Superstition Story : पत्‍नी के साथ गलत हरकतें करने वाला तांत्रिक को पति ने मार डाला

Superstition Story : विकास की दौड़ में पिछड़े हुए गांवों का शैक्षिक स्तर भी पिछड़ा हुआ है, जिस की वजह से ऐसे गांवों के लोग अभी भी अंधविश्वासों की बेडि़यों में जकड़े हुए हैं. कुडरिया गांव के सुघर सिंह के घर इसी अंधविश्वास ने ऐसा…

कुडरिया जिला इटावा का छोटा सा गांव है, जो थाना बकेवर के क्षेत्र में आता है. कुडरिया का सुघर सिंह दोहरे मामूली सा किसान है. 21 फरवरी, 2020 को गांव के कुछ लोग सुघर सिंह दोहरे के घर के सामने वाले रास्ते से निकले तो उन की नजर दरवाजे के पास मरे पड़े भैंस के पड्डे पर गई, जिस की गरदन काटी गई थी. कुछ लोग अनहोनी की आशंका के मद्देनजर सुघर सिंह के घर के अंदर गए तो हैरत में रह गए. आंगन में एक व्यक्ति की खून से लथपथ लाश पड़ी थी. जरूर कोई गंभीर बात है, सोच कर लोग घर के बाहर आ गए. इस खबर से गांव में सनसनी फैल गई. गांव वाले सुघर के मकान के सामने एकत्र होने लगे. इसी दौरान किसी ने इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी.

कुछ ही देर में बकेवर के थानाप्रभारी बचन सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां सूने पड़े मकान में एक शव पड़ा हुआ था. वहां के दृश्य को देख लग रहा था कि वहां तांत्रिक क्रियाएं की गई थीं. वहां केवल भैंस के पड्डे की ही नहीं, बल्कि बकरे और मुर्गे की भी बलि दी गई थी. एक थाली में अलगअलग कटोरियों में तीनों का खून रखा था. थानाप्रभारी ने आसपास के रहने वाले लोगों से घटना के बारे में पूछताछ की तो पता चला घर में भूतप्रेत का कोई चक्कर था. इसी वजह से सुघर सिंह दोहरे ने तंत्रमंत्र क्रिया कराई थी. इसी को ले कर किसी व्यक्ति की बलि दी गई होगी.

इसी बीच संतोष नाम का एक युवक घटनास्थल पर पहुंचा. वह घबराया हुआ था. लाश को देख कर उस ने मृतक की शिनाख्त अपने चाचा हरिगोविंद के रूप में की. गांव मलेपुरा का हरिगोविंद पेशे से तांत्रिक था. तब तक मृतक का बड़ा भाई वीर सिंह, सुघर सिंह के दामाद विपिन के साथ वहां पहुंच गया. कुछ देर में मृतक के अन्य घर वाले भी आ गए. हरिगोविंद की लाश देख कर घर वालों ने रोनाधोना शुरू कर दिया. सुघर सिंह के घर के बाहर भारी भीड़ जमा होते देख थानाप्रभारी बचन सिंह ने घटना की जानकारी उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना मिलने पर एएसपी (ग्रामीण) ओमवीर सिंह, फोरैंसिक टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने पूरे मकान का निरीक्षण किया.

पुलिस ने मकान की छत पर जा कर भी जांच की. घर में बड़ी मात्रा में तंत्रमंत्र में इस्तेमाल होने वाली सामग्री भी मिली, जिसे पुलिस ने कब्जे में ले लिया. तांत्रिक हरिगोविंद के सिर व गले पर चोट के निशान दिखाई दे रहे थे. मृतक के बड़े भाई वीर सिंह ने बताया कि उस के भाई हरिगोविंद को सुघर सिंह ने विपिन को भेज कर झाड़फूंक के लिए बुलवाया था. सुघर सिंह और उस के घर वाले घटना के बाद से ही फरार थे. वीर सिंह का आरोप था कि उस के भाई की हत्या साजिशन की गई थी, जिस में सुघर सिंह के सभी घर वाले शामिल थे. पुलिस ने वीर सिंह की तहरीर पर 7 लोगों के खिलाफ भादंवि की धारा 147, 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया.

7 आरोपियों में विपिन के अलावा कुडरिया गांव का सुघर सिंह, उस की पत्नी सिया दुलारी, मलेपुरा निवासी दामाद विपिन, तीनों बेटे सतीश, श्यामबाबू व ब्रह्मप्रकाश और श्यामबाबू की पत्नी प्रियंका शामिल थे. वीर सिंह ने अपनी तहरीर में कहा कि उस के छोटे भाई हरिगोविंद को 20 फरवरी को आरोपी विपिन व श्यामबाबू प्रेत बाधा दूर करने के लिए ले गए थे. श्यामबाबू ने उस के भाई को धमकी भी दी थी कि कई बार बुला कर काफी पैसा खर्च करवा लिया है. अगर आज भूत नहीं उतरा तो समझ लेना, तेरा भूत उतारूंगा.

एसएसपी आकाश तोमर ने प्रैसवार्ता में बताया कि तथाकथित तांत्रिक की हत्या के मामले में बकेवर पुलिस ने कुडरिया निवासी सुघर सिंह, उस की पत्नी सियादुलारी और मलेपुरा निवासी उस के दामाद विपिन कुमार को गिरफ्तार कर उन के कब्जे से हत्या में इस्तेमाल नल का हत्था और लोहे की पत्ती बरामद की गई है. गिरफ्तार किए गए आरोपियों ने तांत्रिक की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया है. हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह कुछ इस तरह थी—

कुडरिया के रहने वाले सुघर सिंह दोहरे के 3 बेटे व 2 बेटियां हैं. बेटों में सतीश, श्यामबाबू व ब्रह्मप्रकाश शामिल हैं. मझले बेटे श्यामबाबू की पत्नी प्रियंका व छोटा भाई ब्रह्मप्रकाश काफी समय से बीमार चल रहे थे. दोनों का गांव में ही इलाज कराया गया, लेकिन बीमारी ठीक नहीं हुई. घर के लोगों ने अंधविश्वास के चलते उन पर भूतप्रेत का साया समझ लिया और उस के निदान के लिए उपाय तलाशने लगे. इस बीच उन्होंने कई जानकार तांत्रिक व सयानों से झाड़फूंक कराई. यह सब घर में कई महीनों से चल रहा था, लेकिन प्रियंका व ब्रह्मप्रकाश की बीमारी में झाड़फूंक से कोई फायदा नहीं हो रहा था.

सुघर सिंह की बेटी सुमन की शादी थाना लवेदी के ग्राम मलेपुरा निवासी विपिन के साथ हुई थी. विपिन ने सुघर सिंह को किसी अच्छे तांत्रिक से क्रिया कराने की सलाह दी. उस ने अपने ही गांव के तांत्रिक हरिगोविंद को तंत्रमंत्र विद्या में पारंगत बता कर उस से पूजापाठ कराने को कहा. हरिगोविंद विपिन का चचेरा चाचा था. उस ने बताया कि तंत्रमंत्र क्रिया कराने से भूत बाधा से मुक्ति मिल जाएगी. इस की जानकारी होने पर एक दिन श्यामबाबू अपने बहनोई विपिन के गांव पहुंचा और अपनी पत्नी व भाई की बीमारी दूर करने के लिए तंत्रमंत्र साधना कराने के लिए कहा.

विपिन ने इस संबंध में अपने तांत्रिक चचेरे चाचा हरिगोविंद, जो लवेदी में रह कर तंत्रमंत्र और झाड़फूंक करता था, से संपर्क किया था. 45 वर्षीय हरिगोविंद की गांव में तांत्रिक के रूप में अच्छी पहचान बनी हुई थी. उस का दावा था कि वह अपनी शक्ति से भूतबाधा से पीडि़त व्यक्ति को मुक्ति दिला सकता है. घटना से 2 दिन पहले श्यामबाबू बहनोई विपिन के साथ उस के गांव जा कर मिला. तांत्रिक हरिगोविंद के बताए अनुसार तय हुआ कि महाशिवरात्रि से एक दिन पहले यानी 20 फरवरी को तंत्र क्रिया शुरू की जाएगी, जो शिवरात्रि को पशु बलि देने के साथ संपन्न होगी.  तांत्रिक ने कहा कि बलि के बिना भूतबाधा से मुक्ति नहीं मिलेगी. इस के लिए हरिगोविंद ने श्यामबाबू को जरूरी सामान लाने के लिए एक लिस्ट थमा दी.

निश्चित दिन गुरुवार 20 फरवरी को विपिन दिन में ही तांत्रिक हरिगोविंद को ले कर गांव कुडरिया स्थित श्यामबाबू के घर पहुंच गया. इस बीच श्यामबाबू ने तंत्र क्रिया के लिए सभी सामान के साथ बलि के लिए मुर्गे व अन्य पशुओं का भी इंतजाम कर लिया था. सुघर सिंह के घर के आंगन के बीच एक गड्ढा खोद कर उसमें तांत्रिक क्रियाएं शुरू की गई. इस दौरान हरिगोविंद ने मुर्गा, बकरा व पड्डा (भैंस का बच्चा) की बलि देने के साथ ही उन के खून को एक बरतन में इकट्ठा किया और तरहतरह की तांत्रिक क्रियाएं करने लगा. वह जय मां काली के उद्घोष के साथ ही तेजी से सिर हिलाने लगा. इसी बीच उस ने प्रियंका के साथ कुछ गलत हरकतें करनी शुरू कर दीं.

पहले तो घर वाले कुछ नहीं बोले, लेकिन जब तांत्रिक की हरकतें ज्यादा बढ़ गईं, तब घर वालों का खून खौल उठा. इस बात को ले कर घर वालों का तांत्रिक से विवाद हो गया. विवाद बढ़ने पर उन लोगों ने तांत्रिक हरिगोविंद को दबोच लिया और उस के सिर पर हैंडपंप के हत्थे से और गरदन पर लोहे की पत्ती से प्रहार किए, जिस से उस की मृत्यु हो गई. हत्या करने के बाद सुघर सिंह के घर वाले रात में ही फरार हो गए. सुघर सिंह का दामाद विपिन तांत्रिक को साथ ले कर कुडरिया आया था, लेकिन वापस लौट कर अपने गांव मलेपुर स्थित घर आ कर सो गया. उस ने मृतक हरिगोविंद के घर वालों को इस बारे में कुछ नहीं बताया. कुडरिया से मलेपुर गांव के बीच की दूरी करीब 9 किलोमीटर है.

हरिगोविंद के घर वालों को शुक्रवार सुबह लगभग 9 बजे घटना की जानकारी मिली. इस पर हरिगोविंद के घर वाले विपिन के घर पहुंच गए. विपिन घर पर सोता हुआ मिला. जब विपिन से हरिगोविंद के बारे में पूछा गया तो उस ने कुछ नहीं बताया. इस पर उन लोगों ने उसे मारापीटा. हरिगोविंद के घर वाले विपिन को ले कर कुडरिया गांव आए. लेकिन उन के पहुंचने से पहले ही मृतक के भतीजे संतोष ने शव की शिनाख्त चाचा हरिगोविंद के रूप में कर दी थी. पुलिस ने पहले विपिन की पत्नी सुमन को भी हिरासत में लिया था, लेकिन आरोपियों में उस का नाम न होने पर छोड़ दिया था.

तांत्रिक हरिगोविंद शादीशुदा था. उस के 4 बच्चे हैं. 2 बेटे व 2 बेटियां. सभी बालिग हैं. अपनी घरगृहस्थी चलाने के लिए उस ने आसपास के क्षेत्र में तंत्र विद्या में निपुण होने के तौर पर पहचान बना रखी थी. मलेपुर गांव में उस की पहचान तांत्रिक डाक्टर के रूप में थी. तंत्रमंत्र के साथ वह दवाई भी देता था. मलेपुर गांव के लोगों के अनुसार हरिगोविंद तंत्रमंत्र व झाड़फूंक करता था. वह लंबे समय से अंधविश्वास से ग्रस्त लोगों को अपनी कथित तंत्रविद्या से भूतप्रेत बाधाओं को ठीक करने और उन का मुकद्दर बनाने का दावा करता रहता था.

अज्ञानता के चलते सीधेसादे लोग मामूली बीमार होने पर भी डाक्टर के पास न जा कर सीधे हरिगोविंद के पास झाड़फूंक के लिए चले जाते थे. तंत्रमंत्र और झाड़फूंक के नाम पर वह लोगों से मोटी कमाई करता था. तंत्र क्रिया के दौरान कथित तांत्रिक हरिगोविंद द्वारा निरीह पशुपक्षियों की नृशंस हत्या का प्रतिफल उसे अपनी जान गंवा कर मिला.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP Crime : बदनामी से बचने के लिए पिता ने बेटे की हत्या को आत्महत्या का रुप दे दिया

UP Crime : मीट कारोबारी हाफिज मोहम्मद रईस ने बदनामी से बचने के लिए बेटे की हत्या को आत्महत्या बताने की कोशिश की, लेकिन वह न खुद को बचा पाया, न बेटी और उस के आशिक तौसीफ को. बीती ईद के दिन घटी यह घटना…

उस दिन मई 2020 की 25 तारीख थी. कानपुर शहर में सादगी से ईद का त्यौहार मनाया जा रहा था. लौकडाउन के कारण बाजार, सड़कों पर ज्यादा चहलपहल तो नहीं थी. लेकिन लोग एकदूसरे के घर जा कर गले मिल रहे थे और ईद की मुबारकबाद दे रहे थे. अनवरगंज थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्षेत्रीय गश्त पर थे. दरअसल उन का थाना क्षेत्र मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला तो था ही, संवेदनशील भी था. अधिकारियों के आदेश पर पुलिस चप्पेचप्पे पर नजर गड़ाए हुए थी.

शाम लगभग 3 बजे दिलीप कुमार बिंद क्षेत्रीय गश्त कर थाने वापस आए. अभी वह अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के मोबाइल पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव करते हुए पूछा, ‘‘मैं थाना अनवरगंज से इंसपेक्टर दिलीप कुमार. आप कौन?’’

‘‘सर, मैं कुली बाजार से मीट कारोबारी हाफिज मोहम्मद रईस बोल रहा हूं. मेरे जवान बेटे मोहम्मद जफर ने आत्महत्या कर ली है. आप जल्दी आ जाइए.’’

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद थकान महसूस कर रहे थे, फिर भी सूचना मिलते ही पुलिस टीम के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. रवाना होने से पहले उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी थी. हाफिज मोहम्मद रईस कुली बाजार का चर्चित मीट कारोबारी था. थाने में मीट कारोबारियों की लिस्ट में उस का नामपता दर्ज था. इसलिए पुलिस को उस के घर पहुंचने में कोई परेशानी नहीं हुई. उस समय उस के घर भीड़ जुटी थी. भीड़ को हटाते हुए बिंद ने घर के अंदर प्रवेश किया. मोहम्मद जफर की लाश बाथरूम में पड़ी थी. उस के गले में गहरा घाव था, उम्र रही होगी 22 साल.

दिलीप कुमार बिंद अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन बेग भी घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. साथ ही मृतक के घर वालों से घटना के बारे में पूछताछ की. मृतक के पिता मोहम्मद रईस ने बताया कि उन का बेटा मोहम्मद जफर पिछले कई महीने से मानसिक रूप से बीमार था. इसी के चलते उस ने आज दोपहर बाद गले को ब्लेड से चीर कर आत्महत्या कर ली. घटना के समय वह अपनी बेगम के साथ ईद मिलन को घर से बाहर गए थे. वापस आए तो जफर की लाश बाथरूम में पड़ी देखी. उस के बाद मैं ने थाने को सूचना दी.

मृतक की मां वसीम बानो ने बताया कि वह अपनी बेटी तसलीम के साथ पड़ोस में ईद मिलन को गई थी. वापस आई तो शौहर से पता चला कि बेटे ने ब्लेड से गला चीर कर आत्महत्या कर ली है. साहब, जफर मानसिक रोगी था. इसी मानसिक अवसाद में उस ने आत्महत्या कर ली. इतना कह वह फूटफूट कर रोने लगी. वसीम बानो की बेटी तसलीम ने पूछताछ में कई बार बयान बदले. कभी वह कहती कि मां के साथ पड़ोस में गई थी, कभी कहती वह अकेले ही सहेली के घर गई थी. भाई जफर की मौत की जानकारी उसे अम्मीजान से मिली थी. उस ने यह भी कहा कि जफर मानसिक रोगी नहीं था. वह पूरी तरह से स्वस्थ था. उस ने आत्महत्या क्यों की, उसे पता नहीं है.

चूंकि घर के सभी लोग कह रहे थे कि मोहम्मद जफर ने आत्महत्या की है और पासपड़ोस के लोग भी कोई शंका जाहिर नहीं कर रहे थे, इसलिए पुलिस अधिकारियों को लगा कि शायद मोहम्मद जफर ने आत्महत्या ही की है. हालांकि मृतक के मांबाप, बहन के बयानों में विरोधाभास था और पुलिस अधिकारियों को कुछ संदेह भी हुआ था. फिर भी उन्होंने निरीक्षण के बाद शव को पोस्टमार्टम हाउस भिजवा दिया. दूसरे रोज शाम 5 बजे थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद को मृतक जफर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिल गई. उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी तो वह चौंके. रिपोर्ट के अनुसार मोहम्मद जफर की मौत अधिक खून बहने से हुई थी. उस का गला किसी तेज धार वाले औजार से काटा गया था. गले का वैसा घाव ब्लेड से संभव न था. गले के अलावा उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. न ही उस ने अल्कोहल की डोज ली थी.

थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने मृतक जफर की रिपोर्ट से एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल को अवगत कराया. उन्हें पहले ही परिवार के विरोधाभासी बयानों पर शक था. रिपोर्ट देखने के बाद उन्हें भी पक्का यकीन हो गया कि जफर की हत्या परिवार के ही किसी सदस्य ने की है. फिर साक्ष्य मिटा कर हत्या को आत्महत्या का रूप दिया गया है. उन्होंने सीओ (अनवरगंज) सैफुद्दीन बेग की अगुवाई में दिलीप कुमार बिंद को जफर की हत्या का रहस्य सुलझाने का आदेश दिया. आदेश पाते ही दिलीप कुमार बिंद ने हकीकत का पता लगाने के लिए अपने क्षेत्र के एक खास खबरी को लगाया. एक दिन बाद ही उस ने थानाप्रभारी बिंद को एक चौंकाने वाली जानकारी दी. उस ने बताया कि मोहम्मद जफर न तो मानसिक रोगी था और न ही उसे कोई अन्य रोग था.

जफर की बहन तसलीम तथा पड़ोस में रहने वाले चचेरे भाई तौसीफ अहमद के बीच मोहब्बत पनप रही थी. जफर को दोनों के अवैध संबंधों की जानकारी थी और वह इस का विरोध करता था. इन्हीं नाजायज संबंधों के चलते जफर की हत्या हुई है. हत्या का रहस्य घर वालों के पेट में ही छिपा है. यदि कड़ाई से पूछताछ की जाए तो सारा भेद खुल सकता है. दिलीप कुमार बिंद ने नाजायज रिश्तों की जानकारी सीओ सैफुद्दीन बेग को दी तो वह बिंद को साथ ले कर दोबारा मोहम्मद रईस के घर जा पहुंचे. उन्होंने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने अपनी जांच उस बाथरूम से शुरू की, जहां मोहम्मद जफर की लाश पड़ी मिली थी.

टीम प्रभारी प्रवीण कुमार ने बाथरूम का बेंजामिन टेस्ट किया तो वहां खून की एक भी बूंद का प्रमाण नहीं दिखा. इस के बाद टीम ने मकान के दूसरे बाथरूम का बेंजामिन टेस्ट किया तो वहां खून के प्रमाण मिले. टीम ने दोनों बाथरूम के बीच 2 जगहों पर शक के आधार पर टेस्ट किया तो वहां भी खून के प्रमाण मिले. जाहिर था शव को एक बाथरूम से दूसरे बाथरूम में लाया गया था. टीम प्रभारी प्रवीण ने मृतक के मांबाप, भाईबहन के हाथों का बेंजामिन टेस्ट किया तो खून के प्रमाण मिले. फोरैंसिक टीम की जांच से हत्या के पुख्ता सबूत मिले तो सीओ सैफुद्दीन बेग ने मोहम्मद रईस, उस की पत्नी वसीम बानो तथा बेटी तसलीम से अलगअलग सख्ती से पूछताछ की.

पूछताछ में मोहम्मद रईस टूट गया. उस ने बताया कि बच्चों के जेल जाने के डर से उस ने झूठ बोला था कि जफर ने आत्महत्या की है. जफर तो मर ही गया था, सच बोलता तो परिवार के 2 बेटे और बेटी जेल चले जाते. सच यह है कि मोहम्मद जफर ने अपनी बहन तसलीम को बाथरूम में चचेरे भाई तौसीफ अहमद के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था. भेद खुलने के डर से तसलीम ने तौसीफ व उस के भाई सैफ के साथ मिल कर बकरा काटने वाले चाकू से जफर को गला रेत कर मार डाला था. मोहम्मद रईस के टूटते ही उस की पत्नी वसीम बानो तथा बेटी तसलीम ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. चूंकि हत्या में तसलीम का प्रेमी तौसीफ अहमद और उस का भाई सैफ भी शामिल था, अत: पुलिस ने उन दोनों को भी नाटकीय ढंग से पकड़ लिया.

दोनों को थाना अनवरगंज लाया गया. जब उन दोनों का सामना मोहम्मद रईस, वसीम बानो तथा तसलीम से हुआ तो वे समझ गए कि अब सच बताने में ही भलाई है. अत: उन दोनों ने सहज ही जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस अभी तक आलाकत्ल चाकू बरामद नहीं कर पाई थी. अत: थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने चाकू के संबंध में पूछताछ की तो तौसीफ ने बताया कि कत्ल करने के बाद चाकू को मकान के सीवर टैंक (मेन होल) में छिपा दिया था. यह बात पता चलते ही दिलीप कुमार बिंद तौसीफ अहमद को घटनास्थल पर ले गए. वहां उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू बरामद कर लिया. बरामदगी के बाद तौसीफ को वापस थाने लाया गया और चाकू को सीलमोहर कर दिया गया.

चूंकि सभी ने मोहम्मद जफर की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और आला कत्ल (चाकू) भी बरामद करा दिया था, इसलिए थानाप्रभारी दिलीप कुमार बिंद ने भादंवि की धारा 302/201 के तहत तसलीम, तौसीफ अहमद, सैफ, वसीम बानो तथा हाफिज मोहम्मद रईस के विरुद्व रिपोर्ट दर्ज कर ली तथा पांचों को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस जांच में इश्क में अंधी बहन द्वारा भाई को हलाल करने की सनसनीखेज घटना प्रकाश में आई. उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के अनवरगंज थाना क्षेत्र में मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला एक मोहल्ला है कुली बाजार. इसी कुली बाजार में बड़ी मसजिद के पास हाफिज मोहम्मद रईस अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी वसीम बानो के अलावा 2 बेटे तथा बेटी तसलीम थी.

मोहम्मद रईस मीट कारोबारी थे. इस कारोबार में उन के दोनों बेटे भी हाथ बंटाते थे. कुली बाजार में उन की चर्चित मीट की दुकान थी. कुली बाजार में ही उन का अपना निजी मकान था. उन की आर्थिक स्थिति मजबूत थी. वसीम बानो की बेटी तसलीम खूबसूरत थी, तन से ही नहीं मन से भी खूबसूरत. इसलिए उसे हर कोई पसंद करता था. बचपन में जहां वह अपनी चंचलता की वजह से सब को प्यारी लगती थी, वहीं जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही वह अपने व्यवहार से सब की आंखों का तारा बनी हुई थी. अपने मिलनसार स्वभाव की वजह से वह सब का मन मोह लेती थी. युवा जहां उस की सुंदरता के दीवाने थे, वहीं बड़ेबूढ़े उस के स्वभाव से खुश रहते थे. पढ़नेलिखने में भी वह तेज थी. उस ने जुबली इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी.

तसलीम के पड़ोस में तौसीफ अहमद रहता था. रिश्ते में वह उस का चचेरा भाई था. अपने पिता के साथ वह भी मीट का कारोबार करता था. तौसीफ दिखने में स्मार्ट था. रहता भी ठाटबाट से था. तसलीम और तौसीफ रिश्ते में चचेरे भाईबहन थे और हमउम्र थे, सो उन में खूब पटती थी. दोनों का एकदूसरे के घर आनाजाना लगा रहता था. दोनों परिवारों के बीच आपसी लगाव था और दुख की घड़ी में एकदूसरे की मदद को भी तत्पर रहते थे. ईद, बकरीद जैसे त्यौहार दोनों परिवार मिलजुल कर मनाते थे.

एकदूसरे के घर आतेजाते तसलीम और तौसीफ एकदूसरे को चाहने लगे. तसलीम खूबसूरत थी, तो तौसीफ भी कम सुंदर न था. वह कमाता भी था. इसलिए तसलीम भी तौसीफ को पसंद करने लगी थी. घर आतेजाते तसलीम भी मुसकराते हुए तिरछी निगाहों से तौसीफ अहमद को निहारने लगी थी. एक अजीब सा आकर्षण दोनों को एकदूसरे की ओर खींचने लगा. लेकिन नजरें बेईमान थीं. वे एकदूसरे को ढूंढती थीं, निहारती भी थीं. लेकिन पकड़े जाने पर अनजान बनने का नाटक करती थीं. धीरेधीरे स्थिति यह आ गई कि बिना एकदूजे को देखे चैन नहीं मिलता था. फिर भी व्यवहार ऐसा करते थे, जैसे उन्हें एकदूसरे से कोई मतलब नहीं.

छिपछिप कर देखने में ही दोनों एकदूसरे को हद से ज्यादा चाहने लगे. साथ ही बेहतर भविष्य बनाने के सपने भी संजोने लगे. मगर अपनेअपने दिल की बात कहने की हिम्मत दोनो में नहीं थी. तसलीम जहां नारी सुलभ लज्जा के कारण खामोश थी, तो वहीं तौसीफ अहमद यह सोच कर अपने प्यार का इजहार नहीं कर पा रहा था कि कहीं दिल की बात कहने पर तसलीम नाराज न हो जाए. गुजरते वक्त के साथ दोनों की मूक मोहब्बत परवान चढ़ती गई. तसलीम तौसीफ को अपने दिल की बात कहने के लिए उतावली थी. नजरों ही नजरों में बात कर लेने से तौसीफ का मन नहीं भरता था. वह चाहता था कि तसलीम से अपने दिल की बात कह कर मोहब्बत का इजहार करे. लेकिन इस के लिए वह हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था.

इश्क भला कब तक बेजुबान बना रह सकता था. आखिर तौसीफ के दिल ने उसे मजबूर कर ही दिया. उधर तसलीम का भी यही हाल था. वह सोच रही थी कि तौसीफ जब उस से मोहब्बत करता है तो जुबान पर क्यों नहीं ला पा रहा. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह मुझे पसंद ही न करता हो. एक रोज तसलीम किसी काम से चाची के घर गई तो वह घर पर नहीं थीं. तौसीफ ही घर में था. उस ने पूछा, ‘‘चाची नहीं दिख रही हैं. बाहर गई हैं क्या?’’

‘‘हां, वे घर का सामान खरीदने हटिया बाजार गई हैं.’’

‘‘ठीक है, मैं शाम को आ जाऊंगी.’’ कहते हुए तसलीम मुड़ी, तभी तौसीफ सामने आ गया, ‘‘तसलीम, कुछ देर ठहरो. मैं तुम से एक बात कहना चाहता हूं.’’ तौसीफ बोला

‘‘कहो, क्या कहना चाहते हो?’’ तसलीम थोड़ा लजातेशरमाते बोली.

‘‘पहले वादा करो कि मेरी बात सुन कर नाराज नहीं होगी.’’ तौसीफ ने आग्रह किया.

‘‘ठीक है, किया वादा, अब बोलो क्या बात है?’’

‘‘तसलीम, मुझे तुम से मोहब्बत हो गई है. तुम्हारे बगैर सब कुछ सूना सा लगता है. क्या तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जगह है? अगर हो, तो मेरी मोहब्बत कबूल कर लो.’’

‘‘तौसीफ तुम नहीं जानते कि मैं तुम्हारे मुंह से ये अल्फाज सुनने को कितनी बेकरार थी. कितनी देर लगा दी तुम ने अपनी मोहब्बत जाहिर करने में. मैं तुम्हें कैसे यकीन दिलाऊं कि जितना प्यार मैं तुम से करती हूं, तुम शायद उस का आधा भी नहीं करते होगे. आई लव यू तौसीफ, आई लव यू वेरी मच.’’

इस तरह दोनों के बीच इजहारे मोहब्बत हो गया. इस के बाद तो जैसे उन की दुनिया ही बदल गई. दोनों एक साथ हाटबाजार जाने लगे, रमणीक स्थलों पर साथसाथ घूमने लगे. तौसीफ अहमद, तसलीम पर दिल खोल कर पैसा खर्च करने लगा. वह जो भी डिमांड करती, तौसीफ उसे हंसीखुशी से पूरा करता. बातचीत करने के लिए उस ने उसे महंगा मोबाइल फोन भी खरीद कर दे दिया था. हालांकि पहले से उस के पास मोबाइल था. एक दिन दोपहर बाद तौसीफ तसलीम के घर पहुंचा तो वह घर पर अकेली थी. अब्बू और भाई लोग दुकान पर थे. अम्मी घर का सामान खरीदने बाजार गई थी. अच्छा मौका देख तौसीफ ने तसलीम को अपनी बांहों में बांध कर उस की उन्मादी आंखों में झांका, तसलीम भी मना नहीं कर पाई.

तसलीम की मौन स्वीकृति मिलते ही तौसीफ बेकाबू हो गया. तसलीम भी नाजुक रिश्तों और सामाजिक मर्यादाओं को ताक पर रख कर उस की बांहों में झूल गई. तसलीम ने कोई विरोध नहीं किया तो तौसीफ आगे ही बढ़ता चला गया. फिर दोनों अलग हुए तो उन के चेहरे पर पूर्ण संतुष्टि के भाव थे. दोनों एक बार पाप के कुंए में कूदे, तो फिर उन का उस से बाहर निकलने का मन नहीं हुआ. गलत काम कितना भी छिपा कर किया जाए, एक न एक दिन उजागर हो ही जाता है. धीरेधीरे तौसीफ और तसलीम के अवैध संबंधों को ले कर पासपड़ोस में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस बात की भनक तसलीम के भाई मोहम्मद जफर को लगी तो उस ने बहन को फटकार लगाई, साथ ही तौसीफ के साथ झगड़ा भी किया.

जफर ने बहन के बहकते कदमों की शिकायत अपने मातापिता से भी की. इस पर हाफिज मोहम्मद रईस तथा उस की बेगम वसीम बानो ने तसलीम को अपनी इज्जत का वास्ता दे कर समझाबुझा कर सही रास्ते पर लाने की बहुत कोशिश की, पर तसलीम के बहके कदम नहीं थमे. घर वालों की नसीहतों का तसलीम पर कोई असर नहीं हुआ. वह तौसीफ से अपने संबंध उसी तरह बनाए रही. अलबत्ता पोल खुल जाने के डर से वे दोनों कुछ सावधान जरूर रहने लगे थे. उन दोनों को सब से ज्यादा डर मोहम्मद जफर से रहता था. वही दोनों की ताकझांक में लगा रहता था. जिस दिन उसे पता चल जाता कि तौसीफ घर आया था, उस रोज वह तसलीम को खरीखोटी सुनाता तथा तौसीफ के साथ भी झगड़ा करता. उस ने उन दोनों को चेतावनी दे रखी थी कि जिस दिन वह दोनों को रंगेहाथ पकड़ लेगा उस दिन अनर्थ हो जाएगा.

मोहम्मद जफर की इस धमकी से तसलीम अपने भाई को अपने प्यार का रोड़ा समझने लगी थी, उस से मन ही मन नफरत करने लगी थी. तौसीफ अहमद भी मोहम्मद जफर को अपना दुश्मन समझने लगा था. वह भी अंदर ही अंदर उस से नफरत करने लगा था. जफर के कारण दोनों का मिलन नहीं हो पाता था. अत: दोनों के दिलों में नफरत की आग तीव्र होती गई. मार्च 2020 में कोरोना महामारी का प्रकोप बढ़ा तो देश मे तालाबंदी हो गई. कानपुर शहर भी लौकडाउन हो गया. शहर का मुसलिम बाहुल्य क्षेत्र कुली बाजार हाट स्पौट घोषित कर दिया गया.

पुलिस ने गलियों को सील कर दिया, जिस से लोगों को घरों में कैद हो कर रहना पड़ा. इस का असर तसलीम और तौसीफ पर भी पड़ा. उन का मिलन पूरी तरह बंद हो गया. मिलन न होने से दोनों बेचैन रहने लगे. हालांकि मोबाइल फोन पर बतिया कर दोनों अपने दिल की लगी बुझा लेते थे. 25 मई, 2020 को ईद का त्यौहार था. प्रशासन ने सशर्त छूट दी थी. ईद का त्यौहार धूमधाम से तो नहीं मनाया जा रहा था, लेकिन घरों में लोग आजा रहे थे. तौसीफ भी ईद मिलन के बहाने तसलीम के घर पहुंचा. उस वक्त तसलीम घर में अकेली थी. उस के दोनों भाई पतंग उड़ाने चले गए थे. जबकि अम्मीअब्बू पड़ोस में ईद मिलन को गए थे.

लगभग 2 महीने बाद आमनासामना हुआ तो दोनों एकदूसरे से लिपट गए. दोनों की आंखों में प्यार का सागर उमड़ पड़ा. इसी बीच तौसीफ की शारीरिक प्यास जाग उठी. उस ने सूना घर देख कर तसलीम से प्रणय निवेदन किया तो लजातेशरमाते तसलीम मान गई. इस के बाद दोनों बाथरूम जा पहुंचे और शारीरिक प्यास बुझाने लगे. हड़बड़ाहट में वे घर का मुख्य दरवाजा बंद करना भूल गए थे. तसलीम और तौसीफ अभी बाथरूम में शारीरिक प्यास बुझा ही रहे थे कि तसलीम का भाई मोहम्मद जफर आ गया. उस ने दोनों को बाथरूम में आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. यह सब उस के लिए नाकाबिले बरदाश्त था. उस का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह गालीगलौज करते हुए तौसीफ से भिड़ गया.

तसलीम और तौसीफ को लगा कि मोहम्मद जफर आज दोनों की पोल खोल देगा और झगड़ा भी करेगा. अत: दोनों ने एकदूसरे को इशारा किया और फिर तसलीम बकरा काटने वाली छुरी ले आई. उस ने छुरी तौसीफ को थमाई और बोली, ‘‘तौसीफ, आज इसे हलाल कर ही दो. जिंदा बच गया तो पोल खोल देगा और दोनों को बदनाम कर देगा.’’

बहन का यह रूप देख कर मोहम्मद जफर घबरा गया और जान बचा कर दरवाजे की ओर भागा. तभी सामने से तौसीफ का छोटा भाई सैफ आ गया. उस ने भाई के इशारे पर उसे पकड़ लिया. दोनों भाई उसे पकड़ कर बाथरूम ले आए और फर्श पर पटक दिया. सैफ ने पैर दबोचे और तसलीम ने उस के हाथ पकड़े. इस के बाद तौसीफ अहमद ने जफर की छाती पर सवार हो कर चाकू से उस का गला रेत दिया. जफर कुछ देर तड़प कर ठंडा हो गया. हत्या करने के बाद तौसीफ व उस का भाई सैफ घर से भाग पाते, उस के पहले ही हाफिज मोहम्मद रईस व उन की पत्नी वसीम बानो आ गई. घर के अंदर बाथरूम में जवान बेटे की खून से रंगी लाश देख कर दोनों अवाक रह गए. वसीम बानो ने बेटी से पूछताछ की तो उस ने साफसाफ बता दिया कि जफर ने उसे तौसीफ के साथ रंगेहाथों पकड़ लिया था, हम ने उसे मार डाला.

यह सुनते ही दोनों ने माथा पीट लिया. वे सोचने लगे बेटा तो मर ही गया है. अब पुलिस से सच्चाई बयां की तो परिवार के 2 बेटों के साथ बेटी भी जेल चली जाएगी. उन लोगों ने मोहम्मद जफर की हत्या को आत्महत्या का रूप देने के लिए जफर के शव को सबमर्सिबल पंप चला कर लाश को तब तक धोया जब तक गले के घाव से रिस रहा खून बंद नहीं हो गया. उस के बाद शव को दूसरे बाथरूम में रख दिया. सारे सबूतों को मिटाने के बाद हाफिज मोहम्मद रईस ने थाना अनवरगंज पुलिस को अवसाद के चलते बेटे जफर द्वारा आत्महत्या की सूचना दी. पुलिस ने घर वालों की बात पर विश्वास कर शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पुलिस को हत्या का शक हुआ. दोबारा जांच शुरू की तो हत्या का परदाफाश हो गया और कातिल पकड़े गए.

30 मई, 2020 को थाना अनवरगंज पुलिस ने अभियुक्त तौसीफ अहमद, सैफ, हाफिज मोहम्मद रईस, वसीम बानो तथा तसलीम को कानपुर कोर्ट में पेश किया. जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Dispute : पत्नी ने साजिश रचकर पति को गोली से मरवाया

Family Dispute : राजनीति में पैसा भी है और पावर भी, लेकिन इन चीजों को पचाना सब के बस की बात नहीं होती. रणजीत जमीन से उठ कर एक खास मुकाम तक भी पहुंच गया और 2-2 महिलाओं से शादी भी रचा ली, लेकिन उस ने सोचा भी नहीं होगा कि…

बात सन 2000 की है. गोरखपुर के कैंट थाना क्षेत्र इलाके के चेतना तिराहे पर एक नुक्कड़ नाटक चल रहा था. नाटक के कलाकार ‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे. ये लोग देशभक्ति से ओतप्रोत नाटक का मंचन करते हुए लोगों को जागरूक कर रहे थे. सामान्य कदकाठी और गेहुंआ रंग का एक युवक नाटक का निर्देशन कर रहा था. वही कलाकारों का लीडर था. उस का नाम था रणजीत कुमार श्रीवास्तव उर्फ रणजीत बच्चन. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन से प्रेरित हो कर रणजीत ने अपने नाम के आगे बच्चन शब्द जोड़ लिया था. दरअसल, रणजीत रंगमंच का एक उम्दा कलाकार था. कला की दुनिया में वह नाम कमाना चाहता था, इसलिए सतत प्रयासरत था.

‘इंकलाब जिंदाबाद’ के नारे सुन कर एक युवती के पांव थम से गए. उसे नाटक इतना भाया कि वह नाटक खत्म होने तक वहीं जमी रही. वह युवती पूर्वांचल मैराथन की प्रथम विजेता कालिंदी शर्मा थी, जो मूलरूप से कुशीनगर जिले के थाना नेबुआ में आने वाले भंडार बिंदौलिया की रहने वाली थी. उस वक्त वह गोरखपुर के शाहपुर इलाके के असुरन चौक के पास अपने मातापिता और 5 बहनों के साथ रह रही थी. नुक्कड़ नाटक के समापन के बाद कालिंदी ने कलाकारों से पूछा कि तुम्हारा लीडर कौन है? उन में से एक कलाकार ने रणजीत बच्चन की ओर इशारा कर के बताया कि वही हमारे लीडर हैं. नाटक का मंचन उन्हीं के निर्देशन में होता है.

कालिंदी शर्मा ने रणजीत बच्चन से मुलाकात की और अपने बारे में बताया. कालिंदी का परिचय जान कर रणजीत काफी प्रभावित हुआ. इस मुलाकात के बाद दोनों में दोस्ती हो गई. दरअसल, कालिंदी की चाहत थी कि वह देश के लिए कुछ करे. रणजीत की सोच भी यही थी कि वह कुछ ऐसा करे, जिस से उस का नाम हो. दोनों की एक ही सोच थी, कुछ बड़ा करने की. अब तक दोनों अलगअलग थे. दोनों की सोच एक जैसी निकली तो दोनों की दिशाएं एक हो गईं. इसी बीच कालिंदी के जीवन के साथ एक नया कीर्तिमान जुड़ गया था. मैराथन दौड़ में प्रथम आने के आधार पर उसे नेहरू युवा केंद्र के सांस्कृतिक कार्यक्रम हेतु 2 साल के लिए एनएसबी सदस्य बना दिया गया था. संस्थान की ओर से उसे समाज को जागरूक करने वाले कुछ कार्यक्रम करने को कहा गया था, उस में नुक्कड़ नाटक का भी कराया जाना था. विषय था सारक्षरता.

कालिंदी ने रणजीत के साथ मिल कर नाटक का प्रस्तुतीकरण कराया जिस से लोग काफी प्रभावित हुए. कालिंदी के इस काम से संस्थान के निदेशक खुश हुए. इस मंचन के बाद से कालिंदी के दिल में रणजीत के लिए सौफ्ट कौर्नर बन गया, कह सकते हैं कि वह रणजीत को चाहने लगी थी. 40 वर्षीया कालिंदी शर्मा 5 बहनों में सबसे बड़ी थी. उस के पिता परमात्मा शर्मा प्राइवेट नौकरी करते थे. उन की आमदनी बहुत कम थी. उसी से परिवार के भरणपोषण के साथसाथ बेटियों की पढ़ाई का खर्चा भी होता था. कालिंदी परमात्मा शर्मा की सब से बड़ी संतान थी. कालिंदी ने अपनी लगन और परिश्रम की बदौलत समाजशास्त्र से परास्नातक की डिग्री ली.

करीब 45 वर्षीय रणजीत कुमार श्रीवास्तव उर्फ रणजीत बच्चन मूलरूप से गोरखपुर के गोला थाना क्षेत्र के अहिरौली लाला टोला का रहने वाला था. उस के पिता ताराशंकर श्रीवास्तव सिंचाई विभाग में ट्यूबवेल आपरेटर थे. कहने को तो ताराशंकर मूलरूप से अहिरौली गांव के निवासी थे, लेकिन 4 दशक पहले उन्होंने अपना गांव छोड़ दिया था. वह परिवार सहित गोरखपुर आ कर बस गए थे. 20 साल पहले सन 2000 में ताराशंकर की मृत्यु हो गई थी. पिता की मृत्यु के बाद परिवार की सारी जिम्मेदारी तीसरे बेटे रघुवंश कुमार श्रीवास्तव के कंधों पर आ गई थी. बाद में उन के 2 बड़े बेटों पप्पू और राजेश की भी बीमारी से मौत हो गई. रघुवंश अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी अंजाम देते रहे.

ताराशंकर की सभी संतानों में सब से कुशाग्र बुद्धि वाला उन का सब से छोटा बेटा रणजीत था. उस में कुछ नया करने की जिजीविषा रहती थी. होश संभालने के बाद जब वह कुछ समझदार हुआ तो बड़ा हो कर फिल्मी दुनिया में जाने की सोचने लगा. रणजीत गांव के कुछ युवकों की टोली बना कर नुक्कड़ नाटक किया करता था. इसी नुक्कड़ नाटक के जरिए उस की मुलाकात कालिंदी से हुई. सन 2002 के जनवरी में कालिंदी के मन में एक योजना आई. ॒यह योजना थी साइकिल यात्रा से देश में शांति का संदेश फैलाना. कालिंदी ने यह बात रणजीत को बताई तो वह खुश हुआ. रणजीत ने कालिंदी की साइकिल यात्रा पर मुहर लगा दी. रणजीत बच्चन ने कालिंदी सहित अपनी नाटक मंडली के 16 सदस्यों सहित यात्रा की तैयारी कर ली. टीम का नेतृत्व उस ने अपने हाथों में ले लिया.

4 फरवरी, 2002 को रणजीत बच्चन के नेतृत्व में साइकिल से भारत भ्रमण यात्रा शुरू हुई. आखिरी समय में सिर्फ कालिंदी और रणजीत बच्चन ही बचे रहे. 7 साल 10 महीने 14 दिन में दोनों ने भारत, नेपाल और भूटान सहित साइकिल से 1 लाख 32 हजार किलोमीटर की यात्रा तय कर के एक नया कीर्तिमान स्थापित किया था. इस उपलब्धि के लिए लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में दोनों के नाम दर्ज हुए. इसी यात्रा के दौरान फरवरी, 2005 में कालिंदी और रणजीत बच्चन ने महाराष्ट्र के नासिक में एक मंदिर में गंधर्व विवाह कर लिया था. लेकिन दोनों ने अपने प्रेम विवाह को घरपरिवार और समाज से छिपा कर रखा. फिर जब बात खुली तो 9 साल बाद 31 मार्च, 2014 को परिवार वालों ने इस शादी पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगा दी.

साइकिल यात्रा के दौरान सरकार और लोगों से काफी पैसा मिला था. उन पैसों से रणजीत ने गोरखपुर के गुलरिहा थानाक्षेत्र के पतरका टोला में अपने नाम से एक जमीन खरीद ली. उस जमीन पर रणजीत अपनी मां के नाम पर कौशल्या देवी वृद्ध एवं अनाथ आश्रम खोलना चाहता था. योजना पर काम भी शुरू किया गया, लेकिन यह योजना पूरी हो पाती, इस से पहले ही उस की हत्या हो गई. नुक्कड़ नाटकों से न तो कोई मुकाम मिलने वाला था और न ही दौलत. रणजीत यह बात समझ गया था. फलस्वरूप उस ने अपनी दिशा बदल दी, लेकिन लक्ष्य वही रहा. उन दिनों प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी.

सत्ताधारी दल के साथ रहना मुफीद था, इसलिए रणजीत ने जुगाड़ लगा कर बसपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. लेकिन उस ने जो सोचा था, वह नहीं हो सका. इस पर रणजीत ने बसपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी की सदस्यता ले ली. सन 2013 में उत्तर प्रदेश में विधानसभा का चुनाव होने वाला था. साइकिल समाजवादी पार्टी का चुनाव चिह्न है. चुनाव में रणजीत ने कालिंदी के साथ मिल कर साइकिल यात्रा के जरिए सपा के लिए खूब प्रचार किया, जिस का परिणाम सकारात्मक निकला. चर्चा में बने रहने के लिए रणजीत कुछ न कुछ करता रहता था. इस के लिए वह कभी महापुरुषों की प्रतिमा सफाई अभियान, कभी इंसेफेलाइटिस जागरूकता तो कभी पल्स पोलियो अभियान चलाता रहता था. शोहरत हासिल करने के लिए उस ने पानी पर साइकिल तक चलाई थी, लेकिन उसे मनचाहा मुकाम नहीं मिला.

रणजीत बच्चन का सितारा उस समय बुलंदियों पर पहुंच गया, जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी थी. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने पर रणजीत को काफी महत्व मिला. उसे राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया. रणजीत और कालिंदी के काम से खुश हो कर अखिलेश यादव ने दोनों को 5-5 लाख का पुरस्कार भी दिया. रणजीत ने कालिंदी के हिस्से के भी पैसे खुद रख लिए थे. इस के बाद दोनों ने लखनऊ की ओसीआर बिल्डिंग के बी-ब्लौक के फ्लैट नंबर 604 आवंटित करा लिए था. राज्यमंत्री का दर्जा मिलने के बाद रणजीत बच्चन के शौक भी बढ़ गए थे. बाइक से चलने वाले रणजीत ने अब कार लेने का मन बना लिया था. नवंबर, 2014 के अंतिम सप्ताह में रणजीत ने ओएलएक्स पर एक एक्सयूवी कार देखी. कार उसे पसंद आ गई. वह कार लखनऊ के संजय श्रीवास्तव के नाम पर रजिस्टर्ड थी.

जय श्रीवास्तव की बेटी स्मृति वर्मा ने कार बेचने के लिए ओएलएक्स साइट पर डाल रखी थी. स्मृति वर्मा लखनऊ की विकास नगर कालोनी के आवास संख्या- 2/625 में रहती थी. साइट पर कार के साथ स्मृति का फोन नंबर भी था. बातचीत के बाद सौदा पक्का हो गया तो 27 नवंबर को रणजीत दोस्तों के साथ वाहन की डिलिवरी लेने लखनऊ स्थित स्मृति के घर विकास नगर पहुंच गया. रणजीत बच्चन ने जब दूधिया रंगत वाली बला की खूबसूरत स्मृति को देखा तो उसे अपलक देखता रह गया. एक ही नजर में स्मृति रणजीत की आंखों के रास्ते उस के दिल में उतर गई. उस ने तय कर लिया कि सौदा चाहे कितना भी मंहगा हो, तय कर के ही रहेगा. पेशगी के तौर पर रणजीत ने स्मृति को साढ़े 4 लाख रुपए नकद दे दिए. बाकी के रुपए कागजात हैंडओवर होने के बाद देना तय हुआ. इस पर स्मृति मान गई तो वह कार ले कर गोरखपुर आ गया.

इस के बाद स्मृति और रणजीत के बीच मोबाइल पर बातचीत होने लगी. बातोंबातों में रणजीत को पता चला कि स्मृति पिता के स्थान पर कोषागार विभाग में कनिष्ठ लेखाकार है. रणजीत ने जब से स्मृति को देखा था, उस का दिन का चैन और रात की नींद उड़ गई थी. उस के दिमाग में एक ही बात उछलकूद मचा रही थी कि चाहे जैसे भी हो, स्मृति को अपना बना ले. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार था. जिन दिनों की यह बात है उन दिनों कालिंदी रणजीत के बच्चे की मां बनने वाली थी. लेकिन उसे इस की कोई परवाह नहीं थी. वह पूरी तरह से स्मृति के प्यार के रंग में डूब चुका था. इसी चक्कर में उस ने स्मृति से खुद को कुंवारा बताया था. उस ने अपनी लच्छेदार बातों से स्मृति के चारों ओर सम्मोहन का ऐसा जाल फैला दिया कि वह उसी जाल में घिर गई. रणजीत स्मृति से प्रेम करने लगा था, स्मृति भी उस से प्यार करती थी.

स्मृति वर्मा का रणजीत की ओर झुकाव तब हुआ, जब उसे पता चला कि सत्ता के गलियारे में उस की पहुंच बहुत ऊपर तक है. इतना ही नहीं, वह दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री है. प्रदेश सरकार में उस की अच्छी धाक है. रणजीत ने स्मृति के घर आनाजाना शुरू कर दिया था. बराबर आनेजाने से रणजीत ने स्मृति के अतीत के पन्नों को पढ़ लिया था, जिन में उस के जीवन के पन्नों पर कई दुख भरी कहानियां लिखी हुई थीं. राजधानी लखनऊ के विकासनगर में नायब तहसीलदार संजय श्रीवास्तव परिवार सहित रहते थे. पत्नी शोभना और 3 बच्चों में 2 बेटियां थीं, श्रुति और स्मृति और एक बेटा शिवांश. शोभना के शरीर पर जगहजगह सफेद दाग थे. सफेद दाग की वजह से संजय पत्नी को पसंद नहीं करते थे.

उन्होंने शोभना को तलाक दे दिया था. शोभना के पास 3 बच्चे थे. तीनों के पालनपोषण की जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी. ऐसे में वह क्या करती, बच्चों को ले कर कहां जाती. तलाक के बावजूद शोभना बच्चों के साथ पति के ही घर में रहती थी. नायब तहसीलदार संजय श्रीवास्तव के घर में तलाकशुदा शोभना भी रह रही थी, लेकिन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं था. बाद में संजय श्रीवास्तव ने कानपुर की रहने वाली एक दूसरी महिला से शादी कर ली. उन्होंने शादी तो कर ली, लेकिन पत्नी को अपने घर नहीं ला सके. बच्चों और शोभना के दबाव के चलते संजय का जीवन रेत के महल सा हो गया था. इसलिए दूसरी पत्नी अकसर कानपुर में ही रहती रही.

पहली पत्नी शोभना के तीनों बच्चे धीरेधीरे बड़े होते रहे. इन में दूसरे नंबर की बेटी स्मृति खूबसूरत और जहीन थी. बात सन 2013 की है. नायब तहसीलदार संजय की बड़ी बेटी श्रुति अपने प्रेमी के साथ घर से अचानक भाग गई. बेटी के इस घिनौने कदम से संजय श्रीवास्तव की समाज में बहुत बदनामी हुई. बेटी की इस करतूत से बुरी तरह आहत तहसीलदार श्रीवास्तव ने सारी संपत्तियों की पावर औफ अटार्नी छोटी बेटी स्मृति के नाम कर दी ताकि उन के न रहने पर वह संपत्ति की देखभाल कर सके. आननफानन में तहसीलदार संजय ने स्मृति की शादी लखनऊ के एक बैंक मैनेजर के साथ तय कर दी थी.

तिलक की रस्म भी पूरी हो गई थी. चढ़ावे में नकदी और लाखों रुपए के कीमती गहने चढ़ाए गए. घर में शादी की जोरशोर से तैयारियां चल रही थीं, अचानक एक दुखद हादसे ने बहुत कुछ बदल दिया. तिलक की रस्म के कुछ दिनों बाद की बात है. रात का समय था. संजय श्रीवास्तव अपनी छत पर टहल रहे थे. अचानक वह रहस्यमय तरीके से छत से नीचे सड़क पर जा गिरे. सिर में आई गंभीर चोट की वजह से मौके पर ही उन की मौत हो गई. वह छत से कैसे गिरे, यह रहस्य आज भी बरकरार है. जहां खुशियां होनी चाहिए थीं, वहां मातम छा गया. पिता की मौत के बाद स्मृति की शादी टूट गई. लाखों रुपए नकद और लाखों के जेवरात ससुराल में फंसे रह गए. स्मृति के ससुराल वालों ने पैसे और जेवर लौटाने से मना कर दिया.

स्मृति के सामने ससुराल वालों से सामान वापस लेना चुनौती थी. ऐसे में रणजीत बच्चन स्मृति से टकरा गया. दोनों के बीच जब नजदीकियां बढ़ीं तो स्मृति ने अपनी आपबीती रणजीत से बता कर ससुराल से नकदी और गहने वापस दिलवाने की पेशकश की. उस ने यह भी कह दिया था कि जिस दिन वह गहने और नकदी दिलवा देगा उसी दिन वह उस की हो जाएगी. रणजीत के लिए स्मृति की शर्त जीतना कोई बड़ी बात नहीं थी. क्योंकि उस पास साम, दाम, दंड, भेद चारों शस्त्र थे, इसलिए थोड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए उस ने स्मृति की ससुराल जा कर चारों शस्त्र आजमाए. भले ही जबरदस्ती सही, लेकिन उस ने नकदी और जेवरात वसूल कर स्मृति की झोली में डाल दिए.

रणजीत की इस दबंगई से खुश हो कर स्मृति ने उस से शादी करने के लिए हामी भर दी. आखिर 18 जनवरी, 2015 को रणजीत और स्मृति ने मंदिर में जा कर शादी कर ली. रणजीत ने यह राज पहली पत्नी कालिंदी से छिपाए रखा. रणजीत द्वारा स्मृति से शादी करने के 3 दिनों बाद 21 जनवरी को कालिंदी ने बेटे को जन्म दिया. कालिंदी के मां बनने की जानकारी मिलने के बाद भी रणजीत पत्नी को देखने हौस्पिटल तक नहीं आया. लेकिन रणजीत की सच्चाई न तो पहली पत्नी कालिंदी से छिप सकी और न ही दूसरी पत्नी स्मृति वर्मा से.

कालिंदी को जब रणजीत की दूसरी शादी की बात पता चली तो उस के पैरों तले से मानो जमीन ही खिसक गई. उसे रणजीत से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि जिस रणजीत के लिए उस ने अपने घर वालों से बगावत कर उसे अपना जीवन सौंप दिया था, वही हमसफर सितमगर निकलेगा. जब यह बात दूसरी पत्नी स्मृति को पता चली कि रणजीत पहले से ही शादीशुदा है तो उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. रणजीत ने उसे धोखा दिया था. उस ने एक साथ कई जिंदगियां दांव पर लगा दी थीं. पति की सच्चाई सामने आने के बाद स्मृति उसे छोड़ कर विकासनगर वापस लौट आई. उसे नाराज देख रणजीत के हाथपांव ठंडे पड़ गए.

स्मृति से रणजीत इतना प्यार करता था कि उस की जुदाई एक पल के लिए बर्दाश्त नहीं कर सकता था, वह सच्चाई जान कर उस से नाराज हो कर गई थी इसलिए रणजीत ने स्मृति को मनाने के लिए जमीनआसमान एक कर दिया. खैर, पहली पत्नी कालिंदी चुप बैठने वालों में से नहीं थी. पति के धोखा देने के एवज में उस ने रणजीत के खिलाफ गोरखपुर महिला थाने में एक तहरीर दी. कालिंदी के उठाए कड़े कदम से रणजीत की त्यौरियां चढ़ गईं. दोनों के प्यार ने अब नफरत और दुश्मनी का रंग ले लिया.

स्थिति यहां तक पहुंच गई कि जहां देखो हत्या कर दो. कालिंदी अपनी और बच्चे की जान बचाने के लिए यहांवहां छिपती रही. जान का दुश्मन बना रणजीत कालिंदी को नहीं ढूंढ पाया. कालिंदी भागतेभागते थक चुकी थी. वह जानती थी कि रणजीत से जीत पाना आसान नहीं है. आखिर उस ने रणजीत के सामने घुटने टेक दिए. इस का सब से बड़ा कारण यह था कि उस के मायके वालों ने उस का साथ देना छोड़ दिया था. वे रणजीत की करतूतों से बेहद नाराज थे. ऐसे में कालिंदी के सामने एक ही सहारा बचा था, रणजीत के पास वापस लौटने का. आखिरकार कालिंदी बेटे आदित्य को ले कर रणजीत के पास लखनऊ आ गई, रणजीत ने भी सारे गिलेशिकवे भुला कर उसे माफ कर दिया.

कहते हैं एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. सच भी यही है. कालिंदी के ओसीआर आते ही स्मृति ने रणजीत से दूरी बना ली. स्मृति से दूरियां रणजीत से सहन नहीं हो रही थीं. स्मृति की दूरियों से खुन्नस खाया रणजीत कालिंदी पर अपनी मर्दानगी और जुल्म की कहानी लातघूंसों से लिखता था और मोबाइल का स्पीकर औन कर के स्मृति को सुनाता था. वह यह दिखाने की कोशिश करता था कि वो उसे कितना प्यार करता है, इसी से अंदाजा लगा सकती है. जबकि बेटे की खातिर कालिंदी पति के जुल्मों को सह कर भी उफ तक नहीं करती थी.

कालिंदी पर एक और आपदा तब टूटी जब 2017 में उस के ढाई साल के बेटे आदित्य की मृत्यु हो गई. बेटे की मौत से कालिंदी ही नहीं रणजीत भी बुरी तरह से टूट गया. इस घटना के बाद से रणजीत का झुकाव अध्यात्म की तरफ हो गया और वह एक वस्त्र (गेरुआ वस्त्र) धारण करने लगा. इस दौरान वह अखिल भारतीय हिंदू महासभा के संस्थापक चक्रपाणि महाराज के संपर्क में आया और संगठन का प्रदेश अध्यक्ष बन गया. बाद में रणजीत बच्चन ने अपना खुद का संगठन ‘विश्व हिंदू महासभा’ बनाया और खुद को उस का अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित कर दिया. कालिंदी उस की सहयोगी रही.

हिंदूवादी नेता की छवि बनाने के लिए वह भगवा कपड़े पहनने लगा. विभिन्न मंचों से हिंदुत्व पर बेबाक टिप्पणी करने लगा, जिस से उसकी छवि हिंदू नेता के रूप में उभरने लगी. अतिमहत्त्वाकांक्षी रणजीत का संगठन चल निकला. धीरेधीरे बेटे की मौत को वह भूलने लगा था. अब भी वह स्मृति की याद में पागल था. जबकि स्मृति उस से दूर हो चली थी. उस के जीवन में दूसरा पुरुष आ गया था, जिस का नाम दीपेंद्र सिंह था. सन 2017 में अमर नगर रायबरेली निवासी दीपेंद्र की स्मृति से मुलाकात उस के दफ्तर में हुई थी. वह किसी आवश्यक काम से वहां आया था. धीरेधीरे दोनों की मुलाकातें होती रहीं. दोनों पहले दोस्त, फिर दोस्त से प्रेमी बन गए. दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे और शादी करना चाहते थे.

रणजीत से छुटकारा पाने के लिए स्मृति ने अदालत में तलाक की अर्जी दाखिल कर दी थी. रणजीत ने स्मृति को तलाक देने से साफ इनकार कर दिया था. वह जान चुका था कि स्मृति दीपेंद्र से प्यार करने लगी है. रणजीत ने खुले तौर पर स्मृति को धमकी दी कि वह दीपेंद्र का साथ छोड़ दे अन्यथा इसका अंजाम बहुत बुरा होगा. रणजीत के धमकाने का स्मृति पर कोई असर नहीं हुआ था. बावजूद इस के वह खुलकर दीपेंद्र से मिलती रही. यह बात रणजीत से सहन नहीं हो पा रही थी. दीपेंद्र को ले कर रणजीत और स्मृति के बीच विवाद बढ़ता गया. रणजीत स्मृति के पीछे जितनी तेज भागता गया, स्मृति उतनी ही तेजी से दीपेंद्र के पास आती गई. जबकि कालिंदी रणजीत के पीछे भाग रही थी.

बात 18 जनवरी, 2020 की है. उस दिन रणजीत और स्मृति की शादी की सालगिरह थी. लखनऊ के एक बड़े होटल में रणजीत ने दिन में एक पार्टी का आयोजन किया था. उस ने खासतौर पर स्मृति को आने के लिए आमंत्रित किया था. पार्टी में बड़ेबड़े लोग आए थे. समय बीत जाने के बाद भी स्मृति वहां नहीं पहुंची, तो रणजीत ने खुद को अपमानित महसूस किया. उसे स्मृति पर गुस्सा भी आया. उस ने मन ही मन स्मृति को सबक सिखाने की ठान ली. जैसेतैसे पार्टी खत्म कर के वह स्मृति के घर जा पहुंचा. संयोग से उस की मुलाकात घर पर ही हो गई. स्मृति को देखते ही रणजीत का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने आव देखा न ताव, गुस्से से तमतमाते हुए स्मृति के गालों पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया.

थप्पड़ इतना जोरदार था कि उसे दिन में तारे नजर आने लगे. उसे सावधान करते हुए रणजीत ने दीपेंद्र का साथ छोड़ने के लिए हिदायत दी और वापस लौट आया. रणजीत का यह थप्पड़ स्मृति को काफी नागवार गुजरा. उस ने यह बात दीपेंद्र से बताई और रणजीत को सदा के लिए रास्ते से हटाने का दबाव बनाया. दीपेंद्र स्मृति से टूट कर प्यार करता था. उस ने इस काम के लिए हामी भर दी. दीपेंद्र ने इस के लिए अपने चचेरे भाई जितेंद्र की मदद ली. जितेंद्र मनबढ़ किस्म का युवक था. उस के खिलाफ रायबरेली के कई थानों में गंभीर और संगीन आपराधिक मुकदमे दर्ज थे. जितेंद्र तैयार हो गया.

योजना बनने के बाद 29 जनवरी, 2020 को दीपेंद्र चचेरे भाई जितेंद्र को साथ ले कर अपनी गाड़ी से रायबरेली से लखनऊ पहुंचा और 3 दिनों तक शहर में रह कर उस ने रणजीत की रेकी की. वह घर से कब निकलता है, कब घर लौटता है. घर से निकलते समय उस के साथ कौनकौन होता है, वगैरह. दीपेंद्र और जितेंद्र ने 3 दिनों तक रेकी कर के रणजीत की पूरी कुंडली तैयार कर ली और रायबरेली लौट आए. 1 फरवरी, 2020 की रात दीपेंद्र और उस का भाई जितेंद्र ड्राइवर संजीत के साथ बोलेनो कार से लखनऊ आ कर एक होटल में ठहर गए.

2 फरवरी की सुबह साढ़े 5 बजे डेली रूटीन के तहत सब से पहले घर से कालिंदी मौर्निंग वाक के लिए निकली. उस के 2-4 मिनट के अंतराल पर रणजीत अपने पुराने परिचित और गोरखपुर निवासी आदित्य कुमार श्रीवास्तव उर्फ सोनू के साथ निकला. आदित्य कुछ दिन पहले एक ठेके के संबंध में रणजीत से मिलने आया था. रणजीत ने उसे वाक पर साथ चलने के लिए कहा, तो वह साथ हो गया. कालिंदी आगेआगे दौड़ती हुई जा रही थी और पीछे मुड़मुड़ कर देख रही थी कि रणजीत कहां तक पंहुचे. कालिंदी पहली बार ग्लोब पार्क की ओर निकली थी. रणजीत और आदित्य जब पार्क की ओर आते दिखे तो उस ने उन्हें हाथ हिला कर इशारा किया कि वह आगे बढ़ रही है.

कालिंदी दयानिधान पार्क की ओर दौड़ती हुई चली गई, जहां वह अक्सर जाया करती थी. इधर हजरतगंज चौराहे के पास दीपेंद्र कार से उतर गया. जितेंद्र थोड़ी दूर स्थित कैपिटल सिनेमा के पास उतरा और वहीं खड़ा हो गया. रणजीत आदित्य के साथ ओसीआर से निकल कर सीडीआरआई जा रहा था. उसी वक्त जितेंद्र ने उस का पीछा करना शुरू कर दिया था. वह शाल से अपना चेहरा ढके हुए था. जैसे ही दोनों ग्लोब पार्क के पास पहुंचे, जितेंद्र फुरती के साथ आगे बढ़ा और पिस्टल निकाल कर रणजीत पर तान दिया. उस ने दोनों से मोबाइल फोन मांगा तो रणजीत और आदित्य ने कोई मोबाइल चोर समझ कर अपनेअपने फोन उस की ओर बढ़ा दिए. जितेंद्र ने दोनों के फोन अपने कब्जे में कर लिए.

रणजीत और आदित्य कुछ समझ पाते, तब तक जितेंद्र ने रणजीत को लक्ष्य बना कर उस के सिर में .32 बोर की गोली मार दी. गोली लगते ही रणजीत वहीं जमीन पर गिर पड़ा. यह देख आदित्य अपनी जान बचा कर वहां से भागा, तो जितेंद्र ने उसे भी गोली मार दी. यह संयोग ही था कि गोली उस के बाएं हाथ में लगी. गोली मारने के बाद जितेंद्र वहां से भाग निकला और दीपेंद्र के पास जा पहुंचा. दीपेंद्र उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस ने बताया कि काम हो गया है. फिर उसी कार में सवार हो कर दोनों रायबरेली चले गए.

उसी दिन शाम को दीपेंद्र और जितेंद्र रायबरेली से इलाहाबाद पहुंचे. वहां से दोनों मुंबई भाग गए. बीच रास्ते में दीपेंद्र ने स्मृति को मैसेज कर के बता दिया था कि काम हो गया. यह सुन कर वह खुश हो गई. गोली से घायल आदित्य श्रीवास्तव की तहरीर पर हजरतगंज पुलिस ने भारतीय दंड विधान की धारा 302, 307 के तहत अज्ञात बदमाशों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. लखनऊ के पुलिस कमिश्नर सुजीत पांडेय ने घटना का खुलासा करने के लिए 8 टीमें गठित कर दीं.

जांच की दिशा जर, जमीन और जोरू को ले कर तय की गई थी. पुलिस ने पहली पत्नी कालिंदी से पूछताछ शुरू की. कालिंदी से हुई पूछताछ से पता चला कि रणजीत ने दूसरी शादी विकास नगर सेक्टर-2/625 की रहने वाली स्मृति वर्मा से की थी. तकरीबन 4 दिनों की छानबीन के बाद पुलिस का पुख्ता शक दूसरी पत्नी स्मृति वर्मा पर जा टिका. पुलिस ने स्मृति को हिरासत में ले कर उस से कड़ाई से पूछताछ की, तो वह टूट गई और पूरी कहानी पुलिस को बता दी. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए बताया कि रणजीत की हत्या उसी ने अपने प्रेमी दीपेंद्र से मिल कर कराई थी.

पूछताछ में उस ने दीपेंद्र के मुंबई चले जाने की बात बताई. उसी दिन हजरतगंज पुलिस टीम फ्लाइट से मुंबई पहुंची और वहां से दीपेंद्र को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. पता नहीं कैसे शूटर जितेंद्र को पुलिस के आने की भनक लग गई थी और वह वहां से फरार हो गया था. 6 फरवरी, 2020 को पुलिस ने रणजीत हत्याकांड के 3 आरोपियों— स्मृति वर्मा प्रेमी दीपेंद्र और ड्राइवर संजीत को गिरफ्तार कर लिया. कमिश्नर सुजीत पांडेय ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के घटना का खुलासा किया. 3 दिन बाद पुलिस मुठभेड़ के बाद हजरतगंज में शूटर जितेंद्र को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

कथा लिखे जाने तक चारों आरोपी जेल में थे. पुलिस ने अज्ञात की जगह चारों आरोपियों स्मृति बच्चन उर्फ स्मृति वर्मा, दीपेंद्र, शूटर जितेंद्र और चालक संजीत को नामजद कर दिया था. यही नहीं, धारा 302, 307 के साथसाथ केस में धारा 120बी और 7 सीएलए की धाराएं भी जोड़ दी थी. कथा लिखे जाने तक पुलिस ने आरोपियों से रणजीत और आदित्य के मोबाइल फोन बरामद कर लिए थे.

—कथा वादी आदित्य, रणजीत की पहली पत्नी कालिंदी और पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Suicide Stories : पति के शक के कारण महिला सिपाही ने की आत्महत्या

शकरूपी फांस बड़ी ही खतरनाक होती है. अगर समय रहते इस का समाधान न किया जाए तो यह हंसतीखेलती गृहस्थी को तबाह कर देती है. सिपाही शालू गिरि का पति राहुल अगर इस बात को समझ जाता तो शालू को यह खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर न होना पड़ता…

उस दिन जून 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. औरैया जिले की विधूना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ला अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की और बोले, ‘‘मैं विधूना कोतवाली से इंसपेक्टर वी.के. शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए, आप ने फोन क्यों किया?’’

‘‘जय हिंद सर, मैं लखनऊ के कैसर बाग थाने से सिपाही सपना गिरि बोल रही हूं. मुझे आप की मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद? बताइए, मैं आप की हरसंभव मदद को तैयार हूं.’’ इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने आश्वासन दिया.

‘‘सर, आप के थाने में हमारी छोटी बहन शालू गिरि सिपाही पद पर तैनात है. बीती रात 11 बजे हमारी उस से बात हुई थी. तब वह परेशान लग रही थी और बहकीबहकी बातें कर रही थी. तब मैं ने उसे समझाया था और सो जाने को कहा था. आज मैं सुबह से उस का फोन ट्राई कर रही हूं. लेकिन वह फोेन उठा ही नहीं रही है. सर, किसी तरह आप उस से मेरी बात करा दीजिए.’’

‘‘ठीक है सपना, मैं जल्द ही शालू से तुम्हारी बात कराता हूं.’’ श्री शुक्ला ने सपना को आश्वस्त किया. शालू गिरि नई रंगरूट महिला सिपाही थी. उस की तैनाती 5 महीने पहले ही विधूना थाने में हुई थी. वह तेजतर्रार थी और मुस्तैदी से ड्यूटी करती थी. बीती रात 8 बजे वह ड्यूटी समाप्त कर अपने रूम पर गई थी. इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ल ने शालू से बात करने के लिए कई बार उसे फोन किया, लेकिन वह काल रिसीव ही नहीं कर रही थी. अत: उन की चिंता बढ़ गई. उन्होंने थाने में तैनात दूसरी महिला सिपाही जीतू कुमारी को बुलाया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि शालू गिरि कहां रहती है?’’

‘‘हां सर, पता है. वह विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रहती है.’’

‘‘तुम किसी सिपाही के साथ उस के रूम पर जा कर देखो कि वह फोन रिसीव क्यों नहीं कर रही है. कहीं वह बीमार तो नही है?’’ इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

‘‘ठीक है, सर.’’ कह कर जीतू कुमारी सिपाही अजय सिंह के साथ शालू के रूम पर पहुंची. उस के रूम का दरवाजा अंदर से बंद था और कूलर चल रहा था. कमरे के अंदर की लाइट भी जल रही थी. जीतू कुमारी ने दरवाजा पीटना शुरू किया तथा शालू…शालू कह कर आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. घबराई जीतू कुमारी ने थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को सूचना दी तो वह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. फंदे पर झूलती मिली शालू श्री शुक्ला ने भी दरवाजा थपथपाया तथा शालू को पुकारा. पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. किसी अनहोनी की आशंका को भांप कर थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाहियों को शालू के रूम का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही 2 सिपाहियों ने दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रूम में गए तो वह चौंक गए. रूम के अंदर महिला सिपाही शालू का शव फांसी के फंदे पर झूल रहा था. उस ने दुपट्टे का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटक कर मौत को गले लगाया था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ल ने सब से पहले मृतका की बड़ी बहन सपना को खबर दी और उसे तत्काल विधूना थाने आने को कहा. इस के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी और फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. कमरे के अंदर एक प्लास्टिक का स्टूल गिरा पड़ा था. शायद इसी स्टूल पर चढ़ कर शालू ने फांसी का फंदा तैयार किया था और गले में फंदा डाल कर स्टूल को पैर से गिरा दिया था. रूम का बाकी सब सामान अपनी जगह था. रूम के एक ओर पड़ी छोटी टेबल पर पैक खाना रखा था, जिसे उलझन के कारण शायद उस ने नहीं खाया था.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को कमरे के अंदर से एक डायरी तथा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसे उन्होंने सुरक्षित कर लिया. इस के बाद उन्होेंने शालू के शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. चूंकि विभागीय मामला था और अतिसंवेदनशील भी, अत: सूचना मिलते ही औरैया की एसपी सुश्री सुनीति, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (विधूना) मुकेश प्रताप सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल से बरामद शालू की डायरी की पुलिस अधिकारियों ने जांच की तो उन्हें डायरी में 3 पन्ने का सुसाइड नोट मिला. डायरी के एक पन्ने पर शालू ने लिखा था, ‘मेरे प्यारे मांपिताजी, आप ने पालपोस कर मुझे बड़ा किया. पढ़ायालिखाया और प्रदेश सुरक्षा को समर्पित किया. आप के इस बड़प्पन को मैं कभी नहीं भुला सकती. लेकिन मैं अपनी ही जिंदगी से हार गई. मैं ने बहुत कोशिश की कि परेशानियों से उबर जाऊं, पर कामयाब नहीं हुई. इसलिए अपनी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रही हूं. प्लीज किसी को परेशान न किया जाए.’

डायरी के दूसरे पन्ने पर शालू गिरी ने प्रभु (ईश्वर) को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था और रास्ता सुझाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा—

‘हे प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ. बचपन से ले कर आज तक मैं कभी फेल नहीं हुई. फिर मुझे वहां फेल क्यों कर रहे हो, जहां पास होने की सब से ज्यादा जरूरत है. मैं लाइफ में कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. मुझे अपने पास बुला लो.’ पुलिस तलाशने लगी आत्महत्या की वजह डायरी के तीसरे पन्ने पर शालू गिरि ने मरने से पहले घर वालों के नाम एक अन्य पत्र लिखा था, जिस में उस ने सिपाही आकाश का जिक्र किया था. उस ने लिखा था— मेरे मरने का दोषी आकाश को न ठहराया जाए. वह सिर्फ मेरा दोस्त था. दोस्ती के नाते हम एकदूसरे को पसंद करते थे. उस की बातों में जादू था. जिस से मुझे सुकून मिलता था. उस ने मुझे समझाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन मैं अपनी परेशानियों से हार गई, इसलिए हताश जिंदगी का अंत कर रही हूं.’

पुलिस अधिकारी सुसाइड नोट पढ़ कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिपाही शालू गिरि ने परेशानियों के चलते आत्महत्या की है. पर वे परेशानियां क्या थीं, जिस से उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस का खुलासा उस ने पत्रों में नहीं किया था. इस का खुलासा तभी हो सकता था, जब उस के घर वाले मौके पर आते. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार शालू गिरि बागपत जिले के बालौनी थानांतर्गत लतीफपुर दत्त नगर गांव की रहने वाली थी. विधूना थाने में उस की पोेस्टिंग दिसंबर माह में हुई थी. एक माह पहले ही उस की शादी हुई थी. विधूना कस्बे में वह किराए के रूम में रहती थी.

एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने मृतका शालू का मोबाइल फोन खंगाला तो उस में स्वीट होम, हसबैंड, सिस्टर तथा आकाश के नाम से फोन नंबर सेव थे, जो उस के घर वालों के थे. इन नंबरों पर काल कर केश्री दीक्षित ने घर वालों को घटना की जानकारी दी तथा शीघ्र ही विधूना थाने आने को कहा. शालू ने मौत से पहले अपनी बहन सपना से बात की थी. घटनास्थल पर मकान मालिक तरुण सिंह भी मौजूद था. सीओ मुकेश प्रताप सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सिपाही शालू गिरि ने 2 हफ्ते पहले ही रूम किराए पर लिया था.

दूसरे रूम में पब्लिक डिग्री कालेज विधूना के निदेशक मनोज कुमार सिंह चौहान रहते हैं. उन का परिवार कानपुर में रहता है. कल वह परिवार से मिलने कानपुर चले गए थे. मकान मालिक ने बताया कि शालू गिरि बातचीत में सरल तथा हंसमुख स्वभाव की थी. उस ने आत्महत्या किन परिस्थितियों में की, उसे इस की जानकारी नहीं है. पति करता था शक चूंकि आत्महत्या का यह मामला एक सिपाही का था. अत: पुलिस अधिकारियों ने नायब तहसीलदार को भी सूचना भेज दी थी. सूचना पा कर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा घटनास्थल पर आ गई थीं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पुलिस अधिकारियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

उस के बाद उन्हीं की मौजूदगी में इंस्पेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाही शालू गिरि के शव का पंचनामा भरा. पंचनामे पर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा ने हस्ताक्षर किए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया. देर शाम मृतका शालू गिरि के मांबाप, भाईबहन तथा पति थाना विधूना आ गए. उस के बाद तो थाने में कोहराम मच गया. मां सुमित्रा देवी, पिता राजेंद्र गिरि तथा बहन स्वाति व सपना दहाड़ मार कर रो रही थीं. थानाप्रभारी ने उन्हें धैर्य बंधाया. फिर थानाप्रभारी उन सब को उस रूम में ले गए, जहां शालू ने आत्महत्या की थी.

वहां एक बार फिर कोहराम मच गया. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने आत्महत्या का कारण जानने के लिए सब से पहले मृतका शालू की मां सुमित्रा देवी से पूछताछ की. सुमित्रा देवी ने बताया कि शालू उन की लाडली बेटी थी. वह बेहद खुशमिजाज थी. अभी एक महीना पहले ही उस की शादी पड़ोस में रहने वाले इलम चंद्र के बेटे राहुल से हुई थी. राहुल शालू को खुश नहीं रखता था, जिस से वह परेशान रहने लगी थी. राहुल, शालू पर शक भी करता था. वह उसे मानसिक तौर पर भी टौर्चर करता था. उस के कारण ही शालू ने आत्महत्या की है.

पिता राजेंद्र गिरि ने बताया कि वह किसान हैं. बेटियों को पढ़ाने व उन का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाया. शालू सिपाही बनी तो बेहद खुशी हुई. इस के बाद शालू की मरजी से उस का विवाह राहुल के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद उस की खुशी गायब हो गई थी. पहली जून सोमवार को शालू की बात उस की मां सुमित्रा से दिन में ढाई बजे हुई थी. तब वह परेशान थी और जिंदगी से ऊबने की बात कर रही थी. तब हम दोनों ने उसे समझाया था, और जिंदगी को निराशा से आशा में बदलने की बात कही थी. लेकिन उस ने रात में आत्महत्या कर ली.

शालू की बड़ी बहन सपना, जो लखनऊ के कैसर बाग थाने में सिपाही है, ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद जब शालू की पहली पोस्टिंग विधूना थाने में हुई तो वह बेहद खुश थी. सप्ताह में एकदो बार उस की उस से बात जरूर होती थी. शादी के पहले वह बेहद खुश रहती थी. हंसहंस कर बतियाती थी और चुहलबाजी भी करती थी. लेकिन शादी के बाद वह गुमसुम रहने लगी थी. उस ने फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. जब कभी बात होती तो कहती कि वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है. जी चाहता है जिंदगी खत्म कर लूं. शायद शालू अपने पति राहुल से खुश नहीं थी. क्योंकि वह शालू पर शक करता था. सिपाही आकाश को ले कर राहुल के मन में गलत धारणा घर कर गई थी.

आकाश को ले कर ही राहुल उसे मानसिक तौर पर परेशान करता था. जबकि शालू और सिपाही आकाश के बीच सिर्फ दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आमनासामना होने पर हंसबोल लेते थे. सपना ने बताया कि बीती रात 11 बजे कई बार नंबर मिलाने के बाद उस की शालू से बात हुई थी. तब वह बहकीबहकी बातें कर रही थी. बात करतेकरते उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था. उस के बाद जब सुबह उस ने फोन मिलाया तो शालू फोन रिसीव ही नहीं कर रही थी. तब घबरा कर मैं ने आप को फोन किया था और शालू से बात कराने को कहा था. लेकिन कुछ देर बाद आप ने सूचना दी थी कि शालू ने आत्महत्या कर ली है.

पत्नी की मौत की खबर पा कर राहुल भी अपने पिता इलम चंद्र के साथ थाना विधूना पहुंचा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने जब राहुल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने शालू की रजामंदी से उस के साथ प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद उसे पता चला कि शालू की दोस्ती किसी आकाश नाम के सिपाही से है. वह मोबाइल फोन पर उस से बतियाती है. आकाश को ले कर उस ने शालू से टोकाटाकी की थी. इस से वह उस से नाराज रहने लगी थी. पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा नहीं था.

शालू कौन थी? उस ने आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में की? यह सब जानने के लिए हम पाठकों को उस के अतीत की ओर ले चलते हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालौनी थाना अंतर्गत एक गांव है- लतीफपुर दत्त नगर. इसी गांव में राजेंद्र गिरि अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमित्रा गिरि के अलावा 3 बेटियां सपना, शालू, स्वाति तथा एक बेटा राजीव था. राजेंद्र गिरि किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खेती के काम में उन का बेटा राजीव भी मदद करता था. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उन की इच्छा के अनुसार पढ़ाया.

राजेंद्र की बड़ी बेटी सपना पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी. उन्हीं दिनों पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर भरती हो रही थी. सपना ने प्रयास किया तो उस का चयन हो गया. उस की ट्रेनिंग सीतापुर में हुई. बाद में उस की पोस्टिंग लखनऊ के कैसर बाग थाने में हो गई. सपना से छोटी शालू थी. अपनी बड़ी बहन सपना की तरह वह भी पुलिस में भरती होना चाहती थी. इस के लिए उस ने पढ़ाई के अलावा अपने शरीर को चुस्तदुरूस्त बनाने के लिए सुबहशाम दौड़ लगानी शुरू कर दी. राजेंद्र गिरि अपनी लाडली बेटी का सपना पूरा करना चाहते थे, सो वह उसे भरपूर सहयोग कर रहे थे. शालू खूबसूरत थी. उस ने जब 17 बसंत पार किए तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था.

इसी दौरान राहुल गिरि से उस की दोस्ती हो गई. राहुल शालू के पड़ोस में ही रहता था और किसान इलम चंद्र का बेटा था. शालू के पिता राजेंद्र गिरि तथा राहुल के पिता इलम चंद्र की आपस में खूब पटती थी. राजेंद्र जहां अपनी बेटियों का भविष्य बनाने में जुटे थे, वही इलम चंद्र अपने बेटे राहुल का भविष्य बनाने को प्रयासरत थे. राहुल उन का होनहार बेटा था. उस ने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल करने के बाद बीएड की परीक्षा पास कर ली थी और शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास कर शिक्षक बनना चाहता था.

शालू और राहुल एक ही गली में खेलकूद कर जवान हुए थे. दोनों में एकदूसरे के प्रति आकर्षण था. यह आकर्षण धीरेधीरे प्यार में बदल गया था. प्यार परवान चढ़ा तो एक रोज राहुल ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘शालू, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मैं ने तुम्हें अपना बनाने का सपना संजोया है. क्या मेरा यह सपना पूरा होगा?’’

‘‘तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा. पर अभी नहीं. अभी समय है अपना कैरियर बनाने का. तुम्हारा सपना है शिक्षक बनने का और मेरा सपना है पुलिस में नौकरी करने का. अपनाअपना सपना पूरा करो फिर हम जीवनसाथी बन जाएंगे. हम दोनों मजे से जीवन गुजारेंगे.’’

शालू की यह बात राहुल को पसंद आ गई. इस के बाद दोनों अपना कैरियर बनाने में जुट गए. कालांतर मे राहुल ने टीईटी की परीक्षा पास की, उस के बाद उस का चयन शिक्षक पद पर हो गया. वह फैजाबाद के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने लगा. इधर शालू का भी चयन पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर जनवरी 2019 में हो गया. उस की ट्रेनिंग इटावा में हुई. उस के बाद 16 दिसंबर, 2019 को शालू की पहली पोस्टिंग औरैया जिले के विधूना कोतवाली में हो गई. थाने में ड्यूटी के दौरान शालू की मुलाकात सिपाही आकाश से हुई. कुछ दिनों बाद ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

आकाश हर तरह से शालू की मदद करने लगा. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ गई. 20 मार्च, 2020 को शालू गिरि एक सप्ताह की छुट्टी पर अपने गांव लतीफपुर दत्त नगर आई. पर 24 मार्च की रात से देश में लौकडाउन घोषित हो गया, जिस से शालू भी लौकडाउन में फंस गई. शालू का प्रेमी शिक्षक राहुल भी फैजाबाद से घर आया था. वह भी लौकडाउन में गांव में ही फंस गया था. सादगी से हुई लवमैरिज  गांव में रहते शालू और राहुल का आमनासामना हुआ तो दोनों का प्यार उमड़ पड़ा. अब तक दोनों अपना कैरियर बना चुके थे. अत: जब राहुल ने शालू के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा तो शालू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इधर शालू जब लौकडाउन में फंस गई तो पुलिस विभाग ने उसे बालौनी थाने में जौइन करा दिया.

गांव से थाना 9 किलोमीटर दूर था और घर से रोज थाने आनाजाना मुश्किल था. अत: शालू ने बालौनी थाने के पास ही कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रह कर ड्यूटी करने लगी. इसी कमरे में आ कर राहुल उस से मिलने लगा. कुछ दिन बाद शालू और राहुल ने अपने घर वालों से शादी की इच्छा जताई तो दोनों के घर वालों ने उन की बात मान ली. दरअसल शालू की मां सुमित्रा देवी को शालू और सिपाही आकाश के बीच बढ़ती दोस्ती की बात पता चल गई थी. वह शालू की शादी गैर बिरादरी में नहीं करना चाहती थीं, सो वह जातिबिरादरी के युवक राहुल से शादी को राजी हो गई थीं.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद 26 अप्रैल, 2020 को लौकडाउन के दौरान ही शालू और राहुल ने एकदूसरे के गले में वर माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. दोनों परिवारों की मौजूदगी में प्रेम विवाह बालौनी के उसी कमरे में संपन्न हुआ, जिस में शालू रहती थी. शादी के बाद राहुल और शालू पतिपत्नी की तरह उसी कमरे में रहने लगे. पतिपत्नी के बीच दरार तब पड़ी जब सिपाही आकाश का नाम शालू की जुबान पर आया. दरअसल शालू देर रात तक सिपाही आकाश से बतियाती थी. पूछने पर वह आकाश को अपना दोस्त बताती थी. आकाश को ले कर राहुल के मन में शंका पैदा हो गई, जिस से वह उस के चरित्र पर शक करने लगा. शक के कारण दोनों के बीच तनाव की स्थिति रहने लगी.

3 मई, 2020 को बालौनी थाने से शालू को रिलीव कर दिया गया और 5 मई को उस ने वापस विधूना कोतवाली में ड्यूटी जौइन कर ली. इस के बाद उस ने विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रूम ले लिया और रहने लगी. शालू शादी कर जब से वापस थाने आई थी तब से वह गुमसुम रहने लगी थी. लेकिन वह अपना दर्द किसी से बयां नहीं करती थी. इस दर्द का कारण उस का पति राहुल ही था. वह जब भी शालू से फोन पर बात करता था. उस के चरित्र पर उंगली उठाता था. इधर जब से शालू ब्याह रचा कर वापस लौटी थी, तब से उस का सिपाही दोस्त आकाश भी उस से कतराने लगा था. उस में अब न पहले जैसी दोस्ती थी और न ही प्यारसम्मान. वह अब दोजख में फंस गई थी.

एक ओर उस का पति मानसिक चोट पहुंचा रहा था, उस के चरित्र पर शक कर रहा था, तो दूसरी ओर सिपाही दोस्त आकाश भी उसे पीड़ा पहुंचा रहा था. ऐसे में शालू परेशान हो उठी. आखिर में उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय कर लिया. पहली जून, 2020 को शालू ड्यूटी गई और रात 9 बजे वापस अपने रूम पर आई. उस रोज भी वह परेशान थी और निराशा उसे घेरे थी. रात 11 बजे बड़ी बहन सपना का फोन आया तो उस ने उस से बहकीबहकी बातें कीं. फिर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.  उस के बाद उस ने सिपाही आकाश को फोन किया, लेकिन उस ने फोन रिसीव ही नहीं किया. इस के बाद शालू ने अपनी डायरी के 3 पन्नों पर सुसाइड नोट लिखा, फिर रात लगभग 12 बजे फांसी के फंदे पर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब सपना ने सुबह विधूना थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला के मोबाइल पर जानकारी दी और शालू से बात कराने का आग्रह किया. इस के बाद विनोद कुमार शुक्ला जब शालू के रूम पर पहुंचे, तब शालू फांसी के फंदे पर झूलती मिली. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो शालू की हताश जिंदगी की व्यथा सामने आई. चूकि शालू के पति राहुल के खिलाफ शालू के घर वालों ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी, अत: विधूना पुलिस ने इस प्रकरण को बंद कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Agra News : बेटे की शादी के रास्ते में मां बनी बाधा तो तकिए से मुंह दबाकर की हत्या

Agra News : पति की मौत के बाद लक्ष्मी देवी ने ही अपने एकलौते बेटे शिवम की परवरिश की थी. इस के बाद शिवम को पड़ोस में रहने वाली रानी से प्यार ही नहीं हुआ, बल्कि दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में शादी भी कर ली. फिर ऐसा क्या हुआ कि शिवम को रानी के सामने ही अपनी मां की हत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा…

जब किसी को किसी से प्यार हो जाए, तो उस की हालत अजीब हो जाती है. सोतेजागते उस का ही खयाल, उस के ही सपने आते हैं. सीने में अजीब सी आग भरी होने का अहसास होता है. इतना ही नहीं, आंखों और नींद में रार मच जाती है. प्रेम दीवानी रानी का यही हाल था. जब तक वह अपने प्रेमी शिवम शर्मा को देख न लेती तब तक बेचैनी उसे सताती रहती थी. शिवम कहीं दूर नहीं रानी के घर के पास ही रहता था. बचपन से रानी उसे देखती आ रही थी. उस के प्रति मन में कभी किसी प्रकार की भावना नहीं आई थी. मोहल्ले में जैसे सब रहते थे, वैसे ही शिवम रहता था.

शिवम का थोड़ा महत्त्व इसलिए था कि दूसरे लोगों के मकान कुछ फासले पर थे, जबकि शिवम रानी के घर के पास ही रहता था. प्यार के लिए मुद्दत के इंतजार की जरूरत नहीं होती. यह तो कुदरत की वह नेमत है, जो किसी भी पल इंसान को मिल जाती है. गर्मियों की एक सुबह की बात है. कहीं जाने के लिए शिवम रानी के घर के सामने से गुजर रहा था. उस वक्त उस के जेहन में कल्पना तक नहीं थी कि कुछ क्षणों बाद उस के जीवन में एक नया मोड़ आने वाला है. गरमी के मौसम में लू चलने के कारण धूल बहुत उड़ती है. इसीलिए लोग घरों के सामने पानी की छिड़काव कर देते हैं, ताकि धूल न उड़े.

उस सुबह रानी भी पानी से भरी बाल्टी ले कर अपने घर के सामने छिड़काव करने के लिए दरवाजे पर आई. वह यह नहीं देख पाई कि सामने से शिवम निकल रहा है. उस ने बाल्टी के पानी से मग भरा और दरवाजे से बाहर फेंक दिया. फेंका गया पानी शिवम पर गिरा. कुछ पल के लिए वह चौंक गया और उस के पैर जहां के तहां ठिठक गए. रानी भी उसे देखती रह गई. मन में वह सोच रही थी कि यह उस से क्या हो गया. शिवम न जाने कहां जा रहा था, उस की एक गलती से उस के कपड़े भीग गए. शिवम अब उसे बहुत डांटेगा. रानी हैरान तब हुई, जब शिवम ने अपने गीले कपड़े झटके और रानी की आंखों में देख कर मुसकराने लगा. शिवम की मुसकराहट ने रानी के डर को दूर कर दिया, वह बोली, ‘‘मैं ने तुम्हें आते नहीं देखा था, गलती से पानी फेंक दिया, माफ  कर दो.’’

‘‘गरमी के इस मौसम में ठंडा पानी मन को तरावट देता है. थोड़ी देर के लिए ही सही, ताजगी और तरावट का मजा आ गया,’’ शिवम हंसने लगा, ‘‘रही कपड़े भीगने की बात तो उस की चिंता नहीं. मौसम ऐसा है कि कुछ कदम चलते ही गरम हवा कपड़े सुखा देगी.’’ वह एक बार फिर मुसकराया और अपनी राह चल पड़ा. शिवम की मुसकान में न जाने ऐसा क्या था कि तीर की तरह रानी के जिगर के पार हो गई. उस ने बाल्टी से पानी का मग भरा और अपने सिर पर उड़ेल लिया. रानी की मां ने यह तमाशा देखा तो वह चिल्लाई,‘‘दरवाजे पर खड़ी हो कर तू खुद को क्यों भिगो रही है, नहाना है तो घर के भीतर आ कर नहा ले.’’

‘‘मम्मी, मैं नहा नहीं रही, ठंडे पानी से कपड़े भिगो कर खुद को ताजगी और तरावट से भर रही हूं.’’ वह बोली. इस के बाद वह महसूस करने लगी कि जब शिवम भीगा होगा, तब उस ने ऐसा ही महसूस किया होगा. उस पल से एक अहसास ही नहीं जुड़े, दिल के तार भी जुड़ गए. बस इस के बाद शिवम बहुत तेजी से रानी के दिलोदिमाग पर छाता चला गया. शिवम का हाल भी रानी से अलग नहीं था. पानी फेंकने में हुई चूक के बाद उस का हैरान चेहरा और फैली आंखें शिवम के दिल में बस गई थीं. बस इसी एक बात ने उस की सोच को नई दिशा दे दी. शिवम ने रानी के बारे में सोचा तो वह यकायक अपनी सी लगने लगी. दिल भी उछल कर बोलने लगा कि हां उसे भी रानी से प्यार हो गया है.

ताजनगरी आगरा के जगदीशपुरा थाना क्षेत्र के वैशाली नगर, नगला गूजर में रमेश चंद्र शर्मा रहते थे. परिवार में उन की पत्नी लक्ष्मी देवी और इकलौता पुत्र शिवम शर्मा था. रमेश चंद्र पंडिताई का काम करते थे. उसी से परिवार का खर्च चलता था. करीब 12 साल पूर्व रमेश चंद्र की आकस्मिक मृत्यु हो गई थी. अब लक्ष्मी देवी पर अपना और बेटे का पेट भरने और उसे अच्छी जिंदगी देने की जिम्मेदारी आ गई. पति की पंडिताई को करते देखते हुए लक्ष्मी भी उस में पारंगत हो गई थी. इसलिए पति की मृत्यु के पश्चात एक मंदिर की पुजारिन बन गई. वहां आने वाले चढ़ावे से अपना और बेटे का पेट पालने लगी.

25 साल के हो चुके शिवम ने केवल इंटरमीडिएट तक ही पढ़ाई की थी. उस ने कुछ दिन एक कपड़े की दुकान पर काम किया, फिर वहां से छोड़ दिया. बेरोजगारी में दिन काटने लगा. मां जो लाती उसी में वह गुजारा कर लेता. लक्ष्मी देवी के मकान के पास ही कालीचरण का मकान था. 20 वर्षीय रानी कालीचरण की ही बड़ी बेटी थी. रानी ने हाईस्कूल तक ही पढ़ाई की थी. पासपास रहने के कारण दोनों परिवार एकदूसरे से परिचित थे. बचपन से रानी और शिवम एकदूसरे को देखते आ रहे थे. किशोरावस्था को पार कर के युवावस्था में प्रवेश कर गए, तब भी उन के मन नहीं मचले. उस दिन पानी के मग ने दोनों के बीच एक बेनाम रिश्ता बना दिया. ऐसा बेनाम रिश्ता जिस में तड़प, बेचैनी, कसक और प्यार था.

उस दिन से शिवम और रानी की आंखें एकदूजे के दीदार की प्यासी रहने लगीं. शिवम फुरसत में होता तो वह अपने घर के चबूतरे पर बैठा होता. मन रानी के बारे में सोच रहा होता और प्यासी आंखें उस के द्वार पर टकटकी लगाए होतीं. शिवम को देखने के लिए किसी बहाने से रानी भी घर के बाहर आ जाती. दोनों की आंखें मिलतीं तो दोनों के लब खिल जाते. इस के साथ ही धड़कनों की गति बढ़ जाती. रानी और शिवम में बातचीत होनी सामान्य बात थी. पूरे मोहल्ले के सामने बात भी करते तो उन के रिश्ते पर कोई शक नहीं करता. कहते हैं कि न, जब प्यार होता है तो मन में चोर भी पैदा हो जाता है. रानी और शिवम के मन में भी चोर पैर जमाए बैठा था. सो एकांत में सामना होते ही मानो उन की हिम्मत जवाब देने लगती.

शिवम को भी डर लगता कि प्रेम निवेदन सुन कर रानी भड़क गई तो सिर पर इतने जूते पड़ेंगे कि वह गंजा हो जाएगा. कुछ दिन यूं ही आंखमिचौली चलती रही, फिर एक दिन मौका मिला तो शिवम ने हिम्मत कर के मन की बात कह दी, ‘‘रानी, मुझे तुम से प्यार हो गया है, अब तुम भी अपने प्यार को जता कर मेरे दिल की रानी बन जाओ.’’

शर्म से रानी के गाल गुलाबी हो गए. उस ने सिर झुका लिया और पैर के अंगूठे से जमीन खुरचने की नाकाम कोशिश करने लगी. रानी के अंदाज से वह समझ गया कि डरने की कोई बात नहीं. रानी भी उस से प्यार करती है. प्रेम तभी आनंद देता है जब उस का प्रदर्शन किया जाए. शिवम भी रानी के मुंह से उस के दिल का हाल सुनना चाहता था. इसलिए उसे बोलने के लिए उकसाया, ‘‘कहो न, तुम भी मुझ से प्यार करती हो?’’

रानी ने सिर उठा कर शिवम की आंखों में देखा, उस के बाद पुन: नजरें नीची कर लीं. मुसकराई, इकरार में सिर हिलाया और तेजी से उस के सामने से हट गई. शिवम का दिल बल्लियों उछलने लगा, वह समझ गया कि रानी को भी उस से प्यार है. मोहब्बत का इजहार और इकरार होते ही रानी व शिवम की प्रेम कहानी शुरू हो गई. कभी शिवम का सूना घर, कभी पार्क तो कभी सुनसान स्थान रानी और शिवम की मोहब्बत के खामोश गवाह बनने लगे. शिवम की मां मंदिर चली जाती तो घर में शिवम ही अकेला रह जाता था. ऐसे में रानी मिलने के लिए शिवम के घर आ जाती थी. वहां उस से घंटों बतियाती, प्यार भरी बातें करती.

एक रोज रानी सजसंवर कर शिवम के घर पहुंची. उस ने नया सूट पहन रखा था. शिवम के कमरे में दाखिल हुई तो उसे शिवम नहीं दिखा, वह बाथरूम में था. रानी ने आवाज लगाई, ‘‘शिवम!’’

‘‘कौन?’’ शिवम ने बाथरूम के अंदर से ही पूछा.

‘‘अच्छा तो जनाब मेरी आवाज भी नहीं पहचानते. आ कर बताऊं कौन हूं मैं?’’ रानी का लहजा शरारत भरा था.

‘‘बिलकुल आ जाओ, मैं कौन सा डरता हूं.’’ वह बोला.

रानी को लगा कि इस समय अन्य कोई वहां आ गया तो बदनामी होगी उस की. वह वापस मुड़ी और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया. दरवाजा बंद करने के बाद उस ने बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक दी तो शिवम ने उसे अंदर खींच लिया. शिवम मात्र अंडरवियर पहने हुए था. उस का पूरा शरीर पानी से भीगा हुआ था. शिवम की आंखों में शरारत नाच रही थी. उस ने रानी को करीब खींचा तो वह चिहुंक उठी, ‘‘छोड़ो मेरा सूट गीला हो जाएगा, आज ही पहना है इसे. मैं तो तुम्हें अपना सूट दिखाने आई थी कि तारीफ  क रोगे तुम मेरी.’’

‘‘तारीफ  तो मैं तुम्हारी हमेशा करता हूं, आज फिर से कह रहा हूं कि तुम से हसीन इस जहां में कोई नहीं है.’’ कहते हुए शिवम ने उस के होंठों को चूम लिया.

शिवम उस की तारीफ  करते हुए पहले भी ऐसा कुछेक बार कर चुका था. रानी शिवम के मन की यौन जिज्ञासाओं को समझती थी. इसलिए उस की हरकतों का बुरा नहीं मानती थी. वह जानती थी कि शिवम का मन इस से आगे कुछ और भी चाहता होगा, पर वह शिवम से यही कहती थी, ‘‘बेसब्र मत बनो, मैं तुम से प्यार करती हूं और शादी के बाद पूरी तरह तुम्हारी हो जाऊंगी, तब जो जी चाहे करना.’’

शिवम भी उस की भावनाओं को समझ कर खुद को रोक लेता था. लेकिन आज माहौल एकदम बदला हुआ था. शिवम के नग्न भीगे कसरती बदन को देख कर रानी की सोई हुई भावनाएं जाग उठी थीं. जब शिवम ने उस की पतली कमर में हाथ डाल कर जिस तरह उस के होंठों को चूमा तो उस के बदन में चिंगारियां चटखने लगी थीं. एक फुट के फासले पर खड़े शिवम के हाथ में रानी की कलाई थी और निगाहों में एक सवाल था. वह अपलक रानी के चेहरे को निहार रहा था. जबकि रानी की झुकी हुई आंखें चोरीचोरी उस के बदन को देख रही थीं. उस की नजरों के लक्ष्य को समझ कर शिवम ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘जब तुम्हारा हूं तो मेरे शरीर का जर्राजर्रा तुम्हारा है इन पर तुम्हारा ही हक है.’’

रानी लजा गई. चेहरे पर हया की लाली फैली तो कांपते होंठों से उस ने कहा, ‘‘तुम बहुत शरारती होते जा रहे हो.’’

‘‘हुस्न का खजाना बांहों में हो तो बड़ेबड़े तपस्वी बेईमान हो जाते हैं.’’ कहते हुए शिवम रानी के एकदम करीब खिसक आया. उस ने अपने दोनों हाथ दीवार पर टिका कर उस ने रानी को अपनी जद में ले लिया. फिर धीरे से अपने होंठ उस के होंठों की तरफ  बढ़ाए.

‘‘नहीं शिवम यह ठीक नहीं है,’’ रानी ने उसे रोकना चाहा, लेकिन शिवम तब तक अपने जिस्म का बोझ उस पर डाल चुका था. तन की गरमी पा कर रानी का विरोध मंद पड़ गया. रानी भी खुद पर नियंत्रण न रख सकी. फिर दोनों पहली बार आनंद की एक नई दुनिया की सैर को निकल गए. मंजिल मिलने के बाद ही वह एकदूसरे से अलग हुए. रानी को हासिल करने के बाद शिवम उस का और भी दीवाना हो गया. उस की सुबह रानी से शुरू होती थी और शाम रानी पर खत्म होती थी. उन को अलग होने का बिलकुल भी मन नहीं होता था लेकिन लोकलाज के चलते शिवम अपने घर और रानी अपने घर जाने को मजबूर हो जाती.

दोनों विवाह कर के एक साथ जिंदगी बिताना चाहते थे लेकिन यह संभव नहीं था. क्योंकि वे एक जाति के नहीं थे. ऐसे में लक्ष्मी देवी कभी भी अपने बेटे शिवम को दूसरे कुल में शादी करने की अनुमति नहीं देती. लक्ष्मी देवी पुजारिन होने के कारण धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह हरगिज दोनों के रिश्ते को मंजूरी नहीं देती. अपनी मां के बारे में शिवम बखूबी जानता था. ऐसे में शिवम के दिमाग में उथलपुथल मचने लगी कि क्या करे, क्या न करे. उसे सिर्फ एक ही रास्ता सूझा कि वह आर्यसमाज मंदिर में रानी से शादी कर ले और उसे ले कर कहीं दूर चला जाए. रानी से  शिवम ने बात की तो उस का भी यही कहना था कि जब परिवार हमारे मन की करेंगे नहीं, हमारी खुशियों के बारे में नहीं सोचेंगे तो हम क्यों उन के बारे में सोचें. हम भी वही करेंगे जो हमें सही लगेगा.

आपसी सहमति के बाद दोनों ने आर्यसमाज मंदिर में विवाह कर लिया. विवाह कर के दोनों बहुत खुश थे. क्योंकि वह एक नई जिंदगी की शुरुआत जो कर रहे थे. विवाह करने के बाद शिवम ने कुछ सोच कर अपनी मां लक्ष्मी देवी को रानी के साथ विवाह करने के बारे में बताया तो लक्ष्मी देवी ने उसे खूब खरीखोटी सुनाई, ‘‘निखट्टू घर में पड़ेपड़े मेरे दिए निवाले तोड़ता रहा, कभी एक पैसे का काम नहीं किया. अब ऊपर से चोरीछिपे शादी कर लेने की बात कर रहा है. पहले तुझे, अब उसे भी छाती पर बैठा कर खिलाऊं, ऐसा कभी नहीं हो सकता. वैसे भी मैं तेरी इस शादी को नहीं मानती.’’

‘‘आप मानो न मानो रानी से मेरी शादी हो चुकी है. मैं उसे हरगिज नहीं छोड़ सकता.’’ इतना कह कर शिवम वहां से चला गया. लक्ष्मी देवी बैठ कर सिसकने लगी और उस दिन को कोसने लगी, जब शिवम पैदा हुआ था. वह सिसकते हुए बोली, ‘‘ऐसे कपूत से तो निपूती रहती.’’

इस के बाद मांबेटे में शादी की बात को ले कर रोज झगड़ा होने लगा. दूसरी ओर रानी के घरवालों ने उस के लिए उपयुक्त वर देख कर उस का रिश्ता पक्का कर दिया. रानी इस से घबरा उठी. एक तरफ रानी की शादी तय हो गई, दूसरी ओर लक्ष्मी देवी उस को अपनाने को तैयार नहीं थी. ऐसे में दोनों घर से भाग कर कहीं और अपनी दुनिया बसाने के बारे में सोचने लगे. शिवम के पास कोई कामधाम तो था नहीं, जो पैसे होते. इसलिए शिवम ने फैसला किया कि वह घर में रखे रुपए और गहने चोरी से निकाल कर रानी के साथ भाग जाएगा. 6 मार्च, 2020 की शाम साढ़े 5 बजे लक्ष्मी देवी घर पर नहीं थी, वह मंदिर गई हुई थी. शिवम ने रानी को बुला लिया और घर में रखे पैसे और गहने निकालने लगा. तभी लक्ष्मी देवी घर वापस लौट आई. शिवम की हरकत देख कर वह बिफर पड़ी, ‘‘शिवम!’’

मां की आवाज सुन कर शिवम चौंक गया और एक झटके में खड़ा हो कर अपनी मां की तरफ  देखने लगा. उस के पास ही रानी भी खड़ी थी. बेटे शिवम को दुत्कारते हुए लक्ष्मी देवी बोली, ‘‘अब यही दिन तो दिखाना बाकी रह गया तुझे दुष्ट. खुद तो कभी कुछ कमाया नहीं और मेरी जिंदगी भर की पूंजी को चुरा कर उड़ाने पर आमादा है. आज तुझे तो मैं सबक सिखा कर ही रहूंगी. अभी मैं पुलिस को फोन करती हूं और तुम दोनों को अंदर करवाती हूं. जब जेल की हवा खाओगे, तब समझ में आएगा.’’

यह सुन दोनों घबरा उठे और एकदूसरे की ओर देखा. शिवम ने महसूस किया कि रानी जैसे उस से कह रही हो रोको अपनी मां को. शिवम ने सहमति में सिर हिलाया. फिर अपनी मां की ओर झपटा. मां के हाथ से मोबाइल छीन कर शिवम ने मां को बैड पर गिरा दिया. फिर बैड पर रखे तकिया से उस ने अपनी मां का कस कर मुंह दबा दिया, जिस से दम घुटने से लक्ष्मी देवी की मौत हो गई. अब शिवम को समझ नहीं आ रहा था कि आगे क्या करे. उस ने रानी को उस के घर भेजा. फिर मकान के मेनगेट में लौक लगा कर वह भावना एस्टेट गया, वहां एक चाय की दुकान पर बैठा रहा.

वहां बैठने के दौरान उस ने रानी से कई बार फोन पर बात की. वह चाय की दुकान पर 5 घंटे बैठा रहा. रात 11 बजे वह घर पहुंचा, तब उस ने जगदीशपुरा थाने को मां की मौत हो जाने की सूचना दी. सूचना मिलने पर इंसपेक्टर राजेश कुमार अपने मातहतों के साथ घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया तो लक्ष्मी देवी के शरीर पर किसी तरह की चोट के निशान नहीं दिखे. इस का मतलब यही था कि किसी चीज से गला घोंटा गया है. इंसपेक्टर राजेश कुमार ने शिवम से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह घर पर नहीं था. अभी वह घर लौटा तो मां को इस हालत में पाया. घर में किसी अंजान व्यक्ति द्वारा वारदात किए जाने की शंका होते ही उस ने पुलिस को सूचना दी.

इन सब में इंसपेक्टर राजेश कुमार को अजीब बात यह लगी कि जिस बेटे की मां की मौत हुई थी उस बेटे को कोई गम नहीं था, चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी, यह आश्चर्य की बात थी. शिवम पर संदेह होने पर भी उन्होंने छेड़ा नहीं. अभी ऐसा कोई सुबूत उन के पास नहीं था, जिस से उसे गुनहगार ठहराया जा सके. उन्होंने लाश को पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया. फिर थाने आ कर उन्होंने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उस में मृत्यु का कारण दम घुटना बताया गया था. मौत भी सूचना मिलने के पांच घंटे पहले होने की  बात बताई गई थी.

इस के बाद इंसपेक्टर राजेश कुमार ने शिवम के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. घटना के समय शिवम की लोकेशन उस के घर की ही थी. काल डिटेल्स में एक नंबर पर इंसपेक्टर राजेश कुमार की नजर गई, उस नंबर पर शिवम की रोज कई बार बात होती थी. घटना वाले दिन भी देर रात तक कई बार उस नंबर पर बात की गई थी. उस नंबर की जांच की गई तो वह शिवम के पड़ोस में रहने वाली रानी का निकला. घटना के समय रानी के मोबाइल फोन की लोकेशन शिवम के साथ ही थी. 8 मार्च, 2020 को इंसपेक्टर राजेश कुमार ने शिवम और रानी को गिरफ्तार कर लिया. उन से थाने ला कर पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया.

इस के बाद इंसपेक्टर कुमार ने हत्या में प्रयुक्त तकिया भी बरामद कर लिया, जिस से उन्होंने लक्ष्मी देवी का गला घोंटा था. आवश्यक कागजी खानापूर्ति करने के बाद शिवम और रानी को सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधार

Maharashtra News : सैक्स रैकेट और अवैध धंधों से वसूली करने वाली प्रीति की हैरान करने वाली दास्तां

Maharashtra News : खिलाड़ी औरतों के लिए हनीट्रैप कमाई का सब से अच्छा माध्यम है. लेकिन यह जरूरी नहीं कि इस में कामयाबी मिलेगी ही, क्योंकि पुलिस भी अपराधों की गंध सूंघती रहती है. प्रीति ने नेताओं और पुलिस के कंधों पर हाथ रख कर करोड़ों कमाए, लेकिन…

लौकडाउन से अनलौक की ओर कदम बढ़ते ही महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में यूं तो अपराध की जबरदस्त ताक धिना धिन सुनी जा रही थी. हत्याओं का सिलसिला सा बन गया था. राज्य के गृहमंत्री के गृहनगर की इस हालत पर राजनीतिक तीरतलवार चलाने वाले तरकश कसने लगे थे. पुलिस और प्रशासन पर तोहमत लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कोरोना योद्धा के तौर पर शाबासी लूट चुकी शहर पुलिस ऐसी किसी तोहमत को तवज्जो नहीं देना चाहती थी. दावा यही कि प्रत्यक्ष को प्रमाण की न जरूरत थी न ही होनी चाहिए.

शहर पुलिस ने बड़ेबड़े अपराधियों के अपराध के आशियानों को कुछ समय में ही बड़े स्तर पर ध्वस्त कर दिया था. ऐसे में एक मामला अचानक चर्चा में हौट हुआ. यह मामला चार सौ बीसी के खेल में पकड़ी गई प्रीति का. राजनीति के गलियारे में चहलकदमी के साथ समाजसेवा का नया मौडल बनी घूमती उस महिला के बारे में बड़ी चर्चा ये थी कि कई पुलिस वाले साहब उस के दबेल यानी उस के दबाव में थे. लिहाजा उस ने शहर व शहर के आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दबावतंत्र बना कर कइयों की जिंदगी में जहर घोल दिया. पुलिस कभी उस का सत्कार करती थी तो कभी उस से सत्कार कराती थी.

समाजसेवा के चोले में हनी ट्रैपर घटना 5 जून, 2020 की है. एक शिकायतकर्ता पांचपावली पुलिस स्टेशन में बेबस मुद्रा में मदद की याचना ले कर पहुंचा. शिकायतकर्ता का नाम था उमेश उर्फ गुड्डू तिवारी. पांचपावली क्षेत्र में ही रहने वाले गुड्डू ने बताया कि उस का जीवन एकदम सामान्य था. वह एक स्कूल का कर्मचारी है. हर माह मिलने वाले वेतन से उस के परिवार का हंसीखुशी गुजारा हो रहा था. लेकिन जब से वह प्रीति की सोहबत में आया, उस की दुनिया लुटने लगी. उमेश उर्फ गुड्डू ने उस वक्त को कोसा है, जब वह फेसबुक पर प्रीति से जुड़ा था.

प्रीति का आकर्षक फोटो देख गुड्डू ने उस पर सहज कमेंट किया था. उस कमेंट के जवाब में प्रीति ने फेसबुक पर ही गुड्डू को पर्सनल मैसेज भेज कर मोबाइल फोन नंबर का आदानप्रदान कर लिया. गुड्डू इस बात को ले कर भी खुद को दोष देता है कि एकदो बार फोन पर बात के बाद वह उस अनजानी महिला के सामने पूरी तरह से खुल गया. उस ने अपने घरपरिवार की बातें साझा कर दीं. यहां तक कि वैवाहिक जीवन में भी उस ने अरमानों के सूखे कंठ की वेदना को स्वर दे दिया. प्रीति ने गुड्डू को बताया कि नागपुर के जिस इलाके में वह रहता है, उस के पास ही वह भी रहती है. उस ने अपनी पहचान के दायरे के ट्रेलर के तौर पर कुछ लोगों के नाम गिनाए.

कुछ दिनों बाद दोनों के मिलने का सिलसिला मोहब्बत की परवाज भरने लगा. कभी प्रीति मिलने पहुंचती तो कभी गुड्डू को बुला लेती थी. एक दिन प्रीति ने गुड्डू से साफ कह दिया कि वह उस के साथ जीवन गुजारने को तैयार है. बशर्ते उसे अपनी पत्नी को तलाक देना होगा. भविष्य की योजना भी उस ने गुड्डू से साझा की. 50 वर्षीय गुड्डू जिंदगी के नए सफर पर चलने के लिए न केवल राजी हुआ बल्कि अति उत्साहित भी था. माल मिलते ही बदला रंग गुड्डू की शिकायत का लब्बोलुआब यह था कि प्रीति मनचाहा धन मिलते ही तेवर बदलने लगती थी. बतौर गुड्डू प्रीति ने उस से फ्लैट खरीदने के लिए रुपयों की मांग की थी. उस का कहना था कि जब तक गुड्डू की पत्नी का तलाक नहीं हो जाता, तब तक दोनों उस फ्लैट में मिलतेजुलते रहेंगे.

गुड्डू ने अग्रिम के तौर पर प्रीति को फ्लैट के लिए 2.60 लाख रुपए दे दिए. तय समय पर फ्लैट नहीं लिया गया तो गुड्डू ने रुपए वापस मांगे. बस यहीं से गुड्डू पर दबाव का नया सिलसिला चल पड़ा. फ्लैट के नाम पर लिए गए रुपए वापस लौटाना तो दूर प्रीति ने रुपयों की नई पेशकश रख दी. उस ने कहा कि सोशल मीडिया पर जितनी भी हौट बातें हुई हैं और फोन पर लाइव चैटिंग हुई है, उन का सारा हिसाब उस के पास है. अगर वह उस रिकौर्डिंग को पुलिस को सौंप दे तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा. प्रीति की सीधी धमकी यह भी थी कि ज्यादा चूंचपड़ मत करना. मेरे हाथ काफी लंबे हैं. चुटकी बजा कर ऐसी जगह पर घुसेड़वा दूंगी, जहां से जीवन भर नहीं निकल पाएगा. और हां, अपनी इज्जत बचानी हो तो 5 लाख रुपए तैयार रखना.

प्रीति के ठग अंदाज का जिक्र करते हुए गुड्डू ने बताया कि उस ने डर के मारे प्रीति को 2.42 लाख रुपए और दिए, जिस से वह कहीं मुंह न खोले. लेकिन माल पाने के बाद तो वह और भी रंग बदलने लगी. रुपए और गिफ्ट ले कर यहांवहां बुलाने लगी. उस से दूर होने का प्रयास किया तो वह घर में आ कर पिटवा देने की धमकी देने लगी. कुछ ही दिनों में उस ने नकदी और गिफ्ट के रूप में 14.87 लाख रुपए ऐंठ लिए. आखिरकार उसे अपने बचाव में पुलिस की शरण लेनी पड़ी. पुलिस ने उस की शिकायत की शुरुआती पड़ताल करने के बाद प्रीति के खिलाफ भादंवि की धारा 420 व धारा 384 हफ्तावसूली के तहत केस दर्ज कर लिया.

मामला दर्ज करने के बाद पुलिस ने प्रीति के कामठी रोड स्थित प्रियदर्शिनी अपार्टमेंट के घर पर छापेमारी की. प्रीति वहां से चंपत हो गई थी. पुलिस ने उस के घर से काफी सामान और दस्तावेज बरामद किए. खुला भेद तो पुलिस भी रह गई दंग जिस पांचपावली पुलिस स्टेशन में प्रीति का आनाजाना लगा रहता था, उसी थाने की पुलिस उस के कारनामों की फेहरिस्त देख कर दंग रह गई. रिकौर्ड खंगालने पर पता चला कि प्रीति धोखाधड़ी के मामले में जेल की यात्रा कर चुकी है. उस के आपराधिक क्षेत्र के छोटेबड़े लोगों से भी करीबी संबंध है. उस के खिलाफ शहर के सीताबर्डी पुलिस स्टेशन में भादंवि की धारा 420, 406, 468, 467, 506, 507, 34 के  तहत प्रकरण दर्ज है.

धोखाधड़ी का वह प्रकरण शहर में काफी चर्चित हुआ था. इस के अलावा भंडारा के पुलिस स्टेशन में भी भादंवि की धारा 420 के तहत मुकदमा दर्ज था. शहर पुलिस के बड़े अधिकारियों के लिए यह जानकारी काफी चौंकाने वाली थी कि जिस महिला को वे केवल सामाजिक कार्यकर्ता समझ रहे थे वह ब्लैकमैलर है. यही नहीं वह पुलिस से संबंधों का नाजायज फायदा उठाती रहती है. शहर पुलिस की ओर से प्रीति के अपराधों की जानकारी जुटानी शुरू कर दी गई. बाकायदा प्रैस नोट जारी कर आह्वान किया गया कि इस महिला ने किसी से धोखाधड़ी की हो, तो तत्काल पुलिस से संपर्क करे.

इस बीच प्रीति फरार हो गई थी. पुलिस उसे ढूंढती रही. करीब हफ्ते भर प्रीति बचाव का रास्ता खोजती रही. उस ने वकील के माध्यम से जिला सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया. कोशिश यही थी कि पुलिस गिरफ्तारी से बचते हुए उसे न्यायालय से जमानत मिल जाए. लेकिन उस की कोशिशों पर पानी फिर गया. न्यायालय ने उस की अरजी खारिज कर दी. लिहाजा उस ने 13 जून को पांचपावली पुलिस स्टेशन में आत्मसमर्पण किया. उसे पुलिस तक पहुंचाने वालों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के अलावा पुलिस के कुछ नुमाइंदे भी शामिल थे.

गिरफ्तारी के बाद प्रीति को पुलिस रिमांड पर लिया गया. उस के खिलाफ पुलिस ने सबूत जुटाने शुरू किए. जांच में जुटी पुलिस यह जान कर दंग रह गई कि कुछ समय पहले तक मामूली मोपेड पर घूमने वाली प्रीति अब करोड़पति हो गई है. वह महंगी कारों से घूमती है. उस ने अपने करीबियों व रिश्तेदारों के नाम पर बेनामी संपत्ति खरीद रखी है. बंगला, खेती की जमीन के अलावा वह एक कंपनी की भी संचालक भी थी. अवैध वसूली के लिए उस ने बाकायदा एक संस्था रजिस्टर्ड करा रखी थी. लिहाजा पुलिस ने धर्मदाय आयुक्तालय, विजिलैंस विभाग के अलावा अन्य विभागों को पत्र लिख कर उस के बारे में आवश्यक जानकारी मांगी.

घर में हुआ अपमान तो कर लिया सुसाइड प्रीति के कारनामों की जानकारी जुटाई ही जा रही थी कि पुलिस अधिकारियों तक एक गुहार और पहुंची. गुहार यह कि एक व्यक्ति ने प्रीति और उस के साथियों के डर से सुसाइड कर लिया था. मृतक के परिवार को न्याय दिलाने के लिए यह शिकायत जूनी मंगलवारी निवासी वैशाली पौनीकर की थी. शिकायत के अनुसार वैशाली के पति सुनील पौनीकर ने अक्तूबर 2019 में सतीश सोनकुसरे से कुछ रकम कर्ज ली थी. सुनील पौनीकर मेस संचालक था. काम में घाटे के कारण उसे कर्ज लेना पड़ा था. सतीश सोनकुसरे ने कर्ज वापसी के लिए सुनील पर दबाव बनाया. लेकिन समय पर रुपए नहीं लौटा पाने पर उस ने प्रीति की मदद ली.

प्रीति यह भी दावा करती थी कि वह कर्ज वसूली का काम भी करती है. शहर के सारे बड़े पुलिस अफसर व नेता उस के पहचान के हैं. बतौर वैशाली पौनीकर, प्रीति ने सतीश सोनकुसरे से कर्ज वसूली की सुपारी ली थी. वह कुछ पुलिस कर्मचारियों की मदद से सुनील को प्रताडि़त करती थी. प्रीति की धमकी से किया सुसाइड एक दिन प्रीति सतीश सोनकुसरे और मंगेश पौनीकर को साथ ले कर सुनील के घर पर पहुंच गई. प्रीति ने सुनील को कर्ज नहीं लौटाने पर धमकी दी. उस के साथ कुछ पुलिस वाले भी थे, जो घर में आ कर मांबहन की गालियां दे गए. यहीं नहीं, वह बस्ती में नंगा घुमाने की धमकी दे रहे थे. धमकी और घिनौनी बातों से सुनील बुरी तरह आहत हुआ.

लिहाजा उस ने 27 नवंबर, 2019 की दोपहर ढाई बजे लकड़गंज थाना क्षेत्र के बाबुलवन प्राथमिक शाला के मैदान में जहर पी लिया. मेयो अस्पताल में उपचार के दौरान 30 नवंबर, 2019 को सुनील ने दम तोड़ दिया था. पुलिस ने आकस्मिक मौत का मामला दर्ज कर जांच जारी रखी. अब वैशाली पौनीकर की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर लकड़गंज थाने की पुलिस ने प्रीति व उस के साथियों के खिलाफ सुनील आत्महत्या मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण दर्ज कर तलाश शुरू कर दी. मेस संचालक को आत्महत्या के लिए उकसाने का प्रकरण लकड़गंज थाने में दर्ज हो ही रहा था कि जरीपटका थाने में एक और शिकायत पहुंची.

शिकायत यह थी कि आरोपी प्रीति ने धौंस दिखा कर 25 हजार रुपए ऐंठ लिए. शिकायतकर्ता पूर्णाबाई सडमाके का बेटा नीतेश वायुसेना में लिपिक था. 8 मार्च, 2019 को उस की प्रणिता से शादी हुई थी. शादी के 2 माह बाद ही प्रणिता की अपनी सास पूर्णाबाई से अनबन होने लगी. प्रणिता अपना सामान ले कर मायके चली गई. समझाने पर भी वह नहीं मानी. उस ने पुलिस के भरोसा सेल में पूर्णाबाई की शिकायत दर्ज करा दी. भरोसा सेल में पूर्णाबाई की प्रीति से भेंट हुई. प्रीति भरोसा सेल की एजेंट बन कर घूमती थी. उस ने विवाद निपटाने का झांसा दे कर पूर्णाबाई से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए नहीं देने पर उस के बेटे की नौकरी जाने का भय बताया. लिहाजा 17 अक्तूबर, 2019 को पूर्णाबाई ने प्रीति को 25 हजार रुपए दे दिए.

पूर्णाबाई ने प्रीति को फोन कर पूछताछ की. प्रीति ने बताया कि तुम्हारे बेटे का काम हो गया है. मैं ने मैडम को पैसे दे दिए हैं. बेटे से जुड़े मामले को ले कर एक बार पूर्णाबाई को भरोसा सेल की इंचार्ज इंसपेक्टर शुभदा शंखे ने पूछताछ के लिए बुलाया. उस दौरान पूर्णाबाई ने इंसपेक्टर शुभदा से सहज ही कह दिया कि मैं ने तो आप को 25 हजार रुपए दिए थे, फिर आप मुझ से इस तरह घुमावदार सवाल क्यों कर रही हो.  इंसपेक्टर शुभदा चौंकी. वह यह जान कर हैरान थी कि जिस प्रीति दास को वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर सम्मान देती रही, वह तो उस के नाम पर ही अवैध वसूलियां करने लगी है. लिहाजा, इंसपेक्टर शंखे ने पूर्णाबाई को शहर पुलिस के जोन-5 के उपायुक्त नीलोत्पल के पास भेजा.

पूर्णाबाई की शिकायत पर जरीपटका पुलिस ने आरोपी प्रीति के खिलाफ हफ्ता वसूली का मामला दर्ज कर लिया. 2 दिन बाद शहर पुलिस के पास एक और शिकायत पहुंची. शिकायतकर्ता युवती उच्चशिक्षित थी. उस के अनुसार उस के साथ एक युवक ने विवाह का झांसा दे कर दुष्कर्म किया था. प्रीति दास ने युवती को यह कह कर मदद का आश्वासन दिया था कि उस की पुलिस के बड़े अधिकारियों से खासी पहचान है. वह दुष्कर्म के आरोपी को सजा दिलाएगी. इस कार्य के लिए उस ने युवती से 25 हजार रुपए मांगे. रुपए मिलने के बाद प्रीति उस युवती से मिलती भी नहीं थी. ऐसे में एक रोज युवती ने प्रीति से तल्खी के साथ सवाल किया तो वह उसे धमकाने लगी. साथ ही यह औफर देने लगी कि उस की गैंग में शामिल हो जाए.

उस युवती का आरोप था कि प्रीति अकसर खूबसूरत युवतियों की मजबूरियों का फायदा उठाती है. युवतियों को पेश कर के वह रसूखदारों से मनचाहा माल वसूलती रहती है. 2 से 3 पुलिस कर्मचारी व अधिकारी को हनीट्रैप में फंसा देने का डर दिखा कर उसने कथित तौर पर लाखों की वसूली की है. उस ने यह भी बताया कि नागपुर में पश्चिम महाराष्ट्र के कई पुलिस अधिकारी बैचलर रहते हैं. उन का परिवार उन के गांव या शहर में है. लिहाजा उन्हें रात रंगीन कराने के एवज में प्रीति लगातार ब्लैकमेल करती रही है.

भंडारा पुलिस थाने में प्रीति के विरुद्ध दर्ज धोखाधड़ी के मामले में बताया गया कि वह नागपुर के बाहर के जिलों में खुद को बैंकर के तौर पर प्रचारित करती रही है. जरूरतमंदों को आसानी से लाखों का कर्ज दिलाने का झांसा देती रही है. उस के इस चक्रव्यूह में कुछ बैंक कर्मचारी व अधिकारी भी शामिल रहे हैं. दीवाने ही दीवाने प्रीति अपना पूरा नाम प्रीति ज्योतिर्मय दास लिखती है. 40 की उम्र की हो चली इस महिला के चेहरे से ही सादगी व शिष्टता झलकती है. लेकिन उस के शिकायतकर्ताओं की मानें, तो वह जैसी दिखती है वैसी है नहीं. उस की मित्रमंडली की फेहरिस्त में दीवाने ही दीवाने हैं.

उस के कारनामों के तराने न जाने कहांकहां गूंज रहे हैं. शिकायतकर्ता गुड्डू तिवारी की सुनें तो प्रीति कपड़ों की तरह रिश्ते बदलती है. लिबास ही नहीं, जरूरत हो तो वह जाति और धर्म भी बदल लेती है. कभी वह मसजिदों के इर्दगिर्द नजर आती है तो कभी गुरुद्वारे के आसपास. फर्राटेदार अंगरेजी तो बोलती ही है , मराठी और हिंदी में भी उस के तेवर तने रहते हैं. उस के जीवन में 4 लोगों के नाम प्रमुखता से जुड़े हैं. इन में एक मराठी, दूसरे कारोबारी हैं तो 2 मुसलिम हैं. चर्चा है कि अपना उल्लू सीधा करने के लिए उस ने संदीप दुधे, महेश गुप्ता, रफीक अहमद व मकसूद शेख से अलगअलग शादी रचाई. फिर उन को उस ने छोड़ दिया.

शिकायतकर्ता गुड्डू की शिकायत में इन नामों का जिक्र है. फिलहाल यह साफ नहीं हो पाया है कि प्रीति अपने पति से क्यों और कैसे दूर हुई. परिवार में उस की बुजुर्ग मां व बेटा है. खबर है कि प्रीति के पिता सेना में थे. पिता की मृत्यु के बाद उस की मां को अब पेंशन मिलती है. घर में अनुशासन व शिष्टाचार का पाठ तो मिलता रहा, लेकिन कहा जाता है कि प्रीति की हसरतों ने उसे नई राह पर ला दिया. उस की सोशल मीडिया पर साझा की गई एक तसवीर पर लिखा है, ‘मेरी सादगी ही गुमनाम रखती है मुझे, जरा सा बिगड़ जाऊं तो मशहूर हो जाऊं.’

उसे करीब से जानने वालों का कहना है कि वह आपराधिक प्रवृत्ति की नहीं थी. लेकिन शोहरत और दौलत पाने का जुनून कुछ ऐसा सवार है कि वह हर हद से गुजर जाने का दंभ भरती है. वह अपनी सोशल इमेज चमकाने का निरंतर प्रयास करती रही. हालत यह है कि अब भी कुछ लोग उसे धोखेबाज मानने को तैयार नहीं है. प्रीति एक भाजपा पार्षद की सामाजिक संस्था से भी जुड़ी थी. लौकडाउन में जरूरतमंदों को राहत सामग्री देने के अभियान में वह पूरी ताकत के साथ जुटी रही. लिहाजा उस संस्था से जुड़े नेता ने तो उसे निर्दोष ठहराने का अभियान ही शुरू कर दिया है. दावे के साथ सोशल मीडिया पर लिखा जा रहा है— हमारी ताई को फंसाया जा रहा है. उस ने कोई अपराध नहीं किया है.

यह भी सुना जा रहा है कि प्रीति स्वयं को बैंकर बताती रही है. वह खुद को एक राजनीतिक दल के पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बैंक की संचालक के रूप में भी प्रचारित करती रही है. सदर क्षेत्र में उस बैंक के कार्यालय में उस के कारनामों के किस्से हैं. बैंक का मैनेजर भी सिर पर हाथ धरे रहता है. बैंक अधिकारी बताते हुए सीज किए हुए वाहन सस्ते में दिलाने के दावे के साथ धोखाधड़ी करने के उस के किस्से भी सुने जा रहे हैं. खास बात है कि प्रीति अकसर सादे लिबास में रहती है. उस का बर्ताव उच्चशिक्षित सा आकर्षक है.

हमपेशेवर सहेलियों ने की चुगली यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रीति के कारनामों की चुगली उस की हमपेशेवर सहेलियों ने की. राजनीति से ले कर सामाजिक कार्यों में ऐसी कई नईपुरानी कार्यकर्ता हैं, जिन की पहचान वसूली एजेंट के तौर पर है. अब सब के काम और सोच के तरीके अलगअलग हो गए हैं. इन में से कुछ को केवल यह बात खटक रही है कि प्रीति कम समय में बहुतों की चहेती बन गई. नेता, पुलिस से ले कर अन्य क्षेत्र के बड़े लोग भी उस के साथ उठनेबैठने लगे. प्रीति का सोशल मीडिया पर इमेज चमकाने का तरीका भी कइयों की आंखों में चुभने लगा था.

लिहाजा प्रीति की चुगली भी होने लगी थी. कभी वह इंसपेक्टर स्तर के अफसर के साथ बदनाम होती तो कभी नेता के घर उस के नाम पर पारिवारिक झगड़ा होता था. बताते हैं कि चुगली के चक्कर में एक पुलिस वाले ने प्रीति से कुछ बातों को ले कर सवाल किए थे, जिस पर वह थाने में ही भड़क गई थी. उस ने उस अफसर को भी खरीखोटी सुनाते हुए ज्यादा चूंचपड़ नहीं करने को कहा था. थाने में सिपाहियों के सामने हुए उस अपमान को अफसर भूल नहीं पाया. शहर में हनीट्रैप के कारनामों में लिप्त कुछ महिलाओं के लिए भी प्रीति आंख का कांटा बनी है. उन्हें लगता है कि यह कल की आई महिला सब को पीछे छोड़ कर काफी आगे निकल चुकी है.

सैक्स रैकेट, भोजनालयों, अवैध धंधों के अड्डों से पुलिस के नाम पर वसूली कर गुजारा करने वालों के लिए यह बात और भी खटकने वाली है कि प्रीति तो सीधे पुलिस अफसरों की गाडि़यों में ही घूमने लगी. आइडियाज क्वीन प्रीति को पहचानने वाले उसे अवैध वसूली की आइडियाज क्वीन भी कहते हैं. अपनी सोशल इमेज बनाते हुए वह सत्कार कार्यक्रम का आयोजन करती रही है. चर्चा के अनुसार वह सत्कार के लिए ऐसे लोगों की तलाश करती रहती है जो कार्यक्रम में  शौल, श्रीफल मिलने के बदले 10 से 20 हजार रुपए खर्च कर सकें.

कार्यक्रम आयोजन के नाम पर सहयोग के तौर पर वह हजारों रुपए जमा कर लेती है. उन कार्यक्रमों में पुलिस के बड़े अधिकारी या अन्य क्षेत्र के सम्मानित लोगों को आमंत्रित करती रही है. सत्कार कराने के इस खेल में भी वह मोटी रकम बटोरती है. बड़े पुलिस अफसरों के लिए मुखबिरी कर के भी वह अपने स्वार्थ साधती रही है. इस के अलावा विविध मामलों को ले कर वह अफसरों व नेता, मंत्री को निवेदन सौंपने में भी आगे रही है. पुलिस मित्र के तौर पर शहर के सभी 33 पुलिस थानों में उस की खास पहचान है. अफसरों की निजी पार्टी के अलावा नेताओं की पर्सनल बैठकों में वह शामिल होती रही है.

खुशियों के मौकों पर मनपा के बड़े नेता भी उस के साथ ठुमके लगाते दिखे. लिहाजा कइयों को यही लगता है कि प्रीति की प्रीत केवल उस से है. उसे होनहार कार्यकर्ता मानने वालों की भी कमी नहीं है. सत्कार करनेकराने का दौर कुछ ऐसा चला है कि शहर में जिम्मेदार वर्ग कहलाने वाले सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठितों के साथ वह मंच साझा कर चुकी है. नगर सेवक, महापौर, विधायक स्तर के जनप्रतिनिधि उस की खास मित्रमंडली में शामिल हैं. वह सब से पहले अपने शिकार के बारे में जानकारी लेती है. मनचाही खुशियों का दाना फेंक कर शिकार फांसने का गुर वह जान चुकी है.

हनीट्रैप के मामलों में उत्तर नागपुर में ही एक गिरोह चर्चा में रहा है. प्रीति का नाम आते ही वह हवा हो गया था. इस के अलावा कुछ आपराधिक मामलों में उस का नाम थानों तक पहुंचा, लेकिन पुलिस के रिकौर्ड में दर्ज नहीं हो पाया. बहरहाल कहा जा रहा है कि प्रीति के चक्कर में दास बने लोगों की लंबी कतार है. इन में कई सफेदपोश लोग भी हैं. उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही सारी हकीकत सामने आने लगेगी.

 

Murder Stories : शादी के लिए जिद किया तो मंगेतर का कर डाला कत्ल

Murder Stories : भ्रामक बातें कई बार इंसान को इस स्थिति तक पहुंचा देती हैं कि वह उन बातों को सही मान कर कदम उठा लेता है. जो दूसरे के ही नहीं, उस के अपने लिए भी घातक साबित होते हैं. काश! शिवम रोशनी पर विश्वास कर लेता तो…

‘‘शि वम, तुम को केवल गलतफहमी है, मेरा तुम्हारे अलावा किसी से कोई संबंध नहीं है. जब एक बार हमारी शादी तय हो गई तो ऐसे कैसे छोड़ सकते हो? इस से मेरी बदनामी होगी.’’ 19 साल की रोशनी ने अपने मंगेतर शिवम को समझाने की कोशिश करते हुए कहा. रोशनी गांव के परिवेश में पलीबढ़ी थी, जहां लड़की का रिश्ता एक बार तय होने के बाद अगर टूट जाए तो सारी जिम्मेदारी लड़की पर डाल दी जाती है. सब उसी पर ही अंगुली उठाते हैं. इस से बचने के लिए लड़की हर तरह का समझौता करती है. गांव हो या शहर, अगर 2 लोगों में से किसी एक के मन में अविश्वास की रेखा खिंच जाए, तो फिर उस का मिटना आसान नहीं होता. शिवम की हालत भी कुछ ऐसी ही थी.

वह रोशनी की बात समझ तो रहा था पर उस की बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था. उस ने कहा, ‘‘रोशनी, जो भी हो पर मेरा मन तुम्हारी बातों पर यकीन नहीं कर पा रहा है. ऐसे में हम शादी जैसा बड़ा कदम कैसे उठा सकते हैं. अगर हम शादी कर भी लें तो हमारा जीवन सहज नहीं रह पाएगा. अविश्वास की रेखा जिंदगी भर कचोटती रहेगी.’’

‘‘शिवम, तुम कुछ भी कहो पर मैं इस रिश्ते को जीवन भर निभाने के लिए तैयार हूं. तुम्हें मेरी तरफ से कोई शिकायत नहीं मिलेगी.’’ रोशनी किसी भी तरह अपने रिश्ते को बचाने की कोशिश कर रही थी. उसे पता था कि शादी टूटने का सारा असर उसी पर पड़ेगा. घरबाहर सब उसी को दोष देंगे. पर शिवम टस से मस नहीं हो रहा था.

‘‘रोशनी, मैं किसी ऐसे रिश्ते में नहीं बंधना चाहता, जिस में मुझे जीवन भर पछताना पड़े. तुम मुझ पर ज्यादा दबाव मत डालो.’’ शिवम ने रोशनी को समझाते हुए कहा. रोशनी को उस की बातों से लगने लगा था कि अब वह समझाने से नहीं मानेगा. उस ने सोचा कि शायद वह कुछ डराधमका कर लाइन पर आ जाए. प्यार से न सही, हो सकता है कि डर से मान जाए.

‘‘शिवम, समझ लो मेरा जीवन तो खत्म हो गया. पर एक बात याद रखना, मैं इतनी कमजोर नहीं हूं. मैं तुम्हें भी चैन से नहीं बैठने दूंगी. मुझे यह बात कतई मंजूर नहीं है कि तुम मुझ पर कलंक लगा कर छोड़ दो. मैं आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाली.’’

रोशनी और शिवम की प्यार भरी जिंदगी में शक और अविश्वास की दरार पड़ चुकी थी. हरसंभव कोशिश के बाद भी वह दरार चौड़ी होती जा रही थी. रोशनी किसी भी कीमत पर अपने दामन पर कलंक नहीं लगवाना चाहती थी. रोशनी रावत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर गोसाईंगंज के चांद सराय गांव में रहने वाली पढ़ीलिखी लड़की थी. गांवों में अभी भी कम उम्र में ही शादी का चलन है. रोशनी के साथ भी यही हुआ. बालिग होते ही 19 साल की उम्र में उस की शादी शिवम रावत से तय हो गई.

शिवम भी गोसाईंगंज इलाके के ही गांव चमरतलिया का रहने वाला था. शादी तय होने के बाद शिवम और रोशनी फोन पर बातें करने लगे थे. धीरेधीरे दोनों की दोस्तों से भी बातें होने लगीं. ऐसे ही किसी दोस्त ने शिवम से कह दिया कि रोशनी के गांव में रहने वाले किसी लड़के से संबंध हैं. दुनिया भले ही चांद पर पहुंच जाए, आदमी नाम के जीव की सोच और समझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. दोस्त की बातों से शिवम को यकीन हो गया कि रोशनी ऐसी ही होगी. शिवम ने यह भी नहीं सोचा कि जो आदमी उसे भड़का रहा है, या उसे बता रहा है, उस की मंशा क्या है.

गांवों में अभी भी कितने ही लोग ऐसी मानसिकता वाले होते हैं जो बनते रिश्ते बिगाड़ने की कोशिश करते हैं. जब शिवम ने यह बात रोशनी को बताई और रिश्ता तोड़ने की बात कही तो रोशनी डर गई. उस की आंखों के सामने अपना यह रिश्ता ही नहीं, पिता का घरपरिवार टूटता नजर आया. उस की आंखों में मातापिता के दुखी, निराश चेहरे घूमने लगे. उसे लगा कि केवल उस का रिश्ता ही नहीं टूट रहा, उस की हिम्मत, घरपरिवार का नाम और इज्जत भी मिट्टी में मिलने वाली है. रिश्ता भले ही किसी भी कारण से टूटे, गलती लड़की की मानी जाती है. दूसरी तरफ शिवम था, जो किसी भी हालत में यह सोचने को तैयार नहीं था कि उस की होने वाली पत्नी के चरित्र पर कोई अंगुली उठे.

रोशनी ने उसे समझाते हुए कहा था कि अगर हमारी शादी हो जाने के बाद कोई ऐसा आरोप लगाता तो क्या तुम मुझे छोड़ देते? शिवम ने इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया, जिस से रोशनी की आंखों में उम्मीद की लौ जलती. शादी के पहले आरोप लगी लड़की के साथ शादी करना शिवम के लिए आंख मूंद कर दूध में पड़ी मक्खी वाला दूध पीने जैसा था. इस के लिए वह राजी नहीं था. ऐसे में शिवम और रोशनी का रिश्ता शादी से पहले ही ऐसे दोराहे पर खड़ा हो गया, जहां कोई एक राह तय करना संभव नहीं था. इसी बीच अचानक 4 मई, 2020 को रोशनी अपने घर से गायब हो गई. उस के पिता बंसीलाल ने सब से पहले उसे हर जगह तलाश किया. जब कहीं से भी रोशनी की खबर नहीं मिली तो वह गोसाईंगंज थाने गए और इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा से मिल कर उन्हें बेटी के गायब होने की जानकारी दी.

पुलिस अपने हिसाब से रोशनी को तलाश करती रही. बंसीलाल भी अपने परिवार के साथ रोशनी को ढूंढते रहे. रोशनी का कहीं से कुछ पता नहीं चल पा रहा था. रोशनी के साथ ही उस का मोबाइल और कपड़े भी गायब थे. सब लोग यही सोच रहे थे कि रोशनी घर छोड़ कर भाग गई है. लेकिन किसी के पास इस बात का कोई प्रमाण नहीं था. एकएक कर के दिन गुजर रहे थे पर रोशनी का पता नहीं चल रहा था. रोशनी की गुमशुदगी के 6 दिन बाद गोसाईंगंज पुलिस को सूचना मिली कि चमरतलिया के जंगल में किसी लड़की की लाश मिली है, जो पूरी तरह से कंकाल हो चुकी है.

पुलिस ने अपने इलाके की गायब लड़कियों के बारे में पता किया तो रोशनी की गुमशुदगी का मामला भी सामने आया. गोसाईंगंज पुलिस ने रोशनी के पिता बंसीलाल को बुला कर लाश को देखने के लिए कहा. लाश को देख कर कपड़ों वगैरह से बंसीलाल को लगा कि यह उन की बेटी रोशनी का ही अस्थिपंजर है. रोशनी की मौत का राज पता लगाना जरूरी था जबकि गोसाईंगंज पुलिस के लिए यह काम किसी चुनौती से कम नहीं था. पुलिस के पास रोशनी के गायब होने से ले कर उस की हत्या तक कोई सुराग नहीं था. यह ब्लाइंड मर्डर था. पुलिस को जो भी कड़ी मिल रही थी, वह पुलिस के किसी काम की नहीं थी.

मोहनलालगंज सर्किल के सीओ संजीव मोहन ने इंसपेक्टर गोसाईंगंज धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा को जल्द से जल्द इस मामले की तह तक जाने का आदेश दिया. तेजतर्रार इंसपेक्टर धीरेंद्र प्रताप कुशवाहा अपनी टीम के साथ मामले को सुलझाने में लग गए. सब से पहले पुलिस ने रोशनी के मोबाइल को सर्विलांस पर लगाया. एक हफ्ते बाद 16 मई को रोशनी के मोबाइल पर चमरतलिया गांव के शिवम का नंबर एक्टिव दिखने लगा. पुलिस को इस बात का पक्का सबूत मिल गया कि रोशनी का मोबाइल शिवम के पास है. रोशनी के पिता के बताने पर रोशनी और शिवम के शादी के रिश्ते का भी खुलासा हो गया.

इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि रोशनी के बारे में शिवम को जानकारी होगी. पुलिस ने शिवम को पकड़ा तो उस के पास से रोशनी के कपड़े भी मिल गए. शिवम ने बताया कि जब रोशनी शादी के लिए जिद करने लगी तो उस ने उस की हत्या कर के लाश जंगल में छिपा दी और मोबाइल व कपड़े ले कर अपने घर चला आया. पुलिस ने शिवम के पास से रोशनी का मोबाइल फोन, कपड़े और घटना में प्रयोग की गई बाइक बरामद कर ली. शिवम ने रोशनी के फोन से उस का सिम निकाल कर तालाब में फेंक दिया था. कुछ दिन बाद जब उस ने रोशनी के मोबाइल में अपना सिम डाला तो सर्विलांस से पुलिस को पता चल गया. उस के बाद पुलिस ने शिवम को धर दबोचा.

पुलिस ने शिवम को रोशनी की हत्या और उस के शव को छिपाने के आरोप में जेल भेज दिया. शिवम ने अगर उस दिन रोशनी की बात मान ली होती तो उसे रोशनी की हत्या जैसा कदम नहीं उठाना पड़ता. रोशनी शिवम की पत्नी नहीं बनी थी, ऐसे में शिवम के पास उस के साथ शादी न करने का विकल्प था. शिवम अगर घरपरिवार के लोगों की सहमति से कोई कदम उठाता तो हालात ऐसे नहीं बनते. गुस्से में उठाए गए कदम ऐसे ही जीवन को नष्ट होने की कगार तक पहुंचा देते हैं.

परेशानी की बात यह है कि आज के युवा घरपरिवार और मांबाप से अपने मन की बात नहीं कहते. उन से बातें छिपाते हैं, जो कई बार अपराध की वजह बन जाती है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Kanpur News : कंपनी के घाटे से परेशान फर्टिलाइजर कंपनी के डायरेक्‍टर ने बाथरूम में खुद को मारी गोली

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन ने कंपनी के उच्चाधिकारियों के साथ एक अहम मीटिंग फिक्स की थी, जिस में कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड केमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी विशेष मंत्रणा के लिए बुलाया गया था. सुनील जोशी मीटिंग के लिए गेस्टहाउस पहुंचे भी लेकिन…

18 मार्च, 2020 को जेपी ग्रुप के चेयरमैन मनोज गौर ने कंपनी के उच्चाधिकारियों की एक अहम बैठक बुलाई थी. यह बैठक कानपुर (कैंट) स्थित कंपनी के आलीशान गेस्टहाउस में दोपहर 12 बजे शुरू होनी थी. बैठक में शामिल होने के लिए चेयरमैन मनोज गौर के अलावा वाइस चेयरमैन ए.के.जैन, प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन, डायरेक्टर स्तर के पदाधिकारी रमेश चंद्र तथा वीरेंद्र सिंह गेस्टहाउस आ चुके थे. वे सब मीटिंग की तैयारी में व्यस्त थे. इसी अहम बैठक में जेपी गु्रप की कंपनी कानपुर फर्टिलाइजर ऐंड कैमिकल लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को भी शामिल होना था. जोशी स्वरूपनगर स्थित रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट के प्रथम तल पर अपने परिवार के साथ रहते थे.

मीटिंग को ले कर वह सुबह से ही उलझन में थे. पति को परेशान देख उन की पत्नी मेनका ने पूछा भी पर उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं बताया. हां, इतना जरूर कहा कि आज वह एमडी से बात कर ही लेंगे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने उलझन के कारण नाश्ता भी नहीं किया और प्रात: 9 बजे अपनी निजी कार से गेस्टहाउस के लिए रवाना हो गये. 20 मिनट बाद वह कैंट स्थित कंपनी के गेस्टहाउस पहुंच गए. उन्होंने वहां मौजूद कर्मचारी से मनोज गौर के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि चेयरमैन साहब रात को ही गेस्टहाउस आ गए थे. इस समय वह बाथरूम में हैं. मीटिंग 12 बजे के बाद शुरू होगी.

इस के बाद सुनील कुमार जोशी कमरे में चले गए. उन्होंने कर्मचारी गौतम राजपूत से पानी लाने को कहा. गौतम पानी लेने चला गया, लेकिन उस के आने से पहले ही वह बाथरूम चले गए. कुछ देर बाद ही बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई. आवाज सुन कर किचन में नाश्ता तैयार कर रहे बुद्धराम कुशवाहा, गौतम राजपूत व जितेंद्र रूम में आ गए. उन तीनों ने बाथरूम का दरवाजा खोला तो उन के होश गुम हो गए. बाथरूम के अंदर सुनील कुमार जोशी खून से लथपथ मरणासन्न स्थिति में पड़े थे. कर्मचारियों ने तुरंत जा कर प्रेसीडेंट (एडमिनिस्ट्रेशन) अनिल मोहन को घटना की जानकारी दी.

मामला गंभीर देख कर अनिल मोहन फौरन वहां जा पहुंचे, जहां सुनील कुमार जोशी खून के सैलाब में डूबे पड़े थे. उन की हालत गंभीर थी. अनिल मोहन ने कर्मचारियों की मदद से उन्हें कार में बिठाया और कानपुर के चर्चित अस्पताल रीजेंसी ले गए. चूंकि सुनील कुमार जोशी की हालत नाजुक थी, अत: उन्हें गहन चिकित्सा यूनिट में भरती किया गया. लेकिन तमाम प्रयासों के बाद भी डाक्टर उन्हें बचा नहीं पाए. सुनील जोशी द्वारा खुदकुशी की कोशिश किए जाने की जानकारी मिलते ही उन की पत्नी मेनका जोशी तत्काल रीजेंसी अस्पताल पहुंचीं. लेकिन वहां पहुंच कर उन्हें पता चला कि उन के पति की मृत्यु हो गई है. इस सदमे को बरदाश्त कर पाना मेनका जोशी के लिए बहुत मुश्किल था.

परिवार की महिलाओं व कंपनी के बड़े अधिकारियों ने जैसेतैसे उन्हें धैर्य बंधाया. इस के बाद मेनका अस्पताल से घटनास्थल गेस्टहाउस को रवाना हो गईं. इधर प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ने डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी द्वारा गोली मार कर आत्महत्या कर लेने की सूचना थाना कैंट पुलिस को दी. सूचना मिलते ही थानाप्रभारी आदेश चंद्र पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. जाने से पहले उन्होंने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी इस घटना के बारे में सूचित कर दिया था. थाने से कंपनी का गेस्टहाउस दो किलोमीटर दूर था. अत: पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगा. चूंकि गेस्टहाउस में बाहरी व्यक्तियों के प्रवेश पर रोक थी, अत: भीड़ ज्यादा नहीं थी. गेस्टहाउस के कर्मचारी, पदाधिकारी तथा मृतक के परिजन ही वहां मौजूद थे.

थानाप्रभारी आदेशचंद्र घटनास्थल पर पहुंचे ही थे कि सूचना पा कर एसएसपी अनंत देव, एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल तथा डीएसपी अरविंद कुमार चतुर्वेदी भी आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. अधिकारियों की उपस्थिति में फोरैंसिक टीम ने जांच शुरू की. कमरे से अटैच बाथरूम में खून फैला हुआ था. वहीं पिस्टल भी पड़ी थी. जांच से पता चला कि डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी ने .30 बोर की इंग्लिश पिस्टल से खुद को गोली मारी थी. टीम ने जांच के लिए ब्लड सैंपल और पिस्टल से फिंगरप्रिंट ले लिए. पास ही कारतूस का खोखा पड़ा था. टीम ने उसे भी सुरक्षित कर लिया. फोरैंसिक टीम ने पिस्टल से मैगजीन निकाली तो उस में 5 गोलियां मौजूद थीं. सभी बरामद वस्तुओं को टीम ने जांच हेतु सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया तो उन्हें कमरे में मृतक सुनील कुमार जोशी का मोबाइल फोन रखा मिल गया. एसपी (पूर्वी) राजकुमार अग्रवाल ने मोबाइल फोन खंगाला तो उन्हें चौंकाने वाली जानकारी मिली. मृतक सुनील कुमार जोशी ने प्रात: 9 बज कर 26 मिनट पर एग्जीक्यूटिव कमेटी के वाट्सऐप गु्रप में जो मैसेज किया, उस से साफ जाहिर था कि उन की मनोदशा ठीक नहीं थी. मैसेज में उन्होंने लिखा था कि 30 साल से कंपनी की सेवा कर रहा हूं. अच्छे और बुरे दिन देखे. लेकिन अब मेरे सामने कोई रास्ता नहीं है.

घटनास्थल (गेस्टहाउस) पर जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर मौजूद थे. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि घटना के वक्त वह अपने रूम के बाथरूम में थे. इसी दौरान अनिल मोहन सुनील को अस्पताल ले जा चुके थे. गेस्टहाउस कर्मचारियों से उन्हें घटना की जानकारी हुई तो वह अवाक रह गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बताया कि फर्टिलाइजर कंपनी में करोड़ों का स्क्रैप बेचा गया था, जिसे बिना किसी लिखापढ़ी तथा कंपनी के अधिकारियों को जानकारी दिए बिना उठवा दिया गया था. इसी को ले कर कंपनी में विवाद की स्थिति थी. मनोज गौर ने बताया कि इस मामले को ले कर उन्होंने कई बार सुनील जोशी से बात करने की कोशिश की, मगर वह उन का फोन ही नहीं उठाते थे और बात करने से बचते थे.

स्क्रैप बिक्री घोटाले को ले क र ही उन्होंने आज कानपुर स्थित कंपनी के गेस्टहाउस में मीटिंग रखी थी. शायद वह इस मीटिंग को फेस करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. गेस्टहाउस आए जरूर पर उन्होंने खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर ली. गेस्टहाउस में ही मनोज गौर का सामना सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी से हो गया जो रिश्ते में उन की भतीजी लगती थी. गमगीन भतीजी को देख कर चेयरमैन मनोज गौर भावुक हो गए और बोले, ‘‘सुनील से गलती हो गई थी, तो मुंह छिपाने से क्या फायदा था. कंपनी के जिम्मेदार पद पर हो कर भी फोन नहीं उठा रहे थे. सामने आ कर स्थितियां स्पष्ट करते तो कोई रास्ता निकाला जाता.’’

मेनका जोशी ने अपने फूफा मनोज गौर की बात को गौर से सुना जरूर, पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की. जाने वाला हमेशा के लिए जा चुका था. अब कुछ कहनेसुनने से क्या फायदा था. वह चुपचाप सुबकती रही और आंखों से आंसू बहाती रहीं. एसएसपी अनंत देव तिवारी इस हाईप्रोफाइल मामले पर पैनी नजर रखे हुए थे और बड़ी बारीकी से जांच में जुटे थे. इसी कड़ी में उन्होंने प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन से पूछताछ की. उन्होंने बताया कि घटना के समय वह अपने रूम में थे. तभी 3 कर्मचारी बदहवास हालत में उन के रूम में आए और बताया कि डायरेक्टर सुनील जोशी ने बाथरूम में खुद को गोली मार ली है. वह लहूलुहान बाथरूम में पड़े हैं. यह सुनते ही वह अवाक रह गए. फिर वह सुनील जोशी को कार से रीजेंसी अस्पताल ले गए और भरती कराया. उस के बाद थाना छावनी पुलिस तथा सुनील की पत्नी मेनका को इस घटना के बारे में सूचना दी.

अनंत देव तिवारी ने गेस्टहाउस के कर्मचारियों से पूछताछ की तो गौतम राजपूत, बुद्धराम कुशवाहा तथा जितेंद्र ने बताया कि वे तीनों रसोइया हैं. उस वक्त वे किचन में नाश्ता तैयार कर रहे थे. जब बाथरूम से गोली चलने की आवाज आई तो उन लोगों ने वहां पहुंच कर देखा कि सुनील जोशी तड़प रहे थे. शायद उन्होंने खुद को गोली मार ली थी. वे तीनों घबरा गए और तुरंत जा कर अनिल मोहन को जानकारी दी. फिर वही घायल सुनील जोशी को अस्पताल ले गए. कंपनी के गेस्टहाउस (घटनास्थल) में मृतक सुनील जोशी की पत्नी मेनका जोशी, उन का साला सोनू तथा परिवार के अन्य लोग मौजूद थे.

पुलिस अधिकारियों ने जब मेनका जोशी से पूछताछ की तो वह बोलीं कि उन के पति ने आत्महत्या नहीं की, बल्कि उन की हत्या की गई है. वह रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग करेंगी. पुलिस अधिकारियों ने जब उन से सुनील की पिस्टल के संबंध में पूछा तो मेनका ने बताया कि इंगलिश पिस्टल लाइसेंसी है तथा उन के पति सुनील की है. मृतक सुनील जोशी के साले सोनू का आरोप था कि जिस बाथरूम में सुनील को गोली लगी थी, वहां खून की मोटी परत जमी थी. इस से जाहिर है कि गोली लगने के बाद वह काफी देर तक फर्श पर पड़े रहे और खून निकलता रहा. उन्हें तत्काल अस्पताल नहीं ले जाया गया.

सोनू ने यह भी आरोप लगाया कि जब गेस्टहाउस में आधा दर्जन से अधिक उच्चपदस्थ अधिकारी मौजूद थे तब गोली लगने के बाद सुनील को अस्पताल ले जाने के लिए अकेले प्रेसीडेंट (प्रशासन) अनिल मोहन ही आगे आए. बाकी अस्पताल में उन्हें देखने तक नहीं गए. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर सीबीआई जांच की मांग की जाएगी. सुनील जोशी के परिवार के एक सदस्य ने आरोप लगाया कि कंपनी का निदेशक मंडल अपने कारनामों को सुनील पर थोप कर बचने का प्रयास कर रहा था. किस ने गलत किया है, इस का फैसला करने के लिए ही बैठक बुलाई गई थी. अपने ऊपर लगे आरोपों से सुनील बेहद नाराज थे. मीटिंग से पहले आत्महत्या की बात गले नहीं उतर रही. अत: रिपोर्ट दर्ज करा कर जांच की मांग करेंगे.

घटनास्थल पर जांचपड़ताल तथा पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारी सर्वोदय नगर स्थित रीजेंसी अस्पताल पहुंचे, जहां मृतक सुनील जोशी का शव रखा था. पुलिस अधिकारियों ने शव का निरीक्षण किया तो पाया कि सुनील ने दाईं कनपटी में पिस्टल सटा कर गोली मारी थी, जो बाईं कनपटी से पार हो गई थी. मृतक सुनील की उम्र 50 वर्ष के आसपास थी और वह शरीर से हृष्टपुष्ट थे. निरीक्षण के बाद पुलिस अधिकारियों ने सुनील के शव का पंचनामा भरवा कर तथा सीलमोहर करा कर पोस्टमार्टम हेतु लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारी इस मामले पर आपस में गंभीरता से विचारविमर्श करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सुनील जोशी ने आत्महत्या ही की है. कारण उन पर करोड़ों रुपए का स्क्रैप बेचने तथा रुपयों का जमा खर्च का हिसाब न देने का आरोप कंपनी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने लगाया था. इसी की जवाबदेही के लिए कानपुर में बैठक बुलाई गई थी. सुनील गेस्टहाउस आ गए, लेकिन वह बैठक में शामिल होने की हिम्मत नहीं जुटा पाए और खुदकुशी कर ली. फिर भी मृतक के घर वाले यदि कोई तहरीर देते हैं, तो रिपोर्ट दर्ज कर जांच की जाएगी.

पुलिस जांच से इस रहस्यमयी आत्महत्या की जो घटना प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है—कानपुर महानगर का एक पौश इलाका है स्वरूप नगर. स्वरूप नगर में ज्यादातर बंगले औद्योगिक घरानों के हैं. क्षेत्र में कई अपार्टमेंट भी हैं, जिन में संपन्न परिवार रहते हैं. स्वरूप नगर में ही रतन मैजेस्टिक अपार्टमेंट है. इस अपार्टमेंट के भूतल पर कानपुर फर्टिलाइजर के डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी मेनका जोशी के अलावा एक बेटा और बेटी हैं. मेनका के पिता अनिल कुमार शर्मा कानपुर शहर के संपन्न और सम्मानित व्यक्ति थे. वह कानपुर के पूर्व मेयर रह चुके थे. मेनका के बाबा रतन लाल शर्मा भी मेयर रह चुके थे. पितापुत्र के कार्यकाल को आज भी लोग याद करते हैं.

अनिल कुमार शर्मा ने अपनी बहन की शादी जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के साथ की थी, जबकि बेटी मेनका की शादी डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी के साथ की थी. इस तरह रिश्ते में मनोज गौर मेनका के फूफा थे. कानपुर के औद्योगिक क्षेत्र पनकी में फर्टिलाइजर कंपनी की स्थापना कब और कैसे हुई, इस के लिए अतीत की ओर जाना होगा. विदेशी कंपनी आईसीआई ने पनकी में उर्वरक कारखाना लगाया था. इस का उद्घाटन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 6 दिसंबर, 1969 को किया था. उस समय यह देश का पहला यूरिया बनाने वाला कारखाना था, जो नेप्था से चलता था.

वर्ष 1993 में विदेशी कंपनी आईसीआई ने कारखाना गोयनका गु्रप को बेच दिया. तब इस का नाम डंकन्स फर्टिलाइजर लिमिटेड किया गया. घाटे के कारण वर्ष 2002 में गोयनका ने कारखाना बंद कर दिया. इस के बाद जनवरी, 2012 में जेपी गु्रप के चेयरमैन जे.पी. गौर व मनोज गौर ने डंकन्स को खरीद लिया और नाम रखा कानपुर फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल लिमिटेड. यह उत्तर भारत का सब से बड़ा संयंत्र है. इस की उत्पादक क्षमता 2200 टन प्रति दिन है. कारखाने में 1000 कुशल श्रमिक कार्य करते है. प्लांट में ऊर्जा संरक्षण का पूरा सिस्टम लगाया गया है तथा प्लांट को गेल से सीधे प्राकृतिक गैस सप्लाई होती है.

सुनील कुमार जोशी कानपुर फर्टिलाइजर के ही डायरेक्टर नहीं थे, बल्कि 9 अन्य कंपनियों के भी डायरेक्टर थे. उन का जीवन हर तरह से खुशहाल था. उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से और डायरेक्टर जैसे पदों पर रह कर खूब दौलत कमाई. सुनील को लग्जरी कारों और आलीशान घर का बहुत शौक था. वह हर साल लग्जरी कारों पर करोड़ों रुपए खर्च करते थे. उन्होंने दिल्ली और कानपुर में 2 आलीशान बंगले बनवाए थे. उन के शौक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने दिल्ली वाले बंगले का रेनोवेशन कराने के नाम पर ही 5 करोड़ रुपया पानी की तरह बहा दिया था.

डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी को फिल्मों में भी दिलचस्पी थी. इस के लिए उन्होंने बौलीवुड में भी निवेश किया था. उन्होंने बौलीवुड हस्तियों के मैनेजर रहे अनिदा सील के साथ मिल कर एक कंपनी बनाई, जिस में उन की पत्नी मेनका जोशी निदेशक थीं. कंपनी की पहली फिल्म में गोविंदा का लीड रोल था. लेकिन फिल्म बौक्स औफिस पर औंधे मुंह गिरी. पहली ही फिल्म में हुए घाटे को ले कर उन का विवाद भी हुआ था. जिसे खत्म करने के लिए गोविंदा कई दिन कानपुर में रहे. डायरेक्टर सुनील कुमार जोशी और जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर के बीच दूरियां तब बढ़ीं, जब सुनील जोशी ने सतना के एक ठेकेदार के मार्फत कंपनी का 10 करोड़ का स्क्रैप बेच दिया. स्क्रैप बेचे जाने की जानकारी उन्होंने चेयरमैन मनोज गौर को भी नहीं दी और न ही यह बताया कि रुपया कब, कहां और कैसे खर्च किया.

कानपुर फर्टिलाइजर कंपनी में जब स्क्रैप बेचने को ले कर स्थितियां स्पष्ट हुईं तो सुनील जोशी और मनोज गौर के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो गई. कंपनी की माली हालत को ले कर चेयरमैन मनोज गौर पहले से ही तनाव में थे ऊपर से करोड़ों का स्क्रैप बिक जाने के मामले ने आग में घी का काम किया. हालात यहां तक आ गए थे कि मनोज गौर, सुनील जोशी से स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानना चाह रहे थे. मगर दोनों के बीच बात नहीं हो पा रही थी. इसी तनाव के बीच जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने फर्टिलाइजर कंपनी को बंद करने का फैसला कर लिया. दरअसल कंपनी को यूरिया खाद बनाने के एवज में सरकार से सब्सिडी मिलती है, तभी कम दाम पर किसानों तक खाद पहुंचती है.

पिछले 8 महीने से करीब 1200 करोड़ की सब्सिडी सरकार ने रोक दी थी, जिस से कंपनी की आर्थिक स्थिति खराब हो गई थी और 1000 कामगारों को वेतन देना भी मुश्किल हो गया था. यद्यपि कंपनी में उत्पादन ठीक हो रहा था. स्क्रैप बिक्री का हिसाब जानने तथा कंपनी में तालाबंदी को लेकर ही जेपी गु्रप के चेयरमैन मनोज गौर ने 18 मार्च को बैठक बुलाई थी. चूंकि सुनील जोशी को मीटिंग में स्क्रैप बिक्री का हिसाब देना था. साथ ही वह तालाबंदी भी नहीं चाहते थे, अत: वह परेशान हो उठे. जैसेजैसे बैठक की तारीख नजदीक आती जा रही थी, उन की उलझन बढ़ती जा रही थी.

18 मार्च, 2020 की सुबह सुनील जोशी जल्दी ही उठ गए. उन्होंने रात में ही निश्चय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. उलझन के चलते वह बैठक में जाने को तैयार हुए, फिर बिना खाएपिए ही अपनी कार से गेस्टहाउस के लिए निकल गए. सुबह 9:20 पर वह गेस्टहाउस के रूम में पहुंच गए. उन्होंने कर्मचारी से पानी मांगा, लेकिन पानी पिए बिना ही वह बाथरूम में चले गए. फिर उन्होंने कंपनी गु्रप पर एक मैसेज डाला, जिस में उन्होंने लिखा—

‘डियर आल, जिंदगी ने बीते 30 सालों में मुझे बहुत कुछ सिखाया. इस दौरान बहुत से उतारचढ़ाव देखे. जिंदगी में बहुत से अच्छेबुरे लोग भी आए. हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी कुछ बुरा नहीं दिखाएगी. व्यापारिक परिवेश में पैदा होने के कारण हमेशा यही सोचता था कि जिंदगी ऐसे ही उतारचढ़ाव के साथ ही चलती है. पर जब हमारे पास परिवार होता है, तो जिंदगी के उतार बहुत परेशान करते है. बहुत सारे लोगों ने मुझे प्यार व इज्जत दी है. मैं ने हमेशा संतुलित जीवन जीने का प्रयास किया है. आज मेरे लिए रास्ते बंद हो चुके हैं और इस अंधेरी गुफा में मुझे कोई रोशनी दिखाई नहीं दे रही है. मेरे पास संसाधन नहीं है कि मेरा परिवार मेरे बगैर जिंदगी गुजार सके. एक घर दिल्ली में और एक घर कानपुर में ही है.

मैं श्री मनोज गौर से निवेदन करना चाहता हूं कि वह मेरा कर्ज चुकाने में मेरे परिवार की मदद करें. इस के लिए वह दिल्ली वाला मकान बेच दें. जो पैसा बचे उसे वह एफडी करा दें, जिस से मेरा परिवार जीवनयापन कर सके. इतना सब करने के लिए 12 माह का समय लगेगा. इतने समय के लिए कंपनी के निदेशकों से निवेदन है कि अगले 15 माह के लिए मेरा वेतन मुझे मिलता रहे. मेरे बच्चे अभी छोटे हैं और उन्हें अभी बहुत सारा समर्थन चाहिए. यह मेरे परिवार की गलती नहीं कि मैं जीवन में फेल हो गया. सभी को प्रेम और समर्थन के लिए बहुतबहुत धन्यवाद. लव यू आल. सुनील जोशी.’

इस मैसेज को भेजने के बाद सुनील जोशी ने अपनी लाइसैंसी इंग्लिश पिस्टल निकाली और दाईं कनपटी में सटा कर गोली दाग दी. गोली उन की बाईं कनपटी को पार कर बाहर निकल गई और वह फर्श पर गिर पड़े. बाद में उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. जांचपड़ताल के दौरान मृतक सुनील की पत्नी मेनका, साले सोनू और परिवार के एक अन्य सदस्य ने पुलिस को दिए बयान में सुनील जोशी द्वारा आत्महत्या किए जाने की बात को नकार कर उन की हत्या की आशंका जताई थी. साथ ही रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही थी. लेकिन हफ्ता 2 हफ्ता बीत जाने के बाद भी कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई गई. अत: पुलिस इस मामले को आत्महत्या मान कर फाइल बंद करने की तैयारी पूरी कर चुकी थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Crime Stories : गुरुजी से बदला लेने के लिए शिष्‍य ने किया उनके पूरे परिवार का कत्‍ल

Crime Stories : हिमांशु ने जो किया, वह जघन्य अपराध है. जिस की उसे सजा भी मिलेगी. लेकिन यह भी सोच का विषय है कि क्या कोई बिना वजह 4-4 लाशें बिछा सकता है? इस के 3 कारण हो सकते हैं, एक तो यह कि उस ने किसी बड़े लालच में ऐसा किया हो, या उस का गुस्सा इस स्थिति तक पहुंच गया हो जहां सोचनेसमझने की क्षमता खत्म हो जाती है. या फिर कोई दुश्मनी कि…

42 वर्षीय अजय पाठक जानेमाने सिंगर थे. भजन गायन में उन का देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी नाम था. वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला शामली के लाइनपार क्षेत्र में स्थित पंजाबी कालोनी में अपने परिवार के साथ रहते थे. यह एक पौश कालोनी है. उन के परिवार में पत्नी स्नेहलता के अलावा एक बेटी वसुंधरा (15 वर्ष) और बेटा भागवत (10 वर्ष) था. जिस मकान में उस का परिवार रहता था, उस के भूतल पर अजय पाठक के चाचा दर्शन पाठक रहते थे. 31 दिसंबर, 2019 की सुबह जब बुजुर्ग दर्शन पाठक सो कर उठे तो उन्हें अपने भतीजे अजय और उस के बच्चों की आवाज सुनाई नहीं दी.

दर्शन जब उन्हें देखने ऊपर की मंजिल पर गए तो वहां ताला लगा मिला. उन की ईको स्पोर्ट कार भी वहां नहीं थी. यह देख कर वह समझे कि अजय बीवीबच्चों के साथ ससुराल करनाल गया होगा. क्योंकि अजय ने उन से पिछली शाम ही कहा था कि वह कल सुबह करनाल जाएगा. जब भी अजय को ससुराल जाना होता था वह सुबह 5 बजे के करीब बीवीबच्चों को ले कर निकल जाया करते थे. यही सोच कर दर्शन पाठक अपने रोजमर्रा के कामों में लग गए. अजय पाठक के अन्य भाई उसी कालोनी में अलगअलग मकानों में रहते थे. शाम के समय जब वह चाचा दर्शन पाठक के पास आए तो उन्हें पता चला कि अजय अपनी बीवी और बच्चों के साथ ससुराल करनाल गए हैं.

उसी समय एक भाई दिनेश ने अजय से बात करने के लिए उन का फोन मिलाया. लेकिन अजय का फोन स्विच्ड औफ था. इस के बाद दिनेश ने अजय की ससुराल वालों को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अजय और स्नेहलता में से कोई भी यहां नहीं आया है. यह सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गए. अजय और उन के बच्चे करनाल नहीं पहुंचे तो कहां चले गए. अजय की कार भी नहीं थी. इस से उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वह कार से बच्चों को ले कर कहीं घूमने निकल गया हो. लेकिन अजय के फोन का स्विच्ड औफ होना घर वालों के मन में शक पैदा कर रहा था. दिनेश पाठक ने अजय की पत्नी स्नेहलता का फोन मिलाया तो उन के फोन ने भी आउट औफ कवरेज एरिया बताया.

दोनों के ही फोन कनेक्ट न हो पाने पर घर वालों की चिंता बढ़नी लाजिमी थी. यह जानकारी मिलने पर दिनेश पाठक के घर के अन्य लोग और पड़ोसी भी आ गए. अजय के मकान के ऊपर के फ्लोर का ताला बंद था. वहां मौजूद सभी लोगों को जिज्ञासा हुई कि क्यों न ऊपर के फ्लोर के दरवाजे पर लगा ताला तोड़ कर अजय के कमरे को देख लिया जाए. लिहाजा अजय के भाई ताला तोड़ने की कोशिश करने लगे. किसी तरह ताला टूटा तो लोग कमरे में पहुंचे, लेकिन वहां का दृश्य देख सब की चीख निकल गई. कमरे में अजय पाठक, पत्नी स्नेहलता और 15 वर्षीय बेटी वसुंधरा की खून से लथपथ लाशें पड़ी थीं.

दृश्य बड़ा ही वीभत्स था, घर में 3-3 लाशें देख कर घर में चीखपुकार होने लगी. रोने की आवाज सुन कर मोहल्ले के लोग भी वहां पहुंच गए. सभी आश्चर्यचकित थे कि आखिर इतने भले इंसान और उस के घर परिवार को किस ने मौत के घाट उतार दिया.

घर में अजय का 10 वर्षीय बेटा भागवत कहीं नजर नहीं आया. वह तो गायब था ही, अजय की कार भी लापता थी. इस से लोगों ने अनुमान लगाया कि हत्यारे भागवत का अपहरण कर ले गए होंगे. पंजाबी कालोनी थाना आदर्शनगर क्षेत्र में आती थी. इसी दौरान मोहल्ले के किसी व्यक्ति ने थाना आदर्शनगर में फोन कर के इस तिहरे हत्याकांड की सूचना दे दी. थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह उस समय थाने में ही मौजूद थे. सूचना मिलते ही वह पुलिस टीम के साथ पंजाबी कालोनी स्थित अजय पाठक के घर पहुंच गए. उस समय वहां भारी तादाद में लोग जमा थे. कर्मवीर उस कमरे में पहुंचे, जहां तीनों लाशें पड़ी थीं.

घटनास्थल का दृश्य बड़ा ही भयावह था. अजय पाठक, उन की पत्नी स्नेहलता और बेटी वसुंधरा की लाशें फर्श पर पड़ी थीं. उन सभी के गले किसी धारदार हथियार से काटे गए थे, जिस से कमरे के फर्श पर खून ही खून फैला हुआ था. कमरे की अलमारियां खुली हुई थीं और सामान फर्श पर फैला हुआ था. इस से यही लग रहा था कि हत्यारों ने अलमारी में कोई खास चीज ढूंढने की कोशिश की थी. थानाप्रभारी ने इस मामले की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और जानेमाने सिंगर की हत्या से जुड़ा था, इसलिए कुछ ही देर में एसपी विनीत जायसवाल और डीएम अखिलेश कुमार सिंह भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

एक ही परिवार के 3 लोगों की लाशें देख कर डीएम और एसपी भी आश्चर्यचकित रह गए. लोगों ने उन्हें बताया कि मृतक अजय पाठक का 10 वर्षीय बेटा भागवत गायब है. इस के अलावा अजय पाठक की ईको स्पोर्ट कार भी लापता थी. पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे भागवत का अपहरण कर ले गए हैं. पुलिस को गायब हुए भागवत की भी चिंता होने लगी. हत्यारे बच्चे को कोई नुकसान न पहुंचा सकें, इसलिए एसपी विनीत जायसवाल ने सीमावर्ती जिलों के पुलिस कप्तानों से फोन से संपर्क कर घटना की जानकारी दे दी और कह दिया कि हत्यारे ईको स्पोर्ट कार में 10 वर्षीय बच्चे भागवत को भी साथ ले गए हैं. इस सूचना के बाद आसपास के जिलों की पुलिस भी सतर्क हो गई. पुलिस बैरिकेड्स लगा कर कारों की चैकिंग करने लगी. पर वह ईको स्पोर्ट्स कार नहीं मिली.

31 दिसंबर, 2019 की रात के समय पानीपत पुलिस रोड गश्त पर थी, तभी रात करीब 12 बजे टोलप्लाजा के पास एक जलती कार दिखी. पुलिस जब वहां पहुंची तो कार के पास एक युवक खड़ा मिला. पुलिस ने उस से कार में आग लगने की वजह जाननी चाही तो वह वहां से भागने लगा. लेकिन पुलिस ने उसे दबोच लिया और तुरंत फायर ब्रिगेड को सूचना दे दी. पुलिस ने देखा तो यह वही ईको स्पोर्ट्स कार थी, जिस के गायब होने की सूचना शामली पुलिस ने दी थी. पानीपत पुलिस ने उस युवक से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम हिमांशु सैनी निवासी झाड़खेड़ी, थाना कैराना बताया.

उस ने पुलिस को बताया कि उस ने ही शामली में भजन गायक अजय पाठक, उन की पत्नी और बेटी की हत्या की है और कार की डिक्की में उन के बेटे भागवत की लाश है, जो उस ने जला दी है. पुलिस ने हिमांशु सैनी को हिरासत में ले लिया. तब तक फायर ब्रिगेड कर्मचारी भी आ गए थे. उन्होंने कुछ ही देर में कार की आग बुझा दी. इस के बाद पानीपत पुलिस ने भागवत का अधजला शव बरामद कर उसे सिविल अस्पताल भेज दिया. हिमांशु को हिरासत में लेने की जानकारी शामली पुलिस को भी दे दी गई. पानीपत पुलिस हिमांशु को ले कर थाना सदर लौट आई.

अजय पाठक के भाइयों वगैरह को जब 10 वर्षीय भागवत की भी हत्या की जानकारी मिली तो उन्हें एक और झटका लगा. हिमांशु सैनी को वह अच्छी तरह जानते थे, वह अजय पाठक का शिष्य था. वह भी सिंगर था और उन के घर आताजाता था. वही घर का सर्वनाश करने वाला निकलेगा, ऐसा उन्होंने सोचा तक नहीं था. अगले दिन यानी पहली जनवरी, 2020 को थाना आदर्श मंडी पुलिस के साथ विजय पाठक और उन के रिश्तेदार पानीपत के थाना सदर पहुंच गए ताकि पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार के लिए भागवत की लाश शामली ले आएं, लेकिन जली हुई लाश का पोस्टमार्टम करने वाला डाक्टर उस दिन छुट्टी पर था.

घर वालों को शामली के अस्पताल से पोस्टमार्टम के बाद 3 अन्य लाशें भी लेनी थीं, लिहाजा वे पानीपत से शामली लौट आए. शामली के सरकारी अस्पताल में अजय पाठक, उन की पत्नी स्नेहलता और बेटी वसुंधरा की लाशें पोस्टमार्टम के बाद उन के घर वालों को सौंप दी गईं. उधर शामली के थाना आदर्श मंडी के थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह हत्यारोपी हिमांशु सैनी को पूछताछ के लिए पानीपत से आदर्श मंडी ले आए. शामली के लोगों को जब यह जानकारी मिली कि जघन्य हत्याकांड को अंजाम देने वाले हिमांशु सैनी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है तो हजारों लोग थाना आदर्श मंडी के बाहर एकत्र हो गए. लोग मांग कर रहे थे कि हत्यारे को उन के हवाले किया जाए, उसे वे खुद सजा देंगे.

भीड़ का गुस्सा स्वाभाविक था, लेकिन पुलिस को तो कानून के हिसाब से चलना पड़ता है. लिहाजा वहां पहुंचे एसपी विनीत जायसवाल ने भीड़ को समझाया और भरोसा दिया कि वह हत्यारे को सख्त सजा दिलाने की कोशिश करेंगे. इस के बाद भीड़ शांत हुई. एसपी विनीत जायसवाल की मौजूदगी में थानाप्रभारी कर्मवीर सिंह ने अभियुक्त हिमांशु सैनी से इस चौहरे हत्याकांड के बारे में सख्ती से पूछताछ की तो इस जघन्य हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर शामली के लाइनपार इलाके में स्थित है पंजाबी कालोनी. हंसराज पाठक अपने परिवार के साथ यहीं पर रहते थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा 6 बेटे थे, क्रमश: सूरज पाठक, विनय पाठक, दिनेश पाठक, हरिओम पाठक, कपिल पाठक और अजय पाठक. अजय सब से छोटे थे. पाठक परिवार धार्मिक प्रवृत्ति का था. शहर में होने वाली रामलीला में इस परिवार के बच्चे अलगअलग किरदार का अभिनय करते थे. अजय ने 15 साल की उम्र से रामलीला में भिन्नभिन्न किरदारों का अभिनय करना शुरू कर दिया था.

इस के बाद अजय पाठक की रुचि गायन के प्रति हो गई. वह भजन गाने लगे. उन की आवाज और भजन गाने का अंदाज लोगों को बहुत पसंद आया, जिस से उन की ख्याति बढ़ने लगी. इसी दौरान उन का विवाह स्नेहलता से हो गया. समय का पहिया अपनी गति से घूमता रहा. अजय पाठक के सितारे बुलंदियां छूने लगे थे. भजन गायन के क्षेत्र में उन की पहचान बन चुकी थी. इस के साथ ही वह 2 बच्चों, एक बेटी वसुंधरा और बेटे भागवत के पिता बन गए थे. भजन गायन में उन्होंने अपनी अलग पहचान तो बनाई, साथ ही काफी पैसा भी कमाया. उन की अपनी जागरण मंडली थी, जिस में संगीत से जुड़े कई कलाकार शामिल थे.

हिमांशु सैनी करीब ढाई साल पहले अजय पाठक के संपर्क में आया था. वह नजदीक के ही कस्बा कैराना  का रहने वाला था. हिमांशु अजय पाठक से बहुत प्रभावित था. वह उन की तरह सिंगर बनना चाहता था. इस बारे में उस ने अजय से बात की तो उन्होंने उसे अपनी मंडली में शामिल कर लिया. भजन मंडली में रह कर हिमांशु गानाबजाना सीखने लगा. शिष्य की मर्यादा निभाते हुए हिमांशु अपने गुरु अजय पाठक की खूब सेवा करता था. जब वह अजय के घर जाता तो उन के पैर तक दबाता था. अजय भी हिमांशु की लगन से खुश थे. वह उसे अपने हुनर देने लगे. इन ढाई सालों में हिमांशु गानेबजाने के काफी गुर सीख गया था. गुरु के घर उस का अकसर आनाजाना लगा रहता था. कई बार वह उन के यहां ठहर भी जाता था.

पिछले कुछ दिनों से हिमांशु कुछ ज्यादा ही परेशान था. इस की वजह यह थी कि उस ने एक बैंक से 5 लाख रुपए का लोन ले रखा था, जिस की किस्तें वह अदा नहीं कर पा रहा था. इस के अलावा उस ने कुछ लोगों से भी पैसे उधार ले रखे थे. उन पैसों को भी वह नहीं चुका पा रहा था, जिस से वह आए दिन लोगों के तगादों से परेशान हो गया था. बैंक ने तो उसे पैसे रिकवरी का नोटिस भी भेज दिया था, जिस से उस की चिंताएं बढ़ती जा रही थीं. इस सब की जानकारी उस ने अपने गुरु अजय पाठक को भी दे दी थी. हिमांशु का आरोप है कि अजय पाठक पर उस के मेहनताने के 60 हजार रुपए बकाया थे. वह उन से जब भी अपने पैसे मांगता तो वह उसे न सिर्फ टाल देते बल्कि गालियां देते हुए बेइज्जत भी कर देते थे.

हिमांशु पाईपाई के लिए मोहताज था. ऐसे में उसे पैसे मिलना तो दूर, बेइज्जती सहनी पड़ती थी. हिमांशु की समझ में नहीं आता था कि वह करे तो क्या करे. हिमांशु चारों तरफ से परेशानियों से घिरा था. 30 दिसंबर, 2019 की शाम को अजय पाठक किसी कार्यक्रम से घर लौटे. उस समय हिमांशु भी उन के साथ था. अजय ने अपने मकान के ग्राउंड फ्लोर पर रहने वाले चाचा दर्शन पाठक से कह दिया था कि कल सुबह उसे बच्चों के साथ करनाल जाना है. अजय के अन्य 5 भाइयों में से सब से बड़े सूरज पाठक लुधियाना में रहते हैं, बाकी सभी पंजाबी कालोनी में ही अलगअलग रहते हैं. 30 दिसंबर को हिमांशु अपने गुरु अजय के कहने पर वहीं रुक गया. रात का खाना खाने के बाद हिमांशु ने अजय पाठक के पैर दबाए.

उसी समय हिमांशु ने अजय के सामने अपनी समस्या रखते हुए अपने पैसे मांगे. हिमांशु का आरोप है कि अजय ने उस दिन भी अपशब्द कहते हुए उसे बेइज्जत किया. यह बात हिमांशु को नागवार लगी. उसी समय उस ने एक भयानक फैसला कर लिया. उस ने तय कर लिया कि वह आज इस बेइज्जती का जवाब जरूर देगा. लिहाजा वह मौके का इंतजार करने लगा. कुछ देर बाद अजय पाठक और परिवार के सभी लोग गहरी नींद में सो गए, लेकिन हिमांशु की आंखों से नींद कोसों दूर थी. उस के दिमाग में खूनी योजना घूम रही थी. रात करीब साढ़े 4 बजे वह आहिस्ता से अपने बिस्तर से उठा.

हिमांशु वहां अकसर आताजाता रहता था, इसलिए उसे पता था कि घर में कौन सी चीज कहां रखी है. वह चुपके से मकान के निचले हिस्से में गया. वहां कार में रखी छोटी तलवार और चाकू ले आया. इन्हीं हथियारों से उस ने सब से पहले अपने गुरु अजय पाठक पर वार कर के उन्हें मौत के घाट उतार दिया. इस के बाद उस ने अजय की पत्नी स्नेहलता, 15 वर्षीय बेटी वसुंधरा और 10 वर्षीय भागवत को एकएक कर के मौत के घाट उतारा. चूंकि ये सभी लोग गहरी नींद में थे, इसलिए वार करते वक्त उन की चीख तक नहीं निकली. चारों को मौत के घाट उतारने के बाद उस ने घर की अलमारियों के ताले तोड़ कर नकदी और ज्वैलरी ढूंढी, लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा.

इस के बाद उस ने भागवत की लाश उठा कर अजय की कार में रखी, फिर ऊपर वाले फ्लोर का ताला बंद कर के वह कार ले कर निकल गया. ताकि लोग समझें कि बदमाश लूट और हत्या के बाद भागवत का अपहरण कर के ले गए. दिन में वह इधरउधर घूमता रहा. रात के समय वह पानीपत के टोलप्लाजा के पास पहुंचा. हिमांशु भागवत के शव को आग के हवाले कर के सारे सबूत नष्ट करना चाहता था ताकि पुलिस उस तक न पहुंच सके. लेकिन वह पानीपत पुलिस के हत्थे चढ़ गया. हिमांशु से पूछताछ के बाद पुलिस ने उसे कैराना के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. इसी दौरान कचहरी में वकीलों ने हिमांशु को घेर लिया और पुलिस की गिरफ्त से उसे छीनने का प्रयास करने लगे. पुलिस ने जैसेतैसे वकीलों को शांत कर हत्यारोपी को जेल तक पहुंचाया.

मशहूर भजन गायक अजय पाठक और उन के पूरे परिवार की हत्या के बाद फेसबुक पर उन के द्वारा गाई एक गजल तेजी से वायरल होने लगी. वह गजल उन के साथ घटी घटना पर सटीक बैठती है—

जमाना दोस्त हो जाए तो बहुत मोहतात हो जाना, किसी के रंग बदलने में जरा सी देर लगती. बहुत ही मोतबर हैं जिन को मोहब्बत रास आ जाए, किसी को राह बदलने में जरा सी देर लगती.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Mathura News : कर्ज चुकाने के लिए पड़ोसी के बच्‍चे को किया किडनैप, मांगे 20 लाख

Mathura News : अमित बाहर से आने वालों को वृंदावन घुमाता था. गौवर्धन की परिक्रमा कराता था, लेकिन महाराष्ट्र से आई मधु के प्यार में ऐसा पड़ा कि उस के साथ घर बसा लिया, अमित ने मधु से खुद को पैसे वाला बताया. इस का नतीजा तब सामने आया जब…

लौकडाउन में जहां लोगों का बाहर निकलना प्रतिबंधित है वहीं अपराधियों के हौसले और भी बुलंदी पर हैं. लौकडाउन की वजह से लोग घर से बाहर न निकलने को मजबूर हैं, लेकिन ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो बिना निकले पेट नहीं पाल सकते. ऐसे ही लोगों में हैं अपराधी. दरअसल, अपराधियों की सोच यह होती है कि पुलिस तो कोरोना के चलते व्यवस्था ठीक करने में लगी है, क्यों न इस मौके का फायदा उठाया जाए. जनपद मथुरा के राया कस्बे की परशुराम कालोनी में रहने वाले लेखपाल राजेंद्र प्रसाद की बीवी कुसुम घर के कामों में व्यस्त थीं. सुबह 11 बजे फुर्सत मिलने पर उन्हें घर के बाहर चबूतरे पर खेल रहे अपने 3 वर्षीय बेटे युवान उर्फ गोलू की याद आई.

वे उसे बुलाने घर के बाहर आईं. चबूतरे पर उन की दोनों बेटियां खेल रहीं थीं. उन्होंने पूछा, ‘‘गोलू कहां है.’’ इस पर बेटियों ने कहा, ‘‘हमें नहीं मालूम.’’

गोलू अक्सर पड़ौसी अमित के घर उन के बच्चे के साथ खेलने चला जाता था. यह सोच कर कि गोलू वहीं होगा. कुसुम अमित के घर पहुंची. उन्होंने अमित की बीवी मधु से गोलू के बारे में पूछा  तो मधु ने बताया, गोलू व दोनों बहनें आईं थीं सभी बच्चे खेल कर चले गए. कुसुम ने घबराते हुए कहा, ‘‘गोलू कहीं दिखाई नहीं दे रहा. पता नहीं कहां चला गया है.’’

मधु ने कहा किसी के घर खेल रहा होगा. कुसुम ने उसे मौहल्ले में तलाश किया, लेकिन कोई पता नहीं लगा. कुसुम ने यह जानकारी पति राजेंद्र को दी. राजेंद्र और पड़ौसी गोलू को मोहल्ले के साथसाथ कालोनी के आसपास भी तलाशने लगे. तभी कुसुम को घर के पास गोलू की चप्पलें मिल गईं. चप्पलों में एक पर्ची लगी थी. पर्ची में लिखा था, आप का बेटा सही सलामत है, 20 लाख रुपए ले कर हाथिया आ जाना. पर्ची पढ़ते ही हड़कंप मच गया. बेटे के अपहरण से राजेंद्र और कुसुम का बुरा हाल था. इसी बीच किसी ने पुलिस को सूचना दे दी. यह 8 मई, 2020 की बात है. सूचना पर थाना राया के थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा मौके पर पहुंच गए.

उन की सूचना पर एसपी देहात श्रीश चंद्र और सीओ (महावन)  विजय सिंह चौहान भी आ गए. पुलिस ने घटनास्थल का निरीक्षण करने के साथ ही चप्पलों में लगी पर्ची भी कब्जे में ले ली. पुलिस ने घटनास्थल से थोड़ी दूर लगे शिवकुमार लेखपाल के यहां के सीसीटीवी कैमरे की फुटेज भी खंगाली, लेकिन उस में कोई भी आताजाता नहीं दिखा. पुलिस ने गोलू के घरवालों के साथ मौहल्ले का एकएक घर छान मारा, लेकिन गोलू के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली.  इस के बाद पिता राजेंद्र प्रसाद ने थाना राया में अज्ञात के विरूद्ध अपहरण का मुकदमा दर्ज करा दिया. सर्विलांस टीम से भी मदद ली गई, लेकिन समस्या यह थी कि अपहरणकर्ताओं ने अभी तक बच्चे के घरवालों को फिरौती के लिए फोन नहीं किया था. घटना के बाद से पुलिस कई स्थानों पर दबिश भी दे चुकी थी.

लौकडाउन के कारण पुलिस ने राया से ले कर मथुरा एनएच-2 और एक्सप्रेस-वे तक को सील कर रखा था. ऐसे में बच्चे का अपहरण और फिरौती पुलिस के लिए चुनौती बन गई थी. क्योंकि गाड़ी में बच्चे को ले जाने के लिए पुलिस के हर बैरियर पर चैकिंग से गुजरना पड़ता था. इस के साथ ही एक्सप्रेस वे से ले कर एनएच-2 पर भी वाहन चैकिंग हो रही थी, वहां जा कर भी खोजबीन की गई. पुलिस ने लौकडाउन में ड्यूटी पर लगे पुलिसकर्मियों से भी पूछताछ की, लेकिन परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा. गोलू के अचानक अपहरण हो जाने की खबर पूरी कालौनी में फैल चुकी थी. लौकडाउन होने के बावजूद तमाम पुरूष, महिलाएं व बच्चे राजेंद्र के घर पर जुटने लगे.

सब की जुबान पर एक ही बात थी कि आखिर 3 साल के गोलू का अपहरण कौन कर ले गया? गोलू के अपहरण से मां कुसुम और दोनों बहनों का रोरो कर बुरा हाल था. थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा ने राजेंद्र से पूछा, ‘‘तुम्हारी किसी से रंजिश वगैरह तो नहीं हैं? या तुम्हें किसी पर कोई शक है तो बताओ. राजेंद्र के इनकार करने पर थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘आप के पास अपहरणकर्ताओं का कोई फोन आए तो बताना.’’ कालोनी में बच्चे के अपहरण के बाद तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गई थी. पुलिस ही नहीं लोगों को डर सता रहा था कि लौकडाउन के चलते बदमाश फिरौती की रकम न मिलने पर कहीं बच्चे की हत्या न कर दें. गोलू के घरवालों की पूरी रात आंखों में कटी. घर में चूल्हा भी नहीं जला.

दूसरे दिन शनिवार की सुबह अपहर्त्ता लेखपाल राजेंद्र के बच्चे गोलू को कालोनी से 15 किमी दूर राया सादाबाद रोड पर गांव तंबका के पास छोड़ गए. ग्रामीणों को बालक रोता हुआ मिला. इस पर उन्होंने पुलिस को सूचना दी. सूचना पर पीआरवी 112 मौके पर पहुंची और गोलू को कब्जे में ले लिया. बालक की बरामदगी की सूचना जैसे ही घर वालों को मिली उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पुलिस ने गाड़ी भेज कर बच्चे के मातापिता को पुलिस चौकी बिचपुरी पर बुला लिया. गोलू को देखते ही मां की आंखों से खुशी के आंसू छलक आए. मां की गोद में आते ही गोलू मां से लिपट गया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया. बदमाशों ने 20 लाख की फिरौती मांगी थी, जो नहीं दी गई. जल्द ही बदमाशों को गिरफ्तार कर पूरे मामले कर खुलासा कर दिया जाएगा.

परशुराम कालोनी से राया सादाबाद रोड पर जाने के 3 रास्ते हैं. मुख्य मार्ग मांट रोड, फिर हाथरस रोड और फिर यहां से सीधा राया सादाबाद रोड है. इस दौरान रेलवे फाटक, नेहरू पार्क आदि स्थानों पर भी लौकडाउन के चलते पुलिस मौजूद रहती है. यहां से राया सादाबाद रोड पर जाने के लिए 2 रास्ते और भी हैं. बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस ने इन सभी रास्तों पर नाकेबंदी कर दी थी. इस के बावजूद बदमाशों ने सुबह 5 बजे तंबका गांव के मंदिर पर बालक को छोड़ दिया. पुलिस इस क्षेत्र के आगे तथा पीछे मौजूद थी परंतु उसे बदमाशों की गतिविधि की भनक तक नहीं लग सकी थी. अपहर्त्ताओं ने बालक के अपहरण में चौपहिया वाहन का इस्तेमाल किया था. इस की पुष्टि बच्चे गोलू ने भी की. साथ ही बताया कि बदमाशों ने उस के सिर पर कपड़ा डाला और गाड़ी में ले गए.

सवाल यह था कि चौपहिया वाहन लौकडाउन के चलते इतनी दूर कैसे चला गया? बालक तो बरामद हो गया लेकिन सघन चैकिंग का दावा कर रही पुलिस बदमाशों को नहीं पकड़ सकी थी. इस से पुलिस की किरकिरी हो रही थी. अपहरणकर्ताओं की चुनौती को पुलिस ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया. पुलिस अधिकारियों ने वारदात के तरीके से यह निष्कर्ष निकाला कि यह किसी संगठित गिरोह की गतिविधि नहीं थी. इसलिए पुलिस ने अब लेखपाल राजेंद्र के नजदीकी लोगों की छानबीन शुरू करने का निर्णय लिया.

पुलिस मान रही थी कि फिरौती के लिए जिन्होंने पर्ची लिखी, वे बहुत कम पढ़ेलिखे थे. क्योंकि पर्ची में पहले 10 और बाद में 20 लाख की फिरौती लिखी गई थी. एसपी देहात श्रीश चंद्र ने बताया कि इस संबंध में जहां लेखपाल के नजदीक रहे लोगों की जानकारी ले रहे हैं, वहीं मामले की जांच गहनता से फिर से की जाए. ताकि बच्चे के अपहर्त्ताओं तक पहुंचा जा सके. पुलिस ने गोलू की मां से पर्ची मिलने के बारे में पूछताछ की. उस से जानकारी मिली कि गोलू की चप्पलों को उठाते वक्त नीचे दबी फिरौती की पर्ची उड़ गई थी, उस समय उस ने गौर नहीं किया था. बाद में पर्ची पड़ौस में रहने वाले अमित की पत्नी मधु ने ला कर दी थी. इस पर पुलिस ने मधु से पूछताछ की, मधु इनकार करने लगी. मधु की हरकत से पुलिस को उस पर शक हो गया.

पुलिस ने 12 मई को मधु को हिरासत में लेने के बाद उस से सख्ती से पूछताछ की. इस पर मधु ने फिरौती की पर्ची कुसुम को देने की बात स्वीकार करते हुए गोलू के अपहरण में अपने पति अमित, सगे देवर विनय उर्फ वीनू तथा ममेरे देवर विशाल के शामिल होने की बात बताई. पुलिस ने इस संबंध में अमित, मधु, विशाल निवासी तिरवाया, थाना राया को गिरफ्तार कर लिया. अमित का भाई  विनय निवासी टोंटा, हाथरस फरार था. गिरफ्तार तीनों आरोपियों ने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पूछताछ करने पर गोलू के अपहरण की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.—

अमित मैजिक चालक था. महाराष्ट्र की मधु नाइक मथुरा में गोवर्धन की परिक्रमा के लिए आई थी. अमित ने मधु को अपनी मैजिक में बैठा कर गोवर्धन की परिक्रमा कराई. इस मुलाकात के बाद दोनों का झुकाव एकदूसरे के प्रति हो गया. बाद में उस ने 2015 में मधु से प्रेम विवाह कर लिया. उस ने मधु से खुद को बहुत पैसे वाला बताया था. जबकि वह टेंट की सिलाई का काम करने के साथ ही मैजिक भी चलाता था. शादी के बाद शानोशौकत में धीरेधीरे उस पर 5 लाख रुपए का कर्जा हो गया. इस वारदात से 2 माह पहले ही अमित ने परशुराम कालोनी में रामबाबू का मकान किराए पर लिया था. इस से पहले वह भोलेश्वर कालोनी में किराए पर रहता था. वह मूल रूप से टोंटा, हाथरस का रहने वाला था. पड़ोसी होने के नाते गोलू व उस की बहनें उस के यहां खेलने आती थीं.

कर्जा चुकाने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. इस योजना में अमित ने पत्नी मधु के साथ ही अपने छोटे भाई विनय उर्फ वीनू व मामा के लड़के विशाल को भी शामिल कर लिया था. गोलू रोजाना की तरह 8 मई को भी अपनी 2 बहनों के साथ पड़ोसी अमित के घर खेलने आया था. उस दिन दोनों बहनें घर के अंदर लूडो खेलती रहीं और योजना के मुताबिक मधु ने गोलू को अपने पति अमित के साथ मैजिक में बैठा दिया और कहा, ‘‘अंकल तुम्हें घुमाने ले जा रहे हैं. बच्चे को बहलाफुसला कर अमित गोलू को कच्चे रास्ते से होता हुआ छोटे भाई वीनू के पास नगला टोंटा, हाथरस ले गया.  वहां वीनू को बच्चा देने के बाद कहा, ‘‘जब विशाल फोन करे बच्चे को तभी छोड़ना.’’

बच्चे के अपहरण के बाद पुलिस का दवाब बढ़ा तो अपहरणकर्ता डर गए. पकड़े जाने के भय से उन्होंने बालक को दूसरे दिन बिना फिरौती वसूले ही छोड़ दिया. यह बालक गांव तंबका के पास ग्रामीणों को रोता हुआ मिला था. एसएसपी डा. गौरव ग्रोवर ने प्रैस वार्ता में बताया, शादी के बाद अमित पर 5 लाख का कर्जा हो गया था उसे उतारने के लिए दंपति ने गोलू के अपहरण की साजिश रची थी. पुलिस का दवाब बढ़ा तो इन लोगों ने बच्चे को अगले दिन ही सड़क पर छुड़वा दिया था. प्रोत्साहन के लिए वरिष्ठ अधिकारियों ने टीम में शामिल एसपी देहात श्रीश चंद्र, सीओ विनय चौहान, थानाप्रभारी सूरजप्रकाश शर्मा, स्वाट व सर्विलांस टीम को 50 हजार रुपए के इनाम की घोषणा की है. गिरफ्तार तीनों आरोपियों को पुलिस ने अदालत में पेश कर जिला जेल भेज दिया.

दंपति का एक साल का बेटा भी उन के साथ जेल में है क्योंकि उस की सुपुर्दगी लेने वाला कोई नहीं था. जबकि चौथे आरोपी विनय उर्फ वीनू की पुलिस सरगर्मी से तलाश कर रही है. अपने को अमीर दिखाने के चक्कर में यदि अमित ने अपने सिर पर कर्ज का बोझ न चढ़ाया होता तो आज उस की हंसती खेलती जिंदगी होती लेकिन पैसे की झूठी शान दिखाने में उसे जुर्म का सहारा लेना पड़ा, जिस के चलते परिवार सहित जेल की हवा खानी पड़ी.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)