दांपत्य की लालसा – भाग 2

रायबरेली का मंशा देवी मंदिर रेलवे स्टेशन के पास ही है. करीब 5 साल पहले सितंबर महीने के पहले रविवार को प्रभावती मनोज के साथ वहां गई. दोनों ने मंदिर में मंशा देवी के सामने एकदूसरे को पतिपत्नी मानते हुए जिंदगी भर साथ निभाने का वादा किया. इस के बाद एकदूसरे के गले में फूलों की जयमाल डाल कर दांपत्य बंधन में बंध गए.

मंदिर में शादी कर के मनोज प्रभावती को अपने कमरे पर ले गया. मनोज को इसी दिन का बेताबी से इंतजार था. वह प्रभावती के यौवन का सुख पाना चाहता था. अब इस में कोई रुकावट नहीं रह गई थी, क्योंकि प्रभावती ने उसे अपना जीवनसाथी मान लिया था. इसलिए अब उस की हर चीज पर उस का पूरा अधिकार हो गया था.

मनोज को प्रभावती किसी परी की तरह लग रही थी. छरहरी काया में उस की बोलती आंखें, मासूम चेहरा किसी को भी बहकने पर मजबूर कर सकता था. प्रभावती में वह सब कुछ था, जो मनोज को दीवाना बना रहा था. मनोज के लिए अब इंतजार करना मुश्किल हो रहा था. वह प्रभावती को ले कर सुहागरात मनाने के लिए कमरे में पहुंचा. प्रभावती को भी अब उस से कोई शिकायत नहीं थी. मन तो वह पहले ही सौंप चुकी थी, उस दिन तन भी सौंप दिया.

इस तरह प्रभावती की विवाहित जीवन की कल्पना साकार हो गई थी. यह बात प्रभावती ने अपने मातापिता को बताई तो उन्होंने बुरा नहीं माना. कुछ दिनों तक रायबरेली में साथ रहने के बाद वह मनोज के साथ उस के घर बंगाल चली गई. मनोज बंगाल के हुगली शहर के रेल बाजार का रहने वाला था.

लेकिन मनोज अपने घर न जा कर कोलकाता की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा और वहीं मकान ले कर प्रभावती के साथ रहने लगा. साल भर बाद प्रभावती ने वहीं एक बेटे को जन्म दिया. मनोज नौकरी करता था तो प्रभावती घर और बेटे को संभाल रही थी. दोनों मिलजुल कर आराम से रह रहे थे.

मनोज बेटे और प्रभावती के साथ खुश था. लेकिन वह प्रभावती को अपने घर नहीं ले जा रहा था. प्रभावती कभी ले चलने को कहती तो वह कोई न कोई बहाना कर के टाल जाता. कोलकाता में रहते हुए काफी समय हो गया तो प्रभावती को मांबाप की याद आने लगी. एक दिन उस ने मनोज से रायबरेली चलने को कहा तो मनोज ने कहा, ‘‘यहां हमें रायबरेली से ज्यादा वेतन मिल रहा है, इसलिए अब मैं वहां नहीं जाना चाहता. अगर तुम चाहो तो जा कर अपने घर वालों से मिल आओ. वहां से आने के बाद मैं तुम्हें अपने घर ले चलूंगा.’’

मातापिता से मिलने के लिए प्रभावती रायबरेली आ गई. कुछ दिनों बाद वह मनोज के पास कोलकाता पहुंची तो पता चला कि मनोज तो पहले से ही शादीशुदा है. क्योंकि प्रभावती के रायबरेली जाते ही मनोज अपनी पत्नी सीमा को ले आया था. उस की पत्नी ने उसे घर में घुसने नहीं दिया.

उसे धमकाते हुए सीमा ने कहा, ‘‘तुम जैसी औरतें मर्दों को फंसाने में माहिर होती हैं. जवानी के लटके झटके दिखा कर पैसों के लिए किसी भी मर्द को फांस लेती हैं. अब यहां कभी दिखाई मत देना. अगर यहां फिर आई तो ठीक नहीं होगा.’’

सीमा की बातें सुन कर प्रभावती के पास वापस आने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. उसे जलालत पसंद नहीं थी. वह एक बार मनोज से मिल कर रिश्ते की सच्चाई के बारे में जानना चाहती थी. लेकिन लाख कोशिश के बाद भी न तो मनोज उस के सामने आया और न उस ने फोन पर बात की. उस से मिलने के चक्कर में प्रभावती कुछ दिन वहां रुकी रही. लेकिन जब वह उस से मिलने को तैयार नहीं हुआ तो वह परेशान हो कर रायबरेली वापस चली आई.

जिस मनोज को उस ने पति मान कर अपना सब कुछ सौंप दिया था, वह बेवफा निकल गया था. प्रभावती का दिल टूट चुका था. वापस आने पर उस की परेशानियां और भी बढ़ गईं. अब मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ बेटे की भी जिम्मेदारी थी. गुजरबसर के लिए प्रभावती फिर से काम करने लगी. बदनामी के डर से वह प्लाईवुड फैक्ट्री में नहीं गई. थोड़ी दौड़धूप करने पर उसे रायबरेली शहर में दूसरा काम मिल गया था.

जीवन फिर से पटरी पर आने लगा था. शादी के बाद प्रभावती की सुंदरता में पहले से ज्यादा निखार आ गया था. दूसरी जगह काम करते हुए उस की मुलाकात तेजभान से हुई. तेजभान उसी की जाति का था. प्रभावती रोजाना अपने काम पर साइकिल से रायबरेली आतीजाती थी. कभी कोई परेशानी होती या देर हो जाती तो तेजभान उसे अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर पहुंचा देता था. लगातार मिलनेजुलने से दोनों के बीच नजदीकी बढ़ने लगी. तेजभान के साथ प्रभावती को खुश देख कर उस के मांबाप भी खुश थे. तेजभान रायबरेली के ही डीह गांव का रहने वाला था.

एक दिन प्रभावती को कुछ ज्यादा देर हो गई तो तेजभान ने उस से अपने कमरे पर ही रुक जाने को कहा. थोड़ी नानुकुर के बाद प्रभावती तेजभान के कमरे पर रुक गई. मनोज से संबंध टूटने के बाद शारीरिक सुख से वंचित प्रभावती एकांत में तेजभान का साथ पाते ही पिघलने लगी. उस की शारीरिक सुख की कामना जाग उठी थी. तेजभान तो उस से भी ज्यादा बेचैन था.

उम्र में बड़ा होने के बावजूद तेजभान का जिस्म मजबूत और गठा हुआ था. उस की कदकाठी मनोज से काफी मिलतीजुलती थी. वह मनोज जैसा सुंदर तो नहीं दिखता था, लेकिन बातें उसी की तरह प्यारभरी करता था. प्रभावती की सोई कामना को उस ने अंगुलियों से जगाना शुरू किया तो वह उस के करीब आ गई. इस के बाद दोनों के बीच वह सब हो गया जो पतिपत्नी के बीच होता है.

तेजभान और प्रभावती के बीच रिश्ते काफी प्रगाढ़ हो गए थे. वह प्रभावती के घर तो पहले से ही आताजाता था, लेकिन अब उस के घर रात में रुकने भी लगा था. प्रभावती के मातापिता से भी वह बहुत ही प्यार और सलीके से पेश आता था. इस के चलते वे भी उस पर भरोसा करने लगे थे.

तेजभान के पास जो मोटरसाइकिल थी, वह पुरानी हो चुकी थी. वह उसे बेच कर नई मोटरसाइकिल खरीदना चाहता था. लेकिन इस के लिए उस के पास पैसे नहीं थे. अपने मन की बात उस ने प्रभावती से कही तो उस ने उसे 10 हजार रुपए दे कर नई मोटरसाइकिल खरीदवा दी.

तेजभान का प्यार और साथ पा कर वह मनोज को भूलने लगी थी. तेजभान में सब तो ठीक था, लेकिन वह थोड़ा शंकालु स्वभाव का था. वह प्रभावती को कभी किसी हमउम्र से बातें करते देख लेता तो उसे बहुत बुरा लगता. वह नहीं चाहता था कि प्रभावती किसी दूसरे से बात करे. इसलिए वह हमेशा उसे टोकता रहता था.

दांपत्य की लालसा – भाग 1

प्रभावती को गौर से देखते हुए प्लाईवुड फैक्ट्री के मैनेजर ने कहा, ‘‘इस उम्र में तुम नौकरी करोगी, अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है? मुझे  लगता है तुम 15-16 साल की होओगी? यह उम्र तो खेलने खाने की होती है.’’

‘‘साहब, आप मेरी उम्र पर मत जाइए. मुझे काम दे दीजिए. आप मुझे जो भी काम देंगे, मैं मेहनत से करूंगी. मेरे परिवार की हालत ठीक नहीं है. भाईबहनों की शादी हो गई है. बहनें ससुराल चली गई हैं तो भाई अपनीअपनी पत्नियों को ले कर अलग हो गए हैं. मांबाप की देखभाल करने वाला कोई नहीं है. पिता बीमार रहते हैं. इसलिए मैं नौकरी कर के उन की देखभाल करना चाहती हूं.’’ प्रभावती ने कहा.

रायबरेली की मिल एरिया में आसपास के गांवों से तमाम लोग काम करने आते थे. प्लाईवुड फैक्ट्री में भी आसपास के गांवों के तमाम लोग नौकरी करते थे. लेकिन उतनी छोटी लड़की कभी उस फैक्ट्री में नौकरी मांगने नहीं आई थी. प्रभावती ने मैनेजर से जिस तरह अपनी बात कही थी, उस ने सोच लिया कि इस लड़की को वह अपने यहां नौकरी जरूर देगा. उस ने कहा, ‘‘ठीक है, तुम कल समय पर आ जाना. और हां, मेहनत से काम करना. मैं तुम्हें दूसरों से ज्यादा वेतन दूंगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप की बहुतबहुत मेहरबानी, जो आप ने मेरी मजबूरी समझ कर अपने यहां नौकरी दे दी. मैं कभी कोई ऐसा काम नहीं करूंगी, जिस से आप को कुछ कहने का मौका मिले.’’ कह कर प्रभावती चली गई.

अगले दिन से प्रभावती काम पर जाने लगी. उस के काम को देख कर मैनेजर ने उस का वेतन 3 हजार रुपए तय किया. 15 साल की उम्र में ही मातापिता की जिम्मेदारी उठाने के लिए प्रभावती ने यह नौकरी कर ली थी.

उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के शहर से कस्बा तहसील लालगंज को जाने वाली मुख्य सड़क पर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा है कस्बा दरीबा. कभी यह गांव हुआ करता था. लेकिन रायबरेली से कानपुर जाने के लिए सड़क बनी तो इस गांव ने खूब तरक्की की. लोगों को तरहतरह के रोजगार मिल गए. सड़क के किनारे तमाम दुकानें खुल गईं. लेकिन जो परिवार सड़क के किनारे नहीं आ पाए, उन की हालत में खास सुधार नहीं हुआ.

ऐसा ही एक परिवार महादेव का भी था. उस के परिवार में पत्नी रामदेई के अलावा 2 बेटे फूलचंद, रामसेवक तथा 4 बेटियां, कुसुम, लक्ष्मी, सविता और प्रभावती थीं. प्रभावती सब से छोटी थी. छोटी होने की वजह से परिवार में वह सब की लाडली थी. महादेव की 3 बेटियों की शादी हो गई तो वे ससुराल चली गईं. बेटे भी शादी के बाद अलग हो गए.

अंत में महादेव और रामदेई के साथ रह गई उन की छोटी बेटी प्रभावती. भाइयों ने मांबाप के साथ जो किया था, उस से वह काफी दुखी और परेशान रहती थी. यही वजह थी कि उस ने उतनी कम उम्र में ही नौकरी कर ली थी.

प्रभावती को जब काम के बदले फैक्ट्री से पहला वेतन मिला तो उस ने पूरा का पूरा ला कर पिता के हाथों पर रख दिया. बेटी के इस कार्य से महादेव इतना खुश हुआ कि उस की आंखों में आंसू भर आए.

उस ने कहा, ‘‘मेरी सभी औलादों में तुम्हीं सब से समझदार हो. जहां बुढ़ापे में मेरे बेटे मुझे छोड़ कर चले गए, वहीं बेटी हो कर तुम मेरा सहारा बन गईं. तुम जुगजुग जियो, सभी को तुम्हारी जैसी औलाद मिले.’’

‘‘बापू, आप केवल अपनी तबीयत की चिंता कीजिए, बाकी मैं सब संभाल लूंगी. मुझे बढि़या नौकरी मिल गई है, इसलिए अब आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है.’’ प्रभावती ने कहा.

बदलते समय में आज लड़कियां लड़कों से ज्यादा समझदार हो गई हैं. यही वजह है, वे बेटों से ज्यादा मांबाप की फिक्र करती हैं. प्रभावती के इस काम से महादेव और उन की पत्नी रामदेई ही खुश नहीं थे, बल्कि गांव के अन्य लोग भी उस की तारीफ करते नहीं थकते थे. उस की मिसालें दी जाने लगी थीं.

समय बीतता रहा और प्रभावती अपनी जिम्मेदारी निभाती रही. प्रभावती जिस फैक्ट्री में नौकरी करती थी, उसी में बंगाल का रहने वाला एक कारीगर था मनोज बंगाली. वह प्रभावती की हर तरह से मदद करता था, इसलिए प्रभावती उस से काफी प्रभावित थी. मनोज उस से उम्र में थोड़ा बड़ा जरूर था, लेकिन धरीरेधीरे प्रभावती उस के नजदीक आने लगी थी.

जब यह बात फैक्ट्री में फैली तो एक दिन प्रभावती ने कहा, ‘‘मनोज, हमारे संबंधों को ले कर लोग तरहतरह की बातें करने लगे हैं. यह मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘लोग क्या कहते हैं, इस की परवाह करने की जरूरत नहीं है. तुम मुझे प्यार करती हो और मैं तुम्हें प्यार करता हूं. बस यही जानने की जरूरत है.’’ इतना कह कर मनोज ने प्रभावती को सीने से लगा लिया.

‘‘मनोज, तुम मेरी बातों को गंभीरता से नहीं लेते. जब भी कुछ कहती हूं, इधरउधर की बातें कर के मेरी बातों को हवा में उड़ा देते हो. अगर तुम ने जल्दी कोई फैसला नहीं लिया तो मैं तुम से मिलनाजुलना बंद कर दूंगी.’’ प्रभावती ने धमकी दी तो मनोज ने कहा, ‘‘अच्छा, तुम चाहती क्या हो?’’

‘‘हम दोनों को ले कर फैक्ट्री में चर्चा हो रही है तो एक दिन बात हमारे गांव और फिर घर तक पहुंच जाएगी. जब इस बात की जानकारी मेरे मातापिता को होगी तो वे किसी को क्या जवाब देंगे. मैं उन की बहुत इज्जत करती हूं, इसलिए मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती, जिस से उन के मानसम्मान को ठेस लगे. उन्हें पता चलने से पहले हमें शादी कर लेनी चाहिए. उस के बाद हम चल कर उन्हें सारी बात बता देंगे.’’ प्रभावती ने कहा.

‘‘शादी करना आसान तो नहीं है, फिर भी मैं वह सब करने को तैयार हूं, जो तुम चाहती हो. बताओ मुझे क्या करना है?’’ मनोज ने पूछा.

‘‘मैं तुम से शादी करना चाहती हूं. मेरे मातापिता मुझे बहुत प्यार करते हैं. वह मेरी किसी भी बात का बुरा नहीं मानेंगे. मैं चाहती हूं कि हम किसी दिन शहर के मंशा देवी मंदिर में चल कर शादी कर लें. इस के बाद मैं अपने घर वालों को बता दूंगी. फिर मैं तुम्हारी हो जाऊंगी, केवल तुम्हारी.’’ प्रभावती ने कहा.

प्रभावती की ये बातें सुन कर मनोज की खुशियां दोगुनी हो गईं. उस ने जब से प्रभावती को देखा था, तभी से उसे पाने के सपने देखने लगा था. लेकिन प्रभावती उस के लिए शराब के उस प्याले की तरह थी, जो केवल दिखाई तो देता था, लेकिन उस पर वह होंठ नहीं लगा पा रहा था. प्रभावती जो अभी कली थी, वह उसे फूल बनाने को बेचैन था.

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 4

तभी अनिल ने विवेक से बातचीत शुरू करते हुए कह  “;मुझे आप दोनों बारे में सब कुछ पता है. तृप्ति मेरी भी दोस्त है, इसलिए आप को समझा रहा हूं कि अब आप इन का पीछा करना छोड़ दो, यही बेहतर होगा.”

सुन कर विवेक आपे से बाहर हो गया और खड़े हो कर बोला  “आप कुछ नहीं जानते हैं हमारे बारे में. फालतू में ही कबाब में हड्डी बन रहे हो.”

सुन कर तैश मैं आ कर अनिल ने कहा “पहली बात तो यह है कि मैं वेजिटेरियन हूं, इसलिए कबाब और हड्डी की बात मत करो. और दूसरी बात यह है कि जबरदस्ती की दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलती. इसलिए तुम्हें फिर से समझा रहा हूं कि तृप्ति का पीछा छोड़ दो, वरना…”

“मुझे धमकी दे रहे हो,” कह कर विवेक ने आंखें तरेरीं.

तो मुसकराकर अनिल ने कहा, “धमकी नहीं चेतावनी दे रहा हूं कि इन का पीछा कर परेशान करने की शिकायत अगर पुलिस में चली गई तो मुश्किल में पड़ जाओगे.”

प्रोफेसर अनिल की चेतावनी सुन कर विवेक गुस्से से आग बबूला हो गया और पैर पटकता हुआ वहां से चला गया. रेस्टोरेंट में बैठे लोग उन की तरफ देखने लगे थे इसलिए प्रोफेसर अनिल तथा तृप्ति भी रेस्टोरेंट से बाहर निकल गए. विवेक और प्रोफेसर अनिल के बीच हुई इस तकरार से तृप्ति परेशान और भयभीत नजर आ रही थी जिसे देख कर अनिल ने उसे समझाते हुए कहा, “घबराओ नहीं, तुम आगे आगे चलो मैं पीछे आ रहा हूं. ज्यादा परेेशान करे तो इस की पुलिस से शिकायत कर देना, पक्का इलाज कर देगी पुलिस.”

जिस पर तृप्ति अपनी स्कूटी स्टार्ट कर घर की तरफ चल दी. उस के पीछेपीछे प्रोफेसर अनिल भी कार से चल दिया. रोडवेज बस स्टैंड से थोङ़ा आगे पहुंचने पर अचानक विवेक भी स्कूटर से उस का पीछा करने लगा

सीआरपीएफ ग्राउंड के आगे ओवरब्रिज होते हुए मेयो कालेज की तरफ घूम कर तृप्ति ने स्कूटी आगे बढ़ाई ही थी कि तभी मदार पुुलिस चौकी के आगे सुनसान जगह देख कर अचानक विवेक ने आगे आ कर तृप्ति की स्कूटी रुकवा दी और अपना स्कूटर स्टार्ट छोड़ कर ही तृप्ति के पास आ कर विवेक ने सड़क पर फिर एक बार तृप्ति के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. उस की सड़क छाप मजनू जैसी हरकत देख कर तृप्ति बुरी तरह से भड़क उठी और चीख कर बोली, “मेरा पीछा छोङ़ो, नहीं करूंगी शादी तुम से जाओ.”

उस की आवाज सुन कर सड़क के किनारे टपरी पर चाय पी रहे लोग उधर देखने लगे और तभी ऐसा कुछ घटित हो गया जिस की किसी को भी उम्मीद नहीं थी.

चाकू के पहले वार से बचने के लिए तृप्ति ने हाथों से रोकना चाहा तो हथेलियों पर गहरे घाव हो गए. जब कि गुस्से से पागल हो चुके विवेक ने चाकू का दूसरा वार तृप्ति के दिल पर किया. चाकू के वार ने उस का दिल चीर कर रख दिया और खून का फव्वारे से हत्यारे के हाथ-पैर और कपड़े भीग गए. जबकि चाकू के तीसरे वार से उस के फेफड़े क्षति ग्रस्त हो गए थे. वह निढाल होकर सङक पर गिर गई.

तृप्ति वह स्कूटी अपनी एक परिचित महिला से ले कर तथा अपनी बेटी को उस के पास छोड़ कर कोई जरूरी काम बोल कर सुनील से मिलने इंजीनियरिंग कालेज गई थी. वहीं तृप्ति के घर वाले भी घटना के बारे में कुछ भी नहीं बता सके. वो बेटी के दुर्भाग्य पर आंसू बहा रहे थे. पुलिस ने तृप्ति के शव का पोस्टमार्टम हो जाने के बाद उस का शव उस के परिजनों को सौंप दिया.

एसएचओ श्याम ङ्क्षसह चाारण ने आरोपी विवेक उर्फ विवान से पूछताछ के बाद उसे अदालत में पेश कर 2 दिन का पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू, स्कूटर और खून से सने कपड़े बरामद कर लेने के बाद फिर से अदालत में पेश किया. वहां से उसे अजमेर के सेंट्रल जेल भेज दिया.

आरोपी विवेक सिंह ने बताया कि वह पिछले ढाई साल से तृप्ति के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रह रहा था. उस पर वह हजारों रुपए खर्च कर चुका था. यही नहीं उस ने प्यार में पागल हो कर अपने हाथ पर तृप्ति के नाम का टैटू भी गोदवा रखा था. वह अपनी कमाई का बङ़ा हिस्सा उस पर खर्च कर देता था. वह उस से शादी कर जिंदगी गुजारना चाहता था. अपने नए दोस्त अनिल के आ जाने पर तृप्ति के तेवर ही बदल गए.

उस की इस बेरुखी से उसे बेवफाई की बू आने लगी, जिसे वह सहन नहीं कर पाया इसलिए उसने उसे जान से मार दिया. लंबी सांस ले कर उस ने कहा उसे अपने किए पर कोई पछतावा नहीं है.

पुलिस ने पुख्ता तैयारी के साथ अजमेर के जिला एवं सत्र न्यायालय यमें आरोपी विवेक सिंह उर्फ विवान के खिलाफ चार्जशीट पेश कर दी थी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 3

कहते हैं कि दुनिया में अकेली औरत की जिंदगी कटी पतंग की तरह होती है. उस पर अगर वह जवान और खूबसूरत हो तो हर कोई लावारिस समझ कर उसे लूट लेना चाहता है. तृप्ति यह दुनियादारी अच्छी तरह से जान चुकी थी. इसलिए वह भी सही जीवन साथी को तलाश कर रही थी, जो उसके साथ ही उस की बेटी को भी बाप की तरह प्यार करे और अपनी औलाद जैसी परवरिश करने को तैयार हो.

प्रोफेसर से दोस्ती होने पर किया विवेक से किनारा

32 वर्षीय तृप्ति खूबसूरत और समझदार थी ही, साथ ही सुगठित शरीर की मालकिन होने के चलते 24 से 25 साल से ज्यादा उम्र की नहीं लगती थी, लेकिन कुछ हद तक वह सेंटीमेंटल फूल्स यानी दिल के हाथों मजबूर एक भावुक युवती थी. शायद इसलिए वह अपने पहले प्रेम में असफल होने के बाद एक बार फिर वही गलती कर बैठी.

पति सूरज के जेल जाने के बाद अपनी जिंदगी के अकेलेपन से घबरा कर वह सोशल मीडिया पर विवेक के संपर्क में आ गई और उस के हंसमुख नेचर से प्रभावित हो कर उस की गर्लफ्रेंड बन गई थी, जिस का पता उस की सहेली रीता को भी था. वह तृप्ति को बारबार जिंदगी की ऊंचनीच समझाती रहती थी और खबरदार भी करती रहती थी कि ऐसे बेमेल रिश्तों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है और वह अल्पशिक्षित कार ड्राइवर प्रेमी के साथ जीवनभर खुशहाल नहीं रह पाएगी.

क्योंकि ड्राइवरों की लाइफ स्टाइल स्टैंडर्ड की नहीं होती है और ज्यादातर ड्राइवर तो आपराधिक प्रवृत्ति के भी होते हैं. साथ ही दिनरात सङ़क पर घूमते रहने के कारण ऐसे लोगों का जीवन भी असुरक्षित होता है. इसलिए बेटी के भविष्य को ध्यान में रख कर कार ड्राइवर प्रेमी के साथ घर बसाने का निर्णय सोच विचार कर लेना .

बारबार सहेली रीता की समझदारी भरी सलाह सुन कर तृप्ति भी गंभीर हो गई और उस ने विवेक के साथ ज्यादा घूमना फिरना बंद कर दिया. उस ने उस से दूरी बनाए रखने का फैसला कर लिया. वह पहले भी सूरज चौहान के साथ प्यार में धोखा खा चुकी थी और अंतरजातीय प्रेम विवाह से तलाक की नौबत उसे फैमिली कोर्ट तक ले गई थी. इसलिए वह विवेक के शादी के प्रस्ताव को किसी न किसी बहाने टालने लगी. वह विवेक से पिंड छुङ़ाने का मौका तलाश रही थी.

इस दौरान अप्रैल, 2023 में तृप्ति अपने स्कूृल के स्टाफ के साथ इंजनियरिंग कालेज गई तो उस की मुलाकात जयपुर निवासी अनिल शर्मा से हुई जो इंजीनियरिंग कालेज में प्रोफेसर था और एक 38 वर्षीय आकर्षक और सजीला विवाहित युवक था. उस के मिलनसार तथा शालीन स्वभाव ने तृप्ति को इस कदर प्रभावित किया कि वह बारबार उस से मिलने लगी और कुछ ही दिनों में अनिल की अच्छी दोस्त बन गई. इतना नहीं वह मन ही मन उसे पसंद भी करने लगी.

अनिल से मिलने के बाद उस की सोच और जिंदगी का नजरिया ही बदल गया. अब वह विवेक को नजरअंदाज कर अनिल की हेल्प ले कर अपने भविष्य को बेहतर बनाने में समय गुजारने लगी. वह अब कार ड्राइवर विवेक के साथ गुजरे वक्त को अपनी भावुकता पूर्ण बेवकूफी मान कर भुला देना चाहती थी.

माहौल बदलने के लिए अनिल के साथ दोस्ती हो जाने पर उस ने दूसरी जौब करने और पुराना ठिकाना छोड़ कर नया मकान भी तलाशना शुरू कर दिया था. अनिल को जब तृप्ति के अतीत के बारे में पता चला. तो उस ने हमदर्दी जताते हुए पारिवारिक अदालत का फैसला आने के बाद नए सिरे से जीवन गुजारने की सलाह दी और वादा किया कि नौकरी लगवाने मेें वह उस की पूरी मदद करेगा

अनिल की बातों से तृप्ति को इस बात की तसल्ली हुई कि इस महानगर में अब वह अकेली नहीं है. इसलिए वह विवेक उर्फ विवान से पीछा छुङ़ाने की योजना पर अमल करने लगी. उसे डर था कि उस के एक तरफा प्यार में पागल विवेक संजीदा स्वभाव का व्यक्ति नहीं है इसलिए उस से मन भर जाने पर वह कभी भी उसे छोड़ सकता है. जबकि प्रोफेसर अनिल एक गंभीर और जिम्मेदार किस्म का संपन्न युवक था, जो उस की ज्यादा मदद कर सकता था.

तृप्ति से विवेक की लंबे समय तक मुलाकात नहीं हुई तो विवेक को यह सोच सोच कर फिक्र होने लगी कि कहीं उस का कोई और दोस्त तो नहीं बन गया. अपनी आशंका को दूर करने के लिए अगले ही दिन उस ने तृप्ति के स्कूल की छुट्टी हो जाने के बाद चुपचाप स्कूटी से उस का पीछा किया तो उस की आशंका सच साबित होती दिखी.

तृप्ति इंजीनियरिंग कालेज के आगे जयपुर रोड पर एक रेस्टोरेंट में अपने नए दोस्त के साथ बैठी चाऊमीन खा रही थी, उस से हंसहंस कर बातें कर रही थी. जिसे देख कर विवेक के तन बदन में आग लग गई. वह समझ गया कि तृप्ति उस से मिलने में बहाने बाजी क्यों कर रही थी. तभी उसे तृप्ति अपने नए दोस्त के साथ रेस्टोरेंट से बाहर निकल कर कार में बैठ कर जाती दिखाई दी. तब वह कुछ सोच कर वापस लौट गया.

प्रोफेसर ने दी विवेक को चेतावनी

अगले दिन विवेक ने तृप्ति से अरजेंट मिलने की बात कही तो पहले तो वह उसे टालती रही फिर ज्यादा रिक्वेस्ट करने पर उस ने स्कूल की छुट्टी के बाद जयपुर रोड स्थित जायका रेस्टोरेंट पर मिलने का टाइम दे दिया.

विवेक को तृप्ति की बेरुखी से बेवफाई की बू आने लगी थी. पर वह उस की लीगल पत्नी तो थी नहीं, जो वह उस पर अपना अधिकार जताता, इसलिए वक्त की नजाकत समझ कर चुप रह गया. फिर तयशुदा वक्त पर किसी मिलने वाले का स्कूटर ले कर वह जयपुर रोड स्थित रेस्टोरेंट पहुंच गया जहां एक कोने में तृप्ति अपने नए दोस्त प्रोफेसर अनिल के साथ बैठी कौफी पी रही थी.

उस ने अनिल को विवेक के बारे बताया था कि विवेक से उसकी सोशल मीडिया पर दोस्ती हो गई थी लेकिन अब वह सोशल मीडिया पर हुई दोस्ती को प्यार समझ कर उस से शादी के लिए दबाव बना रहा है. जबकि उस के मन में विवेक के प्रति प्यार जैसी कोई फीलिंग्स नहीं है. और वह उस से शादी भी नहीं करना चाहती. जिस पर तृप्ति का प्रोफेसर दोस्त अनिल शर्मा उस समय विवेक को समझाबुझा कर दोनों के बीच पैदा हुई गलतफहमी दूर करने के इरादे से उस के साथ रेस्टोरेंट में बैठा हुआ था.

तभी तृप्ति को अपनी समझने वाला विवेक धङ़धङ़ाता हुआ सीधे उन की टेबल पर जा पहुंचा और तृप्ति से अपने साथ चलने की जिद्द करने लगा. तब तृप्ति बोली”;अरे ऐसी भी क्या जल्दी है, बैठो जरा कौफी तो पी लो.”

फिर वह अपने नए दोस्त का परिचय कराते हुए बोली ”;इन से मिलो, ये प्रोफेसर शर्मा हैं… मेरे नए मित्र और सर, ये हैं विवान उर्फ विवेक सिंह.”

अनमने भाव से विवेक कुरसी खींच कर बैठ गया. उसे तृप्ति का किसी और को दोस्त कहना नागवार लग रहा था.

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 2

आरोपी विवेक सिंह से तृप्ति सोनी हत्या के संबंध में पूछताछ की तो जो कहानी सामने आई वह चौंकाने वाली निकली-

अजमेर आरावली पर्वत श्रृंखला की सुंदर पहाङियों से घिरा राजस्थान का एक खूबसूरत शहर है, जो पर्यटन स्थल होने के साथ ही एक धार्मिक नगरी भी है. भौगोलिक नजरिए से राजस्थान राज्य के मध्य में स्थित होने के चलते इस नगर को राजस्थान का दिल भी कहा जाता है. साल के हर दिन यहां श्रद्धालुओं तीर्थ यात्रयों के साथ ही दुनियाभर के घुमक्कड़ सैलानियों का आनाजाना लगा रहता है.

मई का महीना चल रहा था जिस में प्रचंड गरमी थी, लेकिन आकाश में काले बादल मंडरा रहे थे और जल्द ही बारिश होने के आसार नजर आ रहे थे. लिहाजा हर कोई शाम होने से पहले घर पहुंचने की जल्दी में दिखाई दे रहा था इसीलिए टैंपो सवारियों से ठसाठस भरे नजर आ रहे थे. तृप्ति ने च्वगम चबाते हुए इधरउधर नजरें घुमाईं पर किसी भी टैंपो में खाली जगह न देख कर वह बड़बड़ाई. “आज कोई घर में नहीं रहेगा. ऐसा लगता है कि जैसे पूरा शहर ही दूसरी तरफ शिफ्ट हो रहा है.

अब तो अगले चौक तक पैदल ही जाना पड़ेगा. आगे तो मिल ही जाएगा कोई न कोई टैंपो. बड़बड़ाते हुए उस ने कदम आगे बढ़ाया ही था कि तभी एक कार उस के पास आ कर रुकी. उस ने किनारे हट कर आगे बढ़ जाना चाहा. पर तभी कार चालक की आवाज सुन कर चौंक गई. कार चालक ने उस नाम ले कर आवाज दी थी, “हेलो तृप्ति कहां जा रही हो?”

पलट कर तृप्ति ने देखा तो सामने विवेक उर्फ विवान था, उस का नया दोस्त. जिस से कुछ दिन पहले ही उस की सोशल मीडिया पर दोस्ती हुई थी. पर अभी तक दोनों की रूबरू मुलाकात नहीं हुई थी. बिगडते मौसम के दौरान टैंपो नहीं मिलने से फिक्रमंद हो रही तृप्ति अंदर ही अंदर खुश होते हुए बोली, “अरे वाह विवान, तुम इधर ही रहते हो क्या?”

“अरे नहीं यार, मैं तो तुम्हें देख कर रुका था. सोचा कि तुम इधर ही रहती होगी. आज शाम की चाय यहीं पी लेंगे.”

सुन कर हंसते हुए तृप्ति बोली, “नहीं जी, मैं तो मेयो कालेज के पास धौलाभाटा कालोनी में रहती हूं. यहां तो मैं टीचर हूं एक प्राइवेट स्कूल मेें.”

तब तक बरसात शुरू हो गई तो विवान ने कार का गेट खोलते हुए कहा, “जल्दी बैठो मुझे भी रामगंज जाना है. उधर ही रहता हूं. तृप्ति कार में बैठ गई. दोनों रास्ते में बातचीत करते हुए आना सागर चौपाटी गए. वहां पर पर पहुंच कर दोनों ने गर्मागर्म समोसे के साथ कुल्हड़ वाली चाय पी फिर घर की तरफ रवाना हो गए.

मौसम ठंडा हो गया था इसलिए तृप्ति को उस के घर ड्राप कर के विवेक सिंह अपने घर राम गंज चला गया. जातेजाते तृप्ति से अगले दिन स्कूल टाइम पर रेलवे स्टेशन के पास मार्टिडल ब्रिज पर मिलने को कहा जो दोनों के घर के रास्ते में ही आता था.

फेसबुक फ्रेंड बन गया प्रेमी

अगले दिन तृप्ति जब स्कूल के लिए निकली तो देखा मार्टिडल ब्रिज पर विवेक की कार खड़ी है तो वह टैंपो से उतर कर कार में बैठ गई और कार पुष्कर रोड की तरफ रवाना हो गई. बड़े शहरों में तो वैसे भी किसी को किसी की खबर नहीं रहती है कि कौन कहां जा रहा है और फिर बिंदास नेचर की तृप्ति तो वैसे भी अकेली ही रहती थी. लिहाजा स्कूल के बहाने दोनों का रोजाना मिलने और आने जाने का सिलसिला शुरू हो गया.

उन की मुलाकातें जल्दी ही पक्की दोस्ती में बदल हो गईं. धीरेधीरे दोनों एक दूसरे के बारे में सब कुछ जान गए. 30 वर्षीय विवेक ज्यादा पढ़ालिखा नहीं था किसी सेठ की कार चलाता था, आगेपीछे कोई था नहीं, कुंवारा था. इसलिए बनसंवर कर रहता था. वह ठीकठाक कमा भी लेता था. वह पहली नजर में ही तृप्ति की खूबसूरती पर मर मिटा था. यह बात जानने के बाद कि तृप्ति शादीशुदा है और उस की एक 7 साल की बेटी भी है. वह पति से अलग हो कर रह रही है.

विवेक उस के साथ घर बसाने के सपने देखने लगा. आधुनिक विचारों वाली युवती तृप्ति ने भी उस से कुछ नहीं छिपाया और दोस्त समझ कर. बातों ही बातों में बता दिया था कि उस का परिवार तो बीकानेर का रहने वाला है, परंतु अजमेर निवासी सूरज चौहान के साथ साल 2012 में उस ने प्रेम विवाह किया था. तब से ही अजमेर में रह रही है और उन की एक बेटी भी है.

उस ने बताया कि प्रेम विवाह से ले कर बेटी के जन्म तक पतिपत्नी के बीच सब कुछ ठीकठाक चल रहा था, लेकिन बाद में उन दोनों के बीच पैसों की तंगी को ले कर गृह कलह होने लगी और पैसे कमाने के चक्कर में उस के पति सूरज की संगत खराब हो गई और वह चेक बाउंस के एक मामले में फंस गया और पारिवारिक तनाव बढऩे पर तृप्तिऔर सूरज के बीच रोजाना झगड़ा होने लगा.

एक दिन मामला फैमली कोर्ट यानी पारिवारिक न्यायालय तक पहुंच गया. उस के बाद अदालत में प्रकरण विचाराधीन होने के दौरान ही दोनों एक दूसरे से अलगअलग रहने लग. कुछ दिन बाद ही चैक बाउंसिंग के मामले में सूरज को 2 साल की सजा हो गई और उसे अजमेर सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

तृप्ति ने बताया कि इस अनजान शहर में वह बेटी के साथ अकेली रह गई थी. वह पढ़ीलिखी स्मार्ट युवती थी इसलिए उस ने दौङ़धूप कर पुष्कर रोड स्थित एक प्राइवेट स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली और एक परिचित सहेली की मदद से धोलाभाटा कालोनी में किराए का घर ले कर रहने लगी.

विवेक ने तृप्ति के प्यार में पड़ कर उस की ख्वाहिशें पूरी करनी शुरू कर दीं. साथ ही जरूरत पङऩे पर रुपएपैसे से भी उस की मदद करने लगा और तृप्ति भी विवेक को दोस्त मान कर उस से तोहफे लेने लगी पर वह शायद यह बात भूल गयी ,आज की इस मतलब परस्त दुनिया में एक मर्द और औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते हैं.

लिहाजा तृप्ति की दोस्ती को प्यार समझ कर एक तरफा प्यार में पागल विवेक ने उस के नाम का टैटू भी अपने हाथ पर गोदवा लिया था. वह जल्दी ही तृप्ति के सामने शादी का प्रस्ताव रख कर उसे अपनी पत्नी बनाने की योजना बना चुका था, लेकिन पारिवारिक न्यायालय में तृप्ति का मामला विचाराधीन होने के कारण् वह फैमली कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रहा था.

दगा दे गई सोशल मीडिया की गर्लफ्रैंड – भाग 1

अजमेर के जयपुर रोड पर स्थित मुख्य रोडवेज बस स्टेंड से प्रसिद्ध मेंंयो कालेज की तरफ जाने वाली प्रमुख सड़क पर मंगलवार होने के बावजूद भी ज्यादा भीड़ नहीं थी. वैसे इस रास्ते पर हर मंगलवार की शाम को भारी भीड़ होती है, क्योंकि यह रास्ता नगर के प्राचीन हनुमान मंदिर की तरफ भी जाता है. इस के अलावा यही रास्ता नगर के सब से खूबसूरत पर्यटन स्थल आनासागर लेक पर बनी चौपाटी तक भी जाता है, जहां पर रोजाना हजारों लोग घूमने आते हैं.

16 मई, 2023 की शाम करीब 4 बजे इसी सड़क पर एक घबराई हुई खूबसूरत युवती तेजी से स्कूटी दौड़ाती हुई चली जा रही थी. उस युवती का एक परिचित युवक पीछा कर रहा था. इसलिए वह बारबार पीछा कर रहे उस युवक को साइड मिरर में देख रही थी.

उस की घबराहट और बढ़ती जा रही थी, क्योंकि पीछा कर रहे युवक के इरादे उसे ठीक नहीं लग रहे थे. इसी दौरान उस ने साइड मिरर में एक कार देखी. कार उस ने पहचान ली, क्योंकि वह उस के एक परिचित की थी. कार को देख कर उस की घबराहट खत्म हो गई और वह मुस्कराने लगी.

सीआरपीएफ ग्राउंड से आगे जैसे ही वह ओवर ब्रिज को पार कर मेंयो कालेज की तरफ घूमी तो उस की नजर मदार पुलिस चौकी पर पड़ी तो कुछ सोच कर उस ने मदार पुलिस चौकी के सामने फुटपाथ पर अपनी स्कूटी रोक दी और पीछे आ रही कार के पास पहुचने का इंतजार करने लगी.

उसे उम्मीद थी कि पुलिस चौकी होने के कारण वह युवक उसे परेशान करने की हिम्मत नहीं करेगा पर उस युवक पर तो जैसे जुनून सवार था. उस युवक ने पुलिस चौकी के पास आ कर अपना स्कूटर रोक दिया. स्कूटर को चालू हालत में छोड़ कर वह उस युवती के पास जा कर कुछ बोला. जिसे सुन कर युवती अपना आपा खो बैठी और चीखते हुए बोली, “नहीं करूंगी शादी तुम से. मुझे परेशान मत करो वरना मैं पुलिस… इस से पहले कि वह आगे कुछ कहती, युवक ने अपने बैग से चाकू निकाल कर दिनदहाड़े उस युवती पर जानलेवा हमला कर दिया.

युवती को चाकू से घायल कर के वह तुरंत अपने स्कूटर पर सवार हो कर राजा साइकिल चौराहे की तरफ फरार हो गया, जबकि खून से लथपथ युवती जमीन पर गिर कर तड़पने लगी. दिनदहाड़े अलवर गेट थाने की मदार पुलिस चौकी के पास हुई इस सनसनी खेज वारदात से सनसनी फैल गई.

घटनास्थल के ठीक सामने फुटपाथ की थड़ी पर दोस्तों के साथ चाय पी रहे पास की कालोनी में रहने वाले युवक पिंटू सांखला और उस के साथियों ने पहले तो हमलावर युवक को पकडऩे की कोशिश की, लेकिन वह उन के हाथ नहीं आया.

तब तक युवती के परिचित युवक की कार भी वहां आ गई. उस ने उस युवती की शिनाख्त धौलाभाटा निवासी तृप्ति सोनी चौहान के रूप में की. युवक ने गंभीर रूप से घायल तृप्ति को पिंटू सांखला और उस के साथियों की मदद से उठाया और वहां से करीब एक किलोमीटर दूर स्थित अजमेर के जेएलएन राजकीय चिकित्सालय की तरफ चल दिया.

अस्पताल पहुंचने से पहले तोड़ा दम

अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में मौजूद डाक्टरों ने घायल तृप्ति की जांच कर बताया कि काफी ज्यादा खून बहने के कारण कुछ देर पहले ही उस की मौत हो चुकी हैै. हमलावर ने उस के दिल पर 3 वार किए थे, जिस से उस का दिल कट गया था और अधिक खून बहने के कारण उस की मौत हो गई.

डाक्टरों की बात सुन कर तृप्ति को ले कर आए मददगार और कार से आए युवक अनिल शर्मा की आंखें भर आईं. इसी बीच अजमेर के एसपी चूना राम जाट, सीओ सुनील सिहाग, सहित पुलिस विभाग के आला अधिकारी और थाना अलवर गेट के एसएचओ श्याम सिंह चारण भी अस्पताल पहुंच गए.

उधर घटना की रिपोर्ट 16 मई, 2023 की शाम को मृतका महिला टीचर के मित्र अनिल शर्मा ने अलवर गेट थाने में दर्ज कराते हुए बताया कि वह महिला टीचर का मित्र है और इंजनियरिंग कालेज अजमेर में प्रोफेसर है. उन्होंने हमलावर विवेक सिंह उर्फ विवान पर आरोप लगाते हुए पुलिस को बताया कि तृप्ति सोनी उसे सिर्फ अपना दोस्त मानती थी, जबकि विवेक सिंह उस पर शादी करने का दबाव डाल रहा था.

इसी मामले को ले कर उस ने दोनों को समझाने की कोशिश भी की थी, लेकिन उन्हें इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि कोई प्यार करने का दम भरने वाला युवक ऐसी बेरहमी से किसी की जान भी ले सकता है.

उन की सलाह पर ही परेशान तृप्ति ने पुलिस से उस की शिकायत करने का मन बना लिया था, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी और अनहोनी हो गई. पुलिस अधिकारयों ने हत्याकांड के प्रत्यक्षदर्शी पिंटू सांखला से भी घटना की जानकारी हासिल की.

घटनास्थल पर पड़ी स्कूटी और मृतका की चप्पलों के साथ ही पुलिस टीम ने वहां से साक्ष्य उठाने फोटोग्राफ लेने सहित अन्य जरूरी काररवाई पूरी की. तब तक बड़ी संख्या में मीडिय़ाकर्मी भी वहां जुट चुके थे और सोशल मीडिया के जरिए युवती की हत्या की खबर वायरल हो गई.

मृतका युवती की शिनाख्त धौलाभाटा कालोनी निवासी तृप्ति सोनी चौहान पत्नी सूरज चौहान के रूप में हो चुकी थी. स्कूटी की मालकिन ने बताया कि तृप्ति अपनी बेटी को उस के घर छोड़ कर कोई जरूरी काम बोल कर उस की स्कूटी ले गई थी. पुलिस ने मृतका टीचर के परिजनों को भी बुला कर बयान लिए पर वह भी घटना के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता सके.

पुलिस चौकी से चंद कदमों के फासले पर हुए इस हत्याकांड से शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान उठने लगे. एसपी चूना राम जाट ने हत्याकांड की जांच थाना अलवर गेट के एसएचओ श्याम सिंह चारण को सौंप दी.

अगले दिन आरोपी हुआ गिरफ्तार

अजमेर जैसी धार्मिक एवं शांत नगरी में सरेराह, दिनदहाड़े महिला टीचर की हत्या की जांच एसएचओ ने शुरू कर दी. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी अलर्ट कर दिया. इस का सकारात्मक परिणाम भी निकला. उन्होंने आरोपी विवेक  सिंह उर्फ विवान को अगले ही दिन 17 मई, 2023 को शहर के बाहर स्थित पहाडिय़ों से गिरफ्तार कर लिया. जहां वह वारदात करने के बाद जा कर छिप गया था.

चाहत की दर्दनाक दास्तान

9 अगस्त की सुबह फताराम सो कर उठा तो घर में पत्नी मेहर और बच्चों को न पा कर वह परेशान हो उठा. उस ने पूरे गांव में उन्हें इधरउधर खोजा. जब वे कहीं नहीं मिले तो वह किसी अनहोनी के बारे में सोच कर चिंतित हो उठा. उस ने पत्नी और बच्चों की तलाश रिश्तेदारों एवं जानपहचान वालों के यहां की. लेकिन वे वहां भी नहीं थे.

जब मेहर और बच्चों का कहीं कुछ पता नहीं चला तो अगले दिन यानी 10 अगस्त को परिजनों की सलाह पर फताराम ने थाना पल्लू में अपनी पत्नी और बच्चों की गुमशुदगी दर्ज करा दी. अब फताराम और उस के घर वालों के साथ पुलिस भी मेहर और बच्चों की तलाश करने लगी.

लेकिन कई दिनों बाद भी मेहर और बच्चों का कुछ पता  नहीं चला. जब इस बात की जानकारी गांव के ही मनीराम और रूपाराम को हुई तो उन्होंने फताराम के घर जा कर बताया कि कई दिन पहले रात को उन्होंने मेहर को गांव के बाहर वाले तालाब के पास राजमिस्त्री कृष्ण से बातें करते देखा था. तब बच्चे भी उस के साथ थे..

कृष्ण और मेहर के बीच अवैध संबंधों की जानकारी फताराम को थी. लेकिन मेहर बच्चों को ले कर उसके साथ भाग जाएगी, यह उस ने नहीं सोचा था. एक बार उसे विश्वास भी नहीं हुआ कि मेहर ऐसा करेगी. लेकिन जब उस ने इस बात पर गहराई से विचार किया तो उसे लगा कि मेहर बच्चों को ले कर उसी के साथ चली गई है.

19 अगस्त को फताराम अपने एक रिश्तेदार नंदलाल के साथ कृष्ण के गांव आशाखेड़ा पहुंचा. उन दोनों को देख कर कृष्ण के होश उड़ गए. मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के हाथ में देख कर फताराम ने पूछा, ‘‘मेहर कहां है?’’

‘‘मैं क्या जानूं, वह कहां है?’’

‘‘लेकिन तुम्हारे पास यह जो मोबाइल फोन है, वह मेहर का है.’’ फताराम ने कहा.

‘‘इसे तो उस ने गांव में ही मुझे बेच दिया था.’’  कृष्ण ने कहा.

जब कृष्ण ने मेहर के बारे में कुछ नहीं बताया तो फताराम वापस आ गया. अगले दिन वह नंदलाल के साथ थाना पल्लू पहुंचा और थानाप्रभारी सुनील चारण को बताया कि उस ने अपनी पत्नी मेहर का मोबाइल फोन कृष्ण के पास देखा है.

इस के बाद फताराम की तहरीर पर थानाप्रभारी सुनील चारण ने राजमिस्त्री कृष्ण कुमार के खिलाफ भादंवि की धारा 365, 366 तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद थानाप्रभारी ने इस बात की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी तो पुलिस उपाधीक्षक सत्यपाल सोलंकी के आदेश पर थानाप्रभारी सुनील चारण ने अगले दिन यानी 21 अगस्त को हरियाणा के चौटाला गांव से कृष्ण को गिरफ्तार कर लिया.

उसी दिन रावतसर के नजदीक से गुजरने वाली इंदिरा गांधी कैनाल की आरडी 84 के पास पुलिस ने एक बच्ची की लाश बरामद की. जब फताराम को बुला कर उस बच्ची की लाश दिखाई गई तो उस ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी गरिमा के रूप में की. पोस्टमार्टम के बाद लाश पुलिस ने उसे सौंप दी.

गिरफ्तार अभियुक्त कृष्ण को पुलिस ने नोहर के एसीजेएम की अदालत में पेश किया और पूछताछ के लिए पुलिस रिमांड की मांग की. जांच अधिकारी ने जो दलीलें दी थीं, उन्हें सुन कर अदालत ने आरोपी को 9 दिनों के पुलिस रिमांड पर दे दिया.

रिमांड अवधि के दौरान कृष्ण ने मेहर की हत्या का अपराध स्वीकार करते हुए उस का मोबाइल फोन और वह मोटरसाइकिल भी बरामद करा दी, जिस से वह मेहर को ले कर भागा था. इस के बाद उस ने मेहर और उस के बच्चों की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी.

राजस्थान के जिला चुरू की तहसील सरदार शहर का एक गांव है पुनसीसर. इसी गांव की रहने वाली थी मेहर उर्फ मोहरां. मेहर शादी लायक हुई तो उस के पिता ने सन 2008 में उस की शादी जिला हनुमानगढ़ की तहसील नोहर के थिराना गांव के रहने वाले हेतराम के बेटे फताराम के साथ कर दी.

सुंदर सलोनी मेहर को पत्नी के रूप में पा कर फताराम निहाल हो गया था. जबकि मेहर की उम्मीदों पर पानी फिर गया. क्योंकि मेहर का सपनों का राजकुमार तो छैलछबीला था. उस की जगह उसे एक मेहनती, कर्मठ और सच्चा प्रेम करने वाला आम शक्लसूरत का साधारण पति मिला था.

मेहर ने हालात से समझौता किया और समझदार घर वाली के रूप में अपनी गृहस्थी संभाल ली. समय अपनी गति से  गुजरता रहा. फताराम के पिता के पास खेती लायक थोड़ी जमीन थी. सिचाई के अभाव से उस में कोई खास पैदावार नहीं होती थी. इसलिए हेतराम के तीनों बेटे मेहनतमजदूरी करते थे.

फताराम शादियों में खाना बना कर थोड़ीबहुत कमाई कर लेता था. खाली समय में वह भी पिता और भाइयों की तरह मजदूरी करता था.

सन 2011 में मेहर ने एक बेटी को जन्म दिया, जिस का नाम उस ने गरिमा रखा. इस के बाद हेतराम ने बड़े बेटे की तरह फताराम को भी अलग कर दिया. फताराम अपने पुश्तैनी मकान से अलग कमरा बना कर मेहर और बेटी के साथ रहने लगा.

परिवार से अलग होने और बिटिया के पैदा होने से फताराम काफी मेहनत कर के भी घर के खर्चे पूरे नहीं कर पा रहा था. गुजरबसर के लिए फताराम को हाड़तोड़ मेहनत करनी पड़ रही थी. इस के बावजूद उस की स्थिति में जरा भी सुधार नहीं हो रहा था.

पति को परेशान देख कर एक दिन मेहर ने कहा, ‘‘अगर तुम कहो तो मैं भी तुम्हारे साथ मजदूरी करने चलूं. दोनों जन मजदूरी करेंगे तो कमाई दोगुनी हो जाएगी. उस के बाद तुम्हें इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ेगी.’’

‘‘ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि मेरे घर की कोई भी औरत आज तक मजदूरी करने नहीं गई तो भला मैं तुम से कैसे मजदूरी करवा सकता हूं. अगर तुम्हें अपने साथ काम पर ले गया तो गांव वाले मेरी हंसी उड़ाएंगे कि औरत की कमाई खाता है.’’

‘‘अपने गांव में मैं मजदूरी नहीं कर सकती तो हम कहीं दूर अंजान जगह पर चलते हैं, जहां दोनों मजदूरी कर सकें. मैं ने मायके में खूब मजदूरी की है. तुम मर्दों से मैं दोगुना काम कर सकती हूं.’’ मेहर ने कहा.

पत्नी की इस बात पर फताराम को हंसी आ गई. लेकिन उसे मेहर की यह सलाह जंच गई.

अगले ही दिन फताराम मेहर और बेटी को ले कर हरियाणा के रहने वाले अपने एक दूर के रिश्तेदार के यहां पन्नीवाली चला गया. वहां गांव में ही किसी का मकान बन रहा था, उसी में फताराम और मेहर मजदूरी करने लगे.

उसी मकान पर कृष्ण कुमार राजमिस्त्री के रूप में काम करता था. वह हरियाणा के जिला सिरसा के गांव आशाखेड़ा के रहने वाले रामप्रताप का बेटा था. वह भी काम की तलाश में वहां गया था. मेहर के काम करने के ढंग और फुर्तीलेपन से वह काफी प्रभावित हुआ. उस ने मेहर के काम की प्रशंसा की तो वह खुशी से गदगद हो उठी. वह घूंघट हटा कर मंदमंद मुसकराई तो कृष्ण का हौंसला बढ़ गया.

धीरेधीरे कृष्ण मेहर पर डोरे डालने लगा. उसे अपने प्रेमजाल में फंसाने के लिए वह उस की कदकाठी और सुंदरता की प्रशंसा के पुल बांधने लगा. बातचीत का सिलसिला चल पड़ा था, इसलिए वह मेहर को भाभी कहने लगा था. अपने लिए कृष्ण के मन में रुचि देख कर मेहर भी उस की तरफ खिंची चली गई.

औरतों को प्रेमजाल में फंसाने में माहिर कृष्ण ने मेहर पर पैसे भी खर्च करने शुरू कर दिए. परिणामस्वरूप जल्दी ही देवरभाभी के मुंहबोले पवित्र रिश्ते को दोनों ने तारतार कर दिया. इस तरह मन से कृष्ण की हुई मेहर, तन से भी उस की हो गई.

कृष्ण कुंवारा था, इसलिए मेहर को वह सपनों का राजकुमार लगने लगा. दोनों इस तरह चोरी से मिलते थे कि फताराम को उन के इस संबंध की भनक तक नहीं लग पाई. कुछ दिनों बाद फताराम को गांव में पानी बरसने की जानकारी मिली तो उस ने अपने खेतों की जुताईबुवाई के लिए गांव जाने की तैयारी कर ली.

जब उस ने यह बात मेहर को बताई तो कृष्ण से दूर होने की बात सोच कर वह उदास हो गई. उस ने यह बात कृष्ण से कही तो उस ने कहा, ‘‘इस में परेशान होने की क्या बात है. मैं तुम्हें एक मोबाइल फोन ला कर दिए देता हूं, उस से हमारी बातें तो होती ही रहेंगी, मिलने में भी वह हमारी मदद करेगा.’’

मेहर कृष्ण का इशारा समझ गई. उस ने कहा, ‘‘कृष्ण वह मोबाइल फोन तुम मुझे उन के सामने गिफ्ट के रूप में देना, ताकि उन्हें किसी प्रकार शक न हो, क्योंकि वह बहुत शक्की स्वभाव के हैं.’’

वादे के अनुसार कृष्ण ने एक नया मोबाइल फोन ला कर फताराम के सामने मेहर को गिफ्ट कर दिया. अगले दिन फताराम मेहर को ले कर अपने गांव थिराना आ गया.

मेहर के जाने के बाद उस के प्रेम में पागल कृष्ण को उस के बिना एक भी पल काटना मुश्किल लगता था. मेहर की हालत तो उस से भी बदतर थी. हालांकि दोनों की फोन पर बातें होती रहती थीं, लेकिन बातों से मन नहीं भरता था. वे तो एकदूसरे को बांहों में भर कर प्यार करना चाहते थे. लेकिन यह संभव नहीं हो पा रहा था.

इस बीच मेहर ने एक बेटे को भी जन्म दिया था. अब वह 2 बच्चों की मां बन गई थी. बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो एक दिन मेहर ने फोन पर कह दिया, ‘‘कृष्ण, मैं औरत हूं, लेकिन तू तो मर्द है. अगर तू चाहे तो मिलने का कोई न कोई रास्ता निकाल सकता है.’’

कृष्ण ने जवाब में कहा, ‘‘मेहर, मैं ने रास्ता निकाल लिया है. मैं कल ही तुम्हारे गांव आ रहा हूं. वहां भी कोई न कोई काम मिल ही जाएगा.’’

कृष्ण ने कहा ही नहीं, बल्कि अगले दिन थिराना पहुंच भी गया. बगल के गांव में किसी का मकान बन रहा था, वहां उसे राजमिस्त्री का काम भी मिल गया. गांवों में वैसे भी किसी का घर ढूंढ़ने में दिक्कत नहीं होती, कृष्ण को भी फताराम का घर आसानी से मिल गया. मियांबीवी ने कृष्ण की दिल खोल कर आवभगत की.

गांव आने के बाद फताराम शादीब्याह में खाना बनाने का काम करने लगा था. यहां मेहर मजदूरी करने नहीं जाती थी. कुछ देर रुक कर कृष्ण लौट गया.

रात का खाना खा कर कृष्ण सोने की कोशिश कर रहा था. लेकिन आंखों के सामने तो मेहर का गदराया बदन घूम रहा था, इसलिए उसे नींद नहीं आ रही थी. अचानक उस के मोबाइल की घंटी बजी. फोन उठा कर देखा तो मेहर का फोन था.

कृष्ण ने जैसे ही फोन रिसीव किया, मेहर ने कहा, ‘‘अभी जाग रहे हो? लगता है नींद नहीं आ रही है?’’

‘‘तुम्हें देखने के बाद भला नींद आ सकती है. नींद और दिल तो तुम ने चुरा लिया है.’’ कृष्ण ने आह भरते हुए कहा.

‘‘सुनो, कल यह एक विवाह में खाना बनाने जाएंगे. वहां इन्हें 3 दिनों तक रुकना है. इन के जाते ही मैं तुम्हें फोन कर दूंगी. 3 दिन दोनों मौज करेंगे.’’ कह कर मेहर ने फोन काट दिया.

प्रेमिका का संदेश मिलते ही कृष्ण छिपतेछिपाते मेहर के घर पहुंच गया. कई महीने से मिलन के लिए तरस रहे मेहर और कृष्ण ने पूरी रात जश्न मनाया. इस तरह एक बार फिर दोनों के मिलने का सिलसिला शुरू हो गया. जब भी मौका मिलता, मेहर कृष्ण को फोन कर के बुला लेती और दोनों मौजमस्ती करते.

कहावत है कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते, कृष्ण और मेहर का भी यह मिलन उजागर हो गया. दोनों के लाख सावधानी बरतने के बावजूद एक रात मेहर के देवर ने दोनों को रंगेहाथों पकड़ लिया. उस ने कृष्ण को धमकाया, ‘‘फिर कभी इधर दिखाई दिया तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगा.’’

भाभी को कुछ कहने के बजाय उस ने यह बात फताराम को बता दी. पत्नी की चरित्रहीनता से नाराज हो कर फताराम ने मेहर की जम कर पिटाई की. इस के बाद उस ने पत्नी पर नजर रखने के साथसाथ बंदिशें भी लगा दीं. बंदिशों से मेहर को घुटन सी होने लगी. मेहर से न मिल पाने की वजह से कृष्ण भी बेचैन था.

जब नहीं रहा गया तो मोबाइल पर बात कर के मेहर ने कृष्ण के साथ भाग जाने की योजना बना डाली. इस के बाद अगली रात यानी 8 अगस्त की रात मेहर बच्चों को ले कर अकेली ही गांव के बाहर तालाब पर पहुंच गई. मोटरसाइकिल लिए कृष्ण वहां पहले से ही खड़ा था.

कृष्ण मेहर और बच्चों को ले कर हरियाणा की ओर जाने वाली सड़क पर चल पड़ा. कुछ घंटों की यात्रा के बाद वह सभी को ले कर हरियाणा के गोरीवाला गांव पहुंचा. गांव में सत्संग चल रहा था. कृष्ण मेहर और बच्चों को ले कर सत्संग में बैठ गया. सवेरा होने पर कृष्ण सभी को ले कर राजस्थान के संगरिया कस्बे में पहुंचा. वहां उस ने मेहर तथा बच्चों को रेलवे स्टेशन पर छोड़ दिया और खुद नजदीक ही एक जगह पर मजदूरी करने चला गया.

दिन भर कृष्ण मजदूरी करता था तो मेहर रेलवे स्टेशन के प्रतीक्षालय में बच्चों को लिए बैठी रहती थी. रात में कृष्ण भी वहीं आ कर सो जाता था. खानेपीने की व्यवस्था वह बाहर से करता. वे वहां रह तो रहे थे, लेकिन दोनों को इस बात का डर सता रहा था कि फताराम ने रिपोर्ट लिखा दी होगी और पुलिस उन के पीछे पड़ी होगी. अगर वे पकड़े गए तो फजीहत तो होगी ही, जेल भी जाना पड़ेगा.

पुलिस के डर से दोनों का खानापीना और नींद हराम हो गई थी. पकड़े जाने के ही डर से कृष्ण मेहर को ले कर घर नहीं जा रहा था. इसी तरह 5 दिन बीत गए. जब कोई राह नहीं सूझी तो उन्होंने आत्महत्या करने का मन बना लिया. इस के बाद कृष्ण मेहर और उस के बच्चों को ले कर कालुआना गांव के नजदीक से बहने वाली इंदिरा गांधी नहर पर पहुंचा.

सूरज के डूब जाने से अंधेरा फैलने लगा था. नहर की पटरी पर बैठे कृष्ण ने एक बार फिर मेहर को समझाते हुए कहा, ‘‘मेहर, मैं जो कह रहा हूं, उसे मान लेने में ही हम दोनों की भलाई है. मैं तुझे रात में तेरे गांव पहुंचा देता हूं. मेरे पास ढेर सारे पैसे हो जाएंगे तो मैं तुझे कहीं दूर ले चलूंगा.’’

‘‘कृष्ण, गांव जाने के अलावा तू कुछ भी कहेगा, मैं करने को तैयार हूं. जिस दिन मैं ने तेरे साथ घर छोड़ा है, उसी दिन मैं गांव और घर वालों के लिए मर चुकी हूं. पति के पास या मायके जाने के बजाय मैं इस नहर में डूब मर जाना बेहतर समझती हूं.’’ मेहर ने कहा.

‘‘मर जाना किसी समस्या का हल नहीं है मेहर. हमें जीना चाहिए. जिएंगे तभी तो एकदूसरे को प्यार कर पाएंगे.’’ कृष्ण ने कहा.

‘‘तुम्हें प्यार करने की पड़ी है. फताराम पुलिस वालों को साथ लिए हमें ढूंढ रहा होगा. जिस दिन दोनों पकड़े गए, प्यार करना भूल जाएंगे.’’ मेहर ने कहा.

पुलिस के डर से ही तो कृष्ण भागाभागा फिर रहा था. उसे लगा, मेहर सच कह रही है. लेकिन वह मरना नहीं चाहता था, इसीलिए मेहर को बहकाते हुए इसी तरह लगभग घंटे भर चर्चा करता रहा. लेकिन अंत में मेहर ने कहा, ‘‘मेरी इच्छा यही है कि जिस तरह इस जन्म में मैं तेरी हो गई, उसी तरह अगले जन्म में भी तेरी ही रहूं. इसलिए हम दोनों को एक साथ नहर में कूद कर जान दे देनी चाहिए. कहते हैं, इस तरह एक साथ मरने से अगले जन्म में साथ मिल जाते हैं.’’

‘‘इन बच्चों का क्या होगा?’’ कृष्ण ने पूछा.

‘‘इन्हें हम किसी के भरोसे क्यों छोड़ेंगे. इन दोनों  को भी साथ ले कर कूदेंगे.’’ मेहर ने कहा.

कुछ देर दोनों मौन बैठे रहे. कृष्ण खड़ा हुआ तो मेहर भी उठ कर खड़ी हो गई. उस ने बेटी का हाथ पकड़ा और बेटे को गोद में उठा लिया. दोनों की सांसें घबराहट की वजह से धौंकनी की तरह चल रही थीं. योजना के अनुसार कृष्ण ने गिनती शुरू की. जैसे ही उस ने 3 कहा, मेहर दोनों बच्चों के साथ नहर में कूद गई. लेकिन कृष्ण जस का तस खड़ा रह गया.

नहर के तेज बहाव में मेहर बच्चों के साथ बह गई. कृष्ण बुत बना थोड़ी देर तक नहर के बहते पानी को देखता रहा. उस के मन में क्या चल रहा था, वह तो वही जाने, लेकिन उस ने मेहर के साथ जीने और साथ मरने की जो कसमें खाई थीं, उन्हें पूरा नहीं कर सका. कुछ देर बाद उस ने मोटरसाइकिल उठाई और अपने घर की ओर चल पड़ा.

रिमांड अवधि खत्म होने पर पुलिस ने कृष्ण को फिर से अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पता चला है कि कृष्ण की कहीं और शादी तय हो गई थी, इसीलिए वह मेहर से छुटकारा पाना चाहता था. शायद इसीलिए धोखे से उस ने उसे नहर में गिरा दिया था, साथ ही बच्चों को भी नहर में फेंक दिया था.

पुलिस मेहर और उस के बेटे के शव को बरामद करने के लिए नहर पर नजर रख रही थी. सभी थानों को भी सूचना दे दी गई थी. मेहर की नादानी की वजह से एक भरापूरा परिवार खत्म हो गया.

देह की राह के राही

आरजू की लाश पर सजाई सेज

जबरदस्ती का प्यार