मां की हत्या करने के बाद क्षितिज खुद को मारने के रास्ते ढूंढने लगा. वह मां के शव को कमरे में बंद कर के बाजार गया और एक इलैक्ट्रिक कटर खरीद कर लाया. कई दुकानें तलाशने के बाद आखिरकार एक दुकान पर उसे कटर और ब्लेड मिल गया.
घर आ कर उस ने सब से पहले अपनी मृत मां के गले पर कटर चलाया. ऐसा शायद उस ने ट्रायल के तौर पर किया था. ताकि जब खुद की गरदन उड़ानी हो तो कटर ठीक से चला सके शायद इसलिए.
उस ने लिखा, ‘पहले मैं ने पिस्टल खरीदने की कोशिश की. नहीं मिली. फिर इलैक्ट्रिक कटर का विचार आया है. इलैक्ट्रिक कटर ले कर रात को घर लौटा था. मां के शव के पास खूब रोया हूं.’
उस ने रजिस्टर में आगे लिखा, ‘मां की मौत को आज 71 घंटे हो चुके हैं. बदबू आने लगी है. मां की गरदन कटर से काट दी है. शरीर से अलग नहीं की है.
‘शुक्रवार शाम से शव में बदबू आने लगी थी. मां के शव को बाथरूम में घसीट कर ले गया. दरवाजा बंद कर दिया है ताकि बदबू न आए. मैं बस सुसाइड नोट पूरा करना चाहता हूं. बदबू घर में भर चुकी है. अब बारी है मेरे सुसाइड करने की.’
मरने से पहले क्षितिज अपने जीवन के एकएक पल को जैसे उस रजिस्टर में कैद कर देना चाहता था. कभी मुंह पर कपड़ा रख कर तो कभी अगरबत्ती सुलगा कर वह किसी तरह बदबू से बचता हुआ लगातार लिखे ही जा रहा था.
‘आज शनिवार है. 3 दिन से खाली पेट हूं. कुछ खाया ही नहीं. मुझे याद आया रसोई में मैं ने गर्म पानी पीने को रखा है. कमरे में बदबू नहीं रुक रही. इस से मेरी भी तबीयत बिगड़ने लगी है. मैं ने पेंसिल के बुरादे को जलाया है. धूपबत्ती जलाई है. घर में एक जायफल रखा था, उसे भी जलाया है. सारा डियो भी छिड़क दिया. फिर भी बदबू नहीं रुक रही है. लेकिन मैं मास्क लगा कर सुसाइड नोट पूरा करूंगा.’
इस बीच क्षितिज के घर पर कई लोग आए. उन्होंने दरवाजे की घंटी बजाई, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो वापस चले गए.
क्षितिज की मां मिथिलेश हर इतवार पड़ोस में रहने वाली एक सहेली के साथ सत्संग जाती थी. मगर उस दिन जब वह नहीं आई तो उन की सहेली ने कई फोन मिथिलेश के फोन पर किए. फोन नहीं उठा तो उन्होंने क्षितिज का फोन मिलाया. 2-3 घंटियां बजने के बाद आखिरकार क्षितिज ने फोन उठा लिया.
उधर से आवाज आई, ‘आज मिथिलेश सत्संग में नहीं आई. फोन भी नहीं उठा रही है. मेरी जरा उस से बात करा दो.’
क्षितिज पहले तो घबरा गया, लेकिन फिर कड़ाई से बोला, ‘मां मर चुकी हैं. 4 दिन पहले मैं ने उन्हें मार दिया. अब मैं भी मरने की तैयारी कर रहा हूं.’
मिथिलेश की सहेली ने तुरंत फोन काट दिया. शायद वह क्षितिज की बात सुन कर डर गई. उस ने यह बात किसी को नहीं बताई. अगर वह उसी वक्त शोर मचा कर पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेती और अपनी सहेली का घर खुलवा लेती या पुलिस को फोन कर देती तो शायद क्षितिज पुलिस को जीवित मिल जाता. लेकिन दूसरे के पचड़े में कौन पड़े, यह सोच उस महिला पर हावी हो गई और वह चुप मार गई.
फिर उस ने आगे लिखा, ‘आज रविवार है. इस समय दोपहर के 2 बज रहे हैं. 3 दिन से प्रौपर्टी डीलर फ्लोर किराए पर दिखाने के लिए 3 बार किराएदारों के साथ आ चुका है. मैं ने दरवाजा नहीं खोला. आज हर हालत में नोट पूरा कर लूंगा. यह सब देखना बहुत डरावना लगता है.
‘पापा के जाने के बाद मां के जीजा ने हमारी पिता की तरह देखभाल की. इसलिए मैं घोषणा करता हूं कि मेरे मरने के बाद मेरी बाइक उन के नाम होगी. मेरी इच्छा है कि मां का अंतिम संस्कार मेरी मौसी करें.’
सुसाइड नोट पूरा करने के बाद क्षितिज ने बाथरूम में जा कर मां के शव पर नजर डाली. बदबू के मारे वह उस के पास नहीं बैठा. अब वह जल्द से जल्द खुद को खत्म कर लेना चाहता था. उस ने बाथरूम में रखी दोनों बाल्टियों में पानी भरा और उन्हें अपने बैडरूम में ले आया.
उस ने इलैक्ट्रिक कटर को स्विच बोर्ड में लगाया. चला कर देखा और पलंग पर रख दिया. इस के बाद उस ने पानी भरी बाल्टियों से अपने दोनों पैरों के अंगूठे बांध लिए ताकि जब वह इलैक्ट्रिक कटर अपने गले पर चलाए और दर्द से छटपटाए तो बैड से नीचे न गिरे.
शायद उसे इस बात का अंदेशा था कि कहीं ऐसा न हो कि छटपटाहट के कारण गला पूरा न कट पाए या कटर उस के हाथों से छूट जाए. ऐसे में जो पीड़ा होगी, वह असहनीय होगी. इसलिए वह पूरी तैयारी कर के बिस्तर पर लेटा.
इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर राम प्रताप सिंह भी कहते हैं कि पैरों को बाल्टी से बांधने के पीछे क्षितिज का मकसद रहा होगा कि मौत के समय छटपटाहट हो तो पैर बंधे रहें.
खुद को मारने के लिए इतनी हिम्मत जुटाना यह साबित करता है कि अब क्षितिज किसी भी कीमत पर इस दुनिया में नहीं रहना चाहता था. वह अपनी मां से बहुत प्रेम करता था और उन के बगैर अपने जीवन की कल्पना वह नहीं कर सका था.
बुद्ध विहार थाने में इस घटना की एफआईआर हत्या की धाराओं में दर्ज हुई है. हालांकि मरने वाला और मारने वाला दोनों ही नहीं हैं, मगर पुलिस को तो अपनी जांच करनी ही है. दोनों के शवों को पोस्टमार्टम के बाद मिथिलेश की बहन और जीजा के सुपुर्द कर दिया गया, जिन्होंने उन का अंतिम संस्कार किया. मिथिलेश के घर को पुलिस ने फिलहाल सील कर दिया है.
डिप्रेशन एक खतरनाक बीमारी है. इस का शिकार व्यक्ति आम व्यक्ति की तरह ही नजर आता है. इस से ग्रसित व्यक्ति को कई बार स्वयं को भी इस का पता नहीं चल पाता. बाहर के लोग तो समझ ही नहीं पाते कि उस की मानसिक हालत कैसी है और वह कब क्या कदम उठा ले, लेकिन साथ रहने वाले उस के बदलते व्यवहार को पकड़ सकते हैं और बातचीत के जरिए उस की मानसिक स्थिति का पता लगा सकते हैं.
यदि समय रहते इस का इलाज हो जाए तो इस के दुष्परिणामों को कम किया जा सकता है तथा संपूर्ण मुक्ति भी पाई जा सकती है. इस के 2 मुख्य परिणाम भयावह हैं— एक तो आत्महत्या जो हम आए दिन अखबारों और मीडिया के माध्यम से देखसुन रहे हैं, दूसरा है मानसिक संतुलन खो देना यानी पागलपन.
जब दिमाग दबाव को झेल नहीं पाता तो यही स्थिति आती है. अन्य शारीरिक जटिलताएं और बीमारियां भी शरीर में इस अवस्था के कारण पैदा हो सकती हैं जो अनगिनत हैं. आज के समय में इस के मुख्य कारणों में से एक है करीबी लोगों से निकटता का अभाव.
लोग एक घर में रहते हुए भी एकदूसरे से कोसों दूर हो गए हैं. जरूरत से ज्यादा मोबाइल या आभासी दुनिया में डूबे रहना भी इस का कारण और लक्षण दोनों हो सकते हैं. आज के समय में भागमभाग ज्यादा है, भावनात्मक जुड़ाव मंद पड़ गए हैं, वे चाहे मातापिता के बच्चों से हों या बच्चों के उन से या अन्य परिवारजनों, रिश्तेदारों के परस्पर हों. मित्रता भी स्वार्थपरायण हो रही है. आसपड़ोस से बातचीत निजता में खलल की परिभाषा में हो गया है.
पुस्तकें पढ़ने और सृजनात्मक कार्यों में आम लोगों की रुचि कम हुई है. कला और संस्कृति से बहुत कम लोग जुड़े हैं. सेवा, देखभाल, आत्मीयता सब घरपरिवारों से गायब सा दिख रहा है. ईर्ष्या और द्वेष संतोष और प्रसन्नता पर भारी पड़ रहे हैं. अकेलापन बढ़ रहा है. काफी लोग परिवार की खिचखिच की वजह से अलग व अकेले भी रहने लगे हैं.
व्यावसायिक कारणों से भी बहुत लोग अकेले रहते हैं तथा व्यावसायिक जीवन के दबाव से भी परेशान रहते हैं. विद्यार्थी और युवा वर्ग अनिश्चितताओं के चलते घर या सामाजिक दबाव के कारण भी अवसादग्रस्त हो रहे हैं.
विचलित करने वाली खबरें, महामारी में डर का माहौल आदि आग में घी का काम करता है. दिखावे का जीवन और अनावश्यक स्पर्धा का माहौल तन और मन दोनों को भटकाए रखता है.
यह सच है कि ऊपर से सामान्य सी लगने वाली अवसाद की इस समस्या ने बहुत नुकसान किया है, परंतु इस का मतलब यह भी नहीं कि यह लाइलाज है. इस में घर से ले कर समाज के लिए यह एक जिम्मेदारी का काम हो जाए तो क्षितिज और मिथिलेश जैसे अनेक जीवन बचाए जा सकते हैं. द्य