जैतून गुमसुम सी बैठी रही. जैसे वह बहुत शर्मिंदा हो रही हो. उस का दिमाग जैसे भूतकाल की गहराइयों में जा पहुंचा. वह कुछ देर बाद बोली तो उस की आवाज रुंधी हुई थी, ‘‘तुम्हारे जाने के एक साल बाद अम्मी पर अचानक दिल का जबरदस्त दौरा पड़ा. वह उस दौरे से संभल नहीं सकीं. एक तो उन्हें वक्त पर सही मेडिकल एड नहीं मिली और डाक्टरों की लापरवाही या मौत के बहाने ने उन्हें मुझ से छीन लिया. उन की इस अचानक मौत से मैं इतनी बड़ी दुनिया में अकेली रह गई.
‘‘तुम तो जानते ही हो कि इस दुनिया में मां के अलावा मेरा कोई भी नहीं था. तुम उस वक्त लंदन में थे. मेरे पास तुम्हारा पता भी नहीं था. मैं तुम्हारा पता लेने तुम्हारे घर कैसे जा सकती थी. इतने बड़े घर में जाती तो जलील और रुसवा हो कर आती.
‘‘तुम ने अपनी मोहब्बत को राज रखा था. फिर मैं ने सोचा कि इंतजार के 4 साल काट लूंगी. लेकिन मुझे मालूम हुआ कि जिंदगी बहुत कठिन है. खासतौर पर एक जवान, हसीन और बेसहारा लड़की के लिए तो हर तरफ भेडि़ए ही भेडि़ए मौजूद होते हैं. दुनिया वालों ने मुझे भी लूट का माल समझ लिया था. न जाने कैसे कैसे लोग मेरा हाथ थामने को तैयार थे.
अगर मैं तुम्हारा इंतजार करती रहती तो किसी न किसी भेडि़ए का शिकार हो जाती. मुझे उठा ले जाने की कोशिश की गई. 2 बार मेरी आबरू लुटतेलुटते बची. फिर मैं ने शाहिद का हाथ थाम लिया. वह एक स्कूल टीचर था और उस के पास इल्म की दौलत थी.’’
जैतून सांस लेने के लिए रुकी. उस के बाद उस की आवाज फिजा में लहराई, ‘‘सांसारिक दौलत उस के पास नहीं थी. लेकिन जिस दिन शाहिद से मेरी शादी हुई, उसी दिन से मैं ने दिल का वह कोना बंद कर दिया, जिस में तुम्हारी तसवीर छिपी थी. इसलिए कि अब शाहिद ही मेरा सब कुछ था. शाहिद ने मुझे इतनी मोहब्बत दी कि तुम्हारी तसवीर धुंधली पड़ गई. फिर मैं शाहिद की ही दुनिया में खो गई. मैं उस का वजूद बन गई. मैं अगर ऐसा नहीं करती तो फिर क्या करती?’’
‘‘तुम ने बहुत अच्छा किया. एक औरत का ऐसा रूप होना चाहिए,’’ नवेद ने कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी हर याद को मिटाने के लिए शादी की थी. मेरा खयाल था कि एक औरत ही मेरा दुख बांट सकती है और वह मुझे तुम्हारी ही तरह से चाहेगी. मगर हम दोनों में 6-7 माह से ज्यादा निबाह न हो सका और हम दोनों सदा के लिए अलग हो गए.’’
‘‘वह क्यों,’’ जैतून ने हैरत से पूछा, ‘‘मुझे यकीन नहीं आ रहा है.’’
वह भी डाक्टर थी. मैं ने सोचा था कि इस तरह हम जिंदगी के सफर में एकदूसरे के बेहतरीन साथी साबित होंगे, मगर ऐसा नहीं हो सका. वह सिर्फ और सिर्फ लेडी डाक्टर रहना चाहती थी. मुझे तो ऐसी बीवी की जरूरत थी, जिस के वजूद से सारा घर महकता.
‘‘हैरत की बात है. क्या एक औरत भी इस अंदाज में सोच सकती है?’’ जैतून हैरानी से बोली, ‘‘हर औरत तो एक जैसी नहीं होती. अब तुम बस जल्दी से अपना घर बसा लो.’’
‘‘अब तुम आ ही गई हो तो मेरे लिए भी अपनी जैसी ही औरत ढूंढ देना,’’ नवेद ने कहा, ‘‘ऐसी औरत, जो घर की चारदीवारी में रह कर तुम्हारी ही तरह चाहे.’’
शाहिद की अभी ज्यादा देखभाल की जरूरत थी. कोई और मरीज होता तो डाक्टर नवेद उसे छुट्टी दे देता. मगर शाहिद जैतून का शौहर था और इस नाते नवेद शाहिद को उस वक्त तक अस्पताल में रखना चाहता था, जब तक वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाता. उस ने जैतून से कह दिया था कि उसे दो-एक महीने तक यहीं रहना होगा. जैतून ने इस शर्त पर वहां रह कर शाहिद का इलाज मंजूर किया था कि वह अस्पताल में कोई नौकरी कर लेगी.
डा. नवेद के लिए जैतून को नौकरी देना कोई बड़ी समस्या नहीं थी. असली मसला तो जैतून के बच्चे थे. वह बच्चों से 8-10 घंटे अलग रह कर कोई काम नहीं कर सकती थी. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए नवेद ने जैतून को यह काम सौंपा कि वह उस के बंगले पर आ कर उस के लिए नाश्ता और दोनों वक्त का खाना बना दे.
जैतून को नवेद की अमीरी का पहले से कुछ अंदाजा नहीं था. शादी से पहले जब वह नवेद की मोहब्बत में गिरफ्तार हुई थी, तब भी वह सिर्फ यही जानती थी कि वह एक बड़े बाप का बेटा है. वह यही समझती थी कि नवेद इस अस्पताल में नौकर है, पर जब उस ने देखा और सुना कि नवेद ही इस अस्पताल का मालिक है तो वह हैरान भी हुई और खुश भी.
जब उस ने नवेद के घर में कदम रखा तो घर को अंदर से देख कर उस के दिल में कांच की किरच सी चुभ गई. उस ने कभी ऐसे ही घर का ख्वाब देखा था, मगर वे ख्वाब दगाबाज निकले थे. फिर एक आवारा सा खयाल जैतून के दिमाग में आया कि काश! वह नवेद की बीवी होती तो इस घर में राज कर रही होती. फिर उस ने इस बेहूदा खयाल को अपने दिमाग से निकाल फेंका. अब वापसी संभव नहीं थी.फिर ऐसी हालत में शाहिद को मंझधार में छोड़ देना औरत की जात पर बदनुमा धब्बा था.
उधर न जाने क्यों नवेद महसूस कर रहा था कि जैतून फिर से उस के दिमाग पर किसी बदली की तरह छा रही है और वह उस के जादू में कैद हो रहा है. 8-10 दिनों में ही जैतून में अजीब सा निखार आ गया था. बेफिक्री, अच्छे खानपान और मानसिक शांति ने उसे फिर से जवान कर दिया था. उस के गालों पर सुर्खी झलकने लगी थी. जैतून सुबह जब उस के लिए नाश्ता तैयार करने आती थी तो उस का रूप नया होता था और जब वह उस के सामने से गुजरती थी तो जिस्म की खुशबू सुरूर दे जाती थी.
नवेद अपनी पहली बीवी के बारे में सोचता और उस का जैतून से मिलान करता. पहली बीवी खूबसूरत थी, लेकिन नवेद की जिंदगी और घर में कभी उस ने खुशी महसूस नहीं की थी. नवेद को वह हमेशा ठंडी लाश जैसी महसूस होती थी. उस के रहते घर में अजीब सी मुर्दनी और वहशत का एहसास होता था.
लेकिन जब से जैतून ने इस घर में कदम रखा था, सारा घर और उस की जिंदगी जैसे जगमगाने लगी थी. नवेद ने महसूस किया था कि उसे जैतून जैसी सुघड़, सलीकेदार और पुरशबाब औरत कहीं नहीं मिल सकती. वह उस की कमजोरी बनती जा रही थी और अब उसे जैतून के बिना जिंदगी गुजारना मुश्किल नजर आ रहा था.
घर की तनहाई डा. नवेद को किसी सांप की तरह डसती महसूस होती थी. वैसे तो जैतून कभीकभी किसी एक बच्ची को ले आती थी, पर अकसर वह अकेली ही आती थी. उस का अकेले आना नवेद की रगों में खून का बहाव तेज कर देता था. फिर भी उस ने कभी जैतून के भरोसे को ठेस पहुंचाने की कोशिश नहीं की. एक दिन रात के खाने पर जैतून भी थी. वह बच्चों को खिलापिला कर सुला कर आई थी. खाने से फुरसत पा कर वे दोनों बैठे कौफी पी रहे थे कि नवेद ने जैतून की तरफ देखा.
वह उसे परेशान और चिंतित दिखाई दी. नवेद ने पूछा, ‘‘जैतून क्या सोच रही हो तुम?’’
‘‘मैं सोच रही हूं कि अब वापस जा कर अपनी जिंदगी की शुरुआत कैसे और किस अंदाज में करूं? मुझे अपनी और शाहिद की फिक्र नहीं है. फिक्र मुझे अपने बच्चों की है. शाहिद ट्यूशन कर के कितना कमा सकेगा? उस आमदनी से तो पेट भरना ही मुश्किल पड़ेगा. मैं अगर घर से काम करने के लिए निकलूं तो घर चौपट हो जाएगा. मालूम नहीं, मुझे कोई काम देगा भी या नहीं.’’
‘‘जैतून, मैं एक बात कहूं, बुरा तो नहीं मानोगी?’’ नवेद की आवाज में अजीब सी कंपकंपाहट थी.
जैतून ने उस के आवाज के कंपन पर चौंक कर उस की तरफ देखा, ‘‘मैं और तुम्हारी किसी बात का बुरा मानूं, यह कैसे हो सकता है.’’
‘‘जैतून,’’ नवेद को अपनी आवाज कहीं दूर से आती महसूस हो रही थी, ‘‘मैं आज भी तुम से उतनी ही मोहब्बत करता हूं, जितनी कल करता था. न जाने क्यों यह जानते हुए भी तुम्हें फिर से पाने की चाह पैदा हो रही है कि तुम किसी और की बीवी हो, अमानत हो किसी गैर की. मुझे महसूस होने लगा है कि अब मैं तुम्हारे बिना जिंदगी का एक लम्हा भी नहीं गुजार सकूंगा. अगर तुम मेरी बन गईं तो फिर तुम्हारे लिए कोई समस्या नहीं रहेगी.’’
‘‘नवेद,’’ जैतून इस तरह से उछल पड़ी, जैसे नवेद के शब्द जहरीले डंक बन कर उस के वजूद में गड़ गए हों, ‘‘तुम ने यह क्यों नहीं सोचा कि मैं एक औरत हूं और शाहिद से मुझे जो इज्जत हासिल है, वह किसी और मर्द को अपनाने में नहीं है.
‘‘अब उसे मेरी जरूरत है. वह मेरा वजूद बन गया है.’’ जैतून सांस लेने के लिए रुकी, फिर बोली, ‘‘तुम ही बताओ, क्या औरत अपने शौहर के होते हुए किसी और की भी हो सकती है?’’
‘‘तुम ने मेरी बात का गलत मतलब समझा है,’’ नवेद ने जल्दी से कहा, ‘‘तुम शाहिद से तलाक ले लो. शाहिद का क्या है, वह किसी न किसी तरह जी लेगा.’’
‘‘तो तुम यह चाहते हो कि मैं शाहिद को हालात के रहमोकरम की चक्की में पिसने के लिए छोड़ दूं? क्या तुम मुझ से इस बात की उम्मीद रखते हो?’’ जैतून तेजी से बोली.
‘‘अगर तुम ने मेरी बात पर गंभीरता से गौर नहीं किया और नहीं मानी तो सारी जिंदगी पछताओगी, क्योंकि तुम्हारी बेटियों का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. आज के जमाने में एक लड़की की शादी करना कितना मुश्किल काम है, तुम अच्छी तरह जानती हो. कल तो और भी मुश्किल होगी. तुम शाहिद को छोड़ कर मेरे पास आ जाओगी तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं तुम्हें खुश रखूं और तुम्हारी लड़कियों की शादी खूब धूमधाम से करूं. अब मुझ से जुदाई बरदाश्त नहीं हो रही.’’
जैतून झटके से कुरसी से उठ खड़ी हुई. वह उस से गिड़गिड़ा कर बोली, ‘‘नवेद, खुदा के लिए मुझे यूं इम्तिहान में मत डालो.’’
‘‘तुम जज्बाती बन कर मत सोचो. कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारा जज्बाती फैसला कल नाउम्मीदी की नजर हो जाए.’’
‘‘शायद तुम ठीक कहते हो,’’ जैतून दरवाजे की तरफ बढ़ी और फिर रुक गई. उस ने नवेद की आंखों में अजीब सी चमक देखी थी. वह बड़े मजबूत लहजे में बोलती चली गई, ‘‘शाहिद से तलाक लेने और तुम से शादी करने पर सारी जिंदगी के लिए मुझ पर दाग लग जाएगा. मुझे मर जाना मंजूर है, लेकिन बदनामी कुबूल नहीं. तुम मुझे मेरे हाल पर ही छोड़ दो.’’