Top 10 Social Crime Story In Hindi : टॉप 10 सोशल क्राइम स्टोरी हिंदी में

Top 10 Social crime story of 2022 : इन सामाजिक क्राइम स्टोरी को पढ़कर आप जान पाएंगे कि समाज में क्या क्या हो रहा है और किस तरह के बदलाव से समाज प्रभावित हो रहा है और समाज में हो रहे अपराध और धोखाधड़ी से आप स्वयं को और अपने आस पास के लोगों को कैसे जागरूक कर सकते हो तो ये सब जानने के लिए पढ़े ये मनोहर कहानियां Top 10 Social crime story in Hindi          

    1. सोने की तस्करी: स्वप्न सुंदरी ने दूतावास को बनाया मोहरा

    भारतीय बाजार में इस सोने की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई. यूएई के वाणिज्य दूतावास ने बैग में मिला सोना अपना होने से इनकार कर दिया. इस पर सोने को सीज कर सीमा शुल्क विभाग ने मामले की जांच शुरू की.

    प्रारंभिक जांच में अधिकारियों को यह मामला सोने की तस्करी से जुड़ा होने का संदेह हुआ. अधिकारियों को शक हुआ कि इस संदिग्ध मामले में राजनयिक को मिलने वाली छूट का दुरुपयोग किया गया है.

    दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में लिए गए फैसलों के तहत भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों के राजनयिकों को कई तरह की छूट दी गई थीं. इस में उन की और उन के सामान की जांच पड़ताल की छूट भी शामिल है.

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  1. 2 पत्नियों वाले हिंदूवादी नेता की हत्या

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अमिताभ बच्चन की नकल करने से कोई उन के जैसा नहीं बन जाता, यह बात रणजीत की समझ में आ गई. तब उस ने गांव की अपनी जमीन पर टीन शेड के नीचे नए लोगों को अभिनय का प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया. रंगमंच से जुड़े होने के बाद भी जब वह सफल नहीं हो पाया तो उस ने राजनीति और समाजसेवा को अपना रास्ता बनाया.

रणजीत को सुर्खियों में रहने का शौक था. इस के लिए उस ने कई सामाजिक संस्थाएं बनाईं. सुर्खियों में रहने के लिए उस ने पत्रकार संगठन और जातीय संगठन भी बनाए.

इस बहाने वह खुद को राजनीति से जोड़े रखना चाहता था. ऐसे में उस ने गोरखपुर से दूर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अपना काम शुरू करने का फैसला किया. रणजीत के तमाम लड़कियों से संबंध थे. उन्हें ले कर वह चर्चा में रहता था.

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  1. कुंवारी लड़कियों का कामुक कथावाचक

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पंडित नारायण स्वरूप के लिए यह बिल्ली के भाग्य से छींका टूटने जैसा था. क्योंकि यजमान टीकाराम के घर में आने के बाद से ही पंडितजी की नजर उस की तीनों बेटियों पर खराब हो चुकी थी. पूजा के दौरान भी वह लोगों से नजर बचा कर तीनों बहनों को बुरी नजर से घूरता रहा. जब यजमान ने बेटियों से परेशान रहने की समस्या सामने रखी, तो उस की बाछें खिल गईं.

वह समझ गया कि वक्त ने उसे मौका दिया है, जिस से वह यजमान की तीनों नादान बेटियों को अपना शिकार बना सकता है. इसलिए उस ने टीकाराम से कहा, ‘‘चिंता मत करो, मैं देखता हूं समस्या की जड़ कहां है. केवल समस्या का पता ही नहीं लगाऊंगा, बल्कि उसे जड़ से खत्म भी कर दूंगा. लाओ, तीनों की जन्मपत्रिकाएं दिखाओ, देखता हूं आखिर इन की आपस में बनती क्यों नहीं है.’’

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  1. तंत्र मंत्र के नाम पर हैवानियत

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अरशद तंत्रमंत्र का काम करता था. अतीत कटारिया ने उन्हें बताया कि यह पहुंचे हुए तांत्रिक हैं. उस ने बताया कि यह तंत्रमंत्र द्वारा रकम को कई गुना बना सकते हैं. लालची स्वभाव के सुभाषचंद को इस बात पर विश्वास हो गया तो उन्होंने अरशद को साढ़े 3 लाख रुपए दिए थे और इस रकम को एक करोड़ रुपयों में बदलने को कहा था.

2 महीनों तक सुभाषचंद की रकम नहीं बढ़ी तो उन्होंने तांत्रिक अरशद से अपने पैसे मांगे. अरशद पैसे दैने में आनाकानी करने लगा तो ठेकेदार ने उस पर दबाव बनाया. इतना ही नहीं, उस ने उस तांत्रिक को पैसे देने के लिए धमका भी दिया. इस से तांत्रिक अरशद बहुत चिंतित रहने लगा.

इसलिए तांत्रिक अरशद ने अपने दोस्तों टीलू और वकील उर्फ सोनू के साथ मिल कर सुभाष ठेकेदार को ठिकाने लगाने की योजना बना ली.

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  1. असंभव के पार झांकने की भूल

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यतीश तिवारी शिवप्रसाद का ही बेटा था. यतीश 2 भाई थे. मनीष बड़ा था और यतीश छोटा. मनीष होमगार्ड की नौकरी करता है. उस की ड्यूटी लखनऊ सचिवालय में लगी थी. मनीष अपने परिवार के साथ लखनऊ के पास ही तेलीबाग में रहता था. यतीश की एक बहन है प्रीति, जिस की शादी हो चुकी है. यतीश अकेला अपने मातापिता के साथ रहता था. मां सरला देवी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता है.

यतीश भारतीय सेना में शामिल हो कर देश की सेवा करना चाहता था. इस के लिए वह अपनी तैयारी भी कर रहा था. वह रोजाना गांव के बाहर दौड़ लगाता था और एक्सरसाइज भी करता था. शारीरिक रूप से फिट 24 साल के यतीश ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं पास की थीं. लेकिन फिजिकल टेस्ट में वह रह जाता था.

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  1. भविष्य की नींव में दफन दो लाशें

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विजय की पत्नी शीला ने उन्हें बताया कि उन के पति भी सुबह बाइक ले कर धीरज से मिलने की बात कह कर निकले थे, लेकिन उन का मोबाइल भी स्विच्ड औफ है. उन से संपर्क भी नहीं हो पा रहा है. शीला ने यह भी बताया कि धीरज को फोन किया था, घंटी जाने के बाद भी उस ने काल रिसीव नहीं की.

दोनों के घर वालों को चिंता हुई. उन्होंने अपने परिचितों को भी फोन कर के उन के बारे में पूछा. फिर उन्हें संभावित जगहों पर तलाश करने लगे. लेकिन दोनों का कोई सुराग नहीं लगा. तलाश में भटक रहे परिजन दूसरे दिन शनिवार 29 जून को ताजगंज थाने पहुंचे.

स्कूल मालिक सुरेंद्र लवानिया व प्रधानाचार्य विजय कुमार के परिजनों ने सुरेंद्र लवानिया के गायब होने की बात सुन कर थानाप्रभारी भी हैरान रह गए, क्योंकि शिक्षा जगत में सुरेंद्र लवानिया बड़ा नाम था.

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  1. आशिक बन गया ब्लैकमेलर

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रंजना को नेहा की बातों से आशा की एक किरण दिखी, लेकिन संदेह का धुंधलका अभी भी बरकरार था कि पुलिस वालों पर कितना भरोसा किया जा सकता है और बात ढकीमुंदी रह पाएगी या नहीं. इस से भी ज्यादा अहम बात यह थी कि वे तसवीरें और वीडियो वायरल नहीं होंगे, इस की क्या गारंटी है.

इन सब सवालों का जवाब नेहा ने यह कह कर दिया कि एक बार भरोसा तो करना पड़ेगा, क्योंकि इस के अलावा कोई और रास्ता नहीं है. मयंक दरअसल उस की बेबसी, लाचारगी और डर का फायदा उठा रहा है.

एक बार पुलिस के लपेटे में आएगा तो सारी धमाचौकड़ी भूल जाएगा और शराफत से फोटो और वीडियो डिलीट कर देगा, जिन की धौंस दिखा कर वह न केवल रंजना की जवानी से मनमाना खिलवाड़ कर रहा था, बल्कि उस से पैसे भी ऐंठ रहा था.

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  1. षड्यंत्र का कमजोर मोहरा

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बड़ेबड़े ठेकेदारों के साथ ठेकेदारी करने वाले आकाश ने अपनी मौत की ही नहीं, बल्कि अपने क्रियाकर्म तक की स्क्रिप्ट खुद लिखी थी. इस स्क्रिप्ट के अनुसार उस के घर वालों ने बाकायदा उस के अंतिम संस्कार से ले कर उस की तेरहवीं पर क्रियाकर्म का खाना खिलाने तक बखूबी भूमिका निभाई थी. पुलिस अब इस बात की भी जांच करेगी कि इस मामले में उस के घर वालों का भी हाथ था या नहीं?

बीमा राशि डकारने के लिए आकाश ने पहले अपने नौकर राजू को जम कर शराब पिलाई थी. इस के बाद जब वह नशे में बेसुध हो गया तो रवि और आकाश ने मिल कर आकाश के कपड़े राजू को पहना दिए. साथ ही अपनी अंगूठी और ब्रैसलेट भी राजू के हाथ में पहना दिया, ताकि पुलिस उसे आकाश समझे.

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  1. क्रिप्टो करेंसी: गुमनामी में अरबपति की मौत

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क्रिप्टो करेंसी के जानकारों का कहना है कि यह अपनी तरह का पहला मामला है, जहां कोल्ड वौलेट में इतने यूजर्स की करेंसी को लौक किया गया. वैसे कंपनियां यूजर्स के खाते में ही करेंसी अपलोड करती हैं.

रोक के बावजूद क्रिप्टो करेंसी में भारतीयों ने करीब 13 हजार करोड़ रुपए का निवेश कर रखा है. रिजर्व बैंक के अनुसार क्रिप्टो करेंसी के लेनदेन को भारत में मान्यता नहीं दी गई है. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना करीब ढाई हजार लोग इस में निवेश करते हैं.

क्रिप्टो करेंसी एक तरह की डिजिटल या आभासी मुद्रा होती है, जिस का कोई भौतिक अस्तित्व नहीं होता. इस मुद्रा को कई देशों ने मान्यता दे रखी है.

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  1. बालिका सेवा के नाम पर

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रचना और उस के पति की राजनीति में अच्छी पकड़ थी जिस के चलते जल्द ही इस बालिका गृह को शासन से मोटा अनुदान मिलने लगा. जानकारी के अनुसार पिछले 3 साल में ही शासन की तरफ इस बालिका गृह को करीब 38 लाख रुपए की अनुदान राशि मिली थी. सूत्रों की मानें तो इस अनुदान राशि के अलावा रचना प्रदेश भर से काफी बड़ी रकम दान के रूप में बेटोर रही थी.

जो 5 लड़कियां बालिका गृह से भागी थीं, उन्होंने बताया कि हम सभी रचना को मम्मा कहते थे और उस के पति को पापा. लेकिन उन की नीयत लड़कियों के प्रति अच्छी नहीं थी.

पापा रोज शराब पीते थे और रचना मम्मा इस दौरान हम में से किसी एक लड़की को शराब के पैग तैयार करने का काम सौंप देती थी. मम्मा खुद भी शराब पीती थी और दूसरे लोग भी रोज आश्रम में आ कर उन दोनों के साथ शराब पीते थे.

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महिला सुरक्षा और अंधा समाज – भाग 2

हम ने उस की हिफाजत का ठेका नहीं ले रखा है. उलटे यह सब करने की गुंडों को शह व छूट दे रखी है. शुक्र इस बात का है कि ऐसी वारदातों के वक्त सभ्य समाज के ये शरीफजादे गुंडों का साथ नहीं देते, यह उन का एहसान है, सामाजिक सरोकारों और नैतिक जिम्मेदारियों की तो बात करना बेमानी है.

अहम सवाल अब पुरुष मानसिकता का है जो औरत को ‘सामान’, ‘आइटम’, ‘पटाखा’, ‘फुलझड़ी’ और ललितपुर के गुंडों की भाषा में कहें तो ‘माल’ समझता व कहता है. अकेली लड़की को देख वे उस पर हमला करते हैं तो उन्हें मालूम रहता है कि कोई कुछ नहीं बोलेगा.

इस वारदात ने साबित कर दिया है कि दबंग वे लोग नहीं हैं जो कान में ईयरफोन लगाए दीनदुनिया से बेखबर गीतसंगीत सुनते रहते हैं, फेसबुक और वाट्सऐप पर चैट करते रहते हैं. लंबीलंबी बातें, बहसें नैतिकता और आदर्शों की करते हैं. असल दबंग वे हैं जो सरेआम एक लड़की का पर्स लूट कर उसे मरने के लिए फेंक देते हैं और फिर हाथ झाड़ कर चलते बनते हैं.

कैब और बलात्कार

29 वर्षीय रीतिका (बदला नाम) गुड़गांव की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव है. जाहिर है नए जमाने की उन करोड़ों युवतियों में से एक है जो अपने बलबूते पर नौकरी करते सम्मान और स्वाभिमान से जिंदगी गुजार रही हैं.

शुक्रवार, 5 दिसंबर यानी वारदात के दिन रीतिका ने शाम 7 बजे अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद एक रैस्टोरैंट में दोस्तों के साथ डिनर लिया. उस के एक दोस्त ने उसे अपने वाहन पर बसंत विहार छोड़ा जहां से उसे अपने घर इंद्रलोक जाना था.

लेटेस्ट गैजेट्स की आदी रीतिका को बेहतर यही लगा कि कैब (टैक्सी) कर ली जाए. लिहाजा, उस ने मोबाइल ऐप के जरिए अमेरिकी कंपनी उबेर की कैब बुक करा ली. कैब आई और उस के शिवकुमार यादव नाम के ड्राइवर ने इज्जत से दरवाजा खोला. दिनभर की थकीहारी रीतिका डिनर के बाद की सुस्ती का शिकार हो गई. लिहाजा, कैब में उसे झपकी आ गई. पीछे की सीट पर अकेली खूबसूरत लड़की को देख शिवकुमार का मन डोल गया और उस ने टैक्सी का रास्ता बदल दिया.

रीतिका की नींद खुली तो कैब सुनसान में खड़ी थी. उस ने दरवाजा खोलने की कोशिश की तो वह नहीं खुला. शिवकुमार ने गेट लौक कर दिए थे. रीतिका ड्राइवर का इरादा भांपते चिल्लाई तो शिवकुमार ने उस की पिटाई कर दी और धमकी दी कि अगर शोर मचाया तो पेट में सरिया घुसा दूंगा. अब बचाव के लिए कुछ नहीं बचा था, इसलिए बाज के पंजे में फंसी चिडि़या की तरह फंसी रीतिका गिड़गिड़ाई कि प्लीज, मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हारे हाथपैर जोड़ती हूं.

लेकिन अपनी पर आमादा हो आया शिवकुमार पसीजा नहीं. उस ने रीतिका का बलात्कार टैक्सी में ही किया और समझदारी कह लें या चालाकी कि रीतिका को घर के बताए पते के नजदीक उतार दिया. रीतिका ने बलात्कार सहने के बाद भी होश नहीं खोया था. इस के बाद खुद को संभालते रीतिका ने 100 नंबर डायल किया.

पीसीआर वैन आई और रीतिका को थाने ले गई. महिला पुलिसकर्मियों ने उस से पूछताछ की और एक सरकारी अस्पताल में जा कर उस की मैडिकल जांच कराई. इसी बीच, रीतिका ने फोन कर अपने मम्मीपापा को भी बुला लिया. विदेश में भी एक कंपनी में नौकरी कर चुकी रीतिका अपने मांबाप की इकलौती संतान है.

वह कुछ महीनों पहले ही दिल्ली शिफ्ट हुई थी और खुश थी कि अब मम्मीपापा के पास रहेगी. उस के पापा ने निर्भया कांड के प्रदर्शन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. अपनी ही बेटी को इस हालत में देखा तो हफ्तेभर उस के साथ बैठे आंसू बहाते रहे.

बलात्कार, बवाल और पुलिस

सुबह होतेहोते दुष्कर्मों के लिए कुख्यात हो चुकी दिल्ली में खासा बवाल मच गया कि लो, एक और लड़की की इज्जत लुट गई, वह भी टैक्सी में  बलात्कार के बाद रीतिका को रातभर पुलिस की पूछताछ और मैडिकल जांच से गुजरना पड़ा था.

सालों पुरानी इन कानूनी खानापूर्तियों से पीडि़ता को जरूर समझ आता है कि दरअसल बलात्कार क्या होता है और क्यों पीडि़ताएं रिपोर्ट नहीं लिखवातीं. मैडिकल जांच किस बेरहमी और अमानवीय तरीके से की जाती है, यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं. शिवकुमार 40 घंटे बाद मथुरा से गिरफ्तार कर लिया गया.

यह पुलिस की मुस्तैदी नहीं बल्कि मजबूरी हो चली थी क्योंकि इस बलात्कार पर निर्भया मामले जैसी हायहाय मचने लगी थी. बाद में पता चला कि शिवकुमार आदतन अपराधी है और पहले भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हो कर जेल जा चुका है. इस के बाद भी पुलिस ने उसे चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया था जो इस मामले में बलात्कार करने का लाइसैंस साबित हुआ. दिल्ली में सामाजिक संगठनों और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया लेकिन पहले सा यानी निर्भया कांड जैसा समर्थन उसे नहीं मिला.

इधर, हंगामा देख झल्लाए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक वाजिब बात यह भी कही कि क्या रेल में दुष्कर्म हो तो रेल और जहाज में हो जाए तो जहाज बंद कर दें. गडकरी बलात्कार बंद या कम करने के बाबत कुछ नहीं बोले, जिस की कि जरूरत व अहमियत थी. जल्द ही मामला अमेरिका की उबेर कंपनी के इर्दगिर्द आ कर सिमट गया कि 2,480 अरब रुपए वाली 52 देशों में कारोबार करने वाली इस कंपनी पर नीदरलैंड, स्पेन और कई अन्य देशों में भी रोक लगी है.

100 लाशों के साथ सेक्स करने वाला इलेक्ट्रीशियन

इंग्लैड के ईस्ट ससेक्स राज्य में ब्रिटिश पुलिस को 34 सालों से 2 युवतियों के हत्यारे की तलाश थी. इस के लिए पुलिस ने जबरदस्त जाल बिछा रखा था. फिर भी हत्यारे पकड़ से बाहर थे. इस कारण पुलिस ने जासूसों की टीम भी लगाई.

मामला 25 वर्षीया वेंडी नेल और 20 साल की कैरोलिन पियर्स की हत्याओं का था. उन के साथ दुष्कर्म भी हुआ था. दोनों टुगब्रिज वेल्स में रहती थीं और अलगअलग वारदातों में 1987 में दोनों की हत्या कर दी गई थी. उस हत्याकांड को ‘बेडसिट मर्डर्स’ के रूप में जाना गया था.

नेल गिल्डफोर्ड रोड स्थित अपने अपार्टमेंट में 23 जून, 1987 को मृत पाई गई थी. पुलिस को इस की सूचना उस के मंगेतर ने दी थी. उस के शरीर पर कई जख्म थे. जबकि पियर्स की लाश उसी साल 5 महीने बाद 24 नवंबर को उन के घर से 40 मील दूर बांध के पानी में तैरती हुई बरामद हुई थी.

उन की मौत के सिलसिले में हुई जांच में हत्या और दुष्कर्म के जो सुराग मिले थे, उस के अनुसार मृतकों के शरीर, अंगवस्त्र, तौलिए, बैडशीट आदि से मिले एक जैसे डीएनए को सबूत का आधार बनाया गया था.

उस डीएनए वाले व्यक्ति का पता लगाने के लिए 15 दिसंबर, 1987 को अदालती आदेश के बाद ब्रिटिश पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी थी.

फोरैंसिक वैज्ञानिकों द्वारा 1999 में डीएनए जांच के आधुनिक तरीके अपनाए गए थे और इस के लिए एक नैशनल लेवल पर डेटाबेस तैयार किया गया था.

दोनों लड़कियों के सैकड़ों करीबियों से पूछताछ के साथसाथ उन के डीएनए की भी जांच की गई थी. रिश्तेदारों, दोस्तों और फिर उन के करीबियों से जांच के सिलसिले में डेविड फुलर के घर वालों के डीएनए की भी जांच हुई, जिसे हत्या के आरोप में पहले भी गिरफ्तार किया जा चुका था.

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इस तरह पुलिस को अंतत: 2019 में सफलता मिल गई, लेकिन कोरोना संक्रमण की वजह से उस की गिरफ्तारी 3 दिसंबर, 2020 को हो पाई.

67 वर्षीय डेविड फुलर को ईस्ट ससेक्स के हीथफील्ड स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उस का डीएनएन मृतकों से प्राप्त नमूने से मेल खाता था. इसी के साथ जब उस के घर की गहन तलाशी ली गई, तब यौन अपराध का जो राज खुला, वह जितना चौंकाने वाला था, उतना ही घिनौना भी था.

फुलर के अनगिनत कुकर्मों का खुलासा उस के घर और घर के कार्यालय की तलाशी के बाद हुआ. पुलिस को कंप्यूटर हार्ड ड्राइव, सीडी, डीवीडी और फ्लौपी डिस्क में 14 मिलियन से अधिक अश्लील तसवीरें भरी मिलीं. उन में बच्चों की लाश के साथ अश्लील वीडियो भी थे. सभी अलगअलग फोल्डर में रखे गए थे और उन पर नाम का लेबल भी लगाया गया था. साथ ही एक डायरी में यौन अपराधों का काला चिट्ठा दर्ज था.

उसी आधार पर पुलिस ने पाया कि फुलर अपनी वासना की आग बुझाने के लिए 2 मुर्दाघरों में महिलाओं की लाशों के साथ दुष्कर्म किया करता था. यह कुकर्म वह करीब 100 लाशों के साथ कर चुका था, जिन में 9 साल की बच्ची से ले कर 100 साल की वृद्धा तक की लाशें शामिल थीं. यह सब उस ने तब किया था, जब वह हीथफील्ड अस्पताल में इलैक्ट्रीशियन की नौकरी करता था.

ये सारी बातें फुलर ने मेडस्टोन क्राउन अदालत में दोनों लड़कियों की हत्या को ले कर हुई सुनवाई के दौरान स्वीकार की. उस ने यह भी बताया कि दोनों की बेरहमी से हत्या करने के बाद उस की लाश के साथ दुष्कर्म किया था. तभी नेल के तौलिए, अंडरगारमेंट, और लार में फुलर का डीएनए पाया गया था.

फुलर के जुर्म से इंग्लैंड की अदालत भी दंग थी. कोर्ट ने माना कि ब्रिटेन या कहें कि दुनिया के इतिहास में इतना खौफनाक और दर्दनाक वाकया शायद कभी नहीं गुजरा, लिहाजा कोर्ट ने इस मामले को बेहद संजीदगी से लेते हुए उसे अपराधी ठहरा दिया.

न्यायाधीश चीमा ग्रव ने फुलर को उन की हत्याओं के अलावा 51 अलगअलग मामलों के अपराधों का भी दोषी करार दिया, जिस में 44 मामले लाशों से छेड़छाड़ के थे. साथ ही मुर्दाघरों में 78 लाशों की भी पहचान कर ली गई. उसे 2 लड़कियों नेल और पियर्स की हत्या के लिए भी दोषी ठहराया गया.

कैरोलीन पियर्स का फुलर ने 24 नवंबर, 1987 को उस के घर के बाहर ग्रोसवेन पार्क से अपहरण कर लिया था. वहीं उस की हत्या कर लाश के साथ दुष्कर्म किया था.

पड़ोसियों ने उस के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुनी थी. एक हफ्ते बाद उस की लाश उन के घर से 40 मील दूर मिली थी, जिस की सूचना पुलिस को एक खेतिहर मजदूर ने दी थी.

पुलिस ने अदालत में बताया कि फुलर दोनों लड़कियों को पहले से जानता था. वह उसी फोटो डेवलपमेंट चेन का ग्राहक था, जहां नेल काम करती थी. इस के अलावा फुलर की पियर्स से जानपहचान बस्टर ब्राउन रेस्टोरेंट में हुई थी, जहां वह मैनेजर थी.

इन वारदातों के 24 साल बाद फुलर की सितंबर 2011 में गिरफ्तारी हुई थी. तब वह सबूत नहीं मिलने के कारण छूट गया था.

उस ने अदालत में बताया कि वह 1989 से 12 साल तक हीथफील्ड अस्पताल के 2 मुर्दाघरों में बिजली संबंधी समस्याओं की देखभाल के लिए अकसर आताजाता था.

वह वहां के रखरखाव का सुपरवाइजर था. मुर्दाघर के फ्रीजर के देखभाल की जिम्मेदारी उसी पर थी. इस के लिए उसे वहां प्रवेश के

लिए निजी एक्सेस स्वाइप कार्ड मिला हुआ था. मुर्दाघर में कुल 5 कर्मचारी काम करते थे, जिन की ड्यूटी सुबह 8 बजे से शाम 4 बजे तक की होती थी. फुलर की ड्यूटी दिन के 11 बजे से शाम के 7 बजे तक की थी. इस कारण दूसरे कर्मचारियों के चले जाने के बाद भी वह मुर्दाघर में रुका रहता था. अपनी शिफ्ट के अखिरी 3 घंटों में ही उस ने यह घिनौने काम किए थे.

वैसे अस्पताल के कुली किसी भी समय नए शवों के साथ मुर्दाघर में आ सकते थे. यह फुलर के लिए पोस्टमार्टम कक्ष में प्रवेश करने का अच्छा मौका होता था. फुलर पोस्टमार्टम कक्ष में चला जाता था. ऐसा करते हुए किसी का ध्यान उस पर नहीं जाता था.

मुर्दाघर के अन्य हिस्सों की तुलना में शवों की गरिमा को ध्यान में रखते हुए पोस्टमार्टम कक्ष में कोई सीसीटीवी कैमरे नहीं लगाए गए थे. हालांकि  मुर्दाघर की ओर जाने वाले गलियारों सहित अन्य क्षेत्रों पर निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इस नतीजे तक पहुंचने में इंग्लैंड पुलिस को 2.5 मिलियन यूरो यानी 21.42 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े थे. फुलर के अपराध मुर्दाघर की लाशों के साथ यौनाचार तक ही सीमित नहीं थे, बल्कि इसे यादगार बनाए रखने के लिए  उस ने एक डायरी भी बना रखी थी.

वह लाशों के साथ यौन संबंध बनाने के बाद बाकायदा उस घटना को अपने अनुभवों के साथ डायरी में नोट करता था. यही नहीं, उस ने सैक्स की फ्यूचर प्लानिंग तक कर रखी थी.

‘लाइक’ के नाम पर 37 अरब की ठगी – भाग 2

नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.

पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए.

एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं.

इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.

एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.

सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा.

बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.

बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो.

उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.

शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी.

कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.

सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया.

सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया.

सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.

बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.

अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.

बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया.

पप्पू स्मार्ट : मोची से बना खौफनाक गैंगस्टर – भाग 2

गिरोह बनाने के बाद पप्पू स्मार्ट एवं उस के भाइयों ने जाजमऊ, हरजेंद्र नगर, कानपुर देहात व अन्य क्षेत्रों में दरजनों की संख्या में अवैध संपत्तियों पर कब्जा कर बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया और अकूत संपदा अर्जित कर ली.

पप्पू स्मार्ट गिरोह के सदस्य जमीन कब्जाने के लिए पहले मानमनौती करते. न मानने पर जान से मारने की धमकी देते फिर भी न माने तो मौत के घाट उतार देते. पप्पू रंगदारी भी वसूलता था तथा धोखाधड़ी भी करता था. आपराधिक गतिविधियों से उस ने करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली थी. इस तरह वह जरायम का बादशाह बन गया था.

बेच डाला राजा ययाति का किला

पप्पू स्मार्ट व उस का गिरोह आम लोगों को ही प्रताडि़त नहीं करता था, बल्कि सरकारी संपत्तियों पर भी कब्जा करता था. तमाम सरकारी संपत्तियों को उस ने धोेखाधड़ी कर बेच दिया था. इसलिए उसे भूमाफिया भी घोषित कर दिया गया था.

पप्पू स्मार्ट ने सब से बड़ा कारनामा किया राजा ययाति के किले पर कब्जा करने का. दरअसल, जाजमऊ क्षेत्र में गंगा किनारे महाभारत कालीन राजा ययाति का किला है जो खंडहर में तब्दील हो गया है.

यह किला राज्य पुरातत्त्व विभाग की संपत्ति है. इस की देखरेख कानपुर विकास प्राधिकरण करता है. लेकिन इस किले को अपना बता कर पप्पू स्मार्ट ने कब्जा कर लिया और एक बड़े भूभाग को बेच कर बस्ती बसा दी.

एडवोेकेट संदीप शुक्ला की शिकायत पर आईजी आलोक सिंह एवं तत्कालीन एसपी अनुराग आर्य ने पप्पू स्मार्ट के खिलाफ चकेरी थाने में मुकदमा दर्ज कराया और गैंगस्टर एक्ट के तहत काररवाई की तथा उस की तमाम संपत्तियों को सीज भी किया.

राजनीतिक संरक्षण भी आया काम

पप्पू स्मार्ट जानता था कि पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों पर रौब गांठना है तो राजनीतिक चोला ओढ़ना जरूरी है, अत: उस ने सोचीसमझी रणनीति के तहत समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली और पार्टी का सदस्य बन गया.

सपा के जनप्रतिनिधियों से उस ने दोस्ती कर ली और उन का खास बन गया. सपा शासन काल में उस की तूती बोलने लगी. पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस ने पैठ बना ली. अपने रौब के बल पर ही पप्पू स्मार्ट ने एक डबल बैरल बंदूक व एक रिवौल्वर का लाइसेंस हासिल कर लिया.

यही नहीं, उस ने अपने भाइयों तौफीक उर्फ कक्कू व आमिर उर्फ बिच्छू को भी रिवौल्वर का लाइसेंस दिलवा दिया.

हालांकि चकेरी थाने में पुलिस ने तीनों भाइयों की हिस्ट्रीशीट खोल रखी थी. उन की हिस्ट्रीशीट में बताया गया था कि गिरोह के खिलाफ हत्या, हत्या का प्रयास, जबरन वसूली, मारपीट, जान से मारने की धमकी, जमीनों पर कब्जे, गुंडा एक्ट तथा गैंगस्टर एक्ट के मामले दर्ज है.

पप्पू स्मार्ट का घनिष्ठ संबंध कुख्यात अपराधी वसीम उर्फ बंटा से था. वह फरजी आधार कार्ड व अन्य कागजात तैयार करता था. पप्पू स्मार्ट भी उस से कागजात तैयार करवाता था. उस के फरजी कागजातों से लोग पासपोर्ट बनवा कर विदेश तक का सफर करते थे. यूपी एसटीएफ की वह रडार पर था.

काफी मशक्कत के बाद एसटीएफ कानपुर इकाई ने उसे रेलबाजार के अन्नपूर्णा गेस्टहाउस से धर दबोचा. उस के साथ उस का भाई नईम भी पकड़ा गया. उस के पास से भारी मात्रा में सामान बरामद हुआ. सऊदी अरब मुद्रा रियाल तथा 6780 रुपए बरामद हुए.

एसटीएफ ने उसे जेल भेज दिया, तब से वह जेल में है. इस मामले में पप्पू स्मार्ट का नाम भी आया था. लेकिन राजनीतिक पहुंच के चलते वह बच गया.

बसपा नेता और हिस्ट्रीशीटर पिंटू सेंगर से हुई दोस्ती

पप्पू स्मार्ट का एक जिगरी दोस्त था नरेंद्र सिंह उर्फ पिंटू सेंगर. वह मूलरूप से कानपुर देहात जनपद  के गोगूमऊ गांव का रहने वाला था. लेकिन पिंटू सेंगर अपने परिवार के साथ कानपुर के चकेरी क्षेत्र के मंगला बिहार में रहता था.

वह बसपा नेता, भूमाफिया व हिस्ट्रीशीटर था. उस के पिता सोने सिंह गोगूमऊ गांव के प्रधान थे और मां शांति देवी गजनेर की कटेठी से जिला पंचायत सदस्य थी.

पिंटू सेंगर जनता के बीच तब चर्चा में आया, जब उस ने पूर्व मुख्यमंत्री व बसपा सुप्रीमो मायावती को उन के जन्मदिन पर उपहार स्वरूप चांद पर जमीन देने की पेशकश की थी.

कानपुर की छावनी सीट से उस ने बसपा के टिकट पर विधानसभा का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गया था. बसपा शासन काल में उस की तूती बोलती थी. वह अपनी हैसियत विधायक से कम नहीं आंकता था.

राजनीतिक संरक्षण के चलते ही पिंटू सेंगर ने जमीन कब्जा कर करोड़ों रुपया कमाया. उस के खिलाफ चकेरी थाने में कई मुकदमे दर्ज हुए और उस का नाम भूमाफिया की सूची में भी दर्ज हुआ.

चूंकि पिंटू सेंगर व पप्पू स्मार्ट एक ही थैली के चट्टेबट्टे थे. दोनों ही भूमाफिया और हिस्ट्रीशीटर थे, अत: दोनों में खूब पटती थी. जमीन हथियाने में दोनों एकदूसरे का साथ देते थे. जबरन वसूली, रंगदारी में भी वे साथ रहते थे.

पप्पू स्मार्ट को सपा का संरक्षण प्राप्त था, जबकि पिंटू सेंगर को बसपा का. दोनों अपनी अपनी पार्टी के कार्यक्रमों में हिस्सा ले कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते थे.

लेकिन एक दिन यह दोस्ती जमीन के एक टुकड़े को ले कर कट्टर दुश्मनी में बदल गई. दरअसल, रूमा में नितेश कनौजिया की 5 बीघा जमीन थी. यह जमीन नितेश ने जाजमऊ के प्रौपर्टी डीलर मनोज गुप्ता को बेच दी.

इस की जानकारी पिंटू सेंगर को हुई तो उस ने नितेश को धमकाया और पुन: जमीन बेचने की बात कही. दबाव में आ कर बाद में नितेश ने वह जमीन एक अनुसूचित जाति के व्यक्ति के नाम कर दी.

दुनिया का सिरदर्द बने भगोड़े अपराधी

आधुनिक संचार साधनों और तेज रफ्तार हवाई यातायात के साधनों के चलते दुनिया आज एक वैश्विक गांव में तबदील हो गई है. इस के बावजूद व्यावहारिक धरातल पर आज भी दुनिया का विस्तृत भूगोल माने रखता है. खासकर बात अगर अपराध और अपराधियों के संदर्भ में हो. आज भी बड़ी तादाद में शातिर अपराधी देश के एक इलाके में अपराध कर के उसी देश के दूसरे इलाके या दूसरे देश में भाग जाते हैं.

इस तरह वे स्थानीय कानून या व्यवस्था सुनिश्चित करने वाली एजेंसियों के लिए खासा सिरदर्द बन जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि इस मामले में हर देश पीडि़त है, चाहे वह अमेरिका जैसा ताकतवर देश हो या चीन जैसा कट्टरपंथी. भगोड़े अपराधी सभी देशों के सिरदर्द बने हुए हैं.

अंगरेजी के शब्द ‘फ्यूजिटिव’ का हिंदी में मतलब है फरार या भगोड़ा. यह शब्द उन लोगों का परिचय देने में इस्तेमाल होता है जो अपराध करने के बाद कानून की या तो गिरफ्त में नहीं आते, जैसे कि भारत के लिए मोस्ट वांटेड दाऊद इब्राहिम कासकर या गिरफ्त में ले लिए जाने के बाद मौका मिलते ही चकमा दे कर फरार हो जाते हैं, जैसे कुछ महीनों पहले थाईलैंड में पकड़ा गया बेअंत सिंह का हत्यारा जगतार सिंह तारा. 

गौरतलब है कि जगतार उन 6 सिख आतंकवादियों में से एक है जिन्हें 1995 में चंडीगढ़ में, पंजाब सचिवालय के बाहर हुए विस्फोट का दोषी ठहराया गया था. इस विस्फोट में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह सहित 18 अन्य लोग मारे गए थे. बब्बर खालसा का सक्रिय सदस्य जगतार खालिस्तान टाइगर फोर्स यानी केटीएफ का स्वयंभू चीफ था.

वह बेअंत हत्याकांड के मामले में चंडीगढ़ की बुरैल जेल में सजा काट रहा था. लेकिन 2004 में वह अपने 2 साथियों–परमजीत सिंह भ्योरा और जगतार सिंह हवारा के साथ 90 फुट लंबी सुरंग बना कर सनसनीखेज तरीके से जेल से भाग निकला था. इसी दौरान कुछ और आतंकी फरार हो गए थे जिन में प्रमुख थे खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का मुखिया हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू और उस का सहयोगी गुरप्रीत सिंह उर्फ गोपी, जिन्हें नवंबर 2004 में थाईलैंड में ही दबोच लिया गया था.

जबकि केटीएफ के एक और भगोड़े रमनदीप सिंह उर्फ गोल्डी को मलयेशिया से नवंबर 2014 में गिरफ्तार किया गया. सिर्फ जगतार ही था जिस को तब गिरफ्तार नहीं किया जा सका था. इसलिए अदालत द्वारा उसे भगोड़ा घोषित कर के उस के खिलाफ रेड कौर्नर नोटिस निकलवा दिया गया. मतलब यह कि अब उसे पकड़ने की जिम्मेदारी उन तमाम देशों की भी हो गई जो कि इंटरपोल के सदस्य हैं और इस की संधि से बंधे हुए हैं. इसी के चलते उसे हाल में थाईलैंड से गिरफ्तार किया जा सका.

यह कहानी महज एक भगोड़े की है. जबकि हकीकत यह है कि देश में हजारों की तादाद में भगोड़े हैं, जिन में मुट्ठीभर भगोड़े विदेश भी भाग चुके हैं और 99 प्रतिशत से ज्यादा भगोड़े देश के अंदर ही कानून के लंबे हाथों और उस की गहरी निगाहों को चकमा दे कर मौजूद हैं. वैसे तो गृह मंत्रालय के पास बिलकुल अपडेट आंकड़े नहीं हैं लेकिन एक अनुमान के मुताबिक, देश में 5 हजार से ज्यादा भगोड़े हैं. 

हैरानी की बात यह है कि देश में जिस जेल से सब से ज्यादा अपराधी फरार हुए हैं, वह कोई बिहार या छत्तीसगढ़ की जेल नहीं है बल्कि देश की सब से कड़ी सुरक्षा व्यवस्था वाली राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल है. तिहाड़ जेल प्रशासन द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट को उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 15 सालों में यहां से 915 अपराधी फरार हो चुके हैं.

लगभग हर छठे दिन एक या कहें हफ्ते में एक से ज्यादा. इस से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश में कितने भगोड़े होंगे. वास्तव में जेलों से भागे ज्यादातर भगोड़े वे हैं, जिन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी. ये जब बेल या पेरोल पर जेल से बाहर निकले तो फिर कभी वापस लौट कर जेल नहीं पहुंचे. एक बार वहां से निकले तो फिर निकल ही गए.

मगर कुछ ऐसे खिलाड़ी भी हैं जो फिल्मी स्टाइल में तिहाड़ जेल प्रशासन को चकमा दे कर फरार हुए हैं, जैसे फूलन देवी की हत्या करने वाला शमशेर सिंह राणा. सवाल यह है कोई आखिर भगोड़ा क्यों हो जाता है? वास्तव में अपराधी गुनाह की सजा से बचना चाहते हैं. इस के लिए वे धनबलछल सब का सहारा लेते हैं. ज्यादातर फरार अपराधी वे हैं जिन के सिर पर हत्या, हत्या की कोशिश और अपहरण जैसे संगीन इल्जाम हैं और इन जुर्मों के लिए उन्हें उम्रकैद की सजा मिली थी.

यह सजा उन्हें पूरी उम्र भुगतनी पड़ती, जो उन्हें मंजूर नहीं था. इसलिए ये कोई जतन निकाल, भाग खड़े हुए और अब वे गायब हैं यानी किसी और पहचान के साथ जिंदा हैं, किसी और अपराध को अंजाम देते हुए या कोई और गहरी साजिश रचते हुए.

साल 2013 में आईपीएल मैचों की चकाचौंध के बीच स्पौट फिक्सिंग का मामला सामने आया. मुख्यरूप से आरोपी बनाया गया अंडरवर्ल्ड डौन दाऊद इब्राहिम को, साथ ही उस का दाहिना हाथ समझा जाने वाला छोटा शकील और कुछ दूसरे सट्टेबाजों को भी आरोपी बनाया गया. चूंकि दिल्ली पुलिस इन्हें अदालत में नहीं पेश कर सकी, इसलिए पटियाला हाउस स्थित एक अदालत ने इन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया.

साथ ही इन आरोपियों की संपत्ति जब्त करने की नए सिरे से प्रक्रिया शुरू करने का निर्देश भी दिया गया. मगर देखा जाए तो यह सब खानापूर्ति भर ही था क्योंकि इन में से प्रमुख गुनाहगारों (दाऊद और छोटा शकील) की संपत्ति पहले ही 1993 के मुंबई बम विस्फोट मामले में कुर्क की जा चुकी है. ये तब से ही फरार हैं या कहिए भगोड़े घोषित हैं. दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने स्पौट फिक्सिंग के इस मामले में अदालत में 6 हजार पृष्ठों का आरोपपत्र दायर किया था.

इस में दाऊद इब्राहिम, उस के सहयोगी छोटा शकील के अलावा क्रिकेटर एस श्रीसंत, राजस्थान रौयल्स के अंकित चव्हाण, अजीत चंदीला सहित पाक में रह रहे जावेद चुटानी, सलमान उर्फ मास्टर और एहतेशाम आदि के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किए गए.

यहां तक कि दिल्ली पुलिस ने आरोपपत्र में दाऊद इब्राहिम की सीएफएसएल लैब द्वारा आवाज की पहचान से संबंधित एक रिपोर्ट भी शामिल की थी जिस के चलते विशेष जज नीना बंसल ने दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील व चंडीगढ़ निवासी संदीप शर्मा को भगोड़ा घोषित किया. मगर नतीजे के रूप में हाथ कुछ नहीं लगा. मुख्य आरोपी यानी सरगना दाऊद और उस के साथी अंतर्राष्ट्रीय भगोड़े हैं.

भारत ने कई बार उन मोस्ट वांटेड अपराधियों की लिस्ट बनाई है जो भारत से फरार हैं. इन सभी फेहरिस्तों में हमेशा दाऊद पहले नंबर पर रहा है. ऐसा होना स्वाभाविक भी है क्योंकि दाऊद सिर्फ भारतीय पुलिस और खुफियातंत्र के लिए ही सिरदर्द नहीं है बल्कि दुनिया के स्तर पर भी ऐसा ही है.

कैसे फरार हो जाते हैं कैदी?

इन सवालों का जवाब ढूंढ़ते हुए इस संबंध में एक कैदी की अपील की सुनवाई के दौरान एक अजीब सा सच सामने आया. आखिर जेल से ऊंची अदालत में अपील के आधार पर बेल या पेरोल पर छूटा सजायाफ्ता मुजरिम फिर जेल वापस पहुंचे, यह सुनिश्चित करना आखिरकार किस की जिम्मेदारी है? अगर वह कोर्ट की अगली तारीख पर हाजिर नहीं होता तो उस के लिए जवाबदेह कौन है? पुलिस या फिर जेल प्रशासन? मगर रुकिए, कोई जवाबदेह तो तब होगा जब इन कैदियों की हर जानकारी या रिकौर्ड कोई एक संस्था रखेगी और वक्तवक्त पर उन की जांच करेगी.

दिल्ली हाईकोर्ट भी तब शायद हैरान रह गया था जब उस ने तिहाड़ जेल से ऐसे कैदियों की लिस्ट मंगवाई जिन को उम्रकैद दिए जाने के बाद अपील के आधार पर बेल मिली हो. पता है, इस मांग पर क्या हुआ? तिहाड़ में हड़कंप मच गया, धूल फांकती पीली पड़ चुकी पुरानी फाइलें पलटी गईं और तब जोड़जोड़ कर जुटाए गए 729 नाम. लेकिन आफत तो अभी शुरू हुई थी. हाईकोर्ट ने पुलिस से कहा, कैदियों की तलाश कीजिए वे कहां गए? अब मरता क्या न करता. दिल्ली पुलिस ने हर एक थाने को जिम्मा सौंपा, तलाश के लिए विशेष टीमें बनाई गईं.

काफी पसीना बहाने पर भी सिर्फ 10 फीसदी ही कैदी मिल सके जो रिकौर्ड में दर्ज पतों पर मिले. तब हाईकोर्ट का एक और फरमान आया, ‘ऐड्रेस पू्रफ लाओ?’ ऐड्रेस पू्रफ तो तब मिलते जब लापता कैदी पकड़ में आते. पुलिस को पता लगा कि 46 कैदी मर चुके हैं. 563 कैदी सरकारी रिकौर्ड में दर्ज पतों पर नहीं मिले. इन के जमानती भी गायब थे. 26 मई, 2014 को तिहाड़ ने कोर्ट को नई लिस्ट सौंपी और कानूनी पेंच का लाभ उठा कर फरार होने वाले उम्रकैदियों की तादाद बढ़ कर हो गई 915. ऐसे में पुलिस को सोचना होगा कि इन भगोड़ों को दोबारा कानून की गिरफ्त में लाने के लिए वह युद्ध स्तर पर क्या कार्यवाही करे?

तिहाड़ जेल से भाग निकलने वाले इन 915 भगोड़ों ने कानून के क्षेत्र में एक नई बहस को जन्म दे दिया है. कानून के जानकारों की इस पूरे मुद्दे पर अलगअलग राय है. देश में यह आम धारणा है कि अगर एक बार कोर्टकचहरी के चक्कर लग गए तो उम्र बीत जाती है. देश की अदालतों में 3 करोड़ से भी ज्यादा मुकदमों के अंबार लगे हैं. दबाव इतना ज्यादा है कि देश का कानूनी सिस्टम ही चरमरा रहा है. ऐसे में सब से बुरी गत बनती है सजायाफ्ता कैदियों की.

निचली अदालतें उन्हें सजा दे चुकी हैं, लेकिन ऊपरी अदालतों से उन्हें इंसाफ की उम्मीद है, सो वे अपील करते हैं लेकिन सुनवाई की तारीख कितने साल बाद आएगी, इस का अंदाजा उन्हें नहीं होता. जस्टिस एस एन धींगरा के मुताबिक, एक बार जब अपील दाखिल हो गई तो 8 साल, 10 साल या 15 साल भी लग सकते हैं. ऐसे ज्यादातर मामलों में मुजरिम बेल जंप कर जाता है क्योंकि वह (सजायाफ्ता मुजरिम) भी जानता है कि कई सालों तक उस की खोजखबर नहीं ली जा सकेगी.

हमारे देश में न जेलों के पास ऐसा कोई सिस्टम है और न पुलिस के पास कि ऐसे कैदी का अतापता रख सकें. तिहाड़ जेल भगोड़ों के केस में कोई भी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है. जेल का साफ कहना है कि जेल से बाहर निकलते ही उन की जिम्मेदारी खत्म और पुलिस की जिम्मेदारी शुरू हो जाती है. ऐसे में जब 2 बड़ी संस्थाएं अपनी जिम्मेदारियों को ले कर स्पष्ट न हों तो कैदी भागें न, तो क्या करें?

दोस्ती भी शिद्दत से निभाई, दुश्मनी भी – भाग 2

विजेत का मन पूजा से शादी करने के लिए उतावला था, मगर पूजा अभी 18 साल की नहीं हुई थी. विजेत जानता था कि नाबालिग उम्र में वह पूजा से शादी नहीं कर सकता. ऐसे में इंतजार करने के अलावा उस के सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं था.

अगले साल जैसे ही पूजा शुक्ला ने अपने जीवन के 18 साल पूरे किए तो विजेत कश्यप ने हिम्मत कर के पूजा के घरवालों के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया.

विजेत के इस प्रस्ताव से पूजा के घर में हड़कंप मच गया. धीरज का तो खून खौल उठा. उस ने विजेत को भलाबुरा कहते हुए साफतौर पर कह दिया कि ये शादी हरगिज नहीं हो सकती. गांवदेहात के इलाकों में आज भी दूसरी जाति में शादी करना सामाजिक परंपराओं का उल्लंघन माना जाता है.

समाज में बदनामी का डर भी था. उस दिन के बाद से विजेत की धीरज के घर आने पर पाबंदी लगा दी गई और घर वाले पूजा पर सख्त नजर रखने लगे.

पूजा और विजेत के प्यार पर जब पहरा लगा तो दोनों बैचेन हो उठे. कभीकभार मोबाइल पर छिपछिप कर बातचीत कर के वह अपने मन की तसल्ली कर लेते. उन्हें एकदूजे के बगैर रहना नागवार लगने लगा तो आखिरकार काफी सोचविचार करने के बाद दोनों ने निर्णय कर लिया कि प्रेम के पंछी किसी पिंजरे में कैद हो कर ज्यादा दिन नहीं रहेंगे.

दिसंबर, 2020 में सर्दियों की एक रात विजेत अपनी प्रेमिका पूजा को घर से भगा ले गया. दूसरे दिन सुबह देर तक जब पूजा अपने कमरे से बाहर नहीं निकली तो उस की मां ने अंदर जा कर देखा, पूजा अपने बिस्तर पर नहीं थी.

पूरे दिन पूजा का भाई धीरज और उस के पिता उस की तलाश करते रहे. जब उन्हें पूजा की कोई खोजखबर नहीं मिली तो थकहार कर उन्होंने तिलवारा थाने में पूजा के गायब होने की रिपोर्ट करा दी.

पुलिस रिपोर्ट में घर वालों ने यह अंदेशा भी व्यक्त किया कि विजेत पूजा को बहलाफुसला कर ले गया है. पूजा के विजेत के साथ भागने की खबर पूरे मोहल्ले में फैल गई तो उस के परिवार की बदनामी होने लगी.

मोहल्ले के लोग चटखारे ले कर पूजा और विजेत के प्रेम प्रसंग की चर्चा करने लगे. सब से ज्यादा जिल्लत का सामना पूजा के भाई धीरज को करना पड़ा. बदनामी के डर से उस का घर से निकलना दूभर हो गया.

उधर घर से भाग कर विजेत और पूजा ने जबलपुर के मातेश्वरी मंदिर में जा कर शादी कर ली. विजेत ने जीवन भर पूजा का साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद दोनों हनीमून के लिए दिल्ली चले गए.

कुछ दिनों तक दिल्ली और आसपास के इलाकों में मौजमस्ती करने के बाद जबलपुर आ कर विजेत पूजा के साथ गढा के गंगानगर में अपने चाचा के मकान में रहने लगा. कुछ दिन प्यारमोहब्बत का नशा दोनों पर छाया रहा. लेकिन समय गुजरते उन के सामने आर्थिक तंगी के डैने फैल गए.

इस बीच 27 फरवरी, 2021 को पुलिस ने एक दिन विजेत और पूजा को खोज निकाला. तब थाने में घर वालों के सामने पूजा ने लिखित बयान दे कर साफ कह दिया कि उस ने अपनी मरजी से विजेत से शादी की है और वह उसी के साथ रहना चाहती है. पूजा के घर वाले उसे उस के हाल पर छोड़ कर घर वापस आ गए.

शादी के पहले विजेत ने पूजा को जो सब्जबाग दिखाए थे, वे धीरेधीरे झूठ साबित होने लगे. विजेत के संग 3 महीने में ही पूजा जान चुकी थी कि विजेत रंगीनमिजाज युवक है. उसे यह भी पता चला कि इसी रंगीनमिजाजी की वजह से उस के खिलाफ 2018 में उस के खिलाफ थाने में एक नाबालिग लड़की से छेड़छाड़ में पोक्सो ऐक्ट का मामला दर्ज हुआ था.

इस बात को ले कर दोनों के बीच मनमुटाव भी बढ़ने लगा. दोनों के बीच होने वाले झगड़े में नौबत मारपीट तक आ चुकी थी. पूजा के अरमानों का गला घोंटा जा रहा था. जब विजेत आए दिन पूजा के साथ मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर 7 मार्च, 2021 को पूजा ने फोन कर के अपने भाई को बुला लिया.

धीरज पहले ही विजेत से खार खाए हुआ था, ऊपर से वह उस की बहन से मारपीट करने लगा तो गुस्से में आगबबूला हो कर वह पूजा को अपने घर शंकराघाट ले आया.

पूजा के मायके आने के बाद विजेत बेचैन रहने लगा. अपने किए पर वह शर्मिंदा था, मगर धीरज के डर से वह उस के घर जा कर पूजा से नहीं मिल पा रहा था. पूजा से मिलने के लिए वह धीरज के घर के आसपास ही चक्कर लगाता रहता था.

11 मार्च, 2021 की सुबह धीरज तिलवारा की ओर जा रहा था. इस दौरान उस ने देखा कि उस का जीजा विजेत उस के घर की ओर जा रहा है. उसे शक हुआ कि विजेत उस के घर जा कर पूजा को फिर से अपने साथ ले जा सकता है. इसलिए वह घर वापस आ गया और छत पर बैठ कर निगरानी करने लगा. इसी दौरान उस ने देखा कि विजेत उस के घर के पीछे की झाडि़यों में खड़ा है. विजेत को वहां देख कर धीरज को गुस्सा आ गया.

उस ने घर से धारदार हंसिया उठाया और विजेत के पीछे दौड़ा. धीरज को देख कर विजेत भागने लगा. विजेत बमुश्किल 500 मीटर ही भाग पाया होगा कि खेतों के बीच मेड़ पर बेरी की झाड़ी के पास गिर गया.

विजेत के जमीन पर गिरते ही धीरज ने उस पर हंसिया से ताबड़तोड़ 15-16 वार कर दिए. कुछ देर तक विजेत छटपटाता रहा. धीरज के सिर पर खून सवार था. उस ने हंसिया से विजेत कश्यप की गरदन धड़ से अलग कर दी.

इतने पर भी जब उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने विजेत के हाथ का एक पंजा काट दिया. दूसरे पंजे को भी उस ने काटने का प्रयास किया, मगर कामयाब नहीं हुआ. इस के बाद विजेत के कटे सिर को ले कर वह अपने घर आया.

घर के एक कोने में कटे सिर को रखते हुए वह घर के अंदर दाखिल हुआ. उस ने अपनी बहन पूजा के पैर छूते हुए हुए कहा, ‘‘बहन मुझे माफ कर देना, विजेत तुझे भगा कर ले गया था, उस अपमान को तो मैं बरदाश्त कर गया. मगर कोई मेरी लाडली बहन के साथ मारपीट करे, यह बरदाश्त नहीं कर सकता. आज मैं ने उस का खेल खत्म कर दिया है.’’