विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब – भाग 5

ऐसा नहीं था कि करण सिंह की स्थिति  साइकिल दिलाने की नहीं थी, लेकिन वह यह सोच कर उसे साइकिल नहीं दिला रहे थे कि कहीं उन के लाडले को चोट न लग जाए.

लेकिन 7 जनवरी को जब उन के पड़ोसी और दूर के रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले अवधेश ने जब उसे साइकिल दिलाने की बात कही तो आशू के मन में लालच आ गया.

बहन से कुछ देर बात करने के बाद आशू अपने घर से निकल गया. इस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा. घर वालों ने आशू को इधरउधर ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल सका. मोहल्ले के लोग भी उन के साथ बच्चे को ढूंढने में मदद करने लगे. जब वह नहीं मिला, तो करण सिंह अपने रिश्तेदार अवधेश के साथ थाना स्वरूपनगर पहुंच गए और आशू के गायब होने की बात थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने कोई लापरवाही न बरतते हुए उसी समय अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया और बच्चे के ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी. बच्चे के गायब होने के 2 दिन बाद भी करण सिंह के पास फिरौती की कोई काल नहीं आई तो पुलिस को यही लगा कि किसी ने दुश्मनी में बच्चे का अपहरण किया है.

गली में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने पर पुलिस को पता लगा कि आशू अवधेश के घर के पास देखा गया था. उस के बाद उस की फुटेज नहीं दिखाई दी. तब पुलिस ने उस गली के 50 से ज्यादा घरों में तलाशी अभियान चलाया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने छत पर रखी पानी की सभी टंकियां भी चैक कीं, पर बच्चे का कहीं पता नहीं चला.

इसी बीच पड़ोसियों को अवधेश के घर से अजीब सी दुर्गंध आती महसूस हुई. इस बारे में उस से पूछा गया तो वह बोला कि बदबू तो मुझे भी आती है. लगता है घर में कोई चूहा मर गया है. अगले दिन वह एक मरा हुआ चूहा घर के अंदर से निकाल कर ले आया. वही चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखाते हुए कहा कि बदबू इसी से आ रही थी.

एक दिन करण की बेटी गुंजन ने घर वालों को बताया कि आशू साइकिल लेने के लिए अवधेश चाचा के यहां जाने की बात कह रहा था. सीसीटीवी फुटेज में भी आशू अवधेश के घर तक ही जाता दिखा था.

इन सब बातों से घर वालों को अवधेश पर शक होने लगा. अपना शक उन्होंने पुलिस से जाहिर किया तो पुलिस ने अवधेश से पूछताछ तक नहीं की. पुलिस का कहना यह था कि बिना किसी सबूत के उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर सकते.

इस पर करण सिंह ने न्यायालय की शरण ली. कोर्ट के आदेश पर पुलिस सक्रिय हुई और बच्चा गुम होने के 38वें दिन अवधेश के घर की तलाशी ली. वहां एक सूटकेस से तेज बदबू आ रही थी.

जब उस सूटकेस को खुलवाया गया तो उस में आशू की लाश निकली जो पौलीथिन में लपेट कर रखी थी. पुलिस ने तुरंत अवधेश को हिरासत में ले लिया और सूचना डीसीपी असलम खान को दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम वहां पहुंच गई.

लोगों को जब पता चला कि करण सिंह के रिश्तेदार ने ही बच्चे की हत्या कर लाश अपने घर में छिपा रखी थी तो सैकड़ों लोग वहां एकत्र हो गए. सभी के मन में अवधेश के प्रति आक्रोश था. भीड़ के मूड को देखते हुए डीसीपी ने जिले के अन्य थानों की पुलिस भी वहां बुला ली ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे.

पुलिस ने आननफानन में जरूरी कारवाई कर के बच्चे की सड़ी लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवनराम अस्पताल भेज दिया और अवधेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई. पूछताछ में अवधेश ने आशू के अपहरण और हत्या करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

अवधेश शाक्य मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के कुरावली का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा 3 बहनें हैं.

वह सन 2010 में दिल्ली आया था. यहां रह कर वह सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहा था. 2 बार वह यह परीक्षा पास भी कर चुका था पर मुख्य परीक्षा में फेल हो गया था. इसी वजह से वह डिप्रेशन की हालत में चला गया.

बेरोजगार होने से उस पर लोगों का कर्ज भी चढ़ गया. कर्ज के साथसाथ उसे अपनी बहनों की शादी की चिंता भी खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करे, जिस से उस की आर्थिक हालत सुधरे.

तब उस के दिमाग में आया कि क्यों न वह अपने ही दूर के रिश्तेदार करण सिंह के बेटे का अपहरण कर ले. वह करण सिंह की हैसियत से वाकिफ था. उसे उम्मीद थी कि फिरौती में 18-20 लाख रुपए आसानी से मिल जाएंगे.

इस के बाद वह आशू के अपहरण की योजना बनाने लगा. इसी बीच उसे पता चला कि आशू अपने पिता से साइकिल की मांग कर रहा था लेकिन उन्होंने उसे साइकिल नहीं दिलवाई.

7 जनवरी को अवधेश ने आशू से कहा, ‘‘आशू, तुम्हें साइकिल चाहिए?’’

‘‘हां चाचा.’’ आशू खुश हो कर बोला.

‘‘ऐसा करो आज शाम साढ़े 5 बजे के बाद तुम मेरे कमरे पर आ जाना, मैं साइकिल खरीदवा दूंगा.’’ अवधेश ने लालच दिया.

‘‘ठीक है चाचा, मैं आ जाऊंगा.’’ कह कर आशू अपने घर चला गया था और उस ने यह बात अपनी बहन को बता दी थी.

साढ़े 5 बजे से पहले ही वह अवधेश के यहां चला गया. अवधेश आशू को अपने कमरे में ले गया और योजनानुसार गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आशू की लाश पौलीथिन में लपेट कर सूटकेस में बंद कर दी.

सूटकेस उस ने अपने कमरे में ही रख दिया. उस का इरादा लाश को कहीं बाहर ले जा कर ठिकाने लगाने का था. बाद में वह बच्चे के घर वालों से फिरौती मांगना चाहता था. आशू के घर वालों से अवधेश के पारिवारिक संबंध थे. वह उस के घर वालों के साथ आशू को ढूंढने का नाटक भी करता रहा. उसी ने घर वालों के साथ थाने जा कर रिपोर्ट लिखवाई. दूसरी तरफ उसे घर में रखी लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पा रहा था क्योंकि इलाके में पुलिस गश्त कर रही थी.

15-20 दिन बाद जब लाश से बदबू आनी शुरू हो गई तो उस ने कमरे में परफ्यूम छिड़का. ऐसा वह रोजाना करता. पर बदबू बढ़ती जा रही थी. अवधेश परेशान था. कोई शक न करे, इसलिए उस ने एक चूहा मार कर घर के एक कोने में डाल दिया. उस पर भी उस ने परफ्यूम छिड़क दिया था.

एक दिन पड़ोसियों ने बदबू के बारे में उस से पूछा तो उस ने कह दिया कि घर में चूहा मर गया होगा. फिर वही मरा हुआ चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखा दिया. उसे वह बाहर फेंक आया. लाश ठिकाने लगाने का मौका न मिलने से वह परेशान था. इस तरह बच्चे की लाश उस के यहां 37 दिन तक रखी रही.

पुलिस ने अवधेश से पूछताछ करने के बाद उसे रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हर्षिनी कान्हेकर : कैसे भारत की पहली महिला फायर फाइटर बनीं

भारत की पहली फायर वूमन हर्षिनी कान्हेकर ने यह सिद्ध कर दिया है कि जैंडर के आधार पर कोई काम निर्धारित नहीं होता, क्योंकि आज महिलाएं हर क्षेत्र में ऊंचाइयां छू रही हैं. हां, 10-15 साल पहले बात अलग थी, जब महिलाओं को आगे बढ़ने से रोका जाता था.

हर्षिनी के इस सफल अभियान में उन के पिता ने बहुत सहयोग दिया. हर्षिनी के 69 वर्षीय पिता बापुराव गोपाल राव कान्हेकर महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर हैं. उन्हें पढ़ाई के बारे में बहुत जानकारी थी.

उन्होंने अपनी पत्नी को भी शादी के बाद पढ़ने के लिए प्रेरित किया. वे हमेशा किसी न किसी कोर्स के बारे में हर्षिनी को बताते रहते थे, उस सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि हर्षिनी की स्पीड लिखने में बढ़े.

उन्होंने हमेशा बच्चों को ग्राउंडेड रखा. वे कहते हैं, ‘‘मुझे पता था कि हर्षिनी इस फील्ड में अच्छा करेगी. उस का पैशन मुझे दिख गया था. मैं सुबह उठ कर उसे प्रैक्टिस के लिए रोज तैयार करता था ताकि उसे मेरे पैशन का भी पता लगे.’’

अपने पिता के सपने को साकार करते हुए आज हर्षिनी ओएनजीसी की फायर सर्विसेज की डिप्टी मैनेजर हैं. आइए जानते हैं उन की सफलता का राज:

यहां तक आने की शुरुआत कैसे हुई?

मेरे पिता हमेशा शिक्षा को ले कर बहुत जागरूक थे. किसी नए कालेज में जाने से पहले वे वहां की सारी सिचुएशन से हमें अवगत कराते थे. फायर कालेज में एडमिशन के दौरान वे मुझे वहां ले गए, तो पता चला कि वहां आज तक किसी लड़की ने दाखिला नहीं लिया है.

सब चौंक गए कि लड़की यहां कैसे आई. उन्होंने यहां तक कहा कि मैडम आप आर्मी या नेवी में कोशिश करें, यह तो लड़कों का कालेज है. यहां आप टिक नहीं पाएंगी. ये बातें मुझे पिंच कर गईं. मगर मेरे पिता ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं ने तभी ठान लिया कि मैं यहीं पढ़ूंगी. मेरी फ्रैंड ने भी मेरे साथ फार्म भरा.

यूपीएससी की इस परीक्षा में केवल 30 सीटें पूरे भारत में थीं. मैं ने प्रवेश परीक्षा दी और पास हो गई. मेरे लिए यह बड़ी बात थी.

पुरुषों के क्षेत्र में पढ़ने और काम करने में कितनी चुनौती थी?

परीक्षा पास करने के बाद भी लोगों ने तरहतरह की राय दीं. यह कोर्स क्या है यह समझने में मेरे मातापिता ने भी समय लिया. फिर मैं ने इस क्षेत्र के एक व्यक्ति से परामर्श लिया, तो पता चला कि कोर्स बहुत अच्छा है. फिर मेरे पिता ने भी मेरा पूरा साथ दिया और मैं ने ऐडमिशन ले लिया. जब मैं ने खाकी वरदी पहनी, तो मेरी मनोकामना तो पूरी हुई, पर दायित्व भी आ गया.

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जो लोग पहले हंस रहे थे वे अब चुप थे. मुझे प्रूव करना था. मैं वे सभी काम किया करती थी, जो लड़के करते थे. मैं ने अपनेआप को पूरी तरह से अनुशासन में ढाल लिया था ताकि कोई मेरे ऊपर उंगली न उठाए. कमजोरी मैं ने कभी कोई नहीं दिखाई, क्योंकि इस का असर बाकी लड़कियों पर पड़ता, क्योंकि मैं उन का प्रतिनिधित्व कर रही थी.

पिता की कौन सी बात को अपने जीवन में उतारती हैं?

लोग मुझे कहते हैं कि मैं बहुत साहसी हूं पर मेरे मातापिता मुझ से भी अधिक साहसी हैं. तभी तो उन्होंने मुझे लड़कों के कालेज में भेजने की हिम्मत दिखाई. जब मैं कोलकाता में 3 महीने जैंट्स होस्टल में अकेली रही. पिता मुझे अलग भी रख सकते थे, पर उन्होंने वहीं रह कर मुझे पढ़ने का निर्देश दिया. मुझे लगता है मेरे पिता ने समाज की उस सोच को बदलने में बड़ा कदम उठाया, जो लड़कालड़की में भेद करती है.

नेतागिरी की आड़ में : पैसों के लालच ने पहुंचाया जेल

अचानक हुए हजार व 5 सौ के नोटबंदी के फैसले के बाद पूरे देश में अफरातफरी का जो माहौल कायम हुआ, उस से उत्तर प्रदेश का मेरठ शहर भी अछूता नहीं रहा. बैंकों में भीड़ उमड़ पड़ी थी. कोई पुराने नोटों को जमा करना चाहता था तो कोई अपनी जरूरत के हिसाब से नए नोट लेना चाहता था.

हर रोज बैंकों में लंबी कतारें लग रही थीं. होने वाली परेशानी से लोगों में गुस्सा भी पनप रहा था. कई दिन बीत जाने के बाद भी हालात जस के तस थे. पुलिस को भी अतिरिक्त ड्यूटी करनी पड़ रही थी. कानूनव्यवस्था की स्थिति न बिगड़े, इस के लिए बैंकों में पुलिस बल तैनात कर दिया गया था. ऐसे में ही एसएसपी जे.

रविंद्र गौड़ को सूचना मिली कि कुछ लोग नए नकली नोटों का धंधा कर रहे हैं. इस के लिए उन्होंने पूरा नेटवर्क भी तैयार कर लिया है. सूचना गंभीर थी, लिहाजा जे. रविंद्र गौड़ ने इस की जानकारी एसपी (क्राइम) अजय सहदेव को दे कर सर्विलांस टीम को अविलंब काररवाई करने के आदेश दिए. थाना पुलिस को भी निर्देश दिए गए कि चैकिंग अभियान चला कर संदिग्ध लोगों की तलाश की जाए. सर्विलांस टीम ने कुछ संदिग्ध लोगों के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगा दिया.

23 दिसंबर, 2016 की रात नेशनल हाइवे संख्या 58 दिल्लीदेहरादून मार्ग स्थित पल्लवपुरम थानाक्षेत्र के मोदी अस्पताल के सामने पुलिस चैकिंग अभियान चला रही थी. आनेजाने वाले संदिग्ध वाहनों की जांच सख्ती से की जा रही थी.

दरअसल पुलिस को सूचना मिली थी कि नकली नोटों का धंधा करने वाले कुछ लोग उधर से निकलने वाले हैं. सीओ वी.एस. वीरकुमार के नेतृत्व में थाना पल्लवपुरम पुलिस और सर्विलांस टीम इस चैकिंग अभियान में लगी थी.

पुलिस को एक काले रंग की इंडीवर लग्जरी कार आती दिखाई दी. कार पर किसी पार्टी का झंडा लगा था और उस के अगले शीशे पर बीचोबीच बड़े अक्षरों में वीआईपी लिखा स्टिकर लगा था.

पुलिस ने कार को रोका. उस में कुल 3 लोग सवार थे. एक चालक की सीट पर, दूसरा उस की बराबर वाली सीट पर और तीसरा पिछली सीट पर बैठा था. कार रुकवाने पर उस में सवार कुरतापायजामा और जवाहर जैकेट पहने नौजवान ने रौबदार लहजे में पूछा, ‘‘कहिए, क्या बात है, मेरी कार को क्यों रोका?’’

‘‘सर, रूटीन चैकिंग है.’’ एक पुलिस वाले ने कहा.

पुलिस वाले की यह बात उस नौजवान को नागवार गुजरी हो, इस तरह उस ने तंज कसते हुए कहा, ‘‘रूटीन चैकिंग है या आम लोगों को परेशान करने का हथकंडा. आप यह सब करते रहिए और हमें जाने दीजिए.’’

‘‘सौरी सर, हमें आप की कार की तलाशी लेनी होगी.’’ पुलिस वाले ने कहा.

पुलिस वाले का इतना कहना था कि युवक गुस्से में चीखा, ‘‘क्या मतलब है तुम्हारा, हम कोई चोरउचक्के हैं. तुम जानते नहीं मुझे. मैं लोकमत पार्टी का नेता हूं.’’

‘‘वह सब तो ठीक है सर, लेकिन यह हमारी ड्यूटी है. वैसे भी कानून सब के लिए एक है.’’

‘‘पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना है न कि हम जैसे लोगों को परेशान करना. मेरी पहुंच बहुत ऊपर तक है. अगर मैं अपने पावर का इस्तेमाल करने पर आ गया तो एकएक की वरदी उतर जाएगी.’’ युवक ने धमकी दी.

वह युवक चैकिंग का जिस तरह विरोध कर रहा था, उस से पुलिस को उस पर शक हुआ. एक बात यह भी थी कि कई बार शातिर लोग इस तरह की कारों का इस्तेमाल गलत कामों के लिए करते हैं. पुलिस ने तीनों युवकों को जबरदस्ती नीचे उतारा और कार की तलाशी शुरू कर दी. पुलिस को कार में एक बैग मिला. पुलिस ने जब उस बैग को खोला तो उस में 2 हजार और 5 सौ के नए नोट बरामद हुए. उन के मिलते ही पुलिस को धमका रहे युवक के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. पुलिस ने बरामद रकम को गिना तो वह 4 लाख 27 हजार रुपए निकली. पुलिस ने उस के बारे में पूछा, ‘‘यह पैसा कहां से आया?’’

‘‘सर, ये हमारे हैं.’’ जवाब देते हुए युवक सकपकाया.

पुलिस ने नोटों पर गौर किया तो उन का कागज न सिर्फ हलका था, बल्कि रंग भी नए नोटों के मुकाबले थोड़ा फीका था. इस से पुलिस को नोटों के नकली होने का शक हुआ. दूसरी तरफ बरामद रकम के बारे में युवक कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके. पुलिस ने कार की एक बार फिर तलाशी ली तो उस में से एक तमंचा और 2 चाकू बरामद हुए.

पुलिस ने तीनों को हिरासत में लिया और थाने ला कर उन से पूछताछ शुरू कर दी. पहले तो उन्होंने पुलिस को चकमा देने का प्रयास किया, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती की तो उन्होंने जो सच कबूला, उसे सुन कर पुलिस हैरान रह गई. वे तीनों नकली नोट छाप कर उन्हें बाजार में चलाने का धंधा कर रहे थे.

पुलिस से बहस करने वाला युवक ही इस धंधे का मास्टरमाइंड था. वह एक पार्टी का पदाधिकारी था और नेतागिरी की आड़ में ही नकली नोटों के इस धंधे को अंजाम दे रहा था. वह नकली नोटों के बदले जमा होने वाली असली रकम के बल पर चुनाव लड़ना चाहता था. जिन युवकों को गिरफ्तार किया गया था,

उन के नाम मोहम्मद खुशी गांधी, ताहिर और आजाद थे. तीनों मेरठ के ही भावनपुर थानाक्षेत्र के गांव जेई के रहने वाले थे. पुलिस ने उन के गांव जा कर उन की निशानदेही पर खुशी के घर से प्रिंटर, स्कैनर, कटर और एक प्लास्टिक के कट्टे में भरी कागज की कतरनें बरामद कीं. बरामद सामान के साथ पुलिस उन्हें थाने ले आई. पुलिस ने तीनों युवकों से विस्तृत पूछताछ की तो एक युवा नेता के गोरखधंधे की ऐसी कहानी सामने आई, जो हैरान करने वाली थी. मुख्य आरोपी खुशी गांधी हनीफ खां का बेटा था.

हनीफ के पास काफी खेतीबाड़ी थी. सुखीसंपन्न होने की वजह से गांव में उन का रसूख था. खुशी अपने 5 भाइयों में चौथे नंबर पर था. उस के बड़े भाई खेती करते थे. लेकिन खुशी का मन खेती में नहीं लगा. गलत संगत में पड़ने की वजह से उस के कदम बहक गए थे.

बेटे का चालचलन देख कर हनीफ ने उसे समझाने की हरसंभव कोशिश की, लेकिन उस के मन में तो कुछ और ही था. खुशी महत्त्वाकांक्षी युवक था. वह दिन में सपने देखता था और ऊंची उड़ान भरना चाहता था. वह इस सच को स्वीकार नहीं करना चाहता था कि बिना मेहनत के सपनों की इमारत खड़ी नहीं होती.

वक्त के साथ खुशी के रिश्ते जरायमपेशा लोगों से भी हो गए. संगत अपना गुल जरूर खिलाती है. कुछ संगत तो कुछ शौर्टकट से अमीर बनने की चाहत उसे जुर्म की डगर पर ले गई. हर गलत काम दफन ही हो जाए, यह जरूरी नहीं है. आखिर एक मामले में वह पुलिस के शिकंजे में आ गया. दरअसल, 2 साल पहले मेरठ के ही टीपीनगर थानाक्षेत्र के एक तेल कारोबारी के यहां डकैती पड़ी. इस मामले में पुलिस ने खुशी को भी गिरफ्तार कर के जेल भेजा था.

कुछ महीने बाद उस की जमानत हो गई थी. अच्छा आदमी वही होता है, जो ठोकर लगने पर संभल जाए. लेकिन खुशी उन लोगों में नहीं था. अपने जैसे युवकों की उस की मंडली थी. वह छोटेमोटे अपराध करने लगा था. किसी का एक बार अपराध में नाम आ जाए और उस के बाद पुलिस उसे परेशान न करे, ऐसा नहीं होता. खुशी पुलिस के निशाने पर आए दिन आने लगा तो खाकी से बचने के लिए उस ने राजनीति को हथियार बना लिया.

इस के लिए उस ने अलगअलग पार्टी के नेताओं से रिश्ते बना लिए. वह रैलियों में भी जाता और लड़कों की टोली अपने साथ रखता. अपना रसूख दिखाने के लिए उस ने एक इंडीवर कार खरीद ली.

उस ने नेशनल लोकमत पार्टी का दामन थाम लिया. खुशी युवा था. पार्टी ने न सिर्फ उसे प्रदेश अध्यक्ष बना दिया, बल्कि आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए वह पार्टी का प्रत्याशी भी बन गया. कार में सायरन व पार्टी का झंडा लगाने के साथ उस ने उस पर वीआईपी भी लिखवा दिया था.

8 नवंबर को प्रधानमंत्री की नोटबंदी की घोषणा के बाद पुरानी मुद्रा पर रोक लग गई और नई मुद्रा आनी शुरू हुई. खुशी को लगा कि अमीर बनने का यह अच्छा मौका है. उस ने सोचा कि अगर पैसा होगा तो वह चुनाव भी अच्छे से लड़ सकेगा. पैसों के लिए ही उस के मन में नकली नोट छापने का आइडिया आ गया.

उस ने अपने 2 साथियों ताहिर और आजाद से बात की. वह जानता था कि देहाती इलाकों में नई करेंसी में असली और नकली की पहचान करना आसान नहीं है. क्योंकि नए नोट अभी पूरी तरह प्रचलन में नहीं आए हैं. उस ने शहरी बाजारों में भी नकली नोट चलाने के बारे में सोच लिया. इस खुराफाती काम में उस ने जरा भी देरी नहीं की और बाजार से अच्छे किस्म का स्कैनर, प्रिंटर और कागज खरीद लाया. फिर क्या था, उस ने नए नोटों से नकली नोटों के प्रिंट निकालने शुरू कर दिए.

खुशी ने शहर जा कर खरीदारी में वे नोट चलाए तो आसानी से चल गए. इस के बाद उस के हौसले बढ़ गए और वह नकली नोट छापने और चलाने लगा. उन रुपयों से उस ने जम कर शौपिंग की.

देहात के भोलेभाले लोगों को भी उस ने अपना निशाना बनाया. खुशी ने नकली नोट चलाने के लिए कुछ एजेंट बना रखे थे, जिन्हें वह 40 हजार के पुराने नोटों के बदले एक लाख के नए नकली नोट देता था. वह कार का सायरन बजाते हुए पुलिस के सामने से निकल जाता और उस पर किसी को शक नहीं होता. वह खादी की आड़ में खाकी वरदी से बचे रहना चाहता था.

खुशी शातिर किस्म का युवक था. वह जानता था कि यह काम ज्यादा दिनों तक चलने वाला नहीं है, क्योंकि जल्दी ही लोग असलीनकली नोट में फर्क करना सीख जाएंगे, इसलिए वह जल्दी से जल्दी ज्यादा से ज्यादा नोट खपाने की कोशिश कर रहा था. यही वजह थी कि वह पुलिस के निशाने पर आ गया.

पूछताछ के बाद एसपी (सिटी) आलोक प्रियदर्शी ने पुलिस लाइन में प्रैसवार्ता कर के युवा नेता के कारनामों का खुलासा किया. इस के बाद पुलिस ने खुशी और उस के साथियों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोनिया नारंग : राजनीतिज्ञों को भी सिखाया सबक

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा ले कर जब कोई महिला ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपना वर्चस्व कायम करती है तो उस की एक अलग ही छवि निखर कर आती है, बेखौफ, दबंग और ईमानदार अफसर की छवि. जिस के लिए उस का कर्तव्य पहले होता है, बाकी सब बाद में.

जोश और जुनून से लबरेज सोनिया नारंग भी उन्हीं विशेष अफसरों में अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराती हैं जिन के लिए आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए कानून की एक ही परिभाषा है. फिर चाहे वो खास अफसरशाही पर हुकूमत चलाने वाले नेता ही क्यों न हों.

सोनिया नारंग का जन्म और परवरिश चंडीगढ़ में हुई. उन के पिता भी प्रशासनिक अधकारी थे. उन से प्रेरणा ले कर सोनिया ने बचपन से ही सिविल सर्विस जौइन करने को अपना लक्ष्य बना लिया था. इस लक्ष्य को पाने की तैयारी उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही शुरू कर दी थी. 1999 में पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में गोल्ड मेडल पाने वाली सोनिया नारंग की लगन और मेहनत रंग लाई. वह कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्ग में हुई. सोनिया ने जौइंन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में हो रहे एक प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता व उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंची. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया नारंग से ही उलझ कर अभद्रता पर उतर आए.

तब सोनिया नारंग ने एमएलए रेनुकाचार्य को कानून का सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया.

इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बुरी तरह से बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया निडरता से अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में यही भाजपा नेता रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने हौसले और मजबूत इरादों का परिचय तब भी दिया था जब कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल कर दिया था.

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मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सर्वजनिक किया. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खदान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम भी सामने आया है. सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर भी भारी इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तूफान सा मच गया. एक बेदाग छवि की आईपीएस अधिकारी का नाम किसी घोटाले में लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था. लेकिन सोनिया नारंग घोटाले से उठी आंधी के बीच भी अविचल रहीं.

उन्होंने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही अन्य अधिकारियों की तरह सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. इस सब की बजाय सोनिया नारंग ने सीएम के आरोप के खिलाफ मजबूती से मोर्चा खोल दिया और सीधे प्रेस के लिए स्टेटमेंट जारी किए.

सोनिया ने कहा, ‘मेरी अंतरात्मा साफ है. आप चाहें तो किसी भी तरह की जांच करा लें. मैं इस आरोप का न सिर्फ खंडन करती हूं, बल्कि इस का कानूनी तरीके से हर स्तर पर विरोध भी करूंगी.’ उन्होंने ऐसा ही किया भी. सोनिया नारंग ने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए बताया, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है, जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

कानून को सर्वोपरि मानने वाली सोनिया ने किसी भी अवैध खनन को बढ़ावा देने या खनन माफिया से सांठगांठ करने से स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए तत्कालिन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के आरोप का पुरजोर विरोध किया था. मुख्यमंत्री से सीधे टकराने का साहस सोनिया नारंग जैसी दबंग और ईमानदार आईपीएस ही कर सकती थीं. आखिरकार उन का विश्वास जीता और उन्हें इस मामले में क्लीन चिट भी मिली.

यही वजह है कि कर्नाटक के लोग सोनिया नारंग पर अटूट विश्वास करते हैं. यहां तक कि निष्पक्ष जांच के लिए उन्हें सीबीआई से ज्यादा भरोसा अपनी अफसर सोनिया पर है.

ऐसा ही एक मामला तब सामने आया था जब सोनिया नारंग कर्नाटक लोकायुक्त की एसपी थीं. लोकायुक्त जस्टिस वाई भास्कर राव के बेटे अश्विन राव और कुछ रिश्तेदारों पर राज्य के संदिग्ध भ्रष्ट अफसरों से फिरौती वसूली का रैकेट चलाने का आरोप लगा था.

पीडब्ल्यूडी के एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे गए थे. उक्त इंजीनियर को जांच से बचने के लिए 25 लाख रुपए तुरंत देने को कहा गया था. तब इंजीनियर ने इस बात की शिकायत लोकायुक्त पुलिस एसपी सोनिया नारंग से की.

उन्होंने मौखिक शिकायत के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की विधिवत जांच कर के अपनी रिपोर्ट लोकायुक्त के रजिस्ट्रार को सौंप दी. इस पर केस खुल कर सामने आया. परिणामस्वरूप  जस्टिस वाई भास्कर राव को इस्तीफा देना पड़ा और उन के बेटे सहित 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. इसी से पे्ररित हो कर उन के जीवन पर कन्नड़ भाषा में ‘अहिल्या’ नाम की फिल्म बनी है.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की

लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

आईपीएस शिवदीप लांडे : रियल हीरो

आप ने दबंग छवि वाले कई पुलिस अफसरों को बड़े परदे पर देख कर तालियां बजाई होंगी. लेकिन, सही मायने में हमारे असल हीरो वो अफसर हैं, जो समाज में फैली गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार तथा अराजकता को जड़ से खत्म करने का काम करते हैं. वर्दी पहनने का मौका तो बहुतों को मिलता है. लेकिन इस वर्दी का दम बहुत कम लोग ही दिखा पाते हैं.

शिवदीप वामनराव लांडे एक ऐसे आईपीएस हैं जो बस एक पुलिस अफसर ही नहीं, बल्कि अनगिनत कहानियों के पात्र हैं. वैसे अफसर जिन के बारे में लोग बस कल्पना करते हैं, हकीकत में ऐसा इंसान सामने देखना अजूबा लगता है.

शिवदीप वामनराव लांडे एक समय बिहार के गुंडेबदमाशों के लिए खौफ बन गए थे. इन से छुटकारा पाने का सिर्फ एक ही रास्ता था और वो था इन का ट्रांसफर. इस बेखौफ आईपीएस अफसर ने फिल्मी स्टाइल में बिहार के ला ऐंड और्डर को कायम किया था. वैसे कहने को तो शिवदीप लांडे पुलिस अधिकारी हैं, लेकिन उन की भूमिका किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं रही. बात चाहे उन के आईपीएस बनने की हो, उन के काम करने के तरीके की हो, लोगों के दिलों में उन के प्रति प्यार और सम्मान की हो या फिर उन की प्रेम कहानी की. हर तरह से उन की कहानी किसी ब्लौकबस्टर फिल्म की कहानी जैसी लगती है.

शिवदीप वामनराव लांडे का जन्म 29  अगस्त, 1976 को महाराष्ट्र के अकोला जिले के परसा गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. शिवदीप के पिता ने तीन बार 10वीं की परीक्षा दी. लेकिन पास न हो सके. वहीं उन की मां भी केवल 7वीं तक पढ़ पाईं थीं. ऐसे में शायद शिवदीप भी एक किसान बन कर रह जाते.

मगर ऐसा नहीं हुआ. क्योेंकि उन के सपने बडे़ थे. उन्होंने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और निष्ठा व लगन से वह सपना पूरा कर दिखाया, जिसे उन के पिता पूरा नहीं कर पाए थे. दरअसल, बचपन से ही उन में कुछ अलग हट कर करने का जुनून था. घरपरिवार में कई तरह के अभाव थे. घर की तमाम मजबूरियां और कमियों के बावजूद बाधाएं उन के पैरों की बेडि़यां नहीं बन सकीं.

2 बडे़ भाइयों से छोटे शिवदीप ने स्कौलरशिप प्राप्त कर इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. इस के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर यूपीएससी की तैयारी की.

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शिवदीप लांडे की परवरिश एक सामान्य परिवार में हुई थी. चूंकि मातापिता अधिक पढ़ेलिखे नहीं थे, इसलिए परिवार की तरफ से पढ़ाई के प्रति कोई दबाव या प्रेरणा नहीं मिलती थी.

भले ही उन का जन्म साधारण परिवार में हुआ था. लेकिन शिवदीप के सपने बहुत ऊंचे थे. बचपन से हिंदी फिल्में देखने का शौक रहा था. जिस में अक्सर फिल्म के नायक को पुलिस अफसर के किरदार में बदमाश खलनायक का अंत करते देख वे रोमांचित हो उठते थे. वह अकसर नायक में खुद की छवि देख कर कल्पना लोक में विचरण करने लगते.

बस इन्हीं कल्पनाओं के बीच मन में एक विचार जन्मा कि क्यों न बड़े हो कर ऐसा ही दंबग पुलिस अफसर बना जाए और गुंडों का खात्मा किया जाए. इसीलिए कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने अपनी ऊंची शिक्षा पूरी की.

महाराष्ट्र के श्री संत गजानन महाराज इंजीनियरिंग कालेज, शेगांव से इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मुंबई में रह कर संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी की.

अच्छी सर्विस छोड़ बने आईपीएस

हालांकि शिवदीप एक प्रतिष्ठित कालेज के प्रोफेसर तथा उस के बाद राजस्व विभाग में आईआरएस के पद पर भी कार्यरत रहे. लेकिन इसी बीच 2006 में उन का संघ लोक सेवा आयोग में चयन हो गया. उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ और उन्हें बिहार कैडर मिला. 2 साल प्रशिक्षण का काम पूरा किया.

शिवदीप लांडे की पहली नियुक्ति 2010 में मुंगेर जिले के नक्सल प्रभावित जमालपुर इलाके में हुई थी. अपनी पहली पोस्टिंग से ही वे मीडिया की सुर्खियों में रहे थे.

लेकिन पटना में तैनाती के दौरान अनोखी कार्यशैली के कारण उन का यह कार्यकाल आज तक अविस्मरणीय है, जिस के कारण शिवदीप पूरे देश में प्रसिद्ध हो गए थे.

पुलिस महकमे में शिवदीप किसी बौलीवुड फिल्मों की कहानी के पात्र की तरह सामने आए थे. जब शिवदीप पटना आए थे, तब शहर गुंडों से त्रस्त था. तमंचे वाले तो थे ही. शरीफ गुंडे भी थे. दवाई वाले गुंडे जो बंदूक नहीं रखते थे, पर दवाओं का अकाल पैदा कर देते थे. शहर में ब्लैक मार्केटिंग कर के शराब की दुकानें जरूरत से ज्यादा खुल गई थीं, लेकिन बिना लाइसेंस के.

10 महीनों में शिवदीप ने शहर को रास्ते पर ला दिया और यह सब कुछ फिल्मी स्टाइल में होता था. यह नहीं कि पुलिस गई और गिरफ्तार कर के ले लाई. नए तरीके आजमाए जाते थे. कभी शिवदीप बहुरुपिया बन के जाते तो कभी लुंगीगमछा पहन के पहुंच जाते. कभी चलती मोटरसाइकिल से जंप मार देते तो कभी किसी की चलती मोटरसाइकिल के सामने खड़े हो जाते.

शिवदीप ने पटना को 9 महीने सेवा दी और इन 9 महीनों में उन्होंने यहां के लोगों, खासकर लड़कियों के दिल में एक खास तरह का प्रेम और सम्मान बना लिया.

दरअसल, ये वह दौर था जब पटना में आवारा लफंगों के कारण स्कूली लड़कियों व महिलाओं का सड़कों पर निकलना बेहद मुश्किल था. आवारा गुंडे लड़कियों को न सिर्फ छेड़ते और भद्दे कमेंट करते थे, बल्कि कई बार तो जहांतहां छू भी देते. ऐसे समय में हुई शिवदीप लांडे की एंट्री.

वह पटना के नए एसपी बन कर पहुंचे थे. लड़कियों की यह परेशानी जब उन तक पहुंची, तो वे खुद कालेज की लड़कियों से मिलने जाने लगे. लांडे ने सब को अपना नंबर दिया और एक ही बात कही कि जब कोई तंग करे तो उन्हें काल करें या एसएमएस करें. लड़कियों ने यही किया.

उन्होंने सड़कछाप रोमियो को सबक सिखाने के लिए पुरुष व महिला पुलिसकर्मियों के सादा लिबास दस्ते तैयार किए. इस के साथ ही शिवदीप भी कालेजों तथा सार्वजनिक स्थलों पर राउंड मारने लगे. वह शायद पहले आईपीएस थे जो मोटरसाइकिल पर गश्त लगाते थे.

एक फोन पर शिवदीप अपनी बाइक उठा कर अकेले ही निकल जाते और अगले ही पल वे लड़कियों की मदद के लिए वहां मौजूद होते. कितने मनचले धरे गए, कई मौके पर सीधे भी किए गए.

देखते ही देखते लड़कियों में हिम्मत आने लगी, उन का डर खत्म होने लगा. यही वजह थी लड़कियों के मन में शिवदीप के प्रति स्नेह और सम्मान की. लांडे ने यहां मनचलों को खूब सबक सिखाया.

कुछ ही महीनों में उन्होंने पटना शहर की सड़कों को मजनुओं की टोलियों से मुक्त करा दिया. लड़कियां खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी थीं. शहर की हर छात्रा के मोबाइल में उन का नंबर होता था, किसी को जरा भी परेशानी होती तो नंबर मिलाते ही शिवदीप लांडे अपनी टीम के साथ पीडि़त छात्रा के सामने हाजिर हो जाते.

पटना में शिवदीप लांडे की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई कि राजनीतिक दबाव में सरकार ने पटना से जब उन का अररिया तबादला कर दिया तो लोगों ने कैंडल मार्च निकाल कर सरकार के इस फैसले का विरोध किया था. पटना के इतिहास में किसी पुलिस अधिकारी के लिए ऐसा पहली बार हुआ था.

स्थानांतरण के बावजूद पटना के लोगों में उन के प्रति दीवानगी आज तक कायम है. उन्हें आज भी पटना की स्कूली छात्राओं के फोन और एसएमएस आते रहते हैं. लांडे के नएनए आइडियाज की वजह से उन के कार्यकाल में पटना का क्राइम रेट कम हो गया था.

जहां भी रहे, गलत कामों पर रही नजर

पटना की तरह ही रोहतास जिले में भी शिवदीप लांडे ने अपने कार्यकाल के दौरान खनन माफियाओं की नींद उड़ा दी थी.  दरअसल रोहतास, औरंगाबाद, कैमूर में खनन और रोड माफिया का छत्ता बड़ा पुराना है. इस छत्ते में सभी दलों के लोग शामिल हैं. कभी राजद का हल्ला होता, तो कभी भाजपा का शोर मचता था.

संदीप लांडे जब रोहतास के एसपी बने, तो उन्होंने भी इस खेल को उजाड़ने में कसर नहीं छोड़ी. हांलाकि कुछ समय बाद रोहतास एसपी के पद से 2015 में लांडे की विदाई कैसे हुई, पुलिस महकमे में यह बात सब को पता है. क्योेंकि बिहार में राजनीतिक दबाव इतना हावी रहता है कि कोई भी पुलिस अधिकारी स्वतंत्र तरीके से काम कर ही नहीं सकता.

बहरहाल, अपनी दबंगई के कारण शिवदीप को रोहतास में भी कई बार अपनी जान तक जोखिम में डालनी पड़ी. उन दिनों शिवदीप रोहतास के एसपी थे. इन्होंने खनन माफिया की नाक में दम कर रखा था.

उधर दुश्मन भी घात लगाए रहते थे. एक रोज शिवदीप अवैध खनन रोकने निकले. लेकिन वे इस बात से अनजान थे कि दुश्मन उन की जान लेने के लिए घात लगाए बैठे हैं. शिवदीप जैसे ही वहां पहुंचे, उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी गई.

30 से ज्यादा राउंड फायर हुए. पूरा फिल्मी सीन बन गया था. फर्क बस इतना था कि यहां कोई कट बोल कर फायरिंग रोकने वाला नहीं था. न ही बहने वाला खून नकली था. जो भी हो रहा था सब असली था. शिवदीप हटे नहीं, डटे रहे.

अंत में शिवदीप के आगे गुंडे पस्त हो गए. इस के बाद शिवदीप ने खुद जेसीबी मशीन चला कर अवैध खनन की सारी मशीनें उखाड़ फेंकी, साथ ही 500 लोगों को गिरफ्तार करवाया.

पश्चिम बिहार के रोहतास जिले के एसपी के तौर पर 6 महीने में ही लांडे ने अपने कारनामों से लोगों को अपना दीवाना बना लिया था. खनन माफिया से टकराव के बाद शिवदीप लावारिस छोड़ी गई नवजात बच्चियों के पालनहार के रूप में भी सुर्खियों में रहे.

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दरअसल, अपनी तैनाती के कुछ दिन बाद ही रोहतास के सासाराम स्थित जिला मुख्यालय से 2 किलोमीटर दूर गोटपा गांव के पास रेलवे ट्रैक के निकट भैरव पासवान को एक बच्ची लावारिस हालत में शाल में लिपटी मिली थी. 45 साल के पासवान और उन की पत्नी कलावती के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए वह इस नवजात को अपनाना चाहते थे.

लेकिन बच्ची की बीमारी के चलते उन्हें डर था कि वह इसे खो देंगे. जब भैरव और उन की पत्नी को कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें, कहां जाएं तो उन्होंने जिला पुलिस के मुखिया लांडे से संपर्क किया.

पासवान को मुसीबत में देख लांडे ने चंद मिनटों के अंदर मुफस्सिल पुलिस स्टेशन के इंचार्ज विवेक कुमार को पासवान के घर भेजा जो बीमार बच्ची को पुलिस की गाड़ी में ले कर तुरंत जिला अस्पताल पहुंचे.

इस के बाद लांडे खुद अपनी डाक्टर पत्नी के साथ अस्पताल पहुंचे. बच्ची को स्पैशल न्यू बोर्न केयर यूनिट में भरती कराया गया. इस के बाद एसपी लांडे ने डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के चेयरमैन को बुला कर बच्ची को दिए जाने वाले जरूरी इलाज पर बातचीत की.

लांडे की इस नेकदिली के कारण बच्ची पूरी तरह सुरक्षित रही. बच्ची को लाने वाला पासवान इस बात पर हैरान था कि वह एक गरीब आदमी है, अगर लांडे साहब और उन की पत्नी ने उस की मदद न की होती तो कोई उम्मीद नहीं थी कि बच्ची जीवित रह पाती.

बच्ची के पूरी तरह स्वस्थ होने के बाद शिवदीप लांडे के हस्तक्षेप से पासवान ने बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करवाई.

लावारिस नवजात बच्चियों के प्रति शिवदीप लांडे के भावनात्मक प्रेम को इसी बात से समझा जा सकता है कि साल 2012 में जब वह अररिया में एसपी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची की जान बचाई थी. जिसे उस की मां ने कड़कती ठंड में उन के सरकारी आवास के गेट के बाहर छोड़ दिया था.

मासूम का रोना सुन कर लांडे घर से बाहर आए और उसे अपने सीने से लगा कर अंदर ले गए. बच्ची को गरमी का एहसास कराने और उस की सांसें सामान्य होने के बाद उन्होंने उसे सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष रीता घोष के पास पहुंचा दिया, जहां उस का जरूरी उपचार हो सका.

इस के अलावा जब वह पटना के एसपी सिटी थे, तब भी उन्होंने एक नवजात बच्ची को उस समय बचाया था जब एक प्राइवेट अस्पताल द्वारा ढाई लाख रुपए का बिल बनाने के कारण उस का पिता उसे अस्पताल में ही छोड़ गया था.

एसपी सिटी रहते जब इस बात की जानकारी शिवदीप लांडे को हुई तो वह बच्ची की मां का पता लगाने के लिए इस हद तक गए कि पूर्वी बिहार के कटिहार जिले में उस के घर तक जा पहुंचे.

वहां पहुंचने पर पता चला कि अस्पताल के पैसे न चुकाने के कारण बच्ची के पिता ने अपनी पत्नी से बता रखा था कि जन्म के दौरान ही उस की मौत हो गई और वहीं उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

लांडे ने बच्ची को ही उस के घर तक नहीं पहुंचाया बल्कि उस के इलाज का भी इंतजाम किया, जिस से वह जिंदा रह सकी.

खनन माफिया से टकराव के कारण भले ही लांडे का तबादला कर दिया गया. लेकिन वह जहां भी रहे, अपराध और अपराधियों से कभी समझौता नहीं किया.

अनोखी है शिवदीप की प्रेम कहानी

अब जब सब कुछ फिल्म जैसा था, तो भला शिवदीप की शादी आम कैसे होती. शिवदीप द्वारा महिला सुरक्षा के लिए उठाए गए कदम तथा उन की छवि के कारण लड़कियां उन पर मरती थीं. उन के फोन का मैसेज बौक्स हमेशा भरा रहता था. लेकिन इसे शिवदीप ने स्नेह से बढ़ कर और कुछ नहीं माना. क्योंकि उन की प्रेम कहानी तो कहीं और ही लिखी जानी थी.

शिवदीप जो उस वक्त बिहार में कर रहे थे, उस की हवा उन के गृहराज्य महाराष्ट्र में भी बह रही थी. उन के कारनामों तथा लुक के कारण वहां भी शिवदीप की खूब चर्चा थी. शिवदीप मुंबई में रह कर पढ़े थे. इस कारण यहां उन का अच्छाखासा फ्रैंड सर्कल था. बिहार में होने के बावजूद वह दोस्तों से मिलने मुंबई जाया करते थे.

ऐसे ही शिवदीप एक दोस्त के किसी समारोह में उपस्थिति दर्ज कराने मुंबई गए थे. इसी पार्टी में उन की मुलाकात एक लड़की से हुई. लड़की का नाम था ममता शिवतारे. शिवदीप एसपी थे, तो ममता भी कम नहीं थी. ममता शिवतारे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री और पुणे के पुरंदर से एमएलए विजय शिवतारे की बेटी थीं.

यहीं दोनों की मुलाकात हुई. इस एक मुलाकात के बाद मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा. जिस का नतीजा यह निकला कि दोनों प्यार में पड़ गए. यह प्यार आगे चल कर शादी में बदल गया. बस ममता और शिवदीप ने 2 फरवरी, 2014 को शादी कर ली और एकदूसरे को जन्मजन्मांतर के लिए अपना मान लिया.

दिल तो कई लड़कियों के टूटे मगर शिवदीप का घर बस गया. परिवार में पत्नी ममता और उस के बाद दोनों के प्यार की निशानी के रूप में जन्म लेने वाली बेटी अरहा अब उन के जीवन की प्रेरणा बन चुकी है.

शिवदीप लांडे जहां भी रहे,  जिस तरह अपराधियों की कमर तोड़ी, मीडिया ने उस से उन की ‘दबंग’ पुलिस अधिकारी की छवि बना दी. लेकिन वास्तव में वह अपनी ड्यूटी पर जितना सख्त नजर आते थे, निजी जीवन में उतने ही विनम्र.

यह न समझा जाए कि शिवदीप केवल गुंडे बदमाशों को सबक सिखाने भर के ही हीरो रहे हैं. इस दबंग अफसर के पीछे एक कोमल दिल वाला नायक छिपा बैठा है. एक तरफ जहां शिवदीप अपराधियों के लिए काल का रूप साबित हुए, वहीं दूसरी तरफ उन्होंने जरूरतमंदों की दिल खोल कर मदद की.

विवाह से पहले वे अपने वेतन का 60 प्रतिशत एनजीओ को दान कर देते थे. हालांकि शादी और एक बेटी के जन्म  के बाद दान में कमी जरूर आई है परंतु बंद नहीं हुआ है. वेतन का 25 से 30 प्रतिशत भाग वे आज भी दान में दे देते हैं. इस के अलावा कई सामाजिक कार्यों में भी वह सहयोग करते हैं. उन्होंने कई गरीब लड़कियों का सामूहिक विवाह भी करवाया.

छोटेमोटे चोरउचक्कों से ले कर बड़ेबड़े माफिया तक में शिवदीप का खौफ था. उन्होंने लैंड माफिया से ले कर मैडीसिन माफिया तक की कमर तोड़ी. हालांकि, इन सब की वजह से उन्हें बारबार ट्रांसफर की तकलीफ झेलनी पड़ी. लेकिन उन का जहां से भी ट्रांसफर हुआ, वहां की आम जनता ने उन के जाने का दुख मनाया.

अब तैनाती महाराष्ट्र में

वर्तमान में शिवदीप लांडे केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर महाराष्ट्र के पुलिस विभाग में मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच के एंटी नारकोटिक्स सेल में एडीशनल कमिश्नर औफ पुलिस के रूप में सेवारत हैं और मादक पदार्थ तस्करों की कमर तोड़ रहे हैं.

जब आप लीक से हट कर कुछ करते हैं तो आप का नाम सुर्खियों में आना स्वभाविक है. वैसे तो शिवदीप लांडे ने अपनी पुलिस की नौकरी के सारे फैसले लीक से हट कर ही लिए. लेकिन कई मौकों पर उन के नाम की खूब धूम मची. ऐसा एक मौका तब भी आया, जब शिवदीप ने एक लड़की को 3 शराबियों के गिरोह से मुक्त कराया था.

इसी तरह मुरादाबाद के एक इंस्पेक्टर को भेष बदल कर उन्होंने रिश्वत लेते रंगेहाथ पकड़ा था. यह जनवरी, 2015 की घटना है. शिवदीप को जानकारी मिली कि मुरादाबाद के इंस्पेक्टर सर्वचंद 2 व्यापारी भाइयों से उन का पुराना केस खत्म करने के बदले में पैसे की मांग कर रहे हैं. इस बात को साबित करने के लिए शिवदीप तुरंत सिर पर दुपट्टा लपेट कर पटना के डाक बंगला चौराहे पर पहुंच गए.

उन की जानकारी के अनुसार इंसपेक्टर पैसे लेने के लिए यहीं आने वाला था. इंसपेक्टर जैसे ही वह पैसे लेने वहां पहुंचा, वैसे ही भेष बदल कर वहां इंतजार कर रहे शिवदीप ने उसे गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद मीडिया में शिवदीप का नाम खूब उछला था.

अच्छा काम करने के बावजूद बारबार तबादला किए जाने से परेशान शिवदीप लांडे ने बाद में बिहार छोड़ने का मन बना लिया. उन्होंने केंद्रसरकार से अपने गृह राज्य महाराष्ट्र लौटने की इच्छा जताई. शिवदीप लांडे के ससुर और महाराष्ट्र सरकार में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री विजय शिवतारे ने खुद मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से जब उन की पैरवी की तो यह काम और भी आसान हो गया.

हालांकि अब शिवदीप भले ही बिहार से जा चुके हैं. लेकिन उन का एक्शन मूड अभी भी जारी है. शिवदीप इन दिनों मुंबई एंटी नारकोटिक्स सेल क्राइम ब्रांच में डीआईजी के पद पर हैं. डांस बार में छापेमारी के साथसाथ कई बार नशीले पदार्थों की धरपकड़ के कारण उन का नाम यहां भी सुर्खियों में बना रहता है.

इसी साल जनवरी में शिवदीप फिर से चर्चा में तब आए, जब उन्होंने हेरोइन तस्करों को पकड़ने के लिए आटो ड्राइवर का भेष बनाया था. इस छापेमारी में मुंबई पुलिस ने 12 करोड़ की हेरोइन बरामद की थी. एक तरह से शिवदीप ने साबित कर दिया है कि चाहे जगह जो भी हो, उन का लक्ष्य एक ही रहेगा, और वो है अपने दबंग स्टाइल में अपराध और अपराधियों का खात्मा करना.

इसे एक अधिकारी की लोकप्रियता ही कहेंगे कि जब मुंगेर से शिवदीप का तबादला हुआ तो 6 किलोमीटर तक फूलों की बारिश करते हुए लोगों ने उन्हें विदा किया था. भीषण ठंड में जब पटना से उन का तबादला हुआ तो लोगों ने कई दिनों तक भूख हड़ताल और प्रर्दशन किए.

अररिया जिले से तबादला हुआ तो लोगों ने 48 घंटों तक उन्हें जिले से बाहर ही नहीं जाने दिया. रोहतास में खनन माफियाओं के खिलाफ उन की मुहिम में हमेशा लोगों का साथ मिला.

लांडे की पुलिस विभाग में जहां भी नियुक्ति रही, वह लोगों की आंख का तारा बन कर रहे. लोगों ने उन्हें अपनाया. मीडिया ने उन्हें ‘दबंग’, ‘सिंघम’, ‘रौबिनहुड’ और न जाने कितने उपनाम दिए, लेकिन उन के अपने उन्हें  ‘शिवदीप’ नाम से बुलाते हैं.

दंबग फिल्म में सलमान खान ने चुलबुल पांडे नाम के जिस पुलिस अफसर का किरदार निभाया है, उन में से अधिकांश किस्से आईपीएस शिवदीप लांडे की रीयल जिंदगी से जुडे़ है. ऐसा कहा जाता है कि सलमान खान ने यह फिल्म आईपीएस अफसर लांडे को केंद्र में रख कर ही बनाई थी, बस इस में कुछ बदलाव कर दिए गए थे.

सुपर कौप सौम्या सांबशिवन : हिमाचल की शेरनी

जब भी जांबाज महिला आईपीएस अफसरों का नाम आता है तो शिमला में 1947 से 2017 तक 53वीं एसपी रह चुकीं सौम्या सांबशिवन को नहीं भूला जा सकता. वह स्वभाव से सौम्य हैं, लेकिन दिल से दबंग.

केरल की रहने वाली सौम्या बनना चाहती थीं लेखिका, लेकिन बन गईं एसपी. जाहिर है, ऐसे में मन गलत के प्रति विद्रोह तो करेगा ही, विद्रोह होगा तो दबंगई भी होगी. गनीमत यह है कि उन्हें पढ़ने का शौक है और यह शौक विद्रोह को रोकता है. फिर भी वह अपराधियों के लिए खौफनाक तो हैं ही.

इंजीनियर पिता की एकलौती बेटी सौम्या ने बायोस्ट्रीम से ग्रेजुएशन करने के बाद एमबीए में दाखिला लिया था. एमबीए हो गया तो उन्होंने 2 साल तक एक मल्टीनेशनल बैंक में नौकरी की. इस बीच वह यूपीएससी की तैयारी करती रहीं. 2010 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईपीएस बन कर 11 महीने की ट्रेनिंग में चली गईं. उन्हें हिमाचल कैडर मिला था. विभागीय ट्रेनिंग के लिए उन्हें शिमला भेजा गया, जहां वह डिप्टी एसपी की पोस्ट पर रहीं. फिर उन्हें एडिशनल एसपी बनाया गया.

एसपी के तौर पर उन की पहली पोस्टिंग सिरमौर में हुई. सिरमौर में ड्रग का बोलबाला था. ड्रग्स की तसकरी और बिक्री भी होती थी और लोग ड्रग्स लेते भी थे. झाडि़यों में ड्रग की खाली रेपर पुडि़या पड़ी मिलती थीं. सब से पहले सौम्या ने नशेडि़यों की धरपकड़ कर के ड्रग लेने वालों पर लगाम लगाई.

इस के लिए उन्होंने पकड़े गए नशेडि़यों की वीडियोग्राफी कराई और बताया इस की डौक्यूमेंट्री बना कर देश भर में दिखाई जाएगी. इस से होने वाली बदनामी से लोग डरे. उन्होंने नशेडि़यों के ठिकानों को भी जेसीबी से हटवा दिया और उस का भी वीडियो बनवाया.

नशेडि़यों के अड्डे बने खंडहर भवनों में कांचकली (खुजली वाला पाउडर) का छिड़काव करा दिया गया ताकि वे वहां जाएं तो खुजातेखुजाते पागल हो जाएं. सिरमौर में चला अपनी तरह का यह पहला अभियान था, जिसे जनता का भरपूर समर्थन मिला. उन्होंने देवीनगर में कृपालशिला और गुरुद्वारे के पास नशेडि़यों के छिप कर बैठने के अड्डों को भी नेस्तनाबूद करवा दिया.

सौम्या के अनुसार एक ब्लाइंड मर्डर की तफ्तीश के लिए वह झाडि़यों में गई थीं, जहां नशीली दवाइयों के रेपर, नशे के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री आदि मिली. तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि नशे के खिलाफ अभियान चलाएंगी. संदिग्ध नशेडि़यों पर नजर रखने के लिए उन्होंने पावटा में 75 सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए.

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इस के बाद उन्होंने नशा बेचने, सप्लाई करने वाले तसकरों को घेरा. अपने प्रयासों से सौम्या ने सिरमौर को ड्रग्स मुक्त तो किया ही. नशेडि़यों की लत छुड़वाने के लिए जिलेभर में नशा मुक्ति केंद्र भी बनवाए. इसी बीच उन्होंने कई ब्लाइंड केस सुलझाए. तिहाड़ जेल से फरार एक ऐसे पेशेवर हत्यारे को भी पकड़ा जो कत्ल कर के खुला घूम रहा था.

पढ़ने लिखने की शौकीन सौम्या को साहित्य, कविताओं और मुशायरों का खूब शौक है. एक बार तो वह सिरमौर से सैकड़ों किलोमीटर दूर देवबंद में होने वाले लेडीज मुशायरे में शामिल होने पहुंच गईं. उन का कहना था कि पुलिस के काम में दिमाग के साथ दिल की मजबूती भी बेहद जरूरी है और यह मजबूती, शक्ति साहित्य से ही मिल सकती है.

कविताएं सदियों से मनुष्य को प्रेरित करती रही हैं, ये मानव के अंदर छुपी संभावनाओं को सामने लाने का बढि़या माध्यम हैं. साहित्य आदमी को सरल भी बनाता है और मजबूत भी.

एक तरफ सौम्या का यह सरल रूप सामने आया तो दूसरी तरफ उन्होंने सिरमौर में, खास कर नहान में खनन माफियाओं की नाक में ऐसी नकेल डाली कि खनन कार्य ही बंद करवा दिए. एक ही दिन में सौम्या ने 21 वाहन व जेसीबी मशीनें जब्त कीं, 40 वाहनों के चालान काटे और 1,47000 रुपए का जुर्माना वसूला.

सौम्या सब से ज्यादा चर्चाओं में तब आईं जब एक प्रदर्शन के दौरान उन्होंने बदतमीजी करने पर एक विधायक को न केवल थप्पड़ जड़ा, बल्कि जेल भी भेजा. उन का कहना था, इतनी छूट किसी को नहीं दी जा सकती. चाहे वह कोई भी क्यों न हो.

सिरमौर की सीमाएं 2 अलगअलग राज्यों से लगती हैं, इस नजरिए से इस जिले को संवेदनशील माना जाता है. लेकिन सौम्या ने अपराधियों में पुलिस का इतना खौफ भर दिया कि उन्हें ड्रग, शराब और मानव तसकरी बंद करनी पड़ी.

लड़कियों की रोल मौडल

सौम्या के पास लड़कियों से छेड़छाड़ की बहुत शिकायतें आती थीं. ऐसे मामलों में छेड़छाड़ के कुछ मामलों को तो रोका जा सकता था, लेकिन हर जगह पुलिस मौजूद नहीं रह सकती थी. इस के लिए उन्होंने सोचना शुरू किया. दरअसल बचाव के लिए पेपर स्प्रे एक तो हर जगह मिलता नहीं है, दूसरे महंगा भी होता है. कई बार मौका नहीं मिलता तो लड़कियां इस का इस्तेमाल भी नहीं कर पातीं. तीसरे इस का असर भी ज्यादा देर नहीं रह पाता.

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सौम्या ने इस बारे में सोचना शुरू किया तो थोड़ी सी मेहनत से उन्हें रास्ता मिल गया. उन्होंने मिर्च, रिफाइंड और नेल पौलिश से एक अलग तरह का तरल पदार्थ बनाया. यह इतना कारगर था कि एक बार स्प्रे करने से मनचले आधे घंटे से पहले नहीं उठ सकते थे.

उन्होंने इस का एक वीडियो बनाया और कालेज और स्कूलों की लड़कियों को ट्रेनिंग देनी शुरू की. यह काम उन्होंने हाईस्कूल से डिगरी कालेजों में पढ़ने वाली लड़कियों के बीच किया. साथ ही उन्हें खास तरह की खाली बोतलें दीं ताकि लिक्वेड को उस में भर कर अपने साथ रख सकें.

सौम्या की इस पहल को उद्योग संगठनों और प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने सहयोग दिया और रीफिल की जाने वाली खाली स्प्रे बोतलें उपलब्ध कराईं. एसपी ने फैसला किया वह देश की बेटियों के लिए इस नए तरीके को यू ट्यूब के जरीए सार्वजनिक करेंगी, ताकि वे कम खर्च में अपनी सुरक्षा कर सकें. एसपी सौम्या की यह मुहिम काम आई और सिरमौर में छेड़छाड़ की घटनाएं बंद हो गईं.

शिमला ट्रांसफर

इसी बीच शिमला के कोटखाई में गुडि़या गैंग रेप और हत्या के मामले को ले कर शिमला में लौ एंड और्डर की स्थिति बिगड़ी तो सुपरकौप सौम्या का ट्रांसफर शिमला कर दिया गया.

दरअसल, शिमला से 58 किलोमीटर दूर कोटखाई में 4 जुलाई, 2017 को एक स्कूली छात्रा लापता हो गई थी. 2 दिन बाद जंगल में उस की लाश मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि छात्रा के साथ गैंग रेप के बाद उस की हत्या की गई थी, वह भी 2 दिन पहले.

सवाल उठा जंगली जानवरों के होते 2 दिन तक लाश सहीसलामत कैसे पड़ी रही. इसे ले कर हंगामा हुआ तो पुलिस ने एक स्थानीय युवक सहित 5 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन लोग इस से संतुष्ट नहीं थे. हंगामा बढ़ते देख पुलिस ने जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी.

उस समय हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी. लोग जांच से संतुष्ट नहीं हुए. इसी बीच 18 जुलाई को पकड़े गए एक युवक सूरज की हवालात में मौत हो गई. इस से हंगामा और बढ़ गया. लोग सड़कों पर उतर आए. आरोप था कि सूरज की मौत पुलिस टार्चर से हुई है.

लौ एंड और्डर को बिगड़ता देख मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शिमला के एसपी डब्ल्यू डी नेगी को हटा कर 19 जुलाई, 2017 को सिरमौर की तेजतर्रार और ईमानदार आईपीएस सौम्या सांबशिवन को शिमला का नया एसपी तैनात कर दिया. साथ ही मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति दे दी.

जांच शुरू हुई तो सीबीआई ने अन्य लोगों के साथ नई एसपी सौम्या सांबशिवन का भी बयान लिया. इस के बाद सीबीआई ने हवालात में सूरज की मौत (हत्या) के मामले में सूबे के आईजी जहूर एच जैदी, एसपी डब्ल्यू डी नेगी और डीएसपी मनोज जोशी सहित 5 पुलिस वालों को आरोपी बनाया.

सीबीआई जांच के दौरान यह बात सामने आई कि आईजी जहूर एच जैदी ने एसपी सौम्या पर बयान बदलने के लिए बारबार दबाव बनाया था.

सौम्या के लिए जब काम करना मुश्किल हो गया तो उन्होंने 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस हेडक्वार्टर धर्मशाला फोन कर के डीजीपी से शिकायत की तो जैदी के फोन आने बंद हुए. डीजीपी ने यह बात मुख्यमंत्री को बताई तो जैदी को निलंबित कर दिया गया.

सूरज की हत्या के आरोपी पुलिस वालों पर शिमला की सीबीआई अदालत में केस चलना शुरू हुआ, लेकिन वहां के वकीलों ने इन लोगों की पैरवी करने से इनकार कर दिया. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो सर्वोच्च अदालत ने इस केस को चंडीगढ़ ट्रांसफर करने का आदेश दिया.

शिमला की एसपी सौम्या सांबशिवन ने इस मामले में आईजी जहूर एच जैदी पर मानसिक रूप से प्रताडि़त करने का आरोप लगाते हुए अदालत में कहा कि आईजी इस केस में मेरा बयान बदलवाना चाहते हैं.

सौम्या के इस बयान से हिमाचल की सियायत में हलचल मच गई. तब नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ऐसे अधिकारियों पर बड़ी काररवाई करेगी जो केस के गवाहों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री ठाकुर का कहना था कि हम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. इस मामले में किसी ने सबूतों या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश तो यह बरदाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने बताया कि एसपी सौम्या सांबशिवन ने आईजी जैदी द्वारा दबाव बनाए जाने की बात डीजीपी से कही थी और डीजीपी ने मुझे बताया. उन्होंने जैदी को चेतावनी भी दी थी. इस के बाद जैदी ने उन्हें फोन करना बंद कर दिया था. लेकिन यह मामला फिर से उठ खड़ा हुआ. सूरज और गुडि़या मामले में उन्होंने सौम्या पर जो दबाव बनाया, उस के लिए जैदी को 3 बार सस्पैंड किया गया. लेकिन उन्हें नियमों के तहत ही फिर से नियुक्ति दी गई.

सरकारी खेल

इस बीच सौम्या सांबशिवन का ट्रांसफर कर के उन्हें पुलिस ट्रेनिंग कालेज भेज दिया गया. बाद में उन्हें वहां से भी ट्रांसफर कर के पंडोह में आईआरबी 3 का कमांडेंट बना दिया गया था. बाद में सौम्या ने फिर चंडीगढ़ कोर्ट में बयान दिया कि सुनवाई से पहले उन पर इतना दबाव डाला गया कि वह परेशान हो गईं और इस स्थिति में उन के लिए काम करना मुश्किल हो गया.

जैदी साहब सितंबर 2019 में उन के मोबाइल, शिमला औफिस के लैंडलाइन पर बात करने की लगातार कोशिश कर रहे थे. उन्होंने शिमला हेडक्वार्टर, वाट्सएप काल और सबौर्डिनेटर के फोन पर भी बात की.

सौम्या ने अपने मानसिक तनाव का जिक्र करते हुए आगे कहा कि दिनप्रतिदिन परिस्थितियां इतनी मुश्किल होती गईं कि उन के पीएसओ, स्टेनो ने फोन उठाना बंद कर दिया. ऐसी स्थिति में कोई कैसे काम कर सकता है.

अधिकारी कितना बड़ा और पावरफुल हो, लेकिन अपने सीनियर के सामने या उस के बारे में कुछ कहने से पहले 10 बार सोचता है, भविष्य की चिंता करता है. लेकिन सौम्या उन में से नहीं थीं जो डर जातीं. उन्होंने कोर्ट में कहा, ‘जैदी साहब ने मुझ से फोन पर कहा, ‘मैं वकीलों की एक टीम और 30 पेज की प्रश्नावली का सामना करने को तैयार हूं. उम्मीद है आप यह सूचना सीबीआई को नहीं देंगी.’

मजबूरी में उन्हें 10 दिसंबर, 2019 को धर्मशाला हेडक्वार्टर फोन कर के यह सूचना तत्काल डीजीपी को देनी पड़ी. इस के बाद उन का फोन आना तो बंद हो गया, लेकिन मेरे पीएसओ से मेरी लोकेशन जानने की कोशिश की गई. इस पर कोर्ट ने सीबीआई को सौम्या के कोर्ट आनेजाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था करने को कहा. सौम्या के बयान से यह बात साबित हो रही थी कि जैदी सहित कोटखाई मामले से जुड़े अन्य पुलिस अधिकारियों ने कहीं न कहीं लापरवाही बरती थी और अब खुद को बचाने के लिए गवाहों पर उन के पक्ष में बयान देने के लिए दबाव बना रहे थे. जैदी कौन सा बयान बदलवाना चाहते थे, यह बात क्लीयर नहीं हो पाई.

बहरहाल यह केस अभी भी चल रहा है. आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता. सौम्या सांबशिवन जहां भी रहीं अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, वह भी पूरी ईमानदारी से.

इसी बीच गतवर्ष अक्तूबर, 2020 में जब बिहार में 3 चरणों में चुनाव होने थे तो सौम्या को आदेश मिला कि बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन की होगी. इस के लिए उन्हें राज्य कमांडर का दर्जा दिया गया था. तब भी वह पंडोह में आईआरबी 3 की कमांडेंट थीं.

आदेश मिलते ही वह हिमाचल के 600 जवानों के साथ निश्चित तारीख पर बिहार के लिए रवाना हो गईं. इन जवानों में पंडोह, बनगढ़ (ऊना) व कोलर (सिरमौर) की आईआरबी की 6 कंपनियां थीं. ये लोग सहारनपुर से टे्रन पकड़ कर बिहार के लिए रवाना हुए.

बिहार में शांतिपूर्ण चुनाव कराना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन सौम्या ने यह चुनौती स्वीकार की और पूरी भी की. फिलहाल सौम्या हिमाचल के पंडोह में आईआरबी 3 (भारतीय आरक्षित वाहिनी) की कमांडेंट हैं. उन की ईमानदारी और बेखौफ दबंग अधिकारी की छवि कभी नहीं बदलेगी. क्योंकि वह इसीलिए पुलिस फोर्स में आई हैं कि कानूनव्यवस्था को बनाए रखें और देशहित में काम करें.

जज्बे को सलाम 

ईमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने वाले पुलिस अधिकारी हों या आम लोग जहां भी जाते हैं. कुछ अलग कर के अपनी छाप छोड़ ही देते हैं. सौम्या सांबशिवन भी उन ही में से हैं. शिमला में जब उन का पंगा अपने सिनियर औफिसर आईजी से हुआ था तो राजनीतिक दबाव के चलते उन का तबादला कांगड़ा जिले के दरोह पुलिस प्रशिक्षण कालेज में कर दिया गया था, जहां उन्हें प्रिंसिपल बनाया गया था. वहां जाते ही उन्होंने अपने सहयोगी अफसरों से कहा, ‘हम मानकों के साथ इस कालेज की प्रतिष्ठा को न केवल बनाए रखेंगे बल्कि बेहतर से बेहतर काम करेंगे.’

सौम्या ने केवल कहा ही नहीं बल्कि स्वयं को साबित कर के भी दिखाया. उन्होंने जून 2018 के चयनित कांस्टेबलों के बैच के लिए कंप्यूटर और सामान्य संचार साधनों का प्रबंध कराया ताकि उन्हें मौजूदा दौर की जरूरी शिक्षा दी जा सके. इस बैच में 682 कांस्टेबल और 3 पूर्व सैनिक थे. इस बैच के सभी प्रशिक्षार्थी बुनियादी कंप्यूटर और सामान्य संचार माध्यमों में प्रशिक्षित हो कर पासिंग आउट परेड के बाद नियुक्ति के लिए विभिन्न थानों को भेजे गए थे.

भारत सरकार की संस्था ब्यूरो फौर पुलिस एंड डेवलपमेंट द्वारा किए गए अध्ययन के बाद कांगड़ा जिले को पुलिस प्रशिक्षण कालेज दरोह को राष्ट्रीय स्तर का सर्वश्रेष्ठ केंद्र (कांस्टेबल श्रेणी) घोषित किया था. प्रशिक्षण केंद्र को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 20 लाख का नकद पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र दिया गया था.

कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जिंदगी की हर राह उपलब्धि बन जाती है. अपने सेवा काल के दौरान राह में आने वाली हर बाधा, रुकावट को अपनी उपलब्धि में बदलने वाली सौम्या सांबशिवन एक बेमिसाल अफसर तो हैं ही, साथ ही ईव टीजिंग का शिकार लड़कियों की स्नेहशील गार्जियन भी हैं.

सुपरकौप मेरिन जोसेफ : देश से विदेश तक

जून 2019 में जब मेरिन जोसेफ की नियुक्ति बतौर डिस्ट्रिक्ट पुलिस सुपरिंटेंडेंट केरल के जिला कोल्लम में हुई तो वह महिलाओं और बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों को ले कर सब से ज्यादा चिंतित थीं. ऐसे अपराधों का ग्राफ काफी बढ़ा हुआ था. मेरिन को लगा कि वहां ऐसे अपराधों को मामूली समझ कर दरकिनार कर दिया जाता होगा. पुराने केसों पर ठीक से काररवाई नहीं की गई होगी, मुलजिम पकड़े नहीं गए होंगे. इसीलिए उन्होंने ऐसे केसों की पुरानी फाइलें मंगवाईं.

मेरिन ने जब उन केस फाइलों की स्टडी की तो उन में एक फाइल सुनील भद्रन की भी थी. केस के अनुसार सुनील भद्रन सऊदी अरब के रियाद की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में टाइल्स लगाने का काम करता था. वह 2017 में छुट्टी ले कर केरल आया और अपने एक दोस्त के घर ठहरा.

दोस्त ने उस का परिचय अपनी बहन के परिवार से कराया. सुनील की नजर दोस्त की 13 साल की भांजी पर पड़ी तो उस की नीयत खराब हो गई. उस ने दोस्त की बहन के परिवार से संबंध बढ़ाने शुरू कर दिए.

सुनील ने अपने टारगेट को बहकाफुसला कर नजदीकियां बढ़ाईं. उसे खानेपीने, पहनने की चीजें ला कर देना शुरू किया. बहकाने के लिए रियाद के किस्से सुनाने लगा.

रियाद ले जाने के सपने दिखाने लगा. जब लड़की बहकावे में आ गई तो वह आए दिन उस के साथ बलात्कार करने लगा. यह सिलसिला शायद आगे भी चलता रहता, लेकिन बच्ची ने इसे बुरा काम समझ कर घर वालों से शिकायत कर दी. यह खबर सुन कर सुनील भद्रन फरार हो गया.

पुलिस ने बच्ची के मामा से पूछताछ की, उसे जलील किया. खोजबीन में पता चला कि सुनील रियाद भाग गया है. पुलिस सिर पीट कर रह गई. इस बीच लड़की के मामा ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली.

बदनामी के डर से 13 वर्षीय नाबालिग पीडि़ता को उस के घर वाले घर में रखने को तैयार नहीं थे. मजबूरी में पुलिस ने उसे कोझीकोड के सरकारी महिला मंदिर रेस्क्यू होम भेज दिया. बाद में उस नाबालिग ने भी आत्महत्या कर ली.

बात उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो उन्होंने 2018 में इंटरपोल को सूचना भेज कर मदद मांगी. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. केस की जांच और रेपिस्ट की गिरफ्तारी लटकी रही. इस चक्कर में 2 परिवार बरबाद हो गए थे. जबकि केस की जांच रूकी पड़ी थी.

केस फाइल पढ़ कर मेरिन जोसेफ को बहुत दुख हुआ. महिला और बच्चों के प्रति अपराधों को ले कर मेरिन काफी संवेदनशील थीं. उन्होंने कई केस सुलझाए भी थे.

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उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, सुनील भद्रन को सऊदी अरब से ला कर सजा दिलाएंगी. लेकिन समस्या यह थी कि मेरिन को यह जानकारी नहीं थी कि इस के लिए क्याक्या करना होता है.

उन्होंने जानकारी हासिल की तो पता चला कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सऊदी अरब के किंग अब्दुल्लाह के बीच प्रत्यर्पण संधि पर समझौता हुआ था. यानी प्रत्यर्पण संधि के हिसाब से सुनील को भारत लाया जा सकता था.

मेरिन जोसेफ ने इस बारे में उच्चाधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि इस मामले में इंटरपोल ही मदद कर सकता है. नोटिस भी भेजा गया पर कोई जवाब नहीं आया. ‘मैं उसे इंडिया ला कर रहूंगी’.

मेरिन ने कहा तो कई लोगों ने उन का मजाक उड़ाया. लेकिन मेरिन ने हिम्मत नहीं हारी. पुलिस हैडक्वार्टर से ले कर गृह मंत्रालय तक जो भी हो सकता था, उन्होंने किया. अपने स्तर पर तो वह प्रयासरत थी ही.

दरअसल बला की खूबसूरत और 25 साल की नाजुक सी लड़की मेरिन के बारे में लोग यह नहीं जानते थे कि वह अंदर से वह कितनी मजबूत और दृढ़निश्चयी हैं. क्योंकि मेरिन को देख कर कोई भी उन्हें मौडल या फिल्मों की हीरोइन तो समझ सकता था, लेकिन यह किसी के लिए भी अनुमान लगाना मुश्किल था कि वह आईपीएस अफसर हैं.

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आईपीएस बनने की कहानी

20 अप्रैल, 1990 को केरल के एर्नाकुलम, तिरुवनंतपुरम में जन्मी मेरिन पैदा भले ही केरल में हुई थीं, लेकिन उन की परवरिश दिल्ली में हुई. उन के पिता अब्राहम जोसेफ कृषि मंत्रालय में प्रिंसिपल एडवाइजर थे और मां मीना जोेसेफ एक मिशनरी स्कूल इकनौमिक्स की टीचर थीं.

मेरिन जोसेफ ने कौन्वेंट जीसस ऐंड मेरी स्कूल से पढ़ाई की थी, जिस के बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कालेज से बीए औनर्स की डिग्री ली. पढ़ाई के दौरान ही मेरिन की दोस्ती साइकोलौजी की पढ़ाई कर रहे क्रिस अब्राहम से हुई जो बाद में प्यार में बदल गई. दोनों ने तय किया कि शादी करेंगे लेकिन सैटल होने के बाद.

ग्रैजुएशन करने के बाद मेरिन ने मुखर्जीनगर, दिल्ली के एक प्राइवेट कोचिंग सेंटर से यूपीएससी की कोचिंग की. फिर 2012 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी. उन का पहला ही प्रयास सफल रहा. उन की 188वीं रैंक आई.

मेरिन को 4 औप्शन दिए गए, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस और पीसीएस. मेरिन ने आईपीएस को चुना. उन्हें केरल कैडर मिला. इस के बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद की सरदार वल्लभभाई पटेल नैशनल पुलिस अकादमी भेजा गया, जहां अगले 11 महीने तक उन्होंने लंबी ऊंची जंप, तैराकी, घुड़सवारी और हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली, जिस में भागदौड़ भी शामिल थी.

इस ट्रेनिंग के बाद उन्होंने गृहराज्य पुलिस में 6 माह का पुलिस का आंतरिक कामकाज सीखा. फिर गृह मंत्रालय ने उन्हें एडिशनल सुपरिंटेंडेंट के पद पर नियुक्त कर दिया था. इस बीच 2 फरवरी, 2015 को मेरिन जोसेफ ने अपने कालेज टाइम के प्रेमी क्रिस अब्राहम से शादी कर ली थी. वह साइकियाट्रिस्ट बन चुके थे.

बहरहाल, जून 2019 में मेरिन जोसेफ ने सुनील को भारत लाने के लिए भरपूर प्रयास किया तो उन की मेहनत रंग लाई. सऊदी अरब की इंटरपोल शाखा और रियाद प्रशासन ने उन्हें सऊदी अरब आने की अनुमति दे दी. यह मेरिन जोसेफ की पहली जीत थी. 17 जुलाई, 2019 को मेरिन अपनी टीम के साथ सऊदी अरब के लिए रवाना हो गईं. वहां स्थानीय प्रशासन और इंटरपोल टीम की मदद से सुनील भद्रन उन की पकड़ में आ गया.

20 जुलाई, 2019 को मेरिन जोसेफ अपनी टीम और रेपिस्ट सुनील भद्रन को साथ ले कर एयरपोर्ट के बाहर निकलीं तो लोगों ने उन का भव्य स्वागत किया. कानूनी औपचारिकताओं के बाद सुनील को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद मेरिन जोसेफ मीडिया में छा गईं. उन की खूब वाहवाही हुई. क्योंकि 2010 में हुई संधि के 9 साल बाद किसी अपराधी को पहली बार भारत लाया गया था, वह भी एक महिला आईपीएस द्वारा, उस के अपने प्रयासों से.

दरअसल, मेरिन जोसेफ चाहती थीं कि पुलिस विभाग यह न समझे कि कोई महिला अधिकारी यह या कोई बड़ा काम नहीं कर सकती. हालांकि इस के पहले उन्होंने कई बड़े काम किए थे, कई केस सुलझाए थे. दुर्गम जगहों पर ड्यूटी की थी. फिलहाल मेरिन जोसेफ केरल पुलिस हेडक्वार्टर तिरुवनंतपुरम में बतौर पुलिस सुपरिंटेंडेंट (हेडक्वार्टर) तैनात हैं.

आयरन लेडी संजुक्ता पराशर : महिला सशक्तिकरण अवार्ड से सम्मानित

15 महीने में 16 एनकाउंटर करना कोई छोटी बात नहीं होती. लेकिन कानून की रक्षा के लिए सिर पर कफन बांध कर निकलने वालों के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं. ये वे लोग होते हैं, जो फर्ज और देश के लिए सिर पर कफन बांध कर निकलते हैं और इस के लिए मर भी सकते हैं. असम की आयरन लेडी के नाम से मशहूर संजुक्ता पराशर उन्हीं में से हैं.

सन 2008-09 में टे्रनिंग के बाद संजुक्ता पराशर की तैनाती असम के माकुम में असिस्टैंट कमांडेंट के रूप में हुई थी. उन की पोस्टिंग के कुछ ही दिन हुए थे कि उदालगिरी बोडो और बांग्लादेशियों के बीच जातीय हिंसा हुई तो संजुक्ता पराशर को उस जातीय हिंसा को रोकने के लिए भेजा गया.

इस औपरेशन को उन्होंने खुद लीड किया और केवल 15 महीने में 16 आतंकवादियों को मार गिराया. साथ ही 64 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. एके 47 रायफल हाथ में ले कर जंगलों में वह न सिर्फ कौंबिंग करती थीं, बल्कि सब से आगे चलती थीं.

संजुक्ता नईनई पुलिस अधिकारी थीं, पर अपनी हिम्मत से उन्होंने उस जातीय हिंसा को तो समाप्त किया ही, उन्होंने अपनी टीम के साथ कुछ ऐसा किया कि उग्रवादी उन के नाम से कांपने लगे.

देश की आंतरिक सुरक्षा का मामला हो या फिर सीमा पर दुश्मनों से डट कर मुकाबले की बात हो, हमेशा हमारे जेहन में रौबदार पुरुष जवानों के ही चेहरे उभरते हैं. लेकिन अब यह मिथक टूटने लगा है. देश की बेटियां अब पुलिस से ले कर सेना तक में अपना लोहा मनवा रही हैं.

असम की इस प्रथम लेडी आईपीएस ने बहुत कम समय में अपनी बहादुरी से मीडिया में ही नहीं, आम आदमी के दिल तक में अपनी जगह बना ली है.

असम की आयरन लेडी के नाम से मशहूर आईपीएस अधिकारी संजुक्ता पराशर ने देश के पूर्वी राज्य असम में पिछले कई सालों तक बोडो उग्रवादियों के खिलाफ मोर्चा ही नहीं संभाला, बल्कि उन्होंने जिस तरह जंगलोें में ढूंढढूंढ कर आतंकवादियों को गिरफ्तार किया, इस से इस पुलिस अफसर ने बहादुरी की एक नई मिसाल पेश की है.

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41 वर्षीया आईपीएस संजुक्ता पराशर असम की ही रहने वाली हैं. उन के पिता दुलालचंद बरुआ असम में सिंचाई विभाग में इंजीनियर थे और मां मीरा देवी स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करती थीं.

बचपन से ही संजुक्ता को खेलकूद का शौक था. उन्हें तैराकी बहुत अच्छी आती है. इस के लिए उन्हें स्कूल में कई पुरस्कार भी मिले. मां ने उन की इन खूबियों को निखारा. वह हमेशा संजुक्ता को समझाती थीं कि वह किसी से कम नहीं है.

मां ने उन्हें एक बेटे की तरह ही मौके दिए. उन्होंने ही संजुक्ता को हिम्मत और सम्मान के साथ जीना सिखाया. उसी का नतीजा है कि आज वह सिर उठा कर चल रही हैं.

असम के गुवाहाटी के होली चाइल्ड स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद संजुक्ता आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गईं, जहां उन्हें अलगअलग राज्यों से आए छात्रों से मिलने का मौका मिला. यहां उन के लिए बहुत कुछ नया था.

दिल्ली में उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंद्रप्रस्थ कालेज से राजनीति विज्ञान से ग्रैजुएशन किया. नंबर कम होने से इंद्रप्रस्थ कालेज में उन का दाखिला ही नहीं हो रहा था, लेकिन फिर हुआ तो आगे चल कर उसी लड़की ने यूपीएससी की परीक्षा में 85वीं रैंक हासिल की.

इंद्रप्रस्थ कालेज से ग्रैजुएशन करने के बाद उन्होंने जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) से इंटरनैशनल रिलेशन में मास्टर डिग्री ली और यूएस फौरेन पौलिसी में एमफिल और पीएचडी की. पीएचडी करने के बाद वह सन 2004 में आब्जर्वर रिसर्च में काम करने लगीं.

बचपन से ही वह आईपीएस बन कर देश और जनता की सेवा करना चाहती थीं, इसलिए आब्जर्वर रिसर्च में काम करने के साथसाथ वह संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तैयारी भी कर रही थीं. वह रोजाना करीब 5 से 6 घंटे पढ़ाई करती थीं. उन की मेहनत रंग लाई और सन 2006 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली.

अच्छी रैंक की वजह से उन्हें अपनी इच्छा से कैडर चुनने की छूट दी गई. संजुक्ता पराशर जब असम में अपनी स्कूली पढ़ाई कर रही थीं, तभी से वह अपने राज्य में हो रही आतंकवादी घटनाओें और भ्रष्टाचारियों की गतिविधियों से दुखी थीं. इसलिए उन्होंने अच्छी रैंक लाने के बावजूद आईएएस बन कर आराम की नौकरी करने के बजाय आईपीएस बन कर असम में काम करने का निर्णय लिया.

इस के लिए उन्होंने असम मेघालय कैडर चुना. क्योंकि आईपीएस बन कर वह कुछ अच्छा करना चाहती थीं. पुलिस अफसर बन कर उन्होंने किया भी यही.

एक महिला होने के नाते असम के अशांत इलाके में काम करना आसान नहीं था, पर संजुक्ता ने दिलेरी के साथ इसे स्वीकार किया. 2008 में ही उन्होंने असम-मेघालय कैडर के आईएएस अधिकारी पुरु गुप्ता से शादी की. इस समय उन के 2 बेटे हैं, जिन की देखभाल उन की मां करती हैं.

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व्यस्तता की वजह से वह 2 महीने मेें एक बार ही अपने परिवार से मिल पाती हैं. पुलिस अधिकारी होने के साथसाथ वह मां भी हैं, पर काम की वजह से उन्हें परिवार से दूर रहना पड़ता है.

उदालगिरी में जातीय हिंसा पर काबू पाने के बाद उन की पोस्टिंग आतंकवादग्रस्त इलाके में ही कर दी गई.

वहां संजुक्ता उग्रवादियों के पीछे हाथ धो कर पड़ गईं. उन्हें जोरहट जिले का एसपी बनाया गया तो हाथ में एके-47 ले कर असम के जंगलों में सीआरपीएफ के जवानों को लीड करती थीं.

संजुक्ता पराशर ने अपनी टीम पर हमला करने वाले उग्रवादियों की धरपकड़ तो की ही, साथ ही उन उग्रवादियों को भी पकड़ा, जो जंगल को अपने छिपने के लिए इस्तेमाल करते थे. इस तरह की जगहों पर औपरेशन को लीड करना बहुत मुश्किल होता है. यह बहुत ही दुर्गम इलाका है, जहां मौसम में तो नमी रहती है, कब बारिश होने लगे, कहा नहीं जा सकता. साथ ही नदी, झील और जंगली जानवरों का भी खतरा रहता है.

नदी और झील पार कर दूसरे छोर तक पहुंचना बहुत कठिन काम होता है. इस के अलावा स्थानीय निवासी भी उग्रवादियों को पुलिस की गतिविधियों की सूचना देते रहते हैं.

2011 से 2014 तक जोरहट की एसपी रहते हुए संजुक्ता पराशर ने औपरेशन को खुद ही लीड करते हुए सन 2013 में 172 तो 2014 में 175 आतंकवादियों को गिरफ्तार कर सलाखों के पीछे पहुंचाया. इस के बाद सन 2015-16 में सोनितपुर की एसपी रहते हुए उन्होंने अपने 15 महीने के औपरेशन में 16 आतंकवादियों को मार गिराया तो 64 को गिरफ्तार किया. जबकि सोनितपुर के जंगलोें में आतंकवादियों को खोज निकालना बहुत जोखिम का काम था.

पर उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया और उग्रवादियों के बीच अपने नाम का लोहा मनवा कर ही रहीं. उन्होंने तमाम उग्रवादियों को गिरफ्तार तो किया ही, इन आतंकियों के पास से उन्होंने भारी मात्रा में गोला, बारूद भी बरामद किया. मणिपुर के चंदेल में 18 सीआरपीएफ के जवानों के शहीद होने के बाद संजुक्ता पराशर को उन की टीम के साथ उस इलाके में पैट्रोलिंग के लिए भेजा गया. इस का नतीजा यह निकला कि इस बहादुर आईपीएस की टीम ने मई, 2016 में मलदांग में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट औफ बोडोलैंड शाक विजिट के 4 आतंकवादियों को गिरफ्तार किया.

इस की वजह यह थी कि जिस जगह पर अन्य पुलिस अधिकारी जाने से डरते थे, संजुक्ता पराशर वहां बेखौफ हो कर औपरेशन चलाती थीं. यही वजह थी कि उन का नाम सुन कर उग्रवादी कांपने लगे थे, उन्हें जान से मारने की धमकी देने लगे थे. बाजारों में भी उन के खिलाफ पैंफ्लेट चिपकाए गए, पर उग्रवादियों की इन धमकियों से न कभी वह डरीं और न कभी इस की परवाह की.

वह अपने आतंकवाद विरोधी अभियान में उसी तरह लगी रहीं. आतंकवादियों के लिए वह बुरे सपने की तरह थीं.

महिला होने के बावजूद संजुक्ता पराशर का नाम सुन कर बड़े से बड़े दहशतगर्दों की दहशत दम तोड़ देती थी. क्योंकि वह बड़ा से बड़ा जोखिम भरा काम करने से जरा भी नहीं घबराती थीं. इस की वजह यह है कि संजुक्ता के लिए महिला होना किसी तरह की कमजोरी नहीं है.

अपनी इसी बहादुरी की वजह से संजुक्ता पराशर आज लड़कियों की रोल मौडल बन गई हैं. सन 2017 में उन की पोस्टिंग नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) में एसी के रूप में 4 साल के लिए कर दी गई. तब से वह एनआईए में ही काम कर रही हैं.

अपने काम से हमेशा संतुष्ट रहने वाली संजुक्ता पराशर को एक बात का अफसोस है कि जब वह सोनितपुर की एसपी थीं, तब वह एक बिजनेसमैन को नहीं बचा पाईं थीं. इसे वह अपने जीवन का सब से मुश्किल केस भी मानती हैं.

दरअसल, एक गैंग ने उस बिजनेसमैन को हनीट्रैप में फांस कर अपहरण कर लिया था. अपहरण में उसी का गनमैन और एक कालगर्ल शामिल थी. फिरौती के लिए जिस नंबर से फोन किए जा रहे थे, वह सिम फरजी नामपते पर लिया गया था. इसलिए पुलिस को अपहर्ताओं तक पहुंचने में काफी समय लग गया और पुलिस जब तक उन तक पहुंचती, तब तक अपहर्ताओं ने बिजनेसमैन की हत्या कर दी थी.

साल 2017 में संजुक्ता पराशर को भोपाल और उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में हुए 7 धमाकों की जांच के लिए नैशनल इनवैस्टीगेशन एजेंसी में बतौर टीम हैड नियुक्त किया गया था. तब से वह एनआईए में तैनात हैं.

संजुक्ता को महिला सशक्तिकरण के लिए दिल्ली महिला आयोग ने अवार्ड भी दिया था.

अब तक 75 : दिल्ली का सुपरकौप संजीव यादव

संजीव यादव दिल्ली पुलिस के वह सुपरकौप हैं, जिन के नाम से बड़ेबड़े बदमाश थरथर कांपते हैं. स्पैशल सेल के डीसीपी संजीव अब तक 75 बदमाशों को मौत के घाट उतार चुके हैं. फिल्म बटला हाउस में जौन अब्राहम ने उन्हीं का किरदार निभाया था. संजीव का अपराधों के विरूद्ध अभियान…

एसीपी संजीव यादव को जामिया नगर स्थित बटला हाउस की बिल्डिंग एल 18 के मकान नंबर 108 तक पहुंचने में 20 मिनट का समय लगा था. लेकिन उस से पहले ही उन की टीम के बहादुर इंसपेक्टर मोहनचंद्र शर्मा और हैडकांस्टेबल आतंकवादियों की गोलियों से जख्मी हो चुके थे. जिन्हें स्पैशल सेल की टीम के लोग अस्पताल ले गए थे.

संजीव यादव को बटला हाउस पहुंचने से पहले जब मोहनचंद्र शर्मा की आतंकवादियों से हुई मुठभेड़ और उन के घायल होने की सूचना मिली थी तो उन्होंने अपने डीसीपी आलोक वर्मा तथा जौइंट कमिश्नर करनैल सिंह को भी इस की सूचना दे दी थी.

इसी बीच उन्होंने अपनी गाड़ी के पीछे चल रहे स्टाफ को संदेश दे दिया कि बुलेटप्रूफ जैकेट पहन लें और हथियारों से लैस हो मुठभेड़ के लिए तैयार रहें.

तैयारी पूरी थी, बटला हाउस में आतंकवादियों के छिपे होने वाले मकान पर पहुंच कर उन्होंने अपने स्टाफ के साथ धावा बोल दिया, जहां भीतर से हुई फायरिंग के कारण इंसपेक्टर मोहनचंद्र शर्मा घायल हुए थे.

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बुलेटप्रूफ  जैकेट पहने एसीपी संजीव यादव ने जान जोखिम में डाल कर मकान नंबर 108 में जब प्रवेश किया तो उन की टीम पर अंदर छिपे आतंकवादियों ने ताबड़तोड़ फायरिंग की, लेकिन किस्मत अच्छी थी कि गोली किसी को लगी नहीं. जवाब में संजीव यादव की टीम ने भी क्र्रौस फायरिंग की. गोलीबारी का यह सिलसिला करीब 7-8 मिनट तक चला और जब सब कुछ शांत हो गया तो पुलिस टीम ने मकान की तलाशी ली.

अंदर जा कर देखा तो कमरे में सामने 2 लाशें पड़ी थीं और कुछ हथियार व गोलियों के खाली कारतूस भी थे. बाथरूम में घायल हालत में एक युवक मिला, जिस ने अपना नाम नाम सैफ बताया. साथ ही उस ने लाशों की पहचान आतिफ अमीन और साजिद के रूप में की. उस ने यह भी बताया कि वे सब आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिदीन के लिए काम करते हैं.

19 सिंतबर, 2008 की सुबह जामिया नगर के बटला हाउस में हुए इस एकाउंटर से ठीक एक हफ्ते पहले यानी 13 सितंबर, 2008 को दिल्ली में 5 अलगअलग जगहों पर हुए सीरियल बम ब्लास्ट में 30 लोगों की मौत हुई थी. उसी ब्लास्ट की जांच और धरपकड़ करते हुए स्पैशल सेल को ब्लास्ट में शामिल कुछ संदिग्ध लोगों के इस मकान में छिपे होने की जानकारी मिली थी.

स्पैशल सेल के इंसपेक्टर मोहनचंद्र शर्मा इसी सूचना को वैरीफाई करने के लिए बटला हाउस की एल 18 नंबर बिल्डिंग के मकान नंबर 108 में अपनी टीम के साथ पहुंचे थे. लेकिन बिना स्वचालित हथियार और बुलेटप्रूफ जैकेट पहने सर्च के लिए गई टीम को पता नहीं था कि मकान के भीतर खूंखार आतंकवादी घातक हथियारों के साथ मौजूद हैं. पुलिस के मकान में घुसते ही दहशतगर्दों ने पुलिस पर ताबड़तोड़ गालियां चला दीं, जिस में मोहनचंद्र शर्मा व हवलदार बलवंत घायल हो गए.

आतंकवादियों की गोलियां लगने के कुछ घंटों के बाद ही इंसपेक्टर मोहन चंद शर्मा की मौत हो गई थी. बाद में एसीपी संजीव यादव मौके पर पहुंचे और उन्होंने मोर्चा संभाला. मकान के भीतर छिपे आतंकियों से लोहा लिया और इस एनकाउंटर में 2 आतंकवादी मारे गए. सैफ नाम के एक आतंकवादी को घर में ही पकड़ लिया गया था. बाद में एक आतंकवादी जीशान को पुलिस ने उसी शाम पकड़ लिया.

एसीपी संजीव यादव ने जिस बहादुरी के साथ बटला हाउस एनकाउंटर को लीड किया था, ताबड़तोड़ छापेमारी कर इस वारदात में शामिल अपराधियों की धरपकड़ की थी और विवादों का सामना करते हुए जिस मानसिक प्रताड़ना को सहा था, उसी बहुचर्चित एनकाउंटर पर कुछ सालों बाद डायरेक्टर निखिल आडवानी ने ‘बटला हाउस’ के नाम से फिल्म बनाई थी. फिल्म में अभिनेता जौन अब्राहम ने तत्कालीन एसीपी संजीव यादव का किरदार निभाया था.

इस फिल्म में संजीव यादव का किरदार निभाने से पहले अभिनेता जौन अब्राहम ने जब असल जिंदगी के डीसीपी (बाद में) संजीव कुमार यादव से मुलाकात की तो वह यह जान कर दंग रह गए थे कि करीब 75 मुठभेड़ों में अपराधियों से 2-2 हाथ करने वाले संजीव यादव ने बाटला हाउस मुठभेड़ के विवाद के बीच मानसिक प्रताड़ना के एक बुरे दर्दनाक दौर का सामना किया था. संजीव यादव यहां तक हतोत्साहित हो गए थे कि मन में आत्महत्या करने तक का ख्याल आया था. क्योंकि बाटला हाउस एनकांउटर के बाद उन्हें स्पैशल सेल से हटा दिया गया था.

बाटला हाउस फिल्म में एक सीन है, जिस में जौन अपनी पिस्तौल को नष्ट कर के अपनी पत्नी को दे देते हैं. क्योंकि वह डर गए थे कि वह उस पिस्तौल से खुद को भी गोली मार सकते थे. उन्होंने पिस्तौल के सभी हिस्सों को घर के अलगअलग हिस्सों में रखवा दिया था.

अभिनेता जौन अब्राहम ने संजीव यादव से मिलने के बाद महसूस किया था कि एक कठोर मिजाज सुपर कौप असल जिंदगी में बेहद शर्मीला और शांत स्वभाव का इंसान भी हो सकता है.

संजीव यादव दिल्ली पुलिस के उन जांबाज अफसरों में से एक हैं, जिन का नाम सुन कर बदमाश दिल्ली के आसपास फटकने से भी कन्नी काटते हैं. दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल में कार्यरत डीसीपी संजीव यादव देश के इकलौते ऐसे पुलिस अफसर हैं, जिन को उन के काम के लिए 9 गैलेंट्री अवार्ड यानी राष्ट्रपति वीरता पदक मिल चुके हैं.

दिल्ली पुलिस में सुपर कौप के नाम से पहचान बना चुके डीसीपी संजीव यादव दिल्ली पुलिस की शान और ऐसी धरोहर हैं, जिन की मौजूदगी पूरे शहर को महफूज रहने का भरोसा देती है.

कुख्यात अपराधी हो या आतंक फैलाने वाले दहशतगर्द, इस सुपर कौप की नजर में एक बार जो चढ़ गया समझो उस का काम तमाम हो गया. पुलिस विभाग में काम करते हुए जांबाजी से अपराधियों के हौसले पस्त करने की सीख उन्हें विरासत में मिली है.

संजीव यादव पिछले काफी सालों से स्पैशल सेल में पहले एसीपी रहे. इस के बाद अब बतौर डीसीपी तैनात हैं. स्पैशल सेल के साथ उन्होंने लंबे वक्त तक क्राइम ब्रांच में भी काम किया. संजीव यादव जहां भी रहे, आतंक फैलाने से ले कर अपराध करने वालों के बीच खौफ पैदा करते रहे हैं.

यूपी के बलिया के रहने वाले संजीव यादव एक रसूखदार परिवार में पैदा हुए थे. पिता नंदजी यादव उत्तर प्रदेश पुलिस में थे और एसपी पद से रिटायर होने के बाद जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए थे.

संजीव कुमार यादव के सब से बड़े भाई विनोद यादव डिप्टी एसपी से रिटायर होने के बाद फिलहाल गोरखपुर में रह रहे हैं और एक निजी बैंक में डिप्टी मैनेजर हैं. विनोद यादव से छोटे प्रमोद कुमार यादव सबरजिस्ट्रार हैं, जबकि उन से छोटे राजीव डिप्टी डायरेक्टर (रोजगार) व अजय कुमार यादव सेना में कर्नल हैं.

दिल्ली पुलिस में आने से पहले संजीव यादव मध्य प्रदेश पुलिस में डीएसपी रह चुके हैं. 1998 में दिल्ली पुलिस में बतौर दानिप्स संजीव यादव एसीपी सेलेक्ट हुए तो उन्होंने मध्य प्रदेश पुलिस की नौकरी छोड़ दी.

पुलिस विभाग में काम करते हुए अपराध और अपराधियों का खात्मा करने का जज्बा सुपर कौप संजीव यादव को इसी पारिवारिक विरासत से मिला है. दिल्ली पुलिस में 1998 में एसीपी के रूप में भरती होने के बाद संजीव यादव की सब से पहली नियुक्ति मध्य जिले के औपरेशन सेल में हुई थी.

बटला हाउस एनकांउटर के बाद उठे विवाद के कारण उन्हें क्राइम ब्रांच में भेज दिया गया था. यहां भी उन्होंने अपराधियों के खिलाफ अपना अभियान लगातार जारी रखा.

लेकिन दिल्ली में 2010 में हुए आतंकी हमले के बाद देश की सुरक्षा और जेहादियों के खिलाफ बेहतरीन नेटवर्क के कारण संजीव यादव को फिर से स्पैशल सेल में बुला कर स्पैशल सेल में डीसीपी बना दिया गया. इस के बाद उन्हें आईपीएस कैडर मिला.

स्पैशल सेल में संजीव यादव ने अब तक 42 केस अपने हाथ में लिए हैं, जिस में से 32 का फैसला आ चुका है और अदालत से आरोपियों को सजा मिली है. इन में 2004, 2008, 2010 और 2012 के आतंकी हमले वाले केस भी शामिल हैं.

संजीव यादव आतंकवादियों से ले कर कुख्यात अपराधियों के निशाने पर हैं, इसीलिए खुफिया विभाग की सलाह पर सरकार ने उन्हें जेड कैटेगरी का सुरक्षा कवच दिया हुआ है. आतंकवादियों के खिलाफ औपरेशन हो या किसी खतरनाक गैंगस्टर के खिलाफ अभियान, संजीव कभी अपनी जान की परवाह नहीं करते और औपरेशन को खुद ही लीड करते हैं, रणनीति बनाते हैं और टीम का मनोबल बढ़ाते हुए साथ ले कर चलते है.

दिल्ली में एक गैंगस्टर के लिए चलाया गया उन का औपरेशन उन के कैरियर का सब से बड़ा एनकाउंटर औपरेशन था.

जून, 2018 का वाकया है. संजीव यादव उन दिनों दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल में नार्दर्न रेंज के डीसीपी की कमान संभाल रहे थे. एक दिन उन्हें अपने एक खबरी से सूचना मिली की कुख्यात इनामी बदमाश राजेश भारती और उस के गैंग के कुछ लोग छतरपुर के चानन होला इलाके में एक फार्महाउस में आने वाले हैं.

संजीव ने अपने मातहत तेजतर्रार पुलिस अफसरों की 5 टीमें गठित की और उन्हें उस इलाके में हर रास्ते पर इस तरह से तैनात कर दिया कि जब राजेश भारती को घेरा जाए तो वह भागने में कामयाब न हो सके.

सादे कपड़ों में टीमों को बाइक और गाडि़यों में बैठा कर ऐसे लगाया गया, जिस से बदमाश अपनी गाडि़यों से पुलिस की गाडि़यों में टक्कर मार कर भी भागे तो वे पकड़े जाएं. उन की टीमों ने छतरपुर इलाके में अपना पूरा जाल बिछा दिया था.

उस के बाद शुरू हुआ राजेश भारती के आने का इंतजार. 31 घंटे तक बिना पलक झपकाए संजीव यादव अपनी टीम के साथ टकटकी लगाए राजेश भारती के आने का रास्ता देखते रहे. जिस फार्महाउस पर नजर रखी जा रही थी, वह एक प्रौपर्टी डीलर का था.

चूंकि खबर एकदम पुख्ता थी कि राजेश भारती वहां जरूर आएगा, इसलिए पूरा दिन इंतजार करने के बाद संजीव यादव अपनी टीमों के साथ मुस्तैदी से वहीं डटे रहे. सब ने बिस्कुट, नमकीन के साथ पानी पी कर रात गुजारी, लेकिन वहां से हटे नहीं.

किसी तरह सुबह हुई तो खबरी से एक बार फिर फोन पर संपर्क साधा गया. उस ने बताया कि आज राजेश भारती हर हाल में  वहां पहुंचेगा. संजीव की सभी टीमें इस सूचना पर अलर्ट हो गईं.

दोपहर होतेहोते शिकार के आने का इंतजार खत्म हो गया. फार्महाउस के बाहर एक एसयूवी आ कर रुकी, जिस की पिछली सीट पर राजेश भारती बैठा था. एसयूवी को उमेश उर्फ डौन ड्राइव कर रहा था. एसयूवी के साथ सफेद रंग की एक दूसरी कार भी थी जिस में 4 लोग सवार थे.

गाडि़यों के फार्महाउस के बाहर पहुंचते ही पहले से घेराबंदी कर चुकी पुलिस की टीमों ने चारों तरफ से दोनों गाडि़यों की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया. थोड़ा नजदीक पहुंचते ही संजीव यादव ने कोर्डलैस लाउडस्पीकर से बदमाशों को सरेंडर करने की चेतावनी दी. लेकिन उन्होंने सरेंडर करने के बजाय भागने का फैसला किया और अपनी गाडि़यां तेज गति से दौड़ा दीं.

संजीव यादव इस तरह के बदमाशों से पहले भी कई बार लोहा ले चुके थे, इसलिए जानते थे कि ऐसा हो सकता है. इसीलिए उन्होंने बदमाशों को दबोचने के लिए 3 स्तरीय घेराबंदी की थी. पहला घेरा तोड़ कर भागे बदमाशों को पीछे से घेरने के साथ आधा किलोमीटर की दूरी पर घेराबंदी कर के खड़ी टीम ने घेर लिया.

बदमाशों की दोनों गाडियां करीब एकडेढ़ किलोमीटर तक पुलिस को छकाती रहीं. लेकिन त्रिस्तरीय घेराबंदी इतनी पुख्ता थी कि बदमाश 2 मिनट बाद ही चौतरफा इस तरह घिर गए कि उन के सामने 2 ही रास्ते थे कि या तो सरेंडर कर दें या मुकाबला करें.

लेकिन खुद को फंसा देख बदमाशों ने सरेंडर करने की जगह पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी. बदमाशों की फायरिंग के जवाब में संजीव का इशारा मिलते ही उन की टीम ने भी फायरिंग शुरू कर दी. पुलिस की टीम स्वचालित हथियारों से लैस थी.

पूरा इलाका ताबड़तोड़ गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. मुश्किल से 3 मिनट लगे 31 घंटे से चले आ रहे औपरेशन को खत्म होने में. बदमाशों की ओर से करीब 50 और पुलिस की तरफ से 100 राउंड फायरिंग हुई. एनकाउंटर में राजेश कंडेला उर्फ भारती, संजीत विद्रोही, गुड़गांव निवासी उमेश उर्फ डौन तथा दिल्ली के घेवरा का वीरेश राणा उर्फ विक्कू वहीं पर ढेर हो गए.

संजीव यादव की टीम के 8 जवान भी गोली लगने से घायल हुए थे. जिन 4 बदमाशों को गोली लगी थी, उन की मौके पर ही मौत हो चुकी थी. इस के बावजूद उन्हें भी अस्पताल भेजा गया.

दरअसल अपराधी राजेश भारती ने दिल्ली के एक बिजनैसमैन को फोन कर के 50 लाख रुपए की रंगदारी मांगी थी. इसी की शिकायत मिलने के बाद संजीव यादव ने राजेश भारती और उस के गुर्गों की कुंडली खंगाल कर उन के पीछे अपने खबरियों की टीम लगाई थी.

गांव में घरेलू रंजिश के कारण अपराध की डगर पर चलते हुए राजेश भारती के खिलाफ अपराध के 15 संगीन मामले दर्ज थे. भारती की गिरफ्तारी पर दिल्ली पुलिस की तरफ से एक लाख का ईनाम भी घोषित किया गया था. राजेश भारती दिल्ली के उन टौप टेन अपराधियों में से एक था, जो रंगदारी से ले कर तमाम तरह के गुनाहों को अंजाम दे रहे थे. लेकिन संजीव यादव की नजर में चढ़ते ही उस के गुनाहों के साथ जिदंगी का भी खात्मा हो गया.

संगठित अपराध व आतंकवादियों के खिलाफ सब से दमदार मुहिम चलाने वाली दिल्ली पुलिस की 2 यूनिटों स्पैशल सेल तथा क्राइम ब्रांच में रहते हुए संजीव यादव अब तक 75 एनकांउटरों को अंजाम दे चुके हैं. उन्होंने कई पाकिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादियों को मुठभेड़ में धराशायी किया तो बहुतों को गिरफ्तार किया.

कई नामचीन गैंगस्टर उन की गोली का शिकार बने तो कई ईनामी बदमाशों को उन्होंने हथकड़ी पहनाई. उन्होंने ही दिल्ली के सब से बड़े गैंगस्टर 5 लाख के ईनामी कुख्यात सोनू दरियापुर को 2017 में मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया था.

ड्रग्स सिंडीकेट चलाने वालों के खिलाफ तो डीसीपी संजीव यादव ने मानों मुहिम ही छेड़ी हुई है. उन के नेतृत्व में 4 दरजन से अधिक देशीविदेशी नशे के तसकर और कई सौ करोड़ की ड्रग्स पकड़ी जा चुकी है.

संजीव यादव की जांबाजी से सिर्फ दिल्ली की जनता ही महफूज नहीं है. उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश व पूर्वांचल के साथ बिहार के भी कई दुर्दांत अपराधियों का खात्मा कर के इन राज्यों की पुलिस व जनता को राहत दिलाई है.

24 अक्तूबर, 2013 की रात को वसंत कुंज में होटल ग्रैंड के पास हुई एक मुठभेड़ में सुरेंद्र मलिक उर्फ नीटू दाबोदिया और उस के साथी आलोक गुप्ता और दीपक गुप्ता मारे गए थे. इस गिरोह ने अपना पीछा कर रही दिल्ली पुलिस के एक एसीपी मनीष चंद्रा की स्कौर्पियो को अपनी कार से टक्कर मार दी थी और अपनी गाडि़यों से उतर कर अलगअलग दिशा में भागते हुए पुलिस पर जबरदस्त तरीके से गोलियां दागी थीं.

डीसीपी संजीव यादव की अगुवाई में इन बदमाशों का पीछा कर उन की टीम के इंसपेक्टर ललित मोहन नेगी, हृदय भूषण और रमेश चंदर लांबा व सबइंसपेक्टर सुखबीर सिंह ने अपनी जान पर खेलते हुए सभी बदमाशों को बसंतकुंज के होटल ग्रैंड के पास एनकाउंटर में धराशायी किया था. यह 13 अक्तूबर, 2013 की रात की बात है.

इस मुठभेड़ में सुरेंद्र मलिक उर्फ नीटू दाबोदिया, आलोक गुप्ता और इन का साथी दीपक गुप्ता मारे गए थे. दिल्ली शहर में बदमाशों के खिलाफ इस बहादुरी के लिए संजीव यादव समेत इन सभी चारों पुलिस वालों को राष्ट्रपति का पुलिस मैडल मिला था.

इसीलिए पुलिस विभाग में संजीव यादव को दिल्ली का सुपर कौप कहा जाता है. वैसे तो संजीव यादव अपनी पिस्तौल से सिर्फ बदमाशों पर ही निशाना लगाते हैं. लेकिन उन का एक शौक ऐसा है, जिस के बारे में शायद लोगों का ज्यादा जानकारी न हो.

संजीव यादव अचूक निशानेबाज हैं. उन्होंने साल 2018 में 45वीं दिल्ली स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में एक गोल्ड व 2 ब्रोंज मैडल जीते थे. साथ ही 10 मीटर एयर पिस्टल और 25 मीटर सेंटर फायर पिस्टल में 2 ब्रोंज मेडल अपने नाम किए.

खास बात ये है कि जिस उम्र में शूटर शूटिंग से रिटायरमेंट ले लेते हैं, डीसीपी संजीव यादव ने उस उम्र में शूटिंग शुरू की और अपनी मेहनत से पुलिस की व्यस्त जिंदगी से वक्त निकाल कर यह कारनामा कर दिखाया.

शूटिंग की कई प्रतियोगिताओं में मैडल जीतने के बाद उन का चयन भारत की राष्ट्रीय शूटिंग टीम में साउथ एशियन गेम्स 2019 के लिए हुआ और वे भारत की तरफ से शूटिंग में हिस्सा लेने के लिए नेपाल गए.

संजीव यादव की तमाम उपलब्धियों में उन की पत्नी शोभना यादव की भी अहम भूमिका है जो उन्हें सदैव प्रेरित करती हैं. शोभना यादव उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले की हैं. पत्रकारिता के प्रति उन का रुझान कालेज के दिनों में हुआ था, लिहाजा पत्रकारिता की पढ़ाई के बाद सब से पहले उन्होंने आईटीवी नाम के एक लोकल न्यूज चैनल में काम किया. कुछ महीनों बाद उन्हें पहला ब्रेक इंडिया टीवी में मिला. यहीं से उन को प्रसिद्धि मिली. उन्होंने इस चैनल के साथ काफी दिनों तक काम किया.

बटला हाउस एनकाउंटर के समय वह लाइव रिपोर्टिंग कर रही थीं, यह जानते हुए भी कि उन का पति ही एनकाउंटर को लीड कर रहा है. दर्शकों को उन्होंने इस बात का अहसास तक नहीं होने दिया. उस वक्त वह कितनी टेंशन में रही होंगी, इस का अंदाजा लगाया जा सकता था.

संजीव कुमार यादव और उन की पत्नी शोभना यादव एक बेटे व एक बेटी के मातापिता हैं.

मजबूत इरादों वाली श्रेष्ठा सिंह

यूपी के बुलंदशहर में आयरन लेडी के नाम से मशहूर श्रेष्ठा सिंह का लक्ष्य एकदम स्पष्ट था और उसे पाने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी. जिस की चमक उन के व्यक्तित्व में बखूबी झलकती थी. इसीलिए प्रशिक्षण के बाद जब उन की पहली पोस्टिग स्याना में बतौर सीओ हुई तो उन का कानून का पालन करने का लक्ष्य इरादों की मजबूती बन गया.

23 जून, 2017 को स्याना में चेकिंग के दौरान भाजपा, नेता प्रमोद लोधी को पुलिस ने बिना हेलमेट और बिना कागजात की बाइक चलाते हुए रोक लिया. जब चालान करने की बात आई तो नेता जी श्रेष्ठा सिंह से उलझ बैठे.

प्रमोद लोधी जिला पंचायत सदस्या प्रवेश के पति थे और स्वयं भी नेता थे. लेकिन श्रेष्ठा सिंह ने उन की किसी भी धमकी की परवाह नहीं की. उन्होंने सरकारी काम में बाधा डालने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई जिस के बाद प्रमोद लोधी को गिरफ्तार कर लिया गया.

उन्हें कोर्ट में पेशी के लिए ले जाया गया तो वहां बड़ी संख्या में भाजपा समर्थक पहुंच कर नारेबाजी करने लगे. तब श्रेष्ठा सिंह ने हंगामा कर रहे नेताओं और समर्थकों से कहा कि वे लोग मुख्यमंत्री जी के पास जाएं और उन से लिखवा कर लाएं कि पुलिस को चेकिंग का कोई अधिकार नहीं है. वो गाडि़यों की चेकिंग न करें.

इस मामले के 8 दिन बाद ही श्रेष्ठा ठाकुर का तबादला स्याना से बहराइच (नेपाल बौर्डर से सटे) कर दिया गया था. जिस की जानकारी उन्होंने अपने एएस ठाकुर नाम के फेसबुक अकाउंट पर देते हुए लिखा,‘मैं खुश हूं. मैं इसे अपने अच्छे कामों के पुरस्कार के रूप से स्वीकार कर रही हूं.’

आगे की लाइन में उन्होंने अपना लक्ष्य भी स्पष्ट करते हुए लिखा, ‘जहां भी जाएगा, रोशनी लुटाएगा. किसी चराग का अपना मकां नहीं होता.’

कानपुर में पलीबढ़ी श्रेष्ठा ने कानून की अहमियत शिक्षा प्राप्ति के दौरान ही समझ ली थी. जब उन के साथ 2 बार छेड़छाड़ की घटना हुई थी. पुलिस ने मदद के नाम पर औपचारिकता भर निभा दी थी.

तभी श्रेष्ठा ठाकुर ने अपना लक्ष्य तय कर लिया था, एक पुलिस अधिकारी बनने का और अधिकारी बनने के बाद उन्होंने जता दिया कि कानून की धाराएं आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए एक जैसी हैं. जो उन में भेदभाव करता है, कानून का वह रक्षक अपनी वर्दी के साथ इंसाफ नहीं करता.