नेस्तनाबूद हुआ मेरठ का चोरबाजार

मेरठ के सोतीगंज को गाडि़यों के ‘कमेले’ के नाम से जाना जाता है, जहां चोरी की गाडि़यों के पुरजेपुरजे अलग कर दिए जाते थे. ढाई दशक से होने वाला ये काम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन इस बाजार पर एक आईपीएस अफसर की ऐसी नजर लगी कि चंद महीनों में ही इस के नेस्तनाबूद होने की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है.

पूर्वी उत्तर प्रदेश में पलेबढ़े सूरज राय के लिए मेरठ एकदम अलग तरह के माहौल का शहर था. एकदम नया शहर और नए मिजाज के लोग थे. आईपीएस सूरज राय मेरठ (सदर) के सहायक पुलिस अधीक्षक पद पर 2 दिसंबर, 2020 को नियुक्त हो कर आए थे.

तैनाती के 2 दिन बाद ही सूरज अपनी मां के साथ मेरठ के सदर बाजार कैंट इलाके में स्थित प्रतिष्ठित औघड़नाथ मंदिर में दर्शन करने  के लिए गए. मंदिर में दर्शन व पूजा के बाद मंदिर परिसर में कृष्ण मंदिर के पुजारी को उदास देख कर सूरज राय ने उन से सहज ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है पुजारीजी, बड़े उदास लग रहे हो. सब खैरियत है तबीयत ठीक है ना?’’

‘‘सब कुछ ठीक है साहब, बस थोड़ा नुकसान हो गया इसीलिए मन परेशान है.’’ पुजारी ने कहा.

‘‘क्षमा चाहता हूं पुजारीजी, क्या बड़ा नुकसान हो गया जो इतनी चिंता में हैं. बता दीजिए, हो सकता है हम कुछ मदद कर दें.’’ सूरज राय ने सरल स्वभाव में पूछ भी लिया.

‘‘नुकसान छोटा है लेकिन हमारे जैसे गरीब लोगों के लिए बड़ा भी है. दरअसल, बेटे की बाइक चोरी हो गई है हीरो होंडा पैशन. 3-4 महीने पहले ही खरीदवाई थी और कल चोरी हो गई.’’ पूजा की थाली सूरज राय के हाथों में वापस करते हुए पुजारी ने कहा.

‘‘फिर तो हम ही आप की मदद कर पाएंगे पुजारीजी.’’ सूरज राय बोले.

सूरज राज ने अपना परिचय दे कर पुजारी को बताया कि वह सदर सर्किल के सीओ हैं और वे बाइक चोरी की रिपोर्ट लिखवाएं, पुलिस उन की गाड़ी को जरूर बरामद कर लेगी.

परिचय जानने के बाद भी पुजारी के चेहरे पर आशा की चमक दिखाई नहीं पड़ी तो उन्होंने पुजारी से पूछ ही लिया, ‘‘महाराजजी, आप को कोई खुशी नहीं हुई क्या?’’

‘‘नहीं साहब, रिपोर्ट तो हम ने लिखा दी थी कल ही. लेकिन इस गाड़ी का मिलना आसान काम नहीं है. आप शायद नहीं जानते, यहां सोतीगंज है, जहां एक बार चोरी की गाड़ी चली जाए तो वह उसी तरह कतराकतरा हो जाती है, जैसे पशुओं के कमेले में मरे हुए जानवर की हड्डी, खाल, मांस और दूसरे हिस्सों के छोटेछोटे हिस्सों में बांट कर बहुत सारे लोगों को बेच दिया जाता है. बस, फर्क ये है कि सोतीगंज चोरी की मोटरसाइकिल और कारों के बेचे जाने का वो बाजार है, जहां एक बार गाड़ी पहुंच गई तो उस का मालिक भी नहीं पहचान सकता कि वहां मौजूद छोटेछोटे पुरजों में से कौन सा पुरजा उस की गाड़ी का है.’’

पुजारीजी ने इतने साधारण ढंग से एएसपी सूरज राय को ये बात समझाई कि ज्यादा कहे बिना ही वह सारी बात समझ गए.

उन्होंने पुजारी से कहा कि वह कोशिश करेंगे कि उन के बेटे की बाइक जल्द बरामद हो जाए.

यह कह कर सूरज राय अपनी माताजी के साथ वहां से चले गए. लेकिन सोतीगंज को ले कर कही गई हर बात उन के कानों में पिघले हुए शीशे की तरह उतर गई.

सूरज राय ने खंगाली कबाडि़यों की कुंडली

एएसपी सूरज राय ने उसी दिन अपने सर्किल के तीनों थानों के प्रभारी और वहां तैनात सबइंसपेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई. उन्होंने सभी से एकएक कर सोतीगंज के बाजार के बारे में जानकारी ली कि आखिर वहां क्या होता है, क्यों इस इलाके के बारे में लोगों की धारणा इतनी गलत है.

इस के बाद उन के सामने जो कहानी सामने आई, उसे सुन कर तो एएसपी सूरज राय को लगा कि मानो वे मुंबई के कौफर्ड मार्केट के बारे में कोई कहानी सुन रहे हैं, जहां चोरी व तसकरी कर के लाया गया इंपोर्टेड सामान खुलेआम मिलता है.

सूरज राय ने जब अपने मातहत अफसरों से पूछा कि सोतीगंज बाजार के कबाडि़यों के खिलाफ वे काररवाई क्यों नहीं करते तो कारण भी पता चल गया कि इस बाजार में सब कुछ इतना संगठित तरीके से होता है कि पुलिस को कोई सबूत हाथ नहीं लगता.

स्थानीय पुलिस ही नहीं, दूसरे राज्यों व दूसरे जिलों की पुलिस भी अकसर वाहन चोरों से पूछताछ के बाद वहां छापा मारने आती है. पहली बात तो इस इलाके से किसी को गिरफ्तार कर के ले जाना ही बेहद मुश्किल काम है लेकिन अगर कोई ले भी जाए तो पुलिस के पास ऐसे साक्ष्य ही नहीं होते कि इन कबाडि़यों को बहुत दिनों तक सलाखों के पीछे रखा जा सके.

सूरज राय को जो कुछ जानकारी मिली, जाहिर है उस में बहुत सी बातें ऐसी थीं जो हकीकत में पुलिस के सामने एक चुनौती होती है. लेकिन सूरज राय औघड़नाथ मंदिर के पुजारी की पीड़ा और तंज सुनने के बाद इतने बेचैन हो चुके थे कि उन्होंने मन बना लिया था कि जो आज तक नहीं हो सका, उसे वह संभव कर के दिखाएंगे. वह चोरी की गाडि़यों के कमेले सोतीगंज का वजूद मिटा कर रहेंगे.

कहते हैं, जहां चाह होती है वहां राह होती है. एएसपी सूरज राय ने जो ठाना था मुश्किल जरूर था, लेकिन नामुमकिन नहीं. लिहाजा उन्होंने अपने सर्किल के सभी थानाप्रभारियों को आदेश दिया कि वे अपने स्टाफ और मुखबिरों को लगा कर ऐसी लिस्ट बनाएं, जिस से पता चले कि कि सोतीगंज के कबाड़ी बाजार में कितने दुकानदार हैं, जो चोरी किए वाहनों को खरीद कर उसे कटवाते हैं और फिर पुरजापुरजा कर के बेच देते हैं.

किस कबाड़ी के खिलाफ स्थानीय पुलिस से ले कर बाहर से आने वाली पुलिस टीमों की क्या शिकायतें हैं. इन कबाडि़यों के गोदाम कहां हैं, उन के साथ कितने लोग काम करते हैं और क्या उन के पास गाडि़यों के पुरजे बेचने का कोई वैध पंजीकरण है तथा वे ये पुरजे कहां से लाते हैं, इस का विवरण रखने के उन के पास क्या इंतजाम हैं.

करीब एक पखवाड़े बाद जब एएसपी सूरज राय ने दोबारा मीटिंग ली तो मातहत अफसरों ने उन के सामने सोतीगंज बाजार के बारे में मांगी गई तमाम जानकारियों का पुलिंदा रख दिया.

सवाल था कि अब इस पर काररवाई कैसे हो. लिहाजा सूरज राय ने सब से पहले अपने एसएसपी अजय साहनी और एडीजी स्तर के अधिकारियों को विश्वास में ले कर अपने इरादों से अवगत कराया और उन से अनुमति हासिल की.

इस के बाद उन्होंने जनवरी, 2021 के शुरुआती हफ्ते में ही स्थानीय पुलिस और पीएसी के अतिरिक्त बल को साथ ले कर सब से पहले बाइक चोरी करने वालों के खिलाफ अभियान छेड़ दिया.

सूरज ने सोतीगंज में सक्रिय दोपहिया वाहनों के कबाड़ माफिया मन्नू कबाड़ी और इरफान उर्फ राहुल काला पर पर सब से पहले शिकंजा कसते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस काररवाई का विरोध इस बाजार की फितरत है, लेकिन सूरज राय की तैयारी पूरी थी. जिस ने भी विरोध किया उसे बल प्रयोग कर के सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया. सब से बड़ी चुनौती उस दुरुस्त कागजी काररवाई की थी, जिस के अभाव में अभी तक ये कबाड़ माफिया छूट जाते थे.

मन्नू कबाड़ी से शुरू हुई काररवाई

इस के लिए सूरज राय ने गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का सहारा लिया. इस सेक्शन के अनुसार अगर जांच अधिकारी को यह जानकारी मिलती है कि अपराधी ने अपनी संपत्ति अपराध के बल पर अर्जित की है तो उस संपत्ति को जब्त किया जा सकता है.

सूरज राय ने मन्नू कबाड़ी की फाइल खोली. उस से संपत्ति की जानकारी, पिछले 10 साल के इनकम टैक्स रिटर्न, बैंक स्टेटमेंट मांगे गए तो पाया गया कि मन्नू कबाड़ी के पास संपत्ति से जुड़े कोई भी दस्तावेज मौजूद नहीं हैं.

सूरज राय ने सब से पहले गैंगेस्टर ऐक्ट के सेक्शन 14 (1) का उपयोग कर के मन्नू कबाड़ी की 6 बीघा जमीन, 2 बसें और एक करोड़ से अधिक की बेनामी संपत्ति जब्त की.

मन्नू कबाड़ी के जरिए सूरज राय इस पूरे बाजार के सभी कबाडि़यों को एक बड़ा संदेश देना चाहते थे. इसलिए उस की संपत्ति से जुड़े दस्तावेजों के तहसील से जमीन के कागज, रजिस्ट्रार औफिस से रजिस्ट्रैशन के पेपर, संभागीय परिवहन कार्यालय से वाहनों की जानकारी के साथ नगर निगम और आयकर विभाग से जानकारी जुटाने में 6 महीने से अधिक समय लग गया.

एएसपी सूरज राय ने हर विभाग से जानकारी जुटाने के लिए अलगअलग टीमों का गठन किया था. इसी प्रक्रिया के

तहत मार्च में गिरफ्तार हुए राहुल काला के सोतीगंज में गोदाम और उस के मकान की कुर्की कराई गई.

इस कड़ी काररवाई का असर यह हुआ कि मेरठ और आसपास के जिलों में अचानक कुछ ही महीनों में दोपहिया वाहनों की चोरी में 70 फीसद की गिरावट आ गई. क्योंकि दोपहिया वाहनों की बिक्री के सब से बड़े सौदागर सलाखों के पीछे पहुंच चुके थे और छोटे कबाड़ी चोरी का माल खरीदने में या तो सावधानी बरत रहे थे या बच रहे थे.

मन्नू कबाड़ी के भाई जावेद और आकिब भी दोपहिया वाहन काटने के धंधे में सहयोग करते थे, लेकिन इन का कोई आपराधिक इतिहास नहीं था. लेकिन सूरज राय ने जावेद और आकिब को गुंडा ऐक्ट में नामजद करवा कर उन की हिस्ट्रीशीट खुलवाई तथा 6 महीने के लिए दोनों को जिलाबदर करा दिया.

सोतीगंज में एक साल के दौरान करीब 10 से 12 हजार चोरी के दोपहिया वाहन काटे जाते थे, जिसे मई 2021 तक आतेआते पुलिस ने पूरी तरह बंद करा दिया.

सोतीगंज में दोपहिया वाहनों की कटान भले ही बंद हो गई थी, लेकिन चारपहिया वाहनों की कटान अभी भी जारी थी. इसी बीच एसएसपी अजय साहनी का तबादला हो गया और जून में प्रभाकर चौधरी ने एसएसपी की कमान संभाली.

प्रभाकर चौधरी को सूरज राय के सोतीगंज बाजार के खिलाफ छेड़े गए अभियान की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए उन्होंने सूरज राय को बुला कर कहा कि छोटी मछलियों का शिकार बहुत हो गया सूरज, अब बड़े मगरमच्छों का सफाया करो.

अपराध के खिलाफ संघर्ष करने वाले किसी पुलिस अधिकारी के लिए अपने उच्चाधिकारी का ऐसा आदेश किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं होता. जो अभियान थोड़ा सुस्त हुआ, सोतीगंज में वही अभियान अब चारपहिया वाहनों की चोरी और अवैध कटान के धंधे को नेस्तनाबूद करने के इरादे से दोबारा शुरू हो गया.

प्रभाकर चौधरी ने कबाड़ माफिया के इस कमेले के खिलाफ अभियान चलाने की पूरी जिम्मेदारी सूरज राय को सौंप दी. काररवाई करने के इरादे पहले से ही थे, इसीलिए सूरज राय ने तैयारी भी पहले से कर रखी थी.

सोतीगंज के 2 बड़े माफिया हाजी गल्ला और हाजी इकबाल के कारोबार से जुड़ी सारी जानकारियां उन्होंने पहले से जुटा कर पूरी फाइल तैयार करा ली थी. उन के घर, कारोबारी ठिकानों, गोदामों साथ में काम करने वालों से ले कर काली कमाई से हासिल की गई संपत्ति के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर ली थी.

इस के बाद अगस्त 2021 में शुरू हुआ मेरठ पुलिस का वह अभियान जिस की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ने लगी.

कबाड़ बाजार की बड़ी मछली है हाजी गल्ला

हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम कितना बड़ा चोर, चोरी के माल को खरीदने वाला कितना बड़ा कबाड़ी है, इस का अनुमान आप इस तथ्य से लगा सकते हैं कि उस के खिलाफ चोरी व लूट के वाहन खरीदने के 32 मुकदमे अलगअलग थानों में दर्ज हैं. बेटों के साथ हाजी गल्ला के फरार होते ही पुलिस ने उस के व उस के बेटों के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट के तहत काररवाई शुरू कर दी.

साल 2017 से पहले हाजी गल्ला उर्फ हाजी नईम पर कभी काररवाई नहीं हुई. 2017 से पहले पुलिस ने गल्ला के घर पर कभी दबिश नहीं दी थी. हाजी गल्ला के पैसों की धमक सत्ता के गलियारों तक गूंजती थी, वह सत्ताधारी नेताओं से साठगांठ बड़ी मजबूती से रखता था.

उस की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अखिलेश यादव की सरकार में हाजी गल्ला ने एक मंत्री से सांठगांठ कर रात में ही एक इंसपेक्टर और एक उच्च अधिकारी का ट्रांसफर करा दिया था.

हाजी गल्ला का दुस्साहस ऐसा था कि उस के गुर्गे थानों में खुलेआम कहते फिरते थे कि गल्ला पर हाथ डालने का मतलब है मेरठ से ट्रांसफर.

लेकिन सूरज राय इस बार हाजी गल्ला को पुलिस और कानून की ताकत का अहसास कराने की सौंगध ले चुके थे. लिहाजा उन्होंने हाजी गल्ला के खिलाफ एकत्र किए गए सबूतों के आधार पर उसे गिरफ्तार करने के लिए उस के ठिकानों पर छापेमारी शुरू कर दी.

जब हाजी गल्ला के ऊपर सूरज राय की अगुवाई में पहली बार पुलिस प्रशासन का डंडा चला तो हाजी गल्ला अपने 4 बेटों के साथ भाग निकला और किसी बिल में जा कर छिप गया.

पुलिस प्रशासन ने उस पर पर 50 हजार का ईनाम घोषित कर दिया. लेकिन इस बार पुलिस गल्ला की फरारी से संतुष्ट हो कर चुप बैठने वाली नहीं थी. इस बार काली कमाई के इस कबाड़ी को कंगाल बनाने की सारी तैयारी थी.

लिहाजा पुलिस ने हाजी गल्ला व उस के बेटों फुरकान, अलीम, बिलाल व इलाल के खिलाफ अदालत से अगस्त 2021 महीने में ही कुर्की वारंट हासिल कर लिया.

गल्ला को जैसे ही इस की जानकारी मिली तो सिंतबर में एक दिन मौका पा कर उस ने अपने चारों बेटों के साथ अदालत में सरेंडर कर दिया. जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

हाजी गल्ला के ठिकाने कहांकहां हैं और उस का नेटवर्क कितना बड़ा है, इस का पता लगाने के लिए पुलिस ने उसे 3 दिन के रिमांड पर ले कर गहन पूछताछ की.

मेरठ में कबाड़ के कमेले के नाम से मशहूर सोतीगंज के बारे में आगे जानने से पहले हाजी गल्ला के बारे में जानना बेहद जरूरी है, जो इस कथानक का सब से अहम पात्र है.

गल्ला उर्फ नईम की कहानी शुरू होती है साल 1990 से जब गल्ला के पिता निजाम कुरसी बुनते थे और तैयार माल बाजार में बेचते थे. उस से पूरे परिवार का पेट पलता था.

साल 1993 में गल्ला जो पेशे से बाइक मैकेनिक था, उस ने पिता के कारोबार के साथ ही सोतीगंज में दोपहिया वाहनों के रिपेयरिंग की दुकान खोली. धीरेधीरे गल्ला कबाड़ वाला बन गया और इसी कबाड़ के धंधे की आड़ में उस ने चोरी की बाइक काटने का धंधा शुरू किया.

दिल्ली में वाहनों की बढ़ती संख्या और सुरक्षित पार्किंग की जगह न होने से वाहन चोरी करना आसान हो गया था. 50 हजार की बाइक को वाहन चोर मेरठ के सोतीगंज में 5 से 10 हजार में बेच देते और गल्ला जैसे कबाड़ी कुछ ही मिनटों में उसे काट कर उस के हर पुरजे को अलग कर देते और फिर उन पुरजों को अलगअलग खुलेआम बेच कर 30 हजार से अधिक की कमाई कर लेते.

हाजी गल्ला ने मुनाफे के इसी गणित को समझा और इस का पूरा फायदा उठा कर गाडि़यों के कटान के धंधे का सरताज बन बैठा. बाइक और इस के बाद चोरी के चारपहिया वाहनों को काटने का धंधा जोरों से चल निकला और इस अवैध कारोबार को उस ने धीरेधीरे सोतीगंज के अलावा कई स्थानों पर फैला दिया.

हाजी गल्ला पर पहली सख्त काररवाई जनवरी, 2015 में तत्कालीन युवा एएसपी और 2011 बैच के आइपीएस अधिकारी अभिषेक सिंह ने की थी.

अभिषेक ने हाजी गल्ला के वेस्ट एंड रोड स्थित गोदाम पर छापा मार कर बड़ी संख्या में वहां से गाडि़यों के अवैध कलपुरजे बरामद किए थे. इस के बाद 10 फरवरी, 2015 को हाजी गल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस धंधे से अरबपति हो गया हाजी गल्ला

हालांकि बाद में हाजी गल्ला न केवल जमानत पर रिहा हो गया बल्कि उस ने अपनी राजनैतिक पहुंच का फायदा उठा कर प्रोन्नत हो कर मेरठ के एसपी (सिटी) के पद पर तैनात हुए अभिषेक सिंह का दूसरे जिले में तबादला भी करवा दिया.

इस के बाद हाजी गल्ला बिना किसी डर के अपने अवैध कारोबार में लगा रहा. पुलिस में भी हाजी गल्ला की राजनीतिक पहुंच का डर बैठ गया था.

बेशुमार दौलत कमाई और 2021 में हाजी गल्ला पहले करोड़पति और फिर अरबपति हो गया. हाजी गल्ला ने पिछले 25 सालों में अरबों रुपए का कारोबार खड़ा कर लिया. उस ने सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में 2 आलीशान मकान खड़े कर दिए. 5 साल पहले पटेल नगर में कोठी खरीदी.

इस के अलावा गल्ला के उत्तराखंड में भी 100 करोड की संपत्ति खरीदने की बात सामने आई. गल्ला के कई प्लौट सदर बाजार इलाके में थे, जिन में ऊंची बाउंड्री कर गोदाम बना रखे थे. 6 गोदाम और कैंट जैसी जगह में फार्महाउस बना हुआ था.

गल्ला ने जितनी भी संपत्ति हासिल की थी, वो चोरी की गाडि़यों के कबाड़ को बेच कर अर्जित की गई थी. लेकिन उस की संपत्तियों में सब से चर्चित प्रौपर्टी थी वेस्ट एंड रोड की वो 235 नंबर की कोठी, जो असल में रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है और 15 साल पहले हाजी गल्ला ने इस पर कब्जा कर के गोरखधंधे से अपने नाम करा ली थी.

60 साल के हाजी नईम उर्फ गल्ला वैसे तो मेरठ के सदर बाजार थाना क्षेत्र के सोतीगंज का रहने वाला है. सोतीगंज व सदर बाजार इलाके में गल्ला के कुछ समय पहले तक उस के 6 गोदाम थे. इन गोदामों में चोरी व लूट के वाहन काटे जाते थे.

सोतीगंज के कबाडि़यों की 65 करोड़ की संपत्ति जब्त

हाजी नईम ने 2016 में देहलीगेट थाना क्षेत्र के पटेलनगर में 353 वर्गगज में 3 मंजिला आलीशान कोठी सवा 2 करोड़ रुपए में खरीदी थी. इस समय पटेल नगर की इस कोठी की कीमत सरकारी तौर पर 4 करोड़ 10 लाख रुपए है.

जांच में सामने आया कि गल्ला ने अपने गिरोह के साथ मिल कर चोरी के वाहन काटने से अवैध संपत्ति अर्जित करते हुए इस कोठी को खरीदा था.

दूसरी तरफ रक्षा मंत्रालय का कहना है कि हाजी गल्ला के बंगला नंबर 235 की 2048 वर्गमीटर जमीन पर बना गोदाम रक्षा मंत्रालय की संपत्ति है जिस के संबध में रक्षा संपदा विभाग की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कराई गई है.

इसी जमीन पर बने आलीशान बंगले में हाजी गल्ला चोरी और लूट के वाहनों को कटवाता था, जिस की बाजार कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है.

मेरठ पुलिस ने पहली जनवरी, 2022 को इसी 235 नंबर बंगले को कुर्क कर लिया. इस बंगले को कबाड़ी हाजी नईम उर्फ गल्ला ने 15 साल पहले फरजी दस्तावेजों के सहारे अपने नाम पर पंजीकृत करा लिया था.

बंगला नंबर 235 का एक भाग चोरी के वाहन कटान का मुख्य केंद्र था. इस बंगले के गेट ऐसे डिजाइन किए गए थे कि ट्रक और 16 पहिया वाहन आसानी से दाखिल हो जाते थे. बंगले का गेट इतना बड़ा था कि बड़े से बड़ा वाहन आसानी से अंदर दाखिल हो जाया करता था.

लेकिन इस गेट के अंदर दाखिल होने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी. पुलिस जब इस बंगले के अंदर दाखिल हुई तो चारों तरफ सिर्फ और सिर्फ वाहनों के पुरजे देख कर दंग रह गई.

हाजी गल्ला के इस अवैध बंगले के अंदर दाखिल होते ही पुलिस को लगा, जैसे वे किसी जंगल में दाखिल हो गए हों. बंगले के अंदर मौजूद वाहनों के पुरजेपुरजे चीखचीख कर गवाही दे रहे थे कि यहां क्या काम हो रहा था.

हाजी इकबाल भी निकला बड़ा माफिया

पुलिस ने हाजी गल्ला के बाद इस इलाके के दूसरे सब से बड़े कबाड़ी हाजी इकबाल और तीसरे बड़े कबाड़ माफिया शाकिब उर्फ गद्दू को भी बेनकाब कर दिया. पुलिस ने जब इस इलाके के दूसरे सब से बड़े

कबाड़ी हाजी इकबाल के खिलाफ काररवाई शुरू की तो उस के भी जबरदस्त कारनामे उजागर हुए.

आरोप है कि इकबाल ने सोतीगंज में गुरुद्वारा रोड पर 5 करोड़ रुपए की कीमत की वक्फ बोर्ड की जमीन पर कब्जा किया हुआ था. यहां पर इकबाल चोरी के वाहन काटता और गाडि़यों में इंजन चेसिस नंबर बदलने का धंधा करता था. वक्फ बोर्ड ने इस की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी है जिस के बाद पुलिस ने गैंगस्टर ऐक्ट के तहत इस संपत्ति को भी जब्त कर लिया.

इकबाल का नेटवर्क भी दूसरे जिलों तक फैला हुआ था. लखनऊ में चोरी की 500 गाडि़यां पुलिस ने बरामद की थीं. इन में इकबाल के बेटे अफजाल, अबरार का नाम भी सामने आया था. सोतीगंज के कबाडि़यों के पंजाब के अलावा उत्तराखंड में भी जमीन बताई गई. जहां पर करोड़ों की जमीन होनी बताई जा रही है. कबाडि़यों ने दूसरे राज्यों में होटल और अन्य कारोबार भी चला रखे हैं.

लूट और चोरी के वाहन काटने वाले सोतीगंज के हाजी गल्ला सहित 18 कबाडि़यों की संपत्ति का रिकौर्ड पुलिस खंगालने में जुट गई. बैंक खातों से ले कर संपत्ति की जानकारी लेने के लिए अब पुलिस के साथ जीएसटी की टीम भी लग गई.

पुलिस का दावा कि 18 कबाडि़यों ने गिरोह बना कर कई राज्यों में अपना नेटवर्क फैलाया था. सोतीगंज के कबाडि़यों पर शिकंजा कस चुकी पुलिस अब गिरफ्तार किए गए गल्ला व इकबाल के अलावा, जीशान उर्फ पौवा, मन्नू उर्फ मोईनुद्दीन, गद्दू और राहुल काला सहित अन्य कबाडि़यों की काली कमाई से अर्जित अवैध संपत्तियों का पता लगाने में जुट गई.

इन सभी के खिलाफ दस्तावेजी सबूत जुटा कर पुलिस ने इन के खिलाफ गैंगस्टर ऐक्ट सेक्शन 14 (1) के तहत काररवाई कर के इन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. कबाड़ी गद्दू की 5 करोड़ की संपत्ति जब्त करने की काररवाई भी पुलिस ने शुरू कर दी.

चेसिस नंबर भी बदलने में माहिर थे माफिया

एसएसपी प्रभाकर चौधरी के आदेश पर सितंबर महीने में गाजियाबाद स्थित पुलिस फोरैंसिक लैब की एक टीम को भी सोतीगंज बुलाया गया. फोरैंसिंक टीम ने यहां बिक रहे गाडि़यों के 110 इंजनों की जांच की. जांच में पता चला कि इन में से 70 से ज्यादा इंजनों पर दर्ज नंबर से छेड़छाड़ की गई थी.

फोरैंसिक टीम ने 30 गाडि़यों के मूल इंजन नंबर भी प्राप्त कर लिए, जिन के आधार पर यह पता चला कि ये इंजन चोरी की गाडि़यों से निकाले गए हैं. इस के बाद पुलिस ने सोतीगंज में चोरी की गाडि़यों के अवैध कटान से जुड़े 50 दूसरे कबाड़ कारोबारियों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने इस अभियान में तेजी लाते हुए सोतीगंज में मोटर पार्ट्स बेचने वाली 300 दुकानों की एक सूची तैयार कर सभी दुकानों की अलगअलग फाइलें बनाईं. इन सभी दुकानों का ब्यौरा वाणिज्यकर विभाग को भेज कर इन का जीएसटी रजिस्ट्रैशन कराने का अनुरोध किया, ताकि इन दुकानों से बिकने वाले मोटर पार्ट्स पर नजर रखी जा सके.

कागजी काररवाई को दुरुस्त रखने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के सेक्शन 91 और 149 का सहारा लिया गया है. 91 सीआरपीसी के अनुसार विवेचक किसी भी अपराध से संबंधित सूचना किसी से भी मांग सकता है. इस के तहत सोतीगंज में 101 दुकानदारों को नोटिस जारी कर उन के

यहां बिकने वाले सभी सामानों की जानकारी मांगी गई.

सीआरपीसी के सेक्शन 149 में पुलिस को संज्ञेय अपराध रोकने के लिए काररवाई करने की शक्ति दी गई है. इस के तहत दुकानदारों को जारी नोटिस में निर्देश दिया कि जांच जारी रहने तक प्रतिष्ठान में रखे मोटर पार्ट्स व अन्य सामानों से कोई भी छेड़छाड़ न की जाए. इसी नोटिस के चलते सोतीगंज में मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से लगातार बंद हैं.

कुख्यात वाहन माफियाओं ने चोरी के वाहनों का धंधा कर के अरबों रुपए की संपत्ति जुटाई थी. लेकिन अब पुलिस ने इस चोर बाजारी का धंधा करने वालों पर नजरें टेढ़ी कर ली हैं. पिछले 5 महीनों में पुलिस ने 32 से ज्यादा वाहन माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर की काररवाई को अंजाम दिया.

इस के अलावा इन की 40 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति को कुर्क कर ली. वहीं पुलिस ने वाहन चोरी और चोरी के पार्ट्स बेचने वाले 100 से ज्यादा आरोपियों की क्राइम कुंडली तैयार कर ली.

पुलिस ने बाकायदा ऐसे दुकानदारों को नोटिस भी जारी कर दिए. वहीं नोटिस का जवाब न देने तक दुकानें बंद करवा दीं.

मेरठ का सोतीगंज आटो पार्ट्स मार्केट अब बंद हो गया. जिन गलियों में कभी आटो पार्ट्स मिलते थे, वहां अब कपड़े की दुकानें लगने लगी हैं. जो लोग आटो पार्ट्स बिक्री के नाम पर भरीपूरी कार को ठिकाने लगा दिया करते थे, वो अब विंटर वियर बेच रहे हैं. सोतीगंज कार बाजार को मेरठ पुलिस अब बंद करा चुकी है.

रद्दी, कोयला और चारे की बिक्री का केंद्र बन गया कबाड़ का कमेला

क्याआप ने कभी सोचा है कि दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब आदि जगहों से रोजाना सैकड़ों कारें और दोपहिया वाहन चोरी हो जाते हैं, पर ये सभी चोरी के वाहन गायब कहां हो जाते हैं और इन के गायब होने में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के सोतीगंज इलाके का क्या हाथ था?

सोतीगंज एक ऐसा बाजार था, जिस में शामिल पूरा तंत्र मुसलिम समुदाय से था, चोरी करने वाले अधिकांश वाहन चोर भी मुसलिम समाज से थे तो इन्हें खरीद कर व काट कर पूरे भारत में आटो पार्ट्स की आपूर्ति करने वाले भी यही लोग थे.

मेरठ के सोतीगंज में हाल के दिनों तक लगभग 32 बड़े कबाड़खाने थे और इन सभी कबाड़खानों के मालिक मुसलिम हैं. उन्हें चोरी का माल हड़प लेने में इतनी विशेषज्ञता हासिल है कि वे पूरी कार को सिर्फ 20 मिनट में काट देते हैं और कार के हर हिस्से को अलग कर के पूरे भारत में आटो पार्ट्स बाजार में बड़ी पैकिंग के साथ बेचने के लिए भेज देते हैं.

पुलिस ने अब तक जो सबूत जुटाए हैं, उस के मुताबिक सोतीगंज के चोर बाजार से अवैध रूप से करीब 48 अरब रुपए की संपत्ति बनाई गई है, वह भी बिना किसी निवेश के.

वैसे इलाके के इतिहास पर नजर डालें तो सोतीगंज बाजार हमेशा से चोरी की गाडि़यों के लिए फेमस नहीं था. यहां 1960 के दौर में रद्दी, कोयला, पशुओं का चारा बिका करता था. सन 1980 के बाद से दौर बदलना शुरू हुआ और यह चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स का गढ़ बन गया.

कहते हैं कि सब से पहले यहां 4 दुकानें खुली थीं. फिर क्या, घरों के अंदर दुकानें और गोदाम खुलते गए और कुछ ही सालों में सोतीगंज बाजार चोरी की गाडि़यों के पार्ट्स की बिक्री और नई गाड़ी तैयार कर उन्हें बेचने का गढ़ बनता गया. आज यहां की तंग गलियों में सैकड़ों की संख्या में दुकानें और गोदाम बन गए.

दोपहिया हो या चारपहिया, यहां चोरी, पुरानी और ऐक्सिडेंट में खराब हुई गाडि़यां आतीं और सजसंवर कर बाहर निकलतीं. सोतीगंज मार्केट एशिया की सब से बड़ी स्क्रैप मार्केट बन गया.

सोतीगंज मार्केट में आज के दौर की गाडि़यों के हिस्से तो मिलते ही थे, यहां पर सालों पुरानी और दूसरे विश्वयुद्ध के दौर की विंटेज जीप के टायर, 45 साल पहले की एंबेसडर कार का ब्रेक पिस्टन, 1960 की बनी महिंद्रा जीप क्लासिक का गीयर बौक्स तक मिल जाया करता था.

यहां कबाड़ के ऐसेऐसे कारीगर बैठे थे, जो कुछ ही घंटों में दोपहिया और चारपहिया गाडि़यों के हर पार्ट अलग कर के रख देते थे. इंजन, पहिए, दरवाजे, बौडी, सीट सब अलगअलग दुकानों पर भेज दी जाती थीं. फिर उन्हीं पुरजों को कबाड़ बना कर मेरठ से ले कर दिल्ली के जामा मसजिद और गफ्फार मार्केट तक में बेचा जाता था.

सोतीगंज मार्केट में चोरी की गाडि़यों के सैकड़ों कौन्ट्रैक्टर सक्रिय थे, जो दिल्ली एनसीआर, वेस्ट यूपी, हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल तक चोरी की गाडि़यों को अपने यहां मंगवा कर उन्हें काटने का धंधा करते थे.

सोतीगंज बाजार में चोरी की गाडि़यों के आरोपी कई तरह से काम करते थे. अगर गाड़ी की स्थिति ठीक है तो फिर चेसिस, इंजन वगैरह बदल कर उसे बेच भी दिया जाता था. अगर गाड़ी की कंडीशन ठीक नहीं होती तो उसे कबाड़ में खपा दिया जाता.

दुर्घटनाग्रस्त नीलाम गाडि़यों के कागजात भी बेचे जाते थे. लग्जरी गाडि़यों के रजिस्ट्रैशन एक से डेढ़ लाख रुपए में, सामान्य गाडि़यों को 40-50 हजार में बेचते थे.

कबाड़ी पुलिस से भी कर बैठते थे मारपीट

मेरठ का सोतीगंज एक ऐसा आपराधिक तिलिस्म है, जिस से मेरठ का पुलिसप्रशासन कभी खौफ खाता था. चोरी की गाडि़यों के कलपुरजे अवैध रूप से बेचे जाने की सूचना पर 23 जनवरी, 2015 को पहली बार मेरठ के सोतीगंज में दिल्ली पुलिस की स्पैशल क्राइम ब्रांच की टीम और सदर पुलिस बड़ी छापेमारी करने पहुंची थी.

पुलिस के सोतीगंज पहुंचने पर हथियारों से लैस कबाडि़यों ने हमला कर दिया. पुलिस को घेर कर पीटा और गाडि़यों के अवैध कटान में शामिल जान मोहम्मद को पुलिस कस्टडी से छुड़ा लिया. पुलिस को जान बचा कर भागना पड़ा. बाद में पुलिस ने 7 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया.

इस से पहले भी 16 नवंबर, 2014 को मेरठ के सदर थाने की पुलिस ने सोतीगंज में चल रहे अवैध मोटर गैराज की जांच के लिए अभियान शुरू किया. पहले ही दिन पुलिस को कबाडि़यों ने घेर कर मारपीट की. नतीजा पुलिस को अभियान बंद करना पड़ा.

बौलीवुड फिल्म सरीखी ये घटनाएं बताती हैं कि मेरठ में सदर थाने से सटा हुआ सोतीगंज इलाके में कबाड़ माफिया किस कदर बेखौफ थे. लेकिन इसी सोतीगंज का माहौल अब पूरी तरह से बदल चुका है. यहां चल रही मोटर पार्ट्स की दुकानें पहली बार 12 दिसंबर से बंद हैं. ग्राहकों से पटी रहने वाली सड़कों पर सन्नाटा है.

कबाड़ माफियाओं के गोदामों और घर पर कुर्की के नोटिस चस्पा हैं. पुलिस दबिश मार कर सोतीगंज के मोटर गैराज में रखे सामानों की जांच में जुटी है.

इस सोतीगंज में हुआ यह अभूतपूर्व बदलाव उस वक्त चर्चा में आया जब 18 दिसंबर को शाहजहांपुर में गंगा एक्सप्रेसवे के शिलान्यास के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में इस का जिक्र किया.

साल 1991 के बाद उदारीकरण के दौर में भारतीय बाजार महंगी इंपोर्टेड गाडि़यों के लिए खुला. 4 और 2 पहिया गाडि़यों की अचानक बाजार में आवक बढ़ी. दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में मोटर बाइक और कारों की बिक्री में इजाफा हुआ.

इसी के साथ मेरठ के सोतीगंज इलाके में गाडि़यों की मरम्मत का धंधा भी शुरू हुआ. साल 1995 तक सोतीगंज में गाडि़यों की मरम्मत करने के लिए छोटेबड़े करीब 25 ही गैराज थे जो ढाई दशक बाद वर्ष 2021 में बढ़ कर 1000 से अधिक हो गए.

दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा समेत देश के कई हिस्सों से गाडि़यां चोरी हो कर सोतीगंज कटने के लिए पहुंचती लगीं. चोरी की गाडि़यों को सस्ते में खरीद कर उन के पार्ट्स बेच कर कबाड़ कारोबारी 20 से 30 गुना मुनाफा कमाते थे.

तेजी से इस अवैध कारोबार के बढ़ने के पीछे यही अर्थशास्त्र था. पुलिस के अनुमान के मुताबिक सोतीगंज में एक साल में चोरी की गाडि़यां काट कर निकाले गए मोटर पार्ट्स का सालाना कारोबार 1000 करोड़ रुपए से अधिक है.

इंजन पार्ट्स की पूरी मार्केट बंद हो जाने के बाद अब सैकड़ों लोग बेरोजगार हो गए हैं. सोतीगंज को वाहन कटने के कलंक से मुक्ति दिलाने के बाद पुलिस की जिम्मेदारी यहां पर बेरोजगार हुए लोगों के पुनर्वास का माहौल बनाने की है ऐसा नहीं हुआ तो सोतीगंज में फिर गाडि़यां कटने को पहुंचने लगेंगी.

बदन सिंह बद्दो : हौलीवुड एक्टर जैसे कुख्यात गैंगस्टर – भाग 1

बदन सिंह बद्दो मूलरूप से पंजाब का रहने वाला है. उस के पिता चरण सिंह पंजाब के जालंधर से 1970 में मेरठ आए और यहां के एक मोहल्ला पंजाबीपुरा में बस गए. चरण सिंह एक ट्रक ड्राइवर थे. ट्रक चला कर उस आमदनी से किसी तरह अपने 7 बेटेबेटियों के बड़े परिवार को पाल रहे थे.

बदन सिंह बद्दो सभी भाईबहनों में सब से छोटा था. 8वीं के बाद उस ने स्कूल जाना बंद कर दिया. कुछ बड़ा हुआ तो बाप के साथ ट्रक चलाने लगा. एक शहर से दूसरे शहर माल ढुलाई के दौरान उस का वास्ता पहले कुछ छोटेमोटे अपराधियों से और फिर शराब माफियाओं से पड़ा. उस ने कई बार पैसे ले कर शराब की खेप एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाई.

धीरेधीरे पश्चिमी यूपी के बौर्डर के इलाकों में उस ने बड़े पैमाने पर शराब की तस्करी शुरू कर दी. फिर स्मगलिंग के बड़े धंधेबाजों से उस की दोस्ती हो गई.

वह स्मगलिंग का सामान बौर्डर के आरपार करने लगा. हरियाणा और दिल्ली बौर्डर पर तस्करी से उस ने खूब पैसा कमाया. इस के बाद तो वह पूरी तरह अपराध के कारोबार में उतर गया और उस की दिन की कमाई लाखों में होने लगी. दिखने के लिए बद्दो खुद को ट्रांसपोर्ट के बिजनैस से जुड़ा दिखाता रहा, मगर उस का धंधा काला था.

अपराध की राह पर बड़ी तेजी से आगे बढ़ते बद्दो की मुलाकात जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 2 बड़े बदमाश सुशील मूंछ और भूपेंद्र बाफर से हुई तो इन दोनों के साथ उस का मन लग गया. इन के साथ ने बद्दो को निडर बनाया.

बद्दो ने कई गुर्गे पाल लिए जो उस के इशारे पर सुपारी ले कर हत्या और अपहरण का धंधा चलाने लगे. सुशील मूंछ और बद्दो के गठजोड़ ने जमीनों पर अवैध कब्जे का धंधा भी शुरू कर दिया. सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे कर वहां दुकानें बना कर करोड़ों में खरीदनेबेचने के इस धंधे में सरकारी सिस्टम में बैठी काली भेड़ें भी शामिल थीं, जो अपना हिस्सा ले कर किसी भी फाइल को आगे बढ़ा देती थीं.

बदन सिंह बद्दो और सुशील मूंछ की दोस्ती जब बहुत गहरी हुई तो भूपेंद्र बाफर और सुशील मूंछ में दूरियां बढ़ गईं और एक समय वह आया जब बाफर सुशील मूंछ का दुश्मन हो गया. तब मूंछ और बद्दो एकदूसरे का सहारा बन गए.

सुशील मूंछ का बड़ा गैंग था. विदेश तक उस के कारनामों की गूंज थी. जरायम की दुनिया के इन 2 बड़े कुख्यातों का याराना पुलिस फाइल और अपराध की काली दुनिया में बड़ी चर्चा में रहता था. दोस्ती भी अजीबोगरीब थी.

हैरतअंगेज था कि जब एक किसी अपराध में गिरफ्तार हो कर जेल जाता तो दूसरा बाहर रहता था और धंधा संभालता था. 3 दशकों तक ये दोनों पुलिस से आंखमिचौली खेलते रहे. मूंछ जब 3 साल जेल में बंद रहा तो उस दौरान बद्दो जेल से बाहर था. मूंछ का सारा काम बद्दो संभालता था.

वहीं 2017 में जब बद्दो को उम्रकैद की सजा हुई तो मूंछ बाहर था और बद्दो की पूरी मदद कर रहा था. 2019 में जब बद्दो पुलिस को चकमा दे कर कस्टडी से फरार हुआ तो दूसरे ही दिन सुशील मूंछ ने सरेंडर कर दिया और जेल चला गया. पुलिस कभी भी इन दोनों की साजिश को समझ नहीं पाई.

कहते हैं कि बद्दो को कस्टडी से फरार करवाने की सारी प्लानिंग सुशील मूंछ ने की. इस के लिए पुलिस और कुछ सफेदपोशों को बड़ा पैसा खिलाया गया. लेकिन बद्दो कहां है यह राज आज तक पुलिस सुशील मूंछ से नहीं उगलवा पाई. कहा जाता है कि वह दुनिया के किसी कोने में बैठ कर हथियारों का धंधा करता है.

पर्सनैलिटी में झलकता रईसी अंदाज

बदन सिंह बद्दो सिर्फ 8वीं पास था, लेकिन उस में बात करने की सलाहियत ऐसी थी कि लगता वह दर्शन शास्त्र का कोई बड़ा गहन जानकार हो. बातबात में वह शायरी और महापुरुषों के वक्तव्यों को कोट करता था.

एक पार्टी के दौरान जब एक रिपोर्टर ने उस से पूछ लिया कि जरायम की दुनिया से कैसे जुड़ गए तो विलियम शेक्सपियर को कोट करते हुए बद्दो ने कहा, ‘ये दुनिया एक रंगमंच है और हम सब इस मंच के कलाकार.’

पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुख्यात गैंगस्टर बदन सिंह बद्दो अब खुल कर लग्जरी लाइफ जीने लगा था. बद्दो का रहनसहन देख कर कोई भी उस के रईसी शौक का अंदाजा आसानी से लगा सकता है. लूई वीटान जैसे महंगे ब्रांड के जूते और कपड़े पहनना बदन सिंह बद्दो को अन्य अपराधियों से अलग बनाता है. वह आंखों पर लाखों रुपए मूल्य के विदेशी चश्मे लगाता है. हाथों में राडो और रोलैक्स की घडि़यां पहनता है.

बदन सिंह बद्दो महंगे विदेशी हथियार रखने का भी शौकीन है. उस के पास विदेशी नस्ल की बिल्लियां और कुत्ते थे, जिन के साथ वह अपनी फोटो फेसबुक पर भी शेयर करता था. इन तसवीरों को देख कर कोई कह नहीं सकता कि मासूम जानवरों को गोद में खिलाने वाले इस हंसमुख चेहरे के पीछे एक खूंखार गैंगस्टर छिपा हुआ है.

बुलेटप्रूफ कारों का लंबा जत्था उस के साथ चलता था. उस के महलनुमा कोठी में सीसीटीवी कैमरे समेत आधुनिक सुरक्षा तंत्र का जाल बिछा है.

ब्रांडेड कपड़े और जूते पहन कर जब वह किसी फिल्मी हस्ती की तरह विदेशी हथियारों से लैस बौडीगार्ड्स और बाउंसर्स की फौज के साथ घर से निकलता तो आसपास देखने वालों की भीड़ लग जाती थी. वह हमेशा बुलेटप्रूफ बीएमडब्ल्यू या मर्सिडीज कार से ही चलता था. उस की शानोशौकत भरी जिंदगी देख कर कोई यकीन नहीं करता था कि वह एक हार्डकोर क्रिमिनल है.

तो ये है ममता कुलकर्णी के गुमनाम अंधेरों की कहानी

90 के दशक में अपनी बिंदास अदाओं और खूबसूरती के लिए चर्चित रहीं ममता कुलकर्णी अचानक फिल्मी दुनिया से गायब हो गई हैं. गुमनामी के अंधेरों में गायब ममता का जिक्र अब उनकी किसी फिल्म या गाना आने पर ही होता है.

साल 1972 में एक मराठी परिवार में पैदा हुईं ममता ने, बॉलीवुड में 1992 में ‘तिरंगा’ फिल्म से कदम रखा था. फिर इसके बाद वे फिल्म ‘आशिक अवारा’ में दिखाई दीं. फिर ‘वक्त हमारा है’, ‘क्रांतिवीर’, ‘करण अर्जुन’, ‘सबसे बड़ा खिलाड़ी’ और ‘बाजी’, ‘घातक’, ‘चाइना गेट’ जैसी फिल्मों में काम करके उन्होंने बहुत नाम कमाया.

ये बात तो शायद आप जानते ही होंगे कि साल 2002 में आई ‘कभी तुम कभी हम’ के बाद उन्होंने बॉलीवुड को अलविदा कह दिया.

हर दम विवादों में घिरी रहीं ममता

साल 1993 में स्टारडस्ट मैगजीन में टॉपलैस फोटोशूट कराकर वे काफी चर्चा में आ गई थीं. इसके लिए उन पर जुर्माना भी हुआ था. यही नहीं ‘चाइना गेट’ में काम करने को लेकर खबरें उड़ी थीं कि छोटा राजन के कहने पर ही उन्हें यह फिल्म मिली. हालांकि यह फिल्म फ्लॉप रही और इसका सुपरहिट गाना ‘छम्मा-छम्मा’ भी उर्मिला के खाते में चला गया. बता दें कि ममता की इस फिल्म के जरिये सीरियस इमेज दिखाने की कोशिश नाकाम रही.

ये डांस नंबर आज भी थिरकने को मजबूर करते हैं

ममता के कई गाने आज भी लोगों की जुबान पर हैं. जब भी ये गाने कहीं सुनने को मिलते हैं तो अचानक इस अभिनेत्री की याद ताजा हो जाती है.

– कोई जाए तो ले आए मेरी लाख दुआएं पाए, मै तो पिया की गली..

– मुझको राणा जी माफ करना गलती म्हारे से हो गई…

– भंगड़ा पा ले… आजा आजा…

– भोली-भाली लड़की…

ड्रग्स तस्करी करने वाले विजय गोस्वामी से जुड़ी

शुरुआत में ममता के अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन से संबंधों की खबरें थीं, लेकिन कुछ समय बाद ही उनका नाम ड्रग तस्करी करने वाले विजय गोस्वामी यानि कि विकी के साथ जुड़ गया. उनके साथ वे दुबई और केन्या में रह रही थीं.

उन्होंने एक चैनल पर कबूला था कि उन्होंने विकी से शादी नहीं की और वे विकी से जेल में मिलने गईं थीं. ममता ने इसी इंटरव्यू में बताया कि उन्होंने सोचा था कि वह कैसे भी उन्हें जेल से बाहर निकालकर रहेंगी. विकी जेल से बाहर भी आए, लेकिन ममता भारत नहीं लौट पाईं.

जिस दौरान विकी जेल में थे ममता ने अपने आपको ईश्वर भक्ति में डुबो लिया था. ममता ने अध्यात्म पर एक किताब भी लिखी है, जिसका नाम है – ‘ऑटोबायोग्राफी ऑफ एन योगिन’.

जोगन ममता

ममता तो बॉलीवुड से गायब ही थीं, लेकिन एक तस्वीर ने ममता कुलकर्णी को फिर से चर्चा में ला दिया. इसमें वह माथे पर तिलक लगाए दिख रही थीं. इसके बाद खबरें चलीं कि ममता अब जोगन बन गई हैं. उन्होंने एक चैनल से इंटरव्यू में कहा कि मैं बॉलीवुड को छोड़कर ध्यान में लग गई और मैंने ईश्वर में ध्यान लगा लिया. उसके बाद उनका मन ही नहीं किया कि ग्लैमर की दुनिया में लौटूं.

बॉलीवुड को अलविदा कहने का कारण

एक ऑनलाइन इंटरव्‍यू में बॉलीवुड को अलविदा कहने की वजह पर ममता ने आध्यात्म को बताया. बॉलीवुड में वापसी पर उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था कि क्या घी को फिर से दूध बनाना मुमकिन है.

ममता कुलकर्णी भगोड़ा घोषित

ममता कुलकर्णी और उसके बॉयफ्रेंड विकी गोस्वामी को ठाणे की एक स्पेशल कोर्ट ने 2000 करोड़ रुपये ड्रग्स रैकेट केस में दोषी करार दिया है. पिछले महीने ही कोर्ट ने ममता को भगोड़ा घोषित करने के साथ ही उनकी संपत्तियों की कुर्की करने का आदेश दिया है.

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ‘यह घोषित किया जाता है कि आरोपी ममता कुलकर्णी और विकी गोस्वामी दोषी हैं. दोनों आरोपियों की अचल संपत्ति को जब्त करने का आदेश दिया जाता है.’

एक पुलिस ऑफिसर के अनुसार, ‘एक साल हो चुका है और मुख्य आरोपी अभी तक फरार है. ममता अभी भी फरार चल रही हैं, जबकि उनके पार्टनर विकी गोस्वामी को केन्या में गिरफ्तार किया जा चुका है. बता दें कि ममता की लोकेशन को लोकेट करने की कोशिश कर रहे हैं.’

दिखावटी रईस : निकला बड़ा ठग

कहते हैं कि इंसान बड़ा तिकड़मी होता है. कोई अपने तिकड़म अच्छे कामों के लिए लगाता है तो कोई अपने तिकड़म से दुनिया को झुकाने की फितरत रखता है. केरल के एक आदमी ने आसानी से पैसा कमाने के लिए जोरदार तिकड़म लगाया. 10 करोड़ की ठगी के मामले में 25 सितंबर, 2021 की रात को केरल की क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

गिरफ्तारी के बाद जब उस के कारनामों का खुलासा हुआ तो लोग उस की चर्चा करते नहीं थक रहे हैं. क्योंकि अपने तिकड़म से उस ने देश के जानेमाने ठग नटवरलाल को भी पीछे छोड़ने की कोशिश की है.

51 साल के उस आदमी का नाम है मोनसन मावुंकल. वह केरल के जिला अलप्पुझा के चेरथला का रहने वाला है. इस ठग ने स्वयंप्रसिद्धि द्वारा अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई थी.

अपनी वेबसाइट पर उस ने जरा भी कंजूसी किए बगैर बड़ी ही उदारता के साथ अपनी पहचान इस तरह दी थी— डा. मोनसन मावुंकल, प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का अंतरराष्ट्रीय सौदागर. विश्व शांति के प्रणेता और वर्ल्ड पीस काउंसिल का मेंबर. प्रवासी मलयाली फैडरेशन पेट्रन, पुरातत्त्वविज्ञान के मास्टर, डाक्टरेट इन कौस्मेटोलौजी और उस में पोस्टडाक्टरल, शिक्षाशास्त्री, प्राचीन ज्वैलरी के निर्यातक, मोटिवेशनल स्पीकर और प्रख्यात यूट्यूबर.

यह आदमी काम क्या करता था? कोच्चि में एक आलीशान कोठी किराए पर ले कर उस में उस ने प्राचीन और दुर्लभ वस्तुओं का म्यूजियम बना रखा था. इस के अलावा कोठी के एक फ्लोर पर वह सौंदर्य चिकित्सा करता था. वहां एक स्पा भी था.

कोठी के विशाल कंपाउंड में उस की लगभग 30 कारें खड़ी थीं. उस की कारों के इस काफिले में पोर्शे बाक्सटर, रोल्स रायस, रेंजरोवर, लैंडक्रूजर, डौज, मर्सिडीज एस क्लास और लेक्सस जैसी महंगीं कारें थीं.

उस के म्यूजियम में जो दुर्लभ चीजें थीं, वह सोनेचांदी की प्राचीन ज्वैलरी के अलावा देशी और विदेशी प्रवासियों को अमूल्य और दुर्लभ नमूने भी बेचता था. उस की सूची में ईसा मसीह जो कपड़े पहनते थे, उस का एक टुकड़ा, जीसस को धोखा देने के लिए घूल जुडासन ने जो 30 चांदी के सिक्के दिए थे, वे सिक्के. मोहम्मद पैगंबर जिस कटोरे में खाते थे, वह कटोरा.

टीपू सुलतान का सिंहासन, लियोनार्डो दा विंची और राजा रवि वर्मा के बनाए असली चित्र, छत्रपति शिवाजी महाराज हमेशा अपने साथ जो भगवद्गीता रखते थे, वह भगवद् गीता, मोजिस का अधिकार दंड, नारायण गुरु की लाठी, त्रावणकोर के महाराजा का सिंहासन, विश्वप्रसिद्ध पैलेस का ओरिजिनल टाइटल डीड.

दुनिया की पहली ग्रामोफोन मशीन, बाइबल की सर्वप्रथम छपी पहली कौपी, सद्दाम हुसैन अपने साथ जो कुरान शरीफ रखता था, वह पवित्र कुरान शरीफ, केरल का प्रसिद्ध शबरीमाला मंदिर जब बना था, तब की उस की धार्मिक विधियों के लिए दस्तावेज के रूप में जो ताम्रपत्र बनाया गया था, वह दुर्लभ ताम्रपत्र, इस तरह की अनेक दुर्लभ प्राचीन चीजें मोनसन मावुंकल के खजाने में थीं.

छोटे ग्राहकों के लिए हाथीदांत की कलाकृतियां और व्हेल मछली की हड्डियों से बने खिलौने भी उस के म्यूजियम में थे. फिल्मी हीरो जैसे लगने वाले और अपनी बोलने की कला से सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करने की उस में गजब की शक्ति थी.

इस के अलावा उस के इस म्यूजियम और वैभवशाली 30 कारों के काफिले के कारण किसी को भी प्रभावित करने में उसे जरा भी दिक्कत नहीं होती थी. 2-3 सशस्त्र बौडीगार्ड हमेशा उस के साथ रहते थे. प्रसिद्धि का भूखा मोनसन डौन की स्टाइल में अपने फोटो वेबसाइट और सोशल मीडिया पर अकसर डालता रहता था.

सामान्य आदमी तो ठीक, केरल के फिल्मी कलाकार, राजनेता और बड़ेबड़े पुलिस अधिकारी भी उस का म्यूजियम देखने आते थे.

उस से मिलने वालों में राज्य के डीजीपी लोकनाथ बेहरा, असिस्टेंट आईजीपी मनोज अब्राहम, सुपरस्टार मोहनलाल, कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के. सुधाकरन, वर्तमान सरकार के मंत्री रोशी आंगस्टाइन, अहमद देवरकोविल, आईजी लक्ष्मण गुगुलोथ, पूर्व डीआईजी सुरेंद्रन, आईपीएस श्रीलेखा, सांसद हीबी एडन, पूर्व मंत्री मोना जोसेफ जैसे अनेक महारथियों के फोटोग्राफ्स उस के म्यूजियम में थे.

इस तरह के वीआईपी मेहमानों के भव्य स्वागत में मोनसन मावुंकल कोई कसर नहीं छोड़ता था. इन लोगों के साथ के फोटो वह तुरंत सोशल मीडिया पर वायरल कर देता था. वह पुलिस अधिकारियों को छोटामोटा सामान उपहार में दे कर खुश रखता था.

पुलिस विभाग में चलने वाली चर्चाओं के अनुसार, मोनसन ने एक बड़े पुलिस अधिकारी को 55 लाख की कोरल एडमिरल कलाई घड़ी उपहार में दी थी. पुलिस विभाग से मधुर संबंध होने की वजह से उस की कोठी और अलप्पुझा जिले में स्थित उस के घर, दोनों जगहों पर पुलिस बीट बौक्स की व्यवस्था हो गई थी.

आखिर यह ठग पकड़ा कैसे गया? जून, 2017 से नवंबर, 2020 के बीच मोनसन मावुंकल ने अलग अलग 6 लोगों से कुल 24 करोड़ रुपए उधार लिए थे. अंतरराष्ट्रीय हीरा व्यापारी और एंटीक बिजनैस डीलर के रूप में उस ने इन लोगों से अपना परिचय कराया था.

बाद में जब इन लोगों ने अपना पैसा वापस मांगना शुरू किया तो मोनसन मावुंकल इन से कहने लगा कि फारेन एक्सचेंज मैनेजमेंट एक्ट (फेमा) के अधिकारियों ने उस का पैसा रोक रखा है. उसे पाने के लिए केंद्र सरकार से उस की कानूनी लड़ाई चल रही है.

उन लोगों को मोनसन की बात पर विश्वास नहीं था, इसलिए वे लोग उस के घर आए. आलीशान कोठी, लग्जरी कारों का काफिला, उस की आलीशान जीवनशैली और माननीय लोगों के साथ उस की फोटो देख कर उन्हें मोनसन की बात पर विश्वास हो गया.

इस के अलावा विश्वास जमाने के लिए मोनसन मावुंकल ने उन लोगों को एचएसबीसी बैंक का स्टेटमेंट भी दिखाया.

मोनसन मावुंकल का पार्टनर कोई वी.आई. पटेल (यह वी.आई. पटेल कौन हैं, इस के बारे में केरल पुलिस आज तक पता नहीं कर सकी है) के साथ के उस के एकाउंट में छोटीमोटी नहीं, 2.62 लाख करोड़ की रकम जमा थी. मोनसन मावुंकल ने उन से यह भी कहा था कि 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिल कर उस ने अपना पैसा पाने की बात भी की है.

प्रवासी मलयाली फेडरेशन की वैश्विक महिला कोआर्डिनेटर रह चुकी अनीता पुल्लाइल इस समय इटली में रहती हैं. मोनसन मावुंकल के किसी लेनदार ने जब उन से व्यक्तिगत रूप से इस बारे में बात की तो उन्होंने सलाह दी कि उस चीटर के खिलाफ तुरंत पुलिस में शिकायत कर दीजिए. अगर आप को जरूरत महसूस हो तो मेरे नाम का भी उपयोग कर सकते हो.

अनीता ने यह भी कहा था कि पता चला है कि उस नालायक ने उस की कोठी में काम करने वाली नौकरानी की 17 साल की बेटी के साथ दुष्कर्म भी किया है. यह पता चलते ही उन्होंने उस शैतान से सारे संबंध तोड़ लिए हैं.

इस के बाद उन लेनदारों ने मोनसन मावुंकल के खिलाफ शिकायत करने के साथसाथ उस शिकायत पर काररवाई के लिए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन के यहां शिकायत की. उन्हीं की शिकायत के आधार पर लोकल पुलिस को अंधेरे में रख कर राज्य की क्राइम ब्रांच ने इस मामले को अपने हाथ में लिया.

25 सितंबर, 2021 को मोनसन मावुंकल की बेटी की सगाई की आलीशान पार्टी थी. उसी रात क्राइम ब्रांच के अधिकारियों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. जिस समय उसे गिरफ्तार किया गया, उस की जेब में 3 महंगे आईफोन, दाहिने हाथ में एप्पल की घड़ी, बाएं हाथ में सोने का वजनदार लकी ब्रेसलेट और गले में मोटी सी सोने की चेन थी.

अपनी स्वयंप्रसिद्धि के कारण मोनसन मावुंकल ने केरल में ‘हू इज हू’ की सूची में स्थान प्राप्त कर लिया था. गिरफ्तारी के बाद मोनसन मावुंकल मीडिया में छा गया.

अखबारों और टीवी चैनलों में उस के नेताओं के साथ के संबंध और पुलिस अधिकारियों से सांठगांठ की चर्चा लगातार चलने लगी. उस के बाद बहुत बड़ा घोटाला सामने आया. इस के अलावा भी अनेक रहस्य बाहर आएंगे, ऐसा सभी को लग रहा है.

फोटोग्राफ्स में जो महानुभाव थे, वे सब ढीले पड़ गए और अपनीअपनी सफाई देने लगे कि यह आदमी इतना बड़ा ठग है, उन्हें पता नहीं था. राज्य के डीजीपी लोकनाथ बेहरा ने तो मोनसन मावुंकल के म्यूजियम में महाराजा के स्टाइल में हाथ में तलवार के साथ पोज दिया था.

लोकनाथ इसी साल रिटायर हुए हैं. उन के रिटायर होने के बाद सरकार ने उन्हें तुरंत कोच्चि मेट्रो का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया था. मोनसन मावुंकल के गिरफ्तार होते ही वह पत्नी की बीमारी का कारण बता कर अपने घर ओडिशा चले गए हैं.

जैसेजैसे सच्चाई बाहर आने लगी, झूठ और मात्र झूठ के आधार पर खड़ा किया गया मोनसन मावुंकल का साम्राज्य भरभरा कर गिरने लगा.

हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद मोनसन मावुंकल ने किसी कालेज का मुंह नहीं देखा था. फिर भी उस के नाम के साथ डाक्टरेट की डिग्री लगी है. उस के म्यूजियम के खजाने में जो पौराणिक वस्तुएं थीं, वे ज्यादातर नकली थीं.

हाथीदांत और व्हेल की हड्डियों से बनी जो चीजें थीं, वे तिरुवनंतपुरम के एक कारीगर से ऊंट की हड्डियों से बनवाई गई थीं. उस कारीगर का भी इस पर पैसा बाकी है, इसलिए उस ने भी मुकदमा कर रखा है.

उस की 30 कारों में से एक भी कार के पूरे कागज नहीं मिले. महंगी पोर्शे कार 2007 में करीना कपूर के नाम रजिस्टर्ड हुई थी. उस में पिता का नाम रणधीर कपूर और पता भी उन्हीं के घर का है.

मोनसन मावुंकल की पत्नी शिक्षिका थी. 1981-82 में वे दोनों इडुक्की जिले के एक गांव में रहते थे. उस समय के उस के पड़ोसियों का कहना है कि मोनसन मावुंकल तो उन के गांव में इलैक्ट्रिशियन वायरमैन का काम करता था. 1998 में उस ने कोच्चि में पुरानी कारों के खरीदनेबेचने का धंधा शुरू किया. तभी चोरी की कार बेचने के आरोप में पुलिस ने उसे गिरफ्तार भी किया था.

छोटीमोटी धोखाधड़ी करते हुए उस ने एक पूरा आभासी साम्राज्य खड़ा कर लिया. अपने लेनदारों को मोनसन मावुंकल बड़े शान से 2.62 लाख करोड़ की जमा रकम वाला एचएसबीसी बैंक का स्टेटमेंट दिखाता था. पुलिस जांच में सामने आया है कि इस आदमी का तो बैंक में कोई एकाउंट ही नहीं है.

कोफिन में अंतिम कील जैसी घटना उस की गिरफ्तारी के बाद बाहर आई. उस की कोठी में काम करने वाली नौकरानी की बेटी 17 साल की थी, तब मोनसन मावुंकल ने उस के साथ उच्च शिक्षा के लिए दाखिला दिलाने के नाम पर दुष्कर्म किया था. पुलिस से मोनसन मावुंकल के संबंधों के कारण वह गरीब पुलिस से शिकायत करने से डरती रही.

मोनसन मावुंकल पकड़ा गया तो उस ने एर्नाकुलम थाने में शिकायत की है कि अब तक उस के साथ दुष्कर्म का सिलसिला चलता रहा था. गिरफ्तारी के 2 दिन पहले भी उस नराधम ने उस लड़की के साथ दुष्कर्म किया था.

क्राइम ब्रांच ने मोनसन मावुंकल के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 450, 506, 420, 421 के तहत कुल 14 एफआईआर दर्ज की हैं. इस में 19 अक्तूबर, 2021 को पोक्सो एक्ट के अंतर्गत भी मामला दर्ज किया गया था.

डौन की तरह बौडीगार्ड के साथ मोनसन मावुंकल के फोटो खूब वायरल हुए थे. पुलिस जांच में पता चला कि सभी अंगरक्षकों के हाथों में जो हथियार दिख रहे थे, वे चाइनीज खिलौना राइफलें थीं. इस घटना का राजकीय प्रत्याघात भी जोरदार सामने आया है.

6 अक्तूबर, 2021 को केरल की विधानसभा में प्रश्नोत्तर के दौरान मोनसन मावुंकल एक बार फिर चर्चा में आया. राज्य के डीजीपी और अन्य उच्च अधिकारी मोनसन के म्यूजियम में क्या करने जाते थे, इस का जवाब देना मेरे लिए मुश्किल है. मुख्यमंत्री विजयन ने कहा. उन्होंने विश्वास दिलाया कि उस के दोनों घरों पर पुलिस बीट बौक्स की व्यवस्था किस ने कराई है, इस की जांच होगी.

विपक्षी नेता वी.डी. सतीश ने आक्रामक रुख अख्तियार करते हुए कहा है कि 2019 में पुलिस की इंटेलिजेंस विंग ने मोनसन मावुंकल को चीटर घोषित करते हुए जनवरी, 2020 में पूरी रिपोर्ट दी थी, फिर भी पुलिस ने उस के खिलाफ कुछ नहीं किया था. उसे राज्य के पुलिस अधिकारियों और सरकार की मदद मिलती रही थी. यह कह कर विपक्ष ने वाकआउट कर दिया था.

लोगों को ठग कर इकट्ठा किया गया पैसा आखिर गया कहां? पुलिस अब इस दिशा में जांच कर रही है. पिछले 5 सालों में कोच्चि के पौश इलाके की प्रौपर्टी में जो बेनामी इनवैस्ट हुआ है, उस में सभी डीलरों का कहना है कि किसी ‘डाक्टर’ नाम के आदमी ने खासा बेनामी इनवैस्ट किया है.

पुलिस का मानना है कि वह डाक्टर कोई और नहीं, मोनसन मावुंकल ही होगा. इटली में रह रही अनीता पुल्लाइल भी पुलिस के शक के दायरे में है. वह बारबार केरल आ कर मोनसन मावुंकल से मिलती रहती थी. इस से पुलिस को आशंका है कि उस के माध्यम से मोनसन ने पैसा विदेश पहुंचाया है. पुलिस इस की भी जांच कर रही है.

पुलिस का मानना है कि उन लेनदारों से अनीता ने जो शिकायत करने के लिए कहा था, उस समय मोनसन की पुलिस अधिकारियों से अच्छी सांठगांठ थी. इसलिए उन लोगों की शिकायत पर कुछ होगा नहीं, यह सोच कर उस ने यह सलाह दी थी.

दुनिया झुकती है, झुकाने वाला चाहिए, यह उक्ति मोनसन मावुंकल पर सच्ची ठहरती है. सारा नकली कारोबार कर के लोगों को ठगने और उन पर धाक जमाने के लिए नेताओं, अभिनेताओं और पुलिस अधिकारियों की तसवीरों का उपयोग किया, परंतु अंत में अपराध का घड़ा फूटा और अब वह नमूना जेल की सलाखें गिन रहा है.

Lady Don अस्मिता गोहिल, जिसका नाम सुनते लोग थर्रा उठते

गुजरात के सिल्क और डायमंड सिटी सूरत की गलियों में जिस समय खतरनाक हथियारों के साथ लेडी डौन (Lady Don) अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी निकलती थी, उस समय लोग थर्रा उठते थे. शहर के कारोबारियों और दुकानदारों की रूह कांप जाती थी. वे यह सोच कर डर जाते थे कि अब पता नहीं किस का नंबर आने वाला है. यह लेडी डौन सिर्फ गुंडागर्दी कर के रंगदारी ही नहीं वसूलती बल्कि फेसबुक और यूट्यूब पर भी काफी एक्टिव रहती थी.

सोशल मीडिया पर उस के 13 हजार से अधिक फालोअर्स हैं और ढाई हजार के करीब दोस्त हैं. आए दिन वह अपने फेसबुक एकाउंट पर नईनई वीडियो पोस्ट करती रहती है. कई वीडियो में वह अपने हाथों में नंगी तलवार और रिवौल्वर ले कर लोगों से रंगदारी वसूलती दिखी.

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अपराध की दुनिया में अस्मिता उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने आप को बीते जमाने की लेडी डौन उर्फ गौड मदर संतोषबेन जाडेजा के रूप में देखना चाहती थी. यह प्रेरणा उसे संतोषबेन जाडेजा के जीवन पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ से मिली थी. यह फिल्म अस्मिता ने कई बार देखी थी. इस फिल्म का अस्मिता गोहिल पर गहरा असर पड़ा था.

जिस धमाके के साथ अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी ने सूरत की जमीन पर कदम रखा था, उसे देख कर सूरत के अधिकांश लोगों को लेडी डौन गौड मदर संतोषबेन जाडेजा की याद ताजा हो गई थी.

सारा शहर उस के कारनामों से भयभीत हो गया था. उस का खौफ सूरत शहर के लोगों के बीच कुछ इस प्रकार घर कर गया था कि कोई भी उस के खिलाफ पुलिस के पास जाने और बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. मजबूरन पुलिस को उस के वायरल हुए वीडियो को सबूत के तौर पर मान कर उस के खिलाफ काररवाई करनी पड़ी थी.

13 मार्च, 2017 के इस वीडियो में जहां सूरत के वराछा इलाके में लोग होली का त्यौहार मनाने में मस्त थे तो वहीं अस्मिता गोहिल अपने कारनामों में व्यस्त थी. वह अपने प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला और गोपाल विट्ठल जाधव के साथ हाथों में नंगी तलवार और चाकू लिए उन के बीच पहुंची थी. फिर उस ने भागीरथी मार्केट की गलियों में वहां के लोगों को डरातेधमकाते हुए वहां भय का माहौल बना दिया था. उस के डर से लोग सहम गए थे.

इस वीडियो के वायरल होते ही सूरत के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए थे. वे पता लगाने लगे कि ये कौन सी डौन थी, जिस के आतंक से वहां के लोग इतने सहमे हुए थे. मामले की गंभीरता को देखते हुए सीनियर पुलिस अधिकारियों ने वराछा के थानाप्रभारी मयूर पटेल से उस वीडियो की सच्चाई जानने के निर्देश दिए. सीनियर अधिकारियों के निर्देश पर थानाप्रभारी मामले की जांच में जुट गए.

जांच में थानाप्रभारी को पता लग गया कि वह लेडी और कोई नहीं, बल्कि अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी है. पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि इस लेडी डौन का प्रेमी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा तो सूरत शहर का कुख्यात अपराधी है.

वह शहर के एक ट्रिपल मर्डर केस में वांछित है, जिस की काफी दिनों से पुलिस को तलाश है. इस के पहले कि वह पुलिस के हत्थे चढ़ता अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी ने उस के साथ मिल कर वराछा की भागीरथी सोसायटी और मार्केट में कुछ इस तरह से अपना आतंक फैलाया कि मजबूरन लोगों की सुरक्षा के लिए पुलिस को वहां अपनी एक चौकी स्थापित करनी पड़ी थी.

उच्चाधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम ने अस्मिता और उस के प्रेमी की तलाश शुरू कर दी. उन के कई ठिकानों पर छापा मारने के बाद आखिरकार पुलिस को कामयाबी मिली और अस्मिता गोहिल पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस से पूछताछ करने के बाद उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने अस्मिता के खिलाफ अदालत में आरोपपत्र दाखिल किया. लेकिन सबूतों के अभाव में उसे जमानत मिल गई थी. यानी 3 महीने बाद वह जेल से बाहर आ गई थी.

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3 महीने जेल में रहने के बाद भी अस्मिता उर्फ भूरी में कोई बदलाव नहीं आया था, बल्कि जेल जाने के बाद वह पूरी तरह निडर हो गई और पहले से ज्यादा आपराधिक मामलों में शामिल हो गई थी. वह संजय भूरा के जिगरी दोस्त राहुल उर्फ गोदो बामनिया और उस के दोस्तों को साथ ले कर सरेआम लोगों से रंगदारी वसूलती. इतना ही नहीं, वह लोगों के पैसे भी छीनने लगी.

20 वर्षीय सुंदरी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी गुजरात के सौराष्ट्र काठियावाड़ के उसी इलाके की रहने वाली थी, जिस इलाके की लेडी डौन संतोषबेन जाडेजा थी. काले साम्राज्य की दुनिया में वह भी संतोषबेन जाडेजा की तरह अपना दबदबा बना कर सूरत शहर के लोगों पर गौड मदर बन कर राज कायम करना चाहती थी.

गरीब परिवार की थी लेडी डौन अस्मिता

अस्मिता गोहिल काठियावाड़ के जिला सोमनाथ तालुका ऊना के गांगडा गांव के रहने वाले एक गरीब किसान जीमुआभाई गोहिल की बेटी थी. गांव में उन की थोड़ी सी जमीन थी, जिस पर वह काश्तकारी करते थे. परिवार बड़ा होने के नाते उन्हें बाहर भी मेहनतमजदूरी करनी पड़ती थी. तब कहीं जा कर उन के परिवार की गाड़ी आगे सरकती थी.

उन के परिवार में पत्नी जसुबेन के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटा सब से छोटा था. अस्मिता गोहिल बड़ी बेटी होने के नाते पूरे परिवार की प्यारी और दुलारी थी. पिता ने तो अस्मिता को बेटे का स्थान दिया था.

चंचल स्वभाव की अस्मिता गोहिल का बचपन गरीबी में बीता था. यही कारण था कि वह अपनी उम्र के साथ तेजतर्रार और उग्र स्वभाव की महत्त्वाकांक्षी युवती बन गई थी. जिन चीजों का उस के पास अभाव था, वह उन्हें पाने के सपने देखा करती थी. उन सपनों को पूरा करने का आइडिया उसे लेडी डौन संतोष बेन जाडेजा की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘गौड मदर’ देख कर मिल चुका था.

अस्मिता के पिता गरीब जरूर थे, लेकिन गांव में उन का मानसम्मान था. अन्य बच्चों की तरह वह अस्मिता को भी पढ़ाना चाहते थे लेकिन अस्मिता का मन स्कूल की पढ़ाई में कम और ग्लैमरस व आपराधिक गतिविधियों की तरफ अधिक रहता था.

किसी भी बात को ले कर वह अकसर अपने सहपाठियों से उलझ जाया करती थी. वह लड़कियों के बजाय लड़कों के साथ दिखना पसंद करती थी. यही वजह थी कि उस के दोस्तों में लड़कों की संख्या अधिक थी. उस की यह आदत घर वालों को पसंद नहीं थी.

सन 2015 के दौरान वह अपने ही गांव के एक बिगड़े हुए लड़के के साथ घर से गायब हो गई. थाने में उस के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई गई. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला था. करीब एक साल तक गायब रहने के बाद एक दिन अस्मिता अपने प्रेमी के साथ खुद पुलिस थाने में हाजिर हो गई. दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने प्रेमी को जेल भेज दिया और अस्मिता को उस के मांबाप के हवाले कर दिया था.

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अस्मिता गोहिल के घर वालों ने उस के सारे गुनाह माफ कर के उसे अपने गले लगा लिया था, लेकिन एक साल तक बिगड़े हुए रईसजादे के साथ रहने के बाद अस्मिता को अपने घर का माहौल रास नहीं आया तो वह एक रात चुपके से घर से भाग कर सूरत में रहने वाले अपने मामा और मामी के पास चली गई थी. यहीं पर उस की मुलाकात भावनगर के रहने वाले कुख्यात अपराधी संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा से हुई थी, जिस पर लूटपाट, मारपीट और मर्डर आदि के दरजनों मामले चल रहे थे.

संजय हिम्मतभाई वाघेला उर्फ भूरा और अस्मिता गोहिल की दोस्ती का पता जब उस के मामामामी को चला तो उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उन्होंने अस्मिता को समझानेबुझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उन की कोई भी बात अस्मिता गोहिल के गले से नीचे नहीं उतरी थी.

प्रेमी के साथ रखा अपराध में कदम

मामामामी की बातों पर ध्यान देने के बजाय अस्मिता उन का घर छोड़ कर संजय उर्फ भूरा के साथ रहने के लिए चली गई और उस के साथ लिवइन में रहने लगी. संजय के साथ रहने और उस के साथ आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण लोग अस्मिता को भूरी डौन के नाम से पुकारने लगे थे.

ब्यूटी डौन बनी अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी का इलाके में खासा नाम हो गया था. जब उस के पास पैसा आया तो वह अच्छे रहनसहन के साथ अपने शौक पूरे करने में लग गई. क्रूजर मोटरसाइकिल, लग्जरी कार उस की पसंद बन गई थी, जिस के साथ फोटो खिंचवा कर वह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर डालती रहती थी.

लोग उस की सुंदरता और अदाओं पर जम कर कमेंट करते थे. लेकिन जब वह उस का अपराधों से भरा प्रोफाइल देखते तो उन का सिर चकरा जाता था. अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी अपने इन्हीं वाहनों पर सवार हो कर के लोगों से रंगदारी वसूलती थी.

आतंक का पर्याय बन चुकी लेडी डौन अस्मिता गोहिल के अपराधों की जानकारी तो समयसमय पर पुलिस को मिलती रहती थी, लेकिन किसी शिकायतकर्ता के सामने न आने के कारण पुलिस बेबस रहती थी. वह चाह कर भी उस के खिलाफ काररवाई नहीं कर पाती थी.

मगर पुलिस भी हाथों पर हाथ रख कर नहीं बैठी थी. वह उस की हर हरकत पर नजर रख रही थी और इस में उसे सफलता भी मिली. पुलिस के हाथ अस्मिता गोहिल का एक और वीडियो लग गया, जिस से अस्मिता गोहिल और उस के साथियों के कारनामों का परदा हट गया था.

21 मई, 2018 को वायरल हुए इस वीडियो में अस्मिता गोहिल और उस के साथियों का चेहरा सामने आ गया था. उस दिन सुबह के साढ़े 6 बजे ही भागीरथी सोसायटी की मार्केट के एक एंब्रायडरी कारखाने में तोड़फोड़ करते हुए व उस के मालिक को डरातेधमकाते हुए अस्मिता उर्फ भूरी और उस के साथी कैमरे में कैद हो गए.

इस के एक घंटे बाद ही वह अपने एक और साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया के साथ अपनी क्रूजर मोटरसाइकिल पर सवार हो कर वर्षा सोसायटी की एक पान की दुकान पर पहुंची. दुकानदार को डरा कर उस ने उस के गल्ले का सारा पैसा ले लिया. इतना ही नहीं, उस ने उसे भद्दी गालियां भी दीं.

आतंक बढ़ने पर कस गया शिकंजा

वह अपने हाथों में जिस समय नंगी तलवार ले कर पान की दुकान पर आई थी, उसी समय दुकान पर इक्केदुक्के ग्राहक चुपचाप वहां से खिसक गए. पान वाले के साथ ही साथ वहां से गुजरने वाला एक दूध वाला भी उस का शिकार बन गया था. राहुल और भूरी ने उसे रोक कर उस के पास से सारे पैसे छीन लिए थे.

एक ही दिन में अस्मिता गोहिल के अपराधों के 2 वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया था. सूरत पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने वराछा और शहर के अन्य थानों के थानाप्रभारियों को आड़े हाथों लिया और उन्हें सख्त काररवाई के आदेश दिए थे. पुलिस कमिश्नर के सख्त आदेश पर पुलिस और क्राइम ब्रांच ने अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी को घटना के 5 दिनों बाद ही उस के साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया.

अस्मिता गोहिल उर्फ डीकू उर्फ भूरी के खिलाफ सूरत शहर के विभिन्न थानों में एक दरजन से अधिक मामले दर्ज हैं. लेडी डौन से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने इस बार उस पान वाले और एंब्रायडरी कारखाने के मालिक को भी ढूंढ कर उन की शिकायत ली फिर सीसीटीवी के फुटेज भी जब्त कर लिए.

इस के आधार पर भूरी के खिलाफ मामला दर्ज कर उस के साथी राहुल उर्फ गोदो बामनिया, भावेशभाई, रणछोड़ देसाई, संजय मनुभाई को 26 मई, 2018 को कोर्ट में पेश कर लाजपोर जेल भेज दिया.

लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी और उस के साथियों के जेल जाने के बाद सूरत शहर के कारखाना मालिकों और दुकानदारों के साथ ही साथ आम जनता ने भी राहत की सांस ली. लेकिन उस के डर से वे पूरी तरह मुक्त नहीं हुए हैं.

उन का मानना है कि आज नहीं तो कल वह जेल से बाहर आएगी, मगर पुलिस का यह दावा है कि इस बार लेडी डौन अस्मिता गोहिल उर्फ भूरी के जेल से बाहर आने की संभावना न के बराबर है. क्योंकि इस बार उन के पास अस्मिता गोहिल के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं. पुलिस के दावों में कितना दम है, यह तो वक्त ही बताएगा.

कथा लिखे जाने तक अस्मिता गोहिल अपने साथियों के साथ जेल की सलाखों में बंद अपनी रिहाई के दिन गिन रही थी.

गैंगस्टरों का गढ़ बनता पंजाब और पुलिस की बढ़ती परेशानी

जरा नब्बे के दशक की मुंबई को याद करें. महानगर मुंबई में सक्रिय दरजनों छोटेबडे़ क्रिमिनल गैंग के खौफ ने लोगों की नींद उड़ा रखी थी. अपहरण, फिरौती, हफ्तावसूली आम बात थी. क्रिमिनल गैंग के बीच की रंजिश और अंडरवर्ल्ड में वर्चस्व की लड़ाई को ले कर खूनी गैंगवार भी अपने चरम पर था. उस समय मुंबई में इतने क्रिमिनल गैंग सक्रिय थे कि पुलिस के लिए उन्हें सूचीबद्ध करना मुश्किल हो रहा था. फिर भी अंडरवर्ल्ड में दाऊद, छोटा राजन, सुलेमान, छोटा शकील और अरुण गावली जैसे बड़े नाम थे.

इस समय पंजाब में भी नब्बे के दशक वाले मुंबई जैसी हालत बन चुके हैं, जो काफी चिंताजनक होने के साथसाथ हैरान करने वाली बात है. पंजाब ने अतीत में सिख चरमपंथियों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का खूनी और हिंसक दौर अवश्य देखा था, लेकिन संगठित, आक्रामक और खुल्लमखुल्ला कानून एवं व्यवस्था को चुनौती देने वाले संगठित अपराध के मामले में उस का कोई इतिहास नहीं रहा है.

मादक पदार्थों के धंधे ने पंजाब में अनेक क्रिमिनल गैंग पैदा किए हैं. कल तक जो आपराधिक मानसिकता वाले नौजवान आतंकवाद की तरफ आकर्षित हो रहे थे, वे अब मादक पदार्थों के धंधे में ऊंचे मुनाफे को देखते हुए क्रिमिनल गैंग तैयार करने लगे हैं.

देखते ही देखते पंजाब में अनेक खतरनाक क्रिमिनल गैंग तैयार हो गए और पुलिस एक तरह से कुंभकर्णी नींद सोती रही. इन क्रिमिनल गैंगों को किसी न किसी रूप से राजनीतिक संरक्षण प्राप्त था. शायद यह भी एक बड़ी वजह थी कि पुलिस लगातार चुनौती बनते जा रहे गैंगों के विरुद्ध प्रभावी काररवाई नहीं कर सकी और ये गैंग दुस्साहसी और खतरनाक होते गए.

कुकुरमुत्तों की तरह पंजाब में क्रिमिनल गैंग पैदा हुए तो जल्दी ही जरायम की दुनिया में वर्चस्व को ले कर उन में आपसी मारकाट शुरू हो गई. यह गैंगवार पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया. खूनी गैंगवार को रोकने के लिए पुलिस पर जब दबाव पड़ा तो उस ने कुछ गैंगस्टरों को गिरफ्तार कर के जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.crime news

पर गैंगस्टरों के खिलाफ कोई भी काररवाई करने में पुलिस ने बड़ी देर कर दी. गैंगस्टर अब तक बडे़ खतरनाक और दुस्साहसी हो चुके थे. सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल करने वाले गैंगस्टरों की धमक और हिम्मत का सही अंदाजा पुलिस को उस समय कुछकुछ हुआ, जब वे पुलिस पर हमला कर के हिरासत से अपने साथियों को छुड़ाने के साथ अपने विरोधियों को मारने जैसी अत्यंत दुस्साहस से भरी काररवाइयां करने लगे.

सभी गैंगस्टर कमोवेश जवान हैं और उन के काम करने का स्टाइल फिल्मों से प्रभावित लगता है. वे सोशल मीडिया पर पुलिस को खुल्लमखुल्ला चुनौती देते हुए विरोधी ग्रुप के लोगों की हत्या करने और जेल में बंद अपने साथियों को छुड़ाने जैसी बात कहने लगे हैं. पुलिस ने शुरू में ऐसी धमकियों को गंभीरता से नहीं लिया. आतंकवाद जैसा गंभीर समस्या का सामना कर चुकी पंजाब पुलिस का खयाल था कि गैंगस्टरों में इतनी हिम्मत नहीं कि जेलों में बंद अपने साथियों को जेल से छुड़ा सकें.

पुलिस का उक्त खयाल उस की खुशफहमी ही साबित हुआ. गैंगस्टरों ने जैसा कहा, वैसा कर के दिखा भी दिया. आतंकवादी भी ऐसी हिम्मत कर सके थे, जैसी हिम्मत इन गैंगस्टरों ने कर दिखाई. पंजाब की नाभा जेल काफी सुरक्षित मानी जाती रही है.

नाभा जेल को सुरक्षित और अभेद्य समझते हुए खूंखार और खतरनाक अपराधियों को उसी में रखने को सुरक्षा एजेंसियां प्राय: प्राथमिकता देती रही हैं. गिरफ्तारी के बाद पंजाब के खतरनाक विक्की गौंडर गैंग के कुछ खूंखार सदस्यों को इसी जेल में रखा गया था.

27 नवंबर, 2016 को चौंकाने वाली अप्रत्याशित काररवाई करते हुए विक्की गौंडर गैंग के सदस्यों ने पूरी तैयारी के साथ बेहद सुरक्षित मानी जाने वाली नाभा जेल पर धावा बोल कर सारी सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए वहां बंद अपने 6 साथियों को छुड़ा कर फिल्मी अंदाज में भाग खड़े हुए. गौंडर गैंग के सारे सदस्य पुलिस की वरदी में आए थे.

नाभा जेल की इस घटना ने यह साबित कर दिया कि पंजाब में सक्रिय क्रिमिनल गैंग कितने खतरनाक हो चुके हैं और वे जैसा कहते हैं, वैसा करने में समर्थ भी हैं. नाभा जेल से अपराधियों को भगाने के मास्टरमाइंड विक्की गौंडर ने इस के बाद विरोधी गैंग के लोगों पर हमले शुरू कर के गैंगवार को और भयानक रूप दे दिया.

सारी कोशिशों के बाद भी पुलिस खतरनाक और तेजतर्रार गैंगस्टरों के सामने असहाय और फिसड्डी साबित हुई. पुलिस की सारी सावधानियां और दावों के बावजूद नाभा जेल से अपराधियों को भगाने के लिए जिम्मेदार गैंगस्टर विक्की गौंडर ने अपने कुछ साथियों के साथ मिल कर 20 अप्रैल, 2017 को गुरदासपुर के गांव कोठे पराला में दुश्मन गैंग के सरगना हरप्रीत उर्फ सूबेदार और उस के 2 साथियों सुखचैन तथा हैप्पी को सरेआम मौत के घाट उतार दिया.crime news

इतना ही नहीं, अपने खूनी कारनामे को महिमामंडित करते हुए इस घटना को फेसबुक पर भी डाला. इस वारदात के बाद पंजाब पुलिस के एक अधिकारी ने स्वीकार किया कि गैंगस्टरों को ले कर पंजाब में स्थिति लगातार गंभीर होती जा रही है और अगर शीघ्र ही इस से निपटा नहीं गया तो पंजाब की शांति को एक बार फिर से खतरा हो सकता है. हिंसा, हिंसा है, यह आप की मर्जी है कि इस पर आतंकवाद का ठप्पा लगाएं या आम अपराध का.

पंजाब में गैंगवार की स्थिति कितनी विस्फोटक और गंभीर हो रही है, इस का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार मकोका की तर्ज पर पकोका कानून बनाने की तैयारी कर रही है. स्मरण रहे कि मकोका की मदद से मुंबई पुलिस को अपराधियों से निपटने में आसानी हुई थी.

पंजाब पुलिस की माने तो इस समय पंजाब में 60 के करीब छोटेबड़े गैंग सक्रिय हैं. इन गैंगों से जुड़े 35 गैंगस्टर को पुलिस बेहद खतरनाक मानती है और शीघ्र ही उन्हें जेल की सलाखों के पीछे देखना चाहती है. गैंगस्टरों को काबू किए बिना नशे के कारोबार पर अंकुश लगाना मुश्किल है.

पंजाब के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की छवि अपराधियों के प्रति कठोर रवैया रखने वाले प्रशासक वाली रही है. हालिया चुनाव उन्होंने पंजाब के लिए नासूर बन चुके नशे के मुद्दे पर जीता है. ऐसे में नशे की समस्या के साथसाथ गैंगस्टरों से भी निपटना उन के लिए दोहरी चुनौती है.   crime news

महिला सुरक्षा और अंधा समाज – भाग 1

29 वर्षीय रति त्रिपाठी जम्मूतवी से इंदौर जाने वाली मालवा ऐक्सप्रैस में दिल्ली से एस-7 कोच में सवार हुई थी. पेशे से दिल्ली के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में काउंसलर रति उज्जैन जा रही थी. मालवा ऐक्सप्रैस तड़के 4 बजे ललितपुर रेलवे स्टेशन पहुंची तो लफंगे से दिखने वाले 2 युवक रति की बर्थ पर आ कर बैठ गए. रति ने एतराज जताया तो दोनों उठ कर चले गए.

रति चादर ओढ़, बेफिक्र हो कर दोबारा सोने का उपक्रम करने लगी पर आरक्षित कोच के यात्रियों की यह परेशानी उस के जेहन में आई कि कैसा महकमा है रेलवे का, जिसे देखो मुंह उठाए घुसा चला आता है और बर्थ पर बैठ जाता है. दूसरे आम लोगों की तरह इस अव्यवस्था पर रति पूरी तरह मन ही मन भुनभुना भी नहीं पाई थी कि दोनों युवक फिर आ धमके. ट्रेन अब तक रफ्तार पकड़ चुकी थी. इस दफा दोनों ने बजाय बैठने के सिरहाने रखा रति का पर्स उठा लिया.

रति ने हिम्मत दिखाते अपना पर्स वापस खींचा तो झूमाझटकी शुरू हो गई. इसी झूमाझटकी में इन मवालियों ने रति को धकियाते हुए उसे दरवाजे के बाहर फेंक दिया और उड़नछू हो गए.

रति जहां गिरी वह बीना के नजदीक करोंद रेलवे स्टेशन था. सुबहसुबह गांव वालों ने पटरियों के किनारे पड़ी इस युवती को देखा तो पुलिस को खबर की. पुलिस आई, रिपोर्ट दर्ज की और रति को इलाज के लिए बीना भेज दिया. बेहोश रति के सिर में गंभीर चोट थी और उस की नाक भी टूट गई थी. हालत गंभीर देख उसे बीना से सागर और फिर वहां से भोपाल रैफर कर दिया गया.

रति की मां मिथ्या त्रिपाठी 20 नवंबर की दोपहर बेटी को लेने उज्जैन स्टेशन पहुंचीं तो वह कोच में नहीं मिली. इस पर स्वाभाविक रूप से वे घबरा उठीं और उतर रहे व एस-7 कोच में बैठे यात्रियों से पूछताछ की तो पता चला रति का झगड़ा और झूमाझटकी ललितपुर स्टेशन के बाद 2 लोगों से हुई थी. तुरंत मिथ्या ने पति व बेटे को मोबाइल फोन से खबर दी. कुछ देर बाद पता चला कि रति भोपाल में अस्पताल में भरती है तो सारे लोग भागेभागे भोपाल गए.

इस बात पर बवंडर मचा पर उस से कुछ हासिल नहीं हुआ और जो हुआ वह बेहद चौंका देने वाला है. चौंका देने वाली बात यह नहीं है कि 2 गुंडों ने चलती ट्रेन से एक युवती को बाहर फेंक दिया. चौंका देने वाली बात यह है कि जब रति अपने व अपने पर्स के बचाव के लिए गुंडों से जूझ रही थी तब उस के आसपास के मुसाफिर चैन की नींद सो रहे थे. इन सो रहे यात्रियों में से कुछ ने उसी नींद में ही इस वारदात का ट्वीट किया था. बड़ी मशक्कत के बाद आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आया.

स्लीपर कोच की बनावट ऐसी होती है कि कोई जोर से छींके तो भी सहयात्रियों को दिक्कत होती है. फिर रति तो 2 गुंडों से उलझ रही थी. जाहिर है यह सब शांतिपूर्वक नहीं हो रहा था, इस में शोर भी मचा था और रति ने चिल्ला कर मदद के लिए गुहार भी लगाई थी. रेलवे के नियमकानूनों के मुताबिक कंडक्टर को कोच में मौजूद होना चाहिए था पर वह नहीं था.

यह कडंक्टर अकसर नहीं मिलता. रात को टिकट देखने के बाद वह दूसरे कंडक्टरों की तरह एसी कोच में जा कर सो गया था. मुसाफिरों की हिफाजत के लिए चलती ट्रेन में ड्यूटी बजाने वाले रेलवे पुलिस के जवान नदारद थे. लिहाजा, हादसा तो होना ही था.

उदासीनता या डर

मुद्दे की बातें कई हैं पर उन में सब से अहम है रति के सहयात्रियों का सोते रहना. वे लोग दरअसल सो नहीं रहे थे बल्कि सोेने का नाटक कर रहे थे. यही आज का हमारा समाज और उस की उदासीनता है कि 2 गुंडे एक लड़की से झूमाझटकी कर रहे हैं तो उसे बचाओ मत, किसी लफड़े में मत पड़ो, लिहाफ ओढ़े सोते रहो और सुबह अपने गंतव्य पर उतर कर घर जाओ.

और फिर चौराहों पर, दफ्तर में, घर में व यारदोस्तों के बीच जहां भी मौका मिले चटखारे लेले कर देश की कानून व्यवस्था, असुरक्षित माहौल और पुलिस को पानी पीपी कर कोसो. साथ ही, खुद को बहस के जरिए बुद्धिजीवी व जागरूक नागरिक साबित करो.

यह वीरों की भूमि और बहादुरों का देश है जहां के मर्द एक लुटती युवती को देख दुबक जाते हैं और इस बुजदिली के पीछे उन की अपनी दलीलें हैं कि कौन बेवजह फसाद में पड़े. पहले गुंडों से पंगा ले कर जान जोखिम में डालो, फिर पुलिसअदालत के चक्कर में पड़ कर वक्त और पैसा जाया करो और हमें इस से मिलना क्या है.

मर्दों के दबदबे वाले हमारे समाज में ‘वाकई कोई मर्द है’ कहने में हिचक महसूस होती है. नामर्द कई हैं, यह कहना कतई शर्म की या घटिया बात नहीं. बातों के बताशों में बहादुरी जताने वाले लोग इतने संवेदनशील और कायर क्यों हैं कि एक लड़की की हिफाजत भी नहीं कर सकते? अगर उस दिन 2 लोग भी अपनी बुजदिली छोड़ कर गुंडों के मुकाबले में रति की मदद करते तो गुंडे दुमदबा कर भागते नजर आते.

जरूरत इस बात की महसूस होने लगी है कि इन और ऐसे लोगों को भी सहअभियुक्त बनाया जाए, सहअभियुक्त उस कंडक्टर और उन रेलवे पुलिसकर्मियों को भी बनाया जाना चाहिए जिन की ड्यूटी थी. सच, कड़वा सच यह है कि पुरुष चाहते हैं कि औरत इसी तरह लुटतीपिटती रहे और बेइज्जत होती रहे.

गैंगस्टरों का खूनी खेल : देश में फैला रहा डर

इसी साल 22 मई की बात है. सुबह के करीब सवा 5 बजे होंगे. श्रीगंगानगर शहर के जवाहरनगर इलाके में मीरा चौक के पास स्थित मेटेलिका जिम के बाहर एक कार आ कर रुकी. इस कार में 5 युवक सवार थे. इन में से 2 युवक कार में ही बैठे रहे और 3 जिम की तरफ बढ़ गए.

जिम का मेनगेट खुला था. तीनों युवक जिम के औफिस में चले गए. जिधर एक्सरसाइज करने की मशीनें लगी हुई थीं, वहां के दरवाजे का लौक बायोमेट्रिक तरीके से बंद था. इस गेट के पास सोफे पर ट्रेनर साजिद सो रहा था. उन तीनों युवकों में से एक युवक ने साजिद को जगाया और उसे पिस्तौल दिखाते हुए गेट खोलने को कहा. साजिद ने मना किया तो उन्होंने उसे जान से मारने की धमकी दी. डर की वजह से घबराए साजिद ने बायोमेट्रिक मशीन में अंगुली लगा कर गेट खोल दिया.

गेट खुलते ही 2 युवक जिम के अंदर घुस गए और तीसरे युवक ने साजिद से उस का मोबाइल छीन कर तोड़ दिया. फिर तीसरा युवक भी जिम में घुस गया. जिम के अंदर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन मशीनों पर एक्सरसाइज कर रहा था. ज्यादा सुबह होने के कारण उस समय जिम में वह अकेला ही था.

जिम में घुसे तीनों युवकों ने पिस्तौलें निकालीं और विनोद को निशाना बना कर दनादन गोलियां दाग दीं. विनोद निहत्था था, उस ने जिम का शीशा तोड़ कर बाहर भागने की कोशिश की, लेकिन वह कामयाब नहीं हो सका.

लगातार गोलियां लगने से विनोद के शरीर से खून बहने लगा और वह छटपटाता हुआ एक तरफ लुढ़क गया. मुश्किल से 8-10 मिनट में विनोद को मौत के घाट उतार कर वे तीनों युवक वहां से चले गए. यह वारदात पुलिस चौकी से मात्र 200 मीटर की दूरी पर हुई थी.

जिम के ट्रेनर साजिद ने विनोद उर्फ जौर्डन की हत्या की सूचना तुरंत पुलिस और अन्य लोगों को दे दी. सूचना मिलने पर पुलिस के अधिकारी मौके पर पहुंच गए. शहर में चारों तरफ नाकेबंदी करा दी गई. जौर्डन की हत्या की खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गई. सैकड़ों लोग मौके पर जमा हो गए.

जौर्डन की हत्या से शहर में दहशत सी फैल गई. इस का कारण यह था कि 36 वर्षीय जौर्डन पर शहर के पुरानी आबादी, कोतवाली, सदर और जवाहरनगर थाने में मारपीट, छीनाझपटी और प्राणघातक हमले के करीब दरजन भर मामले दर्ज थे.

मौके पर पहुंचे पुलिस अधिकारियों ने जांचपड़ताल की. फिर जौर्डन की हत्या के एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी जिम के ट्रेनर साजिद से पूछताछ की. जिम में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाली गई. विधिविज्ञान प्रयोगशाला की टीम भी बुला ली गई. इस टीम ने मौके से गोलियों के खोखे और अन्य साक्ष्य जुटाए. जौर्डन के शरीर पर सिर से पैर तक 15 से ज्यादा गोलियों के निशान थे. जरूरी काररवाई करने के बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए सरकारी अस्पताल भेज दिया.

जौर्डन ने दोस्ती नहीं स्वीकारी तो मिली गोली

जौर्डन के चाचा धर्मपाल ने उसी दिन जवाहरनगर थाने में उस की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इस में बताया कि उस का भतीजा विनोद उर्फ जौर्डन अलसुबह पुरानी आबादी में उदयराम चौक के पास स्थित घर से जिम के लिए निकला था. वह अपने अतीत को भुला कर अब समाजसेवा के काम करता था. अब वह खिलाडि़यों का नेतृत्व करता था और बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाता था.

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जौर्डन को गैंगस्टर लारेंस, अंकित भादू, संपत नेहरा, अमित काजला, आरजू विश्नोई, झींझा और विशाल पचार ने जान से मारने की धमकी दी थी. इस के अलावा श्रीगंगानगर के ही रहने वाले सट्टा किंग राकेश नारंग व करमवीर ने भी उसे चेतावनी दी थी.

धर्मपाल ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जौर्डन ने एक बार मुझे बताया था कि इन लोगों ने उसे मरवाने के लिए 25 से 50 लाख रुपए में गैंगस्टर बुक कर उस की हत्या की सुपारी दे रखी थी.

जौर्डन की हत्या का मामला साफतौर पर अपराधी गिरोहों से जुड़ा हुआ था. इसलिए पुलिस ने सभी पहलुओं को ध्यान में रख कर जांचपड़ताल शुरू की. जांच में यह भी पता चला कि कुख्यात गैंगस्टर श्रीगंगानगर में अपने गैंग को बढ़ाना चाहता था. इस के लिए उस ने जौर्डन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था, लेकिन जौर्डन ने मना कर दिया.

इस बात को ले कर लारेंस उस से रंजिश रखने लगा. लारेंस ने जौर्डन को धमकी भी दी थी. लारेंस अब अजमेर जेल में बंद है. लारेंस गैंग के शूटर संपत नेहरा, अंकित भादू, रविंद्र काली, हरेंद्र जाट आदि ने दहशत पैदा करने के लिए श्रीगंगानगर में नवंबर, 2017 में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की सरेआम गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

इसी 26 जनवरी को श्रीगंगानगर के हिंदूमलकोट बौर्डर पर पंजाब पुलिस ने कुख्यात गैंगस्टर विक्की गोंडर, प्रेमा लाहौरिया समेत 3 बदमाशों का एनकाउंटर किया था. इस के बाद सतर्क हुई श्रीगंगानगर पुलिस ने पंकज सोनी हत्याकांड में 30 जनवरी को लारेंस गिरोह के 2 गुर्गे पकड़े थे.

पुलिस को इन बदमाशों के मोबाइल से अजमेर जेल में बंद गैंगस्टर लारेंस से वाट्सऐप पर हुई चैटिंग की जानकारी मिली. चैटिंग में दोनों गुर्गे हिस्ट्रीशीटर विनोद चौधरी उर्फ जौर्डन की रेकी की सूचनाएं लारेंस को दे रहे थे. इस से पुलिस को इस बात का अंदाजा हो गया था कि लारेंस जौर्डन को मरवाना चाहता था.

इस के बाद श्रीगंगानगर पुलिस ने जौर्डन को बुला कर सतर्क रहने को कहा था. कुछ दिन पहले कुछ लोगों ने भी जौर्डन को संभल कर रहने को कहा था. धमकियां मिलने के बाद जौर्डन काफी सतर्क रहता भी था. वह घटना से करीब 15 दिन पहले से ही जिम जाने लगा था. वह समय बदलबदल कर जिम जाता था.

अपनी कार को भी वह जिम के सामने न खड़ी कर के आसपास खड़ी करता था. लेकिन फिर भी बदमाशों ने उसे मौत के घाट उतार दिया था. इस का मतलब यह था कि कोई न कोई लगातार उस की हरेक गतिविधि पर नजर रखे हुए था.

श्रीगंगानगर में इसी तरह 17 अगस्त, 2016 को जिम में एक युवक की हत्या कर दी गई थी. उस समय पुरानी आबादी स्थित ग्रेट बौडी फिटनेस सेंटर में पुरानी लेबर कालोनी में रहने वाले दीपक उर्फ बिट्टू शर्मा की हत्या की गई थी. दीपक उस दौरान हत्या के प्रयास के मामले में जमानत पर छूटा हुआ था. पुलिस इन सभी बिंदुओं को ध्यान में रख कर जांच करने लगी.

जौर्डन की हत्या वाले दिन ही शाम को उस के घर वाले और रिश्तेदार जवाहरनगर थाने पहुंचे और वहां धरना दे कर बैठ गए. उन्होंने मामले की जांच स्पैशल औपरेशन ग्रुप यानी एसओजी से कराने और हत्यारों को जल्द पकड़ने की मांग की. मांग पूरी नहीं होने तक उन्होंने जौर्डन का शव नहीं लेने की बात कही. पुलिस अधिकारियों ने थाने पहुंच कर उन्हें समझाया और आश्वासन दिया कि जांच एसओजी से करा कर हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इस आश्वासन के बाद ही उन्होंने धरना समाप्त किया.

पंजाब और हरियाणा के बड़े आपराधिक गिरोह के तार जौर्डन की हत्या से जुड़े होने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने कई जगह छापेमारी कर के संदिग्ध लोगों को हिरासत में लिया. कई लोगों से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस को कोई ठोस जानकारी नहीं मिली.

जांच सौंपी गई एसओजी को

दूसरे दिन 23 मई को जौर्डन हत्याकांड की जांच एसओजी को सौंप दी गई. इस के लिए एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन. ने एएसपी संजीव भटनागर के साथ एक टीम का गठन किया.

इस टीम को श्रीगंगानगर पुलिस के साथ समन्वय बना कर अंतरराज्यीय संगठित अपराधी गिरोहों के खिलाफ कड़ी काररवाई के निर्देश दिए गए. इस के साथ यह भी तय किया गया कि इस मामले में पंजाब पुलिस की ओकू (आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट) टीम का भी सहयोग लिया जाएगा. पंजाब की ओकू टीम ने 26 जनवरी को गैंगस्टर विक्की गोंडर व उस के साथियों का एनकाउंटर किया था.

3 डाक्टरों के मैडिकल बोर्ड से पोस्टमार्टम कराने के बाद जौर्डन का शव उस के परिजनों को सौंप दिया गया. पुलिस के पहरे में 4 घंटे तक चले पोस्टमार्टम में पता चला कि जौर्डन को 16 गोलियां लगी थीं. इन में 3 गोलियां उस के सिर, 6 सीने पर, 3 पेट में और 4 गोलियां उस के दोनों हाथों पर लगी थीं. परिजनों ने भारी पुलिस की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार कर दिया.

एसओजी की टीम जयपुर से उसी दिन श्रीगंगानगर पहुंच गई. एसओजी टीम के साथ एसपी हरेंद्र कुमार, एएसपी सुरेंद्र सिंह राठौड़, सीआई नरेंद्र पूनिया व जवाहरनगर थानाप्रभारी प्रशांत कौशिक ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. इस में एसओजी टीम ने कुछ महत्त्वपूर्ण साक्ष्य जुटाए.

सीसीटीवी फुटेज भी देखी. दूसरी ओर श्रीगंगानगर पुलिस ने गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा की तलाश में कई जगह छापे मारे. पुलिस की एक टीम घटनास्थल के आसपास वारदात के समय हुई मोबाइल काल्स खंगालने में जुटी रही.

तीसरे दिन भी श्रीगंगानगर पुलिस की 3 टीमें और एसओजी की टीम अलगअलग तरीके से जांच में जुटी रहीं. पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन अंकित भादू और संपत नेहरा का कोई सुराग नहीं मिला. अलबत्ता जांचपड़ताल में पुलिस को यह जानकारी मिली कि जौर्डन की हत्या के लिए अंकित भादू, संपत नेहरा और उन के साथी 22 मई को सफेद कार से हनुमानगढ़ की तरफ से श्रीगंगानगर में मेटेलिका जिम पहुंचे थे और वारदात के बाद उसी कार से हनुमानगढ़ रोड की ओर भाग गए थे.

सोशल मीडिया पर सक्रिय था गैंगस्टर लारेंस

श्रीगंगानगर पुलिस ने ओकू टीम की मदद से पंजाब में स्टूडेंट आर्गनाइजेशन औफ पंजाब यूनिवर्सिटी यानी सोपू से जुड़े कई युवाओं को भी इस मामले में तलाश किया. दरअसल, पंजाब व चंडीगढ़ इलाके में हजारों युवा सोपू संगठन से जुड़े हुए हैं. इन में चुनाव व सदस्यता को ले कर गुटबाजी भी है. इस में गैंगस्टर लारेंस की गैंग का काफी प्रभाव है. भादू और नेहरा भी इसी संगठन के जरिए लारेंस से जुड़े थे. इसीलिए पुलिस इस संगठन से जुड़े आपराधिक गतिविधियों में लिप्त युवाओं की तलाश कर रही थी.

बीकानेर आईजी विपिन पांडे ने रेंज की पुलिस को भादू और नेहरा को जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए एक्शन मोड पर रहने के निर्देश दे रखे थे.

पुलिस की इन तमाम काररवाइयों के बीच 24 मई को सोशल मीडिया पर यह खबर चलती रही कि हनुमानगढ़ जिले के नोहराभादरा इलाके में राजस्थान पुलिस ने भादू और नेहरा का एनकाउंटर कर दिया है. इस खबर से दिन भर सनसनी फैली रही. एसपी हरेंद्र कुमार ने इन खबरों को अफवाह बताया, तब जा कर इस पर विराम लगा.

एनकाउंटर की अफवाह उड़ने के दूसरे ही दिन 25 मई को लारेंस के गुर्गे अंकित भादू ने अपने फेसबुक अकाउंट को अपडेट करते हुए जौर्डन की हत्या की जिम्मेदारी ली. उस ने फेसबुक पर लिखा कि फेक आईडी बना कर कमेंट कर रहे हो.

एक बाप के हो तो डायरेक्ट मैसेज करो. जौर्डन को चैलेंज कर के ठोक्यो है. जिस को वहम हो, वो अपना मोबाइल नंबर इनबौक्स कर दे और बदला ले ले. यह भी समझना चाहिए कि बाप बाप ही होता है और बेटा बेटा रहता है. रही बात प्रेसीडेंट की तो वह भी खड़ा होगा और जीतेगा भी. जिस मां के लाल में दम हो वो आ जाए. थारो बाप 3 स्टेट पर राज करे है.

फेसबुक पर भादू की ओर से खुला चैलेंज दिए जाने के बाद पुलिस की साइबर सेल ने उस के फालोअर्स और फेसबुक पर भादू की पोस्ट पर कमेंट करने वाले लोगों को तलाशना शुरू कर दिया, ताकि भादू के बारे में सुराग मिल सके. उधर बीकानेर के आईजी विपिन पांडे भी श्रीगंगानगर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया और अधिकारियों की बैठक कर जौर्डन हत्याकांड की पूरी जांच रिपोर्ट ली.

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पकड़े गए कई गुर्गे

छापेमारी के बीच पंजाब की अबोहर पुलिस ने 26 मई, 2018 को लारेंस के 3 गुर्गों को हथियारों सहित पकड़ा. इन में राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के सांगरिया इलाके का अभिषेक गोदारा, हनुमानगढ़ क्षेत्र की नोहर तहसील का विकास सिंह जाट और पंजाब के बल्लुआना क्षेत्र का नरेंद्र सिंह शामिल था.

इन में अभिषेक गैंगस्टर लारेंस की बुआ का बेटा है. वह जोधपुर में एमएससी का छात्र है, लेकिन कुछ समय से श्रीगंगानगर में रह रहा था. राजस्थान पुलिस को शक है कि लारेंस ने जौर्डन की रेकी के लिए अभिषेक को श्रीगंगानगर भेजा था. इसलिए वह किराए के मकान में रह रहा था. श्रीगंगानगर के एसपी हरेंद्र कुमार इन तीनों आरोपियों से पूछताछ के  लिए उसी दिन अबोहर पहुंच गए.

जौर्डन की हत्या के छठे दिन भी पुलिस ने राजस्थान, हरियाणा व पंजाब में कई जगह दबिश डाली लेकिन न तो भादू व नेहरा का पता चला और न ही जौर्डन हत्याकांड के ठोस सुराग मिले. इस दौरान श्रीगंगानगर पुलिस ने शहर में पेइंगगेस्ट हौस्टलों की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

गैंगस्टर लारेंस के गिरोह की बढ़ती वारदातों के सिलसिले में 29 मई को हनुमानगढ़ में एटीएस के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक उमेश मिश्रा की अध्यक्षता में पुलिस की अंतरराज्यीय समन्वय बैठक हुई. इस बैठक में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के पुलिस अफसर शामिल हुए.

इन में राजस्थान से उमेश मिश्रा के अलावा एडीजी राजीव शर्मा, एसओजी के आईजी दिनेश एम.एन., बीकानेर आईजी विपिन पांडे, चुरू एसपी राहुल बारहट, श्रीगंगानगर एसपी हरेंद्र कुमार, हनुमानगढ़ एसपी यादराम फांसल, हरियाणा से सिरसा के एसपी हमीद अख्तर, भिवानी एसपी गंगाराम पूनिया, हांसी एसपी प्रतीक्षा गोदारा आदि मुख्य थे.

बैठक का विषय जौर्डन हत्याकांड पर फोकस रहा. साथ ही तीनों राज्यों की पुलिस के लिए सिरदर्द बने गैंगस्टरों और उन के गुर्गों को पकड़ने तथा उन की आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाने के संबंध में भी फैसले लिए गए.

इस बैठक के दूसरे ही दिन 30 मई, 2018 को अंकित भादू ने अपना फेसबुक अकाउंट अपडेट किया. भादू ने लिखा कि अगर परिस्थितियों पर आप की पकड़ मजबूत है तो जहर उगलने वाले आप का कुछ नहीं बिगाड़ सकते.

31 मई, 2018 को श्रीगंगानगर पुलिस ने पंजाब पुलिस के साथ मिल कर गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के पंजाब स्थित पैतृक गांव दुतारांवाली विश्नोइयान और राजांवाली में छापेमारी की.  11 गाडि़यों में सवार हो कर पहुंचे 90 से ज्यादा पुलिस अधिकारियों व जवानों ने करीब 2 घटे तक सर्च अभियान चलाया. इस के अलावा 2 पुलिस टीमें भादू व नेहरा की तलाश में जुटी रहीं.

श्रीगंगानगर में चल रही जांचपड़ताल में पुलिस को पता चला कि जौर्डन की हत्या से पहले उस की रेकी की गई थी. पुलिस ने जौर्डन की रेकी करने के मामले में एक नाबालिग किशोर को 3 जून को जयपुर से पकड़ लिया. इस किशोर ने ही जौर्डन के घर से निकल कर जिम जाने की सूचना हत्यारों को दी थी. वह करीब एक साल से अंकित भादू के गिरोह से जुड़ा हुआ था और उस से कई बार मिल भी चुका था.

किशोरों को बनाया जाता था सहायक

यह किशोर श्रीगंगानगर के पुरानी आबादी इलाके का रहने वाला था. जौर्डन भी इसी इलाके का रहने वाला था. पूछताछ और घटनास्थल का सत्यापन कराने के बाद इस किशोर को निरुद्ध कर बाल न्यायालय में पेश कर सुधारगृह भेज दिया गया. 12वीं में पढ़ रहे इस किशोर ने पुलिस पूछताछ में गिरोह से जुड़े श्रीगंगानगर के रहने वाले कुछ सक्रिय सदस्यों के नाम भी बताए.

इस किशोर के पकडे़ जाने से पुलिस अधिकारियों के सामने यह बात आई कि गैंगस्टर कम उम्र के युवाओं व नाबालिगों को ग्लैमर दिखा कर अपने जाल में फांस लेते हैं और उन को संगठन से जोड़ कर पदाधिकारी बना देते हैं. इस के बाद उन को किसी काम का जिम्मा सौंप देते हैं. कम उम्र के युवा सही व गलत का अंदाज नहीं लगा पाते.

पुलिस ने बाद में सोपू संगठन से जुड़े 3 पदाधिकारियों सहित 5 युवाओं को गिरफ्तार कर भविष्य में इस संगठन से न जुड़ने की पाबंदी लगा दी. बाद में इन को जमानत पर छोड़ दिया गया. इन युवकों के परिजनों को भी उन पर नजर रखने की हिदायत दी गई.

एक तरफ पुलिस भादू और नेहरा की तलाश में जुटी थी, दूसरी तरफ 4 जून को एक नया मामला सामने आ गया. गैंगस्टर अंकित भादू और संपत नेहरा के नाम से श्रीगंगानगर के कांग्रेसी नेता जयदीप बिहाड़ी व अरोड़वंश ट्रस्ट के पूर्व अध्यक्ष जोगेंद्र बजाज को वाट्सऐप काल कर 25 लाख रुपए की रंगदारी मांगी गई.

धमकियां मिलने से सहमे व्यापारियों के प्रतिनिधि मंडल ने एसपी से मुलाकात कर सुरक्षा मांगी. जिस मेटेलिका जिम में जौर्डन की हत्या की गई, उस जिम में जोगेंद्र बजाज का बेटा साझेदार था. धमकी मिलने पर बजाज के घर पर पुलिस तैनात कर दी गई. श्रीगंगानगर कोतवाली में बजाज को धमकी देने और रंगदारी मांगने के मामले में रिपोर्ट दर्ज की गई.

कांग्रेस नेता जयदीप बिहाणी के पास 5 जून को इंटरनेशनल नंबर से दोबारा काल आई. हालांकि बिहाड़ी ने वह काल रिसीव नहीं की. विशेषज्ञों का मानना है कि धमकी देने वाला लैपटाप या मोबाइल ऐप का इस्तेमाल कर काल कर रहा था. इस ऐप से जिस के पास काल आती है, उस के मोबाइल स्क्रीन पर इंटरनेशनल नंबर प्रदर्शित होते हैं.

गर्लफ्रैंड के चक्कर में पकड़ा गया संपत नेहरा

5 जून को आधी रात के बाद हरियाणा एसटीएफ की टीम ने जौर्डन की हत्या और व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगने के आरोपी गैंगस्टर संपत नेहरा को आंध्र प्रदेश में दबोचने में सफलता हासिल कर ली. वह हैदराबाद की मइयापुर कालोनी के एक कौंप्लेक्स में छिपा हुआ था. पुलिस को उस के पास से अत्याधुनिक हथियार भी मिले. संपत नेहरा पर पंजाब पुलिस ने 5 लाख और हरियाणा पुलिस ने 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर रखा था.

संपत नेहरा अपनी प्रेमिका को फोन करने के चक्कर में हरियाणा पुलिस के जाल में फंस गया. वह हिसार में रहने वाली अपनी प्रेमिका को फोन करता था. हरियाणा की एसटीएफ कई दिनों से उस की प्रेमिका की काल टेप कर रही थी. प्रेमिका का फोन टेप करने के दौरान ही पुलिस को संपत की लोकेशन की जानकारी मिल गई. इसी आधार पर पुलिस ने हैदराबाद में छापेमारी कर संपत को धर दबोचा.

संपत के पकड़े जाने पर उस की फेसबुक भी अपडेट होती रही. इस में समर्थकों ने पोस्ट डाल कर संपत की गिरफ्तारी की पुष्टि की. फेसबुक पोस्ट में कहा गया कि अपने भाई संपत नेहरा को हरियाणा पुलिस ने आंध्र प्रदेश से सहीसलामत पकड़ा है. उस के साथ पुलिस कुछ नाजायज कर सकती है. उस का एनकाउंटर भी किया जा सकता है.

मूलरूप से चंडीगढ़ का रहने वाला संपत नेहरा चंडीगढ़ पुलिस के ही एक जवान का बेटा है. वह 100 मीटर बाधा दौड़ का स्टेट लेवल का खिलाड़ी रहा है. चंडीगढ़ में पढ़ते हुए उस ने पंजाब के गैंगस्टर लारेंस विश्नोई के साथ मिल कर 3 राज्यों पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में आतंक फैला रखा था. उस के खिलाफ लूट, फिरौती, सुपारी ले कर हत्या करने और हत्या के प्रयास जैसे कई संगीन मामले दर्ज हैं.

पंजाब में जब आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्रोल यूनिट (ओकू) बनी और गैंगस्टरों की धरपकड़ शुरू हुई तो फरीदकोट जेल में बंद लारेंस ने अपने शूटर संपत नेहरा, रविंद्र काली और हरेंद्र जाट के माध्यम से राजस्थान के जोधपुर में व्यापारियों को धमका कर रंगदारी मांगनी शुरू कर दी थी. गतवर्ष लारेंस के इशारे पर संपत, काली व हरेंद्र ने जोधपुर में व्यवसायी वासुदेव असरानी की हत्या कर दी थी. पिछले एक साल में इस गिरोह ने 5 हत्याएं कीं.

जून 2017 में संपत ने पंजाब के कोटकपुरा में लवी दचौड़ा नामक युवक की सरेआम गोलियां मार कर हत्या की थी. सीकर के पास एक पूर्व सरपंच की हत्या भी संपत ने ही की थी. पिछले साल 6 दिसंबर को उस ने श्रीगंगानगर में पुलिस इंसपेक्टर भूपेंद्र सोनी के भांजे पंकज सोनी की हत्या कर के सोनेचांदी के गहने और पौने 2 लाख रुपए लूट लिए थे.

पिछले साल ही 25 दिसंबर को उसी ने गुड़गांव में पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह के विधायक बेटे जगत सिंह की फार्च्युनर गाड़ी लूटी. इसी गाड़ी में सवार हो कर 17 जनवरी, 2018 को उस ने चुरू जिले के सादुलपुर में कोर्ट के अंदर गैंगस्टर अजय जैतपुरा की गोलियां मार कर हत्या कर दी थी.

संपत के खिलाफ हिसार में शराब ठेकेदार जयसिंह उर्फ धौलिया गुर्जर की गोली मार कर हत्या करने और संपत के इशारे पर उस के गुर्गों द्वारा बालरोग विशेषज्ञ डा. राजेश गुप्ता का पिस्तौल के बल पर अपहरण कर होंडा सिटी कार लूटने का मामला दर्ज है. हरियाणा में हत्या की 3 और लूट की 8 वारदातों के मामले दर्ज हैं.

सलमान खान को भी दी थी धमकी

गैंगस्टर लारेंस ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को भी जोधपुर में मारने की धमकी दी थी. इसी तरह की खौफनाक वारदातों के दम पर डरा कर लारेंस का गिरोह व्यापारियों से रंगदारी वसूलता रहा. वासुदेव हत्याकांड में पूछताछ के लिए पुलिस लारेंस को पंजाब से जोधपुर ले गई थी. बाद में उसे अजमेर जेल में शिफ्ट कर दिया गया. आजकल लारेंस अजमेर जेल से ही अपने गैंग को औपरेट कर रहा है. उस के गिरोह में संपत नेहरा के अलावा अंकित भादू, काली, हरेंद्र आदि मुख्य हैं.

आरोप है कि संपत नेहरा ने श्रीगंगानगर के करीब 15 व्यापारियों से वाट्सऐप कालिंग कर के रंगदारी मांगी थी. इन में से 4 व्यापारियों ने उस तक रकम पहुंचा भी दी थी. पुलिस अब ऐसे व्यापारियों का पता लगा रही है, जिन्होंने संपत को रकम दी थी.

संपत की गिरफ्तारी के 2 दिन बाद ही 8 जून को कांग्रेस नेता और बिहाणी शिक्षा न्यास के अध्यक्ष जयदीप बिहाणी को धमकी भरा वाट्सऐप मैसेज आया. इस में कहा गया कि पुलिस उन की कितने दिन सुरक्षा करेगी. फिरौती के 50 लाख रुपए नहीं दिए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. पुलिस इस मामले की भी जांचपड़ताल करने लगी.

इस बीच श्रीगंगानगर पुलिस ने रिडमलसर निवासी हिमांशु खींचड़ उर्फ काका पिस्तौली को 7 जून को गिरफ्तार कर लिया. उस पर गैंगस्टरों का सहयोग करने और उन्हें शरण देने का आरोप है. वह ग्रैजुएट है और सोपू का सदस्य भी है. उस के पास अंतरराष्ट्रीय सिमकार्ड भी मिला.

श्रीगंगानगर पुलिस संपत नेहरा को हरियाणा से प्रोडक्शन वारंट पर ला कर पूछताछ करेगी. पुलिस का मानना है कि जौर्डन की हत्या में शामिल अंकित भादू और उस के बाकी साथी भी जल्दी ही सींखचों के पीछे होंगे.

संगीन विश्वासघात : बेटी जैसी लड़की को बनाया शिकार – भाग 1

28 सितंबर, 2017 को जिला गुरदासपुर के गांव मिताली के रहने वाले रंजीत सिंह की विधवा जसविंदर कौर ने एसएसपी हरचरण सिंह भुल्लर को एक शिकायत दी थी, जिस में उस ने जो लिखा था, वह कुछ इस प्रकार था—

2 बच्चों की मां जसविंदर कौर के पति रंजीत सिंह पंजाब पुलिस में थे, जिन की अप्रैल, 2008 में अचानक मौत हो गई थी. जसविंदर पढ़ीलिखी थी, इसलिए अनुकंपा के आधार पर उसे पति की जगह नौकरी मिल जानी चाहिए थी. इस के लिए उस ने काफी कोशिश की, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल सकी. किसी ने जसविंदर कौर को सलाह दी कि इस तरह कुछ नहीं होना. अगर वह किसी मंत्री या बड़े नेता से कहलवा दे तो उस का काम आसानी से हो जाएगा. जसविंदर को याद आया कि उस की एक सहपाठिन के पिता बड़े नेता हैं. वह राज्य सरकार में मंत्री भी हैं. जसविंदर जा कर उन से मिली. यह सन 2009 के शुरू की बात है.

जसविंदर कौर ने मंत्री महोदय से पूरी बात बता कर यह भी बताया कि उन की बेटी कालेज में उस के साथ पढ़ती थी. मंत्री महोदय ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए हरसंभव मदद का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि उन के लिए यह काम जरा भी मुश्किल नहीं है.

यह मंत्री महोदय कोई और नहीं, सरदार सुच्चा सिंह लंगाह थे, जिन से जसविंदर कौरगुरदासपुर पंजाब चंडीगढ़ स्थित उन के सरकारी आवास पर अपने घर वालों के साथ मिली थी. लंगाह ने जसविंदर को काम कराने का आश्वासन देते हुए 2-3 दिनों बाद अकेली किसान भवन में आ कर मिलने को कहा. आने से पहले फोन कर लेने की बात कहते हुए उन्होंने उसे अपना मोबाइल नंबर भी दे दिया था.

2 दिनों बाद जसविंदर कौर ने मंत्री सुच्चा सिंह लंगाह को फोन किया तो उन्होंने उसे अगले दिन दोपहर को किसान भवन आने को कहा, साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वह वहां अकेली ही आएगी. जसविंदर कौर ने वैसा ही किया. अगले दिन दोपहर को वह अकेली ही चंडीगढ़ के सैक्टर-35 स्थित किसान भवन पहुंच गई. वहां ठहरने के लिए होटलों की तरह हर सुखसुविधा वाले कमरे बने हैं. इन्हीं कमरों में से एक कमरे में लंगाह आराम कर रहे थे. उन्होंने जसविंदर को अपने कमरे में बुलवा लिया.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में लंगाह पर जो आरोप लगाए हैं, उस के अनुसार वह किसान भवन के उस कमरे में पहुंची तो मंत्री सुच्चा सिंह उसे अपनी बगल में बिठा कर उस के साथ अश्लील हरकतें करने लगा. इस से जसविंदर बुरी तरह डर गई.

उस ने लंगाह को रोकने की कोशिश करते हुए कहा, ‘‘अंकल, मैं आप की बेटी सरबजीत कौर के साथ बेबे नानकी कालेज में पढ़ी हूं. इस नाते मैं आप की बेटी की तरह हूं. आप को अपने पिता की तरह मान कर मैं आप के पास मदद के लिए आई हूं. आप मुझ पर रहम करें. मैं विधवा हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. प्लीज, मुझे जाने दीजिए.’’

जसविंदर के अनुसार, इस चिरौरी का सुच्चा सिंह लंगाह पर कोई असर नहीं हुआ. पहले तो उस ने अपनी ऊंची पहुंच के बारे में बताते हुए उसे जल्दी सरकारी नौकरी दिलवाने का लालच दिया. लेकिन जसविंदर काबू में नहीं आई तो उस ने उसे धमकी दी कि वह चाहे तो उसे अभी किसी केस में फंसा कर उस की जिंदगी बरबाद कर सकता है. इस के बाद उस ने जबरदस्ती जसविंदर की अस्मत लूट ली.

जसविंदर ने अपनी शिकायत में आगे लिखा है कि सुच्चा सिंह लंगाह का रुतबा देख कर वह डर के मारे चुप रह गई. बस पकड़ कर वह अपने गांव लौट आई. इस बारे में उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. फिर वह एक लाचार विधवा औरत थी, जिस के लिए अपने बच्चों को पालने की खातिर नौकरी बहुत जरूरी थी.

यही वजह थी कि इज्जत लुटने के बाद भी जसविंदर लंगाह से संबंध तोड़ नहीं सकी. वह उसे फोन कर के अपने काम के बारे में पूछती रहती. उन का एक ही जवाब होता था कि वह कोशिश कर रहा है कि उस का काम जल्दी हो जाए.

एक बार लंगाह ने बीएमडब्ल्यू कार भेज कर जसविंदर कौर को पंजाब सिविल सेक्रेटेरिएट स्थित अपने औफिस में बुलवाया और उस के सामने ही किसी बड़े पुलिस अफसर को फोन कर के कहा कि वह जसविंदर को उस के पास भेज रहे हैं, उस का काम किसी भी सूरत में आज ही हो जाना चाहिए. इस के बाद लंगाह ने जसविंदर को अपने एक आदमी के साथ उस पुलिस अधिकारी के पास भेज दिया.

पुलिस अधिकारी भला आदमी था, उस ने उसी दिन नियुक्तिपत्र जारी करवा दिया. इस तरह जसविंदर को स्टेट विजिलेंस विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गई. नौकरी पा कर जसविंदर कौर बहुत खुश थी. वह लंगाह को धन्यवाद देने भी गई.

जसविंदर की मजबूरी का फायदा उठाते हुए लंगाह ने एक बार नहीं, कई बार शारीरिक शोषण किया. उस दिन भी वह उसे यह कहते हुए एक जगह ले जा कर वही सब किया कि अभी उस की नौकरी कच्ची है, जल्दी वह उसे पक्की करवा देगा.

डराधमका कर मंत्रीजी करते रहे उस का यौनशोषण

इस के बाद सुच्चा सिंह लंगाह जसविंदर से यह कहने लगा कि उस ने कई लोगों को एजेंसियां दिलवाई हैं, जो हर महीने लाखों रुपए कमा रहे हैं. वह चाहे तो उस के परिवार के किसी सदस्य के नाम एजेंसी दिलवा सकता है, जिस के माध्यम से वह मोटी कमाई कर सकती है. इस तरह की बातें करते हुए अकसर वह कुछ ऐसी बातें कह देते थे, जिस से जसविंदर इतना डर जाती कि उसे अपनी मौत का अहसास होने लगता था.

बेखौफ गैंगस्टर : दो पुलिस अफसरों की हत्या

पंजाब का लुधियाना शहर हौजरी और गर्म कपड़ों के थोक व्यापार के लिए पूरे भारत में जाना जाता है. लुधियाना और उस के आसपास गर्म कपड़े बनाने के सैकड़ों छोटेबड़े उद्योग हैं. हर साल सर्दियों की शुरुआत से पहले ही खरीदारी के लिए यहां देश भर के व्यापारी आते हैं. इसी लुधियाना शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर एक शहर जगराओं है.

इसी साल 15 मई की बात है. पुलिस के सीआईए स्टाफ के एएसआई दलविंदर सिंह और भगवान सिंह को शाम को करीब 6 बजे सूचना मिली कि जगराओं की नई दाना मंडी में एक ट्र्रक में नशे की बड़ी खेप आई है. इस सूचना पर दोनों एएसआई एक होमगार्ड जवान राजविंदर के साथ अपनी निजी स्विफ्ट कार से मौके पर रवाना हो गए.

15-20 मिनट बाद जब वह वहां पहुंचे तो उन्होंने वहां एक कैंटर ट्र्रक खड़ा देखा. पुलिस वाले अपनी गाड़ी एक तरफ साइड में खड़ी कर उस ट्र्रक के पास पहुंचे और आसपास खड़े लोगों से पूछताछ करने लगे.

वहां मौजूद लोगों से उन्हें कुछ पता नहीं चला, तो एएसआई भगवान सिंह ट्र्रक में आगे बने ड्राइवर केबिन में चढ़ गए. भगवान सिंह ने ट्र्रक में ड्राइविंग सीट पर बैठे शख्स को पहचान लिया. उसे देखते ही बोले, ‘‘ओए पुत्तर, तू तो जयपाल भुल्लर है.’’

वह शख्स भी भगवान सिंह की बात सुन कर समझ गया कि यह पुलिसवाला है. उस ने फुरती से अपने कपड़ों में से पिस्तौल निकाली और उस की कनपटी पर गोलियां मार दीं. गोलियां लगने से भगवान सिंह ट्र्रक से नीचे गिर गए. उन के सिर से खून बह निकला. गोली की आवाज सुन कर ट्र्रक के पास खड़े दूसरे एएसआई दलविंदर सिंह तेजी से ट्र्रक में चढ़ने लगे, तो पास में खड़ी एक आई-10 कार में सवार कुछ लोग बाहर निकल आए.

वे लोग उन पुलिस वालों से मारपीट करने लगे. मारपीट के दौरान एक शख्स ने दलविंदर सिंह को भी गोली मार दी. गोली लगने से वह भी लहूलुहान हो गए. इस के बाद भी बदमाश नहीं रुके बल्कि दलविंदर और होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से मारपीट करते रहे. राजविंदर जैसेतैसे बदमाशों से अपनी जान बचा कर भाग निकला.

जब यह घटनाक्रम चल रहा था तो मंडी में कुछ युवक क्रिकेट खेल रहे थे. उन युवकों ने गोलियां चलने की आवाज सुनी तो वे वीडियो बनाने लगे और बदमाशों को पकड़ने के लिए दौड़े. इस पर बदमाशों ने गोलियां चला कर उन युवकों को धमकाया.

उन युवकों के डर कर रुक जाने पर बदमाशों ने ट्र्रक से सामान निकाल कर अपनी आई-10 कार में रखा. इस के बाद बदमाशों ने वहां लहूलुहान पड़े पुलिस के दोनों अधिकारियों की पिस्तौलें निकालीं और उस ट्र्रक व कार में सवार हो कर भाग गए.

पुलिस के दोनों एएसआई गोलियां लगने से तड़प रहे थे. बदमाशों के भागने के बाद वहां लोगों की भीड़ जुट गई. पुलिस को सूचना दी गई. पुलिस ने घायल पड़े दोनों एएसआई को अस्पताल पहुंचाया, जहां डाक्टरों ने दोनों को मृत घोषित कर दिया.

सरेआम दिनदहाड़े पुलिस के 2 अधिकारियों की गोलियां मार कर हत्या कर देने की घटना से पूरे शहर और आसपास के इलाकों में सनसनी फैल गई. अफसरों ने पहुंच कर मौकामुआयना किया. जांच शुरू कर दी गई. बदमाशों की तलाश में शहर के सभी रास्तों पर नाके लगा दिए. पूरे पंजाब में रेड अलर्ट जारी कर दिया गया.

बदमाशों की तलाश में भागदौड़ कर रही पुलिस को कुछ ही देर बाद मोगा रोड पर एक ढाबे के बाहर वह ट्र्रक खड़ा मिल गया, जिसे बदमाश भगा ले गए थे. ट्र्रक में अफीम और चिट्टा बरामद हुआ. ट्र्रक के पिछले हिस्से में तलाशी के दौरान पुलिस को कई ब्रांडेड कपड़े मिले. इस से यह अंदाज लगाया गया कि ट्र्रक में कई लोग सवार थे. पुलिस ने वह ट्र्रक जब्त कर लिया.

ट्र्रक के नंबर की जांचपड़ताल की, तो वह फरजी निकला. यह नंबर फरीदकोट के एक जमींदार की मर्सिडीज कार का निकला. जांच में पता चला कि यह ट्र्रक मोगा के गांव धल्ले के रहने वाले एक शख्स के नाम पर था. उस ने ट्र्रक दूसरे को बेच दिया. इस के बाद भी यह ट्र्रक 2 बार आगे बिकता रहा.

पुलिस अधिकारियों ने बदमाशों के चंगुल से जान बचा कर भागे होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह से पूछताछ की तो पता चला कि ड्रग्स की सूचना पर वे मौके पर गए थे. वहां ट्र्रक की चैकिंग के दौरान एएसआई भगवान सिंह ने जयपाल भुल्लर को पहचान लिया था. इस पर जयपाल ने उसे गोलियां मार दी थीं.

बाद में एएसआई दलविंदर आगे बढ़े तो जयपाल के साथी बदमाशों ने उन पर भी गोलियां चला दीं. होमगार्ड जवान राजविंदर सिंह के परचा बयान पर पुलिस ने जयपाल भुल्लर और उस के साथियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया.  दूसरे दिन पुलिस ने दोनों शहीद एएसआई भगवान सिंह और दलविंदर सिंह के शवों का पोस्टमार्टम कराया. इस के बाद शव उन के घरवालों को सौंप दिए. दलविंदर का शव

उन के घर वाले अपने पैतृक गांव तरनतारन ले गए.

भगवान सिंह का अंतिम संस्कार जगराओं में शेरपुरा रोड पर राजकीय सम्मान से किया गया. उन के 11 साल के बेटे ने मुखाग्नि दी. भगवान सिंह के अंतिम संस्कार में डीजीपी (रेलवे) संजीव कालड़ा, आईजी नौनिहाल सिंह, डीसी वरिंदर शर्मा आदि मौजूद रहे. डीजीपी ने ट्वीट कर दोनों शहीद पुलिसकर्मियों के परिवार वालों को एकएक करोड़ रुपए और आश्रित को नौकरी देने का ऐलान किया.

पुलिस ने जांचपड़ताल के लिए मौके के आसपास और बदमाशों के भागने के रास्तों की सीसीटीवी फुटेज देखी. इन से साफ हो गया कि दोनों पुलिसकर्मियों की हत्या कुख्यात गैंगस्टर जयपाल भुल्लर और उस के साथियों ने की थी.

पुलिस ने जयपाल के 3 साथियों की पहचान खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह जस्सी, लुधियाना के सहोली निवासी दर्शन सिंह और मोगा के माहला खुर्द निवासी बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी के रूप में की.

हमलावरों पर किया ईनाम घोषित

जगराओं पुलिस ने इन चारों के पोस्टर जारी कर ईनाम भी घोषित कर दिया. पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता ने जयपाल पर 10 लाख रुपए, बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी पर 5 लाख रुपए, जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी और दर्शन सिंह पर 2-2 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया.

जयपाल भुल्लर का नाम पंजाब पुलिस के लिए नया नहीं है. पुलिस का हर नयापुराना मुलाजिम उस के नाम से परिचित है. जयपाल पर हत्या, अपहरण, डकैती, तसकरी, फिरौती आदि संगीन अपराधों के 45 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. बलजिंदर उर्फ बब्बी के खिलाफ हत्या का केस दर्ज है. जस्सी और दर्शन कुख्यात तसकर हैं. जयपाल पंजाब सहित कई राज्यों का मोस्टवांटेड अपराधी है.

जयपाल का दोनों एएसआई की हत्या की वारदात से 5 दिन पहले ही पुलिस से आमनासामना हुआ था. 10 मई को लुधियाना के दोराहा में जीटी रोड पर नाकेबंदी के दौरान पुलिस ने कार में सवार 2 युवकों को रोका था. चैकिंग के दौरान बहसबाजी होने पर दोनों युवकों ने वहां तैनात एएसआई सुखदेव सिंह और हवलदार सुखजीत सिंह को हमला कर घायल कर दिया था. बाद में दोनों युवक कार से भाग गए थे.

हुलिया बदलने में माहिर था जयपाल

भागते समय ये युवक एएसआई सुखदेव सिंह से पिस्तौल भी छीन ले गए थे. पुलिस वालों से मारपीट करने वाले दोनों युवक करीब 25-30 साल के पगड़ीधारी सिख थे. उन्होंने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. हाथापाई के दौरान एक युवक का पर्स गिर गया था. इस पर्स में गुरप्रीत सिंह के नाम से ड्राइविंग लाइसैंस मिला था.

पुलिस को बाद में जांच में पता चला कि इस घटना में हमलावरों में एक युवक जयपाल था. पर्स भी उसी का गिरा था. पर्स में मिले ड्राइविंग लाइसैंस पर फोटो जयपाल की लगी थी, लेकिन फरजी नाम गुरप्रीत सिंह लिखा हुआ था.

खास बात यह थी कि जगराओं में दोनों एएसआई की हत्या की वारदात के वक्त जयपाल क्लीन शेव था. यानी उस ने 5 दिन में ही अपना हुलिया बदल लिया था. वह बारबार हुलिया बदल कर ही पुलिस को चकमा देता रहता था.

पुलिस ने जयपाल और उस के साथियों की तलाश में छापे मारे, तो पता चला कि गैंगस्टर जयपाल भुल्लर जोधां के गांव सहोली में अपने साथी कुख्यात तसकर दर्शन सिंह के खेतों में पिछले डेढ़ महीने से रहा था. दोराहा नाके पर हुई घटना से पहले वह केशधारी सरदार के रूप में रहता था. बाद में उस ने अपना रूप बदल कर चेहरा क्लीन शेव कर लिया.

जयपाल की तलाश में पुलिस ने सर्च अभियान शुरू किया. पुलिस को इनपुट मिले थे कि वारदात से पहले और बाद में जयपाल लुधियाना के आसपास के गांवों में आताजाता रहा है. इन गांवों में उस के ठिकाने हैं.

इसे देखते हुए 17 मई को एडिशनल डीपीसी जसकिरणजीत सिंह तेजा, एसीपी जश्नदीप सिंह और डेहलो थानाप्रभारी सुखदेह सिंह बराड़ के नेतृत्व में पुलिस ने करीब डेढ़ दरजन गांवों में एकएक घर की तलाशी ली. इस दौरान किराएदारों का भी रिकौर्ड जुटाया गया.

दूसरी ओर, कुछ सूचनाओं के आधार पर लुधियाना और जगराओं पुलिस ने चंडीगढ़ में छापे मारे. इन छापों में कुछ लोगों को हिरासत में लिया गया. इन लोगों से पता चला कि जयपाल फरजी ड्राइविंग लाइसैंस दिखा कर कई महीने तक चंडीगढ़ में एक एनआरआई के मकान में किराए पर भी रहा था.

जयपाल के छिपने के ठिकानों का पता लगाने के लिए पुलिस की आर्गनाइज्ड क्राइम कंट्र्रोल यूनिट (ओक्कू) टीम ने उस के भाई अमृतपाल को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया. उस से पूछताछ की, लेकिन कोई पते की बात मालूम नहीं हो सकी. बाद में पुलिस ने उसे वापस जेल भेज दिया.

बदमाशों की तलाश में पुलिस ने लुधियाना, अमृतसर और मालेरकोटला सहित कई शहरों में छापे मारे और कई लोगों से पूछताछ की. विभिन्न जेलों में बंद जयपाल के साथियों से भी पूछताछ की.

इन में पता चला कि दोनों पुलिस मुलाजिमों की हत्या की वारदात तक जयपाल करीब 6 महीने से जगराओं के गांव कोठे बग्गू में किराए के मकान में रह रहा था. वह इसी मकान से नशीले पदार्थों की तसकरी का धंधा चला रहा था.

पुलिस ने 19 मई, 2021 को जयपाल के साथी ईनामी बदमाश दर्शन सिंह के मकान की तलाशी ली. इस में जिम की एक किट बरामद हुई. इस किट में हथियार और 300 कारतूस मिले.

इस के अलावा अलगअलग वाहनों की 8-10 आरसी भी मिलीं. ये आरसी उन वाहनों की थीं, जो हाईवे पर लूटे या चोरी किए

गए थे. पुलिस ने दर्शन सिंह की पत्नी सतपाल कौर को हिरासत में ले कर उस से पूछताछ की. 8 राज्यों की पुलिस जुटी तलाश में   पुलिस ने पंजाब और राजस्थान के उस के छिपने के संभावित ठिकानों पर भी छापे मारे. इस के अलावा ओक्कू टीम ने जयपाल के साथी गगनदीप जज को बठिंडा जेल से प्रोडक्शन वारंट पर हासिल किया.

गगनदीप ने जयपाल के साथ मिल कर फरवरी 2020 में लुधियाना में एक कंपनी से 32 किलोग्राम सोना लूटा था. गगनदीप को जयपाल के लगभग हर राज पता थे. इसी उम्मीद में उस से पूछताछ की गई, लेकिन पुलिस उस से भी कुछ नहीं उगलवा सकी. गगन से मिली कुछ जानकारियों के आधार पर पुलिस ने जयपाल की तलाश में उत्तर प्रदेश और राजस्थान के 8-10 गांवों में छापे मारे, लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ.

2 पुलिसकर्मियों की हत्या की वारदात के एक सप्ताह बाद भी जयपाल और उस के साथियों का कोई सुराग नहीं मिलने पर पंजाब पुलिस ने अन्य राज्यों की पुलिस से संपर्क किया. इस के बाद 8 राज्यों की पुलिस की कोऔर्डिनेशन टीम बनाई गई. इस में पंजाब के अलावा हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के चुनिंदा पुलिस अफसरों को शामिल किया गया.

जयपाल के साथ फरार उस के साथी खरड़ निवासी जसप्रीत सिंह उर्फ जस्सी की पत्नी लवप्रीत कौर को मोहाली की सोहाना थाना पुलिस ने 20 मई को गिरफ्तार कर लिया. मोहाली में पूर्वा अपार्टमेंट में उस के फ्लैट से करीब 8 बैंकों की पासबुक और दूसरे अहम दस्तावेज मिले. पुलिस ने बैंकों से स्टेटमेंट निकलवाई, तो पता चला कि इन खातों में करोड़ों रुपए का लेनदेन हो रहा था.

कहा जाता है कि लवप्रीत इस फ्लैट में अकेली रहती थी जबकि उस की ससुराल खरड़ गांव में है.

लोगों को गुमराह करने के लिए जसप्रीत उस से अलग रहता था, लेकिन असल में उस का पत्नी लवप्रीत से लगातार संपर्क था. वह इसी फ्लैट में आ कर पत्नी से मिलता था.

लगातार चल रहे तलाशी अभियान के दौरान पुलिस ने जयपाल को शरण देने और उस की मदद करने वाले 5 लोगों को 21 मई को गिरफ्तार कर लिया. इन से कई हथियार और कारतूसों के अलावा 29 वाहनों की फरजी आरसी, 8 खाली आरसी कार्ड, टेलीस्कोप, पंप एक्शन गन आदि भी बरामद हुए.

गिरफ्तार आरोपियों में कैंटर मालिक मोगा के गांव धल्ले का रहने वाला गुरुप्रीत सिंह उर्फ लक्की और उस की पत्नी रमनदीप कौर, दर्शन सिंह का दोस्त सहोली गांव निवासी गगनदीप सिंह, जगराओं के आत्मनगर का रहने वाला जसप्रीत सिंह और सहोली गांव के रहने वाले नानक चंद धोलू शामिल रहे.

इन से पूछताछ में पता चला कि जयपाल और उस के साथी गाडि़यां लूटने और चोरी करने के बाद उन की फरजी आरसी और नंबर प्लेट तैयार करते थे. फरजी आरसी तैयार करने के लिए उन्होंने एक माइक्रो मशीन ले रखी थी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने जयपाल और जसप्रीत सिंह के सोशल मीडिया अकाउंट ब्लौक करवा दिए. पता चला था कि ये बदमाश अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए युवाओं को जोड़ते और गैंग में शामिल होने के लिए तैयार करते थे.फिरोजपुर निवासी जयपाल भुल्लर पंजाब ही नहीं कई राज्यों में खौफ का पर्यायवाची नाम है. जिस जयपाल के पीछे 8 राज्यों की पुलिस लगी हुई थी, उस जयपाल के पिता भूपिंदर सिंह पंजाब पुलिस में इंसपेक्टर थे. कहा जाता है कि पिता के कारण ही जयपाल के पुलिस महकमे में कई मुलाजिम अच्छे जानकार हैं. इसलिए वह पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहता था.

पुलिस को जांच में यह भी पता लग गया था कि इस वारदात में जयपाल और उस का साथी जस्सी शामिल था. इसी का नतीजा रहा कि जयपाल ने 5 दिन बाद ही 15 मई को जगराओं में 2 एएसआई को मौत की नींद सुला दिया.

बदमाश दर्शन सिंह कुख्यात तसकर है. उस के खिलाफ भी कई मामले दर्ज हैं. उस के नजदीकी रिश्तेदार पंजाब पुलिस में एसपी के पद पर हैं. दर्शन सिंह जेल भी जा चुका है.

करीब 5 साल पहले हत्या के मामले में अच्छा चालचलन बता कर लुधियाना की ब्रोस्टल जेल से 2 साल 4 महीने की उस की सजा माफ कर दी गई थी. जेल से बाहर आने के बाद वह जयपाल के साथ मिल कर

नशा तसकरी और लूटपाट की बड़ी वारदातें करने लगा.

पंजाब पुलिस की ओक्कू टीम ने दोनों एएसआई की हत्या की वारदात में शामिल गैंगस्टर दर्शन सिंह और बलजिंदर सिंह उर्फ बब्बी को 29 मई, 2021 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले से गिरफ्तार कर लिया. इन को पनाह देने वाले हरचरण सिंह को भी पकड़ लिया गया है.

अपराध की दुनिया में जयपाल भले ही ऊंची उड़ान भर रहा था, लेकिन उस का हश्र भी वही हुआ, जो ऐसे अपराधियों का होता है. पकड़े गए उस के सहयोगियों से पुलिस को जयपाल का सुराग मिल गया. इस के बाद 9 जून, 2021 को पश्चिम बंगाल

के कोलकाता में हुए एक एनकाउंटरमें जयपाल भुल्लर और उस का साथी जसप्रीत जस्सी मारा गया.

ये लोग फरजी नाम से कोलकाता के पास बीरभूम के सिगुरी इलाके के शापूरजी हाउसिंग कौंप्लैक्स में छिपे हुए थे. इन के किराए के इस फ्लैट में लाखों रुपए नकद, आधुनिक हथियार, ड्रग्स के पैकेट, फरजी ड्राइविंग लाइसैंस, पासपोर्ट आदि बरामद हुए. पंजाब पुलिस को जयपाल का सुराग मध्य प्रदेश के एक टोलनाके के सीसीटीवी कैमरों से मिला था. इन बदमाशों के मारे जाने से इन के आतंक का अंत हो गया.