मारवाड़ के लुटेरों पर पुलिस का दांव – भाग 3

टी.वी. पेरियापांडियन दीवार फांदने के बजाय जब लोहे के गेट पर चढ़ कर कूदने का प्रयास कर रहे थे, तब गेट के बाहर खड़े इंसपेक्टर मुनिशेखर अपनी पिस्टल को अनलौक कर रहे थे कि अचानक एक्सीडेंटल गोली चल गई, जो टी.वी. पेरियापांडियन को लगी. वह गेट से गिर गए और उन की मौत हो गई. इसी बीच मौका पा कर नाथूराम फरार हो गया था.

दरअसल, चेन्नै पुलिस को अनुमान नहीं था कि वहां 9-10 लोग होंगे. उस का मानना था कि नाथूराम 1-2 लोगों के साथ छिपा होगा. चेन्नै के थाना मदुरहोल थाने के इंसपेक्टर टी.वी. पेरियापांडियन दबंग और बहादुर पुलिस अफसर थे.  यह दुर्भाग्य ही था कि उन की मौत अपने ही साथी की गोली से हो गई.

पाली के एसपी दीपक भार्गव के अनुसार, चेन्नै पुलिस के इंसपेक्टर मुनिशेखर को चार्जशीट में भादंवि की धारा 304ए का आरोपी बनाया जाएगा. तथ्यात्मक जांच रिपोर्ट चेन्नै पुलिस को भेजी जाएगी. चेन्नै पुलिस इंसपेक्टर मुनिशेखर पर विभागीय काररवाई करेगी.

17 दिसंबर को पुलिस ने चेन्नै में हुई ज्वैलरी लूट की वारदात के मुख्य आरोपी नाथूराम जाट की पत्नी मंजू देवी को गिरफ्तार कर लिया था. वह जोधपुर के पीपाड़ शहर के पास मालावास गांव में अपने धर्मभाई के घर छिपी हुई थी. मंजू को चेन्नै से आई पुलिस टीम पर हमले के आरोप में पकड़ा गया था.

कथा लिखे जाने तक नाथूराम और अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए पुलिस लगातार छापे मार रही थी. नाथूराम के खिलाफ पाली के थाना जैतारण में मारपीट के 4 और जोधपुर के थाना बिलाड़ा में एक मुकदमा पहले से दर्ज है. वह कई सालों से अपने गांव में नहीं रहा था. वह चेन्नै बेंगलुरु आदि शहरों में रहता था.

नाथूराम और दीपाराम के पकड़े जाने के बाद चेन्नै में महालक्ष्मी ज्वैलर्स के शोरूम में हुई सवा करोड़ रुपए के गहनों की लूट का मामला भले ही सुलझ जाए, लेकिन चेन्नै पुलिस के लिए माल की बरामदगी चुनौती रहेगी. जोधपुर में गिरफ्तार चोरी के आरोपी दिनेश जाट को चेन्नै पुलिस प्रोडक्शन वारंट पर चेन्नै ले गई.

इसी तरह 29 अगस्त, 2017 को विशाखापट्टनम में एक ज्वैलर से 3 किलोग्राम सोना लूट लिया गया था. लूट की इस वारदात में ज्वैलर के पास काम करने वाला राकेश प्रजापत शामिल था.

वह राजस्थान के जिला पाली के रोहिट के पास धींगाणा का रहने वाला था. लूट के बाद वह पाली आ गया था. यहां बाड़मेर रोड पर होटल चलाने वाले हनुमान प्रजापत से उस की पुरानी जानपहचान थी. हनुमान के मार्फत राकेश ने लूट का सारा सोना श्रवण सोनी को बेच दिया.

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मामले की जांच करते हुए आंध्र प्रदेश पुलिस जोधपुर पहुंची और 3 नवंबर को झालामंड मीरानगर निवासी रामनिवास जाट को गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद जोधपुर जिले के थाना बोरानाड़ा के गांव खारडा भांडू के रहने वाले ज्वैलर श्रवण सोनी को पकड़ा गया.

श्रवण सोनी को ले जाने पर उस के घर वालों ने थाना बोरानाड़ा में उस के अपरहण का मामला दर्ज करा दिया था. बोरानाड़ा पुलिस ने जांचपड़ताल की तो श्रवण सोनी के आंध्र प्रदेश पुलिस की कस्टडी में होने की बात पता चली.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास, श्रवण सोनी, हनुमान प्रजापत और राकेश प्रजापत को हिरासत में ले कर सोना बरामद कर लिया था. लेकिन कागजों में न तो उन्हें गिरफ्तार दिखाया गया था और न ही सोने की बरामदगी दिखाई गई थी, जबकि राकेश प्रजापत को बाकायदा हथकड़ी लगा कर रखा गया था. लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं दिखाया गया था.

आंध्र प्रदेश की पुलिस टीम द्वारा रामनिवास को लूट के मामले में आरोपी न बनाने और उस की कार जब्त न करने के लिए डेढ़ लाख रुपए मांगे गए थे, साथ ही मौजमस्ती के लिए लड़कियों का इंतजाम करने को भी कहा गया था. पुलिस टीम का कहना था कि उस ने यह कार विशाखापट्टनम से लूटे गए 3 किलोग्राम सोने को बेच कर खरीदी थी.

आंध्र प्रदेश पुलिस ने 5 नवंबर को रामनिवास और श्रवण सोनी को कुछ शर्तों पर छोड़ दिया था और श्रवण सोनी से 6 नवंबर को 2 लाख रुपए लाने को कहा था. इस से पहले आंध्र प्रदेश पुलिस ने रामनिवास के एटीएम से 20 हजार रुपए निकलवा कर रख लिए थे.

छूटते ही रामनिवास सीधे भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के कार्यालय पहुंचा और आंध्र प्रदेश पुलिस द्वारा रिश्वत मांगने की शिकायत कर दी. एसीबी ने 80 हजार रुपए दे कर रामनिवास को आंध्र प्रदेश पुलिस के पास भेज कर शिकायत की पुष्टि की. इस के बाद 6 नवंबर को विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश से आई 4 लोगों की पुलिस टीम को 80 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथों गिरफ्तार कर लिया गया.

इन में विशाखापट्टनम जिले की क्राइम ब्रांच के सबडिवीजन नौर्थ के इसंपेक्टर आर.वी.आर.के. चौधरी, विशाखापट्टनम के थाना परवाड़ा के एसआई एस.के. शरीफ, थाना एम.आर. पेटा के एसआई गोपाल राव और थाना वनटाउन के कांस्टेबल एस. हरिप्रसाद शामिल थे. ये चारों जोधपुर में बाड़मेर रोड पर बोरानाड़ा स्थित एक होटल में रुके हुए थे.

गिरफ्तारी के अगले दिन 7 नवंबर को चारों लोगों को अदालत में पेश किया गया, जहां से अदालत के आदेश पर सभी को जेल भेज दिया गया. पूरी टीम के गिरफ्तार होने की सूचना मिलने पर 3 किलोग्राम सोने की लूट के मामले की जांच के लिए विशाखापट्टनम से दूसरी टीम भेजी गई. यह टीम 7 नवंबर को जोधपुर पहुंची. इस टीम ने सोने की लूट के सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

जुर्म की दुनिया की लेडी डौन – भाग 4

लेकिन अपने चाहने वालों और गरीबों पर वह मेहरबान रही, जिस से उसे गौडमदर का खिताब मिल गया.

संतोक बेन देश की पहली लेडी डौन थी जिस की जिंदगी पर विनय शुक्ला ने फिल्म ‘गौडमदर’ साल 1999 में बनाई थी, जिस में उस का रोल शबाना आजमी ने निभाया था. यह फिल्म जबरदस्त हिट साबित हुई थी, जिसे 6 नैशनल अवार्ड सहित एक फिल्मफेयर अवार्ड भी मिला था.

अपने खौफ और रसूख को संतोक ने राजनीति में भी इस्तेमाल किया और साल 1990 में वह जनता दल के टिकट पर कुतियाना सीट से 35 हजार वोटों से जीत कर विधायक भी चुनी गई थी.

उस का एक बेटा कांधल जडेजा कुतियाना सीट से ही एनसीपी के टिकट पर जीत कर विधायक बना. साल 2011 की होली के पहले संतोक की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी.

खतरनाक सायनाइड किलर केमपंमा

सायनाइड मल्लिका के.डी. केमपंमा बेंगलुरु के नजदीक कमालीपुरा गांव की रहने वाली सीरियल किलर थी, जिस ने कितनों को सायनाइड दे कर मौत की नींद सुलाया. इस की सही गिनती किसी के पास नहीं.

के.डी. केमपंमा ने हत्या करने का नायाब लेकिन पुराना तरीका चुन रखा था. वह अपने शिकार को एकांत में बुलाती थी और वहां उस की हत्या कर उसे लूट लेती थी.

जुर्म करने के लिए वह उन महिलाओं को चुनती थी, जो पारिवारिक या दूसरे कारणों से परेशान रहती थीं और मन्नतें मांगने व पूजापाठ करने मंदिर जाया करती थीं.

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के.डी. इन के सामने खुद को एक जानकार तांत्रिक की तरह पेश करती थी और पूजापाठ कर परेशानी दूर करने का झांसा दे कर शिकार को किसी वीरान मंदिर बुलाती थी और वहीं सायनाइड खिला कर हमेशा के लिए परेशान जिंदगी से ही छुटकारा दिला देती थी.

गिरफ्तार होने के बाद उसे मौत की सजा सुनाई गई थी. लेकिन बाद में उसे आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. बेहद गरीब घर की केमपंमा ने एक दरजी से शादी की थी और खुद चिटफंड कंपनी चलाती थी.

पर रातोंरात अमीर बनने के लालच में साल 1999 में उस ने पहली हत्या की थी और फिर मुड़ कर नहीं देखा. साल 2008 में गिरफ्तार होने तक उस का खासा खौफ बेंगलुरु में रहा.

कोठों की बादशाहत वाली सायरा बेगम

सायरा बेगम कोठे वाली के नाम से इसलिए मशहूर हुई थी कि उस ने देह व्यापार के धंधे में तकरीबन 5 हजार लड़कियों को धकेला.

हैदराबाद की रहने वाली इस मौसी सायरा बेगम की दिल्ली के बदनाम रेडलाइड इलाके जीबी रोड पर बादशाहत लंबे समय तक कायम रही. उस पर दरजनों आपराधिक मामले भी दर्ज हुए थे. देह व्यापार के धंधे से सायरा ने करोड़ों रुपए कमाए.

साल 2016 में जब वह गिरफ्तार हुई तो पता चला कि 6 कोठे तो उस के जीबी रोड पर ही हैं और दिल्ली में ही आलीशान फार्महाउस के अलावा बेंगलुरु में भी उस के बेशकीमती 3 फ्लैट हैं. उस के बैंक खातों में ही करोड़ों रुपए जमा थे. सायरा का पति अफाक हुसैन इस धंधे में उस का साथ देता था.

ये लोग पूर्वोत्तर भारत और नेपाल से लड़कियां ला कर उन से धंधा कराते थे. जिस सायरा ने कोई 5 हजार लड़कियों को देह धंधे के दलदल में धकेला, खुद उस की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं.

मांबाप की मौत के बाद वह साल 1990 में दिल्ली रोजगार की तलाश में आई थी, लेकिन वह नहीं मिला तो वह कालगर्ल बन गई.

बेरोजगारी और दुश्वारियां झेल चुकी सायरा को कभी मजबूर गरीब लड़कियों की हालत पर तरस नहीं आया, जो कम उम्र लड़कियों को जल्द जवान बनाने के लिए हारमोंस के इंजेक्शन भी देती थी. लड़कियों को इस धंधे में लाने के लिए उस ने गिरोह भी बना लिया था, जिस की वह डौन थी.

इन का भी बजता था डंका

इसी तरह खूबसूरती की वजह से रूबीना सिराज सैय्यद ने अपराध की दुनिया में हीरोइन नाम से पहचान बनाई. कभी जानीमानी ब्यूटीशियन रही रूबीना ने पैसों के लालच में छोटा राजन से हाथ मिला लिया. उस ने अपनी खूबसूरती से कइयों को काबू किया.

पुलिस वाले भी उस की खूबसूरती पर लट्टू हो जाते थे. इसी का फायदा उठा कर 70 के दशक में वह जेल में बंद छोटा शकील के गुर्गों तक हथियार और नशे का सामान पहुंचाती थी. महाराष्ट्र सरकार ने उस की आपराधिक गतिविधियों की वजह से उस पर मकोका भी लगाया था.

दूध बेचने वाली शशिकला ने पैसों के लालच में ड्रग्स की तसकरी शुरू की और जल्द ही मुंबई में कुख्यात हो गई. अपराध की दुनिया में उसे बेबी नाम से जाना जाने लगा.

वर्ष 2015 में मुंबई पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया, तब तक ड्रग्स की तसकरी से वह 100 करोड़ रुपए की संपत्ति खड़ी कर चुकी थी. शशिकला उर्फ बेबी को मुंबई का सब से बड़ा ड्रग्स माफिया माना जाता है.

बेला आंटी को तो मुंबई की सब से बड़ी शराब माफिया के रूप में जाना जाता था. 70 के दशक में जब अवैध शराब के खिलाफ सख्ती बढ़ी, तब भी बेला आंटी ने ट्रकों में भर कर पूरी मुंबई में अवैध शराब की तसकरी की.

अधिकारियों का मुंह बंद कराने के लिए बेला ने उन्हें मोटी रिश्वत दी. उस ने शराब की तसकरी जारी रखने के लिए तब के गैंगस्टरों, अधिकारियों और राजनेताओं सब को डरा रखा था.

किसी में हिम्मत नहीं थी कि अवैध शराब की तसकरी में लगी उस की गाडि़यों को कोई रोक सके. यहां तक कि उस वक्त का अंडरवर्ल्ड डौन वर्धाभाई भी उसे अपने एरिया धारावी में शराब की तसकरी करने से नहीं रोक सका था.

भारत के मोस्टवांटेड दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर वो नाम है, जो किसी परिचय का मोहताज नहीं. दाऊद इब्राहिम के भारत से भागने के बाद मुंबई में उस के अवैध धंधों की बागडोर बहन हसीना पारकर ने ही संभाली. अपराध की दुनिया में उस की पहचान गौडमदर औफ नागपाड़ा और अप्पा मतलब बड़ी बहन के तौर पर रही है.

इस में कोई संदेह नहीं कि उस में मुंबई के अपराध जगत में एकछत्र राज किया है. वर्ष 2014 में हार्ट अटैक से उस की मौत हो गई.द्य

नोटिस का जवाब खून से : मैनेजर के पद ने ली जान – भाग 3

खुल गया हत्या का राज

संदेह पुख्ता करने के लिए पुलिस ने खुशी सेजवानी की फोर्ड ईकोस्पोर्ट्स कार को कब्जे में ले कर जांच के लिए सांताक्रुज की फोरैंसिक लैब में भेज दिया. परीक्षण में कार की डिक्की के अंदर खून के कुछ धब्बे पाए गए, जिस का डीएनए किया गया तो वह कीर्ति के डीएनए से मैच हो गया.

इस के बाद तो उन दोनों पर शक की कोई गुंजाइश नहीं बची. अब स्थिति साफ हो चुकी थी. पुलिस ने खुशी सेजवानी और सिद्धेश से पूछताछ की तो उन्होंने कीर्ति की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. उस की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह दिल दहला देने वाली थी—

27 वर्षीय सिद्धेश तम्हाणकर अपने पूरे परिवार के साथ परेल, मुंबई के लालबाग में रहता था. उस के पिता सीताराम तम्हाणकर नौकरी से रिटायर हो चुके थे. पूरे परिवार की जिम्मेदारी सिद्धेश के ऊपर थी. परिवार वालों का वह एकलौता सहारा था.

वह कंपनी में अपना काम ठीक से नहीं करता था. कंपनी के काम के बजाय उस का मन इधरउधर अधिक रहता था. कंपनी के सारे अकाउंट की जिम्मेदारी उस की थी, लेकिन वह अपनी जिम्मेदारी के प्रति जरा भी गंभीर नहीं था.

कीर्ति व्यास के काम को देखते हुए बीब्लंट कंपनी ने कीर्ति को जो जिम्मेदारियां दी थीं, वह उन का बड़ी ईमानदारी से पालन करती थी. अपने दूसरे सहयोगियों को भी वह कंपनी के प्रति निष्ठावान बनने की सलाह देती थी. वह खुद तो मेहनत करती ही थी, दूसरे कर्मचारियों से भी मेहनत करवाती थी जिस से कंपनी के कई लोग उस से खुश नहीं थे.

सिद्धेश तम्हाणकर भी उन्हीं में से एक था लेकिन कीर्ति को इस की कोई परवाह नहीं थी. कीर्ति ने 5 सालों में बीब्लंट कंपनी में अपनी एक खास जगह बना ली थी, जबकि कंपनी के अंदर 10-15 सालों से काम कर रहे लोग ऐसी जगह नहीं बना पाए थे. मेहनत की वजह से कीर्ति को कंपनी के कई अधिकार मिल गए थे. कंपनी की सीईओ और एमडी उस से काफी प्रभावित थीं.

कंपनी के सारे लोगों से कीर्ति का व्यवहार मधुर व सरल था. बाहर से आनेजाने वाले लोग भी कीर्ति को भरपूर मानसम्मान देते थे. लेकिन सिद्धेश तम्हाणकर के साथ ऐसा नहीं था, क्योंकि कीर्ति ने जब कंपनी का काम संभाला था, तब से सिद्धेश तम्हाणकर की मनमानी पर रोक लग गई थी.

कीर्ति ने पहले तो सिद्धेश तम्हाणकर की काम के प्रति लापरवाही पर उसे कई बार समझाया, लेकिन सिद्धेश पर उस की बातों का कोई असर नहीं हुआ. उस का रवैया पहले जैसा रहा. वह कंपनी के कामों पर ध्यान नहीं देता था.

जलन बन गई ज्वाला

सरकार ने जब से जीएसटी लगाई तो सिद्धेश की परेशानी और ज्यादा बढ़ गई. क्योंकि जीएसटी की गणना उस की समझ से परे थी. पहले तो थोड़ीबहुत लापरवाही चल जाती थी, लेकिन जीएसटी में लापरवाही की कोई गुंजाइश नहीं थी. काम सही ढंग और समय से पूरा करना ही पड़ता था.

जीएसटी की कम समझ होने के कारण सिद्धेश के अकाउंट में बहुत सारी गलतियां तो होती ही थीं, काम भी समय से नहीं हो पाता था. इस से कंपनी के नुकसान के साथसाथ बदनामी का भी डर था. चेतावनी के बाद भी सिद्धेश ने जब अपने काम में सुधार नहीं किया तो कीर्ति ने उसे कंपनी से निकालने का नोटिस दे दिया.

इस नोटिस से सिद्धेश बौखला गया. नौकरी जाने के बाद उस का और उस के परिवार का क्या होगा, सोच कर वह परेशान रहने लगा. कोई रास्ता न देख उस ने उसी कंपनी में काम करने वाली अपनी दोस्त खुशी सेजवानी से सलाह की.

बाद में वह कंपनी के सीईओ व एमडी अनुधा अख्तर के पास गया. लेकिन बात नहीं बनी. इस पर उस ने अपनी नौकरी जाने के डर से कीर्ति व्यास के प्रति एक खतरनाक निर्णय ले लिया था. उस ने सोचा कि क्यों न कीर्ति को ही खत्म कर दिया जाए. न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. उसे लग रहा था कि कीर्ति के न रहने से शायद उस की नौकरी भी रहे. इस काम में उस की मदद करने के लिए खुशी भी तैयार हो गई.

37 वर्षीय खुशी सेजवानी बीब्लंट कंपनी में कोचिंग क्लासेज के मैनेजर के पद पर काम करती थी. कंपनी में जितना महत्त्व कीर्ति का था, उतना ही महत्त्व खुशी का भी था. सेजवानी मुंबई सांताक्रुज पश्चिम के एस.बी. रोड स्थित एक अपार्टमेंट में अपने एकलौते बेटे के साथ रहती थी.

उस के पति एक कामयाब बिजनैसमैन थे. काम के सिलसिले में वह अकसर बाहर ही रहते थे. परिवार संभ्रांत और संपन्न था. घर पर नौकरनौकरानी थे. किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी. सिद्धेश और खुशी की गहरी दोस्ती थी. इतने बड़े अपराध में खुशी सेजवानी ने सिद्धेश का साथ क्यों दिया, पुलिस इस बात की जांच कर रही है.

अपराध की राह पर सिद्धेश और खुशी

16 मार्च, 2018 को सिद्धेश की नौकरी का आखिरी दिन था. इस के पहले कि कीर्ति कंपनी में आ कर सिद्धेश पर काररवाई करती, सिद्धेश और खुशी योजनानुसार अपनी कार ले कर कीर्ति के घर के पास पहुंच गए. फिर खुशी ने कीर्ति को फोन कर के कहा कि वह किसी काम से भारतनगर आई थी. काम खत्म हो जाने के बाद अब औफिस जा रही है. अगर उसे भी औफिस चलना हो तो आ जाए, साथसाथ चले चलेंगे.

कीर्ति औफिस जाने की तैयारी कर ही रही थी. खुशी का फोन आने के बाद उस ने उस के साथ चलने की हामी भर दी और फटाफट तैयार हो कर उस की गाड़ी में पहुंच गई.

गाड़ी खुशी सेजवानी चला रही थी, कीर्ति उस के बराबर में बैठ गई. सिद्धेश पीछे वाली सीट पर बैठा था. कुछ दूर चलने के बाद खुशी सेजवानी ने कीर्ति को मनाने की काफी कोशिश की कि वह सिद्धेश को दिया नोटिस वापस ले ले, लेकिन वह इस के लिए तैयार नहीं हुई. तब पीछे की सीट पर बैठे सिद्धेश ने कीर्ति के गले में सीट बेल्ट डाल कर हत्या कर दी.

कीर्ति की हत्या करने के बाद खुशी ने कार अपने घर पर ला कर खड़ी कर दी और उस पर कवर डाल कर दोनों औफिस चले गए. मगर कंपनी के काम में उन का मन नहीं लग रहा था. उस दिन खुशी सेजवानी 4 बजे ही अपने औफिस से घर के लिए निकल गई. कार में शव होने के कारण सिद्धेश भी शाम 5 बजे के करीब खुशी के घर पहुंच गया.

मौका देख कर वे कीर्ति की लाश कार से निकाल कर घर के अंदर ले गए. फिर उसे ठिकाने लगाने के मकसद से उन्होंने लाश के 3 टुकड़े किए. फिर उन्हें कार की डिक्की में डाल कर चेंबूर के माहुल इलाके में ले गए. वहां आगे जा कर उन्होंने कीर्ति की लाश के तीनों टुकड़े नाले में डाल दिए. फिर उन्होंने कार की अच्छी तरह धुलाई करा ली.

बाद में कीर्ति के घर वालों के साथ वे दोनों भी उस की तलाश करने का नाटक करने लगे.

सिद्धेश तम्हाणकर और खुशी सेजवानी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 5 मई, 2018 को उन की निशानदेही पर कीर्ति का बैग, मोबाइल फोन, कुछ नकदी भी बरामद कर ली. फिर उन दोनों के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 341, 363, 364 और 34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

कथा लिखे जाने तक पुलिस कीर्ति के शव के टुकड़ों को काफी कोशिशों के बाद भी बरामद नहीं कर पाई थी. माना जा रहा है कि वे टुकड़े नाले में बह कर कहीं आगे निकल गए होंगे. फिर भी पुलिस की कोशिश जारी है.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

जिस्म की भूख : दोस्त ही बना दुश्मन

मीना अपने 3 भाईबहनों में सब से बड़ी ही नहीं, खूबसूरत भी थी. उस का परिवार औरैया जिले के कस्बा दिबियापुर में रहता था. उस के पिता अमर सिंह रेलवे में पथ निरीक्षक थे. उस ने इंटर पास कर लिया तो मांबाप उस के विवाह के बारे में सोचने लगे. उन्होंने उस के लिए घरवर की तलाश शुरू की तो उन्हें कंचौसी कस्बा के रहने वाले राम सिंह का बेटा अनिल पसंद आ गया. जून, 2008 में मीना की शादी अनिल से हो गई. मीना सुंदर तो थी ही, दुल्हन बनने पर उस की सुंदरता में और ज्यादा निखार आ गया था. ससुराल में जिस ने भी उसे देखा, उस की खूबसूरती की खूब तारीफ की. अपनी प्रशंसा पर मीना भी खुश थी. मीना जैसी सुंदर पत्नी पा कर अनिल भी खुश था.

दोनों के दांपत्य की गाड़ी खुशहाली के साथ चल पड़ी थी. लेकिन कुछ समय बाद आर्थिक परेशानियों ने उन की खुशी को ग्रहण लगा दिया. शादी के पहले अनिल छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर लेता था. लेकिन शादी के बाद मीना के आने से जहां अन्य खर्चे बढ़ ही गए थे, वहीं मीना की महत्त्वाकांक्षी ख्वाहिशों ने उस के इस खर्च को और बढ़ा दिया था. आर्थिक परेशानियों को दूर करने के लिए वह कस्बे की एक आढ़त पर काम करने लगा था.

आढ़त पर काम करने की वजह से अनिल को कईकई दिनों घर से बाहर रहना पड़ता था, जबकि मीना को यह कतई पसंद नहीं था. पति की गैरमौजूदगी में वह आसपड़ोस के लड़कों से बातें ही नहीं करने लगी थी, बल्कि हंसीमजाक भी करने लगी थी. शुरूशुरू में तो किसी ने इस ओर ध्यान नहीं दिया. लेकिन जब उस की हरकतें हद पार करने लगीं तो अनिल के मातापिता से यह देखा नहीं गया और वे यह कह कर गांव चले गए कि अब वे गांव में रह कर खेती कराएंगे.

सासससुर के जाने के बाद मीना को पूरी आजादी मिल गई थी. अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए उस ने इधरउधर नजरें दौड़ाईं तो उसे राजेंद्र जंच गया. फिर तो वह उसे मन का मीत बनाने की कोशिश में लग गई. राजेंद्र मूलरूप से औरैया का रहने वाला था. उस के पिता गांव में खेती कराते थे. वह 3 भाईबहनों में सब से छोटा था. बीकौम करने के बाद वह कंचौसी कस्बे में रामबाबू की अनाज की आढ़त पर मुनीम की नौकरी करने लगा था.

राजेंद्र और अनिल एक ही आढ़त पर काम करते थे, इसलिए दोनों में गहरी दोस्ती थी. अनिल ने ही राजेंद्र को अपने घर के सामने किराए पर कमरा दिलाया था. दोस्त होने की वजह से राजेंद्र अनिल के घर आताजाता रहता था. जब कभी आढ़त बंद रहती, राजेंद्र अनिल के घर आ जाता और फिर वहीं पार्टी होती. पार्टी का खर्चा राजेंद्र ही उठाता था.

राजेंद्र पर दिल आया तो मीना उसे फंसाने के लिए अपने रूप का जलवा बिखेरने लगी. मीना के मन में क्या है, यह राजेंद्र की समझ में जल्दी ही आ गया. क्योंकि उस की निगाहों में जो प्यास झलक रही थी, उसे उस ने ताड़ लिया था. इस के बाद तो मीना उसे हूर की परी नजर आने लगी थी. वह उस के मोहपाश में बंधता चला गया था.

एक दिन जब राजेंद्र को पता चला कि अनिल 2 दिनों के लिए बाहर गया है तो उस दिन उस का मन काम में नहीं लगा. पूरे दिन उसे मीना की ही याद आती रही. घर आने पर वह मीना की एक झलक पाने को बेचैन था. उस की यह ख्वाहिश पूरी हुई शाम को. मीना सजधज कर दरवाजे पर आई तो उस समय वह उसे आसमान से उतरी अप्सरा से कम नहीं लग रही थी. उसे देख कर उस का दिल बेकाबू हो उठा.

राजेंद्र को पता ही था कि अनिल घर पर नहीं है, इसलिए वह उस के घर जा पहुंचा. राजेंद्र को देख कर मीना ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आज तुम आढ़त से बड़ी जल्दी आ गए, वहां कोई काम नहीं था क्या?’’

‘‘काम तो था भाभी, लेकिन मन नहीं लगा.’’

‘‘क्यों?’’ मीना ने पूछा.

‘‘सच बता दूं भाभी.’’

‘‘हां, बताओ.’’

‘‘भाभी, तुम्हारी सुंदरता ने मुझे विचलित कर दिया है, तुम सचमुच बहुत सुंदर हो.’’

‘‘ऐसी सुंदरता किस काम की, जिस की कोई कद्र न हो.’’ मीना ने लंबी सांस ले कर कहा.

‘‘क्या अनिल भाई, तुम्हारी कद्र नहीं करते?’’

‘‘जानबूझ कर अनजान मत बनो. तुम जानते हो कि तुम्हारे भाई साहब महीने में 10 दिन तो बाहर ही रहते हैं. ऐसे में मेरी रातें करवटों में बीतती हैं.’’

‘‘भाभी जो दुख तुम्हारा है, वही मेरा भी है. मैं भी तुम्हारी यादों में रातरात भर करवट बदलता रहता हूं. अगर तुम मेरा साथ दो तो हमारी समस्या खत्म हो सकती है.’’ कह कर राजेंद्र ने मीना को अपनी बांहों में भर लिया.

मीना चाहती तो यही थी, लेकिन उस ने मुखमुद्रा बदल कर बनावटी गुस्से में कहा, ‘‘यह क्या कर रहे हो, छोड़ो मुझे.’’

‘‘प्लीज भाभी शोर मत मचाओ, तुम ने मेरा सुखचैन सब छीन लिया है.’’ राजेंद्र ने कहा.

‘‘नहीं राजेंद्र, छोड़ो मुझे. मैं बदनाम हो जाऊंगी, कहीं की नहीं रहूंगी मैं.’’

‘‘नहीं भाभी, अब यह मुमकिन नहीं है. कोई पागल ही होगा, जो रूपयौवन के इस प्याले के इतने करीब पहुंच कर पीछे हटेगा.’’ कह कर राजेंद्र ने बांहों का कसाव बढ़ा दिया.

दिखावे के लिए मीना न…न…न… करती रही, जबकि वह खुद राजेंद्र के शरीर से लिपटी जा रही थी. राजेंद्र कोई नासमझ बच्चा नहीं था, जो मीना की हरकतों को न समझ पाता. इस के बाद वह क्षण भी आ गया, जब दोनों ने मर्यादा भंग कर दी.

एक बार मर्यादा भंग हुई तो राजेंद्र को हरी झंडी मिल गई. उसे जब भी मौका मिलता, वह मीना के घर पहुंच जाता और इच्छा पूरी कर के वापस आ जाता. मीना अब खुश रहने लगी थी, क्योंकि उस की शारीरिक भूख मिटने लगी थी, साथ ही आर्थिक समस्या का भी हल हो गया था. मीना जब भी राजेंद्र से रुपए मांगती थी, वह चुपचाप निकाल कर दे देता था.

काम कोई भी हो, ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं रहता. ठीक वैसा ही मीना और राजेंद्र के संबंधों में भी हुआ. उन के नाजायज संबंधों को ले कर अड़ोसपड़ोस में बातें होने लगीं. ये बातें अनिल के कानों तक पहुंची तो वह सन्न रह गया. उसे बात में सच्चाई नजर आई. क्योंकि उस ने मीना और राजेंद्र को खुल कर हंसीमजाक करते हुए कई बार देखा था. तब उस ने इसे सामान्य रूप से लिया था. अब पडोसियों की बातें सुन कर उसे दाल में काला नजर आने लगा था.

अनिल ने इस बारे में मीना से पूछा तो उस ने कहा, ‘‘पड़ोसी हम से जलते हैं. राजेंद्र का आनाजाना और मदद करना उन्हें अच्छा नहीं लगता, इसलिए वे इस तरह की ऊलजुलूल बातें कर के तुम्हारे कान भर रहे हैं. अगर तुम्हें मुझ पर शक है तो राजेंद्र का घर आनाजाना बंद करा दो. लेकिन उस के बाद तुम दोनों की दोस्ती में दरार पड़ जाएगी. वह हमारी आर्थिक मदद करना बंद कर देगा.’’

अनिल ने राजेंद्र और मीना को रंगेहाथों तो पकड़ा नहीं था, इसलिए उस ने मीना की बात पर यकीन कर लिया. लेकिन मन का शक फिर भी नहीं गया. इसलिए वह राजेंद्र और मीना पर नजर रखने लगा. एक दिन राजेंद्र आढ़त पर नहीं आया तो अनिल को शक हुआ. दोपहर को वह घर पहुंचा तो उस के मकान का दरवाजा बंद था और अंदर से मीना और राजेंद्र के हंसने की आवाजें आ रही थीं. अनिल ने खिड़की के छेद से अंदर झांक कर देखा तो मीना और राजेंद्र एकदूसरे में समाए हुए थे.

अनिल सीधे शराब के ठेके पर पहुंचा और जम कर शराब पी. इस के बाद घर लौटा और दरवाजा पीटने लगा. कुछ देर बाद मीना ने दरवाजा खोला तो राजेंद्र कमरे में बैठा था. उस ने राजेंद्र को 2 तमाचे मार कर बेइज्जत कर के घर से भगा दिया. इस के बाद मीना की जम कर पिटाई की. मीना ने अपनी गलती मानते हुए अनिल के पैर पकड़ कर माफी मांग ली और आइंदा इस तरह की गलती न करने की कसम खाई.

अनिल उसे माफ करने को तैयार नहीं था, लेकिन मासूम बेटे की वजह से अनिल ने मीना को माफ कर दिया. इस के बाद कुछ दिनों तक अनिल, मीना से नाराज रहा, लेकिन धीरेधीरे मीना ने प्यार से उस की नाराजगी दूर कर दी. अनिल को लगा कि मीना राजेंद्र को भूल चुकी है. लेकिन यह उस का भ्रम था. मीना ने मन ही मन कुछ दिनों के लिए समझौता कर लिया था.

अनिल के प्रति यह उस का प्यार नाटक था, जबकि उस के दिलोदिमाग में राजेंद्र ही बसता था. उधर अनिल द्वारा अपमानित कर घर से निकाल दिए जाने पर राजेंद्र के मन में नफरत की आग सुलग रही थी. उन की दोस्ती में भी दरार पड़ चुकी थी. आमनासामना होने पर दोनों एकदूसरे से मुंह फेर लेते थे. मीना से जुदा होना राजेंद्र के लिए किसी सजा से कम नहीं था.

मीना के बगैर उसे चैन नहीं मिल रहा था. अनिल ने मीना का मोबाइल तोड़ दिया था, इसलिए उस की बात भी नहीं हो पाती थी. दिन बीतने के साथ मीना से न मिल पाने से उस की तड़प बढ़ती जा रही थी. आखिर एक दिन जब उसे पता चला कि अनिल बाहर गया है तो वह मीना के घर जा पहुंचा. मीना उसे देख कर उस के गले लग गई. उस दिन दोनों ने जम कर मौज की.

लेकिन राजेंद्र घर के बाहर निकलने लगा तो पड़ोसी राजे ने उसे देख लिया. अगले दिन अनिल वापस आया तो राजे ने उसे राजेंद्र के आने की बात बता दी. अनिल को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह चुप रहा. उसे लगा कि जब तक राजेंद्र जिंदा है, तब तक वह उस की इज्जत से खेलता रहेगा. इसलिए इज्जत बचाने के लिए उस ने अपने दोस्त की हत्या की योजना बना डाली. उस ने मीना को उस के मायके दिबियापुर भेज दिया. उस ने उसे भनक तक नहीं लगने दी थी कि उस के मन में क्या चल रहा है. मीना को मायके पहुंचा कर उस ने राजेंद्र से पुन: दोस्ती गांठ ली. राजेंद्र तो यही चाहता था, क्योंकि दोस्ती की आड़ में ही उस ने मीना को अपनी बनाया था. एक बार फिर दोनों की महफिल जमने लगी.

एक दिन शराब पीते हुए राजेंद्र ने कहा, ‘‘अनिलभाई, तुम ने मीना भाभी को मायके क्यों पहुंचा दिया? उस के बिना अच्छा नहीं लगता. मुझे आश्चर्य इस बात का है कि उस के बिना तुम्हारी रातें कैसे कटती हैं?’’

अनिल पहले तो खिलखिला कर हंसा, उस के बाद गंभीर हो कर बोला, ‘‘दोस्त मेरी रातें तो किसी तरह कट जाती हैं, पर लगता है तुम मीना के बिना बेचैन हो. खैर तुम कहते हो तो मीना को 2-4 दिनों में ले आता हूं.’’

अनिल को लगा कि राजेंद्र को उस की दोस्ती पर पूरा भरोसा हो गया है. इसलिए उस ने राजेंद्र को ठिकाने लगाने की तैयारी कर ली. उस ने राजेंद्र से कहा कि वह भी उस के साथ मीना को लाने चले. वह उसे देख कर खुश हो जाएगी. मीना की झलक पाने के लिए राजेंद्र बेचैन था, इसलिए वह उस के साथ चलने को तैयार हो गया.

5 जुलाई, 2016 की शाम अनिल और राजेंद्र कंचौसी रेलवे स्टेशन पहुंचे. वहां पता चला कि इटावा जाने वाली इंटर सिटी ट्रेन 2 घंटे से अधिक लेट है. इसलिए दोनों ने दिबियापुर (मीना के मायके) जाने का विचार त्याग दिया. इस के बाद दोनों शराब के ठेके पर पहुंचे और शराब की बोतल, पानी के पाउच और गिलास ले कर कस्बे से बाहर पक्के तालाब के पास जा पहुंचे.

वहीं दोनों ने जम कर शराब पी. अनिल ने जानबूझ कर राजेंद्र को कुछ ज्यादा शराब पिला दी, जिस से वह काफी नशे में हो गया. वह वहीं तालाब के किनारे लुढ़क गया तो अनिल ने ईंट से उस का सिर कुचल कर उस की हत्या कर दी. राजेंद्र की हत्या कर के अनिल ने उस के सारे कपडे़ उतार लिए और खून सनी ईंट के साथ उन्हें तालाब से कुछ दूर झाडि़यों में छिपा दिया. इस के बाद वह ट्रेन से अपनी ससुराल दिबियापुर चला गया.

इधर सुबह कुछ लोगों ने तालाब के किनारे लाश देखी तो इस की सूचना थाना सहावल पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी धर्मपाल सिंह यादव फोर्स ले कर घटनास्थल पहुंच गए. तालाब के किनारे नग्न पड़े शव को देख कर धर्मपाल सिंह समझ गए कि हत्या अवैध संबंधों के चलते हुई है.

लाश की शिनाख्त में पुलिस को कोई परेशानी नहीं हुई. मृतक का नाम राजेंद्र था और वह रामबाबू की आढ़त पर मुनीम था. आढ़तिया रामबाबू को बुला कर राजेंद्र के शव की पहचान कराई गई. उस के पास राजेंद्र के पिता रामकिशन का मोबाइल नंबर था. धर्मपाल सिंह ने उसी नंबर पर राजेंद्र की हत्या की सूचना दे दी.

घटनास्थल पर बेटे की लाश देख कर रामकिशन फफक कर रो पड़ा. लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी गई. धर्मपाल सिंह ने जांच शुरू की तो पता चला कि मृतक राजेंद्र कंचौसी कस्बा के कंचननगर में किराए के कमरे में रहता था. उस की दोस्ती सामने रहने वाले अनिल से थी, जो उसी के साथ काम करता था.

राजेंद्र का आनाजाना अनिल के घर भी था. उस के और अनिल की पत्नी मीना के बीच मधुर संबंध भी थे. अनिल जांच के घेरे में आया तो धर्मपाल सिंह ने उस पर शिकंजा कसा. उस से राजेंद्र की हत्या के संबंध में पूछताछ की गई तो पहले वह साफ मुकर गया. लेकिन जब पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया.

उस ने बताया कि राजेंद्र ने उस की पत्नी मीना से नाजायज संबंध बना लिए थे, जिस से उस की बदनामी हो रही थी. इसीलिए उस ने उसे ईंट से कुचल कर मार डाला है. अनिल ने हत्या में प्रयुक्त ईंट तथा खून सने कपड़े बरामद करा दिए, जिसे उस ने तालाब के पास झाडि़यों में छिपा रखे थे.

अनिल ने हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया था. इसलिए धर्मपाल सिंह ने मृतक ने पिता रामकिशन को वादी बना कर राजेंद्र की हत्या का मुकदमा दर्ज कर अनिल को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया.

अतीक अहमद : खूंखार डौन की बेबसी – भाग 3

एक विधायक की हत्या के बाद भी अतीक सत्ताधारी सपा में बने रहा. इस हत्या के बाद बसपा के समर्थकों ने इलाहाबाद शहर में जम कर हंगामा किया और खूब तोड़फोड़ की.

2005 में इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर फिर उपचुनाव हुआ, जिस में राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को बसपा की ओर से टिकट दिया गया. इस बार भी पूजा के सामने अतीक का भाई अशरफ ही था. उस समय तक पूजा के हाथ की मेहंदी भी नहीं उतरी थी.

कहा जाता है कि चुनाव प्रचार के दौरान पूजा मंच से अपने हाथ दिखा कर रोने लगती थी. लेकिन पूजा को जनता का समर्थन नहीं मिला और वह चुनाव हार गई.

अतीक का टूटा किला

इस बार अतीक का भाई अशरफ चुनाव जीत गया. ऐसा शायद अतीक के खौफ के कारण हुआ था. इस तरह एक बार फिर अतीक की धाक जम गई. वह खुद सांसद था ही, भाई भी विधायक हो गया था. उसी समय उस पर सब से ज्यादा आपराधिक मुकदमे दर्ज हुए.

अतीक अहमद पर 83 से अधिक आपराधिक मुकदमे दर्ज हो चुके थे. परंतु हैरानी की बात यह थी कि उत्तर प्रदेश पुलिस अतीक अहमद को गिरफ्तार करने के बारे में सोच भी नहीं रही थी.

2007 के विधानसभा के चुनाव में एक बार फिर इलाहाबाद पश्चिमी सीट पर बसपा ने राजू पाल की पत्नी पूजा पाल को चुनाव में उतारा. इस बार भी सामने अतीक का भाई अशरफ ही उम्मीदवार था. इस बार पहली दफा इलाहाबाद पश्चिमी  का अतीक अहमद का किला टूटा. पूजा पाल चुनाव जीत गई.

उत्तर प्रदेश में मायावती की पूर्ण बहुमत से सरकार बनी तो मायावती ने अतीक अहमद को पहला टारगेट बनाया. मायावती के जहन में गेस्टहाउस कांड के जख्म हरे थे. इस मामले में बसपा सरकार के रहते मुलायम सिंह के इशारे पर अतीक ने गेस्टहाउस में ठहरी मायावती को बेइज्जत किया था.

एक के बाद एक कर सारे मामले खुलने लगे और मायावती सरकार ने एक ही दिन में अतीक अहमद पर सौ से अधिक मामले दर्ज करा कर औपरेशन अतीक शुरू कर दिया. अतीक भूमिगत हो गया तो उसे मोस्टवांटेड घोषित कर दिया गया और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया.

देश के इतिहास में एक सांसद मोस्टवांटेड घोषित हो गया हो और उस पर 20 हजार रुपए का इनाम घोषित किया गया हो, यह शायद देश का पहला मामला था. इस से पार्टी की बदनामी होने लगी तो मुलायम सिंह ने उसे पार्टी से बाहर कर दिया.

गिरफ्तारी के डर से अतीक फरार था. उस के घर, औफिस सहित 5 संपत्ति को कोर्ट के आदेश पर कुर्क कर लिया गया.

जिस इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी, पूजा पाल ने चुनाव जीतते ही बसपा सरकार में उस की नाक में ऐसा दम किया कि जिस सीट से वह 5 बार विधायक बना था, उस सीट को ही नहीं, उसे इलाहाबाद जिले को ही छोड़ कर भागना पड़ा.

अतीक अहमद समझ गया था कि उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करना खतरे से खाली नहीं होगा, इसलिए उस ने दिल्ली पुलिस के सामने योजना के तहत आत्मसमर्पण कर दिया. अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश पुलिस दिल्ली से इलाहाबाद ले आई. अतीक के बुरे दिन शुरू हो चुके थे. पुलिस और विकास प्राधिकरण के अधिकारियों ने अतीक की ड्रीम निर्माण परियोजना अलीना सिटी को अवैध घोषित कर ध्वस्त कर दिया.

औपरेशन अतीक के ही तहत 5 जुलाई, 2007 को राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल ने अतीक के खिलाफ धूमनगंज थाने में अपहरण और जबरन बयान दिलाने का मुकदमा दर्ज कराया.

इस के बाद 4 अन्य गवाहों की ओर से भी उस के खिलाफ मामले दर्ज कराए गए. 2 महीने में ही अतीक के खिलाफ इलाहाबाद, कौशांबी और चित्रकूट में कई मुकदमे दर्ज हो गए. पर सपा की सरकार बनते ही उस के दिन बहुरने लगे.

2012 का साल था. अतीक अहमद जेल में था और विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चुकी थी. उस ने जेल में रहते हुए ही अपना दल की ओर से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की. चुनाव का पर्चा दाखिल करने के बाद अतीक अहमद ने जमानत पर छूटने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की. उसे जमानत मिल गई और वह जेल से बाहर आ गया.

बहुजन समाज पार्टी ने एक बार फिर पूजा पाल को अतीक के सामने खड़ा किया. संयोग से इस बार भी अतीक चुनाव हार गया. वह चुनाव भले ही हार गया, पर उस का अपराध का कारखाना बंद नहीं हुआ.

मुलायम सिंह ने एक बार फिर उसे अपनी पार्टी में सहारा दिया. इस बार उसे श्रावस्ती जिले से टिकट दिया गया. इस चुनाव में भी अतीक अहमद हार गया.

2016 में फिर एक बार मुलायम सिंह ने कानपुर कैंट से उसे उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव का फार्म भरने के लिए अतीक 5 सौ गाडि़यों का काफिला ले कर कानपुर पहुंचा. जबकि वह खुद 8 करोड़ की विदेशी कार हमर में सवार था.

पूरे कानपुर में अतीक के इस काफिले ने चक्का जाम कर दिया था. मीडिया में उस के खिलाफ खूब लिखा गया. तब तक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह के बेटे अखिलेश यादव बन गए थे. उन्होंने अतीक अहमद को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया.

एक बार फिर हुआ गिरफ्तार

फरवरी, 2017 में पुलिस ने उसे इलाहाबाद कालेज में तोड़फोड़ करने के आरोप में गिरफ्तार किया. उस के बाद से वह जेल में ही है. अतीक पर अब तक लगभग 250 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. मायावती के शासनकाल में एक ही दिन में उस पर 100 मुकदमे दर्ज हुए थे. बाद में जिन्हें हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था. अधिकतर मामलों में सबूत के अभाव और गवाहों के मुकरने से अतीक बरी हो गया था.

अतीक भले ही आतंक का पर्याय है, वह नेकदिल भी है. उस के पास जो भी मदद के लिए जाता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.

उस पर 35 मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. इन में कुछ अदालत में पैंडिंग हैं तो कुछ की अभी जांच ही पूरी नहीं हुई है. मजे की बात यह है कि अभी तक उसे किसी भी मामले में सजा नहीं हुई है. यह सब देख कर यही लगता है कि अतीक की जिंदगी कभी इस जेल में तो कभी उस जेल में कटती रहेगी. लेकिन विकास दुबे कांड के बाद योगी सरकार अतीक के आर्थिक साग्राज्य को पूरी तरह से ध्वस्त करने में लगी है.

2017 में उत्तर प्रदेश में जब से भाजपा के मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी है, तब से अतीक अहमद पर शिकंजा कसता गया. गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद योगी सरकार द्वारा उत्तर प्रदेश के तमाम डौनों पर काररवाई करने की छूट दे देने से अब सरकार और पुलिस अतीक अहमद के गुंडों और उस की संपत्ति के पीछे पड़ गई है. रोज उस की कोई न कोई संपत्ति तोड़ी जा रही है.

रहस्यों में उलझी पुलिस अधिकारी की मर्डर मिस्ट्री – भाग 3

अदालत का आदेश भी नहीं माना पुलिस ने

28 अक्तूबर, 2016 को अदालत ने पुलिस को आदेश दिया कि मामला काफी संगीन है, इस की जांच डीसीपी रैंक के अधिकारी से करवाई जाए. अदालत की पहल पर मामला डीसीपी पोखरे को सौंप दिया गया. डीसीपी पोखरे ने एसीपी राजकुमार चाफेकर के साथ मामले की जांच तो की, लेकिन उस पर कोई काररवाई नहीं हुई और देखतेदेखते 2 महीने गुजर गए. मामला ज्यों का त्यों रहा.

पहली जनवरी, 2017 को अदालत ने पुलिस प्रशासन को फटकार लगाते हुए मामले की जांच के लिए एसीपी प्रकाश निलेवाड़ की देखरेख में एक स्पैशल टीम गठित करने को कहा और पूछा कि मामले से संबंधित औडियो वीडियो का रिकौर्ड होने के बाद भी काररवाई क्यों नहीं की गई.

अदालत के आदेश पर एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने मामले को गंभीरता से लिया और जांच की जिम्मेदारी पीआई संगीता अलफांसो को सौंप दी. पीआई संगीता अलफांसो ने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया. उन्होंने एक महीने की जांच के बाद 31 जनवरी, 2017 को अश्विनी बेंद्रे के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

इस के पहले कि पीआई संगीता अलफांसो अश्विनी बेंद्रे के अपहर्त्ताओं पर कोई काररवाई करतीं, पीआई अभय कुरुंदकर को अपनी गिरफ्तारी का अहसास हो गया और फरवरी, 2017 में वह अदालत चला गया, जिस की वजह से मामले में रुकावट आ गई. जब तक अदालत का कोई आदेश आता, तब तक पीआई संगीता अलफांसो का ट्रांसफर हो गया. उन के जाने के बाद इस मामले की जांच 9 महीने के लिए फिर अटक गई. अभय कुरुंदकर ने अदालत में यह अरजी लगाई कि उस के ऊपर लगाए गए सारे आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं. उसे साजिश के तहत फंसाया जा रहा है.

पीआई संगीता अलफांसो के ट्रांसफर के बाद एक बार फिर अश्विनी बेंद्रे के परिवार वालों का धैर्य टूट गया. 9 महीने के इंतजार के बाद इस बार उन्होंने मीडिया से संपर्क किया. पहले तो 15 दिनों तक मीडिया में कोई हलचल नहीं हुई.

मीडिया ने बदला केस का रुख

16 जनवरी, 2017 को इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने अश्विनी बेंद्रे के साथ पीआई अभय कुरुंदकर द्वारा मारपीट का एक वीडियो वायरल कर पूरे देश में सनसनी फैला दी. दूसरे दिन प्रिंट मीडिया ने भी इसे सुर्खियों में छापा. इस के बाद तो यह मामला हाईप्रोफाइल हो गया और प्रशासन में हड़कंप मच गया.

सवालों के जवाबों में नवी मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले को झूठ बोलना पड़ा. उन्होंने एक प्रैस नोट जारी कर मामले को झूठा और बेबुनियाद बता दिया. पुलिस कमिश्नर के इस बयान पर अदालत नाराज हो गई, जिस के चलते एसीपी प्रकाश निलेवाड़ ने पीआई संगीता अलफांसो द्वारा तैयार की गई जांच रिपोर्ट के आधार पर पीआई अभय कुरुंदकर को औन ड्यूटी और उस के साथ ज्ञानेश्वर पाटिल को 8 दिसंबर, 2017 को हिरासत में ले लिया.

पीआई संगीता अलफांसो ने अपनी रिपोर्ट में ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजेश पाटिल उर्फ राजू पाटिल को पीआई अभय कुरुंदकर का सहयोगी बताया था. राजू पाटिल अभय कुरुंदकर  के हर अच्छेबुरे काम में उस के साथ रहता था. ज्ञानेश्वर पाटिल तत्कालीन मंत्री एकनाथ खड़से का भांजा था. वह जिला जलगांव, तालुका भुसावल के गांव तलवेल का रहने वाला था. एक बिजनैसमैन के अलावा वह वहां के भाजपा युवामोर्चा का नेता था.

हकीकत आ ही गई सामने

जिस दिन अश्विनी बेंद्रे गायब हुई थी, उस दिन अश्विनी और राजू पाटिल के मोबाइल फोन की लोकेशन साथसाथ मीरा रोड की थी. अभय कुरुंदकर का मकान भी मीरा रोड पर ही था. इस से मामला स्पष्ट था कि घटना मीरा रोड पर अभय के मकान में घटी थी और सबूत भायंदर खाड़ी में ले जा कर नष्ट किया गया था.

पीआई संगीता अलफांसो ने जब थाने में उस से पूछताछ की तो उस ने अपना गुनाह तो स्वीकार नहीं किया, लेकिन उस का बयान भी विश्वसनीय नहीं था. उस ने बताया कि जिस दिन अश्विनी गायब हुई थी, उस दिन वह मुंबई के अंधेरी स्थित एक होटल में अपने दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पी रहा था.

इस के बाद वह खाना खाने के लिए बाहर निकला था. लेकिन कोई अच्छा होटल न मिलने के कारण वह अपने दोस्त पीआई अभय कुरुंदकर के घर चला गया था. अभय कुरुंदकर के विषय में पीआई संगीता अलफांसो को जो बात मालूम पड़ी थी, वह सीधे पीआई के खिलाफ जा कर अश्विनी बेंद्रे की हत्या की तरफ इशारा कर रही थी.

भायंदर खाड़ी के मछलीमारों ने पीआई संगीता अलफांसो को बताया था कि पीआई अभय कुरुंदकर लगभग एकडेढ़ साल पहले अकसर सुबहसुबह इधर आते थे. उन से वह किसी महिला के शव के बारे में पूछताछ किया करते थे. उन का कहना था कि वह एक महिला की गुमशुदगी की जांच कर रहे हैं. यदि उस महिला की उन्हें डेडबौडी मिले तो पहले उन से संपर्क करें.

एक बात और यह पता चली कि अश्विनी बेंद्रे के गायब होने के दूसरे दिन ही अभय कुरुंदकर ने अपने मकान की पुताई करवाई थी. अपनी फोक्सवैगन कार को भी उन्होंने अपने मकान से हटवा दिया था. अदालत के आदेश पर जब पीआई संगीता अलफांसो ने अभय कुरुंदकर के मकान की जांच की तो उन्हें दीवारों पर काले रंग के कुछ धब्बे नजर आए, जो पुताई के बाद भी पूरी तरह से दबे नहीं थे. उन्हें खुरचवा कर डीएनए टेस्ट के लिए सांताकु्रज की लैब में भेज दिया गया. उस की रिपोर्ट आने के बाद ही पता लगेगा कि वे खून के छींटे किस के हैं.

पीआई अभय कुरुंदकर की गिरफ्तारी के बाद जांच अधिकारी ने अश्विनी बेंद्रे के मामले से जुड़ी संदिग्ध लाल रंग की फोक्सवैगन कार नंबर एमएच10ए एन5500 भी खोज निकाली. यह कार सांगली घामड़ी रोड के जिम्नेश्वर कालोनी में रहने वाले रमेश चारुदत्त जोशी के नाम रजिस्टर थी. पुलिस टीम को अश्विनी बेंद्रे द्वारा लिखा गया एक नोट भी मिला, जिस में लिखा था, ‘मेरे हाथपैर तोड़ने और मुझे मार कर तुम्हारी मनोकामना पूरी हो जाएगी.’

ऐसे कई सबूत थे, जो अभय कुरुंदकर को अश्विनी बेंद्रे के मामले में दोषी ठहरा रहे थे. लेकिन इस के बाद भी अभय कुरुंदकर अपना अपराध स्वीकार नहीं कर रहा था. उस का कहना था कि वह इस मामले में निर्दोष है. जांच टीम ने परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर उस के और ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजू पाटिल के खिलाफ भादंवि की धारा 323, 364, 497, 506(2), 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. धारा 302 डीएनए रिपोर्ट आने के बाद जोड़ दी जाएगी.

लेकिन इस के पहले पीआई अभय कुरुंदकर और ज्ञानेश्वर पाटिल उर्फ राजू पाटिल का इकबालिया बयान जरूरी है. इस के लिए पुलिस टीम ने अदालत से उन के नारको टेस्ट की इजाजत मांगी है, जिस पर उन के वकीलों ने ऐतराज किया है. बहरहाल, मामला अदालत में विचाराधीन है. दोनों आरोपी कथा लिखने तक सलाखों के पीछे थे.

पीआई अभय कुरुंदकर की गिरफ्तारी से एपीआई अश्विनी बेंद्रे के घर वालों को इंसाफ की आशा जागी है लेकिन मामला इतना लंबा खिंचा, इस बात का जिम्मेदार उन्होंने नवी मुंबई पुलिस कमिश्नर हेमंत नगराले को ठहराया है. उन्होंने प्रैस वार्ता कर के उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए उन्हें भी सहअभियुक्त बनाने की मांग की है.

उन का कहना है कि पीआई अभय कुरुंदकर ने अपने पद का दुरुपयोग किया और तफ्तीश में सहयोग नहीं किया. इतना ही नहीं, उन्होंने जांच अधिकारी का ट्रांसफर कर अभियुक्त को बचाने की कोशिश की. यह एक ऐसा प्रश्न है जिस का जवाब उन्हें आने वाले समय में देना पड़ सकता है.

कथा जनचर्चा और समाचार पर आधारित है

विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब – भाग 4

स्कूल बस को अगले पिकअप पौइंट से और बच्चे लेने थे. जैसे ही बस उस स्टाप पर पहुंची तो विहान का अपहरण करने के लिए उन्होंने बस के पास अपनी बाइक रोक दी. लेकिन इस से पहले कि वे कुछ कर पाते, बस वहां से निकल गई. बस के अगले स्टाप पर बच्चे को किडनैप करने के लिए जैसे ही वे आगे बढ़े, उसी समय राह चलते कुछ लोग बीच में आ गए. तब तक स्कूल बस आगे निकल गई.

इस के बाद स्कूल बस दिलशाद गार्डन सी ब्लौक फ्लैटों के पीछे के गेट के सामने रुकी. इस के सामने इहबास अस्पताल का गेट नंबर-1 है. रवि और पंकज बाइक से पीछा करते हुए वहां पहुंच गए. दहशत फैलाने के लिए उन्होंने बस के ड्राइवर नरेश थापा के पैर में गोली मारी. इस के बाद उन्होंने बस के गेट पर खड़ी आया को धक्का दे दिया. तभी उन्होंने गेट से ही विहान को आवाज लगाई तो विहान अपनी सीट से खड़ा हो गया. रवि और पंकज ने विहान को उठा कर अपनी बाइक पर बैठा लिया.

मोटरसाइकिल पर विहान को बीच में बैठा कर वे आनंदविहार होते हुए शालीमार सिटी, साहिबाबाद स्थित उसी फ्लैट पर ले गए जो नितिन ने 6 महीने पहले किराए पर लिया था. नितिन उन का फ्लैट पर ही इंतजार कर रहा था.

वहां ले जा कर उन्होंने विहान को इतना डराधमका दिया, जिस से वह सहमा हुआ रहे. उन का इरादा बच्चे को कोई नुकसान पहुंचाना नहीं था. वह तो किसी तरह उस के घर वालों से फिरौती वसूलना चाहते थे.

चोरी के फोन से मांगी थी फिरौती

तीनों बदमाशों का वैसे तो पुराना आपराधिक रिकौर्ड नहीं है, लेकिन वे थे बहुत शातिर. मोबाइल लोकेशन से वह पुलिस के हत्थे न चढ़ें, इसलिए उन्होंने वहां से 10 किलोमीटर दूर जा कर फिरौती की काल की थी. जिन मोबाइल फोनों से वे बातें करते थे, वह चोरी के थे. पंकज लड़की की आवाज निकालने में माहिर था, इसलिए विहान के घर वालों से वही बात करता था.

जिस फ्लैट में बच्चे को रखा गया था, वहां रात को केवल एक बदमाश बच्चे के साथ सोता था और 2 रात भर जागते हुए चौकस रहते थे. उन्होंने योजना तो फूलप्रूफ बनाई थी लेकिन मामला क्राइम ब्रांच के हाथ में पहुंचते ही उन के अरमानों पर पानी फिर गया. इस चक्कर में उन के साथी रवि को तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ा.

पुलिस ने अपहर्त्ता पंकज और नितिन कुमार शर्मा से विस्तार से पूछताछ के बाद उन की निशानदेही पर 7.65 एमएम की 2 पिस्टल और मैगजीन बरामद कर लीं. दोनों को भादंवि की धारा 363, 307 और 25/27 आर्म्स एक्ट के तहत गिरफ्तार कर के कड़कड़डूमा न्यायालय में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

बच्चे की हत्या कर 37 दिनों तक घर में रखे रहा लाश

विहान अपहरण मामले की तरह जनवरी, 2018 के पहले हफ्ते में उत्तरपश्चिमी दिल्ली के स्वरूपनगर इलाके से एक और बच्चे का फिरौती के लिए अपहरण कर लिया गया था, लेकिन इस मामले में अपहर्त्ता ने सब से पहले बच्चे की हत्या कर के लाश एक सूटकेस में भर ली. उस सूटकेस को वह 37 दिनों तक अपने कमरे में रखे रहा. बदबू न आए, इस के लिए वह कमरे में परफ्यूम छिड़कता रहता था. बच्चे की लाश बरामद होने के बाद जब सच्चाई सामने आई तो सभी हैरान रह गए.

उत्तरपश्चिमी दिल्ली के थाना स्वरूपनगर क्षेत्र के नत्थूपुरा में करण सिंह की परचून की दुकान थी. उन की दुकान अच्छी चलती थी, जिस से उन्हें ठीक आमदनी हो जाती थी. करण सिंह अपना पूरा ध्यान अपने परिवार और बिजनैस पर ही लगाते थे. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा आशीष उर्फ आशू और एक बेटी थी. अपनी मेहनत की बदौलत उन्होंने अपनी एक दुकान से परचून की 3 दुकानें कर ली थीं. उन का परिवार हर तरह से खुशहाल था.

लेकिन 7 जनवरी, 2018 को उन के परिवार में जो हुआ, उसे करण सिंह पूरी जिंदगी नहीं भुला सकेंगे. दरअसल हुआ यह कि 7 जनवरी रविवार को 7 वर्षीय आशीष अपनी बुआ के बेटे के साथ घर के बाहर खेल रहा था. खेलकूद कर वह शाम 4 बजे घर लौट आया. घर पहुंच कर उस ने अपनी बड़ी बहन से कहा, ‘‘गुंजन दीदी, साढ़े 5 बज गए क्या?’’

‘‘क्यों, क्या कहीं जाना है?’’ गुंजन ने पूछा.

‘‘हां, मुझे अवधेश चाचा के पास जाना है. वह मुझे साइकिल दिलाएंगे.’’ आशू बोला.

आशू की इच्छा थी कि उस के पास एक इतनी छोटी साइकिल हो, जिसे वह आसानी से चला सके. मोहल्ले के बच्चे स्कूल से लौटने के बाद गली में जब साइकिल चलाते थे तो उस का मन भी साइकिल चलाने को करता था. इस बारे में उस ने अपनी मम्मी और पापा से कई बार कहा था लेकिन वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल जाते थे.

विकास दुबे : नेताओं और पुलिसवालों की छत्रछाया में बना गैंगस्टर – भाग 3

यूपी के कई जिलों में विकास दुबे के खिलाफ 60 मामले चल रहे थे. पुलिस ने उस की गिरफ्तारी पर 25 हजार का इनाम रखा हुआ था. लेकिन सामने होने पर भी उसे कोई नहीं पकड़ता था.

कानपुर नगर से ले कर देहात तक में विकास दुबे की सल्तनत कायम हो चुकी थी. पंचायत, निकाय, विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनाव के वक्त नेताओं को बुलेट के दम पर बैलेट दिलवाना उस का पेशा बन गया था. विकास दुबे के पास जमीनों पर कब्जे, रंगदारी, ठेकेदारी और दूसरे कामधंधों से इतना पैसा एकत्र हो गया था कि उस ने एक ला कालेज के साथ कई शिक्षण संस्थाएं खोल ली थीं.

बिकरू, शिवली, चौबेपुर, शिवराजपुर और बिल्हौर ब्राह्मण बहुल क्षेत्र हैं. यहां के युवा ब्राह्मण लड़के विकास दुबे को अपना आदर्श मानते थे. गर्म दिमाग के कुछ लड़के अवैध हथियार ले कर उस की सेना बन कर साथ रहने लगे थे. आपराधिक गतिविधियों से ले कर लोगों को डरानेधमकाने में विकास इसी सेना का इस्तेमाल करता था.

अपने गांव में विकास दुबे ने एनकाउंटर के डर से पुलिस पर हमला कर के 8 जवानों को शहीद तो कर दिया लेकिन वह ये भूल गया कि पुलिस की वर्दी और खादी की छत्रछाया ने भले ही उसे संरक्षण दिया था, लेकिन जब कोई अपराधी खुद को सिस्टम से बड़ा मानने की भूल करता है तो उस का अंजाम मौत ही होती है.

बिकरू गांव में पुलिस पर हमले के बाद थाना चौबेपुर में 3 जुलाई को ही धारा 147/148/149/302/307/394/120बी भादंवि व 7 सीएलए एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया था. साथ ही विकास दुबे के साथ उस के गैंग का खात्मा करने के लिए लंबीचौड़ी टीम बनाई गई थी. इस टीम को जल्द से जल्द औपरेशन विकास दुबे को अंजाम तक पहुंचाने के आदेश दिए गए.

पुलिस की कई टीमों ने इलैक्ट्रौनिक सर्विलांस के सहारे काम शुरू कर दिया. दूसरी तरफ पुलिस ने अगले 2 दिनों के भीतर विकास दुबे की गिरफ्तारी पर 50 हजार रुपए का इनाम घोषित करने के बाद 3 दिन के भीतर उसे बढ़ा कर 5 लाख का इनामी बना दिया.

विकास दुबे के गांव बिकरू में बने किलेनुमा घर को बुलडोजर चला कर तहसनहस कर दिया गया था. गांव में विकास गैंग के दूसरे सदस्यों के घरों पर भी बुलडोजर चले. साथ ही विकास के गांव तथा लखनऊ स्थित घर में खड़ी कारों को बुलडोजर से कुचल दिया गया.

पुलिस की छापेमारी में सब से पहले विकास के साथियों की गिरफ्तारियां और मुठभेड़ में मारे जाने का सिलसिला शुरू हुआ. विकास के मामा प्रेम प्रकाश और भतीजे अतुल दुबे को उसी दिन मार गिराने के बाद एसटीएफ ने सब से पहले कानपुर से विकास के एक खास गुर्गे दयाशंकर अग्निहोत्री को गिरफ्तार किया.

पुलिस अभियान

उसी से मिली सूचना के बाद एसटीएफ ने 5 जुलाई को कल्लू को गिरफ्तार किया, जिस ने एक तहखाने और सुरंग में छिपा कर रखे हथियार बरामद करवाए. 6 जुलाई को पुलिस ने नौकर कल्लू की पत्नी रेखा तथा पुलिस पर हुए हमले में मददगार विकास के साढू समेत 3 लोगों को गिरफ्तार किया.

7 जुलाई को पुलिस ने विकास के गैंग में शामिल उस के 15 करीबी साथियों के पोस्टर जारी किए. इसी दौरान पुलिस को विकास की लोकेशन हरियाणा के फरीदाबाद में मिली. लेकिन एसटीएफ के वहां पहुंचने से पहले ही विकास गायब हो गया. लेकिन उस के 3 करीबी प्रभात मिश्रा, शराब की दुकान पर काम करने वाला श्रवण व उस का बेटा अंकुर पुलिस की गिरफ्त में आ गए.

8 जुलाई को एसटीएफ ने हमीरपुर में विकास के बौडीगार्ड व साए की तरह साथ रहने वाले उस के साथी अमर दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया. उस पर 25 हजार का इनाम था. अमर दुबे की शादी 10 दिन पहले ही हुई थी. उस की पत्नी को भी पुलिस ने साजिश में शामिल होने के शक में गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस को सूचना मिली थी कि उस रात पुलिस पर हुए हमले में अमर भी शामिल था. उसी दिन चौबेपुर पुलिस ने विकास के एक साथी श्याम वाजपेई को मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार किया.

9 जुलाई को एसटीएफ जब फरीदाबाद में गिरफ्तार अंकुर, श्रवण तथा कार्तिकेय उर्फ प्रभात मिश्रा को ट्रांजिट रिमांड पर कानपुर ला रही थी, तो रास्ते में पुलिस की गाड़ी पंक्चर हो गई. मौका देख कर प्रभात मिश्रा ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने की कोशिश की. प्रभात को पकड़ने के प्रयास में मुठभेड़ के दौरान एनकाउंटर में उस की मौत हो गई.

उसी दिन इटावा पुलिस ने बिकरू गांव शूटआउट में शामिल विकास के एक और साथी 50 हजार के इनामी प्रवीण उर्फ बउआ दुबे को भी एनकाउंटर में मार गिराया. विकास के साथियों की ताबड़तोड़ गिरफ्तारियां व एनकाउंटर हो रहे थे, लेकिन एसटीएफ को जिस विकास दुबे की तलाश थी, वह अभी तक पकड़ से बाहर था.

फरीदाबाद के एक होटल से फरार होने के बाद पुलिस सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उसे पूरे एनसीआर में तलाश रही थी, जबकि विकास दुबे पुलिस को चकमा दे कर मध्य प्रदेश के उज्जैन पहुंच गया था. वहां 9 जुलाई की सुबह उस ने नाटकीय तरीके से महाकाल मंदिर में अपनी पहचान उजागर कर दी और खुद को पुलिस के हाथों गिरफ्तार करवा दिया.

इस नाटकीय गिरफ्तारी की सूचना चंद मिनटों में मीडिया के जरिए न्यूज चैनलों के माध्यम से देश भर में फैल गई. उत्तर प्रदेश एसटीएफ की टीम उसी रात उज्जैन पहुंच गई. उज्जैन पुलिस ने बिना कानूनी औपचारिकता पूरी किए विकास दुबे को यूपी पुलिस की एसटीएफ के सुपुर्द कर दिया.

विकास का अंतिम अध्याय

मगर इस बीच एमपी और यूपी पुलिस ने विकास दुबे से जो औपचारिक पूछताछ की थी, उस में उस ने खुलासा किया कि उसे डर था कि गांव बिकरू आई पुलिस टीम उस का एनकाउंटर कर देगी. चौबेपुर थाने के उस के शुभचिंतक पुलिस वालों ने उसे यह इत्तिला पहले ही दे दी थी. तब उस ने अपने साथियों को बुला कर पुलिस को सबक सिखाने का फैसला किया.

विकास दुबे ने यह भी बताया कि वह चाहता था कि मारे गए सभी पुलिस वालों के शव कुएं में डाल कर जला दिए जाएं, ताकि सबूत ही खत्म हो जाएं. इसीलिए उस ने पहले ही कई कैन पैट्रोल भरवा कर रख लिया था.

विकास दुबे के साथियों ने शूटआउट में मारे गए 5 पुलिस वालों के शव कुएं के पास एकत्र भी करवा दिए थे, लेकिन जब तक वह उन्हें जला पाते तब तक कानपुर मुख्यालय से अतिरिक्त पुलिस बल आ गया और उन्हें भागना पड़ा.

यह बात सच थी, क्योंकि पुलिस को 5 पुलिस वालों के शव विकास के घर के बाहर कुएं के पास से मिले थे. विकास ने पूछताछ में बताया कि वह सीओ देवेंद्र मिश्रा को पसंद नहीं करता था. चौबेपुर समेत आसपास के सभी थानों के पुलिस वाले उस के साथ मिले हुए थे. लेकिन न जाने क्यों देवेंद्र मिश्रा हमेशा उस का विरोध करते थे.

ताकत और घमंड के नशे में चूर कुछ लोग यह भूल जाते हैं कि कुदरत हर किसी को उस के गुनाहों की सजा इसी संसार में देती है. यूपी एसटीएफ की टीम विकास दुबे को ले कर 4 अलगअलग वाहनों से सड़क के रास्ते उज्जैन से कानपुर के लिए रवाना हुई. मीडिया चैनलों की गाडि़यां लगातार एसटीएफ की गाडि़यों का पीछा करती रहीं. हांलाकि एसटीएफ ने लोकल पुलिस की मदद से कई जगह इन गाडि़यों को चकमा देने का प्रयास किया.

10 जुलाई की सुबह 6 बजे के आसपास कानपुर देहात के बारा टोल प्लाजा पर एसटीएफ का काफिला आगे निकल गया, काफिले के पीछे चल रहे मीडियाकर्मियों की गाडि़यों को सचेंडी थाने की पुलिस ने बैरीकेड लगा कर रोक दिया. मीडियाकर्मियों ने पुलिस से बहस की तो कहा गया कि रास्ता अभी के लिए बंद कर दिया गया है. इस के साथ ही हाइवे पर बाकी वाहन भी रोक दिए गए थे.

इस काफिले को रोके जाने के 15 मिनट बाद सूचना आई कि विकास दुबे को ले जा रही एसटीएफ की गाड़ी बारिश व कुछ जानवरों के सामने आने से कानुपर से 15 किलोमीटर पहले भौती में पलट गई.

पता चला कि गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे ने एक पुलिसकर्मी की पिस्टल छीन कर भागने का प्रयास किया था. तब तक पीछे से दूसरी गाडियां भी पहुंच गईं और विकास दुबे का पीछा कर आत्मसर्मपण के लिए कहा गया, लेकिन वह नहीं रुका और पुलिस पर फायरिंग कर दी.

लिहाजा पुलिस की जवाबी काररवाई में वह घायल हो गया, उसे हैलट अस्पताल भेजा गया. लेकिन वहां पहुंचते ही डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.

विकास दुबे आदतन खतरनाक अपराधी था, जिस के सिर पर कई लोगों की हत्या का आरोप था, ऐसे अपराधी की मौत से किसी को भी हमदर्दी नहीं हो सकती. लेकिन अहम सवाल यह है कि खाकी और खादी के संरक्षण में गैंगस्टर बने विकास दुबे का अंत होने के बाद क्या उन लोगों के खिलाफ कोई काररवाई होगी, जिन्होंने उस के हौसलों को खूनी हवा दी थी?

– कथा पुलिस के अभिलेखों में दर्ज मामलों और पीडि़तों व जनश्रुति के आधार पर एकत्र जानकारी पर आधारित

देह व्यापार में प्यार की कोई जगह नहीं

10 नवंबर, 2016 को दोपहर के करीब 2 बजे राजस्थान के जिला राजसमंद के थाना केवला की पुलिस को सूचना मिली कि उदयपुर से गोमती जाने वाले फोरलेन नेशनल हाईवे के किनारे पड़ासली भैरूंघाटी के पास एक लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी भरत योगी अधिकारियों को घटना के बारे में बता कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए थे. उन के पहुंचतेपहुंचते एसपी डा. विष्णुकांत भी मौके पर पहुंच गए थे.

लाश सड़क से 2 सौ मीटर की दूरी पर एक खाई में पड़ी थी. वह एक औरत की लाश थी, जो टीशर्ट और लैगिंग पहने हुए थी. मृतका का रंग गोरा, कद ठिगना तथा शरीर थोड़ा मोटा था. हाथ की अंगुलियों पर टैटू बने थे और नाखूनों पर नेलपौलिश लगी थी. बालों का रंग भूरा था, जिस से अंदाजा लगाया गया कि बालों पर कलर किया गया होगा. एक कान में बाली थी. गले पर गहरे जख्म थे.

मृतका की उम्र 30-35 साल के बीच थी. लाश के पास बीयर की बोतलें पड़ी थीं. देख कर ही लग रहा था कि हत्या कहीं और कर के लाश वहां ला कर फेंकी गई थी. पहनावे से मृतका मेवाड़ क्षेत्र की नहीं लग रही थी.

अनुमान लगाया गया कि मृतका किसी बड़े शहर की रहने वाली थी. आसपास बड़ा शहर उदयपुर था. गुजरात की सीमा भी नजदीक थी. पुलिस ने घटनास्थल से मिले सबूतों को जुटा कर आसपास के लोगों से लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन कोई भी उस की शिनाख्त नहीं कर सका. इस के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए केवला के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मुर्दाघर में रखवा दिया.

लाश देख कर डाक्टरों ने बताया कि मृतका की हत्या 10 से 15 घंटे पहले गला घोंट कर की गई थी. बाद में लाश को राजसमंद के सरकारी अस्पताल भिजवा दिया गया था. इसी के साथ लाश की शिनाख्त होने के बाद ही पोस्टमार्टम कराने का निर्णय लिया गया.

पुलिस के सामने समस्या मृतका की शिनाख्त की थी. इस के लिए पुलिस ने लाश के फोटो व वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर डाल दिए. इस के अलावा उदयपुर, प्रतापगढ़ और डूंगरपुर के सभी थानों को लाश के फोटो भेज कर कहा गया कि मृतका का पता लगाने की कोशिश करें. हो सकता है कहीं उस महिला की गुमशुदगी दर्ज हो. इसी के साथ ही हाईवे पर स्थित नेगडि़या और मांडावाड़ा टोल प्लाजा की सीसीटीवी फुटेज भी खंगाली गईं.

मृतका की लाश के फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर डालने से पुलिस को सूचनाएं मिलीं कि मृतका उदयपुर की हो सकती है. इन्हीं सूचनाओं के आधार पर पुलिस ने उदयपुर जा कर स्थानीय पुलिस की मदद ली. लाश मिलने के तीसरे दिन यानी 12 नवंबर को पता चला कि वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की थी, जो मुंबई की रहने वाली थी.

उदयपुर में रोमा जिस्मफरोशी करती थी. पुलिस ने जिस्मफरोशी करने वाली महिलाओं के संपर्क में रहने वाले कुछ लोगों से पता किया तो उन से रोमा का फोन नंबर मिल गया. उस नंबर को वाट्सऐप वाले दूसरे फोन पर डाला गया तो उस की डीपी में मृतका की तसवीर आ गई. वह लाश रोमा उर्फ रेशमा की ही थी.

इस के बाद पुलिस को यह भी पता चल गया कि रोमा उदयपुर में रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा के लिए काम करती थी. रेखा उर्फ पूजा छाबड़ा का नाम उदयपुर पुलिस के लिए नया नहीं था. सैक्स रैकेट के मामले में वह उदयपुर की जानीमानी हस्ती थी. रोमा की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस ने उसे 12 नवंबर को हिरासत में लिया. उस से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के बडे़ बेटे अनिल और ड्राइवर धनराज मीणा को भी हिरासत में ले लिया.

उदयपुर पुलिस ने तीनों को राजसमंद की थाना केवला पुलिस को सौंप दिया. पूछताछ के बाद पुलिस ने तीनों को 13 नवंबर को रोमा की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इस पूछताछ में रोमा के मुंबई से उदयपुर आने और जिस्मफरोशी के धंधे की सरगना रेखा के बेटे से प्रेम करने से ले कर हत्या तक की कहानी सामने आ गई.

उदयपुर राजस्थान का पर्यटनस्थल है. यहां रोजाना तमाम देशीविदेशी सैलानी आते हैं. अन्य महानगरों की तरह यहां भी जिस्मफरोशी का कारोबार धड़ल्ले से होता है. उदयपुर की हिरणमगरी कालोनी के सेक्टर-9 की रहने वाली रेखा उर्फ पूजा काफी समय से सैक्स रैकेट चला रही थी.

उस के खिलाफ थाना हिरणमगरी में पीटा के 7 मामले दर्ज हैं. इस के अलावा वह शांतिभंग के मामलों में भी कई बार गिरफ्तार हो चुकी थी. रेखा की उम्र 50 साल के आसपास है. उस की शादी ललित छाबड़ा से हुई थी, जिस से उस के 2 बेटे हुए, बड़ा अनिल और छोटा मनीष.

रेखा पहले उदयपुर की हिरणमगरी के सेक्टर-5 में रहती थी. अभी भी वहां उस का मकान है, जिस में वह लड़कियों से जिस्मफरोशी कराती थी. इसी धंधे की बदौलत उस के संपर्क मुंबई, दिल्ली और कोलकाता की लड़कियों से हो गए थे. उदयपुर के कई नामीगिरामी होटलों के अलावा हाईवे पर स्थित फार्महाउसों व गेस्टहाउसों के संचालकों से उस के संपर्क थे.

जिस्म के शौकीनों के लिए वह मुंबई, दिल्ली और कोलकाता से लड़कियां बुलाती थी. रेखा लड़कियों की खूबसूरती और देह के आधार पर ग्राहकों से रकम वसूलती थी. बाहर से आई लड़कियां कुछ दिन उदयपुर में रह कर लौट जाती थीं.

ग्राहकों की जरूरत के हिसाब से रेखा फोन कर के लड़कियां बुला लेती थी. इस धंधे से उस ने करोड़ों की दौलत कमाई. इसी कमाई से उस ने उदयपुर के हिरणमगरी के सेक्टर-9 में 3 हजार वर्गमीटर का भूखंड खरीद कर आलीशान कोठी बनवाई. कोठी के बेसमेंट में अनैतिक गतिविधियों के लिए ठिकाने बनवाए. उस ने कोठी में चारों तरफ कैमरे लगवाए, ताकि बाहर की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. कहा जाता है कि जब रेखा ने यह मकान बनवाना शुरू किया था, उस के कारनामों की वजह से मोहल्ले वालों ने काफी विरोध किया था, लेकिन उस ने आपराधिक लोगों की मदद से सब को चुप करा दिया था. इस मकान की कीमत इस समय करीब 5 करोड़ रुपए है.

रोमा उर्फ रेशमा भी रेखा के बुलाने पर जिस्मफरोशी के लिए मुंबई से उदयपुर आई थी. कहा जाता है कि रोमा मूलरूप से बांग्लादेश की रहने वाली थी. वह गरीबी की वजह से इस दलदल में फंस गई थी.

कुछ दिनों वह कोलकाता में रही, फिर वहां से मुंबई चली गई. अन्य कालगर्ल्स की तरह वह भी बुलाने पर मुंबई से दूसरे शहरों में जाने लगी. इसी तरह रेखा के बुलाने पर वह उदयपुर आई थी.

रोमा को उदयपुर अच्छा लगा, इसलिए वह रेखा के साथ रह कर जिस्मफरोशी करने लगी. शुरू में तो उस के चाहने वाले काफी थे, लेकिन धीरेधीरे उस का शरीर और उम्र बढ़ी तो चाहने वालों की संख्या घटने लगी.

यह सच्चाई भी है कि उम्र बढ़ने के साथ कालगर्ल्स के चहेतों की तादाद कम होने लगती है. रोमा की उम्र जरूर ज्यादा हो गई थी, लेकिन जब वह टाइट वेस्टर्न ड्रैस पहनती थी तो उस के उभार चाहने वालों को आकर्षित करते थे. बालों को भी वह कलर करने लगी थी. फिर भी उस का धंधा टूटता जा रहा था. इस के अलावा जिस्म बेचने के बाद भी उसे पूरा पैसा नहीं मिलता था. उस की कमाई का अधिकांश हिस्सा रेखा रख लेती थी. इसलिए अब उसे इस धंधे में अपना भविष्य खतरे में दिखाई दे रहा था.

रोमा के जो भी आशिक थे, वे सिर्फ उस के जिस्म से मतलब रखते थे. उन में से किसी की नजरों में उसे अपनापन नजर नहीं आता था. रोमा जब से उदयपुर आई थी, रेखा के साथ उसी के घर में रह रही थी. वह उस की आंटी भी थी और मालकिन भी. साथ रहने की वजह से रोमा का आमनासामना रोजाना रेखा के छोटे बेटे मनीष से होता था. कभीकभी रोमा अपने छोटेमोटे काम भी मनीष से करा लेती थी. मनीष को पता ही था कि उस की मां रेखा देहव्यापार कराती है. उस के घर एक से एक खूबसूरत और हर उम्र की लड़कियां आतीजाती रहती थीं.

मनीष करीब 28 साल का युवा था. उस की अपनी शारीरिक जरूरतें थीं. अगर वह चाहता तो घर आने वाली किसी भी कालगर्ल्स से अपनी शारीरिक जरूरत पूरी कर सकता था, लेकिन रोमा उस के दिल में जगह बनाने लगी थी. अपनी जरूरतों के हिसाब से वह भी मनीष से प्यार करने लगी थी. कब दोनों एकदूसरे के प्यार में खो गए, पता ही नहीं चला.

रोमा और मनीष के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. ये संबंध लगातर चलते रहे, जिस से रेखा को उन के संबंधों की जानकारी हो गई. रेखा इस धंधे की खेलीखाई और घाघ औरत थी. उसे पता था कि इस तरह के संबंधों का क्या हश्र होता है. भविष्य के बारे में सोच कर रोमा रेखा की चिंता किए बगैर मनीष के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी.

मनीष से रोमा को गर्भ भी ठहर गया. अब वह मनीष से शादी की बात करने लगी. उसे पता था कि मनीष से शादी करने के बाद वह रेखा की करोड़ों की जायदाद में आधे की हिस्सेदार हो जाएगी. इस के लिए ही वह मनीष पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी.

इस बात की भनक रेखा को लगी तो उसे मामला गड़बड़ नजर आने लगा. वह कतई नहीं चाहती थी कि उस का बेटा कालगर्ल्स से शादी करे और उस की जायदाद में हिस्सा मांगे. पहले उसे लगता था कि इस मामले को वह अपने स्तर से निपटा देगी. लेकिन उस की चिंता तब बढ़ गई, जब उस का अपना बेटा मनीष भी रोमा की भाषा बोलने लगा.

रोमा को ले कर घर में लगभग रोज ही झगड़े होने लगे. इस से रेखा परेशान रहने लगी. अब वह रोमा से छुटकारा पाने के उपाय सोचने लगी. काफी सोचविचार कर उस ने फैसला किया कि इस झगड़े की जड़ रोमा है, इसलिए उसे ही मनीष के रास्ते से हटा दिया जाए.

रेखा ने काफी सोचविचार कर साजिश रची. उसी साजिश के तहत उस ने मनीष को तलवारबाजी के एक झगड़े में पुलिस से गिरफ्तार करवा कर जेल भिजवा दिया. मनीष के जेल जाते ही रेखा ने अपने ड्राइवर धनराज मीणा और बड़े बेटे अनिल से बात की. इस के बाद योजना के अनुसार, 9 नवंबर की शाम को धनराज ने रोमा को इतनी शराब पिलाई कि वह सुधबुध खो बैठी. उसी हालत में धनराज और रेखा ने सलवार के नाड़े से रोमा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. अधिक नशा होने की वजह से वह विरोध भी नहीं कर सकी.

रेखा को पूरा विश्वास हो गया कि रोमा की मौत हो चुकी है तो उस ने अनिल और धनराज से कहा कि वे लाश को गाड़ी से ले जा कर कहीं फेंक आएं. अनिल और धनराज हुंडई आई10 कार की पिछली सीट पर लाश रख कर निकल पड़े. कार धनराज चला रहा था.

दोनों नेगडि़या टोलनाका, नाथद्वारा, राजनगर, केवला होते हुए मांडावाड़ा टोलनाके से हो कर पड़ासली के पास पहुंचे. वहीं हाईवे पर सुनसान जगह देख कर धनराज ने सड़क के किनारे कार रोक दी.

फिर अनिल की मदद से कार की पिछली सीट पर पड़ी रोमा की लाश को निकाल कर हाईवे से करीब 2 सौ मीटर दूर ले जा कर खाई में फेंक दिया. इस तरह लाश को ठिकाने लगा कर दोनों उसी कार और उसी रास्ते से रात में ही घर आ गए.

रोमा की हत्या का खुलासा होने पर पुलिस ने सबूत जुटाने के लिए नेगडि़या टोलनाका व मांडावाड़ा टोलनाका की सीसीटीवी फुटेज की फिर से जांच की तो उन की कार आतीजाती दिखाई दे गई. पुलिस ने दोनों की उस रात की मोबाइल की लोकेशन और काल डिटेल्स भी सबूत के तौर पर जुटाए.

कथा लिखे जाने तक पुलिस यह पता करने की कोशिश कर रही थी कि रोमा कौन थी, वह कहां की रहने वाली थी, उस के परिवार में कोई है या नहीं? अभियुक्तों की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने रोमा की लाश का पोस्टमार्टम करा कर अंतिम संस्कार करा दिया था.

बहरहाल, देहव्यापार करने वाली रोमा ने कभी नहीं सोचा होगा कि प्यार करने की उसे ऐसी सजा मिलेगी. रोमा के साथ जो हुआ, उस से एक बार फिर साबित हो गया है कि इस तरह की औरतों का कोई भविष्य नहीं होता.