महिला सुरक्षा और अंधा समाज – भाग 3

बात दुष्कर्म की न हो कर कैब और कैब टैक्सियों की होने लगी कि रेडियो कैब शहर आधारित टैक्सी सेवा है, इस का खास नंबर होता है. निगरानी के लिए सारी कैब जीपीएस सिस्टम से जुड़ी रहती हैं और सवारी भुगतान ड्राइवर को करती है. वेब आधारित कंपनी स्मार्ट फोन के जरिए ग्राहक को सेवाएं देती है जिस का भुगतान डैबिट या क्रैडिट कार्ड के जरिए किया जाता है जो सीधे कंपनी के खाते में पहुंचता है, वगैरह.

उपेक्षा और प्रताड़ना

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कुछ कहा, जिस का सार यह था कि सभी कैब टैक्सियों पर रोक लगेगी और इस के लिए राज्यों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं. पुलिस ने शिवकुमार यादव के साथसाथ उबेर टैक्सी सर्विस के खिलाफ भी धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया. आरोप यह लगाया कि यह कंपनी सुरक्षित सफर और वैरिफाइड 77ड्राइवर्स का दावा मात्र करती है, जबकि ऐसा नहीं है.

कंपनी के जीएम राजन भाटिया को दिल्ली महिला आयोग ने तलब किया तो उन की गिरफ्तारी की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई. चर्चा संसद में भी हुई पर पीडि़ताओं, महिला सुरक्षा पर नहीं बल्कि इस बात पर कि सभी राज्य वैब टैक्सियों पर रोक लगाएं, रजिस्ट्रेशन के बाद यह पाबंदी हटा ली जाएगी. गृहमंत्री के इस बयान के उलट नितिन गडकरी का कहना यह था कि पाबंदी लगाने से लोगों को परेशानी होगी.

खामी लाइसैंस सिस्टम में है. 30 फीसदी लाइसैंस फर्जी हैं, उसे सुधारने की जरूरत है. रति और रीतिका जैसी पीडि़ताएं इस बौद्धिक, प्रशासनिक और संसदीय बहस में कहीं नहीं थीं गोया कि लाइसैंसधारी ड्राइवर बलात्कार करें, तभी इस बारे में सरकार सोचेगी.

सोचने की बातें ये हैं कि पीडि़ताओं को क्यों गैरजरूरी लंबी पुलिस और अदालती कार्यवाही से हो कर गुजरना पड़े जबकि उन की कोई गलती ही नहीं, सिवा इस के कि वे औरत हैं. पुलिस थानों में यह नहीं देखा जाता कि पीडि़ता पर क्या गुजरी है, बलात्कार, हिंसक लूट और छेड़खानी में ज्यादा फर्क नहीं है.

इन सभी की शिकार महिलाओं को रिपोर्ट लिखाने के लिए घंटों बैठना पड़ता है जो उन की मानसिक यंत्रणा को बढ़ाने वाली बात है. मैडिकल जांच की एक गैरजरूरी बात है. इस का कानूनी महत्त्व बताना या गिनाना कानूनी तकनीक नहीं, बल्कि कानूनी तकलीफ की बात है, जिस का फायदा अकसर आरोपी को ही मिलता है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती.

सामाजिक उपेक्षा और प्रताड़ना झेल रही पीडि़ता को कई बार आपबीती, कहानी की शक्ल में दोहराना पड़ती है. बलात्कार पीडि़ता की तो मानो शामत आ जाती है. अपराधी का खौफ तो उस के सिर मंडराता ही रहता है पर वकीलों की बहस उसे सोचने को मजबूर करती है कि अगर यही इंसाफ का तरीका है तो बलात्कार के बाद खामोशी से घर आ कर सो जाना बेहतर था.

मर्द बदलें अपनी सोच

बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ में इस तकलीफ को बेहद बारीकी से दिखाया गया था. माहौल आज भी वही है. वकील बना कोई श्रीराम लागू जो सवाल पूछता है, उन पर कानूनी रोक आज भी नहीं है. सरकारें हल्ला खूब मचाती रही हैं कि ऐसा नहीं है और है तो खत्म किया जाएगा. शिवकुमार का वकील रीतिका से पूछेगा कि इतनी छोटी जगह में बलात्कार कैसे किया गया था.

आप ने बचाव के लिए हाथपैर चलाए होते तो टैक्सी के कांच टूटने चाहिए थे. वह अपने मुवक्किल के इस कथन को सच साबित करने की कोशिश करेगा कि यह संबंध सहमति से बना था. रीतिका के हक में इकलौती बात यही है कि अगर बलात्कार नहीं हुआ था तो उस ने रिपोर्ट क्यों लिखाई. दो कौड़ी के टैक्सी ड्राइवर से उस के क्या स्वार्थ हो सकते थे जिस की महीनेभर की पगार उस की एक दिन की तनख्वाह के बराबर होती है. यह या कोई टैक्सी ड्राइवर इतना प्रतिष्ठित भी नहीं होता कि उसे धूमिल किया जा सके.

दिनभर थाने और अदालत में पीडि़ता को बैठाना उसे दिमागी तौर पर तोड़ने वाली बात ही है. आधा तो अपराधी उन्हें पहले ही तोड़ चुका होता है. रीतिका कांड पर बयानबाजी भी खूब हुई. ‘बलात्कारी को फांसी हो’ की मांग फिर दोहराई गई पर यह मांग करने वाले नहीं जानते कि बलात्कार बंद कैसे होंगे.

फिल्मकारों का फोकस

इस कांड पर जो सलीके वाली बातें कही गईं उन में एक अभिनेत्री सोनम कपूर ने कही कि भारत में मूलतया मर्दों की परवरिश ही गलत ढंग से होती है. दिल्ली कैब रेप कांड को सोनम ने पुरुषों की कुत्सित मानसिकता को गलत दोषी नहीं ठहराया. बकौल सोनम, आज भी लड़कों को बड़े लाड़प्यार से पाला जाता है लेकिन उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि औरतों की इज्जत कैसे करनी चाहिए.

लड़का कुछ भी गलत हरकत करे तो मांबाप उस का बचाव करते यही कहते हैं कि हमारा लाड़ला तो ऐसा कर ही नहीं सकता. सोनम की नजर में लड़कियों पर कई पाबंदियां लगाई जाती हैं. मसलन, देर रात तक घर के बाहर मत रहो, पार्टियों में मत जाओ, जींस मत पहनो वगैरह. ये पाबंदियां समस्याओं का हल नहीं हैं.

बलात्कार के लिए औरत को नसीहत न देने की वकालत करने वाली सोनम मर्दों की सोच बदलने पर जोर देती हैं. दूसरी उल्लेखनीय बात अभिनेता अक्षय कुमार ने अपना खुद का उदाहरण देते कही कि ऐसे हादसों से मुझे डर लगता है. मैं अपनी बेटी को ले कर प्रोटैक्टिव हूं लेकिन उस की सुरक्षा और खुशियों को ले कर हमेशा डर बना रहता है. एक पिता होने के नाते उस की हिफाजत मेरी जिम्मेदारी है लेकिन मैं चाहता हूं कि सरकार भी उस की रक्षा करे, सड़कों को सुरक्षित बनाना उस का काम है.

अक्षय के मुताबिक, हम टैक्स इसलिए भरते हैं कि बिना किसी डर के घर के बाहर निकल सकें. बलात्कार करने वालों को तत्कालीन सजा के तौर पर उन्हें नपुंसक बना देना चाहिए क्योंकि बलात्कारी बारबार अपराध करते हैं और मुझे नहीं लगता कि जेल में ज्यादा से ज्यादा सजा भी उन्हें इस तरह के जुर्म करने से रोक सकती है.

इन दोनों फिल्मकारों की बातों का फोकस समाज, बच्चों की परवरिश के तौरतरीकों और कानून के इर्दगिर्द है लेकिन एक बड़ा सच यह भी है कि पुरुष प्रधान समाज अभी भी औरत को पांव की जूती समझता है. वह असंगठित होते हुए भी महिला अत्याचारों के मामले में संगठित है.

बीते 2 दशकों में तेजी से लड़कियां नौकरियों में आई हैं, उन की आर्थिक निर्भरता पुरुषों पर कम हो चली है लेकिन सामाजिक निर्भरता बनी रहे इसलिए उन के प्रति छेड़छाड़, हिंसा और बलात्कार के मामले बढ़ रहे हैं. यह पुरुष का सामाजिक अहं है जो अपराधों के जरिए व्यक्त होता है. चौंका देने वाली बात यह है कि अधिकांश पुरुष अपराधी एक अलग वर्ग के हैं.

जैसे भी हो औरत को दबाए रखो, यह सोच मूलतया धर्म से समाज और परिवारों में आई है. औरत अभी भी ताड़न की अधिकारी है. यह ताड़नाप्रताड़ना अब चोला बदल रही है. कसबों से ले कर महानगरों तक में युवतियां काम करते हुए अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान को कायम रख रही हैं. यह बात पुरुषों को रास नहीं आ रही है इसलिए औरतों की हिफाजत के सवाल पर हर बार बवाल मचने पर उन्हें ही दोष देने के अलावा बात कैब, वैब और लाइसैंस में उलझ जाती है. सामाजिक माहौल, पुलिस और कानून प्रक्रिया में सुधार की बात करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता.

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी – भाग 3

कारोबार बढ़ा तो कंपनी ने आगामी योजनाएं बनानी शुरू कीं. पहला कदम ईकौमर्स में रखना था. इस के जरिए वह जरूरत की हर चीज ग्राहकों को उपलब्ध कराना चाहता था. सोशल ट्रेड डौट बिज के बाद उस ने फ्री हब डौटकौम नाम की कंपनी  बनाई. ईकौमर्स के लिए उस ने इनमार्ट डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. इस के जरिए खरीदारी करने पर भी उस ने अतिरिक्त इनकम का प्रावधान रखा.

अभिनव जानता था कि भारत में करोड़ों लोग फेसबुक यूज करते हैं, जिस से मोटी कमाई फेसबुक के ओनर को होती है. फेसबुक की ही तरह भारतीय सोशल साइट बनाने का विचार उस के दिमाग में आया. इस बारे में उस ने अपनी आईटी टीम से विचारविमर्श किया. अपनी टीम के साथ मिल कर अनुभव ने इस तरह की सोशल साइट बनाने पर काम शुरू कर दिया, जिस में फेसबुक से ज्यादा फीचर हों. अपनी इस सोशल साइट का नाम उस ने डिजिटल इंडिया डौट नेट रखा. इस में इस तरह की तकनीक डालने की उन की कोशिश थी कि किसी की आवाज या फोटो डालने पर उस व्यक्ति के एकाउंट पर पहुंचा जा सके.

उधर सोशल ट्रेड में भारत से ही नहीं, विदेशों से भी एंट्री लगनी शुरू हो चुकी थीं. इनवेस्टरों ने भी मोटा पैसा यहां इनवेस्ट करना शुरू कर दिया. अब कंपनी को करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी. किसी वजह से कंपनी ने लोगों को पेआउट देना बंद कर दिया. लोगों ने अपने सीनियर लीडर्स और कंपनी औफिस जा कर संपर्क किया तो उन्हें यही बताया गया कि कंपनी के सौफ्टवेयर में अपग्रेडिंग का काम चल रहा है. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा, सारे पेआउट रिलीज कर दिए जाएंगे.

अब तक कंपनी में करीब साढ़े 6 लाख लोगों ने 9 लाख से अधिक आईडी लगा रखी थीं. कंपनी के पास इन्होंने लगभग 3 हजार 726 करोड़ रुपए जमा करा रखे थे. जब उन्हें कंपनी की तरफ से पैसे आने बंद हो गए तो लोगों में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक थी. कुछ लोगों ने मोटी रकम लगाई थी, उन की तो नींद हराम हो गई.

सीनियर लीडर उन्हें यही भरोसा दिलाते रहे कि उन का पैसा कहीं नहीं जाएगा. जो लोग कंपनी से लंबे समय से जुड़े थे, उन्हें विश्वास था कि कंपनी कहीं जाने वाली नहीं है. अपग्रेडेशन का काम पूरा होने के बाद सभी के पैसे खाते में भेज देगी. लेकिन जिन लोगों को जौइनिंग के बाद फूटी कौड़ी भी नहीं मिली थी, उन की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी. आखिर वे भरोसे की गोली कब तक लेते रहते.

लोगों ने नोएडा के जिला और पुलिस प्रशासन से सोशल ट्रेड की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. लोगों ने सोशल ट्रेड के औफिस पर जब 3 डब्ल्यू का बोर्ड लगा देखा तो उन्हें शक हो गया कि कंपनी भाग गई है. कंपनी के अंदर ही अंदर बदलाव की क्या प्रक्रिया चल रही है, इस से लोग अनजान थे.

15 दिनों की गोपनीय जांच करने के बाद पुलिस प्रशासन को भी लगा कि अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड कंपनी के नाम पर लोगों से अरबों रुपए की ठगी की है. तब पुलिस ने 1 फरवरी, 2017 को अनुभव मित्तल और कंपनी के 2 पदाधिकारियों श्रीधर प्रसाद और महेश दयाल को हिरासत में ले लिया.

अनुभव मित्तल से पूछताछ के बाद पता चला कि उस की कंपनी के गाजियाबाद के राजनगर में कोटक महिंद्रा बैंक में एक एकाउंट, यस बैंक में 2 एकाउंट, एक्सिस बैंक में 2 एकाउंट, केनरा बैंक में 3 एकाउंट हैं. जांच में पुलिस को केनरा बैंक में 480 करोड़ रुपए और यस बैंक में 44 करोड़ रुपए मिले. पुलिस ने इन खातों को फ्रीज करा दिया.

जांच में पुलिस को जानकारी मिली है कि कंपनी ने दिसंबर, 2016 के अंत में सोशल ट्रेड डौट बिज से माइग्रेट कर के फ्री हब डौटकौम लांच कर दिया और उस के 10 दिन के अंदर ही फ्री हब डौटकौम से इनमार्ट डौटकौम पर माइग्रेट किया. इस के बाद 27 जनवरी, 2017 को इनमार्ट से फ्रिंजअप डौटकौम पर माइग्रेट कर लिया.

कंपनी में इतनी जल्दीजल्दी बदलाव करने के बाद अनुभव मित्तल ने गिरफ्तारी के 7 दिनों पहले ही दिल्ली की एक नई कंपनी 3 डब्ल्यू खरीद कर उस का बोर्ड भी अपने औफिस के बाहर लगा दिया. इस के अलावा अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड डौट बिज के डोमेन पर प्राइवेसी प्रोटेक्शन प्लान भी ले लिया था, ताकि कोई भी व्यक्ति या जांच एजेंसी डोमेन की डिटेल के बारे में पता न लगा सके.

पुलिस को पता चला कि वह फेसबुक पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा था. कंपनी द्वारा सदस्यों को धोखे में रख कर उन से पैसे लिए जाते थे और जब अपने पेज को लौगइन करते तो विज्ञापन पेजों के या तो गलत यूआरएल होते थे या उन्हीं सदस्यों के यूआरएल को आपस में ही लाइक कराया जा रहा था. कंपनी द्वारा कोई वास्तविक विज्ञापन या कोई लौजिकल या रियल सर्विस नहीं उपलब्ध कराई जा रही थी.

कंपनी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, वह सदस्यों के पैसों को ही इधर से उधर घुमा रही थी, जोकि द प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978 की धारा 2(सी)/3 के तहत अवैध है. इस एक्ट की धारा 4 में यह अपराध है.

पुलिस ने अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल को विस्तार से पूछताछ करने के बाद 2 फरवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के सीजेएम-3 की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस ने लखनऊ की फोरैंसिक साइंस लेबोरैटरी, रिजर्व बैंक औफ इंडिया, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सेबी, कारपोरेट अफेयर मंत्रालय की फ्रौड इनवेस्टीगेशन टीम को भी जानकारी दे दी है. सभी विभागों के अधिकारी अपनेअपने स्तर से मामले की जांच में लग गए हैं. जांच में पता चला है कि अनुभव मित्तल ने लाइक के जरिए 3700 करोड़ रुपयों की ठगी की है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मामले की गहन जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. आईजी (क्राइम) भगवानस्वरूप के नेतृत्व में बनी इस जांच टीम में मेरठ रेंज के डीआईजी के.एस. इमैनुअल, एडिशनल एसपी (क्राइम) गौतमबुद्धनगर, एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्रा, सीओ राजकुमार मिश्रा, गौतमबुद्धनगर के 2 इंसपेक्टर, एसआई सर्वेश कुमार पाल, सौरभ आदि को शामिल किया गया है.

टीम ने इस ठगी में फंसे लोगों को अपनी शिकायत भेजने के लिए एक ईमेल आईडी सार्वजनिक कर दी है. मीडिया में यह ईमेल जारी हो जाने के बाद देश से ही नहीं, विदेशों से भी भारी संख्या में शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं. कथा लिखे जाने तक एसटीएफ के पास करीब साढ़े 6 हजार शिकायतें ईमेल से आ चुकी थीं. इन में से 100 से अधिक नाइजीरिया से मिली है. केन्या और मस्कट से भी पीडि़तों ने ईमेल से शिकायतें भेजी हैं.

पुलिस अब यह जानने की कोशिश कर रही है कि अभिनव ने इतनी मोटी रकम आखिर कहां इनवैस्ट की है. बहरहाल जिन लोगों ने अनुभव मित्तल की कंपनी में पैसा लगाया है, अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 3

करोड़ों की जमीन ने दोस्ती में डाली दरार

लगभग 4 करोड़ की जमीन छिन जाने के डर से प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता घबरा गया. उस ने तब क्षेत्र के कुख्यात गैंगस्टर आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट से मुलाकात की. उस ने पप्पू स्मार्ट को अपनी समस्या बताई और पिंटू सेंगर से जमीन वापस दिलाने की गुहार लगाई.  पप्पू स्मार्ट ने 40 लाख रुपया मनोज से लिया और उसे जमीन वापस दिलाने का भरोसा दिया.

पप्पू स्मार्ट ने अपने दोस्त पिंटू सेंगर से जमीन को ले कर बातचीत की और मनोज गुप्ता को जमीन वापस करने की बात कही. लेकिन दोस्ती के बावजूद पिंटू सेंगर ने पप्पू स्मार्ट की बात नहीं मानी और जमीन वापस करने से साफ इंकार कर दिया. बस, यहीं से दोनों दोस्त एकदूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए.

पिंटू सेंगर के साथ उन्नाव में तैनात सिपाही श्याम सुशील मिश्रा काम करता था. उस ने सरकारी, गैरसरकारी जमीनों पर कब्जा किया और फिर बिक्री कर करोड़ों कमाए. आय से अधिक संपत्ति के मामले में उसे निलंबित कर दिया गया था. उस का भूमाफिया और हिस्ट्रीशीटरों से गठजोड़ था.

पिंटू सेंगर के माध्यम से उस ने 6 करोड़ की जमीन का सौदा किया था. लेकिन श्याम सुशील यह रकम पिंटू सेंगर को देना नहीं चाहता था. उसे जब पिंटू और पप्पू की दुश्मनी का पता चला तो वह पप्पू स्मार्ट का वफादार बन गया.

रूमा की 5 बीघा जमीन को लेकर पप्पू और पिंटू में अब अकसर तकरार होने लगी थी. चकेरी में एक रोज पिंटू सेंगर का सामना पप्पू स्मार्ट व उस के साथी सऊद अख्तर से हुआ तो जमीन को ले कर दोनों में कहासुनी होने लगी.

इसी कहासुनी में पप्पू स्मार्ट ने पिंटू सेंगर पर फायर कर दिया. पिंटू घायल हो गया. उसे अस्पताल ले जाया गया. बाद में पिंटू सेंगर ने चकेरी थाने में पप्पू स्मार्ट व उस के साथी सऊद अख्तर के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

पप्पू ने पिंटू सेंगर की दी सुपारी

जेल से बाहर आने के बाद पप्पू स्मार्ट ने पिंटू सेंगर को ठिकाने लगाने की ठान ली. उस ने अपराधी जाजमऊ निवासी तनवीर बादशाह से बातचीत की. तनवीर बादशाह जेल में बंद मुख्तार अंसारी का गुर्गा था.

तनवीर बादशाह ने पप्पू स्मार्ट की मुलाकात साफेज उर्फ हैदर से कराई. हैदर ने 40 लाख रुपए में बसपा नेता व भूमाफिया पिंटू सेंगर की हत्या की सुपारी ली. पप्पू ने 8 लाख रुपए पेशगी दिए और शेष रकम काम हो जाने के बाद देने का वादा किया.

साफेज उर्फ हैदर ने रकम मिलने के बाद 2 लाख रुपए से 4 शार्प शूटरों का इंतजाम किया तथा 2 लाख रुपयों से पिस्टल व कारतूसों का इंतजाम किया. पप्पू स्मार्ट व उस के गैंग के सदस्य पिंटू सेंगर की गतिविधियों पर नजर रखने लगे. साफेज उर्फ हैदर ने भी बबलू सुलतानपुरी को पिंटू की रेकी के लिए लगा दिया.

20 जून, 2020 की सुबह साफेज उर्फ हैदर को पता चला कि पिंटू सेंगर दोपहर को जेके कालोनी आशियाना स्थित सपा के पूर्व जिला अध्यक्ष चंद्रेश सिंह के घर जमीनी समझौते के लिए जाएगा. वहां दूसरा पक्ष मनोज गुप्ता भी आएगा.

यह पता चलते ही हैदर ने शार्प शूटरों को सतर्क कर दिया. शार्प शूटर सलमान बेग, फैसल, एहसान कुरैशी व राशिद कालिया 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर चंद्रेश के घर के पास पहुंच गए और पिंटू सेंगर के आने का इंतजार करने लगे.

इधर लगभग 12 बजे पिंटू सेंगर अपनी इनोवा कार से चंद्रेश के घर जाने के लिए अपने घर से निकला. कार उन का ड्राइवर रूपेश चला रहा था. चंद्रेश के घर के सामने पहुंचने पर फोन पर बात करते हुए पिंटू सेंगर कार से उतरा और सड़क किनारे खड़े हो क र बात करने लगा.

इसी बीच 2 मोटरसाइकिलों पर सवार हो कर आए 4 बदमाशों ने पिंटू पर ताबड़तोड़ फायरिंग कर उस के शरीर को छलनी कर दिया और फरार हो गए. पिंटू की मौके पर ही मौत हो गई.

बसपा नेता व भूमाफिया की हत्या से कानपुर शहर में सनसनी फैल गई. तत्कालीन एसएसपी दिनेश कुमार पी, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल, डीएसपी (कैंट) आर.के. चतुर्वेदी तथा इंसपेक्टर आर.के. गुप्ता मौकाएवारदात पर पहुंचे और घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. फिर शव को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पप्पू स्मार्ट की संपत्ति पर चला बुलडोजर

पुलिस अधिकारियों ने मृतक के भाई धर्मेंद्र सिंह सेंगर से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के भाई पिंटू सेंगर की हत्या गैंगस्टर आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट ने शार्प शूटरों से कराई है. हत्या में उस के भाई व गैंग के अन्य सदस्य भी शामिल हैं. हत्या सुनियोजित ढंग से की गई है.

धर्मेंद्र सिंह की तहरीर पर थाना चकेरी इंसपेक्टर आर.के. गुप्ता ने आसिम उर्फ पप्पू स्मार्ट, उस के भाई तौफीक उर्फ कक्कू, आमिर उर्फ बिच्छू, प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता, श्याम सुशील मिश्रा, सऊद अख्तर, तनवीर बादशाह, सलमान बेग, एहसान कुरैशी, मो. फैजल, महफूज, टायसन, वीरेंद्र पाल, गुलरेज, बबलू सुलतानपुरी सहित 15 लोगों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस टीमों ने संभावित ठिकानों पर दबिश डाल कर एक के बाद एक सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें जिला जेल भेज दिया. पप्पू स्मार्ट, सऊद अख्तर, एहसान कुरैशी, फैसल जैसे कुख्यात अपराधियों पर गुंडा एक्ट तथा रासुका भी लगाई गई ताकि उन की जमानत न हो सके.

इधर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फरमान जारी हुआ कि अपराधियों की संपत्ति जब्त की जाए तथा अवैध निर्माण को जमींदोज कर दिया जाए.

इस फरमान के तहत कानपुर नगर निगम ने हिस्ट्रीशीटर पप्पू स्मार्ट की जांच कराई तो उस का हरजेंद्र नगर चौराहे वाला मकान अवैध तथा बिना नक्शे का बना पाया गया. जाजमऊ पुराना गल्ला मंडी में निर्मित 7 दुकानें भी अवैध पाई गईं.

19 मई, 2022 को डीसीपी (पूर्वी) प्रमोद कुमार की अगुवाई में नगर निगम का दस्ता बुलडोजर ले कर हरजेंद्र नगर चौराहा पहुंचा और गैंगस्टर पप्पू स्मार्ट का मकान ध्वस्त कर दिया. इस के बाद दस्ते ने गल्ला मंडी स्थित उस की सभी दुकानें भी गिरा दीं. उस की तथा उस के भाइयों की अन्य संपत्तियां भी जब्त कर ली गईं.

पप्पू स्मार्ट ने जाजमऊ के राजा ययाति के किले पर कब्जा कर वहां की भूमि टुकड़ों में बेच दी, जिस पर अवैध बस्ती बस गई. इस बस्ती को खाली कराने की प्रक्रिया भी कानपुर विकास प्राधिकरण तथा पुरातत्त्व विभाग ने शुरू कर दी है.

वहां के बाशिंदों को नोटिस जारी किया जा रहा है कि वे अपना मकान खाली कर दें अन्यथा उसे ध्वस्त कर दिया जायेगा. विरोध करने पर सख्त से सख्त काररवाई की जाएगी.

बहरहाल, हत्यारोपियों में से 5 आरोपियों सऊद अख्तर, टायसन, तनवीर बादशाह, गुलरेज तथा बबलू सुलतानपुरी की जमानत हाईकोर्ट से हो गई थी. पप्पू स्मार्ट व उस का भाई आमिर उर्फ बिच्छू जेल में है.

उस के एक भाई तौफीक उर्फ कक्कू की जेल में हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. शार्प शूटर सलमान बेग, फैसल, एहसान कुरैशी और साफेज उर्फ हैदर भी जेल में है. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

दोस्ती भी शिद्दत से निभाई, दुश्मनी भी – भाग 3

पूजा धीरज की बातें सुन कर अवाक रह गई. जैसे ही उस की नजर बाहर की तरफ कोने में रखे कटे सिर पर पड़ी तो उस के मुंह से चीख निकल गई.

करीब जा कर उस ने अपने पति विजेत का कटा हुआ सिर देखा तो जमीन पर सिर पटकने लगी और पल भर में बेहोश हो गई. धीरज ने विजेत के कटे सिर व हंसिया को बोरीनुमा एक थैले में रख लिया और बाइक स्टार्ट कर 7 किलोमीटर दूर तिलवारा थाने पहुंच गया.

11 मार्च, 2021 को महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जा रहा था. त्यौहार के मद्देनजर तिलवारा थाने के टीआई सतीश पटेल और ज्यादातर स्टाफ मंदिरों के आसपास सुरक्षा के लिए तैनात थे.

दोपहर के समय अचानक एक बाइक सवार युवक हाथ में एक थैला लिए थाने में दाखिल हुआ तो थाने में मौजूद एक पुलिसकर्मी की नजर उस पर पड़ी.

बाइक पर आए युवक के कपड़े खून से सने हुए थे. पुलिसकर्मी ने उसे दूर से देखते ही पूछा, ‘‘कौन हो तुम? यहां किसलिए आए हो?’’

उस युवक ने अपने साथ लाए थैले को जमीन पर रखते हुए कहा, ‘‘साब, मेरा नाम धीरज शुक्ला है. बर्मन मोहल्ले का विजेत कश्यप मेरी बहन को भगा कर ले गया था. आज मैं ने उस का मर्डर कर दिया है. मुझे गिरफ्तार कर लीजिए. इस थैले में उस का सिर और हाथ का पंजा काट कर लाया हूं.’’

युवक की बात सुन कर थाने में मौजूद पुलिसकर्मी सकते में आ गए. उन्होंने देखा कि थैले में से खून की बूंदें टपक रही थीं. धीरज के हाथ से थैला लेते हुए जब पुलिसकर्मी ने देखा तो वह सकपका गया. तत्काल घटना की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दी गई. टीआई सतीश पटेल को जैसे ही मामले की खबर मिली, वह तत्काल थाने आ गए.

थाने में जब धीरज से पूछताछ की गई तो धीरज ने बताया कि विजेत ने दोस्ती में विश्वासघात कर के मेरी बहन को बहलाफुसला कर शादी की थी. इस अपमान का बदला लेने के लिए मैं ने उस की हत्या कर दी. मैं ठान चुका था कि या तो वो जीवित रहेगा या मैं.

तिलवारा पुलिस ने आरोपी धीरज की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल हंसिया और खून से सने उस के कपड़े आदि जब्त कर लिए. आरोपी की सूचना पर पुलिस जब रामनगर इलाके के एक खेत में पहुंची तो वहां विजेत का धड़ पड़ा हुआ था.

वहां पर विजेत के घर वाले और रिश्तेदारों की भीड़ लगी थी. तिलवारा पुलिस ने लाश का पंचनामा तैयार कर उसे पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

इधर धीरज के घर से जाने के बाद उस की बहन पूजा को जैसे ही होश आया, वह दौड़ कर खेत की तरफ गई. वहां विजेत के बिना सिर के धड़ को देख कर उस के सब्र का बांध टूट गया. उसे यकीन नहीं हो रहा था कि शादी के 3 महीने के भीतर ही उस के सारे ख्वाब रेत के महल की तरह ढह गए हैं. शोक से व्याकुल वह अपने घर आई और एक कमरे में जा कर जोरजोर से रोने लगी.

चीखपुकार सुन कर आसपास की महिलाएं घर आ गईं तो पूजा की मां रोरो कर सब को घटना की जानकारी देने लगी.

घंटे दो घंटे के बाद जब पूजा के रोने की आवाज कमरे से आनी बंद हुई तो उस की मां ने कमरे के अंदर जा कर देखा तो उस की चीख निकल गई.

चीख सुन कर पूजा के पिता दौड़ कर आए तो देखा, पूजा पंखे से लटकी हुई थी. पूजा ने अपनी ओढ़नी का फंदा बना कर पंखे से लटक कर फांसी लगा ली थी. पुलिस टीम को जैसे ही पूजा के फांसी लगाने की खबर मिली वह शंकराघाट में धीरज के घर पहुंच गई.

पूजा को पंखे से उतार कर पुलिस जांचपड़ताल में लग गई. पुलिस को शक था कि कहीं धीरज ने विजेत से पहले पूजा की हत्या कर के पंखे से तो नहीं लटका दिया.

फूटाताल में रहने वाले मृतक विजेत के ममेरे भाई और दूसरे रिश्तेदारों ने पुलिस के सामने यह आरोप लगाया कि पूजा ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उस की हत्या की गई है.

उन का कहना था कि विजेत की हत्या करने के बाद धीरज ने पूजा को फांसी पर लटका दिया. यह हत्या पूरी योजना बना कर की गई है, ताकि किसी को संदेह न हो. वह नहीं चाहते थे कि पूजा अपने भाई और अन्य रिश्तेदारों के खिलाफ गवाही दे.

महाशिवरात्रि के धार्मिक उत्सव पर इस तरह की घटना होने से पूरे क्षेत्र में तनाव का माहौल बन गया था. जबलपुर रेंज के डीआईजी भगवत सिंह चौहान और एसपी सिद्धार्थ बहुगुणा पूरी घटना पर नजर रखे हुए थे.

वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर तिलवारा टीआई सतीश पटेल ने दोनों पक्षों को समझा कर पहले दोनों शवों का पोस्टमार्टम कराया, फिर शाम को पुलिस की मौजूदगी में अलगअलग स्थानों पर पूजा और विजेत का अंतिम संस्कार कराया.

आईजी जबलपुर रेंज की ओर से तिलवारा थाने के टीआई सतीश पटेल की सूझबूझ के लिए पुरस्कृत किया गया. पूजा और विजेत की प्रेम कहानी का दुखद अंत हो चुका था. पुलिस ने धीरज शुक्ला के इकबालिया बयान के आधार पर आईपीसी की धारा 302 के तहत विजेत की हत्या का मुकदमा कायम कर उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

रक्षा बंधन के दिन पूजा जिस भाई की कलाई पर राखी बांध कर बहन अपनी रक्षा का जिम्मा सौंपती थी, वही भाई उस के प्यार का जानी दुश्मन बन गया. जातपांत की संकुचित विचारों की बेडि़यों में जकड़े भाई ने बहन की मांग का सिंदूर उजाड़ दिया, जिस के चलते बहन को मौत को गले लगाने पर मजबूर होना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

संगीन विश्वासघात : बेटी जैसी लड़की को बनाया शिकार – भाग 2

जसविंदर कौर के अनुसार, मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह अकसर उस से कहा करते थे कि उन की इतनी पहुंच है कि अगर वह किसी का कत्ल भी करवा दें तो कोई उन का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. यूपी, बिहार के कई गैंगस्टरों से उन की बहुत पटती है. वे उन के इशारे पर कभी भी कुछ भी कर सकते हैं. यहां तक कि वह जिस का कह दें, वे उस का कत्ल भी कर सकते हैं. इस तरह लंगाह जसविंदर को डरा कर अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस का यौनशोषण करता रहा.

एसएसपी को दी गई अपनी शिकायत में जसविंदर ने आगे जो लिखा था कि मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह ने उसे अलगअलग जगहों पर ले जा कर उस के साथ इतनी बार दुष्कर्म किया है कि अब वह बता भी नहीं सकती. कुछ ऐसी जगहों पर भी वह उसे ले गया था, जिन के बारे में उसे आज भी कुछ पता नहीं है. लंगाह जब भी उसे कहीं ले जाता था, गाड़ी खुद चलाता था. उस आदमी ने उस से सिर्फ अपनी हवस ही नहीं मिटाई, बल्कि आर्थिक रूप से भी उसे खूब लूटा.

सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर को चंडीगढ़ में प्लौट दिलाने के नाम पर गांव की उस की जमीन बिकवा दी. उस रकम से सिपहिया नामक आदमी को प्लौट खरीदने के नाम पर बयाने के रूप में 15 लाख रुपए दिलवा दिए. इस के बाद एक वकील को 30 लाख रुपए दिए. बाद में उस से कहा गया कि अब वे लोग अपना प्लौट नहीं बेचना चाहते. जसविंदर को एक लाख रुपए दे कर लंगाह ने कहा कि बकाया रकम उसे धीरेधीरे दे दी जाएगी. कुछ दिनों बाद साढ़े 3 लाख रुपए दे कर उस से कहा गया कि उसे जो रकम मिल गई, वही बहुत है, बयाने की रकम भला कोई वापस करता है. इस तरह बाकी रकम लंगाह ने खुद रख ली थी.

जसविंदर कठपुतली बनी हुई थी मंत्री की

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह ने जसविंदर के नाम पर सहकारी बैंक से 8 लाख रुपए कर्ज ले कर 1 लाख रुपए उसे दे दिए और बाकी के 7 लाख रुपए खुद रख लिए. इस के बाद यह कह कर जसविंदर के गांव वाले मकान का सौदा करवा दिया कि वह उसे जालंधर शहर में फ्लैट खरीदवा देगा. इस के बाद उस से प्रार्थना पत्र लिखवा कर उस का तबादला जालंधर करवा दिया.

जसविंदर कौर के अनुसार, लंगाह उसे नदी पार अपनी जमीनों के बीच बनी कोठी पर भी बुलाया करता था, जहां जाने में उसे बहुत डर लगता था. जसविंदर को लगता कि अगर उसे मार कर वहां दफना दिया गया तो किसी को पता तक नहीं चलेगा. वैसे भी उस ने उसे इतना डरा दिया था कि वह उस के हाथों की कठपुतली बनी हुई थी. इसीलिए वह उस के खिलाफ किसी के सामने मुंह खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी.

एक बार जसविंदर के बेटे का एक्सीडेंट हुआ तो लंगाह ने यह कह कर उसे और डरा दिया कि कहीं यह एक्सीडेंट किसी ने कराया तो नहीं? उस ने यह बात इस तरह कही थी कि जसविंदर ने सोचा कि अगर उस ने कभी उस के खिलाफ जाने की सोची तो वह उस के परिवार को नुकसान पहुंचा सकता है.

जसविंदर जितना सुच्चा सिंह से डरती रही, वह उस का उतना ही शारीरिक और आर्थिक शोषण करता रहा. क्योंकि बेसहारा अकेली जसविंदर कौर की उस के सामने औकात ही क्या थी? इस बीच जसविंदर को पता चल गया कि सुच्चा सिंह ने उस की तरह और भी कई औरतों को उसी की तरह लूट कर उन की जिंदगी बरबाद कर दी.

इस के बाद जसविंदर को लगने लगा कि अब वह अति की सीमा पार कर चुका है. आखिर अपनी जान हथेली पर रख कर किसी तरह हिम्मत जुटा कर जसविंदर कौर ने सुच्चा सिंह लंगाह के खिलाफ उपर्युक्त शिकायत लिख कर एसएसपी को दे दी थी.

अपने ऊपर हुई ज्यादतियों को साबित करने के लिए मजबूरन जसविंदर ने इस सब की वीडियो बना ली थी. क्योंकि अगर वह ऐसा न करती तो अपनी पहुंच की बदौलत लंगाह उस की शिकायत को दबवा कर वह उसे किसी केस में फंसवा सकता था. इसीलिए सबूत के तौर पर जसविंदर ने एक वीडियो शिकायत पत्र के साथ नत्थी कर दी थी.

जसविंदर कौर ने शिकायत देने के बाद गुहार लगाई थी कि उसे और उस के परिवार को सुच्चा सिंह लंगाह से बहुत ज्यादा खतरा है. वह इतना खतरनाक आदमी है कि कभी भी उस पर हमला करवा कर मरवा सकता है. इसलिए उस ने निवेदन किया था कि उस की व उस के परिवार की सुरक्षा की व्यवस्था की जाए. उसे इंसाफ दिलवाया जाए और उस के आर्थिक नुकसान की भरपाई करवाई जाए.

सुच्चा सिंह लंगाह ने मंत्री और शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का सदस्य रहते हुए तमाम गैरजिम्मेदाराना काम करते हुए बहुत ज्यादतियां की हैं. इसलिए इस मामले को अत्यंत गंभीरता से लेते हुए एक बेसहारा मजलूम औरत की फरियाद पर ध्यान दे कर उस के खिलाफ तुरंत काररवाई की जाए.

शिकायत पत्र के अंत में जसविंदर कौर ने अपने दस्तखत कर के नामपता और मोबाइल नंबर भी लिख दिया था. इस के साथ एक एफिडेविट के अलावा पैनड्राइव और सीडी भी संलग्न थी, जिस में 20 मिनट की वीडियो थी, जो किसी नीली फिल्म से कम नहीं थी. उस में लंगाह को निर्वस्त्र हो कर शिकायतकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाते दिखाया गया था.

सबूतों के आधार पर सुच्चा सिंह के खिलाफ दर्ज हो गई शिकायत

एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर ने मार्क कर के जसविंदर की शिकायत की काररवाई के लिए डीएसपी (सिटी) गुरबंस सिंह बैंस को भिजवा दी. उन्होंने इस के तथ्यों एवं वीडियो वगैरह की जांच कर के कानूनी राय लेने के लिए उसे जिला न्यायवादी के पास भिजवा दिया. डिस्ट्रिक्ट अटार्नी ने भादंवि की धारा 376, 384, 420 एवं 506 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने की संस्तुति दे दी.

बदन सिंह बद्दो : हौलीवुड एक्टर जैसे कुख्यात गैंगस्टर – भाग 2

पहली हत्या और फिर हत्याओं का सिलसिला

बदन सिंह बद्दो की हिस्ट्रीशीट के मुताबिक, उस पर पहला आपराधिक मामला साल 1988 में दर्ज हुआ था, जब उस ने एक जमीन विवाद में मेरठ के गुदरी बाजार कोतवाली इलाके में राजकुमार नाम के व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के बाद उस का नाम मेरठ से निकल कर हापुड़, गाजियाबाद और बागपत तक पहुंच गया.

बदमाशों के बीच चर्चा शुरू हो गई कि बदन सिंह नाम का नया गैंगस्टर आ गया है, जिसे ‘न’ सुनना पसंद नहीं है. बद्दो को इस अपराध में पुलिस ने एक राइफल और 15 जिंदा कारतूस के साथ गिरफ्तार किया था. वह कुछ समय तक जेल में रहा, फिर जमानत पर बाहर आ गया. इस के बाद तो उस की हिम्मत और बढ़ गई.

1994 में बदन सिंह बद्दो ने प्रकाश नाम के एक युवक की गोली मार कर हत्या कर दी. साल 1996 में बदन सिंह ने वकील राजेंद्र पाल की हत्या की. इस के बाद तो जैसे हत्याओं का सिलसिला ही शुरू हो गया. वह सुपारी ले कर हत्याएं करवाने का धंधा भी करने लगा.

बद्दो के बारे में कहा जाता है कि उस का गुस्सा तभी शांत होता था, जब वह अपने दुश्मन से बदला ले लेता था. कहते हैं कि उसे टोकाटाकी कतई बरदाश्त नहीं है. वकील राजेंद्र पाल की हत्या ने बद्दो को खूब मशहूर किया.

दरअसल, वकील राजेंद्र पाल भी कुछ कम दबंग नहीं था. एक पार्टी में बदन सिंह बद्दो ने किसी बात से चिढ़ कर वकील राजेंद्र पाल के पारिवारिक मित्र की पत्नी के बारे में अनुचित टिप्पणी कर दी थी, जिस से नाराज राजेंद्र पाल ने उसे सरेआम थप्पड़ जड़ दिया. बस फिर क्या था, राजेंद्र को मौत के घाट उतार कर बद्दो ने बदला पूरा किया और फरार हो गया.

पुलिस ने केस दर्ज किया और जांच शुरू की. यह केस कई साल चलता रहा. इस बीच बद्दो ने जमानत करवा ली और अपने आपराधिक कारनामे बदस्तूर चलाता रहा.

उस के क्राइम का ग्राफ दिनबदिन बढ़ता ही चला गया.

2011 में जहां उस ने मेरठ के हस्तिनापुर क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य संजय गुर्जर की गोली मार कर हत्या की, वहीं साल 2012 में उस ने केबल नेटवर्क के एक संचालक पवित्र मैत्रेय की हत्या कर दी.

इन हत्याओं के अलावा बदन सिंह के खिलाफ दिल्ली और पंजाब में किडनैपिंग, जमीन कब्जाने के कई केस दर्ज हुए.

मेरठ जिले के प्रतिष्ठित व्यवसायी राजेश दीवान से 2 करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने और धमकी देने के मामले में भी बद्दो के खिलाफ परतापुर और लालकुर्ती थाने में मुकदमे दर्ज हुए. इस मामले में चार्जशीट भी दाखिल हो चुकी है.

सफेदपोश नेताओं और अधिकारियों का खास उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में उस पर हत्या, वसूली, लूट, डकैती के 40 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सुपारी किंग के नाम से मशहूर हो चुके बदन सिंह बद्दो ने सुपारी ले कर कई हत्याएं करवाईं.

उस से यह सेवा लेने वाले कई सफेदपोश नेता भी हैं, जिन्होंने बद्दो के जरिए अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करवाया. बदले में बद्दो को मोटी रकम मिली. राजेंद्र पाल हत्या के मामले में 21 साल बाद वर्ष 2017 में बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई गई और उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो की दोस्ती के ख्वाहिशमंद सिर्फ अपराध की दुनिया के लोग ही नहीं थे, बल्कि बड़ेबड़े कारोबारी, सफेदपोश नेता और पुलिस अधिकारी भी उस से अच्छे रिश्ते बना कर रखते थे. बद्दो भी इन तमाम लोगों का खास खयाल रखता था. खासतौर से पुलिस के साथ तो उस का दोस्ताना साफ दिखाई देता था. इस की एक बानगी देखिए.

2012 में बद्दो को पुलिस ने धमकी देने के एक मामले में गिरफ्तार किया. उसे लालकुर्ती थाने ले जाया गया. बद्दो जैसे ही थाने पहुंचा, थानेदार उछल कर अपनी कुरसी से खड़ा हो गया. थानेदार के मुंह से एकाएक निकला, ‘अरे बद्दो तुम यहां कैसे?’

बद्दो ने उसे देखा और मुसकरा कर सामने पड़ी कुरसी पर फैल कर बैठ गया. उस को थाने ले कर आने वाले एसआई और सिपाही इस बदली सिचुएशन से सकपका गए. बद्दो अभी थाने में बैठा ही था कि एसएसपी समेत कई बड़े कारोबारी थाने पहुंच गए. अब एफआईआर हुई थी तो पुलिस को काररवाई तो दिखानी थी.

अगले दिन जब बद्दो को कचहरी ले जाया गया तो शहर के सारे बड़े कारोबारी उस के पीछे चल रहे थे. साल 2000 के बाद से बदन सिंह बद्दो नेताओं को मोटी फंडिंग करने वाला बन गया था. यही कारण था कि उस के धंधों पर हाथ डालने से पुलिस अधिकारी पीछे हटने लगे.

वकील हत्याकांड में हुई उम्रकैद की सजा

21 साल बाद 31 अक्तूबर, 2017 को वकील राजेंद्र पाल हत्याकांड में गौतमबुद्धनगर के जिला न्यायालय ने 9 गवाहों की गवाही के बाद बदन सिंह बद्दो को उम्रकैद की सजा सुनाई. उस दिन बद्दो कोर्ट में मौजूद था. सजा का ऐलान होते ही वह रो पड़ा.

इस से पहले 13 अक्तूबर को बदन सिंह बद्दो ने फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. उस में लिखा था, ‘जब गिलाशिकवा अपनों से हो तो खामोशी ही भली, अब हर बात पर जंग हो यह जरूरी तो नहीं.’

उस को जानने वाले कहते हैं कि इस मामले में उसे सजा का एहसास हो गया था. कोर्टरूम में सजा सुनाए जाने के तुरंत बाद बद्दो को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.

बदन सिंह बद्दो 2 साल जेल में रहा. जेल के अंदर से भी उस के काले कारनामे बदस्तूर चलते रहे, जिन्हें बाहर उस का खास दोस्त सुशील मूंछ संभालता रहा.

28 मार्च, 2019 का दिन था जब बद्दो को फतेहगढ़ जेल से एक पुराने मामले में पेशी के लिए गाजियाबाद कोर्ट ले जाना था. पुलिस का दस्ता बख्तरबंद गाड़ी में बद्दो को ले कर गाजियाबाद पहुंचा और कोर्ट में उस की पेशी हुई. वापसी में बद्दो ने पुलिसकर्मियों को कुछ देर के लिए मेरठ चलने के लिए राजी कर लिया. एवज में बड़ी रकम का लालच दिया गया.

काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया – भाग 2

मोबाइल स्नैचिंग की छोटी सी सजा काट कर जेल से छूटने के बाद उस ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा लिया. कई तरह के अपराध करने लगा, जिस में स्नैचिंग के साथसाथ हिंसा भी शामिल हो गई.

उस की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई, किंतु जल्द ही वह शार्पशूटर बन गया. वह एक गैंग में शामिल हो गया और अपना आदर्श लारेंस बिश्नोई को मान लिया.

पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई.

अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है.

इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

फिर कुछ साल बाद ही हरियाणा के सांपला और फिर गोहाना में हुई हत्याओं में उस का नाम आ गया. उस के बाद उस ने मुड़ कर नहीं देखा. और फिर जठेड़ी का नाम 2012 में हरियाणा पुलिस के मोस्टवांटेड अपराधियों की सूची में तब जुड़ गया, जब उस ने 3 सहयोगियों के साथ मिल कर हरियाणा के झज्जर जिले में दुलिना गांव के पास एक जेल वैन को ट्रक से टक्कर मार दी थी.

यह टक्कर जानबूझ कर मारी गई थी. उस का मकसद उस में सवार कैदियों को मारना था. इस वारदात में उस ने 3 कैदियों की गोली मार कर हत्या कर दी थी और 2 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे.

बताते हैं कि वे कैदी उस के दुश्मन थे. बाद में जठेड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

दरअसल, वर्ष 2012 में काला जठेड़ी को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जेल में उस की मुलाकात गैंगस्टर नरेश सेठी से हो गई. उस ने काला जठेड़ी को राजू बसोडी से मिलवाया.

राजू बसोडी ने उक्त परिवार के छठे भाई को 2018 में मरवा दिया. उस समय काला जठेड़ी जेल में ही था. गैंगस्टर नरेश सेठी के जीजा को उस ने इसलिए मार डाला, क्योंकि उस ने नरेश की बहन को मार दिया था.

जेल में रहने के दौरान ही काला जठेड़ी की दोस्ती लारेंस बिश्नोई से हो गई थी.  वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. लारेंस ने ही उसे पुलिस हिरासत से फरवरी, 2020 में फरार करवाया था. उस के बाद से ही वह लगातार फरार चल रहा था और उस के नाम साल भर में 20 से ज्यादा हत्याओं को अंजाम देने का आरोप लग चुका था.

हत्या समेत अपहरण की वारदातों को तो काला जठेड़ी जेल में रह कर ही अंजाम दे दिया करता था. जेल से बाहर उस ने अपना जबरदस्त गिरोह बना रखा है. उन में 100 से अधिक शूटर हैं. गैंग के लोग दिल्ली समेत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान में सक्रिय हैं. वे एक इशारे पर मरनेमारने को तैयार रहते हैं.

रंगदारी वसूलने में भी माहिर

वे बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम देने में माहिर हैं. रंगदारी का एक मामला मोहाली के कारोबारी का सामने आया, जिसे उस ने जेल में रहते हुए अंजाम दिया. वह पंजाब के लारेंस बिश्नोई के 7 सहयोगियों में एक खास बदमाश है.

बात  2021 की है. पंजाब की मोहाली पुलिस को एक ईंट भट्ठा कारोबारी कुदरतदीप सिंह ने शिकायत लिखवाई कि 8 अक्तूबर को काला जठेड़ी ने उस से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है.

इस शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 387 के तहत मोहाली पुलिस ने काला जठेड़ी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. तब तक काला जठेड़ी एक कुख्यात अपराधी घोषित हो चुका था. उस के खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के करीब 40 मामले दर्ज थे.

काला जठेड़ी गैंग के गुर्गे भी कुछ कम शातिर नहीं हैं. एक गुर्गे अक्षय अंतिल उर्फ अक्षय पलड़ा की हिम्मत देखिए, उस ने जेल में एक सिपाही से सिमकार्ड मांगा. वहां से ही एक कारोबारी को फोन कर उस से 5 करोड़ की रंगदारी मांग ली. दिल्ली पुलिस जब इस मामले में सक्रिय हुई तब काला जठेड़ी गैंग से जुड़े अक्षय अंतिल को गिरफ्तार कर लिया गया.

हैरानी की बात यह थी कि 22 साल का अक्षय दिल्ली की मंडोली जेल में बंद था और वहीं से काला जठेड़ी का भय दिखा कर दिल्ली के करोलबाग के एक कारोबारी से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी.

उस के बाद पुलिस ने मंडोली जेल से फिरौती के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के साथ एक एप्पल आईफोन12 मिनी फोन भी बरामद किया है. इस का खुलासा तब हुआ, जब करोलबाग के एक कारोबारी ने 30 मई, 2021 को शिकायत दे कर बताया कि उसे 5 करोड़ रुपए की रंगदारी के लिए धमकी भरे काल आ रहे हैं. फोन करने वाले ने खुद को लारेंस बिश्नोई गैंग का शार्पशूटर बताया था.

जांच में पता चला कि काल बीएसएनएल सिम वाले फोन का उपयोग कर मंडोली जेल दिल्ली से की गई थी. ब्यौरा लेने के बाद मेरठ के एक दुकानदार और सिम जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आईडी वाले ग्राहक का पता लगाया गया.

उन से गहन पूछताछ में पता चला कि थाना कंकड़खेड़ा, मेरठ, यूपी में तैनात एक कांस्टेबल ने एक सीएनजी मैकेनिक के नाम से यह सिम लिया था. तकनीकी जांच में पता चला कि काल मंडोली जेल से अक्षय पलड़ा द्वारा की गई थी.

इस मामले के संदर्भ में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस को ले कर भी कान खड़े हो गए. उस में बिश्नाई जठेड़ी गैंग की भूमिका होने की आशंका जताई है.

पूछताछ के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ कि पूरी साजिश अक्षय और नरेश सेठी ने मिल कर रची थी. दोनों काला जठेड़ी गैंग से जुड़े हैं.

इस के लिए उन्होंने काला जठेड़ी गैंग के एक अन्य सदस्य राजेश उर्फ रक्का के माध्यम से 2 सिम कार्ड (बीएसएनएल और वोडाफोन) और 2 मोबाइल एप्पल के मिनी और छोटे चाइनीज कीपैड वाले फोन हासिल किए थे.

बीएसएनएल सिमकार्ड को एप्पल आईफोन12 मिनी में और वोडाफोन सिम को चाइनीज फोन में लगाया गया था.

अक्षय हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला है और काला जठेड़ी गिरोह का शातिर शार्प शूटर है. उस पर कत्ल, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं. उस का नाम मूसेवाला हत्याकांड में भी एक संदिग्ध के रूप में सामने आया है.

महिला सुरक्षा और अंधा समाज – भाग 2

हम ने उस की हिफाजत का ठेका नहीं ले रखा है. उलटे यह सब करने की गुंडों को शह व छूट दे रखी है. शुक्र इस बात का है कि ऐसी वारदातों के वक्त सभ्य समाज के ये शरीफजादे गुंडों का साथ नहीं देते, यह उन का एहसान है, सामाजिक सरोकारों और नैतिक जिम्मेदारियों की तो बात करना बेमानी है.

अहम सवाल अब पुरुष मानसिकता का है जो औरत को ‘सामान’, ‘आइटम’, ‘पटाखा’, ‘फुलझड़ी’ और ललितपुर के गुंडों की भाषा में कहें तो ‘माल’ समझता व कहता है. अकेली लड़की को देख वे उस पर हमला करते हैं तो उन्हें मालूम रहता है कि कोई कुछ नहीं बोलेगा.

इस वारदात ने साबित कर दिया है कि दबंग वे लोग नहीं हैं जो कान में ईयरफोन लगाए दीनदुनिया से बेखबर गीतसंगीत सुनते रहते हैं, फेसबुक और वाट्सऐप पर चैट करते रहते हैं. लंबीलंबी बातें, बहसें नैतिकता और आदर्शों की करते हैं. असल दबंग वे हैं जो सरेआम एक लड़की का पर्स लूट कर उसे मरने के लिए फेंक देते हैं और फिर हाथ झाड़ कर चलते बनते हैं.

कैब और बलात्कार

29 वर्षीय रीतिका (बदला नाम) गुड़गांव की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव है. जाहिर है नए जमाने की उन करोड़ों युवतियों में से एक है जो अपने बलबूते पर नौकरी करते सम्मान और स्वाभिमान से जिंदगी गुजार रही हैं.

शुक्रवार, 5 दिसंबर यानी वारदात के दिन रीतिका ने शाम 7 बजे अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद एक रैस्टोरैंट में दोस्तों के साथ डिनर लिया. उस के एक दोस्त ने उसे अपने वाहन पर बसंत विहार छोड़ा जहां से उसे अपने घर इंद्रलोक जाना था.

लेटेस्ट गैजेट्स की आदी रीतिका को बेहतर यही लगा कि कैब (टैक्सी) कर ली जाए. लिहाजा, उस ने मोबाइल ऐप के जरिए अमेरिकी कंपनी उबेर की कैब बुक करा ली. कैब आई और उस के शिवकुमार यादव नाम के ड्राइवर ने इज्जत से दरवाजा खोला. दिनभर की थकीहारी रीतिका डिनर के बाद की सुस्ती का शिकार हो गई. लिहाजा, कैब में उसे झपकी आ गई. पीछे की सीट पर अकेली खूबसूरत लड़की को देख शिवकुमार का मन डोल गया और उस ने टैक्सी का रास्ता बदल दिया.

रीतिका की नींद खुली तो कैब सुनसान में खड़ी थी. उस ने दरवाजा खोलने की कोशिश की तो वह नहीं खुला. शिवकुमार ने गेट लौक कर दिए थे. रीतिका ड्राइवर का इरादा भांपते चिल्लाई तो शिवकुमार ने उस की पिटाई कर दी और धमकी दी कि अगर शोर मचाया तो पेट में सरिया घुसा दूंगा. अब बचाव के लिए कुछ नहीं बचा था, इसलिए बाज के पंजे में फंसी चिडि़या की तरह फंसी रीतिका गिड़गिड़ाई कि प्लीज, मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हारे हाथपैर जोड़ती हूं.

लेकिन अपनी पर आमादा हो आया शिवकुमार पसीजा नहीं. उस ने रीतिका का बलात्कार टैक्सी में ही किया और समझदारी कह लें या चालाकी कि रीतिका को घर के बताए पते के नजदीक उतार दिया. रीतिका ने बलात्कार सहने के बाद भी होश नहीं खोया था. इस के बाद खुद को संभालते रीतिका ने 100 नंबर डायल किया.

पीसीआर वैन आई और रीतिका को थाने ले गई. महिला पुलिसकर्मियों ने उस से पूछताछ की और एक सरकारी अस्पताल में जा कर उस की मैडिकल जांच कराई. इसी बीच, रीतिका ने फोन कर अपने मम्मीपापा को भी बुला लिया. विदेश में भी एक कंपनी में नौकरी कर चुकी रीतिका अपने मांबाप की इकलौती संतान है.

वह कुछ महीनों पहले ही दिल्ली शिफ्ट हुई थी और खुश थी कि अब मम्मीपापा के पास रहेगी. उस के पापा ने निर्भया कांड के प्रदर्शन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. अपनी ही बेटी को इस हालत में देखा तो हफ्तेभर उस के साथ बैठे आंसू बहाते रहे.

बलात्कार, बवाल और पुलिस

सुबह होतेहोते दुष्कर्मों के लिए कुख्यात हो चुकी दिल्ली में खासा बवाल मच गया कि लो, एक और लड़की की इज्जत लुट गई, वह भी टैक्सी में  बलात्कार के बाद रीतिका को रातभर पुलिस की पूछताछ और मैडिकल जांच से गुजरना पड़ा था.

सालों पुरानी इन कानूनी खानापूर्तियों से पीडि़ता को जरूर समझ आता है कि दरअसल बलात्कार क्या होता है और क्यों पीडि़ताएं रिपोर्ट नहीं लिखवातीं. मैडिकल जांच किस बेरहमी और अमानवीय तरीके से की जाती है, यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं. शिवकुमार 40 घंटे बाद मथुरा से गिरफ्तार कर लिया गया.

यह पुलिस की मुस्तैदी नहीं बल्कि मजबूरी हो चली थी क्योंकि इस बलात्कार पर निर्भया मामले जैसी हायहाय मचने लगी थी. बाद में पता चला कि शिवकुमार आदतन अपराधी है और पहले भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हो कर जेल जा चुका है. इस के बाद भी पुलिस ने उसे चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया था जो इस मामले में बलात्कार करने का लाइसैंस साबित हुआ. दिल्ली में सामाजिक संगठनों और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया लेकिन पहले सा यानी निर्भया कांड जैसा समर्थन उसे नहीं मिला.

इधर, हंगामा देख झल्लाए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक वाजिब बात यह भी कही कि क्या रेल में दुष्कर्म हो तो रेल और जहाज में हो जाए तो जहाज बंद कर दें. गडकरी बलात्कार बंद या कम करने के बाबत कुछ नहीं बोले, जिस की कि जरूरत व अहमियत थी. जल्द ही मामला अमेरिका की उबेर कंपनी के इर्दगिर्द आ कर सिमट गया कि 2,480 अरब रुपए वाली 52 देशों में कारोबार करने वाली इस कंपनी पर नीदरलैंड, स्पेन और कई अन्य देशों में भी रोक लगी है.