Rajasthan Crime : चमत्कारी संदूक के लालच में गंवाए 40 लाख

Rajasthan Crime : अजमेर जिले का केकड़ी उपखंड. यहां ब्यावर रोड देवगांव गेट के बाहर स्थित दीदार नाथ आश्रम में पूर्णिमा होने की वजह से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी. इसी भीड़ में अशोक मीणा भी था. अशोक मीणा शिक्षक था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था. वह बगैर नागा किए दीदार नाथ आश्रम में आता था. यहां पूजाअर्चना करता, कुछ वक्त बड़े चबूतरे पर बैठ कर ध्यान लगाता और फिर परिवार के सुख की कामना करते हुए अपने घर लौट आता.

रोज की भांति दीदार नाथ आश्रम में आने के बाद अशोक मीणा ने देवस्थल में पूजा की. वह चबूतरे पर आ कर ध्यान लगाने के लिए अभी बैठा ही था कि भगवा धोतीकुरता पहने एक व्यक्ति ने उस के हाथ में बताशों का प्रसाद दे कर बहुत कोमल स्वर मे कहा, ‘‘अशोक मीणा, यह आखिरी 2 बताशे तुम्हारे ही भाग्य के बचे थे. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लो.’’

अशोक मीणा ने उस व्यक्ति को हैरानी से देखा. गोरे रंग के उस व्यक्ति की उम्र 50-55 के आसपास थी. उस के सिर के बीच के बाल उड़ चुके थे. माथे पर लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था. उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. अशोक मीणा इस बात पर हैरान था कि वह व्यक्ति उस का नाम जानता था, कैसे? यही जिज्ञासा लिए अशोक ने पूछ लिया, ‘‘मैं आप से पहले कभी नहीं मिला हूं, फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं अशोक,’’ वह व्यक्ति मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम यहां सरकारी स्कूल में टीचर हो. यह बताओ, क्या मैं ने गलत कहा है?’’

अशोक मीणा अपने बारे में यह सब सुन कर उस व्यक्ति का चेहरा देखने लगा. कुछ क्षणों तक वह कुछ बोल नहीं पाया, फिर खुद को संयत करते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं, अपना परिचय देंगे मुझे?’’

‘‘मेरा नाम जयप्रकाश है. पंडित हूं इसलिए अपने नाम के पीछे शर्मा लगाता हूं. तुम मुझे पंडितजी कह सकते हो.’’

‘‘आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं पंडितजी… मैं सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे आप के दर्शन हुए हैं.’’ अशोक मीणा ने बहुत आदर भाव से कहा.

पंडित जयप्रकाश मुसकराया, ‘‘खुद को सौभाग्यशाली यूं भी समझ सकते हो अशोक कि मैं तुम से टकरा गया हूं. मैं तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ रहा हूं. तुम्हारा भविष्य इन्हीं रेखाओं में छिपा हुआ है, जिसे मैं अपनी दिव्य दृष्टि से साफसाफ देख रहा हूं.’’

अशोक मीणा अहसानमंद सा हो कर जयप्रकाश शर्मा के पैरों पर झुक गया, ‘‘मैं आप से अपना भविष्य जानने को आतुर हो उठा हूं महाराज. मेरे विषय में जो देख रहे हैं, मुझे बताइए.’’

‘‘अशोक!’’ जयप्रकाश पंडित एकाएक गंभीर हो गया, ‘‘तुम बहुत नादान और भोले हो.’’

‘‘वह क्यों महाराज?’’ अशोक ने पलकें झपकाईं.

‘‘तुम सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास कर रहे हो कि मैं ने तुम्हारा नाम और थोड़ी सी नौकरी संबंधित बातें बताई हैं.’’

‘‘आप ने गलत तो कुछ भी नहीं बताया महाराज.’’

‘‘लेकिन जो बताया, वह मुझे किसी दूसरे के द्वारा भी तो ज्ञात हो सकता है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे घर के आसपास रहता हो या तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हो और उसी ने मुझे आ कर तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया हो.’’

‘‘जी.’’ अशोक मीणा ने सिर खुजाया, ‘‘हां, ऐसा तो हो सकता है. किसी मेरे पहचान वाले से सुन कर आप ऐसी सटीक जानकारी दे सकते हैं.’’

‘‘तभी कहता हूं, तुम भोले और नादान हो. तुरंत किसी पर विश्वास कर लेना भोले लोगों की कमजोरी होती है. पहले सामने वाले को अच्छी तरह टटोल लेना चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं महाराज,’’ अशोक ने सिर हिलाया, ‘‘अब आप ही बता दीजिए, आप को मैं कैसे टटोलूं?’’

‘‘मैं अपना परिचय खुद दूंगा,’’ जयप्रकाश हंस कर बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में मुझ पर आंख बंद कर के विश्वास करने लगोगे.’’

अशोक मीणा ने गहरी सांस ली, ‘‘आप की बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया है.’’

‘‘नहीं उलझोगे.’’ जयप्रकाश मुसकराया, फिर उस ने पूछा, ‘‘चमत्कार पर विश्वास करते हो?’’

‘‘बहुत अधिक महाराज.’’

‘‘तंत्रमंत्र को भी मानते हो?’’

‘‘हां,’’ अशोक मीणा ने सिर हिलाया, ‘‘तंत्रमंत्र की शक्ति आदिकाल से चली आ रही है. ऋषिमुनि इन तंत्रमंत्र के द्वारा कायाकल्प कर लेते थे. रूप बदलने, किसी को वश में करने और युद्ध के दौरान अस्त्रशस्त्रों को एकदूसरे पर छोड़ने में तंत्रमंत्र शक्ति का ही प्रयोग होता था.’’

‘‘ठीक कह रहे हो.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया, ‘‘मैं भी तुम्हें तंत्रमंत्र के चमत्कार दिखाता हूं.’’

कहने के बाद जयप्रकाश ने आंखें बंद कीं और उस के होंठ यूं फड़फड़ाने लगे जैसे वह कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद उस ने अपना दायां हाथ हवा में लहरा कर कुछ पकड़ा.

अशोक हैरानी से आंखें झपकाने लगा. जयप्रकाश शर्मा के हाथ में मोतीचूर का लड्डू था.

लड्डू जयप्रकाश शर्मा ने अशोक मीणा को दे कर आदेश दिया, ‘‘यह तुम्हें ही खाना है अशोक.’’

‘‘यह… यह आप ने हवा में कहां से पकड़ा है?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

जयप्रकाश शर्मा कुछ नहीं बोला, उस ने फिर से आंखें बंद कीं और मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने एक बार फिर हवा में हाथ घुमाया. इस बार उस की मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था.

उस ने अशोक मीणा के सामने मुट्ठी खोली. उस की मुट्ठी में एक पीतल का ताबीज था.

‘‘लो अशोक, यह ताबीज गले में पहन लो. तुम्हारे ऊपर कोई दुष्ट आत्मा कभी अटैक नहीं करेगी, न तुम्हारा अनिष्ट करेगी.’’

‘‘चमत्कार है महाराज.’’ हैरत से अशोक की आंखें फैल गईं, ‘‘आप साधारण इंसान नहीं, कोई सिद्ध पुरुष हैं.’’

‘‘अब तुम मुझ पर विश्वास या अविश्वास कर सकते हो.’’ जयप्रकाश ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अविश्वास करने वाली बात ही नहीं है महाराज, आप ने मेरी आंखों के सामने यह चीजें तंत्रमंत्र शक्ति से प्रकट की हैं. मैं अब कह सकता हूं कि आप ने अपने दिव्य ज्ञान से ही मेरा नाम और नौकरी के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की है. आप सच्चे इंसान हैं, पूजनीय इंसान हैं.’’

‘‘आओ, अब बैठ कर बात करते हैं.’’ जयप्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अशोक मीणा का हाथ पकड़ा और एक ओर चल पड़ा. अशोक मीणा मंत्रमुग्ध सा उस के पीछेपीछे जा रहा था.

जयप्रकाश शर्मा केकड़ी उपखंड में सब्जी मंडी क्षेत्र में रहता था. यहां उस का जो निवास स्थान था, वह किसी तांत्रिक के साधनास्थल सा दिखाई देता था. कमरे में यज्ञकुंड था, उस के अंदर हर वक्त लकडि़यां जलती रहतीं, कमरा धुएं से काला स्याह और अजीब महक वाला बन गया था.

सुगंधित धूप अगरबत्तियां जगहजगह खोंस कर जलाई जाती रही होंगी, उन के अधजले टुकड़ों के ढेर लगे हुए थे, जाने कभी वहां सफाई की जाती थी या नहीं. कमरे के बीच में बने यज्ञकुंड की धूनी के सामने जयप्रकाश का आसन बिछा रहता.

जयप्रकाश शर्मा वहीं बैठ कर अपनी तंत्रमंत्र साधना की कथित दुकान चलाता था.

प्रेम वशीकरण, टोनाटोटका, बिछुड़ों को मिलाना, गड़े धन की जानकारी, सौतन से छुटकारा जैसे काम करने का जयप्रकाश शर्मा के पास जैसे ठेका था. केकड़ी उपखंड में वह तांत्रिक जय शर्मा के नाम से विख्यात हो गया था. उस के साधनास्थल पर परेशान, किसी समस्या से त्रस्त पुरुषों, औरतों का जमावड़ा लगा रहता था.

जयप्रकाश के द्वारा वह अपनी समस्या का समाधान करवाने आते थे, उन्हें कितना फायदा होता था, यह वह खुद नहीं जानते थे. वह जयप्रकाश शर्मा से तंत्र क्रिया करवाते और मोटा चढ़ावा चढ़ा कर लौट जाते. वह कभी शिकायत ले कर जयप्रकाश या किसी अन्य के पास नहीं गए कि उन्हें लाभ नहीं हुआ है, ऐसी बातों के लिए उन्हें पुलिस से फटकार मिलने का डर बना रहता और लोगों से जगहंसाई का.

अंधविश्वास भरी इन बातों का आज 21वीं सदी में कोई स्थान नहीं था. फिर भी अंधविश्वासियों की वजह से जयप्रकाश शर्मा की दुकान चल रही थी. वह दोनों हाथों से पैसे बटोर रहा था.

लोग यह समझते थे कि जयप्रकाश के पास हवा में ताबीज पकड़ने, लड्डू या 5-5 सौ के नोट पैदा करने जैसे चमत्कारी गुण हैं. वह यह सब किस विधि से करता है, कोई नहीं जानता था. लोग बेवकूफ बन रहे थे और वह बना रहा था. जयप्रकाश शर्मा की नजर में अब मोटा मुरगा चढ़ गया था. वह मुरगा था अशोक मीणा.

जयप्रकाश ने अशोक मीणा को पूर्णिमा के दिन अपने हाथ की सफाई दिखा कर प्रभावित कर दिया था. अशोक मीणा चमत्कृत था. वह जयप्रकाश को कोई सिद्ध पुरुष मानने लगा था. अशोक मीणा नियमित रूप से ब्यावर के दीदारनाथ आश्रम में जाता था, जयप्रकाश शर्मा भी उस के पीछे दीदारनाथ आश्रम पहुंचने लगा.

जयप्रकाश अशोक मीणा को रोज नएनए चमत्कार दिखा कर प्रभावित करता. अशोक उस के चमत्कार देख कर हैरत में पड़ जाता था. उस का झुकाव अब जयप्रकाश शर्मा की तरफ हो गया था. वह जयप्रकाश का आदर करने लगा. एक दिन मौका देख कर जयप्रकाश ने उसे अपने साधनास्थल पर बुला लिया.

अपने सामने उसे बैठने को आसन दिया. अशोक मीणा उस के साधनास्थल को हैरत से देख रहा था.

‘‘इस साधनास्थल पर सब कुछ अलौकिक है अशोक मीणा, मैं ने कठोर परिश्रम कर के कुछ सिद्धियां प्राप्त की हैं. लेकिन मैं अभी गुरु शिवनाथ के मुकाबले बौना ही हूं.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘यह गुरु शिवनाथ कौन है?’’

‘‘यह विश्व के महान तंत्रमंत्र ज्ञाता हैं, अपनी कठोर साधना से मेरे गुरु शिवनाथ ने अनेक जिन्न, खबीश, प्रेत और चंडाल अपने वश में कर लिए हैं. वह उन से हर प्रकार का काम लेते हैं. किसी की कैसी भी समस्या हो, उन को वह चुटकी में हल कर देते हैं.’’ जयप्रकाश ने बता कर अशोक मीणा की तरफ देखा, ‘‘मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने जा रहा हूं, जो मेरे और गुरु शिवनाथ के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति नहीं जानता, चूंकि तुम मेरे खास बन गए हो, इसलिए सिर्फ तुम्हें बता रहा हूं. थोड़ा आगे सरक आओ.’’

अशोक मीणा अपनी जगह से आगे सरका. उस के मन में वह खास बात जान लेने की जिज्ञासा थी.

‘‘अशोक, मेरे गुरु शिवनाथ ने अपने जिन्नों की मदद से रानी हलीमा का वह चमत्कारी बक्सा हासिल कर लिया है, जिस में से सोना, चांदी और नोट निकलते हैं.’’

‘‘भला बक्सा नोट, सोनाचांदी कैसे निकाल सकता है? क्या उस में पहले यह सब डालना पड़ता है?’’ अशोक ने आतुरता से पूछा.

‘‘नहीं अशोक. उस बक्से से अपनी इच्छा से जो मांगो, वह निकल आता है.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है.’’

जयप्रकाश हंसा, ‘‘तांत्रिक की किसी चमत्कार और शक्ति को नकारा नहीं जा सकता अशोक. मैं तुम्हें अपने गुरु शिवनाथ के पास ले कर चलूंगा, तुम अपनी आंखों से उस बक्से का चमत्कार देख लेना.’’

‘‘कब चलेंगे आप?’’ अशोक मीणा ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘जब तुम चाहोगे.’’

‘‘मैं तो आज ही चलना चाहता हूं.’’

जयप्रकाश उस का उतावलापन देख कर मुसकराया फिर वह किसी गहरी सोच में डूब गया.

कक्ष में गहरी खामोशी छा गई.

कुछ देर बाद जयप्रकाश ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘अशोक, मैं सोच रहा हूं कि बक्सा अपने गुरु से तुम्हें दिलवा दूं.’’

‘‘क्या वह बक्सा दे देंगे?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं कहूंगा तो वह इंकार नहीं कर सकेंगे.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया.

‘‘सोचो, यदि वह बक्सा तुम्हें मिल गया तो तुम दुनिया के सब से धनी व्यक्ति बन जाओगे.’’

अशोक मीणा की आंखों में तीखी चमक उभरी, ‘‘काश! ऐसा हो जाए.’’

‘‘हो जाएगा. मैं तुम्हारा भला चाहता हूं इसलिए हर सूरत में मैं वह बक्सा तुम्हें दिलवाऊंगा, लेकिन…’’ अपनी बात अधूरी छोड़ी जयप्रकाश ने.

‘‘लेकिन क्या महाराज, कोई अड़चन हो तो मुझे निस्संकोच बताइए.’’

‘‘तुम्हें कुछ खर्चा करना पड़ेगा.’’

‘‘कर दूंगा. बताइए, कितना खर्च करना होगा?’’

‘‘तुम एक लाख रुपया मेरे एकाउंट में जमा करवा दो, ये रुपए एक सिक्योरिटी के रूप में मेरे पास रहेंगे. तुम्हें मैं वह बक्सा दिलवा रहा हूं, जिस में से तुम रोज लाखों रुपए, सोनाचांदी प्राप्त कर सकोगे. समझ रहे हो न मेरी बात?’’

‘‘मैं एक लाख रुपया आज ही आप के एकाउंट में डाल देता हूं.’’ अशोक मीणा ने बगैर किसी हिचक के कहा, ‘‘आप तो अपने गुरु के पास मुझे ले चलिए.’’

‘‘मेरे गुरु महाराष्ट्र में शाहपुरा (ठाणे) में रहते हैं, वहां चलने में जो खर्चा होगा, वह तुम्हें ही करना होगा.’’

‘‘ठीक है महाराज. सारा खर्च मैं ही करूंगा, आप आज ही टिकट का रिजर्वेशन करवा लीजिए. मैं आप के बैंक एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए डाल देता हूं. आप अपना एकाउंट नंबर मुझे दे दीजिए.’’

जयप्रकाश ने उसे अपना एकाउंट नंबर लिख कर दे दिया. अशोक मीणा वह नंबर ले कर उस साधनास्थल से बाहर निकला तो उस के मन में बेहद उत्साह और चेहरे पर खुशी थी.

अशोक मीणा ने एक घंटे बाद ही जयप्रकाश शर्मा के एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए जमा करवा दिए.

तीसरे दिन जयप्रकाश शर्मा अपने साथ अशोक मीना को ले कर ठाणे के शाहपुरा में अपने गुरु शिवनाथ के यहां पहुंच गया.

शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.

कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.

कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.

शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.

उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.

शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’

‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.

शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.

तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’

‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.

दोनों आसन ले कर बैठ गए.

‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.

‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.

‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.

युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.

‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.

शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’

‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’

‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’

‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.

शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’

‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.

अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’

‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’

‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’

‘‘नहीं महाराज.’’

‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’

‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.

‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.

यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.

‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’

‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.

अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.

अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.

उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.

अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’

अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.

यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में (Rajasthan Crime) एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.

अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.

अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.

अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.

उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.

14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.

इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.

जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.

आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.

कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित

UP Crime : मांबेटी को जलाया जिंदा

UP Crime : उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) (UP Crime) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई. योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

UP Crime news : पत्थर से वार कर दोस्त की खोपड़ी के किए कई टुकड़े

UP Crime news : मनीष जिस सौरभ को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था, पैसों के लालच में वही उस का सब से खतरनाक दुश्मन बन गया था. मनीष को घर से गए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे. इतनी देर तक वह घर वालों को बताए बिना कभी गायब नहीं रहा था. उस के भाई अनिल ने कई बार उस के दोनों फोन नंबरों पर फोन किया था, लेकिन हर बार उस के दोनों नंबरों ने स्विच्ड औफ बताया था. इस के बावजूद वह बीचबीच में फोन मिलाता रहा कि शायद फोन मिल ही जाए. पूरा घर मनीष को ले कर काफी परेशान था.

संयोग से सुबह 7 बजे के लगभग मनीष का फोन मिल गया. मनीष के फोन रिसीव करते अनिल ने कहा, ‘‘मनीष, तू कहां है? कल से तेरा कुछ पता नहीं चल रहा है, तुझे घरपरिवार की इज्जत की भी फिक्र नहीं है. तू किसी को कुछ बताए बगैर ही दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा है?’’

‘‘भाई… मैं घंटे भर में घर पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से मनीष की लड़खड़ाती आवाज आई.

लड़खड़ाती आवाज सुन कर अनिल चौंका. उस की समझ में नहीं आया कि वह इस तरह क्यों बोल रहा है. उस ने कहा, ‘‘वो तो ठीक है. तू घंटे भर में नहीं सवा घंटे में आ जाना, लेकिन यह तो बता कि कल शाम से तेरे दोनों फोन बंद क्यों हैं? और तेरी आवाज को क्या हुआ है, जो इस तरह आ रही है?’’

‘‘भैया, वो क्या है कि मेरे फोन गाड़ी में रह गए थे.’’ मनीष की आवाज फिर लड़खड़ाई. इस के साथ फोन कट गया. अनिल ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन फोन का स्विच औफ हो गया. जिस तरह मनीष की आवाज लड़खड़ा रही थी. साफ लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा नशे में है. 24 वर्षीय मनीष संगत की वजह से शराब भी पीने लगा था. इसलिए अनिल ने तय किया कि उस के आते ही वह उस से बात करेगा कि वह अपनी आदत सुधारेगा या नहीं?

जिस समय अनिल मनीष से फोन पर बातें कर रहा था, उस समय उस की मां और घर के अन्य लोग भी वहीं बैठे थे. मनीष से हुई बातचीत अनिल ने घर वालों को बताई तो वे और ज्यादा परेशान हो उठे. उन्हें चिंता होने लगी कि वह गलत लोगों के साथ तो नहीं उठनेबैठने लगा. चूंकि अनिल की मनीष से बात हो चुकी थी, इसलिए वह यह सोच कर अपनी दुकान पर चला गया कि घंटे, 2 घंटे में मनीष घर लौट ही आएगा. अब वह शाम को उस से बात करेगा.

शाम के 5 बज गए, लेकिन न तो मनीष घर आया और न ही उस का कोई फोन ही आया. बूढ़े पिता ओमप्रकाश गुप्ता बेटे की चिंता में पिछली रात भी नहीं सो पाए थे. बेटे को ले कर सारी रात उन के मन में उलटेसीधे विचार आते रहे. अब दूसरा दिन भी बीत गया था और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. अनिल दुकान से जल्दी ही घर आ गया था. वह मनीष के कुछ दोस्तों को जानता था. उस ने उन से भाई के बारे में पूछा, लेकिन उन से उस के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली. 12 फरवरी को जब मनीष घर से निकला था, तो बड़ी बहन शशि ने उसे फोन किया था. तब उस ने कहा था कि वह मोंटी के मेडिकल स्टोर पर बैठा है और आधे घंटे में घर आ जाएगा.

मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का मेडिकल स्टोर लंगड़े की चौकी में था. अनिल अपने भाई राजीव के साथ मोंटी की दुकान पर पहुंचा. जब अनिल ने मोंटी से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मनीष कल दोपहर को यहां आया तो था, लेकिन घंटे भर बाद मोटरसाइकिल से चला गया था. यहां से वह कहां गया, यह मुझे पता नहीं. वहां से निराश हो कर दोनों भाई मनीष की अन्य संभावित स्थानों पर तलाश करने लगे, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. थकहार कर दोनों भाई रात 11 बजे तक घर लौट आए. बीचबीच में वह मनीष को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उस के दोनों फोन स्विच्ड औफ ही बताते रहे. किसी अनहोनी की आशंका से घर की महिलाओं ने रोनापीटना शुरू कर दिया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मनीष ऐसी कौन सी जगह चला गया है, जहां से उस से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.

खैर, जैसेतैसे रात कटी. अगले दिन पूरे मोहल्ले में मनीष के 2 दिनों से गायब होने की खबर फैल गई. मोहल्ले वाले गुप्ता के यहां सहानुभूति जताने के लिए आने लगे. उन्हीं लोगों के साथ राजीव और अनिल जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी सूरजपाल सिंह को मनीष के लापता होने की जानकारी दी. यह पुलिस चौकी थाना छत्ता के अंतर्गत आती है, इसलिए सूरजपाल सिंह उन्हें ले कर थाने पहुंचे. थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को जब मनीष के गायब होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने तुरंत उस की गुमशुदगी दर्ज करा कर मामले की जांच एसएसआई रमेश भारद्वाज को सौंप दी.

जब उन्हें पता चला कि मनीष अपनी मोटरसाइकिल (UP Crime news) यूपी80एवाई 4799 से घर से निकला था तो उन्होंने वायरलैस से जिले के समस्त थानों को मनीष का हुलिया और उस की मोटरसाइकिल का नंबर बता कर उस के गायब होने की सूचना देने के साथ कहलवाया कि अगर इन के बारे में कुछ पता चलता है तो तुरंत थाना छत्ता को सूचना दें. यह मैसेज प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही थाना सदर बाजार से थाना छत्ता को सूचना मिली कि मैसेज में बताई गई नंबर की नीले रंग की मोटरसाइकिल पिछली शाम को एक रेस्टोरेंट के सामने लावारिस हालात में बरामद हुई है. थाना सदर बाजार आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के नजदीक है.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने यह खबर मिलने के बाद अनिल को थाने बुलाया और उसे साथ ले कर थाना सदर बाजार पहुंचे, ताकि वह मनीष की बाइक को पहचान कर सके. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब उसे रेस्टोरेंट के सामने से लावारिस हालत में बरामद की गई मोटरसाइकिल दिखाई गई तो अनिल ने उसे तुरंत पहचान लिया. वह मोटरसाइकिल मनीष की थी. मनीष गुप्ता का परिवार आर्थिक रूप से काफी संपन्न था. वह हाथों में सोने की वजनी  अंगूठियां और गले में सोने की काफी वजनी चेन पहने था. उस के मोबाइल फोन भी काफी महंगे थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने लूटपाट कर के उस का कत्ल कर के लाश कहीं फेंक दी हो. लव एंगल की भी संभावना थी. इस बारे में पुलिस ने अनिल से पूछा भी, लेकिन उस का कहना था कि इस तरह की कोई बात उस ने नहीं सुनी थी. अगले महीने उस की शादी भी होने वाली थी.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने मनीष के दोनों फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उन की पिछले 5 दिनों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. 13 फरवरी, 2014 को मनीष के दोनों फोनों की लोकेशन लंगड़े की चौकी की मिली थी. इस के बाद लोकेशन खेरिया मोड़ अर्जुननगर की आई. वहीं से उस की अनिल से अंतिम बार बात हुई थी. इस का मतलब वह वहीं से लापता हुआ था. घर वाले भी अपने स्तर से मनीष के बारे में छानबीन कर रहे थे. उस के स्टेट बैंक औफ बीकानेर, आईडीबीआई, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंकों में खाते थे, जिन में उस के लाखों रुपए जमा थे. मनीष के पास हर समय इन बैंकों के डेबिड कार्ड रहते थे.’

मनीष के बड़े भाई राजीव ने सभी बैंकों में जा कर छानबीन की तो पता चला कि अयोध्या कुंज, अर्जुननगर की आईसीआई सीआई बैंक के एटीएम से 13 फरवरी की शाम 17 हजार 5 सौ रुपए निकाले गए थे. इस के अलावा 14,15 और 16 फरवरी को अलगअलग एटीएम कार्डों से साढ़े 3 लाख रुपए निकाले गए थे. यह बात जान कर घर वालों को आश्चर्य हुआ कि मनीष ने इतने पैसे क्यों निकाले. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. जीवन मंडी पुलिस चौकी के इंचार्ज सूरजपाल सिंह राजीव गुप्ता के साथ पास ही स्थित एचडीएफसी बैंक गए. उन्होंने ब्रांच मैनेजर से इस बारे में बात की तो ब्रांच मैनेजर ने बताया कि मनीष गुप्ता के खाते से एटीएम कार्ड द्वारा उस रोज 11 बज कर 19 मिनट पर डेबिड कार्ड द्वारा पैसे निकाले गए थे. वे रुपए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ से निकाले गए थे.

पुलिस जानती थी कि पैसे निकालने वाले का भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ पर लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो जरूर आया होगा. उस दिन की फुटेज हासिल करने के लिए पुलिस ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के अधिकारियों से बात की. जब बैंक अधिकारियों ने पुलिस और राजीव गुप्ता को फुटेज दिखाई तो पता चला, मनीष के खाते से पैसे निकालने वाला कोई और नहीं, मनीष का दोस्त सौरभ शर्मा था. सौरभ शर्मा मुकेश शर्मा उर्फ मोंटी का सगा भांजा था. उस की मोबाइल फोन रिचार्ज करने और एसेसरीज बेचने की दुकान थी. राजीव गुप्ता अकसर उसी के यहां से अपना मोबाइल रिचार्ज कराते थे. उस की दुकान मोंटी के मेडिकल स्टोर के बराबर में ही थी.

मनीष ने अपने पैसे सौरभ से क्यों निकलवाए थे, इस बारे में सौरभ ही बता सकता था. पुलिस राजीव को साथ ले कर सौरभ शर्मा की दुकान पर पहुंची. वह दुकान पर ही मिल गया. पुलिस के साथ राजीव और अनिल को देख कर वह सकपका गया. सबइंस्पेक्टर सूरजपाल सिंह ने उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. परंतु जब उसे एटीएम के कैमरे की फुटेज दिखाई गई तो उस ने कहा, ‘‘क्या इस में मैं मनीष गुप्ता के एटीएम कार्ड्स से रुपए निकालता दिख रहा हूं. सर, उस समय मैं अपने कार्ड से रुपए निकालने गया था.’’

सौरभ झूठ बोला रहा था, यह बात पुलिस और राजीव गुप्ता अच्छी तरह जान रहे थे. पुलिस उस के खिलाफ और सुबूत जुटाना चाहती थी, इसलिए उस समय उस से ज्यादा कुछ नहीं कहा. चौकीप्रभारी ने यह बात थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को बताई. मनीष के बारे में कोई जानकारी न मिलने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. जनता आंदोलन न कर दे, इस से पहले ही एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले को ले कर एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी करुणाकर राव और थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को अपने औफिस में बुला कर मीटिंग की और जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने सौरभ शर्मा और उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. मोंटी ने बताया कि जिस समय मनीष उस के मेडिकल स्टोर पर आया था, वह दुकान पर नहीं था. उस समय मेडिकल पर सौरभ था. सौरभ ने मोंटी की इस बात की पुष्टि भी की. इस के बाद पुलिस ने सौरभ से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मनीष पर बाजार का करीब 15 लाख रुपए का कर्ज हो गया है, इसलिए वह गोवा भाग गया है.

‘‘अगर वह गोवा भाग गया है तो उस का एटीएम कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया, जिस से तुम ने पैसे निकाले थे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस के नहीं, अपने कार्ड से पैसे निकाले थे.’’ सौरभ ने कहा.

पुलिस ने जब उस के खाते की जांच की तो पता चला कि उस ने उस दिन अपने खाते से पैसे निकाले ही नहीं थे. इस सुबूत को सौरभ झुठला नहीं सकता था, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि मनीष के एटीएम कार्ड्स से पिछले 3-4 दिनों में साढ़े 3 लाख रुपए उसी ने निकाले थे. पुलिस ने जब उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि अपने भांजे रिंकू शर्मा के साथ मिल कर उस ने मनीष की हत्या कर उस की लाश को चंबल के बीहड़ों में फूंक दी है. जब घर वालों को पता चला कि उस के दोस्तों ने मनीष की हत्या कर दी है तो घर में हाहाकार मन गया.

पुलिस मनीष की लाश बरामद करना चाहती थी. चूंकि उस समय अंधेरा हो चुका था इसलिए बीहड़ में लाश ढूंढना आसान नहीं था. अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2014 की सुबह इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की अगुवाई में गठित  एक पुलिस टीम सौरभ शर्मा को ले कर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंची. टीम सौरभ शर्मा द्वारा बताए स्थान पर पहुंची तो वहां लाश नहीं मिली. सौरभ पुलिस टीम को वहां 3 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. पुलिस ने जब सख्ती की तो आखिर वह पुलिस को वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर अरंगन नदी के पास स्थित एक पैट्रोल पंप के पीछे ले गया. उस ने बताया कि यहीं से उस ने मनीष की लाश को खाई में फेंकी थी.

खाई में भी पुलिस को लाश दिखाई नहीं दी. इस से अनुमान लगाया गया कि जंगली जानवर लाश खींच ले गए हैं. लिहाजा पुलिस इधरउधर लाश ढूंढने लगी. करीब 15 मिनट बाद एक पुराने खंडहर के पीछे एक सड़ीगली लाश दिखाई दी. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. उस का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था. उस का दाहिना हाथ शरीर के सारे कपड़े गायब थे. बाएं हाथ की एक अंगुली में सोने की अंगूठी थी. उसी अंगूठी और जूतों से मनीष के भाई राजीव ने लाश की शिनाख्त की. लाश की स्थिति से अनुमान लगाया कि मनीष की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मनीष की लाश बरामद होने की बात राजीव ने अपने घर वालों को बता दी.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के पुलिस लाश ले कर आगरा आ गई. जैसे ही लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंची, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और वहां से जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंच कर वहां से गुजरने वाले वाहनों को अपने गुस्से का शिकार बनाना शुरू कर दिया. लोग दुकानों पर तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे. इस में कई राहगीर भी घायल हुए. मौके पर जो 2-4 पुलिसकर्मी थे वे उन्हें समझाने और रोकने में असमर्थ रहे. उसी समय शहर के मेयर वहां पहुंचे तो भीड़ ने उन की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. किसी तरह गनर के साथ भाग कर वह सुरक्षित जगह पर पहुंचे. यह हंगामा लगभग एक घंटे तक चलता रहा.

ऐसा लग रहा था मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है. जब एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज काफी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और हंगामा करने वालों पर लाठीचार्ज किया गया तब जा कर हंगामा रुका. पूछताछ में सौरभ शर्मा ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह ‘मन में राम बगल में छुरी’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली थी. मनीष गुप्ता आगरा जिले के थाना छत्ता के मोहल्ला मस्वा की बगीची का रहने वाला था. वह अपने 9 बहनभाइयों में 8वें नंबर पर था. उस के पिता ओमप्रकाश गुप्ता की इलैक्ट्रिकल की दुकान थी, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होती थी. बीएससी करने के बाद मनीष पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था.

पिछले 8-9 महीने से मनीष दवाइयों का कारोबार करने लगा था. उस के संबंधों और व्यवहार की वजह से उस का यह कारोबार चल निकला था. उसे मोटी कमाई होने लगी थी. उस ने कई बैंकों में अपने खाते खोल लिए थे. मनीष गुप्ता अपने खानपान और पहनावे का काफी खयाल रखता था. शौकीन होने की वजह से वह महंगे मोबाइल फोन रखता था. दोनों हाथों की अंगुलियों में 7 सोने की अंगूठियां और गले में काफी वजनी सोने की चेन पहने रहता था. यह सब देख कर कोई भी उस की संपन्नता को समझ सकता था. वैसे तो अपनी उम्र के तमाम लड़कों के साथ उस का उठनाबैठना था, लेकिन उन में से 5-7 लोग उस के काफी करीबी थे. उन के साथ उस की दांत काटी रोटी थी. उन्हीं में से एक था सौरभ शर्मा. खेरिया मोड़, अर्जुननगर का रहने वाला सौरभ मनीष का ऐसा दोस्त था, जो मनीष की हर बात को जानता था.

सौरभ के पिता का देहांत हो चुका था. वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहता था. उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का लंगड़े की चौकी में मेडिकल स्टोर था. इस के अलावा मोंटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. मोंटी ने अपने मेडिकल स्टोर के पास एक केबिन बनवा कर उस में सौरभ को मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज का धंधा करा दिया था. मनीष मोंटी के मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करता था. इसलिए वहां आने पर सौरभ से अपना मोबाइल फोन रिचार्ज करा लेता था. सौरभ मनीष के हमउम्र था, इसलिए उस की उस से दोस्ती हो गई.

सौरभ काफी तेजतर्रार था. उसी की मार्फत मनीष ने आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंकों में खाते खुलवाए थे. मनीष को उस पर इतना विश्वास हो गया था कि कई बार उस ने अपने खातों में मोटी रकम जमा कराने के लिए सौरभ को भेज दिया था. सौरभ और मनीष बेशक गहरे दोस्त थे, लेकिन दोनों के स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. सौरभ भी चाहता था कि उस के पास भी ढेर सारे पैसे हों. लेकिन उस छोटी सी दुकान की आमदनी से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी. लिहाजा उस ने अपने धनवान दोस्त की दौलत के सहारे अपनी इच्छा पूरी करने की योजना बनाई. उस योजना में उस ने अपने भांजे रिंकू को भी शामिल कर लिया. रिंकू की स्थिति भी सौरभ जैसी ही थी. दोनों ने सलाहमशविरा कर के मनीष के पैसे हड़पने की एक फूलप्रूफ योजना बना डाली.

13 फरवरी, 2014 को देपहर के समय मनीष घर से खापी कर अपनी मोटरसाइकिल से मोंटी के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा. उस समय मोंटी अपनी दुकान पर नहीं था. सौरभ ही वहां बैठा था. सौरभ ने मनीष से अपनी प्रेमिका से मिलवाने की बात कही. पहले तो मनीष ने टाल दिया, लेकिन बारबार कहने पर मनीष तैयार हो गया. तब सौरभ ने मनीष को अर्जुननगर अपने घर के पास भेज कर इंतजार करने को कहा. मनीष अर्जुननगर तिराहे पर पहुंच कर सौरभ का इंतजार करने लगा. करीब 2 मिनट बाद सौरभ वहां पहुंचा. सौरभ उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो मनीष उस के बताए स्थान की तरफ चल दिया. रास्ते में सौरभ का भांजा रिंकू शर्मा भी मिल गया. सौरभ ने उसे भी उसी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया.

सौरभ उसे अर्जुननगर के ही एक कमरे पर ले गया, जिसे रिंकू शर्मा ने अपनी पढ़ाई के लिए किराए पर ले रखा था. कुछ देर बाद रिंकू मनीष के लिए कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. उस कोल्डड्रिंक में रिंकू ने नींद की दवा मिला रखी थी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद मनीष बेहोश होने लगा. तब तक अंधेरा हो चुका था. मनीष की आंखें झपकने लगीं तो सौरभ अपने असली रूप में आते हुए बोला, ‘‘मनीष, मैं ने तुम्हें किडनैप कर लिया है. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हें काट कर किसी नाले में फेंक दिया जाएगा.’’

मनीष जानता था कि उस का दोस्त सौरभ गुस्सैल और लड़ाकू है, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह पैसों के लिए इतना गिर सकता है. उस की जान खतरे में थी. वह बेहोशी की तरफ बढ़ रहा था. फिर भी जान खतरे में देख कर उस ने हाथ जोड़ कर सौरभ से पूछा, ‘‘तुझे क्या चाहिए भाई? मुझे बता दे. मैं तुझे वह सब कुछ दे दूंगा.’’

‘‘फिलहाल तो तू अपनी जेब में रखे सभी एटीएम कार्ड्स मुझे दे कर उन के पिन नंबर बता दे. अर्द्धबेहोशी की हालत में भी मनीष समझ रहा था कि अगर उस ने एटीएम कार्ड्स और पिन नंबर नहीं दिए तो ये दोनों उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं. लिहाजा उस ने अपने सभी एटीएम कार्ड्स उसे सौंपते हुए उन के पिन नंबर बता दिए. इस के थोड़ी देर बाद मनीष पूरी तरह बेहोश हो गया. मनीष के बेहोश होते ही सौरभ ने उसी शाम एक एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर के पास के ही आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से साढ़े 7 हजार रुपए निकाल लिए. उस समय रिंकू मनीष की निगरानी कर रहा था.

सौरभ ने मनीष के दोनों मोबाइल फोनों को स्विच औफ कर दिया था. रात में मनीष को होश न आ जाए, सौरभ ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. मनीष के परिवार वालों को गुमराह करने के लिए अगले दिन सुबह सौरभ ने उस के दोनों फोन चालू कर दिए. दूसरी ओर मनीष के गायब होने से उस के घर वाले परेशान थे. इस बीच जब मनीष के भाई अनिल का फोन आया तो मनीष होश में नहीं था. फिर सौरभ ने उसे पहले ही बता दिया था कि उसे फोन पर क्या कहना है. इसलिए फोन रिसीव कर के मनीष ने वही कहा जो सौरभ ने कहने के लिए कहा था.

भाई से बात कराने के बाद सौरभ ने उसे पुन: बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उस के बाद दोनों मोबाइल फिर बंद कर दिए. उन्होंने उस के हाथों की अंगूठियां और गले से चेन निकाल ली. योजना के अनुसार उन्होंने एक ही अंगूठी छोड़ दी थी. अब वह उसे ठिकाने लगाने योजना बनाने लगे. योजनानुसार 14 फरवरी, 2014 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे रिंकू अरनौटा गांव जाने को कह कर एक टैंपो ले आया. यह गांव चंबल के बीहड़ में पड़ता है.

अर्द्धबेहोशी की हालत में उन दोनों ने मनीष को उस टैंपो में बैठा दिया. सौरभ मनीष के साथ टैंपो में बैठ गया तो रिंकू मनीष की मोटरसाइकिल ले कर टैंपो के पीछेपीछे चलने लगा. अरनौटा गांव के पास सुनसान जगह पर मनीष को टैंपो से उतार कर उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठा लिया और बसई अरेला गांव के नजदीक आंगन नदी के पैट्रोल पंप के पीछे की झाडि़यों में जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

मनीष की शिनाख्त न होने पाए इस के लिए उन्होंने उस के कपड़ों व चेहरे पर तेजाब डाल कर उसे जला दिया. तेजाब वे अपने साथ ले कर आए थे. मनीष के दाहिने हाथ को पत्थर पर रख कर दूसरा भारी पत्थर पटक कर उस के उस हाथ को शरीर से अलग कर दिया. दूसरे हाथ की भी सारी अंगुलियां तोड़ दीं. एक अंगूठी इन लोगों ने जानबूझ कर उस की अंगुली में छोड़ दी थी कि अगर पुलिस को लाश मिल भी जाए तो वह उसे प्रेम प्रसंग के चलते नफरत में की गई हत्या समझे, लूट की वजह से नहीं. वहां से चलने से पहले सौरभ और रिंकू ने एक भारी पत्थर उठा कर मनीष के सिर पर दे मारा. मनीष की खोपड़ी कई टुकड़ों में बंट गई. लाश को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने के बाद दोनों ने उसे 40-50 फुट नीचे गहरी खाई में फेंक दी और फिर आगरा लौट आए.

फतेहाबाद रोड स्थित एटीएम से एक लाख 10 हजार रुपए अलगअलग कार्डों के जरिए निकाल लिए. इस के बाद उन्होंने मनीष की मोटरसाइकिल (UP Crime news) आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी और घर चले गए. सौरभ ने मनीष एटीएम कार्डों से कुल साढ़े 3 लाख रुपए निकाले. मनीष के गहने और एटीएम से निकाले रुपए दोनों ने आपस में बांट लिए. मनीष की मोटरसाइकिल आगरा कैंट स्टेशन के बाहर जीआरपी ने बरामद कर के इस की सूचना थाना सदर बाजार को दे दी थी, जिसे बाद में मनीष के भाई ने पहचान लिया था. सौरभ और रिंकू के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

दूसरे अभियुक्त रिंकू की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दविश डाली गई, लेकिन वह नहीं मिल सका. कथा संकलन तक वह फरार था. पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही है. मामले की विवेचना एसएसआई रमेश भारद्वाज कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

महिला ने लगाया आरोप काली गाड़ी में हुआ गैंगरेप

Gang Rape Case  : नगेश शर्मा, रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें ब्लैकमेल करना चाहता था. इस के लिए उस ने शालू को मोहरा बनाया, शालू ने दोनों पर बलात्कार का आरोप भी लगाया पर…

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए. सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए. पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

बेहोश करके किया सामूहिक दुष्कर्म

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने का बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया. वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक Gang Rape Case दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा. पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

काम दिलाने के नाम पर ले गया

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था. उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ. बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था. चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

पुलिस को हुआ शालू की बातों पर शक

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया. रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. चूंकि Gang Rape Case दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमनासामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी. जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

पुलिस ने काल डिटेल्स निकलवाई तो किसका नंबर निकला

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी. पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी. काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया. मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था. राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी. नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

अर्द्धबेहोशी की हालत में किया दुष्कर्म

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया. शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया. शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं.

पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी. 66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपनेअपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था. इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है. यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई. इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला. अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवारसहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है

चुनाव लड़वाने के लिए ली दोस्त की बीवी उधार, चेयरमैन बनते ही मुकर गयी

Family Story in Hindi : नसीम अंसारी की 2 पत्नियां थीं, लेकिन आर्थिक तंगी और शराब की लत के चलते वह परेशान रहता था. भोजपुर के चेयरमैन शफी अहमद ने चुनाव लड़ाने के लिए जब उस से उस की दूसरी पत्नी रहमत जहां मांगी तो वह इनकार नहीं कर सका. जब रहमत जहां चुनाव जीत कर चेयरमैन बन गई तो उस ने नसीम को पहचानने से भी इनकार कर दिया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि …

5 अगस्त, 2018 को एक डेली न्यूजपेपर में एक खबर प्रमुखता से छपी, जिस की हैडलाइन ऐसी थी जिस पर जिस की भी नजर गई, उस ने जरूर पढ़ी. न्यूज कुछ इस तरह से थी— ‘भरोसे पर दोस्त ने दोस्त को पत्नी उधार दी थी, चेयरमैन बन गई तो वापस नहीं किया.’

इस न्यूज में उधार में दी गई बीवी वाली बात पढ़ने वाला हर आदमी हैरत में था. इस हैडलाइन की न्यूज में यह भी शामिल था कि महिला के पति की ओर से बीवी को Family Story in Hindi वापस दिलाने के लिए अदालत में अर्जी लगाई गई है. इस न्यूज के हिसाब से एक शादीशुदा व्यक्ति को अपनी बीवी को नेता बनाने का ऐसा खुमार चढ़ा कि उस ने पत्नी को सियासी गलियारों में उतारने के लिए यह सोच कर बीवी अपने दोस्त को उधार दे दी कि वह उसे चुनाव लड़ाएगा. यह संयोग ही था कि उस की बीवी चुनाव जीतने के बाद चेयरमैन बन गई. लेकिन चेयरमैन बनने के बाद पत्नी ने पति को भुला दिया. शर्त के मुताबिक चुनाव जीतने के बाद महिला के पति ने दोस्त से बीवी लौटाने को कहा तो दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. यहां तक कि दोस्त ने महिला के पति को पहचानने तक से इनकार कर दिया. इस पर मामला गरमा गया. नतीजा यह हुआ कि जो बात अभी तक 3 लोगों के बीच थी, वह सार्वजनिक हो गई.

उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर के थाना कुंडा, जसपुर के थाना क्षेत्र में एक गांव है बावरखेड़ा. नसीम अंसारी का परिवार इसी गांव में रहता है. नसीम के अनुसार, मुरादाबाद जिले के भोजपुर निवासी पूर्व नगर अध्यक्ष शफी अहमद के साथ उस की काफी समय से अच्छी दोस्ती थी. उसी दोस्ती के नाते शफी अहमद का उस के घर आनाजाना था. कुछ महीने पहले शफी ने उसे विश्वास में ले कर उस की पत्नी रहमत जहां को भोजपुर से चेयरमैन का चनुव लड़ाने की बात कही. शफी अहमद ने नसीम को बताया कि इस बार चेयरमैन की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है.

जबकि वह सामान्य जाति के अंतर्गत आने के कारण अपनी बीवी को चुनाव नहीं लड़ा सकता. नसीम अपने दोस्त के झांसे में आ गया और उस ने दोस्त की मजबूरी समझते हुए चुनाव लड़ाने के लिए अपनी बीवी उस के हवाले कर दी. लेकिन दूसरे की बीवी को चुनाव लड़ाना इतना आसान काम नहीं था. यह बात नसीम ही नहीं, नसीम की बीवी रहमत जहां भी जानती थी. इस के लिए सब से पहले रहमत जहां का कानूनन शफी अहमद की बीवी बनना जरूरी था. शफी की बीवी का दरजा मिलने के बाद ही वह चुनाव लड़ने की हकदार होती.

चुनाव के लिए इशरत बनी शमी की पत्नी चुनाव लड़ने में आ रही अड़चन को दूर करने के लिए दोनों दोस्तों और रहमत जहां ने साथ बैठ कर गुप्त रूप से समझौता किया. उसी समझौते के तहत शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद शफी अहमद ने अपने पद और रसूख के बल पर जल्दी ही सरकारी कागजातों में रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शा कर उस का आईडी कार्ड और आधार कार्ड बनवा दिया. रहमत जहां का आधार कार्ड बनते ही उस ने चुनाव की अगली प्रक्रिया शुरू कर दी. इस से पहले सन 2012 से 2017 तक भोजपुर के चेयरमैन की कुरसी पर शफी अहमद का ही कब्जा रहा था. शफी को पूरा विश्वास था कि इस बार भी जनता उन्हीं का साथ देगी. लेकिन इस बार आरक्षण के कारण शफी को सपा से टिकट नहीं मिल पाया. वजह यह थी कि इस बार भोजपुर चेयरमैन की सीट पिछड़े वर्ग की महिला के लिए आरक्षित कर दी गई थी.

शफी अहमद सामान्य वर्ग में आते थे. इस समस्या से निपटने के लिए शफी अहमद ने रहमत जहां से कोर्टमैरिज कर के उसे कानूनन अपनी बीवी बना कर निर्दलीय चुनाव लड़वाया. शफी के पुराने रिकौर्ड और रसूख की वजह से रहमत जहां चुनाव जीत गई. उस ने अपनी प्रतिद्वंदी परवेज जहां को 117 वोटों से हरा कर जीत हासिल की थी. रहमत जहां को चेयरमैन बने हुए अभी 8 महीने ही हुए थे कि नसीम अंसारी ने अपनी बीवी रहमत जहां को वापस ले जाने के लिए शफी अहमद से बात की तो बात बढ़ गई. शफी ने इस मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए नसीम से कहा कि वह स्वयं ही रहमत जहां से बात करे.

नसीम ने जब इस बारे में रहमत जहां से बात की तो उस ने साफ कह दिया कि तुम से मेरा कोई लेनादेना नहीं है. मैं ने शफी अहमद से कोर्टमैरिज की है. वही मेरे कानूनन पति हैं. मैं तुम्हें नहीं जानती. रहमत जहां की बात सुन कर नसीम स्तब्ध रह गया. उस ने बच्चों का वास्ता दे कर रहमत से ऐसा न करने को कहा, लेकिन उस ने उस के साथ जाने से साफ इनकार कर दिया. नसीम ने वापस मांगी बीवी इस पर नसीम ने फिर से शफी अहमद से बात की और अपनी बीवी वापस मांगी, लेकिन उस ने रहमत जहां को देने से साफ मना कर दिया. शफी अहमद का कहना था कि उस ने रहमत के साथ निकाह किया है और वह कानूनन उस की बीवी है. उसे जो करना है करे, वह रहमत को वापस नहीं देगा.

उस के बाद नसीम के पास एक ही रास्ता था कि वह अदालत की शरण में जाए. उस ने जसपुर के अधिवक्ता मनुज चौधरी के माध्यम से जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट की अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र दिया, जिस में कहा गया कि शफी अहमद ने उस की बीवी से जबरन निकाह कर लिया. नसीम अंसारी ने अदालत में जो प्रार्थनापत्र दिया, उस में कहा कि वर्ष 2006 में उस का निकाह सरबरखेड़ा निवासी दादू की बेटी रहमत जहां के साथ हुआ था, जिस से उस का एक बेटा और एक बेटी हैं. 17 नवंबर, 2017 की रात 10 बजे शफी अहमद, नईम चौधरी, मतलूब, जिले हसन निवासी भोजपुर, उस के घर आए. उन लोग ने मेरी कनपटी पर तमंचा रखा और मेरी पत्नी को कार में डाल कर ले गए. बाद में शफी अहमद ने उस की बीवी के साथ जबरन निकाह कर लिया. उस के कुछ समय बाद कुछ लोग कार से फिर उस के घर आए और उस के दोनों बच्चों को उठा ले गए.

13 अगस्त, 2018 को इस मामले में अदालत ने पीडि़त नसीम अंसारी के अधिवक्ता मनुज चौधरी की दलील सुनने के बाद थाना कुंडा की पुलिस को रिपोर्ट दर्ज करने के आदेश दिए. नसीम Family Story in Hindi अंसारी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि रहमत जहां ने उसे बिना तलाक दिए ही उस के साथ निकाह किया है, जो शरीयत के हिसाब से गलत है. बदल गई रहमत जहां दूसरी ओर रहमत जहां का कहना था कि उस ने नसीम की रजामंदी से ही शफी के साथ निकाह किया था. आर्थिक तंगी के चलते नसीम ने शफी अहमद से इस के बदले हर माह घर खर्च के लिए 12 हजार रुपए देने का समझौता किया था, जो शफी अहमद उसे हर माह दे रहे हैं. इस में उस का कोई कसूर नहीं. इस वक्त वह कानूनन शफी की पत्नी है और रहेगी. उस के दोनों बच्चे भी उसी के साथ रह रहे हैं, जिन्हें शफी के साथ रहने में कोई ऐतराज नहीं.

बहरहाल, नसीम अहमद की ओर से यह मामला थाना कुंडा में दर्ज हो गया. कुंडा थाने के थानाप्रभारी सुधीर ने सच्चाई सामने लाने के लिए जांच शुरू कर दी. इस मामले पर शुरू से प्रकाश डालें तो कहानी कुछ और ही कहती है. उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर का गांव सरबरखेड़ा थाना कुंडा क्षेत्र में आता है. सरबरखेड़ा मुसलिम बाहुल्य आबादी वाला गांव है. अब से कुछ साल पहले यह गांव बहुत पिछड़ा हुआ था. गांव में गिनेचुने लोगों को छोड़ कर अधिकांश लोग मजदूरी करते थे. लेकिन गांव के पास में नवीन अनाज मंडी बनते ही गांव के लोगों के दिन बहुरने लगे.

अनाज मंडी बनने के बाद मजदूर किस्म के लोगों को घर बैठे ही मजदूरी मिलने लगी तो यहां के लोगों के रहनसहन में काफी बदलाव आ गया. बाद में गांव के पास हाईवे बनते ही जमीनों की कीमतें कई गुना बढ़ गईं. यहां के कम जमीन वाले काश्तकारों ने अपनी जमीन बेच कर अपनेअपने कारोबार बढ़ा लिए. इसी गांव में दादू का परिवार रहता था. दादू के पास जुतासे की नाममात्र की जमीन थी जबकि परिवार बड़ा था, जिस में 5 लड़के थे और 2 लड़कियां. जमीन से दादू को इतनी आमदनी नहीं होती थी कि अपने परिवार की रोजीरोटी चला सके. इस समस्या से निपटने के लिए दादू ने अनाज मंडी में अनाज खरीदने बेचने का काम श्ुरू कर दिया.

दादू गांवगांव जा कर धान, गेहूं खरीदता और उसे एकत्र कर के अनाज मंडी में ला कर बेच देता था. इस से उस के परिवार का पालनपोषण ठीक से होने लगा. दादू का काम मेहनत वाला था. इस काम से आमदनी बढ़ी तो उस के खर्च भी बढ़ते गए. पैसा आया तो दादू को शराब पीने की लत गई. धीरेधीरे वह शराब का आदी हो गया, जिस की वजह से वह फिर आर्थिक तंगी में आ गया. जब घर के खर्च के लिए लाले पड़ने लगे तो वह जुआ खेलने लगा. दरअसल, उस की सोच थी कि वह जुए में इतनी रकम जीत लेगा कि घर के हलात सुधर जाएंगे. लेकिन हुआ उलटा. वह मेहनत से जो कमाता जुए की भेंट चढ़ जाता.

उसी दौरान उस की मुलाकात नसीम से हुई. नसीम में जुआ खेलने की लत तो नहीं थी, लेकिन शराब पीने का वह भी आदी था. नसीम सरबरखेड़ा गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर गांव बाबरखेड़ा का रहने वाला था. नसीम अपने 3 भाइयों में दूसरे नंबर का था. तीनों भाइयों पर जुतासे की थोड़ीथोड़ी जमीनें थीं. तीनों ही अलगअलग रहते थे. कई साल पहले नसीम का निकाह थाना ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद में आने वाले गांव राजपुरा नंगला टाह निवासी सुगरा के साथ हुआ था. समय के साथ सुगरा 6 बच्चों की मां बनी, जिन में 2 लड़के और 4 लड़कियां थीं. थोड़ी सी जुतासे की जमीन से नसीम के बड़े परिवार का खर्च मुश्किल से चलता था. इस के बावजूद नसीम को शराब पीने की गंदी आदत पड़ गई थी. वह शराब पीने के चक्कर में इधरउधर चक्कर लगाता रहता था.

उसी दौरान उस की मुलाकात दादू से हो गई. शराब पीनेपिलाने के चलते दोनों एकदूसरे के संपर्क में आए. जल्दी ही दोनों की दोस्ती हो गई. दोस्ती के चलते दोनों एकदूसरे के घर भी आनेजाने लगे. उस वक्त तक दादू की बेटी रहमत जहां जवानी के दौर से गुजर रही थी. रहमत जहां देखनेभालने में बहुत सुंदर थी. नसीम ने चलाया चक्कर हालांकि नसीम का दादू के साथ दोस्ती का रिश्ता था, लेकिन जब नसीम ने रहमत जहां को देखा तो उस की नीयत में खोट आ गया. वह उसे गंदी नजरों से देखने लगा. रहमत जहां भी नसीम की निगाहों को परखने लगी थी. रहमत जहां को यह मालूम नहीं था कि नसीम शादीशुदा है. लेकिन जब वह उस की नजरों में प्रेमी बन कर उभरा तो उस ने अपने दिल में उस के लिए गहरी जगह बना ली. प्रेम का चक्कर शुरू हुआ तो दोनों घर से बाहर भी मिलने लगे.

दादू की बेटी क्या खिचड़ी पका रही है, उस के घर वालों को इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी. उन्हीं दिनों दादू का बड़ा लड़का बीमार पड़ गया. बीमारी की वजह से उसे कई दिन तक अस्पताल में भरती रहना पड़ा. उस के इलाज के लिए काफी रुपयों की जरूरत थी जबकि उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. कुछ दिन पहले ही नसीम ने अपनी जुतासे की थोड़ी सी जमीन बेची थी. उस के पास जमीन का कुछ पैसा बचा हुआ था. यह बात दादू को भी पता थी. दादू ने अपनी मजबूरी नसीम के सामने रखते हुए मदद करने को कहा तो नसीम ने उस के लड़के के इलाज के लिए कुछ रुपए उधार दे दिए. उन्हीं रुपयों से दादू ने अपने बेटे का इलाज कराया. उस का बेटा ठीक हो गया.

इस के कुछ दिन बाद नसीम ने दादू से अपने पैसे मांगे तो उस ने मजबूरी बताते हुए फिलवक्त पैसे न देने की बात कही. नसीम दादू की मजबूरी सुन कर शांत हो गया. नसीम के सामने दादू से बड़ी मजबूरी आ गई थी. लेकिन दादू की बेटी रहमत जहां को चाहने की वजह से वह दादू से कुछ कह भी नहीं सकता था. यह बात दादू भी समझता था कि नसीम उस की बेटी के पीछे हाथ धो कर पड़ा है लेकिन वह नसीम के अहसानों तले दबा हुआ था, इसलिए उस के सामने मुंह खोल कर कुछ भी नहीं कह सकता था. अपनी मजबूरी के आगे दादू ने नसीम और अपनी बेटी रहमत जहां को अनदेखा कर दिया. दादू की हालत देख कर नसीम भी समझ गया था कि उस के पैसे किसी भी कीमत पर नहीं मिलने वाले.

वह बीच मंझधार में खड़ा था. एक तरफ उस का पैसा था, जो दादू के बेटे की बीमारी पर खर्च हो चुका था. जबकि दूसरी ओर उस की मोहब्बत रहमत जहां थी, जिसे वह दिलोजान से चाहने लगा था. रहमत जहां भी नसीम को दिल से चाहती थी. उसे नसीम के साथ कभी भी कहीं भी जाने से ऐतराज नहीं था. उस वक्त दादू आर्थिक तंगी से गुजर रहा था. उस के पास नवीन अनाज मंडी के सामने हाईवे के किनारे जुतासे की कुछ जमीन थी, जो आर्थिक तंगी के चलते उस ने पहले ही बेच दी. अब उस के पास केवल जुआ खेलने और शराब पीने के अलावा कोई काम नहीं था. ऐसी स्थिति में नसीम ने दादू से अपने पैसों के बदले उस की बेटी का हाथ मांगा तो वह राजी हो गया. रहमत जहां हो गई नसीम की

दादू जानता था कि नसीम और उस की बेटी एकदूसरे को चाहते हैं. अगर उस ने बेटी की शादी उस की रजामंदी के खिलाफ की तो उस का अंजाम ठीक नहीं होगा. यही सोचते हुए उस ने नसीम से अपनी बेटी रहमत जहां का निकाह कर दिया. रहमत जहां से निकाह के बाद नसीम उसे अपनी दूसरी बीवी बना कर अपने घर ले आया. इस में रहमत जहां ने ऐतराज नहीं किया. वह उस के घर में दूसरी बीवी की तरह रहने लगी. नसीम अहमद भी काफी दिनों से शराब का आदी था. शराब और शबाब के चक्कर में उस ने अपनी जुतासे की सारी जमीन दांव पर लगा दी थी. रहमत जहां के प्यार में पड़ कर उस ने उस से निकाह तो कर लिया था, लेकिन जब 2 बीवियां होने से खर्च बढ़ा तो उस का दिमाग घूमने लगा. वह बहुत परेशान रहने लगा.

शफी उर्फ बाबू का पहले से ही बाबरखेड़ा आनाजाना था. वजह यह कि शफी अहमद की एक बुआ का निकाह बाबरखेड़ा में हुआ था. वह अपनी बुआ के घर आताजाता था. शफी अहमद की बुआ का एक लड़का था याकूब, जो नसीम का अच्छा दोस्त था. याकूब के घर पर ही शफी अहमद की जानपहचान नसीम से हुई. नसीम शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुका था. जब उसे यह पता चला कि शफी भोजपुर कस्बे का नगर पंचायत चेयरमैन है तो वह खुश हुआ. वैसे भी शफी उस के दोस्त याकूब का ममेरा भाई था. गांव में अपना रुतबा बढ़ाने के लिए नसीम कई बार उसे अपने घर भी ले गया था. घर आनेजाने के चक्कर में शफी की नजर नसीम की बीवी रहमत जहां पर पड़ी तो वह उस की खूबसूरती पर फिदा हो बैठा.

हालांकि उस वक्त चेयरमैन शफी के घर में पहले से ही एक से बढ़ कर एक 2 खूबसूरत बीवियां थीं. लेकिन रहमत जहां पर उन की नजर पड़ी तो वह अपने पर काबू नहीं रख सके. इसी चक्कर में उन का नसीम के घर आनाजाना और भी बढ़ गया. कुछ ही दिनों में शफी अहमद के स्वार्थ की नींव पर नसीम से पक्की दोस्ती हो गई. जब कभी शफी अहमद अपने यहां पर कोई प्रोग्राम कराते तो नसीम और उस की बीवी को बुलाना नहीं भूलते थे. इसी आनेजाने के दौरान शफी अहमद और रहमत जहां के बीच प्यार का रिश्ता बन गया. मोबाइल ने जल्दी ही शफी अहमद और रहमत जहां के बीच की दूरी खत्म कर दी. रहमत जहां शफी अहमद के बारे में सब कुछ जान चुकी थी. चेयरमैन के घर में पहले से ही 2 बीवियां मौजूद हैं, यह बात रहमत जहां जानती थी, लेकिन शफी अहमद की ओर से इशारा मिलने पर उस का दिल भी मजबूर हो गया.

शफी अहमद के पास धनदौलत, ऐशोआराम, इज्जत सभी कुछ था. रहमत जहां ने कई बार शफी अहमद से निकाह करने को कहा. लेकिन समाज में अपनी साख खत्म होने की बात कह कर शफी ने मना कर दिया था. इस के बावजूद रहमत जहां अपने दिल को समझा नहीं पा रही थी. नसीम के 2 बच्चों की मां बनने के बावजूद रहमत जहां शफी के प्यार में पड़ गई थी. रहमत को शफी अहमद में दिखा भविष्य इत्तफाक से उसी समय भोजपुर नगर पंचायत का चुनाव आ गया. अब तक नगर पंचायत अध्यक्ष की सीट शफी अहमद के पास थी, लेकिन चुनाव करीब आने पर पता चला कि इस बार सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है. शफी अहमद चूंकि सामान्य जाति में आते थे, इसलिए चेयरमैन की सीट उन के हाथ से निकलने का डर था.

शफी अहमद जानते थे कि नसीम की जाति ओबीसी के तहत आती है. बीवी होने के नाते रहमत जहां भी उसी जाति में आती थी. यह बात मन में आते ही शफी अहमद ने तिकड़मबाजी लगानी शुरू की. उन्हें पता था कि अगर नसीम से इस बारे में बात की जाए तो वह उन की बात नहीं टालेगा. हालांकि बात बहुत असंभव सी थी, फिर भी शफी अहमद ने बाबरखेड़ा जा कर नसीम और उस की बीवी रहमत जहां के सामने अपनी परेशानी रखते हुए इस बारे में बात की. पर नसीम ने इस मामले में उन का साथ देने से साफ इनकार कर दिया. नसीम अंसारी जानता था कि रहमत जहां को चुनाव लड़ने के लिए शफी की बीवी बन कर भोजपुर में रहना होगा.

भला वह अपनी बीवी को शफी के पास कैसे छोड़ सकता था. नसीम के दो टूक फैसले के बाद शफी अहमद के सपनों पर पानी फिर गया. फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन की रहमत जहां से मोबाइल पर बात होती रहती थी. शफी ने इस मामले में सीधे रहमत जहां से बात की तो उस के मन में लड्डू फूटने लगे. वह पहले से ही शफी के प्यार में पागल थी. यह बात सुन कर तो उस के दिल में खुशियों के फूल महकने लगे. वह जानती थी कि अगर वह भोजपुर की चेयरमैन बन गई तो उस की किस्मत सुधर जाएगी. शफी अहमद के दिल की बात जान कर उस ने नसीम को प्यार से समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं चाहता था कि उस की बीवी किसी और की बन कर रहे. नसीम को यह भी मालूम था कि ऐसे काम इतनी आसानी से नहीं होते. इस के लिए कानूनी काररवाई पूरी करना जरूरी है. फिर भी उस ने अपनी आर्थिक तंगी के चलते शफी अहमद से समझौता कर के अपनी बीवी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें दे दी.

नसीम अंसारी के अनुसार आपसी समझौते के तहत शफी अहमद ने कहा था कि चुनाव जीतने के बाद वह उस की बीवी उसे वापस कर देगा. उस के बाद जो भी हुआ करेगा, रहमत जहां भोजपुर जा कर काम निपटा लिया करेगी. यह बात नसीम को भी अच्छी लगी. समझौते के बाद नसीम ने अपनी बीवी रहमत जहां को चुनाव लड़ने की अनुमति दे दी. शफी अहमद ने रहमत जहां को अपनी बीवी दर्शाने के लिए उस के साथ कोर्टमैरिज कर ली. कोर्टमैरिज के बाद रहमत जहां कानूनन शफी अहमद की बीवी बन गई. रहमत जहां को बीवी का दरजा मिलते ही शफी अहमद ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं. सन 2017 में जब नामांकन किया जा रहा था, शफी अहमद अपनी नई पत्नी रहमत जहां को पिछड़ी जाति की महिला के रूप में सामने ले आए. यह देख विरोधी उम्मीदवार हैरान रह गए. लेकिन लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उन की बीवी है.

रहमत जहां बन गई चेयरमैन शफी अहमद रहमत जहां को अपनी बीवी बता कर नामांकन कराने कलेक्टरेट पहुंचे तो विपक्षियों में खलबली मच गई. लेकिन शफी ने रहमत जहां के पिछड़ी जाति के प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर के विपक्षियों की नींद उड़ा दी. निकाह के बावजूद लोगों को भरोसा नहीं था कि पिछड़ी की रहमत जहां जीत पाएगी. फिर भी शफी Family Story in Hindi अहमद ने हार नहीं मानी. किसी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो उन्होंने रहमत जहां को निर्दलीय चुनाव लड़ाने का फैसला किया. इस सीट पर वह पिछले 5 सालों से काबिज थे. उन्हें पूरा यकीन था कि  जनता उन का साथ देगी. शफी अहमद ने फिर से चेयरमैन की कुरसी पर कब्जा जमाने के लिए दिनरात मेहनत की. फलस्वरूप वह रहमत जहां के नाम पर चुनाव जीत गए. सन 2017 के लिए नगर पंचायत भोजपुर की चेयरमैन का सेहरा रहमत जहां के सिर पर बंध गया.

अभी इस चुनाव को जीते हुए 8 महीने भी नहीं हो पाए थे कि नसीम अहमद ने अपनी बीवी रहमत जहां को पाने के लिए कोर्ट में दावेदारी ठोक दी. इस से पहले नसीम अंसारी  ने अपनी बीवी वापस करने के लिए शफी अहमद से दोस्ती के नाते प्यार से बात की थी, लेकिन जब मामला ज्यादा उलझ गया तो उसे अदालत की शरण लेनी पड़ी. नसीम के प्रार्थनापत्र पर जसपुर के न्यायिक मजिस्ट्रैट प्रकाश चंद ने थाना कुंडा पुलिस को भोजपुर के पूर्व चेयरमैन शफी अहमद, उन के बहनोई नईम चौधरी, भाई जिले हसन और साथी मतलूब के खिलाफ रहमत जहां और उस के 2 बच्चों का अपहरण करने और बंधक बना कर जबरन निकाह करने के आरोप में केस दर्ज कर के जांच करने के आदेश दे दिए.

कुंडा पुलिस दर्ज केस के आधार पर जांच में जुट गई. इस मामले में नसीम अंसारी का कहना था कि शफी अहमद ने उस की आर्थिक तंगी का लाभ उठा कर उस से उस के बीवीबच्चों को छीन लिया. वह अपने बीवीबच्चों को हासिल करने के लिए अंतिम सांस तक लड़ेगा. कई पेंच हैं मामले में वहीं दूसरी ओर नसीम अहमद की बीवी रहमत जहां का कहना था कि उस के निकाह के कुछ समय बाद ही नसीम को शराब पीने की लत पड़ गई थी. जिस के चलते उस ने अपनी जुतासे की पुश्तैनी जमीन भी बेच दी थी. उस के बाद उसे अपने 2 बच्चे पालने के लिए भी भुखमरी के दिन देखने पड़े. रहमत जहां के अनुसार उस ने नसीम को कई बार समझाने की कोशिश की लेकिन उस ने उस की एक नहीं सुनी. उस ने नसीम के शराब पीने का विरोध किया तो उस ने सन 2010 में उसे तलाक दे दिया था. नसीम के तलाक देने के बाद उस ने अपने दोनों बच्चों को साथ ले कर अपने पिता दादू के गांव सरबरखेड़ा में जा कर दिन गुजारे.

रहमत जहां का कहना था कि नसीम के तलाक देने के बाद उस ने 2011 में भोजपुर निवासी शफी अहमद से निकाह कर लिया. उस के बाद भी वह काफी दिनों तक अपने मायके में ही रही. बाद में वह चुनाव लड़ कर चेयरमैन बन गई तो नसीम के मन में लालच आ गया. नसीम अंसारी ने शफी अहमद से अपने खर्च के लिए कुछ रुपयों की मांग की, जिस के न मिलने पर उस ने यह विवाद खड़ा कर दिया. रहमत जहां का कहना था कि उस ने शफी अहमद के साथ निकाह किया है. नसीम उसे पहले ही तलाक दे चुका था. जिस के बाद उस का नसीम के साथ कोई भी संबंध नहीं रह गया था.

फिलहाल कुंडा पुलिस मामले की जांच कर रही है. रहमत किस की होगी, यह अभी भविष्य के गर्त में है.

 

Child Murders : लंदन में रची दत्तक पुत्र की हत्या की साजिश

Child Murders : बाइक सवारों ने कार को टक्कर मारी. कार के रुकने के बाद बाइक सवारों ने 11 वर्षीय गोपाल को कार से बाहर खींच लिया. हरसुखभाई करदानी ने गोपाल को बचाने की कोशिश की. वह भी तुंरत कार से बाहर निकल आया. उस के विरोध करने पर हमलावरों ने दोनों पर ही चाकू से हमला कर दिया. दोनों बुरी तरह से जख्मी हो गए थे. उन्हें उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर हमलावर फरार हो गए थे.

गोपाल का जख्म काफी गहरा था. कुछ समय में वहां से गुजरते रिक्शा चालक ने दोनों घायलों को सड़क किनारे घायल अवस्था में पाया तो वह उन्हें अस्पताल ले जाया गया. वहां उन का उपचार शुरू किया गया. इलाज के 5 दिन बाद 11 वर्षीय गोपाल की मौत हो गई. उस के हफ्ते भर बाद हरसुखभाई की भी अस्पताल में मौत हो गई थी.

गुजरात के छोटे से पिछड़े इलाके में रहने वाले गरीब हरसुखभाई करदानी ने उस समय राहत की सांस ली थी, जब उस की पत्नी अल्पा के 8 वर्षीय छोटे भाई गोपाल को एक अमीर विदेशी जोड़े ने गोद ले लिया था. जिन्होंने उसे गोद लिया था, वे वैसे तो भारत के ही रहने वाले निस्संतान दंपति थे, लेकिन ब्रिटेन में रहते थे. पति कंवलजीत सिंह रायजादा हीथ्रो का एक कर्मचारी था. जबकि उस की पत्नी आरती धीर चैरिटी का काम करती थी. हालांकि उन की उम्र में काफी अंतर था. वे दिखने में मांबेटे की तरह लगते थे.

सच तो यह था कि करदानी दंपति गोपाल के गोद लिए जाने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद बेहद खुश था. क्योंकि वे अपने ऊपर से उस के लालनपालन की बड़ी जिम्मेदारी का बोझ उतरा हुआ महसूस कर रहे थे. आर्थिक तंगी का सामना करते हुए बच्चे की जैसेतैसे परवरिश हो रही थी.

गोपाल उन के साथ 2 साल की उम्र से ही रह रहा था. मां ने उसे छोड़ दिया था और पिता बीमार रहते थे. उस हालत में वह इधरउधर गली और पड़ोसियों के घरों में अनाथों की तरह घूमता रहता था. इस हाल में देख मोहल्ले के लोगों ने कुछ दिनों तक उस की देखभाल की, फिर उन्होंने केशोद में पति के साथ रह रही उस की बड़ी विवाहित बहन अल्पा को सौंप दिया.

उसे ब्रिटेन में पश्चिमी लंदन स्थित हनवेल के रहने वाले अप्रवासी भारतीय दंपति आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया था. उन्होंने गोपाल के गोद लेने की सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी कर ली थी और कानून का पालन करते हुए उन्होंने सारे दस्तावेज भी बना लिए थे.

तब आरती धीर 50 साल की थी और उस का पति आधी उम्र का था. दोनों ने साल 2013 में शादी कर ली थी. शादी का छोटा सा समारोह ईलिंग टाउन हाल के लंचटाइम रजिस्टर औफिस में हुआ था. दरअसल, उन्होंने अपना वीजा बढ़वाने के लिए यह शादी की थी.

उस के बाद उन्होंने बच्चा गोद लेने की योजना बनाई थी. उस के लिए वे साल 2015 में गुजरात आए थे. उन्होंने एक बच्चा गोद लेने के लिए स्थानीय अखबारों में विज्ञापन दिया था. इस बारे में केशोद के रहने वाले हरसुखभाई को भी किसी ने बताया था.

विज्ञापन में लिखा था कि भारतीय मूल का ब्रिटिश जोड़ा किसी अनाथ बच्चे को लंदन में रहने के लिए गोद लेना चाहता है. हरसुखभाई का विज्ञापन के अनुसार विदेशी जोड़े से संपर्क किया.

वैसे कंवलजीत सिंह रायजादा गुजरात के मालिया हटिना का रहने वाला था. गोपाल का जन्म भी वहीं हुआ था. रायजादा के पिता सहकारी बैंक की मालिया हटिना शाखा में मैनेजर थे. मालिया हटिना में रायजादों का एक पड़ोसी था, उसे जब पता चला कि कंवलजीत की पत्नी आरती धीर किसी बच्चे को गोद लेना चाहती है, तब उस के दिमाग में अचानक गोपाल का चेहरा कौंध गया. उसे पता था कि वह बच्चा अनाथ है और उन दिनों अपने बहनोई हरसुखभाई करदानी के साथ केशोद में रह रहा है.

जब धीर और रायजादा आधिकारिक तौर पर शादी के तुरंत बाद 2014 में मालिया हटिना में उन से मिले तो उस की बहन और बहनोई गोद देने के लिए सहमत हो गए.

तब उन्हें रायजादा की पत्नी धीर ने कहा कि वह गोपाल की अपने बेटे की तरह परवरिश करेगी. उस के साथ अच्छा व्यवहार बर्ताव रखेगी और उसे एक अच्छा ब्रिटिश नागरिक बनाएगी और उस का जीवन खुशियों से भर देगी.

गरीबी की वजह से एनआरआई को दिया बच्चा गोद

इस आश्वासन को सुन कर वे काफी खुश हो गए. साथ ही उन्होंने यह भी पाया कि जिन्हें वह बच्चा गोद दे रहे हैं, वह उन के इलाके से ही रायजादा समाज के स्थानीय परिवार हैं.

हरसुखभाई अपने साले गोपाल का अभिभावक था. वह विदेशी जोड़े पर विश्वास कर गोपाल को गोद देने के लिए राजी हो गया. गोद लेने की कागजी काररवाई पूरी कर ब्रिटिश जोड़ा ब्रिटेन लौट गया. वे हरसुख को भरपूर आश्वासन दे गए कि गोपाल को अपने साथ रखने के लिए विदेशी कानूनी प्रक्रिया पूरी होते ही वे जल्द आ कर गोपाल को अपने साथ ले जाएंगे.

हरसुखभाई ने जो सोचा था, वैसा नहीं हुआ. उन के इंतजार में 2 साल गुजर गए, लेकिन वे गुजरात नहीं आए. हां, बीच बीच में उन दोनों ने गोपाल की खोजखबर जरूर ली और उस के खर्च आदि के लिए छोटीमोटी रकम भेजते रहे.

आखिरकार इंतजार की घडिय़ां खत्म होने को आ गईं. साल 2017 के फरवरी माह में हरसुखभाई को गोपाल के ब्रिटेन ले जाने की सूचना मिली. हरसुखभाई खुश हो गया कि गोपाल अब अपने गोद लिए हुए मांबाप के पास कुछ दिनों के भीतर ही चला जाएगा.

उन्होंने उसे गोपाल को वीजा लगवाने के लिए जूनागढ़ जाने को कहा. केशोद उसी जिले में आता है. वहां आनेजाने पर होने वाले खर्च आदि के लिए कुछ पैसे भी भेजे.

गोपाल को तो मानो खुशी का ठिकाना नहीं था. ब्रिटेन जाने को ले कर वह इतना उत्साहित था कि उस ने अपने जीजा से कह कर एक अंगरेजी गुजराती पौकेट डिक्शनरी मंगवा ली थी. वह गर्व से भरा हुआ था. उस ने स्कूल में सभी सहपाठियों को यह बता दिया था. अपने शिक्षकों से भी कहा था कि उसे अब नई स्कूल ड्रेस की जरूरत नहीं है, क्योंकि वह जल्द ही इंग्लैंड जा रहा है.

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वह गोपाल के वीजा कागजात तैयार करने के लिए लगभग 100 मील दूर राजकोट शहर गए थे. वहां से काम पूरा कर गोपाल अपने बहनोई हरसुखभाई के साथ 8 फरवरी, 2017 को अपने शहर केशोद लौट रहे थे. रात के करीब 9 बज चुके थे. वे एक कार में सवार थे. वे अभी अपने घर पहुंचने वाले ही थे कि रास्ते में बाइक पर सवार 2 लोगों ने कार रुकवा कर उन के ऊपर चाकू से जानलेवा हमला कर दिया था.

वे गोपाल का अपहरण करना चाहते थे. हमलावरों ने बाइक से टक्कर मार कर रोक दी. फिर हमलावरों ने गोपाल को चाकू से गोद दिया. गोपाल को बचाने की जब हरसुखभाई ने कोशिश की तो हमलावरों ने उस पर भी चाकू से वार किए. इलाज के दौरान दोनों की ही अस्पताल में मृत्यु हो गई.

इस मामले को केशोद के थाने में दर्ज किया गया. वहां से पुलिस इंसपेक्टर अशोक तिलवा ने इस की जांचपड़ताल की. घटना की तहकीकात के बाद नीतीश नाम के व्यक्ति की गिरफ्तारी हुई. उस से पूछताछ होने पर इस वारदात में भाड़े पर शामिल किए गए दोनों हमलावरों के नाम भी सामने आए. वे हमलावर उन के द्वारा ही 55 लाख रुपए दे कर बुलाए गए थे.

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई, तब एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई. नीतीश ने बताया कि उस ने ब्रिटेन में रहने वाले दंपति कंवलजीत सिंह रायजादा और आरती धीर के इशारे पर इस वारदात को करवाया. पूछताछ में नीतीश मुंड ने यह भी बताया कि गोपाल की हत्या की 2 असफल कोशिशें पहले भी हो चुकी थीं.

हत्या से 4 हफ्ते पहले उस ने नीतीश को एक फरजी आईडी पर लिया गया सिम कार्ड खरीदने के लिए 25,000 रुपए भी भेजे थे, ताकि साजिश में शामिल दूसरे लोगों के साथ किसी का फोन काल नहीं जुडऩे पाए.

आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा का नाम सुन कर हरसुखभाई की पत्नी अल्पा भी चौंक पड़ी. कारण, यह वही जोड़ा था, जिस ने उस के भाई गोपाल को गोद लिया था. यह बात उस ने पुलिस को भी पूछताछ के दरम्यान बताई.

वह इस बात से आश्चर्यचकित थी कि आखिर उस ने उसे क्यों मरवाया? उन्हें उस के पति से क्या शिकायत थी, जो पति को भी मरवा दिया?

अल्पा ने पुलिस को बताया कि नीतीश मुंड की गिरफ्तारी के बाद कंवलजीत के पिता उस से मिलने आए थे, जो स्थानीय बैंक में मैनेजर हैं. उन्होंने उसे पुलिस को यह बताने के लिए पैसे की पेशकश की थी कि मुंड निर्दोष है. हत्या की साजिश के सिलसिले में पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया था. बाद में उन की जमानत हो गई थी.

लंदन से रची गई थी हत्या की साजिश

पुलिस यह भी पता लगा रही थी कि इस घटना के तार और किनकिन लोगों के साथ जुड़े हो सकते हैं? इस में किन की क्या भूमिका हो सकती है? गोद लेने वाले दंपति की मंशा क्या थी? मासूम गोपाल का अपहरण क्यों किया जा रहा था?

बहुत जल्द ही इस का राज पकड़े गए नीतीश मुंड के बयानों से खुल गया. पुलिस जांच के अनुसार नीतीश मुंड इस मामले का एक बिचौलिया था, जो पहले हनवेल में आरती धीर और कंवलजीत के फ्लैट पर रहता था. गुजरात में पुलिस के सामने उस का एक कुबूलनामा कलमबद्ध किया गया था, जिस में दंपति को Child Murders हत्या की साजिश में शामिल बताया गया था.

गोपाल की मौत का कारण वही एनआरआई दंपति था, जिस ने उसे 2 साल पहले गोद लिया था. पुलिस ने अल्पा की तरफ से दर्ज रिपोर्ट में उन पर ही 11 वर्षीय दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या करने का आरोप लगाया गया. यह दंपति गोपाल की आकस्मिक मौत दिखा कर उस के नाम की गई बीमा के मुआवजे की एक बड़ी धनराशि हड़पना चाहते थे. लंदन में रहने वाले दंपति ने गोपाल को गोद ले कर उस का डेढ़ लाख पाउंड अर्थात एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए का जीवन बीमा करा लिया था.

उस की हत्या करवाने के लिए दंपति ने नीतीश मुंड नामक व्यक्ति से मिल कर साजिश रची थी, जो वीजा समाप्त होने और भारत लौटने तक लंदन में रहता था.

पुलिस की प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह ने नीतीश मुंड के साथ मिल कर गोपाल को गोद लेने, उस का बीमा करवाने और फिर उसे मार डालने की साजिश रची थी. नीतीश लंदन में रहता था और अकसर गुजरात आताजाता था.

पुलिस जांच में गोपाल की गतिविधियों की भी जानकारी मिली. उस की बड़ी बहन अल्पा ने बताया कि वह बड़ा हो कर पुलिस औफिसर बनना चाहता था. वह बौलीवुड फिल्म ‘सिंघम’ से बहुत प्रभावित था. फिल्म में बाजीराव सिंघम की नकल करता हुआ चोर पुलिस का खेल खेला करता था. वह अपने दोस्तों पर चिल्लाता था, ‘बचना असंभव है!’

वह पढ़ाई में अव्वल था. उसे कार्टून बनाना बहुत पसंद था. उस ने महात्मा गांधी के चित्र के लिए स्कूल में पुरस्कार भी जीता था. उस के दोस्त, शिक्षक, गांव के सभी लोग उस के साथ हुई आकस्मिक घटना को ले कर हैरान थे.

उस के हमलावरों को पकडऩे में पुलिस ने तत्परता दिखाई. उस पर हमला करने वालों की यह सोच गलत साबित हुई कि एक गरीब छोटे लड़के का जीवन कोई मायने नहीं रखता है और भारत के पश्चिमी तट पर पुलिस उन्हें नहीं पकड़ पाएगी. लेकिन पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए एक एक कर 5 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया. उन पर हत्या और अपहरण की धाराएं लगाई गईं और मुकदमा चलाया गया.

लेकिन गोपाल की मौत की गूंज गुजरात के पुलिस महकमे तक ही नहीं गूंजी, बल्कि 4 हजार मील से अधिक दूर ब्रिटेन के पश्चिम लंदन में हैनवेल में भी सुनाई दी. यह वह जगह है, जहां हीथ्रो की पूर्व कर्मचारी आरती धीर और उन के पति कंवलजीत सिंह रायजादा कतार से बनी विक्टोरियन घरों की एक पंक्ति के अंत में रहते थे.

लंदन में गूंजी गुजरात में कराई गई हत्याओं की गूंज

उन का घर एक आधुनिक ब्लौक की पहली मंजिल पर था. वे इस चौंकाने वाली घटना से इलाके में रह रहे अन्य लोगों की निगाह मेें तब आ गए, जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया.

उन्हें आसपास की दुकान वाले अच्छी तरह जानते पहचानते थे और आसपास के डाकघर में अपने बिलों का भुगतान करने के लिए जाते रहते थे. उन्हें सभी लोग एक अच्छे दंपति के तौर पर जानते थे. उन का व्यवहार लोगों के साथ अच्छा था और वे मिलनसार हो कर भी अपने काम से ही अधिक मतलब रखते थे.

हां, उन के बीच उम्र के अंतर और कदकाठी को देख कर कुछ समय पहले लोगों को उन के मांबेटा होने का संदेह हो जाता था, लेकिन धीरेधीरे सभी उन के पतिपत्नी होने का सच जान चुके थे. उन के बारे में कहने के लिए किसी के पास कोई बुरा शब्द नहीं था.

उन के बारे में लोगों के प्रति अच्छी धारणा थी. वह स्तन कैंसर चैरिटी के लिए धन जुटाने का काम करते थे. यही उन की इलाके में पहचान थी. उन के बारे में गुजरात पुलिस को सिर्फ यही पता था कि वे  एक साधारण गली के एक साधारण फ्लैट में एक साधारण जीवन जी रही हैं.

गुजरात पुलिस के अनुसार उन्होंने गोपाल पर ली गई जीवन बीमा पौलिसी से डेढ़ लाख पाउंड का दावा करने की योजना बनाई थी. यह योजना आरती धीर ने अपने पति कंवलजीत की मदद से बनाई थी. वे चाहते थे कि गोपाल की हत्या के बाद उस की लाश नाले में पड़ी बरामद हो ताकि बीमे की रकम के लिए दावेदारी की जा सके. इस योजना के तहत आरती धीर ने उसे मारने के लिए एक गिरोह की मदद ली थी.

गुजरात पुलिस को हैरानी इस बात की भी थी कि गोपाल की हत्या की साजिश लंदन के एक हाउसिंग एसोसिएशन के फ्लैट से रची गई थी. उन के फ्लैट की खिड़कियों में भारतीय शैली में परदे लटके हुए थे, साथ ही दरवाजे की चौखट पर नींबू और सूखी मिर्च झूल रहे थे. वहां भारतीय संस्कृति की झलक साफ देखी जा सकती थी. जबकि उस पर भारत में हत्या और अपहरण की साजिश सहित 6 आरोप थे.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा वल्र्डवाइड फ्लाइट सर्विसेज (डब्ल्यूएफएस) के लिए हवाई माल ढुलाई का काम करते थे. हालांकि कंपनी से पूछताछ के बाद मालूम हुआ कि उन को 2016 में ‘अनुबंध के उल्लंघन’ के चलते बरखास्त कर दिया गया था.

आरती वहां भी काफी लोकप्रिय थी. उस के साथ काम करने वाली एक सहकर्मी ने लंदन पुलिस को पूछताछ में बताया कि उस के साथ काम करना और साथ रहना मजेदार था.

आरती धीर और कंवलजीत रायजादा के खिलाफ पहली नजर में ही आपराधिक साजिश का मामला सामने आया. उसे गोद लेने से ले कर बीमा संबंधी दस्तावेजों के सबूत के तौर पर जुटाया गया. इस आधार पर ही मामला मुख्य मजिस्ट्रैट और उच्च न्यायालय तक ले जाया गया.

गोपाल को गोद लेने का राज आया सामने

गोपाल को गोद लेने के दस्तावेज तैयार किए जाने के ठीक एक महीने बाद ही 26 अगस्त, 2015 को आईसीआईसीआई प्रूडेंशियल लाइफ इंश्योरेंस कंपनी के साथ बीमा के लिए आवेदन किया गया था. इस कंपनी का मुख्यालय मुंबई में है.

गोपाल के लिए ली गई जीवन बीमा पौलिसी का नाम ‘वेल्थ बिल्डर’ था. इस के जरिए ‘प्रस्तावित’ या ‘नामांकित’ को वार्षिक प्रीमियम के मूल्य का 10 गुना भुगतान किया जाता है. इस की प्रस्तावक आरती धीर थी. इस का अर्थ यह था कि गोपाल की मौत पर बीमा का लाभ आरती को ही मिलता.

जूनागढ़ के एसपी सौरव सिंह के अनुसार इस के लिए सिर्फ वार्षिक प्रीमियम 15 हजार पौंड (15 लाख 75 हजार रुपए) की 2 किस्तें ही दी गई थीं. उन की बीमा राशि बहुत बड़ी थी. वे यह अच्छी तरह से जानते थे कि गोपाल की मृत्यु की स्थिति में उसे बीमा राशि का 10 गुना भुगतान मिल जाएगा. इस अनुसार आरती धीर को गोपाल की मृत्यु के बाद करीब एक करोड़ 57 लाख 50 हजार रुपए (डेढ़ लाख पाउंड) मिलते.

गुजरात पुलिस के सामने लंदन में बैठे मुख्य आरोपियों के प्रत्यर्पण के जरिए भारत ला कर पूछताछ करने की मुख्य समस्या थी ताकि उन्हें यहां मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया जा सके.

कारण, दंपति ने लंदन पुलिस को बीमा भुगतान के लिए गोपाल को मारने की योजना बनाने से साफतौर पर इनकार कर दिया था. साथ ही ब्रिटेन ने मानवाधिकार के आधार पर भारत में मुकदमे का सामना करने के लिए जोड़े को प्रत्यर्पित करने के अनुरोध को खारिज कर दिया था. जबकि इसे ले कर गुजरात पुलिस ने भारत सरकार से अनुमति मांगी थी और भारत सरकार ने अपील करने की अनुमति दे दी थी.

भारत सरकार के अनुरोध के बाद जून 2017 में यूके में दोनों गिरफ्तार तो कर लिए किए गए, लेकिन 2 जुलाई, 2017 को वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रैट कोर्ट के एक न्यायाधीश ने मानवाधिकार के आधार पर उन के प्रत्यर्पण से इनकार कर दिया.

अपने फैसले में वरिष्ठ जिला न्यायाधीश एम्मा अर्बुथनौट ने पाया कि उन के प्रत्यर्पण को उचित ठहराने के लिए पर्याप्त सबूत थे. परिस्थितियों के मुताबिक पहले दृष्टिकोण में मामला आरती धीर और उस के पति कंवलजीत सिंह रायजादा द्वारा मिल कर काम करने तथा अन्य लोगों के साथ मिल कर अपराध करने के कई साक्ष्य उजागर हो चुके थे.

इस वजह से नहीं हो पाया आरोपियों का यूके से प्रत्यर्पण

इस के विपरीत गुजरात में दोहरे हत्याकांड की सजा पैरोल के बिना आजीवन कारावास है. इसे देखते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्यर्पण ब्रिटेन के कानून के तहत जोड़े के मानवाधिकारों के विपरीत होगा. इस कारण यदि प्रत्यर्पित किया जाता है तो जोड़े को ‘एक अपरिवर्तनीय सजा’ दी जा सकती है, जो ‘अमानवीय और अपमानजनक’ होगी.

इस तरह से गोपाल और उस के बहनोई की हत्या का मामला 2 देशों के बीच प्रत्यर्पण कानून और मानवाधिकारों में उलझने के कारण ठंडे बस्ते में चला गया. दंपति लंदन में आजाद घूमते रहे और दूसरे धंधे में लग गए.

हालांकि भारत के प्रत्यर्पण अनुरोध को 2019 में अस्वीकार किए जाने के बाद 2020 में लंदन के हाईकोर्ट में एक अपील की गई, लेकिन वह भी असफल हो गई.

आरती और कंवलजीत के काले धंधे के कारनामों में नशीली दवाओं की तस्करी, मनी लौंड्रिंग मुख्य थे. वे गुजरात में हत्या के मामले में भले ही बच गए, लेकिन आस्ट्रेलिया में नशीली दवाओं की तस्करी के मामले में पकड़े जाने के बाद वे अंतरराष्ट्रीय Child Murders कानून के शिकंजे में आ चुके थे. उन पर आस्ट्रेलिया में आधा टन से अधिक कोकीन निर्यात करने का आरोप लग चुका था.

दरअसल, मई 2021 में सिडनी पहुंचने पर आस्ट्रेलियाई सीमा बल द्वारा कोकीन पकड़े जाने के बाद राष्ट्रीय अपराध एजेंसी (एनसीए) ने आरती और कंवलजीत की पहचान की थी. नशीली दवाओं को यूके से एक वाणिज्यिक उड़ान के माध्यम से भेजा गया था और 6 धातु के टूलबौक्स के भीतर छिपाया गया था.

इस मामले की सुनवाई लंदन की कोर्ट में होने के बाद कई आपराधिक मामलों का खुलासा होने लगा था. उन में ही बीमा की राशि हासिल करने के लिए दत्तक पुत्र की हत्या का मामला भी था.

लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट ने सुनवाई के सिलसिले में पाया कि उन्हें भारत में दत्तक पुत्र गोपाल की हत्या के लिए भी तलाश है. वे निर्यात के 12 और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में दोषी हैं.

इस सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने दंपति के कई आपराधों में लिप्त होने और उन की काम करने में आपराधिक गतिविधियों की तुलना लोकप्रिय अपराध नाटक ‘ओजार्क’ और ‘ब्रेकिंग बैड’ से की.

इस बाबत तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार अभियोजक ह्यू फ्रेंच ने उन्हें एक वैसे ‘क्रूर और लालची’ जोड़े के रूप का विवरण दिया, जो अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में सक्रिय बना हुआ था. उन्हें अंतरराष्ट्रीय संगठित अपराध की दुनिया में काम करने वाला पाया गया.

एनसीए के जांचकर्ताओं ने दोनों पर यूके से नशीली दवाएं सिडनी एक कामर्शियल उड़ान के जरिए भेजने का आरोप लगाया था. 6 टूलबौक्स में 514 किलोग्राम कोकीन पाई गई थी.

दंपति ने ड्रग्स की तस्करी के लिए ही जून 2015 में विफ्लाई फ्रेट सर्विसेज नामक एक कंपनी बनाई थी. पतिपत्नी ही इस के डायरेक्टर थे. जांच में कंवलजीत की अंगुलियों के निशान धातु के टूलबौक्स की रैपिंग पर पाए गए थे और टूलबौक्स के आर्डर की रसीदें दंपति के घर से बरामद हुई थीं.

काली कमाई से जुटाए करोड़ों रुपए

इस संबंध में एनसीए ने खुलासा किया कि जून 2019 से आस्ट्रेलिया को 37 खेप भेजी गईं, जिन में से 22 नकली थीं और 15 में कोकीन थी. उन्होंने हवाई अड्डे से माल ढुलाई प्रक्रियाओं की बारीक जानकारी हीथ्रो में एक उड़ान सेवा कंपनी में नौकरी करते हुए सीखी थी. एनसीए के वरिष्ठ जांच अधिकारी पियर्स फिलिप्स के अनुसार आरती धीर और कंवलजीत सिंह रायजादा ने यूके से आस्ट्रेलिया तक लाखों पाउंड मूल्य की कोकीन की तस्करी के लिए हवाई माल ढुलाई उद्योग के अपने अंदरूनी जानकारी का इस्तेमाल किया था, जहां वे जानते थे कि कैसे अधिक से अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है.

उन्होंने अपने काले धंधे की कमाई के पैसे और धन को छिपाने के भी सफल प्रयास किए. अवैध मुनाफे की कमाई को नकदी के रूप घर और अनाज आदि रखने के कंटेनरों में रखा. साथ ही सोना और चांदी भी खरीदी. जैसेजैसे उन की काली कमाई बढ़ती जा रही थी, वैसेवैसे उन का लालच और अधिक बढ़ता जा रहा था.

दोनों को जांच टीम ने 21 जून, 2021 को हैनवेल में उन के घर से गिरफ्तार कर लिया था. उन के फ्लैट की तलाशी में 5,000 पाउंड मूल्य की सोने की परत चढ़ी चांदी की छड़ें, घर के अंदर 13,000 पाउंड और बौक्स में 60,000 पाउंड नकद मिले.

इस बारे में पूछताछ में पाया गया कि उन्होंने ईलिंग में 8,00,000 पाउंड में एक फ्लैट और 62,000 पाउंड में एक लैंड रोवर कार भी खरीदी थी.

उन्होंने 2019 से 22 अलगअलग बैंक खातों में लगभग 7,40,000 पाउंड (लगभग 7 करोड़ 77 लाख रुपए) नकद जमा किए थे और उन पर मनी लौंड्रिंग का आरोप लगाया गया था.

इस पूरे मामले पर काम करने वाले 3 एनसीए अधिकारियों ने दंपति के खिलाफ कोर्ट में सारे सबूत जुटा दिए थे. हालांकि दोनों ने आस्ट्रेलिया को कोकीन निर्यात करने और मनी लौंड्रिंग से इनकार किया. बावजूद इस के लंदन की साउथवार्क क्राउन कोर्ट में एक मुकदमे के बाद जूरी द्वारा उन्हें निर्यात के 12 मामलों और मनी लौंड्रिंग के 18 मामलों में 7 साल तक चले मुकदमे के बाद 31 जनवरी, 2024 दोषी ठहराया गया.

अगले रोज 31 जनवरी, 2024 को आरती धीर और उस के पति कंवलजीत रायजादा को 33-33 साल जेल की सजा सुना दी गई.

गुजरात में गोपाल की बहन अल्पा को एक स्थानीय पत्रकार ने फोन कर इस की जानकारी दी. यह सुनते ही अल्पा ने तुरंत अपना टीवी चालू किया और उस के भाई और पति के हत्यारे को जेल की सजा सुनाए जाने पर राहत की सांस ली. दोनों को 33-33 साल जेल की सजा सुनाई गई थी.

कहानी लिखे जाने तक दंपति जेल में थे, लेकिन गुजरात में अल्पा को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उस के भाई और पति की हत्या के मामले को नशीली दवाओं की तस्करी के मामले से कम क्यों आंका गया?

2 भगोड़े एनआरआई को 33 साल की सजा दिए जाने की घटना ने ब्रिटिश के दोहरे मानदंडों को ले कर सवाल खड़े कर दिए कि आखिर हत्या की साजिश से अधिक महत्त्वपूर्ण ड्रग तस्करी क्यों हो गई? गोपाल के परिवार वालों के सामने यह सवाल बना हुआ है कि क्या 2 जनों की कीमत उस से कम थी?

Smuggling : शराब तस्करी से कमाए करोड़ों रुपए

Smuggling  गुजरात पुलिस में कांस्टेबल नीता चौधरी शाही जिंदगी जीने की शौकीन है. उस के पास अनेक लग्जरी गाडिय़ां हैं. एक मामूली सिपाही के पास आखिर कहां से आई करोड़ों रुपए की संपत्ति?

गुजरात पुलिस की भचाऊ लोकल क्राइम ब्रांच को शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा की तलाश थी, जो कच्छ क्राइम ब्रांच के एसआई डी.जे. झाला की वाचलिस्ट में था. एसआई झाला जब से भचाऊ आए थे, तब से उन्होंने युवराज सिंह जडेजा के खिलाफ 5 प्रोहिबिशन (शराब तस्करी) के अपराध दर्ज किए थे, जिन में वह वांटेड था.

उसी बीच 30 जून, 2024 दिन रविवार को एसआई डी.जे. झाला रोज की तरह अपने रूटीन काम में लगे थे, तभी शाम पौने 7 बजे एक सिपाही ने सूचना दी कि साहब, युवराज सिंह जडेजा सफेद रंग की थार से समखियाणी से गांधीधाम की ओर जा रहा है. थोड़ी देर में वह भचाऊ के चोपडवा ब्रिज से गुजरने वाला है.

युवराज क्यों चढ़ाना चाहता था पुलिस पर थार

एसआई झाला ने यह जानकारी पूर्वी कच्छ के एसपी सागर बागमार को दी तो उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि जैसे भी हो, युवराज सिंह बच कर नहीं जाना चाहिए. फिर तो पल भर में एसआई झाला ने 6 पुलिसकर्मियों की 3 टीमें बना कर जांच करना शुरू कर दिया.

ये पुलिस टीमें भचाऊ के चोपड़वा ब्रिज के नीचे प्राइवेट कार से चोपड़वा ब्रिज पर पहुंच गए और युवराज सिंह की उस थार के आने का इंतजार करने लगे. रात के ठीक सवा 8 बजे पुलिस को सफेद रंग की थार आती दिखाई दी. उस थार को आते देख कर पुलिस टीमें चौकन्नी हो गईं. पूरी रफ्तार से आ रही थार को रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड्स लगा कर रास्ता ब्लौक कर दिया. पुलिस के पास 3 प्राइवेट वाहन थे. बैरिकेड्स पर रुकने के बजाय युवराज सिंह ने बैरिकेड्स को तोड़ते हुए पुलिस के एक खाली वाहन को टक्कर मारी.

अब तक युवराज सिंह ब्रिज के बीचोबीच पहुंच चुका था. तब तक पुलिस के वाहनों ने उसे आगे और पीछे से घेर लिया. एसआई डी.जे. झाला कांस्टेबल भवानभाई के साथ उतर कर सड़क के बीचोबीच खड़े थे. युवराज सिंह की थार को आते देख सिपाही भवानभाई ने अपना डंडा दिखा कर चिल्लाते हुए उसे गाडी रोकने को कहा. युवराज सिंह ने अपनी गाड़ी रोकने के बजाय सीधे एसआई झाला और सिपाही भवानभाई की ओर मोड़ दी.

उसे डराने के लिए युवराज सिंह की थार के बोनट पर फायर कर दिया.

गोली बोनट पर लगने के बजाय बम्पर लगी थी. फिर भी गोली चलाने से युवराज सिंह घबरा गया था और थार रोक दी. पुलिस टीमों ने दौड़ कर थार को घेर लिया. युवराज सिंह ने थार तो रोक दी थी, पर वह न तो दरवाजा खोल रहा था और न ही शीशा खोल रहा था. थार के शीशे काले थे. तब एक पुलिस वाले ने ड्राइवर के बगल वाले कांच को अपने डंडे से शीशा तोड़ दिया. शीशा तोड़ कर पुलिस वाले युवराज सिंह को पकड़ कर बाहर खींच रहे थे, तभी एसआई झाला की नजर ड्राइविंग सीट की बगल वाली सीट पर बैठी एक महिला पर पड़ी. उन्हें पता नहीं था कि यह महिला कौन है. वह उस से कुछ पूछते, तभी एक सिपाही ने कहा, ”अरे यह तो लेडी कांस्टेबल नीताबेन चौधरी है. इस की ड्यूटी तो इस समय सीआईडी क्राइम ब्रांच में है.’’

डीजे झाला ने नीता चौधरी को थार से उतरने के लिए कहा. वह उस समय शराब के नशे में धुत थी. थार से बाहर आते ही नीता चौधरी ने एसआई झाला से कहा, ”साहब, मुझे जाने दीजिए.’’

जब एसआई झाला ने कोई जवाब नहीं दिया तो नीता चौधरी ने विनती करते हुए कहा, ”साहब, मेरी युवराज सिंह से दोस्ती थी. मैं आ रही थी तो यह रास्ते में मिल गया, इसीलिए हम दोनों साथ थे.’’

एसआई झाला ने तुरंत पुलिस अधिकारियों को फोन कर के इस घटना की सूचना दे दी थी. शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला सुरेंद्रनगर की तहसील पालनपुर के नजदीक के गांव बादरपुर की रहने वाली थी. नौकरी से छुट्टी ले कर वह अपने गांव गई थी.

नीता की थार गाड़ी में कहां से आई थी शराब

पुलिस ने जब नीता चौधरी और युवराज सिंह को पकड़ा तो तलाशी में उन की थार से भारतीय शराब (Smuggling) की 16 बोतलें मिली थीं. चूंकि गुजरात में शराब बंदी है, इसलिए शराब लाना तो क्या, वहां शराब पीना भी अपराध है. युवराज सिंह और नीता चौधरी को शराब तस्करी और पुलिस पर गाड़ी चढ़ाने की कोशिश के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था. इस के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से नीता चौधरी को जमानत मिल गई थी, जबकि युवराज सिंह पर तो वैसे भी तमाम केस थे, इसलिए उस की जमानत होने का सवाल ही नहीं था.

इस के बाद पुलिस ने दौड़भाग कर के सेशन कोर्ट में नीता की जमानत रद करने की अरजी दी तो सेशन कोर्ट ने पुलिस वालों पर थार चढ़ाने की कोशिश और एक सिपाही द्वारा शराब की तस्करी को गंभीर मानते हुए नीता चौधरी की भी जमानत रद कर दी. जमानत रद होने के बाद नीता चौधरी फरार हो गई. इस के बाद कच्छ पुलिस उस की तलाश में लग गई. पुलिस जब एक सप्ताह तक उसे नहीं खोज पाई तो यह मामला जांच एजेंसी एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वायड) को सौंपा गया.

इंसपेक्टर पीयूष देसाई की टीम उस की तलाश में गांधीधाम की ओर लगी थी, पर वहां उस की लोकेशन नहीं मिल रही थी. उसने अपने मोबाइल फोन का यूज करना बंद कर दिया था. तब एटीएस ने मुखबिरों की मदद ली, जिस में उसे सफलता मिल भी गई. एटीएस को सूचना मिली कि नीता जिला सुरेंद्रनगर की तहसील लींमडी के गांव भलगामडा में हो सकती है. यह सूचना मिलने के बाद एक गुप्त औपरेशन शुरू हुआ, जिस के बारे में केवल एटीएस के उच्च अधिकारियों को ही मालूम था.

इस के लिए सब से पहला काम था नीता की लोकेशन का पता करना. एटीएस ने दूसरी एक टीम इंसपेक्टर पीयूष देसाई के नेतृत्व में बनाई, जिस में 2 एसआई, एक महिला कांस्टेबल सहित 3 कांस्टेबल शामिल थे.

नीता को किस ने दी थी पनाह

इंसपेक्टर देसाई अपनी टीम को साथ ले कर प्राइवेट कार से निकल पड़े. कार अहमदाबाद-राजकोट हाइवे पर चली जा रही थी. उन्हें सूचना मिल गई थी कि नीता चौधरी भलगामडा के किसी घर में छिपी है. पर उस घर के बारे में किसी को पता नहीं था. इसलिए पहले तो यह पता करना था कि वह घर कौन सा है. इस बात का भी ध्यान रखना था कि नीता को इस बारे में पता न चले, वरना वह वहां से भाग सकती थी. किसी को यह भी पता न चले कि वे पुलिस वाले हैं, इस के लिए इंसपेक्टर देसाई और उन की टीम के लोग साधारण कपड़ों में वहां पहुंचे थे.

भलगामड़ा पहुंचने पर इंसपेक्टर देसाई को पता चला कि नीता चौधरी अपने दोस्त शराब तस्कर युवराज सिंह के किसी जानपहचान वाले की मदद से यहां छिपी है. जल्दी ही एटीएस को पता चल गया कि युवराज सिंह के साले आदित्य राणा के दोस्त मयूर ने नीता को शरण दी है. पुलिस ने जब इस बारे में पता किया तो एक और परेशानी खड़ी हो गई. भलगामड़ा में मयूर के 2 घर थे. जिन में से एक घर गांव में था तो दूसरा गांव से बाहर खेतों था, जो 2 बीएचके था. एटीएस टीम के सामने अब सवाल यह था कि उसे पता नहीं था कि नीता चौधरी मयूर के किस घर में है. मयूर के दोनों घरों के बीच एक किलोमीटर का अंतर था. तब एटीएस टीम 2 भागों में बंट गई. आधे लोग एक घर पर नजर रखने लगे तो आधे लोग दूसरे घर पर.

इस बीच एटीएस ने देखा कि मयूर सुबह-शाम फूड पैकेट ले कर गांव के बाहर खेतों वाले घर पर जाता है. खेतों वाले उस घर का दरवाजा हमेशा बंद रहता था. जब मयूर फूड पैकेट ले कर जाता था, तभी दरवाजा खुलता था. यह देख कर एटीएस टीम को लगा कि नीता यहीं होगी. उस घर के पास से एक रास्ता गुजरता था. वह रास्ता एटीएस के लिए उपयोगी साबित हुआ. उसी रास्ते पर आटो, बाइक और इसी तरह के वाहनों से एटीएस उस घर पर और ज्यादा नजर रखने लगी. उस घर में कौनकौन जाता है? घर से कोई बाहर आता है या नहीं? घर में कहां क्या हो रहा है? इन सभी बातों पर एटीएस ने अपना ध्यान केंद्रित किया.

एटीएस इसी तरह लगातार 3 दिनों तक उस घर पर नजर रखे रही. आखिर तीसरे दिन अंत में तय हो गया कि नीता चौधरी मयूर के इसी खेत वाले घर में ही रह रही है. नीता की पक्की लोकेशन मिल जाने के बाद एटीएस ने राहत की सांस ली. इंसपेक्टर देसाई ने मयूर के घर पर नजर रखने वाली टीम को भी वहीं बुला लिया और उस की गिरफ्तारी के लिए टीम आगे बढ़ी. 16 जुलाई, 2024 की शाम लगभग साढ़े 5 बजे एटीएस की टीम ऐक्शन में आ गई. टीम के सभी सदस्यों ने पहले से तय की गई रणनीति के अनुसार उस घर को चारों ओर से घेर लिया, जिस में नीता के होने की संभावना थी. क्योंकि अगर नीता को पता चल जाता कि एटीएस उसे पकडऩे आई है तो वह भाग सकती थी.

घर का मुख्य दरवाजा लोहे का था, जिसे खोल कर एटीएस की टीम अंदर घुसी. अंदर जा कर घर का दरवाजा खटखटाया. थोड़ी देर में दरवाजा खुला तो एटीएस की टीम ने देखा कि सामने नीता खड़ी थी. पिछले एक सप्ताह से नीता मीडिया और पुलिस विभाग में चर्चा का विषय बनी हुई थी, इसलिए उसे पहचानने में एटीएस को जरा भी देर नहीं लगी. अचानक घर के दरवाजे पर अनजान लोगों को देख कर नीता को भी झटका सा लगा. क्योंकि शायद उसे भरोसा था कि कोई उसे खोज नहीं पाएगा. उस के मन में तमाम सवाल उठे. पर उन तमाम सवालों का जवाब महिला कांस्टेबल को एक ही वाक्य में दे दिया, ”हम लोग एटीएस से हैं.’’

सामने खड़े लोगों की पहचान जान कर नीता चौंक उठी. इस के बाद एटीएस की टीम घर के अंदर गई. नीता अभी तक अचंभित थी. टीम के एक सदस्य ने कहा, ”मैडम शांति से बैठ जाइए.’’

नीता टीम की महिला कांस्टेबल के पास खड़ी थी. टीम के बाकी लोगों ने घर की फटाफट तलाशी ली. तलाशी में एटीएस को कुछ खास नहीं मिला. सिर्फ एक बैग मिला. जिसे खोल कर देखा गया तो उस में नीता के कपड़े थे.

एटीएस ने नीता से कोऔपरेट करने के  लिए कहा तो नीता चुपचाप पुलिस द्वारा लाई कार में बैठ गई. इस के बाद एटीएस टीम तुरंत वहां से रवाना हो गई. एटीएस नीता को सुरेंद्रनगर के भलगामड़ा गांव से सीधे अहमदाबाद ले आई, जहां से उसे कच्छ पुलिस को सौंप दिया गया.

लग्जरी कारों की शौकीन थी नीता

अब सवाल यह था कि नीता भचाऊ से सुरेंद्रनगर कैसे पहुंची? नीता का तो कहना था कि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से वहां आई थी. लेकिन पुलिस का कहना है कि सेशन कोर्ट से जमानत रद होने के बाद वह जिस शराब तस्कर युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, उस का साला आदित्य सिंह राणा उसे यहां पहुंचा गया था. यहां वह जिस मयूर के घर छिपी थी, वह आदित्य सिंह राणा का दोस्त था. नीता का इरादा ऊपरी अदालत से जमानत मिलने तक फरार रहने का था.

नीता चौधरी ने सेशन कोर्ट के जमानत रद करने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. नीता की अरजी देख कर हाईकोर्ट ने कहा था, ”अरजी देने वाले पर गंभीर आरोप है. वह अपनी जिंदगी में क्या करती है, कोर्ट को बताया जाए. अगर अपीलकर्ता निर्दोष थी तो भाग क्यों गई. आरोपी की जमानत रद कर के सेशन कोर्ट ने ठीक किया है. अगर अपीलकर्ता अपनी अपील को वापस नहीं लेता तो कोर्ट उस पर 5 लाख रुपए से अधिक का जुरमाना कर सकता है. अपीलकर्ता पुलिस में रहते हुए शराब तस्कर को सेफ पैसेज दे रही थी.’’

नीता चौधरी के वकील का कहना था कि अपीलकर्ता सीआईडी क्राइम में कांस्टेबल है. वह सीनियर अधिकारियों के कहे अनुसार काम कर रही थी. इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग में होते हुए इस ने शराब (Smuggling) तस्कर की मदद की. पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार कर पुलिस कर्मचारियों को मारने की कोशिश की. यह चाहती तो अपराधी को रोक कर पुलिस की मदद कर सकती थी. नीता चौधरी जब से पकड़ी गई, तब से सोशल मीडिया पर शोर सा मच गया था. क्योंकि शायद उस ने वरदी इसलिए पहनी थी कि कानून को ठेंगा दिखा कर हवा में उडऩे वाले अपराधियों को जमीन पर ला सके.

लेकिन पैसों के लालच में वह अपना फर्ज निभाने के बजाय अपने फर्ज के साथ गद्ïदारी कर के शानोशौकत वाली जिंदगी जीते हुए हवा में उडऩे लगी. जैसे ही नीता चौधरी को गिरफ्तार किया गया, उस के किस्से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे. फिर तो सोशल मीडिया ने उस की पूरी कुंडली ही खोल कर रख दी. फटाफट इस खूबसूरत कांस्टेबल की जो तसवीरें सामने आईं, देख कर लोग अचंभे में पड़ गए. सोशल मीडिया से ही पता चला कि यह लेडी कांस्टेबल फर्ज निभाने से कहीं ज्यादा अपनी लग्जरी लाइफस्टाइल से सुर्खियां बटोरती है. तसवीरों में जो दिखाई दे रहा है, वह किसी को भी दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर कर दे. आखिर एक सिपाही इतने महंगे शौक कैसे पूरे करती है?

नीता चौधरी एक बेहद ग्लैमरस और आलीशान जिंदगी जीने की आदी है. उस की पसंद वाली चीजों में महंगी कारें, महंगी बाइक्स के अलावा, हेलीकौप्टर, याट के साथ अरबी घोड़े हैं. इस के पहले भी वह इसी तरह इंस्टग्राम पर वीडियो डालने लिए सस्पेंड हो चुकी है, लेकिन सस्पेंड होने के बाद भी न उस पर कोई फर्क पड़ा था और न उस की लाइफस्टाइल में कोई अंतर आया था. अगर नीता चौधरी के कारों के शौक के बारे में देखा जाए तो उस के पास खुद का लग्जरी कारों का अच्छाखासा कलेक्शन है. उसके विभाग वाले हंसीहंसी में कहते भी हैं कि अगर जिंदगी जीनी है तो नीता चौधरी की तरह, जो गुजरात पुलिस में एक सिपाही होते हुए भी राजसी शानोशौकत के जीती है. लेकिन हर कोई नीता चौधरी की तरह अपने फर्ज से गद्ïदारी नहीं कर सकता. इसलिए  वे लोग सिर्फ नीता को देख कर जलते हैं.

एटीएस ने दौड़भाग कर के नीता चौधरी को भलगामड़ा गांव से गिरफ्तार किया था. नीता को गिरफ्तार कर के एटीएस ने थाना भचाऊ पुलिस के हवाले किया तो भचाऊ पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया था.

नीता और वीरसंग की कैसे शुरू हुई लव स्टोरी

कांस्टेबल नीता चौधरी गुजरात के जिला बनासकांठा की तहसील पालनपुर के गांव मोरिया की रहने वाली है. 15 साल पहले उस ने वीरसंग चौधरी से लवमैरिज की थी. वह भी पालनपुर के पास के गांव बादरपुर का रहने वाला है. वीरसंग खेतीबाड़ी करने के अलावा प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. वह अपने गांव का सरपंच भी रह चुका है. इस समय उस की भाभी गांव की सरपंच हैं. नीता ने वीरसंग के साथ लवमैरिज कर ली तो उस के मम्मीपापा से संबंध पहले जैसे नहीं रहे.

नीता और उस का पति वीरसंग चौधरी एक ही स्कूल में पढ़ते थे. वहीं दोनों में प्यार हुआ था. इसलिए दोनों का आपस में मिलनाजुलना होता रहता था. 15 साल पहले दोनों ने कोर्ट में प्रेमविवाह कर लिया था. जिस के साथ कांस्टेबल नीता चौधरी पकड़ी गई है, वह शराब तस्कर युवराज सिंह जडेजा गुजरात के जिला कच्छ के चिरई गांव का रहने वाला है. उस ने मात्र 9वीं तक पढ़ाई की है. वह शादीशुदा है. उस का मुख्य धंधा शराब तस्करी का है. उस के पिता भी उसी की तरह शराब तस्कर थे. काफी समय से गांधीधाम में रहने की वजह से अन्य पुलिसकर्मियों की तरह वह नीता चौधरी को भी जानता था.

नीता चौधरी की तैनाती जिन दिनों गांधीधाम लोकल क्राइम ब्रांच में थी, उन्हीं दिनों सोशल मीडिया के जरिए वह नीता चौधरी के संपर्क में आया था. कहा जाता है कि युवराज सिंह खुद शराब पीने का शौकीन नहीं है. वह सिर्फ शराब बेचता है. सामान्य रूप से युवराज सिंह जब भी शराब मंगाता था, शराब की डिलीवरी हो जाती थी. उसे कभी भी शराब लेने जाना नहीं पड़ा. पर इस बार उस के पास से शराब मिली है. कहा जाता है कि उस की कई नेताओं से अच्छी पटती है. पटेगी क्यों नहीं, शराब की जरूरत तो नेताओं को भी पड़ती है.

युवराज सिंह सालों से गांधीधाम और भुज में बड़े पैमाने पर शराब का धंधा कर रहा था. उस पर प्रोहिबिशन के 16 मामले दर्ज हैं. एकदो बार झगड़ा भी हुआ था, पर इन झगड़ों में वह सीधे इनवौल्व नहीं था. ये झगड़े उस के आदमियों ने किए थे. बीच में पड़ कर उसने इन झगड़ों को शांत करा दिया था. उस का फोकस अपने शराब के धंधे पर रहता था. नीता चौधरी पर केस हुआ और वह चर्चा में आई तो सोशल मीडिया पर उस के फालोअर्स बढ़ गए. इंस्टाग्राम पर उस के पहले लगभग 41 हजार फालोअर्स थे, केस होने के बाद वह संख्या 1 लाख 14 हजार हो गई. 73 हजार फालोअर्स एकाएक बढ़ गए हैं.

कच्छ पुलिस ने जब नीता चौधरी को गिरफ्तार कर के मीडिया के सामने पेश किया था तो उस के चेहरे पर किसी तरह का पछतावा नहीं था. वह जिस युवराज सिंह के साथ पकड़ी गई थी, वह गुजरात का मोस्टवांटेड शराब तस्कर है.

जिस सफेद थार से शराब की 16 बोतलें पकड़ी गई थीं, कहा जाता है कि वह नीता की ही थी. उस के पीछे चौधरी लिखा भी था. मजे की बात यह है कि इस सफेद थार में नंबर प्लेट भी नहीं थी. नीता चौधरी की तसवीरें और कारनामे तमाम सवाल खड़े कर रहे हैं कि आखिर गुजरात पुलिस कब सुधरेगी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

 

Crime Story : स्कूल कर्मचारी ने 4 साल की बच्ची को बनाया हवस का शिकार

Crime Story एक जानेमाने स्कूल के कर्मचारी ने 2 बच्चियों को अपनी हवस का शिकार बनाया. ताज्जुब की बात यह कि पेरैंट्स की शिकायत के बाद भी न तो स्कूल प्रशासन और न ही पुलिस ने कोई काररवाई की. इस पर जब लोगों का गुस्सा भड़का तो…

महाराष्ट्र के पुणे जिलांतर्गत बदलापुर में एक बहुत ही चर्चित स्कूल है, जहां नर्सरी-केजी से ले कर 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई होती है. यहां मराठी और अंगरेजी माध्यम से पढऩे वाले बच्चों की संख्या 1200 के करीब है. मराठी माध्यम के स्कूल सरकारी अनुदान से चलते हैं, जबकि अंगरेजी वाले स्कूल पूरी तरह से प्राइवेट हैं. यहां केजी के बच्चों में खासकर लड़कियां कक्षा शुरू होने से पहले काफी चहकतीफुदकती रहती हैं. उन की हंसी और मीठीमीठी बातें स्कूल के बरामदे, कक्षाएं और खेलकूद के लगे झूलों आदि की जगहों पर गूंजती रहती हैं. यह सब प्रार्थना शुरू होने से पहले कुछ समय तक चलता रहता है, फिर लंच के समय भी ऐसा ही माहौल बन जाता है.

इस दरम्यान बच्चों के लिए एक कोने में बने टायलेट के पास भी उन का लगातार आनाजाना लगा रहता है. उन को अकसर दरवाजे की कुंडी खोलने और बंद करने में मुश्किल आती है. वे अपने कद के मुताबिक वाश बेसिन तक नहीं पहुंच पाते हैं. उन की मदद और टायलेट की साफसफाई के लिए कुछ कर्मचारी नियुक्त हैं. उन्हीं में 24 साल का अक्षय शिंदे भी था, जो पहली अगस्त से नौकरी पर लगा था. इसी तरह से कई बार टायलेट की कुंडी भीतर से नहीं बंद हो पाती थी. शिंदे भिड़े हुए दरवाजे पर खड़ा हो जाता था, ताकि उस के रहते दूसरा कोई दरवाजा न खोल दे. इस क्रम में कई बार दरवाजे के कुछ खुले हिस्से से स्कर्ट के नीचे अर्धनग्न लड़की दिख जाती थी.

यह सब विवाहित अक्षय की दिनचर्या का मजेदार हिस्सा बन चुका था. उस की नजरें बच्चियों पर घूरने लगी थीं. खुराफाती दिमाग में वासना की आग सुलग चुकी थी. वह वैसे मौके की तलाश में रहने लगा था, जब कोई बच्ची एकांत में मिल जाए. कक्षा के दौरान बच्ची टायलेट आए. यह मौका भी उसे 13 अगस्त को मिल गया. एक 4 साल की बच्ची जैसे ही बाथरूम में घुसी, पीछे से वह भी घुस गया. बच्ची कुछ समझ पाती, इस से पहले उस ने बाहर के दरवाजे की कुंडी भीतर से लगा दी. कुछ मिनटों में जब बच्ची बाहर आई, तब हमेशा की तरह बच्ची को वाश बेसिन के पास उठा लिया. एक हाथ से उस की कमर पकड़ी और दूसरे हाथ से बच्ची के प्राइवेट पार्ट को छेडऩे लगा. बच्ची ठुनकने लगी. बोली, ”दादा, क्या करते हो, गंदी बात है.’’

”चुप रहो, नहीं तो गला दबा दूंगा…’’ शिंदे की घुड़की से बच्ची चुप हो गई.

वह डरी हुई बच्ची के साथ दुष्कर्म कर बैठा. इस के बाद उस ने उसे अपने हाथों से कपड़े पहनाए, आंसू पोंछे और धमकाते हुए बोला, ”यह सब किसी को मत बताना, वरना तुम्हें गाड़ी से कुचलवा दूंगा. वहीं मर जाओगी मोटे टायर के नीचे दब कर…’’

उसी दिन शिंदे ने एक दूसरी 3 साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया, अपनी वासना की आग ठंडी की. उसे भी डराधमका दिया था. लड़की के दादाजी उसे स्कूल छोडऩे जाने के लिए हर रोज की तैयार बैठे थे, लेकिन वह अभी सो रही थी. उन्होंने उस की मां से पूछा कि वह अभी तक तैयार क्यों नहीं हुई? स्कूल जाने का समय हो गया है. लड़की की मां ने बताया कि उस की देह थोड़ी गर्म है. उन्होंने वायरल फीवर की आशंका जताते हुए उसे आराम करने दिया.

बच्ची पूरे दिन वह गुमसुम बैड पर लेटी रही. उस की मम्मी ने उसे वहीं गोद में बिठा कर खाना खिला दिया. फिर सो गई. शाम को भी कमरे से बाहर नहीं निकली, जबकि वह स्वस्थ दिख रही थी. फिर भी मम्मी ने उसे आराम करने दिया. 15 अगस्त को भी बच्ची ने स्कूल जाने से इनकार कर दिया. मम्मी ने प्यार से पुचकारते हुए पूछा, ”क्या बात है बेटा… स्कूल में टीचर ने डांटा क्या?’’

इस का जवाब उस ने कुछ भी नहीं दिया. चुप्पी साधे रही.

काफी प्यारदुलार के बाद उस ने बताया, ”मम्मी, सूसू करने में मुझे तकलीफ होती है.’’

”कैसी तकलीफ…ठीकठीक बताओ… डाक्टर के पास ले चलूंगी.’’ मम्मी चिंतित हो गई.

”सूसू में लगता है चींटियां चल रही हैं.’’ बच्ची बोली.

इस पर उस ने अपनी पति से बात की और तुरंत डाक्टर के यहां ले जाने के लिए कहा.

बच्ची को तुरंत डाक्टर के पास ले जाया गया. डाक्टर ने उस का चैकअप किया और पेशाब करने में आई शिकायत पर जांच की. जांच के बाद डाक्टर ने बताया कि बच्ची के साथ यौनाचार किया गया है, जिस कारण उस का प्राइवेट पार्ट जख्मी हो गया है. डाक्टर से यह सुनना था कि लड़की के मम्मीपापा ने सिर पकड़ लिया. वे गुस्से में भी आ गए. उन्होंने उस के साथ पढऩे वाली उस की फ्रैंड के घर फोन मिलाया. उन के पैरेंट्स से मालूम हुआ कि वह भी 2 दिनों से स्कूल नहीं जा रही है…डरी हुई है. बारबार कहती है…मुझे मार देगा…नहीं जाऊंगी स्कूल!

उन्हें जब स्कूल नहीं जाने का कारण मालूम हुआ, तब वे भी गुस्से में आ गए. दोनों लड़कियों के पेरैंट्स ने तुरंत स्कूल प्रशासन को इस की सूचना दी, लेकिन स्कूल ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. दोनों के साथ स्कूल के दौरान रेप की घटना से इनकार कर दिया. सिर्फ इतना कहा कि सीसीटीवी 15 दिन से बंद है. इस के बाद पेरैंट्स बच्ची को हौस्पिटल ले कर गए. वहां के डाक्टर ने भी रेप की पुष्टि कर दी. फिर बदलापुर थाने पहुंच कर आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की मांग की. लेकिन सीनियर पुलिस इंसपेक्टर शुभदा शितोले ने केस दर्ज करने में आनाकानी की. दोनों बच्चियों के पेरैंट्स को घंटों थाने में बिठाए रखा. इस के बाद पुलिस अधिकारी हरकत में आए. इस लापरवाही और देरी के लिए सीनियर इंसपेक्टर शुभदा शितोले को सीनियर पुलिस अधिकारी ने सस्पेंड कर दिया.

मैडिकल जांच में यह साबित हो गया था कि बच्चियों के साथ घिनौना काम हुआ है. पुलिस स्टेशन में रात साढ़े 12 बजे जा कर शिकायत दर्ज होने के बाद पीडि़त बच्चियों ने पुलिस को दिए बयान में दुष्कर्म करने वाले स्कूल कर्मचारी अक्षय शिंदे का नाम बता दिया था. उस की गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने पहल की और सुबह होतेहोते वह गिरफ्तार कर लिया गया. तब तक यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल चुकी थी. बदलापुर रेप केस के आरोपी अक्षय शिंदे की करतूत कोलकाता रेप कांड के आरोपी संजय राय के मामले के बाद ही सामने आई थी. कोलकाता रेप कांड पर लोग पहले से ही गुस्से में थे. पूरे देश में जगहजगह विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. उन्हीं दिनों इस घटना ने आंदोलन की आग में और घी डाल दिया. लोग सड़कों पर उतर आए.

आंदोलनकारी बदलापुर स्टेशन पर रेलवे ट्रैक पर विरोध जताने लगे. ट्रेन की आवाजाही बंद हो गई. विरोध प्रदर्शन के कारण मुंबई सूरत वंदे भारत, पुणे दुरंतो और अन्य प्रमुख ट्रेनों सहित कई लंबी दूरी की ट्रेनों के मार्ग भी बदलने पड़े. इस के साथ ही इंटरनेट बंद करने का भी आदेश दे दिया गया. साथ ही स्कूल में तोडफ़ोड़ हुई. आरोपी अक्षय शिंदे के घर पर भी हंगामा हुआ, तोडफ़ोड़ हुई. लोग इस घटना पर आक्रोश व्यक्त करने और आरोपी को कड़ी से कड़ी सजा देने की मांग करने लगे. महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए. उन्होंने विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करने के भी आदेश दिए. वरिष्ठ वकील उज्ज्वल निकम को विशेष सरकारी वकील नियुक्त किया गया. सरकार ने आश्वासन दिया कि मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में होगी. शिंदे के खिलाफ पोक्सो कानून के तहत मामला दर्ज किया गया.

आरोपी शिंदे को लगातार कड़ी पुलिस सुरक्षा के बीच मजिस्ट्रैट के सामने पेश किया गया. शिंदे से पूछताछ के सिलसिले में चौंकाने वाली घटना सामने आई. उस की करतूतों की पोल भी खुलती चली गई. पता चला कि उस ने 3 शादियां की थीं, लेकिन तीनों पत्नियां उसे छोड़ कर जा चुकी थीं. अक्षय शिंदे ने अपना जुर्म कुबूल भी कर लिया था. उस के वीडियो को पुलिस को कोर्ट में पेश करना था. वह स्कूल में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम करता था. इस मामले में पहले तो स्कूल प्रशासन ने भी घटना से इनकार किया था. पुलिस की तरह ही स्कूल के प्रिंसिपल तक ने वारदात की गंभीरता को नहीं समझा. जब पुलिस में मामला दर्ज हो गया, तब स्कूल प्रशासन ने भी आननफानन में सख्त कदम उठाए और स्कूल के प्रिंसिपल, क्लास टीचर और एक महिलाकर्मी को भी सस्पेंड कर दिया.

स्कूल के ट्रस्टी फरार हो गए थे, जिन की अक्तूबर में गिरफ्तारी हो गई. हालांकि वे बचने के लिए हर 2-3 दिन में अपना ठिकाना बदलते रहे. उन्होंने अपने फोन बंद कर लिए. इस के अलावा डेढ़ महीने तक फरार रहने के दौरान उन्होंने एक बार भी अपने घर वालों से संपर्क नहीं किया. मामले की जांच कर रही स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम (एसआईटी) को पूछताछ के दौरान स्कूल ट्रस्टी उदय कोतवाल और तुषार आप्टे ने बताया कि उन से बहुत बड़ी गलती हो गई थी. दोनों ही इस वारदात की खबर फैलने के बाद बेहद घबरा गए थे और जनता के आक्रोश से डर कर भागते फिर रहे थे.

इस की सुनवाई बौंबे हाईकोर्ट में चल रही थी. हाईकोर्ट ने स्वत:संज्ञान लिया था और मामले को गंभीरता से लेते हुए सुनवाई कर रही थी, जबकि आरोपी अक्षय शिंदे पुणे की तलोजा जेल में बंद था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश रेवती मोहिते डेरे और पृथ्वीराज चह्वाण की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्कूल प्रशासन को भी जबरदस्त फटकार लगाते हुए कहा था कि स्कूल भी सुरक्षित नहीं. 4 साल की बच्ची को भी नहीं बख्श रहे.  सुनवाई में कोर्ट ने कई सवाल पूछे. पीठ ने आरोपी की गिरफ्तारी पर सवाल किया कि क्या 164 के तहत बयान रिकौर्ड किया गया है? इसी के साथ सुनवाई में न्यायाधीश ने यह भी पूछा कि क्या पोक्सो के तहत एक्शन हुआ या नहीं?

जिस का जवाब देते हुए सरकारी वकील सर्राफ ने बताया कि महिला औफिसर की मौजूदगी में केस रजिस्टर किया जा चुका है. इस के बाद अदालत ने इस केस में डायरी और एफआईआर मांगी, जिस में बच्चियों के बयान दर्ज किए गए हों. लेकिन जब जज महोदय को मालूम हुआ कि बयान 164 के तहत रजिस्टर नहीं किया गया है और पोक्सो एक्ट के तहत स्कूल ने कोई ऐक्शन नहीं लिया था, तब स्कूल प्रशासन को फटकार लगाई गई. साथ ही स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम को जल्द से जल्द काररवाई करने के आदेश जारी किए गए. पुलिस को फटकार लगाते हुए जज ने कहा कि जब एफआईआर में यह लिखवाया गया है कि स्कूल को इस मामले की जानकारी दी गई थी, तब पुलिस को स्कूल पर पहले ही ऐक्शन लेना चाहिए था.

कोर्ट ने इस बात पर भी आपत्ति जताई कि 2 पीडि़ताओं में सिर्फ एक के बयान ही क्यों दर्ज किए गए? क्या अधिकारियों ने सीआरपीसी की धारा 173 के तहत अनिवार्य रूप से पीडि़तों के बयान दर्ज किए?

कोर्ट ने एडवोकेट सर्राफ से अगली तारीख पर यह बताने को कहा कि उन के बयान दर्ज करने में देरी क्यों हुई? कोर्ट ने कहा कि यह बहुत गंभीर अपराध है. 2 बच्चियों के साथ यौन उत्पीडऩ हुआ, पुलिस मामले को गंभीरता से कैसे नहीं लेती? कोर्ट ने पीडि़तों की उम्र पूछी, जिस पर सर्राफ ने बताया कि एक बच्ची 4 साल और दूसरी 3 साल की है. कोर्ट ने कहा कि यह सब से बुरा है. कोर्ट ने कहा कि न केवल एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई, बल्कि स्कूल के संबंधित अधिकारियों ने शिकायत भी दर्ज नहीं की. यह एफआईआर कापी से साफ हो रहा है.

कोर्ट ने पूछा कि क्या बच्चियों की काउंसलिंग की जा रही है? पीडि़त बच्चियों के साथ जो हुआ, हम इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं कर सकते. हम जानना चाहते हैं कि राज्य ने पीडि़त बच्चियों की काउंसलिंग के लिए क्या किया है. कोर्ट ने कहा कि धारा 161 के बयानों के तहत दूसरी बच्ची के पिता के हस्ताक्षर क्यों लिए गए? कोर्ट ने आगे कहा कि हम यह जान कर आश्चर्यचकित हैं कि बदलापुर पुलिस ने दूसरे पीडि़त के परिवार के बयान दर्ज नहीं किए. हमारे स्वत:संज्ञान लेने के बाद ही पुलिस ने दूसरी पीडि़ता के पिता के बयान दर्ज किए, वह भी आधी रात के बाद.

कोर्ट ने कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि आप न केवल पीडि़त बच्चियों के बल्कि उन के परिवारों के भी बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज करेंगे. कोर्ट ने कहा कि अगली तारीख तक उन्हें केस की फाइल देखनी है कि पुलिस ने क्या जांच की?

इधर कोर्ट में सुनवाई चल रही थी, उधर बदलापुर में बवाल बढ़ता जा रहा था. महाविकास अघाड़ी ने 24 अगस्त को महाराष्ट्र बंद का ऐलान कर दिया था. महाराष्ट्र में महिलाओं पर बढ़ रहे अत्याचार, रेप की घटनाओं और सरकार पर असंवेदनशीलता का आरोप लगाते हुए महाविकास अघाड़ी सरकार पर हमलावर बनी हुई थी. बदलापुर रेलवे स्टेशन पर 300 प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. 70 से ज्यादा लोगों को अरेस्ट भी किया गया.

आरोपी की मजिस्ट्रैट के सामने सुनवाई पूरी सुरक्षा में हो रही थी. क्राइम ब्रांच के अधिकारी 23 सितंबर, 2024 की शाम साढ़े 5 बजे जेल से आरोपी अक्षय शिंदे को हिरासत में लेने के बाद तलोजा जेल से निकले थे. शाम करीब साढ़े 6 बजे पुलिस टीम जब मुंब्रा बाईपास के पास पहुंची तो अक्षय ने कथित तौर पर एक कांस्टेबल से हथियार छीन लिया और गोली चलाने लगा. इस के जवाब में पुलिस ने भी फायरिंग कर दी. इस में वो बुरी तरह से घायल हो गया और घटनास्थल पर ही उस की मौत हो गई.

इस तरह से बदलापुर रेप केस के मुख्य आरोपी की पुलिस एनकाउंटर में मौत हो गई. हालांकि खून से लथपथ आरोपी को अस्पताल में भरती कराया गया था, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था.

 

Rail की पटरी पर बलात्कार : समाज में होता अपराध

31 अक्तूबर, 2017 की शाम भोपाल में खासी चहलपहल थी. ट्रैफिक भी रोजाना से कहीं ज्यादा था. क्योंकि अगले दिन मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस समारोह लाल परेड ग्राउंड में मनाया जाना था. सरकारी वाहन लाल परेड ग्राउंड की तरफ दौड़े जा रहे थे.

सुरक्षा व्यवस्था के चलते यातायात मार्गों में भी बदलाव किया गया था, जिस की वजह से एमपी नगर से ले कर नागपुर जाने वाले रास्ते होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक कुछ ज्यादा ही था. इसी रोड पर स्थित हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर तो बारबार जाम लगने जैसे हालात बन रहे थे. एमपी नगर में कोचिंग सेंटर और हौस्टल्स बहुतायत से हैं, जहां तकरीबन 85 हजार छात्रछात्राएं कोचिंग कर रहे हैं. इन में लड़कियों की संख्या आधी से भी अधिक है. आसपास के जिलों के अलावा देश भर के विभिन्न राज्यों के छात्र यहां नजर आ जाते हैं.

शाम होते ही एमपी नगर इलाका छात्रों की आवाजाही से गुलजार हो उठता है. कालेज और कोचिंग आतेजाते छात्र दीनदुनिया की बातों के अलावा धीगड़मस्ती करते भी नजर आते हैं. अनामिका भी यहीं के एक कोचिंग सेंटर से पीएससी की कोचिंग कर रही थी. अनामिका ने 12वीं पास कर एक कालेज में बीएससी में दाखिला ले लिया था. उस का मकसद एक अच्छी सरकारी नौकरी पाना था, इसलिए उस ने कालेज की पढ़ाई के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी थी. सर्दियां शुरू होते ही अंधेरा जल्दी होने लगा था. इसलिए 7 बजे जब कोचिंग क्लास छूटी तो अनामिका ने जल्द हबीबगंज रेलवे स्टेशन पहुंचने के लिए रेलवे की पटरियों वाला रास्ता चुना.

रेलवे लाइनें पार कर शार्टकट रास्ते से जाती थी स्टेशन अनामिका विदिशा से रोजाना ट्रेन द्वारा अपडाउन करती थी. उस के पिता भोपाल में ही रेलवे फोर्स में एएसआई हैं और उन्हें हबीबगंज में ही स्टाफ क्वार्टर मिला हुआ है पर वह वहां जरूरत पड़ने पर ही रुकती थी. उस की मां भी पुलिस में हवलदार हैं. कोचिंग से छूट कर अनामिका हबीबगंज स्टेशन पहुंच कर विदिशा जाने वाली किसी भी ट्रेन में बैठ जाती थी. फिर घंटे सवा घंटे में ही वह घर पहुंच जाती थी, जहां उस की मां और दोनों बड़ी बहनें उस का इंतजार कर रही होती थीं.

रोजाना की तरह 31 अक्तूबर को भी वह शार्टकट के रास्ते से हबीबगंज स्टेशन की तरफ जा रही थी. एमपी नगर से ले कर हबीबगंज तक रेल पटरी वाला रास्ता आमतौर पर सुनसान रहता है. केवल पैदल चल कर पटरी पार करने वाले लोग ही वहां नजर आते हैं. बीते कुछ सालों से रेलवे पटरियों के इर्दगिर्द कुछ झुग्गीबस्तियां भी बस गई हैं, जिन मेें मजदूर वर्ग के लोग रहते हैं. यह शार्टकट अनामिका को सुविधाजनक लगता था, क्योंकि वह उधर से 10-12 मिनट में ही रेलवे स्टेशन पहुंच जाती थी. अनामिका एक बहादुर लड़की थी. मम्मीपापा दोनों के पुलिस में होने के कारण तो वह और भी बेखौफ रहती थी. शाम के वक्त झुग्गीझोपडि़यों और झाडि़यों वाले रास्ते से किसी लड़की का यूं अकेले जाना हालांकि खतरे वाली बात थी, लेकिन अनामिका को गुंडेबदमाशों से डर नहीं लगता था.

उस वक्त उस के जेहन में यही बात चल रही थी कि विदिशा जाने के लिए कौनकौन सी ट्रेनें मिल सकती हैं. वैसे शाम 6 बजे के बाद विदिशा जाने के लिए 6 ट्रेनें हबीबगंज से मिल जाती हैं, इसलिए नियमित यात्रियों को आसानी हो जाती है. नियमित यात्रियों की भी हर मुमकिन कोशिश यही रहती है कि जल्दी प्लेटफार्म तक पहुंच जाएं. शायद देरी से चल रही कोई ट्रेन खड़ी मिल जाए और ऐसा अकसर होता भी था कि प्लेटफार्म तक पहुंचतेपहुंचते किसी ट्रेन के आने का एनाउंसमेंट सुनाई दे जाता था.

एमपी नगर से कोई एक किलोमीटर पैदल चलने के बाद ही रेलवे के केबिन और दूसरी इमारतें नजर आने लगती हैं तो आनेजाने वालों को उन्हें देख कर बड़ी राहत मिलती है कि लो अब तो पहुंचने ही वाले हैं.

बदमाश ने फिल्मी स्टाइल में रोका रास्ता

यही उस दिन अनामिका के साथ हुआ. पटरियों के बीच चलते स्टेशन की लाइटें दिखने लगीं तो उसे लगा कि वक्त पर प्लेटफार्म पहुंच ही जाएगी. जब दूर से आरपीएफ थाना दिखने लगा तो अनामिका के पांव और तेजी से उठने लगे. लेकिन एकाएक ही वह अचकचा गई. उस ने देखा कि गुंडे से दिखने वाले एक आदमी ने फिल्मी स्टाइल में उस का रास्ता रोक लिया है. अनामिका यही सोच रही थी कि क्या करे, तभी उस बदमाश ने उस का हाथ पकड़ लिया. आसपास कोई नहीं था और थीं भी तो सिर्फ झाडि़यां, जो उस की कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अनामिका के दिमाग में खतरे की घंटी बजी, लेकिन उस ने हिम्मत नहीं हारी और उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी.

प्रकृति ने स्त्री जाति को ही यह खूबी दी है कि वह पुरुष के स्पर्श मात्र से उस की मंशा भांप जाती है. अनामिका ने खतरा भांपते हुए उस बदमाश से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश तेज कर दी. अनामिका ने उस पर लात चलाई, तभी झाडि़यों से दूसरा गुंडा बाहर निकल आया. तुरंत ही अनामिका को समझ आ गया कि यह इसी का ही साथी है.

मदद के लिए चिल्लाने का कोई फायदा नहीं हुआ

अभी तक तीनों रेल की पटरियों के नजदीक थे, जहां कभी भी कोई ट्रेन आ सकती थी. बाहर आए दूसरे गुंडे ने भी अनामिका को पकड़ लिया और दोनों उसे घसीट कर नजदीक बनी पुलिया की तरफ ले जाने लगे. अनामिका ने पूरी ताकत और हिम्मत लगा कर उन से छूटने की कोशिश की पर 2 हट्टेकट्टे मर्दों के चंगुल से छूट पाना अब नाममुकिन सा था. अनामिका का विरोध उन्हें बजाए डराने के उकसा रहा था, इसलिए वे घसीटते हुए उसे पुलिया के नीचे ले गए. उन्होंने अनामिका को लगभग 100 फुट तक घसीटा लेकिन इस दौरान भी अनामिका हाथपैर चलाती रही और मदद के लिए चिल्लाई भी लेकिन न तो उस का विरोध काम आया और न ही उस की आवाज किसी ने सुनी.

आखिरकार अनामिका हार गई. दोनों गुंडों ने उस के साथ बलात्कार किया. इस बीच वह इन दोनों के सामने रोईगिड़गिड़ाई भी. इतना ही नहीं, उस ने अपनी हाथ घड़ी, मोबाइल फोन और कान के बुंदे तक उन के हवाले कर दिए पर इन गुंडों का दिल नहीं पसीजा. ज्यादती के पहले ही खींचातानी में अनामिका के कपड़े तक फट चुके थे. उन दोनों की बातचीत से उसे इतना जरूर पता चल गया कि इन बदमाशों में से एक का नाम अमर और दूसरे का गोलू है. जब इन दोनों ने अपनी कुत्सित मंशाएं पूरी कर लीं तो अनामिका को लगा कि वे उसे छोड़ देंगे. इस बाबत उस ने उन दरिंदों से गुहार भी लगाई थी.

राक्षसों की दयानतदारी भी कितनी भारी पड़ती है, इस का अहसास अनामिका को कुछ देर बाद हुआ. लगभग एक घंटे तक ज्यादती करने के बाद अमर और गोलू ने तय किया कि अनामिका को यूं निर्वस्त्र छोड़ा जाना ठीक नहीं, इसलिए उस के लिए कपड़ों का इंतजाम किया जाए. नशे में डूबे इन हैवानों की यह दया अनामिका पर और भारी पड़ी. गोलू ने अमर को अनामिका की निगरानी करने के लिए कहा और खुद अनामिका के लिए कपड़े लेने गोविंदपुरा की झुग्गियों की तरफ चला गया. वहां उस के 2 दोस्त राजेश और रमेश रहते थे. गोलू ने उन से एक जोड़ी लेडीज कपड़े मांगे तो इन दोनों ने इस की वजह पूछी. इस पर गोलू ने सारा वाकया उन्हें बता दिया.

गोलू की बात सुन कर राजेश और रमेश की हैवानियत भी जाग उठी. वे दोनों कपड़े ले कर गोलू के साथ उसी पुलिया के नीचे पहुंच गए, जहां अनामिका निर्वस्त्र पड़ी थी. अनामिका अब लाश सरीखी बन चुकी थी. उन चारों में से कोई जा कर स्टेशन के बाहर से चाय और गांजा ले आया. इन्होंने छक कर चाय गांजे की पार्टी की और बेहोशी और होश के बीच झूल रही अनामिका के साथ अमर और गोलू ने एक बार फिर ज्यादती की. फूल सी अनामिका इस ज्यादती को झेल नहीं पाई और बेहोश हो गई.

जब वासना का भूत उतरा तो इन चारों ने अनामिका को जान से मार डालने का मशविरा किया, जिसे इन में से ही किसी ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि रहने दो, लड़की किसी को कुछ नहीं बता पाएगी, क्योंकि यह तो हमें जानती तक नहीं है. बेहोश पड़ी अनामिका इन चारों की नजर में मर चुकी थी, इसलिए चारों अपने साथ लाए कपड़े उस के पास फेंक कर फरार हो गए और अनामिका से लूटे सामान का आपस में बंटवारा कर लिया.

थोड़ी देर बाद अनामिका को होश आया तो वह कुछ देर इन के होने न होने की टोह लेती रही. उसे जब इस बात की तसल्ली हो गई कि बदमाश वहां नहीं हैं तो उस ने जैसेतैसे उन के लाए कपडे़ पहने और बड़ी मुश्किल से महज 100 फीट दूर स्थित जीआरपी थाने पहुंची.

पुलिस ने नहीं किया सहयोग

थाने का स्टाफ उसे पहचानता था. मौजूदा पुलिसकर्मियों से उस ने कहा कि पापा से बात करा दो तो एक ने उस के पिता को नंबर लगा कर फोन उसे दे दिया. फोन पर सारी बात तो उस ने पिता को नहीं बताई, सिर्फ इतना कहा कि आप तुरंत यहां थाने आ जाइए. बेटी की आवाज से ही पिता समझ गए कि कुछ गड़बड़ है इसलिए 15 मिनट में ही वे थाने पहुंच गए. पिता को देख कर अनामिका कुछ देर पहले की घटना और तकलीफ भूल उन से ऐसे चिपट गई मानो अब कोई उस का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. बेटी की नाजुक हालत देख पिता उसे घर ले आए और फोन पर पत्नी को भी तुरंत भोपाल पहुंचने को कहा तो वह भी भोपाल के लिए रवाना हो गईं. देर रात मां वहां पहुंची तो कुछकुछ सामान्य हो चली अनामिका ने उन्हें अपने साथ हुई ज्यादती की बात बताई. जाहिर है, सुन कर मांबाप का कलेजा दहल उठा.

बेटी की एकएक बात से उन्हें लग रहा था कि जैसे कोई धारदार चाकू से उन के कलेजे को टुकड़ेटुकडे़ कर निकाल रहा है. चूंकि रात बहुत हो गई थी और भोपाल में मध्य प्रदेश स्थापना दिवस की तैयारियां चल रही थीं, इसलिए उन्होंने तय किया कि सुबह होते ही सब से पहला काम पुलिस में रिपोर्ट लिखाने का करेंगे, जिस से अपराधी पकड़े जाएं.

इधर से उधर टरकाती रही पुलिस

अनामिका के मातापिता अगली सुबह ही कोई साढ़े 10 बजे एमपी नगर थाने पहुंचे. खुद को बेइज्जत महसूस कर रही अनामिका को उम्मीद थी कि थाने पहुंच कर फटाफट आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज हो जाएगी. एमपी नगर थाने में इन तीनों ने मौजूद सबइंसपेक्टर आर.एन. टेकाम को आपबीती सुनाई. तकरीबन आधे घंटे तक इस सबइंसपेक्टर ने अनामिका से उस के साथ हुई ज्यादती के बारे में पूछताछ की लेकिन रिपोर्ट लिखने के बजाय वह इन तीनों को घटनास्थल पर ले गया. घटनास्थल का मुआयना करने के बाद टेकाम ने उन पर यह कहते हुए गाज गिरा दी कि यह जगह तो हबीबगंज थाने में आती है, इसलिए आप वहां जा कर रिपोर्ट लिखाइए.

यह दरअसल में एक मानसिक और प्रशासनिक बलात्कार की शुरुआत थी. लेकिन दिलचस्प इत्तफाक की बात यह थी कि ये तीनों जब एमपी नगर से हबीबगंज थाने की तरफ जा रहे थे, तब हबीबगंज रेलवे स्टेशन के बाहर सामने की तरफ से गुजरते अनामिका की नजर गोलू पर पड़ गई. रोमांचित हो कर अनामिका ने पिता को बताया कि जिन 4 लोगों ने बीती रात उस के साथ दुष्कर्म किया था, उन में से एक यह सामने खड़ा है. इतना सुनते ही उस के मातापिता ने वक्त न गंवाते हुए गोलू को धर दबोचा.

गोलू का इतनी आसानी और बगैर स्थानीय पुलिस की मदद से पकड़ा जाना एक अप्रत्याशित बात थी. अब उन्हें उम्मीद हो गई कि अब तो बाकी इस के तीनों साथी भी जल्द पकडे़ जाएंगे. गोलू को दबोच कर ये तीनों हबीबगंज थाने पहुंचे. हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव को एक बार फिर अनामिका को पूरा हादसा बताना पड़ा.

रवींद्र यादव ने गोलू से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने अपने साथियों के नामपते भी बता दिए. उन्होंने मामले की गंभीरता को समझते हुए आला अफसरों को भी वारदात के बारे में बता दिया. टीआई उन तीनों को ले कर फिर घटनास्थल पहुंचे. हबीबगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई पर अच्छी बात यह थी कि मुजरिमों के बारे में काफी कुछ पता चल गया था. आला अफसरों के सामने भी अनामिका को दुखद आपबीती बारबार दोहरानी पड़ी.

रवींद्र यादव ने हबीबगंज जीआरपी को भी फोन किया था, लेकिन वहां से कोई पुलिस वाला नहीं आया. सूरज सिर पर था लेकिन अनामिका और उस के मातापिता की उम्मीदों का सूरज पुलिस की काररवाई देख ढलने लगा था. बारबार फोन करने पर जीआरपी का एक एएसआई घटनास्थल पर पहुंचा लेकिन उस का आना भी एक रस्मअदाई साबित हुआ. जैसे वह आया था, सब कुछ सुन कर वैसे ही वापस भी लौट गया.

इस के कुछ देर बाद हबीबगंज जीआरपी के टीआई मोहित सक्सेना घटनास्थल पर पहुंचे. उन के और रवींद्र यादव के बीच घंटे भर बहस इसी बात पर होती रही कि घटनास्थल किस थाना क्षेत्र में आता है. इस दौरान अनामिका और उस के मांबाप भूखेप्यासे उन की बहस को सुनते रहे कि थाना क्षेत्र तय हो तो एफआईआर दर्ज हो और काररवाई आगे बढ़े. आखिरी फैसला यह हुआ कि अनामिका गैंगरेप का मामला हबीबगंज जीआरपी थाने में दर्ज होगा. अब तक रात के 8 बज चुके थे. अनामिका के पिता को बेटी की चिंता सताए जा रही थी, जो थकान के चलते सामान्य ढंग से बातचीत भी नहीं कर पा रही थी. तमाम पुलिस वालों के सामने अनामिका को अपने साथ घटी घटना दोहरानी पड़ी. यह सब बताबता कर वह इस तरह अपमानित हो रही थी, जैसे उस ने अपराध खुद किया हो.

मीडिया में बात आने के बाद पुलिस हुई सक्रिय

24 घंटे थाने दर थाने भटकने के बाद तीनों का भरोसा पुलिस और इंसाफ से उठने लगा था. मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस बगैर किसी अड़चन के मन चुका था, जिस में पुलिस का भारीभरकम अमला तैनात था. 2 नवंबर, 2017 को जब अनामिका के साथ हुए अत्याचारों की भनक मीडिया को लगी तो अगले दिन के अखबार इस जघन्य, वीभत्स और शर्मनाक बलात्कार कांड से रंगे हुए थे, जिन में पुलिस की लापरवाही, मनमानी और हीलाहवाली पर खूब कीचड़ उछाली गई थी. लोग अब बलात्कारियों से ज्यादा पुलिस को कोसने लगे थे. जब आम लोगों का गुस्सा बढ़ने लगा तो स्थापना दिवस की खुमारी उतार चुके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आला पुलिस अफसरों की बैठक ली.

मीटिंग में सक्रियता और संवेदनशीलता दिखाते मुख्यमंत्री ने डीजीपी ऋषि कुमार शुक्ला और डीआईजी संतोष कुमार सिंह की जम कर खिंचाई की और टीआई जीआरपी हबीबगंज मोहित सक्सेना, एमपी नगर थाने के टीआई संजय सिंह बैंस और हबीबगंज थाने के टीआई रवींद्र यादव के अलावा जीआरपी के एक सबइंसपेक्टर भवानी प्रसाद उइके को तत्काल सस्पेंड कर दिया.

कानूनी प्रावधान तो यह है कि छेड़खानी और दुष्कर्म के मामलों में पुलिस को एफआईआर लिखना अनिवार्य है. आईपीसी की धारा 166 (क) साफसाफ कहती है कि धारा 376, 354, 326 और 509 के तहत हुए अपराधों की एफआईआर दर्ज न करने पर दोषी पुलिस वालों को 6 महीने से ले कर 2 साल तक की सजा दी जा सकती है. किसी भी सूरत में कोई भी पुलिस वाला इन धाराओं के अपराध की एफआईआर लिखने से मना नहीं कर सकता. चाहे घटनास्थल उस की सीमा में आता है या नहीं. गोलू की निशानदेही पर पुलिस ने 3 नवंबर को अमर और राजेश उर्फ चेतराम को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन चौथा अपराधी रमेश मेहरा पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ सका. बाद में पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. लेकिन इस गिरफ्तारी पर भी पुलिस की हड़बड़ी और गैरजिम्मेदाराना बरताव उजागर हुआ.

छानबीन में यह बात सामने आई कि गिरफ्तार किए गए अभियुक्त बेहद शातिर और नशेड़ी हैं. वे हबीबगंज इलाके के आसपास की झुग्गियों में ही रहते थे. ये लोग पन्नियां बीनने का काम करते थे. लेकिन असल में इन का काम रेलवे का सामान लोहा आदि चोरी कर कबाडि़यों को बेचने का था. जांच में पता चला कि आरोपियों में सब से खतरनाक गोलू उर्फ बिहारी है. गोलू ने अपनी नाबालिगी में ही हत्या की एक वारदात को अंजाम दिया था. उस ने एक पुलिसकर्मी के बेटे की हत्या की थी. इतना ही नहीं एक औरत से उस के नाजायज संबंध हो गए थे, जिस से उस के एक बच्चा भी हुआ था. गोलूकितना बेरहम है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अपनी माशूका से हुए बेटे को वह उस के पैदा होने के 4 दिन बाद ही रेल की पटरी पर रख आया था, जिस से ट्रेन से कट कर उस की मौत हो गई थी.

दूसरा आरोपी अमर उस का साढ़ू है. अमर भी शातिर अपराधी है कुछ दिन पहले ही वह अरेरा कालोनी में रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के यहां चोरी करने के आरोप में पकड़ा गया था. पूछताछ में आरोपियों ने अपने नशे में होने की बात स्वीकारी और यह भी बताया कि अनामिका आती दिखी तो उन्होंने लूटपाट के इरादे से पकड़ा था लेकिन फिर उन की नीयत बदल गई.

मुख्यमंत्री के निर्देश पर एसआईटी को दिया केस

अनामिका बलात्कार मामले का शोर देश भर में मचा. इस से पुलिस प्रशासन की जम कर थूथू हुई. शहर में लगभग 50 जगहों पर विभिन्न सामाजिक संगठनों और राजनैतिक दलों ने धरनेप्रदर्शन किए. विरोध बढ़ता देख मुख्यमंत्री ने जांच के लिए एसआईटी टीम गठित करने के निर्देश दे डाले. कांग्रेसी सांसदों ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ ने भी सरकार और लचर कानूनव्यवस्था की जम कर खिंचाई की. बचाव की मुद्रा में आए राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह ने एक बचकाना बयान यह दे डाला कि क्या कांग्रेस शासित प्रदेशों में ऐसा नहीं होता.

भोपाल में जो हुआ, वह वाकई मानव कल्पना से परे था. जनाक्रोश और दबाव में पुलिस ने एक और भारी चूक यह कर डाली कि जल्दबाजी में नाम की गफलत में एक ड्राइवर राजेश राजपूत को गिरफ्तार कर डाला. बेगुनाह राजेश से जुर्म कबूलवाने के लिए उसे थाने में अमानवीय यातनाएं दी गईं. बकौल राजेश, ‘मुझे गिरफ्तार कर गुनाह स्वीकारने के लिए जम कर लगातार मारा गया. प्लास्टिक के डंडों से बेहोश होने तक मारा जाता रहा. इस दौरान एक महिला पुलिस अधिकारी ने उस से कहा था कि तू गुनाह कबूल कर जेल चला जा और वहां बेफिक्री से कुछ दिन काट ले क्योंकि रिपोर्ट दर्ज कराने वाली मांबेटी फरजी हैं.’

राजेश के मुताबिक उस का मोबाइल फोन पुलिस ने छीन लिया. उसे पत्नी से बात भी नहीं करने दी गई थी. हकीकत में राजेश राजपूत हादसे के वक्त और उस दिन भोपाल में था ही नहीं. वह शिवसेना के एक नेता के साथ इंदौर गया था. उस की पत्नी दुर्गा को जब किसी से पता चला कि उस के पति को पुलिस ने गैंगरेप मामले में गिरफ्तार कर रखा है तो वह घबरा गई. दुर्गा जब थाने पहुंची तो पति की एक झलक दिखा कर उसे दुत्कार कर भगा दिया गया. इस के बाद वह अपने पति की बेगुनाही के सबूत ले कर वह यहांवहां भटकती रही, तब कहीं जा कर उसे 3 नवंबर को छोड़ा गया.

थाने से छूटे राजेश ने बताया कि वह हबीबगंज स्टेशन के बाहर भाजपा कार्यालय के पीछे की बस्ती में रहता है. जिनजिन पुलिस अधिकारियों ने उस के साथ ज्यादती की है, वह उन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराएगा. अनामिका की हालत पुलिसिया पूछताछ और मैडिकल जांच में बेहद खराब हो चली थी लेकिन अच्छी बात यह थी कि इस बहादुर लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. मीडिया के सपोर्ट और संगठनों के धरनेप्रदर्शनों ने उस के जख्मों पर मरहम लगाने का काम किया. अब वह आईपीएस अधिकारी बन कर सिस्टम को सुधारना चाहती है. उस के मातापिता भी उसे हिम्मत बंधाते रहे और हरदम उस के साथ रहे, जिस से भावनात्मक रूप से वह टूटने व बिखरने से बच गई.

बवाल शांत करने के उद्देश्य से सरकार ने भोपाल के आईजी योगेश चौधरी और रेलवे पुलिस की डीएसपी अनीता मालवीय को भी पुलिस हैडक्वार्टर भेज दिया. अनीता मालवीय इस बलात्कार कांड पर ठहाके लगाती नजर आई थीं, जिस पर उन की खूब हंसी उड़ी थी. डाक्टरों ने डाक्टरी जांच में की बहुत बड़ी गलती हर कोई जानता है कि ऐसी सजाओं से लापरवाह और दोषी पुलिस कर्मचारियों का कुछ नहीं बिगड़ता. आज नहीं तो कल वे फिर मैदानी ड्यूटी पर होंगे और अपने खिलाफ लिए गए एक्शन का बदला और भी बेरहमी से अपराधियों के अलावा आम लोगों से लेंगे.

सरकारी अमले किस मुस्तैदी से काम करते हैं, इस की एक बानगी फिर सामने आई. अनामिका की मैडिकल जांच सुलतानिया जनाना अस्पताल में हुई थी. प्रारंभिक रिपोर्ट में एक जूनियर डाक्टर ने लिखा था कि संबंध ‘विद कंसर्न’ यानी सहमति से बने थे. इस रिपोर्ट में एक हास्यास्पद बात एक्यूज्ड की जगह विक्टिम शब्द का प्रयोग किया था. इस पर भी काफी छीछालेदर हुई. तब सीनियर डाक्टर्स ने गलती स्वीकारते हुए इसे लिपिकीय त्रुटि बताया, मानो कुछ हुआ ही न हो. रेलवे की नई एसपी रुचिवर्धन मिश्रा ने इसे मानवीय त्रुटि बताया तो भोपाल के कमिश्नर अजातशत्रु श्रीवास्तव ने लापरवाही बरतने वाली डाक्टरों खुशबू गजभिए और संयोगिता को कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया. ये दोनों डाक्टर इस के पहले ही अपनी गलती स्वीकार चुकी थीं. उन की यह कोई महानता नहीं थी बल्कि मजबूरी हो गई थी. बाद में रिपोर्ट सुधार ली गई.

अगर वक्त रहते इस गलती की तरफ ध्यान नहीं जाता तो इस का फायदा केस के आरोपियों को मिलता. वजह बलात्कार के मामलों में मैडिकल रिपोर्ट काफी अहम होती है. तरस और हैरानी की बात यह है कि जिस लड़की के साथ 6 दफा बलात्कार हुआ,उस की रिपोर्ट में सहमति से संबंध बनाना लिख दिया गया. शायद इस की आदत डाक्टरों को पड़ गई है या फिर इस की कोई और वजह हो सकती है, जिस की जांच किया जाना जरूरी है. अनामिका बलात्कार कांड में एक भाजपा नेता का नाम भी संदिग्ध रूप से आया था, जो बारबार पुलिस थाने में आरोपियों के बचाव के लिए फोन कर रहा था.

पुलिस ने चारों दुर्दांत वहशी दरिंदों गोलू चिढार उर्फ बिहारी, अमर, राजेश उर्फ चेतराम और रमेश मेहरा से पूछताछ कर उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. अनामिका चाहती है कि इन दरिंदों को चौराहे पर फांसी दी जाए पर बदकिस्मती से देश का कानून ऐसा है, यहां पीडि़ता की भावनाओं की कोई कीमत नहीं होती. भोपाल बार एसोसिएशन ने यह एक अच्छा संकल्प लिया है कि कोई भी वकील इन अभियुक्तों की पैरवी नहीं करेगा. गुस्साए आम लोग भी कानून में बदलाव चाहते हैं. उन का यह कहना है कि सुनवाई में देर होने से अपराधियों के हौसले बुलंद होते हैं और ऐसे अपराधों को शह मिलती है.

हालांकि खुद को आहत बता रहे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शीघ्र नया विधेयक ला कर कानून बनाने की बात कर चुके हैं और मामले की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने की बात कर चुके हैं, पर सच यह है कि अब कोई उन पर भरोसा नहीं करता. खासतौर से इस मामले में पुलिस की भूमिका को ले कर तो वे खुद कटघरे में हैं.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. अनामिका परिवर्तित नाम है.