Gangster काला जठेड़ी : मोबाइल स्नैचर से बना जुर्म का माफिया

हरियाणा के जिला सोनीपत में 1984 में जन्मे संदीप उर्फ काला जठेड़ी को दिल्ली पुलिस बेसब्री से तलाश रही थी. उस पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल औफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) लगा हुआ था, जिस में जमानत नहीं मिलती है. उसे पहली फरवरी, 2020 को फरीदाबाद अदालत में पेशी के लिए ले कर आई थी. पेशी के बाद वापस ले जाने के दौरान गुड़गांव मार्ग पर उस के गुर्गों ने पुलिस की बस को घेर लिया था.

ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और काला जठेड़ी को छुड़ा ले भागे थे. सारे बदमाश उस के गैंग के थे. यह पूरी वारदात एकदम से फिल्मी अंदाज में काफी तेजी से घटित हुई थी. इस मामले को ले कर तब डबुआ थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था. तभी से वह फरार था. पुलिस को आशंका थी कि वह नेपाल के रास्ते दुबई भाग निकला है. पुलिस का यह भी मानना था कि ऐसा उसे भ्रमित करने और उस पर से ध्यान हटाने के लिए किया गया है कि वह दुबई में है. यानी काला जठेड़ी की तलाश में जुटी पुलिस टीम अच्छी तरह से समझ रही थी कि उन्हें अपने निशाने से हटाने की उस की यह एक चाल हो सकती है.

इस बारे में दिल्ली के डीसीपी (काउंटर इंटेलिजेंस, स्पैशल सेल) मनीषी चंद्रा का कहना था कि जठेड़ी एक भूत की तरह रहता था, क्योंकि वह 2020 में पुलिस हिरासत से भागने के बाद कभी नहीं दिखा. कानून प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान हटाने के लिए ही जठेड़ी गैंग के सदस्यों ने इस अफवाह को बढ़ावा दिया कि वह विदेश से ही गिरोह को संचालित कर रहा है. इस पर गौर करते हुए पुलिस ने जठेड़ी की कमजोर नस का पता लगाने की पहल की. इस में पुलिस को अनुराधा चौधरी के रूप में सफलता भी मिल गई. वह जठेड़ी की बेहद करीबी थी और गोवा में रह रही थी. पुलिस ने सब से पहले उसे ही अपने कब्जे में लेने की योजना बनाई.

अनुराधा चौधरी के बारे में दिल्ली की स्पैशल सेल ने कई जानकारियां जुटा ली थीं. पुलिस को मिली जानकारी के अनुसार, अनुराधा चौधरी का जन्म राजस्थान के सीकर में हुआ था, लेकिन दिल्ली के एक कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की और उस की शादी दीपक मिंज से हुई थी. दोनों एक समय में शेयर ट्रेडिंग का काम करते थे, जिस में उन्हें लाखों रुपए का नुकसान हुआ था. वे कर्ज में दबे होने के उस की वापसी कर पाने असमर्थ थे. इसी परेशानी से जूझते हुए उस का संपर्क एक गैंगस्टर आनंद पाल सिंह से हुआ. वह राजस्थान का एक शातिर और फरार अपराधी था. उस पर राजस्थान पुलिस ने ईनाम रखा हुआ था.

आनंद पाल सिंह ने ही उसे अनुराधा को अपराध की दुनिया में घसीट लिया था और जल्द ही उस की पहचान मैडम मिंज की बन गई थी. 2017 में पुलिस मुठभेड़ में आनंद पाल सिंह की मौत हो जाने के बाद वह काला जठेड़ी के संपर्क में आ गई थी, वह उसे ‘रिवौल्वर रानी’ कहता था.  वह उस के गिरोह की एकमात्र अंगरेजी बोलने वाली सदस्य थी. उस ने काला जठेड़ी से हरिद्वार में शादी कर ली थी. शादी के बाद वे कनाडा शिफ्ट होने की फिराक में थे. उन की योजना वहीं से अपराध का काला कारोबार चलाने की थी.

जठेड़ी को दबोचने के लिए ‘औप डी24’

जठेड़ी को दबोचने के लिए दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल ने अनुराधा तक पहुंचने की योजना बनाई. सेल ने कुल 30 पुलिसकर्मियों को शामिल किया और एक अभियान के तहत औपरेशन का कोड नाम दिया ‘औप डी24’, इस का अर्थ ‘अपराधी पुलिस से 24 घंटे आगे था.’ सर्विलांस सीसीटीवी फुटेज से ले कर मोबाइल फोन ट्रैकिंग तक की थी. करीब 4 महीने की मेहनत के बाद 30 जुलाई, 2021 को तब सफलता मिली, जब सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे तक ट्रैक किया गया.

इस औपरेशन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए स्पैशल सेल की टीम टुकडि़यों में बंट कर कुल 12 राज्यों तक अलर्ट हो गई थी. राज्य सरकार की पुलिस को भी इस की जानकारी दे दी गई थी और जरूरत पड़ने पर उन से मदद करने का अनुरोध किया जा चुका था. जठेड़ी और अनुराधा के संबंध में हर तरह की मिली सूचना की दिशा में सर्विलांस का सहारा लिया गया था. टीम को अनुराधा और जठेड़ी गैंग के सदस्यों के गोवा में होने की तकनीकी जानकारी मिली. हालांकि तब पुलिस की निगाह में यह निश्चित नहीं था, इसलिए उस जानकारी को जांचने के लिए एक टीम गोवा भेजी गई.

टीम के सदस्यों को वहां कुछ सुराग मिले. उन्हें 2 वाहन मिले, जिस पर हरियाणा के नंबर लिखे थे. फिर क्या था पुलिस टीम ने उन गाडि़यों का पीछा करना शुरू कर दिया. इस सिलसिले में टीम को गोवा से गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और दिल्ली तक का सफर करना पड़ा. पीछा करने के सिलसिले में ही टीम को तिरुपति से एक सीसीटीवी फुटेज मिला. उस में अनुराधा चौधरी को जठेड़ी गैंग के कुछ सदस्यों के साथ देखा गया था. उस के बाद कई टीमें उन वाहनों का पीछा करने लगीं, जो उन के द्वारा उपयोग किए जा रहे थे. लगभग 10,000 किलोमीटर तक उन का पीछा करने के बाद टीम को एक और खास इनपुट मिली. सूचना थी कि चौधरी और जठेड़ी एक एसयूवी में पंजाब की यात्रा पर हैं. पुलिस टीम ने उन का पीछा जारी रखा.

उत्तर प्रदेश में सहारनपुर-यमुना नगर राजमार्ग पर सरसावा टोल प्लाजा के पास एक ढाबे पर दोनों उसी वाहन से दबोच लिए गए. वहां से दोनों को दिल्ली लाया गया.

मोबाइल स्नैचर से माफिया तक

बात 2004 की है. तब फीचर मोबाइल फोन के बाद टचस्क्रीन का स्मार्टफोन आया था. वे फोन काफी महंगे हुआ करते थे. काला जठेड़ी और उस के साथियों ने दिल्ली के समयपुर बादली में शराब की दुकान पर एक व्यक्ति से टचस्क्रीन का स्मार्टफोन छीन लिया था.

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इस का मामला थाने में दर्ज करवाया गया था. वह इस स्नैचिंग में पकड़ा गया और जेल भेज दिया गया. तब उस की उम्र करीब 19 साल की थी. उस के खिलाफ दर्ज मामले में नाम संदीप जठेड़ी और निवासी सोनीपत का लिखवाया गया था. रंग काला होने के कारण मीडिया में उसे नया नाम काला जठेड़ी का मिल गया. मोबाइल स्नैचिंग की छोटी सी सजा काट कर जेल से छूटने के बाद उस ने अपराध की दुनिया में तेजी से कदम बढ़ा लिया. कई तरह के अपराध करने लगा, जिस में स्नैचिंग के साथसाथ हिंसा भी शामिल हो गई. उस की पढ़ाई 12वीं के बाद छूट गई, किंतु जल्द ही वह शार्पशूटर बन गया. वह एक गैंग में शामिल हो गया और अपना आदर्श लारेंस बिश्नोई को मान लिया.

पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में गांव के कुछ लोगों के साथ वह दिल्ली के डाबड़ी इलाके में आया. उस ने यहां विवाद में पीट कर एक व्यक्ति की हत्या कर दी. उसे इस मामले में तिहाड़ जेल भेज दिया गया. जेल में उस की अनिल रोहिल्ला उर्फ लीला से दोस्ती हो गई. अनिल रोहिल्ला ने ही उसे बताया कि रोहतक स्थित उस के गांव में एक परिवार से दुश्मनी चल रही है. उस परिवार में 7 भाई हैं और उन्होंने उस के पिता की हत्या की है. इस का बदला लेने के लिए उस ने गैंग बनाया है. इस परिवार के 5 भाइयों सहित 8 लोगों को काला जठेड़ी ने मार डाला. इस हत्याकांड से ही संदीप का नाम काला जठेड़ी के रूप में अपराध की दुनिया में मशहूर हो गया.

फिर कुछ साल बाद ही हरियाणा के सांपला और फिर गोहाना में हुई हत्याओं में उस का नाम आ गया. उस के बाद उस ने मुड़ कर नहीं देखा. और फिर जठेड़ी का नाम 2012 में हरियाणा पुलिस के मोस्टवांटेड अपराधियों की सूची में तब जुड़ गया, जब उस ने 3 सहयोगियों के साथ मिल कर हरियाणा के झज्जर जिले में दुलिना गांव के पास एक जेल वैन को ट्रक से टक्कर मार दी थी. यह टक्कर जानबूझ कर मारी गई थी. उस का मकसद उस में सवार कैदियों को मारना था. इस वारदात में उस ने 3 कैदियों की गोली मार कर हत्या कर दी थी और 2 पुलिसकर्मी भी घायल हो गए थे. बताते हैं कि वे कैदी उस के दुश्मन थे. बाद में जठेड़ी को गिरफ्तार कर लिया गया और इस मामले में आजीवन कारावास की सजा सुना दी गई.

दरअसल, वर्ष 2012 में काला जठेड़ी को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था. जेल में उस की मुलाकात गैंगस्टर नरेश सेठी से हो गई. उस ने काला जठेड़ी को राजू बसोडी से मिलवाया. राजू बसोडी ने उक्त परिवार के छठे भाई को 2018 में मरवा दिया. उस समय काला जठेड़ी जेल में ही था. गैंगस्टर नरेश सेठी के जीजा को उस ने इसलिए मार डाला, क्योंकि उस ने नरेश की बहन को मार दिया था. जेल में रहने के दौरान ही काला जठेड़ी की दोस्ती लारेंस बिश्नोई से हो गई थी.  वह उस के गैंग में शामिल हो गया था. लारेंस ने ही उसे पुलिस हिरासत से फरवरी, 2020 में फरार करवाया था. उस के बाद से ही वह लगातार फरार चल रहा था और उस के नाम साल भर में 20 से ज्यादा हत्याओं को अंजाम देने का आरोप लग चुका था.

हत्या समेत अपहरण की वारदातों को तो काला जठेड़ी जेल में रह कर ही अंजाम दे दिया करता था. जेल से बाहर उस ने अपना जबरदस्त गिरोह बना रखा है. उन में 100 से अधिक शूटर हैं. गैंग के लोग दिल्ली समेत हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान में सक्रिय हैं. वे एक इशारे पर मरनेमारने को तैयार रहते हैं.

रंगदारी वसूलने में भी माहिर

वे बड़े ही सुनियोजित तरीके से अपराध को अंजाम देने में माहिर हैं. रंगदारी का एक मामला मोहाली के कारोबारी का सामने आया, जिसे उस ने जेल में रहते हुए अंजाम दिया. वह पंजाब के लारेंस बिश्नोई के 7 सहयोगियों में एक खास बदमाश है. बात  2021 की है. पंजाब की मोहाली पुलिस को एक ईंट भट्ठा कारोबारी कुदरतदीप सिंह ने शिकायत लिखवाई कि 8 अक्तूबर को काला जठेड़ी ने उस से एक करोड़ रुपए की रंगदारी मांगी है. इस शिकायत पर भारतीय दंड संहिता की धारा 506 और 387 के तहत मोहाली पुलिस ने काला जठेड़ी के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. तब तक काला जठेड़ी एक कुख्यात अपराधी घोषित हो चुका था. उस के खिलाफ जबरन वसूली और हत्या के करीब 40 मामले दर्ज थे.

काला जठेड़ी गैंग के गुर्गे भी कुछ कम शातिर नहीं हैं. एक गुर्गे अक्षय अंतिल उर्फ अक्षय पलड़ा की हिम्मत देखिए, उस ने जेल में एक सिपाही से सिमकार्ड मांगा. वहां से ही एक कारोबारी को फोन कर उस से 5 करोड़ की रंगदारी मांग ली. दिल्ली पुलिस जब इस मामले में सक्रिय हुई तब काला जठेड़ी गैंग से जुड़े अक्षय अंतिल को गिरफ्तार कर लिया गया. हैरानी की बात यह थी कि 22 साल का अक्षय दिल्ली की मंडोली जेल में बंद था और वहीं से काला जठेड़ी का भय दिखा कर दिल्ली के करोलबाग के एक कारोबारी से 5 करोड़ की रंगदारी मांगी थी.

उस के बाद पुलिस ने मंडोली जेल से फिरौती के लिए इस्तेमाल किए गए सिम कार्ड के साथ एक एप्पल आईफोन12 मिनी फोन भी बरामद किया है. इस का खुलासा तब हुआ, जब करोलबाग के एक कारोबारी ने 30 मई, 2021 को शिकायत दे कर बताया कि उसे 5 करोड़ रुपए की रंगदारी के लिए धमकी भरे काल आ रहे हैं. फोन करने वाले ने खुद को लारेंस बिश्नोई गैंग का शार्पशूटर बताया था. जांच में पता चला कि काल बीएसएनएल सिम वाले फोन का उपयोग कर मंडोली जेल दिल्ली से की गई थी. ब्यौरा लेने के बाद मेरठ के एक दुकानदार और सिम जारी करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली आईडी वाले ग्राहक का पता लगाया गया.

उन से गहन पूछताछ में पता चला कि थाना कंकड़खेड़ा, मेरठ, यूपी में तैनात एक कांस्टेबल ने एक सीएनजी मैकेनिक के नाम से यह सिम लिया था. तकनीकी जांच में पता चला कि काल मंडोली जेल से अक्षय पलड़ा द्वारा की गई थी. इस मामले के संदर्भ में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला मर्डर केस को ले कर भी कान खड़े हो गए. उस में बिश्नाई जठेड़ी गैंग की भूमिका होने की आशंका जताई है. पूछताछ के दौरान इस बात का भी खुलासा हुआ कि पूरी साजिश अक्षय और नरेश सेठी ने मिल कर रची थी. दोनों काला जठेड़ी गैंग से जुड़े हैं.

इस के लिए उन्होंने काला जठेड़ी गैंग के एक अन्य सदस्य राजेश उर्फ रक्का के माध्यम से 2 सिम कार्ड (बीएसएनएल और वोडाफोन) और 2 मोबाइल एप्पल के मिनी और छोटे चाइनीज कीपैड वाले फोन हासिल किए थे. बीएसएनएल सिमकार्ड को एप्पल आईफोन12 मिनी में और वोडाफोन सिम को चाइनीज फोन में लगाया गया था. अक्षय हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला है और काला जठेड़ी गिरोह का शातिर शार्प शूटर है. उस पर कत्ल, अपहरण और फिरौती के कई मामले दर्ज हैं. उस का नाम मूसेवाला हत्याकांड में भी एक संदिग्ध के रूप में सामने आया है.

बहरहाल, पिछले साल फरवरी में भागने के बाद काला जठेड़ी विदेशों के दूसरे गैंगस्टरों के साथ जुड़ा रहा. उन में वीरेंद्र प्रताप उर्फ काला राणा (थाईलैंड से संचालित), गोल्डी बराड़ (कनाडा में स्थित) और मोंटी (यूके से संचालित) हैं. उन के साथ वह एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अपराध गठबंधन का नेतृत्व कर रहा था.

अनुराधा का मिला साथ

पुलिस के अनुसार उन का गठबंधन हाईप्रोफाइल जबरन वसूली, शराब के प्रतिबंधित राज्यों में शराब का अवैध,  अंतरराज्यीय व्यापार, अवैध हथियारों की तसकरी और जमीन पर कब्जा करना शामिल था.

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काला जठेड़ी के साथ सक्रियता के साथ काम करने वालों में शिक्षित युवती अनुराधा भी थी. उस के काला जठेड़ी के साथ लिवइन रिलेशन थे.  पूछताछ में काला जठेड़ी ने अनुराधा के संपर्क में आने का कारण बताया. दरअसल, लारेंस बिश्नोई ने काला जठेड़ी को निर्देश दिया कि वह लेडी डौन अनुराधा की मदद करे. आनंदपाल सिंह की दोस्त अनुराधा से उस की मुलाकात कब प्यार में बदल गई उसे भी नहीं पता चला.

हालांकि बताते हैं दोनों ने हाल में ही शादी भी कर ली थी. लेडी डौन के नाम से कुख्यात अनुराधा के खिलाफ भी कई आपराधिक मामले दर्ज हैं, जो काला जठेड़ी के नाम पर करती रही. यहां तक कि भारत से भागने की कहानी भी उसी ने फैलाई. कहने को तो उस की योजना काला जठेड़ी के साथ कनाडा में शिफ्ट होने की थी, किंतु इस में सफलता नहीं मिल पाई. गैंगस्टर काला जठेड़ी के साथ लेडी डौन अनुराधा की गिरफ्तारी के बाद कई नए खुलासे हुए. वैसे तो कई ऐसे राज का परदाफाश होना अभी बाकी है, लेकिन दोनों के संबंधों और कुख्यात साजिशों के बारे में जो कुछ सामने आया, वह काफी चौंकाने वाला है. उसे सुन कर सुरक्षा एजेंसियों पर भी सवाल खड़े हो गए हैं.

दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल को उन्होंने बताया कि दोनों बतौर पतिपत्नी कनाडा में शिफ्ट होने के लिए नेपाल से पासपोर्ट बनवाने की तैयारी में थे. इस के लिए उन्होंने शादी रचाई थी. पुलिस पर अपना प्रभाव जमाने के लिए अनुराधा पूछताछ के दौरान जांच अधिकारियों से सिर्फ फर्राटेदार अंगरेजी में ही बात करती है. खाली वक्त में अंगरेजी की किताब मांगती है. पूछताछ में अनुराधा ने बताया कि उसी ने काला जठेड़ी को हुलिया बदलने के लिए कहा था. उल्लेखनीय है कि जब काला जठेड़ी पकड़ा गया था, तब वह सिख के वेश में था. उस के कहने पर ही जठेड़ी ने सरदार का हुलिया बना लिया था.

मंदिर में शादी के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे थे और अपनी पहचान बदल कर फरजी आईडी पर दोनों ने अपना नाम पुनीत भल्ला और पूजा भल्ला रख लिया था. स्पैशल सेल के सूत्रों के अनुसार, जब अनुराधा राजस्थान के गैंगस्टर आंनदपाल सिंह के साथ काम करती थी, तब उस समय उस का भी हुलिया उस ने ही बदलवाया था. आंनदपाल के कपड़े पहनने, रहनसहन और बौडी लैंग्वेज के अनुसार बोलचाल आदि की भी ट्रेनिंग दी थी. यहां तक कि अपना जुर्म का काला धंधा कैसे चलाए, इस का फैसला भी अनुराधा ही करती थी.

बताते हैं कि अनुराधा की ही प्लानिंग थी कि पुलिस की नजरों में काला जठेड़ी का ठिकाना विदेश बताया जाए. उस ने ही काला जठेड़ी के गैंग के सभी सदस्यों को यह कह रखा था कि अगर वह पुलिस के हत्थे चढ़ जाएं तो पुलिस को यही बताएं कि काला जठेड़ी अब विदेश में है और वहीं से अपना गैंग औपरेट कर रहा है. यह सब एक सोचीसमझी प्लानिंग थी. अनुराधा जानती थी कि जुर्म की दुनिया में अगर पुलिस को थोड़ी सी भी भनक लग गई तो काला जठेड़ी का हाल भी आंनदपाल जैसा हो सकता है.

गैंगस्टर ने पूछताछ में बताया है कि उस के गुर्गे दिल्ली और देश के कई अन्य राज्यों में फैले हुए हैं. उस के बाद से दिल्ली पुलिस की स्पैशल सेल अब राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब समेत अन्य राज्यों में इन गुर्गों की तलाश में जुट गई है. उन में हरियाणा के सोनीपत का रहने वाला मनप्रीत राठी व बच्ची गैंगस्टर, गोल्डी बरार, कैथल निवासी मंजीत राठी और झज्जर का रहने वाला दीपक है.

पिछले दिनों ओलंपिक में मेडल जीतने वाले सुशील कुमार पर भी हत्या का आरोप लगा था और उस का नाम भी गैंगस्टर में शामिल हो गया था. गिरफ्तारी से पहले सुशील कुमार ने भी दिल्ली में जमीन की खरीदफरोख्त सहित अन्य काले कारनामों के लिए जठेड़ी के साथ हाथ मिला लिया था. बाद में दोनों में दुश्मनी हो गई. दिल्ली के स्टेडियम में पहलवान सागर धनखड़ की पिटाई के बाद मौत के मामले में सुशील गिरफ्तार हो गया. सागर के साथ सोनू महाल नामक शख्स की भी पिटाई हुई थी, जो रिश्ते में काला जठेड़ी का भांजा होने के साथ ही दाहिना हाथ भी माना जाता है.

बनना चाहता था सिपाही

पूछताछ में काला जठेड़ी ने एक और चौंकाने वाला खुलासा किया. उस ने बताया कि वह दिल्ली पुलिस का सिपाही बनना चाहता था. इस के लिए उस ने परीक्षा भी दी थी, लेकिन पास नहीं हो पाया था. उस ने हरियाणा पुलिस में भी सिपाही का आवेदन किया था, लेकिन सेलेक्शन नहीं हुआ. उस ने बताया कि अगर उस का सपना न टूटा होता तो वह अपराधी भी नहीं होता. उस के बाद ही वह बदमाशों के संपर्क में आ गया और कई राज्यों का वांछित बदमाश बन गया.

इस बारे में उस ने स्पैशल सेल को बताया कि वर्ष 2002 में सोनीपत आईटीआई से सर्टिफिकेट कोर्स कर रहा था. उसी दौरान उस ने पुलिस में सिपाही बनने के लिए आवेदन किया था. इस के लिए उस ने दिल्ली और हरियाणा पुलिस में सिपाही भरती में हिस्सा लिया. दोनों ही जगह परीक्षा पास नहीं कर सका. सिपाही में भरती न हो पाने के बाद वह परिजनों से कुछ रुपए ले कर दिल्ली आ गया. यहां आ कर वह छोटेछोटे अपराध में लिप्त हो गया.

वर्ष 2004 में दिल्ली के समयपुर बादली थाना पुलिस ने पहली बार मोबाइल झपटमारी में काला को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था. झपटमारी में जमानत मिलने पर वह वापस गांव लौट आया. वहीं खेती में पिता का हाथ बंटाने के साथ केबल कारोबार में लग गया.

बहरहाल, काला जठेड़ी भले ही जेल में हो, लेकिन उस के गैंग के कई राज्यों में फैले हुए गुर्गे उस के इशारे पर कब किसी अपराध को अंजाम दे दें कहना मुश्किल है.

Facebook पर लाइक करके ठगा और कमाए 3700 करोड़

दिल्ली के लक्ष्मीनगर के रहने वाले गौरव अरोड़ा नोएडा की एक रियल एस्टेट कंपनी में बढि़या नौकरी करते थे. लेकिन पिछले 2 सालों से वह काफी परेशान थे. इस की वजह यह थी कि जब से केंद्र में भाजपा सरकार आई, तब से रियल एस्टेट के क्षेत्र में मंदी आ गई है. पहले जहां प्रौपर्टी की कीमतें आसमान छू रही थीं, अब वह स्थिर हो चुकी हैं. केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से इनवैस्टर भी अब प्रौपर्टी में इनवैस्ट करने से कतरा रहे हैं.

इस का सीधा प्रभाव उन लोगों पर पड़ रहा है, जिन की रोजीरोटी रियल एस्टेट के धंधे से चल रही थी. गौरव को हर महीने अपनी कंपनी का कुछ टारगेट पूरा करना होता था. पहले तो वह उस टारगेट को आसानी से पूरा कर लेता था, लेकिन प्रौपर्टी के क्षेत्र में आई गिरावट से अब बड़ी मुश्किल से घर का खर्च चल रहा था. बच्चों की पढ़ाई के खर्च के अलावा उसे घर के रोजाना के खर्च पूरे करने में खासी परेशानी हो रही थी. एक दिन बौस ने उसे अपनी केबिन में बुला कर पूछा, ‘‘गौरव, यहां नौकरी के अलावा तुम और कोई काम करते हो?’’

‘‘नहीं सर, समय ही नहीं मिलता.’’ गौरव ने कहा.

‘‘देखो, मैं तुम्हें एक काम बताता हूं, जिसे तुम कहीं भी और दिन में कभी भी कर सकते हो. काम इतना आसान है कि तुम्हारी पत्नी या बच्चे भी घर बैठे कर कर सकते हैं.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, ऐसा क्या काम है, जो कोई भी कर सकता है?’’ गौरव ने पूछा.

‘‘नोएडा की ही एक कंपनी है सोशल ट्रेड. इस कंपनी के अलगअलग पैकेज हैं. आप जो पैकेज लेंगे, कंपनी उसी के अनुसार आप को लाइक करने को देगी. हर लाइक का 5 रुपए मिलता है.’’ बौस ने कहा.

‘‘सर, मैं कुछ समझा नहीं.’’ गौरव ने कहा.

‘‘मैं तुम्हें विस्तार से समझाता हूं.’’ कह कर बौस ने एक खाली पेपर निकाला और उस पर समझाने लगे, ‘‘देखो, कंपनी के 4 तरह के प्लान हैं. पहला है एसटीपी-10, दूसरा है एसटीपी-20, तीसरा है एसटीपी-50 और चौथा है एसटीपी-100.

‘‘एसटीपी-10 का पैकेज 5750 रुपए का है. इस में तुम्हें रोजाना 10 लाइक करनी होंगी. एसटीपी-20 का पैकेज 11500 रुपए का है. इस में तुम को रोजाना 20 लाइक करने को मिलेंगे. एसटीपी-50 के पैकेज में 28,750 रुपए जमा कर के 50 लाइक प्रतिदिन करने को मिलेंगे और एसटीपी-100 के पैकेज में 57,500 रुपए जमा कर के 125 लाइक तुम्हारी आईडी पर करने को आएंगे.

‘‘पैकेज की इस धनराशि में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल है. यह लाइक शनिवार, रविवार और सरकारी छुट्टियों को छोड़ कर एक साल तक आएंगे. हर लाइक के 5 रुपए मिलेंगे. तुम्हें जो इनकम होगी, उस में से सरकार के नियम के अनुसार टैक्स भी काटा जाएगा.

‘‘तुम्हें फायदे की एक बात बताता हूं. तुम जिस पैकेज में जौइन करोगे, 21 दिनों के अंदर उसी पैकेज में 2 और लोगों को जौइन करा दिया तो तुम्हारी आईडी बूस्टर हो जाएगी. यानी उस आईडी पर दोगुने लाइक आएंगे. अगर और ज्यादा कमाई करनी है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को जौइन कराओ, इस से डाइरेक्ट इनकम के अलावा बाइनरी इनकम भी मिलेगी.’’

बौस ने आगे बताया, ‘‘कंपनी हंडरेड परसेंट लीगल है. बिना किसी डर के तुम यहां काम कर के अच्छी कमाई कर सकते हो. यकीन न हो तो तुम मेरी बैंक पासबुक देख सकते हो.’’ इतना कह कर बौस ने गौरव को अपनी पासबुक दिखाई. गौरव ने पासबुक देखी तो सचमुच उस में कंपनी की तरफ से कई हजार रुपए आने की एंट्री थी. उसे यह स्कीम अच्छी लगी. उसे लगा कि यह तो बहुत अच्छा काम है, जो घर पर कोई भी कर सकता है. उस ने बौस से कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जैसे ही पैसों का जुगाड़ हो जाएगा, वह काम शुरू कर देगा.

घर पहुंचने के बाद गौरव के दिमाग में बौस द्वारा दिखाया गया सोशल ट्रेड कंपनी का प्लान ही घूमता रहा. उस ने सोचा कि अगर वह 57,500 रुपए जमा कर देगा तो 625 रुपए प्रतिदिन मिलेंगे. सब कटनेकटाने के बाद 1,33,594 रुपए मिलेंगे यानी एक साल में उस के पैसे दोगुने से अधिक हो जाएंगे.

गौरव ने इस बारे में पत्नी को बताया तो पत्नी ने कहा कि इस तरह की कई कंपनियां लोगों के पैसे ले कर भाग चुकी हैं. इन के चक्कर में न पड़ा जाए तो बेहतर है. वैसे आप की मरजी. गौरव ने पत्नी की सलाह को अनसुना कर दिया. सोचा कि इसे कंपनी के बारे में जानकारी नहीं है, इसलिए यह ऐसी बातें कर रही है. बहरहाल उस ने ठान लिया कि वह यह काम जरूर करेगा. अगले दिन उस के एक नजदीकी दोस्त ने भी सोशल ट्रेड के प्लान के बारे में बताते हुए कहा कि वह खुद पिछले एक महीने से इस प्लान से अच्छी इनकम हासिल कर रहा है.

दोस्त ने गौरव से भी सोशल ट्रेड जौइन करने को कहा. गौरव को सोशल ट्रेड में काम करना ही था, इसलिए उस ने बौस के बजाय दोस्त के साथ जुड़ कर सोशल ट्रेड में काम करना उचित समझा. गौरव के पास कुछ पैसे बैंक में थे, कुछ पैसे बैंक से लोन ले कर उस ने 1,15,000 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर 2 आईडी ले लीं. उस की आईडी के बाईं साइड में उस की एक और आईडी लग चुकी थी. अगर उस के दाईं साइड में 57,500 रुपए की एक आईडी और लग जाती तो उस की मुख्य आईडी पर बूस्टर लग सकता था.

इसलिए गौरव इस फिराक में था कि 57,500 रुपए की एक आईडी किस की लगवाई जाए. उस ने अपने बड़े भाई कपिल अरोड़ा को सोशल ट्रेड के प्लान की इनकम के बारे में बताया. लालच में कपिल भी तैयार हो गया और उस ने भी 25 जनवरी, 2017 को 57,500 रुपए जमा करा दिए. कपिल अरोड़ा की आईडी लगते ही गौरव की मुख्य आईडी बूस्टर हो गई और उस पर 125 के बजाए 250 लाइक आने लगे, जिस से उसे रोजाना 1250 रुपए की इनकम होने लगी. गौरव ने पेमेंट मोड 15 दिन का रखा था. 23 जनवरी, 2017 को उसे पहला पेआउट 4800 रुपए का मिला. कपिल की आईडी लग जाने के बाद उसे अगला पेआउट इस से डबल आने की उम्मीद थी, पर अगले 15 दिनों बाद उस का पेआउट नहीं आया.

यह बात गौरव ने अपने उस दोस्त से कही, जिस ने उसे जौइन कराया था. दोस्त ने उसे बताया कि कंपनी में अपग्रेडेशन का काम चल रहा है, इसलिए सभी के पेमेंट रुके हुए हैं. चिंता की कोई बात नहीं है, जो भी पेमेंट इकट्ठा होगा, वह सारा मिल जाएगा. यही नहीं, उस ने गौरव से कहा कि वह अपनी टीम बढ़ाए, जिस से इनकम बढ़ सके. गौरव रोजाना अपनी आईडी पर आने वाले लाइक करता रहा. चूंकि उस का पेआउट नहीं आ रहा था, इसलिए उस ने और किसी को सोशल ट्रेड में जौइन नहीं कराया. उस का भाई कपिल भी अपनी आईडी पर आने वाले 125 लाइक रोजाना करता रहा. गौरव और कपिल कंपनी के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा स्थित औफिस भी गए.

उन की तरह अन्य सैकड़ों लोग वहां अपनी इसी समस्या को ले कर आजा रहे थे. सभी को यही बताया जा रहा था कि आईटी एक्सपर्ट सिस्टम को अपग्रेड करने में लगे हुए हैं. सोशल ट्रेड कंपनी से लाखों लोग जुड़े थे. उन में से अधिकांश के मन में इसी बात का संशय था कि पता नहीं कंपनी उन का रुका हुआ पेआउट देगी या नहीं. बहरहाल बड़े लीडर्स और कंपनी की ओर से परेशानहाल लोगों को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल रहा था.

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर (नोएडा) के सूरजपुर के रहने वाले दिनेश सिंह और पूर्वी दिल्ली के आजादनगर की रहने वाली पूजा गुप्ता ने भी दिसंबर, 2016 में अलगअलग 57,500 रुपए कंपनी के खाते में जमा करा कर आईडी ली थीं. ये भी रोजाना अपनी आईडी पर 125 लाइक करते थे. जौइनिंग के एक महीना बाद भी इन को इन के किए गए लाइक का पैसा नहीं मिला तो इन्हें भी चिंता होने लगी. न तो इन्हें अपने अपलाइन से और न ही कंपनी से कोई संतोषजनक जवाब मिल रहा था.

थकहार कर दिनेश सिंह ने 31 जनवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के थाना सूरजपुर में कंपनी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. इस की जांच एसआई मदनलाल को सौंपी गई. पेआउट न मिलने से असंतुष्ट कई लोगों ने पुलिस और जिला प्रशासन से शिकायतें करनी शुरू कर दी थीं. सोशल ट्रेड कंपनी के खिलाफ  ज्यादा शिकायतें मिलने पर पुलिस प्रशासन सतर्क हो गया. नोएडा पुलिस ने जांच की तो पता चला कि सोशल ट्रेड कंपनी के नोएडा सेक्टर-63 स्थित कंपनी के औफिस में देश के अलगअलग शहरों से सैकड़ों लोग अपने पेमेंट न मिलने की शिकायत करने आ रहे हैं. तमाम लोगों ने कंपनी में मोटी रकम जमा करा रखी है.

पुलिस को मामला बेहद गंभीर लगा, इसलिए नोएडा पुलिस प्रशासन ने पुलिस महानिदेशक को इस मामले से अवगत करा दिया. पुलिस महानिदेशक ने स्पैशल टास्क फोर्स के एसएसपी अमित पाठक को इस मामले में आवश्यक काररवाई करने के निर्देश दिए. एसएसपी अमित पाठक ने एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्र के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसटीएफ लखनऊ के एडिशनल एसपी त्रिवेणी सिंह, एसटीएफ के सीओ आर.के. मिश्रा, एसआई सौरभ विक्रम, सर्वेश कुमार पाल आदि को शामिल किया गया.

टीम ने करीब 15 दिनों तक इस मामले की जांच कर के रिपोर्ट एसएसपी अमित पाठक को सौंप दी. कंपनी के जिस औफिस पर पहले सोशल ट्रेड का बोर्ड लगा था, उस पर हाल ही में 3 डब्ल्यू का बोर्ड लग गया. एसटीएफ को जांच में यह जानकारी मिल गई थी कि सोशल ट्रेड के जाल में कोई 100-200 नहीं, बल्कि कई लाख लोग फंसे हुए हैं. इस के बाद उच्चाधिकारियों के निर्देश पर स्पैशल स्टाफ टीम ने सोशल ट्रेड के एफ-472, सेक्टर-63 नोएडा औफिस पर छापा मार कर वहां से कंपनी के डायरेक्टर अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल से पूछताछ कर के हिरासत में ले लिया. इसी के साथ पुलिस ने उन के औफिस से जरूरी दस्तावेज और अन्य सामान जांच के लिए जब्त कर लिए.

एसटीएफ टीम ने सूरजपुर स्थित अपने औफिस ला कर तीनों से पूछताछ की. इस पूछताछ में सोशल ट्रेड के शुरुआत से ले कर 37 अरब रुपए इकट्ठे करने की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अनुभव मित्तल उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले के पिलखुआ कस्बे के रहने वाले सुनील मित्तल का बेटा था. उन की हापुड़ में मित्तल इलैक्ट्रौनिक्स के नाम से दुकान है. अनुभव मित्तल शुरू से ही पढ़ाई में तेज था. स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद अनुभव का रुझान कोई नौकरी करने के बजाए अपना खुद का कोई बिजनैस करने का था. उस का रुझान आईटी क्षेत्र में ही कुछ नया करने का था, इसलिए वह नोएडा के ही एक संस्थान से कंप्यूटर साइंस से बीटेक करने लगा.

सन 2011 में उस का बीटेक पूरा होना था. वह समय के महत्त्व को अच्छी तरह समझता था, इसलिए नहीं चाहता था कि बीटेक पूरा होने के बाद वह खाली बैठे. बल्कि कोर्स पूरा होते ही वह अपना काम शुरू करना चाहता था. पढ़ाई के दौरान ही वह इसी बात की प्लानिंग करता रहता था कि बीटेक के बाद कौन सा काम करना ठीक रहेगा. बीटेक पूरा होने के एक साल पहले ही उस ने अपने एक आइडिया को अंतिम रूप दे दिया. सन 2010 में इंस्टीट्यूट के हौस्टल में बैठ कर उस ने अब्लेज इंफो सौल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी बना ली और इस का रजिस्ट्रेशन 878/8, नई बिल्डिंग, एसपी मुखर्जी मार्ग, चांदनी चौक, नई दिल्ली के पते पर करा लिया. अनुभव ने अपने पिता सुनील मित्तल को इस का डायरेक्टर बनाया.

बीटेक फाइनल करने के बाद उस ने छोटे स्तर पर सौफ्टवेयर डेवलपमेंट का काम शुरू कर दिया. अपनी इस कंपनी से उस ने सन 2015 तक मात्र 3-4 लाख रुपए का बिजनैस किया. जिस गति से उस का यह बिजनैस चल रहा था, उस से वह संतुष्ट नहीं था. इसलिए इसी क्षेत्र में वह कुछ ऐसा करना चाहता था, जिस से उसे अच्छी कमाई हो. उसी दौरान सन 2015 में उस ने सोशल ट्रेड डौट बिज नाम से एक औनलाइन पोर्टल बनाया और सदस्यों को जोड़ने के लिए 5750 रुपए से 57,500 रुपए का जौइनिंग एमाउंट फिक्स कर दिया. इस में 15 प्रतिशत टैक्स भी शामिल कर लिया. जौइन होने वाले सदस्यों को यह बताया गया कि औनलाइन पोर्टल पर कुछ पेज लाइक करने पड़ेंगे. एक पेज लाइक करने के 5 रुपए देने की बात कही गई.

शुरुआत में अनुभव ने अपने जानपहचान वालों की आईडी लगवाई. धीरेधीरे लोगों ने माउथ टू माउथ पब्लिसिटी करनी शुरू कर दी. जिन लोगों की जौइनिंग होती गई, उन्हें कंपनी से समय पर पैसा भी दिया जाता रहा, जिस से लोगों का विश्वास बढ़ने लगा और कंपनी में लोगों की जौइनिंग बढ़ने लगी. कंपनी ने सन 2015 में 9 लाख रुपए का बिजनैस किया. लोगों को बिना मेहनत किए पैसा मिल रहा था. उन्हें काम केवल इतना था कि कंपनी का कोई भी पैकेज लेने के बाद अपनी आईडी पर निर्धारित लाइक करने थे. एक लाइक लगभग 30 सैकेंड में पूरी हो जाता था. इस तरह कुछ ही देर में यह काम पूरा कर के एक निर्धारित धनराशि सदस्य के बैंक एकाउंट में आ जाती थी. शुरूशुरू में लोगों ने इस डर से कंपनी में कम पैसे लगाए कि कंपनी भाग न जाए. पर जब जौइन किए हुए सदस्यों के पैसे समय से आने लगे तो अधिकांश लोगों ने अपनी आईडी बड़े पैकेज में अपग्रेड करा लीं.

सन 2016 में ही अनुभव ने श्रीधर प्रसाद को अपनी कंपनी का चीफ औपरेटिंग औफीसर (सीओओ) बनाया. श्रीधर प्रसाद भी एक टेक्निकल आदमी था. उस ने सन 1994 में कौमर्स से ग्रैजुएशन करने के बाद दिल्ली के एनआईए इंस्टीट्यूट से एमबीए किया था. इस के बाद उस ने 1996 में ऊषा माटेन टेलीकौम कंपनी में सेल्स डिपार्टमेंट में काम किया. मेहनत से काम करने पर सेल्स मैनेजर बन गया. सन 2001 में उस की नौकरी विजय कंसलटेंसी हैदराबाद में बिजनैस डेवलपर के पद पर लग गई. इस दौरान वह कई बार यूके भी गया. सन 2005 में उस ने आईबीएम कंपनी जौइन कर ली. इस कंपनी में वह सौफ्टवेयर सौल्यूशन कंसल्टैंट के पद पर बंगलुरु में काम करने लगा. यहां पर उसे कंट्री हैड बनाया गया. आईबीएम कंपनी में सन 2009 तक काम करने के बाद उस ने नौकरी छोड़ कर सन 2010 में ओरेकल कंपनी जौइन कर ली.

कंपनी ने उसे बिजनैस डेवलपर के रूप में नाइजीरिया भेज दिया. बिजनैस डेवलपमेंट में उस का विशेष योगदान रहा. सन 2013 में श्रीधर प्रसाद बंगलुरु आ गया. लेकिन सफलता न मिलने पर वह सन 2014 में वापस नाइजीरिया ओरेकल कंपनी में चला गया. सन 2016 में श्रीधर प्रसाद की पत्नी ने किसी के माध्यम से सोशल ट्रेड डौट बिज में अपनी एंट्री लगाई. पत्नी ने यह बात उसे बताई तो श्रीधर को यह बिजनैस मौडल बहुत अच्छा लगा. बिजनैस मौडल समझने के लिए वह कई बार अभिनव मित्तल से मिला.

बातचीत के दौरान अभिनव श्रीधर प्रसाद की काबिलियत को जान गया. उसे लगा कि यह आदमी उस के काम का है, इसलिए उस ने श्रीधर को अपनी कंपनी में नौकरी करने का औफर दिया. विदेश जाने के बजाय श्रीधर को अच्छे पैकेज की अपने देश में ही नौकरी मिल रही थी, इसलिए वह अनुभव मित्तल की कंपनी में नौकरी करने के लिए तैयार हो गया और सीओओ के रूप में नौकरी जौइन कर ली.

अनुभव मित्तल ने मथुरा के महेश दयाल को कंपनी में टेक्निकल हैड के रूप में नौकरी पर रख लिया. अनुभव के पास टेक्निकल विशेषज्ञों की एक टीम तैयार हो चुकी थी. उन के जरिए वह कंपनी में नएनए प्रयोग करने लगा. लालच ही इंसान को ले डूबता है. जिन लोगों की सोशल टे्रड डौट बिज से अच्छी कमाई हो रही थी, उन्होंने वह कमाई अपने सगेसंबंधियों व अन्य लोगों को दिखानी शुरू की तो उन की देखादेखी उन लोगों ने भी कंपनी में मोटे पैसे जमा करा कर काम शुरू कर दिया.

बड़ेबड़े होटलों में कंपनी के सेमिनार आयोजित होने लगे. फिर तो लोग थोक के भाव से जुड़ने लगे. इस तरह से भेड़चाल शुरू हो गई और सन 2016 तक कंपनी से 4-5 लाख लोग जुड़ गए. जब इतने लोग जुड़े तो जाहिर है कंपनी का टर्नओवर बढ़ना ही था. सन 2016 में कंपनी का कारोबार उछाल मार कर 26 करोड़ हो गया. कारोबार बढ़ा तो कंपनी ने आगामी योजनाएं बनानी शुरू कीं. पहला कदम ईकौमर्स में रखना था. इस के जरिए वह जरूरत की हर चीज ग्राहकों को उपलब्ध कराना चाहता था. सोशल ट्रेड डौट बिज के बाद उस ने फ्री हब डौटकौम नाम की कंपनी  बनाई. ईकौमर्स के लिए उस ने इनमार्ट डौटकौम नाम की कंपनी बनाई. इस के जरिए खरीदारी करने पर भी उस ने अतिरिक्त इनकम का प्रावधान रखा.

अभिनव जानता था कि भारत में करोड़ों लोग फेसबुक यूज करते हैं, जिस से मोटी कमाई फेसबुक के ओनर को होती है. फेसबुक की ही तरह भारतीय सोशल साइट बनाने का विचार उस के दिमाग में आया. इस बारे में उस ने अपनी आईटी टीम से विचारविमर्श किया. अपनी टीम के साथ मिल कर अनुभव ने इस तरह की सोशल साइट बनाने पर काम शुरू कर दिया, जिस में फेसबुक से ज्यादा फीचर हों. अपनी इस सोशल साइट का नाम उस ने डिजिटल इंडिया डौट नेट रखा. इस में इस तरह की तकनीक डालने की उन की कोशिश थी कि किसी की आवाज या फोटो डालने पर उस व्यक्ति के एकाउंट पर पहुंचा जा सके.

उधर सोशल ट्रेड में भारत से ही नहीं, विदेशों से भी एंट्री लगनी शुरू हो चुकी थीं. इनवेस्टरों ने भी मोटा पैसा यहां इनवेस्ट करना शुरू कर दिया. अब कंपनी को करोड़ों रुपए की कमाई होने लगी. किसी वजह से कंपनी ने लोगों को पेआउट देना बंद कर दिया. लोगों ने अपने सीनियर लीडर्स और कंपनी औफिस जा कर संपर्क किया तो उन्हें यही बताया गया कि कंपनी के सौफ्टवेयर में अपग्रेडिंग का काम चल रहा है. जैसे ही यह काम पूरा हो जाएगा, सारे पेआउट रिलीज कर दिए जाएंगे.

अब तक कंपनी में करीब साढ़े 6 लाख लोगों ने 9 लाख से अधिक आईडी लगा रखी थीं. कंपनी के पास इन्होंने लगभग 3 हजार 726 करोड़ रुपए जमा करा रखे थे. जब उन्हें कंपनी की तरफ से पैसे आने बंद हो गए तो लोगों में बेचैनी बढ़नी स्वाभाविक थी. कुछ लोगों ने मोटी रकम लगाई थी, उन की तो नींद हराम हो गई. सीनियर लीडर उन्हें यही भरोसा दिलाते रहे कि उन का पैसा कहीं नहीं जाएगा. जो लोग कंपनी से लंबे समय से जुड़े थे, उन्हें विश्वास था कि कंपनी कहीं जाने वाली नहीं है. अपग्रेडेशन का काम पूरा होने के बाद सभी के पैसे खाते में भेज देगी. लेकिन जिन लोगों को जौइनिंग के बाद फूटी कौड़ी भी नहीं मिली थी, उन की चिंता लगातार बढ़ती जा रही थी. आखिर वे भरोसे की गोली कब तक लेते रहते.

लोगों ने नोएडा के जिला और पुलिस प्रशासन से सोशल ट्रेड की शिकायतें करनी शुरू कर दीं. लोगों ने सोशल ट्रेड के औफिस पर जब 3 डब्ल्यू का बोर्ड लगा देखा तो उन्हें शक हो गया कि कंपनी भाग गई है. कंपनी के अंदर ही अंदर बदलाव की क्या प्रक्रिया चल रही है, इस से लोग अनजान थे. 15 दिनों की गोपनीय जांच करने के बाद पुलिस प्रशासन को भी लगा कि अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड कंपनी के नाम पर लोगों से अरबों रुपए की ठगी की है. तब पुलिस ने 1 फरवरी, 2017 को अनुभव मित्तल और कंपनी के 2 पदाधिकारियों श्रीधर प्रसाद और महेश दयाल को हिरासत में ले लिया.

अनुभव मित्तल से पूछताछ के बाद पता चला कि उस की कंपनी के गाजियाबाद के राजनगर में कोटक महिंद्रा बैंक में एक एकाउंट, यस बैंक में 2 एकाउंट, एक्सिस बैंक में 2 एकाउंट, केनरा बैंक में 3 एकाउंट हैं. जांच में पुलिस को केनरा बैंक में 480 करोड़ रुपए और यस बैंक में 44 करोड़ रुपए मिले. पुलिस ने इन खातों को फ्रीज करा दिया. जांच में पुलिस को जानकारी मिली है कि कंपनी ने दिसंबर, 2016 के अंत में सोशल ट्रेड डौट बिज से माइग्रेट कर के फ्री हब डौटकौम लांच कर दिया और उस के 10 दिन के अंदर ही फ्री हब डौटकौम से इनमार्ट डौटकौम पर माइग्रेट किया. इस के बाद 27 जनवरी, 2017 को इनमार्ट से फ्रिंजअप डौटकौम पर माइग्रेट कर लिया.

कंपनी में इतनी जल्दीजल्दी बदलाव करने के बाद अनुभव मित्तल ने गिरफ्तारी के 7 दिनों पहले ही दिल्ली की एक नई कंपनी 3 डब्ल्यू खरीद कर उस का बोर्ड भी अपने औफिस के बाहर लगा दिया. इस के अलावा अनुभव मित्तल ने सोशल ट्रेड डौट बिज के डोमेन पर प्राइवेसी प्रोटेक्शन प्लान भी ले लिया था, ताकि कोई भी व्यक्ति या जांच एजेंसी डोमेन की डिटेल के बारे में पता न लगा सके.

पुलिस को पता चला कि वह फेसबुक पेज लाइक करने के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रहा था. कंपनी द्वारा सदस्यों को धोखे में रख कर उन से पैसे लिए जाते थे और जब अपने पेज को लौगइन करते तो विज्ञापन पेजों के या तो गलत यूआरएल होते थे या उन्हीं सदस्यों के यूआरएल को आपस में ही लाइक कराया जा रहा था. कंपनी द्वारा कोई वास्तविक विज्ञापन या कोई लौजिकल या रियल सर्विस नहीं उपलब्ध कराई जा रही थी.

कंपनी के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं था, वह सदस्यों के पैसों को ही इधर से उधर घुमा रही थी, जोकि द प्राइज चिट्स ऐंड मनी सर्कुलेशन स्कीम्स (बैनिंग) एक्ट 1978 की धारा 2(सी)/3 के तहत अवैध है. इस एक्ट की धारा 4 में यह अपराध है. पुलिस ने अनुभव मित्तल, सीओओ श्रीधर प्रसाद और टेक्निकल हैड महेश दयाल को विस्तार से पूछताछ करने के बाद 2 फरवरी, 2017 को गौतमबुद्धनगर के सीजेएम-3 की अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

पुलिस ने लखनऊ की फोरैंसिक साइंस लेबोरैटरी, रिजर्व बैंक औफ इंडिया, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट, सेबी, कारपोरेट अफेयर मंत्रालय की फ्रौड इनवेस्टीगेशन टीम को भी जानकारी दे दी है. सभी विभागों के अधिकारी अपनेअपने स्तर से मामले की जांच में लग गए हैं. जांच में पता चला है कि अनुभव मित्तल ने लाइक के जरिए 3700 करोड़ रुपयों की ठगी की है.

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक जावीद अहमद ने मामले की गहन जांच के लिए एसआईटी का गठन कर दिया है. आईजी (क्राइम) भगवानस्वरूप के नेतृत्व में बनी इस जांच टीम में मेरठ रेंज के डीआईजी के.एस. इमैनुअल, एडिशनल एसपी (क्राइम) गौतमबुद्धनगर, एसटीएफ के एडिशनल एसपी राजीव नारायण मिश्रा, सीओ राजकुमार मिश्रा, गौतमबुद्धनगर के 2 इंसपेक्टर, एसआई सर्वेश कुमार पाल, सौरभ आदि को शामिल किया गया है.

टीम ने इस ठगी में फंसे लोगों को अपनी शिकायत भेजने के लिए एक ईमेल आईडी सार्वजनिक कर दी है. मीडिया में यह ईमेल जारी हो जाने के बाद देश से ही नहीं, विदेशों से भी भारी संख्या में शिकायतें आनी शुरू हो गई हैं. कथा लिखे जाने तक एसटीएफ के पास करीब साढ़े 6 हजार शिकायतें ईमेल से आ चुकी थीं. इन में से 100 से अधिक नाइजीरिया से मिली है. केन्या और मस्कट से भी पीडि़तों ने ईमेल से शिकायतें भेजी हैं.

पुलिस अब यह जानने की कोशिश कर रही है कि अभिनव ने इतनी मोटी रकम आखिर कहां इनवैस्ट की है. बहरहाल जिन लोगों ने अनुभव मित्तल की कंपनी में पैसा लगाया है, अब उन्हें पछतावा हो रहा होगा.

कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

Gangster बनने के लिए किए 4 मर्डर

27अगस्त, 2022 की रात को मध्य प्रदेश के सागर जिले के कैंट थाना टीआई अजय कुमार सनकत को सूचना मिली कि भैंसा गांव में ट्रक बौडी रिपेयरिंग कारखाने में चौकीदार की हत्या हुई है. सूचना मिलते ही पुलिस टीम ने मौके पर पहुंच कर जांच शुरू कर दी. जांच के दौरान पता चला कि भैंसा गांव का 50 साल का कल्याण लोधी कारखाने में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करता था. सुबह जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस का बड़ा बेटा संजय उस की तलाश में कारखाने पहुंच गया.

कारखाने के बाहर लोगों की भीड़ और पुलिस देख कर उस के होश उड़ गए. पास जा कर देखा तो उस के पिता कल्याण का शव पड़ा हुआ था. पिता की लाश को देख कर वह चीखचीख कर रोने लगा. पुलिस ने उसे ढांढस बंधाते हुए बताया कि किसी हमलावर ने सिर पर हथौड़ा मार कर उस की हत्या कर दी है. मृतक कल्याण का मोबाइल भी उस के पास नहीं मिला था. घटनास्थल की सभी काररवाई पूरी कर के पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक के बेटे संजय लोधी की तरफ से हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बाद पुलिस इस केस की जांच में जुट गई.

सागर पुलिस कल्याण लोधी के अंधे कत्ल की जांच कर ही रही थी कि 2 दिन बाद 29 अगस्त को सिविल लाइंस थाना क्षेत्र में गवर्नमेंट आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के चौकीदार 60 साल के शंभुदयाल दुबे की हत्या हो गई. उस की हत्या सिर पर पत्थर मार कर की गई थी. घटनास्थल पर जांच के दौरान पुलिस को शव के पास से एक मोबाइल मिला. पहले वह मोबाइल मृतक चौकीदार दुबे का माना जा रहा था, लेकिन बाद में पता चला कि वह मोबाइल कैंट थाना क्षेत्र के भैंसा के कारखाने में मारे गए चौकीदार कल्याण लोधी का है.

इस आधार पर पुलिस अधिकारियों को इस बात का पूरा भरोसा हो गया था कि दोनों वारदातों के पीछे एक ही हत्यारे का हाथ होगा. दोनों अंधे कत्ल के खून की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि मोतीनगर थाना क्षेत्र के गांव रतौना में एक निर्माणाधीन मकान में चौकीदारी कर रहे 40 साल के मंगल अहिरवार पर जानलेवा हमला हो गया. मंगल की लाश के पास खून से सना फावड़ा मिला था, जिस के आधार पर माना जा रहा था कि मंगल की हत्या सिर पर फावड़ा मार कर की गई थी.

एक के बाद एक 3 वारदातों ने अमूमन शांत रहने वाले सागर शहर में दहशत का माहौल पैदा कर दिया था. हत्या करने वाले आरोपी का न कोई नाम था, न कोई सुराग. हत्याओं के पीछे का मकसद भी समझ नहीं आ रहा था. सुराग के नाम पर हाथ खाली थे, आरोपी को तलाशना भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसी चुनौती थी. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड अंचल का शहर सागर वैसे तो झीलों और डा. हरिसिंह गौर सेंट्रल यूनिवर्सिटी जैसे शैक्षणिक संस्थान के लिए जाना जाता है, लेकिन अगस्त महीने के आखिरी 4 दिनों में हुई 3 सिक्योरिटी गार्डों की हत्याओं से सुर्खियों में आ चुका था. सागर में हुईं ये हत्याएं रात के एक निश्चित समय और एक ही पैटर्न से की गई थीं.

हत्या में किसी तरह की लूटपाट और किसी खास किस्म के हथियार का इस्तेमाल भी नहीं किया था. हत्या की कोई वजह सामने नहीं आ रही थी और न ही मरने वाले सिक्योरिटी गार्डों का आपस में कोई संबंध था. लिहाजा पुलिस का अनुमान था कि इन हत्याओं के पीछे किसी सीरियल किलर का हाथ हो सकता है.

पुलिस अधिकारियों की बढ़ गई चिंता

सागर जिले के एसपी तरुण नायक और एडिशनल एसपी विक्रम सिंह इन घटनाओं को ले कर खुद मोर्चे पर आ चुके थे. उन्होंने जिले की पुलिस फोर्स को मुस्तैद कर दिया था. एसपी तरुण नायक ने चौकीदारों की सिलसिलेवार हत्या की वारदातों को अंजाम देने वाले आरोपी की गिरफ्तारी के लिए एएसपी विक्रम सिंह कुशवाहा, एएसपी ज्योति ठाकुर और सीएसपी (सिटी) के निर्देशन में पुलिस अधिकारियों की टीम बनाई. इस टीम में सिविल लाइंस टीआई नेहा सिंह गुर्जर, मोतीनगर टीआई सतीश सिंह, कैंट टीआई अजय कुमार सनकत, गोपालगंज टीआई कमलसिंह ठाकुर को शामिल किया.

एक के बाद एक हो रही चौकीदारों की हत्या को ले कर शहर में भी डर और दहशत का माहौल बन गया था. पुलिस रातरात भर गश्त कर पूरे शहर में तैनात सिक्योरिटी गार्डों को सचेत कर रही थी. तीनों घटनाओं से जुड़े लोगों से पूछताछ और सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के आधार पर पुलिस ने हत्यारे का स्कैच जारी कर शहर के लोगों को सावधान कर दिया था. पुलिस के सामने सब से बड़ी चुनौती यह थी कि यदि एक व्यक्ति ही यह वारदात कर रहा है तो उस का अगला टारगेट अब कहां होगा. जैसेजैसे समय निकल रहा था, वैसेवैसे वारदात होने की आशंका बढ़ती जा रही थी.

पुलिस को किलर के अगली वारदात को अंजाम देने की चिंता ज्यादा थी. पुलिस टीमों ने शहर कवर कर लिया था, लेकिन टेंशन ग्रामीण इलाकों की थी. जांच के दौरान मिले साक्ष्यों और लोगों के अनुसार किलर का स्कैच जारी किया गया. इस के बावजूद आरोपी की न तो पहचान हुई और न ही उस के बारे में कोई सुराग मिल सका. चौकीदार शंभुदयाल दुबे की हत्या की वारदात के बाद आक्रोशित ब्राह्मण समाज ने मकरोनिया चौराहे पर परिजनों की मौजूदगी में शव रख कर प्रदर्शन किया. शव को सड़क से हटाने की कोशिश के दौरान युवा ब्राह्मण समाज प्रदेश अध्यक्ष दिनकर तिवारी व प्रदर्शनकारियों की अधिकारियों व पुलिस से तीखी बहस भी हुई.

आक्रोश बढ़ता देख डीएम दीपक आर्य एवं नरयावली विधायक प्रदीप लारिया मौके पर पहुंचे और दुबे के परिवार को 4 लाख रुपए की आर्थिक मदद स्वीकृत करने के आश्वासन के साथ ही तात्कालिक सहायता के रूप में 50 हजार रुपए की राशि भी उपलब्ध कराई. वहीं आउटसोर्स एजेंसी के माध्यम से परिवार के एक सदस्य को नौकरी दिलाने का भी वायदा किया. तब जा कर मृतक के घर वाले लाश को सड़क से हटाने को तैयार हुए. काफी मानमनौवल के बाद चौकीदार शंभुदयाल दुबे का अंतिम संस्कार पुलिस बल की मौजूदगी में मकरोनिया के श्मशान घाट में किया गया.

भोपाल में मिली मोबाइल लोकेशन

तीसरे गार्ड की हत्या के बाद सागर से भोपाल तक हड़कंप मच गया. गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने सागर एसपी तरुण नायक से बात कर सीरियल किलर को जल्द पकड़ने के निर्देश दिए. लिहाजा पुलिस चारों तरह फैल गई. सीरियल किलर ने सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज में गार्ड शंभुदयाल को मार कर उन का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच औफ कर रखा था.  उधर, सागर पुलिस ने भी शंभुदयाल के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था. सागर शहर में नाकाबंदी कर पुलिस टीमें संदिग्ध की तलाश कर रही थीं.  पुलिस नाइट गश्त में लगी थी.

किलर ने पहली सितंबर, 2022 की रात 11 बजे चंद सेकेंड के लिए जैसे ही मोबाइल औन किया, पुलिस टीम के अधिकारियों के चेहरों पर चमक आ गई. मोबाइल की लोकेशन ट्रेस होते ही 10 सदस्यीय टीम बनाई और 2 कारों से उसे भोपाल रवाना किया गया. पुलिस टीम भोपाल तो पहुंच गई, मगर मोबाइल बंद होने की वजह से किलर को खोजना आसान काम नहीं था. भोपाल में साइबर सेल की टीम लोकेशन ट्रेस कर खजूरी थाना क्षेत्र में कई घंटों तक आरोपी की तलाश में इधरउधर भटकती रही.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे किलर ने एक बार फिर मोबाइल को औन किया. पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली.

सीरियल किलर चढ़ गया हत्थे

पुलिस टीम उस की तलाश में करीब सुबह 5 बजे जैसे ही लालघाटी पहुंची तो लाल कलर की शर्ट पहने करीब 19-20 साल का एक नौजवान संदिग्ध हालत में घूमता नजर आया. पुलिस ने उसे रोक कर पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शिवप्रसाद धुर्वे बताया. उस की तलाशी के दौरान पुलिस को शंभुदयाल का वही मोबाइल फोन मिल गया, जिस की लोकेशन के आधार पर पुलिस उस तक पहुंची थी. पुलिस ने उसे दबोच लिया.

भोपाल से सागर ले जाने के लिए पुलिस उसे ले कर करीब 40 किलोमीटर दूर पहुंची ही थी कि उस ने पुलिस को बताया कि थोड़ी देर पहले ही उस ने भोपाल में मार्बल दुकान में एक गार्ड की हत्या कर दी है. पुलिस को शिवप्रसाद के पास से भोपाल वाले गार्ड का भी मोबाइल फोन मिला. सागर पुलिस ने तुरंत ही भोपाल पुलिस के अधिकारियों को सूचना दी. खजूरी रोड पुलिस घटनास्थल पर पहुंची तो गार्ड सोनू वर्मा खून से लथपथ मिला. मरने वाला सिक्योरिटी गार्ड सोनू वर्मा था.

शिवप्रसाद ने पुलिस को बताया कि 1-2 सितंबर की दरमियानी रात करीब डेढ़ बजे खजूरी रोड स्थित गोराजी मार्बल की दुकान पर काम करने वाले गार्ड सोनू वर्मा की मार्बल के टुकड़ों से हमला कर हत्या की है. सोनू का परिवार मूलरूप से भिंड जिले का रहने वाला है. 2005 में उन का परिवार रोजगार के लिए भोपाल आ कर बस गया. भोपाल आ कर उस के पिता सुरेश वर्मा ने गोराजी मार्बल की दुकान पर चौकीदार की नौकरी शुरू कर दी. उन के 4 बेटे और एक बेटी है. सोनू चौथे नंबर का था. कुछ महीने पहले ही सोनू के पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई थी, जिस के बाद सोनू गोराजी मार्बल की दुकान पर चौकीदारी करने लगा था.

25 साल का सोनू पांचवीं तक ही पढ़ा था. सोनू रात में चौकीदारी करता था. वह शाम 7 बजे ड्यूटी पर आता और सुबह 7 बजे घर जाता था. 12 घंटे की ड्यूटी के बाद उसे महीने के 5 हजार रुपए मिलते थे. घर चलाने के लिए सोनू दिन के समय पानी सप्लाई करने वाले टैंकर पर पार्टटाइम काम करता था. वहां काम करने के बाद उसे मुश्किल से 3-4 हजार रुपए मिलते थे. महीने में इस तरह दिनरात काम करने के बाद भी वह मुश्किल से 8-9 हजार रुपए ही कमा पाता था. सागर आ कर पुलिस अधिकारियों ने जब साइकोकिलर शिवप्रसाद से विस्तार से पूछताछ की तो उस ने चारों गार्डों की हत्या करने का जुर्म कुबूल कर लिया.

किलर शिवप्रसाद की गिरफ्तारी पर मध्य प्रदेश के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा सहित पुलिस के आला अधिकारियों ने सागर पुलिस को बधाई दी. साथ ही सागर शहर के लागों ने भी राहत की सांस ली. 6 दिनों में हुई 4 सिलसिलेवार हत्याओं की वजह से चर्चा में आए सीरियल किलर की कहानी भी बेहद दिलचस्प है.

सागर जिले के केसला ब्लौक के केकरा गांव का रहने वाला 19 साल का शिवप्रसाद धुर्वे अपने पिता नन्हेलाल का छोटा बेटा है. उस का बड़ा भाई पुणे में मजदूरी करता है, जबकि 2 बेटियों की शादी हो चुकी है. नन्हेलाल के पास करीब 2 एकड़ जमीन है, जिस पर खेतीबाड़ी कर वह अपने परिवार की गुजरबसर करता है. शिवप्रसाद कुल 8वीं जमात तक ही पढ़ा है. वह बचपन से ही लड़ाकू प्रवृत्ति का था. स्कूल में पढ़ते समय गांव के लड़कों को छोटीछोटी बात पर पीट देता था. सभी से झगड़ते रहने के कारण गांव में किसी से भी उसकी दोस्ती नहीं  थी. मातापिता भी उस की हरकतों से परेशान रहने लगे थे.

2016 में 13 साल की उम्र में किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते ही उस ने एक लड़की के साथ छेड़छाड़ कर दी, जिस की वजह से गांव के लोगों ने उस की पिटाई कर दी. उसी दौरान वह घर से भाग कर सागर आया और ट्रेन में बैठ कर पुणे चला गया. फिर वहां एक होटल में नौकरी करने लगा. शिवप्रसाद बीचबीच में होली, दीवाली पर एकदो दिन के लिए गांव आता था, लेकिन किसी से मिलताजुलता नहीं था. पुणे में एक दिन होटल मालिक के साथ किसी बात को ले कर विवाद हो गया तो शिवप्रसाद ने उसे इतना पीटा कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा.

उस के खिलाफ पुलिस ने काररवाई कर  उसे बाल सुधार गृह भेज दिया था. बाद में उस के पिता नन्हेलाल आदिवासी उसे छुड़ा कर गांव ले आए. गांव में कुछ समय रहने के बाद वह गोवा चला गया था. गोवा में काम करतेकरते वह अच्छीखासी इंग्लिश बोलनेसमझने लगा. अभी हाल ही में रक्षाबंधन पर वह 7-8 दिनों के लिए गांव आया था, इस के बाद बिना किसी को कुछ बताए वह घर से चला गया. पिता नन्हेलाल को कभी भी उस ने यह नहीं बताया कि वह क्या काम करता है. मां सीताबाई भी उस से पूछती,  ‘‘बेटा, यह तो बता तू शहर में कामधंघा क्या करता है?’’

तो शिवप्रसाद कहता, ‘‘मां, तू काहे को चिंता करती है मैं ऐसा काम करता हूं कि जल्द ही मुझे लोग जानने लगेंगे.’’

मां यही समझ कर चुप हो जाती कि उस का बेटा अमीर आदमी बन कर नाम कमाने वाला है.

फिल्मों से प्रभावित हो कर बना किलर

सागर में 3 और भोपाल में एक सिक्योरिटी गार्ड्स की हत्या करने के आरोपी सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे फिल्में देखने का शौकीन था. फिल्में देख कर उस ने गैंगस्टर बनने की ठानी थी. वह बिना मेहनत किए पैसा कमा कर फेमस होना चाहता था. वारदात को अंजाम देने से पहले मोबाइल पर उस ने कई फिल्में और वीडियोज देखे.  सागर पुलिस को पूछताछ में उस ने बताया कि मध्य प्रदेश के उज्जैन के गैंगस्टर दुर्लभ कश्यप को वह रोल मौडल मानता है और उस के जैसा बनने की चाहत उस के दिल में थी.

उस ने जल्द फेमस होने का सपना देखा और जुर्म की दुनिया में कदम बढ़ा दिए.   शिवप्रसाद दिन भर सोता रहता था और रात होते ही अपने शिकार की तलाश में निकल पड़ता था. चर्चित फिल्म ‘पुष्पा’ के पुष्पा की तरह वह साइकिल से चलता था. वह केसली से 65 किलोमीटर दूर सागर साइकिल से ही आया था. केकरा गांव से शिवप्रसाद साइकिल ले कर 65 किलोमीटर का सफर तय कर के  सागर पहुंचा था.

25 अगस्त को वह कोतवाली क्षेत्र के कटरा बाजार स्थित एक धर्मशाला में रूम ले कर रुका था. और यहां कैंट थाना क्षेत्र में 27 अगस्त की रात कारखाने में तैनात चौकीदार कल्याण लोधी (50) के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या कर दी. शिवप्रसाद भी पुष्पा की तरह गिरफ्तार होने के बाद पुलिस के सामने नहीं झुका, बल्कि उस ने विक्ट्री साइन दिखाया. उसे इन  वारदातों को ले कर किसी तरह का अफसोस नहीं था. इसी तरह ‘हैकर’ मूवी को देख कर शिवप्रसाद ने साइबर क्राइम सीखने की कोशिश की.

सागर में चौकीदार की हत्या के बाद आरोपी उस का मोबाइल ले कर भागा था और उस का पैटर्न लौक भी उस ने खोल लिया था. सीरियल किलर शिवप्रसाद वारदात को अंजाम देने के बाद दिन भर सोशल मीडिया के साथ खबरों पर पैनी नजर रखता था. सागर से भोपाल आने के बाद भी वह दिन भर इंटरनेट, मीडिया व खबरों पर नजर बनाए रखे था. इसी वजह से उसे पता चल गया था कि पुलिस किलर की गिरफ्तारी के लिए सक्रिय हो गई है. वह भोपाल में रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड के आसपास घूमता रहा.

जब उस ने कल्याण लोधी का कत्ल किया तो उस के मोबाइल का सिम कार्ड फेंकने के बाद मोबाइल अपने साथ ले गया. सागर में आर्ट ऐंड कामर्स कालेज के गार्ड शंभुदयाल को मार कर उस ने कल्याण का मोबाइल वहां छोड़ शंभुदयाल का मोबाइल अपने पास रख लिया था. मोबाइल उस ने स्विच्ड औफ कर रखा था. इधर सागर पुलिस ने भी शंभु के मोबाइल नंबर को सर्विलांस पर लगा रखा था. शिवप्रसाद ने पहली सितंबर की रात करीब 11 बजे मोबाइल चालू किया तो सागर पुलिस को लोकेशन पता चल गई. टीम भोपाल के लिए रवाना हो गई. सागर पुलिस भोपाल पहुंचती, इस से पहले शिवप्रसाद ने मोबाइल बंद कर दिया.

रात करीब डेढ़ बजे से पुलिस उसे बैरागढ़, कोहेफिजा, लालघाटी इलाके में खोजती रही, लेकिन वह नहीं मिला. रात करीब साढ़े 3 बजे शिवप्रसाद ने टाइम देखने के लिए एक बार फिर मोबाइल औन किया तो पुलिस को उस की लोकशन लालघाटी इलाके में पता चली. पुलिस ने तड़के उसे दबोच लिया.

खबरों पर रखता था कड़ी नजर

4 चौकीदारों की हत्या करने वाला सीरियल किलर 19 वर्षीय शिवप्रसाद वारदात के बाद इंटनरेट मीडिया व अखबारों पर पैनी नजर रखता था. वह वारदात के बाद सुबह ही अखबार पढ़ता. वहीं इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी वारदात को ले कर आने वाली प्रतिक्रियाओं पर नजर रखता था. वारदात के पहले वह वहां की अच्छी तरह से पड़ताल करता और हत्या करते समय कोशिश करता कि उस का चेहरा सीसीटीवी कैमरे में कैद न होने पाए. सागर में हुई हत्या की ये वारदातें उस ने रक्षाबंधन के बाद अपने गांव केकरा से आ कर ही प्लान की थीं.

वह अपनी मां से बोल कर आया था कि वह बहुत जल्द नाम कमाएगा, इस के बाद उस ने सागर में 3 हत्याएं कर दीं. सागर के बाद उस ने अलगअलग जिलों में हत्या करने की योजना बनाई थी, लेकिन भोपाल में एक अन्य चौकीदार की हत्या के बाद वह पकड़ा गया. शिवप्रसाद ने 27 अगस्त को भैंसा गांव के एक कारखाने में काम करने वाले 57 वर्षीय कल्याण सिंह के सिर पर हथौड़ा मार कर हत्या की. वारदात के बाद आरोपित कल्याण सिंह का मोबाइल अपने साथ ले आया. उस ने मोबाइल की सिम फेंक दी.

शंभुदयाल की हत्या के बाद शिवप्रसाद शंभुदयाल की साइकिल व मोबाइल अपने साथ ले गया और कटरा क्षेत्र के एक लौज में रुका. उस ने सुबह उठ कर सारे अखबार भी पढ़े और अपनी अगली रणनीति पर लग गया. 30 अगस्त की रात वह रतौना गांव पहुंचा और मंगल सिंह की हत्या कर दी, इस के बाद वह ट्रेन से भोपाल चला गया.

सीरियल किलर शिवप्रसाद धुर्वे को सागर पुलिस ने रिमांड पर ले कर जब पूछताछ की तो उस ने पुलिस को बताया कि 2016 में वह घर से निकला. पुणे, गोवा, चेन्नै, केरल समेत अन्य जगह मजदूरी की. उसे जल्द ही इस बात का आभास हो गया कि मजदूरी कर के पेट भरा जा सकता है, लेकिन ऐशोआराम हासिल नहीं हो सकते. अपराधियों को देख कर वह भी फेमस होने का सपना देखने लगा. उसे अपराध की दुनिया का रास्ता सब से आसान लगा. आरोपी इतना शातिर है कि रिमांड के दौरान वह पूछताछ के दौरान जरा भी नहीं घबराया और पुलिस को कई कहानियां सुनाता रहा.

आधुनिक हथियार खरीद कर बनना चाहता था गैंगस्टर

सीरियल किलर शिवप्रसाद ने बेबाकी से बताया कि उसे बेकसूर लोगों को मारने का मलाल तो है. उस के निशाने पर पुलिसकर्मी भी थे. उसे अफसोस भी है कि उस का सपना अधूरा रह गया. रिमांड पूरी होने के बाद उसे 6 सितंबर को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. पुलिस पूछताछ में उस ने इस बात को स्वीकार किया कि उस का अगला निशाना ड्यूटी के दौरान सोने वाले पुलिसकर्मी थे.

भोपाल के गांधी मैडिकल कालेज में मनोरोग विभाग के रिटायर्ड प्रोफेसर और एचओडी डा. आर.एन. साहू ने इस प्रकार के बरताव को एक तरह का दिमागी रोग बताया है. उन का कहना है कि इस प्रकार के व्यक्ति की मानसिकता गड़बड़ रहती है. दिमाग में एक ही सोच आती है और वे बिना उद्देश्य के किसी को भी मार देते हैं. यह एक प्रकार का दिमागी रोग है, इस में आदमी के भीतर पैथोलौजिक चैंजेस आते हैं और कैमिकल इमबैलेंस हो जाता है. ऐसे में उन का व्यवहार असामान्य हो जाता है. सामान्य रूप से वे बाहर से तो ठीक दिखते हैं, इस कारण उन्हें पहचानना मुश्किल होता है.

ऐसे लोगों के व्यवहार को वही लोग ज्यादा समझते हैं, जो उन के नजदीकी रहते हैं. घर वाले, दोस्त या रिश्तेदार ही उन की मनोदशा को अच्छी तरह बता सकते हैं. ऐसे रोगी का समय रहते इलाज कराने के बाद ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है.

Murder Story : चारपाई के नीचे पति को दफनाया और प्रेमी संग बनाई रंगरलियां

आदमी हो या औरत, जवानी में अगर उस के पैर बहक जाएं तो फिर दिल्लगी दिल की लगी बन कर ऐसा कहर ढाती है कि खून भी पानी सा लगने लगता है. माया और टुल्लू के बीच…

चित्रकूट जिले के गांव लोहदा का रहने वाला फूलचंद विश्वकर्मा कानपुर की एक ट्रांसपोर्ट कंपनी में ट्रक ड्राइवर की नौकरी करता था. उस की मां और बड़े भाई का परिवार गांव में रहते थे. ट्रक ड्राइवर का पेशा ऐसा है, जिस में कई बार आदमी को लौटने में महीनोंमहीनों लग जाते हैं. इसी वजह से फूलचंद पिछले एक साल से गांव में रह रही बूढ़ी मां और भाई के परिवार से नहीं मिल सका था. समय मिला तो उस ने 5 जुलाई, 2018 को गांव जाने का फैसला किया.

फूलचंद तहसील राजापुर स्थित अपने गांव लोहदा पहुंचा तो उस की वृद्धा मां तो पुश्तैनी घर में मिल गई, लेकिन अलग रह रहा बड़ा भाई शिवलोचन और उस का परिवार घर में नहीं था. वह मां से मिला तो उस की आंखें भर आईं और वह उस के गले लग कर रो पड़ी. फूलचंद को लगा कि मां से एक साल बाद मिला है, इसलिए वह भावुक हो गई है. उस ने जैसेतैसे सांत्वना दे कर मां को चुप कराया और बड़े भाई शिवलोचन और उस के परिवार के बारे में पूछा.

उस की मां चुनकी देवी ने रोते हुए बताया कि पिछले 8 महीने से शिवलोचन का कोई पता नहीं है. बहू माया भी 7-8 महीने पहले दोनों बच्चों को ले कर अपने मायके चली गई थी. तब से वापस नहीं लौटी. मां की बात सुन कर फूलचंद परेशान हो गया. उस ने इस बारे में मां से विस्तार से पूछा तो उस ने बताया कि 8 महीने पहले जब कई दिनों तक शिवलोचन  दिखाई नहीं दिया तो उस ने और गांव वालों ने बहू माया से उस के बारे में पूछा. माया ने बताया कि शिवलोचन अपनी नौकरी पर कर्वी चला गया है. इस के कुछ दिन बाद माया भी यह कह कर दोनों बच्चों के साथ मायके चली गई कि घर में राशन खत्म हो गया है. जब शिवलोचन लौट आएं तो खबर भिजवा देना, मैं आ जाऊंगी.

फूलचंद को मालूम था कि उस का भाई शिवलोचन कर्वी के एक जमींदार तेजपाल सिंह के खेतों में टै्रक्टर चलाने का काम करता था. जमींदार की गाडि़यां भी वही ड्राइव करता था. मां ने बताया कि उस ने शिवलोचन को कई बार फोन भी कराया था, लेकिन उस का फोन बंद था. मां ने आशंका व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि शिवलोचन इतने महीनों तक कभी भी कर्वी में नहीं रहा, बीचबीच में वह आता रहता था.

फूलचंद इस बात को समझता था कि आदमी भले ही कितना भी व्यस्त क्यों न रहे, ऐसा नहीं हो सकता कि अपने परिवार की सुध ही न ले. संदेह की एक वजह यह भी थी कि भाई का हालचाल जानने के लिए फूलचंद ने खुद भी भाई के मोबाइल पर फोन किए थे, लेकिन उस का फोन हर बार बंद मिला था. उस वक्त उस ने यही सोचा था कि संभव है, भाई किसी ऐसी जगह पर हो, जहां नेटवर्क न मिलता हो. संदेह पैदा हुआ तो फूलचंद उसी दिन गांव के 2 आदमियों को साथ ले कर कर्वी के जमींदार तेजपाल सिंह के पास गया. वहां उसे जो जानकारी मिली, उस ने फूलचंद की चिंता और बढ़ा दी. तेजपाल सिंह ने बताया कि शिवलोचन नवंबर 2017 में दीपावली के बाद से काम पर नहीं आया है.

उस के कई दिनों तक काम पर न आने की वजह से उन्होंने उस के मोबाइल पर फोन किया तो उस की बीवी माया ने फोन उठाया. उस ने कहा कि शिवलोचन ने उन की नौकरी छोड़ दी है, उसे कहीं दूसरी जगह ज्यादा पगार की नौकरी मिल गई है. तेजपाल सिंह ने आगे बताया कि उन्होंने इस के बाद यह सोच कर फोन नहीं किया कि जब वह अपना बकाया वेतन लेने के लिए आएगा तो पूछेंगे कि अचानक नौकरी क्यों छोड़ दी. तेजपाल सिंह के यहां से मिली जानकारी के बाद चिंता में डूबा फूलचंद उदास चेहरा लिए अपने गांव लौट आया. फूलचंद ने घर लौट कर भाई के बारे में गहराई से सोचा तो यह बात उस की समझ में नहीं आई कि भाई ने जब दूसरी जगह नौकरी कर ली थी तो माया भाभी ने गांव वालों और मां से यह क्यों कहा था कि वह कर्वी में अपने काम पर गया है.

फूलचंद ने शिवलोचन के साथसाथ अपनी भाभी माया को भी कई बार फोन किया था, लेकिन शिवलोचन की तरह माया का भी फोन बंद मिला था. फूलचंद की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर शिवलोचन कहां चला गया और 8 महीने से घर क्यों नहीं लौटा. ऊपर से उस का फोन भी बंद था. आश्चर्य की बात यह थी कि उस की भाभी माया जब से अपने मायके गई थी, वापस नहीं लौटी थी. न ही उस ने किसी को फोन कर के कभी कुशलक्षेम पूछी थी. ऊपर से उस का फोन नहीं लग रहा था. फूलचंद को अपने भाई शिवलोचन की चिंता सताने लगी तो वह भाई की खोजबीन  में जुट गया. फूलचंद की एक बड़ी बहन थी, सावित्री. उस की शादी चित्रकूट की मऊ तहसील में हुई थी. उस के पास शिवलोचन की ससुराल वालों का नंबर था.

फूलचंद ने फोन कर के बहन को बताया कि शिवलोचन पिछले कई महीनों से लापता है और माया अपने मायके गई है. दोनों में से किसी का फोन भी नहीं लग रहा. शिवलोचन के बारे में पता लगाने की सोच कर फूलचंद ने सावित्री से माया के पिता का नंबर ले लिया. उस ने वह नंबर लगा कर जब माया के पिता से बात की तो उस ने बताया कि माया अपने दोनों बच्चों को ले कर 8 महीने पहले दीपावली के बाद उन के पास आई थी. लेकिन वह 2 महीना पहले दोनों बच्चों को उन के घर छोड़ कर यह कह कर गई थी कि शिवलोचन के बारे में जानकारी लेने लोहदा जा रही है, 2-4 दिन में आ जाएगी. लेकिन उस के बाद ना तो वह घर लौटी, न ही उस ने फोन कर के बच्चों की कुशलक्षेम पूछी.

माया के पिता ने जो कुछ बताया, वह चौंकाने वाला था. क्योंकि अभी तक तो फूलचंद इस भ्रम में था कि उस की भाभी माया अपने मायके में है, लेकिन जब पता चला कि माया अपने मायके से 2 महीना पहले ही कहीं चली गई है तो फूलचंद के माथे पर परेशानी की लकीरें और गहरा गईं. गांव में जहां शिवलोचन का मकान था, फूलचंद की मां उस से कुछ दूर अपने पैतृक मकान में रहती थी. वहीं पर वह अपनी गुजरबसर के लिए चाय का ढाबा चलाती थी. शिवलोचन की पत्नी माया जब 7-8 महीने पहले बच्चों को ले कर मायके गई थी तो जाते वक्त घर का ताला लगा कर चाभी अपनी सास चुनकी देवी को दे गई थी. तभी से शिवलोचन का मकान बंद पड़ा था.

इसी दौरान शिवलोचन के पड़ोसी हुकुम सिंह ने उस से कहा कि 8 महीने पहले शिवलोचन ने उस का सेकेंड हैंड टीवी यह कह कर लिया था कि कुछ दिन में पैसे दे देगा. लेकिन टीवी लेने के कुछ दिन बाद ही शिवलोचन और उस की पत्नी पता नहीं कहां चले गए. उन्होंने न तो पैसे दिए, न टीवी लौटाया. हुकुम सिंह ने फूलचंद से कहा कि शिवलोचन तो पता नहीं कब आएगा, इसलिए वह उस का टीवी निकाल कर उसे दे दे. फूलचंद ने अपनी मां चुनकी देवी से शिवलोचन के घर की चाभी ले कर ताला खोला तो अंदर के दोनों कमरों से तेज बदबू का झोंका आया. बंद कमरों के खुलने के कुछ देर बाद जब बदबू कम हुई तो फूलचंद ने हुकुम सिंह का टीवी उठा कर उसे दे दिया.

फूलचंद को लगा कि लंबे समय से मकान बंद था, जिस से सीलन और गंदगी की वजह से बदबू आ रही होगी. उस ने सोचा कि क्यों न दोनों कमरों की सफाई कर दी जाए. लेकिन जब वह उस कमरे की सफाई करने लगा, जिस में शिवलोचन और माया रहते थे तो कमरे के फर्श की कच्ची जमीन थोड़ी धंसी हुई दिखाई दी. यह देख कर फूलचंद का मन शंका से भर उठा. क्योंकि वहां की जमीन को देख कर ऐसा लग रहा था, मानो कच्चे फर्श का वह हिस्सा अलग हो. उस जगह को गौर से देखने पर लगा, जैसे वहां कोई चीज दबाई गई हो.

पांव से दबाने पर वहां की जमीन नीचे की तरफ दब रही थी. गांव के कुछ लोगों को बुला कर फूलचंद के जमीन का वह हिस्सा दिखाया तो सब ने राय दी कि क्यों न जमीन खोद कर देख लिया जाए. लेकिन जमीन में ऐसीवैसी किसी चीज के दबे होने की आशंका से फूलचंद खुदाई करने से हिचक रहा था. लिहाजा उस ने सब से राय ली कि क्यों न पहले पुलिस को खबर कर दी जाए.

‘‘अरे भैया, तुम तो ऐसे डर रहे हो जैसे जमीन में खजाना गड़ा हो. अरे तुम्हारा घर है, तुम्हारी जमीन है. खोद कर देखो, जो कुछ भी होगा सामने आ जाएगा और अगर ऐसावैसा कुछ हुआ भी तो पुलिस को खबर कर देना.’’ कई लोगों ने एक राय हो कर कहा. बात फूलचंद की समझ में आ गई. लिहाजा उस ने कमरे के उस हिस्से की फावड़े से खुदाई शुरू कर दी. 3 फुट गहरा गड्ढा खुद चुका था मगर कुछ भी नहीं निकला. लेकिन एक बात ऐसी थी, जिस की वजह से केवल फूलचंद ही नहीं, बल्कि गांव वालों का मन भी आशंका से भर उठा.

बात यह थी कि उस जगह की मिट्टी काफी नरम थी. मिट्टी की सतह वैसे नहीं चिपकी थी, जैसे आमतौर पर चिपकी होती है. इतना ही नहीं जैसेजैसे जमीन खोदी जा रही थी, गड्ढे में से बदबू आनी शुरू हो गई थी. छह इंच जमीन और खोदते ही फूलचंद की आशंका सच साबित हुई. जमीन के उस गड्ढे से कुछ हड्डियां मिली. इस के बाद दहशत में आ कर फूलचंद ने खुदाई रोक दी. गांव वालों से बातचीत के बाद फूलचंद अपनी मां चुनकी देवी, पड़ोसी हुकुम सिंह, गांव के प्रधान, चौकीदार और कुछ अन्य लोगों को साथ ले कर थाना पहाड़ी पहुंचा. यह 7 जुलाई, 2018 की दोपहर की बात है. पहाड़ी थाने के एसएचओ इंसपेक्टर अरुण पाठक थाने में ही मौजूद थे.

एक साथ इतने सारे लोगों को आया देख पाठक ने उन से आने की वजह पूछी तो फूलचंद ने अपने भाई और भाभी के घर से गायब होने के बारे में बता कर घर में हुई खुदाई के दौरान मानव हड्डियों के निकलने की बात उन्हें बता दी. इंसपेक्टर अरुण पाठक बोले, ‘‘अरे भाई, जब तुम ने इतना गड्ढा खोद ही दिया था तो थोड़ा सा और खोद लेते. कम से कम यह पता तो चल जाता कि वहां किसी जानवर की हड्डियां दबी हैं या इंसान की.’’

‘‘दरअसल, मेरे भाईभाभी का कुछ पता नहीं है, इसलिए हमें बड़ा डर लग रहा है. आप चल कर देख लीजिए.’’ फूलचंद ने इंसपेक्टर पाठक के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा.

इंसपेक्टर अरुण पाठक पुलिस टीम ले कर फूलचंद और उस के साथ आए गांव वालों के साथ लोहदा गांव में शिवलोचन के घर पहुंच गए. घर के बाहर पहले से ही काफी भीड़ जमा थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने पहले से 2-3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. पहले से करीब साढे़ 3 फीट खुदे गड्ढे की थोड़ी और खुदाई कराई. करीब साढ़े 3 फीट खुदे गड्ढे की एक फीट और खुदाई हुई तो पूरा नरकंकाल निकला. नरकंकाल की गर्दन में रस्सी बंधी हुई थी, जो गली नहीं थी. ऐसा लग रहा था जैसे रस्सी से उस का गला दबाया गया हो.

चूंकि शव पूरी तरह कंकाल में तब्दील हो चुका था, इसलिए लग रहा था कि शव को कई महीने पहले दफनाया गया था. मामले की गंभीरता को समझते हुए इंसपेक्टर अरुण पाठक ने इलाके के क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह और नायब तहसीलदार को मौके पर बुलवा लिया. दोनों अधिकारियों ने बात जानने के बाद नरकंकाल को सावधानीपूर्वक गड्ढे से बाहर निकलवा लिया. इस दौरान चित्रकूट जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा भी फोरेंसिक टीम को ले कर लोहदा पहुंच गए. कंकाल किसी आदमी का था, यह ढांचे से साबित हो रहा था. कंकाल की पहचान के लिए गड्ढे से कोई ऐसी चीज नहीं निकली थी, जिसे पहचान कर कोई यह बता पाता कि कंकाल किस का है.

अलबत्ता फूलचंद व उस की मां चुनकी देवी ने कंकाल को गौर से देखने के बाद आशंका जताई कि कंकाल शिवलोचन का हो सकता है. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने फूलचंद से पूछा, ‘‘तुम यह बात इतने विश्वास से कह रहे हो कि कंकाल शिवलोचन का ही है?’’

‘‘सर, मेरे भाई के बाए हाथ के पंजे में अंगूठा नहीं था. इस कंकाल के भी बाएं हाथ में सिर्फ चार अंगुलियों की हड्डियां हैं. अंगूठे की हड्डी गायब है. मेरे भाई के बाएं हाथ का अंगूठा एक दुर्घटना में पूरी तरह कट गया था.’’

फूलचंद ने विश्वास का कारण बताया तो इंसपेक्टर पाठक को भी लगा कि संभव है, कंकाल फूलचंद के भाई शिवलोचन का ही हो. वजह यह थी कि शिवलोचन काफी दिनों से गायब था. लेकिन कंकाल शिवलोचन का ही है, इस की वैज्ञानिक रूप से पुष्टि डीएनए टेस्ट होने पर ही हो सकती थी. पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के आदेश पर पुलिस ने नरकंकाल का पंचनामा भरवा कर उसे डीएनए टेस्ट के लिए भिजवाने की औपचारिकता पूरी की. डीएनए मिलान के लिए फोरेंसिक टीम के डाक्टरों ने शिवलोचन की मां चुनकी देवी का ब्लड सैंपल ले लिया.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा ने सीओ शिववचन सिंह को निर्देश दिया कि वह चुनकी देवी और उन के बेटे फूलचंद से शिवलोचन के गायब होने की शिकायत ले कर मुकदमा दर्ज करें. साथ ही शिवलोचन की लापता पत्नी माया और उस के दोनों बच्चों का भी पता लगाए. पहाड़ी थाने के प्रभारी इंसपेक्टर अरुण पाठक ने शुरू में इस मामले को जितने सहज ढंग से लिया था, केस उतना ही पेचीदा निकला. यह जानकर उन्हें और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ कि 2 महीने पहले माया अपने बच्चों को मां के पास छोड़ कर कहीं चली गई थी. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने शिवलोचन और माया के संबंधों के बारे में गहराई से पता लगाने के लिए गांव के लोगों और शिवलोचन के परिवार के सभी सदस्यों से एकएक कर के पूछताछ करनी शुरू कर दी.

उन लोगों से मिली जानकारी के बाद यह साफ हो गया कि शिवलोचन के घर में जो नरकंकाल मिला वह शिवलोचन का ही है. शिवलोचन के घर वालों और लोहदा गांव के लोगों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर अरुण पाठक की समझ में  आ गया कि शिवलोचन के रहस्यमय ढंग से गायब होने और उस की पत्नी के लापता हो जाने के पीछे क्या राज है. अरुण पाठक ने फूलचंद से तहरीर ले कर 7 जुलाई की रात को ही पहाड़ी थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत शिवलोचन की पत्नी माया और लोहदा गांव के टुल्लू लोध, जिसे रज्जन भी कहते थे, के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करवा दिया.

पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा के निर्देश पर एसएचओ अरुण पाठक ने मुकदमे की जांच का काम खुद ही शुरू कर दिया. सहयोग के लिए उन्होंने एक पुलिस टीम का गठन किया, जिस में सिपाही मुकद्दर सिंह, वीरेंद्र सिंह, रामअजोर सरोज और महिला सिपाही रुचि सिंह को शामिल किया गया. पुलिस अधीक्षक के आदेश पर क्राइम व साइबर सेल की टीम भी थाना पहाड़ी पुलिस की मदद में लग गई. थानाप्रभारी अरुण पाठक ने सब से पहले टुल्लू लोध उर्फ रज्जन के पिता लिसुरवा और भाई लल्लन को हिरासत में ले कर उन से यह जानने का प्रयास किया कि टुल्लू इन दिनों कहां है. पूछताछ में पता चला कि वह मुंबई में है. पुलिस ने जब कड़ी पूछताछ की तो उस के घर वालों ने टुल्लू का मोबाइल नंबर भी दे दिया. अरुण पाठक ने टुल्लू तक पहुंचने के लिए उस के पिता की उस से बात कराई.

बात से पहले ही मोबाइल फोन का स्पीकर औन करवा दिया गया था. उन्होंने लिसुरवा को हिदायत दे दी थी कि वह सामान्य ढंग से बात करे और टुल्लू को जरा भी अहसास न होने दे कि बात पुलिस की मौजूदगी में हो रही है. इंसपेक्टर अरुण पाठक की टुल्लू के पिता की उस से बातचीत कराने की तरकीब काम कर गई. उन्हें पता चल गया कि टुल्लू मुंबई में है और माया भी उसी के साथ है. टुल्लू से हुई बातचीत में अरुण पाठक को यह भी पता चला कि टुल्लू अपने पिता से मिलने और उन की आर्थिक मदद के लिए आना चाहता है. उस ने अपने पिता से कहा था कि 15 जुलाई को वह कर्वी बस अड्डे पर पहुंच जाएं.

अरुण पाठक ने लिसुरवा तथा उस के परिवार के सदस्यों को 15 जुलाई तक पुलिस की निगरानी में रहने का निर्देश दिया. उन के मोबाइल फोन भी इंसपेक्टर पाठक ने अपने कब्जे में ले लिए, जिस से वे लोग टुल्लू को सतर्क न कर सकें. इस के बाद इंसपेक्टर पाठक और उन की पुलिस टीम बेसब्री से 15 जुलाई का इंतजार करने लगे. 15 जुलाई की सुबह टुल्लू ने अपने भाई लल्लन के मोबाइल पर फोन किया. पुलिस ने अपनी निगरानी में उस की बात कराई. टुल्लू ने लल्लन को फोन पर बताया कि वह माया के साथ चित्रकूट रेलवे स्टेशन पर है और दोपहर एक बजे तक कर्वी बसअड्डे पर पहुंचेगा. पाठक ने लल्लन व उस के पिता लिसुरवा को साथ लिया और पुलिस टीम के साथ कर्वी बस अड्डे के आसपास पुलिस का जाल बिछा दिया.

पुलिस ने लल्लन व उस के पिता को बस अड्डे के पास अकेले छोड़ दिया. सादे कपड़ों में 2 पुलिस वाले दोनों के आसपास मंडराते रहे. करीब एक बजे कर्वी बस अड्डे के टिकट काउंटर के पास बेसब्री से बेटे का इंतजार कर रहे लिसुरवा के पास एक युवक व महिला पहुंचे. आगंतुक युवक ने जब लिसुरवा के पैर छुए तो इंसपेक्टर पाठक समझ गए कि वही टुल्लू है. नजरें गड़ाए बैठी पुलिस टीम ने उन लोगों को चारों ओर से घेर लिया. पूछताछ में पता चला कि युवक टुल्लू लोध उर्फ रज्जन राजपूत ही है और उस के साथ जो खूबसूरत सी महिला है, वह माया है. पुलिस टुल्लू और माया को उस के घर वालों के साथ थाना पहाड़ी ले आई. टुल्लू लोध और माया को हिरासत में लिए जाने की खबर उच्चाधिकारियों को भी मिल चुकी थी.

टुल्लू तथा मायादेवी से पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार झा और क्षेत्राधिकारी शिवबचन सिंह के समक्ष पूछताछ की गई. दोनों से पूछताछ में शिवलोचन हत्याकांड की हैरान करने और दिल दहलाने वाली कहानी सामने आई. पूछताछ में यह बात साफ हो गई कि शिवलोचन के घर से जो नरकंकाल बरामद हुआ था, वह शिवलोचन का ही था. एक रात माया और टुल्लू ने उस की हत्या कर के लाश को घर में ही जमीन में गाड़ दिया था. लोहदा गांव में रहने वाला 27 वर्षीय टुल्लू लोध उर्फ रज्जन राजपूत मकानों में टाइल्स लगाने का काम करता था. उस के परिवार में मातापिता के अलावा एक भाई व दो बहनें थीं. बहनों की शादी हो चुकी थी. जबकि छोटा भाई लल्लन अभी कुंवारा था. कई साल पहले टुल्लू की दोस्ती गांव के ही शिवलोचन से हो गई थी.

दोनों ही शराब पीने के शौकीन थे. सो दोस्ती की शुरुआत भी शराब के ठेके से हुई. टुल्लू और शिवलोचन ने एक बार साथ बैठ कर शराब पी तो जल्द ही उन की दोस्ती पारिवारिक संबंधों में तब्दील हो गई. दोनों एकदूसरे के घर आनेजाने लगे. कई बार दोनों का खानापीना भी साथसाथ होता था. दरअसल, टुल्लू की शिवलोचन से गहरी दोस्ती की असली वजह उस की खूबसूरत और जवान पत्नी माया थी, जिसे वह भाभी कह कर बुलाता था. माया अल्हड़ और चंचल स्वभाव की औरत थी. टुल्लू को माया पहली ही नजर में भा गई थी. उस ने माया की नजरों में दिखाई देने वाली प्यास को पढ़ लिया था. टुल्लू का शिवलोचन के घर आनाजाना शुरू हुआ तो जल्दी ही यह सिलसिला शिवलोचन की अनुपस्थिति में भी चलने लगा.

एक तरफ माया की जवानी उफान मार रही थी, जबकि दूसरी ओर उस का पति शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक घर से दूर रहता था. माया उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जब औरत को हर रात मर्द के साथ की जरूरत होती है. टुल्लू ने पति से दूर रह रही और पुरुष संसर्ग के लिए तरसती माया के आंचल में अपने प्यार और हमदर्दी की बूंदें उडे़ली तो माया निहाल हो गई. जल्दी ही दोनों के बीच नाजायज रिश्ते बन गए. माया, टुल्लू के प्यार में ऐसी दीवानी हुई कि दोनों के बीच रोज शारीरिक संबंध बनने लगे. शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक घर के बाहर रहता था. रोकटोक करने वाला कोई नहीं था.

लेदे कर घर में एक सास थी जो अकसर माया के पास आ कर रहने लगती थी. लेकिन टुल्लू से संबंध बनने के बाद माया ने सास चुनकी देवी से भी लड़ाईझगड़ा शुरू कर दिया था, फलस्वरूप सास उस के मकान पर न आ कर ज्यादातर अपने पैतृक घर में रहती थी. माया ने ऐसा इसलिए किया था ताकि टुल्लू रात में उस के पास बेरोकटोक आ जा सके. मूलरूप से ग्राम देवरी पंधी, जिला बिलासपुर छत्तीसगढ़ की रहने वाली माया की पहली शादी 13 साल पहले उस के मायके में ही एक युवक से हुई थी. लेकिन शादी के एक साल बाद ही पति ने गलत चालचलन का आरोप लगा कर उसे छोड़ दिया था. 2008 में शिवलोचन अपने एक परिचित के साथ किसी काम से माया के गांव देवरी पंधी गया था.

वहां बातोंबातों में किसी ने जब उस से पूछा कि उस ने शादी क्यों नहीं की तो शिवलोचन ने बता दिया कि अभी तक कोई अच्छी लड़की नहीं मिली. उस परिचित ने शिवलोचन से कहा कि अगर वह कुछ रुपए खर्च करे तो वह अपने गांव की एक तलाकशुदा लड़की से उस की शादी करा देगा. शिवलोचन की उम्र बढ़ रही थी. उसे भी एक जीवनसाथी की जरूरत थी. वह पैसा खर्चने को तैयार हो गया तो उस परिचित ने शिवलोचन को माया के घर ले जा कर उस के परिवार व माया से मिलवा दिया. शिवलोचन को माया पसंद आ गई. माया के घर और परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी.

लिहाजा बिचौलिया बने परिचित ने माया के पिता को कुछ रकम दे कर जब शिवलोचन का माया से विवाह करने की बात चलाई तो  वह तुरंत राजी हो गया. इस के बाद चट मंगनी पट विवाह की रस्म अदा कर के शिवलोचन माया को पत्नी बना कर अपने घर ले आया. वक्त हंसीखुशी गुजरने लगा. माया से उसे 2 बेटे हुए प्रमांशु (6) और 8 वर्षीय हिमांशु. शिवलोचन काफीकाफी दिनों तक परिवार से दूर रह कर इसलिए जी तोड़ मेहनत करता था ताकि पत्नी व बच्चों का भविष्य संवार सके. उसे क्या पता था कि उस की गैरहाजिरी में माया उसी के दोस्त के साथ रंगरेलियां मनाती है.

बात पिछले साल दीवाली के बाद तब बिगड़ी, जब नवंबर में शिवलोचन छुट्टी ले कर घर आया. घर में उस के हाथ एक ऐसा फोटो लगा, जिसे देख कर उस का माथा ठनक गया. दरअसल, फोटो माया और टुल्लू का था, जिस में दोनों एक साथ थे. शिवलोचन ने उस फोटो को देखने के बाद पहली बार माया पर हाथ उठाया. उसी शाम जब टुल्लू उस के घर आया तो उस ने उस की भी पिटाई कर दी.  बात इतनी बढ़ी कि मामला थाने तक जा पहुंचा. गांव के बड़े बुजुर्ग और समझदार लोग भी थाने पहुंचे. दरअसल, काफी दिनों से लोग शिवलोचन से शिकायत कर रहे थे कि उस की गैरमौजूदगी में टुल्लू उस के घर आताजाता है और वह अकसर रात को भी उस के घर में ही रहता है. शिवलोचन ने जब यह बात माया से पूछी तो उस ने ऐसे आरोपों को गलत बताया.

लेकिन जब शिवलोचन ने दोनों की एक साथ फोटो देखी तो वह समझ गया कि गांव के लोग जो कहते हैं, वह गलत नहीं है. बहरहाल, उस समय पुलिस ने बड़े बुजुर्गों के बीच बचाव के बाद शिवलोचन और टुल्लू में समझौता करा दिया. साथ ही टुल्लू को माया से न मिलने और उस के घर न जाने की हिदायत भी दी. लेकिन इस के बावजूद टुल्लू और माया का मिलना बदस्तूर जारी रहा. काम के सिलसिले में शिवलोचन को अकसर घर से बाहर रहना पड़ता था जबकि माया को टुल्लू के संग साथ की जो लत लग चुकी थी, उस ने दोनों को एकदूसरे से दूर नहीं होने दिया. दूसरी ओर शिवलोचन ने माया और टुल्लू की निगरानी शुरू कर दी थी. उस ने गांव के अपने एक दो हम उम्र दोस्तों से कह दिया था कि वे माया और टुल्लू पर नजर रखें.

जब उसे पता चला कि दोनों के बीच मिलनाजुलना अब भी बदस्तूर जारी है तो उस ने माया से मिल कर इस समस्या को खत्म करने का फैसला किया. इस के लिए वह 4 नवंबर को अपने घर आया. उस ने माया और टुल्लू के मेलजोल की बात को ले कर पत्नी की पिटाई कर दी. शाम को वह घर में ही शराब पी कर सो गया. माया उसी दिन से शिवलोचन ने नफरत करने लगी थी, जब उस ने पहली बार दोनों का फोटो देखने के बाद तमाशा किया था और उस की पिटाई भी कर दी थी. तभी से गांव भर की औरतें माया को बदचलन औरत की नजर से देखने लगी थी. उस दिन शिवलोचन की मार ने आग में घी का काम किया. उस ने शिवलोचन के शराब पी कर गहरी नींद में सोते ही टुल्लू को फोन कर के अपने घर बुला लिया.

उस ने टुल्लू से कहा कि अगर वह उसे सचमुच प्यार करता है तो आज रात ही शिवलोचन से उस के अपमान का बदला लेने के लिए उसे जान से मार दे. टुल्लू तो माया का दीवाना था. उस ने सोचा कि शिवलोचन मर जाएगा तो माया सदा के लिए उस की हो जाएगी. यही सोच कर उस ने घर में पड़ी लाठी से सोते हुए शिवलोचन के सिर पर एक के बाद एक कई प्रहार किए, जिस से वह चारपाई पर ही ढेर हो गया. इस काम में माया ने भी उस का साथ दिया. इस के बावजूद माया इत्मीनान कर लेना चाहती थी कि शिवलोचन मरा है या नहीं. उस ने टुल्लू के साथ मिल कर कमरे में पड़ी जूट की रस्सी का फंदा बनाया और शिवलोचन के गले में डाल कर काफी देर तक खींचा. शिवलोचन के मरने के बाद समस्या थी लाश को ठिकाने लगाने की. क्योंकि लाश को घर से बाहर ले जाने से पकडे़ जाने का डर था.

माया ने सुझाव दिया कि शिवलोचन के शव को कमरे में ही जमीन खोद कर गाड़ दिया जाए. इस के बाद उन्होंने ऐसा ही किया. टुल्लू ने फावड़े से कमरे के एक हिस्से के कच्चे फर्श को 5 फुट गहरा खोदा और शिवलोचन के गले में बंधी रस्सी समेत लाश को गड्ढे में धकेल दिया. टुल्लू ने खून से सने कपड़े लाश के ऊपर ही डाल दिए. लाश को गड्ढे में डालने के बाद माया और टुल्लू ने उस पर मिट्टी डाल दी. रात में ही माया ने उस जगह को अच्छी तरह से लीप दिया, ताकि किसी को गड्ढा खोदे जाने की बात का पता न चल सके. उस रात शिवलोचन की हत्या करने से पहले माया और टुल्लू ने कुछ खायापीया नहीं था. लिहाजा लाश को घर में ही दफनाने के बाद माया ने चूल्हा जला कर खाना बनाया. जिस लाठी से शिवलोचन की हत्या की गई थी, माया ने उसे चूल्हे में जला कर रोटियां सेंकी.

इस के बाद दोनों ने चारपाई उसी जगह बिछाई, जहां शिवलोचन के शव को दफनाया था. उस रात शिवलोचन ने जिस बोतल से शराब पी थी, उस में कुछ शराब बची थी. टुल्लू और माया ने बची हुई शराब बराबरबराबर पी, फिर दोनों ने साथसाथ खाना खाया. खाना खाने के बाद दोनों लाश दफनाने वाली जगह पर बिछी चारपाई पर सो गए. सोने से पहले दोनों ने एकदूसरे के जिस्म की प्यास बुझा कर शिवलोचन के मरने का जश्न मनाया. शिवलोचन की हत्या को अंजाम देने के बाद माया करीब 15 दिन तक उसी घर में रही. इस दौरान टुल्लू हर रात उस के पास आता. दोनों एक साथ खाना खाते और उसी चारपाई पर रंगरेलियां मनाते, जो उन्होंने शिवलोचन की लाश दफनाने के बाद फर्श की जमीन लीप कर उस के ऊपर डाली थी.

शिवलोचन की हत्या के बाद जब गांव के लोग या माया की सास चुनकी देवी माया से शिवलोचन के बारे में पूछते तो वह कहती कि कर्वी में काम चल रहा है, वहीं रहते हैं. करीब 15 दिन बाद जब घर का सारा राशन खत्म हो गया तो माया के पास वहां रहने की कोई वजह नहीं बची. इस दौरान माया और टुल्लू ने आपस में तय कर लिया था कि उन्हें आगे की जिंदगी किस तरह बितानी है. इसलिए 15 दिन बाद माया अपने दोनों बच्चों को ले कर मायके चली गई. जाने से पहले उस ने अपनी सास से खूब लड़ाई की और ताना दिया कि उस का बेटा परिवार का ख्याल नहीं रखता. घर में राशन तक नहीं है इसलिए अपनी मां के घर जा रही हूं. जब शिवलोचन घर आए तो मुझे लेने आ जाएं.

उसी दिन माया ने घर की चाभी भी अपनी सास को दे दी थी. दरअसल, वह अच्छी तरह से जानती थी कि सास चुनकी देवी ढाबे वाले अपने पैतृक घर को छोड़ कर उस के घर में रहने के लिए नहीं जाएगी. वजह यह थी कि एक तो वह गांव में काफी पीछे और सुनसान जगह पर था, दूसरे वहां उस की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं था. माया जानती थी कि शिवलोचन तो अब किसी को मिलेगा नहीं, उस का शव भी गल जाएगा. समय के साथ शिवलोचन की मौत भी रहस्यमय गुमशुदगी बन कर रह जाएगी. माया के गांव से जाने के एक 2 दिन बाद टुल्लू भी मुंबई चला गया था और वहां बिल्डिंगों में टाइल्स लगाने का काम करने लगा था.

अपनी ससुराल लोहदा से जाने के बाद माया मई के महीने तक अपने मातापिता के पास रही. उस ने परिवार वालों को बताया कि बिना बताए शिवलोचन कहीं चला गया है. अपने गांव पहुंच कर माया ने अपना मोबाइल नंबर भी बदल दिया था. शिवलोचन के मोबाइल को उस ने उस की हत्या के बाद ही तोड़ कर फेंक दिया था. उस का नया नंबर सिर्फ टुल्लू के पास था, जिस पर दोनों की रोज बातें होती थीं. टुल्लू अकसर अपने गांव में फोन कर के शिवलोचन को ले कर हो रही गतिविधियों की जानकारी लेता रहता था. जब कई महीने बीत गए और माया को लगा कि अब मामला ठंडा हो गया है तो उस ने मई महीने में अपने पिता से कहा कि वह पति के बारे में जानकारी करने के लिए चित्रकूट जा रही है, जल्दी ही लौट आएगी.

अपने बच्चों को छोड़ कर माया कर्वी आ गई, जहां पहले से ही टुल्लू उसे लेने के लिए आया हुआ था. वहां से वे दोनों मुंबई चले गए और पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. माया की योजना थी कि एक दो महीने का वक्त और गुजरने के बाद अपने दोनों बच्चों को भी ले आएगी. लेकिन उस से पहले ही माया व टुल्लू पुलिस के हत्थे चढ़ गए. पुलिस ने माया व टुल्लू से पूछताछ के बाद वह फावड़ा भी बरामद कर लिया, जिस से शिवलोचन की हत्या के बाद उस का शव दफनाने के लिए गड्ढा खोदा था. चूंकि महीनों गुजर जाने के बाद भी किसी को कोई शक नहीं हुआ था, इसलिए माया और टुल्लू को उम्मीद थी कि अब शिवलोचन की हत्या का भेद नहीं खुल पाएगा.

दरअसल शिवलोचन के घर वालों और गांव के लोगों से पूछताछ के बाद जब इंसपेक्टर अरुण पाठक को पता चला था कि माया और गांव के टुल्लू के बीच लंबे अर्से से न केवल अवैध संबंध थे बल्कि इन्हीं संबंधों के चलते शिवलोचन और टुल्लू में मारपीट भी हुई थी, तभी पाठक को शक हो गया था कि हो न हो शिवलोचन की हत्या में माया व टुल्लू का ही हाथ हो. क्योंकि माया तो गांव से चली ही गई थी, कुछ दिन बाद टुल्लू भी गांव से गायब हो गया था. इंसपेक्टर अरुण पाठक ने माया व टुल्लू से पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. इसी दौरान पुलिस को शिवलोचन की डीएनए रिपोर्ट भी मिल गई, जिस से स्पष्ट हो गया कि शिवलोचन के घर में मिला नरकंकाल उसी का था.

— कथा अभियुक्तों से पूछताछ, परिजनों द्वारा पुलिस को दी गई जानकारी पर आधारित

 

ठगी का नया मामला : 11 हजार जमा करो और हर महीने 4 हजार पाओ

इंसान की एक सब से बड़ी कमजोरी होती है लालच. कुछ लोग इंसान की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर उस की गाढ़ी कमाई इस तरह लूट लेते हैं कि उसे अपने लुटने का पता तब चलता है, जब वह स्वयं अपने हाथों से उसे अपना सब कुछ सौंप चुका होता है. दिल्ली के पीतमपुरा के रहने वाले रामवीर शर्मा की आटोपार्ट्स बनाने की फैक्ट्री थी. विभिन्न आटो कंपनियों के और्डर पर वह आटोपार्ट्स बना कर सप्लाई करते थे. काम अच्छा चल रहा था, इसलिए उन्हें किसी तरह की कोई चिंता नहीं थी. सन 1988 से उन की यह फैक्ट्री मध्य दिल्ली के झंडेवालान में चल रही थी.

काम बढ़ने लगा तो उन्होंने और मशीनें लगाने की सोची. लेकिन फैक्ट्री की जो जगह थी, उस में और मशीनें नहीं लग सकती थीं. वह फैक्ट्री लगाने के लिए जगह की तलाश करने लगे. उन्हें हरियाणा के राई में एक बढि़या प्लौट मिल गया तो उसे खरीद कर उन्होंने झंडेवालान वाली फैक्ट्री को वहीं शिफ्ट कर दिया. अब फैक्ट्री में पहले से ज्यादा मशीनें लग गई थीं, इसलिए पहले से ज्यादा काम भी हो गया और आमदनी भी बढ़ गई. चूंकि वह और्डर का माल समय से पहले तैयार करा कर पहुंचा देते थे, इसलिए इस क्षेत्र में उन की अच्छीखासी साख बनी थी. इसी का नतीजा था कि उन्हें जरमन की एक आटो कंपनी का और्डर मिल गया. विदेशी कौन्ट्रैक्ट मिलने के बाद वह फूले नहीं समा रहे थे, क्योंकि पार्ट्स तैयार करने के लिए उन्हें अच्छे पैसे मिल रहे थे.

वह विदेशी आटो कंपनी के पार्ट्स तैयार कराने लगे. उस विदेशी कंपनी के साथ कुछ दिनों तो उन का तालमेल ठीक चला, लेकिन सन 2006-07 के दौरान उन्हें गर्दिश ने ऐसा घेरा कि वह उबर न सके. दरअसल वह जिस जरमन कंपनी के लिए आटोपार्ट्स तैयार करा रहे थे, किसी वजह से उस कंपनी ने तैयार माल लेने से मना कर दिया. उस माल को तैयार कराने में वह मोटी रकम खर्च कर चुके थे. जिस की वजह से उन्हें मोटा घाटा उठाना पड़ा. इंडिया की जिस आटो कंपनी के पार्ट्स वह तैयार करते थे, वह काम जरमन कंपनी से कौन्ट्रैक्ट होने के बाद उन्होंने बंद कर दिया था. काफी कोशिशों के बाद भी उन्हें इंडिया की भी किसी कंपनी से कोई और्डर नहीं मिल रहा था.

उन की आमदनी बंद हो चुकी थी, जबकि फैक्ट्री के कर्मचारियों के वेतन से ले कर अन्य मदों पर होने वाले खर्च जारी थे. इस के अलावा रामवीर शर्मा के अपने और घर के खर्च भी थे. वह सोचसोच कर परेशान हो रहे थे कि फैक्ट्री फिर से कैसे चले. एक समय ऐसा आया कि रामवीर शर्मा को फैक्ट्री बंद करनी पड़ गई. फैक्ट्री बंद होने के बाद वह कोई दूसरा काम करने की कोशिश करने लगे. उसी बीच उन की मुलाकात अनिल खत्री से हुई, जो पीतमपुरा के ही डी ब्लौक में रहता था. अनिल खत्री ने उन्हें स्पीक एशिया नाम की कंपनी के बारे में बताया. उस ने बताया कि स्पीक एशिया एक कंपनी है, जिस में 11 हजार रुपए जमा करने 4 हजार रुपए हर महीने एक साल तक मिलते रहेंगे.

11 हजार लगा कर एक साल तक 4 हजार रुपए महीने यानी साल भर में करीब 50 हजार रुपए कमाने की बात सुन कर रामवीर के कान खड़े हो गए. उन्हें स्कीम के बारे में जानने की उत्सुकता हुई. उन्होंने अनिल खत्री से इस स्कीम के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘स्पीक एशिया एक औनलाइन कंपनी है. इस में 11 हजार रुपए जमा करने पर कंपनी एक लौग इन आईडी और पासवर्ड देती है. उस आईडी पर कंपनी हर सप्ताह एक सर्वे भेजती है. वह सर्वे औनलाइन ही 5 मिनट में भर जाता है. सर्वे पूरा होने पर कंपनी एक हजार रुपए आप के एकाउंट में भेज देगी. इस तरह कंपनी एक साल में 52 सर्वे भेजेगी, जिन्हें भरने पर 52 हजार रुपए मिलेंगे.’’

इस इनकम के बारे में सुन कर रामवीर शर्मा को लालच आ गया. इतनी इनकम तो उन्हें अपनी आटोपार्ट्स की फैक्ट्री से भी नहीं होती थी. उन्हें स्कीम तो अच्छी लगी, लेकिन उन के मन में एक दुविधा थी कि पता नहीं जो इनकम अनिल बता रहे हैं, वह आती भी है या नहीं? उन्होंने अपनी संशय अनिल खत्री से बताई तो उस ने अपनी बैंक की पासबुक और स्टेटमेंट दिखाते हुए कहा, ‘‘शर्माजी, यहां कुछ भी गलत नहीं है. सब कुछ औनलाइन है. आप खुद ही देख लीजिए कि मैं अब तक इस कंपनी से कितना कमा चुका हूं.’’

वास्तव में अनिल खत्री के एकाउंट में सिंगापुर की एक बैंक से लाखों रुपए भेजने का रिकौर्ड था. बैंक पासबुक देखने के बाद रामवीर शर्मा को विश्वास हो गया कि कंपनी सर्वे के पैसे भेजती है. रामवीर शर्मा की बौडी लैंग्वेज देख कर अनिल खत्री ने कहा, ‘‘शर्माजी सोचनाविचारना बंद करो और जल्द ही काम चालू कर दो. आप अपनी क्षमता के मुताबिक जितनी आईडी चाहो, ले सकते हो. जितनी आईडी लोगे, उतना ज्यादा कमाओगे. सर्वे की एक दूसरी इनकम भी है, वह है जौइनिंग की. अपनी आईडी के नीचे तुम जितने नए लोगों को जोड़ोगे, हजार रुपए प्रति जौइनिंग मिलेगा.’’

रामवीर शर्मा अनिल खत्री को पहले से जानते ही थे, इसलिए उन्हें उस की बातों पर भरोसा हो गया. उन्होंने अनिल के माध्यम से 33 हजार रुपए जमा करा दिए. पैसे जमा करने के बाद रामवीर शर्मा को 3 लौग इन आईडी और पासवर्ड मिल गए. फिर उन की आईडी पर भी सर्वे आने शुरू हो गए. वह जल्दी से सर्वे भर कर खुश होते कि 11 हफ्ते में उन के द्वारा जमा कराए गए पैसे वापस आ जाएंगे. उस के बाद उन की कमाई ही कमाई है. रामवीर शर्मा के एकाउंट में सर्वे के पैसे आने लगे तो उन्हें तसल्ली हो गई. अनिल खत्री के कहने पर उन्होंने कई और आईडी ले लीं. अनिल खत्री उन्हें कंपनी की ओर से आयोजित किए जाने वाले सेमिनारों में भी ले जाने लगा. वहां पर वह उन की बड़ेबड़े लीडरों से मुलाकात भी कराता.

सन 2011 में कंपनी ने गोवा में एक सेमिनार का आयोजन किया. उस सेमिनार में हिंदुस्तान की तमाम बड़ी प्रोडक्ट बेस कंपनियों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. उस सेमिनार के बाद कंपनी से जुड़े पेनलिस्टों में उत्साह भर गया. इस के बाद कंपनी की ओर से दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया गया. उस सेमिनार में कंपनी के शीर्ष लीडर मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल, रामसुमिरन पाल आदि आए. उन्होंने सेमिनार में आए लोगों को कंपनी की उन्नति और खुशहाली के बारे में बताया. चूंकि अनिल खत्री की गिनती दिल्ली में कंपनी के सीनियर लीडर के रूप में होती थी, इसलिए सेमिनार में आए अधिकांश लीडर उसे व्यक्तिगत रूप से जानते थे. वह सेमिनार इतना बड़ा था कि वहां पेनलिस्टों के बैठने के लिए सीटें भी कम पड़ गई थीं. इस सेमिनार से पेनलिस्टों में और जोश भर गया था.

अनिल खत्री रामवीर शर्मा की हैसियत के बारे में अच्छी तरह से जानता था, इसलिए सेमिनार खत्म होने के बाद उस ने रामवीर शर्मा की मुलाकात मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल से कराई. इन सभी लीडरों ने उन्हें और ज्यादा पैसे लगा कर और ज्यादा कमाने को कहा. पहले से ली गई आईडी पर रामवीर शर्मा के पैसे आ ही रहे थे, इसलिए उन की बातों में फंस कर उन्हें भी लालच आ गया और सोचा कि अगर वह मोटी रकम लगा देते हैं तो आमदनी और ज्यादा हो सकती है. रामवीर शर्मा ने अपनी सारी जमापूंजी, पत्नी के गहने बेच कर और अपने जानकारों से पैसे उधार ले कर करीब 25 लाख रुपए इकट्ठा कर के स्पीक एशिया कंपनी में लगा दिए. इतनी बड़ी रकम लगाने के बाद उन की आमदनी भी मोटी होने लगी.

तभी अचानक उन्हें मीडिया द्वारा जानकारी मिली कि स्पीक एशिया कंपनी लोगों का पैसा ले कर भाग गई है. यह सुनते ही वह सन्न रह गए. उन के अलावा जिन लोगों ने इस कंपनी में मोटी रकम लगाई थी, यह खबर सुन कर वे भी परेशान हो गए. सभी अपनेअपने सीनियर्स को फोन कर के मामले की सच्चाई जानने लगे. रामवीर शर्मा ने भी इस बारे में अनिल खत्री से बात की तो उस ने कहा कि ये सब विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहें हैं. इन पर ध्यान मत दो और अपना काम करते रहो. रामवीर शर्मा को अनिल खत्री ने समझा तो दिया, लेकिन उन के मन में संशय बना रहा. उन्हें अनिल की बात पर विश्वास नहीं हुआ. वह सर्वे भरते रहे, लेकिन वह तब हैरान रह गए, जब 18 मई, 2011 से सर्वे के पैसे उन के खाते में आने बंद हो गए.

उन्होंने अनिल खत्री से फिर संपर्क किया. उस ने एक बार फिर उन्हें समझाया कि कंपनी की वेबसाइट पर कुछ काम चल रहा है, जिस की वजह से यह प्रौब्लम आ रही है. उस ने कहा कि इतनी बड़ी कंपनी है और उस से लाखों लोग जुड़े हैं, इस तरह कंपनी एकदम से थोड़े ही बंद हो जाएगी. अब तक मीडिया से स्पीक एशिया द्वारा लोगों को ठगे जाने की खबरें लगातार आने लगी थीं. जून, 2011 में मुंबई की आर्थिक अपराध शाखा और पाईघुनी थाने में कंपनी के संचालकों, अधिकारियों, लीडरों आदि के खिलाफ भांदंवि की धारा 406/34/120 बी के अलावा प्राइज चिट्स एंड मनी सर्कुलेशन स्कीम (बैनिंग) एक्ट-1978 के सैक्शन 3, 4, 5, 6 के तहत मामला दर्ज हुआ तो कंपनी से जुड़े पेनलिस्टों में खलबली मच गई.

सब से ज्यादा वे पेनलिस्ट परेशान होने लगे, जिन्होंने कंपनी ने मोटी रकम लगा रखी थी और उन की वह रकम लौटी नहीं थी. रामवीर शर्मा अनिल खत्री के यहां पहुंचे तो उस ने बातें बना कर उन्हें टाल दिया. इस के बाद तो कंपनी के खिलाफ मुंबई, हैदराबाद, छत्तीसगढ़, रायगढ़, लखनऊ, गाजियाबाद, जैसे तमाम शहरों के अनेक थानों में कंपनी के संचालकों, अधिकारियों, लीडरों आदि के खिलाफ मामले दर्ज होने लगे. इस के बाद तो पुलिस स्पीक एशिया से जुड़े बड़े अधिकारियों, एजेंटों आदि की सरगर्मी से तलाश करने लगी. मुंबई में इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा कर रही थी तो छत्तीसगढ़ में स्पेशल इनवैस्टीगैशन सेल अभियुक्तों की तलाश में थी.

आखिर पुलिस की मेहनत रंग लाई और स्पीक एशिया के बड़े लीडर रवि जनकराज खन्ना, शेख रईस लतीफ, राजीव मनमोहन मल्होत्रा, राहुल पन्नालाल शाह गिरफ्तार कर लिए गए. इन सभी से पूछताछ के बाद पुलिस ने स्पीक एशिया के सीईओ (इंडिया) तारक विमलेंदु वाजपेई को गिरफ्तार किया. इस के बाद तो मुंबई में स्पीक एशिया के फ्रेंचाइजी दीपांकर दुलालचंद सरकार, मेलविन रोनाल्ड क्रेस्टो, सौरभ सिंह, सुरेश बी. पधि, तबरेज लतीफ अंसारी, सईद अहमद माजगोंकर भी पुलिस गिरफ्त में आ गए. स्पीक एशिया के चार्टर्ड एकाउंटेंट और वित्त सलाहकार संजीव एस. डनडोना, कंपनी के वेब डिजाइनर और कौन्टेंट राइटर नयन कांतिलाल खंदोर, गुजरात और महाराष्ट्र के रीजनल मैनेजर आशीष विजय डंडेकर एवं अभिषेक एस. कुलश्रेष्ठ भी पुलिस से बच न सके.

पुलिस ने कंपनी के 200 से अधिक बैंक खाते सीज करा दिए थे, जिन में करीब 142 करोड़ रुपए जमा थे. इस के अलावा यूएई के भी कई बैंकों में कंपनी के खाते होने की जानकारी मिली. पुलिस को यह भी पता चला कि स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े वांछित लोग विदेश भागने की फिराक में हैं, इसलिए उन के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करा दी. पुलिस को जांच में पता चला चुका था कि स्पीक एशिया कंपनी ने 24 लाख लोगों को झांसा दे कर 2276 करोड़ रुपए कमाए हैं. इस कंपनी की ग्लोबल सीईओ हरेंदर कौर सिंगापुर में बैठ कर काम को अंजाम दे रही थी. भारत में कंपनी के मुख्य कर्ताधर्ता मनोज कुमार शर्मा, रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल थे. ये सभी फरार चल रहे थे.

मुंबई पुलिस इन्हें भी सरगर्मी से तलाशने लगी. पुलिस मुंबई स्थित इन के ठिकानों पर गई तो ये फरार मिले. वहां पर रामनिवास की मर्सिडीज कार मिली, जिसे पुलिस ने बरामद कर लिया. 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले को गंभीरता लेते हुए कहा कि स्पीक एशिया कंपनी ने जिन लोगों के पैसे लिए हैं, वह उन्हें वापस करे. मुंबई आर्थिक अपराध शाखा को कहीं से सूचना मिली की रामनिवास पाल और उस के साथी दिल्ली या एनसीआर इलाके में हैं. मुंबई पुलिस कमिश्नर ने यह जानकारी दिल्ली पुलिस कमिश्नर से शेयर की और उन की गिरफ्तारी में सहयोग करने की मांग की. चर्चित और खास तरह के मामलों में अलगअलग शहरों की पुलिस संबंधित शहरों की पुलिस से जानकारी शेयर कर के अभियुक्तों की गिरफ्तारी में सहयोग करने की अपील करती है. इसी तरह के सहयोग की मांग मुंबई पुलिस ने दिल्ली पुलिस से की थी.

दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने मामला क्राइम ब्रांच को सौंपते हुए काररवाई करने के आदेश दिए. क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त आयुक्त रविंद्र यादव ने क्राइम ब्रांच के उपायुक्त कुमार ज्ञानेश की अध्यक्षता में एक पुलिस टीम बनाई, जिस में स्पैशल औपरेशन स्क्वायड के एसीपी सुरेश कौशिक, इंसपेक्टर अशोक कुमार, संजीव कुमार, सबइंस्पेक्टर अशोक कुमार वेद, वीरेंद्र सिंह, चंदर प्रकाश, विवेक मंडोला, देवेंद्र सिंह, एएसआई जसवंत राठी, हेडकांस्टेबल देवेंद्र कुमार, संजीव कुमार हरविंदर, संजय, रविंदर पाल, कांस्टेबल सुरेंद, जमील, साजिद आदि को शामिल किया गया.

मुंबई पुलिस द्वारा दिए गए इनपुट के आधार पर दिल्ली क्राइम ब्रांच इन की तलाश करने लगी. पुलिस टीम को एक महत्त्वपूर्ण जानकारी यह भी मिली कि रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल सगे भाई हैं. स्पीक एशिया से अरबों रुपए कमाने के बाद इन लोगों ने रीयल एस्टेट में पांव पसारने शुरू कर दिए हैं. इसी सिलसिले में वे अकसर दिल्ली आते रहते हैं. मुंबई पुलिस द्वारा इन की फोटो मिलने के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने अपने मुखबिरों को भी सतर्क कर दिया था. इसी बीच पुलिस को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि रामसुमिरन पाल अपने एक साथी के साथ 25 नवंबर, 2013 की शाम को कनाट प्लेस स्थित रीगल पहुंचेगा. पुलिस टीम रीगल सिनेमा के आसपास बिना वर्दी के खड़ी हो गई.

शाम साढ़े 6 बजे के करीब रीगल सिनेमा के पास स्थित एक दुकान पर 2 शख्स टाई खरीदते हुए दिखे. एसीपी सुरेश कौशिक ने मुंबई पुलिस द्वारा दिए गए फोटो से उन के चेहरों का मिलान किया तो उन में से एक युवक का चेहरा फोटो से मिल रहा था. फिर क्या था, उन्होंने अपनी टीम को इशारा कर दिया. पुलिस टीम ने घेर कर दोनों युवकों को दबोच लिया. दोनों को हिरासत में ले कर पुलिस औफिस आ गई. दोनों युवकों से पुलिस ने पूछताछ की तो वह पहले तो अपना नाम व पता फरजी बताते रहे, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे उन्हें सच उगलना ही पड़ा. उन में से एक युवक ने अपना नाम रामसुमिरन पाल और दूसरे ने सतीशसोहन पाल बताया. उन्होंने बताया कि वे स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े थे. रामसुमिरन पाल उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर का रहने वाला था तो सतीशसोहन पाल दिल्ली के नजफगढ़ का.

रामसुमिरन पाल की गिरफ्तारी पर दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम फूली नहीं समा रही थी. क्योंकि वह स्पीक एशिया का भारत में मुख्य कर्ताधर्ता था. काफी कोशिशों के बाद भी मुंबई क्राइम ब्रांच उसे और उस के भाई रामनिवास पाल को गिरफ्तार नहीं कर सकी थी. सतीशसोहन पाल स्पीक एशिया का दिल्ली में मुख्य फें्रचाइजी था. उस ने भी स्पीक एशिया के नाम पर दिल्ली के हजारों लोगों से करोड़ों रुपए ठगे थे. पुलिस ने उन से जरूरी पूछताछ की. चूंकि इन के खिलाफ दिल्ली में कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं थी. मुंबई के कई थानों में इन के खिलाफ मामले दर्ज थे, इसलिए इन की गिरफ्तारी की सूचना मुंबई क्राइम ब्रांच को दे दी गई.

इस के बाद दोनों ठगों को सीआरपीसी की धारा 41.1 बी (किसी दूसरे थाने के वांटेड आरोपी को गिरफ्तार करना) के तहत गिरफ्तार कर 26 नवंबर को पटियाला हाउस न्यायालय में ड्यूटी मजिस्ट्रेट पुनीथ पावा के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. रामसुमिरन पाल की गिरफ्तारी की खबर पा कर 27 नवंबर को मुंबई क्राइम ब्रांच की टीम दिल्ली पहुंची और कोर्ट से दोनों ठगों को मुंबई ले गई. स्पीक एशिया के ठग रामसुमिरन पाल और सतीशसोहन पाल के गिरफ्तार होने की खबर जैसे ही फोटो सहित मीडिया में आई तो रामवीर शर्मा रामसुमिरन पाल को पहचान गए. उन के मन में भी स्पीक एशिया में लगाए गए पैसे पाने की उम्मीद जागी और वह दिल्ली क्राइम ब्रांच के डीसीपी कुमार ज्ञानेश के पास पहुंच गए.

उन्होंने डीसीपी को अनिल खत्री, मनोज कुमार शर्मा, रामसुमिरन पाल और रामनिवास पाल के उकसावे में आ कर स्पीक एशिया कंपनी में 25 लाख रुपए लगाए जाने की पूरी बात बताई. उन्होंने उक्त चारों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने की मांग भी की. रामवीर शर्मा की शिकायत पर क्राइम ब्रांच थाने में उक्त चारों आरोपियों के खिलाफ एफआईआर संख्या 198 पर भादंवि की धारा 420, 406, 120-बी को तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली गई. स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े तमाम लोगों के खिलाफ भले ही देश के विभिन्न थानों में तमाम रिपोर्ट दर्ज थीं, लेकिन दिल्ली में कोई मामला दर्ज नहीं हुआ था. पहली रिपोर्ट रामवीर शर्मा ने दर्ज कराई. मामला दर्ज होने के बाद दिल्ली क्राइम ब्रांच ने खुद भी इस मामले की जांच करनी शुरू कर दी.

रामसुमिरन पाल और सतीशसोहन पाल से पूछताछ में दिल्ली क्राइम ब्रांच को रामनिवास पाल के बारे में कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिली थीं. रामनिवास पाल वह शख्स था, जो स्पीक एशिया को भारत में लाया था. इतना ही नहीं, स्पीक एशिया के प्लान आदि सब उस के ही तैयार कराए थे. एक तरह से वह कंपनी का मास्टर माइंड था. इस मास्टर माइंड की तलाश के लिए क्राइम ब्रांच की एक टीम बंगलुरू रवाना हो गई. पुलिस को सूचना मिली थी कि वह वहां एक आईटी कंपनी में सलाहकार है. जिस कंपनी में वह काम कर रहा था, पुलिस को उस का पता मिल चुका था.

30 नवंबर, 2013 को दिल्ली क्राइम ब्रांच की टीम बंगलुरू पहुंच गई और व्हाइट फील्ड रोड इलाके से एक शख्स को हिरासत में ले लिया. लेकिन उस ने अपना नाम अभय सिंह चंदेल बताया. बातचीत के दौरान पुलिस को लगा कि अभय सिंह चंदेल नाम का यह शख्स झूठ बोल रहा है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि वह रामनिवास पाल है और स्पीक एशिया कंपनी से जुड़ा था. बंगलुरू की स्थानीय अदालत में पेश कर के पुलिस ट्रांजिट रिमांड पर उसे दिल्ली ले आई. चूंकि स्पीक एशिया के इस मास्टर माइंड से पुलिस को विस्तार से पूछताछ करनी थी, इसलिए 2 दिसंबर, 2013 को उसे रोहिणी न्यायालय में ड्यूटी एमएम के समक्ष पेश कर के 9 दिसंबर तक का पुलिस रिमांड ले लिया गया.

पुलिस ने रामनिवास पाल से जब पूछताछ की तो स्पीक एशिया से उस के जुड़ने से ले कर ठगी तक की जो दिलचस्प कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. रामनिवास पाल मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के गांव नागरपाल का रहने वाला था. उस के पिता वेदराम एक किसान थे. रामनिवास पाल के अलावा वेदराम के 2 और बेटे थे, रामसुमिरन पाल और रजनीश पाल. रामनिवास पाल बीएससी कर रहा था, तभी उस का सेलेक्शन भारतीय वायु सेवा में एयरमैन (टेक्निकल) के पद पर हो गया था. यह सन 1991 की बात है. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उस की पोस्टिंग जोधपुर (राजस्थान) की हेलिकौप्टर यूनिट में हुई. बाद में उस का तबादला हैदराबाद हो गया. रामनिवास पाल महत्त्वाकांक्षी था. एयरफोर्स में 10 साल नौकरी के बाद वह कोई ऐसा काम करने की सोचने लगा, जिस में उसे मोटी कमाई हो.

इसलिए सन 2001 में अधिकारियों को बिना कोई सूचना दिए घर चला आया. एयरफोर्स ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया. बाद में वह एयरफोर्स अधिकारियों के संपर्क में आया तो उसे कोर्टमार्शल के बाद नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया. एयरफोर्स की नौकरी छोड़ने के बाद वह 2002 में मुंबई चला गया और बहुराष्ट्रीय बैंकों को सलाह देने के लिए स्मार्ट कनेक्ट नाम की कंपनी बनाई. इस के बाद वह टीवी कलाकार अमर उपाध्याय की कंपनी मिहिर विरानी मल्टी ट्रेड प्रा.लि. में निदेशक के रूप में काम करने लगा. यह कंपनी आयुर्वेदिक उत्पादों की बिक्री करती थी. कंपनी के प्रबंधन से विवाद हो जाने के बाद रामनिवास पाल ने नौकरी छोड़ दी. वहीं उस का संपर्क मनोज कुमार शर्मा से हुआ.

मनोज कुमार शर्मा डाइरेक्ट मार्केटिंग एसोसिएशन का अध्यक्ष था. रामनिवास बातचीत में दूसरों को प्रभावित करने में माहिर था, इसलिए मनोज से उस के अच्छे संबंध बन गए. वह मनोज की सारी कंपनियों का काम देखने लगा. इसी दौरान वह कुछ विदेशी कंपनियों के संपर्क में आया. रामनिवास पाल का छोटा भाई रामसुमिरन पाल मुंबई में ही एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता था. उस ने मुंबई से मार्केटिंग में एमबीए किया था. रामनिवास पाल ने रामसुमिरन पाल को भी अपने काम में लगा लिया.

रामनिवास पाल ने मनोज कुमार शर्मा और रामसुमिरन पाल के साथ हालैंड की मैंगो यूनिवर्स, ऐड मैट्रिक्स, इटली की सेविन रिंग्स आदि मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों को भारत में लांच किया. इन कंपनियों में रामनिवास पाल कभी संरक्षक, कभी सलाहकार तो कभी कंपनी की योजनाएं बनाने व विकसित करने वाले की भूमिका में होता था. ये भारत के मध्यमवर्गीय लोगों की मानसिकता को जानते थे, इसलिए इन्होंने सन 2008 में सिंगापुर में रजिस्टर्ड एमएलएम कंपनी स्पीक एशिया को भारत में लांच किया. कंपनी का रजिस्ट्रेशन उन्होंने सिंगापुर, ब्राजील व इटली में भी कराया, लेकिन वहां बिजनेस स्टार्ट नहीं किया. कंपनी के प्लान, पेआउट, सर्वे आदि की रूपरेखा रामनिवास पाल ने ही तैयार की.

उसी ने ही स्पीक एशिया कंपनी के मल्टी लेवल मार्केटिंग स्कीम का डिजाइन तैयार किया. बड़ेबड़े महानगरों में उस ने कंपनी की फ्रैंचाइजी दे दी. 11 हजार रुपए जमा कर के 4 हजार रुपए हर महीने एक साल तक पाने के लालच में बड़ी तेजी से लोग इस से जुड़ने लगे. ज्यादा कमाने के लालच में कुछ लोगों ने कंपनी में लाखों रुपए लगा दिए. कंपनी अपने साथ जुड़ने वाले लोगों को पेनलिस्ट कहती थी. विश्वास जमाने के लिए कंपनी ने पेनलिस्टों के बैंक एकाउंटों में पैसे भी भेजने शुरू कर दिए. फिर क्या था, लोगों का कंपनी के प्रति इतना विश्वास बढ़ा कि कुछ ही दिनों में हिंदुस्तान भर में स्पीक एशिया के लाखों पेनलिस्ट बन गए. कंपनी को पेनलिस्टों से सैकड़ों करोड़ की आमदनी होने लगी.

वे फाइव स्टार होटलों में पेनलिस्टों के साथ मीटिंग करते और अलगअलग शहरों में बड़ेबड़े सेमिनारों में प्रभावशाली स्पीच देते. उन की लाइफस्टाइल और स्पीच से पेनलिस्ट बहुत प्रभावित होते. 2011 के मध्य हिंदुस्तान भर से करीब 24 लाख लोग स्पीक एशिया से जुड़ गए. मास्टर माइंड रामनिवास पाल जानता था कि यदि स्पीक एशिया के कार्यक्रम में फिल्मी कलाकारों को शामिल कर लिया जाए तो लोगों का कंपनी पर विश्वास और बढ़ेगा, जिस से उन की कमाई भी बढ़ेगी. तब उस ने 2011 में गोवा में एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया. इस के लिए दिल्ली से गोवा तक एक विशेष टे्रन भी चलवाई. तब उस ने गोवा के ज्यादातर बड़े होटल भी बुक करा लिए थे. कई फिल्मी कलाकारों को भी वहां बुलाया था. बताया जाता है कि कंपनी ने इस सेमिनार के आयोजन पर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च किए थे.

गोवा में हुए सेमिनार के बाद स्पीक एशिया कंपनी पर अंगुलियां उठने लगी थीं. अपना विश्वास बनाए रखने और लोगों को आकर्षित करने के लिए कंपनी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में भी एक बड़े सेमिनार का आयोजन किया था. इस के बाद जून, 2011 में कंपनी से जुड़े लोग अंडरग्राउंड हो गए. यानी स्पीक एशिया कंपनी लोगों के 2276 करोड़ रुपए ले कर छूमंतर हो गई. जिन लोगों ने कंपनी में फरवरी, 2011 के बाद पैसे लगाए थे, वे घाटे में रहे. लोगों ने स्पीक एशिया के संचालकों के खिलाफ विभिन्न थानों में रिपोर्ट लिखानी शुरू कर दी.

मुंबई में इस मामले की जांच आर्थिक अपराध शाखा को सौंपी गई. मुंबई पुलिस संचालकों को खोजने लगी. चूंकि रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल ने इटली की सेवन रिंग्स इंटरनेशनल और हालैंड की ऐड मैट्रिक्स प्रा.लि. कंपनी भी खरीद ली थी, इसलिए इन्होंने स्पीक एशिया द्वारा 900 करोड़ रुपए मनी लांड्रिंग के जरिए सिंगापुर पहुंचा दिए. वहां से वे उस रकम को दुबई, इटली, यूके के जरिए दोबारा कंपनी के खाते में भारत ले आए.

पाल बंधुओं ने स्पीक एशिया की दिल्ली की फ्रेंचाइजी सतीशसोहन पाल को दी थी. सतीशसोहन पाल ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया था. इस के बाद उस ने विभिन्न इंस्टीट्यूटों में काम करते हुए सन 2007 में मुंबई शिफ्ट हो गया था. वहीं पर वह रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल के संपर्क में आया और उन के साथ मल्टी लेवल मार्केटिंग कंपनियों में काम करने लगा. जब इन्होंने भारत में स्पीक एशिया कंपनी की शुरुआत की तो सतीशसोहन पाल ने दिल्ली की फ्रेंचाइजी ले ली और लोगों से करोड़ों रुपए इकट्ठे किए. यह पाल बंधुओं का बिजनैस एडवाइजर भी था.

स्पीक एशिया कंपनी के बंद होते ही सतीशसोहन पाल मलेशिया भाग गया था. वहां उस ने वेब एक्सल सौल्युशन कंपनी खरीद कर एमएलएम का बिजनेस शुरू किया. 2012 में अपने परिवार को भी मलेशिया ले गया और क्वालालामपुर में रहने लगा. वहां बैठे हुए भी वह भारत में मौजूद अपने शुभचिंतकों द्वारा पुलिस द्वारा स्पीक एशिया के खिलाफ की जा रही काररवाई के बारे में जानकारी लेता रहा. सन 2012 में पुलिस से बचते हुए रामसुमिरन पाल मलेशिया में सतीश के पास रुका था. सन 2013 में सतीश के परिवार के साथ वह दिल्ली लौट आया. चूंकि मुंबई पुलिस उस के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी कर चुकी थी. इसलिए वह काठमांडू तक प्लेन से आया और वहां से सड़क मार्ग से दिल्ली आया.

रामनिवास पाल और रामसुमिरन पाल ने स्पीक एशिया द्वारा कमाए गए पैसों से मुंबई, शाहजहांपुर, देहरादून आदि शहरों में प्रौपर्टी खरीदी थी. इन्होंने नेपाल और मलेशिया में भी अपने ठिकाने बना रखे थे. रामसुमिरन पाल पुलिस से बचने के लिए अपना हुलिया बदलता रहता था. वह कभी मूंछे रखता था तो कभी सिर मुंडवा लेता था. दाढ़ी बढ़ाने के साथ अचानक ही वह फ्रेंच कट में भी आ जाता था. रामसुमिरन पाल फिलहाल देहरादून में ससुराल पक्ष के लोगों के यहां रह रहा था. दूसरों की गाढ़ी कमाई ठग कर उस ने देहरादून में रीयल एस्टेट कारोबार में लगा दी थी. वहां पर उस के विला और डुप्लेक्स फ्लैट के प्रोजेक्ट चल रहे थे.

रीयल एस्टेट कारोबार के सिलसिले में ही वह दिल्ली आता रहता था. दिल्ली में वह एक फाइवस्टार होटल बनवाने के लिए जगह तलाश रहा था. 25 नवंबर, 2013 को भी वह सतीशसोहन पाल के साथ कनाट प्लेस दिल्ली आया था. उन्हें क्या पता था कि दिल्ली पुलिस भी उस के पीछे लगी है. इसी वजह से वह पुलिस के हत्थे चढ़ गया. रामनिवास पाल पुलिस से बचता हुआ बंगलुरू भाग गया. उस ने अपने परिजनों से फोन पर बात तक करनी बंद कर दी थी. वह व्हाइट फील्ड रोड इलाके में हुलिया और नाम बदल कर रह रहा था. वहां की एक आईटी कंपनी में वह सलाहकार के रूप पर काम कर रहा था. इस के अलावा वह मलेशिया की एक आईटी कंपनी के जरिए विभिन्न वेबसाइटों पर औनलाइन विज्ञापनों की लोकप्रियता प्रमाणपत्र वितरण संबंधी अपना बिजनेस प्लान तैयार कर रहा था.

इस कंपनी के जरिए वह देश भर में दोबारा से ठगी का मायाजाल फैलाना चाह रहा था. इस से पहले कि वह अपने मंसूबे पूरे करता, पुलिस की गिरफ्त में आ गया. रामनिवास पाल से पूछताछ के बाद पुलिस ने मुंबई की एक्सिस बैंक में खुले उस के 3 एकाउंट सीज कर दिए. 9 दिसंबर को उसे पुन: न्यायालय में पेश कर 14 दिसंबर तक का पुलिस रिमांड लिया. दिल्ली क्राइम ब्रांच ने मुंबई पुलिस की कस्टडी में रामसुमिरन पाल, सतीशसोहन पाल को ट्रांजिट रिमांड पर ले कर फिर से पूछताछ की. स्पीक एशिया कंपनी से जुड़े लोगों के खिलाफ देश भर में अब तक 800 से भी ज्यादा मामले दर्ज हो चुके हैं. पुलिस अब तक 17 ठगों को गिरफ्तार कर के 210 बैंक खाते सीज कर चुकी है. 150 के करीब संदिग्ध खातों की जांच की जा रही है. दिल्ली में रामवीर शर्मा द्वारा दर्ज कराए गए मामले के बाद क्राइम ब्रांच में स्पीक एशिया द्वारा ठगे गए लोगों के आने की संख्या बढ़ने लगी है. जिस से दिल्ली में गिरफ्तार होने वालों की संख्या बढ़ सकती है.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

 

 

धर्मभाई निकला कसाई

लोकगायक सुरेंद्र चंचल और जसवंत कौर ने कभी सोचा भी नहीं था कि उन का ड्राइवर मोहिंदर उन्हें हानि पहुंचाने वाला अपराध भी कर सकता है. लेकिन जब जसवंत कौर का यह धर्मभाई अपने असली रूप में आया तो उस ने…

 

लाश का सिर पूर्व की तरफ था, टांगें पश्चिम की ओर. आंखें बंद और मुंह खुला हुआ. दोनों पैर बिस्तर से नीचे लटके थे, जिन में जूती पहनी हुई थी. घटनास्थल को देख कर पहली ही नजर में लग रहा था कि अपराधियों को मृतका जानती थीं. उन्होंने बिस्तर से उठ कर पैरों में जूती पहनने के बाद इत्मीनान से मुख्य दरवाजे तक पहुंच कर कुंडी खोली होगी.

मृतका के सिर पर 2 गहरे घाव थे. खून बह कर बिस्तर पर फैल गया था. गरदन में सलवार का पोंहचा कस कर बंधा हुआ था. बैड पर ही करीब 8 वर्षीया लड़की की लाश भी पूर्व-पश्चिम दिशा में ही पड़ी थी. लाल रंग के ऊनी स्कार्फ से उस के गले पर भी कस कर गांठ बांध दी गई थी.

अंबाला के थाना बलदेवनगर के प्रभारी रामचंदर राठी ने फोन से मिली सूचना पर राजविहार क्षेत्र की उस कोठी में जा कर उक्त दर्दनाक मंजर देखा था. उस वक्त दिन के साढ़े 11 बज रहे थे.

कोठी के भीतरबाहर लोगों का हुजूम था.

‘‘थाने में फोन किस ने किया था?’’ राठी ने लोगों से पूछा.

‘‘जी सर, मैं ने किया था.’’ करीब 45 वर्ष के दिखने वाले एक सिख ने आगे आते हुए कहा.

उस ने खुद को राजविहार के साथ लगते गांव बरनाला पंजोखरा का सरपंच जसमेर सिंह बता कर आगे कहना शुरू किया, ‘‘अभी कुछ देर पहले मैं इधर से गुजर रहा था कि इस कोठी के सामने भीड़ देख कर रुक गया. दरियाफ्त करने पर कोठी में 2 कत्ल हो जाने का पता चला तो अपना फर्ज समझ कर मैं ने थाने में फोन कर दिया.’’

‘‘ठीक है, धन्यवाद. अब आप पुलिस की इतनी मदद करें कि अपनी तहरीर हमें दे दें, जिस पर एफआईआर दर्ज करवा कर हम अपनी काररवाई आगे बढ़ाएं.’’

इस के बाद राठी ने इस कांड की सूचना कंट्रोलरूम के माध्यम से फ्लैश करवा दी.

इधर जसमेर सिंह से तहरीर ले कर एफआईआर दर्ज करने के लिए थाने भिजवाई गई, उधर क्राइम टीम के इंचार्ज कुलविंदर सिंह व डौग स्क्वायड के हैंडलर महिंद्रपाल के अलावा पुलिस फोटोग्राफर महेंद्र सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. इन्होंने अपनी काररवाई शुरू की ही थी कि सीआईए इंसपेक्टर रिसाल सिंह और डीएसपी (मुख्यालय) करण सिंह भी वहां आ गए.

कुछ वक्त में सभी ने अपनी काररवाइयां पूरी कर लीं. प्रशिक्षित डौग मुख्य सड़क पर पहुंच कर रुक जाता था. लिहाजा यही अनुमान लगाया गया कि हत्यारे वारदात को अंजाम दे कर मुख्य सड़क तक पैदल गए होंगे और वहां से किसी वाहन पर सवार हो कर निकल भागे होंगे.

 

सीआरपीसी की धारा 174 के अंतर्गत काररवाई करते हुए दोनों लाशों का पंचनामा तैयार कर शवों को पोस्टमार्टम के लिए सिविल अस्पताल भिजवाने के बाद राठी ने खून सने बिस्तर कपड़े वगैरह कब्जे में लेने की काररवाई की. फिर उपस्थित लोगों की सहायता से घटना के सूत्र जोड़ने शुरू किए.

वह मकान प्रसिद्ध लोकगायक जोड़ी सुरेंद्र सिंह चंचल और जसवंत कौर का था. मरने वाली बच्ची इन की 8 वर्षीया बेटी मनप्रीत कौर उर्फ श्रेया थी. 65 वर्षीया मृतक वृद्धा थीं जसवंत कौर की मां दलजीत कौर. गायक पतिपत्नी अपने ट्रुप के साथ अकसर दौरे पर रहा करते थे. पीछे नानीदोहती इस कोठी में अकेली रहती थीं. गायक जोड़ी उन दिनों भी अमेरिका गई हुई थी.

सिवाय इन चंद बातों के राठी को उस वक्त अन्य कोई जानकारी नहीं मिल पाई. घटनास्थल की काररवाई पूरी कर वह थाने लौट गए. तब तक थाने में सरपंच जसमेर सिंह की तहरीर के आधार पर भादंवि की धारा 302 के तहत एफआईआर दर्ज हो चुकी थी. पहली नजर में यह मामला लूटपाट के लिए हत्या का लग रहा था. मगर घर के किसी सदस्य के वहां मौजूद न होने से इस संबंध में फिलहाल निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता था.

मैं उन दिनों शिमला गया हुआ था. डीएसपी करण सिंह से मुझे इस हत्याकांड की जानकारी मिली तो मैं ने राठी को फोन कर के मामले में तेजी लाने और हत्यारों को जल्दी से जल्दी गिरफ्तार करने संबंधी दिशानिर्देश दिए. उस रोज राठी के लिए शायद इस से आगे बढ़ पाना संभव नहीं था. अलबत्ता अब तक के घटनाक्रम का विस्तृत ब्यौरा देने के साथसाथ वह आगे की काररवाई के बारे में भी मुझे विस्तार से बताता रहा.

इस के अगले दिन उस ने जो कुछ मुझे बताया, उस के अनुसार एक लड़का थाने में उस से मिलने आया था. उस ने अपना नाम रंजीत सिंह बताते हुए राठी से कहा था कि वह पटियाला में रहता है और अपनी बुआ जसवंत कौर व फूफा सुरेंद्र चंचल के साथ गानेबजाने का काम करता है. 2 दिन पहले जब उस के फूफा और बुआ को प्रोग्राम देने अमेरिका जाना था, वह पटियाला से पहले लुधियाना गया था और वहां से ड्राइवर मोहिंदर कुमार को साथ ले कर अंबाला आया था.

 

रंजीत द्वारा राठी को बताए अनुसार, फालतू सामान कोठी के कमरे में रखते समय बुआ ने उस की दादी दलजीत कौर को खर्चे के लिए 50 हजार रुपए नकद दिए थे. इस के बाद वह और मोहिंदर दिल्ली एयरपोर्ट तक के लिए टैक्सी करने अंबाला छावनी चले गए.

जब भी फूफा और बुआ को प्रोग्राम के लिए बाहर जाना होता था तो वह कार घर पर पार्क करवा कर ड्राइवर मोहिंदर को छुट्टी दे देते थे. कभीकभी वह वह कार अपने घर लुधियाना भी ले जाया करता था. उन दिनों वह एक रोज के लिए कार ले कर गया था. रंजीत के जरिए उसे वापस बुलवा लिया गया था.

‘‘कार घर पर पार्क कर के हम लोग टैक्सी से पालम एयरपोर्ट के लिए रवाना हुए. गाड़ी में टैक्सी ड्राइवर के अलावा मोहिंदर, मैं और बुआ फूफा थे. फ्लाइट का समय होने पर फूफा और बुआ एयरपोर्ट के अंदर चले गए. टैक्सी वाले को भी हम ने फारिग कर दिया था.

फ्लाइट चली जाने पर मैं और मोहिंदर बस से अंबाला के लिए चल पड़े. इस से पहले विदा होते वक्त बुआ ने मोहिंदर और मुझ से कहा था कि हम पहले अंबाला बीबी (दलजीत कौर) के पास जा कर उन की जरूरतों की बाबत पूछे और उस के बाद ही कहीं और जाएं.’’ रंजीत ने राठी को बताया था.

 

उस के आगे बताए अनुसार मोहिंदर ने एयरपोर्ट से बाहर निकलते ही अपनी मजबूरी जता दी थी कि उसे लुधियाना में जरूरी काम है सो वह अंबाला नहीं जा पाएगा. दिल्ली से हमें लुधियाना के रूट वाली बस मिल गई, जिस पर सवार हो कर रंजीत अंबाला के बलदेवनगर में उतर गया व मोहिंदर उसी बस से लुधियाना चला गया.

उसी शाम करीब 4 बजे दलजीत कौर से मुलाकात करने के बाद रंजीत पटियाला जाने के लिए जब बलदेवनगर स्टापेज से बस पर चढ़ा तो उसे लुधियाना की ओर से आने वाली बस से मोहिंदर उतरते दिखा. उसे देख कर उस के मन में यही बात आई कि वह बीबी से मिलने आया होगा.

मगर इस के अगले दिन उसे किसी से इस हत्याकांड की खबर मिली. उस ने अमेरिका फोन कर के फूफा और बुआ को घटना के बारे में बताया. यह दुखद समाचार सुनते ही फूफा ने उसे तुरंत अंबाला पहुंचने को कहा. साथ ही कहा कि जब तक वे लोग वापस नहीं आ जाते, लाशों का संस्कार न किया जाए.

राठी ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत रंजीत का बयान दर्ज कर लिया.

अगले दिन मैं भी शिमला से लौट आया. मैं ने देखा इस केस को ले कर अंबाला पुलिस की काफी किरकिरी हो रही थी. मेरे अंबाला पहुंचते ही अखबार वालों ने मुझे घेर लिया. वाकई यह केस हमारे लिए चुनौती बना हुआ था. उसी रोज मैं ने पुलिस की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई. इस मीटिंग में जो अंतिम निष्कर्ष निकला, वह यही था कि किसी भी तरह मोहिंदर को राउंडअप कर के उस से पूछताछ की जाए.

मगर उस का पता किसी को मालूम नहीं था. रंजीत ने हमें उस के लुधियानावासी होने की जानकारी दी थी. फिर वह हमें वहां के एक घर में ले भी गया था, लेकिन मालूम पड़ा कि 2 दिन पहले वह यहां का अपना किराए का कमरा खाली कर के चला गया था. कहां गया था, इस की किसी को खबर नहीं थी. न ही किसी को उस के मुस्तकिल पते की जानकारी थी.

 

हमें लगा कि उस का पक्का पता सुरेंद्र चंचल अथवा जसवंत कौर के पास जरूर होगा. अब उन से फोन पर भी संपर्क नहीं हो पा रहा था. वे इंडिया के लिए निकल चुके थे. मोबाइल फोंस की तब तक शुरुआत नहीं हुई थी.

खैर, उसी दिन गायक दंपति अंबाला पहुंच गए. सब से पहले उन्होंने मुझ से ही संपर्क किया. मैं ने थाने में इन के भी 161 के बयान दर्ज करवा दिए.

ये लोग मूलरूप से लुधियाना के गोपालनगर के रहने वाले थे. अंबाला में उन का हवेलीनुमा मकान था. मगर आतंकवाद के दिनों में इन लोगों ने अंबाला के बलदेवनगर में अपना मकान बनवा लिया था.

दोनों व्यावसायिक सिंगर थे. प्रोग्राम देने के लिए उन्हें अकसर घर से बाहर जाना पड़ता था. इस के लिए उन्होंने अंबेसडर कार रखी हुई थी, जिसे मोहिंदर कुमार पुत्र मनोहरलाल निवासी गोराया, जालंधर चलाया करता था. इन दिनों वह लुधियाना में रहता था, जहां उस की पत्नी किसी फैक्ट्री में नौकरी करती थी.

 

गायक जोड़ी को जब प्रोग्राम देने विदेश जाना होता था, कार अंबाला वाले घर में पार्क कर दी जाती थी. किसी को भी यह कार चलाने की मनाही होती थी. इन दिनों मोहिंदर अपने परिवार के साथ लुधियाना चला जाया करता था. इस बार भी ऐसा ही हुआ था.

पिता के देहांत के बाद परिवार में होने वाले संपत्ति विवाद से परेशान हो कर पिछले कुछ समय से जसवंत कौर अपनी मां को अपने साथ रखे हुए थीं. उन की एकलौती बेटी स्थानीय कौनवेंट स्कूल की तीसरी कक्षा में पढ़ती थी.

अपने बयान दर्ज करवाने के बाद गायक दंपति ने घर पहुंच कर चोरी गए सामान की सूची तैयार की. नकदी और गहने वगैरह मिला कर यह भारीभरकम चोरी का मामला था. हालांकि इन लोगों को इस नुकसान की बजाए परिवार के 2 सदस्यों के कत्ल हो जाने का गहरा सदमा था. वे यही गुहार लगाए हुए थे कि कातिलों को जल्दी से जल्दी पकड़ा जाए.

 

मैं ने मामले में रुचि लेते हुए उन लोगों को अपने औफिस में बुलवा कर हत्याकांड में किसी पर शक होने की बाबत पूछा. उन्होंने स्पष्ट रूप से तो कुछ नहीं कहा, अलबत्ता उन की बातों से यह जरूर लगा कि उन्हें मोहिंदर पर शक था. हमारे शक की सुई पहले ही उस तरफ जा रही थी. लिहाजा उन्हें साथ ले कर एक पुलिस पार्टी लुधियाना के अलावा कुछ अन्य जगहों पर भी भेजी गई, लेकिन मोहिंदर पुलिस के हत्थे न चढ़ा.

इस तरह 5 दिनों का समय और निकल गया, मगर हम लोग उसे पकड़ पाने में नाकाम रहे.

उन दिनों इस केस को ले कर यह चर्चा भी जोरों पर थी कि पंजाब के डीजीपी के.पी.एस. गिल के औपरेशन हीलिंग टच में इस गायक दंपति ने गिल के कंधे से कंधा मिला कर गांवगांव में जा कर अपनी कला बिखेरते हुए उन्हें अपना सहयोग दिया था. इस वजह से वे लोग भी आतंकवादियों की निगाहों में आ गए थे. हो सकता है कि उन के घर पर बरपा कहर आतंकवादियों की ही देन हो.

मगर हम लोग इसे आतंकी वारदात कतई नहीं मान रहे थे, इसलिए इस दिशा में हम ने कदम बढ़ाए ही नहीं. हम अपने पहले वाले प्रयासों से ही जुडे़ रहे.

हमारे प्रयास रंग लाए. आखिर हम ने लुधियाना के शिमलापुरी इलाके से मुखबिरी के आधार पर मोहिंदर को पकड़ लिया. उस ने छूटते ही कहा, ‘‘मेरी बहन बनी हुई है जसवंत कौर, मुझे पिछले कई सालों से राखी बांधती आ रही है. घर के सब लोग मुझ पर पूरा विश्वास करते थे. बीबी और श्रेया का कत्ल होने की बात मुझे अब आप लोगों से मालूम पड़ रही है.’’

मगर जब उसे अंबाला ला कर कस्टडी रिमांड में ले कर पूछताछ शुरू की गई तो उसे टूटते देर नहीं लगी. दोनों हत्याओं का अपराध कबूल करते हुए उस ने बताया कि लूटे गए रुपए व जेवरात उस की बीवी किरनबाला के पास थे. इस पर किरन को भी लुधियाना के एक घर से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे भी अदालत पर पेश कर के कस्टडी रिमांड हासिल करने के बाद हम ने पतिपत्नी से व्यापक पूछताछ की.

इस पूछताछ में जो कुछ उन्होंने हमें बताया, उस से इस डबल मर्डर के पीछे की कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

 

किरनबाला की शादी लुधियाना के गांव अमरोली निवासी धर्मपाल के साथ हुई थी, जिस की 8 महीने बाद सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी. इस के कुछ समय बाद ही किरन ने एक बेटे को जन्म दिया. इसे ले कर विधवा के रूप में वह अपने पिता के साथ लुधियाना में जा कर रहने लगी.

कुछ अरसा बाद पिता ने उस की शादी मोहिंदर कुमार से कर दी. गायक जोड़ी उन दिनों लुधियाना में ही रह रही थी, जिन के यहां मोहिंदर नौकरी करता था. मोहिंदर भले ही कार ड्राइवर था, लेकिन मालकिन जसवंत कौर ने उसे अपना धर्मभाई बना लिया था.

इस सिलसिले में मोहिंदर ने हमें बताया था कि धर्मभाई तो वह बन गया था, मगर जसवंत कौर ने धर्मभाई के नाम पर कम पैसों में ज्यादा काम लेने का सिलसिला बना लिया था. वह उसे कई बार अपने प्रोग्रामों में भी ले जाया करती थी, जहां इन लोगों के साथ पूरी रात जागने पर उसे 50 रुपए मिला करते थे.

किरनबाला के पास पहले से लड़का था, मोहिंदर से शादी के बाद 2 लड़कियां और हो गईं. हालांकि मियांबीवी दोनों कमाते थे तो भी इतनी कमाई न थी कि घर की गुजर सलीके से हो पाती. बकौल मोहिंदर उस की मालकिन के पास खूब पैसा था, लुटाती भी दोनों हाथों से थी मगर अपने व अपने परिवार पर. उस ने उन लोगों की समस्या को समझने का कभी प्रयास नहीं किया था. बस धर्मभाई कह कर ही अपना उल्लू साधती रहती थी.

मोहिंदर के बताए अनुसार, विदेश जाते वक्त महज कुछ दिनों के गुजारे के लिए जसवंत कौर ने अपनी मां के हाथ पर नोटों की गड्डियां रख दी थीं, जबकि उस से केवल यह बोला गया था कि धर्मभाई होने के नाते उसे उस की मां का पूरा ध्यान रखना होगा, भले ही उसे लुधियाना से कितनी बार भी अंबाला आना पड़े. इस के लिए जसवंत ने उसे 500 रुपए दिए थे.

बकौल मोहिंदर दिल्ली से लौटने के बाद वह पसोपेश में था. जसवंत कौर पर उसे गुस्सा था, साथ ही पैसों की जरूरत भी थी. आखिर एक योजना बना कर वह उस रोज रात के 11 बजे राजविहार वाली कोठी पर जा पहुंचा. हालांकि इस से पहले लुधियाना जा कर वह 4 बजे अंबाला भी आ आया था. मगर इधरउधर घूम कर टाइम पास कर के रात गहराने का इंतजार करता रहा था.

 

खैर, रात में 11 बजे कोठी पर पहुंच कर उस ने घंटी बजाई तो वृद्धा दलजीत कौर ने दरवाजा खोलते हुए उस से पूछा, ‘‘तुम! इतनी रात गए?’’

मोहिंदर ने बस खराब होने का बहाना बना दिया. मोहिंदर द्वारा हमें बताए अनुसार, इस के बाद दलजीत कौर ने उस से भीतर चल कर खाना खा लेने को कहा. इस पर खाना खा चुकने की बात कहते हुए उस ने दलजीत कौर से उस का एक काम कर देने को कहा. इस तरह बातचीत करते हुए वे दोनों भीतर चले गए.

भीतर श्रेया अभी जाग रही थी. वह बैड पर रजाई में दुबकी बैठी थी. सामने टीवी चालू था. दलजीत कौर भी उस के पास बैड के किनारे बैठ गईं.

 

बकौल मोहिंदर वह कुछ देर वहीं खड़ा टीवी पर आते दृश्यों को देखता रहा. फिर दलजीत कौर की ओर इत्मीनान से बढ़ते हुए बोला, ‘‘बीबी, मैं ने आप से कहा है कि आप मेरा एक काम कर दो.’’

‘‘हां, कहो क्या काम है?’’ दलजीत कौर ने सहज भाव से पूछा.

‘‘जसवंत ने चलते वक्त जो पैसा आप को दिया है, वह मुझे दे दो.’’

‘‘क्यों, तुम्हें इतने पैसों का क्या करना है?’’

‘‘और आप को इन रुपयों का क्या करना है?’’

‘‘मेरी बहुत सी जरूरतें हैं.’’

‘‘आप लोगों की ऐसी कोई खास जरूरत नहीं, जिस के लिए इतना पैसा चाहिए. मेरी जरूरतें आप से भी कहीं ज्यादा और अहम हैं.’’

‘‘तुम्हें तनख्वाह नहीं मिलती क्या? उस से अपनी जरूरतें पूरी किया करो. फिर प्रोग्राम पर जाने का अलग से पैसा मिलता है. खानेओढ़ने को भी अकसर यहां से मिल जाता है. तो और कौन सी जरूरतें रह गईं तुम्हारी?’’

‘‘देखो बीबी, रुपया चुपचाप मेरे हवाले कर दो. तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, मेरे कई काम संवर जाएंगे. न दिए तो तुम्हें मार डालूंगा और तुम्हारी इस नवासी को भी.’’

मोहिंदर के बताए मुताबिक, उस ने यह बात कहते वक्त श्रेया की ओर इशारा भी किया. वह अभी तक टीवी देखने में मस्त थी. बात उस के कानों में पड़ी तो उस ने पास पड़ा लकड़ी का सोटा उठा कर मोहिंदर पर वार कर दिया.

‘‘एक छोटी बच्ची से मुझे यह उम्मीद कतई न थी. फिर उस का दुस्साहस देख कर मैं एकबारगी चौंका, वहीं गुस्से से भी भर उठा. तेजी से पीछे घूम कर मैं ने सोटा श्रेया से छीन लिया. फिर उसी से दलजीत कौर व श्रेया पर दनादन वार करने लगा. दोएक दफा दोनों चीखीं, फिर उन की आवाजें गले में ही घुट कर रह गईं.

दोनों निढाल हो कर बैड पर गिर पड़ीं. सोटे के वार से दलजीत कौर का सिर 2 जगह से फट गया. उन दोनों के मर जाने का विश्वास मुझे हो गया था तो भी मैं ने पास पड़े स्कार्फ से श्रेया की ओर सलवार के पोंहचे से दलजीत कौर की गरदन बुरी तरह कस कर गला घोंट दिया. इस के बाद जो कुछ हाथ लगा, बैग में डाल लिया.

रात में ही मैं वापस लुधियाना जा कर लूटा गया सारा सामान और नकद पैसा अपनी घरवाली के हवाले कर आया. पहले तो वह घबराई, फिर रातोंरात अमीर बनते देख सहज हो गई. इस के बाद अगले ही दिन किराए का मकान छोड़ कर हम शिमलापुरी में रहने लग गए.’’ मोहिंदर ने हमें बताया.

पूछताछ के बाद हम लोगों ने मोहिंदर व उस की घरवाली की निशानदेही पर लूटा गया सारा सामान मय नकदी के बरामद कर लिया.

आगे की काररवाई के लिए विवेचक रामचंदर राठी ने  केस के अभियुक्तों के खिलाफ चार्जशीट अभी अदालत में दाखिल नहीं की थी, तभी उस का तबादला कुरुक्षेत्र हो गया. उस की जगह आए इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने चालान तैयार कर अदालत में पेश कर दिया. इस के बाद मेरा ट्रांसफर भी अंबाला पुलिस चीफ से एसपी (क्राइम) के पद पर हो गया. केस सेशन कमिट हो कर अंबाला के सत्र न्यायालय में चलता रहा, जहां से मोहिंदर को उम्रकैद और उस की पत्नी किरनबाला को 3 साल कैद बामशक्कत की सजा हुई.

मुझे याद है कि एक दिन जब मैं मोहिंदर से पूछताछ कर रहा था तो उस ने मुझ से एक साथ 3 बातें बोली थीं, ‘‘साहब, आज जितनी भी ज्यादतियां हो रही हैं, सब रिश्तों के नाम पर ही होती हैं. जसवंत कौर ने मुझे अपना धर्मभाई बना कर जो मान बख्शा, उस रिश्ते की आड़ में वह मुझ से ज्यादतियां भी करती रही. ज्यादती और बेबसी की अगली सीढ़ी अपराध ही होती है जो मैं ने किया.’’

मुझ से कहे बिना न रहा गया था कि आधार कोई भी हो, अपराध तो अपराध है. अपराध को अंजाम देने के बाद अपराधी को उस अपराध की सजा तो भुगतनी ही पड़ती है.

कथा में पात्रों के नाम बदले हुए हैं.

— बलजीत सिंह संधू    डीजीपी हरियाणा

 

 

पुलिस अफसर ने क्यों किए 2 मर्डर

वह सर्दी का महीना था तथा उस समय आसपास काफी कोहरा छाया हुआ था. कोहरा इतना घना था कि 50 मीटर की दूरी के बाद कुछ भी दिखाई नहीं पड़ रहा था. उस समय सुबह के 8 बज रहे थे. थाना झबरेड़ा (हरिद्वार) के एसएचओ अंकुर शर्मा उस वक्त नहा रहे थे. तभी उन्हें अपने बाथरूम के दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज सुनाई दी.

आवाज सुनते ही जल्दीजल्दी नहा कर वह बोले, ”कौन है?’’

तभी बाहर से उन के थाने के सिपाही मुकेश ने बताया, ”सर, गांव भिश्तीपुर के प्रधान जोगेंद्र का अभी फोन आया था, वह बता रहा था कि गांव भिश्तीपुर अकबरपुर झोझा की सड़क के नाले में एक लड़के की लाश पड़ी है. लाश के गले में खून के निशान उभरे हुए हैं.’’

”ठीक है मुकेश, मैं जल्दी तैयार हो कर आता हूं.’ शर्मा बोले.

इस के बाद अंकुर शर्मा जल्दीजल्दी तैयार होने लगे थे. सुबह होने के कारण उस वक्त थानेदार भी थाने में नहीं आए थे. मामला चूंकि हत्या का था, इसलिए एसएचओ ने देर करना उचित नहीं समझा.

इस के बाद उन्होंने इस हत्या की सूचना फोन द्वारा हरिद्वार के एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल, एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह व सीओ (मंगलौर) विवेक कुमार को दी थी. फिर वह अपने साथ सिपाही मुकेश व रणवीर को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े. घटनास्थल थाने से महज 7 किलोमीटर दूर था, इसलिए उन्हें वहां पहुंचने में 15 मिनट लगे.

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      मृतक बच्चा राजा

घटनास्थल पर काफी भीड़ इकट्ठी थी. वहां पर नाले में एक लड़के का शव पड़ा हुआ था. मृतक की उम्र 15 साल के आसपास थी. पुलिस को देख कर वहां खड़ी भीड़ तितरबितर होने लगी थी. वहां खड़े लोगों से एसएचओ ने शव के बारे में पूछताछ करनी शुरू कर दी थी. यह घटना 9 फरवरी, 2024 को उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के थाना झबरेड़ा क्षेत्र में घटी थी.

वहां मौजूद लोगों ने उन्हें बताया था कि यह शव आज सुबह ही लोगों ने देखा था. ऐसा लग रहा है कि हत्यारों ने इस की हत्या कहीं और की होगी तथा हत्या करने के बाद शव को यहां फेंक दिया होगा. इस के बाद एसएचओ अंकुर शर्मा ने मौजूद लोगों से बच्चे की शिनाख्त करने को कहा था, मगर बच्चे की पहचान नहीं हो सकी थी.

इस के बाद पुलिसकर्मियों ने शव की जामातलाशी ली तो लड़के की शर्ट की जेब में पुलिस को एक टेलर का विजिटिंग कार्ड मिला था. उस टेलर की दुकान हरिद्वार के सिडकुल क्षेत्र में थी. पुलिस ने उस टेलर के पास जा कर संपर्क किया. लड़की की लाश के फोटो देखने के बाद टेलर ने भी इस बालक के शव को पहचानने में अपनी अनभिज्ञता जताई.

उधर मौके पर एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल, एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह व पुलिस के पीआरओ विपिन चंद पाठक भी फोरैंसिक टीम के साथ पहुंच गए थे.

कैसे हुई मृतक की शिनाख्त

लोगों से जानकारी मिलने के बाद एसएसपी इस नतीजे पर पहुंचे थे कि मृतक का कोई न कोई लिंक सिडकुल क्षेत्र से जरूर है. इस के बाद उन्होंने एसएचओ जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह की अध्यक्षता और सीओ विवेक कुमार के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसएचओ अंकुर शर्मा व एसओजी के इंसपेक्टर को शामिल किया. उन्होंने टीम को सिडकुल क्षेत्र में जा कर बच्चे की जानकारी करने के निर्देश दिए.

श्री डोबाल का निर्देश पा कर पुलिस टीम सिडकुल पहुंच गई थी. यहां पर पुलिस टीम ने बच्चे के फोटो कुछ दुकानदारों को दिखाए. पुलिस की कई घंटों की मशक्कत के बाद एक दुकानदार ने पुलिस को बताया कि यह फोटो 15 वर्षीय नरेंद्र उर्फ राजा की है, जो यहां अपनी दृष्टिहीन मां ममता के साथ रहता था. इस के बाद पुलिस टीम जब ममता के मकान पर पहुंची तो वहां परचून की दुकान चलाने वाला हेमराज मिला.

जब पुलिस ने हेमराज से ममता व उस के बेटे राजा के बारे में पूछताछ की तो हेमराज ने पुलिस को बताया, ”सर, यह मकान मैं ने ममता से पिछले महीने 20 लाख 70 हजार रुपए में खरीदा था. 3 दिन पहले ही ममता ने मकान खाली कर के मुझे कब्जा दिया है. कब्जा देते समय पुलिस लाइंस में तैनात एएसआई छुन्ना यादव व शहजाद नामक युवक भी ममता के साथ थे. मुझे कब्जा दे कर ममता व राजा छुन्ना यादव की न्यू आल्टो कार में बैठ कर गए थे.’’

पुलिस को जब यह जानकारी हुई तो सीओ विवेक कुमार व एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह तुरंत ही पुलिस लाइंस पहुंचे और वहां से वे पूछताछ करने के लिए छुन्ना सिंह यादव को अपने साथ ले कर थाना झबरेड़ा आ गए.

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थाने में एसपी (देहात) स्वप्न किशोर सिंह व सीओ विवेक कुमार ने जब एएसआई छुन्ना सिंह से ममता व राजा के बारे में पूछताछ की तो वह पुलिस अधिकारियों को काफी देर तक वह इधरउधर की बातें बताता रहा. छुन्ना यादव कहता रहा कि ममता मेरी परिचित तो थी, मगर मुझे नहीं मालूम कि वह अब कहां है?

इस के बाद जब एसपी (देहात) स्वप्न किशोर ने सख्ती से छुन्ना सिंह से उस की नई आल्टो कार के बारे में पूछा तो वह कोई संतोषजनक उत्तर न दे सका.

तभी एसपी स्वप्न किशोर ने छुन्ना सिंह से कहा, ”देखो छुन्ना, तुम्हें पता है कि पुलिस के सामने मुरदे भी बोलने लग जाते हैं. इसलिए या तो तुम हमें सीधी तरह से राजा की मौत की सच्चाई बता दो, नहीं तो हम तुम्हारे साथ वह सब करेंगे, जो पुलिस अपराधियों के साथ करती है.’’

एएसआई ने ऐसे कुबूला जुर्म

एसपी साहब की इन बातों का छुन्ना यादव के ऊपर जादू की तरह असर हुआ और वह पुलिस को राजा की हत्या की सच्चाई बताने को तैयार हो गया था. फिर छुन्ना यादव ने पुलिस को राजा की हत्या की जो कहानी बताई, उसे सुन कर वहां मौजूद सभी पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.

एएसआई छुन्ना यादव ने बताया था कि वह 9 फरवरी, 2024 को अपनी नई आल्टो कार में राजा व उस की नेत्रहीन मां ममता को बैठा कर मंगलौर हाईवे की ओर लाया था.

इसी बीच मैं और मेरे दोस्त शहजाद व विनोद ममता का सिडकुल वाला मकान हेमराज को 20 लाख 70 हजार रुपए में बिकवा चुके थे. ममता की रकम को हड़पने के लिए हम तीनों ने मांबेटे की हत्या की योजना बनाई.

योजना के मुताबिक हम तीनों जब मांबेटे को कार में बैठा कर ले जा रहे थे तो चलती कार में हम तीनों ने शहजाद के गमछे से पहले ममता का गला घोंट कर उसे मार डाला था, फिर इस के बाद हम ने नरेंद्र उर्फ राजा का गला घोंट कर उस की हत्या कर दी थी. गला घोंटते वक्त मांबेटा चलती कार में चीखतेचिल्लाते रहे.

दोनों की हत्या करने के बाद हम ने पहले थाना मंगलौर के अंतर्गत लिब्बरहेड़ी नहर पटरी की झाडिय़ों में ममता के शव को फेंक दिया था. इस के बाद 15 वर्षीय राजा की लाश गांव भिश्तीपुर रोड के नाले में फेंक दी थी. दोनों मांबेटे के शवों को ठिकाने लगा कर तीनों लोग आराम से वापस अपनेअपने घर चले गए थे.

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एएसआई छुन्ना यादव के इस अपराध से जहां एक ओर पुलिस की छवि धूमिल हुई थी तो दूसरी ओर छुन्ना जैसे वरदीधारियों से आम जनता में पुलिस पर विश्वास डगमगाने जैसे हालात हो गए थे. इस के बाद एसपी (देहात) स्वप्न किशोर ने छुन्ना की इस करतूत की जानकारी एसएसपी प्रमेंद्र डोबाल को दे दी.

एक नहीं की थीं 2-2 हत्याएं

श्री डोबाल ने वरदी को दागदार करने वाले छुन्ना सिंह यादव के खिलाफ तुरंत कानूनी काररवाई करने तथा छुन्ना की निशानदेही पर मंगलौर की लिब्बरहेड़ी नहर पटरी की झाडिय़ों से ममता का शव बरामद करने के निर्देश एसएचओ अंकुर शर्मा व एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह को दिए. दोनों अधिकारी छुन्ना यादव को ले कर लिब्बरहेड़ी नहर पटरी पर पहुंच गए.

छुन्ना यादव ने वह जगह पुलिस को दिखाई, जहां उस ने अपनी आल्टो कार से ममता के शव को फेंका था. छुन्ना की निशानदेही पर पुलिस ने ममता के शव को झाडिय़ों से बरामद कर लिया. शव बरामद होने के बाद अंकुर शर्मा ने ममता के शव का पंचनामा भर कर उसे पोस्टमार्टम के लिए राजकीय जे.एन. सिन्हा स्मारक अस्पताल भेज दिया.

ममता का शव बरामद होने के बाद एसओजी प्रभारी रविंद्र शाह अपने साथियों अशोक, रविंद्र खत्री, राहुल, नितिन व महीपाल के साथ इस दोहरे हत्याकांड के शेष बचे 2 आरोपियों शहजाद व विनोद की गिरफ्तारी हेतु निकल पड़े थे. हालांकि छुन्ना यादव की गिरफ्तारी की जानकारी शहजाद व विनोद को मिल चुकी थी. तब वह किसी सुरक्षित स्थान पर छिपने की योजना बना रहे थे.

इस से पहले कि वे दोनों फरार होते, एसओजी टीम ने उन्हें हिरासत में ले लिया था. इस के बाद एसओजी टीम ने शहजाद निवासी गांव अकबरपुर झोझा तथा विनोद निवासी मोहल्ला सराय ज्वालापुर को हिरासत में ले लिया था. पुलिस टीम उन्हें ले कर थाना झबरेड़ा आ गई थी.

वहां पुलिस ने इन तीनों आरोपियों का आमनासामना कराया था. फिर तीनों आरोपियों ने पुलिस के सामने ममता व राजा की हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. आरोपियों से पूछताछ के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो  कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

छुन्ना यादव उत्तर प्रदेश के शहर औरैया के गांव राठा के रहने वाले भोलानाथ यादव का बेटा है. इस समय वह हरिद्वार पुलिस लाइन में एएसआई के पद पर तैनात है. साल 1995 में वह उत्तर प्रदेश पुलिस में सिपाही के पद पर भरती हुआ था. सन 2000 में जब उत्तर प्रदेश से काट कर उत्तराखंड का पुनर्गठन हुआ तो छुन्ना यादव उत्तराखंड पुलिस में चला गया. बाद में उस का प्रमोशन होता गया तो वह एएसआई बन गया. वर्ष 2011 से 2014 तक मैं यातायात पुलिस हरिद्वार में तैनात रहा था. शहजाद से पिछले 4 सालों से उस की दोस्ती थी.

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मृतका ममता

पिछले साल शहजाद ने छुन्ना यादव को ममता नामक महिला से मिलवाया था, जो अपने 15 वर्षीय बेटे राजा के साथ मोहल्ला सूर्यनगर सिडकुल (हरिद्वार) में रहती थी. ममता मूलरूप से कस्बा कांठ, जिला मुरादाबाद की रहने वाली थी. वह दृष्टिहीन थी. पिछले साल ममता मुरादाबाद से अपनी पुश्तैनी प्रौपर्टी बेच कर सिडकुल में मकान खरीद कर रहने लगी थी.

मुन्ना और शहजाद का अकसर ममता के घर पर आनाजाना लगा रहता था. इसी दौरान दोनों को यह पता चल गया कि किसी दूर के रिश्तेदार तक का ममता के पास आनाजाना नहीं है. इस से इन के मन में लालच आ गया था.

पुलिस वाले के मन में ऐसे जन्मा अपराध

इस के बाद छुन्ना यादव ने शहजाद के साथ मिल कर ममता का मकान बिकवा कर वह रकम हड़पने की योजना बनाई. छुन्ना ने ममता को उस का मकान बिकवा कर उसे रुड़की में मकान खरीदवाने का झांसा दिया.

चूंकि ममता उस की बातों पर विश्वास करती थी, इसलिए उस की बात वह मान गई थी. फिर उस ने व शहजाद ने ममता के पड़ोसी किनारा दुकानदार हेमराज को 20 लाख 70 हजार रुपए में मकान बिकवा दिया था और अधिकांश रकम दोनों शातिरों ने कब्जे में कर ली थी.

ममता के मकान बेचने से मिली रकम में से छुन्ना ने नई आल्टो कार खरीद ली थी. 9 फरवरी, 2024 को ममता को मकान खाली कर हेमराज को कब्जा देना था.

योजना के मुताबिक 9 फरवरी की सुबह को छुन्ना और शहजाद आल्टो कार से उसी समय ममता के घर पहुंचे. उसी समय शहजाद का बेटा भी वहां मिनी ट्रक ले कर आ गया था. उन्होंने ममता के घर का सामान उस मिनी ट्रक में रख कर मकान खाली कर दिया था.

शहजाद का बेटा वहां से मिनी ट्रक ले कर चला गया. छुन्ना ने ममता को आल्टो कार में अगली सीट पर बैठा लिया था. पिछली सीट पर शहजाद व नरेंद्र उर्फ राजा बैठ गए थे. कार ले कर वह रोशनाबाद की ओर चले थे तो रास्ते में उन्हें विनोद भी मिल गया था. छुन्ना ने कार रोक कर उसे भी पीछे बैठा लिया था. इस के बाद वे लोग हर की पौड़ी पहुंचे थे. यहां पर ममता व राजा नहाने लगे थे. उसी दौरान उन तीनों ने कार में बैठ कर शराब पी थी.

शाम को जब कुछ अंधेरा छाने लगा तो हम लोग कार ले कर रुड़की की ओर चल पड़े थे. जब कार रुड़की से पुरकाजी की ओर जा रही थी तो अचानक शहजाद ने अपने गमछे का फंदा बना लिया था और कार में आगे बैठी ममता के गले में डाल कर उस का गला घोंट दिया था.

राजा ने शोर मचाते हुए विरोध किया तो शहजाद और विनोद ने उसे दबोच लिया. ममता के दम तोडऩे के बाद शहजाद व विनोद ने उसी गमछे से नरेंद्र उर्फ राजा का भी गला घोंट कर उसे मार डाला था. फिर उन्होंने ममता के शव को लिब्बरहेड़ी गंगनहर पटरी की झाडिय़ों में फेंक कर भिश्तीपुर की ओर चले गए थे.

रकम बांट कर रह रहे थे बेखौफ

इस के बाद उन्होंने राजा के शव को भिश्तीपुर के एक नाले में फेंक दिया था. ममता व राजा के शवों को ठिकाने लगाने के बाद उन्होंने ममता के मकान को बेचने में मिली रकम को आपस में बांट लिया था और अपने अपने घरों को लौट गए थे.

तीनों आरोपियों छुन्ना यादव, शहजाद व विनोद से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज कर उन्हें विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया. इस के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया था.

वैसे तो ममता के बुरे दिनों की शुरुआत तब से शुरू हो गई थी, जब से वह शहजाद व छुन्ना यादव के संपर्क में आई थी. उस वक्त शहजाद सिडकुल के मोहल्ला सूर्यनगर में ममता के घर के पास ही किराए के कमरे में रहता था.

इस हत्याकांड के मास्टरमाइंड छुन्ना यादव ने पुलिस को बताया था कि ममता अपनी रकम हड़पने की शिकायत पुलिस से भी कर सकती थी, इसलिए उस ने ममता व उस के बेटे की हत्या की साजिश रची थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ममता व राजा उर्फ नरेंद्र की मौत का कारण गला घोंटने से हुई मौत बताया गया है. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने ममता पत्नी मुनेश व राजा के शवों को सिडकुल निवासी उन के दूर के रिश्तेदार को अंतिम संस्कार के लिए सौंप दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

पहलवानी के नाम पर दहशतगर्दी

सत्तर के दशक की बात है. जगह थी उत्तर प्रदेश का जिला खुर्जा. वहां के सब्जी बेचने वाले एक  परिवार के 2 भाई गूंगा पहलवान और अनवर लंगड़ा काम की तलाश में दिल्ली आए थे. दोनों अंगूठाछाप थे, इसलिए उन्होंने दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जी बेचने का पुश्तैनी धंधा शुरू किया. बाद में उन्होंने यही काम दिल्ली के दरियागंज इलाके में जमा लिया. काम तो जम गया, लेकिन उन की मंजिल कुछ और ही थी. ऐसी मंजिल जिस तक जुर्म की काली राह से ही पहुंचा जा सकता था.

हालांकि यह साफतौर पर नहीं कहा जा सकता कि वे इस स्याह रास्ते पर पहली बार कब चले थे. पर 14 अक्तूबर, 1986 में जब एक सब्जी बेचने वाले ने ही जबरन वसूली की शिकायत पुलिस से की तो पता चला कि वे दोनों पहले से ही जबरन वसूली के गोरखधंधे में उतर चुके थे.

बताया जाता है कि गूंगा पहलवान और अनवर लंगड़ा जब दरियागंज छोड़ कर ओखला गए थे, तभी उन्होंने प्रोटैक्शन मनी के नाम पर ओखला सब्जीमंडी में गैरकानूनी उगाही का धंधा शुरू कर दिया था. गूंगा पहलवान का असली नाम मोहम्मद उमर था. उस पर 13 और उस के भाई अनवर पर 15 पुलिस केस दर्ज होने की बात सामने आई है.

जुर्म का यह पौधा देखते ही देखते बड़ा पेड़ बन गया. एकएक कर के इन दोनों भाइयों के परिवार वाले भी इस धंधे में हिस्सेदार बनते गए. 23 सदस्यों वाले इस परिवार में 13 सदस्यों पर करीब सवा सौ आपराधिक मामले दर्ज हैं.

गैरकानूनी उगाही का धंधा अब उन का फैमिली बिजनैस बन चुका था. 55 साल के गूंगा पहलवान और 52 साल के अनवर लंगड़ा ने 5 साल पहले इस कारोबार से रिटायरमैंट ले लिया है. उन के रिटायरमैंट के बाद उन के 9 बेटों ने इस धंधे की कमान अपने हाथों में ले ली. 2 नाबालिग बेटे भी जुर्म की राह पर चल चुके हैं.

पुलिस से पता चला कि उमर और अनवर पहले स्थानीय स्तर पर पहलवानी करते थे. तब उन के बेटे बौडी बिल्डिंग करते थे. अपने गठीले बदन से वे लोगों पर रौब जमाने लगे थे. 21 जुलाई, 2017 की रात 2 बजे गूंगा पहलवान के बेटे राशिद ने ओखला सब्जीमंडी में सब्जी बेचने वाले नरेश चंद से उगाही मांगी थी. नरेश ने जब उसे पैसे नहीं दिए तो राशिद ने कांच की बोतल नरेश के सिर पर मारी, जिस से उस का सिर फट गया था.

नरेश की शिकायत पर अमर कालोनी पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया. काफी कोशिश के बाद भी जब राशिद नहीं मिला तो पुलिस ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया.

इसी बीच 5 जनवरी, 2018 को राशिद ओखला मंडी आया तो उस ने वहीं पर 3 सब्जी बेचने वालों धर्मेंद्र, रणवीर सिंह और कपिल से चाकू के बल पर लूटपाट की. वारदात कर के वह फरार हो गया.

राशिद की गिरफ्तारी के लिए एसीपी जगदीश यादव ने थानाप्रभारी उदयवीर सिंह के नेतृत्व में एक टीम बनाई, जिस में एसआई आरएस डागर को शामिल किया गया. 21 जनवरी, 2018 को टीम को मुखबिर द्वारा सूचना मिली कि आरोपी राशिद श्रीनिवासपुरी के एक फिटनैस जिम में आने वाला है.

पुलिस टीम वहां पहले ही मुस्तैद हो गई. जैसे ही राशिद वहां पहुंचा, उसे दबोच लिया गया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने वारदात को अंजाम देने की बात स्वीकार कर ली.

10 अक्तूबर, 2016 की देर रात पुलिस को सूचना मिली कि कुछ बदमाश सब्जीमंडी के कारोबारियों से जबरदस्ती उगाही कर रहे हैं. जब तक पुलिस वहां पहुंची, तब तक बदमाश फरार हो गए. बाद में पता चला कि जो बदमाश भागे थे, वह और कोई नहीं अनवर लंगड़ा और उस के 3 बेटे सलमान, शाहरुख और इमरान थे.

पुलिस ने तलाश जारी रखी और अनवर लंगड़ा के तीनों बेटों को अलगअलग इलाकों से गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अनवर हाथ नहीं आया. इस के बावजूद पुलिस ने उस की तलाश जारी रखी और 5 दिसंबर, 2016 को उसे ओखला रेलवे स्टेशन के पास से गिरफ्तार कर लिया.

अपने जुर्मों को छिपाने के लिए मोहम्मद उमर और अनवर लंगड़ा ने दिखावे के लिए ओखला की होलसेल मार्केट में 2 दुकानें खरीद रखी हैं. वहां के लोग बताते हैं कि उमर खुद को उस मार्केट का चेयरमैन बताता है. इन पहलवान भाइयों और इन के परिवार वालों से श्रीनिवासपुरी क्षेत्र के लोग आंतकित रहते थे. और तो और क्षेत्र में अगर कहीं लड़ाईझगड़ा हो जाता तो उमर या अनवर के बेटों में से किसी न किसी की संलिप्तता जरूर निकलती थी.

श्रीनिवासपुरी रैजीडैंट वेलफेयर एसोसिएशन ने भी कई बार थाने में इन लोगों के खिलाफ शिकायत की थी. पुलिस ने अनवर के अनवर लंगड़ा बनने के बारे में बताया कि सन 1990 में जब वह तिहाड़ जेल में बंद था, तब एक बार उस ने वहां से भागने की कोशिश की थी. मजबूरी में पुलिस को उस पर फायरिंग करनी पड़ी, जिस से एक गोली उस के दाएं पैर में लग गई थी. तब से अनवर के नाम के साथ लंगड़ा जुड़ गया.

इस ‘क्रिमिनल फैमिली’ की एक और खास बात यह है कि इस के ज्यादातर सदस्य पढ़ेलिखे नहीं हैं. उमर और अनवर के कुल 19 बच्चे हैं, जिन में से कोई 5वीं फेल है तो कोई तीसरी फेल. 9 बच्चे तो बिलकुल अनपढ़ हैं.

नजफगढ़ से तकरीबन 3 किलोमीटर दूर दिल्ली देहात का एक गांव है ढिचाऊं कलां. इस गांव में रामनिवास उर्फ रामी पहलवान रहता था. उस के पास खेती की अच्छी जमीन थी. उस का एक पहलवान भतीजा था कृष्ण. कृष्ण का उन दिनों गांव कराला के रहने वाले जयबीर कराला से झगड़ा चल रहा था. जयबीर कराला पड़ोसी गांव मितराऊं के रहने वाले बलराज का गहरा दोस्त था.

krishan pahalwan

कृष्ण पहलवान

एक दिन मौका पा कर कृष्ण पहलवान ने अपने साथियों के साथ मिल कर जयबीर कराला की हत्या कर दी. इस के बदले में सन 2002 में रामनिवास उर्फ रामी पहलवान और उस के दोस्त रोहताश की हत्या कर दी गई.

कृष्ण पहलवान को शक था कि उस के चाचा की हत्या में उन के पड़ोसी सूरज प्रधान का हाथ है. बताया जाता है कि सूरज पुलिस का मुखबिर था. कृष्ण पहलवान इस हत्या का बदला लेने के लिए मौका तलाशने लगा.

बलराज के एक चाचा थे, जिन की शादी नहीं हुई थी. उन की ढांसा रोड पर तकरीबन 15 बीघा जमीन थी. उस जमीन को उन्हीं के गांव का बलवान फौजी जोता करता था. जब बलराज के चाचा की मौत हो गई तो उस के पिता सूरत सिंह ने बलवान फौजी से वह जमीन खाली करने के लिए कहा.

तब तक जमीन का वह टुकड़ा बेशकीमती हो चुका था. बलवान फौजी उस जमीन को छोड़ना नहीं चाहता था. उस ने मौके का फायदा उठाने का फैसला किया और मदद के लिए वह बलराज के दुश्मन कृष्ण पहलवान के पास पहुंच गया.

किसी तरह यह बात बलराज को पता चल गई. बलराज ने इस बारे में अपने पहलवान भाई अनूप को बताया. फिर एक योजना के तहत सन 1997 में अनूप पहलवान और उस के दोस्त संपूरण ने बलवान फौजी और उस के साले अनिल को घेर लिया. वे दोनों गांव ढिचाऊं कलां जा रहे थे. तभी उन लोगों ने इन सालेबहनोई पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं. इस हमले में अनिल की मौत हो गई, जबकि बलवान फौजी को गंभीर चोटें आईं. लेकिन वह बच गया.

इस वारदात ने बलवान फौजी के जवान बेटे कपिल को हथियार उठाने पर मजबूर कर दिया. वह कृष्ण पहलवान के साथ ही काम करने लगा. इस के बाद 3 अप्रैल, 1998 को गांव ककरोला में बलराज को घेर कर ढेर कर दिया गया.

बलराज के मरने के बाद गैंग की कमान बलराज के भाई अनूप पहलवान ने संभाल ली. 12 जुलाई, 1998 को अनूप पहलवान ने मौका देख कर कपिल के पिता बलवान फौजी और कृष्ण पहलवान के रिश्तेदार और दोस्तों समेत 6 लोगों का कत्ल कर दिया.

उस समय कपिल जेल में बंद था. 13 सितंबर, 1999 को वह जेल से बाहर आया. उसी दिन अनूप गैंग ने कपिल के भाई कुलदीप उर्फ गुल्लू की हत्या कर दी. कपिल ने भी उसी दिन इस हत्या का बदला ले लिया और उस ने अनूप के भतीजे यशपाल को मार गिराया. इस के बाद वह फरार हो गया.

इतनी हत्याएं होने के बाद भी कृष्ण पहलवान का अपने चाचा रामनिवास उर्फ रामी पहलवान की हत्या का बदला पूरा नहीं हुआ था. 20 फरवरी, 2002 को ढिचाऊं कलां से एक बारात सोनीपत के जगमेंद्र सिंह के यहां गई थी, उन की बेटी पिंकी की शादी थी.

बारात दुलहन के घर की तरफ जा ही रही थी कि एक खबर के बाद गाजेबाजे बंद कराने पड़ गए. वजह, जनवासे के पास ही 3 लाशें पड़ी थीं. वे लाशें सूरज प्रधान, उस के बेटे सुखबीर और दिचाऊं कलां के ही नारायण सिंह की थीं. यह वही सूरज प्रधान था, जिस के बारे में कृष्ण पहलवान को पुलिस का मुखबिर होने का शक था.

इस के बाद साल 2003 में अनूप पहलवान रोहतक कोर्ट में एक मुकदमे के सिलसिले में पेश होने आया था. पुलिस सिक्योरिटी के बीच कृष्ण पहलवान गैंग के एक शार्पशूटर महावीर डौन ने अनूप पर गोलियां दाग दीं और उस ने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

अनूप पहलवान की हत्या के बाद तकरीबन 10 साल तक इस गैंगवार में शांति का माहौल रहा. इस बीच कृष्ण पहलवान का भाई भरत सिंह राजनीति में आ चुका था. वह सन 2008 में विधायक बन गया था, लेकिन बाद में 2013 का चुनाव वह हार गया.

भरत सिंह मर्डर केस के आरोपी

29 मार्च, 2015 को भरत सिंह की हत्या कर दी गई. इस से पहले सन 2012 में भी उस पर हमला किया गया था, पर तब वह बच गया था. बाद में पता चला कि यह हत्या उसी के गांव के रहने वाले उदयवीर उर्फ काले ने कराई थी. उदयवीर सूरज प्रधान का बेटा है. उस ने अपने पिता, भाई और चाचा की हत्या का बदला लिया था.

देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने शारीरिक दम पर, आसान शब्दों में कहें तो ‘पहलवान‘ कहलवा कर जुर्म की दुनिया में कदम रख देते हैं और कभीकभी तो वे इतने बड़े गैंग बना लेते हैं कि अपने इलाके में डर का पर्याय बन जाते हैं.

परमीत डबास

2-4 आपराधिक वारदातों को अंजाम देने के बाद ऐसे लोग शस्त्र लाइसैंस ले लेते हैं, ताकि इन का रौब बरकरार रहे. न जाने कितने पहलवाननुमा लोग हथियार लिए धड़ल्ले से घूमते देखे जा सकते हैं. इस तरह के लोग ही शादीब्याह में गोलियां चला कर हादसों को न्यौता देते हैं. रोडरेज में भी ऐसे ही लोग गोलियां चलाते हैं.

हथियार और उसे चलाने की हिम्मत ऐसे लोगों को दूसरे बड़े अपराध करने को उकसाती है. जल्दी अमीर बनने की चाहत भी ऐसे लोगों को अपराध करने का बढ़ावा देती है.

इस मसले पर मशहूर पहलवान चंदगीराम के बेटे पहलवान जगदीश कालीरमन, जो खुद मेरठ उत्तर प्रदेश के डीएसपी पद पर कार्यरत हैं और देश के नामचीन पहलवान और कोच हैं, ने बताया, ‘‘हमारे समाज के पहलवानों को ले कर अपनी अलग धारणा बनी हुई है. कोई भी हट्टाकट आदमी अगर ट्रैक सूट पहन लेता है तो लोग उसे पहलवान कहने लगते हैं. भले ही वह किसी भी खेल कुश्ती, जूडो, कबड्डी, बौडीबिल्डिंग आदि से जुड़ा हो या न जुड़ा हो.

‘‘जबकि खिलाड़ी बेहद अनुशासित होते हैं. वे अपने खेल, उस की प्रैक्टिस और अपने बेहतर भविष्य के लिए समाज तक से कट जाते हैं. फिर वे जुर्म की राह पर कैसे जा सकते हैं?

‘‘जुर्म से जुड़े ऐसे अपराधियों की अगर उपलब्धियों की बात की जाए तो वे न के बराबर मिलती हैं. हां, कई बार बेरोजगारी या दूसरी वजहों से खिलाड़ी भी अपराध की राह पकड़ लेते हैं, लेकिन उन का प्रतिशत बहुत कम होता है और ऐसे ही लोगों की वजह से ‘पहलवान’ शब्द के साथसाथ पहलवानों की इमेज भी खराब होती है.’’

‘अर्जुन अवार्ड’ विजेता पहलवान कोच कृपाशंकर बिश्नोई के मुताबिक, ‘‘अपराधियों ने पहलवान शब्द का मतलब ही बदल दिया है. बहुत से अपराधी पहलवानों ने कुश्ती तो छोडि़ए, किसी भी खेल में भारत की बड़े स्तर  पर नुमाइंदगी तक नहीं की होती है. वे तो लोकल अपराधी होते हैं. मैं ने तो खुद लोगों से कह दिया है कि आप मुझे ‘पहलवान’ संबोधन से न बुलाया करें. मेरा मानना है कि पहलवान शब्द का इस्तेमाल चैंपियन कुश्ती खिलाड़ी के लिए किया जाना चाहिए, गुंडेबदमाशों या तानाशाह लोगों के लिए नहीं.’’

बहुत बार ऐसा भी होता है कि बिल्डर या प्रौपर्टी डीलर वगैरह अपने पैसे की उगाही के लिए छुटभैये पहलवानों से मदद मांगते हैं ताकि डराधमका कर लोगों से वसूली कर सकें. जब उन में इस तरह पैसा छीनने की आदत पनपने लगती है तो धीरेधीरे वे अपना गैंग बना लेते हैं.

इस तरह के लोग खेल और समाज दोनों के लिए खतरा हैं. पुलिस को इन के खिलाफ कड़ी से कड़ी काररवाई करनी चाहिए ताकि ‘पहलवान’ शब्द की गरिमा बनी रहे.

हरियाणा का जज नियुक्ति घोटाला

पंचकूला के ऐतिहासिक नगर पिंजौर की वकील सुमन कुमारी प्रैक्टिस करने के साथसाथ जज बनने की तैयारी भी कर रही थीं. इस के लिए वह चंडीगढ़ के सेक्टर-24 स्थित ज्यूरिस्ट एकेडमी से कोचिंग ले रही थीं. यह एकेडमी उन्होंने मई, 2017 में जौइन की थी. यहीं पर सुनीता और सुशीला नाम की युवतियां भी कोचिंग लेने आती थीं. सुशीला पंचकूला के सेक्टर-5 की रहने वाली थी, जबकि सुनीता चंडीगढ़ में ही रहती थी.

सुशीला और सुनीता पिछले कई सालों से सरकारी नौकरियों के लिए तैयारी कर रही थीं, लेकिन इन में से कोई भी नौकरी से संबंधित परीक्षा पास नहीं कर पा रही थी.

वैसे भी दोनों एवरेज स्टूडेंट की श्रेणी में आती थीं, कोचिंग सेंटर द्वारा लिए जाने वाले वीकली टेस्टों में दोनों के बहुत कम नंबर आते थे. इस के बावजूद इन का हौसला कभी पस्त नहीं हुआ था. दोनों अपने प्रयासों में निरंतर लगी हुई थीं. इन का सपना कोई बड़ी सरकारी नौकरी हासिल करना था.

रोजाना एक ही जगह आनेजाने की वजह से सुमन की इन लड़कियों से जानपहचान हो गई थी. तीनों ने अपने मोबाइल नंबर भी आपस में एक्सचेंज कर लिए थे. सुशीला वकील सुमन से ज्यादा मिक्सअप हो गई थी.

एकेडमी में कोचिंग कर रहे अन्य युवकयुवतियों की तरह ये तीनों भी अपनेअपने ढंग से तैयारी करते हुए सुनहरे भविष्य के सपने बुन रही थीं. वकील सुमन के साथ अब सुनीता और सुशीला का भी सपना जज की कुरसी पर बैठने का बन गया था.

हरियाणा की अदालतों में 109 जजों की नियुक्ति होनी थी. इस के लिए 20 मार्च, 2017 को पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा विभिन्न समाचारपत्रों में एक विज्ञापन छपवाया गया, जिस के हिसाब से 16 जुलाई, 2017 को प्रारंभिक परीक्षा होनी थी. वांछित औपचारिकताएं पूरी कर के हजारों आवेदकों के साथसाथ इन तीनों युवतियों ने भी इस परीक्षा के लिए आवेदन किया.

सब के रोल नंबर समय पर आ गए, जिन के साथ परीक्षा सेंटरों की सूची भी संलग्न थी. ये सेंटर चंडीगढ़ के विभिन्न शिक्षा संस्थानों में थे.

वक्त के साथ जून का अंतिम सप्ताह आ गया. न्यायालय में जज नियुक्ति के प्रतिष्ठित एग्जाम एचसीएस (जुडिशियल) के परीक्षार्थी अपनी तैयारी में जीजान से जुटे थे. एकेडमी वाले भी इन की तैयारी करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे. कानून के विद्वान जानकारों द्वारा तैयार करवाए गए रिकौर्डेड लेक्चर तक उपलब्ध करवाए जा रहे थे.

27 जून को सुमन किसी कारण से एकेडमी नहीं आ पाई थीं. अगले रोज उन्होंने सुशीला को फोन कर के कहा, ‘‘कल के लेक्चर की रिकौर्डिंग भिजवा दे यार.’’

‘‘नो प्रौब्लम, अभी भिजवाए देती हूं.’’ सुशीला ने बेपरवाह लहजे में कहा.

इस के बाद सुमन के वाट्सऐप पर एक औडियो क्लिप आ गई. खोलने पर मालूम हुआ कि वह कोई लेक्चर न हो कर एक ऐसा वार्तालाप था, जो 2 महिलाओं के बीच हो रहा था. इन में एक आवाज सुशीला की ही लग रही थी.

सुमन को लालच में फंसाने की कोशिश की गई

इस बातचीत को सुमन ने ध्यान से सुना तो यह बात सामने आई कि कोई महिला सुशीला को जज बनने का आसान और पक्का रास्ता बता रही थी. वह महिला कह रही थी कि उस ने पक्का इंतजाम कर रखा है. डेढ़ करोड़ रुपया खर्च करने पर उस के पास संबंधित प्रश्नपत्र परीक्षा से पहले ही पहुंच जाएगा. उस में दिए गए प्रश्नों की तैयारी कर के वह प्रारंभिक परीक्षा में अच्छी पोजीशन के साथ पास हो जाएगी. इस तरह वह मेन एग्जाम के लिए क्वालीफाइ कर लेगी.

बाद में समयसमय पर उसे शेष 5 परीक्षाओं के प्रश्नपत्र भी मुहैया करवा दिए जाएंगे, जिन की तैयारी करने के बाद वह मुख्य परीक्षा में भी अच्छे मार्क्स हासिल कर लेगी. इस के बाद इंटरव्यू में कैसे भी अंक मिलें, उसे नियुक्ति पत्र देने से कोई नहीं रोक सकेगा. इस तरह महज डेढ़ करोड़ रुपए खर्च कर के वह जज का प्रतिष्ठित पद हासिल कर लेगी. इस के बाद तो ऐश ही ऐश हैं.

बातचीत में इस महिला ने यह भी कहा कि महंगी कोचिंग ले कर दिनरात मेहनत करने का कोई फायदा नहीं, जजों के सभी पद पहले ही बिके होते हैं.

मैं तो यही सब करने जा रही हूं, तुम चाहो तो किसी भी तरह पैसों का इंतजाम कर के अपनी नौकरी पक्की कर सकती हो. बाद में जिंदगी भर कमाना. समाज में जो प्रतिष्ठा बनेगी सो अलग. इतना जान लो कि मिडल क्लास से अपर क्लास में शिफ्ट होने में देर नहीं लगेगी.

यह सब सुन कर सुमन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. अगर यह बात सच थी तो वह कभी जज नहीं बन सकती थीं. इतनी बड़ी रकम जुटा पाने की बात तो वह सपने में भी नहीं सोच सकती थीं. न तो प्रैक्टिस से उन्हें इतनी कमाई हो रही थी और न ही वह किसी अमीर घराने से संबंध रखती थीं. वह केवल अपनी कड़ी मेहनत के बूते पर जज बनने का सपना संजोए थीं.

सुमन ने इस बारे में सुशीला को फोन किया. उन की बात सुनते ही सुशीला बोली, ‘‘ओह सौरी, यह औडियो गलती से चला गया. तुम इसे अभी के अभी डिलीट कर दो. मैं भी डिलीट कर रही हूं.’’

‘‘ठीक है, कर देती हूं, लेकिन तुम मुझे लेक्चर वाली औडियो भेज दो.’’

‘‘अभी भेजती हूं, चिंता मत करो.’’ कहने के तुरंत बाद सुशीला ने पिछले दिन के लेक्चर की औडियो भेज दी.

वांछित औडियो का क्लिप तो सुमन को मिल गया लेकिन सुशीला ने गलती से भेजी गई औडियो को अपने फोन से डिलीट नहीं किया. यह औडियो उन के फोन की गैलरी में सुरक्षित थी. बाद में उन्होंने उसे कई बार सुना. जितनी बार सुना, उतनी बार वह परेशान होती रहीं. उन के भीतर यह डर गहराता जा रहा था कि ऐसे तो वह कभी जज नहीं बन पाएंगी.

2 दिन बाद सुमन की मुलाकात सुशीला से हुई तो उन्होंने उस औडियो की चर्चा छेड़ दी. इस पर सुशीला ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, ‘‘यह बात तो गलत है मैडम, जब मैं ने आप से कहा था कि गलती से चली गई औडियो को डिलीट कर दो तो आप को उसे डिलीट कर देना चाहिए था.’’

‘‘अरे नहीं नहीं,’’ बात संभालने का प्रयास करते हुए सुमन ने स्पष्टीकरण दिया, ‘‘तुम्हारे कहने के बाद मैं ने उसी समय वह औडियो डिलीट कर दी थी. लेकिन उसे डिलीट करने से पहले लेक्चर के मुगालते में मैं ने उस बातचीत को सुन ही लिया था.’’

‘‘सुन लिया तो कोई बात नहीं, लेकिन इस बारे में किसी को कुछ बताया तो नहीं न?’’

‘‘मैं ने इस बारे में किसी को कुछ नहीं बताया. लेकिन सुशीला, मैं तुम से एक बात की जानकारी चाहती हूं.’’

‘‘किस बात की?’’

‘‘यही कि क्या यह काम डेढ़ करोड़ दे कर ही हो सकता है, कुछ कम पैसे दे कर नहीं?’’

सुमन के इस सवाल का जवाब देने के बजाय सुशीला ने इधरउधर देखते हुए उल्टा उन्हीं से प्रश्न किया, ‘‘तुम इंटरेस्टेड हो क्या?’’

सुमन को अपनी मेहनत बेकार जाती लग रही थी

‘‘देखो सुशीला, सीधी सी बात है. इतनी बड़ी पोस्ट हासिल करने का सपना हजारों लोग देख रहे हैं. मैं भी उन्हीं में से एक हूं. लेकिन अगर उस औडियो में आई बातें सही हैं तो सच बता दूं कि मैं इतने पैसों का इंतजाम नहीं कर सकती. डेढ़ करोड़ रुपया बहुत होता है यार.’’

‘‘अब जब बात खुल ही गई है तो सीधेसीधे बता देती हूं कि यहां यही सब चल रहा है. फिर यह कोचिंग क्या मुफ्त में मिल रही है? मोटी फीस अदा करनी पड़ती है हर महीने. किताबों पर कितना खर्च हो रहा है. एकेडमी तक आनाजाना क्या फ्री में हो जाता है? सौ बातों की एक बात यह है कि सारी मेहनत और किया गया तमाम खर्च गड्ढे में चले जाना है.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब यही कि जज की ऊंची कुरसी पर बैठना है तो यह इनवैस्टमेंट करना ही पड़ेगा. इस के बाद जिंदगी भर इस पोस्ट से कमाना ही है, बड़ा रुतबा मिलेगा, सो अलग. इतने बड़े काम के लिए डेढ़ करोड़ रुपया भला कौन सी बड़ी रकम है.’’

‘‘हमारे जैसे लोगों के लिए है न.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.

इस पर सुशीला चुप रह कर सोचने की मुद्रा में आ गई. कुछ देर सोचने के बाद उस ने सुमन का हाथ अपने हाथों में ले कर सधे हुए शब्दों में कहना शुरू किया, ‘‘देखो सुमन, तुम बहुत नाइस और मेहनती हो. मैं दिल से चाहती हूं कि अपने मकसद में कामयाब होते हुए जज की कुरसी तक पहुंचो. लेकिन तुम्हारी मजबूरी मुझे साफ दिख रही है. चलो, मैं कुछ करती हूं, तुम्हें रिलीफ दिलवाने के लिए.’’

इस के बाद इस बारे में दोनों के बीच होने वाली बात यहीं खत्म हो गई.

सुशीला के पति हरियाणा में सबइंसपेक्टर हैं. सुशीला पति को साथ ले कर 12 जुलाई को पिंजौर गई. मार्केट में एक जगह रुक कर उस ने सुमन को फोन कर के वहां बुलाया.

वह आ गईं तो सुशीला ने उन से सीधेसीधे कहा, ‘‘प्रश्नपत्र की कौपी सुनीता के पास है. उस ने यह कौपी डेढ़ करोड़ में खरीदी है. जो औडियो मैं ने गलती से तुम्हें भेज दिया था, उस में मेरी उसी से बात हो रही थी. सुनीता से मिल कर मैं ने तुम्हारे बारे में बात की है.’’

‘‘तो क्या कहा उस ने?’’ सुमन ने धड़कते दिल से पूछा.

‘‘देखो, मेरी बात का बुरा मत मानना, यह काम मुफ्त में तो होगा नहीं. आप 10-10 लाख कर के पैसे देती रहो. हर बार के 10 लाख पर तुम्हें प्रश्नपत्र में से 5-6 सवाल नोट करवा दिए जाएंगे. काम एकदम गारंटी वाला है, लेकिन बिना पैसों के होने वाला नहीं है. इतना जान लो कि इस तरह की सुविधा भी केवल तुम्हें दी जा रही है, वरना एकमुश्त डेढ़ करोड़ रुपया देने वालों की लाइन लगी है. पक्के तौर पर जज की पोस्ट उन्हीं लोगों से भरी जानी है.’’ सुशीला ने बताया.

‘‘ठीक है सुशीला, मैं सोचती हूं इस बारे में.’’ सुमन ने मायूस होते हुए कहा.

‘‘सोच लो, बस इस बात का ध्यान रखना कि टाइम बहुत कम है. एक बार मौका हाथ से निकल गया तो सिवाय पछताने के कुछ हासिल नहीं होगा.’’

एक तरह से चेतावनी देने के बाद सुशीला अपने पति के साथ वापस चली गई. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था सुमन को, पैसा उन के पास था नहीं

सुमन इस सब से काफी अपसेट सी हो गई थी. जितने जोशोखरोश से वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी, अब उस तरह पढ़ाई कर पाना उस के लिए मुश्किल हो गया था. उस का मन यह सोचसोच कर अवसाद से भरता जा रहा था कि जब जजों की नियुक्ति पैसा दिए जाने के बाद ही होनी है तो फिर इस तरह जीतोड़ मेहनत करने का क्या फायदा. इस तरह 2 दिन का वक्त और निकल गया. 15 जुलाई को सुशीला ने सुमन को फोन कर के दोपहर 2, ढाई बजे चंडीगढ़ के सेक्टर-17 स्थित सिंधी रेस्टोरेंट पहुंचने को कहा.

निर्धारित समय पर सुमन वहां पहुंच गईं. वहां सुशीला के साथ सुनीता भी थी. इन लोगों ने रेस्टोरेंट के फर्स्ट फ्लोर पर बैठ कर बातचीत शुरू की. सुनीता ने कहा कि वह सुमन का काम डेढ़ करोड़ की बजाय केवल 1 करोड़ में कर देगी, सीधे 50 लाख का फायदा.

सुमन के लिए यह कतई संभव नहीं था. फिर भी उन्होंने जैसेतैसे 10 लाख रुपयों का इंतजाम कर के सुनीता से संपर्क किया, लेकिन उस ने एक भी प्रश्न दिखाने से मना कर दिया. सुमन ने सुशीला से मिल कर उसे बताया कि पता नहीं क्यों सुनीता उस पर शक करते हुए अजीब ढंग से बात कर रही थी.

अब टाइम नहीं बचा था. अगले रोज पेपर था. सुशीला व सुनीता के साथ सुमन ने भी परीक्षा दी.

सुमन पढ़ाई में होशियार थीं, वह पेशे से वकील भी थीं. फिर भी रिजल्ट घोषित होने पर जहां सुमन को निराशा मिली, वहीं सुशीला और सुनीता इस टफ एग्जाम को क्लीयर कर गईं. यह बात भी सामने आई कि सुनीता सामान्य वर्ग में और सुशीला रिजर्व कैटेगरी में न केवल प्रथम आई थीं, बल्कि दोनों इतने ज्यादा अंक हासिल किए थे, जिस की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.

सुमन को इस परीक्षा के उत्तीर्ण न होने का इतना दुख नहीं था, जितना अफसोस इस बात का था कि जैसा सुशीला ने कहा था, वैसा ही हुआ था. यह एक बड़ी ज्यादती थी, जिस के बल पर जिंदगी में ऊंचा उठने के काबिल लोगों के भविष्य से सरेआम खिलवाड़ किया जा रहा था.

सुमन ने इस मुद्दे पर काफी गहराई से सोचा. उन के पास न केवल सुशीला द्वारा गलती से भेजी गई औडियो क्लिप थी, बल्कि बाद में भी उस के साथ हुई बात की कई टेलीफोनिक काल्स थीं, जो उन्होंने रेकौर्ड की थीं. आखिर उन से रहा नहीं गया और जुटाए गए सबूतों के साथ उन्होंने इस संबंध में अपनी एक याचिका पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में दायर कर दी. यह याचिका हाईकोर्ट के वकील मंजीत सिंह के माध्यम से दाखिल की गई थी.

आखिर सुमन ने उठा ही लिया कानूनी कदम

हाईकोर्ट ने इस याचिका को स्वीकार करते हुए इस की गोपनीय तरीके से गहन जांच करवाई तो यह बात सामने आई कि इस घोटाले में मुख्यरूप से हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार डा. बलविंदर कुमार शर्मा शामिल थे. उन्हीं के पास परीक्षापत्र थे, जिन में से एक की कौपी करवा कर उन्होंने सुनीता को मुहैया करवा दी थी.

सुनीता सुशीला से मिल कर परीक्षार्थियों से संपर्क कर के डेढ़ करोड़ रुपयों में इस डील को अंतिम रूप देने लगी थी. रजिस्ट्रार का पद जज के पद के समानांतर होता है.

अपनी गहन छानबीन के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले में डा. बलविंदर कुमार शर्मा, सुनीता और सुशीला के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर के इन्हें गिरफ्तार करने की संस्तुति दे दी.

इस तरह 19 सितंबर, 2017 को चंडीगढ़ के सेक्टर-3 स्थित थाना नौर्थ में भादंवि की धाराओं 409, 420 एवं 120बी के अलावा भ्रष्टाचार अधिनियम की धाराओं 8, 9, 13(1) व 13(2) के तहत तीनों आरोपियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज हो गई.

हाईकोर्ट के आदेश पर ही इस केस की जांच के लिए चंडीगढ़ पुलिस के नेतृत्व में स्पैशल इनवैस्टीगेशन टीम का गठन कर दिया गया. इस एसआईटी में डीएसपी कृष्ण कुमार के अलावा थाना नौर्थ की महिला एसएचओ इंसपेक्टर पूनम दिलावरी को भी शामिल किया गया था. एफआईआर दर्ज हो जाने के बाद डा. बलविंदर कुमार को उन के पद से हटा दिया गया. 28 दिसंबर, 2017 को उन के अलावा सुनीता को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

डा. बलविंदर जहां जज के पद का रुतबा हासिल किए हुए थे, वहीं सुनीता भी वकालत करती थी. लिहाजा पुलिस द्वारा इन से सख्त तरीके से पूछताछ करना संभव नहीं था. मनोवैज्ञानिक आधारों पर ही पूछताछ कर के इन्हें न्यायिक हिरासत में भिजवा दिया गया. सुशीला अभी तक पकड़ में नहीं आई थी.

14 जनवरी, 2018 को उसे भी उस के पंचकूला स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. उसे अदालत में पेश कर के कस्टडी रिमांड में लिया गया. पुलिस ने उस से गहनता से पूछताछ की.

आज जहां हर केस की एफआईआर पुलिस की वेबसाइट पर उपलब्ध हो जाती है, इस मामले को सेंसेटिव केस की संज्ञा देते हुए इस की एफआईआर जगजाहिर नहीं की गई थी. पुलिस पत्रकारों से बचते हुए इस केस की छानबीन का काम निहायत होशियारी से करती रही. इस मामले में किस ने कितना पैसा लिया, किस ने दिया और किस से कितना रिकवर किया गया, आदि मुद्दों की जानकारी पुलिस ने सामने नहीं आने दी.

हाईकोर्ट के आदेश पर जज के पद की यह प्रारंभिक परीक्षा पहले ही रद्द कर दी गई थी. थाना पुलिस ने तीनों अभियुक्तों के खिलाफ अपनी 2140 पेज की चार्जशीट अदालत में पेश कर दी है. अन्य केसों के आरोपियों की तरह इस केस के आरोपी भी अपने को बेकसूर कह रहे हैं. किस का क्या कसूर रहा, इस घोटाले में किस की क्या भूमिका रही, इस का उत्तर तो केस का फैसला आने पर ही मिल पाएगा.

बहरहाल, जज जैसे अतिप्रतिष्ठित पद के साथ भ्रष्टाचार का ऐसा खिलवाड़ किसी त्रासदी से कम नहीं.

न्यूड फोटो से ब्लैकमेलिंग

सेजल ने अपनी छोटी बहन को वाट्सऐप से एक स्क्रीन शौट भेज कर मैसेज किया, जिस में उस की न्यूड फोटो को वायरल करने की धमकी दे कर पैसे मांगने की बातचीत थी. यही नहीं, उस ने स्टेटस भी लगाया था कि उस के साथ फ्रौड हुआ है. बहन के मोबाइल पर स्टेटस और उस के द्वारा भेजा गया मैसेज देख कर छोटी बहन ने तुरंत सेजल से बात की थी.

तब सेजल ने बताया था कि कुछ दिनों पहले उस ने बैंक लोन की जानकारी के लिए अपने मोबाइल में कैशमाय ऐप डाउनलोड किया था, उसी समय उस ने ऐप की सारी कंडीशन एक्सेप्ट कर ली थीं. इस के बाद उस के फोन ने एक्सेस दे दिया था.

कहने का मतलब यह है कि इस तरह उस का फोन हैक हो गया था. इस के कुछ दिनों बाद उस के वाट्सऐप पर उस की न्यूड फोटो भेज कर धमकी दी गई थी कि अगर उस ने जितने पैसे मांगे जा रहे हैं, उतने पैसे नहीं दिए तो उस का यह फोटो उस के सभी रिश्तेदारों और मित्रों को तो भेज ही दिया जाएगा, सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिया जाएगा.

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              सेजल

अपने न्यूड फोटो देख कर सेजल घबरा गई थी. उस ने कई बार औनलाइन ट्रांजैक्शन के जरिए पैसे मांगने वालों को करीब 45 हजार 5 सौ रुपए भेज चुकी थी, पर वे तो अभी भी पैसे की मांग कर रहे थे.

गुजरात का सूरत शहर साडिय़ों के लिए जाना जाता है. यहां साडिय़ां तैयार करने के लिए छोटीछोटी तमाम फैक्ट्रियां हैं, इसलिए पूरे देश से लोग यहां रोजीरोटी की तलाश में आते हैं.

अपनी नौकरी की वजह से ही मूलरूप से गुजरात के कोसंबा के रहने वाले दौलतभाई परमार का 25 साल पहले सूरत तबादला हुआ तो फिर वह यहीं के हो कर रह गए थे. वह इनकम टैक्स विभाग में नौकरी करते थे. सूरत के ही जहांगीरपुरा में उन्होंने अपना मकान बना लिया था, जहां वह अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी जागृतिबेन के अलावा 2 बेटियां और एक बेटा था.

दौलतभाई के बच्चों में सेजल सब से बड़ी थी. बड़ी होने की वजह से मम्मीपापा की लाडली थी. फिर वह पढऩे में भी बहुत अच्छी थी, इसलिए मम्मीपापा उसे जान से ज्यादा प्यार करते थे.

सेजल ने वनिता विश्राम स्कूल से 12वीं तक की पढ़ाई की थी. 12वीं में उस की स्कूल में तीसरी रैंक आई थी. इस के बाद उस ने नवयुग कालेज से बीएससी किया. सेजल इतनी ब्राइट स्टूडेंट थी कि कालेज में उस की पहली रैंक आई थी.

इस के बाद उस ने वीर नर्मद दक्षिण गुजरात यूनिवर्सिटी से कैमिस्ट्री में एमएससी किया, जहां उस की सेकेंड रैंक आई थी. अच्छी रैंक आने के कारण उसे इसी यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल गई थी. अपनी नौकरी करते हुए वह पीएचडी भी कर रही थी. पीएचडी का उस का एक साल पूरा हो गया था. 14 मार्च को उस का पीएचडी का रिजल्ट आया, जिस में वह पास हो गई थी. वह बहुत खुश थी.

लेकिन अगले दिन ही उस की खुशी उडऩछू हो गई, क्योंकि ब्लैकमेलर ने उस के न्यूड फोटो वायरल करने की धमकी दे कर मोटी धनराशि की मांग की.

सेजल बहुत परेशान हो गई. उस ने यह बात अपनी बहन को बताई तो छोटी बहन के कहने पर सेजल ने थाना रांदेर जा कर अपने ब्लैकमेलिंग की रिपोर्ट दर्ज कराई थी. उस ने थाना रांदेर पुलिस को वे नंबर भी दिए थे, जिन से उसे मैसेज आ रहे थे. पता चला कि वे सभी नंबर पाकिस्तान की आईडी के थे.

रेलवे लाइनों में मिली प्रोफेसर की लाश

उसी दिन यानी 15 मार्च को पिता दौलतभाई की नौकरी के 30 साल पूरे हुए थे, जिस के उपलक्ष्य में उन्होंने औफिस में तो मिठाई बांटी ही थी, सेजल के कहने पर वह घर भी मिठाई ले कर आए थे. घर में खुशी का माहौल था.

सब ने साथ बैठ कर मिठाई खाई थी. तब ऐसा कुछ भी नहीं लग रहा था कि सेजल परेशान है. उस ने पिता से तो क्या, घर में छोटी बहन के अलावा किसी अन्य से भी अपने ब्लैकमेल होने के बारे में कोई बात नहीं की थी.

खूबसूरत सेजल की बढिय़ा नौकरी थी. वेतन भी अच्छाखासा था. वह घर से ही यूनिवर्सिटी जाती थी. 16 मार्च, 2023 को भी सेजल सफेद सलवार और सफेद कुरता पहन कर यूनिवर्सिटी जाने के लिए उसी तरह घर से निकली थी, जिस तरह रोजाना निकलती थी. पर उस दिन वह घर लौट कर नहीं आई.

दोपहर के बाद उस के भाई हर्ष परमार के पास रेलवे पुलिस का फोन आया कि वीर नर्मद दक्षिण यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर सेजल परमार ने उत्राण और कोसाद रेलवे स्टेशन के बीच सौराष्ट्र एक्सप्रैस के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली है.

यह खबर हर्ष ने जब घर वालों को बताया तो घर वालों पर तो आफत ही टूट पड़ी. पूरा परिवार बिलखबिलख कर रोने लगा. रोने की आवाज सुन कर पड़ोसी दौड़े आए. वजह जान कर सभी को दुख हुआ. क्योंकि सेजल ऐसी लड़की थी, जो सब की चहेती थी.

खास रिश्तेदारों को भी सूचना दी गई. दौलतभाई औफिस में थे. सूचना पाते ही अपने कुछ सहयोगियों के साथ वह घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

इधर हर्ष अपनी मां, छोटी बहन, कुछ पड़ोसियों और नजदीकी रिश्तेदारों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गया. सब ने पहुंच कर लाश की शिनाख्त की. रेलवे पुलिस ने घटनास्थल की अपनी काररवाई पूरी कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए सूरत के सिविल अस्पताल भिजवा दिया.

सेजल की आत्महत्या का मुकदमा रेलवे पुलिस ने दर्ज कर जांच शुरू की. सेजल के पास से कोई सुसाइड नोट नहीं मिला था. रेलवे थाना पुलिस को पूछताछ में पता चला कि 2 दिन पहले सेजल ने सूरत के थाना रांदेर में एक रिपोर्ट दर्ज कराई थी, जिस में उस ने लिखाया था कि कोई उसे न्यूड फोटो वायरल करने की धमकी दे कर पैसे वसूल रहा है.

रेलवे पुलिस को जब पता चला कि यह ब्लैकमेलिंग का मामला है और इस की रिपोर्ट पहले से ही थाना रांदेर मे दर्ज है तो उन्होंने सेजल की आत्महत्या का जो मुकदमा दर्ज किया था, उसे थाना रांदेर को ट्रांसफर कर दिया.

प्रोफेसर को ससुराल वाले क्यों करते थे टौर्चर

थाना रांदेर के एसएचओ इंसपेक्टर अतुल सोनारा इस मामले की जांच में लगे ही थे. उन्हें तो पहले से ही पता था कि यह ब्लैकमेलिंग का मामला है. उन्होंने घर वालों से पूछताछ शुरू की. पूछताछ में पता चला कि सेजल का विवाह 3 साल पहले 9 दिसंबर, 2021 को सूरत के ही एक परिवार में हुआ था. पर उस का पति विवाह के 3 महीने बाद ही उस पर बदचलनी का आरोप लगा कर अस्पताल ले जाने के बहाने मायके छोड़ गया था.

ससुराल वाले उस पर डिवोर्स के लिए दबाव डाल रहे थे. सास ने महिला थाने में सेजल पर चीटिंग का मुकदमा भी दर्ज कराया था, जिस के लिए सेजल को थाने जा कर बयान भी दर्ज कराना पड़ा था. इस तरह ससुराल वाले सेजल को प्रताडि़त करने का एक भी मौका नहीं छोड़ रहे थे.

पर मायके वालों ने सेजल को तनाव में नहीं आने दिया. सभी लोग हर तरह से उस का सहयोग कर रहे थे. वीर नर्मद दक्षिण यूनिवर्सिटी में उसे असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिल ही चुकी थी. वह 12 बजे तक एमएससी के बच्चों को केमिस्ट्री पढ़ाती थी. उस के बाद अपनी पीएचडी की पढ़ाई करती थी. यूनिवर्सिटी वह अकेली ही आतीजाती थी.

वह अपने काम पर पूरा ध्यान दे रही थी. इसलिए ससुराल वालों के परेशान करने के बावजूद उस ने कभी थाने में शिकायत नहीं दर्ज कराई थी. डिवोर्स का भी मुकदमा इसलिए नहीं किया था कि उसे बारबार थाने या कचहरी के चक्कर लगाने पड़ेंगे, जिस से उस की पढ़ाई का नुकसान होगा. वह पढ़ाई पूरी करने के बाद डिवोर्स लेना चाहती थी.

सेजल के घर वालों ने आरोप लगाया था कि यह सब सेजल के पति ने कराया होगा. क्योंकि वह सेजल को परेशान करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.

वैसे भी सेजल को बदनाम करने के लिए सभी से कहता था कि सेजल भाग गई है. उसी ने सेजल को न्यूड फोटो वायरल करने धमकी दिलाई होगी. क्योंकि सेजल ने आत्महत्या करने से पहले उसे 3 फोन किए थे, पर उस ने फोन नहीं उठाया था. अगर उस ने फोन उठा लिया होता तो शायद सेजल जिंदा होती.

पुलिस ने जब इस मामले की गहराई से जांच की तो पता चला कि सेजल की ससुराल वाले सेजल के साथ कैसा भी व्यवहार करते रहे हों, पर इस मामले में उन का कोई हाथ नहीं है.

सेजल के साथ यह जो ब्लैकमेलिंग हो रही थी, इस की उन्हें जानकारी थी, क्योंकि ब्लैकमेलर्स ने सेजल का मोर्फ किया हुआ फोटो उस के पति को भी भेजा था.

उस ने वह फोटो अपने घर वालों को दिखाया भी था, पर इस की जानकारी न तो सेजल को दी थी, न ही उस के घर वालों को. उस ने सेजल की आत्महत्या के बाद भी किसी को नहीं बताया था कि उस के पास सेजल का मोर्फ किया हुआ फोटो आया था.

पाकिस्तानी नंबरों की क्या थी हकीकत

जब सेजल के ससुराल वाले बेगुनाह दिखे तो पुलिस ने उन नंबरों के माध्यम से जांच आगे बढ़ाने का फैसला किया, जिन से सेजल को मैसेज भेजे जा रहे थे. पता चला कि तीनों नंबर पाकिस्तान के थे.

पुलिस को इन नंबरों पर शक हुआ. क्योंकि सेजल ने जिस आईडी पर पैसे भेजे थे, वे इंडिया की थीं. इस से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि जिन पाकिस्तानी नंबरों से फोन किया जा रहा था, वे वर्चुअली बनाए गए हैं. वे सेजल की मौत के बाद भी मैसेज कर के पैसे भेजने के लिए कह रहे थे. इतना ही नहीं, वे पुलिस को भी इस तरह गालियां दे रहे थे, जैसे उन्हें पुलिस का जरा भी डर न हो.

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यह पूरा मामला सोशल मीडिया से जुड़ा था, इसलिए सूरत के पुलिस कमिश्नर अजय तोमर ने इस मामले में थाना पुलिस की मदद के लिए पुलिस की साइबर टीम को भी लगा दिया. इस मामले को डीसीपी हर्षद मेहता खुद हैंडिल कर रहे थे.

साइबर विभाग ने जब आईपी एड्रेस की जांच की तो सारे नंबरों की लोकेशन बिहार की मिली. इस के बाद गुजरात पुलिस की एक टीम बिहार के जिला जमुई गई. बिहार का यह नक्सली इलाका है. तब भेष बदल कर स्थानीय पुलिस की मदद से सूरत की पुलिस ने 5 मई, 2023 को जमुई के केवली गांव से 3 लोगों अभिषेक कुमार, रोशन कुमार और सौरभ राज को गिरफ्तार किया.

पूछताछ में अभियुक्तों ने बताया कि वे मात्र 10वीं पास हैं. उन्होंने औनलाइन सर्च द्वारा फोन हैक करना सीखा और घर से दूर खेतों में या जंगलों में बैठ कर लोगों को मोर्फ की गई न्यूड फोटो भेज कर वायरल करने की धमकी दे कर पैसे वसूल करते हैं.

वे किसी के फोन में एप्लिकेशन भेज कर औफर देते हैं. तमाम कंडीशन एक्सेप्ट करने के बाद मोबाइल एक्सेस दे देता है. इस के बाद उस की फोटो को मोर्फ कर के न्यूड फोटो भेज कर धमकी दे कर पैसे वसूलते हैं.

ऐसा ही उन्होंने सेजल के साथ भी किया था. सेजल ने कुछ पैसे भेजे भी थे. लेकिन वे तो लाखों रुपए मांग रहे थे. जब सेजल ने उतने पैसे देने से मना किया तो उस पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने मोर्फ किया गया उस का न्यूड फोटो उस के पति को ही नहीं, उस के दोस्तों को भी भेज दिया था.

पति के पास उस का न्यूड फोटो पहुंच गया है, इस बात की जानकारी सेजल को हो गई थी. ससुराल वाले उसे ऐसे ही बदनाम कर रहे थे. अब उन्हें बदनाम करने के लिए सेजल की न्यूड फोटो भी मिल गई थी. अगर उन्होंने उस की फोटो वायरल कर दी तो वह और उस के घर वाले समाज में मुंह दिखाने लायक नहीं रह जाएंगे.

सेजल ने पति को यही बताने के लिए कई बार फोन किया था, पर उस ने फोन उठाया ही नहीं था. तब इज्जत बचाने के लिए सेजल ने ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली थी.

पुलिस ने गिरफ्तार तीनों अभियुक्तों के पास से लैपटाप, प्रिंटर, कीबोर्ड, फिंगर प्रिंट मशीन और करीब 15 हजार आधार कार्ड की फोटोस्टेट कौपियां जब्त की थीं.

ये लोगों को लोन की किस्त भरने के नाम पर फंसाते थे और उन का फोन हैक कर के न्यूड फोटो भेज कर धमका कर पैसा वसूल करते थे. गिरफ्तार अभियुक्तों को स्थानीय अदालत में पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर सूरत लाया गया.

अभिषेक, रोशन कुमार और सौरभ से पूछताछ में पता चला कि इस मामले में यही 3 लोग शामिल नहीं हैं. रिमांड के दौरान पूछताछ में इन के पाकिस्तान कनेक्शन का पता चला. इन के साथ रेशम कुमार, लकबीर ट्रेडर्स, जूही शेख और शांतनु जोंघले भी यही काम कर रहे थे. इन सभी के नंबर बिहार से गिरफ्तार अभियुक्तों से मिल गए थे.

गैंग में शामिल थीं 2 महिलाएं

पुलिस को अन्य लोगों की लोकेशन तो नहीं मिली, पर जूही शेख की लोकेशन मिल गई थी. वह आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा स्ट्रीट के पांजा सेंटर में रहती थी. उसे गिरफ्तार करने के लिए सूरत पुलिस की एक टीम भेजी गई. इस टीम में 6 सदस्य शामिल थे, जिस में 2 महिलाएं थीं और 4 पुरुष. इस टीम का नेतृत्व खुद एसीपी बी.एम. चौधरी कर रहे थे.

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                               आरोपी जूही शेख

विजयवाड़ा पहुंच कर पुलिस टीम ने लोकेशन तो ट्रेस कर ली, पर यह पता नहीं चल पा रहा था कि जूही रहती किस घर में है. दूसरी सब से बड़ी समस्या यह थी कि वह मुसलिम बहुल इलाका था.

तब सूरत से गए पुलिसकर्मियों ने स्थानीय पुलिस की मदद से अपने नाम बदल कर मुसलिमों जैसे कपड़े पहने और किराए का मकान ढ़ूंढऩे के बहाने जूही की तलाश शुरू की. वे कभी पतिपत्नी बन कर लोगों से मकान के बारे में पूछते थे तो कभी भाईबहन बन कर. पुलिस 3 दिनों तक जूही का पता लगाने के लिए भटकती रही.

तीसरे दिन जैसे ही जूही की सही लोकेशन मिली, पुलिस ने उसे धर दबोचा. पुलिस जिस समय उसे गिरफ्तार करने पहुंची, वह बाथरूम में घुस कर मोबाइल का डाटा डिलीट कर रही थी. तलाशी में उस के पास 3 मोबाइल फोन, 2 बैंकों की पासबुकें और 72 यूपीआई एड्रेस मिले थे. पता चला कि उस के कुल 7 बैंक एकाउंट थे. उसे भी स्थानीय अदालत में पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर सूरत लाया गया.

जूही को सूरत ला कर अदालत में पेश किया गया, जहां से पूछताछ के लिए उसे रिमांड पर लिया गया. फोन तथा ईमेल आईडी की जांच से पता चला कि वह आसानी से कर्ज चुकाने के नाम पर लोगों को ठगती थी और वह यहां से जो पैसे वसूलती थी, उस का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में बैठे अपने आका जुल्फिकार को डिजिटल करेंसी बिटकौइन के माध्यम से भेजती थी.

डीसीपी हर्षद मेहता ने बताया कि जूही शेख एप्लीकेशन के माध्यम से सैक्सटौर्शन की बदौलत रोजाना 50 से 60 हजार रुपए की ठगी कर रही थी. यह काम वह पिछले 5-6 सालों से कर रही थी. पूछताछ के बाद पुलिस ने सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से सभी को जेल भेज दिया गया.