कातिल बहन की आशिकी : क्या था पूजा का गुनाह – भाग 2

थानाप्रभारी जे.के. शर्मा ने अवध पाल से पूछताछ की तो उस ने पूजा से प्रेम संबंधों को तो स्वीकार कर लिया, पर हत्या व लाश ठिकाने लगाने में शामिल होने से साफ मना कर दिया. अनिल ने भी वारदात में शामिल होने से इनकार किया. उस ने कहा कि अवध पाल उस का दोस्त है. अवध पाल व पूजा की दोस्ती को मजबूत करने में उस ने बिचौलिए की भूमिका निभाई थी. लेकिन रचना की हत्या के बारे में उसे कोई जानकारी नहीं है.

पूजा के इस कथन पर पुलिस को यकीन तो नहीं हुआ, फिर भी जांच करने के लिए पुलिस पूजा के घर पहुंची. पुलिस ने कमरे में लगे पंखे को देखा, उस पर धूल जमी थी और उस के ब्लेड जैसे के तैसे थे. रस्सी या दुपट्टा भी नहीं मिला. कमरे में पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं था, जिस से साबित होता कि रचना ने फांसी लगाई थी.

पुलिस को लगा कि पूजा बेहद शातिर है. वह पुलिस से झूठ बोल रही है. लिहाजा महिला पुलिसकर्मियों ने पूजा से सख्ती से पूछताछ की तो जल्द ही उस ने सच्चाई उगल दी. उस ने स्वीकार कर लिया कि उस ने ही अपनी बहन रचना की हत्या कर डेडबौडी खुद ही तालाब में फेंकी थी. पूजा से पूछताछ के बाद उस की छोटी बहन की हत्या की जो कहानी सामने आई, चौंकाने वाली निकली—

उत्तर प्रदेश के इटावा शहर के सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में एक गांव है सराय एसर. शहर से नजदीक बसे इसी गांव में श्याम सिंह यादव अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी सर्वेश कुमारी के अलावा एक बेटा था विवेक तथा 2 बेटियां थीं पूजा और दीपांशी उर्फ रचना. श्याम सिंह यादव शहर के एक प्राइवेट स्कूल में वैन चलाता था. स्कूल से मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का भरणपोषण हो रहा था.
श्याम सिंह के बच्चों में पूजा सब से बड़ी थी. चेहरेमोहरे से वह काफी सुंदर थी. पूजा जैसेजैसे सयानी होने लगी, उस के रूपलावण्य में निखार आता गया. उस के हुस्न ने बहुतों को दीवाना बना दिया था. अवध पाल भी पूजा का दीवाना था.

अवध पाल ने पूजा पर डाले डोरे

अवध पाल यादव, सरैया चुंगी पर रहता था. उस के भाई वीरपाल की दूध डेयरी थी. अवध पाल भी भाई के साथ दूध डेयरी पर काम करता था. अवध पाल का एक दोस्त अनिल यादव था जो सराय एसर में रहता था. अनिल, पूजा के परिवार का था और पूजा के घर के पास ही रहता था. अवध पाल का अनिल के घर आनाजाना था. उस के यहां आतेजाते ही अवध पाल की नजर पूजा पर पड़ी थी. वह उसे मन ही मन चाहने लगा था.

अवध पाल भाई के साथ खूब कमाता था, इसलिए वह खूब बनठन कर रहता था. अवध पाल जिस चाहत के साथ पूजा को देखता था, उसे पूजा भी समझती थी. उस की नजरों से ही वह उस के मन की बात भांप चुकी थी. धीरेधीरे पूजा भी उस की दीवानी होने लगी. उस के मन में भी अवध पाल के प्रति आकर्षण पैदा हो गया.

पूजा पंचशील इंटर कालेज में पढ़ती थी. इसी कालेज में उस की छोटी बहन दीपांशी उर्फ रचना भी पढ़ती थी. पूजा इंटरमीडिएट की छात्रा थी जबकि दीपांशी 10वीं में पढ़ रही थी. पूजा घर से पैदल ही स्कूल जाती थी.

अवध पाल ने जब से पूजा को देखा था, तब से उस ने उसे अपने दिल में बसा लिया था. पूजा के स्कूल आनेजाने के समय वह उस के पीछेपीछे स्कूल तक जाता था. पूजा भी उसे कनखियों से देखती रहती थी.

पूजा की इस अदा से अवध पाल समझ गया कि पूजा भी उसे चाहने लगी है. दोनों के दिलों में प्यार की हिलोरें उमड़ने लगीं. प्यार के समंदर को भला कौन बांध कर रख सका है. वैसे भी कहते हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है.

अवध पाल को पीछे आते देख कर एक दिन पूजा ठिठक कर रुक गई. उस का दिल जोरों से धड़क रहा था. पूजा के अचानक रुकने से अवध पाल भी चौंक कर ठिठक गया. आखिर उस से रहा नहीं गया और वह लंबेलंबे डग भरता हुआ पूजा के सामने जा कर खड़ा हो गया.
‘‘तुम आजकल मेरे पीछे क्यों पड़े हो?’’ पूजा ने माथे पर त्यौरियां चढ़ा कर अवध पाल से पूछा.
‘‘तुम से एक बात कहनी थी पूजा.’’ अवध पाल ने झिझकते हुए कहा.

‘‘बताओ, क्या कहना चाहते हो?’’ पूजा ने उस की आंखों में देखते हुए पूछा.
तभी अवध पाल ने अपनी जेब से कागज की एक परची निकाली और पूजा को थमा कर बोला, ‘‘घर जा कर इसे पढ़ लेना, सब समझ में आ जाएगा.’’
मन ही मन मुसकराते हुए पूजा ने वह कागज ले लिया और बिना कुछ बोले अपने घर चली गई. हालांकि पूजा को इस बात का अहसास था कि उस परची में क्या लिखा होगा, फिर भी वह उसे पढ़ कर अपने दिल की तसल्ली कर लेना चाहती थी.

घर पहुंच कर पूजा ने अपने कमरे में जा कर अवध पाल का दिया हुआ कागज निकाल कर पढ़ा. उस पर लिखा था, ‘मेरी प्यारी पूजा, आई लव यू. मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. तुम्हें देखे बगैर मुझे चैन नहीं मिलता. इसीलिए अकसर स्कूल तक तुम्हारे पीछे आता हूं. तुम अगर मुझे न मिली तो मैं जिंदा नहीं रह पाऊंगा. तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा अवध पाल सिंह.’

पत्र पढ़ कर पूजा के दिल के तार झनझना उठे. उस की आकांक्षाओं को पंख लग गए. उस दिन पूजा ने उस पत्र को कई बार पढ़ा. पूजा के मन में सतरंगी सपने तैरने लगे थे. उसी दिन रात को पूजा ने अवध पाल के नाम एक पत्र लिखा.

पत्र में उस ने सारी भावनाएं उड़ेल दीं, ‘प्रिय अवध पाल, मैं भी तुम से इतना प्यार करती हूं जितना कभी किसी ने नहीं किया होगा. कह इसलिए नहीं सकी कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ. तुम्हारे बिना मैं भी जीना नहीं चाहती. मैं तो चाहती हूं कि हर समय तुम्हारी बांहों के घेरे में बंधी रहूं. तुम्हारी पूजा.’

उस दिन मारे खुशी के पूजा को नींद नहीं आई. अगली सुबह वह कालेज जाने के लिए घर से निकली तो अवध पाल उसे पीछेपीछे आता दिखाई दिया. दोनों की नजरें मिलीं तो वे मुसकरा दिए. पूजा बेहद खुश नजर आ रही थी. सावधानी से पूजा ने अपना लिखा खत जमीन पर गिरा दिया और आगे चली गई.

पीछेपीछे चल रहे अवध पाल ने इधरउधर देखा और उस पत्र को उठा कर दूसरी तरफ चला गया. एकांत में जा कर उस ने पूजा का पत्र पढ़ा तो खुशी से झूम उठा. जो हाल पूजा के दिल का था, वही अवध पाल का भी था. पूजा ने पत्र का जवाब दे कर उस का प्यार स्वीकार कर लिया था.

शुरू हो गई प्रेम कहानी

दोपहर बाद जब कालेज की छुट्टी हुई तो पूजा ने गेट पर अवध पाल को इंतजार करते पाया. एकदूसरे को देख कर दोनों के दिल मचल उठे. वे दोनों एक पार्क में जा पहुंचे.
पार्क के सुनसान कोने में बैठ कर दोनों ने अपने दिल का हाल एकदूसरे को कह सुनाया. पार्क में कुछ देर प्यार की अठखेलियां कर के दोनों घर लौट आए. दोनों के बीच प्यार का इजहार हुआ तो मानो उन की दुनिया ही बदल गई. फिर दोनों अकसर मिलने लगे.

अंजाम ए मोहब्बत : पिता कैसे बने दोषी – भाग 2

इस हत्या की क्या वजह हो सकती है, जानने के लिए पुलिस ने मृतका के पति बृजेश चौरसिया को थाने बुलाया. उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि मीनाक्षी की हत्या उस के पिता राजकुमार चौरसिया ने की है, क्योंकि मीनाक्षी ने अपने घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से लवमैरिज की थी. इस बात से उस के घर वाले नाराज थे.

चूंकि बृजेश ने सीधा आरोप अपने ससुर राजकुमार पर लगाया था, इसलिए पुलिस उसे तलाश करने लगी. लेकिन वह अपने घर से फरार मिला. आखिर राजकुमार चौरसिया के मोबाइल फोन की लोकेशन के सहारे पुलिस उस के पास पहुंच ही गई और उसे उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज में स्थित उस के पैतृक घर से दबोच लिया.

मुंबई ला कर उस से उस की बेटी की हत्या के बारे में पूछताछ की तो राजकुमार ने अपनी बेटी की हत्या के मामले में अनभिज्ञता जाहिर की लेकिन पुलिस टीम ने जब उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वह टूट गया और तोते की तरह बोलते हुए अपना गुनाह स्वीकार लिया.

इस के बाद पुलिस ने राजकुमार चौरसिया को कोर्ट में पेश कर 7 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस से की गई पूछताछ के बाद मीनाक्षी चौरसिया हत्याकांड की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार थी—

55 वर्षीय राजकुमार चौरसिया मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

गांव में उस के परिवार की सिर्फ नाममात्र की काश्तकारी थी. उस का पुश्तैनी काम पान बेचने का था. गांव के बाजारों से जो आमदनी होती थी, उस से ही घर और परिवार की रोजीरोटी चलती थी. इस आमदनी से राजकुमार संतुष्ट नहीं था.

लिहाजा अपनी रोजीरोटी की तलाश में वह गांव छोड़ कर महानगर मुंबई चला आया. क्योंकि यहां उस के इलाके के और भी लोग काम करते थे. मुंबई शहर के बारे में उस ने यह सुन रखा था कि वह एक ऐसा शहर है, जहां मेहनत करने वाला इंसान कभी भूखा नहीं सोता है.

उन दिनों मुंबई की सूरत आज जैसी नहीं थी. न तो भीड़ थी और न जमीनों की कीमत आसमान छू रही थी. उस समय वहां आदमी को मामूली किराए पर दुकान और घर मिल जाते थे.

राजकुमार चौरसिया ने 2-4 दिन इधरउधर भटकने के बाद घाटकोपर नारायणनगर में अपना पुश्तैनी काम करने के लिए एक खोखा लगा लिया, जो धीरेधीरे एक पान की दुकान में बदल गया था.

कुछ ही दिनों में उस की दुकान चल निकली और उस से अच्छी कमाई होने लगी. जिस से उस ने अपने रहने के लिए दुकान के पास ही अपना एक घर ले लिया. इस के अलावा वह अपनी कमाई से घरपरिवार की भी मदद करने लगा था, जिस से घर की आर्थिक स्थिति भी पटरी पर आने लगी थी.

इस के बाद राजकुमार की शादी भी हो गई. शादी के थोड़े दिनों बाद वह अपनी पत्नी को भी मुंबई बुला लाया. समयसमय पर वह अपने गांव जाता रहता था, जिस से गांव के लोगों से उस का संपर्क बना रहा.

समय अपनी गति से बीतता गया और राजकुमार 3 बच्चों का पिता बन गया. 20 वर्षीय मीनाक्षी राजकुमार की सब से छोटी और लाडली बेटी थी. उस से बड़े उस के 2 बेटे थे. मीनाक्षी पढ़ाईलिखाई में काफी होशियार थी. वह जवान हुई तो राजकुमार को उस की शादी की चिंता हुई. वह बेटी के योग्य वर की तलाश में लग गया.

जहां एक तरफ राजकुमार मीनाक्षी के लिए वर की तलाश में था, वहीं मीनाक्षी ने अपने लिए बृजेश चौरसिया को चुन लिया था. 27 वर्षीय बृजेश चौरसिया उस की जाति बिरादरी का था. वह भी प्रयागराज के गांव नुमाईडाही का रहने वाला था.

सन 2016 में जब बृजेश चौरसिया अपना गांव छोड़ कर महानगर मुंबई आया था तो राजकुमार चौरसिया ने उसे अपने यहां सहारा दे कर उस की मदद की थी. उस ने उसे अपनी दुकान पर कुछ दिनों तक काम पर लगाया. राजकुमार और परिवार वाले उसे अपने घर का सदस्य मानते थे. मीनाक्षी कभीकभी दुकान पर बैठे बृजेश के लिए खाना देने जाती थी.

इसी बीच दोनों एकदूसरे से खुल कर बातें करते और हंसतेहंसाते थे. इस हंसनेहंसाने में दोनों में कब प्यार हो गया, इस बात का उन्हें पता ही नहीं चला. दोनों जब तक एकदूसरे से बात नहीं कर लेते थे, उन्हें चैन नहीं आता था.

इस के पहले कि दोनों के संबंधों की भनक राजकुमार चौरसिया और उस के परिवार के कानों में पहुंचती, बृजेश चौरसिया ने राजकुमार की पान की दुकान पर बैठना छोड़ दिया और उसी इलाके में एक दुकान किराए पर ले कर काम शुरू कर दिया.

एक तरफ जहां मीनाक्षी और बृजेश का प्यार मजबूत हो रहा था, वहीं दूसरी ओर राजकुमार जब कभी बृजेश से मिलता था तो बृजेश से मीनाक्षी के लिए किसी योग्य लड़के की तलाश करने को कहता था. बृजेश भी राजकुमार का मन रखने के लिए उसे हां बोल दिया करता था.

बृजेश और मीनाक्षी ने मिलना बंद नहीं किया. वे समय निकाल कर कहीं न कहीं मुलाकात कर ही लेते थे. एक दिन जब उन के संबंधों की जानकारी राजकुमार को हुई तो उस के पैरों तले से जमीन सरक गई थी.

हुआ यह कि राजकुमार ने जब मीनाक्षी की शादी के लिए मुंबई के विरार में एक लड़का फाइनल किया तो मीनाक्षी ने उस लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मीनाक्षी ने घर वालों से साफ कह दिया कि वह शादी केवल बृजेश से ही करेगी.

तब राजकुमार ने मीनाक्षी को आडे़हाथों लिया था. उसे मारापीटा और धमकाते हुए कहा कि यह कभी नहीं हो सकता क्योंकि वह उस के ही गांव और उसी की जाति का है. उस ने इस मामले में बृजेश को भी काफी धमकाया.

सेक्स को मना करने पर हिंसा करता था पति, पत्नी ने की हत्या

पति पत्नी के संबंध में जहां सेक्स का हौआ हावी हो गया, वह घर तो टूटन की कगार पर खड़ा ही मानो. वैसे, एकदूसरे की भावनाओं को समझते हुए, आपसी सहमति से सेक्स संबंध बनाया जाए तो कारगर रहता है नहीं तो लड़ाई झगड़ा होना लाजिम है. पर सेक्स के लिए पत्नी को प्रताड़ित करना और बदतमीजी से बोलना व बच्चों के सामने उसे बेइज्जत करना आम घरों की समस्या से रूबरू कराता है. वाकई यह हमारी घिनौनी सोच का ही नतीजा है.

कोलकाता में भी एक ऐसी घटना सामने आई है, जिस में पत्नी ने पति द्वारा तंग करने पर उस की हत्या करने में जरा भी गुरेज नहीं किया.

पश्चिम बंगाल के कोलकाता में अपने पति की हत्या करने वाली अनिंदिता पौल डे ने पुलिस को इस के पीछे की अहम वजह बताई. हालांकि वह बारबार अपना बयान बदलती नजर आई. कहीं न कहीं वह अपने पति से आजिज आ चुकी थी, तभी उस ने अपने पति की हत्या करने जैसा कठोर कदम उठाया.

यह दंपती न्यू टाउन इलाके में रहता था. अनिंदिता पौल डे ने बताया कि उस का पति पेशे से वकील था. वह आए दिन उस का यौन उत्पीडन करता था.

अनिंदिता ने आगे बताया कि पिछले हफ्ते मैडिकल सलाह के खिलाफ जा कर उस के पति ने उस के साथ जबरदस्ती करने की कोशिश की जिस से गुस्से में आ कर अनिंदिता ने पति रजत डे की हत्या कर दी.

हालांकि मामला संगीन है. मामले की जांच कर रहे एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि महिला ने दावा किया है कि उस का पति जिस्मानी और दिमागी तौर पर उसे परेशान किया करता था. इस वजह से दोनों के बीच दूरियां पैदा हो गईं. इसी तरह की एक अजीबोगरीब हरकत पर अनिंदिता ने अपने पति की हत्या कर दी.

पुलिस जांच कर रही है कि यह हत्या अनिंदिता ने अकेले ही की थी या फिर किसी ने उस की मदद की थी.

अनिंदिता के वकील चंद्रशेखर बाग ने बताया कि अनिंदिता के पति ने उस का यौन शोषण किया था. 2 महीने पहले उन की फैलोपियन ट्यूब की सर्जरी हुई थी. इस के बाद डाक्टरों ने आराम करने की सलाह दी थी लेकिन रजत ने अनिंदिता के साथ जबरदस्ती की थी.

यह तो पति को भी सोचना चाहिए कि पत्नी की परेशानी क्या है पर इस ओर उस ने जरा भी ध्यान नहीं दिया और जबरदस्ती पर उतर आया. उस ने अपनी पत्नी की जरा भी नहीं सुनी और अपनी मनमानी करने लगा. जब बात हद से गुजर गई तो उस ने अपने पति की हत्या कर दी.

मामला चाहे जो हो पत्नी ने अपने हाथों को खून से सन ही लिया है. इस हत्या का अनिंदिता की जिंदगी पर कैसा असर पड़ेगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा. लेकिन सोचने वाली बात यह भी है मर्दऔरत को एकसाथ रखने वाला प्यार जानलेवा कैसे बन गया? क्या इस के पीछे मर्दवादी सोच है, जो पति के लिए पत्नी रात में दिल बहलाने का खिलौना भर है, चाहे वह किसी बीमारी के चलते सेक्स करने से परहेज करना चाहती हो?

नागिन से जहरीली औरत : पति का किया किनारा

घड़ी का अलार्म बजने के साथ ही संगीता सो कर उठ गई. उस समय सुबह के साढ़े 5 बजे थे. संगीता के उठने का रोज यही समय था. उस के पति मुकेश की लुधियाना की दुर्गा कालोनी स्थित अपने घर में ही किराने की दुकान थी. इस कालोनी में अधिकांश मजदूर तबके के लोग रहते थे, जो सुबह ही रोजमर्रा की चीजें दूध, चीनी, चायपत्ती आदि सामान लेने उस की दुकान पर आते थे, इसलिए वह सुबह जल्दी दुकान खोल लेता था. लेकिन उस दिन उस ने दुकान अभी तक नहीं खोली थी.

मुकेश छत पर सो रहा था. गैस चूल्हे पर चाय कापानी चढ़ाने के बाद संगीता ने पति को जगाने के लिए बड़ी बेटी को छत पर भेजा. दरअसल एक दिन पहले स्वतंत्रता दिवस का दिन होने की वजह से पूरे परिवार ने छत पर पतंगें उड़ाने के साथ हुल्लड़बाजी की थी.

उसी मोहल्ले में रहने वाला मुकेश का छोटा भाई रमेश भी अपनी पत्नीबच्चों के साथ वहां आ गया था, लेकिन रात को खाना खाने के बाद वह पत्नीबच्चों सहित अपने घर चला गया था. संगीता अपने बच्चों के साथ सोने के लिए नीचे गई थी. जबकि मुकेश छोटे बेटे करन के साथ छत पर ही सो गया था.

मुकेश को जगाने के लिए बेटी जब छत पर पहुंची तो वहां का दृश्य देख कर उस की चीख निकल गई. बेटी के चीखने की आवाज सुन कर संगीता छत पर गई तो वह भी अपनी चीख नहीं रोक सकी. क्योंकि उस का पति मुकेश लहूलुहान पड़ा था. उस की मौत हो चुकी थी. संगीता रोने लगी. उस की और बेटी की रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी भी वहां आ गए. तभी किसी ने पुलिस को और मुकेश के भाई रमेश को यह खबर कर दी.

रमेश चूंकि उसी मोहल्ले में रहता था, इसलिए भाई की हत्या की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. बड़े भाई की लाश देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि रात को तो सब ने मिल बैठ कर खाना खाया था.कुछ ही देर में थाना फोकल पौइंट के इंसपेक्टर अमनदीप सिंह बराड़ दलबल के साथ दुर्गा कालोनी पहुंच गए.

इंसपेक्टर अमनदीप ने घटनास्थल का मुआयना किया. मुकेश की खून से लथपथ लाश एक चारपाई पर पड़ी थी. देख कर लग रहा था कि उस के सिर और चेहरे पर किसी भारी चीज से वार किए गए थे.

छत पर 3 कमरे बने थे. एक कमरे में मृतक का दोस्त शामजी पासवान अपनी पत्नी के साथ किराए पर रहता था. एक कमरे में मृतक का 7 वर्षीय बेटा करन सो रहा था और मृतक आंगन में बिछी चारपाई पर था.

जब मृतक पर वार किया गया होगा तो उस की चीख भी निकली होगी. यही सोच कर पुलिस ने शामजी पासवान से पूछताछ की तो उस ने बताया कि गहरीनींद में सोने की वजह से उस ने कोई आवाज नहीं सुनी थी.

निरीक्षण करने पर इंसपेक्टर अमनदीप ने देखा कि छत पर जाने का केवल एक ही रास्ता था. उस दरवाजे में ताला लगाया जाता था. मृतक की पत्नी संगीता से पूछने पर पता चला कि सीढि़यों के दरवाजे पर ताला उस रात भी लगाया गया था. जब ताला लगा था तो वह किस ने खोला. इंसपेक्टर ने संगीता से पूछा तो वह कुछ नहीं बोली.

कुल मिला कर यह बात साबित हुई कि बिना ताला खोले या घर वालों की मरजी के बिना किसी का भी छत पर जाना संभव नहीं था.

बहरहाल घर वालों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद अमनदीप सिंह ने लाश पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दी और रमेश की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर मामले की तहकीकात शुरू कर दी. यह बात 16 अगस्त, 2018 की है.

पूछताछ करने पर रमेश ने इंसपेक्टर अमनदीप को बताया, ‘‘कल 15 अगस्त होने की वजह से भैया मुकेश ने हमें अपने घर बुला लिया था. दिन भर हम सब लोग मिल कर पतंगें उड़ाते रहे. शाम को संगीता भाभी ने खाना बनाया.

‘‘भैया और मैं ने पहले शराब पी फिर खाना खाया. बाद में मैं अपने बच्चों के साथ रात के करीब 9 बजे अपने घर चला गया था. सुबह होने पर मुझे भैया की हत्या की खबर मिली.’’

अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उस में बताया गया कि मुकेश की मौत सिर पर किसी भारी चीज के वार करने से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ने के बाद इंसपेक्टर अमनदीप अपने अधीनस्थों के साथ बैठे इस केस पर चर्चा कर रहे थे.

उन की समझ में यह नहीं आ रहा था कि कोई बाहर का आदमी मृतक की छत पर कैसे पहुंच सकता है. क्योंकि मृतक के मकान के साथ ऊंचेऊंचे मकान बने हुए हैं.

उन ऊंचे मकानों से नीचे वाले मकान पर उतरना बहुत खतरनाक था. मान लो अगर कोई किसी तरह नीचे उतर भी गया तो मुकेश की हत्या कर के वहां से कैसे गया. क्योंकि संगीता के अनुसार सीढि़यों वाला और घर का दरवाजा अंदर से बंद था. सुबह उस ने ही सीढि़यों का और घर का मुख्य दरवाजा खोला था.

संदेह करने वाली बात यह थी कि छत पर रहने वाले किराएदार शामजी को इस बात की तनिक भी भनक नहीं थी और ना ही उस ने कोई आवाज सुनी थी. यह हैरत की बात थी. यह सब देखनेसमझने के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि जो भी हुआ था, घर के अंदर ही हुआ था. इस मामले में बाहर के किसी आदमी का हाथ नहीं था.

क्योंकि मृतक या उस के परिवार की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. पड़ोसियों ने भी किसी को उस के यहां आतेजाते नहीं देखा था. इंसपेक्टर अमनदीप सिंह ने अपने खबरियों को इस परिवार की कुंडली निकलने के लिए कहा.

जल्द ही पुलिस को कई चौंकाने वाली बातें पता चलीं. इस के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने मृतक के छोटे भाई रमेश को थाने बुला कर उस से बड़ी बारीकी से पूछताछ की तो मुकेश की हत्या का कारण समझ में आ गया.

रमेश से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अमनदीप ने पुलिस टीम के साथ संगीता के घर छापा मारा लेकिन तब तक वह और उस का किराएदार शामजी पासवान घर से फरार हो चुके थे.

थानाप्रभारी ने संगीता और शामजी को तलाश करने के लिए एसआई रिचा, एएसआई हरजीत सिंह, हवलदार विजय कुमार, हरविंदर सिंह, अनिल कुमार, बुआ सिंह और सिपाही परमिंदर की टीम को उन की तलाश के लिए लगा दिया.

पुलिस टीम ने सभी संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा लेकिन वह नहीं मिले. फिर एक मुखबिर की सूचना पर इस टीम ने 22 अगस्त, 2018 को संगीता और शामजी पासवान को ढंडारी रेलवे स्टेशन से दबोच लिया.

दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस टीम थाने लौट आई. दोनों से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने मुकेश की हत्या करने का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसी दिन दोनों को अदालत में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया गया. रिमांड में दोनों अभियुक्तों से पूछताछ के दौरान मुकेश की हत्या की जो कहानी सामने आई वह कुछ इस तरह थी—

संगीता बचपन से ही अल्हड़ किस्म की थी. अपने मांबाप की लाडली होने के कारण वह मनमरजी करती थी. मात्र 12 साल की उम्र में उस की शादी मुकेश के साथ कर दी गई. मुकेश बिहार के लक्खीसराय जिले के गांव महिसोनी का रहने वाला था. मुकेश अपने 3 भाइयों में सब से बड़ा था.

मांबाप का नियंत्रण न होने की वजह से संगीता पहले से ही बिगड़ी हुई थी. मुकेश से शादी हो जाने के बाद भी वह नहीं सुधरी. ससुराल में भी उस ने कई लड़कों से संबंध बना लिए. ससुराल वालों ने उसे ऊंचनीच और मानमर्यादा का पाठ पढ़ाया पर संगीता की समझ में किसी की कोई बात नहीं आती थी.

कई साल पहले मुकेश काम की तलाश में लुधियाना आ गया था. लुधियाना में काम सेट होने के बाद मुकेश संगीता को यह सोच कर अपने साथ ले आया कि गांव से दूर एक नए माहौल में शायद वह सुधर जाए. बाद में अपने दोनों भाइयों को भी उस ने लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना आने के बाद मुकेश ने कड़ी मेहनत कर के पैसापैसा बचाया और दुर्गा कालोनी में अपना खुद का मकान बना लिया.

करीब 3 साल पहले मुकेश ने फैक्ट्री की नौकरी छोड़ दी और अपने घर में ही किराने की दुकान खोल ली. अब घर रह कर ही उसे अच्छी आमदनी हो जाती थी. मकान के ऊपर एक कमरा उस ने शामजी पासवान को किराए पर दे रखा था. शामजी मुकेश का दोस्त था. कभी दोनों एक साथ फैक्ट्री में काम किया करते थे.

शामजी बड़ा चतुर था. उस की नजर शुरू से ही संगीता पर थी. मुकेश ने जब साइकिल पार्ट्स फैक्ट्री का काम छोड़ दिया, तब उस की जगह संगीता ने फैक्ट्री में जाना शुरू कर दिया था. संगीता और शामजी दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. यहीं से दोनों में नजदीकियां बढ़ने लगी थीं. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध स्थापित हो गए.

शामजी शादीशुदा था. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं था. उस की पत्नी साधारण और सीधीसादी थी. उसे अपने पति और संगीता के बींच संबंधों का पता नहीं चल पाया था.

एक दिन संगीता के बेटे ने अपनी मां शामजी को एक बिस्तर में देखा तो उस ने यह बात अपने पिता को बता दी. इस के बाद मुकेश सतर्क हो गया. एक दिन उस ने भी अपनी पत्नी को शामजी के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने शामजी को खरीखोटी सुनाई और उस से कमरा खाली करने के लिए कह दिया.

संगीता मुकेश पर हावी रहती थी उस ने पति से झगड़ा करते हुए कह दिया कि शामजी उसी मकान में रहेगा. अगर उसे निकाला गया तो वह भी उसी के साथ चली जाएगी. इस धमकी पर मुकेश डर गया. फलस्वरूप संगीता ने शामजी को कमरा खाली नहीं करने दिया.

इस बात को ले कर घर में हर समय कलह रहने लगी. मुकेश पत्नी से नौकरी छोड़ने को कहता था, जबकि वह नौकरी छोड़ने को तैयार नहीं थी.

मुकेश ने किसी तरह पत्नी को समझा कर साइकिल फैक्ट्री से नौकरी छुड़वा कर, के.एस. मुंजाल धागा फैक्ट्री में लगवा दी. अलग फैक्ट्री में काम करने से संगीता और शामजी की बाहर मुलाकात नहीं हो पाती थी.

इस से संगीता और शामजी दोनों परेशान रहने लगे. अंतत: दोनों ने मुकेश को रास्ते से हटाने की योजना बना ली. योजना बनाने के बाद संगीता ने पति से अपने किए पर माफी मांग ली और वादा किया कि भविष्य में वह शामजी से नहीं मिलेगी.

योजना को अंजाम देने के लिए शामजी ने 2 हथौड़े खरीद लिए थे. इस के बाद दोनों हत्या करने का मौका तलाशते रहे. संगीता के 5 बच्चे थे. वह अकसर घर पर रहते थे, जिन की वजह से उन्हें हत्या करने का मौका नहीं मिल पा रहा था. आखिर 15 अगस्त वाले दिन उन्हें मौका मिल गया.

मुकेश शराब पीने का आदी था. शाम को मुकेश ने अपने छोटे भाई रमेश के साथ शराब पी थी. खाना खा कर रमेश अपने घर चला गया था. संगीता ने पति से झगड़ा किया. संगीता जानती थी कि झगड़े के बाद पति छत पर ही सोएगा. हुआ भी यही.

मुकेश अपने छोटे बेटे के साथ छत पर सो गया. संगीता नीचे आ गई. इस के बाद जब रात गहरा गई तो रात 2 बजे संगीता छत पर पहुंची. शामजी भी अपने कमरे से बाहर निकल आया. बिना कोई अवसर गंवाए संगीता ने अपने पति के पैर कस कर पकड़े और पासवान ने उस के सिर पर हथौड़े के भरपूर वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया.

नशे में धुत होने के कारण उस की चीख तक नहीं निकल सकी. मुकेश की हत्या के बाद शामजी पासवान अपने कमरे में सोने चला गया. जबकि संगीता नीचे कमरे में आ गई. लेकिन उसे सारी रात नींद नहीं आई. सुबह जब बेटी ने छत पर जा कर खून देख कर शोर मचाया. जिस के बाद संगीता ने रोने का ड्रामा करना शुरू कर दिया. पुलिस को पहले से ही संगीता पर शक था. क्योंकि संगीता का रोना महज एक ढोंग दिखाई दे रहा था.

रिमांड अवधि के दौरान पुलिस ने उन दोनों की निशानदेही पर घर के पीछे खाली प्लौट में भरे पानी में फेंका गया हथौड़ा बरामद कर लिया. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद संगीता और शामजी को फिर से अदालत में पेश किया गया. अदालत के आदेश पर दोनों को न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया.

इस पूरे प्रकरण में दया की पात्र शामजी की पत्नी थी. वह इतनी साधारण और भोली थी कि उसे अभी तक यह भी विश्वास नहीं हो रहा था कि उस के पति ने मकान मालिक की हत्या कर दी है. वह मृतक मुकेश के पांचों बच्चों का ध्यान रखे हुए है और सभी को सुबहशाम खाना बना कर खिला रही है.     ?

-पुलिस सूत्रों पर आधारित

वासना की कब्र पर : पत्नी ने क्यों की बेवफाई – भाग 2

इस के बाद थाना प्रभारी रामऔतार ने मृतक मनीष के पिता कल्लू की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत राजेश कुरील के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. पुलिस जांच में इस दोहरे हत्याकांड के पीछे एक ऐसी औरत की कहानी प्रकाश में आई, जिस ने शरीर सुख के लिए अपना ही घर उजाड़ दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर से करीब 30 किलोमीटर दूर नर्वल थाने के अंतर्गत एक गांव है रायपुर. बाबूराम कुरील अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी रन्नो के अलावा 2 बेटियां अनीता, सुनीता तथा एक बेटा अरविंद था.

बाबूराम मनरेगा में मजदूरी करता था. उसी से उस के परिवार का भरणपोषण होता था. उस ने बड़ी बेटी अनीता का विवाह कर दिया था.

अनीता से 3 साल छोटी सुनीता थी. वह बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. सुनीता के युवा होते ही बाबूराम उस की शादी के लिए चिंतित रहने लगा. दौड़धूप और रिश्ते नातेदारो के सहयोग से उसे राजेश पसंद आ गया.

राजेश के पिता मौजीलाल कुरील नरौरा गांव के रहने वाले थे. परिवार में पत्नी चंद्रावती के अलावा 2 बेटियां आशा, बरखा तथा बेटा राजेश था. मौजीलाल के पास 5 बीघा खेती की जमीन थी. राजेश पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था. राजेश, ज्यादा पढ़ालिखा तो नहीं था, लेकिन शरीर से हष्टपुष्ट था.

मौजीलाल अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. राजेश अभी कुंवारा था. बाबूराम कुरील जब उस के पास सुनीता का रिश्ता ले कर आया तो मौजीलाल ने स्वीकार कर लिया.

अंतत: 7 जून, 2008 को राजेश के साथ सुनीता का विवाह हो गया. कुछ ही दिनों में सुनीता ससुराल के माहौल में रम गई. ससुराल में उसे सभी ने खूब प्यार दिया. शादी के एक साल बाद ही सुनीता एक बेटे की मां बन गई.

बेटे के जन्म के बाद ससुराल में सुनीता का मान और भी बढ़ गया था. सास चंद्रावती तथा ससुर मौजीलाल फूले नहीं समा रहे थे. इसी हंसीखुशी के साथ सुनीता और राजेश के गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी. बाद में सुनीता एक बेटी और एक बेटे की मां बनी.

राजेश एक मामूली किसान था. 3 बच्चों के जन्म के बाद उस के परिवार का खर्च बढ़ गया था. इसलिए वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा. वह सुबह को पिता के साथ खेत पर चला जाता और शाम ढले घर लौटता. उस समय राजेश इतना थका होता था कि खाना खाने के बाद उसे केवल बिस्तर ही सूझता था.

दूसरी ओर सुनीता की हसरतें जवान थीं. 3 बच्चों को जन्म देने के बावजूद उस का जिस्म कसा हुआ था. हर रात वह पति का प्यार चाहती थी, लेकिन राजेश उस की भावनाओं को नहीं समझता था.

जैसेतैसे दिन बीत रहे थे. सुनीता तन की शांति के लिए घर के बाहर ताकझांक करने लगी थी. दरअसल सुनीता का दिन तो कामकाज और बच्चों के कोलाहल में कट जाता था लेकिन रात काटे नहीं कटती थी. अंतत: उस की नजरें अपने से 10 साल छोटे कुंवारे मनीष पर टिक गईं.

मनीष के पिता कल्लू कुरील, फतेहपुर जनपद के औंग थाने के गांव गलाथा में रहते थे. उस के परिवार में पत्नी रामप्यारी के अलावा 5 बेटे, 2 बेटियां थीं. कल्लू के पास खेती की 8 बीघा जमीन थी जिस में अच्छी पैदावार होती थी. खेती के अलावा वह गल्ले का करोबार भी करता था. इस व्यापार में उस के बेटे भी उस का हाथ बंटाते थे. कुल मिला कर कल्लू की आर्थिक स्थिति मजबूत थी.

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कल्लू की संतानों में मनीष सब से छोटा था. मनीष का मन न तो पढ़ाई में लगा और न ही खेती के काम में. आठवीं पास करने के बाद उस ने ड्राइवरी सीख ली और अपने दोस्त की टैंपों चलाने लगा. जब हाथ साफ हो गया तब उस ने पिता पर दबाव बना कर वैन खरीद ली और उसे चलाने लगा. वह कानपुर फतेहपुर के बीच वैन से सवारियां ढोने लगा. इस काम में उसे अच्छी कमाई होती थी.

चूंकि मनीष की मां रामप्यारी राजेश की बुआ थी, इस नाते राजेश और मनीष फुफेरे भाई थे. सुनीता जब ब्याह कर ससुराल आई थी तब मनीष केवल 12 साल का था. लेकिन अब वह 22 साल का गबरू जवान हो गया था.

मनीष का सुनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों के बीच देवरभाभी का रिश्ता था इसलिए उन के बीच हंसीमजाक भी होती रहती थी. सुनीता ने मनीष के बारे में सोचा तो वह उसे अच्छा लगा. अत: उस का रुझान मनीष की ओर हो गया.

अब मनीष जब भी घर आता सुनीता जानबूझ कर अपने सुघड अंगों का प्रदर्शन करती. कुंआरा मनीष उन्हें ललचाई नजरों से देखता. सुनीता समझ गई कि मनीष पर उस के रूप का जादू चल गया है.

उन्हीं दिनों एक रोज मनीष आया तो सुनीता से नजरें मिलते ही वह मुसकराया, सुनीता के होंठों पर भी मुसकान खिल गई. कुछ देर बाद सुनीता चाय बना कर लाई और दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. उस समय घर में दोनों अकेले थे. चाय पीते समय मनीष सुनीता को बड़े गौर से देख रहा था. सुनीता ने उसे गहरी नजरों से देखा, ‘‘मनीष तुम मुझे इतना घूर कर क्यों देख रहे हो?’’

‘‘भाभी तुम हो ही इतनी खूबसूरत.’’ मनीष ने कहा तो सुनीता मुसकराई, ‘‘मनीष, मैं कुंवारी लड़की नहीं हूं, शादीशुदा और 3 बच्चों की मां हूं.’’

‘‘जानता हूं भाभी. पर तुम मेरे लिए कुंवारी जैसी ही हो.’’ कहते हुए मनीष ने सुनीता को अपनी बांहों में जकड़ लिया और चुंबनों की झड़ी लगा दी.

सुनीता ने नारी सुलभ नखरा किया, ‘‘मनीष छोड़ो मुझे. यह पाप है.’’

‘‘कोई पाप नहीं है भाभी. हम दोनों की जरूरत एक ही है. पापपुण्य को भूल जाओ.’’

सुनीता तो पहले से ही मनीष का साथ चाहती थी. उस का विरोध केवल बनावटी था. लिहाजा सुनीता ने भी मनीष के गले में बाहें डाल दीं. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं. उस दिन के बाद देवरभाभी की पापलीला शुरू हो गई.

मनीष को जवान तथा मदमस्त कर देने वाली सुनीता का साथ मिला तो वह उस का दीवाना बन गया. दूसरी तरफ सुनीता भी कुंवारे मनीष से खुश थी. पति से ऐसा सुख उसे कभी नहीं मिला था. अत: सुनीता ने मनीष को ही अपना सबकुछ मान लिया.

बेलगाम बहू : अवैध संबंधों ने बरबाद कर दिया परिवार

कुछ आहट हुई तो दलजीत सिंह बिस्तर पर उठ कर बैठ गए. बैड पर बैठेबैठे ही उन्होंने अपने चारों ओर नजर दौड़ा कर देखा, वहां कोई नहीं था. अलबत्ता बाहर से कुत्तों के भौंकने की आवाजें लगातार आ रही थीं. वह उठ कर कमरे से बाहर आए तो उन्होंने एक परछाईं को अपनी बहू मनिंदर कौर के कमरे से बाहर निकल कर दीवार फांद कर भागते हुए देखा.

‘कौन था वह? क्या कोई चोर या कोई दुश्मन…’ मन ही मन दलजीत सिंह ने अपने आप से सवाल किया. फिर असमंजस की स्थिति में वह बहू के कमरे के पास पहुंचे तो कमरे का दरवाजा खुला हुआ था.
उन्होंने मनिंदर को जगा कर डांटते हुए कहा, ‘‘यह दरवाजा खुला छोड़ कर क्यों सो रही है. जानती है कोठी में कोई घुस आया था?’’

‘‘गलती हो गई पापाजी, बच्चों को सुलाते हुए न जाने कब मेरी भी आंख लग गई. आइंदा मैं ध्यान रखूंगी.’’ मनिंदर ने अपने ससुर से कहा. बहू का जवाब सुन दलजीत सिंह संतुष्ट हो गए और अपने कमरे में जा कर दोबारा सो गए.

दलजीत सिंह मूलत: जिला टांडा के गांव जग्गोचक के मूल निवासी थे. 65 वर्षीय दलजीत सिंह करीब 12 साल पहले सेना से रिटायर हुए थे. खुद सेना में थे, इसलिए उन्होंने अपने बेटे ओंकार सिंह को भी सेना में भरती करवा दिया था. इन दिनों ओंकार सिंह अपनी रेजीमेंट के साथ श्रीनगर में तैनात था.
दलजीत सिंह की पत्नी का कई साल पहले निधन हो चुका था. बेटे को सेना में भरती करवाने के बाद दलजीत सिंह ने 7 साल पहले उस का विवाह मनिंदर कौर के साथ कर दिया था. ओंकार और मनिंदर कौर के 2 बच्चे हुए. इन की बड़ी बेटी जैसमिन 5 साल की हो चुकी थी.

दलजीत सिंह इस से पहले गांव बहरामपुर में रहते थे. वहां उन की कोठी बनी हुई है, लेकिन ओंकार की शादी के बाद मनिंदर के बारबार कहने पर उन्होंने गुरदासपुर के थाना तिब्बड़ के अंतर्गत आने वाले गांव कोठे घराला बाइपास स्थित कालोनी में एक और कोठी बनवा ली थी. इस कोठी में उन्होंने 2 साल पहले ही शिफ्ट किया था.

दलजीत सिंह का परिवार खातापीता परिवार था. उन के पास खेती की भी जमीन थी. रिटायरमेंट के बाद उन्हें अच्छीखासी पेंशन भी मिलती थी. ओंकार का वेतन भी अच्छा था.

घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. उन के परिवार की दिनचर्या भी सामान्य थी, दलजीत सिंह का अधिकांश समय गुरुद्वारे में या घर पर वाहेगुरु का नाम जपते गुजरता था. बहू मनिंदर कौर सुबहसुबह घर का काम निपटा कर दिन भर बच्चों के साथ लगी रहती थी.

मनिंदर कौर के पास वैसे तो किसी चीज की कमी नहीं थी, पर लंबे समय तक पति से दूर रहने की वजह से उस की रातें तनहाई में गुजरती थीं. इसी दौरान उस के पैर बहक गए. लगभग 2 साल पहले उस के संबंध एक 18 वर्षीय युवक राहुल उर्फ ननु के साथ बन गए थे. दूर के रिश्ते में मनिंदर ननु की मामी लगती थी.
ननु बहरामपुर की मंडी कोहलू वाली निवासी रमन शर्मा का बेटा था. रमन शर्मा की मौत के बाद उस की पत्नी स्नेहलता ने ननु को अपने भाई से गोद लिया था. स्नेहलता पंजाब पुलिस में सबइंसपेक्टर है और इन दिनों थाना मुकेरिया में तैनात है.

मां के ड्यूटी पर चले जाने के बाद ननु अकेला रहता था और इसी कारण वह छोटी उम्र से ही गलत संगत में पड़ गया था. जिस समय उस के मनिंदर कौर के साथ अवैध संबंध बने थे, उस वक्त उस की उम्र केवल 16 साल थी.

बहरहाल, मनिंदर और ननु के बीच संबंध बिना किसी रोकटोक के चलते रहे. उन के संबंधों की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी. इस की वजह शायद यह थी कि दोनों के बीच मामीभांजे का रिश्ता था और दोनों की उम्र में भी खासा अंतर था.

ननु का दलजीत के घर काफी आनाजाना था. दलजीत को कभी इस बात का संदेह नहीं हुआ कि मामीभांजे के रिश्ते की आड़ में उन के घर क्या खेल चल रहा है. दलजीत सिंह को बहरामपुर वाली कोठी बदलने के लिए भी मनिंदर ने ही मजबूर किया था.

दरअसल, उस इलाके के लोगों को मनिंदर और ननु के अवैध रिश्तों का पता चल गया था. इसीलिए अपने ससुर और पति से जिद कर के मनिंदर ने वह कोठी बदलने के लिए दबाव डाला था.
दूसरी कोठी नई आबादी में थी. यहां दूरदूर आबादी होने के कारण उसे कोई रोकटोक नहीं थी. धीरेधीरे मनिंदर निडर होती चली गई. अब उस ने अपने ससुर की मौजूदगी में ही अपना खेल खेलना शुरू कर दिया था. उन की मौजूदगी में वह अपने प्रेमी ननु के साथ दूसरे कमरे में बंद हो जाया करती थी.

एक दिन दलजीत को अहसास हुआ कि मनिंदर और ननु के बीच मामीभांजे के रिश्ते के अलावा कुछ और भी है. इस के बाद उन्होंने दोनों पर नजर रखनी शुरू कर दी. इस का नतीजा यह हुआ कि जल्द ही उन के सामने दोनों के रिश्तों की हकीकत खुल गई. उन्होंने एक दिन मनिंदर और ननु को आपत्तिजनक हालत में देख लिया. उन्हें गुस्सा तो बहुत आया. ज्यादा शोरशराबा करने से उन की बदनामी ही होनी थी.

लिहाजा उन्होंने बहू को फटकार लगाने के साथ ननु को भी हिदायत दे दी कि वह उन के यहां न आए. उन्होंने ननु का अपने घर आनाजाना बंद करवा दिया था. दलजीत ने इस बात का जिक्र अपने बेटे ओंकार से भी किया था.

पत्नी की इस हरकत पर ओंकार को बहुत गुस्सा आया. वह छुट्टी ले कर घर आ गया और मनिंदर को प्यार से समझाते हुए कहा, ‘‘मनिंदर, ऐसी बातें तुम्हें शोभा नहीं देतीं. तुम एक अच्छे परिवार की बेटी और बहू हो. अगर यह बात घर से बाहर जाएगी तो समझ सकती हो कितनी बदनामी होगी.’’
मनिंदर ने भी भविष्य में ऐसी कोई गलती न करने का वादा किया. पर पति के नौकरी पर लौटते ही वह सब कुछ भूल गई. उस ने फिर से ननु से मिलना शुरू कर दिया.

बात घटना से करीब डेढ़ महीने पहले की है. दलजीत सिंह ने ननु का अपने घर आना एकदम से बंद करवा दिया था. इतना ही नहीं, वह दिन भर घर पर रह कर खुद ही पहरेदारी करने लगे थे. इस बात से गुस्साए ननु ने एक रात दलजीत के घर आ कर खिड़कियों और गाड़ी पर पथराव किया, जिस से खिड़कियों और गाड़ी के शीशे टूट गए.

दलजीत सिंह ने राहुल उर्फ ननु के खिलाफ थाना तिब्बड़ में रिपोर्ट दर्ज करवाई. दूसरी तरफ मनिंदर ने ननु को घर आने की खुली छूट दे दी. यानी वह ससुर का विरोध करने पर उतर आई. ननु मनिंदर के पास बेरोकटोक जाने लगा. इस बीच ओंकार सिंह छुट्टी पर घर आया था. उस के आने के बाद ननु ने मनिंदर के पास आना बंद कर दिया था.

छुट्टियां पूरी कर के ओंकार 15 जून, 2018 को वापस अपनी ड्यूटी पर चला गया तो मनिंदर ने ननु को फोन कर अपने घर बुला लिया. जिस वक्त ननु वहां पहुंचा, उस समय दलजीत घर पर नहीं थे. जब वह वापस घर आए तो उन्हें ननु के आने का पता चला. पर वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे. इस के बाद ननु ने मनिंदर के साथ उसी के कमरे में रहना शुरू कर दिया. यह बात दलजीत को बड़ी नागवार गुजरी. उन्होंने जब इस बेशर्मी का विरोध किया तो मनिंदर ने ससुर से लड़नाझगड़ना शुरू कर दिया. बेबसी की हालत में पूर्व फौजी दलजीत सिंह ने अपने बेटे ओंकार को फोन कर के पूरी बात बताई. फोन कर के उन्होंने यह बात अपने रिश्तेदारों और मनिंदर के मायके वालों को भी बता दी.

16 जून की रात ननु को ले कर मनिंदर और दलजीत के बीच काफी झगड़ा हुआ, जो देर रात तक चलता रहा. 17 जून, 2018 की सुबह दलजीत सिंह ने गुरदासपुर के गांव किला नाथूसिंह के रहने वाले अपने साले तरसेम सिंह के बेटे किरपाल सिंह को फोन कर के कहा कि उन की बहू मनिंदर उन के साथ लड़ाईझगड़ा कर रही है. वह आ कर उसे समझाए.

उस समय किरपाल अपने खेतों में पानी लगा रहा था. अपने फूफा का फोन सुनने के बाद उस ने कहा, ‘‘फूफाजी, आप चिंता न करें. थोड़ा सा काम बचा है, उसे निपटा कर मैं जल्द पहुंच जाऊंगा.’’
कहने को तो किरपाल ने अपने फूफा से ऐसा कह दिया था पर वह अपने काम में ऐसा व्यस्त हुआ कि वह फूफा के फोन वाली बात भूल गया.

17 जून की शाम को करीब 4 बजे ओंकार सिंह ने अपने पिता दलजीत सिंह को फोन किया. फोन की घंटी बजती रही, पर उन्होंने फोन नहीं उठाया. ओंकार ने पिता को कई बार फोन किया, हर बार घंटी बजती रही. इस के बाद उस ने पत्नी को फोन किया. वह भी फोन नहीं उठा रही थी.

वह परेशान हो गया कि ऐसी क्या बात है जो दोनों में से कोई भी फोन नहीं उठा रहा. उस की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी.

काफी देर परेशान होने के बाद ओंकार ने अपने ममेरे भाई किरपाल सिंह को फोन कर के बताया, ‘‘किरपाल, तुम घर जा कर देखो, पापा और मनिंदर कहां हैं. उन दोनों में से कोई भी फोन नहीं उठा रहा.’’
किरपाल सिंह ने उसी समय ओंकार को बताया कि सुबह उस के पास दलजीत फूफा का फोन आया था. उन्होंने मनिंदर के साथ झगड़ा होने की बात बताई थी. बहरहाल, किरपाल ने ओंकार को आश्वासन दिया कि वह अभी जा कर देखता है और फूफाजी से उस की बात करवाता है.

ओंकार सिंह को बच्चों और पिता की चिंता थी. किरपाल के आश्वासन देने के बाद भी वह संतुष्ट नहीं हुआ. उस ने अपने घर के पास बने गुर्जर के डेरे पर फोन कर कहा कि वह उन के घर जा कर देखें कि वहां क्या हो रहा है.

गुर्जर जिस समय दलजीत के घर पहुंचा, उसी समय किरपाल भी वहां पहुंच चुका था. किरपाल और गुर्जर ने दलजीत के कमरे में जा कर देखा तो सामने का दृश्य देख उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. सामने बैड पर दलजीत सिंह का खून से लथपथ शव पड़ा हुआ था.

उन के सिर और दूसरी जगहों पर चोटें लगी थीं, जिन में से खून रिस कर बिस्तर पर जम गया था. पास वाले कमरे में मनिंदर और उस के बच्चे बैठे थे. किरपाल ने मनिंदर से इस बारे में पूछा तो उस ने यह कह कर बात खत्म कर दी थी कि उसे कुछ पता नहीं है.

यह बड़ी हैरानी की बात थी कि घर में इतना बड़ा कांड हो गया और मनिंदर को कुछ पता ही नहीं चला. बहरहाल, किरपाल ने सब से पहले घटना की सूचना थाना तिब्बड़ पुलिस को दी और बाद में अपने भाई ओंकार सिंह को सूचित कर दिया.

सूचना मिलते ही थाना तिब्बड़ के थानाप्रभारी राजकुमार शर्मा, एसआई अमरीक चांद, एएसआई सरबजीत सिंह, मसीह, हवलदार विजय सिंह को साथ ले कर मौके पर पहुंच गए. दलजीत की लाश अपने कब्जे में ले कर उन्होंने काररवाई शुरू कर दी.

घटना का मुआयना करने के बाद थानाप्रभारी को लगा कि यह काम घर के किसी सदस्य या जानने वाले का हो सकता है. क्योंकि हत्या का मकसद केवल दलजीत की हत्या करना था. लूटपाट या अन्य किसी तरह के वहां कोई सबूत नहीं थे.

थानाप्रभारी ने डौग स्क्वायड और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट को भी घटनास्थल पर बुला लिया था. घटना की खबर मिलते ही एसपी हरचरण सिंह भुल्लर, एसपी (देहात) विपिन चौधरी और डीएसपी (स्पैशल ब्रांच) गुरबंस सिंह बैंस भी मौकामुआयना करने वहां पहुंच गए थे. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर दलजीत का शव पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भेज दिया.

मनिंदर कुछ बताने को तैयार नहीं थी. तब थानाप्रभारी ने वहां मौजूद मनिंदर की 5 वर्षीय बेटी जैसमिन को अपने विश्वास में ले कर पूछताछ की तो उस ने सच बताते हुए कहा कि मम्मी और ननु अंकल ने ही दादा को मारा है.

थानाप्रभारी के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने उसी समय मनिंदर से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना अपराध स्वीकार करते हुए बताया कि झगड़े के बाद उस ने और उस के प्रेमी ननु ने मिल कर दलजीत सिंह की हत्या की थी. उस ने बताया कि उस ने अपने ससुर से झगड़े के बाद उन के सिर पर लोहे की रौड से हमला किया था.

चश्मदीद गवाह जैसमिन के बयान और मनिंदर द्वारा अपना अपराध स्वीकार करने के बाद थानाप्रभारी ने भादंवि की धारा 302/34 के तहत मनिंदर और राहुल उर्फ ननु के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर मनिंदर को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस ने उसे अदालत में पेश कर 2 दिन के पुलिस रिमांड पर लिया. साथ ही फरार ननु की तलाश में छापेमारी शुरू कर दी. ननु को पुलिस ने 20 जून, 2018 को गिरफ्तार कर लिया. उसे भी अदालत में पेश कर के रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान पूछताछ में ननु ने बताया कि मनिंदर के साथ उस के अवैध संबंध पिछले काफी समय से थे और मृतक दलजीत सिंह इस का विरोध करते थे. इतना ही नहीं वह उसे और मनिंदर को बातबात पर जलील कर के धमकाते भी थे.

ननु ने बताया कि 17 जून को जब वह मनिंदर के घर आया तो दलजीत सिंह ने विरोध करना शुरू कर दिया. वह उसे देखते ही गालीगलौज करने लगे. इसी बात को ले कर मनिंदर और दलजीत का आपस में झगड़ा होने लगा, जिस के बाद आरोपी ने मनिंदर के साथ मिल कर दलजीत सिंह के ऊपर तेज धार हथियार और लोहे की रौड से हमला कर के उन्हें मौत के घाट उतार दिया.

रिमांड के दौरान पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर उन के घर से लोहे की रौड भी बरामद कर ली, जिस से उन्होंने दलजीत की हत्या की थी. पुलिस काररवाई पूरी कर के थानाप्रभारी राजकुमार ने दोनों आरोपियों को पुन: अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. कथा लिखने तक दोनों आरोपी जेल में बंद थे.
– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार में जहर का इंजेक्शन – भाग 2

डीसीपी जतिन नरवाल उस समय थाने में ही मौजूद थे. बौबी की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने एसीपी आर.पी. गौतम के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में थानाप्रभारी रमेश दहिया, अतिरिक्त थानाप्रभारी मनमोहन कुमार, एसआई प्रकाश, आशीष, एएसआई निक्काराम, हैडकांस्टेबल विजय आदि को शामिल किया.

रवि कुमार का साला बौबी द्वारका की पालम कालोनी के राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहता था. पुलिस टीम उस के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे पकड़ कर थाने ले आई. बौबी से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘सर, मेरी बहन सविता तो अपनी ससुराल में खुश है. उस के पति रवि कुमार बेहद सज्जन व्यक्ति हैं, भला मैं उन के बारे में इस तरह क्यों सोचूंगा? यह जो हमला करने वाला आदमी है, इसे तो मैं जानता तक नहीं.’’

बौबी को जब पता चला कि उस के बहनोई अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं तो वह बेचैन हो उठा. उस ने फोन द्वारा यह जानकारी बहन सविता को दी. बौबी की बातों से पुलिस को लगा कि प्रेम सिंह उसे झूठा फंसाने की कोशिश कर रहा है तो पुलिस ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी.

बौबी घर न जा कर सीधे सेंट स्टीफंस अस्पताल पहुंचा. लेकिन उस के अस्पताल पहुंचने से पहले ही रात करीब ढाई बजे उस के बहनोई रवि कुमार की मौत हो गई थी. रवि की मौत की खबर पा कर पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई और शव को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया.

पुलिस ने मामले में हत्या की धारा जोड़ कर अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2017 को प्रेम सिंह को तीस हजारी कोर्ट में ड्यूटी एमएम के समक्ष पेश कर सबूत जुटाने के लिए एक दिन के रिमांड पर ले लिया. चूंकि डा. प्रेम सिंह बौबी को इस मामले में झूठा फंसाना चाहता था, इस से पुलिस समझ गई कि यह आदमी बेहद शातिर है.

रिमांड अवधि के दौरान उस से की गई पूछताछ में उस ने जो सच्चाई बताई, उस के अनुसार, उस ने यह काम जिम ट्रेनर अनीश यादव के कहने पर किया था. अनीश ने इस के एवज में उसे डेढ़ लाख रुपए दिए थे.

‘‘यह अनीश यादव कौन है और वह कहां रहता है?’’ मनमोहन कुमार ने पूछा.

‘‘सर, अनीश रवि कुमार की पत्नी सविता का प्रेमी है और वह पालम कालोनी की राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहता है.’’ प्रेम सिंह ने बताया.

प्रेम सिंह को ले कर पुलिस टीम जिम ट्रेनर अनीश यादव के घर पहुंची तो वह भी घर पर ही मिल गया. उसे थाने ला कर पूछताछ की गई तो रवि कुमार को अनूठे तरीके से मारने की जो कहानी सामने आई, वह प्रेमप्रसंग की चाशनी में सराबोर थी—

सविता दक्षिणीपश्चिमी दिल्ली की पालम कालोनी के राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में रहने वाले सुरेशचंद की बेटी थी. सुरेशचंद उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़ के रहने वाले थे. 15-20 साल पहले वह दिल्ली आ गए थे और औटो चलाने लगे थे. बेटी सविता के अलावा उन का एक ही बेटा था, जिस का नाम था बौबी.

छोटा परिवार था. औटो चलाने से जो कमाई होती थी, उस से परिवार का गुजरबसर बड़े आराम से हो जाता था. इसलिए उन्होंने अपने दोनों बच्चों को ठीक से पढ़ायालिखाया. पालम कालोनी में ही नवीन रहता था, जो कालेज में सविता के साथ पढ़ता था. साथ पढ़ने की वजह से दोनों में दोस्ती हो गई थी, जो बाद में प्यार में बदल गई.

राजनगर एक्सटेंशन पार्ट-2 में ही नवीन का दोस्त अनीश रहता था. पढ़ाई के साथसाथ उसे बौडी बनाने का शौक था. इस के लिए वह घंटों जिम में एक्सरसाइज करता था. नवीन ने उसे अपनी प्रेमिका सविता के बारे में सब कुछ बता दिया था. यही नहीं, उस ने सविता से उसे मिलवा भी दिया था. पहली मुलाकात में ही सविता अनीश यादव से प्रभावित हो उठी थी. किसी तरह सविता को अनीश का फोन नंबर मिल गया तो वह उस से फोन पर बातें करने लगी.

अनीश सविता के बात करने का आशय समझ गया. दरअसल सविता का झुकाव नवीन के बजाए अनीश की तरफ हो गया था. दोनों एकदूसरे को प्यार करने लगे थे. नवीन को जब इस बात का पता चला तो उसे दोस्त की बेवफाई का बड़ा दुख हुआ.

अनीश ने एक तरह से नवीन की पीठ में छुरा घोंपा था. इसलिए नवीन ने उस से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर लिए. उधर अनीश और सविता एकदूसरे को जीजान से चाहने लगे थे. वे प्यार के उस मुकाम पर पहुंच गए थे, जहां से वापस आना आसान नहीं होता. उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया था. लेकिन वे शादी कोर्ट में करने के बजाए घर वालों की सहमति से सामाजिक रीतिरिवाज से करना चाहते थे.

दोनों ने ही यह बात अपनेअपने घर वालों को कही तो अनीश ने तो किसी तरह अपने घर वालों को राजी कर लिया, पर सविता के घर वाले राजी नहीं हुए. उस की मां तो राजी हो गई थी, पर पिता किसी भी तरह तैयार नहीं हुए. इस की वजह यह थी कि दोनों अलगअलग जाति के थे. सुरेश बेटी सविता की शादी अपनी ही जाति के लड़के से करना चाहते थे.

पिता का यह फरमान सविता को बहुत अखरा. सुरेशचंद्र कैंसर पीडि़त थे. डाक्टरों ने कह दिया था कि वह कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. इसलिए सविता जिद कर के पिता के दिल को दुखाना नहीं चाहती थी. यह बात उस ने प्रेमी अनीश को बताई तो अरमानों पर पानी फिरने का उसे भी दुख हुआ. सविता ने घर वालों की मरजी के खिलाफ शादी करने से इनकार कर दिया.

सविता का मानना था कि उस के पिता ज्यादा दिनों के मेहमान तो हैं नहीं, इसलिए उन के गुजर जाने के बाद वह अनीश से शादी कर लेगी. लेकिन अनीश इंतजार करने को तैयार नहीं था. लिहाजा उस ने 29 फरवरी, 2016 को दिल्ली के संगम विहार की एक लड़की से शादी कर ली.

सविता को जब पता चला कि अनीश ने शादी कर ली है तो उसे बड़ा दुख हुआ. उस ने इस बात की शिकायत अनीश से की तो उस ने  कह दिया कि यह शादी घर वालों ने जबरदस्ती की है. इस पर सविता ने मन ही मन ठान लिया कि वह अनीश को किसी और लड़की का नहीं होने देगी.

दूल्हेभाई का रंगीन ख्वाब – भाग 2

आसिफ ने ग्राउंड फ्लोर पर अपनी वर्कशौप और गोदाम बनाया जबकि पहले दूसरे व तीसरे फ्लोर पर वह खुद रहने लगा. परिवार तेजी से बढ़ रहा था. डेढ़ साल पहले समरीन ने एक और बेटे को जन्म दिया. मेहमानों का भी घर में आवागमन रहता था, इसलिए आसिफ ने तीसरे फ्लोर को आनेजाने वालों के ठहरने और बच्चों की पढ़ाईलिखाई के लिए रखा हुआ था.

आसिफ का इकलौता साला जुनैद अपने जीजा के पास रह कर काम सीख रहा था. हालांकि आसिफ की ससुराल उस के घर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थी, इसलिए जुनैद कभी अपने घर चला जाता था तो कभी अपनी बहन के घर पर ही रुक जाता था.

आसिफ और उस की ससुराल वाले एकदृसरे के यहां रोज आतेजाते थे और एकदृसरे की कुशलक्षेम लेते रहते थे. लोनी में आने के बाद समरीन को यह फायदा हो गया था कि वह अपने परिवार के आ गई थी. हर दुखसुख में मातापिता और भाईबहन उस के साथ खड़े नजदीक थे.

आसिफ की जिंदगी मजे में गुजर रही थी कि अचानक 11 जनवरी की रात जब बदमाशों ने उस के घर में घुस कर लूटपाट की तो इस हादसे में बीवी समरीन की मौत के बाद उस की दुनिया ही उजड़ गई.

विवेचना अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने आसिफ से पूछताछ के बाद जब उस के परिवार की पूरी कुंडली खंगाली तो उन्होंने अपना ध्यान घटनाक्रम की कडि़यों को जोड़ने पर केंद्रित कर दिया.

दरअसल राजेंद्र पाल ने कई बार घटनास्थल का निरीक्षण किया तो पाया कि 50 गज के तीनमंजिला मकान में एंट्री का एक ही रास्ता है, जो भूतल पर बने मुख्यद्वार के रूप में है. इसी फ्लोर पर आसिफ की वर्कशाप है. आसिफ का मकान चारों तरफ से ऊपर व नीचे से पूर्णत: बंद था, कहीं से भी घर में प्रवेश करने का कोई और रास्ता नहीं था.

बाहरी व्यक्ति का आने व जाने का अन्य कोई रास्ता नहीं था. मकान में बाहरी बदमाशों के घुसने के लिए कोई दरवाजा खिड़की या लौक टूटा नहीं नहीं मिला. मतलब कि दरवाजे से फ्रैंडली एंट्री हुई थी.

सीसीटीवी की फुटेज से यह बात तो साफ हो गई कि वारदात को अंजाम देने के लिए घर में 3 बदमाश घुसे थे. आसिफ ने भी अपने बयान में यह बात कही थी कि वारदात में शामिल बदमाशों की संख्या 3 से 4 थी, लेकिन उस ने देखा 3 को ही था.

बस इतना समझना बाकी था कि बदमाशों को घर में आने के लिए घर के ही किसी व्यक्ति ने दरवाजा खोला था या परिवार के लोग गलती से दरवाजा बंद करना भूल गए थे. हालांकि आसिफ ने पुलिस को दिए बयान में कहा था कि घर के मुख्यद्वार को अंदर से उसी ने बंद किया था. दूसरी अहम गुत्थी यह थी कि सीसीटीवी कैमरे में आसिफ के घर की तरफ आने वाले लोग 9 बजे के करीब आए थे और रात को पौने 4 बजे वापस जाते दिखे थे.

पीड़ितों के मुताबिक वारदात करने का वक्त 1 से 3 बजे के बीच का था. अब सवाल यह था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाश करीब 4-5 घंटे तक कहां छिपे रहे. अगर वे घर के बाहर होते तो सीसीटीवी कैमरे में या लोगों की नजर में जरूर आते. अगर वे घर के अंदर आ कर छिप गए थे तो परिवार में किसी को इस की भनक क्यों नहीं लगी.

13 जनवरी को लोनी बौर्डर थाने के प्रभारी निरीक्षक शैलेंद्र प्रताप सिंह छुट्टी से वापस लौट आए. उन्हें थाना क्षेत्र में हुई इस वारदात की सूचना मिली तो उन्होंने जांच अधिकारी एसएसआई राजेंद्र पाल सिंह को बुला कर मामले की विस्तार से जानकारी ली. जब राजेंद्र पाल सिंह ने एसएचओ को अपने शक के बारे में बताया तो उन्होंने आसिफ को हिरासत में ले कर पूछताछ करने के लिए कहा.

आसिफ से की पूछताछ

अपने सीनियर अधिकारी की हरी झंडी मिलते ही राजेंद्र पाल सिंह ने पूछताछ के बहाने आसिफ को थाने बुला लिया. इस दौरान उन्हें मुखबिरों की मदद से एक बात पता चल चुकी थी कि आसिफ रंगीनमिजाज है. अपनी पत्नी से उस का अकसर झगड़ा होता था. दोनों के बीच विवाद का कारण कोई महिला थी.

हालांकि जांच अधिकारी ने समरीन के पिता तनसीन को बुला कर इस जानकारी की पुष्टि करनी चाही, लेकिन वे कोई ठोस जानकारी नहीं दे सके. उन्होंने इतना जरूर बताया था कि आसिफ और समरीन में पिछले कुछ महीनों से अकसर झगड़ा और मारपीट होती थी. लेकिन वे बेटी के घर में ज्यादा दखल देना नहीं चाहते थे, क्योंकि यह तो घरघर में होता है.

उन्होंने कालोनी में 3 मकान छोड़ कर एक घर के बाहर लगे सीसीटीवी कैमरे की उस रात की फुटेज निकलवा ली थी, जिस से पता चला कि 11 जनवरी की रात 9 बजे 3 लोग आसिफ के मकान तक गए थे. वही लोग 12 जनवरी की सुबह करीब 3.35 बजे मकान से निकल कर गली से बाहर जाते हुए दिखे.

पुलिस ने आसपड़ोस में रहने वाले लोगों से पूछा कि क्या उस रात किसी के घर कोई मेहमान तो नहीं आए थे. पता चला कि आसपड़ोस के किसी भी मकान में उस रात कोई अतिथि नहीं आया था.

चूंकि आसिफ का मकान गली के अंतिम सिरे पर था और गली आगे से बंद भी थी, इसीलिए जांच अधिकारी को शक हुआ कि कहीं ऐसा तो नहीं कि इस परिवार का ही कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो और उस ने ही बदमाशों के लिए दरवाजे खोले हों.

आसपड़ोस के लोगों ने पूछताछ में इस बात की पुष्टि जरूर कर दी थी कि उन्होंने उस रात करीब 9 बजे गली में 3 अनजान लोगों को जाते देखा था. लेकिन वे लोग किस के यहां जा रहे हैं, इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.

कुछ लोगों ने साढ़े 8 बजे के करीब आसिफ को अपने घर के मुख्यद्वार के बरामदे में बैठ कर काम करते हुए देखा था. ये सारी बातें इस बात की तरफ इशारा कर रही थीं कि हो न हो घर का कोई सदस्य बदमाशों से मिला हुआ हो. चूंकि आसिफ की पत्नी समरीन की हत्या हो चुकी थी, इसलिए उस पर शक करने का कोई औचित्य नहीं था.

अब 2 ही पुरुष सदस्य थे, जिन पर शक किया जा सकता था. एक था आसिफ का साला जुनैद और दूसरा खुद आसिफ. चूंकि जुनैद अभी 15 साल का किशोर था और दीनदुनिया से वाकिफ नहीं था, इसलिए जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह की नजरें आसिफ पर आ कर ठहर गईं. उन्होंने आसिफ को पूछताछ के बहाने थाने बुलवा लिया.

टूट गया आसिफ

आसिफ से गहनता से पूछताछ शुरू हो गई. जांच अधिकारी राजेंद्र पाल सिंह ने पहले तो उस से इधरउधर की पूछताछ शुरू की. लेकिन फिर उन्होंने आसिफ से सीधा सपाट सवाल किया, ‘‘देखो आसिफ, हमें सब पता चल गया है कि तुम ने अपनी बीवी को खुद मरवाया है. अब सीधे तरीके से यह बता दो कि वो लड़की कौन है, जिस के लिए तुम ने अपनी पत्नी की हत्या करवाई? हमें यह भी पता है कि बदमाशों को तुम ने ही बुलाया था.’’

राजेंद्र पाल सिंह ने तीर तो अंधेरे में मारा था, लेकिन लगा एकदम निशाने पर. इस तरह के सवाल की आसिफ को उम्मीद नहीं थी वह घबरा गया. जांच अधिकारी ने उसे और ज्यादा डरा दिया.

‘‘देखो, अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हें बचा भी सकते हैं, लेकिन सच नहीं बताया तो…’’

आसिफ की घबराहट चरम पर पहुंच गई. अप्रत्याशित रूप से वह जांच अधिकारी सिंह के पांवों में गिर गया, ‘‘सर, मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई. मैं अपनी साली से शादी करना चाहता था, इसलिए पत्नी को मरवा दिया. मुझे माफ कर दीजिए सर, सारी जिंदगी आप की गुलामी करूंगा. किसी तरह बचा लीजिए.’’

एसएचओ शैलेन्द्र प्रताप सिंह को उम्मीद नहीं थी कि पुलिस द्वारा तुक्के में कही गई बात का ऐसा असर होगा कि आसिफ इतनी जल्दी गुनाह कबूल कर लेगा. उस ने एक बार अपना गुनाह कबूला तो फिर पुलिस को पूरे हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी.

थोड़ी सी हिचकिचाहट और टालमटोल के बाद आसिफ ने बताया कि लगभग 3 साल से उस का अपनी साली के साथ अफेयर चल रहा था. एक बार उस की पत्नी बीमार हो गई थी, उसे अस्पताल में भरती करना पड़ा. समरीन की मां शमशीदा अस्पताल में बेटी की तीमारदारी के लिए रुक गई थीं, जबकि छोटी बेटी फातिमा को उन्होंने बच्चों की देखभाल के लिए आसिफ के घर भेज दिया था.

वैसे तो तनसीन की तीनों ही बेटियां सुंदर थीं, लेकिन जवानी की दहलीज पर खड़ी सब से छोटी बेटी फातिमा बला की खूबसूरत थी. उसे देख कर आसिफ सोचता था कि अगर उस की शादी फातिमा से हुई होती तो कितना अच्छा होता. फातिमा को वह प्यार भरी नजरों से देखता था. लेकिन जब अपनी बहन की बीमारी और उस के अस्पनताल में होने के कारण फातिमा को जीजा के घर आ कर रहना पड़ा तो मानो आसिफ की हसरतों को बल मिल गया.

न जाने कैसे एक दिन फातिमा जब वाशरूम में नहा रही थी तो जल्दबाजी में आसिफ बाथरूम में घुस गया. उस दिन पहली बार आसिफ ने अपनी हसीन साली का संगमरमर में तराशा हुआ बदन देखा तो उस पर मदहोशी छा गई. रिश्ते की मर्यादा भूल कर उस ने फातिमा को वहीं पर अपनी बांहों में भर लिया.

फातिमा जीजा की बांहों में कसमसाई, विरोध किया लेकिन आसिफ पर हवस का भूत सवार था. थोड़ा विरोध करने के बाद फातिमा भी जीजा की बांहों में समा गई. फातिमा के शरीर को पहली बार किसी मर्द के स्पर्श का अहसास मिला था.

वह पहली बार हुआ एक हादसा था. लेकिन इस के बाद फातिमा और आसिफ के बीच इस नाजायज रिश्ते की कहानी हर रोज लिखी जाने लगी.

चंद रोज बाद समरीन अस्पताल से ठीक हो कर वापस घर आ गई. कुछ दिन तीमारदारी के बहाने फातिमा बहन के घर पर ही रही. आसिफ को जब भी मौका मिलता, वह उसे अपनी बांहों में ले कर अपनी भूख मिटा लेता. फातिमा को भी अब जीजा आसिफ का इस तरह उस के शरीर को मसलना अच्छा लगने लगा था.

जानें आगे क्या हुआ अगले भाग में…

‘माया’ जाल में फंसा पति – भाग 2

गांव में जहां शिवलोचन का मकान था, फूलचंद की मां उस से कुछ दूर अपने पैतृक मकान में रहती थी. वहीं पर वह अपनी गुजरबसर के लिए चाय का ढाबा चलाती थी. शिवलोचन की पत्नी माया जब 7-8 महीने पहले बच्चों को ले कर मायके गई थी तो जाते वक्त घर का ताला लगा कर चाभी अपनी सास चुनकी देवी को दे गई थी. तभी से शिवलोचन का मकान बंद पड़ा था.

इसी दौरान शिवलोचन के पड़ोसी हुकुम सिंह ने उस से कहा कि 8 महीने पहले शिवलोचन ने उस का सेकेंड हैंड टीवी यह कह कर लिया था कि कुछ दिन में पैसे दे देगा. लेकिन टीवी लेने के कुछ दिन बाद ही शिवलोचन और उस की पत्नी पता नहीं कहां चले गए. उन्होंने न तो पैसे दिए, न टीवी लौटाया.

हुकुम सिंह ने फूलचंद से कहा कि शिवलोचन तो पता नहीं कब आएगा, इसलिए वह उस का टीवी निकाल कर उसे दे दे. फूलचंद ने अपनी मां चुनकी देवी से शिवलोचन के घर की चाभी ले कर ताला खोला तो अंदर के दोनों कमरों से तेज बदबू का झोंका आया. बंद कमरों के खुलने के कुछ देर बाद जब बदबू कम हुई तो फूलचंद ने हुकुम सिंह का टीवी उठा कर उसे दे दिया.

फूलचंद को लगा कि लंबे समय से मकान बंद था, जिस से सीलन और गंदगी की वजह से बदबू आ रही होगी. उस ने सोचा कि क्यों न दोनों कमरों की सफाई कर दी जाए. लेकिन जब वह उस कमरे की सफाई करने लगा, जिस में शिवलोचन और माया रहते थे तो कमरे के फर्श की कच्ची जमीन थोड़ी धंसी हुई दिखाई दी.

यह देख कर फूलचंद का मन शंका से भर उठा. क्योंकि वहां की जमीन को देख कर ऐसा लग रहा था, मानो कच्चे फर्श का वह हिस्सा अलग हो. उस जगह को गौर से देखने पर लगा, जैसे वहां कोई चीज दबाई गई हो.

पांव से दबाने पर वहां की जमीन नीचे की तरफ दब रही थी. गांव के कुछ लोगों को बुला कर फूलचंद के जमीन का वह हिस्सा दिखाया तो सब ने राय दी कि क्यों न जमीन खोद कर देख लिया जाए. लेकिन जमीन में ऐसीवैसी किसी चीज के दबे होने की आशंका से फूलचंद खुदाई करने से हिचक रहा था. लिहाजा उस ने सब से राय ली कि क्यों न पहले पुलिस को खबर कर दी जाए.

‘‘अरे भैया, तुम तो ऐसे डर रहे हो जैसे जमीन में खजाना गड़ा हो. अरे तुम्हारा घर है, तुम्हारी जमीन है. खोद कर देखो, जो कुछ भी होगा सामने आ जाएगा और अगर ऐसावैसा कुछ हुआ भी तो पुलिस को खबर कर देना.’’ कई लोगों ने एक राय हो कर कहा.

बात फूलचंद की समझ में आ गई. लिहाजा उस ने कमरे के उस हिस्से की फावड़े से खुदाई शुरू कर दी. 3 फुट गहरा गड्ढा खुद चुका था मगर कुछ भी नहीं निकला. लेकिन एक बात ऐसी थी, जिस की वजह से केवल फूलचंद ही नहीं, बल्कि गांव वालों का मन भी आशंका से भर उठा.

बात यह थी कि उस जगह की मिट्टी काफी नरम थी. मिट्टी की सतह वैसे नहीं चिपकी थी, जैसे आमतौर पर चिपकी होती है. इतना ही नहीं जैसेजैसे जमीन खोदी जा रही थी, गड्ढे में से बदबू आनी शुरू हो गई थी. छह इंच जमीन और खोदते ही फूलचंद की आशंका सच साबित हुई. जमीन के उस गड्ढे से कुछ हड्डियां मिली. इस के बाद दहशत में आ कर फूलचंद ने खुदाई रोक दी.

गांव वालों से बातचीत के बाद फूलचंद अपनी मां चुनकी देवी, पड़ोसी हुकुम सिंह, गांव के प्रधान, चौकीदार और कुछ अन्य लोगों को साथ ले कर थाना पहाड़ी पहुंचा. यह 7 जुलाई, 2018 की दोपहर की बात है. पहाड़ी थाने के एसएचओ इंसपेक्टर अरुण पाठक थाने में ही मौजूद थे.

एक साथ इतने सारे लोगों को आया देख पाठक ने उन से आने की वजह पूछी तो फूलचंद ने अपने भाई और भाभी के घर से गायब होने के बारे में बता कर घर में हुई खुदाई के दौरान मानव हड्डियों के निकलने की बात उन्हें बता दी.

इंसपेक्टर अरुण पाठक बोले, ‘‘अरे भाई, जब तुम ने इतना गड्ढा खोद ही दिया था तो थोड़ा सा और खोद लेते. कम से कम यह पता तो चल जाता कि वहां किसी जानवर की हड्डियां दबी हैं या इंसान की.’’

‘‘दरअसल, मेरे भाईभाभी का कुछ पता नहीं है, इसलिए हमें बड़ा डर लग रहा है. आप चल कर देख लीजिए.’’ फूलचंद ने इंसपेक्टर पाठक के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

इंसपेक्टर अरुण पाठक पुलिस टीम ले कर फूलचंद और उस के साथ आए गांव वालों के साथ लोहदा गांव में शिवलोचन के घर पहुंच गए. घर के बाहर पहले से ही काफी भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने पहले से 2-3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई.

पहले से करीब साढे़ 3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. करीब साढ़े 3 फीट खुदे गड्ढे की एक फीट और खुदाई हुई तो पूरा नरकंकाल निकला. नरकंकाल की गर्दन में रस्सी बंधी हुई थी, जो गली नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे रस्सी से उस का गला दबाया गया हो.

चूंकि शव पूरी तरह कंकाल में तब्दील हो चुका था, इसलिए लग रहा था कि शव को कई महीने पहले दफनाया गया था. मामले की गंभीरता को समझते हुए इंसपेक्टर अरुण पाठक ने इलाके के क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह और नायब तहसीलदार को मौके पर बुलवा लिया.

दोनों अधिकारियों ने बात जानने के बाद नरकंकाल को सावधानीपूर्वक गड्ढे से बाहर निकलवा लिया. इस दौरान चित्रकूट जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा भी फोरेंसिक टीम को ले कर लोहदा पहुंच गए.

कंकाल किसी आदमी का था, यह ढांचे से साबित हो रहा था. कंकाल की पहचान के लिए गड्ढे से कोई ऐसी चीज नहीं निकली थी, जिसे पहचान कर कोई यह बता पाता कि कंकाल किस का है. अलबत्ता फूलचंद व उस की मां चुनकी देवी ने कंकाल को गौर से देखने के बाद आशंका जताई कि कंकाल शिवलोचन का हो सकता है.

इंसपेक्टर अरुण पाठक ने फूलचंद से पूछा, ‘‘तुम यह बात इतने विश्वास से कह रहे हो कि कंकाल शिवलोचन का ही है?’’