बेवफाई का बदनाम वीडियो : प्रेमी को सिखाया सबक – भाग 1

बात 24 मई, 2021 की है. दोपहर करीब सवा बजे जबलपुर जिले के थाना खितौली की टीआई जगोतिन मसराम के मोबाइल पर किसी ने काल की.

काल करने वाले ने बताया, ‘‘मैडम, मेरा नाम नारायण पटेल है. सिहोरा थाने के गुरजी गांव का रहने वाला हूं. मेरे पिता प्रेमनारायण पटेल के मोबाइल पर किसी ने सूचना दी थी कि पान उमरिया रोड किनारे उस की मोटरसाइकिल पड़ी है. उस के थोड़ी दूरी पर ही एक लाश से दुर्गंध आ रही है. मुझे डर लग रहा है मैडम, क्योंकि मेरा छोटा भाई सोनू 16 मई से ही लापता है.’’

‘‘तुम डरो मत, तुम हरगढ़ जंगल पहुंचो, मैं भी एक घंटे में पहुंच रही हूं.’’ टीआई ने कहा.

टीआई अपनी जांच टीम के साथ साढ़े 3 बजे हरगढ़ जंगल में पहुंच गईं. वास्तव में वहां एक लाश सड़ीगली हालत में मिली. थोड़ी दूर एक बाइक भी गिरी हालत में मिली.

पुलिस टीम के सभी सदस्य कोरोना किट में थे. वहां तेज दुर्गंध भी फैल रही थी. लाश के पास से जूट की करीब एकएक मीटर की 2 रस्सियां, नीले रंग का लोअर, टीशर्ट, बनियान, चमड़े के चप्पल और 2 मास्क बरामद किए.

जांचपड़ताल चल ही रही थी कि तभी नारायण भी भागता हुआ आया, उस ने अपनी मोटरसाइकिल भी पहचान ली. लाश बुरी तरह से सड़गल चुकी थी. चेहरा तो बिलकुल ही पहचान में नहीं आ रहा था.

मांस से बाहर निकली कुछ हड्डियां दिख रही थीं. खून तो सूख कर काला पड़ चुका था. आंखों का पता नहीं चल रहा था. लगता था वे बुरी तरह से कुचल दी गई हों. पास में ही करीब 10-15 किलोग्राम का एक पत्थर दिखा.

उस पर चिपकी मिट्टी का नमूना ले लिया गया. उस पर भी कीड़े चल रहे थे और पास में मक्खियां भिनभिना रही थीं. जांचकर्मियों ने अनुमान लगाया  कि इसी पत्थर से चेहरे को कुचला  गया होगा.

नारायण ने बरामद सामानों में कपड़े और चप्पल के आधार पर चेहरा कुचले जाने के बावजूद लाश की पहचान कर दी, जो उस के छोटे भाई सोनू की ही थी.

सारे कपड़े वही थे, जो उसे शादी में मिले थे. यहां तक कि उन पर लगे हल्दी के दाग भी वैसे के वैसे थे, जिसे नारायण ने ही उन पर मात्र एक सप्ताह पहले लगाए थे दागधब्बे काले जरूर हो गए थे, लेकिन स्वास्तिक का निशान देख कर नारायण ने कपड़े सोनू के होने की पुष्टि कर दी.

थोड़ी देर में ही जबलपुर के एडिशनल एसपी शिवेश सिंह बघेल, एसडीपीओ (सिहोरा) श्रुत कीर्ति सोमवंशी और फोरैंसिक जांच टीम घटनास्थल पर पहुंच गई.

वहां से बरामद सारी सामग्री को जब्त कर मैडिको लीगल इंस्टीट्यूट, भोपाल भेजने के निर्देश दे दिए गए. लाश बड़ी मुश्किल से सील पैक कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई.

टीआई मसराम अपने साथ नारायण को ले कर थाने पहुंचीं. उन्होंने घर वालों को भी थाने बुलवा लिया. शाम 7 बजे के करीब घरवालों में उस के पिता और पत्नी गायत्री से मसराम ने पूछताछ की.

शुरुआती जांच की पूरी रिपोर्ट तैयार कर आगे की जांच और काररवाई के लिए फाइल तैयार कर दी गई. उस में सोनू की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कर ली गई, जिस की तहकीकत जबलपुर जिले के एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा के दिशानिर्देश पर की जा जारी थी.

सोनू की गुमशुदगी की शिकायत 17 मई, 2021 को सिहोरा थाने में तुलसीराम के बड़े बेटे नारायण पटेल ने लिखवाई थी.

उस शिकायत के अनुसार सोनू 16 मई, 2021 की सुबह 10 बजे घर से अपनी नवविवाहिता पत्नी का मोबाइल ठीक कराने को कह कर सिहोरा गया था. उस के देर रात तक वापस नहीं लौटने पर रिश्तेदारों और दोस्तों के यहां फोन कर के पूछताछ की गई, लेकिन जब उस का कोई पता नहीं चला, तब थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज की गई.

सोनू की 4 दिन पहले ही 12 मई, 2021 को कटनी जिले में बहोरीबंद थानांतर्गत बासन गांव की गायत्री के साथ शादी हुई थी.

इस बारे में पुलिस ने गायत्री से पूछताछ की तो गायत्री ने पुलिस को बताया कि पति के शाम तक वापस नहीं आने पर उस ने पति के मोबाइल पर काल की थी, लेकिन फोन आउट औफ कवरेज बताया गया था.

उसे लगा कि वह रात तक वापस आ जाएंगे, लेकिन नहीं आए. उन के न आने पर मन कई तरह की आशंकाओं से घिर गया और फिर उस ने ही अगले दिन सुबह नारायण को गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने के लिए कहा.

जांच और दूसरे किस्म की तहकीकात से यह साफ हो गया था कि बरामद लाश सोनू की ही थी, लेकिन अहम सवाल उस की मौत को ले कर बना हुआ था. पहला और ठोस कारण हत्या का ही सामने आ रहा था.

यानी हत्या हुई थी तो क्यों और कैसे के सवालों के जवाब तलाशने बाकी थे. साथ ही जल्द से जल्द हत्यारे तक पहुंचने और उसे सजा दिलवानी भी जरूरी थी. 10 दिन बाद ही मैडिको लीगल इंस्टीट्यूट, भोपाल की रिपोर्ट भी आ गई थी. उस रिपोर्ट ने पुलिस को हैरत में डाल दिया.

रिपोर्ट के अनुसार मृतक के गले में जूट की एक पतली रस्सी भी लिपटी थी, जो भीतर की ओर धंस गई थी. इस आधार पर ही उस की मौत को पहले आत्महत्या कहा गया था.

हालांकि उस के दोनों हाथों की कलाइयां और पैरों को घुटने के ठीक ऊपर रस्सियों से बांधने के निशान पाए गए थे. ये सबूत सोनू की हत्या की ओर इशारा कर रहे थे, जिस में एक से अधिक व्यक्ति के शामिल होने की भी बात कही गई थी.

अब पुलिस के सामने सवाल था कि कोई एक व्यक्ति कैसे एक हष्टपुष्ठ नौजवान की रस्सियों से गला घोंट कर हत्या कर सकता है? किस तरह से उसने उस के हाथ और पैर बांधे होंगे?

इस मामले को खितौला पुलिस थाने में 10 जून को दर्ज किया गया. सिहोरा तहसील के एसडीपीओ की कमान संभाले 2018 बैच के आईपीएस श्रुत कीर्ति सोमवंशी ने इसे गंभीरता से लिया.

उन्होंने सोनू के मोबाइल काल की पूरी डिटेल्स निकलवाई. उस में पता चला कि सोनू के मोबाइल नंबर से 16 मई को किसी मधु पटेल नाम की लड़की से 4-5 बार बात हुई थी.

ख्वाहिश का अंत : क्या हुआ था वी.जे. चित्रा के साथ

अगर कोई नामचीन एक्टर अपनी अदाकारी छोड़ दे तो उस का महत्त्व खुदबखुद खत्म हो जाएगा. उस की एक्टिंग ही तो उसे सितारा बनाती है. एक्टिंग छोड़ कर उस की महत्त्वाकांक्षाओं का क्या होगा, वह तो जिंदा रह कर भी मर जाएगा. उस के जीने का मकसद ही खत्म हो जाएगा.

शायद ऐसा ही कुछ दक्षिण भारत की सुप्रसिद्ध टीवी स्टार और एंकर वी.जे. चित्रा के साथ भी था, जो उस ने ग्लैमर की दुनिया को अलविदा कह दिया. होटल के कमरे में उन का शव पंखे से लटकता हुआ पाया गया.

9 दिसंबर, 2020 की सुबह के करीब 4 बजे थे. चेन्नै के नाजरथपेठ स्थित एक अस्पताल में कुछ लोग एक महिला को ले कर गए. डाक्टरों ने उस महिला का परीक्षण किया तो वह मृत पाई गई. जो लोग उस महिला को अस्पताल लाए थे, उन्होंने डाक्टरों को बताया कि वह टीवी स्टार वी.जे. चित्रा है. इस ने होटल के कमरे में फांसी लगा ली थी. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए अस्पताल की तरफ से इस की खबर थाने में दे दी गई.

अस्पताल नाजरथपेठ थाने से ज्यादा दूर नहीं था, इसलिए सूचना के 10 मिनट बाद ही पुलिस टीम अस्पताल पहुंच गई.

मृतका एक हाईप्रोफाइल टीवी स्टार और एंकर थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के गले पर हलके काले रंग का निशान मिला. डाक्टरों ने पुलिस को बताया कि इन की मौत शायद फंदे से लटक कर दम घुटने की वजह से हुई है.

शव का निरीक्षण करने के बाद पुलिस ने अस्पताल में ही मौजूद मृतका के मंगेतर हेमंत रवि से पूछताछ की.

हेमंत रवि ने बताया  कि कल रात करीब ढाई बजे चित्रा चेन्नै के ईवीपी फिल्म सिटी से शूटिंग खत्म कर उस के साथ लौटी थी. होटल के कमरे में आने के बाद चित्रा कुछ मिनटों बाद नहाने के लिए बाथरूम चली गई थी.

उस के बाथरूम जाने के बाद वह भी अपना समय व्यतीत करने के लिए होटल के कमरे से बाहर निकल गया था. लगभग आधा घंटे बाद जब वह होटल के कमरे में आया तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. कई बार कमरे का दरवाजा खटखटाने और कालबैल बजाने के बाद जब दरवाजा नहीं खुला और अंदर कोई आहट भी नहीं हुई तो वह घबरा गया.

किसी अनहोनी की आशंका से वह भाग कर होटल की लौबी में गया और होटल मैनेजर को सारी बात बताई. होटल मैनेजर भी उस की बातें सुन कर परेशान हो गया. वह कुछ कर्मचारियों के साथ तुरंत होटल के कमरे पर पहुंचा. जब मैनेजर ने डुप्लीकेट चाबी से कमरे का दरवाजा खोला तो कमरे के अंदर का दृश्य देख कर उस के होश उड़ गए. चित्रा पंखे से लटकी हुई थी.

किसी करिश्मे की उम्मीद से उस ने होटल कर्मचारियों के सहयोग से पंखे से लटकी चित्रा को नीचे उतारा और स्थानीय अस्पताल ले गया. लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी.

हेमंत रवि से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने शव का पुन: निरीक्षण किया और साथ आए पति का सरसरी तौर पर बयान ले कर शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल को सौंप दिया और सीधे घटनास्थल पर आ गई.

घटनास्थल चेन्नै नाजरथपेठ इलाके का एक जानामाना फाइवस्टार होटल था. उस होटल में इस प्रकार की यह पहली घटना थी, जिसे ले कर होटल का मैनेजमेंट काफी परेशान था.

इस होटल में अपने कारोबार के सिलसिले में शहर के संपन्न लोग ही आ कर ठहरते थे. टीवी स्टार और एंकर वी.जे. चित्रा भी एक टीवी सीरियल की शूटिंग के बाद अपने मंगेतर हेमंत रवि के साथ आ कर वहां ठहरी थी.

पुलिस ने होटल के कमरे का बारीकी से निरीक्षण कर होटल के स्टाफ से पूछताछ की और मामले की सारी औपचारिकताएं पूरी कीं.

मशहूर अभिनेत्री और एंकर चित्रा ने कदमकदम पर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ कर बहुत कम समय में लाखों लोगों के दिलों में अपनी एक खास जगह बना ली थी. पता नहीं क्यों वह दुनिया को छोड़ कर अलविदा कह गई थी.

सुबह जैसे ही टीवी और अखबारों में अभिनेत्री वी.जे. चित्रा की मौत की खबर सामने आई, चेन्नै के साथ पूरे दक्षिण भारत में आग की तरह फैल गई. वी.जे. चित्रा के अनगिनत चाहने वालों को गहरा सदमा लगा. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि चित्रा ने खुदकुशी की थी या फिर उस की हत्या की गई थी.

यही सवाल पुलिस के लिए भी पहेली बना हुआ था. पुलिस भी मृतका के मंगेतर हेमंत रवि और होटल वालों के बयानों से सहमत नहीं थी. वी.जे. चित्रा की मौत की सुई सिर्फ उस के मंगेतर हेमंत रवि की तरफ घूम रही थी. वजह यह थी कि उस रात चित्रा के साथ मंगेतर हेमंत रवि के अलावा होटल के कमरे में और कोई नहीं था.

सवाल यह भी उठ रहा था कि चित्रा को अकेला छोड़ कर होटल के बाहर क्यों गया था. हेमंत रवि के होटल के बाहर जाने के बाद ही चित्रा रहस्यमयी हालत में होटल के कमरे के पंखे से लटकी मिली थी. जरूर कहीं न कहीं कुछ गड़बड़ थी.

पुलिस जांच टीम ने अपनी जांच की शुरुआत वी.जे. चित्रा के मंगेतर हेमंत रवि से पूछताछ के साथ ही की. उधर वी.जे. चित्रा के पिता जो रिटायर्ड पुलिस इंसपेक्टर थे और परिवार यह मानने के लिए तैयार नहीं था कि उन की बेटी ने बिना किसी वजह खुदकुशी की होगी.

उन का तो यहां तक कहना था कि उन की बेटी की हत्या कर उसे खुदकुशी का रूप देने की कोशिश की है.

लेकिन सवाल यह था कि आखिर वी.जे. चित्रा की मौत के पीछे कौन था. कुल मिला कर पुलिस टीम किसी भी नतीजे पर पहुंचने के पहले सारे पहलुओं को पूरी तरह से खंगाल लेना चाहती थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि चित्रा की मौत स्वाभाविक तौर पर पंखे के फंदे से लटकने की वजह से दम घुट कर हुई थी. उस के गले और गालों पर आए नाखूनों के जख्म उस के खुद के हाथों के ही पाए गए.

कुल मिला कर पोस्टमार्टम रिपोर्ट वी.जे. चित्रा को ही अपनी मौत का जिम्मेदार बता रही थी, जबकि बाकी परिस्थितिजन्य साक्ष्य कुछ अलग ही कहानी कह रहे थे कि खुदकुशी के पीछे कहीं न कहीं उस के मंगेतर हेमंत रवि का रोल जरूर रहा होगा.

इन सब के आधार पर पुलिस टीम ने लगभग 6 दिनों तक लगातार हेमंत रवि से पूछताछ करने के बाद सच्चाई का पता लगा लिया. पता चला कि हेमंत रवि ने ही चित्रा को मानसिक रूप से इतना प्रताडि़त किया था कि उसे आत्महत्या करने के लिए विवश होना पड़ा. इस के बाद पुलिस ने हेमंत रवि को आईपीसी की धारा 306 के तहत चित्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ के बाद जो कहानी उभर कर सामने आई थी, वह चौंका देने वाली थी.

तमिल सीरियल और रियल्टी शोज की जान वी.जे. चित्रा की खुदकुशी सुशांत सिंह राजपूत की मर्डर मिस्ट्री की याद दिला रही थी. उस के चाहने वालों को भी यह यकीन नहीं हो रहा था कि चित्रा खुदकुशी कर सकती है. सवाल यह भी उठ रहा था कि आखिर उस की मौत की वजह क्या थी?

जिस के आने से रुपहले परदे पर नूर आ जाए, जिस के नशीले नैन चाहने वालों को मदहोश कर दें, ़जिस की दिलकश मुसकान दिल थामने के लिए विवश कर दे, ऐसी अभिनेत्री आखिर दुनिया को छोड़ कर क्यों चली गई.

तमिल इंडस्ट्री की जान वी.जे. चित्रा अपने आप में अदाकारी का एक कंप्लीट पैकेज थी. जब वह नाचती थी तो डांसर बन जाती थी. जब किसी किरदार में आती थी तो अदाकारा बना जाती थी और जब वह निजी जिंदगी में किसी से मिलती थी तो उसे अपना बना लेती थी.

28 वर्षीय वी.जे. चित्रा का जन्म 2 मई, 1992 को तमिलनाडु के चेन्नै में हुआ था. उन के पिता चेन्नै शहर के एक सशक्त छवि वाले पुलिस इंसपेक्टर थे. जबकि मां कुशल गृहिणी थीं. वी.जे. चित्रा उन की एकलौती और लाडली बेटी थी. परिवार साधारण व सुखीसंपन्न था.

वी.जे. चित्रा बचपन से ही होनहार थी. उस के दिल में फिल्म और टीवी कलाकार बनने की चाह थी. वह अकसर टीवी के सामने बैठ कर उस पर आने वाले सभी शोज को बड़े ध्यान से देखती थी. उस की नकल करती थी.

चहेती बेटी होने के कारण उस के मांबाप उस पर ध्यान नहीं देते थे, क्योंकि उन के सपने बेटी के सपनों से अलग थे. वे चाहते थे कि उन की बेटी उच्चशिक्षा पा कर किसी उच्चपद पर काम करे.

लेकिन बेटी की पसंद के कारण उन्हें उस के सामने झुकना पड़ा था. चित्रा ने चेन्नै कालेज से बीएससी करने के बाद चेन्नै माइकल टीवी से अदाकारी और एंकरिंग का डिप्लोमा ले कर उसी चैनल से अपना कैरियर शुरू कर दिया था.

टीवी की एंकर और शोज को होस्ट करतेकरते जब चित्रा ने टीवी सीरियल की तरफ कदम बढ़ाया तो उसे हर कदम पर कामयाबी मिली. देखते ही देखते उस की झोली में कई तमिल सीरियल आ गए थे.

चिन्ना पापा पेरिया पापा, वेलुनाची और पंडियन स्टोर में मुल्लई की भूमिका में आई वी.जे. चित्रा ने पूरे तमिलभाषियों के दिलों में अपनी एक जगह बना ली और रातोंरात वह सुपर तमिल स्टारों की श्रेणी में आ खड़ी हुई थी. उसे अदाकारी में इज्जत और मानसम्मान सब मिलने लगा.

बेटी सुपरस्टार बन गई थी. इस बात की खुशी सब से अधिक उस के मांबाप और नातेरिश्तेदारों को हुई थी. थोड़े ही दिनों में चित्रा बुलंदियों के उस मुकाम पर पहुंच गई थी, जहां पर लोगों को पहुंचने के लिए लंबा वक्त लगता है.

जैसेजैसे चित्रा के स्टारडम का दायरा बढ़ता गया, वैसेवैसे तमिल टीवी स्टार और रियल्टी शोज की होस्ट के कदम भी बढ़ते गए. टीवी रियल्टी शोज की पार्टियों में चित्रा का आनाजाना भी बढ़ गया था. इसी तरह लौकडाउन के पहले की एक पार्टी में उस की मुलाकात उस के होने वाले हमसफर हेमंत रवि से हो गई.

32 वर्षीय हेमंत रवि वैसे तो एक साधारण परिवार से संबंध रखता था, लेकिन अपनी कड़ी मेहनत के दम पर उस ने शहर में एक कारोबारी के रूप में अपनी पहचान बना ली थी. दोनों की पहले नजरें मिलीं और धीरेधीरे दिल भी मिल गए.

हेमंत रवि के व्यवहार को देख कर चित्रा भी अपने आप को रोक नहीं पाई और उस से आकर्षित हो कर उस की तरफ खिंची चली गई. यही हाल हेमंत रवि का भी था. चित्रा के बिना उसे एकएक पल भारी लगता था. उसे जब भी मौका मिलता था, वह चित्रा से मिलने के लिए उस के शूटिंग सेट पर पहुंच जाता और उस की शूटिंग खत्म होने तक इंतजार करता रहता.

शूटिंग खत्म होने के बाद दोनों मन बहलाने के लिए लंबी ड्राइव पर चले जाते, घूमतेफिरते खातेपीते थे. यह सिलसिला कुछ दिनों तक चलने के बाद जब हेमंत रवि को लगने लगा कि अब बिना चित्रा के नहीं रह सकता तो मौका देख कर उस ने शादी का प्रपोजल रख दिया. चित्रा को भी हेमंत रवि की आंखों में अपने लिए मोहब्बत दिखाई दी तो उस ने भी हां कर दी.

एक उभरती हुई अदाकारा और टीवी रियल्टी शोज की होस्ट चित्रा ने अगस्त 2020 में जब अपने होने वाले हमसफर हेमंत रवि का हाथ दुनिया के सामने थामा तो उस के लाखों चाहने वालों ने अपना दिल थाम लिया था. दोनों ने इस रिश्ते को एक नाम देने का फैसला किया और उन्होंने सगाई कर ली. दोनों परिवार इस रिश्ते से बेहद खुश थे, इसलिए उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई.

वी.जे. चित्रा और हेमंत रवि की जिंदगी में वैसे तो कोई ट्विस्ट नहीं था, जैसा कि आमतौर पर लवस्टोरीज में हुआ करता है. और तो और दोनों ने यह भी तय कर लिया था कि लौकडाउन की पाबंदियों से आजाद होने के बाद जनवरी 2021 में शादी कर के एक शानदार रिसैप्शन पार्टी आयोजित करेंगे, लेकिन उन का यह सपना पूरा नहीं हुआ.

कारण यह था कि सगाई हो जाने के 2-3 महीने बाद ही हेमंत रवि का व्यवहार चित्रा के प्रति बदलने लगा था. इस की वजह यह थी कि उसे चित्रा द्वारा सीरियलों में दिए इंटीमेट सीनों से चिढ़ थी.

सीरियल और रियल्टी शोज में इंटीमेट रोमांटिक सीनों को ले कर हेमंत ने कई बार टोका और मना भी किया था. वह चाहता था कि वह इंटीमेट सीन दुनिया के सामने न आए, पर यह बात चित्रा को पसंद नहीं थी. वह हेमंत के मना करने के बावजूद ऐसे एसाइनमेंट करती रही.

इसी बात को ले कर दोनों के बीच कहासुनी हो जाती जो झगड़े तक पहुंच जाती थी. हेमंत की इस तरह की टीकाटिप्पणी से चित्रा मानसिक रूप से परेशान रहने लगी.

घटना वाली रात भी शूटिंग से लौटने के बाद होटल के कमरे में दोनों में इंटीमेट सीनों को ले कर कहासुनी हुई थी. जिस से नाराज हो कर चित्रा ने हेमंत से पीछा छुड़ाने के लिए नहाने की इच्छा जाहिर की और बाथरूम में चली गई.

यह देख कर हेमंत होटल के कमरे से बाहर चला गया. इतनी कहासुनी के बाद  चित्रा अपने आप को नौर्मल नहीं रखपाई और होटल के कमरे के पंखे से लटक कर सदासदा के लिए ग्लैमर की दुनिया को अलविदा कह दिया.

हेमंत रवि से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

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छीन ली सांसों की डोर-भाग 1: एकतरफा प्यार की सजा

खुशमिजाज रागिनी दुबे सुबह तैयार हो कर अपनी छोटी बहन सिया के साथ घर से पैदल ही स्कूल के लिए निकली थी. वह बलिया जिले के बांसडीह की रहने वाली थी. दोनों बहनें सलेमपुर के भारतीय संस्कार स्कूल में अलगअलग कक्षा में पढ़ती थीं. रागिनी 12वीं कक्षा में थी तो सिया 11वीं में.

उस दिन रागिनी महीनों बाद स्कूल जा रही थी. स्कूल जा कर उसे अपने बोर्ड परीक्षा फार्म के बारे में पता करना था कि परीक्षा फार्म कब भरा जाएगा. वह कुछ दिनों से स्कूल नहीं जा पाई थी, इसलिए परीक्षा फार्म के बारे में उसे सही जानकारी नहीं थी.

दोनों बहनें पड़ोस के गांव बजहां के काली मंदिर के रास्ते हो कर स्कूल जाती थीं. उस दिन भी वे बातें करते हुए जा रही थीं, जब दोनों काली मंदिर के पास पहुंची तभी अचानक उन के सामने 2 बाइकें आ कर रुक गईं. दोनों बाइकों पर 4 लड़के सवार थे. अचानक सामने बाइक देख रागिनी और सिया सकपका गईं, वे बाइक से टकरातेटकराते बचीं.

‘‘ये क्या बदतमीजी है, तुम ने हमारा रास्ता क्यों रोका?’’ रागिनी लड़कों पर गुर्राई.

‘‘एक बार नहीं, हजार बार रोकूंगा.’’ उन चारों में से एक लड़का बाइक से नीचे उतरते हुए बोला. उस का नाम प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी था. प्रिंस आगे बोला, ‘‘जाओ, तुम्हें जो करना हो कर लेना. तुम्हारी गीदड़भभकी से मैं डरने वाला नहीं, समझी.’’

‘‘देखो, मैं शराफत से कह रही हूं, हमारा रास्ता छोड़ो और स्कूल जाने दो.’’ रागिनी बोली.

‘‘अगर रास्ता नहीं छोड़ा तो तुम क्या करोगी?’’ प्रिंस ने अकड़ते हुए कहा.

‘‘दीदी, छोड़ो इन लड़कों को. मां ने क्या कहा था कि इन के मुंह मत लगना. इन के मुंह लगोगी तो कीचड़ के छींटे हम पर ही पड़ेंगे. चलो हम ही अपना रास्ता बदल देते हैं.’’ सिया ने रागिनी को समझाया.

‘‘नहीं सिया नहीं, हम बहुत सह चुके इन के जुल्म. अब और बरदाश्त नहीं करेंगे. इन दुष्टों ने हमारा जीना हराम कर रखा है. इन से जितना डरोगी, उतना ही ये हमारे सिर पर चढ़ कर तांडव करेंगे. इन्हें इन की औकात दिखानी ही पड़ेगी.’’

‘‘ओ झांसी की रानी,’’ प्रिंस गुर्राया,  ‘‘किसे औकात दिखाएगी तू, मुझे. तुझे पता भी है कि तू किस से पंगा ले रही है. प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा हूं, मिनट में छठी का दूध याद दिला दूंगा. तेरी औकात ही क्या है. मैं ने तुझे स्कूल जाने से मना किया था ना, पर तू नहीं मानी.’’

‘‘हां, तो.’’ रागिनी डरने के बजाए प्रिंस के सामने तन कर खड़ी हो गई. ‘‘तुम मुझे स्कूल जाने से रोकोगे, ऐसा करने वाले तुम होते कौन हो?’’

‘‘दीदी, क्यों बेकार की बहस किए जा रही हो,’’ सिया बोली, ‘‘चलो यहां से.’’

‘‘नहीं सिया, तुम चुप रहो.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई, ‘‘कहीं नहीं जाऊंगी यहां से. रोजरोज मर के जीने से तो अच्छा होगा कि एक ही दिन मर जाएं. कम से कम जिल्लत की जिंदगी तो नहीं जिएंगे. इन दुष्टों को इन के किए की सजा मिलनी ही चाहिए.’’ रागिनी सिया पर चिल्लाई.

‘‘तूने किसे दुष्ट कहा?’’ प्रिंस गुस्से से बोला.

‘‘तुझे और किसे…’’ रागिनी भी आंखें दिखाते हुए बोली.

आतंक पहुंचा हत्या तक

इस तरह दोनों के बीच विवाद बढ़ता गया. विवाद बढ़ता देख कर प्रिंस के सभी दोस्त अपनी बाइक से नीचे उतर कर उस के पास जा खड़े हुए. सिया रागिनी को समझाने लगी कि लड़कों से पंगा मत लो, यहां से चलो. लेकिन उस ने बहन की एक नहीं सुनी. गुस्से से लाल हुए प्रिंस ने आव देखा न ताव उस ने रागिनी को जोरदार धक्का मारा.

रागिनी लड़खड़ाती हुई जमीन पर जा गिरी. अभी वह संभलने की कोशिश कर ही रही थी कि वह उस पर टूट पड़ा. पहले से कमर में खोंस कर रखे चाकू से उस ने रागिनी के गले पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ देर तड़पने के बाद रागिनी की मौत हो गई. उस की हत्या कर वे चारों वहां से फरार हो गए.

घटना इतने अप्रत्याशित तरीके से घटी थी कि न तो रागिनी ही कुछ समझ पाई थी और न ही सिया. आंखों के सामने बहन की हत्या होते देख सिया के मुंह से दर्दनाक चीख निकल पड़ी. उस की चीख इतनी तेज थी कि गांव वाले अपनेअपने घरों से बाहर निकल आए और जहां से चीखने की आवाज आ रही थी, वहां पहुंच गए. उन्होंने मौके पर पहुंच कर देखा तो रागिनी खून से सनी जमीन पर पड़ी थी. वहीं उस की बहन उस के पास बैठी दहाड़ें मार कर रो रही थी.

दिनदहाड़े हुई दिन दहला देने वाली इस घटना से सभी सन्न रह गए. लोग आपस में चर्चा कर रहे थे कि समाज में कानून नाम की कोई चीज नहीं रह गई है. बदमाशों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि राह चलती बहूबेटियों का जीना तक मुश्किल हो गया है. इस बीच किसी ने फोन द्वारा घटना की सूचना बांसडीह रोड थानाप्रभारी बृजेश शुक्ल को दे दी थी.

गांव वाले रागिनी को पहचानते थे. वह पास के गांव बांसडीह के रहने वाले जितेंद्र दुबे की बेटी थी, इसलिए उन्होंने जितेंद्र दुबे को भी सूचना दे दी. बेटी की हत्या की सूचना मिलते ही घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. उन्हें जिस अनहोनी की चिंता सता रही थी आखिरकार वो हो गई.

जितेंद्र दुबे जिस हालत में थे, उसी हालत में घटनास्थल की तरफ दौडे़. वह बजहां गांव के काली मंदिर के पास पहुंचे तो वहां उन की बेटी की लाश पड़ी थी.

लाश के पास ही छोटी बेटी सिया दहाड़े मार कर रो रही थी. बेटी की रक्तरंजित लाश देख कर जितेंद्र भी फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें 2-3 दिन पहले ही कुछ शरारती तत्व घर पर धमकी दे कर गए थे कि रागिनी स्कूल गई तो वह दिन उस की जिंदगी का आखिरी दिन होगा. आखिरकार वे अपने मंसूबों में कामयाब हो गए.

सूचना पा कर एसआई बृजेश शुक्ल फोर्स के साथ मौके पे पहुंच चुके थे. उन्होंने शव का मुआयना किया. मृतका के गले पर अनेक घाव थे. चूंकि पूरी वारदात मृतका की छोटी बहन सिया के सामने घटित हुई थी, इसलिए उस ने एसआई बृजेश शुक्ल को सारी बातें बता दीं. उस ने बताया कि बजहां गांव के रहने वाले ग्राम प्रधान कृपाशंकर तिवारी का बेटा प्रिंस उर्फ आदित्य तिवारी, प्रधान का ही भतीजा सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव ने दीदी की हत्या की है.

मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. पुलिस ने जितेंद्र दुबे की तहरीर पर ग्रामप्रधान कृपाशंकर तिवारी, उस के बेटे आदित्य उर्फ प्रिंस, सोनू तिवारी, नीरज तिवारी और दीपू यादव के खिलाफ हत्या और छेड़छाड़ की धाराओं में मुकदमा दर्ज कर लिया.

प्यार के लिए कुर्बानी : महबूब को क्यों चुकानी पड़ी कीमत

18 सितंबर, 2020 को देर रात थाना कांठ के थानाप्रभारी अजय कुमार गौतम के मोबाइल पर किसी अंजान व्यक्ति का फोन आया. फोन करने वाले ने बताया, ‘‘सर, मैं ऊमरी कलां के पास पाठंगी गांव के प्रधान शहजाद का छोटा भाई नौशाद बोल रहा हूं. सर, हमारे घर में एक युवक की मौत हो गई है. आप जल्द आ जाइए.’’

‘‘मौत कैसे हो गई, क्या हुआ था उसे?’’ अजय कुमार गौतम ने उस युवक से पूछा.

‘‘सर, संदूक में दम घुटने से…’’ युवक ने जबाव दिया.

यह जानकारी देने के बाद नौशाद ने काल डिसकनेक्ट कर दी.

नौशाद की बात सुनते ही थानाप्रभारी को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ गड़बड़ है. लिहाजा कुछ पुलिसकर्मियों को साथ ले कर वह पाठंगी गांव जा पहुंचे.

जिस वक्त गांव में पुलिस पहुंची, अधिकांश लोग सो चुके थे. फिर भी गांव में देर रात पुलिस की गाड़ी देख कर कुछ लोग एकत्र हो गए. पुलिस की जिप्सी रुकते ही सब से पहले नौशाद पुलिस के सामने हाजिर हुआ. वह बोला, ‘‘सर, मेरा नाम ही नौशाद अली है. मैं ने ही आप को फोन किया था. आइए सर, मैं आप को युवक की लाश दिखाता हूं.’’ कह कर नौशाद अली पुलिसकर्मियों को अपने घर के अंदर ले गया.

घर के अंदर जाते ही नौशाद ने अपने घर में रखा संदूक खोला. संदूक खुलते ही बदबू का गुबार निकला. जिस की वजह से पुलिस का वहां रुकना मुश्किल हो गया. बदबू कम हुई तो पुलिस ने मृतक की लाश देखी. फिर लोगों की मदद से लाश को संदूक से बाहर निकलवाया.

मृतक हृष्टपुष्ट युवक था. जांचपड़ताल के दौरान पता चला कि उस के शरीर पर तमाम चोटों के निशान थे. उस के सिर से काफी खून भी निकल कर जम गया था. संभवत: ज्यादा खून बहने से ही उस की मौत हुई थी.

थानाप्रभारी गौतम ने इस मामले की जानकारी सीओ बलराम सिंह को भी दे दी थी. सूचना मिलते ही सीओ साहब भी पाठंगी गांव पहुंच गए और वहां मौजूद लोगों से पूछताछ की.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल पर पहुंच कर साक्ष्य एकत्र किए.

नौशाद के घर से ही पुलिस को मृतक का एक बैग भी मिला, जिस में से पुलिस को शराब की एक बोतल के साथसाथ 2 बीयर की बोतलें, मृतक का आधार कार्ड व अन्य दस्तावेज भी मिले. आधार कार्ड पर नाम महबूब आलम पुत्र शमशाद, निवासी मोड़ा पट्टी, कांठ लिखा था.

पुलिस ने नौशाद से मृतक युवक के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘सर, मैं पानीपत में काम करता हूं. घर पर मेरे बीवीबच्चे रहते हैं. इसलिए मैं इस के बारे में नहीं जानता. लेकिन पत्नी नरगिस ने बताया कि यह उस का दूर का रिश्तेदार है. मैं पानीपत में था तो आज सुबह मेरी बीवी नरगिस का फोन आया. उस ने फोन पर बताया कि घर पर कुछ अनहोनी हो गई है. इसलिए जितनी जल्दी हो सके, फौरन घर पहुंचो.’’

नौशाद ने बताया कि बीवी की बात सुनते ही वह अपना कामधंधा छोड़ कर तुरंत घर चला आया था. घर आने पर पत्नी ने बताया कि महबूब उस का दूर का रिश्तेदार था. 17 सितंबर, 2020 की देर रात वह हमारे घर पहुंचा. उस वक्त तीनों बच्चे सो चुके थे. लेकिन बड़ा बेटा अचानक जाग गया. बेटे के डर की वजह से महबूब घर में रखे संदूक में छिप कर बैठ गया. बेटा 2 घंटे बाद सोया तो मैं ने संदूक खोल कर देखा. तब तक दम घुटने से वह मर चुका था.

नौशाद ने पुलिस को बताया कि घर में किसी व्यक्ति की मौत हो जाने की बात सुनते ही उस के हाथपांव फूल गए. संदूक में पड़ी लाश के बारे में सोचसोच कर उस का सिर फटा जा रहा था.

उसे अपनी बीवी पर भी कुछ शक हुआ. वह समझ नहीं पा रहा था कि अगर लड़का सोते से उठ गया तो उसे संदूक में छिपने की क्या जरूरत थी. इस घटना से उसे बीवी पर बहुत गुस्सा आया. लेकिन घर में जो बला पड़ी थी, पहले उस से कैसे निपटा जाए, वह उसे ले कर परेशान था.

दोपहर से शाम तक उस ने कई बार उस की लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई, लेकिन वह किसी भी योजना में सफल नहीं हो पा रहा था. घर की बदनामी को देखते हुए वह न तो इस बात का जिक्र अपने घर वालों से कर सकता था और न ही खुद कोई निर्णय ले पा रहा था.

जब इस मामले में उस के दिमाग ने बिलकुल काम करना बंद कर दिया तो उस ने पुलिस को सूचना देने का फैसला लिया. उस के बाद ही उस ने पुलिस को फोन कर घटना की जानकारी दी.

जब पुलिस इस मामले की जांचपड़ताल में लगी थी, नरगिस घर के आंगन में ही डरीसहमी सी बैठी थी. नौशाद की बताई कहानी से पुलिस को मामला समझने में देर नहीं लगी. लेकिन हैरत की बात यह थी कि 2 घंटे संदूक में बंद रहने से उस की मौत कैसे हो गई. क्योंकि बक्सा काफी बड़ा भी था और खाली भी था. सवाल यह था कि मृतक के शरीर पर चोटों के निशान कहां से आए.

पुलिस को मृतक की जेब से एक मोबाइल मिला, जो उस वक्त बंद था. पुलिस ने उसे औन कर के उस की जांच की तो पता चला कि उस के फोन पर नरगिस ने ही आखिरी काल की थी.

इस मामले को ले कर पुलिस ने नरगिस से भी पूछताछ की. पुलिस पूछताछ के दौरान नरगिस ने अपने पति की बताई रटीरटाई बात दोहरा दीं. उस वक्त तक रात के 12 बज चुके थे. पुलिस युवक की मौत की जांच में लगी थी. उसी दौरान मृतक के मोबाइल पर शमशाद नामक व्यक्ति का फोन आया.

फोन थानाप्रभारी गौतम ने रिसीव किया. जैसे ही उन्होंने हैलो कहा तभी दूसरी तरफ से आवाज आई, ‘‘अरे बेटा, मैं तुम्हारा अब्बू बोल रहा हूं. तुम कहां हो? कल से तुम्हारा फोन बंद आ रहा है.’’

‘‘शमशाद जी, आप कहां से बोल रहे हैं और आप का बेटा कहां गया हुआ है?’’ अजय कुमार गौतम ने शमशाद से प्रश्न किया.

आवाज उन के बेटे की नहीं थी. मोबाइल किसी और के रिसीव करने से शमशाद हुसैन चिंतित हो उठे. वह तुरंत बोले, ‘‘आप कौन बोल रहे हैं? यह नंबर तो मेरे बेटे महबूब आलम का है. आप के पास कहां से आया?’’

‘‘मैं कांठ थाने का थानेदार अजय कुमार गौतम बोल रहा हूं.’’

पुलिस का नाम सुनते ही शमशाद अहमद घबरा गए. उन के दिमाग में तरहतरह शंकाएं घूमने लगीं.

जब उन्हें यह जानकारी मिली कि बेटे का मोबाइल पुलिस के पास है तो वे किसी अनहोनी की आशंका से परेशान हो गए. तभी अजय कुमार गौतम ने शमशाद हुसैन को बताया कि उन के बेटे के साथ एक अनहोनी हो गई है. वह तुरंत पाठंगी गांव आ जाएं.

पुलिस द्वारा जानकारी मिलने पर शमशाद हुसैन अपने घर वालों के साथ पाठंगी गांव जा पहुंचे. वहां पहुंचने पर उन्हें जानकारी मिली कि उन का बेटा महबूब अब इस दुनिया में नहीं रहा. उस की संदूक में बंद होने के कारण दम घुटने से मौत हो गई है.

यह जानकारी मिलते ही शमशाद हुसैन के परिवार में मातम छा गया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मृतक की गला घोंट कर हत्या करने की बात सामने आई. मृतक के शरीर पर भी चोटों के काफी निशान पाए गए थे, जिन से साफ जाहिर था कि मृत्यु से पहले उस के साथ मारपीट की गई थी और मृतक ने हमलावरों से काफी संघर्ष किया था.

इस केस में मृतक के पिता शमशाद हुसैन की तहरीर पर पुलिस ने नरगिस, उस के पति नौशाद, ग्रामप्रधान शहजाद और दिलशाद के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया.

पुलिस ने आरोपी नरगिस को उस के घर से ही गिरफ्तार कर लिया. नरगिस को थाने लाते ही पुलिस ने उस से कड़ी पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. नरगिस और महबूब के घर वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

जिला मुरादाबाद में कांठ मिश्रीपुर रोड पर स्थित है गांव मोड़ा पट्टी. शमशाद हुसैन इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहता था. शमशाद हुसैन पेशे से कारपेंटर था. उस की आर्थिक स्थिति शुरू से ही मजबूत थी. उस के 6 बच्चों में महबूब आलम तीसरे नंबर का था. इस समय उस के पांचों बेटे कामधंधा कर कमाने लगे थे.

महबूब ने कांठ में ही स्टील वेल्ंिडग का काम सीख लिया था. काम सीखने के बाद उस ने ठेके पर काम करना शुरू किया. धीरेधीरे शहर के आसपास उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी.

लगभग 3 साल पहले की बात है. नरगिस अपने पति नौशाद को फोन मिला रही थी. लेकिन गलती से फोन किसी और के नंबर से कनेक्ट हो गया. बातों में पता चला कि वह नंबर गांव मोड़ा पट्टी निवासी महबूब का है. महबूब से बात करना उसे अच्छा लगा.

महबूब को भी उस की बातें अच्छी लगीं. बात खत्म हो जाने के बाद महबूब ने उसी वक्त नरगिस के नंबर को अपने मोबाइल में सेव कर लिया था.

उस के कई दिन बाद महबूब ने फिर से वही नंबर ट्राई किया तो फोन नरगिस ने ही उठाया. उस के बाद महबूब ने नरगिस को विश्वास में लेते हुए उस के घर की पूरी हकीकत जान ली.

एक बार दोनों के बीच मोबाइल पर बात करने का सिलसिला चालू हुआ तो दोस्ती पर ही जा कर रुका. दोनों के बीच प्रेम कहानी शुरू हुई तो महबूब नरगिस के घर तक पहुंच गया.

महबूब पहली बार नरगिस के घर जा कर उस से मिला तो उस ने उस का परिचय अपने बच्चों व ससुराल वालों से अपने दूर के खालू के लड़के के रूप में कराया. उस के बाद महबूब का नौशाद की गैरमौजूदगी में आनाजाना बढ़ गया. उसी आनेजाने के दौरान महबूब और नरगिस के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

नौशाद अकसर काम के सिलसिले में घर से बाहर ही रहता था. उस के तीनों बच्चे स्कूल जाने लगे थे. वैसे भी महबूब का घर नरगिस के गांव से करीब 7 किलोमीटर दूर था. जब कभी नरगिस घर पर अकेली होती तो वह महबूब को फोन कर के बुला लेती. फिर दोनों मौके का लाभ उठाते हुए अपनी हसरतें पूरी करते. दोनों के बीच यह सिलसिला काफी समय तक चलता रहा.

इसी दौरान महबूब कांठ छोड़ कर काम करने गोवा चला गया. महबूब के गोवा जाते ही नरगिस खोईखोई सी रहने लगी. इस के बाद भी दोनों के बीच मोबाइल पर प्रेम कहानी चलती रही. गोवा में स्टील वेल्डिंग का काम कर के महबूब ने काफी पैसे कमाए. उस कमाई का अधिकांश हिस्सा वह नरगिस पर खर्च करता.

महबूब जब कभी गोवा से अपने घर कांठ आता तो वह नरगिस के साथसाथ उस के बच्चों के लिए भी काफी गिफ्ट ले कर आता था. वह सारी रात उसी के पास सोता और फिर दिन निकलते ही अपने गांव मोड़ा पट्टी चला जाता था.

महबूब का नरगिस के साथ करीब 3 साल से प्रेम प्रसंग चल रहा था, लेकिन उस ने इस बात की भनक अपने परिवार वालों को नहीं लगने दी थी. लेकिन नरगिस के ससुराल वाले जरूर महबूब और नरगिस के रिश्ते को ले कर शक करने लगे थे.

नौशाद का भाई शमशाद ग्रामप्रधान था. नरगिस के क्रियाकलापों की वजह से गांव में उस की बहुत बदनामी हो रही थी. उस के सभी भाई परेशान थे.

नौशाद का परिवार अलग घर में रहता था. उस के भाई अपनेअपने घरों में रहते थे. जिस के कारण वह महबूब और नरगिस को रंगेहाथों पकड़ने में असफल हो रहे थे.

महबूब अगस्त के महीने में घर आया और फिर गोवा वापस चला गया था. गोवा जाते ही घर पर उस की शादी की बात चली. बात तय हो जाने के बाद 18 सितंबर को रिश्ता होने की बात पक्की हो गई. जिस के लिए मजबूरी में उसे फिर से गोवा से गांव आना पड़ा.

15 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने भाई शकील के मोबाइल पर बात कर कहा था कि 18 सितंबर की सुबह वह घर पहुंच जाएगा. 16 सितंबर को वह गोवा से चल कर देर रात दिल्ली पहुंचा. दिल्ली के कीर्ति नगर में उस के जीजा गुड्डू रहते थे. वह सीधे अपने जीजा के पास चला गया.

16 सितंबर की रात को उस ने नरगिस से फोन पर बात की तो उसे पता चला कि उस का पति पानीपत, हरियाणा काम करने गया हुआ है. यह जानकारी मिलने पर उस ने सीधे नरगिस के घर जाने की योजना बना ली. उसी योजना के मुताबिक महबूब 17 सितंबर की देर रात दिल्ली से नरगिस के गांव पाठंगी पहुंचा. उस वक्त तक उस के बच्चे सो चुके थे. लेकिन नौशाद के बड़े भाई ग्राम प्रधान शहजाद को इस बात का पता चल गया था.

भले ही नरगिस ने महबूब को अपना रिश्तेदार बता रखा था. लेकिन उस का वक्तबेवक्त आनाजाना ससुराल वालों को खलने लगा था.

गांव में हो रही बदनामी से बचने के लिए ग्राम प्रधान शहजाद और उस का छोटा भाई दिलशाद महबूब को सबक सिखाने का मौका तलाश रहे थे.

17 सितंबर की रात नरगिस के ससुराल वालों को महबूब के आने का पता चल गया था. वे देर रात तक नरगिस के बच्चों के सोने का इंतजार करते रहे. जैसे ही उन्हें आभास हुआ कि बच्चे सो चुके हैं, दोनों भाई मौका पाते ही नौशाद के घर में घुस कर छिप गए. रात में उन्होंने नरगिस और महबूब को आपतिजनक स्थिति में देख लिया.

दोनों को उस स्थिति में देखते ही शहजाद और दिलशाद का खून खौल उठा. नरगिस को उन्होंने बुरी तरह से मारापीटा. उस के बाद दोनों ने महबूब को डंडों से मारमार कर अधमरा कर दिया. कुछ ही देर में महबूब की मौत हो गई. इस के बाद उन्होंने उस की लाश छिपाने के उद्देश्य से घर में रखे संदूक में डाल दी. फिर वे उस की लाश ठिकाने लगाने की जुगत मे लग गए.

लेकिन उन्हें लाश ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिला तो नरगिस को वही पाठ पढ़ा कर घर से गायब हो गए, जो उस ने अपने पति और पुलिस वालों को बताया था.

उधर 17 सितंबर, 2020 को महबूब ने अपने घर फोन कर जानकारी दी थी कि वह गोवा से दिल्ली गुड्डू जीजा के घर आ गया है और कल सुबह गांव पहुंच जाएगा. उस के बाद उस का मोबाइल फोन बंद हो गया था.

घर वालों ने सोचा कि शायद उस के मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज हो गई होगी. फिर भी उन्हें तसल्ली इस बात की थी कि वह गोवा से ठीकठाक दिल्ली पहुंच गया था. उस के बाद भी उस के परिवार वाले बीचबीच में उस का नंबर मिलाते रहे. लेकिन उस से बात नहीं हो पा रही थी.

जब काफी समय बाद भी महबूब से बात नहीं हो सकी. तो शमशाद हुसैन ने अपने दामाद गुड्डू को फोन किया. गुड्डू ने बताया कि महबूब उन के घर 16 सितंबर की रात पहुंचा था और 17 सितंबर की दोपहर में ही वह घर जाने की बात कह कर चला गया था. यह सुन कर घर वाले परेशान थे. पुलिस द्वारा फोन करने पर ही उन्हें हत्या की जानकारी हुई.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने शमशाद की तहरीर पर मृतक महबूब की प्रेमिका नरगिस, उस के पति नौशाद, जेठ शहजाद तथा दिलशाद के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज किया.

हालांकि नरगिस और उस के पति नौशाद ने स्वयं स्वीकार किया था कि हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. नौशाद ने बताया कि हत्या वाली रात वह पानीपत में था. जांच में बेकुसूर पाए जाने पर पुलिस ने नौशाद को छोड़ दिया.

18 सितंबर को पुलिस ने नरगिस को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. अन्य अभियुक्तों की तलाश जारी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दरवाजे के पार-भाग 2 : क्यों किया अपनों ने वार

आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है.

सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की.

एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया. लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली.

इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला.

सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे. वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती.

पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी.

पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं. इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया.

मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की.

लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है.

आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है. घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे.

पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है.

पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई.

थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

दरवाजे के पार-भाग 1 : क्यों किया अपनों ने वार

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था.

आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ. ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था.

खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं.

कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे.

मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी.

सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया.

एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था.

उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी.

पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं. लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी.

घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी.

आगे पढ़िए क्या थी सोना और आशीष की कहानी…

जिम ट्रेनर की आखिरी ट्रेनिंग : सृष्टि ने कैसे जितेंद्र को निपटाया – भाग 1

जितेंद्र मान ग्रेटर नोएडा स्थित एवीजे हाइट्स सोसाइटी में छठी मंजिल के फ्लैट में रहता था. यह फ्लैट उस के फुफेरे भाई प्रीतम का था. इस फ्लैट की एक चाबी प्रीतम के पास रहती थी और दूसरी जितेंद्र के पास. 12 जनवरी, 2018 को प्रीतम अपने भाई जितेंद्र से मिलने फ्लैट पर पहुंचा. जैसे ही उस ने फ्लैट का मुख्य दरवाजा खोला तो उसे अंदर कमरे का दरवाजा खुला मिला. दरवाजे से लौबी साफ दिख रही थी. वहीं से उस ने देखा कि फर्श पर गद्दा बिछा है और उस गद्दे पर कोई कंबल ओढ़े सो रहा है.

फ्लैट में घुसते ही उसे थोड़ी दुर्गंध आती महसूस हुई तो घबरा कर वह सीधे लौबी में पहुंचा. थोड़ा अजीब तो लग रहा था, पर यह सोच कर उस ने जितेंद्र को आवाज दी कि कंबल में वही सोया होगा. जब कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो प्रीतम ने कंबल हटाया. कंबल के नीचे जितेंद्र की लाश पड़ी थी. भाई की लाश देखते ही प्रीतम की चीख निकल गई.

चीख की आवाज सुन कर कई पड़ोसी भी वहां आ गए. प्रीतम ने फोन कर के इस की सूचना पुलिस को भी दे दी. कुछ देर बाद ही सूरजपुर थाने के थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान एसआई सोहनवीर मलिक, हरिराज, कांस्टेबल कृष्णकुमार और राजेश कुमार घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस ने जितेंद्र की लाश पर से कंबल हटा कर देखा तो गद्दा खून से सना हुआ था. खून भी जम कर काला पड़ गया था. लाश से आ रही बदबू से लग रहा था कि उस की हत्या कई दिन पहले की गई होगी.

जितेंद्र मान की लाश चित अवस्था में थी. लाश पलटी तो उस की पीठ पर गोलियों के 3 निशान मिले. एक गोली उस की गरदन पर भी लगी थी. थानाप्रभारी ने इस की सूचना एसपी (देहात) सुनीति शर्मा और सीओ अमित किशोर श्रीवास्तव को भी दे दी.

कमरे का निरीक्षण किया गया तो वहां शराब और सोडे की खाली बोतलें और 2 खाली गिलासों के अलावा कुछ जूठे बरतन भी पड़े मिले. इस से लगा कि वहां 2 लोगों ने शराब पी थी और जितेंद्र की हत्या किसी जानकार ने ही की होगी.

थानाप्रभारी प्रधान मौकामुआयना कर ही रहे थे कि एसपी (देहात) सुनीति शर्मा और सीओ (ग्रेटर नोएडा) अमित किशोर भी मौके पर पहुंच गए. एसपी (देहात) सुनीति शर्मा ने पड़ोसियों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन्हें गोलियों की आवाज नहीं आई थी. इस बात पर पुलिस भी हैरत में पड़ गई कि 4 गोलियां चलीं और पड़ोसी आवाज भी नहीं सुन सके.

फ्लैट में सारा सामान अपनी जगह रखा था, इसलिए वहां लूट की संभावना नजर नहीं आ रही थी. मृतक का मोबाइल फोन और पर्स नदारद था. यानी ये दोनों चीजें हत्यारा अपने साथ ले गया था.

प्रीतम ने जितेंद्र की हत्या की खबर उस के घर वालों को भी दे दी थी. उस के घर वाले भी वहां पहुंच गए. पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

प्रीतम की तहरीर पर पुलिस ने अज्ञात हत्यारे के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर लिया. इस केस की जांच थानाप्रभारी ने खुद संभाली.

जितेंद्र मान की पृष्ठभूमि

13 जनवरी को पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. मरने की वजह गोलियों से शरीर के अंदरूनी अंगों की क्षति पहुंचना बताया गया था. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि हत्या 10 जनवरी को दोपहर से शाम के बीच की गई थी.

14 जनवरी, 2018 को सुबह के समय थानाप्रभारी अखिलेश प्रधान फिर से एवीजे हाइट्स सोसाइटी पहुंचे. उन्होंने गेट पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों से पूछताछ की. आगंतुक रजिस्टर भी चैक किया, पर वहां से कोई क्लू नहीं मिला. तब उन्होंने सोसाइटी में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज का निरीक्षण किया.

फुटेज से जानकारी मिली कि 10 जनवरी को दोपहर करीब साढ़े 11 बजे जितेंद्र मान सीढि़यों से फ्लैट में गया और 4 बज कर 20 मिनट पर फ्लैट से बाहर निकला और चला गया. इस के बाद थानाप्रभारी सोसाइटी से चले आए.

उन्होंने जांच की तो पता चला कि दिल्ली के मुनीरका के रहने वाले प्रीतम ने अपने दोस्त नितिन चौधरी के साथ ग्रेटर नोएडा में कुछ दिनों पहले ही एक जिम खोला था. प्रीतम जिम में ज्यादा समय नहीं दे पाता था. घर से रोजाना ग्रेटर नोएडा आनाजाना उस के लिए संभव नहीं था, इसलिए उस ने जिम के नजदीक स्थित एवीजे हाइट्स सोसाइटी में किराए पर एक फ्लैट ले लिया था.

प्रीतम का एक ममेरा भाई था जितेंद्र मान, जो बाहरी दिल्ली के अलीपुर में रहता था. फिलहाल वह बेरोजगार था. उस ने कई साल जिम में प्रैक्टिस कर के अपना शरीर बना रखा था और एक अच्छा खिलाड़ी भी था. इसलिए प्रीतम ने उसे अपने जिम में ट्रेनर के रूप में रख लिया था.

चूंकि हत्या वाले दिन जितेंद्र प्रीतम के फ्लैट पर आया था, इसलिए थानाप्रभारी पूछताछ करने के लिए उस के जिम में पहुंच गए.

थानाप्रभारी ने जिम में पूछताछ की तो मालूम हुआ कि 10 जनवरी को जितेंद्र अपनी शिफ्ट पूरी कर के पौने 12 बजे घर जाने के लिए निकला था. एवीजे हाइट्स सोसाइटी जिम के पास है. अगर किसी गाड़ी से जाया जाए तो सोसाइटी का रास्ता 10 मिनट का है. एवीजे हाइट्स की सीसीटीवी फुटेज में जितेंद्र साढ़े 11 बजे सीढि़यां चढ़ कर फ्लैट में जाता दिखा था.

इस से साफ हो गया कि जिम से निकलने के बाद जितेंद्र सीधे घर आया था. इस के बाद दोपहर करीब साढ़े 12 बजे कोई जितेंद्र के फ्लैट में आया. वहां शराब पी गई. पुलिस ने जितेंद्र की काल डिटेल्स निकलवाई. उस काल डिटेल्स में 17 मोबाइल नंबरों को चिह्नित किया. इन में से एक फोन नंबर प्रीतम का निकला और 5 फोन नंबर जिम के कर्मचारियों व परिवार के लोगों के थे. इसलिए इन 6 नंबरों को संदेह से अलग कर दिया गया.

पुलिस ने 11 नंबरों की गहन छानबीन की तो चौंकाने वाली बात यह पता चली कि वह सभी फोन नंबर लड़कियों के थे. उन में से 10 लड़कियां घर पर ही मिल गईं. थानाप्रभारी ने उन्हें एसपी (देहात) सुनीति शर्मा के सामने पेश किया.

पुलिस इन्वैस्टीगेशन में आया लड़की का नाम

एसपी (देहात) सुनीति शर्मा ने सभी लड़कियों से अलगअलग बात की मगर कोई काम की बात पता नहीं चली. अब केवल एक लड़की बची थी, उस का फोन स्विच्ड औफ आने की वजह से संपर्क नहीं हो सका. पुलिस ने उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि वह फोन नंबर ग्रेटर नोएडा की होराइजन सोसाइटी के फ्लैट टी-1103 में रहने वाली सृष्टि गुप्ता का है. मोबाइल कंपनी से पते के साथ सृष्टि गुप्ता का फोटो भी मिल गया.

दिल के मरीज डौक्टर की हैवानियत: बेरहम एकतरफा प्यार

बीते 19 अगस्त की बात है. उत्तर प्रदेश पुलिस को सूचना मिली कि आगरा फतेहाबाद हाईवे पर बमरोली कटारा के पास सड़क किनारे एक महिला की लाश पड़ी है. यह जगह थाना डौकी के क्षेत्र में थी. कंट्रोल रूप से सूचना मिलते ही थाना डौकी की पुलिस मौके पर पहुंच गई.

मृतका लोअर और टीशर्ट पहने थी. पास ही उस के स्पोर्ट्स शू पड़े हुए थे. चेहरेमोहरे से वह संभ्रांत परिवार की पढ़ीलिखी लग रही थी, लेकिन उस के कपड़ों में या आसपास कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त हो पाती. युवती की उम्र 25-26 साल लग रही थी.

पुलिस ने शव को उलटपुलट कर देखा. जाहिरा तौर पर उस के सिर के पीछे चोट के निशान थे. एकदो जख्म से भी नजर आए. युवती के हाथ में टूटे हुए बाल थे. हाथ के नाखूनों में भी स्कीन फंसी हुई थी. साफतौर पर नजर आ रहा था कि मामला हत्या का है, लेकिन हत्या से पहले युवती ने कातिल से अपनी जान बचाने के लिए काफी संघर्ष किया था.

मौके पर शव की शिनाख्त नहीं हो सकी, तो डौकी पुलिस ने जरूरी जांच पड़ताल के बाद युवती की लाश पोस्टमार्टम के लिए एमएम इलाके के पोस्टमार्टम हाउस भेज दी. डौकी थाना पुलिस इस युवती की शिनाख्त के प्रयास में जुट गई.

उसी दिन सुबह करीब साढ़े 9 बजे दिल्ली के शिवपुरी पार्ट-2, दिनपुर नजफगढ़ निवासी डाक्टर मोहिंदर गौतम आगरा के एमएम गेट पुलिस थाने पहुंचे. उन्होंने अपनी बहन डाक्टर योगिता गौतम के अपहरण की आशंका जताई और डाक्टर विवेक तिवारी पर शक व्यक्त करते हुए पुलिस को एक तहरीर दी.

डाक्टर मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डाक्टर योगिता आगरा के एसएन मेडिकल कालेज से पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही है. वह नूरी गेट में गोकुलचंद पेठे वाले के मकान में किराए पर रहती है.

कल शाम यानी 18 अगस्त की शाम करीब सवा 4 बजे डाक्टर योगिता ने दिल्ली में घर पर फोन कर के कहा था कि डाक्टर विवेक तिवारी उसे बहुत परेशान कर रहा है. उस ने डाक्टरी की डिगरी कैंसिल कराने की भी धमकी दी है. फोन पर डाक्टर योगिता काफी घबराई हुई थी और रो रही थी.

पुलिस ने डाक्टर मोहिंदर से डाक्टर विवेक तिवारी के बारे में पूछा कि वह कौन है? डा. मोहिंदर ने बताया कि डा. योगिता ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थकर महावीर मेडिकल कालेज में प्रवेश लिया था. मेडिकल कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की जान पहचान एक साल सीनियर डा. विवेक से हुई थी.

डाक्टरी करने के बाद विवेक को सरकारी नौकरी मिल गई. वह अब यूपी में जालौन के उरई में मेडिकल औफिसर के पद पर तैनात है. डा. विवेक के पिता विष्णु तिवारी पुलिस में औफिसर थे. जो कुछ साल पहले सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले हार्ट अटैक से उन की मौत हो गई थी.

डा. मोहिंदर ने पुलिस को बताया कि डा. विवेक तिवारी डा. योगिता से शादी करना चाहता था. इस के लिए वह उस पर लगातार दबाव डाल रहा था. जबकि डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस बात को लेकर दोनों के बीच काफी दिनों से झगड़ा चल रहा था. डा. विवेक योगिता को धमका रहा था.

नहीं सुनी पुलिस ने

पुलिस ने योगिता के अपहरण की आशंका का कारण पूछा, तो डा. मोहिंदर ने बताया कि 18 अगस्त की शाम योगिता का घबराहट भरा फोन आने के बाद मैं, मेरी मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम तुरंत दिल्ली से आगरा के लिए रवाना हो गए. हम रात में ही आगरा पहुंच गए थे. आगरा में हम योगिता के किराए वाले मकान पर पहुंचे, तो वह नहीं मिली. उस का फोन भी रिसीव नहीं हो रहा था.

डा. मोहिंदर ने आगे बताया कि योगिता के नहीं मिलने और मोबाइल पर भी संपर्क नहीं होने पर हम ने सीसीटीवी फुटेज देखी. इस में नजर आया कि डा. योगिता 18 अगस्त की शाम साढ़े 7 बजे घर से अकेली बाहर निकली थी. बाहर निकलते ही उसे टाटा नेक्सन कार में सवार युवक ने खींचकर अंदर डाल लिया.

डा. मोहिंदर ने आरोप लगाया कि सारी बातें बताने के बाद भी पुलिस ने ना तो योगिता को तलाशने का प्रयास किया और ना ही डा. विवेक का पता लगाने की कोशिश की. पुलिस ने डा. मोहिंदर से अभी इंतजार करने को कहा.

जब 2-3 घंटे तक पुलिस ने कुछ नहीं किया, तो डा. मोहिंदर आगरा में ही एसएन मेडिकल कालेज पहुंचे. वहां विभागाध्यक्ष से मिल कर उन्हें अपना परिचय दे कर बताया कि उन की बहन डा. योगिता लापता है. उन्होंने भी पुलिस के पास जाने की सलाह दी.

थकहार कर डा. मोहिंदर वापस एमएम गेट पुलिस थाने आ गए और हाथ जोड़कर पुलिस से काररवाई करने की गुहार लगाई. शाम को एक सिपाही ने उन्हें बताया कि एक अज्ञात युवती का शव मिला है, जो पोस्टमार्टम हाउस में रखा है. उसे भी जा कर देख लो.

मन में कई तरह की आशंका लिए डा. मोहिंदर पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे. शव देख कर उन की आंखों से आंसू बहने लगे. शव उन की बहन डा. योगिता का ही था. मां आशा गौतम और पिता अंबेश गौतम भी नाजों से पाली बेटी का शव देख कर बिलखबिलख कर रो पड़े.

शव की शिनाख्त होने के बाद यह मामला हाई प्रोफाइल हो गया. महिला डाक्टर की हत्या और इस में पुलिस अधिकारी के डाक्टर बेटे का हाथ होने की संभावना का पता चलने पर पुलिस ने कुछ गंभीरता दिखाई और भागदौड़ शुरू की.

आगरा पुलिस ने जालौन पुलिस को सूचना दे कर उरई में तैनात मेडिकल आफिसर डा. विवेक तिवारी को तलाशने को कहा. जालौन पुलिस ने सूचना मिलने के 2 घंटे बाद ही 19 अगस्त की रात करीब 8 बजे डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. जालौन पुलिस ने यह सूचना आगरा पुलिस को दे दी.

जालौन पुलिस उसे हिरासत में ले कर एसओजी आफिस आ गई. जालौन पुलिस ने उस से आगरा जाने और डा. योगिता से मिलने के बारे में पूछताछ की, तो वह बिफर गया. उस ने कहा कि कोरोना संक्रमण की वजह से वह क्वारंटीन में है.

विवेक तिवारी बारबार बयान बदलता रहा. बाद में उस ने स्वीकार किया कि वह 18 अगस्त को आगरा गया था और डा. योगिता से मिला था. विवेक ने जालौन पुलिस को बताया कि वह योगिता को आगरा में टीडीआई माल के बाहर छोड़कर वापस उरई लौट आया था.

आगरा पुलिस ने रात करीब 11 बजे जालौन पहुंचकर डा. विवेक को हिरासत में ले लिया. उसे जालौन से आगरा ला कर 20 अगस्त को पूछताछ की गई. पूछताछ में वह पुलिस को लगातार गुमराह करता रहा. पुलिस ने उस की काल डिटेल्स निकलवाई, तो पता चला कि शाम सवा 6 बजे से उस की लोकेशन आगरा में थी. डा. योगिता से उस की शाम साढ़े 7 बजे आखिरी बात हुई थी.

इस के बाद रात सवा बारह बजे विवेक की लोकेशन उरई की आई. कुछ सख्ती दिखाने और कई सबूत सामने रखने के बाद उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की गई. आखिरकार उस ने डा. योगिता की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. बाद में पुलिस ने उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया.

पुलिस ने 20 अगस्त को डाक्टरों के मेडिकल बोर्ड से डा. योगिता के शव का पोस्टमार्टम कराया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार डा. योगिता के शरीर से 3 गोलियां निकलीं. एक गोली सिर, दूसरी कंधे और तीसरी सीने में मिली. योगिता पर चाकू से भी हमला किया गया था. पोस्टमार्टम कराने के बाद आगरा पुलिस ने डा. योगिता का शव उस के मातापिता व भाई को सौंप दिया.

पूछताछ में डा. योगिता के दुखांत की जो कहानी सामने आई, वह डा. विवेक तिवारी के एकतरफा प्यार की सनक थी.

दिल्ली के नजफगढ़ इलाके की शिवपुरी कालोनी पार्ट-2 में रहने वाले अंबेश गौतम नवोदय विद्यालय समिति में डिप्टी डायरेक्टर हैं. वह राजस्थान के उदयपुर शहर में तैनात हैं. डा. अंबेश के परिवार में पत्नी आशा गौतम के अलावा बेटा डा. मोहिंदर और बेटी डा. योगिता थी.

प्रतिभावान डाक्टर थी योगिता

योगिता शुरू से ही पढ़ाई में अव्वल रहती थी. उस की डाक्टर बनने की इच्छा थी. इसलिए उस ने साइंस बायो से 12वीं अच्छे नंबरों से पास की. पीएमटी के जरिए उस का सलेक्शन मेडिकल की पढ़ाई के लिए हो गया. उस ने 2009 में मुरादाबाद के तीर्थंकर मेडिकल कालेज में एमबीबीएस में एडमिशन लिया.

इसी कालेज में पढ़ाई के दौरान योगिता की मुलाकात एक साल सीनियर विवेक तिवारी से हुई. दोनों में दोस्ती हो गई. दोस्ती इतनी बढ़ी कि वे साथ में घूमनेफिरने और खानेपीने लगे. इस दोस्ती के चलते विवेक मन ही मन योगिता को प्यार करने लगा लेकिन योगिता की प्यारव्यार में कोई दिलचस्पी नहीं थी. वह केवल अपनी पढ़ाई और कैरियर पर ध्यान देती थी. इसी दौरान 2-4 बार विवेक ने योगिता के सामने अपने प्यार का इजहार करने का प्रयास किया लेकिन उस ने हंस मुसकरा कर उस की बातों को टाल दिया.

योगिता के हंसनेमुस्कराने से विवेक समझ बैठा कि वह भी उसे प्यार करती है. जबकि हकीकत में ऐसा कुछ था ही नहीं. विवेक मन ही मन योगिता से शादी के सपने देखता रहा. इस बीच, विवेक को भी डाक्टरी की डिगरी मिल गई और योगिता को भी. बाद में डा. विवेक तिवारी को सरकारी नौकरी मिल गई. फिलहाल वह उरई में मेडिकल आफिसर के पद पर कार्यरत था.

डा. विवेक मूल रूप से कानपुर का रहने वाला है. कानपुर के किदवई नगर के एन ब्लाक में उस का पैतृक मकान है. इस मकान में उस की मां आशा तिवारी और बहन नेहा रहती हैं. विवेक के पिता विष्णु तिवारी उत्तर प्रदेश पुलिस में अधिकारी थे. वे आगरा शहर में थानाप्रभारी भी रहे थे.

कहा जाता है कि पुलिस विभाग में विष्णु तिवारी का काफी नाम था. वे कानपुर में कई बड़े एनकाउंटर करने वाली पुलिस टीम में शामिल रहे थे. कुछ साल पहले विष्णु तिवारी सीओ के पद से रिटायर हो गए थे. करीब 2 साल पहले उन की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

मुरादाबाद से एमबीबीएस की डिगरी हासिल कर डा. योगिता आगरा आ गई. आगरा में 3 साल पहले उस ने एसएन मेडिकल कालेज में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए एडमिशन ले लिया. वह इस कालेज के स्त्री रोग विभाग में पीजी की छात्रा थी. वह आगरा में नूरी गेट पर किराए के मकान में रह रही थी.

इस बीच, डा. योगिता और विवेक की फोन पर बातें होती रहती थीं. कभीकभी मुलाकात भी हो जाती थी. डा. विवेक जब भी मिलता या फोन करता, तो अपने प्रेम प्यार की बातें जरूर करता लेकिन डा. योगिता उसे तवज्जो नहीं देती थी.

दोनों के परिवारों को उन की दोस्ती का पता था. डा. विवेक के पास योगिता के परिजनों के मोबाइल नंबर भी थे. उस ने योगिता के आगरा के मकान मालिकों के मोबाइल नंबर भी हासिल कर रखे थे. कहा यह भी जाता है कि विवेक और योगिता कई साल रिलेशन में रहे थे.

पिछले कई महीनों से डा. विवेक उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन डा. योगिता ने इनकार कर दिया था. इस से डा. विवेक नाराज हो गया. वह उसे फोन कर धमकाने लगा.

18 अगस्त को विवेक ने योगिता को फोन कर शादी की बात छेड़ दी. योगिता के साफ इनकार करने पर उस ने धमकी दी कि वह उसे जिंदा नहीं छोड़ेगा, उस की एमबीबीएस की डिगरी कैंसिल करा देगा. इस से डा. योगिता घबरा गई. उस ने दिल्ली में अपनी मां को फोन कर रोते हुए यह बात बताई. इसी के बाद योगिता के मातापिता व भाई दिल्ली से आगरा के लिए चल दिए थे.

योगिता को धमकाने के कुछ देर बाद डा. विवेक ने उसे दोबारा फोन किया. इस बार उस की आवाज में क्रोध नहीं बल्कि अपनापन था. उस ने कहा कि भले ही वह उस से शादी ना करे लेकिन इतने सालों की दोस्ती के नाम पर उस से एक बार मिल तो ले. काफी नानुकुर के बाद डा. योगिता ने आखिरी बार मिलने की हामी भर ली.

उसी दिन शाम करीब साढ़े 7 बजे डा. विवेक ने योगिता को फोन कर के कहा कि वह आगरा आया है और नूरी गेट पर खड़ा है. घर से बाहर आ जाओ, आखिरी मुलाकात कर लेते हैं. योगिता बिना सोचेसमझे बिना किसी को बताए घर से अकेली निकल गई. यही उस की आखिरी गलती थी.

घर से बाहर निकलते ही नूरी गेट पर टाटा नेक्सन कार में सवार विवेक ने उसे कार का गेट खोल कर आवाज दी और तेजी से कार के अंदर खींच लिया. रास्ते में डा. विवेक ने योगिता से फिर शादी का राग छेड़ दिया, तो चलती कार में ही दोनों में बहस होने लगी. डा. विवेक उस से हाथापाई करने लगा. इसी हाथापाई में योगिता ने अपने हाथ के नाखूनों से विवेक के बाल खींचे और चमड़ी नोंची, तो गुस्साए विवेक ने उस का गला दबा दिया.

डा. विवेक योगिता को कार में ले कर फतेहाबाद हाईवे पर निकल गया. एक जगह रुक कर उस ने अपनी कार में रखा चाकू निकाला. चाकू से योगिता के सिर और चेहरे पर कई वार किए. इतने पर भी विवेक का गुस्सा शांत नहीं हुआ, तो उस ने योगिता के सिर, कंधे और छाती में 3 गोलियां मारीं. यह रात करीब 8 बजे की घटना है.

हत्या कर के रातभर सक्रिय रहा विवेक

इस के बाद योगिता के शव को बमरौली कटारा इलाके में सड़क किनारे एक खेत में फेंक दिया. पिस्तौल भी रास्ते में फेंक दी. रात में ही वह उरई पहुंच गया. रात को ही वह उरई से कानपुर गया और अपनी कार घर पर छोड़ आया. दूसरे दिन वह वापस उरई आ गया.

बाद में पुलिस ने कानपुर में डा. विवेक के घर से वह कार बरामद कर ली. यह कार 2 साल पहले खरीदी गई थी. कार में खून से सना वह चाकू भी बरामद हो गया, जिस से हमला कर योगिता की जान ली गई थी.

बहुत कम बोलने वाली प्रतिभावान डा. योगिता गौतम का नाम कोरोना संक्रमण काल में यूपी की पहली कोविड डिलीवरी करने के लिए भी दर्ज है. कोरोना महामारी जब आगरा में पैर पसार रही थी, तब आइसोलेशन वार्ड विकसित किया गया.

इस के लिए स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की भी एक टीम बनाई गई. जिसे संक्रमित गर्भवतियों के सीजेरियन प्रसव की जिम्मेदारी दी गई. विभागाध्यक्ष डा. सरोज सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में शामिल डा. योगिता ने 21 अप्रैल को यूपी और आगरा में कोविड मरीज के पहले सीजेरियन प्रसव को अंजाम दिया था.  इस के बाद भी उन्होंने कई सीजेरियन प्रसव कराए. डा. योगिता के कराए प्रसव की कई निशानियां आज उन घरों में किलकारियां बन कर गूंज रही हैं.

सिरफिरे डाक्टर आशिक के हाथों जान गंवाने से 5 दिन पहले ही 13 अगस्त को डा. योगिता का पीजी का रिजल्ट आया था. जिस में वह पास हो गई थी. पीजी कर योगिता विशेषज्ञ डाक्टर बन गई थी. लेकिन वक्त को कुछ और ही मंजूर था. लोगों की जान बचाने वाली डा. योगिता की उस के आशिक ने ही जान ले ली. घटना वाले दिन भी वह दोपहर 3 बजे तक अस्पताल में अपनी ड्यूटी पर थी.

डा. योगिता की मौत पर आगरा के एसएन मेडिकल कालेज में कैंडल जला कर योगिता को श्रद्धांजलि दी गई. कालेज के जूनियर डाक्टरों की एसोसिएशन ने प्रदर्शन कर सच्ची कोरोना योद्धा की हत्या पर आक्रोश जताया.

बहरहाल डा. विवेक ने अपने एकतरफा प्यार की सनक में योगिता की हत्या कर दी. उस की इस जघन्य करतूत ने योगिता के परिवार को खून के आंसू बहाने पर मजबूर कर दिया. वहीं, खुद का जीवन भी बरबाद कर लिया. डाक्टर लोगों की जान बचाने वाला होता है, लोग उसे सब से ऊंचा दर्जा देते हैं, लेकिन यहां तो डाक्टर ही हैवान बन गया. दूसरों की जान बचाने वाले ने साथी डाक्टर की जान ले ली.

आधी-अधूरी प्रेम कहानी: दोस्त ही निकला हत्यारा

7 फरवरी, 2020 की बात है. उस दिन दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चाकचौबंद थी. इस की वजह यह थी कि अगले दिन यानी 8 फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे.

पूर्वी दिल्ली के पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया थाने में तैनात महिला एसआई प्रीति अहलावत भी अपनी ड्यूटी पूरी कर के घर चली गई थीं. वह दिल्ली के रोहिणी इलाके में किराए के मकान में रहती थीं. ड्यूटी पर वह मैट्रो से आतीजाती थीं. उस दिन भी वह मैट्रो से रोहिणी जाने के लिए निकल गईं.

करीब साढ़े 9 बजे वह रोहिणी (पूर्व) मैट्रो स्टेशन पर उतरीं. वहां से वह पैदल ही अपने घर की ओर चल दीं. अभी वह 50 मीटर ही चल पाई थीं कि किसी ने उन के बराबर में आ कर उन पर गोलियां चला दीं. प्रीति को सोचनेसमझने का मौका तक नहीं मिला.

हमलावर ने उन पर 3 गोलियां चलाई थीं, जिन में से 2 गोलियां प्रीति को लगीं और एक गोली बराबर से गुजर रही कार के पिछले शीशे में जा लगी. एक गोली प्रीति के सिर में लगी थी, जिस से वह नीचे गिर गईं और तत्काल उन की मौत हो गई.

उधर से गुजर रहे लोगों ने जब यह देखा तो किसी ने 100 नंबर पर दिल्ली पुलिस कंट्रोल रूम में फोन कर के सूचना दे दी. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस को जब पता चला कि वह युवती दिल्ली पुलिस में सबइंसपेक्टर है तो पुलिस कंट्रोल रूम की टीम आश्चर्यचकित रह गई.

सूचना रोहिणी जिले के डीसीपी और अन्य पुलिस अधिकारियों को दे दी गई. जिस युवती को गोली मारी गई थी, उस के आईडी कार्ड से पता चला कि उस का नाम प्रीति अहलावत है. उस के सिर में गोली लगी थी. देखने में लग रहा था कि उस की मौत हो चुकी है. फिर भी पुलिसकर्मी आननफानन में नजदीकी डा. अंबेडकर अस्पताल ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

अगले दिन दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने थे. ऐसे में दिल्ली पुलिस की एक अफसर की गोली मार कर हत्या कर देना एक बड़ी बात थी. कुछ ही देर में दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी अस्पताल पहुंचने लगे.

अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम ने भी घटनास्थल पहुंच कर आवश्यक सबूत जुटाए. मौके से गोली के 3 खाली खोखे बरामद हुए. पता चला कि मृत महिला पुलिस अफसर की ड्यूटी पूर्वी दिल्ली के थाना पटपड़गंज क्षेत्र में थी और वह मूलरूप से हरियाणा के रोहतक जिले की रहने वाली थीं.

पुलिस के सीनियर अधिकारियों ने इस घटना को बहुत गंभीरता से लिया. फोन द्वारा हत्या की सूचना मृतका के घर वालों को दे दी गई थी. इस केस को खोलने के लिए तेजतर्रार पुलिस अधिकारियों को लगा दिया गया.

जिस जगह पर एसआई प्रीति को गोली मारी गई थी, पुलिस ने रात में ही उस क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकलवाई. फुटेज को गौर से देखा गया तो उस में एक युवक संदिग्ध अवस्था में दिखाई दिया.

अज्ञात हत्यारे ने मारी गोली

पता चला कि प्रीति जब रोहिणी (पूर्व) मैट्रो स्टेशन से उतर कर अपने घर जाने के लिए पैदल निकली तो उस युवक ने उन का पीछा करना शुरू कर दिया था. कुछ दूर चल कर वह युवक तेज कदमों से प्रीति के पास आया और नजदीक जा कर उस पर गोली चला दी. इस के बाद वह तेजी से पैदल चल कर कुछ दूर खड़ी कार के नजदीक पहुंचा और फरार हो गया.

युवक कौन था, पुलिस इस का पता लगाने में जुट गई. प्रीति जिस थाने में तैनात थीं, जांच टीम ने वहां के पुलिसकर्मियों और प्रीति के मातापिता से बात कर कुछ क्लू तलाशने की कोशिश की.

टीम को जानकारी मिली कि प्रीति और दिल्ली पुलिस के ही एक एसआई दीपांशु राठी के बीच बहुत अच्छी दोस्ती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से प्रीति ने दीपांशु से दूरियां बना ली थीं. यह दूरियां क्यों बनीं, इस की जानकारी पुलिस टीम को नहीं मिल सकी.

26 वर्षीय एसआई प्रीति अहलावत की हत्या की वजह कहीं दीपांशु ही तो नहीं है, यह पता लगाना जरूरी था. पुलिस ने दीपांशु के बारे में रात में ही छानबीन की तो पता चला उस की पोस्टिंग उत्तरपूर्वी दिल्ली के थाना भजनपुरा में है.

एसआई दीपांशु के फोन को पुलिस ने सर्विलांस पर लगा दिया. उस के फोन की लोकेशन दिल्ली से सोनीपत होते हुए आगे बढ़ रही थी.

पुलिस जांच टीम एसआई दीपांशु के फोन के आधार पर उन का पीछा करने लगी. क्योंकि दीपांशु से पूछताछ करने के बाद ही जांच टीम अगला कदम उठा सकती थी. रोहिणी जिले के डीसीपी एस.डी. मिश्रा अलगअलग दिशा में काम कर रही पुलिस टीमों के संपर्क में थे. उन के निर्देशन में ही टीमें काम कर रही थीं.

एसआई दीपांशु के फोन की लोकेशन मुरथल के पास जा कर स्थिर हो गई. वैसे वह रहने वाले सोनीपत के थे. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि वह भजनपुरा थाने से अपनी ड्यूटी खत्म करने के बाद शायद अपने घर चला गया होगा. फिर भी पुलिस को दीपांशु से मिल कर पूछताछ करना जरूरी था. लिहाजा 8 फरवरी को सुबह पुलिस टीम उस स्थान पर पहुंच गई, जहां दीपांशु के फोन की लोकेशन मिल रही थी.

लोकेशन ट्रेस करते हुए जांच टीम मुरथल के पास सड़क किनारे खड़ी एक कार के पास पहुंची. उस कार में ध्यान से देखा तो दीपांशु ड्राइविंग सीट पर मृत पड़ा था. उस के हाथ में सरकारी रिवौल्वर थी और उस की कनपटी से खून निकल रहा था. साफ दिखाई दे रहा था कि उस ने गोली मार कर आत्महत्या की थी.

28 वर्षीय एसआई दीपांशु राठी के सुसाइड करने की जानकारी टीम ने डीसीपी एस.डी. मिश्रा को दे दी. इस के बाद तो विभाग में हड़कंप मच गया. क्योंकि एक ही दिन में 2 युवा पुलिस अफसरों की मौत हुई थी. दीपांशु के सुसाइड करने के बाद यह बात स्पष्ट हो गई थी कि दीपांशु राठी ने ही प्रीति अहलावत को गोली मारने के बाद खुद की जीवनलीला खत्म कर ली थी.

सूचना मिलने पर दिल्ली पुलिस के अधिकारी भी सकते में आ गए कि ऐसा क्या हुआ जो दीपांशु ने इतना बड़ा कदम उठाया. फोन कर के यह सूचना दीपांशु के घर वालों को दे दी गई. दीपांशु का घर सोनीपत की शास्त्री कालोनी में था. यह दुखद समाचार सुन कर उस के पिता दयानंद राठी परिवार के अन्य लोगों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

अपने जवान बेटे की इस दुखद मौत पर वह बिलखबिलख कर रोते हुए कह रहे थे कि दीपांशु तो बहुत हिम्मत वाला था. उस ने ऐसा कदम क्यों उठा लिया. दयानंद राठी और अन्य लोगों से कुछ जरूरी पूछताछ करने के बाद पुलिस टीम दिल्ली लौट आई.

सुबह होने पर प्रीति के पिता और घर के अन्य लोग भी दिल्ली पहुंच गए थे. प्रीति की हत्या से सभी गहरे सदमे में थे. उन्हें पता चला कि प्रीति को गोली किसी और ने नहीं बल्कि दिल्ली पुलिस के ही एसआई दीपांशु राठी ने मारी थी. इस के बाद उस ने खुद को भी गोली मार कर आत्महत्या कर ली थी.

करीबी फ्रैंड निकला हत्यारा

यह खबर मिलते ही मृतका के पिता बोले कि दीपांशु काफी दिनों से उन की बेटी को परेशान कर रहा था. इस की शिकायत उन्होंने उस के घर वालों से भी की थी, इस के बावजूद उस ने अपनी हरकतें बंद नहीं कीं और हमारी बेटी की जान ले ली. मृतका के घर के सभी लोगों का रोरो कर बुरा हाल था. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें ढांढस बंधाया. फिर टीम ने उन से भी जरूरी पूछताछ की.

मृतकों के घर वालों और घनिष्ठ दोस्तों से पूछताछ करने के बाद जांच टीम ने यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर युवा एसआई दीपांशु राठी ने एसआई प्रीति की हत्या क्यों की और उन की हत्या कर के खुद सुसाइड क्यों कर लिया?

इस जांच में पुलिस को पता चला कि दोनों पुलिस अफसरों के बीच प्रेम प्रसंग चला था. इन के प्रेम प्रसंग के बीच आखिर ऐसा क्या हो गया, दीपांशु को इतना खतरनाक कदम उठाना पड़ा. इस के पीछे की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह हैरान कर देने वाली थी—

दीपांशु राठी हरियाणा के सोनीपत शहर की शास्त्री कालोनी के रहने वाले दयानंद राठी का बेटा था. दयानंद राठी भी हरियाणा पुलिस में थे. करीब 4 महीने पहले वह एसआई के पद से रिटायर हुए थे. दीपांशु के अलावा उन की एक बेटी थी, जिस की शादी हो चुकी थी.

सन 2018 में दीपांशु का चयन दिल्ली पुलिस में एसआई पद पर हो गया था. ट्रेनिंग के दौरान ही दीपांशु की मुलाकात एसआई की ट्रेनिंग कर रही प्रीति अहलावत से हुई थी. दोनों एक ही बैच के थे. प्रीति अहलावत मूलरूप से हरियाणा के जिला रोहतक की रहने वाली थी.

प्रीति के पिता सीमा सुरक्षा बल में थे जोकि रिटायर हो चुके थे. प्रीति की मां और बड़ी बहन टीचर हैं जबकि भाई न्यूजीलैंड में कंप्यूटर इंजीनियर है. कुल मिला कर वह एक अच्छे परिवार से थी. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद प्रीति ने दिल्ली के रोहिणी में किराए का फ्लैट ले कर रहना शुरू कर दिया था.

ट्रेनिंग के दौरान हुई प्रीति और दीपांशु की मुलाकात धीरेधीरे दोस्ती में बदलती गई. जून 2019 तक दोनों गहरे दोस्त बन गए. दोनों ही पुलिस अफसर बन चुके थे और अपने भविष्य के बारे में अच्छी सोचसमझ रखते थे. धीरेधीरे इन युवा पुलिस अफसरों के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत पैदा हो गई यानी एकदूसरे को प्यार करने लगे. दीपांशु ने तो तय कर लिया था कि वह शादी करेगा तो प्रीति से.

अपनीअपनी ड्यूटी से फारिग हो कर दोनों प्यार की बातें करने के लिए रेस्टोरेंट व अन्य जगहों पर जाने लगे. प्रीति को भी दीपांशु अपना हमसफर लगने लगा था. दोनों के दोस्त भी उन की इस गहरी दोस्ती की सच्चाई जानते थे.

दोनों का कई महीनों तक प्रेम प्रसंग चलता रहा. उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन दोनों ही इस बात के पक्ष में थे कि शादी घर वालों की सहमति के बाद सामाजिक रीतिरिवाज से ही हो. लिहाजा दोनों ने अपने मन की बात अपनेअपने घर वालों को भी बता दी.

दोनों के परिवार पढ़ेलिखे, समझदार और खातेपीते थे. उन दोनों के प्रेम को देख कर दोनों पक्षों ने शादी के लिए सहमति दे दी. घर वालों की इजाजत मिल जाने से दीपांशु और प्रीति खूब खुश थे. अपनी हदों में रह कर दोनों एकदूसरे को प्यार करते रहे.

इस के बाद उन के मिलने का सिलसिला बढ़ गया. दीपांशु के बात करने का लहजा भी पहले से बदल गया था. वह अभी से प्रीति पर पति जैसा अधिकार जताने वाली बातें करने लगा था. कुछ दिनों तक प्रीति उस के इस व्यवहार को नजरअंदाज करती रही, लेकिन जब उस की यह आदत कम होने के बजाए बढ़ने लगी तो प्रीति को उस का इस तरह का व्यवहार चुभने लगा.

बदल गई प्रीति की सोच

प्रीति ने सोचा कि अभी तो शादी भी नहीं हुई है और दीपांशु इस तरह की बातें करता है. अगर साथ शादी हो गई तब तो वह उस का जीना हराम कर देगा. दीपांशु की यही बातें प्रीति को अखरने लगीं और उस ने तय कर लिया कि वह दीपांशु से शादी हरगिज नहीं करेगी.

अपने इस फैसले से प्रीति ने अपने मातापिता को भी अवगत करा दिया. मांबाप ने भी फैसला बेटी पर छोड़ दिया कि उसे जो अच्छा लगे, करे. इतना ही नहीं, प्रीति के पिता ने दीपांशु से शादी न करने वाली बात दीपांशु के पिता को भी बता दी.

उधर दीपांशु को जब प्रीति के फैसले की जानकारी हुई तो उस ने प्रीति को समझाने की कोशिश की, लेकिन उस ने साफ कह दिया कि वह उसे हमेशा के लिए भूल जाए. प्रीति ने दीपांशु का फोन नंबर अपने फोन में विकीपीडिया के नाम से सेव कर रखा था. अब उस ने उस से मिलना तो दूर फोन पर बात करनी भी बंद कर दी. यह बात दिसंबर 2019 की है.

उधर दीपांशु तो प्रीति के प्यार में दीवाना बन गया था. प्रीति को भुला देना उस के लिए आसान नहीं था. प्रीति द्वारा उस का फोन तक रिसीव न करने पर वह बहुत परेशान रहने लगा. वह कोशिश करता कि किसी तरह प्रीति गुस्सा थूक कर मान जाए और संबंध पहले की तरह सामान्य हो जाएं. लेकिन प्रीति अपने फैसले पर अटल रही.

3 जनवरी, 2020 को दीपांशु ने मैसेज भेज कर प्रीति को मिलने के लिए बुलाया. लेकिन प्रीति ने उस से मिलने से न सिर्फ इनकार कर दिया बल्कि दीपांशु का फोन नंबर ही ब्लौक कर दिया.

प्रीति की पोस्टिंग पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया थाने में थी’दीपांशु थाना भजनपुरा में तैनात था. दीपांशु ने एकदो बार प्रीति के थाने जा कर उस से मिलने की कोशिश की लेकिन प्रीति ने मिलने से इनकार कर दिया. दीपांशु प्रीति से मिल कर किसी भी तरह प्रीति को मनाना चाहता था, लेकिन उस की कोशिश कामयाब नहीं हो सकी. इस से वह बुरी तरह टूट गया. अचानक प्रीति उस से इतनी दूरी बना लेगी, ऐसा उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

ऐसे में उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. क्योंकि प्रीति ने उस के लिए अपने दिल का दरवाजा हमेशा के लिए बंद कर लिया था. ऐसे में उस के मन में नकारात्मक विचार पनपने लगे. इसी बीच उस ने एक ऐसा फैसला ले लिया, जिस का दुख न सिर्फ उस के घर वालों को बल्कि प्रीति के घर वालों को भी जिंदगी भर तक सालता रहेगा.

दीपांशु को इस बात की तो जानकारी थी कि प्रीति ड्यूटी पूरी करने के बाद रोहिणी स्थित अपने फ्लैट पर किस रास्ते से जाती है. घटना से 2 दिन पहले दीपांशु किसी केस के सिलसिले में उत्तर प्रदेश गया था. तब वह थाने से सरकारी पिस्टल ले गया था. वहां से लौटने के बाद उस ने वह पिस्टल और गोलियां जमा नहीं कराई थीं. इस की वजह यह थी कि उसे इस पिस्टल से अपनी योजना को अंजाम देना था.

7 फरवरी को अपनी ड्यूटी पूरी कर के दीपांशु अपनी कार से रोहिणी (पूर्व) मैट्रो स्टेशन पहुंचा. वहां उस ने कार एक जगह सड़क किनारे खड़ी कर दी. इस के बाद वह एक जगह खड़े हो कर प्रीति के आने का इंतजार करने लगा. उसे पता था कि प्रीति अपनी ड्यूटी के बाद 9 साढ़े 9 तक मैट्रो स्टेशन पहुंच जाती है.

साढ़े 9 बजे के करीब प्रीति मैट्रो स्टेशन से उतरने के बाद जैसे ही अपने फ्लैट की तरफ पैदल चली, तभी दीपांशु ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया और फिर उस के नजदीक पहुंच कर प्रीति पर अपनी सरकारी पिस्टल से 3 फायर किए, जिस में एक गोली उधर से गुजर रही कार के पिछले शीशे में जा कर लगी.

प्रीति के सिर में जो गोली लगी थी, उसी से उस की मौत हो गई. वारदात को अंजाम देने के बाद दीपांशु अपनी कार के पास पहुंचा और वहां से अपने घर की तरफ (सोनीपत) चल दिया. मुरथल के पास पहुंच कर उस ने उसी पिस्टल से खुद को भी गोली मार ली. पुलिस को दीपांशु की कार से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी इस बात की पुष्टि हो गई कि दीपांशु और प्रीति की मौत दीपांशु को थाने से इश्यू की गई सरकारी पिस्टल से चलाई गई गोलियां से हुई थी.

चूंकि हत्यारे ने खुद भी आत्महत्या कर ली थी, इसलिए पुलिस इस मामले में फाइनल रिपोर्ट लगा दी. बहरहाल, थोड़ी सी नासमझी के कारण दोनों युवा पुलिस अफसरों को न सिर्फ अपनी जान गंवानी पड़ी, बल्कि घर वालों को भी ऐसा दुख दे दिया, जिसे वे जिंदगी भर नहीं भुला पाएंगे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम कहानी का भयानक अंत: क्यों हुआ प्यार का ऐसा अंजाम

देश भर में विकास हो रहा है, रेल की पटरियों पर इंजन की तरह दौड़ता विकास गांव, कस्बों, शहरों और महानगरों का विकास कागजों पर खड़ी इमारतों, सड़कों और कारखानों का विकास शहरों, महानगरों और कस्बों में भले ही दिख जाए, लेकिन गांवों में कम ही जगहों पर विकास के चरण कमल पड़े नजर आएंगे.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले का गांव हिंदूपुर ऐसा ही गांव है जहां अभी तक विकास नाम की योजना की हवा नहीं गई है.

हिंदूपुर में गरीबों की बस्ती दूर से ही नजर आती है. गांव में प्रवेश के 2 रास्ते हैं. सड़क भी गांव से कुछ दूर है. गांव के एक ओर 20 साल की नंदिनी (बदला हुआ नाम) का घर है. वह 5 बहनों और 2 भाइयों में सब से छोटी थी. विश्वकर्मा बिरादरी की नंदिनी का घर गांव के गरीब परिवारों में आता था. कच्ची दीवारें और धान के पुआल से बने छप्पर वाला घर.

नंदिनी पढ़ाई में तेज थी. उत्तर प्रदेश में जब सपा का शासन था और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव थे तब उसे मेधावी छात्रा के रूप में कक्षा 12 पास करने के बाद लैपटौप उपहार में दिया गया था. नंदिनी के घर के सामने ही एक मंदिर बना था, यहीं पर शिवम त्रिवेदी का अकसर उठनाबैठना होता था. शिवम गांव के प्रभावशाली ब्राह्मण परिवार का था. वह घंटों तक यहीं अपना समय गुजारता रहता था.

शिवम नंदिनी के घरपरिवार की मदद भी करता रहता था. इस मदद की एक बड़ी वजह नंदिनी थी, जिसे वह मन ही मन पसंद करने लगा था. यह बात शिवम के परिवार के लोगों को पसंद नहीं थी. जैसेजैसे गांव में शिवम और नंदिनी की दोस्ती आगे बढ़ रही थी, शिवम के परिजन उस का विरोध करने लगे थे.

एक दिन की बात है शिवम और नंदिनी मंदिर पर बैठ कर बातें कर रहे थे. यह बात शिवम की मां को पता चली तो वह अपने छोटे बेटे शुभम के साथ वहां आई और लड़की को बुराभला कहना शुरू कर दिया.

शिवम के घर वालों ने जब नंदिनी को भलाबुरा कहना शुरू किया तो नंदिनी ने भी उन्हें इसी तरह जवाब दिया. यह बात शिवम के भाई शुभम को बुरी लगी. उस ने नंदिनी के साथ झगड़ा शुरू कर दिया. झगड़े के दौरान शिवम पूरी तरह चुप रहा. झगड़े के बाद शिवम के घर वालों ने उसे नंदिनी से दूर रहने की सलाह दी.

शिवम ने भी घर वालों की बात मानते हुए नंदिनी से बात करनी बंद कर दी. कुछ दिन शिवम नंदिनी से दूर रहा भी, लेकिन यह दूरी ज्यादा समय तक बनी नहीं रह पाई. नंदिनी शिवम से शादी करना चाहती थी, इसलिए वह शिवम पर शादी करने का दबाव बनाने लगी.

शिवम घर वालों और नंदिनी के बीच फंसा रहा. आखिर नंदिनी के दबाव में 19 जनवरी, 2018 को नोटरी शपथपत्र के जरिए शिवम त्रिवेदी ने नंदिनी से शादी कर ली. दोनों ने शादी तो कर ली लेकिन अब उन के सामने समस्या यह थी कि गांव और घर के लोगों को अपनी शादी की बात कैसे बताएं.

शादी के बाद दोनों अपने गांव से दूर रायबरेली शहर के साकेतनगर में रहने लगे. जब घर वालों को पता चला तो रायबरेली पहुंच कर उन्होंने शिवम को समझाया. शिवम घर वालों के दबाव में आ गया. इस के बाद वह शादी से मुकरने लगा. बस यहीं से नंदिनी और शिवम के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे. मामला थाना, कोर्टकचहरी तक पहुंच गया.

पुलिस और प्रशासन ने नहीं सुनी फरियाद

शिवम पर कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा तो वह परेशान हो गया. नंदिनी ने शिवम पर जो आरोप लगाए उस के अनुसार झगड़े के बाद शिवम सुलह और शादी कराने के लिए उसे एक मंदिर में ले गया.

लेकिन मंदिर में पहले से कई लड़के मौजूद थे. शिवम और उस के साथियों ने वहीं पर नंदिनी के साथ गैंगरेप किया. इतना ही नहीं, उन्होंने उसे चुप रहने की धमकी भी दी. अपने साथ हुए इस धोखे पर नंदिनी ने भी सोच लिया कि वह अब चुप नहीं बैठेगी. उस ने मामला पुलिस में ले जाने और शिवम को सजा दिलाने की ठान ली.

12 दिसंबर, 2018 को नंदिनी रायबरेली जिले की लालगंज कोतवाली पहुंची और आपबीती सुना कर शिवम व उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की दरख्वास्त की, लेकिन पुलिस ने केस दर्ज नहीं किया. तब 8 दिन बाद 20 दिसंबर को नंदिनी ने एसपी रायबरेली को रजिस्टर्ड डाक से अपना शिकायती पत्र भेजा. इस की भी कोई सुनवाई नहीं हुई.

पुलिस उस की शिकायत पर काररवाई क्यों नहीं कर रही थी, यह बात वह नहीं समझ सकी. पुलिस से निराश हो कर पीडि़त नंदिनी ने रायबरेली में अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट की कोर्ट में मुकदमा दर्ज कराने के लिए पत्र दिया. 10 जनवरी, 2019 को मजिस्ट्रैट ने एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया. कोर्ट के आदेश के बाद भी पुलिस ने कोई कदम नहीं उठाया.

26 फरवरी, 2019 को पुलिस को कोर्ट की अवमानना का नोटिस दिया गया. तब पुलिस ने दबाव में आ कर मजबूरी में 5 मार्च, 2019 को मुकदमा दर्ज किया. फिर भी कोई काररवाई नहीं हुई तो नंदिनी ने मुख्यमंत्री से शिकायत की. फलस्वरूप 22 सितंबर को शिवम ने कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया.

पुलिस के देर से मुकदमा दर्ज करने और धीमी गति से जांच के चलते शिवम को जल्दी जमानत मिल गई. जमानत देने के पहले कोर्ट ने नंदिनी से कोई संपर्क नहीं किया. 30 नवंबर, 2019 को जब शिवम जेल से छूट कर गांव पहुंचा तो उस के जेल से आने की खुशी में मिठाइयां बंटने लगीं.

नंदिनी को हैरानी हुई कि शिवम इतनी जल्दी जमानत पर जेल से बाहर कैसे आ गया. उस ने अपने परिवार से यह बात बताई और कहा कि कल वह रायबरेली जा कर अपने वकील से मिल कर पता करेगी कि यह कैसे हो गया है? रायबरेली जाने के लिए नंदिनी को सुबह 5 बजे कानपुर से रायबरेली जाने वाली टे्रन पकड़नी थी.

नंदिनी नहीं पहुंच पाई स्टेशन

3 दिसंबर, 2019 की सुबह नंदिनी ट्रेन पकड़ने के लिए अपने घर से निकली. घर से स्टेशन करीब 2 किलोमीटर दूर था. नंदिनी सुबह 4 बजे जब अपने घर से निकली. तब जाड़े का समय था. रास्ते में अंधेरा भी था. नंदिनी के पिता ने उसे स्टेशन छोड़ने के लिए कहा तो उस ने बूढ़े पिता की परेशानी को देखते हुए मना कर दिया. वह अकेली ही घर से निकल गई.

गांव से स्टेशन के रास्ते में कुछ रास्ता ऐसा था, जो सुनसान रहता था. इसी जगह पर नंदिनी पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी गई. नंदिनी खुद को बचाने के लिए मदद के लिए दौड़ रही थी. जली हालत में खुद को बचाने के लिए नंदिनी दौड़ी तो आग और भड़क गई. उस के कपड़े जल कर उस के जिस्म से चिपक गए थे.

रास्ते में एक जगह कुछ लोग दिखे तो नंदिनी वहीं गिर पड़ी. नंदिनी के कहने पर रास्ते में मिले लोगों ने डायल 112 को फोन कर के जानकारी दी. बुरी तरह जली नंदिनी ने वहां पहुंची पुलिस को और बाद में प्रशासन को बताया कि उस के ऊपर मिट्टी का तेल डाल कर जलाने वाले शिवम और उस के साथी थे.

90 फीसदी जली हालत में नंदिनी को पहले उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ ले जाया गया. लेकिन उस की गंभीर हालत को देखते हुए उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. 3 दिन जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष करने के बाद आखिर नंदिनी ने दम तोड़ दिया. पूरे इलाज के दौरान नंदिनी की बहन और मां लखनऊ से ले कर दिल्ली तक साथ रहीं. उन्होंने उसे तिलतिल कर मरते देखा.

नंदिनी के पिता को दुख है कि घटना के दिन वह उसे स्टेशन तक छोड़ने नहीं गए. नंदिनी खुद अपनी लड़ाई लड़ रही थी. इसलिए वह बेटी के साथ नहीं गए थे. इस के पहले वह उसे स्टेशन तक छोड़ने जाते थे. शिवम द्विवेदी और दूसरे आरोपियों के परिवार के लोग इस घटना के संबंध में तर्क देते हुए कहते हैं कि गुनाह उन के घर वालों ने नहीं किया. उन्हें साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.

परिवार के लोग कहते हैं कि नंदिनी को जलाने की घटना जिस समय की है, उस समय उन के लड़के घरों में सो रहे थे. पुलिस ने उन को सोते समय घर से पकड़ा है. अगर उन्होंने अपराध किया होता तो आराम से घर में नहीं सो रहे होते.

शिवम के घर वालों का कहना है कि जब नंदिनी को शिवम से मिलने पर रोक लगा दी गई थी तो उस ने रेप का मुकदमा लिखा कर शिवम और उस के करीबियों को जेल भिजवाने की धमकी दी थी. उन्होंने नंदिनी और शिवम के रायबरेली में रहने की बात से खुद को अनजान बताया.

इन के समर्थक बताते हैं कि जेल से शिवम के छूटने के बाद लड़की ने उसे फिर से जेल भिजवाने की धमकी दी. इस के बाद खुद ही मिट्टी का तेल डाल कर खुद को जलाया. ये लोग सोशल मीडिया पर  इस बात का प्रचार भी कर रहे हैं कि शिवम को फंसाने और जेल भिजवाने के नाम पर लड़की 15 लाख रुपए मांग रही थी. इस में से 7 लाख रुपए शिवम के परिवार वाले दे भी चुके थे.

लड़की के भाई का कहना है कि उस की बहन पढ़लिख कर परिवार की मदद करना चाहती थी. शिवम के संपर्क में आ कर उसे इस स्थिति का सामना करना पड़ा. कानून मानता है कि मरते समय दिया बयान सत्य माना जाता है. सवाल यह उठता है कि नंदिनी जली अवस्था में निर्दोषों को क्यों फंसाएगी? उस समय तक नंदिनी यह समझ चुकी थी कि उस की मौत तय है.

वह सब से पहले अपने साथ हुई घटना की गवाही देना चाहती थी, जिस की वजह से उस ने पुलिस और प्रशासन को बयान दिया. नंदिनी और शिवम के बीच विवाह का नोटरी शपथपत्र हर बात को साफ करता है. नंदिनी के परिजन पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि पुलिस ने किसी हालत में उन की मदद नहीं की.

रेप के मामलों में उन्नाव आया चर्चा में

उत्तर प्रदेश उन्नाव रेप को ले कर पहले भी चर्चा में रहा है. भाजपा के विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के समय मामला राजनीतिक था. अब दूसरी घटना में लड़की को जलाने के बाद मामला राजनीतिक कम सामाजिक ज्यादा बन गया है. एक तरफ समाज के लोग लड़की और उसे दिए गए संस्कारों को जिम्मेदार मान रहे हैं.

उन्नाव में रेप की दूसरी घटना के चर्चा में आने के बाद विपक्ष को सत्तापक्ष को घेरने का पूरा मौका मिल गया. लोकसभा में बहस और हंगामा कर मांग की गई कि महिला सुरक्षा दिवस मनाया जाए. उत्तर प्रदेश की विधानसभा के बाहर प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव धरने पर बैठ गए. उन की पार्टी ने सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया और प्रदेश सरकार को घेरने का काम किया.

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका वाड्रा लखनऊ के 2 दिन के दौरे से वक्त निकाल कर उन्नाव में नंदिनी के घर वालों से मिलने गईं. इस से एक बार फिर रेप की घटना चर्चा में आ गई. प्रदेश सरकार ने मामले को हलका करने के लिए लड़की के घर वालों को मुआवजा देने का काम किया.

योगी सरकार ने नंदिनी के घर वालों को 25 लाख रुपए की आर्थिक मदद, गांव में 2 मकान और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने का ऐलान किया.

उन्नाव के मामले के बाद तमाम ऐसी घटनाएं प्रकाश में आने लगीं. इन घटनाओं से समाज की हकीकत का पता चलता है. इस बार रेप कांड सामाजिक है. समाज उन्नाव जिले की घटना को प्रेम प्रसंग मान कर दरकिनार कर रहा है. नंदिनी की मौत के बाद गांव का माहौल गमगीन है. पूरा गांव 2 पक्षों में बंट चुका है. दोनों पक्षों की अलगअलग राय भी है.

नंदिनी के मरने के बाद उस के घर वालों ने नंदिनी का दाह संस्कार या उसे नदी में प्रवाहित करने से इनकार कर दिया. उन्होंने प्रशासन से कहा कि एक बार जल चुकी नंदिनी का दोबारा दाहसंस्कार नहीं करेंगे. इस की जगह उसे दफनाया जाएगा. ऐसा ही हुआ. सरकार ने पूरे मामले में लापरवाही बरतने वाले दोषी पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया.

—नंदिनी और उससे जुड़े नाम बदले हुए हैं