Police Story : SP सुरेंद्र दास ने आत्महत्या करने के लिए जहर क्यों खाया

Police Story : सुरेंद्र कुमार दास कानपुर के एसपी पद पर थे. उन के जीवन में किसी भी चीज का अभाव नहीं था. इस के बावजूद भी ऐसी क्या वजह रही जो उन्हें खुदकुशी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. 5 सितंबर की बात है. कानपुर के एसपी (पूर्वी) सुरेंद्र कुमार दास अपनी पत्नी डा. रवीना सिंह के साथ सरकारी आवास में थे. पतिपत्नी के बीच काफी दिन से तनाव चल रहा था. एसपी सुरेंद्र दास तनाव में थे. वह अपनी परेशानी किसी से बता भी नहीं पा रहे थे. उन के दिल की बात किसी को पता नहीं थी. डा. रवीना को भी हालत की गंभीरता का अंदाजा नहीं था. सुबह का समय था. सुरेंद्र दास ने पत्नी को आवाज दी.

वह आई तो एसपी सुरेंद्र दास ने बिना हावभाव बदले रवीना के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देते हुए बोले, ‘‘मैं ने जहर खा लिया है. मैं ने इस के लिए तुम्हें या किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया है.’’

पति की बात सुन कर रवीना अवाक रह गई. उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई. उसे कुछ समझ नहीं रहा था कि क्या करे? वह बोली, ‘‘आप नहीं होंगे तो इस लेटर का हम क्या करेंगे?’’

रवीना ने लेटर को बिना पढ़े, बिना देखे मरोड़ कर कमरे में एक तरफ फेंक दिया. बिना वक्त गंवाए रवीना ने पुलिस आवास पर तैनात पुलिसकर्मियों को एसपी साहब की तबीयत खराब होने की जानकारी दे दीपुलिसकर्मियों की मदद से वह पति को प्राइवेट अस्पताल में ले गई. 5 बज कर 20 मिनट पर वहां से उन्हें उर्सला अस्पताल और 6 बज कर 20 मिनट पर रीजेंसी अस्पताल ले जाया गया. पुलिस अफसर के जहर खाने की बात तेजी से फैलने लगी. कानपुर से ले कर राजधानी लखनऊ के पुलिस मुख्यालय तक अफसरों में हड़कंप मच गया. सुरेंद्र कुमार दास के बेहतर इलाज के लिए हरसंभव प्रयास किए जाने लगे

कानपुर के रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों ने एम्स दिल्ली और मुंबई के बड़े अस्पतालों के डाक्टरों से संपर्क साधा ताकि एसपी साहब को बेहतर इलाज दिया जा सके. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के शरीर के अंदरूनी अंगों पर जहरीले पदार्थ का असर पड़ने लगा था, जिस से शरीर के दूसरे अंगों के फेल होने का खतरा बढ़ता जा रहा था. स्वास्थ्य में सुधार और बेहतर इलाज के लिए मुंबई से हवाई जहाज से इलाज में सहायक एक्मो नाम का एक उपकरण मंगाया गया. यह उपकरण लखनऊ और कानपुर में उपलब्ध नहीं था. एक्मो के द्वारा शरीर के अंगों को काम करने के लिए मदद दी जाती है.

एसपी सुरेंद्र कुमार दास 2014 बैच के आईपीएस अधिकारी थे. मूलरूप से वह बलिया जिले के रहने वाले थे. उन के पिता लखनऊ के रायबरेली रोड स्थित पीजीआई कालोनी में रहते थे. कानपुर शहर में वह एसपी (पूर्वी) के पद पर तैनात थे. उन की पत्नी रवीना डाक्टर थी. दोनों की शादी 9 अप्रैल, 2017 को हुई थी. यह शादी अखबार के वैवाहिक विज्ञापन के माध्यम से हुई थी. रवीना के पिता भी सरकारी डाक्टर हैं. शादी के बाद सुरेंद्र दास अंबेडकर नगर में बतौर सीओ तैनात थे. उस समय रवीना भी उन के साथ रहती थी. रवीना वहां अंबेडकर नगर मैडिकल कालेज में बतौर डाक्टर संविदा पर तैनात थी

रवीना ने जुलाई माह में ही नौकरी जौइन की थी और एक महीने बाद अगस्त में ही नौकरी छोड़ दी. सुरेंद्र दास जब कानपुर में एसपी (पूर्वी) के रूप में तैनात किए गए तो रवीना उन के साथ रहने लगी थी. एसपी सुरेंद्र कुमार दास के जहर खाने की सूचना उन के कल्ली, लखनऊ स्थित घर पहुंची तो सुरेंद्र की मां इंदु देवी, बड़ा भाई नरेंद्र दास, भाभी सुनीता कानपुर के लिए रवाना हो गएमुंबई और रीजेंसी अस्पताल के डाक्टरों की टीम ने सुरेंद्र दास को बचाए रखने का प्रयास जारी रखा, लेकिन 5 दिन के संघर्ष के बाद रविवार 9 सितंबर की दोपहर 12 बज कर 20 मिनट पर सुरेंद्र दास का निधन हो गया. उन के शव को कानपुर से लखनऊ उन के एकता नगर स्थित निवास पर लाया गया. पूरी कालोनी सदमे में थी.

सुरेंद्र दास के पिता रामचंद्र दास सेना से रिटायर हुए थे. उन्होंने करीब डेढ़ दशक पहले एकता नगर में पंचवटी नाम से मकान बनाया था. सुरेंद्र दास 2 भाई थे. उन के बड़े भाई नरेंद्र दास अपने मकान में ही हार्डवेयर की दुकान चलाते थे. सुरेंद्र दास की 5 बहनें पुष्पा, आरती, सुनीता, अनीता और सावित्री थीं. सभी बहनों की शादी हो चुकी थी. सुरेंद्र दास पढ़ाई में तेज थे. उन के पिता रामचंद्र दास ने सुरेंद्र की पढ़ाई के लिए अलग जमीन पर कमरा बनवा दिया था, जिस से उन की पढ़ाई में व्यवधान आए. यहीं रह कर सुरेंद्र पढ़ाई करने लगे. दिन भर वह कमरे में रह कर पढ़ाई करते थे. वहां से वह घर केवल खाना खाने आते थे.

जब उन का चयन आईपीएस के लिए हुआ तो पूरी कालोनी में खुशियां मनाई गईं. कालोनी में रहने वाले सभी मातापिता अपने बच्चों को सुरेंद्र दास जैसा बनने का उदाहरण देते थे. कालोनी के कुछ बच्चे सुरेंद्र दास के संपर्क में रहते थे. वे उन बच्चों को कंपटीशन की तैयारी की सलाह देते थे. 10 साल पहले सुरेंद्र दास के पिता नरेंद्र दास की मौत हो गई थी. सुरेंद्र दास की खुदकुशी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा था. इस का कारण यह था कि वह संस्कारी स्वभाव के थे. कालोनी में रहने वाले किसी भी बुजुर्ग से वह ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे, हमेशा अंकल कह कर उन्हें इज्जत देते थे. उन की मौत के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पुलिस प्रमुख ओमप्रकाश सिंह सहित सभी अफसरों ने उन के घर जा कर शोक जताया.

सुरेंद्र दास के परिवार ने उन की मौत के लिए पत्नी डा. रवीना सिंह को जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया था. सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने कहा कि वह रवीना के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की रिपोर्ट दर्ज कराएंगे. नरेंद्र दास ने कहा कि सुरेंद्र दास की मौत के लिए रवीना ही हिम्मेदार है. रवीना उन्हें परिवार से अलग रखना चाहती थी, जबकि सुरेंद्र परिवार से दूर नहीं रहना चाहते थे. वह भावुक और संवेदनशील इंसान थे. जबकि रवीना उन पर शक करती थी, जब वह गश्त पर जाते थे तो वह उन के साथ ही जाती थीवैसे भी रवीना का अपने मायके की तरफ झुकाव ज्यादा था. पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के कपड़े खरीदने को ले कर दोनों में विवाद हुआ था. सुरेंद्र उन के साथ जाना चाहते थे, जबकि वह अकेले जाना चाहती थी.

सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास का आरोप था कि रवीना ने पति को इतना प्रताडि़त किया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली. इस के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं थावह पूरी तरह से टूट गए थे और बिना सोचेसमझे आत्महत्या कर ली. नरेंद्र ने कहा कि सुसाइड नोट में हैंड राइटिंग की जांच कराएंगे. नरेंद्र ने बताया कि रवीना नानवेज खाती थी, जबकि सुरेंद्र पूरी तरह से शाकाहारी थेकृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी रवीना ने नानवेज खाया था, जिस की वजह से दोनों में तनाव था. नरेंद्र दास का कहना था कि मानसिक तनाव में ही सुरेंद्र दास यह सोच रहे थे कि आत्महत्या कैसे की जाए. कानपुर के एसएसपी .के. तिवारी के अनुसार सुरेंद्र दास के सुसाइड नोट में पारिवारिक कलह, पत्नी से छोटीछोटी बातों में तनाव और कई बातें भी लिखी थीं. सुरेंद्र ने सीधे तौर पर अपनी आत्महत्या के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं ठहराया था.

एसपी सुरेंद्र दास के भाई नरेंद्र दास ने भले ही उन की पत्नी रवीना को आत्महत्या का जिम्मेदार बताया हो, पर खुद सुरेंद्र ने अपने सुसाइड नोट में पत्नी रवीना को जिम्मेदार नहीं माना. सुरेंद्र दास ने अपने 7 लाइन के पत्र में अंगरेजी और हिंदी दोनों में लिखा था. अंगरेजी में उन्होंने लिखा था कि वह पिछले एक सप्ताह से आत्महत्या करने के तरीके खोज रहे थे. गूगल पर आत्महत्या करने का सब से आसान तरीके को समझने के लिए पढ़ा और वीडियो देखी. इस के बाद 2 तरीकों पर ध्यान दिया. पहला ब्लेड से शरीर की नस काटनी थी. दूसरा जहर खाने का तरीका था

नस काटने में दर्द होने की संभावना ज्यादा थी. ऐसे में मुझे जहर खाने का तरीका सब से अच्छा लगा. इस के लिए उन्होंने सल्फास लाने के लिए अपने एक कर्मचारी को कहा कि उन्हें चूहे और सांप भगाने हैं. 4 सितंबर को जहर खाने से पहले सुरेंद्र दास ने सल्फास मंगवा कर रख ली थी. इन तमाम आरोपों पर सुरेंद्र दास की पत्नी डा. रवीना की तरफ से कोई भी बात नहीं कही गई. रवीना ने केवल इतना कहा कि मेरा सब कुछ चला गया है. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिए. मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी है. मैं हाथ जोड़ कर कह रही हूं कि मुझे किसी से कुछ नहीं कहना हैरवीना के परिजनों ने हर आरोप को गलत बताते हुए कहा कि सच्चाई सुरेंद्र दास के परिवार को पता है. वह अपने परिवार से परेशान थे और 4 महीने से वह अपने परिवार के संपर्क में नहीं थे. सुरेंद्र की मौत की फाइल अभी बंद नहीं हुई है. ऐसे में संभव है कि कुछ दिनों के बाद कोई सुराग मिले तो फिर से नए तथ्य सामने आएं

एक बात साफ है कि सुरेंद्र अपने जीवन में बेहद तनाव के दौर में गुजर रहे थे. इस बारे में उन्होंने अपने घरपरिवार और पत्नी से भी किसी तरह की कोई चर्चा नहीं की थी. अगर वह अपने करीबी लोगों से अपने तनाव के बारे में चर्चा कर लेते तो शायद वह ऐसा कदम नहीं उठाते. एसपी सुरेंद्र दास की आत्महत्या को ले कर जब आरोपों का दौर चला तो उन की पत्नी डा. रवीना के मातापिता ने सामने कर प्रैस कौन्फ्रैंस की. रवीना के पिता रावेंद्र ने कई कथित सबूतों के साथ आरोप लगाया कि सुरेंद्र का परिवार नहीं चाहता था कि सुरेंद्र रवीना के साथ रहे. उन्होंने यह भी कहा कि सुरेंद्र की शादी की बात पहले तूलिका नाम की लड़की से हुई. बात नहीं बनी तो मोनिका से सगाई हुई, लेकिन वह भी टूट गई

अगस्त 2016 में सुरेंद्र की पहली मुलाकात रवीना से हुई. बात आगे बढ़ी तो सुरेंद्र का परिवार इस रिश्ते के खिलाफ था. लेकिन सुरेंद्र ने किसी तरह अपनी मां को मना लिया. शादी से पहले सुरेंद्र के बड़े भाई नरेंद्र ने शादी का सामान रवीना के एटीएम कार्ड से खरीदा. अप्रैल, 2017 में रवीना अपनी ससुराल पहुंची तो वहां उस से अभद्रता की गई. भद्दे कमेंट्स किए गए. यहां तक कि उसे खाना भी नहीं दिया गया. रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र का बड़ा भाई नरेंद्र एक व्यावसायिक प्लौट खरीदने के लिए सुरेंद्र से पैसे मांग रहा था. एकता नगर का प्लौट बेचने के चक्कर में दोनों भाइयों में झगड़ा होता था

रावेंद्र के अनुसार, सुरेंद्र की मां इंदु अपने बेटे के पास नहीं जाती थीं. सुरेंद्र दास जब सहारनपुर में तैनात थे तो लखनऊ आते थे लेकिन अपने परिवार को सूचना देने से मना कर देते थे. बाद में अंबेडकर नगर ट्रांसफर के समय सुरेंद्र ने दहेज का सामान लाने के लिए ट्रक भेजा था, लेकिन नरेंद्र ने सामान देने से मना कर दिया. बहरहाल, दोनों पक्षों की ओर से आरोपप्रत्यारोप चल रहे हैं. कौन सच बोल रहा है, कौन झूठ कहा नहीं जा सकता. हां, यह तय है कि सुरेंद्र दास ने मानसिक द्वंद के चलते ही आत्महत्या की. दुख यह जान कर होता है कि जो व्यक्ति कानून का रखवाला था, आत्महत्या कर के वह खुद ही कानून से खेल कर दुनिया से दूर चला गया. आखिर कोई तो ऐसी बात रही होगी जो उन से बरदाश्त नहीं हुई. इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है.    

Rajasthan Crime : ठेकदारों को पैसा नहीं दिया तो कर लिया अपहरण

Rajasthan Crime : नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को बाड़मेर के गांव उत्तरलाई में सोलर प्लांट लगाना था. इस के लिए नैचुरल पावर कंपनी ने बंगलुरु की सबलेट कंपनी को ठेका दिया, जो काम अधूरा छोड़ कर भाग गई. प्लांट की स्थिति जानने के लिए जब हैदराबाद से कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी अपने दोस्त सुरेश रेड्डी के साथ बाड़मेर आए तो…    

हैदराबाद निवासी के. श्रीकांत रेड्डी नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे. हैदराबाद की यह कंपनी भारत के विभिन्न राज्यों में सरकारी कामों का ठेका ले कर काम करती है. इस कंपनी को राजस्थान के जिला बाड़मेर के अंतर्गत आने वाले उत्तरलाई गांव के पास सोलर प्लांट के निर्माण कार्य का ठेका मिला था. बड़ी कंपनियां प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए छोटीछोटी कंपनियों को अलगअलग काम का ठेका दे देती हैं. नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी ने भी इस सोलर प्लांट प्रोजेक्ट का टेंडर सबलेट कर दिया था

बंगलुरू की इस सबलेट कंपनी ने बाड़मेर और स्थानीय ठेकेदारों को प्लांट का कार्य दे दिया. ठेकेदार काम करने में जुट गएतेज गति से काम चल रहा था कि इसी बीच नैचुरल पावर एवं सबलेट कंपनी के बीच पैसों को ले कर विवाद हो गया. ऐसे में सबलेट कंपनी रातोंरात काम अधूरा छोड़ कर स्थानीय ठेकेदारों का लाखों रुपयों का भुगतान किए बिना भाग खड़ी हुई. स्थानीय ठेकेदारों को जब पता चला कि सबलेट कंपनी उन का पैसा दिए बगैर भाग गई है तो उन के होश उड़ गए क्योंकि सबलेट कंपनी ने इन ठेकेदारों से करोड़ों का काम करवाया था, मगर रुपए आधे भी नहीं दिए थे. स्थानीय ठेकेदार नाराज हो गए. उन्होंने एमइएस के अधिकारियों से मिल कर अपनी पीड़ा बताई. एमइएस को इस सब से कोई मतलब नहीं था.

मगर जब काम बीच में ही रुक गया तो एमईएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. से कहा कि वह रुके हुए प्रोजेक्ट को पूरा करे. तब कंपनी ने अपने एमडी के. श्रीकांत रेड्डी को हैदराबाद से उत्तरलाई (बाड़मेर) काम देखने पूरा करने के लिए भेजा. के. श्रीकांत रेड्डी अपने मित्र सुरेश रेड्डी के साथ उत्तरलाई (बाड़मेर) पहुंच गए. यह बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. वे दोनों राजस्थान के उत्तरलाई में पहुंच चुके थे. जब ठेकेदारों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने अपना पैसा वसूलने के लिए दोनों का अपहरण कर के फिरौती के रूप में एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बनाई.

ठेकेदारों ने अपने 3 साथियों को लाखों रुपए का लालच दे कर इस काम के लिए तैयार कर लिया. यह 3 व्यक्ति थे. शैतान चौधरी, विक्रम उर्फ भीखाराम और मोहनराम. ये तीनों एक योजना के अनुसार 22 अक्तूबर को के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी से उन की मदद करने के लिए मिलेश्रीकांत रेड्डी एवं सुरेश रेड्डी मददगारों के झांसे में गए. तीनों उन के साथ घूमने लगे और उसी शाम उन्होंने के. श्रीकांत और सुरेश रेड्डी का अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने सुनसान रेत के धोरों में दोनों के साथ मारपीट की, साथ ही एक करोड़ रुपए की फिरौती भी मांगी

अपहर्त्ताओं ने उन्हें धमकाया कि अगर रुपए नहीं दिए तो उन्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा. अनजान जगह पर रेड्डी दोस्त बुरे फंस गए थे. ऐसे में क्या करें, यह बात उन की समझ में नहीं रही थी. दोनों दोस्त तेलुगु भाषा में एकदूसरे को तसल्ली दे रहे थेचूंकि अपहर्त्ता केवल हिंदी और राजस्थान की लोकल भाषा ही जानते थे, इसलिए रेड्डी बंधुओं की भाषा नहीं समझ पा रहे थे. यह बात रेड्डी बंधुओं के लिए ठीक थी. इसलिए वे अपहर्त्ताओं के चंगुल से छूटने की योजना बनाने लगेअपहर्त्ता मारपीट कर के दिन भर उन्हें इधरउधर रेत के धोरों में घुमाते रहे. इस के बाद एक अपहर्त्ता ने के. श्रीकांत रेड्डी से कहा, ‘‘एमडी साहब अगर आप एमडी हो तो अपने घर वालों के लिए हो, हमारे लिए तो सोने का अंडा देने वाली मुरगी हो.

इसलिए अपने घर पर फोन कर के एक करोड़ रुपए हमारे बैंक खाते में डलवा दो, वरना आप की जान खतरे में पड़ सकती है.’’ कह कर उस ने फोन के श्रीकांत रेड्डी को दे दिया. श्रीकांत रेड्डी बहुत होशियार और समझदार व्यक्ति थे. वह फर्श से अर्श तक पहुंचे थे. उन्होंने गरीबी देखी थी. गरीबी से उठ कर वह इस मुकाम तक पहुंचे थेश्रीकांत करोड़पति व्यक्ति थे. वह चाहते तो करोड़ रुपए अपहर्त्ताओं को फिरौती दे कर खुद को और अपने दोस्त सुरेश रेड्डी को मुक्त करा सकते थे, मगर वह डरपोक नहीं थे. वह किसी भी कीमत पर फिरौती दे कर अपने दोस्त और खुद की जान बचाना चाहते थे

अपहत्ताओं ने अपने मोबाइल से के. श्रीकांत रेड्डी के पिता से उन की बात कराई. श्रीकांत रेड्डी ने तेलुगु भाषा में अपने पिताजी से बात कर कहा, ‘‘डैडी, मेरा और सुरेश का उत्तरलाई (बाड़मेर) के 3 लोगों ने अपहरण कर लिया है और एक करोड़ रुपए की फिरौती मांग रहे हैं. आप इन के खाते में किसी भी कीमत पर रुपए मत डालना

‘‘जिस बैंक में मेरा खाता है, वहां के बैंक मैनेजर से मेरी बात कराना. आप चिंता मत करना, ये लोग हमारा बाल भी बांका नहीं करेंगे. हमें मारने की सिर्फ धमकियां दे सकते हैं ताकि रुपए ऐंठ सकें. आप बैंक जा कर मैनेजर से मेरी बात कराना. बाकी मैं देख लूंगा.’’

इस स्थिति में भी उन्होंने धैर्य और साहस से काम लिया. उन्होंने नैचुरल पावर कंपनी के अन्य अधिकारियों को भी यह बात बता दी. इस के बाद वह कंपनी के अधिकारियों के साथ हैदराबाद की उस बैंक में पहुंचे, जहां श्रीकांत रेड्डी का खाता थाश्रीकांत रेड्डी ने बैंक मैनेजर को मोबाइल पर सारी बात बता कर कहा, ‘‘मैनेजर साहब, मैं अपने दोस्त के साथ बाड़मेर में कंपनी का काम देखने आया था, लेकिन मददगार बन कर आए 3 लोगों ने हमारा अपहरण कर लिया और एक करोड़ की फिरौती मांग रहे हैं. आप से मेरा निवेदन है कि आप 25 लाख रुपए का आरटीजीएस करवा दो

‘‘लेकिन ध्यान रखना कि यह धनराशि जारी करते ही तुरंत रद्द हो जाए. ताकि अपहर्त्ताओं को धनराशि खाते में आने का मैसेज उन के फोन पर मिल जाए लेकिन बदमाशों को रुपए नहीं मिले.’’ उन्होंने यह बात तेलुगु और अंग्रेजी में बात की थी, जिसे अपहर्त्ता नहीं समझ सके. बैंक मैनेजर ने ऐसा ही किया. बदमाशों से एमडी के पिता और कंपनी के अधिकारी लगातार बात करते रहे और झांसा देते रहे कि जैसे ही 75 लाख रुपए का जुगाड़ होता है, उन के खाते में डाल दिए जाएंगे. चूंकि एक अपहर्त्ता के फोन पर खाते में 25 लाख रुपए जमा होने का मैसेज गया था इसलिए वह मान कर चल रहे थे कि उन्हें 25 लाख रुपए तो मिल चुके हैं और बाकी के 75 लाख भी जल्द ही मिल जाएंगे

अपहर्त्ताओं ने के. श्रीकांत रेड्डी से स्टांप पेपर पर भी लिखवा लिया था कि वह ये पैसा ठेके के लिए दे रहे हैं. अपहर्त्ता अपनी योजना से चल रहे थे, वहीं एमडी, उन के पिता और कंपनी मैनेजर अपनी योजना से चल रहे थे. उधर नैचुरल पावर कंपनी के अधिकारी ने 24 अक्तूबर, 2019 को हैदराबाद से बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम को कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी के अपहरण और अपहत्ताओं द्वारा एक करोड़ रुपए फिरौती मांगे जाने की जानकारी दे दी. कंपनी अधिकारी ने वह मोबाइल नंबर भी पुलिस को दे दिया, जिस से अपहर्त्ता उन से बात कर रहे थे

बाड़मेर पुलिस कंट्रोल रूम ने यह जानकारी बाड़मेर के एसपी शरद चौधरी को दी. एसपी शरद चौधरी ने उसी समय बाड़मेर एएसपी खींव सिंह भाटी, डीएसपी विजय सिंह, बाड़मेर थाना प्रभारी राम प्रताप सिंह, थानाप्रभारी (सदर) मूलाराम चौधरी, साइबर सेल प्रभारी पन्नाराम प्रजापति, हैड कांस्टेबल महीपाल सिंह, दीपसिंह चौहान आदि की टीम को अपने कार्यालय बुलायाएसपी शरद चौधरी ने पुलिस टीम को नैचुरल पावर कंपनी के एमडी और उन के दोस्त का एक करोड़ रुपए के लिए अपहरण होने की जानकारी दी उन्होंने अतिशीघ्र उन दोनों को सकुशल छुड़ाने की काररवाई करने के निर्देश दिए. उन्होंने टीम के निर्देशन की जिम्मेदारी सौंपी एएसपी खींव सिंह भाटी को.

इस टीम ने तत्काल अपना काम शुरू कर दिया. साइबर सेल और पुलिस ने कंपनी के मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबरों की काल ट्रेस की तो पता चला कि उन नंबरों से जब काल की गई थी, तब उन की लोकेशन सियाणी गांव के पास थीबस, फिर क्या था. बाड़मेर पुलिस की कई टीमों ने अलगअलग दिशा से सियाणी गांव की उस जगह को घेर लिया जहां से अपहत्ताओं ने काल की थी. पुलिस सावधानीपूर्वक आरोपियों को दबोचना चाहती थी, ताकि एमडी और उन के साथी सुरेश को सकुशल छुड़ाया जा सके

पुलिस के पास यह जानकारी नहीं थी कि अपहर्त्ताओं के पास कोई हथियार वगैरह है या नहीं? पुलिस टीमें सियाणी पहुंची तो अपहर्ता सियाणी से उत्तरलाई होते हुए बाड़मेर पहुंच गए. आगेआगे अपहर्त्ता एमडी रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को गाड़ी में ले कर चल रहे थे. उन के पीछेपीछे पुलिस की टीमें थींएसपी शरद चौधरी के निर्देश पर बाड़मेर शहर और आसपास की थाना पुलिस ने रात से ही नाकाबंदी कर रखी थी. अपहर्त्ता बाड़मेर शहर पहुंचे और उन्होंने बाड़मेर शहर में जगहजगह पुलिस की नाकेबंदी देखी तो उन्हें शक हो गया. वे डर गए. वे लोग के. श्रीकांत रेड्डी और सुरेश रेड्डी को ले कर सीधे बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंचे. बदमाशों ने दोनों अपहर्त्ताओं को बाड़मेर रेलवे स्टेशन पर वाहन से उतारा. तभी पुलिस ने घेर कर 3 अपहर्त्ताओं शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम एवं मोहनराम को गिरफ्तार कर लिया.

शैतान चौधरी और भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी दोनों सगे भाई थे. पुलिस तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर थाने ले आई. अपहरण किए गए हैदराबाद निवासी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. कंपनी के एमडी के. श्रीकांत रेड्डी और उन के दोस्त सुरेश रेड्डी को भी थाने लाया गयापुलिस ने आरोपी अपहरण कार्ताओं के खिलाफ अपहरण, मारपीट एवं फिरौती का मुकदमा कायम कर पूछताछ कीश्रीकांत रेड्डी ने बताया कि उत्तरलाई के पास सोलर प्लांट निर्माण का ठेका उन की नैचुरल पावर एशिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी हैदराबाद को मिला था

उन की कंपनी ने यह काम सबलेट कंपनी बंगलुरु को दे दिया. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को पावर प्लांट का कार्य ठेके पर दिया. कार्य पूरा होने से पूर्व सबलेट कंपनी और नैचुरल पावर एशिया कंपनी में पैसों के लेनदेन पर विवाद हो गया. सबलेट कंपनी ने जितने में ठेका नैचुरल कंपनी से लिया था, उतना पेमेंट नैचुरल कंपनी ने सबलेट कंपनी को कर दिया. मगर काम ज्यादा था और पैसे कम थे. इस कारण सबलेट कंपनी ने और रुपए मांगेनैचुरल पावर कंपनी ने कहा कि जितने रुपए का ठेका सबलेट को दिया था, उस का पेमेंट हो चुका है. अब और रुपए नैचुरल कंपनी नहीं देगी

तब सबलेट कंपनी सोलर प्लांट का कार्य अधूरा छोड़ कर भाग गई. सबलेट कंपनी ने स्थानीय ठेकेदारों को जो ठेके दिए थे, उस का पेमेंट भी सबलेट ने आधा दिया और आधा डकार गई. तब एमइएस ने मूल कंपनी नैचुरल पावर एशिया प्रा. लि. के एमडी को बुलाया. मददगार बन कर शैतान चौधरी, भीखाराम उर्फ विक्रम चौधरी और मोहनराम उन से मिलेउन के लिए यह इलाका नया था. इसलिए उन्हें लगा कि वे अच्छे लोग होंगे, जो मददगार के रूप में उन्हें साइट वगैरह दिखाएंगे. मगर ये तीनों ठेकेदारों के आदमी थे, जो दबंग और आपराधिक प्रवृत्ति के थे

इन्होंने ही उन का अपहरण कर एक करोड़ रुपए की फिरौती मांगी. एमडी रेड्डी ने इस अचानक आई आफत से निपटने के लिए अपनी तेलुगु और अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर के सिर्फ स्वयं को बल्कि अपने दोस्त को भी बचा लिया. पुलिस अधिकारियों ने थाने में तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ की. पूछताछ में आरोपियों ने अपने अन्य साथियों के नाम बताए, जो इस मामले में शामिल थे और जिन के कहने पर ही इन तीनों ने एमडी और उन के दोस्त का अपहरण कर एक करोड़ की फिरौती मांगी थी. तीनों अपहर्त्ताओं से पूछताछ के बाद पुलिस ने 25 अक्तूबर, 2019 को अर्जुनराम निवासी बलदेव नगर, बाड़मेर, कैलाश एवं कानाराम निवासी जायड़ु को भी गिरफ्तार कर लिया. इस अपहरण में कुल 6 आरोपी गिरफ्तार किए गए थे. आरोपियों को थाना पुलिस ने 26 अक्तूबर 2019 को बाड़मेर कोर्ट में पेश कर के उन्हें रिमांड पर ले लिया.

पूछताछ में आरोपियों ने स्वीकार किया कि उन लोगों का ठेकेदारी का काम है. कुछ ठेकेदार थे और कुछ ठेकेदारों के मुनीम कमीशन पर काम ले कर करवाने वाले. अर्जुनराम, कैलाश एवं कानाराम छोटे ठेकेदार थे, जो ठेकेदार से लाखों रुपए का काम ले कर मजदूर और कारीगरों से काम कराते थेसबलेट कंपनी ने जिन बड़े ठेकेदारों को ठेके दिए थे. बड़े ठेकेदारों से इन्होंने भी लाखों रुपए का काम लिया था. मगर सबलेट कंपनी बीच में काम छोड़ कर बिना पैसे का भुगतान किए भाग गई तो इन का पैसा भी अटक गया. मजदूर और कारीगर इन ठेकेदारों से रुपए मांगने लगे, क्योंकि उन्होंने मजदूरी की थी. जब ठेकेदारों ने पैसा नहीं दिया तो ये लोग परेशान हो गए

ऐसे में इन लोगों ने जब नैचुरल पावर कंपनी के एमडी के आने की बात सुनी तो इन्होंने उस का अपहरण कर के फिरौती के एक करोड़ रुपए वसूलने की योजना बना लीइन लोगों ने सोचा था कि एक करोड़ रुपए वसूल लेंगे तो मजदूरों एवं कारीगरों का पैसा दे कर लाखों रुपए बच जाएंगेसभी आरोपियों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

Social crime : धोखेबाज तांत्रिक की खोंफनाक चाल

Social crime :  जो लोग अपनी किसी परेशानी के चलते तंत्रमंत्र और तांत्रिकों, मौलवियों या ऐसे ही दूसरे धंधेबाजों के जाल में फंस जाते हैं, उन का हित कभी नहीं हो पाता. हां, अहित उन्हें अपने डैनों में जकड़ लेता है. कभीकभी तो जान तक चली जाती है. कुलदीप सिंह और उन के परिवार के साथ भी…

28 अगस्त, 2018 को मोहाली स्थित सीबीआई के माननीय जज एन.एस. गिल की विशेष अदालत में कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. उस दिन एक ऐसे मामले का फैसला होना था, जिस में आरोपी ने कोई एकदो नहीं बल्कि 10 लोगों की हत्या की थी.  न्याय पाने के लिए पीडि़त परिवार ने न केवल लंबी लड़ाई लड़ी थी बल्कि इस लड़ाई में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था. तब कहीं जा कर आज का दिन देखना नसीब हुआ था. 2 परिवारों के 10 लोगों की हत्या करने के बाद कातिल ने जब हत्याएं करने का मकसद बताया तो अदालत में मौजूद लोगों के होश उड़ गए.

सुहावी गांव के खुशविंदर सिंह उर्फ खुशी ने 14 साल पहले जून 2004 में पंजाब के फतेहगढ़ साहिब में एक ही परिवार के 4 सदस्यों की हत्या की थी. यह केस लंबी अवधि तक चलता रहा. आखिर सीबीआई की विशेष अदालत ने 28 अगस्त, 2018 को खुशविंदर को दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई. अदालत इस दोषी को पहले भी एक ही परिवार के 6 लोगों की हत्या करने के मामले में मौत की सजा सुना चुकी थी. आरोपी ने इस सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दया की अपील डाल रखी थी. जज एन.एस. गिल ने अपने फैसले में लिखा कि यह अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी का है. दोषी ने एक साथ परिवार के 4 सदस्यों को मौत के घाट उतारा है, जिस में 2 बच्चे भी शामिल थे, जिन्हें अभी दुनिया देखनी थी. ऐसी स्थिति में दोषी पर किसी भी कीमत पर रहम नहीं किया जा सकता.

10 हत्याओं का घटनाक्रम कुछ इस तरह था. पंजाब के फतेहगढ़ साहिब के बसी पठाना क्षेत्र में कुलवंत सिंह का परिवार रहता था. उन के परिवार में 40 वर्षीय पत्नी हरजीत कौर, 17 वर्षीय बेटी रमनदीप कौर और 14 वर्षीय बेटा अरविंदर सिंह थे. कुलवंत सिंह मेहनती दयालु और सज्जन पुरुष थे. उन का परिवार भी नेकदिल था. अपने गांव में उन की काफी इज्जत थी. सुहावी निवासी खुशविंदर सिंह उर्फ खुशो का भाई कुलविंदर सिंह बसी पठाना में रहता था, वह कुलवंत सिंह के पास मुंशी का काम करता था. वह अपने काम के प्रति पूरी तरह ईमानदार था. कुलवंत सिंह को उस से कोई शिकायत नहीं थी. उस की ईमानदारी को देखते हुए वह उस पर विश्वास करते थे और एक तरह से उसे अपना पारिवारिक सदस्य मानने लगे थे.

धीरेधीरे मुंशी कुलविंदर सिंह और कुलवंत सिंह के परिवारों में आनाजाना होने लगा. इसी दौरान कुलवंत सिंह की मुलाकात मुंशी कुलविंदर सिंह के भाई खुशविंदर सिंह उर्फ खुशी से हुई. कुलविंदर सिंह और खुशी का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था. उस के पास खेती की जमीन तो थी, लेकिन काफी कम. इतनी जमीन में घर का खर्च चलाना मुश्किल था. मुंशी होने के नाते कुलवंत सिंह यदाकदा उस की मदद कर दिया करते थे. एक दिन खुशी ने कुलवंत सिंह से फतेहगढ़ साहिब कोर्ट के बाहर फोटोस्टेट की मशीन लगाने के लिए मदद मांगी तो वह झट से तैयार हो गए और उन्होंने खुशी के लिए फोटोस्टेट मशीन लगवा दी. इस बीच खुशी काफी हद तक कुलवंत सिंह और उन के परिवार से घुलमिल गया था. ये सभी बातें सन 2004 की हैं.

मई 2004 में कुलवंत सिंह ने अपनी कुछ जमीन बेची थी, जिस के बदले उन्हें करीब 12 लाख रुपए मिले थे. यह बात जब खुशी को पता चली तो उस के मन में लालच आ गया. उन रुपयों को हथियाने के लिए उस ने एक जबरदस्त साजिश रच डाली. कुलदीप को अपनी बातों के जाल में फंसा कर एक दिन उस ने उन्हें भरोसा दिलाया कि वह ख्वाजा पीर का भक्त है और उस के पास और भी कई प्रकार की सिद्ध शक्तियां हैं. उस ने कुलदीप से कहा, ‘‘आप ने मेरी इतनी मदद की है, मुझे फोटोस्टेट मशीन लगवा दी. इसलिए मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं भी आप की कुछ सेवा कर अपना कर्ज उतार दूं. आप के पास जितनी भी रकम है. वह मैं अपनी सिद्धियों के जरिए दोगुनी कर सकता हूं.’’

पंजाब में अधिकांश लोग ख्वाजा पीर को मानते हैं. हालांकि कुलवंत सिंह ने इनकार करते हुए कहा कि उन के पास जो है वह वाहेगुरु जी का दिया है. लेकिन खुशी ने अपनी दलीलों से उन्हें संतुष्ट करते हुए भरोसा दिलाया कि वह जो पूजा करेगा, उस के बाद रकम दोगुनी हो जाएगी. कुलवंत सिंह को भी लालच आ गया. तब खुशी ने उन्हें बताया कि पूजा नहर किनारे पूरे परिवार के साथ अलसुबह होगी. खुशी ने इस बात की भी सख्त हिदायत दी थी कि इस बात का जिक्र किसी से नहीं करना है अन्यथा परिवार में कुछ अनिष्ट हो जाएगा. यह बात 2 जून, 2004 की है.

अगली सुबह दिनांक 3 जून को रात करीब ढाई बजे कुलवंत सिंह अपनी पत्नी हरजीत कौर, बेटी रमनदीप कौर और बेटे अरविंदर सिंह के साथ 12 लाख रुपए ले कर फतेहगढ़ नहर किनारे पहुंच गए. खुशी वहां पहले से ही मौजूद था. उस ने परिवार के चारों सदस्यों की आंखों पर पट्टी बांध कर उन्हें नहर किनारे खड़ा कर दिया. इस के बाद उस ने पूजा शुरू कर दी. खुशी की योजना से अनभिज्ञ वे चारों आंखों पर पट्टी बांधे नहर किनारे खड़े थे. कुछ देर पूजा का ड्रामा करने के बाद खुशी ने एकएक कर के सब को नहर में धक्का दे दिया और 12 लाख रुपए ले कर अपने घर चला गया. नहर में पानी का बहाव बहुत तेज था, इसलिए कुलवंत सिंह के परिवार के किसी भी सदस्य की लाशें नहीं मिलीं. कोई नहीं जान सका कि वे चारों कहां गए. इस के बाद मृतक के साले कुलतार सिंह के बयानों पर थाना बस्सी पठाना में 5 जून को केस दर्ज हुआ था.

घटना के बाद पूरे इलाके में दहशत फैल गई. इस बात का पता नहीं चल सका कि एक ही घर के सभी सदस्य आखिर कहां गायब हो गए. पुलिस ने संभावित जगहों पर उन्हें तलाशा, पर उन का पता पता नहीं चल सका. फिर 7 जून, 2004 को रमनदीप कौर और 9 जून को कुलवंत सिंह का शव नहर में मिला. जबकि हरजीत कौर व उस के बेटे अरविंदर सिंह के शव आज तक बरामद नहीं हुए. कुलवंत सिंह के परिवार का अध्याय यहीं समाप्त हो गया था. इस मामले में फतेहगढ़ पुलिस ने काफी मेहनत की थी पर खुशविंदर सिंह उर्फ खुशी ने यह काम इतनी सफाई से किया था कि पूरी कोशिशों के बाद भी पुलिस आरोपी तक नहीं पहुंच पाई थी. इस के बाद सन 2005 में फतेहगढ़ साहिब पुलिस ने इस मामले में अपनी क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी.

यह केस अनसुलझा ही रह गया था. इस के बाद कुलतार सिंह के भाई की प्रार्थना पर यह केस राज्य की क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर हो गया था. काफी माथापच्ची के बाद भी क्राइम ब्रांच के हाथ कुछ नहीं लगा था और 3 अगस्त, 2006 में क्राइम ब्रांच ने भी इस मामले में अपनी क्लोजर रिपोर्ट फाइल कर दी थी. पर कुलतार सिंह इस से संतुष्ट नहीं थे. उन्होंने सन 2007 में पंजाब ऐंड हरियाणा हाईकोर्ट की शरण ली. 16 मार्च, 2007 में अदालत के आदेश पर यह केस सीबीआई को दे दिया गया था. सीबीआई भी आरोपी तक नहीं पहुंच पाई. इस के बाद सन 2009 में सीबीआई ने भी इस मामले में अपने हाथ खड़े करते हुए अपनी रिपोर्ट फाइल कर के मामला बंद कर दिया. कुलवंत के परिजनों की हत्याओं का रहस्य एक रहस्य ही बन कर रह गया था.

इस के 8 साल बाद जून 2012 में खुशविंदर उर्फ खुशी ने अपनी पत्नी के मामा के परिवार को निशाना बनाया और उस परिवार के 6 लोगों की नहर में फेंक कर हत्या कर दी थी. इन में पंजाब पुलिस का रिटायर्ड कांस्टेबल गुरमेल सिंह, उस की पत्नी परमजीत कौर, बेटा गुरिंदर सिंह, बेटी जैसमीन, रुपिंदर सिंह व प्रभसिमरन कौर शामिल थे. लेकिन किसी वजह से जैसमीन कौर नहर में फंस गई थी, जिस से वह बच गई.  जैसमीन कौर की शिकायत पर पुलिस ने आरोपी खुशी को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने उस से 36 लाख रुपए की बरामदगी भी की थी. 6 लोगों की हत्या के आरोप में पकड़े गए आरोपी खुशविंदर ने पुलिस के सामने कबूल किया कि फतेहगढ़ साहिब में सन 2004 में एक ही परिवार के 4 लोगों की हत्या भी उसी ने की थी. यह सब उस ने 12 लाख रुपए के लालच में किया था. उस के कबूलनामे के बाद फतेहगढ़ साहिब वाला केस भी दोबारा खोला गया.

शिकायतकर्ता कुलतार सिंह इस मामले की तह तक जा कर आरोपी को सजा करवाना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया. उन के अनुरोध पर यह केस सीबीआई की मोहाली ब्रांच को सौंप दिया. सीबीआई के डीएसपी एन.आर. मीणा ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि खुशविंदर सिंह तांत्रिक बन कर लोगों को अपने जाल में फंसाता था. फिर उन्हें वह नहर पर ले जाता और अपने शिकार की आंखों पर पट्टी बांध कर किनारे खड़े हो कर नमस्कार करने के लिए कहता था. फिर मौका मिलते ही एकएक कर सभी को नहर में धक्का दे देता था. जब आरोपी को फतेहगढ़ साहिब पुलिस ने पकड़ा था तो उस ने पुलिस के आगे खुलासा किया था कि उस का अगला निशाना उस की अपनी पत्नी थी. वह 2 बार अपनी पत्नी को नहर पर ले जा चुका था. दोषी खुशी ने बताया था कि वह पत्नी को मारने की तैयारी में जुटा था.

वह उसे भी उस जगह पर ले कर गया था, जहां भाखड़ा नहर में फेंक कर उस ने 2 लोगों को मारा था. हालांकि इस बात का अभी तक कोई पता नहीं चला कि वह 2 आदमी कौन थे. बाद में उस ने अपनी पत्नी को मारने का इरादा त्याग दिया था और पत्नी की मामी के परिवार वालों को मारने का प्लान बनाया था. इस के बाद आगे की काररवाई की थी. खास बात यह थी कि इतनी हत्याओं के बाद भी उसे कुछ दुख नहीं था. दूसरे लोगों की तरह वह साधारण जिंदगी जी रहा था. खुशी अपनी पत्नी की हत्या कर के अपनी छोटी साली से शादी करने की योजना बना रहा था. वह डल्ला गांव स्थित अपनी ससुराल की सारी जमीन हड़पना चाहता था. उसे लगता था कि इस के बाद उस का इलाके में अच्छा रसूख हो जाएगा.

बहरहाल, 28 अगस्त, 2018 की सुबह 10 बजे भारी सुरक्षा के बीच दोषी को सीबीआई की विशेष अदालत में लाया गया था. इस के पहले अदालत की सारी प्रक्रियाएं पूरी हो चुकी थीं और माननीय जज एन.एस. गिल ने पिछली तारीख पर ही उसे दोषी करार दे दिया था. 28 अगस्त को तो केवल फैसला सुनाना था. सुनवाई के दौरान दोषी खुशविंदर उर्फ खुशी ने सभी हत्याएं करने की बात कबूली थीं. सीबीआई के प्रौसीक्यूटर कुमार रजत इस पूरे प्रकरण को सबूतों सहित अदालत के सामने रख चुके थे और यह भी बता चुके थे कि 6 लोगों की हत्याओं के मामले में अदालत पहले भी खुशी को फांसी की सजा सुना चुकी है, जिस के लिए दोषी की ओर से दया याचिका पर सुनवाई होनी है. माननीय जज एन.एस. गिल की अदालत ने इस मामले में दोपहर बाद अपना फैसला सुनाया.

अदालत ने उसे भादंसं की धारा 302, हत्या करने के लिए सजा ए मौत और 10 हजार रुपए जुरमाना, धारा 364 हत्या की नीयत से किडनैपिंग में उम्रकैद और 5 हजार रुपए जुरमाना तथा धारा 201 सबूतों को नष्ट करने के तहत 5 साल की सजा और 5 हजार रुपए के जुरमाने की सजा सुनाई है. जुरमाना न चुकाने की स्थिति में दोषी को एक साल और जेल में रहना होगा. अपने फैसले में जज साहब ने यह भी कहा कि यह अपराध रेयरेस्ट औफ रेयर की श्रेणी में आता है. दोषी ने एक साथ परिवार के 4 सदस्यों को मौत के घाट उतारा था, जिस में 2 बच्चे भी शामिल थे. ऐसे में दोषी पर किसी भी कीमत पर रहम नहीं किया जा सकता.

सीबीआई की अदालत पटियाला से मोहाली शिफ्ट होने के बाद यह पहला मामला है, जिस में किसी दोषी को फांसी की सजा सुनाई गई है. पीडि़त परिवार के सदस्यों ने इस फैसले पर खुशी जताई है. उन्होंने कहा कि लंबे समय बाद उन्हें न्याय मिला है. जज ने अपना यह फैसला एक मिनट में सुना दिया. जज साहब द्वारा फैसला सुनाए जाने के दौरान दोषी के चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं थी. इस के बाद पुलिस दोषी को पीछे ले कर चली गई. हालांकि इस दौरान उस के चेहरे पर किसी भी तरह का कोई दुख नहीं दिखाई दे रहा था. वह पहले की तरह खामोश था. इस दौरान उस का कोई पारिवारिक सदस्य तक वहां नहीं आया हुआ था.

दोषी की पत्नी मंजीत कौर सुहावी गांव में अपनी बेटी और बेटे के साथ रहती है. मंजीत कौर के भाई की सन 2006 में उन की शादी के एक महीने के बाद नहर में गिरने से मौत हो गई थी, तब वह नैनादेवी से लौट कर आ रहे थे. मंजीत कौर की माता की मौत उस की शादी से पहले ही हो गई थी.

 

Kanpur Crime : सामाजिक संस्था की आड़ में चलता जिस्मफरोशी का धंधा

Kanpur Crime : कुछ लड़कियां अपनी महत्त्वाकांक्षा के चलते, तो कुछ मजबूरी में बरखा उर्फ लवली जैसी धंधेबाज औरतों के जाल में फंस जाती हैं. देह व्यापार की पुरानी खिलाड़ी महिलाएं उन्हें ऐसी दलदल में उतारती हैं, जहां से…

कानपुर (साउथ) की एसपी रवीना त्यागी को एक मुखबिर ने जो जानकारी दी थी, वह वाकई चौंकाने वाली थी. एकबारगी तो उन्हें खबर पर विश्वास ही नहीं हुआ, पर इसे अविश्सनीय समझना भी ठीक नहीं था. अत: उन्होंने फोन द्वारा तत्काल सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह को अपने कार्यालय आने को कहा. कुछ देर बाद ही गीतांजलि सिंह एसपी (साउथ) रवीना त्यागी के कार्यालय पहुंच गईं. रवीना त्यागी ने गीतांजलि की ओर मुखातिब हो कर कहा, ‘‘गीतांजलि, नजीराबाद थाना क्षेत्र के लाजपत नगर के मकान नंबर 120/18 में हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चलने की जानकारी मुझे मिली है.

रैकेट की संचालिका लवली चक्रवर्ती उर्फ बरखा मिश्रा है, जो सामाजिक संस्था की आड़ में यह धंधा करती है. यह भी पता चला है कि नजीराबाद थाना और चौकी के कुछ पुलिसकर्मी भी कालगर्ल्स को संरक्षण दे कर उन की मदद कर रहे हैं. आप इस मामले में जल्द से जल्द काररवाई करो. इस बात का खयाल रखना कि यह खबर लीक न हो.’’

आगे की काररवाई के लिए एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने एक टीम का भी गठन कर दिया. टीम में सीओ (नजीराबाद) गीतांजलि सिंह, सीओ (बाबूपुरवा) मनोज कुमार अग्रवाल, इंसपेक्टर मनोज रघुवंशी, महिला थानाप्रभारी अर्चना गौतम, महिला सिपाही कविता, पूजा, सरिता आदि को शामिल किया गया. 24 नवंबर, 2019 की रात 8 बजे पुलिस टीम लाजपत नगर पहुंची और मकान नंबर 120/18 का दरवाजा खटखटाया. चंद मिनट बाद एक खूबसूरत महिला ने दरवाजा खोला. सामने पुलिस को देख कर वह बोली, ‘‘कहिए, आप लोगों का कैसे आना हुआ?’’

‘‘क्या आप का नाम लवली उर्फ बरखा मिश्रा है?’’ सीओ गीतांजलि सिंह ने पूछा.

‘‘जी हां, कहिए क्या बात है?’’ वह महिला बोली.

‘‘मैडम, पता चला है कि इस मकान में जिस्मफरोशी का धंधा चल रहा है.’’ सीओ गीतांजलि ने कहा.

यह सुन कर भी लवली उर्फ बरखा मिश्रा न डरी और न सहमी, बल्कि वह मुसकरा कर बोली, ‘‘आप जिस लवली या बरखा की तलाश में आई हैं, मैं वह नहीं हूं. मैं तो समाजसेविका हूं. भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी की मैं वाइस प्रेसीडेंट हूं.’’ कहते हुए उस ने कमेटी का परिचयपत्र सीओ को दिखाया. लवली उर्फ बरखा मिश्रा ने सीओ साहिबा को झांसे में लेने की पूरी कोशिश की लेकिन वह उस के दबाव में नहीं आईं. साथ आए पुलिसकर्मियों को साथ ले कर मकान के अंदर पहुंचीं तो वहां का नजारा कुछ और था.

पहले ही कमरे में एक युवक एक युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में था. दूसरे कमरे में 3 अन्य युवतियां सजीसंवरी बैठी थीं. वे या तो ग्राहकों के इंतजार में थीं या फिर किसी होटल में ग्राहकों के लिए जाने वाली थीं. सीओ गीतांजलि सिंह ने महिला पुलिसकर्मियों के सहयोग से संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा सहित चारों युवतियों को कस्टडी में ले लिया. जबकि इंसपेक्टर मनोज रघुवंशी ने युवक को दबोच लिया. पुलिस ने फ्लैट की तलाशी ली तो वहां से 50 हजार रुपए नकद, शक्तिवर्द्धक दवाएं, कंडोम तथा अन्य आपत्तिजनक वस्तुएं बरामद हुईं. संचालिका बरखा मिश्रा के पास से प्रैस कार्ड, भ्रष्टाचार निरोधक कमेटी का कार्ड तथा आधार कार्ड व पैन कार्ड बरामद हुए. पुलिस बरामद सामान के साथ हिरासत में लिए गए युवक व युवतियों को थाना नजीराबाद ले आई.

सैक्स रैकेट का भंडाफोड़ होने की जानकारी मिलने पर एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी भी नजीराबाद आ गईं. पुलिस अधिकारियों के समक्ष जब आरोपियों से पूछताछ की गई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. देह व्यापार में लिप्त युवतियों में से एक ने अपना नाम सविता उर्फ विनीता, निवासी आर्यनगर, थाना स्वरूपनगर कानपुर बताया. दूसरी युवती ने अपना नाम नीतू चौधरी, मूल निवासी अमृतसर, पंजाब और वर्तमान पता दिल्ली बताया. तीसरी युवती ने अपना नाम पूजा कर्मकार निवासी करनाल (हरियाणा) बताया. चौथी युवती ने अपना नाम प्रीति आचार्य, मूल निवासी कोलकाता तथा वर्तमान पता लक्ष्मी नगर, दिल्ली बताया.

संचालिका लवली चक्रवर्ती उर्फ बरख मिश्रा ने अपना मूल निवास 14-बी, मधुर मिलन, ए-2 खार, मुंबई तथा वर्तमान पता 120/18 लाजपत नगर, नजीराबाद, कानपुर बताया. अय्याशी करते पकड़े गए युवक ने अपना नाम सलमान, निवासी आजाद पार्क, चकेरी कानपुर नगर बताया. चमड़े का व्यवसाय करने वाले सलमान को रिहा कराने के लिए कई व्यापारियों, नेताओं व रसूखदार लोगों ने अपने स्तर से पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाया लेकिन वे नाकाम रहे. संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा भी देर रात तक मामले को निपटाने की डील करती रही लेकिन मामला वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में था,इसलिए यह डील नहीं हो सकी.

गीतांजलि सिंह ने हिरासत में ली गई सविता उर्फ विनीता, नीतू चौधरी, पूजा कर्मकार, प्रीति आचार्य, लवली उर्फ बरखा मिश्रा तथा सलमान के विरुद्ध अनैतिक देह व्यापार अधिनियम 1956 की धारा 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. एसीपी ने इस केस की जांच सीओ (बाबूपुरवा) मनोज कुमार अग्रवाल को सौंप दी. सीओ मनोज कुमार ने आरोपियों से पूछताछ की तो सनसनीखेज कहानी प्रकाश में आई. सैक्स रैकेट की संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा व अन्य आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई तो चौंकाने वाली बातें उजागर हुईं. बरखा मिश्रा का पूरा नेटवर्क औनलाइन चल रहा था.

उस ने कई वेबसाइट पर युवतियों की फोटो व मोबाइल नंबर अपलोड किए थे, जिन के जरिए ग्राहक संपर्क करते थे. यही नहीं, वाट्सऐप, फेसबुक के जरिए भी ग्राहकों को युवतियों की फोटो व मैसेज भेज कर संपर्क किया जाता था. कानपुर नगर ही नहीं दिल्ली, आगरा, इलाहाबाद, बनारस, दिल्ली व मुंबई के दलालों के जरिए वह ग्राहकों की डिमांड पर रशियन व नेपाली युवतियों को भी मंगाती थी. जिस के लिए वह युवतियों को अच्छाखासा पैसा चुकाती थी. बरखा को संरक्षण देने में कुछ मीडियाकर्मी, रसूखदार व प्रशासनिक अधिकारी भी लिप्त थे. समाजसेवा का लबादा ओढ़े कुछ सफेदपोश भी बरखा मिश्रा को संरक्षण देते थे तथा खुद भी रंगरलियां मनाते थे.

सैक्स रैकेट की संचालिका लवली उर्फ बरखा मिश्रा बचपन से ही बेहद खूबसूरत थी. साधारण परिवार में पली बरखा ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस के रूप में निखार आ गया. जब वह बनसंवर कर कालेज जाती तो मनचले युवक उस पर फब्तियां कसते. उस ने उन में से कुछ बौयफ्रैंड बना लिए थे, जो कालेज के छात्र थे. वह उन के साथ घूमतीफिरती और मौजमस्ती करती थी. बरखा के जवान होने पर मांबाप ने उस की शादी कर दी. ससुराल में बरखा कुछ समय तक तो बहू बन कर रही, उस के बाद वह खुलने लगी. दरअसल बरखा ने जैसे सजीले युवक से शादी का सपना देखा था, उस का पति वैसा नहीं था. उस का पति दुकानदार था और उस की सीमित आमदनी थी. वह न तो पति से खुश थी और न उस की आमदनी से उस की जरूरतें पूरी होती थीं. जिस से घर में आए दिन कलह होने लगी.

पति चाहता था कि बरखा मर्यादा में रहे और देहरी न लांघे. लेकिन बरखा को बंधन मंजूर नहीं था. वह तो चंचल हिरणी की तरह विचरण करना चाहती थी. उसे घर का चूल्हाचौका और कठोर बंधन में रहना पसंद नहीं था. बस इन्हीं सब बातों को ले कर पति व बरखा के बीच झगड़ा बढ़ने लगा. पति का साथ छोड़ने के बाद बरखा मिश्रा कौशलपुरी में किराए पर रहने लगी. वह पढ़ीलिखी व खूबसूरत थी. उसे विश्वास था कि जल्द ही उसे कहीं न कहीं नौकरी मिल जाएगी और उस का जीवनयावन मजे से होने लगेगा.

इसी दिशा में उस ने कदम बढ़ाया और नौकरी की तलाश में जुट गई. वह जहां भी नौकरी के लिए जाती, वहां उसे नौकरी तो नहीं मिलती, लेकिन उस के शरीर को पाने की चाहत जरूर दिखती. उस ने सोचा कि जब शरीर ही बेचना है तो वह नौकरी क्यों करे. वह खूबसूरत और जवान थी. उसे ग्राहकों की कोई कमी की. शुरूशुरू में तो उसे इस धंधे में झिझक हुई, लेकिन कुछ समय बाद वह खुल गई. उस ने अपने जाल में कई लड़कियां फंसा लीं और सैक्स रैकेट चलाने लगी. इस धंधे से उसे आमदनी होने लगी तो उस ने अपना कद और दायरा भी बढ़ा लिया. अब वह किराए पर फ्लैट लेती और नई उम्र की लड़कियों को सब्जबाग दिखा कर अपने जाल में फंसाती और देह धंधे में उतार देती. वह स्कूलकालेज की ऐसी लड़कियों को ज्यादा फंसाती थी, जो अभावों की जिंदगी गुजार रही होतीं.

बरखा खूबसूरत होने के साथसाथ मृदुभाषी भी थी. अपनी भाषाशैली से वह सामने वाले को जल्द प्रभावित कर लेती थी. इसी का फायदा उठा कर उस ने समाजसेवी नेताओं, मीडिया वालों व पुलिसकर्मियों तथा प्रशासनिक अधिकारियों से मधुर संबंध बना लिए. इन्हीं की मदद से वह बड़े मंच साझा करने लगी. पुलिस थानों में पंचायत करने लगी तथा शासनप्रशासन के कार्यों में भी दखल देने लगी. यही नहीं उस ने एक मीडियाकर्मी को ब्लैकमेल कर उस से प्रैस कार्ड भी बनवा लिया था. साथ ही कई सामाजिक संस्थाओं में पद भी हासिल कर लिए थे. लवली उर्फ बरखा मिश्रा को देहव्यापार से कमाई हुई तो उस ने अपना दायरा और अधिक बढ़ा लिया. दिल्ली, मुंबई, आगरा व बनारस के कई बड़े दलालों से उस का संपर्क बन गया.

इन्हीं दलालों की मार्फत वह लड़कियों को शहर के बाहर भेजने लगी तथा डिमांड पर दलालों के जरिए विदेशी लड़कियों को शहर में बुला लेती थी. रशियन व नेपाली बालाओं की उस के यहां ज्यादा डिमांड रहती थी. ये बालाएं हवाईजहाज से आतीं फिर हफ्ता भर रुक कर वापस चली जाती थीं. बरखा के अड्डे पर 5 से 50 हजार रुपए तक लड़की बुक होती थी. होटल व खानपान का खर्च अलग से. बरखा मिश्रा देह व्यापार का पूरा नेटवर्क औनलाइन चलाने लगी थी. वाट्सऐप ग्रुप के अलावा उस ने लोकांटो नाम की एक वेबसाइट भी बना रखी थी. वेबसाइट पर उस ने अपने नंबर का प्रचार करते हुए लड़कियों की सप्लाई का विज्ञापन डाल रखा था. वहीं वाट्सऐप पर कई दलालों के अलावा कालगर्ल्स को भी जोड़ रखा था. वहां वे फोटो और लड़कियों की डिटेल्स क्लायंट को भेजी जाती थी.

बरखा इस धंधे में कोर्ड वर्ड का प्रयोग करती थी. एजेंट को वह चार्ली नाम से बुलाती थी और कालगर्ल को चिली नाम देती थी. किसी युवती को भेजने के लिए वाट्सऐप पर भी चार्ली टाइप करती थी. वापस मैसेज में भी वह इन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करती थी. चार्ली नाम के उस के दरजनों एजेंट थे, जो युवतियों को सप्लाई करते थे. एजेंट से जब उसे लड़की मंगानी होती तो वह कहती, ‘‘हैलो चार्ली, चिली को पास करो.’’

बरखा मिश्रा एक क्षेत्र में कुछ महीने ही धंधा करती थी. जैसे ही धंधे की सुगबुगाहट दूसरे लोगों को होने लगती तो वह क्षेत्र बदल देती. पहले वह गुमटी क्षेत्र में धंधा करती थी. फिर उस ने क्षेत्र बदल दिया और स्वरूपनगर क्षेत्र में धंधा करने लगी. उस ने स्वरूपनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट लिया था. इस के बाद उस ने फीलखाना क्षेत्र के पटकापुर स्थित सूर्या अपार्टमेंट में ग्राउंड फ्लोर पर एक फ्लैट किराए पर लिया. यह फ्लैट किसी वकील का था. उस ने वकील से कहा कि वह पत्रकार है. समाचार पत्र के लिए कार्यालय खोलना है. उस ने यह भी कहा कि वैसे वह वर्तमान में आजादनगर स्थित रतन अपार्टमेंट में किराए के फ्लैट में रहती है.

दरअसल, एक मीडियाकर्मी ने ही बरखाको सुझाव दिया था कि वह समाचार पत्र का कार्यालय खोल ले. इस से पुलिस तथा फ्लैटों में रहने वाले लोग दबाव में रहेंगे. मीडियाकर्मी का सुझाव उसे पसंद आया और इसी बहाने उस ने फ्लैट किराए पर ले लिया और सैक्स रैकेट चलाने लगी. उस ने फ्लैट के बाहर समाचार पत्र का बोर्ड लगा दिया. यही नहीं, उस ने फ्लैट पर धंधा करने आने वाली लड़कियों से कहा कि अगर कोई उन से यहां आने का मकसद पूछे तो बता देना कि वे प्रैस कार्यालय में काम करती हैं. देह व्यापार के अड्डे से पकड़ी गई 19 वर्षीय सविता उर्फ सबी उर्फ विनीता सक्सेना आर्यनगर में रहती थी. मध्यम परिवार में पलीबढ़ी विनीता बेहद खूबसूरत थी. इंटरमीडिएट पास करने के बाद जब उस ने डिग्री कालेज में प्रवेश लिया तो वह रंगीन सपनों में खोने लगी.

उस की कई सहेलियां ऐसी थीं, जो रईस घरानों की थीं. वे महंगे कपड़े पहनतीं और ठाटबाट से रहतीं. महंगे मोबाइल से बात करतीं. रेस्टोरेंट जातीं और खूब सैरसपाटा करतीं. विनीता

जब उन्हें देखती तो सोचती, ‘काश!

ऐसे ठाटबाट उस के नसीब में भी होते.’

एक रोज एक संस्था के मंच पर विनीता की मुलाकात बरखा मिश्रा से हुई. उस ने विनीता को बताया कि वह समाजसेविका है. राजनेताओं, समाजसेवियों, पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों में उस की अच्छी पैठ है. बरखा मिश्रा की बातों से विनीता प्रभावित हुई, फिर वह उस से मिलने उस के घर जाने लगी. घर आतेजाते बरखा ने विनीता को रिझाना शुरू कर दिया और उस की आर्थिक मदद करने लगी. बरखा समझ गई कि विनीता महत्त्वाकांक्षी है. यदि उसे रंगीन सपने दिखाए जाएं तो वह उस के जाल में फंस सकती है.

इस के बाद विनीता जब भी उस के घर आती, बरखा उस से प्यार भरी बातें करती. उस के अद्वितीय सौंदर्य की तारीफ करती तथा उस की जवानी को जगाने का प्रयास करती. धीरेधीरे बरखा ने विनीता को अपने जाल में फंसा कर देह व्यापार में उतार दिया. विनीता जवान और खूबसूरत थी, सो उस के लिए आसानी से ग्राहक मिल जाते. सैक्स रैकेट चलते अभी एक महीना ही बीता था कि किसी ने इस की सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस ने सैक्स रैकेट का परदाफाश कर लवली उर्फ बरखा मिश्रा को जेल भेज दिया. लवली उर्फ बरखा लगभग 6 महीने जेल में रही, उस के बाद जुलाई, 2018 में उसे जमानत मिल गई.

कानपुर जेल से छूटने के बाद लवली उर्फ बरखा मिश्रा मुंबई चली गई. वहां उस ने अपने दलाल के मार्फत 14बी रोड मधुर मिलन ए-2 खार में एक कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रहने लगी. इस बीच उस ने कई कालगर्ल्स संचालिकाओं से संबंध बना लिए. वहां भी वह धंधा करने लगी. लवली उर्फ बरखा मिश्रा कानपुर शहर में एक बार फिर पैर जमाना चाहती थी, क्योंकि यह उस का जानासमझा शहर था. अनेक सफेदपोश नेताओं, कथित मीडियाकर्मियों व पुलिस से उस के अच्छे संबंध थे. अगस्त 2019 में लवली उर्फ बरखा मिश्रा वापस कानपुर आ गई. यहां उस ने पौश कालोनी लाजपत नगर में सुजैन सचान नाम की महिला का मकान 20 हजार रुपए प्रतिमाह के किराए पर ले लिया और हाईप्रोफाइल सैक्स रैकेट चलाने लगी.

सैक्स रैकेट चलाते अभी 2 महीने ही बीते थे कि किसी ने इस की सूचना एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को दे दी. रवीना त्यागी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और एक टीम गठित की. इस टीम ने छापा मारा और लवली को बंदी बना लिया. उस के अड्डे से 4 युवतियां और एक युवक को रंगेहाथों पकड़ लिया. सैक्स रैकेट में पकड़ी गई 25 वर्षीय नीतू चौधरी मूलरूप से भटिंडा, पंजाब की रहने वाली थी. बीमार मातापिता की मौत के बाद वह एक करीबी रिश्तेदार के माध्यम से अपनी छोटी बहन के साथ दिल्ली आ गई. वह पढ़ीलिखी थी, अत: प्राइवेट नौकरी करने लगी.

नीतू अपनी छोटी बहन को पढ़ालिखा कर योग्य बनाना चाहती थी ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके. लेकिन दिल्ली जैसे बड़े शहर में प्राइवेट नौकरी से मकान का किराया, घर तथा बहन की पढ़ाई का खर्च जुटाना संभव नहीं था. अत: वह कमाने के लालच में दलाल के मार्फत सैक्स रैकेट से जुड़ गई और देह का धंधा करने लगी. नीतू चौधरी ने बताया कि दलाल के मार्फत वह कानपुर की देह संचालिका लवली उर्फ बरखा के संपर्क में आई. बरखा ने उसे यह कह कर कानपुर बुलाया था कि एक होटल में बैचलर पार्टी है. एक रात का 20 हजार रुपए मिलेगा. सौदा तय होने पर वह कानपुर आ गई. घटना वाली रात वह सजसंवर कर होटल जाने वाली थी, तभी पुलिस का छापा पड़ा और वह पकड़ी गई.

पुलिस द्वारा पकड़ी गई पूजा कर्मकार करनाल (हरियाणा) की रहने वाली थी. 3 भाईबहनों में वह सब से बड़ी थी. बीकौम करने के बाद पूजा ने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स किया. इस के बाद वह नौकरी करने लगी. पूजा का भाई बीमार रहता था. उस की किडनी खराब हो गई थी. किडनी बदलवाने के लिए पूजा को 10 लाख रुपए चाहिए थे, इतनी बड़ी रकम वह प्राइवेट नौकरी से नहीं जुटा सकती थी. पूजा परेशान थी, तभी उस की मुलाकात एक दलाल से हो गई. उस दलाल ने पूजा को रकम जुटाने के लिए देह बेचने का रास्ता सुझाया.

पूजा कई दिनों तक पसोपेश में पड़ी रही. फिर उस ने देह का धंधा अपना लिया. दलाल के जरिए वह दिल्ली, मुंबई, बनारस तथा विदेश तक जाने लगी. पूजा शरीर से हृष्टपुष्ट व जवान थी. अत: उस की खूब डिमांड होने लगी. पूजा कर्मकार ने बताया कि दलाल के मार्फत ही वह कानपुर की देह संचालिका लवली उर्फ बरखा के संपर्क में आई थी. बरखा ने उसे 20 हजार रुपए में बुक किया था. लाजपत नगर स्थित लवली के अड्डे पर वह 24 नवंबर की दोपहर पहुंची थी. उस समय वहां 3 अन्य युवतियां मौजूद थीं. सभी को किसी होटल की बैचलर पार्टी में जाना था. लेकिन होटल जाने के पहले ही वह पुलिस के हत्थे चढ़ गई.

पूजा ने बताया कि उस की अगली बुकिंग कनाडा के एक होटल के लिए हो चुकी थी. उस के साथ दिल्ली की 2 अन्य युवतियों को भी जाना था. फ्लाइट पकड़ कर उसे मंगलवार को दिल्ली पहुंचना था. कनाडा में उसे एक हफ्ते के 6 लाख रुपए मिलने वाले थे. कानपुर में वह महज 20 हजार रुपए में आई थी. जिस्मफरोशी के धंधे में पकड़ी गई 30 वर्षीया युवती प्रीति आचार्य मूलरूप से कोलकाता की रहने वाली थी. उस का पति अभिजीत आचार्य दिल्ली के लक्ष्मीनगर में रहता था, पांडव नगर स्थित मदर डेयरी में कामकरता था. प्रीति का पति शराबी था. वह जो कमाता, सब शराब में उड़ा देता था. प्रीति रोकती तो उसे मारतापीटता था.

परेशान हो कर आखिर उस ने पति का साथ छोड़ दिया और नौकरी करने लगी. लेकिन जिस्म के भूखे लोगों ने नौकरी के बजाय उस के जिस्म को ज्यादा तवज्जो दी. प्रीति ने सोचा जब जिस्म ही बेचना है तो नौकरी क्यों करे. प्रीति के साथ काम करने वाली एक युवती जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. उस युवती ने प्रीति को देह के दलाल से मिलवा दिया. दलाल के माध्यम से प्रीति देह का धंधा करने लगी. दलाल के मार्फत ही उस की बुकिंग 10 हजार रुपए में कानपुर के लिए हुई थी. वह शाम 4 बजे लाजपत नगर स्थित लवली के अड्डे पर पहुंची थी. लवली उसे तथा एक अन्य युवती को गुमटी नंबर- 5 स्थित एक ब्यूटीपार्लर ले गई थी.

उसे बताया गया था कि एक होटल में पार्टी में जाना है. वह सजसंवर कर आई ही थी कि पुलिस का छापा पड़ा और वह भी अन्य युवतियों के साथ पकड़ी गई. सैक्स रैकेट के अड्डे से पकड़ा गया सलमान आजाद पार्क चकेरी में रहता था. वह चमड़े का व्यवसाय करता था और अय्याश प्रवृत्ति का था. घटना वाले दिन वह दलाल के मार्फत लाजपत नगर स्थित लवली के अड्डे पर पहुंचा था. लवली ने उसे सविता उर्फ विनीता को दिखा कर पूरी रात का 10 हजार रुपए में सौदा किया था. सलमान पूजा के साथ कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में था, तभी पुलिस का छापा पड़ा और कालगर्ल के साथ वह भी पकड़ा गया.

25 नवंबर, 2019 को थाना नजीराबाद पुलिस ने आरोपी लवली उर्फ बरखा मिश्रा, सविता उर्फ विनीता, नीतू चौधरी, पूजा कर्मकार तथा अभियुक्त सलमान को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट आर.के. शर्मा की अदालत में पेश किया, जहां से उन सभी को जिला जेल भेज दिया गया.

 

Superstition : माहिलाओं को नशे की गोलियां देकर तांत्रिक करता था दुष्‍कर्म

Superstition : हर जगह तमाम ऐसे लोग हैं, जो तंत्रमंत्र के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना कर अपना उल्लू सीधा करते हैं. इतना ही नहीं, ये लोग महिलाओं से दुष्कर्म भी करते हैं. हरिराम भी ऐसा ही तांत्रिक था, जो…

आ ज के युग को भले ही वैज्ञानिक युग कहा जाता है, लेकिन समाज में आज भी ऐसे
लोगों की कमी नहीं है, जो अंधविश्वास के चक्कर में अपनी सुखी जिंदगी को और खुशहाल बनाने के लिए तथाकथित चमत्कारी ढोंगी तांत्रिकों, पाखंडी बाबाओं की शरण में जाते हैं और अपनी जिंदगी को नरक बना लेते हैं. पैसा खर्च होता है अलग से. अंधविश्वासी लोगों के सहारे ही तांत्रिकों और पाखंडी बाबाओं की दुकानें चलती हैं.

जिस तांत्रिक की बात हम कर रहे हैं, वह भी ऐसा ही था. गांव शरीफ नगर, जिला मुरादाबाद निवासी राजेंद्र सिंह का बेटा बाबू काफी समय से बीमार चल रहा था. दिनबदिन राजेंद्र की माली हालत खराब होती जा रही थी. बाबू की बिगड़ती हालत को देखते हुए गांव के एक व्यक्ति ने राजेंद्र को सलाह दी कि वह उसे राजपुर गांव के तांत्रिक हरिराम के पास ले जाए. उसी व्यक्ति ने बताया कि तांत्रिक हरिराम के पास ऐसी सिद्धि है कि वह बाबू को कुछ ही दिन में ठीक कर देगा. अपने बेटे की हालत देख कर राजेंद्र ने यह बात अपनी बीवी आरती को बताई. अगले ही दिन यानी 17 जुलाई, 2018 को राजेंद्र अपनी पत्नी आरती और बेटे बाबू को साथ ले कर गांव राजपुर के तांत्रिक हरिराम के पास जा पहुंचा.

हरिराम घर पर ही मिल गया. घर आए ग्राहकों को देख वह खुश हुआ. आगंतुकों को जलपान कराने के बाद हरिराम ने राजेंद्र से आने का कारण पूछा. वैसे हरिराम बाबू का चेहरा देखते ही समझ गया था कि उन के बेटे को कोई परेशानी है. राजेंद्र कुछ बताता, इस से पहले ही आरती ने बोलना शुरू कर दिया, ‘‘बाबा, हमारा बेटा बाबू काफी दिनों से परेशान है. इस के चक्कर में हम भी परेशान रहते हैं. ये न तो ठीक से कुछ खातापीता है और न ही रात में ठीक से सो पाता है. ये अजीबअजीब सी हरकतें करता है. आप देख कर बताओ, इसे क्या परेशानी है.’’

आरती की बात खत्म होते ही हरिराम ने बाबू को अपने सामने बिठा कर उस का हाथ अपने हाथों में थाम लिया और उस के हाथ की नब्ज टटोलने लगा. इस दौरान उस की आंखें बाबू के चेहरे पर गड़ी रहीं. कुछ देर देखने के बाद वह अपने निर्णय पर पहुंच गया. हरिराम ने परेशानी भरी आवाज में कहा, ‘‘इस में तुम्हारे बच्चे का कोई दोष नहीं है. दोष उस का है जो इस के शरीर में समाया हुआ है. साफ कहूं तो तुम्हारे बेटे पर बहुत खतरनाक प्रेतात्मा का साया है. जिसे भगाने के लिए तंत्र विद्या का सहारा लेना होगा. अगर ऐसा न किया गया तो यह साया बच्चे को जीने नहीं देगा. ढील देने से लड़के की जान भी जा सकती है.’’

तांत्रिक हरिराम की बात सुन कर आरती का चेहरा उतर गया. ऐसे मामलों में महिलाएं कुछ ज्यादा ही भावुक हो जाती हैं. अपने बेटे के बारे में सुन कर आरती हरिराम की सारी बातें मानने को तैयार हो गई.
आरती देखनेभालने में ठीकठाक थी. हरिराम ने उस के मन की सारी कमजोरी पढ़ ली थी. वह समझ गया था कि उसे शीशे में उतारना मुश्किल नहीं है. भले ही उसे बाबू का इलाज करना था, लेकिन आरती को देख कर वह खुद दिल का मरीज बन गया था.

हरिराम काफी दिनों से तंत्रमंत्र की दुकान चला रहा था. उसे इस सब का इतना तजुर्बा था कि वह रोगी को देख कर षडयंत्र रच डालता था. आरती को देखतेदेखते ही वह उस के बेटे की परेशानी भूल गया और मां के साथ भोगविलास की योजना बना डाली. हरिराम ज्यादातर अपने घर पर ही छोटीमोटी झाड़फूंक किया करता था. लेकिन जब किसी औरत को देख कर उस का मन मैला हो जाता था तो वह दूसरा रास्ता खोजता था. ऐसे मामले वह सब कुछ मरीज के घर पर ही करना ठीक समझता था. वह समझता था कि मरीज का घर ज्यादा सुरक्षित जगह है.

आरती को देखने के बाद उस ने उस के बेटे का इलाज उसी के घर पर करने की बात कही. हरिराम ने आरती को समझाते हुए कहा कि बाबू के ऊपर खतरनाक भूत का साया है जो तुम्हारे घर में ही मौजूद है. उसे भगाने के लिए मुझे तुम्हारे घर आ कर तंत्र विद्या करनी होगी. आरती और राजेंद्र को यह सुविधाजनक लगा, इसलिए उन्होंने हां कर दी. विचारविमर्श के बाद अनुष्ठान करने के लिए 23 जुलाई सोमवार का दिन तय किया गया. हरिराम ने उन्हें यह भी बता दिया कि इस अनुष्ठान के लिए उन्हें 5 हजार रुपए देने होंगे. साथ ही यह भी कि तंत्रमंत्र का अनुष्ठान देर रात में होगा.

अनुष्ठान के लिए जिसजिस सामान की जरूरत थी, हरिराम ने उस की एक लिस्ट बना कर दे दी. घर लौट कर राजेंद्र और आरती ने हरिराम द्वारा दी गई लिस्ट के हिसाब से सामान खरीद कर रख दिया.
23 जुलाई, 2018 को पूर्व योजनानुसार हरिराम तांत्रिक देर रात आरती के घर पहुंच गया. वहां पहुंच कर हरिराम ने घर वालों को एक साथ बिठा कर समझा दिया, जिस से अनुष्ठान में किसी तरह का विघ्न न आए. हरिराम ने उन लोगों को बताया कि तंत्रमंत्र का कार्यक्रम देर रात तक चलेगा. इस दौरान किसी भी बाहरी व्यक्ति का घर के आसपास या पूजास्थल पर आना वर्जित रहेगा. अगर किसी ने भी उस की बात नहीं मानी तो परिणाम उलटे भी हो सकते हैं.

घर के सदस्यों को जरूरी बातें बता कर हरिराम ने अनुष्ठान में काम आने वाला सामान जिस में कुछ हड्डियां, लोबान, धूप, गरुड़ का पंजा, नींबू, चाकू और हवन सामग्री वगैरह निकाल कर फर्श पर रख दिया. पूरी तैयारी कर के हरिराम ने लोहे के एक तसले को हवन कुंड बना कर मंत्रोच्चार शुरू कर दिया. उस ने आरती और उस के पति राजेंद्र व उन के बेटे बाबू को अपने पास बैठा लिया.

अनुष्ठान में हरिराम तांत्रिक ने मिट्टी की हांडी रखते हुए उस की पूजा की, फिर हांडी बापबेटे को थमाते हुए कहा, ‘‘आप दोनों इस हांडी को ले कर श्मशान जाओ और वहां से इस में किसी ठंडी पड़ी चिता की राख भर कर ले आओ. लेकिन ध्यान रखना कि वापसी में इस बरतन को कोई व्यक्ति देखने न पाए. एक बात ध्यान रखना कि मुझे अनुष्ठान करने में डेढ़-2 घंटे लग सकते हैं. अनुष्ठान खत्म होने से पहले हांडी को ले कर घर में मत घुसना. ऐसा किया तो मेरा अनुष्ठान तो व्यर्थ जाएगा ही, प्रेतात्मा तुम्हारे घर का अनिष्ट भी कर सकती है.’’

तांत्रिक की बात सुन कर डर के मारे राजेंद्र के पैर कांपने लगे. पहले तो उसे लगा कि वह इस काम को नहीं कर पाएगा लेकिन सवाल बेटे की जिंदगी का था. राजेंद्र ने हांडी को एक थैले में छिपाया और अपने बेटे को साथ ले कर सब की नजरों से बचतेबचाते श्मशान की ओर बढ़ गया. श्मशान में पहुंच कर डरतेडरते राजेंद्र ने जैसेतैसे श्मशान में ठंडी पड़ी एक चिता की राख हांडी में भर ली और बिना देर लगाए श्मशान की हद से बाहर निकल आया. बाहर आ कर उस ने हांडी को पूरी तरह से पैक कर के थैले में रख लिया फिर मोबाइल निकाल कर टाइम देखा.

पता चला कि अभी उसे घर से निकले मात्र पौना घंटा हुआ था. जबकि तांत्रिक ने उसे 2 घंटे बाद आने को कहा था. वक्त के हिसाब से अभी उन्हें करीब सवा घंटा घर से बाहर रहना था. राजेंद्र ने जैसेतैसे मुश्किल से आधा घंटा बाहर गुजारा और फिर आरती के मोबाइल पर फोन मिला दिया. लेकिन कई बार घंटी जाने के बाद भी मोबाइल नहीं उठाया गया तो राजेंद्र परेशान हो उठा. उस ने फिर से आरती का नंबर मिलाया तो बारबार काल आने से हरिराम समझ गया कि काल राजेंद्र की ही होगी. उस ने काल रिसीव कर के फोन कान से लगाया. राजेंद्र समझ गया कि लाइन पर हरिराम है. उस ने हरिराम से पूछा, ‘‘बाबा, आप की पूजा में कितना वक्त लगेगा?’’

हरिराम ने बताया कि सब कुछ ठीकठाक निपट गया. एक पूजा पूरी हो चुकी है, अभी एक और बाकी है. मैं उसी की तैयारी में लगा हूं. तुम अभी आधे घंटे बाद आना. राजेंद्र को फोन लगाए मुश्किल से 20 मिनट ही गुजरे थे कि हरिराम का फोन आ गया. राजेंद्र ने फुरती से काल रिसीव कर के पूछा, ‘‘हां बाबाजी, हम आ जाएं क्या?’’

जवाब में हरिराम ने कहा, ‘‘जल्दी आओ, मैं ने तुम्हारे घर की प्रेतात्मा अपने कब्जे में कर ली है. तुम्हारे आते ही प्रेतात्मा तुम्हारे घर से हमेशाहमेशा के लिए चली जाएगी.’’

हरिराम की बात सुन कर राजेंद्र हांडी को छिपाते हुए बेटे के साथ घर पहुंच गया. घर पहुंच कर राजेंद्र ने पूजास्थल पर नजर दौड़ाई तो उस के होश उड़ गए. अनुष्ठान की जगह के पास उस की बीवी आरती और उस के भाई की बीवी बेहोशी की हालत में पड़ी थीं. उन दोनों को जमीन पर पड़े देख राजेंद्र घबरा गया.
उस ने इस बारे में हरिराम से पूछा तो वह बोला, ‘‘तुम्हें जरा भी परेशान होने की जरूरत नहीं है. तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे बेटे की बीमारी पूरी तरह खत्म हो गई. इस पर जो प्रेतात्मा सवार थी, बहुत ही खतरनाक थी. जातेजाते भी तुम्हारी बीवी और संगीता को जबरदस्त झटका दे गई, जिस की वजह से दोनों मूर्छित हो गईं. लेकिन तुम्हें परेशान होने की जरूरत नहीं है. दोनों जल्दी ही होशोहवास में आ जाएंगी.’’

इस के बाद हरिराम ने उसे और उस के बेटे को अनुष्ठान की जगह बैठने के लिए इशारा किया. दोनों बैठ गए तो हरिराम ने उन के माथे पर रोली और चावल का तिलक लगाया. साथ ही उस ने दोनों से हवनकुंड की ओर झुकने का इशारा किया. हरिराम ने सामने रखी हांडी की ओर इशारा कर के बताया कि तुम्हारे घर की बुरी आत्मा अब मेरे कब्जे में है, उसे मैं ने इस हांडी में कैद कर लिया है. छोटी सी वह हांडी मिट्टी के ढक्कन से ढकी हुई थी. हरिराम ने हांडी को लाल कपड़े से टाइट कर के बांधा हुआ था. उस ने बताया कि प्रेतात्मा को मुझे इसी वक्त श्मशान में ले जा कर गाड़ना होगा. यह काम मेरा है. तुम किसी भी तरह परेशान मत होना. तुम्हारी बीवी और तुम्हारे भाई की पत्नी कुछ समय बाद होश में आ जाएंगी.

राजेंद्र को समझाने के बाद हरिराम ने अपना सारा सामान झोले में डाला और रात में ही अपने घर चला गया. आरती और उस की देवरानी संगीता बाकी रात बेहोशी की हालत में पड़ी रहीं. अगली सुबह करीब 5 बजे दोनों को होश आया. उन के होश में आते ही राजेंद्र ने उन से बेहोशी का कारण पूछा तो आरती ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान बाबा ने उसे खाने के लिए प्रसाद और जल दिया था, जिसे खाते ही उसे चक्कर आने लगा था. फिर वह बेहोश हो गई. उस के बाद उस के साथ क्या हुआ, उसे नहीं मालूम.
उसी समय संगीता की भी बेहोशी टूटी. जब दोनों सामान्य स्थिति में आईं तो घर वालों ने उन से विस्तार से पूरी बात बताने को कहा.

इस पर संगीता ने बताया कि जिस वक्त वह तंत्रमंत्र क्रिया देखने उस कमरे में गई तो आरती बेहोश पड़ी हुई थी. उस के सारे कपड़े भी अस्तव्यस्त थे. उस की हालत देखते ही उस ने आरती के कपड़े ठीक किए और बाबा से उस के बेहोश होने के बारे में पूछा. बाबा ने बताया कि अनुष्ठान के दौरान मैं ने आरती से प्रसाद लेने को कहा तो उस ने आनाकानी की, जिस की वजह से उस की यह हालत हुई. अगर वह मेरी बात मान कर प्रसाद ले लेती तो उस की यह हालत नहीं होती. यह प्रेतात्माओं का प्रसाद है, अगर कोई इस प्रसाद को खाने में आनाकानी करेगा तो उस का यही हश्र होगा.

संगीता हिम्मत कर के अनुष्ठान स्थल पर चली तो आई थी लेकिन बाबा की बात सुन कर और आरती की हालत देख कर बुरी तरह घबरा गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह वहां से चली जाए या वहीं रुके. सोचविचार कर उस ने वहां से चुपचाप खिसकने की सोची और पीछे मुड़ने लगी. उसे पीछे मुड़ते देख तांत्रिक हरिराम जोर से चीखा, ‘‘तुम भी वही गलती दोहराने जा रही हो, आगे कदम मत बढ़ाना वरना तुम्हारा भी वही हश्र होगा जो तुम्हारी जेठानी का हुआ है.’’

तांत्रिक की बात सुन कर उस के आगे बढ़े कदम ठिठक गए. संगीता फुरती से पीछे मुड़ी और हवनकुंड के सामने जा कर बैठ गई. हरिराम समझ गया कि उस की युक्ति कामयाब रही. संगीता के बैठते ही हरिराम ने उसे भी वही प्रसाद खाने के लिए दिया जो उस ने आरती को खिलाया था. प्रसाद ग्रहण करते ही संगीता की आंखें भी नींद से भारी होने लगीं. प्रसाद खाने के कुछ पल बाद वह भी वहीं लुढ़क गई. उस के बाद उस के साथ क्या हुआ, उसे कुछ पता नहीं था.

पूरी तरह होश में आने के बाद दोनों ने अपने अंगवस्त्र देखे तो उन्हें पता चल गया कि तंत्रमंत्र के नाम पर तांत्रिक हरिराम ने उन के साथ कुकर्म किया था. हकीकत का अहसास होते ही आरती और संगीता खुद को ठगा सा महसूस करने लगीं. जब उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि तांत्रिक ने उन की इज्जत लूट ली है, तो उन्हें बहुत गुस्सा आया.

आरती ने अपने पति राजेंद्र को हकीकत बता कर हरिराम को सबक सिखाने को कहा. सोचविचार कर इस बात को पूरी तरह गुप्त रखने का निर्णय लिया गया. आरती और उस के घर वाले जान चुके थे कि तांत्रिक हरिराम को पैसे और भोग के लिए कभी भी बुलाया जा सकता है. आरती, उस की देवरानी संगीता और राजेंद्र ने तांत्रिक को अपने जाल में फंसाने का फैसला ले लिया. तय हुआ कि तांत्रिक हरिराम के सामने इस बात का जिक्र नहीं आना चाहिए.

योजना के तहत 2 दिन बाद यह दिखाने के लिए कि दोनों महिलाओं को अपने साथ हुए दुराचार का पता नहीं लगा, आरती ने तांत्रिक के मोबाइल पर फोन कर के उस की खैरखबर पूछी. आरती ने हरिराम को खुश करने के लिए उसे बताया कि उस का तंत्रमंत्र अनुष्ठान काम कर गया है. बाबू की हालत पहले से बहुत अच्छी है. आरती की बात सुन कर तांत्रिक हरिराम फूला नहीं समाया. उस के दिल में बैठा डर पूरी तरह खत्म हो गया. दरअसल, उस रात के अपनेकुकर्म को ले कर वह काफी परेशान था. उसे डर था कि दोनों महिलाओं ने उस के कुकर्म की कहानी अगर अपने घर वालों को बता दी तो उस की शामत आ जाएगी. लेकिन आरती की बातों से उस के मन का डर पूरी तरह खत्म हो गया.

आरती की बात सुन कर हरिराम ने कहा कि तुम लोग परेशान न हो. तुम्हारे घर पर जो प्रेतात्मा थी, उसे मैं ने श्मशान में दफना दिया है. तुम्हारे घर पर इस तरह की कोई भी परेशानी नहीं आएगी. हरिराम की बात सुन आरती ने कहा कि बाबा हम चाहते हैं कि लगे हाथों तंत्रमंत्र अनुष्ठान एक बार फिर से करा लें, जिस से भविष्य में हमारे बेटे या परिवार के किसी भी सदस्य पर प्रेतात्मा का साया न पड़े. आरती की बात सुन कर हरिराम खुश हो गया. उस ने कहा कि अनुष्ठान का दिन बता दें, मैं आ जाऊंगा.

उसी दिन शाम को आरती ने हरिराम के मोबाइल पर काल कर के उसे जानकारी दी कि हम इसी 26 तारीख को पहले की तरह अनुष्ठान कराना चाहते हैं. आरती ने यह भी कहा कि वह आ कर अनुष्ठान के सामान के लिए पैसे ले जाए. बाकी सामान हम बाजार से खरीद लेंगे. आरती से हुई बात के अनुसार हरिराम 26 जुलाई को दिन में ही रुपए लेने पहुंच गया. तांत्रिक के घर आने तक घर में किसी को भी इस बात की भनक नहीं लगने दी गई. जब तांत्रिक को विश्वास हो गया कि सब कुछ ठीकठाक है, तो उस ने बाबू को अपने पास बुला कर उस के हाथ की नब्ज टटोली.

तभी योजनानुसार उस के घर वालों ने तांत्रिक को पकड़ लिया. पासपड़ोस वाले भी एकत्र हो गए थे. आरती ने उन्हें बताया कि यह ढोंगी तांत्रिक है और इस ने हमारी इज्जत से खेलने की कोशिश की थी.
यह सुनते ही आरती के घर पर लोगों का मजमा लग गया. आरती ने सब के सामने हरिराम तांत्रिक की करतूत रखते हुए अपनी इज्जत लूटने वाली बात बताई तो लोगों के माथे पर बल पड़ गए.

इस के बावजूद हरिराम अपनी गलती मानने को तैयार नहीं था. हरिराम ने अपनी सफाई देते हुए कहा कि राजेंद्र के परिवार पर बहुत खतरनाक प्रेतात्मा थी, जिसे उस ने तंत्रमंत्र से भगाया. आप लोग मुझे ठीक से नहीं जानते. मैं ने कई महीने तक तंत्रमंत्र से भूत भगाने की साधना की है. अगर आप लोग मुझ से भिड़े तो अपनी तंत्र विद्या से सब का अहित कर दूंगा. हरिराम की बातें सुन कर वहां मौजूद लोगों ने हरिराम की पिटाई करनी शुरू कर दी. जब हरिराम को लगने लगा कि अब उस की खैर नहीं तो वह लाइन पर आ गया. उस ने अपनी गलती के लिए सब के सामने हाथ जोड़ कर माफी मांगी.

जब पिटतेपिटते उस की हालत खस्ता हो गई तो गांव के बुजुर्गों ने जैसेतैसे गांव वालों को समझाया. लोगों ने उस की पिटाई बंद कर दी. इसी दौरान किसी ने पुलिस को सूचना दे दी थी. लेकिन पुलिस वहां पर पहुंच पाती, इस से पहले ही गांव वालों ने उसे कोतवाली ठाकुरद्वारा की पुलिस के हवाले कर दिया. कोतवाली प्रभारी रवींद्र प्रताप ने हरिराम को हिरासत में ले कर उस से कड़ी पूछताछ की. लेकिन हरिराम ने अपना मुंह बंद ही रखा. जब उसे लगा कि मुंह खोलना ही पड़ेगा तो वह टूट गया. पुलिस पूछताछ में उस ने जो बताया, वह हैरतअंगेज था.

पता चला कि हरिराम तंत्रमंत्र विद्या की एबीसीडी तक नहीं जानता था. फिर भी उस की तंत्रमंत्र की दुकान काफी समय से चल रही थी. वह न तो कोई खास पढ़ालिखा था और न ही उस ने तंत्रमंत्र की कोई शिक्षा ली थी. जिला ऊधमसिंह नगर, उत्तराखंड के थाना जसपुर से पश्चिम की ओर एक गांव है महुआडाबरा. इस के पास ही गांव है राजपुर नादेही. यही हरिराम का पुश्तैनी गांव है. हरिराम अपने 3 भाइयों में तीसरे नंबर का था. हरिराम के बड़े भाई रूपचंद ने 2 शादियां की थीं. उस की दोनों पत्नियों में से एक ही मां बन पाई, वह भी लड़की की.

रूपचंद की माली हालत को देख उस की एक बीवी उसे छोड़ कर चली गई थी. पहली बीवी के चले जाने के बाद किसी ने रूपचंद की हत्या कर दी. तब तक हरिराम शादी लायक हो चुका था. रूपचंद की बीवी जवानी में ही विधवा हो गई थी, उस के घर वालों ने हरिराम को समझाबुझा कर रूपचंद की बीवी को उस के गले बांध दिया. भाभी से शादी के बाद हरिराम की जिम्मेदारी बढ़ गई. बड़े भाई की बेटी भी अब उसे ही पालनी थी.

हरिराम शुरू से ही निकम्मा था. लेकिन जब वह गृहस्थी से बंध गया तो कामकाज देखना उस की मजबूरी बन गई. उस ने रोजीरोटी चलाने के लिए साइकिल से गांवगांव जा कर छोले बेचने का काम शुरू कर दिया. भागदौड़ कर के हरिराम इतना कमाने लगा था कि उस के छोटे से परिवार की गुजरबसर हो सके. छोले बेचने की वजह से क्षेत्र में उस की अच्छी जानपहचान बन गई थी. उसी दौरान हरिराम एक दिन एक मजार के सामने से गुजर रहा था. मजार पर काफी भीड़ थी. वहां बैठा एक मौलवी बारीबारी से लोगों को अपने पास बुलाता और उन की परेशानी सुन कर हल बताता. हर व्यक्ति को वह राख की पुडि़या थमा देता था. किसी को भूतप्रेत का साया बता कर वह ताबीज भी बना कर देता था.

हरिराम ने देखा कि थोड़ी ही देर में मौलवी के सामने रुपयों का ढेर लग गया. हरिराम ने सोचा कि वह सारे दिन भागदौड़ कर के भी रोजीरोटी लायक ही कमा पाता है और यह मौलवी मजार के नाम पर बैठेबिठाए हजारों रुपए कमा रहा है. मौलवी की कमाई देख उस का मन बदलने लगा. उस ने सोचा कि जब मौलवी बैठेबिठाए इतने रुपए कमा सकता है तो वह क्यों नहीं कमा सकता. इस के पहले हरिराम भी अपनी परेशानी ले कर कई बाबाओं से मिल चुका था. लेकिन अपनी समस्या के हल की जगह उसे पैसा ही गंवाना पड़ा था. उसी दिन हरिराम ने ठान लिया कि वह भी यही काम करेगा. फिर एक दिन हरिराम बिना कुछ बताए घर और गांव

से गायब हो गया. घर वालों ने उसे ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल सका. उधर हरिराम घर से निकल कर हरिद्वार पहुंच गया था. वहां वह किसी ऐसे बाबा की खोज में लग गया, जिस की दुकानदारी ठीक से चलती हो. साथ ही वह तंत्रमंत्र भी जानता हो. इसी खोज में उस की मुलाकात एक बाबा से हुई. उस बाबा के पास काफी लोगों का आनाजाना था. हरिराम ने बाबा को अपनी परेशानी बता कर उस की सेवा करनी शुरू कर दी. महीनों बाद जब वह अपने घर लौटा तो उस के चेहरे पर लंबी दाढ़ी थी और वेशभूषा भी तांत्रिकों जैसी थी. उस के घर वालों और गांव के लोगों ने उस के गायब होने की बात जाननी चाही तो उस ने बताया कि वह हरिद्वार में एक पहुंचे हुए तांत्रिक की शागिर्दी कर रहा था. वहीं रह कर उस ने तंत्रमंत्र साधना और तंत्र विद्या सीखी.

उस वक्त हरिराम ने गांव में प्रचारित किया कि वह अपनी सिद्धि से किसी की भी बड़ी से बड़ी समस्या को पलभर में हल कर सकता है. धीरेधीरे यह बात गांव से निकल कर क्षेत्र में फैल गई. परिणामस्वरूप आसपास के गांवों के भोलेभाले, अनपढ़, अंधविश्वासी लोग अपनी समस्याएं ले कर हरिराम के पास आने लगे. उन की समस्या के समाधान के लिए हरिराम गंडे ताबीज, टोनेटोटके के नाम पर अच्छे पैसे वसूलने लगा था.

घर पर ही तंत्रमंत्र की दुकान चलते देख हरिराम ने अपने घर के सामने लिखवा दिया, ‘यहां हर तरह की परेशानी, बंधन से मुक्ति, फोटो से वशीकरण, सम्मोहन, प्रेमीप्रेमिका की शादी रोकने तोड़ने का उपाय, अपने दुश्मन को सबक सिखाने, अपने खोए हुए प्यार को पाने जैसी हर परेशानी का इलाज किया जाता है.’

अंधविश्वासी लोगों के सहारे उस की दुकानदारी चल निकली. धीरेधीरे कई औरतें भी उस के पास अपने पतियों की समस्याओं को ले कर आने लगी थीं, जिन की बातें सुन कर वह समझ जाता था कि उन के मर्द उन की तन की पीड़ा समझने में असमर्थ हैं. वह ऐसी महिलाओं के पतियों का इलाज करने के बहाने उन के घर पहुंच जाता था. उन के घर पर तंत्रमंत्र का ढोंग कर के वह ऐसी महिलाओं के साथ कामपिपासा शांत करने के बाद वहां से निकल लेता था. उन महिलाओं में अधिकांश ऐसी होती थीं जो मानमर्यादा की वजह से उन के साथ क्या हुआ, को भूल कर अपना मुंह बंद रखने में ही भलाई समझती थीं.

हरिराम का काम अच्छे से चल निकला. पैसे कमाने के साथसाथ वह मौजमस्ती भी करने लगा था. हरिराम ने पुलिस पूछताछ में कबूला कि उस ने इस से पहले अलगअलग गांवों में 18 महिलाओं के साथ कुकर्म किया था. लेकिन लोकलाज की वजह से किसी भी महिला ने उस के खिलाफ अपना मुंह नहीं खोला था. हालांकि हरिराम इस वक्त लगभग 45-50 की उम्र से गुजर रहा था, फिर भी वह इतना भोगविलासी था कि जो महिला उस की नजरों में चढ़ जाती थी, वह उस के साथ अपनी कामवासना शांत कर के ही दम लेता था.

उम्र के इस पड़ाव तक आतेआते हर इंसान की कामवासना शांत हो जाती है. हरिराम ने जो धंधा कर रखा था, उसे वह किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाहता था. उम्र के हिसाब से उसे सैक्स की कुछ कमजोरी महसूस हुई तो उस ने मैडिकल स्टोर पर जा कर उस का हल भी निकाल लिया. इस के बाद हरिराम मैडिकल स्टोर से गोलियां ले कर अपना काम चलाने लगा. हरिराम को जब किसी के यहां तंत्र साधना करनी होती थी तो वह अनुष्ठान का ढोंग करने से पहले ही एक गोली खा लेता और मौका पाते ही घर में मौजूद औरतों को प्रसाद के रूप में नशे की गोलियां दे देता था. उस के बाद बेहोश होते ही उन की इज्जत लूट लेता था.

तांत्रिक हरिराम के गिरफ्तार होने की सूचना पर उस के घर वाले ठाकुरद्वारा कोतवाली जा पहुंचे. वे लोग हरिराम को निर्दोष बता कर उसे रिहा करने की मांग करते हुए हंगामा करने लगे. उन का कहना था कि हरिराम के जेल चले जाने से उस का परिवार सड़क पर आ जाएगा.

हकीकत पता लगने के बाद ठाकुरद्वारा पुलिस ने हरिराम के खिलाफ नशीला पदार्थ खिला कर महिलाओं के साथ दुष्कर्म करने के आरोप में भादंवि की धारा 328, 376 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. इस के साथ ही आरोपी को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया.
—कथा में आरोपी तांत्रिक हरिराम को छोड़ कर सभी पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

Crime story : नौकरानी ने बिजनैसमैन को फंसाकर लूटा पैसा

Crime story : बडे़ बिजनैसमैन (businessman) रंजीत मल्होत्रा सभ्य शरीफ और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, लेकिन उन की नौकरानी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि वह बुरी तरह फंस गए. उस जाल में वह कैसे फंसे और कैसे निकले, पढि़ए इस दिलचस्प कहानी में…

रंजीत को जिस तरह साजिश रच कर ठगा गया था, उस से वह हैरान तो थे ही उन्हें गुस्सा भी बहुत आया था. उस गुस्से में उन का शरीर कांपने लगा था. कंपकंपी को छिपाने के लिए उन्होंने दोनों हाथों की मुट्ठियां कस लीं, लेकिन बढ़ी हुई धड़कनों पर वह काबू नहीं कर पा रहे थे. उन्हें डर था कि अगर रसोई में काम कर रही ममता आ गई तो उन की हालत देख कर पूछ सकती है कि क्या हुआ जो आप इतने परेशान हैं. एक बार तो उन के मन में आया कि सारी बात पुलिस को बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दें लेकिन तुरंत ही उन की समझ में आ गया कि गलती उन की भी थी. सच्चाई खुल गई तो वह भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

पत्नी के डर से उन्होंने मेज पर पड़ी अपनी मैडिकल रिपोर्ट अखबारों के नीचे छिपा दी थी. मोबाइल उठा कर उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को प्लौट का सौदा रद्द करने के लिए कह दिया. उस की कोई भी बात सुने बगैर रंजीत ने फोन काट दिया था. हमेशा शांत रहने वाले रंजीत मल्होत्रा जितना परेशान और बेचैन थे, इतना परेशान या बेचैन वह तब भी नहीं हुए थे, जब उन्हें साजिश का शिकार बनाया गया था. फिर भी वह यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे थे कि वह जरा भी परेशान या विचलित नहीं हैं.

रंजीत मल्होत्रा एक इज्जतदार आदमी थे. शहर के मुख्य बाजार में उन का ब्रांडेड कपड़ों का शोरूम तो था ही, वह साडि़यों के थोक विक्रेता भी थे. कपड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष होने के नाते व्यापारियों में उन की प्रतिष्ठा थी. उन के मन में कोई गलत काम करने का विचार तक नहीं आया था. उन के पास पैसा और शोहरत दोनों थे. इस के बावजूद उन में जरा भी घमंड नहीं था. वह अकेले थे, लेकिन हर तरह से सफल थे.  उन की तरक्की से कई लोग ईर्ष्या करते थे. इतना सब कुछ होते हुए भी उन्हें हमेशा इस बात का दुख सालता था कि शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन सके थे. उन की पत्नी ममता की गोद अभी तक सूनी थी.

रंजीत और ममता की शादी के बाद की जिंदगी किसी परीकथा से कम नहीं थी. हंसीखुशी से दिन कट रहे थे. जब उन की शादी हुई थी तो ममता की खूबसूरती को देख कर उन के दोस्त जलभुन उठे थे. उन्होंने कहा था, ‘‘भई आप तो बड़े भाग्यशाली हो, हीरोइन जैसी भाभी मिली है.’’

ममता थी ही ऐसी. शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी उन की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी. शरीर अभी भी वैसा ही गठा हुआ था. पिछले 10 सालों से रंजीत के यहां देवी नाम की लड़की काम कर रही थी. जब वह 10-11 साल की थी, तभी से उन के यहां काम कर रही थी. देवी हंसमुख और चंचल तो थी ही, काम भी जल्दी और साफसुथरा करती थी. इसलिए पतिपत्नी उस से खुश रहते थे. अपने काम और बातव्यवहार से वह दोनों की लाडली बनी हुई थी.

घर में कोई बालबच्चा था नहीं, इसलिए पतिपत्नी उसे बच्चे की तरह प्यार करते थे. जहां तक हो सकता था, देवी भी ममता को कोई काम नहीं करने देती थी. हालांकि वह इस घर की सदस्य नहीं थी, फिर भी अपने बातव्यवहार और काम की वजह से घर के सदस्य जैसी हो गई थी. पतिपत्नी उसे मानते भी उसी तरह थे. जब उस की शादी हुई तो ममता पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन रंजीत पूरी तरह बदल गए थे. देवी की शादी रंजीत के लिए किसी कड़वे घूंट से कम नहीं थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. इन 2 सालों में रंजीत के जीवन में कितना कुछ बदल गया था, जिंदगी में कितने ही व्यवधान आए थे. शादी के 10 साल बीत जाने पर गोद सूनी होने की वजह से ममता काफी हताश और निराश रहने लगी थी.

वह हर वक्त खुद को कोसती रहती थी. ईश्वर में जरा भी विश्वास न करने वाली ममता पूरी तरह आस्तिक हो गई थी. किसी तरह उस की गोद भर जाए, इस के लिए उस ने तमाम प्रयास किए थे. इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला तो ममता शांत हो कर बैठ गई. शादी के 4 सालों बाद दोनों को लगा कि अब उन्हें बच्चे के लिए प्रयास करना चाहिए. इस के बाद उन्होंने प्रेग्नेंसी रोकने के उपाय बंद कर दिए. बच्चे के लिए उन्हें जो करना चाहिए था, किया. दोनों को पूरा विश्वास था कि उन का प्रयास सफल होगा. उन्हें अपने बारे में जरा भी शंका नहीं थी, क्योंकि दोनों ही नौरमल और स्वस्थ थे.

इस तरह उम्मीदों में समय बीतने लगा. आशा और निराशा के बीच कोशिश चलती रही. रंजीत ममता को भरोसा देते कि जो होना होगा, वही होगा. उन्होंने डाक्टरों से भी सलाह ली और तमाम अन्य उपाय भी किए. पर कोई लाभ नहीं हुआ. पति समझाता कि चिंता मत करो. हम दोनों आराम से रहेंगे लेकिन पति के जाते ही अकेली ममता हताश और निराश हो जाती. रंजीत का पूरा दिन तो कारोबार में बीत जाता था, लेकिन वह अपना दिन कैसे बिताती. सारे प्रयासों को असफल होते देख डाक्टर ने रंजीत से अपनी जांच कराने को कहा. अभी तक रंजीत ने अपनी जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं की थी. वह दवाएं भी कम ही खाते थे. रंजीत ऊपर से भले ही निश्चिंत लगते थे, लेकिन संतान के लिए वह भी परेशान थे.

चिंता की वजह से रंजीत का किसी काम में मन भी नहीं लगता था. चिंता में वह शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे थे. काम करते हुए उन्हें थकान होने लगी थी. खुद पर से विश्वास भी उठ सा गया था. शांत और धीरगंभीर रहने वाले रंजीत अब चिड़चिड़े हो गए थे. बातबात पर उन्हें गुस्सा आने लगा था. घर में तो वह किसी तरह खुद पर काबू रखते थे, पर शोरूम पर वह कर्मचारियों से ही नहीं, ग्राहकों से भी उलझ जाते थे. घर में भी ममता से तो वह कुछ नहीं कहते थे, पर जरा सी भी गलती पर नौकरानी देवी पर खीझ उठते थे. देवी भी अब जवान हो चुकी थी, इसलिए उन के खीझने पर ममता उन्हें समझाती, ‘‘पराई लड़की है. अब जवान भी हो गई है, उस पर इस तरह गुस्सा करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम ने ही इसे सिर चढ़ा रखा है, इसीलिए इस के जो मन में आता है, वह करती है.’’ रंजीत कह देते.

बात आईगई हो जाती. जबकि देवी पर इस सब का कोई असर नहीं पड़ता था. वह उन के यहां इस तरह रहती और मस्ती से काम करती थी, जैसे उसी का घर है. ममता भले ही देवी का पक्ष लेती थी, लेकिन वह भी महसूस कर रही थी कि अब वह काफी बदल गई है. कभी किसी चीज को हाथ न लगाने वाली देवी कितनी ही बार रंजीत की जेब से पैसे निकाल चुकी थी. उसे पैसे निकालते देख लेने पर भी रंजीत और ममता अनजान बने रहते थे. वे सोचते थे कि कोई जरूरत रही होगी. देवी चोरी भी होशियारी से करती थी. वह पूरे पैसे कभी नहीं निकालती थी. इधर एक लड़का, जिस का नाम बलबीर था, अकसर रंजीत की कोठी के बाहर खड़ा दिखाई देने लगा था.

ममता ने जब उसे देवी को इशारा करते देखा तो देवी को तो टोका ही, उसे भी खूब डांटाफटकारा. इस से उस का उधर आनाजाना कम तो हो गया था, लेकिन बंद नहीं हुआ था. एक रात रंजीत वाशरूम जाने के लिए उठे तो उन्हें बाहर बरामदे से खुसरफुसर की कुछ आवाज आती सुनाई दी. खुसरफुसर करने वाले कौन हैं, जानने के लिए वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. उन के बाहर आते ही कोई अंधेरे का लाभ उठा कर दीवार कूद कर भाग गया. उन्होंने लाइट जलाई तो देवी को कपड़े ठीक करते हुए पीछे की ओर जाते देखा.

यह सब देख कर रंजीत को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने सारी बात ममता को बताई तो उन्होंने देवी को खूब डांटा, साथ ही हिदायत भी दी कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए. इस के बाद देवी का व्यवहार एकदम से बदल गया. वह रंजीत और ममता से कटीकटी तो रहने ही लगी, दोनों की उपेक्षा भी करने लगी. देवी के इस व्यवहार से रंजीत और ममता को उस की चिंता होने लगी थी. शायद इसी वजह से उन्होंने देवी के मातापिता से उस की शादी कर देने को कह दिया था. अचानक देवी का व्यवहार फिर बदल गया. ममता के साथ तो वह पहले जैसा ही व्यवहार करती रही, पर रंजीत से वह हंसहंस कर इस तरह बातें करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं था.

रंजीत ने गौर किया, वह जब भी अकेली होती, उदास रहती. कभीकभी वह फोन करते हुए रो देती. उस से वजह पूछी जाती तो कोई बहाना बना कर टाल देती. एक दिन तो उस ने हद कर दी. रोज की तरह उस दिन भी ममता मंदिर गई थी. रंजीत शोरूम पर जाने की तैयारी कर रहे थे. एकदम से देवी रंजीत के पास आई और उन के गाल को चुटकी में भर कर बोली, ‘‘आप कितने स्मार्ट हैं, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.’’

पहले तो रंजीत की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. जब समझ में आया तो हैरान रह गए. वह कुछ कहे बगैर नहाने चले गए. आज पहली बार उन्हें लगा था कि देवी अब बच्ची नहीं रही, जवान हो गई है. अगले दिन जैसे ही ममता मंदिर के लिए निकली, देवी दरवाजा बंद कर के सोफे पर बैठे रंजीत के बगल में आ कर बैठ गई. उस ने अपना हाथ रंजीत की जांघ पर रखा तो उन का तनमन झनझना उठा. उन्होंने तुरंत मन को काबू में किया और उठ कर अपने कमरे में चले गए. वह दिन कुछ अलग तरह से बीता. पूरे दिन देवी ही उन के खयालों में घूमती रही. आखिर वह चाहती क्या है. एक विचार आता कि यह ठीक नहीं. देवी तो नादान है जबकि वह समझदार हैं. कोई ऊंचनीच हो गई तो लोग उन्हीं पर थूकेंगे. जबकि दूसरा विचार आता कि जो हो रहा है, होने दो. वह तो अपनी तरफ से कुछ कर नहीं रहे हैं, जो कर रही है वही कर रही है.

अगले दिन सवेरा होते ही रंजीत के दिल का एक हिस्सा ममता के मंदिर जाने का इंतजार कर रहा था, जबकि दूसरा हिस्सा सचेत कर रहा था कि वह जो करने की सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है. ममता के मंदिर जाने पर देवी दरवाजा बंद कर रही थी, तभी वह नहाने के बहाने बाथरूम में घुस गए. दिल उन्हें बाहर निकलने के लिए उकसा रहा था. रोकने वाली आवाज काफी कमजोर थी. शायद इसीलिए वह नहाधो कर जल्दी से बाहर आ गए. देवी रसोई में काम कर रही थी. उस के चेहरे से ही लग रहा था कि वह नाराज है. रंजीत सोफे पर बैठ कर उस का इंतजार करने लगे. लेकिन वह नहीं आई. पानी देने के बहाने उन्होंने बुलाया. पानी का गिलास मेज पर रख कर जाते हुए उस ने धीरे से कहा, ‘‘नपुंसक.’’

रंजीत अवाक रह गए. देवी के इस एक शब्द ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. डाक्टर के कहने पर उन के मन में अपने लिए जो संदेह था, देवी के कहने पर उसे बल मिला. उन का चेहरा उतर गया. उसी समय ममता मंदिर से वापस आ गईं. पति का चेहरा उतरा देख कर उस से पूछा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

रंजीत क्या जवाब देते. अगले दिन उन्होंने नहाने जाने में जल्दी नहीं की. दरवाजा बंद कर के देवी उन के सामने आ कर खड़ी हो गई. जैसे ही रंजीत ने उस की ओर देखा, उस ने झट से कहा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत सुंदर.’’ रंजीत ने कहा. लेकिन यह बात उन के दिल से नहीं, गले से निकली थी. देवी रंजीत की गोद में बैठ गई. वह कुछ कहते, उस के पहले ही उन का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘मैं आप को अच्छी नहीं लगती क्या?’’

‘‘नहीं…नहीं, ऐसी बात नहीं है.’’ रंजीत ने कहा.

इस के आगे क्या कहें, यह उन की समझ में नहीं आया तो ममता के आने की बात कह कर उसे उठाया और जल्दी से बाथरूम में घुस गए. इसी तरह 2-3 दिन चलता रहा. रंजीत अब पत्नी के मंदिर जाने का इंतजार करने लगे. अब देवी की हरकतें उन्हें अच्छी लगने लगी थीं. क्योंकि 40 के करीब पहुंच रहे रंजीत पर एक 18 साल की लड़की मर रही थी. यही अनुभूति रंजीत को पतन की राह की ओर उतरने के लिए उकसा रही थी. उन का पुरुष होने का अहं बढ़ता जा रहा था. खुद पर विश्वास बढ़ने लगा था. इस के बावजूद वह खुद को आगे बढ़ने से रोके हुए थे. पर एक सुबह वह दिल के आगे हार गए. जैसे ही देवी आ कर बगल में बैठी, वह होश खो बैठे.

नहाने गए तो उन के ऊपर जो आनंद छाया था, वह अपराधबोध से घिरा था. पूरे दिन वह सहीगलत की गंगा में डूबतेउतराते रहे. अगले दिन वह ममता के मंदिर जाने से पहले ही तैयार हो गए. ममता हैरान थी, जबकि देवी उन्हें अजीब निगाहों से ताक रही थी. रंजीत उस की ओर आकर्षित हो रहे थे. लेकिन आज दिमाग उन पर हावी था. दिमाग कह रहा था, ‘लड़की तो नासमझ है, उस की भी बुद्धि घास चरने चली गई है, जो अच्छाबुरा नहीं सोच पा रहा है. उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं है.’ अब उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था.

यह पछतावा तब ज्वालामुखी बन कर फूट पड़ा, जब ममता के मंदिर जाने पर देवी ने रंजीत को बताया कि इस महीने उसे महीना नहीं हुआ. अब वह क्या करे? यह सुन कर रंजीत पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था. धरती भी नहीं फटने वाली थी कि वह उस में समा जाते. उन्हें खुद से घृणा हो गई. उन्होंने एक लड़की की जिंदगी बरबाद की थी. इस अपराधबोध से उन का रोमरोम सुलग रहा था. लेकिन अब पछताने से कुछ होने वाला नहीं था. अब तो समाधान ढूंढना था. उन्होंने देवी से कहा, ‘‘तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो, उस के पहले ही कुछ करना होगा. मैं दवा की व्यवस्था करता हूं. तुम दवा खा लो, सब ठीक हो जाएगा.’’

लेकिन देवी ने कोई भी दवा खाने से साफ मना कर दिया. रंजीत उसे मनाते रहे, पर वह जिद पर अड़ी थी. रंजीत की अंतरात्मा कचोट रही थी कि उन्होंने कितना घोर पाप किया है. आज तक उन्होंने जो भी भलाई के काम किए थे, इस एक काम ने सारे कामों पर पानी फेर दिया था. वह पापी हैं. चिंता और अपराधबोध से ग्रस्त रंजीत को देवी ने दूसरा झटका यह कह कर दिया कि उस के पापा उन से मिलना चाहते हैं. जो न सुनना चाहिए, वह सुनने की तैयारी के साथ रंजीत देवी के घर पहुंचे. उस दिन ड्राइवर की नौकरी करने वाले देवी के बाप रामप्रसाद का अलग ही रूप था.

हमेशा रंजीत के सामने हाथ जोड़ कर सिर झुकाए खड़े रहने वाले रामप्रसाद ने उन पर हाथ भले ही नहीं उठाया, पर लानतमलामत खूब की. रंजीत सिर झुकाए अपनी गलती स्वीकार करते रहे और रामप्रसाद से कोई रास्ता निकालने की विनती करते रहे. अंत में रामप्रसाद ने रास्ता निकाला कि वह देवी की शादी और अन्य खर्चों के लिए पैसा दे दें.

‘‘हां…हां, जितने पैसे की जरूरत पड़ेगी, मैं दे दूंगा.’’ राहत महसूस करते हुए रंजीत ने कहा, ‘‘कब करनी है शादी?’’

‘‘अगले सप्ताह. बलबीर का कहना है, ऐसे में देर करना ठीक नहीं है.’’

‘‘बलबीर? वही जो आवारा लड़कों की तरह घूमता रहता है. तुम्हें वही नालायक मिला है ब्याह के लिए?’’

‘‘वह नालायक…आप से तो अच्छा है जो इस हालत में भी शादी के लिए तैयार है.’’

बलबीर का नाम सुन कर रंजीत हैरान थे, लेकिन वह कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थे. देवी की शादी और अन्य खर्च के लिए रंजीत को 10 लाख रुपए देने पड़े. इस के अलावा उपहार के रूप में कुछ गहने भी. शादी के बाद रहने की बात आई तो रंजीत ने अपना बंद पड़ा फ्लैट खोल दिया. ऐसा उन्होंने खुशीखुशी नहीं किया था बल्कि यह काम दबाव डाल कर करवाया गया था. इज्जत बचाने के लिए वह रामप्रसाद के हाथों का खिलौना बने हुए थे. फ्लैट के लिए ममता ने ऐतराज किया तो उन्होंने उसे यह कह कर चुप करा दिया कि देवी अपने ही घर पलीबढ़ी है. शादी के बाद कुछ दिन सुकून से रह सके, इसलिए हमें इतना तो करना ही चाहिए.

देवी की शादी के 7 महीने ही बीते थे कि ममता ने रंजीत को बताया कि देवी को बेटा हुआ है. रंजीत मन ही मन गिनती करते रहे, पर वह हिसाब नहीं लगा सके. ममता ने कहा, ‘‘हमें देवी का बच्चा देखने जाना चाहिए.’’

ममता के कहने पर रंजीत मना नहीं कर सके. वह पत्नी के साथ देवी के यहां पहुंचे तो बलबीर बच्चा उन की गोद में डालते हुए बोला, ‘‘एकदम बाप पर गया है.’’

रंजीत कांप उठे. ममता ने कहा, ‘‘देखो न, बच्चे के नाकनक्श बलबीर जैसे ही हैं.’’

अगले दिन बलबीर ने शोरूम पर जा कर रंजीत से कहा, ‘‘आप अपना बच्चा गोद ले लीजिए.’’

‘‘इस में कोई बुराई तो नहीं है, पर ममता से पूछना पड़ेगा.’’

रंजीत को बलबीर का प्रस्ताव उचित ही लगा था. लेकिन बलबीर ने शर्त रखी थी कि जिस फ्लैट में वह रहता है, वह फ्लैट उस के नाम कराने के अलावा कामधंधा शुरू करने के लिए कम से कम 25 लाख रुपए देने होंगे. सब कुछ रंजीत की समझ में आ गया था. उन्होंने पैसा कम करने को कहा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. कारोबारी रंजीत समझ गए कि अब खींचने से कोई फायदा नहीं है. उन्होंने ममता से बात की. थोड़ा समझाने बुझाने पर वह देवी का बच्चा गोद लेने को राजी हो गई. बच्चे को गोद लेने के साथसाथ अपने वकील को उन्होंने फ्लैट देवी के नाम कराने के कागज तैयार करने के लिए कह दिया. 25 लाख देने के लिए रंजीत को प्लौट का सौदा करना था. इस के लिए उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को सहेज दिया था.

इतना सब होने के बावजूद ममता का मन अभी पराया बच्चा गोद लेने का नहीं हो रहा था. इसलिए उस ने रंजीत से कहा, ‘‘बच्चा गोद लेने से पहले आप एक बार अपनी जांच करा लीजिए.’’

रंजीत ने सोचा, उन का टैस्ट तो हो चुका है. उन्हीं के पुरुषत्व का नतीजा है देवी का बच्चा. फिर भी पत्नी का मन रखने के लिए उन्होंने अपनी जांच करा ली. इस जांच की जो रिपोर्ट आई, उसे देख कर रंजीत के होश उड़ गए. वह खड़े नहीं रह सके तो सोफे पर बैठ गए. तभी उन्हें एक दिन देवी की फोन पर हो रही बात समझ में आ गई, जिसे वह उन पर डोरे डालते समय किसी से कर रही थी. देवी ने जब पहली बार रंजीत का हाथ पकड़ा था, तब उन्होंने उसे कोई भाव नहीं दिया था. इस के बाद उस ने फोन पर किसी से कहा था, ‘‘तुम्हारे कहे अनुसार कोशिश तो कर रही हूं. प्लीज थोड़ा समय दो. तब तक वह वीडियो…’’

तभी रंजीत वहां आ गए. उन्हें देख कर देवी सन्न रह गई थी. उसे परेशान देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

देवी ने बहाना बनाया कि वह किसी सहेली से वीडियो देखने की बात कर रही थी. अब रंजीत की समझ में आया कि उस समय देवी की बलबीर से बात हो रही थी. देवी का कोई वीडियो उस के पास था, जिस की बदौलत वह देवी से उसे फंसाने के लिए दबाव डाल रहा था. रिपोर्ट देख कर साफ हो गया था कि देवी का बच्चा बलबीर का था. उन्हें अपनी मूर्खता पर शरम आई. लेकिन उन्होंने जो गलती की थी, उस की सजा तो उन्हें भोगनी ही थी. रंजीत ने वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन कर के प्लौट का सौदा और फ्लैट के पेपर बनाने से रोक दिया. अब न उन्हें बच्चा गोद लेना था, न फ्लैट देवी के नाम करना था. अब उन्हें प्लौट भी नहीं बेचना था. वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन करने के बाद उन्होंने ममता को बुला कर कहा, ‘‘ममता मैडिकल रिपोर्ट आ गई.

रिपोर्ट के अनुसार मेरे अंदर बाप बनने की क्षमता नहीं है. मैं संतान पैदा करने में सक्षम नहीं हूं.’’

ममता की समझ में नहीं आया कि उस का पति अपने नपुंसक होने की बात इतना खुश हो कर क्यों बता रहा है.

 

 

Rajasthan Crime : चमत्कारी संदूक के लालच में गंवाए 40 लाख

Rajasthan Crime : अजमेर जिले का केकड़ी उपखंड. यहां ब्यावर रोड देवगांव गेट के बाहर स्थित दीदार नाथ आश्रम में पूर्णिमा होने की वजह से श्रद्धालुओं की काफी भीड़ थी. इसी भीड़ में अशोक मीणा भी था. अशोक मीणा शिक्षक था. वह धार्मिक प्रवृत्ति का इंसान था. वह बगैर नागा किए दीदार नाथ आश्रम में आता था. यहां पूजाअर्चना करता, कुछ वक्त बड़े चबूतरे पर बैठ कर ध्यान लगाता और फिर परिवार के सुख की कामना करते हुए अपने घर लौट आता.

रोज की भांति दीदार नाथ आश्रम में आने के बाद अशोक मीणा ने देवस्थल में पूजा की. वह चबूतरे पर आ कर ध्यान लगाने के लिए अभी बैठा ही था कि भगवा धोतीकुरता पहने एक व्यक्ति ने उस के हाथ में बताशों का प्रसाद दे कर बहुत कोमल स्वर मे कहा, ‘‘अशोक मीणा, यह आखिरी 2 बताशे तुम्हारे ही भाग्य के बचे थे. इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण कर लो.’’

अशोक मीणा ने उस व्यक्ति को हैरानी से देखा. गोरे रंग के उस व्यक्ति की उम्र 50-55 के आसपास थी. उस के सिर के बीच के बाल उड़ चुके थे. माथे पर लाल चंदन का तिलक लगा हुआ था. उस के चेहरे पर अनोखा तेज था. अशोक मीणा इस बात पर हैरान था कि वह व्यक्ति उस का नाम जानता था, कैसे? यही जिज्ञासा लिए अशोक ने पूछ लिया, ‘‘मैं आप से पहले कभी नहीं मिला हूं, फिर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

‘‘मैं तुम्हारे बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं अशोक,’’ वह व्यक्ति मुसकरा कर बोला, ‘‘तुम यहां सरकारी स्कूल में टीचर हो. यह बताओ, क्या मैं ने गलत कहा है?’’

अशोक मीणा अपने बारे में यह सब सुन कर उस व्यक्ति का चेहरा देखने लगा. कुछ क्षणों तक वह कुछ बोल नहीं पाया, फिर खुद को संयत करते हुए उस ने पूछा, ‘‘आप कौन हैं, अपना परिचय देंगे मुझे?’’

‘‘मेरा नाम जयप्रकाश है. पंडित हूं इसलिए अपने नाम के पीछे शर्मा लगाता हूं. तुम मुझे पंडितजी कह सकते हो.’’

‘‘आप बहुत पहुंचे हुए व्यक्ति हैं पंडितजी… मैं सौभाग्यशाली हूं, जो मुझे आप के दर्शन हुए हैं.’’ अशोक मीणा ने बहुत आदर भाव से कहा.

पंडित जयप्रकाश मुसकराया, ‘‘खुद को सौभाग्यशाली यूं भी समझ सकते हो अशोक कि मैं तुम से टकरा गया हूं. मैं तुम्हारे मस्तिष्क की रेखाएं पढ़ रहा हूं. तुम्हारा भविष्य इन्हीं रेखाओं में छिपा हुआ है, जिसे मैं अपनी दिव्य दृष्टि से साफसाफ देख रहा हूं.’’

अशोक मीणा अहसानमंद सा हो कर जयप्रकाश शर्मा के पैरों पर झुक गया, ‘‘मैं आप से अपना भविष्य जानने को आतुर हो उठा हूं महाराज. मेरे विषय में जो देख रहे हैं, मुझे बताइए.’’

‘‘अशोक!’’ जयप्रकाश पंडित एकाएक गंभीर हो गया, ‘‘तुम बहुत नादान और भोले हो.’’

‘‘वह क्यों महाराज?’’ अशोक ने पलकें झपकाईं.

‘‘तुम सिर्फ इसलिए मुझ पर विश्वास कर रहे हो कि मैं ने तुम्हारा नाम और थोड़ी सी नौकरी संबंधित बातें बताई हैं.’’

‘‘आप ने गलत तो कुछ भी नहीं बताया महाराज.’’

‘‘लेकिन जो बताया, वह मुझे किसी दूसरे के द्वारा भी तो ज्ञात हो सकता है. ऐसा व्यक्ति जो तुम्हारे घर के आसपास रहता हो या तुम्हारा घनिष्ठ मित्र हो और उसी ने मुझे आ कर तुम्हारे बारे में सब कुछ बता दिया हो.’’

‘‘जी.’’ अशोक मीणा ने सिर खुजाया, ‘‘हां, ऐसा तो हो सकता है. किसी मेरे पहचान वाले से सुन कर आप ऐसी सटीक जानकारी दे सकते हैं.’’

‘‘तभी कहता हूं, तुम भोले और नादान हो. तुरंत किसी पर विश्वास कर लेना भोले लोगों की कमजोरी होती है. पहले सामने वाले को अच्छी तरह टटोल लेना चाहिए, फिर विश्वास करना चाहिए.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं महाराज,’’ अशोक ने सिर हिलाया, ‘‘अब आप ही बता दीजिए, आप को मैं कैसे टटोलूं?’’

‘‘मैं अपना परिचय खुद दूंगा,’’ जयप्रकाश हंस कर बोला, ‘‘तुम कुछ ही देर में मुझ पर आंख बंद कर के विश्वास करने लगोगे.’’

अशोक मीणा ने गहरी सांस ली, ‘‘आप की बातों ने मुझे उलझा कर रख दिया है.’’

‘‘नहीं उलझोगे.’’ जयप्रकाश मुसकराया, फिर उस ने पूछा, ‘‘चमत्कार पर विश्वास करते हो?’’

‘‘बहुत अधिक महाराज.’’

‘‘तंत्रमंत्र को भी मानते हो?’’

‘‘हां,’’ अशोक मीणा ने सिर हिलाया, ‘‘तंत्रमंत्र की शक्ति आदिकाल से चली आ रही है. ऋषिमुनि इन तंत्रमंत्र के द्वारा कायाकल्प कर लेते थे. रूप बदलने, किसी को वश में करने और युद्ध के दौरान अस्त्रशस्त्रों को एकदूसरे पर छोड़ने में तंत्रमंत्र शक्ति का ही प्रयोग होता था.’’

‘‘ठीक कह रहे हो.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया, ‘‘मैं भी तुम्हें तंत्रमंत्र के चमत्कार दिखाता हूं.’’

कहने के बाद जयप्रकाश ने आंखें बंद कीं और उस के होंठ यूं फड़फड़ाने लगे जैसे वह कोई मंत्र बुदबुदा रहा हो. कुछ ही क्षणों बाद उस ने अपना दायां हाथ हवा में लहरा कर कुछ पकड़ा.

अशोक हैरानी से आंखें झपकाने लगा. जयप्रकाश शर्मा के हाथ में मोतीचूर का लड्डू था.

लड्डू जयप्रकाश शर्मा ने अशोक मीणा को दे कर आदेश दिया, ‘‘यह तुम्हें ही खाना है अशोक.’’

‘‘यह… यह आप ने हवा में कहां से पकड़ा है?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

जयप्रकाश शर्मा कुछ नहीं बोला, उस ने फिर से आंखें बंद कीं और मंत्र बुदबुदाने लगा. उस ने एक बार फिर हवा में हाथ घुमाया. इस बार उस की मुट्ठी में कुछ दबा हुआ था.

उस ने अशोक मीणा के सामने मुट्ठी खोली. उस की मुट्ठी में एक पीतल का ताबीज था.

‘‘लो अशोक, यह ताबीज गले में पहन लो. तुम्हारे ऊपर कोई दुष्ट आत्मा कभी अटैक नहीं करेगी, न तुम्हारा अनिष्ट करेगी.’’

‘‘चमत्कार है महाराज.’’ हैरत से अशोक की आंखें फैल गईं, ‘‘आप साधारण इंसान नहीं, कोई सिद्ध पुरुष हैं.’’

‘‘अब तुम मुझ पर विश्वास या अविश्वास कर सकते हो.’’ जयप्रकाश ने गंभीर स्वर में कहा.

‘‘अविश्वास करने वाली बात ही नहीं है महाराज, आप ने मेरी आंखों के सामने यह चीजें तंत्रमंत्र शक्ति से प्रकट की हैं. मैं अब कह सकता हूं कि आप ने अपने दिव्य ज्ञान से ही मेरा नाम और नौकरी के संबंध में सटीक जानकारी प्राप्त की है. आप सच्चे इंसान हैं, पूजनीय इंसान हैं.’’

‘‘आओ, अब बैठ कर बात करते हैं.’’ जयप्रकाश ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर अशोक मीणा का हाथ पकड़ा और एक ओर चल पड़ा. अशोक मीणा मंत्रमुग्ध सा उस के पीछेपीछे जा रहा था.

जयप्रकाश शर्मा केकड़ी उपखंड में सब्जी मंडी क्षेत्र में रहता था. यहां उस का जो निवास स्थान था, वह किसी तांत्रिक के साधनास्थल सा दिखाई देता था. कमरे में यज्ञकुंड था, उस के अंदर हर वक्त लकडि़यां जलती रहतीं, कमरा धुएं से काला स्याह और अजीब महक वाला बन गया था.

सुगंधित धूप अगरबत्तियां जगहजगह खोंस कर जलाई जाती रही होंगी, उन के अधजले टुकड़ों के ढेर लगे हुए थे, जाने कभी वहां सफाई की जाती थी या नहीं. कमरे के बीच में बने यज्ञकुंड की धूनी के सामने जयप्रकाश का आसन बिछा रहता.

जयप्रकाश शर्मा वहीं बैठ कर अपनी तंत्रमंत्र साधना की कथित दुकान चलाता था.

प्रेम वशीकरण, टोनाटोटका, बिछुड़ों को मिलाना, गड़े धन की जानकारी, सौतन से छुटकारा जैसे काम करने का जयप्रकाश शर्मा के पास जैसे ठेका था. केकड़ी उपखंड में वह तांत्रिक जय शर्मा के नाम से विख्यात हो गया था. उस के साधनास्थल पर परेशान, किसी समस्या से त्रस्त पुरुषों, औरतों का जमावड़ा लगा रहता था.

जयप्रकाश के द्वारा वह अपनी समस्या का समाधान करवाने आते थे, उन्हें कितना फायदा होता था, यह वह खुद नहीं जानते थे. वह जयप्रकाश शर्मा से तंत्र क्रिया करवाते और मोटा चढ़ावा चढ़ा कर लौट जाते. वह कभी शिकायत ले कर जयप्रकाश या किसी अन्य के पास नहीं गए कि उन्हें लाभ नहीं हुआ है, ऐसी बातों के लिए उन्हें पुलिस से फटकार मिलने का डर बना रहता और लोगों से जगहंसाई का.

अंधविश्वास भरी इन बातों का आज 21वीं सदी में कोई स्थान नहीं था. फिर भी अंधविश्वासियों की वजह से जयप्रकाश शर्मा की दुकान चल रही थी. वह दोनों हाथों से पैसे बटोर रहा था.

लोग यह समझते थे कि जयप्रकाश के पास हवा में ताबीज पकड़ने, लड्डू या 5-5 सौ के नोट पैदा करने जैसे चमत्कारी गुण हैं. वह यह सब किस विधि से करता है, कोई नहीं जानता था. लोग बेवकूफ बन रहे थे और वह बना रहा था. जयप्रकाश शर्मा की नजर में अब मोटा मुरगा चढ़ गया था. वह मुरगा था अशोक मीणा.

जयप्रकाश ने अशोक मीणा को पूर्णिमा के दिन अपने हाथ की सफाई दिखा कर प्रभावित कर दिया था. अशोक मीणा चमत्कृत था. वह जयप्रकाश को कोई सिद्ध पुरुष मानने लगा था. अशोक मीणा नियमित रूप से ब्यावर के दीदारनाथ आश्रम में जाता था, जयप्रकाश शर्मा भी उस के पीछे दीदारनाथ आश्रम पहुंचने लगा.

जयप्रकाश अशोक मीणा को रोज नएनए चमत्कार दिखा कर प्रभावित करता. अशोक उस के चमत्कार देख कर हैरत में पड़ जाता था. उस का झुकाव अब जयप्रकाश शर्मा की तरफ हो गया था. वह जयप्रकाश का आदर करने लगा. एक दिन मौका देख कर जयप्रकाश ने उसे अपने साधनास्थल पर बुला लिया.

अपने सामने उसे बैठने को आसन दिया. अशोक मीणा उस के साधनास्थल को हैरत से देख रहा था.

‘‘इस साधनास्थल पर सब कुछ अलौकिक है अशोक मीणा, मैं ने कठोर परिश्रम कर के कुछ सिद्धियां प्राप्त की हैं. लेकिन मैं अभी गुरु शिवनाथ के मुकाबले बौना ही हूं.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘यह गुरु शिवनाथ कौन है?’’

‘‘यह विश्व के महान तंत्रमंत्र ज्ञाता हैं, अपनी कठोर साधना से मेरे गुरु शिवनाथ ने अनेक जिन्न, खबीश, प्रेत और चंडाल अपने वश में कर लिए हैं. वह उन से हर प्रकार का काम लेते हैं. किसी की कैसी भी समस्या हो, उन को वह चुटकी में हल कर देते हैं.’’ जयप्रकाश ने बता कर अशोक मीणा की तरफ देखा, ‘‘मैं तुम्हें एक ऐसी बात बताने जा रहा हूं, जो मेरे और गुरु शिवनाथ के अलावा कोई तीसरा व्यक्ति नहीं जानता, चूंकि तुम मेरे खास बन गए हो, इसलिए सिर्फ तुम्हें बता रहा हूं. थोड़ा आगे सरक आओ.’’

अशोक मीणा अपनी जगह से आगे सरका. उस के मन में वह खास बात जान लेने की जिज्ञासा थी.

‘‘अशोक, मेरे गुरु शिवनाथ ने अपने जिन्नों की मदद से रानी हलीमा का वह चमत्कारी बक्सा हासिल कर लिया है, जिस में से सोना, चांदी और नोट निकलते हैं.’’

‘‘भला बक्सा नोट, सोनाचांदी कैसे निकाल सकता है? क्या उस में पहले यह सब डालना पड़ता है?’’ अशोक ने आतुरता से पूछा.

‘‘नहीं अशोक. उस बक्से से अपनी इच्छा से जो मांगो, वह निकल आता है.’’ जयप्रकाश ने बताया.

‘‘मुझे इस बात पर यकीन नहीं हो रहा है.’’

जयप्रकाश हंसा, ‘‘तांत्रिक की किसी चमत्कार और शक्ति को नकारा नहीं जा सकता अशोक. मैं तुम्हें अपने गुरु शिवनाथ के पास ले कर चलूंगा, तुम अपनी आंखों से उस बक्से का चमत्कार देख लेना.’’

‘‘कब चलेंगे आप?’’ अशोक मीणा ने उतावलेपन से पूछा.

‘‘जब तुम चाहोगे.’’

‘‘मैं तो आज ही चलना चाहता हूं.’’

जयप्रकाश उस का उतावलापन देख कर मुसकराया फिर वह किसी गहरी सोच में डूब गया.

कक्ष में गहरी खामोशी छा गई.

कुछ देर बाद जयप्रकाश ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘अशोक, मैं सोच रहा हूं कि बक्सा अपने गुरु से तुम्हें दिलवा दूं.’’

‘‘क्या वह बक्सा दे देंगे?’’ अशोक ने हैरानी से पूछा.

‘‘मैं कहूंगा तो वह इंकार नहीं कर सकेंगे.’’ जयप्रकाश गंभीर हो गया.

‘‘सोचो, यदि वह बक्सा तुम्हें मिल गया तो तुम दुनिया के सब से धनी व्यक्ति बन जाओगे.’’

अशोक मीणा की आंखों में तीखी चमक उभरी, ‘‘काश! ऐसा हो जाए.’’

‘‘हो जाएगा. मैं तुम्हारा भला चाहता हूं इसलिए हर सूरत में मैं वह बक्सा तुम्हें दिलवाऊंगा, लेकिन…’’ अपनी बात अधूरी छोड़ी जयप्रकाश ने.

‘‘लेकिन क्या महाराज, कोई अड़चन हो तो मुझे निस्संकोच बताइए.’’

‘‘तुम्हें कुछ खर्चा करना पड़ेगा.’’

‘‘कर दूंगा. बताइए, कितना खर्च करना होगा?’’

‘‘तुम एक लाख रुपया मेरे एकाउंट में जमा करवा दो, ये रुपए एक सिक्योरिटी के रूप में मेरे पास रहेंगे. तुम्हें मैं वह बक्सा दिलवा रहा हूं, जिस में से तुम रोज लाखों रुपए, सोनाचांदी प्राप्त कर सकोगे. समझ रहे हो न मेरी बात?’’

‘‘मैं एक लाख रुपया आज ही आप के एकाउंट में डाल देता हूं.’’ अशोक मीणा ने बगैर किसी हिचक के कहा, ‘‘आप तो अपने गुरु के पास मुझे ले चलिए.’’

‘‘मेरे गुरु महाराष्ट्र में शाहपुरा (ठाणे) में रहते हैं, वहां चलने में जो खर्चा होगा, वह तुम्हें ही करना होगा.’’

‘‘ठीक है महाराज. सारा खर्च मैं ही करूंगा, आप आज ही टिकट का रिजर्वेशन करवा लीजिए. मैं आप के बैंक एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए डाल देता हूं. आप अपना एकाउंट नंबर मुझे दे दीजिए.’’

जयप्रकाश ने उसे अपना एकाउंट नंबर लिख कर दे दिया. अशोक मीणा वह नंबर ले कर उस साधनास्थल से बाहर निकला तो उस के मन में बेहद उत्साह और चेहरे पर खुशी थी.

अशोक मीणा ने एक घंटे बाद ही जयप्रकाश शर्मा के एकाउंट में एक लाख 20 हजार रुपए जमा करवा दिए.

तीसरे दिन जयप्रकाश शर्मा अपने साथ अशोक मीना को ले कर ठाणे के शाहपुरा में अपने गुरु शिवनाथ के यहां पहुंच गया.

शिवनाथ तांत्रिक का वह कमरा, जहां वह तंत्रसाधना करता था, बहुत रहस्यमयी था. कमरे में काली की आदमकद मिट्टी की मूर्ति रखी थी, उस के गले में हड्डियों की माला पड़ी हुई थी.

कमरे के बीच में धूनी जली हुई थी, जिस में से इंसानी या किसी जानवर के मांस के जलने की सड़ांध आ रही थी. धूनी के पास एक आसन बिछा हुआ था, जिस के करीब पानी का एक कटोरा, कमंडल और हड्डी रखी हुई थी. घूनी के धुएं से कमरा काला पड़ चुका था.

कमरे में लाल रंग की रोशनी वाला बल्ब जल रहा था, जिस की मद्धिम रोशनी ने कमरे को रहस्यमयी बना दिया था.

शिवनाथ दुबलापतला, सांवली रंगत वाला इंसान था. उस के लंबे बाल कंधे तक झूल रहे थे, वह लाल रंग का कुरतापायजामा पहने हुए था. उस ने हाथों की अंगुलियों में राशिनग वाली अंगूठियां और दाएं हाथ में मोटा कड़ा पहना हुआ था. चेहरे से वह बहुत चालाक इंसान लग रहा था.

उस कक्ष में शिवनाथ के सामने बेहद खूबसूरत, छरहरे बदन वाली युवती बैठी हुई थी. वहां तंत्र क्रिया हो रही थी.

शिवनाथ उन दोनों को देख कर मुसकराया, ‘‘कैसे हो जयप्रकाश?’’

‘‘अच्छा हूं गुरुजी.’’ जयप्रकाश ने शिवनाथ के चरण छू कर कहा, ‘‘और तुम अशोक मीणा, यहां तक आने में कोई परेशानी तो नहीं हुई तुम्हें?’’ शिवनाथ ने अशोक की तरफ देखा.

शिवनाथ के मुंह से अपना परिचय सुन कर इस बार अशोक को कोई हैरानी नहीं हुई.

तांत्रिक शक्ति का यह चमत्कार वह जयप्रकाश द्वारा पहले भी देख चुका था. उस ने श्रद्धा से शिवनाथ के चरण स्पर्श कर के कहा, ‘‘हम आराम से यहां तक पहुंच गए हैं गुरुजी. रास्ते में कोई कष्ट नहीं हुआ.’’

‘‘बैठ जाओ. मैं इस पीडि़ता की क्रिया से निपटने के बाद तुम दोनों से बात करूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा.

दोनों आसन ले कर बैठ गए.

‘‘बेटी, कल मैं ने तुम्हें कुछ चावल के दाने रुमाल में बांध कर दिए थे, वह साथ लाई हो तुम?’’ शिवनाथ ने युवती से पूछा.

‘‘हां महाराज.’’ युवती ने अपने सूट के गले में हाथ डाल कर एक सफेद रंग का रुमाल निकाल कर शिवनाथ के सामने रख दिया.

‘‘इसे खोल कर देखो, चावल सफेद हैं या उन का रंग बदल गया है?’’ शिवनाथ ने आदेश देते हुए कहा.

युवती ने रुमाल की गांठ खोली तो उस के चेहरे पर आश्चर्य के भाव उमड़ आए. रुमाल में रखे चावलों का रंग सुर्ख लाल हो गया था.

‘‘यह तो लाल रंग के हो गए महाराज.’’ युवती हैरत से बोली.

शिवनाथ गंभीर हो गया, ‘‘तुम्हारा प्रेमी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाला पुरुष है, वह तुम से प्यार का ढोंग कर रहा है, उस के अन्य युवतियों से भी प्रेमिल संबंध हैं.’’

‘‘मुझे पहले ही शक था महाराज. योगेश मुझे बेवकूफ बना रहा है, वह मुझे मिलने का समय दे कर नहीं आता…’’

‘‘कैसे आएगा, दूसरी युवती का भूत जो उस के सिर पर सवार रहता है.’’ शिवनाथ ने कहने के बाद कंधे झटके, ‘‘चिंता मत करो. मेरे जिन्न उस का भूत उतार देंगे. बोलो, तुम्हें अपना प्रेमी चाहिए या इसे सबक सिखा कर छोड़ना पसंद करोगी?’’

‘‘मैं योगेश से बहुत प्यार करती हूं महाराज, उस के बगैर जिंदा नहीं रह सकती. आप तो उस का दिमाग ठीक कर दीजिए, योगेश हमेशा मेरा रहे, मैं यही चाहती हूं.’’ युवती ने भावुक स्वर में कहा.

शिवनाथ ने हवा में हाथ लहराया तो उस के हाथ में गुलाब का लाल फूल आ गया. फूल को उस ने युवती की तरफ बढ़ा दिया, ‘‘लो, यह फूल पानी में घोल कर योगेश को पिला देना, वह तुम्हें छोड़ कर किसी दूसरी लड़की के पास नहीं जाएगा. जाओ मौज करो.’’

‘‘आप की दक्षिणा देनी है महाराज, क्या सेवा करूं?’’ युवती ने पूछा.

‘‘मैं ने यह काम तुम्हारे लिए फ्री किया है, जब कभी आवश्यकता पड़ेगी दक्षिणा ले लूंगा.’’ शिवनाथ ने कहा तो युवती उस के चरणस्पर्श कर वहां से चली गई.

अशोक मीणा शिवनाथ के द्वारा हवा में हाथ लहरा कर फूल पकड़ लेने की क्रिया से हैरान था. हवा में गुलाब का फूल कहां से आया, उस की समझ में नहीं आया था. वह सोच में डूबा था कि शिवनाथ की आवाज ने उस की तंद्रा भंग कर दी.

‘‘कहो जयप्रकाश शर्मा, तुम्हारा कार्य कैसा चल रहा है?’’

‘‘बहुत अच्छा चल रहा है गुरुदेव.’’

‘‘कैसे आने का कष्ट किया तुम ने?’’

‘‘मैं अपने लिए नहीं आया हूं, मैं अशोक के लिए आप की शरण में आया हूं. मैं एकांत में आप से बात करना चाहता हूं.’’

‘‘आओ, हम भीतर के कक्ष में चल कर बात करते हैं.’’ शिवनाथ ने कहा और उठ कर खड़ा हो गया.

वह जयप्रकाश को साथ ले कर अंदर चला गया. अशोक वहीं बैठा उन के बाहर आने का इंतजार करता रहा. काफी देर बाद अंदर से जयप्रकाश बाहर आया. उस ने अशोक के कंधे पर हाथ रख कर आत्मीयता से पूछा, ‘‘बोर तो नहीं हुए अशोक?’’

‘‘नहीं महाराज.’’

‘‘मैं तुम्हारे ही काम के लिए गुरुजी को अंदर ले गया था. गुरुजी वह चमत्कारी बक्सा तुम्हें देने को मान गए हैं. लेकिन तुम्हें इस के लिए 3 लाख रुपए की दक्षिणा देनी होगी.’’

‘‘दे दूंगा महाराज, लेकिन वह चमत्कारी बक्सा मुझे गुरुजी दे तो देंगे न?’’ कुछ शंकित सा स्वर था अशोक का.

‘‘जब जयप्रकाश ने कह दिया तो मैं इस की बात कैसे काट दूं.’’ अंदर से शिवनाथ हाथ में एक लकड़ी का बक्सा ले कर आते हुए बोला. उस ने पास आ कर वह बक्सा अशोक को दे दिया.

यह एक वर्गफुट का चौकोर नक्काशीदार बक्सा था. देखने में वह काफी पुराना लगता था, लेकिन उस की मजबूती अभी भी बरकरार थी.

‘‘देखो अशोक, तुम्हें रोज सुबह स्नान कर के बक्से के आगे धूप जलानी होगी, फिर हाथ जोड़ कर कहना होगा, ‘अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से.’ यह तुम्हें जो देगा, चुपचाप रख लेना. इस का जिक्र बाहरी व्यक्ति से कभी मत करना. करोगे तो तुम्हारे मन की मुराद पूरी नहीं होगी.’’ शिवनाथ ने समझाते हुए कहा, ‘‘अब तुम जयप्रकाश के साथ अजमेर लौट जाओ. 3 लाख रुपए तुम इस के खाते में अजमेर पहुंच कर डाल देना.’’

‘‘ठीक है गुरुदेव,’’ अशोक ने खुशी से बक्सा अपने बैग में रखते हुए शिवनाथ के चरण स्पर्श किए और जयप्रकाश के साथ स्टेशन के लिए निकल पड़ा. उसी रात वे अजमेर जाने वाली ट्रेन में सवार हो गए.

अशोक मीणा को शिवनाथ तांत्रिक द्वारा जो बक्सा दिया गया था, उस ने 6 दिन तक पूरा चमत्कार दिखाया. उस में से 10 हजार रुपए 6 दिनों तक निकले. इस के बाद उस बक्से से रुपए निकलने बंद हो गए.

अशोक मीणा पूरी श्रद्धा से नहाधो कर बक्से के सामने धूप आदि जला कर ‘मुझे अपना चमत्कार दिखाओ जादुई बक्से’, कहता लेकिन बक्सा खाली रहता.

उस ने नोट देना अब बंद कर दिया था. अशोक मीणा ने परेशान हो कर यह बात जयप्रकाश शर्मा को बताई तो उस ने अशोक से कहा कि वह जा कर शिवनाथ से मिले, वही बताएंगे कि बक्से से नोट क्यों नहीं निकल रहे हैं.

अशोक मीणा को अकेले मुंबई में शाहपुरा जाना पड़ा. तांत्रिक शिवनाथ भी मिला. जब उसे चमत्कारी बक्से के काम न करने की बात अशोक ने बताई तो वह हैरानी जाहिर करते हुए बोला, ‘‘ऐसा होना तो नहीं चाहिए अशोक, अगर ऐसा हो रहा है तो देखना पड़ेगा. चूंकि अभी कोरोना काल चल रहा है, इस वजह से सभी देवालय बंद पडे़ हैं. ये खुलेंगे तो मैं इस को दुरुस्त कर के दे दूंगा. कोरोना संक्रमण फैल रहा है, इसलिए तुम अजमेर लौट आओ.’’

अशोक मीणा बक्सा शिवनाथ के पास छोड़ कर अजमेर आ गया.

यह मार्च 2020 की बात है. अशोक दीदारनाथ आश्रम में रोज हाजिरी देता और पंडित जयप्रकाश शर्मा से मिलता. एक दिन उस ने अशोक मीणा को बताया कि जमीन में (Rajasthan Crime) एक जगह करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है. यदि तुम एक लाख रुपया दोगे तो मैं तुम्हें 5 प्रतिशत का हिस्सेदार बना दूंगा. चूंकि मैं तुम्हारा हितैषी हूं, इसलिए यह औफर तुम्हें दे रहा हूं. सोच कर जबाब देना.

अशोक मीणा को लालच आ गया. उस ने उस के कहने पर तुरंत उस के एकाउंट में एक लाख रुपए जमा कर दिए.

अशोक मीणा के लालची मन को टटोल कर जयप्रकाश ने उस से सोने के हिस्से में सहभागी बनाने का लालच दे कर 14 लाख 95 हजार 255 रुपए अपने एकाउंट में जमा करवा लिए. 6 लाख 50 हजार जयप्रकाश ने अशोक से नकद ले लिए. यह रकम जमीन से सोना निकालने में मजदूरों की मेहनत और पूजापाठ के नाम पर ली थी.

अशोक मीणा मार्च 2019 से अक्तूबर 2022 तक जयप्रकाश को 41 लाख 45 हजार 235 रुपए दे चुका था. अब उसे अहसास होने लगा था कि वह जयप्रकाश और शिवनाथ तांत्रिक द्वारा ठगा गया है.

उस ने जयप्रकाश से अपना रुपया वापस मांगना शुरू किया तो जयप्रकाश टालमटोल करने लगा और फिर एक दिन वह केकड़ी से गायब हो गया.

14 जनवरी, 2023 को अशोक मीणा रोते हुए सिटी थाने में पहुंच गया. एसएचओ राजवीर सिंह को अशोक ने अपने ठगे जाने की पूरी कहानी बता कर जयप्रकाश शर्मा और शाहपुरा (ठाणे) के तांत्रिक शिवनाथ के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा दी.

एसएचओ राजवीर सिंह ने धूर्त तांत्रिकों के लिए छापेमारी शुरू करवा दी. शाहपुरा (ठाणे) में शिवनाथ तांत्रिक को गिरफ्तार करने के लिए मुंबई पुलिस से मदद मांगी गई, लेकिन वहां से बताया गया कि तांत्रिक शिवनाथ यहां से लापता हो गया है.

इन धूर्त तांत्रिकों ने केवल अशोक मीणा को ही ठगा होगा, यह बात एसएचओ राजवीर सिंह मानने को तैयार नहीं थे. दोनों तांत्रिकों ने और भी अनेक लोगों को चूना लगाया होगा, किंतु ये लोग जगहंसाई के डर से सामने नहीं आना चाहते थे.

जयप्रकाश तंत्र विघ्न से संबंधित एक यूट्यूब चैनल भी चलाता था.

आध्यात्मिक चमत्कारों और देवीदेवताओं में गहरी आस्था होने के कारण ये लोग चालाक मक्कार लोगों द्वारा ठग लिए जाते हैं. पीडि़त व्यक्ति जगहंसाई और शरम के कारण पुलिस के पास नहीं जाते, यह बात ठग तांत्रिक भलीभांति जानते हैं. इसी वजह से ये ठग कानून के शिंकजे में नहीं फंसते. ये ठग लोग धर्म की आड़ में भोलेभाले लोगों को आज भी ठग रहे हैं.

कथा लिखने तक पुलिस तथाकथित तांत्रिकों शिवनाथ और जयप्रकाश को उन के ठिकानों पर तलाश रही थी, लेकिन वे पुलिस को मिल नहीं सके.

—कथा पुलिस सूत्रों और पीडि़त से की गई बातचीत पर आधारित

UP Crime : मांबेटी को जलाया जिंदा

UP Crime : उत्तर प्रदेश के कानपुर (देहात) जनपद के रूरा थाने से 5 किलोमीटर दूर मैथा ब्लौक के अंतर्गत एक बड़ी आबादी वाला गांव है मड़ौली. अकबरपुर और रूरा 2 बड़े कस्बों के बीच लिंक रोड से जुड़े ब्राह्मण बाहुल्य इसी गांव में कृष्ण गोपाल दीक्षित सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी प्रमिला के अलावा 2 बेटे शिवम, अंश तथा एक बेटी नेहा थी. कृष्ण गोपाल दीक्षित के पास मात्र 2 बीघा जमीन थी. इसी जमीन पर खेती कर और बकरी पालन से वह अपना परिवार चलाते थे. बेटे जवान हुए तो वह भी पिता के काम में सहयोग करने लगे.

कृष्ण गोपाल के घर के ठीक सामने अशोक दीक्षित का मकान था. अशोक दीक्षित के परिवार में पत्नी सुधा के अलावा 3 बेटे गौरव, अखिल व अभिषेक थे. अशोक दीक्षित दबंग व संपन्न व्यक्ति थे. उन के पास खेती की अच्छीखासी जमीन थी. इस के अलावा उन के 2 बेटे गौरव व अभिषेक फौज में थे. संपन्नता के कारण ही गांव में उन की तूती बोलती थी. उन के बड़े बेटे गौरव का विवाह रुचि दीक्षित के साथ हो चुका था. रुचि खूबसूरत थी. वह अपनी सास सुधा के सहयोग से घर संभालती थी.

घर आमनेसामने होने के कारण अशोक व कृष्ण गोपाल के बीच बहुत नजदीकी थी. दोनों परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. अशोक की पत्नी सुधा व कृष्ण गोपाल की पत्नी प्रमिला की खूब पटती थी, लेकिन दोनों के बीच अमीरीगरीबी का बढ़ा फर्क था. कृष्ण गोपाल व उस के परिवार के मन में सदैव गरीबी की टीस सताती रहती थी.

मड़ौली गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर सडक़ किनारे ग्राम समाज की भूमि पर कृष्ण गोपाल दीक्षित का पुश्तैनी कब्जा था. सालों पहले इस वीरान पड़ी भूमि पर कृष्ण गोपाल के पिता चंद्रिका प्रसाद दीक्षित व बाबा ने पेड़ लगा कर कब्जा किया था. बाद में पेड़ों ने बगीचे का रूप ले लिया. इसी बगीचे में कृष्ण गोपाल ने एक कमरा बना लिया था और सामने झोपड़ी डाल ली थी. इसी में वह रहते थे और पशुपालन करते थे.

भू अभिलेखों में ग्राम समाज की यह जमीन गाटा संख्या 1642 में 3 बीघा दर्ज है, जिस में से एक बीघा भूमि पर कृष्ण गोपाल का कब्जा था. लेकिन जो 2 बीघा जमीन थी, उस पर कृष्ण गोपाल किसी को भी कब्जा नहीं करने देता था. उस पर भी वह अपना अधिकार जमाता था. कृष्ण गोपाल ही नहीं, गांव के दरजनों लोग ग्राम समाज की जमीन पर काबिज हैं. किसी ने खूंटा गाड़ कर कब्जा किया तो किसी ने कूड़ाकरकट डाल कर. किसी ने कच्चापक्का निर्माण करा कर कब्जा किया तो किसी ने सडक़ किनारे दुकान बना ली. इस काबिज ग्राम समाज की भूमि पर किसी ने अंगुली नहीं उठाई और आज भी काबिज हैं.

सिपाही लाल ने शुरू किया विवाद…

लेकिन कृष्ण गोपाल की काबिज भूमि पर आंच तब आई, जब गांव के ही सिपाही लाल दीक्षित ने गाटा संख्या 1642 की 2 बीघा में से एक बीघा जमीन अपनी बेटी रानी के नाम तत्कालीन ग्रामप्रधान के साथ मिलीभगत कर पट्टा करा दी. रानी का विवाह रावतपुर (कानपुर) (UP Crime) निवासी रामनरेश के साथ हुआ था. लेकिन उस की अपने पति से नहीं पटी तो वह मायके आ कर रहने लगी थी. उस का पति से तलाक हुआ या नहीं, यह तो पता नहीं चला, पर उस का पति से लगाव खत्म हो गया था.

यह बात सन 2005 की है. सिपाही लाल ने बेटी के नाम पट्ïटा तो करा दिया, लेकिन वह कृष्ण गोपाल के विरोध के कारण उस पर कब्जा नहीं कर पाया. बस यही बात कृष्ण गोपाल के पड़ोसी अशोक दीक्षित को चुभने लगी. दरअसल, रानी रिश्ते में अशोक की बहन थी. वह चाहते थे कि रानी पट्टे वाली जमीन पर काबिज हो. इस मामले को ले कर अशोक दीक्षित ने परिवार के अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदनलाल व बढ़े बउआ को भी अपने पक्ष में कर लिया. अब ये लोग कृष्ण गोपाल के विपक्षी बन गए और मन ही मन रंजिश मानने लगे.

अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में था. उसे भी इस बात का मलाल था कि उस के पिता रानी बुआ को पट्टे वाली जमीन पर काबिज नहीं करा पाए. वह जब भी छुट्टी पर गांव आता, वह कृष्ण गोपाल के परिवार को नीचा दिखाने की कोशिश करता. एक बार उस ने शिवम की बहन नेहा के फैशन को ले कर भद्दी टिप्पणी कर दी. इस पर नेहा और उस की मां प्रमिला ने उसे तीखा जवाब दिया, जिस से वह तिलमिला उठा.

कृष्ण गोपाल दीक्षित के दोनों बेटे शिवम व अंशु भी दबंगई में कम न थे. दोनों विश्व हिंदू परिषद के सक्रिय सदस्य थे. विहिप के धरनाप्रदर्शन में दोनों भाग लेते रहते थे. दोनों भाई आर्थिक रूप से भले ही कमजोर थे, लेकिन खतरों के खिलाड़ी थे. अब तक शिवम की शादी शालिनी के साथ हो गई थी. वह पुश्तैनी मकान में रहता था. दिसंबर, 2022 में गौरव छुट्टी पर आया तो एक रोज सडक़ किनारे एक दुकान पर किसी बात को ले कर उस की अंशु से तकरार होने लगी. तकरार बढ़ती गई और दोनों एकदूसरे को देख लेने की धमकी देने लगे.

इस घटना के बाद गौरव ने फैसला कर लिया कि वह कृष्ण गोपाल व उस के बेटों को सबक जरूर सिखाएगा और उन की अवैध कब्जे वाली ग्राम समाज की भूमि को मुक्त करा कर ही दम लेगा. इस के बाद गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित व परिवार के अन्य लोगों के साथ कान से कान जोड़ कर सलाह की और पूरी योजना बनाई. योजना के तहत गौरव ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान से मुलाकात की. पहली ही मुलाकात में दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए. कारण, अशोक सिंह चौहान भी पहले फौज में था. रिटायर होने के बाद उसे लेखपाल की नौकरी मिल गई थी.

चूंकि दोनों फौजी थे, अत: जल्द ही उन की दोस्ती हो गई. इस के बाद गौरव ने लेखपाल को पैसों का लालच दे कर उसे अपनी मुट्ठी में कर लिया. योजना के तहत ही गौरव ने अपने पिता अशोक दीक्षित के मार्फत परिवार के एक व्यक्ति गेंदनलाल दीक्षित को उकसाया और उसे शिकायत करने को राजी कर लिया. गेंदन लाल ने तब दिसंबर के अंतिम सप्ताह में एक प्रार्थनापत्र कानपुर (देहात) की डीएम नेहा जैन को दिया. इस प्रार्थना पत्र में उस ने लिखा कि मड़ौली गांव के निवासी कृष्ण गोपाल दीक्षित व उस के बेटों ने ग्राम समाज की भूमि पर अवैध कब्जा कर कमरा बना लिया है व झोपड़ी भी डाल ली है. इस जमीन को खाली कराया जाए.

गेंदन लाल को बनाया मोहरा…

गेंदन लाल के इस शिकायती पत्र पर डीएम नेहा जैन ने काररवाई करने का आदेश एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद को दिया. ज्ञानेश्वर प्रसाद ने इस संबंध में जानकारी लेखपाल अशोक सिंह चौहान से जुटाई तो पता चला कि कृष्ण गोपाल जिस जमीन पर काबिज है, वह जमीन ग्राम समाज की है.

लेखपाल अशोक सिंह चौहान घूसखोर था. वह कोई भी काम बिना घूस के नहीं करता था. उस की निगाह अवैध कब्जेदारों पर ही रहती थी. जो उसे पैसा देता, उस का कब्जा बरकरार रहता, जो नहीं देता उन को धमकाता. मड़ौली के ग्राम प्रधान मानसिंह की भी उस से कहासुनी हो चुकी थी. उन्होंने उस की शिकायत भी डीएम साहिबा से की थी. लेकिन उस का बाल बांका नहीं हुआ. उस ने अधिकारियों को गुमराह कर अपना उल्लू सीधा कर लिया था. मैथा ब्लाक में एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भी उस के जायजनाजायज काम में लिप्त रहते थे.

13 जनवरी, 2023 को बिना किसी नोटिस के एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद की अगुवाई में राजस्व विभाग की एक टीम कृष्ण गोपाल के यहां पहुंची और ग्राम समाज की भूमि पर बना उस का कमरा ढहा दिया. कमरा ढहाए जाने के पहले कृष्ण गोपाल ने एसडीएम (मैथा) के पैरों पर गिर कर ध्वस्तीकरण रोकने की गुहार लगाई, लेकिन वह नहीं पसीजे. लेखपाल अशोक सिंह चौहान तो उन्हें बेइज्जत ही करता रहा. एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद ने कृष्ण गोपाल से कहा कि 5 दिन के अंदर वह अपनी झोपड़ी भी हटा ले, वरना इसे भी ढहा दिया जाएगा. काररवाई के दौरान एक मैमो भी बनाया गया, जिस में गवाह के तौर पर 15 ग्रामीणों के हस्ताक्षर कराए गए.

14 जनवरी, 2023 को पीडि़त कृष्ण गोपाल दीक्षित व उन के घर के अन्य लोग लोडर से बकरियां ले कर माती मुख्यालय धरना देने पहुंच गए. समर्थन में विहिप नेता आदित्य शुक्ला व गौरव शुक्ला भी पहुंच गए. पीडि़त परिजनों ने आवास की मांग की तो अफसरों ने उन्हें माफिया बताया. माफिया बताने पर विहिप नेताओं का पारा चढ़ गया. उन्होंने सर्दी में गरीब का घर ढहाने व प्रशासन की संवेदनहीनता पर नाराजगी जताई. उन की एडीएम (प्रशासन) केशव गुप्ता से झड़प भी हुई.

दूसरे दिन पीडि़तों की आवाज दबाने के लिए तहसीलदार रणविजय सिंह ने अकबरपुर कोतवाली में शांति भंग की धारा में कृष्ण गोपाल दीक्षित, उन की पत्नी प्रमिला, बेटों शिवम व अंशु, बेटी नेहा व बहू शालिनी तथा सहयोग करने वाले विहिप नेता आदित्य व गौरव शुक्ला के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया.

14 जनवरी, 2023 को ही लेखपाल अशोक सिंह चौहान ने थाना रूरा में कृष्ण गोपाल व उन के दोनों बेटों के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज कराया, जिस में उस ने लिखा, ‘13 जनवरी को प्रशासन अवैध कब्जा हटाने गया था. उस वक्त कृष्ण गोपाल व उन के बेटे शिवम व अंशु प्रशासन से गालीगलौज करते हुए मारपीट पर उतारू हो गए थे. जोरजोर से झगड़ा करने लगे थे. गांव के लोगों को सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने के लिए उकसाने लगे थे. वह कहने लगे कि यहां से भाग जाओ वरना बिकरू वाला कांड अपनाएंगे.’

लेखपाल की तहरीर के आधार पर रूरा पुलिस ने रिपोर्ट तो दर्ज कर ली थी, लेकिन किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया. दूसरी तरफ इस मामले के खिलाफ पीडि़त कृष्ण गोपाल ने तहसील अकबरपुर में वाद दायर किया, जिस की सुनवाई की तारीख 20 फरवरी निर्धारित की गई.

बदले की भावना से चलाया बुलडोजर…

मड़ौली गांव में दरजनों लोग ग्रामसमाज की भूमि पर काबिज थे, उन की भूमि पर प्रशासन का बुलडोजर नहीं चला, लेकिन बदले की भावना से तथा मुट्ïठी गर्म होने पर कृष्ण गोपाल को निशाना बनाया गया. पर कृष्ण गोपाल भी जिद्ïदी था. उस ने कमरा ढहाए जाने के बाद उसी जगह पर ईंटों का पिलर खड़ा कर उस पर घासफूस की झोपड़ी बना ली थी. यही नहीं, उस ने हैंडपंप को ठीक करा लिया था और शिव चबूतरे को भी नया लुक दे दिया था.

कृष्ण गोपाल दीक्षित को 5 दिन में जगह को कब्जामुक्त करने का अल्टीमेटम प्रशासनिक अधिकारियों ने दिया था, लेकिन 2 सप्ताह बीत जाने के बावजूद भी उस ने जगह खाली नहीं की थी. दरअसल, कृष्ण गोपाल ने तहसील में वाद दाखिल किया था और सुनवाई 20 फरवरी को होनी थी. इसलिए वह निश्चिंत था और जगह खाली नहीं की थी. लेखपाल अशोक सिंह चौहान व अन्य प्रशासनिक अधिकारी जमीन कब्जा मुक्त न होने से खफा थे. लेखपाल उन के कान भी भर रहा था और उन्हें गुमराह भी कर रहा था. अत: प्रशासनिक अधिकारियों ने कृष्ण गोपाल की झोपड़ी भी ढहाने का मन बना लिया.

13 फरवरी, 2023 की शाम 3 बजे एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, कानूनगो नंदकिशोर, लेखपाल अशोक सिंह चौहान और एसएचओ दिनेश कुमार गौतम बुलडोजर ले कर मड़ौली गांव पहुंचे. साथ में 15 महिला, पुरुष पुलिसकर्मी भी थे. लोडर चालक दीपक चौहान था. अचानक इतने अधिकारियों और पुलिस को देख कर झोपड़ी में आराम कर रहे कृष्ण गोपाल और उन की पत्नी प्रमिला बाहर निकले. प्रशासनिक अधिकारियों ने जमीन पर अवैध कब्जा बताते हुए उन से तुरंत जगह खाली करने को कहा.

इस पर प्रमिला, उन के बेटे शिवम व बेटी नेहा ने कहा कि कोर्ट में उन का वाद दाखिल है और सुनवाई 20 फरवरी को है. लेकिन पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी नहीं माने. उन्होंने जगह को तुरंत खाली करने की चेतवनी दी. इस के बाद शिवम अपने पिता के साथ झोपड़ी का सामान निकाल कर बाहर रखने लगा. इसी समय एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद ने बुलडोजर चालक दीपक चौहान को संकेत दिया कि वह काररवाई शुरू करे. बुलडोजर शिव चबूतरा ढहाने आगे बढ़ा तो एसएचओ (रूरा) दिनेश गौतम ने उसे रोक दिया. वह चबूतरे पर चढ़े. उन्होंने शिवलिंग व नंदी को प्रणाम कर माफी मांगी फिर चबूतरे से उतर आए. उन के उतरते ही बुलडोजर ने चबूतरा ढहा दिया और मार्का हैंडपंप को उखाड़ फेंका.

जीवित भस्म हो गईं मांबेटी…

अब तक प्रमिला के सब्र का बांध टूट चुका था. उन्हें लगा कि अधिकारी उन की झोपड़ी नेस्तनाबूद कर देंगे. वह पुलिस व लेखपाल से भिड़ गईं. उस ने लेखपाल अशोक सिंह चौहान के माथे पर हंसिया से प्रहार कर दिया. फिर वह बेटी नेहा के साथ चीखती हुई बोली, ‘‘मर जाऊंगी, लेकिन कब्जा नहीं हटने दूंगी.’’

इस के बाद वह नेहा के साथ झोपड़ी के अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया. महिला पुलिसकर्मियों ने दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन दरवाजा नहीं खुला. इधर प्रशासनिक अधिकारियों को लगा कि मांबेटी ध्वस्तीकरण रोकने के लिए नाटक कर रही हैं. उन्होंने झोपड़ी गिराने का आदेश दे दिया. बुलडोजर ने छप्पर ढहाया तो झोपड़ी में आग लग गई. हवा तेज थी. देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया.

आग की लपटों के बीच मांबेटी धूधू कर जलने लगी. कृष्ण गोपाल चिल्लाता रहा कि पत्नी और बेटी झोपड़ी के अंदर है. परंतु अफसरों ने नहीं सुनी और जलता छप्पर जेसीबी से और दबवा दिया. इस से उन का निकल पाना तो दूर, दोनों को हिलने तक का मौका नहीं मिला और दोनों जल कर भस्म हो गईं.

कृष्ण गोपाल व उन का बेटा शिवम मां व बहन को बचाने किसी तरह झोपड़ी में घुस तो गए. लेकिन वे उन दोनों तक नहीं पहुंच पाए. आग की लपटों ने उन दोनों को भी झुलसा दिया था. शिवम बाहर खड़ा चीखता रहा, ‘‘हाय दइया, कोउ हमरी मम्मी बहना को बचा लेऊ.’’ पर उस की चीख अफसरों ने नहीं सुनी. वे आंखें मूंदे खतरनाक मंजर देखते रहे.

इधर मड़ौली गांव के लोगों ने कृष्ण गोपाल के बगीचे में आग की लपटें देखीं तो वे उस ओर दौड़ पड़े. वहां का भयावह दृश्य देख कर ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा और वे पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों पर पथराव करने लगे. ग्रामीणों का गुस्सा देख कर पुलिस व अफसर किसी तरह जान बचा कर वहां से भागे. ग्रामीणों का सब से ज्यादा गुस्सा लेखपाल पर था. उन्होंने उस की कार पलट दी और तोड़ डाली. वे कार को फूंकने जा रहे थे, लेकिन कुछ समझदार ग्रामीणों ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया.

सूर्यास्त होने से पहले ही मांबेटी के जिंदा जलने की खबर जंगल की आग की तरह मड़ौली व आसपास के गांवों में फैल गई. कुछ ही देर बाद सैकड़ों की संख्या में लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. लोगों में भारी गुस्सा था और वह शासनप्रशासन मुर्दाबाद के नारे लगाने लगे थे. शिव चबूतरा तोड़े जाने से लोगों में कुछ ज्यादा ही रोष था. इस बर्बर घटना की जानकारी पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को हुई तो चंद घंटों बाद ही एसपी (देहात) बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति, एएसपी घनश्याम चौरसिया, एडीजी आलोक सिंह, आईजी प्रशांत कुमार, कमिश्नर डा. राजशेखर तथा डीएम (कानपुर देहात) नेहा जैन आ गईं और उन्होंने घटनास्थल पर डेरा जमा लिया.

कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए पुलिस अधिकारियों ने भारी संख्या में पुलिस व पीएसी बल बुलवा लिया. कमिश्नर डा. राजशेखर, एडीजी आलोक सिंह तथा आईजी प्रशांत कुमार ने घटनास्थल का निरीक्षण किया तथा कृष्ण गोपाल व उन के बेटों को धैर्य बंधाया. निरीक्षण के बाद अधिकारियों ने मृतक मांबेटी के घर वालों से पूछताछ की. मृतका प्रमिला के पति कृष्ण गोपाल ने अफसरों को बताया कि एसडीएम (मैथा), कानूनगो व लेखपाल बुलडोजर ले कर आए थे. उन के साथ गांव के अशोक दीक्षित, अनिल, निर्मल व बड़े बउआ और गांव के कई अन्य लोग भी थे. ये लोग अधिकारियों से बोले कि आग लगा दो तो अफसरों ने आग लगा दी. हम और हमारा बेटा उन दोनों को बचाने में झुलस गए. लेकिन उन्हें बचा नहीं पाए और वे आग में जल कर खाक हो गईं. कृष्ण गोपाल के बेटे शिवम दीक्षित ने भी इसी तरह का बयान दिया.

दोषियों को बचाने में जुटा प्रशासन…

अधिकारियों ने कुछ ग्रामीणों से भी पूछताछ की. राजीव द्विवेदी नाम के व्यक्ति ने बताया कि अशोक दीक्षित का बेटा गौरव दीक्षित फौज में है. वह दबंग है. उसी ने पूरी साजिश रची. उस के साथ गांव के कुछ लोग हैं. इस में एसडीएम, एसएचओ और लेखपाल भी मिले हैं. डीएम साहिबा अपने कर्मचारियों को बचा रही हैं. ग्रामीणों ने बताया कि इस पूरे मामले में प्रशासन दोषी है. अफसरों ने पैसा लिया है. वह जबरदस्ती कब्जा हटाने पर अड़े हुए थे. उन्होंने कहा मृतका प्रमिला की बेटी नेहा की शादी तय हो गई थी. उस की अब डोली की जगह अर्थी उठेगी. प्रमिला भी समझदार महिला थी. उस ने कभी किसी का अहित नहीं सोचा.

ग्रामीण व मृतका के परिजन जहां अफसरों को दोषी ठहरा रहे थे, वहीं प्रशासनिक अफसर उन का बचाव कर रहे थे. जिलाधिकारी नेहा जैन ने इस मामले पर सफाई देते हुए कहा कि अतिक्रमण हटाने के लिए राजस्व टीम पुलिस के साथ मौके पर पहुंची थी. महिलाएं आईं और रोकने का प्रयास किया. लेखपाल पर हंसिया से अटैक भी किया. इस के बाद मांबेटी ने झोपड़ी के अंदर जा कर आग लगा ली.

कानपुर (देहात) के एसपी बी.बी.जी.टी.एस. मूर्ति ने कहा, ‘‘एसडीएम व अन्य कर्मचारी अवैध कब्जा हटाने गए थे. इस दौरान कुछ लोग विरोध कर रहे थे. महिला व उन की बेटी भी विरोध में शामिल थी. विरोध करतेकरते उन दोनों ने खुद को झोपड़ी के अंदर बंद कर लिया. थोड़ी देर बाद झोपड़ी के अंदर आग लग गई. इस में महिला व उन की बेटी की मौत हो गई. आग लगी या लगाई गई, इस की जांच होगी.’’

पूछताछ के बाद रूरा पुलिस थाने में मृतका प्रमिला के बेटे शिवम दीक्षित की तहरीर के आधार पर मुअसं 38/2023 पर भादंवि की धारा 302/307/429/436/323 व 34 के तहत 11 नामजद, 15 पुलिसकर्मियों व 13 अन्य के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई. नामजद आरोपियों में एसडीएम (मैथा) ज्ञानेश्वर प्रसाद, लेखपाल अशोक कुमार सिंह चौहान, रूरा प्रभारी निरीक्षक दिनेश गौतम, कानूनगो नंद किशोर, जेसीबी चालक दीपक चौहान, मड़ौली गांव के अशोक दीक्षित, अनिल दीक्षित, निर्मल दीक्षित, गेंदन लाल, गौरव दीक्षित व बढ़े बउआ के नाम थे. मामले की जांच थाना अकबरपुर के इंसपेक्टर प्रमोद कुमार शुक्ला को सौंपी गई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद शासन ने एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद को सस्पेंड कर दिया तथा 2 आरोपियों जेसीबी चालक दीपक चौहान व लेखपाल अशोक सिंह चौहान को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. सस्पेंड एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद व थाना रूरा के एसएचओ दिनेश गौतम भूमिगत हो गए. अन्य आरोपियों की धरपकड़ के लिए 5 पुलिस टीमें लगा दी गईं.  इधर जल कर खाक हुई मांबेटी का मामला प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक पहुंचा तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भावुक हो उठे. उन्होंने पीडि़त परिवार को हरसंभव मदद का आश्वासन दिया तथा अपनी टीम को लगा दिया. यही नहीं, उन्होंने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अफसरों से ली और सख्त काररवाई का आदेश दिया.

इसी कड़ी में भाजपा की क्षेत्रीय विधायक व राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला देर रात घटनास्थल मड़ौली गांव पहुंचीं. उन्होंने पीडि़त परिवार को धैर्य बंधाया फिर कहा, ‘‘मैं इस क्षेत्र की विधायक हूं और यहां ऐसी बर्बर घटना घट गई. महिलाओं के साथ अत्याचार हुआ. ऐसे में मेरा कल्याण विभाग में होना बेकार है. जब हम अपनी बेटी और मां को नहीं बचा पा रहे. पहले घर के बाहर निकालते फिर गिराते. जमीन तो यूं ही पड़ी है. आगे भी पड़ी रहेगी. कोई कहीं नहीं ले जा रहा है.’’

गांव वालों का फूटा आक्रोश…

पुलिस अधिकारी मांबेटी के शवों को रात में ही पोस्टमार्टम हाउस भेजने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन पीडि़त घर वालों व गांव वालों ने शव नहीं उठाने दिए. उन्होंने एक मांग पत्र कमिश्नर डा. राजशेखर को सौंपा और कहा कि जब तक उन की मांगें पूरी नहीं होती वह शव नहीं उठने देंगे. उन्होंने मुख्यमंत्री या उपमुख्यमंत्री को भी घटनास्थल पर आने की शर्त रखी. पीडि़त परिजनों ने जो मांग पत्र कमिश्नर को सौंपा था, उन में 5 मांगें थी.

1- मृतक परिवार को 5 करोड़ रुपए का मुआवजा,

2-मृतका के दोनों बेटों को सरकारी नौकरी,

3-मृतका के दोनों बेटों को आवास,

4- परिवार को आजीवन पेंशन तथा

5- दोषियों को कठोर सजा.

चूंकि पीडि़त परिवार की मांगें तत्काल मान लेना संभव न था, अत: अधिकारियों ने पीडि़त परिवार को समझाया और उनकी मांगों को शासन तक पहुंचाने की बात कही, लेकिन परिजन अपनी बात पर अड़े रहे. उन्होंने राज्यमंत्री प्रतिभा शुक्ला की भी बात नहीं मानी. लाचार अधिकारी मौके पर ही डटे रहे और मानमनौवल करते रहे.

14 फरवरी, 2023 की सुबह कानपुर नगर/देहात से प्रकाशित समाचार पत्रों में जब मांबेटी की जल कर मौत होने की खबर सुर्खियों में छपी तो पूरे प्रदेश में राजनीतिक भूचाल आ गया. कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव तथा बसपा प्रमुख मायावती ने जहां ट्वीट कर योगी सरकार की कानूनव्यवस्था पर तंज कसा तो दूसरी ओर इन पार्टियों के नेता घटनास्थल पर पहुंचने को आमादा हो गए. लेकिन सतर्क पुलिस प्रशासन ने इन नेेताओं को घटनास्थल तक पहुंचने नहीं दिया. किसी विधायक को उन के घर में नजरबंद कर दिया गया तो किसी को रास्ते में रोक लिया गया.

एसआईटी के हाथ में पहुंची जांच…

इधर 24 घंटे बीत जाने के बाद भी जब घर वालों तथा गांववालों ने मांबेटी के शवों को नहीं उठने दिया तो कमिश्नर डा. राजशेखर ने प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक से वीडियो काल कर पीडि़तों की बात कराई. उपमुख्यमंत्री ने मृतका के बेटे शिवम दीक्षित से कहा कि आप हमारे परिवार के सदस्य हो. पूरी सरकार आप के साथ खड़ी है. दोषियों के खिलाफ केस दर्ज हो गया है और कड़ी से कड़ी काररवाई होगी. उन्हें ऐसी सख्त सजा दिलाएंगे कि पुश्तें याद रखेंगी.

डिप्टी सीएम बात करतेकरते भावुक हो गए. उन्होंने शिवम से कहा कि आप कतई अकेला महसूस न करें, जिन्होंने तुम्हारी मांबहन को तुम से छीना है, उन्हें इस का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इस घटना से हम सभी द्रवित है. इस के बाद उन्होंने शिवम की पत्नी शालिनी तथा भाई अंशु से भी बात की और उन्हें धैर्य बंधाया. डिप्टी सीएम से बात करने के बाद पीडि़त परिवार शव उठाने को राजी हो गया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मांबेटी के शवों के पोस्टमार्टम हेतु माती भेज दिया. शाम साढ़े 6 से साढ़े 7 बजे के बीच 3 डाक्टरों (डा. गजाला अंजुम, डा. शिवम तिवारी तथा डा. मुनीश कुमार) के पैनल ने वीडियोग्राफी के बीच पोस्टमार्टम किया.

मांबेटी के अंतिम संस्कार के बाद पुलिस ने आरोपी अशोक दीक्षित के घर रात 2 बजे छापा मारा, लेकिन घर पर महिलाओं के अलावा कोई नहीं मिला. पुलिस टीम ने महिलाओं से पूछताछ की तो गौरव की पत्नी रुचि दीक्षित ने बताया कि उन के परिवार का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है. उन के पति गौरव दीक्षित फौज में है. वह श्रीनगर में तैनात है. उन का देवर अभिषेक दीक्षित राजस्थान में फौज में है. छोटा देवर अखिल 29 जुलाई से घर से लापता है. उन के ससुर अशोक दीक्षित खेती करते हैं. रुचि ने पुलिस टीम की अपने पति गौरव से फोन पर बात भी कराई.

आरोपी अशोक दीक्षित की पत्नी सुधा दीक्षित ने पुलिस को बताया कि उन के पति व बेटों को इस मामले में साजिशन फंसाया जा रहा है. इधर शासन ने भी मांबेटी की मौत को गंभीरता से लिया और जांच के लिए अलगअलग 2 विशेष जांच टीमों (एसआईटी) का गठन किया. पहली टीम का गठन डीजीपी हाउस लखनऊ द्वारा किया गया.5 सदस्यीय इस टीम में हरदोई के एसपी राजेश द्विवेदी को अध्यक्ष, हरदोई सीओ (सिटी) विकास जायसवाल को विवेचक बनाया गया. जबकि हरदोई के कोतवाल संजय पांडेय, हरदोई महिला थाने की एसएचओ राम सुखारी तथा क्राइम ब्रांच के इंसपेक्टर रमेश चंद्र पांडेय को शामिल किया गया.

दूसरी विशेष जांच टीम (एसआईटी) का प्रमुख कमिश्नर डा. राजशेखर व एडीजी आलोक सिंह को बनाया गया और विवेचक कन्नौज के एडीएम (वित्त एवं राजस्व) राजेंद्र कुमार को बनाया गया. इस टीम को भी तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश दिए. एसआईटी की दोनों टीमें मड़ौली गांव पहुंची और जांच शुरू की. एसपी राजेश द्विवेदी की टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पीडि़त परिवार के लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए. टीम ने गांव के प्रधान व कुछ अन्य लोगों से भी जानकारी जुटाई. टीम ने थाना अकबरपुर व रूरा में पीडि़तों के खिलाफ दर्ज रिपोर्ट का भी अध्ययन किया. टीम ने उन 15 लोगों को भी नोटिस जारी किया जो गवाह के रूप में दर्ज थे.

दूसरी विशेष जांच टीम ने भी जांच शुरू की. डा. राजशेखर की टीम ने लगभग 60 लोगों की लिस्ट तैयार की और उन्हें जिला मुख्यालय पर शिविर कार्यालय निरीक्षण भवन में बयान दर्ज कराने को बुलाया. टीम ने कुछ मोबाइल फोन नंबर भी जारी किए, जिस पर कोई भी व्यक्ति घटना से संबंधित बयान दर्ज करा सके.

बहरहाल, कथा लिखने तक एसआईटी की जांच जारी थी. रूरा पुलिस ने गिरफ्तार आरोपी लेखपाल अशोक सिंह चौहान व चालक दीपक चौहान को माती कोर्ट में पेश किया, जहां से उन दोनों को जिला जेल भेज दिया गया. आरोपी एसएचओ दिनेश गौतम व एसडीएम ज्ञानेश्वर प्रसाद भूमिगत हो चुके थे. अन्य आरोपियों को पकडऩे के लिए पुलिस प्रयासरत थी. मृतका प्रमिला के दोनों बेटों शिवम व अंशु को 5-5 लाख रुपए की सहायता राशि शासन द्वारा प्रदान कर दी गई थी तथा उन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा दी गई थी.

-कथा पुलिस सूत्रों तथा पीडि़त परिवार से की गई बातचीत पर आधारित

UP Crime news : पत्थर से वार कर दोस्त की खोपड़ी के किए कई टुकड़े

UP Crime news : मनीष जिस सौरभ को अपना सब से अच्छा दोस्त समझता था, पैसों के लालच में वही उस का सब से खतरनाक दुश्मन बन गया था. मनीष को घर से गए 24 घंटे से ज्यादा बीत गए थे. इतनी देर तक वह घर वालों को बताए बिना कभी गायब नहीं रहा था. उस के भाई अनिल ने कई बार उस के दोनों फोन नंबरों पर फोन किया था, लेकिन हर बार उस के दोनों नंबरों ने स्विच्ड औफ बताया था. इस के बावजूद वह बीचबीच में फोन मिलाता रहा कि शायद फोन मिल ही जाए. पूरा घर मनीष को ले कर काफी परेशान था.

संयोग से सुबह 7 बजे के लगभग मनीष का फोन मिल गया. मनीष के फोन रिसीव करते अनिल ने कहा, ‘‘मनीष, तू कहां है? कल से तेरा कुछ पता नहीं चल रहा है, तुझे घरपरिवार की इज्जत की भी फिक्र नहीं है. तू किसी को कुछ बताए बगैर ही दोस्तों के साथ मटरगश्ती कर रहा है?’’

‘‘भाई… मैं घंटे भर में घर पहुंच रहा हूं.’’ दूसरी तरफ से मनीष की लड़खड़ाती आवाज आई.

लड़खड़ाती आवाज सुन कर अनिल चौंका. उस की समझ में नहीं आया कि वह इस तरह क्यों बोल रहा है. उस ने कहा, ‘‘वो तो ठीक है. तू घंटे भर में नहीं सवा घंटे में आ जाना, लेकिन यह तो बता कि कल शाम से तेरे दोनों फोन बंद क्यों हैं? और तेरी आवाज को क्या हुआ है, जो इस तरह आ रही है?’’

‘‘भैया, वो क्या है कि मेरे फोन गाड़ी में रह गए थे.’’ मनीष की आवाज फिर लड़खड़ाई. इस के साथ फोन कट गया. अनिल ने तुरंत फोन मिलाया, लेकिन फोन का स्विच औफ हो गया. जिस तरह मनीष की आवाज लड़खड़ा रही थी. साफ लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा नशे में है. 24 वर्षीय मनीष संगत की वजह से शराब भी पीने लगा था. इसलिए अनिल ने तय किया कि उस के आते ही वह उस से बात करेगा कि वह अपनी आदत सुधारेगा या नहीं?

जिस समय अनिल मनीष से फोन पर बातें कर रहा था, उस समय उस की मां और घर के अन्य लोग भी वहीं बैठे थे. मनीष से हुई बातचीत अनिल ने घर वालों को बताई तो वे और ज्यादा परेशान हो उठे. उन्हें चिंता होने लगी कि वह गलत लोगों के साथ तो नहीं उठनेबैठने लगा. चूंकि अनिल की मनीष से बात हो चुकी थी, इसलिए वह यह सोच कर अपनी दुकान पर चला गया कि घंटे, 2 घंटे में मनीष घर लौट ही आएगा. अब वह शाम को उस से बात करेगा.

शाम के 5 बज गए, लेकिन न तो मनीष घर आया और न ही उस का कोई फोन ही आया. बूढ़े पिता ओमप्रकाश गुप्ता बेटे की चिंता में पिछली रात भी नहीं सो पाए थे. बेटे को ले कर सारी रात उन के मन में उलटेसीधे विचार आते रहे. अब दूसरा दिन भी बीत गया था और उस का कुछ पता नहीं चल रहा था. अनिल दुकान से जल्दी ही घर आ गया था. वह मनीष के कुछ दोस्तों को जानता था. उस ने उन से भाई के बारे में पूछा, लेकिन उन से उस के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिली. 12 फरवरी को जब मनीष घर से निकला था, तो बड़ी बहन शशि ने उसे फोन किया था. तब उस ने कहा था कि वह मोंटी के मेडिकल स्टोर पर बैठा है और आधे घंटे में घर आ जाएगा.

मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का मेडिकल स्टोर लंगड़े की चौकी में था. अनिल अपने भाई राजीव के साथ मोंटी की दुकान पर पहुंचा. जब अनिल ने मोंटी से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने कहा, ‘‘मनीष कल दोपहर को यहां आया तो था, लेकिन घंटे भर बाद मोटरसाइकिल से चला गया था. यहां से वह कहां गया, यह मुझे पता नहीं. वहां से निराश हो कर दोनों भाई मनीष की अन्य संभावित स्थानों पर तलाश करने लगे, लेकिन उस का कहीं कुछ पता नहीं चला. थकहार कर दोनों भाई रात 11 बजे तक घर लौट आए. बीचबीच में वह मनीष को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उस के दोनों फोन स्विच्ड औफ ही बताते रहे. किसी अनहोनी की आशंका से घर की महिलाओं ने रोनापीटना शुरू कर दिया. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि मनीष ऐसी कौन सी जगह चला गया है, जहां से उस से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.

खैर, जैसेतैसे रात कटी. अगले दिन पूरे मोहल्ले में मनीष के 2 दिनों से गायब होने की खबर फैल गई. मोहल्ले वाले गुप्ता के यहां सहानुभूति जताने के लिए आने लगे. उन्हीं लोगों के साथ राजीव और अनिल जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंचे और चौकी प्रभारी सूरजपाल सिंह को मनीष के लापता होने की जानकारी दी. यह पुलिस चौकी थाना छत्ता के अंतर्गत आती है, इसलिए सूरजपाल सिंह उन्हें ले कर थाने पहुंचे. थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को जब मनीष के गायब होने की जानकारी दी गई तो उन्होंने तुरंत उस की गुमशुदगी दर्ज करा कर मामले की जांच एसएसआई रमेश भारद्वाज को सौंप दी.

जब उन्हें पता चला कि मनीष अपनी मोटरसाइकिल (UP Crime news) यूपी80एवाई 4799 से घर से निकला था तो उन्होंने वायरलैस से जिले के समस्त थानों को मनीष का हुलिया और उस की मोटरसाइकिल का नंबर बता कर उस के गायब होने की सूचना देने के साथ कहलवाया कि अगर इन के बारे में कुछ पता चलता है तो तुरंत थाना छत्ता को सूचना दें. यह मैसेज प्रसारित होने के कुछ देर बाद ही थाना सदर बाजार से थाना छत्ता को सूचना मिली कि मैसेज में बताई गई नंबर की नीले रंग की मोटरसाइकिल पिछली शाम को एक रेस्टोरेंट के सामने लावारिस हालात में बरामद हुई है. थाना सदर बाजार आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के नजदीक है.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने यह खबर मिलने के बाद अनिल को थाने बुलाया और उसे साथ ले कर थाना सदर बाजार पहुंचे, ताकि वह मनीष की बाइक को पहचान कर सके. थाना सदर बाजार पुलिस ने जब उसे रेस्टोरेंट के सामने से लावारिस हालत में बरामद की गई मोटरसाइकिल दिखाई गई तो अनिल ने उसे तुरंत पहचान लिया. वह मोटरसाइकिल मनीष की थी. मनीष गुप्ता का परिवार आर्थिक रूप से काफी संपन्न था. वह हाथों में सोने की वजनी  अंगूठियां और गले में सोने की काफी वजनी चेन पहने था. उस के मोबाइल फोन भी काफी महंगे थे. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने लूटपाट कर के उस का कत्ल कर के लाश कहीं फेंक दी हो. लव एंगल की भी संभावना थी. इस बारे में पुलिस ने अनिल से पूछा भी, लेकिन उस का कहना था कि इस तरह की कोई बात उस ने नहीं सुनी थी. अगले महीने उस की शादी भी होने वाली थी.

एसएसआई रमेश भारद्वाज ने मनीष के दोनों फोन नंबरों को सर्विलांस पर लगवाने के साथ उन की पिछले 5 दिनों की काल डिटेल्स भी निकलवाई. 13 फरवरी, 2014 को मनीष के दोनों फोनों की लोकेशन लंगड़े की चौकी की मिली थी. इस के बाद लोकेशन खेरिया मोड़ अर्जुननगर की आई. वहीं से उस की अनिल से अंतिम बार बात हुई थी. इस का मतलब वह वहीं से लापता हुआ था. घर वाले भी अपने स्तर से मनीष के बारे में छानबीन कर रहे थे. उस के स्टेट बैंक औफ बीकानेर, आईडीबीआई, एक्सिस बैंक और एचडीएफसी बैंकों में खाते थे, जिन में उस के लाखों रुपए जमा थे. मनीष के पास हर समय इन बैंकों के डेबिड कार्ड रहते थे.’

मनीष के बड़े भाई राजीव ने सभी बैंकों में जा कर छानबीन की तो पता चला कि अयोध्या कुंज, अर्जुननगर की आईसीआई सीआई बैंक के एटीएम से 13 फरवरी की शाम 17 हजार 5 सौ रुपए निकाले गए थे. इस के अलावा 14,15 और 16 फरवरी को अलगअलग एटीएम कार्डों से साढ़े 3 लाख रुपए निकाले गए थे. यह बात जान कर घर वालों को आश्चर्य हुआ कि मनीष ने इतने पैसे क्यों निकाले. यह जानकारी उन्होंने पुलिस को दी. जीवन मंडी पुलिस चौकी के इंचार्ज सूरजपाल सिंह राजीव गुप्ता के साथ पास ही स्थित एचडीएफसी बैंक गए. उन्होंने ब्रांच मैनेजर से इस बारे में बात की तो ब्रांच मैनेजर ने बताया कि मनीष गुप्ता के खाते से एटीएम कार्ड द्वारा उस रोज 11 बज कर 19 मिनट पर डेबिड कार्ड द्वारा पैसे निकाले गए थे. वे रुपए मोतीलाल नेहरू रोड स्थित भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ से निकाले गए थे.

पुलिस जानती थी कि पैसे निकालने वाले का भारतीय स्टेट बैंक के एटीएम बूथ पर लगे सीसीटीवी कैमरे में फोटो जरूर आया होगा. उस दिन की फुटेज हासिल करने के लिए पुलिस ने स्टेट बैंक औफ इंडिया के अधिकारियों से बात की. जब बैंक अधिकारियों ने पुलिस और राजीव गुप्ता को फुटेज दिखाई तो पता चला, मनीष के खाते से पैसे निकालने वाला कोई और नहीं, मनीष का दोस्त सौरभ शर्मा था. सौरभ शर्मा मुकेश शर्मा उर्फ मोंटी का सगा भांजा था. उस की मोबाइल फोन रिचार्ज करने और एसेसरीज बेचने की दुकान थी. राजीव गुप्ता अकसर उसी के यहां से अपना मोबाइल रिचार्ज कराते थे. उस की दुकान मोंटी के मेडिकल स्टोर के बराबर में ही थी.

मनीष ने अपने पैसे सौरभ से क्यों निकलवाए थे, इस बारे में सौरभ ही बता सकता था. पुलिस राजीव को साथ ले कर सौरभ शर्मा की दुकान पर पहुंची. वह दुकान पर ही मिल गया. पुलिस के साथ राजीव और अनिल को देख कर वह सकपका गया. सबइंस्पेक्टर सूरजपाल सिंह ने उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने उस के बारे में कुछ भी बताने से साफ मना कर दिया. परंतु जब उसे एटीएम के कैमरे की फुटेज दिखाई गई तो उस ने कहा, ‘‘क्या इस में मैं मनीष गुप्ता के एटीएम कार्ड्स से रुपए निकालता दिख रहा हूं. सर, उस समय मैं अपने कार्ड से रुपए निकालने गया था.’’

सौरभ झूठ बोला रहा था, यह बात पुलिस और राजीव गुप्ता अच्छी तरह जान रहे थे. पुलिस उस के खिलाफ और सुबूत जुटाना चाहती थी, इसलिए उस समय उस से ज्यादा कुछ नहीं कहा. चौकीप्रभारी ने यह बात थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को बताई. मनीष के बारे में कोई जानकारी न मिलने से लोगों में पुलिस के प्रति गुस्सा बढ़ता जा रहा था. जनता आंदोलन न कर दे, इस से पहले ही एसएसपी शलभ माथुर ने इस मामले को ले कर एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, क्षेत्राधिकारी करुणाकर राव और थानाप्रभारी भानुप्रताप सिंह को अपने औफिस में बुला कर मीटिंग की और जल्द से जल्द इस मामले का खुलासा करने के निर्देश दिए.

वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का आदेश मिलते ही थानाप्रभारी ने सौरभ शर्मा और उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा को पूछताछ के लिए थाने बुला लिया. मोंटी ने बताया कि जिस समय मनीष उस के मेडिकल स्टोर पर आया था, वह दुकान पर नहीं था. उस समय मेडिकल पर सौरभ था. सौरभ ने मोंटी की इस बात की पुष्टि भी की. इस के बाद पुलिस ने सौरभ से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि मनीष पर बाजार का करीब 15 लाख रुपए का कर्ज हो गया है, इसलिए वह गोवा भाग गया है.

‘‘अगर वह गोवा भाग गया है तो उस का एटीएम कार्ड तुम्हारे पास कैसे आया, जिस से तुम ने पैसे निकाले थे?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘सर, मैं ने उस के नहीं, अपने कार्ड से पैसे निकाले थे.’’ सौरभ ने कहा.

पुलिस ने जब उस के खाते की जांच की तो पता चला कि उस ने उस दिन अपने खाते से पैसे निकाले ही नहीं थे. इस सुबूत को सौरभ झुठला नहीं सकता था, इसलिए उस ने स्वीकार कर लिया कि मनीष के एटीएम कार्ड्स से पिछले 3-4 दिनों में साढ़े 3 लाख रुपए उसी ने निकाले थे. पुलिस ने जब उस से मनीष के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि अपने भांजे रिंकू शर्मा के साथ मिल कर उस ने मनीष की हत्या कर उस की लाश को चंबल के बीहड़ों में फूंक दी है. जब घर वालों को पता चला कि उस के दोस्तों ने मनीष की हत्या कर दी है तो घर में हाहाकार मन गया.

पुलिस मनीष की लाश बरामद करना चाहती थी. चूंकि उस समय अंधेरा हो चुका था इसलिए बीहड़ में लाश ढूंढना आसान नहीं था. अगले दिन यानी 18 फरवरी, 2014 की सुबह इंसपेक्टर भानुप्रताप सिंह की अगुवाई में गठित  एक पुलिस टीम सौरभ शर्मा को ले कर चंबल के बीहड़ों में जा पहुंची. टीम सौरभ शर्मा द्वारा बताए स्थान पर पहुंची तो वहां लाश नहीं मिली. सौरभ पुलिस टीम को वहां 3 घंटे तक इधरउधर घुमाता रहा. पुलिस ने जब सख्ती की तो आखिर वह पुलिस को वहां से करीब 4 किलोमीटर दूर अरंगन नदी के पास स्थित एक पैट्रोल पंप के पीछे ले गया. उस ने बताया कि यहीं से उस ने मनीष की लाश को खाई में फेंकी थी.

खाई में भी पुलिस को लाश दिखाई नहीं दी. इस से अनुमान लगाया गया कि जंगली जानवर लाश खींच ले गए हैं. लिहाजा पुलिस इधरउधर लाश ढूंढने लगी. करीब 15 मिनट बाद एक पुराने खंडहर के पीछे एक सड़ीगली लाश दिखाई दी. लाश काफी विकृत अवस्था में थी. उस का चेहरा किसी भारी चीज से कुचला गया था. उस का दाहिना हाथ शरीर के सारे कपड़े गायब थे. बाएं हाथ की एक अंगुली में सोने की अंगूठी थी. उसी अंगूठी और जूतों से मनीष के भाई राजीव ने लाश की शिनाख्त की. लाश की स्थिति से अनुमान लगाया कि मनीष की हत्या कई दिनों पहले की गई थी. मनीष की लाश बरामद होने की बात राजीव ने अपने घर वालों को बता दी.

मौके की जरूरी काररवाई पूरी कर के पुलिस लाश ले कर आगरा आ गई. जैसे ही लाश पोस्टमार्टम हाउस पहुंची, सैकड़ों की संख्या में लोग वहां पहुंच गए. पुलिस के खिलाफ लोगों का गुस्सा भड़क उठा और वहां से जीवनी मंडी पुलिस चौकी पहुंच कर वहां से गुजरने वाले वाहनों को अपने गुस्से का शिकार बनाना शुरू कर दिया. लोग दुकानों पर तोड़फोड़ और लूटपाट करने लगे. इस में कई राहगीर भी घायल हुए. मौके पर जो 2-4 पुलिसकर्मी थे वे उन्हें समझाने और रोकने में असमर्थ रहे. उसी समय शहर के मेयर वहां पहुंचे तो भीड़ ने उन की गाड़ी को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. किसी तरह गनर के साथ भाग कर वह सुरक्षित जगह पर पहुंचे. यह हंगामा लगभग एक घंटे तक चलता रहा.

ऐसा लग रहा था मानो शहर में पुलिस नाम की कोई चीज ही नहीं है. जब एसपी (सिटी) सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज काफी फोर्स के साथ वहां पहुंचे और हंगामा करने वालों पर लाठीचार्ज किया गया तब जा कर हंगामा रुका. पूछताछ में सौरभ शर्मा ने मनीष की हत्या की जो कहानी पुलिस को बताई, वह ‘मन में राम बगल में छुरी’ वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली थी. मनीष गुप्ता आगरा जिले के थाना छत्ता के मोहल्ला मस्वा की बगीची का रहने वाला था. वह अपने 9 बहनभाइयों में 8वें नंबर पर था. उस के पिता ओमप्रकाश गुप्ता की इलैक्ट्रिकल की दुकान थी, जिस से उन्हें अच्छी आमदनी होती थी. बीएससी करने के बाद मनीष पिता के साथ दुकान पर बैठने लगा था.

पिछले 8-9 महीने से मनीष दवाइयों का कारोबार करने लगा था. उस के संबंधों और व्यवहार की वजह से उस का यह कारोबार चल निकला था. उसे मोटी कमाई होने लगी थी. उस ने कई बैंकों में अपने खाते खोल लिए थे. मनीष गुप्ता अपने खानपान और पहनावे का काफी खयाल रखता था. शौकीन होने की वजह से वह महंगे मोबाइल फोन रखता था. दोनों हाथों की अंगुलियों में 7 सोने की अंगूठियां और गले में काफी वजनी सोने की चेन पहने रहता था. यह सब देख कर कोई भी उस की संपन्नता को समझ सकता था. वैसे तो अपनी उम्र के तमाम लड़कों के साथ उस का उठनाबैठना था, लेकिन उन में से 5-7 लोग उस के काफी करीबी थे. उन के साथ उस की दांत काटी रोटी थी. उन्हीं में से एक था सौरभ शर्मा. खेरिया मोड़, अर्जुननगर का रहने वाला सौरभ मनीष का ऐसा दोस्त था, जो मनीष की हर बात को जानता था.

सौरभ के पिता का देहांत हो चुका था. वह अपने परिवार के साथ किराए के मकान में रहता था. उस के मामा मोंटी उर्फ मुकेश शर्मा का लंगड़े की चौकी में मेडिकल स्टोर था. इस के अलावा मोंटी प्रौपर्टी डीलिंग का काम भी करता था. मोंटी ने अपने मेडिकल स्टोर के पास एक केबिन बनवा कर उस में सौरभ को मोबाइल रिचार्ज और एसेसरीज का धंधा करा दिया था. मनीष मोंटी के मेडिकल स्टोर पर दवाएं सप्लाई करता था. इसलिए वहां आने पर सौरभ से अपना मोबाइल फोन रिचार्ज करा लेता था. सौरभ मनीष के हमउम्र था, इसलिए उस की उस से दोस्ती हो गई.

सौरभ काफी तेजतर्रार था. उसी की मार्फत मनीष ने आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंकों में खाते खुलवाए थे. मनीष को उस पर इतना विश्वास हो गया था कि कई बार उस ने अपने खातों में मोटी रकम जमा कराने के लिए सौरभ को भेज दिया था. सौरभ और मनीष बेशक गहरे दोस्त थे, लेकिन दोनों के स्तर में जमीनआसमान का अंतर था. सौरभ भी चाहता था कि उस के पास भी ढेर सारे पैसे हों. लेकिन उस छोटी सी दुकान की आमदनी से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो सकती थी. लिहाजा उस ने अपने धनवान दोस्त की दौलत के सहारे अपनी इच्छा पूरी करने की योजना बनाई. उस योजना में उस ने अपने भांजे रिंकू को भी शामिल कर लिया. रिंकू की स्थिति भी सौरभ जैसी ही थी. दोनों ने सलाहमशविरा कर के मनीष के पैसे हड़पने की एक फूलप्रूफ योजना बना डाली.

13 फरवरी, 2014 को देपहर के समय मनीष घर से खापी कर अपनी मोटरसाइकिल से मोंटी के मेडिकल स्टोर पर पहुंचा. उस समय मोंटी अपनी दुकान पर नहीं था. सौरभ ही वहां बैठा था. सौरभ ने मनीष से अपनी प्रेमिका से मिलवाने की बात कही. पहले तो मनीष ने टाल दिया, लेकिन बारबार कहने पर मनीष तैयार हो गया. तब सौरभ ने मनीष को अर्जुननगर अपने घर के पास भेज कर इंतजार करने को कहा. मनीष अर्जुननगर तिराहे पर पहुंच कर सौरभ का इंतजार करने लगा. करीब 2 मिनट बाद सौरभ वहां पहुंचा. सौरभ उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गया तो मनीष उस के बताए स्थान की तरफ चल दिया. रास्ते में सौरभ का भांजा रिंकू शर्मा भी मिल गया. सौरभ ने उसे भी उसी मोटरसाइकिल पर बैठा लिया.

सौरभ उसे अर्जुननगर के ही एक कमरे पर ले गया, जिसे रिंकू शर्मा ने अपनी पढ़ाई के लिए किराए पर ले रखा था. कुछ देर बाद रिंकू मनीष के लिए कोल्डड्रिंक की एक बोतल ले आया. उस कोल्डड्रिंक में रिंकू ने नींद की दवा मिला रखी थी. कोल्डड्रिंक पीने के बाद मनीष बेहोश होने लगा. तब तक अंधेरा हो चुका था. मनीष की आंखें झपकने लगीं तो सौरभ अपने असली रूप में आते हुए बोला, ‘‘मनीष, मैं ने तुम्हें किडनैप कर लिया है. अगर तुम ने मेरी बात नहीं मानी तो तुम्हें काट कर किसी नाले में फेंक दिया जाएगा.’’

मनीष जानता था कि उस का दोस्त सौरभ गुस्सैल और लड़ाकू है, लेकिन उसे यह पता नहीं था कि वह पैसों के लिए इतना गिर सकता है. उस की जान खतरे में थी. वह बेहोशी की तरफ बढ़ रहा था. फिर भी जान खतरे में देख कर उस ने हाथ जोड़ कर सौरभ से पूछा, ‘‘तुझे क्या चाहिए भाई? मुझे बता दे. मैं तुझे वह सब कुछ दे दूंगा.’’

‘‘फिलहाल तो तू अपनी जेब में रखे सभी एटीएम कार्ड्स मुझे दे कर उन के पिन नंबर बता दे. अर्द्धबेहोशी की हालत में भी मनीष समझ रहा था कि अगर उस ने एटीएम कार्ड्स और पिन नंबर नहीं दिए तो ये दोनों उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं. लिहाजा उस ने अपने सभी एटीएम कार्ड्स उसे सौंपते हुए उन के पिन नंबर बता दिए. इस के थोड़ी देर बाद मनीष पूरी तरह बेहोश हो गया. मनीष के बेहोश होते ही सौरभ ने उसी शाम एक एटीएम कार्ड का इस्तेमाल कर के पास के ही आईसीआईसीआई बैंक के एटीएम से साढ़े 7 हजार रुपए निकाल लिए. उस समय रिंकू मनीष की निगरानी कर रहा था.

सौरभ ने मनीष के दोनों मोबाइल फोनों को स्विच औफ कर दिया था. रात में मनीष को होश न आ जाए, सौरभ ने उसे बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. मनीष के परिवार वालों को गुमराह करने के लिए अगले दिन सुबह सौरभ ने उस के दोनों फोन चालू कर दिए. दूसरी ओर मनीष के गायब होने से उस के घर वाले परेशान थे. इस बीच जब मनीष के भाई अनिल का फोन आया तो मनीष होश में नहीं था. फिर सौरभ ने उसे पहले ही बता दिया था कि उसे फोन पर क्या कहना है. इसलिए फोन रिसीव कर के मनीष ने वही कहा जो सौरभ ने कहने के लिए कहा था.

भाई से बात कराने के बाद सौरभ ने उसे पुन: बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. उस के बाद दोनों मोबाइल फिर बंद कर दिए. उन्होंने उस के हाथों की अंगूठियां और गले से चेन निकाल ली. योजना के अनुसार उन्होंने एक ही अंगूठी छोड़ दी थी. अब वह उसे ठिकाने लगाने योजना बनाने लगे. योजनानुसार 14 फरवरी, 2014 की सुबह करीब साढ़े 9 बजे रिंकू अरनौटा गांव जाने को कह कर एक टैंपो ले आया. यह गांव चंबल के बीहड़ में पड़ता है.

अर्द्धबेहोशी की हालत में उन दोनों ने मनीष को उस टैंपो में बैठा दिया. सौरभ मनीष के साथ टैंपो में बैठ गया तो रिंकू मनीष की मोटरसाइकिल ले कर टैंपो के पीछेपीछे चलने लगा. अरनौटा गांव के पास सुनसान जगह पर मनीष को टैंपो से उतार कर उन्होंने मोटरसाइकिल पर बैठा लिया और बसई अरेला गांव के नजदीक आंगन नदी के पैट्रोल पंप के पीछे की झाडि़यों में जा पहुंचे. वहां उन्होंने उस की गला दबा कर हत्या कर दी.

मनीष की शिनाख्त न होने पाए इस के लिए उन्होंने उस के कपड़ों व चेहरे पर तेजाब डाल कर उसे जला दिया. तेजाब वे अपने साथ ले कर आए थे. मनीष के दाहिने हाथ को पत्थर पर रख कर दूसरा भारी पत्थर पटक कर उस के उस हाथ को शरीर से अलग कर दिया. दूसरे हाथ की भी सारी अंगुलियां तोड़ दीं. एक अंगूठी इन लोगों ने जानबूझ कर उस की अंगुली में छोड़ दी थी कि अगर पुलिस को लाश मिल भी जाए तो वह उसे प्रेम प्रसंग के चलते नफरत में की गई हत्या समझे, लूट की वजह से नहीं. वहां से चलने से पहले सौरभ और रिंकू ने एक भारी पत्थर उठा कर मनीष के सिर पर दे मारा. मनीष की खोपड़ी कई टुकड़ों में बंट गई. लाश को बुरी तरह क्षतिग्रस्त करने के बाद दोनों ने उसे 40-50 फुट नीचे गहरी खाई में फेंक दी और फिर आगरा लौट आए.

फतेहाबाद रोड स्थित एटीएम से एक लाख 10 हजार रुपए अलगअलग कार्डों के जरिए निकाल लिए. इस के बाद उन्होंने मनीष की मोटरसाइकिल (UP Crime news) आगरा कैंट रेलवे स्टेशन के बाहर खड़ी कर दी और घर चले गए. सौरभ ने मनीष एटीएम कार्डों से कुल साढ़े 3 लाख रुपए निकाले. मनीष के गहने और एटीएम से निकाले रुपए दोनों ने आपस में बांट लिए. मनीष की मोटरसाइकिल आगरा कैंट स्टेशन के बाहर जीआरपी ने बरामद कर के इस की सूचना थाना सदर बाजार को दे दी थी, जिसे बाद में मनीष के भाई ने पहचान लिया था. सौरभ और रिंकू के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 302, 201 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. इस के बाद उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

दूसरे अभियुक्त रिंकू की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दविश डाली गई, लेकिन वह नहीं मिल सका. कथा संकलन तक वह फरार था. पुलिस उसे सरगर्मी से तलाश रही है. मामले की विवेचना एसएसआई रमेश भारद्वाज कर रहे हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित.

 

महिला ने लगाया आरोप काली गाड़ी में हुआ गैंगरेप

Gang Rape Case  : नगेश शर्मा, रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें ब्लैकमेल करना चाहता था. इस के लिए उस ने शालू को मोहरा बनाया, शालू ने दोनों पर बलात्कार का आरोप भी लगाया पर…

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए. सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए. पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

बेहोश करके किया सामूहिक दुष्कर्म

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने का बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया. वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक Gang Rape Case दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा. पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

काम दिलाने के नाम पर ले गया

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था. उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ. बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था. चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

पुलिस को हुआ शालू की बातों पर शक

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया. रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. चूंकि Gang Rape Case दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमनासामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी. जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

पुलिस ने काल डिटेल्स निकलवाई तो किसका नंबर निकला

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी. पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी. काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया. मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था. राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी. नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

अर्द्धबेहोशी की हालत में किया दुष्कर्म

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया. शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया. शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं.

पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी. 66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपनेअपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था. इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है. यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई. इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला. अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवारसहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है