दोस्ती भी शिद्दत से निभाई, दुश्मनी भी – भाग 1

मध्य प्रदेश की संस्कारधानी कहे जाने वाले जबलपुर शहर से लगा हुआ एक देहाती इलाका है तिलवारा. नर्मदा नदी की गोद में बसे तिलवारा के बर्मन मोहल्ले में सुरेंद्र कश्यप का परिवार रहता था. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां व एक बेटा विजेत था. 38 साल का विजेत पढ़ाईलिखाई पूरी करने के बाद कोई कामधंधा करने के बजाय फालतू इधरउधर घूमता रहता था.

इस बात को ले कर उस के पिता उसे समझाते रहते कि कुछ कामधंधा देख ले, इधरउधर आवारागर्दी करता रहता है. मगर विजेत पर पिता की नसीहतों का कोई असर नहीं पड़ता था. वह दिन भर दोस्तों के साथ मटरगश्ती करता और देर रात घर लौटता था.

करीब 3 साल पहले की बात है, बेरोजगारी के दिन काट रहे विजेत की मुलाकात एक दिन धीरज शुक्ला उर्फ मिंटू से हुई. रामनगर इलाके के शंकरघाट में रहने वाले धीरज के पिता शिवराम शुक्ला का नाम शराब के अवैध कारोबार से जुड़ा हुआ है. पिता के इस गोरखधंधे में धीरज भी बराबर का साथ दे रहा था.

शिवराम के परिवार में उस की पत्नी, 35 साल का बड़ा बेटा धीरज उर्फ मिंटू, 30 साल का छोटा लड़का लवकेश और 19 साल की बेटी पूजा थी.

विजेत और धीरज के रहवासी इलाकों में कोई खास फासला नहीं था. इस वजह से उन की मुलाकात आए दिन होती रहती थी. विजेत धीरज की लाइफस्टाइल देख कर काफी प्रभावित था. जब विजेत और धीरज में पक्की दोस्ती हो गई तो धीरज ने विजेत को भी अवैध शराब बेचने के धंधे में शामिल कर लिया.

धीरज ने जब विजेत को बताया कि इस कारोबार में खूब पैसा है तो विजेत धीरज के साथ मिल कर जबलपुर के कई इलाकों में शराब की सप्लाई करने लगा. इस से विजेत को रोजगार के साथ अच्छीखासी कमाई होने लगी.

विजेत के पास पैसा आते ही उस का रहनसहन भी बदल गया. विजेत और धीरज का एकदूसरे के घर आनाजाना शुरू हो गया. धीरज के घर वाले भी विजेत से इस तरह घुलमिल गए थे कि धीरज के घर पर न होने पर भी वह उन से घंटों बैठ कर बातचीत करता रहता था.

एक दिन सुबह विजेत धीरज से मिलने उस के घर पहुंच गया. जैसे ही उस ने दरवाजे पर दस्तक दी तो धीरज की बहन पूजा ने दरवाजा खोला. खूबसूरत पूजा शुक्ला को सामने देख कर विजेत देखता ही रह गया. उस समय पूजा की उम्र 16 साल थी. उस की खूबसूरती ने विजेत को पहली नजर में ही उस का दीवाना बना दिया.

पूजा ने अपनी मधुर मुसकान के साथ विजेत से कहा, ‘‘आइए, आप बैठिए. भैया अभी नहा रहे हैं.’’

पूजा की मुसकान ने विजेत पर जैसे जादू सा कर दिया. वह मुसकराता हुआ पूजा के पीछेपीछे कमरे में आ कर सोफे पर बैठ गया. इसी दौरान पूजा उस के लिए चाय बना कर ले आई.

विजेत की नजरें अब पूजा पर ही जमी थीं. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह किस मोहपाश में बंधा जा रहा है. चाय की चुस्की लेते हुए उस ने पूजा की तरफ जी भर देखा और बोला, ‘‘तुम्हारे हाथों की बनी चाय में जादू है.’’

अपनी तारीफ सुन पूजा ने शरमाते हुए कहा ‘‘ऐसा क्या जादू कर दिया मैं ने?’’

‘‘तुम्हारी खूबसूरती की तरह चाय भी बहुत टेस्टी है,’’ विजेत बोला.

विजेत से अपनी तारीफ सुन पूजा उस से कुछ बोल पाती, इस के पहले ही धीरज बाथरूम से निकल कर कमरे में आ गया. धीरज को आता देख पूजा वहां से चली गई.

उस दिन के बाद से विजेत पूजा का आशिक बन गया. अब वह अकसर धीरज से मिलने के बहाने पूजा के घर आने लगा. पूजा का इस नाजुक उम्र में किसी लड़के के प्रति झुकाव स्वाभाविक था.

विजेत दिखने में हैंडसम था. उस के पहनावे, स्टाइलिश लुक से पूजा भी उसे मन ही मन चाहने लगी थी. जब भी विजेत घर आता तो पूजा चायपानी के बहाने उस के आगेपीछे घूमने लगती.

पूजा का भाई धीरज इस बात से अंजान था कि उस का दोस्त दोस्ती में विश्वासघात कर के उस की बहन पर बुरी नजर रख रहा है.

विजेत को जब भी मौका मिलता, धीरज की गैरमौजूदगी में पूजा से मिलने पहुंच जाता. पूजा के मम्मीपापा धीरज का दोस्त होने के नाते उसे भी अपने बेटे की तरह समझते थे.

उन्हें इस बात का जरा भी इल्म नहीं था कि धीरज से भी उम्र में बड़ा उस का दोस्त उन की मासूम बेटी को प्यार के जाल में फंसा रहा है.

पूजा और विजेत का प्यार आंखों ही आंखों में परवान चढ़ रहा था. सितंबर, 2019 की बात है. पूजा के मम्मीपापा और छोटा भाई लवकेश किसी काम से अपने रिश्तेदार के यहां गए हुए थे.

विजेत को पता था कि पूजा का भाई धीरज काम के सिलसिले में एक पार्टी से मिलने शहर से बाहर गया है. मौका देख कर वह पूजा के घर पहुंच गया. फिर वह उसे अपनी बाइक पर बैठा कर शहर घुमाने ले गया. शहर में घूमने के बाद दोनों ने एक पार्क में बैठ कर जी भर कर बातें कीं.

प्यार मनुहार भरी बातें करते हुए विजेत ने पूजा को अपनी बांहों में भर लिया. जवानी की दहलीज पर कदम रख रही पूजा को पहली बार किसी युवक के साथ इतने नजदीक आने का मौका मिला था.

इश्कमोहब्बत की इस फिसलन भरी राह पर वह अपने आप को संभाल न सकी. पार्क में झाडि़यों की ओट में उस दिन पहली बार दोनों ने प्यार के समंदर की अथाह गहराई में गोता लगाया.

विजेत ने पूजा को किस करते हुए कहा, ‘‘पूजा मैं तुम्हें दिलोजान से चाहता हूं और तुम से ही शादी करना चाहता हूं.’’

‘‘मगर विजेत ये काम इतना आसान नहीं है. हम दोनों अलगअलग जाति के हैं, इसलिए दुनिया हमारे प्यार की दुश्मन बन जाएगी. समाज और परिवार हमारी शादी की इजाजत नहीं देगा.’’ पूजा के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं.

‘‘प्यार किसी बंधन में बंध कर नहीं रह सकता पूजा.’’ विजेत ने उसे कस कर गले लगाते हुए कहा.

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‘‘विजेत तुम नहीं जानते, धीरज भैया को हमारे प्यार के बारे में पता चल गया तो वे तो मेरी जान ही ले लेंगे.’’ पूजा ने विजेत से अपने आप को छुड़ाते हुए कहा.

‘‘पूजा, दुनिया की कोई भी ताकत मुझे तुम से जुदा नहीं कर सकती.’’ विजेत ने पूजा को सीने से चिपकाते हुए कहा.

प्यार की दुनिया में खोए ये दो प्रेमी अच्छी तरह जानते थे कि प्यार की राह भले ही आसान हो, मगर शादी की राह कांटों की सेज से कम नहीं होगी.

उस दिन खूब मौजमस्ती कर दोनों अपनेअपने घर आ गए.

लेडी डौन बनने की चाहत : कैसा जाल बिछाती थी प्रिया

प्रिया सेठ. यही नाम है उस भोलीभाली और खूबसूरत चेहरे वाली लड़का का. वह चंद पलों में नौजवानों के दिल में उतर जाती है. अपनी इसी खूबसूरती से प्रिया हजारों लोगों को शिकार बना चुकी है. पुलिस के रिकौर्ड में प्रिया के खिलाफ  केवल 4 मामले दर्ज हैं. इन में एक हत्या, दूसरा एटीएम तोड़ने, तीसरा ब्लैकमेलिंग और चौथा पीटा एक्ट का.

वह पढ़ी लिखी है. राजस्थान के पाली जिले के छोटे से शहर फालना में नेहरू कालोनी की रहने वाली प्रिया के पिता अशोक सेठ सरकारी कौलेज में लेक्चरर हैं. मां अध्यापिका रही हैं. दादा सिरोही में प्रिंसिपल रहे. फूफा जोधपुर की यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. एक बहन और एक भाई है.

इंगलिश मीडियम से 82 प्रतिशत अंकों के साथ प्रिया ने फालना से 10वीं कक्षा पास की थी. फिर सीनियर सेकैंडरी में 78 प्रतिशत नंबर आए. मातापिता अपनी इस लाडली बड़ी बेटी को प्रोफेसर बनाना चाहते थे. इसलिए कौलेज की पढ़ाई के लिए 20 साल की उम्र में ही जयपुर भेज दिया. यह सन 2011 की बात है.

छोटे से शहर फालना से जयपुर आ कर प्रिया ने मानसरोवर कालोनी के एक निजी कौलेज में प्रवेश लिया तो उस की आंखों में प्रोफेसर बनने के सपने तैर रहे थे. पहले वह रिश्तेदार के घर पर ठहरी. कौलेज जाने के बाद जब भी मौका मिलता, वह जयपुर में घूमती. कभीकभी दिन ढले घर लौटती.

जल्दी ही वह जयपुर महानगर की चकाचौंध में खो गई और उन्मुक्त जीवन जीने के बारे में सोचने लगी, जिस में ना किसी की रोकटोक हो और ना ही कोई बंधन.

प्रिया की उन्मुक्तता में प्रोफेसर बनने का सपना धुंधला सा गया. वह रिश्तेदार का घर छोड़ कर मानसरोवर में ही पेइंगगेस्ट के रूप में रहने लगी. वैसे तो मातापिता उसे जयपुर में रहनेखाने और पढ़ाई के खर्च के लिए पैसे भेज देते थे, लेकिन उन पैसों से उस की मनचाही आवश्यकताएं पूरी नहीं हो पाती थीं. अपने शौक पूरे करने के लिए प्रिया को पैसों की जरूरत महसूस होने लगी. अकेले रहते हुए दौलत की चाह में वह कब अनैतिक काम करते हुए अपराध की दलदल में उतर गई, उसे खुद पता नहीं चला.

आज प्रिया के हाथ खून से रंगे हुए हैं. उस ने जयपुर में रहते हुए 5 साल के दौरान हर तरह के हथकंडे अपनाए. आलीशान फ्लैट में रहना, लग्जरी कार में घूमना, महंगी शराब पीना, गांजे की सिगरेट का नशा और मौजमस्ती. उस ने सब तरह की ऐश की. अपने हुस्न की झलक दिखाने के लिए वेबसाइट भी बनाई.

वह करोड़पति और अरबपति लोगों को अपने हुस्न के जाल में फांसने की फिराक में रहती थी. बहुत से नवधनाढ्य उस की अदाओं पर फिदा हुए. प्रिया ने उन को अपने गोरे बदन की चमक दिखाई और पैसे झटकने के बाद उन को ही झटक दिया.

पहली मुलाकात में ही अपनी मोहक मुस्कान दिखा कर वह 20-25 हजार रुपए आराम से झटक लेती थी. बीच में कुछ समय के लिए वह दिल्ली और नोएडा में जा कर रहने लगी थी, लेकिन वहां से जल्दी ही वापस जयपुर लौट आई.

अब वह जयपुर के व्यवसायी दुष्यंत शर्मा की हत्या के मामले में अपने बौयफ्रैंड और एक दोस्त के साथ सलाखों के पीछे है. 3 बार पहले भी वह गिरफ्तार हो चुकी है. उसे ना तो दुष्यंत की हत्या का मलाल है और ना ही कोई अपराधबोध.

प्रिया कुख्यात लेडी डौन बनना चाहती है. वह कहती है, ‘मैं ने दुनिया का कोई पहला मर्डर नहीं किया है.’ शायद उसे पता नहीं है कि कोई मर्डर पहला या आखिरी नहीं होता. प्रिया कहती है, ‘मुझे सिर्फ  दौलत चाहिए. मैं पैसे की बदौलत वे सब चीजें खरीदना चाहती हूं, जिस की मुझे ख्वाहिश है.’ वह यह भी कबूलती है कि 2 साल में उस ने डेढ़ करोड़ रुपया कमाया है.

प्रिया की घुमावदार राहें

प्रिया जितनी खूबसूरत है, उस की मेधावी लड़की से कातिल बनने और लेडी डौन बनने की तमन्ना रखने तक की कहानी उतनी ही घुमावदार है. अपनी तमन्नाओं को पूरा करने के लिए ही उस ने दुष्यंत का अपहरण कर लिया और फिरौती वसूलने के बाद भी उसे मौत के घाट उतार दिया.

जयपुर में शिवपुरी विस्तार झोटवाड़ा के रहने वाले रामेश्वर प्रसाद शर्मा सहकारिता विभाग में नौकरी करते हैं. उन का इकलौता बेटा दुष्यंत फ्लाई ऐश और बिल्डिंग मैटेरियल का काम करता था. दुष्यंत की शादी करीब 3 साल पहले विनीता से हुई थी. उन का करीब डेढ़ साल का एक बेटा है, जिस का नाम है कान्हा.

इसी 2 मई की शाम करीब 6 बजे दुष्यंत अपने घर पहुंचा था. इस के कुछ देर बाद ही उस के मोबाइल पर फोन आया तो वह परिवार वालों से यह कह कर कार में बैठ कर घर से निकला कि जरूरी काम है, निपटा कर आता हूं. दुष्यंत देर रात तक घर नहीं लौटा तो पिता रामेश्वर ने उस की तलाश की, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

दुष्यंत अगले दिन सुबह भी घर वापस नहीं लौटा तो परिवार वाले चिंतित हो गए. वे उस के कारोबारी दोस्तों और अन्य लोगों से पता करने लगे. इस बीच, सुबह करीब सवा 10 बजे रामेश्वर प्रसाद शर्मा के मोबाइल पर दुष्यंत का फोन आया. दुष्यंत ने मोबाइल पर ही रोते हुए पिता से कहा, ‘ये लोग मुझे मार देंगे या रेप के केस में फंसा देंगे. इन को पैसे दे दो.’

रामेश्वर प्रसाद बेटे की बात समझ पाते, इस से पहले ही दुष्यंत से एक युवती ने फोन छीन लिया और रामेश्वर प्रसाद से कहा, ‘दुष्यंत हमारे कब्जे में है. अभी आधे घंटे में 10 लाख रुपए इस के खाते में जमा करा दो, पुलिस को बताया तो इस को मार डालेंगे.’

युवती की बात सुन कर रामेश्वर प्रसाद समझ गए कि बेटा दुष्यंत किसी संकट में है. वे दुष्यंत को मारने की धमकी दिए जाने से घबरा गए. उन्होंने युवती से फोन पर गिड़गिड़ाते हुए कहा कि इतने पैसे तो हमारे पास नहीं हैं. अभी मैं 3 लाख रुपए दे सकता हूं. इस पर वह युवती गालियां देने लगी और तुरंत पैसे जमा कराने को कहा.

रामेश्वर प्रसाद ने करीब एक घंटे में 3 लाख रुपए का इंतजाम कर दुष्यंत के खाते में डलवा दिए. फिर दुष्यंत के फोन पर उस युवती को 3 लाख रुपए जमा कराने की सूचना दी. इस पर युवती ने वाट्सऐप पर 3 लाख रुपए की रसीद मंगवाई और बाकी रुपए जल्दी से जल्दी डालने को कहा.

इस बीच, दुष्यंत की पत्नी विनीता को पति के अपहरण और हत्या की धमकी की बात पता चली, तो उस ने अपने भाई को यह  बात बताई. विनीता के भाई ने पुलिस को सूचना दी.

दुष्यंत के अपहरण की सूचना पर पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) अशोक कुमार गुप्ता ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (पश्चिम) रतन सिंह, झोटवाड़ा के सहायक पुलिस आयुक्त आस मोहम्मद, करघनी थानाप्रभारी अनिल जसोरिया, झोटवाड़ा थानाप्रभारी गुर भूपेंद्र सिंह, सबइंसपेक्ट हेमंत व मानसिंह और कांस्टेबल सुरेश, अमन एवं प्रवीण की एक टीम गठित की.

इस पुलिस टीम ने दुष्यंत की तलाश की. उस की मोबाइल लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई गई. दुष्यंत के घरवालों, रिश्तेदारों, दोस्तों और कारोबारियों से पूछताछ की गई. दुष्यंत के मोबाइल की लोकेशन जयपुर में बजाजनगर, अनिता कालोनी के आसपास आ रही थी. इस पर पुलिस दोपहर करीब साढ़े 12 बजे अनिता कालोनी पहुंच गई और दुष्यंत व उस की कार को तलाशती रही, लेकिन कुछ पता नहीं चला.

पुलिस जांचपड़ताल में जुटी थी. उसे यह पता लग गया था कि दुष्यंत के अपहर्त्ताओं ने उस के बैंक खाते में रकम डलवाई है. इसलिए पुलिस उस के बैंक खाते पर भी नजर रखे हुए थी. इसी बीच, पता चला कि दुष्यंत के खाते से जयपुर में टोंक रोड पर नेहरू उद्यान के पास स्थित एक एटीएम से किसी युवती ने 20 हजार रुपए निकाले हैं.

एक तरफ  पुलिस की टीमें दुष्यंत को तलाश कर रही थीं. दूसरी ओर 3 मई की देर शाम जयपुर के ही आमेर थाना इलाके में दिल्ली बाईपास पर नई माता मंदिर के पास सुनसान जगह पर ट्रौली वाले सूटकेस में एक युवक की लाश बरामद हुई. मृतक के सिर पर चोट के निशान मिले. गले पर भी 4-5 निशान थे.

वह दुष्यंत ही था

जहां सूटकेस मिला, वहां एक कार के पहियों के निशान भी नजर आए. ट्रौली सूटकेस में लाश मिलने की सूचना पर पुलिस उपायुक्त (उत्तर) सत्येंद्र सिंह मौके पर पहुंचे. युवक के हाथपैर चुनरी व स्कार्फ से बंधे हुए थे. उस के कपड़ों की जेब में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से उस की शिनाख्त होती.

दूसरी ओर, पुलिस की एक टीम ने दुष्यंत की काल डिटेल्स के आधार पर कुछ मोबाइल नंबरों पर संपर्क किया तो पता चला कि दुष्यंत ने उन से पैसे मांगे थे, लेकिन वह पैसे लेने नहीं आया. एक मोबाइल नंबर पर पुलिस की बात दुष्यंत के दोस्त महेश से हुई.

महेश ने पुलिस को बताया कि दुष्यंत का एक युवती से प्रेमप्रसंग चल रहा था. वह युवती बजाजनगर अनिता कालोनी के ईडन गार्डन अपार्टमेंट में रहती है.

दुष्यंत की प्रेमिका का पता चलते ही झोटवाड़ा पुलिस 3 मई की रात अनिता कालोनी के ईडन गार्डन अपार्टमेंट स्थित 402 नंबर के फ्लैट पर पहुंची. वहां एक युवती और एक युवक कहीं जाने की तैयारी करते मिले. पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो वहां खून फैला हुआ था. दोनों से पूछताछ की गई, तो युवती का नाम प्रिया सेठ और युवक का नाम दीक्षांत कामरा पता चला. उन्होंने दुष्यंत का अपहरण करने के बाद उस की हत्या करने की बात बता दी.

दुष्यंत की हत्या होने का पता चलने पर मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारी सन्न रह गए. उन्होंने दुष्यंत की लाश के बारे में पूछा तो प्रिया व दीक्षांत ने बताया कि उन्होंने दुष्यंत की लाश एक ट्रौली सूटकेस में बंद कर के आमेर

इलाके में फेंक दी है. इस पर पुलिस ने दुष्यंत के परिजनों से लाश की शिनाख्त कराई. दुष्यंत की लाश मिलने के बाद मामला बेहद संगीन हो गया था.

पुलिस ने दुष्यंत के अपहरण और हत्या के मामले में प्रिया सेठ व दीक्षांत कामरा से पूछताछ के बाद एक दूसरे युवक लक्ष्य वालिया को भी हिरासत में ले लिया. बाद में तीनों को भादंसं की धारा 364ए एवं 302 के तहत गिरफ्तार कर लिया गया.

प्रिया के अपार्टमेंट में खड़ी दुष्यंत की कार भी बरामद कर ली गई. गिरफ्तार आरोपियों में दीक्षांत कामरा श्रीगंगानगर जिले के पदमपुर कस्बे में इंद्रा कालोनी और लक्ष्य वालिया श्रीगंगानगर के चावला चौक पुरानी आबादी का रहने वाला था.

ऊंचे सपनों की चाह वाले बने कातिल

दीक्षांत कामरा मुंबई में मौडलिंग करता था. वह आजकल प्रिया सेठ के साथ लिवइन रिलेशनशिप में जयपुर के ईडन गार्डन अपार्टमेंट में रह रहा था. दीक्षांत के पिता सरकारी स्कूल में हैडमास्टर हैं. लक्ष्य वालिया जयपुर में मालवीय नगर स्थित तनिश अपार्टमेंट में रहता था. उस के पिता जीवित नहीं हैं. मां सेल्स टैक्स विभाग में कर्मचारी है. प्रिया सेठ ने ईडन गार्डन अपार्टमेंट में करीब डेढ़ महीने पहले ही दिल्ली निवासी हर्ष कुमार यादव से 402 नंबर का फ्लैट किराए पर लिया था.

तीनों आरोपियों से पूछताछ में दुष्यंत के अपहरण और हत्या की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार है—

प्रिया सेठ सोशल मीडिया टिंडर ऐप पर एक्टिव थी. इसी साल फरवरी-मार्च महीने में इसी ऐप पर दुष्यंत का प्रिया से संपर्क हुआ था. दुष्यंत ने खुद को दिल्ली निवासी विवान कोहली बता कर प्रिया से चैटिंग शुरू की थी. चैटिंग करते हुए दोनों के बीच दोस्ती हो गई. फिर मिलनाजुलना और घूमनाफिरना भी होने लगा.

दुष्यंत ने प्रिया से खुद को विवान कोहली के रूप में दिल्ली का अरबपति व्यापारी बताया था. उस ने प्रिया से कहा था कि उस के बिजनैस का सालाना टर्नओवर 25 करोड़ रुपए से ज्यादा का है. दुष्यंत का रहनसहन करोड़पति व्यापारी जैसा था भी.

विवान कोहली को अरबपति व्यापारी समझ कर प्रिया उसे अपने हुस्न के जाल में फांसना चाहती थी. दरअसल, प्रिया के बौयफ्रैंड दीक्षांत कामरा पर काफी कर्जा हो गया था. इसलिए प्रिया ने दीक्षांत का कर्ज उतारने के लिए अपने दोस्तों के साथ मिल कर विवान कोहली को फांसने की योजना बनाई.

योजना के अनुसार, प्रिया ने 2 मई को विवान कोहली बने दुष्यंत को फोन कर के जयपुर में अपने फ्लैट पर बुलाया. दुष्यंत उस दिन शाम को प्रिया के ईडन गार्डन अपार्टमेंट स्थित फ्लैट पर पहुंचा तो प्रिया ने अपने दोस्तों दीक्षांत कामरा और लक्ष्य वालिया के साथ मिल कर उसे बंधक बना लिया.

दुष्यंत को बंधक बनाने के बाद प्रिया ने उस के कपड़ों की तलाशी ली, तो जेब में मिले दस्तावेजों से उसे पता चला कि वह दिल्ली का विवान कोहली नहीं, बल्कि जयपुर के झोटवाड़ा का रहने वाला दुष्यंत है. उस के बैंक खाते में भी ज्यादा रकम नहीं थी. इस पर तीनों ने मिल कर पहले दुष्यंत के परिजनों से फिरौती वसूलने की बात तय की. इसी के तहत 3 मई को सुबह करीब सवा 10 बजे दुष्यंत से उस के पिता रामेश्वर प्रसाद को फोन कर 10 लाख रुपए मांगे गए.

ऐसे लिखी गई खूनी स्क्रिप्ट

रामेश्वर प्रसाद ने बेटे दुष्यंत के खाते में 3 लाख रुपए डाल दिए, तो प्रिया सेठ ने कुछ देर बाद ही अपने फ्लैट से कुछ दूर स्थित एटीएम से 20 हजार रुपए निकाल भी लिए. बाद में प्रिया और उस के दोस्तों को यह डर लगा कि दुष्यंत को छोड़ देने से उन का भांडा फूट जाएगा.

इसलिए 3 मई की दोपहर में फ्लैट पर ही उन्होंने चाकू से गोद कर दुष्यंत को मार डाला. फिर उस के हाथपैर बांध दिए. इस के बाद ये लोग दुष्यंत के शव को एक ट्रौली सूटकेस में रख क र दुष्यंत की ही कार से उसी दिन दोपहर को आमेर इलाके में दिल्ली बाईपास पर फेंक आए.

प्रिया के लालच ने रामेश्वर प्रसाद शर्मा के घर का आखिरी चिराग भी बुझा दिया. 2 बेटों की अर्थियों को कंधा दे चुके रामेश्वर प्रसाद की आंखें पथरा गईं. उन का सबसे बड़ा बेटा हिमांशु 30 साल पहले महज डेढ़ साल की उम्र में ही चल बसा था. इस के बाद 2 बेटे दुष्यंत और पीयूष पैदा हुए, तो उन की जिंदगी फिर पटरी पर लौटने लगी.

लेकिन करीब 6 साल पहले सड़क दुर्घटना में पीयूष की मौत हो गई थी. दुखों का पहाड़ छंटा भी नहीं था कि इन लोगों ने दोस्त बन कर अपने लालच के लिए दुष्यंत को मौत की नींद सुला कर रामेश्वर के बुढ़ापे का आखिरी सहारा भी छीन लिया.

सन 2011 में कालेज की पढ़ाई करने जयपुर आई प्रिया अपनी रूममेट के साथ रहते हुए देह व्यापार से जुड़े गिरोह के संपर्क में आई थी. पहली बार जुलाई 2014 में जयपुर के श्याम नगर थाना इलाके में वह देह व्यापार में पकड़ी गई थी.

इस के 5 महीने बाद ही 30 नवंबर, 2014 की रात वह मानसरोवर इलाके में रजत पथ पर एक एटीएम तोड़ने के प्रयास में अपने साथी अनिल जांगिड़ के साथ पकड़ी गई. उस समय वह जयपुर में गजसिंहपुरा के सुंदर नगर में किराए पर रहती थी.

अनिल जांगिड़ अजमेर में किशनगढ़ के पास कासिर गांव का रहने वाला है. वह जयपुर में गजसिंहपुरा में रहता था और फर्नीचर का काम करता था. प्रिया ने एक दिन अनिल को अपने कमरे का फर्नीचर ठीक करने के लिए बुलाया था. इस के बाद दोनों मिलने लगे. प्रिया ने अनिल को मोटा पैसा कमाने का झांसा दिया और एटीएम लूटने की योजना बनाई.

कैसेकैसे खेल खेले प्रिया ने

योजनानुसार वे रैकी करने के बाद गैस कटर और जरूरी औजार ले कर टैक्सी से बैंक औफ  इंडिया का एटीएम लूटने रजतपथ पर पहुंचे.

टैक्सी उन्होंने दूर खड़ी कर दी. उन्होंने गैस कटर से एटीएम को काट भी दिया. इस दौरान पुलिस का मोटरसाइकिल गश्ती दल आ गया. पुलिस को देख कर प्रिया भाग गई. पुलिस ने अनिल जांगिड़ को मौके पर ही पकड़ लिया. कई घंटे बाद मोबाइल लोकेशन के आधार पर पुलिस ने प्रिया सेठ को भी गिरफ्तार कर लिया.

एटीएम लूटने के मामले में जमानत पर छूटने के बाद प्रिया जयपुर छोड़ कर दिल्ली चली गई. वहां नोएडा में रहते हुए जयपुर के रहने वाले गजराज सिंह से उस की जानपहचान हुई. इस दौरान प्रिया व गजराज सिंह आपस में मिलनेजुलने लगे. बाद में प्रिया सेठ वापस जयपुर आ गई.

इसी साल जनवरी में जयपुर के वैशाली नगर में रहने वाले गजराज सिंह ने प्रिया के खिलाफ  वैशाली नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी. रिपोर्ट में कहा था कि 4 महीने पहले प्रिया ने गजराज को रेप केस में फंसाने की धमकी दे कर 10 लाख रुपए मांगे थे और कहा था कि पैसे नहीं दिए तो तेजाब फेंक कर जलवा भी दूंगी.

इस से घबरा कर गजराज ने प्रिया को साढ़े सात लाख रुपए दे दिए थे. पूरे 10 लाख रुपए नहीं मिलने पर वह आए दिन गजराज के घर आ कर हंगामा करने की धमकी देने लगी. तब गजराज ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई. गजराज की रिपोर्ट पर वैशाली नगर थाना पुलिस ने इसी साल 8 मार्च को प्रिया को गिरफ्तार किया था.

पुलिस की पूछताछ में सामने आया कि प्रिया अनैतिक काम के लिए औनलाइन एस्कौर्ट सेवा भी चलाती थी. इस के अलावा ऐप की मदद भी लेती थी.

औनलाइन संपर्क होने के बाद प्रिया कार से अपने ड्राइवर गणेश के साथ ग्राहक के पास पहुंचती और वहां अनैतिक काम का 10 से 50 हजार रुपए में सौदा कर पैसे ले लेती. इस के बाद पैसे गाड़ी में रख कर आने की बात कह कर वह ड्राइवर के साथ अपनी कार से भाग जाती थी.

प्रिया ने पैसे के लिए सोशल मीडिया को बनाया मीडियम

सोशल मीडिया के जरिए प्रिया लोगों से दोस्ती करती और मिलने के लिए फ्लैट पर बुलाती. वह पहले महंगी शराब पिला ती और आवभगत करने के बाद खुद ही अपने कपड़े फाड़ कर रेप केस में फंसाने की धमकी देती और पैसों की डिमांड करती. पीडि़त लोग मजबूरन उसे पैसे दे कर पीछा छुड़ाते. लोकलाज के भय से पुलिस में शिकायत भी नहीं करते.

प्रिया सेठ ने इस तरह की सैकड़ों वारदातें की हैं, लेकिन वे पुलिस के रिकौर्ड में कहीं दर्ज नहीं हैं, क्योंकि पीडि़त लोगों ने ऐसे मामलों की शिकायत ही नहीं की.

प्रिया इतनी शातिर है कि जब उस ने अपने साथियों के साथ मिल कर 3 मई को दुष्यंत की हत्या की थी, तभी उस के पास एक व्यक्ति का अनैतिक काम के लिए फोन आया. उस व्यक्ति ने प्रिया को रेलवे स्टेशन के पास नामचीन होटल में बुलाया. प्रिया कैब ले कर उस होटल में पहुंच गई और उस व्यक्ति से रुपए ले कर भाग आई.

पूछताछ में सामने आया कि प्रिया और दीक्षांत का एक महीने का खर्चा करीब 2 लाख रुपए है. खाने से पहनने तक उन के लग्जरी शौक हैं. दीक्षांत 80 हजार के विदेशी ब्रांड के जूते और 45 हजार की घड़ी पहनता है. कपड़े भी ऐसे ब्रांड के पहनता है, जिन के स्टोर राजस्थान में नहीं हैं. प्रिया भी 45 हजार रुपए कीमत के सैंडल पहनती थी. उसे महंगे कपड़े, परफ्यूम, सौंदर्य प्रसाधन के अलावा कीमती शराब व नशीली सिगरेटों का शौक था. वह हमेशा हवाई जहाज में सफर करती थी.

यह भी विडंबना है कि प्रिया और उस का बौयफ्रैंड दीक्षांत लोगों को ही नहीं, एकदूसरे को भी धोखा दे रहे थे. वैसे तो दोनों ने अपने हाथों पर एकदूसरे के नाम के टैटू बनवा रखे थे. दोनों के ही कई लोगों से संबंध थे. प्रिया ने दीक्षांत का पासपोर्ट भी छीन कर अपने पास रखा हुआ था.

एक बार दीक्षांत प्रिया को छोड़ कर गंगानगर चला गया, तो प्रिया ने उसे रेप केस में फंसाने की धमकी दे कर ब्लैकमेल भी किया था. बाद में दीक्षांत वापस जयपुर आ कर प्रिया के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रहने लगा था. प्रिया ही उस का खर्च उठाती थी.

लक्ष्य इन दोनों का दोस्त था. ये तीनों मिल कर शराब पार्टी करते थे. 2 मई को भी लक्ष्य वालिया शराब पीने प्रिया के फ्लैट पर आया था. वहां दुष्यंत से मोटी रकम वसूलने की योजना बनाई गई. बाद में अगले दिन प्रिया और दीक्षांत का साथ देते हुए उस ने दुष्यंत की हत्या में सहयोग किया. दुष्यंत की लाश ठिकाने लगाने भी वह कार से प्रिया और दीक्षांत के साथ गया था.

दीक्षांत का ईवौलेट अकाउंट है. आरोपियों का दुष्यंत के बैंक खाते से 3 लाख रुपए ईवौलेट में ट्रांसफर कराने का इरादा था. यह काम करने से पहले ही वे पुलिस की पकड़ में आ गए. आरोपियों का इरादा दुष्यंत की कार ले कर जयपुर से बाहर भाग जाने का भी था. इस के लिए उन्होंने फरजी नंबर प्लेट भी तैयार करवा ली थी, लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

पुलिस ने तीनों आरोपियों को 5 मई को अदालत में पेश कर 11 मई तक रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में पुलिस ने प्रिया के फ्लैट से बैग, चाकू, खून से सने कपड़े, चादर, रस्सियां और सूटकेस आदि बरामद किए. इस के अलावा शराब की बोतलें, कागज में लिपटी नशीली सिगरेट आदि भी मिलीं.

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी – भाग 1

दिल्ली के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गौरव अरोड़ा नोएडा की एक रियल एस्टेट कंपनी में बढि़या नौकरी करते थे. लेकिन पिछले 2 सालों से वह काफी परेशान थे. इस की वजह यह थी कि जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई, तब से रियल एस्टेट के क्षेत्र में मंदी आ गई है. पहले जहां प्रौपर्टी की कीमतें आसमान छू रही थीं, अब वह स्थिर हो चुकी हैं. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से इनवैस्टर भी अब प्रौपर्टी में इनवैस्ट करने से कतरा रहे हैं.

इस का सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन की रोजीरोटी रियल एस्टेट के धंधे से चल रही थी. गौरव को हर महीने अपनी कंपनी का कुछ टारगेट पूरा करना होता था. पहले तो वह उस टारगेट को आसानी से पूरा कर लेता था, लेकिन प्रौपर्टी के क्षेत्र में आई गिरावट से अब बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा था.

बच्चों की पढ़ाई के खर्च के अलावा उसे घर के रोजाना के खर्च पूरे करने में खासी परेशानी हो रही थी. एक दिन बौस ने उसे अपनी केबिन में बुला कर पूछा, ‘‘गौरव, यहां नौकरी के अलावा तुम और कोई काम करते हो?’’

‘‘नहीं सर, समय ही नहीं मिलता.’’ गौरव ने कहा.

‘‘देखो, मैं तुम्हें एक काम बताता हूं, जिसे तुम कहीं भी और दिन में कभी भी कर सकते हो. काम इतना आसान है कि तुम्हारी पत्नी या बच्चे भी घर बैठे कर कर सकते हैं.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, ऐसा क्या काम है, जो कोई भी कर सकता है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘नोएडा की ही एक कंपनी है सोशल ट्रेड. इस कंपनी के अलगअलग पैकेज हैं. आप जो पैकेज लेंगे, कंपनी उसी के अनुसार आप को लाइक करने को देगी. हर लाइक का 5 रुपए मिलता है.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ समझा नहीं.’’ गौरव ने कहा.

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से समझाता हूं.’’ कह कर बौस ने एक खाली पेपर निकाला और उस पर समझाने लगे, ‘‘देखो, कंपनी के 4 तरह के प्लान हैं. पहला है एसटीपी-10, दूसरा है एसटीपी-20, तीसरा है एसटीपी-50 और चौथा है एसटीपी-100.

‘‘एसटीपी-10 का पैकेज 5750 रुपए का है. इस में तुम्हें रोजाना 10 लाइक करनी होंगी. एसटीपी-20 का पैकेज 11500 रुपए का है. इस में तुम को रोजाना 20 लाइक करने को मिलेंगे. एसटीपी-50 के पैकेज में 28,750 रुपए जमा कर के 50 लाइक प्रतिदिन करने को मिलेंगे और एसटीपी-100 के पैकेज में 57,500 रुपए जमा कर के 125 लाइक तुम्हारी आईडी पर करने को आएंगे.

‘‘पैकेज की इस धनराशि में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल है. यह लाइक शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़ कर एक साल तक आएंगे. हर लाइक के 5 रुपए मिलेंगे. तुम्हें जो इनकम होगी, उस में से सरकार के नियम के अनुसार टैक्स भी काटा जाएगा.

‘‘तुम्हें फायदे की एक बात बताता हूं. तुम जिस पैकेज में जौइन करोगे, 21 दिनों के अंदर उसी पैकेज में 2 और लोगों को जौइन करा दिया तो तुम्हारी आईडी बूस्टर हो जाएगी. यानी उस आईडी पर दोगुने लाइक आएंगे. अगर और ज्यादा कमाई करनी है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जौइन कराओ, इस से डाइरेक्ट इनकम के अलावा बाइनरी इनकम भी मिलेगी.’’

बौस ने आगे बताया, ‘‘कंपनी हंडरेड परसेंट लीगल है. बिना किसी डर के तुम यहां काम कर के अच्छी कमाई कर सकते हो. यकीन न हो तो तुम मेरी बैंक पासबुक देख सकते हो.’’ इतना कह कर बौस ने गौरव को अपनी पासबुक दिखाई.

गौरव ने पासबुक देखी तो सचमुच उस में कंपनी की तरफ से कई हजार रुपए आने की एंट्री थी. उसे यह स्कीम अच्छी लगी. उसे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है, जो घर पर कोई भी कर सकता है. उस ने बौस से कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जैसे ही पैसों का जुगाड़ हो जाएगा, वह काम शुरू कर देगा.

घर पहुंचने के बाद गौरव के दिमाग में बौस द्वारा दिखाया गया सोशल ट्रेड कंपनी का प्लान ही घूमता रहा. उस ने सोचा कि अगर वह 57,500 रुपए जमा कर देगा तो 625 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे. सब कटनेकटाने के बाद 1,33,594 रुपए मिलेंगे यानी एक साल में उस के पैसे दोगुने से अधिक हो जाएंगे.

गौरव ने इस बारे में पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि इस तरह की कई कंपनियां लोगों के पैसे ले कर भाग चुकी हैं. इन के चक्कर में न पड़ा जाए तो बेहतर है. वैसे आप की मरजी. गौरव ने पत्नी की सलाह को अनसुना कर दिया. सोचा कि इसे कंपनी के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए यह ऐसी बातें कर रही है. बहरहाल उस ने ठान लिया कि वह यह काम जरूर करेगा. अगले दिन उस के एक नजदीकी दोस्त ने भी सोशल ट्रेड के प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह खुद पिछले एक महीने से इस प्लान से अच्छी इनकम हासिल कर रहा है.

दोस्त ने गौरव से भी सोशल ट्रेड जौइन करने को कहा. गौरव को सोशल ट्रेड में काम करना ही था, इसलिए उस ने बौस के बजाय दोस्त के साथ जुड़ कर सोशल ट्रेड में काम करना उचित समझा.

गौरव के पास कुछ पैसे बैंक में थे, कुछ पैसे बैंक से लोन ले कर उस ने 1,15,000 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर 2 आईडी ले लीं. उस की आईडी के बाईं साइड में उस की एक और आईडी लग चुकी थी. अगर उस के दाईं साइड में 57,500 रुपए की एक आईडी और लग जाती तो उस की मुख्य आईडी पर बूस्टर लग सकता था.

इसलिए गौरव इस फिराक में था कि 57,500 रुपए की एक आईडी किस की लगवाई जाए. उस ने अपने बड़े भाई कपिल अरोड़ा को सोशल ट्रेड के प्लान की इनकम के बारे में बताया. लालच में कपिल भी तैयार हो गया और उस ने भी 25 जनवरी, 2017 को 57,500 रुपए जमा करा दिए.

कपिल अरोड़ा की आईडी लगते ही गौरव की मुख्य आईडी बूस्टर हो गई और उस पर 125 के बजाए 250 लाइक आने लगे, जिस से उसे रोजाना 1250 रुपए की इनकम होने लगी. गौरव ने पेमेंट मोड 15 दिन का रखा था. 23 जनवरी, 2017 को उसे पहला पेआउट 4800 रुपए का मिला. कपिल की आईडी लग जाने के बाद उसे अगला पेआउट इस से डबल आने की उम्मीद थी, पर अगले 15 दिनों बाद उस का पेआउट नहीं आया.

यह बात गौरव ने अपने उस दोस्त से कही, जिस ने उसे जौइन कराया था. दोस्त ने उसे बताया कि कंपनी में अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, इसलिए सभी के पेमेंट रुके हुए हैं. चिंता की कोई बात नहीं है, जो भी पेमेंट इकट्ठा होगा, वह सारा मिल जाएगा. यही नहीं, उस ने गौरव से कहा कि वह अपनी टीम बढ़ाए, जिस से इनकम बढ़ सके.

गौरव रोजाना अपनी आईडी पर आने वाले लाइक करता रहा. चूंकि उस का पेआउट नहीं आ रहा था, इसलिए उस ने और किसी को सोशल ट्रेड में जौइन नहीं कराया. उस का भाई कपिल भी अपनी आईडी पर आने वाले 125 लाइक रोजाना करता रहा. गौरव और कपिल कंपनी के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस भी गए.

उन की तरह अन्य सैकड़ों लोग वहां अपनी इसी समस्या को ले कर आजा रहे थे. सभी को यही बताया जा रहा था कि आईटी एक्सपर्ट सिस्टम को अपग्रेड करने में लगे हुए हैं. सोशल ट्रेड कंपनी से लाखों लोग जुड़े थे. उन में से अधिकांश के मन में इसी बात का संशय था कि पता नहीं कंपनी उन का रुका हुआ पेआउट देगी या नहीं. बहरहाल बड़े लीडर्स और कंपनी की ओर से परेशानहाल लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा था.

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सूरजपुर के रहने वाले दिनेश सिंह और पूर्वी दिल्ली के आजादनगर की रहने वाली पूजा गुप्ता ने भी दिसंबर, 2016 में अलगअलग 57,500 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर आईडी ली थीं. ये भी रोजाना अपनी आईडी पर 125 लाइक करते थे. जौइनिंग के एक महीना बाद भी इन को इन के किए गए लाइक का पैसा नहीं मिला तो इन्हें भी चिंता होने लगी. न तो इन्हें अपने अपलाइन से और न ही कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब मिल रहा था.

थकहार कर दिनेश सिंह ने 31 जनवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के थाना सूरजपुर में कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस की जांच एसआई मदनलाल को सौंपी गई. पेआउट न मिलने से असंतुष्ट कई लोगों ने पुलिस और जिला प्रशासन से शिकायतें करनी शुरू कर दी थीं. सोशल ट्रेड कंपनी के खिलाफ  ज्यादा शिकायतें मिलने पर पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया.

आनंदपाल एनकाउंटर : सियासी मोहरे की मौत

समय बदल गया, लोकतंत्र के रूप में स्वतंत्र भारत के उदय होने के साथ ही सत्ता पर कब्जा पाने के लिए तिकड़मी नेताओं ने राजनीति की नई बिसात बिछा कर देश में छलकपट का खेल शुरू कर दिया था. फर्क सिर्फ इतना रहा कि सत्ता को हासिल करने के लिए छलकपट करने वाले चेहरे और कथानक बदल गए. आज की राजनीति के दौर में धार्मिक उन्माद भरना और अपराधियों का जातीयकरण कर के उन्हें राजनैतिक संरक्षण देना आज के नेताओं की राजनीति का प्रमुख हिस्सा बन गया है. देश में साफसुथरी राजनैतिक मूल्यों के आधार पर आज राजनीति करने वाले नेता कम ही रहे हैं.

राजनीति के शिखर पर पहुंचने की जल्दी में राजनीति का माफियाकरण हो गया है. देश में बिहार के धनबाद जिले से कोयला माफिया के रूप में बाहुबली नेताओं के राजनीति में आने की शुरुआत हुई थी, जो धीरेधीरे पूरे देश में फैल गई. उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में भी बाहुबली अपराधियों ने चुनाव लड़ कर राजनीति में भागीदारी हासिल कर ली.

पहले जहां नेता अपराधियों का इस्तेमाल कर के चुनाव जीतते थे, अब अपराधी खुद ही बाहुबल, धनबल से चुनाव जीत कर सांसद और विधायक बनने लगे हैं. राजनेताओं द्वारा भष्मासुर अपराधी पैदा करने की रीति राजस्थान के नेताओं में कम ही रही है.

अन्य राज्यों की अपेक्षा शांत माने जाने वाले राजस्थान में भी इधर नेताओं ने अपना हित साधने के लिए अपनीअपनी जाति के अपराधियों को संरक्षण देना शुरू कर दिया है. राजस्थान की जाट जाति मूलरूप से खेतीकिसानी करने वाली जाति मानी जाती है, जबकि राजपूत शासक और सामंत रहे हैं, जिस की वजह से जाट जाति राजपूतों की दबंगई का शिकार बनती रही है.

आजादी के बाद जाट कांग्रेस के समर्थक बन गए थे, जबकि राजपूत जागीरदारी छिनने की वजह से कांग्रेस के घोर विरोधी रहे हैं. राजस्थान के शेखावाटी, मारवाड़ अंचल में कांग्रेस की सरकारों के साथ मिल कर जाटों ने अपनी राजनीति खूब चमकाई. समूचे शेखावाटी, मारवाड़ इलाके में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जाट विधायक और सांसद का चुनाव जीतते रहे हैं.

यही वजह रही कि भाजपा ने कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए राजपूत, बनिया और ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचा. जाति का यह नया समीकरण भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब भी रहा. इस में यूनुस खान के आ जाने से कुछ मुसलिमों का भी समर्थन मिल गया. यूनुस खान के विधानसभा क्षेत्र डीडवाना में मुसलिम, राजपूत और जाटों के निर्णायक वोट थे. इन में राजपूतों और मुसलिमों को जोड़ कर यूनुस खान चुनाव जीत कर विधायक बन गए. युनूस खान के विधानसभा क्षेत्र में रूपाराम डूडी जाटों के दबंग नेता रहे हैं. उन के समय में डीडवाना विधानसभा क्षेत्र में जाट जाति के अपराधियों का बोलबाला रहा.

जाटों की दबंगई खत्म करने और राजपूतों में अपना प्रभाव जमाने के लिए यूनुस खान को एक दबंग राजपूत की जरूरत थी. उसी बीच उन के इलाके में राजपूतों में आनंदपाल सिंह अपराधी के रूप में उभरा. अपराधी प्रवृत्ति के जीवनराम गोदारा को कांग्रेस के जाट नेताओं का खुला संरक्षण मिला था.

लेकिन यूनुस खान ने आनंदपाल सिंह के बल पर क्षेत्र के जाटों की दबंगई को खत्म कर के नागौर, चुरू और झुंझनू में राजपूत, मुसलिम, बनियों और ब्राह्मणों का गठजोड़ कर इन जिलों में भाजपा को स्थापित करने के लिए आनंदपाल सिंह से मिल कर दिनदहाड़े जीवनराम गोदारा की हत्या करा दी.

इस के बाद यूनुस खान ही नहीं, नागौर और चुरू जिलों के भाजपा के राजपूत नेता खुल कर आनंदपाल सिंह को राजनीतिक संरक्षण देने लगे. आनंदपाल की गुंडई की बदौलत मकराना की मार्बल खदानों पर कब्जे करने से ले कर जमीनों पर कब्जे करने के मामलों में यूनुस खान के परिवार वालों के नामों की धमक पूरे राजस्थान में सुनी जाने लगी. सन 2013 के विधानसभा चुनाव में आनंदपाल सिंह ने खुल कर यूनुस खान को चुनाव जिताने में मदद की. चूंकि यह कहानी आनंदपाल सिंह की है, इसलिए पहले उस के बारे में जान लेना जरूरी है.

बात 27 जून, 2006 की है. राजस्थान के जिला नागौर के कस्बा डीडवाना का बाजार खुला हुआ था. मानसून ने दस्तक दे दिया था. सुबह से हलकी बूंदाबांदी हो रही थी. दोपहर 2 बजे के करीब कस्बे की गोदारा मार्केट की दुकान ‘पाटीदार बूटहाउस’ पर 4 लोग बैठे चाय पी रहे थे. उसी समय संदिग्ध लगने वाली 2 गाडि़यां दुकान के सामने आ कर रुकीं. उन में से 6 लोग उतरे. कोई कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उन्होंने हथियार निकाल कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

उन 6 लोगों में 6 फुट लंबा एक दढि़यल नौजवान भी था. सब से पहले उसी ने अपनी 9 एमएम पिस्तौल निकाल कर चाय पी रहे उन 4 लोगों में से सामने बैठे हट्टेकट्टे आदमी के सीने पर गोली दागी थी.

गोली चलाने वाले उस दढि़यल नौजवान का नाम आनंदपाल सिंह था और जिस हट्टेकट्टे आदमी के सीने में उस ने गोली दागी थी, उस का नाम जीवनराम गोदारा था.

सन 1992 में देश में राम मंदिर आंदोलन के समय नागौर की लाडनूं तहसील के गांव सांवराद के रहने वाले पप्पू उर्फ आनंदपाल सिंह की शादी थी. वह रावणा राजपूत बिरादरी से था. राजस्थान में सामंती काल में राजपूत पुरुष और गैरराजपूत महिलाओं की संतान को रावणा राजपूत कहा जाता है. इसलिए राजपूत इस बिरादरी को हिकारत की नजरों से देखते हैं.

चूंकि पप्पू असली राजपूत नहीं था, इसलिए बारात निकलने से पहले ही गांव के असली राजपूतों ने चेतावनी दे रखी थी कि अगर दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा तो अंजाम ठीक नहीं होगा. क्योंकि घोड़ी पर सिर्फ असली राजपूत ही चढ़ सकता है.

चूंकि पप्पू घोड़ी पर चढ़ कर ही बारात निकालना चाहता था, इसलिए उस ने अपने एक दोस्त को याद किया, जिस का नाम था जीवनराम गोदारा. उस समय वह डीडवाना के बांगड़ कालेज का छात्रनेता हुआ करता था. जीवनराम खुद बारात में पहुंचा और अपने रसूख का इस्तेमाल कर के पप्पू को घोड़ी पर चढ़ा कर शान से बारात निकाली.

राजपूतों का ऐतराज अपनी जगह रह गया. इस के बाद दोनों में गाढ़ी दोस्ती हो गई. अब यहां सवाल यह उठता है कि पप्पू उर्फ आनंदपाल ने अपने ऐसे दोस्त जीवनराम गोदारा को क्यों मारा? दरअसल, यह मदन सिंह राठौड़ की हत्या का बदला था.

कहा जाता है कि कुछ महीने पहले फौज के जवान मदन सिंह की हत्या जीवनराम गोदारा ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि जीवनराम राह चलती लड़कियों को छेड़ता था, जिस का मदन सिंह ने विरोध किया था. हत्या का तरीका भी बड़ा भयानक था. सिर पर पत्थर की पटिया से मारमार कर मदन सिंह को खत्म किया गया था.

इस हत्या ने जातीय रूप ले लिया था और सारा मामला राजपूत बनाम जाट में तब्दील हो गया था. पप्पू ने राजपूतों के मान के लिए जीवनराम की हत्या कर बदला ले लिया था. उसी पप्पू को, जिसे जीवनराम ने घोड़ी चढ़ाया था, लोग आनंदपाल सिंह के नाम से जानने लगे थे. उस के बाद वही आनंदपाल राजस्थान के माफिया इतिहास में मिथक बन गया.

आनंदपाल सिंह ऐसे ही माफिया नहीं बना था. वह पढ़नेलिखने में ठीक था. उस ने बीएड किया था. उस के पिता हुकुम सिंह चाहते थे कि वह सरकारी स्कूल में अध्यापक हो जाए. उस की शादी भी हो गई थी.

घर वालों ने उसे लाडनूं में एक सीमेंट एजेंसी दिलवा दी थी. इस की वजह यह थी कि घर वाले चाहते थे कि प्रतियोगी परीक्षाओं के साथसाथ वह अपना खर्चा भी निकालता रहे.

लेकिन आनंदपाल सिंह राजनीति में जाना चाहता था. सन 2000 में जिला पंचायत के चुनाव हुए. उस ने पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और जीत भी गया. अब पंचायत समिति के प्रधान का चुनाव होना था. आनंदपाल सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भर दिया. उस के सामने था कांग्रेस के कद्दावर नेता हरजीराम बुरड़क का बेटा जगन्नाथ बुरड़क.

यह चुनाव आनंदपाल मात्र 2 वोटों से हार गया. लेकिन अनुभवी नेता रहे हरजीराम की समझ में आ गया कि यह नौजवान आगे चल कर उस के लिए खतरा बन सकता है. कांग्रेस सरकार में कृषि मंत्री रहे थे हरजीराम बुरड़क.

नवंबर, 2000 में पंचायत समिति की सहायक समितियों का चुनाव था. अब तक आनंदपाल और हरजीराम के बीच तकरार काफी बढ़ चुकी थी. कहा जाता है कि सबक सिखाने के लिए हरजीराम ने आनंदपाल के खिलाफ कई झूठे मुकदमे दर्ज करवा कर उसे गिरफ्तार करवा दिया.

तभी पुलिस ने आनंदपाल सिंह को ऐसा परेशान किया कि उस के कदम अपराध की दुनिया की ओर बढ़ गए. इस के बाद तो किसी की हत्या करना आनंदपाल के लिए खेल बन गया.

सीकर का श्री कल्याण कालेज स्थानीय राजनीति की पहली पाठशाला माना जाता है, जहां वामपंथी संगठन एसएफआई का दबदबा था. इस संगठन में जाटों की पकड़ काफी मजबूत थी. सन 2003 में जब वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकारी बनी तो यहां के छात्र नेता रह चुके कुछ नौजवान छात्र नेता राजनीतिक शह पा कर अपराध की डगर पर चल पड़े.

देखते ही देखते कई छात्र नेता शराब और भूमाफिया बन गए. ऐसे में एक नौजवान तेजी से उभरा, जिस का नाम था गोपाल फोगावट. गोपाल एसके कालेज में पढ़ते समय बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी का कार्यकर्ता हुआ करता था. वह शहर के एसके हौस्पिटल में मेल नर्स भी था. उसी बीच सीपीएम के छात्र संगठन एसएफआई के कुछ लड़के गोपाल के करीब आ कर अवैध शराब की तस्करी में जुट गए. सीपीएम ने उन लड़कों को संगठन से बाहर निकाल दिया. उन में एक लड़का था राजू ठेहट. राजू का ही एक सहयोगी और दोस्त था बलबीर बानूड़ा. सन 2004 में राजू ने पैसे के लेनदेन को ले कर बलबीर के साले विजयपाल की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी हो गई.

राजू ठेहट को गोपाल फोगावट का संरक्षण मिला हुआ था. बलबीर बानूड़ा उस के सामने काफी कमजोर पड़ रहा था. तब उस ने बगल के जिले नागौर में अपनी धाक जमा रहे माफिया आनंदपाल सिंह से हाथ मिला लिया. अब बलबीर को उस मौके का इंतजार था, जब वह अपने साले की मौत का बदला ले सके. उन्हें यह मौका मिला 5 अप्रैल, 2006 को.

गोपाल फोगावट किसी शादी में शामिल होने के लिए अपने गांव तासर बड़ी जा रहा था. इस के लिए उस ने पहली बार सूट सिलवाया था. वह हौस्पिटल के पास ही स्थित सेवन स्टार टेलर्स की दुकान पर अपना सूट लेने पहुंचा.

जैसे ही गोपाल सूट का ट्रायल लेने के लिए ट्रायल रूम में घुसा, बलबीर बानूड़ा और उस के साथियों ने दुकान में घुस कर गोपाल को एक के बाद एक कर के 8 गोलियां मार दीं. गोलियां मार कर बलबीर बाहर निकल रहा था तो उसे लगा कि गोपाल फोगावट में अभी जान बाकी है. उस ने लौट कर 2 गोलियां उस के सिर में मारीं.

इस वारदात में आनंदपाल सिंह बलबीर के साथ था. धीरेधीरे आनंदपाल सिंह के गैंग ने शेखावाटी और मारवाड़ के बड़े हिस्से में शराब तस्करी और जमीन के अवैध कब्जे में अपनी धाक जमा ली. इस के बाद की कहानी में बस इतना ही कहा जा सकता है कि हमेशा एके47 ले कर चलने वाले इस गैंगस्टर को पकड़ने के लिए राजस्थान पुलिस को 3 हजार जवान तैनात करने पड़े. इन जवानों को खास किस्म की ट्रेनिंग भी दी गई थी. इसी के साथ उस पर 5 लाख का इनाम भी घोषित किया गया था.

वसुंधरा राजे जब पहली बार सत्ता में आई थीं, तब उन की छवि बाहरी नेता के रूप में थी. हालांकि उन की शादी राजस्थान के धौलपुर राजघराने में हुई थी. राजस्थान में राजपूतों की नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी. आज राजपूत समुदाय वसुंधरा के पक्ष में खड़ा है. उन के सब से भरोसेमंद माने जाने वाले नेताओं में राजेंद्र सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह खींवसर हैं. ये दोनों नेता राजपूत हैं.

आनंदपाल सिंह राजपूत नौजवानों में काफी लोकप्रिय था. क्योंकि जाटों के खिलाफ संघर्ष का वह प्रतीक बन चुका था. नागौर जिले के मुंडवा विधानसभा क्षेत्र के विधायक हनुमान बेनीवाल राज्य की मुख्यमंत्री के धुर विरोधी माने जाते हैं.

आनंदपाल की बदौलत यूनुस खान हनुमान बेनीवाल पर खासा नियंत्रण पाने में सफल रहे. यूनुस खान मंत्री के रूप में बीकानेर जेल में बंद आनंदपाल से निजी रूप से मिलने पहुंचे थे, जिस से राज्य की राजनीति में तीखी प्रतिक्रिया  हुई थी.

जेल में बंद खूंखार अपराधी आनंदपाल की सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिस बल की कटौती यूनुस खान के प्रभाव से ही की गई थी, जिस का फायदा उठा कर एक दिन पेशी के दौरान आनंदपाल सिंह पुलिस हिरासत से भाग निकला था.

राज्य की राजनीति में राजपूत जाति का संरक्षण आनंदपाल सिंह को मिल ही रहा था. इसी तरह राजू ठेहट गिरोह को गैरभाजपा दल के नेताओं का संरक्षण मिल रहा था. बीकानेर जेल में बंद रहने के दौरान राजू ठेहट गिरोह ने आनंदपाल की हत्या की कोशिश की थी, जिस में आनंदपाल तो बच गया था, लेकिन उस का एक साथी मारा गया था. फरारी के दौरान पुलिस मुठभेड़ में नागौर जिला पुलिस के जवान खुभानाराम को घायल कर आनंदपाल फिर पुलिस पकड़ से दूर हो गया था.

लेकिन आनंदपाल सिंह भागतेभागते थक गया तो उस ने अपने वकील के माध्यम से आत्मसमर्पण करने की कोशिश की. फरारी के दौरान अपने उपकारों के बदले आनंदपाल ने यूनुस खान से आत्मसमर्पण करवाने के लिए मदद मांगी. शायद यूनुस खान ने मदद करने से इनकार कर दिया तो आनंदपाल ने यूनुस खान को देख लेने की धमकी दे दी.

यूनुस खान आनंदपाल सिंह को अच्छी तरह जानते थे कि वह धमकी को अंजाम दे सकता है, इसलिए डरे हुए यूनुस खान राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिले और उन्हें अपनी दुविधा बताई. इस के बाद उन्होंने आनंदपाल सिंह की हत्या की पटकथा तैयार कर डाली.

यूनुस खान की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने आनंदपाल का एनकाउंटर करने के लिए राज्य पुलिस के एनकाउंटर विशेषज्ञ एम.एन. दिनेश (आईजी पुलिस) को लक्ष्य दे कर एसओजी में भेज दिया. कहा जाता है कि आनंदपाल से डरे यूनुस खान मुख्यमंत्री के पास जा कर खूब रोए थे.

जिस आनंदपाल को पालपोस कर यूनुस खान ने इतना बड़ा किया था, जब वह उन पर भारी पड़ने लगा तो सत्ता के बल पर 24 जून, 2017 की रात पुलिस की मदद से उसे ठिकाने लगवा दिया.

आनंदपाल तो अपने अंजाम तक पहुंच गया, लेकिन उसे अपराधी बनाने वाले भ्रष्ट यूनुस खान सरीखे नेताओं का क्या होगा? आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजस्थान में राजपूत जाति ने उसे जातीय अस्मिता से जोड़ लिया है. जबकि जाट उस की हत्या पर कई दिनों तक डीजे बजा कर खुशियां मनाते रहे.

आनंदपाल सिंह के घर वालों का कहना था कि भाजपा सरकार के गृहमंत्री चाहते थे कि आनंदपाल आत्मसमर्पण कर दे, लेकिन आनंदपाल के आत्मसमर्पण करने से यूनुस खान के तमाम राज खुल सकते थे. इसलिए आत्मसमर्पण करने को तैयार आनंदपाल को यूनुस खान के लिए मार डाला गया. आनंदपाल के मारे जाने से मंत्री यूनुस खान खुश हैं कि उन के राज अब कभी नहीं खुल पाएंगे.

यह एनकाउंटर चुरू जिले में हुआ, जो राजेंद्र राठौड़ का गृह जिला है. राजपूत बिरादरी में पैदा हुए रोष का शिकार राजेंद्र सिंह राठौड़ बन सकते हैं. राजपूतों का एक छोटा सा संगठन है श्री राजपूत करणी सेना. इस के कर्ताधर्ता हैं लोकेंद्र सिंह कालवी, जिन के पिता कल्याण सिंह कालवी राजपूतों के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री रहे हैं.

लोकेंद्र सिंह कालवी, उन के पिता कल्याण सिंह कालवी और करणी सेना तब चर्चा में आई थी, जब जयपुर में इस संगठन के लोगों ने फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ बदसलूकी की थी. यह गैरराजनीतिक संगठन लगातार कई सालों से आनंदपाल की रौबिनहुड की छवि गढ़ने में लगा था. आनंदपाल के एनकाउंटर को यह संगठन भुनाने में लगा है. राजस्थान विधानसभा चुनाव सन 2018 में होने वाले हैं. हो सकता है, इस का असर चुनाव पर पड़े.

यह भी हो सकता है कि इस घटना के बाद पश्चिमी राजस्थान में मदेरणा और मिर्धा परिवारों के सियासी पतन के बाद जाटों के नए नेता के रूप में उभर रहे हनुमान बेनीवाल फिर भाजपा में आ जाएं. सन 2009 तक वह बीजेपी में थे, लेकिन बाद में आनंदपाल की वजह से वह पार्टी छोड़ गए थे.

आनंदपाल के मामले को ले कर वह लगातार सरकार को घेरते रहे हैं. फिलहाल वह निर्दलीय विधायक हैं. पश्चिमी राजस्थान जाट बाहुल्य है. ऐसे में बेनीवाल किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.

आनंदपाल सिंह का भले ही अंत हो चुका है, पर याद करने वाले उसे अपनीअपनी तरह से याद करते रहेंगे. उस की मौत के बाद जो लोग उस के एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं, राजपूत हिम्मत सिंह की पत्नी ममता कंवर ने न्याय मांगते हुए उन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. हिम्मत सिंह की हत्या आनंदपाल ने ही की थी. ममता कंवर ने एक लिखित संदेश और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है.

उन्होंने आनंदपाल सिंह का समर्थन कर रहे राजपूतों से पूछा है कि क्या कसूर था उन के पति राजपूत हिम्मत सिंह का, जिन की शादी हुए कुछ ही समय हुआ था और आनंदपाल सिंह ने उन्हें मार दिया था. यही नहीं, उन्होंने श्याम प्रताप सिंह रूवा, राजेंद्र सिंह राजपूत और आनंदपाल के एनकाउंटर में शामिल कमांडो सोहन सिंह तंवर पर चली गोलियों का हिसाब मांगा है.

उन का कहना है कि वह तो असली राजपूत हैं, जबकि आनंदपाल सिंह रावणा राजपूत था. क्या कारण था कि रावणा राजपूत होते हुए भी उस ने असली राजपूतों को मारा, फिर भी किसी राजपूत ने कभी जुबान नहीं खोली.

दरअसल, सन 2016 में जयपुर के विद्याधरनगर इलाके में अलंकार प्लाजा के पास खड़ी एक कार में हिम्मत सिंह राजपूत की कुछ हथियारबंद बदमाशों ने दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस के बाद एसओजी ने 4 लोगों को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार किए गए सोहन सिंह उर्फ सोनू पावटा और अजीत पावटा नागौर के पावटा के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि ये दोनों कुख्यात बदमाश आनंदपाल सिंह के सहयोगी थे. उन्होंने स्वीकार किया है कि आनंदपाल सिंह के कहने पर उन्होंने ही हिम्मत सिंह की हत्या की थी. दोनों के खिलाफ नागौर के कुचामनसिटी, डीडवाना, मुरलीपुरा और जोधपुर के चौपासनी थाने में हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, अपहरण, मारपीट और अवैध हथियारों के करीब 15 मुकदमे दर्ज हैं.

आनंदपाल सिंह की मौत हो चुकी है. राजस्थान के राजपूतों ने इसे अपनी शान से जोड़ लिया है. यही वजह है कि वे उस का अंतिम संस्कार तब तक न करने पर अड़े हैं, जब तक उस के एनकाउंटर की सीबीआई जांच नहीं कराई जाएगी. वैसे इस एनकाउंटर से वसुंधरा सरकार को नुकसान हो सकता है.

अपराधियों के बुलंद हौंसले : कोर्ट रूम में क्यों हुई गैंगवार

17 जनवरी, 2018 का दिन था. दोपहर के करीब पौने एक बजे का समय रहा होगा. अजय जैतपुरा अपने कुछ साथियों के साथ राजस्थान के चुरू जिले के सादुलपुर शहर की मुंसिफ अदालत में अपनी तारीख पर आया था. उस दिन जज साहब नहीं आए थे. उन के न आने की वजह से पेशकार मोहर सिंह राठौर ही पेशी पर आने वालों को अगली तारीख दे रहे थे.

अजय जैतपुरा भी अपने वकील के साथ पेशकार के सामने  खड़ा था. उस के वकील रतनलाल प्रजापति ने पेशकार से अगली तारीख मांगी. पेशकार ने अजय जैतपुरा की फाइल निकाली. वह फाइल के पन्ने पलट ही रहे थे, तभी 4-5 युवक अदालत के कमरे में आए. पेशकार ने उन पर उड़ती हुई सी एक नजर डाली. तभी वे युवक अचानक अंधाधुंध फायरिंग करने लगे.

कोर्ट रूम में फायरिंग होने से भगदड़ मच गई. फायरिंग होते देख वह भाग कर बगल में बने जज साहब के चैंबर में घुस गए और दरवाजा बंद कर लिया.

जब फायरिंग की आवाज बंद हो गई तो कोर्टरूम में शोर होने लगा. पेशकार को जब यह यकीन हो गया कि बदमाश जा चुके हैं तो वह जज साहब के चैंबर का दरवाजा खोल कर कोर्ट रूम में आए. कोर्ट रूम का दृश्य देख कर उन की आंखें फटी रह गईं. अजय जैतपुरा लहूलुहान पड़ा था. उस के साथ आए वकील रतनलाल प्रजापति और 2 अन्य लोग प्रदीप व संदीप भी घायल पड़े थे. चारों के गोलियां लगी थीं.

क्रिमिनल ने क्रिमिनल को बनाया निशाना

जिन 4 लोगों को गोलियां लगी थीं, उन में से अजय की हालत सब से ज्यादा गंभीर थी. सभी घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें हरियाणा में हिसार के अस्पताल रैफर कर दिया गया.

अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने अजय जैतपुरा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए पोस्टमार्टम के लिए उस का शव हिसार से सादुलपुर भेज दिया गया. बाकी तीनों घायलों को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया गया.

अजय एक हार्डकोर अपराधी था. 12 दिन पहले ही वह जमानत पर जेल से छूटा था. उस के खिलाफ जघन्य अपराधों के 40 से ज्यादा मामले चल रहे थे. अजय ने 23 सितंबर, 2015 को बैरासर गांव में हमीरवास थाने के थानेदार व सिपाहियों को अपनी गाड़ी से कुचलने का प्रयास किया था.

सादुलपुर के अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश की अदालत ने अजय को इस मामले में 14 नवंबर, 2017 को 7 साल की सजा सुनाई थी. इसी साल 5 जनवरी को ही हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई थी. इस के 12 दिन बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

हरियाणा के अनिल जाट गैंग ने 2 दिन पहले ही अजय जैतपुरा को धमकी दी थी. दरअसल, हरियाणा के 2 लाख रुपए के इनामी बदमाश अनिल जाट को हरियाणा पुलिस ने 25 जून, 2015 को एनकाउंटर में मार गिराया था. यह एनकाउंटर हरियाणा के ईशरवाल गांव में हुआ था.

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अनिल जाट के गिरोह के सदस्यों को शक था कि उन के बौस का एनकाउंटर कराने में अजय जैतपुरा और चूरू जिले के थाना राजगढ़ के सिपाही नरेंद्र का हाथ था. अजय ने ही फोन कर के अनिल को बुलाया था. उस की मुखबिरी पर ही पुलिस ने अनिल को घेर कर मार दिया.

10 हजार रुपए के इनामी बदमाश अजय जैतपुरा को सादुलपुर के तत्कालीन थानाप्रभारी ने अपनी टीम के साथ 12 फरवरी, 2016 को जयपुर के जवाहर सर्किल से गिरफ्तार किया था. वह हमीरवास के थानेदार और सिपाहियों को गाड़ी से कुचलने की कोशिश करने के बाद फरार हो गया था. तब 23 अक्तूबर, 2015 को बीकानेर के तत्कालीन आईजी ने उस पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था.

कहा जाता है कि सन 2006 में मारपीट के मामले में नामजद होने के बाद अजय अपराध की दलदल में फंसता चला गया. इस के बाद उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वह अपराध की दुनिया में अपना नाम कमाने के लिए एक के बाद एक अपराध करता चला गया. सन 2007 में उस की हिस्ट्रीशीट खुली थी.

चुरू जिले के हमीरवास थाना इलाके के गांव जैतपुरा के रहने वाले साधारण परिवार के विद्याधर जाट का बेटा अजय जैतपुरा 2 भाइयों में बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम विजय जैतपुरा है. शादीशुदा अजय का एक बेटा भी है.

कोर्ट रूम में अंधाधुंध गोलीबारी कर के हार्डकोर अपराधी की हत्या करने की वारदात से चुरू जिला मुख्यालय से ले कर जयपुर तक हड़कंप मच गया था. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने खोजबीन में लगाया पूरा जोर

लोगों से पूछताछ में सामने आया कि हमलावरों के दोनों हाथों में पिस्टल थीं. कोर्ट रूम में फायरिंग के बाद वे हवाई फायर करते हुए मंडी की तरफ के गेट से निकल कर भाग गए.

फायरिंग से लोगों में दहशत फैल गई. लोगों ने पुलिस को बताया कि हमलावरों ने करीब 50 फायर किए थे. भागते समय उन्होंने अदालत परिसर में खड़ी अजय जैतपुरा की स्कौर्पियो गाड़ी पर भी गोलियां चलाई थीं.

पुलिस ने कोर्ट परिसर से एक दरजन से ज्यादा कारतूस के खोखे बरामद किए. ये सभी कारतूस 9 एमएम के थे. मौके पर एक जिंदा कारतूस और एक मैगजीन भी मिली.

पुलिस ने हमलावरों का पता लगाने के लिए अदालत परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. थानाप्रभारी भगवान सहाय मीणा ने हिसार जा कर घायलों के बयान लिए.

फायरिंग में घायल हुए जैतपुरा गांव के प्रदीप कुमार स्वामी ने पुलिस को बताया कि उस की और अजय की अदालत में पेशी थी. वे लोग अपने साथियों के साथ स्कौर्पियो व फार्च्युनर गाड़ी से आए थे.

मुंसिफ न्यायालय में जब वे पेशकार के पास खड़े थे, उसी दौरान संपत नेहरा, मिंटू मोडासिया, राजेश, प्रवीण, अक्षय, विपिन, कुलदीप, नवीन, संदीप आदि अपने हाथों में पिस्टल ले कर कोर्ट रूम में घुस आए और उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस अप्रत्याशित हमले में उस के अलावा अजय जैतपुरा, संदीप गुर्जर व वकील रतन प्रजापति को गोली लगी. बाद में हमलावर हवाई फायर करते हुए भाग गए.

अदालत में मौकामुआयना करने पहुंचे एसपी राहुल बारहठ के समक्ष वकीलों ने वारदात पर आक्रोश जताते हुए अदालत परिसर में पर्याप्त पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने और पुलिस चौकी स्थापित करने की मांग की.

वकीलों ने एसपी को बताया कि घटना के दौरान अदालत में चालानी गार्ड मौजूद थे, लेकिन वे निहत्थे होने के कारण हमलावरों का मुकाबला नहीं कर सके.

अजय जैतपुरा की हत्या के दूसरे दिन सादुलपुर के सरकारी अस्पताल में 5 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड ने उस के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम में पता चला कि अजय के शरीर में कुल 7 गोलियां लगी थीं. इन में 5 गोलियां उस के शरीर के आरपार निकल गई थीं और 2 गोलियां उस के शरीर में ही फंसी हुई मिलीं.

इस से पहले अजय के परिजनों ने उस के शव का पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया था. बाद में एसपी राहुल बारहठ को 6 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन दे कर पोस्टमार्टम करवाने पर राजी हुए.

इस में अजय के परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक मदद, उस की पत्नी को सरकारी नौकरी व भाई विजय को शस्त्र लाइसैंस, अजय के परिवार और उस के साथी प्रदीप जांदू के घर पर सुरक्षा गार्ड मुहैया कराने, अजय की हत्या की जांच पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप से कराने तथा मामले के सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग शामिल थी. एसपी ने इन मांगों पर यथासंभव काररवाई करने का आश्वासन दिया.

पोस्टमार्टम के बाद अजय का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. वे लोग शव को जैतपुरा गांव की ढाणी ले गए. तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए एसपी ने शव के साथ राजगढ़ के थानाप्रभारी को भारी पुलिस बल के साथ जैतपुरा भेज दिया, जिस की मौजूदगी में अजय का अंतिम संस्कार किया गया.

वकील भी उतरे हड़ताल पर

दूसरी ओर सादुलपुर के वकीलों ने अदालत परिसर में घुस कर गोलीबारी करने और अजय के साथ वकील रतनलाल प्रजापति को गोली लगने के विरोध में मिनी सचिवालय परिसर में अनिश्चितकालीन हड़तान शुरू कर दी.

वकीलों का कहना था कि जब अदालत परिसर में ही वकील सुरक्षित नहीं हैं तो आम लोगों की सुरक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इस गोलीबारी के विरोध में चुरू जिला मुख्यालय और कई अन्य शहरों में भी वकीलों ने न्यायिक कार्य स्थगित रखा.

पुलिस की जांच में सामने आया कि अजय की हत्या करने में पंजाब के वांटेड गैंगस्टर संपत नेहरा का हाथ था. चुरू जिले के कालोड़ी गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा संपत नेहरा पंजाब के कुख्यात लारेंस बिश्नोई से जुड़ा हुआ था. उसे लारेंस का दाहिना हाथ माना जाता था.

लारेंस आजकल राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद है. जेल में रहते हुए वह राजस्थान और पंजाब में कई बड़ी वारदातें करवा चुका है. लारेंस और संपत का मकसद एनकाउंटर में आनंदपाल की मौत के बाद राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम करना था.

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वकीलों के आंदोलन से पुलिस पर आरोपियों को गिरफ्तार करने का दबाव बढ़ रहा था, इसलिए एसपी राहुल बारहठ ने अभियुक्तों की तलाश में कई टीमें विभिन्न जगहों पर भेजीं. राजस्थान पुलिस ने इस मामले में हरियाणा पुलिस की मदद ली.

हरियाणा पुलिस की स्पैशल टास्क फोर्स ने सादुलपुर पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी ली. बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विपिन पांडेय भी दूसरे दिन सादुलपुर आए. उन्होंने न्यायिक अधिकारियों व एसपी के साथ मिल कर वकीलों से भी बात की.

आईजी ने वकीलों को आश्वासन दिया कि कोर्ट परिसर में सशस्त्र गार्ड तैनात किए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अजय जैतपुरा के घर पर भी सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएंगे.

तीसरे दिन भी कई जगह दबिश देने के बावजूद पुलिस को अजय के हत्यारों का सुराग नहीं लगा. इस के बाद चुरू के एसपी ने नामजद 9 आरोपियों में से हरेक पर 5-5 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

20 जनवरी को सादुलपुर में बार एसोसिएशन के आह्वान पर वकीलों ने मौन जुलूस निकाला. उन्होंने उपजिला कलेक्टर को ज्ञापन दे कर न्यायालय परिसर को संवेदनशील घोषित करने, घायल वकील रतनलाल प्रजापति को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने, अदालत परिसर में पुलिस चौकी स्थापित करने आदि की मांग की.

पूर्व मंत्री नटवर सिंह की निकली कार

फायरिंग की घटना के पांचवें दिन 21 जनवरी को पुलिस ने हमलावरों की फार्च्युनर गाड़ी हरियाणा में बरामद कर ली. हमलावर इस गाड़ी से सादुलपुर आए थे और इसी गाड़ी से भागे थे. बदमाश इस गाड़ी को हरियाणा के मौजा लाडावास एवं काकडोली के बीच रोही में छोड़ कर भाग गए थे.

जांच में पता चला कि यह गाड़ी पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री नटवर सिंह की है. 25 दिसंबर, 2017 की शाम को यह गाड़ी उन के चालक से गन पौइंट पर गुरुग्राम के सुशांत लोक इलाके से लूटी गई थी. इस गाड़ी को उन का विधायक बेटा जगत सिंह रखता था.

चालक सेवा सिंह जगत सिंह के यहां पिछले 15 सालों से नौकरी कर रहा है. 25 दिसंबर की शाम को सेवा सिंह व माली रामप्रसाद इस गाड़ी से गुरुग्राम के सुशांत लोक गोल्फ चौक गए थे. इसी दौरान लाल रंग की बोलेरो में सवार 2 युवकों ने गन पौइंट पर उन से मारपीट कर के गाड़ी छीन ली थी. इस की रिपोर्ट सुशांत लोक थाने में दर्ज थी.

24 जनवरी को जिला एवं सैशन जज योगेंद्र पुरोहित सादुलपुर पहुंचे. उन्होंने पिछले 7 दिनों से हड़ताल, धरना व अनशन कर रहे वकीलों की बातें सुनीं. जिला जज ने कहा कि उन्होंने इस घटना को गंभीरता से लिया है. वे पूरी सुरक्षाव्यवस्था को चाकचौबंद करवाने में लगे हैं. फायरिंग में घायल हुए एडवोकेट रतनलाल प्रजापति को पीडि़त पक्षकार स्कीम के तहत अधिकतम राशि दिलवाई जाएगी.

आखिर पुलिस की कोशिश रंग लाई

आखिर 29 जनवरी को पुलिस को इस मामले में नामजद आरोपी संदीप कुमार जाट को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिली. वह हरियाणा के लोहारू थानाक्षेत्र के गांव सिंघाणी का रहने वाला था. संदीप के खिलाफ बहल, पिलानी सहित कई अन्य थानों में अनेक मामले दर्ज थे. वह हरियाणा में हुए जाट आंदोलन का भी आरोपी था. उसे हरियाणा की एक अदालत ने भगोड़ा घोषित किया था. संदीप अजय जैतपुरा हत्याकांड में नामजद आरोपी मिंटू मोडासिया का साथी था.

संदीप ने बताया कि सादुलपुर में अजय जैतपुरा की हत्या के बाद सभी आरोपी हरियाणा चले गए और वहां से अलगअलग हो गए. संदीप इस वारदात के बाद बेंगलुरु चला गया था. वह इस से पहले बेंगलुरु में काम कर चुका था.

संदीप हवाईजहाज से बेंगलुरु से दिल्ली आ कर अपने साथी प्रवीण व राजेश के गांव कैर की ढाणी जा रहा था, तभी पुलिस ने उसे रास्ते में धर दबोचा था.

पुलिस की जांच में इस मामले में शार्पशूटर अंकित भादू का नाम और सामने आया. पंजाब के शेरावाला बहाववाला, फाजिल्का निवासी अंकित भादू पर 31 जनवरी, 2018 को चुरू एसपी ने 5 हजार रुपए का इनाम घोषित किया. अजय की हत्या के मुख्य आरोपी संपत नेहरा पर 1 फरवरी को बीकानेर आईजी ने 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. कथा लिखे जाने तक अन्य आरोपी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े थे.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 1

उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर 2 मायनों में खास है. पहला उद्योग के मामले में. यहां का चमड़ा उद्योग दुनिया में मशहूर है और दूसरा जरायम के लिए. कानपुर में दरजनों गैंगस्टर हैं, जो शासनप्रशासन की नींद हराम किए रहते हैं. ये गैंगस्टर राजनीतिक छत्रछाया में फलतेफूलते हैं. हर गैंगस्टर किसी न किसी पार्टी का दामन थामे रहता है. पार्टी के दामन तले ही वह शासनप्रशासन पर दबदबा कायम रखता है.

जघन्य अपराध के चलते जब गैंगस्टर पकड़ा जाता है और जेल भेजा जाता है, तब पार्टी के जन प्रतिनिधि उसे छुड़ाने के लिए पैरवी कर पुलिस अधिकारियों पर दबाव डालते हैं. ऐसे में पुलिस की लचर कार्य प्रणाली से गैंगस्टर को जमानत मिल जाती है. जमानत मिलने के बाद वह फिर से जरायम के धंधे में लग जाता है.

कानपुर शहर का ऐसा ही एक कुख्यात गैंगस्टर है आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट. जुर्म की दुनिया का वह बादशाह है. उस के नाम से जनता थरथर कांपती है. पप्पू स्मार्ट थाना चकेरी का हिस्ट्रीशीटर अपराधी है.

पुलिस रिकौर्ड में पप्पू स्मार्ट का एक संगठित गिरोह है, जिस में अनेक सदस्य हैं. पुलिस अभिलेखों में यह गिरोह डी 123 के नाम से पंजीकृत है. इस के साथ ही उस का नाम चकेरी थाने की भूमाफिया सूची में भी दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट और उस के गिरोह के खिलाफ कानपुर के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों में 35 केस दर्ज हैं जिन में हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी, अवैध वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, सरकारी जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे हैं.

पप्पू स्मार्ट की दबंगई इतनी थी कि उस ने अपने गिरोह की मदद से जाजमऊ स्थित महाभारत कालीन ऐतिहासिक राजा ययाति का खंडहरनुमा किला कब्जा कर के बेच डाला और अवैध बस्ती बसा दी. वर्तमान समय में पप्पू स्मार्ट अपने दोस्त बसपा नेता व हिस्ट्रीशीटर नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर की हत्या के जुर्म में कानपुर की जेल में बंद है.

आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट कौन है, उस ने जुर्म की दुनिया में कदम क्यों और कैसे रखा, फिर वह जुर्म का बादशाह कैसे बना? यह सब जानने के लिए उस के अतीत में झांकना होगा.

कानपुर महानगर के चकेरी थानांतर्गत एक मोहल्ला है हरजेंद्र नगर. इसी मोहल्ले में मोहम्मद सिद्दीकी रहता था. उस के परिवार में बेगम मेहर जहां के अलावा 4 बेटे आसिम उर्फ पप्पू, शोएब उर्फ पम्मी, तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू थे.

मोहम्मद सिद्दीकी मोची का काम करता था. हरजेंद्र नगर चौराहे पर उस की दुकान थी. यहीं बैठ कर वह जूता गांठता था. चमड़े का नया जूता बना कर भी बेचता था. उस की माली हालत ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार को दो जून की रोटी जुटा पाता था.

आर्थिक तंगी के कारण मोहम्मद सिद्दीकी अपने बेटों को अधिक पढ़ालिखा न सका. किसी ने 5वीं दरजा पास की तो किसी ने 8वीं. कोई हाईस्कूल में फेल हुआ तो उस ने पढ़ाई बंद कर दी. पढ़ाई बंद हुई तो चारों भाई अपने अब्बूजान के काम में हाथ बंटाने लगे.

बेटों की मेहनत रंग लाई और मोहम्मद सिद्दीकी की दुकान अच्छी चलने लगी. आमदनी बढ़ी तो घर का खर्च मजे से चलने लगा. कर्ज की अदायगी भी उस ने कर दी और सुकून की जिंदगी गुजरने लगी.

मामा से सीखा जुर्म का पाठ

चारों भाइयों में आसिम उर्फ पप्पू सब से बड़ा तथा शातिरदिमाग था. उस का मन दुकान के काम में नहीं लगता था. वह महत्त्वाकांक्षी था और ऊंचे ख्वाब देखता था. उस के ख्वाब छोटी सी दुकान से पूरे नहीं हो सकते थे. अत: उस का मन भटकने लगा था. उस ने इस विषय पर अपने भाइयों से विचारविमर्श किया तो उन्होंने भी उस के ऊंचे ख्वाबों का समर्थन किया.

लेकिन अकूत संपदा अर्जित कैसे की जाए, इस पर जब आसिम उर्फ पप्पू ने मंथन किया तो उसे अपने मामूजान की याद आई. पप्पू के मामा रियाजुद्दीन और छज्जू कबूतरी अनवरगंज के हिस्ट्रीशीटर थे और अपने जमाने में बड़े ड्रग्स तसकर थे.

आसिम उर्फ पप्पू ने अपनी समस्या मामू को बताई तो वह उस की मदद करने को तैयार हो गए. उन्होंने पप्पू से कहा कि साधारण तौरतरीके से ज्यादा दौलत नहीं कमाई जा सकती. इस के लिए तुम्हें जरायम का ककहरा सीखना होगा.

मामू की बात सुन कर आसिम उर्फ पप्पू राजी हो गया. उस के बाद छज्जू कबूतरी से ही पप्पू एवं उस के भाइयों ने अपराध का ककहरा सीखा. सब से पहले इन का शिकार हुआ हरजेंद्र नगर चौराहे पर रहने वाला एक सरदार परिवार, जिस के घर के सामने पप्पू की मोची की दुकान थी.

चारों भाइयों ने अपने मामा छज्जू कबूतरी की मदद से उस सरदार परिवार को प्रताडि़त करना शुरू किया. मजबूर हो कर सरदार परिवार घर छोड़ कर पंजाब पलायन कर गया.

इस मकान पर पप्पू और उस के भाइयों ने कब्जा कर लिया और जूते का शोरूम खोल दिया. जिस का नाम रखा गया स्मार्ट शू हाउस. दुकान की वजह से आसिम उर्फ पप्पू का नाम पप्पू स्मार्ट पड़ गया.

पप्पू स्मार्ट के खिलाफ पहला मुकदमा वर्ष 2001 में कोहना थाने में आईपीसी की धारा 336/436 के तहत दर्ज हुआ. इस में धारा 436 गंभीर है, जिस में किसी भी उपासना स्थल या घर को विस्फोट से उड़ा देना या आग से जला देने का अपराध बनता है. दोषी पाए जाने पर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा हो सकती है.

इस मुकदमे के बाद पप्पू स्मार्ट ने मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उस के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.

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पप्पू स्मार्ट ने एक संगठित गिरोह बना लिया, जिस में 2 उस के सगे भाई तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू शामिल थे. इस के अलावा बबलू सुलतानपुरी, वसीम उर्फ बंटा, तनवीर बादशाह, गुलरेज, टायसन जैसे अपराधियों को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. पूर्वांचल के माफिया सऊद अख्तर, सलमान बेग, साफेज उर्फ हैदर तथा महफूज जैसे कुख्यात अपराधियों के संपर्क में भी वह रहने लगा.

सुशांत-रिया मामला: प्यार या बिजनेस?

सुशांत केस में भारत की 3 सर्वोच्च एजेंसियों सीबीआई, ईडी और एनसीबी ने अपनेअपने ढंग से जांच की. सच को समझने और सामने लाने के लिए देश के सर्वोच्च मैडिकल इंस्टीट्यूट के 3 सीनियर डाक्टरों को भी जांच में शामिल किया गया. जांच के दौरान ईडी को रिया के मोबाइल से ड्रग्स से जुड़ी कुछ चैट मिली तो एनसीबी को आना पड़ा. इस के बाद तो बौलीवुड पर…

मायानगरी मुंबई, वह महानगर जहां आदर्शवाद और संवेदनशील भावनाओं के बेहद महीन धागों से
इंद्रधनुषी सपने रचे जाते हैं, गढ़े जाते हैं. जब ये सपने तैयार हो कर सेल्युलाइड पर उतरते हैं तो दर्शकों को कुछ समय के लिए वास्तविकता से दूर उस दुनिया में ले जाते हैं, जहां सब कुछ इंद्रधनुषी रंगों और मखमली रोशनियों में लिपटा महसूस होता है, खूबसूरत, मनलुभावन. रजतपट पर दिखाए जाने वाले सपने बुनने और बेचने वाली मुंबई पिछले 6 दशकों से युवा दिलों की धड़कन बनी हुई है.

लेकिन जब कभी सपनों के रेशमी जाल बुनने वाला कोई धागा न खुलने वाली गिरह बन जाता है तो मायानगरी की इंद्रधनुषी छवि के पीछे छिपी विद्रूपता खुल कर खुदबखुद उजागर हो जाती है. इस बार स्वप्न के इंद्रधनुषी वितान में छेद करने का जरिया बनी सुशांत सिंह राजपूत की कथित हत्या या आत्महत्या, जिस में रिया चक्रवर्ती के नाम ने सपनों की दुनिया में ऐसी उथलपुथल मचाई कि अंदर की वास्तविक कुरुपता फूटफूट कर बाहर आने लगी.

पहले मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री का नेपोटिज्म मीडिया के निशाने पर रहा, फिर सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया चक्रवर्ती सवालों के घेरे में आ गई. रोज नई खबरें, रोज नए अनुमान. सुशांत की आकस्मिक मृत्यु ने उन के प्रशंसकों को झकझोर कर रख दिया था, इसलिए वे दिन में कईकई बार बदलती खबरों में सच्चाई ढूंढते रहे.
यही वजह थी कि जब यह खबर आई कि सुशांत बौलीवुड के नेपोटिज्म का शिकार बने, साइन करने के बावजूद उन की कई फिल्मों को बंद कर दिया गया. बौलीवुड लौबी उन्हें आउटसाइडर मान कर आगे नहीं बढ़ने दे रही थी. और भी न जाने क्याक्या कारण उन की मौत के जिम्मेदार मान लिए गए.

यह सब न्यूज चैनल्स पर देखसुन कर सुशांत के फैंस का गुस्सा इस कदर फूटा कि उन्होंने बौलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर प्रोड्यूसरों को निशाने पर ले कर सोशल मीडिया पर उन की आलोचना शुरू कर दी. अपनी प्रशंसा सुनने के आदी दिग्गज फिल्म निर्माता और निर्देशक इस कड़वाहट को पचा नहीं पाए.
उन्होंने सोशल मीडिया के अपने एकाउंट धड़ाधड़ बंद करने शुरू कर दिए. लेकिन सुशांत के फैंस यहीं नहीं रुके, उन्होंने सुशांत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’, जो ओटीटी पर रिलीज होने जा रही थी, की सोशल मीडिया के साथसाथ इतनी माउथ पब्लिसिटी की कि यह फिल्म सुपरडुपर हिट रही, फिर लोगों की डिमांड पर इसे जल्दी ही टेलीविजन पर भी दिखा दिया गया.

इस सब के बीच मुंबई पुलिस जो सुशांत की मौत को पहले ही आत्महत्या करार दे चुकी थी, ने नेपोटिज्म वाले ऐंगल से इनवैस्टीगेशन के नाम पर बड़ेबड़े निर्मातानिर्देशकों को थाने बुला कर पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर दी. दूसरी तरफ इलैक्ट्रौनिक मीडिया सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया की कुंडली खंगालने पर लगा था.

रिया का नाम सुशांत की मौत के बाद ही सुर्खियों में आया था. सुशांत के मामले में यह नाम बारबार लिए जाने की वजह कुछ संदेहास्पद स्थितियां थीं, जैसे सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान ने भी 8 जून को ही आत्महत्या की थी. सुशांत के साथ लिवइन में रह रही रिया भी उसी दिन अपने पेरैंट्स के घर गई थी. आखिर 8 तारीख में ऐसा क्या था?इसी बीच सुशांत के पिता के.के.

सिंह ने हत्या का आरोप लगाते हुए पटना में रिपोर्ट लिखाई, जिस में रिया और उस के भाई शौविक का नाम शामिल था. रिपोर्ट में यह आरोप भी लगाया गया कि सुशांत के बैंक एकाउंट में 15 करोड़ रुपए थे. लेकिन रिया और उस के भाई शौविक ने यह रकम हथिया ली. इस मामले की जांच करने बिहार पुलिस मुंबई गई थी, लेकिन वहां की पुलिस ने सहयोग नहीं किया. बाद में जब पटना के एसपी विनय तिवारी मुंबई पहुंचे तो कोरोना की आड़ ले कर उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया गया.

न्यूज चैनल्स की नायाब कवरेज

सुशांत की मौत का मामला शायद ऐसा पहला मामला है, जिसे सब से ज्यादा कवरेज मिली. यूं तो मुंबई में सभी चैनलों के संवाददाता हैं, लेकिन इस मामले की कवरेज के लिए चैनलों ने अपने कई संवाददाताओं को भेजा. एक चैनल के तो एक दरजन संवाददाता मुंबई गए, जिन में कई सीनियर भी थे.

न्यूज चैनल्स ने कवरेज के लिए रिया का घर, सुशांत की सोसायटी, एक्सचेंज बिल्डिंग जहां रिया और ड्रग्स पेडलर से पूछताछ की जा रही थी, डीआरडीओ गेस्टहाउस और कोर्ट पर अपने रिपोर्टर और कैमरापरसन तैनात कर रखे थे ताकि पलपल की खबर दी जा सके. महीने भर से मुंबई की कवरेज देख कर आमिर खान की फिल्म ‘पीपली लाइव’ की याद ताजा हो जाती थी.

फिर सुशांत के पिता के.के. सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल कर सुशांत केस की सीबीआई जांच की संस्तुति करने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री की संस्तुति पर केंद्र सरकार ने उसी दिन सीबीआई को सुशांत केस की जांच के आदेश दे दिए.इस पर रिया चक्रवर्ती अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. उस का कहना था कि जांच सीबीआई की जगह मुंबई पुलिस से ही कराई जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

हालांकि शुरुआती दौर में रिया ने खुद सुशांत मामले की जांच सीबीआई से कराने की बात कही थी.21 अगस्त से सीबीआई ने मुंबई जा कर अपनी जांच शुरू कर दी. सीबीआई की एक टीम ने बांद्रा थाने की पुलिस से अब तक की जांच के सबूत और रिपोर्ट मांगी. बांद्रा जोन के डीसीपी अभिषेक त्रिमुखे ने इस मामले में दर्ज 56 बयान, फोरैंसिक रिपोर्ट, आटोप्सी रिपोर्ट, सुशांत के तीनों मोबाइल, लैपटौप आदि चीजें सीबीआई को सौंप दीं.

सीबीआई की दूसरी टीम ने सुशांत के कुक नीरज और हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा  से पूछताछ की. वहीं सीबीआई की एसपी नूपुर प्रसाद रिया चक्रवर्ती से उन के यूरोप टुअर, सुशांत सिंह से उन के रिलेशन और पैसों से संबंधित जानकारी जुटाने में जुट गईं.

बढ़ती जांच फंसते पेंच

जैसे-जैसे जांच का दायरा आगे बढ़ा, सुशांत के फ्लैटमेट सिद्धार्थ पिठानी और दीपेश सावंत ने सीबीआई से सरकारी गवाह बनने की गुजारिश कर डाली. अब तक अलगअलग बयान दे कर मीडिया को गुमराह करने वाला पिठानी जब सरकारी गवाह बनने को तैयार हुआ तो सीबीआई को अंदेशा हो गया कि सुशांत की आत्महत्या का मामला उतना सीधासरल नहीं है, जितना लग रहा है.

सीबीआई की तीनों टीमें दिल्ली से साथ लाए गए फोरैंसिक एक्सपर्ट्स के साथ मिल कर सुशांत की हत्या या आत्महत्या की गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में अपनी जांच का दायरा बढ़ाती जा रही थीं.

इसी के चलते सीबीआई ने सुशांत के फ्लैट पर सुशांत की सुसाइड वाली थ्योरी को समझने के लिए 2 बार सुसाइड सीन रिक्रिएट किया. उस समय सब से पहले सुशांत को फंदे में लटका देखने वाले सिद्धार्थ पिठानी और दीपेश सावंत मौजूद थे. जब सुशांत की बहन मीतू सिंह वहां पहुंचीं, तब सुशांत का शव बैड पर था. बाद में सीबीआई ने सुशांत और दीपेश को गिरफ्तार कर लिया था.

सुशांत के घर वालों ने उन के एकाउंट में 15 करोड़ रुपए होने की बात कही थी. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब सीबीआई सुशांत के एकाउंट से गायब 15 करोड़ रुपए की रकम का कोई पता नहीं लगा सकी तो छानबीन के लिए ईडी आगे आई. ईडी ने रिया के 2 मोबाइल फोन कब्जे में ले कर जांच शुरू की.
रिया चूंकि इन फोनों के मैसेज डिलीट कर चुकी थी, इसलिए ईडी ने उस के दोनों फोन क्लोन कर लिए ताकि उन का डाटा रिकवर हो सके.

दूसरी तरफ पूछताछ में रिया ने कहा कि उस का सुशांत के खातों से कोई लेनादेना नहीं था. हालांकि सुशांत अपनी मरजी से उस पर पैसा जरूर खर्च करता था.बहरहाल, ईडी की जांच के दौरान रिया पिछले 5 साल में अपने बैंक स्टेटमेंट में आए पैसों का कोई जवाब नहीं दे सकी. दूसरी तरफ उस का एकाउंट मैनेज करने वाले उस के पिता इंद्रजीत चक्रवर्ती ने भी गलतबयानी की. इस जांच में 52 लाख का गलत ट्रांजैक्शन सामने आया.

रिया चक्रवर्ती और उस के परिवार से पूछताछ में सुशांत के एकाउंट से गायब 15 करोड़ रुपए के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी, फलस्वरूप सुशांत के परिवार द्वारा रिया पर लगाया गया 15 करोड़ रुपए गायब करने का आरोप साबित नहीं हुआ.इस के बावजूद रिया निर्दोष नहीं निकली, क्योंकि ईडी की जांच में पूरे मामले ने नाटकीय घटनाक्रम से गुजरते हुए एक नया ही रुख अपना लिया.

बात नेपोटिज्म, प्यार में बेवफाई, 15 करोड़ और गृहक्लेश जैसे उन सभी कारणों, जो सुशांत की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराए गए थे, को लांघती हुई उस नशीली आबोहवा तक जा पहुंची, जिसे ड्रग्स, मारिजुआना और कोकीन जैसे मादक पदार्थ गुलजार करते हैं.

ईडी ने इस संबंध में एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को पत्र लिख कर यह बात बता दी. ईडी के बुलावे पर मुंबई आई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने जांच संभाल ली. एनसीबी की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ी तो नशे के व्यापार का कड़वा कसैला धुआं बौलीवुड के इंद्रधनुषी आसमान को अपनी गिरफ्त में लेने लगा.एक के बाद एक खुलासा फिल्म इंडस्ट्री के अंदर की गंदगी को उलीचउलीच कर बाहर फेंकने लगा, जिस से सपनों का तिलिस्म टूटने लगा. परदे पर दिखने वाली आदर्शवादिता कहीं अंधेरे में दुबक कर बैठ गई.

फोन का डाटा हुआ रिकवर

दरअसल, एनसीबी ने जब रिया के मोबाइल की रिकवर हुई चैट पढ़नी शुरू की तो पूरे मामले का रुख ही बदल गया. इस चैट में हाई ड्रग्स और एमडीएमए का जिक्र था, जिस में टैलेंट मैनेजर जया शाह ने रिया से कहा, ‘चाय, कौफी या पानी में 4 बूंदें डालो और उसे पिला दो. असर देखने के लिए 30-40 मिनट इंतजार करो.’ मैसेज की ये लाइनें बहुत कुछ कहती थीं.

इस के बाद एनसीबी ने रिवर्स इनवैस्टीगेशन किया. सब से पहले उन एक्टिव पेडलर्स को गिरफ्त में लिया गया, जो ड्रग्स का कारोबार करते हैं. एनसीबी द्वारा गिरफ्तार आरोपी कैजान इब्राहिम ने पूछताछ के दौरान अनुज केशवानी का नाम लिया था. हालांकि कैजान को मुंबई की एस्प्लेनेड कोर्ट से 24 घंटे से भी पहले जमानत मिल गई. कैजान के बयान के आधार पर एनसीबी ने जब अनुज केशवानी के ठिकानों पर छापा मारा तो कथित रूप से हशीश, एलएसडी, मारिजुआना जैसी ड्रग्स बरामद हुईं.

सुशांत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा ने एनसीबी को बताया कि मार्च में रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स सप्लाई की गई थी, जिसे पहली बार जैद ने और दूसरी बार अब्दुल बासित परिहार ने शौविक को दिया था. अब्दुल बासित ने अपने बयान में कहा कि वह शौविक चक्रवर्ती के कहने पर जैद विलात्रा और कैजान इब्राहिम से ड्रग्स खरीदता था.

जैद विलात्रा को एनसीबी पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. उस पर कई ड्रग डीलिंग में शामिल रहने का आरोप था. सैमुअल मिरांडा के अनुसार रिया ने उस से 3 बार ड्रग्स देने को कहा था, जिन्हें पेडलर से शौविक ने लिया था.

रिया और शौविक चक्रवर्ती की 17 मार्च को हुई वाट्सऐप चैट सामने आई तो उस में भी ड्रग्स का जिक्र था. इन सारे सबूतों के बाद एनसीबी का शिकंजा रिया के इर्दगिर्द कसता गया. जब पूछताछ के दौरान रिया संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो अगले दिन एनसीबी ने रिया और शौविक को आमनेसामने बैठा कर सवाल करने शुरू कर दिए.

आखिर फंस ही गई रिया

सूत्रों के अनुसार रिया टालने वाले जवाब देती रही. तब एनसीबी ने रिया को उस के वाट्सऐप चैट दिखा कर पूछा कि वह ड्रग्स लेती थी या नहीं, इस पर रिया ने इनकार कर दिया.अंतत: 3 तीन दिन चली 20 घंटों की लंबी पूछताछ के बाद 8 सितंबर को रिया चक्रवर्ती गिरफ्तार कर ली गई.

उस पर ड्रग सिंडीकेट का हिस्सा होने का आरोप लगाते हुए एनसीबी ने कहा कि केस से जुड़ी जो भी ड्रग डील हुई, उन्हें रिया ने फाइनैंस किया था.एनसीबी ने इस केस में रिया, शौविक चक्रवर्ती, सुशांत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा और सुशांत के घरेलू नौकर दीपेश सावंत सहित 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया. ड्र्रग्स केस में दीपेश पर सैमुअल ने आरोप लगाया था.

रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के बाद उस के वकील सतीश मानशिंदे ने कहा कि 3 एजेंसियां अभिनेत्री (रिया) के पीछे इसलिए पड़ी हैं क्योंकि उन्होंने ऐसे शख्स से प्यार किया जो नशे का आदी था और जिसे मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं थीं. वह ड्रग एडिक्ट से प्यार करने की सजा भुगत रही हैं, जो कई सालों से मानसिक रूप से बीमार था.ज्ञातव्य हो कि ड्रग्स केस में नाम आने के बाद रिया चक्रवर्ती ने कहा था कि सुशांत उस से मिलने से पहले ही मारिजुआना लेते थे.

साथ ही यह भी बताया कि सुशांत दिन भर में मारिजुआना भरी 3-4 सिगरेट पी जाते थे. वह उन्हें रोकने की कोशिश भी करती थी लेकिन एडिक्शन के चलते सुशांत के लिए मारिजुआना का इंतजाम उसी को करना पड़ता था. रिया की इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता, लेकिन इतना जरूर है कि सुशांत ड्रग्स की चपेट में आ चुके थे. एनसीबी के अनुसार सुशांत जो सिगरेट पीते थे, उस में ड्रग्स होती थी, जिस की वजह से उन की मानसिक हालत खराब हो रही थी. एनसीबी ने यह बात सीबीआई को बताई तो सीबीआई ने अपनी जांच को गति देनी शुरू कर दी.

जबकि सुशांत के डिप्रेशन का इलाज करने वाले 2 डाक्टरों ने पूछताछ के दौरान मुंबई पुलिस को बयान दिया था कि सुशांत डिप्रेशन, तनाव, चिंता और पायपोलर डिसऔर्डर के शिकार थे.

डाक्टरों के अनुसार सुशांत ने दवाइयां लेनी बंद कर दी थीं, जिस से उन की हालत बिगड़ती चली गई और उन्हें खुद को संभालना मुश्किल हो गया.

सीबीआई ने बुलाए एम्स के डाक्टर

इतना ही नहीं, मुंबई पुलिस ने सुशांत की जिस मौत को देखते ही आत्महत्या बता दिया था, सीबीआई ने उसे अपने तरीके से इनवैस्टीगेट किया, यहां तक कि देश के सर्वोच्च मैडिकल इंस्टीट्यूट एम्स के 3 फोरैंसिक एक्सपर्ट्स की टीम मुंबई बुलाई गई. इस टीम ने मुंबई पहुंच कर इस केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में कूपर अस्पताल के डाक्टरों से पूछताछ भी शामिल थी, जिन्होंने सुशांत की आटोप्सी की थी. एम्स की टीम ने सुशांत के गले में मौजूद जख्म के निशान को ले कर आटोप्सी करने वाले डाक्टरों से लंबी पूछताछ की.

साथ ही एम्स ने सुशांत के विसरा सैंपल की दोबारा जांच का निर्णय लिया ताकि यह पता चल सके कि सुशांत को कोई जहर या कोई ऐसा ड्रग तो नहीं दिया गया था, जो घातक हो. हालांकि सुशांत का विसरा मात्र 20 परसेंट ही बचा था, बाकी मुंबई पुलिस जांच के दौरान इस्तेमाल कर चुकी थी. ऐसे में एम्स के फोरैंसिक डिपार्टमेंट के लिए यह चुनौती और भी मुश्किल थी.

वैसे भी सुशांत केस में इतना झूठ, इतनी बयानबाजी और न्यूज चैनलों द्वारा इतना इनवैस्टीगेशन किया जा चुका है कि सच अपने मुद्दे से भटक कर बहुत पीछे रह गया. जिसतिस के बयानों और झूठ पर आधारित मनगढ़ंत किस्से न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर तैरतेगूंजते रहे, जिस में सब से ज्यादा झूठ सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया चक्रवर्ती ने और उन के फ्लैटमेट रहे सिद्धार्थ पिठानी ने ही बोला, जबकि ये दोनों ही उन के सब से ज्यादा करीबी थे.

यहां तक कि सिद्धार्थ ने सीबीआई को गुमराह करने में भी कसर नहीं छोड़ी. सिद्धार्थ को इस बात की जानकारी जनवरी से ही थी कि सुशांत को सिगरेट में ड्रग्स दी जाती है. इस के अलावा सिद्धार्थ ने अपने बयान में कहा था कि सुशांत की बौडी को फंदे से मीतू सिंह के कहने पर उतारा था, लेकिन जब सुशांत की बहन मीतू को सिद्धार्थ के सामने लाया गया तो उस ने मीतू सिंह के सामने कहा कि सुशांत का शव जब बैड पर रखा गया तब मीतू वहां पहुंची थीं.

जहां सुशांत ने कथित आत्महत्या की थी, उस घर की जांचपड़ताल करने के बाद एम्स की फोरैंसिक टीम ने इस संदर्भ में कहा था कि सुशांत की मौत के पीछे कोई बड़ा कारण है, क्योंकि सिद्धार्थ पिठानी सुशांत को फांसी के फंदे से उतारने का जो बयान दे रहे हैं, वह संदेह के दायरे में है.साथ ही टीम ने यह आशंका भी जाहिर की कि सुशांत की बौडी को जल्द डिस्पोजल करने के पीछे ड्रग्स भी बड़ी वजह हो सकती है, क्योंकि उन का पीएम (पोस्टमार्टम) सही तरीके से किया होता तो इस का खुलासा हो सकता था.

सुशांत केस में मुंबई पुलिस द्वारा कराए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और पोस्टमार्टम के दौरान की गई वीडियोग्राफी के फुटेज व अन्य फोटोग्राफ के आधार पर एम्स की टीम ने सुशांत की बौडी पर चोट के पैटर्न का भी विश्लेषण किया. फोरैंसिक एक्सपर्ट्स को रिपोर्ट में छोटीछोटी कई कमियां नजर आईं, उस से कई सवाल उठते थे.

एम्स की टीम हर पहलू से उन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने में जुटी थी, जिस में एक ऐंगल सुशांत की हत्या से भी संबंधित था, क्योंकि एम्स के मैडिकल बोर्ड ने शुरुआत में ही यह आशंका जाहिर की थी कि हत्या के ऐंगल को इग्नोर नहीं किया जा सकता.बहरहाल, 17 सितंबर को एम्स के फोरैंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष और सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मौत की जांच के लिए बनाए गए बोर्ड के चेयरमैन डा. सुधीर गुप्ता ने बयान जारी करते हुए कहा कि अगले हफ्ते मैडिकल बोर्ड अपनी राय सीबीआई को सौंप देगा और बोर्ड की राय निर्णायक होगी.

यानी सुशांत सिंह राजपूत के घरवालों और उन के चाहने वालों को अपने प्रिय स्टार की मौत का सच जानने के लिए कुछ और इंतजार करना होगा. उस स्टार की, जो चांद के ख्वाब देखता था, सितारों की दुनिया में जीता था और खुद स्टार बन कर रुपहले परदे पर चमकता था. यह सब के लिए अकल्पनीय था कि सुशांत इतनी जल्दी और इतना अचानक हमेशा के लिए अपनी सितारों की दुनिया में चला जाएगा और उसी का हिस्सा बन जाएगा.

फिल्म स्टार्स को शादी के ठुमकों से भी करोड़ों की कमाई

वाकया अब से कोई 8 साल पहले का है. मशहूर बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान एक शादी में शामिल होने के लिए दुबई गए थे. विवाहस्थल था नामी मेडिनाट जुमैराह होटल, मेजबान थे अहमद हसीम खूरी और मरियम ओथमन, जिन की गिनती खाड़ी के बड़े रईसों में शुमार होती है.

मौका था इन दोनों के बेटे की शादी का, जो इतने धूमधाम से हुई थी कि ऐसा लगा था कि इस में पैसा खर्च नहीं किया गया बल्कि फूंका और बहाया गया है. इस की वजह भी है कि शायद ही खुद अहमद हसीम खूरी को मालूम होगा कि उन के पास कितनी दौलत है.

एक आम पिता की तरह इस खास शख्स की यह ख्वाहिश थी कि बेटे की शादी इतने धूमधाम से हो कि दुनिया याद रखे और ऐसा हुआ भी, जिस में शाहरुख खान का वहां जा कर नाच का तड़का लगाना एक यादगार लम्हा बन गया था.

चूंकि खूरी शाहरुख के अच्छे परिचित हैं, इसलिए यह न सोचें कि वे संबंध निभाने और शिष्टाचारवश इस शादी में शिरकत करने गए थे, बल्कि हकीकत यह कि वह वहां किराए पर नाचने गए थे. आधे घंटे नाचने की कीमत शाहरुख ने 8 करोड़ रुपए वसूली थी और मेजबानों ने खुशीखुशी दी भी थी.

रियल एस्टेट से ले कर एयरलाइंस तक के कारोबार के किंग अहमद हसीम खूरी जो दरजनों छोटीबड़ी कंपनियों के मालिक हैं, के लिए यह वैसी ही बात थी जैसे किसी भेड़ के शरीर से 8-10 बाल झड़ जाना. लेकिन शाहरुख के लिए यह पैसा पूरी तरह से बख्शीश तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन बोनस जरूर था.

यह डील राशिद सैय्यद ने करवाई थी, जो दुबई में शाहरुख के इवेंट आयोजित करवाते हैं. इस डील में भी उन्हें तगड़ा कमीशन मिला था. यह वह दौर था जब शाहरुख खान अपनी बीमारी की वजह से निजी आयोजनों में जाने से परहेज करते थे, पर आधे घंटा ठुमका लगाने के एवज में मिल रही 8 करोड़ की रकम का लालच वह छोड़ नहीं पाए थे. क्योंकि सौदा कतई घाटे का न हो कर तगड़े मुनाफे का था.

ऐसा नहीं है कि शाहरुख देश की शादियों में नाचनेगाने की फीस चार्ज न करते हों. हां, वह कम जरूर होती है. आजकल वह शादियों में शामिल होने के 2 करोड़ लेते हैं और मेजबान अगर उन्हें नचाना भी चाहे तो यह फीस 3 करोड़ हो जाती है.

लेकिन समां ऐसा बंधता है कि लड़की या लड़के वाले के पैसे वसूल हो जाते हैं. शान से शादी करना हमेशा से ही लोगों की फितरत रही है और इस के लिए वे ज्यादा से ज्यादा दिखावा और खर्च करते हैं, जिस का बड़ा हिस्सा मनोरंजन पर खर्च होता है.

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करोड़ों के ठुमके

एक दौर था जब अमीरों और जमींदारों के यहां की शादियों में नामी रंडियां, बेड़नियां और तवायफें दूरदूर से नाचने के लिए बुलाई जाती थीं. इन का नाच देखने और मुजरा सुनने के लिए खासी भीड़ इकट्ठी होती थी.

प्रोग्राम के बाद लोग मान जाते थे कि वाकई मेजबान इलाके का सब से बड़ा रईस और दिलदार आदमी है, जिस ने 11 बेड़नियां नचा कर फलां को मात दे दी, जो अपने बेटे की शादी में केवल 5 तवायफें ही ला पाया था.

5 हों या 7 या फिर 11, इन पेशेवर नचनियों को खूब मानसम्मान दिया जाता था और उन की खातिर खुशामद में कोई कमी नहीं रखी जाती थी. इन की फीस भी तब के हिसाब से तौलें तो किसी शाहरुख, सलमान, रितिक रोशन, अक्षय कुमार, कटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा, रणवीर सिंह या प्रियंका चोपड़ा से कम नहीं होती थी.

ये सभी फिल्म स्टार शादियों और दूसरे निजी आयोजनों में हिस्सा लेने में अपनी और मेजबान की हैसियत के हिसाब से फीस लेते हैं, जो फिल्मों के अलावा इन की अतिरिक्त आमदनी होती है. हालांकि पैसों के लिए ये अब उद्घाटन के अलावा शपथ ग्रहण समारोहों तक में शामिल होने लगे हैं और विज्ञापनों व ब्रांड प्रमोशन से भी अनापशनाप कमाते हैं. लेकिन शादियों की बात कुछ अलग हटकर है.

वक्त के साथ शादियों के पुराने तौरतरीके बदले तो बेड़नियों और तवायफों की जगह फिल्म स्टार्स ने ले ली. शादियों में खासतौर से इन की मांग ज्यादा होती है, क्योंकि खुशी के इस मौके को लोग यादगार बना लेना चाहते हैं. ऐसे में अगर कोई फिल्मी सितारा वे अफोर्ड कर सकते हैं तो उसे बुलाने से चूकते नहीं.

ये डील सीधे भी होती हैं, पीआर एजेंसी और इवेंट कंपनियों के जरिए भी. और किसी जानपहचान वाले का फायदा भी उठाया जाता है. हालांकि अधिकांश बड़े सितारों ने इस बाबत अपने खुद के भी बिजनैस मैनेजर नियुक्त कर रखे हैं.

शाहरुख खान वक्त की कमी के चलते साल में 3-4 से ज्यादा शादियों में नहीं जाते. इस से ही उन्हें कोई 10 करोड़ की सालाना कमाई हो जाती है. शाहरुख की तरह ही सलमान खान भी साल में 3-4 शादियों में ही शिरकत करते हैं. हां, उन की फीस थोड़ी कम 2 करोड़ रुपए है.

सलमान शादियों में दिल से नाचते हैं और घरातियों और बारातियों को भी खूब नचाते हैं. शाहरुख के बाद सब से ज्यादा मांग उन्हीं की रहती है. आप जान कर हैरान हो सकते हैं कि इन दोनों के पास साल में ऐसे यानी पेड डांस के कोई 200 न्यौते आते हैं, लेकिन ये जाते सिर्फ 3 या 4 में ही हैं.

अक्षय नहीं दिखाते ज्यादा नखरे

जिन्हें शाहरुख या सलमान खान से मंजूरी नहीं मिलती, वे अक्षय कुमार जैसे स्टार की तरफ दौड़ लगा देते हैं जो आसानी से मिल जाते हैं और इन की फीस भी उन से कम होती है. आजकल अक्षय कुमार डेढ़ करोड़ में नाचने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन का बाजार ठंडा चल रहा है.

अक्षय कुमार की यह खूबी है कि बेगानी शादी में यह दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे वर या वधु पक्ष के बहुत अजीज हैं. अब यह और बात है कि समझने वाले समझ जाते हैं कि वे आए तो किराए पर नाचने हैं.

अक्षय कुमार से भी सस्ते पड़ते हैं रणवीर सिंह, जिन की शादी में नाचने की फीस सिर्फ एक करोड़ रुपए है और केवल शादी में शामिल होना हो यानी नाचना न हो तो वे 50 लाख में भी मुंह दिखाने को तैयार हो जाते हैं.

‘कहो न प्यार है’ फिल्म से रातोंरात स्टार बन बैठे रितिक रोशन शादी में शामिल होने के लिए एक करोड़ फीस चार्ज करते हैं और नाचना भी हो तो इस अमाउंट में 50 लाख रुपए और जुड़ जाते हैं. यानी डेढ़ करोड़ रुपए

कपूर खानदान के रणबीर कपूर कभीकभार ही ऐसे न्यौते स्वीकारते हैं, उन की फीस डेढ़ करोड़ रुपए है.

सस्ती पड़ती हैं एक्ट्रेस

नायकों के मुकाबले शादियों में नचाने को नायिकाएं सस्ती पड़ती हैं जबकि उन में आकर्षण ज्यादा होता है. सब से ज्यादा डिमांड कटरीना कैफ की रहती है, जिन की फीस बड़े नायकों के बराबर ढाई करोड़ रुपए है.

कटरीना को अपनी शादी में नाचते देखने का लुत्फ वही उठा सकता है, जो घंटा आधा घंटा के एवज में यह भारीभरकम रकम खर्च कर सकता हो. हालांकि ऐसे शौकीनों की कमी भी नहीं. कटरीना के बराबर ही मांग प्रियंका चोपड़ा की रहती है. उन की फीस भी ढाई करोड़ है, जिसे अदा कर उन से ठुमके लगवाए जा सकते हैं.

इन दोनों को टक्कर देने वाली करीना कपूर डेढ़ करोड़ में शादी को यादगार बनाने के लिए तैयार हो जाती हैं और नाचती भी दिल से हैं. तय है कपूर खानदान की होने के नाते वे भारतीय समाज और उस की मानसिकता को बारीकी से समझती हैं कि लोग बस इस मौके को जीना चाहते हैं जिस में उन का रोल एक विशिष्ट मेहमान का है.

उन के दादा राजकपूर की हिट फिल्म ‘प्रेम रोग’ में अचला सचदेव नायिका पद्मिनी कोल्हापुरे की शादी में बहैसियत तवायफ ही आई थीं. इस दृश्य के जरिए राजकपूर ने दिखाया था कि ठाकुरों और जमींदारों के यहां शादियों में नाचगाना 7 फेरों से कम अहमियत नहीं रखता और इस पर वे खूब पैसे लुटाते हैं.

रणवीर सिंह की पत्नी दीपिका पादुकोण भी सस्ते में शादी में जाने तैयार हो जाती हैं उन की फीस महज एक करोड़ रुपए है. नामी अभिनेत्रियों में सब से किफायती अनुष्का शर्मा हैं, जो शादी में शामिल होने के 50 लाख और नाचना भी हो तो एक करोड़ रुपए लेती हैं. क्रिकेटर विराट कोहली से शादी करने के बाद भी उन की फीस बढ़ी नहीं है.

वजह कुछ भी हो, शादी को रंगीन और यादगार बनाने के लिए अभिनेत्रियां कम पैसों में मिल जाती हैं. मसलन, सोनाक्षी सिन्हा जो मोलभाव करने पर 25 लाख में भी नाचने को राजी हो जाती हैं, जबकि वह भारीभरकम फीस वाली अभिनेत्रियों से उन्नीस नहीं और उन के मुकाबले जवान और ताजी भी हैं.

युवाओं में उन का खासा क्रेज है. सोनाक्षी से भी कम रेट में उपलब्ध रहती हैं दीया मिर्जा, सेलिना जेटली और गुजरे कल की चर्चित ऐक्ट्रेस प्रीति झिंगयानी और एक वक्त का बड़ा नाम अमीषा पटेल, जिन्होंने रितिक रोशन के साथ ही ‘कहो न प्यार है’ फिल्म से डेब्यू किया था.

इमेज है बड़ा फैक्टर

अपने बजट को ही नहीं बल्कि लोग इन कलाकारों को बुलाते समय अपनी प्रतिष्ठा और उन की इमेज को भी ध्यान में रखते हैं. क्या कोई अरबपति उद्योगपति राखी सावंत को अपने यहां शादी में बुलाएगा, जबकि उस की फीस महज 10 लाख रुपए है? जबाब है बिलकुल नहीं बुलाएगा, क्योंकि राखी की इमेज कैसी है यह सभी जानते हैं.

राखी सावंत को बुलाया तो जाता है और वह हर तरह से नाचती भी हैं लेकिन उन के क्लाइंट आमतौर पर वे नव मध्यमवर्गीय होते हैं जो अपनी धाक समाज में जमाना चाहते हैं.

यही हाल केवल 25 लाख में नाचने वाली पोर्न स्टार सनी लियोनी का है, जिन की क्लाइंटल रेंज उन्हीं की तरह काफी कुछ हट कर है.

राखी और सनी जैसी दरजन भर छोटी अभिनेत्रियों की आमदनी का बड़ा जरिया ये शादिया हैं, जिन में शिरकत करने और नाचने को वे एक पांव पर तैयार रहती हैं. इसी क्लब में मलाइका अरोड़ा भी शामिल हैं, जिन की फीस भी कम 15 लाख है.

हरियाणवी डांसर सपना चौधरी के धमाकेदार डांस और बेबाक अंदाज को तमाम लोग पसंद करते हैं. स्टेज शो के अलावा शादी समारोह में जाने के लिए वह एक लाख रुपए में ही तैयार हो जाती हैं. लेकिन वह 50 प्रतिशत एडवांस लेती हैं.

बड़े नायक और नायिकाएं अपने यहां शादियों में नचवा कर लोग न केवल अपनी रईसी झाड़ लेते हैं बल्कि धाक भी जमा लेते हैं. लेकिन कोई कभी खलनायकों को नहीं बुलाता. कभीकभार शक्ति कपूर शादियों में 10 लाख रुपए में ठुमका लगाने चले जाते हैं पर अब उन की इमेज कामेडियन और चरित्र अभिनेता की ज्यादा बन चुकी है. वैसे भी वह जिंदादिल कलाकार हैं जिस का बाजार और कीमत अब खत्म हो चले हैं.

बदलता दौर बदलते लोग

शादी में हंसीमजाक, नाचगाना न हो तो वह शादी कम एक औपचारिकता ज्यादा लगती है. इसलिए इन में हमेशा कुछ न कुछ नया होता रहता है.

60-70 के दशक में बेड़नियां और तवायफें नचाना उतने ही शान की बात होती थी, जितनी कि आज नामी स्टार्स को नचाना होती है. जरूरत बस जेब में पैसे होने की है. शादियों में नाचने से फिल्मी सितारों को आमदनी के साथसाथ पब्लिसिटी भी मिलती है.

इन के दीगर खर्च और नखरे भी आमतौर पर मेजबान को उठाने पड़ते हैं मसलन हवाई जहाज से आनेजाने का किराया, 5 सितारा होटलों में स्टाफ सहित ठहरने का खर्च और कभीकभी तो कपड़ों तक का भी. बशर्ते मेजबान ने यदि कोई ड्रेस कोड रखा हो तो नहीं तो ये लोग अपनी पसंद की पोशाक पहनते हैं.

शादियों में फिल्मी सितारों का फीस ले कर नाचने और ठुमकने का कोई ज्ञात इतिहास नहीं है, लेकिन इस की शुरुआत का श्रेय उन छोटीबड़ी आर्केस्ट्रा पार्टियों को जाता है, जिन्होंने 80 के दशक से शादियों में गीतसंगीत के स्टेज प्रोग्राम देने शुरू किए थे.

बाद में इन में धीरेधीरे छोटे और फ्लौप कलाकार भी नजर आने लगे. आइडिया चल निकला तो देखते ही देखते नामी सितारों ने इसे धंधा ही बना डाला.

शादियों में इस दौर में महिला संगीत और हल्दी मेहंदी का चलन भी तेजी से समारोहपूर्वक मनाने का बढ़ा था, जिस में रंग इन स्टार्स ने भरना शुरू कर दिया. थीम वेडिंग के रिवाज से भी इन की मांग बढ़ी.

इस के बाद भी यह बाजार बहुत बड़ा नहीं है क्योंकि इन की फीस बहुत ज्यादा है, जिसे कम लोग ही अफोर्ड कर पाते हैं. हां, सपना हर किसी का होता है कि उन के यहां शादी में कोई सलमान, शाहरुख, अक्षय, कटरीना या प्रियंका नाचें, लेकिन यह बहुत महंगा सपना है.

परमबीर सिंह : ऐसे बने महाराष्ट्र के सुपरकौप

परमबीर सिंह का जन्म 20 जून, 1962 को हरियाणा के फरीदाबाद स्थित पाओता मोहम्मदाबाद गांव के एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उन के पिता होशियार सिंह जाति से गुर्जर हैं तथा हिमाचल प्रदेश में एक तहसीलदार थे और मां एक गृहिणी हैं. परमबीर सिंह के 2 भाईबहन भी हैं.

जन्म के कुछ समय बाद ही मां बच्चों को ले कर चंडीगढ़ आ गईं, क्योंकि हिमाचल में नौकरी कर रहे पिता को चंडीगढ़ आ कर परिवार से मिलने में सुविधा होती थी. इसीलिए परमबीर जन्म के बाद किशोरवय उम्र तक चंडीगढ़ में ही पलेबढ़े और वहीं पर उन की शुरुआती पढ़ाई हुई.

उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा डीएवी इंटरनैशनल स्कूल, अमृतसर, पंजाब से पूरी की. उस के बाद उन्होंने चंडीगढ़ विश्वविद्यालय, पंजाब में दाखिला लिया, जहां से उन्होंने समाजशास्त्र से एमए किया.

बचपन से ही उन का झुकाव सिविल सेवा की ओर था. 1988 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और एक आईपीएस अधिकारी के रूप में महाराष्ट्र कैडर से पुलिस में शामिल हो गए. अपनी 32 साल की सेवा में उन्होंने महाराष्ट्र में अपराध को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

परमबीर सिंह की सविता सिंह एक वकील हैं, जो एलआईसी हाउसिंग फाइनैंस लिमिटेड नामक एक निजी कंपनी की निदेशक हैं. सविता सिंह 5 कंपनियों में डायरेक्टर हैं. हालांकि एलआईसी हाउसिंग ने पिछले साल जब टीआरपी मामले में परमबीर सिंह सुर्खियों में आए तो जबरदस्ती उन से बोर्ड से इस्तीफा दिलवा दिया था.

सविता सिंह एक बड़ी कारपोरेट प्लेयर हैं. सविता इंडिया बुल्स ग्रुप की 2 कंपनियों में भी डायरेक्टर हैं. वह एडवोकेट फर्म खेतान एंड कंपनी में पार्टनर हैं. सविता कौंप्लैक्स रियल एस्टेट ट्रांजैक्शन और विवादों के लिए अपने ग्राहकों को सलाह देती हैं.

वह ट्रस्ट डीड, रिलीज डीड और गिफ्ट डीड पर भी सलाह देती हैं. उन के ग्राहकों में ओनर, खरीदार, डेवलपर्स, कारपोरेट हाउसेज, घरेलू निवेशक और विदेशी निवेशक शामिल हैं.

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सविता सिंह ने हरियाणा की कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रैजुएट की डिग्री हासिल की है. इस के बाद उन्होंने मुंबई से ला में ग्रैजुएशन किया. वह 28 मार्च, 2018 को इंडिया बुल्स प्रौपर्टी की डायरेक्टर बनी थीं. यस ट्रस्टी में भी 17 अक्तूबर, 2017 को डायरेक्टर बनीं. वह इंडिया बुल्स असेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी में भी डायरेक्टर हैं. सोरिल इंफ्रा में भी डायरेक्टर थीं.

सोरिल इंडिया बुल्स की ही कंपनी है. कहा जाता है कि वह खेतान से सालाना 2 करोड़ रुपए से ज्यादा कमाती हैं.

परमबीर के इकलौते बेटे रोहन सिंह की शादी राधिका मेघे से हुई थी, जो नागपुर के एक बहुत बड़े बिजनैसमैन सागर मेघे की बेटी हैं. परमबीर सिंह के बेटे रोहन की शादी बेंगलुरु में बहुत ही धूमधाम से हुई थी. रोहन की पत्नी राधिका बीजेपी के कद्दावर नेता दत्ता मेघे की पोती हैं. दत्ता मेघे विदर्भ के अलगाव आंदोलन के सब से बड़ा चेहरा थे.

राधिका के पिता सागर मेघे नागपुर में बिजनैसमैन हैं. वह लोकसभा चुनाव भी लड़े थे, पर हार गए. उन के चाचा समीर मेघे विधायक हैं. कहा जाता है कि शादी का पूरा खर्च मेघे परिवार ने उठाया था. बाद में रोहन के परिवार ने मुंबई में रिसैप्शन दिया था.

परमबीर के एक भाई मनबीर सिंह भड़ाना हरियाणा के जानेमाने वकील तथा दूसरे हरियाणा प्रादेशिक सर्विस कमीशन के सब से युवा और सबसे लंबे अरसे तक सेवा करने वाले चेयरमैन रहे हैं. परमबीर सिंह की बेटी रैना विवाहित है और लंदन में एक कारपोरेट हाउस में नौकरी करती है.

1988 में अपने करियर की शुरुआत करने वाले परमबीर सिंह पुलिस सेवा की शुरुआत में जिला चंद्रपुर और जिला भंडारा के एसपी रह चुके हैं. वह मुंबई के कई जिलों में डीसीपी रह चुके हैं और हर तरह के अपराध पर उन की पैनी पकड़ रही है.

वह एटीएस में डीआईजी के पद का कार्यभार भी संभाल चुके हैं. महाराष्ट्र के ला ऐंड और्डर के एडिशनल डीजीपी का पद भी संभाल चुके हैं. उन्हें 90 के दशक में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड यानी एसओएस का गठन करने के लिए भी जाना जाता है.

इस फोर्स ने अंडरवर्ल्ड और अपराधियों का जितना एनकाउंटर किया है, वह एक रिकौर्ड है. अंडरवर्ल्ड डौन के विरुद्ध एसओजी ने कई बड़े और सटीक औपरेशन किए. परमबीर सिंह को सख्त और तेजतर्रार औफिसर माना जाता है, जो किसी भी परिस्थिति को बखूबी हैंडल करना जानते हैं.

सितंबर 2017 में दाऊद इब्राहिम के भाई इकबाल कासकर की गिरफ्तारी के वक्त वह ठाणे के पुलिस कमिश्नर थे. इकबाल को बिल्डर से उगाही की धमकी के आरोप में ठाणे क्राइम ब्रांच ने गिरफ्तार किया था.

90 के दशक में मुंबई पुलिस ने जौइंट सीपी अरविंद इनामदार के निर्देशन में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड बनाया था. परमबीर सिंह इस स्क्वायड के पहले डीसीपी थे. ठाणे के पुलिस कमिश्नर रहते हुए उन्होंने अपने कार्यकाल में एक हाईप्रोफाइल फरजी काल सेंटर रैकेट का परदाफाश भी किया था.

यह रैकेट अमेरिकी नागरिकों को अपने जाल में फंसाता था, जिस की वजह से एफबीआई की नजरों में था.

काल रैकेट आरोपी सागर का खुलासा भी परमबीर सिंह ने ही किया था. नवी मुंबई में हुए दंगों के दौरान वह खुद दंगाग्रस्त इलाकों में गए और सभी संप्रदाय के लोगों को समझाबुझा कर हिंसा को काबू में किया था.

अपने करियर में कई उपलब्धियां हासिल करने वाले परमबीर सिंह ने पुणे में अर्बन नक्सल नेटवर्क का भी खुलासा किया था.

परमबीर सिंह मुंबई के कई जोन्स के डीसीपी का पदभार संभाल चुके हैं. साथ ही मुंबई के वेस्टर्न रीजन जैसे हाईप्रोफाइल इलाके में उन्होंने एडिशनल कमिश्नर का पदभार भी संभाला.

वह महाराष्ट्र और मुंबई को क्राइम फ्री बनाने की दिशा में हमेशा सक्रिय रहे हैं. परमबीर सिंह कई पुरस्कार व पदकों से सम्मानित हो चुके हैं, जिन में मेधावी सेवा व विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक शामिल हैं.

IPS नवनीत सिकेरा : जानें ‘भौकाल’ वेब सीरीज के असली हीरो के बारे में

इन दिनों ओटीटी प्लेटफार्म पर वेब सीरीज ‘भौकाल’ के दूसरे भाग की काफी चर्चा है. उस में यूपी के एक जांबाज आईपीएस को शातिर ईनामी अपराधियों से सामना करते दिखाया गया है. बात सितंबर 2003 की है, तब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जनता बढ़ते अपराधों को ले कर बेहद परेशान थी. मुजफ्फरनगर के माथे पर तो क्राइम के कलंक का जैसे धब्बा लग चुका था. आए दिन अपहरण, हत्या, बलात्कार, लूट और डकैती की होने वाली ताबड़तोड़ वारदातों से समाजवादी पार्टी की मुलायम की सरकार पर लगातार आरोपों की बौछार हो रही थी.

मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को विधानसभा में विपक्षी राजनीतिक दलों के सवालों के जवाब देते नहीं बन पा रहा था. कारण था शातिरों के सक्रिय कई गैंग और उन की बेखौफ आपराधिक घटनाएं. वे अपराध को अंजाम देने से जरा भी नहीं हिचकते थे.

मुख्यमंत्री ने पुलिस विभाग के आला अफसरों की गोपनीय बैठक बुलाई थी. उन के बीच फन उठाए अपराधों को ले कर गहन चर्चा हुई. बेकाबू अपराधों पर अंकुश लगाने के वास्ते कुछ नीतियां बनीं और कुछ जांबाज पुलिसकर्मियों की लिस्ट बनाई गई. उन्हीं में एक आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा का नाम भी शामिल था.

तुरंत उस निर्णय पर काररवाई की गई. अगले रोज ही आईपीएस नवनीत सिकेरा मुजफ्फरनगर के एसएसपी के पद पर तैनात कर दिए गए. तब डीआईजी मेरठ ने उन्हें पत्र सौंपते हुए कहा था, ‘इस देश में 2 राजधानियां हैं— एक दिल्ली जहां कानून बनाए जाते हैं, दूसरी मुजफ्फरनगर (क्राइम कैपिटल) जहां कानून तोड़े जाते हैं.’

यह कहने का सीधा और स्पष्ट निर्देश था कि कानून तोड़ने वाले को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाना चाहिए. दरअसल, 49 वर्षीय नवनीत सिकेरा उत्तर प्रदेश कैडर के 1996 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं. इन दिनों वह उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक हैं. इस से पहले वह इंसपेक्टर जनरल थे.

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वैसे तो उन्होंने आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है. कंप्यूटर साइंस में बीटेक और एमटेक की डिग्री हासिल करने के बावजूद वह पिता को आए दिन मिलने वाली धमकियों की वजह से आईपीएस बनने के लिए प्रेरित हुए. हालांकि उन्होंने भारत में यूपीएससी की सब से बड़ी परीक्षा अच्छे रैंक के साथ पास की थी और आईएएस के लिए चुने गए थे.

सिकेरा की सूझबूझ और जांबाजी

आईआईटी रुड़की से इंजीनियरिंग और फिर आईपीएस बने नवनीत सिकेरा ने मुजफ्फरनगर का जिम्मा संभालने के तुरंत बाद इलाके में हुई मुख्य वारदातों की सूची के साथ उन के आरोपियों की डिटेल्स मंगवाई. यह देख कर उन्हें हैरानी हुई कि अधिकतर आरोपी हजारों रुपए के ईनामी भी थे.

आरोपियों ने बाकायदा गैंग बना रखे थे. पुलिस की आंखों में धूल झोंकना उन के लिए बाएं हाथ का खेल था. यहां तक कि वे पुलिस पर भी हमला करने से नहीं चूकते थे.

उन्हीं बदमाशों में शौकीन, बिट्टू और नीटू कैल की पूरे जिले में दहशत थी. छपारा थाना क्षेत्र के गांव बरला के रहने वाले शौकीन पर 20 हजार रुपए का ईनाम घोषित था. इस के अलावा थाना भवन क्षेत्र के गांव कैल शिकारपुर निवासी बिट्टू और नीटू की आपराधिक वारदातों से भी जिले में दहशत फैली हुई थी.

शौकीन ने गांव के ही 2 लोगों की हत्या के अलावा अपहरण और हत्या की कई वारदातों को अंजाम दिया था.

सिकेरा ने कंप्यूटर साइंस की इंजीनियरिंग का इस्तेमाल शातिरों की आपराधिक गतिविधियों के साथ कनेक्ट करने में लगाया. सूझबूझ से अपनाई गई डेटा एनालिसिस की तकनीक क्राइम से निपटने में काम आई.

जल्द ही शातिरों के खिलाफ रणनीति बनाने में उन्हें पहली कामयाबी मिली और उन्होंने शौकीन को एनकाउंटर में मार गिराया. उस के बाद नीटू और बिट्टू भी मारे गए. दोनों वैसे शातिर थे, जिन पर पुलिस पर ही हमला कर कारबाइन भी लूटने के आरोप थे.

उस के बाद वह सिकेरा से ‘शिकारी’ बन गए थे. यह संबोधन थाना भवन में बिट्टू कैल का एनकाउंटर करने पर तत्कालीन डीआईजी चंद्रिका राय ने दिया था. तब उन्होंने सिकेरा के बजाए नवनीत ‘शिकारी’ कह कर संबोधित किया था.

हालांकि नवनीत सिकेरा 6 सितंबर, 2003 से ले कर पहली दिसंबर, 2004 तक मुजफ्फरनगर में एसएसपी पद पर रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 55 शातिर और ईनामी बदमाशों को एनकाउंटर में ढेर कर दिया था.

एनकांउटर में मारे गए बदमाशों में पूर्वांचल के शातिर शैलेश पाठक, बिजनौर का छोटा नवाब, रोहताश गुर्जर, मेरठ का शातिर अंजार, पुष्पेंद्र, संदीप उर्फ नीटू कैल, नरेंद्र उर्फ बिट्टू कैल आदि शामिल थे. वैसे यूपी में उन के द्वारा कुल 60 एनकाउंटर करने का रिकौर्ड है.

सब से खतरनाक एनकाउंटर

मुजफ्फरनगर के छोटेमोटे बदमाशों के दबोचे जाने के बावजूद कई खूंखार शातिर बेखौफ छुट्टा घूम रहे थे. उन में कई जमानत पर छूटे हुए थे, तो कुछ दुबके थे.

उन्हीं में शातिर रमेश कालिया का नाम भी काफी चर्चा में था. उस ने पुलिस की नाक में दम कर रखा था. वह भी ईनामी बदमाश था और फरार चल रहा था.

रमेश कालिया लखनऊ का रहने वाला एक खतरनाक रैकेटियर था. उस का मुख्य धंधा उत्तर प्रदेश के कंस्ट्रक्टर और बिल्डरों से जबरन पैसा उगाही का था. साल 2002 में जब समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. तब मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव के सामने प्रदेश की कानूनव्यवस्था को सुधारना बड़ी चुनौती थी.

सरकार के लिए कालिया नाक का सवाल बना हुआ था. उस ने पूरी राजधानी को अपने शिकंजे में ले रखा था. वह गैंगस्टर बना हुआ था. उस के माफिया राज की जबरदस्त दहशत थी.

उस के गुंडे और शूटर बदमाशों द्वारा आए दिन लूटपाट, डकैती, हत्या और फिरौती की वारदातों से सामान्य नागरिकों में काफी दहशत थी, यहां तक कि राजनीतिक दलों के नेता तक उस के नाम से खौफ खाते थे.

और तो और, सितंबर 2004 में समाजवादी पार्टी के एमएलसी अजीत सिंह की हत्या का रमेश कालिया ही आरोपी था. अजीत सिंह की हत्या उन के जन्मदिन के मौके पर ही कर दी गई थी. इस कारण राज्य की चरमराई कानूनव्यवस्था और नागरिकों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े हो गए थे.

तब तक नवनीत सिकेरा का नाम पुलिस महकमे में काफी लोकप्रिय हो चुका था. यह देखते हुए ही सिकेरा को उस के खात्मे की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.

कालिया 14 साल की उम्र से ही क्राइम की दुनिया में था. उस उम्र में उस ने एक व्यक्ति पर जानलेवा हमला कर दिया था, जिस कारण वह पहली बार जेल गया था. जेल से छूटने के बाद लखनऊ के कुख्यात माफिया सूरजपाल के संपर्क में आ गया था. उस के साथ काफी समय तक रहते हुए वह शातिर बदमाश बन चुका था. वह कई आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो गया था.

सूरजपाल की मौत के बाद वह उस के गिरोह का सरगना भी बन गया था. इस तरह उस पर कुल 22 केस दर्ज हो गए थे, जिन में से 12 हत्याओं के अलावा 10 मामले हत्या का प्रयास करने के थे. उस पर कांग्रेसी नेता लक्ष्मी नारायण, सपा एमएलसी अजीत सिंह और चिनहट के वकील रामसेवक गुप्ता की हत्या का आरोप था.

इस लिहाज से खूंखार कालिया को शिकंजे में लेना आसान नहीं था. उन दिनों सिकेरा की पोस्टिंग मुजफ्फरनगर के बाद मेरठ में हो चुकी थी. वहां भी लोग आपराधिक घटनाओं से त्रस्त थे.

सिकेरा ने अपराधियों पर नकेल कसनी शुरू कर दी थी. उन का नाम लोगों ने सुन रखा था और उन से उम्मीदें भी खूब थीं.

उन्हीं दिनों प्रौपर्टी डीलर इम्तियाज ने कालिया द्वारा जबरन वसूली की मोटी रकम की शिकायत दर्ज करवाई थी. उन्होंने इस बारे में सिकेरा से मिल कर पूरी जानकारी दी थी कि वह पैसे के लिए कैसे तंग करता रहता है.

प्रौपर्टी डीलर ने सिकेरा को जबरन वसूली संबंधी पूछताछ के सिलसिले में बताया था कि उन्होंने कालिया को 40 हजार रुपए दिए थे, जबकि उस की मांग 80 हजार रुपए की थी. कम रुपए देख कर वह गुस्से में आ गया था और उस पर पिस्तौल तान दी थी.

इम्तियाज की शिकायत पर सिकेरा ने वांटेड अपराधी को घेर कर दबोचने की योजना बनाई. उन्होंने पहले एक मजबूत टीम बनाई. टीम में जांबाज पुलिसकर्मियों को शामिल किया और सभी को पूरी प्लानिंग के साथ अच्छी ट्रेनिंग दी.

सिकेरा को 12 फरवरी, 2005 को रमेश कालिया के निलमथा में होने की खबर मिली. यह सूचना उन्होंने तुरंत अपनी टीम के खास साथियों को बुला कर एनकाउंटर का प्लान बनाया.

राजनेताओं के संरक्षण के चलते बेखौफ रमेश कालिया पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ व्यापारियों से रंगदारी वसूला करता था. उस ने एक बिल्डर से 5 लाख रुपए की मांग की थी. इस के लिए निलमथा इलाके में निर्माणाधीन मकान पर बुलाया था.

बारातियों की वेशभूषा में किया एनकाउंटर

उस ने चारों ओर अपने साथियों को मुस्तैद कर रखा था. उस के अड्डे तक पहुंचने का कोई रास्ता नजर न आने पर सिकेरा ने पुलिस की नकली बारात की रूपरेखा तैयार की थी. बैंडबाजे के साथ बारात निलमथा में रमेश कालिया के अड्डे तक जा पहुंची.

उस के बाद सिकेरा ने कालिया को दबोचने के लिए अनोखा प्लान बनाया. उन्होंने पुलिस टीम को बारातियों की वेशभूषा में निलमथा में भेज दिया. उन्हें यह भी मालूम हुआ था कि वह बारात लूटपाट की भी वारदातें कर चुका था.

नकली बारात में एक महिला सिपाही सुमन वर्मा को दुलहन बना दिया गया. उन्हें काफी जेवर पहना दिए गए थे. चिनहट के इंसपेक्टर एस.के. प्रताप सिंह दूल्हे के गेटअप में थे.

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नाचतेगाते बारातियों ने कालिया को चारों तरफ से घेर लिया. उस ने रास्ता लेने के लिए गुस्से में पिस्तौल निकाल ली. वह अभी हवाई फायर करने वाला ही था कि बाराती बने पुलिसकर्मी ऐक्शन में आ गए.

उस का भी वही हश्र हुआ, जो इस से पहले सिकेरा के हाथों अन्य बदमाशों का हुआ था. लगभग 20 मिनट तक चले इस औपरेशन में पुलिस और कालिया गिरोह के बीच 50 से अधिक गोलियां चली थीं. इस गोलीबारी में पुलिस ने रमेश कालिया को ढेर कर दिया था.

पुलिस महकमे में यह खबर आग की तरह फैल गई कि कालिया एनकाउंटर में मारा गया. यह खबर मीडिया में सुर्खियां बन गई. इसी के साथ आईपीएस सिकेरा के नाम एक और शाबाशी का तमगा जुड़ गया. तब तक वे 60 एनकाउंटर कर चुके थे.

सिकेरा की 10 महीने की कप्तानी में इतने एनकाउंटर एक रिकौर्ड है. शिकायतों पर काररवाई करा कर उन्होंने नागरिकों का ऐसा विश्वास जीता कि शहर से ले कर गांव तक उन का खुद का नेटवर्क बन गया था.

कालिया की मौत के बाद लोगों ने काफी राहत महसूस की.

सिकेरा का जब वहां से ट्रांसफर किया गया, तो लोगों को काफी सदमा लगा. वे नहीं चाहते थे कि सिकेरा कहीं और जाएं. उन की लोकप्रियता का यह आलम था कि शहर में उन्हें वापस बुलाने के लिए जगहजगह पोस्टर लगा दिए.

इस सफलता के बाद आईपीएस नवनीत सिकेरा को सन 2005 में विशिष्ट सेवा के लिए राष्ट्रपति का पुलिस पदक मिला था. मुजफ्फरनगर और लखनऊ के अलावा सिकेरा ने वाराणसी में भी एसएसपी के पद कार्य किया. उस के बाद सिकेरा ने जनपद मेरठ के एसएसपी के पद पर कार्यभार ग्रहण किया था.

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में भी वह एसएसपी के पद पर तैनात रहे थे. उन की पोस्टिंग जहां भी हुई, वहां अपराधियों में खौफ बना रहा. उन का सन 2012 में डीआईजी के पद पर प्रमोशन हो गया था. उस के अगले साल 2013 में उन्हें  मेधावी सेवा हेतु राष्ट्रपति के पुलिस पदक से नवाजा गया था.

उन्होंने 2 साल तक डीआईजी रह कर कार्य किया. फिर साल 2014 में वह आईजी बना दिए गए. सन 2015 में डीजीपी द्वारा उन्हें रजत पदक दिया गया. उस के बाद 2018 में डीजीपी द्वारा ही स्वर्ण पदक से नवाजा गया.

सुपरकौप बन कर उभरे सिकेरा

‘सुपर कौप’ बन कर उभरे आईपीएस नवनीत सिकेरा के उस दौर में हुए बदमाशों के खात्मे की कहानी को वेब सीरीज ‘भौकाल’ में दिखाया जा चुका है.

इस में नवनीत सिकेरा के किरदार का नाम नवीन सिकेरा है, कुछ अन्य किरदारों के नाम भी बदल दिए गए हैं. यह सीरीज नवनीत सिकेरा के उस समय के कार्यकाल पर आधारित है, जब वह यूपी के मुजफ्फरनगर में बतौर एसएसपी तैनात हुए. उन की शादी डा. पूजा ठाकुर सिकेरा से हुई, जिन से एक बेटा दिव्यांश और एक बेटी आर्या है.

अपराधियों को नाकों चना चबाने पर मजबूर करने वाले नवनीत सिकेरा ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए विशेष कदम उठाया और वीमेन पावर हेल्पलाइन 1090 की शुरुआत की.

इसे कारगर बनाने के लिए काउंसलिंग और सोशल साइटों का भी इस्तेमाल किया. इस से लड़कियों को काफी हिम्मत मिली. जिस की कमान बतौर आईजी के पद पर रहते हुए सिकेरा ने खुद संभाल रखी थी.

वीमेन पावर लाइन-1090 शुरू होते ही पूरे प्रदेश में मशहूर हो गई. शहरों के अलावा गांव से भी महिलाओं द्वारा 1090 पर काल कर मदद मांगी जाने लगी.

प्राप्त जानकारी के अनुसार वीमन पावर लाइन में हर साल तकरीबन 2 लाख शिकायतें दर्ज होती हैं, जिस के निस्तारण के लिए एक टीम लगाई गई है. सिकेरा वीमेन पावर लाइन को अपने जीवन की एक बहुत बड़ी उपलब्धि मानते हैं.

सिकेरा की सफलता के पीछे लंबा संघर्ष

उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर से आने वाले नवनीत सिकेरा को लंबे संषर्घ का सामना करना पड़ा. पढ़ाई के दरम्यान कई बार उपेक्षा और तिरस्कार से जूझना पड़ा.

शिक्षण संस्थानों के कर्मचारियों के रूखे व्यवहार के आगे तिलमिलाए, झल्लाहट हुई, किंतु उन्होंने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और मेहनत के बूते वह सब हासिल कर लिया, जिस की उन्होंने भी कल्पना नहीं की थी. एटा जिले में किसान मनोहर सिंह के घर जन्म लेने वाले नवनीत सिकेरा ने हाईस्कूल तक की पढ़ाई उसी जिले के एक सरकारी स्कूल से की थी. उन का घर छोटे से गांव में था. हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़ने के कारण अंगरेजी भाषा पर उन की अच्छी पकड़ नहीं थी.

12वीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद वह दिल्ली हंसराज कालेज में बी.एससी में प्रवेश के लिए गए. अंगरेजी पर अच्छी पकड़ नहीं आने के कारण कालेज के क्लर्क ने एडमिशन फार्म तक नहीं दिया. फार्म नहीं मिलने पर सिकेरा दुखी हो गए, किंतु हार नहीं मानी.

खुद से किताबें खरीद कर पढ़ाई करने लगे. पहले अंगरेजी ठीक की. बाद में इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने लगे. उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से पहली बार में आईआईटी जैसी परीक्षा पास कर ली.

उन का नामांकन आईआईटी रुड़की में हो गया. वहां से उन्होंने कंप्यूटर सांइस ऐंड इंजीनियरिंग से बीटेक की पढ़ाई पूरी की. उन्होंने अपना लक्ष्य एक अच्छा सौफ्टवेयर इंजीनियर बनने का बनाया. लगातार वह अपने लक्ष्य पर निशाना साधे रहे.

बीटेक की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली आईआईटी में एमटेक में दाखिला ले लिया. एमटेक की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने पाया कि उन के पिता मनोहर सिंह के पास कुछ धमकी भरे फोन आते थे, जिस से वह बहुत परेशान हो जाते थे. उस के बाद जो वाकया हुआ, उस ने सिकेरा की जिंदगी ही बदल कर रख दी.

अपमान ने जगा दिया जज्बा

दरअसल, गांव में उन के पिता ने अपनी जमापूंजी से कुछ जमीन खरीदी थी. जिस पर असामाजिक तत्त्वों ने कब्जा कर लिया था. इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर गांव लौटे नवनीत पिता को ले कर थाना गए थे, लेकिन वहां पुलिस अधिकारी ने उन की कोई मदद नहीं की. उल्टे उन्हें ही बुराभला सुना दिया.

जब पिता ने बेटे का परिचय एक इंजीनियर के रूप में देते हुए कहा कि उन का बेटा पढ़ालिखा है, तब पुलिस वाले ने एक और ताना मारा, ‘ऐसे इंजीनियर यूं ही बेगार फिरते हैं.’

इस घटना ने सिकेरा को अंदर से झकझोर कर रख दिया. उन्होंने एमटेक करने का विचार छोड़ दिया और देश की सब से प्रतिष्ठित सेवा यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी.

शानदार रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली, उन्हें आईएएस के अच्छे रैंक के साथ प्रशासनिक पदाधिकारी की पेशकश की गई. लेकिन उन्होंने सबडिवीजनल औफिसर और कलेक्टर बनने के बजाय आईपीएस बनना पसंद किया.

उन की हैदराबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में 2 साल की ट्रेनिंग हुई और वे 1996 बैच के आईपीएस अफसर बन गए.

उस के बाद उन की पहली पोस्टिंग बतौर आईपीएस अधिकारी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर में एएसपी के पद पर मिली.

कुछ समय में उन का तबादला मेरठ हो गया. उस के बाद वे कुछ समय तक जनपद मुरादाबाद में एसपी रेलवे के पद पर रहे. वहां उन की तैनाती टैक्निकल सर्विसेज एसपी के पद पर की गई थी.

सन 2001 में आईपीएस नवनीत सिकेरा को जीपीएस-जीआईएस आधारित आटोमैटिक वेहिकल लोकेशन सिस्टम विकसित करने के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने 5 लाख के पुरस्कार से सम्मानित किया था.

नवनीत सिकेरा के फेसबुक पेज उन के कारनामों से भरे पड़े हैं. अधिकतर पोस्ट उन्होंने खुद लिखे हैं. उन्होंने अपने पोस्ट के जरिए बताया है कि कैसे यूपी में पुलिस का चेहरा बदला और क्राइम को कंट्रोल में लाने में सफलता मिली.

आईपीएस नवनीत सिकेरा की एक विशेष खूबी यह रही कि उन्होंने तकनीक को भी एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. पुलिस को सर्विलांस की नई टैक्नोलौजी से परिचित करवाया.

उन के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने यूपी पुलिस को एक ऐसा तकनीकी मुखबिर देने का काम किया था, जब पुलिस विभाग में कंप्यूटरीकरण का नामोनिशान नहीं था.

वह  पुलिस के लिए सर्विलांस जैसा मुखबिर ले कर आए और इस का प्रयोग करते हुए मुजफ्फरनगर में बदमाशों के खौफ के गढ़ को ढहाने का काम किया.

एनकाउंटर के दौरान उन्होंने बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर से खूंखार बदमाशों को न केवल रौंद डाला, बल्कि छिटपुट बदमाशों को दुबकने पर मजबूर कर दिया.

ऐसा उन्होंने फौरेस्ट कांबिंग के लिए किया था. बुलेटप्रूफ ट्रैक्टर पर वह एके-47 ले कर खुद सवार होते थे और जंगलों में छिपे बदमाशों को उन के अंजाम तक पहुंचा देते थे.