आनंदपाल एनकाउंटर : सियासी मोहरे की मौत

समय बदल गया, लोकतंत्र के रूप में स्वतंत्र भारत के उदय होने के साथ ही सत्ता पर कब्जा पाने के लिए तिकड़मी नेताओं ने राजनीति की नई बिसात बिछा कर देश में छलकपट का खेल शुरू कर दिया था. फर्क सिर्फ इतना रहा कि सत्ता को हासिल करने के लिए छलकपट करने वाले चेहरे और कथानक बदल गए. आज की राजनीति के दौर में धार्मिक उन्माद भरना और अपराधियों का जातीयकरण कर के उन्हें राजनैतिक संरक्षण देना आज के नेताओं की राजनीति का प्रमुख हिस्सा बन गया है. देश में साफसुथरी राजनैतिक मूल्यों के आधार पर आज राजनीति करने वाले नेता कम ही रहे हैं.

राजनीति के शिखर पर पहुंचने की जल्दी में राजनीति का माफियाकरण हो गया है. देश में बिहार के धनबाद जिले से कोयला माफिया के रूप में बाहुबली नेताओं के राजनीति में आने की शुरुआत हुई थी, जो धीरेधीरे पूरे देश में फैल गई. उत्तर प्रदेश, बिहार सहित देश के अन्य राज्यों में भी बाहुबली अपराधियों ने चुनाव लड़ कर राजनीति में भागीदारी हासिल कर ली.

पहले जहां नेता अपराधियों का इस्तेमाल कर के चुनाव जीतते थे, अब अपराधी खुद ही बाहुबल, धनबल से चुनाव जीत कर सांसद और विधायक बनने लगे हैं. राजनेताओं द्वारा भष्मासुर अपराधी पैदा करने की रीति राजस्थान के नेताओं में कम ही रही है.

अन्य राज्यों की अपेक्षा शांत माने जाने वाले राजस्थान में भी इधर नेताओं ने अपना हित साधने के लिए अपनीअपनी जाति के अपराधियों को संरक्षण देना शुरू कर दिया है. राजस्थान की जाट जाति मूलरूप से खेतीकिसानी करने वाली जाति मानी जाती है, जबकि राजपूत शासक और सामंत रहे हैं, जिस की वजह से जाट जाति राजपूतों की दबंगई का शिकार बनती रही है.

आजादी के बाद जाट कांग्रेस के समर्थक बन गए थे, जबकि राजपूत जागीरदारी छिनने की वजह से कांग्रेस के घोर विरोधी रहे हैं. राजस्थान के शेखावाटी, मारवाड़ अंचल में कांग्रेस की सरकारों के साथ मिल कर जाटों ने अपनी राजनीति खूब चमकाई. समूचे शेखावाटी, मारवाड़ इलाके में कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जाट विधायक और सांसद का चुनाव जीतते रहे हैं.

यही वजह रही कि भाजपा ने कांग्रेस को शिकस्त देने के लिए राजपूत, बनिया और ब्राह्मणों को अपनी ओर खींचा. जाति का यह नया समीकरण भाजपा को जीत दिलाने में कामयाब भी रहा. इस में यूनुस खान के आ जाने से कुछ मुसलिमों का भी समर्थन मिल गया. यूनुस खान के विधानसभा क्षेत्र डीडवाना में मुसलिम, राजपूत और जाटों के निर्णायक वोट थे. इन में राजपूतों और मुसलिमों को जोड़ कर यूनुस खान चुनाव जीत कर विधायक बन गए. युनूस खान के विधानसभा क्षेत्र में रूपाराम डूडी जाटों के दबंग नेता रहे हैं. उन के समय में डीडवाना विधानसभा क्षेत्र में जाट जाति के अपराधियों का बोलबाला रहा.

जाटों की दबंगई खत्म करने और राजपूतों में अपना प्रभाव जमाने के लिए यूनुस खान को एक दबंग राजपूत की जरूरत थी. उसी बीच उन के इलाके में राजपूतों में आनंदपाल सिंह अपराधी के रूप में उभरा. अपराधी प्रवृत्ति के जीवनराम गोदारा को कांग्रेस के जाट नेताओं का खुला संरक्षण मिला था.

लेकिन यूनुस खान ने आनंदपाल सिंह के बल पर क्षेत्र के जाटों की दबंगई को खत्म कर के नागौर, चुरू और झुंझनू में राजपूत, मुसलिम, बनियों और ब्राह्मणों का गठजोड़ कर इन जिलों में भाजपा को स्थापित करने के लिए आनंदपाल सिंह से मिल कर दिनदहाड़े जीवनराम गोदारा की हत्या करा दी.

इस के बाद यूनुस खान ही नहीं, नागौर और चुरू जिलों के भाजपा के राजपूत नेता खुल कर आनंदपाल सिंह को राजनीतिक संरक्षण देने लगे. आनंदपाल की गुंडई की बदौलत मकराना की मार्बल खदानों पर कब्जे करने से ले कर जमीनों पर कब्जे करने के मामलों में यूनुस खान के परिवार वालों के नामों की धमक पूरे राजस्थान में सुनी जाने लगी. सन 2013 के विधानसभा चुनाव में आनंदपाल सिंह ने खुल कर यूनुस खान को चुनाव जिताने में मदद की. चूंकि यह कहानी आनंदपाल सिंह की है, इसलिए पहले उस के बारे में जान लेना जरूरी है.

बात 27 जून, 2006 की है. राजस्थान के जिला नागौर के कस्बा डीडवाना का बाजार खुला हुआ था. मानसून ने दस्तक दे दिया था. सुबह से हलकी बूंदाबांदी हो रही थी. दोपहर 2 बजे के करीब कस्बे की गोदारा मार्केट की दुकान ‘पाटीदार बूटहाउस’ पर 4 लोग बैठे चाय पी रहे थे. उसी समय संदिग्ध लगने वाली 2 गाडि़यां दुकान के सामने आ कर रुकीं. उन में से 6 लोग उतरे. कोई कुछ समझ पाता, उस से पहले ही उन्होंने हथियार निकाल कर गोलियां चलानी शुरू कर दीं.

उन 6 लोगों में 6 फुट लंबा एक दढि़यल नौजवान भी था. सब से पहले उसी ने अपनी 9 एमएम पिस्तौल निकाल कर चाय पी रहे उन 4 लोगों में से सामने बैठे हट्टेकट्टे आदमी के सीने पर गोली दागी थी.

गोली चलाने वाले उस दढि़यल नौजवान का नाम आनंदपाल सिंह था और जिस हट्टेकट्टे आदमी के सीने में उस ने गोली दागी थी, उस का नाम जीवनराम गोदारा था.

सन 1992 में देश में राम मंदिर आंदोलन के समय नागौर की लाडनूं तहसील के गांव सांवराद के रहने वाले पप्पू उर्फ आनंदपाल सिंह की शादी थी. वह रावणा राजपूत बिरादरी से था. राजस्थान में सामंती काल में राजपूत पुरुष और गैरराजपूत महिलाओं की संतान को रावणा राजपूत कहा जाता है. इसलिए राजपूत इस बिरादरी को हिकारत की नजरों से देखते हैं.

चूंकि पप्पू असली राजपूत नहीं था, इसलिए बारात निकलने से पहले ही गांव के असली राजपूतों ने चेतावनी दे रखी थी कि अगर दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा तो अंजाम ठीक नहीं होगा. क्योंकि घोड़ी पर सिर्फ असली राजपूत ही चढ़ सकता है.

चूंकि पप्पू घोड़ी पर चढ़ कर ही बारात निकालना चाहता था, इसलिए उस ने अपने एक दोस्त को याद किया, जिस का नाम था जीवनराम गोदारा. उस समय वह डीडवाना के बांगड़ कालेज का छात्रनेता हुआ करता था. जीवनराम खुद बारात में पहुंचा और अपने रसूख का इस्तेमाल कर के पप्पू को घोड़ी पर चढ़ा कर शान से बारात निकाली.

राजपूतों का ऐतराज अपनी जगह रह गया. इस के बाद दोनों में गाढ़ी दोस्ती हो गई. अब यहां सवाल यह उठता है कि पप्पू उर्फ आनंदपाल ने अपने ऐसे दोस्त जीवनराम गोदारा को क्यों मारा? दरअसल, यह मदन सिंह राठौड़ की हत्या का बदला था.

कहा जाता है कि कुछ महीने पहले फौज के जवान मदन सिंह की हत्या जीवनराम गोदारा ने इसलिए कर दी थी, क्योंकि जीवनराम राह चलती लड़कियों को छेड़ता था, जिस का मदन सिंह ने विरोध किया था. हत्या का तरीका भी बड़ा भयानक था. सिर पर पत्थर की पटिया से मारमार कर मदन सिंह को खत्म किया गया था.

इस हत्या ने जातीय रूप ले लिया था और सारा मामला राजपूत बनाम जाट में तब्दील हो गया था. पप्पू ने राजपूतों के मान के लिए जीवनराम की हत्या कर बदला ले लिया था. उसी पप्पू को, जिसे जीवनराम ने घोड़ी चढ़ाया था, लोग आनंदपाल सिंह के नाम से जानने लगे थे. उस के बाद वही आनंदपाल राजस्थान के माफिया इतिहास में मिथक बन गया.

आनंदपाल सिंह ऐसे ही माफिया नहीं बना था. वह पढ़नेलिखने में ठीक था. उस ने बीएड किया था. उस के पिता हुकुम सिंह चाहते थे कि वह सरकारी स्कूल में अध्यापक हो जाए. उस की शादी भी हो गई थी.

घर वालों ने उसे लाडनूं में एक सीमेंट एजेंसी दिलवा दी थी. इस की वजह यह थी कि घर वाले चाहते थे कि प्रतियोगी परीक्षाओं के साथसाथ वह अपना खर्चा भी निकालता रहे.

लेकिन आनंदपाल सिंह राजनीति में जाना चाहता था. सन 2000 में जिला पंचायत के चुनाव हुए. उस ने पंचायत समिति का चुनाव लड़ा और जीत भी गया. अब पंचायत समिति के प्रधान का चुनाव होना था. आनंदपाल सिंह ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भर दिया. उस के सामने था कांग्रेस के कद्दावर नेता हरजीराम बुरड़क का बेटा जगन्नाथ बुरड़क.

यह चुनाव आनंदपाल मात्र 2 वोटों से हार गया. लेकिन अनुभवी नेता रहे हरजीराम की समझ में आ गया कि यह नौजवान आगे चल कर उस के लिए खतरा बन सकता है. कांग्रेस सरकार में कृषि मंत्री रहे थे हरजीराम बुरड़क.

नवंबर, 2000 में पंचायत समिति की सहायक समितियों का चुनाव था. अब तक आनंदपाल और हरजीराम के बीच तकरार काफी बढ़ चुकी थी. कहा जाता है कि सबक सिखाने के लिए हरजीराम ने आनंदपाल के खिलाफ कई झूठे मुकदमे दर्ज करवा कर उसे गिरफ्तार करवा दिया.

तभी पुलिस ने आनंदपाल सिंह को ऐसा परेशान किया कि उस के कदम अपराध की दुनिया की ओर बढ़ गए. इस के बाद तो किसी की हत्या करना आनंदपाल के लिए खेल बन गया.

सीकर का श्री कल्याण कालेज स्थानीय राजनीति की पहली पाठशाला माना जाता है, जहां वामपंथी संगठन एसएफआई का दबदबा था. इस संगठन में जाटों की पकड़ काफी मजबूत थी. सन 2003 में जब वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकारी बनी तो यहां के छात्र नेता रह चुके कुछ नौजवान छात्र नेता राजनीतिक शह पा कर अपराध की डगर पर चल पड़े.

देखते ही देखते कई छात्र नेता शराब और भूमाफिया बन गए. ऐसे में एक नौजवान तेजी से उभरा, जिस का नाम था गोपाल फोगावट. गोपाल एसके कालेज में पढ़ते समय बीजेपी के छात्र संगठन एबीवीपी का कार्यकर्ता हुआ करता था. वह शहर के एसके हौस्पिटल में मेल नर्स भी था. उसी बीच सीपीएम के छात्र संगठन एसएफआई के कुछ लड़के गोपाल के करीब आ कर अवैध शराब की तस्करी में जुट गए. सीपीएम ने उन लड़कों को संगठन से बाहर निकाल दिया. उन में एक लड़का था राजू ठेहट. राजू का ही एक सहयोगी और दोस्त था बलबीर बानूड़ा. सन 2004 में राजू ने पैसे के लेनदेन को ले कर बलबीर के साले विजयपाल की हत्या कर दी. इस के बाद दोनों दोस्तों के बीच दुश्मनी हो गई.

राजू ठेहट को गोपाल फोगावट का संरक्षण मिला हुआ था. बलबीर बानूड़ा उस के सामने काफी कमजोर पड़ रहा था. तब उस ने बगल के जिले नागौर में अपनी धाक जमा रहे माफिया आनंदपाल सिंह से हाथ मिला लिया. अब बलबीर को उस मौके का इंतजार था, जब वह अपने साले की मौत का बदला ले सके. उन्हें यह मौका मिला 5 अप्रैल, 2006 को.

गोपाल फोगावट किसी शादी में शामिल होने के लिए अपने गांव तासर बड़ी जा रहा था. इस के लिए उस ने पहली बार सूट सिलवाया था. वह हौस्पिटल के पास ही स्थित सेवन स्टार टेलर्स की दुकान पर अपना सूट लेने पहुंचा.

जैसे ही गोपाल सूट का ट्रायल लेने के लिए ट्रायल रूम में घुसा, बलबीर बानूड़ा और उस के साथियों ने दुकान में घुस कर गोपाल को एक के बाद एक कर के 8 गोलियां मार दीं. गोलियां मार कर बलबीर बाहर निकल रहा था तो उसे लगा कि गोपाल फोगावट में अभी जान बाकी है. उस ने लौट कर 2 गोलियां उस के सिर में मारीं.

इस वारदात में आनंदपाल सिंह बलबीर के साथ था. धीरेधीरे आनंदपाल सिंह के गैंग ने शेखावाटी और मारवाड़ के बड़े हिस्से में शराब तस्करी और जमीन के अवैध कब्जे में अपनी धाक जमा ली. इस के बाद की कहानी में बस इतना ही कहा जा सकता है कि हमेशा एके47 ले कर चलने वाले इस गैंगस्टर को पकड़ने के लिए राजस्थान पुलिस को 3 हजार जवान तैनात करने पड़े. इन जवानों को खास किस्म की ट्रेनिंग भी दी गई थी. इसी के साथ उस पर 5 लाख का इनाम भी घोषित किया गया था.

वसुंधरा राजे जब पहली बार सत्ता में आई थीं, तब उन की छवि बाहरी नेता के रूप में थी. हालांकि उन की शादी राजस्थान के धौलपुर राजघराने में हुई थी. राजस्थान में राजपूतों की नेता के रूप में अपनी छवि बनाने के लिए उन्हें काफी मेहनत करनी पड़ी. आज राजपूत समुदाय वसुंधरा के पक्ष में खड़ा है. उन के सब से भरोसेमंद माने जाने वाले नेताओं में राजेंद्र सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह खींवसर हैं. ये दोनों नेता राजपूत हैं.

आनंदपाल सिंह राजपूत नौजवानों में काफी लोकप्रिय था. क्योंकि जाटों के खिलाफ संघर्ष का वह प्रतीक बन चुका था. नागौर जिले के मुंडवा विधानसभा क्षेत्र के विधायक हनुमान बेनीवाल राज्य की मुख्यमंत्री के धुर विरोधी माने जाते हैं.

आनंदपाल की बदौलत यूनुस खान हनुमान बेनीवाल पर खासा नियंत्रण पाने में सफल रहे. यूनुस खान मंत्री के रूप में बीकानेर जेल में बंद आनंदपाल से निजी रूप से मिलने पहुंचे थे, जिस से राज्य की राजनीति में तीखी प्रतिक्रिया  हुई थी.

जेल में बंद खूंखार अपराधी आनंदपाल की सुरक्षा व्यवस्था में लगे पुलिस बल की कटौती यूनुस खान के प्रभाव से ही की गई थी, जिस का फायदा उठा कर एक दिन पेशी के दौरान आनंदपाल सिंह पुलिस हिरासत से भाग निकला था.

राज्य की राजनीति में राजपूत जाति का संरक्षण आनंदपाल सिंह को मिल ही रहा था. इसी तरह राजू ठेहट गिरोह को गैरभाजपा दल के नेताओं का संरक्षण मिल रहा था. बीकानेर जेल में बंद रहने के दौरान राजू ठेहट गिरोह ने आनंदपाल की हत्या की कोशिश की थी, जिस में आनंदपाल तो बच गया था, लेकिन उस का एक साथी मारा गया था. फरारी के दौरान पुलिस मुठभेड़ में नागौर जिला पुलिस के जवान खुभानाराम को घायल कर आनंदपाल फिर पुलिस पकड़ से दूर हो गया था.

लेकिन आनंदपाल सिंह भागतेभागते थक गया तो उस ने अपने वकील के माध्यम से आत्मसमर्पण करने की कोशिश की. फरारी के दौरान अपने उपकारों के बदले आनंदपाल ने यूनुस खान से आत्मसमर्पण करवाने के लिए मदद मांगी. शायद यूनुस खान ने मदद करने से इनकार कर दिया तो आनंदपाल ने यूनुस खान को देख लेने की धमकी दे दी.

यूनुस खान आनंदपाल सिंह को अच्छी तरह जानते थे कि वह धमकी को अंजाम दे सकता है, इसलिए डरे हुए यूनुस खान राज्य की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिले और उन्हें अपनी दुविधा बताई. इस के बाद उन्होंने आनंदपाल सिंह की हत्या की पटकथा तैयार कर डाली.

यूनुस खान की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने आनंदपाल का एनकाउंटर करने के लिए राज्य पुलिस के एनकाउंटर विशेषज्ञ एम.एन. दिनेश (आईजी पुलिस) को लक्ष्य दे कर एसओजी में भेज दिया. कहा जाता है कि आनंदपाल से डरे यूनुस खान मुख्यमंत्री के पास जा कर खूब रोए थे.

जिस आनंदपाल को पालपोस कर यूनुस खान ने इतना बड़ा किया था, जब वह उन पर भारी पड़ने लगा तो सत्ता के बल पर 24 जून, 2017 की रात पुलिस की मदद से उसे ठिकाने लगवा दिया.

आनंदपाल तो अपने अंजाम तक पहुंच गया, लेकिन उसे अपराधी बनाने वाले भ्रष्ट यूनुस खान सरीखे नेताओं का क्या होगा? आनंदपाल के एनकाउंटर के बाद राजस्थान में राजपूत जाति ने उसे जातीय अस्मिता से जोड़ लिया है. जबकि जाट उस की हत्या पर कई दिनों तक डीजे बजा कर खुशियां मनाते रहे.

आनंदपाल सिंह के घर वालों का कहना था कि भाजपा सरकार के गृहमंत्री चाहते थे कि आनंदपाल आत्मसमर्पण कर दे, लेकिन आनंदपाल के आत्मसमर्पण करने से यूनुस खान के तमाम राज खुल सकते थे. इसलिए आत्मसमर्पण करने को तैयार आनंदपाल को यूनुस खान के लिए मार डाला गया. आनंदपाल के मारे जाने से मंत्री यूनुस खान खुश हैं कि उन के राज अब कभी नहीं खुल पाएंगे.

यह एनकाउंटर चुरू जिले में हुआ, जो राजेंद्र राठौड़ का गृह जिला है. राजपूत बिरादरी में पैदा हुए रोष का शिकार राजेंद्र सिंह राठौड़ बन सकते हैं. राजपूतों का एक छोटा सा संगठन है श्री राजपूत करणी सेना. इस के कर्ताधर्ता हैं लोकेंद्र सिंह कालवी, जिन के पिता कल्याण सिंह कालवी राजपूतों के बड़े नेता और केंद्रीय मंत्री रहे हैं.

लोकेंद्र सिंह कालवी, उन के पिता कल्याण सिंह कालवी और करणी सेना तब चर्चा में आई थी, जब जयपुर में इस संगठन के लोगों ने फिल्म डायरेक्टर संजय लीला भंसाली के साथ बदसलूकी की थी. यह गैरराजनीतिक संगठन लगातार कई सालों से आनंदपाल की रौबिनहुड की छवि गढ़ने में लगा था. आनंदपाल के एनकाउंटर को यह संगठन भुनाने में लगा है. राजस्थान विधानसभा चुनाव सन 2018 में होने वाले हैं. हो सकता है, इस का असर चुनाव पर पड़े.

यह भी हो सकता है कि इस घटना के बाद पश्चिमी राजस्थान में मदेरणा और मिर्धा परिवारों के सियासी पतन के बाद जाटों के नए नेता के रूप में उभर रहे हनुमान बेनीवाल फिर भाजपा में आ जाएं. सन 2009 तक वह बीजेपी में थे, लेकिन बाद में आनंदपाल की वजह से वह पार्टी छोड़ गए थे.

आनंदपाल के मामले को ले कर वह लगातार सरकार को घेरते रहे हैं. फिलहाल वह निर्दलीय विधायक हैं. पश्चिमी राजस्थान जाट बाहुल्य है. ऐसे में बेनीवाल किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.

आनंदपाल सिंह का भले ही अंत हो चुका है, पर याद करने वाले उसे अपनीअपनी तरह से याद करते रहेंगे. उस की मौत के बाद जो लोग उस के एनकाउंटर की सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं, राजपूत हिम्मत सिंह की पत्नी ममता कंवर ने न्याय मांगते हुए उन पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. हिम्मत सिंह की हत्या आनंदपाल ने ही की थी. ममता कंवर ने एक लिखित संदेश और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है.

उन्होंने आनंदपाल सिंह का समर्थन कर रहे राजपूतों से पूछा है कि क्या कसूर था उन के पति राजपूत हिम्मत सिंह का, जिन की शादी हुए कुछ ही समय हुआ था और आनंदपाल सिंह ने उन्हें मार दिया था. यही नहीं, उन्होंने श्याम प्रताप सिंह रूवा, राजेंद्र सिंह राजपूत और आनंदपाल के एनकाउंटर में शामिल कमांडो सोहन सिंह तंवर पर चली गोलियों का हिसाब मांगा है.

उन का कहना है कि वह तो असली राजपूत हैं, जबकि आनंदपाल सिंह रावणा राजपूत था. क्या कारण था कि रावणा राजपूत होते हुए भी उस ने असली राजपूतों को मारा, फिर भी किसी राजपूत ने कभी जुबान नहीं खोली.

दरअसल, सन 2016 में जयपुर के विद्याधरनगर इलाके में अलंकार प्लाजा के पास खड़ी एक कार में हिम्मत सिंह राजपूत की कुछ हथियारबंद बदमाशों ने दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस के बाद एसओजी ने 4 लोगों को गिरफ्तार किया था. गिरफ्तार किए गए सोहन सिंह उर्फ सोनू पावटा और अजीत पावटा नागौर के पावटा के रहने वाले थे.

पूछताछ में पता चला कि ये दोनों कुख्यात बदमाश आनंदपाल सिंह के सहयोगी थे. उन्होंने स्वीकार किया है कि आनंदपाल सिंह के कहने पर उन्होंने ही हिम्मत सिंह की हत्या की थी. दोनों के खिलाफ नागौर के कुचामनसिटी, डीडवाना, मुरलीपुरा और जोधपुर के चौपासनी थाने में हत्या, हत्या के प्रयास, लूट, अपहरण, मारपीट और अवैध हथियारों के करीब 15 मुकदमे दर्ज हैं.

आनंदपाल सिंह की मौत हो चुकी है. राजस्थान के राजपूतों ने इसे अपनी शान से जोड़ लिया है. यही वजह है कि वे उस का अंतिम संस्कार तब तक न करने पर अड़े हैं, जब तक उस के एनकाउंटर की सीबीआई जांच नहीं कराई जाएगी. वैसे इस एनकाउंटर से वसुंधरा सरकार को नुकसान हो सकता है.

अपराधियों के बुलंद हौंसले : कोर्ट रूम में क्यों हुई गैंगवार

17 जनवरी, 2018 का दिन था. दोपहर के करीब पौने एक बजे का समय रहा होगा. अजय जैतपुरा अपने कुछ साथियों के साथ राजस्थान के चुरू जिले के सादुलपुर शहर की मुंसिफ अदालत में अपनी तारीख पर आया था. उस दिन जज साहब नहीं आए थे. उन के न आने की वजह से पेशकार मोहर सिंह राठौर ही पेशी पर आने वालों को अगली तारीख दे रहे थे.

अजय जैतपुरा भी अपने वकील के साथ पेशकार के सामने  खड़ा था. उस के वकील रतनलाल प्रजापति ने पेशकार से अगली तारीख मांगी. पेशकार ने अजय जैतपुरा की फाइल निकाली. वह फाइल के पन्ने पलट ही रहे थे, तभी 4-5 युवक अदालत के कमरे में आए. पेशकार ने उन पर उड़ती हुई सी एक नजर डाली. तभी वे युवक अचानक अंधाधुंध फायरिंग करने लगे.

कोर्ट रूम में फायरिंग होने से भगदड़ मच गई. फायरिंग होते देख वह भाग कर बगल में बने जज साहब के चैंबर में घुस गए और दरवाजा बंद कर लिया.

जब फायरिंग की आवाज बंद हो गई तो कोर्टरूम में शोर होने लगा. पेशकार को जब यह यकीन हो गया कि बदमाश जा चुके हैं तो वह जज साहब के चैंबर का दरवाजा खोल कर कोर्ट रूम में आए. कोर्ट रूम का दृश्य देख कर उन की आंखें फटी रह गईं. अजय जैतपुरा लहूलुहान पड़ा था. उस के साथ आए वकील रतनलाल प्रजापति और 2 अन्य लोग प्रदीप व संदीप भी घायल पड़े थे. चारों के गोलियां लगी थीं.

क्रिमिनल ने क्रिमिनल को बनाया निशाना

जिन 4 लोगों को गोलियां लगी थीं, उन में से अजय की हालत सब से ज्यादा गंभीर थी. सभी घायलों को तत्काल अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें हरियाणा में हिसार के अस्पताल रैफर कर दिया गया.

अस्पताल पहुंचने पर डाक्टरों ने अजय जैतपुरा को मृत घोषित कर दिया. चूंकि यह पुलिस केस था, इसलिए पोस्टमार्टम के लिए उस का शव हिसार से सादुलपुर भेज दिया गया. बाकी तीनों घायलों को आईसीयू में भरती कर के इलाज शुरू कर दिया गया.

अजय एक हार्डकोर अपराधी था. 12 दिन पहले ही वह जमानत पर जेल से छूटा था. उस के खिलाफ जघन्य अपराधों के 40 से ज्यादा मामले चल रहे थे. अजय ने 23 सितंबर, 2015 को बैरासर गांव में हमीरवास थाने के थानेदार व सिपाहियों को अपनी गाड़ी से कुचलने का प्रयास किया था.

सादुलपुर के अपर जिला एवं सेशन न्यायाधीश की अदालत ने अजय को इस मामले में 14 नवंबर, 2017 को 7 साल की सजा सुनाई थी. इसी साल 5 जनवरी को ही हाईकोर्ट से उस की जमानत हुई थी. इस के 12 दिन बाद ही उस की हत्या हो गई थी.

हरियाणा के अनिल जाट गैंग ने 2 दिन पहले ही अजय जैतपुरा को धमकी दी थी. दरअसल, हरियाणा के 2 लाख रुपए के इनामी बदमाश अनिल जाट को हरियाणा पुलिस ने 25 जून, 2015 को एनकाउंटर में मार गिराया था. यह एनकाउंटर हरियाणा के ईशरवाल गांव में हुआ था.

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अनिल जाट के गिरोह के सदस्यों को शक था कि उन के बौस का एनकाउंटर कराने में अजय जैतपुरा और चूरू जिले के थाना राजगढ़ के सिपाही नरेंद्र का हाथ था. अजय ने ही फोन कर के अनिल को बुलाया था. उस की मुखबिरी पर ही पुलिस ने अनिल को घेर कर मार दिया.

10 हजार रुपए के इनामी बदमाश अजय जैतपुरा को सादुलपुर के तत्कालीन थानाप्रभारी ने अपनी टीम के साथ 12 फरवरी, 2016 को जयपुर के जवाहर सर्किल से गिरफ्तार किया था. वह हमीरवास के थानेदार और सिपाहियों को गाड़ी से कुचलने की कोशिश करने के बाद फरार हो गया था. तब 23 अक्तूबर, 2015 को बीकानेर के तत्कालीन आईजी ने उस पर 10 हजार रुपए का इनाम घोषित किया था.

कहा जाता है कि सन 2006 में मारपीट के मामले में नामजद होने के बाद अजय अपराध की दलदल में फंसता चला गया. इस के बाद उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. वह अपराध की दुनिया में अपना नाम कमाने के लिए एक के बाद एक अपराध करता चला गया. सन 2007 में उस की हिस्ट्रीशीट खुली थी.

चुरू जिले के हमीरवास थाना इलाके के गांव जैतपुरा के रहने वाले साधारण परिवार के विद्याधर जाट का बेटा अजय जैतपुरा 2 भाइयों में बड़ा था. उस के छोटे भाई का नाम विजय जैतपुरा है. शादीशुदा अजय का एक बेटा भी है.

कोर्ट रूम में अंधाधुंध गोलीबारी कर के हार्डकोर अपराधी की हत्या करने की वारदात से चुरू जिला मुख्यालय से ले कर जयपुर तक हड़कंप मच गया था. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.

पुलिस ने खोजबीन में लगाया पूरा जोर

लोगों से पूछताछ में सामने आया कि हमलावरों के दोनों हाथों में पिस्टल थीं. कोर्ट रूम में फायरिंग के बाद वे हवाई फायर करते हुए मंडी की तरफ के गेट से निकल कर भाग गए.

फायरिंग से लोगों में दहशत फैल गई. लोगों ने पुलिस को बताया कि हमलावरों ने करीब 50 फायर किए थे. भागते समय उन्होंने अदालत परिसर में खड़ी अजय जैतपुरा की स्कौर्पियो गाड़ी पर भी गोलियां चलाई थीं.

पुलिस ने कोर्ट परिसर से एक दरजन से ज्यादा कारतूस के खोखे बरामद किए. ये सभी कारतूस 9 एमएम के थे. मौके पर एक जिंदा कारतूस और एक मैगजीन भी मिली.

पुलिस ने हमलावरों का पता लगाने के लिए अदालत परिसर में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली. थानाप्रभारी भगवान सहाय मीणा ने हिसार जा कर घायलों के बयान लिए.

फायरिंग में घायल हुए जैतपुरा गांव के प्रदीप कुमार स्वामी ने पुलिस को बताया कि उस की और अजय की अदालत में पेशी थी. वे लोग अपने साथियों के साथ स्कौर्पियो व फार्च्युनर गाड़ी से आए थे.

मुंसिफ न्यायालय में जब वे पेशकार के पास खड़े थे, उसी दौरान संपत नेहरा, मिंटू मोडासिया, राजेश, प्रवीण, अक्षय, विपिन, कुलदीप, नवीन, संदीप आदि अपने हाथों में पिस्टल ले कर कोर्ट रूम में घुस आए और उन पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. इस अप्रत्याशित हमले में उस के अलावा अजय जैतपुरा, संदीप गुर्जर व वकील रतन प्रजापति को गोली लगी. बाद में हमलावर हवाई फायर करते हुए भाग गए.

अदालत में मौकामुआयना करने पहुंचे एसपी राहुल बारहठ के समक्ष वकीलों ने वारदात पर आक्रोश जताते हुए अदालत परिसर में पर्याप्त पुलिस सुरक्षा मुहैया कराने और पुलिस चौकी स्थापित करने की मांग की.

वकीलों ने एसपी को बताया कि घटना के दौरान अदालत में चालानी गार्ड मौजूद थे, लेकिन वे निहत्थे होने के कारण हमलावरों का मुकाबला नहीं कर सके.

अजय जैतपुरा की हत्या के दूसरे दिन सादुलपुर के सरकारी अस्पताल में 5 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड ने उस के शव का पोस्टमार्टम किया. पोस्टमार्टम में पता चला कि अजय के शरीर में कुल 7 गोलियां लगी थीं. इन में 5 गोलियां उस के शरीर के आरपार निकल गई थीं और 2 गोलियां उस के शरीर में ही फंसी हुई मिलीं.

इस से पहले अजय के परिजनों ने उस के शव का पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया था. बाद में एसपी राहुल बारहठ को 6 सूत्रीय मांगों का ज्ञापन दे कर पोस्टमार्टम करवाने पर राजी हुए.

इस में अजय के परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक मदद, उस की पत्नी को सरकारी नौकरी व भाई विजय को शस्त्र लाइसैंस, अजय के परिवार और उस के साथी प्रदीप जांदू के घर पर सुरक्षा गार्ड मुहैया कराने, अजय की हत्या की जांच पुलिस के स्पैशल औपरेशन ग्रुप से कराने तथा मामले के सभी गवाहों को सुरक्षा प्रदान करने की मांग शामिल थी. एसपी ने इन मांगों पर यथासंभव काररवाई करने का आश्वासन दिया.

पोस्टमार्टम के बाद अजय का शव उस के घर वालों को सौंप दिया गया. वे लोग शव को जैतपुरा गांव की ढाणी ले गए. तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए एसपी ने शव के साथ राजगढ़ के थानाप्रभारी को भारी पुलिस बल के साथ जैतपुरा भेज दिया, जिस की मौजूदगी में अजय का अंतिम संस्कार किया गया.

वकील भी उतरे हड़ताल पर

दूसरी ओर सादुलपुर के वकीलों ने अदालत परिसर में घुस कर गोलीबारी करने और अजय के साथ वकील रतनलाल प्रजापति को गोली लगने के विरोध में मिनी सचिवालय परिसर में अनिश्चितकालीन हड़तान शुरू कर दी.

वकीलों का कहना था कि जब अदालत परिसर में ही वकील सुरक्षित नहीं हैं तो आम लोगों की सुरक्षा की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इस गोलीबारी के विरोध में चुरू जिला मुख्यालय और कई अन्य शहरों में भी वकीलों ने न्यायिक कार्य स्थगित रखा.

पुलिस की जांच में सामने आया कि अजय की हत्या करने में पंजाब के वांटेड गैंगस्टर संपत नेहरा का हाथ था. चुरू जिले के कालोड़ी गांव के रहने वाले रामचंद्र का बेटा संपत नेहरा पंजाब के कुख्यात लारेंस बिश्नोई से जुड़ा हुआ था. उसे लारेंस का दाहिना हाथ माना जाता था.

लारेंस आजकल राजस्थान की जोधपुर जेल में बंद है. जेल में रहते हुए वह राजस्थान और पंजाब में कई बड़ी वारदातें करवा चुका है. लारेंस और संपत का मकसद एनकाउंटर में आनंदपाल की मौत के बाद राजस्थान में अपना वर्चस्व कायम करना था.

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वकीलों के आंदोलन से पुलिस पर आरोपियों को गिरफ्तार करने का दबाव बढ़ रहा था, इसलिए एसपी राहुल बारहठ ने अभियुक्तों की तलाश में कई टीमें विभिन्न जगहों पर भेजीं. राजस्थान पुलिस ने इस मामले में हरियाणा पुलिस की मदद ली.

हरियाणा पुलिस की स्पैशल टास्क फोर्स ने सादुलपुर पहुंच कर पूरे मामले की जानकारी ली. बीकानेर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक विपिन पांडेय भी दूसरे दिन सादुलपुर आए. उन्होंने न्यायिक अधिकारियों व एसपी के साथ मिल कर वकीलों से भी बात की.

आईजी ने वकीलों को आश्वासन दिया कि कोर्ट परिसर में सशस्त्र गार्ड तैनात किए जाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि अजय जैतपुरा के घर पर भी सुरक्षा गार्ड तैनात किए जाएंगे.

तीसरे दिन भी कई जगह दबिश देने के बावजूद पुलिस को अजय के हत्यारों का सुराग नहीं लगा. इस के बाद चुरू के एसपी ने नामजद 9 आरोपियों में से हरेक पर 5-5 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया.

20 जनवरी को सादुलपुर में बार एसोसिएशन के आह्वान पर वकीलों ने मौन जुलूस निकाला. उन्होंने उपजिला कलेक्टर को ज्ञापन दे कर न्यायालय परिसर को संवेदनशील घोषित करने, घायल वकील रतनलाल प्रजापति को 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता देने, अदालत परिसर में पुलिस चौकी स्थापित करने आदि की मांग की.

पूर्व मंत्री नटवर सिंह की निकली कार

फायरिंग की घटना के पांचवें दिन 21 जनवरी को पुलिस ने हमलावरों की फार्च्युनर गाड़ी हरियाणा में बरामद कर ली. हमलावर इस गाड़ी से सादुलपुर आए थे और इसी गाड़ी से भागे थे. बदमाश इस गाड़ी को हरियाणा के मौजा लाडावास एवं काकडोली के बीच रोही में छोड़ कर भाग गए थे.

जांच में पता चला कि यह गाड़ी पूर्व केंद्रीय विदेश मंत्री नटवर सिंह की है. 25 दिसंबर, 2017 की शाम को यह गाड़ी उन के चालक से गन पौइंट पर गुरुग्राम के सुशांत लोक इलाके से लूटी गई थी. इस गाड़ी को उन का विधायक बेटा जगत सिंह रखता था.

चालक सेवा सिंह जगत सिंह के यहां पिछले 15 सालों से नौकरी कर रहा है. 25 दिसंबर की शाम को सेवा सिंह व माली रामप्रसाद इस गाड़ी से गुरुग्राम के सुशांत लोक गोल्फ चौक गए थे. इसी दौरान लाल रंग की बोलेरो में सवार 2 युवकों ने गन पौइंट पर उन से मारपीट कर के गाड़ी छीन ली थी. इस की रिपोर्ट सुशांत लोक थाने में दर्ज थी.

24 जनवरी को जिला एवं सैशन जज योगेंद्र पुरोहित सादुलपुर पहुंचे. उन्होंने पिछले 7 दिनों से हड़ताल, धरना व अनशन कर रहे वकीलों की बातें सुनीं. जिला जज ने कहा कि उन्होंने इस घटना को गंभीरता से लिया है. वे पूरी सुरक्षाव्यवस्था को चाकचौबंद करवाने में लगे हैं. फायरिंग में घायल हुए एडवोकेट रतनलाल प्रजापति को पीडि़त पक्षकार स्कीम के तहत अधिकतम राशि दिलवाई जाएगी.

आखिर पुलिस की कोशिश रंग लाई

आखिर 29 जनवरी को पुलिस को इस मामले में नामजद आरोपी संदीप कुमार जाट को गिरफ्तार करने में कामयाबी मिली. वह हरियाणा के लोहारू थानाक्षेत्र के गांव सिंघाणी का रहने वाला था. संदीप के खिलाफ बहल, पिलानी सहित कई अन्य थानों में अनेक मामले दर्ज थे. वह हरियाणा में हुए जाट आंदोलन का भी आरोपी था. उसे हरियाणा की एक अदालत ने भगोड़ा घोषित किया था. संदीप अजय जैतपुरा हत्याकांड में नामजद आरोपी मिंटू मोडासिया का साथी था.

संदीप ने बताया कि सादुलपुर में अजय जैतपुरा की हत्या के बाद सभी आरोपी हरियाणा चले गए और वहां से अलगअलग हो गए. संदीप इस वारदात के बाद बेंगलुरु चला गया था. वह इस से पहले बेंगलुरु में काम कर चुका था.

संदीप हवाईजहाज से बेंगलुरु से दिल्ली आ कर अपने साथी प्रवीण व राजेश के गांव कैर की ढाणी जा रहा था, तभी पुलिस ने उसे रास्ते में धर दबोचा था.

पुलिस की जांच में इस मामले में शार्पशूटर अंकित भादू का नाम और सामने आया. पंजाब के शेरावाला बहाववाला, फाजिल्का निवासी अंकित भादू पर 31 जनवरी, 2018 को चुरू एसपी ने 5 हजार रुपए का इनाम घोषित किया. अजय की हत्या के मुख्य आरोपी संपत नेहरा पर 1 फरवरी को बीकानेर आईजी ने 10 हजार रुपए का इनाम घोषित कर दिया. कथा लिखे जाने तक अन्य आरोपी पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े थे.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 1

उत्तर प्रदेश का कानपुर शहर 2 मायनों में खास है. पहला उद्योग के मामले में. यहां का चमड़ा उद्योग दुनिया में मशहूर है और दूसरा जरायम के लिए. कानपुर में दरजनों गैंगस्टर हैं, जो शासनप्रशासन की नींद हराम किए रहते हैं. ये गैंगस्टर राजनीतिक छत्रछाया में फलतेफूलते हैं. हर गैंगस्टर किसी न किसी पार्टी का दामन थामे रहता है. पार्टी के दामन तले ही वह शासनप्रशासन पर दबदबा कायम रखता है.

जघन्य अपराध के चलते जब गैंगस्टर पकड़ा जाता है और जेल भेजा जाता है, तब पार्टी के जन प्रतिनिधि उसे छुड़ाने के लिए पैरवी कर पुलिस अधिकारियों पर दबाव डालते हैं. ऐसे में पुलिस की लचर कार्य प्रणाली से गैंगस्टर को जमानत मिल जाती है. जमानत मिलने के बाद वह फिर से जरायम के धंधे में लग जाता है.

कानपुर शहर का ऐसा ही एक कुख्यात गैंगस्टर है आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट. जुर्म की दुनिया का वह बादशाह है. उस के नाम से जनता थरथर कांपती है. पप्पू स्मार्ट थाना चकेरी का हिस्ट्रीशीटर अपराधी है.

पुलिस रिकौर्ड में पप्पू स्मार्ट का एक संगठित गिरोह है, जिस में अनेक सदस्य हैं. पुलिस अभिलेखों में यह गिरोह डी 123 के नाम से पंजीकृत है. इस के साथ ही उस का नाम चकेरी थाने की भूमाफिया सूची में भी दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट और उस के गिरोह के खिलाफ कानपुर के अलावा प्रदेश के विभिन्न जिलों में 35 केस दर्ज हैं जिन में हत्या, हत्या का प्रयास, रंगदारी, अवैध वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, सरकारी जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मुकदमे हैं.

पप्पू स्मार्ट की दबंगई इतनी थी कि उस ने अपने गिरोह की मदद से जाजमऊ स्थित महाभारत कालीन ऐतिहासिक राजा ययाति का खंडहरनुमा किला कब्जा कर के बेच डाला और अवैध बस्ती बसा दी. वर्तमान समय में पप्पू स्मार्ट अपने दोस्त बसपा नेता व हिस्ट्रीशीटर नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर की हत्या के जुर्म में कानपुर की जेल में बंद है.

आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट कौन है, उस ने जुर्म की दुनिया में कदम क्यों और कैसे रखा, फिर वह जुर्म का बादशाह कैसे बना? यह सब जानने के लिए उस के अतीत में झांकना होगा.

कानपुर महानगर के चकेरी थानांतर्गत एक मोहल्ला है हरजेंद्र नगर. इसी मोहल्ले में मोहम्मद सिद्दीकी रहता था. उस के परिवार में बेगम मेहर जहां के अलावा 4 बेटे आसिम उर्फ पप्पू, शोएब उर्फ पम्मी, तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू थे.

मोहम्मद सिद्दीकी मोची का काम करता था. हरजेंद्र नगर चौराहे पर उस की दुकान थी. यहीं बैठ कर वह जूता गांठता था. चमड़े का नया जूता बना कर भी बेचता था. उस की माली हालत ठीक नहीं थी. बड़ी मुश्किल से वह परिवार को दो जून की रोटी जुटा पाता था.

आर्थिक तंगी के कारण मोहम्मद सिद्दीकी अपने बेटों को अधिक पढ़ालिखा न सका. किसी ने 5वीं दरजा पास की तो किसी ने 8वीं. कोई हाईस्कूल में फेल हुआ तो उस ने पढ़ाई बंद कर दी. पढ़ाई बंद हुई तो चारों भाई अपने अब्बूजान के काम में हाथ बंटाने लगे.

बेटों की मेहनत रंग लाई और मोहम्मद सिद्दीकी की दुकान अच्छी चलने लगी. आमदनी बढ़ी तो घर का खर्च मजे से चलने लगा. कर्ज की अदायगी भी उस ने कर दी और सुकून की जिंदगी गुजरने लगी.

मामा से सीखा जुर्म का पाठ

चारों भाइयों में आसिम उर्फ पप्पू सब से बड़ा तथा शातिरदिमाग था. उस का मन दुकान के काम में नहीं लगता था. वह महत्त्वाकांक्षी था और ऊंचे ख्वाब देखता था. उस के ख्वाब छोटी सी दुकान से पूरे नहीं हो सकते थे. अत: उस का मन भटकने लगा था. उस ने इस विषय पर अपने भाइयों से विचारविमर्श किया तो उन्होंने भी उस के ऊंचे ख्वाबों का समर्थन किया.

लेकिन अकूत संपदा अर्जित कैसे की जाए, इस पर जब आसिम उर्फ पप्पू ने मंथन किया तो उसे अपने मामूजान की याद आई. पप्पू के मामा रियाजुद्दीन और छज्जू कबूतरी अनवरगंज के हिस्ट्रीशीटर थे और अपने जमाने में बड़े ड्रग्स तसकर थे.

आसिम उर्फ पप्पू ने अपनी समस्या मामू को बताई तो वह उस की मदद करने को तैयार हो गए. उन्होंने पप्पू से कहा कि साधारण तौरतरीके से ज्यादा दौलत नहीं कमाई जा सकती. इस के लिए तुम्हें जरायम का ककहरा सीखना होगा.

मामू की बात सुन कर आसिम उर्फ पप्पू राजी हो गया. उस के बाद छज्जू कबूतरी से ही पप्पू एवं उस के भाइयों ने अपराध का ककहरा सीखा. सब से पहले इन का शिकार हुआ हरजेंद्र नगर चौराहे पर रहने वाला एक सरदार परिवार, जिस के घर के सामने पप्पू की मोची की दुकान थी.

चारों भाइयों ने अपने मामा छज्जू कबूतरी की मदद से उस सरदार परिवार को प्रताडि़त करना शुरू किया. मजबूर हो कर सरदार परिवार घर छोड़ कर पंजाब पलायन कर गया.

इस मकान पर पप्पू और उस के भाइयों ने कब्जा कर लिया और जूते का शोरूम खोल दिया. जिस का नाम रखा गया स्मार्ट शू हाउस. दुकान की वजह से आसिम उर्फ पप्पू का नाम पप्पू स्मार्ट पड़ गया.

पप्पू स्मार्ट के खिलाफ पहला मुकदमा वर्ष 2001 में कोहना थाने में आईपीसी की धारा 336/436 के तहत दर्ज हुआ. इस में धारा 436 गंभीर है, जिस में किसी भी उपासना स्थल या घर को विस्फोट से उड़ा देना या आग से जला देने का अपराध बनता है. दोषी पाए जाने पर अपराधी को आजीवन कारावास की सजा हो सकती है.

इस मुकदमे के बाद पप्पू स्मार्ट ने मुड़ कर नहीं देखा. साल दर साल उस के जुर्म की किताब के पन्ने थानों के रोजनामचे में दर्ज होते रहे.

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पप्पू स्मार्ट ने एक संगठित गिरोह बना लिया, जिस में 2 उस के सगे भाई तौसीफ उर्फ कक्कू तथा आमिर उर्फ बिच्छू शामिल थे. इस के अलावा बबलू सुलतानपुरी, वसीम उर्फ बंटा, तनवीर बादशाह, गुलरेज, टायसन जैसे अपराधियों को अपने गिरोह में शामिल कर लिया. पूर्वांचल के माफिया सऊद अख्तर, सलमान बेग, साफेज उर्फ हैदर तथा महफूज जैसे कुख्यात अपराधियों के संपर्क में भी वह रहने लगा.

सुशांत-रिया मामला: प्यार या बिजनेस?

सुशांत केस में भारत की 3 सर्वोच्च एजेंसियों सीबीआई, ईडी और एनसीबी ने अपनेअपने ढंग से जांच की. सच को समझने और सामने लाने के लिए देश के सर्वोच्च मैडिकल इंस्टीट्यूट के 3 सीनियर डाक्टरों को भी जांच में शामिल किया गया. जांच के दौरान ईडी को रिया के मोबाइल से ड्रग्स से जुड़ी कुछ चैट मिली तो एनसीबी को आना पड़ा. इस के बाद तो बौलीवुड पर…

मायानगरी मुंबई, वह महानगर जहां आदर्शवाद और संवेदनशील भावनाओं के बेहद महीन धागों से
इंद्रधनुषी सपने रचे जाते हैं, गढ़े जाते हैं. जब ये सपने तैयार हो कर सेल्युलाइड पर उतरते हैं तो दर्शकों को कुछ समय के लिए वास्तविकता से दूर उस दुनिया में ले जाते हैं, जहां सब कुछ इंद्रधनुषी रंगों और मखमली रोशनियों में लिपटा महसूस होता है, खूबसूरत, मनलुभावन. रजतपट पर दिखाए जाने वाले सपने बुनने और बेचने वाली मुंबई पिछले 6 दशकों से युवा दिलों की धड़कन बनी हुई है.

लेकिन जब कभी सपनों के रेशमी जाल बुनने वाला कोई धागा न खुलने वाली गिरह बन जाता है तो मायानगरी की इंद्रधनुषी छवि के पीछे छिपी विद्रूपता खुल कर खुदबखुद उजागर हो जाती है. इस बार स्वप्न के इंद्रधनुषी वितान में छेद करने का जरिया बनी सुशांत सिंह राजपूत की कथित हत्या या आत्महत्या, जिस में रिया चक्रवर्ती के नाम ने सपनों की दुनिया में ऐसी उथलपुथल मचाई कि अंदर की वास्तविक कुरुपता फूटफूट कर बाहर आने लगी.

पहले मुंबइया फिल्म इंडस्ट्री का नेपोटिज्म मीडिया के निशाने पर रहा, फिर सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया चक्रवर्ती सवालों के घेरे में आ गई. रोज नई खबरें, रोज नए अनुमान. सुशांत की आकस्मिक मृत्यु ने उन के प्रशंसकों को झकझोर कर रख दिया था, इसलिए वे दिन में कईकई बार बदलती खबरों में सच्चाई ढूंढते रहे.
यही वजह थी कि जब यह खबर आई कि सुशांत बौलीवुड के नेपोटिज्म का शिकार बने, साइन करने के बावजूद उन की कई फिल्मों को बंद कर दिया गया. बौलीवुड लौबी उन्हें आउटसाइडर मान कर आगे नहीं बढ़ने दे रही थी. और भी न जाने क्याक्या कारण उन की मौत के जिम्मेदार मान लिए गए.

यह सब न्यूज चैनल्स पर देखसुन कर सुशांत के फैंस का गुस्सा इस कदर फूटा कि उन्होंने बौलीवुड के दिग्गज डायरेक्टर प्रोड्यूसरों को निशाने पर ले कर सोशल मीडिया पर उन की आलोचना शुरू कर दी. अपनी प्रशंसा सुनने के आदी दिग्गज फिल्म निर्माता और निर्देशक इस कड़वाहट को पचा नहीं पाए.
उन्होंने सोशल मीडिया के अपने एकाउंट धड़ाधड़ बंद करने शुरू कर दिए. लेकिन सुशांत के फैंस यहीं नहीं रुके, उन्होंने सुशांत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’, जो ओटीटी पर रिलीज होने जा रही थी, की सोशल मीडिया के साथसाथ इतनी माउथ पब्लिसिटी की कि यह फिल्म सुपरडुपर हिट रही, फिर लोगों की डिमांड पर इसे जल्दी ही टेलीविजन पर भी दिखा दिया गया.

इस सब के बीच मुंबई पुलिस जो सुशांत की मौत को पहले ही आत्महत्या करार दे चुकी थी, ने नेपोटिज्म वाले ऐंगल से इनवैस्टीगेशन के नाम पर बड़ेबड़े निर्मातानिर्देशकों को थाने बुला कर पूछताछ की प्रक्रिया शुरू कर दी. दूसरी तरफ इलैक्ट्रौनिक मीडिया सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया की कुंडली खंगालने पर लगा था.

रिया का नाम सुशांत की मौत के बाद ही सुर्खियों में आया था. सुशांत के मामले में यह नाम बारबार लिए जाने की वजह कुछ संदेहास्पद स्थितियां थीं, जैसे सुशांत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान ने भी 8 जून को ही आत्महत्या की थी. सुशांत के साथ लिवइन में रह रही रिया भी उसी दिन अपने पेरैंट्स के घर गई थी. आखिर 8 तारीख में ऐसा क्या था?इसी बीच सुशांत के पिता के.के.

सिंह ने हत्या का आरोप लगाते हुए पटना में रिपोर्ट लिखाई, जिस में रिया और उस के भाई शौविक का नाम शामिल था. रिपोर्ट में यह आरोप भी लगाया गया कि सुशांत के बैंक एकाउंट में 15 करोड़ रुपए थे. लेकिन रिया और उस के भाई शौविक ने यह रकम हथिया ली. इस मामले की जांच करने बिहार पुलिस मुंबई गई थी, लेकिन वहां की पुलिस ने सहयोग नहीं किया. बाद में जब पटना के एसपी विनय तिवारी मुंबई पहुंचे तो कोरोना की आड़ ले कर उन्हें क्वारेंटाइन कर दिया गया.

न्यूज चैनल्स की नायाब कवरेज

सुशांत की मौत का मामला शायद ऐसा पहला मामला है, जिसे सब से ज्यादा कवरेज मिली. यूं तो मुंबई में सभी चैनलों के संवाददाता हैं, लेकिन इस मामले की कवरेज के लिए चैनलों ने अपने कई संवाददाताओं को भेजा. एक चैनल के तो एक दरजन संवाददाता मुंबई गए, जिन में कई सीनियर भी थे.

न्यूज चैनल्स ने कवरेज के लिए रिया का घर, सुशांत की सोसायटी, एक्सचेंज बिल्डिंग जहां रिया और ड्रग्स पेडलर से पूछताछ की जा रही थी, डीआरडीओ गेस्टहाउस और कोर्ट पर अपने रिपोर्टर और कैमरापरसन तैनात कर रखे थे ताकि पलपल की खबर दी जा सके. महीने भर से मुंबई की कवरेज देख कर आमिर खान की फिल्म ‘पीपली लाइव’ की याद ताजा हो जाती थी.

फिर सुशांत के पिता के.के. सिंह ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिल कर सुशांत केस की सीबीआई जांच की संस्तुति करने का अनुरोध किया. मुख्यमंत्री की संस्तुति पर केंद्र सरकार ने उसी दिन सीबीआई को सुशांत केस की जांच के आदेश दे दिए.इस पर रिया चक्रवर्ती अपने वकील के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई. उस का कहना था कि जांच सीबीआई की जगह मुंबई पुलिस से ही कराई जाए. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया.

हालांकि शुरुआती दौर में रिया ने खुद सुशांत मामले की जांच सीबीआई से कराने की बात कही थी.21 अगस्त से सीबीआई ने मुंबई जा कर अपनी जांच शुरू कर दी. सीबीआई की एक टीम ने बांद्रा थाने की पुलिस से अब तक की जांच के सबूत और रिपोर्ट मांगी. बांद्रा जोन के डीसीपी अभिषेक त्रिमुखे ने इस मामले में दर्ज 56 बयान, फोरैंसिक रिपोर्ट, आटोप्सी रिपोर्ट, सुशांत के तीनों मोबाइल, लैपटौप आदि चीजें सीबीआई को सौंप दीं.

सीबीआई की दूसरी टीम ने सुशांत के कुक नीरज और हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा  से पूछताछ की. वहीं सीबीआई की एसपी नूपुर प्रसाद रिया चक्रवर्ती से उन के यूरोप टुअर, सुशांत सिंह से उन के रिलेशन और पैसों से संबंधित जानकारी जुटाने में जुट गईं.

बढ़ती जांच फंसते पेंच

जैसे-जैसे जांच का दायरा आगे बढ़ा, सुशांत के फ्लैटमेट सिद्धार्थ पिठानी और दीपेश सावंत ने सीबीआई से सरकारी गवाह बनने की गुजारिश कर डाली. अब तक अलगअलग बयान दे कर मीडिया को गुमराह करने वाला पिठानी जब सरकारी गवाह बनने को तैयार हुआ तो सीबीआई को अंदेशा हो गया कि सुशांत की आत्महत्या का मामला उतना सीधासरल नहीं है, जितना लग रहा है.

सीबीआई की तीनों टीमें दिल्ली से साथ लाए गए फोरैंसिक एक्सपर्ट्स के साथ मिल कर सुशांत की हत्या या आत्महत्या की गुत्थी को सुलझाने की कोशिश में अपनी जांच का दायरा बढ़ाती जा रही थीं.

इसी के चलते सीबीआई ने सुशांत के फ्लैट पर सुशांत की सुसाइड वाली थ्योरी को समझने के लिए 2 बार सुसाइड सीन रिक्रिएट किया. उस समय सब से पहले सुशांत को फंदे में लटका देखने वाले सिद्धार्थ पिठानी और दीपेश सावंत मौजूद थे. जब सुशांत की बहन मीतू सिंह वहां पहुंचीं, तब सुशांत का शव बैड पर था. बाद में सीबीआई ने सुशांत और दीपेश को गिरफ्तार कर लिया था.

सुशांत के घर वालों ने उन के एकाउंट में 15 करोड़ रुपए होने की बात कही थी. लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी जब सीबीआई सुशांत के एकाउंट से गायब 15 करोड़ रुपए की रकम का कोई पता नहीं लगा सकी तो छानबीन के लिए ईडी आगे आई. ईडी ने रिया के 2 मोबाइल फोन कब्जे में ले कर जांच शुरू की.
रिया चूंकि इन फोनों के मैसेज डिलीट कर चुकी थी, इसलिए ईडी ने उस के दोनों फोन क्लोन कर लिए ताकि उन का डाटा रिकवर हो सके.

दूसरी तरफ पूछताछ में रिया ने कहा कि उस का सुशांत के खातों से कोई लेनादेना नहीं था. हालांकि सुशांत अपनी मरजी से उस पर पैसा जरूर खर्च करता था.बहरहाल, ईडी की जांच के दौरान रिया पिछले 5 साल में अपने बैंक स्टेटमेंट में आए पैसों का कोई जवाब नहीं दे सकी. दूसरी तरफ उस का एकाउंट मैनेज करने वाले उस के पिता इंद्रजीत चक्रवर्ती ने भी गलतबयानी की. इस जांच में 52 लाख का गलत ट्रांजैक्शन सामने आया.

रिया चक्रवर्ती और उस के परिवार से पूछताछ में सुशांत के एकाउंट से गायब 15 करोड़ रुपए के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी, फलस्वरूप सुशांत के परिवार द्वारा रिया पर लगाया गया 15 करोड़ रुपए गायब करने का आरोप साबित नहीं हुआ.इस के बावजूद रिया निर्दोष नहीं निकली, क्योंकि ईडी की जांच में पूरे मामले ने नाटकीय घटनाक्रम से गुजरते हुए एक नया ही रुख अपना लिया.

बात नेपोटिज्म, प्यार में बेवफाई, 15 करोड़ और गृहक्लेश जैसे उन सभी कारणों, जो सुशांत की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराए गए थे, को लांघती हुई उस नशीली आबोहवा तक जा पहुंची, जिसे ड्रग्स, मारिजुआना और कोकीन जैसे मादक पदार्थ गुलजार करते हैं.

ईडी ने इस संबंध में एनसीबी यानी नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को पत्र लिख कर यह बात बता दी. ईडी के बुलावे पर मुंबई आई नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने जांच संभाल ली. एनसीबी की जांच जैसेजैसे आगे बढ़ी तो नशे के व्यापार का कड़वा कसैला धुआं बौलीवुड के इंद्रधनुषी आसमान को अपनी गिरफ्त में लेने लगा.एक के बाद एक खुलासा फिल्म इंडस्ट्री के अंदर की गंदगी को उलीचउलीच कर बाहर फेंकने लगा, जिस से सपनों का तिलिस्म टूटने लगा. परदे पर दिखने वाली आदर्शवादिता कहीं अंधेरे में दुबक कर बैठ गई.

फोन का डाटा हुआ रिकवर

दरअसल, एनसीबी ने जब रिया के मोबाइल की रिकवर हुई चैट पढ़नी शुरू की तो पूरे मामले का रुख ही बदल गया. इस चैट में हाई ड्रग्स और एमडीएमए का जिक्र था, जिस में टैलेंट मैनेजर जया शाह ने रिया से कहा, ‘चाय, कौफी या पानी में 4 बूंदें डालो और उसे पिला दो. असर देखने के लिए 30-40 मिनट इंतजार करो.’ मैसेज की ये लाइनें बहुत कुछ कहती थीं.

इस के बाद एनसीबी ने रिवर्स इनवैस्टीगेशन किया. सब से पहले उन एक्टिव पेडलर्स को गिरफ्त में लिया गया, जो ड्रग्स का कारोबार करते हैं. एनसीबी द्वारा गिरफ्तार आरोपी कैजान इब्राहिम ने पूछताछ के दौरान अनुज केशवानी का नाम लिया था. हालांकि कैजान को मुंबई की एस्प्लेनेड कोर्ट से 24 घंटे से भी पहले जमानत मिल गई. कैजान के बयान के आधार पर एनसीबी ने जब अनुज केशवानी के ठिकानों पर छापा मारा तो कथित रूप से हशीश, एलएसडी, मारिजुआना जैसी ड्रग्स बरामद हुईं.

सुशांत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा ने एनसीबी को बताया कि मार्च में रिया चक्रवर्ती को ड्रग्स सप्लाई की गई थी, जिसे पहली बार जैद ने और दूसरी बार अब्दुल बासित परिहार ने शौविक को दिया था. अब्दुल बासित ने अपने बयान में कहा कि वह शौविक चक्रवर्ती के कहने पर जैद विलात्रा और कैजान इब्राहिम से ड्रग्स खरीदता था.

जैद विलात्रा को एनसीबी पहले ही गिरफ्तार कर चुकी थी. उस पर कई ड्रग डीलिंग में शामिल रहने का आरोप था. सैमुअल मिरांडा के अनुसार रिया ने उस से 3 बार ड्रग्स देने को कहा था, जिन्हें पेडलर से शौविक ने लिया था.

रिया और शौविक चक्रवर्ती की 17 मार्च को हुई वाट्सऐप चैट सामने आई तो उस में भी ड्रग्स का जिक्र था. इन सारे सबूतों के बाद एनसीबी का शिकंजा रिया के इर्दगिर्द कसता गया. जब पूछताछ के दौरान रिया संतोषजनक जवाब नहीं दे पाई तो अगले दिन एनसीबी ने रिया और शौविक को आमनेसामने बैठा कर सवाल करने शुरू कर दिए.

आखिर फंस ही गई रिया

सूत्रों के अनुसार रिया टालने वाले जवाब देती रही. तब एनसीबी ने रिया को उस के वाट्सऐप चैट दिखा कर पूछा कि वह ड्रग्स लेती थी या नहीं, इस पर रिया ने इनकार कर दिया.अंतत: 3 तीन दिन चली 20 घंटों की लंबी पूछताछ के बाद 8 सितंबर को रिया चक्रवर्ती गिरफ्तार कर ली गई.

उस पर ड्रग सिंडीकेट का हिस्सा होने का आरोप लगाते हुए एनसीबी ने कहा कि केस से जुड़ी जो भी ड्रग डील हुई, उन्हें रिया ने फाइनैंस किया था.एनसीबी ने इस केस में रिया, शौविक चक्रवर्ती, सुशांत के हाउस मैनेजर सैमुअल मिरांडा और सुशांत के घरेलू नौकर दीपेश सावंत सहित 8 आरोपियों को गिरफ्तार किया. ड्र्रग्स केस में दीपेश पर सैमुअल ने आरोप लगाया था.

रिया चक्रवर्ती की गिरफ्तारी के बाद उस के वकील सतीश मानशिंदे ने कहा कि 3 एजेंसियां अभिनेत्री (रिया) के पीछे इसलिए पड़ी हैं क्योंकि उन्होंने ऐसे शख्स से प्यार किया जो नशे का आदी था और जिसे मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं थीं. वह ड्रग एडिक्ट से प्यार करने की सजा भुगत रही हैं, जो कई सालों से मानसिक रूप से बीमार था.ज्ञातव्य हो कि ड्रग्स केस में नाम आने के बाद रिया चक्रवर्ती ने कहा था कि सुशांत उस से मिलने से पहले ही मारिजुआना लेते थे.

साथ ही यह भी बताया कि सुशांत दिन भर में मारिजुआना भरी 3-4 सिगरेट पी जाते थे. वह उन्हें रोकने की कोशिश भी करती थी लेकिन एडिक्शन के चलते सुशांत के लिए मारिजुआना का इंतजाम उसी को करना पड़ता था. रिया की इस बात में कितनी सच्चाई है यह तो नहीं पता, लेकिन इतना जरूर है कि सुशांत ड्रग्स की चपेट में आ चुके थे. एनसीबी के अनुसार सुशांत जो सिगरेट पीते थे, उस में ड्रग्स होती थी, जिस की वजह से उन की मानसिक हालत खराब हो रही थी. एनसीबी ने यह बात सीबीआई को बताई तो सीबीआई ने अपनी जांच को गति देनी शुरू कर दी.

जबकि सुशांत के डिप्रेशन का इलाज करने वाले 2 डाक्टरों ने पूछताछ के दौरान मुंबई पुलिस को बयान दिया था कि सुशांत डिप्रेशन, तनाव, चिंता और पायपोलर डिसऔर्डर के शिकार थे.

डाक्टरों के अनुसार सुशांत ने दवाइयां लेनी बंद कर दी थीं, जिस से उन की हालत बिगड़ती चली गई और उन्हें खुद को संभालना मुश्किल हो गया.

सीबीआई ने बुलाए एम्स के डाक्टर

इतना ही नहीं, मुंबई पुलिस ने सुशांत की जिस मौत को देखते ही आत्महत्या बता दिया था, सीबीआई ने उसे अपने तरीके से इनवैस्टीगेट किया, यहां तक कि देश के सर्वोच्च मैडिकल इंस्टीट्यूट एम्स के 3 फोरैंसिक एक्सपर्ट्स की टीम मुंबई बुलाई गई. इस टीम ने मुंबई पहुंच कर इस केस की जांच शुरू कर दी. इस जांच में कूपर अस्पताल के डाक्टरों से पूछताछ भी शामिल थी, जिन्होंने सुशांत की आटोप्सी की थी. एम्स की टीम ने सुशांत के गले में मौजूद जख्म के निशान को ले कर आटोप्सी करने वाले डाक्टरों से लंबी पूछताछ की.

साथ ही एम्स ने सुशांत के विसरा सैंपल की दोबारा जांच का निर्णय लिया ताकि यह पता चल सके कि सुशांत को कोई जहर या कोई ऐसा ड्रग तो नहीं दिया गया था, जो घातक हो. हालांकि सुशांत का विसरा मात्र 20 परसेंट ही बचा था, बाकी मुंबई पुलिस जांच के दौरान इस्तेमाल कर चुकी थी. ऐसे में एम्स के फोरैंसिक डिपार्टमेंट के लिए यह चुनौती और भी मुश्किल थी.

वैसे भी सुशांत केस में इतना झूठ, इतनी बयानबाजी और न्यूज चैनलों द्वारा इतना इनवैस्टीगेशन किया जा चुका है कि सच अपने मुद्दे से भटक कर बहुत पीछे रह गया. जिसतिस के बयानों और झूठ पर आधारित मनगढ़ंत किस्से न्यूज चैनलों और सोशल मीडिया पर तैरतेगूंजते रहे, जिस में सब से ज्यादा झूठ सुशांत की गर्लफ्रैंड रही रिया चक्रवर्ती ने और उन के फ्लैटमेट रहे सिद्धार्थ पिठानी ने ही बोला, जबकि ये दोनों ही उन के सब से ज्यादा करीबी थे.

यहां तक कि सिद्धार्थ ने सीबीआई को गुमराह करने में भी कसर नहीं छोड़ी. सिद्धार्थ को इस बात की जानकारी जनवरी से ही थी कि सुशांत को सिगरेट में ड्रग्स दी जाती है. इस के अलावा सिद्धार्थ ने अपने बयान में कहा था कि सुशांत की बौडी को फंदे से मीतू सिंह के कहने पर उतारा था, लेकिन जब सुशांत की बहन मीतू को सिद्धार्थ के सामने लाया गया तो उस ने मीतू सिंह के सामने कहा कि सुशांत का शव जब बैड पर रखा गया तब मीतू वहां पहुंची थीं.

जहां सुशांत ने कथित आत्महत्या की थी, उस घर की जांचपड़ताल करने के बाद एम्स की फोरैंसिक टीम ने इस संदर्भ में कहा था कि सुशांत की मौत के पीछे कोई बड़ा कारण है, क्योंकि सिद्धार्थ पिठानी सुशांत को फांसी के फंदे से उतारने का जो बयान दे रहे हैं, वह संदेह के दायरे में है.साथ ही टीम ने यह आशंका भी जाहिर की कि सुशांत की बौडी को जल्द डिस्पोजल करने के पीछे ड्रग्स भी बड़ी वजह हो सकती है, क्योंकि उन का पीएम (पोस्टमार्टम) सही तरीके से किया होता तो इस का खुलासा हो सकता था.

सुशांत केस में मुंबई पुलिस द्वारा कराए गए पोस्टमार्टम की रिपोर्ट और पोस्टमार्टम के दौरान की गई वीडियोग्राफी के फुटेज व अन्य फोटोग्राफ के आधार पर एम्स की टीम ने सुशांत की बौडी पर चोट के पैटर्न का भी विश्लेषण किया. फोरैंसिक एक्सपर्ट्स को रिपोर्ट में छोटीछोटी कई कमियां नजर आईं, उस से कई सवाल उठते थे.

एम्स की टीम हर पहलू से उन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने में जुटी थी, जिस में एक ऐंगल सुशांत की हत्या से भी संबंधित था, क्योंकि एम्स के मैडिकल बोर्ड ने शुरुआत में ही यह आशंका जाहिर की थी कि हत्या के ऐंगल को इग्नोर नहीं किया जा सकता.बहरहाल, 17 सितंबर को एम्स के फोरैंसिक विभाग के विभागाध्यक्ष और सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मौत की जांच के लिए बनाए गए बोर्ड के चेयरमैन डा. सुधीर गुप्ता ने बयान जारी करते हुए कहा कि अगले हफ्ते मैडिकल बोर्ड अपनी राय सीबीआई को सौंप देगा और बोर्ड की राय निर्णायक होगी.

यानी सुशांत सिंह राजपूत के घरवालों और उन के चाहने वालों को अपने प्रिय स्टार की मौत का सच जानने के लिए कुछ और इंतजार करना होगा. उस स्टार की, जो चांद के ख्वाब देखता था, सितारों की दुनिया में जीता था और खुद स्टार बन कर रुपहले परदे पर चमकता था. यह सब के लिए अकल्पनीय था कि सुशांत इतनी जल्दी और इतना अचानक हमेशा के लिए अपनी सितारों की दुनिया में चला जाएगा और उसी का हिस्सा बन जाएगा.

फिल्म स्टार्स को शादी के ठुमकों से भी करोड़ों की कमाई

वाकया अब से कोई 8 साल पहले का है. मशहूर बौलीवुड अभिनेता शाहरुख खान एक शादी में शामिल होने के लिए दुबई गए थे. विवाहस्थल था नामी मेडिनाट जुमैराह होटल, मेजबान थे अहमद हसीम खूरी और मरियम ओथमन, जिन की गिनती खाड़ी के बड़े रईसों में शुमार होती है.

मौका था इन दोनों के बेटे की शादी का, जो इतने धूमधाम से हुई थी कि ऐसा लगा था कि इस में पैसा खर्च नहीं किया गया बल्कि फूंका और बहाया गया है. इस की वजह भी है कि शायद ही खुद अहमद हसीम खूरी को मालूम होगा कि उन के पास कितनी दौलत है.

एक आम पिता की तरह इस खास शख्स की यह ख्वाहिश थी कि बेटे की शादी इतने धूमधाम से हो कि दुनिया याद रखे और ऐसा हुआ भी, जिस में शाहरुख खान का वहां जा कर नाच का तड़का लगाना एक यादगार लम्हा बन गया था.

चूंकि खूरी शाहरुख के अच्छे परिचित हैं, इसलिए यह न सोचें कि वे संबंध निभाने और शिष्टाचारवश इस शादी में शिरकत करने गए थे, बल्कि हकीकत यह कि वह वहां किराए पर नाचने गए थे. आधे घंटे नाचने की कीमत शाहरुख ने 8 करोड़ रुपए वसूली थी और मेजबानों ने खुशीखुशी दी भी थी.

रियल एस्टेट से ले कर एयरलाइंस तक के कारोबार के किंग अहमद हसीम खूरी जो दरजनों छोटीबड़ी कंपनियों के मालिक हैं, के लिए यह वैसी ही बात थी जैसे किसी भेड़ के शरीर से 8-10 बाल झड़ जाना. लेकिन शाहरुख के लिए यह पैसा पूरी तरह से बख्शीश तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन बोनस जरूर था.

यह डील राशिद सैय्यद ने करवाई थी, जो दुबई में शाहरुख के इवेंट आयोजित करवाते हैं. इस डील में भी उन्हें तगड़ा कमीशन मिला था. यह वह दौर था जब शाहरुख खान अपनी बीमारी की वजह से निजी आयोजनों में जाने से परहेज करते थे, पर आधे घंटा ठुमका लगाने के एवज में मिल रही 8 करोड़ की रकम का लालच वह छोड़ नहीं पाए थे. क्योंकि सौदा कतई घाटे का न हो कर तगड़े मुनाफे का था.

ऐसा नहीं है कि शाहरुख देश की शादियों में नाचनेगाने की फीस चार्ज न करते हों. हां, वह कम जरूर होती है. आजकल वह शादियों में शामिल होने के 2 करोड़ लेते हैं और मेजबान अगर उन्हें नचाना भी चाहे तो यह फीस 3 करोड़ हो जाती है.

लेकिन समां ऐसा बंधता है कि लड़की या लड़के वाले के पैसे वसूल हो जाते हैं. शान से शादी करना हमेशा से ही लोगों की फितरत रही है और इस के लिए वे ज्यादा से ज्यादा दिखावा और खर्च करते हैं, जिस का बड़ा हिस्सा मनोरंजन पर खर्च होता है.

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करोड़ों के ठुमके

एक दौर था जब अमीरों और जमींदारों के यहां की शादियों में नामी रंडियां, बेड़नियां और तवायफें दूरदूर से नाचने के लिए बुलाई जाती थीं. इन का नाच देखने और मुजरा सुनने के लिए खासी भीड़ इकट्ठी होती थी.

प्रोग्राम के बाद लोग मान जाते थे कि वाकई मेजबान इलाके का सब से बड़ा रईस और दिलदार आदमी है, जिस ने 11 बेड़नियां नचा कर फलां को मात दे दी, जो अपने बेटे की शादी में केवल 5 तवायफें ही ला पाया था.

5 हों या 7 या फिर 11, इन पेशेवर नचनियों को खूब मानसम्मान दिया जाता था और उन की खातिर खुशामद में कोई कमी नहीं रखी जाती थी. इन की फीस भी तब के हिसाब से तौलें तो किसी शाहरुख, सलमान, रितिक रोशन, अक्षय कुमार, कटरीना कैफ, अनुष्का शर्मा, रणवीर सिंह या प्रियंका चोपड़ा से कम नहीं होती थी.

ये सभी फिल्म स्टार शादियों और दूसरे निजी आयोजनों में हिस्सा लेने में अपनी और मेजबान की हैसियत के हिसाब से फीस लेते हैं, जो फिल्मों के अलावा इन की अतिरिक्त आमदनी होती है. हालांकि पैसों के लिए ये अब उद्घाटन के अलावा शपथ ग्रहण समारोहों तक में शामिल होने लगे हैं और विज्ञापनों व ब्रांड प्रमोशन से भी अनापशनाप कमाते हैं. लेकिन शादियों की बात कुछ अलग हटकर है.

वक्त के साथ शादियों के पुराने तौरतरीके बदले तो बेड़नियों और तवायफों की जगह फिल्म स्टार्स ने ले ली. शादियों में खासतौर से इन की मांग ज्यादा होती है, क्योंकि खुशी के इस मौके को लोग यादगार बना लेना चाहते हैं. ऐसे में अगर कोई फिल्मी सितारा वे अफोर्ड कर सकते हैं तो उसे बुलाने से चूकते नहीं.

ये डील सीधे भी होती हैं, पीआर एजेंसी और इवेंट कंपनियों के जरिए भी. और किसी जानपहचान वाले का फायदा भी उठाया जाता है. हालांकि अधिकांश बड़े सितारों ने इस बाबत अपने खुद के भी बिजनैस मैनेजर नियुक्त कर रखे हैं.

शाहरुख खान वक्त की कमी के चलते साल में 3-4 से ज्यादा शादियों में नहीं जाते. इस से ही उन्हें कोई 10 करोड़ की सालाना कमाई हो जाती है. शाहरुख की तरह ही सलमान खान भी साल में 3-4 शादियों में ही शिरकत करते हैं. हां, उन की फीस थोड़ी कम 2 करोड़ रुपए है.

सलमान शादियों में दिल से नाचते हैं और घरातियों और बारातियों को भी खूब नचाते हैं. शाहरुख के बाद सब से ज्यादा मांग उन्हीं की रहती है. आप जान कर हैरान हो सकते हैं कि इन दोनों के पास साल में ऐसे यानी पेड डांस के कोई 200 न्यौते आते हैं, लेकिन ये जाते सिर्फ 3 या 4 में ही हैं.

अक्षय नहीं दिखाते ज्यादा नखरे

जिन्हें शाहरुख या सलमान खान से मंजूरी नहीं मिलती, वे अक्षय कुमार जैसे स्टार की तरफ दौड़ लगा देते हैं जो आसानी से मिल जाते हैं और इन की फीस भी उन से कम होती है. आजकल अक्षय कुमार डेढ़ करोड़ में नाचने को तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन का बाजार ठंडा चल रहा है.

अक्षय कुमार की यह खूबी है कि बेगानी शादी में यह दिखाने की पूरी कोशिश करते हैं कि वे वर या वधु पक्ष के बहुत अजीज हैं. अब यह और बात है कि समझने वाले समझ जाते हैं कि वे आए तो किराए पर नाचने हैं.

अक्षय कुमार से भी सस्ते पड़ते हैं रणवीर सिंह, जिन की शादी में नाचने की फीस सिर्फ एक करोड़ रुपए है और केवल शादी में शामिल होना हो यानी नाचना न हो तो वे 50 लाख में भी मुंह दिखाने को तैयार हो जाते हैं.

‘कहो न प्यार है’ फिल्म से रातोंरात स्टार बन बैठे रितिक रोशन शादी में शामिल होने के लिए एक करोड़ फीस चार्ज करते हैं और नाचना भी हो तो इस अमाउंट में 50 लाख रुपए और जुड़ जाते हैं. यानी डेढ़ करोड़ रुपए

कपूर खानदान के रणबीर कपूर कभीकभार ही ऐसे न्यौते स्वीकारते हैं, उन की फीस डेढ़ करोड़ रुपए है.

सस्ती पड़ती हैं एक्ट्रेस

नायकों के मुकाबले शादियों में नचाने को नायिकाएं सस्ती पड़ती हैं जबकि उन में आकर्षण ज्यादा होता है. सब से ज्यादा डिमांड कटरीना कैफ की रहती है, जिन की फीस बड़े नायकों के बराबर ढाई करोड़ रुपए है.

कटरीना को अपनी शादी में नाचते देखने का लुत्फ वही उठा सकता है, जो घंटा आधा घंटा के एवज में यह भारीभरकम रकम खर्च कर सकता हो. हालांकि ऐसे शौकीनों की कमी भी नहीं. कटरीना के बराबर ही मांग प्रियंका चोपड़ा की रहती है. उन की फीस भी ढाई करोड़ है, जिसे अदा कर उन से ठुमके लगवाए जा सकते हैं.

इन दोनों को टक्कर देने वाली करीना कपूर डेढ़ करोड़ में शादी को यादगार बनाने के लिए तैयार हो जाती हैं और नाचती भी दिल से हैं. तय है कपूर खानदान की होने के नाते वे भारतीय समाज और उस की मानसिकता को बारीकी से समझती हैं कि लोग बस इस मौके को जीना चाहते हैं जिस में उन का रोल एक विशिष्ट मेहमान का है.

उन के दादा राजकपूर की हिट फिल्म ‘प्रेम रोग’ में अचला सचदेव नायिका पद्मिनी कोल्हापुरे की शादी में बहैसियत तवायफ ही आई थीं. इस दृश्य के जरिए राजकपूर ने दिखाया था कि ठाकुरों और जमींदारों के यहां शादियों में नाचगाना 7 फेरों से कम अहमियत नहीं रखता और इस पर वे खूब पैसे लुटाते हैं.

रणवीर सिंह की पत्नी दीपिका पादुकोण भी सस्ते में शादी में जाने तैयार हो जाती हैं उन की फीस महज एक करोड़ रुपए है. नामी अभिनेत्रियों में सब से किफायती अनुष्का शर्मा हैं, जो शादी में शामिल होने के 50 लाख और नाचना भी हो तो एक करोड़ रुपए लेती हैं. क्रिकेटर विराट कोहली से शादी करने के बाद भी उन की फीस बढ़ी नहीं है.

वजह कुछ भी हो, शादी को रंगीन और यादगार बनाने के लिए अभिनेत्रियां कम पैसों में मिल जाती हैं. मसलन, सोनाक्षी सिन्हा जो मोलभाव करने पर 25 लाख में भी नाचने को राजी हो जाती हैं, जबकि वह भारीभरकम फीस वाली अभिनेत्रियों से उन्नीस नहीं और उन के मुकाबले जवान और ताजी भी हैं.

युवाओं में उन का खासा क्रेज है. सोनाक्षी से भी कम रेट में उपलब्ध रहती हैं दीया मिर्जा, सेलिना जेटली और गुजरे कल की चर्चित ऐक्ट्रेस प्रीति झिंगयानी और एक वक्त का बड़ा नाम अमीषा पटेल, जिन्होंने रितिक रोशन के साथ ही ‘कहो न प्यार है’ फिल्म से डेब्यू किया था.

इमेज है बड़ा फैक्टर

अपने बजट को ही नहीं बल्कि लोग इन कलाकारों को बुलाते समय अपनी प्रतिष्ठा और उन की इमेज को भी ध्यान में रखते हैं. क्या कोई अरबपति उद्योगपति राखी सावंत को अपने यहां शादी में बुलाएगा, जबकि उस की फीस महज 10 लाख रुपए है? जबाब है बिलकुल नहीं बुलाएगा, क्योंकि राखी की इमेज कैसी है यह सभी जानते हैं.

राखी सावंत को बुलाया तो जाता है और वह हर तरह से नाचती भी हैं लेकिन उन के क्लाइंट आमतौर पर वे नव मध्यमवर्गीय होते हैं जो अपनी धाक समाज में जमाना चाहते हैं.

यही हाल केवल 25 लाख में नाचने वाली पोर्न स्टार सनी लियोनी का है, जिन की क्लाइंटल रेंज उन्हीं की तरह काफी कुछ हट कर है.

राखी और सनी जैसी दरजन भर छोटी अभिनेत्रियों की आमदनी का बड़ा जरिया ये शादिया हैं, जिन में शिरकत करने और नाचने को वे एक पांव पर तैयार रहती हैं. इसी क्लब में मलाइका अरोड़ा भी शामिल हैं, जिन की फीस भी कम 15 लाख है.

हरियाणवी डांसर सपना चौधरी के धमाकेदार डांस और बेबाक अंदाज को तमाम लोग पसंद करते हैं. स्टेज शो के अलावा शादी समारोह में जाने के लिए वह एक लाख रुपए में ही तैयार हो जाती हैं. लेकिन वह 50 प्रतिशत एडवांस लेती हैं.

बड़े नायक और नायिकाएं अपने यहां शादियों में नचवा कर लोग न केवल अपनी रईसी झाड़ लेते हैं बल्कि धाक भी जमा लेते हैं. लेकिन कोई कभी खलनायकों को नहीं बुलाता. कभीकभार शक्ति कपूर शादियों में 10 लाख रुपए में ठुमका लगाने चले जाते हैं पर अब उन की इमेज कामेडियन और चरित्र अभिनेता की ज्यादा बन चुकी है. वैसे भी वह जिंदादिल कलाकार हैं जिस का बाजार और कीमत अब खत्म हो चले हैं.

बदलता दौर बदलते लोग

शादी में हंसीमजाक, नाचगाना न हो तो वह शादी कम एक औपचारिकता ज्यादा लगती है. इसलिए इन में हमेशा कुछ न कुछ नया होता रहता है.

60-70 के दशक में बेड़नियां और तवायफें नचाना उतने ही शान की बात होती थी, जितनी कि आज नामी स्टार्स को नचाना होती है. जरूरत बस जेब में पैसे होने की है. शादियों में नाचने से फिल्मी सितारों को आमदनी के साथसाथ पब्लिसिटी भी मिलती है.

इन के दीगर खर्च और नखरे भी आमतौर पर मेजबान को उठाने पड़ते हैं मसलन हवाई जहाज से आनेजाने का किराया, 5 सितारा होटलों में स्टाफ सहित ठहरने का खर्च और कभीकभी तो कपड़ों तक का भी. बशर्ते मेजबान ने यदि कोई ड्रेस कोड रखा हो तो नहीं तो ये लोग अपनी पसंद की पोशाक पहनते हैं.

शादियों में फिल्मी सितारों का फीस ले कर नाचने और ठुमकने का कोई ज्ञात इतिहास नहीं है, लेकिन इस की शुरुआत का श्रेय उन छोटीबड़ी आर्केस्ट्रा पार्टियों को जाता है, जिन्होंने 80 के दशक से शादियों में गीतसंगीत के स्टेज प्रोग्राम देने शुरू किए थे.

बाद में इन में धीरेधीरे छोटे और फ्लौप कलाकार भी नजर आने लगे. आइडिया चल निकला तो देखते ही देखते नामी सितारों ने इसे धंधा ही बना डाला.

शादियों में इस दौर में महिला संगीत और हल्दी मेहंदी का चलन भी तेजी से समारोहपूर्वक मनाने का बढ़ा था, जिस में रंग इन स्टार्स ने भरना शुरू कर दिया. थीम वेडिंग के रिवाज से भी इन की मांग बढ़ी.

इस के बाद भी यह बाजार बहुत बड़ा नहीं है क्योंकि इन की फीस बहुत ज्यादा है, जिसे कम लोग ही अफोर्ड कर पाते हैं. हां, सपना हर किसी का होता है कि उन के यहां शादी में कोई सलमान, शाहरुख, अक्षय, कटरीना या प्रियंका नाचें, लेकिन यह बहुत महंगा सपना है.

विहान अपहरण केस : औपरेशन सी रिवर ऐसे हुआ कामयाब – भाग 5

ऐसा नहीं था कि करण सिंह की स्थिति  साइकिल दिलाने की नहीं थी, लेकिन वह यह सोच कर उसे साइकिल नहीं दिला रहे थे कि कहीं उन के लाडले को चोट न लग जाए.

लेकिन 7 जनवरी को जब उन के पड़ोसी और दूर के रिश्ते में आशीष के चाचा लगने वाले अवधेश ने जब उसे साइकिल दिलाने की बात कही तो आशू के मन में लालच आ गया.

बहन से कुछ देर बात करने के बाद आशू अपने घर से निकल गया. इस के बाद वह घर वापस नहीं लौटा. घर वालों ने आशू को इधरउधर ढूंढा, लेकिन उस का कोई पता नहीं चल सका. मोहल्ले के लोग भी उन के साथ बच्चे को ढूंढने में मदद करने लगे. जब वह नहीं मिला, तो करण सिंह अपने रिश्तेदार अवधेश के साथ थाना स्वरूपनगर पहुंच गए और आशू के गायब होने की बात थानाप्रभारी को बता दी.

थानाप्रभारी ने कोई लापरवाही न बरतते हुए उसी समय अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज कर लिया और बच्चे के ढूंढने की काररवाई शुरू कर दी. बच्चे के गायब होने के 2 दिन बाद भी करण सिंह के पास फिरौती की कोई काल नहीं आई तो पुलिस को यही लगा कि किसी ने दुश्मनी में बच्चे का अपहरण किया है.

गली में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने पर पुलिस को पता लगा कि आशू अवधेश के घर के पास देखा गया था. उस के बाद उस की फुटेज नहीं दिखाई दी. तब पुलिस ने उस गली के 50 से ज्यादा घरों में तलाशी अभियान चलाया.

इतना ही नहीं, पुलिस ने छत पर रखी पानी की सभी टंकियां भी चैक कीं, पर बच्चे का कहीं पता नहीं चला.

इसी बीच पड़ोसियों को अवधेश के घर से अजीब सी दुर्गंध आती महसूस हुई. इस बारे में उस से पूछा गया तो वह बोला कि बदबू तो मुझे भी आती है. लगता है घर में कोई चूहा मर गया है. अगले दिन वह एक मरा हुआ चूहा घर के अंदर से निकाल कर ले आया. वही चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखाते हुए कहा कि बदबू इसी से आ रही थी.

एक दिन करण की बेटी गुंजन ने घर वालों को बताया कि आशू साइकिल लेने के लिए अवधेश चाचा के यहां जाने की बात कह रहा था. सीसीटीवी फुटेज में भी आशू अवधेश के घर तक ही जाता दिखा था.

इन सब बातों से घर वालों को अवधेश पर शक होने लगा. अपना शक उन्होंने पुलिस से जाहिर किया तो पुलिस ने अवधेश से पूछताछ तक नहीं की. पुलिस का कहना यह था कि बिना किसी सबूत के उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर सकते.

इस पर करण सिंह ने न्यायालय की शरण ली. कोर्ट के आदेश पर पुलिस सक्रिय हुई और बच्चा गुम होने के 38वें दिन अवधेश के घर की तलाशी ली. वहां एक सूटकेस से तेज बदबू आ रही थी.

जब उस सूटकेस को खुलवाया गया तो उस में आशू की लाश निकली जो पौलीथिन में लपेट कर रखी थी. पुलिस ने तुरंत अवधेश को हिरासत में ले लिया और सूचना डीसीपी असलम खान को दे दी. कुछ ही देर में डीसीपी और क्राइम इनवैस्टीगेशन टीम वहां पहुंच गई.

लोगों को जब पता चला कि करण सिंह के रिश्तेदार ने ही बच्चे की हत्या कर लाश अपने घर में छिपा रखी थी तो सैकड़ों लोग वहां एकत्र हो गए. सभी के मन में अवधेश के प्रति आक्रोश था. भीड़ के मूड को देखते हुए डीसीपी ने जिले के अन्य थानों की पुलिस भी वहां बुला ली ताकि स्थिति नियंत्रण में रहे.

पुलिस ने आननफानन में जरूरी कारवाई कर के बच्चे की सड़ी लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबू जगजीवनराम अस्पताल भेज दिया और अवधेश को पूछताछ के लिए थाने ले गई. पूछताछ में अवधेश ने आशू के अपहरण और हत्या करने की जो कहानी बताई, इस प्रकार थी—

अवधेश शाक्य मूलरूप से उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के कुरावली का रहने वाला था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा 3 बहनें हैं.

वह सन 2010 में दिल्ली आया था. यहां रह कर वह सिविल सर्विस एग्जाम की तैयारी कर रहा था. 2 बार वह यह परीक्षा पास भी कर चुका था पर मुख्य परीक्षा में फेल हो गया था. इसी वजह से वह डिप्रेशन की हालत में चला गया.

बेरोजगार होने से उस पर लोगों का कर्ज भी चढ़ गया. कर्ज के साथसाथ उसे अपनी बहनों की शादी की चिंता भी खाए जा रही थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह ऐसा क्या करे, जिस से उस की आर्थिक हालत सुधरे.

तब उस के दिमाग में आया कि क्यों न वह अपने ही दूर के रिश्तेदार करण सिंह के बेटे का अपहरण कर ले. वह करण सिंह की हैसियत से वाकिफ था. उसे उम्मीद थी कि फिरौती में 18-20 लाख रुपए आसानी से मिल जाएंगे.

इस के बाद वह आशू के अपहरण की योजना बनाने लगा. इसी बीच उसे पता चला कि आशू अपने पिता से साइकिल की मांग कर रहा था लेकिन उन्होंने उसे साइकिल नहीं दिलवाई.

7 जनवरी को अवधेश ने आशू से कहा, ‘‘आशू, तुम्हें साइकिल चाहिए?’’

‘‘हां चाचा.’’ आशू खुश हो कर बोला.

‘‘ऐसा करो आज शाम साढ़े 5 बजे के बाद तुम मेरे कमरे पर आ जाना, मैं साइकिल खरीदवा दूंगा.’’ अवधेश ने लालच दिया.

‘‘ठीक है चाचा, मैं आ जाऊंगा.’’ कह कर आशू अपने घर चला गया था और उस ने यह बात अपनी बहन को बता दी थी.

साढ़े 5 बजे से पहले ही वह अवधेश के यहां चला गया. अवधेश आशू को अपने कमरे में ले गया और योजनानुसार गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद उस ने आशू की लाश पौलीथिन में लपेट कर सूटकेस में बंद कर दी.

सूटकेस उस ने अपने कमरे में ही रख दिया. उस का इरादा लाश को कहीं बाहर ले जा कर ठिकाने लगाने का था. बाद में वह बच्चे के घर वालों से फिरौती मांगना चाहता था. आशू के घर वालों से अवधेश के पारिवारिक संबंध थे. वह उस के घर वालों के साथ आशू को ढूंढने का नाटक भी करता रहा. उसी ने घर वालों के साथ थाने जा कर रिपोर्ट लिखवाई. दूसरी तरफ उसे घर में रखी लाश को ठिकाने लगाने का मौका नहीं मिल पा रहा था क्योंकि इलाके में पुलिस गश्त कर रही थी.

15-20 दिन बाद जब लाश से बदबू आनी शुरू हो गई तो उस ने कमरे में परफ्यूम छिड़का. ऐसा वह रोजाना करता. पर बदबू बढ़ती जा रही थी. अवधेश परेशान था. कोई शक न करे, इसलिए उस ने एक चूहा मार कर घर के एक कोने में डाल दिया. उस पर भी उस ने परफ्यूम छिड़क दिया था.

एक दिन पड़ोसियों ने बदबू के बारे में उस से पूछा तो उस ने कह दिया कि घर में चूहा मर गया होगा. फिर वही मरा हुआ चूहा उस ने पड़ोसियों को दिखा दिया. उसे वह बाहर फेंक आया. लाश ठिकाने लगाने का मौका न मिलने से वह परेशान था. इस तरह बच्चे की लाश उस के यहां 37 दिन तक रखी रही.

पुलिस ने अवधेश से पूछताछ करने के बाद उसे रोहिणी न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हर्षिनी कान्हेकर : कैसे भारत की पहली महिला फायर फाइटर बनीं

भारत की पहली फायर वूमन हर्षिनी कान्हेकर ने यह सिद्ध कर दिया है कि जैंडर के आधार पर कोई काम निर्धारित नहीं होता, क्योंकि आज महिलाएं हर क्षेत्र में ऊंचाइयां छू रही हैं. हां, 10-15 साल पहले बात अलग थी, जब महिलाओं को आगे बढ़ने से रोका जाता था.

हर्षिनी के इस सफल अभियान में उन के पिता ने बहुत सहयोग दिया. हर्षिनी के 69 वर्षीय पिता बापुराव गोपाल राव कान्हेकर महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग के रिटायर्ड इंजीनियर हैं. उन्हें पढ़ाई के बारे में बहुत जानकारी थी.

उन्होंने अपनी पत्नी को भी शादी के बाद पढ़ने के लिए प्रेरित किया. वे हमेशा किसी न किसी कोर्स के बारे में हर्षिनी को बताते रहते थे, उस सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने के लिए प्रोत्साहित करते थे ताकि हर्षिनी की स्पीड लिखने में बढ़े.

उन्होंने हमेशा बच्चों को ग्राउंडेड रखा. वे कहते हैं, ‘‘मुझे पता था कि हर्षिनी इस फील्ड में अच्छा करेगी. उस का पैशन मुझे दिख गया था. मैं सुबह उठ कर उसे प्रैक्टिस के लिए रोज तैयार करता था ताकि उसे मेरे पैशन का भी पता लगे.’’

अपने पिता के सपने को साकार करते हुए आज हर्षिनी ओएनजीसी की फायर सर्विसेज की डिप्टी मैनेजर हैं. आइए जानते हैं उन की सफलता का राज:

यहां तक आने की शुरुआत कैसे हुई?

मेरे पिता हमेशा शिक्षा को ले कर बहुत जागरूक थे. किसी नए कालेज में जाने से पहले वे वहां की सारी सिचुएशन से हमें अवगत कराते थे. फायर कालेज में एडमिशन के दौरान वे मुझे वहां ले गए, तो पता चला कि वहां आज तक किसी लड़की ने दाखिला नहीं लिया है.

सब चौंक गए कि लड़की यहां कैसे आई. उन्होंने यहां तक कहा कि मैडम आप आर्मी या नेवी में कोशिश करें, यह तो लड़कों का कालेज है. यहां आप टिक नहीं पाएंगी. ये बातें मुझे पिंच कर गईं. मगर मेरे पिता ने मेरा हौसला बढ़ाया और मैं ने तभी ठान लिया कि मैं यहीं पढ़ूंगी. मेरी फ्रैंड ने भी मेरे साथ फार्म भरा.

यूपीएससी की इस परीक्षा में केवल 30 सीटें पूरे भारत में थीं. मैं ने प्रवेश परीक्षा दी और पास हो गई. मेरे लिए यह बड़ी बात थी.

पुरुषों के क्षेत्र में पढ़ने और काम करने में कितनी चुनौती थी?

परीक्षा पास करने के बाद भी लोगों ने तरहतरह की राय दीं. यह कोर्स क्या है यह समझने में मेरे मातापिता ने भी समय लिया. फिर मैं ने इस क्षेत्र के एक व्यक्ति से परामर्श लिया, तो पता चला कि कोर्स बहुत अच्छा है. फिर मेरे पिता ने भी मेरा पूरा साथ दिया और मैं ने ऐडमिशन ले लिया. जब मैं ने खाकी वरदी पहनी, तो मेरी मनोकामना तो पूरी हुई, पर दायित्व भी आ गया.

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जो लोग पहले हंस रहे थे वे अब चुप थे. मुझे प्रूव करना था. मैं वे सभी काम किया करती थी, जो लड़के करते थे. मैं ने अपनेआप को पूरी तरह से अनुशासन में ढाल लिया था ताकि कोई मेरे ऊपर उंगली न उठाए. कमजोरी मैं ने कभी कोई नहीं दिखाई, क्योंकि इस का असर बाकी लड़कियों पर पड़ता, क्योंकि मैं उन का प्रतिनिधित्व कर रही थी.

पिता की कौन सी बात को अपने जीवन में उतारती हैं?

लोग मुझे कहते हैं कि मैं बहुत साहसी हूं पर मेरे मातापिता मुझ से भी अधिक साहसी हैं. तभी तो उन्होंने मुझे लड़कों के कालेज में भेजने की हिम्मत दिखाई. जब मैं कोलकाता में 3 महीने जैंट्स होस्टल में अकेली रही. पिता मुझे अलग भी रख सकते थे, पर उन्होंने वहीं रह कर मुझे पढ़ने का निर्देश दिया. मुझे लगता है मेरे पिता ने समाज की उस सोच को बदलने में बड़ा कदम उठाया, जो लड़कालड़की में भेद करती है.

सोनिया नारंग : राजनीतिज्ञों को भी सिखाया सबक

जिंदगी में कुछ कर गुजरने का जज्बा ले कर जब कोई महिला ईमानदार प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपना वर्चस्व कायम करती है तो उस की एक अलग ही छवि निखर कर आती है, बेखौफ, दबंग और ईमानदार अफसर की छवि. जिस के लिए उस का कर्तव्य पहले होता है, बाकी सब बाद में.

जोश और जुनून से लबरेज सोनिया नारंग भी उन्हीं विशेष अफसरों में अपनी खास उपस्थिति दर्ज कराती हैं जिन के लिए आम से ले कर खास व्यक्ति तक के लिए कानून की एक ही परिभाषा है. फिर चाहे वो खास अफसरशाही पर हुकूमत चलाने वाले नेता ही क्यों न हों.

सोनिया नारंग का जन्म और परवरिश चंडीगढ़ में हुई. उन के पिता भी प्रशासनिक अधकारी थे. उन से प्रेरणा ले कर सोनिया ने बचपन से ही सिविल सर्विस जौइन करने को अपना लक्ष्य बना लिया था. इस लक्ष्य को पाने की तैयारी उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही शुरू कर दी थी. 1999 में पंजाब यूनिवर्सिटी से समाजशास्त्र में गोल्ड मेडल पाने वाली सोनिया नारंग की लगन और मेहनत रंग लाई. वह कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्ग में हुई. सोनिया ने जौइंन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में हो रहे एक प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता व उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंची. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया नारंग से ही उलझ कर अभद्रता पर उतर आए.

तब सोनिया नारंग ने एमएलए रेनुकाचार्य को कानून का सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया.

इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बुरी तरह से बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया निडरता से अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में यही भाजपा नेता रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने हौसले और मजबूत इरादों का परिचय तब भी दिया था जब कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल कर दिया था.

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मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सर्वजनिक किया. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खदान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम भी सामने आया है. सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

मुख्यमंत्री सिद्दारमैया पर भी भारी इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में तूफान सा मच गया. एक बेदाग छवि की आईपीएस अधिकारी का नाम किसी घोटाले में लिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण था. लेकिन सोनिया नारंग घोटाले से उठी आंधी के बीच भी अविचल रहीं.

उन्होंने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही अन्य अधिकारियों की तरह सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. इस सब की बजाय सोनिया नारंग ने सीएम के आरोप के खिलाफ मजबूती से मोर्चा खोल दिया और सीधे प्रेस के लिए स्टेटमेंट जारी किए.

सोनिया ने कहा, ‘मेरी अंतरात्मा साफ है. आप चाहें तो किसी भी तरह की जांच करा लें. मैं इस आरोप का न सिर्फ खंडन करती हूं, बल्कि इस का कानूनी तरीके से हर स्तर पर विरोध भी करूंगी.’ उन्होंने ऐसा ही किया भी. सोनिया नारंग ने बेबाकी से अपनी बात रखते हुए बताया, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है, जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

कानून को सर्वोपरि मानने वाली सोनिया ने किसी भी अवैध खनन को बढ़ावा देने या खनन माफिया से सांठगांठ करने से स्पष्ट रूप से इनकार करते हुए तत्कालिन मुख्यमंत्री सिद्दारमैया के आरोप का पुरजोर विरोध किया था. मुख्यमंत्री से सीधे टकराने का साहस सोनिया नारंग जैसी दबंग और ईमानदार आईपीएस ही कर सकती थीं. आखिरकार उन का विश्वास जीता और उन्हें इस मामले में क्लीन चिट भी मिली.

यही वजह है कि कर्नाटक के लोग सोनिया नारंग पर अटूट विश्वास करते हैं. यहां तक कि निष्पक्ष जांच के लिए उन्हें सीबीआई से ज्यादा भरोसा अपनी अफसर सोनिया पर है.

ऐसा ही एक मामला तब सामने आया था जब सोनिया नारंग कर्नाटक लोकायुक्त की एसपी थीं. लोकायुक्त जस्टिस वाई भास्कर राव के बेटे अश्विन राव और कुछ रिश्तेदारों पर राज्य के संदिग्ध भ्रष्ट अफसरों से फिरौती वसूली का रैकेट चलाने का आरोप लगा था.

पीडब्ल्यूडी के एक एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को झूठे मामले में फंसाने की धमकी दे कर एक करोड़ रुपए मांगे गए थे. उक्त इंजीनियर को जांच से बचने के लिए 25 लाख रुपए तुरंत देने को कहा गया था. तब इंजीनियर ने इस बात की शिकायत लोकायुक्त पुलिस एसपी सोनिया नारंग से की.

उन्होंने मौखिक शिकायत के आधार पर स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की विधिवत जांच कर के अपनी रिपोर्ट लोकायुक्त के रजिस्ट्रार को सौंप दी. इस पर केस खुल कर सामने आया. परिणामस्वरूप  जस्टिस वाई भास्कर राव को इस्तीफा देना पड़ा और उन के बेटे सहित 11 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. इसी से पे्ररित हो कर उन के जीवन पर कन्नड़ भाषा में ‘अहिल्या’ नाम की फिल्म बनी है.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की

लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

पंजाब यूनिवर्सिटी से समाज शास्त्र में 1999 की गोल्ड मेडलिस्ट सोनिया नारंग चंडीगढ़ में पली बढ़ीं. किशोरावस्था से उन्होंने एक ही सपना देखा था सिविल सर्विस जौइन करने का जिसे साकार करने के लिए उन्होंने हाईस्कूल के बाद से ही तैयारी शुरू कर दी थी. उन की लगन और मेहनत रंग लाई, सोनिया कर्नाटक कैडर के 2002 बैच की आईपीएस बन गईं.

उन के कैरियर की पहली पोस्टिंग 2004 में कर्नाटक के गुलबर्गा में हुई. जिस में उन्हें चुनावों के प्रबंधन की जिम्मेदारी दी गई थी. सोनिया नारंग ने जौइन करते ही अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए थे. 2006 की बात है. तब सोनिया नारंग दावणगेरे जिले की एसपी थीं. होनाली में एक कार्यक्रम के दौरान कांग्रेस और बीजेपी के दो बड़े नेता और उन के समर्थक आपस में भिड़ गए.

इस बात की सूचना मिलते ही सोनिया नारंग मौके पर जा पहुंचीं. तब तक प्रदर्शनकारी हिंसा पर उतर आए थे और दोनों दलों के नेता आपस में उलझे हुए थे. मामला गंभीर होता देख सोनिया नारंग ने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया. इस पर भाजपा नेता रेनुकाचार्य ने पीछे हटने से मना कर दिया और एसपी सोनिया से ही भिड़ बैठे.

तब सोनिया नारंग ने तत्कालीन एमएलए रेनुकाचार्य को सबक सिखाने के लिए सब के सामने थप्पड़ जड़ दिया. इस बेइज्जती पर भाजपा नेता बौखला गए. कई दिन तक हंगामा होता रहा, लेकिन एसपी सोनिया अपनी बात पर अडिग बनी रहीं. बाद में रेनुकाचार्य मंत्री बन गए थे.

सोनिया नारंग ने अपने मजबूत इरादों से तब भी परिचित कराया था जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने 16 करोड़ के खदान घोटाले में उन का नाम भी शामिल किया था. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में 16 करोड़ के खदान घोटाले से जुड़े अधिकारियों में सोनिया नारंग का नाम भी सार्वजनिक किया था. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने सदन को बताया कि खद्यान घोटाले में आईपीएस सोनिया नारंग का नाम सामने आया है और सरकार उन के खिलाफ काररवाई पर विचार कर रही है.

इस के बाद राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में तूफान सा मच गया. लेकिन सोनिया नारंग ने इस आंधी के बीच अविचल रहते हुए सीएम के आरोपों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया और खुल कर विरोध किया. उन्होंने कहा, ‘मैं इस तरह के किसी भी आरोप को सिरे से खारिज करती हूं. मैं ने उन इलाकों में अपने कैरियर के दौरान कभी काम ही नहीं किया है जहां पर खनन घोटाले की बात की जा रही है.’

सोनिया नारंग ने सीएम द्वारा लगाए गए आरोप के बाद न तो सफाई देने की जरूरत समझी और न ही सदन के सदस्यों से मिल कर अपना पक्ष रखने की. उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री के खिलाफ उसी शैली में मोर्चा खोल कर अपना विरोध जाहिर किया.

एक प्रशासनिक अधिकारी की बेटी और एक आईपीएस की पत्नी सोनिया नारंग को उन के मजबूत हौसले, बुलंद इरादे और ईमानदारी के लिए जाना जाता है. सोनिया नारंग के जीवन पर कन्नड़ भाषा में अहिल्या नाम की फिल्म बनी है. देश को ऐसे ही अधिकारियों की जरूरत है, जो नेताओं के हथकंडों से न डर कर अपने फर्ज को अहमियत दें.

सुपर कौप सौम्या सांबशिवन : हिमाचल की शेरनी

जब भी जांबाज महिला आईपीएस अफसरों का नाम आता है तो शिमला में 1947 से 2017 तक 53वीं एसपी रह चुकीं सौम्या सांबशिवन को नहीं भूला जा सकता. वह स्वभाव से सौम्य हैं, लेकिन दिल से दबंग.

केरल की रहने वाली सौम्या बनना चाहती थीं लेखिका, लेकिन बन गईं एसपी. जाहिर है, ऐसे में मन गलत के प्रति विद्रोह तो करेगा ही, विद्रोह होगा तो दबंगई भी होगी. गनीमत यह है कि उन्हें पढ़ने का शौक है और यह शौक विद्रोह को रोकता है. फिर भी वह अपराधियों के लिए खौफनाक तो हैं ही.

इंजीनियर पिता की एकलौती बेटी सौम्या ने बायोस्ट्रीम से ग्रेजुएशन करने के बाद एमबीए में दाखिला लिया था. एमबीए हो गया तो उन्होंने 2 साल तक एक मल्टीनेशनल बैंक में नौकरी की. इस बीच वह यूपीएससी की तैयारी करती रहीं. 2010 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा पास की और आईपीएस बन कर 11 महीने की ट्रेनिंग में चली गईं. उन्हें हिमाचल कैडर मिला था. विभागीय ट्रेनिंग के लिए उन्हें शिमला भेजा गया, जहां वह डिप्टी एसपी की पोस्ट पर रहीं. फिर उन्हें एडिशनल एसपी बनाया गया.

एसपी के तौर पर उन की पहली पोस्टिंग सिरमौर में हुई. सिरमौर में ड्रग का बोलबाला था. ड्रग्स की तसकरी और बिक्री भी होती थी और लोग ड्रग्स लेते भी थे. झाडि़यों में ड्रग की खाली रेपर पुडि़या पड़ी मिलती थीं. सब से पहले सौम्या ने नशेडि़यों की धरपकड़ कर के ड्रग लेने वालों पर लगाम लगाई.

इस के लिए उन्होंने पकड़े गए नशेडि़यों की वीडियोग्राफी कराई और बताया इस की डौक्यूमेंट्री बना कर देश भर में दिखाई जाएगी. इस से होने वाली बदनामी से लोग डरे. उन्होंने नशेडि़यों के ठिकानों को भी जेसीबी से हटवा दिया और उस का भी वीडियो बनवाया.

नशेडि़यों के अड्डे बने खंडहर भवनों में कांचकली (खुजली वाला पाउडर) का छिड़काव करा दिया गया ताकि वे वहां जाएं तो खुजातेखुजाते पागल हो जाएं. सिरमौर में चला अपनी तरह का यह पहला अभियान था, जिसे जनता का भरपूर समर्थन मिला. उन्होंने देवीनगर में कृपालशिला और गुरुद्वारे के पास नशेडि़यों के छिप कर बैठने के अड्डों को भी नेस्तनाबूद करवा दिया.

सौम्या के अनुसार एक ब्लाइंड मर्डर की तफ्तीश के लिए वह झाडि़यों में गई थीं, जहां नशीली दवाइयों के रेपर, नशे के लिए प्रयोग होने वाली सामग्री आदि मिली. तभी उन्होंने फैसला कर लिया था कि नशे के खिलाफ अभियान चलाएंगी. संदिग्ध नशेडि़यों पर नजर रखने के लिए उन्होंने पावटा में 75 सीसीटीवी कैमरे भी लगवाए.

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इस के बाद उन्होंने नशा बेचने, सप्लाई करने वाले तसकरों को घेरा. अपने प्रयासों से सौम्या ने सिरमौर को ड्रग्स मुक्त तो किया ही. नशेडि़यों की लत छुड़वाने के लिए जिलेभर में नशा मुक्ति केंद्र भी बनवाए. इसी बीच उन्होंने कई ब्लाइंड केस सुलझाए. तिहाड़ जेल से फरार एक ऐसे पेशेवर हत्यारे को भी पकड़ा जो कत्ल कर के खुला घूम रहा था.

पढ़ने लिखने की शौकीन सौम्या को साहित्य, कविताओं और मुशायरों का खूब शौक है. एक बार तो वह सिरमौर से सैकड़ों किलोमीटर दूर देवबंद में होने वाले लेडीज मुशायरे में शामिल होने पहुंच गईं. उन का कहना था कि पुलिस के काम में दिमाग के साथ दिल की मजबूती भी बेहद जरूरी है और यह मजबूती, शक्ति साहित्य से ही मिल सकती है.

कविताएं सदियों से मनुष्य को प्रेरित करती रही हैं, ये मानव के अंदर छुपी संभावनाओं को सामने लाने का बढि़या माध्यम हैं. साहित्य आदमी को सरल भी बनाता है और मजबूत भी.

एक तरफ सौम्या का यह सरल रूप सामने आया तो दूसरी तरफ उन्होंने सिरमौर में, खास कर नहान में खनन माफियाओं की नाक में ऐसी नकेल डाली कि खनन कार्य ही बंद करवा दिए. एक ही दिन में सौम्या ने 21 वाहन व जेसीबी मशीनें जब्त कीं, 40 वाहनों के चालान काटे और 1,47000 रुपए का जुर्माना वसूला.

सौम्या सब से ज्यादा चर्चाओं में तब आईं जब एक प्रदर्शन के दौरान उन्होंने बदतमीजी करने पर एक विधायक को न केवल थप्पड़ जड़ा, बल्कि जेल भी भेजा. उन का कहना था, इतनी छूट किसी को नहीं दी जा सकती. चाहे वह कोई भी क्यों न हो.

सिरमौर की सीमाएं 2 अलगअलग राज्यों से लगती हैं, इस नजरिए से इस जिले को संवेदनशील माना जाता है. लेकिन सौम्या ने अपराधियों में पुलिस का इतना खौफ भर दिया कि उन्हें ड्रग, शराब और मानव तसकरी बंद करनी पड़ी.

लड़कियों की रोल मौडल

सौम्या के पास लड़कियों से छेड़छाड़ की बहुत शिकायतें आती थीं. ऐसे मामलों में छेड़छाड़ के कुछ मामलों को तो रोका जा सकता था, लेकिन हर जगह पुलिस मौजूद नहीं रह सकती थी. इस के लिए उन्होंने सोचना शुरू किया. दरअसल बचाव के लिए पेपर स्प्रे एक तो हर जगह मिलता नहीं है, दूसरे महंगा भी होता है. कई बार मौका नहीं मिलता तो लड़कियां इस का इस्तेमाल भी नहीं कर पातीं. तीसरे इस का असर भी ज्यादा देर नहीं रह पाता.

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सौम्या ने इस बारे में सोचना शुरू किया तो थोड़ी सी मेहनत से उन्हें रास्ता मिल गया. उन्होंने मिर्च, रिफाइंड और नेल पौलिश से एक अलग तरह का तरल पदार्थ बनाया. यह इतना कारगर था कि एक बार स्प्रे करने से मनचले आधे घंटे से पहले नहीं उठ सकते थे.

उन्होंने इस का एक वीडियो बनाया और कालेज और स्कूलों की लड़कियों को ट्रेनिंग देनी शुरू की. यह काम उन्होंने हाईस्कूल से डिगरी कालेजों में पढ़ने वाली लड़कियों के बीच किया. साथ ही उन्हें खास तरह की खाली बोतलें दीं ताकि लिक्वेड को उस में भर कर अपने साथ रख सकें.

सौम्या की इस पहल को उद्योग संगठनों और प्रदेश के कुछ उद्योगपतियों ने सहयोग दिया और रीफिल की जाने वाली खाली स्प्रे बोतलें उपलब्ध कराईं. एसपी ने फैसला किया वह देश की बेटियों के लिए इस नए तरीके को यू ट्यूब के जरीए सार्वजनिक करेंगी, ताकि वे कम खर्च में अपनी सुरक्षा कर सकें. एसपी सौम्या की यह मुहिम काम आई और सिरमौर में छेड़छाड़ की घटनाएं बंद हो गईं.

शिमला ट्रांसफर

इसी बीच शिमला के कोटखाई में गुडि़या गैंग रेप और हत्या के मामले को ले कर शिमला में लौ एंड और्डर की स्थिति बिगड़ी तो सुपरकौप सौम्या का ट्रांसफर शिमला कर दिया गया.

दरअसल, शिमला से 58 किलोमीटर दूर कोटखाई में 4 जुलाई, 2017 को एक स्कूली छात्रा लापता हो गई थी. 2 दिन बाद जंगल में उस की लाश मिली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि छात्रा के साथ गैंग रेप के बाद उस की हत्या की गई थी, वह भी 2 दिन पहले.

सवाल उठा जंगली जानवरों के होते 2 दिन तक लाश सहीसलामत कैसे पड़ी रही. इसे ले कर हंगामा हुआ तो पुलिस ने एक स्थानीय युवक सहित 5 मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन लोग इस से संतुष्ट नहीं थे. हंगामा बढ़ते देख पुलिस ने जांच के लिए एसआईटी गठित कर दी.

उस समय हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह की सरकार थी. लोग जांच से संतुष्ट नहीं हुए. इसी बीच 18 जुलाई को पकड़े गए एक युवक सूरज की हवालात में मौत हो गई. इस से हंगामा और बढ़ गया. लोग सड़कों पर उतर आए. आरोप था कि सूरज की मौत पुलिस टार्चर से हुई है.

लौ एंड और्डर को बिगड़ता देख मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शिमला के एसपी डब्ल्यू डी नेगी को हटा कर 19 जुलाई, 2017 को सिरमौर की तेजतर्रार और ईमानदार आईपीएस सौम्या सांबशिवन को शिमला का नया एसपी तैनात कर दिया. साथ ही मामले की जांच सीबीआई से कराने की संस्तुति दे दी.

जांच शुरू हुई तो सीबीआई ने अन्य लोगों के साथ नई एसपी सौम्या सांबशिवन का भी बयान लिया. इस के बाद सीबीआई ने हवालात में सूरज की मौत (हत्या) के मामले में सूबे के आईजी जहूर एच जैदी, एसपी डब्ल्यू डी नेगी और डीएसपी मनोज जोशी सहित 5 पुलिस वालों को आरोपी बनाया.

सीबीआई जांच के दौरान यह बात सामने आई कि आईजी जहूर एच जैदी ने एसपी सौम्या पर बयान बदलने के लिए बारबार दबाव बनाया था.

सौम्या के लिए जब काम करना मुश्किल हो गया तो उन्होंने 10 दिसंबर, 2017 को पुलिस हेडक्वार्टर धर्मशाला फोन कर के डीजीपी से शिकायत की तो जैदी के फोन आने बंद हुए. डीजीपी ने यह बात मुख्यमंत्री को बताई तो जैदी को निलंबित कर दिया गया.

सूरज की हत्या के आरोपी पुलिस वालों पर शिमला की सीबीआई अदालत में केस चलना शुरू हुआ, लेकिन वहां के वकीलों ने इन लोगों की पैरवी करने से इनकार कर दिया. बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची तो सर्वोच्च अदालत ने इस केस को चंडीगढ़ ट्रांसफर करने का आदेश दिया.

शिमला की एसपी सौम्या सांबशिवन ने इस मामले में आईजी जहूर एच जैदी पर मानसिक रूप से प्रताडि़त करने का आरोप लगाते हुए अदालत में कहा कि आईजी इस केस में मेरा बयान बदलवाना चाहते हैं.

सौम्या के इस बयान से हिमाचल की सियायत में हलचल मच गई. तब नए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि सरकार ऐसे अधिकारियों पर बड़ी काररवाई करेगी जो केस के गवाहों पर दबाव डालने की कोशिश कर रहे हैं.

मुख्यमंत्री ठाकुर का कहना था कि हम कोर्ट के आदेश का इंतजार कर रहे हैं. इस मामले में किसी ने सबूतों या गवाहों को प्रभावित करने की कोशिश तो यह बरदाश्त नहीं किया जाएगा. उन्होंने बताया कि एसपी सौम्या सांबशिवन ने आईजी जैदी द्वारा दबाव बनाए जाने की बात डीजीपी से कही थी और डीजीपी ने मुझे बताया. उन्होंने जैदी को चेतावनी भी दी थी. इस के बाद जैदी ने उन्हें फोन करना बंद कर दिया था. लेकिन यह मामला फिर से उठ खड़ा हुआ. सूरज और गुडि़या मामले में उन्होंने सौम्या पर जो दबाव बनाया, उस के लिए जैदी को 3 बार सस्पैंड किया गया. लेकिन उन्हें नियमों के तहत ही फिर से नियुक्ति दी गई.

सरकारी खेल

इस बीच सौम्या सांबशिवन का ट्रांसफर कर के उन्हें पुलिस ट्रेनिंग कालेज भेज दिया गया. बाद में उन्हें वहां से भी ट्रांसफर कर के पंडोह में आईआरबी 3 का कमांडेंट बना दिया गया था. बाद में सौम्या ने फिर चंडीगढ़ कोर्ट में बयान दिया कि सुनवाई से पहले उन पर इतना दबाव डाला गया कि वह परेशान हो गईं और इस स्थिति में उन के लिए काम करना मुश्किल हो गया.

जैदी साहब सितंबर 2019 में उन के मोबाइल, शिमला औफिस के लैंडलाइन पर बात करने की लगातार कोशिश कर रहे थे. उन्होंने शिमला हेडक्वार्टर, वाट्सएप काल और सबौर्डिनेटर के फोन पर भी बात की.

सौम्या ने अपने मानसिक तनाव का जिक्र करते हुए आगे कहा कि दिनप्रतिदिन परिस्थितियां इतनी मुश्किल होती गईं कि उन के पीएसओ, स्टेनो ने फोन उठाना बंद कर दिया. ऐसी स्थिति में कोई कैसे काम कर सकता है.

अधिकारी कितना बड़ा और पावरफुल हो, लेकिन अपने सीनियर के सामने या उस के बारे में कुछ कहने से पहले 10 बार सोचता है, भविष्य की चिंता करता है. लेकिन सौम्या उन में से नहीं थीं जो डर जातीं. उन्होंने कोर्ट में कहा, ‘जैदी साहब ने मुझ से फोन पर कहा, ‘मैं वकीलों की एक टीम और 30 पेज की प्रश्नावली का सामना करने को तैयार हूं. उम्मीद है आप यह सूचना सीबीआई को नहीं देंगी.’

मजबूरी में उन्हें 10 दिसंबर, 2019 को धर्मशाला हेडक्वार्टर फोन कर के यह सूचना तत्काल डीजीपी को देनी पड़ी. इस के बाद उन का फोन आना तो बंद हो गया, लेकिन मेरे पीएसओ से मेरी लोकेशन जानने की कोशिश की गई. इस पर कोर्ट ने सीबीआई को सौम्या के कोर्ट आनेजाने के लिए सुरक्षा व्यवस्था करने को कहा. सौम्या के बयान से यह बात साबित हो रही थी कि जैदी सहित कोटखाई मामले से जुड़े अन्य पुलिस अधिकारियों ने कहीं न कहीं लापरवाही बरती थी और अब खुद को बचाने के लिए गवाहों पर उन के पक्ष में बयान देने के लिए दबाव बना रहे थे. जैदी कौन सा बयान बदलवाना चाहते थे, यह बात क्लीयर नहीं हो पाई.

बहरहाल यह केस अभी भी चल रहा है. आगे क्या होगा कहा नहीं जा सकता. सौम्या सांबशिवन जहां भी रहीं अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई, वह भी पूरी ईमानदारी से.

इसी बीच गतवर्ष अक्तूबर, 2020 में जब बिहार में 3 चरणों में चुनाव होने थे तो सौम्या को आदेश मिला कि बिहार में निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी उन की होगी. इस के लिए उन्हें राज्य कमांडर का दर्जा दिया गया था. तब भी वह पंडोह में आईआरबी 3 की कमांडेंट थीं.

आदेश मिलते ही वह हिमाचल के 600 जवानों के साथ निश्चित तारीख पर बिहार के लिए रवाना हो गईं. इन जवानों में पंडोह, बनगढ़ (ऊना) व कोलर (सिरमौर) की आईआरबी की 6 कंपनियां थीं. ये लोग सहारनपुर से टे्रन पकड़ कर बिहार के लिए रवाना हुए.

बिहार में शांतिपूर्ण चुनाव कराना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन सौम्या ने यह चुनौती स्वीकार की और पूरी भी की. फिलहाल सौम्या हिमाचल के पंडोह में आईआरबी 3 (भारतीय आरक्षित वाहिनी) की कमांडेंट हैं. उन की ईमानदारी और बेखौफ दबंग अधिकारी की छवि कभी नहीं बदलेगी. क्योंकि वह इसीलिए पुलिस फोर्स में आई हैं कि कानूनव्यवस्था को बनाए रखें और देशहित में काम करें.

जज्बे को सलाम 

ईमानदारी, मेहनत और लगन से काम करने वाले पुलिस अधिकारी हों या आम लोग जहां भी जाते हैं. कुछ अलग कर के अपनी छाप छोड़ ही देते हैं. सौम्या सांबशिवन भी उन ही में से हैं. शिमला में जब उन का पंगा अपने सिनियर औफिसर आईजी से हुआ था तो राजनीतिक दबाव के चलते उन का तबादला कांगड़ा जिले के दरोह पुलिस प्रशिक्षण कालेज में कर दिया गया था, जहां उन्हें प्रिंसिपल बनाया गया था. वहां जाते ही उन्होंने अपने सहयोगी अफसरों से कहा, ‘हम मानकों के साथ इस कालेज की प्रतिष्ठा को न केवल बनाए रखेंगे बल्कि बेहतर से बेहतर काम करेंगे.’

सौम्या ने केवल कहा ही नहीं बल्कि स्वयं को साबित कर के भी दिखाया. उन्होंने जून 2018 के चयनित कांस्टेबलों के बैच के लिए कंप्यूटर और सामान्य संचार साधनों का प्रबंध कराया ताकि उन्हें मौजूदा दौर की जरूरी शिक्षा दी जा सके. इस बैच में 682 कांस्टेबल और 3 पूर्व सैनिक थे. इस बैच के सभी प्रशिक्षार्थी बुनियादी कंप्यूटर और सामान्य संचार माध्यमों में प्रशिक्षित हो कर पासिंग आउट परेड के बाद नियुक्ति के लिए विभिन्न थानों को भेजे गए थे.

भारत सरकार की संस्था ब्यूरो फौर पुलिस एंड डेवलपमेंट द्वारा किए गए अध्ययन के बाद कांगड़ा जिले को पुलिस प्रशिक्षण कालेज दरोह को राष्ट्रीय स्तर का सर्वश्रेष्ठ केंद्र (कांस्टेबल श्रेणी) घोषित किया था. प्रशिक्षण केंद्र को केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से 20 लाख का नकद पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र दिया गया था.

कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो जिंदगी की हर राह उपलब्धि बन जाती है. अपने सेवा काल के दौरान राह में आने वाली हर बाधा, रुकावट को अपनी उपलब्धि में बदलने वाली सौम्या सांबशिवन एक बेमिसाल अफसर तो हैं ही, साथ ही ईव टीजिंग का शिकार लड़कियों की स्नेहशील गार्जियन भी हैं.

सुपरकौप मेरिन जोसेफ : देश से विदेश तक

जून 2019 में जब मेरिन जोसेफ की नियुक्ति बतौर डिस्ट्रिक्ट पुलिस सुपरिंटेंडेंट केरल के जिला कोल्लम में हुई तो वह महिलाओं और बच्चों के प्रति होने वाले अपराधों को ले कर सब से ज्यादा चिंतित थीं. ऐसे अपराधों का ग्राफ काफी बढ़ा हुआ था. मेरिन को लगा कि वहां ऐसे अपराधों को मामूली समझ कर दरकिनार कर दिया जाता होगा. पुराने केसों पर ठीक से काररवाई नहीं की गई होगी, मुलजिम पकड़े नहीं गए होंगे. इसीलिए उन्होंने ऐसे केसों की पुरानी फाइलें मंगवाईं.

मेरिन ने जब उन केस फाइलों की स्टडी की तो उन में एक फाइल सुनील भद्रन की भी थी. केस के अनुसार सुनील भद्रन सऊदी अरब के रियाद की एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में टाइल्स लगाने का काम करता था. वह 2017 में छुट्टी ले कर केरल आया और अपने एक दोस्त के घर ठहरा.

दोस्त ने उस का परिचय अपनी बहन के परिवार से कराया. सुनील की नजर दोस्त की 13 साल की भांजी पर पड़ी तो उस की नीयत खराब हो गई. उस ने दोस्त की बहन के परिवार से संबंध बढ़ाने शुरू कर दिए.

सुनील ने अपने टारगेट को बहकाफुसला कर नजदीकियां बढ़ाईं. उसे खानेपीने, पहनने की चीजें ला कर देना शुरू किया. बहकाने के लिए रियाद के किस्से सुनाने लगा.

रियाद ले जाने के सपने दिखाने लगा. जब लड़की बहकावे में आ गई तो वह आए दिन उस के साथ बलात्कार करने लगा. यह सिलसिला शायद आगे भी चलता रहता, लेकिन बच्ची ने इसे बुरा काम समझ कर घर वालों से शिकायत कर दी. यह खबर सुन कर सुनील भद्रन फरार हो गया.

पुलिस ने बच्ची के मामा से पूछताछ की, उसे जलील किया. खोजबीन में पता चला कि सुनील रियाद भाग गया है. पुलिस सिर पीट कर रह गई. इस बीच लड़की के मामा ने शर्म के मारे आत्महत्या कर ली.

बदनामी के डर से 13 वर्षीय नाबालिग पीडि़ता को उस के घर वाले घर में रखने को तैयार नहीं थे. मजबूरी में पुलिस ने उसे कोझीकोड के सरकारी महिला मंदिर रेस्क्यू होम भेज दिया. बाद में उस नाबालिग ने भी आत्महत्या कर ली.

बात उच्चाधिकारियों तक पहुंची तो उन्होंने 2018 में इंटरपोल को सूचना भेज कर मदद मांगी. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. केस की जांच और रेपिस्ट की गिरफ्तारी लटकी रही. इस चक्कर में 2 परिवार बरबाद हो गए थे. जबकि केस की जांच रूकी पड़ी थी.

केस फाइल पढ़ कर मेरिन जोसेफ को बहुत दुख हुआ. महिला और बच्चों के प्रति अपराधों को ले कर मेरिन काफी संवेदनशील थीं. उन्होंने कई केस सुलझाए भी थे.

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उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, सुनील भद्रन को सऊदी अरब से ला कर सजा दिलाएंगी. लेकिन समस्या यह थी कि मेरिन को यह जानकारी नहीं थी कि इस के लिए क्याक्या करना होता है.

उन्होंने जानकारी हासिल की तो पता चला कि 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सऊदी अरब के किंग अब्दुल्लाह के बीच प्रत्यर्पण संधि पर समझौता हुआ था. यानी प्रत्यर्पण संधि के हिसाब से सुनील को भारत लाया जा सकता था.

मेरिन जोसेफ ने इस बारे में उच्चाधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि इस मामले में इंटरपोल ही मदद कर सकता है. नोटिस भी भेजा गया पर कोई जवाब नहीं आया. ‘मैं उसे इंडिया ला कर रहूंगी’.

मेरिन ने कहा तो कई लोगों ने उन का मजाक उड़ाया. लेकिन मेरिन ने हिम्मत नहीं हारी. पुलिस हैडक्वार्टर से ले कर गृह मंत्रालय तक जो भी हो सकता था, उन्होंने किया. अपने स्तर पर तो वह प्रयासरत थी ही.

दरअसल बला की खूबसूरत और 25 साल की नाजुक सी लड़की मेरिन के बारे में लोग यह नहीं जानते थे कि वह अंदर से वह कितनी मजबूत और दृढ़निश्चयी हैं. क्योंकि मेरिन को देख कर कोई भी उन्हें मौडल या फिल्मों की हीरोइन तो समझ सकता था, लेकिन यह किसी के लिए भी अनुमान लगाना मुश्किल था कि वह आईपीएस अफसर हैं.

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आईपीएस बनने की कहानी

20 अप्रैल, 1990 को केरल के एर्नाकुलम, तिरुवनंतपुरम में जन्मी मेरिन पैदा भले ही केरल में हुई थीं, लेकिन उन की परवरिश दिल्ली में हुई. उन के पिता अब्राहम जोसेफ कृषि मंत्रालय में प्रिंसिपल एडवाइजर थे और मां मीना जोेसेफ एक मिशनरी स्कूल इकनौमिक्स की टीचर थीं.

मेरिन जोसेफ ने कौन्वेंट जीसस ऐंड मेरी स्कूल से पढ़ाई की थी, जिस के बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफंस कालेज से बीए औनर्स की डिग्री ली. पढ़ाई के दौरान ही मेरिन की दोस्ती साइकोलौजी की पढ़ाई कर रहे क्रिस अब्राहम से हुई जो बाद में प्यार में बदल गई. दोनों ने तय किया कि शादी करेंगे लेकिन सैटल होने के बाद.

ग्रैजुएशन करने के बाद मेरिन ने मुखर्जीनगर, दिल्ली के एक प्राइवेट कोचिंग सेंटर से यूपीएससी की कोचिंग की. फिर 2012 में संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी. उन का पहला ही प्रयास सफल रहा. उन की 188वीं रैंक आई.

मेरिन को 4 औप्शन दिए गए, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस और पीसीएस. मेरिन ने आईपीएस को चुना. उन्हें केरल कैडर मिला. इस के बाद उन्हें ट्रेनिंग के लिए हैदराबाद की सरदार वल्लभभाई पटेल नैशनल पुलिस अकादमी भेजा गया, जहां अगले 11 महीने तक उन्होंने लंबी ऊंची जंप, तैराकी, घुड़सवारी और हथियार चलाने की ट्रेनिंग ली, जिस में भागदौड़ भी शामिल थी.

इस ट्रेनिंग के बाद उन्होंने गृहराज्य पुलिस में 6 माह का पुलिस का आंतरिक कामकाज सीखा. फिर गृह मंत्रालय ने उन्हें एडिशनल सुपरिंटेंडेंट के पद पर नियुक्त कर दिया था. इस बीच 2 फरवरी, 2015 को मेरिन जोसेफ ने अपने कालेज टाइम के प्रेमी क्रिस अब्राहम से शादी कर ली थी. वह साइकियाट्रिस्ट बन चुके थे.

बहरहाल, जून 2019 में मेरिन जोसेफ ने सुनील को भारत लाने के लिए भरपूर प्रयास किया तो उन की मेहनत रंग लाई. सऊदी अरब की इंटरपोल शाखा और रियाद प्रशासन ने उन्हें सऊदी अरब आने की अनुमति दे दी. यह मेरिन जोसेफ की पहली जीत थी. 17 जुलाई, 2019 को मेरिन अपनी टीम के साथ सऊदी अरब के लिए रवाना हो गईं. वहां स्थानीय प्रशासन और इंटरपोल टीम की मदद से सुनील भद्रन उन की पकड़ में आ गया.

20 जुलाई, 2019 को मेरिन जोसेफ अपनी टीम और रेपिस्ट सुनील भद्रन को साथ ले कर एयरपोर्ट के बाहर निकलीं तो लोगों ने उन का भव्य स्वागत किया. कानूनी औपचारिकताओं के बाद सुनील को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

इस के बाद मेरिन जोसेफ मीडिया में छा गईं. उन की खूब वाहवाही हुई. क्योंकि 2010 में हुई संधि के 9 साल बाद किसी अपराधी को पहली बार भारत लाया गया था, वह भी एक महिला आईपीएस द्वारा, उस के अपने प्रयासों से.

दरअसल, मेरिन जोसेफ चाहती थीं कि पुलिस विभाग यह न समझे कि कोई महिला अधिकारी यह या कोई बड़ा काम नहीं कर सकती. हालांकि इस के पहले उन्होंने कई बड़े काम किए थे, कई केस सुलझाए थे. दुर्गम जगहों पर ड्यूटी की थी. फिलहाल मेरिन जोसेफ केरल पुलिस हेडक्वार्टर तिरुवनंतपुरम में बतौर पुलिस सुपरिंटेंडेंट (हेडक्वार्टर) तैनात हैं.