कविता की प्रेम कविता का अंजाम

18 नवंबर की सुबह 8 बज कर 9 मिनट पर पूर्वी दिल्ली के थाना गाजीपुर को फोन पर सूचना मिली कि गाजीपुर के पेपर मार्केट में सीएनजी पंप के सामने खड़े एक ट्रक के पिछले टायर के आगे एक युवक की रक्तरंजित लाश पड़ी है. लाश मिलने की सूचना पर एएसआई धर्मसिंह, हेड कांस्टेबल राजकुमार को साथ ले कर मोटरसाइकिल से पेपर मार्केट पहुंचे. वहां एक 22 पहियों वाली विशालकाय ट्रक खड़ी थी, जिस के बाईं तरफ पहिए के नीचे एक युवक की लाश पड़ी थी, जिस की गरदन को बेरहमी से रेता गया था. गरदन के नीचे काफी खून पड़ा था.

मृतक लाल रंग की चैकदार शर्ट और ग्रे कलर की पैंट पहने हुए था. हत्या का मामला था. एएसआई ने तत्काल इस की सूचना गाजीपुर के थानाप्रभारी अमर सिंह को दे दी. थोड़ी देर में थानाप्रभारी अमर सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए और लाश का बारीकी से मुआयना करने लगे.

मृतक नंगे पैर था और उस के पैर फुटपाथ की तरफ थे. उस का नंगे पैर होना शक पैदा करता था कि उस की हत्या किसी और जगह की गई होगी. उस की गरदन पर दाहिनी ओर किसी धारदार हथियार का गहरा घाव था.

थानाप्रभारी ने आसपास के लोगों और वहां से आनेजाने वालों को रोक कर मृतक की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो पाई. तब उन्होंने क्राइम टीम बुला कर लाश और घटनास्थल की फोटो करा लीं और लाश 7 घंटे के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में रखवा दी.

एएसआई राजेश को घटनास्थल की निगरानी के लिए छोड़ कर थानाप्रभारी अमर सिंह थाने लौट आए. उन्होंने थाने में आइपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया. इस केस की तफ्तीश की जिम्मेदारी उन्होंने स्वयं अपने हाथ में ली. थानाप्रभारी अमर सिंह ने अब तक की सारी काररवाई का ब्यौरा एसीपी आनंद मिश्रा और डीसीपी ओमबीर सिंह को दे दिया.

कल्याणपुरी के एसीपी आनंद मिश्रा ने थानाप्रभारी अमर सिंह, सब इंसपेक्टर सोनू तथा कांस्टेबल नीरज की एक टीम बना कर इस मामले को जल्द से जल्द हल करने के आदेश दिए. पुलिस टीम इस ब्लाइंड मर्डर केस की जांच में जुट गई. थानाप्रभारी टीम के साथ गाजीपुर के पेपर मार्केट में घटनास्थल पर पहुंचे और उन्होंने हत्या से जुड़े संभावित सुरागों की तलाश में वहां के पासपड़ोस के बहुत से लोगों से पूछताछ की. लेकिन उन्हें वहां ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो मृतक को पहचानता हो.

कई घंटे तक घटनास्थल की खाक छानने के बाद भी जब अमर सिंह को इस हत्याकांड से जुड़ा कोई सुराग नहीं मिला तो वह वापस थाने लौट आए. उन्होंने सभी निकटवर्ती थानोंं को इस वारदात की जानकारी दे कर उन के यहां हाल ही में गुम हुए लोगों के बारे में पूछताछ की, लेकिन किसी का भी हुलिया मृतक के हुलिए से मेल नहीं खा रहा था.

उसी दिन शाम के वक्त एक औरत अपने 2 जानने वालों के साथ गाजीपुर थाने के ड्यूटी औफिसर के पास पहुंची. उस ने बताया कि उस का पति मिथिलेश ओझा पिछली रात से घर वापस नहीं लौटा है. वह नोएडा में नौकरी करता था. उस ने अपने पति का फोटो भी दिखाया. जब थाने में मौजूद ड्यूटी औफिसर ने उसे अज्ञात मृतक की फोटो दिखाई तो उसे देखते ही वह बुरी तरह से बिलख उठी.

उस ने रोते हुए बताया कि यह फोटो उस के पति मिथिलेश ओझा का है. इस के बाद उसे लाश दिखाने के लिए लालबहादुर शास्त्री अस्पताल की मोर्चरी में ले जाया गया, जहां उस ने लाश को देखते ही उस की शिनाख्त अपने पति मिथिलेश ओझा के रूप में कर दी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद उसे थाना गाजीपुर ला कर फिर से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि उस का नाम कविता है. वह अपने पति और 2 बच्चों के साथ दल्लूपुरा में किराए के एक मकान में रहती है. कल यानी 16 नवंबर को उस का पति रोज की तरह सुबह घर से काम पर नोएडा के लिए निकला था. वह नोएडा के सेक्टर 63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी में ड्राइवर था.

काम खत्म होने के बाद वह रात को 9 बजे तक घर लौट आता था. लेकिन कल रात वह घर नहीं लौटा. पति के नहीं लौटने से वह बहुत परेशान थी. उस ने पति के मोबाइल पर काल भी की लेकिन उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ आ रहा था.

कविता ने अपने सभी नातेरिश्तेदारों को फोन कर के पति के बारे में पूछा. लेकिन उसे कहीं से भी मिथिलेश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. पूरे दिन पति को इधरउधर तलाश करने के बाद वह अपने जीजा अरविंद मिश्रा और पति के दोस्त विजय कुमार के साथ पति की गुमशुदगी दर्ज करवाने थाने आ गई.

कविता के पति मिथिलेश ओझा के कातिलों का सुराग हासिल करने के लिए उस से मिथिलेश की किसी से संभावित दुश्मनी के बारे में पूछताछ की गई. उस ने बड़ी मासूमियत से बताया कि उस का पति बहुत मिलनसार स्वभाव का था. उस की किसी से दुश्मनी नहीं थी. उस की बात सुन कर थानाप्रभारी अमर सिंह सोच में पड़ गए.

दरअसल, ऐसा कोई कारण जरूर था, जिस की वजह से बीती रात उस के पति मिथिलेश ओझा की हत्या हो गई थी. अब या तो कविता को अपने पति की हत्या के कारण की जानकारी नहीं थी, या वह जानबूझ कर पुलिस से कुछ छिपा रही थी. निस्संदेह यह तफ्तीश का विषय था. थानाप्रभारी ने कविता से उस के और उस के पति के साथ उस के सभी नजदीकी परिजनों के मोबाइल नंबर पूछ कर अपनी डायरी में नोट कर लिए. इस के बाद उन्होंने कविता को घर जाने को इजाजत दे दी.

जब इन सभी नंबरों की काल डिटेल्स मंगवाई गई तो विजय कुमार और कविता के फोन नंबरों की काल डिटेल्स की जांच पड़ताल के दौरान थानाप्रभारी अमर सिंह की आंखें चमक उठीं. उन्होंने देखा कि दोनों के बीच मोबाइल पर अकसर बातें होती थीं. घटना वाले दिन शाम के वक्त विजय ने ही मिथिलेश के मोबाइल पर आखिरी काल की थी. यह देख कर उन्हें विजय कुमार और मृतक की पत्नी कविता पर शक हुआ.

उन्होंने विजय को थाने बुला कर उस के और कविता के बीच होने वाली बातचीत के बारे में पूछताछ की. पहले तो विजय कुमार ने उन्हें अपनी बातों से बरगलाने की कोशिश की, लेकिन बाद में वह टूट गया. उस ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. कविता से भी उस के तथा विजय के संबंधों के बारे में काफी पूछताछ की गई.

पूछताछ के दौरान कविता ने स्वीकार किया कि उस के और विजय कुमार के बीच अवैध संबंध हैं, लेकिन पति की हत्या में उस की संलिप्तता नजर नहीं आई. जबकि विजय ने अपने इकबालिया बयान में बताया कि उस ने अपने दूसरे साथी दुर्गा प्रसाद के साथ मिल कर इस जघन्य वारदात को अंजाम दिया था.

विजय को उसी वक्त गिरफ्तार कर लिया गया. विजय की सुरागरसी पर उस के साथी दुर्गाप्रसाद को भी उसी दिन उस के घर दल्लूपुरा से गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ के दौरान उस ने मिथिलेश की हत्या में शामिल होने की बात स्वीकार कर ली. दोनों आरोपियों के बयान तथा कविता से हुई पूछताछ के बाद मिथिलेश ओझा की हत्या की एक ऐसी सनसनीखेज दास्तान उभर कर सामने आई.

35 वर्षीय मिथिलेश ओझा बिहार के जिला रोहतास का मूल निवासी था. अपनी पत्नी कविता तथा 2 बच्चों के साथ वह नोएडा के हरौला गांव में किराए के मकान में रहता था. वह नोएडा के सेक्टर-63 स्थित एक प्राइवेट कंपनी की लोडर गाड़ी चलाता था. उस की पत्नी कविता सुंदर और चंचल स्वभाव की थी.

उन्हीं दिनों हरौला गांव मं विजय कुमार ने सुनार की दुकान खोली. दुकान की ओपनिंग के मौके पर उस ने बिहार के लोगों को अपनी दुकान पर आमंत्रित किया था. उस प्रोग्राम में कविता भी काफी सजधज कर आई थी. विजय की नजर जब कविता पर पड़ी तो वह उसे एकटक देखता रह गया. विजय को अपनी तरफ देखता देख कर वह एकदम शरमा गई.

उस वक्त वहां बहुत सारे लोग एकत्र थे, इसलिए विजय ने कविता से कुछ नहीं कहा. फिर भी प्रोग्राम के दौरान उस ने चलाकी से कविता से उस का नाम और मोबाइल नंबर ले लिया. कविता को भी विजय का यह अपनापन बहुत अच्छा लगा. वहां से जाते वक्त उस ने अपने घर का पता बता कर उसे अपने घर चाय पीने के लिए आमंत्रित किया.

एक दिन बाद ही विजय कविता से मिलने उस के घर जा पहुंचा. विजय को अपने घर आया देख कर कविता बहुत खुश हुई. उस ने विजय को बिठा कर उस की खूब आवभगत की. थोड़ी देर के बाद कविता का पति मिथिलेश ओझा भी वहां आ गया. कविता ने विजय का परिचय मिथिलेश से कराया तो वह बड़ी गर्मजोशी से मिला. विजय ने बताया कि वह भी बिहार के रोहतास का रहने वाला है.

कुछ देर वहां रहने के बाद विजय वहां से चला गया, लेकिन इस दौरान आंखों ही आंखों में अपने दिल की बात कविता पर जाहिर कर दी. जवाब में कविता ने भी उस की ओर देख कर आंखों के इशारे से यह जता दिया कि जो आग उस के दिल में लगी है, वही आग उस के सीने में भी धधक रही है.

इस तरह कविता के घर आतेजाते विजय और कविता का मिलनाजुलना शुरू हो गया. एक दिन विजय जानबूझ कर कविता के घर उस समय पहुंचा, जब मिथिलेश घर में नहीं था. कविता ने विजय को घर में बिठा कर उस से मीठीमीठी बातें शुरू कर दीं.

विजय को इसी दिन का इंतजार था. उस ने कविता कोे दरवाजा बंद करने का इशारा किया तो कविता ने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और उस के पास आ कर बैठ गई. एकांत का फायदा उठाते हुए विजय ने कविता को अपनी बांहों में भर लिया.

प्रेमी की गर्म सांसों में पिघल कर कविता ने उसे मनमानी करने की खूली छूट दे दी. उस दिन के बाद जब भी उन्हें मौका मिलता, वे जमाने की आंखों से छिप कर शारीरिक संबंध बना लेते थे. इस तरह 4-5 साल किसी को भी उन के प्रेमिल संबंधों की जानकारी नहीं हुई.

लेकिन बाद में कुछ लोगों ने मिथिलेश को बताया कि उस की गैरमौजूदगी में विजय उस के घर आता है और काफी देर तक रुकता है. यह जानने के बाद मिथिलेश ने कविता को डांटा और भविष्य में विजय से नहीं मिलने को कहा. उस वक्त तो कविता ने उस की बात मान ली, लेकिन बाद में उस का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी रहा.

कुछ दिन तक तो मिथिलेश को लगा कि उस की पत्नी सुधर गई है, लेकिन बाद में जब उसे पता चला कि उस की गैरहाजिरी में कविता और विजय का मिलनाजुलना बदस्तूर जारी है तो इस से परेशान हो कर वह हरौला छोड़ कर दिल्ली के दल्लूपुरा में शिफ्ट हो गया.

दूसरी ओर विजय कुमार कविता के इश्क में इस तरह पागल था कि जिस दिन उस की कविता से बात नहीं होती थी, उस के दिल को चैन नहीं मिलता था. कविता के नोएडा से दिल्ली आ जाने के बाद वह सारा दिन कविता से मिलने के बारे में सोचता रहता था.

जब उसे कविता की बहुत याद सताती तो वह उस के मोबाइल पर बातें कर के अपने दिल की चाहत बयां कर लिया करता था. कुछ दिनों के बाद विजय ने कविता से उस के घर का पता पूछा और उस से मिलने उस के घर आना शुरू कर दिया.

अभी मिथिलेश ओझा दल्लूपुरा में नया शिफ्ट हुआ था. वहां उसे जानने वालों की संख्या बहुत कम थी. उस के घर कौन कब आता है… कब जाता है, इस से किसी को कोई मतलब नहीं था. विजय कभी कविता से मिलने उस के घर आ जाता तो कभी कविता उस से मिलने चली जाती थी.

विजय के पास इंडिका कार थी. वह कविता को कार में बिठा कर लौंग ड्राइव पर ले जाता. रास्ते में कहीं एकांत जगह पर कार खड़ी कर के दोनों अपनी वासना की आग ठंडी कर लेते थे. इस तरह कविता और विजय दोनों मिथिलेश की आंखों में धूल झोंक कर काफी दिनों तक शारीरिक संबंध बनाते रहे.

घटना से कुछ दिन पहले एक दिन मिथिलेश ओझा के मकान मालिक ने उसे अपने घर पर बुला कर कहा कि उस ने कल उस के दोस्त विजय की मोटर साइकिल पर कविता को बैठे देखा था. कविता विजय की मोटरसाइकिल के पीछे उस की कमर में हाथ डाले बैठी थी.

यह सुन कर मिथिलेश के तनबदन में आग लग गई. उस ने मकान मालिक का शुक्रिया अदा किया और घर लौट कर कविता को खूब डांट पिलाई. दूसरे दिन वह अपने दोस्त विजय से मिला और उसे अपने घर आने से मना कर के धमकी दी कि अगर उस ने कविता से मिलनाजुलना नहीं छोड़ा तो अपने भतीजे मुन्ना की मदद से उस की हत्या करा देगा.

विजय मिथिलेश की बात सुन कर डर गया. वह जानता था कि गुड़गांव में रहने वाला मिथिलेश का भतीजा मुन्ना कई खतरनाक बादमाशों को जानता है और अगर मुन्ना चाहे तो बड़ी आसानी से बदमाशों से उस की हत्या करा सकता है. दूसरे वह कविता के बिना भी रह नहीं सकता था.

मिथिलेश की धमकी के बाद विजय के मन में सदा यह डर बना रहता था कि अगर उस ने मिथिलेश को अपने रास्ते से नहीं हटाया तो किसी भी दिन उस की हत्या की जा सकती है. इस बारे में कई दिनों तक सोचने के बाद उस ने मन में मिथिलेश की हत्या करने का इरादा बना लिया. लेकिन यह बात उस ने कविता को नहीं बताई.

एक दिन उस ने अपने दोस्त दुर्गा प्रसाद को विश्वास में ले कर उसे पूरी बात बताई. साथ ही कहा भी कि अगर वह मिथिलेश की हत्या में उस का साथ दे तो इस के बदले उसे अच्छी खासी रकम देगा.

40 वर्षीय दुर्गाप्रसाद दिल्ली में छोटामोटा काम कर के अपने परिवार की गुजरबसर कर रहा था. उस की बड़ी बेटी शादी के लायक हो गई थी, इसलिए उसे बड़ी रकम की जरूरत थी. वह विजय कुमार का साथ देने के लिए राजी हो गया. बदले में विजय ने उस की बेटी की शादी में आर्थिक मदद करने की बात मान ली.

17 नवंबर, 2017 की शाम विजय कुमार ने फोन कर के दुर्गाप्रसाद को अपनी दुकान पर बुलाया. दुकान के बाहर उस की सिल्वर कलर की इंडिका कार खड़ी थी.

योजना के अनुसार दोनों कार में सवार हो कर नोएडा के सेक्टर-11 की रेड लाइट पर पहुंच कर मिथिलेश ओझा के काम से लौटने का इंतजार करने लगे. करीब साढ़े 8 बजे मिथिलेश ओझा अपनी साइकिल पर उधर से आता हुआ दिखाई दिया तो विजय ने उसे आवाज दे कर बुला लिया.

फिर उस से बातें करते हुए अपनी कार के पास आ कर बोला, ‘‘यार, बड़ी सर्दी हो रही है, चलो कार में बैठ कर बातें करते हैं.’’ बातें करतेकरते विजय कार की ड्राइविंग सीट पर बैठ गया और मिथिलेश ओझा ने अपनी साइकिल वहीं पर खड़ी कर दी और कार की पिछली सीट पर बैठे दुर्गा प्रसाद की बगल में जा बैठ गया.

मिथिलेश से विजय ने कहा कि एक जगह चलना है. उस की बात सुन कर मिथिलेश ओझा उस के साथ जाने को राजी हो गया. इस के बाद कार टी पौइंट से हो कर कोंडली में शराब के ठेके के पास पहुंची. वहां से शराब की बोतल और कोल्डड्रिंक ले कर विजय ने कार में बैठ कर तीनों के लिए पैग बनाए.

इसी बीच मिथिलेश की नजर बचा कर विजय ने मिथिलेश के पैग में नींद की गोलियां मिला कर उसे पैग पीने के लिए दे दिया. थोड़ी देर में आने वाली मौत की आहट से बेखबर मिथिलेश जाम से जाम टकराने के बाद शराब की चुस्कियां लेने लगा. बोतल की शराब खत्म होने पर भी जब मिथिलेश को अधिक नशा नहीं हुआ, तब विजय फिर ठेके पर पहुंचा और शराब का एक अद्धा और खरीद लाया.

विजय और दुर्गा प्रसाद ने कम शराब पी और मिथिलेश को जानबूझ कर इतनी अधिक पिला दी जिस से वह बेहोश हो गया. उस के बेहोश होते ही विजय और दुर्गा प्रसाद एक दूसरे की ओर देख कर मुसकराए.

विजय कार चलाते हुए गाजीपुर के पेपर मार्केट में पहुंचा, जहां एक सुनसान सी जगह पर 22 पहियों वाला ट्रक खड़ा था. उस के बराबर कार में रोक कर विजय पिछली सीट पर पहुंचा और दुर्गा प्रसाद की मदद से एक रस्सी से मिथिलेश का गला घोंट दिया.

मिथिलेश की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश को घसीट कर कर की पिछली सीट से नीचे उतारा और उस विशालकाय ट्रक के पिछले पहिए के सामने रख दिया. विजय ने दुर्गा प्रसाद से सड़क पर निगरानी करने के लिए कहा और खुद एक पेपर कटर ले कर बेदर्दी से मिथिलेश का गला रेत दिया.

विजय ने सोचा कि रात के अंधेरे में ड्राइवर ट्रक चलाएगा तो मिथिलेश का चेहरा बुरी तरह कुचला जाएगा, जिस से पुलिस उस की शिनाख्त नहीं कर पाएगी. मिथिलेश की जेब में रखे कागजात, मोबाइल फोन और उस की चप्पलनिकाल कर विजय और दुर्गा प्रसाद कार से वापस नोएडा के टी प्वाइंट पर पहुंचे. रास्ते में उन्होंने मिथिलेश की चप्पल, मोबाइल की बैटरी फेंक दी. इस के बाद दुर्गाप्रसाद को उस के घर दल्लूपुरा में छोड़ कर विजय अपने घर लौट गया.

सुबह साढ़े 7 बजे विजय फिर लाश के पास पहुंचा तो ट्रक को वहीं खड़ा देख कर उसे डर सा लगा. उस ने वहीं से दुर्गा प्रसाद को फोन कर के मिथिलेश की साइकिल को रात वाली जगह से हटा कर कहीं पर छिपा देने के लिए कहा. इस के बाद वह अपने घर आ गया.

थोड़ी देर बाद उस के मोबाइल पर कविता का फोन आया. कविता ने उसे बताया कि रात में उस का पति घर नहीं लौटा है. उसकी बात सुन कर वह सहानुभूति का नाटक करने उस के घर दल्लूपुरा पहुंचा. फिर वह कविता और उस के जीजा अरविंद मिश्रा के साथ मिथिलेश ओझा की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए गाजीपुर थाने पहुंच गया.

थानाप्रभारी अमर सिंह ने 11 नवंबर को मिथिलेश हत्याकांड में दोनों आरोपियों विजय कुमार और दुर्गा प्रसाद को दिल्ली के कड़कड़डुमा की अदालत में पेश कर दिया, जहां से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

दीवानगी की हद में मंगेतर बना दरिंदा

अपनी रोजमर्रा की रफ्तार से चल रहे कोटा शहर का शुक्रवार 8 दिसंबर का दिन बेहद सर्द था.  एक दिन पहले बारिश हो कर हटी थी, जिस से ठिठुरन में खासा इजाफा हो गया था. बादलों की वजह से सूरज सुबह से ही ओझल था. लिहाजा पूरा शहर धुंधलके की गिरफ्त में था. चंबल नदी के करीब होने के कारण शहर के स्टेशन का इलाका कुछ ज्यादा ही सर्द था. लगभग आधा दरजन छोटीमोटी बस्तियों में बंटे इस इलाके में तकरीबन 20 हजार की आबादी वाला क्षेत्र नेहरू नगर कहलाता है.

मिलीजुली बिरादरी वालों की इस बस्ती में ज्यादातर निम्नमध्य वर्ग के दिहाड़ी कामकाजी लोग रहते हैं. बस्ती के करीब से अच्छीखासी चौड़ाई में फैला एक नाला गुजरता है. इसलिए इस की तरफ से गुजरने वाला करीब एक फर्लांग का फासला कुछ संकरा हो जाता है.

इसी बस्ती की रहने वाली शाहेनूर अपनी छोटी बहन इशिका के साथ कोचिंग के लिए जा रही थी. हाथों में किताबें थामे दोनों बहनें चलतेचलते आपस में बातचीत करती जा रही थीं. जैसे ही वे नेहरू नगर बस्ती से निकलने वाले रास्ते की तरफ कदम बढ़ाने को हुईं, शाहेनूर एकाएक ठिठक  कर रह गई.

किसी अनचाहे शख्स के अंदेशे में उस ने पलट कर पीछे देखा. पीछे एक बाइक सवार को देख कर उस की आंखों में खौफ की छाया तैर गई क्योंकि वह उस युवक को जानती थी. शाहेनूर ने तुरंत अपनी छोटी बहन का हाथ जोर से पकड़ा और घसीटते हुए कहा, ‘‘जरा तेज कदम बढ़ाओ.’’

इशिका ने बहन को खौफजदा पाया तो फौरन पलट कर पीछे देखा. वह भी पूरा माजरा समझ गई. इस के बाद दोनों बहनें फुरती से तेजतेज चलने लगीं.

दाढ़ीमूंछ और सख्त चेहरे वाला वह युवक साबिर था, जो शाहेनूर का मंगेतर था. पर किसी वजह से उस से सगाई टूट गई थी. उस युवक को देख कर दोनों बहनों की चाल में लड़खड़ाहट आ गई थी. आशंका को भांप कर शाहेनूर ने मोबाइल निकाल कर किसी का नंबर मिलाया.

वह मोबाइल पर बात कर पाती, उस के पहले ही साबिर उस के पास पहुंच गया. उस ने मोबाइल वाला हाथ झटकते हुए शाहेनूर का गला दबोच लिया. गले पर कसती सख्त हाथों की गिरफ्त से छूटने के लिए शाहेनूर ने जैसे ही हाथ चलाने की कोशिश की, साबिर ने जेब में रखा मिर्च पाउडर उस के ऊपर फेंक दिया.

चीखते हुए शाहेनूर ने एक हाथ से आंखें मलने लगी और दूसरे हाथ से छोटी बहन इशिका का हाथ पकड़ने की कोशिश की. इशिका भी बहन के लिए चीखने लगी. तभी साबिर ने चाकू निकाल कर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए.

बदहवास इशिका ने चिल्लाने की कोशिश की, लेकिन उस के गले से आवाज निकलने के बजाय वह जड़ हो कर रह गई. तब तक दरिंदगी पर उतारू साबिर शाहेनूर पर ताबड़तोड़ वार करता हुआ उसे छलनी कर चुका था. उस की दर्दनाक चीखों से आसपास का इलाका गूंज रहा था और उस के शरीर से फव्वारे की मानिंद छूटता खून जमीन को सुर्ख कर रहा था.

उधर से गुजरते लोगों ने यह खौफनाक नजारा देखा भी, लेकिन बीचबचाव करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. सभी मुंह फेर कर चलते बने. इशिका ने राहगीरों को मदद के लिए पुकार भी लगाई, लेकिन उस की कोशिश नाकाम रही. नतीजतन उस ने वापस अपने घर की तरफ गली में दौड़ लगा दी. घर पहुंच कर उस ने बहन पर हमले वाली बात घर वालों को बता दी.  यह खबर सुन कर घर वालों की चीख निकल गई.

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वे रोतेबिलखते इशिका के साथ चल दिए. करीब 5 मिनट बाद वे घटनास्थल पर पहुंच गए. शाहेनूर की खून से लथपथ लाश वहां पड़ी थी. घर वाले दहाड़ें मार कर रोने लगे. कुछ लोग वहां जमा हो चुके थे. खबर आग की तरह इलाके में फैली तो भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा.

किसी ने इस वारदात की खबर फोन द्वारा भीममंडी थाने को दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतका की छोटी बहन इशिका ने सारी बात पुलिस को बता दी. इस से पुलिस को पता चल गया कि इस का हत्यारा साबिर है. घटनास्थल पर उस की मोटरसाइकिल भी खड़ी थी.

पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तो गली में दूर तक खून सने पावों के निशान मिले, जो निश्चित रूप से भागते हुए साबिर के थे. थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और खुद वहां मौजूद लोगों से बातें करने लगे. अभी यह सब काररवाई चल ही रही थी कि एसपी अंशुमान भोमिया, एडिशनल एसपी अनंत कुमार और सीओ शिवभगवान गोदारा समेत अन्य पुलिस अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल की जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भिजवा दिया. दिनदहाड़े हुई हत्या के बाद लोगों में डर बैठ गया. एसपी अंशुमान भोमिया ने सीओ शिवभगवान गोदारा के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा सहित अन्य तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को शामिल किया.

टीम ने आरोपी साबिर की संभावित जगहों पर तलाश की, पर कोई जानकारी नहीं मिली. उस के बाद मुखबिर की सूचना पर साबिर को मुरगीफार्म के पास जंगल से दबोच लिया गया. वह चंबल नदी क्षेत्र के घने जंगल में छिपने की कोशिश कर रहा था. अगर एक बार वह बीहड़ में पहुंच जाता तो उस का गिरफ्त में आना मुश्किल था.

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शाहेनूर की मां शमीम बानो

छाबड़ा में तैनात शाहेनूर के पिता असलम खान को हादसे की खबर कर दी गई, लेकिन तब तक वह कोटा नहीं पहुंचे थे. शव इस कदर क्षतविक्षत था कि एक पल के लिए तो डाक्टर भी स्तब्ध रह गए. उन के मुंह से निकले बिना नहीं रहा कि लगता है हमलावर साइकोपेथी का शिकार था और वह अपना दिमागी संतुलन पूरी तरह खो चुका था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में शाहेनूर के शरीर पर 2 दरजन से ज्यादा घाव मिले थे. पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के मुताबिक मौत की वजह वे घातक वार बने, जिन्होंने दाएं फेफड़े और लीवर को पंक्चर कर दिया था. चाकू के गहरे वार पीठ, सीना, हाथ सिर, मुंह और आंखों सहित हर जगह पाए गए. चाकू का हर वार 2 से 3 सेंटीमीटर चौड़ा था. डाक्टरों के मुताबिक हर वार पूरी ताकत से किया गया था.

शुरुआती पूछताछ में शाहेनूर के मामा फिरोज अहमद और मां शमीम बानो ने पुलिस को बताया कि पिछले साल अगस्त में शाहेनूर उर्फ शीनू की मंगनी साबिर हुसैन से की गई थी. साबिर फेब्रिकेशन का काम करता था. इस के बाद साबिर का उन के घर आनाजाना शुरू हो गया.

इसी दौरान उन्हें साबिर के चालचलन के बारे में कई जानकारियां मिलीं. पता चला कि साबिर न सिर्फ अव्वल दरजे का नशेड़ी है, बल्कि उस की सोहबत जरायमपेशा किस्म के लोगों से भी है. शमीम बानो ने कहा, ‘तब हम ने घर बैठ कर आपस में मशविरा कर के इस नतीजे पर पहुंचे कि साबिर से बेटी का रिश्ता कायम रखने का मतलब शाहेनूर सरीखी संजीदा लड़की का भविष्य दांव पर लगाना होगा. नतीजतन रिश्ता तोड़ना ही बेहतर समझा गया. काफी सोचनेसमझने के बाद करीब 6 महीने पहले हम ने साबिर से रिश्ता तोड़ दिया.’

साबिर असलम खान के घर आनेजाने का आदी हो चुका था और शाहेनूर से प्यार भी करने लगा था. वह शाहेनूर से शादी करना चाहता था. शमीम बानो का कहना था कि मंगनी तोड़ने से साबिर इस हद तक बौखला गया कि एक दिन वह तूफान मचाता हुआ घर पहुंच गया. उन की मौजूदगी में शाहेनूर के साथ मारपीट कर बैठा.

शाहेनूर के पिता असलम उन दिनों घर पर नहीं थे. वह छाबड़ा में अपनी नौकरी पर थे. असलम छोटीछोटी बातों पर बहुत गुस्सा करने वाले इंसान थे. बेटी की पिटाई वाली बात उन्हें इसलिए नहीं बताई गई कि वह गुस्से में आगबबूला हो कर कोई अनर्थ न कर बैठें या कहीं कोई बवाल ना मच जाए.

इस के बाद यह बात आईगई हो गई. साबिर का भी असलम के यहां आनाजाना एक तरह से बंद हो गया. पर वह अकसर शाहेनूर के घर के आसपास की गलियों में घूमता दिखाई देता था.

बाद में जब असलम को बात पता चली तो उन्होंने पुलिस में जाना इसलिए जरूरी नहीं समझा, क्योंकि खामखाह बिरादरी में बदनामी होती. शाहेनूर से दूरी बनाने के बजाय साबिर उसे फोन पर परेशान करने लगा. शाहेनृर ने यह बात घर वालों को बताई तो घर वालों ने उस से यह कह दिया कि वह साबिर से बात न करे.

साबिर की हिम्मत दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी. शाहेनूर 12वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस ने ऐच्छिक विषय उर्दू ले रखा था, इस की वजह से वह 3 बजे के करीब एक इंस्ट्टीयूट में उर्दू की पढ़ाई करने जाती थी. साबिर जब शाहेनूर को रास्ते में परेशान करने लगा तो घर का कोई न कोई सदस्य उसे कोचिंग तक छोड़ने जाने लगा.

4 बेटियों के पिता असलम खान कोटा से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर बारां जिले के छाबड़ा कस्बे में नौकरी करते थे. वह थर्मल में बतौर तकनीशियन तैनात थे. शाहेनूर और इशिका के अलावा उन की 2 बेटियां और थीं, जो काफी छोटी थीं. नौकरी के लिहाज से असलम छाबड़ा में ही रहते थे. लेकिन हफ्तापंद्रह दिन में कोटा में अपने घर आते रहते थे.

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पुलिस ने जिस वक्त चंबल के बीहड़ों से साबिर को गिरफ्तार किया था. उस की कलाइयां लहूलुहान थीं और वो नशे में धुत था. तलाशी में पुलिस ने उसकी जेब से पाउडर सरीखा जहरीला पदार्थ बरामद किया था. पूछताछ में उस ने कबूल किया कि आत्महत्या करने की कोशिश में उस ने अपनी कलाई की नसें काटने की कोशिश की थी. जहर की पुडि़या भी उस ने खुदकुशी की खातिर ही अपने पास रखी थी. लेकिन वह उसे इस्तेमाल करता, इस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया.

साबिर ने पुलिस को बताया कि वह पहले अपने परिवार के साथ बोरखेड़ा में रहता था. लेकिन पिछले कुछ दिनों से खेडली इलाके में कमरा किराए  पर ले कर अकेला रह रहा था. पूछताछ के दौरान वह हर सवाल पर ठहाके मार कर हंस रहा था.

सुबह होने पर जब उस का नशा उतरा तो उस ने रोना शुरू कर दिया. शायद उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था. पुलिस ने उसे भादंवि की धारा 302 के तहत गिरफ्तार कर सोमवार 12 दिसंबर को कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

13 दिसंबर को पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में पुलिस ने शाहेनूर की हत्या के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस का दिल तो उसी दिन टूट गया था, जिस दिन शाहेनूर से उस का रिश्ता टूटा था. वह उसे दिलोजान से चाहता था, पर उस ने मेरी मोहब्बत को तरजीह नहीं दी.

साबिर ने बताया कि उसे मारने के बाद वह खुद भी मर जाना चाहता था. इसलिए उस ने अपनी कलाई की नसें काटीं. वह जंगल में जहर खा कर मर जाता, लेकिन पुलिस ने उस की मंशा पूरी नहीं होने दी.

पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. मामले की जांच थानाप्रभारी रामखिलाड़ी मीणा कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमिका की हत्या का गवाह बना सूटकेस

एसएचओ ने घटनास्थल पर पहुंच कर देखा तो वहां वास्तव में एक सूटकेस अधजली हालत में पड़ा था. उसी के साथ कुछ अधजली लकड़ियों से पेट्रोल की गंध भी महसूस हुई. इस से उन्होंने अंदाजा लगाया कि किसी ने बाहर से यह सूटकेस यहां ला कर उस पर लकड़ियों रख कर पेट्रोल डाल कर जलाने की कोशिश की थी.

सूटकेस में एक युवती की लाश निकली, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी मृतका की शिनाख्त नहीं कर पाया तो यही लगा कि मृतका आसपास के क्षेत्र की रहने वाली नहीं होगी. मृतका की उम्र यही कोई 24-25 साल थी.

गुजरात के शहर राजकोट के बाहर ग्रामीण इलाके में गांव पदधारी के पास काफी जमीन बंजर पड़ी है. इस जमीन पर घास के अलावा और कुछ नहीं होता, इसलिए उधर लोग कम ही आतेजाते थे. केवल जानवर चराने वाले दोपहर बाद अपने जानवर ले कर चराने के लिए आते थे.

9 अक्तूबर, 2023 की दोपहर के बाद जब कुछ लोग अपने जानवर उस सुनसान बंजर जमीन पर चराने के लिए ले आए तो उन्हें ही वहां वह अधजला सूटकेस दिखाई दिया था.

उन लोगों ने इस बात की सूचना गांव के सरपंच कनुभाई परमार को दी. कुछ ही देर में कनुभाई गांव के कई लोगों के साथ घटनास्थल पर जा पहुंचे. सभी को मामला गड़बड़ लगा.

सरपंच ने तुरंत इस की सूचना क्षेत्रीय थाना पदधारी में दे दी. सरपंच की सूचना पर ही थाना पदधारी के एसएचओ जी.जे. जाला सहयोगियों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे थे.

घटनास्थल पर काफी लोग जमा थे. जिस स्थिति में लाश मिली थी, साफ था कि यह सुनियोजित हत्या कर लाश ठिकाने लगाने का मामला था. लाश की शिनाख्त जरूरी थी, इसलिए पुलिस ने आसपास का निरीक्षण शुरू किया कि शायद वहां कोई ऐसी चीज मिल जाए, जिस से लाश की शिनाख्त हो जाए.

काफी कोशिश के बाद भी वहां कोई ऐसी चीज नहीं मिली, जिस से लाश के बारे में कुछ पता चलता. सिर्फ एक गाड़ी के टायरों के निशान जरूर दिखाई दिए. वे निशान भी थोड़ा अलग थे. वे निशान किसी बड़ी गाड़ी के दिख रहे थे, क्योंकि वह निशान चौड़े टायरों के थे.

एसएचओ ने फोटोग्राफर के साथसाथ फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई करने के बाद पुलिस ने सूटकेस जब्त कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

थाने लौट कर एसएचओ जी.जे. जाला ने पूरे स्टाफ को बुला कर कहा, ”सब से पहले तो यह पता लगाओ कि आसपास के किसी गांव की इस उम्र की कोई युवती गायब तो नहीं है? इस के बाद यह पता करो कि जिले के किसी थाने में इस तरह की युवती की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई? क्योंकि लाश की जो हालत थी, उस से साफ लग रहा था कि उस युवती की हत्या कम से कम 3 दिन पहले हुई थी.

पुलिस अपने सूत्रों से यह पता लगाने में जुट गई कि लाश वाली युवती कौन हो सकती है? आसपास के ही नहीं, पूरे राजकोट के सभी थानों से पता किया गया कि किसी थाने में 24-25 साल की युवती की गुमशुदगी तो नहीं दर्ज कराई गई है. दुर्भाग्य से राजकोट के किसी थाने में उस तरह की युवती की कोई गुमशुदगी नहीं दर्ज थी.

कहीं किसी मुखबिर से भी सूचना नहीं मिल रही थी कि उस तरह की युवती कहां रहती थी और अब दिखाई नहीं दे रही है. जब जिले के किसी थाने से कोई जानकारी नहीं मिली तो एसएचओ ने अगलबगल के जिलों से पता किया. पर इस में भी उन्हें निराश ही होना पड़ा. अब क्या किया जाए, एसएचओ ने सहयोगियों के साथ सलाह मशविरा किया. क्योंकि बिना शिनाख्त के हत्यारे तक पहुंचा नहीं जा सकता था.

जब कोई सहयोगी उचित सलाह नहीं दे सका तो एसएचओ जी.जे. जाला ने खुद ही अपना दिमाग लगाया. उन्होंने वह सूटकेस मंगवाया, जिस में रख कर लाश जलाई गई थी. उन्होंने उस अधजले सूटकेस को उलटपलट कर देखा तो उस में उस के ब्रांड का नाम मिल गया यानी यह पता चल गया कि वह सूटकेस किस कंपनी का था.

यह पता चलते ही एसएचओ ने ड्राइवर से थाने की जीप निकलवाई और 2 सिपाहियों को साथ ले कर शहर में उस ब्रांड के सूटकेस के जितने भी शोरूम थे, सभी पर जा पहुंचे. लाश 9 अक्तूबर को मिली थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला था कि हत्या 6 अक्तूबर को की गई थी. इसलिए पहली अक्तूबर, 2023 से ले कर 8 अक्तूबर, 2023 तक उस ब्रांड के उस साइज के जितने भी सूटकेस बिके थे, शोरूमों से उन्हें खरीदने वालों के नाम, पते और फोन नंबर प्राप्त कर लिए.

पता चला कि इस बीच उस तरह के कुल 27 सूटकेस बिके थे. दरअसल, यह ब्रांडेड सूटकेस था और इस की वारंटी होती है, इसलिए वापसी का चक्कर रहता है. यही वजह थी कि इसे खरीदने वाला ग्राहक बिल में अपना पूरा नाम, पता और फोन नंबर लिखवाता है.

यह सब करते करते एक महीने का समय निकल गया था. यानी नवंबर महीना चल रहा था. थाने आ कर एसएचओ जी.जे. जाला ने उस बीच उस ब्रांड के सूटकेस खरीदने वाले एकएक आदमी को फोन करना शुरू किया. अपना परिचय दे कर एसएचओ उस के द्वारा खरीदे गए सूटकेस के बारे में पूछते तो हर आदमी सूटकेस खरीदने की वजह बताने के साथसाथ वीडियो काल पर सूटकेस भी दिखा देता.

किसी का सूटकेस किसी रिश्तेदार के यहां होता तो वह अपने रिश्तेदार से बात करा देता. अगर किसी से फोन पर बात न हो पाती तो जी.जे. जाला शोरूम से मिले पते के आधार पर उस के घर पहुंच जाते और पूरी बात बता कर उस के द्वारा खरीदे गए सूटकेस के बारे में पता करते.

इसी तरह एसएचओ जी.जे. जाला ने 26 सूटकेसों के बारे में पता कर लिया. जब उन्होंने 27वें आदमी को फोन किया तो वह बहाने बनाने लगा. कभी वह कहता कि सूटकेस कोई ले गया है तो कभी कहता कि जो सूटकेस ले गया है, अभी दे कर नहीं गया. जब जी.जे. जाला सूटकेस ले जाने वाले का पता पूछते तो वह पता बताने को तैयार नहीं होता.

मजबूर हो कर जी.जे. जाला राजकोट के गांधीग्राम इलाके के आत्मन अपार्टमेंट में रहने वाले उस व्यक्ति मेहुल चोटलिया के यहां पहुंच गए. जब वह आत्मन अपार्टमेंट पहुंचे तो अपार्टमेंट के नीचे उन्हें एक एसयूवी दिखाई दी, जिस के टायर उतने ही चौड़े थे, जितने चौड़े टायर के निशान घटनास्थल पर मिले थे. उस एसयूवी को देखते ही उन्हें लगा कि हो न हो, इसी आदमी ने उस घटना को अंजाम दिया होगा.

उस समय मेहुल चोटलिया घर पर ही था. पुलिस ने उस के फ्लैट की घंटी बजाई तो उस ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर पुलिस देख कर वह घबरा गया. क्योंकि उस के मन में चोर था.

एसएचओ ने उस की शक्ल देख कर ही अंदाजा लगा लिया कि वह सही ठिकाने पर आ गए हैं. उन्होंने आने की वजह बताई तो वह सूटकेस दिखाने में पहले की ही तरह बहानेबाजी करता रहा.

पुलिस को उस पर शक तो था ही, इसलिए उन्होंने उस के फ्लैट की तलाशी ली तो उस के फ्लैट से ऐसी तमाम चीजें मिलीं, जिन का उपयोग महिलाएं करती हैं. लेकिन जब उस से पूछा गया कि उस के फ्लैट में तो कोई महिला है नहीं, यह सामान किस का है? तब पुलिस के इस सवाल का मेहुल कोई उचित जवाब नहीं दे सका.

तब पुलिस ने उस से तरहतरह के सवाल करने शुरू किए. मेहुल झूठ पर झूठ बोलता रहा. पुलिस उसे ले कर नीचे आई तो सामने ही उस की एसयूवी खड़ी थी. पुलिस ने जब उस एसयूवी के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि यह गाड़ी उसी की है.

पुलिस ने उस गाड़ी के टायर एक बार फिर देखे तो वे वैसे ही थे, जिस तरह के निशान उस जली हुई लाश के पास पाए गए थे. एसएचओ जी.जे. जाला को पूरा विश्वास हो गया कि पदधारी गांव के पास सूटकेस में जो लाश जलाई गई थी, वह इसी मेहुल चोटलिया ने ही जलाई थी.

मेहुल को थाने ला कर पूछताछ शुरू हुई. मेहुल मानने को तैयार ही नहीं था कि वह लाश उसी ने जलाई थी. वह लगातार झूठ बोलते हुए इस बात से इनकार करता रहा. चूंकि पुलिस को अब तक काफी सबूत मिल चुके थे, इसलिए पुलिस भी लगातार उस से पूछताछ करती रही.

आखिर झूठ बोलते बोलते जब मेहुल थक गया तो उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने साथ रहने वाली अपनी लिवइन पार्टनर आयशा मकवाना की हत्या कर उस की लाश वहां ले जा कर जलाई थी.

इस के बाद मेहुल ने आयशा से प्यार करने से ले कर उस की हत्या कर के लाश को सूटकेस में रख कर जलाने तक की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

मेहुल चोटलिया राजकोट का ही रहने वाला था. होटल मैनेजमेंट की पढाई करने के बाद उसे राजकोट में ही एक होटल में मैनेजर की नौकरी मिल गई थी. मेहुल थोड़ा आजाद खयाल युवक था, इसलिए नौकरी लगने के बाद उस ने राजकोट के ही गांधीग्राम इलाके के आत्मन अपार्टमेंट में एक फ्लैट खरीद लिया था और उसी में अकेला ही रहने लगा था. उसे गाड़ी का शौक था, इसलिए उस ने चौड़े टायरों वाली एसयूवी कार खरीद ली थी.

आजाद खयाल मेहुल चोटलिया को होटल से अच्छा खासा वेतन मिलता था, इसलिए वह मौज से रहता था. उस के पास अब सब कुछ था, लेकिन कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी. मेहुल को गर्लफ्रेंड की कमी बहुत खलती थी. उस ने इस के लिए प्रयास करना शुरू किया तो एक दिन उसी के होटल में उस की मुलाकात आयशा मकवाना से हो गई.

24 साल की आयशा अहमदाबाद की रहने वाली थी. राजकोट में वह एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी और राजकोट में अकेली ही रहती थी. आयशा भी आजादखयाल थी. वह जीवन के सारे सुख भोगना चाहती थी, पर जिम्मेदारियों का बोझ नहीं उठाना चाहती थी.

ऐसा ही हाल लगभग मेहुल का भी था. इसलिए जब दोनों की मुलाकात हुई तो दोनों के विचार आपस में मिलने की वजह से उन में दोस्ती हो गई. यह दोस्ती जल्दी ही प्यार में बदल गई तो दोनों ने बिन फेरे हम तेरे बनने का फैसला कर लिया.

यानी वह लिवइन रिलेशन में रहने लगे. इस तरह साथ रहने को आज की नई पीढ़ी पसंद भी करती है. इस में रहते तो दोनों पतिपत्नी की तरह हैं, पर दोनों ही एकदूसरे के प्रति न तो जिम्मेदार होते हैं और न ही एकदूसरे का कहना मानते हैं और न ही एकदूसरे के लिए कुछ करना चाहते हैं. सिर्फ मौजमजे के साथी होते हैं.

मेहुल और आयशा भी इसी तरह लिवइन में साथसाथ पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. रहते जरूर दोनों साथसाथ पतिपत्नी की तरह थे, लेकिन अपनी अपनी मरजी के मालिक थे, इसलिए दोनों में अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहता था.

6 अक्तूबर, 2023 को भी किसी बात को ले कर मेहुल और आयशा में लड़ाई हो रही थी, तभी गुस्से में आयशा ने मेहुल को एक तमाचा मार दिया. एक लड़की हो कर आयशा ने एक मर्द मेहुल को तमाचा मार दिया था, इसलिए मेहुल से यह अपमान बरदाश्त नहीं हुआ और उस ने गुस्से में आयशा का गला इतनी जोर से दबा दिया कि उस की मौत हो गई.

गुस्से में मेहुल ने आयशा की हत्या तो कर दी, लेकिन अब पकड़े जाने का डर सताने लगा था. उसे पता था कि अगर पुलिस ने आयशा की हत्या के आरोप में उसे पकड़ लिया तो उस की बाकी की जिंदगी जेल में ही कटेगी.

यह 6 अक्तूबर की शाम घटना थी. उस ने आयशा की लाश को बैडबौक्स में छिपा दिया और इस बात पर विचार करने लगा कि वह आयशा की लाश को कैसे और कहां ठिकाने लगाए कि पुलिस उस की शिनाख्त न करा सके. क्योंकि अब तक वह इतना तो जान ही चुका था कि जब तक लाश की शिनाख्त नहीं हो सकेगी, तब तक पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी.

यही सोचते सोचते वो रात भी बीत गई और अगला पूरा दिन भी. 8 अक्तूबर को लाश से बदबू आने लगी. इस से मेहुल डर गया कि अगर बदबू ज्यादा बढ़ेगी तो पड़ोसी पुलिस को सूचना दे देंगे. तब वह पकड़ा जाएगा.

काफी सोचविचार कर वह बाजार गया और वहां एक सूटकेस के शोरूम से एक ट्रौली वाला सूटकेस खरीद लाया. उसे अंदाजा था कि आयशा की लंबाई ज्यादा नहीं है, इसलिए उस की लाश आराम से उस सूटकेस में आ जाएगी. चूंकि वह शोरूम ब्रांडेड सूटकेस का था, इसलिए बिल बनाते समय उस के नामपते के साथ फोन नंबर भी लिखा गया.

मेहुल सूटकेस ले कर घर आया और आयशा की लाश बैडबौक्स से निकाल कर उस सूटकेस में रख ली. इस के बाद उस ने लिफ्ट से सूटकेस नीचे उतारा और एसयूवी कार में रख कर पास के बाजार गया, जहां से उस ने लकडिय़ां खरीदीं. पेट्रोल पंप से एक बोतल पेट्रोल खरीदा और अपनी एसयूवी से शहर से बाहर ग्रामीण इलाके में आ गया.

कार चलाते हुए वह पदधारी गांव के पास पहुंचा तो गांव के पास उसे सुनसान इलाका दिखाई दिया. उस ने वहीं पर कार से सूटकेस निकाला और उस पर लकडिय़ां रखीं, फिर पेट्रोल डाल कर आग लगा दी.

जब तक लकडिय़ां जलती रहीं, वह वहीं खड़ा रहा. लकडिय़ों की आग बुझने लगी तो वह कार ले कर घर वापस आ गया. उसे जरा भी नहीं लग रहा था कि पुलिस उस तक पहुंच जाएगी, इसलिए निश्चिंत हो कर अपने घर में रह रहा था. लेकिन पुलिस 2 महीने बाद उस तक पहुंच ही गई.

थाना पुलिस ने अहमदाबाद में रहने वाले आयशा के घर वालों को सूचना दी. घर वालों ने आ कर लाश की फोटो देख कर शिनाख्त कर दी. पुलिस ने उन की डीएनए जांच भी कराई है. पूछताछ के बाद पुलिस ने मेहुल चोटलिया को राजकोट की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेमी ने किए प्रेमिका के 31 टुकड़े

पुलिस टीम जब उस जंगल में पहुंची, तब तक वहां पर ग्रामीणों की भारी भीड़ जमा हो चुकी थी. पुलिस ने जब गड्ढे की खुदाई कराई तो वहां का मंजर देख कर सभी के दिल दहल उठे थे. एक युवती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर हत्यारे ने जमीन में दफन कर रखे थे.

जब लाश के टुकड़ों को गड्ढे से बाहर निकाला गया तो वह टुकड़े पिछले 3 दिनों से लापता तिलबती के निकले. लाश की सूचना मिलते ही पुलिस ने तिलबती के घर वालों को घटनास्थल पर बुलवा लिया. घर वालों ने लाश की शिनाख्त लापता तिलबती के रूप में कर दी. पुलिस अब आगे की जांच में जुट गई थी.

शाम का धुंधलका चारों तरफ घिर आया था. अंधेरा घिरते ही गांव के सभी लोग अपनेअपने घरों को रोजमर्रा की भांति लौटने लगे थे. गांव के अन्य लोगों की तरह लुदुराम गोंड भी अपने खेत से काम निपटा कर अपने घर पहुंच गया था.

जब वह अपने घर पहुंचा तो उस ने देखा कि उस की पत्नी मृदुला कुछ परेशान सी दिखाई दे रही थी. पत्नी के माथे पर उसे चिंता की लकीरें साफसाफ नजर आ रही थीं. यह सब देख कर लुदुराम का चौंकना स्वाभाविक था.

”अरे मृदुला क्या बात है, आज तुम कुछ परेशान सी दिखाई दे रही हो?’’ लुदुराम ने पत्नी से पूछा.

”अब मैं परेशान न होऊं तो क्या करूं? अरे हमारे घर में एक बहुत परेशानी वाली बात जो हो गई है.’’ मृदुला ने चिंता भरे स्वर में कहा.

”जरा मुझे भी तो बताओ, आखिर बात क्या है?’’ लुदुराम ने पूछा.

”तुम्हारी लाडली बेटी तिलबती सुबह 10 बजे से घर से निकली हुई है, अब शाम के 6 बज गए हैं, लेकिन अभी तक लौट कर घर नहीं आई है.’’ मृदुला ने कहा.

”अगर वह अभी तक घर नहीं लौटी है तो बेटे माधव से पता करा सकती थी न तुम?’’ लुदुराम बोला.

”माधव शाम को 5 बजे से अपनी छोटी तिलबती को इधरउधर ढूंढने में ही तो लगा हुआ है. मगर तिलबती का अब तक कहीं भी कोई पता नहीं चला.’’ मृदुला ने चिंतित होते हुए कहा.

पत्नी मृदुला की बात सुन कर लुदुराम भी एकदम चिंता में पड़ गया था. तिलबती (23 वर्ष) उस के जिगर का टुकड़ा थी, जिसे वह अपने सभी बच्चों से ज्यादा प्यार करता था.

”देखो मृदुला, तुम घबराओ मत. मैं गांव में उसे ढूंढने जा रहा हूं. हमारी बिटिया हमें जल्द ही मिल जाएगी.’’ कहते हुए लुदुराम घर से निकल पड़ा था.

तिलबती अकसर अपनी सहेली निर्मला के घर अपने करिअर की बातें करने चली जाया करती थी. लुदुराम सब से पहले निर्मला के घर पर गया, जो उस के घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर था. लुदुराम ने निर्मला का दरवाजा खटखटाया तो निर्मला ने दरवाजा खोल दिया.

”अरे काका, आप इतनी शाम को कैसे हमारे घर पर आ गए? आइए बैठिए तो.’’ निर्मला ने लुदुराम को अंदर आने को कहा.

”अरे बेटी, हमारी तिलबती का सुबह से ही कुछ पता नहीं चल रहा है. जरूर तुम्हारे घर पर ही आई होगी. हम सब बहुत परेशान हो रहे हैं.’’ लुदुराम ने जल्दीजल्दी कहा.

”काका, तिलबती को तो मैं ने सुबह से ही नहीं देखा है. आज उस का फोन भी नहीं आया, नहीं तो वह मुझे दिन में एक बार फोन तो जरूर कर लेती है. अरे काका, आप घबराओ मत, मैं अभी उस से बात करती हूं.’’ कहते हुए निर्मला ने अपने मोबाइल से फोन किया.

मगर दूसरी तरफ से मोबाइल स्विच्ड औफ का मैसेज आ रहा था. निर्मला ने 4-5 बार काल किया, मगर दूसरी ओर से हर बार यही मैसेज सुनने को मिल रहा था.

”क्या हुआ बेटी, तिलबती का फोन लगा क्या?’’ लुदुराम ने आशाभरी निगाहों से देखते हुए कहा.

”नहीं काका, तिलबती का फोन तो बंद आ रहा है. चलो काका, मैं भी आप के साथ तिलबती को ढूंढने चलती हूं.’’ कहती हुई निर्मला भी लुदुराम साथ चल पड़ी थी.

तब तक तिलबती के गायब होने की बात सुन कर गांव के अन्य लोग भी लुदुरामू के साथ आ गए थे. सभी ने मिल कर तिलबती को ढूंढा, परंतु उस का पता नहीं चल पाया. बेटी के न मिलने के कारण तिलबती की मां मृदुला का रोरो कर बुरा हाल हो रहा था. गांव की महिलाएं उसे ढांढस बंधा रही थीं.

पूरी रात भर सभी गांव वालों ने मिल कर तिलबती की पूरे गांव भर में तलाशी ली, परंतु उस का कहीं भी कुछ भी सुराग नहीं मिल सका.

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      मृतका तिलबती

लुदुराम गोंड ओडिशा के नवरंगपुर जिले के गांव बागबेड़ा, थाना राईघर का रहने वाला एक किसान था. उस के परिवार में एक बेटा माधव व 2 बेटियां सौम्या और तिलबती थीं. सब से बड़ी बेटी सौम्या का विवाह हो चुका था, उस से छोटा बेटा माधव था, जो खेती में लुदुराम का हाथ बंटाता था, जबकि सब से छोटी बेटी तिलबती थी, जिस की उम्र 23 वर्ष की हो चुकी थी.

तिलबती को पढऩे लिखने, चित्रकारी करने और सिलाईकढ़ाई करने का बड़ा शौक था. उस ने बारहवीं कक्षा पास करने के बाद कई कोर्स कर लिए थे और वह नौकरी के लिए काफी लंबे समय से प्रयासरत भी थी. लेकिन वह 22 नवंबर, 2023 को ऐसी गायब हुई कि उस का पता नहीं चला.

अगले दिन बृहस्पतिवार 23 नवंबर को लुदुराम गांव के कुछ संभ्रांत लोगों के साथ थाना राईघर पहुंचा और बेटी के गायब होने की सूचना दर्ज करा दी.

पुलिस पूछताछ में लुदुराम ने बेटी तिलबती के अपहरण की आशंका से साफ इंकार किया तो पुलिस भी पशोपेश में पड़ गई थी. तब पुलिस को ऐसा लगा कि किसी ने रंजिशन तिलबती को गायब करा दिया होगा.

जब लुदुराम ने किसी से रंजिश होने से इंकार किया तो पुलिस की यह आशंका भी निर्मूल साबित हुई. प्राथमिकी दर्ज कराने के बाद पुलिस अपनी आवश्यक खोजबीन में जुट गई.

तिलबती के मिले 31 टुकड़े

5 दिन से लापता तिलबती की खोज में राईघर पुलिस दिनरात जांच में जुटी थी, तभी एक मुखबिर ने एसडीपीओ आदित्य सेन को एक गुप्त सूचना देते हुए कहा, ”हुजूर, मुरुमडीही गांव के पास स्थित जंगल में एक गड्ढे के अंदर से किसी का हाथ बाहर दिखाई दे रहा है. शायद किसी जंगली जानवर ने इंसान की लाश को खाने की वजह से खोद डाला. वहां पर गांव वाले भी इकट्ठा हो गए हैं. मामला काफी गंभीर लग रहा है?’’

यह सूचना सुन कर एसडीपीओ आदित्य सेन तुरंत अपनी पुलिस टीम व फोरैंसिक टीम को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े.

पुलिस जंगल में पहुंची तो वहां भारी संख्या में लोग जमा थे. पुलिस ने जब गड्ढा खुदवाया तो उस में एक युवती की 31 टुकड़ों में कटी लाश मिली. लाश की शिनाख्त 23 वर्षीय तिलबती के रूप में हुई. लाश के टुकड़े देख कर गांव के लोग आक्रोशित हो गए और वह पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

आखिर किस ने की तिलबती की हत्या

सचमुच में प्यार एक ऐसा अहसास है, जिसे समझ पाना बड़ा ही मुश्किल होता है. प्यार एक ऐसा अहसास होता है, जिस में किसी के प्रति हर दिन बहुत ही लगाव बढऩे लगता है. जो भी इस अनोखे प्यार में अपने आप को डाल देता है, वह पहले से ज्यादा खुश और खूबसूरत हो जाता है.

ऐसा ही कुछ तिलबती के साथ भी हुआ. तिलबती एक दिन बाजार जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी, तभी एक युवक बाइक ले कर उस के पास आ कर रुक गया.

दोनों की नजरें मिलीं तो युवक ने तिलबती से कहा, ”मुझे लगता है कि आप शायद मार्केट की तरफ जा रही हैं. अभी करीब एक घंटे तक यहां बस आने की कोई उम्मीद नहीं है. मैं मार्केट की तरफ ही जा रहा हूं. अगर आप चाहें तो मैं आप को वहां ड्रौप कर दूंगा.’’

”ये कौन सी बात हुई कि जान न पहचान, मैं तेरा मेहमान. मैं तो आप को जानती तक नहीं हूं.’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”देखिए जी, मैं रोज इसी जगह से निकलता हूं, आप को देखता हूं. आज एक बस का एक्सीडेंट हो गया है, इसलिए बाकी बसें उसी जगह पर खड़ी हैं. पब्लिक ने बवाल कर के रख दिया है वहां पर. वैसे मैं तो आप की मदद ही करना चाहता था, मगर आप तो तो मुझ पर गुस्सा करने लगी हैं.’’ युवक ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा.

”अरे आप तो बड़े अजीब इंसान हैं, इतनी जल्दी नाराज हो गए.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा, ”आप ने बात ही ऐसी की थी कि मेरा नाराज होना स्वाभाविक था. चलना है तो बताओ, मुझे देर हो रही है,” युवक ने अपनी बाइक स्टार्ट करते हुए कहा.

”आप कम से कम अपना नाम तो बता दीजिए जनाब?’’ तिलबती ने कहा.

”मेरा नाम चंद्रा राउत है, मैं मुरुमडीही गांव का रहने वाला हूं और खेतीकिसानी करता हूं.’’ युवक ने अपना परिचय देते हुए कहा.

”अरे वाह, आप का नाम तो बहुत ही सुंदर है. मेरा नाम…’’

तिलबती अपनी बात भी पूरी नहीं कर सकी, तभी चंद्रा राउत बोल पड़ा, ”मैं तुम्हारे बारे में बहुत कुछ जानता हूं. तुम्हारा नाम तिलबती गोंड पिता का नाम लुदुराम गोंड, गांव बागबेड़ा. यही है न!’’ चंद्रा राउत ने मुसकराते हुए कहा.

”अरे, तुम्हें तो मेरे बारे में सब कुछ पता है. इसलिए मैं अब आप के साथ चल सकती हूं.’’ तिलबती ने चंद्रा की बाइक पर बैठते हुए कहा.

उस दिन के बाद से दोनों में दोस्ती हो गई थी. चंद्रा राउत रोजरोज बाइक से तिलबती को पास के कस्बे में ले जाने लगा था. उन दिनों तिलबती पास के कस्बे से सिलाई का कोर्स कर रही थी. उस के अलावा तिलबती नौकरी के लिए औनलाइन आवेदन भी करती रहती थी, जिस में चंद्रा राउत अब तिलबती की मदद करता रहता था.

अब तिलबती चंद्रा राउत के साथ फिल्म देखने भी जाने लगी थी. इस दौरान तिलबती यह महसूस करने लगी थी कि बातचीत करने के दौरान चंद्रा राउत उस के नजदीक आने की काफी कोशिश करता है. चंद्रा राउत की बात भी बड़ी मजेदार होती थीं. अब तिलबती को भी लगने लगा था कि वह चंद्रा के प्रति आकर्षित होती जा रही है.

एक दिन चंद्रा राउत ने तिलबती से कहा, ”तिलबती, मैं एकांत में तुम से कुछ बात करना चाहता था.’’

तिलबती ने सोचा कि कुछ बात करना चाहता होगा, इसलिए उस ने हामी भर दी. यह चंद्रा राउत की एक चाल थी. उस ने कस्बे के एक होटल में एक कमरा पहले से बुक करा रखा था. चंद्रा उसे उस कमरे में ले गया.

”ये तुम मुझे अकेले में कहां पर ले कर आ गए हो चंद्रा?’’ तिलबती ने पूछा.

”तिलबती, मैं तुम से बेइंतहा मोहब्बत करने लगा हूं,’’ चंद्रा ने होटल के कमरे में उसे बांहों में भरते हुए कहा.

”अरे, ये तुम क्या कर रहे हो? तुम्हें पता है न कि मैं एक कुंवारी लड़की हूं. कहीं कुछ ऊंचनीच हो गई तो मैं कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहूंगी.’’ तिलबती अपने आप को चंद्रा की बाहों से छुड़ाते हुए बोली.

”देखो तिलबती, मेरी मोहब्बत के दिल को देखो, वह तुम्हारे लिए कितना तड़प रहा है. मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम से मैं बाकायदा सब के सामने विवाह करूंगा. मेरे पास धनदौलत की बिलकुल भी कमी नहीं है. मैं तुम्हें सदा अपने दिल की रानी बना कर रखूंगा,’’ कहते हुए चंद्रा ने तिलबती को एक बार फिर अपनी बाहों में जकड़ लिया और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

तिलबती को लगा कि जब उस का प्रेमी उस को जिंदगी भर के लिए अपनाने को तैयार है और अब वह भी उस को प्यार करने लगी है तो उसे लगा कि सब कुछ अब उस के कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है. उस दिन की तन्हाई में चंद्रा राउत ने आखिरकार उस दिन अपनी हसरतें पूरी कर ही लीं. उस दिन के बाद से उन दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए. इस के बाद तो उन की दुनिया ही बदल गई थी.

सहेली से पता चला प्रेमी का राज

एक दिन तिलबती चंद्रा राउत से मिल कर आ रही थी, तभी उस की सहेली निर्मला ने उसे रोक लिया. वह बोली, ”कहो तिलबती, कहां से मौजमस्ती कर के आ रही हो?’’ निर्मला ने सीधेसीधे उस पर सवाल दाग दिया.

”अरे निर्मला तुम. कहीं से नहीं यार, बस एक दोस्त से मिल कर आ रही थी.’’ तिलबती ने मुसकराते हुए कहा.

”देखो तिलबती, हम दोनों बचपन से एक साथ पलेबढ़े, एक साथ स्कूल में भी पढे हैं. तुम तो अब एकदम बदल ही गई हो. सचमुच मुझे तुम से ऐसी उम्मीद बिलकुल भी नहीं थी. पहले तो तुम मुझे रोज मिला करती थी, अपनी सारी बातें मुझे सिलसिलेवार बताया करती थी. मगर पिछले कुछ महीनों से तुम मुझ से बहुत कुछ छिपाने लगी हो.’’ निर्मला ने उसे अपने कमरे में बुला लिया था.

”निर्मला, ऐसी बात तो नहीं है. बस मैं प्यार में इतनी मदहोश हो गई थी कि सचमुच तुम्हें भी भूल गई थी. मुझे माफ कर देना प्लीज,’’ कहते हुए तिलबती ने निर्मला के दोनों हाथ पकड़ लिए थे.

”तिलबती तुम इतनी समझदार हो कर भी ऐसे कैसे बहक सकती हो. तुम्हारे घर वाले तुम्हें इतना प्यार करते हैं. उन्होंने तुम्हें इतनी छूट दे रखी है तो इस का मतलब तो यह नहीं कि तुम उन सब को खुलेआम धोखा दे डालो?’’ निर्मला ने उस की आंखों में आंखें डालते हुए कहा.

”साफ साफ बताओ निर्मला, आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?’’ तिलबती ने गुस्से से कहा.

”तो सुनो, तुम पिछले 2 सालों से चंद्रा राउत के प्यार में पड़ी हो और यह बात अब मुझे पता चली!’’ निर्मला ने कहा.

”अरे यार निर्मला, प्यार करना गुनाह है क्या? वैसे मैं तुम्हें बताने ही वाली थी, मगर इतनी ज्यादा व्यस्त थी कि तुम से बात करने का मौका ही नहीं मिल सका.’’ तिलबती बोली.

निर्मला ने कहा, ”तुम्हें फुरसत कहां है तिलबती, दिनरात चंद्रा के साथ गुलछर्रे उड़ाने से तुम्हें समय कहां मिल पाता है. अब तो पानी सिर के ऊपर आ गया है. तुम इतनी बेवकूफ होगी, मुझे ऐसा बिलकुल भी नहीं लगता था तिलबती,’’

”निर्मला, प्यार करना अगर बेवकूफी है तो हां, मैं हूं बेवकूफ. बस और भी कुछ कहना है तुम्हें तो कहो, मैं अपने घर जा रही हूं.’’ तिलबती अब उठ कर खड़ी हो गई थी.

”जरा, ये तो सुन कर जाओ कि जिस से तुम पिछले 2 सालों से बेइंतहा प्यार कर रही हो, वह शादीशुदा है.’’ निर्मला ने जब यह बात कही तो तिलबती चौंक गई.

”तुम यह कैसे जानती हो? और चंद्रा राउत के बारे में तुम्हें क्याक्या पता है? सब कुछ कह दो,’’ तिलबती बोली.

”चंद्रा राउत हमारी दूर की रिश्तेदारी में आता है. मुझे तो यह बात कल ही पता चली कि तुम और चंद्रा एकदूसरे से प्यार करते हो. मैं ने सोचा चंद्रा तो एक मर्द हो कर भूल कर सकता है, मगर तुम तो एक लड़की हो. भला इतनी बड़ी भूल कैसे कर सकती हो. आगे सुनो, चंद्रा की पत्नी का नाम सिया राउत है और उस के 5 बच्चे भी हैं.’’

”बसबस आगे तुम कुछ मत कहो निर्मला, चंद्रा का घर मुरुमडीही में कहां पर है?’’ तिलबती ने पूछा.

”चंद्रा राउत का गांव में आखिरी घर है और वहां से जंगल का इलाका शुरू हो जाता है.’’ निर्मला और कुछ भी कहना चाहती थी परंतु तिलबती यह सुनते ही अपने घर की ओर चल पड़ी थी.

प्रेमी की पत्नी हुई हत्या में शामिल

चंद्रा के बारे में यह जानकारी पा कर उस पूरी रात तिलबती सो न सकी थी. चंद्रा राउत अपने प्रेम के जाल में फंसा कर उस का शारीरिक शोषण कर रहा था, यह बात बारबार तिलबती के दिल को कचोट रही थी. उस ने फैसला कर लिया था कि वह चंद्रा राउत से मिल कर उसे सबक जरूर सिखाएगी ताकि वह किसी दूसरी लड़की के साथ ऐसा घिनौना काम न कर सके.

प्रेमी से मिलने 10 किलोमीटर पैदल चली थी तिलबती, जहां पर मिली मौत की सौगात.

रात तो किसी तरह तिलबती ने गुजार दी, मगर सुबहसुबह किसी से मिलने का बहाना बना कर वह पैदल ही घर से निकल गई. प्रेम प्रसंग के चलते तिलबती कई बार चंद्रा राउत से शादी की जिद भी कर चुकी थी, लेकिन हर बार कोई न कोई बहाना बना कर चंद्रा शादी करने से मना कर देता था.

उस दिन तिलबती आर या पार का फैसला अपने मन में बना कर अपने प्रेमी से मिलने उस के घर पहुंच गई. वहां पहुंचते ही उस ने चंद्रा राउत के ऊपर गालियों की बौछार कर दी थी.

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             चंद्रा राउत

चंद्रा राउत की पत्नी सिया राउत पहले कुछ नहीं समझी, परंतु जब सारी बात उस की समझ में आई तो उस ने अपने पति से तिलबती को घर के भीतर बुलाने को कहा. चंद्रा राउत भी किसी न किसी तरह तिलबती से अपना पीछा छुड़ाना चाहता था. उधर दूसरी तरफ सिया भी अपने और अपने 5 बच्चों के भविष्य को ले कर चिंता में पड़ गई थी, इसलिए दोनों ने आंखों ही आंखों में एक खतरनाक फैसला कर लिया. उन्होंने तिलबती को अपने रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हटाने की बात तय कर ली.

प्लान के मुताबिक चंद्रा राउत ने तिलबती को अंदर आ कर बात करने के लिए समझाया और कहा, ”तिलबती, तुम घर के भीतर तो चलो, यहां बाहर चिल्ला कर इस समस्या का हल होने वाला नहीं है. मेरी पत्नी सिया भी एक समझदार औरत है, हम तीनों आपस में बैठ कर इस समस्या का कोई न कोई हल अवश्य निकाल लेंगे.’’

तिलबती प्रेमी चंद्रा राउत की बातों में आ कर उस के साथ कमरे में चली गई. जैसे ही तिलबती घर के भीतर घुसी, सिया राउत ने घर का दरवाजा बंद कर के चिटकनी और कुंडा लगा दिया.

दोनों ने मिल कर पहले तिलबती से जम कर मारपीट की, जब तिलबती घायल हो गई तो दोनों ने मिल कर उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

हत्यारे यहीं नहीं रुके उन्होंने मीट काटने वाले चापड़ से तिलबती की लाश के पूरे 31 टुकड़े कर दिए. उस के बाद उन्होंने अंधेरा होने का इंतजार किया और फिर अंधेरा होने पर लाश जंगल में ले गए. जंगल में गड्ढा खोद कर तिलबती की लाश के टुकड़े दफन कर दिए. उन्होंने लाश के टुकड़ों के ऊपर नमक डाल दिया था ताकि वह जल्दी गल जाएं.

चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत ने सोचा कि तिलबती को गांव में आते किसी ने देखा भी नहीं होगा. उस की लाश उन्होंने नमक डाल कर दफन कर दी. इसलिए उन का राज हमेशा हमेशा के लिए दफन हो कर रह जाएगा, मगर ऐसा न हो सका.

अपराध चाहे कैसा भी क्यों न हो, कितनी ही चतुराई से क्यों न किया गया हो, उस का परदाफाश हो ही जाता है.

तिलबती मर्डर केस में भी ऐसा ही हुआ. रात को जंगली जानवरों ने गड्ढे को खोद दिया, जिस में से तिलबती का हाथ बाहर आ गया. जिसे गांव के एक युवक ने देख लिया और पुलिस को खबर कर दी. इस घटना के बाद ग्रामीणों में काफी रोष था. उन्होंने दोनों आरोपियों के लिए फांसी का मांग की थी.

एक युवती को प्यार करने की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी, उसे ऐसी दर्दनाक मौत दी गई कि जिसे सुन कर रोंगटे खड़े हो जाएं.

युवती का कसूर सिर्फ इतना ही था कि वह जिस शख्स से प्यार करती थी, उस के साथ अपनी सारी जिंदगी गुजारना चाहती थी, लेकिन वह पहले से ही शादीशुदा था. बावजूद इस के उस कातिल प्रेमी ने उसे अपने प्यार के जाल में फंसाया, जिस का अंजाम युवती को अपनी जान दे कर भुगतना पड़ा.

कथा लिखी जाने तक राईघर गांव पुलिस ने इस संबंध में आईपीसी की धारा 302, 201 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर दोनों आरोपियों चंद्रा राउत और उस की पत्नी सिया राउत को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

—कथा में मृदुला, सौम्या, माधव और निर्मला परिवर्तित नाम हैं. कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है.

पत्नी जब बन जाए प्रेमिका

29 मार्च, 2019 की घटना है. सुबह के 7 बज चुके थे. इंदौर के खजराना क्षेत्र में रहने वाले बाबूलाल, रमेशचंद्र बंसी तथा गोलू ने झलारिया रोड पर स्थित बद्री पटेल के फ्लैट के सामने वाले मैदान में प्लास्टिक के बोरे देखे तो वे वहीं रुक गए.

उन बोरों में किसी की लाश थी. लाश को 2 बोरों में इस तरह से बंद किया गया था कि एक बोरा चेहरे से कमर तक लाश को ढके था तो दूसरा बोरा पैरों की तरफ से लाश को पहना कर कमर में बांध दिया गया था. बीच में जो खाली जगह बची थी, उस में से नीली जींस व शर्ट बाहर झांक रही थी. इस से लग रहा था कि उन बोरों में किसी की लाश है.

उन्होंने यह जानकारी उधर से गुजर रहे लोगों के अलावा फोन कर के थाना खजराना को दे दी. लाश मिलने की सूचना पाते ही टीआई प्रीतम सिंह प्रधान आरक्षी प्रवेश सिंह, आरक्षी प्रवीण सिंह पंवार आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. तब तक वहां तमाम लोग एकत्र हो गए थे.

टीआई ने वहां पहुंच कर देखा कि एक प्लौट के किनारे पर बोरों में बंद एक लाश पड़ी थी. लाश वाले बोरे के पास एक युवती बैठी रो रही थी. टीआई के पूछने पर उस ने बताया कि बोरे में बंद लाश उस के शौहर बबलू खान की है. दुश्मनी के चलते किसी ने उस की हत्या कर दी है.

यह सुन कर टीआई चौंके कि बोरे में बंद लाश को उस महिला ने पति के रूप में कैसे शिनाख्त कर ली. इस बारे में उन्होंने उस से पूछा तो महिला ने बताया कि उस का शौहर कल शाम से लापता है. आज लाश मिलने की सूचना पर जब वह यहां आई तो जींस और शर्ट देख कर वह समझ गई कि यह उस के पति बबलू की ही लाश है. महिला ने अपना नाम फिरोजा बताया.

शव बोरे से बाहर निकलवाने से पहले टीआई ने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी तो कुछ ही देर में एसपी (पश्चिम) मोहम्मद यूसुफ फोरैंसिक टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस ने बोरों से लाश बाहर निकलवाई तो वास्तव में वह लाश फिरोजा के पति बबलू खान की ही निकली. इस के बाद तो फिरोजा दहाड़ें मार कर रोने लगी. उस का घर वहां से 300 मीटर दूर खिजराबाद कालोनी में था.

पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया तो उस के सिर पर चोट का निशान मिला. इस के अलावा उस के गले को धारदार हथियार से काटा गया था. पुलिस ने अनुमान लगाया कि पहले बबलू के सिर पर वार किया गया होगा. फिर उस के बेहोश हो जाने के बाद उस का गला रेता गया होगा.

लगभग 34 साल का बबलू काफी मजबूत कदकाठी का था. अनुमान था कि उस के कत्ल में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे. बहरहाल, पुलिस ने मौके की काररवाई निपटाने के बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

इस के बाद टीआई ने बबलू के परिवार वालों से बात की. उस के भाई ने बताया कि रात में लगभग साढ़े 4 बजे बबलू की बीवी फिरोजा ने उसे फोन कर के बताया था कि तुम्हारे भाई अभी तक घर नहीं लौटे हैं. उन का मोबाइल भी बंद है.

इस के बाद टीआई प्रीतम सिंह ने बबलू खान की पत्नी फिरोजा से पूछा तो उस ने बताया कि रात लगभग एक बजे मेरे शौहर के मोबाइल पर उन के पार्टनर कमल राठी का फोन आया था. फोन सुन कर उन्होंने कहा कि कमल राठी की गाड़ी पकड़ी गई है. उसे छुड़ाने जा रहा हूं.

इतना कह कर उन्होंने घर से 70-80 हजार रुपए लिए और कुछ देर में वापस आने की बात कह कर चले गए.  उन के जाने के कुछ देर बाद मुझे नींद आ गई. सुबह साढ़े 4 बजे मेरी नींद खुली तो मैं ने देखा वह घर नहीं लौटे थे. मैं ने उन के मोबाइल पर फोन लगाया तो वह बंद था. फिर मैं ने कमल राठी को फोन लगाया. उन्होंने बताया कि बबलू खान रात में उन के पास आया ही नहीं था.

यह सुन कर मैं डर गई. उसी समय मैं ने अपने देवर को फोन लगा कर यह खबर दी. देवर ने भी उन्हें खोजने की कोशिश की लेकिन उन का कहीं पता नहीं चला. उड़ती खबर सुन कर जब मैं सुबह यहां पहुंची तो इन की लाश मिली.

पुलिस ने जब लाश की तलाशी ली तो बबलू की जेब से 10 हजार रुपए और एक जवान खूबसूरत युवती की तसवीर मिली. पुलिस ने मौके से सबूत जुटाने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

इस के साथ ही पुलिस ने हत्या का केर्स दर्ज कर के मामले की जांच शुरू कर दी. चूंकि फिरोजा ने बताया था कि पति के मोबाइल पर आखिरी काल कमल राठी की आई थी, इसलिए पुलिस ने पहले कमल से ही पूछताछ की.

कमल राठी ने टीआई प्रीतम सिंह को बताया कि बीती रात उस ने बबलू खान को फोन किया ही नहीं था. इस से पुलिस को लगा कि फिरोजा झूठ बोल रही है. अगर यह मान भी लिया जाता कि वह सच बोल रही है तो फिर बबलू ने पत्नी से कमल राठी का फोन आने की झूठी बात क्यों कही थी. इसी दौरान टीआई को मृतक की जेब में मिली उस खूबसूरत जवान युवती की तसवीर याद आ गई जो तलाशी के दौरान 10 हजार रुपयों के साथ मिली थी.

इस से टीआई ने अनुमान लगाया कि हो सकता है जिस महिला की फोटो बबलू की जेब से मिली है, उस महिला के साथ बबलू के अवैध संबंध रहे हों. क्योंकि फिरोजा का कहना था कि उस का पति घर से 70-80 हजार रुपए ले कर निकला था. जबकि लाश की तलाशी में केवल 10 हजार रुपए ही उस की जेब से मिले थे.

ऐसे में संभावना यह थी कि बाकी का पैसा मृतक ने फोटो वाली युवती के संग अय्याशी में उड़ा दिया हो. हो सकता है कि अय्याशी के दौरान किसी बात पर तकरार होने से युवती के परिजन या उस के दूसरे साथियों ने बबलू का कत्ल कर दिया होगा.

पूछताछ में फिरोजा ने बताया था कि उस के शौहर को पराई जवान लड़कियों की संगत की लत थी. लेकिन अब सवाल यह था कि मामला अगर यही था तो हत्यारे जेब में 10 हजार रुपए और सोने की चेन व अंगूठी क्यों छोड़ कर गए.

दूसरी सब से बड़ी बात यह थी कि यदि बबलू की जेब से पैसे फोटो वाली युवती ने निकलवाए थे तो वह जेब में अपनी फोटो क्यों छोड़ती. टीआई प्रीतम सिंह को पूरे मामले में बड़ी साजिश नजर आने लगी. घुमाफिरा कर उन्हें फिरोजा पर ही शक हो रहा था. पुलिस ने मृतक की बीवी फिरोजा की कुंडली खंगाली तो पूरी कहानी साफ नजर आने लगी.

फिरोजा के फोन की काल डिटेल्स से पता चला कि उस रोज उस ने रात 2 बजे के आसपास मनसबनगर खजराना में रहने वाले इम्तियाज से काफी कम समय के अंतर में 2 बार बात की थी. यह बात फिरोजा ने पुलिस से छिपाई थी. जबकि उस का कहना था कि बबलू के जाने के बाद उस की नींद सुबह 4 बजे टूटी थी.

इस से पुलिस ने अपने मुखबिर को इम्तियाज की जानकारी जुटाने में लगा दिया. पता चला कि 29 साल का इम्तियाज बबलू के चचाजान का बेटा यानी 28 साल की फिरोजा का चचेरा देवर है. पुलिस को इम्तियाज के मोबाइल की लोकेशन भी रात में एक बजे से सुबह 3 बजे के आसपास फिरोजा के घर की मिली. पुलिस ने इम्तियाज को उसी रोज शाम को उस के घर से हिरासत में ले लिया.

इम्तियाज को पुलिस की ऐसी सक्रियता का जरा भी इल्म नहीं था, सो उस का चौंकना लाजिमी था. टीआई प्रीतम सिंह ने उस से सीधे सवाल किया, ‘‘आधी रात को तुम अपनी भाभी फिरोजा के साथ उस के घर पर क्या कर रहे थे?’’

‘‘यह आप क्या कह रहे हैं जनाब, भाभी मां के समान होती है.’’ वह बोला.

‘‘तो मैं ने कब कहा कि बीवी जैसी होती है. मैं तो केवल यह पूछ रहा हूं कि बबलू तो रात एक बजे घर से कहीं जाने को बोल कर निकल गया था जो वापस नहीं लौटा. इस बीच रात को तुम्हारी फिरोजा से फोन पर गुफ्तगू हुई. इस के बाद तुम फिरोजा के पास चले गए थे.’’ टीआई ने कहा.

‘‘जी, यह सही नहीं है. न मेरी फिरोजा भाभी से बात हुई और न मैं उन के घर गया.’’ इम्तियाज ने सफाई दी.

इम्तियाज ने यह सफेद झूठ बोला था. क्योंकि पुलिस के पास फिरोजा के साथ रात में फोन पर बात होने का सबूत था, इसलिए मुंह खुलवाने के लिए पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो इम्तियाज जल्द ही टूट गया.

उस ने न केवल फिरोजा के साथ इश्क के चक्कर में बबलू की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली, बल्कि  इस राज को भी बेपरदा कर दिया कि इस जुर्म में फिरोजा भी बराबर से शरीक थी. इसलिए रात में ही पुलिस ने फिरोजा को भी हिरासत में ले लिया. पूछताछ के बाद दोनों ने बबलू की हत्या की चौंकाने वाली कहानी बताई.

इंदौर की न्यू खिजराबाद कालोनी में अपनी खूबसूरत बेगम फिरोजा के साथ रहने वाले हबीब उर्फ बबलू एक स्क्रैप कारोबारी था. वह गुजरात से पुराना सरिया ला कर इंदौर और आसपास के इलाकों में थोक में सप्लाई करता था. सांवेर रोड पर उस की स्क्रैप की दुकान और गोदाम था. बबलू के धंधे में कमल राठी भी उस का सहयोग करता था.

करीब 7 साल पहले बबलू का विवाह फिरोजा से हुआ था. फिरोजा निहायत ही खूबसूरत थी. हालांकि वह तलाकशुदा थी लेकिन उस की खूबसूरती पर बबलू इतना फिदा हुआ कि उस ने तलाकशुदा होने के बावजूद उस से निकाह कर लिया.

निकाह के 2 साल तक तो बबलू फिरोजा के पल्लू से बंधा रहा, लेकिन फिर धीरेधीरे धंधे पर ध्यान देना शुरू किया तो जल्द ही आम पारिवारिक जिंदगी जीने लगा. लेकिन फिरोजा को तो अपने शौहर को हमेशा अपने पल्लू में बांध कर रखने की आदत थी. सो उसे पति की यह बेरुखी रास नहीं आई.

लेकिन सच्चाई केवल इतनी ही नहीं थी. एक सच यह भी था कि बबलू को पराई औरतों के संग वक्त बिताने की लत शादी के पहले से ही थी. यह बात कुछ समय तक तो फिरोजा से छिपी रही, लेकिन कब तक छिपती. जल्द ही उसे पति की इस हरकत का पता चला तो उस ने इम्तियाज के बारे में सोचना शुरू कर दिया.

29 वर्षीय इम्तियाज बबलू का सगा चचेरा भाई था, जो पास में ही मनसब नगर में रहता था. वह उसी रोज से फिरोजा को हसरतभरी निगाहों से देखा करता था, जिस रोज फिरोजा बबलू की बेगम बन कर आई थी. देवरभाभी के रिश्ते का फायदा उठा कर उस ने कुछ समय तक फिरोजा की नजदीकी पाने की कोशिश भी की थी.

इस बात को फिरोजा भी समझती थी पर उस ने उसे लिफ्ट नहीं दी. दूसरे उस समय बबलू दिनरात फिरोजा के पास ही बना रहता था सो उसे सफलता नहीं मिली. लेकिन जब फिरोजा ने शौहर की अय्याशियों की कहानी सुनी तो उसे इम्तियाज का ध्यान आया.

इम्तियाज पहले तो रोज किसी न किसी बहाने उस के घर आता रहता था, लेकिन फिरोजा की बेरुखी को देखते हुए उस का आनाजाना काफी कम हो गया था. इसलिए कुछ दिन बाद एक रोज जब इम्तियाज फिरोजा के घर आया तो फिरोजा ने आगे बढ़ कर उस का स्वागत किया और काफी दिनों बाद आने की शिकायत भी की.

फिरोजा के बदले व्यवहार से इम्तियाज चौंक गया, सो उस रोज के बाद वह आए दिन जानबूझ कर फिरोजा से मिलने ऐसे समय में घर आने लगा जब बबलू अपनी दुकान पर निकल जाता था.

फिरोजा समझ चुकी थी कि इम्तियाज उसे अब भी चाहता है. इसलिए वह इम्तियाज के साथ घुलमिल कर बात करने लगी. जिस का नतीजा यह हुआ कि एक रोज डरतेडरते इम्तियाज ने फिराजा का हाथ पकड़ ही लिया.

‘‘यूं डर कर औरत का हाथ पकड़ने वाले मर्द मुझे अच्छे नहीं लगते. औरत का हाथ थामो तो कलेजा रखो वरना इसी बस्ती में इन आंखों की मस्ती और हुस्न के दीवाने बहुत हैं.’’ फिरोजा ने अदा के साथ आंखें मटकाते हुए इम्तियाज से कहा.

यह सुन कर एक पल के लिए इम्तियाज रुका फिर उस ने झटके से खींच कर फिरोजा को अपनी गोद में गिराते हुए कहा, ‘‘हिम्मत की बात न करो, अगर बबलू की बीवी न होतीं तो कब का उठा कर ले गया होता.’’

‘‘मुझ से कहा तो होता एक बार, उठाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, खुद साथ चल देती.’’ कहते हुए फिरोजा ने इम्तियाज को अपनी बांहों के घेरे में जोर से कस लिया.

इस के बाद डरने का कोई कारण इम्तियाज के पास नहीं रह गया था. दोनों ने ही अपनी हदें पार कर के अपनी हसरतें पूरी कर लीं.

इस घटना के बाद तो मानो दोनों केवल इसी सुख के लिए जिंदा थे. इम्तियाज दिन भर फोन हाथ में पकडे़ रहता और इधर जैसे ही फिरोजा को मौका मिलता, वह इम्तियाज को फोन कर के अपने घर बुला लेती.

2 साल तक दोनों की प्रेमलीला बिना रुकावट के चलती रही. इधर वक्त के साथ बबलू भी दूसरी औरतों के फेर में फिरोजा की तरफ से बेपरवाह होता जा रहा था. फिरोजा कभी कुछ कहती तो उलटे वह उस से मारपीट भी करने लगा था.

इसी दौरान कुछ समय पहले बबलू ने शुजालपुर में 8 बीघा जमीन का सौदा कर उस की रजिस्ट्री फिरोजा के नाम करवा दी. बस इस जमीन के कागज हाथ में आते ही फिरोजा और इम्तियाज का दिमाग घूमना शुरू हो गया. उन्हें लगा कि यदि किसी तरह बबलू से छुटकारा मिल जाए तो वे दोनों इस जमीन पर खेती किसानी कर आसानी से जिंदगी बिता सकते हैं.

इसलिए फिरोजा ने कुछ दिनों से ऐसी हरकतें करनी शुरू कर दीं कि बबलू गुस्से में आ कर उसे तलाक दे दे. बबलू को गुस्सा तो बहुत आता था लेकिन गुस्से में वह तलाक के बदले उस की पिटाई कर देता. इस दौरान बबलू की गैरमौजूदगी में अकसर फिरोजा के पास इम्तियाज के आने से मोहल्ले में दोनों के अवैध संबंधों की चर्चा भी होने लगी थी.

इसलिए दोनों को डर लगने लगा था कि कहीं यह बात बबलू के कानों तक पहुंच गई तो उन का सारा खेल बिगड़ जाएगा, इसलिए दोनों ने महीने भर पहले बबलू की हत्या की योजना बनाने के बाद उस पर अमल करना शुरू कर दिया.

योजना के अनुसार, इम्तियाज ने बड़ी मात्रा में नींद की गोलियां ला कर फिरोजा को दे दीं. फिरोजा यह गोलियां रात के खाने में मिला कर बबलू को खिलाने लगी. उस का सोचना था कि गोली खा कर सोने से बबलू किसी दिन सोता ही रह जाएगा. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ.

फिर 28-29 मार्च को फिरोजा ने खाने में और अधिक गोलियां मिला कर बबलू को खिला दीं. इस से बबलू गहरी नींद में चला गया, मगर उस की सांस चलती रही. यह देख कर फिरोजा ने रात डेढ़ बजे अपने प्रेमी देवर इम्तियाज को फोन कर घर बुला लिया.

फिरोजा ने उस से कहा कि इस का आज ही काम तमाम कर दो. तब इम्तियाज ने गहरी नींद में सो रहे बबलू के सिर पर लाठी से जोरदार प्रहार किया. इस से बबलू बेहोश हो गया तो उस ने बड़ा सा चाकू उस के गले में अंदर तक डाल कर चाबी की तरह घुमा दिया.

कुछ ही देर में बबलू की मौत हो गई. इस के बाद दोनों को उस की लाश ठिकाने लगाने की सूझी. इस के लिए इम्तियाज नरवल में रहने वाले अपने दोस्त कादिर से उस की एक्टिवा ले आया था. फिर दोनों ने मिल कर लाश को प्लास्टिक के 2 बोरे पहना कर बंद कर दिया. फिर कमरे का खून साफ करने के बाद दोनों ने सैक्स का खेल खेला.

इस के बाद एक्टिवा पर लाश रख कर इम्तियाज उसे इंदौर से दूर फेंकने के लिए घर से निकला. लेकिन लाश को पकड़ने वाला कोई नहीं था. जैसे ही वह एक्टिवा पर लाश ले कर घर से निकला तो गली के आवारा कुत्ते उस के पीछे दौड़ते हुए भौंकने लगे.

कुत्तों से बचने के लिए इम्तियाज ने एक्टिवा की गति बढ़ा दी जिस से संतुलन बिगड़ जाने से लाश घर से 300 मीटर दूर ही नीचे गिर गई. इस से इम्तियाज डर गया और लाश एक खाली प्लौट में फेंक कर अपने घर चला गया.

घर जा कर उस ने फिरोजा को पूरी बात बता दी कि लाश उस ने कहां फेंकी है. इसलिए सुबह लाश मिलने पर फिरोजा बिना चेहरा देखे ही उसे बबलू की लाश बताते हुए रोने लगी. जिस से पुलिस को उस पर शक हो गया था.

पुलिस ने इम्तियाज और फिरोजा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त लाठी, चाकू और एक्टिवा भी बरामद कर ली. पुलिस ने मात्र 10 घंटे में ही इस हत्याकांड का खुलासा कर अभियुक्तों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

इंदौर संभाग के एडीजी वरुण कपूर, डीआईजी (एसएसपी) रुचिका वर्धन ने इस केस को खोलने वाली पुलिस टीम को बधाई दी.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क

वरदीवाला दिलजला : प्रेमिका और उसके मंगेतर की हत्या

दिल्ली से सटे गाजियाबाद में हिंडन नदी किनारे स्थित साईं उपवन बड़ा ही रमणीक स्थल है. यहां पर साईंबाबा का प्रसिद्ध मंदिर है. 25 मार्च, 2019 सोमवार को सुबह का वक्त था. श्रद्धालुजन साईं मंदिर में आते जा रहे थे. उसी समय लाल रंग की स्कूटी से गोरे रंग की खूबसूरत युवती और एक स्मार्ट सा दिखने वाला युवक वहां पहुंचे.

स्कूटी को उपवन परिसर के बाहर एक ओर खड़ी कर वे दोनों मंदिर में प्रवेश कर गए. कोई 10 मिनट के बाद जब वे दोनों साईंबाबा के दर्शन कर के बाहर निकले तो उन के चेहरे खिले हुए थे. यह हसीन जोड़ा आसपास से गुजरने वाले लोगों की नजरों का आकर्षण बना हुआ था. लेकिन उन दोनों को लोगों की नजरों की रत्ती भर भी परवाह नहीं थी. वे अपनी ही दुनिया में मशगूल थे.

जैसे ही दोनों बाहर निकले वह रमणीक इलाका गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. किसी की समझ में कुछ नहीं आया. तभी वहां मौजूद लोगों को एक आदमी युवक युवती की लाशें बिछा कर तेजी से लिंक रोड की तरफ भागता हुआ दिखाई दिया. लोगों ने देखा कि लाशें उसी नौजवान खूबसूरत जोड़े की थीं, जो अभीअभी वहां से हंसते मुसकराते हुए मंदिर से बाहर निकला था. इसी दौरान किसी ने इस सनसनीखेज घटना की सूचना 100 नंबर पर गाजियाबाद पुलिस को दे दी.

थोड़ी ही देर में सिंहानी गेट के थानाप्रभारी जयकरण सिंह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. मंदिर परिसर के अंदर लाल सूट पहने एक युवती और एक युवक की रक्तरंजित लाशें औंधे मुंह पड़ी थीं. जयकरण सिंह ने घटनास्थल का बारीकी से मुआयना किया.

युवक युवती के कपड़े खून से सने थे. वहां पर काफी लोगों की भीड़ इकट्ठी हो गई थी. जयकरण सिंह ने उन की नब्ज टटोली, लेकिन उन की सांसें उन का साथ छोड़ चुकी थीं. उन्होंने जल्दी से क्राइम इन्वैस्टीगेशन टीम को बुला कर घटनास्थल की फोटोग्राफी करवाई और वहां उपस्थित चश्मदीदों से इस घटना के बारे में पूछताछ करनी शुरू की.

कुछ लोगों ने बताया कि मृतक युवती और युवक कुछ ही देर पहले लाल स्कूटी से एक साथ मंदिर आए थे, जब दोनों साईं बाबा के दर्शन करने के बाद बाहर निकल रहे थे, तभी पहले से घात लगाए हत्यारे ने इस वारदात को अंजाम दे दिया.

पुलिस ने जब दोनों लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की तो भीड़ ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया. यह देख इंसपेक्टर जयकरण सिंह ने आरटीओ औफिस से उस लाल रंग की स्कूटी का विवरण मालूम किया, जिस से वे आए थे. आरटीओ औफिस से मृतका की शिनाख्त प्रीति उर्फ गोलू, निवासी विजय विहार (गाजियाबाद) के रूप में हुई.

तय हो गई थी शादी

पुलिस द्वारा सूचना मिलने पर थोड़ी देर में युवती के घर वाले भी रोते बिलखते हुए घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवती की शिनाख्त के साथसाथ युवक की भी शिनाख्त कर दी. मृतक सुरेंद्र चौहान उर्फ अन्नू था. उन्होंने यह जानकारी भी दी कि उन की बेटी प्रीति और सुरेंद्र चौहान बहुत जल्द परिणय सूत्र में बंधने वाले थे. सुरेंद्र के मातापिता भी इस रिश्ते के लिए राजी थे.

घटनास्थल की जांच के दौरान वहां पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के कुछ खोखे और मृतका प्रीति की लाल रंग की स्कूटी बरामद हुई, जिसे पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया. मृतका के पिता प्रमोद कुमार से युवक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह के बारे में जानकारी मिल गई. पुलिस ने उन्हें भी इस दुखद घटना के बारे में बता दिया. इस के बाद खुशहाल सिंह भी अपने परिजनों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

चूंकि दोनों लाशों की शिनाख्त हो चुकी थी, लिहाजा थानाप्रभारी ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाशें पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दीं.

25 मार्च को ही मृतका प्रीति के पिता प्रमोद कुमार की शिकायत पर इस दोहरे हत्याकांड का मुकदमा कोतवाली सिंहानी गेट में अज्ञात अपराधियों के खिलाफ दर्ज कर लिया गया.

इस केस की आगे की तफ्तीश थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने खुद संभाली. उन्होंने इस घटना के बारे में एसपी श्लोक कुमार और सीओ सिटी धर्मेंद्र चौहान को भी अवगत करा दिया.

एसएसपी उपेंद्र कुमार अग्रवाल ने इस दोहरे हत्याकांड को सुलझाने के लिए एसपी श्लोक कुमार के निर्देशन और सीओ धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में एक टीम बनाई. इस टीम में थानाप्रभारी जयकरण सिंह के साथ इंसपेक्टर (क्राइम ब्रांच) राजेश कुमार, एसआई श्रीनिवास गौतम, हैडकांस्टेबल राजेंद्र सिंह, माइकल बंसल, कांस्टेबल अशोक कुमार, संजीव गुप्ता, सेगेंद्र कुमार, संदीप कुमार और गौरव कुमार को शामिल किया गया.

जांच टीम ने एक बार फिर साईं उपवन पहुंच कर वहां के लोगों से घटना के बारे में पूछताछ शुरू की तो पता चला कुछ लोगों ने एक लंबी कदकाठी के आदमी को वहां से भागते हुए देखा था. वह अधेड़ उम्र का आदमी था जो कुछ दूरी तक भागने के बाद वहां खड़ी एक कार में सवार हो कर फरार हो गया था.

हालांकि मंदिर परिसर में 8 सीसीटीवी कैमरे लगे थे लेकिन दुर्भाग्यवश सभी खराब थे. मृतका के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि प्रीति सुबह 7 बजे ड्यूटी पर जाने के लिए निकली थी. वह वसुंधरा के वनस्थली स्कूल के यूनिफार्म स्टौल पर नौकरी करती थी.

उस के काम पर चले जाने के बाद  वह बुलंदशहर जाने वाली बस में सवार हो गए थे. अभी उन की बस लाल कुआं तक ही पहुंची थी कि उन्हें मोबाइल फोन पर प्रीति को गोली मारे जाने का दुखद समाचार मिला. जिसे सुनते ही वह फौरन घटनास्थल पर आ गए थे.

पिता ने बताई उधार की कहानी

प्रमोद कुमार से पूछताछ के बाद पुलिस ने मृतक सुरेंद्र चौहान के पिता खुशहाल सिंह को भी कोतवाली बुला कर उन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि उन के बेटे की हत्या में कल्पना नाम की औरत का हाथ हो सकता है. दरअसल, सुरेंद्र का गाजियाबाद के ही प्रताप विहार में शीशे के सामान का कारोबार था, इसी कारोबार के लिए सुरेंद्र ने कुछ समय पहले कल्पना से कुछ रुपए उधार लिए थे. कल्पना रुपए वापस करने के लिए लगातार तकादा कर रही थी.

चूंकि सुरेंद्र के पास उसे देने लायक पैसे इकट्ठे नहीं हुए थे. इसलिए वह कल्पना को कुछ दिन तक और रुकने को कह रहा था.

2 दिन पहले शनिवार के दिन भी कल्पना उन के घर पर अपने रुपए लेने आई थी, इस दौरान कल्पना ने गुस्से में आ कर सुरेंद्र को बहुत बुराभला कहा था.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस टीम इस हत्याकांड की गुत्थी को सुलझाने के लिए उन तमाम पहलुओं पर विचारविमर्श करने लगी, जिस पर आगे बढ़ कर हत्यारे तक पहुंचा जा सकता था. इस में पहला तथ्य घटनास्थल पर मिले पौइंट 9 एमएम पिस्टल से फायर की गई गोलियों के खोखे थे. इस प्रकार के पिस्टल का इस्तेमाल आमतौर पर पुलिस अधिकारी करते हैं. यह सुराग इस तथ्य की ओर इशारा कर रहा था कि हत्यारे का कोई न कोई संबंध पुलिस डिपार्टमेंट से है.

दूसरा तथ्य मृतक सुरेंद्र उर्फ अन्नू के पिता खुशहाल सिंह के अनुसार उन के बेटे को कर्ज देने वाली औरत कल्पना से जुड़ा था. तीसरा सिरा मृतका प्रीति और उस के मंगेतर सुरेंद्र की बेमेल उम्र से ताल्लुक रखता था.

दरअसल प्रेमी सुरेंद्र की उम्र अभी केवल 26 साल थी जबकि उस की प्रेमिका प्रीति की उम्र 32 साल थी. इसलिए यहां इस बात की संभावना थी कि उन के बीच उम्र का यह फासला उन के परिवार के लोगों में से किसी सदस्य को पसंद नहीं आ रहा हो और आवेश में आ कर उस ने इस घटना को अंजाम दे दिया हो.

इस के अलावा एक और भी महत्त्वपूर्ण बिंदु था, जिसे कतई नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था. प्रीति उर्फ गोलू की उम्र अधिक थी. यह भी संभव था कि उस के प्रेम संबंध पहले से किसी और युवक के साथ रहे हों. पहले प्रेमी को पता चल गया हो कि प्रीति की शादी सुरेंद्र चौहान से हो रही है. संभव था कि उस ने प्रीति को सबक सिखाने के लिए सुरेंद्र का काम तमाम कर दिया.

चूंकि वारदात के समय उस के साथ उस का मंगेतर सुरेंद्र चौहान भी था, इसलिए गुस्से से बिफरे पहले प्रेमी ने उस को भी मार डाला हो. बहरहाल इन तमाम बिंदुओं पर विचार विमर्श कर के पुलिस टीम हत्यारे तक पहुंचने के प्रयास में जुटी थी.

पुलिस टीम ने 27 मार्च को एक बार फिर दोनों के परिवार के पुरुष और महिला सदस्यों तथा वारदात के वक्त साईं उपवन में मौजूद चश्मदीदों को बुला कर पूछताछ की. साथ ही प्रीति और सुरेंद्र के मोबाइल फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उन की गहन जांच की.

इस जांच में चौंकाने वाली बातें सामने आईं. प्रीति के पिता प्रमोद कुमार ने बताया कि उन का एक रिश्तेदार दिनेश कुमार दिल्ली ट्रैफिक पुलिस में एएसआई के पद पर तैनात है. उस का चौहान परिवार के घर पर काफी आनाजाना था.

लेकिन जिस दिन यह दोहरा हत्याकांड हुआ उस दिन के बाद वह बुलाए जाने के बावजूद वारदात वाली जगह पर नहीं आया था. और तो और प्रीति के अंतिम संस्कार में भी वह शामिल नहीं हुआ था. यह बात प्रमोद कुमार और उन के परिवार के सदस्यों को बहुत अटपटी लगी थी. जब पुलिस ने उन से डिटेल्स में बात की तो प्रमोद कुमार ने अपने मन की सब बातें विस्तार से बता दीं.

जिन्हें सुनते ही पुलिस टीम ने दिल्ली पुलिस में ट्रैफिक विभाग में तैनात एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करने का मन बना लिया. चूंकि घटनास्थल पर पौइंट 9 एमएम पिस्टल के खाली खोखे मिले थे, जिस की वजह से भी वारदात में किसी पुलिस वाले के शामिल होने का शक था, इसलिए अब एएसआई दिनेश कुमार से पूछताछ करना बेहद जरूरी हो गया था.

पुलिस वाला आया शक के घेरे में

थानाप्रभारी जयकरण सिंह ने एएसआई दिनेश कुमार से संपर्क करने की कोशिश की मगर कामयाब नहीं हुए. आखिरकार 30 मार्च की सुबह एक मुखबिर की सूचना पर उसे पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया. जब उस से इस दोहरे हत्याकांड के बारे में पूछताछ शुरू की गई तो उस ने जो कुछ बताया उस से रिश्तों में उलझी एक सनसनीखेज कहानी उभर कर सामने आई.

प्रमोद कुमार अपने परिवार के साथ गाजियाबाद के विजय विहार में रहते हैं. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. वह बड़ी बेटी के हाथ पीले कर चुके थे. दूसरी बेटी प्रीति उर्फ गोलू और उस से छोटी बेटी अभी पढ़ाई कर रही थी. 22 वर्षीय प्रीति मिलनसार स्वभाव की थी. वह जिंदगी के हर एक पल का पूरा लुत्फ उठाने में विश्वास रखती थी.

बड़ी बेटी की शादी के एक साल बाद प्रमोद कुमार ने प्रीति के भी हाथ पीले कर देने की सोची. उन्होंने उस के लिए कई जगह रिश्ते की बात चलाई, मगर आखिर अपनी हैसियत के अनुसार मौके पर प्रीति किसी न किसी बहाने से शादी करने से इनकार कर देती थी.

प्रीति का अपनी बड़ी बहन के घर काफी आनाजाना था. अपने हंसमुख स्वभाव की वजह से वह बहन की ससुराल में भी काफी घुलमिल गई थी. उस के जीजा का जीजा दिनेश कुमार दिल्ली पुलिस में कांस्टेबल था. दिनेश मूल रूप से उत्तर प्रदेश के पिलखुआ का रहने वाला था.

उस की पत्नी और बच्चे पिलखुआ में ही रहते थे. दिनेश जब भी रमेश के घर आता वह प्रीति से खूब बातेें करता था. बला की हसीन और दिलकश प्रीति की चुलबुली मीठी बातें सुन कर वह भावविभोर हो जाता था.

प्रीति को भी दिनेश से बातें करने में खुशी मिलती थी. वह उस समय उम्र के उस पड़ाव पर भी पहुंच गई थी, जहां एक मामूली सी चूक भविष्य के लिए नासूर बन जाती है. लेकिन इस समय प्रीति या उस की बहन सीमा ने इन बातों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी.

धीरेधीरे प्रीति की जिंदगी में दिनेश का दखल बढ़ने लगा. अब वह प्रीति से उस के गाजियाबाद स्थित घर पर भी मिलने आने लगा था. इतना ही नहीं जब कभी प्रीति या उस के परिवार में अधिक रुपयों की जरूरत होती वह अपनी ओर से आगे बढ़ कर उन की मदद करता था.

प्रीति के पिता प्रमोद कुमार भी दिनेश कुमार के बढ़ते अहसानों के बोझ तले इतने दब चुके थे कि दिनेश के रुपए वापस करना उन के वश के बाहर हो गया. दिनेश कुमार ये रुपए प्रीति के घर  वालों को यूं ही उधार नहीं दे रहा था.

रिश्तों में सेंध

दरअसल दिनेश कुमार अपनी उम्र से लगभग आधी उम्र की प्रीति के ऊपर न केवल पूरी तरह से फिदा था बल्कि उस के साथ उस के शारीरिक संबंध भी स्थापित हो चुके थे. वह प्रीति को किसी न किसी बहाने से अपने साथ घुमाने ले जाता था, जहां दोनों अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे.

समय का पहिया अपनी गति से आगे बढ़ता रहा, दिनेश कुमार सन 1994 में कांस्टेबल के पद पर दिल्ली पुलिस में भरती हुआ था. सन 2008 में उस का प्रमोशन हेड कांस्टेबल के पद पर हो गया. इस के 8 साल बाद एक बार फिर उस का प्रमोशन हुआ और वह एएसआई बन गया. इन दिनों वह ट्रैफिक विभाग में सीमापुरी सर्कल में तैनात था.

प्रीति के साथ जिस सुरेंद्र कुमार नाम के युवक की जान गई थी, वह मूलरूप से उत्तराखंड का रहने वाला था. उस के पिता खुशहाल सिंह सेना में रह चुके थे. रिटायरमेंट के बाद वह अपने गांव में सेटल हो गए. 2 बेटों के अलावा उन की 2 बेटियां थीं. सब से बड़ा बेटा सुधीर हरिद्वार में रहता था. वह अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुके थे और इन दिनों एक पोल्ट्री फार्म चला रहे थे.

करीब 2 साल पहले उन का छोटा बेटा सुरेंद्र कुमार उर्फ अन्नू उत्तराखंड से गाजियाबाद आ गया था और प्रताप विहार में शीशे का बिजनैस करने लगा था. 2 साल तक अथक मेहनत करने के बाद आखिर उस का काम चल निकला.

इस के बाद उस ने अपने मातापिता को भी अपने पास बुला लिया था. कुछ ही महीने पहले उस की मुलाकात प्रीति उर्फ गोलू से हुई थी. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे थे.

सुरेंद्र से मुलाकात होने के बाद प्रीति फोन से सुरेंद्र से अकसर बात करती रहती थी. दिन गुजरने लगे उन के प्यार का रंग गहरा होता चला गया. कुछ दिनों के बाद सुरेंद्र और प्रीति का प्यार ऐसा परवान चढ़ा कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया. प्रीति के घर वाले इस के लिए राजी हो गए थे. शादी की बात तय हो जाने पर दोनों प्रेमी खुश हुए. हालांकि प्रीति की उम्र सुरेंद्र से करीब 6 साल ज्यादा थी मगर दोनों में से किसी को इस पर जरा भी एतराज नहीं था.

प्रीति सुरेंद्र के साथ शादी के लिए तो दिलोजान से रजामंद थी किंतु उस के सामने सब से बड़ी समस्या यह थी कि दिनेश के साथ उस के विगत कई सालों से जो प्रेमिल संबंध थे उन से निकलना आसान नहीं था. वजह यह कि दिनेश कुमार किसी भी हालत में उस की शादी किसी और से नहीं होने देना चाहता था.

प्रीति को अपने काबू में रखने के लिए उस ने उस की हर जायज नाजायज मांगें पूरी की थीं. हाल ही में उस ने प्रीति के पिता को 3 लाख रुपए उधार भी दिए थे. एएसआई दिनेश कुमार के बयान कितने सच और कितना झूठ है यह तो पुलिस की जांच के बाद पता चलेगा. परंतु इतना तय है कि प्रीति के घर में उस का इतना दखल था कि वह बेधड़क जब चाहे तब उस के घर आ जा सकता था.

प्रीति और सुरेंद्र के बीच जब से प्यार का सिलसिला शुरू हुआ था तब से प्रीति ने एएसआई दिनेश से मिलनाजुलना कम कर दिया था. पहले तो दिनेश कुमार प्रीति और सुरेंद्र के प्यार से अनजान था, लेकिन 4-5 दिन पहले जब प्रीति ने उस का फोन रिसीव करना बंद कर दिया तो वह सोच में पड़ गया.

दिल्ली पुलिस में 25 सालों से नौकरी कर रहे एएसआई दिनेश कुमार को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला बेहद गंभीर है. फिर भी उस ने किसी तरह प्रीति को फोन कर के उस से बातें करने की कोशिश जारी रखी. लेकिन 2 दिन पहले प्रीति ने दिनेश कुमार के लगातार आने वाले फोन से परेशान हो कर अपने मोबाइल फोन का सिम बदल लिया.

मामला बिगड़ता देख एएसआई दिनेश कुमार समझ गया कि प्रीति किसी कारण उस से संबंध तोड़ने पर आमादा है. जिस के फलस्वरूप उस ने प्रीति को सबक सिखाने की ठान ली. 24 मार्च, 2019 को दिनेश की रात की ड्यूटी थी.

25 मार्च की सुबह अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद वह शाहदरा निवासी अपने दोस्त पिंटू शर्मा के पास गया. उस की मारुति स्विफ्ट कार पर सवार हो कर वह प्रीति के घर जा पहुंचा. कार पिंटू शर्मा चला रहा था. प्रीति के घर पहुंच कर जब उसे पता चला कि प्रीति साईं उपवन मंदिर गई है तो वह उस का पीछा करता हुआ वहां भी पहुंच गया.

अचानक की गईं दोनों की हत्याएं

उधर साईं मंदिर में दर्शन करने के बाद जैसे ही प्रीति और सुरेंद्र अपने जूतों की ओर बढ़े, तभी एएसआई दिनेश कुमार प्रीति से बातें करने के लिए आगे बढ़ा. उस ने प्रीति को अपनी ओर बुलाया मगर प्रीति ने उस की ओर देख कर अपनी नजरें फेर लीं.

यह देख दिनेश कुमार की त्यौरियां चढ़ गईं. वह आगे बढ़ा और प्रीति का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचने लगा, मगर प्रीति ने उस का हाथ झटक दिया. प्रीति की यह बात एएसआई दिनेश कुमार को बहुत बुरी लगी. तभी उस ने अपना सर्विस पिस्टल निकाला और प्रीति के ऊपर फायर कर दिए.

प्रीति को खतरे में देख कर सुरेंद्र उसे बचाने के लिए दौड़ा तो दिनेश ने उस के भी सीने में 3 गोलियां उतार दीं. इस के बाद वह बाहर स्विफ्ट कार में इंतजार कर रहे पिंटू शर्मा के साथ वहां से फरार हो गया.

गाजियाबाद पुलिस की नजरों से बचने के लिए 5 दिनों तक दिनेश कुमार अपने रिश्तेदारों के घर छिपा रहा. दिनेश की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने शाहदरा से इस हत्याकांड में शामिल रहे उस के दोस्त पिंटू को भी गिरफ्तार कर लिया.

वारदात में प्रयोग की गई एएसआई दिनेश कुमार की सर्विस पिस्टल, 3 जीवित कारतूस तथा स्विफ्ट कार भी गाजियाबाद पुलिस ने बरामद कर ली. 2 अप्रैल, 2019 को दिल्ली पुलिस ने भी एएसआई दिनेश कुमार को उस के पद से बर्खास्त कर दिया. इस समय दोनों हत्यारोपी जेल में बंद हैं.

उधर गाजियाबाद पुलिस के आला अधिकारियों ने इस सनसनीखेज वारदात की गुत्थी सुलझाने वाली टीम का मनोबल बढ़ाते हुए 25 हजार रुपए के पुरस्कार से नवाजा है, पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 3

थाने में आने के बाद एसआई हरेंद्र ने दोनों को अपने सामने बिठाया तो रवि परेशान स्वर में बोला, ”सर, हमें यह तो बताइए, आप किस जुर्म में हम दोनों को थाने लाए हैं?’’

”आलोक सिंह की हत्या के जुर्म में तुम्हें यहां लाया गया है.’’ एसआई अपने स्वर को गंभीर बना कर बोले, ”आलोक सिंह को तो तुम पहचानते होगे? उस की हत्या हुई है.’’

”कौन आलोक?’’ रवि हैरानी से बोला, ”मेरे पहचान के 2-3 लोग हैं साहब, जिन का नाम आलोक सिंह है.’’

”मै देवला गांव, पक्षी विहार में रहने वाले आलोक सिंह की बात कर रहा हूं.’’

”अरे.’’ रवि बुरी तरह चौंका, ”क्या आलोक सिंह की हत्या हो गई है? कब, कैसे?’’

”बनो मत.’’ एसआई हरेंद्र गुर्राए, ”आलोक सिंह की तुम ने ही हत्या की है.’’

”यह झूठ है साहब, मैं तो आलोक को बड़े भाई की तरह मानता था. बहुत इज्जत करता था उन की.’’

”ओह!’’ एसआई हरेंद्र सिंह मुसकराए, ”तभी उस की इज्जत से खेल रहे थे. क्या तुम्हारे आलोक की बीवी प्रियंका के साथ नाजायज संबंध नहीं हैं?’’

रवि ने सिर झुका लिया. कुछ क्षणों तक वह खामोश रहा फिर बोला, ”यह ठीक है साहब कि मेरे प्रियंका के साथ नाजायज संबंध हैं. लेकिन इस में मेरा जितना दोष है, उतना दोष प्रियंका का भी है. उसी ने मुझे अपने प्रेमजाल में फांसा था. मुझे उस ने खुला निमंत्रण दिया था तो मैं बहक गया. वैसे प्रियंका अच्छी औरत नहीं है साहब, उस का पहले सर्वेश से भी प्रेम संबंध रहा है.’’ रवि ने बात खत्म कर सिर खुजाया फिर बोला, ”मैं समझ गया साहब, हत्या किस ने की है?’’

”किस ने की है?’’ एसआई ने उसे घूरा.

”सर्वेश ने की होगी साहब. मेरा पूरा यकीन है कि वही ऐसा करेगा, क्योंकि आलोक के साथ मैं ने 29 अक्तूबर, 2023 को सर्वेश की अच्छे से ठुकाई कर दी थी. सर्वेश ने आलोक से उसी ठुकाई का बदला लिया होगा.’’

”तुम ने और आलोक ने सर्वेश की पिटाई की थी, भला क्यों?’’ एसआई हरेंद्र सिंह ने पूछा.

”साहब, आलोक सिंह ने मुझे बताया था कि सर्वेश प्रियंका को रास्ते में परेशान करता है. गंदेगंदे कमेंट करता है.’’

”तुम तो कह रहे हो कि प्रियंका का सर्वेश भी आशिक था.’’

”हां साहब, सर्वेश से भी प्रियंका ने इश्क लड़ाया था. उस से मिलती थी, फिर उसे घर भी लाने लगी. आलोक सीधासादा इंसान था, वह प्रियंका को पाकसाफ समझता था, उसे प्रियंका पर यह संदेह नहीं था कि वह दूसरे व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाती होगी. वह तो सर्वेश को उस का हमदर्द दोस्त समझता था.

”प्रियंका ने काफी दिनों तक सर्वेश से रिश्ता रखा, फिर न जाने क्यों वह उस से कटने लगी. शायद इसीलिए सर्वेश उसे रास्ते में तंग करने लगा था. वह तिलमिलाया हुआ इंसान था. प्रियंका ने इस की शिकायत अपने पति आलोक से की होगी, तभी आलोक ने सर्वेश को सबक सिखाने के लिए मुझ से मदद मांगी थी. मैं ने आलोक का साथ दिया था साहब. इसी से नाराज हो कर सर्वेश ने आलोक की हत्या कर दी होगी. मैं अपनी मां की कसम खा कर कहता हूं साहब, मैं ने आलोक की हत्या नहीं की है.’’

”ठीक है, मैं सर्वेश को चैक करता हूं. लेकिन तुम भी शक के दायरे में हो, कहीं जाओगे नहीं, जब तक यह मालूम न हो जाए कि आलोक का कातिल कौन है.’’ एसआई हरेंद्र ने कांस्टेबल नवीन मलिक को इशारे से पास बुला कर कहा, ”इन दोनों को दूसरे कमरे में बिठा दो और इन पर नजर रखना.’’

”ठीक है सर.’’ नवीन मलिक ने कहा और दोनों को ले कर एसआई के कक्ष से बाहर निकल गया.

प्रियंका ने सुना दी डबल इश्क की दास्तां

एसभाई हरेंद्र सिंह ने महिला कांस्टेबल को भेज कर मृतक आलोक की पत्नी प्रियंका को थाने में बुलवा लिया. प्रियंका पति की मौत से बेहद दुखी दिखाई दे रही थी. उस की आंखें रोने के कारण सूज गई थीं.

आलोक सिंह की लाश पोस्टमार्टम के बाद उस के घर वालों को सौंपी जा चुकी थी और उस के बड़े भाई रामवीर ने बहुत गमगीन हालत में छोटे भाई की अंत्येष्टि कर दी थी.

इश्क के रंग में रंगी प्रियंका को शायद अब समझ में आ रहा था कि उस के गलत आचरण के कारण ही उस का खुद का घर उजड़ चुका है और वह पति को गंवा बैठी.

उस ने थाने में चुपचाप कुबूल कर लिया कि उस के सर्वेश और रवि के साथ नाजायज संबंध थे. सर्वेश उस की जिंदगी में पहले आया था, जिस के साथ उस ने काफी दिन मौजमस्ती की, फिर रवि की ओर झुक गई. इस से सर्वेश चिढ़ गया. वह उसे बीच राह में परेशान करने लगा था. वह उसे बदनाम करने की धमकियां देता था.

यह बात उस ने अपने पति को बताई तो उन्होंने सर्वेश को 2-3 बार प्यार से समझाया. प्रियंका ने बताया कि जब सर्वेश अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो उन्होंने रवि के साथ मिल कर सर्वेश की धुनाई कर दी थी. शायद इसी बात से खफा हो कर उस ने मेरे पति आलोक की हत्या कर दी है.

प्रियंका ने आगे कहा कि मैं बेशक बदचलनी पर चली, लेकिन मैं बच्चों की कसम खा कर कहती हूं कि मैं ने किसी से नहीं कहा कि मेरे पति की हत्या कर दो. यह काम सर्वेश का है. उसे गिरफ्तार कर लीजिए साहब.

एसआई हरेंद्र सिंह ने प्रियंका से सर्वेश का पता मालूम किया तो उस ने बता दिया. सर्वेश, गांव धनसिंह पुरवा, जिला हरदोई का रहने वाला था. पुलिस टीम ने सर्वेश के पते पर दबिश दी तो वह घर से फरार मिला. उस के पीछे मुखबिर लगा दिए गए. जल्द ही एक विश्वासपात्र मुखबिर ने बताया कि सर्वेश अपने फुफेरे भाई रिंकू उर्फ भूपेंद्र सिंह के साथ सूरजपुर में पैरामाउंट अंडरपास पर आने वाला है. इस सूचना के आधार पर पुलिस टीम ने घेराबंदी कर ली. सर्वेश वहां रिंकू के साथ आया तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

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सर्वेश ने क्यों की थी आलोक की हत्या

थाने में पूछताछ हुई तो सर्वेश ने बताया कि वह प्रियंका से प्रेम करता था. प्रियंका ने उस से किनारा करना चाहा तो वह सहन नहीं कर पाया, वह प्रियंका से अपना प्यार लौटाने के लिए गिड़गिड़ाता था. प्रियंका उसे दुत्कार रही थी. उस ने अपने पति से कहा कि मैं उसे आते जाते राह में परेशान करता हूं.

उस ने कहा कि आलोक ने प्रियंका के दूसरे प्रेमी रवि के साथ मिल कर मेरे मोहल्ले में मेरी पिटाई कर दी थी. मैं इस से काफी अपमानित महसूस करने लगा था. मैं ने अपने फुफेरे भाई रिंकू उर्फ भूपेंद्र सिंह को साथ लिया और रवि को सबक सिखाने के लिए उस की तलाश में निकला, लेकिन रवि हमें नहीं मिला.

तब हम सनप्लास्ट कंपनी साईट-बी, इंडस्ट्रियल एरिया पहुंचे. आलोक यहां नौकरी करता था. वह शाम को ड्यूटी कर के कंपनी से बाहर आया और घर जाने लगा तो मैं ने और रिंकू ने उसे घेर लिया.

हम उसे ट्राला के केबिन में ले आए. वहां उस से मारपीट की. मैं ने लोहे के टायर लीवर से आलोक के सिर पर वार किया तो उस का सिर फट गया. सर्वेश ने बताया कि वह बेहोश हो कर गिरा तो मैं ने उस का गला दबा कर जान ले ली. मैं साथ दो निशाने साधना चाहता था. मैं ने रिंकू की मदद से आलोक की लाश मिग्सन ग्रीन सोसायटी की ग्रीन बेल्ट (ग्रेटर नोएडा) में फेंक दी, ताकि यहां रहने वाले रवि पर हत्या का शक जाए. रवि यदि हत्या के शक में पकड़ा जाता और जेल जाता तो प्रियंका फिर मेरी तरफ झुक जाती.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. पुलिस ने मुझे और रिंकू उर्फ भूपेंद्र सिंह, मैस कटरा, जिला कानपुर देहात को पैरामाउंट अंडरपास से गिरफ्तार कर लिया.

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              आरोपी रिंकू

सर्वेश ने हत्या का जुर्म कुबूल कर लिया तो उसे और रिंकू को उसी दिन कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर ले लिया गया.

कड़ी पूछताछ से उन से हत्या में प्रयुक्त टायर लीवर, ट्राला जिस का रजिस्ट्रेशन नंबर- पीबी 10एचडी 1859 था और जिस के केबिन में आलोक की हत्या की गई थी, बरामद कर लिया गया.

ट्राला की खून सनी सीट बैल्ट, सीट कवर और ट्राला में गिर कर सूख चुके खून के नमूने भी एकत्र कर लिए गए. केस को मजबूती देने वाले साक्ष्य इकट्ठा करने के बाद जब रिमांड अवधि खत्म हुई तो पुलिस ने रिंकू उर्फ भूपेंद्र और सर्वेश को कोर्ट में पेश कर दिया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

रवि और उस के दोस्त बबलू उर्फ अशरफ अली को रिहा कर दिया गया. छोड़ तो प्रियंका को भी दिया गया था, लेकिन उसे अब अपने आप से नफरत हो गई थी. पति की मौत का वह खुद को जिम्मेदार मानती थी. वह काफी गुमसुम हो गई थी और बच्चों के साथ सादगी भरा जीवन जी रही थी. शायद यही उस का पछतावा था. अब घटना की जांच मौजूदा एसएचओ पुष्पराज कर रहे हैं.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 2

किस ने की आलोक की हत्या

पहली नवंबर, 2023 थाना सूरजपुर (गौतम बुद्ध नगर) पुलिस को दोपहर में किसी अज्ञात व्यक्ति से सूचना मिली कि मिग्सन ग्रीन सोसायटी के पास ग्रीन बेल्ट (ग्रेटर नोएडा में) एक व्यक्ति की लाश पड़ी हुई है.

थाना सूरजपुर के एसआई हरेंद्र सिंह सूचना मिलते ही रजिस्टर में अपनी रवानगी दर्ज कर के मौके पर तफ्तीश के लिए रवाना हो गए. घटनास्थल पर भीड़ जमा थी. पुलिस को देख कर भीड़ इधरउधर हो गई. एसआई हरेंद्र सिंह उस जगह आए, जहां युवक की लाश पड़ी हुई थी.

युवक का सिर फटा हुआ था, जिस से उस के कपड़े खून से लथपथ हो चुके थे. लग रहा था कि उस के सिर पर कोई भारी चीज का वार किया गया है.

युवक की तलाशी ली गई, लेकिन उस की जेब में ऐसी कोई चीज नहीं मिली, जिस से यह मालूम हो सकता कि यह कौन है, कहां रहता है. उस को भीड़ में भी कोई नहीं पहचान पाया. एसआई हरेंद्र सिंह ने उच्चाधिकारियों को इस लाश की जानकारी दे दी और फोरैंसिक टीम को घटनास्थल पर बुलवा लिया.

थोड़ी देर में ही एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल नोएडा) हृदेश कठेरिया घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने युवक की लाश का बारीकी से मुआयना किया. फोरैंसिक टीम भी आ गई थी, वह अपने काम में जुट गई थी.

अभी जांच का काम चल ही रहा था कि एक युवक भीड़ को चीरता हुआ घटनास्थल पर आ गया. युवक ने लाश को गौर से देखा तो दहाड़ें मार कर रोने लगा.

रामवीर ने भाभी पर क्यों जताया हत्या का शक

एसआई हरेंद्र सिंह उस के पास आ गए. युवक के कंधे पर उन्होंने सहानुभूति से हाथ रख कर उस क ा कंधा थपथपा कर सांत्वना देने की कोशिश करते हुए पूछा, ”तुम्हारा क्या लगता था यह?’’

”साहब, मेरा छोटा भाई है यह.’’ युवक ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, ”इस का नाम आलोक सिंह है और मेरा नाम रामवीर. मैं ने कल शाम को थाना सूरजपुर में इस की गुमशुदगी लिखवाई थी साहब. वहां पर इस का फोटो भी जमा करवाया था मैं ने.’’

”यह मेरे संज्ञान में नहीं है. मैं तो इस युवक की शिनाख्त के लिए परेशान था कि तुम ने मेरी टेंशन दूर कर दी.’’

”मैं आज फिर से थाना सूरजपुर गया था, यह मालूम करने कि मेरे भाई का कोई पता लगा या नहीं, वहां ड्यूटी अफसर ने मुझे बताया कि मिग्सन ग्रीन सोसायटी की ग्रीन बेल्ट (ग्रेटर नोएडा) में एक युवक की लाश मिली है, साहब वहां तफ्तीश के लिए गए हैं. तब यह देखने कि लाश किस की है, मैं यहां आ गया. लाश मेरे भाई की है साहब.’’

”क्या नाम बताया तुम ने अपने भाई का?’’

”आलोक सिंह, साहब!’’

”यह कब से लापता था?’’

”29 नवंबर, 2023 को यह रोज की तरह अपने काम पर गया था साहब. शाम को यह घर नहीं पहुंचा. हम सभी रात भर इस के घर आने का इंतजार करते रहे. 30 नवंबर को जब यह शाम तक भी नहीं लौटा तो मैं ने इस की गुमशुदगी थाने में दर्ज करवा दी थी.’’

”तुम्हारा नाम क्या है?’’

”रामवीर सिंह मूलरूप से हमारे पिता महेंद्र सिंह गांव कोकामऊ, माल्लवा, हरदोई (उत्तर प्रदेश) के निवासी हैं. वर्तमान में भाई आलोक सिंह देवला गांव, पक्षी विहार, इंडेन गैस गोदाम के पास अनुरुद्र के मकान में किराए पर रह रहा है. यह थाना क्षेत्र सूरजपुर में स्थित है.’’

एसआई हरेंद्र सिंह ने पूछा, ”तुम्हारे भाई की हत्या हुई है. तुम्हें किसी पर संदेह है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे भाई आलोक सिंह का दुश्मन रहा हो?’’

”साहब, घर की इज्जत हर एक को प्यारी होती है, लेकिन जब कोई घर की इज्जत ही खराब करना चाहे तो चुप रहने में कोई फायदा नहीं होगा.’’ रामवीर बहुत गंभीर नजर आने लगा, ”मेरे भाई आलोक सिंह की हत्या में इस की पत्नी प्रियंका का हाथ है. मुझे पक्का विश्वास है कि उसी ने अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर मेरे भाई की हत्या करवाई है.’’

”ओह!’’ एसआई हरेंद्र सिंह हैरानी से बोले, ”यानी तुम्हारे भाई की पत्नी अच्छे चालचलन वाली नहीं है.’’

”बेशक उस ने कभी अपने पति आलोक सिंह की इज्जत का खयाल नहीं किया. वह भाई के पीठ पीछे रवि नाम के युवक से इश्क लड़ा रही थी. उस ने आलोक पर पता नहीं साहब क्या जादू किया हुआ था कि वह रवि के ऊपर कभी शक नहीं करता था.

”रवि उस की मौजूदगी में और गैरमौजूदगी में बेधड़क घर पर आया जाया करता था. मैं ने देखा तो नहीं, लेकिन प्रियंका और रवि के हावभाव से मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि दोनों में अनैतिक संबंध बने हुए हैं. यह बात मैं ने नोट की है साहब.’’

”बोलो,’’ एसआई ने उस के चेहरे पर नजरें जमा कर पूछा, ”यह रवि रहता कहां है?’’

”रवि यहीं मिग्सन ग्रीन सोसायटी, ग्रेटर नोएडा में रहता है. उस का मूल निवास, पहाड़पुर, थाना अनूपशहर (बुलंदशहर) है.’’

एसआई हरेंद्र सिंह ने यह एड्रैस अपनी डायरी में नोट कर लिया और वहां मौजूद एडिशनल डीसीपी (सेंट्रल नोएडा) हृदेश कठेरिया को मृतक के भाई रामवीर से मिली जानकारी से अवगत करा दिया.

एडिशनल डीसीपी हृदेश कठेरिया ने निर्देश दिया, ”आप रामवीर की बात को ध्यान में रख कर अपनी काररवाई करिए. आलोक सिंह की पत्नी प्रियंका को पूछताछ के दायरे में लाइए. यदि रामवीर की बातों में सच्चाई है तो प्रियंका अवश्य टूट जाएगी.’’

”ठीक है सर, मैं पहला काम प्रियंका से पूछताछ का ही करूंगा.’’

एडिशनल डीसीपी कुछ निर्देश दे कर वहां से चले गए. तब एसआई ने अपनी कागजी काररवाई पूरी करने के बाद उस लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दिया. फिर वह रामवीर को साथ ले कर थाना सूरजपुर के लिए रवाना हो गए.

दूसरे प्रेमी से पुलिस को मिली नई जानकारी

आलोक सिंह की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस में यह कहा गया था कि सिर पर लगी गंभीर चोट और गला दबाए जाने से आलोक सिंह की जान गई थी.

यह हत्या का मामला था. एसआई हरेंद्र सिंह ने रामवीर सिंह को बुलवा कर उस की लिखित तहरीर के आधार पर यह केस भादंवि की धारा 302, 201, 120बी के तहत दर्ज किया.

रामवीर सिंह ने अपनी तहरीर में छोटे भाई आलोक सिंह की हत्या का दोष आलोक की पत्नी प्रियंका और उस के प्रेमी रवि तथा रवि के साथ मैकेनिक का काम करने वाले उस के दोस्त बबलू उर्फ अशरफ अली, निवासी बांदोली, जिला बुलंदशहर के ऊपर लगाया. रामवीर सिंह की लिखित तहरीर के आधार पर आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए एडिशनल डीसीपी हृदेश कठेरिया ने एक पुलिस टीम का गठन कर दिया. इस का नेतृत्व एसआई हरेंद्र सिंह को दिया गया था.

थाना सूरजपुर के तत्कालिन एसएचओ अवधेश प्रताप सिंह पूरे मामले पर नजर रखे थे. एसआई जितेंद्र चौहान और हरेंद्र सिंह ने रवि और बबलू उर्फ अशरफ अली को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर दबिश दी तो दोनों घर पर ही मिल गए. दोनों को पुलिस थाना सूरजपुर ले आई.

बीवी का डबल इश्क पति ने उठाया रिस्क – भाग 1

मृतक की उम्र 35 से 40 वर्ष के बीच की लग रही थी. वह पैंटशर्ट पहने हुए था. उस के जिस्म पर चोट के निशान थे और सिर फटा हुआ था. सिर के गहरे जख्म से खून बह कर उस के सारे चेहरे और शर्ट पर फैल कर सूख चुका था. इस से अनुमान लगाया गया कि युवक को मरे हुए 10-12 घंटे से ऊपर हो गए हैं.

जमीन पर खून दिखाई नहीं दे रहा था और न ही ऐसे चिह्न वहां थे, जिस से यह समझा जा सके कि युवक की हत्या इसी जगह की गई है. साफ लग रहा था कि युवक की हत्या कहीं और की गई होगी, उस के बाद उसे ला कर यहां पर फेंक दिया गया था.

मिग्सन ग्रीन सोसायटी (गौतमबुद्ध नगर) का रहने वाला रवि कहीं जाने के लिए नहाधो कर तैयार हुआ था. उस ने अभी जूते के फीते बांधे ही थे कि जेब में रखे मोबाइल की घंटी बजने लगी. रवि ने मोबाइल निकाला. स्क्रीन पर उस की प्रेमिका प्रियंका का फोन नंबर फ्लैश हो रहा था.

रवि तुरंत काल रिसीव कर आतुरता से बोला, ”बोलो जानम, इस गरीब की याद कैसे आ गई तुम्हें?’’

”गरीब क्यों कहते हो अपने आप को रवि. मेरी नजर में तो तुम राजा हो राजा.’’ दूसरी ओर से प्रियंका का स्वर उभरा.

रवि हंस पड़ा, ”चलो, तुम्हारी नजर में मेरी कुछ तो कीमत है. कहो, कैसे याद किया मुझे?’’

”कहां हो?’’

”घर पर ही हूं.’’

”मेरे घर चले आओ, मैं अकेली हूं आज.’’ प्रियंका के स्वर में कामुकता का भाव था.

”तुम्हारा पति आलोक कहां गया?’’ रवि ने पूछा.

”अपनी बहन के यहां गया है, कल लौटेगा. तुम आ जाओ, रात रंगीन करने का बहुत अच्छा मौका हाथ आया है.’’

”मैं अभी आया मेरी जान.’’ आतुरता से बोला रवि, ”बोलो, क्या ले कर आऊं, चिकन या मटर पनीर?’’

”मैं ने चिकन मंगवा रखा है, पीने का मन हो तो अपनी चौइस का ब्रांड लेते आना.’’

”ठीक है,’’ रवि ने कहा और काल डिसकनेक्ट कर उस ने मोबाइल जेब के हवाले कर लिया. घर से निकल कर एक ठेके से उस ने अद्धा खरीदा, उसे जेब में रख कर उस ने आटो किया और देवला गांव, पक्षी विहार, गौतमबुद्ध नगर में स्थित आलोक के घर पहुंच गया. उस ने दरवाजा खटखटाया. दरवाजा प्रियंका ने खोला.

रवि अंदर आ गया. प्रियंका ने दरवाजा बंद कर दिया और वह भी रवि के पीछे अंदर बैडरूम में पहुंच गई. उस ने बढिय़ा बनावशृंगार किया हुआ था.

”बच्चे दिखाई नहीं दे रहे हैं प्रियंका.’’ रवि ने पलंग पर बैठते हुए पूछा.

”मैं ने उन्हें नानी के यहां भेज दिया है.’’ प्रियंका अंगड़ाई लेते हुए रवि की बगल में आ बैठी.

”बहुत समझदार हो.’’

”यार रवि, जब एंजौय करते हैं तो किसी प्रकार का डिस्टरबेंस नहीं होना चाहिए. अब पूरी रात हमारी है.’’ प्रियंका ने कहने के बाद रवि के गले में अपनी नाजुक कलाइयां डाल दीं, ”तुम्हारी शिकायत थी कि मैं तुम्हें कभी पूरा मौका नहीं देती.’’

”मैं गलत कहां कहता हूं, तुम अपना सारा प्यार सर्वेश पर लुटाती रही हो.’’ रवि के स्वर में शिकायत थी.

”पहले वह मुझे अच्छा लगता था, लेकिन जब तुम मेरी जिंदगी में आए तो मैं ने तुम दोनों को तराजू में रख कर तोला. तुम और तुम्हारा प्यार सर्वेश से कहीं अधिक वजनी निकला, इसलिए मैं ने सर्वेश की ओर से किनारा कर लिया.’’ प्रियंका ने अपना गाल रवि के गाल से रगड़ते हुए कहा.

रवि ने प्रियंका की कमर में बाहें लपेट कर उसे अपनी गोद में खींच लिया, ”मैं ने तुम्हें दिल से प्यार किया है स्वीट हार्ट. सर्वेश की तरह मैं तुम्हारे जिस्म का भूखा नहीं बना. हम कई दिनों से मिल रहे हैं, आज तुम ने पहली बार मुझे बिस्तर पर आमंत्रित किया है. मैं अपने आप को खुशनसीब मान रहा हूं.’’

”अब समय मत गंवाओ… मैं तुम्हारे प्यार के लिए तड़प रही रही हूं.’’

रवि ने प्रियंका के यौवन को दुलारना शुरू कर दिया. उस की अंगुलियां प्रियंका के गुदाज जिस्म पर फिसलने लगीं. प्रियंका पल प्रतिपल उन्मादित होती चली गई और वह पल भी आ गया, जब रवि ने उसे पूरी तरह अपने आगोश में समेट लिया और उस पर छाता चला गया.

वह रात प्रियंका और रवि ने पूरी मौजमस्ती से गुजारी. सुबह वहीं से फ्रैश हो कर रवि काम पर जाने के लिए निकला तो उसी वक्त प्रियंका का पति आलोक वहां आ गया.

भेद खुलतेखुलते ऐसे बचा

रवि एक बार के लिए आलोक को देख कर सकपका गया, फिर उस ने तुरंत अपने आप को संभाल लिया, ”आलोक भैया नमस्ते. मैं आप से ही मिलने आया था, भाभी ने बताया आप बाहर गए हुए हो, लौट रहा था कि आप आ गए.’’

”कैसे हो, बहुत दिनों बाद इधर आए हो.’’ आलोक ने आत्मीयता से पूछा.

”समय ही नहीं मिलता भैया.’’ रवि बोला, ”आज सोचा सुबह सुबह मिल लूंगा, अच्छी किस्मत है मेरी, मेरा आना बेकार नहीं गया. आप आ गए.’’

”कुछ काम था क्या मुझ से?’’

”काम कुछ नहीं भैया, अगले हफ्ते मेरा बर्थडे है. मैं छोटी सी पार्टी दे रहा हूं. आप भाभीजी को ले क र आ जाना.’’ रवि ने झूठ बोला.

”जरूर आऊंगा, दिन और समय बता दो.’’

”2 अक्तूबर.’’ रवि हंस कर बोला, ”उस दिन बापूजी का जन्मदिन होता है. मैं भी उसी दिन पैदा हुआ था. आप शाम को 5 बजे आ जाइए, खाना भी वहीं खाइएगा.’’

”ठीक है, मैं जरूर आऊंगा.’’ आलोक कह कर रवि के साथ बाहर आ गया. उस ने इधरउधर देखा, फिर धीरे से बोला, ”रवि, एक बात कहनी है तुम से.’’

”कहिए न भैया.’’ धड़कते दिल से रवि ने कहा.

”यह सर्वेश अजकल तुम्हारी भाभी प्रियंका को कुछ ज्यादा ही परेशान कर रहा है. गलती प्रियंका की ही थी, जो उसे मुंह लगा लिया. प्रियंका ने तो उस से अपनापन जताया था, अब वह उसी पर हावी होने की कोशिश कर रहा है. प्रियंका कहीं बाहर जाती है तो वह उस पर गलत कमेंट करता है. उसे 1-2 बार समझाया, लेकिन वह बाज ही नहीं आ रहा है.’’

”धुनाई कर दो हरामी की. मैं आप के साथ हूं.’’ रवि जोश में भर कर बोला, ”ऐसे व्यक्ति को सबक मिलना जरूरी है.’’

”ठीक कहते हो, जब जरूरत होगी, मैं तुम्हें बुला लूंगा.’’ आलोक ने कहा.

”मैं आप का फोन सुनते ही आ जाऊंगा भैया. अब चलता हूं, काम के लिए देर हो रही है.’’ कहने के बाद रवि इजाजत ले कर पैदल ही वहां से चल पड़ा.

वह अब काफी संतुष्ट था, क्योंकि आलोक की गैरमौजूदगी में उस के घर रात भर रहने की बात रहस्य ही बनी रही थी. आलोक को उस पर थोड़ा सा भी शक नहीं हुआ था.