Superstition : माहिलाओं को नशे की गोलियां देकर तांत्रिक करता था दुष्‍कर्म

Superstition : हर जगह तमाम ऐसे लोग हैं, जो तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. इतना ही नहीं, ये लोग महिलाओं से दुष्कर्म भी करते हैं. हरिराम भी ऐसा ही तांत्रिक था, जो…

आ ज के युग को भले ही वैज्ञानिक युग कहा जाता है, लेकिन समाज में आज भी ऐसे
लोगों की कमी नहीं है, जो अंधविश्वास के चक्कर में अपनी सुखी जिंदगी को और खुशहाल बनाने के लिए तथाकथित चमत्कारी ढोंगी तांत्रिकों, पाखंडी बाबाओं की शरण में जाते हैं और अपनी जिंदगी को नरक बना लेते हैं. पैसा खर्च होता है अलग से. अंधविश्वासी लोगों के सहारे ही तांत्रिकों और पाखंडी बाबाओं की दुकानें चलती हैं.

जिस तांत्रिक की बात हम कर रहे हैं, वह भी ऐसा ही था. गांव शरीफ नगर, जिला मुरादाबाद निवासी राजेंद्र सिंह का बेटा बाबू काफी समय से बीमार चल रहा था. दिनबदिन राजेंद्र की माली हालत खराब होती जा रही थी. बाबू की बिगड़ती हालत को देखते हुए गांव के एक व्यक्ति ने राजेंद्र को सलाह दी कि वह उसे राजपुर गांव के तांत्रिक हरिराम के पास ले जाए. उसी व्यक्ति ने बताया कि तांत्रिक हरिराम के पास ऐसी सिद्धि है कि वह बाबू को कुछ ही दिन में ठीक कर देगा. अपने बेटे की हालत देख कर राजेंद्र ने यह बात अपनी बीवी आरती को बताई. अगले ही दिन यानी 17 जुलाई, 2018 को राजेंद्र अपनी पत्नी आरती और बेटे बाबू को साथ ले कर गांव राजपुर के तांत्रिक हरिराम के पास जा पहुंचा.

हरिराम घर पर ही मिल गया. घर आए ग्राहकों को देख वह खुश हुआ. आगंतुकों को जलपान कराने के बाद हरिराम ने राजेंद्र से आने का कारण पूछा. वैसे हरिराम बाबू का चेहरा देखते ही समझ गया था कि उन के बेटे को कोई परेशानी है. राजेंद्र कुछ बताता, इस से पहले ही आरती ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘बाबा, हमारा बेटा बाबू काफी दिनों से परेशान है. इस के चक्कर में हम भी परेशान रहते हैं. ये न तो ठीक से कुछ खातापीता है और न ही रात में ठीक से सो पाता है. ये अजीबअजीब सी हरकतें करता है. आप देख कर बताओ, इसे क्या परेशानी है.’’

आरती की बात खत्म होते ही हरिराम ने बाबू को अपने सामने बिठा कर उस का हाथ अपने हाथों में थाम लिया और उस के हाथ की नब्ज टटोलने लगा. इस दौरान उस की आंखें बाबू के चेहरे पर गड़ी रहीं. कुछ देर देखने के बाद वह अपने निर्णय पर पहुंच गया. हरिराम ने परेशानी भरी आवाज में कहा, ‘‘इस में तुम्हारे बच्चे का कोई दोष नहीं है. दोष उस का है जो इस के शरीर में समाया हुआ है. साफ कहूं तो तुम्हारे बेटे पर बहुत खतरनाक प्रेतात्मा का साया है. जिसे भगाने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेना होगा. अगर ऐसा न किया गया तो यह साया बच्चे को जीने नहीं देगा. ढील देने से लड़के की जान भी जा सकती है.’’

तांत्रिक हरिराम की बात सुन कर आरती का चेहरा उतर गया. ऐसे मामलों में महिलाएं कुछ ज्यादा ही भावुक हो जाती हैं. अपने बेटे के बारे में सुन कर आरती हरिराम की सारी बातें मानने को तैयार हो गई.
आरती देखनेभालने में ठीकठाक थी. हरिराम ने उस के मन की सारी कमजोरी पढ़ ली थी. वह समझ गया था कि उसे शीशे में उतारना मुश्किल नहीं है. भले ही उसे बाबू का इलाज करना था, लेकिन आरती को देख कर वह खुद दिल का मरीज बन गया था.

हरिराम काफी दिनों से तंत्रमंत्र की दुकान चला रहा था. उसे इस सब का इतना तजुर्बा था कि वह रोगी को देख कर षडयंत्र रच डालता था. आरती को देखतेदेखते ही वह उस के बेटे की परेशानी भूल गया और मां के साथ भोगविलास की योजना बना डाली. हरिराम ज्यादातर अपने घर पर ही छोटीमोटी झाड़फूंक किया करता था. लेकिन जब किसी औरत को देख कर उस का मन मैला हो जाता था तो वह दूसरा रास्ता खोजता था. ऐसे मामले वह सब कुछ मरीज के घर पर ही करना ठीक समझता था. वह समझता था कि मरीज का घर ज्यादा सुरक्षित जगह है.

आरती को देखने के बाद उस ने उस के बेटे का इलाज उसी के घर पर करने की बात कही. हरिराम ने आरती को समझाते हुए कहा कि बाबू के ऊपर खतरनाक भूत का साया है जो तुम्हारे घर में ही मौजूद है. उसे भगाने के लिए मुझे तुम्हारे घर आ कर तंत्र विद्या करनी होगी. आरती और राजेंद्र को यह सुविधाजनक लगा, इसलिए उन्होंने हां कर दी. विचारविमर्श के बाद अनुष्ठान करने के लिए 23 जुलाई सोमवार का दिन तय किया गया. हरिराम ने उन्हें यह भी बता दिया कि इस अनुष्ठान के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने होंगे. साथ ही यह भी कि तंत्रमंत्र का अनुष्ठान देर रात में होगा.

अनुष्ठान के लिए जिसजिस सामान की जरूरत थी, हरिराम ने उस की एक लिस्ट बना कर दे दी. घर लौट कर राजेंद्र और आरती ने हरिराम द्वारा दी गई लिस्ट के हिसाब से सामान खरीद कर रख दिया.
23 जुलाई, 2018 को पूर्व योजनानुसार हरिराम तांत्रिक देर रात आरती के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर हरिराम ने घर वालों को एक साथ बिठा कर समझा दिया, जिस से अनुष्ठान में किसी तरह का विघ्न न आए. हरिराम ने उन लोगों को बताया कि तंत्रमंत्र का कार्यक्रम देर रात तक चलेगा. इस दौरान किसी भी बाहरी व्यक्ति का घर के आसपास या पूजास्थल पर आना वर्जित रहेगा. अगर किसी ने भी उस की बात नहीं मानी तो परिणाम उलटे भी हो सकते हैं.

घर के सदस्यों को जरूरी बातें बता कर हरिराम ने अनुष्ठान में काम आने वाला सामान जिस में कुछ हड्डियां, लोबान, धूप, गरुड़ का पंजा, नींबू, चाकू और हवन सामग्री वगैरह निकाल कर फर्श पर रख दिया. पूरी तैयारी कर के हरिराम ने लोहे के एक तसले को हवन कुंड बना कर मंत्रोच्चार शुरू कर दिया. उस ने आरती और उस के पति राजेंद्र व उन के बेटे बाबू को अपने पास बैठा लिया.

अनुष्ठान में हरिराम तांत्रिक ने मिट्टी की हांडी रखते हुए उस की पूजा की, फिर हांडी बापबेटे को थमाते हुए कहा, ‘‘आप दोनों इस हांडी को ले कर श्मशान जाओ और वहां से इस में किसी ठंडी पड़ी चिता की राख भर कर ले आओ. लेकिन ध्यान रखना कि वापसी में इस बरतन को कोई व्यक्ति देखने न पाए. एक बात ध्यान रखना कि मुझे अनुष्ठान करने में डेढ़-2 घंटे लग सकते हैं. अनुष्ठान खत्म होने से पहले हांडी को ले कर घर में मत घुसना. ऐसा किया तो मेरा अनुष्ठान तो व्यर्थ जाएगा ही, प्रेतात्मा तुम्हारे घर का अनिष्ट भी कर सकती है.’’

तांत्रिक की बात सुन कर डर के मारे राजेंद्र के पैर कांपने लगे. पहले तो उसे लगा कि वह इस काम को नहीं कर पाएगा लेकिन सवाल बेटे की जिंदगी का था. राजेंद्र ने हांडी को एक थैले में छिपाया और अपने बेटे को साथ ले कर सब की नजरों से बचतेबचाते श्मशान की ओर बढ़ गया. श्मशान में पहुंच कर डरतेडरते राजेंद्र ने जैसेतैसे श्मशान में ठंडी पड़ी एक चिता की राख हांडी में भर ली और बिना देर लगाए श्मशान की हद से बाहर निकल आया. बाहर आ कर उस ने हांडी को पूरी तरह से पैक कर के थैले में रख लिया फिर मोबाइल निकाल कर टाइम देखा.

पता चला कि अभी उसे घर से निकले मात्र पौना घंटा हुआ था. जबकि तांत्रिक ने उसे 2 घंटे बाद आने को कहा था. वक्त के हिसाब से अभी उन्हें करीब सवा घंटा घर से बाहर रहना था. राजेंद्र ने जैसेतैसे मुश्किल से आधा घंटा बाहर गुजारा और फिर आरती के मोबाइल पर फोन मिला दिया. लेकिन कई बार घंटी जाने के बाद भी मोबाइल नहीं उठाया गया तो राजेंद्र परेशान हो उठा. उस ने फिर से आरती का नंबर मिलाया तो बारबार काल आने से हरिराम समझ गया कि काल राजेंद्र की ही होगी. उस ने काल रिसीव कर के फोन कान से लगाया. राजेंद्र समझ गया कि लाइन पर हरिराम है. उस ने हरिराम से पूछा, ‘‘बाबा, आप की पूजा में कितना वक्त लगेगा?’’

हरिराम ने बताया कि सब कुछ ठीकठाक निपट गया. एक पूजा पूरी हो चुकी है, अभी एक और बाकी है. मैं उसी की तैयारी में लगा हूं. तुम अभी आधे घंटे बाद आना. राजेंद्र को फोन लगाए मुश्किल से 20 मिनट ही गुजरे थे कि हरिराम का फोन आ गया. राजेंद्र ने फुरती से काल रिसीव कर के पूछा, ‘‘हां बाबाजी, हम आ जाएं क्या?’’

जवाब में हरिराम ने कहा, ‘‘जल्दी आओ, मैं ने तुम्हारे घर की प्रेतात्मा अपने कब्जे में कर ली है. तुम्हारे आते ही प्रेतात्मा तुम्हारे घर से हमेशाहमेशा के लिए चली जाएगी.’’

हरिराम की बात सुन कर राजेंद्र हांडी को छिपाते हुए बेटे के साथ घर पहुंच गया. घर पहुंच कर राजेंद्र ने पूजास्थल पर नजर दौड़ाई तो उस के होश उड़ गए. अनुष्ठान की जगह के पास उस की बीवी आरती और उस के भाई की बीवी बेहोशी की हालत में पड़ी थीं. उन दोनों को जमीन पर पड़े देख राजेंद्र घबरा गया.
उस ने इस बारे में हरिराम से पूछा तो वह बोला, ‘‘तुम्हें जरा भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे बेटे की बीमारी पूरी तरह खत्म हो गई. इस पर जो प्रेतात्मा सवार थी, बहुत ही खतरनाक थी. जातेजाते भी तुम्हारी बीवी और संगीता को जबरदस्त झटका दे गई, जिस की वजह से दोनों मूर्छित हो गईं. लेकिन तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. दोनों जल्दी ही होशोहवास में आ जाएंगी.’’

इस के बाद हरिराम ने उसे और उस के बेटे को अनुष्ठान की जगह बैठने के लिए इशारा किया. दोनों बैठ गए तो हरिराम ने उन के माथे पर रोली और चावल का तिलक लगाया. साथ ही उस ने दोनों से हवनकुंड की ओर झुकने का इशारा किया. हरिराम ने सामने रखी हांडी की ओर इशारा कर के बताया कि तुम्हारे घर की बुरी आत्मा अब मेरे कब्जे में है, उसे मैं ने इस हांडी में कैद कर लिया है. छोटी सी वह हांडी मिट्टी के ढक्कन से ढकी हुई थी. हरिराम ने हांडी को लाल कपड़े से टाइट कर के बांधा हुआ था. उस ने बताया कि प्रेतात्मा को मुझे इसी वक्त श्मशान में ले जा कर गाड़ना होगा. यह काम मेरा है. तुम किसी भी तरह परेशान मत होना. तुम्हारी बीवी और तुम्हारे भाई की पत्नी कुछ समय बाद होश में आ जाएंगी.

राजेंद्र को समझाने के बाद हरिराम ने अपना सारा सामान झोले में डाला और रात में ही अपने घर चला गया. आरती और उस की देवरानी संगीता बाकी रात बेहोशी की हालत में पड़ी रहीं. अगली सुबह करीब 5 बजे दोनों को होश आया. उन के होश में आते ही राजेंद्र ने उन से बेहोशी का कारण पूछा तो आरती ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान बाबा ने उसे खाने के लिए प्रसाद और जल दिया था, जिसे खाते ही उसे चक्कर आने लगा था. फिर वह बेहोश हो गई. उस के बाद उस के साथ क्या हुआ, उसे नहीं मालूम.
उसी समय संगीता की भी बेहोशी टूटी. जब दोनों सामान्य स्थिति में आईं तो घर वालों ने उन से विस्तार से पूरी बात बताने को कहा.

इस पर संगीता ने बताया कि जिस वक्त वह तंत्रमंत्र क्रिया देखने उस कमरे में गई तो आरती बेहोश पड़ी हुई थी. उस के सारे कपड़े भी अस्तव्यस्त थे. उस की हालत देखते ही उस ने आरती के कपड़े ठीक किए और बाबा से उस के बेहोश होने के बारे में पूछा. बाबा ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान मैं ने आरती से प्रसाद लेने को कहा तो उस ने आनाकानी की, जिस की वजह से उस की यह हालत हुई. अगर वह मेरी बात मान कर प्रसाद ले लेती तो उस की यह हालत नहीं होती. यह प्रेतात्माओं का प्रसाद है, अगर कोई इस प्रसाद को खाने में आनाकानी करेगा तो उस का यही हश्र होगा.

संगीता हिम्मत कर के अनुष्ठान स्थल पर चली तो आई थी लेकिन बाबा की बात सुन कर और आरती की हालत देख कर बुरी तरह घबरा गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह वहां से चली जाए या वहीं रुके. सोचविचार कर उस ने वहां से चुपचाप खिसकने की सोची और पीछे मुड़ने लगी. उसे पीछे मुड़ते देख तांत्रिक हरिराम जोर से चीखा, ‘‘तुम भी वही गलती दोहराने जा रही हो, आगे कदम मत बढ़ाना वरना तुम्हारा भी वही हश्र होगा जो तुम्हारी जेठानी का हुआ है.’’

तांत्रिक की बात सुन कर उस के आगे बढ़े कदम ठिठक गए. संगीता फुरती से पीछे मुड़ी और हवनकुंड के सामने जा कर बैठ गई. हरिराम समझ गया कि उस की युक्ति कामयाब रही. संगीता के बैठते ही हरिराम ने उसे भी वही प्रसाद खाने के लिए दिया जो उस ने आरती को खिलाया था. प्रसाद ग्रहण करते ही संगीता की आंखें भी नींद से भारी होने लगीं. प्रसाद खाने के कुछ पल बाद वह भी वहीं लुढ़क गई. उस के बाद उस के साथ क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं था.

पूरी तरह होश में आने के बाद दोनों ने अपने अंगवस्त्र देखे तो उन्हें पता चल गया कि तंत्रमंत्र के नाम पर तांत्रिक हरिराम ने उन के साथ कुकर्म किया था. हकीकत का अहसास होते ही आरती और संगीता खुद को ठगा सा महसूस करने लगीं. जब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि तांत्रिक ने उन की इज्जत लूट ली है, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया.

आरती ने अपने पति राजेंद्र को हकीकत बता कर हरिराम को सबक सिखाने को कहा. सोचविचार कर इस बात को पूरी तरह गुप्त रखने का निर्णय लिया गया. आरती और उस के घर वाले जान चुके थे कि तांत्रिक हरिराम को पैसे और भोग के लिए कभी भी बुलाया जा सकता है. आरती, उस की देवरानी संगीता और राजेंद्र ने तांत्रिक को अपने जाल में फंसाने का फैसला ले लिया. तय हुआ कि तांत्रिक हरिराम के सामने इस बात का जिक्र नहीं आना चाहिए.

योजना के तहत 2 दिन बाद यह दिखाने के लिए कि दोनों महिलाओं को अपने साथ हुए दुराचार का पता नहीं लगा, आरती ने तांत्रिक के मोबाइल पर फोन कर के उस की खैरखबर पूछी. आरती ने हरिराम को खुश करने के लिए उसे बताया कि उस का तंत्रमंत्र अनुष्ठान काम कर गया है. बाबू की हालत पहले से बहुत अच्छी है. आरती की बात सुन कर तांत्रिक हरिराम फूला नहीं समाया. उस के दिल में बैठा डर पूरी तरह खत्म हो गया. दरअसल, उस रात के अपनेकुकर्म को ले कर वह काफी परेशान था. उसे डर था कि दोनों महिलाओं ने उस के कुकर्म की कहानी अगर अपने घर वालों को बता दी तो उस की शामत आ जाएगी. लेकिन आरती की बातों से उस के मन का डर पूरी तरह खत्म हो गया.

आरती की बात सुन कर हरिराम ने कहा कि तुम लोग परेशान न हो. तुम्हारे घर पर जो प्रेतात्मा थी, उसे मैं ने श्मशान में दफना दिया है. तुम्हारे घर पर इस तरह की कोई भी परेशानी नहीं आएगी. हरिराम की बात सुन आरती ने कहा कि बाबा हम चाहते हैं कि लगे हाथों तंत्रमंत्र अनुष्ठान एक बार फिर से करा लें, जिस से भविष्य में हमारे बेटे या परिवार के किसी भी सदस्य पर प्रेतात्मा का साया न पड़े. आरती की बात सुन कर हरिराम खुश हो गया. उस ने कहा कि अनुष्ठान का दिन बता दें, मैं आ जाऊंगा.

उसी दिन शाम को आरती ने हरिराम के मोबाइल पर काल कर के उसे जानकारी दी कि हम इसी 26 तारीख को पहले की तरह अनुष्ठान कराना चाहते हैं. आरती ने यह भी कहा कि वह आ कर अनुष्ठान के सामान के लिए पैसे ले जाए. बाकी सामान हम बाजार से खरीद लेंगे. आरती से हुई बात के अनुसार हरिराम 26 जुलाई को दिन में ही रुपए लेने पहुंच गया. तांत्रिक के घर आने तक घर में किसी को भी इस बात की भनक नहीं लगने दी गई. जब तांत्रिक को विश्वास हो गया कि सब कुछ ठीकठाक है, तो उस ने बाबू को अपने पास बुला कर उस के हाथ की नब्ज टटोली.

तभी योजनानुसार उस के घर वालों ने तांत्रिक को पकड़ लिया. पासपड़ोस वाले भी एकत्र हो गए थे. आरती ने उन्हें बताया कि यह ढोंगी तांत्रिक है और इस ने हमारी इज्जत से खेलने की कोशिश की थी.
यह सुनते ही आरती के घर पर लोगों का मजमा लग गया. आरती ने सब के सामने हरिराम तांत्रिक की करतूत रखते हुए अपनी इज्जत लूटने वाली बात बताई तो लोगों के माथे पर बल पड़ गए.

इस के बावजूद हरिराम अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था. हरिराम ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि राजेंद्र के परिवार पर बहुत खतरनाक प्रेतात्मा थी, जिसे उस ने तंत्रमंत्र से भगाया. आप लोग मुझे ठीक से नहीं जानते. मैं ने कई महीने तक तंत्रमंत्र से भूत भगाने की साधना की है. अगर आप लोग मुझ से भिड़े तो अपनी तंत्र विद्या से सब का अहित कर दूंगा. हरिराम की बातें सुन कर वहां मौजूद लोगों ने हरिराम की पिटाई करनी शुरू कर दी. जब हरिराम को लगने लगा कि अब उस की खैर नहीं तो वह लाइन पर आ गया. उस ने अपनी गलती के लिए सब के सामने हाथ जोड़ कर माफी मांगी.

जब पिटतेपिटते उस की हालत खस्ता हो गई तो गांव के बुजुर्गों ने जैसेतैसे गांव वालों को समझाया. लोगों ने उस की पिटाई बंद कर दी. इसी दौरान किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. लेकिन पुलिस वहां पर पहुंच पाती, इस से पहले ही गांव वालों ने उसे कोतवाली ठाकुरद्वारा की पुलिस के हवाले कर दिया. कोतवाली प्रभारी रवींद्र प्रताप ने हरिराम को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की. लेकिन हरिराम ने अपना मुंह बंद ही रखा. जब उसे लगा कि मुंह खोलना ही पड़ेगा तो वह टूट गया. पुलिस पूछताछ में उस ने जो बताया, वह हैरतअंगेज था.

पता चला कि हरिराम तंत्रमंत्र विद्या की एबीसीडी तक नहीं जानता था. फिर भी उस की तंत्रमंत्र की दुकान काफी समय से चल रही थी. वह न तो कोई खास पढ़ालिखा था और न ही उस ने तंत्रमंत्र की कोई शिक्षा ली थी. जिला ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड के थाना जसपुर से पश्चिम की ओर एक गांव है महुआडाबरा. इस के पास ही गांव है राजपुर नादेही. यही हरिराम का पुश्तैनी गांव है. हरिराम अपने 3 भाइयों में तीसरे नंबर का था. हरिराम के बड़े भाई रूपचंद ने 2 शादियां की थीं. उस की दोनों पत्नियों में से एक ही मां बन पाई, वह भी लड़की की.

रूपचंद की माली हालत को देख उस की एक बीवी उसे छोड़ कर चली गई थी. पहली बीवी के चले जाने के बाद किसी ने रूपचंद की हत्या कर दी. तब तक हरिराम शादी लायक हो चुका था. रूपचंद की बीवी जवानी में ही विधवा हो गई थी, उस के घर वालों ने हरिराम को समझाबुझा कर रूपचंद की बीवी को उस के गले बांध दिया. भाभी से शादी के बाद हरिराम की जिम्मेदारी बढ़ गई. बड़े भाई की बेटी भी अब उसे ही पालनी थी.

हरिराम शुरू से ही निकम्मा था. लेकिन जब वह गृहस्थी से बंध गया तो कामकाज देखना उस की मजबूरी बन गई. उस ने रोजीरोटी चलाने के लिए साइकिल से गांवगांव जा कर छोले बेचने का काम शुरू कर दिया. भागदौड़ कर के हरिराम इतना कमाने लगा था कि उस के छोटे से परिवार की गुजरबसर हो सके. छोले बेचने की वजह से क्षेत्र में उस की अच्छी जानपहचान बन गई थी. उसी दौरान हरिराम एक दिन एक मजार के सामने से गुजर रहा था. मजार पर काफी भीड़ थी. वहां बैठा एक मौलवी बारीबारी से लोगों को अपने पास बुलाता और उन की परेशानी सुन कर हल बताता. हर व्यक्ति को वह राख की पुडि़या थमा देता था. किसी को भूतप्रेत का साया बता कर वह ताबीज भी बना कर देता था.

हरिराम ने देखा कि थोड़ी ही देर में मौलवी के सामने रुपयों का ढेर लग गया. हरिराम ने सोचा कि वह सारे दिन भागदौड़ कर के भी रोजीरोटी लायक ही कमा पाता है और यह मौलवी मजार के नाम पर बैठेबिठाए हजारों रुपए कमा रहा है. मौलवी की कमाई देख उस का मन बदलने लगा. उस ने सोचा कि जब मौलवी बैठेबिठाए इतने रुपए कमा सकता है तो वह क्यों नहीं कमा सकता. इस के पहले हरिराम भी अपनी परेशानी ले कर कई बाबाओं से मिल चुका था. लेकिन अपनी समस्या के हल की जगह उसे पैसा ही गंवाना पड़ा था. उसी दिन हरिराम ने ठान लिया कि वह भी यही काम करेगा. फिर एक दिन हरिराम बिना कुछ बताए घर और गांव

से गायब हो गया. घर वालों ने उसे ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल सका. उधर हरिराम घर से निकल कर हरिद्वार पहुंच गया था. वहां वह किसी ऐसे बाबा की खोज में लग गया, जिस की दुकानदारी ठीक से चलती हो. साथ ही वह तंत्रमंत्र भी जानता हो. इसी खोज में उस की मुलाकात एक बाबा से हुई. उस बाबा के पास काफी लोगों का आनाजाना था. हरिराम ने बाबा को अपनी परेशानी बता कर उस की सेवा करनी शुरू कर दी. महीनों बाद जब वह अपने घर लौटा तो उस के चेहरे पर लंबी दाढ़ी थी और वेशभूषा भी तांत्रिकों जैसी थी. उस के घर वालों और गांव के लोगों ने उस के गायब होने की बात जाननी चाही तो उस ने बताया कि वह हरिद्वार में एक पहुंचे हुए तांत्रिक की शागिर्दी कर रहा था. वहीं रह कर उस ने तंत्रमंत्र साधना और तंत्र विद्या सीखी.

उस वक्त हरिराम ने गांव में प्रचारित किया कि वह अपनी सिद्धि से किसी की भी बड़ी से बड़ी समस्या को पलभर में हल कर सकता है. धीरेधीरे यह बात गांव से निकल कर क्षेत्र में फैल गई. परिणामस्वरूप आसपास के गांवों के भोलेभाले, अनपढ़, अंधविश्वासी लोग अपनी समस्याएं ले कर हरिराम के पास आने लगे. उन की समस्या के समाधान के लिए हरिराम गंडे ताबीज, टोनेटोटके के नाम पर अच्छे पैसे वसूलने लगा था.

घर पर ही तंत्रमंत्र की दुकान चलते देख हरिराम ने अपने घर के सामने लिखवा दिया, ‘यहां हर तरह की परेशानी, बंधन से मुक्ति, फोटो से वशीकरण, सम्मोहन, प्रेमीप्रेमिका की शादी रोकने तोड़ने का उपाय, अपने दुश्मन को सबक सिखाने, अपने खोए हुए प्यार को पाने जैसी हर परेशानी का इलाज किया जाता है.’

अंधविश्वासी लोगों के सहारे उस की दुकानदारी चल निकली. धीरेधीरे कई औरतें भी उस के पास अपने पतियों की समस्याओं को ले कर आने लगी थीं, जिन की बातें सुन कर वह समझ जाता था कि उन के मर्द उन की तन की पीड़ा समझने में असमर्थ हैं. वह ऐसी महिलाओं के पतियों का इलाज करने के बहाने उन के घर पहुंच जाता था. उन के घर पर तंत्रमंत्र का ढोंग कर के वह ऐसी महिलाओं के साथ कामपिपासा शांत करने के बाद वहां से निकल लेता था. उन महिलाओं में अधिकांश ऐसी होती थीं जो मानमर्यादा की वजह से उन के साथ क्या हुआ, को भूल कर अपना मुंह बंद रखने में ही भलाई समझती थीं.

हरिराम का काम अच्छे से चल निकला. पैसे कमाने के साथसाथ वह मौजमस्ती भी करने लगा था. हरिराम ने पुलिस पूछताछ में कबूला कि उस ने इस से पहले अलगअलग गांवों में 18 महिलाओं के साथ कुकर्म किया था. लेकिन लोकलाज की वजह से किसी भी महिला ने उस के खिलाफ अपना मुंह नहीं खोला था. हालांकि हरिराम इस वक्त लगभग 45-50 की उम्र से गुजर रहा था, फिर भी वह इतना भोगविलासी था कि जो महिला उस की नजरों में चढ़ जाती थी, वह उस के साथ अपनी कामवासना शांत कर के ही दम लेता था.

उम्र के इस पड़ाव तक आतेआते हर इंसान की कामवासना शांत हो जाती है. हरिराम ने जो धंधा कर रखा था, उसे वह किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहता था. उम्र के हिसाब से उसे सैक्स की कुछ कमजोरी महसूस हुई तो उस ने मैडिकल स्टोर पर जा कर उस का हल भी निकाल लिया. इस के बाद हरिराम मैडिकल स्टोर से गोलियां ले कर अपना काम चलाने लगा. हरिराम को जब किसी के यहां तंत्र साधना करनी होती थी तो वह अनुष्ठान का ढोंग करने से पहले ही एक गोली खा लेता और मौका पाते ही घर में मौजूद औरतों को प्रसाद के रूप में नशे की गोलियां दे देता था. उस के बाद बेहोश होते ही उन की इज्जत लूट लेता था.

तांत्रिक हरिराम के गिरफ्तार होने की सूचना पर उस के घर वाले ठाकुरद्वारा कोतवाली जा पहुंचे. वे लोग हरिराम को निर्दोष बता कर उसे रिहा करने की मांग करते हुए हंगामा करने लगे. उन का कहना था कि हरिराम के जेल चले जाने से उस का परिवार सड़क पर आ जाएगा.

हकीकत पता लगने के बाद ठाकुरद्वारा पुलिस ने हरिराम के खिलाफ नशीला पदार्थ खिला कर महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में भादंवि की धारा 328, 376 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही आरोपी को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.
—कथा में आरोपी तांत्रिक हरिराम को छोड़ कर सभी पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

Delhi crime : दोस्त के पुत्र का अपहरण करके घोंट डाला गला

Delhi crime : संदीप कुमार को अपने मेडिकल स्टोर से अच्छीखासी कमाई हो रही थी. लेकिन जल्दी मोटा पैसा कमाने के चक्कर में वह क्रिकेट के आईपीएल मैचों पर सट्टा लगाने लगा. जिस में नुकसान होने से उस पर लाखों रुपए का कर्ज हो गया. उस कर्ज से छुटकारा पाने के लिए उस ने अपराध का रास्ता अपनाया. जिस की वजह से वह दोस्तों के साथ पहुंच गया जेल. जतिन उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी के माउंट एवरेस्ट स्कूल में पांचवीं में पढ़ता था. 21 सितंबर, 2013 को दोपहर बाद वह बुराड़ी में ही रहने वाले अपने एक दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से 

निकलने लगा तो अपनी मां राज ढींगरा से बोला, ‘‘मम्मी कौपी ले कर मैं अभी थोड़ी देर में रहा हूं.’’ थोड़ी देर में आने के लिए कह कर गया जतिन जब काफी देर तक नहीं लौटा तो घरवाले परेशान होेने लगे. उन्हें यह भी पता नहीं था कि जतिन जिस दोस्त के यहां जाने को कह कर गया है, वह बुराड़ी के किस ब्लौक या गली में रहता है?

घर वालों की समझ में नहीं रहा था कि आखिर जतिन को ढूंढा कहां जाए. उन्होंने मौहल्ले में तलाशने के साथसाथ उस के दोस्तों से भी पता किया, लेकिन जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला. कई घंटे बीत जाने के बाद भी जतिन के बारे में कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता किशनलाल ढींगरा ने थाना बुराड़ी की राह पकड़ी. थाना बुराड़ी के थानाप्रभारी शेरसिंह को किशनलाल ने बेटे के गायब होने की पूरी बात बताई तो उन्होंने 13 साल के जतिन ढींगरा की गुमशुदगी दर्ज करा कर उस के हुलिया की जानकारी दिल्ली के सभी थानों को वायरलैस द्वारा प्रसारित करा दी.

किशनलाल थाने से लौट कर अपने स्तर से बेटे को तलाश करने लगा. उस की समझ नहीं रहा था कि जतिन गया तो गया कहां. वह उसी की चिंता में डूबा था कि शाम सवा 5 बजे उस के मोबाइल पर एक फोन आया. नंबर अनजान था, फिर भी उस ने फोन रिसीव कर लिया. उस केहैलोकरते ही कहा गया, ‘‘तुम्हारा बेटा जतिन इस समय हमारे कब्जे में है. अगर उसे जिंदा वापस चाहते हो तो 40 लाख रुपए का इंतजाम कर लो. पैसे कहां पहुंचाने हैं, यह बाद में बता दिया जाएगा. और हां, एक बात का ध्यान रखना. अगर पुलिस के पास जाने की गलती की तो जिंदगी भर पछताओगे.’’

‘‘नहीं, मेरे बेटे को कुछ मत कहना. मैं किसी से कुछ नहीं बताऊंगा. मुझे मेरा बेटा चाहिए.’’ किशनलाल घबरा कर बोला. दूसरी ओर से फोन काट दिया गया. फोन पर हुई बात से किशनलाल समझ गया कि बेटे का किसी ने अपहरण कर लिया है. अपहर्त्ता ने उन्हें पुलिस के पास जाने से मना किया था. इसलिए वह असमंजस में था कि क्या करे? वह पुलिस के पास जाए या नहीं

पुलिस से शिकायत करने पर अपहर्त्ता बच्चे को नुकसान पहुंचा सकते थे, इसलिए राज ढींगरा ने भी पति को थाने जाने से मना किया. लेकिन फिरौती देने के बाद भी अपहर्त्ता जतिन को छोड़ देंगे, इस बात की क्या गारंटी थी? यह बात उस के मन में अचानक उठी. इस बारे में उस ने अपने परिचितों से बात की तो सब ने उसे थाने जाने की सलाह दी. किशनलाल ने थाने जा कर थानाप्रभारी शेरसिंह को फिरौती के लिए आए फोन के बारे में बताया तो उन्होंने किशनलाल से वह नंबर ले कर फोन किया. लेकिन वह नंबर बंद था. इस से थानाप्रभारी को यकीन हो गया कि जतिन का अपहरण हुआ है. उन्होंने किशनलाल को कुछ दिशानिर्देश दे कर घर भेज दिया और अज्ञात लोगों के खिलाफ जतिन के अपहरण का मामला दर्ज कर लिया.

बच्चे को सकुशल बरामद करने के लिए पुलिस अपहर्त्ताओं का सुराग लगाने लगी. इस के लिए तुरंत एक पुलिस टीम बनाई गई, जिस में इंसपेक्टर परमजीत सिंह, सबइंसपेक्टर राजेश कुमार, रोमिल सिंह, रवि कुमार, हेड कांस्टेबल एच.आर. रहमान, पवन कुमार आदि को शामिल किया गया. जानकारी मिलने पर उत्तरी जिला की डीसीपी सिंधू पिल्लै . ने स्पेशल स्टाफ के इंसपेक्टर नरेश कुमार को भी टीम में शामिल कर दिया. अपहर्त्ता ने जिस मोबाइल नंबर से फोन किया था, उस की लोकेशन और वह नंबर किस के नाम से लिया गया था, यह सब पता लगाने के लिए थानाप्रभारी शेरसिंह ने हेडकांस्टेबल पवन कुमार को उस कंपनी के औफिस भेजा, जिस कंपनी का वह नंबर था.

दूसरी ओर किशनलाल के घर पहुंचते ही पौने 6 बजे उस के मोबाइल पर अपहर्त्ता ने उसी नंबर से फिर फोन किया, ‘‘तुम्हें पुलिस के पास जाने से मना किया गया था, इस के बावजूद तुम थाने चले गए. लगता है, तुम्हें अपने बेटे से प्यार नहीं है.’’

‘‘मैं पुलिस के पास नहीं गया था. मैं तो तुम्हें देने वाले पैसों के इंतजाम में लगा हूं. मैं तुम्हें पूरे पैसे दूंगा, लेकिन बेटे को…’’ किशनलाल की बात पूरी होती, उस के पहले ही फोन कट गया. अपहर्त्ता के रुख से किशनलाल डर गया कि कहीं वे नाराज हो कर उस के बेटे को नुकसान पहुंचा दें. मन में यही चिंता लिए वह फिर से थानाप्रभारी के पास जा पहुंचा. किशनलाल की अपहर्त्ता से जो बात हुई थी, वह उस ने थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी इस बात से हैरान थे कि अपहर्त्ता को किशनलाल के थाने जाने की बात कैसे पता लगी. यानी अपहर्त्ता का कोई आदमी ऐसा है जो किशनलाल के साथ रह कर उस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए है.

अगले दिल पुलिस के पास अपहर्त्ता के नंबर की काल डिटेल्स गई, जिस से पता चला कि वह नंबर दक्षिणपूर्वी दिल्ली के तिगड़ी निवासी मनोज के नाम से था, जिसे कुछ दिनों पहले ही लिया गया था. इसी के साथ यह भी पता चला कि फिरौती के लिए जो फोन किए गए थे, वे दिल्ली के वजीराबाद इलाके से किए गए थे. दूसरी ओर बेटे के अपहरण से किशनलाल और उस की पत्नी का रोरो कर बुरा हाल था. दोनों इस बात को ले कर परेशान थे कि जतिन जाने किस हाल में है. पुलिस को मनोज का पता मिल गया था, इसलिए पुलिस टीम तिगड़ी स्थित मनोज के घर जा पहुंची. संयोग से मनोज घर पर ही मिल गया. घर पर पुलिस को देख कर वह चौंका. पुलिस ने उस से जतिन के अपहरण के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह किसी जतिन को जानता और ही उसे किसी अपहरण के बारे में जानकारी है. बहरहाल पुलिस उसे साथ ले कर थाने गई.

थाने में मनोज से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह पहले कही गई बातों को ही दोहराता रहा. उस की बातों से पुलिस को लगा कि वह सही बोल रहा है. उस का जतिन के अपहरण से कोई मतलब नही है. जिस नंबर से फिरौती के लिए फोन किए गए थे, वह उसी के नाम था. फार्म पर मनोज का फोटो लगा होने के साथ पता भी सही था. अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि उस की आईडी और फोटो से वह नंबर लिया किस ने? पुलिस ने मनोज से पूछा कि उस ने कभी अपनी आईडी और फोटो किसी को दिए तो नहीं थे?

काफी देर सोचने के बाद मनोज ने कहा, ‘‘सर, जहांगीरपुरी में मेरा एक दोस्त गौतम जैन रहता है. वह एक फाइनेंस कंपनी में नौकरी करता है. सन 2009 में मैं ने नौकरी के लिए उसे अपनी आईडी और एक फोटोग्राफ दिया था.’’

पुलिस मनोज को साथ ले कर गौतम जैन के घर गई तो वह घर पर नहीं मिला. लेकिन घर से पुलिस को उस का फोन नंबर मिल गया. उसी नंबर के सहारे पुलिस ने 23 सितंबर, 2013 को जीटी करनाल रोड बस डिपो के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया. मनोज जैन से पूछताछ में पता चला कि उस के साथियों संदीप कुमार, मुकेश और संदीप उर्फ सन्नी ने जतिन का अपहरण किया था. इस कांड में उन के साथ वह भी शामिल था. पुलिस ने जब उस से अपहृत जतिन के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि जतिन की हत्या कर के लाश नरेला से हो कर बहने वाले नाले में फेंक दी गई है

गौतम से पूछताछ के बाद पुलिस ने किशनलाल को थाने बुला लिया. जब उसे पता चला कि जतिन की हत्या कर दी गई है तो उस पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा. थानाप्रभारी किशनलाल और गौतम को साथ ले कर वहां के लिए रवाना हो गए, जहां जतिन की लाश फेंकी गई थी. बाहरी दिल्ली में नरेला के पास एक गांव है नगली. वहीं एक बड़ा सा नाला है. गौतम ने वह जगह बताई जहां उस ने लाश फेंकी थी. लेकिन पुलिस को वहां लाश दिखाई नहीं दी. नाला गहरा था, इसलिए पुलिस ने जेसीबी मशीन मंगा कर नाले को खंगालना शुरू किया. आखिर थोड़ी मेहनत के बाद लाश मिल गई. बेटे की लाश देख कर किशनलाल फफक फफक कर रोने लगा. उस ने लाश की शिनाख्त अपने बेटे जतिन के रूप में कर दी. आवश्यक काररवाई के बाद पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और गौतम को साथ ले कर थाने गए.

गौतम के अन्य साथी फरार थे, इसलिए उसे तीस हजारी न्यायालय में पेश कर के 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया गया. गौतम की निशानदेही पर पुलिस ने 27 सितंबर को मुकेश, संदीप कुमार और संदीप उर्फ सन्नी को उन की दुकानों से गिरफ्तार कर लिया. इन सभी से की गई पूछताछ में जतिन के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी. देश के आजाद होने के बाद भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान के पेशावर के रहने वाले कालूराम ढींगरा पत्नी और बेटी हरकौर के साथ भारत गए थे. कालूराम एक पैर से विकलांग थे. उस समय वह उत्तर प्रदेश के जिला बदायूं में कर बस गए थे. वहीं पर उन्होंने परचून की दुकान खोली, जिस की आमदनी से परिवार का गुजरबसर होने लगा.

बदायूं मे ही उन की पत्नी ने 4 बच्चों को जन्म दिया, जिन में 2 बेटे और 2 बेटियां थीं. उन के नाम थे गोविंदराम, हरवंश कौर, रीतू कौर और किशनलाल. कालूराम का भरापूरा परिवार हो गया था, जिस से उन की जिंदगी हंसीखुशी से गुजर रही थी. उन्होंने अपने बच्चों की अपनी हैसियत से परिवरिश की. जैसेजैसे बच्चे सयाने होते गए, कालूराम उन की शादी करते गए. बड़ी बेटी हरकौर की शादी दिल्ली के लारेंस रोड पर अपनी ही बिरादरी के लड़के से कर दी थी. हरकौर की शादी दिल्ली में हो गई तो उसी के सहारे घर के बाकी लोगों का भी दिल्ली आनाजाना हो गया. इस के बाद हरवंश की शादी फरीदाबाद और रीतू की शादी उत्तरी दिल्ली के संतनगर (बुराड़ी) में हो गई. गोविंदराम की शादी उन्होंने वहीं एक गांव से कर दी थी. वह पिता के काम में हाथ बंटाता था.

किशनलाल बच्चों में सब से छोटा था. उस की 2 बहनों की दिल्ली में शादी हुई थी. जब वह 7 साल का था, रीतू के साथ दिल्ली गया था. बहन ने यहां उस का दाखिला एक स्कूल में करा दिया. घर वाले चाहते थे कि पढ़लिख कर वह कोई अच्छी नौकरी कर ले. लेकिन वह ज्यादा पढ़ नहीं सका. पढ़ाई छोड़ कर आटोरिक्शा चलाने लगा. कई सालों तक आटोरिक्शा चलाने के बाद जब उस के पास पैसे हो गए तो उस ने बुराड़ी की ही बंगाली कालोनी में एक प्लौट खरीद कर अपने लिए एक मकान बनवा लिया. इस के बाद उत्तरी दिल्ली की संत परमानंद कालोनी में रहने वाले हरिदर्शन सिंह की बेटी राज से उस की शादी हो गई

शादी के बाद उस के यहां गुरप्रीत, जतिन और हर्ष 3 बच्चे हुए. 3 बेटे होने के बाद जहां भरापूरा परिवार हो गया, वहीं घर का खर्च भी बढ़ गया. किशनलाल आटो चला कर जो कमाता था, उस से घर खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. वह आमदनी बढ़ाने के बारे में सोचने लगा. काफी सोचविचार कर उस ने आटो चलाने के बजाय प्रौपर्टी डीलिंग का काम शुरू किया. उस की तमाम लोगों से जानपहचान थी, इसलिए किशनलाल ने बुराड़ी में अच्छीखासी प्रौपर्टी खरीद ली. अब उस के पास पैसों की कमी नहीं रही. पैसे आए तो उस ने बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूलों में करा दिया. बड़ा बेटा गुरप्रीत निरंकारी पब्लिक स्कूल में पढ़ रहा था तो जतिन माउंट एवरेस्ट पब्लिक स्कूल में.

किशनलाल का बुराड़ी के हरित विहार में औफिस था. उस के औफिस के पास ही संदीप कुमार की दवाओं की दुकान थी. जबकि उस का घर जहांगीरपुरी में था. बीए पास करने के बाद उस ने हरित विहार में मेडिकल स्टोर खोल लिया था. दुकान से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. इस के बावजूद वह चाहता था कि कहीं से उसे मोटी कमाई हो जाए, जिस से वह ऐशोआराम की जिंदगी जी सकेइसीलिए वह क्रिकेट के आइपीएल मैचों पर सट्टा लगाने लगा, जिस से उसे लाखों रुपए का नुकसान हुआ. इस के अलावा उस ने कुछ दुकानदारों के साथ चिट फंड कमेटी डाली, जिस का सारा पैसा एक दुकानदार ले कर भाग गया. इस से संदीप को काफी नुकसान हुआ.

इन सब की वजह से संदीप परेशान रहने लगा. उस के ऊपर लाखों का कर्ज था, जो दुकान की कमाई से अदा नहीं हो पा रहा था. जिन लोगों से उस ने पैसे उधार लिए थे, वे अपने पैसे वापस मांग रहे थे, जिस से वह परेशान रहने लगा था. संदीप की एक बंगाली डाक्टर से दोस्ती थी. उस ने अपनी परेशानी डा. बंगाली को बताई तो उस ने कर्ज उतारने के लिए उसे 5 लाख रुपए उधार दिए. इस के अलावा बंगाली कालोनी में ही रहने वाली निशा उर्फ नीतू से भी उस ने एक लाख रुपए कर्ज लिए. इस तरह 6 लाख रुपए देने के बाद भी उस पर कर्ज बाकी था. जिस दुकान में संदीप का मेडिकल स्टोर था. वह किराए पर थी. परेशानी की वजह से वह कई महीने से दुकान का किराया भी नहीं दे पा रहा था, जिस से दुकान के मालिक ने उस से दुकान खाली करने को कह दिया. संदीप अब सोचने लगा कि कहीं से उसे मोटी रकम मिल जाती तो वह सभी का कर्ज दे कर निजात पा जाता.

किशनलाल ने कुछ दिनों पहले ही अपना एक प्लौट बेचा था. इस बात की जानकारी संदीप को थी. वैसे भी संदीप को किशनलाल की हैसियत का पता था. क्योंकि वह उस के घर भी आताजाता रहता था. संदीप को जब पता चला कि किशनलाल ने प्लौट बेचा है तो उस के दिमाग में तुरंत आया कि अगर किशनलाल के बच्चे का अपहरण कर लिया जाए तो फिरौती में उस से मोटी रकम मिल सकती है. संदीप कुमार का एक दोस्त था मुकेश, जिस का बंगाली कालोनी की गली नंबर 16 में फोटो स्टूडियो था. चूंकि अपहरण जैसा काम संदीप के अकेले के बस का नहीं था, इसलिए उस ने मुकेश को लालच दे कर अपनी योजना में शामिल कर लिया.

अपहरण के लिए एक कार की जरूरत थी, इस के लिए संदीप कुमार ने अपने एक अन्य दोस्त संदीप उर्फ सन्नी से बात की. सन्नी का हरित विहार, बुराड़ी में ही सन्नी मेडिकल के नाम से दवाओं की दुकान थी. वह रहने वाला जहांगीरपुरी का था. मोटी रकम के लालच में सन्नी भी संदीप का साथ देने को तैयार हो गया था. तीनों ने बैठ कर किशनलाल के दूसरे नंबर के बेटे जतिन ढींगरा के अपहरण की योजना बनाई. वैसे तो वे उस के छोटे बेटे हर्ष को उठाना चाहते थे, लेकिन समस्या यह थी कि हर्ष स्कूल आनेजाने के अलावा घर से निकलता नहीं था. और जब स्कूल जाताआता था तो उस के साथ घर का कोई सदस्य होता था, जबकि 13 साल का जतिन अकेला भी घर के बाहर आताजाता रहता था.

योजना बन गई, तो उन्हें फिरौती मांगने के लिए ऐसे फोन नंबर की जरूरत थी, जो किसी दूसरे की आईडी पर लिया गया हो, जिस से वे फंस सकें. किसी दूसरे की आईडी उन तीनों में से किसी के पास थी नहीं. मेडिकल स्टोर खोलने से पहले सन्नी एक फाइनेंस कंपनी में काम करता था. उसी के साथ जहांगीर पुरी का ही रहने वाला गौतम जैन भी नौकरी करता था. सन्नी ने बातें ही बातों में गौतम जैन से पता किया कि उस के पास किसी की आईडी तो नहीं पड़ी है? गौतम जैन ने सन्नी से आईडी की जरूरत के बारे में पूछा तो सन्नी ने उसे सच्चाई बता दी. पैसों के चक्कर में गौतम जैन के मन में भी लालच गया. उस ने कहा कि वह आईडी और फोटो तो उपलब्ध करा देगा, लेकिन फिरौती की रकम में वह भी बराबर का हिस्सा लेगा.

सन्नी ने यह बात मुकेश और संदीप कुमार को बताई तो मजबूरी में उन्होंने गौतम जैन को भी योजना में शामिल कर लिया. गौतम जैन को तिगड़ी के रहने वाले उस के दोस्त मनोज ने 2 साल पहले अपना फोटो और आईडी दी थी, ताकि वह उस की नौकरी लगवा सके. तब से मनोज के सारे कागज गौतम के पास ही रखे थे. मनोज की आईडी और फोटो से गौतम ने आइडिया कंपनी का नया सिम ले लिया. संदीप कुमार किशनलाल के घर भी आताजाता था, जिस से घर के सभी लोग उसे अच्छी तरह पहचानते थे. इसलिए उस ने साथियों के साथ पहले ही तय कर लिया था कि फिरौती मिलने के बाद जतिन को जिंदा नहीं छोड़ा जाएगा. सारी तैयारी हो गई तो वे मौके की तलाश में रहने लगे.

 21 सितंबर, 2013 को दोपहर के बाद जतिन बुराड़ी के ही अपने किसी दोस्त से कौपी लेने के लिए घर से निकला. जैसे ही वह मेन रोड पर पहुंचा, गिद्धदृष्टि जमाए संदीप और मुकेश उस के पास पहुंच गए. जतिन वीडियो गेम खेलने का शौकीन था. वीडियो गेम खेलने और खिलौने दिलाने के बहाने संदीप कुमार जतिन को अपने साथ ले गया. चूंकि जतिन संदीप को जातनापहचानता था, इसलिए वह उस के साथ चला गया.  वहां से कुछ दूर अपनी वैगनआर कार डीएल9सीएक्स1861 में बैठा सन्नी यह सब देख रहा था. संदीप का इशारा मिलते ही वह अपनी कार संदीप के पास ले आया. संदीप ने जतिन को कार में बैठने को कहा तो बैठ गया. कार सन्नी चला रहा था. वह जतिन को हरित विहार स्थित अपने मैडिकल स्टोर पर ले गया.

सन्नी ने दुकान में रखे फ्रिज से कोल्ड ड्रिंक की बोतल निकाल कर जतिन को दी तो वह पीने लगा. उस कोल्डड्रिंक में नशीली दवा पहले ही मिला रखी थी, इसलिए कोल्डड्रिंक पीने के थोड़ी देर बाद जतिन बेहोश हो गया. सन्नी की दुकान के बगल की दुकान बंद रहती थी, जिस की चाबी सन्नी के पास थी. बेहोश जतिन को उसी दुकान में रखना चाहते थे, लेकिन ऐन वक्त पर उन की यह योजना बदल गई. उस समय उन के साथ गौतम जैन नहीं था. उसे उन्होंने फोन पर सब बता दिया तो उस ने कहा कि वह उन्हें बुराड़ी चौक पर मिल जाएगाबेहोश जतिन को उन्होंने कार में डाला और नगली ऊना गांव की ओर चल पड़े. संदीप वहीं रहता था, इसलिए उसे वहां की अच्छीखासी जानकारी थी. रास्ते में बुराड़ी चौक के पास गौतम जैन मिला तो उसे भी उन्होंने कार में बैठा लिया. जतिन को होश जाता तो वह हंगामा कर सकता था. इसलिए उन्होंने कार में ही उस की गला दबा कर हत्या कर दी. उसे मार कर उस की लाश उन्होंने नगली के पास गहरे नाले में फेंक दी.

लाश ठिकाने लगा कर संदीप कुमार और मुकेश अपनीअपनी दुकानों पर चले गए. जबकि फिरौती के लिए फोन करने की जिम्मेदारी सन्नी और गौतम जैन को सौंपी गईदूसरे जतिन घर नहीं लौटा तो घरवाले परेशान हो उठे. उन्होंने मोहल्ले में और इधरउधर तलाश की. जब इस बात की जानकारी मुकेश को हुई तो सहानुभूति दिखाते हुए वह भी किशनलाल की मदद के लिए गया. सन्नी और गौतम ने दिल्ली के वजीराबाद इलाके में जा कर किशनलाल ढींगरा को फोन कर के 40 लाख रुपए की फिरौती मांगी. बेटे के अपहरण की खबर सुन कर किशनलाल के होश उड़ गए. वह किसी भी तरह रकम जुटा कर बेटे को सकुशल वापस पाना चाहता था, लेकिन परिचितों के कहने पर वह थाने चला गया. तब उसे क्या पता था कि अपहर्त्ताओं ने पहले ही उस के बेटे को मार दिया है.

पूछताछ के बाद पुलिस ने गौतम जैन को 27 सितंबर को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. इस के बाद अन्य अभियुक्तों संदीप कुमार, मुकेश और सन्नी से घटनास्थल की तस्दीक करा कर 28 सितंबर को उन्हें भी न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया. मामले की विवेचना इंसपेक्टर परमजीत सिंह कर रहे हैं.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित  

         

Jaipur crime news : नौकरानी ने करवाई मालिक के घर में 24 लाख की चोरी

Jaipur crime news : कृष्णकांत गुप्ता अपनी नौकरानी प्रिया को मोटी सैलरी के अलावा सारी सुविधाएं देते थे ताकि वह खुश रहे. इस के बावजूद प्रिया ने अपने प्रेमी नदीम के साथ मिल कर कृष्णकांत गुप्ता से ऐसा विश्वासघात किया कि…   

18 जुलाई, 2018 की बात है. रात के करीब 11 बजने वाले थे. रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता ने कुछ देर पहले ही रात का भोजन किया था. इस के बाद कुछ देर टीवी देखा और ड्राइंग रूम में बैठ कर पत्नी चंद्रकांता से इधरउधर की बातें कीं. गुप्ता और उन की पत्नी जब घरपरिवार की बातें कर रहे थे तो उन की 10 महीने की पोती नितारा दादी की गोद में ही सो गई थी. इस बीच नौकरानी प्रिया ने भोजन के बरतन वगैरह साफ कर लिए थे.

अब कोई काम भी नहीं था. कृष्णकांत गुप्ता को नींद आने लगी तो उन्होंने पत्नी चंद्रकांता से कहा, ‘‘मैं तो सोने जा रहा हूं. तुम भी दिन भर की थकी हुई हो, अब सो जाओ और नितारा को भी अपनी गोद से बिस्तर पर लिटा दो.’’

‘‘हां, मैं भी थक गई हूं, अपने कमरे में जा कर सोती हूं.’’ चंद्रकांता ने कहा.

कृष्णकांत गुप्ता ड्राइंग रूम से उठ कर अपने कमरे में जाने लगे तो उन्हें अपने मकान के पोर्च में कुछ हलचल सी महसूस हुई. उन्होंने गेट खोल कर देखा तो 3 अनजान लोग घर के अंदर खड़े मिले. उन्होंने उन लोगों से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कौन हो और यहां क्यों खड़े हो?’’

कृष्णकांत गुप्ता के सवालों से घबरा कर वे तीनों आदमी सौरी बोलते हुए यह कह कर वहां से चले गए कि रात के अंधेरे में हम गलती से रामदेव का घर समझ कर आप के घर के अंदर गए. हमें रामदेव के घर जाना है. वे तीनों अनजान आदमी भले ही वहां से चले गए. लेकिन गुप्ताजी के मन में कई तरह की शंकाएं उठने लगीं. कृष्णकांत गुप्ता जयपुर के गोपालपुरा बाईपास पर स्थित पौश कालोनी 10बी स्कीम में रहते थे. 3 साल पहले ही वह इलाहाबाद बैंक से अधिकारी पद से रिटायर हुए थेइस मकान में वह अपनी पत्नी चंद्रकांता और 10 महीने की पोती नितारा के साथ रहते थे. उन का बेटा अंकुर और बहू अंकिता मुंबई में रहते हैं. बेटा अंकुर मुंबई में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) में काम करता है

कृष्णकांत गुप्ता ने घर के छोटेमोटे कामकाज और पोती की देखभाल के लिए एक नौकरानी प्रिया साहू को काम पर रख लिया था. उसे रहने के लिए अपने मकान में ही एक कमरा दे दिया था. उसे वह 16 हजार रुपए महीने की सैलरी देते थे. वह पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी. कृष्णकांत गुप्ता को शंका हुई तो उन्होंने कालोनी समिति के अध्यक्ष हंसराज और सचिव गोपाल को फोन कर के अपने घर बुलाया. इसी के साथ उन्होंने पुलिस को भी सूचना दे दी. 3 संदिग्ध लोगों की बात सुन कर कालोनी के लोग उन के यहां जमा हो गए. लोगों ने रात में ही गलियों में घूम कर उन संदिग्ध लोगों को ढूंढा, लेकिन वे नहीं मिले.

इस बीच सूचना पा कर 2 पुलिसकर्मी वहां पहुंच गए. कृष्णकांत गुप्ता ने उन्हें अपने यहां आए 3 संदिग्ध लोगों के बारे में बताया तो उन पुलिस वालों ने भी मोटरसाइकिल से गलियों के चक्कर लगाए और वहां से चले गए. तब तक रात के करीब 1 बज गए थे. उन तीनों अनजान लोगों का कुछ पता नहीं चला तो कालोनी के लोग भी गुप्ताजी को सावधान रहने की बात कह कर अपनेअपने घर जा कर सो गए. तड़के करीब 3 बजे कृष्णकांत गुप्ता अपने कमरे में जब गहरी नींद में सो रहे थे तो उन की नींद घर में कुछ लोगों की हलचल की आवाज से टूट गई. वह कुछ समझ पाते, इस से पहले ही 2-3 बदमाश उन के घर में घुस आए और उन का मुंह हाथपैर साड़ी चुनरी से बांध दिए. इस के बाद बदमाश चंद्रकांता के कमरे में पहुंचे. बदमाश उन्हें चाकू दिखा कर धमकाते हुए उन के पति के कमरे में ले आए.

इस के बाद बदमाशों ने उन के घर से तमाम कीमती सामान बटोर लिया. बदमाशों ने अलमारी के ऊपर रखे चांदी के बरतन उतारने के लिए चंद्रकांता से कहा तो चंद्रकांता ने अपने पैर में रौड लगी होने की वजह से ऊपर चढ़ने से इनकार कर दियाबदमाशों ने चाकू दिखा कर उन्हें जान से मारने की धमकी दी तो चंद्रकांता ने कहा कि टेबल पर चढ़ कर गिरने से मरूंगी, इस से अच्छा है कि तू ही मुझे मार दे. बाद में एक बदमाश ने टेबल पर चढ़ कर चांदी के बरतन उतारे. लूटपाट के दौरान बदमाशों ने अपने साथ टिफिन में लाया खाना भी खाया. उस टिफिन को बाद में वह मकान के बाहर फेंक गए थे.

करीब आधे घंटे तक लूटपाट करने के बाद बदमाश वहां से करीब 15 लाख रुपए के गहने, चांदी के बरतन और ढाई लाख रुपए नकद बटोरने के बाद गुप्ता दंपति की 10 महीने की पोती नितारा को साथ ले जाने की धमकी देने लगे. इस पर चंद्रकांता बिफर गईं. वह बोलीं कि सब कुछ ले जाओ लेकिन मेरी पोती की तरफ आंख उठा कर भी मत देखना. मेरे जीते जी तुम मेरी पोती को नहीं ले जा सकते. चंद्रकांता का रौद्र रूप देख कर बदमाशों ने नितारा को तो छोड़ दिया लेकिन वह 3 मोबाइल फोन और एक टैबलेट तथा कृष्णकांत गुप्ता का एटीएम कार्ड भी ले गए. बदमाशों ने लूटे गए माल को बैगों में भर लिया. फिर उन्होंने चंद्रकांता और उन की पोती को एक कमरे में बंद कर दिया और कृष्णकांत गुप्ता को दूसरे कमरे में.

इस के बाद बदमाश पोर्च में खड़ी गुप्ताजी की टोयटा इटियोस कार नंबर आरजे14सी आर5236 में सवार हो कर नौकरानी प्रिया को भी अपने साथ ले गए. जिस समय बदमाश घर में लूटपाट कर रहे थे, उस समय नौकरानी प्रिया चुपचाप तमाशा देख रही थी. प्रिया अपना सारा सामान समेट कर उन बदमाशों के साथ चली गई थी. बदमाशों के जाने के बाद चंद्रकांता ने कमरे की खिड़की से पड़ोसियों को कई आवाजें लगाईं, लेकिन किसी ने नहीं सुनीं. इस बीच, दूसरे कमरे में हाथपैर बंधे पड़े कृष्णकांत ने किसी तरह खुद को आजाद किया. उन्होंने पत्नी चंद्रकांता को आवाज दी तो पता चला कि वह कमरे में बंद है. उन्होंने पत्नी और पोती को कमरा खोल कर बाहर निकाला. इस के बाद मौर्निंग वाक पर निकले कालोनी के लोगों को बुला कर वारदात की जानकारी दी.

इस के बाद पुलिस को सूचना दी गई. शिप्रापथ थाना पुलिस ने मौके पर पहुंच कर जांचपड़ताल शुरू की. फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट्स ने मकान से अंगुलियों के निशान लिए. डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. बाद में डीसीपी डा. विकास पाठक और अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंचे और गुप्ता दंपति से बदमाशों के हुलिया, बोलचाल आदि के बारे में पूछताछ की. पूछताछ में पता चला कि घर में लूटपाट करते हुए 3 बदमाश नजर आए थे. इन में एक ने सफेद रंग की शर्ट और 2 बदमाशों ने टीशर्ट जींस पहन रखी थी. बदमाशों के साथ प्रिया के भी जाने से यह बात साफ हो गई कि नौकरानी प्रिया पहले से ही बदमाशों से मिली हुई थी

उसी ने बदमाशों के लिए मकान का गेट खोला था. बाद में वह उन्हीं बदमाशों के साथ चली गई. पुलिस का अनुमान था कि घर में भले ही 3 बदमाश घुसे थे, लेकिन उन के साथी आसपास बाहर निगरानी पर जरूर रहे होंगे. पुलिस ने नौकरानी प्रिया साहू के बारे में जांचपड़ताल की तो पता चला कि करीब 4 महीने पहले जयपुर सर्वेंट सेंटर के मार्फत उसे 16 हजार रुपए महीने की तनख्वाह पर रखा था. तब उन्हें बताया गया था कि प्रिया साहू 3 साल तक भीलवाड़ा में एक डाक्टर के घर पर भी काम कर चुकी हैएजेंसी ने प्रिया का पुलिस वेरिफिकेशन होने का भी दावा किया था. उसी समय कृष्णकांत गुप्ता ने प्रिया को सैलरी के अलावा रहने और खानेपीने की सुविधाएं देने की बात कही थी. कुछ दिनों अपने यहां काम पर रखने के बाद कृष्णकांत गुप्ता ने प्रिया को मुंबई में अपने बेटेबहू के पास एक महीने तक काम करने के लिए भी भेजा था.

पुलिस ने जब जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को थाने बुला कर पूछताछ की तो पता चला कि उस ने प्रिया का पुलिस सत्यापन नहीं कराया था. इस के अलावा उस का नाम प्रिया नहीं बल्कि परवीन खातून था. प्रिया फर्राटे से अंगरेजी बोलती थी और समझती भी थी लेकिन वह हिंदी नहीं जानने और घड़ी में समय नहीं देखने आने की बात कहती थी. कृष्णकांत ने पुलिस को बताया कि बेटे ने अमेरिका से लाया हुआ एक मोबाइल फोन वारदात से 12 घंटे पहले ही कुरियर से भेजा था. बदमाश उन दोनों के फोनों के अलावा उस नए मोबाइल को भी ले गए. चंद्रकांता जिस टैबलेट पर रात को समय काटने के लिए फिल्म वगैरह देखती थी. वह टैबलेट भी बदमाश ले गए थे.

वारदात की सूचना मिलने पर कृष्णकांत गुप्ता के बेटेबहू भी 19 जुलाई को ही मुंबई से जयपुर पहुंच गए. गुप्ता के बड़े भाई अशोक गुप्ता जयपुर के ही प्रतापनगर और छोटे भाई अनिल मानसरोवर में रहते हैंचंद्रकांता के सासससुर भी जयपुर में मानसरोवर कालोनी में रहते हैं. उन की बेटी भी पति के साथ हैदराबाद से जयपुर गई. वारदात का पता चलने पर उन के घर रिश्तेदारों और जानपहचान वालों की भीड़ जुड़ने लगी थी. पुलिस के लिए चुनौती की बात यह थी कि कालोनी के जिस मकान में डकैती की वारदात हुई, उस के पास ही राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक मनोज भट्ट और जयपुर के महापौर अशोक लाहोटी रहते थे. वारदात का पता चलने पर महापौर कृष्णकांत गुप्ता के घर पहुंचे और मामला दर्ज कराने उन के साथ शिप्रापथ थाने भी गए.

मामला दर्ज होने पर डीसीपी (दक्षिण) डा. विकास पाठक ने अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) मनोज चौधरी के निर्देशन और एसीपी (मानसरोवर) दीपक कुमार की अध्यक्षता में एक विशेष टीम गठित की. इस के अलावा अभियुक्तों की तलाश में शिप्रापथ थानाप्रभारी सुरेंद्र यादव और श्यामनगर थानाप्रभारी अनिल कुमार जैमिनी के नेतृत्व में 2 अलगअलग टीमें पश्चिम बंगाल भेजी गईं. इन में एक पुलिस टीम हवाई मार्ग से गई थी. इस बीच पुलिस अपने तरीके से बदमाशों के बारे में सुराग लगाती रही. इस में पता चला कि वारदात से करीब 20 दिन पहले कृष्णकांत के घर पर नौकरानी प्रिया से मिलने एक युवक आया था. प्रिया ने उस युवक को अपना पति बताया था.

पुलिस कृष्णकांत गुप्ता की उस कार का भी पता लगाने में जुट गई, जिस में सवार हो कर बदमाश नौकरानी के साथ भागे थे. जांच में पता चला कि वह कार जयपुर से आगरा रोड हो कर 19 जुलाई की सुबह करीब साढ़े 10 बजे आगरा का मथुरा टोलनाका पार कर के गई थी. इस के अलावा गुप्ता के एटीएम कार्ड से गाजियाबाद में 3 बार में 12 हजार रुपए निकाले गए थे. ये जानकारियां मिलने पर पुलिस की एक टीम गाजियाबाद भेजी गई. तकनीकी जानकारियों और खुफिया सूचनाओं के आधार पर वारदात के पांचवें दिन जयपुर पुलिस ने 23 जुलाई, 2018 को नौकरानी परवीन खातून उर्फ प्रिया के अलावा उस के प्रेमी नदीम और एक अन्य बदमाश आमिर खान उर्फ समीर खान को गाजियाबाद से गिरफ्तार कर लिया

इन के कब्जे से पुलिस ने कृष्णकांत गुप्ता की लूटी गई कार और वारदात में प्रयोग किए 2 चाकू तथा 34 हजार 460 रुपए नकद बरामद किए. इन बदमाशों ने लूट का बाकी सामान अपने एक अन्य साथी के पास होना बताया. इस के बाद पुलिस ने 24 जुलाई को वारदात के मुख्य मास्टरमाइंड दयाराम सिंह को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया. बाद में 26 जुलाई को पांचवें आरोपी दिलशाद को भी गिरफ्तार किया गया. इन अभियुक्तों से पुलिस ने गुप्ता के घर से लूटे गए गहने, चांदी के बरतन अन्य सामान बरामद कर लिया. बदमाशों ने लूटी गई धनराशि में से करीब एक लाख रुपए खर्च कर दिए थे. चूंकि वारदात में 5 लोग शामिल थे, इसलिए पुलिस ने केस में डकैती की धाराएं जोड़ दीं

इन के अलावा पुलिस ने फरजी दस्तावेज के आधार पर परवीन खातून को प्रिया साहू के नाम से गुप्ता के घर पर नौकरानी पर लगवाने वाले जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को भी 26 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया. इन सभी आरोपियों से पूछताछ के बाद डकैती डालने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी

नदीम उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के कांठ थाना इलाके के गांव पैगंबरपुर सुखवासी लाल के रहने वाले आरिफ का बेटा था. कांठ थाने के गांव बिच्छपुरी का रहने वाला आमिर खान उर्फ समीर खान और पास के ही गांव देहरी जुम्मन का रहने वाला दयाराम उर्फ विकास करीब डेढ़ साल पहले यूपी की जेल में बंद थेचूंकि तीनों एक ही जिले के रहने वाले थे, इसलिए तीनों की ही जेल में दोस्ती हो गई. वहां से जमानत पर बाहर आने के बाद भी ये आपस में एकदूसरे के संपर्क में रहे. बाद में नदीम अहमदाबाद चला गया. अहमदाबाद में प्रिया की बड़ी बहन अपने पति के साथ रहती थी. वह नदीम के साथ ही एक फैक्ट्री में काम करती थी. प्रिया की बहन ने नदीम को अपना एक मोबाइल फोन बेचा था. उस फोन में प्रिया के घर वालों के नंबर भी सेव थे

उस फोन में जो नंबर लड़कियों के नाम से सेव थे, फुरसत मिलने पर नदीम एकएक कर के उन नंबरों पर बात करता. इसी दौरान एक दिन उस ने प्रिया का नंबर मिलाया. प्रिया ने उस से प्यार से बात की. नदीम को उस की बातें अच्छी लगीं. इस के बाद वह अकसर प्रिया से बातें करने लगा. प्रिया का अपने पति से तलाक हो चुका था. वह अकेली रहती थी. धीरेधीरे नदीम और प्रिया की दोस्ती हो गई. परवीन खातून उर्फ प्रिया कोलकाता के 24 परगना में रहने वाले आबिद हुसैन की बेटी थी. परवीन खातून घरों में नौकरानी का काम और नवजात शिशुओं की देखभाल का काम करती थी. उस ने प्रिया साहू के नाम से फरजी आईडी बनवा रखी थी. इस आईडी के जरिए वह जयपुर सर्वेंट सेंटर के माध्यम से कृष्णकांत गुप्ता के घर पर नौकरी करने आई थी.

प्रिया उर्फ परवीन खातून ने ही अपने प्रेमी नदीम को जयपुर में रिटायर्ड बैंक अधिकारी कृष्णकांत गुप्ता के घर की सारी जानकारी दी थी. उस ने नदीम को बताया था कि यह अमीर परिवार है और घर में केवल बुड्ढेबुढि़या और उन की पोती रहती है. प्रिया से गुप्ता के परिवार की जानकारी हासिल करने के बाद नदीम ने प्रिया से शादी करने का वादा भी कर दिया था. इस के बाद वारदात से पहले 5 जुलाई, 2018 को नदीम अपने साथी दयाराम उर्फ विकास के साथ जयपुर चला आयानदीम उस दिन अकेला ही गुप्ता के घर जा कर प्रिया से मिला और उसे शादी करने का विश्वास दिलाने के लिए अंगूठी पहनाई. इस दौरान प्रिया ने गुप्ता और उन की पत्नी चंद्रकांता को बताया था कि वह उस का पति है. प्रिया ने नदीम को चायनाश्ता भी कराया था

नदीम ने कुछ देर प्रिया से बातचीत के दौरान ही गुप्ता के मकान की रेकी कर ली. नदीम के साथी दयाराम ने गुप्ता के मकान के बाहर रह कर कालोनी की रेकी की और आनेजाने के रास्ते देखे. इस के बाद पूरी योजना बना कर नदीम, आमिर और दयाराम 18 जुलाई को जयपुर पहुंचे. वे सीधे कृष्णकांत गुप्ता के घर पहुंचे. वे तीनों रात को 11 बजे ही वारदात के लिए पहुंच गए. लेकिन कृष्णकांत गुप्ता ने उन्हें देख लिया तो वे वहां से भाग कर आसपास छिप गए. बाद में उन्होंने रात करीब ढाई बजे परवीन खातून उर्फ प्रिया के मोबाइल पर फोन कर के गेट खुलवाया और लूटपाट की वारदात की.

वारदात के बाद वे नौकरानी प्रिया को साथ ले कर गुप्ता की टोयटा इटियोस कार से भाग गए थे. इस के बाद पुलिस ने काल डिटेल्स और एटीएम कार्ड प्रयोग करने की लोकेशन के आधार पर अभियुक्तों तक पहुंचने में सफलता हासिल की. गिरफ्तार अभियुक्त नदीम के खिलाफ चोरी, बलात्कार और आर्म्स एक्ट के 5 मामले विभिन्न थानों में दर्ज हैं. आमिर खान उर्फ समीर खान के खिलाफ भी 8 आपराधिक मामले गुड़गांव, नोएडा, गाजियाबाद मुरादाबाद में दर्ज हैं. आमिर खान ने लूट की वारदात के बाद कृष्णकांत की कार की फरजी आरसी और खुद का फरजी ड्राइविंग लाइसेंस भी बनवा लिया था

अभियुक्त दयाराम उर्फ विकास के खिलाफ चोरी, अपहरण, लूट, एनडीपीएस एक्ट आदि के 9 मामले दर्ज हैं. गुप्ता के घर डाली गई डकैती में गिरफ्तार पांचवें अभियुक्त दिलशाद ने बाकी चारों आरोपियों को गाजियाबाद में फ्लैट में छिपाने में मदद की थी. वह इस वारदात में भी शामिल था. दिलशाद अपहरण के मामले में मुरादाबाद में गिरफ्तार हो चुका है. पुलिस ने जयपुर सर्वेंट सेंटर के संचालक फहीम को गिरफ्तार कर जांचपड़ताल की तो पता चला कि उस की भूमिका कई मामलों में संदिग्ध हैफहीम ने केवल प्रिया उर्फ परवीन खातून को ही फरजी पहचानपत्र के आधार पर नौकरी नहीं दिलवाई बल्कि कई अन्य लड़कियों को भी कोलकाता से ला कर राजस्थान में कई अन्य लोगों के घरों में बतौर नौकरानी रखवाया था

इन लड़कियों की पुलिस तसदीक कराने का काम सेंटर संचालक फहीम ही करता था, लेकिन फहीम जानबूझ कर इन युवतियों के फरजी नाम पते से पहचानपत्र बनवा कर लोगों की जानमाल को खतरे में डालता था, इसलिए पुलिस ने उस के खिलाफ अलग से मुकदमा दर्ज किया. यह विडंबना रही कि प्रिया उर्फ परवीन खातून जिस नदीम के साथ जीवन भर साथ निभाने के सपने देख रही थी, उसी नदीम और उस के साथियों के साथ वह जेल पहुंच गई. प्रिया ने केवल गुप्ता परिवार के साथ ही विश्वासघात नहीं किया बल्कि नौकरानी की पूरी जमात से भरोसा उठा दिया.

                                           

Lucknow Crime : शेल्टर होम में लड़कियों के साथ जबरन कराया जाता देह व्यापार

Lucknow Crime : शेल्टर होम वृद्ध, अनाथ बच्चों, बेसहारा महिलाओं वगैरह के लिए बनाए जाते हैं, जिन्हें सरकार से प्रोजेक्टों के नाम पर मोटा पैसा मिलता है, लेकिन इन शेल्टर होम्स के अंदर की सच्चाई कुछ और ही होती है. देवरिया का शेल्टर होम भी…  

5 अगस्त, 2018 की दोपहर का समय था. उत्तर प्रदेश के देवरिया शहर के स्टेशन रोड स्थित एक शेल्टर होम से निकल कर 15 साल की एक लड़की शहर कोतवाली पहुंची. वह पहली बार किसी थाने में आई थी, इसलिए उसे यह समझ नहीं रहा था कि किस से क्या बात करे. उस ने मन को पक्का कर लिया था कि आज चाहे कुछ भी हो जाए, अपनी बात पुलिस को बता कर ही रहेगी. थाने में घुसते ही कुरसी पर बैठे जो अधिकारी दिखे वह उन के पास ही पहुंच गई. वह थानाप्रभारी थे. उस लड़की ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘अंकल, हम जिस शेल्टर होम में रहते हैं, उस में क्याक्या होता है, हम आप से बताना चाहते हैं.’’

थानाप्रभारी ने उसे पूरी बात बताने को कहा तो वह आगे बोली, ‘‘अंकल, हफ्ते के आखिरी दिनों में शेल्टर होम से लड़कियों को जबरदस्ती अनजान लोगों के साथ लाल और नीली बत्ती लगी गाडि़यों में भेजा जाता है, जहां उन का यौनशोषण होता है.

‘‘यही नहीं, जब कोई लड़की उन की बात मानने से इनकार करती है तो उसे परेशान किया जाता है, उस पर जुल्म ढाए जाते हैं. लड़कियां रात भर बाहर रहती हैं और सुबह मुंहअंधेरे उन्हीं गाडि़यों से शेल्टर होम लौट आती हैं.

‘‘जो लड़कियां मैडम के कहे अनुसार काम करती हैं, उन से मैडम खुश रहती हैं और उन के साथ अच्छा व्यवहार करती हैं. लड़कियों को लगता है कि मैडम की बात और उन की पहुंच बहुत ऊपर तक है, इसलिए वे उन से डरती हैं.’’

उस लड़की की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी को मामला गंभीर दिखाई दिया. वह लड़की जो थाने आई थी, मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह, देवरिया की थी. इस संस्था के गोरखपुर और सलेमपुर में भी शेल्टर होम हैं. इस की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी हैंशेल्टर होम की ऐसी ही घटना बिहार के मुजफ्फरपुर में घटी थी, जिस की पूरे देश में किरकिरी हो रही थी. इस घटना से बिहार सरकार भी बैकफुट पर थी, इसलिए थानाप्रभारी ने यह जानकारी तुरंत एसपी रोहन पी. कनय को दी. एसपी ने पहले इस मामले की जांच के आदेश दिए. उसी शाम को थाना पुलिस जब मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह पहुंची तो वहां कई लड़कियां और बच्चे गायब मिले.  

यह जानकारी जब देवरिया पुलिस ने लखनऊ में बैठे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों को दी तो सभी के होश उड़ गए. क्योंकि संस्था की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी एक जानीमानी शख्सियत थी. उस के पति मोहन त्रिपाठी और बेटी लता त्रिपाठी भी संस्था चलाने में सहयोग करते थे. गिरिजा त्रिपाठी पहले हाउसवाइफ थी, जबकि पति भटनी शुगर मिल में काम करता था. पति के वेतन से ही किसी तरह घर का खर्च चलता था. ऐसे में गिरिजा त्रिपाठी ने सामान्य औरतों की तरह घर पर ही कपड़े सिलने का काम शुरू किया, जो वक्त के साथ सिलाई सेंटर बन गया.

पति की नौकरी जाने के बाद उस ने सन 1993 में चिटफंड कंपनी खोली. बाद में इसी कंपनी का प्रारूप बदल कर एनजीओ बना दिया गया. वैसे गिरिजा त्रिपाठी रूपई गांव की रहने वाली थी. उस की ससुराल पड़ोस के ही नूनखार गांव में थी. सन 2003 के करीब गिरिजा त्रिपाठी की संस्था को शेल्टर होम खोलने का प्रोजेक्ट मिला. सरकार ने इस के लिए बजट भी देना शुरू कर दियाधीरेधीरे गिरिजा त्रिपाठी ने शासन और प्रशासन में गहरी पैठ बना ली, जिस का फायदा उठाते हुए उस ने देवरिया के अलावा गोरखपुर और सलेमपुर में भी वृद्धाश्रम खोल लिया. रजना बाजार और उसरा के पास भी संस्था के नाम से उस ने काफी प्रौपर्टी खरीद ली.

उत्तर प्रदेश सरकार की कई योजनाओं के संचालन के काम भी गिरिजा त्रिपाठी की संस्था मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह को मिलने लगे, इस में सरकार की महत्त्वाकांक्षी पालन गृह योजना भी थी. इस के अलावा योगी सरकार ने जब सामूहिक विवाह योजना का काम शुरू किया तो इन लोगों को उस में भी जगह मिल गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी बच्चों को गोद देने का भी एक सेंटर चलाती थी, जो बाल कल्याण समिति के अधीन काम करता था. वहां से बच्चों को गोद दिया जाता था. किसी वजह से 23 जून, 2017 के बाद इस संस्था की मान्यता रद्द कर दी गई थी. इस के बावजूद यहां पर शेल्टर होम के लिए लड़कियां और बच्चे लाए जा रहे थे.

कई लड़कियां ऐसी थीं, जिन्होंने घर से भाग कर शादी की थी. ऐसे मामलों में पुलिस लड़के को जेल भेजने के बाद लड़की को शेल्टर होम भेज देती है. पता चला कि शेल्टर होम में ऐसी लड़कियों को डराधमका कर उन से जिस्मफरोशी कराई जाती थीपुलिस ने ऐसी बालिग लड़कियों को उन के मांबाप के पास भेजने की कोशिश की, लेकिन उन लड़कियों ने यह सोच कर घर जाने से मरा कर दिया कि अगर घरपरिवार वालों को पता चला कि वे गलत काम करती हैं तो उन की बदनामी तो होगी ही, साथ ही जेल से आने के बाद उन का पति भी साथ रखने से मना कर देगा.

कई लड़कियों ने बताया कि उन से घरेलू नौकर का काम कराने के लिए भी दूसरी जगह भेजा जाता था. पुलिस के पास जो लड़की शिकायत दर्ज कराने आई थी, उस का नाम नीता (परिवर्तित नाम) था. वह भी घर से भाग कर आई थी और गरीब घर की थी. उस के घर वालों को खाने तक के लाले पड़े थे. नीता इस संस्था में करीब 3 महीने पहले ही आई थी. जब उसे रात को कार से कहीं भेजा गया तो वह मौका पा कर भाग निकली और पुलिस तक पहुंच गई. मां विंध्यवासिनी महिला एवं बालिका संरक्षण गृह की संचालिका गिरिजा त्रिपाठी का रसूख देवरिया, गोरखपुर से ले कर राजधानी लखनऊ तक था. वह हर सरकार में सत्ता के ऊंचे पदों पर बैठे लोगों तक अपनी पहुंच रखती थी. इसी वजह से संस्था की मान्यता रद्द होने के बावजूद उस के शेल्टर होम में लड़कियां भेजी जाती रहीं

पुलिस खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश सरकार हरकत में आई और पुलिस की उच्चस्तरीय जांच कमेटी का गठन किया गया. एसआईटी जांच की अगुवाई की जिम्मेदारी एडीजी संजय सिंघल को सौंपी गई. जांच में 2 महिला आईपीएस अधिकारियों पूनम और भारती सिंह के अलावा सीओ अर्चना सिंह, इंसपेक्टर ब्रजेश सिंह आदि को भी शामिल किया गया. पुलिस और प्रोबेशन विभाग अलगअलग जांच करने में जुट गए. पुलिस ने संस्था के खिलाफ अलगअलग मामलों में भादंवि की धारा 188, 189, 310, 343, 354, 504, 506 के साथ 7/8 पोक्सो एक्ट और जेजे एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया. सरकार के साथ हाईकोर्ट ने भी इस मामले को संज्ञान में लिया.

पुलिस की एसआईटी ने जांच के काम को जिस तरह से आगे बढ़ाया, उस में कई ऐसे प्रमाण मिले, जिस से पता चला कि शेल्टर होम में तमाम तरह की गड़बडि़यां थीं. सैक्स रैकेट तो बस उस का एक हिस्सा भर था. इस के अलावा चाइल्ड लेबर और बच्चों को गोद दिए जाने के भी तमाम मामले थे. गिरिजा ने अपने बेटे, बहू और बेटियों को भी संस्था से जोड़ रखा था. जांच कर रही पुलिस टीम के पास अलगअलग तरह की शिकायतें रही थीं. कई परिवारों की लड़कियां गायब थीं और कुछ के नाम ही दर्ज नहीं थे. ऐसे में वहां पर सच्चाई का पता लगाना बहुत मुश्किल काम था.

पुलिस ने देवरिया के साथ गोरखपुर की चाणक्यपुरी कालोनी में ओल्ड एज होम का पता लगाया. गोरखपुर के इस शेल्टर होम को गिरिजा की दूसरी बेटी कनकलता देख रही थी. वह जिले के प्रोबेशन विभाग में थी. गोरखपुर प्रशासन इस बात की जांच कर रहा है कि ओल्ड एज होम में लड़कियों का आनाजाना तो नहीं थागोरखपुर के डीएम विजयेंद्र पांडियन और एसएसपी शलभ माथुर ने अपनी देखरेख में जांच आगे बढ़ाई. यहां पुलिस ने कई लोगों को पकड़ा भी. यह होम बिना मान्यता के चल रहा था. आरोप तो यह भी है कि यहां देवरिया से ला कर लड़कियों को रखा जाता था.

देवरिया शेल्टर होम प्रकरण में सरकार ने जिले के आला अफसरों को बदल दिया. बस्ती की रहने वाली एक लड़की ने बताया कि उसे धमकी दे कर शेल्टर होम से बाहर ले जाया जाता था. डराया जाता था कि अगर तुम बाहर नहीं गई तो तुम्हारे पति को मरवा देंगे. इस लड़की ने बताया कि शेल्टर होम में नाबालिग लड़कियां थीं, जो प्रेम विवाह करने के बाद यहां रह रही थीं. उन का भी शोषण होता था. उत्तर प्रदेश महिला कल्याण मंत्री रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि इस में स्थानीय पुलिस प्रशासन की भूमिका ठीक नहीं पाई गई. जब सन 2017 से इस शेल्टर होम की मान्यता नहीं थी तो वहां पर लड़कियों को पुलिस क्यों भेज रही थी?

सरकार ने सूचना मिलते ही कड़े कदम उठाए हैं. देवरिया के शेल्टर होम को सन 2010 में मान्यता दी गई थी. उसी समय बाल संरक्षण, बालिका संरक्षण महिला संरक्षण के प्रोजेक्ट दिए गए थे. रीता बहुगुणा ने कहा कि विपक्ष के जो लोग देवरिया कांड की आलोचना कर रहे हैं, उन के कार्यकाल में ही ऐसी संस्थाओं को लाइसैंस दिया गया था. ऐसे में विपक्ष बेकार का मुद्दा बना रहा है. योगी सरकार ने इस मामले पर त्वरित काररवाई कर के कड़ा संदेश दिया है. शेल्टर होम की जांच कर रही एसआईटी टीम 20 अगस्त को शेल्टर होम की अधीक्षिका कंचनलता को जांच के लिए साथ ले गई. बालगृह भवन में प्रवेश करते समय अंदर की बिजली गुल थी. कमरों में अंधेरा छाया हुआ था. उन्हीं बंद कमरों में लड़कियों को रखा जाता था. एसआईटी ने कई तथ्य जुटाए.

सुबह जांच करने गई टीम ने शाम 5 बजे तक जांच की और मिली सामग्री अपने कब्जे में ले ली. एसआईटी ने गिरिजा त्रिपाठी के परिवार की लाल रंग की बत्ती लगी कार को जब्त कर लियाजांच में पुलिस की भूमिका संदेह के घेरे में है, जिस के बाद 100 से अधिक एसआई जांच में फंस सकते हैं. टीम ने लड़कियों के कपड़े, खिलौने, बिस्तर की भी जांच की. शेल्टर होम के कार्यालय में टंगी फोटो से यह पता चला कि कौनकौन से लोग यहां कार्यक्रमों में आते रहे हैं. पुलिस उन से भी पूछताछ कर सकती है. दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट इस मामले की सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने लड़कियों के नाम सार्वजनिक करने वालों को भी गलत बताया और पूछा कि जब कोर्ट ने लड़कियों को किसी से मिलने देने से मना किया था तो प्रशासन ने लड़कियों की गोपनीयता का खयाल क्यों नहीं रखा.

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति डी.बी. भोसले और न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा इस केस को सुन रहे हैं. जांच और कोर्ट के फैसले के बाद ही शेल्टर होम का सच सामने सकेगापूरे प्रकरण में एक बात साफ है कि शेल्टर होम जिस मकसद से बने हैं, उन को वे पूरा नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे में कोई कोई पारदर्शी व्यवस्था प्रशासन और सरकार को बनानी चाहिए, तभी ये जरूरतमंदों को सहयोग कर सकेंगे.

MP Crime : किन्नर ने अपमान का बदला लेने की ठानी

MP Crime : किन्नर किरण खूबसूरती की मिसाल थी. तभी तो श्रीनगर के जहांगीर ने उस पर फिदा हो कर उस से शादी कर ली. सच्चाई पता चलने पर जहांगीर ने उसे छोड़ दिया तो किरण ने इस अपमान का बदला लेने की ठान ली, फिर…  

शा के करीब 6 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के देवास जिला मुख्यालय में चामुंडा कांपलेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित गोल्डन कौफी हाउस में रोज की तरह काफी रौनक थी. उस समय उज्जैन की तरफ से एक कार और इंदौर की तरफ से एक और कार कर गोल्डन कौफी हाउस के सामने रुकी. एक कार से करीब 45 साल की एक निहायत ही खूबसूरत महिला उतरी. वहीं दूसरी कार से 25-26 साल के 2 युवक नीचे उतरे

उन युवकों ने उस महिला का अभिवादन किया तो उस महिला ने दोनों के अभिवादन का सिर हिला कर जवाब दिया, उन्हें साथ ले कर वह उस कौफी हाउस में दाखिल हो गई. यह बात 20 फरवरी, 2018 की है. दोनों गाडि़यों के ड्राइवर कौफी हाउस के बाहर ही रहे. दोनों ही ड्राइवर तब तक आपस में बातचीत करने लगे. करीब सवा घंटे बाद वह तीनों कौफी हाउस से बाहर आने के बाद अपनीअपनी कार में कर बैठ गए. वह महिला इंदौर की तरफ रवाना हो गई. इस के कुछ देर बाद दोनों युवकों ने अपने ड्राइवर को उस महिला की कार का पीछा करने को कह दिया.

देवास से इंदौर रोड पर लगभग 6 किलोमीटर आगे क्षिप्रा नदी का पुल है. यह पुल देवास और इंदौर जिले की सीमा बनाता है. चूंकि शाम के समय सड़क पर ट्रैफिक अधिक था इसलिए क्षिप्रा तक पहुंचने में दोनों गाडि़यों को 15 से 18 मिनट का समय लगा. उन युवकों की कार महिला की कार से सुरक्षित दूरी बना कर पीछा कर रही थी, ताकि कार में बैठी महिला को उस की कार का पीछा किए जाने का शक हो सके. क्षिप्रा निकलने के बाद उन युवकों ने अपने ड्राइवर से कहा कि वह ओवरटेक कर के उस महिला की कार के आगे गाड़ी लगा दे. इस के बाद उस ड्राइवर ने कार की गति तेज कर दी.

इसी बीच उस महिला ने अपनी कार एक शराब की दुकान के सामने रुकवा दी. वह महिला कार से उतर कर शराब की दुकान से ठंडी बियर लेने लगी. तब तक उन युवकों की कार भी वहां कर रुक गई. उन में से एक युवक हाथ में रिवौल्वर ले कर कार से उतर कर शराब की दुकान पर खड़ी उस महिला के पास पहुंचामहिला बियर पसंद करने में खोई हुई थी. इसलिए उस ने इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया कि कुछ देर पहले वह जिस युवक से कौफी हाउस में मिल कर रही है वह उस के पीछेपीछे यहां तक पहुंचा है.

दूसरी तरफ युवक ने उस के पास जा कर रिवौल्वर उस की गरदन पर रख कर ट्रिगर दबा दिया और तेजी से अपनी कार में बैठ गया. फिर वह दोनों युवक देवास की तरफ निकल गए. भरे बाजार में महिला की हत्या होने के बाद बाजार में खलबली मच गई. सूचना मिलने पर थाना औद्योगिक क्षेत्र के थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव तत्काल एसआई श्रीराम वर्मा आदि के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घायल अवस्था में पड़ी उस महिला को तुरंत पहले देवास के अपेक्स अस्पताल ले जाया गया. हालत गंभीर होने की वजह से उसे इंदौर के एम.वाई. अस्पताल भेज दिया गया. जहां इलाज के दौरान उस की मौत हो गई.

पुलिस ने मृत महिला के कार चालक से पूछताछ की तो पता चला कि मरने वाली औरत नहीं बल्कि किन्नर किरण थी. जिस की खूबसूरती के चर्चे इंदौर के अलावा दिल्ली और श्रीनगर में भी थे. कार चालक ने यह भी बताया कि किरण को गोली मारने वाला युवक लाल रंग की कार में बैठ कर देवास की तरफ भागा है. इस पर थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव ने यह खबर बिना देर किए पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. इस का नतीजा यह निकला कि कुछ ही देर के बाद उज्जैन तिराहे से गुजर रही लाल रंग की कार एमपी09बीसी 0821 को यातायात पुलिस के एसआई रमेश मालवीय एवं रूपेश पाठक ने रोक ली.

उस समय उस गाड़ी में ड्राइवर के अलावा और कोई नहीं था. उस ड्राइवर का नाम मोहम्मद रईस था जो सारंगपुर का रहने वाला था. दोनों एसआई उसे थाने ले आए. पूछताछ करने पर मोहम्मद रईस ने बताया कि यह गाड़ी कनाड़ निवासी एक व्यापारी की है. वह तो गाड़ी का ड्राइवर है. इस गाड़ी को आज उज्जैन के बेगम बाग निवासी भूरा और ऐजाज खान किराए पर ले कर देवास आए थे. उस ने यह भी बताया कि किन्नर की हत्या करने के बाद दोनों उस की गाड़ी में सवार हो कर कुछ दूर तक आए थे. बाद में पुलिस के डर से गाड़ी से उतर कर वे पैदल ही कहीं चले गए.

यह जानकारी मिलने के बाद देवास के एसपी अंशुमान सिंह ने एएसपी अनिल पाटीदार के नेतृत्व में गठित थानाप्रभारी एस.पी.एस. राघव की टीम को फरार हो चुके दोनों आरोपियों को ढूंढने में लगा दिया. टीम पूरी मेहनत से आरोपियों को खोजने में जुट गई. जिस का नतीजा यह हुआ कि अगले ही दिन मुख्य आरोपी भूरा को पुलिस ने उज्जैन से गिरफ्तार कर लियापूछताछ में हर अपराधी की तरह भूरा ने भी पहले तो किरण को जानने तक से इनकार कर दिया. लेकिन जब पुलिस ने उस से मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो उस ने किन्नर किरण की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने भूरा की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रिवौल्वर और उस के खून सने कपड़े भी बरामद कर लिए. जिस के बाद पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई. आज से कोई 45 साल पहले मध्य प्रदेश के शहर इंदौर में जन्मे चांद से खूबसूरत बच्चे का नाम रखा गया अनीस मोहम्मद अंसारी. लेकिल अंसारी परिवार की खुशियां उस समय मिट्टी में मिल गईं जब उस बच्चे के बड़ा होने पर यह बात सामने आई कि अनीस सामान्य लड़का नहीं बल्कि एक किन्नर है5-7 साल की उम्र से ही उस के चेहरेमोहरे में जनाना भाव आने लगे थे. जिस तरह की नजाकत उस में आने लगी थी, उस जैसी नजाकत और खूबसूरती कई लड़कियों में भी देखने को नहीं मिलती.

किशोरावस्था में पहुंच कर अनीस अपनी सच्चाई समझ चुका था. इसलिए 15-16 साल की उम्र में ही वह इंदौर से दिल्ली चला गया और वहां एक किन्नर जमात में शामिल हो गया. जहां उस का नाम रखा गया किरण. देखते ही देखते किरण दिल्ली की सब से खूबसूरत किन्नर बन गई. जिस के चलते उस ने अपने गुरु के साथ रहते हुए करोड़ों की प्रौपर्टी भी जमा कर ली. इतना ही नहीं गुरु के बाद किरण को ही अपने गुरु की पदवी मिल गई. इस के बाद तो उस के इलाके के किन्नर जो भी कमाई कर के लाते, किरण के हाथ में रख देते थे, जिस से उसे और ज्यादा कमाई होने लगी.

किरण की खूबसूरती लगातार बढ़ती जा रही थी. रंगरूप और शारीरिक बनावट से हर कोई उसे औरत समझने का धोखा खा जाता था. इसलिए दिल्ली में तो उस के दीवाने थे ही, दिल्ली के बाहर भी उस के चाहने वालों की संख्या बढ़ गई. परिवार के इंदौर में रहने के कारण उस का इंदौर में भी आनाजाना लगा रहता था, सो इंदौर में भी उस के दीवानों की संख्या कम नहीं थी. किरण की जिंदगी में महत्त्वपूर्ण बदलाव कुछ साल पहले उस समय आया जब वह श्रीनगर, कश्मीर घूमने गई. इस दौरान वह डल झील में चलने वाले सब से महंगे बोट हाउस में ठहरी. शिकारा का मालिक जहांगीर उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. सो उस ने किरण की खूब मेहमाननवाजी की थी 

जहांगीर के कई शिकारा डल झील में चला करते थे, जिस के चलते श्रीनगर में उस की खासी संपत्ति थी. अपितु जहांगीर उम्र में किरण से छोटा था, लेकिन किरण का जादू उस के ऊपर कुछ यूं चला कि वह उस के सामने अपने प्यार का इजहार करने से खुद को रोक नहीं सका. किरण जानती थी कि जहांगीर उसे औरत समझने की गलती कर यह बात कह रहा है. ऐसे में किरण को पीछे हट जाना था, लेकिन प्यार की तलाश हर किसी को होती है. इसलिए किरण ने उस का प्यार स्वीकार ही नहीं किया बल्कि उस से शादी कर ली. ऐसे में किरण के किन्नर होने की सच्चाई जहांगीर के सामने खुलनी तय थी. सुहागरात के मौके पर इस सच को वह स्वीकार नहीं कर सका. इस का नतीजा यह निकला कि जहांगीर ने किरण को जल्द ही छोड़ दिया. यह बात किरण को बहुत बुरी लगी. वह अपनी खूबसूरती की ऐसी बेइज्जती सहन नहीं कर पाई. लिहाजा उस ने जहांगीर को खत्म करने का फैसला कर लिया

घटना से 2 महीने पहले एक शादी समारोह में किरण और भूरा की उज्जैन में पहली मुलाकात हुई थी. इस मुलाकात में भूरा यह जान गया था कि किरण एक किन्नर है, इस के बावजूद भी वह उस की खूबसूरती पर मर मिटा था. किरण को भी एक मोहरे की तलाश थी. जिस से वह जहांगीर की हत्या करा सके. उसे इस बात की भी जानकारी थी कि नाबालिग उम्र में भूरा हत्या के एक आरोप में जेल जा चुका था. इसलिए मौका देख कर उस ने भी भूरा को निराश नहीं किया

किरण ने जब देखा कि भूरा पूरी तरह से उस के कब्जे में चुका है तो एक दिन उस ने भूरा से जहांगीर की हत्या करने को कहा. इस के लिए उस ने भूरा को 25 लाख रुपए का लालच देने के साथ ढाई लाख रुपए एडवांस में भी दे दिए. भूरा, किरण का दीवाना हो चुका था, सो उस ने जहांगीर की हत्या करने की बात स्वीकार तो कर ली लेकिन कुछ दिनों बाद उसे लगने लगा कि कश्मीर में जा कर वहां के किसी आदमी की हत्या कर के भाग कर वापस आना आसान काम नहीं है. लिहाजा वह काम करने में आनाकानी करने लगाइस पर किरण ने खुद भूरा को धमकी दे डाली. किरण ने उस से कहा कि अगर जहांगीर को मरवाने में 25 लाख खर्च कर सकती है तो तुम जैसों के लिए तो कोई 25 हजार ले कर ही निपटा देगा. यह धमकी दे कर उस ने भूरा पर जहांगीर की हत्या करने के लिए दबाव बनाया

भूरा जानता था कि किरण के पास पैसों की कमी नहीं है, वह पैसों के बल पर उस की हत्या भी करा देगी. इसलिए उस ने अपने दोस्त ऐजाज के साथ मिल कर किरण की हत्या करने की योजना बना डाली. जिस के बाद उस ने 20 फरवरी, 2018 को किरण को देवास बुला कर जहांगीर की फोटो दिखाने को कहा. उस ने किरण से कहा था कि वह जहांगीर का काम करने श्रीनगर जा रहा है. इसलिए पहचान के लिए जहांगीर की फोटो की जरूरत पड़ेगी. किरण ने जहांगीर का फोटो देने के लिए भूरा को देवास बुलाया था. यहां चामुंडा कांपलेक्स स्थित कौफी हाउस में भूरा और किरण की मुलाकात हुई. वहीं पर उस ने भूरा को जहांगीर का फोटो दे दिया था. फोटो देने के बाद लौटते समय वह ठंडी बियर लेने के लिए शराब की दुकान पर रुकी तभी भूरा ने उस की हत्या कर दी.

ड्राइवर मोहम्मद रईस और भूरा से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के दोस्त ऐजाज खान को भी गिरफ्तार कर लिया. फिर तीनों को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक तीनों आरोपियों की जमानत नहीं हो सकी थी.

 

UP Crime : मांबेटी को जलाया जिंदा

UP Crime : उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) (UP Crime) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई. योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

Murder story : पूर्व प्रेमी के लिए पति का मर्डर

Murder story : सुमित श्रीवास्तव से मुलाकात हो जाने के बाद मानसी ने प्रेमी गणेश को छोड़ सुमित से लव मैरिज कर ली. इस दौरान ऐसा क्या हुआ कि कुछ दिनों बाद ही वह फिर से गणेश की बांहों में आने के लिए छटपटाने लगी. इस के लिए मानसी और गणेश ने जो प्लान बनाया, क्या उस में उन्हें कामयाबी मिली? पढ़ें, लव क्राइम की यह कहानी.

गणेश सुमित श्रीवास्तव को ले कर बहुत परेशान था, लेकिन वह समझ नहीं पा रहा था कि क्या करे. एक दिन वह अपने जिगरी दोस्तों दीपक कोली, शिवम गोविंदा और शिव के साथ बैठा था. ये सभी लंगोटिया यार थे. चारों हर शाम एक साथ बैठ कर खातेपीते और मौजमस्ती करते थे. उसी दौरान गणेश ने अपने दिल का दर्द अपने दोस्तों को सुनाया, ”यारो, एक बात को ले कर मैं बहुत परेशान हूं. तुम्हें तो पता ही है कि मैं मानसी को दिलोजान से चाहता हूं. उस से शादी भी करना चाहता हूं. लेकिन इस वक्त सुमित उस के दिलोदिमाग पर राज कर रहा है. यह मुझ से बरदाश्त नहीं होता.’’

अभी गणेश की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी, तभी दीपक कोली बोला, ”अरे यार, इतनी छोटी सी बात के लिए परेशान क्यों हो रहा है. तू चाहे तो तेरे दर्द के कांटे को आज ही सफा कर डालते हैं.’’

”नहीं यार, ये काम इतनी जल्दबाजी के नहीं होते.’’

”अबे यार, तू कैसा प्रेमी है, प्रेम भी करता है और उसे पाने से डरता भी है.’’ गणेश की बात सुनते ही उस के सामने बैठे शिवम ने जबाव दिया.

”नहीं यार, ऐसा कुछ नहीं, बल्कि मैं चाहता हूं कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. मैं मानसी को हर तरह से समझाबुझा कर हार चुका हूं. लेकिन वह सुमित के होते मुझ से शादी करने को तैयार नहीं.’’ गणेश ने कहा.

गणेश की बात सुनते ही उस के सामने बैठा गोविंदा बोला, ”अबे यार, तू भी निरा गोबर गणेश ही है. कोई भी प्यार करने वाली लड़की अपना मुंह नहीं खोलना चाहती. उस का तो एक ही इलाज है, सुमित को ही तुम दोनों के बीच से हटा देते हैं. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’’ शिवम बोला.

तभी गणेश बोला, ”यार, यह काम इतना ईजी भी तो नहीं है, जितना तुम समझ रहे हो.’’

”अरे यार क्या बात करता है, यह काम तू हम पर छोड़ दे. तू तो केवल मुरगा पार्टी का इंतजाम कर. बाकी सब हम पर छोड़ दे.’’ शिवम ने अपनी बात रखी.

उसी शाम पांचों दोस्तों ने सुमित को मौत की नींद सुलाने का प्लान बनाया. गोविंदा ने गणेश को समझाया, ”तू तो किसी भी तरह से सुमित को पार्टी के बहाने बुला लेना. जब सुमित आ जाएगा तो उसे शराब पिलाने के बाद बाकी काम हम कर देंगे. इस के बाद Murder story लाश को नदी में फेंक देंगे. किसी को कुछ पता भी नहीं चलेगा.’’

यह प्लान बनाते ही पांचों ने उस के मर्डर का दिन 14 नबंवर (गुरु पूर्णिमा) के दिन निश्चित कर दिया था. सुमित की मौत की प्लानिंग करने के बाद 13 नबंवर, 2024 को गणेश प्रेमिका मानसी से जा कर मिला. मानसी के पास जाते ही उस ने फिर से उसे समझाने की कोशिश की, ”मानसी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं. मैं तुम से शादी कर तुम्हें अपनी बीवी बनाना चाहता हूं.’’

लेकिन मानसी ने उस की बात का एक ही जबाव दिया, ”गणेश, सुमित के रहते तुम्हारा यह सपना पूरा होने वाला नहीं.’’

”मानसी, अगर तुम्हें पाने के लिए मुझे सुमित के खून से हाथ भी रंगने पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगा.’’ गणेश ने अपना अटूट प्यार दिखाते हुए कहा.

”ठीक है, जो तुम्हें करना है करो, इस में मैं कुछ नहीं बोलूंगी.’’ मानसी ने भी अपने मन की बात गणेश के सामने रख दी थी.

मानसी ने पति को क्यों भेजा मौत के मुंह में

मानसी की बात सुनते ही गणेश समझ गया कि वह भी यही चाहती है. तभी गणेश ने मानसी को बताया, ”14 नवंबर के दिन हम सुमित को एक शानदार पार्टी देंगे और यह पार्टी उस की जिंदगी की आखिरी पार्टी होगी.’’

यह बात मानसी को बता कर गणेश वहां से चला गया. 14 नवंबर, 2024 की शाम को अपने प्लान के मुताबिक गणेश ने मानसी से मुरगा बनाने को कहा. गणेश ने मानसी को समझा दिया था कि जैसे ही सुमित घर आए, उसे मीट ले कर हमारे पास भेज देना. शाम होते ही गणेश ने सुमित श्रीवास्तव को फोन कर बता दिया कि आज रात तुम्हारी पार्टी है. तुम जल्द ही प्रीत विहार (कल्याणी नदी) पहुंचो. लेकिन ज्यादा देर हो जाने के कारण सुमित ने जाने से मना कर दिया. उस वक्त मानसी भी उस के पास ही बैठी थी. तभी मानसी ने सुमित की बात सुनते ही कहा, ”आज शाम गणेश का फोन आया था. कह रहा था कि भाभीजी आज तो तुम्हारे हाथ का बना मुरगा खाने का मन है. हो सके तो शाम को मुरगा बना कर सुमित भैया के हाथ भिजवा देना. शायद तुम्हारे इंतजार में आज उस ने खाना भी न खाया हो.’’

मानसी की बात सुनते ही सुमित उस के बारे में सोचने पर मजबूर हो गया. फिर वह गणेश के पास जाने को तैयार भी हो गया. तब मानसी ने एक टिफिन में मुरगे का मीट और रोटियां भी रख दीं. टिफिन ले कर सुमित प्रीत विहार में कल्याणी नदी के किनारे पहुंच गया. वहां पर गणेश अपने दोस्तों के साथ उस का ही इंतजार कर रहा था. सुमित के पहुंचते ही सभी ने वहीं पर एक साथ बैठ कर शराब पी और मीट भी खाया. शराब पीने के बाद जब सुमित पर नशा हावी हो गया तो पांचों ने मौका पाते ही जूतों के फीते निकाल कर सुमित का गला घोंट दिया. जिस के थोड़ी देर बाद ही उस की मौत हो गई.

उस के बाद भी उन्होंने उस के सिर पर बियर की कई बोतलें फोड़ डालीं, ताकि वह जिंदा न बचे. उस के बाद उन्होंने उस की लाश को नदी में फेंक दिया. फिर पांचों अपनेअपने घर चले गए.

मानसी ने पति की हत्या कराने के बाद क्यों दर्ज कराई रिपोर्ट

उस रात जब सुमित घर वापस नहीं आया तो मानसी समझ गई कि गणेश ने अपना काम पूरा कर दिया है. उस ने उसे फोन इसलिए नहीं किया, क्योंकि वह उसी काल से फंस सकती थी. अगले दिन 15 नवंबर को मानसी ने अपने ससुर को फोन कर बताया कि रात सुमित घर वापस नहीं आया. उन का कहीं अतापता नहीं. मानसी के जरिए से यह बात चारों ओर फैली तो उस के फैमिली वालों ने पड़ोसियों को साथ ले कर सुमित को हर जगह ढूंढा, लेकिन उस का कहीं भी पता न चल सका.

16 नवंबर, 2024 को मानसी रोतीधोती रमपुरा पुलिस चौकी पहुंची, जहां पर उस ने सुमित के गायब होने की तहरीर दी. उस वक्त गणेश भी उस के साथ था. तभी गणेश ने शिवम को फोन कर एक बार सुमित की लाश को देखने को कहा, ताकि वे किसी भी तरह से पकड़ में न आएं. उसी शाम शिवम ने 50 किलोग्राम का नमक का कट्टा खरीदा. फिर शिवम अपने दोस्त शिव और दीपक कोली को साथ ले कर कल्याणी नदी पर पहुंचा. वहां पर पहुंचते ही उन्होंने सुमित की डैडबौडी को उस जगह से उठा कर कुछ दूरी पर ले जा कर गड्ढा खोद कर नमक डालने के बाद दफन कर दिया था.

मानसी की लिखित तहरीर के आधार पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर उस की जांच शुरू की. सब से पहले पुलिस ने सुमित के घर के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की फुटेज चैक की तो उस में वह उस रात अकेला ही घर से निकलता नजर आया. उस के बाद भी पुलिस ने अन्य रास्तों पर भी लगे सीसीटीवी कैमरे चैक किए, लेकिन पुलिस के हाथ कोई सफलता हाथ नहीं लगी. 22 नवंबर को रुद्रपुर के प्रीत विहार के कुछ स्थानीय व्यक्तियों ने नदी के किनारे से तेज स्मैल आने की पुलिस से शिकायत की. लोगों की शिकायत पर पुलिस वहां पर इनवैस्टीगेशन के लिए पहुंची तो नदी किनारे एक ताजा खुदे गड्ढे से स्मैल आने का शक हुआ.

शक के आधार पर पुलिस ने उस गड्ढे को खुदवाना शुरू किया. गड्ढे से थोड़ी मिट्टी हटाने के बाद ही उस में एक इंसान का हाथ नजर आया. उस के बाद गड्ढे को और गहरा खोदा गया तो उस में से नमक निकलनी शुरू हुई. गड्ढे को कोई 5-6 फीट गहरा खोदने पर एक डैडबौडी निकली. गड्ढे से एक व्यक्ति की डैडबौडी मिलने की सूचना से पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई थी. देखते ही देखते घटनास्थल पर भारी भीड़ जमा हो गई थी. पुलिस ने उस डैडबौडी को बाहर निकाल कर उस की जांचपड़ताल की तो उस के एक हाथ पर सुमित श्रीवास्तव नाम गुदा हुआ मिला. सुमित श्रीवास्तव नाम सामने आते ही पुलिस समझ गई थी कि यह वही सुमित है, जिस की गुमशुदगी की रिपोर्ट मानसी नामक युवती ने 16 नवंबर को रमपुरा पुलिस चौकी में दर्ज कराई थी.

गायब सुमित श्रीवास्तव की लाश मिलते ही पुलिस ने फोन द्वारा उस की वाइफ मानसी को इस की सूचना दी. सुमित की लाश मिलने की सूचना पर उस के फैमिली वाले रोतेबिलखते घटनास्थल पर पहुंचे. इस घटना की जानकारी मिलते ही एसपी (सिटी) मनोज कत्याल, सीओ निहारिका तोमर, कोतवाल मनोज रतूड़ी भी घटनास्थल पर पहुंचे. सभी अफसरों ने मौके पर पहुंच कर घटना का जायजा लिया. सुमित के शव की शिनाख्त होते ही पुलिस ने उसे पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया था. घटना की जानकारी मिलते ही पूर्व एमएलए राजकुमार ठुकराल, समाजसेवी संजय ठुकराल, ललित बिष्ट सहित बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने मृतकों के घर वालों को ढांढस बंधाया और पुलिस की काररवाई पर तरहतरह के सवाल भी उठाए.

एसएसपी मणिकांत मिश्रा ने इस केस को सुलझाने के लिए सीओ (सिटी) निहारिका तोमर के निर्देशन में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में कोतवाल मनोज रतूड़ी, एसएसआई ललित मोहन रावल, एसआई नवनी बुधानी, गणेश भट्ट, जितेंद्र कुमार, होशियार सिंह, चंदन बिष्ट, चंद्र सिंह, नेहा राणा, कांस्टेबल महेंद्र कुमार, महेश राम, ताजबीर सिंह, रमेशचंद्र, दलीप कुमार आदि को शामिल किया.

पुलिस को ऐसे मिला हत्या का क्लू

पुलिस टीम ने सुमित की डैडबौडी मिलने के बाद सीसीटीवी कैमरों और सर्विलांस की मदद ली तो गणेश के साथ अन्य व्यक्ति भी जाते नजर आए. उसी दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि गणेश का सुमित के घर पहले से आनाजाना था. इस जानकारी के मिलते ही पुलिस ने गणेश को पूछताछ के लिए उठा लिया. पुलिस ने गणेश से इस मामले में सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना मुंह तक नहीं खोला. जबकि पुलिस पहले ही उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर उस की हकीकत जान चुकी थी. पुलिस को मानसी और उस के मोबाइल पर काफी समय तक बात होने के सबूत Murder story भी मिले. इस से साफ हो गया था कि मानसी और उस के बीच जरूर पहले से ही कुछ खिचड़ी पक रही थी.

जब काफी पूछताछ के बाद भी गणेश सच्चाई बताने को तैयार नहीं हुआ तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की. जिस के तुरंत बाद ही वह लाइन पर आ गया. उस ने स्वीकार किया कि मानसी और उस के बीच काफी समय से अवैध संबंध चले आ रहे थे. उसी ने मानसी को एक मोबाइल भी खरीद कर दिया था, ताकि दोनों के बीच बातचीत होती रहे. गणेश ने स्वीकार किया कि मानसी उस की पहली मोहब्बत थी. इसीलिए वह उस पर काफी पैसा लुटा चुका था. वह उस से शादी करना चाहता था. उस की चाहत में उस ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर सुमित को मौत के घाट उतार दिया था.

यह इनफार्मेशन मिलते ही पुलिस ने उस के दोस्तों में से दीपक कोली, शिवम और शिव को भी गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्तों व सुमित के फैमिली वालों से पूछताछ के बाद इस केस की जो स्टोरी सामने उभर कर आई, वह इस प्रकार थी. बहुत समय पहले मानसी और गणेश की फैमिली उत्तराखंड के शहर रुद्रपुर के रमपुरा में पासपास ही रहती थीं. यही कारण था कि मानसी और गणेश बचपन से ही एक साथ खेलेकूदे थे. उन की शिक्षा भी एक ही स्कूल में हुई थी. मानसी और गणेश दोनों ही साथसाथ स्कूल आतेजाते थे. कक्षा एक से कक्षा 5 तक दोनों एक साथ पढ़े थे. इसी कारण दोनों में गहरी दोस्ती थी.

कक्षा 5 तक आतेआते दोनों के बीच प्रेम प्रसंग भी हो गया था. उस के बाद दोनों के स्कूल अलगअलग हो गए थे, लेकिन स्कूल से लौटने के बाद दोनों एक साथ ही खेलते और पढ़ाई भी करते थे. उसी दौरान मानसी की मुलाकात सुमित श्रीवास्तव से हुई. सुमित उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के गांव मसवासी मानपुर के राजू श्रीवास्तव का बेटा था. अब से लगभग 15 साल पहले राजू श्रीवास्तव की पत्नी का किसी बीमारी के चलते देहांत हो गया था. पत्नी की डैथ के बाद राजू श्रीवास्तव ने ही अपने पांचों बच्चों की परवरिश की थी.

3 भाई और 2 बहनों में सुमित सब से बड़ा था. राजू श्रीवास्तव की एक बहन उत्तराखंड के शहर रुद्रपुर की रमपुरा कालोनी में रहती थी. अब से कई साल पहले सुमित अपनी बुआ के साथ रुद्रपुर घूमने आया था. उस के बाद उस का मन यहीं पर लग गया. जिस के बाद वह बुआ के पास ही रहने लगा था. घर के आसपास रहते हुए जल्दी ही उस की दोस्ती मानसी से हो गई थी. कुछ समय तक तक मानसी, गणेश और सुमित एक साथ ही खेले. उसी दौरान मानसी का लगाव सुमित श्रीवास्तव की और बढऩे लगा था. जिस के बाद वह गणेश में कम दिलचस्पी लेने लगी थी.

उस समय तक मानसी जवानी की दहलीज पर आ खड़ी हुई थी. वह जन्म से ही भरे बदन की युवती थी. वक्त बदलते सुमित का मन भी मचल उठा. दोनों के दिलों में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ी तो दोनों एकदूसरे के साथ अपनी दुनिया बसाने के सपने संजोने लगे थे. समय की चाल बढ़ते ही दोनों प्यार की दीवार को लांघ कर हदों को पार करने लगे थे. नतीजा यह निकला कि कुछ ही दिनों में दोनों के प्यार के चर्चे समाज के सामने आ गए.जब इस बात की जानकारी मानसी के फैमिली वालों को हुई तो उन्हें बहुत बड़ा झटका लगा. पहले तो उन्होंने उसे समझाने की कोशिश की, उस के बाद सुमित की बुआ से भी उस की शिकायत की. सुमित की बुआ ने भी उसे समझाने की कोशिश की. लेकिन दोनों पर किसी की बात का कोई असर नहीं पड़ा. दोनों छिपछिप कर मिलने लगे.

उसी वक्त मानसी ने एक मुलाकात में सुमित के सामने अपने दिल की बात रखते हुए कहा, ”सुमित, क्यों न हम कहीं बाहर जा कर शादी कर लें. उस के बाद हम दोनों आजादी से साथसाथ रहेंगे.’’

जब एक मोड़ पर मिला पुराना प्रेमी

चाहता तो सुमित भी यही था, लेकिन वह अपनी तरफ से हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था. यही सोचते एक दिन दोनों ने आखिरी निर्णय लिया. अब से लगभग 8 साल पहले दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली. शादी करने के बाद दोनों ही मुरादाबाद शहर में रहने लगे थे. सुमित वहीं पर एक कारखाने में नौकरी करने लगा था. कुछ दिन मुरादाबाद में रहने के बाद सुमित मानसी को साथ ले कर रामपुर चला गया. कुछ वक्त दोनों का रामपुर में गुजरा. फिर सुमित मानसी को ले कर रुद्रपुर के ट्रांजिट कैंप कालोनी रमपुरा में आ कर रहने लगा. रुद्रपुर में मानसी ने एक बेटे को जन्म दिया.

उसी समय सुमित ने एक आटोरिक्शा खरीद लिया था और उसी को चला कर वह अपनी रोजीरोटी चलाने लगा था. आटो चलाने के दौरान सुमित को शराब की लत लग गई थी, जिस के बाद वह अपनी आधी से ज्यादा कमाई शराब में ही खर्च कर डालता था. मानसी ने उसे कई बार समझाने की कोशिश की, लेकिन वह उस की एक भी बात मानने को तैयार नहीं था. बात बढऩे पर वह मानसी के साथ गालीगलौज करते हुए उसे मारनेपीटने भी लगा था. सुमित की हरकतों से आजिज आ कर मानसी का उस के प्रति पनपा प्यार भी फीका पडऩे लगा था. वह उसे खर्च के लिए पैसे देने में भी आनाकानी करने लगा था. जिस के कारण वह हमेशा ही अपने दिल के अरमानों को मसोस कर रह जाती थी. उसी समय एक दिन उस की फिर से मुलाकात गणेश से हो गई.

शाम का वक्त था. गणेश बाजार से अपने घर की ओर जा रहा था. उसी समय रास्ते के चौराहे पर उस की नजर एक युवती पर पड़ी. जैसे ही उस की बाइक उस युवती के पास से गुजरी, उस ने एक तिरछी नजर उस युवती पर डाली. उसे देखते ही वह सकपका गया, ”मानसी यहां!’’

उस ने अपनी बाइक साइड में लगा कर रोक दी. जैसे ही वह युवती उस के पास पहुंची, गणेश बोला, ”मानसी, तुम यहां कैसे? इस वक्त तुम कहां जा रही हो?’’

यूं अचानक गणेश को सामने खड़ा देख जैसे मानसी का रोमरोम खिल उठा था.

”अरे गणेश, तुम कैसे हो?’’

मेरी छोड़ो, तुम अपनी सुनाओ. तुम तो सुमित से शादी करने के बाद शहर छोड़ कर चली गई थी. फिर अचानक यहां कैसे?’’

”अब सारी राम कहानी यहीं पर सुनोगे, आगे नहीं बढ़ोगे.’’

गणेश ने अपनी बाइक सड़क के किनारे खड़ी कर दी. तभी मानसी ने गणेश से सवाल किया, ”अब इस वक्त तुम कहां रह रहे हो?’’

”मैं तो अभी भी रमपुरा में ही रह रहा हूं, मुझे यह शहर छोड़ कर कहां जाना है.’’

”अच्छा, मैं भी तो उसी कालोनी में रह रही हूं. आओ, तुम्हें अपना कमरा दिखाती हूं. वही बैठ कर कुछ बातचीत करेंगे.’’

मानसी को पाने के लिए गणेश ने क्यों चुना खतरनाक रास्ता

मानसी की बात सुनते ही उस का मन हिचकोले लेने लगा था. उस के बाद मानसी उसे सीधे अपने कमरे पर ले गई. गणेश उस दिन खुशी से फूला नहीं समा रहा था. जब बरसों बाद दोनों एक साथ बैठे तो बातों का सिलसिला चालू हुआ. मानसी की कहानी सुन कर गणेश समझ गया था कि वह अपने पति सुमित के साथ खुश नहीं है. शादी के इतने साल बाद भी वह उस की महत्त्वाकांक्षाओं को समझ नहीं पाया था. यही कारण था कि इतने साल बाद भी गणेश से मिलने के बाद उस की चाहत की घंटी फिर से बज उठी थी. गणेश को देखते ही उसे लगने लगा था कि वही उस के ख्वाबों को हकीकत में बदल सकता है. तभी मानसी ने गणेश को प्यार की हरी झंडी भी दिखा दी थी.

उसी वक्त मानसी ने गणेश को बता दिया था कि उस का पति सुमित आटोरिक्शा चलाता है, जो देर रात ही घर पहुंचता है. गणेश के जाने से पहले मानसी ने उसे अपना मोबाइल नंबर देने के बाद उस का नंबर भी अपने मोबाइल में सेव कर लिया था. मानसी को देखते ही उस के मन में ऐसा भूचाल आया कि उस ने घर पहुंचते ही उसे फोन कर दिया था. शायद वह भी जैसे उस के फोन का ही इंतजार कर रही थी. कुछ देर इधरउधर की बातें करने के बाद मानसी ने अपने दिल की बात गणेश के सामने रख दी थी. गणेश के मन में भी वही सब खिचड़ी पक रही थी. मानसी से बात कर के उस का मन बहुत ही हलका महसूस हो रहा था. उसे लगा कि उस का पहला प्यार फिर से उस की झोली में आ पड़ा है.

उस दिन के बाद दोनों ही फोन पर एकदूसरे से बात करने लगे थे. सुमित के घर से निकलते ही मानसी फोन कर के उसे अपने कमरे पर बुला लेती थी. उस के बाद दोनों शहर में मौजमस्ती करने निकल जाते. यह सिलसिला दोनों के बीच काफी समय तक चलता रहा. एक दिन मानसी ने उस की मुलाकात सुमित से भी करा दी थी. सुमित पहले से जानता था कि गणेश उन के पड़ोस में रहता है. सुमित और गणेश दोनों ही शराब के शौकीन थे. यही कारण रहा कि जल्दी ही दोनों के बीच गहरी दोस्ती भी हो गई थी.

गणेश रेनू का बचपन का दोस्त था. उसी कारण दोनों के बीच जल्दी संबंध हो गए थे. उस के बाद गणेश ने ही उस का सारा खर्च उठाना शुरू कर दिया था.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने मानसी, उस के प्रेमी गणेश चंद्रा, वंश, दीपक कोली और शिवम निवासी रमपुरा को गिरफ्तार करने के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था. जबकि एक आरोपी गोविंदा घर से फरार हो गया था, जिस की पुलिस तलाश कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में मानसी परिवर्तित नाम है.

कीवर्ड (लव क्राइम)

 

Social Crime Stories : 5 लाख रुपए के डिमांड ड्राफ्ट से हुई लाश की पहचान

Social Crime Stories : उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से पहाड़ों की रानी मंसूरी जाने वाले राजपुर रोड पर आनंदमयी आश्रम के पास पड़ी लाश पर सुबहसुबह किसी की नजर पड़ी तो धीरेधीरे  वहां भीड़ लग गई. एकदूसरे को देख कर उत्सुकतावश लोग वहां रुकने लगे थे. लाश देख कर सभी के चेहरों पर दहशत थी. इस की  वजह यह थी कि लाश देख कर ही लग रहा था कि उस की हत्या की गई थी. किसी ने लाश पड़ी होने की सूचना थाना राजपुर को दी तो थानाप्रभारी अमरजीत सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए थे. लाश और घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. मृतक की उम्र 50 साल के आसपास थी. उस के गले पर दबाए जाने का निशान साफ झलक रहा था. इस का मतलब था कि उस की हत्या गला दबा कर की गई थी. उस की कनपटी पर भी चोट का निशान था.

मामला हत्या का था और यह भी साफ था कि हत्यारों ने कहीं और हत्या कर के शव को यहां ला कर फेंका था. क्योंकि वहां संघर्ष का कोई निशान नहीं था. फिर उस व्यस्त मार्ग पर किसी की हत्या करना भी आसान नहीं था. कब कौन सा मामला पुलिस के लिए महत्त्वपूर्ण बन जाए, इस बात को खुद पुलिस भी नहीं जानती. हत्या की वारदात में जांच को आगे बढ़ाने के लिए मृतक की पहचान जरूरी होती है. इसलिए सब से पहले पुलिस ने वहां एकत्र लोगों से लाश की शिनाख्त करानी चाही. लेकिन जब कोई उस की पहचान नहीं कर सका तो पुलिस ने इस आशय से उस की जेबों की तलाशी ली कि शायद ऐसा कुछ मिल जाए, जिस से उस की शिनाख्त हो सके.

पुलिस की यह युक्ति काम कर गई. तलाशी में उस के पास से 2 मोबाइल फोन, एटीएम कार्ड और कुछ कागजात के साथ 5 लाख रुपए का एक डिमांड ड्राफ्ट मिला. इस सब से मृतक की पहचान हुई तो पुलिस विभाग में हड़कंप मच गया, क्योंकि मृतक राज्य के रसूखदार कृषि मंत्री हरक सिंह रावत का निजी सचिव रहा था. वैसे तो वह जिला रुद्रप्रयाग के जखोली ब्लाक का रहने वाला था, लेकिन देहरादून में वह यमुना कालोनी स्थित हरक सिंह रावत के सरकारी आवास में रहता था.

घटना की सूचना पा कर एसएसपी केवल खुराना, एसपी (सिटी) डा. जगदीशचंद्र और सीओ (मंसूरी) जया बलूनी भी घटनास्थल पर पहुंच गए थे. घटनास्थल से पुलिस को ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला था, जिस से हत्यारों तक पहुंचा जा सकता. पुलिस ने लाश का पंचनामा भर कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. मृतक का नाम युद्धवीर था. चूंकि वह एक मंत्री से जुड़ा था, इसलिए राजनीतिक गलियारों में सनसनी फैल गई. यह 1 अगस्त, 2013 की घटना थी.

मामला राजनीतिक व्यक्ति से जुड़ा था, इसलिए पुलिस की जवाबदेही बढ़ गई थी. पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू और आईजी (कानून व्यवस्था) राम सिंह मीणा ने इस मामले का जल्द से जल्द खुलासा करने के निर्देश दिए. डीआईजी अमित कुमार सिन्हा ने अधीनस्थ अधिकारियों से बातचीत कर के जांच में थाना पुलिस की मदद के लिए स्पेशल औपरेशन गु्रप के प्रभारी रवि सैना को भी टीम के साथ लगा दिया था. सूचना पा कर मृतक युद्धवीर का भाई प्रदीप रावत देहरादून आ गया था. जिस की ओर से थाना राजपुर में अज्ञात हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया था.

अब तक की जांच में पता चला था कि युद्धवीर 2 मोबाइल नंबरों का उपयोग करता था. ये दोनों ही नंबर  ड्यूअल सिम वाले मोबाइल में उपयोग में लाए जाते थे. पुलिस ने दोनों ही नंबरों की काल डिटेल्स और लोकेशन निकलवा ली. पूछताछ में पता चला था कि 9 अगस्त को वह सुबह ही घर से निकल गए थे. चलते समय उन्होंने कोठी के माली का मोबाइल फोन मांग लिया था. ऐसा उन्होंने पहली बार किया था.

पुलिस ने उन लोगों से पूछताछ शुरू की, जिन की युद्धवीर से 8 अगस्त को बात हुई थी. उन्हीं में से एक बलराज था. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में बलराज ने पुलिस को बताया था कि उस ने एसजीआरआर मैडिकल कालेज में अपनी भांजी का एडमिशन कराने के लिए युद्धवीर से बात की थी. इस के लिए उस ने उस से 60 लाख रुपए मांगे थे. उस ने उन्हें 5 लाख रुपए का ड्राफ्ट और 14 लाख रुपए नकद दे भी दिए थे. बाकी रकम एडमिशन होने के बाद देनी थी. लेकिन एडमिशन नहीं हुआ तो वह अपने 14 लाख रुपए वापस मांगने लगा था.

उन्हीं पैसों के लिए बलराज भी सुबह उस के पास गया था. तब उस ने उस से कहा था कि वह उस का इंतजार करे. आज वह एडमिशन करा कर आएगा या फिर पैसे वापस ले कर आएगा. कई घंटे तक वह उस का इंतजार करता रहा. जब वह नहीं आया तो उस ने उसे कई बार फोन किया. लेकिन उस ने कोई जवाब नहीं दिया. तब वह लौट गया था. रात में उस के मोबाइल फोन का स्विच औफ हो गया था.

आवास पर रहने वाले अन्य लोगों ने भी पुलिस को बताया था कि बलराज वहां आया था. उन्हीं लोगों से पूछताछ में पता चला था कि युद्धवीर दोपहर 2 बजे तक कृषि मंत्री हरक सिंह रावत के पीएसओ प्रदीप चौहान के साथ था. उस ने कहीं जाने की बात कही थी तो प्रदीप चौहान ने उसे 3 बजे के आसपास दरबार साहिब पर छोड़ा था. अंतिम लोकेशन और पूछताछ से पता चला था कि युद्धवीर शाम 6 बजे चकराता रोड स्थित नटराज सिनेमा के बाहर दिखाई दिया था.

मृतक राजनीतिक आदमी से तो जुड़ा ही था, उस का अपना भी राजनीतिक वजूद था. वह रुद्रप्रयाग के अगस्त्य मुनि क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य और जखोली ब्लाक का ज्येष्ठ प्रमुख भी रह चुका था. मंत्री हरक सिंह रावत ने भी उस के परिजनों को सांत्वना दे कर घटना का शीघ्र से शीघ्र खुलासे का आश्वासन दिया था. हत्या को ले कर रंजिश, राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और प्रेमप्रसंग Social Crime Stories को ले कर चर्चाएं हो रही थीं. पुलिस को लूटपाट की भी संभावना लग रही थी. लेकिन यह बात समझ में नहीं आ रही थी कि वह माली का मोबाइल फोन मांग कर क्यों ले गया था.

पुलिस ने अपना सारा ध्यान इसी बात पर केंद्रित कर दिया. जांच में यह भी पता चला था कि युद्धवीर छात्र छात्राओं के एडमिशन कराने का काम करता था. ऐसे में यह भी संभावना थी कि एडमिशन न होने से खफा हो कर किसी व्यक्ति ने उस की हत्या कर दी हो. तरहतरह के सवाल उठ रहे थे, जिन का माकूल जवाब पुलिस के पास नहीं था. जांच कर रही पुलिस टीम के हाथ एक सुबूत यह लगा था कि युद्धवीर को चकराता रोड पर जब अंतिम बार देखा गया था, तब उस के साथ एक महिला थी. अब पुलिस को यह पता लगाना था कि वह महिला कौन थी? पुलिस ने काल डिटेल्स की बारीकी से जांच की तो उस में देहरादून के ही पौश इलाके इंदिरानगर की रहने वाली सुधा पटवाल का नंबर सामने आया.

पुलिस ने उस के बारे में पता किया तो मिली जानकारी चौंकाने वाली थी. सुधा प्रौपर्टी डीलिंग से ले कर मैडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में एडमिशन कराने वाली शहर की जानीमानी रसूखदार लौबिस्ट थी. कई राजनैतिक लोगों से भी उस के घनिष्ठ रिश्ते थे. पुलिस को उस पर शक हुआ तो उस के मोबाइल फोन की लोकेशन और काल डिटेल्स निकलवाई. इस से पता चला कि उस के मोबाइल की लोकेशन चकराता रोड और लाश मिलने के स्थान की भी थी. इस के साथ एक और मोबाइल की लोकेशन मिल रही थी, जिस से सुधा की लगातार बात होती रहती थी.

उस नंबर के बारे में पता किया गया तो वह नंबर हरिओम वशिष्ठ उर्फ बिट्टू का निकला. वह उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ के थाना नौचंदी के शास्त्रीनगर के रहने वाले बृजपाल का बेटा था. उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा कर एक पुलिस टीम उस की गिरफ्तारी के लिए निकल पड़ी. आखिर सर्विलांस से मिल रही लोकेशन के आधार पर पुलिस ने सुधा और हरिओम को हिरासत में ले लिया.

पहले तो सुधा ने अपने राजनीतिक संपर्कों की धौंस दिखा कर पुलिस को रौब में लेने कोशिश की थी. लेकिन पुलिस के पास ऐसे सुबूत थे कि उस की यह धौंस जरा भी नहीं चली. फिर तो पूछताछ में उस ने पुलिस के सामने जो खुलासा किया, सुन कर पुलिस दंग रह गई. दरअसल युद्धवीर की हत्या की साजिश सुधा ने ही रची थी. उस ने शातिर चाल चल कर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की थी.

सुधा और हरिओम से की गई पूछताछ में युद्धवीर की हत्या की चौंकाने वाली जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी. मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला बुलंदशहर की रहने वाली सुधा का परिवार कई साल पहले मेरठ में आ कर बस गया था. मेरठ आने के बाद सुधा ने देहरादून के रहने वाले देवराज पटवाल से विवाह कर लिया था. देवराज कंप्यूटर इंस्टिट्यूट तो चलाता ही था, साथ ही कंप्यूटर का बिजनेस भी करता था. वह बड़ेबड़े व्यापारिक और सरकारी संस्थानों में कंप्यूटर सप्लाई करता था.

सुधा बेहद महत्त्वाकांक्षी और शातिर दिमाग महिला थी. अंगे्रजी के अलावा फे्रंच पर भी उस की अच्छी पकड़ थी. जिंदगी को जीने का उस का अपना एक अलग ही अंदाज था. उसे रसूख भी पसंद था और ऊंचे ओहदे वाले लोगों से रिश्ता भी. इस के लिए वह कांगे्रस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर के रसूख वाले लोगों से संपर्क बनाने लगी.

पैसे कमाने के लिए सुधा पार्टटाइम प्रौपर्टी डीलिंग के साथसाथ छात्रछात्राओं के बड़े कालेजों में एडमिशन कराने लगी. करीब 4 साल पहले सुधा के पति देवराज को लकवा मार गया, जिस से वह चलनेफिरने में लाचार हो गया. इस का असर उस के बिजनेस पर पड़ा. घटतेघटते एक दिन ऐसा आया कि उस का बिजनेस पूरी तरह से बंद हो गया.

पति के बिस्तर पर पड़ने के बाद सुधा आजाद हो गई. दौड़धूप कर के उस ने तमाम छोटेबड़े नेताओं से संबंध बना लिए. इस का उसे लाभ भी मिलने लगा. संपर्कों की ही वजह से उस का दलाली का काम बढि़या चल निकला. अब सब कुछ सुधा के हाथ में था. उस की एक बेटी थी, जो दिल्ली से बीटेक कर रही थी. वह बेटी को पढ़ाई के लिए विदेश भेजना चाहती थी. सुधा की पकड़ मोहल्ले से ले कर सत्ता के गलियारों तक हो गई थी. दलाली की कमाई से वह ठाठबाट से रह रही थी. इंदिरानगर की वह जिस कोठी में रहती थी, उस का किराया 20 हजार रुपए महीने था. ऐशोआराम की जिंदगी के लिए वह पैसा पानी की तरह बहाती थी. लोगों पर रौब गांठने के लिए वह नेताओं से अपने संबंधों की धमकी देती थी.

हरक सिंह रावत के यहां भी सुधा का आनाजाना था. इसी आनेजाने में उस की मुलाकात युद्धवीर से हुई तो बातचीत में पता चला कि वह भी एडमिशन कराता है. दोनों की राह एक थी, इसलिए उन में अच्छी पटने लगी. जुलाई में युद्धवीर ने मैडिकल कालेज में एडमिशन कराने की बात की तो उस ने 60 लाख रुपए मांगे. युद्धवीर ने एडमिशन कराने के लिए 14 लाख रुपए एडवांस के रूप में सुधा को दे दिए. लेकिन दिक्कत तब आई, जब एडमिशन नहीं हुआ. ये 14 लाख रुपए बलराज के थे. वह अपने रुपए वापस मांगने लगा तो युद्धवीर सुधा को टोकने लगा.

सुधा इस पेशे की खिलाड़ी थी. ऐसे लोगों को टरकाना उसे अच्छी तरह आता था. इसी तरह के एक मामले में उस पर थाना पिलखुआ में ठगी का एक मुकदमा भी दर्ज हो चुका था. लौबिस्ट के रूप में उस की पहचान बन चुकी थी, इसलिए तमाम लोग उस के पास एडमिशन के लिए आते रहते थे. ऐसे में इस तरह की बातें उस के लिए आम थीं. हरिओम वशिष्ठ भी उस का ऐसा ही शिकार था. सुधा से उस की मुलाकात मेरठ में हुई थी. बातचीत में उस ने हरिओम से देहरादून में प्रौपर्टी में पैसा लगाने को कहा. सुधा की बातचीत और ठाठबाट से हरिओम समझ गया कि यह बेहद प्रभावशाली महिला है. कुछ महीने पहले देहरादून के झाझरा इलाके में 4 बीघा जमीन दिलाने के नाम पर सुधा ने हरिओम से 8 लाख रुपए ले लिए.

बाद में जमीन के कागज फर्जी निकले तो हरिओम को अपने ठगे जाने का भान हुआ. उस ने सुधा से रुपए मांगे तो वह उसे टरकाने लगी. लेकिन हरिओम भी कमाजेर नहीं था. वह उस के पीछे पड़ गया. मजबूर हो कर सुधा ने गहने बेच कर उस के 3 लाख रुपए लौटाए, बाकी रुपए देने का वादा कर लिया. हरिओम को सुधा झेल ही रही थी. अब युद्धवीर वाला मामला भी फंस गया था. दोनों ही पैसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बना रहे थे. हरिओम रकम डूबने से काफी खफा था. वैसे तो इस तरह के मामले सुधा अपने रसूख के बल पर दबा देती थी, लेकिन युद्धवीर और हरिओम का मामला ऐसा था, जिस में उस का रसूख काम नहीं कर रहा था. उस की परेशानी तब और बढ़ गई, जब जुलाई के अंतिम सप्ताह में हरिओम ने उसे फोन कर के पैसे वापस करने के लिए धमकी दे दी.

हरिओम की धमकी से सुधा की चिंता बढ़ गई. वह समझ गई कि अगर उस ने हरिओम के पैसे नहीं लौटाए तो वह कुछ भी कर सकता है. आदमी के दिमाग में कब क्या आ जाए, कोई नहीं जानता. परेशानी में दिमाग बचाव के लिए तरहतरह के रास्ते खोजता है. सुधा भी बचाव के Social Crime Stories लिए दिमाग दौड़ाने लगी. फिर उस के दिमाग में जो आया, उस से उसे लगा कि इस से वह सुकून से रह सकेगी. इंसान की फितरत भी है कि वह अपने हिसाब से सिर्फ अपने पक्ष में ही सोचता है. ऐसे में उसे गलत रास्ता भी सही नजर आता है. सुधा के साथ भी ठीक ऐसा ही हो रहा था.

सुधा का एक आपराधिक प्रवृत्ति का दोस्त था उमेश चौधरी. वह हरिद्वार के थाना कनखल के रहने वाले मदनपाल का बेटा था. उस के खिलाफ अलगअलग जिलों में हत्या के 4 मुकदमे दर्ज थे. उमेश की दोस्ती सुधा से भी थी और हरिओम से भी. बात कर के सुधा ने युद्धवीर को खत्म करने के लिए उमेश को 5 लाख रुपए की सुपारी दे दी. रकम काम होने के बाद देना था.

उमेश तैयार हो गया तो सुधा ने कहा, ‘‘तुम्हें हरिओम के साथ ही देहरादून आना है, लेकिन तुम इस बारे में उसे कुछ नहीं बताओगे.’’

‘‘सुपारी ली है मैडम तो बात भी मानूंगा.’’ उमेश ने कहा.

इस के बाद सुधा ने हरिओम को फोन किया, ‘‘1 अगस्त को तुम देहरादून आ जाना. इंतजाम कर के तुम्हारे पैसे दे दूंगी.’’

सुधा की इस बात से खुश हो कर हरिओम ने कहा, ‘‘इस बार मुझे मेरे पूरे पैसे देने होंगे.’’

‘‘ठीक है, हरिओम मैं खुद ही तुम्हारे पैसे दे देना चाहती हूं. लेकिन मेरी भी कुछ मजबूरियां हैं. और हां, तुम एक काम करना.’’

‘‘क्या?’’

‘‘आते समय अपने साथ उमेश को भी लेते आना.’’

‘‘ठीक है.’’ इस के बाद फोन काट दिया गया.

1 अगस्त को हरिओम अपनी स्कार्पियो से पहले हरिद्वार पहुंचा और वहां से उमेश को ले कर देहरादून पहुंच गया. वह उमेश के साथ त्यागी रोड स्थित एक होटल में ठहरा. सुधा हरिओम से मिलने आई तो 3-4 दिनों में उस ने रुपए देने की बात कही. इस के बाद भी सुधा की हरिओम से मोबाइल पर तो बात होती ही रहती थी, वह उस से मिलने भी आती रही. वह हरिओम को एकएक दिन कर के टाल रही थी. 8 अगस्त को हरिओम ने हरिद्वार के रहने वाले अपने दोस्त संजीव को फोन कर के बुला लिया. उसी दिन सुधा ने हरिओम को बताया कि उसे युद्धवीर की हत्या करनी है, क्योंकि युद्धवीर को 14 लाख रुपए वापस करने हैं. अगर उस ने उस के पैसे नहीं लौटाए तो वह उस की हत्या करा देगा. इस काम में उसे उस का साथ देना होगा. इस के बाद वह उस के बाकी पैसे वापस कर देगी.

उसी बीच उमेश ने सुधा का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘क्या फर्क पड़ता है यार हरिओम. मुझे इस काम के लिए मैडम ने 5 लाख रुपए देने को कहा है. काम होने पर उस में से मैं आधे तुम्हें दे दूंगा. इस के अलावा तुम्हें अपनी डूबी रकम भी मिल जाएगी. इसलिए तुम्हें मैडम का साथ देना चाहिए.’’

हरिओम इस बात से बेखबर था कि युद्धवीर की हत्या Social Crime Stories का उमेश से पहले ही सौदा हो चुका है. आखिर कुछ देर की बातचीत के बाद हरिओम साथ देने को तैयार हो गया. सुधा का सोचना था कि युद्धवीर की हत्या के बाद उसे 14 लाख रुपए वापस नहीं करने पड़ेंगे. इस के अलावा अगर युद्धवीर का लाया एडमिशन हो गया तो 60 लाख में से बाकी के 46 लाख रुपए भी उसे मिल जाएंगे. इस के बाद वह हरिओम को भी ब्लैकमेल करतेहुए उस के रुपए देने से मना कर देगी.

8 अगस्त को बलराज अपने पैसे लेने आया तो युद्धवीर ने सुधा को फोन किया. सुधा ने उसे गुरुद्वारा साहिब पहुंचने को कहा. प्रदीप चौहान ने उसे गुरुद्वारा साहिब छोड़ दिया. इस के बाद सुधा ने उसे चकराता रोड आने को कहा. उस ने हरिओम को भी वहीं बुला लिया था. हरिओम अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से था, जबकि सुधा अपनी स्कूटी से आई थी. उस ने हरिओम का परिचय छद्म नाम से कराते हुए युद्धवीर से कहा, ‘‘यह अनिल श्रीवास्तव हैं.यही कालेज के एडमिशन हेड हैं. इन्हीं को मैं ने 14 लाख रुपए दिए थे. हमें राजपुर रोड चलना होगा. वहीं यह हमें पैसे देंगे.’’

युद्धवीर को क्या पता था कि उसे जाल में उलझाया जा रहा है. पैसों के लिए वह साथ चलने को तैयार हो गया. सुधा युद्धवीर को स्कूटी से ले कर आगेआगे चलने लगी तो उस के पीछेपीछे हरिओम भी अपने साथियों के साथ स्कार्पियो से चल पड़ा. राजपुर रोड पर आ कर सभी रुक गए. सुधा ने अपनी स्कूटी वहीं खड़ी कर दी और गाड़ी चला रहे हरिओम के बगल वाली सीट पर बैठ गई. युद्धवीर पिछली सीट पर उमेश और संजीव के साथ बैठ गया. स्कार्पियो एक बार फिर चल पड़ी. उन लोगों के मन में क्या है, युद्धवीर को पता नहीं था. चलते हुए ही युद्धवीर ने रुपए लौटाने की बात शुरू की तो सुधा का चेहरा तमतमा उठा.

सुधा के इस अंदाज और अंजान लोगों के साथ होने से युद्धवीर को उस पर शक हुआ तो उस ने भागना चाहा. लेकिन स्कार्पियो के दरवाजे से सिर टकरा जाने की वजह से वह गाड़ी के अंदर ही गिर गया. तभी उमेश ने उस के गले में रस्सी डाल कर एकदम से कस दिया. युद्धवीर जान बचाने के लिए छटपटाया, लेकिन उन की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वह कुछ नहीं कर सका. अंतत: उस की मौत हो गई. युद्धवीर की हत्या कर के वे उस की लाश को सहस्रधारा नदी की उफनती धारा में फेंकना चाहते थे. युद्धवीर की लाश को उन्होंने बाएं दरवाजे की ओर इस तरह बैठा दिया कि देखने वाले को लगे कि वह सो रहा है. युद्धवीर के मोबाइल फोन जेब से निकाल कर स्विच औफ कर दिए.

रास्ते में एक जगह पुलिस वाहनों की चैकिंग कर रही थी, जिसे देख कर हरिओम घबरा गया और आगे जाने से मना कर दिया. सुधा और उमेश ने उसे बहुत समझाया, लेकिन वह नहीं माना और गाड़ी घुमा ली. लौटते हुए ही उन्होंने लाश आनंदमयी आश्रम के पास सड़क के किनारे फेंक दी. सुधा अपनी स्कूटी ले कर अपने घर चली गई, जबकि हरिओम, उमेश और संजीव स्कार्पियो से हरिद्वार चले गए.

युद्धवीर की हत्या कर सुधा निश्चिंत हो गई कि अब उसे किसी के पैसे नहीं देने पड़ेंगे. उसे विश्वास था कि अगर उस का नाम सामने आया भी तो अपने Social Crime Stories प्रभाव से वह छूट जाएगी. लेकिन उस के मंसूबों पर पानी फिर गया. हरिओम और सुधा से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त रस्सी भी बरामद कर ली. पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने उमेश को भी गिरफ्तार कर लिया. जबकि संजीव हरिद्वार में अपने खिलाफ पहले से दर्ज छेड़छाड़ के एक मामले की जमानत रद्द करवा कर जेल चला गया. कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हुई थी. सुधा ने महत्त्वाकांक्षाओं में जिंदगी को न उलझाया होता और युद्धवीर ने उस पर विश्वास न किया होता तो शायद यह नौबत न आती.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

महिला ने लगाया आरोप काली गाड़ी में हुआ गैंगरेप

Gang Rape Case  : नगेश शर्मा, रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें ब्लैकमेल करना चाहता था. इस के लिए उस ने शालू को मोहरा बनाया, शालू ने दोनों पर बलात्कार का आरोप भी लगाया पर…

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए. सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए. पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

बेहोश करके किया सामूहिक दुष्कर्म

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने का बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया. वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक Gang Rape Case दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा. पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

काम दिलाने के नाम पर ले गया

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था. उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ. बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था. चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

पुलिस को हुआ शालू की बातों पर शक

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया. रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. चूंकि Gang Rape Case दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमनासामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी. जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

पुलिस ने काल डिटेल्स निकलवाई तो किसका नंबर निकला

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी. पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी. काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया. मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था. राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी. नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

अर्द्धबेहोशी की हालत में किया दुष्कर्म

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया. शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया. शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं.

पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी. 66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपनेअपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था. इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है. यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई. इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला. अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवारसहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है