नशे की गिरफ्त में स्कूली बच्चे

केरल के कोचीन के एक हायर सैकंडरी स्कूल में घटित घटना को पढ़ कर आप भी हैरान हो जाएंगे. घटना कुछ यों है : कक्षा में 2 छात्र स्कूल समय से देरी से पहुंचते हैं और बेहद थके हुए दिखाई देते हैं. इस बात की खबर दूसरे छात्र तुरंत अध्यापकों को देते हैं. अध्यापक छात्रों को स्टाफ रूम में बुलाते हैं और छात्रों से विस्तृत पूछताछ करते हैं.

बच्चों से पूछताछ करने पर जो सचाई सामने आती है वह हैरान कर देने वाली है. दरअसल, उन दोनों छात्रों ने नशीले पदार्थों का सेवन किया हुआ था. केरल में स्कूली छात्रों के बीच नशीले पदार्थों का सेवन तेजी से जोर पकड़ रहा है. स्कूल से क्लास मिस कर के बाहर घूमने वाले छात्रों पर जब पुलिस ने निगरानी रखी तो कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए.

राज्य की ही एक अन्य घटना में पता चला कि ड्रग्स माफिया ने स्कूल जाते बच्चे को पहले पत्थर मार कर गिरा दिया और फिर नशीले पदार्थ इंजैक्ट करने की कोशिश की. स्कूली बच्चों में नशीले पदार्थों का सेवन तेजी से बढ़ रहा है. केरल के अनेक जिलों के कई बच्चे पुलिस को कुछ ऐसी ही घटनाओं में लिप्त मिले. इन में अधिकांश बच्चे शराब व नशीले पदार्थों की लत के शिकार थे. पुलिस ने बच्चों के अलावा ऐसे समूहों को भी पकड़ा जो स्कूली बच्चों को निशाना बना कर यह धंधा करते हैं.

नशीले पदार्थों की लत

पुलिस जांच में यह बात सामने आई है कि एक बार मित्रों के आग्रह पर नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले बच्चे इस की लत का शिकार हो जाते हैं और बारबार नशीले पदार्थों के प्रयोग के लिए मजबूर हो जाते हैं. पुलिस ने हाल ही में क्लास मिस कर के इधरउधर घूमते, नशे का सेवन करते अनेक छात्रों को धरपकड़ा था.

अकेले कोट्टयम शहर से ऐसे 178 छात्र पकड़े गए हैं. कोट्टयम वैस्ट के सर्कल इंस्पैक्टर ए जे थौमस बच्चों में बढ़ रहे नशीले पदार्थों के व्यापक प्रयोग के बारे में कहते हैं, ‘‘घर से स्कूल जाने के लिए स्कूल यूनिफौर्म पहन कर ये बच्चे स्कूल जाने का ढोंग रचते हैं. वे स्कूल न पहुंच कर कपड़े बदल कर पार्क, मौल, रैस्टोरैंट में समय गुजारते हैं और नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने के बाद सिनेमा देखने में भी समय बिताते हैं.

जब कोट्टयम पुलिस ने कोट्टयम वैस्ट से ऐसे 112 बच्चों को और कोट्टयम ईस्ट से 64 बच्चों को ढूंढ़ा और उन से पूछताछ की तो पता चला कि ये बच्चे स्कूल से भाग कर मौजमस्ती कर रहे थे. पुलिस ने घटना की सूचना बच्चों के परिवार वालों को दी और उन से बच्चों के बारे में बात की.’’

पुलिस के नेतृत्व में गुरुकुलम

जब कोट्टयम पुलिस की जांच में विद्यार्थियों के स्कूल छोड़ कर नशीले पदार्थों में लिप्त होने की बात सामने आई और बच्चों से विस्तृत पूछताछ करने पर पता चला कि ये बच्चे शराब और नशीले पदार्थों की लत के शिकार थे, तब ऐसे बच्चों को नशे की इस गिरफ्त से बचाने के लिए पुलिस के नेतृत्व में गुरुकुलम योजना शुरू की गई.

योजना के अंतर्गत बच्चे कक्षा में पूरे समय उपस्थित रहें, इस बात का ध्यान रखा जाता है और जो बच्चे उपस्थित नहीं होते उन की जानकारी एसएमएस द्वारा पुलिस को दी जाती है. बच्चे नशीले पदार्थों से कैसे दूर रहें, इस बात पर भी बच्चों की काउंसलिंग की जाती है. इस योजना की जानकारी स्कूलों के अध्यापकों को भी दी गई है ताकि वे बच्चों पर निगरानी रखें व उन्हें सही दिशा दें. पुलिस द्वारा की गई जांच में यह बात भी सामने आई है कि कमजोर तबके के परिवारों के बच्चे ही इस प्रकार के गलत रास्तों पर भटक जाते हैं.

स्कूल परिसर में ड्रग्स माफिया

कुछ महीने पहले केरल के कासर्गोड जिले में स्कूली बच्चों को नशीले पदार्थों का शिकार बनाने वाले ड्रग्स माफिया का खुलासा हुआ था. पुलिस जांच से यह बात सामने आई कि यह माफिया बच्चों को अपना शिकार बनाने के लिए स्कूलों के आसपास की दुकानों में पैन की तरह दिखने वाली सिगरेट बेचने के लिए रखते हैं. इस सिगरेट में पानमसाले का अंश अधिक होता है. एक अन्य घटना में स्कूल की छात्रा ने अपने जन्मदिन पर स्कूल में मिठाई बांटी.

मिठाई का स्वाद अध्यापक को अजीब लगने पर जब उस की जांच की गई तो उस में नशीले पदार्थों की मिलावट पाई गई और साथ ही, यह भी मालूम पड़ा कि ये मिठाइयां स्कूल के आसपास की दुकानों में ही सप्लाई की जाती हैं. यह माफिया बच्चों को अपना शिकार बनाने के लिए सोशल साइट्स व धार्मिक चिह्नों का भी इस्तेमाल करता है. मोबाइल मैसेजेस द्वारा भी यह अपने उद्देश्य को पूरा करता है. नशीले पदार्थों को बच्चों तक पहुंचाने के लिए माफिया कई तरह की मालाएं, लौकेट, खास रंग, चप्पल, बैग आदि निशानी के तौर पर इस्तेमाल करता है.

लत के पीछे इंटरनैट, मोबाइल

बच्चों में इंटरनैट व मोबाइल का दुरुपयोग बढ़ रहा है. इंटरनैट व मोबाइल पर अश्लील वीडियो देखने वाले बच्चों की मानसिक अवस्था पर दुष्प्रभाव पड़ता है और वे गलत राह की ओर अग्रसर हो जाते हैं. बच्चों को इस से बचाने के लिए मातापिता को चाहिए कि वे बच्चों को इस से बचाने के लिए उन पर निगरानी रखें कि वे कौनकौन सी साइट्स देख रहे हैं. बच्चा अगर बाहर किसी अनजान व्यक्ति से मिलता है तो इस बात की भी जानकारी रखें.

बच्चों के दोस्तों व उन के परिवार वालों से भी मेलजोल रखें और बढ़ते बच्चों को समयसमय पर सही दिशानिर्देश दें ताकि वे नशे की आदतों का शिकार हो कर गलत हाथों में न पड़ें. कई बार मातापिता के बीच अलगाव व झगड़े भी बच्चों को बाहरी दुनिया की ओर आकर्षित करते हैं. जब बच्चों को घर में स्वस्थ व खुशहाल माहौल नहीं मिलता और मातापिता व बच्चों के बीच सौहार्दपूर्ण रिश्ता नहीं होता तब भी बच्चे गलत दोस्तों की संगत में पड़ जाते हैं और गलत राह पर चलने लगते हैं. घर के खुशहाल माहौल के अभाव में बच्चे स्वयं को असुरक्षित महसूस करते हैं और सुरक्षा की कमी से मानसिक संघर्ष से जूझते हैं.

तीजतन, ऐसी अवस्था से मुक्ति पाने के लिए नशीले पदार्थों का प्रयोग करना शुरू कर देते हैं और इस तरह उन्हें नशीले पदार्थों की लत लग जाती है. हाल ही में एक बच्चे ने घर में किसी सदस्य के न होने पर घर में रखी शराब पी ली और बेहोश हो कर गिर पड़ा.

शोषण का शिकार बच्चे

शराब एवं नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले बच्चे शारीरिक शोषण का शिकार भी आसानी से बनते हैं. चूंकि इन बच्चों की नशीले पदार्थों के सेवन के कारण सोचनेसमझने की शक्ति क्षीण हो जाती है. और ऐसे में अगर परिवार की ओर से स्वस्थ माहौल न मिले तो ये बच्चे अवैध रिश्तों की ओर आकर्षित हो जाते हैं. परिणामस्वरूप ऐसे बच्चे सामान्य जिंदगी से दूर होने लगते हैं.

बच्चों को समय दें

बढ़ते बच्चों के संपूर्ण विकास के लिए मांबाप का प्यार और देखभाल बहुत जरूरी होती है. बच्चे गलत राह की ओर न बढ़ें, इस के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी लोग एकसाथ समय व्यतीत करें, इकट्ठे खाना खाएं, हंसीमजाक करें. अभिभावक बच्चों से उन की शिक्षा, दिनचर्या और दोस्तों के बारे में जानकारी लें.

बच्चों को घर से बाहर घुमानेफिराने ले जाएं. बच्चों को हमेशा यह एहसास दिलाएं कि आप उन के साथ हैं. बच्चों के जन्मदिन पर व अच्छा काम करने पर उन्हें उपहार दें, उन की तारीफ करें. बच्चों से उन की समस्या के बारे में जानें व उस का हल निकालने में उन की मदद करें. अगर आप समस्या सुलझाने में असमर्थ हों तो मनोचिकित्सक व काउंसलर की सहायता लें.

नशे की लत में डूबे बच्चों को सामान्य जिंदगी की ओर लाने में अभिभावकों का योगदान महत्त्वपूर्ण है, इस में जरा भी देरी न करें. बच्चे देश का भविष्य हैं, उन्हें स्वस्थ व सुरक्षित जीवन जीने के लिए प्रेरित करें.

जागरूक करें बच्चों को

क्लीनिकल साइक्लौजिस्ट डा. विपिन वी रोलडेंट का इस बारे में कहना है कि बच्चे घर और बाहर की परिस्थितियों को बहुत जल्दी समझते हैं और उन से प्रभावित भी होते हैं. वे हर नई बात को अपनाने की चाहत रखते हैं. घर में अगर पिता शराब का सेवन करता हो तो बच्चा भी इस लत का शिकार हो सकता है.

बच्चों को नशीले पदार्थों से दूर रखने के लिए उन्हें जागरूक करना जरूरी है. स्कूली पाठ्यक्रम के साथसाथ बच्चों को नशे से दूर रहने के बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए. वहीं, नशे के शिकार बच्चों को काउंसलिंग व चिकित्सा द्वारा सामान्य जिंदगी की ओर लाने का प्रयास किया जाना चाहिए.

– डा. विपिन वी रोलडेंट
मनोचिकित्सक

अपहरण के चक्कर में फंस गया मुंबई का किंग

15 मई, 2017 की सुबह की बात है. समय 11-साढ़े 11 बजे सीकर जिले के शहर फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार अपनी ज्वैलरी की दुकान पर थे. उन की पत्नी पार्वती और बेटा ध्रुव ही घर पर थे. बेटी वर्षा किसी काम से बाजार गई थी. उसी समय अच्छी कदकाठी का एक सुदर्शन युवक उन के घर पहुंचा. उस के हाथ में शादी के कुछ कार्ड थे. युवक ने ललित के घर के बाहर लगी डोरबेल बजाई तो पार्वती ने बाहर आ कर दरवाजा खोला. युवक ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘नमस्ते आंटीजी, पोद्दार अंकल घर पर हैं?’’

पार्वती ने शालीनता से जवाब देते हुए कहा, ‘‘नमस्ते भैया, पोद्दारजी तो इस समय दुकान पर हैं. बताइए क्या काम है?’’

‘‘आंटीजी, हमारे घर में शादी है. मैं कार्ड देने आया था.’’ युवक ने उसी शालीनता से कहा.

युवक के हाथ में शादी के कार्ड देख कर पार्वती ने उसे अंदर बुला लिया. युवक ने सोफे पर बैठ कर एक कार्ड पार्वती की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आंटीजी, यह कार्ड पोद्दार अंकल को दे दीजिएगा. आप लोगों को शादी में जरूर आना है. बच्चों को भी साथ लाइएगा.’’

पार्वती ने शादी का कार्ड देख कर कहा, ‘‘भैया आप को पहचाना नहीं.’’

‘‘आंटीजी, आप नहीं पहचानतीं, लेकिन पोद्दार अंकल मुझे अच्छी तरह से पहचानते हैं.’’ युवक ने कहा.

पार्वती ने घर आए, उस मेहमान से चायपानी के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘चायपानी के तकल्लुफ की कोई जरूरत नहीं है, आंटीजी. अभी एक कार्ड आप के भांजे अश्विनी को भी देना है. मैं उन का घर नहीं जानता. आप अपने बेटे को मेरे साथ भेज देतीं तो वह उन का घर बता देता. कार्ड दे कर मैं आप के बेटे को छोड़ जाऊंगा.’’

बाहर तेज धूप थी. इसलिए पार्वती बेटे को बाहर नहीं भेजना चाहती थीं. इसलिए उन्होंने टालने वाले अंदाज में कहा, ‘‘आप कार्ड हमें दे दीजिए. शाम को अश्विनी हमारे घर आएगा तो हम कार्ड दे देंगे.’’

पार्वती की बात सुन कर युवक ने मायूस होते हुए कहा, ‘‘कार्ड तो मैं आप को दे दूं, लेकिन पापा मुझे डांटेंगे. उन्होंने कहा है कि खुद ही जा कर अश्विनी को कार्ड देना.’’

युवक की बातें सुन कर पार्वती ने ड्राइंगरूम में ही वीडियो गेम खेल रहे अपने 13 साल के बेटे ध्रुव से कहा, ‘‘बेटा, अंकल के साथ जा कर इन्हें अश्विनी का घर बता दे.’’

ध्रुव मां का कहना टालना नहीं चाहता था, इसलिए वह अनमने मन से जाने को तैयार हो गया. वह युवक ध्रुव के साथ घर से निकलते हुए बोला, ‘‘थैंक्यू आंटीजी.’’

ध्रुव और उस युवक के जाने के बाद पार्वती घर के कामों में लग गईं. काम से जैसे ही फुरसत मिली उन्होंने घड़ी देखी. दोपहर के साढ़े 12 बज रहे थे. ध्रुव को कब का घर आ जाना चाहिए था. लेकिन वह अभी तक नहीं आया था. पार्वती ने सोचा कि ध्रुव वहां जा कर खेलने या चायपानी पीने में लग गया होगा. हो सकता है, अश्विनी ने उसे किसी काम से भेज दिया हो. यह सोच कर वह फिर काम में लग गईं.

थोड़ी देर बाद उन्हें जब फिर ध्रुव का ध्यान आया, तब दोपहर का सवा बज रहा था. ध्रुव को घर से गए हुए डेढ़ घंटे से ज्यादा हो गया था. पार्वती को चिंता होने लगी. 10-5 मिनट वह सेचती रहीं कि क्या करें. कुछ समझ में नहीं आया तो उन्होंने पति ललित पोद्दार को फोन कर के सारी बात बता दी. पत्नी की बात सुन कर ललित को भी चिंता हुई. उन्होंने पत्नी को तसल्ली देते हुए कहा, ‘‘ध्रुव कोई छोटा बच्चा नहीं है कि कहीं खो जाए या इधरउधर भटक जाए. फिर भी मैं अश्विनी को फोन कर के पता करता हूं.’’

ललित ने अश्विनी को फोन कर के ध्रुव के बारे में पूछा तो अश्विनी ने जवाब दिया, ‘‘मामाजी, मेरे यहां न तो ध्रुव आया था और ना ही कोई आदमी शादी का कार्ड देने आया था.’’

अश्विनी का जवाब सुन कर ललित भी चिंता में पड़ गए. वह तुरंत घर पहुंचे और पार्वती से सारी बातें पूछीं. उन्होंने वह शादी का कार्ड भी देखा, जो वह युवक दे गया था. कार्ड पर लियाकत सिवासर का नाम लिखा था. ललित को वह शादी का कार्ड अपने किसी परिचित का नहीं लगा. उन्होंने कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबरों पर फोन किया तो वे नंबर फरजी निकले.

ललित को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. उन के मन में बुरे ख्याल आने लगे. उन्हें आशंका इस बात की थी कि कहीं किसी ने पैसों के लालच में ध्रुव का अपहरण न कर लिया हो. इस की वजह यह थी कि वह फतेहपुर के नामीगिरामी ज्वैलर थे. राजस्थान के शेखावटी इलाके में उन का अच्छाखासा रसूख था. बेटे के घर न आने से पार्वती का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था.

ललित ने अपने कुछ परिचितों से बात की तो सभी ने यही सलाह दी कि इस मामले की सूचना पुलिस को दे देनी चाहिए. इस के बाद दोपहर करीब ढाई बजे ललित ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी. पार्वती से पूछताछ की गई. शुरुआती जांच से यही नतीजा निकला कि ध्रुव का अपहरण किया गया है.

अपहर्त्ता प्रोफेशनल अपराधी हो सकते थे. क्योंकि रात तक फिरौती के लिए किसी अपहर्त्ता का फोन नहीं आया था. पुलिस को अनुमान हो गया था कि अपहर्त्ता ने ध्रुव के अपहरण का जो तरीका अपनाया था, उस से साफ लगता था कि उन्होंने रेकी कर के ललित पोद्दार के बारे में जानकारियां जुटाई थीं.

पुलिस ने फिरौती मांगे जाने की आशंका के मद्देनजर पोद्दार परिवार के सारे मोबाइल सर्विलांस पर लगवा दिए. लेकिन उस दिन रात तक ना तो किसी अपहर्त्ता का फोन आया और ना ही ध्रुव को साथ ले जाने वाले उस युवक के बारे में कोई जानकारी मिली. पुलिस ने ललित के घर के आसपास और लक्ष्मीनारायण मंदिर के करीब स्थित उस की दुकान के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली, लेकिन उन से पुलिस को कुछ हासिल नहीं हुआ.

पुलिस को अब तक केवल यही पता चला था कि ललित पोद्दार के घर जो युवक शादी का कार्ड देने आया था, उस की उम्र करीब 30 साल के आसपास थी. वह सफेद शर्ट पहने हुए था. अगले दिन सीकर के एसपी राठौड़ विनीत कुमार त्रिकमलाल ने ध्रुव का पता लगाने के लिए अपने अधीनस्थ अधिकारियों को दिशानिर्देश दिए. इस के बाद पुलिस ने उस शादी के कार्ड को आधार बना कर जांच आगे बढ़ाई.

परेशानी यह थी कि शादी के कार्ड पर किसी प्रिंटिंग प्रैस का नाम नहीं लिखा था, जबकि हर शादी के कार्ड पर प्रिंटिंग प्रैस का नाम जरूरी होता है. इस की वजह यह है कि राजस्थान सरकार ने बालविवाह की रोकथाम के लिए यह कानूनी रूप से जरूरी कर दिया है. पुलिस ने शादी के कार्ड छापने वाले प्रिंटिंग प्रैस मालिकों से बात की तो पता चला कि उस कार्ड में औफसेट पेंट का इस्तेमाल किया गया था.

उस पेंट का उपयोग फतेहपुर में नहीं होता था. सीकर में प्रिंटिंग प्रैस वाले उस का उपयोग करते थे. इस के बाद पुलिस ने सीकर, चुरू और झुंझुनूं के करीब डेढ़ सौ प्रैस वालों से पूछताछ की. इस जांच के दौरान एक नया तथ्य यह सामने आया कि ध्रुव के अपहरण से 4 दिन पहले से उसी के स्कूल में पढ़ने वाला छात्र अंकित भी लापता था. अंकित चुरू जिले के रतनगढ़ शहर का रहने वाला था. वह फतेहपुर के विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पढ़ता था और हौस्टल में रहता था. गर्मी की छुट्टी में वह रतनगढ़ अपने घर गया था. वह 12 मई को दोपहर करीब सवा बारह बजे बाल कटवाने के लिए घर से निकला था, तब से लौट कर घर नहीं आया था.

तीसरे दिन आईजी हेमंत प्रियदर्शी एवं एसपी राठौड़ विनीत कुमार ने ध्रुव के घर वालों से मुलाकात की और उन्हें आश्वासन दिया कि ध्रुव का जल्द से जल्द पता लगा लिया जाएगा. उसी दिन यानी 17 मई को अपहर्त्ता ने ललित पोद्दार को फोन कर के बताया कि उन के बेटे ध्रुव का अपहरण कर लिया गया है. उन्होंने ध्रुव की उन से बात करा कर 70 लाख रुपए की फिरौती मांगी.

उन्होंने चेतावनी भी दी थी कि अगर पुलिस को बताया तो बच्चे को मार दिया जाएगा. ललित ने समझदारी से बातें करते हुए अपहर्त्ता से कहा कि आप तो जानते ही हैं कि नोटबंदी को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है. भाइयों, परिवार वालों और रिश्तेदारों से पैसे जुटाने के लिए समय चाहिए. चाहे जितनी कोशिश कर लूं, 70 लाख रुपए इकट्ठे नहीं हो पाएंगे. बैंक से एक साथ ज्यादा पैसा निकाला तो पुलिस को शक हो जाएगा.

ललित ने अपहर्ता को अपनी मजबूरियां बता कर यह जता दिया कि वह 70 लाख रुपए नहीं दे सकते. बाद में अपहर्ता 45 लाख रुपए ले कर ध्रुव को सकुशल छोड़ने को राजी हो गए. अपहर्ताओं ने फिरौती की यह रकम कोलकाता में हावड़ा ब्रिज पर पहुंचाने को कहा. लेकिन बाद में वे फिरौती की रकम मुंबई में लेने को तैयार हो गए.

ललित का मोबाइल पहले से ही पुलिस सर्विलांस पर लगा रखा था. पुलिस को अपहर्ता और ललित के बीच हुई बातचीत का पता चल गया. इसी के साथ पुलिस को वह मोबाइल नंबर भी मिल गया, जिस से ललित को फोन किया गया था.

इसी बीच पुलिस ने शादी के उस कार्ड की जांच एक्सपर्ट से कराई तो पता चला कि वह एविडेक प्रिंटर से छपा था. शेखावटी के सीकर, चुरू व झुंझुनूं जिले में करीब 60 एविडेक प्रिंटर थे. इन प्रिंटर मालिकों से पूछताछ की गई तो पता चला कि वह कार्ड नवलगढ़ के एक प्रिंटर से छपवाया गया था. उस प्रिंटर के मालिक से पूछताछ में पता चला कि वह कार्ड फतेहपुर के किसी आदमी ने उस के प्रिंटर पर छपवाया था. उस आदमी से पूछताछ में पुलिस को अपहर्त्ता युवक के बारे में कुछ सुराग मिले.

इस के अलावा पुलिस ने 15 मई को ललित पोद्दार के मकान के आसपास घटना के समय हुई सभी मोबाइल कौल को ट्रेस किया. इस में मुंबई का एक नंबर मिला. यह नंबर साजिद बेग का था. काल डिटेल्स के आधार पर यह भी पता चल गया कि साजिद के तार फतेहपुर के रहने वाले अयाज से जुड़े थे.

जांच में यह बात भी सामने आ गई कि अपहर्ता मुंबई से जुड़ा है. इस पर पुलिस ने फतेहपुर से ले कर विभिन्न राज्यों के टोल नाकों पर जांच की और उन नाकों पर लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी. इस में सब से पहले शोभासर के टोल पर सफेद रंग की एसेंट कार पर जयपुर का नंबर मिला. अगले टोल नाके मौलासर पर इसी कार पर महाराष्ट्र की नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. आगे के टोल नाकों पर उसी कार पर अलगअलग नंबर प्लेट लगी हुई पाई गई. जांच में ये सारे नंबर फरजी पाए गए.

सीकर के एसपी ने मुंबई के पुलिस कमिश्नर से बात कर के ध्रुव के अपहरण की पूरी जानकारी दे कर अपराधियों को पकड़ने में सहायता करने का आग्रह किया. इसी के साथ एसपी के दिशानिर्देश पर एडिशनल एसपी तेजपाल सिंह ने 3 टीमें गठित कर के 3 राज्यों में भेजी. सब से पहले रामगढ़ शेखावाटी के थानाप्रभारी रमेशचंद्र को टीम के साथ मुंबई भेजा गया. यह टीम मुंबई पुलिस और क्राइम ब्रांच के साथ मिल कर आरोपियों की तलाश में जुट गई.

फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह ने लगातार जांच कर के ध्रुव के अपहरण में साजिद बेग और फतेहपुर के रहने वाले अयाज के साथ उस के संबंधों के बारे में पता लगाया.

एसपी ध्रुव के घर वालों को सांत्वना देने के साथ यह भी बताते रहे कि उन्हें अपहर्ता को किस तरह बातों में उलझा कर रखना है, ताकि पुलिस बच्चे तक पहुंच सके. पुलिस की एक टीम उत्तर प्रदेश और एक टीम पश्चिम बंगाल भी भेजी गई. पुलिस को संकेत मिले थे कि अपहर्ता धु्रुव को ले कर मुंबई, कोलकाता या कानपुर जा सकते हैं.

लगातार भागदौड़ के बाद सीकर पुलिस ने मुंबई पुलिस की क्राइम ब्रांच की मदद से 21 मई की आधी रात के बाद मुंबई के बांद्रा  इलाके से ध्रुव को सकुशल बरामद कर लिया. पुलिस ने उस के अपहरण के आरोप में साजिद बेग को मुंबई से गिरफ्तार कर लिया था. इस के अलावा उस की 2 गर्लफ्रैंड्स को भी गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने वह एसेंट कार भी बरामद कर ली, जिस से ध्रुव का अपहरण किया गया था. सीकर पुलिस 22 मई की रात ध्रुव और आरोपियों को ले कर मुंबई से रवाना हुई और 23 मई को फतेहपुर आ गई.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में मुंबई से साजिद बेग और उस की गर्लफ्रैंड्स यास्मीन जान और हालिमा मंडल को गिरफ्तार किया था. पूछताछ के बाद फतेहपुर के रहने वाले अयाज उल हसन उर्फ हयाज को गिरफ्तार किया गया. इस के बाद सभी आरोपियों से की गई पूछताछ में ध्रुव के अपहरण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

साजिद बेग पेशे से सिविल इंजीनियर था. वह बांद्रा, मुंबई में मछली बाजार में रहता था. उसे हिंदी, अंग्रेजी व मारवाड़ी का अच्छा ज्ञान था. वह मूलरूप से फतेहपुर का ही रहने वाला था. उस के दादा और घर के अन्य लोग मुंबई जा कर बस गए थे. फतेहपुर में साजिद का 2 मंजिला आलीशान मकान था. वह फतेहपुर आताजाता रहता था. उस की पत्नी भी पढ़ीलिखी है. उस का एक बच्चा भी है.

मुंबई स्थित उस के घर पर नौकरचाकर काम करते हैं. उस के पिता के भाई और अन्य रिश्तेदार भी मुंबई में ही रहते हैं. इन के लोखंडवाला, बोरीवली सहित कई पौश इलाकों में आलीशान बंगले हैं. वह मुंबई में बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन का काम करता था. मौजमस्ती के गलत शौक और व्यापार में घाटा होने की वजह से साजिद कई महीनों से आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस पर करीब 30 लाख रुपए का कर्ज हो गया था. इसलिए वह जल्द से जल्द किसी भी तरीके से पैसे कमा कर अपना कर्ज उतारना चाहता था.

करीब 2 महीने पहले साजिद ने फतेहपुर के रहने वाले अपने बचपन के दोस्त अयाज उल हसन उर्फ हयाज को मुंबई बुलाया. वह 5 दिनों  तक मुंबई में रहा. इस बीच साजिद ने उस से पैसे कमाने के तौर तरीकों के बारे में बात की. इस पर अयाज ने कहा कि फतेहपुर में किसी का अपहरण कर के उस के बदले में अच्छीखासी फिरौती वसूली जा सकती है. हालांकि उस समय यह तय नहीं हुआ था कि अपहरण किस का किया जाएगा.

साजिद ने अयाज को यह कह कर फतेहपुर वापस भेज दिया कि वह किसी ऐसी पार्टी का चयन करे, जिस से मोटी रकम वसूली जा सके. अयाज फतेहपुर आ कर योजना बनाने लगा. अयाज ने पिछले साल फतेहपुर के ज्वैलर ललित पोद्दार के मकान पर पेंट का काम किया था. इसलिए उसे ललित के घरपरिवार की सारी जानकारी थी. उस ने साजिद को ललित के बारे में बताया.

इस के बाद दोनों ने ललित के बेटे ध्रुव के अपहण की योजना बना ली. उसी योजना के तहत शादी का फरजी कार्ड नवलगढ़ से छपवाया गया. इस के बाद कार्ड से कैमिकल द्वारा प्रिंटिंग प्रैस का नाम हटा दिया गया. योजनानुसार साजिद 10 मई को मुंबई से कार ले कर फतेहपुर आ गया और दरगाह एरिया में रहने वाले अपने दोस्त अयाज से मिला. इस के बाद ध्रुव के अपहरण की योजना को अंतिम रूप दिया गया.

15 मई को शादी का कार्ड देने के बहाने साजिद ललित के घर से उस के बेटे धु्रव को अश्विनी के घर ले जाने की बात कह कर साथ ले गया और उसे घर के बाहर खड़ी एसेंट कार में बैठा लिया. उस ने धु्रव से कहा कि गाड़ी में पैट्रोल नहीं है, इसलिए पहले पैट्रोल भरवा लें, फिर अश्विनी के घर चलेंगे.

फतेहपुर में पैट्रोल पंप से पहले ही साजिद ने गाड़ी की रफ्तार बढ़ा दी तो ध्रुव को शक हुआ. वह शीशा खोल कर ‘बचाओबचाओ’ चिल्लाने लगा. इस पर साजिद ने उसे कोई नशीली चीज सुंघा दी, जिस से वह बेहोश हो गया.

ध्रुव को बेहोशी की हालत में पीछे की सीट पर सुला कर साजिद अपनी कार से मुंबई ले गया. बीचबीच में टोलनाकों से पहले उस ने 5 बार कार की नंबर प्लेट बदलीं.

साजिद ने अपहृत ध्रुव को मुंबई में अपनी 2 गर्लफ्रैंड्स के पास रखा. इन में एक गर्लफ्रैंड यास्मीन जान मुंबई के चैंबूर में लोखंड मार्ग पर रहती थी. तलाकशुदा यास्मीन को साजिद ने बता रखा था कि वह कुंवारा है. उस ने उसे शादी करने का झांसा भी दे रखा था. साजिद ने यास्मीन को धु्रव के अपहरण के बारे में बता दिया था. यास्मीन फिरौती में मिलने वाली मोटी रकम से साजिद के साथ ऐशोआराम की जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी. इसलिए उस ने साजिद की मदद की और धु्रव को अपने पास रखा.

साजिद की दूसरी गर्लफ्रैंड हालिमा मंडल मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. वह पिछले कई सालों से बांद्रा इलाके में बाजा रोड पर रहती थी. उस के 2 बच्चे हैं. साजिद मुंबई पहुंच कर ध्रुव को सीधे हलिमा के घर ले गया था. उस ने उसे ध्रुव के अपहरण के बारे में बता दिया था. हालिमा ने भी फिरौती में मोटी रकम मिलने के लालच में साजिद का साथ दिया और ध्रुव को अपने पास रखा. वह ध्रुव को नींद की गोलियां देती रही, ताकि वह शोर न मचा सके.

फेसबुक पर एक पोस्ट में खुद को मुंबई का किंग बताने वाला साजिद इतना शातिर था कि ललित पोद्दार से या अयाज से बात करने के बाद मोबाइल स्विच औफ कर लेता था, ताकि पुलिस उसे ट्रेस न कर सके. ध्रुव को जहां रखा गया था, वहां से वह करीब सौ किलोमीटर दूर जा कर नए सिम से फोन करता था, ताकि अगर किसी तरह पुलिस मोबाइल नंबर ट्रेस भी कर ले तो उसी लोकेशन पर बच्चे को खोजती रहे.

साजिद के बताए अनुसार, टीवी पर आने वाले आपराधिक धारावाहिकों को देख कर उस ने ध्रुव के अपहरण की साजिश रची थी. सीरियलों को देख कर ही उस ने हर कदम पर सावधानी बरती, लेकिन पुलिस उस तक पहुंच ही गई. जबकि उस ने पुलिस से बचने के तमाम उपाय किए थे.

23 मई को पुलिस ध्रुव को ले कर फतेहपुर पहुंची तो पूरा शहर खुशी से नाच उठा. पुष्पवर्षा और आतिशबाजी की गई. 9 दिनों बाद बेटे को सकुशल देख कर पार्वती की आंखों से आंसू बह निकले. पिता ललित पोद्दार ने बेटे को गले से लगा कर माथा चूम लिया. सालासर मंदिर में लोगों ने फतेहपुर कोतवाली के थानाप्रभारी महावीर सिंह का सम्मान किया.

पुलिस ने ध्रुव के अपहरण के मामले में साजिद के अलावा यास्मीन जान, हालिमा मंडल और फतेहपुर निवासी अयाज को गिरफ्तार किया था. फतेहपुर के एक अन्य युवक की भी इस मामले में भूमिका संदिग्ध पाई गई. इस के अलावा उत्तर प्रदेश के एक गैंगस्टर नसरत उर्फ नागा उर्फ चाचा का नाम भी ध्रुव के अपहरण में सहयोगी के रूप में सामने आया है.

नसरत उर्फ नागा उत्तर प्रदेश के सिमौनी का रहने वाला था. वह फिलहाल मुंबई के गौरी खानपुर में रहता है. साजिद काफी समय से उस के संपर्क में था. उस के साथ नागा भी आया था. उस ने नागा को सीकर में ही छोड़ दिया था.

ध्रुव के अपहरण के बाद नागा साजिद के साथ हो गया था. दोनों ध्रुव को ले कर मुंबई गए थे. नागा पर उत्तर प्रदेश और मुंबई में हत्या के 3 मामले और लूट, चाकूबाजी, हथियार तस्करी, गुंडा एक्ट आदि के दर्जनों मामले दर्ज हैं. वह हिस्ट्रीशीटर है. कथा लिखे जाने तक सीकर पुलिस इस मामले में नागा की तलाश कर रही थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ब्यूटी सैक्स दौलत कत्ल : महत्त्वाकांक्षा और माया का इंद्राणी जाल

महत्त्वाकांक्षा जीवन में आगे बढ़ने के लिए बेहद सार्थक और जरूरी है लेकिन अगर यही महत्त्वाकांक्षा नाजी तानाशाह हिटलर सरीखी हो जाए तो इतिहास के शब्द खून से सने नजर आते हैं.

शीना हत्याकांड में अबूझ पहेली बनी इंद्राणी मुखर्जी भी इसी अतिमहत्त्वाकांक्षा के जाल में जा फंसी जो उस ने जानेअनजाने खुद ही बुना था. ऊंची साख बनाने और प्रसिद्धि पाने की मानसिकता ने आज के दौर की इंद्राणी सरीखी महिलाओं के हौसले बुलंद तो किए हैं पर कुछेक को अंधेरे दलदल की ओर धकेल भी दिया जहां सिवा अफसोस और अवसादभरी तनहा जिंदगी के कुछ भी नहीं होता.

इस का प्रत्यक्ष उदाहरण है शीना बोरा मर्डर केस में फंसी आईएनएक्स मीडिया की पूर्व सीईओ इंद्राणी मुखर्जी.

पोरी बोरा से इंद्राणी बनने तक

देश की सब से बड़ी मर्डर मिस्ट्री बन चुका शीना बोरा हत्याकांड पुलिस, मीडिया सब के लिए एक पहेली बना हुआ है. असम के गुवाहाटी की पोरी बोरा मायानगरी मुंबई में जिस तरह हाई प्रोफाइल इंद्राणी मुखर्जी बन गई, वह बौलीवुड की किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. इंद्राणी मुखर्जी बचपन से ही महत्त्वाकांक्षी थी.

कमसिन उम्र में ही उस का प्रेम परवान चढ़ा और शादी के पहले ही वह गर्भवती हो गई. उस समय पोरी बोरा के नाम से जानी जाने वाली इंद्राणी ने सिद्धार्थ दास से पहली शादी शिलांग (मेघालय) में की. हालांकि सिद्धार्थ ने इसे स्वीकार नहीं किया है. शादी के बाद बेटी शीना और बेटे मिखाइल को जन्म दिया.

सिद्धार्थ से अलग होने के बाद व्यापारी संजीव खन्ना से दूसरी शादी रचाई. इस रिश्ते से विधि खन्ना पैदा हुई. कुछ समय बाद संजीव खन्ना से भी तलाक हो गया. पर यह तलाक दिखावे के लिए था. असल में स्टार इंडिया के तत्कालीन सीईओ से विवाह बंधन में बंध कर इंद्राणी उन की दौलत की मालकिन बनना चाहती थी.

 इंद्राणी स्टार इंडिया में एचआर कंसल्टैंट के तौर पर काम करती थी और मौके का फायदा उठा कर स्टार इंडिया के मुखिया पीटर मुखर्जी पर डोरे डालने लगी थी. 2002 में इंद्र्राणी पीटर मुखर्जी से शादी कर ब्रौडकास्ट इंडस्ट्री की सब से ताकतवर शख्सीयत बन गई. उस दौरान पूर्व पति संजीव से पैदा हुई विधि 9 साल की थी. इंद्राणी ने पीटर को विधि के बारे में बताया, लेकिन सिद्धार्थ से पैदा हुई बेटी शीना और बेटे मिखाइल के बारे में नहीं बताया.

पीटर मुखर्जी की भी इंद्राणी से दूसरी शादी है. पहली पत्नी शबनम से पीटर के 2 लड़के हैं-राहुल और रौबिन. इंद्राणी ने पीटर मुखर्जी से 2002 में शादी की थी. इस के बाद इंद्राणी और पीटर ने 2007 में 9ङ्ग चैनल शुरू किया.

इस कंपनी में इंद्राणी  सीईओ बनी. अंगरेजी अखबार के मुताबिक, इंद्राणी ने 4 कंपनियों को जोड़ कर आईएनएक्स कंपनी में इन्वैस्टमैंट किया था. लेकिन 2009 में इंद्राणी ने कंपनी को 170 मिलियन डौलर में बेच दिया. 

शीना बोरा मर्डर मिस्ट्री सैक्स, पैसा और हाई प्रोफाइल जिंदगी से जुड़ी एक ऐसी कहानी है जिस ने मांबेटी के रिश्ते को तारतार कर दिया है. वरना इतने बड़े संपन्न परिवार की एक महिला अपनी बेटी शीना, जो तथाकथित तौर पर उस की बहन भी कही जा रही थी, की हत्या कर दे, कैसे संभव है? शीना की अप्रैल 2012 में हत्या करने और उस का शव रायगढ़ के जंगल में ठिकाने लगाने के आरोप में इंद्राणी,  उस के पूर्व पति संजीव खन्ना और उस के पूर्व चालक श्याम राय को गिरफ्तार किया गया है.

पुलिस के मुताबिक, जिस कार में शीना की हत्या की गई थी उस कार में ड्राइवर श्याम राय ने शीना बोरा के पैर पकड़े और संजीव खन्ना ने उस का गला दबा दिया था. इस के बाद इंद्राणी ने पुलिस से बचने के लिए शीना के शव का मेकअप तक किया. उस के बाल संवारे थे और लिपस्टिक लगाई थी ताकि लोग शंका न कर सकें.

रिश्तों की उलझन शीना की डायरी से भी समझी जा सकती है जिस में वह लिखती है कि मुझे अब मां से नफरत है. वह मां नहीं, डायन है. शीना बोरा हत्याकांड मानवीय मूल्यों के माने ही खत्म होने की मिसाल है. सवाल कई हैं. अगर इंद्राणी ने सबकुछ हासिल कर लिया था तो उसे हत्या जैसा कदम क्यों उठाना पड़ा? क्या कोई ऐसा राज था जो शीना के दिल में दफन करने के लिए उस की हत्या की साजिश रची गई या फिर इस डिसफंक्शनल परिवार में और भी ऐसी कई सड़ांध फैली थीं जिन के फैलने के डर से अपनों ने ही शीना का गला घोंट दिया?   

महत्त्वाकांक्षा की मार

जब औरत महत्त्वाकांक्षा के बुने जाल में फंसती है तो उसे इस की कीमत अकसर अपनी जान दे कर या गहरे अपराध में फंस कर जेल के अंधेरे बंद कमरे में चुकानी पड़ती है. इंद्राणी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. पैसा और शोहरत का यह रास्ता शुरुआत में भले ही सुगम और सुखदाई लगे लेकिन यह रास्ता आखिरकार जाता अवसाद और अपराध की ओर ही है. इंद्राणी ने भी सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए शौर्टकट अपनाया और अब पुलिस की गिरफ्त में है.

 दरअसल, अपने दूसरे पति सिद्धार्थ दास से अलग होने के बाद इंद्राणी की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. उस वक्त इंद्राणी के पास काइनेटिक स्कूटी हुआ करती थी. लेकिन आज स्थिति ठीक उलट है. इंद्राणी के पास मुंबई, कोलकाता, देहरादून समेत कई शहरों में अरबों की संपत्ति तो है ही, साथ में कई लग्जरी कारें भी हैं. यही नहीं, पीटर मुखर्जी से शादी के बाद इंद्राणी को नीता अंबानी, शाहरुख खान समेत कई बड़ी हस्तियों के साथ देखा गया. इंद्राणी पेज 3 पार्टीज में खूब शिरकत करती थी और ज्यादा पैसे वाला मिलते ही वह दूसरी शादी रचा लेती थी.

अब तक 5 पतियों को छोड़ चुकी इंद्राणी और पीटर के बीच मुलाकात भी एक ‘बार’ में पार्टी के दौरान हुई थी. इंद्राणी के एक दोस्त का तो यहां तक कहना है कि इंद्राणी हद से अधिक आक्रामक और महत्त्वाकांक्षी थी, वह अपना काम पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती थी.

और भी हैं इंद्राणी

किसी भी कीमत पर सबकुछ पाने की सोच और उन्मुक्त जीवन व आजादी का यह सपना एक नहीं कई इंद्राणियों को दर्द व अवसाद की गहरी खाई में धकेल चुका है. पुरुषों से ज्यादा महत्त्वाकांक्षी होने के चलते औरतें अपना सर्वस्व समर्पित करने से गुरेज नहीं करती हैं.

लेकिन बदले में सिवा बरबादी और तकलीफ के कुछ हासिल नहीं होता. हमारे सामने मधुमिता, भंवरी देवी, शिवानी भटनागर, फिजा, सुनंदा पुष्कर और रूपम जैसे कई उदाहरण हैं जहां महिलाएं अपनी ही महत्त्वाकांक्षा के बुने जाल में फंस गईं और उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी.

इस के लिए कभी शशि थरूर जैसे रसूखदार केंद्रीय मंत्री का सहारा लिया गया तो कभी आर के शर्मा जैसे भ्रष्ट पुलिस अधिकारी का और कभी चांद मोहम्मद उर्फ चंद्रमोहन जैसे लोगों का. लेकिन तमाम किस्सों में बलि का बकरा सिर्फ औरत बनी. इन की महत्त्वाकांक्षी और पुरुषों की दुनिया में वर्चस्व हासिल करने की जिद ने इन्हें दुनिया से ही विदा कर दिया.  

शिवानी भटनागर एक वरिष्ठ पत्रकार बनने से पहले जब प्रशिक्षु थी, तो उस ने अपने सीनियर पत्रकार से शादी की जबकि दोनों की आदतों में बहुत अंतर था. उस पत्रकार एवं पति की बदौलत उस को मीडिया में वह रुतबा हासिल हुआ जो इतने कम समय में मिलना बेहद मुश्किल था. इस दौरान उस की नजदीकियां पुलिस अधिकारी आर के शर्मा से बढ़ीं, जिस के पीछे त्वरित सफलता पाने की शिवानी की ख्वाहिश काम कर रही थी. नजदीकियां हदों से पार निकल गईं. आखिरकार, वह मौत का कारण भी बन गई.

इसी तरह फिजा उर्फ अनुराधा बाली एक अधिवक्ता थी. मगर राजनीति के गलियारों में पैठ बनाने के लिए मिला एक शादीशुदा चंद्रमोहन, एक प्रदेश का उपमुख्यमंत्री. दोनों ने शादी भी कर ली चांद और फिजा बन कर. मगर जब फिजा दुनिया से रुखसत हुई तो अफसोस के सिवा उस के पास कुछ नहीं था. सुनंदा पुष्कर ने चुना एक केंद्रीय मंत्री, जिस की पिछली पारिवारिक जिंदगियां सदैव संदेह के घेरों में रहीं.

सुनंदा की भी पृष्ठभूमि कोई पाकसाफ नहीं थी. वह एक तथाकथित सोशलाइट थी, जिस में शीर्ष के लोगों के साथ की ललक व चाहत थी. मगर यहां सवाल यह उठता है कि सुनंदा पुष्कर और शशि थरूर के बीच ऐसे कौन से हालात बन गए थे जिन की परिणति एक असामयिक और संदिग्ध मौत के रूप में हुई? कुछ तो जरूर होगा जो शायद महत्त्वाकांक्षा की अतिशयता से जुड़ा होगा? दरअसल, जब हम किसी का इस्तेमाल कर रहे होते हैं तो हम यह भूल जाते हैं कि कहीं न कहीं वह भी हमारा इस्तेमाल कर रहा है. और आखिर में शिकार इंद्राणी जैसी औरतों का ही होता है.

खूबसूरती और ताकत की भूख

इस हश्र से परे अगर इन के इंद्राणी बनने के पीछे के जरियों की पड़ताल की जाए तो 2 कारक सामने आते हैं. पहला, खूबसूरती यानी शरीर का इस्तेमाल और दूसरा बेशुमार ताकत हासिल करने की भूख. इन 2 अरमानों तले पलती महिलाएं पुरुषप्रधान समाज में पुरुषों का ही इस्तेमाल कर फर्श से अर्श तक का सफर पूरा करती हैं. इन को समझने के लिए विश्व राजनीति के पटल पर क्लियोपेट्रा को समझना बेहद जरूरी है. यह एक ऐसा नाम है जिस ने अपनी खूबसूरती और अपने शरीर का इस्तेमाल अपने कैरियर को बढ़ाने में बेहतरीन तरीके से किया.

उस ने सैक्स पावर को पहचानते हुए खुल कर उस का उपयोग किया और उसे अपनी सफलता की सीढ़ी बना कर बुलंदी पर जा पहुंची. क्लियोपेट्रा इस बात को जानती थी कि किस तरह अपने शरीर का इस्तेमाल कर के मर्दों को गुलाम बनाया जा सकता है. उसे उस हुनर का पता था जिस के बल पर वह बड़ेबड़े लोगों को अपने मोहजाल में फंसा सकती थी. साफ है कि क्लियोपेट्रा ने सैक्स और अपने शरीर को एक कमोडिटी की तरह अपने हक में सत्ता हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया.

क्लियोपेट्रा अब एक नाम नहीं रही, बल्कि यह एक प्रवृत्ति के तौर पर स्थापित हो चुकी है. ऐसा नहीं है कि इस तरह की महिलाएं, जो अपनी देह को सत्ता हासिल करने का जरिया बनाती हैं,  सिर्फ विदेशों या पश्चिमी देशों में हैं, इस तरह के कई उदाहरण हमारे देश में भी मिल जाएंगे.

कितने खून माफ होंगे?

रस्किन बौंड की कहानी ‘सुजैन्स सेवन हस्बैंड्स’ पर विशाल भारद्वाज ने फिल्म ‘सात खून माफ’ बनाई, जो काफी हद तक ऐसी औरत की कहानी थी जो प्यार, ताकत और वर्चस्व की चाह में औरतों के अपने बनाए मापदंडों पर पुरुषों को खरा न पा कर उन की हत्या कर देती है. वह अलगअलग मिजाज के लोगों से 7 शादियां करती हैं.

प्यार,  नफरत, सैक्स, लालच जैसे भावों से भरी इस फिल्म में सुजैन का किरदार इंद्राणियों सरीखा है जो अपनी शर्तों पर जिंदगी जीती हैं और रास्ते पर चाहे पति आए या बेटी, गला घोंटने से गुरेज नहीं करतीं. इसी तरह, विद्या बालन अभिनीत फिल्म ‘द डर्टी पिक्चर’, जोकि दक्षिण भारतीय फिल्मों में सिल्क स्मिता के नाम से मशहूर सी ग्रेड अभिनेत्री के जीवन पर आधारित थी, उसी पुरुषवादी समाज का इस्तेमाल कर उभरती और डूबती औरत की कहानी थी.

फर्क इतना भर है कि सुजैन अपने पतियों का कत्ल कर देती है और सिल्क को आत्महत्या करनी पड़ती है. लेकिन गौर करें तो दोनों ही हालात में औरतें अकेली और अवसाद भरी जिंदगी के मुहाने पर थकी और लाचार सी खड़ी दिखाई देती हैं. इस तरह के किरदारों पर कई फिल्में बनी हैं जिन में डकैत फूलन देवी की ‘बैंडिट क्वीन’ की भी कहानी शामिल की जा सकती है.

अब्बास मस्तान की प्रियंका चोपड़ा अभिनीत फिल्म ‘ऐतराज’ भी कुछ यही बयां करती है. जहां एक महत्त्वाकांक्षा की मारी औरत अमीर बनने के लिए एक उम्रदराज बिजनैसमैन से शादी तो कर लेती है लेकिन जिस्म की भूख शांत करने के लिए अपने पुराने प्रेमी का इस्तेमाल करना चाहती है. बदले में उसे कंपनी में बड़ा ओहदा भी औफर करती है. उस की पावर को जब नायक चुनौती देता है तो उस पर रेप का झूठा इल्जाम लगाती है. आखिर में खुदकुशी की दहलीज पर उसे ही जाना पड़ता है.

सामाजिक सरोकार

ऐसी अपराधभरी घटनाएं जब अखबार और टीवी पर दिनरात टीआरपी के नशे में घरघर परोसी जाती हैं तो सामाजिक तबके पर इस के अलग प्रभाव दिखते हैं. कोई सैक्स और हत्या की इस गुत्थी को चटकारे ले कर गलीनुक्कड़ में सुनतासुनाता है तो कोई अपने घर की फैली सड़ांध से इसे मैच करने लगता है. सभ्य और अमीर समाज की धज्जियां उड़ाती ऐसी घटनाओं के गहरे सामाजिक सरोकार हैं और इन से सबक लेना ज्यादा जरूरी है बजाय इन पर सोशल मीडिया में चुटकुले गढ़ने के.

ये हालात किसी के घर भी हो सकते हैं. शीना मर्डर केस का असर राजधानी दिल्ली के एक प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में 7वीं क्लास के एक छात्र पर कुछ इस तरह दिखा कि उस की मां उसे इंद्र्राणी मुखर्जी की तरह लगने लगी है. उस ने नोट्स में अपनी मां के बारे में लिखा था, ‘‘मैं एक नाजायज बच्चा हूं. मेरी मां इंद्र्राणी मुखर्जी की तरह है. उसे बहुत से आदमियों के साथ सैक्स करना पसंद है.’’ टीचर ने इस बात की जानकारी स्कूल के प्रिंसिपल को दी. प्रिंसिपल ने उस बच्चे के मातापिता को मिलने के लिए स्कूल बुलाया. बहरहाल, अब वह स्टूडेंट काउंसलिंग की प्रक्रिया से गुजर रहा है.

अंत बुरा तो सब बुरा

फर्ज कीजिए, अगर इंद्र्राणी ने शीना की हत्या नहीं की होती तो क्या सबकुछ ठीक होता इन की जिंदगी में, कतई नहीं. सिर्फ हत्या प्रकरण को हटा दें तो भी शीना अपनी मां से नफरत करती. इंद्र्राणी इसी तरह सफलता की सीढि़यां चढ़ने के लिए शादियां करती और परिवार इस तरह की डिसफंक्शनल जाल में उलझा रहता. 

जरा सोचिए, इतनी उलझनों के बीच परिवार में कौन खुश रहता. जहां भाई मां के खिलाफ है और बेटी को मां से नफरत है, जहां परिवार के साधारण से रिश्तों की गुत्थी सुलझाने के लिए दिमाग के न जाने कितने घोड़े दौड़ाने पड़ते हैं, वहां सिवा अपराध, हत्या, झगडे़ और साजिश के और क्या हो सकता था. 

आज के इस युग में जब संवेदनाएं सूख रही हैं और संबंधों का भी बाजारीकरण हो चुका है, ऐसे में महिलाओं को समझना होगा कि सशक्तीकरण का अर्थ सिर्फ धन कमाना और ऊंची पहुंच बनाना नहीं है. सशक्तीकरण का सही अर्थ है जागरूकता, आत्मनिर्भरता, संवेदनशील सोच व सतर्कता और अपने सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों का बोध. जब महिलाएं इस बात को समझ जाएंगी, तभी उन का और उन से जुड़े रिश्तों का जीवन दिशाहीन होने से बच सकेगा.

-साथ में राजेश कुमार

सोने के व्यापारी को ले डूबी रंगीनमिजाजी – भाग 3

नई प्रेमिका का साथ मिलने पर वह कुकुकोवा को समय नहीं दे पा रहे थे. इतना ही नहीं, वह मारिया को अपना जीवनसाथी भी बनाना चाहते थे. कुकुकोवा अपनी उपेक्षा को महसूस कर रही थी. यह सब मारिया की वजह से हुआ था, इसलिए इस का दोषी वह मारिया को मान रही थी.

वह मारिया से ईर्ष्या करने लगी थी. इस की वजह से वह हमेशा तनाव में भी रहने लगी थी. और तो और वह फोन, ईमेल और डेटिंग ऐप के जरिए उस का पीछा भी करती थी. इस की शिकायत मारिया ने बुश से भी की थी. बुश को भी कुकुकोवा की यह हरकत पसंद नहीं आई. नतीजतन उन दोनों के बीच जबतब तकरार होने लगी. कुकुकोवा उन पर अपना एकाधिकार बनाए रखने की कोशिश करती थी.

एल्ली का कहना था कि कुकुकोवा बहुत जल्द गुस्से में आ जाती थी. दुकान की महंगी चीजों को फर्श पर फेंक देती थी. कई बार तो वह बुश का मोबाइल तक फेंक देती थी, पासपोर्ट छिपा देती थी और उन की गैरमौजूदगी में उन का पर्सनल कंप्यूटर चेक करती थी.

इसी तरह का एक वाकया एल्ली के जन्मदिन के अवसर पर भी हुआ. एल्ली अपने 18वें जन्मदिन के मौके पर पिता और कुकुकोवा के साथ दुबई में थी. एक मौल में महंगी खरीदारी को ले कर कुकुकोवा ने न केवल हंगामा खड़ा कर दिया था, बल्कि गुस्से में उस ने बुश पर अपना बैग फेंक कर हमला भी किया था.

बुश ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की, पर उस ने उसी दिन बुश का लैपटौप भी तोड़ डाला था. उस की वजह से एल्ली के जन्मदिन की खुशियों भरे माहौल में खलल पड़ गया. इंगलैंड वापस लौट कर बुश ने दुबई की घटना को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा.

कुकुकोवा की अजीबोगरीब आदतों को झेलना बहुत ही मुश्किल हो गया था. वह हमेशा तेवर में रहती थी. सितंबर, 2013 में कुकुकोवा बगैर कुछ बताए बुश के यहां से चली गई. वह एक जगह स्थिर नहीं रहती थी. एक शहर से दूसरे शहर घूमती रहती थी. बुश ने उस से संबंध खत्म कर लिए थे, लेकिन कुकुकोवा को लगता था कि बुश उसे फिर से अपना लेगा. इस के लिए वह अपने फेसबुक एकाउंट पर प्रेमसंबंधों का सबूत देने वाले चुंबन और गले लगने के वीडियो अपलोड करती रहती थी.

कुकुकोवा के परिजनों के अनुसार, हत्या की घटना के 2 सप्ताह पहले वह अपना पुश्तैनी घर छोड़ गई थी. उस वक्त उस के पिता बीमार चल रहे थे. बुश की हत्या की खबर जब अखबारों की सुर्खियां बन गईं और उस की पूर्व पत्नी समेत दूसरे परिजनों ने हत्या का आरोप सीधे तौर पर कुकुकोवा पर लगाया.

इस के बाद स्पेन समेत स्लोवाकिया की पुलिस भी सक्रिय हो गई और बुश की हत्या के 2 दिनों बाद ही कुकुकोवा को उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे न्यायिक हिरासत में ले कर मलागा के निकट अल्हउरा डेला टोर्रो जेल में डाल दिया गया. उस की गिरफ्तारी से उस की मां लुबोमीर कुकुका (50) और पिता दानक कुकुकोवा (51) को काफी दुख हुआ. उन्हें लगा जैसे उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई है.

कुकुकोवा की वजह से उस के मातापिता की पूरे इलाके में काफी बदनामी हुई. इस के बावजूद वे बेटी को बचाने की कोशिश के लिए स्पेन गए. उन्होंने एक महंगा वकील किया, जिस की फीस जुटाने में उन का पुश्तैनी मकान तक बिक गया.

पुलिस के अनुसार, घटना वाली रात को कुकुकोवा बुश के उसी घर में थी, जिस में बुश ने अपनी नई प्रेमिका मारिया कोरातेवा को बुला रखा था. मारिया किसी वजह से कुछ देर के लिए बाहर चली गई थी. संभवत: वह वापस जाना चाहती थी. थोड़ी देर में ही उस ने गोली चलने की आवाज सुनी. यही गवाही मारिया ने कोर्ट में दी थी.

बुश के स्मार्टफोन पर डेटिंग ऐप के जरिए कुकुकोवा को पता चल चुका था कि बुश और मारिया 5 अप्रैल, 2014 की रात अपनी मुलाकात का पांचवां महीना पूरा होने पर जश्न मनाने वाले हैं. इस के लिए स्पैनिश विला कोस्टा डेल सोल में खास किस्म का रोमांटिक आयोजन किया गया था. इस से पहले ब्रिस्टल हवाई अड्डे पर बुश ने मारिया को 10,000 पाउंड की हीरे की एक अंगूठी भेंट की थी. इस के साथ ही उन्होंने कहा कि वे विला पर उस से एक खास बात पर चर्चा करना चाहते हैं.

घटना के बारे में मारिया ने बताया, ‘‘5 अप्रैल की सुबह जब हम लोग (मैं और बुश) विला पहुंचे, तब सूर्योदय नहीं हुआ था. हम लोगों ने एकदूसरे का हाथ थामे प्रेमी युगल की तरह हंसहंस कर बातें करते हुए विला में प्रवेश किया. विला के कर्मचारियों ने हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया. हम सहज भाव से कमरे में चले गए.’’

मारिया ने आगे बताया, ‘‘बुश ने कमरे की बत्ती जलाई. मुझे कमरे में कुछ अच्छा नहीं लगा. मैं ने दरवाजे के पास एक रैक में ‘ब्रा और किंकर्स’ टंगे देखे. यह देख कर मैं समझ गई कि निश्चित तौर पर यहां पहले से कोई औरतें आती होंगी. मैं बुश से थोड़ा आगे बढ़ी तो कुछ दूरी पर फर्श पर एक अधखुला सूटकेस पड़ा था, जिस में 2 कटार रखे दिखे. उसे देख कर मैं घबरा गई. मैं उलटे पैर मुड़ कर ऊपर की सीढि़यों पर चली गई.

‘‘जब मैं सब से ऊपर पहुंची, तब देखा कि वहां कुकुकोवा बिलकुल शांत, स्थिर एकदम चट्टान की तरह खड़ी थी. वह मुझे ही घूर रही थी. उस ने अपने बाल नीचे किए हुए थे और पाजामा पहन रखा था. ऊपर वह शार्ट्स पहने हुए थी. मैं ने पलभर के लिए उसे देखा और चिल्लाती हुई वहां से भाग कर घर से बाहर आ गई.’’

इसी बीच कुकुकोवा ने बुश पर 3 गोलियां दाग दीं. मारिया ने समझा कि टीवी या सीढि़यों से कोई भारी सामान गिर गया है. कुछ मिनट बाद ही कुकुकोवा बाहर आई तो उस के हाथ में गाड़ी की चाबी थी. उस ने मुझ से कहा, ‘‘कार से दूर हट जाओ.’’

उस वक्त वह बहुत ही शांत थी. मुझे आश्चर्य हुआ कि बुश ने उसे अपनी हमर कार की चाबी कैसे दे दी. इस से मारिया को शक हुआ. जब तक वह घर में जाने के लिए दरवाजे की तरफ बढ़ी, तब तक कुकुकोवा कार को तेजी से ड्राइव करते हुए फरार हो गई. मारिया विला के अंदर पहुंची तो बुश की रक्तरंजित लाश देख कर घबरा गई.

मारिया ने तुरंत बुश की बहन रशेल और पुलिस को बुलाया. पुलिस के साथ आई डाक्टरों की टीम ने बुश को मृत घोषित कर दिया.

बुश की हत्या के बाद जहां मारिया के सपने साकार होने से पहले ही चूरचूर हो गए, वहीं कुकुकोवा को पूरी जवानी जेल की सलाखों के पीछे गुजारनी होगी. उस के मातापिता पर तो जैसे पहाड़ ही टूट पड़ा है. न तो बुढ़ापे का कोई सहारा है और न ही सिर छिपाने को छत बची है. सब कुछ बेटी को जेल जाने से बचाने में खत्म हो गया है. रही बात एल्ली और बहन रशेल की, तो उन को बुश की यादों के सहारे जीना होगा.

ए सीक्रेट नाइट इन होटल – भाग 3

वीडियो देख कर रश्मि पानीपानी हो गई. अब उसे लग रहा था कि उस ने और विवेक ने जो किया था, वह किसी ब्लू फिल्म से कम नहीं था. वह हैरान इस बात पर थी कि यह सब रिकौर्ड कैसे हुआ? जबकि विवेक ने कमरे में दाखिल होते ही अच्छे से ठोकबजा कर देख लिया था कि कमरे में कोई कैमरा वगैरह तो नहीं लगा.

पर जो हुआ था, वह कंप्यूटर स्क्रीन पर चल रहा था. वीडियो देख कर सकते में आ गई रश्मि ने तुरंत फोन कर के विवेक को अपने घर बुलाया. विवेक आया तो रश्मि ने उसे सारी बात बताई, जिसे सुन कर वह भी झटका खा गया. यह तो साफ समझ आ रहा था कि वीडियो उसी रात का था, पर इसे भेजने वाले की मंशा साफ नहीं हो रही थी कि वह क्या चाहता है, सिवाय इस के कि वह गलत मंशा से रश्मि पर दबाव बना रहा था.

दोनों गंभीरतापूर्वक काफी देर तक इस बिन बुलाई मुसीबत पर चरचा करते रहे. बात चिंता की थी, इस लिहाज से थी कि अगर यह वीडियो वायरल हो गया तो वे कहीं के नहीं रह जाएंगे. दोनों अब अपनी जवानी के जोश में छिप कर किए इस कृत्य पर पछता रहे थे. लंबी चर्चा के बाद आखिरकार उन्होंने तय किया कि भेजने वाले से उस की मंशा पूछी जाए.

लिहाजा उन्होंने इस बाबत मैसेज किया तो जवाब आया कि अगर इस वीडियो को वायरल होने से बचाना है तो ढाई लाख रुपए दे दो. अब तसवीर साफ थी कि उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा था. विवेक और रश्मि, दोनों निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों से थे, इसलिए ढाई लाख रुपए का इंतजाम करना उन की हैसियत के बाहर की बात थी. पर होने वाली बदनामी का डर भी उन के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

आखिरकार विवेक ने सख्त और समझदारी भरा फैसला लिया कि जब पौकेट में इतने पैसे नहीं हैं तो बेहतर है कि पुलिस में रिपोर्ट लिखा दी जाए. दोनों अपनेअपने घर से बहाना बना कर बीती 1 मई को ग्वालियर पहुंचे और सीधे एसपी डा. आशीष खरे से मिले. मामले की गंभीरता और शादी के बंधन में बंधने जा रहे इन दोनों की परेशानी आशीष ने समझी और मामला पड़ाव थाने के टीआई को सौंप दिया.

पुलिस वालों ने दोनों को सलाह दी कि वे ब्लैकमेलर से संपर्क कर किस्तों में पैसा देने की बात कहें. रश्मि ने पुलिस की हिदायत के मुताबिक ब्लैकमेलर को फोन कर के कहा कि वह ढाई लाख रुपए एकमुश्त तो देने की स्थिति में नहीं हैं, पर 5 किस्तों में 50-50 हजार रुपए दे सकती है. इस पर ब्लैकमेलर तैयार हो गया.

सीधे उत्तम होटल पर छापा न मारने के पीछे पुलिस की मंशा यह थी कि ब्लैमेलर को रंगेहाथों पकड़ा जाए. ऐसा हुआ भी. आरोपी आसानी से पुलिस के बिछाए जाल में फंस गया और रश्मि से 50 हजार रुपए लेते धरा गया. जिस युवक को पुलिस ने पकड़ा था, उस का नाम भूपेंद्र राय था. वह उत्तम होटल में ही काम करता था.

भूपेंद्र को उम्मीद नहीं थी कि रश्मि पुलिस में खबर करेगी, इसलिए वह पकड़े जाने पर हैरान रह गया. पूछताछ में उस ने बताया कि वह तो बस पैसा लेने आया था, असली कर्ताधर्ता तो कोई और है.

वह कोई और नहीं, बल्कि होटल का 63 वर्षीय मैनेजर विमुक्तानंद सारस्वत निकला. उसे भी पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर लिया. इन दोनों ने पूछताछ में मान लिया कि उन्होंने इस तरह कई जोड़ों को ब्लैकमेल किया था.

भूपेंद्र ने बताया कि इस होटल में उसे उस के बहनोई पंकज इंगले ने काम दिलवाया था. काम करतेकरते भूपेंद्र ने महसूस किया कि होटल में रुकने वाले अधिकांश कपल सैक्स करने आते हैं. लिहाजा उस के दिमाग में एक खुराफाती बात वीडियो बना कर ब्लैकमेल करने की आई, जिस का आइडिया एक क्राइम सीरियल से उसे मिला था.

भूपेंद्र ने दिल्ली जा कर नाइट विजन कैमरे खरीदे, जो आकार में काफी छोटे होते हैं. इन कैमरों को उस ने टीवी के औनऔफ स्विच में फिट कर रखा था. इस से कोई शक भी नहीं कर पाता था कि उन की हरकतें कैमरे में कैद हो रही हैं. आमतौर पर ठहरने वाले इस बात पर ध्यान नहीं देते कि टीवी का स्विच औन है, क्योंकि इस से कोई खतरा रिकौर्डिंग का नहीं होता.

ग्राहकों के जाने के बाद भूपेंद्र कैमरे निकाल कर फिल्म देखता था और जिन लोगों ने सैक्स किया होता था, उन के नामपते होटल में जमा फोटो आईडी से निकाल कर फेसबुक, व्हाट्सऐप या फिर सीधे मोबाइल फोन के जरिए ब्लैकमेल करता था. दोनों ने माना कि वे ब्लैकमेलिंग के इस धंधे से लाखों रुपए अब तक कमा चुके हैं. दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

मामला उजागर हुआ तो ग्वालियर में हड़कंप मच गया. पता यह चला कि कई होटलों में इस तरह के कैमरे फिट हैं और ब्लैकमेलिंग का धंधा बड़े पैमाने पर फलफूल रहा है. इस तरह की रिकौर्डिंग के विरोध में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने प्रदर्शन भी किया.

इस पर पुलिस ने कई होटलों में छापे मारे, पर कुछ खास हाथ नहीं लगा. क्योंकि संभावना यह थी कि भूपेंद्र की गिरफ्तारी के साथ ही ब्लैकमेलर्स ने कैमरे हटा दिए थे. हालांकि उम्मीद बंधती देख कुछ लोगों ने पुलिस में जा कर अपने ब्लैकमेल होने का दुखड़ा रोया.

जब यह सब कुछ हो गया तो विवेक और रश्मि ब्रेफ्रिकी से नोएडा वापस चले गए और दोबारा शादी की तैयारियों में जुट गए. पर एक सबक इन्हें मिल गया कि हनीमून मनाते वक्त  होटल में इस बात का ध्यान रखेंगे कि टीवी के खटके में कैमरा न लगा हो और घर आने के बाद फिर फेसबुक पर यह मैसेज न मिले कि ‘ए सीक्रेट नाइट इन होटल.’

पढ़े लिखों पर भारी पड़ते अनपढ़ – भाग 3

जयपुर के पुलिस कमिश्नर संजय अग्रवाल ने लगातार हो रही औनलाइन ठगी की वारदातों को देखते हुए काफी समय पहले अतिरिक्त पुलिस आयुक्त (प्रथम) प्रफुल्ल कुमार के निर्देशन एवं पुलिस उपायुक्त (क्राइम) डा. विकास पाठक के नेतृत्व में क्राइम ब्रांच की विशेष टीम गठित कर इस टीम को ऐसे अपराधियों का पता लगाने का जिम्मा सौंपा था.

इस टीम ने ठगी के एकएक मामले का अध्ययन कर अपराधियों की कार्यप्रणाली समझी. उस के बाद तकनीकी माध्यम से उन मोबाइल नंबरों का पता लगाया, जिन से लोगों को ठगी का शिकार बनाया गया था. व्यापक जांचपड़ताल के बाद पुलिस ने झारखंड से 3 ठगों को गिरफ्तार किया था.

इस से पहले इसी साल 24 फरवरी को सब से पहले सत्यम राय को पकड़ा गया. वह झारखंड के देवघर के खाजुरिया बसस्टैंड के पास स्थित विकासनगर का रहने वाला था. फिलहाल वह पश्चिम बंगाल के कोलकाता के टालीगंज में के.एम. लक्षकार रोड पर रह रहा था. उस ने पिछले साल जयपुर के राजेंद्र गहलोत को अपना शिकार बनाया था.

20 साल के सत्यम राय ने फोन पर खुद को बैंक अधिकारी बता कर राजेंद्र गहलोत से एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर पूछ कर उन के खाते से 43 हजार 391 रुपए औनलाइन निकाल लिए थे. इस ठगी का मुकदमा जयपुर दक्षिण के थाना ज्योतिनगर में दर्ज है.

पूछताछ में सत्यम राय ने बताया था कि राजेंद्र गहलोत से ठगी कर के उस ने 21 हजार 891 रुपए का सैमसंग गैलेक्सी ए 5 एड्रौयड मोबाइल फोन औनलाइन खरीदा था. बाकी रकम उस ने अलगअलग गेटवे के माध्यम से बैंक खाते तथा वौलेटों में डाली थी. मोबाइल फोन आ गया तो उसे ओएलएक्स पर आईफोन एस-5 से एक्सचैंज कर लिया था.

कोलकाता से बीबीए की पढ़ाई करने के बाद सत्यम राय ने हिंदी, अंग्रेजी, भोजपुरी और बंगला सहित अन्य भाषाएं सीखीं, ताकि पूरे देश में विभिन्न बोलीभाषाओं में बात कर लोगों को झांसे में ले सके. पूछताछ में उस ने बताया था कि वह ठगी के जरिए मिली रकम के एक हिस्से से औनलाइन शौपिंग करता था, जिसे वह बेच कर पैसे खड़े कर लेता था.

पुलिस ने सत्यम राय से सैमसंग गैलेक्सी ए-7, आईफोन एस-5 और सैमसंग गैलेक्सी ए-5 फोन बरामद किए थे. उस से पूछताछ और उस के मोबाइल फोन की जांच से पता चला कि उस ने देश के अनेक राज्यों में ठगी के लिए कुल 2860 लोगों को फोन किए थे.

जयपुर के सूरज प्रजापति से 55 हजार रुपए की इसी तरह की गई ठगी में पुलिस ने सागरदास और उस के साले विक्कीदास को 26 फरवरी, 2017 को गिरफ्तार किया था. ये दोनों ठग झारखंड में जामताड़ा जिले के अंबेडकर चौक पंडेडीह के रहने वाले थे. पुलिस ने इन से 5 मोबाइल फोन बरामद किए थे. इन मोबाइल फोनों में फर्जी आईडी पर जारी किए गए सिम मिले थे. जीजासाले ने अलगअलग राज्यों में ठगी के लिए करीब 779 लोगों को फोन किए थे.

जयपुर निवासी राजेश कुमार वर्मा से बैंक अधिकारी बन कर 21 हजार 566 रुपए की  औनलाइन ठगी करने के मामले में जयपुर पुलिस ने झारखंड के जामताड़ा जिले के करमाटांड थाना के धरवाड़ी गांव के रहने वाले जयकांत मंडल को मार्च, 2017 के पहले सप्ताह में गिरफ्तार किया था.

पुलिस ने उस से 3 मोबाइल फोन, 4 सिम और 4 एटीएम कार्ड बरामद किए थे. वह झारखंड के धनबाद के देवली गोविंदपुर में रह कर आईटीआई कर रहा था. उस ने कई भाषाएं सीख रखी थीं. जांच में पता चला कि जयकांत ने ठगी के लिए विभिन्न मोबाइल नंबरों से अलगअलग राज्यों में ठगी के लिए करीब 9068 लोगों को फोन किए थे.

जांच में पता चला है कि झारखंड के जिला जामताड़ा के करमाटांड सहित कुछ इलाके साइबर अपराधियों के गढ़ हैं. कहा जाता है कि करमाटांड के झिलुआ गांव के रहने वाले सीताराम मंडल ने सन 2008-09 में बैंक अधिकारी बन कर लोगों से औनलाइन ठगी के साइबर अपराध को जन्म दिया था. इस का जाल अब पूरे जामताड़ा जिले में फैल चुका है. आजकल वहां 150 से अधिक गिरोह काम कर रहे हैं, जिन में 20 से 30 साल के युवा शामिल हैं.

इन में कुछ गिरोह ऐसे भी हैं, जिन्होंने वेतन और कमीशन के आधार पर दूसरे युवकों को नौकरी दे रखी है. कुछ पुराने ठग नई पीढ़ी के युवाओं को औनलाइन ठगी की ट्रेनिंग देते हैं और इस के बदले में मोटा मेहनताना वसूलते हैं. इन गिरोहों ने बैंक अधिकारी बन कर पूरे देश में अब तक कई अरब रुपए की ठगी की है.

मजे की बात यह है कि इन में ज्यादातर ठग ज्यादा पढ़ेलिखे नहीं हैं. लेकिन देश के अलगअलग राज्यों की भाषाएं सीख कर ये लोगों को ठग रहे हैं. देश में ऐसा कोई वर्ग नहीं है, जो इन की ठगी का शिकार न हुआ हो.

केंद्रीय मंत्री से ले कर, विभिन्न राज्यों के मंत्रियों, आईएएस एवं आईपीएस अधिकारियों, जज, डाक्टर, प्रोफेसर, आयकर अधिकारी, इंजीनियर, चार्टर्ड एकाउंटैंट, बिजनेसमैन सभी इन की ठगी का शिकार हो चुके हैं, जबकि इन लोगों को कहा जाता है कि ये अपनी बुद्धि और वाकचातुर्य के बल पर देश को चला रहे हैं.

आम आदमी को तो ये ठग कुछ ही मिनट में बातों में उलझा कर उस का एटीएम कार्ड और ओटीपी नंबर आदि हासिल कर लेते हैं. इन ठगों ने केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री, बांका के जिला जज, एयरपोर्ट अथौरिटी के एजीएम सहित तमाम बडे़बडे़ अधिकारियों को ठगा है.

साइबर ठगी में लगे तमाम लड़के उच्च शिक्षा भी हासिल कर सूचना प्रौद्योगिकी में दक्ष हो रहे हैं, ताकि लोगों को उन के हिसाब से हैंडल किया जा सके. जामताड़ा में साइबर क्राइम की शुरुआत एसएमएस से मोबाइल फोन का बैलेंस उड़ा कर दूसरों को सस्ती दरों पर मोबाइल फोन का बैलेंस बेचने से हुई थी. इस के बाद 8-9 सालों में यह जिला पूरे देश में चर्चित हो चुका है.

जामताड़ा इलाके से जब मोबाइल फोन से बहुत ज्यादा फोन किए जाने लगे तो मोबाइल कंपनियों को मोटी कमाई होने लगी. नेटवर्क की समस्या दूर करने के लिए मोबाइल कंपनियों ने वहां नए टौवर लगवा दिए, जिस से वहां नेटवर्क अच्छा हो गया. इस से ठगों का काम और ज्यादा आसान हो गया.

ठगी की रकम से ठग ऐशोआराम की जिंदगी जीते हैं. उन के पास आलीशान मकान और लग्जरी गाडि़यां हैं. सड़कें खराब होने से गाडि़यां चलाने में परेशानी हुई तो इन ठगों ने सड़कें भी खुद ही बनवा लीं. अब ये अपराधी खुद को भारतीय रिजर्व बैंक का अधिकारी बता कर ठगी करने लगे हैं. एटीएम रिन्यू करने, उस की वैलिडिटी बढ़ाने एवं आधार कार्ड से जोड़ने के बहाने तो कई सालों से चल रहे हैं.

जामताड़ा इलाके में रोजाना किसी न किसी राज्य की पुलिस साइबर ठगों की तलाश में पहुंचती रहती है. इसलिए अब यहां के ठग थोड़ेथोड़े समय के लिए दूसरे राज्यों में जा कर अपना  ठगी का धंधा करते हैं.

जामताड़ा से पिछले 2 सालों में 268 साइबर अपराधी गिरफ्तार किए गए हैं. इन से 16 सौ से ज्यादा मोबाइल फोन, 176 लग्जरी कारें और करोड़ों रुपए बरामद किए गए हैं.  जयपुर पुलिस की ओर से देवघर से गिरफ्तार मिथलेश ने पुलिस को बताया कि वह अपना एसबीआई का बैंक एकाउंट साइबर ठगों को किराए पर देता था. इस के बदले वह खाते में जमा होने वाली रकम से 20 प्रतिशत हिस्सा लेता था.

भले ही अपराधी पकड़े जा रहे हैं, लेकिन साइबर ठगी बंद होने का नाम नहीं ले रही है. पढ़लिख कर आदमी बुद्धिमान हो जाता है, लेकिन जामताड़ा के अनपढ़ या मामूली शिक्षित अपराधी उन लोगों की आंखों से भी काजल चुरा लेते हैं, जो खुद को सब से ज्यादा समझदार समझते हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया – भाग 1

हरियाणा के जिला सोनीपत में 1984 में जन्मे संदीप उर्फ काला जठेड़ी को दिल्ली पुलिस बेसब्री से तलाश रही थी. उस पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) लगा हुआ था, जिस में जमानत नहीं मिलती है. उसे पहली फरवरी, 2020 को फरीदाबाद अदालत में पेशी के लिए ले कर आई थी. पेशी के बाद वापस ले जाने के दौरान गुड़गांव मार्ग पर उस के गुर्गों ने पुलिस की बस को घेर लिया था.

ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और काला जठेड़ी को छुड़ा ले भागे थे. सारे बदमाश उस के गैंग के थे. यह पूरी वारदात एकदम से फिल्मी अंदाज में काफी तेजी से घटित हुई थी.

इस मामले को ले कर तब डबुआ थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था. तभी से वह फरार था. पुलिस को आशंका थी कि वह नेपाल के रास्ते दुबई भाग निकला है.

पुलिस का यह भी मानना था कि ऐसा उसे भ्रमित करने और उस पर से ध्यान हटाने के लिए किया गया है कि वह दुबई में है. यानी काला जठेड़ी की तलाश में जुटी पुलिस टीम अच्छी तरह से समझ रही थी कि उन्हें अपने निशाने से हटाने की उस की यह एक चाल हो सकती है.

इस बारे में दिल्ली के डीसीपी (काउंटर इंटेलिजेंस, स्पैशल सेल) मनीषी चंद्रा का कहना था कि जठेड़ी एक भूत की तरह रहता था, क्योंकि वह 2020 में पुलिस हिरासत से भागने के बाद कभी नहीं दिखा. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान हटाने के लिए ही जठेड़ी गैंग के सदस्यों ने इस अफवाह को बढ़ावा दिया कि वह विदेश से ही गिरोह को संचालित कर रहा है.

इस पर गौर करते हुए पुलिस ने जठेड़ी की कमजोर नस का पता लगाने की पहल की. इस में पुलिस को अनुराधा चौधरी के रूप में सफलता भी मिल गई. वह जठेड़ी की बेहद करीबी थी और गोवा में रह रही थी. पुलिस ने सब से पहले उसे ही अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई.

अनुराधा चौधरी के बारे में दिल्ली की स्पैशल सेल ने कई जानकारियां जुटा ली थीं. पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, अनुराधा चौधरी का जन्म राजस्थान के सीकर में हुआ था, लेकिन दिल्ली के एक कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उस की शादी दीपक मिंज से हुई थी.

दोनों एक समय में शेयर ट्रेडिंग का काम करते थे, जिस में उन्हें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. वे कर्ज में दबे होने के उस की वापसी कर पाने असमर्थ थे.

इसी परेशानी से जूझते हुए उस का संपर्क एक गैंगस्टर आनंद पाल सिंह से हुआ. वह राजस्थान का एक शातिर और फरार अपराधी था. उस पर राजस्थान पुलिस ने ईनाम रखा हुआ था.

आनंद पाल सिंह ने ही उसे अनुराधा को अपराध की दुनिया में घसीट लिया था और जल्द ही उस की पहचान मैडम मिंज की बन गई थी.

2017 में पुलिस मुठभेड़ में आनंद पाल सिंह की मौत हो जाने के बाद वह काला जठेड़ी के संपर्क में आ गई थी, वह उसे ‘रिवौल्वर रानी’ कहता था.  वह उस के गिरोह की एकमात्र अंगरेजी बोलने वाली सदस्य थी. उस ने काला जठेड़ी से हरिद्वार में शादी कर ली थी. शादी के बाद वे कनाडा शिफ्ट होने की फिराक में थे. उन की योजना वहीं से अपराध का काला कारोबार चलाने की थी.

जठेड़ी को दबोचने के लिए ‘औप डी24’

जठेड़ी को दबोचने के लिए दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने अनुराधा तक पहुंचने की योजना बनाई. सेल ने कुल 30 पुलिसकर्मियों को शामिल किया और एक अभियान के तहत औपरेशन का कोड नाम दिया ‘औप डी24’, इस का अर्थ ‘अपराधी पुलिस से 24 घंटे आगे था.’

सर्विलांस सीसीटीवी फुटेज से ले कर मोबाइल फोन ट्रैकिंग तक की थी. करीब 4 महीने की मेहनत के बाद 30 जुलाई, 2021 को तब सफलता मिली, जब सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे तक ट्रैक किया गया.

इस औपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्पैशल सेल की टीम टुकडि़यों में बंट कर कुल 12 राज्यों तक अलर्ट हो गई थी. राज्य सरकार की पुलिस को भी इस की जानकारी दे दी गई थी और जरूरत पड़ने पर उन से मदद करने का अनुरोध किया जा चुका था. जठेड़ी और अनुराधा के संबंध में हर तरह की मिली सूचना की दिशा में सर्विलांस का सहारा लिया गया था.

टीम को अनुराधा और जठेड़ी गैंग के सदस्यों के गोवा में होने की तकनीकी जानकारी मिली. हालांकि तब पुलिस की निगाह में यह निश्चित नहीं था, इसलिए उस जानकारी को जांचने के लिए एक टीम गोवा भेजी गई.

टीम के सदस्यों को वहां कुछ सुराग मिले. उन्हें 2 वाहन मिले, जिस पर हरियाणा के नंबर लिखे थे. फिर क्या था पुलिस टीम ने उन गाडि़यों का पीछा करना शुरू कर दिया.

इस सिलसिले में टीम को गोवा से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली तक का सफर करना पड़ा.

पीछा करने के सिलसिले में ही टीम को तिरुपति से एक सीसीटीवी फुटेज मिला. उस में अनुराधा चौधरी को जठेड़ी गैंग के कुछ सदस्यों के साथ देखा गया था. उस के बाद कई टीमें उन वाहनों का पीछा करने लगीं, जो उन के द्वारा उपयोग किए जा रहे थे.

लगभग 10,000 किलोमीटर तक उन का पीछा करने के बाद टीम को एक और खास इनपुट मिली. सूचना थी कि चौधरी और जठेड़ी एक एसयूवी में पंजाब की यात्रा पर हैं. पुलिस टीम ने उन का पीछा जारी रखा.

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे पर दोनों उसी वाहन से दबोच लिए गए. वहां से दोनों को दिल्ली लाया गया.

मोबाइल स्नैचर से माफिया तक

बात 2004 की है. तब फीचर मोबाइल फोन के बाद टचस्क्रीन का स्मार्टफोन आया था. वे फोन काफी महंगे हुआ करते थे. काला जठेड़ी और उस के साथियों ने दिल्ली के समयपुर बादली में शराब की दुकान पर एक व्यक्ति से टचस्क्रीन का स्मार्टफोन छीन लिया था.

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इस का मामला थाने में दर्ज करवाया गया था. वह इस स्नैचिंग में पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया. तब उस की उम्र करीब 19 साल की थी. उस के खिलाफ दर्ज मामले में नाम संदीप जठेड़ी और निवासी सोनीपत का लिखवाया गया था. रंग काला होने के कारण मीडिया में उसे नया नाम काला जठेड़ी का मिल गया.