प्यार किसी का, लुटा आशियाना किसी का

जिला सीतापुर के मिश्रिख थाना कोतवाली के अंतर्गत आने वाले गांव बदौव्वा में लालजी रहते थे. वह खेती करते थे. परिवार में उन की पत्नी रमा और 2 बेटी और 2 बेटे थे. उन सब में शशि सब से छोटी भी थी और अविवाहित भी. बाकी सभी का विवाह हो चुका था. शशि की उम्र 16 साल थी. उस ने गांव के ही सरकारी स्कूल से 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी. खूबसूरत, चंचल और अल्हड़ स्वभाव की शशि के शरीर की बनावट और कमनीयता किसी की भी नजरों में चढ़ जाती थी. गांव में सुंदर युवती हो और उस के आगेपीछे मंडराने वाले मनचले न हों, यह नहीं हो सकता.

शशि के आगेपीछे घूमने वाले मनचलों की कमी नहीं थी. शशि को उन की घूरती नजरों से कोई दिक्कत नहीं थी, बल्कि उसे यह सब अच्छा लगता था. धीरेधीरे कई युवक उस के संपर्क में आए, लेकिन कोई भी शशि को प्रभावित नहीं कर पाया.

एक दिन गांव में काफी चहलपहल थी, क्योंकि वहां एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया गया था. चूंकि धार्मिक अनुष्ठान था, इसलिए गांव वाले काफी उल्लास में थे और यज्ञस्थल पर जाने के लिए उत्साहित भी. यज्ञ में शामिल होने वालों में सभी समुदायों के लोग थे.

शशि भी यज्ञस्थल पर जाने के लिए तैयार थी. वह अपनी सहेली मीना के घर पहुंची और चहकती हुई बोली, ‘‘मीना, तुम भी चलो न मेरे साथ यज्ञ देखने.’’

‘‘हां शशि, मैं ने भी सुना है यज्ञ के बारे में. मेरा भी मन यज्ञ देखने का हो रहा है.’’ मीना ने कहा.

‘‘तो फिर जल्दी से तैयार हो जाओ और मेरे साथ चलो.’’ शशि बोली.

थोड़ी देर बाद मीना तैयार हो कर शशि के साथ पैदल ही यज्ञस्थल की ओर चल दी. दोनों बहुत खुश थीं और बातें करते हुए यज्ञस्थल की ओर चली जा रही थीं.

थोड़ी देर में दोनों यज्ञस्थल पर पहुंच गईं. वहां का भव्य नजारा देख कर दोनों का दिल खुशी से झूम उठा. पंडितों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ हवन किया जा रहा था. यज्ञ के धुएं से वातावरण सुगंधित था. शशि और मीना ने हाथ जोड़ कर नमन किया और वहीं बिछी दरी पर बैठ गईं.

अचानक शशि की नजर दूसरी ओर बैठे एक युवक पर चली गई. वह कोहरावां गांव का मोहम्मद एहसान था. कोहरावां बदौव्वा गांव के पास ही है. कोहरावां के मोहम्मद नवाब खेती और दूध की डेयरी का काम करते थे. मोहम्मद एहसान उन का ही बेटा था. वह पिता के दूध के काम में मदद करता था. 24 वर्षीय एहसान का एक बड़ा भाई था सलमान और एक छोटा मेराज.

शशि की जिंदगी में आया प्रेमी

शशि ने उसे देखा तो देखती ही रह गई. वह यह भी भूल गई कि वह धार्मिक अनुष्ठान में आई है. तभी एहसान की नजर शशि पर चली गई तो वह उसे एकटक देखता पा कर खुद भी उसे देखने लगा. शशि उसे देख कर मुसकरा दी तो एहसान को लगा जैसे उस के दिल पर किसी ने बरछी चला दी हो. वह अपनी सुधबुध खो बैठा. काफी देर तक दोनों एकदूसरे को निहारते रहे. तभी मीना शशि को ले कर वहां से जाने लगी तो एहसान का दिल छटपटा उठा. वह शशि को अपनी आंखों से ओझल नहीं होने देना चाहता था.

शशि भी जाते हुए बारबार पीछे मुड़ कर उसे ही देख रही थी. मीना ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या बात है शशि, कोई मिल गया क्या जिसे तुम बारबार पीछे मुड़ कर देख रही हो? अरे मुझे भी कुछ बताओ या फिर खुद ही खुश होती रहोगी. बोलो भी…’’

दबाव देते हुए मीना ने पूछा तो शशि ऐसे सिटपिटा गई, मानो उस की चोरी पकड़ी गई हो. फिर भी उसे जवाब तो देना ही था. उस ने मीना को प्यार से झिड़कते हुए कहा, ‘‘ओह मीना, तुम भी शरारती हो गई हो. मैं भला यज्ञ की भव्यता के अलावा और किसे देख सकती हूं. तुम तो हमेशा मुझे शक की नजरों से देखती हो. अब चलो, किसी दुकान पर चाट खाई जाए.’’

‘‘हां, वह देखो सामने चाट की दुकान है. आओ, वहीं चलते हैं.’’ कहती हुई मीना शशि के साथ चाट की दुकान पर पहुंची और चाट खाने लगी.

शशि ने देखा कि एहसान भी यज्ञ छोड़ कर उस के पीछेपीछे बाहर चला आया था और उस से दूर खड़ा हो कर उसे एकटक देख रहा था. वह बारबार नजरें उस की तरफ घुमाती तो उसे अपनी ओर देखते हुए पाती. उस का दिल तेजी से धड़कने लगा, जैसे वह उस का काफी करीबी हो. पता नहीं क्यों वह शशि को अपना सा लग रहा था.

कुछ ऐसा ही एहसान को भी महसूस हो रहा था. उसे भी न जाने क्यों शशि अपने दिल के करीब लग रही थी. एहसान शशि के चेहरे को अपनी आंखों में बसा लेना चाहता था, ताकि वह दिल से ओझल न हो सके. शशि की नजर भी उस से नहीं हट रही थी. जब मीना ने देखा कि शशि एक खूबसूरत नौजवान को देख रही है तो उस ने शरारत करते हुए कहा, ‘‘अच्छा जी, तो ये बात है. लगता है, वह हमारी रानी को कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया है.’’

‘‘धत, यह क्या बकवास कर रही है? मैं किसी को देखूंगी तो क्या वह मेरी पसंद का हो जाएगा? वह तो यूं ही उस पर मेरी नजर चली गई थी. अब चलो यहां से, नहीं तो तुम अपनी बकवास बंद नहीं करोगी.’’ शशि ने कहा.

‘‘हांहां, मैं कहां कह रही हूं कि तुम यहीं रुको, चलो यहां से.’’ कहती हुई मीना शशि का हाथ पकड़ कर चल दी तो एहसान मायूस हो गया. मानो कोई उस के दिल को चुरा कर ले जा रहा हो. वह शशि को तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई.

घर पहुंच कर शशि एहसान के खयालों में खो गई. पता नहीं क्यों उस का दिल उस के लिए धड़क रहा था. रात में जबवह सोई तो उसे सपने में भी एहसान ही दिखाई दिया. वह उस से प्यार भरी बातें कर रहा था. शशि उस से मिल कर खुशी से चहक रही थी.

रात को सपने में कुछ ऐसा ही एहसान भी देख रहा था. अचानक उस की नींद टूट गई और वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. मन की शांति के लिए उस ने गिलास ठंडा पानी पीया. फिर वह सोने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसे नींद नहीं आई. उस ने फैसला किया कि वह कल भी यज्ञस्थल पर जाएगा. हो सकता है, उस खूबसूरत लड़की से एक बार फिर मुलाकात हो जाए.

अगले दिन निर्धारित समय पर शशि अकेली ही यज्ञस्थल की ओर चल दी. उस वक्त उस के दिमाग में कई सवाल उमड़घुमड़ रहे थे. वह सवालों की उधेड़बुन में यज्ञस्थल पर पहुंच गई. जब शशि वहां पहुंची तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि एहसान भी वहीं बैठा था. उसे लगा मानो वह उसी का इंतजार कर रहा हो.

प्यार के पंछियों की पहली उड़ान

एहसान की नजर शशि से टकराई तो दोनों के दिल खुशी से धड़क उठे. अनायास ही शशि मुसकरा दी तो एहसान के दिल के फूल खिल गए. जवाब में वह भी मुसकरा दिया. शशि वहां से निकली और एहसान को देखते हुए यज्ञस्थल से बाहर आ गई. मानो उस ने इशारा किया हो कि वह भी बाहर आए.

आगेआगे शशि और पीछेपीछे एहसान चलते हुए दोनों सुरक्षित जगह पर पहुंचे और एकदूसरे को देखने लगे. अनायास एहसान शशि के करीब आया और उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम एहसान है और मैं पास के गांव कोहरावां का रहने वाला हूं.’’

थोड़ा शरमाते हुए शशि बोली, ‘‘मेरा नाम शशि है और मैं इसी गांव में रहती हूं. मुझे तुम्हारा चेहरा जानापहचाना सा लग रहा था. शायद मैं ने कभी तुम्हें देखा हो, लेकिन कल ही मेरा ध्यान तुम पर गया.’’

‘‘शशि…बड़ा ही प्यारा नाम है. तुम सचमुच अप्सराओं की तरह सुंदर हो. मुझे तुम्हारा नाम और तुम दोनों ही बहुत पसंद हो. क्या मैं तुम्हें पसंद हूं?’’ एहसान ने उत्सुकता में पूछा.

शशि ने ‘हां’ में सिर हिला दिया, साथ ही कहा भी, ‘‘एहसान, सिर्फ परिचय से कोई एकदूसरे का नहीं हो जाता, बल्कि उस के लिए एकदूसरे के बारे में सारी बात जानना भी जरूरी होता है. तभी दो दिल एकदूसरे के करीब हो सकते हैं.’’

‘‘बिलकुल ठीक कहा शशि, आओ हम उस पेड़ के नीचे बैठ कर बातें करते हैं.’’ कहते हुए एहसान शशि के साथ पेड़ की छांव में जा बैठा और बातें करने लगा. दोनों ने एकदूसरे को विस्तार से अपनेअपने परिवारों के बारे में बताया.

एहसान ने कहा, ‘‘जिंदगी हमारी है, इसलिए अपनी जिंदगी के बारे में सिर्फ हम ही निर्णय ले सकते हैं. तुम मुझ से मिलने के लिए रोज यहीं आना. यहां लोगों की नजर हम पर नहीं पड़ेगी. बोलो, आओगी न?’’

‘‘हां एहसान, मैं जरूर आऊंगी. तुम मेरा इंतजार करना.’’ शशि ने कहा और वहां से अपने घर की ओर चल दी.

शशि आज ऐसे खुश थी, मानो कोई बड़ा खजाना मिल गया हो. वह एहसान की यादों में इतनी खो गई थी कि कब सवेरा हुआ और कब वह उस के पास पहुंच गई, उसे पता ही नहीं चला. एहसान भी उसी पेड़ की छांव में उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. दोनों एकदूसरे से मिल कर काफी खुश हुए. एहसान शशि से रोमांटिक बातें करने लगा तो शशि शरमा गई, लेकिन बोली कुछ नहीं. तब एहसान ने पूछा, ‘‘शशि, तुम्हें पता है कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

‘‘हां, मुझे पता है, पर इस में मेरा क्या कुसूर है?’’ शशि ने पूछा.

‘‘इस में तुम्हारा कोई कुसूर नहीं है. कुसूर है तो सिर्फ तुम्हारी सुंदरता का, जिस ने मेरा दिल चुरा लिया है. मेरे इस दिल को अपने पास संभाल कर रखना. इसे कभी तोड़ना नहीं.’’ एहसान ने मुसकराते हुए कहा.

‘‘यह कैसी बातें कर रहे हो? मैं भला तुम्हारा दिल कैसे तोड़ सकती हूं? हमारा मिलन तो जन्मजन्मांतर का है. तुम्हें देख कर मुझे पहली ही नजर में ऐसा लगा जैसे तुम मेरे हो और मैं तुम्हारे पास खिंची चली आई.’’ शशि ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘मैं कितना खुशकिस्मत हूं कि तुम मुझे यज्ञ में अनायास ही मिल गई. शायद मेरे नसीब में लिखा था तुम्हें पाना.’’ कहते हुए एहसान ने शशि के हाथ को चूमा तो वह शरमा गई.

उन दोनों का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ने लगा. लेकिन गांव का माहौल कुछ ऐसा होता है कि अधिक दिनों तक कोई भी बात किसी से छिपी नहीं रह सकती. एहसान और शशि के प्रेमिल संबंध भी लोगों से छिपे नहीं रह सके.

लालजी को पता चला तो उस ने शशि की खूब पिटाई की और उसे सख्त हिदायत दी कि वह आज के बाद एहसान से मिलने की भूल कर भी कोशिश न करे, नहीं तो उस से बुरा कोई नहीं होगा. उस के घर से निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गई. लालजी अब जल्द से जल्द शशि के हाथ पीले कर देना चाहता था. शशि के कारण पूरे गांव में उस की बदनामी हो रही थी. मिश्रिख थानाक्षेत्र के ही अमजदपुर गांव में रामप्रसाद अपने परिवार के साथ रहते थे और खेतीकिसानी करते थे. परिवार में पत्नी रामकली के अलावा 3 बेटियां श्रीकांती, महिमा व सरिता थीं और 2 बेटे बबलू और सोनू.

रामप्रसाद अपनी 2 बेटियों का विवाह कर चुके थे. उन्होंने बड़े बेटे बबलू का भी विवाह कर दिया था. बबलू लखनऊ में रह कर ड्राइवरी करता था. जबकि सोनू अभी अविवाहित था. सोनू पिता के साथ खेती में हाथ बंटाता था.

लालजी को एक रिश्तेदार के माध्यम से सोनू और उस के परिवार के बारे में पता चला तो वह सोनू के पिता रामप्रसाद से जा कर मिले. बात आगे बढ़ी और जल्द ही शशि का रिश्ता सोनू के साथ तय हो गया. शशि ने लाख विरोध किया लेकिन उस की एक नहीं चली.

प्यार में अड़ंगा, शशि हुई परेशान

इसी साल 9 मार्च को धूमधाम से शशि और सोनू का विवाह हो गया. शशि को न चाहते हुए भी विवाह कर के ससुराल जाना पड़ा. वह एहसान के साथ जिंदगी गुजारने का सपना देख रही थी, लेकिन उस के घर वालों ने उस के सपनों को तोड़ दिया था.

पगफेरे की रस्म के लिए जब शशि अपने मायके गई तो वह एहसान से मिली और उस के गले लग कर बिलखबिलख कर रोई. एहसान की भी आंखें गीली हो आईं. वह शशि की हालत देख कर बेचैन हो उठा. उस ने सांत्वना दे कर किसी तरह शशि को शांत किया. फिर उस से कहा कि हम कभी अलग नहीं होंगे, कोई भी हमें जुदा नहीं कर सकता.

शशि जब तक मायके में रही, एहसान से मिलती रही. वहां से वापस ससुराल आई तो मोबाइल पर चोरीछिपे एहसान से बातें करने लगी.

30 मार्च को सोनू शशि को बाइक पर बैठा कर अपनी ससुराल गया, जो उस के गांव से महज 12 किलोमीटर की दूरी पर थी. एक दिन रुक कर उसे अकेले 31 मार्च को वापस घर आना था, लेकिन शशि की मौसी ने उस दिन आने नहीं दिया. 1 अप्रैल को शाम 4 बजे सोनू बाइक से अपनी ससुराल से घर जाने के लिए चल दिया. अभी वह साढ़े 4 बजे के करीब सहादतनगर गांव के पास पहुंचा ही था कि पीछे से आए बाइक पर बैठे 2 अज्ञात युवकों ने सोनू की कनपटी पर तमंचे से फायर कर दिया. गोली लगते ही सोनू बाइक समेत जमीन पर गिर पड़ा. कुछ पल छटपटाने के बाद उस ने दम तोड़ दिया.

कुछ लोगों ने काफी दूर से घटना होते देखी थी. जब तक वे वहां पहुंचे, तब तक हत्यारे फरार हो चुके थे. उन में से किसी ने इस की सूचना मिश्रिख कोतवाली को दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर अशोक सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने मृतक की शिनाख्त कराई तो उस की शिनाख्त सोनू के रूप में हो गई.

इंसपेक्टर अशोक सिंह ने सोनू के परिजनों को घटना की सूचना भेज दी. कुछ ही देर में सोनू के परिजन वहां पहुंच गए और लाश को देख कर रोनेबिलखने लगे. इंसपेक्टर अशोक सिंह ने सोनू के घर वालों से कुछ आवश्यक पूछताछ की, फिर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया.

इस के बाद कोतवाली आ कर उन्होंने सोनू के भाई बबलू की लिखित तहरीर पर अज्ञात के विरुद्ध भादंवि की धारा 302 और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.

इंसपेक्टर अशोक सिंह ने इस मामले की जांच शुरू की तो उन्हें सोनू की पत्नी शशि पर शक हो गया. विवाह को एक माह भी नहीं बीता था और ससुराल से आते वक्त ही सोनू की हत्या हो गई थी. सोनू के साथ ही उन्होंने शशि के मोबाइल की भी काल डिटेल्स निकलवाई.

प्रेमी बना हत्यारा

सोनू के ससुराल से निकलने के पहले और बाद में भी शशि के नंबर से एक नंबर पर काल की गई थी. उस नंबर पर उस से पहले भी हर रोज कई बार काल की गई थी. उस नंबर की जानकारी की गई तो वह नंबर कोहरावां गांव निवासी एहसान का निकला. इस का मतलब था कि सोनू की हत्या में शशि का भी हाथ था.

12 अप्रैल को इंसपेक्टर अशोक सिंह ने शशि को अपनी हिरासत में ले लिया और महिला सिपाही की उपस्थिति में उस से कड़ाई से पूछताछ की. घबरा कर उस ने अपना जुर्म स्वीकार करते हुए सोनू की हत्या करने वाले अपने प्रेमी एहसान और उस के दोस्त रामशंकर का नाम भी बता दिया. इस के बाद दोनों को उसी दिन बढ़ैया गांव के पास से गिरफ्तार कर लिया गया.

विवाह के कुछ दिन में ही शशि की हरकतों से सोनू को शक हो गया था कि शशि चोरीछिपे किसी से बात करती है. उस ने इस का कई बार विरोध भी किया था. प्रेमी से मिलना तो दूर, बात करना भी मुश्किल होने लगा तो शशि तड़प उठी.  उस ने अपने प्रेमी एहसान से पूरी बात बताई. इस के बाद दोनों ने तय किया कि वे सोनू को रास्ते से हटा देंगे. क्योंकि उस को हटाए बिना वे कभी एक नहीं हो सकते. शशि के हाथों की मेहंदी भी नहीं छूटी थी कि उस ने अपनी मांग का सिंदूर मिटाने का फैसला कर लिया.

एहसान ने अपने दोस्त रामशंकर उर्फ छोटू निवासी परागपुर थाना मिश्रिख को सोनू की हत्या करने के लिए अपने साथ मिला लिया था. 1 अप्रैल को एहसान अपने दोस्त के साथ रास्ते में खड़ा हो कर सोनू के आने का इंतजार करने लगा. सोनू का दोपहर डेढ़ बजे ससुराल से निकलने का प्रोग्राम था, इसलिए एहसान पहले से ही आ कर उस के आने का इंतजार कर रहा था. लेकिन सोनू ससुराल से 4 बजे के करीब निकला. उस के निकलते ही शशि ने एहसान को फोन कर के बता दिया.

जैसे ही सोनू सामने से आता दिखा, रामशंकर ने बाइक स्टार्ट की. एहसान उस के पीछे बैठ गया. रामशंकर ने गाड़ी को स्पीड दे दी. सोनू की बाइक के करीब पहुंचते ही एहसान ने सोनू की कनपटी पर फायर कर दिया. गोली लगने से सोनू की मौत हो गई. गोली मारने के बाद दोनों वहां से फरार हो गया.

लेकिन उन का गुनाह छिप न सका. पुलिस ने उन के पास से हत्या में प्रयुक्त तमंचा, 2 कारतूस, एक कारतूस का खोखा और 4 मोबाइल बरामद किए. साथ ही हत्या में प्रयुक्त बाइक नंबर यूपी34 एन5189 भी बरामद कर ली गई. यह बाइक एहसान के भाई सलमान की थी. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद तीनों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नफरत की इंतहा : प्रेमी बना गृहस्थी में ग्रहण – भाग 3

राजस्थान के कोटा जिले में इटावा कस्बे के बूढादीत गांव में रहने वाले बुद्धि प्रकाश मीणा का कोई 12 साल पहले वहीं के निवासी सीताराम की बेटी प्रियंका से विवाह हुआ था. बुद्धि प्रकाश खेतिहर किसान था. प्रियंका का दांपत्य जीवन 10 साल ही ठीकठाक रह पाया. इस के बाद दोनों में खटपट रहने लगी.

इस बीच प्रियंका ने एकएक कर के एक बेटा और 2 बेटियों समेत 3 बच्चों को जन्म दिया.

दांपत्य जीवन के 12 साल गुजर जाने और 3 बच्चों की पैदाइश के बाद बुद्धि प्रकाश और प्रियंका के बीच खटास कैसे पैदा हुई? उस की वजह था पड़ोस में आ कर बसने वाला युवक महावीर मीणा.

दरअसल कदकाठी की दृष्टि से आकर्षक लगने वाला महावीर मीणा प्रियंका की नजरों में चढ़ गया था. प्रियंका की हर बात महावीर पर जा कर खत्म होती थी कि क्यों तुम अपने आप को महावीर की तरह नहीं ढाल लेते? जबकि बुद्धि प्रकाश का जवाब मुसकराहट में डूबा होता था कि महावीर की अभी शादी नहीं हुई है. इसलिए उसे अभी किसी की फिक्र नहीं है.

प्रियंका जवान थी, खूबसूरत भी. बेशक वह 3 बच्चों की मां बन गई थी, लेकिन उस की देह के कसाव में कोई कमी नहीं आई थी. उस की अपनी भावनाएं थीं. इसलिए मन करता था कि बुद्धि प्रकाश भी सजीले नौजवान की तरह बनठन कर रहे. फिल्मी हीरो की तरह उस से प्यार करे.

लेकिन बुद्धि प्रकाश 35 की उम्र पार कर चुका था. मेहनतकश खेतीकिसानी में खटने के कारण उस पर उम्र हावी हो चली थी. इसलिए पत्नी की इच्छाओं की गहराई भांपने का उसे कभी खयाल तक नहीं आया. प्रियंका को अपने मेहनतकश पति के पसीने की गंध सड़ांध मारती लगती थी.

चढ़ती उम्र और बढ़ती आकांक्षाओं के साथ प्रियंका में पति के प्रति नफरत में इजाफा होता चला गया. संयोग ही रहा कि उस के बाजू वाले मकान में रहने के लिए महावीर मीणा आ गया. महावीर छैलछबीला था और प्रियंका के सपनों के मर्द की तासीर पर खरा उतरता था. प्रियंका अकसर अपने पति बुद्धि प्रकाश को उस का उदाहरण देते हुए कहती थी, तुम भी ऐसे सजधज कर क्यों नहीं रहते. बुद्धि प्रकाश सीधासादा गृहस्थ इंसान था, इसलिए पत्नी की उड़ान को पहचानने की बजाय बात को टालते हुए कह देता, ‘‘अभी महावीर पर गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं पड़ी. जब पड़ेगी तो वह भी सजनासंवरना भूल जाएगा.’’

पड़ोसी के नाते महावीर की बुद्धि प्रकाश से मेलमुलाकात बढ़ी तो गाहेबगाहे महावीर के यहां उस का आनाजाना भी बढ़ गया. अकसर प्रियंका के आग्रह पर वह वहीं खाना भी खा लेता था.

असल में महावीर की नजरें प्रियंका पर थीं. उस की पारखी नजरों से यह बात छिपी नहीं रही कि असल में प्रियंका को क्या चाहिए? लेकिन सवाल यह था कि पहल कौन करे.

महावीर दोपहर में अकसर वक्त गुजारने के लिए अपने दोस्त की फलसब्जी की दुकान पर बैठ जाता था. दोस्त को सहूलियत थी कि अपने जरूरी काम निपटाने के लिए महावीर के भरोसे दुकान छोड़ जाता था.

एक दिन दुकान पर अकेला बैठा था तो प्रियंका सब्जी खरीदने पहुंची. लेकिन महावीर ने फलसब्जी के पैसे नहीं लिए. प्रियंका ने पैसे देने चाहे तो महावीर मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम्हारी मुसकराहट में दाम वसूल हो गए. सारी दुकान ही अपनी समझो…’’

प्रियंका को शायद ऐसे ही मौके की तलाश थी. मुसकरा कर कहा, ‘‘ऐसी दोपहरी में दुकान पर बैठने की बजाय घर आओ.’’ प्रियंका ने मुसकरा कर निमंत्रण दिया तो महावीर बोला, ‘‘खातिरदारी का वादा करो तो आऊं.’’

‘‘मेरी तरफ से मेहमाननवाजी में कोई कमी नहीं रहेगी, तुम अकेले में आ कर देखो तो…’’ प्रियंका ने हंस कर कहा.

इस के बाद एक दिन महावीर प्रियंका के घर दोपहर के समय चला गया. प्रियंका तो जैसे उस का इंतजार कर रही थी. मौके का फायदा उठाते हुए उस दिन दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

इस के बाद तो प्रियंका महावीर की मुरीद हो गई. मौका मिलने पर दोपहर के समय वह प्रियंका के घर चला जाता. इस तरह कुछ दिनों तक उन का यह खेल बिना किसी रुकावट के चलता रहा.

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते.  एक दिन बुद्धि प्रकाश खेत से जल्दी ही लौट आया और उस ने प्रियंका को महावीर के साथ रंगरलियां मनाते देख लिया. फिर तो बुद्धि प्रकाश का खून खौल उठा.

महावीर तो भाग गया, लेकिन उस ने प्रियंका की जम कर धुनाई शुरू कर दी. प्रियंका ने गलती मानी तो बुद्धि प्रकाश ने यह चेतावनी देते हुए उसे छोड़ दिया कि अगली बार ऐसा हुआ तो तुम दोनों जिंदगी से हाथ धो बैठोगे.

जिसे पराया घी चाटने की आदत पड़ जाए वह कहां बाज आता है. एक बार की बात है. पति के सो जाने के बाद प्रियंका अपने प्रेमी से फोन पर बातें कर रही थी. उसी दौरान बुद्धि प्रकाश की नींद खुल गई. उस ने पत्नी की बातें सुन लीं. फिर क्या था, उसी समय बुद्धि प्रकाश ने प्रियंका पर जम कर लातघूंसों की बरसात कर दी.

प्रियंका किसी भी हालत में महावीर का साथ नहीं छोड़ना चाहती थी. इस की वजह से अकसर ही उसे पति से पिटाई खानी पड़ती थी. रोजरोज की कलह और पिटाई से अधमरी होती जा रही प्रियंका का पोरपोर दुखने लगा था.

प्रियंका का सब से ज्यादा आक्रोश तो इस बात को ले कर था कि बुद्धि प्रकाश जम कर शराब पीने लगा था और नशे में धुत हो कर उसे गंदीगंदी गालियों से जलील करता था.

प्रियंका ने महावीर पर औरत का आखिरी अस्त्र चला दिया कि तुम्हारे कारण मैं हर रोज रूई की तरह धुनी जाती हूं और तुम कुछ भी नहीं करते. प्रियंका ने महावीर के सामने शर्त रख दी, ‘‘तुम्हें फूल चाहिए तो कांटे को जड़ से खत्म करना पड़ेगा.’’

प्रियंका की खातिर महावीर बुद्धि प्रकाश का कत्ल करने को तैयार हो गया. फिर योजना के तहत अगले दिन महावीर यह कहते हुए बुद्धि प्रकाश के पावोंं में गिर पड़ा, ‘‘दादा, मैं कल गांव छोड़ कर जा रहा हूं ताकि तुम्हारी कलह खत्म हो सके.’’

बुद्धि प्रकाश ने भी महावीर पर यह सोच कर भरोसा जताया कि संकट अपने आप ही जा रहा है.

महावीर ने बुद्धि प्रकाश को यह कहते हुए शराब की दावत दे डाली कि भैया आखिरी मुलाकात का जश्न हो जाए. बुद्धि प्रकाश के मन में तो कोई खोट नहीं थी. उस ने सहज भाव से कह दिया, ‘‘ठीक है भैया, अंत भला सो सब भला.’’

महावीर ने तो थोड़ी ही शराब पी, लेकिन बुद्धि प्रकाश को जम कर पिलाई. नशे में बेहोश हो चुके बुद्धि प्रकाश को महावीर ने घर के बरामदे में रखे तख्त पर ला कर पटक दिया. फिर प्रियंका की मदद से रस्सी से उस का गला घोंट दिया.

पुलिस द्वारा निकाली गई काल डिटेल्स के मुताबिक महावीर ने रात करीब 12 बजे बुद्धि प्रकाश की हत्या करने के बाद प्रियंका से 20 से 25 मिनट बात की. इस के बाद प्रियंका सो गई थी. प्रियंका से पूछताछ के बाद पुलिस ने उस के प्रेमी महावीर मीणा को भी गिरफ्तार कर लिया. फिर दोनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

फिसलन भरे रास्तों की नायिका – भाग 4

भूपेंद्र ने खेला खेल

जेल से आते ही उस ने शशि की पिटाई की और उसे घर से निकल जाने को कह दिया. शशि ने फिर से अपने साथ पति द्वारा मारपीट की शिकायत चौकी में कर दी. इस मामले में पुलिस ने पप्पू पर कोई खास काररवाई तो नहीं की बल्कि उसे समझाते हुए पत्नी के साथ भविष्य में मारपीट न करने की चेतावनी दे कर छोड़ दिया. जेल से वापस आने के बाद पप्पू ने भूपेंद्र की नौकरी छोड़ दी. उस के बाद भूपेंद्र ने पप्पू के घर आनाजाना भी कम कर दिया.

इस पर भूपेंद्र ने शशि से मिलने का दूसरा रास्ता निकाला. जब कभी पप्पू किसी काम से बाहर जाता तो वह भूपेंद्र को फोन कर के गांव से बाहर बुला लेती और फिर उस के साथ मौजमस्ती करने निकल जाती. बाद में उस ने अपने बच्चों तक की परवाह करनी बंद कर दी. कभीकभी तो जब बच्चे ज्यादा भूखे होते तो पप्पू ही उन्हें कच्चापक्का खाना बना कर खिलाता.

शशि सुबह ही बनठन कर निकलती और देर रात घर लौटती. पति कुछ कहता तो वह उस पर ही चढ़ बैठती थी. हर रोज की चिकचिकबाजी से पप्पू परेशान हो गया तो उस ने शशि को तलाक देने की योजना बनाई. उस ने एक दिन उस से कोरे स्टांप पेपर पर अंगूठा भी लगवा लिया.

यह बात शशि ने भूपेंद्र को बताई तो उस ने शशि के कान भरते हुए उसे पति के खिलाफ ही भड़का दिया. भूपेंद्र ने शशि से कहा कि पप्पू तुम्हारी हत्या करने की साजिश रच रहा है. अगर अपनी खैर चाहती हो तो तुम पहले ही उसे मौत के घाट उतार दो.

भूपेंद्र की बात सुनते ही शशि भड़क उठी. उस ने कहा कि पति को मारना मेरे बस की बात नहीं है. अगर तुम मुझे दिल से चाहते हो तो यह काम तुम ही क्यों नहीं कर देते. अपने प्यार की खातिर इतना काम तो तुम ही कर सकते हो.

शशि के मन की बात सामने आते ही भूपेंद्र समझ गया कि अगर वह पप्पू को अपने रास्ते से हटा दे तो शशि पूरी तरह से उसी की रखैल बन कर रह जाएगी. इस के बाद उस ने पप्पू को मौत की नींद सुलाने के लिए तानेबाने बुनने शुरू कर दिए.

भूपेंद्र अगर शशि के लिए कुछ भी करने को तैयार था, तो इस का भी एक बड़ा कारण था. भूपेंद्र की शादी को कई साल बीत चुके थे, लेकिन उस की बीवी को कोई औलाद नहीं हुई थी. जिस के लिए उस की बीवी और वह परेशान रहते थे. शशि की ओर से पप्पू को अपने बीच से हटाने के लिए छूट मिलते ही उस ने सोच लिया था कि पप्पू को मौत की नींद सुलाने के बाद वह कोर्टमैरिज कर के उसे अपने घर ले आएगा.
लिखी गई हत्या की पटकथा

भूपेंद्र के गांव में ही उस का एक जिगरी दोस्त था मंजीत सिंह. मंजीत सिंह भूपेंद्र के हर सुखदुख में काम आता था. भूपेंद्र ने अपने मन की बात मंजीत के सामने रखी तो मंजीत उस का साथ देने को तैयार हो गया. इस के बाद भूपेंद्र ने अगला तानाबुना बुना. वह जानता था कि पप्पू इस वक्त उस से बहुत खफा है और उस की किसी भी चाल में फंसने वाला नहीं है.

भूपेंद्र के दिखावे के लिए शशि से मिलनाजुलना बंद कर दिया ताकि पप्पू के दिल में उस के प्रति नफरत की आग शांत हो सके. जब पप्पू ने देखा कि भूपेंद्र ने शशि से मिलना लगभग बंद कर दिया है तो पप्पू का व्यवहार भी पत्नी के प्रति नरम हो गया. फिर एक दिन शशि ने भूपेंद्र को फोन कर के अपने घर बुला लिया. उस वक्त पप्पू भी घर पर ही था.

पप्पू के घर पहुंचते ही भूपेंद्र ने उस के सामने अपनी गलती मानते हुए क्षमा मांगी. उस ने भविष्य में ऐसी कोई भी गलती न करने की कसम भी खाई. यह सब नाटक करने के बाद उस ने पप्पू से कहा कि उस के बिना उस का सारा कामधंधा चौपट हो गया है. वह आज ही उस के साथ चल कर ट्रैक्टर संभाल ले.
पप्पू उस की चिकनीचुपड़ी बातों में आ गया और फिर से उस का ट्रैक्टर चलाने लगा. उसे भूपेंद्र पर फिर से विश्वास हो गया था. उसी विश्वास के सहारे 26 जुलाई, 2018 को किसी काम के बहाने भूपेंद्र ने पप्पू को अपने साथ लिया और बाइक पर बैठा कर भोगपुर डैम की ओर ले गया. उस के साथ मंजीत भी था.

डैम के किनारे सुनसान जंगल में पहुंचते ही तीनों एक जगह बैठ गए. मौका पाते ही मंजीत ने गरमी का बहना कर के अपने सिर से पगड़ी उतार ली. फिर मौका पा कर दोनों ने पप्पू को दबोच लिया. पप्पू को कब्जे में कर के दोनों ने पगड़ी के कपड़े से उस का गला कस दिया, जिस से उस की मौत हो गई. कहीं वह जीवित न रह जाए, इस के लिए भूपेंद्र ने अपनी बेल्ट खोली और फिर से उस के गले में डाल कर खींच दी.

पप्पू की हत्या करने के बाद दोनों ने उस की लाश उठा कर 20 मीटर दूर पानी में फेंक दी. पप्पू को मौत की नींद सुलाने के बाद दोनों बाइक से अपने घर पहुंच गए. पप्पू की हत्या करने वाली बात भूपेंद्र ने मोबाइल पर शशि को भी बता दी थी. उस की हत्या की बात सुनने के बाद शशि घर से बाहर नहीं निकली. उस के बच्चों ने पापा के बारे में पूछा तो उस ने कह दिया कि उस के पापा किसी काम से बाहर गए हुए हैं, वह आज रात नहीं आएंगे. बच्चों को खाना खिला कर उस ने सुला दिया.

इस केस के खुलते ही अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त पगड़ी, बेल्ट, बाइक, मोबाइल फोन, मृतक की चप्पलें आदि भी बरामद कर लीं. पुलिस ने मृतक की पत्नी शशि, भूपेंद्र सिंह और मंजीत सिंह के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज करने के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया.

पप्पू के दोनों मासूम बच्चे अपने ताऊ राजपाल सिंह के पास थे. राजपाल सिंह ने बताया कि शशि जाते हुए भी अपने बेटे राज को जेल से छूट कर आने के बाद देख लेने की धमकी दे कर गई थी, उस की जान को खतरा हो सकता है.

जेल जाने के दौरान भी शशि के चेहरे पर न तो पति की मौत का कोई गम था और न ही अपने दोनों बच्चों के भविष्य को ले कर किसी तरह की चिंता. शशि ने जातेजाते भी पत्रकारों से कहा कि उसे अपने पति की हत्या का कोई अफसोस नहीं.

45 लाख का खेल : बेटा बना दोषी – भाग 3

लौकडाउन खुलने के बाद भी वह परेशानी से नहीं उबर पाया. उसे लेबर कौन्ट्रैक्ट का काम मिलना कम हो गया. इस से कैलाश के परिवार को आर्थिक परेशानी होने लगी.

इस से पहले कैलाश और हंसा ने मिल कर जयपुर की वैशाली नगर कालोनी में लोन पर एक फ्लैट ले लिया था. पहले लौकडाउन और फिर आई आर्थिक परेशानी के कारण उन के सामने फ्लैट के लोन की किश्तें चुकाना मुश्किल हो गया था. फ्लैट की कुर्की की नौबत आने लगी थी. उन पर बाजार का कर्ज भी चढ़ गया था.

हंसा देवी के 2 बेटे हैं. एक रवि और दूसरा प्रियांशु. इन में रवि शर्मा प्राइवेट नौकरी कर रहा था, लेकिन उसे तनख्वाह कम मिलती थी. दूसरा बेटा प्रियांशु कोई काम नहीं कर रहा था. परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था.

परेशानी की इस हालत में हंसा को पता चला कि गुजरात के पाटन का रहने वाला रोहित शर्मा जयपुर में हवाला कंपनी केडीएम एंटरप्राइजेज का मैनेजर है. रोहित शर्मा दूरदराज के रिश्ते में हंसा का भाई लगता था. उस ने रोहित से रिश्तेदारी निकाल कर फरवरी में बेटे प्रियांशु को उस की हवाला कंपनी में नौकरी पर लगवा दिया.

गुजरात के ही रहने वाले पार्थ व्यास ने जयपुर की ही एक हवाला फर्म में नौकरी की थी. करीब एकडेढ़ साल पहले उसे किसी बात पर नौकरी से हटा दिया गया था. पार्थ व्यास भी रिश्ते में प्रियांशु का मामा और हंसादेवी का भाई लगता था.

पार्थ व्यास नौकरी से हटाए जाने से खफा था. उसे शक था कि केडीएम एंटरप्राइजेज के मालिक और उस के रिश्तेदार रोहित तथा दूसरे लोगों के कहने से ही उसे हवाला कंपनी से नौकरी से हटाया गया था. वह इस का बदला लेना चाहता था. जब उसे पता चला कि उस के भांजे प्रियांशु ने रोहित की हवाला फर्म में नौकरी कर ली है, तो वह अपनी बहन हंसा के जरिए इस फर्म को लूटने की योजना बनाने लगा.

पार्थ व्यास को हवाला कारोबार के बारे में सब कुछ जानकारी थी. कब और कैसे रकम आती है. कंपनी का क्या काम है? कैसे रुपयों का लेनदेन होता है. रकम की क्या सुरक्षा व्यवस्था है? कंपनी के औफिस में कौनकौन लोग काम करते हैं? पार्थ व्यास को इन सब बातों का पता था. भांजे प्रियांशु के इसी फर्म में नौकरी पर लग जाने से उसे ताजा जानकारियां भी मिल गईं.

इस के बाद हंसा, पार्थ व्यास और प्रियांशु मिल कर इस हवाला कंपनी से रकम लूटने की योजना बनाने लगे. ये लोग फोन पर बात कर योजना बनाते. बीच में एकदो बार पार्थ व्यास गुजरात से जयपुर भी आया था. आखिर इन्होंने रकम लूटने का फैसला कर लिया.

तय योजना के अनुसार, पार्थ व्यास अहमदाबाद से 10 मार्च को सुबह 6 बजे जयपुर पहुंच गया. वह सुबह करीब 8 बजे वैशाली नगर में बहन के घर गया. वहां उसे बहन हंसा, भांजे प्रियांशु और रवि मिले. इन्होंने मिल कर योजना बनाई कि किस तरह वारदात करनी और कैसे भागना है.

सारी बातें तय हो जाने पर प्रियांशु उर्फ बंटी सुबह 9 बजे अपनी नौकरी पर खूंटेटों का रास्ता स्थित हवाला कंपनी चला गया. कंपनी का दूसरा कर्मचारी पार्थ भी अपने तय समय पर औफिस आ गया. पार्थ वैसे तो हवाला कंपनी के मैनेजर रोहित का साला था, लेकिन कर्मचारी के रूप में काम करता था.

बाद में पार्थ व्यास ओला बाइक बुक कर वैशाली नगर से किशनपोल बाजार पहुंचा. इस दौरान उस ने सिर पर हेलमेट लगा रखा था. बाद में उस ने चेहरे पर मास्क लगाया और हाथों में दस्ताने पहने और सिर पर हेलमेट लगा कर वह पैदल चल कर हवाला कंपनी के औफिस पहुंचा और 45 लाख रुपए से भरा बैग लूट कर चला गया. यह कहानी आप शुरू में पढ़ चुके हैं.

पार्थ व्यास पैदल ही किशनपोल बाजार पहुंचा. वहां से आटो फिर 2 बसें बदल कर वह अजमेर पुलिया पहुंचा, यह फुटेज पुलिस को तीसरे दिन मिल गए थे. अजमेर पुलिया पर प्रियांशु की मां हंसा शर्मा, दोस्त मोहित और ड्राइवर हनुमान सहाय बुन कर उसे लेने के लिए आए थे.

शातिर पार्थ व्यास पुलिस को गुमराह करने के लिए वारदात के समय 2 शर्ट पहन कर आया था. हंसा के साथ कार में बैठने के दौरान अजमेर पुलिया के पास उस ने एक शर्ट उतार कर रेल की पटरियों पर फेंक दी.

पार्थ व्यास हंसा व मोहित के साथ कार से प्रियांशु के घर पहुंचा. वहां पार्थ व्यास और प्रियांशु की मां हंसा ने लूटी गई रकम का आधाआधा बंटवारा किया. हंसा ने साढ़े 22 लाख रुपए खुद रख लिए और साढ़े 22 लाख रुपए पार्थ व्यास को दे दिए.

पार्थ व्यास उसी दिन 2 सौ फुट बाइपास से बस में सवार हो कर गुजरात चला गया. उस ने गुजरात पहुंच कर लूट की रकम अपने घर में जमीन में गाड़ कर छिपा दी थी. जबकि हंसा शर्मा ने लूट की रकम में से 50 हजार रुपए अपने घर में बने मंदिर में चढ़ा दिए थे.

सीसीटीवी फुटेज के सहारे पुलिस हंसा के मकान के आसपास तक पहुंच गई. इस बीच, हवाला कंपनी के कर्मचारियों पार्थ व प्रियांशु से पुलिस लगातार पूछताछ करती रही.

चौथे दिन प्रियांशु ने लूट की वारदात की सारी कहानी बता दी. पुलिस को प्रियांशु पर पहले से शक था. उसी ने अपने साथी कर्मचारी और हवाला कंपनी मैनेजर रोहित के साले पार्थ को पुलिस को सूचना देने से रोका था.

पुलिस जब हंसा के मकान पर पहुंची, तो वह परिवार के साथ गुजरात भागने की तैयारी में थी, लेकिन पालतू कुत्ते के कारण फंस गई थी. वारदात के बाद से ही वह अपने पालतू कुत्ते को किसी के यहां छोड़ कर जाने की सोच रही थी, लेकिन ऐसे किसी परिवार का इंतजाम नहीं हो सका, जो कुछ दिनों के लिए उन के कुत्ते को रख लेता.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने पार्थ व्यास की निशानदेही पर अजमेर पुलिया के पास रेल की पटरियों से उस की फेंकी हुई शर्ट बरामद की. हंसा के घर में बने मंदिर से 50 हजार रुपए भी बरामद हो गए. हंसा के पास राष्ट्रीय भ्रष्टाचार निरोधक एवं मानवाधिकार संस्था के फरजी आईकार्ड भी मिले. इन में उसे स्टेट सेक्रेटरी बताया गया था.

बहरहाल, रिश्तों के विश्वासघात ने मां और 2 बेटों सहित 6 आरोपियों को जेल पहुंचा दिया. पार्थ व्यास ने बदला लेने और प्रियांशु ने लालच में अपने मामा के भरोसे को तोड़ दिया था. इस वारदात से रिश्तों के साथ मालिक और कर्मचारी के भरोसे की दीवार भी दरक गई.

चाची की यारी में कर दिया चाचा का कत्ल

17 अक्तूबर, 2016 की सुबह जिला गोरखपुर के चिलुआताल के महेसरा पुल के नजदीक जंगल में एक पेड़ के सहारे एक साइकिल खड़ी देखी गई, जिस के कैरियर पर एक बोरा बंधा था. बोरा खून से लथपथ था, इसलिए देखने वालों को अंदाजा लगाते देर नहीं लगी कि बोरे में लाश हो सकती है. लाश  होने की संभावना पर ही इस बात की सूचना थाना चिलुआताल पुलिस को दे दी गई थी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी इंसपेक्टर रामबेलास यादव पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ पहुंचे थे. बोरे से उस समय भी खून टपक रहा था.

इस का मतलब था कि बोरा कुछ देर पहले ही साइकिल से वहां लाया गया था. उन्होंने बोरा खुलवाया तो उस में से एक आदमी की लाश निकली. मृतक की उम्र 35-36 साल रही होगी. उस के सिर पर किसी वजनदार चीज से वार किया गया था. वह रंगीन सैंडो बनियान और लुंगी पहने था. शायद रात को सोते समय उस की हत्या की गई थी.

पुलिस को लाश की शिनाख्त कराने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. वहां जमा भीड़ ने मृतक की शिनाख्त प्रौपर्टी डीलर सुरेश सिंह के रूप में कर दी थी. वह चिलुआताल गांव का ही रहने वाला था.

शिनाख्त होने के बाद रामबेलास यादव ने मृतक के घर वालों को सूचना देने के लिए 2 सिपाहियों को भेजा. दोनों सिपाही मृतक के घर पहुंचे तो घर पर कोई नहीं मिला. पड़ोसियों से पता चला कि सुरेश सिंह के बिस्तर पर भारी मात्रा में खून मिलने और उस के बिस्तर से गायब होने से घर के सभी लोग उसी की खोज में निकले हुए थे.

घर पर पुलिस के आने की सूचना मिलने पर मृतक सुरेश सिंह के बड़े भाई दिनेश सिंह घर आए तो जंगल में एक लाश मिलने की बात बता कर दोनों सिपाही उन्हें अपने साथ ले आए. लाश देखते ही दिनेश सिंह फफक कर रो पड़े. इस से साफ हो गया कि मृतक उन का भाई सुरेश सिंह ही था.

इस के बाद पुलिस ने घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया और उस साइकिल को जब्त कर लिया, जिस पर लाश बोरे में भर कर वहां लाई गई थी.

थाने लौट कर रामबेलास यादव ने मृतक के बडे़ भाई दिनेश सिंह की तहरीर पर सुरेश सिंह की हत्या का मुकदमा अज्ञात के खिलाफ दर्ज कर लिया. मृतक सुरेश सिंह प्रौपटी डीलिंग का काम करता था. विवादित जमीनों को खरीदनाबेचना उस का मुख्य धंधा था. पुलिस ने इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई, लेकिन उस का ऐसा कोई दुश्मन नजर नहीं आया, जिस से लगे कि हत्या उस ने कराई है.

यह हत्याकांड अखबारों की सुर्खियां बना तो एसएसपी रामलाल वर्मा ने एसपी (सिटी) हेमराज मीणा को आदेश दिया कि वह जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा कराएं. उन्होंने सीओ देवेंद्रनाथ शुक्ला और थानाप्रभारी रामबेलास यादव को सुरेश सिंह तथा उस के घरपरिवार के आसपास जांच का घेरा बढ़ाने को कहा.

क्योंकि उन्हें लग रहा था कि यह हत्या दुश्मनी की वजह से नहीं, बल्कि अवैधसंबंधों की वजह से हुई है. क्योंकि मृतक को जिस तरह बेरहमी से मारा गया था, इस तरह लोग अवैध संबंधों में ही नफरत में मारे जाते हैं. इसी बात को ध्यान में रख कर जांच आगे बढ़ाई गई तो जल्दी ही नतीजा निकलता नजर आया.

किसी मुखबिर ने बताया कि पिछले कई सालों से सुरेश सिंह की अपनी पत्नी से पटती नहीं थी. दोनों में अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था और इस की वजह सुरेश सिंह का सगा भतीजा राहुल चौधरी था. क्योंकि उस के अपनी चाची राधिका से अवैध संबंध थे.

घटना से सप्ताह भर पहले भी इसी बात को ले कर सुरेश और राधिका के बीच काफी झगड़ा हुआ था. तब सुरेश ने पत्नी की पिटाई कर दी थी, जिस से नाराज हो कर वह बच्चे को ले कर मायके चली गई थी. रामबेलास यादव को हत्या की वजह का पता चल गया था. राहुल से पूछताछ करने के लिए वह उस के घर पहुंचा तो उस के पिता दिनेश सिंह ने बताया कि वह तो लखनऊ में है.

लखनऊ में राहुल गोमतीनगर में किराए का कमरा ले कर रहता है और सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रहा है. पिता का कहना था कि हत्या वाले दिन के एक दिन पहले वह लखनऊ चला गया था. जबकि मुखबिर ने उन्हें बताया था कि घटना वाले दिन सुबह वह चिलुआताल में दिखाई दिया था.

पिता का कहना था कि घटना से एक दिन पहले यानी 16 अक्तूबर, 2016 को राहुल लखनऊ चला गया था, जबकि मुखबिर का कहना था कि घटना वाले दिन वह चिलुआताल में दिखाई दिया था. मुखबिर की बात पर विश्वास कर के रामबेलास यादव ने राहुल को लखनऊ से लाने के लिए 2 सिपाहियों को भेज दिया.

लखनऊ पुलिस की मदद से गोरखपुर पुलिस 22 अक्तूबर, 2016 को लखनऊ के गोमतीनगर से राहुल चौधरी को गिरफ्तार कर गोरखपुर ले आई. थाने ला कर उस से सुरेश सिंह की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बिना किसी हीलाहवाली के चाची से अवैध संबंधों की वजह से चाचा सुरेश सिंह की हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. राहुल ने चाची के प्रेम में पड़ कर चाचा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी—

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना चिलुआताल में सुरेश सिंह पत्नी राधिका सिंह और 6 साल के बेटे के साथ रहता था. उस का बड़ा भाई था दिनेश सिंह. राहुल उसी का बेटा था. दोनों भाइयों के परिवार भले ही अलगअलग रहते थे, लेकिन रहते एक ही मकान में थे. सुखदुख में भी एकदूसरे की मदद भी करते थे.

गांव वाले भाइयों के इस प्रेम को देख मन ही मन जलते थे. सुरेश सिंह चेन्नई में किसी प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. लेकिन पत्नी राधिका बेटे के साथ गांव में रहती थी. वह साल में एक या 2 बार ही घर आता था. उस के न रहने पर जरूरत पड़ने पर घर के छोटेमोटे काम उस के बड़े भाई का बेटा राहुल कर दिया करता था.

राहुल और राधिका थे तो चाचीभतीजा, लेकिन हमउम्र होने की वजह से दोनों दोस्तों की तरह रहते थे, बातचीत भी वे दोस्तों की ही तरह करते थे. इस का नतीजा यह निकला कि धीरेधीरे उन के बीच मधुर संबंध बन गए. उन के मन में एकदूसरे के लिए चाहत के फूल खिले तो एकदूसरे के स्पर्श मात्र से उन का रोमरोम खिल उठने लगा.

राहुल चाची राधिका से जुनून के हद तक प्यार करने लगा तो राधिका ने भी उस के प्यार पर अपने समर्पण की मोहर लगा दी. एक बार मर्यादा टूटी तो उन्हें जब भी मौका मिलता, जिस्म की भूख मिटाने लगे. दोनों ने अपने इस अनैतिक रिश्ते पर परदा डालने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन पाप के इस रिश्ते को वे छिपा नहीं सके.

लोग राधिका और राहुल को ले कर तरहतरह की चर्चाएं भी करने लगे, पर उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया. जब सुरेश सिंह के किसी शुभचिंतक ने उसे फोन कर के चाचीभतीजे के बीच पक रही खिचड़ी की जानकारी दी तो वह नौकरी छोड़ कर गांव आ गया. यह सन 2014 की बात है.

सुरेश ने खूब पैसे कमाए थे. उन्हीं पैसों से उस ने गांव में रह कर प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया, जो थोड़ी मेहनत के बाद अच्छा चल निकला. कामधंधे की वजह से अकसर उसे दिन भर घर से बाहर रहना पड़ता था, इसलिए राहुल और राधिका को मिलने में कोई परेशानी नहीं होती थी. लेकिन एक दिन अचानक वह दोपहर में घर आ गया तो उस ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया.

फिर क्या था, सुरेश ने न पत्नी को छोड़ा और न भतीजे को. उस ने इस बात को ले कर भाई से बात की तो बेटे की हरकत से वह काफी शर्मिंदा हुए. समाज और रिश्तों की दुहाई दे कर उन्होंने बेटे को घर से निकाल दिया तो वह लखनऊ आ गया और गोमतीनगर में किराए पर कमरा ले कर रहने लगा.

यहां वह सरकारी नौकरी की परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. सुरेश की वजह से गांव में राहुल और उस की चाची की काफी बदनामी हुई थी. यही नहीं, उसे घर से भी निकाल दिया गया था. राधिका की खूब थूथू हुई थी. गांव से ले कर नातेरिश्तेदारों तक ने उस की खूब फजीहत की थी.

धीरेधीरे बात थमती गई. मांबाप से मांफी मांग कर राहुल फिर घर लौट आया. मांबाप ने उसे माफ जरूर कर दिया था, लेकिन उस पर कड़ी नजर रखी जा रही थी. राधिका से उसे मिलने की सख्त मनाही थी. जबकि वह चाची से मिलने के लिए तड़प रहा था. लेकिन सख्त पहरेदारी की वजह से दोनों का मिलन संभव नहीं हो पा रहा था.

चाचा सुरेश की वजह से राहुल प्रेमिका चाची से मिल नहीं पा रहा था. उसे लग रहा था कि जब तक चाचा रहेगा, वह चाची से कभी मिल नहीं पाएगा. चाचा प्यार की राह का कांटा लगा तो वह उसे हटाने के बारे में सोचने लगा. आखिर उस ने उसे हटाने का निश्चय कर लिया.

अब वह ऐसी राह खोजने लगा, जिस पर चल कर उस का काम भी हो जाए और वह फंसे भी न. काफी सोचविचार कर उस ने तय किया कि वह अपना मोबाइल फोन औन कर के बाइब्रेशन पर लखनऊ वाले कमरे पर ही छोड़ देगा और रात में गोरखपुर पहुंच कर चाचा की हत्या कर के लखनऊ अपने कमरे पर आ जाएगा.

पुलिस उस पर शक करेगी तो मोबाइल लोकेशन के सहारे वह बच जाएगा. तब वह शायद यह भूल गया था कि कातिल कितना भी चालाक क्यों न हो, कानून के लंबे हाथों से उस का बचना आसान नहीं है.

राहुल जब से घर आ कर रहने लगा था, सुरेश और उस की पत्नी राधिका के बीच उसे ले कर अकसर झगड़ा होता रहता था. जबकि इस बीच राहुल एक बार भी चाची से नहीं मिला था.

रोजरोज के झगड़े से परेशान हो कर राधिका नाराज हो कर बेटे को ले कर मायके चली गई थी. राधिका के चली जाने से राहुल काफी दुखी था. उस का मन घर में नहीं लगा तो 16 अक्तूबर को मांबाप से कह कर वह लखनऊ चला गया.

चाची से न मिल पाने की वजह से राहुल तड़प रहा था. तड़प की वेदना से आहत हो कर उस ने योजना को अमलीजामा पहना दिया. योजना के अनुसार 17 अक्तूबर की शाम 4 बजे इंटरसिटी ट्रेन से वह गोरखपुर के लिए चल पड़ा. रात 11 बजे के करीब वह गोरखुपर पहुंचा. स्टेशन से टैंपो ले कर वह चिलुआताल के बरगदवां चौराहे पर पहुंचा और वहां से पैदल ही घर पहुंच गया.

उसे घर तो जाना नहीं था, इसलिए सब से पहले उस ने पिता के कमरे के दरवाजे की सिटकनी बाहर से बंद कर दी, ताकि शोर होने पर वह बाहर न निकल सकें.

इस के बाद पीछे की दीवार के सहारे वह सुरेश सिंह के कमरे में पहुंचा, जहां वह गहरी नींद सो रहा था. उसे देखते ही नफरत से राहुल का खून खौल उठा. उसे पता था कि चाचा के घर में लोहे की रौड कहां रखी है. उस ने लोहे की रौड उठाई और पूरी ताकत से सुरेश के सिर पर 3 वार कर के उसे मौत के घाट उतर दिया.

राहुल को विश्वास हो गया कि सुरेश की मौत हो चुकी है तो उस ने घर में रखा बोरा उठाया और उसी में उस की लाश भर कर रात के 4 बजे के करीब बाहर झांक कर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा. जब उसे लगा कि कोई नहीं देख रहा है तो उस ने सुरेश की ही साइकिल घर उस की लाश वाले बोरे को कैरियर पर रख कर जंगल की ओर चल पड़ा.

लेकिन जब वह झील की ओर जा रहा था, तभी एक ट्रैक्टर आता दिखाई दिया. उसे देख कर वह घबरा गया और साइकिल को एक पेड़ से टिका कर भागा. ट्रैक्टर पर बैठे एक मजदूर ने उसे भागते देख लिया तो उस ने उस का नाम ले कर पुकारा भी, लेकिन रुकने के बजाए राहुल बरगदवां चौराहे की ओर भाग गया.

वहां से उस ने टैंपो पकड़ी और गोरखपुर रेलवे स्टेशन पहुंचा, जहां से ट्रेन पकड़ कर लखनऊ स्थित अपने कमरे पर चला गया. उस ने चालाकी तो बहुत दिखाई, लेकिन वह काम न आई और पकड़ा गया. राहुल चौधरी की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त लोहे की रौड बरामद कर ली थी.

पूछताछ के बाद राहुल को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. राधिका के पति की हत्या की खबर पा कर ससुराल आ गई थी. राहुल ने जो किया था, उस से उसे काफी दुख पहुंचा. क्योंकि उस ने राहुल से कभी नहीं कहा था कि वह उस के पति की हत्या कर उसे विधवा बना दे.

राहुल के मांबाप भी काफी दुखी हैं. उन्होंने राहुल से अपना नाता तोड़ कर उसे उस के हाल पर छोड़ दिया है.

कथा में राधिका सिंह बदला नाम है. कथा पुलिस सूत्रों एवं राहुल के बयानों पर आधारित

सैक्स की भूख ने जूली को बना दिया हत्यारा

वह सैक्स की आग में कई सालों से झुलस रही थी. उस का पति पिछले 2 सालों से दोहरे हत्याकांड के आरोप में जेल में बंद था. पति की गैरहाजिरी में उसे जिस्मानी सुख नहीं मिल पा रहा था. आखिर में उस ने एक रास्ता निकाल ही लिया. वह दोहरी जिंदगी जीने लगी. दिन के उजाले में वह घर वालों के सामने घूंघट ओढ़े आदर्श बहू की तरह रहती और जैसे ही रात का अंधेरा घिरता, वह आदर्श बहू का चोला उतार कर ऐयाशी में रम जाती. यह सिलसिला पिछले एक साल से चल रहा था. बहू की इस दोहरी जिंदगी का राज एक दिन घर वालों के सामने उजागर हो गया. एक रात दादी सास सुशीला राजावत ने बहू को किसी पराए मर्द के साथ सैक्स संबंध बनाते देख लिया. इस के बाद से दादी सास उस पर कड़ी नजर रखने लगीं.

इस से खफा उस औरत ने रची एक खौफनाक साजिश, जो दिल दहला देने वाली थी.

यह मामला मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के हजारी इलाके के बिरला मंदिर का है. जूली अपनी दादी सास सुशीला राजावत और अपने 6 साल के बेटे के साथ रहती थी.

पुलिस अधीक्षक हरिनारायणचारी मिश्र के मुताबिक, पिछले 3 साल से जूली का पति शिवा राजावत दोहरे हत्याकांड के आरोप में अपने पिता और छोटे भाई के साथ जेल में बंद है. पति के जेल चले जाने के बाद से जूली अकेली हो गई. पति के बिना उस का मन नहीं लगता था. वह अकसर अपनी दादी सास के सामने रोती रहती थी.

शिवा राजावत के कुछ करीबी दोस्त थे, जो जेल से उस की खबर ले कर उस के घर पर आते रहते थे. इसी दौरान जूली उन में से एक दोस्त की ओर आकर्षित हो गई. जल्दी ही दोनों नजदीक आ गए और चोरीछिपे मिलने लगे.

जूली काफी समय से सैक्स की भूखी थी. अपनी भूख मिटाने के लिए वह प्रेमी को रात के समय अपने कमरे पर बुलाने लगी. वह शख्स रात में उस के पास आता और सुबह होने से पहले ही वहां से निकल जाता. रात के अंधेरे में चलने वाले ऐयाशी के इस खेल के बारे में किसी को पता नहीं था.

एक रात दादी सास सुशीला राजावत ने जूली को पराए मर्द के साथ मस्ती करते देख लिया. उस रात जूली कुछ ज्यादा ही उतावली थी. इस चक्कर में कमरे का दरवाजा बंद करना भूल गई.

रात के समय दादी सास सुशीला राजावत की नींद खुल गई. उन्हें बहू के कमरे से सिसकारियों की आवाज सुनाई दी. उन के कान खड़े हो गए. वे दबे कदमों से कमरे के पास पहुंचीं. अंदर का नजारा देख कर उन के होश उड़ गए.

जूली अपने यार के साथ सैक्स में इतनी खोई हुई थी कि उसे कमरे में किसी के आने का एहसास तक न हुआ. दादी सास ने उसी वक्त दोनों को काफी खरीखोटी सुनाई.

वह शख्स बिना कुछ बोले सिर नीचे कर के वहां से भाग गया, लेकिन उस दिन से जूली घर में कैद हो कर रह गई. दादी सास उस पर कड़ी निगाह रखने लगीं. उसे बाहर के किसी शख्स से बात करने, घर के बाहर कहीं जाने, यहां तक कि मोबाइल फोन से बात करने पर भी रोक लगा दी.

जूली अपने प्रेमी से मिलने के लिए तड़पने लगी. उस ने सास की नजरों से बच कर घर से बाहर निकलने की कोशिश की, पर कामयाबी नहीं मिली. नतीजा यह हुआ कि वह गुस्से से बौखला गई. उस ने सास को ही खत्म करने का खतरनाक प्लान बना लिया.

5 अगस्त की सुबह 8 बजे अपने बेटे को स्कूल भेजने के बाद जूली ने इस खौफनाक वारदात को अंजाम दिया. जूली ने चाय में ढेर सारी नींद की गोलियां मिला कर अपनी दादी सास सुशीला को पिला दी.

चाय पीने के कुछ समय बाद ही सुशीला राजावत को नींद आने लगी. वे अपने कमरे में जा कर सो गईं. मौका पा कर जूली ने तौलिया से गला दबा कर उन की हत्या कर दी. सास की हत्या के बाद उस ने कमरे का सारा सामान इस तरह से बिखेर दिया, ताकि मामला लूटपाट का लगे.

तकरीबन 12 बजे जूली ‘मैं लुट गई… बरबाद हो गई’ चिल्लाने लगी. आवाज सुन कर आसपास के लोग जमा हो गए. पुलिस भी वहां पहुंच गई.

जूली ने पुलिस को बताया, ‘‘3 लोग उस के पति शिवा के दोस्त बता कर घर में घुसे. तीनों अंदर कमरे में कुरसी पर बैठ कर सास से बातें करने लगे. मैं उन के लिए अंदर रसोई में चाय बनाने चली गई.

‘‘थोड़ी देर में 2 लोग रसोई में आ गए. उन्होंने मुझे पीछे से पकड़ लिया. एक ने मेरे सिर पर पिस्टल अड़ा दिया. दूसरे ने मेरा पेटीकोट उठा कर रेप करने की कोशिश की.

‘‘वह कुछ करने में कामयाब होता, उस बीच किसी ने दरवाजे पर आवाज दी. आवाज सुन कर तीनों भाग निकले. जाने से पहले वे अलमारी में रखा सोना लूट कर ले गए और उन्होंने सास की हत्या भी कर दी.’’

जूली ने पुलिस को जो कहानी सुनाई थी, पुलिस द्वारा अंदर तहकीकात करने पर झूठी निकली, जिस की वजह से जूली शक के घेरे में आ गई.

जूली ने तीनों लुटेरों को सामने कमरे में रखी कुरसियों पर बैठ कर सास से बातें करने की बात कही थी, जबकि कमरे में कुरसियां एक के ऊपर एक रखी थीं. दूसरी बात, जूली ने हत्यारे द्वारा उस का दुपट्टा ले जाने की बात कही थी, पर वह दुपट्टा अंदर कमरे में लाश के पास मिला.

तीसरी बात, जो सोना लुटेरों द्वारा लूट कर ले जाने की बात की थी, जांच में पता चला कि वह सोना बैंक में गिरवी रखा हुआ है. उस पर लोन लिया गया था. इस के अलावा जूली अपना बयान बारबार बदल रही थी.

पुलिस द्वारा कड़ाई से पूछताछ करने पर जूली ने दादी सास की हत्या करने की बात कबूल ली और सारी असलियत बयान कर दी.

जूली ने पुलिस को बताया कि वह पिछले 5 महीने से अपनी दादी सास की हत्या की साजिश रचने में लगी थी. उस ने टैलीविजन सीरियल देख कर हत्या करने व उस से बचने की प्लानिंग बनाई थी. उस ने सीरियल के द्वारा छोटेबड़े अपराध के बारे में जानकारी हासिल की थी. पहले उस ने बदमाशों द्वारा रेप किए जाने की कहानी पुलिस के सामने सुनाने की सोची थी, लेकिन रेप के मामले में मैडिकल एंगल को देखते हुए उस ने पिस्टल अड़ा कर रेप करने की कोशिश, लूट और हत्या की कहानी सुनाई.

जूली को यकीन था कि उस के द्वारा बताई गई सारी बातें पुलिस मान लेगी और वह साफतौर पर बच जाएगी, पर ऐसा हुआ नहीं. पुलिस ने तहकीकात कर उस की सारी पोल खोल कर रख दी.

जूली ने बताया कि उसे अपनी दादी सास की हत्या करने का कोई मलाल नहीं है, क्योंकि वे उसे प्रेमी से मिलने नहीं दे रही थीं. सैक्स के माहिर डाक्टरों का कहना है कि इनसान के लिए सैक्स की भूख जिस्मानी जरूरत है. इस पर रोक लगाने पर औरत हो या मर्द, हत्या करने जैसा खौफनाक कदम उठा सकते हैं.

खतरनाक औरत : गांव की गलियों से निकली माया के सपने – भाग 3

इंद्रपाल की पहले से ही गुड्डू से अच्छी दोस्ती थी. उस ने अपने इस धंधे में गुड्डू को भी शामिल कर लिया. उस के बाद इंद्रपाल और गुड्डू दोनों माया, रेखा और जमुना के लिए ग्राहक ढूंढ कर लाते और अपना कमीशन ले कर मौजमस्ती करते. जब इन लोगों की हरकतें हद पार करने लगीं तो राकेश एक दिन जमुना के पति धर्म सिंह से मिला.

उस ने अपनी बीवी और उस की बीवी जमुना की पोल खोलते हुए बताया कि दोनों ने कई औरतों के साथ मिल कर उस के घर को अय्याशी का अड्डा बना रखा है. यह पता चलने पर धर्म सिंह अपनी बीवी जमुना पर चढ़ बैठा.

उस ने जमुना से मारपिटाई भी की. जब ग्रुप की सभी मेंबरों को पता चला कि फसाद की असली जड़ राकेश है तो सब ने मिल कर उसे मौत के घाट उतारने में माया का साथ देने के लिए रास्ता खोजना शुरू कर दिया.

शराब के सुरूर में एक दिन जब इस मुद्दे पर बात हुई तो सब ने तय किया कि राकेश को ठिकाने लगाने से पहले किसी आरोप में धर्म सिंह को जेल भिजवाया जाए. इस गिरोह से जुड़ी सभी औरतों का एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था. सभी के एकदूसरे के परिवार से घर जैसे संबंध बन गए थे.

इसी का लाभ उठाते हुए पहले से तैयार योजना के तहत रेखा ने किसी काम के बहाने धर्म सिंह को अपने घर बुलाया. रेखा को पता था कि धर्म सिंह शराब पीने का आदी है. इसी का लाभ उठा कर उस ने धर्म सिंह को पहले से घर में रखी कच्ची शराब पिलाई. जब धर्म सिंह नशे में डूब गया तो उस ने घर से बाहर आ कर शोर मचा दिया. रेखा के रोनेचीखने की आवाज सुन कर आसपास के लोग एकत्र हुए तो उस ने बताया कि धर्म सिंह उसे अकेला देख कर घर में घुस आया और उस की इज्जत लूटने की कोशिश करने लगा.

योजना रह गई धरी की धरी

रेखा की बात मान कर उस के पड़ोसी उस के घर के अंदर गए तो धर्म सिंह नशे की हालत में बेसुध सा पड़ा था. उस के कपड़े भी शरीर से उतरे हुए थे. यह देख कर पड़ोसियों ने समझा कि रेखा जो भी कह रही है, वह सच है.

बाद में रेखा अपनी मंडली की सभी सदस्यों और पड़ोसियों को साथ ले कर थाना आईटीआई पहुंची और धर्म सिंह के खिलाफ दुष्कर्म के प्रयास का आरोप लगा कर मुकदमा दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन जब पुलिस ने जांच की तो मामला फरजी पाया गया.

फलस्वरूप धर्म सिंह बच गया. जब यह गिरोह धर्म सिंह को फंसाने में फेल हो गया तो गिरोह के सदस्यों ने राकेश को मौत की नींद सुलाने की योजना पर ध्यान केंद्रित कर दिया. आखिरकार माया और उस के मौसेरे देवर इंद्रपाल ने अपने साथियों के साथ मिल कर राकेश की हत्या की साजिश रच डाली.

माया ने अपने पति राकेश से छुटकारा पाने के लिए सभी साथियों को 50 हजार रुपए देने की बात कही, जबकि इंद्रपाल को राकेश की बाइक देने का वादा किया. योजना बनने के बाद 26 जून को देर रात गुड्डू राकेश को शराब पिलाने के बहाने साथ ले कर रामनगर रोड स्थित गांव रमपुरा पहुंचा. वहां पहुंच कर गुड्डू ने उसे जम कर शराब पिलाई.

राकेश जब नशे में डूब गया तो गुड्डू ने मोबाइल से रेखा को फोन कर दिया. रेखा पहले से ही उस के फोन का इंतजार कर रही थी. रात के लगभग 10 बजे गुड्डू रेखा की मदद से राकेश को बाइक पर बिठा कर कचनाल गाजी गुसाईं स्थित अपने कमरे पर पहुंचा.

माया का देवर इंद्रपाल और जमुना वहां पहले ही पहुंच गए थे और इन लोगों का इंतजार कर रहे थे. ज्यादा नशा होने की वजह से राकेश गुड्डू के कमरे पर पहुंचते ही अर्द्धबेहोशी की हालत में फैल गया.

षडयंत्र हो गया कामयाब

जब सब लोगों को लगा कि राकेश को हमेशा के लिए मौत की नींद सुलाने का इस से बढि़या मौका नहीं मिलेगा तो इंद्रपाल और रेखा ने राकेश के हाथ पकड़े और गुड्डू ने उस का गला दबा दिया. जमुना ने इस काम में गुड्डू की मदद की. कुछ देर छटपटाने के बाद राकेश की मौत हो गई.

राकेश को मौत की नींद तो सुला दिया गया, अब बारी थी उस की लाश को ठिकाने लगाने की. पहले से बनी आगे की योजना के अनुसार राकेश की लाश को रेलवे ट्रैक पर डालना था ताकि मामला रेल से कटने का लगे.

परेशानी यह थी कि जिस जगह गुड्डू का कमरा था, वहां से रेलवे लाइन तक जाने के लिए न तो कोई पगडंडी थी और न कोई रास्ता.

कोई और रास्ता न देख गुड्डू और इंद्रपाल ने राकेश की लाश कंधे पर रखी और रेलवे ट्रैक तक ले गए. वहां जा कर दोनों ने उस की लाश रेलवे ट्रैक के किनारे डाल दी.

रात के अंधेरे में राकेश की लाश को रेलवे लाइन पर डालने के लिए ले जाते वक्त इंद्रपाल का पैर रास्ते में पड़े जले हुए इंजन औयल पर पड़ गया था. बाद में राकेश की लाश को संभालते वक्त वह औयल मृतक राकेश के पैर पर लग गया था.

इंद्रपाल ने अपने कपड़ों पर लगे औयल को गंभीरता से नहीं लिया था. बाद में वही औयल इस केस को खोलने में सहायक बना. राकेश की लाश का एक पैर रेलवे लाइन से लगा हुआ था, इसीलिए ट्रेन आने पर उस के एक पैर की एड़ी कट गई थी.

राकेश की लाश को रेलवे ट्रैक पर डालने के बाद सभी अपनेअपने कमरे पर चले गए. उन्हें पता था कि कल को दिन निकलते ही रेल हादसे में राकेश की मौत की खबर फैल जाएगी.

अगले दिन सुबह इंद्रपाल ने मृतक के भाई कमल के मोबाइल पर फोन कर के बताया कि राकेश कल 2 बजे ड्यूटी पर गया था, लेकिन घर वापस नहीं आया. यह सूचना मिलते ही कमल अपने घर वालों के साथ खड़कपुर पहुंचा. इसी दौरान उसे सूचना मिली कि रेलवे लाइन पर एक व्यक्ति की लाश पड़ी है. कमल ने रेलवे लाइन पर जा कर देखा तो वह लाश उस के भाई राकेश की थी.

केस के खुल जाने के बाद आईटीआई पुलिस ने राकेश के भाई कमल की तहरीर के आधार पर इंद्रपाल, रामकिशोर, रेखा और जमुना के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 302, 201, 120बी के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. सभी आरोपी पकड़े जा चुके थे. इन सब को कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया. राकेश की मौत और माया के जेल चले जाने के बाद उस के तीनों बच्चे बेसहारा हो गए. पुलिस ने बच्च राकेश के साढ़ू सत्यभान को सौंप दिए. इस मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी कुलदीप सिंह स्वयं ही कर रहे हैं.

इन आरोपियों को पकड़ने वाली टीम में थानाप्रभारी कुलदीप सिंह, एसआई कैलाश चंद, कांस्टेबल विनय कुमार, कांस्टेबल प्रकाश सिंह, कांस्टेबल कुंदन सिंह तथा गंगा सिंह शामिल थे.