी की बेड़ी पहन कर किसी की गुलाम क्यों बनूं.’’

इस से जितेंद्र समझ गया कि अदिति शर्मा से आसानी से छुटकारा नहीं मिलेगा.  जितेंद्र काफी परेशान रहने लगा था. यह देख कर जब उस की पत्नी ने उस से बारबार पूछा तो घटना से एक दिन पहले उस ने अदिति शर्मा के साथ भूलवश शारीरिक संबंध बन जाने और उस के ब्लैकमेल करने की बात पत्नी और पिता को बता दी थी. दोनों ने ही उसे पुरानी बातें भूल कर नए सिरे से जीवन शुरू करने की सलाह दी थी.

जितेंद्र के पिता और पत्नी को इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि वह यह बात अपना मन हलका करने के लिए नहीं बल्कि आत्महत्या करने से पहले अपनी गलती स्वीकार करने की गरज से बता रहा था.

उस की पत्नी और पिता दोनों का आरोप है कि उन्हें कहानी सुनाने के बाद जितेंद्र का मन हलका हो गया था. संभवत: इस के बाद उस ने अदिति शर्मा की बात मानने से इनकार किया होगा, जिस के बाद अदिति शर्मा ने उसे बदनाम करने की धमकी दी होगी, जिस से डर कर उस ने आत्महत्या कर ली.

बातूनी औरत की फितरत

शिक्षा ने भी यही किया था, इसलिए उस का प्रेमी रोजी सिंह…

पहली अगस्त, 2019 का दिन था. उस वक्त सुबह के लगभग 11 बज रहे थे. उत्तराखंड के जिला हरिद्वार की प्रसिद्ध दरगाह पीरान कलियर के थानाप्रभारी अजय सिंह उस वक्त थाने में ही थे. तभी उन के पास एक व्यक्ति आया.

उस व्यक्ति ने अपना नाम भरत सिंह, निवासी हबीबपुर नवादा बताते हुए कहा कि उस का छोटा भाई रोजी सिंह कल से लापता है. उसे सभी जगहों पर ढूंढ लिया है लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल रही. उस का मोबाइल फोन भी कल से बंद आ रहा है.

‘‘उस की उम्र कितनी है और कैसे गायब हुआ?’’ थानाप्रभारी अजय सिंह ने पूछा.

‘‘सर, उस की उम्र यही कोई 20-22 साल है. वह हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में स्थित एक फैक्ट्री में काम करता है. कल दोपहर बाद 3 बजे वह अपनी मोटरसाइकिल ले कर ड्यूटी पर जाने के लिए निकला था. उस ने जाते समय घर पर बताया था कि रात 11 बजे तक घर लौट आएगा. जब वह रात 12 बजे तक भी नहीं लौटा तो हम ने उसे फोन किया. लेकिन उस का फोन बंद मिला.’’

‘‘तुम्हारा भाई शादीशुदा था? उस की किसी से कोई रंजिश तो नहीं थी?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘नहीं सर, रोजी अविवाहित था. अभी कुछ दिन पहले ही इमलीखेड़ा की एक लड़की के साथ उस की मंगनी हुई थी और रही बात दुश्मनी की तो सर, उस की ही नहीं बल्कि हमारे परिवार में किसी की भी किसी से कोई दुश्मनी नहीं है.’’ भरत सिंह ने बताया.

‘‘आप अपने भाई का फोटो दे कर गुमशुदगी दर्ज करा दीजिए, हम अपने स्तर से उसे ढूंढने की कोशिश करेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

भाई की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद भरत सिंह घर लौट आया. चूंकि मामला जवान युवक की गुमशुदगी का था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर को दे दी. उन्होंने थानाप्रभारी को इस मामले की जांच के निर्देश दिए. लेकिन 2 दिन बाद भी थानाप्रभारी लापता रोजी सिंह के बारे में कोई जानकारी नहीं जुटा पाए तो एसपी (देहात) नवनीत सिंह भुल्लर ने सीओ चंदन सिंह बिष्ट के निर्देशन में एक टीम गठित कर दी.

टीम में थानाप्रभारी अजय सिंह, महिला थानेदार शिवानी नेगी व भवानीशंकर पंत, एएसआई अहसान अली सैफ आदि को शामिल किया गया.

पुलिस टीम ने सब से पहले रोजी सिंह के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. जांच में पता चला कि उस के फोन की आखिरी लोकेशन उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर के बरला कस्बे में थी. इस के अलावा उस के मोबाइल से जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, वह मोबाइल नंबर शिक्षा नाम की युवती का था, जो गांव हबीबपुर नवादा की ही रहने वाली थी.

शिक्षा से पूछताछ करनी जरूरी थी, इसलिए थानाप्रभारी ने शिक्षा को थाने बुलवा लिया. उस से एसआई शिवानी नेगी ने पूछताछ की तो वह कहती रही कि रोजी के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है और न ही उस का रोजी से कोई ताल्लुक है.

‘‘तुम झूठ बोल रही हो, रोजी से तुम्हारी कल भी बात हुई थी. इतना ही नहीं, तुम्हारी इस से पहले भी काफी देरदेर तक बातें होती थीं. अब तुम इतना और बता दो कि 30 जुलाई को रोजी के गायब होने के बाद तुम मुजफ्फरनगर जिले के बरला कस्बे में क्या करने गई थीं?’’

शिवानी नेगी के मुंह से बरला कस्बे का नाम सुनते ही शिक्षा सहम गई और अपना सिर नीचे कर के रोने लगी. एसआई शिवानी नेगी ने उसे सांत्वना दे कर चुप कराया. तभी शिक्षा सुबकते हुए बोली, ‘‘मैडम, रोजी इस दुनिया में नहीं है. उस की हत्या कर दी गई है. हत्या में उस के भाई रोहित, आदेश और उन का दोस्त रजत भी शामिल थे.’’

हत्या की बात सुन कर पुलिस अधिकारी चौंक गए. थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘रोजी की लाश कहां है?’’

‘‘उस की हत्या बरला के गन्ने के एक खेत में ले जा कर की गई थी. लाश भी वहीं पड़ी होगी.’’ शिक्षा ने बताया.

पुलिस ने शिक्षा की निशानदेही पर उस के भाइयों आदेश, रोहित और इन के साथी रजत को गिरफ्तार कर लिया.

सीओ चंदन सिंह ने यह जानकारी एसपी (देहात) नवनीत सिंह को दी तो उन्होंने लाश बरामद करने के लिए एक पुलिस टीम घटनास्थल के लिए रवाना कर दी.

इस के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में एक टीम चारों अभियुक्तों को ले कर बरला पहुंच गई. उन्होंने वहां की पुलिस से संपर्क किया, फिर थानाप्रभारी आरोपियों को साथ ले कर बरला पैट्रोल पंप के पीछे गन्ने के खेत में पहुंचे.

चारों आरोपियों ने पुलिस को वह जगह दिखा दी, जहां पर उन्होंने रोजी सिंह को घेर कर उस की हत्या की थी. इस के बाद पुलिस ने उन चारों की निशानदेही पर गन्ने के खेत से रोजी का शव बरामद कर लिया.

रोजी के सिर का कुछ हिस्सा किसी जानवर ने खा लिया था, दूसरे गरमी की वजह से उस का शव काफी गल गया था. प्राथमिक काररवाई में बरला पुलिस द्वारा रोजी के शव का पंचनामा भरा गया.

घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने रोजी सिंह का शव पोस्टमार्टम के लिए राजकीय अस्पताल मुजफ्फरनगर भेज दिया.

अगले दिन हरिद्वार के एसएसपी सेंथिल अवूदई कृष्णराज एस. ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर चारों आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया और रोजी की हत्या का खुलासा कर दिया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद रोजी सिंह की हत्या की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

शिक्षा रुड़की क्षेत्र के गांव नगला इमरती की रहने वाली थी. करीब 7 साल पहले उस की शादी हबीबपुर नवादा निवासी जोगेंद्र से हुई थी. 3 बच्चे होने के बाद भी उस का रूपयौवन बरकरार था. करीब 2 साल पहले पड़ोस के रहने वाले रोजी सिंह से उस का चक्कर चल गया था. रोजी सिंह अविवाहित था, जिस पर शिक्षा पूरी तरह से फिदा थी. दोनों अकसर खेतों में जा कर रंगरलियां मनाते थे.

जब उन दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी शिक्षा के पति जोगेंद्र को हुई तो उस ने पत्नी को परिवार की इज्जत की दुहाई देते हुए बहुत समझाया, मगर वह नहीं मानी. उस के ऊपर तो रोजी सिंह के इश्क का जबरदस्त भूत सवार था. वह उस के साथ जीनेमरने की कसमें खा चुकी थी.

अंत में जोगेंद्र ने समाज में हो रही बदनामी के कारण शिक्षा को 25 मई, 2019 को घर से निकाल दिया. इस के बाद जोगेंद्र ने इस मामले की सूचना स्थानीय इमलीखेड़ा पुलिस चौकी को भी दे दी थी, मगर पुलिस ने मामले को पतिपत्नी विवाद बता कर जोगेंद्र को महिला हेल्पलाइन केंद्र रुड़की जाने की सलाह दी.

पति द्वारा घर से निकाल देने के बाद शिक्षा अपने मायके में जा कर रहने लगी. लेकिन उस का अपने प्रेमी रोजी सिंह से संपर्क बराबर बना रहा. फोन पर दोनों बात करते रहते थे और समय निकाल कर मिल भी लेते थे.

रोजी के कारण शिक्षा को पति से तो अलग होना ही पड़ा, साथ ही मायके में भी उसे काफी अपमान झेलना पड़ रहा था. मगर रोजी के प्रेम के कारण वह सब सहन कर रही थी. कुछ दिनों पहले शिक्षा को पता चला कि रोजी की मंगनी तय हो गई है. इस बारे में शिक्षा ने रोजी से बात की तो उस ने बताया कि घर वालों के दबाव में उसे शादी करनी पड़ रही है.

प्रेमी का यह जवाब सुन कर वह तिलमिला गई. उस के मन में रोजी के प्रति नफरत पैदा हो गई. क्योंकि जिस रोजी के कारण वह ससुराल से निकाली गई थी, वही रोजी उसे छोड़ कर किसी और लड़की का होने जा रहा था.

रोजी से नफरत होने के कारण शिक्षा ने एक भयानक निर्णय ले लिया. वह निर्णय था रोजी की हत्या का. इस योजना में उस ने अपने 2 भाइयों रोहित व आदेश और उन के दोस्त रजत को भी शामिल कर लिया.

फिर शिक्षा ने एक योजना के तहत 30 जुलाई, 2019 को रोजी को शाम के समय रुड़की में दिल्ली रोड पर स्थित सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंचने को कहा. शिक्षा ने कहा कि हमें बरला कस्बे में एक तांत्रिक के पास चलना है. रोजी निर्धारित समय पर मोटरसाइकिल से सैनिक अस्पताल तिराहे पर पहुंच गया. वहीं पर शिक्षा उस का इंतजार कर रही थी. वह रोजी के पीछे बाइक पर बैठ कर बरला की ओर चल दी.

योजना के अनुसार, उस के दोनों भाई रोहित व आदेश और उन का दोस्त रजत दूसरी बाइक से रोजी का पीछा करते हुए चलने लगे. शिक्षा प्रेमी के साथ बरला के पैट्रोल पंप के पास पहुंच गई.

तब तक अंधेरा घिर चुका था. वहां पहुंचने पर शिक्षा ने रोजी से कहा कि हमें जिस तांत्रिक के पास जाना है, वह पैट्रोल पंप के पीछे जंगल में मिलेगा. रोजी ने अपनी बाइक जंगल की तरफ मोड़ दी. तभी पीछा करते हुए रोहित, आदेश व रजत भी वहां पहुंच गए. उन्हें देख कर रोजी समझ गया कि मामला गड़बड़ है. वह घबरा कर वहां से भागने की कोशिश करने लगा. मगर रोहित व आदेश ने रोजी को दबोच लिया. उन्होंने उस पर डंडे से हमला कर दिया.

रोजी के सिर पर डंडा लगने से वह लहूलुहान हो गया. इस के बाद रोहित व आदेश ने तुरंत रोजी के गले में गमछा डाल कर खींच दिया, जिस से रोजी की मौके पर ही मौत हो गई.

रोजी की मौत के बाद शिक्षा के दोनों भाइयों ने रोजी के शव को खींच कर पास के गन्ने के खेत में डाल दिया. इस के बाद वे लोग रोजी की बाइक, मोबाइल व गमछे को दिल्ली रोड स्थित मंगलौर के निकट फेंक कर घर आ गए.

पुलिस ने शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत से पूछताछ के बाद उन के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 302, 201, 34 के तहत केस दर्ज कर लिया. आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से 3 अगस्त, 2019 को उन्हें जेल भेज दिया गया.

रोजी की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी पुलिस को मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में रोजी का शरीर ज्यादा गल जाने के कारण मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो पाया. इस मामले में डाक्टरों ने उस का विसरा व डीएनए सुरक्षित रख लिया था.

कथा लिखे जाने तक आरोपी शिक्षा, रोहित, आदेश व रजत जेल में थे. केस की आगे की जांच थानाप्रभारी अजय सिंह कर रहे थे.

—पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्य- सत्यकथा, अक्टूबर 2019

 

दूल्हे के हत्यारे : प्रेम के चढ़े नशे ने की हत्या

वह 12-13 मई, 2019 की रात थी. समय रात के डेढ़ बजे. गांवों में यह समय ऐसा होता है, जब लोग गहरी नींद सोए होते हैं. लेकिन उस रात गांव तिंदौली में काफी लोग जाग रहे थे. वजह थी, तिंदौली गांव के निवासी सीताराम कोरी की बेटी पिंकी और गांव महुलहरा के रहने वाले रामदुलार के बेटे सुरेंद्र की शादी. बीती शाम को ही सुरेंद्र की बारात तिंदौली आई थी, जिस का धूमधाम से स्वागत हुआ था.

शादी की रात दूल्हे दुलहन की आखों से नींद उड़ जाती है. दिलों में मिलन की चाह होती है, भविष्य के सपने बुने जाते हैं. लेकिन पिंकी और सुरेंद्र के पास उस वक्त सोचने, कल्पना करने या रोमांटिक होने का समय नहीं था. दोनों शादी की रस्मों में व्यस्त थे.

ज्यादातर रस्में हो चुकी थीं. उस वक्त लावा मांगने की रस्म की तैयारी चल रही थी. तभी मंडप के पास बैठे दूल्हे सुरेंद्र को लघुशंका आई तो उस ने पास बैठे एक दोस्त के कान में कुछ कहा और उस के साथ पास के खेत में चला गया. वह खेत गांव के भोला सिंह का था. उस का साथी खेत के बाहर खड़ा रहा.

सुरेंद्र ने खेत में 3 लोगों को बैठे देखा. लेकिन वह यह सोच कर आगे बढ़ गया कि घराती होंगे. उसी समय उन तीनों ने सुरेंद्र को दबोच लिया और एक युवक उस के पेट पर कैंची से वार करने लगा. दूल्हे सुरेंद्र के साथ आए उस के दोस्त ने उसे बचाने की कोशिश की तो शेष 2 युवकों ने उसे पकड़ लिया. उन्होंने उस का मुंह दबा लिया ताकि वह चीख न सके. सुरेंद्र को मरणासन्न स्थिति में पहुंचा कर तीनों लोग भाग गए. उन के जाने पर सुरेंद्र के दोस्त ने शोर मचाया.

शोर सुन कर लोग खेतों की ओर दौड़े. उन्होंने सुरेंद्र की हालत देखी तो सन्न रह गए. आननफानन में रक्तरंजित सुरेंद्र को खंडासा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया, लेकिन डाक्टरों ने उसे देख कर मृत घोषित कर दिया. सुरेंद्र के पिता रामदुलार कोरी बेटे की लाश से लिपट कर रोने लगे.

वह बेटे को ब्याह कर बहू ले जाने के लिए आए थे, लेकिन अब उन्हें बेटे की रक्तरंजित लाश घर ले जानी थी. उस समय तक यह बात उन के गांव तिंदौली पहुंच गई थी और वहां गांव भर में मातम का माहौल छा गया था. बहू आने की आस लगाए बैठीं औरतों के चीत्कार से गांव के कणकण में उदासी छा गई थी.

उधर तिंदौली के ग्रामप्रधान कल्लू सिंह ने घटना की सूचना थाना कुमारगंज को दे दी थी. सूचना मिलते ही कुमारगंज के थानाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तिंदौली पहुंच गए. सूचना मिलने पर सीओ मिल्कीपुर रुचि गुप्ता, सीओ सदर वीरेंद्र विक्रम पुलिस टीमों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. दरअसल, कत्ल दूल्हे का हुआ था वह भी ससुराल में. ऐसे में स्थिति बिगड़ने की आशंका थी.

गांवों में अच्छी हो या बुरी, बातें ढकीछिपी नहीं रहतीं. इस मामले में भी सुरेंद्र का कत्ल करने वाले तीनों युवकों के नाम उजागर हो गए. इन में एक कामाख्या उर्फ लड्डू था, दूसरा पिंटू पासी था और तीसरा संदीप पासी. तीनों तिंदौली के ही रहने वाले थे. पुलिस ने मृतक के पिता रामदुलार की तहरीर पर तीनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत हत्या का केस दर्ज कर लिया. पुलिस की टीमें उन तीनों की तलाश में लग गईं.

पुलिस की ताबड़तोड़ दबिश शुरू हुई तो कामाख्या उर्फ लड्डू कोरी और पिंटू पासी को तिंदौली गांव से ही गिरफ्तार कर लिया गया. घटना के बाद दोनों गांव में ही छिप गए थे. इन का इरादा था कि माहौल ठंडा होने पर दोनों कहीं भाग जाएंगे.

जब इन दोनों को पुलिस ने पकड़ा तब दोनों के कपड़े खून से लथपथ थे. कामाख्या की निशानदेही पर बांस के एक कोठ से हत्या में इस्तेमाल कैंची बरामद कर ली गई.

पुलिस ने जब कामाख्या उर्फ लड्डू कोरी से हत्या का कारण जानना चाहा तो उस ने पिंकी से प्रेम करने की बात स्वीकारते हुए बताया कि वह उस से प्रेम करता था, जिस के लिए वह अपनी जान दे भी सकता था और किसी की जान ले भी सकता था.

जब उस से पूछा गया कि क्या पिंकी भी उस से प्यार करती थी तो वह कोई जवाब देने के बजाए सिर झुका कर खड़ा हो गया. सुरेंद्र की हत्या की वजह उस ने यह बताई कि वह अपने प्यार को किसी और के हाथों में जाते नहीं देख सकता था. जबकि इस संदर्भ में सीओ मिल्कीपुर रुचि गुप्ता का कहना था कि कामाख्या युवती से प्रेम करता था, जिस की शादी को ले कर वह नाराज था.

पूछताछ में पिंकी ने कामाख्या से प्रेमसंबंध न होने की बात कही. पिंकी के अनुसार, कामाख्या आतेजाते समय उसे घूर कर देखा करता था. कई बार उस ने उस का रास्ता भी रोकने की कोशिश की थी, लेकिन किसी को आते देख वह रास्ते से हट जाता था.

लोकलाज से पिंकी ने यह बात किसी को नहीं बताई थी. उस ने खुद भी इस बात को गंभीरता से नहीं लिया था. उसे डर था कि इसे ले कर गांव में शोर मचा तो उस की और परिवार की बेवजह परेशानी बढ़ जाएगी और बदनामी भी होगी. उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि जिस बात को वह हलके में ले रही है, वही आगे जा कर उस के लिए इतनी घातक साबित होगी.

दूल्हे सुरेंद्र की हत्या के मामले में फरार चल रहे नामजद तीसरे अभियुक्त संदीप पासी उर्फ बिट्टू को पुलिस ने 16 मई को इलाके के संगम ढाबा हलियापुर से गिरफ्तार कर लिया. वह कहीं भागने की फिराक में था.

पकड़े गए अभियुक्तों ने पुलिस को बताया कि उन की सुरेंद्र से कोई रंजिश नहीं थी. उन्होंने जो भी किया, वह कामाख्या के कहने पर किया. उन्हें इस बात का आभास भी नहीं था कि कामाख्या सुरेंद्र की कैंची से गोद कर हत्या करने की तैयार से आया है. पूछताछ के बाद तीनों आरोपियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में अयोध्या जेल भेज दिया गया.

बहरहाल हत्या के पीछे जो भी सच्चाई रही हो, अभियुक्तों की जो भी स्वीकारोक्ति रही हो, लेकिन हकीकत पर गौर करें तो इस एकतरफा प्यार में एक सीधेसादे युवक की मौत ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं.

कहानी सौजन्यसत्यकथा,  जुलाई 2019

हत्यारा आशिक: पहले जान, फिर जान का दुश्मन

सोमनाथ से जबलपुर तक आने वाली सोमनाथ एक्सप्रैस ट्रेन 17 दिसंबर, 2018 को शाम करीब 5 बजे जब जबलपुर स्टेशन पहुंची तो सैकड़ों यात्रियों के साथ एक कोच में सवार मनीष वाजपेयी भी प्लेटफार्म नंबर 3 पर उतरे. मनीष वाजपेयी नर्मदा विकास प्राधिकरण में इंसपेक्टर के पद पर नौकरी करते थे.

मनीष का परिवार जबलपुर के गढ़ा थाना इलाके में इंदिरा गांधी वार्ड की अजनी सोसाइटी में रहता था. मनीष की पोस्टिंग जबलपुर के नजदीक जिले नरसिंहपुर में थी इसलिए वह रोज सुबह ट्रेन से जाने के बाद शाम को सोमनाथ एक्सप्रैस से ही वापस घर आ जाते थे.

मनीष के 2 बेटे हैं, जिन में से बड़ा बेटा इंदौर में इंजीनियर है और छोटा बेटा नरसिंहपुर के पास मुगली गांव में अपने नानानानी के पास रह कर खेती का काम संभालता है. इस तरह उन की पत्नी विनीता दिन भर में अकेली रह जाती थी. इसलिए शाम को स्टेशन से उतर कर घर जाने से पहले मनीष पत्नी को फोन जरूर करते थे ताकि घर की जरूरत का सामान रास्ते से खरीदते हुए घर पहुंचे.

उस रोज भी मनीष ने जबलपुर स्टेशन से बाहर निकल कर पत्नी विनीता से बात की और फिर सीधे घर पहुंच गए. घर पहुंचने तो उन्हें दरवाजे के चैनल गेट पर अंदर से ताला  पड़ा मिला. घर में अकेले रहने पर विनीता चैनल पर ताला लगा देती थी. मनीष ने घंटी बजाई और कुछ देर तक पत्नी द्वारा दरवाजा खोलने का इंतजार किया. लेकिन काफी देर बाद भी विनीता दरवाजा खोलने नहीं आई तो मनीष ने कई बार दरवाजा पीटा व घंटी बजाई. उन्होंने पत्नी के मोबाइल पर भी रिंग की परंतु कोई परिणाम नहीं निकला.

इसी बीच पड़ोस में रहने वाले अशोक वर्मा बाहर आए तो मनीष को दरवाजे पर खड़ा देख कर वह एक मिनट उन के पास रुक कर बात करने लगे. तब मनीष ने विनीता द्वारा दरवाजा न खोलने की बात उन्हें बताई तो अशोक शर्मा ने कहा कि हो सकता है कि विनीता वाशरूम में हो. अशोक मनीष को तब तक अपने घर चाय पीने के लिए ले गए.

मनीष अशोक वर्मा के घर चाय पीतेपीते भी कई बार पत्नी का मोबाइल नंबर मिलाते रहे. लेकिन पत्नी के मोबाइल की घंटी लगातार बज रही थी, पर वह फोन नहीं उठा रही थी. मनीष परेशान थे कि आखिर वह कहां है जो फोन भी नहीं उठा रही.

चाय पीने के बाद दोनों फिर बाहर आ गए. मनीष ने फिर से अपने घर की घंटी बजाई पर कोई नतीजा नहीं निकला. फिर मनीष के कहने पर अशोक वर्मा अपने घर के आंगन से बाउंड्री वाल फांद कर मनीष की छत पर पहुंचे. उन्होंने घर में उतर कर कमरे का नजारा देखा तो वहां उन्हें सब कुछ ठीक नहीं लगा.

अशोक को घबराया देख खुद मनीष भी बाउंड्री वाल फांद कर अपने घर में दाखिल हो गए. जब वह ऊपर की मंजिल पर पहुंचे तो वहां का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

उन की पत्नी विनीता खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. विनीता के गले में पतली रस्सी भी बंधी थी. और पास ही खून से सना बेसबौल का डंडा पड़ा था. यह सब देख कर मनीष अपना होश खो बैठे. उन्होंने तत्काल गैलरी के गेट का ताला तोड़ कर पुलिस व ऐंबुलेंस को फोन किया.

घटना की जानकारी मिलते ही गढ़ा थानाप्रभारी शफीक खान पुलिस फोर्स ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. पहली ही नजर में साफ था कि विनीता की मौत हो चुकी थी. गले में रस्सी बंधी थी और चेहरा पूरी तरह से खराब हो चुका था. मामला हत्या का देख कर थानाप्रभारी ने एसपी अमित सिंह, एएसपी संजीव उइक सीएसपी दीपक मिश्रा को भी घटना की जानकारी दे दी. जिस से एएसपी उइक और सीएसपी दीपक मिश्रा के अलावा एफएसएल और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम भी मौके पर पहुंच गई.

इंसपेक्टर खान ने पूरे मकान का बारीकी से निरीक्षण किया तो पाया कि हत्यारे ने मकान में फ्रेंडली एंट्री की थी. इस का मतलब यह निकला कि हत्यारा विनीता का परिचित ही था. घटनास्थल की जांच और जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने विनीता की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

पुलिस ने मनीष से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन की शाम करीब 5 बजे विनीता से फोन पर उस समय बात हुई थी जब वह ट्रेन से जबलपुर स्टेशन पर उतरे थे. स्टेशन से घर आने में उन्हें 25 मिनट लगे थे. उसी दौरान विनीता के साथ वारदात हुई थी.

चूंकि घर का सभी सामान सुरक्षित था इसलिए हत्या का मकसद लूट नहीं था. 25 मिनट में इतनी सफाई से हत्या कर हत्यारा भाग ही नहीं सकता था. इस से साफ था कि हत्यारा विनीता के साथ घर में पहले से मौजूद रहा होगा. हत्यारा विनीता का मोबाइल अपने साथ ले गया. मतलब साफ था कि मोबाइल के माध्यम से हत्यारे की पहचान संभव थी.

पुलिस ने मृतका विनीता के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाने के अलावा उस के बैकग्राउंड की भी जांच शुरू कर दी. इस के अलावा मनीष वाजपेयी के यहां आनेजाने वालों की सूची बना कर उन सब से भी पूछताछ की.

इस दौरान पता चला कि इन सब में से एक परिचित शहर से लापता मिला और उस का मोबाइल फोन भी बंद आ रहा था. इसलिए पुलिस ने शक की सुई उसी आदमी की तरफ घुमा दी.

इसी बीच पुलिस का ध्यान एक ऐसे फोन नंबर की तरफ भी गया जिस से विनीता के पास अकसर फोन आता था. इस नंबर पर दोनों के बीच वाट्सऐप पर हुई चैटिंग की पुलिस ने जांच की तो पता चला कि उक्त नंबर वाला युवक विनीता पर अनैतिक संबंध बनाने का दबाव बना रहा था.

पुलिस ने इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि घटना वाले समय उक्त फोन नंबर जबलपुर में ही था. इतना ही नहीं दोपहर 12 बजे से साढ़े 5 बजे के बीच उस की लोकेशन भी विनीता के घर के पास के टौवर के टच में थी. यह फोन घटना से 3 दिन पहले से जबलपुर में था और घटना वाले दिन सुबह के समय उस फोन से विनीता से बात भी की थी.

इसलिए पुलिस ने पूरा ध्यान इस फोन नंबर पर ही लगा दिया. उस फोन का सिमकार्ड शिवकांत उर्फ रिंकू पुत्र धर्मनारायण पांडे, निवासी बड़ा शिवाला मझनपुर, जिला कौशांबी, उत्तर प्रदेश के नाम से खरीदा गया था.

पुलिस ने इस संदिग्ध फोन नंबर को सर्विलांस पर लगा दिया. साइबर सेल की मदद से जांच टीम को जानकारी मिली कि उस फोन की लोकेशन कस्बे में कक्षपुर ब्रिज के पास है. टीम तुरंत वहां पहुंच गई और एक युवक को कक्षपुर ब्रिज के पास से गिरफ्तार कर लिया.

उस ने अपना नाम शिवकांत उर्फ रिंकू बताया. उस के कपड़ों पर खून के कुछ दाग लगे मिले जिस से पुलिस को पूरा भरोसा हो गया कि विनीता का कातिल कोई और नहीं रिंकू ही है. पूछताछ में रिंकू विनीता को जानने से भी इनकार करता रहा लेकिन जब पुलिस ने उस का मिलान विनीता के घर के पास लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज से किया तो रिंकू दोपहर लगभग 12 बजे विनीता के घर आता हुआ और शाम साढ़े 5 बजे वहां से वापस जाता दिखा.

अब रिंकू सीसीटीवी फुटेज को गलत साबित नहीं कर सकता था. लिहाजा चारों तरफ से घिर जाने पर रिंकू ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उस ने विनीता की हत्या की जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली निकली—

कोई 25 साल पहले नरसिंहपुर के मुगली गांव की रहने वाली विनीता की शादी नर्मदा विकास प्राधिकरण में कार्यरत मनीष वाजपेयी के साथ हुई थी. दोनों के 2 बेटे हैं.

मनीष संपन्न परिवार के अकेले बेटे थे तो वहीं विनीता भी उच्च परिवार की एकलौती बेटी थी. सरकारी नौकरी में मनीष अच्छे पद पर थे. इसलिए घर में रुपएपैसों की कोई कमी नहीं थी.

पूरा परिवार काफी सभ्य और सुलझे विचारों वाला था. विनीता धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह शहर में होने वाले धार्मिक आयोजनों में अकसर शामिल होती रहती थी. विनीता जितनी सुंदर देखने में थी, उतनी ही वह मन की भी साफ थी.

कुछ समय पहले वह एक धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने वृंदावन गई थी. उस कार्यक्रम में कौशांबी से शिवकांत मिश्रा उर्फ रिंकू फोटोग्राफी करने वहां आया हुआ था. उस कार्यक्रम में शामिल कई लोग रिंकू से अपने फोटो खिंचवा रहे थे. विनीता को ऐसे मौके पर फोटो खिंचाने का शौक नहीं था. इसलिए वह चुपचाप भीड़ से अलग खड़ी थीं.

इस दौरान रिंकू की नजर विनीता पर पड़ी तो वह उस की सुंदरता पर मोहित हो गया. वह विनीता के पास आ गया और विनीता से अपनी फोटो खिंचवाने का आग्रह करने लगा.

पहले तो विनीता ने उसे मना कर दिया लेकिन जब रिंकू ने जिद की तो विनीता ने अपने कुछ फोटो उस से खिंचवाए. जिस के बाद औनलाइन फोटो भेजने के लिए रिंकू ने उन का वाट्सऐप नंबर भी ले लिया.

इस के 2 दिन बाद रिंकू ने विनीता के सारे फोटो वाट्सऐप से भेज दिए. साथ ही फोटो खिंचवाने के लिए उस ने विनीता का आभार भी व्यक्त किया.

विनीता जैसी खुद सरल स्वभाव की थी, वैसा ही वह फोटोग्राफर रिंकू को समझ रही थी. लेकिन रिंकू ऐसा था नहीं. कुछ दिन बाद फोटो मिलने की बात पूछने के बहाने रिंकू ने विनीता को फोन किया और दोस्ती बढ़ाने के लिए वह उस से मीठीमीठी बातें करने लगा. धीरेधीरे जब उस ने विनीता के घर का पता सहित उस के बारे में सब कुछ जान लिया तो वह अपनी औकात पर आ गया.

वाट्सऐप मैसेज भेज कर वह विनीता से उस की खूबसूरती की तारीफ करने लगा और बातोंबातों में उस ने उस से अपने प्यार का इजहार भी कर दिया. विनीता को यह बात अजीब लगी. कोई दूसरी महिला होती तो शायद वह उस की शिकायत पुलिस से कर देती. लेकिन विनीता ने ऐसा न कर के पहले उसे समझाने की कोशिश की लेकिन वह उसे जितना समझाने की कोशिश करती, रिंकू उतनी ही आशिकी भरी बातें करता.

विनीता ने एक गलती जो की थी, वह यह थी कि जिस रोज रिंकू ने पहली बार उस से इश्क का इजहार किया था, उसी रोज उसे बात पति को बता देनी चाहिए थी, पर नहीं बताई. दरअसल उस का सोचना था कि वह अपने स्तर से इस समस्या को सुलझा लेगी. लेकिन अब पानी सिर से ऊपर पहुंचने लगा था.

समस्या कितनी बड़ी है इस बात का अंदाजा उसे उस रोज लगा जब रिंकू कई दूसरे कार्यक्रम में फोटोग्राफी करने जबलपुर तक आने लगा. विनीता के घर का पता उस ने पहले ही ले लिया था.

उसे यह भी मालूम था कि विनीता अकसर घर पर अकेली रहती है. इसलिए वह रोज अचानक ही वह उस के घर आ धमका.

उस के घर आ कर भी वह उस से अपने प्यार का इजहार करने लगा. इस पर विनीता ने उसे समझाया, ‘‘देखो रिंकू, मैं शादीशुदा हूं, इसलिए मुझ से इस तरह की उम्मीद करना गलत है.’’

‘‘मैं शादी करने की बात कहां कर रहा हूं. मैं तो केवल साथ में एक रात बिताने की मांग कर रहा हूं.’’ रिंकू ने बेशर्मी से कहा.

उस की बात पर विनीता को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन कोई तमाशा खड़ा न हो इसलिए उसे समझाबुझा कर वापस भेज दिया. लेकिन इस घटना के बाद वह विनीता को वाट्सऐप पर काफी अश्लील मैसेज भेजने लगा. जिस से तंग आ कर विनीता ने उसे सख्त शब्दों में आगे से कोई मैसेज या फोन न करने की चेतावनी दे दी.

रिंकू ने पुलिस को बताया कि वह विनीता की खूबसूरती का इतना दीवाना हो चुका था कि वह हर हाल में उसे पाना चाहता था. घटना वाले दिन जब वह जबलपुर आया तो उस ने पहले ही निर्णय कर लिया था कि इस बार विनीता के घर से खाली वापस नहीं आएगा. इसलिए उस रोज मनीष के नरसिंहपुर के लिए रवाना होते ही वह उस के घर पहुंच गया.

घर पहुंच कर वह विनीता पर अपनी बात मनवाने का दबाव बनाने लगा. लेकिन विनीता ने साफतौर पर उस की बात मारने से इनकार कर दिया. इतना ही नहीं उस ने रिंकू से वहां से चले जाने को कह दिया.

लेकिन रिंकू उस के घर पर जम कर बैठ गया. इस पर विनीता ने उस से कहा कि अगर अब भी वह सही रास्ते पर नहीं आया तो वह उस की सारी वाट्सऐप चैटिंग पति को दिखा कर उस की शिकायत पुलिस से भी कर देगी. पर विनीता की बात का रिंकू पर कोई असर नहीं पड़ा.

इसी बीच शाम 5 बजे मनीष ने जबलपुर स्टेशन आ कर विनीता को फोन किया तो उस समय रिंकू वहीं बैठा था. उसे लगा कि आज विनीता अपने पति को सब कुछ बता देगी. इसलिए विनीता के साथ वह जबरदस्ती करने लगा. उस का सोचना था कि अगर वह किसी तरह से संबंध बनाने में कामयाब हो गया तो शायद वह उस की शिकायत पति से नहीं कर पाएगी.

लेकिन विनीता ने रिंकू को धक्का दे कर खुद से दूर कर दिया और बचने के लिए वह ऊपर के कमरे में भागी, जहां पीछे से रिंकू भी पहुंच गया. उसी समय रिंकू ने साथ लाई पतली रस्सी उस के गले पर कस दी जिस से उस की सांस रुक गई. फिर पास रखे बेसबौल के डंडे से उस के चेहरे पर बेहताशा वार किए. उसे लगा कि यह मर चुकी है, तो वह वहां से विनीता का फोन ले कर भाग गया.

उस ने विनीता का फोन कक्षपुरा ब्रिज के पास छिपा दिया था, जो पुलिस ने बरामद कर लिया. रिंकू का सोचना था कि विनीता ने उस की पहचान के बारे में किसी तीसरे को जानकारी नहीं दी है इसलिए उस का नाम कभी भी इस मामले में सामने न आने पर वह कभी नहीं पकड़ा जाएगा.

पर उस की सोच गलत साबित हुई. पुलिस ने रिंकू से पूछताछ करने के बाद उसे न्यायालय में पेश किया जहां से उसे जेल भेज दिया.

सौजन्य- सत्यकथामार्च 2018

शिवानी की मर्डर मिस्ट्री

शादी के कुछ सालों के बाद पतिपत्नी के रिश्तों में ठंडापन आने लगता है. समझदार लोग उस समय को अपनी बातों से गरमा कर बोरियत से निजात पा लेते हैं. लेकिन पुष्कर और शिवानी जैसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने ही जीवनसाथी की कमतरी ढूंढने लगते हैं.

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

जिंदगी की चादर के छेद : प्रेम ने किया रिश्तों का अंत

उत्तर प्रदेश के बदायूं शहर के सिविल लाइंस इलाके में एक स्कूल है होली चाइल्ड. निशा इसी स्कूल में पढ़ाती थी. उस का पति राजकुमार पादरी था और उस की पोस्टिंग बदायूं जिला मुख्यालय से लगभग 23 किलोमीटर दूर वजीरगंज की एक चर्च में थी. चर्च में जब ज्यादा काम रहता था तो राजकुमार रात में वहीं रुक जाता था.

निशा को स्कूल की बिल्डिंग में ही रहने के लिए कमरा मिला हुआ था, जहां पर वह पति राजकुमार और 2 बेटियों रागिनी व तमन्ना के साथ रहती थी. राजकुमार और निशा की मुलाकात लखनऊ में पादरी के काम की ट्रेनिंग के दौरान हुई थी, जोकि वीसीसीआई संस्था द्वारा अपने धर्म प्रचारकों को दी जाती है. कुछ मुलाकातों के बाद दोनों एकदूसरे को पसंद करने लगे.

निशा मूलरूप से गोरखपुर जिले की रहने वाली थी. उस के पिता दयाशंकर पादरी थे. निशा की बड़ी बहन शारदा की शादी बरेली निवासी रघुवीर मसीह के बेटे दिलीप के साथ हुई थी. इसी के चलते बहन के देवर राजकुमार से निशा की नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों जानते थे कि घर वालों को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं होगा, अत: दोनों ने अपनी पसंद की बात अपने परिवार वालों को बता दी थी.

राजकुमार ने लखनऊ में अपनी ट्रेनिंग पूरी कर ली लेकिन किन्हीं कारणों से निशा को ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ देनी पड़ी. राजकुमार बरेली निवासी रघुवीर मसीह का बेटा था. रघुवीर मसीह पुलिस विभाग में वायरलैस मैसेंजर के पद पर बदायूं में तैनात था.

सन 2014 में पारिवारिक सहमति से राजकुमार और निशा का विवाह हो गया. रघुवीर मसीह के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा रवि था, जिस की शादी बाराबंकी निवासी अनुराधा से हुई थी. दूसरा दिलीप था, जिस की शादी निशा की बड़ी बहन शारदा से हुई थी. उस से छोटा राजकुमार था और सब से छोटा राहुल.

राजकुमार की पहली पोस्टिंग कासगंज जिले के सोरों कस्बे में नवनिर्मित चर्च में हुई थी. इसी बीच राजकुमार की शादी हो गई और रघुवीर मसीह ने कोशिश कर के राजकुमार का तबादला कासगंज से वजीरगंज करवा दिया.

शादी के बाद कुछ समय तो अच्छा कटा. राजकुमार की मां आशा मसीह ने नवविवाहिता बहू निशा को हाथोंहाथ लिया, पर निशा को राजकुमार के घर का माहौल रास नहीं आया. इसलिए उस ने पति से कहा कि वह घर में बैठ कर वक्त बरबाद नहीं करना चाहती.

निशा इंटरमीडिएट पास थी और उस की अंगरेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी. वह सोचती थी कि किसी भी इंग्लिश स्कूल में उसे नौकरी मिल सकती है.

नौकरी करने वाली बात निशा ने पति और सासससुर से बताई तो उन्हें इस पर कोई ऐतराज नहीं हुआ. निशा को इजाजत मिल गई और थोड़ी कोशिश से निशा को होली चाइल्ड स्कूल में नौकरी मिल गई.

कालांतर में निशा 2 बेटियों की मां बनी, जिन के नाम रागिनी और तमन्ना रखे गए. अब उन का छोटा सा खुशहाल परिवार था. वे स्कूल परिसर में स्थित कमरे में रहते थे. राजकुमार और निशा का दांपत्य जीवन काफी सुखद था. किन्हीं खास मौकों पर वे लोग बरेली चले जाते थे.

बदलने लगी निशा की सोच  सब कुछ ठीक चल रहा था, पर वक्त कब करवट ले लेगा, इस का आभास किसी को नहीं था. स्कूल की नौकरी करतेकरते निशा को लगने लगा था कि राजकुमार से शादी करना उस के जीवन की सब से बड़ी भूल थी. वह अच्छाखासा कमा लेती है. अगर उस ने शादी की जल्दबाजी न की होती तो उसे कोई पढ़ालिखा अच्छा पति मिलता और वह ऐश करती.

ऐसे विचार मन में आते ही उस का दिल बेचैन होने लगा. जितना उसे मिला था, उस से उसे संतोष नहीं था. उस की कुछ ज्यादा पाने की चाहत बढ़ रही थी.  कहते हैं, अकसर ज्यादा पाने की चाह में लोग बहुत कुछ गंवा देते हैं. निशा का भी यही हाल था. अब धीरेधीरे राजकुमार और निशा के जीवन में तल्खियां बढ़ने लगीं. निशा छोटीछोटी बातों को ले कर मीनमेख निकालती और उस से झगड़ा करने की कोशिश करती.

सीधेसादे राजकुमार को हैरानी होती थी कि निशा को आखिर हो क्या गया है. एक दिन निशा ने कहा, ‘‘तुम क्या थोड़ी और पढ़ाई नहीं कर सकते थे? कम से कम मेरी तरह इंटर तो पास कर लेते. पढ़ेलिखे होते तो तुम्हारा दिमाग भी खुला होता.’’

‘‘मैं ज्यादा पढ़ालिखा न सही, पर अपने काम में तो परफैक्ट हूं. लोगों को अपने धर्म का ज्ञान बेहतर तरीके से देता हूं. हालांकि मैं केवल हाईस्कूल पास हूं लेकिन मैं ने यह ठान लिया है कि अपनी बेटियों को खूब पढ़ाऊंगा.’’ राजकुमार बोला.

‘‘बेटियों की फिक्र तुम छोड़ो. यह सब मुझे सोचना है कि उन के लिए क्या करना है.’’ निशा ने पति की बात काटते हुए कहा. राजकुमार तर्क कर के बात बढ़ाना नहीं चाहता था. इसलिए वह पत्नी के पास से उठ गया. दोनों बेटियों को साथ ले कर वह यह सोच कर घर से बाहर निकल गया कि थोड़ी देर में निशा का गुस्सा शांत हो जाएगा.

थोड़ी देर बाद जब वह घर पहुंचा तो निशा नार्मल हो चुकी थी. राजकुमार ने राहत की सांस ली. निशा ने राजकुमार का खाना लगा दिया, तभी स्कूल का चपरासी 20 वर्षीय अर्जुन आया और वह निशा को चाबियां देते हुए बोला, ‘‘मैडम, मैं ने बाकी ताले बंद कर दिए हैं. आप केवल बाहरी गेट का ताला लगा लेना, मैं घर जा रहा हूं.’’

‘‘अर्जुन, बैठो, चाय पी कर जाना.’’ निशा ने कहा.  निशा के कई बार कहने पर अर्जुन कुरसी पर बैठ गया. अर्जुन बाबा कालोनी निवासी ओमेंद्र सिंह का बेटा था. वह स्कूल में चपरासी था और उस का छोटा भाई किरनेश स्कूल के प्रिंसिपल के घर का नौकर था.

कुछ देर में निशा चाय बना कर ले आई. चाय पी कर अर्जुन चला गया. लेकिन राजकुमार के दिल में कुछ खटकने लगा. उस ने निशा से कहा, ‘‘मुझे इस अर्जुन की आदतें कुछ अच्छी नहीं लगतीं. वैसे भी ये स्कूल का चपरासी है और तुम टीचर, तुम्हें अपने स्टैंडर्ड का ध्यान रखना चाहिए.’’

निशा ने तुनक कर कहा, ‘‘मैं ने ऐसा क्या कर दिया जो तुम मेरे स्टैंडर्ड को कुरेद रहे हो.’’

राजकुमार ने कोई जवाब नहीं दिया. वह बात को बढ़ाना नहीं चाहता था. लेकिन उस दिन के बाद निशा का ध्यान अर्जुन पर टिक गया. जब वह अकेली होती तो अचानक अर्जुन उस के जेहन में आ बैठता.

निशा के दिल के दरवाजे पर दस्तक दी अर्जुन ने  कुछ दिनों बाद राजकुमार की तबीयत खराब हो गई. वह कभीकभी 2 दिन तक चर्च में ही रुक जाता और बदायूं नहीं आ पाता था. इस अकेलेपन ने निशा को गुमराह कर दिया. अर्जुन एक स्वस्थ और स्मार्ट युवक था. वैसे भी निशा के साथ वह घुलनेमिलने लगा था. अब राजकुमार की गैरमौजूदगी में वह निशा के कमरे में आ जाता और उस की बेटियों के लिए खानेपीने की चीजें ले आता था.

निशा के मन में अर्जुन अपनी जगह बनाने लगा था. निशा भी अर्जुन के बारे में सोचती रहती थी. वह उस की मजबूत बांहों में समाने के लिए बेताब रहने लगी थी. उधर अर्जुन निशा को चाहता तो था लेकिन निशा के पति की वजह से पहल करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

कहा जाता है कि फिसलन की ओर बढ़ने वाले कदम आसानी से दलदल तक पहुंच जाते हैं. यही निशा के साथ हुआ. एक दिन शाम को निशा के पास राजकुमार का फोन आया. उस ने कहा कि वह आज रात को घर नहीं आ पाएगा. इस फोन काल ने निशा के दिल में हलचल मचा दी. उस के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

निशा के दिमाग में अर्जुन घूम रहा था. उस ने कमरे से बाहर निकल कर देखा तो उस समय अर्जुन स्कूल के अपने काम निपटा कर घर जाने की तैयारी कर रहा था. तभी निशा ने उसे आवाज दे कर बुलाया, ‘‘अर्जुन, तुम कमरे में आओ, कुछ बात करनी है.’’

अर्जुन कमरे में आ गया. निशा उस के लिए चाय बना कर ले आई. निशा ने चाय का प्याला उस की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अर्जुन, आज रात राजकुमार घर नहीं आएगा. अकेले में मुझे डर लगेगा, तुम आज रात यहीं रुक जाओ, जिस से मेरा भी मन लगा रहेगा.’’

अर्जुन ने गहरी नजर से निशा को देखा. उसे निशा का अंदाज कुछ अजीब सा लगा. उस की चुप्पी देख कर निशा ने पूछा, ‘‘कुछ परेशानी है क्या?’’

‘‘नहीं मैडम, ऐसी कोई बात नहीं है. मैं सोच रहा हूं कि अगर साहब को पता चला तो पता नहीं वो मेरे बारे में क्या सोचेंगे, वह तो वैसे भी मुझे पसंद नहीं करते.’’

‘‘तुम उन की चिंता मत करो. तुम्हें मैं तो पसंद करती हूं न.’’ निशा ने मुसकराते हुए कहा तो अर्जुन की भावनाओं में जैसे तूफान उठने लगा. उस ने उसी समय जेब से मोबाइल निकाला और अपने घर फोन कर के बता दिया कि स्कूल में कुछ काम होने की वजह से वह आज घर नहीं आ पाएगा.

इस के बाद अर्जुन उस के कमरे में बैठ गया. निशा ने खाना बनाने की तैयारी शुरू कर दी. तब तक अर्जुन उस के दोनों बच्चों के साथ खेलने लगा. खाना बनने के बाद निशा ने बच्चों को पहले खाना खिलाया और उन्हें सुला दिया.

फिर निशा ने अपना और अर्जुन का खाना लगाया. खाना खातेखाते अर्जुन उस के खाने की तारीफ करते हुए बोला, ‘‘मैडम, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

‘‘खाना बनाना ही नहीं, मैं बहुत से काम बहुत अच्छे से करती हूं.’’ कह कर निशा हंसने लगी. फिर उस ने एक प्रश्न किया, ‘‘अर्जुन, तुम ने अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

अर्जुन निशा को गौर से देखते हुए बोला, ‘‘रिश्ते तो कई आए थे मैडम, लेकिन जब से आप को देखा है मेरा इरादा बदल गया है.’’

‘‘क्या मतलब?’’ निशा ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘मतलब यह कि मुझे आप जैसी स्मार्ट जीवनसाथी की जरूरत है.’’

निशा की चाहत बन गया अर्जुन  अर्जुन की बात सुन कर निशा मन ही मन खुश हुई कि इस का मतलब वह उसे पहले से ही चाहता है. निशा कुछ नहीं बोली बल्कि मुसकराने लगी. खाना खाते हुए दोनों इसी तरह की बातें करते रहे.

खाना खाने के बाद निशा ने अर्जुन का बिस्तर जमीन पर लगाते हुए कहा कि वह यहां आराम कर सकता है. इस के बाद रसोई का काम खत्म कर के वह भी आ गई. उस ने चटाई बिछा कर अपना बिस्तर भी जमीन पर लगा लिया. धीरेधीरे रात गहराती जा रही थी और वहां भी कुछ ऐसा होने वाला था, जो किसी के लिए बरबादी ला सकता था.

निशा की आंखों में नींद नहीं थी. उस ने अर्जुन की तरफ देखा तो वह भी करवटें बदल रहा था. उस ने पूछा, ‘‘अर्जुन, नींद नहीं आ रही क्या?’’  ‘‘हां, नींद नहीं आ रही. पर सोच रहा हूं कि आप के पति तो अकसर वजीरगंज में ही रुक जाते हैं, फिर आप ने आज मुझे यहां क्यों रोका है?’’

निशा ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम क्या सचमुच अनाड़ी हो या अनजान बनने का नाटक कर रहे हो. मैं ने तुम्हारी आंखों में कुछ खास देखा था, वही पिछले कई दिनों से मुझे परेशान कर रहा है. अर्जुन भूख अकसर 2 लोगों को एकदूसरे के करीब ले आती है.’’

‘‘यह क्या कह रही हैं आप?’’ अर्जुन बोला.  ‘‘ठीक ही कह रही हूं. मैं तुम से प्यार करने लगी हूं अर्जुन.’’

अर्जुन को जैसे करंट सा लगा, पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था. निशा ने आगे बढ़ कर अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, ‘‘डरो मत अर्जुन, मैं सचमुच तुम्हें चाहती हूं और यह कोई गुनाह नहीं है. मैं अपने पति से तंग आ चुकी हूं.’’

अर्जुन फिसलन की कगार पर खड़ा था. निशा के स्पर्श से वह दलदल में जा गिरा. शादीशुदा और 2 बच्चों की मां ने उसे एक ऐसे दलदल में खींच लिया, जिस के अंदर जाना तो आसान था पर बाहर आने का कोई रास्ता नहीं था.

उस दिन के बाद रिश्तों की दिशा और दशा ही बदल गई. अपनी तबाही से बेखबर राजकुमार अगले दिन घर आ गया. राजकुमार की बरबादी की नींव रखी जा चुकी थी. बीवी ने बेवफाई करने के लिए कमर कस ली थी. अब आए दिन वह पति से झगड़ने लगी. राजकुमार भी महसूस कर रहा था कि स्कूल का चपरासी अर्जुन अब पहले की तरह उस की इज्जत नहीं करता.

एक दिन वह जब वजीरगंज से लौटा तो उस ने अर्जुन को कमरे में चारपाई पर पसरा हुआ देखा. यह देख कर राजकुमार का माथा गरम हो गया. वह बोला, ‘‘अर्जुन, तुम यहां क्या कर रहे हो? लगता है, तुम अपनी औकात भूल रहे हो. मेरी गैरमौजूदगी में तुम्हें यहां आने की जरूरत नहीं है.’’

उस समय तो अर्जुन वहां से चला गया. उस ने खुद को अपमानित महसूस किया और तय किया कि राजकुमार को सबक सिखाएगा.  राजकुमार के तेवर देख कर निशा भी डर गई थी. राजकुमार ने कहा, ‘‘निशा, यह अर्जुन मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं है. तुम इस से दूर ही रहो. देखो, मैं सोच रहा हूं कि अपना तबादला बरेली में ही करा लूं. पापा भी रिटायर हो गए हैं, अपना मकान भी उन्होंने बना लिया है. फिर तुम्हें भी बरेली में कहीं नौकरी मिल ही जाएगी.’’

‘‘देखो, अर्जुन इसी स्कूल में काम करता है. तुम्हारे जाने के बाद वह मार्केट से घर की जरूरत का सामान भी ला देता है. तुम खामख्वाह उस पर गरम हो रहे थे. देखो, हमें यहां कमरा मिला हुआ है. यहां कोई परेशानी भी नहीं है. और फिर यह बात तुम जानते हो कि मैं जौइंट फैमिली में नहीं रह सकती.’’ निशा ने पति को समझाया.

‘‘इस मामले में मैं घर वालों से बात करूंगा.’’ कह कर राजकुमार बाथरूम चला गया.

राजकुमार अनभिज्ञ था पत्नी के संबंधों से राजकुमार को अभी तक यह पता नहीं था कि अर्जुन और उस की पत्नी निशा के बीच किस तरह के संबंध हैं. पिछले 6 महीने से वह महसूस कर रहा था कि निशा बदल रही है.  कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता. निशा और अर्जुन के संबंधों की असलियत भी सामने आ ही गई. उस दिन अर्जुन घर जाने ही वाला था कि राजकुमार का पत्नी के पास फोन आ गया कि वह आज रात को घर नहीं आएगा.

यह खबर सुन कर निशा खुश हुई. उस ने अर्जुन को बुला कर कहा, ‘‘आज रात फिर अपनी ही है क्योंकि राजकुमार आज भी नहीं आएगा. ऐसा करो कि तुम नहाधो कर फ्रैश हो जाओ. तब तक मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूं.’’

निशा ने गैस पर चाय चढ़ा दी. अर्जुन भी फ्रैश होने के लिए बाथरूम में घुस गया. फ्रैश होने के बाद वह निशा के साथसाथ चाय पीने लगा. चाय की चुस्कियां लेते हुए वह बोला, ‘‘ऐसा आखिर कब तक चलेगा, हमें कुछ करना ही होगा.’’

‘‘हां करेंगे.’’ कहते हुए निशा ने कहा, ‘‘अभी तो इन पलों को जिओ, जो हमें मिल रहे हैं.’’  इस के बाद दोनों मौजमस्ती में लीन हो गए. अर्जुन इस बात से बेखबर था कि उस ने बाहरी गेट बंद नहीं किया था. तभी अचानक दबेपांव राजकुमार वहां आ गया. बीवी को अर्जुन की बाहों में देख कर वह आगबबूला हो गया. उस ने अर्जुन की टांग पकड़ कर खींची और उसे कई तमाचे जड़ दिए.

किसी तरह अर्जुन उस के चंगुल से निकल कर भाग गया. तभी राजकुमार ने कहा कि वह इस की शिकायत स्कूल से करेगा.

अर्जुन के चले जाने के बाद राजकुमार ने निशा को जम कर लताड़ा. निशा उस के पैरों में गिर कर अपनी गलती की माफी मांगने लगी, पर राजकुमार के तेवर सख्त थे. उस ने  कह दिया कि अब हम यहां नहीं रहेंगे. राजकुमार ने पिता को फोन पर सारी बातें बता दीं और कहा कि अब हम बरेली में नेकपुर स्थित अपने घर में रहेंगे.

पति का फैसला सुन कर निशा परेशान हो गई. वह किसी भी हालत में बदायूं को छोड़ना नहीं चाहती थी. अत: उस ने तय कर लिया कि वह पति नाम के इस कांटे को अपनी जिंदगी से उखाड़ फेंकेगी.

अगले दिन राजकुमार वजीरगंज चला गया. निशा ने मौका मिलते ही अर्जुन को एकांत में बुला कर कहा, ‘‘अगर मुझे चाहते हो तो तुम्हें राजकुमार को रास्ते से हटाना होगा.’’

अर्जुन का दिल तेजी से धड़कने लगा क्योंकि ऐसा तो उस ने कभी सोचा ही नहीं था.  उसे चुप देख निशा बोली, ‘‘हां, मैं ठीक ही कह रही हूं. आज राजकुमार जब घर आएगा तो तुम घर आ कर उस से अपनी गलती की माफी मांगना और उस का विश्वास जीतना. इस के आगे क्या करना है, मैं बाद में बताऊंगी.’’

अर्जुन ने ऐसा ही किया. राजकुमार जब घर पहुंचा तो अर्जुन उस के घर चला गया. उसे देखते ही राजकुमार उस पर भड़का तो अर्जुन ने उस से अपनी गलती पर अफसोस जताते हुए माफी मांग ली. सीधेसादे राजकुमार ने उसे माफ कर दिया और कहा कि अब वैसे भी हमें यहां नहीं रहना है.

माफी मांग कर काट दी जीवन की डोर  पर अर्जुन के दिल में राजकुमार के प्रति क्या था, यह बात राजकुमार नहीं जानता था. राजकुमार मौत की दस्तक को सुन ही नहीं पाया था. 15 जून, 2019 को अपनी योजना के मुताबिक अर्जुन अपनी बाइक पर आया. उस ने राजकुमार से कहा, ‘‘चलिए, मछली लेने चलते हैं.’’

राजकुमार भी माहौल का तनाव कम करना चाहता था. वह अर्जुन को माफ कर चुका था.  साजिश से अनजान राजकुमार अर्जुन के साथ बाइक पर बैठ गया. अर्जुन बाइक को इधरउधर घुमाता रहा. फिर बाइक मझिया गांव के सुनसान इलाके में ले गया और बोला, ‘‘अब बाइक आप चलाओ, मैं पीछे बैठता हूं.’’

राजकुमार ने ड्राइविंग सीट संभाली. दोनों शर्की रेलवे स्टेशन से कुछ ही दूरी पर पहुंचे थे कि बाइक पर पीछे बैठे अर्जुन ने जेब से तमंचा निकाला और राजकुमार के सिर पर गोली मार दी. राजकुमार का बैलेंस बिगड़ा और वह बाइक समेत जमीन पर गिर गया. राजकुमार खून से लथपथ था. अब योजना के मुताबिक राजकुमार को रेलवे ट्रैक पर डालना था ताकि उस की मौत ट्रेन एक्सीडेंट लगे.

अर्जुन चाहता था ट्रेन एक्सीडेंट समझा जाए  खून से लथपथ राजकुमार को अर्जुन ने रेलवे ट्रैक पर डाल दिया. उस के कपडे़ भी खून से लथपथ थे. रेलवे लाइन पर पड़ा राजकुमार तड़प रहा था. वह अभी जिंदा था पर अर्जुन ने जो सोचा था, हो नहीं सका. कासगंज से बरेली जाने वाली ट्रेन तब तक गुजर गई थी. अब सुबह 5 बजे से पहले वहां से कोई गाड़ी निकलने वाली नहीं थी.

अर्जुन ने बाइक स्टार्ट की और घर आ गया. उस ने खून सने कपड़े उतारे. कपड़ों पर लगा खून देख कर घर वाले सन्न रह गए. उन्होंने अर्जुन से जब सख्ती से पूछताछ की तो पता चला कि अर्जुन ने राजकुमार का कत्ल कर दिया है.

अर्जुन ने अपने कपड़े धो डाले और घर वालों से सख्त लहजे में कहा कि कोई भी अपना मुंह नहीं खोलेगा. उस ने निशा को काम हो जाने की खबर फोन पर दे दी.

रात जैसेतैसे गुजर गई. सुबह मार्निंग वाक पर निकले लोगों ने रेलवे ट्रैक पर लाश देखी तो किसी ने इस की सूचना रेलवे पुलिस को दे दी. पुलिस वहां आ गई और लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. पर उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. सिविल लाइंस थाने की पुलिस भी वहां पहुंच गई.

उधर राजकुमार को 15 जून को बरेली जाना था, यह बात उस ने फोन पर अपने पिता रघुवीर को बता दी थी, लेकिन वह रात में घर नहीं पहुंचा तो घर वाले परेशान हो गए.  इधर थाना सिविल लाइंस के थानाप्रभारी ओ.पी. गौतम, सीओ राघवेंद्र सिंह राठौर और एसपी (सिटी) जितेंद्र कुमार श्रीवास्तव भी मौके पर पहुंच गए थे. फोरैंसिक टीम भी जांच के लिए पहुंच गई थी. जांच में पुलिस को मृतक की जेब से 100 रुपए का एक नोट और एक परची मिली. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.  17 जून को लाश का फोटो अखबारों में छपा तो रघुवीर के एक रिश्तेदार जे.पी. मसीह ने उन्हें फोन कर के पूछा कि राजकुमार कहां है? रघुवीर ने कहा कि राजकुमार को बरेली आना था, पर आया नहीं है.

सब जगह फोन कर लिया, पर उस का कुछ पता नहीं है. तब जे.पी. मसीह अखबार ले कर रघुवीर के घर पहुंच गए और उन्हें अखबार दिखाया. अखबार में अपने बेटे की लाश का फोटो देख कर रघुवीर की आंखों से आंसू निकल आए. वह परेशान हो गए तभी उन के पास पुलिस कंट्रोल रूम से भी फोन आ गया.

रघुवीर अपने रिश्तेदारों के साथ पोस्टमार्टम हाउस पहुंच गए और लाश की शिनाख्त बेटे राजकुमार के रूप में कर दी. निशा भी किसी से खबर पा कर घडि़याली आंसू बहाती हुई पोस्टमार्टम हाउस पहुंची. वह वहां इस तरह से रो रही थी, जैसे उस का सब कुछ लुट गया हो.

पोस्टमार्टम के बाद लाश बरेली ला कर उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. निशा के हावभाव देख कर रघुवीर की समझ में कुछकुछ आ रहा था. उन्हें शक था कि उन के बेटे की हत्या निशा ने कराई होगी. क्योंकि उसे रंगेहाथ पकड़ने पर राजकुमार ने उस की शिकायत अपने पिता से कर दी थी.

रघुवीर ने जांच अधिकारी के सामने अपनी पुत्रवधू और अर्जुन के नाजायज संबंधों का खुलासा कर दिया था. पुलिस ने अर्जुन को हिरासत में ले लिया. अर्जुन ने अपने हाथ पर ब्लेड से निशा का नाम लिख रखा था.

पुलिस ने निशा और अर्जुन को आमनेसामने बैठा कर पूछताछ की तो दोनों एकदूसरे पर इलजाम लगाने लगे. उन की दीवानेपन आशिकी की हवा निकल चुकी थी. दोनों ने ही अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. अब दोनों को जेल जाने का डर सता रहा था.

पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 201 के तहम मुकदमा दर्ज कर के उन से विस्तार से पूछताछ की और कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.  रागिनी और तमन्ना ने मांबाप दोनों को खो दिया था. राजकुमार की मां आशा मसीह ने कहा कि उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि उन की बहू उन के सीधेसादे बेटे को मरवा सकती है. अब इस उम्र में उन्हें अपने बेटे की बच्चियों की परवरिश के लिए जीना होगा.

निशा के पिता दयाशंकर और मां गीता को बेटी के इस गुनाह पर अफसोस होता है. उन्होंने तो कभी कल्पना भी नहीं की थी कि निशा ऐसा भी कर सकती है. काश, राजकुमार मौत की दस्तक को सुन पाता तो उसे अपनी जान से हाथ न धोना पड़ता.