Extramarital Affair : ड्राइवर के साथ मिलकर बेवफा बीवी ने की फौजी पति की हत्‍या

Extramarital Affair : दीपक पट्टनदार मिलिट्री में थे. साल में 1-2 महीने की छुट्टी पर ही आ पाते थे. इसी वजह से उन की पत्नी अंजलि ने अपने कार ड्राइवर प्रशांत पाटिल से संबंध बना लिए. इतना ही नहीं, बल्कि उन के छुट्टी पर आने पर…

कर्नाटक के जिला बेलगांव के कस्बा होन्निहाल की रहने वाली अंजलि पट्टनदार का पति दीपक पट्टनदार जब 4-5 दिनों तक घर नहीं लौटा तो घर वालों को उस की चिंता सताने लगी. उन्होंने अंजलि पट्टनदार से दीपक के बारे में पूछताछ की. क्योंकि उस दिन दीपक पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के साथ अपनी टाटा इंडिका कार से बाहर गया था. पूछने पर अंजलि ने बताया कि 28 जनवरी को जब वह गोडचिनमलकी से पिकनिक से लौट रही थी तो रात करीब साढ़े 9 बजे दीपक ने एक जगह कार रुकवाई और यह कहते हुए कार से नीचे उतर गए तुम कि तुम लोग घर जाओ, मुझे बेलगांव में कुछ जरूरी काम है, वह जल्दी ही घर आ जाऊंगा.

ससुराल वालों को अंजलि की बातों पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि दीपक को अगर कोई काम होता तो निपटा कर अब तक घर आ गया होता. उस का फोन भी स्विच्ड औफ था, इसलिए उन्होंने अंजलि से कहा कि वह दीपक के बारे में सही जानकारी दे. ससुराल वालों के दबाव को देखते हुए अंजलि मरिहाल पुलिस थाने पहुंच गई और अपने पति दीपक पट्टनदार की गुमशुदगी दर्ज करवा दी. अपनी शिकायत में अंजलि ने वहां के ड्यूटी अफसर को वही बात बताई, जो उस ने ससुराल वालों को बताई थी. उस ने कहा, ‘‘उस दिन से आज तक मेरे फौजी पति घर नहीं  लौटे. ऐसे में मैं ससुराल वालों और परिवार को क्या बताऊं. सब लोग उन के न लौटने का जिम्मेदार मुझे मान रहे हैं.’’ कहते हुए अंजलि सिसकसिसक कर रोने लगी.

बहरहाल, ड्यूटी पर तैनात अधिकारी ने अंजलि को सांत्वना देते हुए उस के पति दीपक की गुमशुदगी दर्ज कर ली. दीपक का हुलिया और फोटो भी ले लिए और अंजलि को घर भेज दिया. पुलिस ने उसे भरोसा दिया. कि पुलिस जल्द ही दीपक पट्टनदार को ढूंढ निकालेगी. जबकि पुलिस यह बात अच्छी तरह जानती थी कि यह काम इतना आसान नहीं था. फिर भी पुलिस को अपना दायित्व तो निभाना ही था. मामले की गंभीरता को देखते हुए ड्यूटी अफसर ने फौजी दीपक पट्टनदार के लापता होने की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. थाना पुलिस ने लापता दीपक पट्टनदार की खोजबीन शुरू कर दी. दीपक का हुलिया और फोटो जिले के सभी पुलिस थानों को भेज दिए गए. यह 4 फरवरी, 2020 की बात थी.

एक तरफ जहां पुलिस दीपक की तलाश में लगी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ दीपक के घर वाले अपनी जानपहचान, नातेरिश्तेदारों और उन के दोस्तों से लगातार संपर्क कर रहे थे. लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी दीपक के घर वालों और पुलिस को दीपक का कोई सुराग नहीं मिला. ऐसी स्थिति में घर वालों का विश्वास डगमगा रहा था. उन्हें यकीन हो गया था कि दीपक के अचानक गायब होने के पीछे कोई गहरा राज है, जिस का रहस्य दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल के पेट में छिपा है. इस का संकेत दीपक पट्टनदार के भाई उदय पट्टनदार ने थाने के अधिकारियों को दे दिया था. लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात जैसा ही रहा.

पुलिस अधिकारियों ने दीपक की पत्नी अंजलि और ड्राइवर प्रशांत पाटिल को कई बार थाने बुला कर पूछताछ भी की थी, लेकिन उन से दीपक के बारे में कोई सूचना नहीं मिली. 8-10 दिन और निकल जाने के बाद भी जब पुलिस दीपक के बारे में कोई पता नहीं लगा पाई तो उदय पट्टनदार और उस के घर वालों को लगने लगा कि दीपक के साथ कोई अनहोनी हुई है. जब धैर्य जवाब देने लगा तो वे लोग बेलगांव के एसपी लक्ष्मण निमबार्गी से मिले. उन लोगों ने कप्तान साहब को सारी कहानी सुनाई. एसपी लक्ष्मण निमबार्गी ने गुमशुदा फौजी दीपक पट्टनदार के घर वालों की बातों को बड़े ध्यान से सुना और थाना मरिहाल के थानाप्रभारी को शीघ्र से शीघ्र फौजी दीपक का पता लगाने के निर्देश दिए.

मामला एक प्रतिष्ठित परिवार और आर्मी अफसर की गुमशुदगी से संबंधित था. थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशन में जांच शुरू कर दी. उन्होंने बिना किसी विलंब के इंसपेक्टर एम.वी. बड़ीगेर, वी.पी. मुकुंद, वी.एस. नाइक, आर.एस. तलेवार आदि के साथ मिल कर जांच की रूपरेखा तैयार की. सब से पहले उन्होंने केस का अध्ययन किया. इस के साथ ही साथ उन्होंने तेजतर्रार मुखबिरों को गुमशुदा दीपक पट्टनदार का सुराग लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी, जिस में उन्हें कामयाबी भी मिली.  मुखबिरों से मिली सूचना के आधार पर थानाप्रभारी विजय कुमार सिंतुर ने दीपक पट्टनदार की पत्नी अंजलि का बैकग्राउंड खंगाला तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं, जिस के बाद अंजलि पर उन का शक गहरा गया.

उन्होंने अंजलि को थाने बुला कर उस से पूछताछ शुरू की तो वह पहले जैसा ही बयान दे कर पुलिस को गुमराह करने की कोशिश करती रही. इतना ही नहीं, वह अपनी ससुराल पक्ष के लोगों पर कई तरह के गंभीर आरोप लगा कर उन्हें पुलिस के राडार पर खड़ा करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन इस बार वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हुई. क्योंकि पुलिस को अंजलि के चालचलन को ले कर कई तरह की जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए वह पुलिस के शिकंजे में फंस ही गई. पुलिस ने उस के साथ जब थोड़ी सख्ती बरती तो उस के हौसले पस्त हो गए. अपना गुनाह स्वीकार करते हुए आखिर उस ने पति दीपक पट्टनदार की हत्या की कहानी पुलिस को बता दी. थानाप्रभारी के पूछताछ करने पर अंजलि ने पति दीपक की हत्या की जो कहानी बताई, वह चौंका देने वाली थी—

35 वर्षीय दीपक पट्टनदार सुंदर, स्वस्थ और महत्त्वाकांक्षी युवक था. उस के पिता का नाम चंद्रकांत पट्टनदार था. उस के परिवार में मांबाप के अलावा एक छोटा भाई उदय पट्टनदार के अलावा एक बहन थी. दीपक की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत थी. समाज में प्रतिष्ठा और मानसम्मान था. पढ़ाई पूरी करने के बाद दीपक ने अपनी किस्मत आजमाने के लिए इंडियन आर्मी का रुख किया तो उस का चयन हो गया. पहली पोस्टिंग के बाद जब वह अपने घर आया तो परिवार वालों ने उस की शादी अंजलि के साथ कर दी. 27 वर्षीय अंजलि के पास रूप भी था और यौवन भी. आर्मी जवान को पति के रूप में पा कर अंजलि खूब खुश थी. दीपक भी अंजलि का पूरापूरा ध्यान रखता था. उस की जरूरत की सारी चीजें घर में मौजदू रहती थीं.

इंडियन आर्मी में होने के कारण दीपक को अपने परिवार और पत्नी के साथ रहने के लिए बहुत ही कम समय मिलता था. वह साल में एकदो बार ही महीने 2 महीने के लिए घर आ पाता था. लेकिन इस से अंजलि का मन नहीं भरता था. छुट्टियों का यह समय तो पलक झपकते ही निकल जाता था. पति दीपक के जाने के बाद अंजलि को फिर वही अकेलापन, तनहाइयां घेर लेती थीं. उस का दिन तो किसी तरह गुजर जाता था लेकिन रात उस के लिए नागिन बन जाती थी. वह पूरी रात करवटें बदलबदल कर बिताती थी, जिस का फायदा अंजलि के चतुर चालाक ड्राइवर प्रशांत पाटिल ने उठाया. ड्राइवर प्रशांत पाटिल उसी के गांव का रहने वाला था. अंजलि और प्रशांत पाटिल के बीच की दूरियां जल्द ही दूर हो गईं.

अंजलि जब बनसंवर कर कहीं आनेजाने के लिए कार में बैठती थी, प्रशांत उस की सुंदरता और कपड़ों की खूबसूरती का पुल बांध देता था. मन ही मन उस के शरीर में सिहरन सी दौड़ जाती थी. जब वह दीपक पट्टनदार का वह नाम लेता तो अंजलि का मन विचलित हो जाता था. एक कहावत है कि नारी मन की 2 कमजोरियां होती हैं. वह प्यार और अपनी प्रशंसा की अधिक भूखी होती है. यह बात प्रशांत अच्छी तरह से जानता था. अंजलि कभी प्रशांत पाटिल के मुंह से अपनी तारीफ सुन कर मुसकराती तो कभी झेंप जाती थी.  समय अपनी गति से चल रहा था. एक तरफ जहां दीपक पट्टनदार अंजलि से दूर था, वहीं प्रशांत पाटिल उस के करीब आता जा रहा था. अंजलि का मन आकर्षित करने का वह कोई मौका नहीं छोड़ता था. धीरेधीरे अंजलि भी उस की तरफ आकर्षित होने लगी थी.

एक रात जब अंजलि की बेचैनी बढ़ी तो उस ने प्रशांत पाटिल को फोन कर सुबह ड्यूटी पर जल्दी आने के लिए कहा. सुबह जब प्रशांत पाटिल ड्यूटी पर आया तो अंजलि प्रशांत के मनपसंद कपड़े पहन कर कार में आ बैठी. कार जब घर के कंपाउंड से बाहर निकली तो अंजलि ने अपनी खामोशी तोड़ते हुए कहा, ‘‘प्रशांत देखो आज, मैं ने तुम्हारी पसंद के कपड़े पहने हैं.’’

‘‘वही तो देख रहा हूं मालकिन, आज किस पर बिजली गिराएंगी. बताओ, कहां चलना है?’’ प्रशांत ने कहा.

‘‘बिजली किस पर गिरेगी, यह मैं बाद में बताऊंगी. पहले तुम मुझे अपनी मनपसंद जगह ले कर चलो, क्योंकि मैं ने आज तुम्हारे मनपसंद कपड़े पहने हैं. आज मैं केवल तुम्हारे लिए ही तैयार हुई हूं.’’

पहले तो प्रशांत पाटिल की समझ में अंजलि की रहस्यमय बातें नहीं आईं, लेकिन जब समझ में आईं तो अंजलि के अशांत मन का तूफान आ कर शांत हो चुका था. अंजलि प्रशांत के साथ पहले एक पार्क में गई. वहां अंजलि ने उसे साफसाफ बता दिया कि वह उसे कितना प्यार करती है. मालकिन का यह झुकाव देख कर प्रशांत भी फूला नहीं समा रहा था. उस के बाद अंजलि उसे एक होटल में ले गई और पतिपत्नी के नाम से 3 घंटे के लिए एक कमरा बुक किया. वहां दोनों ने अपनी सीमाओं को तोड़ दिया. एक बार जब मर्यादा की सीमाएं टूटीं तो फिर टूटती ही चली गईं. ज्योति जब से ड्राइवर प्रशात के संपर्क में आई, तब से अपने घर वालों से कटीकटी सी रहने लगी थी. घर के कामों में उस की कोई रुचि नहीं रह गई थी.

उस के मन में जब भी मौजमस्ती का तूफान उठता, वह घर वालों से कोई न कोई बहाना कर ड्राइवर प्रशांत के साथ कभी बेलगांव तो कभी गोकाक के लिए निकल जाती थी. कभी पार्कों में तो कभी मौल और कभी अच्छे होटलों में जा कर वह प्रशांत के साथ मौजमस्ती कर लौट आती थी.अंजलि के बदले हुए इस रूप से घर वाले अनभिज्ञ नहीं थे. वह जल्दी ही घर वालों की नजरों में आ गई. ये लोग जब अंजलि के बाहर जाने और लौटने पर सवाल उठाते तो वह उन पर बिफर पड़ती. उस ने यह कह कर सब का मुंह बंद कर दिया कि कार उस की, ड्राइवर उस का और पैसा उस के पति का है. जब वह इन चीजों का प्रयोग करती है तो उन के पेट में दर्द क्यों उठता है. उस का मन जहां करेगा, वहां जाएगी.

मामला नाजुक होने के कारण घर वाले तब तक खामोश रहे, जब तक दीपक घर नहीं आया. 29 दिसंबर, 2019 को दीपक 2 महीने की छुट्टी पर जब घर आया तो घर वालों ने उसे उस की पत्नी के विषय में सारी बातें बता कर उसे सचेत कर दिया. पहले तो दीपक को घर वालों की बातों पर विश्वास ही नहीं हुआ. क्योंकि 7 साल के वैवाहिक जीवन में उसे कभी भी अंजलि के प्रति कोई शिकायत नहीं मिली थी. पूरा परिवार अंजलि के व्यवहार से खुश था. लेकिन बिना आग के धुआं तो उठता नहीं है. उसे यह बात जल्द समझ में आ गई. दीपक ने चुपचाप अंजलि पर नजर रखी तो अंजलि की बेवफाई जल्द ही उस के सामने आ गई.

हालांकि अंजलि और प्रशांत अपने संबंधों के प्रति काफी सावधानी बरतते थे. लेकिन वह इस में सफल नहीं हुए. दीपक को जल्द ही महसूस होने लगा कि अंजलि का उस के प्रति अब पहले जैसा व्यवहार और लगाव नहीं है. अंजलि के बदले हुए इस व्यवहार पर दीपक ने जब उसे आड़ेहाथों लिया तो अंजलि ने दीपक से माफी मांग कर उस समय तो मामला शांत कर दिया लेकिन अपने आप को वह समझा नहीं सकी. उस के दिल में प्रशांत पाटिल के प्रति जो लौ जल रही थी, वह बुझी नहीं थी. उस ने जब अपने मन में पति और प्रेमी की तुलना की तो उसे प्रेमी पति से ज्यादा प्यारा लगा.

लेकिन यह तभी संभव था जब पति नामक कांटा उस की जिंदगी से बाहर निकल जाता. इस विषय पर काफी मंथन के बाद अंजलि ने पतिरूपी कांटे को अपने और प्रेमी के बीच से निकाल फेंकने की एक गहरी साजिश रची. अपनी साजिश की बात अंजलि ने जब प्रशांत को बताई तो वह खुशीखुशी अंजलि की साजिश में शामिल ही नहीं हुआ, बल्कि अपने दोस्त नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को भी योजना में शामिल कर लिया. इस के बाद अंजलि ने पति को ज्यादा प्यार जताना शुरू कर दिया ताकि उसे शक न हो. घर का माहौल और दीपक का व्यवहार अपने अनुरूप देख कर अंजलि ने अपनी साजिश को अंतिम रूप देने के लिए पिकनिक का प्रोग्राम बनाया. पिकनिक के लिए गोडचिनमलकी फौल को चुना गया.

घटना के दिन अंजलि पति दीपक, ड्राइवर प्रशांत पाटिल और उस के 2 दोस्तों नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद को साथ ले कर पिकनिक के लिए निकली. योजना के अनुसार, ड्राइवर प्रशांत ने गोडचिनमलकी के पहले ही एक सुनसान जगह पर कार रोड की साइड में खड़ी कर दी. साथ ही उस ने शराब पीने की भी इच्छा जाहिर की. एक ही गांव और जानपहचान होने के कारण दीपक उन्हें मना नहीं कर सका. उन लोगों ने खुद तो शराब पी ही, दीपक को भी जम कर पिला दी थी. शराब के नशे में मदहोश होने के बाद प्रशांत अपने दोनों दोस्तों की मदद से दीपक को जंगल के भीतर ले गया. जब तक काम खत्म नहीं हुआ, अंजलि कार में बैठी रही.

दीपक को जंगल के भीतर ले जाने के बाद प्रशांत पाटिल ने अपने साथ लाए चाकू से कई वार कर दीपक को मौत की नींद सुला दिया. इस के बाद उस के शव के 4 टुकड़े कर जंगल में फेंक दिए. दीपक पट्टनदार की हत्या कर उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद सब अपनेअपने घर चले गए, जहां से मरिहाल पुलिस के हत्थे चढ़ गए. घर वालों के पूछने पर अंजलि ने वही बातें दोहरा दी थी, जो उस ने पुलिस अधिकारियों को गुमराह करने के लिए बताई थीं. मरिहाल पुलिस की गिरफ्त में आई अंजलि पट्टनदार, ड्राइवर प्रशांत पाटिल, नवीन कंगेरी और प्रवीण हिदेद से विस्तृत पूछताछ कर पुलिस ने 20 फरवरी, 2020 को उन की निशानदेही पर गोडचिनमलकी के जंगलों में जा कर दीपक के अस्थिपंजर बरामद कर लिए.

जिन्हें पोस्टमार्टम के लिए बेलगांव जिला अस्पताल भेज दिया गया और सभी अभियुक्तों को फौजी दीपक पट्टनदार की हत्या कर लाश ठिकाने लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें हिडंलगा जिला जेल भेज दिया गया.

 

Murder Stories : दोस्त की पत्नी को फंसाकर किया दोस्त का ही कत्ल

Murder Stories : राधा ईश्वर दयाल से शादी करने के बाद खुश नहीं थी. अपनी महत्त्वाकांक्षाएं पूरी करने के लिए उसने पति के दोस्त छोटेलाल से संबंध बना लिए. इस के बाद राधा ने जो चाल चली वह इतनी खतरनाक…

साधारण परिवार में पलीबढ़ी राधा को न सिर्फ अपने परिवेश से नफरत थी, बल्कि गरीबी को भी वह अभिशाप समझती थी. लिहाजा होश संभालने के बाद से ही उस ने खुद को सतरंगी सपनों में डुबो दिया था. वह सपनों में जीने की कुछ यूं अभ्यस्त हुई कि गुजरते वक्त के साथ उस ने हकीकत को सिरे से नकार दिया. हकीकत क्या है, वह जानना ही नहीं चाहती थी. मगर बेटी की बढ़ती उम्र के साथसाथ पिता श्रीकृष्ण की चिंताएं भी बढ़ती जा रही थीं. राधा के पिता श्रीकृष्ण कन्नौज के तालग्राम थानाक्षेत्र के अमोलर गांव में रहते थे.

वह मेहनतमजदूरी कर के जैसेतैसे अपने परिवार का गुजारा कर रहे थे. परिवार में पत्नी गीता के अलावा 3 बेटियां थीं, पुष्पा, सुषमा और राधा. पुष्पा और सुषमा का उन्होंने विवाह कर दिया था. अब केवल राधा बची थी. राधा अभी किशोरावस्था में ही थी, जब उस के पिता श्रीकृष्ण ने उस के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू कर दिया था. वह बेटी के हाथ पीले कर के अपने फर्ज से मुक्ति पा लेना चाहते थे. राधा अब तक यौवन की दहलीज पार कर चुकी थी. गेहुंआ रंग, छरहरी काया और बड़ीबड़ी आंखें उस का आकर्षण बढ़ाती थीं. कुल मिला कर वह आकर्षक युवती थी. उस के यौवन की चमकदमक से गांव के लड़कों की भी आंखें चुंधियाने लगी थीं. वे राधा के आगेपीछे मंडराने लगे थे. यह देख कर राधा मन ही मन खुश होती थी. लेकिन वह किसी को भी घास नहीं डालती थी.

आखिरकार उस के पिता ने अपनी कोशिशों के बूते पर उस के लिए एक लड़का तलाश कर लिया. उस का नाम ईश्वर दयाल था. वह कन्नौज के ही तिर्वा थानाक्षेत्र के मलिहापुर गांव का निवासी था. ईश्वर के पिता बच्चनलाल का देहांत हो चुका था. मां लक्ष्मी के अलावा उस के 2 बड़े भाई राजेश और राजवीर थे. पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई आपसी सहमति से बंटवारा कर के अलगअलग रह रहे थे. घर का बंटवारा जरूर हो गया था लेकिन उन के दिल अब भी नहीं बंटे थे. सुखदुख में सब साथ खड़े होते थे. भाइयों की तरह ईश्वर दयाल भी मेहनतमजदूरी करता था. उधर घर वालों ने करीब 8 साल पहले राधा का विवाह ईश्वर दयाल से कर जरूर दिया था लेकिन वह पति से खुश नहीं थी. इस की वजह यह थी कि राधा ने जिस तरह के पति के सपने संजोए थे, ईश्वर दयाल वैसा नहीं था.

वह तो एक सीधासादा इंसान था, जो अपने परिवार में खुश था और उस की दुनिया भी अपने परिवार तक ही सीमित थी. राधा की तरह वह न तो ऊंचे सपने देखता था और न ही उस की महत्त्वाकांक्षाएं ऊंची थीं. ऊपर से उसे पहननेओढ़ने, सजनेसंवरने का शौक भी नहीं था. राधा को पति ईश्वर दयाल का सीधापन बहुत अखरता था. वह चाहती थी कि उस का पति बनसंवर कर रहे. उसे घुमाने ले जाए, सिनेमा दिखाए. मगर ईश्वर दयाल को यह सब करने में संकोच होता था. उस की यह मजबूरी राधा को नापसंद थी. लिहाजा उस का मन विद्रोह करने लगा. वक्त गुजरता रहा. इसी बीच राधा 2 बेटियों और 1 बेटे की मां बन गई तो ईश्वर दयाल खुशी से फूला नहीं समाया.

उसे लगा अब राधा अपनी जिद छोड़ कर गृहस्थी में रम जाएगी. लेकिन जिस नदी को हिलोरें लेनी ही हों, उसे भला कौन रोक सकता है. ईश्वर दयाल से राधा की कामना का वेग थमा नहीं था. वह तो बस मौके की तलाश में थी. जब परिवार बढ़ा तो ईश्वर दयाल की जिम्मेदारियां भी बढ़ गईं. वह सुबह काम पर निकलता तो शाम को ही घर आता. ईश्वर दयाल के गांव में ही छोटेलाल रहता था. वह गांव का संपन्न किसान था. परिवार में उस की पत्नी श्यामा और 2 बेटियां और एक बेटा था. एक ही गांव में रहने के कारण ईश्वर दयाल और छोटेलाल की दोस्ती थी. दोनों ही शराब के शौकीन थे. उन की जबतब शराब की महफिल जम जाती थी.

अधिकतर छोटेलाल ही शराब की पार्टी का खर्चा किया करता था. एक दिन छोटेलाल मटन लाया. मटन की थैली ईश्वर दयाल को देते हुए बोला, ‘‘आज हम भाभी के हाथ का पका हुआ मटन खाना चाहते हैं.’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, राधा बहुत स्वादिष्ट मटन बनाती है. एक बार तुम ने खा लिया तो अंगुलियां चाटते जाओगे. ’’ कहते हुए ईश्वर दयाल ने मटन की थैली राधा को पकड़ा दी. इस के बाद ईश्वर दयाल और छोटेलाल साथ लाई शराब की बोतल खोल कर बैठ गए. बातें करते हुए छोटेलाल शराब तो ईश्वर दयाल के साथ पी रहा था लेकिन उस का मन राधा में उलझा हुआ था और निगाहें लगातार उस का पीछा कर रही थीं. छोटेलाल को उस की खूबसूरती भा गई थी. जैसेजैसे नशा चढ़ता गया, वैसेवैसे उस की निगाहों में राधा का शबाब नशीला होता गया.

शराब का दौर खत्म हुआ तो राधा खाना परोस कर ले आई. खाना खा कर छोटेलाल ने राधा और उस के द्वारा बनाए गए खाने की दिल खोल कर तारीफ की. राधा भी उस की बातों में खूब रस ले रही थी. खाना खाने के बाद छोटेलाल अपने घर लौट गया. इस के बाद तो ईश्वर दयाल के घर रोज ही महफिल सजने लगी. छोटेलाल ने राधा से चुहलबाजी करनी शुरू कर दी. राधा भी उस की चुहलबाजियों का जवाब देती रही. राधा की आंखों में छोटेलाल को अपने लिए चाहत नजर आने लगी थी. उस के अंदाज भी कुछ ऐसे थे जैसे कि वह खुद उस के करीब आना चाहती है.

दरअसल, राधा को छोटेलाल में वह सब खूबियां नजर आई थीं, जो वह चाहती थी. छोटेलाल अच्छे पैसे कमाता था और खर्च भी दिल खोल कर करता था. ऐसे में मन मार कर ईश्वर दयाल के साथ रह रही राधा के सपनों को नए पंख लग गए. छोटेलाल का झुकाव अपनी तरफ देख कर वह बहुत खुश थी. हर रोज की मुलाकात के बाद वे दोनों एकदूसरे से घुलतेमिलते चले गए. छोटेलाल हंसीमजाक करते हुए राधा से शारीरिक छेड़छाड़ भी कर देता था. राधा उस का विरोध नहीं करती, बल्कि मुसकरा देती. हरी झंडी मिल जाने पर छोटेलाल राधा को जल्द से जल्द पा लेना चाहता था, इसलिए उस ने मन ही मन एक योजना बनाई.

एक दिन जब वह ईश्वर दयाल के साथ उस के घर में बैठा शराब पी रहा था तो उस ने खुद तो कम शराब पी लेकिन ईश्वर को जम कर शराब पिलाई. देर रात शराब की महफिल खत्म हुई तो दोनों ने खाना खाया. छोटेलाल ने भरपेट खाना खाया जबकि ईश्वर दयाल मुश्किल से कुछ निवाले खा कर एक तरफ लुढ़क गया. छोटेलाल की मदद से राधा ने ईश्वर दयाल को चारपाई पर लेटा दिया. इस के बाद हाथ झाड़ते हुए राधा बोली, ‘‘अब इन के सिर पर कोई ढोल भी बजाता रहे तो भी यह सुबह से पहले जागने वाले नहीं.’’

फिर उस ने छोटेलाल की आंखों में झांकते हुए भौंहें उचकाईं, ‘‘तुम घर जाने लायक हो या इन के पास ही तुम्हारी चारपाई भी बिछा दूं.’’

छोटेलाल के दिल में उमंगों का सैलाब उमड़ पड़ा. वह सोचने लगा कि राधा भी चाहती है कि वह यहीं रुके और उस के साथ प्यार का खेल खेले. इसलिए बिना देर किए उस ने कहा, ‘‘हां, नशा कुछ ज्यादा हो गया है, मेरा भी बिस्तर लगा दो.’’

इस के बाद राधा ने छोटेलाल के लिए भी चारपाई बिछा कर बिस्तर लगा दिया. वह खुद बच्चों के साथ दूसरे कमरे में सोने चली गई. छोटेलाल की आंखों में नींद नहीं थी. उस की आंखों के सामने बारबार राधा की खूबसूरत काया घूम रही थी. उस के कई बार मिले शारीरिक स्पर्श से वह रोमांचित हुआ था. उस स्पर्श की दोबारा अनुभूति पाने के लिए वह बेकरार था. ईश्वर दयाल की ओर से वह निश्चिंत था. इसलिए वह दबेपांव चारपाई से उठा और ईश्वर दयाल के पास जा कर उसे हिला कर देखा. उस पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं हुई तो वह धड़कते दिल से उस कमरे की ओर बढ़ गया, जिस में राधा बच्चों के साथ सो रही थी.

कमरे में चारपाई पर बच्चे लेटे थे. जबकि राधा जमीन पर बिस्तर लगा कर लेटी थी. कमरे में जल रही लाइट को बंद कर के छोटेलाल राधा के पास जा कर बिस्तर पर लेट गया. जैसे ही उस ने राधा को बांहों में भरा तो वह दबी जुबान में बोली, ‘‘अब यहां क्यों आए हो, जाओ यहां से.’’

‘‘अब तुम को अपने प्यार का असली मजा देने आया हूं.’’ कह कर उस ने राधा को अपने अंदाज में प्यार करना शुरू कर दिया. इस के बाद तो मानो दो जिस्मों के अरमानों की होड़ लग गई. कपड़े बदन से उतरते गए और हसरतें बेलिबास होती गईं. फिर उन के बीच वह संबंध बन गया जो सिर्फ पतिपत्नी के बीच में होना चाहिए. एक ने अपने पति के साथ बेवफाई की थी तो दूसरे ने दोस्त के साथ दगाबाजी. उस रात के बाद राधा और छोटेलाल एकदूसरे को समर्पित हो गए. राधा छोटेलाल के संग पत्नी धर्म निभाने लगी तो छोटेलाल ने भी राधा को अपना सब कुछ मान लिया.

राधा के संग रास रचाने के लिए छोटेलाल हर दूसरेतीसरे दिन ईश्वर दयाल के घर महफिल जमाने लगा. ईश्वर दयाल को वह नशे में धुत कर के सुला देता, उस के बाद राधा के बिस्तर पर पहुंच जाता. अब वह दिन में भी राधा के पास पहुंचने लगा था. उस के आने से पहले ही राधा बच्चों को घर के बाहर खेलने भेज देती थी. फिर दोनों निश्चिंत हो कर रंगरलियां मनाते थे. 13 जनवरी, 2020 को अचानक ईश्वर दयाल गायब हो गया. घर वालों ने उसे काफी तलाश किया. तलाश करने पर देर रात गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर कलुआपुर गांव के माध्यमिक विद्यालय के पास सड़क किनारे ईश्वर दयाल की लाश पड़ी मिली.

परिजनों ने जब लाश देखी तो फूटफूट कर रोने लगे. इसी बीच किसी ने घटना की सूचना कोतवाली तिर्वा को दे दी. सूचना पा कर इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने लाश का निरीक्षण किया. पहली नजर में मामला एक्सीडेंट का लग रहा था. लाश के ऊपर किसी वाहन के टायर के निशान मौजूद थे. लाश के पास ही एक गमछा पड़ा मिला. परिजनों से पूछा गया कि क्या वह गमछा ईश्वर दयाल का है, तो उन्होंने मना कर दिया. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा चौंके कि अगर ईश्वर दयाल की मौत एक्सीडेंट से हुई है तो किसी और का गमछा यहां कैसे आ गया. इस का मतलब यह कि ईश्वर दयाल की हत्या कर के उसे एक्सीडेंट का रूप दिया गया है.

यह गमछा हत्यारे का है, जो जल्दबाजी में छूट गया है. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने उस गमछे को अपने कब्जे में ले लिया. फिर आवश्यक पूछताछ के बाद उन्होंने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस के बाद 14 जनवरी, 2020 की सुबह 10 बजे ईश्वर दयाल की मां लक्ष्मी देवी की लिखित तहरीर पर इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने थाने में अज्ञात के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने सर्वप्रथम घटना की रात घटनास्थल पर मौजूद रहे मोबाइल नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. जब डिटेल्स सामने आई तो उस में कुछ नंबर ही थे. उन नंबरों में से 3 फोन नंबर ऐसे थे, जिन की लोकेशन एक साथ आ रही थी. उन नंबरों में एक नंबर मलिहापुर के छोटेलाल का था.

छोटेलाल के बारे में जानकारी जुटाई गई तो पता चला, उस की ईश्वर दयाल से गहरी दोस्ती थी. वह ईश्वर दयाल के घर आताजाता था. छोटेलाल के उस की पत्नी से अवैध संबंध थे. इस के बाद इंसपेक्टर टी.पी. वर्मा ने 23 फरवरी, 2020 को राधा, उस के प्रेमी छोटेलाल, छोटेलाल के दोस्त गिरिजाशंकर और रिश्तेदार सुघर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. गिरिजाशंकर और सुघर सिंह के मोबाइल नंबर की लोकेशन छोटेलाल के फोन नंबर की लोकेशन के साथ मिली थी. इस के बाद कोतवाली में जब उन से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर के हत्याकांड की वजह भी बता दी.

छोटेलाल और राधा के बीच नाजायज संबंधों का सिलसिला अनवरत चल रहा था. लेकिन उस में खलल तब पड़ा, जब ईश्वर दयाल ने राधा के मोबाइल में छोटेलाल का नंबर देखा. इतना ही नहीं, हर रोज उस नंबर पर कईकई बार काफी देर तक बात की गई थी. यह देख कर ईश्वर दयाल का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया. उस ने राधा से पूछा तो वह बहाने बनाने लगी. इस पर ईश्वर दयाल ने राधा की जम कर पिटाई कर दी.  उस पिटाई से राधा अपने पति ईश्वर दयाल के प्रति नफरत से भर उठी. इस के बाद ईश्वर दयाल उन दोनों के मिलने पर बाधक बनने लगा. दोनों किसी तरह मिलते भी तो वह उन का विरोध करता. इस पर राधा ने ईश्वर दयाल को अपनी जिंदगी से हमेशा के लिए हटाने का फैसला कर लिया.

उस ने छोटेलाल से कहा कि ईश्वर दयाल के रहते हम एक नहीं हो सकते. उस का इलाज करना ही पड़ेगा. फिर छोटेलाल ईश्वर दयाल को ठिकाने लगाने की जुगत में लग गया. राधा ने अपनी मां गीता से बात की तो गीता भी अपनी बेटी के कुकृत्य में शामिल हो गई. गीता जानती थी कि छोटेलाल के साथ राधा ज्यादा खुश रहेगी. इसलिए वह उस का साथ देने को तैयार हो गई. छोटेलाल ने अपने दोस्त गिरिजाशंकर निवासी भूलभुलियापुर थाना तिर्वा और रिश्तेदार सुघर सिंह से बात की. सुघर सिंह मैनपुरी जिले के थाना किसनी के गांव बसहत का रहने वाला था. इस समय वह कन्नौज की छिबरामऊ तहसील में रह रहा था. वह तहसील में कार्यरत चपरासी सरोज की मारुति वैन चलाता था.

छोटेलाल ने दोनों से बात कर के उन को ईश्वर दयाल की हत्या करने को तैयार कर लिया. उस के बाद योजना बना कर राधा और उस की मां गीता को बता दिया. योजनानुसार, 13 जनवरी 2020 को सुघर सिंह चपरासी सरोज की मारुति वैन ले कर आ गया. उस में छोटेलाल और गिरिजाशंकर सवार हो गए. छोटेलाल ने ईश्वर दयाल को शराब पीने को बुलाया तो वह उस के पास आ गया. उसे छोटेलाल और गिरिजाशंकर ने पिछली सीट पर अपने बीच में बैठा लिया. इस के बाद सभी ने गांव से निकल कर कुछ दूरी पर शराब पी. ईश्वर दयाल के नशे में होने पर छोटेलाल और गिरिजाशंकर ने गला दबा कर उस की हत्या कर दी. इस के बाद कलुआपुर के माध्यमिक विद्यालय के पास पहुंच कर उस की लाश सड़क किनारे डाल दी.

सुघर सिंह ने ईश्वर दयाल को कई बार कार के पहियों से कुचला, ताकि उस की मौत महज एक हादसा समझी जाए. इसी बीच उधर आ रहे किसी दूसरे वाहन की लाइट उन पर पड़ी तो हड़बड़ी में वे लोग वैन में बैठ कर वहां से भाग निकले. इसी हड़बड़ी के कारण छोटेलाल का गमछा ईश्वर दयाल की लाश के पास गिर गया था. इसी से पुलिस को शक हो गया कि ईश्वर दयाल की हत्या की गई है. अंतत: आरोपी कानून की गिरफ्त में आ गए. पुलिस ने उन की गिरफ्तारी के बाद हत्या में प्रयुक्त मारुति वैन नंबर यूपी78ई जे2368 और मोबाइल फोन भी बरामद कर लिया.

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक राधा की मां गीता फरार थी. पुलिस उस की गिरफ्तारी के लिए प्रयासरत थी.॒

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

UP News : पत्नी की हत्या कर शव पर एक क्विंटल का पत्थर बांधकर बांध में फेंका

UP News :कभीकभी अचानक ऐसा कुछ हो जाता है कि हम समझ तक नहीं पाते कि यह सब कैसे और क्यों हुआ. सच यह है कि यह वक्त की ताकत होती है, जो इंसान के कर्म के हिसाब से अपनी मौजूदगी का अहसास कराती है. भरत दिवाकर ने नमिता को ठिकाने लगाने की जो योजना बनाई थी, उस ने बनाते हुए सोचा भी नहीं होगा कि इस का उलटा भी हो सकता है. आखिर यह सब…,

15 जनवरी, 2020. उत्तर प्रदेश का जिला चित्रकूट. थाना भरतकूप के थानाप्रभारी संजय उपाध्याय अपने औफिस में बैठे थे. तभी भरतकूप के ही रहने वाले यशवंत सिंह उन के पास आए. यशवंत सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस के रिटायर्ड सबइंसपेक्टर थे. यशवंत सिंह ने थानाप्रभारी को अपना परिचय दिया तो उन्होंने उन को सम्मान से कुरसी पर बैठाया. इस के बाद उन्होंने उन से आने का कारण पूछा तो यशवंत सिंह ने कहा, ‘‘सर, एक बहुत बड़ी प्रौब्लम आ गई है.’’

‘‘बताएं, क्या बात है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘कल से मेरी बेटी नमिता का कहीं पता नहीं चल रहा है. मुझे आशंका है कि उस के पति पूर्व ब्लौक प्रमुख भरत दिवाकर ने उस की हत्या कर के लाश कहीं गायब कर दी है.’’

‘‘क्या?’’ यह सुनते ही एसओ संजय उपाध्याय चौंके, ‘‘आप की बेटी की हत्या कर के लाश गायब कर दी?’’

‘‘हां सर, भरत भी कल से ही लापता है. उस का भी कहीं पता नहीं है.’’ यशवंत सिंह ने बताया.

‘‘ठीक है, आप एक तहरीर लिख कर दे दें. मैं मुकदमा दर्ज कर आवश्यक काररवाई करता हूं. इस बारे में जैसे ही मुझे कोई सूचना मिलती है, आप को इत्तला कर दूंगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

यशवंत सिंह ने अपने 35 वर्षीय दामाद भरत दिवाकर को नामजद करते हुए लिखित तहरीर दे दी. उस तहरीर के आधार पर पुलिस ने नमिता की गुमशुदगी दर्ज कर ली. इस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो मामला सही पाया गया. पड़ताल के दौरान एसओ उपाध्याय को पता चला कि 14 जनवरी, 2020 की रात करीब 10 बजे भरत दिवाकर को पत्नी नमिता के साथ गाड़ी में एक मिठाई की दुकान पर देखा गया था. उस के बाद से ही दोनों लापता थे. मामला गंभीर था. एसओ संजय उपाध्याय ने इसे बहुत संजीदगी से लिया. उन्होंने इस की सूचना एसपी अंकित मित्तल, एएसपी बलवंत चौधरी और सीओ (सिटी) रजनीश यादव को दे दी.

मामला समाजवादी पार्टी के नेता और पूर्व ब्लौक प्रमुख व उस की पत्नी के रहस्यमय ढंग से लापता होने से जुड़ा था. वैसे भी भरत दिवाकर कोई छोटामोटा आदमी नहीं था. वह खुद तो पूर्व ब्लौक प्रमुख था ही, उस की दादी दशोदिया देवी भी पूर्व ब्लौक प्रमुख थीं. दशोदिया देवी शहर की जानीमानी हस्ती थीं. इस परिवार का रुतबा था, शान थी, ऐसे में पुलिस का परेशान होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं थी. भरत दिवाकर और उस की पत्नी नमिता का पता लगना जरूरी था. उसी दिन सुबह 11 बजे के करीब भरत दिवाकर की बहन सुमन के मोबाइल पर एक काल आई थी. काल भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद ने की थी. उस ने सुमन को बताया कि भरत भैया रात करीब 2-3 बजे बरुआ सागर बांध पर आए थे. उन की गाड़ी में बोरे में कोई वजनी चीज थी. उन के साथ मैं भी था.

हम दोनों बोरे में भरी चीज को ले कर बांध के किनारे पहुंचे. वहां पहले से एक नाव खड़ी थी. हम दोनों बोरे को ले कर नाव पर सवार हुए और आगे बढ़ गए. बोरा बांध में पलटते वक्त अचानक नाव पानी में पलट गई. अपनी जान बचा कर मैं तो किसी तरह तैर कर पानी से बाहर निकल आया, लेकिन भैया पानी में डूब गए. रामसेवक निषाद की बाद सुन कर सुमन हतप्रभ रह गई. उस ने यह बात अपनी मां चुनबुद्दी देवी से बताई तो मां के भी होश फाख्ता हो गए. बीती रात से मांबेटी भरत के घर लौटने का इंतजार कर रही थीं. लेकिन वह घर नहीं लौटा. उस का फोन भी नहीं लग रहा था.

भरत दिन में भले ही कहीं भी रहता हो, शाम होते ही घर लौट आता था. जब वह रात भर घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों को चिंता हुई. वे लोग उस की तलाश में जुट गए. उस के सारे यारदोस्तों से फोन कर के पूछ लिया गया, लेकिन उस का कहीं कोई पता नहीं चला. जब सुबह 11 बजे रामसेवक ने फोन से सुमन को सूचना दी तो घर वाले समझे कि भरत के साथ अनहोनी हो चुकी है. फिर क्या था, घर में कोहराम मच गया, रोनापीटना शुरू हो गया. ऐसे में सुमन ने थोड़े संयम से काम लिया.

उस ने भाई के साथ हुई अनहोनी की जानकारी समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार को दे कर मदद की गुहार लगाई. क्योंकि उस समय सुमन को यही ठीक लगा. भरत के बांध में डूबने की जानकारी होते ही वह भी सकते में आ गया. जिस बरुआ सागर बांध में घटना घटी थी, वह भरतकूप थाना क्षेत्र में पड़ता था. अनूप ने इस की जानकारी भरतकूप थाने के एसओ संजय उपाध्याय को दे दी. एसओ संजय ने शिवराम चौकीप्रभारी अजीत सिंह को सूचित किया और मौके पर पहुंचने के आदेश दिए. अजीत सिंह के मौके पर पहुंचने के कुछ देर बाद एसओ संजय सिंह पुलिस टीम के साथ बरुआ सागर बांध पहुंच गए.

बांध के किनारे भरत दिवाकर की सफेद रंग की कार यूपी26डी 3893 लावारिस खड़ी मिली. कार की तलाशी ली गई तो उस में एक पैर की लेडीज चप्पल मिली. सुमन ने चप्पल पहचान ली. वह चप्पल उस की भाभी की थी. पुलिस ने बरामद चप्पल साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले ली. नमिता और भरत दिवाकर के गायब होने की खबर जिले भर में फैल गई. धीरेधीरे बांध पर लोगों की भीड़ जमा होने लगी. थोड़ी देर में  एएसपी बलवंत चौधरी, सीओ रजनीश यादव, कोतवाल अनिल सिंह, सपा के जिलाध्यक्ष अनूप कुमार और भरत दिवाकर के घर वाले भी पहुंच गए.

एएसपी बलवंत चौधरी ने एक नाव की व्यवस्था कराई. नाव के साथ ही एक गोताखोर और एक बड़े जाल का इंतजाम भी करवाया गया. पूरा इंतजाम हो जाने के बाद उन्होंने भरत का पता लगाने के लिए नाव में सवार हो कर बांध में उतरने का फैसला किया. पुलिस गोताखोर के साथ पूरा दिन बांध की खाक छानती रही लेकिन न तो भरत का कोई पता चला और न ही नमिता का. उधर पुलिस ने भरत दिवाकर के ड्राइवर रामसेवक निषाद को हिरासत में ले कर पूछताछ जारी रखी थी. लगातार चली कड़ी पूछताछ के बाद रामसेवक पुलिस के सामने टूट गया. उस ने जुर्म कबूलते हुए पुलिस को बताया कि भरत ने अपनी पत्नी नमिता की हत्या कर दी थी.

वे दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर ठिकाने लगाने के लिए बरुआ बांध लाए थे. लाश ठिकाने लगाने में मैं ने उन का साथ दिया. गाड़ी में से लाश निकाल कर हम ने एक बोरे में भर दी. फिर हम ने दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का पत्थर भर कर नमिता की कमर में बांध दिए, ताकि लाश पानी के ऊपर न आ सके और उस की मौत का राज सदा के लिए इसी बांध में दफन हो कर रह जाए. रामसेवक के बयान से साफ हो गया था कि भरत दिवाकर ने ही अपनी पत्नी नमिता की हत्या की थी और लाश ठिकाने लगाने के चक्कर में वह पानी में गिर कर डूब गया था. खैर, उस दिन पुलिस की मेहनत का कोई खास परिणाम नहीं निकला. शवों की बरामदगी के लिए एसपी अंकित मित्तल ने इलाहाबाद के स्टेट डिजास्टर रिस्पौंस फंड (एसडीआरएफ) से संपर्क कर मदद मांगी.

अगली सुबह यानी 16 जनवरी, 2020 की सुबह 11 बजे एसडीआरएफ की टीम चित्रकूट पहुंची और अपने काम में जुट गई. बांध काफी बड़ा और गहरा था. टीम को सर्च करते हुए सुबह से शाम हो गई, इस बीच नमिता की लाश तो मिल गई, लेकिन भरत दिवाकर का कहीं पता नहीं चला. बांध से नमिता की लाश मिलने के बाद पुलिस को यकीन हो गया कि भरत की लाश भी इसी बांध में कहीं फंसी पड़ी होगी. पुलिस ने जरूरी काररवाई कर के नमिता की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भिजवा दी. अगले दिन पुलिस को नमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

रिपोर्ट में उस का गला दबा कर हत्या करने की पुष्टि हुई. यानी भरत दिवाकर ने नमिता की गला दबा कर हत्या की थी. अब सवाल यह था कि उस ने उस की हत्या क्यों की? इस का जवाब भरत से ही मिल सकता था, जबकि वह अभी भी लापता था. सच्चाई का पता लगाना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती थी. आखिरकार नौवें दिन यानी 22 जनवरी को उस समय भरत दिवाकर का चैप्टर बंद हो गया, जब उस की लाश बांध के अंदर पानी में उतराती हुई मिली. इस से लोगों के बीच चल रही तरहतरह की अटकलों पर हमेशा के लिए विराम लग गया. नमिता हत्याकांड राज बन कर रह गया था. इस राज से परदा उठाना पुलिस के लिए लाजिमी हो गया था.

उधर पुलिस ने नमिता की लाश मिलने के बाद पति भरत दिवाकर और ड्राइवर रामसेवक निषाद के खिलाफ आईपीसी की धाराओं 302, 201 के तहत मुकदमा दर्ज कर रामसेवक को गिरफ्तार कर लिया था. उस ने भरत दिवाकर के साथ नमिता की लाश ठिकाने लगाने में उस का साथ दिया था. रामसेवक और घर वालों से हुई पूछताछ के बाद नमिता हत्याकांड की कहानी कुछ ऐसे सामने आई—

उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व एसआई यशवंत सिंह भरतकूप इलाके में परिवार के साथ रहते हैं. पत्नी विमला देवी और पांचों बच्चों के साथ वह खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे. उन के बच्चों में 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटियों में नमिता उर्फ मीनू तीसरे नंबर की थी. बेटा सब से बड़ा था. यशवंत सिंह ने उस की गृहस्थी बसा दी थी. चारों ननदों में से अर्चना की नमिता से ही अच्छी पटती थी. अर्चना नमिता की भाभी ही नहीं, अच्छी सहेली भी थी. वह अपने दिल की हर बात, हर राज भाभी से शेयर करती थी. भरत दिवाकर से प्रेम वाली बात जब नमिता ने अर्चना से बताई तो वह चौंके बिना नहीं रह सकी. ननद नमिता को उस ने बड़े प्यार से समझाया कि अपनी और घर की मानमर्यादा का खयाल जरूर रखे. कहीं कोई ऐसा कदम न उठाए जिस से जगहंसाई हो.

भाभी को उस ने विश्वास दिलाया कि वह कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिस से मांबाप का सिर समाज में झुके. उस के बाद उस ने भाभी से अपने प्यार की कहानी सिलसिलेवार बता दी थी. बात नमिता के कालेज के दिनों की है. उन्हीं दिनों कालेज में भरत दिवाकर भी पढ़ता था. कालेज में नमिता की खूबसूरती के खूब चर्चे थे. नमिता के दीवानों में भरत दिवाकर भी था, जो उस की खूबसूरती पर फिदा था. कालेज में आने के बाद भरत पढ़ाई पर ध्यान देने के बजाय नमिता के पीछे चक्कर काटता रहता था. आखिरकार नमिता कुंवारे दिल को कब तक अपने दुपट्टे के पीछे छिपाए रखती. अंतत: उस के दिल के दरवाजे पर भरत दिवाकर के प्यार का ताला लग ही गया.

खूबसूरत नमिता ने भरत की आंखों के रास्ते उस के दिल की गहराई में मुकाम बना लिया था. दिन के उजाले में भरत की आंखों के सामने मानो हर घड़ी नमिता की मोहिनी सूरत थिरकती रहती थी. नमिता के दिल में भी ऐसी ही हलचल मची थी, जैसे किसी शांत सरोवर में किसी ने कंकड़ फेंक कर लहरें पैदा कर दी हों. भरत दिवाकर और नमिता के दिलों में मोहब्बत की मीठीमीठी लहरें उठने लगीं. दोनों एकदूसरे की सांसों में समा चुके थे. चाहत दोनों ओर थी, सो धीरेधीरे बातें शुरू हुईं और फिर दोनों मिलने भी लगे. इस से चाहत भी बढ़ती गई और नजदीकियां भी. प्यार की इस बुनियाद को पक्का करने के लिए दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया.

प्यार की राह में नमिता ने कदम आगे बढ़ा तो लिया था, लेकिन उस के अंजाम को सोच कर वह सिहर उठी थी. वह जानती थी कि उस के प्यार पर उस के पिता स्वीकृति की मोहर नहीं लगाएंगे. अपने प्यार को पाने के लिए उसे घर वालों से बगावत करनी होगी. इस के लिए वह मानसिक रूप से तैयार थी. आखिरकार सन 2014 में नमिता ने घरपरिवार से बगावत कर के प्यार की राह थाम ली और भरत दिवाकर की दुलहन बन गई. भरत और नमिता ने कोर्टमैरिज कर ली. अनमने ढंग से ही सही भरत के घर वालों ने नमिता को स्वीकार कर लिया था.

बेटी द्वारा उठाए कदम से यशवंत सिंह की बरसों की कमाई सामाजिक मानमर्यादा धूमिल हो गई थी. पिता ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन का अपना खून अपनों को ही कलंकित कर देगा. जिस दिन बेटी ने अपनी मरजी से पिता की दहलीज लांघी थी, उसी दिन से उन्होंने सीने पर पत्थर रख कर नमिता से हमेशा के लिए रिश्ता तोड़ लिया था. परिवार से उन्होंने कह दिया था कि आज के बाद नमिता हमारे लिए मर चुकी है. गलती से जिस ने भी उस से रिश्ता जोड़ने की कोशिश की, वह भी मरे के समान होगा. यशवंत सिंह के फैसले से सब डर गए और अपनेअपने दिलों से नमिता की यादों को सदा के लिए निकाल फेंका. उस दिन के बाद यशवंत सिंह के घर में नमिता नाम का चैप्टर बंद हो गया.

भरत दिवाकर नमिता को पा कर बेहद खुश था, नमिता भी खुश थी. दिवाकर की रगों में दशोदिया देवी के खानदान का खून दौड़ रहा था, जहां से राजनीति की धारा फूटती थी. लोग दशोदिया देवी की कूटनीति का लोहा मानते थे तो पौत्र कहां पीछे रहने वाला था. उसे जो पसंद आ जाता था, उसे हासिल कर के ही दम लेता था. इसी के चलते वह अपनी पसंद की दुलहन घर लाया था. भरत ने दादी से राजनीति का ककहरा सीख लिया था. राजनीति के अखाड़े में मंझा पहलवान बन कर उतरे भरत ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वह जानता था कि राजनीति अवाम पर हुकूमत करने के लिए एक सुरक्षा कवच है और बहुत बड़ी ताकत भी. वह इस ताकत को हासिल कर के ही रहेगा.

अपनी मेहनत और संपर्कों के बल पर उस ने पार्टी और कर्वी ब्लौक में अच्छी छवि बना ली थी. इस का परिणाम भरत के हक में बेहतर साबित हुआ. भरत दिवाकर कर्वी ब्लौक का प्रमुख चुन लिया गया. ब्लौक प्रमुख चुने जाने के बाद यानी सत्ता का स्वाद चखते ही उस के पांव जमीन पर नहीं रहे. सत्ता के गुरूर में भरत अंधा हो चुका था. इतना अंधा कि वह यह भी भूल गया था उस की एक पत्नी है, जिस ने अपने परिवार से बगावत कर के उस का दामन थामा था. पत्नी के प्रति फर्ज को भी वह भूल गया था. कल तक भरत जिस नमिता के पीछे भागतेभागते थकता नहीं था, अब उसे देखने के लिए उस के पास वक्त नहीं होता था. यह बात नमिता को काफी खलती थी. इस की एक खास वजह यह थी कि न तो उसे परिवार का प्यार मिल रहा था और न ही किसी का सहयोग.

घर भौतिक सुखसुविधाओं से भरा था. भरत के मांबाप ने नमिता को भले ही अपना लिया था, लेकिन उसे बहू का दरजा नहीं दिया गया था. कोई उस से बात तक करना पसंद नहीं करता था. ऐसे में पति का ही एक सहारा था. लेकिन वह भी सत्ता की चकाचौंध में खो गया था. अब नमिता को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. मांबाप की बात न मान कर उस ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. अब वह वापस घर भी नहीं लौट सकती थी. पिता ने उस से सारे रिश्ते तोड़ कर सदा के लिए दरवाजा बंद कर दिया था.

नमिता को भविष्य की चिंता सताने लगी थी. चिंता करना इसलिए जायज था, क्योंकि वह भरत के बच्चे की मां बन चुकी थी. समय के साथ उस ने एक बेटी को जन्म दिया था, जिस का नाम तान्या रखा गया था. बेटी के भविष्य को ले कर नमिता चिंता में डूबी रहती थी. ससुराल की रुसवाइयां और पति की दूरियां नमिता के लिए शूल बन गई थीं. भरत कईकई दिनों तक घर से बाहर रहता था और जब लौटता था तो शराब के नशे में धुत होता था. पति का घर से बाहर रहना फिर भी नमिता ने सहन कर लिया था, लेकिन शराब पी कर घर आना उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

एक रात वह पति के सामने तन कर खड़ी हो गई, ‘‘मैं नहीं जानती थी कि आप ऐसे निकलेंगे. आप ने मेरी जिंदगी नर्क से बदतर बना दी और खुद शराब की बोतलों में उतर गए. मैं सिर्फ इस्तेमाल वाली चीज बन कर रह गई हूं, जिसे इस्तेमाल कर के कपड़े के गट्ठर की तरह कोने में फेंक दिया गया है. कभी सोचा आप ने कि मैं आप के बिना कैसे जीती हूं?’’

दोनों हथेलियों से आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस के लिए मैं अपना सब कुछ न्यौछावर कर रही हूं, वह शराबी निकलेगा, सितमगर निकलेगा. अरे मेरा न सही कम से कम बेटी के बारे में तो सोचते, जो इस दुनिया में अभीअभी आई है. कैसे जालिम पिता हो आप, ढंग से गोद में उठा कर प्यार भी नहीं कर सकते?’’

नशे में धुत भरत चुपचाप खड़ा पत्नी की डांट सुनता रहा. उस से ढंग से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. शरीर हवा में झूमता रहा. फिर वह बिस्तर पर जा गिरा और पलभर में खर्राटें भरने लगा. नमिता से जब बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी नाक पल्लू से ढंक ली. फिर उसे घूरती हुई बोली, ‘‘मेरी तो किस्मत ही फूटी थी जो इन से शादी कर ली. उधर मायका छूट गया और इधर… कितनी बदनसीब हूं मैं जो किसी के कंधे पर सिर रख कर आंसू भी नहीं बहा सकती.’’

उस दिन के बाद पति और पत्नी के बीच तल्खी बढ़ गई. छोटीमोटी बातों को ले कर दोनों के बीच विवाद होने लगे. पतिपत्नी के साथ हाथापाई की नौबत आने लगी. अब तो जब भी भरत शराब के नशे में घर लौटता, अकारण ही पत्नी के साथ मारपीट करता. दोनों के रोजरोज की किचकिच से घर युद्ध का मैदान बन गया था. बेटे और बहू के झगड़ों से तंग आ कर मांबाप ने उन्हें घर छोड़ कहीं और चले जाने को कह दिया. मांबाप का तल्ख आदेश सुन कर भरत गुस्से में तिलमिला उठा. उस ने सारा दोष पत्नी के मत्थे मढ़ दिया कि उसी की वजह से घर में अशांति फैली है. गलत वह खुद था न कि नमिता. लेकिन पुरुष होने के नाते उस की नजर में गलत नमिता थी, सो वह नमिता को ही मिटाने की सोचने लगा.

नमिता से छुटकारा पाने के लिए भरत ने मन ही मन एक खतरनाक योजना बना ली. योजना को अंजाम देने के लिए उस ने मोहल्ले में ही थोड़ी दूरी पर किराए का एक कमरा ले लिया और पत्नी और बेटी को ले कर वहां शिफ्ट कर गया. अपनी खतरनाक योजना में उस ने अपने ड्राइवर और ठेका पट्टी की देखभाल करने वाले रामसेवक निषाद को मिला लिया. दरअसल भरत का 5 साल का ब्लौक प्रमुख का कार्यकाल पूरा हो चुका था, ब्लौक प्रमुख की कुरसी जा चुकी थी. उस के बाद उसे भरतकूप थानाक्षेत्र स्थित बरुआ सागर बांध का ठेका पट्टा मिल गया था. उस ने वहां बड़े पैमाने पर मछलियां पाल रखी थीं. मछलियों के व्यापार से उसे काफी अच्छी आय हो जाती थी. इस की देखरेख उस ने अपने विश्वासपात्र ड्राइवर रामसेवक को सौंप रखी थी. वह मछलियों की रखवाली भी करता था और मालिक की गाड़ी भी चलाता था. यह बात अक्तूबर 2019 की है.

राजनीति के मंझे खिलाड़ी भरत दिवाकर ने पत्नी नमिता से छुटकारा पाने की ऐसी योजना बना रखी थी कि किसी को उस पर शक ही न हो. उस ने ऐसा जाल इसलिए बिछाया था ताकि उस का राजनीतिक कैरियर बचा रहे. इस के बाद उस ने पत्नी को विश्वास में लेना शुरू कर दिया. भरत ने नमिता को यकीन दिलाते हुए कहा, ‘‘नमिता, बीते दिनों जो हुआ उसे भूल जाओ. अब से हम एक नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं, जहां हमारे अलावा चौथा कोई नहीं होगा. जो हुआ, अब वैसा कभी नहीं होगा. इसीलिए मैं ने घर वालों से दूर हो कर यहां अलग रहने का फैसला किया है.’’

पति की बातें सुन कर नमिता की आंखें भर आईं. दरअसल, भरत चाहता था कि नमिता उस के बिछाए जाल में चारों ओर से घिर जाए. अपने मकसद में वह कामयाब भी हो गया था. भोलीभाली नमिता पति के छलावे को नहीं समझ पाई थी. अपनी योजना के अनुसार भरत ने 14 जनवरी, 2020 को बेटी तान्या को बड़ी साली के घर पहुंचा दिया. रात 8 बजे के करीब भरत नमिता से बोला, ‘‘एक दोस्त के यहां पार्टी है. पार्टी में शहर के बड़ेबड़े नामचीन लोग शामिल हो रहे हैं, तुम भी अच्छे कपड़े पहन कर तैयार हो जाओ. बहुत दिन से मैं ने तुम्हें कहीं घुमाया भी नहीं है. आज पार्टी में चलते हैं.’’

यह सुन कर नमिता खुश हुई. वह फटाफट तैयार हो गई. रात करीब 9 बजे दोनों अपनी कार से मुलायमनगर की एक मिठाई की दुकान पर पहुंचे. वहां से भरत ने मिठाई खरीदी. यहीं पर भरत से एक चूक हो गई. मिठाई खरीदते समय उस की और नमिता की एक साथ की तसवीर सीसीटीवी कैमरे में कैद हो गई. यही नहीं, वहां से निकलने के बाद दोनों ने एक होटल में खाना भी खाया. वहां भी खाना खाते समय दोनों सीसीटीवी में कैद हो गए. इसी सीसीटीवी फुटेज के जरिए पुलिस की जांच को गति मिली थी. बहरहाल, खाना खाने के बाद भरत और नमिता होटल से निकले. भरत ने ड्राइवर रामसेवक को इशारों में संकेत दिया कि कार बरुआ सागर बांध की ओर ले चले.

मालिक का इशारा पा कर उस ने यही किया. रामसेवक कार ले कर सुनसान इलाके में स्थित बांध की ओर चल दिया. भरत और नमिता कार की पिछली सीट पर बैठे थे. गाड़ी जैसे ही शहर से दूर सुनसान इलाके की ओर बढ़ी, तो निर्जन रास्ते को देख नमिता को पति पर शक हुआ क्योंकि उस ने पार्टी में जाने की बात कही थी. नमिता ने जैसे ही सवालिया नजरों से पति की ओर देखा तो वह समझ गया कि नमिता खतरे को भांप चुकी है. आखिर उस ने चलती कार में ही अपने मजबूत हाथों से नमिता का गला घोंट कर उसे मौत के घाट उतार दिया. योजना के मुताबिक, भरत ने पहले से ही कार की पीछे वाली सीट के नीचे एक प्लास्टिक का बड़ा बोरा रख लिया था. यही नहीं, बरुआ सागर बांध में लाश ठिकाने लगाने के लिए दिन में ही एक नाव की व्यवस्था भी कर ली थी.

इस काम के लिए भरत ने हरिहरपुर निवासी नाव मालिक रामसूरत से एक नाव की व्यवस्था करने के लिए कह दिया था. बदले में उस ने रामसूरत को कुछ रुपए एडवांस में दे दिए थे. रामसूरत ने भरत से नाव के उपयोग के बारे में पूछा तो उस ने डांट कर चुप करा दिया था. सब कुछ योजना के मुताबिक चल रहा था. लाश ठिकाने लगाने के लिए भरत रात 12 बजे के करीब कार ले कर बरुआ सागर बांध पहुंचा. बांध से कुछ दूर पहले रामसेवक ने कार रोक दी. दोनों ने मिल कर कार में से नमिता की लाश नीचे उतारी और उसे बोरे में भर दिया. फिर बोरे के मुंह को प्लास्टिक की एक रस्सी से कस कर बांध दिया.

उस के बाद बोरे के एक सिरे को भरत ने पकड़ लिया और दूसरा सिरा रामसेवक ने. दोनों बोरे को ले कर नाव के करीब पहुंच गए. वहां दोनों ने एक दूसरे बोरे में करीब एक क्विंटल का बड़ा पत्थर भर दिया, जिसे लाश की कमर में बांध दिया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि लाश उतरा कर पानी के ऊपर न आने पाए और राज हमेशा के लिए पानी में दफन हो कर रह जाए. भरत दिवाकर और रामसेवक ने दोनों बोरों को उठा कर नाव में रख दिया. फिर दोनों नाव में इत्मीनान से बैठ गए. नाव की पतवार रामसेवक ने संभाल रखी थी. कुछ ही देर में दोनों नाव ले कर बीच मंझधार में पहुंच गए, जहां अथाह गहराई थी. भरत ने रामसेवक को इशारा किया कि लाश यहीं ठिकाने लगा दी जाए.

इत्तफाक देखिए, जैसे ही दोनों ने लाश नाव से गिरानी चाही, नाव में एक तरफ अधिक भार हो गया और वह पानी में पलट गई. नाव के पलटते ही लाश सहित वे दोनों भी पानी में जा गिरे. रामसेवक तैरना जानता था, इसलिए वह तैर कर पानी से निकल आया और बांध पर खड़े हो कर मालिक भरत की बाट जोहने लगा. घंटों बीत जाने के बाद जब वह पानी से बाहर नहीं आया तो रामसेवक डर गया कि कहीं मालिक पानी में डूब तो नहीं गए. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो वह अपने घर लौट आया और इत्मीनान से सो गया. अगली सुबह यानी 15 जनवरी को उस ने भरत की छोटी बहन सुमन को फोन कर के भरत के बरुआ सागर बांध में डूब जाने की जानकारी दी.

इधर बेटी के अचानक लापता होने से परेशान पिता यशवंत सिंह ने भरत दिवाकर को आरोपी मानते हुए भरतकूप थाने में शिकायत दर्ज करा दी. बाद में बरुआ सागर बांध से नमिता की लाश पाए जाने के बाद पुलिस ने भरत दिवाकर और रामसेवक निषाद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के जांच शुरू कर दी. घटना के 9 दिनों बाद उसी बरुआ सागर से भरत दिवाकर की भी सड़ीगली लाश बरामद हुई, जो भोलीभाली पत्नी नमिता की हत्या को राज बनाना चाहता था. प्रकृति में भरत दिवाकर को अपने तरीके से अनोखी मौत दे कर नमिता को हाथोंहाथ इंसाफ दे दिया.

—कथा में कुछ नाम परिवर्तित हैं. कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

UP Crime : शादी से इनकार करने पर प्रेमी ने प्रेमिका का गला कैंची से काट डाला

UP Crime : अगर किसी युवक या युवती का प्रेम मिलन हुआ हो, लेकिन बाद में राहें अलगअलग हो गई हों तो कभी आमनेसामने पड़ने पर उन की मोहब्बत के मुरझाए फूल फिर से मुसकराने लगते हैं. लेकिन शादीशुदा होने की स्थिति में यह घातक होता है. सोना और आशीष को भी पहली मोहब्बत का…

उस दिन मार्च, 2020 की 17 तारीख थी. शाम के 4 बजे थे. मकान मालकिन पुष्पा किचन में चाय बनाने जा रही थी. तभी किसी ने डोरबैल बजाई. पुष्पा ने दरवाजा खोला तो दरवाजे पर 2 महिलाएं खड़ी थीं. उन में एक जवान थी, जबकि दूसरी अधेड़ उम्र की थी. पुष्पा ने अजनबी महिलाओं को देख कर परिचय पूछा तो उन्होंने कोई जवाब न दे कर पर्स से एक फोटो निकाली और पुष्पा को दिखाते हुए पूछा, ‘‘क्या यह आप के मकान में रहता है?’’

पुष्पा ने फोटो गौर से देखी फिर बोली, ‘‘हां, यह तो आशीष है. अपनी पत्नी सोना के साथ पिछले 6 महीने से हमारे मकान में रह रहा है. उस की पत्नी सोना कहीं बाहर काम करती है. इसलिए सप्ताह में 2-3 दिन ही आ पाती है. आज वह 12 बजे घर आई थी. आशीष भी घर पर था, लेकिन आधा घंटा पहले कहीं चला गया है.’’

मकान मालकिन पुष्पा से पूछताछ करने के बाद दोनों महिलाएं वापस चली गईं. दरअसल, ये महिलाएं गीता और उन की बहू ज्योति थीं, जो सरायमीता पनकी, कानपुर की रहने वाली थीं. सोना गीता की बेटी थी और आशीष सोना का प्रेमी था. आशीष ने कुछ देर पहले ज्योति के मोबाइल पर काल कर के जानकारी दी थी कि उस ने उस की ननद सोना को मार डाला है और उस की लाश दबौली निवासी पुष्पा के मकान में किराए वाले कमरे में पड़ी है, आ कर लाश ले जाओ.  ज्योति ने यह बात अपनी सास गीता को बताई. फिर सासबहू जानकारी लेने के लिए पुष्पा के मकान पर पहुंची, लेकिन वहां हत्या जैसी कोई हलचल न होने से दोनों वापस लौट आई थीं.

चाय पीतेपीते पुष्पा के मन में आशीष को ले कर कुछ शंका हुई तो वह पहली मंजिल स्थित उस के कमरे पर पहुंची. कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद थी और अंदर से खून बह कर बाहर की ओर आ रहा था. खून देख कर पुष्पा चीख पड़ी. मालकिन की चीख सुन कर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू तथा शिवानंद आ गए. इस के बाद पुष्पा ने कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर झांका तो उन की आंखें फटी रह गईं. कमरे में फर्श पर खून से लथपथ सोना की लाश पड़ी थी. लाश से खून रिस कर कमरे के बाहर तक आ गया था. सोना की लाश देख कर किराएदार भी भयभीत हो उठे. इस के बाद तो हत्या की खबर थोड़ी देर में पूरे दबौली (उत्तर) में फैल गई. लोग पुष्पा के मकान के बाहर जुटने लगे.

शाम लगभग 5 बजे पुष्पा ने थाना गोविंद नगर फोन कर के किराएदार आशीष की पत्नी सोना की हत्या की जानकारी दे दी. हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने इस घटना से अधिकारियों को अवगत कराया और पुलिस टीम के साथ दबौली (उत्तर) स्थित पुष्पा के मकान पर जा पहुंचे. मकान के बाहर भीड़ जुटी थी. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. भीड़ को पीछे हटा कर थानाप्रभारी अनुराग सिंह पुलिस टीम के साथ मकान की पहली मंजिल स्थित उस कमरे में पहुंचे जहां लाश पड़ी थी. सोना की हत्या बड़ी निर्दयता से की गई थी. लाश के पास ही खून से सनी कैंची तथा मोबाइल पड़ा था. देखने से लग रहा था कि हत्या के पहले मृतका से जोरजबरदस्ती की गई थी. विरोध करने पर उस के पति आशीष ने कैंची से वार कर उस की हत्या कर दी थी. न केवल सोना के पेट में कैंची घोंपी गई थी, बल्कि उस के गले को भी कैंची से छेदा गया था.

थानाप्रभारी अनुराग सिंह अभी घटनास्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एसएसपी अनंत देव, एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता और सीओ (गोविंद नगर) मनोज कुमार गुप्ता भी वहां आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और इंसपेक्टर अनुराग सिंह से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की. फोरैंसिक टीम ने निरीक्षण कर घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए. कैंची, दरवाजा और मेज पर रखे गिलास से फिंगरप्रिंट उठाए. जमीन पर फैले खून का नमूना भी जांच हेतु लिया गया.

निरीक्षण के दौरान सीओ मनोज कुमार गुप्ता की नजर मेज पर रखे लेडीज पर्स पर पड़ी. उन्होंने पर्स की तलाशी ली तो उस में साजशृंगार का सामान, कुछ रुपए तथा एक आधार कार्ड मिला. आधार कार्ड में युवती का नाम सोना सोनकर, पिता का नाम मुन्ना लाल सोनकर, निवासी सराय मीता, पनकी कानपुर दर्ज था. गुप्ताजी ने 2 सिपाहियों को आधार कार्ड में दर्ज पते पर सूचना देने के लिए भेज दिया. एसपी (साउथ) अपर्णा गुप्ता ने मकान मालकिन पुष्पा देवी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस के पति देवकीनंदन की मृत्यु हो चुकी है. 2 बेटे हैं, अजय व राकेश, जो बाहर नौकरी करते हैं. मकान के भूतल पर वह स्वयं रहती है, जबकि पहली मंजिल पर बने कमरों को किराए पर उठा रखा है.

मकान में 4 किराएदार शिवानंद, कमल, सुनील व टिंकू पहले से रह रहे थे. 6 महीना पहले आशीष नाम का युवक एक युवती के साथ किराए पर कमरा लेने आया था. उस ने उस युवती को अपनी पत्नी बताया, साथ ही यह भी बताया कि उस की पत्नी सोना दूरदराज नौकरी करती है. वह सप्ताह में 2 या 3 दिन ही आया करेगी. मैं ने उसे रूम का किराया 1600 रुपए बताया तो वह राजी हो गया और किराएदार के रूप में रहने लगा. उस की पत्नी सोना सप्ताह में 2 या 3 दिन आती थी. पुष्पा ने बताया कि आज 12 बजे सोना आशीष से मिलने आई थी. उस के बाद कमरे में क्या हुआ, उसे मालूम नहीं. आशीष 3 बजे चला गया था. उस के जाने के बाद 2 महिलाएं उस के बारे में पूछताछ करने आईं.

लेकिन आशीष रूम में नहीं था, यह जान कर वे दोनों चली गईं. महिलाओं की बातों से मुझे कुछ शक हुआ, तो मैं आशीष के रूम पर गई. वहां कमरे के बाहर खून देख कर मैं चीखी तो बाकी किराएदार आ गए. उस के बाद मैं ने यह सूचना पुलिस को दे दी. घटनास्थल पर अन्य किराएदार कमल, सुनील, टिंकू व शिवानंद भी मौजूद थे. सीओ मनोज कुमार गुप्ता ने उन से पूछताछ की तो उन सब ने बताया कि आशीष ने उन से सोना को अपनी पत्नी बताया था. वह हफ्ते में 2-3 बार आती थी. कमरा बंद कर दोनों खूब हंसतेबतियाते थे, कभीकभी उन दोनों में तूतूमैंमैं भी हो जाती थी. आज सोना 12 बजे आई थी. बंद कमरे में दोनों का झगड़ा हो रहा था. तेज आवाजें आ रही थीं. लेकिन हम लोगों ने ध्यान नहीं दिया. घटना की जानकारी तब हुई, जब मकान मालकिन चीखी.

किराएदारों से पूछताछ में एक किराएदार कमल ने बताया कि आशीष ने एक बार बताया था कि वह कानपुर के गजनेर का रहने वाला है. सीओ मनोज कुमार गुप्ता अभी किराएदारों से पूछताछ कर ही रहे थे कि मृतका सोना की मां गीता, बहन बरखा, निशू, भाभी ज्योति तथा भाई विक्की, सूरज, सनी और पीयूष आ गए. सोना का शव देख सभी दहाड़ मार कर रोने लगे. किसी तरह पुलिस अधिकारियों ने उन्हें शव से अलग किया और फिर पूछताछ की. एसपी अपर्णा गुप्ता को मृतका की मां गीता ने बताया कि 3 साल पहले उन की बेटी सोना की आशीष से दोस्ती हो गई थी. दोनों एक ही फैक्ट्री में काम करते थे. जब उसे दोनों की दोस्ती की बात पता चली तो उस ने सोना का विवाह कर दिया.

लेकिन सोना की अपने पति व ससुरालियों से नहीं पटी, वह मायके आ कर रहने लगी. अपने खर्चे के लिए उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में नौकरी कर ली. इस बीच आशीष ने सोना को फिर अपने प्रेम जाल में फंसा लिया और वह उसे अपने कमरे पर बुलाने लगा. कभीकभी वह घर भी आ जाता था. हम सब उसे अच्छी तरह जानते थे. पिछले कुछ दिनों से वह सोना पर शादी करने का दबाव डाल रहा था, लेकिन सोना शादी को राजी नहीं थी. आज भी आशीष ने सोना को अपने रूम में बुलाया और शादी का दबाव डाला. उस के न मानने पर आशीष ने जोरजबरदस्ती की और बेटी को मार डाला. सोना को मौत की नींद सुलाने के बाद आशीष ने मेरी बहू ज्योति के मोबाइल पर हत्या की सूचना दी कि आ कर लाश ले जाओ. तब उस के सभी बेटे काम पर गए थे.

वह बहू ज्योति को साथ ले कर दबौली आई और मकान मालकिन पुष्पा से मिली. लेकिन पुष्पा ने यह कह कर लौटा दिया कि आशीष अभी घर पर नहीं है. पुष्पा अगर हमें आशीष के कमरे तक जाने देती तो शायद उस की बेटी की जान बच जाती. पूछताछ के बाद एसपी अपर्णा गुप्ता ने थानाप्रभारी अनुराग सिंह को आदेश दिया कि वह मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजे और रिपोर्ट दर्ज कर के कातिल आशीष को गिरफ्तार करें. उस की गिरफ्तारी के लिए उन्होंने सीओ मनोज कुमार गुप्ता के निर्देशन में एक पुलिस टीम भी गठित कर दी. पुलिस अधिकारियों के आदेश पर थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने घटनास्थल से बरामद खून सनी कैंची, सोना का मोबाइल फोन और पर्स आदि चीजें जाब्ते की काररवाई में शामिल कर लीं.

इस के बाद मृतका के शव को पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय अस्पताल भेज दिया गया. थाने लौट कर अनुराग सिंह ने मृतका के भाई सूरज की तहरीर पर धारा 302 आईपीसी के तहत आशीष के विरुद्ध मुकदमा दर्ज कर लिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस टीम आशीष की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गई. पुलिस टीम ने मृतका सोना का मोबाइल फोन खंगाला तो आशीष का नंबर मिल गया, जिसे सर्विलांस पर लगा दिया गया. सर्विलांस से उस की लोकेशन गीतानगर मिली. पुलिस टीम रात 2 बजे गीतानगर पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही आशीष का फोन स्विच्ड औफ हो गया, जिस से उस की लोकेशन मिलनी बंद हो गई. निराश हो कर पुलिस टीम वापस लौट आई.

निरीक्षण के दौरान एक किराएदार ने सीओ मनोज कुमार गुप्ता को बताया था कि आशीष कानपुर देहात के गजनेर कस्बे का रहने वाला है. इस पर उन्होंने एक पुलिस टीम को गजनेर भेज दिया, जहां आशीष की तलाश की गई. सादे कपड़ों में गई पुलिस टीम ने दुकानदारों व अन्य लोगों को आशीष की फोटो दिखा कर पूछताछ की. लेकिन फोटो में आशीष चश्मा लगाए हुए था, जिस की वजह से लोग उसे पहचान नहीं पा रहे थे. पुलिस टीम पूछताछ करते हुए जब मुख्य रोड पर आई तो एक पान विक्रेता ने फोटो पहचान ली. उस ने बताया कि वह अजय ठाकुर है जो कस्बे के लाल सिंह का छोटा बेटा है. आशीष के पहचाने जाने से पुलिस को अपनी मेहनत रंग लाती दिखी. पुलिस टीम लाल सिंह के घर पहुंची. पुलिस ने लाल सिंह को फोटो दिखाई तो वह बोला, ‘‘यह फोटो मेरे बेटे आशीष सिंह की है.

घर के लोग उसे अजय ठाकुर के नाम से बुलाते हैं. आशीष कानपुर में नौकरी करता है. मेरा बड़ा बेटा मनीष सिंह भी गीतानगर, कानपुर में रहता है. पर आप लोग हैं कौन और आशीष की फोटो क्यों दिखा रहे हैं. उस ने कोई ऐसावैसा काम तो नहीं कर दिया?’’

पुलिस टीम ने अपना परिचय दे कर बता दिया कि उन का बेटा सोना नाम की एक युवती की हत्या कर के फरार हो गया है. पुलिस उसी की तलाश में आई है. अगर वह घर में छिपा हो तो उसे पुलिस के हवाले कर दो, वरना खुद भी मुसीबत में फंस जाओगे. पुलिस की बात सुन कर लाल सिंह घबरा कर बोला, ‘‘हुजूर, आशीष घर पर नहीं आया है. न ही उस ने मुझे कोई जानकारी दी है.’’

यह सुन कर पुलिस ने लाल सिंह को हिरासत में ले लिया. चूंकि लाल सिंह का बड़ा बेटा गीतानगर में रहता था और आशीष के मोबाइल फोन की लोकेशन भी गीता नगर की ही मिली थी. पुलिस को शक हुआ कि अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह अपने बड़े भाई के घर में छिपा हो सकता है. पुलिस टीम लाल सिंह को साथ ले कर वापस कानपुर आ गई और उस के बताने पर गीता नगर स्थित बड़े बेटे मनीष के घर छापा मारा. छापा पड़ने पर घर में हड़कंप मच गया. पिता के साथ पुलिस देख कर आशीष ने भागने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया और थाना गोविंद नगर ले आई. थाना गोविंद नगर में जब आशीष सिंह से सोना की हत्या के संबंध में पूछा गया तो उस ने सहज ही हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया. आशीष ने बताया कि शादी के पहले से दोनों के बीच प्रेम संबंध थे. सोना के घर वालों को पता चला तो उन्होंने उस की शादी कर दी, लेकिन सोना की पति से पटरी नहीं बैठी.

वह ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहने लगी. उस के बाद दोनों के बीच फिर से अवैध संबंध बन गए. सोना के कहने पर ही उस ने किराए का कमरा लिया था, जहां दोनों का शारीरिक मिलन होता था. आशीष ने बताया कि घटना वाले दिन सोना 12 बजे आई थी. आशीष ने उस से कहा कि वह पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन वह नहीं मानी. इसी बात को ले कर दोनों में झगड़ा हुआ. झगड़े के बीच आशीष ने यह सोच कर प्रणय निवेदन किया कि यौन प्रक्रिया में गुस्सा शांत हो जाता है, लेकिन सोना ने उसे दुत्कार दिया. शादी की बात न मानने और प्रणय निवेदन ठुकराने की वजह से आशीष को गुस्सा आ गया और उस ने पास रखी कैंची उठा कर सोना के पेट में घोंप दी. फिर उसी कैंची से उस का गला भी छेद डाला. हत्या करने के बाद वह फरार हो गया था.

चूंकि आशीष सिंह ने सोना की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था और पुलिस आला ए कत्ल भी बरामद कर चुकी थी, इसलिए थानाप्रभारी अनुराग सिंह ने अजय ठाकुर उर्फ आशीष सिंह को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. पुलिस पूछताछ में जो कहानी सामने आई, वह इस तरह थी—

कानपुर महानगर के पनकी थाना क्षेत्र में एक मोहल्ला है सराय मीता. मुन्नालाल सोनकर अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. मुन्नालाल सोनकर नगर निगम में सफाई कर्मचारी था. उसे जो वेतन मिलता था, उसी से परिवार का भरणपोषण होता था. मुन्नालाल अपनी बड़ी बेटी बरखा की शादी कर चुका था. बरखा से छोटी सोना 18 साल की हो गई थी. वह चंचल स्वभाव की थी. पढ़ाईलिखाई में मन लगाने के बजाए वह सजनेसंवरने पर ज्यादा ध्यान देती थी. नईनई फिल्में देखना, सैरसपाटा करना और आधुनिक फैशन के कपड़े खरीदना उस का शौक था. मुन्नालाल सीधासादा आदमी था. रहनसहन भी साधारण था. वह बेटी की फैशनपरस्ती से परेशान था.

सोना अपनी मां गीता के साथ दादानगर स्थित एक लोहा फैक्ट्री में काम करती थी. वहां से उसे जो वेतन मिलता था, उसे वह अपने फैशन पर खर्च करती थी. जिद्दी स्वभाव की सोना को बाजार में जो कपड़ा या अन्य सामान पसंद आ जाता, वह उसे खरीद कर ले आती. मातापिता रोकतेटोकते तो वह टका सा जवाब दे देती, ‘‘मैं ने सामान अपने पैसे से खरीदा है. फिर ऐतराज क्यों?’’

उस के इस जवाब से सब चुप हो जाते थे. सोना की अपनी भाभी ज्योति से खूब पटरी बैठती थी. सोना दादानगर स्थित जिस लोहा फैक्ट्री में काम करती थी, आशीष सिंह उसी में सुपरवाइजर था. वह मूलरूप से जिला कानपुर के देहात क्षेत्र के कस्बा गजनेर का रहने वाला था. उस का घरेलू नाम अजय था. लोग उसे अजय ठाकुर कहते थे. उस के पिता गांव में किसानी करते थे. सोना लोहा फैक्ट्री में पैकिंग का काम करती थी. निरीक्षण के दौरान एक रोज आशीष सिंह की निगाह खूबसूरत सोना पर पड़ी. दोनों की नजरें मिलीं तो दोनों कुछ देर तक आकर्षण में खोए रहे. जब आकर्षण टूटा तो सोना मुसकरा दी और नजरें झुका कर पैकिंग में जुट गई. नजरें मिलने का सुखद अहसास दोनों को हुआ.

अगले दिन सोना कुछ ज्यादा ही बनसंवर कर आई. आशीष उस के पास पहुंचा और इशारे से उसे अपने औफिस के कमरे में आने को कहा. वह उस के औफिस में आई तो आशीष ने उस से कुछ कहा, जिसे सुन कर सोना सकपका गई. वह यह कह कर वहां से चली गई कि कोई देख लेगा. सोना की ओर से हरी झंडी मिली तो आशीष बहुत खुश हुआ. आशीष सिंह पढ़ालिखा हृष्टपुष्ट युवक था. वह अच्छाखासा कमा भी रहा था. लेकिन वह शादीशुदा और एक बच्चे का बाप था. उस की पत्नी से नहीं बनी तो वह घाटमपुर स्थित अपने मायके में रहने लगी थी. आशीष सिंह ने सोना से यह बात छिपा ली थी. उस ने उसे खुद को कुंवारा बताया था.

सोना सजीले युवक आशीष से मन ही मन प्यार करने लगी और मां से नजरें बचा कर आशीष से फैक्ट्री के बाहर एकांत में मिलने लगी. दोनों के बीच प्यार भरी बातें होने लगीं. धीरेधीरे आशीष सोना का दीवाना हो गया. सोना भी उसे बेपनाह मोहब्बत करने लगी. प्यार परवान चढ़ा तो देह की प्यास जाग उठी. एक रोज आशीष सोना को अपने दादानगर वाले कमरे पर ले गया, जहां वह किराए पर रहता था. सोना जैसे ही कमरे में पहुंची, आशीष ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. आशीष के स्पर्श से सोना को बहकते देर नहीं लगी. आशीष जो कर रहा था, सोना को उस की अरसे से तमन्ना थी. इसलिए वह भी आशीष का सहयोग करने लगी. कुछ देर बाद आशीष और सोना अलग हुए तो बहुत खुश थे. इस के बाद तो यह सिलसिला ही बन गया. जब भी मन होता, शारीरिक संबंध बना लेते.

आशीष कमरे में अकेला रहता था, जिस से दोनों आसानी से मिल लेते थे. लेकिन कहते हैं कि प्यार चाहे जितना चोरीछिपे किया जाए, एक न एक दिन उस का भेद खुल ही जाता है. एक शाम सोना और गीता एक साथ फैक्ट्री से निकली तो कुछ दूर चल कर सोना बोली, ‘‘मां, मुझे गोविंद नगर बाजार से कुछ सामान लेना है. तुम घर चलो, मैं आ जाऊंगी.’’

गीता ने कुछ नहीं कहा. लेकिन उसे सोना पर संदेह हुआ. इसलिए उस ने सोना का गुप्तरूप से पीछा किया और उसे आशीष के साथ रंगेहाथ पकड़ लिया. गीता ने सोना को फटकारा और भलाबुरा कहा. साथ ही प्रेम से सिर पर हाथ रख कर समझाया भी, ‘‘बेटी, आशीष ठाकुर जाति का है और तुम दलित की बेटी हो. आशीष के घर वाले दलित की बेटी को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मेरी बात मानो और आशीष का साथ छोड़ दो, इसी में हम सब की भलाई है.’’

गीता का पति मुन्नालाल सफाईकर्मी था और शराब पीने का आदी. स्वभाव से वह गुस्सैल था. इसलिए गीता ने सोना की असलियत उसे नहीं बताई. इस के बजाए उस ने पति पर सोना का विवाह जल्द से जल्द करने का दबाव बनाया. इसी के साथ गीता ने सोना का फैक्ट्री जाना भी बंद करा दिया और उस पर कड़ी नजर रखने लगी. उस ने अपनी बहू ज्योति तथा बेटों को भी सतर्क कर दिया था कि वह जहां भी जाए, उस के साथ कोई न कोई रहे. मांभाइयों के कड़े प्रतिबंध के कारण सोना का आशीष से मिलन बंद हो गया. इस से सोना और आशीष परेशान हो उठे. दोनों मिलन के लिए बेचैन रहने लगे.

सोना को इस बात की भनक लग चुकी थी कि उस के घर वाले उस की शादी के लिए लड़का देख रहे हैं. जबकि सोना के सिर पर अब भी आशीष के प्यार का भूत सवार था. इधर मुन्नालाल की खोज भीमसागर पर समाप्त हुई. भीमसागर का पिता रामसागर दादानगर फैक्ट्री एरिया के मिश्रीलाल चौराहे के निकट रहता था. नहर की पटरी के किनारे उस का मकान था. रामसागर लकड़ी बेचने का काम करता था. उस का बेटा भीमसागर भी उस के काम में मदद करता था. मुन्नालाल ने भीमसागर को देखा तो उसे सोना के लिए पसंद कर लिया. हालांकि सोना ने शादी से इनकार किया, लेकिन मुन्नालाल ने उस की एक नहीं सुनी. अंतत: सन 2017 के जनवरी महीने की 10 तारीख को सोना का विवाह भीमसागर के साथ कर दिया गया.

भीमसागर की दुलहन बन कर सोना ससुराल पहुंची तो सभी ने उसे हाथोंहाथ लिया. सुंदर पत्नी पा कर भीमसागर भी खुश था, वहीं उस के मातापिता भी बहू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे. सब खुश थे, लेकिन सोना खुश नहीं नहीं थी. सुहागरात को भी वह बेमन से पति को समर्पित हुई. भीमसागर तो तृप्त हो कर सो गया, पर सोना गीली लकड़ी की तरह सुलगती रही. न तो उस के जिस्म की प्यास बुझी थी, न रूह की.  उस रात के बाद हर रात मिलन की रस्म निभाई जाने लगी. चूंकि सोना इनकार नहीं कर सकती थी, सो अरुचि से पति की इच्छा पूरी करती रही.

घर वालों की जबरदस्ती के चलते सोना ने विवाह जरूर कर लिया था, पर वह मन से भीमसागर को पति नहीं मान सकी थी. अंतरंग क्षणों में वह केवल तन से पति के साथ होती थी, उस का प्यासा मन प्रेमी में भटक रहा होता था. 3-4 महीने तक सोना ने जैसेतैसे पति से निभाया, उस के बाद दोनों के बीच कलह होने लगी. कलह का पहला कारण सोना का एकांत में मोबाइल फोन पर बातें करना था. भीमसागर को शक हुआ कि सोना का शादी से पहले कोई यार था, जिस से वह चोरीछिपे एकांत में बातें करती है. दूसरा कारण उस की फैशनपरस्ती तथा घर से बाहर जाना था. भीमसागर के मातापिता चाहते थे कि बहू मर्यादा में रहे और घर के बाहर कदम न रखे.

लेकिन सोना को घर की चारदीवारी में रहना पसंद नहीं था. वह स्वच्छंद हो कर घूमती थी. इन्हीं 2 बातों को ले कर सोना का भीमसागर और ससुराल के लोगों से झगड़ा होने लगा. आजिज आ कर साल बीततेबीतते सोना ससुराल छोड़ कर मायके आ कर रहने लगी.  गीता ने सोना को बहुत समझाया और ससुराल भेजने का प्रयास किया, लेकिन वह नहीं मानी. 6 महीने तक सोना घर में रही, उस के बाद उस ने गोविंद नगर स्थित एक स्कूल में आया की नौकरी कर ली. वह सुबह 8 बजे घर से निकलती, फिर शाम 5 बजे तक वापस आती. इस तरह वह मांबाप पर बोझ न बन कर खुद अपना भार उठाने लगी.

एक शाम सोना स्कूल से लौट रही थी कि दादानगर चौराहे पर उस की मुलाकात आशीष से हो गई. बिछड़े प्रेमी मिले तो दोनों खुश हुए. आशीष उसे नजदीक के एक रेस्तरां में ले गया, जहां दोनों ने एकदूसरे को अपनी व्यथाकथा सुनाई. बातोंबातों में आशीष उदास हो कर बोला, ‘‘अरमान मैं ने सजाए और तुम ने घर किसी और का बसा दिया.’’

सोना के मुंह से आह सी निकली, ‘‘हालात की मजबूरी इसी को कहते हैं. घर वालों ने मेरी मरजी के बिना शादी कर दी. मैं ने मन से उसे कभी पति नहीं माना. साल बीतते उस से मेरा मनमुटाव हो गया और मैं उसे छोड़ कर मायके आ गई.’’ आशीष मन ही मन खुश हुआ. फिर बोला, ‘‘क्या अब भी तुम मुझे पहले जैसा प्यार करती हो?’’

‘‘यह भी कोई पूछने की बात है. सच तो यह है कि मैं तुम्हें कभी भुला ही नहीं पाई. सुहागरात को भी तुम्हारी ही याद आती रही.’’ इस के बाद सोना और आशीष का फिर मिलन होने लगा. दोनों के बीच शारीरिक रिश्ता भी बन गया. आशीष कभीकभी सोना के घर भी जाने लगा. गीता को आशीष का घर आना अच्छा तो नहीं लगता था, पर उसे मना भी नहीं कर पाती थी. हालांकि गीता निश्चिंत थी कि सोना की शादी हो गई है. अब आशीष जूठे बरतन में मुंह नहीं मारेगा. पर यह उस की भूल थी. सोना के कहने पर आशीष ने अगस्त, 2019 में दबौली (उत्तरी) में किराए पर एक कमरा ले लिया. कमरा पसंद करने सोना भी आशीष के साथ गई थी. उस ने मकान मालकिन को बताया कि सोना उस की पत्नी है. मकान में अन्य किराएदार थे, उन को भी आशीष ने सोना को अपनी पत्नी बताया था.

सोना अब इस कमरे पर आशीष से मिलने आने लगी. सोना के आते ही रूम का दरवाजा बंद हो जाता और शारीरिक मिलन के बाद ही खुलता. किसी को ऐतराज इसलिए नहीं होता था, क्योंकि उन की नजर में सोना उस की पत्नी थी. आशीष के रूम में आतेजाते सोना को एक रोज एक फोटो हाथ लग गई, जिस में वह एक युवती और एक मासूम बच्चे के साथ था. इस युवती और बच्चे के संबंध में सोना ने आशीष से पूछा तो वह बगलें झांकने लगा. अंतत: उसे बताना ही पड़ा कि वह शादीशुदा है और तसवीर में उस की पत्नी व बच्चा है.

लेकिन मनमुटाव के चलते पत्नी घाटमपुर स्थित अपने मायके में रह रही है. यह पता चलने के बाद सोना का आशीष से झगड़ा हुआ. लेकिन आशीष ने किसी तरह सोना को मना लिया. आशीष को लगा कि सच्चाई जानने के बाद सोना कहीं उस का साथ न छोड़ दे. इसलिए वह उस पर दबाव डालने लगा कि वह अपने पति को तलाक दे कर उस से शादी कर ले. लेकिन सोना ने यह कह कर मना कर दिया कि पहले तुम अपनी पत्नी को तलाक दो. तभी मैं अपने पति से तलाक लूंगी. इस के बाद तलाक को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा होने लगा.

17 मार्च की दोपहर 12 बजे सोना दबौली स्थित आशीष के रूम पर पहुंची. आशीष ने उसे फोन कर के बुलाया था. सोना के आते ही आशीष ने रूम बंद कर लिया फिर दोनों में बातचीत होने लगी. बातचीत के दौरान आशीष ने सोना से कहा कि वह अपने पति से तलाक ले कर उस से शादी कर ले, पर सोना इस के लिए राजी नहीं हुई. उलटे पलटवार करते हुए वह बोली, ‘‘पहले तुम अपनी पत्नी से तलाक क्यों नहीं लेते, एक म्यान में 2 तलवारें कैसे रहेंगी?’’

तलाक को ले कर दोनों में गरमागरम बहस होने लगी. बहस के बीच आशीष ने प्रणय निवेदन किया, जिसे सोना ने ठुकरा दिया. इस पर आशीष जबरदस्ती पर उतर आया और सोना के कपड़े खींच कर उसे अर्धनग्न कर दिया. सोना भी बचाव में भिड़ गई. तलाक लेने से इनकार करने और शारीरिक संबंध न बन पाने से आशीष का गुस्सा आसमान पर जा पहुंचा. उस ने दीवार में बनी अलमारी में रखी कैंची उठाई और सोना के पेट में घोंप दी. सोना पेट पकड़ कर फर्श पर तड़पने लगी. उसी समय आशिष ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. सोना पेट पकड़ कर तड़पने लगी. उसी समय उस ने सोना के गले को कैंची से छेद डाला. कुछ देर बाद सोना ने दम तोड़ दिया.

सोना की हत्या करने के बाद आशीष ने कमरे के दरवाजे की कुंडी बाहर से बंद की और मकान के बाहर आ गया. बाहर आ कर उस ने सोना की भाभी ज्योति को सोना की हत्या की जानकारी दी, फिर फरार हो गया. इस घटना का भेद तब खुला, जब मकान मालकिन पुष्पा पहली मंजिल पर स्थित आशीष के कमरे पर पहुंची. पुष्पा ने इस घटना की सूचना थाना गोविंद नगर को दे दी. जांच में अवैध रिश्तों में हुई हत्या की बात सामने आई.  20 मार्च, 2020 को थाना गोविंद नगर पुलिस ने अभियुक्त आशीष सिंह को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट ए.के. सिंह की अदालत में पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Hindi Stories : हीरा चोरी करने वाले गैंग का पर्दाफाश

Hindi Stories : जैकब और ब्राउन ने योजना तो बहुत अच्छी बनाई थी. अपनी योजना का पहला चरण दोनों ने बखूबी पूरा भी कर लिया, लेकिन दूसरे चरण में पुलिस ने उन्हें धर लिया. सुकून की बात यह थी कि पुलिस ने उन्हें उस अपराध के लिए नहीं पकड़ा था, बल्कि उन्हें सिक्का चोर…

जैकब प्लाजा फाउंटेन के पास बेखयाली में खड़ा था. उस की नजरें उस लड़की पर जमी थीं जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. कुछ और सिक्के पानी में फेंक कर वह चली गई. उस के बाद एक औरत आई. वह भी फाउंटेन में सिक्के उछाल रही थी. जैकब सोचा करता था कि किसी तरह दौलत हाथ आ जाए. लेकिन लोग इतने होशियार हो गए हैं कि जल्दी बेवकूफ भी नहीं बनते. जैकब आजकल बहुत कड़की में था. उस ने सिर उठा कर आसमान की ओर देखा तो अनायास उस की नजर टाउन प्लाजा की खिड़की पर पड़ गई. खिड़की देख उस के दिमाग में एक आइडिया आ गया. उस ने खिड़की को गौर से देखा. वह खिड़की फाउंटेन के ठीक ऊपर बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर स्थित ज्वैलरी शौप की थी. उस के दिमाग में हलचल मच गई.

इस बीच कुछ बच्चे आ गए थे, जो फाउंटेन में सिक्के उछाल रहे थे. जैकब वहां से टेलीफोन बूथ पर पहुंचा और अपने दोस्त ब्राउन को फोन लगाया. काफी दिनों से ब्राउन ने कोई वारदात नहीं की थी. पुलिस के पास उस का रिकौर्ड साफ था. जैकब ने कहा, ‘‘ब्राउन, एक अच्छा आइडिया है. हम दोनों मिल कर काम कर सकते हैं. मैं यहां फाउंटेन प्लाजा के पास हूं, आ जाओ. एक अच्छी जौब है.’’

‘‘मुझे बुद्धू तो नहीं बना रहे हो. मैं तुम्हें 2 घंटे बाद ब्रिज पार्क बार में मिलता हूं.’’ ब्रिज पार्क बार पुरसुकून जगह थी. जैकब और ब्राउन की मीटिंग के लिए एक अच्छी जगह. ब्राउन ने कहा, ‘‘अब बताओ, क्या कहानी है?’’

‘‘टाउन डायमंड एक्सचेंज के हम मुट्ठी भर पत्थर चुपचाप से उठा सकते हैं, जिस की कीमत करीब 5 लाख डौलर होगी.’’ जैकब ने धीरे से बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो, यह कैसे हो सकता है?’’

‘‘तुम यह काम कर सकते हो. मैं तुम्हारा बाहर इंतजार करूंगा.’’‘‘बहुत खूब. यानी पुलिस मुझे दबोच ले और तुम बाहर इंतजार करो.’’ ब्राउन ने गुस्से से कहा.

‘‘कोई किसी को नहीं पकड़ेगा. तुम मेरी बात तसल्ली से सुनो. तुम किसी अमीरजादे की तरह चौथी मंजिल पर ज्वैलरी शौप पर पहुंचोगे और हीरों की एक ट्रे निकलवाओगे. वक्त दोपहर का होगा. इस वक्त बहुत कम ग्राहक होते हैं. उसी वक्त मैं हाल में हंगामा फैलाने का इंतजाम करूंगा. तुम फौरन मुट्ठी भर कीमती हीरे उठा लेना.’’

‘‘फिर मैं क्या करूंगा? क्या पत्थरों को निगल जाऊंगा?’’

‘‘यार पूरी बात तो सुनो. ऐसा कुछ नहीं है. सब की नजर बचा कर तुम मुट्ठी भर हीरे खिड़की से बाहर फेंक देना.’’

‘‘तुम्हारी बातें मेरे सिर से गुजर रही हैं. एसी की वजह से सारी खिड़कियां बंद होंगी.’’

‘‘मैं ने आज ही खिड़की खुली देखी है. उसी को देख कर यह आइडिया आया, क्योंकि कोई भी 4 मंजिल तय कर के हीरों के साथ नीचे नहीं उतर सकता. लेकिन हीरे अकेले 4 मंजिल उतर सकते हैं.’’

‘‘जैकब, मुझे यह पागलपन लग रहा है.’’ ब्राउन ने कहा.

‘‘तुम बात समझो. खिड़की काउंटर से ज्यादा दूर नहीं है. तुम हीरे उठा कर पलक झपकते ही खिड़की से बाहर उछाल देना. तुम्हें काउंटर से हट कर खिड़की तक जाने की भी जरूरत नहीं होगी. तुम अपनी जगह पर ही खड़े रहना. अगर तुम पर शक होता भी है तो तुम्हारी तलाशी ली जाएगी. तुम्हें मशीन पर खड़ा किया जाएगा, पर तुम्हारे पास से कुछ नहीं निकलेगा. मजबूरन तुम्हें छोड़ कर के वे दूसरे ग्राहकों को देखेंगे.’’

‘‘चलो ठीक है, हीरे बाहर चले जाएंगे. पर क्या तुम उन्हें कैच करोगे? एक तरफ कहते हो कि तुम हाल में हंगामा करोगे फिर बाहर पत्थरों का क्या होगा?’’ ब्राउन ने ताना कसा.

‘‘यही तो मंसूबे की खूबसूरती है.’’ जैकब मुसकराया, ‘‘खिड़की के ठीक नीचे खूबसूरत फव्वारा और हौज है. हीरे हौज की गहराई में चले जाएंगे. जैसे कि बैंक की वालेट में बंद हों. कोई भी वहां हीरे गिरते नहीं देख सकेगा, न कोई बाद में देख सकता है क्योंकि यह शीशे की तरह सफेद है. कीमती पत्थरों की यही तो खूबी है, कलर, कैरेट और कट बहुत जरूरी होते हैं.’’

‘‘पर जब सूरज की किरणें पड़ेंगी तो?’’

‘‘सूरज की किरणें पड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि पानी पर पूरे समय बिल्डिंग और पेड़ों का साया रहता है. मैं ने सब चैक कर लिया है. जब तक किसी को पता न हो कोई उन के बारे में नहीं जान सकता. 2-3 दिन बाद हम रात को आएंगे और आराम से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने समझाया.

ब्राउन ने सिर हिला कर कहा, ‘‘प्लान तो अच्छा है.’’

अगले दिन ठीक सवा 12 बजे ब्राउन टाउन प्लाजा की चौथी मंजिल पर पहुंच गया. गार्ड ने मामूली चैकिंग कर के उसे अंदर जाने दिया. हाल में बहुत कम ग्राहक थे. ब्राउन मौका देख कर ठीक खिड़की के सामने खड़ा हो गया. सिर झुका कर उस ने एक ट्रेकी तरफ इशारा किया. जैसे ही सेल्समैन ने ट्रे बाहर निकाली, जैकब प्रवेश द्वार के हैंडल पर हाथ रख कर झुका और धड़ाम से नीचे गिर गया. गेट पर खड़ा गार्ड उस की तरफ बढ़ा. अंदर के लोगों का ध्यान बंट गया. सब उस की तरफ देखने लगे.

‘‘मिस्टर, क्या हुआ? तुम ठीक हो न?’’ गार्ड ने उस पर झुक कर पूछा.

‘‘मुझे…मुझे…सांस…’’ फिर उस ने पानी के लिए इशारा किया. कुछ कस्टमर भी वहां जमा हो गए. 2 सेल्समैन भी आ गए. एक पानी ले आया. बड़ी मुश्किल से उस ने थोड़ाथोड़ा पानी पीया. वह बुरी तरह हांफ रहा था. जैकब की ऐक्टिंग बहुत शानदार थी. वह धीरेधीरे लड़खड़ाता हुआ लोगों के सहारे खड़ा हुआ. एक क्लर्क ने अपनी कुरसी पेश कर दी.

‘‘मैं शायद बेहोश हो गया था.’’ वह धीरे से बड़बड़ाया. ‘‘तुम्हें डाक्टर की जरूरत है?’’ क्लर्क ने पूछा.

‘‘नहीं…नहीं मुझे घर जाना है. आप का शुक्रिया. मैं अब ठीक महसूस कर रहा हूं.’’ उस ने ब्राउन की तरफ देखने की बेवकूफी नहीं की. बहुत धीरेधीरे गेट से बाहर निकल गया. इमारत से निकल कर वह फव्वारे की तरफ पहुंच गया. वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी. फव्वारे की लंबीऊंची धाराएं बड़े हौज में गिर रही थीं. उस की तह में सिवाए सिक्कों के और कुछ नजर नहीं आ रहा था. जैकब का अंदाजा दुरुस्त था. खुशी में उस ने भी एक सिक्का उछाल दिया. वहां से वह सीधा अपने फ्लैट पर पहुंचा. 2 घंटे के बाद ब्राउन की काल आ गई.

‘‘काम हो गया?’’ जैकब ने बेचैनी से पूछा.

‘‘काम तो हो गया पर बस इतना ही वक्त मिला था कि हीरे पानी में फेंक दूं. उस के बाद तो हंगामा मच गया, पुलिस आ गई. मैं चुपचाप अपनी जगह पर खड़ा रहा. वहां से हिला तक नहीं. शौप वालों ने कोई कसर उठा कर नहीं रखी. पुलिस भी मुस्तैद थी. मेरी 2 बार तलाशी ली गई, पर मेरे पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. डायमंड एक्सचेंज वाले सख्त हैरान, परेशान थे.

‘‘किसी ने तुम्हारा जिक्र भी किया पर क्लर्क ने यह कह कर बात खत्म कर दी कि वह आदमी गेट के अंदर नहीं आया था. गेट से ही वापस चला गया था. तुम्हारा मंसूबा शानदार था. शौप वाले मुझे छोड़ना नहीं चाहते थे, लेकिन पकड़ कर भी नहीं रख सकते थे. मैं निश्चिंत था. हर तरह की जांच करने के बाद करीब ढाई घंटे में मुझे छोड़ दिया गया. चलो, कल मिलते हैं ब्रिज पार्क में.’’

अगले दिन दोनों ब्रिज पार्क में बैठे बियर पी रहे थे. दोनों के चेहरे चमक रहे थे. जैकब ने कहा, ‘‘हम दोनों ने मिल कर शानदार कारनामे को अंजाम दिया है. ब्राउन, यह तो बताओ फिर वहां क्या हुआ?’’

‘‘मुझ से बारबार पूछा गया कि मैं ने क्या देखा. मेरा एक ही जवाब था कि मैं ने कुछ नहीं देखा. हां, मैं ने हीरे की ट्रे जरूर निकलवाई थी. इस से पहले कि मैं हीरों को देखता, एक आदमी धड़ाम से गेट पर गिर गया. मेरा ध्यान भी दूसरों की तरह उस तरफ चला गया.

‘‘मेरे साथ 4 और ग्राहक थे. मेरी पोजीशन हर तरह से साफ थी. हम सब की तलाशी बारबार ली गई. तंग आ कर एक्सरे तक ले डाला. शायद पुलिस सोच रही थी कि हमारे पास कोई छिपा हुआ पाउच होगा और उसी में हीरे होंगे. पर सब बेकार गया. कुछ हासिल नहीं हुआ. तंग आ कर मुझे छोड़ दिया गया. मेरे बाद भी 2 आदमियों की जांच हो रही थी.’’ ब्राउन ने कहकहा लगाते हुए कहा.

‘‘अब क्या इरादा है?’’ ब्राउन ने बेचैनी से पूछा.

‘‘आज रात को वहां से हीरे निकाल लेंगे.’’ जैकब ने जवाब दिया.

ब्राउन बोला, ‘‘यार, घबराहट में मैं 5 हीरे ही बाहर फेंक सका.’’

जैकब ने कहा, ‘‘कोई बात नहीं. 5 लाख डौलर भी बहुत होते हैं.’’

जैकब और ब्राउन देर रात फव्वारे पर पहुंच गए. आज उन के ख्वाबों में रंग भरने की रात थी. दोनों ने जल्दी मुनासिब न समझी. दोनों एक कोने में काले कपड़ों में छिप कर बैठ गए. आधी रात तक का इंतजार किया. लोगों की आवाजाही अब खत्म हो चुकी थी. फव्वारा अभी बंद था. पानी बिलकुल स्थिर था. इन्हें हीरे तलाश करने में मुश्किल नहीं हुई. 3 हीरे मिलने के बाद ब्राउन ने कहा, ‘‘जैकब, 3 काफी हैं, निकल चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, एक और तलाश कर लें फिर चलते हैं.’’ जैकब ने इसरार किया. अचानक फ्लैश लाइट्स औन हो गईं. एकदम वे दोनों तेज रोशनी में नहा गए. एक कड़कती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘वहीं रुक जाओ.’’

दोनों अभी ही हौज से बाहर निकले थे. ‘मारे गए यार…’ जैकब ने फ्लैश लाइट्स से बाहर दौड़ लगाई. लेकिन पुलिस वाले गाड़ी से उतर कर वहां पहुंच गए. एक ने जैकब पर गन तान ली, दूसरे ने ब्राउन पर. दोनों हाथ ऊपर कर के खड़े हो गए. ‘‘ईजी औफिसर, गोली मत चलाना. आप ने हमें पकड़ लिया है.’’ ब्राउन ने डर कर कहा.

‘‘तुम ठीक समझे. जरा भी हलचल की तो गोली चल जाएगी.’’ गन वाला गुर्राया.

‘‘हौज से मिलने वाले सिक्के हर महीने चैरिटी के नाम पर यतीमखाने में दिए जाते हैं. तुम दोनों इतने बेईमान हो कि खैराती रेजगारी भी चुराने आ गए. ठहरो, अभी तुम्हारी तलाशी होती है. जज कम से कम 3 महीने की सजा तो देगा ही. इन्हें गनपौइंट पर गाड़ी में डालो. पुलिस स्टेशन पर इन की तलाशी ली जाएगी.’’ दोनों मजबूरन हाथ उठाए उदास से गाड़ी में बैठ गए. ब्राउन धीरे से बोला, ‘‘बुरे फंसे यार.’’

 

 

Bihar Crime : प्रेमी संग रची साजिश और पति को शराब पिला कर हमेशा के लिए सुला दिया

Bihar Crime : लड़कियों या महिलाओं पर बुरी नजर वालों को पता होता है कि उन तक पहुंचने के लिए पहली सीढ़ी उन की तारीफ करना है. रतन ने इसी युक्ति से पुष्पा को पटाया. पति से नाखुश पुष्पा उस के प्रेमजाल में फंस गई और फिर दोनों ने मिल कर…

सांवले रंग का धनंजय सामान्य कदकाठी वाला युवक था. उस की एकमात्र खूबी यही थी कि वह सरकारी नौकरी में था. कहने का अभिप्राय यह कि वह जिंदगी भर अपने परिवार का बोझ अपने कंधों पर उठा सकता था. बिहार के जिला गोपालगंज के बंगरा बाजार निवासी रामजी मिश्रा ने धनंजय की यही खूबी देख कर उस से अपनी बेटी ब्याही थी. मांबाप ने कहा और खूबसूरत पुष्पा शादी के बंधन में बंध कर मायके की ड्योढ़ी छोड़ ससुराल आ गई. लेकिन उसे धक्का तब लगा, जब उस ने पति को देखा. वह जरा भी उस के जोड़ का नहीं था. पत्नी यदि खूबसूरत हो तो पति उस के हुस्न का गुलाम बन ही जाता है. धनंजय भी पुष्पा का शैदाई बन गया. पुष्पा ने धनंजय की कमजोरी का फायदा उठा कर उसे अपनी उंगलियों पर नचाना शुरू कर दिया.

पुष्पा को धनंजय चाहे जैसा लगा हो, लेकिन धनंजय खूबसूरत, पढ़ीलिखी बीवी पा कर खुश था. धनंजय सुबह 9 बजे घर से निकलता था, तो फिर रात 8 बजे के पहले घर नहीं लौटता था. पीडब्ल्यूडी में लिपिक के पद पर कार्यरत धनंजय की ड्यूटी पड़ोसी जिले सीवान में थी. धनंजय को अपने गांव अमवां से सीवान आनेजाने में 2 घंटे लग जाते थे. धनंजय को जितनी पगार मिलती थी, वह पूरी की पूरी पुष्पा के हाथ पर रख देता था. धंनजय के 2 भाई और थे, बड़ा रंजीत और छोटा राजीव. रंजीत मुंबई में तो राजीव दिल्ली में नौकरी करता था. विवाह के बाद से ही धनंजय पुष्पा के साथ अलग घर में रह रहा था. कालांतर में पुष्पा 2 बच्चों की मां बनी. एक बेटा था सौरभ और एक बेटी साक्षी.

गत वर्ष मई महीने में धनंजय के साले का विवाह देवरिया की भुजौली कालोनी में हुआ था. विवाह में धनंजय पांडे की मुलाकात दुलहन के चचेरे भाई रतन पांडे से हुई. मुलाकात के दौरान दोनों की काफी बातें हुई. इसी बातचीत के दौरान धनंजय ने उस से देवरिया में मकान किराए पर दिलाने को कहा तो रतन ने हामी भर दी. विवाह में शामिल  होने के बाद धनंजय और पुष्पा बच्चों के साथ वापस लौट आए. रतन पांडे देवरिया के थाना गौरीबाजार के सिरजम हरहंगपुर निवासी सुभाष पांडेय का बेटा था. सुभाष पांडेय टीवी मैकेनिक थे. 24 वर्षीय रतन 4 बहनों में दूसरे नंबर का था. इंटर पास रतन देवरिया में मोबाइल कंपनी ‘एमआई’ के कस्टमर केयर सेंटर में नौकरी करता था और देवरिया खास में ही किराए पर कमरा ले कर रह रहा था.

धनंजय से बात होने के कुछ ही दिनों के अंदर रतन ने धनंजय को शहर के इंदिरा नगर मोहल्ले में सौरभ श्रीवास्तव का मकान किराए पर दिलवा दिया. धनंजय अपनी पत्नी पुष्पा और दोनों बच्चों के साथ उसी मकान में रहने लगा. बिहार का सीवान जिला उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले की सीमा से सटा है. इसलिए धनंजय को वहां से सीवान जाने में कोई दिक्कत नहीं होती थी, वह अपनी ड्यूटी पर रोजाना आनेजाने लगा. बच्चों का एडमीशन भी पास के एक स्कूल में करा दिया था. धनंजय रोजाना सुबह निकल जाता और देर रात वापस लौटता था. बच्चे भी स्कूल चले जाते थे. पुष्पा घर पर अकेली रह जाती थी. ऐसे में रतन का पुष्पा के पास आनाजाना बढ़ गया. रतन पुष्पा की खूबसूरती पर पहले ही मर मिटा था.

इसीलिए उस ने पुष्पा के नजदीक रहने के लिए धनंजय को देवरिया में किराए पर मकान दिलवाया था. धनंजय के कहने पर वह उस के बच्चों सौरभ और साक्षी को ट्यूशन पढ़ाने लगा था. बच्चों के जन्म के बाद से धनंजय अब पुष्पा में पहले जैसी रुचि नहीं लेता था. वैसे भी जैसेजैसे वैवाहिक जीवन आगे बढ़ता है, कई पतिपत्नी एकदूसरे में दोष खोजने लगते हैं, जो उन के बीच विवाद की जड़ बनते हैं. धनंजय भी पुष्पा में कमियां निकालने लगा था. वैसे भी पुष्पा को तो वह कभी नहीं भाया था, किसी तरह उस के साथ अपनी जिंदगी काट रही थी. जब धनंजय उस के दोष और गलतियां निकालता था तो पुष्पा के अंदर दबा गुस्सा गुबार बन कर बाहर निकल पड़ता था, जिस पर धनंजय उस की पिटाई कर देता था. ऐसा अधिकतर धनंजय के शराब के नशे में होने पर ही होता था. धनंजय मारपिटाई पर उतर आया तो पुष्पा को उस से हद से ज्यादा नफरत हो गई.

रतन ने उस के घर आना शुरू किया तो पुष्पा की नजर उस पर टिकने लगीं. रतन गोराचिट्टा, स्मार्ट और कुंवारा था. पुष्पा ने ऐसे ही युवक की कामना की थी. विवाह से पहले उस की 2 ही इच्छाएं थीं, एक तो उस का जीवनसाथी सरकारी नौकरी वाला हो और दूसरा वह खूबसूरत व स्मार्ट हो. उस की जोड़ी उस के साथ ‘रब ने बना दी जोड़ी’ जैसी हो. उस की एक इच्छा तो पूरी हो गई थी लेकिन दूसरी इच्छा ने उसे रूला दिया. धनंजय ने कभी भी पुष्पा की तारीफ  नहीं की थी, लेकिन रतन पुष्पा की जम कर तारीफ करता था, साथ ही हंसीमजाक भी. पुष्पा सोचती थी कि रतन को सुंदरता की कद्र करनी आती है, लेकिन धनंजय को नहीं.

रतन लतीफे सुना कर पुष्पा को खूब हंसाता था. उस की पसंदनापसंद की चीजों का ख्याल रखता था. पुष्पा साड़ी या सलवारसूट पहनती तो उसे अपनी राय बताता. इन बातों से पुष्पा मन ही मन बहुत खुश होती. धीरेधीरे पुष्पा को भी रतन की आदत पड़ गई. उस के बिना अब उसे अच्छा नहीं लगता, घर में सब सूनासूना सा महसूस होता. रतन ने पुष्पा को इतनी खुशियां दीं कि वह सोचने को मजबूर हो गई कि काश! मेरा पति रतन जैसा होता, तो कितना अच्छा होता…?

एकांत क्षणों में पुष्पा, रतन की तुलना धनंजय से करने लगती और यह सोच कर मायूस हो जाती कि धनंजय रतन के आगे किसी मामले में नहीं ठहरता. पुष्पा रतन के बारे में ज्यादा सोचती तो उस का मन उस की बांहों में ही सिमटने को मचल उठता. पुष्पा और रतन की निगाहों में एकदूसरे के लिए तड़प भरी रहती थी. पानी का गिलास, चाय का कप लेतेदेते हुए दोनों की अंगुलियों का स्पर्श होता तो दोनों ही ओर चिंगारियां छूटने लगतीं. पुष्पा का रतन रतन का व्यक्तित्व पुष्पा के दिल में हलचल मचाए हुए था तो पुष्पा की आकर्षक देहयष्टि रतन के युवा मन में सरसराहट भरती रहती थी. वह पुष्पा से बिना नजरें मिलाए उस का दीदार करता रहता. उसे पूरी तरह पा कर न सही, स्पर्श कर के ही सुख लूटता रहता.

रतन कुछ कारणों से अपने गांव चला गया तो पुष्पा खुद को फिर तन्हा महसूस करने लगी. उसे ऐसा लगा, जैसे उस की रूह निकल कर चली गई हो और मुरदा जिस्म वहां रह गया हो. धनंजय सीवान से अपनी ड्यूटी से वापस लौटता, रात में जब वह उस से संसर्ग करता, तब भी वह मुर्दों की तरह निष्क्रिय पड़ी रहती. धनंजय उस के व्यवहार से इसलिए स्तब्ध नहीं हुआ, क्योंकि वह जानता था कि पुष्पा उस से बिलकुल खुश नहीं है. उधर गांव गए रतन का हाल भी ऐसा ही था. पुष्पा को याद कर के वह रात भर करवटें बदलता रहता, आंखें बंद करता तो सपने में पुष्पा ही नजर आती. जो वह हकीकत में करने की ख्वाहिश रखता था, उसे कल्पना में ही कर के खुद को तसल्ली दे लेता था.

आखिर रतन गांव से शहर लौटा तो पुष्पा से मिलने गया. पुष्पा उस समय अकेली थी. उसे रतन की यादों ने बेहाल कर रखा था. रतन को देखते ही पुष्पा का चेहरा खिल उठा. रतन के अंदर आते ही पुष्पा ने लपक कर दरवाजा बंद कर दिया. फिर नाराजगी प्रकट करते हुए बोली, ‘‘क्या इस तरह मुझे तड़पाना अच्छा लगता है तुम्हें?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’ रतन अंजान बनते हुए बोला.

‘‘कितने दिन हो गए तुम्हें. मैं तुम्हारी सूरत देखने को तरस गई थी.’’ पुष्पा ने शिकायती लहजे में कहा.

‘‘सच,’’ रतन खुश होते हुए बोला,‘‘मैं यही सुनने को तो गैरहाजिर था. मैं देखना चाहता था कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कितनी चाहत है. अगर ऐसा नहीं करता, तो तुम शायद आज अपने दिल की बात मुझ से न कहतीं.’’

‘‘तुम सच कह रहे हो रतन. तुम ने मुझ पर न जाने कैसा जादू कर दिया है कि मैं हर पल तुम्हारे बारें में ही सोचती रहती हूं.’’ कहते हुए उस ने रतन के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘यही हाल मेरा भी है पुष्पा. जिस दिन तुम्हारा दीदार नहीं होता, वह दिन पहाड़ सा लगता है.’’ पुष्पा की पतली कमर में हाथ डालते हुए रतन ने उसे अपने करीब खींचा और उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

पुष्पा के होंठों में ऐसी तपन थी, कि रतन को लगा जैसे उस ने अंगारों को छू लिया हो. पुष्पा के होंठों से अपने होंठ अलग करते हुए उस ने पुष्पा की सुरमई आंखों में झांका, तो लगा जैसे उन में पूरा मयखाना समाया हो. पुष्पा की नशीली आंखों, फूलों जैसे रुखसार, सुराही जैसी गरदन और उस के नाजुक अंगों को देख कर रतन के रोमरोम में लहर सी दौड़ गई. गजब तो तब हुआ, जब पुष्पा ने अपने बंधे हुए गेसू खोल दिए. थोड़ी देर पहले ही उस ने सिर धोया था. सावन की घटाओं से भी श्यामवर्ण गेसू कमर के नीचे उभारों को छूने लगे, तो रतन बोल पड़ा, ‘‘वाह पुष्पा, क्या लाजवाब हुस्न है तुम्हारा.’’

पुष्पा ने खिलखिला कर हंसते हुए पूछा, ‘‘वो कैसे?’’

‘‘आइने में देख लो, खुद समझ जाओगी.’’

‘‘वो तो मैं तुम्हारी आंखों में देख कर समझ रही हूं.’’

‘‘क्या देख रही हो मेरी आंखों में?’’ रतन ने पूछा.

‘‘बेईमानी. किसी का माल हड़पने के लिए नीयत खराब कर रहे हो.’’ पुष्पा ने हौले से रतन के गाल पर चपत लगाई.

‘‘अगर वह माल लाजवाब और मीठा हो तो उसे उठा कर मुंह में रख लेने में कैसी झिझक. सच में दिल कर रहा है कि आज मैं तुम्हें लूट ही लूं.’’

‘‘तो रोका किस ने है?’’ कहते हुए पुष्पा रतन के गले से झूल गई और बोली,‘‘आओ लूट लो मेरे हुस्न के इस अनमोल खजाने को. मैं तो कब से तुम्हें सौंपने को बेताब थी.’’

रतन का गला सूखने लगा था, ‘‘कोई आ गया तो?’’

‘‘कोई नहीं आ रहा अभी, तुम निश्चिंत रहो.’’

इस के बाद दोनों वासना के खेल में डूबते चले गए. घर की तनहाई दोनों के दिलों की ही नहीं जिस्मों के मिलन की भी साक्षी बन गई. इस के बाद तो रोज ही उन के बीच यह खेल खेला जाने लगा. रतन ने पुष्पा को दिया अपने नाम वाला सिम रतन ने पुष्पा को एक सिम खरीद कर दे दिया. उस ने सिम को अपने मोबाइल में डाल लिया. पुष्पा इस सिम का इस्तेमाल केवल रतन से बात करने के लिए करती थी. धनंजय की अनुपस्थिति में रतन पूरे दिन पुष्पा के साथ उस के घर में मौजूद रहता. उस के साथ समय बिताता तो उन पलों को अपने स्मार्टफोन में भी कैद कर लेता. वह अपने मोबाइल से अंतरंग पलों के फोटो और वीडियो भी बनाता था.

18 अप्रैल की सुबह बंद चीनी मिल के परिसर में कुछ युवक लकड़ी लेने गए. इस बीच उन की नजर एक पेड़ के नीचे पड़ी एक लाश पर गई. उन्होंने आसपास के लोगों को बताया तो चंद मिनटों में वहां काफी भीड़ इकट्ठा हो गई. 112 नंबर पर काल कर के पुलिस को लाश मिलने की सूचना दी गई. घटनास्थल थाना कोतवाली देवरिया में आता था, इसलिए कंट्रोल रूम से यह सूचना कोतवाली पुलिस को दे दी गई. सूचना पा कर इंसपेक्टर टीजे सिंह अपनी पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. मृतक की उम्र 40-42 वर्ष रही होगी. उस के चेहरे को किसी भारी वस्तु से कूंचा गया था. चेहरा क्षतविक्षत होने के कारण मृतक की पहचान होना मुश्किल था. उस के गले पर भी कसे जाने के निशान मौजूद थे.

घटनास्थल पर लाश से कुछ दूरी पर खून से सना एक ईंट का टुकड़ा पड़ा मिला. हत्यारे ने उसी ईंट के टुकड़े से मृतक का चेहरा कुचला था. इंसपेक्टर टीजे सिंह निरीक्षण कर ही रहे थे कि तभी एसपी डा. श्रीपति मिश्र, एएसपी शिष्यपाल, सीओ सिटी निष्ठा उपाध्याय समेत अन्य अधिकारी भी वहां पहुंच गए. अधिकारियों ने भी लाश व घटनास्थल का निरीक्षण किया. इंसपेक्टर टीजे सिंह के आदेश पर कुछ सिपाहियों ने मृतक के कपड़ों की तलाशी ली तो कपड़ों से मृतक का आधार कार्ड मिल गया, जिस में मृतक का नाम धनंजय पांडे लिखा था और पता देवरिया की सीमा से सटे बिहार के गोपालगंज जिले के कुचायकोट थाना क्षेत्र में आने वाले गांव अमवा का लिखा था.

मृतक के घर वालों को कुचायकोट थाना पुलिस के जरीए सूचना भेजी गई. इस के बाद पुलिस अधिकारी इंसपेक्टर टीजे सिंह को आवश्यक दिशानिर्देश दे कर वापस लौट गए. सूचना पर मृतक के घर वाले और ससुराल वाले वहां पहुंचे. उन लोगों ने धनंजय की लाश की शिनाख्त कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद उसे पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दिया गया. कोतवाली लौट कर इंसपेक्टर टीजे सिंह ने धनंजय पांडे के ससुर रामजी मिश्रा की लिखित तहरीर के आधार पर अज्ञात के विरूद्ध भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. केस की जांच शुरू करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने सर्वप्रथम पुष्पा से पूछताछ की, जो कि घटना से एक महीने पहले से अपने मायके में रह रही थी.

उन्होंने पुष्पा से पूछा, ‘‘धनंजय की किसी से कोई दुश्मनी थी या उस का किसी से हाल ही में कोई लड़ाईझगड़ा हुआ था?’’

‘‘सर, उन की किसी से दुश्मनी नहीं थी और न ही उन का किसी से लड़ाईझगड़ा हुआ था. वह तो सुबह अपने आफिस के लिए निकल जाते थे और रात में लौटते थे.’’

‘‘फिर भी कोई दुश्मनी रही हो, याद करने की कोशिश कीजिए.’’

‘‘सर, मेरी जानकारी में तो नहीं है, अगर औफिस में कोई बात हुई हो तो मुझे पता नहीं. मेरे पति आफिस की कोई भी बात मुझे नहीं बताते थे.’’

पुष्पा बड़े ही सहज भाव से सवालों का जवाब दे रही थी. उस के चेहरे के भावों और बोलने के अंदाज से यह कतई नहीं झलक रहा था कि वह पति की मौत से गमगीन है. यह बात मन में शक पैदा करने वाली थी. पुष्पा के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करते हुए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक और सवाल दागा, ‘‘घर में कौनकौन आता था?’’

‘‘सर, हम देवरिया में किराए पर रह रहे थे. हमारी किसी से जानपहचान नहीं है. इसलिए कोई भी नहीं आताजाता था.’’

‘‘कोई भी नहीं?’’ इंसपेक्टर टीजे सिंह ने उस की आंखों से आंखें मिला कर उस का सच और झूठ पकड़ने के लिए एक बार फिर एकएक शब्द पर जोर देते हुए पूछा. इंसपेक्टर सिंह को घुमाती रही पुष्पा इंसपेक्टर टीजे सिंह द्वारा इस तरह पूछने पर पुष्पा एक पल के लिए हड़बड़ाई, लेकिन अगले ही पल खुद को संभालते हुए बोली, ‘‘जी सर कोई नहीं, बस मेरे बच्चों को पढ़ाने के लिए रतन पांडे आता था. वह हमारा दूर का रिश्तेदार है, उसी ने हमें देवरिया में रहने के लिए किराए पर मकान दिलवाया था.’’

‘‘तो बताना चाहिए था न… मैं दोबारा न पूछता तो आाप बताती भी नहीं.’’

‘‘सर, वह तो घर का ही है, बाहर का नहीं, इसीलिए नहीं बताया.’’ पुष्पा ने सफाई दी.

‘‘ये आप हमें तय करने दें कि कौन क्या है, हमारे निशाने पर सभी होते हैं चाहे घर के हों या बाहर के. वैसे भी अधिकतर केसों में हत्यारा घर का अपना ही कोई निकलता है.’’ कह कर टीजे सिंह ने पुष्पा की तरफ  देखा तो उस के चेहरे पर आने वाले भाव देख कर वह मुस्करा उठे और फिर उठते हुए बोले, ‘‘खैर अब मैं चलता हूं, जरूरत पड़ी तो आप से दोबारा पूछताछ करूंगा.’’

‘‘जी सर.’’

टीजे सिंह वहां से चले गए. वहां से निकलने से पहले वह पुष्पा का मोबाइल नंबर लेना नहीं भूले. इंसपेक्टर सिंह ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई साथ ही जिस मोबाइल में सिम पड़ा था. उस मोबाइल में दूसरे सिम भी डाले गए थे तो उन सिम के नंबरों की भी डिटेल्स देने को कहा गया. जब पुष्पा के बताए नंबर की काल डिटेल आई तो उस में कुछ खास नहीं मिला. लेकिन साथ में एक और नंबर की काल डिटेल्स आई थी. वह नंबर भी पुष्पा अपने डबल सिम वाले मोबाइल में प्रयोग कर रही थी. लेकिन उस नंबर के बारे में पुष्पा ने कुछ नहीं बताया था. उस नंबर से केवल एक नंबर पर ही रोज बात की जाती थी. उस नंबर की डिटेल्स निकलवाई तो वह नंबर रतन पांडे के नाम पर था. रतन वही था जो धनंजय के घर ट्यूशन पढ़ाने आता था. उस का पता किया तो वह घर से फरार मिला.

20 अप्रैल को इंसपेक्टर टीजे सिंह ने एक मुखबिर की सूचना पर अमेठी तिराहे के खोराराम मोड़ से रतन पांडे को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो रतन ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया, साथ ही हत्या की वजह भी बता दी. इस के बाद इंसपेक्टर सिंह पुष्पा को उस के मायके से गिरफ्तार कर के थाने ले आए.

थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने बरगलाने की कोशिश की कि रतन ने उस के अश्लील फोटो व वीडियो बना लिए थे, जिन के सहारे वह उसे ब्लैकमेल कर रहा था. उसी ने उस के पति की हत्या की है. लेकिन जब सख्ती दिखाई गई तो उस ने सच उगल दिया. पुष्पा रतन को अपनी जान से भी ज्यादा चाहने लगी थी, उसी के साथ विवाह कर के वह अपनी आगे की जिंदगी गुजारना चाहती थी. इस के लिए वह रतन के साथ भाग जाती और विवाह कर लेती. लेकिन जिंदगी सिर्फ प्यार से नहीं गुजरती, पैसों की भी जरूरत होती है. रतन छोटीमोटी नौकरी करता था, उस से उस का खुद का गुजारा ही नहीं हो पाता था. ज्यादा पैसा तो सरकारी नौकरी में ही मिलता है जो कि धनंजय के पास थी. इसलिए पैसों की उसे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

पुष्पा को सरकारी नौकरी का मोह था. इसलिए उस ने इस का रास्ता निकाल लिया. उस रास्ते पर चल कर उस की सारी इच्छाएं पूरी हो सकती थीं. वह रास्ता था धनंजय की मौत. धनंजय के मरने से पुष्पा को एक तो उस से छुटकारा मिल जाता, दूसरे उस की जगह मृतक आश्रित कोटे से उसे नौकरी मिल जाती और तीसरा वह रतन से विवाह कर के आराम से जिंदगी गुजार सकती थी. पुष्पा अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए पति के खून से हाथ रंगने को तैयार थी. वह यह भूल गई कि केवल सोचने भर से जिंदगी आसान नहीं हो जाती. सब कुछ मनचाहा नहीं होता.

वह जिस रास्ते पर चलने को आमादा थी उस पर उसे सरकारी नौकरी तो नहीं जेल की सलाखें जरूर मिलने वाली थीं. दूसरी ओर धनंजय को अपनी मौत के षड़यंत्र का कैसे पता चलता, जबकि उसे पुष्पा और रतन के अवैध संबंधों तक की जानकारी नहीं थी. पुष्पा अपने इरादों को अंजाम तक पहुंचाने को आतुर थी. रतन तो पहले से ही पुष्पा से बारबार धनंजय को मार देने की बात कहता रहता था. वह तो पुष्पा की तरफ से बस हरी झंडी मिलने का इंतजार कर रहा था. पुष्पा ने अपने दिल की पूरी बात रतन को बता दी. इस के बाद दोनों ने धनंजय की हत्या की योजना बनाई. योजनानुसार 16 मार्च, 2020 को पुष्पा बच्चों के साथ अपने मायके गोपालगंज चली गई.

एक महीना पूरा होने पर 17 अप्रैल की शाम 4 बजे पुष्पा ने रतन को फोन कर के धनंजय की हत्या करने को कहा. काश! धनंजय शराब के लालच में न पड़ता 18 अप्रैल की रात 8 बजे के करीब रतन ने धनंजय को शराब पीने के लिए बंद चीनी मिल परिसर में बुलाया. धनंजय के वहां पहुंचने पर रतन ने एक ईंट के टुकडे़ से उस के सिर पर प्रहार किया. धनंजय दर्द से बिलबिला उठा. इसी बीच रतन ने पास में उगी गिलोय की बेल उखाड़ कर धनंजय के गले में डाल दी और पूरी ताकत से कस दिया.

दम घुटने से धनंजय की मौत हो गई. इस के बाद रतन ने धनंजय के चेहरे को बुरी तरह से कुचल दिया. फिर धनंजय की जेब से मोबाइल निकाल कर रतन वहां से चला गया. उस ने वाट्सऐप पर मैसेज कर के पुष्पा को धनंजय की मौत की जानकारी दे दी. पुष्पा द्वारा मैसेज देख लेने के बाद रतन ने वह मैसेज डिलीट कर दिया. लेकिन दोनों पकड़े गए. रतन ने अपना एंड्रायड मोबाइल फारमेट कर दिया था. इसलिए उस मोबाइल का डाटा रिकवर करने के लिए इंसपेक्टर टीजे सिंह ने मोबाइल में डाटा रिकवरी ऐप इंस्टाल किया और मोबाइल का पूरा डाटा रिकवर कर लिया. मोबाइल की गैलरी में रतन व पुष्पा के अनगिनत फोटो मिले, जिस में कई अश्लील भी थे, जिन को उन्होंने सुबूत के तौर रख लिया.

अभियुक्त रतन के पास से इंसपेक्टर सिंह ने धनंजय का मोबाइल भी सिम सहित बरामद कर लिया. हत्या में प्रयुक्त ईंट का टुकड़ा पहले ही घटनास्थल से बरामद हो गया था. कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के दोनों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज  दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

पहले महाकुंभ लाया, फिर बीवी की हत्या कर दी : वजह जान कर चौंक जाएंगे

UP Crime : उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हुई एक सनसनीखेज वारदात ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया. आरोप है कि एक पति ने पहले तो पत्नी को कुंभ स्नान कराने के बहाने बुलाया फिर उस की बेरहमी से हत्या कर दी. जिस किसी ने भी इस घटना के बारे में सुना, वह हैरान रह गया. इस दिल दहला देने वाली घटना की पूरी कहानी जान कर आप के भी रौंगटे खड़े हो जाएंगे।

प्रयागराज की घटना

घटना उतर प्रदेश के प्रयागराज की है, जहां भारत से ले कर दुनियाभर से लोग महाकुंभ  (Mahakumbh) स्नान के लिए आए थे. इसी भीड़ का फायदा उठा कर पति ने अपनी पत्नी मीनाक्षी को दिल्ली से बुला कर हत्या कर दी और मौके से फरार हो गया, लेकिन सीसीटीवी फुटेज और मृतका मीनाक्षी के बेटे की मदद से पुलिस ने कातिल पति को अरैस्ट कर लिया है.

कातिल पति अपनी पत्नी को झूंसी इलाके के एक लौज में बेरहमी से मार कर फरार हो गया. बताया जा रहा है कि कातिल पति का दूसरी महिला से अवैध संबंध चल रहा था, इसलिए उस ने अपनी पत्नी को मौत के घाट उतार दिया.

अवैध संबंध का निकला चक्कर

कातिल पति अशोक वाल्मिकी ने दिल्ली से अपनी पत्नी मीनाक्षी को महाकुंभ स्नान के लिए प्रयागराज बुलाया. महाकुंभ स्नान को ले कर मीनाक्षी बहुत खुश थी और इसीलिए संगमतट पर स्नान करने आई थी.

अशोक ने अपनी पत्नी मीनाक्षी के साथ एक वीडियो भी बनाया और सोशल मीडिया पर भी पोस्ट किया. ऐसा इसलिए ताकि सभी को लगे कि वे महाकुंभ स्नान करने आए हैं.

रात में अशोक ने अपनी पत्नी के लिए झूंसी के एक लौज में ₹500 में एक कमरा लिया. लेकिन पत्नी को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि आज उस की आखिरी रात होगी. रात जब गहराई तो आरोपी अशोक ने बाथरूम में पत्नी मीनाक्षी की बेरहमी से हत्या कर दी और सामान लेने के बहाने लौज से रात को ही फरार हो गया.

महिला की लाश देख चौंके लोग

सुबह होने पर जब लौज के स्टाफ ने बाथरूम में एक महिला की लाश देखी तो वे चौंक गए. तुरंत घटना की सूचना पुलिस को दी गई, लेकिन लौज में आईडी जमा न होने की वजह से मृतक महिला की पहचान मुश्किल थी.

कातिल पति का खुलासा

जब पुलिस कातिल का सुराग ढूंढ़ने लगी तो आसपास के सभी सीसीटीवी कैमरों की फुटेज निकाले गए. इन्हीं फुटेज के आधार पर कातिल की पहचान हो गई. इसी दौरान मीनाक्षी का बेटा अश्विनी 21 फरवरी, 2025 को मां को खोजतेखोजते प्रयागराज पहुंच गया. वह झूंसी थाने में भी गया और थाने में एक तसवीर को देख कर बोला कि यह मेरी मां है, जो महाकुंभ मेले में खो गई है. जब पुलिस ने अश्विनी को लौज से वरामद लाश दिखाई तो अश्विनी फफकफफक कर रो पङा.

प्रेम प्रसंग के चक्कर में मारा पत्नी को

पुलिस के द्वारा कातिल अशोक को अरैस्ट कर लिया गया है, जहां उस ने अपना जुर्म कुबूल कर लिया है. अशोक ने बताया कि उस का एक महिला के साथ अवैध संबंध चल रहा था और पत्नी उस का विरोध करती थी. इसी कारण उस ने पत्नी को महाकुंभ स्नान के बहाने बुला कर उस की हत्या कर दी.

कैसे पकड़ा गया कातिल

पुलिस ने अशोक के बेटे के जरिए उसे बुलाया और बहराना में पहुंचते ही अरैस्ट कर लिया. जब पुलिस ने अशोक से पूछताछ की तो उस ने अपना जुर्म कबुल कर लिया, जिस के बाद पुलिस ने उसे कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

Murder Stories : पड़ोसी ने ज्‍वेलर और उसकी बीवी का पहले गला घोंटा फिर करंट लगाया

Murder Stories : जब दिमाग में लालच और अपराध के कीड़े कुलबुलाते हैं तो स्वार्थ की भावना की छाया में खून भी पानी लगने लगता है. कपिल गुप्ता और ओमबाबू राठौर को मुकलेश गुप्ता का पैसा, सोनाचांदी तो दिखा, लेकिन खून में डूबी 2 लाशें उन्हें मिट्टी के ढेले जैसी लगीं. काश! दोनों दरिंदों ने…

नौकरानी सोमवती रोजाना की तरह मंगलवार की सुबह भी सर्राफा कारोबारी मुकलेश गुप्ता के घर काम करने पहुंची. उस ने दरवाजे पर लगी कालबेल बजाई. लेकिन कई बार घंटी बजाने के बाद भी जब अंदर कोई हलचल नहीं हुई तो उस ने दरवाजे को हलका सा धक्का दिया. ऐसा करने से दरवाजा खुल गया. सोमवती अंदर पहुंची. वह रोजाना सब से पहले नीचे के कमरों की सफाई करनी थी. लेकिन कमरे बंद थे, उस ने चाबी लेने के लिए मालकिन को आवाज लगाई. तभी उस की नजर ऊपर गई तो उसे हैरत हुई. मकान मालिक मुकलेश नीचे की ओर मुंह कर के लोहे के जाल पर पड़े थे. यह देख वह घबरा गई. उस ने ऊपर जा कर मालकिन लता गुप्ता को आवाज लगाई, लेकिन उन की भी आवाज नहीं आई.

सोमवती ने जब मालकिन के कमरे में जा कर देखा तो वह फर्श पर पड़ी थीं. उन के सिर से खून बह रहा था. यह दृश्य देखते ही सोमवती चीखती हुई बाहर की ओर भागी. उस ने यह जानकारी आसपास के लोगों व मुकलेश गुप्ता के भाई को दी. यह 28 जनवरी, 2020 की सुबह 6 बजे की बात है. सोमवती के चीखनेचिल्लाने की आवाज सुन कर आसपास के लोग एकत्र हो गए. कुछ लोग जीना चढ़ कर ऊपर पहुंचे. वे लोग ऊपर का दृश्य देख हैरान रह गए. पहली मंजिल पर लगे लोहे के जाल पर 62 वर्षीय मुकलेश गुप्ता और वहीं पास के कमरे के फर्श पर उन की 60 वर्षीय पत्नी लता पड़ी हुई थीं. मुकलेश के पैर में टेप चिपका कर बिजली का तार लगाया गया था, जिस का दूसरा सिरा बिजली के बोर्ड में लगा था.

लोगों ने तार को बोर्ड से अलग किया. पतिपत्नी दोनों की मौत हो चुकी थी. इसी बीच किसी ने यह सूचना आगरा में रहने वाली मुकलेश की सब से बड़ी बेटी डा. प्रियंका के अलावा शमसाबाद थाने में भी दे दी. डबल मर्डर की सूचना मिलते ही शमसाबाद एसओ अरविंद निर्वाल पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. डबल मर्डर और लूट की घटना से सनसनी फैल गई थी. मुकलेश कुमार पिछले 20 सालों से सर्राफा कमेटी के अध्यक्ष थे. उन की हत्या की खबर मिलते ही व्यापार मंडल के पदाधिकारियों के साथसाथ मुकलेश के परिजन भी एकत्र हो गए थे. 2-2 लाशों को देख कर लोग आक्रोशित हो कर हंगामा करने लगे. स्थिति की गंभीरता को भांप कर एसओ ने उच्चाधिकारियों को घटना से अवगत करा दिया.

आननफानन में आगरा के एसएसपी बबलू कुमार एसपी प्रमोद कुमार और सीओ (फतेहाबाद) प्रभात कुमार मौके पर पहुंच गए. एसएसपी ने फोरैंसिक टीम और आसपास के थानों की फोर्स भी बुला ली. खबर मिलते ही मुकलेश गुप्ता की बेटी डा. प्रियंका भी शमसाबाद पहुंच गई. बाद में एडीजी अजय आनंद, आईजी ए.सतीश गणेश भी वहां आ गए. उच्चाधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया और दंपति के कत्ल के बारे में जानकारी ली. मुकलेश व लता के सिर से काफी खून निकल चुका था. दोनों के गले पर भी चोट के निशान थे. देखने से लग रहा था कि दंपति की हत्या के लिए बेहद क्रूर तरीका अपनाया गया था. साथ ही दोनों को करंट भी लगाया गया था.

फोरैंसिक टीम ने कई स्थानों से फिंगरप्रिंट उठाए. सर्राफा व्यवसायी व उन की पत्नी को मौत के घाट उतारने वाले बदमाश इतने शातिर थे कि घर में लगे सीसीटीवी कैमरे की डीवीआर अपने साथ ले गए थे. पुलिस को अंदेशा था कि वारदात को अंजाम देने वाले बदमाशों को घर की हर चीज की जानकारी थी. आशंका थी कि लुटेरे परिवार के नजदीकी रहे होंगे. डबल मर्डर के बारे में आसपास के किसी व्यक्ति को भनक तक नहीं लगी थी. जबकि परिजनों के मुताबिक हत्या रात 8 बजे से पहले की गई थी. क्योंकि मुकलेश शाम 6 बजे और रात 8 बजे चाय घर पर पीते थे. शाम का दूध डिब्बे में डायनिंग टेबल पर रखा था. इस से स्पष्ट था कि 27 जनवरी की रात 8 बजे की चाय से पहले ही घटना को अंजाम दे दिया गया था.

जिस कमरे में लता का शव पड़ा था, उस में  5 अलमारियां खुली पड़ी थीं जबकि 3 अलमारियों को हाथ भी नहीं लगाया गया था. डा. प्रियंका ने घर की अलमारियां खोल कर देखीं तो 2 में से सोने के गहनों के अलावा लाइसैंसी रिवौल्वर भी गायब था. प्रियंका ने लूटे गए सामान की कीमत एक करोड़ से अधिक बताई. डा. प्रियंका की तरफ से पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 394 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. प्रियंका ने बंद अलमारियां खोलीं तो उन में रखे 10 लाख रुपए और 2 किलोग्राम सोना, चांदी यथास्थान रखे मिले. इस से अनुमान लगाया गया कि 2 अलमारियों से ही बदमाशों को भारी मात्रा में नगदी व आभूषण मिल गए थे.

मौके की काररवाई पूरी करने के बाद पुलिस ने दोनों शवों को पोस्टमार्टम के लिए आगरा भेज दिया. मुकलेश के पास साहूकारी (ब्याज पर पैसे देने) का भी लाइसैंस था. घर से करीब 100 मीटर की दूरी पर ही सर्राफा बाजार में उन की ओमप्रकाश मुकलेश कुमार ज्वैलर्स नाम से 90 साल पुरानी दुकान थी. आक्रोशित व्यापारियों व परिजनों ने शवों का अंतिम संस्कार करने से इनकार करते हुए कहा कि जब तक वारदात का खुलासा नहीं हो जाता, तब तक वे दोनों लाशों का अंतिम संस्कार नहीं होने देंगे. विरोध में व्यापारियों ने शमसाबाद का मार्केट बंद रखा. एसएसपी बबलू कुमार ने लोगों को आश्वासन दिया कि 72 घंटे में डबल मर्डर और लूट का खुलासा कर दिया जाएगा.

खोजी कुत्ता कस्बा में स्थित कुम्हारों की गली से निकल कर दाऊजी के मंदिर तक जाने के बाद ठिठक कर रह गया. इसे ले कर तमाम तरह के कयास लगाए जाने लगे. ओमप्रकाश सर्राफ के 4 बेटों में प्रतिष्ठित सर्राफा कारोबारी मुकलेश गुप्ता तीसरे नंबर के थे. सब से बड़े डा. अवधेश गुप्ता जोकि शमसाबाद में ही प्रैक्टिस करते हैं, दूसरे नंबर के डा. अखिलेश गुप्ता का निधन हो चुका है, जबकि सब से छोटे सर्वेश गुप्ता हैं. हत्याकांड व लूट की घटना का परदाफाश करने के लिए एसएसपी बबलू कुमार ने 4 पुलिस टीमों का गठन किया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि पतिपत्नी की मृत्यु गला घोटने तथा करंट लगने से हुई थी. इस के साथ ही हत्यारों ने दंपति पर सूजा जैसी किसी नुकीली चीज से हमला भी किया था.

पुलिस ने इस हत्याकांड के खुलासे के लिए सिलसिलेवार जांच शुरू की. पुलिस को मृतकों के घर वालों ने बताया कि घर के काम के लिए वीरेंद्र नाम का लड़का था, जिसे मुकलेश ने हटा दिया था. पुलिस ने इस लड़के के साथ ही दुकान पर काम करने वाले नौकरों पर भी निगाह रखनी शुरू कर दी. घर पर बिजली व पानी की लाइन की मरम्मत के लिए आनेजाने वालों को भी खंगाला गया. जांच के दौरान पता चला कि मुकलेश गुप्ता ने 27 जनवरी, 2020 को अपनी दुकान शाम साढ़े 5 बजे बंद की थी. इस के बाद वह घर आ गए थे. शाम 7 बजे वह दोबारा घर से पैदल निकले थे और बाजार में छोटे भाई सर्वेश से मिले. उन्होंने करीब साढ़े 7 बजे दाऊजी मंदिर जा कर दर्शन किए. फिर थाने के सामने एक मैडिकल स्टोर से दवा खरीदी और घर आ गए. साढ़े 8 बजे दूध वाला दूध देने आया. तब तक वारदात हो चुकी थी.

दूधिया की बातों से कहानी उलझ गई थी. मुकलेश के यहां दूध देने शमसाबाद निवासी सोनू और उस का भाई मोनू शाम करीब साढ़े 8 बजे पहुंचे थे. नीचे से आवाज देने पर लता ऊपर से रस्सी में बांध कर डिब्बा नीचे लटका देती थीं और वे दूध दे कर चले जाते थे. लेकिन उस दिन आवाज देने पर भी जब डिब्बा नहीं लटकाया, तब दोनों भाई जीने से चढ़ कर ऊपर गए और आवाज दी. उस समय टीवी तेज आवाज में चल रहा था. वहीं डायनिंग टेबल पर डिब्बा रखा था. उसी में दूध भर कर दोनों वापस चले गए.  इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि उस समय वारदात हो चुकी थी. मुकलेश के एक परिचित ने रात 9 बज कर 8 मिनट पर उन्हें फोन किया. घंटी जाती रही, लेकिन फोन नहीं उठा.

पुलिस ने दोनों दूधिया भाइयों से भी पूछताछ की. दोनों ने बताया कि घर में कोई दिखाई नहीं दिया. टीवी तेज आवाज में चलने के कारण हम ने सोचा कि वे लोग कमरे में टीवी देख रहे होंगे. यह बात समझ नहीं आ रही थी कि बदमाशों ने जब गला घोट कर व नुकीली चीज से प्रहार कर दोनों की हत्या कर दी थी, तब करंट क्यों लगाया? क्या हत्यारे उन से घृणा करते थे? बदमाश घर में लाखों रुपए के आभूषण व नगदी क्यों छोड़ गए? यह भी समझ नहीं आ रहा था कि बदमाश रिवौल्वर तो लूट ले गए, लेकिन अलमारी में रखी डबल बैरल बंदूक छोड़ गए थे. बड़ा माल हाथ लगने के बाद भी वे दुकान का थैला जिस में दुकान की चाबियां और कागजात थे, क्यों ले गए?

पुलिस को अंदेशा था कि इस हत्याकांड में किसी नजदीकी का हाथ हो सकता है. पुलिस इस बात की जांच कर रही थी कि पतिपत्नी की मौत से किसे लाभ मिल सकता है. मुकलेश के पास साहूकारी का लाइसैंस था. उन के पास किसान, आम आदमी और कारोबारी कर्ज लेने आते थे, मुकलेश गहने और खेत गिरवी रख कर ब्याज पर पैसे देते थे. सर्राफा कारोबार में मुकलेश की अच्छी साख थी. उन की 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी डा. प्रियंका की शादी सेना में मेजर श्यामकुमार से हुई थी, वह आगरा में डाक्टर है. मंझली गीतिका की शादी हैदराबाद में और छोटी दीपिका की गुजरात में हुई थी. प्रियंका सप्ताह में 1-2 दिन शमसाबाद आतीजाती थी. पिछले दिनों मुकलेश अपनी पत्नी के साथ हैदराबाद घूमने गए थे. वहां वह गीतिका से मिल कर आए थे. वहां से वह 5 जनवरी को वापस आए थे.

फोरैंसिक टीम ने एक दरजन से अधिक चीजों से फिंगरप्रिंट के नमूने संकलित किए थे. घटनास्थल से वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्यों को भी एकत्रित कराया गया था. कस्बे में मौजूद सीसीटीवी फुटेज भी देखे गए. क्राइम सीन का रिव्यू किया गया. घटना को 4 दिन बीत गए थे. पुलिस द्वारा दी गई समय सीमा भी समाप्त हो रही थी. इस दोहरे हत्याकांड ने शमसाबाद के पुलिस महकमे को हिला दिया था. घटना का खुलासा न होने से मृतकों के सगेसंबंधी, सर्राफा व्यवसायी आक्रोशित थे. जिस से धरनेप्रदर्शनों का डर था. इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में भी घटना सुर्खियों में थी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था. यह केस पुलिस के लिए चुनौती बन गया था, लेकिन पुलिस अपने काम में गोपनीय तरीके से जुटी रही, जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी. एसएसपी बबलू कुमार ने सर्विलांस, एसओजी, क्रिमिनल इंटेलिजेंस विंग और 7 थानों के प्रभारियों के साथ एक टीम बनाई थी, जिस में 50 पुलिसकर्मी शामिल थे.

एसएसपी ने वाट्सऐप पर डबल मर्डर औपरेशन के नाम से ग्रुप बनाया. इस में पूरी टीम को जोड़ा गया. इसी ग्रुप पर हर अपडेट दी और ली जा रही थी. अधिकारी भी इसी पर निर्देश भी देते थे. एसपी पूर्वी शमसाबाद प्रमोद कुमार थाने में कैंप कर के रहे. एडीजी अजय आनंद और आईजी ए.सतीश गणेश भी इस मामले पर नजर रखे थे. पुलिस ने कारोबारी मुकलेश के मोबाइल को भी खंगाला. घटना से एक दिन पहले कपिल गुप्ता ने मुकलेश को फोन किया था. इस से पहले उस की मुकलेश से कभी बात नहीं हुई थी. पुलिस जब कपिल गुप्ता के घर पहुंची तो पता चला कि वह घटना के बाद से कस्बे से बाहर है. इसी से पुलिस

को सुराग मिल गया और जांच आगे बढ़ती गई. शुक्रवार देर रात क्राइम ब्रांच और पुलिस की टीम ने कपिल गुप्ता व उस के साथी ओमबाबू राठौर निवासी इरादतनगर, शमसाबाद को फतेहपुर सीकरी से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उन्होंने अपराध कबूल कर लिया. पुलिस ने उन की निशानदेही पर लूटे गए 11 किलोग्राम सोने के आभूषण, 24.7 किलोग्राम चांदी और साढ़े 13 लाख रुपए की नगदी बरामद की. बरामद सोनेचांदी के आभूषणों की कीमत करीब 4 करोड़ 60 लाख है. पहली फरवरी को एडीजी अजय आनंद ने पत्रकार वार्ता आयोजित कर घटना का खुलासा किया. उन्होंने बताया कि प्रथमदृष्टया मिले संकेतों के आधार पर पुलिस ने अपनी जांच मुकलेश के परिचितों की ओर मोड़ दी थी.

इसी बीच जानकारी मिली कि कस्बे के परचून दुकानदार कपिल गुप्ता और उस का दोस्त ओमबाबू राठौर इस वारदात के बाद से ही गायब हैं. दोनों के घर मुकलेश के घर से करीब 500 मीटर दूरी पर हैं. कपिल के बाबा वेदप्रकाश मुकलेश गुप्ता की दुकान पर मुनीम थे, अब उन की मृत्यु हो चुकी है. पुलिस को दोनों का मूवमेंट फतेहपुर सीकरी और राजस्थान के हिंडौन सिटी, कैला देवी (करौली) और इस के बाद जयपुर और कोटा में मिला. जब वे शमसाबाद वापस आ रहे थे, उन्हें फतेहपुर सीकरी में गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों आरोपियों से पूछताछ के बाद इस दोहरे मर्डर और लूटपाट की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

पुलिस को पता चला कि कपिल गुप्ता पर करीब 10 लाख रुपए का तथा उस के दोस्त ओमबाबू राठौर पर करीब 8 लाख का कर्ज था. कपिल की इरादतनगर में परचून की दुकान थी, जिस में 2 बार चोरी हो चुकी थी. दोनों कर्ज से परेशान थे. दोनों काफी दिनों से ऐसी किसी वारदात को अंजाम देने की योजना बना रहे थे, जिस में इतना पैसा मिल जाए, जिस से उन का कर्ज उतर जाए. इसी योजना के तहत कपिल ने ओमबाबू को बताया कि सर्राफ मुकलेश गुप्ता के घर पर केवल मुकलेश व उन की पत्नी रहती है. उन के यहां काफी सोनाचांदी और नकदी मिल सकती है. कपिल के बाबा पहले मुकलेश के यहां मुनीम रह चुके थे. इस के चलते कपिल की मुकलेश से अच्छी जानपहचान थी. दोनों ने कपिल की दुकान में बैठ कर ठोस योजना बनाई.

योजना के अनुसार 22 जनवरी, 2020 को दोपहर डेढ़ बजे कपिल ने मुकलेश की दुकान से सोने की 10 हजार रुपए रेंज की अंगूठी खरीदी और पैसा बाद में देने को कह दिया. कपिल व उस का दोस्त ओमबाबू 26 जनवरी को उन के घर पैसा देने के बहाने गए और दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया. लेकिन लता ने दरवाजा नहीं खोला. 27 जनवरी को कपिल ने शाम 7 बजे मुकलेश को फोन किया. उस ने कहा कि वह अंगूठी के पैसे देने आप के घर आ रहा है. आप अपने घर फोन कर के बता दें. इस पर मुकलेश ने पत्नी लता को फोन कर दिया था.

दोनों मुकलेश के घर जा धमके. योजना के अनुसार, वे सूजा, रस्सी, करंट लगाने के लिए तार और टेप साथ ले गए थे. लता ने जैसे ही गेट खोला, कपिल ने लता के गले में रस्सी डाल कर गला घोट दिया. जबकि ओमबाबू ने गले में सूजा घोंपा. इस से लता की चीख भी नहीं निकल पाई. दोनों लता को घसीट कर कमरे में ले गए और वहां पटक दिया. कपिल ने बैड पर रखी अलमारी की चाबी उठाई और अलमारी खोल कर उस में रखा सोना, चांदी और नगदी साथ लाए बैग में भर ली. खूंटी पर टंगी रिवौल्वर भी रख ली. इस के बाद दोनों मुकलेश के आने का इंतजार करने लगे. 15 मिनट बाद ही दरवाजे पर मुकलेश ने दस्तक दी. कपिल ने गेट खोला. जैसे ही मुकलेश अंदर आए कपिल ने गले में फंदा डाल कर उन का भी गला घोट दिया. साथ ही सूजे से सिर पर प्रहार भी किए.

इस के बाद ओमबाबू ने बेल्ट से उन के गले को कस दिया. घटना का कोई भी सुराग न छोड़ने की वजह से उन्हें भी जान से मार दिया. मुकलेश को घसीट कर किचन के पास लोहे के जाल पर डाल दिया. इतना ही नहीं, मौत की पुष्टि के लिए दोनों को करंट भी लगाया. इस बीच शातिरों ने टीवी की आवाज तेज कर दी थी. इस के बाद ओमबाबू ने सीसीटीवी की डीवीआर निकाल ली. रात 8 बजे तक दोनों ने काम खत्म कर के 3 बैगों में सामान भरा और घर से निकल गए. दोनों शातिर 4 दिनों तक ऐश करते रहे. वे फतेहपुर सीकरी के एक होटल में ठहरे. बाद में राजस्थान के करौली तथा जयपुर पहुंचे. जयपुर के एक होटल में दोनों ने ढाई हजार रुपए प्रतिदिन किराए का कमरा लिया. दोनों रोज बीयर पीते, बौडी मसाज कराते. कपिल ने अपनी पत्नी के खाते में भी 50 हजार रुपए जमा कराए. पकड़े जाने तक दोनों ने 35 हजार रुपए खर्च कर दिए थे.

ओमबाबू राठौर ग्वालियर में एक राहगीर के गले में सूजा मार कर 28 लाख की लूट की कोशिश और चेन लूट चुका था. वह अपराधी किस्म का है. उस ने पहली पत्नी को तलाक दे दिया था, बाद में उस ने सन 2007 में रेखा से दूसरी शादी कर ली. वह कपिल के घर के पास ही रहता है और किराए पर आटो चलवाता है. सर्राफ दंपति की हत्या और लूटपाट करने के बाद दोनों शातिर बदमाश कैला देवी के दर्शन को भी पहुंचे. मामले का परदाफाश करने वाली टीम में एसओ (शमसाबाद) अरविंद निर्वाल, सर्विलांस प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, एसओजी प्रभारी कुलदीप दीक्षित, स्वाट टीम प्रभारी राजकुमार गिरि, एसआई राजकुमार बालियान, प्रदीप कुमार, राहुल कटियार, चंद्रवीर सिंह, कांस्टेबल परमेश, तहसीन, सचिन, अमित, मनोज, त्रिलोकी और यशवीर शामिल थे.

सहयोगी टीम में इंसपेक्टर (फतेहाबाद) प्रवेश कुमार, इंसपेक्टर (डौकी) प्रदीप कुमार, एसओ (बसई अरेला) शेर सिंह, क्रिमिनल इंटेलिजेंस विंग प्रभारी हरवेंद्र मिश्रा, एसआई प्रदीप कुमार, कांस्टेबल प्रशांत कुमार, विवेक, राजकुमार, करनवीर और अरुण शामिल थे. डबल मर्डर व लूट के दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. 6 फरवरी को दोनों को पुलिस ने फिर से रिमांड पर लिया. इन की निशानदेही पर सीकरी कस्बे में रेलवे कालोनी के खंडहर के मलबे में दबी कारोबारी मुकलेश की इंग्लिश रिवौल्वर व 24 कारतूस, साथ ही गहने रखने वाले 4 पर्स बरामद किए गए. आरोपियों ने बताया कि डीवीआर उन्होंने करौली जाते समय काली सिल नदी में फेंक दी थी.

घटना का परदाफाश करने वाली पुलिस टीम को एडीजी अजय आनंद ने एक लाख रुपए ईनाम देने की घोषणा की.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Kanpur News : लालची पत्नी जिस्मफरोशी के धंधे में उतरी और पति करने लगा दलाली

Kanpur News : महत्त्वाकांक्षी अनीता शुक्ला पैसों की इतनी भूखी थी कि वह जिस्मफरोशी के धंधे में उतर गई. बाद में उस का पति राघवेंद्र शुक्ला भी उस के लिए ग्राहक लाने लगा. इतना ही नहीं, अनीता ने अपनी सगी छोटी बहनों अंकिता और सरिता को भी इस धंधे में उतार दिया. फिर एक दिन…

उस दिन जनवरी, 2020 की 5 तारीख थी. आईजी मोहित अग्रवाल अपने कार्यालय में कानपुर शहर की कानूनव्यवस्था पर पुलिस अधिकारियों के साथ मीटिंग कर रहे थे. दरअसल, नागरिकता कानून को ले कर शहर में धरनाप्रदर्शन जारी थे, जिस से शहर की कानूनव्यवस्था बिगड़ती जा रही थी. इस बिगड़ती कानूनव्यवस्था को सुधारने के लिए ही उन्होंने पुलिस अधिकारियों को बुलाया था ताकि शहर में कोई हिंसक प्रदर्शन न हो और अमनचैन कायम रहे. दोपहर 12 बजे मीटिंग समाप्त होने के बाद आईजी मोहित अग्रवाल ने अपनी समस्या समाधान के लिए आए आगंतुकों से मिलना शुरू किया. इन्हीं आगंतुकों में अधेड़ उम्र के 2 व्यक्ति भी थे, जो आईजी साहब से मिलने आए थे. अपनी बारी आने पर वे दोनों आईजी साहब के कक्ष में पहुंचे और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया.

आईजी साहब ने उन पर एक नजर डाली. कुरसी पर बैठने का संकेत किया. इस के बाद उन से पूछा, ‘‘आप लोगों का कैसे आगमन हुआ? बताइए, क्या समस्या है?’’

तभी उन में से एक ने कहा, ‘‘सर, हम चकेरी थाने के श्यामनगर मोहल्ले में रहते हैं. हमारे घर के पास अजय सिंह का आलीशान मकान है. उस मकान में वह खुद तो नहीं रहते लेकिन उन्होंने मकान किराए पर दे रखा है. मकान की पहली मंजिल पर 2 अफसर रहते हैं पर भूतल पर जो किराएदार है, उस की गतिविधियां बेहद संदिग्ध हैं. उस के घर पर अपरिचित युवकयुवतियों का आनाजाना लगा रहता है. हम लोगों को शक है कि वह किराएदार अपनी पत्नी के सहयोग से सैक्स रैकेट चलाता है.

‘‘सर, हम लोग इज्जतदार हैं. इन लोगों के आचारव्यवहार का असर हमारी बहूबेटियों पर पड़ सकता है. इसलिए आप से विनम्र निवेदन है कि इस मामले में उचित कानूनी काररवाई करने का कष्ट करें.’’

आईजी मोहित अग्रवाल ने आगंतुकों की बात गौर से सुनी और फिर उन्हें आश्वासन दिया कि वह इस सूचना की जांच कराएंगे. अगर सूचना सही पाई गई तो दोषियों के खिलाफ काररवाई की जाएगी.

‘‘ठीक है, लेकिन सर हमारा नाम गुप्त रहना चाहिए वरना वे लोग हमारा जीना दूभर कर देंगे.’’ जाते समय उन में से एक बोला. आईजी मोहित अग्रवाल को आगंतुकों ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें उन की खबर पर विश्वास नहीं हुआ, पर इसे अविश्वसनीय समझना भी उचित नहीं था. अत: उन्होंने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को कार्यालय बुलवा लिया. एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव आईजी कार्यालय पहुंचे तो मोहित अग्रवाल ने उन्हें आगंतुकों द्वारा दी गई सूचना के बारे में बताया और कहा कि अगर सूचना की पुष्टि होती है तो दोषियों के खिलाफ जल्द काररवाई करें.

एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव ने चकेरी थानाप्रभारी रणजीत राय को इस गुप्त सूचना की सत्यता लगाने के निर्देश दिए, तो थानाप्रभारी ने मुखबिरों को लगा दिया. उसी दिन शाम 5 बजे मुखबिरों ने थानाप्रभारी रणजीत राय को इस बारे में जो जानकारी दी, उस ने सूचना की पुष्टि कर दी. उन्होंने बताया कि श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एचएएल अफसर का एक मकान है, जिस की देखरेख उस का बेटा अजय सिंह करता है. इस मकान की पहली मंजिल पर पैरा मिलिट्री फोर्स के 2 अफसर रहते हैं. भूतल पर राघवेंद्र शुक्ला अपनी पत्नी अनीता के साथ रहता है. अनीता ही अपने पति के साथ मिल कर वहां सैक्स रैकेट का चलाती है. इस मकान में वह पिछले एक साल से रह रही है.

मुखबिरों से पुख्ता जानकारी मिलने की सूचना थानाप्रभारी ने तत्काल एसपी (क्राइम) राजेश कुमार यादव को दे दी. इस के बाद राजेश यादव ने सैक्स रैकेट का परदाफाश करने के लिए एक पुलिस टीम गठित की. इस टीम में उन्होंने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह, थानाप्रभारी रणजीत राय, एसआई (क्राइम ब्रांच) डी.के. सिंह, अर्चना, कांस्टेबल अनूप कुमार, अनुज, मनोज, कविता, रीता आदि को शामिल किया. 5 जनवरी, 2020 को रात 8 बजे थानाप्रभारी रणजीत राय ने सीओ (कलेक्टरगंज) श्वेता सिंह के निर्देश पर अनीता शुक्ला के रामपुरम स्थित मकान पर छापा मारा. मकान के अंदर एक कमरे का दृश्य देख कर थानाप्रभारी वहीं ठिठक गए.

कमरे में एक महिला अर्धनग्न अवस्था में बिस्तर पर चित पड़ी थी. उस के साथ एक युवक कामक्रीड़ा में लीन था. पुलिस पर निगाह पड़ते ही युवकयुवती ने दरवाजे से भागने का प्रयास किया, पर दरवाजे पर खड़े पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया. दूसरे कमरे में 2 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. शायद वे ग्राहक के आने के इंतजार में थीं. महिला दरोगा अर्चना ने उन्हें अपनी हिरासत में ले लिया. इसी समय 3 युवतियों तथा 2 युवकों ने मुख्य दरवाजे की ओर भागने का प्रयास किया, किंतु सीओ श्वेता सिंह व अन्य पुलिसकर्मियों ने उन्हें दबोच लिया.

इस तरह पुलिस छापे में सरगना सहित 6 युवतियां, 2 दलाल तथा एक ग्राहक पकड़ा गया. मकान की तलाशी ली गई तो वहां से कामवर्धक दवाएं, स्प्रे, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक सामग्री के अलावा 4 मोबाइल फोन तथा कुछ नगदी भी बरामद हुई. पुलिस पकड़े गए युवकयुवतियों को थाना चकेरी ले आई.  जिस मकान में सैक्स रैकेट चलता था, उस का मालिक अजय सिंह था. संदेह के आधार पर पुलिस ने उसे भी थाने बुलवा लिया. अजय सिंह एक अफसर का बेटा था, अत: उसे छोड़ने के लिए थानाप्रभारी के पास रसूखदारों के फोन आने लगे.

लेकिन इंसपेक्टर रणजीत राय ने जांचपड़ताल के बाद ही रिहा करने की बात कही. अजय सिंह ने भी स्वयं को निर्दोष बताया और कहा कि उस ने तो उन लोगों को मकान किराए पर दिया था. उसे सैक्स रैकेट की जानकारी नहीं थी. सीओ श्वेता सिंह ने जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़े गए युवकयुवतियों से पूछताछ की तो युवतियों ने अपना नाम अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, पूनम, नीलम तथा नेहा बताया. इन में अनीता शुक्ला सैक्स रैकेट की संचालिका थी. अंकिता तथा सरिता अनीता की सगी छोटी बहनें थीं. तीनों बहनें जिस्मफरोशी के धंधे में लिप्त थीं.

युवकों ने अपने नाम राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी बताए. इन में राघवेंद्र शुक्ला और आशुतोष झा सगे साढ़ू थे और अपनीअपनी पत्नियों के लिए दलाली करते थे. जबकि लालकुर्ती कैंट (कानपुर) का रहने वाला सत्यम द्विवेदी ग्राहक था. चूंकि सैक्स रैकेट के सभी आरोपियों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया था, अत: सीओ श्वेता सिंह ने स्वयं वादी बन कर अनैतिक देह व्यापार निवारण अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7 के तहत अनीता शुक्ला, अंकिता झा, सरिता तिवारी, नीलम, पूनम, नेहा, राघवेंद्र शुक्ला, आशुतोष झा तथा सत्यम द्विवेदी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

इन सब से पुलिस ने जब पूछताछ की तो देह व्यापार में लिप्त युवतियों ने इस धंधे में आने की अपनी अलगअलग मजबूरी बताई. कालगर्ल्स सरगना अनीता उन्नाव जिले के बेहटा गांव की निवासी थी. उस की 2 छोटी बहनें और थीं, जिन के नाम अंकिता तथा सरिता थे. इन 3 बहनों का एक इकलौता भाई भी था, जो बचपन में ही रूठ कर घर से चला गया था. वह दिल्ली में रहता है और दाईवाड़ा (नई सड़क) स्थित एक किताब की दुकान में काम करता है. अनीता खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के पैर डगमगा गए. उस का मन पढ़ाई में कम और प्यारमोहब्बत में ज्यादा रमने लगा. वह बीघापुर स्थित पार्वती इंटर कालेज में 10वीं में पढ़ती थी. कालेज आतेजाते ही उस की मुलाकात उमेश से हुई.

उमेश निराला कालेज में इंटरमीडिएट में पढ़ रहा था. उमेश और अनीता की मुलाकातें धीरेधीरे बढ़ती गईं और दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. प्यार परवान चढ़ा तो उनके बीच की सारी दूरियां खत्म हो गईं. उमेश और अनीता का अवैध रिश्ता आम हुआ तो अनीता के पिता को बड़ा दुख हुआ. उन्होंने बेटी को समझाया, घरपरिवार की इज्जत का वास्ता दिया, लेकिन अनीता की समझ में नहीं आया. वह तो आसमान में उड़ने लगी थी. उस ने उमेश के अलावा और भी कई बौयफ्रैंड बना लिए थे, जिन के साथ वह घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. अनीता की बदचलनी का असर उस की दोनों छोटी बहनों पर भी पड़ने लगा. वे भी उसी की राह पर चल पड़ी थीं.

अनीता के कदम बहके तो पिता को उस के ब्याह की चिंता सताने लगी. उन्होंने उस के हाथ पीले करने को स्वयं तो दौड़धूप शुरू की ही, नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया कि वह अनीता के लिए कोई लड़का बताएं. एक रिश्तेदार के माध्यम से उन्हें एक लड़का पसंद आ गया. लड़के का नाम था राघवेंद्र कुमार शुक्ला. राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे के रहने वाले थे. उन के 3 बच्चों में राघवेंद्र सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा तो था किंतु बेरोजगार था. उस का मन खेती में नहीं लगता था और उसे नौकरी भी नहीं मिल रही थी. सो वह आवारा घूमता था. अनीता के पिता ने राघवेंद्र को देखा तो यह सोच कर उसे पसंद कर लिया कि पढ़ालिखा है. शरीर से भी स्वस्थ है, नौकरी आज नहीं तो कल मिल ही जाएगी.

देवनारायण ने राघवेंद्र के पिता अजय कुमार शुक्ला से उस के ब्याह की बात चलाई तो वह राजी हो गए. इस के बाद सन 2010 में अनीता की शादी राघवेंद्र के साथ हो गई. शादी के बाद अनीता ससुराल आई तो सभी ने उस के रूप की तारीफ की. राघवेंद्र भी सुंदर पत्नी पा कर इतरा उठा. सब खुश थे पर अनीता खुश नहीं थी. उसे एक तो बेरोजगार पति मिला था, दूसरे उस की स्वच्छंदता पर प्रतिबंध लग गया था. इसलिए वह परेशान रहती थी. घर से बाहर आनेजाने को ले कर उस की तूतूमैंमैं पति से भी होती थी और सासससुर से भी. अनीता ने जैसेतैसे 3 साल ससुराल में बिताए. इस बीच वह एक बेटे की मां भी बनी. उस के बाद अनीता को ले कर घर में कलह होने लगी. दरअसल, अनीता ने शादी के पहले के अपने प्रेमियों के साथ घूमनाफिरना शुरू कर दिया था.

उन के साथ वह बहाने से उन्नाव तो कभी बदरका घूमने निकल जाती थी. राघवेंद्र तथा उस के परिवार से यह बात अधिक दिनों तक छिपी नहीं रही. वह समझ गए कि अनीता बदचलन है. राघवेंद्र ने पत्नी पर अंकुश लगाना चाहा तो वह पति को ही आंखें दिखाने लगी, ‘‘ज्यादा टोकाटाकी की तो थाने जा कर घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दूंगी. सभी जेल में दिखाई दोगे. इज्जत नीलाम होगी अलग से.’’

धमकी से डर कर राघवेंद्र ने अनीता को उस की मरजी और हाल पर छोड़ दिया. अनीता ने पति को तो दबाव में ले लिया पर ससुराल वालों को नहीं दबा सकी. वह घर में ऐसी औरत को भला कैसे बरदाश्त करते जो बदचलन हो. लिहाजा सब मिल कर उसे घर से निकालने पर तुल गए. अनीता जानती थी कि अकेली औरत कटी पतंग की तरह होती है. नाम के लिए ही सही, लेकिन पुरुष साथ हो तो वह अनेक मुसीबतों से सुरक्षित रहती है. अपनी इसी सोच के तहत अनीता घर से तो निकली पर पति को भी साथ ले गई. अनीता पति के साथ कानपुर आ गई और किदवईनगर में किराए का कमरा ले कर रहने लगी. वहां राघवेंद्र दादानगर स्थित एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा. अनीता ने भी नौकरी ढूंढ ली और काम पर जाने लगी.

छोटीछोटी उन नौकरियों में वेतन भी मामूली था और मेहनत अधिक थी. अत: आमदनी बढ़ाने के लिए अनीता ने किसी दूसरे काम की तलाश शुरू कर दी. इसी तलाश में अनीता एक कालगर्ल रैकेट की सरगना से जा टकराई. सरगना ने जौब दिलाने का झांसा दे कर अनीता को अपने जाल में फंसाया और फिर देहव्यापार के धंधे में उतार दिया. अनीता खूबसूरत और जवान थी. उस की डिमांड अधिक होती थी, अत: वह खूब पैसे कमाने लगी. राघवेंद्र प्राइवेट नौकरी करता रहा और अनीता देहव्यापार के गंदे तालाब की मछली बनी रही. हालांकि राघवेंद्र को पत्नी का धंधा कतई पसंद नहीं था, मगर वह उसे रोक नहीं पाता था. जब भी अनीता से कुछ कहता तो वह उसे डराधमका कर चुप रहने को विवश कर देती थी. तब राघवेंद्र खून का घूंट पी कर रह जाता.

अनीता ने जब जिस्मफरोशी के धंधे के सभी गुर सीख लिए तो उस ने अपना अलग रैकेट बना लिया. उस के रैकेट में पेशेवर कालगर्ल्स थीं. इस के अलावा वह अपने स्तर से नई कालगर्ल भी तैयार करती थी. इस के लिए अनीता गरीब मजबूर व सुंदर लड़कियों को टारगेट करती. वह उन्हें रुपयों या फिर नौकरी दिलाने का लालच दे कर अपने जाल में फंसाती फिर देहव्यापार में उतार देती. शर्मनाक बात तो यह रही कि अनीता ने अपनी जवान व खूबसूरत सगी बहनों को भी देह के धंधे में उतार दिया. उन के पति ही उन की दलाली करने लगे. अनीता घर में ही देहव्यापार करती थी. वह ग्राहक से फुल नाइट के 5 से 10 हजार रुपए लेती थी. जो ग्राहक कालगर्ल को बाहर ले जाना चाहते थे, उन्हें अतिरिक्त चार्ज देना पड़ता था. कालगर्ल का सारा खर्चा कस्टमर को ही देना पड़ता था.

पुलिस के भय से अनीता किसी एक मकान में लंबे अरसे तक नहीं रहती थी. स्थानीय पुलिसकर्मियों से वह सांठगांठ बनाए रखती थी. 2019 के जनवरी महीने में अनीता ने चकेरी थाने के श्यामनगर क्षेत्र के रामपुरम में एक मकान 15 हजार रुपए महीने के किराए पर लिया. यह मकान अजय सिंह का था. इसी किराए के मकान में अनीता अपना हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट का संचालन करने लगी थी. उस ने अपना दायरा भी बढ़ा लिया था. वह शहर के बाहर भी कालगर्ल्स भेजने लगी थी. अनीता ने शहर के बाहर कालगर्ल भेजने का 25 हजार रुपया तय कर रखा था. वह वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो भेज कर सौदा तय करती थी और ग्राहकों की डिमांड पर दूसरे शहरों से भी कालगर्ल्स बुलाती थी.

बड़े शहरों के जिस्मफरोशी के दलाल उस के संपर्क में थे. अनीता का पति राघवेंद्र भी अब पत्नी के अनैतिक धंधे में शामिल हो गया था. पैसों का लेनदेन वही करने लगा था. रामपुरम में अनीता का धंधा खूब फलफूल रहा था कि पड़ोसियों की नजर उस के धंधे पर पड़ गई. उन्होंने इस की जानकारी आईजी मोहित अग्रवाल को दी और उस के सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ हो गया. पुलिस छापे में पकड़ी गई अंकिता, अनीता की सगी बहन थी. वह अपने पति आशुतोष झा के साथ नौबस्ता थाना क्षेत्र के पशुपतिनगर में रहती थी. वहीं पर एक मंदिर में दोनों की मुलाकात हुई, जो बाद में प्यार में बदल गई. तब अंकिता ने आशुतोष के साथ प्रेम विवाह किया था. आशुतोष मधुबनी, बिहार का रहने वाला था.

आशुतोष से शादी करने के बाद अंकिता पशुपतिनगर में रहने लगी. आशुतोष प्राइवेट नौकरी करता था. इस नौकरी से वह न तो अपनी जरूरतें पूरी कर पाता था और न ही अंकिता की ख्वाहिशें. 2-3 सालों में ही प्यार का नशा उतर गया था और वे दोनों आर्थिक परेशानी से जूझने लगे थे. अंकिता सदैव चिंताग्रस्त रहने लगी थी. अंकिता का अपनी बहन अनीता के घर आनाजाना लगा रहता था. बहन के ठाठबाट से अंकिता प्रभावित थी. वह उस की अहसानमंद भी थी, क्योंकि वह उस की आर्थिक मदद कर देती थी. एक दिन अंकिता ने बातोंबातों में उस से कहा, ‘‘अनीता दीदी, मैं सदैव परेशानी में रहती हूं. आशुतोष इतना नहीं कमा पाता कि हमारा गुजारा हो सके. दीदी, हमें भी कोई धंधा बताओ ताकि हमारा भी गुजारा हो सके.’’

अनीता ने अंकिता के चेहरे पर नजरें गड़ा दीं. फिर कुछ क्षण बाद बोली, ‘‘जो धंधा मैं करती हूं, तू भी शुरू कर दे, कुछ ही दिनों में तेरे दिन भी बहुर जाएंगे.’’

‘‘कौन सा धंधा दीदी?’’ अंकिता ने अचकचा कर पूछा.

‘‘वही जिस्मफरोशी का.’’ अनीता ने बताया.

‘‘दीदी, यह आप क्या कह रही हैं, यह तो बहुत गंदा काम है. क्या आप यही करती हो?’’

‘‘हां, अंकिता मैं यही धंधा करती हूं. बता, इस में गलत क्या है? देख ले, इस में कमाई बहुत है. सोच ले, मन करे तो आ जाना.’’

अंकिता एक सप्ताह तक पसोपेश में पड़ी रही. उस के बाद वह राजी हो गई. फिर अनीता ने बहन को देह धंधे में उतार दिया. आशुतोष झा ने भी प्राइवेट नौकरी छोड़ दी और पत्नी की देह की दलाली करने लगा. अंकिता सजधज कर बहन के अड्डे पर पहुंच जाती और जिस्म का धंधा करती. आशुतोष पत्नी के लिए ग्राहक तलाश कर लाता. छापे वाले दिन अंकिता पति आशुतोष झा के साथ बहन के घर पहुंची ही थी कि पुलिस का छापा पड़ गया और वह पति के साथ पकड़ी गई.

जिस्मफरोशी के अड्डे से पकड़ी गई सरिता फतेहपुर जिले के असोम कस्बे की रहने वाली थी. सरिता अनीता की सब से छोटी बहन थी. उस का विवाह असोम निवासी बलवीर के साथ हुआ था. बलवीर फेरी लगा कर कपड़े बेचता था. कपड़े के व्यवसाय में उसे कभी घाटा तो कभी मुनाफा होता था. उसी से वह जैसेतैसे अपनी गृहस्थी चलाता था. सरिता महत्त्वाकांक्षी थी. वह पति की कमाई से संतुष्ट नहीं थी. सरिता अपनी बहनों के घर आतीजाती थी. वह उन के ठाटबाट देख कर मन ही मन कुढ़ती थी. उस ने बहनों से कमाई और ठाटबाट का रहस्य जाना तो उस ने भी बहनों का साथ पकड़ लिया और जिस्मफरोशी का धंधा करने लगी. उस ने पति बलवीर को भी राजी कर लिया. बलवीर भी पत्नी की देह का दलाल बन गया.

सरिता कुछ ही समय में इस धंधे की खिलाड़ी बन गई. वह असोम तथा फतेहपुर से ग्राहक तथा लड़कियां भी फंसा कर लाने लगी. इस के एवज में अनीता उसे कमीशन भी देती थी. छापे वाले दिन सरिता को ग्राहक के साथ उन्नाव जाना था लेकिन ग्राहक आने से पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस दिन उस का पति बलवीर उस के साथ अड्डे पर नहीं आया था, जिस से वह बच गया. पुलिस रेड में पकड़ी गई नेहा फतेहपुर की रहने वाली थी. 4 भाईबहनों में वह सब से छोटी थी. उस के पिता प्राइवेट नौकरी कर परिवार का पालनपोषण करते थे. नेहा की शादी कल्याणपुर निवासी रमेश के साथ हुई थी.

रमेश शराबी था, जो कमाता था वह सब शराब में ही उड़ा देता था. नेहा विरोध करती तो वह उसे मारतापीटता था. लगभग 3 साल उस ने जैसेतैसे पति के साथ बिताए, फिर उस का साथ छोड़ कर मायके आ गई. पिता उस की दूसरी शादी रचा कर गृहस्थी बसाना चाहते थे, लेकिन नेहा राजी नहीं हुई. नेहा पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती, अत: वह कानपुर आ गई और दादानगर स्थित एक प्लास्टिक फैक्ट्री में काम करने लगी. लेकिन यह नौकरी उसे ज्यादा समय तक रास नहीं आई. वह पढ़ीलिखी थी सो दूसरी नौकरी की तलाश में जुट गई. इसी तलाश में उस की मुलाकात कालगर्ल सरगना अनीता शुक्ला से हुई.

अनीता ने उसे अच्छी नौकरी लगवाने का झांसा दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. नेहा जवान और खूबसूरत थी. अनीता ने उस को देहसुख का चस्का भी लगा दिया. इस के बाद अनीता ने उसे देहव्यापार के धंधे में उतार दिया.  नेहा फैशनेबल थी. वह जींसटौप पहनती थी. ग्राहक उसे देखते ही पसंद कर लेता था. अनीता नेहा की बुकिंग दिल्ली, आगरा जैसे बड़े शहरों को करती थी और भारीभरकम रकम वसूलती थी. छापे वाले दिन नेहा का सौदा 10 हजार रुपए में तय था. ग्राहक कार से उसे लेने आ रहा था. लेकिन इसी बीच पुलिस का छापा पड़ गया और वह पकड़ी गई.

पुलिस छापे में पकड़ी गई पूनम, असोम (फतेहपुर) की रहने वाली थी. उस का पति फतेहपुर खागा रोड पर टैंपो चलाता था. वह इतना कमा लेता था कि अपनी पत्नी व 2 बच्चों का पालनपोषण हो जाता था. लेकिन एक दिन उस का टैंपो ट्रक से भिड़ गया, जिस से वह बुरी तरह जख्मी हो गया. उस का साल भर इलाज चला पर वह चल न सका. उस का एक पैर खराब हो गया. फिर हमेशा के लिए बिस्तर ही उस का साथी बन गया था. पूनम के पास जो जमापूंजी थी, वह सब उस ने पति के इलाज में लगा दी. वह कर्जदार भी हो गई. बच्चों के भूखों मरने की नौबत जब आ गई तब उसे घर के बाहर कदम निकालना पड़ा. वह फतेहपुर में एक चूड़ी की दुकान पर काम करने लगी. इसी चूड़ी की दुकान पर पूनम की मुलाकात कालगर्ल सरिता से हुई.

सरिता ने पूनम को अच्छी नौकरी दिलवाने का झांसा दिया और अपनी बहन अनीता से मिलवाया. अनीता ने पूनम की मजबूरी समझी और फिर प्रलोभन दे कर सैक्स के धंधे में उतार दिया. पूनम को शुरू में तो धंधा करने में झिझक हुई, किंतु जब शरीर की भरपूर कीमत मिलने लगी तो वह इस धंधे में रम गई. छापे वाले दिन उस का रात भर का सौदा 5 हजार रुपए में तय हुआ था. वह अपने ग्राहक के साथ कमरे में बिस्तर पर थी, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ी गई. जिस्म का धंधा करते पकड़ी गई नीलम भी असोम (फतेहपुर) की रहने वाली थी. उस का पति मानसिक रोगी था. घर में ही पड़ा रहता था.

सासससुर और 3 बच्चों का बोझ उस के कंधे पर था. उस की मजबूरी का फायदा असोम की रहने वाली सरिता ने उठाया. सरिता ने उसे अपनी बड़ी बहन अनीता से मिलवाया. अनीता ने नीलम को समाज की कड़वी सच्चाई से अवगत कराया और फिर जिस्म बेचने को राजी कर लिया. मजबूरी में नीलम देह का सौदा करने लगी. हालांकि नीलम का पति और सासससुर यही समझते थे कि नीलम किसी कंपनी में नौकरी करती है और कंपनी के काम से उसे बाहर जाना पड़ता है. छापे वाली रात नीलम ग्राहक के इंतजार में थी, तभी पुलिस का छापा पड़ गया और वह पकड़ी गई.

देहव्यापार के अड्डे पर अय्याशी करते रंगेहाथ पकड़ा गया सत्यम द्विवेदी कानपुर नगर के छावनी थाने के लालकुर्ती मोहल्ले का रहने वाला था. वह कपड़े का व्यापार करता था और अय्याश प्रवृत्ति का था. एक रंगीनमिजाज दोस्त के माध्यम से वह श्यामनगर क्षेत्र में स्थित अनीता के अड्डे पर पहुंचा था. पूनम नाम की कालगर्ल को पसंद कर उस ने पूरी रात का सौदा 5 हजार रुपए में तय किया था. पूनम के साथ वह कमरे में हमबिस्तर था, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ा गया. 6 जनवरी, 2020 को थाना चकेरी पुलिस ने देहव्यापार के अड्डे से पकड़े गए सभी आरोपियों को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से सभी को जिला जेल भेज दिया गया. द्य

—कथा संकलन सूत्रों पर आधारित. महिला पात्रों के नाम परिवर्तित किए गए हैं.

Extramarital Affair : पड़ोसी के प्यार में पागल पत्नी ने कराया पति का कत्ल

Extramarital Affair : तमाम पतिपत्नियों की तरह कपिल और खुशबू में लड़ाईझगड़ा होता था. लेकिन खुशबू इस झगड़े को नाक का सवाल बना कर मायके चली गई, जहां उस के संबंध चंदन से बन गए. खुशबू को चंदन की यारी ऐसी भाई कि उस ने…

दक्षिणपूर्वी दिल्ली के थाना शाहीनबाग के अंतर्गत नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिल की ससुराल उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद के आसफाबाद में थी. करीब 3 साल पहले किसी बात को ले कर उस का अपनी पत्नी खुशबू से विवाद हो गया था. तब खुशबू अपने मायके चली गई थी और वापस नहीं लौटी थी. इतना ही नहीं, ढाई साल पहले खुशबू ने फिरोजाबाद न्यायालय में कपिल के खिलाफ घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते का मुकदमा दायर कर दिया था. कपिल हर तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट जाता था और तारीख निपटा कर देर रात दिल्ली लौट आता था. 10 फरवरी, 2020 को भी वह इसी मुकदमे की तारीख के लिए दिल्ली से फिरोजाबाद आया था. वह रात को घर नहीं पहुंचा तो घर वालों ने उसे 11 फरवरी की सुबह फोन किया.

लेकिन उस का फोन बंद मिला. इस से घर वाले परेशान हो गए. उन्होंने 11 फरवरी की शाम तक कपिल का इंतजार किया. इस के बाद उन की चिंता और भी बढ़ गई. 12 फरवरी को कपिल की मां ब्रह्मवती, बहन राखी, मामा नेमचंद और मौसी सुंदरी फिरोजाबाद के लिए निकल गए. कपिल की ससुराल वाला इलाका थाना रसूलपुर क्षेत्र में आता है, इसलिए वे सभी थाना रसूलपुर पहुंचे और कपिल के रहस्यमय तरीके से गायब होने की बात बताई. थाना रसूलपुर से उन्हें यह कह कर थाना मटसैना भेज दिया गया कि कपिल कोर्ट की तारीख पर आया था और कोर्ट परिसर उन के थानाक्षेत्र में नहीं बल्कि थाना मटसैना में पड़ता है.

इसलिए वे सभी लोग उसी दिन थाना मटसैना पहुंचे, लेकिन वहां भी उन की बात गंभीरता से नहीं सुनी गई. ज्यादा जिद करने पर मटसैना पुलिस ने कपिल की गुमशुदगी दर्ज कर ली. गुमशुदगी दर्ज कर के उन्हें थाने से टरका दिया. इस के बाद भी वे लोग कपिल की फिरोजाबाद में ही तलाश करते रहे. इसी बीच 15 फरवरी की दोपहर को किसी ने थाना रामगढ़ के बाईपास पर स्थित हिना धर्मकांटा के नजदीक नाले में एक युवक की लाश पड़ी देखी. इस खबर से वहां सनसनी फैल गई. कुछ ही देर में भीड़ एकत्र हो गई. इसी दौरान किसी ने इस की सूचना रामगढ़ थाने में दे दी. कुछ ही देर में थानाप्रभारी श्याम सिंह पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. उन्होंने शव को नाले से बाहर निकलवाया. मृतक के कानों में मोबाइल का ईयरफोन लगा था.

पुलिस ने युवक की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका. पुलिस ने उस अज्ञात युवक की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय फिरोजाबाद भेज दी. कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी उस समय फिरोजाबाद में ही थीं. शाम के समय जब उन्हें बाईपास स्थित नाले में पुलिस द्वारा किसी अज्ञात युवक की लाश बरामद किए जाने की जानकारी मिली तो मांबेटी थाना रामगढ़ पहुंच गईं. उन्होंने थानाप्रभारी श्याम सिंह से अज्ञात युवक की लाश के बारे में पूछा तो थानाप्रभारी ने उन्हें फोन में खींचे गए फोटो दिखाए. फोटो देखते ही वे दोनों रो पड़ीं, क्योंकि लाश कपिल की ही थी. इस के बाद थानाप्रभारी ब्रह्मवती और उस की बेटी राखी को जिला अस्पताल की मोर्चरी ले गए.

उन्होंने वह लाश दिखाई तो दोनों ने उस की शिनाख्त कपिल के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद थानाप्रभारी ने भी राहत की सांस ली. थानाप्रभारी ने शव की शिनाख्त होने की जानकारी एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह को दे दी और उन के निर्देश पर आगे की काररवाई शुरू कर दी. थानाप्रभारी श्याम सिंह ने मृतक कपिल की मां ब्रह्मवती और बहन राखी से बात की तो उन्होंने बताया कि कपिल की पत्नी खुशबू चरित्रहीन थी. इसी बात पर कपिल और खुशबू के बीच अकसर झगड़ा होता था, जिस के बाद खुशबू मायके में आ कर रहने लगी थी. राखी ने आरोप लगाया कि खुशबू ने ही अपने परिवार के लोगों से मिल कर उस के भाई की हत्या की है.

पुलिस ने राखी की तरफ से मृतक की पत्नी खुशबू, सास बिट्टनश्री, साले सुनील, ब्रजेश, साली रिंकी और सुनील की पत्नी ममता के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. चूंकि रिपोर्ट नामजद थी, इसलिए पुलिस आरोपियों की तलाश में जुट गई. पुलिस ने मृतक की पत्नी खुशबू व उस की मां को हिरासत में ले लिया. उन से कड़ाई से पूछताछ की गई. खुशबू से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी, बस यही पता चला कि कपिल पत्नी के चरित्र पर शक करता था. फिर भी पुलिस यह समझ गई थी कि एक अकेली औरत कपिल का न तो मर्डर कर सकती है और न ही शव घर से दूर ले जा कर नाले में फेंक सकती है. पुलिस चाहती थी कि कत्ल की इस वारदात का पूरा सच सामने आए.

इस बीच जांच के दौरान पुलिस को एक अहम सुराग हाथ लगा. किसी ने थानाप्रभारी को बताया कि खुशबू चोरीछिपे अपने प्रेमी चंदन से मिलती थी. दोनों के नाजायज संबंधों का जो शक किया जा रहा था, उस की पुष्टि हो गई. जाहिर था कि हत्या अगर खुशबू ने की थी तो कोई न कोई उस का संगीसाथी जरूर रहा होगा. इस बीच पुलिस की बढ़ती गतिविधियों और खुशबू को हिरासत में लिए जाने की भनक मिलते ही खुशबू का प्रेमी चंदन और उस का साथी प्रमोद फरार हो गए. इस से उन दोनों पर पुलिस को शक हो गया. उन की सुरागरसी के लिए पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. मुखबिर की सूचना पर घटना के तीसरे दिन पुलिस ने खुशबू के प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद को कनैटा चौराहे के पास से हिरासत में ले लिया. दोनों वहां फरार होने के लिए किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे.

थाने ला कर दोनों से पूछताछ की गई. थाने में जब चंदन और प्रमोद से खुशबू का आमनासामना कराया गया तो तीनों सकपका गए. इस के बाद उन्होंने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. अपराध स्वीकार करने के बाद पुलिस ने खुशबू, उस के प्रेमी चंदन उर्फ जयकिशोर निवासी मौढ़ा, थाना रसूलपुर, उस के दोस्त प्रमोद राठौर निवासी राठौर नगर, आसफाबाद को कपिल की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उन की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त रस्सी, मोटा सरिया व मोटरसाइकिल बरामद कर ली. खुशबू ने अपने प्यार की राह में रोड़ा बने पति कपिल को हटाने के लिए प्रेमी व उस के दोस्त के साथ मिल कर हत्या का षडयंत्र रचा था. खुशबू ने पति की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

क्षिणपूर्वी दिल्ली की नई बस्ती ओखला के रहने वाले कपिलचंद्र की शादी सन 2015 में खुशबू के साथ हुई थी. शादी के डेढ़ साल तक सब कुछ ठीकठाक रहा. कपिल की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी. करीब 3 साल पहले जैसे उस के परिवार को नजर लग गई. हुआ यह कि खुशबू अकसर मायके चली जाती थी. इस से कपिल को उस के चरित्र पर शक होने लगा. इस के बाद पतिपत्नी में तकरार शुरू हो गई. पतिपत्नी में आए दिन झगड़े होने लगे. गुस्से में कपिल खुशबू की पिटाई भी कर देता था. गृहक्लेश के चलते खुशबू अपने बेटे को ले कर अपने मायके में आ कर रहने लगी. ढाई साल पहले उस ने कपिल पर घरेलू हिंसा व गुजारा भत्ते के लिए फिरोजाबाद न्यायालय में मुकदमा दायर कर दिया.

मायके में रहने के दौरान खुशबू के अपने पड़ोसी चंदन से प्रेम संबंध हो गए थे. हालांकि चंदन शादीशुदा था और उस की 6 महीने की बेटी भी थी. कहते हैं प्यार अंधा होता है. दोनों एकदूसरे को दिलोजान से चाहने लगे थे. मायके में रहने के दौरान चंदन खुशबू के पति की कमी पूरी कर देता था. लेकिन ऐसा कब तक चलता. एक दिन खुशबू ने चंदन से कहा, ‘‘चंदन, हम लोग ऐसे चोरीछिपे आखिर कब तक मिलते रहेंगे. तुम मुझ से शादी कर लो. मैं अपने पति से पीछा भी छुड़ाना चाहती हूं. लेकिन वह मुझे तलाक नहीं दे रहा. अगर तुम रास्ते के इस कांटे को हटा दोगे तो हमारा रास्ता साफ हो जाएगा.’’

दोनों एकदूसरे के साथ रहना चाहते थे. चंदन को खुशबू की सलाह अच्छी लगी. इस के बाद खुशबू व उस के प्रेमी चंदन ने मिल कर एक षडयंत्र रचा. मुकदमे की तारीख पर खुशबू और कपिल की बातचीत हो जाती थी. खुशबू ने चंदन को बता दिया था कि कपिल हर महीने मुकदमे की तारीख पर फिरोजाबाद कोर्ट में आता है. 10 फरवरी को अगली तारीख है, वह उस दिन तारीख पर जरूर आएगा. तभी उस का काम तमाम कर देंगे. कपिल 10 फरवरी को कोर्ट में अपनी तारीख के लिए आया. कोर्ट में खुशबू व कपिल के बीच बातचीत हो जाती थी. कोर्ट में तारीख हो जाने के बाद खुशबू ने उसे बताया, ‘‘अपने बेटे जिगर की तबीयत ठीक नहीं है. वह तुम्हें बहुत याद करता है. उस से एक बार मिल लो.’’

अपने कलेजे के टुकड़े की बीमारी की बात सुन कर कपिल परेशान हो गया और तारीख के बाद खुशबू के साथ अपनी ससुराल पहुंचा. कपिल शराब पीने का शौकीन था. खुशबू के प्रेमी व उस के दोस्त ने कपिल को शराब पार्टी पर आमंत्रित किया. शाम को ज्यादा शराब पीने से कपिल नशे में चूर हो कर गिर पड़ा. कपिल के गिरते ही खुशबू ने उस के हाथ पकड़े और प्रेमी चंदन व उस के साथी प्रमोद ने साथ लाई रस्सी से कपिल के हाथ बांधने के बाद उस के सिर पर मोटे सरिया से प्रहार कर उस की हत्या कर दी. कपिल की हत्या इतनी सावधानी से की गई थी कि पड़ोसियों को भी भनक नहीं लगी. हत्या के बाद उसी रात उस के शव को मोटरसाइकिल से ले जा कर बाईपास के किनारे स्थित नाले में डाल दिया गया. 15 फरवरी को शव से दुर्गंध आने पर लोगों का ध्यान उधर गया.

एसपी (सिटी) प्रबल प्रताप सिंह ने बताया कि कपिल की हत्या के मुकदमे में नामजद आरोपियों की भूमिका की जांच की जा रही है. जो लोग निर्दोष पाए जाएंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. पुलिस ने तीनों हत्यारोपियों को गिरफ्तार करने के बाद न्यायालय में पेश किया, जहां से तीनों को जेल भेज दिया गया. निजी रिश्तों में आई खटास के चलते खुशबू ने अपनी मांग का सिंदूर उजाड़ने के साथ पतिपत्नी के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया. वहीं कांच की चूडि़यों से रिश्तों को जोड़ने के लिए मशहूर सुहागनगरी फिरोजाबाद को रिश्तों के खून से लाल कर दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित