100 लाशों के साथ सेक्स करने वाला इलेक्ट्रीशियन

इंग्लैड के ईस्ट ससेक्स राज्य में ब्रिटिश पुलिस को 34 सालों से 2 युवतियों के हत्यारे की तलाश थी. इस के लिए पुलिस ने जबरदस्त जाल बिछा रखा था. फिर भी हत्यारे पकड़ से बाहर थे. इस कारण पुलिस ने जासूसों की टीम भी लगाई.

मामला 25 वर्षीया वेंडी नेल और 20 साल की कैरोलिन पियर्स की हत्याओं का था. उन के साथ दुष्कर्म भी हुआ था. दोनों टुगब्रिज वेल्स में रहती थीं और अलगअलग वारदातों में 1987 में दोनों की हत्या कर दी गई थी. उस हत्याकांड को ‘बेडसिट मर्डर्स’ के रूप में जाना गया था.

नेल गिल्डफोर्ड रोड स्थित अपने अपार्टमेंट में 23 जून, 1987 को मृत पाई गई थी. पुलिस को इस की सूचना उस के मंगेतर ने दी थी. उस के शरीर पर कई जख्म थे. जबकि पियर्स की लाश उसी साल 5 महीने बाद 24 नवंबर को उन के घर से 40 मील दूर बांध के पानी में तैरती हुई बरामद हुई थी.

उन की मौत के सिलसिले में हुई जांच में हत्या और दुष्कर्म के जो सुराग मिले थे, उस के अनुसार मृतकों के शरीर, अंगवस्त्र, तौलिए, बैडशीट आदि से मिले एक जैसे डीएनए को सबूत का आधार बनाया गया था.

उस डीएनए वाले व्यक्ति का पता लगाने के लिए 15 दिसंबर, 1987 को अदालती आदेश के बाद ब्रिटिश पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी.

फोरैंसिक वैज्ञानिकों द्वारा 1999 में डीएनए जांच के आधुनिक तरीके अपनाए गए थे और इस के लिए एक नैशनल लेवल पर डेटाबेस तैयार किया गया था.

दोनों लड़कियों के सैकड़ों करीबियों से पूछताछ के साथसाथ उन के डीएनए की भी जांच की गई थी. रिश्तेदारों, दोस्तों और फिर उन के करीबियों से जांच के सिलसिले में डेविड फुलर के घर वालों के डीएनए की भी जांच हुई, जिसे हत्या के आरोप में पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका था.

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इस तरह पुलिस को अंतत: 2019 में सफलता मिल गई, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से उस की गिरफ्तारी 3 दिसंबर, 2020 को हो पाई.

67 वर्षीय डेविड फुलर को ईस्ट ससेक्स के हीथफील्ड स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उस का डीएनएन मृतकों से प्राप्त नमूने से मेल खाता था. इसी के साथ जब उस के घर की गहन तलाशी ली गई, तब यौन अपराध का जो राज खुला, वह जितना चौंकाने वाला था, उतना ही घिनौना भी था.

फुलर के अनगिनत कुकर्मों का खुलासा उस के घर और घर के कार्यालय की तलाशी के बाद हुआ. पुलिस को कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, सीडी, डीवीडी और फ्लौपी डिस्क में 14 मिलियन से अधिक अश्लील तसवीरें भरी मिलीं. उन में बच्चों की लाश के साथ अश्लील वीडियो भी थे. सभी अलगअलग फोल्डर में रखे गए थे और उन पर नाम का लेबल भी लगाया गया था. साथ ही एक डायरी में यौन अपराधों का काला चिट्ठा दर्ज था.

उसी आधार पर पुलिस ने पाया कि फुलर अपनी वासना की आग बुझाने के लिए 2 मुर्दाघरों में महिलाओं की लाशों के साथ दुष्कर्म किया करता था. यह कुकर्म वह करीब 100 लाशों के साथ कर चुका था, जिन में 9 साल की बच्ची से ले कर 100 साल की वृद्धा तक की लाशें शामिल थीं. यह सब उस ने तब किया था, जब वह हीथफील्ड अस्पताल में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी करता था.

ये सारी बातें फुलर ने मेडस्टोन क्राउन अदालत में दोनों लड़कियों की हत्या को ले कर हुई सुनवाई के दौरान स्वीकार की. उस ने यह भी बताया कि दोनों की बेरहमी से हत्या करने के बाद उस की लाश के साथ दुष्कर्म किया था. तभी नेल के तौलिए, अंडरगारमेंट, और लार में फुलर का डीएनए पाया गया था.

फुलर के जुर्म से इंग्लैंड की अदालत भी दंग थी. कोर्ट ने माना कि ब्रिटेन या कहें कि दुनिया के इतिहास में इतना खौफनाक और दर्दनाक वाकया शायद कभी नहीं गुजरा, लिहाजा कोर्ट ने इस मामले को बेहद संजीदगी से लेते हुए उसे अपराधी ठहरा दिया.

न्यायाधीश चीमा ग्रव ने फुलर को उन की हत्याओं के अलावा 51 अलगअलग मामलों के अपराधों का भी दोषी करार दिया, जिस में 44 मामले लाशों से छेड़छाड़ के थे. साथ ही मुर्दाघरों में 78 लाशों की भी पहचान कर ली गई. उसे 2 लड़कियों नेल और पियर्स की हत्या के लिए भी दोषी ठहराया गया.

कैरोलीन पियर्स का फुलर ने 24 नवंबर, 1987 को उस के घर के बाहर ग्रोसवेन पार्क से अपहरण कर लिया था. वहीं उस की हत्या कर लाश के साथ दुष्कर्म किया था.

पड़ोसियों ने उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी थी. एक हफ्ते बाद उस की लाश उन के घर से 40 मील दूर मिली थी, जिस की सूचना पुलिस को एक खेतिहर मजदूर ने दी थी.

पुलिस ने अदालत में बताया कि फुलर दोनों लड़कियों को पहले से जानता था. वह उसी फोटो डेवलपमेंट चेन का ग्राहक था, जहां नेल काम करती थी. इस के अलावा फुलर की पियर्स से जानपहचान बस्टर ब्राउन रेस्टोरेंट में हुई थी, जहां वह मैनेजर थी.

इन वारदातों के 24 साल बाद फुलर की सितंबर 2011 में गिरफ्तारी हुई थी. तब वह सबूत नहीं मिलने के कारण छूट गया था.

उस ने अदालत में बताया कि वह 1989 से 12 साल तक हीथफील्ड अस्पताल के 2 मुर्दाघरों में बिजली संबंधी समस्याओं की देखभाल के लिए अकसर आताजाता था.

वह वहां के रखरखाव का सुपरवाइजर था. मुर्दाघर के फ्रीजर के देखभाल की जिम्मेदारी उसी पर थी. इस के लिए उसे वहां प्रवेश के

लिए निजी एक्सेस स्वाइप कार्ड मिला हुआ था. मुर्दाघर में कुल 5 कर्मचारी काम करते थे, जिन की ड्यूटी सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक की होती थी. फुलर की ड्यूटी दिन के 11 बजे से शाम के 7 बजे तक की थी. इस कारण दूसरे कर्मचारियों के चले जाने के बाद भी वह मुर्दाघर में रुका रहता था. अपनी शिफ्ट के अखिरी 3 घंटों में ही उस ने यह घिनौने काम किए थे.

वैसे अस्पताल के कुली किसी भी समय नए शवों के साथ मुर्दाघर में आ सकते थे. यह फुलर के लिए पोस्टमार्टम कक्ष में प्रवेश करने का अच्छा मौका होता था. फुलर पोस्टमार्टम कक्ष में चला जाता था. ऐसा करते हुए किसी का ध्यान उस पर नहीं जाता था.

मुर्दाघर के अन्य हिस्सों की तुलना में शवों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए पोस्टमार्टम कक्ष में कोई सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए थे. हालांकि  मुर्दाघर की ओर जाने वाले गलियारों सहित अन्य क्षेत्रों पर निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इस नतीजे तक पहुंचने में इंग्लैंड पुलिस को 2.5 मिलियन यूरो यानी 21.42 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े थे. फुलर के अपराध मुर्दाघर की लाशों के साथ यौनाचार तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि इसे यादगार बनाए रखने के लिए  उस ने एक डायरी भी बना रखी थी.

वह लाशों के साथ यौन संबंध बनाने के बाद बाकायदा उस घटना को अपने अनुभवों के साथ डायरी में नोट करता था. यही नहीं, उस ने सैक्स की फ्यूचर प्लानिंग तक कर रखी थी.

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी – भाग 2

नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.

पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.

एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.

सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा.

बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.

बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो.

उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.

शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी.

कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.

सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया.

सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया.

सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.

बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.

अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.

बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 2

गिरोह बनाने के बाद पप्पू स्मार्ट एवं उस के भाइयों ने जाजमऊ, हरजेंद्र नगर, कानपुर देहात व अन्य क्षेत्रों में दरजनों की संख्या में अवैध संपत्तियों पर कब्जा कर बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया और अकूत संपदा अर्जित कर ली.

पप्पू स्मार्ट गिरोह के सदस्य जमीन कब्जाने के लिए पहले मानमनौती करते. न मानने पर जान से मारने की धमकी देते फिर भी न माने तो मौत के घाट उतार देते. पप्पू रंगदारी भी वसूलता था तथा धोखाधड़ी भी करता था. आपराधिक गतिविधियों से उस ने करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली थी. इस तरह वह जरायम का बादशाह बन गया था.

बेच डाला राजा ययाति का किला

पप्पू स्मार्ट व उस का गिरोह आम लोगों को ही प्रताडि़त नहीं करता था, बल्कि सरकारी संपत्तियों पर भी कब्जा करता था. तमाम सरकारी संपत्तियों को उस ने धोेखाधड़ी कर बेच दिया था. इसलिए उसे भूमाफिया भी घोषित कर दिया गया था.

पप्पू स्मार्ट ने सब से बड़ा कारनामा किया राजा ययाति के किले पर कब्जा करने का. दरअसल, जाजमऊ क्षेत्र में गंगा किनारे महाभारत कालीन राजा ययाति का किला है जो खंडहर में तब्दील हो गया है.

यह किला राज्य पुरातत्त्व विभाग की संपत्ति है. इस की देखरेख कानपुर विकास प्राधिकरण करता है. लेकिन इस किले को अपना बता कर पप्पू स्मार्ट ने कब्जा कर लिया और एक बड़े भूभाग को बेच कर बस्ती बसा दी.

एडवोेकेट संदीप शुक्ला की शिकायत पर आईजी आलोक सिंह एवं तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य ने पप्पू स्मार्ट के खिलाफ चकेरी थाने में मुकदमा दर्ज कराया और गैंगस्टर एक्ट के तहत काररवाई की तथा उस की तमाम संपत्तियों को सीज भी किया.

राजनीतिक संरक्षण भी आया काम

पप्पू स्मार्ट जानता था कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर रौब गांठना है तो राजनीतिक चोला ओढ़ना जरूरी है, अत: उस ने सोचीसमझी रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और पार्टी का सदस्य बन गया.

सपा के जनप्रतिनिधियों से उस ने दोस्ती कर ली और उन का खास बन गया. सपा शासन काल में उस की तूती बोलने लगी. पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस ने पैठ बना ली. अपने रौब के बल पर ही पप्पू स्मार्ट ने एक डबल बैरल बंदूक व एक रिवौल्वर का लाइसेंस हासिल कर लिया.

यही नहीं, उस ने अपने भाइयों तौफीक उर्फ कक्कू व आमिर उर्फ बिच्छू को भी रिवौल्वर का लाइसेंस दिलवा दिया.

हालांकि चकेरी थाने में पुलिस ने तीनों भाइयों की हिस्ट्रीशीट खोल रखी थी. उन की हिस्ट्रीशीट में बताया गया था कि गिरोह के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, जबरन वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मामले दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट का घनिष्ठ संबंध कुख्यात अपराधी वसीम उर्फ बंटा से था. वह फरजी आधार कार्ड व अन्य कागजात तैयार करता था. पप्पू स्मार्ट भी उस से कागजात तैयार करवाता था. उस के फरजी कागजातों से लोग पासपोर्ट बनवा कर विदेश तक का सफर करते थे. यूपी एसटीएफ की वह रडार पर था.

काफी मशक्कत के बाद एसटीएफ कानपुर इकाई ने उसे रेलबाजार के अन्नपूर्णा गेस्टहाउस से धर दबोचा. उस के साथ उस का भाई नईम भी पकड़ा गया. उस के पास से भारी मात्रा में सामान बरामद हुआ. सऊदी अरब मुद्रा रियाल तथा 6780 रुपए बरामद हुए.

एसटीएफ ने उसे जेल भेज दिया, तब से वह जेल में है. इस मामले में पप्पू स्मार्ट का नाम भी आया था. लेकिन राजनीतिक पहुंच के चलते वह बच गया.

बसपा नेता और हिस्ट्रीशीटर पिंटू सेंगर से हुई दोस्ती

पप्पू स्मार्ट का एक जिगरी दोस्त था नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर. वह मूलरूप से कानपुर देहात जनपद  के गोगूमऊ गांव का रहने वाला था. लेकिन पिंटू सेंगर अपने परिवार के साथ कानपुर के चकेरी क्षेत्र के मंगला बिहार में रहता था.

वह बसपा नेता, भूमाफिया व हिस्ट्रीशीटर था. उस के पिता सोने सिंह गोगूमऊ गांव के प्रधान थे और मां शांति देवी गजनेर की कटेठी से जिला पंचायत सदस्य थी.

पिंटू सेंगर जनता के बीच तब चर्चा में आया, जब उस ने पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती को उन के जन्मदिन पर उपहार स्वरूप चांद पर जमीन देने की पेशकश की थी.

कानपुर की छावनी सीट से उस ने बसपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गया था. बसपा शासन काल में उस की तूती बोलती थी. वह अपनी हैसियत विधायक से कम नहीं आंकता था.

राजनीतिक संरक्षण के चलते ही पिंटू सेंगर ने जमीन कब्जा कर करोड़ों रुपया कमाया. उस के खिलाफ चकेरी थाने में कई मुकदमे दर्ज हुए और उस का नाम भूमाफिया की सूची में भी दर्ज हुआ.

चूंकि पिंटू सेंगर व पप्पू स्मार्ट एक ही थैली के चट्टेबट्टे थे. दोनों ही भूमाफिया और हिस्ट्रीशीटर थे, अत: दोनों में खूब पटती थी. जमीन हथियाने में दोनों एकदूसरे का साथ देते थे. जबरन वसूली, रंगदारी में भी वे साथ रहते थे.

पप्पू स्मार्ट को सपा का संरक्षण प्राप्त था, जबकि पिंटू सेंगर को बसपा का. दोनों अपनी अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा ले कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे.

लेकिन एक दिन यह दोस्ती जमीन के एक टुकड़े को ले कर कट्टर दुश्मनी में बदल गई. दरअसल, रूमा में नितेश कनौजिया की 5 बीघा जमीन थी. यह जमीन नितेश ने जाजमऊ के प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता को बेच दी.

इस की जानकारी पिंटू सेंगर को हुई तो उस ने नितेश को धमकाया और पुन: जमीन बेचने की बात कही. दबाव में आ कर बाद में नितेश ने वह जमीन एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति के नाम कर दी.

दुनिया का सिरदर्द बने भगोड़े अपराधी

आधुनिक संचार साधनों और तेज रफ्तार हवाई यातायात के साधनों के चलते दुनिया आज एक वैश्विक गांव में तबदील हो गई है. इस के बावजूद व्यावहारिक धरातल पर आज भी दुनिया का विस्तृत भूगोल माने रखता है. खासकर बात अगर अपराध और अपराधियों के संदर्भ में हो. आज भी बड़ी तादाद में शातिर अपराधी देश के एक इलाके में अपराध कर के उसी देश के दूसरे इलाके या दूसरे देश में भाग जाते हैं.

इस तरह वे स्थानीय कानून या व्यवस्था सुनिश्चित करने वाली एजेंसियों के लिए खासा सिरदर्द बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि इस मामले में हर देश पीडि़त है, चाहे वह अमेरिका जैसा ताकतवर देश हो या चीन जैसा कट्टरपंथी. भगोड़े अपराधी सभी देशों के सिरदर्द बने हुए हैं.

अंगरेजी के शब्द ‘फ्यूजिटिव’ का हिंदी में मतलब है फरार या भगोड़ा. यह शब्द उन लोगों का परिचय देने में इस्तेमाल होता है जो अपराध करने के बाद कानून की या तो गिरफ्त में नहीं आते, जैसे कि भारत के लिए मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कासकर या गिरफ्त में ले लिए जाने के बाद मौका मिलते ही चकमा दे कर फरार हो जाते हैं, जैसे कुछ महीनों पहले थाईलैंड में पकड़ा गया बेअंत सिंह का हत्यारा जगतार सिंह तारा. 

गौरतलब है कि जगतार उन 6 सिख आतंकवादियों में से एक है जिन्हें 1995 में चंडीगढ़ में, पंजाब सचिवालय के बाहर हुए विस्फोट का दोषी ठहराया गया था. इस विस्फोट में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 18 अन्य लोग मारे गए थे. बब्बर खालसा का सक्रिय सदस्य जगतार खालिस्तान टाइगर फोर्स यानी केटीएफ का स्वयंभू चीफ था.

वह बेअंत हत्याकांड के मामले में चंडीगढ़ की बुरैल जेल में सजा काट रहा था. लेकिन 2004 में वह अपने 2 साथियों–परमजीत सिंह भ्योरा और जगतार सिंह हवारा के साथ 90 फुट लंबी सुरंग बना कर सनसनीखेज तरीके से जेल से भाग निकला था. इसी दौरान कुछ और आतंकी फरार हो गए थे जिन में प्रमुख थे खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का मुखिया हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू और उस का सहयोगी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी, जिन्हें नवंबर 2004 में थाईलैंड में ही दबोच लिया गया था.

जबकि केटीएफ के एक और भगोड़े रमनदीप सिंह उर्फ गोल्डी को मलयेशिया से नवंबर 2014 में गिरफ्तार किया गया. सिर्फ जगतार ही था जिस को तब गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. इसलिए अदालत द्वारा उसे भगोड़ा घोषित कर के उस के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस निकलवा दिया गया. मतलब यह कि अब उसे पकड़ने की जिम्मेदारी उन तमाम देशों की भी हो गई जो कि इंटरपोल के सदस्य हैं और इस की संधि से बंधे हुए हैं. इसी के चलते उसे हाल में थाईलैंड से गिरफ्तार किया जा सका.

यह कहानी महज एक भगोड़े की है. जबकि हकीकत यह है कि देश में हजारों की तादाद में भगोड़े हैं, जिन में मुट्ठीभर भगोड़े विदेश भी भाग चुके हैं और 99 प्रतिशत से ज्यादा भगोड़े देश के अंदर ही कानून के लंबे हाथों और उस की गहरी निगाहों को चकमा दे कर मौजूद हैं. वैसे तो गृह मंत्रालय के पास बिलकुल अपडेट आंकड़े नहीं हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, देश में 5 हजार से ज्यादा भगोड़े हैं. 

हैरानी की बात यह है कि देश में जिस जेल से सब से ज्यादा अपराधी फरार हुए हैं, वह कोई बिहार या छत्तीसगढ़ की जेल नहीं है बल्कि देश की सब से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाली राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल है. तिहाड़ जेल प्रशासन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 15 सालों में यहां से 915 अपराधी फरार हो चुके हैं.

लगभग हर छठे दिन एक या कहें हफ्ते में एक से ज्यादा. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में कितने भगोड़े होंगे. वास्तव में जेलों से भागे ज्यादातर भगोड़े वे हैं, जिन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी. ये जब बेल या पेरोल पर जेल से बाहर निकले तो फिर कभी वापस लौट कर जेल नहीं पहुंचे. एक बार वहां से निकले तो फिर निकल ही गए.

मगर कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो फिल्मी स्टाइल में तिहाड़ जेल प्रशासन को चकमा दे कर फरार हुए हैं, जैसे फूलन देवी की हत्या करने वाला शमशेर सिंह राणा. सवाल यह है कोई आखिर भगोड़ा क्यों हो जाता है? वास्तव में अपराधी गुनाह की सजा से बचना चाहते हैं. इस के लिए वे धनबलछल सब का सहारा लेते हैं. ज्यादातर फरार अपराधी वे हैं जिन के सिर पर हत्या, हत्या की कोशिश और अपहरण जैसे संगीन इल्जाम हैं और इन जुर्मों के लिए उन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी.

यह सजा उन्हें पूरी उम्र भुगतनी पड़ती, जो उन्हें मंजूर नहीं था. इसलिए ये कोई जतन निकाल, भाग खड़े हुए और अब वे गायब हैं यानी किसी और पहचान के साथ जिंदा हैं, किसी और अपराध को अंजाम देते हुए या कोई और गहरी साजिश रचते हुए.

साल 2013 में आईपीएल मैचों की चकाचौंध के बीच स्पौट फिक्सिंग का मामला सामने आया. मुख्यरूप से आरोपी बनाया गया अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम को, साथ ही उस का दाहिना हाथ समझा जाने वाला छोटा शकील और कुछ दूसरे सट्टेबाजों को भी आरोपी बनाया गया. चूंकि दिल्ली पुलिस इन्हें अदालत में नहीं पेश कर सकी, इसलिए पटियाला हाउस स्थित एक अदालत ने इन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया.

साथ ही इन आरोपियों की संपत्ति जब्त करने की नए सिरे से प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश भी दिया गया. मगर देखा जाए तो यह सब खानापूर्ति भर ही था क्योंकि इन में से प्रमुख गुनाहगारों (दाऊद और छोटा शकील) की संपत्ति पहले ही 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में कुर्क की जा चुकी है. ये तब से ही फरार हैं या कहिए भगोड़े घोषित हैं. दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने स्पौट फिक्सिंग के इस मामले में अदालत में 6 हजार पृष्ठों का आरोपपत्र दायर किया था.

इस में दाऊद इब्राहिम, उस के सहयोगी छोटा शकील के अलावा क्रिकेटर एस श्रीसंत, राजस्थान रौयल्स के अंकित चव्हाण, अजीत चंदीला सहित पाक में रह रहे जावेद चुटानी, सलमान उर्फ मास्टर और एहतेशाम आदि के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए गए.

यहां तक कि दिल्ली पुलिस ने आरोपपत्र में दाऊद इब्राहिम की सीएफएसएल लैब द्वारा आवाज की पहचान से संबंधित एक रिपोर्ट भी शामिल की थी जिस के चलते विशेष जज नीना बंसल ने दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील व चंडीगढ़ निवासी संदीप शर्मा को भगोड़ा घोषित किया. मगर नतीजे के रूप में हाथ कुछ नहीं लगा. मुख्य आरोपी यानी सरगना दाऊद और उस के साथी अंतर्राष्ट्रीय भगोड़े हैं.

भारत ने कई बार उन मोस्ट वांटेड अपराधियों की लिस्ट बनाई है जो भारत से फरार हैं. इन सभी फेहरिस्तों में हमेशा दाऊद पहले नंबर पर रहा है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि दाऊद सिर्फ भारतीय पुलिस और खुफियातंत्र के लिए ही सिरदर्द नहीं है बल्कि दुनिया के स्तर पर भी ऐसा ही है.

कैसे फरार हो जाते हैं कैदी?

इन सवालों का जवाब ढूंढ़ते हुए इस संबंध में एक कैदी की अपील की सुनवाई के दौरान एक अजीब सा सच सामने आया. आखिर जेल से ऊंची अदालत में अपील के आधार पर बेल या पेरोल पर छूटा सजायाफ्ता मुजरिम फिर जेल वापस पहुंचे, यह सुनिश्चित करना आखिरकार किस की जिम्मेदारी है? अगर वह कोर्ट की अगली तारीख पर हाजिर नहीं होता तो उस के लिए जवाबदेह कौन है? पुलिस या फिर जेल प्रशासन? मगर रुकिए, कोई जवाबदेह तो तब होगा जब इन कैदियों की हर जानकारी या रिकौर्ड कोई एक संस्था रखेगी और वक्तवक्त पर उन की जांच करेगी.

दिल्ली हाईकोर्ट भी तब शायद हैरान रह गया था जब उस ने तिहाड़ जेल से ऐसे कैदियों की लिस्ट मंगवाई जिन को उम्रकैद दिए जाने के बाद अपील के आधार पर बेल मिली हो. पता है, इस मांग पर क्या हुआ? तिहाड़ में हड़कंप मच गया, धूल फांकती पीली पड़ चुकी पुरानी फाइलें पलटी गईं और तब जोड़जोड़ कर जुटाए गए 729 नाम. लेकिन आफत तो अभी शुरू हुई थी. हाईकोर्ट ने पुलिस से कहा, कैदियों की तलाश कीजिए वे कहां गए? अब मरता क्या न करता. दिल्ली पुलिस ने हर एक थाने को जिम्मा सौंपा, तलाश के लिए विशेष टीमें बनाई गईं.

काफी पसीना बहाने पर भी सिर्फ 10 फीसदी ही कैदी मिल सके जो रिकौर्ड में दर्ज पतों पर मिले. तब हाईकोर्ट का एक और फरमान आया, ‘ऐड्रेस पू्रफ लाओ?’ ऐड्रेस पू्रफ तो तब मिलते जब लापता कैदी पकड़ में आते. पुलिस को पता लगा कि 46 कैदी मर चुके हैं. 563 कैदी सरकारी रिकौर्ड में दर्ज पतों पर नहीं मिले. इन के जमानती भी गायब थे. 26 मई, 2014 को तिहाड़ ने कोर्ट को नई लिस्ट सौंपी और कानूनी पेंच का लाभ उठा कर फरार होने वाले उम्रकैदियों की तादाद बढ़ कर हो गई 915. ऐसे में पुलिस को सोचना होगा कि इन भगोड़ों को दोबारा कानून की गिरफ्त में लाने के लिए वह युद्ध स्तर पर क्या कार्यवाही करे?

तिहाड़ जेल से भाग निकलने वाले इन 915 भगोड़ों ने कानून के क्षेत्र में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. कानून के जानकारों की इस पूरे मुद्दे पर अलगअलग राय है. देश में यह आम धारणा है कि अगर एक बार कोर्टकचहरी के चक्कर लग गए तो उम्र बीत जाती है. देश की अदालतों में 3 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमों के अंबार लगे हैं. दबाव इतना ज्यादा है कि देश का कानूनी सिस्टम ही चरमरा रहा है. ऐसे में सब से बुरी गत बनती है सजायाफ्ता कैदियों की.

निचली अदालतें उन्हें सजा दे चुकी हैं, लेकिन ऊपरी अदालतों से उन्हें इंसाफ की उम्मीद है, सो वे अपील करते हैं लेकिन सुनवाई की तारीख कितने साल बाद आएगी, इस का अंदाजा उन्हें नहीं होता. जस्टिस एस एन धींगरा के मुताबिक, एक बार जब अपील दाखिल हो गई तो 8 साल, 10 साल या 15 साल भी लग सकते हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में मुजरिम बेल जंप कर जाता है क्योंकि वह (सजायाफ्ता मुजरिम) भी जानता है कि कई सालों तक उस की खोजखबर नहीं ली जा सकेगी.

हमारे देश में न जेलों के पास ऐसा कोई सिस्टम है और न पुलिस के पास कि ऐसे कैदी का अतापता रख सकें. तिहाड़ जेल भगोड़ों के केस में कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. जेल का साफ कहना है कि जेल से बाहर निकलते ही उन की जिम्मेदारी खत्म और पुलिस की जिम्मेदारी शुरू हो जाती है. ऐसे में जब 2 बड़ी संस्थाएं अपनी जिम्मेदारियों को ले कर स्पष्ट न हों तो कैदी भागें न, तो क्या करें?

दोस्ती भी शिद्दत से निभाई, दुश्मनी भी – भाग 2

विजेत का मन पूजा से शादी करने के लिए उतावला था, मगर पूजा अभी 18 साल की नहीं हुई थी. विजेत जानता था कि नाबालिग उम्र में वह पूजा से शादी नहीं कर सकता. ऐसे में इंतजार करने के अलावा उस के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

अगले साल जैसे ही पूजा शुक्ला ने अपने जीवन के 18 साल पूरे किए तो विजेत कश्यप ने हिम्मत कर के पूजा के घरवालों के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया.

विजेत के इस प्रस्ताव से पूजा के घर में हड़कंप मच गया. धीरज का तो खून खौल उठा. उस ने विजेत को भलाबुरा कहते हुए साफतौर पर कह दिया कि ये शादी हरगिज नहीं हो सकती. गांवदेहात के इलाकों में आज भी दूसरी जाति में शादी करना सामाजिक परंपराओं का उल्लंघन माना जाता है.

समाज में बदनामी का डर भी था. उस दिन के बाद से विजेत की धीरज के घर आने पर पाबंदी लगा दी गई और घर वाले पूजा पर सख्त नजर रखने लगे.

पूजा और विजेत के प्यार पर जब पहरा लगा तो दोनों बैचेन हो उठे. कभीकभार मोबाइल पर छिपछिप कर बातचीत कर के वह अपने मन की तसल्ली कर लेते. उन्हें एकदूजे के बगैर रहना नागवार लगने लगा तो आखिरकार काफी सोचविचार करने के बाद दोनों ने निर्णय कर लिया कि प्रेम के पंछी किसी पिंजरे में कैद हो कर ज्यादा दिन नहीं रहेंगे.

दिसंबर, 2020 में सर्दियों की एक रात विजेत अपनी प्रेमिका पूजा को घर से भगा ले गया. दूसरे दिन सुबह देर तक जब पूजा अपने कमरे से बाहर नहीं निकली तो उस की मां ने अंदर जा कर देखा, पूजा अपने बिस्तर पर नहीं थी.

पूरे दिन पूजा का भाई धीरज और उस के पिता उस की तलाश करते रहे. जब उन्हें पूजा की कोई खोजखबर नहीं मिली तो थकहार कर उन्होंने तिलवारा थाने में पूजा के गायब होने की रिपोर्ट करा दी.

पुलिस रिपोर्ट में घर वालों ने यह अंदेशा भी व्यक्त किया कि विजेत पूजा को बहलाफुसला कर ले गया है. पूजा के विजेत के साथ भागने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई तो उस के परिवार की बदनामी होने लगी.

मोहल्ले के लोग चटखारे ले कर पूजा और विजेत के प्रेम प्रसंग की चर्चा करने लगे. सब से ज्यादा जिल्लत का सामना पूजा के भाई धीरज को करना पड़ा. बदनामी के डर से उस का घर से निकलना दूभर हो गया.

उधर घर से भाग कर विजेत और पूजा ने जबलपुर के मातेश्वरी मंदिर में जा कर शादी कर ली. विजेत ने जीवन भर पूजा का साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद दोनों हनीमून के लिए दिल्ली चले गए.

कुछ दिनों तक दिल्ली और आसपास के इलाकों में मौजमस्ती करने के बाद जबलपुर आ कर विजेत पूजा के साथ गढा के गंगानगर में अपने चाचा के मकान में रहने लगा. कुछ दिन प्यारमोहब्बत का नशा दोनों पर छाया रहा. लेकिन समय गुजरते उन के सामने आर्थिक तंगी के डैने फैल गए.

इस बीच 27 फरवरी, 2021 को पुलिस ने एक दिन विजेत और पूजा को खोज निकाला. तब थाने में घर वालों के सामने पूजा ने लिखित बयान दे कर साफ कह दिया कि उस ने अपनी मरजी से विजेत से शादी की है और वह उसी के साथ रहना चाहती है. पूजा के घर वाले उसे उस के हाल पर छोड़ कर घर वापस आ गए.

शादी के पहले विजेत ने पूजा को जो सब्जबाग दिखाए थे, वे धीरेधीरे झूठ साबित होने लगे. विजेत के संग 3 महीने में ही पूजा जान चुकी थी कि विजेत रंगीनमिजाज युवक है. उसे यह भी पता चला कि इसी रंगीनमिजाजी की वजह से उस के खिलाफ 2018 में उस के खिलाफ थाने में एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ में पोक्सो ऐक्ट का मामला दर्ज हुआ था.

इस बात को ले कर दोनों के बीच मनमुटाव भी बढ़ने लगा. दोनों के बीच होने वाले झगड़े में नौबत मारपीट तक आ चुकी थी. पूजा के अरमानों का गला घोंटा जा रहा था. जब विजेत आए दिन पूजा के साथ मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर 7 मार्च, 2021 को पूजा ने फोन कर के अपने भाई को बुला लिया.

धीरज पहले ही विजेत से खार खाए हुआ था, ऊपर से वह उस की बहन से मारपीट करने लगा तो गुस्से में आगबबूला हो कर वह पूजा को अपने घर शंकराघाट ले आया.

पूजा के मायके आने के बाद विजेत बेचैन रहने लगा. अपने किए पर वह शर्मिंदा था, मगर धीरज के डर से वह उस के घर जा कर पूजा से नहीं मिल पा रहा था. पूजा से मिलने के लिए वह धीरज के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहता था.

11 मार्च, 2021 की सुबह धीरज तिलवारा की ओर जा रहा था. इस दौरान उस ने देखा कि उस का जीजा विजेत उस के घर की ओर जा रहा है. उसे शक हुआ कि विजेत उस के घर जा कर पूजा को फिर से अपने साथ ले जा सकता है. इसलिए वह घर वापस आ गया और छत पर बैठ कर निगरानी करने लगा. इसी दौरान उस ने देखा कि विजेत उस के घर के पीछे की झाडि़यों में खड़ा है. विजेत को वहां देख कर धीरज को गुस्सा आ गया.

उस ने घर से धारदार हंसिया उठाया और विजेत के पीछे दौड़ा. धीरज को देख कर विजेत भागने लगा. विजेत बमुश्किल 500 मीटर ही भाग पाया होगा कि खेतों के बीच मेड़ पर बेरी की झाड़ी के पास गिर गया.

विजेत के जमीन पर गिरते ही धीरज ने उस पर हंसिया से ताबड़तोड़ 15-16 वार कर दिए. कुछ देर तक विजेत छटपटाता रहा. धीरज के सिर पर खून सवार था. उस ने हंसिया से विजेत कश्यप की गरदन धड़ से अलग कर दी.

इतने पर भी जब उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने विजेत के हाथ का एक पंजा काट दिया. दूसरे पंजे को भी उस ने काटने का प्रयास किया, मगर कामयाब नहीं हुआ. इस के बाद विजेत के कटे सिर को ले कर वह अपने घर आया.

घर के एक कोने में कटे सिर को रखते हुए वह घर के अंदर दाखिल हुआ. उस ने अपनी बहन पूजा के पैर छूते हुए हुए कहा, ‘‘बहन मुझे माफ कर देना, विजेत तुझे भगा कर ले गया था, उस अपमान को तो मैं बरदाश्त कर गया. मगर कोई मेरी लाडली बहन के साथ मारपीट करे, यह बरदाश्त नहीं कर सकता. आज मैं ने उस का खेल खत्म कर दिया है.’’

नेस्तनाबूद हुआ मेरठ का चोरबाजार

मेरठ के सोतीगंज को गाडि़यों के ‘कमेले’ के नाम से जाना जाता है, जहां चोरी की गाडि़यों के पुरजेपुरजे अलग कर दिए जाते थे. ढाई दशक से होने वाला ये काम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन इस बाजार पर एक आईपीएस अफसर की ऐसी नजर लगी कि चंद महीनों में ही इस के नेस्तनाबूद होने की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में पलेबढ़े सूरज राय के लिए मेरठ एकदम अलग तरह के माहौल का शहर था. एकदम नया शहर और नए मिजाज के लोग थे. आईपीएस सूरज राय मेरठ (सदर) के सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर 2 दिसंबर, 2020 को नियुक्त हो कर आए थे.

तैनाती के 2 दिन बाद ही सूरज अपनी मां के साथ मेरठ के सदर बाजार कैंट इलाके में स्थित प्रतिष्ठित औघड़नाथ मंदिर में दर्शन करने  के लिए गए. मंदिर में दर्शन व पूजा के बाद मंदिर परिसर में कृष्ण मंदिर के पुजारी को उदास देख कर सूरज राय ने उन से सहज ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है पुजारीजी, बड़े उदास लग रहे हो. सब खैरियत है तबीयत ठीक है ना?’’

‘‘सब कुछ ठीक है साहब, बस थोड़ा नुकसान हो गया इसीलिए मन परेशान है.’’ पुजारी ने कहा.

‘‘क्षमा चाहता हूं पुजारीजी, क्या बड़ा नुकसान हो गया जो इतनी चिंता में हैं. बता दीजिए, हो सकता है हम कुछ मदद कर दें.’’ सूरज राय ने सरल स्वभाव में पूछ भी लिया.

‘‘नुकसान छोटा है लेकिन हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए बड़ा भी है. दरअसल, बेटे की बाइक चोरी हो गई है हीरो होंडा पैशन. 3-4 महीने पहले ही खरीदवाई थी और कल चोरी हो गई.’’ पूजा की थाली सूरज राय के हाथों में वापस करते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘फिर तो हम ही आप की मदद कर पाएंगे पुजारीजी.’’ सूरज राय बोले.

सूरज राज ने अपना परिचय दे कर पुजारी को बताया कि वह सदर सर्किल के सीओ हैं और वे बाइक चोरी की रिपोर्ट लिखवाएं, पुलिस उन की गाड़ी को जरूर बरामद कर लेगी.

परिचय जानने के बाद भी पुजारी के चेहरे पर आशा की चमक दिखाई नहीं पड़ी तो उन्होंने पुजारी से पूछ ही लिया, ‘‘महाराजजी, आप को कोई खुशी नहीं हुई क्या?’’

‘‘नहीं साहब, रिपोर्ट तो हम ने लिखा दी थी कल ही. लेकिन इस गाड़ी का मिलना आसान काम नहीं है. आप शायद नहीं जानते, यहां सोतीगंज है, जहां एक बार चोरी की गाड़ी चली जाए तो वह उसी तरह कतराकतरा हो जाती है, जैसे पशुओं के कमेले में मरे हुए जानवर की हड्डी, खाल, मांस और दूसरे हिस्सों के छोटेछोटे हिस्सों में बांट कर बहुत सारे लोगों को बेच दिया जाता है. बस, फर्क ये है कि सोतीगंज चोरी की मोटरसाइकिल और कारों के बेचे जाने का वो बाजार है, जहां एक बार गाड़ी पहुंच गई तो उस का मालिक भी नहीं पहचान सकता कि वहां मौजूद छोटेछोटे पुरजों में से कौन सा पुरजा उस की गाड़ी का है.’’

पुजारीजी ने इतने साधारण ढंग से एएसपी सूरज राय को ये बात समझाई कि ज्यादा कहे बिना ही वह सारी बात समझ गए.

उन्होंने पुजारी से कहा कि वह कोशिश करेंगे कि उन के बेटे की बाइक जल्द बरामद हो जाए.

यह कह कर सूरज राय अपनी माताजी के साथ वहां से चले गए. लेकिन सोतीगंज को ले कर कही गई हर बात उन के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह उतर गई.

सूरज राय ने खंगाली कबाडि़यों की कुंडली

एएसपी सूरज राय ने उसी दिन अपने सर्किल के तीनों थानों के प्रभारी और वहां तैनात सबइंसपेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई. उन्होंने सभी से एकएक कर सोतीगंज के बाजार के बारे में जानकारी ली कि आखिर वहां क्या होता है, क्यों इस इलाके के बारे में लोगों की धारणा इतनी गलत है.

इस के बाद उन के सामने जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर तो एएसपी सूरज राय को लगा कि मानो वे मुंबई के कौफर्ड मार्केट के बारे में कोई कहानी सुन रहे हैं, जहां चोरी व तसकरी कर के लाया गया इंपोर्टेड सामान खुलेआम मिलता है.

सूरज राय ने जब अपने मातहत अफसरों से पूछा कि सोतीगंज बाजार के कबाडि़यों के खिलाफ वे काररवाई क्यों नहीं करते तो कारण भी पता चल गया कि इस बाजार में सब कुछ इतना संगठित तरीके से होता है कि पुलिस को कोई सबूत हाथ नहीं लगता.

स्थानीय पुलिस ही नहीं, दूसरे राज्यों व दूसरे जिलों की पुलिस भी अकसर वाहन चोरों से पूछताछ के बाद वहां छापा मारने आती है. पहली बात तो इस इलाके से किसी को गिरफ्तार कर के ले जाना ही बेहद मुश्किल काम है लेकिन अगर कोई ले भी जाए तो पुलिस के पास ऐसे साक्ष्य ही नहीं होते कि इन कबाडि़यों को बहुत दिनों तक सलाखों के पीछे रखा जा सके.

सूरज राय को जो कुछ जानकारी मिली, जाहिर है उस में बहुत सी बातें ऐसी थीं जो हकीकत में पुलिस के सामने एक चुनौती होती है. लेकिन सूरज राय औघड़नाथ मंदिर के पुजारी की पीड़ा और तंज सुनने के बाद इतने बेचैन हो चुके थे कि उन्होंने मन बना लिया था कि जो आज तक नहीं हो सका, उसे वह संभव कर के दिखाएंगे. वह चोरी की गाडि़यों के कमेले सोतीगंज का वजूद मिटा कर रहेंगे.

कहते हैं, जहां चाह होती है वहां राह होती है. एएसपी सूरज राय ने जो ठाना था मुश्किल जरूर था, लेकिन नामुमकिन नहीं. लिहाजा उन्होंने अपने सर्किल के सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि वे अपने स्टाफ और मुखबिरों को लगा कर ऐसी लिस्ट बनाएं, जिस से पता चले कि कि सोतीगंज के कबाड़ी बाजार में कितने दुकानदार हैं, जो चोरी किए वाहनों को खरीद कर उसे कटवाते हैं और फिर पुरजापुरजा कर के बेच देते हैं.

किस कबाड़ी के खिलाफ स्थानीय पुलिस से ले कर बाहर से आने वाली पुलिस टीमों की क्या शिकायतें हैं. इन कबाडि़यों के गोदाम कहां हैं, उन के साथ कितने लोग काम करते हैं और क्या उन के पास गाडि़यों के पुरजे बेचने का कोई वैध पंजीकरण है तथा वे ये पुरजे कहां से लाते हैं, इस का विवरण रखने के उन के पास क्या इंतजाम हैं.

करीब एक पखवाड़े बाद जब एएसपी सूरज राय ने दोबारा मीटिंग ली तो मातहत अफसरों ने उन के सामने सोतीगंज बाजार के बारे में मांगी गई तमाम जानकारियों का पुलिंदा रख दिया.

सवाल था कि अब इस पर काररवाई कैसे हो. लिहाजा सूरज राय ने सब से पहले अपने एसएसपी अजय साहनी और एडीजी स्तर के अधिकारियों को विश्वास में ले कर अपने इरादों से अवगत कराया और उन से अनुमति हासिल की.

इस के बाद उन्होंने जनवरी, 2021 के शुरुआती हफ्ते में ही स्थानीय पुलिस और पीएसी के अतिरिक्त बल को साथ ले कर सब से पहले बाइक चोरी करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया.

सूरज ने सोतीगंज में सक्रिय दोपहिया वाहनों के कबाड़ माफिया मन्नू कबाड़ी और इरफान उर्फ राहुल काला पर पर सब से पहले शिकंजा कसते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस काररवाई का विरोध इस बाजार की फितरत है, लेकिन सूरज राय की तैयारी पूरी थी. जिस ने भी विरोध किया उसे बल प्रयोग कर के सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया. सब से बड़ी चुनौती उस दुरुस्त कागजी काररवाई की थी, जिस के अभाव में अभी तक ये कबाड़ माफिया छूट जाते थे.

मन्नू कबाड़ी से शुरू हुई काररवाई

इस के लिए सूरज राय ने गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का सहारा लिया. इस सेक्शन के अनुसार अगर जांच अधिकारी को यह जानकारी मिलती है कि अपराधी ने अपनी संपत्ति अपराध के बल पर अर्जित की है तो उस संपत्ति को जब्त किया जा सकता है.

सूरज राय ने मन्नू कबाड़ी की फाइल खोली. उस से संपत्ति की जानकारी, पिछले 10 साल के इनकम टैक्स रिटर्न, बैंक स्टेटमेंट मांगे गए तो पाया गया कि मन्नू कबाड़ी के पास संपत्ति से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं.

सूरज राय ने सब से पहले गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का उपयोग कर के मन्नू कबाड़ी की 6 बीघा जमीन, 2 बसें और एक करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त की.

मन्नू कबाड़ी के जरिए सूरज राय इस पूरे बाजार के सभी कबाडि़यों को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे. इसलिए उस की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों के तहसील से जमीन के कागज, रजिस्ट्रार औफिस से रजिस्ट्रैशन के पेपर, संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों की जानकारी के साथ नगर निगम और आयकर विभाग से जानकारी जुटाने में 6 महीने से अधिक समय लग गया.

एएसपी सूरज राय ने हर विभाग से जानकारी जुटाने के लिए अलगअलग टीमों का गठन किया था. इसी प्रक्रिया के

तहत मार्च में गिरफ्तार हुए राहुल काला के सोतीगंज में गोदाम और उस के मकान की कुर्की कराई गई.

इस कड़ी काररवाई का असर यह हुआ कि मेरठ और आसपास के जिलों में अचानक कुछ ही महीनों में दोपहिया वाहनों की चोरी में 70 फीसद की गिरावट आ गई. क्योंकि दोपहिया वाहनों की बिक्री के सब से बड़े सौदागर सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे और छोटे कबाड़ी चोरी का माल खरीदने में या तो सावधानी बरत रहे थे या बच रहे थे.

मन्नू कबाड़ी के भाई जावेद और आकिब भी दोपहिया वाहन काटने के धंधे में सहयोग करते थे, लेकिन इन का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. लेकिन सूरज राय ने जावेद और आकिब को गुंडा ऐक्ट में नामजद करवा कर उन की हिस्ट्रीशीट खुलवाई तथा 6 महीने के लिए दोनों को जिलाबदर करा दिया.

सोतीगंज में एक साल के दौरान करीब 10 से 12 हजार चोरी के दोपहिया वाहन काटे जाते थे, जिसे मई 2021 तक आतेआते पुलिस ने पूरी तरह बंद करा दिया.

सोतीगंज में दोपहिया वाहनों की कटान भले ही बंद हो गई थी, लेकिन चारपहिया वाहनों की कटान अभी भी जारी थी. इसी बीच एसएसपी अजय साहनी का तबादला हो गया और जून में प्रभाकर चौधरी ने एसएसपी की कमान संभाली.

प्रभाकर चौधरी को सूरज राय के सोतीगंज बाजार के खिलाफ छेड़े गए अभियान की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए उन्होंने सूरज राय को बुला कर कहा कि छोटी मछलियों का शिकार बहुत हो गया सूरज, अब बड़े मगरमच्छों का सफाया करो.

अपराध के खिलाफ संघर्ष करने वाले किसी पुलिस अधिकारी के लिए अपने उच्चाधिकारी का ऐसा आदेश किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होता. जो अभियान थोड़ा सुस्त हुआ, सोतीगंज में वही अभियान अब चारपहिया वाहनों की चोरी और अवैध कटान के धंधे को नेस्तनाबूद करने के इरादे से दोबारा शुरू हो गया.

प्रभाकर चौधरी ने कबाड़ माफिया के इस कमेले के खिलाफ अभियान चलाने की पूरी जिम्मेदारी सूरज राय को सौंप दी. काररवाई करने के इरादे पहले से ही थे, इसीलिए सूरज राय ने तैयारी भी पहले से कर रखी थी.

सोतीगंज के 2 बड़े माफिया हाजी गल्ला और हाजी इकबाल के कारोबार से जुड़ी सारी जानकारियां उन्होंने पहले से जुटा कर पूरी फाइल तैयार करा ली थी. उन के घर, कारोबारी ठिकानों, गोदामों साथ में काम करने वालों से ले कर काली कमाई से हासिल की गई संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली थी.

इस के बाद अगस्त 2021 में शुरू हुआ मेरठ पुलिस का वह अभियान जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ने लगी.

कबाड़ बाजार की बड़ी मछली है हाजी गल्ला

हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम कितना बड़ा चोर, चोरी के माल को खरीदने वाला कितना बड़ा कबाड़ी है, इस का अनुमान आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि उस के खिलाफ चोरी व लूट के वाहन खरीदने के 32 मुकदमे अलगअलग थानों में दर्ज हैं. बेटों के साथ हाजी गल्ला के फरार होते ही पुलिस ने उस के व उस के बेटों के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी.

साल 2017 से पहले हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम पर कभी काररवाई नहीं हुई. 2017 से पहले पुलिस ने गल्ला के घर पर कभी दबिश नहीं दी थी. हाजी गल्ला के पैसों की धमक सत्ता के गलियारों तक गूंजती थी, वह सत्ताधारी नेताओं से साठगांठ बड़ी मजबूती से रखता था.

उस की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव की सरकार में हाजी गल्ला ने एक मंत्री से सांठगांठ कर रात में ही एक इंसपेक्टर और एक उच्च अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया था.

हाजी गल्ला का दुस्साहस ऐसा था कि उस के गुर्गे थानों में खुलेआम कहते फिरते थे कि गल्ला पर हाथ डालने का मतलब है मेरठ से ट्रांसफर.

लेकिन सूरज राय इस बार हाजी गल्ला को पुलिस और कानून की ताकत का अहसास कराने की सौंगध ले चुके थे. लिहाजा उन्होंने हाजी गल्ला के खिलाफ एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी.

जब हाजी गल्ला के ऊपर सूरज राय की अगुवाई में पहली बार पुलिस प्रशासन का डंडा चला तो हाजी गल्ला अपने 4 बेटों के साथ भाग निकला और किसी बिल में जा कर छिप गया.

पुलिस प्रशासन ने उस पर पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया. लेकिन इस बार पुलिस गल्ला की फरारी से संतुष्ट हो कर चुप बैठने वाली नहीं थी. इस बार काली कमाई के इस कबाड़ी को कंगाल बनाने की सारी तैयारी थी.

लिहाजा पुलिस ने हाजी गल्ला व उस के बेटों फुरकान, अलीम, बिलाल व इलाल के खिलाफ अदालत से अगस्त 2021 महीने में ही कुर्की वारंट हासिल कर लिया.

गल्ला को जैसे ही इस की जानकारी मिली तो सिंतबर में एक दिन मौका पा कर उस ने अपने चारों बेटों के साथ अदालत में सरेंडर कर दिया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हाजी गल्ला के ठिकाने कहांकहां हैं और उस का नेटवर्क कितना बड़ा है, इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे 3 दिन के रिमांड पर ले कर गहन पूछताछ की.

मेरठ में कबाड़ के कमेले के नाम से मशहूर सोतीगंज के बारे में आगे जानने से पहले हाजी गल्ला के बारे में जानना बेहद जरूरी है, जो इस कथानक का सब से अहम पात्र है.

गल्ला उर्फ नईम की कहानी शुरू होती है साल 1990 से जब गल्ला के पिता निजाम कुरसी बुनते थे और तैयार माल बाजार में बेचते थे. उस से पूरे परिवार का पेट पलता था.

साल 1993 में गल्ला जो पेशे से बाइक मैकेनिक था, उस ने पिता के कारोबार के साथ ही सोतीगंज में दोपहिया वाहनों के रिपेयरिंग की दुकान खोली. धीरेधीरे गल्ला कबाड़ वाला बन गया और इसी कबाड़ के धंधे की आड़ में उस ने चोरी की बाइक काटने का धंधा शुरू किया.

दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या और सुरक्षित पार्किंग की जगह न होने से वाहन चोरी करना आसान हो गया था. 50 हजार की बाइक को वाहन चोर मेरठ के सोतीगंज में 5 से 10 हजार में बेच देते और गल्ला जैसे कबाड़ी कुछ ही मिनटों में उसे काट कर उस के हर पुरजे को अलग कर देते और फिर उन पुरजों को अलगअलग खुलेआम बेच कर 30 हजार से अधिक की कमाई कर लेते.

हाजी गल्ला ने मुनाफे के इसी गणित को समझा और इस का पूरा फायदा उठा कर गाडि़यों के कटान के धंधे का सरताज बन बैठा. बाइक और इस के बाद चोरी के चारपहिया वाहनों को काटने का धंधा जोरों से चल निकला और इस अवैध कारोबार को उस ने धीरेधीरे सोतीगंज के अलावा कई स्थानों पर फैला दिया.

हाजी गल्ला पर पहली सख्त काररवाई जनवरी, 2015 में तत्कालीन युवा एएसपी और 2011 बैच के आइपीएस अधिकारी अभिषेक सिंह ने की थी.

अभिषेक ने हाजी गल्ला के वेस्ट एंड रोड स्थित गोदाम पर छापा मार कर बड़ी संख्या में वहां से गाडि़यों के अवैध कलपुरजे बरामद किए थे. इस के बाद 10 फरवरी, 2015 को हाजी गल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस धंधे से अरबपति हो गया हाजी गल्ला

हालांकि बाद में हाजी गल्ला न केवल जमानत पर रिहा हो गया बल्कि उस ने अपनी राजनैतिक पहुंच का फायदा उठा कर प्रोन्नत हो कर मेरठ के एसपी (सिटी) के पद पर तैनात हुए अभिषेक सिंह का दूसरे जिले में तबादला भी करवा दिया.

इस के बाद हाजी गल्ला बिना किसी डर के अपने अवैध कारोबार में लगा रहा. पुलिस में भी हाजी गल्ला की राजनीतिक पहुंच का डर बैठ गया था.

बेशुमार दौलत कमाई और 2021 में हाजी गल्ला पहले करोड़पति और फिर अरबपति हो गया. हाजी गल्ला ने पिछले 25 सालों में अरबों रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया. उस ने सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में 2 आलीशान मकान खड़े कर दिए. 5 साल पहले पटेल नगर में कोठी खरीदी.

इस के अलावा गल्ला के उत्तराखंड में भी 100 करोड की संपत्ति खरीदने की बात सामने आई. गल्ला के कई प्लौट सदर बाजार इलाके में थे, जिन में ऊंची बाउंड्री कर गोदाम बना रखे थे. 6 गोदाम और कैंट जैसी जगह में फार्महाउस बना हुआ था.

गल्ला ने जितनी भी संपत्ति हासिल की थी, वो चोरी की गाडि़यों के कबाड़ को बेच कर अर्जित की गई थी. लेकिन उस की संपत्तियों में सब से चर्चित प्रौपर्टी थी वेस्ट एंड रोड की वो 235 नंबर की कोठी, जो असल में रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है और 15 साल पहले हाजी गल्ला ने इस पर कब्जा कर के गोरखधंधे से अपने नाम करा ली थी.

60 साल के हाजी नईम उर्फ गल्ला वैसे तो मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के सोतीगंज का रहने वाला है. सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में गल्ला के कुछ समय पहले तक उस के 6 गोदाम थे. इन गोदामों में चोरी व लूट के वाहन काटे जाते थे.

सोतीगंज के कबाडि़यों की 65 करोड़ की संपत्ति जब्त

हाजी नईम ने 2016 में देहलीगेट थाना क्षेत्र के पटेलनगर में 353 वर्गगज में 3 मंजिला आलीशान कोठी सवा 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी. इस समय पटेल नगर की इस कोठी की कीमत सरकारी तौर पर 4 करोड़ 10 लाख रुपए है.

जांच में सामने आया कि गल्ला ने अपने गिरोह के साथ मिल कर चोरी के वाहन काटने से अवैध संपत्ति अर्जित करते हुए इस कोठी को खरीदा था.

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय का कहना है कि हाजी गल्ला के बंगला नंबर 235 की 2048 वर्गमीटर जमीन पर बना गोदाम रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है जिस के संबध में रक्षा संपदा विभाग की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कराई गई है.

इसी जमीन पर बने आलीशान बंगले में हाजी गल्ला चोरी और लूट के वाहनों को कटवाता था, जिस की बाजार कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है.

मेरठ पुलिस ने पहली जनवरी, 2022 को इसी 235 नंबर बंगले को कुर्क कर लिया. इस बंगले को कबाड़ी हाजी नईम उर्फ गल्ला ने 15 साल पहले फरजी दस्तावेजों के सहारे अपने नाम पर पंजीकृत करा लिया था.

बंगला नंबर 235 का एक भाग चोरी के वाहन कटान का मुख्य केंद्र था. इस बंगले के गेट ऐसे डिजाइन किए गए थे कि ट्रक और 16 पहिया वाहन आसानी से दाखिल हो जाते थे. बंगले का गेट इतना बड़ा था कि बड़े से बड़ा वाहन आसानी से अंदर दाखिल हो जाया करता था.

लेकिन इस गेट के अंदर दाखिल होने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी. पुलिस जब इस बंगले के अंदर दाखिल हुई तो चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ वाहनों के पुरजे देख कर दंग रह गई.

हाजी गल्ला के इस अवैध बंगले के अंदर दाखिल होते ही पुलिस को लगा, जैसे वे किसी जंगल में दाखिल हो गए हों. बंगले के अंदर मौजूद वाहनों के पुरजेपुरजे चीखचीख कर गवाही दे रहे थे कि यहां क्या काम हो रहा था.

हाजी इकबाल भी निकला बड़ा माफिया

पुलिस ने हाजी गल्ला के बाद इस इलाके के दूसरे सब से बड़े कबाड़ी हाजी इकबाल और तीसरे बड़े कबाड़ माफिया शाकिब उर्फ गद्दू को भी बेनकाब कर दिया. पुलिस ने जब इस इलाके के दूसरे सब से बड़े

कबाड़ी हाजी इकबाल के खिलाफ काररवाई शुरू की तो उस के भी जबरदस्त कारनामे उजागर हुए.

आरोप है कि इकबाल ने सोतीगंज में गुरुद्वारा रोड पर 5 करोड़ रुपए की कीमत की वक्फ बोर्ड की जमीन पर कब्जा किया हुआ था. यहां पर इकबाल चोरी के वाहन काटता और गाडि़यों में इंजन चेसिस नंबर बदलने का धंधा करता था. वक्फ बोर्ड ने इस की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी है जिस के बाद पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत इस संपत्ति को भी जब्त कर लिया.

इकबाल का नेटवर्क भी दूसरे जिलों तक फैला हुआ था. लखनऊ में चोरी की 500 गाडि़यां पुलिस ने बरामद की थीं. इन में इकबाल के बेटे अफजाल, अबरार का नाम भी सामने आया था. सोतीगंज के कबाडि़यों के पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी जमीन बताई गई. जहां पर करोड़ों की जमीन होनी बताई जा रही है. कबाडि़यों ने दूसरे राज्यों में होटल और अन्य कारोबार भी चला रखे हैं.

लूट और चोरी के वाहन काटने वाले सोतीगंज के हाजी गल्ला सहित 18 कबाडि़यों की संपत्ति का रिकौर्ड पुलिस खंगालने में जुट गई. बैंक खातों से ले कर संपत्ति की जानकारी लेने के लिए अब पुलिस के साथ जीएसटी की टीम भी लग गई.

पुलिस का दावा कि 18 कबाडि़यों ने गिरोह बना कर कई राज्यों में अपना नेटवर्क फैलाया था. सोतीगंज के कबाडि़यों पर शिकंजा कस चुकी पुलिस अब गिरफ्तार किए गए गल्ला व इकबाल के अलावा, जीशान उर्फ पौवा, मन्नू उर्फ मोईनुद्दीन, गद्दू और राहुल काला सहित अन्य कबाडि़यों की काली कमाई से अर्जित अवैध संपत्तियों का पता लगाने में जुट गई.

इन सभी के खिलाफ दस्तावेजी सबूत जुटा कर पुलिस ने इन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट सेक्शन 14 (1) के तहत काररवाई कर के इन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कबाड़ी गद्दू की 5 करोड़ की संपत्ति जब्त करने की काररवाई भी पुलिस ने शुरू कर दी.

चेसिस नंबर भी बदलने में माहिर थे माफिया

एसएसपी प्रभाकर चौधरी के आदेश पर सितंबर महीने में गाजियाबाद स्थित पुलिस फोरैंसिक लैब की एक टीम को भी सोतीगंज बुलाया गया. फोरैंसिंक टीम ने यहां बिक रहे गाडि़यों के 110 इंजनों की जांच की. जांच में पता चला कि इन में से 70 से ज्यादा इंजनों पर दर्ज नंबर से छेड़छाड़ की गई थी.

फोरैंसिक टीम ने 30 गाडि़यों के मूल इंजन नंबर भी प्राप्त कर लिए, जिन के आधार पर यह पता चला कि ये इंजन चोरी की गाडि़यों से निकाले गए हैं. इस के बाद पुलिस ने सोतीगंज में चोरी की गाडि़यों के अवैध कटान से जुड़े 50 दूसरे कबाड़ कारोबारियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इस अभियान में तेजी लाते हुए सोतीगंज में मोटर पार्ट्स बेचने वाली 300 दुकानों की एक सूची तैयार कर सभी दुकानों की अलगअलग फाइलें बनाईं. इन सभी दुकानों का ब्यौरा वाणिज्यकर विभाग को भेज कर इन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन कराने का अनुरोध किया, ताकि इन दुकानों से बिकने वाले मोटर पार्ट्स पर नजर रखी जा सके.

कागजी काररवाई को दुरुस्त रखने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 91 और 149 का सहारा लिया गया है. 91 सीआरपीसी के अनुसार विवेचक किसी भी अपराध से संबंधित सूचना किसी से भी मांग सकता है. इस के तहत सोतीगंज में 101 दुकानदारों को नोटिस जारी कर उन के

यहां बिकने वाले सभी सामानों की जानकारी मांगी गई.

सीआरपीसी के सेक्शन 149 में पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने के लिए काररवाई करने की शक्ति दी गई है. इस के तहत दुकानदारों को जारी नोटिस में निर्देश दिया कि जांच जारी रहने तक प्रतिष्ठान में रखे मोटर पार्ट्स व अन्य सामानों से कोई भी छेड़छाड़ न की जाए. इसी नोटिस के चलते सोतीगंज में मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से लगातार बंद हैं.

कुख्यात वाहन माफियाओं ने चोरी के वाहनों का धंधा कर के अरबों रुपए की संपत्ति जुटाई थी. लेकिन अब पुलिस ने इस चोर बाजारी का धंधा करने वालों पर नजरें टेढ़ी कर ली हैं. पिछले 5 महीनों में पुलिस ने 32 से ज्यादा वाहन माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर की काररवाई को अंजाम दिया.

इस के अलावा इन की 40 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को कुर्क कर ली. वहीं पुलिस ने वाहन चोरी और चोरी के पार्ट्स बेचने वाले 100 से ज्यादा आरोपियों की क्राइम कुंडली तैयार कर ली.

पुलिस ने बाकायदा ऐसे दुकानदारों को नोटिस भी जारी कर दिए. वहीं नोटिस का जवाब न देने तक दुकानें बंद करवा दीं.

मेरठ का सोतीगंज आटो पार्ट्स मार्केट अब बंद हो गया. जिन गलियों में कभी आटो पार्ट्स मिलते थे, वहां अब कपड़े की दुकानें लगने लगी हैं. जो लोग आटो पार्ट्स बिक्री के नाम पर भरीपूरी कार को ठिकाने लगा दिया करते थे, वो अब विंटर वियर बेच रहे हैं. सोतीगंज कार बाजार को मेरठ पुलिस अब बंद करा चुकी है.

रद्दी, कोयला और चारे की बिक्री का केंद्र बन गया कबाड़ का कमेला

क्याआप ने कभी सोचा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि जगहों से रोजाना सैकड़ों कारें और दोपहिया वाहन चोरी हो जाते हैं, पर ये सभी चोरी के वाहन गायब कहां हो जाते हैं और इन के गायब होने में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सोतीगंज इलाके का क्या हाथ था?

सोतीगंज एक ऐसा बाजार था, जिस में शामिल पूरा तंत्र मुसलिम समुदाय से था, चोरी करने वाले अधिकांश वाहन चोर भी मुसलिम समाज से थे तो इन्हें खरीद कर व काट कर पूरे भारत में आटो पार्ट्स की आपूर्ति करने वाले भी यही लोग थे.

मेरठ के सोतीगंज में हाल के दिनों तक लगभग 32 बड़े कबाड़खाने थे और इन सभी कबाड़खानों के मालिक मुसलिम हैं. उन्हें चोरी का माल हड़प लेने में इतनी विशेषज्ञता हासिल है कि वे पूरी कार को सिर्फ 20 मिनट में काट देते हैं और कार के हर हिस्से को अलग कर के पूरे भारत में आटो पार्ट्स बाजार में बड़ी पैकिंग के साथ बेचने के लिए भेज देते हैं.

पुलिस ने अब तक जो सबूत जुटाए हैं, उस के मुताबिक सोतीगंज के चोर बाजार से अवैध रूप से करीब 48 अरब रुपए की संपत्ति बनाई गई है, वह भी बिना किसी निवेश के.

वैसे इलाके के इतिहास पर नजर डालें तो सोतीगंज बाजार हमेशा से चोरी की गाडि़यों के लिए फेमस नहीं था. यहां 1960 के दौर में रद्दी, कोयला, पशुओं का चारा बिका करता था. सन 1980 के बाद से दौर बदलना शुरू हुआ और यह चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स का गढ़ बन गया.

कहते हैं कि सब से पहले यहां 4 दुकानें खुली थीं. फिर क्या, घरों के अंदर दुकानें और गोदाम खुलते गए और कुछ ही सालों में सोतीगंज बाजार चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स की बिक्री और नई गाड़ी तैयार कर उन्हें बेचने का गढ़ बनता गया. आज यहां की तंग गलियों में सैकड़ों की संख्या में दुकानें और गोदाम बन गए.

दोपहिया हो या चारपहिया, यहां चोरी, पुरानी और ऐक्सिडेंट में खराब हुई गाडि़यां आतीं और सजसंवर कर बाहर निकलतीं. सोतीगंज मार्केट एशिया की सब से बड़ी स्क्रैप मार्केट बन गया.

सोतीगंज मार्केट में आज के दौर की गाडि़यों के हिस्से तो मिलते ही थे, यहां पर सालों पुरानी और दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की विंटेज जीप के टायर, 45 साल पहले की एंबेसडर कार का ब्रेक पिस्टन, 1960 की बनी महिंद्रा जीप क्लासिक का गीयर बौक्स तक मिल जाया करता था.

यहां कबाड़ के ऐसेऐसे कारीगर बैठे थे, जो कुछ ही घंटों में दोपहिया और चारपहिया गाडि़यों के हर पार्ट अलग कर के रख देते थे. इंजन, पहिए, दरवाजे, बौडी, सीट सब अलगअलग दुकानों पर भेज दी जाती थीं. फिर उन्हीं पुरजों को कबाड़ बना कर मेरठ से ले कर दिल्ली के जामा मसजिद और गफ्फार मार्केट तक में बेचा जाता था.

सोतीगंज मार्केट में चोरी की गाडि़यों के सैकड़ों कौन्ट्रैक्टर सक्रिय थे, जो दिल्ली एनसीआर, वेस्ट यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल तक चोरी की गाडि़यों को अपने यहां मंगवा कर उन्हें काटने का धंधा करते थे.

सोतीगंज बाजार में चोरी की गाडि़यों के आरोपी कई तरह से काम करते थे. अगर गाड़ी की स्थिति ठीक है तो फिर चेसिस, इंजन वगैरह बदल कर उसे बेच भी दिया जाता था. अगर गाड़ी की कंडीशन ठीक नहीं होती तो उसे कबाड़ में खपा दिया जाता.

दुर्घटनाग्रस्त नीलाम गाडि़यों के कागजात भी बेचे जाते थे. लग्जरी गाडि़यों के रजिस्ट्रैशन एक से डेढ़ लाख रुपए में, सामान्य गाडि़यों को 40-50 हजार में बेचते थे.

कबाड़ी पुलिस से भी कर बैठते थे मारपीट

मेरठ का सोतीगंज एक ऐसा आपराधिक तिलिस्म है, जिस से मेरठ का पुलिसप्रशासन कभी खौफ खाता था. चोरी की गाडि़यों के कलपुरजे अवैध रूप से बेचे जाने की सूचना पर 23 जनवरी, 2015 को पहली बार मेरठ के सोतीगंज में दिल्ली पुलिस की स्पैशल क्राइम ब्रांच की टीम और सदर पुलिस बड़ी छापेमारी करने पहुंची थी.

पुलिस के सोतीगंज पहुंचने पर हथियारों से लैस कबाडि़यों ने हमला कर दिया. पुलिस को घेर कर पीटा और गाडि़यों के अवैध कटान में शामिल जान मोहम्मद को पुलिस कस्टडी से छुड़ा लिया. पुलिस को जान बचा कर भागना पड़ा. बाद में पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.

इस से पहले भी 16 नवंबर, 2014 को मेरठ के सदर थाने की पुलिस ने सोतीगंज में चल रहे अवैध मोटर गैराज की जांच के लिए अभियान शुरू किया. पहले ही दिन पुलिस को कबाडि़यों ने घेर कर मारपीट की. नतीजा पुलिस को अभियान बंद करना पड़ा.

बौलीवुड फिल्म सरीखी ये घटनाएं बताती हैं कि मेरठ में सदर थाने से सटा हुआ सोतीगंज इलाके में कबाड़ माफिया किस कदर बेखौफ थे. लेकिन इसी सोतीगंज का माहौल अब पूरी तरह से बदल चुका है. यहां चल रही मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से बंद हैं. ग्राहकों से पटी रहने वाली सड़कों पर सन्नाटा है.

कबाड़ माफियाओं के गोदामों और घर पर कुर्की के नोटिस चस्पा हैं. पुलिस दबिश मार कर सोतीगंज के मोटर गैराज में रखे सामानों की जांच में जुटी है.

इस सोतीगंज में हुआ यह अभूतपूर्व बदलाव उस वक्त चर्चा में आया जब 18 दिसंबर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे के शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस का जिक्र किया.

साल 1991 के बाद उदारीकरण के दौर में भारतीय बाजार महंगी इंपोर्टेड गाडि़यों के लिए खुला. 4 और 2 पहिया गाडि़यों की अचानक बाजार में आवक बढ़ी. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में मोटर बाइक और कारों की बिक्री में इजाफा हुआ.

इसी के साथ मेरठ के सोतीगंज इलाके में गाडि़यों की मरम्मत का धंधा भी शुरू हुआ. साल 1995 तक सोतीगंज में गाडि़यों की मरम्मत करने के लिए छोटेबड़े करीब 25 ही गैराज थे जो ढाई दशक बाद वर्ष 2021 में बढ़ कर 1000 से अधिक हो गए.

दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों से गाडि़यां चोरी हो कर सोतीगंज कटने के लिए पहुंचती लगीं. चोरी की गाडि़यों को सस्ते में खरीद कर उन के पार्ट्स बेच कर कबाड़ कारोबारी 20 से 30 गुना मुनाफा कमाते थे.

तेजी से इस अवैध कारोबार के बढ़ने के पीछे यही अर्थशास्त्र था. पुलिस के अनुमान के मुताबिक सोतीगंज में एक साल में चोरी की गाडि़यां काट कर निकाले गए मोटर पार्ट्स का सालाना कारोबार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है.

इंजन पार्ट्स की पूरी मार्केट बंद हो जाने के बाद अब सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. सोतीगंज को वाहन कटने के कलंक से मुक्ति दिलाने के बाद पुलिस की जिम्मेदारी यहां पर बेरोजगार हुए लोगों के पुनर्वास का माहौल बनाने की है ऐसा नहीं हुआ तो सोतीगंज में फिर गाडि़यां कटने को पहुंचने लगेंगी.

बदन सिंह बद्दो : हौलीवुड एक्टर जैसे कुख्यात गैंगस्टर – भाग 1

बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे.

बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई.

वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया.

बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए.

सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी.

हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई.

कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था.

एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है.

बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है.

ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.