Social Crime Stories : 20 लाख के लिए साले ने किया जीजा के भाई का कत्ल

Social Crime Stories : आगरा के संजय पैलेस स्थित आईसीआईसीआई बैंक के कैशियर के सामने जैसे ही एक करोड़ रुपए का चैक आया, उस ने नजरें उठा कर चैक रखने वाले को देखा तो एकदम से उस के मुंह से निकल गया, ‘‘नमस्कार इमरान भाई, कहो कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूं भाईजान, आप कैसे हैं?’’ जवाब में इमरान ने कहा.

‘‘मैं भी ठीक हूं्.’’ कैशियर ने कहा.

‘‘भाईजान थोड़ा जल्दी कर देंगे, बड़े भाईजान का फोन आ चुका है. वह मेरा ही इंतजार कर रहे हैं.’’ इमरान ने कहा.

कैशियर अपनी सीट से उठा और मैनेजर के कक्ष में गया. थोड़ी देर बाद लौट कर उस ने कहा, ‘‘इमरानभाई, आज तो बैंक में इतनी रकम नहीं है. जो है वह ले लीजिए, बाकी का भुगतान कल कर दूं तो..?’’

‘‘कोई बात नहीं. आज कितना कर सकते हैं?’’ इमरान ने पूछा.

‘‘20-25 लाख होंगे. ऐसा है, आप को आज 20 लाख दे देता हूं. बाकी कल ले लीजिएगा.’’ कैशियर ने कहा तो इमरान ने एक करोड़ वाला चैक वापस ले कर 20 लाख का दूसरा चैक दे दिया. कैशियर ने उसे 20 लाख रुपए दिए तो उन्हें बैग में डाल कर वह बाहर खड़ी अपनी मारुति 800 से शहर से 15 किलोमीटर दूर कुबेरनगर स्थित अपने ताऊ के बेटे पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) की ओर चल पड़ा.

यह शाम के सवा 4 बजे की बात थी. साढे़ 4 बजे के आसपास इमरान पैसे ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंचा था कि उस के बड़े भाई इरफान का फोन आ गया. फोन रिसीव कर के उस ने कहा, ‘‘भाईजान, बैंक से 20 लाख रुपए ही मिल सके हैं. मैं उन्हें ले कर 10-15 मिनट में पहुंच रहा हूं.’’

इमरान ने 10-15 मिनट में पहुंचने को कहा था. लेकिन एक घंटे से भी ज्यादा समय हो गया और वह स्लाटर हाउस नहीं पहुंचा तो उस के बड़े भाई इरफान को चिंता हुई. उस ने इमरान को फोन किया तो पता चला कि उस के दोनों फोन बंद हैं. इरफान परेशान हो उठा.  वह बारबार नंबर मिला कर इमरान से संपर्क करने की कोशिश करता रहा, लेकिन फोन बंद होने की वजह से संपर्क नहीं हो पाया. अब तक शाम के 7 बज गए थे. इरफान को हैरानी के साथसाथ चिंता भी होने लगी.

इमरान और इरफान आगरा छावनी से बसपा के विधायक रह चुके जुल्फिकार अहमद भुट्टो के चचेरे भाई थे. दोनों भाई आगरा शहर से यही कोई 15 किलोमीटर दूर कुबेरपुर स्थित जुल्फिकार अहमद भुट्टो के स्लाटर हाउस (कट्टीखाने) का कामकाज देखते थे. इरफान फैक्ट्री का एकाउंट संभालता था तो उस से छोटा इमरान फील्ड का काम देखता था. बैंक में रुपए जमा कराने, निकाल कर लाने आदि का काम वही करता था.

चूंकि उन के चचेरे भाई बसपा के विधायक रह चुके थे, इसलिए यह काम इमरान अकेला ही करता था. अपने साथ वह कोई हथियार भी नहीं रखता था. इस की वजह यह थी कि वह खुद तो साहसी था ही, फिर सिर पर बड़े भाई का हाथ भी था. लेकिन जब से उस के बड़े भाई इरफान का साला भोलू स्लाटर हाउस से जुड़ा था, वह इमरान के साथ रहने लगा था. बड़े भाई का साला होने की वजह से भोलू भरोसे का आदमी था. इसीलिए बैंक आनेजाने में इमरान उसे साथ रखने लगा था.

लेकिन 3 दिसंबर को भोलू ने फोन कर के कहा था कि वह जानवरों की खरीदारी के लिए शमसाबाद जा रहा है, इसलिए आज नहीं आ पाएगा. भोलू ने यह बात इमरान और इरफान दोनों भाइयों को बता दी थी, जिस से वे उस का इंतजार न करें. भोलू नहीं आया तो इमरान अकेला ही बैंक चला गया था. वह चला तो गया था, लेकिन लौट कर नहीं आया था.

7 बजे के आसपास पैसे ले कर इमरान के वापस न आने की बात इरफान ने बड़े भाई जुल्फिकार अहमद भुट्टो को बताई तो वह भी परेशान हो उठे. उन्हें पैसों की उतनी चिंता नहीं थी, जितनी भाई की थी. वह इमरान को बहुत पसंद करते थे. इसीलिए उन्होंने उसे अपने यहां रखा था. उन के यहां काम करते उसे लगभग ढाई साल हो गए थे. इस बीच उस ने एक पैसे की भी हेराफेरी नहीं की थी.

जुल्फिकार अहमद भुट्टो ने भी इमरान के दोनों नंबरों पर फोन किया. जब दोनों नंबर बंद मिले तो वह इरफान के अलावा फैक्ट्री के 20-25 लोगों को 6-7 गाडि़यों से ले कर वाटर वर्क्स चौराहे पर जा पहुंचे, क्योंकि इमरान ने वहीं से बड़े भाई इरफान को आखिरी फोन किया था. इधरउधर तलाश करने के बाद वहां के दुकानदारों से ही नहीं, बीट पर मौजूद सिपाहियों से भी पूछा गया कि यहां कोई हादसा तो नहीं हुआ था.

वाटर वर्क्स चौराहे पर इमरान के बारे में कुछ पता नहीं चला तो वाटर वर्क्स चौराहे से फैक्ट्री तक ही नहीं, पूरे शहर में उस की तलाश की गई. लेकिन उस के बारे में कहीं कुछ पता नहीं चला. सब हैरानपरेशान थे. लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर इमरान कहां चला गया. ऐसे में जब कुछ लोगों ने आशंका व्यक्त की कि कहीं पैसे ले कर इमरान भाग तो नहीं गया, तब पूर्व विधायक जुल्फिकार अहमद ने चीख कर कहा था, ‘भूल कर भी ऐसी बात मत करना. वह मेरा भाई है, ऐसा हरगिज नहीं कर सकता.’

सुबह होते ही फिर इमरान की खोज शुरू हो गई थी. उस के इस तरह गायब होने से उस के घर में कोहराम मचा हुआ था. घर के किसी भी सदस्य के आंसू थम नहीं रहे थे. सब को इस बात की आशंका सता रही थी कि कहीं इमरान के साथ कोई अनहोनी तो नहीं घट गई. बैंक जा कर भी इमरान के बारे में पूछा गया. बैंक में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी देखी गई. पता चला, वह बैंक में अकेला ही आया था और अकेला ही गया था.

अब इमरान के घर वालों के पास इमरान की गुमशुदगी दर्ज कराने के अलावा दूसरा कोई चारा नहीं बचा था. जुल्फिकार अहमद भुट्टो पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार से मिले और उन्हें सारी बात बताई. उन्होंने तुरंत थाना हरिपर्वत के थानाप्रभारी सुरेंद्र कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को इस मामले को प्राथमिकता से देखने का आदेश दिया. थाना हरि पर्वत पुलिस ने इमरान की गुमशुदगी दर्ज कर इमरान के दोनों नंबर सर्विलांस सेल को दे कर उन की काल डिटेल्स और आखिरी लोकेशन बताने का आग्रह किया.

पुलिस अधीक्षक (नगर) पवन कुमार ने इस मामले की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर को भी दे दी थी. पुलिस इस मामले में तत्परता से लग गई. इमरान के मोबाइल जब बंद हुए थे, तब वे वाटर वर्क्स और रामबाग चौराहे के टावरों की सीमा में थे. काल डिटेल्स में ऐसा कोई भी नंबर नहीं था, जिस पर संदेह किया जाता. जो भी फोन आए थे या किए गए थे, वे अपनों को ही किए गए थे या आए थे. जैसे कि इरफान, पूर्व विधायक के घर के नंबरों व भोलू के नंबरों के थे. एक दिन पहले भी इरफान या भोलू के फोन आए थे या इन्हें ही किए गए थे. चूंकि पुलिस को इन फोनों में कुछ नया या संदेहास्पद नजर नहीं आया, इसलिए पुलिस अन्य बातों पर विचार करने लगी.

इस काल डिटेल्स और लोकेशन की एकएक कौपी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर, पुलिस अधीक्षक पवन कुमार और क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ को भी दी गई थी. इन अधिकारियों ने जब काल डिटेल्स और लोकेशन का अध्ययन किया तो उन्हें एक नंबर पर संदेह हुआ. पुलिस ने उस नंबर की लोकेशन निकलवाई तो यह संदेह और बढ़ गया. यह आदमी कोई और नहीं, इरफान का साला भोलू था, जो इमरान के साथ बैंक आता जाता था.

पुलिस ने भोलू को थाने बुलाया तो उस के साथ पूरा परिवार ही चला आया. सभी पुलिस से उस पर शक की वजह पूछने लगे तो क्षेत्राधिकारी समीर सौरभ ने कहा, ‘‘पुलिस शक के आधार पर ही अभियुक्तों तक पहुंचती है. हम किसी पर भी शक कर सकते हैं. वह सगा हो या पराया. आप लोग निश्चिंत रहें, हम किसी निर्दोष व्यक्ति को कतई नहीं फंसाएंगे.’’

क्षेत्राधिकारी के इस आश्वासन पर सभी को विश्वास हो गया कि भोलू को सिर्फ पूछताछ के लिए बुलाया गया है. क्योंकि वही उस के साथ बैंक आताजाता था. पुलिस भोलू से पूछताछ करती रही, जबकि वह स्वयं को निर्दोष बताते हुए पुलिस की इस काररवाई को अपने साथ अन्याय कहता रहा था. इस तरह 4 दिसंबर का दिन भी बीत गया. कोई जानकारी न मिलने से इमरान के घर वालों की चिंता बढ़ती ही जा रही थी. 5 दिसंबर की सुबह आगरा से यही कोई 20 किलोमीटर दूर यमुना एक्सप्रेसवे से सटे गांव चौगान के पंचमुखी महादेव मंदिर के पुजारी ने एक्सप्रेसवे से सटे एक गड्ढे में एक Social Crime Stories युवक की लाश देखी. चूंकि लाश खून से लथपथ थी, इसलिए उसे समझते देर नहीं लगी कि किसी ने इस अभागे को मार कर यहां फेंक दिया है.

पुजारी ने इस घटना की सूचना ग्रामप्रधान को दी तो उस ने इस बात की जानकारी थाना एत्मादपुर पुलिस को दे दी. थाना एत्मादपुर पुलिस तुरंत घटनास्थल पर पहुंची और लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की. लाश की शिनाख्त नहीं हो सकी तो उन्होंने इस बात की सूचना जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही उन्होंने मृतक का हुलिया भी बता दिया था. थाना एत्मादपुर पुलिस ने मृतक का जो हुलिया बताया था, वह 3 दिसंबर की शाम से लापता इमरान से हुबहू मिल रहा था. इसलिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शलभ माथुर पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण-पश्चिम) बबीता साहू, क्षेत्राधिकारी अवनीश कुमार, समीर सौरभ के अलावा कई थानों का पुलिस बल एवं इमरान के घर वालों को साथ ले कर गांव चौगान पहुंच गए.

शव इमरान का ही था. हत्यारों ने उसे बड़ी बेरहमी से मारा था. उसे गोली तो मारी ही थी, उस का गला भी काट दिया था. पुलिस ने जहां लाश पड़ी थी, वहीं से थोड़ी दूरी पर पड़े चाकू और पिस्टल को भी बरामद कर लिया था. साफ था, इन्हीं से इमरान की हत्या की गई थी. हत्या करने वाले दोनों चीजें वहीं फेंक गए थे. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए आगरा मैडिकल कालेज भिजवा दिया. लाश बरामद होने से साफ हो गया कि इमरान की हत्या हो चुकी है. लाश के पास उस की कार और पैसे नहीं मिले थे, इस का मतलब यह हत्या उन्हीं पैसों के लिए की गई थी, जो वह बैंक से ले कर चला था. लाश बरामद होने के बाद पुलिस ने भोलू से सख्ती से पूछताछ शुरू की. इस की वजह यह थी कि पुलिस के पास उस के खिलाफ अब तक पुख्ता सुबूत मिल चुके थे.

पुलिस ने उस के मोबाइल फोन की 3 दिसंबर की लोकेशन निकलवाई तो चौगान की मिली थी. पुलिस ने इसी लोकेशन को आधार बना कर भोलू के साथ सख्ती की तो उसे इमरान की हत्या की बात स्वीकार करनी ही पड़ी. इस के बाद उस ने अपने उस साथी का भी नाम बता दिया, जिस के साथ मिल कर उस ने इस घटना को अंजाम दिया था. इमरान की हत्या का राज खुला तो इमरान के घर वाले ही नहीं, रिश्तेदार और दोस्त यार भी हैरान रह गए. हैरान होने वाली बात ही थी. इमरान की हत्या करने वाला भोलू इमरान के बड़े भाई का साला तो था ही, इमरान का पक्का दोस्त भी था. इस के बावजूद उस ने हत्या कर दी थी. आइए, अब यह जानते हैं कि आखिर भोलू ने ऐसा क्यों किया था?

हाजी सलीमुद्दीन और हाजी मोहम्मद आशिक, दोनों सगे भाई आगरा के ताजगंज के कटरा उमर खां में रहते हैं. हाजी मोहम्मद आशिक के बड़े बेटे मोहम्मद जुल्फिकार अहमद भुट्टो उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के विधायक भी रह चुके हैं. मायावती प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तो भुट्टो की प्रदेश में खासी इज्जत थी. इस की वजह यह थी कि वह मायावती के खासमखास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खासमखास थे. भुट्टो के विधायक रहते हुए आगरा के कुबेरपुर स्थित उन के स्लाटर हाउस ने खासी तरक्की की. इस की खपत एकाएक बढ़ गई. काम बढ़ा तो वर्कर भी बढ़ गए. तभी उन्होंने अपने चाचा सलीमुद्दीन के बड़े बेटे इरफान को अपने स्लाटर हाउस का हिसाबकिताब देखने के लिए रख लिया. इरफान को यह काम पसंद आ गया तो 2 साल पहले उस ने अपने छोटे भाई इमरान को भी अपनी मदद के लिए स्लाटर हाउस में रख लिया.

20 वर्षीय इमरान मेहनती युवक था. स्लाटर हाउस में नौकरी करने से पहले वह ताजमहल में गाइड का काम करता था. वहां वह ठीकठाक कमाई कर रहा था, लेकिन जब भुट्टो ने उस से इरफान की मदद के लिए स्लाटर हाउस में काम करने को कहा तो उस ने गाइड का काम छोड़ दिया और भाई के स्लाटर हाउस का काम देखने लगा. 5 भाइयों में सब से छोटे Social Crime Stories इमरान ने स्लाटर हाउस में आते ही रुपयों के लेनदेन से ले कर बाहर के सारे काम संभाल लिए. इस तरह इमरान ने आते ही इरफान का बोझ आधा कर दिया.

इरफान की शादी हो चुकी थी. उस का विवाह आगरा शहर के ही वजीरपुरा के रहने वाले अहसान की बेटी सीमा के साथ हुआ था. उस के ससुर दरी के अच्छे कारीगर थे, इसलिए उन का दरियों का कारोबार था. उन के इंतकाल के बाद इस पुश्तैनी काम में ज्यादा मुनाफा नहीं दिखाई दिया तो उन के सब से छोटे बेटे भोलू ने जूतों के डिब्बे बनाने का काम शुरू कर दिया. जबकि उस के 3 अन्य भाई और चाचा दरी का पुश्तैनी कारोबार ही करते रहे. भोलू का जूतों के डिब्बे बनाने का काम बढि़या चल निकला. उसी की कमाई से जल्दी ही उस ने मारुति स्विफ्ट कार खरीद ली. भोलू अपनी बहन सीमा के यहां आताजाता ही रहता था. इसी आनेजाने में उस ने महसूस किया कि स्लाटर हाउस में जो लोग जानवर सप्लाई करते हैं, उन की अच्छीखासी कमाई होती है. उस के पास पैसे तो थे ही, उस ने अपने बहनोई इरफान से इस संबंध में बात की तो उस ने भुट्टो से बात कर के भोलू को जानवर खरीद कर लाने के लिए कह दिया.

इस के बाद भोलू आगरा के जानवरों के बाजारों, किरावली, शमसाबाद, बटेश्वर आदि से सस्ते दामों में जानवर खरीद कर बहनोई की मार्फत स्लाटर हाउस में बेचने लगा. इस काम में उसे अच्छीखासी कमाई होने लगी. जूतों के डिब्बों का उस का काम चल ही रहा था. इस तरह महीने में वह एक लाख रुपए से अधिक की कमाई करने लगा. किरावली बाजार में जानवरों की खरीदारी के दौरान भोलू की मुलाकात सलमान से हुई तो उसे यह आदमी भा गया. सलमान भी जानवरों की खरीदफरोख्त करता था. इस की वजह यह थी कि एक तो भोलू को कई काम देखने पड़ते थे, दूसरे सलमान इस काम में काफी तेज था. इसीलिए पहली मुलाकात में ही भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर बना लिया था. इस के बाद दोनों मिल कर जानवर खरीदने और बेचने लगे.

भोलू ने सलमान को बिजनैस पार्टनर तो बना लिया, लेकिन उस के बारे में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था. उस के बारे में उसे सिर्फ इतना पता था कि वह किरावली का रहने वाला है और उस का मोबाइल नंबर यह है. भोलू के साथ रहने में सलमान को फायदा दिखाई दिया, इसलिए वह उस के साथ रहने लगा. बड़े भाई का साला होने की वजह से इमरान की भोलू से खूब पटती थी. जिस दिन भोलू पशु मेले या बाजार नहीं गया होता था, सारा दिन इमरान उसे अपने साथ रखता था. उसी के सामने वह बैंक से पैसे भी निकालता था और जमा भी कराता था. 50 लाख से ले कर करोड़ रुपए निकालना उस के लिए आम बात थी.

भोलू ने कभी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं की थी, इसलिए इमरान उस पर पूरा विश्वास करने लगा था. भोलू का काम दोनों ओर से ठीकठाक चल रहा था. उस की कमाई महीने में लाख रुपए से ऊपर थी. लेकिन कमाई बढ़ी तो उस की पैसों की भूख भी बढ़ गई थी. अब वह करोड़पति बनने के सपने देखने लगा.

एक दिन शाम को वह सलमान के साथ बैठा था तो उस के मुंह से निकला, ‘‘यार सलमान, मेरे पास एक ऐसी योजना है, जिस के तहत हमें एक करोड़ रुपए आसानी से मिल सकते हैं.’’

‘‘कैसे?’’ सलमान ने पूछा.

इस के बाद भोलू ने उसे जो योजना बताई, सुन कर सलमान की रूह कांप उठी. लेकिन जब भोलू ने उसे पूरी योजना समझा कर मिलने वाली रकम का लालच दिया तो वह उस की योजना में शामिल हो गया.  3 दिसंबर को उन्होंने अपनी इस योजना को अंजाम देने की तैयारी भी कर ली. 2 दिसंबर यानी सोमवार को भोलू इमरान के साथ ही रहा. उस दिन बैंक का कोई काम नहीं था, इसलिए बैंक जाना नहीं हुआ. लेकिन उस दिन भोलू को पता चल गया कि अगले दिन इमरान को बैंक जाना है और लगभग एक करोड़े रुपए निकाल कर लाना है. शाम को घर जाते समय इमरान ने भोलू को वाटर वर्क्स चौराहे पर छोड़ दिया तो वहां से वह वजीरपुरा स्थित अपने घर चला गया.

इमरान की गाड़ी से उतरते ही भोलू ने सलमान को फोन कर के अगले दिन चाकू और पिस्तौल ले कर तैयार रहने के लिए कह दिया था. अगले दिन यानी 3 दिसंबर, 2013 दिन मंगलवार को योजनानुसार 10 बजे के आसपास भोलू ने अपने बहनोई इरफान को फोन कर के बताया कि आज वह सलमान के साथ जानवरों की खरीदारी करने शमसाबाद जा रहा है. इसलिए वह देर शाम तक ही स्लाटर हाउस आ पाएगा. तब इरफान ने उस से कहा था, ‘‘आज इमरान को बैंक से बड़ी रकम निकाल कर लाना है, हो सके तो तुम यह काम करा कर जाओ.’’

इस पर भोलू ने कहा, ‘‘दरअसल वहां कुछ व्यापारी सस्ते जानवर ले कर आने वाले हैं, अगर उन से सौदा पट गया तो काफी मोटा मुनाफा हो सकता है. इसलिए वहां जाना जरूरी है.’’

इस के बाद भोलू ने इमरान को भी फोन कर के कहा था, ‘‘इमरानभाई, मैं सलमान के साथ शमसाबाद जानवर खरीदने जा रहा हूं. इसलिए तुम अकेले ही बैंक चले जाना. क्योंकि मैं देर शाम तक ही वापस आ पाऊंगा.’’

योजनानुसार न तो भोलू शमसाबाद गया न सलमान. दोनों साए की तरह इमरान के पीछे इस तह लगे रहे कि वह उन्हें देख न पाए. इस बीच इमरान को फोन कर के वह पूछता रहा कि वह क्या कर रहा है? लेकिन उस ने यह नहीं पूछा था कि आज वह कितने रुपए निकाल रहा है?

इमरान जैसे ही रुपए ले कर बैंक से निकला, भोलू और सलमान टूसीटर से उस से पहले वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गए और वहीं खड़े हो कर इमरान पर नजर रखने लगे. जब उन्हें लगा कि इमरान वाटर वर्क्स चौराहे पर पहुंच गया होगा तो भोलू ने उसे फोन किया, ‘‘इमरानभाई, मैं शमसाबाद से लौट आया हूं और वाटर वर्क्स चौराहे पर खड़ा हूं. इस समय तुम कहां हो?’’

‘‘मैं यहीं वाटर वर्क्स चौराहे पर जाम में फंसा हूं. जहां से जवाहर पुल शुरू होता है, तुम वहीं पहुंचो. मैं वहीं से तुम्हें ले लूंगा.’’

भोलू सलमान के साथ जवाहर पुल के पास जा कर खड़ा हो गया. 5-7 मिनट बाद इमरान वहां पहुंचा तो भोलू इमरान की बगल वाली सीट पर बैठ गया तो सलमान पीछे वाली सीट पर. गाड़ी आगे बढ़ गई. इमरान को बातों में उलझा कर भोलू ने डैशबोर्ड पर रखे उस के दोनों मोबाइल फोन के स्विच औफ कर दिए. कार जैसे ही कुबेरपुर के पास पहुंची, भोलू ने कहा, ‘‘इमरानभाई, मेरे 2 दोस्त चौगान गांव के पास एक्सप्रेसवे के नीचे मेरा इंतजार कर रहे हैं. अगर तुम मुझे वहां तक छोड़ देते तो अच्छा रहता.’’

इमरान ने नानुकुर की, लेकिन चौगान गांव वहां से कोई बहुत ज्यादा दूर नहीं था. फिर भोलू पर उसे पूरा विश्वास था, इसलिए साथ में इतने रुपए होने के बावजूद इमरान ने कार चौगान गांव की ओर मोड़ दी. चौगान से कोई आधा किलोमीटर पहले ही सुनसान जंगली रास्ते पर लघुशंका के बहाने भोलू ने इमरान से कार रुकवा ली. भोलू नीचे उतरा और इधरउधर देख कर अंदर बैठे सलमान को इशारा किया. जैसे ही सलमान नीचे उतरा, भोलू ने तमंचा निकाल कर ड्राइविंग सीट पर बैठे इमरान के सीने पर गोली मार दी. उस ने दूसरी गोली मारनी चाही, लेकिन तमंचा धोखा दे गया. गोली लगते ही इमरान के मुंह से हलकी सी चीख निकली और वह छटपटाने लगा. भोलू ने सलमान से छुरा ले कर इमरान पर कई वार करने के साथ गला भी काट दिया कि कहीं यह बच न जाए. चाकू चलाने के दौरान भोलू के दोनों हाथ जख्मी हो गए, जिस में उस ने रूमाल बांध ली.

इस के बाद इमरान की लाश घसीट कर दोनों ने हाईवे से सटे एक गड्ढे में फेंक दी. वहीं पास ही उन्होंने चाकू और तमंचा भी फेंक दिया. इस के बाद कार ले कर भाग निकले. रास्ते में एक हैंडपंप पर कार रोक कर थोड़ीबहुत धुलाई की. वहां से थोड़ा आगे आ कर एक्सप्रेसवे पर उन्होंने रकम गिनी तो पता चला कि ये तो सिर्फ 20 लाख रुपए ही हैं. जबकि उन्हें एक करोड़ रुपए होने की उम्मीद थी. दोनों ने ही अपना अपना सिर पीट लिया. बहरहाल अब तो जो होना था, वह हो गया था. दोनों ने आधीआधी रकम ले ली. भोलू ने  सलमान को कार ठिकाने लगाने के लिए दे कर एक जगह रकम छिपाई और खुद स्लाटर हाउस पहुंच गया.

स्लाटर हाउस में इमरान के न आने की वजह से इरफान परेशान था. बहनोई से हालचाल पूछ कर वह इमरान की तलाश करने के बहाने बाहर आ गया. इरफान ने उस के हाथों पर रूमाल बंधी देखी तो उस के बारे में पूछा था. तब उस ने बहाना बना दिया था. स्लाटर हाउस से निकल कर भोलू ने छिपा कर रखे रुपए अपने एक परिचित के पास रखे और वापस जा कर इरफान के साथ इमरान की तलाश करने लगा.

दूसरी ओर इमरान की कार ले कर गया सलमान वहां से 5 किलोमीटर दूर एक ढाबे पर पहुंचा और एक दुर्घटनाग्रस्त ट्रेलर के पीछे कार खड़ी कर के ढाबे के एक कर्मचारी को 5 सौ रुपए का नोट दे कर कहा कि वह दिल्ली जा रहा है, इसलिए एक दिन के लिए अपनी इस कार को यहीं खड़ी कर रहा है. ढाबे के उस कर्मचारी को क्या ऐतराज होता, उस ने कह दिया कि खड़ी कर दो. सलमान ने वहीं अपने फोन का स्विच औफ किया और रुपए ले कर फरार हो गया.

s s p officce me bholu muh par kapra bandha

पुलिस ने मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर इमरान की हत्या में भोलू को गिरफ्तार किया था. इस की वजह यह थी कि उस ने सब से कहा था कि वह शमसाबाद जा रहा है, जबकि उस के मोबाइल फोन की लोकेशन आईसीआईसीआई बैंक से ले कर जहां से इमरान की लाश बरामद हुई थी, वहां तक मिली थी. मामले का खुलासा होने के बाद पुलिस ने इमरान की कार तो उस ढाबे से बरामद कर ली थी, लेकिन सलमान का मोबाइल बंद होने की वजह से उसे नहीं पकड़ पाई. पूछताछ के बाद पुलिस ने भोलू को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

सलमान की तलाश में आगरा के कई थानों की पुलिस तो लगी ही है, मृतक इमरान के घर वाले भी उस की खोज में लगे हैं. उन्हें 10 लाख रुपयों से ज्यादा इमरान के हत्यारे को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की चिंता है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

चुनाव लड़वाने के लिए ली दोस्त की बीवी उधार, चेयरमैन बनते ही मुकर गयी

Family Story in Hindi : नसीम अंसारी की 2 पत्नियां थीं, लेकिन आर्थिक तंगी और शराब की लत के चलते वह परेशान रहता था. भोजपुर के चेयरमैन शफी अहमद ने चुनाव लड़ाने के लिए जब उस से उस की दूसरी पत्नी रहमत जहां मांगी तो वह इनकार नहीं कर सका. जब रहमत जहां चुनाव जीत कर चेयरमैन बन गई तो उस ने नसीम को पहचानने से भी इनकार कर दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि …

5 अगस्त, 2018 को एक डेली न्यूजपेपर में एक खबर प्रमुखता से छपी, जिस की हैडलाइन ऐसी थी जिस पर जिस की भी नजर गई, उस ने जरूर पढ़ी. न्यूज कुछ इस तरह से थी— ‘भरोसे पर दोस्त ने दोस्त को पत्नी उधार दी थी, चेयरमैन बन गई तो वापस नहीं किया.’

इस न्यूज में उधार में दी गई बीवी वाली बात पढ़ने वाला हर आदमी हैरत में था. इस हैडलाइन की न्यूज में यह भी शामिल था कि महिला के पति की ओर से बीवी को Family Story in Hindi वापस दिलाने के लिए अदालत में अर्जी लगाई गई है. इस न्यूज के हिसाब से एक शादीशुदा व्यक्ति को अपनी बीवी को नेता बनाने का ऐसा खुमार चढ़ा कि उस ने पत्नी को सियासी गलियारों में उतारने के लिए यह सोच कर बीवी अपने दोस्त को उधार दे दी कि वह उसे चुनाव लड़ाएगा. यह संयोग ही था कि उस की बीवी चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन बन गई. लेकिन चेयरमैन बनने के बाद पत्नी ने पति को भुला दिया. शर्त के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद महिला के पति ने दोस्त से बीवी लौटाने को कहा तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. यहां तक कि दोस्त ने महिला के पति को पहचानने तक से इनकार कर दिया. इस पर मामला गरमा गया. नतीजा यह हुआ कि जो बात अभी तक 3 लोगों के बीच थी, वह सार्वजनिक हो गई.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के थाना कुंडा, जसपुर के थाना क्षेत्र में एक गांव है बावरखेड़ा. नसीम अंसारी का परिवार इसी गांव में रहता है. नसीम के अनुसार, मुरादाबाद जिले के भोजपुर निवासी पूर्व नगर अध्यक्ष शफी अहमद के साथ उस की काफी समय से अच्छी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के नाते शफी अहमद का उस के घर आनाजाना था. कुछ महीने पहले शफी ने उसे विश्वास में ले कर उस की पत्नी रहमत जहां को भोजपुर से चेयरमैन का चनुव लड़ाने की बात कही. शफी अहमद ने नसीम को बताया कि इस बार चेयरमैन की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है.

जबकि वह सामान्य जाति के अंतर्गत आने के कारण अपनी बीवी को चुनाव नहीं लड़ा सकता. नसीम अपने दोस्त के झांसे में आ गया और उस ने दोस्त की मजबूरी समझते हुए चुनाव लड़ाने के लिए अपनी बीवी उस के हवाले कर दी. लेकिन दूसरे की बीवी को चुनाव लड़ाना इतना आसान काम नहीं था. यह बात नसीम ही नहीं, नसीम की बीवी रहमत जहां भी जानती थी. इस के लिए सब से पहले रहमत जहां का कानूनन शफी अहमद की बीवी बनना जरूरी था. शफी की बीवी का दरजा मिलने के बाद ही वह चुनाव लड़ने की हकदार होती.

चुनाव के लिए इशरत बनी शमी की पत्नी चुनाव लड़ने में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए दोनों दोस्तों और रहमत जहां ने साथ बैठ कर गुप्त रूप से समझौता किया. उसी समझौते के तहत शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद शफी अहमद ने अपने पद और रसूख के बल पर जल्दी ही सरकारी कागजातों में रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शा कर उस का आईडी कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिया. रहमत जहां का आधार कार्ड बनते ही उस ने चुनाव की अगली प्रक्रिया शुरू कर दी. इस से पहले सन 2012 से 2017 तक भोजपुर के चेयरमैन की कुरसी पर शफी अहमद का ही कब्जा रहा था. शफी को पूरा विश्वास था कि इस बार भी जनता उन्हीं का साथ देगी. लेकिन इस बार आरक्षण के कारण शफी को सपा से टिकट नहीं मिल पाया. वजह यह थी कि इस बार भोजपुर चेयरमैन की सीट पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी.

शफी अहमद सामान्य वर्ग में आते थे. इस समस्या से निपटने के लिए शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर के उसे कानूनन अपनी बीवी बना कर निर्दलीय चुनाव लड़वाया. शफी के पुराने रिकौर्ड और रसूख की वजह से रहमत जहां चुनाव जीत गई. उस ने अपनी प्रतिद्वंदी परवेज जहां को 117 वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी. रहमत जहां को चेयरमैन बने हुए अभी 8 महीने ही हुए थे कि नसीम अंसारी ने अपनी बीवी रहमत जहां को वापस ले जाने के लिए शफी अहमद से बात की तो बात बढ़ गई. शफी ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए नसीम से कहा कि वह स्वयं ही रहमत जहां से बात करे.

नसीम ने जब इस बारे में रहमत जहां से बात की तो उस ने साफ कह दिया कि तुम से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने शफी अहमद से कोर्टमैरिज की है. वही मेरे कानूनन पति हैं. मैं तुम्हें नहीं जानती. रहमत जहां की बात सुन कर नसीम स्तब्ध रह गया. उस ने बच्चों का वास्ता दे कर रहमत से ऐसा न करने को कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. नसीम ने वापस मांगी बीवी इस पर नसीम ने फिर से शफी अहमद से बात की और अपनी बीवी वापस मांगी, लेकिन उस ने रहमत जहां को देने से साफ मना कर दिया. शफी अहमद का कहना था कि उस ने रहमत के साथ निकाह किया है और वह कानूनन उस की बीवी है. उसे जो करना है करे, वह रहमत को वापस नहीं देगा.

उस के बाद नसीम के पास एक ही रास्ता था कि वह अदालत की शरण में जाए. उस ने जसपुर के अधिवक्ता मनुज चौधरी के माध्यम से जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दिया, जिस में कहा गया कि शफी अहमद ने उस की बीवी से जबरन निकाह कर लिया. नसीम अंसारी ने अदालत में जो प्रार्थनापत्र दिया, उस में कहा कि वर्ष 2006 में उस का निकाह सरबरखेड़ा निवासी दादू की बेटी रहमत जहां के साथ हुआ था, जिस से उस का एक बेटा और एक बेटी हैं. 17 नवंबर, 2017 की रात 10 बजे शफी अहमद, नईम चौधरी, मतलूब, जिले हसन निवासी भोजपुर, उस के घर आए. उन लोग ने मेरी कनपटी पर तमंचा रखा और मेरी पत्नी को कार में डाल कर ले गए. बाद में शफी अहमद ने उस की बीवी के साथ जबरन निकाह कर लिया. उस के कुछ समय बाद कुछ लोग कार से फिर उस के घर आए और उस के दोनों बच्चों को उठा ले गए.

13 अगस्त, 2018 को इस मामले में अदालत ने पीडि़त नसीम अंसारी के अधिवक्ता मनुज चौधरी की दलील सुनने के बाद थाना कुंडा की पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए. नसीम Family Story in Hindi अंसारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि रहमत जहां ने उसे बिना तलाक दिए ही उस के साथ निकाह किया है, जो शरीयत के हिसाब से गलत है. बदल गई रहमत जहां दूसरी ओर रहमत जहां का कहना था कि उस ने नसीम की रजामंदी से ही शफी के साथ निकाह किया था. आर्थिक तंगी के चलते नसीम ने शफी अहमद से इस के बदले हर माह घर खर्च के लिए 12 हजार रुपए देने का समझौता किया था, जो शफी अहमद उसे हर माह दे रहे हैं. इस में उस का कोई कसूर नहीं. इस वक्त वह कानूनन शफी की पत्नी है और रहेगी. उस के दोनों बच्चे भी उसी के साथ रह रहे हैं, जिन्हें शफी के साथ रहने में कोई ऐतराज नहीं.

बहरहाल, नसीम अहमद की ओर से यह मामला थाना कुंडा में दर्ज हो गया. कुंडा थाने के थानाप्रभारी सुधीर ने सच्चाई सामने लाने के लिए जांच शुरू कर दी. इस मामले पर शुरू से प्रकाश डालें तो कहानी कुछ और ही कहती है. उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का गांव सरबरखेड़ा थाना कुंडा क्षेत्र में आता है. सरबरखेड़ा मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला गांव है. अब से कुछ साल पहले यह गांव बहुत पिछड़ा हुआ था. गांव में गिनेचुने लोगों को छोड़ कर अधिकांश लोग मजदूरी करते थे. लेकिन गांव के पास में नवीन अनाज मंडी बनते ही गांव के लोगों के दिन बहुरने लगे.

अनाज मंडी बनने के बाद मजदूर किस्म के लोगों को घर बैठे ही मजदूरी मिलने लगी तो यहां के लोगों के रहनसहन में काफी बदलाव आ गया. बाद में गांव के पास हाईवे बनते ही जमीनों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं. यहां के कम जमीन वाले काश्तकारों ने अपनी जमीन बेच कर अपनेअपने कारोबार बढ़ा लिए. इसी गांव में दादू का परिवार रहता था. दादू के पास जुतासे की नाममात्र की जमीन थी जबकि परिवार बड़ा था, जिस में 5 लड़के थे और 2 लड़कियां. जमीन से दादू को इतनी आमदनी नहीं होती थी कि अपने परिवार की रोजीरोटी चला सके. इस समस्या से निपटने के लिए दादू ने अनाज मंडी में अनाज खरीदने बेचने का काम श्ुरू कर दिया.

दादू गांवगांव जा कर धान, गेहूं खरीदता और उसे एकत्र कर के अनाज मंडी में ला कर बेच देता था. इस से उस के परिवार का पालनपोषण ठीक से होने लगा. दादू का काम मेहनत वाला था. इस काम से आमदनी बढ़ी तो उस के खर्च भी बढ़ते गए. पैसा आया तो दादू को शराब पीने की लत गई. धीरेधीरे वह शराब का आदी हो गया, जिस की वजह से वह फिर आर्थिक तंगी में आ गया. जब घर के खर्च के लिए लाले पड़ने लगे तो वह जुआ खेलने लगा. दरअसल, उस की सोच थी कि वह जुए में इतनी रकम जीत लेगा कि घर के हलात सुधर जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा. वह मेहनत से जो कमाता जुए की भेंट चढ़ जाता.

उसी दौरान उस की मुलाकात नसीम से हुई. नसीम में जुआ खेलने की लत तो नहीं थी, लेकिन शराब पीने का वह भी आदी था. नसीम सरबरखेड़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर गांव बाबरखेड़ा का रहने वाला था. नसीम अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर का था. तीनों भाइयों पर जुतासे की थोड़ीथोड़ी जमीनें थीं. तीनों ही अलगअलग रहते थे. कई साल पहले नसीम का निकाह थाना ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद में आने वाले गांव राजपुरा नंगला टाह निवासी सुगरा के साथ हुआ था. समय के साथ सुगरा 6 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 लड़के और 4 लड़कियां थीं. थोड़ी सी जुतासे की जमीन से नसीम के बड़े परिवार का खर्च मुश्किल से चलता था. इस के बावजूद नसीम को शराब पीने की गंदी आदत पड़ गई थी. वह शराब पीने के चक्कर में इधरउधर चक्कर लगाता रहता था.

उसी दौरान उस की मुलाकात दादू से हो गई. शराब पीनेपिलाने के चलते दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए. जल्दी ही दोनों की दोस्ती हो गई. दोस्ती के चलते दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. उस वक्त तक दादू की बेटी रहमत जहां जवानी के दौर से गुजर रही थी. रहमत जहां देखनेभालने में बहुत सुंदर थी. नसीम ने चलाया चक्कर हालांकि नसीम का दादू के साथ दोस्ती का रिश्ता था, लेकिन जब नसीम ने रहमत जहां को देखा तो उस की नीयत में खोट आ गया. वह उसे गंदी नजरों से देखने लगा. रहमत जहां भी नसीम की निगाहों को परखने लगी थी. रहमत जहां को यह मालूम नहीं था कि नसीम शादीशुदा है. लेकिन जब वह उस की नजरों में प्रेमी बन कर उभरा तो उस ने अपने दिल में उस के लिए गहरी जगह बना ली. प्रेम का चक्कर शुरू हुआ तो दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे.

दादू की बेटी क्या खिचड़ी पका रही है, उस के घर वालों को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी. उन्हीं दिनों दादू का बड़ा लड़का बीमार पड़ गया. बीमारी की वजह से उसे कई दिन तक अस्पताल में भरती रहना पड़ा. उस के इलाज के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी जबकि उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. कुछ दिन पहले ही नसीम ने अपनी जुतासे की थोड़ी सी जमीन बेची थी. उस के पास जमीन का कुछ पैसा बचा हुआ था. यह बात दादू को भी पता थी. दादू ने अपनी मजबूरी नसीम के सामने रखते हुए मदद करने को कहा तो नसीम ने उस के लड़के के इलाज के लिए कुछ रुपए उधार दे दिए. उन्हीं रुपयों से दादू ने अपने बेटे का इलाज कराया. उस का बेटा ठीक हो गया.

इस के कुछ दिन बाद नसीम ने दादू से अपने पैसे मांगे तो उस ने मजबूरी बताते हुए फिलवक्त पैसे न देने की बात कही. नसीम दादू की मजबूरी सुन कर शांत हो गया. नसीम के सामने दादू से बड़ी मजबूरी आ गई थी. लेकिन दादू की बेटी रहमत जहां को चाहने की वजह से वह दादू से कुछ कह भी नहीं सकता था. यह बात दादू भी समझता था कि नसीम उस की बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है लेकिन वह नसीम के अहसानों तले दबा हुआ था, इसलिए उस के सामने मुंह खोल कर कुछ भी नहीं कह सकता था. अपनी मजबूरी के आगे दादू ने नसीम और अपनी बेटी रहमत जहां को अनदेखा कर दिया. दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले.

वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था. उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया. रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया. रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था. शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई. नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया. मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी. रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा. हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी. शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी. शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी. समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई. रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी Family Story in Hindi अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था कि  जनता उन का साथ देगी. शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारी  ने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी. नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा. कई पेंच हैं मामले में वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े. रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया. नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था.

फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

 

50 करोड़ का खेल : भीलवाड़ा का बिल्डर अपहरण कांड

21 मार्च, 2019 की बात है. उस दिन होली थी. होलिका दहन के अगले दिन रंग गुलाल से खेले जाने वाले त्यौहार का आमतौर पर दोपहर तक ही धूमधड़ाका रहता है. दोपहर में रंगेपुते लोग नहाधो कर अपने चेहरों से रंग उतारते हैं. फिर अपने कामों में लग जाते हैं. कई जगह शाम के समय लोग अपने परिचितों और रिश्तेदारों से मिलने भी जाते हैं.

भीलवाड़ा के पाटील नगर का रहने वाला शिवदत्त शर्मा भी होली की शाम अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने के लिए अपनी वेरना कार से बापूनगर के लिए निकला था. शिवदत्त ने जाते समय पत्नी शर्मीला से कहा था कि वह रात तक घर आ जाएगा. थोड़ी देर हो जाए तो चिंता मत करना.

शिवदत्त का मोबाइल स्विच्ड क्यों था

शिवदत्त जब देर रात तक नहीं लौटा तो शर्मीला को चिंता हुई. रात करीब 10 बजे शर्मीला ने पति के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन मोबाइल स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद शर्मीला घरेलू कामों में लग गई. उस के सारे काम निबट गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया था. शर्मीला ने दोबारा पति के मोबाइल पर फोन किया. लेकिन इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ ही मिला. उसे लगा कि शायद पति के मोबाइल की बैटरी खत्म हो गई होगी, इसलिए स्विच्ड औफ आ रहा है.

शर्मीला बिस्तर पर लेट कर पति का इंतजार करने लगी. धीरेधीरे रात के 12 बज गए, लेकिन शिवदत्त घर नहीं आया. इस से शर्मीला को चिंता होने लगी. वह पति के दोस्त राजेश त्रिपाठी को फोन करने के लिए नंबर ढूंढने लगी, लेकिन त्रिपाठीजी का नंबर भी नहीं मिला.

शर्मीला की चिंता स्वाभाविक थी. वैसे भी शिवदत्त कह गया था कि थोड़ीबहुत देर हो जाए तो चिंता मत करना, लेकिन घर आने की भी एक समय सीमा होती है. शर्मीला बिस्तर पर लेटेलेटे पति के बारे में सोचने लगी कि क्या बात है, न तो उन का फोन आया और न ही वह खुद आए.

पति के खयालों में खोई शर्मीला की कब आंख लग गई, पता ही नहीं चला. त्यौहार के कामकाज की वजह से वह थकी हुई थी, इसलिए जल्दी ही गहरी नींद आ गई.

वाट्सऐप मैसेज से मिली पति के अपहरण की सूचना

22 मार्च की सुबह शर्मीला की नींद खुली तो उस ने घड़ी देखी. सुबह के 5 बजे थे. पति अभी तक नहीं लौटा था. शर्मीला ने पति को फिर से फोन करने के लिए अपना मोबाइल उठाया तो देखा कि पति के नंबर से एक वाट्सऐप मैसेज आया था.

शर्मीला ने मैसेज पढ़ा. उस में लिखा था, ‘तुम्हारा घर वाला हमारे पास है. इस पर हमारे एक करोड़ रुपए उधार हैं. यह हमारे रुपए नहीं दे रहा. इसलिए हम ने इसे उठा लिया है. हम तुम्हें 2 दिन का समय देते हैं. एक करोड़ रुपए तैयार रखना. बाकी बातें हम 2 दिन बाद तुम्हें बता देंगे. हमारी नजर तुम लोगों पर है. ध्यान रखना, अगर पुलिस या किसी को बताया तो इसे वापस कभी नहीं देख पाओगी.’

मोबाइल पर आया मैसेज पढ़ कर शर्मीला घबरा गई. वह क्या करे, कुछ समझ नहीं पा रही थी. पति की जिंदगी का सवाल था, घबराहट से भरी शर्मीला ने अपने परिवार वालों को जगा कर मोबाइल पर आए मैसेज के बारे में बताया.

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मैसेज पढ़ कर लग रहा था कि शिवदत्त का अपहरण कर लिया गया है. बदमाशों ने शिवदत्त के मोबाइल से ही मैसेज भेजा था ताकि पुष्टि हो जाए कि शिवदत्त बदमाशों के कब्जे में है. यह मैसेज 21 मार्च की रात 9 बज कर 2 मिनट पर आया था, लेकिन उस समय शर्मीला इसे देख नहीं सकी थी.

शिवदत्त के अपहरण की बात पता चलने पर पूरे परिवार में रोनापीटना शुरू हो गया. जल्दी ही बात पूरी कालोनी में फैल गई. चिंता की बात यह थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त पर अपने एक करोड़ रुपए बकाया बताए थे और वह रकम उन्होंने 2 दिन में तैयार रखने को कहा था.

शर्मीला 2 दिन में एक करोड़ का इंतजाम कहां से करती? शिवदत्त होते तो एक करोड़ इकट्ठा करना मुश्किल नहीं था लेकिन शर्मीला घरेलू महिला थी, उन्हें न तो पति के पैसों के हिसाब किताब की जानकारी थी और न ही उन के व्यवसाय के बारे में ज्यादा पता था. शर्मीला को बस इतना पता था कि उस के पति बिल्डर हैं.

शर्मीला और उस के परिवार की चिंता को देखते हुए कुछ लोगों ने उन्हें पुलिस के पास जाने की सलाह दी. शर्मीला परिवार वालों के साथ 22 मार्च को भीलवाड़ा के सुभाषनगर थाने पहुंच गई और पुलिस को सारी जानकारी देने के बाद अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने शर्मीला और उन के परिवार के लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि कपड़ा नगरी के नाम से देश भर में मशहूर भीलवाड़ा के पथिक नगर की श्रीनाथ रेजीडेंसी में रहने वाले 42 साल के शिवदत्त शर्मा की हाइपर टेक्नो कंसट्रक्शन कंपनी है. शिवदत्त का भीलवाड़ा और आसपास के इलाके में प्रौपर्टी का बड़ा काम था. उन के बिजनैस में कई साझीदार हैं और इन लोगों की करोड़ों अरबों की प्रौपर्टी हैं.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने इस की जानकारी एडिशनल एसपी दिलीप सैनी को दे दी. इस के बाद पुलिस ने शिवदत्त की तलाश शुरू कर दी. साथ ही शिवदत्त की पत्नी से यह भी कह दिया कि अगर अपहर्त्ताओं का कोई भी मैसेज आए तो तुरंत पुलिस को बता दें.

चूंकि शिवदत्त अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी के घर जाने की बात कह कर घर से निकले थे, इसलिए पुलिस ने राजेश त्रिपाठी से पूछताछ की. राजेश ने बताया कि शिवदत्त होली के दिन शाम को उन के पास आए तो थे लेकिन वह रात करीब 8 बजे वापस चले गए थे.

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जांचपड़ताल के दौरान 23 मार्च को पुलिस को शिवदत्त की वेरना कार भीलवाड़ा में ही सुखाडि़या सर्किल से रिंग रोड की तरफ जाने वाले रास्ते पर लावारिस हालत में खड़ी मिल गई. पुलिस ने कार जब्त कर ली. पुलिस ने कार की तलाशी ली, लेकिन उस से शिवदत्त के अपहरण से संबंधित कोई सुराग नहीं मिला. कार भी सहीसलामत थी. उस में कोई तोड़फोड़ नहीं की गई थी और न ही उस में संघर्ष के कोई निशान थे.

पुलिस ने शिवदत्त के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया. लेकिन मोबाइल के स्विच्ड औफ होने की वजह से उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. जांच की अगली कड़ी के रूप में पुलिस ने शिवदत्त, उस की पत्नी और कंपनी के स्टाफ के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. इस के अलावा शिवदत्त के लेनदेन, बैंक खातों, साझेदारों के लेनदेन से संबंधित जानकारियां जुटाईं. यह भी पता लगाया गया कि किसी प्रौपर्टी को ले कर कोई विवाद तो नहीं था.

पुलिस जुट गई जांच में

इस बीच 24 मार्च का दिन भी निकल गया. लेकिन अपहर्त्ताओं की ओर से कोई सूचना नहीं आई. जबकि उन्होंने 2 दिन में एक करोड़ रुपए का इंतजाम करने को कहा था. घर वाले इस बात को ले कर चिंतित थे कि कहीं अपहर्त्ताओं को उन के पुलिस में जाने की बात पता न लग गई हो. क्योंकि इस से चिढ़ कर वे शिवदत्त के साथ कोई गलत हरकत कर सकते थे.

शर्मीला पति को ले कर बहुत चिंतित थी. अपहर्त्ताओं की ओर से 3 दिन बाद भी शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क नहीं किया गया. ऐसे में पुलिस को भी उस की सलामती की चिंता थी.

पुलिस ने शिवदत्त की तलाश तेज करते हुए 4 टीमें जांचपड़ताल में लगा दी. इन टीमों ने शिवदत्त के रिश्तेदारों से ले कर मिलनेजुलने वालों और संदिग्ध लोगों से पूछताछ की, लेकिन कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. शिवदत्त की कार जिस जगह लावारिस हालत में मिली थी, उस के आसपास सीसीटीवी फुटेज खंगालने की कोशिश भी की गई, लेकिन पुलिस को कोई सुराग नहीं मिल सका.

इस पर पुलिस ने 25 मार्च को शिवदत्त के फोटो वाले पोस्टर छपवा कर भीलवाड़ा जिले के अलावा पूरे राजस्थान सहित गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के पुलिस थानों को सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा करने के लिए भेजे.

पुलिस को भी नहीं मिला शिवदत्त

जांच में पता चला कि शिवदत्त ने कुछ समय पहले महाराष्ट्र में भी अपना कारोबार शुरू किया था. इसलिए किसी सुराग की तलाश में पुलिस टीम मुंबई और नासिक भेजी गई. लेकिन वहां हाथपैर मारने के बाद पुलिस खाली हाथ लौट आई.

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उधर लोग इस मामले में पुलिस की लापरवाही मान रहे थे. पुलिस के प्रति लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. 26 अप्रैल, 2019 को ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि मंडल ने भीलवाड़ा के कलेक्टर और एसपी को ज्ञापन दे कर शिवदत्त को सुरक्षित बरामद कर अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार करने की मांग की. ऐसा न होने पर उन्होंने आंदोलन की चेतावनी दे दी.

दिन पर दिन बीतते जा रहे थे, लेकिन न तो अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के परिजनों से कोई संपर्क किया था और न ही पुलिस को कोई सुराग मिला था. इस से शिवदत्त के परिजन भी परेशान थे. उन के मन में आशंका थी कि अपहर्त्ताओं ने शिवदत्त के साथ कुछ गलत न कर दिया हो. क्योंकि इतने दिन बाद भी न तो अपहर्त्ता संपर्क कर रहे थे और न ही खुद शिवदत्त.

पुलिस की चिंता भी कम नहीं थी. वह भी लगातार भागदौड़ कर रही थी. पुलिस ने शिवदत्त के फेसबुक, ट्विटर, ईमेल एकाउंट खंगालने के बाद संदेह के दायरे में आए 50 से अधिक लोगों से पूछताछ की.

पुलिस की टीमें महाराष्ट्र और गुजरात भी हो कर आई थीं. शिवदत्त और उस के परिवार वालों के मोबाइल की कालडिटेल्स की भी जांच की गई. भीलवाड़ा शहर में बापूनगर, पीऐंडटी चौराहा से पांसल चौराहा और अन्य इलाकों में लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज खंगाली गई, लेकिन इन सब का कोई नतीजा नहीं निकला.

बिल्डर शिवदत्त के अपहरण का मामला पुलिस के लिए एक मिस्ट्री बनता जा रहा था. पुलिस अधिकारी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर अपहर्त्ता शिवदत्त को कहां ले जा कर छिप गए. ऐसा कोई व्यक्ति भी पुलिस को नहीं मिल रहा था जिस ने राजेश त्रिपाठी के घर से निकलने के बाद शिवदत्त को देखा हो. त्रिपाठी ही ऐसा शख्स था, जिस से शिवदत्त आखिरी बार मिला था. पुलिस त्रिपाठी से पहले ही पूछताछ कर चुकी थी. उस से कोई जानकारी नहीं मिली थी तो उसे घर भेज दिया गया था.

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जांचपड़ताल में सामने आया कि शिवदत्त का करीब 100 करोड़ रुपए का कारोबार था. साथ ही उस पर 20-30 करोड़ की देनदारियां भी थीं. महाराष्ट्र के नासिक और गुजरात के अहमदाबाद में भी उस ने कुछ समय पहले नया काम शुरू किया था.

शिवदत्त ने सन 2009 में प्रौपर्टी का कारोबार शुरू किया था. शुरुआत में उस ने इस काम में अच्छा पैसा कमाया. कमाई हुई तो उस ने अपने पैर पसारने शुरू कर दिए. एक साथ कई काम शुरू करने से उसे नुकसान भी हुआ. इस से उस की आर्थिक स्थिति गड़बड़ाने लगी तो उस ने लोन लेने के साथ कई लोगों से करोड़ों रुपए उधार लिए. भीलवाड़ा जिले का रहने वाला एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी भी शिवदत्त की प्रौपर्टीज में पैसा लगाता था.

शिवदत्त भीलवाड़ा में ब्राह्मण समाज और अन्य समाजों के धार्मिक कार्यक्रमों में मोटा चंदा देता था. इस से उस ने विभिन्न समाजों के धनी और जानेमाने लोगों का भरोसा भी जीत रखा था. ऐसे कई लोगों ने शिवदत्त की प्रौपर्टीज में निवेश कर रखा था.

शिवदत्त के ऊपर उधारी बढ़ती गई तो लेनदार भी परेशान करने लगे. शिवदत्त प्रौपर्टी बेच कर उन लोगों का पैसा चुकाना चाहता था, लेकिन बाजार में मंदी के कारण प्रौपर्टी का सही भाव नहीं मिल रहा था. इस से वह परेशान रहने लगा था. लोगों के तकाजे से परेशान हो कर उसने फोन अटेंड करना भी कम कर दिया था.

हालांकि शर्मीला ने पुलिस थाने में पति के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कराई थी, लेकिन पुलिस को एक भी ऐसा सबूत नहीं मिला, जिस के उस के अपहरण की पुष्टि होती. एक सवाल यह भी था कि शिवदत्त अगर उधारी का पैसा नहीं चुका रहा था तो अपहर्त्ता उन के किसी परिजन को उठा कर ले जाते, क्योंकि लेनदारों को यह बात अच्छी तरह पता थी कि पैसों की व्यवस्था शिवदत्त के अलावा कोई दूसरा नहीं कर सकता.

घूमने लगा पुलिस का दिमाग

आधुनिक टैक्नोलौजी के इस जमाने में पुलिस तीनचौथाई आपराधिक मामले मोबाइल लोकेशन, काल डिटेल्स व सीसीटीवी फुटेज से सुलझा लेती है, लेकिन शिवदत्त के मामले में पुलिस के ये तीनों हथियार फेल हो गए थे. उस का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. सीसीटीवी फुटेज साफ नहीं थे. काल डिटेल्स से भी कोई खास बातें पता नहीं चलीं.

प्रौपर्टी का काम करने से पहले शिवदत्त के पास बोरिंग मशीन थी. वह हिमाचल प्रदेश, जम्मूकश्मीर सहित कई राज्यों में ट्यूबवैल के बोरिंग का काम करता था. इन स्थितियों में तमाम बातों पर गौर करने के बाद पुलिस शिवदत्त के अपहरण के साथ अन्य सभी पहलुओं पर भी जांच करने लगी.

इसी बीच शिवदत्त की पत्नी शर्मीला ने राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर कर दी. इस में शर्मीला ने अपने पति को ढूंढ निकालने की गुहार लगाई. इस पर हाईकोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि शिवदत्त को तलाश कर जल्द से जल्द अदालत में पेश किया जाए.

अब पुलिस के सामने शिवदत्त मामले में दोहरी चुनौती पैदा हो गई. पुलिस ने शिवदत्त की तलाश ज्यादा तेजी से शुरू कर दी. मई के पहले सप्ताह में शिवदत्त का मोबाइल स्विच औन किया गया. इस से उस की लोकेशन का पता चल गया. पता चला कि वह मोबाइल देहरादून में है. भीलवाड़ा से तुरंत एक पुलिस टीम देहरादून भेजी गई. देहरादून में पुलिस ने मोबाइल की लोकेशन ढूंढी तो वह मोबाइल एक धोबी के पास मिला.

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धोबी ने बताया कि पास के ही एक गेस्टहाउस में रहने वाले एक साहब के कपड़ों में एक दिन गलती से उन का मोबाइल आ गया. उस मोबाइल को धोबी के बेटे ने औन कर के अपने पास रख लिया था. मोबाइल औन होने से उस की लोकेशन पुलिस को पता चल गई.

पुलिस ने 4 मई, 2019 को धोबी की मदद से शिवदत्त को देहरादून के अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस से बरामद कर लिया. शिवदत्त अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से इस गेस्टहाउस में ठहरा हुआ था. देहरादून से वह लगातार जयपुर की अपनी एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस दौरान शिवदत्त ने देहरादून में एक कोचिंग सेंटर में इंग्लिश स्पीकिंग क्लास भी जौइन कर ली थी.

42 दिन तक कथित रूप से लापता रहे शिवदत्त को पुलिस देहरादून से भीलवाड़ा ले आई. उस से की गई पूछताछ में जो कहानी उभर कर सामने आई, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी.

नाटक और हकीकत में फर्क होता है

शिवदत्त ने प्रौपर्टी व्यवसाय में कई जगह पैर पसार रखे थे. उस ने भीलवाड़ा में विनायक रेजीडेंसी, सांगानेर रोड पर मल्टीस्टोरी प्रोजैक्ट, अजमेर रोड पर श्रीमाधव रेजीडेंसी, कृष्णा विहार बाईपास, कोटा रोड पर रूपाहेली गांव के पास वृंदावन ग्रीन फार्महाउस आदि बनाए. इन के लिए उस ने बाजार से मोटी ब्याज दर पर करीब 50 करोड़ रुपए उधार लिए थे, लेकिन कुछ प्रोजैक्ट समय पर पूरे नहीं हुए.

बाद में प्रौपर्टी व्यवसाय में मंदी आ गई. इस से उसे अपनी प्रौपर्टीज के सही भाव नहीं मिल पा रहे थे. जिन लोगों ने शिवदत्त को रकम उधार दी थी, वह उन पर लगातार तकाजा कर रहे थे. ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा था. इस से शिवदत्त परेशान रहने लगा. वह इस समस्या से निकलने का समाधान खोजता रहता था.

इस बीच जनवरी में शिवदत्त अपने घर पर सीढि़यों से फिसल गया. उस की रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी. कुछ दिन वह अस्पताल में भरती रहा. फिर चोट के बहाने करीब 2 महीने तक घर पर ही रहा. इस दौरान उस ने अपना कारोबार पत्नी शर्मीला और स्टाफ के भरोसे छोड़ दिया था. पैसा मांगने वालों को घरवाले और स्टाफ शिवदत्त के बीमार होने की बात कह कर टरकाते रहे.

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घर पर आराम करने के दौरान एक दिन शिवदत्त ने सारी समस्याओं से निपटने के लिए खुद के अपहरण की योजना बनाई. उस का विचार था कि अपहरण की बात से कर्जदार उस के परिवार को परेशान नहीं करेंगे. उन पर पुलिस की पूछताछ का दबाव भी नहीं रहेगा. यहां से जाने के बाद वह भीलवाड़ा से बाहर जा कर कहीं रह लेगा और मामला शांत हो जाने पर किसी दिन अचानक भीलवाड़ा पहुंच कर अपने अपहरण की कोई कहानी बना देगा.

अपनी योजना को मूर्तरूप देने के लिए उस ने होली का दिन चुना. इस से पहले ही शिवदत्त ने अपनी कार में करीब 8-10 जोड़ी कपड़े और जरूरी सामान रख लिया था. करीब एक लाख रुपए नकद भी उस के पास थे. शिवदत्त ने अपनी योजना की जानकारी पत्नी और किसी भी परिचित को नहीं लगने दी. उसे पता था कि अगर परिवार में किसी को यह बात बता दी तो पुलिस उस का पता लगा लेगी. इसलिए उस ने इस बारे में पत्नी तक को कुछ बताना ठीक नहीं समझा.

योजना के अनुसार, शिवदत्त होली की शाम पत्नी से अपने दोस्त राजेश त्रिपाठी से मिलने जाने की बात कह कर कार ले कर घर से निकल गया. वह अपने दोस्त से मिला और रात करीब 8 बजे वहां से निकल गया. शिवदत्त ने राजेश त्रिपाठी के घर से आ कर अपनी कार सुखाडि़या सर्किल के पास लावारिस छोड़ दी. कार से कपड़े और जरूरी सामान निकाल लिया. कपड़े व सामान ले कर वह भीलवाड़ा से प्राइवेट बस में सवार हो कर दिल्ली के लिए चल दिया.

भीलवाड़ा से रवाना होते ही शिवदत्त ने अपने मोबाइल से पत्नी के मोबाइल पर खुद के अपहरण का मैसेज भेज दिया था. इस के बाद उस ने अपना मोबाइल स्विच्ड औफ कर लिया. भीलवाड़ा से दिल्ली पहुंच कर वह ऋषिकेश चला गया.

ऋषिकेश में शिवदत्त ने अपने औफिस के कर्मचारी राकेश शर्मा की आईडी से नया सिमकार्ड खरीदा. फिर एक नया फोन खरीद कर वह सिम मोबाइल में डाल दिया. कुछ दिन ऋषिकेश में रुकने के बाद शिवदत्त देहरादून चला गया. देहरादून में 29 मार्च को उस ने राकेश शर्मा की आईडी से अरोड़ा पेइंग गेस्टहाउस में कमरा ले लिया.

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खेल एक अनाड़ी खिलाड़ी का

देहरादून में उस ने दिखावे के लिए इंग्लिश स्पीकिंग क्लास जौइन कर ली. वह अपने कपड़े धुलवाने और प्रैस कराने के लिए धोबी को देता था. एक दिन गलती से शिवदत्त का पुराना मोबाइल उस के कपड़ों की जेब में धोबी के पास चला गया. इसी से उस का भांडा फूटा.

शुरुआती जांच में सामने आया कि देहरादून में रहने के दौरान शिवदत्त मुख्यरूप से जयपुर की एक परिचित महिला के संपर्क में था. इस महिला से शिवदत्त की रोजाना लंबीलंबी बातें होती थीं. जबकि वह अपनी पत्नी या अन्य किसी परिजन के संपर्क में नहीं था.

भीलवाड़ा के सुभाष नगर थानाप्रभारी अजयकांत शर्मा ने शिवदत्त को 6 मई को जोधपुर ले जा कर हाईकोर्ट में पेश किया और उस के अपहरण की झूठी कहानी से कोर्ट को अवगत कराया. इस पर मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस संदीप मेहता और विनीत कुमार माथुर की खंडपीठ ने शिवदत्त के प्रति नाराजगी जताई. जजों ने याचिका का निस्तारण करते हुए अदालत और पुलिस को गुमराह करने पर याचिकाकर्ता शर्मीला पर 5 हजार रुपए का जुरमाना लगाते हुए यह राशि पुलिस कल्याण कोष में जमा कराने के आदेश दिए.

बाद में सुभाष नगर थाना पुलिस ने शिवदत्त के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. उस के खिलाफ अपने ही अपहरण की झूठी कहानी गढ़ कर पुलिस को गुमराह करने, अवैध रूप से देनदारों पर दबाव बनाने और षडयंत्र रचने का मामला दर्ज किया गया. इस मामले की जांच सदर पुलिस उपाधीक्षक राजेश आर्य कर रहे थे.

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पुलिस ने इस मामले में 7 मई, 2019 को बिल्डर शिवदत्त को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन उसे अदालत में पेश कर 6 दिन के रिमांड पर लिया गया. रिमांड अवधि में भी शिवदत्त से विस्तार से पूछताछ की गई, फिर उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया.

बहरहाल, बिल्डर शिवदत्त मोहमाया के लालच में अपने ही बिछाए जाल में फंस गया. अपहरण की झूठी कहानी से उस के परिजन भी 42 दिन तक परेशान रहे. पुलिस भी परेशान होती रही. भले ही वह जमानत पर छूट कर घर आ जाएगा, लेकिन सौ करोड़ के कारोबारी ने बाजार में अपनी साख तो खराब कर ही ली. इस का जिम्मेदार वह खुद और उस का लोभ है.

Smuggling : शराब तस्करी से कमाए करोड़ों रुपए

Smuggling  गुजरात पुलिस में कांस्टेबल नीता चौधरी शाही जिंदगी जीने की शौकीन है. उस के पास अनेक लग्जरी गाडिय़ां हैं. एक मामूली सिपाही के पास आखिर कहां से आई करोड़ों रुपए की संपत्ति?

गुजरात पुलिस की भचाऊ लोकल क्राइम ब्रांच को शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा की तलाश थी, जो कच्छ क्राइम ब्रांच के एसआई डी.जे. झाला की वाचलिस्ट में था. एसआई झाला जब से भचाऊ आए थे, तब से उन्होंने युवराज सिंह जडेजा के खिलाफ 5 प्रोहिबिशन (शराब तस्करी) के अपराध दर्ज किए थे, जिन में वह वांटेड था.

उसी बीच 30 जून, 2024 दिन रविवार को एसआई डी.जे. झाला रोज की तरह अपने रूटीन काम में लगे थे, तभी शाम पौने 7 बजे एक सिपाही ने सूचना दी कि साहब, युवराज सिंह जडेजा सफेद रंग की थार से समखियाणी से गांधीधाम की ओर जा रहा है. थोड़ी देर में वह भचाऊ के चोपडवा ब्रिज से गुजरने वाला है.

युवराज क्यों चढ़ाना चाहता था पुलिस पर थार

एसआई झाला ने यह जानकारी पूर्वी कच्छ के एसपी सागर बागमार को दी तो उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि जैसे भी हो, युवराज सिंह बच कर नहीं जाना चाहिए. फिर तो पल भर में एसआई झाला ने 6 पुलिसकर्मियों की 3 टीमें बना कर जांच करना शुरू कर दिया.

ये पुलिस टीमें भचाऊ के चोपड़वा ब्रिज के नीचे प्राइवेट कार से चोपड़वा ब्रिज पर पहुंच गए और युवराज सिंह की उस थार के आने का इंतजार करने लगे. रात के ठीक सवा 8 बजे पुलिस को सफेद रंग की थार आती दिखाई दी. उस थार को आते देख कर पुलिस टीमें चौकन्नी हो गईं. पूरी रफ्तार से आ रही थार को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगा कर रास्ता ब्लौक कर दिया. पुलिस के पास 3 प्राइवेट वाहन थे. बैरिकेड्स पर रुकने के बजाय युवराज सिंह ने बैरिकेड्स को तोड़ते हुए पुलिस के एक खाली वाहन को टक्कर मारी.

अब तक युवराज सिंह ब्रिज के बीचोबीच पहुंच चुका था. तब तक पुलिस के वाहनों ने उसे आगे और पीछे से घेर लिया. एसआई डी.जे. झाला कांस्टेबल भवानभाई के साथ उतर कर सड़क के बीचोबीच खड़े थे. युवराज सिंह की थार को आते देख सिपाही भवानभाई ने अपना डंडा दिखा कर चिल्लाते हुए उसे गाडी रोकने को कहा. युवराज सिंह ने अपनी गाड़ी रोकने के बजाय सीधे एसआई झाला और सिपाही भवानभाई की ओर मोड़ दी.

उसे डराने के लिए युवराज सिंह की थार के बोनट पर फायर कर दिया.

गोली बोनट पर लगने के बजाय बम्पर लगी थी. फिर भी गोली चलाने से युवराज सिंह घबरा गया था और थार रोक दी. पुलिस टीमों ने दौड़ कर थार को घेर लिया. युवराज सिंह ने थार तो रोक दी थी, पर वह न तो दरवाजा खोल रहा था और न ही शीशा खोल रहा था. थार के शीशे काले थे. तब एक पुलिस वाले ने ड्राइवर के बगल वाले कांच को अपने डंडे से शीशा तोड़ दिया. शीशा तोड़ कर पुलिस वाले युवराज सिंह को पकड़ कर बाहर खींच रहे थे, तभी एसआई झाला की नजर ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट पर बैठी एक महिला पर पड़ी. उन्हें पता नहीं था कि यह महिला कौन है. वह उस से कुछ पूछते, तभी एक सिपाही ने कहा, ”अरे यह तो लेडी कांस्टेबल नीताबेन चौधरी है. इस की ड्यूटी तो इस समय सीआईडी क्राइम ब्रांच में है.’’

डीजे झाला ने नीता चौधरी को थार से उतरने के लिए कहा. वह उस समय शराब के नशे में धुत थी. थार से बाहर आते ही नीता चौधरी ने एसआई झाला से कहा, ”साहब, मुझे जाने दीजिए.’’

जब एसआई झाला ने कोई जवाब नहीं दिया तो नीता चौधरी ने विनती करते हुए कहा, ”साहब, मेरी युवराज सिंह से दोस्ती थी. मैं आ रही थी तो यह रास्ते में मिल गया, इसीलिए हम दोनों साथ थे.’’

एसआई झाला ने तुरंत पुलिस अधिकारियों को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी थी. शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला सुरेंद्रनगर की तहसील पालनपुर के नजदीक के गांव बादरपुर की रहने वाली थी. नौकरी से छुट्टी ले कर वह अपने गांव गई थी.

नीता की थार गाड़ी में कहां से आई थी शराब

पुलिस ने जब नीता चौधरी और युवराज सिंह को पकड़ा तो तलाशी में उन की थार से भारतीय शराब (Smuggling) की 16 बोतलें मिली थीं. चूंकि गुजरात में शराब बंदी है, इसलिए शराब लाना तो क्या, वहां शराब पीना भी अपराध है. युवराज सिंह और नीता चौधरी को शराब तस्करी और पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से नीता चौधरी को जमानत मिल गई थी, जबकि युवराज सिंह पर तो वैसे भी तमाम केस थे, इसलिए उस की जमानत होने का सवाल ही नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने दौड़भाग कर के सेशन कोर्ट में नीता की जमानत रद करने की अरजी दी तो सेशन कोर्ट ने पुलिस वालों पर थार चढ़ाने की कोशिश और एक सिपाही द्वारा शराब की तस्करी को गंभीर मानते हुए नीता चौधरी की भी जमानत रद कर दी. जमानत रद होने के बाद नीता चौधरी फरार हो गई. इस के बाद कच्छ पुलिस उस की तलाश में लग गई. पुलिस जब एक सप्ताह तक उसे नहीं खोज पाई तो यह मामला जांच एजेंसी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) को सौंपा गया.

इंसपेक्टर पीयूष देसाई की टीम उस की तलाश में गांधीधाम की ओर लगी थी, पर वहां उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. उसने अपने मोबाइल फोन का यूज करना बंद कर दिया था. तब एटीएस ने मुखबिरों की मदद ली, जिस में उसे सफलता मिल भी गई. एटीएस को सूचना मिली कि नीता जिला सुरेंद्रनगर की तहसील लींमडी के गांव भलगामडा में हो सकती है. यह सूचना मिलने के बाद एक गुप्त औपरेशन शुरू हुआ, जिस के बारे में केवल एटीएस के उच्च अधिकारियों को ही मालूम था.

इस के लिए सब से पहला काम था नीता की लोकेशन का पता करना. एटीएस ने दूसरी एक टीम इंसपेक्टर पीयूष देसाई के नेतृत्व में बनाई, जिस में 2 एसआई, एक महिला कांस्टेबल सहित 3 कांस्टेबल शामिल थे.

नीता को किस ने दी थी पनाह

इंसपेक्टर देसाई अपनी टीम को साथ ले कर प्राइवेट कार से निकल पड़े. कार अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चली जा रही थी. उन्हें सूचना मिल गई थी कि नीता चौधरी भलगामडा के किसी घर में छिपी है. पर उस घर के बारे में किसी को पता नहीं था. इसलिए पहले तो यह पता करना था कि वह घर कौन सा है. इस बात का भी ध्यान रखना था कि नीता को इस बारे में पता न चले, वरना वह वहां से भाग सकती थी. किसी को यह भी पता न चले कि वे पुलिस वाले हैं, इस के लिए इंसपेक्टर देसाई और उन की टीम के लोग साधारण कपड़ों में वहां पहुंचे थे.

भलगामड़ा पहुंचने पर इंसपेक्टर देसाई को पता चला कि नीता चौधरी अपने दोस्त शराब तस्कर युवराज सिंह के किसी जानपहचान वाले की मदद से यहां छिपी है. जल्दी ही एटीएस को पता चल गया कि युवराज सिंह के साले आदित्य राणा के दोस्त मयूर ने नीता को शरण दी है. पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो एक और परेशानी खड़ी हो गई. भलगामड़ा में मयूर के 2 घर थे. जिन में से एक घर गांव में था तो दूसरा गांव से बाहर खेतों था, जो 2 बीएचके था. एटीएस टीम के सामने अब सवाल यह था कि उसे पता नहीं था कि नीता चौधरी मयूर के किस घर में है. मयूर के दोनों घरों के बीच एक किलोमीटर का अंतर था. तब एटीएस टीम 2 भागों में बंट गई. आधे लोग एक घर पर नजर रखने लगे तो आधे लोग दूसरे घर पर.

इस बीच एटीएस ने देखा कि मयूर सुबह-शाम फूड पैकेट ले कर गांव के बाहर खेतों वाले घर पर जाता है. खेतों वाले उस घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता था. जब मयूर फूड पैकेट ले कर जाता था, तभी दरवाजा खुलता था. यह देख कर एटीएस टीम को लगा कि नीता यहीं होगी. उस घर के पास से एक रास्ता गुजरता था. वह रास्ता एटीएस के लिए उपयोगी साबित हुआ. उसी रास्ते पर आटो, बाइक और इसी तरह के वाहनों से एटीएस उस घर पर और ज्यादा नजर रखने लगी. उस घर में कौनकौन जाता है? घर से कोई बाहर आता है या नहीं? घर में कहां क्या हो रहा है? इन सभी बातों पर एटीएस ने अपना ध्यान केंद्रित किया.

एटीएस इसी तरह लगातार 3 दिनों तक उस घर पर नजर रखे रही. आखिर तीसरे दिन अंत में तय हो गया कि नीता चौधरी मयूर के इसी खेत वाले घर में ही रह रही है. नीता की पक्की लोकेशन मिल जाने के बाद एटीएस ने राहत की सांस ली. इंसपेक्टर देसाई ने मयूर के घर पर नजर रखने वाली टीम को भी वहीं बुला लिया और उस की गिरफ्तारी के लिए टीम आगे बढ़ी. 16 जुलाई, 2024 की शाम लगभग साढ़े 5 बजे एटीएस की टीम ऐक्शन में आ गई. टीम के सभी सदस्यों ने पहले से तय की गई रणनीति के अनुसार उस घर को चारों ओर से घेर लिया, जिस में नीता के होने की संभावना थी. क्योंकि अगर नीता को पता चल जाता कि एटीएस उसे पकडऩे आई है तो वह भाग सकती थी.

घर का मुख्य दरवाजा लोहे का था, जिसे खोल कर एटीएस की टीम अंदर घुसी. अंदर जा कर घर का दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर में दरवाजा खुला तो एटीएस की टीम ने देखा कि सामने नीता खड़ी थी. पिछले एक सप्ताह से नीता मीडिया और पुलिस विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई थी, इसलिए उसे पहचानने में एटीएस को जरा भी देर नहीं लगी. अचानक घर के दरवाजे पर अनजान लोगों को देख कर नीता को भी झटका सा लगा. क्योंकि शायद उसे भरोसा था कि कोई उसे खोज नहीं पाएगा. उस के मन में तमाम सवाल उठे. पर उन तमाम सवालों का जवाब महिला कांस्टेबल को एक ही वाक्य में दे दिया, ”हम लोग एटीएस से हैं.’’

सामने खड़े लोगों की पहचान जान कर नीता चौंक उठी. इस के बाद एटीएस की टीम घर के अंदर गई. नीता अभी तक अचंभित थी. टीम के एक सदस्य ने कहा, ”मैडम शांति से बैठ जाइए.’’

नीता टीम की महिला कांस्टेबल के पास खड़ी थी. टीम के बाकी लोगों ने घर की फटाफट तलाशी ली. तलाशी में एटीएस को कुछ खास नहीं मिला. सिर्फ एक बैग मिला. जिसे खोल कर देखा गया तो उस में नीता के कपड़े थे.

एटीएस ने नीता से कोऔपरेट करने के  लिए कहा तो नीता चुपचाप पुलिस द्वारा लाई कार में बैठ गई. इस के बाद एटीएस टीम तुरंत वहां से रवाना हो गई. एटीएस नीता को सुरेंद्रनगर के भलगामड़ा गांव से सीधे अहमदाबाद ले आई, जहां से उसे कच्छ पुलिस को सौंप दिया गया.

लग्जरी कारों की शौकीन थी नीता

अब सवाल यह था कि नीता भचाऊ से सुरेंद्रनगर कैसे पहुंची? नीता का तो कहना था कि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से वहां आई थी. लेकिन पुलिस का कहना है कि सेशन कोर्ट से जमानत रद होने के बाद वह जिस शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, उस का साला आदित्य सिंह राणा उसे यहां पहुंचा गया था. यहां वह जिस मयूर के घर छिपी थी, वह आदित्य सिंह राणा का दोस्त था. नीता का इरादा ऊपरी अदालत से जमानत मिलने तक फरार रहने का था.

नीता चौधरी ने सेशन कोर्ट के जमानत रद करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. नीता की अरजी देख कर हाईकोर्ट ने कहा था, ”अरजी देने वाले पर गंभीर आरोप है. वह अपनी जिंदगी में क्या करती है, कोर्ट को बताया जाए. अगर अपीलकर्ता निर्दोष थी तो भाग क्यों गई. आरोपी की जमानत रद कर के सेशन कोर्ट ने ठीक किया है. अगर अपीलकर्ता अपनी अपील को वापस नहीं लेता तो कोर्ट उस पर 5 लाख रुपए से अधिक का जुरमाना कर सकता है. अपीलकर्ता पुलिस में रहते हुए शराब तस्कर को सेफ पैसेज दे रही थी.’’

नीता चौधरी के वकील का कहना था कि अपीलकर्ता सीआईडी क्राइम में कांस्टेबल है. वह सीनियर अधिकारियों के कहे अनुसार काम कर रही थी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग में होते हुए इस ने शराब (Smuggling) तस्कर की मदद की. पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार कर पुलिस कर्मचारियों को मारने की कोशिश की. यह चाहती तो अपराधी को रोक कर पुलिस की मदद कर सकती थी. नीता चौधरी जब से पकड़ी गई, तब से सोशल मीडिया पर शोर सा मच गया था. क्योंकि शायद उस ने वरदी इसलिए पहनी थी कि कानून को ठेंगा दिखा कर हवा में उडऩे वाले अपराधियों को जमीन पर ला सके.

लेकिन पैसों के लालच में वह अपना फर्ज निभाने के बजाय अपने फर्ज के साथ गद्ïदारी कर के शानोशौकत वाली जिंदगी जीते हुए हवा में उडऩे लगी. जैसे ही नीता चौधरी को गिरफ्तार किया गया, उस के किस्से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. फिर तो सोशल मीडिया ने उस की पूरी कुंडली ही खोल कर रख दी. फटाफट इस खूबसूरत कांस्टेबल की जो तसवीरें सामने आईं, देख कर लोग अचंभे में पड़ गए. सोशल मीडिया से ही पता चला कि यह लेडी कांस्टेबल फर्ज निभाने से कहीं ज्यादा अपनी लग्जरी लाइफस्टाइल से सुर्खियां बटोरती है. तसवीरों में जो दिखाई दे रहा है, वह किसी को भी दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दे. आखिर एक सिपाही इतने महंगे शौक कैसे पूरे करती है?

नीता चौधरी एक बेहद ग्लैमरस और आलीशान जिंदगी जीने की आदी है. उस की पसंद वाली चीजों में महंगी कारें, महंगी बाइक्स के अलावा, हेलीकौप्टर, याट के साथ अरबी घोड़े हैं. इस के पहले भी वह इसी तरह इंस्टग्राम पर वीडियो डालने लिए सस्पेंड हो चुकी है, लेकिन सस्पेंड होने के बाद भी न उस पर कोई फर्क पड़ा था और न उस की लाइफस्टाइल में कोई अंतर आया था. अगर नीता चौधरी के कारों के शौक के बारे में देखा जाए तो उस के पास खुद का लग्जरी कारों का अच्छाखासा कलेक्शन है. उसके विभाग वाले हंसीहंसी में कहते भी हैं कि अगर जिंदगी जीनी है तो नीता चौधरी की तरह, जो गुजरात पुलिस में एक सिपाही होते हुए भी राजसी शानोशौकत के जीती है. लेकिन हर कोई नीता चौधरी की तरह अपने फर्ज से गद्ïदारी नहीं कर सकता. इसलिए  वे लोग सिर्फ नीता को देख कर जलते हैं.

एटीएस ने दौड़भाग कर के नीता चौधरी को भलगामड़ा गांव से गिरफ्तार किया था. नीता को गिरफ्तार कर के एटीएस ने थाना भचाऊ पुलिस के हवाले किया तो भचाऊ पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

नीता और वीरसंग की कैसे शुरू हुई लव स्टोरी

कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील पालनपुर के गांव मोरिया की रहने वाली है. 15 साल पहले उस ने वीरसंग चौधरी से लवमैरिज की थी. वह भी पालनपुर के पास के गांव बादरपुर का रहने वाला है. वीरसंग खेतीबाड़ी करने के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. वह अपने गांव का सरपंच भी रह चुका है. इस समय उस की भाभी गांव की सरपंच हैं. नीता ने वीरसंग के साथ लवमैरिज कर ली तो उस के मम्मीपापा से संबंध पहले जैसे नहीं रहे.

नीता और उस का पति वीरसंग चौधरी एक ही स्कूल में पढ़ते थे. वहीं दोनों में प्यार हुआ था. इसलिए दोनों का आपस में मिलनाजुलना होता रहता था. 15 साल पहले दोनों ने कोर्ट में प्रेमविवाह कर लिया था. जिस के साथ कांस्टेबल नीता चौधरी पकड़ी गई है, वह शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा गुजरात के जिला कच्छ के चिरई गांव का रहने वाला है. उस ने मात्र 9वीं तक पढ़ाई की है. वह शादीशुदा है. उस का मुख्य धंधा शराब तस्करी का है. उस के पिता भी उसी की तरह शराब तस्कर थे. काफी समय से गांधीधाम में रहने की वजह से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह वह नीता चौधरी को भी जानता था.

नीता चौधरी की तैनाती जिन दिनों गांधीधाम लोकल क्राइम ब्रांच में थी, उन्हीं दिनों सोशल मीडिया के जरिए वह नीता चौधरी के संपर्क में आया था. कहा जाता है कि युवराज सिंह खुद शराब पीने का शौकीन नहीं है. वह सिर्फ शराब बेचता है. सामान्य रूप से युवराज सिंह जब भी शराब मंगाता था, शराब की डिलीवरी हो जाती थी. उसे कभी भी शराब लेने जाना नहीं पड़ा. पर इस बार उस के पास से शराब मिली है. कहा जाता है कि उस की कई नेताओं से अच्छी पटती है. पटेगी क्यों नहीं, शराब की जरूरत तो नेताओं को भी पड़ती है.

युवराज सिंह सालों से गांधीधाम और भुज में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा कर रहा था. उस पर प्रोहिबिशन के 16 मामले दर्ज हैं. एकदो बार झगड़ा भी हुआ था, पर इन झगड़ों में वह सीधे इनवौल्व नहीं था. ये झगड़े उस के आदमियों ने किए थे. बीच में पड़ कर उसने इन झगड़ों को शांत करा दिया था. उस का फोकस अपने शराब के धंधे पर रहता था. नीता चौधरी पर केस हुआ और वह चर्चा में आई तो सोशल मीडिया पर उस के फालोअर्स बढ़ गए. इंस्टाग्राम पर उस के पहले लगभग 41 हजार फालोअर्स थे, केस होने के बाद वह संख्या 1 लाख 14 हजार हो गई. 73 हजार फालोअर्स एकाएक बढ़ गए हैं.

कच्छ पुलिस ने जब नीता चौधरी को गिरफ्तार कर के मीडिया के सामने पेश किया था तो उस के चेहरे पर किसी तरह का पछतावा नहीं था. वह जिस युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, वह गुजरात का मोस्टवांटेड शराब तस्कर है.

जिस सफेद थार से शराब की 16 बोतलें पकड़ी गई थीं, कहा जाता है कि वह नीता की ही थी. उस के पीछे चौधरी लिखा भी था. मजे की बात यह है कि इस सफेद थार में नंबर प्लेट भी नहीं थी. नीता चौधरी की तसवीरें और कारनामे तमाम सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर गुजरात पुलिस कब सुधरेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

फर्जी MBBS दाखिले : करोड़ों लूटे

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद शहर में रहने वाला चंद्रेश गुप्ता अपने कमरे में बैठा सुबह की चाय का इंतजार कर रहा था, उसे नौकरी का इंटरव्यू देने के लिए 9 बजे घर से निकलना था. चंद्रेश ने इसी साल मेरठ से बीएससी की थी, नोएडा की एक फार्मा कंपनी में नौकरी के लिए निकली वैकेंसी के लिए आवेदन भी कर दिया था. उसे इंटरव्यू का लैटर मिल गया था, इसलिए वह नहाधो कर तैयार बैठा था. एकाएक उस के कानों में भाभी रमा की दर्दभरी चीख सुनाई पड़ी, ‘‘ऊई मांऽऽ.’’

‘‘क्या हुआ भाभी?’’ चंद्रेश घबरा कर किचन की तरफ दौड़ते हुए चिल्लाया.

‘‘अंगुली कट गई लाला.’’ रमा अपनी बाईं हाथ की एक अंगुली को दूसरे हाथ से दबाए हुए दर्द भरे स्वर में बोली.

चंद्रेश ने भाभी की कटी अंगुली से खून टपकता देखा तो वह घबरा कर बोला, ‘‘क्या करती हो भाभी? कैसे काट ही अंगुली?’’

‘‘प्याज काट रही थी लाला. सोचा था, तुम्हारे लिए परांठे और आलू की भुजिया बना दूं. इंटरव्यू देने जा रहे हो, पता नहीं कितना समय लग जाए. नाश्ता कर के जाना जरूरी है.’’ रमा दर्द से कराहते हुए बोली.

‘‘आप अंगुली दबा कर रखो, मैं फर्स्टएड बौक्स ले कर आता हूं.’’ चंद्रेश ने कहा और तेजी से कमरे की तरफ लपक कर गया.

उस ने दराज में रखा फर्स्टएड बौक्स निकाला और किचन में ले आया. उस ने बौक्स में से एंटीसेप्टिक क्रीम, डिटोल और कौटन पट्टी निकाली. पहले कौटन पर डिटोल लगा कर रमा की अंगुली से बह रहे खून को कौटन से साफ किया. डिटोल से खून रोकने के बाद चंद्रेश ने साफ कौटन पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाई और कटी अंगुली पर पट्टी बांध दी. रमा बड़े गौर से अपने देवर द्वारा अपनी की अंगुली पर पट्टी बांधते हुए देख रही थी. पट्टी हो गई तो रमा मुसकरा कर बोली, ‘‘तुम तो पूरे डाक्टर बन गए हो लाला.’’

‘‘कहां भाभी?’’ चंद्रेश गहरी सांस भर कर बोला, ‘‘भैया से कितनी बार कहा है कि जब साइंस सबजेक्ट से ग्रैजुएशन करवा दिए हो तो मुझे डाक्टरी की पढ़ाई भी करवा दो, लेकिन भैया हैं कि सुनते ही नहीं.’’

‘‘डाक्टरी कोई हजार 2 हजार में थोड़ी होती है लाला. सुना है, इस में 80-90 लाख रुपया लग जाता है. इतना रुपया तुम्हारे भैया सात जन्म कमाने के बाद भी इकट्ठा नहीं कर सकते. फैजाबाद में जो खेत पड़ा है, वह बेचा नहीं जा सकता. तुम्हारे भैया ने अपनी तनख्वाह में तुम्हें ग्रैजुएशन करवा दिया है. अब कहीं 10-12 हजार की नौकरी कर लो, इस घर के खर्च को ठीकठाक चलाने के लिए इतना ही काफी रहेगा.’’

‘‘अच्छा भाभी.’’ चंद्रेश ने मुसकरा कर कहा और इंटरव्यू के लिए निकल गया.

‘‘लाला, बाहर कुछ खा जरूर लेना, भूखे मत रहना.’’ भाभी ने कहा.

‘‘खा लूंगा भाभी, आप आराम कीजिए. दोपहर में चावल वगैरह बना कर आप खा लेना. शाम को मैं होटल से रोटीसब्जी लेता आऊंगा.’’ चंद्रेश ने कहा.

हरीराम उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद में रहते थे. मूलत: वह फैजाबाद के रहने वाले थे, वहां पुश्तैनी घर और खेतीबाड़ी थी. खेती की फसल से उन के परिवार का खर्च चलता था. परिवार में पत्नी माया और 2 बेटे दयाशंकर और चंद्रेश थे. गाजियाबाद में उन के बहनोई रहते थे. उन के कहने पर 10 साल पहले वह पुश्तैनी मकान बेच कर गाजियाबाद आ बसे थे.

चंद्रेश बनना चाहता था डाक्टर

यहां एक कंपनी में वह काम पर लग गए और बेटों को उच्च शिक्षा दिलाने की मंशा से उन्हें अच्छे स्कूलों में दाखिला दिला दिया. दयाशंकर 12वीं क्लास तक ही पढ़ पाया. अपनी रिटायरमेंट के बाद उन्होंने दया को अपनी कंपनी में काम पर लगा दिया और उस की शादी रमा से कर दी. चूंकि हरीराम और पत्नी माया बूढ़े हो गए थे. अब दोनों घर में ही पड़े रहते थे. घर के खर्च की जिम्मेदारी दया ने संभाल ली थी. वह चंद्रेश को खूब पढ़ाना चाहता था ताकि वह किसी अच्छी सरकारी पोस्ट पर नौकरी कर के घर खर्च में उस का सहयोग करे.

चंद्रेश मेरठ के डिग्री कालेज से बीएससी करने के बाद एमबीबीएस की पढ़ाई करना चाहता था, लेकिन उस के लिए लाखों रुपया चाहिए था. फैजाबाद में जो खेत पड़ा था, वह बटाई पर दिया हुआ था, उस के रुपयों से गाजियाबाद में हरीराम के परिवार का खर्च चल रहा था. उसे बेचा नहीं जा सकता था. बेचते भी तो 20-30 लाख रुपया ही मिलता, लेकिन उस से एमबीबीएस की पढ़ाई नहीं हो पाती, घर में खर्चे की परेशानी पैदा होती सो अलग. इसलिए चंद्रेश ने एमबीबीएस करने का विचार त्याग कर सरकारी नौकरी के लिए भागदौड़ शुरू कर दी थी. परंतु बहुत कोशिश के बाद भी जब सरकारी नौकरी नहीं मिली तो चंद्रेश ने प्राइवेट कंपनी की ओर रुख कर लिया था.

आज उसे फार्मा टेक्ट कंपनी में इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था. ठीक समय पर वह उस कंपनी में पहुंच गया, लेकिन इंटरव्यू के नाम पर खानापूर्ति कर के उसे वापस लौटा दिया गया. मालूम हुआ कि कंपनी में काम कर रहे किसी व्यक्ति ने मोटी रकम कंपनी के एमडी की जेब में डाल कर अपने भतीजे को रिक्त पड़ी एकाउंटेंट की नौकरी पर लगवा दिया है. चंद्रेश निराश हो कर घर लौट रहा था कि उस की मुलाकात अपने एक जिगरी दोस्त राजवीर से हो गई. राजवीर उस से बड़ी गर्मजोशी से मिला, ‘‘कैसे हो चंद्रेश? यह शक्ल पर 12 क्यों बज रहे हैं तुम्हारे?’’ राजवीर ने पूछा.

‘‘किस्मत की मार पड़ती है तो ऐसे ही 12-13 बजते हैं राजवीर.’’ चंद्रेश के स्वर में असंतोष था.

‘‘किस्मत को मत कोसो यार, आज नहीं तो कल तुम्हें नौकरी मिल ही जाएगी. आओ, किसी रेस्तरां में बैठ कर चाय पीते हैं.’’ राजवीर ने कहा और चंद्रेश को ले कर एक रेस्तरां में आ गया.

चाय के साथ उस ने 2 प्लेट समोसे का भी और्डर दे कर चंद्रेश के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘तुम्हारा एमबीबीएस करने का सपना था, उस का क्या हुआ?’’

‘‘उस के लिए बहुत मोटी रकम चाहिए राजवीर, हमारे पास इतना रुपया नहीं है. तभी तो मैं नौकरी के लिए भागदौड़ कर रहा हूं.’’

‘‘मैं जानता हूं एमबीबीएस करने के लिए अस्सीनब्बे लाख रुपया चाहिए. यह कोर्स अमीर लोग ही अपने बेटों को करवा सकते हैं. हम लोग यह कोर्स करने का सपना भी नहीं देख सकते, लेकिन अब हमारे लिए एक रास्ता खुल गया है.’’

‘‘कैसा रास्ता?’’ चंद्रेश ने राजवीर की ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा.

‘‘गौतमबुद्ध नगर में एक औफिस खुला है. वे एमबीबीएस के लिए संबंधित कालेज में केवल 15 लाख में एडमिशन दिलवा देते हैं.’’

‘‘15 लाख, यह तो ज्यादा है.’’ चंद्रेश की आवाज में निराशा झलकी.

‘‘अबे, 80-90 लाख से तो ठीक है. तेरा सपना अगर 15 लाख रुपए में पूरा हो जाए तो और क्या चाहिए. डाक्टर बन कर कालेज से बाहर आओगे तो ऐसे कितने ही 15 लाख कमा लोगे.’’

‘‘कहता तो तू ठीक है, बोल कब चलेगा उस औफिस में?’’

‘‘कल चलते हैं. मैं आज दोस्त से उस औफिस का एड्रैस कंफर्म कर लूंगा. मुझे भी एमबीबीएस करना है.’’

‘‘ठीक है, मैं कल तुम्हें 9 बजे तुम्हारे घर पर मिलता हूं.’’ चंद्रेश ने उठते हुए कहा.

शाम को उस ने घर पहुंच कर इंटरव्यू में धोखाधड़ी होने की बात अपनी भाभी रमा को बता दी थी. भाभी तब बहुत निराश हो गई थीं.

वह सोचता था, ‘क्या उस ने 10-12 हजार की नौकरी पाने के लिए बीएससी की थी?’

जैसेतैसे वह रात कटी. चंद्रेश ने जल्दी से बिस्तर छोड़ा. नित्यकर्म से फारिग होने के बाद उस ने चायनाश्ता किया और तैयार हो कर वह 8 बजे ही घर से निकल गया.

9 बजे से पहले ही वह राजवीर के घर पहुंच गया. उसे हैरानी हुई कि राजवीर पहले से ही तैयार हो कर उस का इंतजार कर रहा था.

‘‘तूने एड्रैस कंफर्म कर लिया न राजवीर?’’ चंद्रेश ने हायहैलो करने से पहले ही पूछ लिया.

‘‘हां, वह सैक्टर-63 में है. पूरा पता है डी-247/4ए, गौतमबुद्ध नगर. हम वहां आटो से चलेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’ चंद्रेश ने सिर हिला कर कहा, ‘‘मेरी जेब में 2 सौ रुपया है.’’

‘‘मेरी जेब भी गरम है यार.’’ राजवीर बोला तो चंद्रेश हंस पड़ा.

दोनों ने रोड से गौतमबुद्धनगर के सैक्टर-63 के लिए आटो किया और आधा घंटे में ही सैक्टर-63 में पहुंच गए. पूछते हुए दोनों डी-247/4ए के सामने पहुंच कर रुक गए. वहां कुछ युवक खड़े थे.

‘‘यही है औफिस. देखो, पहले से यहां कितने ही युवक खड़े हैं.’’ राजवीर ने चंद्रेश का हाथ दबा कर कहा.

‘‘शायद एकएक को अंदर बुलाया जा रहा है, तभी औफिस के बाहर ये लोग खड़े हैं.’’ चंद्रेश ने अनुमान लगा कर कहा, ‘‘आओ, किसी से पूछ लेते हैं.’’

दोनों वहां बाहर खडे युवकों के पास आए.

‘‘अंदर प्रवेश के लिए क्या प्रोसिजर है दोस्त?’’ राजवीर ने एक युवक से पूछा.

‘‘गेट पर गार्ड खड़ा है, उस से एक फार्म 5 रुपए का ले लो और अपना बायोडाटा लिख कर गार्ड को दे दो. वही आवाज लगा कर आप को बुलाएगा.’’ उस युवक ने बताया.

दोनों ने गार्ड को 10 रुपए दे कर 2 फार्म ले लिए फिर फार्म भर कर गार्ड के पास जमा करवा दिए. उन को बताया गया कि एक घंटे तक उन का नंबर आ जाएगा. दोनों वहीं धूप में खड़े हो गए. एक घंटे बाद पहले राजवीर को अंदर बुलाया गया, फिर 15 मिनट बाद चंद्रेश का नंबर आया. चंद्रेश ने शीशे का दरवाजा खोल कर अंदर प्रवेश किया, तब उस के दिल की धड़कन बेकाबू थी. खुद को संभालने की कोशिश करते हुए उस ने अंदर बने केबिन का दरवाजा खोल कर अंदर घुसते हुए बड़े शिष्टाचार से कहा, ‘‘गुड मार्निंग सर.’’

‘‘वेरी गुडमार्निंग,’’ सामने कुरसी में धंसे एक मुसलिम नजर आने वाले युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘आइए, बैठिए.’’

चंद्रेश ने कुरसी पर बैठ कर नजरें घुमाईं. उस युवक के साथ वाली कुरसियों पर 2 युवतियां बैठी हुई थीं, जो चेहरेमोहरों से शिक्षित दिखलाई पड़ती थीं.

केबिन की दीवारें सपाट थीं. उन पर किसी नेता की तसवीर नहीं लगी थी. अकसर औफिस में किसी राजनेता की तसवीर जरूर लगी होती है. सामने बैठा मुसलिम युवक शायद हैड था. उस ने चंद्रेश को गौर से देखा, ‘‘क्या आप का नाम चंद्रेश गुप्ता है?’’ हाथ में पकड़े फार्म को देख कर उस युवक ने पूछा.

‘‘जी सर,’’ चंद्रेश ने बताया.

‘‘गुप्ता लोग तो पैसे वाले होते हैं चंद्रेश बाबू.’’ युवक ने प्रश्न किया, ‘‘क्या आप भी पैसे वाले हैं?’’

‘‘नहीं सर, हम खानेकमाने वालों में से हैं. भैया 12 हजार की नौकरी करते हैं.’’

‘‘हूं,’’ सामने बैठे युवक ने मुसकरा कर कहा, ‘‘क्या आप को नहीं मालूम एमबीबीएस में एडमिशन पाने के लिए लाखों रुपया लगता है?’’

‘‘मालूम है सर. लेकिन सुना है, आप कम रुपयों में एमबीबीएस का दाखिला दिला देते हैं.’’ चंद्रेश ने जल्दी से बात को संभाला, ‘‘आप केवल 15 लाख रुपया लेते हैं.’’

‘‘जरूरी नहीं, 15 लाख ही लेंगे. हमें आप का सब्जेक्ट, शिक्षा सभी पर गौर करना है. खुशी हुई आप ने साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन किया है. लेकिन आप के मार्क्स कम हैं, इसलिए आप को सरकारी कालेज में दाखिला दिलवाने में थोड़ी परेशानी पेश आएगी.’’

‘‘सर, मुझे एमबीबीएस करना है. आप मन से चाहेंगे तो मुझे एडमिशन मिल जाएगा.’’ चंद्रेश गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘मैं बहुत उम्मीद से यहां आया हूं.’’

उस युवक ने पास बैठी युवती की ओर देखा. आंखों ही आंखों में बात की, फिर उन में से एक युवती ने चंद्रेश के चेहरे पर नजरें गड़ा कर पूछा, ‘‘क्या आप 30 लाख रुपयों का बंदोबस्त कर सकेंगे?’’

‘‘30 लाख? यह तो बहुत ज्यादा होगा मैम.’’ चंद्रेश घबरा कर बोला.

‘‘तो आप कितना दे सकते हैं?’’ दूसरी युवती ने पूछा.

‘‘15 लाख दे दूंगा मैम.’’

‘‘15 लाख कम रहेगा.’’ सामने बैठे युवक ने इंकार में सिर हिलाया तो तुरंत पास बैठी युवली बोल पड़ी, ‘‘आप 20 लाख का इंतजाम करिए. हम आप के लिए सरकारी कालेज में एडमिशन की बात कर लेते हैं.’’

‘‘जी, ठीक है. मैं 20 लाख ही दूंगा, लेकिन मेरा एडमिशन हो जाना चाहिए मैम.’’ चंद्रेश ने अपनी बात रख कर आश्वासन मांगा.

‘‘अवश्य हो जाएगा. आप एक हफ्ते में 20 लाख रुपया जमा करवा दें, इस से ज्यादा समय नहीं दिया जाएगा आप को, क्योंकि यहां एडमिशन पाने वालों की भीड़ ज्यादा है और सरकारी कालेजों में सीटें कम हैं.’’

‘‘मैं एक हफ्ते से पहले ही 20 लाख जमा करवा दूंगा मैम.’’ चंद्रेश जल्दी से बोला.

चंद्रेश उठा और बाहर आ गया. राजवीर उसे बाहर ही मिल गया. उस ने बताया कि उस से 25 लाख रुपया मांगा गया है, वह 2 दिन में यह रुपया ला कर जमा करवा देगा.

राजवीर और चंद्रेश की आंखों में अनोखी चमक थी. बहुत कम रुपयों में उन्हें एमबीबीएम करने का सुनहरा मौका जो मिल रहा था. इस मौके को वे किसी भी कीमत पर हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे.

सभी पीडि़त पहुंचे पुलिस के पास

नोएडा (गौतमबुद्ध नगर) के थाना सेक्टर-63 में 30-35 युवक एक साथ पंहुचे तो एसएचओ अमित मान अपनी कुरसी से उठ कर खड़े होते हुए बोले, ‘‘क्या बात है, आप इतने लोग एक साथ?’’

‘‘सर, हम लुट गए हैं, हमारे साथ धोखाधड़ी हुई है.’’ उन युवकों में चंद्रेश भी था. वह आगे आ कर रुआंसे स्वर में बोला.

‘‘किस ने की है यह धोखाधड़ी?’’ एसएचओ चौंकते हुए बोले, ‘‘मुझे तुम विस्तार से पूरा मामला बताओ.’’

‘‘सर, मेरा नाम चंद्रेश है. यहां सैक्टर-63 में एक औफिस खोला गया है, जिस के द्वारा 20 से 30 लाख रुपए ले कर सरकारी कालेज में एमबीबीएस का एडमिशन दिलवाने का झांसा दिया गया.

‘‘यह साथ आए तमाम छात्र और मैं इस फरजीवाड़े का शिकार बन गए हैं. किसी ने 30 लाख रुपया दिया है, किसी ने 20 लाख. मेरे दोस्त राजवीर ने मुझे बताया कि कम रुपयों में फलां कंपनी हमें एमबीबीएस का एडमिशन दिलवा देगी.’’

‘‘राजवीर साथ आया है?’’ एसएचओ अमित मान ने पूछा.

‘‘जी सर.’’ राजवीर युवकों की भीड़ से आगे आ कर बोला, ‘‘मैं भी इस फरजी कंपनी द्वारा ठग लिया गया हूं. मैं ने 25 लाख रुपया इस कंपनी को दे दिया है.’’

‘‘ओह!’’ एसएचओ अमित मान एकदम गंभीर हो गए, ‘‘राजवीर तुम्हें इस औफिस के विषय में किस ने बताया था?’’

‘‘मेरा दोस्त शिवम है, वह भी साथ आया है सर. शिवम ने ही मुझे बताया था कि 15 लाख रुपया दे कर वह सरकारी कालेज के लिए सेलेक्ट हो गया है. मैं ने यह बात चंद्रेश को बताई तो वह और मैं दूसरे दिन इस औफिस में पहुंच गए. मुझ से 25 लाख रुपया एडमिशन दिलवाने के नाम पर मांगा गया तो मैं ने तीसरे दिन ही यह रुपया औफिस में जा कर जमा करवा दिया.’’

‘‘हां चंद्रेश, तुम ने 20 लाख रुपया कैसे जुटाया?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने पिताजी और भैया के पांव पकड़ लिए. उन से गिड़गिड़ा कर कहा कि अगर मुझे 20 लाख रुपया दे देंगे तो डाक्टरी करने के बाद सरकारी नौकरी मिल जाएगी. मैं उन का रुपया लौटा दूंगा और घर की तमाम जिम्मेदारी भी संभाल लूंगा. मेरे भाई और पिताजी ने सलाहमशविरा कर के फैजाबाद वाला खेत 20 लाख में तुरंत बेच कर 3 दिन में मेरे हाथ पर 20 लाख रुपया रख दिया. जिसे ला कर मैं ने उस औफिस में जमा करवा दिया.’’

‘‘तुम्हें कैसे पता चला कि तुम लुट गए हो, तुम्हारे साथ धोखा हुआ है?’’ एसएचओ ने पूछा.

‘‘सर, इस कंपनी ने रुपया ले लेने के बाद मुझे भी अन्य छात्रों की तरह काउंसलिंग के बहाने 18 दिसंबर, 22 तक रोक कर रखा. हमें एक महीने रोक कर रोज मीटिंग ली जाती, समझाया जाता कि एमबीबीएस कैसे पूरा करना है, कैसे आत्मविश्वास बना कर रखना है, कैसे संयम रख कर अपनी पढाई करनी है, आदिआदि.

‘‘एक महीना पूरा होने के बाद 18 दिसंबर को सरकारी कालेज (जहां से एमबीबीएस करना था) एक अथारिटी लेटर ले कर भेजा गया. वहां जाने पर हमें मालूम हुआ कि सरकारी कालेज के डीन ऐसे किसी औफिस या व्यक्ति को नहीं जानते, हमें ठगा गया है. यह मालूम होते ही हम सब सेक्टर-63 के उस औफिस में पहुंचे तो वहां गार्ड और कर्ताधर्ता गायब थे. हमें अपने को ठगे जाने का पता चला तो हम सब एकत्र हो कर यहां अपनी शिकायत ले कर आ गए हैं.’’

मामला बहुत गंभीर था. एसएचओ अमित मान ने गौतमबुद्ध नगर की पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह, डीसीपी  व एसीपी को फोन द्वारा इस ठगी की जानकारी दी तो उन्होंने एसएचओ अमित मान को जांच अधिकारी बना कर उन के नेतृत्व में एसआई नीरज शर्मा, आरती शर्मा, हैडकांस्टेबल सुबोध, वरुण चौधरी, कांस्टेबल अंकित व अंशुल की टीम का गठन कर दिया गया. एसएचओ ने थाने में आए छात्रों को आश्वासन दिया कि उन ठगों को पकड़ने की पूरी कोशिश की जाएगी. वे सब अपनीअपनी शिकायत स्वागत कक्ष में जा कर लिखित रूप में जमा करवा दें और अपने घर लौट जाएं.

चंद्रेश और राजवीर के बताए अनुसार, आर्टिस्ट ने उन ठगों के हुलिए के रेखाचित्र बना दिए. उन में एक उस मुसलिम युवक और 2 युवतियों के चित्र थे. एसएचओ अमित मान ने उन रेखाचित्रों को हर थाने में वाट्सऐप द्वारा भेज कर उन्हें देखते ही हिरासत में लेने और सूचना देने का अनुरोध कर दिया. एसएचओ अमित मान अपने साथ एसआई नीरज शर्मा और पुलिस टीम के साथ चंद्रेश और राजवीर को साथ ले कर उन ठगों के कथित औफिस के लिए निकल गए. लेकिन औफिस पर ताला बंद था. वहां आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की पड़ताल की गई तो उन युवक और युवतियों की पहचान चंद्रेश और राजवीर ने कर दी.

तीनों की फोटो अपने मोबाइल में अपलोड करने के बाद एसएचओ अमित मान ने अपने तमाम मुखबिरों को वह फोटो उन के मोबाइल में भेज कर उन की तलाश में लगा दिया. पुलिस टीम भी उन वांछित ठगों की तलाश में पूरे शहर में फैल गई. पुलिस और मुखबिरों की मेहनत रंग लाई. उन ठगों को 30 दिसंबर को सेक्टर 62 के गोलचक्कर से गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी की सूचना पा कर वरिष्ठ अधिकारी भी थाने पहुंच गए. उन की उपस्थिति में ठगों से पूछताछ शुरू हुई. उन के नाम तस्कीर अहमद खान, रितिक सिंह उर्फ लवलीन व वैशाली पाल थे. तीनों पढ़ेलिखे थे. अपने शौक व तुरंत अमीर बनने की महत्त्वाकांक्षा के लिए उन्होंने ठगी का यह धंधा अख्तियार किया था. तीनों दोस्त थे.

तस्कीर अहमद को मालूम था, एमबीबीएस में छात्रों को 80-90 लाख में भी दाखिला बहुत मुश्किल से मिलता है. ऐसे छात्रों को एमबीबीएस में कालेज में दाखिला दिलवाने के लिए 15 से 30 लाख रुपया ले कर ठगा जा सकता है. इस के लिए उन तीनों ने गौतमबुद्ध नगर में डी-247/4ए में एक औफिस खोल कर सिक्योरिटी गार्ड को रखा. इस के बाद उन्होंने कालेजों से साइंस सब्जेक्ट से ग्रैजुएशन करने वाले छात्रों के एड्रैस, नाम और मोबाइल नंबर हासिल कर के उन के मोबाइल्स पर सस्ते में एमबीबीएस करवाने का मैसेज भेजा. 2-4 छात्र उन के पास आए तो उन्हें 20-30 लाख में एडमिशन दिलवाने के नाम पर ठग कर उन्हें ही अन्य दोस्तों को, जो यह कोर्स करना चाहते हैं, उकसाने और यहां लाने के लिए प्रेरित किया. इस प्रकार सैकड़ों छात्र उन के संपर्क में आ गए.

उन्होंने इस तरह छात्रों से करोड़ों रुपए ठग लिए, फिर फरजीवाड़े की पोल खुलने के डर से 18 दिसंबर, 2022 को उन्होंने छात्रों को अपाइंटमेंट लेटर दे कर सरकारी कालेज जाने को कहा और अपना बोरियाबिस्तर समेट कर भाग निकले, किंतु वे मुखबिर की सूचना पर सेक्टर-62 से पकडे़ गए. वह यह शहर छोड़ कर मुंबई भाग जाने वाले थे, लेकिन ऐसा नहीं हो सका. पुलिस ने उन को कोर्ट में पेश कर के रिमांड पर ले लिया. उन से कड़ी पूछताछ शुरू हुई तो उन्होंने अपने 3 और साथियों के नाम बताए, जो परदे के पीछे रह कर काम कर रहे थे. ये नाम थे- 1. नीरज कुमार सिंह उर्फ अजय, निवासी-गांव महादेवा, थाना-माली, जिला-औरंगाबाद (बिहार) 2. अभिषेक आनंद उर्फ सुनील, निवासी- 193, मानसा मार्ग, कृष्णापुरी, पटना (बिहार) 3. मोहम्मद जुबेर उर्फ रिजोल हक निवासी-149, हौजरानी, मैक्स हौस्पिटल के पास, मालवीय नगर, दिल्ली.

इन्हें पकड़ने के लिए पुलिस टीम भेजी गई, लेकिन ये तीनों फरार हो गए थे. शायद इन्हें अपने साथियों के पकड़े जाने की भनक लग गई थी. पकड़े गए तस्कीर अहमद खान पुत्र अहमद अली खान, निवासी मुरादी रोड, बाटला हाउस, थाना जामिया, दिल्ली 2. रितिक उर्फ लवलीन कौर पुत्री गुरुदेव कौर, चाम्स केशल, राजनगर एक्सटेंशन, गाजियाबाद. 3. वैशाली पाल पुत्री मूलचंद सिंह, निवासी-साईं एन्क्लेव, डी ब्लौक, नंदग्राम, गाजियाबाद. रिमांड अवधि में इन से छात्रों से ठगे गए रुपयों के संबंध में पूछताछ की गई तो इन की निशानदेही पर 19 लाख रुपया, 3 अंगूठी सफेद धातु, एक ब्रेसलेट सफेद धातु, 6 चेन पीली धातु, एक बाली पीली धातु, 6 अंगूठियां पीली धातु, 6 मोबाइल, 14 की पैड फोन, 3 डायरी, एक पैन कार्ड, 4 एटीएम कार्ड, एक आधार कार्ड बरामद हुआ.

पुलिस ने इन के विरुद्ध भादंवि की धारा 420/406/120बी/34 के तहत मुकदमा दर्ज कर इन्हें दोबारा अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

तीनों भगोड़े ठगों नीरज कुमार सिंह उर्फ अजय, अभिषेक आनंद उर्फ सुनील व मोहम्मद जुबेर उर्फ रिजोल पर पुलिस ने 25-25 हजार का ईनाम घोषित कर दिया था. इन्होंने पुलिस को बहुत छकाया, लेकिन अंत में 28 जनवरी, 2023 को 11 बजे ये तीनों पुलिस के हत्थे चढ़ गए. इन से भी पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

Crime Story : कुंवारे थे, कुंवारे ही रह गए

हरियाणा के जिला सोनीपत के खरखौदा स्थित दिल्ली चौक पर अकसर गहमागहमी रहती है, लेकिन 27 दिसंबर को वहां कुछ अलग ही माहौल था. 40 से ज्यादा युवा और अधेड़ सजेधजे वहां इधरउधर टहल रहे थे. इन में किसी के हाथों पर मेंहदी लगी थी तो किसी के सिर पर सेहरा था. इन में से कुछ ऐसे लड़के भी थे, जिन्होंने ब्यूटीपार्लर जा कर फेशियल भी करवाया था, ताकि उन का चेहरा खूबसूरत लगे.

ज्यादातर क्लीनशेव्ड थे, वे चाहे अधेड़ थे या युवा. सभी के चेहरे खुशी से दमक रहे थे. उन के हावभाव और हरकतें देख कर यही लगता था कि इन्हें किसी का बेसब्री से इंतजार है. इन के साथ उन के एक या दो रिश्तेदार भी थे. सभी लोग दिल्ली की ओर से आने वाले वाहनों को टकटकी लगाए देख रहे थे.

दरअसल, ये सभी दूल्हे थे, जिन की शादी होनी थी. इन दूल्हों और उन के घर वालों से कहा गया था कि सुबह 9 बजे तक दिल्ली से एक बस आएगी, जिस में बैठ कर दूल्हों और उन के एकएक रिश्तेदार को दिल्ली स्थित तीसहजारी अदालत के पास पहुंचना है. वहीं बगल में स्थित अनाथ आश्रम में इन सब की एक साथ शादी कराई जाएगी.

ये सभी दूल्हे और उन के रिश्तेदार खरखौदा के दिल्ली चौक पर खड़े हो कर दिल्ली से आने वाली बस का इंतजार कर रहे थे. बस के आने का समय 9 बजे बताया गया था, इसलिए ये सभी दूल्हे 9 बजे से पहले ही वहां आ गए थे. क्योंकि उन्हें डर था कि अगर बस चली गई तो वे रह जाएंगे.

वहां आए ये सभी दूल्हे सोनीपत, जींद, रोहतक, झज्जर आदि जिलों के रहने वाले थे. बस को 9 बजे तक आ जाना था, लेकिन 10 बज गए. दिल्ली से बस नहीं आई. इस बीच दूल्हों के घरों से कभी भाई तो कभी मां तो कभी दोस्त का फोन कर के पूछता कि वे दिल्ली के लिए चल पडे़ या खरखौदा में ही खड़े हैं.

दूल्हे क्या जवाब देते. कुछ देर तो कहते रहे कि अभी बस नहीं आई है, थोड़ी देर में आ जाएगी. जैसे ही वे यहां से निकलेंगे, बता देंगे. लेकिन जब बस का इंतजार करतेकरते 11 बज गए और बस का कोई अतापता नहीं था. तो दूल्हों और उन के साथ आए रिश्तेदारों को बेचैनी होने लगी. घर वालों के फोन बारबार आ ही रहे थे, जिस से वे झुंझलाने लगे.

उन दूल्हों में से कुछ के रिश्तेदारों ने सुशीला को फोन किया. लेकिन उस का मोबाइल फोन बंद था. इस के बाद तो सब ने सुशीला को फोन करने शुरू कर दिए, लेकिन उस से बात नहीं हो सकी. ये सभी सुशीला को इसलिए फोन कर रहे थे, क्योंकि शादी कराने की जिम्मेदारी उसी ने ले रखी थी.

शादी की बातचीत करने के लिए उस के साथ मोनू भी आया था. कुछ लोगों के पास मोनू का भी फोन नंबर था. उसे भी फोन किया गया. उस का भी फोन बंद था, इसलिए उस से भी बात नहीं हो सकी. मोनू थाना कलां का रहने वाला था.

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शादी कराने के लिए सुशीला ने उन दूल्हों के घर वालों से अच्छेखासे पैसे लिए थे. किसी से 45 हजार रुपए तो किसी से 60 हजार रुपए तो किसी से 90 हजार रुपए. सुशीला ने ही सब से दिल्ली से बस आने और वहां जा कर अनाथालय में सभी की सामूहिक शादी कराने की बात कही थी. उसी के कहने पर ये सभी लोग खरखौदा में इकट्ठे हुए थे.

लेकिन अब सुशीला से बात नहीं हो पा रही थी. मोनू का भी कुछ अतापता नहीं था. सुशीला और मोनू के मोबाइल फोन बंद बता रहे थे. इन के पास सुशीला और मोनू के अलावा किसी अन्य का मोबाइल नंबर नहीं था. इसी तरह दोपहर के 12 बज गए. वहां एकत्र दूल्हे और उन के रिश्तेदार तरहतरह की चर्चाएं करने के साथ धोखा खाने यानी शादी के नाम पर ठगे जाने की आशंका जाहिर करने लगे.

सभी दूल्हे पहुंच गए सुशीला के घर

इंतजार करतेकरते थक चुके लोगों ने कहा कि सुशीला खरखौदा में ही तो रहती है, चलो उस के घर चलते हैं. उसी से पूछते हैं कि अभी तक बस क्यों नहीं आई? सभी सुशीला के घर पहुंचे तो वह घर पर ही मिल गई. मोनू भी सुशीला के ही घर पर था.

सभी ने सुशीला और मोनू से बस न आने के बारे में पूछा तो सुशीला ने कहा, ‘‘देखो मैं पता करती हूं. शादी कराने की बात दिल्ली में रहने वाली मेरी भाभी अनीता ने कही थी. उन्हीं के कहने पर मैं ने दिल्ली से बस आने की बात बताई थी.’’

इस के बाद सुशीला ने सब के सामने अनीता को फोन किया. पता चला कि उस का भी फोन बंद है. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब अनीता से भी बात नहीं हो सकी तो दूल्हों और उन के रिश्तेदारों को गुस्सा आ गया. उन्हें यकीन हो गया कि शादी के नाम पर वे ठगे गए हैं.

कुछ लोग सुशीला से अपने पैसे वापस मांगने लगे. उन का कहना था कि उन्होंने कर्ज ले कर उसे पैसे दिए हैं. अब वह शादी नहीं करा रही है तो उन के पैसे वापस करे. कुछ दूल्हों का कहना था कि अब वे बिना दुलहन के कौन सा मुंह ले कर अपने घर जाएंगे. कुछ दूल्हे ऐसे भी थे, जिन के घर वालों ने बेटे की शादी की खुशी में बहूभोज के लिए मैरिज होम तक बुक करा लिया था. डीजे वगैरह का भी इंतजाम किया था.

कुछ दूल्हे ऐसे भी थे, जिन के घर वालों ने शादी की सारी रस्में करा का उन्हें यहां तक पहुंचाया था. जो खातेपीते घर के दूल्हे थे, उन्होंने अपने रिश्तेदारों से बताया था कि लड़की के घर वाले गरीब हैं. इसलिए शादी करने के बाद बहू के साथ घर आएंगे तो उन सब की खातिरदारी घर पर करेंगे.

पैसे मांगने पर सुशीला ने कहा कि पैसे तो वह अनीता को दे चुकी है. इसलिए पैसे नहीं दे सकती. 2-3 घंटे तक सुशीला के घर पर हंगामा होता रहा. जब लोगों को ना तो पैसे वापस मिले और ना ही शादी होने की कोई सूरत नजर आई तो वे सुशीला और मोनू को पकड़ कर थाना खरखौदा ले गए. शादी के नाम पर हुई ठगी को एक दूल्हे का पिता बरदाश्त नहीं कर सका और वह थाने में ही बेहोश हो कर गिर पड़ा. लोगों ने उसे संभाला.

दूल्हों और उन के रिश्तेदारों ने पुलिस को सारी बात बताई. कुछ ने लिखित शिकायत कर दी. थाना खरखौदा पुलिस ने अनीता, सुशीला और मोनू के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. थानाप्रभारी वजीर सिंह ने इस मामले की जांच एसआई नरेश कुमार को सौंपी. पुलिस ने सुशीला और मोनू को हिरासत में ले कर पूछताछ की. बाद में दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया.

गेम की मास्टरमाइंड निकली अनीता

28 दिसंबर को पुलिस ने खरखौदा के वार्ड नंबर 2 निवासी सुशीला और गांव थाना कलां निवासी मोनू को मजिस्ट्रैट के सामने पेश कर पूछताछ के लिए 2 दिनों के रिमांड पर लिया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में सुशीला और मोनू ने बताया कि उन्हें पता नहीं  था कि शादी के नाम पर अनीता लोगों को ठग रही है.

अनीता ने उन्हें इस काम के लिए एक से 2 हजार रुपए ही दिए थे. बाकी रुपए उस ने खुद ही रख लिए थे. सुशीला के बताए अनुसार, अनीता दिल्ली के नरेला के लामपुर बौर्डर की रहने वाली थी. दिल्ली के अलावा झज्जर और अन्य जगहों पर भी उस के ठिकाने बताए.

थाना खरखौदा पुलिस ने अनीता की तलाश में दिल्ली और जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी, छापे मारे, लेकिन वह नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने 3 टीमें बना कर उस की तलाश शुरू की.

सुशीला और मोनू से पूछताछ के आधार पर पुलिस ने कई अन्य लोगों से पूछताछ की, लेकिन अनीता के बारे में कुछ पता नहीं चला. रिमांड अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने सुशीला और मोनू को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

पुलिस की लगातार छापेमारी से घबरा कर अनीता ने 7 जनवरी, 2018 को सोनीपत की अदालत में आत्मसमर्पण किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस ने पूछताछ के लिए अदालत से उस का रिमांड मांगा तो उसे 5 दिनों की रिमांड पर सौंप दिया गया. 5 दिनों के बाद एक बार फिर 3 दिनों के रिमांड पर लिया गया.

अनीता से पूछताछ में पता चला कि कुंवारों से शादी के नाम पर ठगे गए पैसों का उपयोग अनीता के बेटे रोहित ने भी किया था. पुलिस ने 9 जनवरी को दिल्ली से रोहित को भी गिरफ्तार कर लिया. रोहित को 3 दिनों के रिमांड पर लिया गया. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ और शादी के नाम पर ठगे गए लोगों से मिली जानकारी के आधार पर जो कहानी सामने आई है, वह इस प्रकार थी—

कुंवारों को ठगने की बनाई योजना

दिल्ली के नरेला के गांव लामपुर की रहने वाली अनीता के पति की मौत हो चुकी थी. उस के 2 बच्चे हैं, जिन की शादियां हो चुकी हैं. अनीता की हरियाणा में कई रिश्तेदारियां हैं. उसे पता था कि लड़कियों की कमी की वजह से हरियाणा के तमाम लड़कों की शादियां नहीं हो पाती हैं. शादी की उम्मीद में तमाम लड़के अधेड़ हो चुके हैं. इस तरह के लोग किसी भी तरह शादी करना चाहते हैं. इस के लिए वे पैसा दे कर दुलहन खरीदने को भी तैयार रहते हैं.

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अनीता ने इसी बात का फायदा उठाया. उस ने शादी कराने के नाम पर कुंवारों को ठगने की योजना बनाई. इस काम में उस ने अपनी जानकार खरखौदा की रहने वाली सुशीला की मदद ली. हालांकि उस ने सुशीला को अपनी पूरी योजना नहीं बताई थी. उसे केवल आसपास के गांवों में कुंवारों के बारे में पता करने और उन की शादी कराने की बात करने की जिम्मेदारी सौंपी थी.

इस के बाद अपने परिचित मोनू को मदद के लिए ले लिया. दोनों ने आसपास के गांवों और रिश्तेदारों में ऐसे लड़कों के बारे में पता किया, जिन की शादी नहीं हुई थी. सुशीला ने ऐसे लड़कों की शादी कराने की बात चलाई. हर गांव में एकदो परिवार ऐसे मिल गए, जिन के यहां लड़कों की शादी नहीं हुई थी. वे चाहते थे कि उन के लड़के की शादी हो जाए और घर में बहू आ जाए. इस के लिए वे पैसे भी खर्च करने को तैयार थे.

एक शादी के लिए 45 से 90 हजार रुपए

सुशीला के कहने पर तमाम लोग शादी के लिए तैयार हो गए. एकदूसरे के माध्यम से शादी करने वालों की संख्या बढ़ती गई. सुशीला ने यह बात अनीता को बताई. वह खरखौदा आ गई और सुशीला के साथ कुछ ऐसे लोगों के यहां गई भी, जो शादी के इच्छुक थे. उस ने कहा कि जिन लड़कियों से उन की शादी कराएंगी, वे लड़कियां अनाथ हैं और दिल्ली के अनाथालय में रहती हैं. इस के लिए उन्हें अनाथालय को चंदा देना होगा.

चंदे की राशि कम से कम 45 हजार होगी. उम्र के हिसाब से चंदे की यह रकम बढ़ती जाएगी. जब कई लोग शादी के लिए तैयार हो जाएंगे तो वह एकसाथ सब की शादियां करा देगी.

शादी कब और कहां होगी, यह वह बाद में बता देगी. उस ने यह भी कहा कि शादी से कुछ दिनों पहले दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट के पास स्थित आश्रम में पहले लड़कियां दिखाई जाएंगी, उन में वे जिस लड़की को पसंद करेंगे, उसी से उन की शादी कराई जाएगी. जिन के लड़कों की शादी नहीं हुई थी, उन्हें यह सौदा बुरा नहीं लगा.

वे चंदा देने के लिए तैयार हो गए. इस के बाद अनीता तो चली गई, सुशीला और मोनू शादी कराने वाले लड़कों के घर वालों से चंदा वसूल करने लगे.

कुछ जगह चंदा लेने के लिए सुशीला और मोनू के साथ अनीता भी गई थी. इन में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो किसी तरह गुजरबसर कर रहे थे. ऐसे लोगों ने बेटे की शादी के लिए कर्जा ले कर सुशीला को पैसे दिए.

रोहतक के राजबीर और मोहन के गांव बोहर में सुशीला की रिश्तेदारी थी. सुशीला ने उन के गांव जा कर ऐसे लोगों के बारे में पता किया, जो शादी करना चाहते थे. गांव में रिश्तेदारी होने की वजह से सुशीला पर विश्वास कर के मोहन ने 45 हजार तो राजबीर ने 50 हजार रुपए उसे दे दिए. इसी तरह खरखौदा के संदीप ने शादी के लिए सुशीला को 45 हजार रुपए दिए थे. उस के पास पैसे नहीं थे तो घर वालों ने उधार ले कर उसे 45 हजार रुपए दिए थे.

खरखौदा के ही सुरेश, अंशरूप, पवन, राजेंद्र, मुनेश, जौनी, राकेश और साबू, सोनीपत के अमित, रोहतक के गांव हुमायूंपुर के संतोष और लक्ष्मी, निलौठी के असीक और रामवीर, मोहाना के राजू, बोहर के सत्यनारायण, कृष्ण, मोहन, राजवीर और कुलदीप, रोहतक के गांव निडाना के रमेश, अनिल, धनाना के शिवकुमार, जींद के अमरजीत, संजीव, झज्जर के बहराना गांव के जगवीर सहित कई लोगों ने शादी के लिए सुशीला को पैसे दिए.

ठगी के शिकार सब से ज्यादा खरखौदा के ही हुए हैं. इन की संख्या 25 से भी ज्यादा है. खरखौदा का रहने वाला सुरेश कुमार खेती करता था. उस का दूध का भी धंधा था. घर में बुजुर्ग विधवा मां थी.

आखिर बूढी मां पर वह कब तक बोझ बना रहता. सुशीला ने उस की मां से कहा कि वह सुरेश की शादी अनाथाश्रम की लड़की से करा देगी. इस के लिए 45 हजार रुपए दान देने पड़ेंगे. घर में 10 हजार रुपए ही थे. बाकी के 35 हजार रुपए उस ने ब्याज पर ले कर दिए.

खरखौदा का संदीप सब्जीमंडी में सब्जी बेचता था. बूढ़ी मां की इच्छा थी कि संदीप की शादी हो जाए. कई लोगों ने सुशीला को अनाथाश्रम की लड़की से शादी कराने के लिए पैसे दिए थे, इसलिए संदीप की मां भी उस के झांसे में आ गई. कुछ पैसे घर में थे और कुछ पैसे उधार ले कर सुशीला को दे दिए थे.

इसी तरह खरखौदा के वार्ड नंबर 3 निवासी स्कूटर रिपेयरिंग का काम करने वाले जौनी की दादी ने उस की दुलहन के लिए दान के रूप में पैसे दिए थे. दादी ने सोचा था कि पोते की बहू आ जाएगी तो दो जून की रोटी मिलने लगेगी.

सुशीला और अनीता ने सभी से 27 दिसंबर को शादी कराने के लिए कहा था. कुछ लोगों से यह भी कहा था कि शादी से 10-11 दिन पहले उन्हें दिल्ली में लड़कियां दिखा दी जाएंगी. उन में से शादी के लिए लड़की पसंद कर लेना.

कुंवारों को टालती रही अनीता

लड़की दिखाने के लिए मोहाना गांव के रोहताश ने 16 दिसंबर को अनीता को फोन किया तो उस ने कहा कि अनाथाश्रम की लड़कियों की शादी में मदद करने के लिए कुछ विदेशी आने वाले थे, लेकिन बर्फबारी होने की वजह से वे नहीं आए. इसलिए अब लड़की दिखाने का प्रोग्राम कैंसिल हो गया है. अब 27 दिसंबर को सीधे सामूहिक विवाह ही होगा.

जिन लोगों ने अनीता और सुशीला को लड़की दिखाने के लिए फोन किया था, सभी से यही कह दिया गया. लड़कों ने सोचा कि लड़की नहीं दिखाई जा रही, कोई बात नहीं शादी तो हो जाएगी.

इस के बाद सभी को फोन कर के बता दिया गया कि 27 दिसंबर को दिल्ली में शादी होगी. इस के लिए दिल्ली से खरखौदा बस आएगी. उस बस से सभी लोग दिल्ली पहुंच जाना, जहां तीसहजारी कोर्ट के पास स्थित एक अनाथाश्रम में सभी की शादी होगी. 27 दिसंबर को जो हुआ, वह बताया ही जा चुका है.

यह सारी योजना अनीता की थी. सुशीला और मोनू एजेंट के रूप में काम कर रहे थे. शादी के नाम पर चंदे के रूप में वसूली गई रकम अनीता लेती थी. उस में से कुछ पैसे सुशीला और मोनू को मिलते थे.

पुलिस ने हिसाब लगाया तो इन लोगों ने शादी के नाम पर 40 से ज्यादा लड़कों से 25 से 30 लाख रुपए वसूले थे. पुलिस यह भी पता कर रही है कि इन लोगों के साथ और लोग तो नहीं थे. थानाप्रभारी वजीर सिंह ने ठगे गए युवकों को आश्वासन दिया है कि उन लोगों से पैसे वसूल कर उन के पैसे वापस कराने की कोशिश की जाएगी.

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दरअसल, सोनीपत के खरखौदा में लड़कों के हिसाब से लड़कियां बहुत कम हैं. इसी वजह से यहां सभी लड़कों की शादियां नहीं हो रही हैं.

मजे की बात यह है कि चुनाव के दौरान जींद जिले में कुंवारा संगठन बना था. उन्होंने शादी की उम्र पार करने वाले लड़कों की शादियां कराने की मांग उठाई थी. तब एक नेता ने बिहार से लड़कियां ला कर उन की शादी करवाने का आश्वासन दिया था.

दुलहन के नाम पर अनोखी ठगी

उत्तराखंड के बनबसा में एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू) की प्रभारी एसआई मंजू पांडेय को एक दिन एक व्यक्ति ने खास सूचना दी. उस ने बताया कि ऊधमसिंह नगर के खटीमा इलाके में कुछ लोग विवाह की चाह रखने वाले युवकों की शादी कराने के लिए लड़कियां उपलब्ध कराते हैं.

इस के एवज में वह उन से मोटी रकम वसूलते हैं. बाद में लड़कियां मौका मिलने के बाद वहां से लौट जाती हैं या फिर ठग गिरोह द्वारा अन्यत्र भेज दी जाती हैं.

एसआई मंजू पांडे ने यह जानकारी सीओ (टनकपुर) आर.एस. रौतेला को दी. सीओ आर.एस. रौतेला ने मंजू पांडेय के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में हैडकांस्टेबल लक्ष्मणचंद, रवि जोशी, कांस्टेबल गणेश सिंह के अलावा स्थानीय लोग और एनजीओ के लोग शामिल थे.

साथ ही उन्होंने योजना बना कर उन्हें अपने हस्ताक्षरयुक्त कुछ नोट व चैक दे दिए. इस के बाद एसआई मंजू पांडेय ने ठग गिरोह से किसी लड़के की शादी कराने के बारे में बात की.

निश्चित तारीख को चकरपुर मंदिर परिसर में शादी कराने की तैयारियों का नाटक करते हुए सीओ के हस्ताक्षर वाले चैक और नोट ठग गैंग के सदस्य को दे दिए. कुछ देर बाद खटीमा की ओर से 2 महिलाएं एक बाइक से वहां पहुंचीं. फिर एक महिला बस में सवार हो कर आई.

वह टनकपुर से आई थी. उन के पहुंचते ही विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं. उसी दौरान एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट की दूसरी टीम वहां पहुंच गई. टीम ने पुरुष और तीनों महिलाओं को हिरासत में ले कर उन के पास से हस्ताक्षरयुक्त चैक और नोट अपने कब्जे में ले लिए.

पूछताछ में पता चला कि गिरोह में कलक्टर फार्म खटीमा की रहने वाली रजवंत कौर अपने बेटे सतनाम के साथ ठगी का यह धंधा कर रही थी. अन्य 2 महिलाओं में थाना नानकमता के गांव दहला निवासी गुरमीत कौर और टनकपुर की विष्णुपुरी कालोनी निवासी आरती कपूर थी. इन सभी के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 120बी, 34 के तहत मुकदमा दर्ज कर कोर्ट में पेश किया, जहां से इन चारों को जेल भेज दिया गया.

 

 

दो जासूस और अनोखा रहस्य

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

‘’साहिल, उठो, आज सोते ही रहोगे क्या ’’

अनीता की आवाज सुन कर साहिल उनींदा सा बोला, ‘‘क्या मां, तुम भी न, आज छुट्टियों का पहला दिन है. आज तो चैन से सोने दो.’’

‘‘ठीक है, सोते रहो, मैं तो इसलिए उठा रही थी कि फैजल तुम से मिलने आया था. चलो, कोई बात नहीं, उसे वापस भेज देती हूं.’’ फैजल का नाम सुनते ही साहिल झटके से उठा, ‘‘फैजल आया है  इतनी सुबहसुबह, जरूर कोई खास बात है. मैं देखता हूं,’’ वह उठा और दौड़ता हुआ बाहर के कमरे में पहुंच गया.

‘‘क्या बात है, फैजल, कोई केस आ गया क्या ’’

‘‘अरे भाई, केस से भी ज्यादा धांसू बात है मेरे पास,’’ हाथ में पकड़ी चिट्ठी को लहराते हुए फैजल बोला, ‘‘देखो, अनवर मामूजान का लैटर आया है, वही जो रामगढ़ में रहते हैं. उन्होंने छुट्टियां बिताने के लिए हम दोनों को वहां बुलाया है. बोलो, चलोगे ’’

‘‘नेकी और पूछपूछ  यह भी कोई मना करने वाली बात है भला. वैसे भी अगर हम ने मना किया, तो मामू का दिल टूट जाएगा न,’’ कहतेकहते साहिल ने ऐसी शक्ल बनाई कि फैजल की हंसी छूट गई.

‘‘अच्छा, जाना कब है  तैयारी भी तो करनी होगी न ’’ साहिल ने पूछा.

‘‘चार दिन बाद मामू के एक दोस्त अब्बू की दुकान से कपड़ा लेने यहां आ रहे हैं. 2 दिन वे यहां रुकेंगे और वापसी में हमें अपने साथ लेते जाएंगे,’’ फैजल ने बताया.

‘‘हुर्रे…’’ साहिल जोर से चिल्लाया, ‘‘कितना सुंदर है पूरा रामगढ़. वहां नदी में मछलियां पकड़ना और स्विमिंग करना, सारा दिन गलियों में मटरगश्ती करना, मामू की खुली गाड़ी में खेतों के बीच घूमना और सब से बढ़ कर मामी के बनाए स्वादिष्ठ व्यंजन खाना. इस बार तो छुट्टियों का मजा आ जाएगा.’’

साहिल और फैजल दोनों बचपन के दोस्त थे. दिल्ली के मौडल टाउन इलाके में वे दादादादी के समय से बिलकुल साथसाथ वाली कोठियों में दोनों परिवार रहते आ रहे थे. दोस्ती की यह गांठ तीसरी पीढ़ी तक आतेआते और मजबूत हो गई थी. दोनों को एकदूसरे के बिना पलभर भी चैन नहीं आता था. लगभग एक ही उम्र के, एक ही स्कूल में 10वीं क्लास में पढ़ते थे दोनों. साहिल एकदम गोराचिट्टा और थोड़ा भारी बदन का था. उस की गहरी, काली आंखें और सपाट बाल उस के अंडाकार चेहरे पर खूब फबते थे. ऊपर से वह चौकोर फ्रेम का मोटे शीशे वाला चश्मा पहनता था जो उस की पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देता था.

दूसरी तरफ फैजल एकदम दुबलापतला था और उस के गाल अंदर पिचके हुए थे. उस के घुंघराले ब्राउन बाल थे और आंखें गहरी नीली. सांवला रंग होने के बावजूद उस के चेहरे में ऐसी कशिश थी कि देखने वाला देखता ही रह जाता था.

दोनों को बचपन से ही जासूसी का बड़ा शौक था. दोनों का एक ही सपना था कि बड़े हो कर उन्हें स्मार्ट और जीनियस जासूस बनना है इसीलिए हर छोटीबड़ी बात को बारीकी से देखना उन की आदत बन गई थी. एक बार पड़ोस के घर से कुछ सामान चोरी हो जाने पर दोनों ने खेलखेल में जासूस बन कर चोरी की तहकीकात कर कुछ ही घंटे में जब घर के माली को सुबूतों सहित चोर साबित कर दिया था, तोे सब हैरान रह गए थे. घर वालोें के साथसाथ पुलिस इंस्पैक्टर आलोक जो उस केस पर काम कर रहे थे, ने भी उन की बड़ी तारीफ की थी. फिर तो छोटेमोटे केसों के लिए इंस्पैक्टर उन्हें बुला कर सलाह भी लेने लगे थे.

साहिल के घर के पिछवाड़े एक छोटा सा कमरा था जिसे उन्होंने अपनी वर्कशौप बना लिया था. एक आधुनिक कंप्यूटर में अपराधियों की पहचान करने से संबंधित कई सौफ्टवेयर उन्होंने डाल रखे थे, जो केसों को सौल्व करने में उन के काम आते थे.

कंप्यूटर के अलावा उन के पास स्पाई कैमरे, नाइट विजन ग्लासेज, मैग्नीफाइंग ग्लास, स्पाई पैन, पावरफुल लैंस वाली दूरबीन और लेटैस्ट मौडल के मोबाइल भी थे जो समयसमय पर उन के काम आते थे. उन के जासूसी के शौक को देखते हुए साहिल के बैंक मैनेजर पिता ने बचपन से ही उन्हें कराटे की ट्रेनिंग दिलवानी शुरू कर दी थी और 8वीं क्लास तक आतेआते दोनों ब्लैक बैल्ट हासिल कर चुके थे.

अनवर मामूजान के यहां वे दोनों पहले भी एक बार जा चुके थे और दोनों को वहां बड़ा मजा आया था. सो इस बार भी वे वहां जाने के लिए बड़े उत्साहित थे. सोमवार की सुबह खुशीखुशी घर वालों से विदा ले कर दोनों गाड़ी में बैठे व रामगढ़ के लिए रवाना हो गए.

जब वे रामगढ़ पहुंचे तो उस समय शाम के 4 बज रहे थे. हौर्न की आवाज सुनते ही उन के मामूजान अनवर और मामी सकीना अपने दोनों बच्चों जुनैद और जोया के साथ गेट पर आ खड़े हुए. दोनों बच्चे दौड़ कर उन से लिपट गए, ‘‘भाईजान, आप हमारे लिए क्या गिफ्ट लाए हैं ’’ 9 साल की जोया ने पूछा.

‘‘आप अपने वे जादू वाले पैन और कैमरे लाए हैं कि नहीं  मैं ने आप को फोन कर के याद दिलाया था,’’ 11 साल का जुनैद अधीरता से बोला.

‘‘अरे भई, लाए हैं, सबकुछ लाए हैं, पहले घर के अंदर तो घुसने दो,’’ फैजल हंसते हुए बोला, ‘‘आदाब मामू, आदाब मामीजान.’’

‘‘अरे मामू, आप आज क्लिनिक नहीं गए ’’ अनवर मामू के पैर छूने को झुकता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, तुम दोनों के आने की खुशी में जनाब क्लिनिक से छुट्टी ले कर घर में ही बैठे हैं,’’ मुसकराते हुए सकीना मामी बोलीं, ‘‘चलो, अंदर चल कर थोड़ा फ्रैश हो लो तुम लोग, फिर गरमागरम चायनाश्ते के साथ बैठ कर बातें करेंगे.’’

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल को जासूसी का शौक था. पुरानी कोठी में रहने वाले अजय के कत्ल और उन के अंतिम समय में लिखे कोड में उन्हें रहस्य दिखा सो वे इस हत्या के केस को सुलझाने को उत्सुक हुए और मामू के साथ घटनास्थल पर गए. हत्या वाली जगह पहुंच उन्होंने लाश का मुआयना किया और अजय द्वारा लिखे कोड को पढ़ने की कोशिश के साथ उस का फोटो भी लिया.

उन्हें यहां नकली दाढ़ीमूंछ और भौंहें मिलीं. एक ओर अजय की पत्नी यास्मिन बेसुध रोए जा रही थीं. उन्हें पता चला कि अजय एक हफ्ते से लापता थे और वे नकली बाल लगा कर वहीं घूमते रहते थे.

इंस्पैक्टर रमेश से उन्हें यह भी पता चला कि लाश के पास एक मोबाइल मिला है, इस से उन का उत्साह बढ़ा पर जब पता चला कि मोबाइल से किसी फोन नंबर पर कौंटैक्ट नहीं हुआ तो वे निराश हुए. वहां उन्हें बड़े साइज के जूतों के धूमिल से निशान भी मिले जिस से उन्हें यकीन हो गया कि अजय का कत्ल ही हुआ है. फिर वे वापस आ गए. दो आंखें उन की हर हरकत पर नजर रखे थीं.

पूरे रास्ते फैजल बेचैनी से बारबार घड़ी देखता रहा. घर पहुंचते ही वह जुनैद से एक कागज और पैन ले कर तुरंत अपने कमरे में घुस गया. फिर आधे घंटे बाद बाहर हौल में जहां सब बैठे हुए कत्ल के बारे में ही बात कर रहे थे, आया  और बोला, ‘‘अजय मरते वक्त जो मैसेज छोड़ गए हैं, उस का मतलब मुझे पता चल गया है.’’ सब ऐसे हैरान हुए मानो आसपास कोई विस्फोट हुआ हो.

‘‘क्या  तुम ने पता कैसे लगाया ’’

‘‘जूलियस सीजर की मदद से,’’ शरारती मुसकान बिखेरते हुए फैजल ने जवाब दिया.

‘‘जूलियस सीजर  तुम्हारा मतलब है, वह रोम का राजा  पागल हो गए हो क्या  वह कैसे तुम्हारी मदद करेगा ’’

‘‘अरे भई, शांत हो जाइए आप सब. मैं अभी सारी बात आप को समझाता हूं. बात ऐसी है कि जब मैं ने पहली बार अजय का मैसेज पढ़ा था, मैं तभी समझ गया था कि यह कोई अनापशनाप बकवास नहीं, बल्कि एक कोड है और जरूर अजय कोई महत्त्वपूर्ण बात बताना चाहते थे वरना उन्हें कोड इस्तेमाल करने की क्या जरूरत थी. वहां मैं ने इस बात का जिक्र इसलिए नहीं किया, क्योंकि मैं पहले उसे डीकोड कर के देखना चाहता था कि कहीं मेरा शक गलत तो नहीं है. इसीलिए मैं अपने फोन में उस का फोटो खींच लाया था और आते ही उसे सौल्व करने में जुट गया.

‘‘मेरा शक बिलकुल सही निकला. यह वाकई एक कोड है, जिसे सीजर साइफर कहते हैं. रोमन राजा जूलियस सीजर का नाम तो आप ने सुना ही है. वह अपने गुप्त संदेश भेजने के लिए इस कोड का प्रयोग करता था. उसी के नाम पर इस का नाम रखा गया है. इस में जो भी शब्द आप को लिखना होता है, उस के हर अक्षर को एक फिक्स नंबर तक आगे या पीछे खिसका कर लिख दिया जाता है.

‘‘मैं एक उदाहरण दे कर समझाता हूं. अंगरेजी अल्फाबेट में 26 लैटर होते हैं. मान लीजिए मुझे लिखना है रूह्वह्म्स्रद्गह्म्.  इसे लिखने के लिए मैं ने कोड सोचा 2 प्लेस आगे, तो इस का मतलब होगा कि  रूह्वह्म्स्रद्गह्म् शब्द के सारे लैटर्स को मैं 2-2 प्लेस आगे खिसका कर लिखूंगा यानी रू की जगह श, ह्व की जगह ङ्ख, क्त्र की जगह ञ्ज तो इस तरह मेरा नया शब्द बन जाएगा हृङ्खञ्जस्नत्रञ्ज. इसे हम कहेंगे 2 का राइट शिफ्ट, क्योंकि हम ने लैटर्स को राइट की तरफ खिसकाया है. अगर मैं 8 प्लेस का लैफ्ट शिफ्ट करता हूं, तो मेरा शब्द बन जाएगा  श्वरूछ्वङ्कङ्खछ्व. इन बेतरतीब लिखे अक्षरों को देख कर कोई सोच भी नहीं सकता कि यह वास्तव में रूह्वह्म्स्रद्गह्म् लिखा है.

‘‘अब आते हैं अजय के मैसेज पर. मरते वक्त उन का कोड लैंग्वेज यूज करने का सीधा अर्थ यह है कि वे कोई साधारण इंसान नहीं थे, बल्कि कोडिंग के ऐक्सपर्ट थे और कोई बहुत इंपोर्टैंट बात बता कर जाना चाहते थे. पहले उन का लापता हो जाना, फिर भेस बदल कर यहीं गांव में ही रहना, संदिग्ध हालात में उन की मौत और अब यह संदेश. ये सब बातें किसी गहरे राज की ओर संकेत कर रही हैं.’’

‘‘तुम तो जीनियस निकले फैजल,’’ प्रशंसा भरी नजरों से उसे देखते हुए साहिल बोला, ‘‘मुझे यह तो पता था कि तुम्हें लौजिकल पजल्स और कोड वगैरा हल करने का शौक है, लेकिन तुम इतने ऐक्सपर्ट हो, यह मुझे आज पता चला. अच्छा, अब जल्दी से बताओ कि अजय ने लिखा क्या है ’’

‘‘यह लो, खुद ही देख लो अजय ने 5 का राइट शिफ्ट यूज किया है और इस तरह उन के लिखे कोड ह्नह्लह्लश्च द्दद्भरूहृह्यद्य ङ्घद्वद्भ श्चस्ठ्ठ्नद्भङ्ग का अर्थ बना यह,’’ कहते हुए फैजल ने कागज दिखाया.

सभी उत्सुकता से उस कागज के टुकड़े पर देखने लगे. उस पर लिखा था,

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. उस ने कहीं चाकू रखे हैं, जिन के पीछे सारा राज छिपा है. अब हमें बस, उन चाकुओं को ढूंढ़ना है और केस सौल्व.’’

‘‘लेकिन ये चाकू हमें मिलेंगे कहां ’’

‘‘सब से पहले तो उसी अस्तबल में देखते हैं. वहां नहीं मिले तो अजय के घर पर तो जरूर मिल जाएंगे.’’

‘‘ठीक है, तुम जल्दी से खाना खा कर गाड़ी और ड्राइवर के साथ पुलिस स्टेशन चले जाओ. वहां से इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर ही आगे जाना. अकेले वहां जाना ठीक नहीं होगा. मुझे क्लिनिक में कुछ काम है, मैं वहां जा रहा हूं. इंस्पैक्टर को भी मैं फोन कर के सारी बात बता देता हूं.’’

इंस्पैक्टर रमेश को जब कोड सौल्व होने की बात पता चली, तो खुशी से उन की बाछें खिल गईं, उस के कैरियर का यह पहला कत्ल का केस था और अगर यह इतना जल्दी सुलझ गया तो पूरे पुलिस डिपार्टमैंट में उस की तो धाक जम जाएगी. हो सकता है प्रमोशन भी मिल जाए. ‘ये शहरी लड़के तो बड़े काम के निकले,’ उस ने मन ही मन सोचा और बेसब्री से उन का इंतजार करने लगा.

अस्तबल में पहुंच कर सब ने वहां का कोनाकोना छान मारा, लेकिन वहां कुछ नहीं मिला. वहां से सब लोग अजय के घर गए. उन की पत्नी को जब सारी बात पता चली, तो उन की सूनी आंखों में भी एक उम्मीद की किरण जगमगा उठी.

‘‘अजय तो खैर अब कभी वापस नहीं आ सकते, लेकिन अगर उन का हत्यारा पकड़ा गया तो मेरे तड़पते————————- दिल को सुकून जरूर मिल जाएगा. चलिए, चाकू ढूंढ़ने में मैं भी आप की मदद करती हूं,’’ कहते हुए उन्होंने कौंस्टेबल व इंस्पैक्टर के साथ घर के कोनेकोने की तलाशी लेनी शुरू कर दी.

साहिल, फैजल और अजय की बीवी यास्मिन ने किचन, बाथरूम, सारे बैडरूम्स, यहां तक कि हर अलमारी को भी पूरा खंगाल दिया, लेकिन कुछ नहीं मिला.

तभी अचानक यास्मिन को कुछ याद आया, ‘‘हो सकता है कि ये चाकू दुकान में रखे हों ’’ अपने घर से कुछ ही दूरी पर अजय ने एक दुकान खोल रखी थी.

‘‘अरे हां, दुकान के बारे में तो मैं भूल ही गया था. पक्का ये चाकू हमें दुकान में ही मिलेंगे, क्योंकि इस के अलावा अजय की और कोई प्रौपर्टी नहीं है,’’ इंस्पैक्टर रमेश उत्साह से बोले.

सब लोग आननफानन में दुकान पर पहुंचे और वहां तलाशी शुरू कर दी. लगातार 2 घंटे ढूंढ़ने के बाद चेहरों से निराशा और झुंझलाहट टपकने लगी. पूरी दुकान में अच्छी तरह ढूंढ़ने के बाद भी चाकू जैसी कोई चीज उन के हाथ नहीं लगी. अब सिर्फ कोने में रखी एक आखिरी अलमारी की तलाशी लेना बाकी था.

एकएक कर के उस का सामान भी बाहर निकाला गया लेकिन जब उस में भी कुछ न मिला, तो सब के चेहरे उतर गए. अगर अस्तबल, घर, दुकान कहीं पर भी अजय का बताया यह क्लू नहीं मिला तो आखिर वह है कहां  मरतेमरते अगर वे किसी चीज की ओर इशारा कर के गए हैं, तो उसे कहीं न कहीं तो जरूर होना चाहिए था.

निराशा और झुंझलाहट से भरे आखिरकार वे सब वापस जाने के लिए गाड़ी में बैठने लगे तो अजय की पत्नी यास्मिन ने इंस्पैक्टर से कहा, ‘‘आप लोग सुबह से काम में लगे हैं, थक गए होंगे. मेरे घर चल कर कुछ चायनाश्ता कर के जाइएगा.’’

‘‘नहींनहीं, इस की कोई आवश्यकता नहीं.’’

‘‘प्लीज, मना मत कीजिए. आप लोग मेरे मरहूम पति के कातिल को ढूंढ़ने के लिए इतनी मेहनत कर रहे हैं, मेरा भी तो कुछ फर्ज बनता है.’’

‘‘अच्छा ठीक है, चलिए,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा. फिर सब लोग वापस अजय के घर पहुंच गए.

यास्मिन चाय बनाने किचन में चली गईं और इंस्पैक्टर, साहिल और फैजल ड्राइंगरूम में बैठ कर बातें करने लगे. कुछ ही देर में चाय के कप थमाते हुए यास्मिन बोलीं, ‘‘आप लोग चाय पीजिए. मैं तब तक बाहर बरामदे में सिपाहियों को भी चाय दे कर आती हूं.’’

‘‘नहींनहीं, आंटी, आप बैठिए, उन लोगों को चाय मैं दे आता हूं,’’ कह कर साहिल ने उन के हाथ से ट्रे ली और बाहर की तरफ चल दिया.

चाय देने के बाद जैसे ही वह घर के अंदर घुसने के लिए वापस मुड़ा अचानक उस की नजर मेनगेट के ऊपरी हिस्से पर पड़ी. वह कुछ पल के लिए हक्काबक्का रह गया. फिर बड़बड़ाता हुआ अंदर आया, ‘‘ओह, यह तो हद हो गई,’’ और सब लोंगों को खींच कर अपने साथ बाहर ले आया.

‘‘आखिर हुआ क्या है  कुछ तो बताओ साहिल,’’ उस के ऐसे व्यवहार से सब अचंभित थे. उस ने बिना कोई जवाब दिए गेट की तरफ इशारा कर दिया. एक क्षण के लिए तो किसी को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन अगले ही पल सभी के चेहरे पर खुशी झलक उठी, ‘‘ओह, कमाल हो गया,’’ इंस्पैक्टर बोले.

जिस ओर साहिल ने इशारा किया था, वहां दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर ठीक बीचोंबीच 2 बहुत ही कलात्मक छोटी कटारें एक के ऊपर एक क्रौस का चिह्न बनाते हुए लगी हुई थीं.

‘‘यह तो वही बात हो गई, ‘बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा.’ हर पल ये चाकू हमारी आंखों के सामने थे, लेकिन कमाल की बात है कि किसी का भी ध्यान इन पर नहीं गया ’’ फैजल बोला.

अजय की पत्नी यास्मिन भी माथे पर हाथ मारते हुए बोलीं, ‘‘अरे, ये चाकू तो अजय को उन के किसी दोस्त ने गिफ्ट किए थे और जब से हम यहां आए हैं, तब से यहीं लगे हुए हैं. मुझे भी इन का खयाल ही नहीं आया.’’

आननफानन में सीढ़ी लगा कर साहिल ने उन कटारों को दीवार से उतारा  और आगेपीछे देखता हुआ बोला, ‘‘इस के पीछे कुछ लगा हुआ है.’’

जल्दी से सभी ड्राइंगरूम में पहुंचे और बड़ी उत्सुकता से मेज के चारों तरफ इकट्ठे हो गए. खूबसूरत नक्काशी से सजी इन कटारों के हैंडिल 2 इंच के लगभग चौड़े थे, जिन में एक के पीछे सफेद कागज में लिपटी एक छोटी सी वस्तु टेप द्वारा मजबूती से चिपकाई गई थी. बड़ी ही सावधानी से उस टेप को हटा कर धीरे से कागज को खोलते हुए इंस्पैक्टर रमेश सहित सब को लग रहा था जैसे किसी रहस्य का पर्दाफाश होने वाला है.

जैसे ही कागज की तह खुली, उस के अंदर से लगभग 2 इंच लंबी और 1 सेंटीमीटर चौड़ी एक चाबी निकली, ‘‘यह कहां की चाबी है ’’ हैरानी से उसे उलटतेपुलटते हुए इंस्पैक्टर रमेश बोले.

कुछ और चीज मिलने की उम्मीद में इन्होंने कागज को एक बार फिर देखा. कागज पर कुछ लिखा हुआ था, जिसे पढ़ कर वे झुंझला गए और बोले, ‘‘लो, कर लो मजे. कहां तो हम केस सौल्व होने की उम्मीद में बैठे थे और कहां इस नए झंझट में फंस गए.’’

फैजल ने उन से कागज ले कर देखा, तो उन के गुस्से का कारण समझते देर न लगी. यानी पहेली हल होने के बजाय एक और नई पहली जैसे उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

अनवर मामू के घर छुट्टियां बिताने आए साहिल और फैजल वहां हुए अजयजी के कत्ल की गुत्थी सौल्व करने में जुट गए थे. एक कोड हल होने पर दूसरा कोड उन्हें मुंह चिढ़ाता. पहले कोड को फैजल ने सीज साइफर के सिद्धांत से हल किया उस ने एक शब्द का उदाहरण दे कर बताया व कोड का अर्थ सुझाया, चाकुओं के पीछे देखें. अब वे चाकू ढूंढ़ने लगे, उन्होंने अभयजी की हर संदिग्ध जगह खंगाली पर चाकू न मिले.

फिर अंत में वे अजय की पत्नी के आग्रह पर उन के घर चाय पीने गए तो वहां उन्हें अचानक दरवाजे के ऊपर वाली दीवार पर बीचोबीच 2 कटारें क्रौस का चिह्न बनाती लगी हुई दिखीं. उन्हें उतार कर देखा और उन पर लिपटी टेप हटाई तो एक चाबी मिली, जो एक कागज में लिपटी थी. उन्होंने उलटपलट कर देखा कागज पर एक और कोड लिखा था. वे अचंभे में पड़ गए. एक और पहेली उन्हें मुंह चिढ़ा रही थी.

साहिल ने यास्मिन को चाबी दिखा कर पूछा, ‘‘क्या आप जानती हैं कि यह चाबी कहां की है?’’ यास्मिन ने हाथ में ले कर ध्यान से चाबी को देखा और ना में सिर हिला दिया.

‘‘घर और दुकान दोनों जगह की तो अभी हम ने तलाशी ली ही है. वहां कहीं भी ऐसी कोई अलमारी या ताला नहीं था, जिस के लिए ऐसी चाबी की जरूरत हो,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले, ‘‘एक बात तो साफ है कि यह चाबी किसी साधारण ताले की नहीं है और इस कागज पर जो लिखा है, यह जरूर इस ताले को खोलने का रास्ता है. मेरे खयाल से यहां जरूर कोई गुप्त तिजोरी होनी चाहिए, जिस का लौक इस कोड से खुलेगा.’’

‘‘क्या आप को इस बारे में कोई जानकारी है?’’ साहिल ने यास्मिन से पूछा.

‘‘नहीं, अजय ने कभी इस तरह की किसी तिजोरी का जिक्र मुझ से नहीं किया.’’

‘‘अच्छा, अजय की बैकग्राउंड के बारे में कुछ बताइए. आप की तो उन से शादी हुए कम से कम 25-30 साल हो गए होंगे. उन के बारे में जान कर केस सौल्व करने में हमें जरूर कुछ मदद मिलेगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘दरअसल, बात यह है कि हमारी शादी को अभी 6 साल हुए थे, जिस जनरल स्टोर में मैं नौकरी करती थी, वहीं हमारी मुलाकात हुई थी. मैं अनाथाश्रम में पलीबढ़ी हूं और मेरा कोई परिवार नहीं है. अजय ने भी मुझे यही बताया था कि वे भी अनाथाश्रम में ही पले हैं और उन के आगेपीछे कोई नहीं है. इसीलिए इतनी उम्र तक हम लोगों की शादी नहीं हो पाई थी दोनों की एक जैसी बैकग्राउंड की वजह से ही शायद हम एकदूसरे की तकलीफ को समझ पाए और पहली मुलाकात के कुछ दिन बाद ही हम ने शादी कर ली. कुछ साल हम मेरठ में रहे और फिर एक शांत जिंदगी बिताने की चाह में यहां रामगढ़ आ कर बस गए.

‘‘अनाथाश्रम की जिंदगी ने हमें जो अकेलापन दिया था, हम उस से बाहर कभी निकल ही नहीं पाए और इसीलिए कभी किसी से घुलेमिले भी नहीं. बचपन से छोटेमोटे काम कर के अपनी जिंदगी बसर करते हुए जो थोड़ेबहुत रुपए हम ने जमा किए थे, उन्हीं से यह घर और दुकान खरीद कर हम खुशीखुशी जिंदगी बिता रहे थे कि अचानक ये सब हो गया…’’ कहते हुए यास्मिन की आंखों में आंसू छलक आए, लेकिन अपने भावों पर काबू पा कर अगले ही पल वह दृढ़ता से बोली, ‘‘फिलहाल मेरी सब से पहली इच्छा है कि मेरे पति का हत्यारा जल्द पकड़ा जाए और इस के लिए मुझ से आप की जो भी मदद हो सकेगी, मैं करूंगी.’’

‘‘फैजल, तुम्हीं ने अजय का लिखा पहला कोड हल किया था न? तो देखो और सोचो. इस कोड का क्या हल हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल को वह कागज देते हुए कहा.

‘‘जी, मैं भी समझने की कोशिश तो कर रहा हूं पर कुछ सूझ नहीं रहा है,’’ माथे पर उंगली रगड़ते हुए फैजल बोला, ‘‘वैसे भी काफी देर हो गई है. घर पर सब लोग चिंता कर रहे होंगे. अभी तो हम चलते हैं. जैसे ही कुछ समझ आएगा तो आप को फोन करेंगे,’’ कहते हुए फैजल ने उन से बिदा ली. फिर साहिल, फैजल और अनवर घर के लिए चल दिए.

वे लोग अभी मुश्किल से 2-3 किलोमीटर ही चले होंगे कि अचानक साहिल ने फैजल को कुहनी मारी और धीमी आवाज में बोला, ‘‘फैजल, मुझे लग रहा है कि कोई हमारा पीछा कर रहा है.’’

‘‘बिलकुल मुझे भी काफी देर से ऐसा लग रहा है. यह हरे रंग की आल्टो लगातार हमारे पीछे चल रही है.’’

‘‘अरे, नहींनहीं…आल्टो नहीं, वह काली बाइक, देखो,’’ उस ने सामने लगे शीशे की ओर इशारा किया, ‘‘वह बाइक हमारे पीछे लगी हुई है.’’

‘‘नहींनहीं…वह तो हरी आल्टो है, जो हमारे पीछे लगी है.’’

‘‘अच्छा रुको…ड्राइवर भैया, आप एक काम करो, गाड़ी सीधे घर ले जाने के बजाय थोड़ी देर ऐसे ही सड़कों पर इधरउधर घुमाते रहो. अभी सब पता चल जाएगा,’’ साहिल ने कहा तो ड्राइवर गाड़ी इधरउधर घुमाने लगा.

15 मिनट में ही उन्हें समझ आ गया कि वास्तव में कोई एक नहीं, बल्कि आल्टो और बाइक दोनों ही उन का पीछा कर रही थीं.

‘‘आखिर ये लोग हमारा पीछा कर क्यों रहे हैं?’’

‘‘जाहिर है अपना भेद खुल जाने के डर से कातिल के पेट में मरोड़ उठ रहे हैं. कल इन का भी कुछ इंतजाम करना पड़ेगा.’’

घर पहुंच कर खाना वगैरा खा कर दोनों फिर से पहेली को हल करने में जुट गए.

‘‘चलो, हम स्टैप बाए स्टैप चलने की कोशिश करते हैं,’’ साहिल ने सुझाया, ‘‘हमारे पास है एक चाबी. चाबी का मतलब है कि कहीं कोई ताला है जो इस से खुलना है. अब क्योंकि यह थोड़ा सीक्रेट टाइप का ताला है, तो इसे खोलने के लिए कोई कोड होना चाहिए, जो यहां कागज पर लिखा है. घर और दुकान तो हम सब देख ही चुके हैं. अब इस ताले के होने के लिए 2 ही जगह बचती हैं या तो कहीं किसी दीवार के अंदर कोई गुप्त तिजोरी है या फिर कोई बैंक लौकर या गुप्त लौकर है. पेपर पर लिखा यह कोड उस जगह की लोकेशन बताएगा और अगर लौकर है तो उस का नंबर बताएगा. तू ने चैक किया फैजल कि यह कहीं कोई और साइफर तो नहीं है?’’

‘‘मैं ने काफी सोचा, लेकिन जितनी तरह के कोड मुझे आते हैं, उन में से कोई भी इस पर अप्लाई नहीं होता, अगर हम इसे बैंक लौकर मान कर चलते हैं तो बैंक लौकर के लिए हमें बैंक का नाम और लौकर नंबर चाहिए और ये दोनों तो अजय की पत्नी यास्मिन को पता ही होंगे.’’

‘‘नहीं फैजल, अगर उन्हें पता होता, तो अजय इन्हें यों कोड में लिख कर न जाता. इस का सीधा सा मतलब है कि ये लौकर उन की जानकारी में नहीं हैं और इस कोड का कुछ हिस्सा नंबर है और कुछ बैंक का नाम. अब देख इसे, क्या तू सौल्व कर सकता है?’’

कागजपैंसिल ले कर फैजल काफी देर तक इस पर माथापच्ची करता रहा पर नतीजा वही सिफर. थकहार कर दोनों सो गए.

सुबह नाश्ते की टेबल पर बैठे फैजल का दिमाग अब भी उसी पहेली के इर्दगिर्द घूम रहा था. तभी अचानक वह जोर से चिल्लाया, ‘‘वह मारा पापड़ वाले को.’’

‘‘क्या हुआ, क्या हुआ? कुछ सूझा तुझे क्या?’’ बगल में बैठे साहिल ने पूछा.

‘‘हां, बिलकुल सूझा और कुछ नहीं, पूरा सूझा,’’ उस ने सामने पड़ा पहेली वाला पेपर उठाया और उस के नीचे 2 अलगअलग नंबर लिख दिए. यह देख, ये जो लैटर्स यहां लिखे हैं, वे सारे के सारे हर नंबर की स्पैलिंग का पहला अक्षर हैं. जैसे जीरो के लिए र्ं, 1 के लिए हृ, 2 और 3 दोनों ञ्ज से शुरू होते हैं, तो उन के लिए ञ्ज2 और ञ्जद्ध का प्रयोग किया हुआ है. इस तरह से ये 2 नंबर बन रहे हैं, 8431729 और 109 लेकिन इस टिक मार्क (क्क) का मतलब पल्ले नहीं पड़ रहा.

‘‘अरे, छोड़ उसे, इतना तो हो गया. अब फटाफट पुलिस को साथ ले कर सब बैंकों में जा कर चैक करते हैं ज्यादा बैंक तो यहां होंगे नहीं.’’

‘‘बेटा, हमारे गांव में ज्यादा नहीं तो भी कम से कम 15-16 बैंक तो हैं ही,’’ अपने कमरे से बाहर आते अनवर मामू बोले, ‘‘तो हो गई तुम्हारी दूसरी पहेली भी सौल्व…देखूं तो जरा,’’ उन्होंने कागज उठाया और उसे देखने लगे.

‘‘तो तुम्हारे हिसाब से ये 2 नंबर किसी बैंक लौकर की तरफ इशारा कर रहे हैं और इन में से यह पहला अकाउंट नंबर और दूसरा लौकर नंबर होना चाहिए.’’

‘‘हां मामू, लेकिन इतने सारे बैंक्स में से हम उसे ढूंढ़ेंगे कैसे?’’

‘‘ढूंढ़ना क्यों है तुम्हें? सीधे यस बैंक जाओ न, क्योंकि जो निशान बना है, यह यस बैंक का ही तो लोगो है. मेरे क्लिनिक के एकदम सामने ही है यह बैंक और उस का साइनबोर्ड सारा दिन मेरी आंखों के सामने ही रहता है.’’

‘‘वाह मामू, आप भी कमाल की बुद्धि रखते हैं,’’ शरारत से एक आंख दबाते हुए फैजल मुसकराया.

एक घंटे बाद इंस्पैक्टर रमेश को साथ ले कर वे लोग यस बैंक पहुंच गए. पूछताछ से पता चला कि वह अकाउंट 8 दिन पहले ही किसी संजीव नामक व्यक्ति ने खोला है. पुलिस केस होने की वजह से लौकर खोलने में उन्हें कोई अड़चन नहीं आई. जब लौकर खुला तो उस में से सिर्फ एक मोबाइल फोन निकला. फोन को कस्टडी में ले कर वे पुलिस स्टेशन आ गए.

‘‘इस का सारा डाटा चैक करना पड़ेगा,’’ कुरसी पर बैठता साहिल बोला, ‘‘तभी कुछ काम की बात पता चल सकती है.’’

कुछ देर उस मोबाइल को चार्ज करने के बाद उस ने औन कर के चैक किया, लेकिन उस में कहीं ऐसा कुछ नहीं था, जो अजय की मौत या किसी और रहस्य पर कोई और रोशनी डाल सके.’’

तभी फैजल को कुछ याद आया, ‘‘और हां अंकल, एक बात तो हम आप को बताना भूल ही गए. कल जब हम वापस जा रहे थे, तो कोई हमारा पीछा कर रहा था.’’

‘‘अच्छा, यह तो चिंता की बात है,’’ इंस्पैक्टर रमेश के माथे पर शिकन उबर आई, ‘‘मैं 2 कौंस्टेबल तुम दोनों की सुरक्षा के लिए तैनात कर देता हूं, जो हर समय तुम्हारे साथ रहेंगे.’’

काफी देर फोन से माथापच्ची करने के बाद साहिल बोला, ‘‘इस फोन में तो कुछ भी नहीं है अंकल, आप एक काम कीजिए, इस का सिम कार्ड चैक करवाइए कि वह किस के नाम पर है. शायद उस से कुछ पता चले,’’ फिर उस ने फोन का बैक कवर खोला और सिम निकालने के लिए जैसे ही बैटरी को हटाया, चौंक पड़ा. बैटरी के नीचे कागज की एक छोटी सी स्लिप रखी हुई थी.

‘‘अरे, यह क्या है?’’ वह बड़बड़ाया. फिर परची को खोल कर देखा. उस पर कुछ लिखा था, जिसे उस ने पढ़ कर सब को सुनाया, ‘‘सामने है मंजिल, महादेव की गली, सावन की रिमझिम में खिलती हर कली, धरम पुत्री से होगा जब सामना, पासवर्ड के बिना बनेगा काम न.’’

‘‘यह तो बहुत ही क्लियर मैसेज है. हमारी मंजिल हमें मिलने ही वाली है समझो,’’ फैजल उत्साह से बोला.

‘‘यहां कोई महादेव नाम की गली नहीं है,’’ अनवर कुछ सोचते हुए बोले.

इंस्पैक्टर रमेश ने भी ना में सिर हिलाया और बोले, ‘‘हो सकता है कि कहीं किसी दूर के या छोटेमोटे महल्ले में कोई अनजान सी गली हो. मैं सिपाहियों से पूछता हूं,’’ कहते हुए उन्होंने रामदीन को पुकारा,’’ रामदीन, जरा बाहर बाकी सब सिपाहियों से पूछ कर आओ, उन में से शायद कोई इस गली को जानता हो.’’

रामदीन, जो बड़ी उत्सुकता से सारी बातें सुन रहा था, बोला, ‘‘साहब, महादेव गली तो पता नहीं, लेकिन लालगंज से थोड़ी दूरी पर काफी अंदर जाने के बाद एक मार्केट है. वहां एक छोटी सी इमारत है, जिस का नाम मंजिल है और उस के बिलकुल सामने जो सड़क जा रही है, उस का नाम है शंकर गली. हो सकता है इस कविता में इसी जगह का जिक्र किया गया हो.’’

‘‘वाह रामदीन भैया, क्या ब्रिलियंट दिमाग है तुम्हारा,’’ उत्साह से उछलता फैजल रामदीन का हाथ पकड़ कर एक ही सांस में बोल गया. बाकी सब भी जल्दी से उठ खड़े हुए, ‘‘चलो, वहीं चलते हैं. वहीं पर ही आगे का भी कुछ न कुछ सुराग मिलेगा.’’

काले चश्मे वाली दो आंखें उन्हें जाते हुए देख रही थीं.

अनवर मामू के घर आए फैजल और साहिल ने अजयजी के कत्ल की गुत्थी सुलझाने हेतु मिले हर कोड को हल किया. इस बार की पहेली हल करने पर उन्हें जो कटारें मिलीं उन में टेप से लिपटी एक चाबी व परची थी. उन्हें लगा यह चाबी किसी लौकर की होगी. उन्होंने यास्मिन से पूछा पर उन्हें कुछ पता न था सो वे स्टैप बाई स्टैप लौक ढूंढ़ने लगे. अब उन्हें लगा कि परची पर लिखे अक्षर भी कोड हैं. उन्होंने उसे हल किया तो पता चला कि एक बैंक अकाउंट नंबर है. दूसरा लौकर का नंबर.

टिक मार्क (क्क) से उन्हें पता चला कि यह यस बैंक का लोगो है. अत: वे यस बैंक पहुंचे. वहां उन्हें पता चला कि यह अकाउंट 8 दिन पहले ही खोला गया है. लौकर खोलने पर उन्हें वहां मोबाइल मिला. जिसे खोलने पर एक स्लिप मिली, जिस पर कविता रूपी कुछ पंक्तियां लिखी थीं.

अब वे इन पंक्तियों का मतलब समझ महादेव गली ढूंढ़ने लगे. लेकिन सिपाही रामदीन ने बताया कि यहां पास में शंकर गली है शायद उसे ही महादेव गली लिखा हो. अब उन्होंने डिसाइड किया कि वे शंकर गली जाएंगे, शायद वहीं उन्हें आगे का सुराग मिले. दो आंखें यहां भी उन का पीछा कर रही थीं.

जीप में कुल 7 लोग थे. साहिल, फैजल, अनवर, इंस्पैक्टर रमेश, रामदीन और 2 अन्य सिपाही.

‘‘क्या किसी को कविता की दूसरी लाइन का कुछ मतलब समझ आ रहा है?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने सवाल किया, ‘‘तीसरी और चौथी लाइन तो साफ है कि वहां कोई लड़की है, जिस ने किसी को अपना धर्मपिता बनाया हुआ है. उसे हमें कोई पासवर्ड देना है.’’

‘‘धर्मपिता क्या मतलब?’’ साहिल ने पूछा.

‘‘अगर किसी लड़की का अपना पिता न हो और कोई आदमी उसे अपनी बेटी मान ले तथा पिता के सारे फर्ज निभाए तो वह उस का धर्मपिता कहलाएगा और वह लड़की उस की धर्मपुत्री,’’ अनवर मामा ने समझाया.

‘‘ओह समझा, लेकिन इस धर्मपुत्री के लिए पासवर्ड कहां से लाएंगे और पासवर्ड तो छोड़ो, यह धर्मपुत्री कहां मिलेगी? मान लो गली के हर घर में जाजा कर हम ने उसे ढूंढ़ भी लिया तो सावन की रिमझिम और खिलती कलियां कहां से लाएंगे,’’ फैजल ने आंखें मटकाईं, ‘‘मुझे तो यह नहीं समझ आ रहा कि अगर सावन के आने से कलियां खिलेंगी तो पूरे गांव की खिलेंगी. सिर्फ इस गली की ही थोड़ी न खिलेंगी. इस गली में कोई स्पैशल सावन आता है क्या?’’

यही सारे सवाल बाकी लोगों के दिमाग में भी घूम रहे थे, लेकिन जवाब किसी के पास न था. सब को यही उम्मीद थी कि वहां जा कर ही कुछ पता लग सकता है.

‘‘अच्छा अंकल, जैसा कि हम ने आप को बताया था कि कोई 2 लोग हमारा पीछा कर रहे हैं, तो अब जब हम केस खत्म करने के इतने करीब हैं, तो वे लोग जरूर कोई न कोई ऐक्शन लेंगे. अभी भी वे हमारे पीछे ही लगे होंगे. इसलिए हमें आगे का काम बड़ी सावधानी से करना होगा,’’ फैजल बोला.

‘‘तुम चिंता न करो. मैं पहले ही सब इंतजाम कर के आया हूं. ‘6 सिपाही दूसरी जीप में हमारे साथसाथ वहां पहुंच रहे हैं. वे सारे इलाके को घेर लेंगे, तब हम अंदर गली में जा कर तहकीकात करेंगे और हां, हम में से कोई भी इस कविता के एक भी शब्द को वहां मुंह से नहीं निकालेगा. हम सारा काम गुपचुप तरीके से इशारोंइशारों में करेंगे ताकि कोई आसपास छिप कर सुन भी रहा हो तो उसे कुछ पता न चल सके.’’

‘‘ग्रेट प्लानिंग सर,’’ कह कर साहिल ने अंगूठा दिखा कर अप्रूवल का इशारा किया.

शंकर गली के मुहाने पर पहुंच कर थोड़ी देर वे लोग जीप में ही बैठे रहे. जब दूसरी जीप के सिपाहियों ने अपना मोरचा संभाल लिया तो वे जीप से उतर कर गली में दाखिल हुए और इधरउधर देखते हुए आगे बढ़ने लगे.

मंजिल नामक बिल्डिंग के ठीक सामने वाली यह गली ज्यादा बड़ी नहीं थी. गली में घर भी बहुत कम थे. ज्यादातर छोटेमोटे सामान की दुकानें ही थीं. सरसरी तौर पर पूरी गली का 2 बार चक्कर लगा कर भी कहीं कोई छोटामोटा बाग या फूलोंकलियों जैसी कोई चीज उन्हें नजर नहीं आई.

अब उन्होंने हर घर, हर दुकान को ध्यान से देखते हुए फिर से गली का चक्कर लगाना शुरू किया. करीब आधी गली पार करने के बाद एक बड़ी सी दुकान के साइनबोर्ड पर जैसे ही अनवर मामा की नजर पड़ी, वे ठिठक कर वहीं रुक गए. बोर्ड पर बड़ेबड़े शब्दों में लिखा था, ‘रिमझिम ब्यूटी पार्लर.’ और जैसा कि गांव में रिवाज होता है नीचे एक कोने में लिखा था, ‘प्रौपराइटर सावन कुमार.’

बड़ी मुश्किल से उस ने अपने मुंह से निकलने वाली आवाज को रोका और धीरे से पीछे खड़े साहिल को पास आने का इशारा किया.

‘‘ओह,’’ बोर्ड को पढ़ने के बाद उस के मुंह से निकला, ‘‘सावन की रिमझिम में खिलती हर कली. पहले ‘सामने है मंजिल’ और अब ‘सावन की रिमझिम…’ अजय ने हर शब्द बहुत ही सोचसमझ कर बड़े ही नायाब तरीके से प्रयोग किया है. कोई भी शब्द बेमतलब नहीं है. कितना फिट है सबकुछ…

कमाल है.’’

तब तक फैजल और इंस्पैक्टर रमेश भी वहां आ गए थे और उन के चेहरे भी खुशी से चमकने लगे थे.

‘‘और इस का मतलब है कि हमारी उस धर्मपुत्री को ढूंढ़ने के लिए अब हमें दरदर नहीं भटकना पड़ेगा. वह पक्का इस पार्लर में ही काम करती होगी,’’ इंस्पैक्टर रमेश ने कहा, ‘‘तुम लोग यहीं रुको, मैं अंदर जा कर यहां के सारे फीमेल स्टाफ के नामपते ले कर आता हूं. उन में से इस लड़की को ढूंढ़ना बहुत ही आसान होगा.’’

15-20 मिनट बाद वे बाहर आए और सब को चल कर जीप में बैठने का इशारा किया. दोनों जीपें जब वहां से रवाना हो गईं तो उन्होंने बताया, ‘‘यहां कुल 8 लड़कियां काम करती हैं. उन सब के घर भी आसपास ही हैं. पुलिस स्टेशन पहुंच कर 2-3 सिपाहियों को मैं इन का पता लगाने भेज देता हूं. तब तक वहीं बैठ कर हम पासवर्ड सोचने की कोशिश करते हैं.’’

लगभग 2 ढाई घंटे बाद लड़की का पता लगाने गए सिपाही लौट कर आए और बताया कि उन सब लड़कियों के अपने परिवार और अपने मातापिता हैं. कोई किसी की धर्मपुत्री नहीं है. यह सुन कर सब सन्न रह गए.

‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. अब तक अजय की लिखी हर पहेली, हर कोड बिलकुल एक्यूरेट और टू द पौइंट है. उस के हर छोटे से छोटे शब्द का बिलकुल सटीक मतलब निकला है और खासकर इस कविता में तो हर सिंगल शब्द पूरे सीन में बिलकुल परफैक्ट तरीके से फिट हो रहा है. फिर इतना बड़ा झोल कैसे हो सकता है,’’ इंस्पैक्टर रमेश बोले.

‘‘नहीं, झोल उन के लिखने में नहीं, बल्कि हमारे सोचने में है. हम कहीं कुछ गलती कर रहे हैं. धर्मपुत्री का कोई और भी मतलब होता है क्या मामू?’’ कुछ सोचता हुआ साहिल बोला.

‘‘नहीं, और कोई मतलब तो नहीं होता.’’

साहिल ने पहेली वाला कागज हाथ में उठाया और बीसियों बार पढ़ी जा चुकी उन लाइनों को फिर ध्यान से पढ़ते हुए कुछ समझने की कोशिश करने लगा. एकएक अक्षर को बारीकी से घूरतेघूरते एक अजीब बात पर सब का ध्यान आकर्षित करता हुआ बोला, ‘‘जरा देखिए, इस में धर्मपुत्री की स्पैलिंग गलत लिखी हैं. अजय ने इसे धरम पुत्री लिखा है जबकि असली शब्द धर्म होता है. क्या इस का कोई खास मतलब हो सकता है या यह सिर्फ एक गलती है?’’

‘‘इस का भला क्या खास मतलब होगा? गलती ही होगी…’’ बोलतेबोलते अचानक फैजल की टोन बदल गई.

‘‘गलती ही तो नहीं होगी…बिलकुल नहीं हो सकती…यह तो बिलकुल सही है. अंकल, जरा वह सारी लड़कियों के नाम वाली लिस्ट तो निकालिए.’’

पास खड़े सिपाही ने जेब से लिस्ट निकाल कर साहिल को थमा दी. उस ने जल्दीजल्दी सारे नाम पढ़े और जोर से टेबल पर मुक्का मारते हुए बोला, ‘‘यस. मिल गई. यह छठे नंबर वाली ईशा वह लड़की है जिसे हम ढूंढ़ रहे हैं.’’

‘‘क्या मतलब? कैसे? हमें भी बताओ.’’

‘‘धरम कौन है बताइए तो जरा?’’ सभी एकसाथ बोले.

‘‘देखिए, अजय ने धर्म की जगह धरम का प्रयोग किया है. ‘धरम’ यानी फिल्मों के मशहूर कलाकर धर्मेंद्रजी का प्यार का नाम है. तो धरम पुत्री हुई धर्मेंद्रजी की बेटी यानी ईशा. मतलब हमें जिस लड़की की तलाश है, उस का नाम ईशा है और इसी तर्ज पर चलते हुए जब हम अगली लाइन पर पहुंचते हैं तो उस का भी डबल मतलब है. पासवर्ड के बिना बनेगा काम न यानी पासवर्ड ही वह पासवर्ड है जिसे हम ढूंढ़ रहे हैं. उसी से हमारा काम बनेगा.’’

‘‘तुम्हें पूरा यकीन है?’’

‘‘जी हां. जिस तरह अजय अब तक अपनी बात कहते आ रहे हैं, उस के हिसाब से मैं दावे से कह सकता हूं कि यही हमारा कोडवर्ड है. अब हमें और देर किए बिना तुंरत ईशा से मिलने जाना चाहिए.’’

दो मिनट बाद ही वे जीपों पर सवार हो पार्लर पहुंचे और ईशा को बाहर बुलवाया. फिर धीरे से उसे पासवर्ड बताया.

‘‘आप लोग कौन हैं? पासवर्ड बता कर सामान तो एक आदमी पहले ही ले जा चुका है,’’ ईशा ने कहा तो सब हैरान हुए.

‘‘पासवर्ड बता कर सामान ले गया? क्या सामान था? किस ने दिया था?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने पूछा. डरीसहमी ईशा ने पहले तो बताने से इनकार किया, फिर इंस्पैक्टर के डर से सब उगल दिया, ‘‘अजय अंकल ने मुझे कुछ दिन पहले एक टैनिस की बौल दी थी और कहा था कि कुछ दिन बाद वे उसे लेने आएंगे. अगर वे न आएं या उन्हें कुछ हो जाए, तो जो आदमी आ कर मुझे पासवर्ड बताए, मैं उसे वह बौल दे दूं.’’

‘‘क्या था उस बौल में?’’

‘‘मुझे कुछ नहीं पता.’’

‘‘उन्होंने इस काम के लिए तुम्हें ही क्यों चुना?’’

‘‘मेरा घर उन के घर से कुछ ही दूर है. हमारी गरीबी से वे अच्छी तरह वाकिफ थे और अकसर मेरी मदद करते रहते थे. मुझे बिलकुल अपनी बेटी की तरह मानते थे. जब उन्होंने वह बौल मुझे दी तब वे चोरों की तरह छिपतेछिपाते मेरे पास आए थे और उन्होंने बड़ा अजीब सा हुलिया बना रखा था. अगर उन की आवाज न सुनती, तो मैं तो उन्हें पहचान ही नहीं पाती. किसी को कुछ भी न बताने की उन्होंने सख्त हिदायत दी थी और यह भी कहा था कि अगर 6 महीने तक कोई इसे लेने न आए तो मैं इसे नष्ट कर दूं.’’

‘‘जो आदमी बौल ले कर गया वह देखने में कैसा था?’’ इंस्पैक्टर रमेश ने पूछा.

‘‘लंबा, मूंछों वाला, काले रंग की बाइक पर…’’

‘‘काली बाइक पर…हो न हो यह वही आदमी है जो हमारा पीछा कर रहा था,’’ फैजल की बेचैनी अपने चरम पर थी.

‘‘कितनी देर हुई उसे यहां से गए? किस ओर गया है?’’

‘‘अभी मुश्किल से 5 मिनट हुए होंगे. गली से निकल कर वह दाएं मुड़ा था. उस के बाद मुझे पता नहीं.’’ इतना सुनते ही वे लोग तेजी से जीपों की ओर दौड़े और स्पीड से जीपें दौड़ा दीं.

थोड़ा आगे जा कर सड़क 2 भागों में बंट रही थी. दूसरी जीप को उस सड़क पर भेज इंस्पैक्टर रमेश ने अपनी जीप पहले वाले रास्ते पर दौड़ा दी. काफी दूर पहुंचने के बाद एक मोड़ पर घूमते ही उन्हें काली बाइक नजर आई. जब तक बाइक वाले को पता चला कि जीप उस का पीछा कर रही है, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. इंस्पैक्टर ने बड़ी ही कुशलता से बाइक को साइड से हलकी सी टक्कर मार कर उसे नीचे गिरा दिया और फुरती से नीचे कूद कर धरदबोचा और पूछा, ‘‘कौन है तू? अजय का खून तूने ही किया है न और अब सुबूत मिटाना चाहता है, बोल, वरना बहुत मारूंगा.’’

‘‘पागल हो क्या तुम? कातिल मैं नहीं, वह आल्टो वाला है. मैं तो अजय का दोस्त हूं.’’

‘‘कौन दोस्त?’’

इस से पहले कि वह कुछ बोलता, उस आदमी ने उसे चुप रहने का इशारा किया और फुसफुसाते हुए बोला, ‘‘यहां खतरा है. जल्दी यहां से निकलो और पुलिस स्टेशन चलो. मैं वहीं सारी बात बताऊंगा.’’

‘‘हूं…मुझे बेवकूफ बनाने चले हो? भागने का मौका ढूंढ़ रहे हो?’’

‘‘तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं है तो मुझे हथकड़ी लगा कर जीप में बैठा लो और मेरी बाइक पर किसी और को भेज दो, लेकिन जल्दी निकलो यहां से.’’

ऐसा करने में इंस्पैक्टर को कोई बुराई नजर नहीं आई वे उसे ले कर पुलिस स्टेशन आ गए.

अजय के कातिल की तफ्तीश करते हुए कवितारूपी पंक्तियों वाले कोड के अनुसार अनवर, इंस्पैक्टर रमेश, साहिल और फैजल शंकर गली पहुंचे और आगे की पंक्तियों के अनुसार रिमझिम ब्यूटी पार्लर ढूंढ़ा, वहां उन्हें धर्मपुत्री यानी ईशा नामक एक लड़की मिली. उन्होंने उस लड़की को बुलाया और धीरे से पासवर्ड बताया. लेकिन उस ने बताया कि यह पासवर्ड बता कर अभीअभी कोई उस से सामान ले गया है.

वे यह जान कर हैरान हुए. पूछने पर पता चला कि अजयजी उसे अपनी पुत्री की तरह मानते थे व उसे एक टैनिस बौल दे कर उन्होंने कहा था कि जो पासवर्ड बताए उसे दे देना अत: उस ने उस बाइक वाले के पासवर्ड बताने पर बौल उसे दे दी. इंस्पैक्टर ने उस से बाइक वाले का हुलिया जाना और दोनों जीपें दौड़ा दीं. कुछ दूर जा कर उन्होंने बाइक वाले को पकड़ लिया लेकिन उस ने कहा कि हम यहां सुरक्षित नहीं हैं, मुझे पुलिस स्टेशन ले चलिए, मैं वहां सब बताऊंगा मेरी जान को यहां खतरा है. अत: वे उसे पुलिस स्टेशन ले आए.

अब बोलो, क्या कहना है तुम्हें?’’

‘‘अंकल सब से पहले इस से पूछिए कि बौल कहां है?’’

उस ने किसी के बोलने से पहले ही जेब से बौल निकाल कर मेज पर रख दी और बोला, ‘‘मेरा नाम यूसुफ है. अजय और मैं साथ काम करते थे. मैं ने टीवी पर न्यूज में अजय का फोटो और उस के कत्ल की खबर देखी तो मुझ से रहा नहीं गया और मैं उस के कातिल का पता लगाने यहां आ गया. तभी से मैं आप लोगों के पीछे घूम रहा हूं.’’

‘‘तो हम से पहले इस बौल तक कैसे पहुंच गए तुम?’’

‘‘क्योंकि मैं ने अजय की आखिरी पहेली आप से पहले हल कर ली थी.’’

‘‘ओह…तो आप जेम्स बांड की औलाद हैं?’’ व्यंग्य से इंस्पैक्टर रमेश बोले.

यूसुफ ने एक ठंडी सांस भरी और आगे झुकते हुए धीमी आवाज में बोला, ‘‘मैं यह बात आप को कभी न बताता, लेकिन हालात कुछ ऐसे हो गए हैं कि मुझे सबकुछ बताना पड़ेगा. दरअसल, अजय और मैं सीक्रेट एजैंट्स थे. हम दोनों ने कई केसों पर एकसाथ काम किया. शादी कर के जल्दी रिटायरमैंट लेने के बाद अजय यहां आ कर बस गए और मैं अभी एक साल पहले ही रिटायर हुआ हूं. अजय के कत्ल के बारे में सुन कर मैं चुप कैसे बैठ सकता था?

न्यूज में दिखाए गए उन के फोटो में उन का लिखा सीजर कोड पढ़ते ही मैं समझ गया था कि जरूर वे गुपचुप तरीके से किसी गैरकानूनी गतिविधि के खिलाफ काम कर रहे होंगे और उन्हीं लोगों ने उन का कत्ल कर दिया है. सारी बात का पता लगाने मैं यहां आया. सब जगह घूमघूम कर और आप लोगों का पीछा करतेकरते आप की बातें सुनसुन कर मैं सारे कोड हल करता गया और आप से पहले ईशा से बौल लेने में सफल हो गया.

‘‘अजय और मैं ने तो अपनी सारी जिंदगी कोड बनाने और तोड़ने में ही बिताई, तो हमें तो इन का ऐक्सपर्ट होना ही था, लेकिन इन दोनों किशोरों ने जिस अक्लमंदी और होशियारी से उन्हें हल किया, वह वाकई काबिलेतारीफ है,’’ कहते हुए युसूफ ने साहिल और फैजल की पीठ थपथपाई.

‘‘और हां इंस्पैक्टर साहब, जिस फुरती से आप ने मेरा पीछा कर के मुझे ढूंढ़ा और रुकने पर मजबूर किया, उस के लिए आप की भी तारीफ करनी होगी.’’

‘‘धन्यवाद,’’ मुसकराते हुए इंस्पैक्टर बोले.

‘‘लेकिन हमारा पीछा करते हुए कातिल ने आप को भी देखा होगा, तो उस ने आप को पकड़ने या मारने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ साहिल ने पूछा.

‘‘मैं उन्हें पता लगने देता तब न हां, लेकिन आज आप के मेरा पीछा करने और मुझे यहां पकड़ कर लाने से जरूर मैं उन की नजरों में आ गया हूं.’’

‘‘क्या आप को पता है कि इस बौल में क्या है?’’

‘‘नहीं, आप ने पता लगाने का मौका ही कहां दिया? कातिल के आदमी बराबर आप लोगों के पीछे लगे हैं, इसलिए जल्दी से जल्दी इस का राज जान कर कातिल को पकड़वा कर किस्सा खत्म कीजिए. इस के अंदर कोई चीज है. बौल को काट कर उसे बाहर निकालना होगा.’’

बौल को काटने पर उस के अंदर से एक मैमोरी कार्ड बरामद हुआ.

‘‘मैं अपने फोन में इसे लगा कर देखता हूं,’’ फैजल बोला. फोन में कार्ड लगाने पर उस ने पाया कि उस में एक वीडियो क्लिपिंग की रिकौर्डिंग है. उस रिकौर्डिंग को देखते ही उन के पैरों तले जमीन खिसक गई. उस में कुछ लोग एक तहखाने में बैठे बम बनाते हुए नजर आ रहे थे. एक कोने में बंदूकों, राइफलों और तैयार छोटेबड़े बमों के ढेर लगे हुए थे. उन की अस्पष्ट आवाज को ध्यान से सुनने पर पता चला कि वह कुल 17 लोगों की यूनिट है, जो कई साल से यह काम करते आ रहे हैं.

‘‘ये सब क्या है? देखने में तो यह जगह हमारे गांव की ही लग रही है, लेकिन यहां ये सबकुछ हो रहा है?’’ इंस्पैक्टर रमेश की आवाज में अविश्वास और घबराहट के भाव साफ झलक रहे थे. ‘‘ओह नो,’’ कुरसी पर बेचैनी से पहलू बदलते हुए यूसुफ बोला, ‘‘मेरे रिटायर होने से कुछ महीने पहले हमें खबर मिली थी कि आसपास के एरिया में कहीं आतंकवादियों का एक बड़ा अड्डा है, जहां बड़े पैमाने पर बम बना कर देश के अन्य भागों में ब्लास्ट करने के लिए सप्लाई किए जा रहे हैं. हमारा डिपार्टमैंट तभी से पड़ोसी देश की मदद से बनी इस यूनिट को ढूंढ़ने में लगा हुआ था, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई थी.

‘‘अजय चूंकि काफी पहले रिटायर हो चुके थे, अत: उन्हें इस औपरेशन के बारे में कुछ पता नहीं था. 3 साल से इस छोटी सी जगह में रहते हुए अजय को यहां चलती इन खतरनाक ऐक्टिविटीज के बारे में पता न चलता, ऐसा तो संभव ही नहीं था. उन्होंने साबित कर दिया कि वे भारत के एक सच्चे सिपाही हैं. न जाने कितने दिन से वे इन के पीछे लगे थे. मौका मिलते ही उन्होंने यह रिकौर्डिंग कर ली होगी लेकिन उन लोगों को पता चल गया और उन्होंने उस का कत्ल कर दिया. मरतेमरते भी वे इतना पक्का इंतजाम कर गए कि यह सुबूत बिलकुल सुरक्षित है.’’

‘‘लेकिन जब अजय के पास पक्के सुबूत थे तो उन्होंने इन्हें पकड़वाया क्यों नहीं? कार्ड को ऐसे छिपा कर क्यों रखा और एक हफ्ता गांव में छिपतेछिपाते क्यों घूमते रहे?’’

‘‘यह बात मुझे भी थोड़ी अजीब लग रही है, लेकिन इतना तो पक्का है कि उस की जरूर कोई मजबूरी रही होगी. मैं तो यहां नया हूं, अत: आप लोग ही इस जगह की पहचान कीजिए. तभी हम इन लोगों को पकड़वा पाएंगे.’’

2-3 बार और रिकौर्डिंग देखने के बाद इंस्पैक्टर पहचान गए कि वह नदी के उस पार का एक छोटा सा पथरीला इलाका है, जो चारों तरफ से कंटीली झाडि़यों से घिरा हुआ है.

‘‘ऐसी जगह और इतने खतरनाक लोगों से निबटने के लिए हमारे पास न तो पुलिस फोर्स है और न ही इतने हथियार. मुझे अपने सीनियर औफिसर्स से बात करनी पड़ेगी.’’

‘‘एक बात का ध्यान रखिएगा. सारा काम बिलकुल गुपचुप तरीके से जल्दी से जल्दी होना चाहिए. उन्हें यदि यह भनक लग गई कि हम उन के बारे में जान चुके हैं तो सब गड़बड़ हो जाएगा,’’ यूसुफ ने आगाह किया.

कुछ फोन इंस्पैक्टर रमेश ने किए और कुछ यूसुफ ने. खबर इतनी बड़ी थी कि एक घंटे में ही पूरी सरकारी मशीनरी हरकत में आ गई. शाम का धुंधलका होते ही सेना के जवानों को पैराशूट से उस इलाके में उतार कर छापा मारने का प्लान बना लिया गया. गांव के लोगों की सुरक्षा के लिए भी पक्के इंतजाम किए गए. गलती से ब्लास्ट हो जाने की स्थिति में फायरब्रिगेड की गाडि़यों और बचावकर्मियों को बैकअप के रूप में तैयार कर के साथ वाले गांव में रखा गया. सारा काम इतनी शांति और सफाई से हुआ कि गांव में किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई.

उधर आर्मी के जवानों ने अपने मकसद को अंजाम देना शुरू किया और इधर पुलिस स्टेशन के बाहर छिपे, किसी हलचल का इंतजार करते हरी औल्टो के काले चश्मे वाले और उस के दूसरे साथी को पुलिस ने धरदबोचा.

पुलिस स्टेशन में बैठ कर इंतजार करते हुए सब लोगों के चेहरे उस वक्त खुशी से खिल गए जब उन्हें कामयाब होने की सूचना मिली. नदी पार के अड्डे पर जितने लोग और हथियार थे, बिना किसी खास संघर्ष और खूनखराबे के सेना ने अपने कब्जे में ले लिए.

पकड़े गए 15 आदमी और हथियार हैलीकौप्टर्स द्वारा सीधे दिल्ली भेज दिए गए थे. औपरेशन पूरा होने के 10 मिनट बाद ही इंस्पैक्टर रमेश के प्रमोशन की खबर आ गई. साहिल और फैजल को उन की बुद्धिमत्ता के लिए राज्य सरकार की तरफ से 10-10 हजार रुपए के नकद पुरस्कार की भी घोषणा की गई. इंस्पैक्टर रमेश के चेहरे पर खुशी झलक रही थी और यूसुफ के चेहरे पर संतोष.

‘‘मुझे भी इजाजत दीजिए. जिस काम के लिए मैं यहां आया था, वह तो पूरा हो गया. कल सुबह मैं भी घर वापस चला जाऊंगा,’’ कहते हुए यूसुफ खड़ा हो गया.

सब खुश थे कि केस सौल्व हो गया लेकिन फैजल कुछ दुविधा में था, ‘‘बाकी सब तो ठीकठाक हो गया पर अजय मर्डर से पहले लापता क्यों हुए और उन्होंने यह लौकर, चाकू वगैरा का सारा सैटअप कब और कैसे किया. ये बातें तो राज ही रह गईं.’’

‘‘हां, ये राज तो उन के साथ ही चले गए, लेकिन अब क्या फर्क पड़ता है, केस तो हल हो ही गया न. अब कल हम नदी में मछलियां पकड़ने चलेंगे. जब से यहां आए हैं इस केस में ही उलझे हुए हैं.’’

सुबह 6 बजे फोन की घंटी बजी. अनवर मामू ने फोन उठाया. उधर से इंस्पैक्टर रमेश की घबराई आवाज सुनाई दी, ‘‘साहिल और फैजल कहां हैं डाक्टर साहब?’’

‘‘सो रहे हैं, क्यों क्या हुआ?’’

‘‘उन्हें घर से कहीं बाहर मत निकलने दीजिएगा. मैं ने अभी कुछ सिपाही आप के घर भेजे हैं, जो वहां पहरे पर रहेंगे.’’

‘‘अरे, आखिर हुआ क्या है?’’ अनवर मामू की आवाज में दहशत के साथ हैरानी भरी थी.

‘‘कल रात किसी ने बड़ी बेदर्दी से यूसुफ का कत्ल कर दिया है. मुझे लगता है साहिल और फैजल की जान भी खतरे में है.’’

‘‘क्या? क्या यह वही कल वाले लोग हैं? लेकिन वे सब तो पकड़े जा चुके हैं न?’’

‘‘मेरे खयाल से हम से कहीं कोई चूक हुई है. मैं कुछ देर में आप के पास पहुंच कर सारी बात बताऊंगा. तब तक कोई बाहर न निकले,’’ कह कर इंस्पैक्टर रमेश ने फोन रख दिया.

अजय के कातिल को ढूंढ़ते हुए उन्होंने यूसुफ से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह और अजयजी साथ काम करते थे औैर वह अजयजी के कातिल को ढूंढ़ने हेतु यहां पहुंचा. दरअसल, वे दोनों सीक्रेट एजेंट थे इसलिए यूसुफ ने सीजर कोड जल्दी हल कर लिया. टैनिस बौल के बारे में पूछने पर उस ने बताया कि उस में एक मैमोरीकार्ड निकला जिसे फोन में लगाने पर एक वीडियो क्लिपिंग दिखी.

उस में एक तहखाने में बंदूकों, राइफलों, बमों के ढेर दिख रहे थे. यूसुफ ने बताया कि हमारा डिपार्टमैंट इसी यूनिट की तलाश में था. शायद अजय ने इसे ढूंढ़ कर इस की रिकौर्डिंग कर ली थी. अब इंस्पैक्टर ने वीडियो को दोचार बार देख जगह की पहचान की और गुपचुप तरीके से वहां छापा मार कर सभी अपराधी पकड़ लिए. लेकिन कुछ सवाल अभी बाकी थे और असली कातिल उन से दूर था.

पुलिस वालों ने अनवर के घर के इर्दगिर्द मोरचाबंदी कर ली. शोरगुल सुन कर घर के  सब लोग उठ कर वहां आ गए और सारी बात पता चलने पर सब के मुंह खुले के खुले रह गए.

‘‘इस से यह बात तो बिलकुल साफ हो जाती है कि उन का कोई न कोई आदमी खुलेआम बाहर घूम रहा है और अब इस केस से जुड़े सभी लोगों को मार कर वह अपने साथियों का बदला लेगा. यूसुफ अंकल आज सुबह घर वापस जाने वाले थे, इसलिए पहले उन्हें निशाने पर लिया गया. अगला नंबर हमारा होगा या फिर इंस्पैक्टर अंकल का,’’ साहिल बोला.

‘‘लेकिन यूसुफ अंकल ने कहा था कि उन लोगों को कल की घटना से पहले उन के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और कल जब हम उन्हें पकड़ कर पुलिस स्टेशन लाए, तब से एक औल्टो कार हमारा पीछा कर रही थी. शाम तक वे लोग वहीं बाहर ही छिपे थे जहां से पुलिस ने उन्हें पकड़ा था यानी उन के अलावा गैंग के किसी मैंबर को यूसुफ अंकल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. इस का मतलब यह हुआ कि औल्टो वालों ने पकड़े जाने से पहले किसी को इस बारे में बताया और वह जो भी था, वह उन के अड्डे पर नहीं बल्कि कहीं और था.’’

उस की बातों को ध्यान से सुन रहा फैजल बोला, ‘‘और अगर इस तरह की सिचुएशन में कोई आदमी फोन करेगा तो जरूर गैंग के किसी महत्त्वपूर्ण आदमी को ही करेगा. जो रिकौर्डिंग हम ने देखी थी उस के हिसाब से वे कुल 17 आदमी थे. 15 वहां से अरैस्ट हुए और 2 औल्टो वाले, तो पूरे 17 तो हो गए. फिर यह 18वां आदमी कहां से पैदा हो गया?’’ फैजल का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था, ‘‘17 आदमी वहां काम करते थे, मतलब वर्कर्स थे, तो इन वर्कर्स का कोई मालिक यानी बौस भी होना चाहिए. वही बौस जिसे उन्होंने फोन कर के खबर दी और जिस ने यूसुफ अंकल को मारा. कौन हो सकता है यह आदमी?’’

इतने में इंस्पैक्टर रमेश आ पहुंचे, उन्होंने बताया कि रामगढ़ लौंज नाम के होटल के जिस कमरे में यूसुफ ठहरा हुआ था, वहीं उस की लाश पड़ी मिली है. उस की हत्या भी गोली मार कर की गई है और अस्तबल जैसे ही बड़े जूतों के निशान वहां से भी मिले हैं यानी अजय और यूसुफ दोनों का कातिल एक ही है.

‘‘कोई और खास बात जो आप ने वहां देखी हो?’’ फैजल ने पूछा.

‘‘और तो कुछ खास नहीं, पर यूसुफ के चेहरे पर जो भाव थे, वे कुछ अजीब से थे. जैसे हैरान और कुछ समझ न पा रहा हो.’’

फैजल कुछ सोचने लगा. अचानक उस ने अपना फोन निकाला और जल्दीजल्दी दोचार बटन दबा कर स्क्रीन देखने लगा.

करीब 5 मिनट बाद उस के चेहरे के भाव एकदम बदल गए और वह ऐसे खुश नजर आने लगा, मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो. फिर वह इंस्पैक्टर रमेश के पास पहुंचा और बोला, ‘‘अंकल, आप के पास अजय के घर का नंबर है न, वहां फोन लगाइए और आंटी को कहिए कि हम अभी आधे घंटे में उन के घर आ रहे हैं. मुझे ऐसा लगता है कि अंकल की अलमारी में एक फाइल थी, जिस से हमें कोई काम की बात पता चल सकती है.’’

‘‘फैजल, इस समय कातिल बौराया हुआ घूम रहा है. तुम लोगों का बाहर जाना ठीक नहीं होगा,’’ इंस्पैक्टर ने कहा.

‘‘अरे, आप फोन लगाइए तो सही. मुझे समझ आ गया है कि कातिल कौन है और मेरे पास उसे पकड़ने का पूरा प्लान भी है.’’

इंस्पैक्टर रमेश ने फोन उठाया और अजय की पत्नी यास्मिन को वैसा ही कह दिया जैसा फैजल ने बताया था.

‘‘अब सब लोग ध्यान से मेरी बात सुनिए…’’ फैजल धीमी आवाज में उन्हें कुछ समझाने लगा.

जब वह चुप हुआ तो सब के चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे.

इंस्पैक्टर रमेश ने जल्दीजल्दी 3-4 फोन मिलाए, कुछ हिदायतें दीं और कुछ सामान लाने का और्डर दिया. फिर बैठ कर किसी का इंतजार करने लगा. साहिल, फैजल और अनवर मामू तैयार होने चले गए. कुछ ही देर में एक सिपाही सारा सामान ले कर आ गया और सब लोग बाहर जा कर जीप में बैठ गए.

अजय के घर पहुंच कर वे चारों जब ड्राइंगरूम में पहुंचे तो यास्मिन उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘आइएआइए, मैं ने सुना है कल गांव में बहुत सारे आतंकवादी पकड़े गए. क्या यह सच है? और उस पहेली का कोई हल सूझा तुम्हें फैजल?क्या उसी के लिए तुम्हें वह फाइल चैक करनी है? आओ, तुम खुद ही देख कर निकाल लो, जो फाइल तुम्हें चाहिए.’’

अजय के कमरे से नीले रंग की एक फाइल ले कर वे फिर से ड्राइंगरूम में आ गए.

‘‘तुम इसे चैक करो, मैं चाय ले कर आती हूं,’’ कह कर यास्मिन किचन में चली गई?

कुछ ही पल बीते थे कि अचानक पिछले दरवाजे से दबेपांव एक बड़ेबड़े जूतों वाला नकाबपोश कमरे में दाखिल हुआ. उस के दोनों हाथों में रिवाल्वर थे, जिन में साइलैंसर लगे हुए थे. फाइल पर झुके चारों लोगों ने चौंक कर उस की ओर देखा ही था कि पिट…पिट…पिट…पिट… किसी को पलक झपकाने का मौका दिए बगैर उस ने चारों के सीने में गोलियां उतार दीं. दर्द भरी चीखों के साथ वे नीचे गिर पड़े. जितनी फुरती से नकाबपोश अंदर आया था, उतनी ही फुरती के साथ बाहर की तरफ लपका, लेकिन दरवाजे तक पहुंचने से पहले ही 8-10 आदमियों ने उसे घेर कर बुरी तरह जकड़ लिया और उस से दोनों रिवाल्वर छीन लिए. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाता, उसे रस्सियों से बांध दिया गया. तभी चारों लाशें अपनेअपने कपड़े झाड़ती हुई उठ खड़ी हुईं. उन सब के चेहरे पर शरारती मुसकराहट थी.

‘‘क्यों, कैसी रही यास्मिन आंटी?’’ साहिल ने एक आंख दबाते हुए पूछा और फैजल ने उन का नकाब खींच कर दूर फेंक दिया.

‘‘आप ने क्या समझा था कि हम सब गोलगप्पे हैं जो आप एक मिनट में गटक जाएंगी?’’ कहते हुए फैजल शर्ट का एक बटन खोल कर अंदर पहनी बुलेटप्रूफ जैकेट की तरफ इशारा करते हुए बोला, ‘‘हमें हजम करना इतना आसान नहीं है.’’

यास्मिन गुस्से से बड़बड़ाती हुई बोली, ‘‘मैं तुम्हें छोडं़ूगी नहीं. तुम ने मेरी बरसों की मेहनत पर पानी फेर दिया. मैं ने ये सब करने में अपनी सारी जिंदगी गुजार दी और तुम लोगों की वजह से एक पल में सब तहसनहस हो गया,’’ और फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘मतलब आप बहुत छोटी उम्र से ही इन सब कामों में लगी हुई थीं?’’ इंस्पैक्टर रमेश हैरानी से बोले.

‘‘हां, अनाथाश्रम में रहते हुए मेरी पहचान इन लोगों से हुई थी और तभी से मैं इन के साथ काम कर रही हूं.’’

‘‘क्या आप को पता था कि अजय सीक्रेट एजेंट हैं?’’

‘‘अगर पता होता तो क्या मैं उन से शादी करती? यहां रामगढ़ में आ कर बसने की जिद भी मैं ने ही उन से की थी ताकि मुझे अपना काम करने में आसानी रहे. अगर मुझे जरा भी भनक होती तो मैं कभी यहां नहीं आती.’’

‘‘अजय के लापता होने में भी आप का हाथ था?’’

‘‘बिलकुल नहीं, मैं और मेरे आदमी तो खुद उन्हें ढूंढ़ रहे थे. उन्हें न जाने कब यहां चल रही गतिविधियों पर शक हो गया और एक दिन मेरे आदमी का पीछा करतेकरते वे मेरे अड्डे तक पहुंच गए. जब वे वहां से वापस भाग रहे थे, तो मेरे एक आदमी ने उन्हें देख लिया और मुझे खबर दी. उसे यह नहीं पता था कि अजय ने वहां कुछ रिकौर्ड भी किया है.

‘‘मैं ने तभी फैसला कर लिया कि उन के घर आते ही मैं उन्हें खत्म कर दूंगी, लेकिन वे घर आए ही नहीं. उन्हें रास्ते में ही पता चल गया कि कुछ आदमी उन का पीछा कर रहे हैं. उन्होंने एक पब्लिक बूथ में घुस कर किसी को फोन किया, लेकिन जिस से वे बात करना चाहते थे वह आदमी कुछ दिन के लिए बाहर गया हुआ था. बूथ के बाहर खड़ा मेरा आदमी सारी बातें सुन रहा था. फोन पर बात करने के बाद वे कुछ निराश हो गए और वहां से निकलने के कुछ ही देर बाद उन आदमियों को चकमा दे कर भागने में सफल हो गए.’’

‘‘ओह, अब समझा,’’ बीच में ही फैजल बोला, ‘‘जरूर अजय ने अपने पुराने चीफ को फोन किया होगा और जब वे नहीं मिले तो उन्होंने 15-20 दिन तक मैमोरीकार्ड को इन लोगों से बचाने के लिए अलगअलग भेष बदल कर यह सारा सैटअप किया.’’

‘‘तभी तो हम उन्हें पकड़ नहीं पाए. उसी दिन मैं ने उन के लापता होने की रिपोर्ट लिखवाई. अब मेरे आदमियों के साथसाथ पुलिस भी उन के पीछे थी. 8वें दिन मुझे उन के अस्तबल में होने की खबर मिली और मैं वहां पहुंच गई. मैं ने जानबूझ कर बड़े साइज के मर्दाना जूते पहने थे ताकि मुझ पर किसी को शक न हो.

‘‘मुझे इस रूप में देख कर पहले तो वे दुखी और हैरान हुए लेकिन जल्दी ही संभल गए. जिस तरह से उन्होंने मुझ से मुकाबला किया, उसे देख कर मैं हैरान थी. बड़ा संघर्ष करना पड़ा मुझे उन्हें मारने में. गिरतेगिरते जब उन्होंने मूंछें और भवें उतार कर फेंकीं, तब मैं उन की यह चाल समझ नहीं पाई. वह तो बाद में पता चला कि उन्होंने जानबूझ कर ऐसा किया ताकि उन के पहले के जानने वाले लोग उन्हें आसानी से पहचान सकें.

‘‘मरतेमरते उन्होंने मुझे एक और धोखा दिया. दूसरी गोली लगने के बाद उन्होंने सांस रोक कर ऐसा नाटक किया जैसे मर गए हों. अच्छी तरह चैक करने के बाद मैं वहां से निकल गई और उस के  बाद उन्होंने वह संदेश लिख दिया. सुबह जब मैं रोतीपीटती वहां पहुंची तो उन्हें देख कर चौंकी. लेकिन समझ कुछ नहीं आया. इसीलिए मैं ने तुम लोगों के पीछे 24 घंटे आदमी लगा दिए ताकि तुम्हारी सारी रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहे, लेकिन एक बात समझ नहीं आई. तुम्हें मेरे बारे में पता कैसे चला?’’

‘‘फैजल मुसकराया, मुझे जब से यह पता चला कि अजय सीक्रेट एजेंट थे, तब से मुझे एक बात बारबार खटक रही थी कि अजय इतना बड़ा राज इस तरीके से बता कर गए, पर अपने खूनी का नाम क्यों नहीं बता गए? मुझे लग रहा था कि वह नाम हमारे बिलकुल सामने ही कहीं है, बस नजर नहीं आ रहा है. मैं इसी दुविधा में था जब इंस्पैक्टर रमेश ने बताया कि मरते वक्त यूसुफ के चेहरे पर हैरानी और कन्फ्यूजन के भाव थे. इस का मतलब है कि वे कातिल को पहचाते थे.

‘‘इस गांव में वे किसी और को तो जानते नहीं थे. इसलिए मेरा शक सीधा अजय की पत्नी यास्मिन यानी आप पर ही गया. उसी समय मेरे दिमाग में एक और बात आई. अगर अजय ने कहीं कातिल के बारे में कोई हिंट छोड़ा होगा तो वह सिर्फ उन के आखिरी मैसेज में ही हो सकता है. इसलिए मैं ने उसे निकाल कर दोबारा चैक किया और मेरी आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं. उन्होंने बिलकुल साफसाफ कातिल का नाम लिख रखा था,’’ कहते हुए फैजल ने कागज की एक स्लिप निकाल कर यास्मिन के आगे रख दी, जिस पर लिखा था,

‘‘जब पूरा मैसेज स्माल लैटर्स में लिखा है तो बीच में ये कैपिटल लैटर्स क्यों? रूहृढ्ढङ्घस््न. इन्हें आगेपीछे कर के देखा जाए तो बनता है यास्मिन (ङ्घ्नस्रूढ्ढहृ) अगर यह बात पहले ही मुझे सूझ गई होती तो बेचारे यूसुफ अंकल को जान से हाथ न धोना पड़ता. खैर, जो हुआ सो हुआ. ले चलो इन्हें,’’ फैजल फिर बोला.

इंस्पैक्टर रमेश ने फैजल और साहिल की पीठ थपथपाई और यास्मिन को गिरफ्तार कर लिया.

Social Crime Story : आश्रम में बुलाकर करता था बलात्कार

हिंदू समाज के अधिकांश लोग धर्मभीरू हैं. ऐसे लोगों की वजह से कई लोग आसिफ से आशु महाराज बन जाते हैं और तंत्रमंत्र की आड़ में वह सब करते हैं, जो सामाजिक रूप से निषेध है…

मीनाक्षी अपनी बेटी निकिता को ले कर बहुत परेशान रहती थी. इस की वजह यह कि उस की बेटी निकिता पोलियोग्रस्त थी. सन 2002 में निकिता का जब जन्म हुआ था तो उस समय वह देखने में स्वस्थ थी. जैसेजैसे वह बड़ी हुई, तब पता चला कि उसे पोलियो है. मीनाक्षी ने कई डाक्टरों से उस का इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हो सकी. निकिता 6 साल की हो चुकी थी. पोलियो का प्रभाव अब उस के शरीर पर साफ दिखाई दे रहा था. बेटी के भविष्य को ले कर मीनाक्षी चिंतित रहती थी. उसे इस बात की भी चिंता थी कि यदि निकिता ठीक नहीं हुई तो उस की शादी कैसे होगी.

क्योंकि आजकल अच्छीभली और स्वस्थ लड़की को भी उपयुक्त लड़का आसानी से नहीं मिलता, इसलिए मीनाक्षी इसी कोशिश में लगी रहती थी कि किसी भी तरह से निकिता ठीक हो जाए. गाजियाबाद के इंदिरापुरम की रहने वाली मीनाक्षी को कोई जानपहचान वाला किसी हकीम या तांत्रिक के बारे में बताता तो वह बेटी को ले कर उस के पास पहुंच जाती. बेटी के चक्कर में वह कई पंडितों, तांत्रिकों और मुल्लामौलवियों के पास गई, लेकिन निकिता ठीक न हो सकी. एक दिन मीनाक्षी ने टीवी पर आशु महाराज का कार्यक्रम देखा. आशुजी महाराज ज्योतिष विद्या के बारे में बताते थे. उन की पहचान हस्तरेखा विशेषज्ञ के रूप में थी. वह खुद को ज्योतिषाचार्य बताते थे. साथ ही अपने कार्यक्रम में लोगों की तमाम तरह की परेशानियां दूर करने के उपाय भी बताते थे. मीनाक्षी को आशुजी महाराज की बातें बहुत अच्छी लगती थीं. वह उन की बातों से बहुत प्रभावित थी.

मीनाक्षी निकिता के सही होने के चक्कर में जाने कहांकहां भागी थी. आशु महाराज की बातों से उसे उम्मीद की किरण दिखाई दी. उस ने सोचा कि क्यों न वह एक बार आशु महाराज से मिल कर बेटी के बारे में बताए. हो सकता है महाराज के आशीर्वाद से वह ठीक हो जाए. टीवी स्क्रीन से मीनाक्षी ने आशु महाराज से संपर्क करने का फोन नंबर लिख लिया. एक दिन मीनाक्षी ने उस नंबर पर फोन किया. फोन उन के आश्रम के किसी कार्यकर्ता ने उठाया. मीनाक्षी ने आशु महाराज से बात करने की इच्छा जाहिर की. कार्यकर्ता ने मीनाक्षी को अगले दिन महाराज से मिलने का टाइम बता दिया. इतना ही नहीं, उस ने उन के सेक्टर-7 रोहिणी, दिल्ली स्थित आश्रम का पता भी बता दिया. यह बात सन 2008 की है.

आशु महाराज से मुलाकात का समय निश्चित हो जाने पर मीनाक्षी बहुत खुश हुई. जिन के कार्यक्रम वह टीवी पर देखा करती थी, उन से साक्षात मिलना मीनाक्षी के लिए सौभाग्य की बात थी. अगले दिन निर्धारित समय से पहले मीनाक्षी अपनी 6 वर्षीय बेटी निकिता को ले कर आशु महाराज के रोहिणी स्थित आश्रम में पहुंच गई. काफी देर इंतजार करने के बाद उसे आशु महाराज से मिलने के लिए उन के कमरे में भेजा गया.  मीनाक्षी बेटी को ले कर आशु महाराज के कमरे में पहुंच गई. वह सुसज्जित कमरा था. अंदर गुलाब की खुशबू महक रही थी. कमरे में घुसते ही मीनाक्षी का मन खुश हो गया. आशु महाराज ने जब मीनाक्षी से उस की समस्या पूछी तो उस ने पास बैठी निकिता की परेशानी उन्हें बता दी.

आशु महाराज ने निकिता को गौर से देखने के बाद उस से कमरे में कुछ कदम चलने को कहा. दरअसल वह उसे चलवा कर यह देखना चाहते थे कि निकिता को कितनी बड़ी प्रौब्लम है, जिस से उसी के अनुसार उस का ट्रीटमेंट कर सकें. बेटी की वजह से खुद भी बनी शिकार 6 साल की निकिता भले ही पोलियोग्रस्त थी लेकिन वह थी बहुत खूबसूरत. मीनाक्षी ने बताया कि आशु महाराज ने उस से कहा था, ‘‘यह लड़की बहुत भाग्यवान है. इस का भविष्य बहुत ही उज्ज्वल है. मैं भविष्यवाणी कर रहा हूं कि एक दिन इसी की वजह से लोग तुम्हें जानेंगे. रही बात इस की बीमारी की, तो मैं मंत्रोच्चारित एक तेल दूंगा. उस तेल से तुम इस की रोजाना मालिश करना.

‘‘बीचबीच में तुम इसे आश्रम ले कर आती रहना. आश्रम में इस बच्ची के पूरे शरीर की मालिश हम अपने हाथों से ही किया करेंगे. जब हम इस की मालिश करेंगे तो इस के शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं होना चाहिए.’’

निर्वस्त्र कर मालिश करने की बात मीनाक्षी को थोड़ी अजीब सी लगी. फिर सोचा कि यह इतने पहुंचे हुए महाराज हैं. इन्होंने यह बात कुछ अच्छा समझ कर ही कही होगी. इसलिए मीनाक्षी उन के सामने हाथ जोेड़ते हुए बोली, ‘‘महाराजजी, आप जो करेंगे हमारे भले के लिए ही करेंगे. मैं तो यह चाहती हूं कि हमारी बच्ची ठीक हो जाए. आप जैसा कहेंगे, हम करने को तैयार हैं.’’

मीनाक्षी का आरोप है कि आशु महाराज उस की बेटी को निर्वस्त्र कर उस के शरीर की मालिश करता था. सन 2013 तक यह सिलसिला चलता रहा. सन 2013 में ही दीवाली के मौके पर मीनाक्षी आशु के आश्रम में गई तो आश्रम के मैनेजर ने उसे चाय पीने को दी. चाय पीने के कुछ देर बाद मीनाक्षी को नींद सी आने लगी. उसी दौरान मैनेजर उसे आशु महाराज के कमरे में ले गया. मीनाक्षी ने बताया कि वहां आशु व उस के साथियों ने उस के साथ सामूहिक बलात्कार किया.

उस के साथ क्या हो रहा है, यह तो उसे पता था लेकिन उसे दी गई दवा के असर से वह अर्द्धमूर्छित थी. उस समय वह विरोध करने की स्थिति में भी नहीं थी. जब काफी देर बाद मीनाक्षी को होश आया तो उस के अंग दुख रहे थे. पहले वह वहां जी भर कर रोई और उस ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी दी. इस पर बाबा ने उसे मुंह बंद रखने को कहा. साथ ही चेतावनी दी कि यदि यह बात बाहर किसी से कही तो पूरे परिवार को जान से हाथ धोना पड़ सकता है. यह भी कहा कि जिस तरह वह आश्रम में आती है, उसी तरह आती रहे. आश्रम आना बंद नहीं होना चाहिए. मीनाक्षी बाबा के रुतबे को जान चुकी थी इसलिए उस ने मुंह बंद रखने में ही भलाई समझी और वह आश्रम आतीजाती रही.

मीनाक्षी को महसूस होने लगा था कि वह आशु महाराज के शिकंजे में फंस चुकी है, जहां से निकलना आसान नहीं होगा. मीनाक्षी का आरोप है कि सन 2016 में बाबा के बेटे समर और उस के दोस्त सौरभ ने उस के साथ यौनाचार किया. पिता की तरह समर भी अय्याश था. वह यह सब सहती रही लेकिन उस ने बेटी को आश्रम लाना बंद कर दिया था. हद तो तब हो गई जब सन 2017 में समर ने उस से निकिता को आश्रम लाने को कहा. मीनाक्षी ऐसा हरगिज नहीं चाहती थी. लिहाजा इस बात को ले कर वह आशु महाराज से मिली और उस ने समर की शिकायत की.

मीनाक्षी ने बताया कि इस पर आशु महाराज ने उसे धमकाया और अपने बेटे का ही पक्ष लिया. उन्होंने मीनाक्षी से यह भी कहा कि तू मेरी गुलाम है और अब तेरी बेटी भी मेरी गुलामी करेगी. 2017 में ही होली के दिन जब मीनाक्षी रोहिणी के आश्रम में अकेली पहुंची तो उस के साथ मारपीट की गई. मीनाक्षी ने बताया कि कुल मिला कर वह आशु महाराज की कठपुतली बन कर रह गई थी. वह उस से इतना खौफजदा थी कि उस के खिलाफ कुछ बोल भी नहीं सकती थी. छलबल का खिलाड़ी था आशु उर्फ आसिफ मीनाक्षी के अनुसार, सन 2017 में आशु महाराज ने उसे और उस की बेटी निकिता को दक्षिणी दिल्ली के हौजखास के एक्स ब्लौक स्थित आश्रम में बुलाया. वहां आशु महाराज ने उसी के सामने निकिता के साथ अश्लील हरकत की.

निकिता अब कोई बच्ची नहीं रही थी, वह 15 साल की हो चुकी थी. बाबा की ये हरकतें मीनाक्षी की बरदाश्त से बाहर हो चुकी थीं. लिहाजा उस ने बाबा का विरोध किया तो बाबा ने मीनाक्षी की पिटाई करा कर उसे आश्रम से बाहर निकलवा दिया. मीनाक्षी ने इस की शिकायत हौजखास थाने में की. मीनाक्षी ने बताया कि पुलिस आशु महाराज से इतनी प्रभावित थी कि उस की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं की. बल्कि पुलिस मामले को रफादफा करने का दबाव बनाने लगी, पर मीनाक्षी नहीं मानी. काफी भागादौड़ी और मशक्कत के बाद पुलिस ने आशु महाराज, उस के बेटे व दोस्त के खिलाफ भादंवि की धारा 376डी, 354, 506 के अलावा पोक्सो एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज की. इस की जांच थाना पुलिस के बजाय क्राइम ब्रांच को सौंपी गई.

क्राइम ब्रांच ने आरोपियों की तलाश शुरू कर दी, लेकिन आरोपी न तो हौजखास वाले आश्रम में मिले और न ही रोहिणी के आश्रम में. वे सभी अंडरग्राउंड हो चुके थे. इसी बीच शाहदरा जिले के एएटीएस की टीम को आशु महाराज के बारे में गुप्त सूत्रों द्वारा सूचना मिली कि आशु महाराज उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में एक ठिकाने पर छिपा बैठा है. इस महत्त्वपूर्ण सूचना के बाद एएटीएस की टीम ने सूचना में बताई गई जगह पर दबिश दे कर आशु महाराज को गिरफ्तार कर लिया. उच्चाधिकारियों के फैसले के बाद एएटीएस ने उसे क्राइम ब्रांच के सुपुर्द कर दिया. आसिफ उर्फ आशु महाराज ने पुलिस को बताया कि दिल्ली और देश भर में लगातार कई बाबाओं की गिरफ्तारी होने के बाद उसे इस बात का डर हो गया था कि कहीं पब्लिक उसे पकड़ कर मार न दे.

इसी दहशत की वजह से वह दिल्ली से भाग कर गाजियाबाद के अजनारा अपार्टमेंट के एक फ्लैट में जा कर छिप गया था. क्राइम ब्रांच ने उस के मोबाइल फोन, लैपटाप और अन्य इलेक्ट्रौनिक गैजेट बरामद कर जांच के लिए फोरैंसिक लैब भेज दिए हैं. पुलिस ने 14 सितंबर को उसे कोर्ट में पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के अलावा आसिफ के बेटे समर को भी पूछताछ के लिए बुलाया. कई घंटे की गहन पूछताछ के बाद उसे भेज दिया गया. पुलिस समर के दोस्त सौरभ से भी पूछताछ करेगी.

क्राइम ब्रांच इस बात की भी जांच कर रही है कि कहीं आसिफ ने नाम बदल कर लोगों की भावनाओं से तो खिलवाड़ नहीं किया. यदि इस के सबूत मिले तो उस के खिलाफ काररवाई की जाएगी, क्योंकि उस ने भक्तों से असल पहचान छिपाई थी.

कथा लिखने तक क्राइम ब्रांच आशु महाराज से पूछताछ कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, मीनाक्षी और निकिता परिवर्तित नाम है.

Oyo Hotel का रंगीन अखाड़ा

सुषमा की पूरी रात आंखोंआंखों में कट गई, पलभर को भी नहीं सोई वह. कभी घर के भीतर चहलकदमी करने लगतीं तो कभी सोचने लगतीं कि मुश्किल की इस घड़ी में क्या करें, किस की मदद लें. उन की आंखों के सामने बारबार पति का चेहरा घूमने लगता. क्योंकि जो मुसीबत उन के सामने आ खड़ी हुई थी, उस में जरा सी लापरवाही उस की मांग का सिंदूर लील सकती थी, मन में यह खयाल आते ही डर के कारण सुषमा का पूरा शरीर सिहर उठता था.

आखिरकार बहुत सोचने के बाद सुषमा ने कठोर फैसला लिया और अपने पति के बौस को फोन कर के पूरी बात बताई. 37 वर्षीय अजय प्रताप सिंह अपनी पत्नी सुषमा के साथ नोएडा के सेक्टर-77 की सुपरटेक केपटाउन सोसाइटी में रहते थे. वह डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट आर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) दिल्ली में बतौर रिसर्च साइंटिस्ट तैनात थे. मूलत: उन्नाव के रहने वाले अजय प्रताप 26 सितंबर, 2020 की शाम करीब साढ़े 5 बजे अपनी पत्नी से यह कह कर घर से निकले थे कि घर की जरूरतों का कुछ सामान लेने के लिए मार्किट जा रहे हैं और कुछ देर में वापस लौट आऐंगे.

अजय घर से अपनी होंडा सिटी कार यूपी 14 बीएस 5232 ले कर निकले थे. डेढ़दो घंटे बीत जाने पर सुषमा को चिंता होने लगी कि आखिर अजय ऐसी कौन सी शौपिंग करने के लिए गए हैं कि 2 घंटे से ज्यादा का वक्त बीतने पर भी नहीं लौटे. सुषमा ने अजय का फोन लगाया तो फोन स्विच्ड औफ मिला. इस के बाद उन की चिंता बढ़ गई. सुषमा बारबार पति का नंबर मिलाती रहीं, मगर फोन स्विच्ड औफ बताता रहा. इसी तरह करीब ढाई घंटे बीत गए. सुषमा सोच ही रही थी कि ऐसे में क्या करें. अचानक सुषमा के फोन पर एक अंजान नंबर से काल आई तो उस ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि हो सकता है अजय का फोन खराब हो गया हो या उस की बैटरी चली गई हो. संभव है वह किसी का फोन ले कर काल कर रहे हों.

फोन उठाते ही उम्मीद के मुताबिक दूसरी तरफ से अजय की आवाज सुनाई दी, जैसे ही अजय ने ‘हैलो मैं अजय बोल रहा हूं’ कहा तो उस के बाद पूरी बात बिना सुने ही सुषमा ने गुस्से में एक ही सांस में कई सवाल कर डाले, ‘‘अजय, तुम कहां हो… तुम्हारा फोन क्यों बंद है… ऐसी कौन सी शौपिंग करने चले गए कि ढाई घंटे होने को हैं और अब फोन कर रहे हो?’’

‘‘अरे मेरी बात तो सुनो, मैं बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं.’’ दूसरी तरफ से अजय ने सुषमा के सवालों का जवाब देने के बजाए बीच में उस की बात काट कर कहा तो सुषमा के होश उड़ गए. उस ने अटकती सांसों से पूछा, ‘‘मुसीबत…कैसी मुसीबत?’’

‘‘सुषमा मुझे कुछ लोगों ने पकड़ लिया है और एक कमरे में बंद कर रखा है. वे मुझ से बहुत बड़ी रकम की मांग कर रहे हैं.’’

‘‘कौन लोग हैं वे और उन्होंने तुम्हें क्यों पकड़ा…किस बात के पैसे मांग रहे हैं?’’

घबराहट के कारण सुषमा ने पूरी बात सुने बिना ही सवालजवाब शुरू कर दिए तो अजय ने फिर उस की बात काटी, ‘‘मुझे नहीं पता ये लोग कौन हैं, किसलिए पैसे मांग रहे हैं लेकिन इतना जानता हूं कि ये लोग बहुत खतरनाक हैं और अगर हम ने इन की बात नहीं मानी तो ये लोग मुझे मार देंगे… हो सकता है ये तुम से बात करें. इन की बात सुन लेना बेबी और अगर हो सके तो पूरा कर देना वरना शायद हम दोबारा ना मिल सकें.’’

दूसरी तरफ से फोन कट गया. इस फोन के बाद तो सुषमा को पूरा ब्रह्मांड घूमता नजर आने लगा. उसे सुझाई नहीं दे रहा था कि वह करे तो क्या करे. सुषमा ने उसी नंबर पर कई बार फोन किया, जिस से अजय ने फोन किया था, लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. सुषमा समझ गई कि किसी मुसीबत में फंसने की वजह से ही अजय घर नहीं पहुंचे. अजय की रूआंसी और परेशानी भरी आवाज सुन कर उसे समझ आ गया था कि वह जिन लोगों के चंगुल में हैं, वे सचमुच खतरनाक लोग रहे होंगे. लेकिन मुश्किल यह थी कि अभी तक उसे पूरा मामला समझ नहीं आया था कि उन्होंने अजय को किसलिए बंधक बनाया हुआ है. पैसे क्यों मांग रहे हैं और उन्होंने कितनी रकम मांगी है.

पति के लिए परेशान पत्नी

सुषमा यह सब सोच ही रही थी कि कुछ देर बाद उस के फोन पर फिर से एक अंजान नंबर से काल आई. इस बार नंबर वह नहीं था, जिस से अजय ने बात की थी. सुषमा ने यह सोच कर फोन उठा लिया कि हो सकता है अजय को बंधक बनाने वाले लोग ही दूसरे नंबर से बात कर रहे हों. सुषमा की शंका सच निकली. फोन पर एक पुरुष ने कड़कती हुई आवाज में कहा कि अजय उन के कब्जे में है और अपने पति से बात करने के बाद वह ये तो समझ ही गई होंगी कि वह जिंदा और सहीसलामत हैं.

दूसरी तरफ से फोन करने वाले ने धमकी दी कि अगर अगले 24 घंटे में उस ने 10 लाख रुपए का इंतजाम कर के रकम नहीं दी तो शायद उसे उस का पति जिंदा नहीं मिलेगा. फोन करने वाले ने जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम करने के लिए कहा, साथ ही धमकी भी दी कि अगर इस बारे में पुलिस को सूचना दी या कोई और चालाकी की तो उस तक अजय की लाश ही पहुंचेगी. फोन करने वाले ने जब यह कहा कि उन के आदमी हर जगह नजर रख रहे हैं कोई भी चालाकी की तो तुरंत यह खबर उस तक पहुंच जाएगी. यह सुन कर सुषमा का कलेजा मुंह को आ गया. फोन सुनते ही उस ने सुनसान घर में इधरउधर देखा कि कोई आदमी उन के घर में तो नहीं छिपा है.

‘‘देखो भैया, मैं आप की सारी मांग पूरी कर दूंगी लेकिन यह तो बता दो, आप पैसे किस बात के मांग रहे हो… आखिर मेरे हसबैंड ने कौन सी गलती की है? क्या आप का उन से कोई उधार का लेनदेन है?’’

सुषमा ने फोन करने वाले की बात को बीच में काटते हुए हिम्मत जुटा कर सहमते हुए सवाल किया तो दूसरी तरफ से कहा गया, ‘‘मैडम ये नोएडा में रहने का टैक्स है और तुम्हारे पति की ठरक का जुरमाना भी…

‘‘अब ज्यादा सवाल न कर के पैसे का इंतजाम करो… टाइम कम है हमारे पास… रकम कैसे और कहां लेनी है इस के लिए तुम्हें कल फोन करेंगे लेकिन याद रखना हमारे लोग तुम पर नजर रख रहे हैं.’’ कहते हुए दूसरी तरफ से फोन काट दिया गया.

रात को करीब 10 बजे अजय का अपहरण करने वालों से सुषमा की ये आखिरी बात थी. इसी के बाद से सुषमा की जान गले में अटकी थी और वह पूरी रात बेचैनी से घर के भीतर टहलती रही. उसे बारबार लग रहा था कि कहीं कोई वाकई उस की एकएक गतिविधि पर नजर तो नहीं रख रहा. सोचते-सोचते रात आंखोंआंखों में बीत गई. आखिरकार सुषमा ने सुबह अपने पति के बौस को फोन कर के सारी बात बताई. उन्होंने कहा कि वह घर में रहें, कुछ ही देर में पुलिस पहुंच जाएगी.

ठीक वैसा ही हुआ, जैसा अजय के बौस ने कहा था. सुषमा का घर जिस इलाके में है, वह सैंट्रल नोएडा पुलिस के अंडर में आता है. कुछ ही देर में उस के घर की डोरबैल बजी, उस ने दरवाजा खोला तो सादे लिबास में नोएडा पुलिस के एडीशनल कमिश्नर लव कुमार, सैंट्रल नोएडा पुलिस डीसीपी राजेश कुमार सिंह, एडीशनल कमिश्नर रणविजय सिंह, एसीपी विमल कुमार सिंह और सेक्टर 49 थाने के एसओ सुधीर कुमार सिंह सामने खड़े थे.

दरअसल, सुषमा ने जब अपने पति के बौस को अजय के किडनैप होने की जानकारी और इस की एवज में फिरौती मांगने की बात बताई तो डीआरडीओ की तरफ से नोएडा के कमिश्नर आलोक सिंह को फोन कर के इस मामले में गोपनीय ढंग से काम कर के जल्द से जल्द अजय प्रताप सिंह को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने को कहा गया.

डीआरडीओ का एक्शन

डीआरडीओ देश के सुरक्षा उपकरणों व प्रतिष्ठानों से जुड़ा ऐसा संगठन है जो रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करता है. अजय प्रताप सिंह इसी संस्था से जुड़े वैज्ञानिक थे. उन के पास संस्था से जुड़ी संवेदनशील जानकारियां भी रहती थीं. इसलिए जैसे ही पुलिस कमिश्नर को यह जानकारी मिली, उन्होंने एडिशनल कमिश्नर लव कुमार को सारी जानकारी दे कर बेहद गोपनीय ढंग से अजय प्रताप को अपहर्त्ताओं के कब्जे से मुक्त कराने का औपरेशन शुरू करने का आदेश दिया. इस के बाद लव कुमार ने तड़के ही तमाम अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई और सभी अफसरों को सादे कपड़ों में अजय प्रताप के घर पहुंचने को कहा.

अधिकारियों ने अपना परिचय देने के बाद जब सुषमा से अजय प्रताप सिंह के अपहरण से जुड़ी सारी जानकारियां मांगी तो उन्होंने वह पूरा घटनाक्रम बयान कर दिया, जो अब तक हुआ था. पुलिस ने सुषमा से वे दोनों नंबर हासिल कर लिए, जिन पर पहले पति अजय प्रताप से बात हुई थी और दूसरी बार अपहर्त्ता ने फोन कर के रकम की मांग की थी. सुषमा वर्मा से पुलिस ने एक लिखित शिकायत भी ले ली. सादे लिबास में पुलिस के कुछ लोगों और महिला पुलिस की कुछ तेजतर्रार पुलिसकर्मियों को सुषमा के पास छोड़ कर पुलिस टीम वापस लौट गई.

सुषमा की शिकायत पर उसी दिन थाना 49 पर भादंसं की धारा 364ए के तहत फिरौती के लिए अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया. डीसीपी राजेश कुमार सिंह ने एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह की निगरानी में एक विशेष टीम का गठन कर दिया. एसीपी विमल कुमार सिंह के नेतृत्व में गठित इस टीम में थाना सेक्टर 49 के थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह के अलावा एसआई विकास कुमार, महिला एसआई प्रीति मलिक, हैड कांस्टेबल प्रभात कुमार, जय विजय, कांस्टेबल सुबोध कुमार, सुदीप कुमार,अंकित पंवार और महिला कांस्टेबल रेनू यादव को शामिल किया गया.

इस के अलावा दूसरी स्टार टू टीम के एसआई शावेज खान तथा जोन फर्स्ट की सर्विलांस टीम के एसआई नवशीष कुमार को शामिल किया गया. सभी टीमों को बता दिया गया था कि मामला बेहद संवेदनशील है, इसलिए बिना विलंब किए और बिना किसी को भनक लगे सावधानी से औपरेशन को अंजाम देना है. गठित की गई टीमों में काम का बंटवारा कर दिया गया कि किसे इस औपरेशन में क्या भूमिका निभानी है. एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने गठित की गई टीमों के साथ कोऔर्डिनेशन का जिम्मा खुद संभाला लिया. सर्विलांस टीम ने सुषमा वर्मा से मिले दोनों मोबाइल नंबरों के साथ अजय प्रताप सिंह के नंबर की काल डिटेल्स निकाली और तीनों नंबरों को सर्विलांस पर लगा कर निगरानी शुरू कर दी.

स्टार टू की टीम ने फिरौती के लिए अपहरण करने वाले बदमाशों की धरपकड़ और उन के ठिकानों पर छापेमारी का काम शुरू कर दिया. जबकि इस मामले के जांच अधिकारी थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह ने अपने थाने की टीम के साथ सर्विलांस टीम से मिल रही जानकारी के आधार पर धरपकड़ शुरू कर दी. सर्विलांस टीम को पता चला कि शाम को 5 बजे के बाद जब अजय प्रताप सिंह का फोन बंद हुआ था, तो उस से पहले उन्होंने आखिरी बार 3 नंबरों पर बात की थी. उन सभी नंबरों की लोकेशन सेक्टर 41 में आगाहपुर के पास बने ओयो होटल की पाई गई. इतना ही नहीं, फोन बंद होते समय अजय प्रताप के फोन की लोकेशन भी पुलिस को इसी होटल की मिली.

पुलिस को मिली राह

जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी, लेकिन इस पर ठोस काररवाई करने से पहले अधिकारी यह पुष्टि कर लेना चाहते थे कि उक्त होटल से अपहरण करने वालों का कोई वास्ता है या नहीं. क्योंकि अगर सर्विलांस के आधार पर वहां छापा मारा जाता और अजय प्रताप नहीं मिलते तो उन की जान को खतरा हो सकता था. लिहाजा अधिकारियों ने एसओ सुधीर कुमार की टीम के एक तेजतर्रार हैड कांस्टेबल जय विजय सिंह को फरजी ग्राहक बना कर ओयो होटल भेजा. जय विजय सिंह ने सेक्टर 41 के ओयो होटल में पहुंच कर वहां एक कमरा बुक कराया और खुद को काम के सिलसिले में पूर्वी उत्तर प्रदेश से आया हुआ बताया.

कमरा बुक करने के बाद जब जय विजय ने होटल में चल रही गतिविधियों की निगरानी शुरू की तो दूसरी मंजिल पर बने 2 कमरों के आसपास कुछ संदिग्ध गतिविधियां दिखीं. जय विजय ने होटल की पार्किंग की छानबीन की तो वहां अजय प्रताप सिंह की वह होंडा सिटी कार भी खड़ी दिखाई दी, जिस का नंबर सुषमा वर्मा से मिला था. जय विजय को जब यकीन हो गया कि हो न हो अजय प्रताप को ओयो होटल के अंदर ही छिपाकर रखा गया है तो उस ने अधिकारियों को सूचना दे दी. इस पर पुलिस की तीनों टीमों ने 27 सितंबर की रात को सेक्टर 41 के आई ब्लौक में प्लौट नंबर 64 पर बने ओयो होटल को चारों तरफ से घेर कर छापा मारा. एकएक कमरे की तलाशी ली गई तो पुलिस कमरा नंबर 203 में बंधक बना कर रखे गए अजय प्रताप तक पहुंच गई.

उन के कमरे में 3 लोग मिले, जिन में से एक राकेश कुमार उर्फ रिंकू फौजी निवासी गांव चेहडका, जिला भिवाड़ी, राजस्थान था. दूसरा युवक दीपक पुत्र राजेश कुमार भी इसी गांव का रहने वाला था, जबकि इसी कमरे में एक महिला सुनीता गुर्जर उर्फ बबली मिली जो आगाहपुर गांव में सेक्टर 41 की ही रहने वाली थी. पुलिस ने अचानक उस कमरे में धड़ाधड़ प्रवेश किया और अजय प्रताप को अपने कब्जे में ले लिया. साथ ही कमरे में मौजूद तीनों लोगों को हिरासत में लिया तो सुनीता गुर्जर उर्फ बबली भड़क उठी. उस ने पुलिस को हड़काना शुरू कर दिया, ‘‘औफिसर, इस बदतमीजी की वजह जान सकती हूं?’’

‘‘मैडम, बदतमीजी की वजह आप को पता होगी, फिर भी हम थाने चल कर इस की असली वजह बताएंगे.’’ रणविजय सिंह ने जवाब दिया. जब पुलिस ने उन्हें बताया कि उन्हें अजय प्रताप का अपहरण कर फिरौती मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है तो सुनीता गुर्जर फिर भड़क उठी. उस ने अधिकारियों को धमकाते हुए बताया कि वह बीजेपी की नेता और सोशल वर्कर है. उन की इस गलती की सजा अभी दिलवाएगी. इस के बाद उस ने कुछ लोगों को फोन किया और फोन करने के बाद धमकी दी कि अभी देखो, थोड़ी देर में तुम को तुम्हारे बाप लोग फोन करेंगे तो देखना तुम कैसे छोड़ोगे.

एडिशनल डीसीपी रणविजय सिंह ने अपनी पुलिस की नौकरी में ऐसे बहुत से छुटभैए नेता देखे थे जो किसी अपराध में पकडे़ जाने पर पुलिस को ऐसी गीदड़भभकियां देते हैं. उन्हें इस बात का भी इल्म था कि कई बार पुलिस ऐसी धमकियों के प्रभाव में आ कर ऐसे लोगों को छोड़ देती है. लेकिन यह मामला जिस तरह का था, उसे देखने के बाद रणविजय सिंह किसी धमकी में नहीं आए और सभी को हिरासत में ले कर पुलिस थाना सेक्टर 49 लौट आए.

पुलिस टीम अपहृत अजय प्रताप सिंह की होंडा सिटी कार के साथ होटल के रजिस्टर तथा होटल के सीसीटीवी कैमरों की डीवीआर भी साथ ले आए.

कैसे फंसे अजय

जब पुलिस ने थाने आ कर थोड़ी सी सख्ती बरती और आरोपियों को सुषमा वर्मा से की गई बातचीत की काल रिकार्डिंग तथा उन के फोन की काल डिटेल्स दिखा कर पुख्ता सबूत सामने रखे तो आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया और खुलासा किया कि उन्होंने अपने 2 फरार साथियों के साथ मिल कर अजय प्रताप को हनीट्रैप में फंसाया था और उन से मोटी फिरौती वसूलने की योजना थी. अजय प्रताप ने बताया कि उन्होंने गूगल पर मसाज कराने वाले किसी पार्लर का नंबर सर्च किया था, जिस के बाद उन्हें जस्ट डायल पर नोएडा में मसाज कराने वाला एक नंबर हासिल हुआ. उन्होंने उस नंबर पर फोन किया था.

26 सितंबर को शाम 4 बजे अजय ने जब मसाज सेवा देने वाले उस पार्लर के नंबर पर बात की तो दूसरी तरफ से बात करने वाले ने बताया कि उन के पास एक से एक खूबसूरत लड़कियां है जो सिर्फ मसाज ही नहीं करती बल्कि जिस्म की भूख भी मिटाती हैं. फोन करने वाले ने इतना प्रलोभन दिया कि अजय प्रताप का मन मचलने लगा. उन्होंने उसी वक्त मसाज कराने का इरादा कर लिया, जब फोन करने वाले ने उन्हें वाट्सऐप पर उन लड़कियों की फोटो भेजीं, जिन में से किसी से भी वे मसाज करा सकते थे.

बस उन्हीं लडकियों की खूबसूरत और मादक तसवीरें देख कर अजय प्रताप घर का सामान लाने के बहाने कार ले घर से निकल पडे़. लेकिन घर से निकल कर जब उन्होंने मसाज वाले नंबर पर फोन कर के पूछा कि कहां आना है तो उन्हें लौजिक्स सिटी सेंटर बुलाया गया. वहां उन्हें दीपक नाम का शख्स मिला जो उन्हें सेक्टर 41 के आई ब्लाक में ओयो होटल पर ले आया. शाम को 6 बजे जब वे होटल पहुंचे तो वहां उन की गाड़ी पार्किंग में खड़ी करवा कर इसी होटल के रूम नंबर 203 में ले जाया गया, जहां पहले से ही राकेश फौजी उर्फ रिंकू और बरौला नोएडा के 48बी में रहने वाला अनिल शर्मा और सेक्टर 27 के मकान नंबर 618 में रहने वाला आदित्य मौजूद थे.

वहां पहुंचने के कुछ देर तक तो अजय प्रताप उन चारों से बात करते रहे. जब काफी वक्त गुजर गया और मसाज करने वाली लड़कियां नहीं आईं तो उन्होंने उन लड़कियों को बुलाने को कहा, जिन के फोटो उन्हें भेजे गए थे. उस के बाद अचानक उन चारों का गिरगिट की तरह रंग बदल गया. उन लोगों ने अजय प्रताप को कुरसी से बांध दिया और धमकी देने लगे कि परिवार के होते हुए वह लड़कियों से मसाज के नाम पर अय्याशी करता है तो अजय प्रताप के होश उड़ गए. क्योंकि उन्हें सपने में गुमान नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. होटल के कमरे में मौजूद चारों लोगों ने उन्हें धमकाना शुरू कर दिया कि वे थाने में फोन कर के पुलिस को बुलाएंगे और उसे पुलिस के हवाले कर देंगे.

उन्होंने अजय प्रताप की काल रिकौर्डिंग सुनवाई तो वे और ज्यादा डर गए. अपने ओहदे की संवेदनशीलता और पारिवारिक बदनामी के कारण वह उन के आगे हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगे. उसी वक्त उन में से किसी एक के फोन करने पर एक महिला ने आई, जिसे देख कर वे सभी मैम… मैम कह कर बात करने लगे. उस महिला के बारे में चारों ने बताया कि वह नोएडा क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर हैं और उसे पकड़ने के लिए आई हैं. सुनीता ने खुद को इंसपेक्टर बता कर अजय प्रताप को धमकाना शुरू कर दिया और उन्हें आतंकित करने लगी कि जब वह गिरफ्तार हो कर अय्याशी के जुर्म में जेल जाएगा तो उस की ऐसी बदनामी होगी कि न उस का परिवार रहेगा, न ही नौकरी.

अजय प्रताप को तब तक पता नहीं था कि वह किस ट्रैप में फंस गए हैं, इसलिए उन्होंने किसी भी तरह इस मामले को निबटाने के लिए हाथपांव जोड़ने शुरू कर दिए. सुनीता ने कहा कि ठीक है वह इस मामले को अपने अधिकारियों के नोटिस में नहीं लाएगी, लेकिन उसे जल्द से जल्द 10 लाख रुपए का इंतजाम कर उन्हें देने होंगे. सुनीता ने उन्हें बताया कि वह अपनी पत्नी को यह कह कर फोन करें कि उन्हें बदमाशों ने पकड़ लिया है और 10 लाख रुपए मांग रहे हैं क्योंकि उसे लड़की से मसाज की बात पता चल गई तो वह पैसा नहीं देगी, उलटे पत्नी की नजर में उन की इज्जत चली जाएगी.

सुनीता के दबाव में आ कर अजय ने उसी के नंबर से अपनी पत्नी सुषमा को फोन किया था. इस के बाद रात में कई बार अजय प्रताप की पिटाई की गई. इस के साथ ही वे लोग छोड़ने के लिए उन से मोलभाव करते रहे. आरोपियों ने अजय प्रताप की पिटाई कर के उन का ऐसा वीडियो भी बना लिया था जिस में वह मसाज कराने के लिए लड़की की मांग कर रहे थे. बंधक बनाने वालों ने अजय को धमकी दी कि अगर उन्हें पैसे नहीं मिले तो वे यह वीडियो उस के परिवार वालों को भेज कर, फिर सोशल मीडिया पर वायरल कर देंगे.

लेकिन इस से पहले सुनीता और उस के साथी अजय प्रताप की पत्नी को अपने नंबर से फोन कर के एक बड़ी चूक कर गए थे. उन्हें शायद अजय की हैसियत तो पता चल गई थी लेकिन उन की पहुंच के बारे में पूरी तरह अंजान थे.

आइडिया सुनीता का था

दरअसल, सेक्टर-41 के जिस ओयो होटल में अजय प्रताप सिंह को अगवा कर रखा गया था, उस में 16 कमरे बने हुए हैं. होटल का संचालन सन 2017 से किया जा रहा था. राकेश उर्फ रिंकू फौजी ने यह होटल 1.60 लाख रुपए प्रतिमाह के किराए पर ले रखा था. रिंकू की सुनीता के साथ जानपहचान थी, इसलिए उस का होटल में आनाजाना था. रिंकू का होटल वैसे तो ज्यादा नहीं चलता था, लेकिन सुनीता ने ही रिंकू को आइडिया दिया कि नोएडा में अय्याशी करने वाले लोग सुरक्षित जगह की तलाश में होटलों और गेस्टहाउसों का आसरा लेते हैं. इसलिए उस ने कुछ लोगों को अय्याशी के लिए होटल में कमरे देने शुरू किए.

इसी दौरान उसे आइडिया आया कि क्यों न जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली लड़कियों को होटल में रख कर उन से मसाज कराने का काम शुरू कराया जाए. इस काम के लिए रिंकू ने दीपक, आदित्य और अनिल को भी अपने साथ जोड़ लिया. अगाहपुर की रहने वाली सुनीता उर्फ बबली को इलाके में लोग भाजपा नेत्री के रूप में जानते थे. वह अकसर रिंकू के होटल में आतीजाती थी. उस का बड़ेबड़े लोगों में बैठनाउठना था. उस ने आइडिया दिया कि अगर मोटा पैसा कमाना है तो लड़कियों से मसाज कराने आने वाले लोगों को समाज में बदनाम करने की धमकी दे कर ब्लैकमेल किया जा सकता है. फिर वे आसानी से मोटी रकम दे देंगे.

रिंकू ने मसाज करने के लिए जस्ट डायल पर अपने कुछ मोबाइल नंबर रजिस्टर करवा रखे थे. लोग गूगल पर सर्च कर के जब बात करते तो वे उसे अपने ओयो होटल में बुला लेते थे. उन्होंने मसाज और जिस्मफरोशी का धंधा करने वाली कुछ लड़कियों की फोटो अपने पास रखी हुई थीं, ग्राहक के मांगने पर वे मसाज बाला की फोटो वाट्सऐप पर सेंड कर देते थे. खूबसूरत लड़कियों की फोटो देख कर ग्राहक उसी तरह उन के जाल में फंस जाते थे, जिस तरह अजय प्रताप सिंह उन के जाल में फंसे थे.

बिगबौस 10 कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर को बताया रिश्तेदार

सुनीता गुर्जर ने पुलिस की पकड़ में आने के बाद यह भी बताया कि वह बिग बौस के एक बहुचर्चित कंटेस्टेंट मनवीर गुर्जर की भाभी है. उस ने पुलिस को मनवीर गुर्जर के परिवार के साथ अपनी फोटो और बिग बौस के दसवें सीजन में सलमान खान के साथ ली गई फोटो दिखाई तो पुलिस भी चकरा गई. लेकिन पुलिस की एक टीम ने जब अगाहपुर में मनवीर गुर्जर के घर जा कर इस बात की छानबीन की तो पता चला कि गांव और एक ही बिरादरी होने के कारण मनवीर गुर्जर सुनीता को भाभी कहता था. उस का मनवीर के परिवार में आनाजाना भी था लेकिन मनवीर गुर्जर के परिवार से उस की कोई रिश्तेदारी या दूर का नाता तक नहीं था.

पुलिस पूछताछ में पता चला कि आरोपित दीपक और राकेश चचेरे भाई हैं. जबकि अनिल शर्मा उर्फ सौरभ तथा आदित्य उन के दोस्त हैं. उन्होंने सुनीता के बहकावे में आ कर शार्टकट से पैसा कमाने के चक्कर में मसाज की आड़ में लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल कराने का काम शुरू किया था. लोग बदनामी के डर से 2-4 लाख दे कर अपनी जान छुड़ा लेते थे. जब वे शिकार को फंसा कर लाते तो सुनीता क्राइम ब्रांच की इंसपेक्टर बन कर पहुंच जाती थी और जेल जाने तथा बदनामी का ऐसा भय दिखाती थी कि शिकार कुछ न कुछ दे कर अपनी जान छुड़ाता था.

पुलिस ने उन के होटल से जो रजिस्टर व दस्तावेज बरामद किए, उस में 800 से ज्यादा लोगों के नामपते दर्ज हैं. आंशका है कि उन में से कुछ ऐसे जरूर रहे होंगे, जिन्हें मसाज के नाम पर जाल में फंसा कर ब्लैकमेल किया गया होगा. पुलिस उन सभी लोगों की छानबीन कर रही है. पुलिस का दावा है कि यह गिरोह नोएडा व एनसीआर में हनीट्रैप की कई वारदात कर चुका है. आरोपियों के पास से अजय प्रताप की कार, घटना में प्रयुक्त मोबाइल समेत अन्य दस्तावेज बरामद हुए हैं. एक आरोपी बरौला निवासी अनिल कुमार शर्मा को बाद में गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि कथा लिखे जाने तक सेक्टर-27 निवासी आदित्य कुमार फरार था.

उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव (गृह) अवनीश अवस्थी ने आरोपियों को पकड़ने वाली टीम को 5 लाख नकद पुरस्कार देने की घोषणा की है.