Kerala News : 32 किलो सोने की स्‍मलिंग से जुड़े थे हाईप्रोफाइल लोगों के तार

Kerala News : सोने की तसकरी कोई नई बात नहीं है. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर प्राय रोज ही सोन पकड़ा जाता है. लेकिन यूएई से केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर जो 32 किलो सोना पकड़ा गया, उस का मामला इसलिए चिंता का विषय है, क्योंकि सोने की इस तसकरी के तार मंत्रालय और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से जुड़े पाए गए. इसी साल जुलाई के पहले सप्ताह की बात है. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एयर कार्गो से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के वाणिज्य दूतावास के नाम से कुछ बैगों में राजनयिक सामान आया था.

यूएई का वाणिज्य दूतावास तिरुवनंतपुरम शहर के मनाक में स्थित है. सामान क्या शौचालयों में उपयोग होने वाले उपकरण थे, जो खाड़ी देश से आई फ्लाइट से आए थे. विमान से आए बैग उतार कर कार्गो यार्ड में रख दिए गए. इन बैगों को लेने के लिए 2 दिनों तक कोई भी संबंधित व्यक्ति हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, तो कस्टम अधिकारियों ने भारतीय विदेश मंत्रालय से इजाजत ले कर 5 जुलाई को बैगों की जांच की. जांच के दौरान एक बैग में छिपा कर रखा गया 30 किलो से ज्यादा सोना मिला. सोने को इस तरह पिघला कर रखा गया था कि वह शौचालय के सामानों में पूरी तरह फिट हो जाए.

भारतीय बाजार में इस सोने की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई. यूएई के वाणिज्य दूतावास ने बैग में मिला सोना अपना होने से इनकार कर दिया. इस पर सोने को सीज कर सीमा शुल्क विभाग ने मामले की जांच शुरू की. प्रारंभिक जांच में अधिकारियों को यह मामला सोने की तस्करी से जुड़ा होने का संदेह हुआ. अधिकारियों को शक हुआ कि इस संदिग्ध मामले में राजनयिक को मिलने वाली छूट का दुरुपयोग किया गया है. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में लिए गए फैसलों के तहत भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों के राजनयिकों को कई तरह की छूट दी गई थीं. इस में उन की और उन के सामान की जांच पड़ताल की छूट भी शामिल है.

जांच शुरू करने के दूसरे दिन 6 जुलाई को कस्टम अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. से पूछताछ की. पूछताछ के बाद अधिकारियों को रहस्य की परतों में उलझा और दूसरे देशों से जुड़ा यह मामला काफी बड़ा होने का अंदाजा हो गया. इस मामले में एक महिला अधिकारी पर भी शक जताया गया. सीमा शुल्क अधिकारियों ने दूतावास के पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. को गिरफ्तार कर शक के दायरे में आई महिला अधिकारी की तलाश शुरू कर दी. कस्टम अधिकारियों की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि सरित पी.आर. ने पहले भी ऐसी कई खेप हासिल की थीं. इस मामले में केरल सरकार की एक महिला अधिकारी स्वप्ना सुरेश भी शामिल थी.

सोने की तस्करी का यह मामला केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की जानकारी तक भी पहुंच गया. मुख्यमंत्री को अपने स्तर पर पता चला कि इस मामले में संदेह के दायरे में आई महिला अधिकारी स्वप्ना के संबंध राज्य के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से हैं. मुख्यमंत्री खुद भी उस महिला से परिचित थे. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बात से इनकार किया कि सीएम उस महिला को जानते थे. विपक्ष ने उठाई आवाज इस बीच, यह मामला राजनीतिक स्तर पर उछल गया. विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस ने प्रदर्शन करते हुए केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार को घेरने की कोशिश शुरू कर दी.

केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने 7 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री कार्यालय में सोना तसकरी गिरोह के कथित प्रभाव की सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि एक महिला इस रैकेट की कथित सरगना है. यह महिला केरल सरकार के आईटी विभाग के तहत केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में आपरेशंस मैनेजर के तौर पर 6 जुलाई, 2020 तक कार्यरत थी. संदेह है कि इस तसकरी की मास्टरमाइंड वही है. इस महिला के केरल के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. यह महिला कई बार मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण आयोजनों में भी नजर आई थी.

महिला का नाम स्वप्ना सुरेश है. सोना तसकरी रैकेट में स्वप्ना सुरेश का नाम आने पर केरल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय और आईटी सचिव ने स्वप्ना सुरेश का नाम हटाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया. शीर्ष स्तर पर संपर्कों के लिए जानी जाने वाली स्वप्ना सुरेश को आईटी सचिव एम. शिवशंकर संरक्षण दे रहे हैं. वे स्वप्ना के आवास पर अक्सर आते जाते हैं. सुरेंद्रन ने स्वप्ना की नियुक्ति की सीबीआई से जांच कराने की भी मांग की. राजनीतिक स्तर पर इस मामले के तूल पकड़ने पर केरल सरकार ने 7 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एम. शिवशंकर को मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटा दिया. पद से हटाए जाने के बाद शिवशंकर एक साल की छुट्टी पर चले गए.

दूसरी ओर, सरकार ने स्वप्ना सुरेश को केरल स्टेट आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर से बर्खास्त कर दिया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने स्वप्ना से किसी तरह के संबंध होने से इनकार किया. 8 जुलाई को केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने केरल सरकार की ओर से आयोजित स्पेस कौंक्लेव-2020 में पूरा ब्यौरा मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि इस कौंक्लेव का प्रबंधन स्वप्ना सुरेश ही संभाल रही थी. स्वप्ना ने ही राज्य सरकार की ओर से गणमान्य लोगों को आमंत्रण पत्र भेजे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि इसरो से संबंधित एक संस्था में कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में स्वप्ना की नियुक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती है. सोना तस्करी का यह मामला देशभर में चर्चित हो जाने और इस घटना का राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ने की संभावना को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 जुलाई को इस की जांच एनआईए को सौंप दी.

वहीं, भूमिगत हुई स्वप्ना सुरेश ने इस मामले में पहली बार औडियो संदेश जारी कर चुप्पी तोड़ी. उस ने कहा कि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. मैं ने यूएई के राजनयिक राशिद खमीस के निर्देशों के अनुसार काम किया है. कार्गो परिसर में सामान को जब क्लियर नहीं किया गया, तो राशिद ने मुझे सीमा शुल्क अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था. तब तक मुझे पता नहीं था कि यह खेप कहां से आई थी और इस में क्या था? सोना जब्त किए जाने का पता लगने पर राशिद के कहने पर वे बैग वापस भेजने की कोशिश भी की गई थी.

दूसरी ओर, गिरफ्तारी की आशंका से स्वप्ना सुरेश ने 9 जुलाई को केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की. अगले दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यह याचिका 14 जुलाई तक के लिए टाल दी. एनआईए ने 10 जुलाई को सोने की तस्करी के मामले को आतंकवाद से जोड़ते हुए 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सरित पीआर, स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर के अलावा एर्नाकुलम के फैसल फरीद को आरोपी बनाया गया. इस के दूसरे ही दिन 11 जुलाई को एनआईए ने स्वप्ना सुरेश को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा संदीप नैयर को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

दोनों को अगले दिन 12 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. विशेष अदालत ने एनआईए की अर्जी पर दोनों आरोपियों को 13 जुलाई को 8 दिन के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में दे दिया. कहानी में आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि सोना तसकरी के मामले में केरल में सियासी भूचाल लाने वाली हाई प्रोफाइल महिला स्वप्ना सुरेश है कौन? बहुत ऊंचे तक थी स्वप्ना सुरेश की पहुंच केरल के राजनीतिक गलियारों और ब्यूरोक्रेट्स के बीच अपना प्रभाव रखने वाली स्वप्ना सुरेश का जन्म यूएई के अबूधाबी में हुआ था. अबूधाबी में ही उस ने पढ़ाई की. इस के बाद उसे एयरपोर्ट पर नौकरी मिल गई. स्वप्ना ने शादी भी की, लेकिन जल्दी ही तलाक हो गया था.

इस के बाद वह बेटी के साथ रहने के लिए केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई. भारत आने के बाद स्वप्ना सुरेश ने तिरुवनंतपुरम में 2011 से 2 साल तक एक ट्रेवल एजेंसी में काम किया. वर्ष 2013 में उसे एयर इंडिया में एसएटीएस में एचआर मैनेजर पद पर नौकरी मिल गई. यह एयर इंडिया और सिंगापुर एयरपोर्ट टर्मिनल सर्विसेज का संयुक्त उद्यम है. साल 2016 में जब केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जालसाजी के एक मामले में उस की जांच शुरू की, तो वह अबूधाबी चली गई. फर्राटेदार अंग्रेजी और अरबी भाषा बोलने वाली स्वप्ना सुरेश ने अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में नौकरी हासिल कर ली. पिछले साल यानी 2019 में उस ने यह नौकरी छोड़ दी.

कहा यह भी जाता है कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. बताया जाता है कि एयर इंडिया एसएटीएस और अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में काम करते हुए स्वप्ना सुरेश हवाई अड्डों और सीमा शुल्क विभाग के कई अधिकारियों के संपर्क में आ गई थी. उसे राजनयिक खेपों की आपूर्ति और हैंडलिंग के सारे तौरतरीके पता चल गए थे. यूएई के महावाणिज्य दूतावास में की गई नौकरी स्वप्ना सुरेश को जिंदगी के एक नए मोड़ पर ले गई. वहां उस ने बड़ेबड़े लोगों से अपनी जानपहचान बना ली थी. इस दौरान उस के यूएई से केरल आने वाले कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया. अबूधाबी में नौकरी से हटने के बाद वह अपने संपर्कों की गठरी बांध कर वापस केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई.

यूएई के अपने संपर्कों के बल पर इस बार वह तिरुवनंतपुरम में हाई प्रोफाइल तरीके से सामने आई. उस ने राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध बना लिए. केरल के मुख्यमंत्री के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर से उस के गहरे ताल्लुकात बन गए. कहा जाता है कि शिवशंकर उस के घर भी आतेजाते थे. आरोप यह भी है कि शिवशंकर की सिफारिश पर ही स्वप्ना को केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में अनुबंध पर आपरेशंस मैनेजर की नौकरी मिली थी. स्वप्ना सुरेश केरल के बड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में अकसर शामिल होती थी. अरबी समेत कई भाषाएं जानने वाली स्वप्ना केरल आने वाले अरब नेताओं की अगुवाई करने वाली टीम में शामिल रहती थी.

सोने की तस्करी का मामला सामने आने के बाद ऐसे कई वीडियो और फोटो वायरल हुए, जिन में स्वप्ना सुरेश केरल के मुख्यमंत्री, अरब नेताओं और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर के साथ दिखाई दी. एनआईए की हिरासत में भेजे जाने के बाद स्वप्ना सुरेश के बुरे दिन शुरू हो गए. 13 जुलाई को उस के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में स्वप्ना के साथ 2 कंपनियों प्राइम वाटर हाउस कूपर्स और विजन टेक्नोलोजी को भी आरोपी बनाया गया. आरोप है कि स्वप्ना ने केरल के आईटी विभाग में नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी अकादमिक डिग्री का इस्तेमाल किया था.

स्वप्ना के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच करने की जिम्मेदारी कंसल्टिंग एजेंसी प्राइस वाटर हाउस कूपर्स और विजन टैक्नोलोजी पर थी. केरल के आईटी विभाग के अधीन केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की शिकायत पर दर्ज इस मामले में स्वप्ना पर आरोप है कि उस ने महाराष्ट्र के डा. बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय की बीकौम की फर्जी डिगरी से नौकरी हासिल की थी. मुख्यमंत्री सचिव शिव शंकर की करीबी थी स्वप्ना 14 जुलाई को यह बात काल डिटेल्स से सामने आई कि केरल के मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटाए गए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर ने स्वप्ना सुरेश सहित सोने की तसकरी के 2 आरोपियों से फोन पर बातचीत की थी.

उसी दिन कस्टम अधिकारियों की एक टीम ने आईएएस अधिकारी शिवशंकर के घर जा कर उन्हें नोटिस दिया और उन से पूछताछ की. बाद में शिवशंकर उसी दिन शाम को तिरुवनंतपुरम में सीमा शुल्क विभाग के कार्यालय पहुंचे, अधिकारियों ने उन से शाम से रात 2 बजे तक 9 घंटे पूछताछ की. कोच्चि से कस्टम कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने भी वीडियो कौंफ्रेंस के जरीए शिवशंकर से पूछताछ की. रात 2 बजे पूछताछ पूरी होने के बाद कस्टम अधिकारियों ने उन्हें घर ले जा कर छोड़ दिया. पूछताछ में शिवशंकर ने स्वीकार किया कि स्वप्ना सुरेश ने उन के पास काम किया था, और सरित पीआर उन का दोस्त है.

कस्टम अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि आईएएस अधिकारी ने अपने पद का दुरुपयोग कर सोना तस्करी के आरोपियों स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर और सरित पीआर को किसी तरह की मदद तो नहीं पहुंचाई थी. इस बीच, कस्टम अधिकारियों ने एक होटल के एक और 2 जुलाई के सीसीटीवी फुटेज हासिल किए, जहां आईएएस अधिकारी शिवशंकर और आरोपी ठहरे थे. कहा जाता है कि शिवशंकर के एक कर्मचारी ने इस होटल में कमरा बुक कराया था. शिवशंकर पर गंभीर आरोप लगने पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर केरल के मुख्य सचिव डा. विश्वास मेहता के नेतृत्व में अधिकारियों के एक पैनल ने जांच शुरू कर दी. सोना तस्करों से कथित रूप से तार जुड़े होने की बातें सामने आने के बाद केरल सरकार ने 16 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर को निलंबित कर दिया.

इस मामले की जांच चल ही रही थी कि 17 जुलाई को यूएई वाणिज्य दूतावास से जुड़ा केरल पुलिस का एक जवान जयघोष अपने घर से करीब 150 मीटर दूर बेहोशी की हालत में पड़ा मिला. पुलिस ने संदेह जताया कि उस ने कलाई काट कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पुलिस ने उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. जयघोष के परिजनों ने इस से एक दिन पहले ही उस के लापता होने की शिकायत थुंबा थाने में दर्ज कराई थी. परिजनों ने कहा था कि अज्ञात लोगों की ओर से धमकी दिए जाने के कारण वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था. इस से पहले जयघोष ने वट्टियोरकावु थाने में अपनी सर्विस पिस्तौल जमा करा दी थी. जयघोष के मोबाइल पर जुलाई के पहले हफ्ते में स्वप्ना सुरेश ने भी फोन किया था.

केरल सोना तस्करी मामले की जांच कर रही एनआईए ने 18 जुलाई को आरोपी फैजल फरीद के खिलाफ इंटरपोल से ब्लू कौर्नर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया. इस से पहले कोच्चि की विशेष एनआईए अदालत ने फरीद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. एनआईए ने विशेष अदालत को बताया था कि वे वारंट को इंटरपोल को सौंप देंगे, क्योंकि फरीद के दुबई में होने का संदेह है. एनआईए ने दावा किया कि फरीद ने ही संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास की फरजी मुहर और फरजी दस्तावेज बनाए थे. एनआईए और कस्टम विभाग की प्रारंभिक जांच में जो तथ्य उभर कर सामने आए, उन के मुताबिक यूएई के वाणिज्य दूतावास के नाम पर सोने की तसकरी करीब एक साल से हो रही थी. इस तसकरी में एक पूरा गिरोह संलिप्त था.

स्वप्ना सुरेश इस गिरोह की मास्टर माइंड थी और गिरोह से दूतावास के कुछ मौजूदा और पूर्व कर्मचारी जुड़े हुए थे. यह गिरोह डिप्लोमैटिक चैनल के जरीए पिछले एक साल में खाड़ी देशों से तस्करी का करीब 300 किलो सोना भारत ला चुका था. तस्करी के सोने की पहली खेप का कंसाइनमेंट डिप्लोमेटिक चैनल के जरीए पिछले साल जुलाई में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आया था. इस साल जुलाई के पहले हफ्ते में पकड़े गए सोने सहित 13 खेप लाई गई थीं. सोने की तस्करी के मामले में नाम उछलने पर तिरुवनंतपुरम स्थित यूएई के वाणिज्य दूतावास में तैनात राजनयिक अताशे राशिद खमिस जुलाई के दूसरे हफ्ते में भारत छोड़ कर स्वदेश चले गए.

स्वप्ना सुरेश ने राशिद के इशारे पर ही काम करने की बात कही है. हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और कस्टम विभाग सोना तस्करी मामले की जांच कर रहे हैं. मामले में कुछ और प्रभावशाली लोगों की गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि सोने की तस्करी में राजनयिक चैनल का दुरुपयोग किया जा रहा था. एक खास तथ्य यह भी है कि भारत में सोने की सब से ज्यादा तसकरी केरल में होती है. हालांकि अब जयपुर का एयरपोर्ट भी सोने की तस्करी का एक नया माध्यम बन कर उभर रहा है. जयपुर में जुलाई के ही पहले हफ्ते में 2 फ्लाइटों से लाया गया 32 किलो सोना पकड़ा गया था. इस मामले में 14 यात्रियों को गिरफ्तार किया गया था. सोने की तसकरी में केरल नंबर एक पर है. इस के अलावा मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु और चेन्नई एयरपोर्ट पर सोने की तसकरी के सब से ज्यादा मामले पकड़े जाते हैं.

 

Suicide Stories : पति के शक के कारण महिला सिपाही ने की आत्महत्या

शकरूपी फांस बड़ी ही खतरनाक होती है. अगर समय रहते इस का समाधान न किया जाए तो यह हंसतीखेलती गृहस्थी को तबाह कर देती है. सिपाही शालू गिरि का पति राहुल अगर इस बात को समझ जाता तो शालू को यह खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर न होना पड़ता…

उस दिन जून 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. औरैया जिले की विधूना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ला अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की और बोले, ‘‘मैं विधूना कोतवाली से इंसपेक्टर वी.के. शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए, आप ने फोन क्यों किया?’’

‘‘जय हिंद सर, मैं लखनऊ के कैसर बाग थाने से सिपाही सपना गिरि बोल रही हूं. मुझे आप की मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद? बताइए, मैं आप की हरसंभव मदद को तैयार हूं.’’ इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने आश्वासन दिया.

‘‘सर, आप के थाने में हमारी छोटी बहन शालू गिरि सिपाही पद पर तैनात है. बीती रात 11 बजे हमारी उस से बात हुई थी. तब वह परेशान लग रही थी और बहकीबहकी बातें कर रही थी. तब मैं ने उसे समझाया था और सो जाने को कहा था. आज मैं सुबह से उस का फोन ट्राई कर रही हूं. लेकिन वह फोेन उठा ही नहीं रही है. सर, किसी तरह आप उस से मेरी बात करा दीजिए.’’

‘‘ठीक है सपना, मैं जल्द ही शालू से तुम्हारी बात कराता हूं.’’ श्री शुक्ला ने सपना को आश्वस्त किया. शालू गिरि नई रंगरूट महिला सिपाही थी. उस की तैनाती 5 महीने पहले ही विधूना थाने में हुई थी. वह तेजतर्रार थी और मुस्तैदी से ड्यूटी करती थी. बीती रात 8 बजे वह ड्यूटी समाप्त कर अपने रूम पर गई थी. इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ल ने शालू से बात करने के लिए कई बार उसे फोन किया, लेकिन वह काल रिसीव ही नहीं कर रही थी. अत: उन की चिंता बढ़ गई. उन्होंने थाने में तैनात दूसरी महिला सिपाही जीतू कुमारी को बुलाया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि शालू गिरि कहां रहती है?’’

‘‘हां सर, पता है. वह विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रहती है.’’

‘‘तुम किसी सिपाही के साथ उस के रूम पर जा कर देखो कि वह फोन रिसीव क्यों नहीं कर रही है. कहीं वह बीमार तो नही है?’’ इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

‘‘ठीक है, सर.’’ कह कर जीतू कुमारी सिपाही अजय सिंह के साथ शालू के रूम पर पहुंची. उस के रूम का दरवाजा अंदर से बंद था और कूलर चल रहा था. कमरे के अंदर की लाइट भी जल रही थी. जीतू कुमारी ने दरवाजा पीटना शुरू किया तथा शालू…शालू कह कर आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. घबराई जीतू कुमारी ने थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को सूचना दी तो वह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. फंदे पर झूलती मिली शालू श्री शुक्ला ने भी दरवाजा थपथपाया तथा शालू को पुकारा. पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. किसी अनहोनी की आशंका को भांप कर थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाहियों को शालू के रूम का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही 2 सिपाहियों ने दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रूम में गए तो वह चौंक गए. रूम के अंदर महिला सिपाही शालू का शव फांसी के फंदे पर झूल रहा था. उस ने दुपट्टे का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटक कर मौत को गले लगाया था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ल ने सब से पहले मृतका की बड़ी बहन सपना को खबर दी और उसे तत्काल विधूना थाने आने को कहा. इस के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी और फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. कमरे के अंदर एक प्लास्टिक का स्टूल गिरा पड़ा था. शायद इसी स्टूल पर चढ़ कर शालू ने फांसी का फंदा तैयार किया था और गले में फंदा डाल कर स्टूल को पैर से गिरा दिया था. रूम का बाकी सब सामान अपनी जगह था. रूम के एक ओर पड़ी छोटी टेबल पर पैक खाना रखा था, जिसे उलझन के कारण शायद उस ने नहीं खाया था.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को कमरे के अंदर से एक डायरी तथा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसे उन्होंने सुरक्षित कर लिया. इस के बाद उन्होेंने शालू के शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. चूंकि विभागीय मामला था और अतिसंवेदनशील भी, अत: सूचना मिलते ही औरैया की एसपी सुश्री सुनीति, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (विधूना) मुकेश प्रताप सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल से बरामद शालू की डायरी की पुलिस अधिकारियों ने जांच की तो उन्हें डायरी में 3 पन्ने का सुसाइड नोट मिला. डायरी के एक पन्ने पर शालू ने लिखा था, ‘मेरे प्यारे मांपिताजी, आप ने पालपोस कर मुझे बड़ा किया. पढ़ायालिखाया और प्रदेश सुरक्षा को समर्पित किया. आप के इस बड़प्पन को मैं कभी नहीं भुला सकती. लेकिन मैं अपनी ही जिंदगी से हार गई. मैं ने बहुत कोशिश की कि परेशानियों से उबर जाऊं, पर कामयाब नहीं हुई. इसलिए अपनी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रही हूं. प्लीज किसी को परेशान न किया जाए.’

डायरी के दूसरे पन्ने पर शालू गिरी ने प्रभु (ईश्वर) को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था और रास्ता सुझाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा—

‘हे प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ. बचपन से ले कर आज तक मैं कभी फेल नहीं हुई. फिर मुझे वहां फेल क्यों कर रहे हो, जहां पास होने की सब से ज्यादा जरूरत है. मैं लाइफ में कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. मुझे अपने पास बुला लो.’ पुलिस तलाशने लगी आत्महत्या की वजह डायरी के तीसरे पन्ने पर शालू गिरि ने मरने से पहले घर वालों के नाम एक अन्य पत्र लिखा था, जिस में उस ने सिपाही आकाश का जिक्र किया था. उस ने लिखा था— मेरे मरने का दोषी आकाश को न ठहराया जाए. वह सिर्फ मेरा दोस्त था. दोस्ती के नाते हम एकदूसरे को पसंद करते थे. उस की बातों में जादू था. जिस से मुझे सुकून मिलता था. उस ने मुझे समझाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन मैं अपनी परेशानियों से हार गई, इसलिए हताश जिंदगी का अंत कर रही हूं.’

पुलिस अधिकारी सुसाइड नोट पढ़ कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिपाही शालू गिरि ने परेशानियों के चलते आत्महत्या की है. पर वे परेशानियां क्या थीं, जिस से उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस का खुलासा उस ने पत्रों में नहीं किया था. इस का खुलासा तभी हो सकता था, जब उस के घर वाले मौके पर आते. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार शालू गिरि बागपत जिले के बालौनी थानांतर्गत लतीफपुर दत्त नगर गांव की रहने वाली थी. विधूना थाने में उस की पोेस्टिंग दिसंबर माह में हुई थी. एक माह पहले ही उस की शादी हुई थी. विधूना कस्बे में वह किराए के रूम में रहती थी.

एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने मृतका शालू का मोबाइल फोन खंगाला तो उस में स्वीट होम, हसबैंड, सिस्टर तथा आकाश के नाम से फोन नंबर सेव थे, जो उस के घर वालों के थे. इन नंबरों पर काल कर केश्री दीक्षित ने घर वालों को घटना की जानकारी दी तथा शीघ्र ही विधूना थाने आने को कहा. शालू ने मौत से पहले अपनी बहन सपना से बात की थी. घटनास्थल पर मकान मालिक तरुण सिंह भी मौजूद था. सीओ मुकेश प्रताप सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सिपाही शालू गिरि ने 2 हफ्ते पहले ही रूम किराए पर लिया था.

दूसरे रूम में पब्लिक डिग्री कालेज विधूना के निदेशक मनोज कुमार सिंह चौहान रहते हैं. उन का परिवार कानपुर में रहता है. कल वह परिवार से मिलने कानपुर चले गए थे. मकान मालिक ने बताया कि शालू गिरि बातचीत में सरल तथा हंसमुख स्वभाव की थी. उस ने आत्महत्या किन परिस्थितियों में की, उसे इस की जानकारी नहीं है. पति करता था शक चूंकि आत्महत्या का यह मामला एक सिपाही का था. अत: पुलिस अधिकारियों ने नायब तहसीलदार को भी सूचना भेज दी थी. सूचना पा कर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा घटनास्थल पर आ गई थीं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पुलिस अधिकारियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

उस के बाद उन्हीं की मौजूदगी में इंस्पेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाही शालू गिरि के शव का पंचनामा भरा. पंचनामे पर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा ने हस्ताक्षर किए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया. देर शाम मृतका शालू गिरि के मांबाप, भाईबहन तथा पति थाना विधूना आ गए. उस के बाद तो थाने में कोहराम मच गया. मां सुमित्रा देवी, पिता राजेंद्र गिरि तथा बहन स्वाति व सपना दहाड़ मार कर रो रही थीं. थानाप्रभारी ने उन्हें धैर्य बंधाया. फिर थानाप्रभारी उन सब को उस रूम में ले गए, जहां शालू ने आत्महत्या की थी.

वहां एक बार फिर कोहराम मच गया. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने आत्महत्या का कारण जानने के लिए सब से पहले मृतका शालू की मां सुमित्रा देवी से पूछताछ की. सुमित्रा देवी ने बताया कि शालू उन की लाडली बेटी थी. वह बेहद खुशमिजाज थी. अभी एक महीना पहले ही उस की शादी पड़ोस में रहने वाले इलम चंद्र के बेटे राहुल से हुई थी. राहुल शालू को खुश नहीं रखता था, जिस से वह परेशान रहने लगी थी. राहुल, शालू पर शक भी करता था. वह उसे मानसिक तौर पर भी टौर्चर करता था. उस के कारण ही शालू ने आत्महत्या की है.

पिता राजेंद्र गिरि ने बताया कि वह किसान हैं. बेटियों को पढ़ाने व उन का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाया. शालू सिपाही बनी तो बेहद खुशी हुई. इस के बाद शालू की मरजी से उस का विवाह राहुल के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद उस की खुशी गायब हो गई थी. पहली जून सोमवार को शालू की बात उस की मां सुमित्रा से दिन में ढाई बजे हुई थी. तब वह परेशान थी और जिंदगी से ऊबने की बात कर रही थी. तब हम दोनों ने उसे समझाया था, और जिंदगी को निराशा से आशा में बदलने की बात कही थी. लेकिन उस ने रात में आत्महत्या कर ली.

शालू की बड़ी बहन सपना, जो लखनऊ के कैसर बाग थाने में सिपाही है, ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद जब शालू की पहली पोस्टिंग विधूना थाने में हुई तो वह बेहद खुश थी. सप्ताह में एकदो बार उस की उस से बात जरूर होती थी. शादी के पहले वह बेहद खुश रहती थी. हंसहंस कर बतियाती थी और चुहलबाजी भी करती थी. लेकिन शादी के बाद वह गुमसुम रहने लगी थी. उस ने फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. जब कभी बात होती तो कहती कि वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है. जी चाहता है जिंदगी खत्म कर लूं. शायद शालू अपने पति राहुल से खुश नहीं थी. क्योंकि वह शालू पर शक करता था. सिपाही आकाश को ले कर राहुल के मन में गलत धारणा घर कर गई थी.

आकाश को ले कर ही राहुल उसे मानसिक तौर पर परेशान करता था. जबकि शालू और सिपाही आकाश के बीच सिर्फ दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आमनासामना होने पर हंसबोल लेते थे. सपना ने बताया कि बीती रात 11 बजे कई बार नंबर मिलाने के बाद उस की शालू से बात हुई थी. तब वह बहकीबहकी बातें कर रही थी. बात करतेकरते उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था. उस के बाद जब सुबह उस ने फोन मिलाया तो शालू फोन रिसीव ही नहीं कर रही थी. तब घबरा कर मैं ने आप को फोन किया था और शालू से बात कराने को कहा था. लेकिन कुछ देर बाद आप ने सूचना दी थी कि शालू ने आत्महत्या कर ली है.

पत्नी की मौत की खबर पा कर राहुल भी अपने पिता इलम चंद्र के साथ थाना विधूना पहुंचा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने जब राहुल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने शालू की रजामंदी से उस के साथ प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद उसे पता चला कि शालू की दोस्ती किसी आकाश नाम के सिपाही से है. वह मोबाइल फोन पर उस से बतियाती है. आकाश को ले कर उस ने शालू से टोकाटाकी की थी. इस से वह उस से नाराज रहने लगी थी. पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा नहीं था.

शालू कौन थी? उस ने आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में की? यह सब जानने के लिए हम पाठकों को उस के अतीत की ओर ले चलते हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालौनी थाना अंतर्गत एक गांव है- लतीफपुर दत्त नगर. इसी गांव में राजेंद्र गिरि अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमित्रा गिरि के अलावा 3 बेटियां सपना, शालू, स्वाति तथा एक बेटा राजीव था. राजेंद्र गिरि किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खेती के काम में उन का बेटा राजीव भी मदद करता था. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उन की इच्छा के अनुसार पढ़ाया.

राजेंद्र की बड़ी बेटी सपना पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी. उन्हीं दिनों पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर भरती हो रही थी. सपना ने प्रयास किया तो उस का चयन हो गया. उस की ट्रेनिंग सीतापुर में हुई. बाद में उस की पोस्टिंग लखनऊ के कैसर बाग थाने में हो गई. सपना से छोटी शालू थी. अपनी बड़ी बहन सपना की तरह वह भी पुलिस में भरती होना चाहती थी. इस के लिए उस ने पढ़ाई के अलावा अपने शरीर को चुस्तदुरूस्त बनाने के लिए सुबहशाम दौड़ लगानी शुरू कर दी. राजेंद्र गिरि अपनी लाडली बेटी का सपना पूरा करना चाहते थे, सो वह उसे भरपूर सहयोग कर रहे थे. शालू खूबसूरत थी. उस ने जब 17 बसंत पार किए तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था.

इसी दौरान राहुल गिरि से उस की दोस्ती हो गई. राहुल शालू के पड़ोस में ही रहता था और किसान इलम चंद्र का बेटा था. शालू के पिता राजेंद्र गिरि तथा राहुल के पिता इलम चंद्र की आपस में खूब पटती थी. राजेंद्र जहां अपनी बेटियों का भविष्य बनाने में जुटे थे, वही इलम चंद्र अपने बेटे राहुल का भविष्य बनाने को प्रयासरत थे. राहुल उन का होनहार बेटा था. उस ने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल करने के बाद बीएड की परीक्षा पास कर ली थी और शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास कर शिक्षक बनना चाहता था.

शालू और राहुल एक ही गली में खेलकूद कर जवान हुए थे. दोनों में एकदूसरे के प्रति आकर्षण था. यह आकर्षण धीरेधीरे प्यार में बदल गया था. प्यार परवान चढ़ा तो एक रोज राहुल ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘शालू, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मैं ने तुम्हें अपना बनाने का सपना संजोया है. क्या मेरा यह सपना पूरा होगा?’’

‘‘तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा. पर अभी नहीं. अभी समय है अपना कैरियर बनाने का. तुम्हारा सपना है शिक्षक बनने का और मेरा सपना है पुलिस में नौकरी करने का. अपनाअपना सपना पूरा करो फिर हम जीवनसाथी बन जाएंगे. हम दोनों मजे से जीवन गुजारेंगे.’’

शालू की यह बात राहुल को पसंद आ गई. इस के बाद दोनों अपना कैरियर बनाने में जुट गए. कालांतर मे राहुल ने टीईटी की परीक्षा पास की, उस के बाद उस का चयन शिक्षक पद पर हो गया. वह फैजाबाद के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने लगा. इधर शालू का भी चयन पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर जनवरी 2019 में हो गया. उस की ट्रेनिंग इटावा में हुई. उस के बाद 16 दिसंबर, 2019 को शालू की पहली पोस्टिंग औरैया जिले के विधूना कोतवाली में हो गई. थाने में ड्यूटी के दौरान शालू की मुलाकात सिपाही आकाश से हुई. कुछ दिनों बाद ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

आकाश हर तरह से शालू की मदद करने लगा. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ गई. 20 मार्च, 2020 को शालू गिरि एक सप्ताह की छुट्टी पर अपने गांव लतीफपुर दत्त नगर आई. पर 24 मार्च की रात से देश में लौकडाउन घोषित हो गया, जिस से शालू भी लौकडाउन में फंस गई. शालू का प्रेमी शिक्षक राहुल भी फैजाबाद से घर आया था. वह भी लौकडाउन में गांव में ही फंस गया था. सादगी से हुई लवमैरिज  गांव में रहते शालू और राहुल का आमनासामना हुआ तो दोनों का प्यार उमड़ पड़ा. अब तक दोनों अपना कैरियर बना चुके थे. अत: जब राहुल ने शालू के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा तो शालू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इधर शालू जब लौकडाउन में फंस गई तो पुलिस विभाग ने उसे बालौनी थाने में जौइन करा दिया.

गांव से थाना 9 किलोमीटर दूर था और घर से रोज थाने आनाजाना मुश्किल था. अत: शालू ने बालौनी थाने के पास ही कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रह कर ड्यूटी करने लगी. इसी कमरे में आ कर राहुल उस से मिलने लगा. कुछ दिन बाद शालू और राहुल ने अपने घर वालों से शादी की इच्छा जताई तो दोनों के घर वालों ने उन की बात मान ली. दरअसल शालू की मां सुमित्रा देवी को शालू और सिपाही आकाश के बीच बढ़ती दोस्ती की बात पता चल गई थी. वह शालू की शादी गैर बिरादरी में नहीं करना चाहती थीं, सो वह जातिबिरादरी के युवक राहुल से शादी को राजी हो गई थीं.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद 26 अप्रैल, 2020 को लौकडाउन के दौरान ही शालू और राहुल ने एकदूसरे के गले में वर माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. दोनों परिवारों की मौजूदगी में प्रेम विवाह बालौनी के उसी कमरे में संपन्न हुआ, जिस में शालू रहती थी. शादी के बाद राहुल और शालू पतिपत्नी की तरह उसी कमरे में रहने लगे. पतिपत्नी के बीच दरार तब पड़ी जब सिपाही आकाश का नाम शालू की जुबान पर आया. दरअसल शालू देर रात तक सिपाही आकाश से बतियाती थी. पूछने पर वह आकाश को अपना दोस्त बताती थी. आकाश को ले कर राहुल के मन में शंका पैदा हो गई, जिस से वह उस के चरित्र पर शक करने लगा. शक के कारण दोनों के बीच तनाव की स्थिति रहने लगी.

3 मई, 2020 को बालौनी थाने से शालू को रिलीव कर दिया गया और 5 मई को उस ने वापस विधूना कोतवाली में ड्यूटी जौइन कर ली. इस के बाद उस ने विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रूम ले लिया और रहने लगी. शालू शादी कर जब से वापस थाने आई थी तब से वह गुमसुम रहने लगी थी. लेकिन वह अपना दर्द किसी से बयां नहीं करती थी. इस दर्द का कारण उस का पति राहुल ही था. वह जब भी शालू से फोन पर बात करता था. उस के चरित्र पर उंगली उठाता था. इधर जब से शालू ब्याह रचा कर वापस लौटी थी, तब से उस का सिपाही दोस्त आकाश भी उस से कतराने लगा था. उस में अब न पहले जैसी दोस्ती थी और न ही प्यारसम्मान. वह अब दोजख में फंस गई थी.

एक ओर उस का पति मानसिक चोट पहुंचा रहा था, उस के चरित्र पर शक कर रहा था, तो दूसरी ओर सिपाही दोस्त आकाश भी उसे पीड़ा पहुंचा रहा था. ऐसे में शालू परेशान हो उठी. आखिर में उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय कर लिया. पहली जून, 2020 को शालू ड्यूटी गई और रात 9 बजे वापस अपने रूम पर आई. उस रोज भी वह परेशान थी और निराशा उसे घेरे थी. रात 11 बजे बड़ी बहन सपना का फोन आया तो उस ने उस से बहकीबहकी बातें कीं. फिर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.  उस के बाद उस ने सिपाही आकाश को फोन किया, लेकिन उस ने फोन रिसीव ही नहीं किया. इस के बाद शालू ने अपनी डायरी के 3 पन्नों पर सुसाइड नोट लिखा, फिर रात लगभग 12 बजे फांसी के फंदे पर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब सपना ने सुबह विधूना थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला के मोबाइल पर जानकारी दी और शालू से बात कराने का आग्रह किया. इस के बाद विनोद कुमार शुक्ला जब शालू के रूम पर पहुंचे, तब शालू फांसी के फंदे पर झूलती मिली. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो शालू की हताश जिंदगी की व्यथा सामने आई. चूकि शालू के पति राहुल के खिलाफ शालू के घर वालों ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी, अत: विधूना पुलिस ने इस प्रकरण को बंद कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Madhya Pradesh News : बिजनैसमैन को फसाया और मांगे 20 लाख

Madhya Pradesh News : पिछले दिनों इंदौर और भोपाल में हनीट्रैप के जो मामले सामने आए, उन में बड़ेबड़े लोगों को ब्लैकमेल कर के करोड़ों रुपए वसूले गए थे. पिंकी ने भी इसी तर्ज पर जावरा के बिजनैसमैन मोहित पोरवाल को ब्लैकमेल करने की योजना बनाई. लेकिन तयशुदा रकम मिलने से पहले ही…

घटना मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की है. 29 नवंबर, 2019 को दोपहर के 2 बजे का समय था. रतलाम के पास अलकापुरी क्षेत्र में स्थित हनुमान ताल के पास कस्बा जावरा के एक प्रसिद्ध व्यापारी मोहित पोरवाल हाथ में सूटकेस लिए खड़े थे. वह काफी घबराए हुए थे, चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, डर की छाया साफ दिखाई दे रही थी. चेहरे पर आ रहे पसीने को वह बारबार रूमाल से पोंछ रहे थे. उन की नजर सुनसान सड़क पर लगी हुई थी. जबकि वहां से कुछ दूर सुनसान जगह पर सादा कपड़ों में मौजूद 10 पुलिस वालों की नजरें मोहित कुमार पर जमी हुई थीं. साथ ही वहां आनेजाने वाले व्यक्तियों पर भी थीं.

उसी समय एक पुलिसकर्मी थाना औद्योगिक नगर के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर से संपर्क बनाए हुए था. मोहित के आसपास फैले पुलिसकर्मी उस समय सतर्क हो गए, जब उन्होंने 3 व्यक्तियों को चौकन्ने भाव से मोहित की तरफ आते देखा. वे तीनों मोहित के पास आ कर कुछ पल के लिए रुके और मोहित के हाथ से सूटकेस ले कर जाने के लिए तेजी से मुड़े. वे तीनों भाग पाते उस से पहले ही आसपास छिपे पुलिसकर्मियों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन युवकों ने पूछताछ में अपने नाम शिव उर्फ भोला निवासी लक्ष्मणपुरा, कालू उर्फ अविनाश, दिनेश टका निवासी बिरयाखेड़ी, रतलाम बताए. उन तीनों को पकड़ कर पुलिसकर्मी टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के पास ले आए.

टीआई शिवमंगल सेंगर ने उन से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने कबूल कर लिया कि उन के गिरोह की सरगना पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी है, जिस ने व्यापारी मोहित को अपने जाल में फंसाया था. साइबर सेल से मिली जानकारी के बाद एसपी रतलाम को पहले से ही शक था कि पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी इस गिरोह में शामिल है. जब उस का नाम सरगना के तौर पर सामने आया, तो महिला पुलिस के साथ गई टीम ने उसे एमबी नगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पकड़े जाने पर पिंकी शर्मा ने स्वीकार किया कि पिछले दिनों इंदौर में चर्चाओं में रहे हनीट्रैप कांड की तरह उस ने मोहित को लालच दे कर शिकार बनाया था.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों के पास से लूट में प्रयुक्त एक स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोहित की सोने की अंगूठी और नकद 2 हजार रुपए के अलावा सोने की बाली, चांदी का कड़ा, खिलौना रिवौल्वर एवं एक चाकू बरामद कर लिया. उन से की गई पूछताछ के बाद ब्लैकमेलिंग करने की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के रहने वाले 45 वर्षीय मोहित जावरा के जानेमाने अनाज व्यापारियों में से एक हैं. जमा हुआ खानदानी कारोबार है. शहर के रईसों में इन का नाम भी शुमार है. मोहित छोटी उम्र से ही परिवार का बिजनैस संभाल रहे थे. व्यापार के अलावा वह सोशल मीडिया में भी एक्टिव रहते थे. इसी के चलते कुछ महीने पहले वाट्सऐप पर उन की मुलाकात रतलाम की एमबी कालोनी निवासी आधुनिक विचारों वाली 22 वर्षीय सुंदरी पिंकी शर्मा से हुई. धीरेधीरे यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई और समय के साथ इस दोस्ती में वे सब बातें भी होने लगीं, जिन्हें बेहद निजी कहा जा सकता है. धीरेधीरे वह पिंकी में काफी रुचि लेने लगे.

बताते हैं पिंकी से उन की 1-2 मुलाकातें सार्वजनिक स्थानों पर हुईं. फिर वह मोहित को अकेले में मिलने के लिए बुलाने लगी. अब तक परिवार के प्रति ईमानदार रहे मोहित, उस से अकेले में मिलने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे थे. लेकिन जवान और खूबसूरत दोस्त का खुला आमंत्रण वह भला कब तक ठुकराते, इसलिए न न करते हुए भी वह एक दिन उस की बताई जगह पर मिलने को तैयार हो गए. मिलने के लिए तारीख तय हुई 24 नवंबर की दोपहर और स्थान था विरियाखेड़ी के ईंट भट्ठों का सुनसान इलाका. मन में कुछ आशंकाएं और ढेर सारे सपने ले कर मोहित तय वक्त पर विरियाखेड़ी पहुंच गए. उन के मन में एक शंका थी कि शायद ही पिंकी उन से मिलने आए. लेकिन यह देख कर उन का दिल खुश हो गया कि पिंकी उन के पहुंचने से पहले ही वहां खड़ी उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘कितनी देर कर दी जनाब आने में. क्या इसी तरह इंतजार करवाओगे?’’ पिंकी मुसकरा कर बोली.

‘‘नहीं यार,बस आतेआते टाइम लग गया.’’ मोहित ने कहा.

‘‘ओके चलो, पहली बार देर हुई है, इसलिए माफ करती हूं. मालूम है लड़कों को अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने उस से पहले पहुंचना चाहिए.’’ वह बोली.

‘‘लड़कों को न, लेकिन मैं लड़का नहीं हूं.’’ मोहित ने कहा.

‘‘तो क्या हुआ, मेरे बौयफ्रैंड तो हो. लेकिन मैं आप को एक बात बताऊं कि मुझे लड़कों के बजाए परिपक्व मर्दों में रुचि है.’’ पिंकी ने बताया.

‘‘वो क्यों?’’ मोहित ने पूछा.

‘‘सब से बड़ी बात तो यह है कि वह इस मामले में अनुभवी होते हैं. दूसरे लड़कों की तरह ज्यादा परेशान भी नहीं करते.’’ पिंकी ने तिरछी नजरों से मोहित की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अब ज्यादा समय खराब मत करो. वहां सामने एक घर है, वहां कोई नहीं आताजाता. चलो, वहीं चल कर बात करते हैं.’’

मोहित उस के साथ उस मकान में जाने से मना करना चाहते थे, लेकिन पिंकी को देखने के बाद वह उसे मना नहीं कर सके और उसे साथ ले कर उस के बताए मकान में चले गए. दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. पिंकी की सैक्सी बातों और हरकतों से मोहित अपना होश खोने लगे. इस से पहले कि वह अपनी हसरतें पूरी कर पाते, तभी दरवाजे पर लात मार कर अंदर घुस आए 3 युवकों को देख कर मोहित घबरा गए. उन का गीला गला एक झटके में रेगिस्तान बन गया.

‘‘क्या हो रहा है बुड्ढे, बेटी की उम्र की लड़की के साथ अय्याशी की जा रही है.’’ उन में से एक युवक ने मोहित से कहा तो उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

‘‘चल कर ले अय्याशी, हम तेरा लाइव शो देखेंगे.’’ दूसरा बोला.

‘‘देखिए, ऐसा कुछ नहीं है. हम लोग यहां यूं ही आए थे.’’ मोहित ने थूक गटकते हुए किसी तरह कहा.

लेकिन वे तीनों नहीं माने. उन्होंने चाकू की नोंक पर मोहित और पिंकी के पूरे कपड़े उतरवा दिए और फिर उसी अवस्था में दोनों के अश्लील फोटो और वीडियो अपने कैमरे में कैद करने के बाद बोले, ‘‘अब जाओ, यह वीडियो हम तुम्हारे बीवीबच्चों को भेज देंगे. फिर आराम से बैठ कर सब के साथ देखना.’’

‘‘देखिए, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं. हम यहां ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे थे. आप वीडियो और फोटो डिलीट कर दें.’’ मोहित ने उन तीनों से कहा तो उन्होंने इस के बदले में 20 लाख रुपयों की मांग की. उस वक्त मोहित के पास इतना रुपया नहीं था, सो तय हुआ कि हफ्ते भर में मोहित 20 लाख रुपए बदमाशों को दे कर उन से वीडियो और फोटो वापस ले लेंगे. मामला सुलट गया तो पिंकी और मोहित के वहां से जाने के पहले बदमाशों ने मोहित की सोने की अंगूठी और जेब में रखे 2 हजार रुपयों के अलावा पिंकी के जेवर भी लूट लिए.

मोहित जैसेतैसे वापस जावरा पहुंच तो गए लेकिन उन के दिल को पलभर का भी सुकून नहीं था. पिंकी के चक्कर में उन्हें पीढि़यों से बनाई बापदादाओं की इज्जत धूल में मिलती दिखाई दे रही थी. मामला अगर दुनिया के सामने आ जाता तो समाज और अपने परिवार के सामने नजरें ऊंची नहीं कर पाते. इन्हीं सब खयालों से डरे हुए मोहित को रात में नींद भी नहीं आई. पिंकी को याद करने का तो सवाल ही नहीं था. लेकिन अगले ही दिन सुबहसुबह पिंकी का फोन आ गया. उन्होंने बेमन से पिंकी से बात की तो उस ने कल की घटना पर दुख जताया लेकिन उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे इस बात की कोई टेंशन है. उस समय उन्होंने पिंकी की इस बेफिक्री पर ज्यादा गौर नहीं किया.

इधर दोपहर होते ही बदमाशों का फोन आ गया, जिस में कहा गया कि वह जल्द से जल्द उन्हें 20 लाख रुपए दे दें. इस के कुछ देर बाद पिंकी का भी फोन आ गया. उस ने बताया कि बदमाशों ने उसे भी फोन कर जल्द से जल्द 20 लाख रुपए की मांग की है. साथ ही उस ने सलाह भी दी कि वह जल्द से जल्द बदमाशों की मांग पूरी कर दें वरना अपनी दोस्ती खतरे में पड़ जाएगी. यहां पूरी बनीबनाई इज्जत खतरे में पड़ी थी और पिंकी को अब भी प्यारमोहब्बत की बातें सूझ रही थीं. मोहित को पिंकी पर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन यह मौका गुस्सा दिखाने का नहीं था, इसलिए वह किसी तरह अपने गुस्से को काबू में किए रहे.

दूसरी तरफ एक के बाद एक तीनों बदमाश उन्हें बारबार फोन कर 20 लाख रुपयों की मांग करते हुए पिंकी के साथ बनाया उन का अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे थे. जितनी बार बदमाशों का फोन आता, उतनी ही बार पीछे से पिंकी का फोन आ जाता. वह हर बार मोहित को सलाह देती कि जैसे भी हो, बदमाशों की मांग जल्द पूरी कर दें. इस से मोहित को शक होने लगा कि कहीं पिंकी भी इन बदमाशों से मिली हुई तो नहीं है. क्योंकि वह जानते थे कि अगर बदमाशों ने वीडियो वायरल कर भी दी, तो पिंकी का कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन उन की पूरी इज्जत धूल में मिल जाएगी. मीडिया में न तो पिंकी का नाम आएगा और न फोटो लेकिन उन के नाम के तो पोस्टर छप जाएंगे. फिर पिंकी क्यों इतना डर रही है. वह बारबार बदमाशों को रुपए देने का दबाव क्यों बना रही है.

काफी सोचविचार के बाद मोहित ने 4 दिन बाद पूरी कहानी रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को बता दी. मोहित की बात सुन कर एसपी साहब समझ गए कि मोहित किसी ब्लैकमेल कराने वाले गिरोह के शिकार बन गए हैं. इसलिए उन्होंने इस गिरोह को गिरफ्तार करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बना दी. पुलिस की साइबर सेल ने पिंकी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि बदमाश जिन फोन नंबरों से मोहित से बात कर रहे थे, उन नंबरों पर काफी दिनों से पिंकी की बारबार बात होती रही है. इस से यह साफ हो गया कि पिंकी ने ही मोहित को हनीट्रैप में फंसा कर ठगने की साजिश रची है. इसलिए एसपी के निर्देश पर जांच अधिकारी शिवमंगल सिंह सेंगर ने योजना बना कर मोहित से आरोपियों को पैसों का इंतजाम हो जाने का फोन करवाया.

बदमाशों ने उन्हें 29 नवंबर, 2019 की दोपहर 2 बजे पैसा ले कर हनुमान ताल पर बुलाया. जिस के बाद योजना अनुसार एसपी रतलाम ने सुबह से ही हनुमान ताल पर सादा लिबास में पुलिसकर्मी तैनात कर दिए. दोपहर में जैसे ही तीनों बदमाश शिव, कालू और दिनेश मोहित से फिरौती के 20 लाख रुपए लेने के लिए आए, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पिंकी के बारे में बताया जाता है कि वह मूलरूप से किला मैदान, झाबुआ की रहने वाली थी. वह रतलाम में एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करती थी. उस कंपनी में राकेश (परिवर्तित नाम) भी नौकरी करता था. वहीं पर दोनों की दोस्ती हुई. राकेश रतलाम के ही  जावरा का रहने वाला था. चूंकि दोनों ही जवान थे, इसलिए जब उन की दोस्ती प्यार में बदली, तब उन्होंने शादी का फैसला कर लिया.

दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना लवमैरिज कर ली. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनों के बीच मतभेद हो गए. हालांकि इस दौरान पिंकी एक बेटी की मां बन चुकी थी. जब दोनों के बीच ज्यादा ही कलह रहने लगी तो वह बेटी को पति के पास छोड़ कर चली आई. इस दौरान पिंकी की मुलाकात रतलाम के ही रहने वाले सन्ना नाम के बदमाश से हुई. वह सन्ना के साथ रतलाम के चांदनी चौक क्षेत्र में रहने लगी. सन्ना के जरिए पिंकी की जानपहचान लक्ष्मणपुरा, रतलाम के रहने वाले भोला, हाट की चौकी के कालू और बीरियाखेड़ा के दिनेश से हुई. ये सभी आपराधिक सोच वाले युवक थे.

पिछले दिनों इंदौर में हनीट्रैप के मामले में हाईफाई लोगों के फंसने का मामला सामने आया था. उसी से प्रेरित हो कर पिंकी और उस के इन साथियों ने मोटा पैसा कमाने के लिए प्लान बनाया. लिहाजा पिंकी के जरिए वे सब मोटी आसामी को अपने जाल में फांस कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. पिंकी पिछले 5 सालों से शहर के युवकों को अपने रूपजाल में फंसा कर ठगने का काम कर रही थी. इसी योजना के तहत उस ने मोहित से दोस्ती की और एकांत जगह पर स्थित भट्ठों पर बने कमरे में ले गई और उन्हें अपने रूपजाल में फंसाने का जतन करने लगी. तभी उस के तीनों साथियों ने आ कर मोहित के साथ उस की अश्लील फिल्म बना ली.

मोहित को उस के ऊपर शक न हो इसलिए मोहित के साथ उन्होंने पिंकी के साथ भी लूटपाट का नाटक किया था. लेकिन रतलाम पुलिस ने जल्द ही इस गिरोह के नाटक का परदा गिरा दिया. आरोपी शिव उर्फ भोला, कालू, दिनेश और पिंकी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

 

Inspector ने फेसबुक के जरिए पकड़ा शातिर चोर

इंसपेक्टर (Inspector) अनिरुद्ध सिंह जानते थे कि लड़की के नाम पर बड़ेबड़े फिसल जाते हैं. जबकि आरिफ तो अभी लड़का है. उन्होंने लड़की के नाम से उस के फेसबुक पर प्यार का संदेश भेजा तो सचमुच आरिफ फिसल गया और उन की गिरफ्त में आ गया. बिहार के शहर पटना के मोहल्ला राजापुर के रहने वाले राकेश रंजन को जब भी कामधंधे से

फुरसत मिलती, वह इस का सदुपयोग देश के किसी न किसी पर्यटकस्थल पर जाने के रूप में करते. काफी दिनों से वह जम्मूकश्मीर जा कर वहां वैष्णो देवी के मंदिर का दर्शन करने की सोच रहे थे, इसलिए बरसात खत्म होते ही उन्हें मौका मिला तो उन्होंने अगस्त के अंतिम सप्ताह में जम्मूकश्मीर जाने की तैयारी कर के ट्रेन से आनेजाने का टिकट करा लिया. अपनी पूर्व तैयारी के हिसाब से राकेश रंजन जम्मूकश्मीर पहुंच गए और वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन कर के आराम से घूमेफिरे. 15 सितंबर, 2013 को हिमगिरि एक्सप्रेस से उन का वापसी का टिकट था. जम्मू से चल कर हावड़ा तक जाने वाली हिमगिरि एक्सपे्रस जम्मू से रात पौने 11 बजे चलती थी.

राकेश रंजन खाना वगैरह खा कर समय से स्टेशन पर पहुंच गए और सीधे अपने कोच में जा कर पहले से आरक्षित बर्थ पर आराम से लेट गए. जम्मू से लखनऊ तक का उन का सफर आराम से बीता. अगले दिन 16 सितंबर की शाम 4 बजे के आसपास टे्रन लखनऊ पहुंची तो कुछ यात्री उतरे तो कुछ सवार हुए. सवार होने वाले यात्रियों में राकेश रंजन की बगल वाली खाली हुई सीट पर एक युवक आ कर बैठ गया. उस की ऊपर वाली बर्थ थी. वह बातचीत बड़ी शालीनता से कर रहा था, इसलिए जल्दी ही राकेश रंजन उस से हिलमिल गए. दोनों में बातचीत होने लगी.

युवक ने अपना नाम मोहम्मद आरिफ खां बताया. आगे बातचीत में उस ने बताया कि उस के पिता फिरोज खां सेना में सूबेदार मेजर हैं, जो जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में तैनात हैं. वह वाराणसी का रहने वाला है और दिल्ली में रह कर इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है. आरिफ बातें बहुत अच्छे ढंग से कर रहा था, इसलिए राकेश रंजन उस से काफी देर तक बातें करते रहे. बातें करतेकरते ही कब 8 बज गए, उन्हें पता ही नहीं चला. हिमगिरि एक्सप्रेस वाराणसी रात के 9 बजे के आसपास पहुंचती थी. राकेश रंजन को रात में ही ट्रेन से उतरना था, इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर वह जल्दी सो जाएंगे तो रात में जागने में उन्हें दिक्कत नहीं होगी.

इसीलिए वाराणसी आने से पहले ही उन्होंने खाना मंगा कर खा लिया और अपनी बर्थ पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगे. आरिफ भी कुछ देर तक कोई पत्रिका पलटता रहा, उस के बाद लाइट बंद कर के लेट गया. रात 11 बजे के आसपास ट्रेन बक्सर पहुंच रही थी तो राकेश रंजन को पेशाब लगी. वह पेशाब कर के लौटे तो बर्थ पर लेटने से पहले एक बार अपना सामान चैक करने लगे. सारा सामान यथास्थान रखा था, लेकिन उन्हें लगा कि उन के सामान से उन का एक बैग गायब है. वह सीट के नीचे और अगलबगल बैग को तलाशने लगे, लेकिन बैग उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया. बैग कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि कोई उन का बैग उठा ले गया है.

राकेश रंजन ने यह सोच कर एसी बोगी बर्थ आरक्षित कराई थी कि रास्ते में उन्हें कोई दिक्कत न उठानी पड़े और सामान भी सुरक्षित रहे. क्योंकि एसी डिब्बों में फालतू लोगों का आनाजाना न के बराबर होता है. एसी कोच में वही यात्री चढ़ते हैं, जिन की बर्थ कनफर्म होती है. राकेश जहां स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे, वहीं से उन का बैग चोरी हो गया था.

एसी डिब्बों में प्लेटफार्म का शोरगुल भी नहीं सुनाई देता, इसलिए राकेश रंजन अपनी बर्थ पर आराम से सोए रहे थे. ट्रेन मुगलसराय स्टेशन से कब छूटी थी, उन्हें यह भी पता नहीं चला था. मुगलसराय स्टेशन से गाड़ी के चलने के लगभग घंटे भर बाद राकेश रंजन को पेशाब लगा था. तब उन की आंख खुली थी. जितनी देर उन्होंने पेशाब करने में लगाया था, बस उतनी ही देर के लिए वह अपने सामान के पास से हटे थे. जाते समय उन्होंने अपना सामान नहीं देखा था, इसलिए वह दुविधा में फंसे थे कि उन का बैग पहले गायब हुआ था या बाद में.

उसी बैग में उन का सारा कीमती जरूरी सामान था, इसलिए वह परेशान हो उठे थे. कीमती सामान का मतलब, 3 बैंकों के डेबिट कार्ड और 5-6 हजार रुपए नकद के अलावा कुछ जरूरी कागजात भी थे. संकट के उस समय राकेश रंजन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? बैग को कहां तलाशें, उस के बारे में किस से पूछें? उस समय रात के 11 बज रहे थे, डिब्बे के अन्य यात्री अपनीअपनी सीटों पर आराम से सो रहे थे. इसलिए वह बैग के बारे में किसी भी यात्री से पूछने में झिझक रहे थे. लेकिन बैग गायब होने से परेशान राकेश रंजन का मन नहीं माना और उन्होंने अपने कूपे के यात्रियों को जगा कर बैग के बारे में पूछा.

इस पूछताछ में उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. सभी ने एक ही जवाब दिया, ‘मैं तो सो रहा था.’ आपस में बात चली तो लखनऊ से चढ़े मोहम्मद आरिफ खां पर सब का ध्यान गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह मुगलसराय में उतरा था. कहीं वही तो बैग ले कर नहीं उतर गया. उस समय संदेह व्यक्त करने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से चली जा रही थी. कूपे के यात्रियों ने राकेश रंजन को सलाह दी कि अगले स्टेशन पर उतर कर वह जीआरपी थाने में बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दें. ट्रेन का अगला स्टेशन बक्सर था.

लेकिन वहां ट्रेन केवल 2 मिनट के लिए रुकती थी. इतने कम समय में ट्रेन से उतर कर जीआरपी थाने तक जा कर रिपोर्ट दर्ज करा कर डिब्बे तक वापस आना संभव नहीं था. तब किसी सहयात्री ने सलाह दी कि वह अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट पटना में उतर कर आराम से वहां के जीआरपी थाने में दर्ज कराएं, वहां उन के पास समय ही समय रहेगा, क्योंकि उन्हें वहीं उतरना है. केश रंजन को यह सुझाव ठीक लगा. इसलिए उन्होंने पटना पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराने का निर्णय लिया. वह लेट तो गए, लेकिन अब उन्हें नींद कहां आ रही थी, करवट बदलते हुए वह पटना जंक्शन आने का इंतजार करने लगे. हिमगिरि एक्सपे्रस 16/17 सितंबर की रात डेढ़ बजे के आसपास पटना पहुंचती थी. लेकिन उस दिन ट्रेन कुछ लेट थी, इसलिए ढाई बजे के बाद पहुंची.

पटना प्लेटफार्म पर उतर कर राकेश रंजन सीधे थाना जीआरपी पहुंचे और थानाप्रभारी से मिल कर अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थानाप्रभारी ने उन से चोरी गए बैग के बारे में पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. राकेश रंजन की यह रिपोर्ट 17 सितंबर, 2013 की सुबह 3 बजे के आसपास भादंवि की धारा 379 के तहत पटना के थाना जीआरपी में दर्ज हुई थी. इस के बाद इस रिपोर्ट को जांच के लिए बक्सर के जीआरपी थाना पुलिस को भेज दिया गया, क्योंकि राकेश रंजन का बैग बक्सर सीमाक्षेत्र में चोरी हुआ था. 19 सितंबर को बक्सर के थाना जीआरपी के सबइंसपेक्टर शंकरराम को राकेश रंजन द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट जांच के लिए मिली तो उन्होंने तुरंत राकेश रंजन को फोन किया. पूछताछ में पता चला कि राकेश रंजन के चोरी गए डेबिट कार्ड से अब तक 90 हजार रुपए की खरीदारी हो चुकी थी.

सबइंसपेक्टर (Inspector) शंकरराम समझ गए कि चोर शातिर और चालाक ही नहीं, मंझा हुआ खिलाड़ी भी है. उसे पता है कि किस चीज का उपयोग कैसे हो सकता है. शंकरराम ने जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि चोरी के 24 घंटे के अंदर ही चोर ने डेबिट कार्ड से 90 हजार रुपए की खरीदारी कर ली थी. यह खरीदारी उत्तर प्रदेश के जिला चंदौली के शहर मुगलसराय के एक शोरूम से की गई थी. जांच के लिए सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय स्थित उस शोरूम में पहुंचे और जब उन्होंने वहां पूछताछ की तो पता चला कि युवक ने उस डेबिट कार्ड से सैमसंग के 2 स्मार्ट मोबाइल फोन और कुछ कपड़े खरीदे थे.

खरीदारी के दौरान खरीदार को अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर के साथ पता लिखाना जरूरी होता है, इसलिए शंकरराम को पता था कि चोर का पता, मोबाइल नंबर और ईमेल आर्डडी मिल ही जाएगी. सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम के मैनेजर से मिल कर खरीदार का विवरण मांगा तो मैनेजर ने खरीदार द्वारा दी गई ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता उन्हें दे दिया. शोरूम से मिली जानकारी के अनुसार खरीदार वाराणसी के थाना कैंट के मोहल्ला खजुरी (फुलवरिया) का रहने वाला था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम से ही मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर पर फोन किया तो पता चला फोन बंद है. इस का मतलब चोर ने मोबाइल नंबर गलत दिया था. अब उस के द्वारा दिए गए पते का सहारा था. सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय से वाराणसी आ गए और चोर द्वारा दिए गए पते पर पहुंच कर उस के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस का मतलब आरिफ ने पता भी गलत लिखाया था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने खजुरी (फुलवरिया) इलाके में घूमघूम कर तमाम लोगों से आरिफ खां के बारे में पूछताछ की. लेकिन कोई भी उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. जब आरिफ के बारे में वहां कोई जानकारी नहीं मिली तो शंकरराम निराश हो कर थाना कैंट पहुंचे और थानाप्रभारी इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह से मिल कर उन्हें पूरी बात बता कर अनुरोध किया कि उस चोर को पकड़वाने में वह उन की मदद करें. पूरी बात सुनने के बाद इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने राकेश रंजन का पता और मोबाइल नंबर नोट कर के बक्सर पुलिस को मदद का आश्वासन दे कर वापस भेज दिया. इस के बाद वह मामले की जांच में लग गए.

जांच आगे बढ़ाई तो उन्हें भी पता चला कि चोर ने मुगलसराय के एक शोरूम से सैमसंग के 2 स्मार्ट फोन और कपड़े खरीदे थे. उन्होंने शोरूम जा कर मैनेजर से खरीदार के बारे में पूछताछ की तो उस ने खरीदार का जो हुलिया बताया, वह राकेश रंजन द्वारा बताए आरिफ के हुलिए से बिलकुल मिलता था. अनिरुद्ध सिंह को पता था कि आरिफ ने जो पता दिया है, वह फरजी है, इसलिए वहां जाना बेकार है. उन्होंने खुद न जा कर अपने मुखबिरों को खजुरी इलाके में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने आरिफ द्वारा दी गई ईमेल आईडी के अनुसार उस के नाम से फेसबुक पर सर्च किया तो कैंट निवासी आरिफ का फेसबुक एकाउंट दिखाई दे गया.

उस में आरिफ का फोटो लगा था, इसलिए उन्होंने पहचान लिया कि यही वह आरिफ, जिस की उन्हें तलाश है. इस तरह उन्होंने असली आरिफ को खोज निकाला. दरअसल फेसबुक में बैकग्राउंड में वाराणसी के मानसिक चिकित्साल्य की फोटो लगी थी, इसी से पहचानने में उन्हें आसानी हो गई थी. इस के बाद आरिफ तक पहुंचने की उन्होंने एक अलग ही तरकीब सोची. उन्होंने एक लड़की का फोटो लगा कर जोया के नाम से फरजी प्रोफाइल बनाई और आरिफ को दोस्ती का पैगाम भेज दिया. आरिफ ने जोया के पैगाम को स्वीकार कर लिया तो उसे अपने जाल में फंसाने के लिए अनिरुद्ध सिंह उसे प्रेम भरे संदेश भेजने लगे. चैटिंग के दौरान उन्होंने उसे संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मुझे तुम से प्रेम हो गया है.’’

‘‘ऐसा ही कुछ मैं भी महसूस कर रहा हूं.’’ जवाब में आरिफ ने लिखा.

‘‘लेकिन आरिफ, मैं दिल्ली में रहती हूं. तुम कहां रहते हो?’’

‘‘मैं तो वाराणसी में रहता हूं. मैं यहां बीएचयू से इंजीनियरिंग कर रहा हूं. तुम दिल्ली में क्या करती हो? आरिफ ने अपने बारे में झूठा मैसेज भेज कर उस के बारे में पूछा.’

‘‘वाराणसी में तुम कहां रहते हो? मैं दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हूं.’’

‘‘वाराणसी में मैं हौस्टल में रहता हूं.’’

‘‘तुम दिल्ली आ सकते हो?’’

सोच तो रहा हूं. लेकिन कालेज से छुट्टी नहीं मिल रही है.’’ आरिफ ने जोया को फिर झूठा मैसेज भेजा.

‘‘छुट्टी तो मुझे भी नहीं मिल रही है. लेकिन मैं तुम से मिलना चाहती हूं, इसलिए किसी भी तरह छुट्टी ले लूंगी. क्योंकि अब तुम से मिले बिना रहा नहीं जा रहा है.’’

‘‘जोया, मुझे भी लगता है कि अब मेरी जिंदगी तुम्हारे बिना अधूरी है.’’

‘‘फिर भी मुझ से मिलने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है.’’

‘‘जोया कभीकभी ऐसी मजबूरियां आ जाती हैं कि आदमी चाह कर भी मन की नहीं कर पाता.’’

‘‘खैर, मैं तो अपने मन की करूंगी. क्योंकि मुझे तुम से मिलना है और वाराणसी घूमना है. क्या तुम मुझे वाराणसी घुमाओगे?’’

‘‘क्यों नहीं. तुम आओ तो मैं तुम्हें पूरी वाराणसी घुमाऊंगा.’’

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा, क्योंकि तुम ने कहा था न कि मुझे कालेज से छुट्टी नहीं मिलती.’’

‘‘जोया, तुम आओ तो सही, देखो मैं तुम्हारे लिए कैसे समय निकालता हूं.’’

चैटिंग के दौरान आरिफ ने जोया का मोबाइल नंबर भी मांगा था. लेकिन उसे नंबर कैसे दिया जाता, इसलिए नंबर देने से मना कर दिया गया. उसे संदेश भेजा गया, ‘‘आरिफ, मैं वाराणसी आऊंगी, तब खूब बातें होंगी. तभी नंबर भी दे दूंगी. पहले नंबर दे कर मैं बातें करने की उत्सुकता खत्म नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस का मतलब आग दोनों ओर लगी है.’’

‘‘मैं आऊंगी, तब मिल कर तनमन की इस आग को बुझाएंगे.’’

आरिफ ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जोया यहां तक पहुंच जाएगी. दरअसल अनिरुद्ध सिंह आरिफ को उत्तेजित कर के उसे अपने जाल में फंसाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अगला संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मैं तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘तो वाराणसी आ जाओ. मैं भी तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘आरिफ, मैं वाराणसी में 2-3 दिन रहना चाहती हूं.’’

इस संदेश पर आरिफ खुशी से फूला नहीं समाया. उस ने संदेश में लिखा, ‘‘अरे भाई, आओगी, तभी तो 2-3 दिन रहोगी.’’

‘‘सही बात तो यह है कि मैं ने अपना रिजर्वेशन करा लिया है. मैं 30 सितंबर को वाराणसी पहुंच जाऊंगी. बताओ, तुम कहां मिलोगे?’’

‘‘वाराणसी में मैं तुम से जेएचवी मौल में दोपहर 11 बजे मिलूंगा.’’

‘‘लेकिन मैं तुम्हें पहचानूंगी कैसे?’’

‘‘मेरी प्रोफाइल में जो फोटो लगा है, उस से तुम मुझे पहचान नहीं सकती?’’

‘‘उस से तो पहचान लूंगी.’’ अनिरुद्ध सिंह ने संदेश भेजा.

आरिफ भी जोया से मिलने के लिए आतुर था. इसलिए उसे 30 सितंबर का बेचैनी से इंतजार था. आखिर 30 सितंबर आ गया. जोया ने 11 बजे जेएचवी मौल में मिलने को कहा था, इसलिए आरिफ समय से पहले ही वहां पहुंच गया. अनिरुद्ध सिंह भी समय से पहले ही बिना वर्दी के अपने 2 सहयोगियों के साथ जीएचवी मौल पहुंच गए थे. आरिफ को देखते ही उन्होंने उसे पहचान लिया. इसीलिए जैसे ही वह गेट के अंदर घुसा, उन्होंने उसे दबोच लिया. पहले तो उस ने अनिरुद्ध सिंह और उन के साथियों को रौब में लेने की कोशिश की, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने अपनी असलियत बता कर उस की भी सच्चाई बताई तो वह शांत हो गया. अनिरुद्ध सिंह उसे थाना कैंट ले आए.

थाने आ कर भी आरिफ पहले अपनी पहचान छिपाते हुए पुलिस को बरगलाने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने उसे बताया कि जोया बन कर वही उस से चैटिंग कर रहे थे, तब वह काबू में आ गया. इस के बाद उस ने राकेश रंजन के बैग चुराने का अपना अपराध स्वीकार कर के अपनी पूरी कहानी उन्हें सुना दी. मोहम्मद आरिफ खां वाराणसी के खजुरी के रहने वाले फिरोज खां का बेटा था. सेना में सूबेदार मेजर फिरोज खां की ड्यूटी इस समय जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में है. उस की पढ़ाई कैंट के आर्मी पब्लिक स्कूल में शुरू हुई थी. वहां से हाईस्कूल पास करने के बाद उस ने मुगलसराय के एक इंटर कालेज में दाखिला लिया, जहां उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि वह इंटर में 3 बार फेल हुआ. इस के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी.

कालेज के उन्हीं आवारा दोस्तों के साथ रह कर आरिफ छोटीमोटी चोरियां करने लगा. लेकिन ये चोरियां ऐसी थीं, शायद उन की रिपोर्टें नहीं लिखाई गईं. इसलिए पुलिस से उस का कभी सामना नहीं हुआ. 17 सितंबर को वह लखनऊ से हिमगिरि एक्सप्रेस पर चढ़ा तो बातोंबातों में राकेश रंजन से उस की दोस्ती हो गई. पहले उस का चोरी का कोई इरादा नहीं था. लेकिन खाना खा कर राकेश रंजन सो गए तो पत्रिका पलटते हुए उस की नजर राकेश के बैग पर पड़ी. उसी समय उस की नीयत खराब हो गई. तब उस ने तय कर लिया कि कैसे भी हो, उसे इस बैग पर हाथ साफ करना है.

आरिफ का टिकट वाराणसी तक ही था. लेकिन तब तक कूपे के लोग जाग रहे थे. इसलिए आरिफ का काम नहीं हो सका. तब उस ने सोचा कि वह मुगलसराय तक चला जाए, शायद तब तक लोग सो ही जाएं. मुगलसराय वाराणसी से ज्यादा दूर भी नहीं है. वहां से कभी भी वाराणसी आया जा सकता है. मुगलसराय तक सचमुच सब लोग सो गए. जैसे ही मुगलसराय में ट्रेन रुकी, आरिफ राकेश रंजन का बैग ले कर उतर गया. मुगलसराय से उस ने खरीदारी इसलिए की थी, जिस से पुलिस को लगे कि वह मुगलसराय का रहने वाला है. लेकिन सामान खरीदते समय उस ने भले ही पता गलत दिया था, लेकिन वाराणसी का दे कर गलती तो की ही. इस के अलावा उस ने इस से भी बड़ी गलती अपना सही ईमेल दे कर की.

आरिफ ने अपराध स्वीकार कर लिया तो अनिरुद्ध सिंह ने उस से राकेश रंजन का सामान बरामद कर के उस की गिरफ्तारी की सूचना सबइंसपेक्टर शंकरराम को दे दी. वह उसी दिन   वाराणसी आ गए और चीफ ज्युडीशियल मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर बक्सर ले कर चले गए. कथा लिखे जाने तक आरिफ की जमानत नहीं हुई थी, वह बक्सर की जिला जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कालगर्ल रैकट की सरगना निकली मास्टरमाइंड

साधारण परिवार में पैदा हुई रिंकी शहजादियों वाला जीवन जीना चाहती थी. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. रेखा ने इसी का फायदा उठाया और उसे ही नहीं, उस के 3 साल के बेटे को भी बेच दिया. लेकिन बाद में जो हुआ, वह कतई ठीक नहीं थी. रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी.

सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है. राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे. लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले नेहैलोकहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’ अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया

बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी. उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था. 2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई. तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी. पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी. तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया. एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा. मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी.

 उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे. रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था. रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. 1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई. अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया. रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा. रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली. 21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर टे्रन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ाशायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडं़जे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी. कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया थाइस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

दूसरी पत्नी ने कहा पहली पत्नी का गला काटो, तब आऊंगी सुसराल

इंसान अपने स्वाथो के चलते कभीकभी इतना वहशी दरिंदा बन जाता है कि स्वाथो के आगउसे इंसान की जान सस्ती लगती है. इस दोहरे हत्याकांड में भी ऐसा ही कुछ हुआ. ममता और उस का बेटा तो मारे ही गए, बचा वाहिद भी…  

18 मार्च, 2018 को सुबह के यही कोई 10 बजे थे. चिमियावली गांव के निकट गेहूं के खेत में गांव वालों ने एक महिला उस के 100 मीटर दूर एक बच्चे की नग्न अवस्था में सिर कटी लाश पड़ी देखीं. यह गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल के थाना कोतवाली के अंतर्गत आता है. गांव वालों ने यह बात गांव के चौकीदार रामरतन को बताई. चौकीदार रामरतन तुरंत उस खेत में पहुंच गया जहां लाशें पड़ी थीं. 2-2 लाशें देख कर वह भी चौंक गया. उस ने फोन द्वारा इस की सूचना थानाप्रभारी अनिल समानिया को दे दी. 2 लाशों की खबर मिलते ही अनिल समानिया पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए

उन्होंने दोनों लाशों का निरीक्षण किया तो वहां पड़े खून से लग रहा था कि उन की हत्याएं वहीं पर ही की गई थीं. दोनों के सिर धड़ से गायब थे. साथ में उन के ऊपर कोई कपड़ा भी नहीं था. मृत महिला के एक हाथ की खाल भी कुछ जगह से गायब थी. इस से यह अनुमान लगाया कि उस महिला के हाथ पर उस का नाम या पहचान की कोई चीज गुदी हुई होगी. महिला की पहचान हो सके, इसलिए हत्यारे ने हाथ के उतने हिस्से की खाल ही काट दी थी. अपने उच्चाधिकारियों को इस लोमहर्षक मामले की जानकारी देने के बाद थानाप्रभारी आसपास के क्षेत्र में दोनों मृतकों के सिर तलाशने लगे

इस काम में गांव वाले भी उन का साथ दे रहे थे. काफी खोजबीन के बाद भी उन के सिर नहीं मिल सके. लेकिन वहां पर मृतकों के कपड़े और चप्पलें जरूर मिल गईं, 2 जोड़ी चप्पलों के अलावा वहां छोटे बच्चे की एक जोड़ी चप्पलें और मिली. जब मरने वाले 2 लोग हैं तो यह तीसरी जोड़ी चप्पल किस बच्चे की है, यह बात पुलिस नहीं समझ सकी. बिना सिर के लाशों की शिनाख्त करना आसान नहीं था. थानाप्रभारी द्वारा सिरविहीन 2 लाशों की सूचना एसपी रविशंकर छवि और एएसपी पंकज कुमार पांडे को दे दी गई. कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी भी चिमियावली गांव के उस गेहूं के खेत में पहुंच गए, जहां दोनों लाशें पड़ी थीं

अधिकारियों ने मौका मुआयना करने के बाद गांवों वालों से लाशों की शिनाख्त के लिए बात की उन्हें मृतकों के कपड़े दिखाए. लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पहचान सका. मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया गया. घटनास्थल पर मिले सारे सबूतों को पुलिस ने जब्त कर लिया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को सुरक्षित रखवाने के लिए जिला चिकित्सालय भेज दिया और चौकीदार रामरतन की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सिर विहीन 2 लाशें मिलने की खबर कुछ ही देर में पूरे शहर में फैल गई. सभी लोग आपस में यही चर्चा कर रहे थे कि पता नहीं शव किस के हैं. मालूम मृतक कहां के रहने वाले थे. उधर थानाप्रभारी भी इस बात को ले कर परेशान थे कि इन लाशों की शिनाख्त कैसे कराई जाए. शिनाख्त के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. लिहाजा शिनाख्त के लिए जिले के समस्त थानों में वायरलैस द्वारा इन अज्ञात लाशों के मिलने की सूचना प्रसारित कर यह जानकारी जाननी चाही कि कहीं किसी थाने में एक महिला और बच्चे की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. पर पुलिस की इन कोशिशों से भी कोई सफलता नहीं मिली. आखिर पुलिस ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम करा कर  उन का अंतिम संस्कार करा दिया.

8-10 दिन बीत गए लेकिन मृतकों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. थानाप्रभारी के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं दोनों मृतक किसी दूसरे जिले के रहने वाले तो नहीं हैं. इस के बाद एसपी के माध्यम से सिरविहीन 2 लाशों के बरामद करने की सूचना सीमावर्ती जिलों के थानों में भी भेज दी गई. इसी बीच पहली अप्रैल, 2018 को थानाप्रभारी को चिमियावली गांव के पास बहने वाली सोन नदी के किनारे एक महिला का सिर पड़े होने की जानकारी मिली तो वह वहां पहुंच गए और सिर को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. वह सिर 18 मार्च को बरामद हुई सिरविहीन महिला की लाश का है या नहीं, इस की पुष्टि डीएनए जांच के बाद ही हो सकती थी

इस के 8 दिन बाद यानी 8 अप्रैल को पुलिस ने मोहम्मदपुर मालनी गांव के जंगल से एक बच्चे का सिर बरामद कर लिया. उस का मांस जंगली जानवर खा चुके थे. अब इस बात की आशंका प्रबल हो गई कि यह दोनों सिर पूर्व में बरामद की गई दोनों लाशों के ही होंगे. मुरादाबाद बरेली परिक्षेत्र के एडीजी प्रेमप्रकाश को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने मुरादाबाद रेंज के आईजी विनोद कुमार से बात कर इस मामले को गंभीरता से लेने को कहा. एडीजी प्रेमप्रकाश बहुत सुलझे हुए अफसर थे. जब वह मुरादाबाद के एसएसपी थे तो उन्होंने चर्चित किडनी कांड को सुलझा कर डा. अमित को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इस के अलावा उन्होंने बावन खेड़ी में एक ही परिवार के 7 लोगों की निर्मम तरीके से की गई हत्या के मामले को सुलझा कर शबनम और उस के प्रेमी को जेल भिजवाया था. एडीजी की इस दोहरे मर्डर पर भी निगाह बनी हुई थी.

एडीजी प्रेमप्रकाश का निर्देश मिलते ही आईजी विनोद कुमार ने संभल के एसपी रविशंकर छवि और एएसपी पंकज कुमार पांडे के साथ मीटिंग कर इस केस को जल्द से जल्द खोलने के लिए कहा. इस के बाद तो थानाप्रभारी अनिल समानिया के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम इस केस को खोलने में जुट गई. उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया. 14 अप्रैल को चिमियावली गांव के चौकीदार रामरतन ने थानाप्रभारी अनिल समानिया को सटीक सूचना देते हुए कहा कि गांव के हिस्ट्रीशीटर कलुआ के घर 3-4 साल की एक लड़की आई हुई है. वह लड़की बारबार रोरो कर कहती है कि मुझे मेरी मम्मी से मिलवाओ. यह बात मुझे गांव की औरतों ने बताई है. उन औरतों में भी इस बात की चर्चा है कि कलुआ के परिवार में यह लड़की पता नहीं कहां से गई.

इतना सुनते ही थानाप्रभारी का माथा ठनका. उन के दिमाग में एक बात घूम गई कि उन दोनों के शवों के पास भी पुलिस को 1 छोटे बच्चे की एक जोड़ी चप्पलें मिली थीं. अनिल समानिया ने बगैर देर किए गांव चिमियावली का रुख किया. वह कलुआ के घर पहुंच गए. उन्हें वहां 4 साल की बच्ची दिखी. बच्ची के बारे में उन्होंने पूछा तो कलुआ ने बताया, ‘‘यह बच्ची मेरी खाला की लड़की है.’’

‘‘यह तुम्हारे पास क्यों है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, यह मेरी लड़की अरमाना के साथ गई है. कुछ दिन यहां रह कर अपने घर चली जाएगी.’’

कलुआ पहले बदमाश था. अब वह करीब 80 साल का बुजुर्ग था. उन्होंने सोचा कि शायद यह सच बोल रहा होगा. क्योंकि जवानी में चाहे कितना भी बड़ा अपराधी रहा हो, उम्र की इस ढलान पर आदमी सीधा सच ही चलता हैथानाप्रभारी ने घटनास्थल से जो छोटे बच्चे की चप्पलें बरामद की थीं उन्हें वह अपने साथ लाए थे. वह कार में रखी थीं. एसआई वीरेंद्र सिंह से उन्होंने चप्पलें मंगा कर उस बच्ची को दिखाईं तो वह उन चप्पलों को देख कर खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘यह चप्पलें तो मेरी है.’’ बच्ची फिर बोली, ‘‘मेरी मम्मी कहां हैं.’’

‘‘मम्मी गई, बाहर है.’’ अनिल समानिया ने कहा तो वह बच्ची अपनी मां को देखने के लिए बाहर की तरफ भागी. इस के बाद अनिल समानिया का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. वह कलुआ से बोले, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि इस उम्र में भी…’’ इतना सुनते ही कलुआ ने नजरें नीची कर लींवह बोला, ‘‘साहब, मजबूरी ऐसी गई थी कि मैं बेबस हो गया था. क्या बताऊं साहब यह सब करतूत मेरे दामाद वाहिद की है. यदि उस ने मेरी बेटी को धोखा दिया होता तो मुझे इस उम्र में यह सब करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता.’’ 

उस ने इस दोहरे हत्याकांड का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया मरने वाली महिला का नाम ममता था और दूसरा उस का 10 साल का बेटा करनपाल था. ममता उस के दामाद वाहिद की पहली पत्नी थी. इस बहुचर्चित केस के खुलने पर अनिल समानिया ने राहत की सांस ली और इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. केस खुलने की सूचना मिलते ही एसपी रविशंकर छवि थाने पहुंच गए. उन के सामने कलुआ से पूछताछ की गई तो पता चला कि ममता और उस के बेटे की हत्या में कलुआ के अलावा उस की पत्नी सूफिया, बेटी अरमाना, दामाद वाहिद और दामाद का भाई गुड्डू शामिल थे

पुलिस ने दबिश दी तो गुड्डू के अलावा सारे आरोपी गिरफ्त में गए. इन सभी से पूछताछ करने के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई वह दिल दहला देने वाली थी. ममता मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर के गांव लहराबल की मूल निवासी थी. उस के पिता अखबारों के हौकर थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा ममता एकलौती बेटी थी. उन की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन उसी दौरान वह हत्या के एक मामले में जेल चले गए. उसी दौरान उन की पत्नी का भी देहांत हो गया. ऐसे में ममता बेसहारा हो गई तब नातेरिश्तेदारों ने उस की देखभाल की.

ममता के पिता जब जमानत पर जेल से बाहर आए तो वह शाहजहांपुर से बेटी के साथ गाजियाबाद गए. यह बात करीब 12 साल पहले की है. पिता ने किराए का मकान ले कर मेहनतमजदूरी की. ममता भी जवान हो चुकी थी. इसी दौरान सुनील नाम के एक युवक से ममता की आंखें लड़ गईं. वक्त के साथ दोनों के प्यार के दरिया में बहुत आगे तक तैर चुके थे. बाद में उन्होंने शादी कर ली. सुनील टैक्सी ड्राइवर था. ममता के पिता इस शादी के खिलाफ थे. पर ममता ने उन की भावनाओं की कद्र नहीं की. सुनील के साथ गृहस्थी बसा कर वह खुश थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन गई. जिस में बड़ा बेटा करनपाल था और छोटी बेटी मंजू.

बेटी के फैसले से पिता इतने आहत हुए कि उन का भी देहांत हो गया. ममता के पति सुनील में भी बदलाव गया. वह शराब पीने लगा. ममता उसे पीने से मना करती तो वह उस से झगड़ा करता और पिटाई भी कर देता था. अब वह ममता पर शक करने लगा कि उस का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. पति के इस व्यवहार पर ममता भी तनाव में रहने लगी. फिर एक दिन ममता पर ऐसी विपत्ति आन पड़ी, जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी. जिस सुनील के लिए ममता ने अपने पिता तक को त्याग दिया था, एक दिन वही सुनील ममता और उस के दोनों बच्चों को छोड़ कर कहीं चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया.

ममता बेसहारा हो गई थी. अकेली औरत का वैसे भी लोग जीना मुश्किल कर देते हैं. ममता के पास तो 2 बच्चे भी थे. वह घर का खर्चा कहां से और कैसे चलाती. इस मोड़ पर फंस कर वह कई लोगों द्वारा छली गई. ममता ने भी हालात से समझौता कर लिया था. इसी बीच वह मेरठ में रहने वाले कलुआ नाम के औटो ड्राइवर के संपर्क में आईकलुआ के बराबर वाले मकान में वाहिद नाम का युवक रहता था. वाहिद भी आटो चलाता था. वह अविवाहित था इसलिए ममता ने उस के साथ ही गृहस्थी बसाने की सोच ली. वाहिद भी ममता को प्यार करता था. वह उस के साथ निकाह करने को तैयार हो गया

वाहिद ममता और उस के दोनों बच्चों को ले कर मेरठ से नोएडा गया. वहीं पर इसलाम धर्म के रीतिरिवाज से वाहिद ने ममता से निकाह कर लिया. इस से पहले ममता का नाम बदल कर शाहीन रख दिया गया था. बड़े बेटे करनपाल का नाम बदल कर समीर लड़की मंजू का नाम जैनब रख दिया था.  लवाहिद का भाई गुड्डू ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में रहता था, जो वेल्डिंग का काम करता था. वाहिद, ममता और उस के बच्चे को ले कर वहीं पर पहुंच गया. वह सब रहने लगे. वाहिद आटो चलाने गाजियाबाद चला जाता था, जबकि ममता ग्रेटर नोएडा के फ्लैटों में साफसफाई का काम करने निकल जाती थी. दोनों की कमाई से घर ठीकठाक चल रहा था

वाहिद और ममता की शादी की बात सिर्फ गुड्डू ही जानता था. इस के अलावा वाहिद के घर के किसी भी सदस्य को पता नहीं था कि वाहिद ने 2 बच्चों की मां से शादी कर ली है. वाहिद मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की तहसील बिसौली के गांव भमौरी का रहने वाला था. वाहिद  ने उस का नाम शाहीन जरूर रख दिया था, लेकिन वह उसे ममता के नाम से ही बुलाता था. एक दिन वाहिद ने ममता उर्फ शाहीन से कहा, ‘‘ममता यहां ग्रेटर नोएडा में महंगाई ज्यादा है. ऐसा करते हैं कि हम लोग उधर ही चलते हैं. वहां गांव में मेरा अपना घर है, जमीनजायदाद भी है, मैं वहीं आटो चला लूंगा.’’

ममता उर्फ शाहीन ने पति वाहिद की बात पर कोई एतराज नहीं किया. इस पर वाहिद ममता और दोनों बच्चों को ले कर बिसौली के नजदीक चंदौसी शहर पहुंच गया. चंदौसी के मोहल्ला वारिश नगर में उस ने एक मकान किराए पर ले लिया. यह करीब 6 महीने पहले की बात है. चूंकि चंदौसी से उस का गांव भी नजदीक ही था, इसलिए वह अकेला अपने मांबाप से मिलने गांव भी जाता रहता था. उसी दौरान वाहिद के घर वालों ने संभल जिले के गांव चिमियावली के रहने वाले कलुआ की बेटी अरमाना से उस का रिश्ता तय कर दिया. उस समय वाहिद ने घर वालों को यह तक बताने की हिम्मत नहीं की थी कि उस ने शादी कर रखी है. रिश्ता तय होने के बाद वह कईकई दिन अपने गांव में रुक कर आता

ममता ने इस बात पर कभी चर्चा तक नहीं की कि वह इतने दिन गांव में क्यों रुकता है. ही उसे उस की शादी तय होने की कोई भनक लगी. वह तो उस पर अटूट विश्वास करती थी. आननफानन में वाहिद का अरमाना से निकाह भी हो गया. इस के बावजूद ममता अनभिज्ञ बनी रही. जब वाहिद हफ्ता दो हफ्ता बाद ममता के पास लौटता तो वह कह देता कि वह मुरादाबाद में रह कर आटो चला रहा है, इसलिए वहीं रुक जाता है. वह ममता को खर्च के पैसे देता रहता थाएक दिन ममता अचानक ही अपने दोनों बच्चों को ले कर वाहिद के गांव भमौरी पहुंच गई. भमौरी गांव चंदौसी के पास ही थी. वहां पर ममता को पता चला कि उस के पति ने उसे धोखे में रख कर संभल की एक लड़की से निकाह कर लिया है

यह जानकारी मिलते ही ममता आगबबूला हो गई. उस ने गांव में हंगामा करना शुरू कर दिया. उस ने पूरे गांव वालों को बताया कि मैं वाहिद की निकाह की हुई बीवी हूं. ससुराल में पहला हक मेरा बनता है. मुझ से तलाक लिए बगैर उस ने दूसरी शादी कैसे कर ली. इतना ही नहीं ममता ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी भी दी. उस के हंगामे से पूरा गांव जमा हो गया. इस मामले में गलती वाहिद की ही थी पर ममता के थाने जाने के बाद बात बढ़ने की संभावना थी. इसलिए परिवार वालों ने गांव वालों के सहयोग से ममता को समझाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि वाहिद की दूसरी पत्नी के साथ वह भी रह सकती है. उसे घर में रहने के लिए जगह दे दी जाएगी

गांवदेहात में जानवरों के बांधने और उन का चारा रखने की जगह को घेर कहते हैं. ममता को अपना और बच्चों का पेट भरना था, इसलिए वह घेर में रहने के लिए तैयार हो गई. वह वहीं रहने लगी पर वाहिद की दूसरी पत्नी अरमाना को ममता का वहां रहना नागवार लगता था. वह ममता को एक पल भी देखना पसंद नहीं करती थी. जिस की वजह से वाहिद और अरमाना में झगड़ा रहने लगा. रोजाना के झगड़ों से तंग कर अरमाना अपने मायके चिमियावली चली गई. वाहिद कई बार अरमाना को लाने के लिए अपनी ससुराल गया लेकिन अरमाना उस के घर वालों ने साफ मना कर दिया था कि जब तक ममता वहां रहेगी अरमाना यहां से नहीं जाएगी.

वाहिद ने कहा कि ठीक है, वह ममता को चंदौसी में किराए पर लिए कमरे पर पहुंचा देगा. वैसे भी ममता उस से कह भी रही थी कि उसे यहां तबेले में रहना अच्छा नहीं लगता. लेकिन अरमाना इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस ने पति वाहिद से साफ कह दिया था कि जब तक ममता और उस के बच्चे जीवित रहेंगे वह ससुराल नहीं जाएगी. उसे उन तीनों के मरने का सबूत भी चाहिए. यानी जिस दिन वह उन के कटे हुए सिर उसे दिखा देगा वह उस के साथ चली चलेगी. पत्नी की इस जिद पर वाहिद परेशान हो गया. तब उस के ससुर कलुआ और सास सूफिया ने उसे समझाते हुए कहा कि यह कोई बहुत बड़ा काम नहीं है. थोड़े दिमाग से काम लोगे तो बड़ी आसानी से हो जाएगा. तुम किसी तरह ममता और उस के बच्चों को यहां लाओ, बाकी काम हम देख लेंगे.

उस के बाद वाहिद अपने गांव भमौरी लौट आया. वह ममता को ठिकाने लगाने का प्लान बनाने लगा. अपने प्लान में उस ने अपने भाई गुड्डू को भी शामिल कर लिया था. अपनी योजना से उस ने अपने ससुर कलुआ को भी  अवगत करा दिया. वाहिद की सास सूफिया ने इस के लिए बड़े छुरे का इंतजाम कर लियायोजना के मुताबिक 17 मार्च, 2018 की शाम वाहिद ममता और उस के बच्चों को ले कर भमौरी से बस द्वारा संभल पहुंच गया. गुड्डू भी उस के साथ था. वाहिद ने ममता को बताया था कि उस के दोस्त के यहां दावत है. संभल से वह लोग आटो में चिमियावली गांव के लिए बैठे. रास्ते में वाहिद ममता और बच्चों के साथ आटो से उतर गया और कहा कि अब शौर्टकट से पैदल चलते हैं, जल्दी पहुंच जाएंगे. ममता उस की साजिश से अनजान थी. वह गेहूं के खेत के किनारे के संकरे रास्ते से चलने लगा

पैदल चलने पर ममता के पेट में दर्द हुआ तो वाहिद ने पहले से अपने साथ लाई नशे की गोलियों में से एक गोली ममता को खिला दी. कुछ देर में जब ममता बेहोशी की हालत में गई तो वाहिद ने अपने ससुर कलुआ को आवाज दे कर बुला लिया. कलुआ खेत में छिपा बैठा था. जब ममता निढाल हो कर जमीन पर गिर गई तो गुड्डू, कलुआ और वाहिद ने मिल कर ममता का गला काट कर धड़ से सिर अलग कर दिया. उस समय उस का 10 वर्षीय बेटा करन वहीं खड़ा था. वह डर की वजह से वहां से भागा तो वाहिद ने उसे पकड़ लिया. उन लोगों ने उस बच्चे का भी गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. ममता के हाथ पर उस का नाम गुदा हुआ था. पहचान मिटाने के लिए वाहिद ने हाथ की वह खाल ही काट कर अलग कर दी जहां नाम लिखा था

उसी दौरान ममता की 4 वर्षीय बेटी मंजू वाहिद की टांगों से चिपकी खड़ी थी. वह कह रही थी कि पापा चलो भूख लग रही है. पापा मुझे टौफी दिलवाओ. वैसे भी वाहिद रोजाना मंजू के लिए टौफी ले कर आता था. वाहिद सब से ज्यादा प्यार मंजू को ही करता था. वाहिद जब मंजू को भी मारने चला तो कलुआ ने कहा, नहीं यह नासमझ है. इस को हम लोग पाल लेंगे. इस ने क्या बिगाड़ा है. वाहिद ने जेब से बड़ी पालिथिन थैली निकाल कर दोनों के सिर उस में रख लिए और अपनी ससुराल चिमियावली गया. वहां पर वाहिद ने अपनी सास सूफिया पत्नी अरमाना को कटे सिर दिखाए. सिर देखने पर उन्हें उन के मरने का यकीन हुआ. इस के बाद वह उन दोनों सिरों को गांव के नजदीक बहने वाली सोत नदी के किनारे रेत में अलगअलग दबा आया

पुलिस ने वाहिद, कलुआ, अरमाना, सूफिया को गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना पर एडीजी प्रेमप्रकाश भी बरेली से संभल पहुंच गए. प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर उन्होंने इस सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर पत्रकारों को जानकारी दी. बाद में पुलिस ने सभी अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक गुड्डू की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों आधारित

एनिवर्सरी पर पत्नी ने पति को बालकनी से फेंका

प्रेमिका सोफिया के लिए डिसिल्वा अपनी पैसे वाली पत्नी मैरी को जिस तरह मारना चाहता था, ठीक उसी तरह मैरी ने उसे ही ठिकाने लगा कर शिकारी को ही शिकार बना डाला सुबह नहाधो कर मैरी बाथरूम से निकली तो उस की दमकती काया देख कर डिसिल्वा खुद को रोक नहीं पाया और लपक कर उसे बांहों में भर कर बेतहाशा चूमने लगा. मैरी ने मोहब्बत भरी अदा के साथ खुद को उस के बंधन से आजाद किया और कमर मटकाते हुए किचन की ओर बढ़ गई. उस के होंठों पर शोख मुसमान थी. थोड़ी देर में वह किचन से बाहर आई तो उस के हाथों में कौफी से भरे 2 मग थे. एक मग डिसिल्वा को थमा कर वह उस के सामने पड़े सोफे पर बैठ गई

डिसिल्वा कौफी का आनंद लेते हुए अखबार पढ़ने लगा. उस की नजर अखबार में छपी हत्या की एक खबर पर पढ़ी तो तुरंत उस के दिमाग यह बात कौंधी कि वह अपनी बीवी मैरी की हत्या किस तरह करे कि कानून उस का कुछ बिगाड़ सके. वह ऐसा क्या करे कि मैरी मर जाए और वह साफ बच जाए. वह उस कहावत के हिसाब से यह काम करना चाहता था कि सांप भी मर जाए और लाठी भी टूटे. डिसिल्वा ने 2 साल पहले ही मैरी से प्रेमविवाह किया था. अब उसे लगने लगा था कि मैरी ने उस पर जो दौलत खर्च की है, उस के बदले उस ने उस से अपने एकएक पाई की कीमत वसूल कर ली है. अब उसे अपनी सारी दौलत उस के लिए छोड़ कर मर जाना चाहिए, क्योंकि उस की प्रेमिका सोफिया अब उस का और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकती. वह खुद भी उस से ज्यादा दिनों तक दूर नहीं रह सकता.

लेकिन यह कमबख्त मैरी रास्ते का रोड़ा बनी हुई है. इस रोड़े को हटाए बगैर सोफिया उस की कभी नहीं हो सकेगी. लेकिन इस रोड़े को हटाया कैसे जाए? डिसिल्वा मैरी को ठिकाने लगाने के बारे में सोचते हुए इस तरह डूब गया कि कौफी पीना ही भूल गया. डिसिल्वा को सोच में डूबा देख कर मैरी बोली, ‘‘तुम कहां खोए हो कि कौफी पीना भी भूल गए. तुम्हारी कौफी ठंडी हो रही है. और हां, हमारी बालकनी के एकदम नीचे एक गुलाब खिल रहा है. जरा देखो तो सही, कितना खूबसूरत और दिलकश लग रहा है. शाम तक वह पूरी तरह खिल जाएगा. सोच रही हूं, आज शाम की पार्टी में उसे ही अपने बालों में लगाऊं. डार्लिंग, आज हमारी मैरिज एनवरसरी है, तुम्हें याद है ना?’’

‘‘बिलकुल याद है. और हां, गुलाब कहां खिल रहा है?’’ डिसिल्वा ने मैरी की आंखों में शरारत से झांकते हुए हैरानी से पूछा.

‘‘बालकनी के ठीक नीचे जो गमला रखा है, उसी में खिल रहा है.’’ मैरी ने कहा.

बालकनी के ठीक नीचे गुलाब खिलने की बात सुन कर डिसिल्वा के दिमाग में तुरंत मैरी को खत्म करने की योजना गई. उस ने सोचा, शाम को वह गुलाब दिखाने के बहाने मैरी को बालकनी तक ले जाएगा और उसे नीचे खिले गुलाब को देखने के लिए कहेगा. मैरी जैसे ही झुकेगी, वह जोर से धक्का देगा. बस, सब कुछ खत्म. मैरी बालकनी से नीचे गमलों और रंगीन छतरियों के बीच गठरी बनी पड़ी होगी. इस के बाद वह एक जवान गमजदा पति की तरह रोरो कर कहेगा, ‘हाय, मेरी प्यारी बीवी, बालकनी से इस खूबसूरत गुलाब को देखने के लिए झुकी होगी और खुद को संभाल पाने की वजह से नीचे गई.’

अपनी इस योजना पर डिसिल्वा मन ही मन मुसकराया. उसे पता था कि शक उसी पर किया जाएगा, क्योंकि बीवी की इस अकूत दौलत का वही अकेला वारिस होगा. लेकिन उसे अपनी बीवी का धकेलते हुए कोई देख नहीं सकेगा, इसलिए यह शक बेबुनियाद साबित होगा. सड़क से दिखाई नहीं देगा कि हुआ क्या था? जब कोई गवाह ही नहीं होगा तो वह कानून की गिरफ्त में कतई नहीं सकेगा. इस के बाद पीठ पीछे कौन क्या सोचता है, क्या कहता है, उसे कोई परवाह नहीं है. डिसिल्वा इस बात को ले कर काफी परेशान रहता था कि सोफिया एक सस्ते रिहाइशी इलाके में रहती थी. वैसे तो उस की बीवी मैरी बहुत ही खुले दिल की थी. वह उस की सभी जरूरतें बिना किसी रोकटोक के पूरी करती थी. तोहफे देने के मामले में भी वह कंजूस नहीं थी, लेकिन जेब खर्च देने में जरूर आनाकानी करती थी. इसीलिए वह अपनी प्रेमिका सोफिया पर खुले दिल से खर्च नहीं कर पाता था

सोफिया का नाम दिमाग में आते ही उसे याद आया कि 11 बजे सोफिया से मिलने जाना है. उस ने वादा किया था, इसलिए वह उस का इंतजार कर रही होगी. अब उसे जाना चाहिए, लेकिन घर से बाहर निकलने के लिए वह मैरी से बहाना क्या करे? बहाना तो कोई भी किया जा सकता है, हेयर ड्रेसर के यहां जाना है या शौपिंग के लिए जाना है. वैसे शौपिंग का बहाना ज्यादा ठीक रहेगा. आज उस की शादी की सालगिरह भी है. इस मौके पर उसे मैरी को कोई तोहफा भी देना होगा. वह मैरी से यही बात कहने वाला था कि मैरी खुद ही बोल पड़ी, ‘‘इस समय अगर तुम्हें कहीं जाना है तो आराम से जा सकते हो, क्योंकि मैं होटल डाआर डांसिंग क्लास में जा रही हूं. आज मैं लंच में भी नहीं सकूंगी, क्योंकि आज डांस का क्लास देर तक चलेगा.’’

‘‘तुम और यह तुम्हारी डांसिंग क्लासमुझे सब पता है.’’ डिसिल्वा ने मैरी को छेड़ते हुए कहा, ‘‘मुझे लगता है, तुम उस खूबसूरत डांसर पैरी से प्यार करने लगी हो, आजकल तुम उसी के साथ डांस करती हो ?’’

‘‘डियर, मैं तो तुम्हारे साथ डांस करती थी और तुम्हारे साथ डांस करना मुझे पसंद भी था. लेकिन शादी के बाद तो तुम ने डांस करना ही छोड़ दिया.’’ मैरी ने कहा.

‘‘आह! वे भी क्या दिन थे.’’ आह भरते हुए डिसिल्वा ने छत की ओर देखा. फिर मैरी की आंखों में आंखें डाल कर पूछा, ‘‘तुम्हें जुआन के यहां वाली वह रात याद है , जब हम ने ब्लू डेनूब की धुन पर एक साथ डांस किया था?’’ 

डिसिल्वा ने यह बात मैरी से उसे जज्बाती होने के लिए कही थी. क्योंकि उस ने तय कर लिया था कि अब वह उस के साथ ज्यादा वक्त रहने वाली नहीं है. इसलिए थोड़ा जज्बाती होने में उसे कोई हर्ज नहीं लग रहा था.

‘‘मैं वह रात कैसे भूल सकती हूं. मुझे यह भी याद है कि उस रात तुम ने अपना इनाम लेने से मना कर दिया था. तुम ने कहा था, ‘हम अपने बीच रुपए की कौन कहे, उस का ख्याल भी बरदाश्त नहीं कर सकते.’ तुम्हारी इस बात पर खुश हो कर मैं ने तुम्हारा वह घाटा पूरा करने के लिए तुम्हें सोने की एक घड़ी दी थी, याद है तुम्हें?’’

‘‘इतना बड़ा तोहफा भला कोई कैसे भूल सकता है.’’ डिसिल्वा ने कहा. इस के बाद डिसिल्वा सोफिया से मिलने चला गया तो मैरी अपने डांस क्लास में चली गई. डिसिल्वा सोफिया के यहां पहुंचा. चाय पीने के बाद आराम कुर्सी पर सोफिया को गोद में बिठा कर डिसिल्वा ने उसे अपनी योजना बताई. सोफिया ने उस के गालों पर एक चुंबन जड़ते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, आप का भी जवाब नहीं. बस आज भर की बात है, कल से हम एक साथ रहेंगे.’’

दूसरी ओर होटल डाआर में मैरी पैरी की बांहों में सिमटी मस्ती में झूम रही थी. वह अपने पीले रंग के बालों वाले सिर को म्यूजिक के साथ हिलाते हुए बेढं़गे सुरों में पैरी के कानों में गुनगुना रही थी. पैरी ने उस की कमर को अपनी बांहों में कस कर कहा, ‘‘शरीफ बच्ची, इधरउधर के बजाए अपना ध्यान कदमों पर रखो. म्यूजिक की परवाह करने के बजाए बस अपने पैरों के स्टेप के बारे में सोचो.’’

‘‘मैं तुम्हारे साथ डांस कर रही होऊं तो तुम मुझ से इस तरह की उम्मीद कैसे कर सकते हो? फिर यह क्या मूर्खता है, तुम मुझे बच्ची क्यों कह रहे हो?’’

‘‘बच्ची नहीं तो और क्या हो तुम?’’ पैरी ने कहा, ‘‘एक छोटी सी शरीफ, चंचल लड़की, जो अपने अभ्यास पर ध्यान देने के बजाए कहीं और ही खोई रहती है. अच्छा आओ, अब बैठ कर यह बताओ कि रात की बात का तुम ने बुरा तो नहीं माना? रात को मैं ने तुम्हारे पैसे लेने से मना कर दिया था ना. इस की वजह यह थी कि मैं इस खयाल से भी नफरत करता हूं कि हमारी दोस्ती के बीच पैसा आए.’’

‘‘मैं ने बिलकुल बुरा नहीं माना. उसी कसर को पूरा करने के लिए मैं तुम्हारे लिए यह प्लैटिनम की घड़ी लाई हूं, साथ में चुंबनों की बौछार…’’ कह कर मैरी पैरी के चेहरे को अपने चेहरे से ढक कर चुंबनों की बौछार करने लगी. डिसिल्वा ने मैरी को तोहफे में देने के लिए हीरे की एक खूबसूरत, मगर सेकेंड हैंड क्लिप खरीदी थी. उस के लिए इतने पैसे खर्च करना मुश्किल था, लेकिन उस ने हिम्मत कर ही डाली थी. क्योंकि बीवी के लिए उस का यह आखिरी तोहफा था. फिर मैरी की मौत के बाद यह तोहफा सोफिया को मिलने वाला था. जो आदमी अपनी बीवी की शादी की सालगिरह पर इतना कीमती तोहफा दे सकता है, उस  पर अपनी बीवी को कत्ल करने का शक भला कौन करेगा?

डिसिल्वा ने हीरे की क्लिप मैरी को दी तो वाकई वह बहुत खुश हुई. वह  नीचे पार्टी में जाने को तैयार थी. उस ने डिसिल्वा का हाथ पकड कर बालकनी की ओर ले जाते हुए कहा, ‘‘आओ डार्लिंग, तुम भी देखो वह गुलाब कितना खूबसूरत लग रहा है. ऐसा लग रहा है, कुदरत ने उसे इसीलिए खिलाया है कि मैं उसे अपने बालों में सजा कर सालगिरह की पार्टी में शिरकत करूं.’’ डिसिल्वा के दिल की धड़कन बढ़ गई. उसे लगा, कुदरत आज उस पर पूरी तरह मेहरबान है. मैरी खुद ही उसे बालकनी की ओर ले जा रही है. सब कुछ उस की योजना के मुताबिक हो रहा है. किसी की हत्या करना वाकई दुनिया का सब से आसान काम है.

डिसिल्वा मैरी के साथ बालकनी पर पहुंचा. उस ने झुक कर नीचे देखा. उसे झटका सा लगा. उस के मुंह से चीख निकली. वह हवा में गोते लगा रहा था. तभी एक भयानक चीख के साथ सब कुछ  खत्म. वह नीचे छोटीछोटी छतरियों के बीच गठरी सा पड़ा था. उस के आसपास भीड़ लग गई थी. लोग आपस में कह रहे थे, ‘‘ओह माई गौड, कितना भयानक हादसा है. पुलिस को सूचित करो, ऐंबुलेंस मंगाओ. लाश के ऊपर कोई कपड़ा डाल दो.’’ थोड़ी देर में पुलिस गई.

दूसरी ओर फ्लैट के अंदर सोफे पर हैरानपरेशान उलझे बालों और भींची मुट्ठियां लिए, तेजी से आंसू बहाते हुए मैरी आसपास जमा भीड़ को देख रही थी. लोगों ने उसे दिलासा देते हुए इस खौफनाक हादसे के बारे में पूछा तो मैरी ने रोते हुए कहा, ‘‘मेरे खयाल से वह गुलाब देखने के लिए बालकनी से झुके होंगे, तभी…’’ कह कर मैरी फफक फफक कर रोने लगी.

 

एकतरफा प्रेमी ने प्रेमिका के पति को छत से फेंका

सतनाम सिंह प्रतिभा से एकतरफा प्यार करता था. उस का यह सिरफिरापन प्रतिभा की शादी के बाद भी खत्म नहीं हुआ. जिस के चलते प्रतिभा के पति उदयवीर की हत्या हो गई और सतनाम को उम्रकैद. बेचारी प्रतिभा…   

त्ल का मुकदमा चल रहा हो तो उस का फैसला जानने के लिए काफी लोग उत्सुक रहते हैं. 12 मार्च, 2018 को चंडीगढ़ के सेशन जज बलबीर सिंह की अदालत के भीतरबाहर तमाम लोग एकत्र थे. वजह यह थी कि उन की अदालत में चल रहा कत्ल का एक मुकदमा अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंचा था. लोग इस केस का फैसला सुनने को बेकरार थे. इस केस की शुरुआत कुछ यूं हुई थी. उस दिन किसी केस की छानबीन के सिलसिले में चंडीगढ़ के थाना सेक्टर-31 की महिला एसएचओ जसविंदर कौर अपने औफिस में मौजूद थीं. रात में ही करीब 45 वर्षीय शख्स ने कर उन से कहा, ‘‘मैडम, मेरा नाम दुर्गपाल है और मैं रामदरबार इलाके के फेज-2 के मकान नंबर 2133 में रहता हूं.’’

‘‘जी बताइए, थाने में कैसे आना हुआ, वह भी इस वक्त?’’ इंसपेक्टर जसविंदर कौर ने उस व्यक्ति को गौर से देखते हुए पूछा.

‘‘ऐसा है मैडमजी,’’ खुद को दुर्गपाल कहने वाले शख्स ने बताना शुरू किया, ‘‘हम 4 भाई हैं और मैं सब से बड़ा हूं. मेरी मां शारदा देवी मेरे से छोटे भाई राजबीर के साथ ग्राउंड फ्लोर पर रहती हैं. फर्स्ट फ्लोर पर मेरा सब से छोटा भाई विजय रहता है. मैं और तीसरे नंबर का भाई उदयवीर अपनीअपनी फैमिली के साथ टौप फ्लोर पर रहते हैं.’’

‘‘ठीक है, आप समस्या बताइए.’’

‘‘मैडम, हमारे घर के टौप फ्लोर पर 4 कमरे हैं. वहां सीढि़यों की तरफ वाले 2 कमरे मेरे पास हैं और उस के आगे वाले 2 कमरे मेरे भाई उदयवीर के पास.’’

‘‘आप के मकान और कमरों की बात तो हो गई, वह बताइए जिस के लिए आप को थाने आना पड़ा?’’ थानाप्रभारी जसविंदर कौर ने अपना लहजा थोड़ा बदला. लेकिन उस शख्स ने जैसे कुछ सुना ही नहीं.

उस ने अपनी बात बेझिझक जारी रखी, ‘‘मेरा भाई उदयबीर अपनी पत्नी प्रतिभा के साथ रहता था. दोनों की शादी को अभी कुल डेढ़ साल हुआ है. 10 जून, 2017 को मेरे पिता जंडियाल सिंह की मौत हो गई थी. कल मैं और मेरे तीनों भाई कुछ रिश्तेदारों के साथ हरिद्वार में पिताजी की अस्थियों का विसर्जन कर के रात करीब साढ़े 8 बजे घर लौटे थे.’’

‘‘आगे बताइए,’’ अब इंसपेक्टर जसविंदर कौर ने दुर्गपाल की बात में रुचि लेते हुए कहा.

‘‘हम लोग थकेहारे थे. घर कर खाना खाने के बाद सो गए थे. मैं घर के टौप फ्लोर पर बने कमरों के आगे गैलरी में सो रहा था. रात के एक बजे जब मैं गहरी नींद में था, तभी शोरशराबा सुन कर अचानक मेरी आंखें खुल…’’ दुर्गपाल की बात अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि इंसपेक्टर जसविंदर कौर ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया. दरअसल, थानाप्रभारी के लिए कंट्रोलरूम से फोन आया था. इंसपेक्टर जसविंदर ने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से पीसीआर कांस्टेबल ओमप्रकाश था.

उस ने कहना शुरू किया, ‘‘मैडम, रामदरबार इलाके से किसी के छत से गिराने की काल आई है. मौके पर पहुंच कर पता चला कि छत से गिरने वाले को अस्पताल ले जाया चुका था, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. उसे गिराने वाला फरार है. शुरुआती छानबीन में ही मामला कत्ल का लग रहा है, जिस के पीछे की वजह इश्क हो सकती है. केस आप के ही इलाके का है.’’

‘‘मरने वाले और मारने वाले के नाम वगैरह के बारे में पता चला?’’ इंसपेक्टर जसविंदर ने पूछा.

‘‘जी मैडम, सब पता कर लिया है. मरने वाले का नाम उदयवीर है और उसे छत से गिरा कर मारा है उस की पत्नी के कथित प्रेमी सतनाम ने.’’

‘‘ओके, तुम लोग अभी वहीं रुको, मैं पहुंचती हूं वहां.’’ कहते हुए इंसपेक्टर जसविंदर ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया. उन्होंने सामने बैठे दुर्गपाल की ओर देख कर पूछा, ‘‘आप के भाई उदयवीर को सतनाम नामक शख्स ने छत से नीचे गिरा कर मार दिया और आप…’’

‘‘जी मैडम.’’ इंसपेक्टर जसविंदर की बात पूरी होने से पहले ही दुर्गपाल ने कहा.

‘‘तुम वहां रुकने के बजाय थाने चले आए?’’

‘‘मैडम, मैं ने तुरंत 100 नंबर पर फोन कर के घटना के बारे में बता दिया था. साथ ही आटोरिक्शा से भाई को सेक्टर-32 के सरकारी अस्पताल में पहुंचा भी दिया था. फिर यह सोच कर कि इस तरीके से पुलिस पता नहीं कब पहुंचेगी, मैं अपने दूसरे भाइयों को वहीं रुके रहने को बोल कर थाने चला आया.’’

‘‘कोई बात नहीं, पुलिस ने वहां पहुंच कर अपनी काररवाई शुरू कर दी है. तुम भी चलो हमारे साथ.’’

इस के बाद इंसपेक्टर जसविंदर कौर सबइंसपेक्टर राजवीर सिंह और सिपाही प्रमोद नवीन के अलावा दुर्गपाल सिंह को साथ ले कर सरकारी गाड़ी से रामदरबार की ओर रवाना हो गईं. घटनास्थल पर काफी भीड़ एकत्र थी. पीसीआर वाले भी वहीं थे. उन से जरूरी जानकारी लेने के बाद उन्हें वहां से रुखसत कर दिया गया. साथ ही सिपाही नवीन को वहां तैनात कर के इंसपेक्टर जसविंदर कौर अन्य लोगों के साथ सेक्टर-32 के सिविल अस्पताल चली गईं. वहां उदयवीर को पहले ही मृत घोषित किया जा चुका था. थाना पुलिस ने अपनी आगे की काररवाई शुरू कर दी. एसआई राजबीर सिंह शव का पंचनामा बनाने लगे और जसविंदर कौर ने दुर्गपाल से उस की तहरीर ले कर एफआईआर दर्ज करवाने की प्रक्रिया शुरू कर दी.

दुर्गपाल ने अपनी तहरीर के शुरुआती हिस्से में वही सब दोहराया, जो वह पहले ही थाने में थानाप्रभारी जसविंदर कौर को बता चुका था. आगे उस ने जो कुछ बताया, वह कुछ इस तरह था

शोरशराबा सुन कर जब मेरी आंखें खुलीं तो मैं ने देखा कि बहलाना में रहने वाला एक लड़का सतनाम सिंह अपने हाथ में बेसबाल बैट पकड़े मेरे भाई उदयवीर से लड़ता हुआ छत पर जा पहुंचा थावह उदयवीर से मारपीट करते हुए उसे घसीट कर छत पर ले गया था. बीचबीच में उदयवीर भी उस का मुकाबला करने का प्रयास करते हुए उस पर हाथपैर से वार कर रहा था. यह सब देख मैं भी तेजी से उन के पीछे छत पर चला गया. तब तक वे दोनों लड़ते हुए कौर्नर के मकानों की छत पर जा पहुंचे थे. ऐसा इसलिए था कि हमारी लाइन के मकानों बैकसाइड वाले मकानों की छतें आपस में मिली हुई हैं

जिस वक्त वे दोनों लड़ते हुए मकान नंबर 2088 की छत पर पहुंचे तो मैं भी उन्हें छुड़ाने के लिए वहां जा पहुंचा. अभी मैं उन से थोड़े फासले पर था, जब मेरे कानों में सतनाम की आवाज पड़ी. वह मेरे भाई से कह रहा था कि प्रतिभा हमेशा से उस की प्रेमिका रही है, उसे मजबूरी में उस से शादी करनी पड़ी थी. अब वह उसे आजाद कर दे, वरना वह उस की (मेरे भाई उदयवीर की) जान ले लेगा. इस से पहले कि मैं भाई की मदद के लिए उस के पास पहुंच पाता, वह दीवार के एक कोने की तरफ हुआ और तभी सतनाम ने मौका देख कर उसे धक्का दे कर नीचे गिरा दिया. सतनाम सिंह ने मेरे भाई की पत्नी प्रतिभा के साथ लव अफेयर के चलते मेरे भाई को रास्ते से हटाने के लिए जान से मार दिया. उस के खिलाफ मामला दर्ज कर के सख्त काररवाई की जाए.

उसी रोज यह प्रकरण थाना सेक्टर-31 में भादंवि की धाराओं 302 एवं 456 के तहत दर्ज हो गया. यह 14 जून, 2017 की बात है. मौके की अन्य काररवाइयां पूरी कर के थाने लौटने के बाद पुलिस ने सतनाम सिंह को काबू करने की योजनाएं बनानी शुरू कीं. वारदात को अंजाम देने के बाद वह मौके से फरार होने में सफल हो गया था. लेकिन अपराध कर के भागने के 8 घंटे के भीतर ही पुलिस ने एक गुप्त सूचना के आधार पर उसे गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन अदालत से उस का कस्टडी रिमांड हासिल कर के उस से विस्तार से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में उस ने बताया कि वह चंडीगढ़ के गांव बहलाना के मकान नंबर 74 का रहने वाला था. यहीं की रहने वाली लड़की प्रतिभा से उसे प्यार हो गया था. मगर यह एकतरफा प्यार था, जिस में प्रतिभा ने कभी कोई रुचि नहीं दिखाई थी.

सतनाम सिंह ने उसे अपनी प्रेमिका घोषित करते हुए उस का पीछा नहीं छोड़ा था. इस से प्रतिभा खुद तो परेशान थी ही, उस के घर वाले भी फिक्रमंद होने लगे थे. उन के मन में यह भय समा गया था कि कहीं सतनाम उन की बेटी को उठा ले जाए. इस की वजह यह भी थी कि सतनाम अपराधी किस्म का लड़का था. आखिर प्रतिभा के घर वालों ने रामदरबार के रहने वाले उदयवीर से उस की शादी कर दी. सतनाम के बताए अनुसार प्रतिभा के घर वालों का डर एकदम सही निकला. वह वाकई उन की लड़की को अपहृत करने के प्रयास में था. यह अलग बात है कि अभी तक उसे सफलता नहीं मिल पाई थी. प्रतिभा की शादी के बाद तो उस के लिए यह काम और भी मुश्किल हो गया था.

देखतेदेखते इस शादी को डेढ़ साल गुजर गया. लेकिन सतनाम इस बीच प्रतिभा को भूल नहीं पाया. इस बीच उस ने एक दुस्साहस भरा काम यह भी किया कि उदयवीर से मिल कर उस से सीधे ही कह दिया, ‘‘प्रतिभा मेरी प्रेमिका थी और हमेशा रहेगी. तुम ने उस की मजबूरी का फायदा उठा कर उस की इच्छा के विरुद्ध शादी की है. तुम्हारी भलाई इसी में है कि उस से तलाक ले कर उसे मेरे हवाले कर दो, वरना मुझे तुम्हारा खून करना पड़ेगा.’’

उदयवीर ने इस बारे में अपने भाइयों को भी बताया और प्रतिभा से भी बात की. प्रतिभा ने पति को समझाया कि उस का सतनाम से प्रेमप्यार जैसा कभी कोई रिश्ता नहीं था. वह उस के पीछे पड़ कर नाहक उसे परेशान करता था. इस पर उदयवीर ने सतनाम को फोन कर के उसे लताड़ दिया. बकौल सतनाम उस ने भी तय कर लिया कि आगे उसे कुछ भी करना पड़े, वह प्रतिभा को उठा ले जाएगा. बस, मौका मिलने भर की देर थी. यह मौका भी उसे जल्दी ही मिल गया. उदयवीर के पिता का देहांत हो गया और उन की अस्थियों को गंगा में विसर्जित करने उसे अपने भाइयों परिजनों के साथ हरिद्वार जाना पड़ा.

सतनाम ने पुलिस को बताया कि उसे 13 जून, 2017 की रात में प्रतिभा के घर पर अकेली होने की जानकारी मिली. आधी रात के बाद वह घर के पिछवाड़े से उस के पास जा पहुंचा. वहां जा कर देखा तो उस का पति भी उस की बगल में लेटा था. लेकिन सतनाम ने परवाह नहीं की और प्रतिभा के मुंह पर हाथ रख कर उसे कंधे पर लाद लिया. जब वह प्रतिभा को ले जाने लगा तो उदयवीर की आंखें खुल गईं. वह सतनाम पर झपटा तो प्रतिभा उस की पकड़ से छूट गई. इस के बाद सतनाम और उदयवीर गुत्थमगुत्था हो गए. संभव था कि उदयवीर सतनाम पर हावी हो जाता और इस बीच उस के परिजन भी उस की मदद को जाते. लेकिन पता नहीं कैसे वहां पड़ा बेसबाल बैट सतनाम के हाथ लग गया और वह उसी से उदयवीर को पीटते हुए छत पर ले गया. वहां से सतनाम ने उसे नीचे गिरा दिया. वह मुंह के बल कर गिरा था.

सेक्टर-32 के सिविल अस्पताल के डा. मंडर रामचंद सने डा. गौरव कुमार ने उदयवीर के शव का पोस्टमार्टम किया. उन्होंने उस के जिस्म पर छोटीबड़ी 10 चोटों का उल्लेख करते हुए मौत का कारण मानसिक आघात और फेफड़ों का बायां हिस्सा नष्ट होना बताया. खैर, कस्टडी रिमांड की अवधि समाप्त होने पर पुलिस ने सतनाम को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में बुड़ैल जेल भेज दिया गया. इस के बाद समयावधि के भीतर उस के विरुद्ध आरोपपत्र तैयार कर 8 गवाहों की सूची के साथ प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी गीतांजलि गोयल की अदालत में पेश कर दिया. इस के बाद यह केस सेशन कमिट हो कर चंडीगढ़ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश बलवीर सिंह की अदालत में विधिवत रूप से चला.

विद्वान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों को गौर से सुनने और उपलब्ध साक्ष्यों की गहराई से जांच करने के बाद बचावपक्ष के वकील पब्लिक प्रौसीक्यूटर के बीच हुई बहस के मुद्दों पर भी पूरा ध्यान दिया. बहस के दौरान पब्लिक प्रौसीक्यूटर राजेंद्र सिंह ने दूसरे की औरत को अपना बनाने की एवज में उस के पति का कत्ल करने को ले कर जहां इसे अमानवीय एवं घिनौना अपराध बताया, वहीं बचावपक्ष के वकील यादविंदर सिंह संधू ने अपनी दलील से अभियोजन पक्ष का रुख पलटने का प्रयास किया. वकील संधू का कहना था कि मृतक के पिता की मौत के बाद संपत्ति विवाद को ले कर उस का अपने भाइयों से झगड़ा हो गया था. उन्होंने ही उसे छत से गिरा कर मौत के घाट उतारा है. सतनाम सिंह को इस केस में नाहक फंसा दिया है.

लेकिन एक अलग बात यह भी रही कि जहां अभियोजन पक्ष की ओर से 8 गवाह अदालत में पेश हुए, वहीं बचावपक्ष एक गवाह भी पेश नहीं कर पाया. बहरहाल, माननीय न्यायाधीश बलवीर सिंह ने 12 मार्च, 2018 को अभियुक्त सतनाम सिंह को भादंवि की धाराओं 302 एवं 456 का दोषी करार देते हुए अपना फैसला सुना दिया. इस केस में दी जाने वाली सजा की घोषणा 14 मार्च, 2018 को की गई. 14 मार्च को दोषी को सजा सुनाए जाने से पहले सजा के मुद्दे को सुना गया. दोषी ने बताया कि उस की मां की मौत हो चुकी है और अपने वृद्ध पिता हरबंस सिंह का वही अकेला सहारा है. वैसे भी वह अपनी बीए की पढ़ाई कर रहा था, जो पूरी कर के उसे नौकरी की तलाश करनी थी. इसलिए उसे कम से कम सजा सुनाई जाए.

जज साहब ने यह सब शांति से सुना, मगर उसी दिन दोपहर बाद अपना 27 पृष्ठ का फैसला सुनाते हुए दोषी सतनाम सिंह को धारा 302 के तहत उम्रकैद 5 हजार रुपए जुरमाने और धारा 456 के अंतर्गत एक साल कैद की सजा सुनाई. दोषी ने जुरमाना भरने में अपने को असमर्थ बताया तो उस की कैद की सजा में 6 महीने की बढ़ोत्तरी कर दी गई. जिस दिन सतनाम सिंह को न्यायिक हिरासत के तहत जेल भेजा गया था, तब से वह चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल में ही बंद था. उस की जमानत नहीं हो पाई थी. अब उसे अदालत के फैसले के बाद फिर से उसी जेल में भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों एवं अदालत के फैसले पर आधारित

 

पति से छुटकारा पाने के लिए पत्नी ने छिपकली डालकर दिया खाना

बबली परिवार के बजाए शारीरिक जरूरतों को ज्यादा महत्त्व देती थी तभी तो 3 बच्चों की मां बनने के बावजूद कई युवकों से उस के अवैध संबंध हो गए थे. अपने एक प्रेमी के साथ हमेशा के लिए रहने को उस ने ऐसी चाल चली कि… 

खुशबू और अंशिका रोज की तरह 5 दिसंबर, 2013 को भी स्कूल गई थीं. वैसे वे दोपहर 2 बजे तब स्कूल से घर लौट आती थीं लेकिन जब ढाई बजे तक घर नहीं पहुंचीं तो मां बबली बेचैन हो गई. उस के बच्चों की क्लास में मोहल्ले के कुछ और बच्चे भी पढ़ते थे. उस ने उन बच्चों के घर पहुंच कर अपने बच्चों के बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि खुशबू और अंशिका आज स्कूल आई ही नहीं थीं. बच्चों की बात सुन कर बबली हैरान रह गई क्योंकि उस ने दोनों बेटियों को स्कूल भेजा था तो वे कहां चली गईं. बदहवास बबली ने अपने पिता गुलाबचंद और भाइयों को सारी बात बताते हुए जल्दी से बेटियों का पता लगाने को कह कर रोनेबिलखने लगी.

उस के पिता और भाई भी नहीं समझ पा रहे थे कि जब दोनों बहनें स्कूल गई थीं तो वे स्कूल पहुंच कर कहां चली गईं? बबली को सांत्वना दे कर वे सब अपने स्तर से दोनों बच्चियों को ढूंढ़ने में जुट गए. काफी खोजबीन के बाद भी उन का पता नहीं लग सका. दोनों बच्चे रहस्यमय तरीके से कहां लापता हो गए, इस बात से पूरा परिवार परेशान था. मोहल्ले के कुछ लोग कहने लगे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी ने फिरौती के लिए बच्चों का अपहरण कर लिया हो. लेकिन इस की उम्मीद कम थी क्योंकि बबली या उस के घर वालों की स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे कोई फिरौती दे सकें. बबली की अपने पति जितेंद्र से कुछ अनबन चल रही थी, तभी तो वह तीनों बेटियों के साथ मायके में रह रही थी. घर वालों को इसी बात का शक हो रहा था कि बच्चियों को उन का पिता जितेंद्र या फिर दादा बृजनारायण पांडेय ही फुसला कर अपने साथ ले गए होंगे.

संभावित स्थानों पर तलाश के बाद जब खुशबू और अंशिका के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन के नाना गुलाबचंद थाना नगरा पहुंचे और थानाप्रभारी एस.पी. चौधरी से मिल कर बच्चियों के गायब होने की बात बताई. उन्होंने अपने दामाद जितेंद्र और समधी बृजनारायण पर बच्चियों को गायब करने का अंदेशा जाहिर किया. गुलाबचंद की तहरीर पर 5 दिसंबर, 2013 को अपहरण का मुकदमा दर्ज करवा कर मामले की विवेचना सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव को करने के निर्देश दिए. साथ ही उन्होंने दोनों बच्चियों के गायब होने की सूचना से अपर पुलिस अधीक्षक के.सी. गोस्वामी और पुलिस अधीक्षक अरविंद सेन को अवगत करा दिया.

सबइंसपेक्टर उमेशचंद्र यादव मामले की छानबीन करने में जुट गए. चूंकि गुलाबचंद ने अपने दामाद और समधी पर बच्चियों को गायब करने का शक जाहिर किया था. लिहाजा पुलिस बलिया के सिकंदरपुर थाने के गांव उचवार में रहने वाले जितेंद्र के घर पहुंच गई और वहां से उसे उस के 80 वर्षीय बुजुर्ग पिता बृजनारायण पांडेय को पूछताछ के लिए थाने ले आई. उन्होंने दोनों से अलगअलग तरीके से पूछताछ की. उन की बातों से जांच अधिकारी को लगा कि बच्चों के गायब होने में उन का कोई हाथ नहीं है. बल्कि अपने दोनों बच्चों के गायब होने की जानकारी पाकर जितेंद्र परेशान हो गया था.

इन दोनों से पूछताछ के दौरान उन्हें यह पता चल गया था कि बबली एक बदचलन औरत है. एसआई उमेशचंद्र यादव के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. उन्होंने जितेंद्र और उस के पिता को घर भेज दिया और खुद गोपनीय रूप से यह पता लगाने में जुट गए कि बबली के संबंध किन लोगों से हैं. इस काम में उन्हें सफलता मिल गई और पता चला कि उस के संबंध औरैया जिले के हीरनगर गांव के रहने वाले कुलदीप से हैं और वह दिल्ली में नौकरी करता है. एसआई उमेशचंद्र ने इस जानकारी से थानाप्रभारी को अवगत करा दिया. इस के बाद उन्होंने कुलदीप की तलाश शुरू कर दी और उस का पता लगाने के लिए मुखबिरों को भी लगा दिया

उधर खुद पर बच्चों के अपहरण का आरोप लगने पर जितेंद्र को बहुत दुख हुआ. उस ने अपहरण के आरोप लगाए जाने पर अपने बचने के लिए एसपी अरविंद सेन को तहरीर दे कर कहा कि उसे और उस के पिता को झूठा फंसाया जा रहा है. न्याय की गुहार लगाते हुए उस ने बच्चों को जल्द तलाशने की मांग की. 13 दिसंबर, 2013 की शाम को एसआई उमेशचंद्र को मुखबिर ने एक खास सूचना दी. जानकारी मिलते ही वह महिला कांस्टेबल निकुंबला, कांस्टेबल रामबहादुर यादव आदि के साथ बिल्थरा रोड रेलवे स्टेशन पहुंच गए. अपने साथ वह जितेंद्र को भी ले गए थे ताकि वह अपनी बेटियों को पहचान सके. मुखबिर ने जिस व्यक्ति के बारे में उन्हें सूचना दी थी वह उसे इधरउधर तलाशने लगे. कुछ देर बाद उन्हें प्लेटफार्म पर एक युवक आता दिखाई दिया. उस के साथ 2 बच्चियां भी थीं.

जितेंद्र ने बच्चियों को पहचानते हुए कहा, ‘‘सर, यही मेरी बेटियां हैं.’’ उधर उस युवक ने स्टेशन पर पुलिस को देखा तो वह तेज कदमों से दूसरी ओर चल दिया. लेकिन पुलिस ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया और बच्चियों को भी अपने कब्जे में ले लिया. बच्चियों को सकुशल बरामद कर पुलिस खुश थी. जिस युवक को पुलिस ने हिरासत में लिया था उस ने अपना नाम कुलदीप बताया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने गई.

पूछताछ करने पर उस ने बताया कि वह बबली से प्यार करता है और बच्चों का अपहरण उस ने उसी के कहने पर ही किया था. उस की बात सुन कर पुलिस भी चौंक गई कि क्या एक मां ही अपने बच्चों का अपहरण करा सकती है. लेकिन कुलदीप ने खुशबू और अंशिका के अपहरण के पीछे की जो कहानी बताई, सभी को चौंका देने वाली निकली. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में स्थित और बिहार प्रांत से सटा एक जिला है बलिया. इस जिले के नगरा थाना क्षेत्र के देवरहीं गांव के रहने वाले गुलाबचंद के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां और 3 बेटे थे. बबली उन की दूसरे नंबर की बेटी थी. वह बहुत खूबसूरत थी. लेकिन जब उस ने लड़कपन के पड़ाव को पार कर जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार गया.

वह जवान हुई तो घर वालों को उस की शादी की चिंता सताने लगी. वे उस के लिए सही लड़का तलाशने लगे. जल्द ही उन की मेहनत रंग लाई और बलिया जिले के ही सिकंदरपुर थाना क्षेत्र के उचवार गांव में रहने वाले बृजनारायण पांडेय के बेटे जितेंद्र से उस की शादी तय कर दी और सामाजिक रीतिरिवाज से 2003 में दोनों का विवाह हो गया. बबली जब अपनी ससुराल पहुंची तो अपने व्यवहार और काम से उस ने सभी का दिल जीत लिया. ससुराल में किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. परिवार भी बड़ा नहीं था. इसलिए गृहस्थी की गाड़ी ठीक तरह से चल पड़ी. शादी के साल भर बाद बबली ने एक बेटी को जन्म दिया. उस का नाम रखा गया खुशबू.

परिवार बढ़ा तो घर का खर्च भी बढ़ गया. जितेंद्र अपने बीवीबच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना चाहता था. लिहाजा वह काम की तलाश में दिल्ली चला गया. जल्द ही दिल्ली की एक प्राइवेट कंपनी में उस की नौकरी लग गई. उन की जिंदगी की गाड़ी फिर से पटरी पर गई. इस दौरान जितेंद्र साल में 1-2 बार ही बीवीबच्चों से मिलने अपने गांव पाता और कुछ दिन घर रहने के बाद दिल्ली चला जाता था. वक्त यूं ही हंसीखुशी से गुजरता रहा. 3 साल बाद बबली एक और बच्ची की मां बन गई. उस का नाम अंशिका रखा. ज्यादा दिनों तक पति से दूर रहने की कमी बबली को खलने लगी थी. उस ने 1-2 बार पति से कहा भी कि वह हर महीने घर आ जाया करें. यदि हर महीने न भी आ सकेंतो 2 महीने में तो आ ही जाया करें, बच्चे बहुत याद करते हैं. लेकिन कुलदीप ने बारबार आने पर किराए में पैसे खर्च होने की बात बताई. जल्दजल्द घर आने में उस ने असमर्थता जता दी. 

लिहाजा अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए बबली ने पड़ोस के एक युवक से नजदीकियां बढ़ा लीं. फिर दोनों के बीच शारीरिक संबंध बन गए. इस दौरान बबली एक और बेटी की मां बन गई. बबली ने घरवालों और जमाने से अपनी मोहब्बत की कहानी को छिपाने की बहुत कोशिश की लेकिन कामयाब नहीं हो सकी और जल्दी ही उन के प्रेमप्रसंग की खबर घर वालों को लग गई. फिर क्या था परिवार में खलबली सी मच गई और बबली को अपने प्रेमी से मिलने पर रोक लगा दी गई. इस के बाद तो उस की हालत पिंजरे में उस बंद पंछी की तरह हो कर रह गई जो सिर्फ फड़फड़ा सकता है लेकिन कोशिश करने पर भी उड़ नहीं सकता.

अपनी आजादी पर घर वालों द्वारा पहरे लगाए जाने से बबली चिढ़ गई. लगभग 2 साल पहले एक दिन अपने पिता की तबीयत खराब होने का बहाना बना कर वह मायके गई. वहीं पड़ोस में एक लड़का रहता था, जो दिल्ली में नौकरी करता था. वह जितेंद्र को जानता था और उसे यह भी पता था कि जितेंद्र कहां रहता है. बबली को पति के बिना सब सूनासूना सा लग रहा था. इसलिए वह उस लड़के के साथ पति के पास दिल्ली चली गई. पत्नी के अचानक दिल्ली जाने पर जितेंद्र चौंक गया. पत्नी के साथ रहना उसे अच्छा तो लग रहा था लेकिन पत्नी और बच्चों के आने पर उस का खर्च बढ़ गया जिस से घर चलाने में परेशानी होने लगी. परेशानी देखते हुए बबली ने भी कोई काम कर घर के खर्चे में हाथ बंटाने की बात कही तो जितेंद्र मान गया.

फिर वह अपने आसपास रहने वाली महिलाओं के सहयोग से काम तलाशने लगी. कुछ दिनों बाद उसे एक प्राइवेट कंपनी में काम मिल गया. जब दोनों ही काम करने लगे तो घर का खर्च ठीक से चलने लगा. बबली खुले विचारों की थी. रूपयौवन से परिपूर्ण बबली की देहयष्टि इतनी आकर्षक थी कि किसी को भी पहली नजर में लुभा लेती थी. फिर अलग काम करने से उसे मनमानी करने का पूरा मौका भी मिल रहा था. इस मौके का लाभ उठा कर बबली ने अपने साथ काम करने वाले कुलदीप से अवैध संबंध बना लिए.मूलरूप से औरैया जिले के फफूंद थाना क्षेत्र के हीरनगर गांव के निवासी रविशंकर का बेटा कुलदीप दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करता था. कुलदीप से एक बार संबंध बने तो बबली जैसे उस की दीवानी हो गई.

फिर तो उन का वासना का खेल चलने लगा. लेकिन एक दिन वह कुलदीप के साथ अपने कमरे में आपत्तिजनक स्थिति में थी तभी मकान मालिक की नजर उस पर पड़ी. उस ने उस समय तो उस से कुछ नहीं कहा, लेकिन जितेंद्र को बात बताते हुए उस से कमरा खाली करा लिया. फिर जितेंद्र ने पास में ही दूसरा कमरा किराए पर ले लिया. जितेंद्र बहुत ही शांत स्वभाव का था. पत्नी की करतूत का पता चल जाने के बावजूद भी उस ने उस से कोई सख्ती नहीं की बल्कि समझाने के बाद उस ने पत्नी को चेतावनी दे दी थी. लेकिन बबली ने उस की चेतावनी को गंभीरता से नहीं लिया. बबली ने पास में ही रहने वाले एक और युवक से अवैध संबंध बना लिए. दोनों चोरीछिपे रंगरलियां मनाने लगे. उसी समय जितेंद्र ने पत्नी की नौकरी छुड़वा दी.

कुछ समय तक सब कुछ गुपचुप चलता रहा. लेकिन धीरेधीरे लोगों को उन दोनों के संबंधों के बारे में पता चल गया. फिर बात जितेंद्र के कानों तक भी पहुंची. पत्नी को सही रास्ते पर लाने के लिए उस ने उसे डांटा. बबली ने इस का विरोध किया. फिर क्या था इसी बात को ले कर उन के बीच झगड़े शुरू हो गए. एक दिन झगड़ा इतना बढ़ा कि बबली ने पुलिस से शिकायत कर पति को पिटवा दिया. पत्नी के बदले हुए रुख से जितेंद्र डर गया. उस ने तय कर लिया कि पत्नी चाहे कुछ भी करे, उस के काम में वह दखल नहीं करेगा. यानी उस ने एकदम से अपना मुंह बंद कर लिया. फिर तो बबली ने कुलदीप को भी अपने साथ रख लिया और खुल कर उस के साथ रंगरलियां मनाने लगी. सब कुछ देखते हुए भी डर के कारण जितेंद्र चाह कर भी कुछ नहीं कर पाता था. बल्कि उसे बबली से अपनी जान का भी खतरा महसूस होने लगा था.

इस का कारण यह था कि एक दिन बबली ने जितेंद्र के खाने में छिपकली मार कर डाल दी थी. संयोग से उस दिन जितेंद्र ने लंच कंपनी की कैंटीन में कर लिया था. बाद में जब उस ने लंच में पत्नी द्वारा दी गई आलू की भुजिया देखी तो उस का रंग बदला हुआ था. उसे लगा कि इस में जहर है तो उस ने सब्जी फेंक दी. घर आ कर जब उस ने पत्नी से इस बारे में पूछा तो उस ने बहाना बनाते हुए कह दिया कि खाना बनाते हुए कुछ गिर गया होगा. इस हादसे से जितेंद्र एकदम से डर गया था. जान का खतरा महसूस होने पर जितेंद्र 13 जुलाई, 2013 को बबली और बच्चों को दिल्ली में ही छोड़ कर बलिया चला आया और उस ने वाराणसी में ही काम तलाश लिया. पति के वापस गांव चले जाने पर बबली आजाद हो गई और खुल कर कुलदीप के साथ मौजमस्ती करने लगी. कुलदीप बबली के साथ उस के बच्चों को भी बहुत प्यार करता था. कुल मिला कर दोनों का समय हंसीखुशी बीतने लगा.

इधर बबली के मायके वालों को जब पता चला कि झगड़ा होने के बाद जितेंद्र बबली को दिल्ली में छोड़ कर वापस गया है तो उस के पिता गुलाबचंद दिल्ली पहुंच गए और बबली तथा उस के बच्चों को घर लिवा लाए. तब से वह मायके में रहने लगी. बबली ने भी पिता से कह दिया था कि अब वह जितेंद्र के यहां नहीं जाएगी. तब गुलाबचंद ने बच्चों का नाम गांव के ही स्कूल में लिखवा दिया. ननिहाल में बच्चे तो खुश थे लेकिन बबली का मन अपने आशिक कुलदीप के बिना नहीं लगता था. वह मोबाइल से कुलदीप से बात कर अपना मन बहला लेती थी, लेकिन जब कुलदीप की जुदाई उसे अधिक खलने लगी तो मायके वालों को बिना कुछ बताए वह एक दिन अकेले ही दिल्ली चली गई और कुलदीप के साथ रहने लगी. मायके वालों को जब पता लगा कि वह दिल्ली चली गई है तो उन्हें बहुत बुरा लगा. तब बबली का भाई प्रीतम दिल्ली जा कर उसे वापस ले आया.

वक्त गुजरता रहा. बबली पति जितेंद्र को भूल चुकी थी. उस ने तय कर लिया था कि जीवन भर कुलदीप के साथ ही रहेगी. इसलिए वह कुलदीप को हमेशा के लिए पाने के बारे में सोचने लगी. उसे कुलदीप के बिना एक पल भी गुजार पाना नामुमकिन लगने लगा तो उस ने उस के पास जाने के लिए एक प्लान बनाया. प्लान के अनुसार 4 दिसंबर, 13 को बबली ने दिल्ली फोन कर के कुलदीप को अपने गांव के पास परसिया चट्टी पर बुलाया. तय समय के अनुसार कुलदीप परसिया चट्टी पहुंच गया. इधर रोज की तरह 8 वर्षीय खुशबू और 6 वर्षीय अंशिका स्कूल जाने के लिए घर से निकलीं तो रास्ते में बबली मिली. वह दोनों बच्चों को ले कर परसिया चट्टी पहुंची.

चूंकि कुलदीप उन्हें खूब प्यार करता था इसलिए उसे देख कर दोनों बच्चियां खुश हो गईं. बबली ने खुशबू और अंशिका को यह समझाते हुए उस के साथ दिल्ली भेज दिया कि 10 दिन के अंदर वह भी दिल्ली आ जाएगी. मां के कहने पर दोनों बहनें कुलदीप के साथ दिल्ली चली गईं. इस प्लान के पीछे बबली की यह सोच थी कि जब बेटियों के लापता होने पर घर के लोगों का सारा ध्यान उस ओर चला जाएगा तो वह आसानी से अपनी 3 साल की छोटी बेटी साक्षी को ले कर कुलदीप के पास चली जाएगी. लेकिन उस की यह सोच गलत साबित हुई. कुलदीप से पूछताछ के बाद पुलिस ने इस केस की नायिका बबली को भी गिरफ्तार कर लिया. दोनों अभियुक्तों से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने कुलदीप को अपहरण और बबली को साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर के अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया तथा दोनों बच्चियों को उस के पिता जितेंद्र के संरक्षण में दे दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नपुंसक था मालिक और नौकरानी बोली पेट में आपका बच्चा

बडे़ बिजनैसमैन रंजीत मल्होत्रा सभ्य शरीफ और प्रतिष्ठित व्यक्ति थे, लेकिन उन की नौकरानी ने ऐसा चक्रव्यूह रचा कि वह बुरी तरह फंस गए. उस जाल में वह कैसे फंसे और कैसे निकले, पढि़ए इस कहानी में… 

रंजीत को जिस तरह साजिश रच कर ठगा गया था, उस से वह हैरान तो थे ही उन्हें गुस्सा भी बहुत आया था. उस गुस्से में उन का शरीर कांपने लगा था. कंपकंपी को छिपाने के लिए उन्होंने दोनों हाथों की मुट्ठियां कस लीं, लेकिन बढ़ी हुई धड़कनों पर वह काबू नहीं कर पा रहे थेउन्हें डर था कि अगर रसोई में काम कर रही ममता गई तो उन की हालत देख कर पूछ सकती है कि क्या हुआ जो आप इतने परेशान हैं. एक बार तो उन के मन में आया कि सारी बात पुलिस को बता कर रिपोर्ट दर्ज करा दें लेकिन तुरंत ही उन की समझ में गया कि गलती उन की भी थी. सच्चाई खुल गई तो वह भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे.

पत्नी के डर से उन्होंने मेज पर पड़ी अपनी मैडिकल रिपोर्ट अखबारों के नीचे छिपा दी थी. मोबाइल उठा कर उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को प्लौट का सौदा रद्द करने के लिए कह दिया. उस की कोई भी बात सुने बगैर रंजीत ने फोन काट दिया था. हमेशा शांत रहने वाले रंजीत मल्होत्रा जितना परेशान और बेचैन थे, इतना परेशान या बेचैन वह तब भी नहीं हुए थे, जब उन्हें साजिश का शिकार बनाया गया था. फिर भी वह यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहे थे कि वह जरा भी परेशान या विचलित नहीं हैं.

रंजीत मल्होत्रा एक इज्जतदार आदमी थे. शहर के मुख्य बाजार में उन का ब्रांडेड कपड़ों का शोरूम तो था ही, वह साडि़यों के थोक विक्रेता भी थे. कपड़ा व्यापार संघ के अध्यक्ष होने के नाते व्यापारियों में उन की प्रतिष्ठा थी. उन के मन में कोई गलत काम करने का विचार तक नहीं आया था. उन के पास पैसा और शोहरत दोनों थे. इस के बावजूद उन में जरा भी घमंड नहीं था. वह अकेले थे, लेकिन हर तरह से सफल थेउन की तरक्की से कई लोग ईर्ष्या करते थे. इतना सब कुछ होते हुए भी उन्हें हमेशा इस बात का दुख सालता था कि शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी वह पिता नहीं बन सके थे. उन की पत्नी ममता की गोद अभी तक सूनी थी.

रंजीत और ममता की शादी के बाद की जिंदगी किसी परीकथा से कम नहीं थी. हंसीखुशी से दिन कट रहे थे. जब उन की शादी हुई थी तो ममता की खूबसूरती को देख कर उन के दोस्त जलभुन उठे थे. उन्होंने कहा था, ‘‘भई आप तो बड़े भाग्यशाली हो, हीरोइन जैसी भाभी मिली है.’’ ममता थीं ही ऐसी. शादी के 12 साल बीत जाने के बाद भी उन की सुंदरता में कोई कमी नहीं आई थी. शरीर अभी भी वैसा ही गठा हुआ था. पिछले 10 सालों से रंजीत के यहां देवी नाम की लड़की काम कर रही थी. जब वह 10-11 साल की थी, तभी से उन के यहां काम कर रही थी. देवी हंसमुख और चंचल तो थी ही, काम भी जल्दी और साफसुथरा करती थी. इसलिए पतिपत्नी उस से बहुत खुश रहते थे. अपने काम और बातव्यवहार से वह दोनों की लाडली बनी हुई थी.

घर में कोई बालबच्चा था नहीं, इसलिए पतिपत्नी उसे बच्चे की तरह प्यार करते थे. जहां तक हो सकता था, देवी भी ममता को कोई काम नहीं करने देती थी. हालांकि वह इस घर की सदस्य नहीं थी, फिर भी अपने बातव्यवहार और काम की वजह से घर के सदस्य जैसी हो गई थी. पतिपत्नी उसे मानते भी उसी तरह थे. जब उस की शादी हुई तो ममता पर तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन रंजीत पूरी तरह बदल गए थे. देवी की शादी रंजीत के लिए किसी कड़वे घूंट से कम नहीं थी. उस की शादी को 2 साल हो चुके थे. इन 2 सालों में रंजीत के जीवन में कितना कुछ बदल गया था, जिंदगी में कितने ही व्यवधान आए थे. शादी के 10 साल बीत जाने पर गोद सूनी होने की वजह से ममता काफी हताश और निराश रहने लगी थी. 

वह हर वक्त खुद को कोसती रहती थी. ईश्वर में जरा भी विश्वास करने वाली ममता पूरी तरह आस्तिक हो गई थी. किसी तरह उस की गोद भर जाए, इस के लिए उस ने तमाम प्रयास किए थे. इस सब का कोई नतीजा नहीं निकला तो ममता शांत हो कर बैठ गई. शादी के 4 सालों बाद दोनों को लगा कि अब उन्हें बच्चे के लिए प्रयास करना चाहिए. इस के बाद उन्होंने प्रेग्नेंसी रोकने के उपाय बंद कर दिए. बच्चे के लिए उन्हें जो करना चाहिए था, किया. दोनों को पूरा विश्वास था कि उन का प्रयास सफल होगा. उन्हें अपने बारे में जरा भी शंका नहीं थी, क्योंकि दोनों ही नौरमल और स्वस्थ थे.

इस तरह उम्मीदों में समय बीतने लगा. आशा और निराशा के बीच कोशिश चलती रही. रंजीत ममता को भरोसा देते कि जो होना होगा, वही होगा. उन्होंने डाक्टरों से भी सलाह ली और तमाम अन्य उपाय भी किए. पर कोई लाभ नहीं हुआ. पति समझाता कि चिंता मत करो. हम दोनों आराम से रहेंगे लेकिन पति के जाते ही अकेली ममता हताश और निराश हो जाती. रंजीत का पूरा दिन तो कारोबार में बीत जाता था, लेकिन वह अपना दिन कैसे बिताती. सारे प्रयासों को असफल होते देख डाक्टर ने रंजीत से अपनी जांच कराने को कहा. अभी तक रंजीत ने अपनी जांच कराने की जरूरत महसूस नहीं की थी. वह दवाएं भी कम ही खाते थे. रंजीत ऊपर से भले ही निश्चिंत लगते थे, लेकिन संतान के लिए वह भी परेशान थे. चिंता की वजह से रंजीत का किसी काम में मन भी नहीं लगता था. चिंता में वह शारीरिक रूप से भी कमजोर होते जा रहे थे.

काम करते हुए उन्हें थकान होने लगी थी. खुद पर से विश्वास भी उठ सा गया था. शांत और धीरगंभीर रहने वाले रंजीत अब चिड़चिड़े हो गए थे. बातबात पर उन्हें गुस्सा आने लगा था. घर में तो वह किसी तरह खुद पर काबू रखते थे, पर शोरूम पर वह कर्मचारियों से ही नहीं, ग्राहकों से भी उलझ जाते थे. घर में भी ममता से तो वह कुछ नहीं कहते थे, पर जरा सी भी गलती पर नौकरानी देवी पर खीझ उठते थे. देवी भी अब जवान हो चुकी थी, इसलिए उन के खीझने पर ममता उन्हें समझाती, ‘‘पराई लड़की है. अब जवान भी हो गई है, उस पर इस तरह गुस्सा करना ठीक नहीं है.’’

‘‘तुम ने ही इसे सिर चढ़ा रखा है, इसीलिए इस के जो मन में आता है, वह करती है.’’ रंजीत कह देते.

बात आईगई हो जाती. जबकि देवी पर इस सब का कोई असर नहीं पड़ता था. वह उन के यहां इस तरह रहती और मस्ती से काम करती थी, जैसे उसी का घर है. ममता भले ही देवी का पक्ष लेती थी, लेकिन वह भी महसूस कर रही थी कि अब वह काफी बदल गई है. कभी किसी चीज को हाथ न लगाने वाली देवी कितनी ही बार रंजीत की जेब से पैसे निकाल चुकी थी. उसे पैसे निकालते देख लेने पर भी रंजीत और ममता अनजान बने रहते थे. वे सोचते थे कि कोई जरूरत रही होगी. देवी चोरी भी होशियारी से करती थी. वह पूरे पैसे कभी नहीं निकालती थी.

इधर एक लड़का, जिस का नाम बलबीर था, अकसर रंजीत की कोठी के बाहर खड़ा दिखाई देने लगा था. ममता ने जब उसे देवी को इशारा करते देखा तो देवी को तो टोका ही, उसे भी खूब डांटाफटकारा. इस से उस का उधर आनाजाना कम तो हो गया था, लेकिन बंद नहीं हुआ था. एक रात रंजीत वाशरूम जाने के लिए उठे तो उन्हें बाहर बरामदे से खुसरफुसर की आवाज आती सुनाई दी. खुसरफुसर करने वाले कौन हैं, जानने के लिए वह दरवाजा खोल कर बाहर आ गए. उन के बाहर आते ही कोई अंधेरे का लाभ उठा कर दीवार कूद कर भाग गया. उन्होंने लाइट जलाई तो देवी को कपड़े ठीक करते हुए पीछे की ओर जाते देखा.

यह सब देख कर रंजीत को बहुत गुस्सा आया. उन्होंने सारी बात ममता को बताई तो उन्होंने देवी को खूब डांटा, साथ ही हिदायत भी दी कि दोबारा ऐसा नहीं होना चाहिए. इस के बाद देवी का व्यवहार एकदम से बदल गया. वह रंजीत और ममता से कटीकटी तो रहने ही लगी, दोनों की उपेक्षा भी करने लगी. देवी के इस व्यवहार से रंजीत और ममता को उस की चिंता होने लगी थी. शायद इसी वजह से उन्होंने देवी के मातापिता से उस की शादी कर देने को कह दिया था. अचानक देवी का व्यवहार फिर बदल गया. ममता के साथ तो वह पहले जैसा ही व्यवहार करती रही, पर रंजीत से वह हंसहंस कर इस तरह बातें करने लगी जैसे कुछ हुआ ही नहीं था. रंजीत ने गौर किया, वह जब भी अकेली होती, उदास रहती. कभीकभी वह फोन करते हुए रो देती. उस से वजह पूछी जाती तो कोई बहाना बना कर टाल देती.

एक दिन तो उस ने हद कर दी. रोज की तरह उस दिन भी ममता मंदिर गई थीं. रंजीत शोरूम पर जाने की तैयारी कर रहे थे. एकदम से देवी रंजीत के पास आई और उन के गाल को चुटकी में भर कर बोली, ‘‘आप कितने स्मार्ट हैं, मुझे बहुत अच्छे लगते हैं.’’ पहले तो रंजीत की समझ में ही नहीं आया कि यह क्या हो रहा है. जब समझ में आया तो हैरान रह गए. वह कुछ कहे बगैर नहाने चले गए. आज पहली बार उन्हें लगा था कि देवी अब बच्ची नहीं रही, जवान हो गई है. अगले दिन जैसे ही ममता मंदिर के लिए निकलीं, देवी दरवाजा बंद कर के सोफे पर बैठे रंजीत के बगल में आ कर बैठ गई. उस ने अपना हाथ रंजीत की जांघ पर रखा तो उन का तनमन झनझना उठा. उन्होंने तुरंत मन को काबू में किया और उठ कर अपने कमरे में चले गए. वह दिन कुछ अलग तरह से बीता. 

पूरे दिन देवी ही उन के खयालों में घूमती रही. आखिर वह चाहती क्या है. एक विचार आता कि यह ठीक नहीं. देवी तो नादान है जबकि वह समझदार हैं. कोई ऊंचनीच हो गई तो लोग उन्हीं पर थूकेंगे. जबकि दूसरा विचार आता कि जो हो रहा है, होने दो. वह तो अपनी तरफ से कुछ कर नहीं रहे हैं, जो कर रही है वही कर रही है. अगले दिन सवेरा होते ही रंजीत के दिल का एक हिस्सा ममता के मंदिर जाने का इंतजार कर रहा था, जबकि दूसरा हिस्सा सचेत कर रहा था कि वह जो करने की सोच रहे हैं, वह ठीक नहीं है. ममता के मंदिर जाने पर देवी दरवाजा बंद कर रही थी, तभी वह नहाने के बहाने बाथरूम में घुस गए. दिल उन्हें बाहर निकलने के लिए उकसा रहा था. रोकने वाली आवाज काफी कमजोर थी. शायद इसीलिए वह नहाधो कर जल्दी से बाहर गए.

देवी रसोई में काम कर रही थी. उस के चेहरे से ही लग रहा था कि वह नाराज है. रंजीत सोफे पर बैठ कर उस का इंतजार करने लगे. लेकिन वह नहीं आई. पानी देने के बहाने उन्होंने बुलाया. पानी का गिलास मेज पर रख कर जाते हुए उस ने धीरे से कहा, ‘‘नपुंसक.’’  रंजीत अवाक रह गए. देवी के इस एक शब्द ने उन्हें झकझोर कर रख दिया. डाक्टर के कहने पर उन के मन में अपने लिए जो संदेह था, देवी के कहने पर उसे बल मिला. उन का चेहरा उतर गया. उसी समय ममता मंदिर से वापस आ गईं. पति का चेहरा उतरा देख कर उस से पूछा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या?’’

रंजीत क्या जवाब देते. अगले दिन उन्होंने नहाने जाने में जल्दी नहीं की. दरवाजा बंद कर के देवी उन के सामने कर खड़ी हो गई. जैसे ही रंजीत ने उस की ओर देखा, उस ने झट से कहा, ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

‘‘बहुत सुंदर.’’ रंजीत ने कहा. लेकिन यह बात उन के दिल से नहीं, गले से निकली थी. देवी रंजीत की गोद में बैठ गई. वह कुछ कहते, उस के पहले ही उन का हाथ अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘मैं आप को अच्छी नहीं लगती क्या?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसी बात नहीं है.’’ रंजीत ने कहाइस के आगे क्या कहें, यह उन की समझ में नहीं आया तो ममता के आने की बात कह कर उसे उठाया और जल्दी से बाथरूम में घुस गए. इसी तरह 2-3 दिन चलता रहा. रंजीत अब पत्नी के मंदिर जाने का इंतजार करने लगे. अब देवी की हरकतें उन्हें अच्छी लगने लगी थीं. क्योंकि 40 के करीब पहुंच रहे रंजीत पर एक 18 साल की लड़की मर रही थी. 

यही अनुभूति रंजीत को पतन की राह की ओर उतरने के लिए उकसा रही थी. उन का पुरुष होने का अहं बढ़ता जा रहा था. खुद पर विश्वास बढ़ने लगा था. इस के बावजूद वह खुद को आगे बढ़ने से रोके हुए थे. पर एक सुबह वह दिल के आगे हार गए. जैसे ही देवी कर बगल में बैठी, वह होश खो बैठे. नहाने गए तो उन के ऊपर जो आनंद छाया था, वह अपराधबोध से घिरा था. पूरे दिन वह सहीगलत की गंगा में डूबतेउतराते रहे. अगले दिन वह ममता के मंदिर जाने से पहले ही तैयार हो गए. ममता हैरान थी, जबकि देवी उन्हें अजीब निगाहों से ताक रही थी. रंजीत उस की ओर आकर्षित हो रहे थे. 

लेकिन आज दिमाग उन पर हावी था. दिमाग कह रहा था, ‘लड़की तो नासमझ है, उस की भी बुद्धि घास चरने चली गई है, जो अच्छाबुरा नहीं सोच पा रहा है. उस ने जो किया है, वह ठीक नहीं है.’ अब उन्हें अपने किए पर पछतावा हो रहा था. यह पछतावा तब ज्वालामुखी बन कर फूट पड़ा, जब ममता के मंदिर जाने पर देवी ने रंजीत को बताया कि इस महीने उसे महीना नहीं हुआ. अब वह क्या करें? यह सुन कर रंजीत पर तो जैसे आसमान टूट पड़ा था. धरती भी नहीं फटने वाली थी कि वह उस में समा जाते. उन्हें खुद से घृणा हो गईउन्होंने एक लड़की की जिंदगी बरबाद की थी. इस अपराधबोध से उन का रोमरोम सुलग रहा था. लेकिन अब पछताने से कुछ होने वाला नहीं था. अब तो समाधान ढूंढना था. उन्होंने देवी से कहा, ‘‘तुम्हारी जिंदगी बरबाद हो, उस के पहले ही कुछ करना होगा. मैं दवा की व्यवस्था करता हूं. तुम दवा खा लो, सब ठीक हो जाएगा.’’

लेकिन देवी ने कोई भी दवा खाने से साफ मना कर दिया. रंजीत उसे मनाते रहे, पर वह जिद पर अड़ी थी. रंजीत की अंतरात्मा कचोट रही थी कि उन्होंने कितना घोर पाप किया है. आज तक उन्होंने जो भी भलाई के काम किए थे, इस एक काम ने सारे कामों पर पानी फेर दिया था. वह पापी हैं. चिंता और अपराधबोध से ग्रस्त रंजीत को देवी ने दूसरा झटका यह कह कर दिया कि उस के पापा उन से मिलना चाहते हैं. जो सुनना चाहिए, वह सुनने की तैयारी के साथ रंजीत देवी के घर पहुंचे. उस दिन ड्राइवर की नौकरी करने वाले देवी के बाप रामप्रसाद का अलग ही रूप था. हमेशा रंजीत के सामने हाथ जोड़ कर सिर झुकाए खड़े रहने वाले रामप्रसाद ने उन पर हाथ भले ही नहीं उठाया, पर लानतमलामत खूब की.

रंजीत सिर झुकाए अपनी गलती स्वीकार करते रहे और रामप्रसाद से कोई रास्ता निकालने की विनती करते रहे. अंत में रामप्रसाद ने रास्ता निकाला कि वह देवी की शादी और अन्य खर्चों के लिए पैसा दे दें.

‘‘हांहां, जितने पैसे की जरूरत पड़ेगी, मैं दे दूंगा.’’ राहत महसूस करते हुए रंजीत ने कहा, ‘‘कब करनी है शादी?’’

‘‘अगले सप्ताह. बलबीर का कहना है, ऐसे में देर करना ठीक नहीं है.’’

‘‘बलबीर? वही जो आवारा लड़कों की तरह घूमता रहता है. तुम्हें वही नालायक मिला है ब्याह के लिए?’’

‘‘वह नालायक…आप से तो अच्छा है जो इस हालत में भी शादी के लिए तैयार है.’’

बलबीर का नाम सुन कर रंजीत हैरान थे, लेकिन वह कुछ कहने या करने की स्थिति में नहीं थे. देवी की शादी और अन्य खर्च के लिए रंजीत को 10 लाख रुपए देने पड़े. इस के अलावा उपहार के रूप में कुछ गहने भीशादी के बाद रहने की बात आई तो रंजीत ने अपना बंद पड़ा फ्लैट खोल दिया. ऐसा उन्होंने खुशीखुशी नहीं किया था बल्कि यह काम दबाव डाल कर करवाया गया था. इज्जत बचाने के लिए वह रामप्रसाद के हाथों का खिलौना बने हुए थे. फ्लैट के लिए ममता ने ऐतराज किया तो उन्होंने उसे यह कह कर चुप करा दिया कि देवी अपने ही घर पलीबढ़ी है. शादी के बाद कुछ दिन सुकून से रह सके, इसलिए हमें इतना तो करना ही चाहिए.

देवी की शादी के 7 महीने ही बीते थे कि ममता ने रंजीत को बताया कि देवी को बेटा हुआ है. रंजीत मन ही मन गिनती करते रहे, पर वह हिसाब नहीं लगा सके. ममता ने कहा, ‘‘हमें देवी का बच्चा देखने जाना चाहिए.’’

ममता के कहने पर रंजीत मना नहीं कर सके. वह पत्नी के साथ देवी के यहां पहुंचे तो बलबीर बच्चा उन की गोद में डालते हुए बोला, ‘‘एकदम बाप पर गया है.’’

रंजीत कांप उठे. ममता ने कहा, ‘‘देखो , बच्चे के नाकनक्श सब बलबीर जैसे ही हैं.’’ अगले दिन बलबीर ने शोरूम पर जा कर रंजीत से कहा, ‘‘आप अपना बच्चा गोद ले लीजिए.’’

‘‘इस में कोई बुराई तो नहीं है, पर ममता से पूछना पड़ेगा.’’

रंजीत को बलबीर का प्रस्ताव उचित ही लगा था. लेकिन बलबीर ने शर्त रखी थी कि जिस फ्लैट में वह रहता है, वह फ्लैट उस के नाम कराने के अलावा कामधंधा शुरू करने के लिए कम से कम 25 लाख रुपए देने होंगे. सब कुछ रंजीत की समझ में गया था. उन्होंने पैसा कम करने को कहा तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आया. कारोबारी रंजीत समझ गए कि अब खींचने से कोई फायदा नहीं है. उन्होंने ममता से बात की. थोड़ा समझाने बुझाने पर वह देवी का बच्चा गोद लेने को राजी हो गई. बच्चे को गोद लेने के साथसाथ अपने वकील को उन्होंने फ्लैट देवी के नाम कराने के कागज तैयार करने के लिए कह दिया. 25 लाख देने के लिए रंजीत को प्लौट का सौदा करना था. इस के लिए उन्होंने प्रौपर्टी डीलर को सहेज दिया था. इतना सब होने के बावजूद ममता का मन अभी पराया बच्चा गोद लेने का नहीं हो रहा था. इसलिए उस ने रंजीत से कहा, ‘‘बच्चा गोद लेने से पहले आप एक बार अपनी जांच करा लीजिए.’’

रंजीत ने सोचा, उन का टैस्ट तो हो चुका है. उन्हीं के पुरुषत्व का नतीजा है देवी का बच्चा. फिर भी पत्नी का मन रखने के लिए उन्होंने अपनी जांच करा ली. इस जांच की जो रिपोर्ट आई, उसे देख कर रंजीत के होश उड़ गए. वह खड़े नहीं रह सके तो सोफे पर बैठ गए. तभी उन्हें एक दिन देवी की फोन पर हो रही बात समझ में गई, जिसे वह उन पर डोरे डालते समय किसी से कर रही थी. देवी ने जब पहली बार रंजीत का हाथ पकड़ा था, तब उन्होंने उसे कोई भाव नहीं दिया था. इस के बाद उस ने फोन पर किसी से कहा था, ‘‘तुम्हारे कहे अनुसार कोशिश तो कर रही हूं. प्लीज थोड़ा समय दो. तब तक वह वीडियो…’’

तभी रंजीत वहां गए. उन्हें देख कर देवी सन्न रह गई थी. उसे परेशान देख कर उन्होंने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ देवी ने बहाना बनाया कि वह किसी सहेली से वीडियो देखने की बात कर रही थी. अब रंजीत की समझ में आया कि उस समय देवी की बलबीर से बात हो रही थी. देवी का कोई वीडियो उस के पास था, जिस की बदौलत वह देवी से उसे फंसाने के लिए दबाव डाल रहा था. रिपोर्ट देख कर साफ हो गया था कि देवी का बच्चा बलबीर का था. उन्हें अपनी मूर्खता पर शरम आई. लेकिन उन्होंने जो गलती की थी, उस की सजा तो उन्हें भोगनी ही थी.

रंजीत ने वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन कर के प्लौट का सौदा और फ्लैट के पेपर बनाने से रोक दिया. अब न उन्हें बच्चा गोद लेना था, न फ्लैट देवी के नाम करना था. अब उन्हें प्लौट भी नहीं बेचना था. वकील और प्रौपर्टी डीलर को फोन करने के बाद उन्होंने ममता को बुला कर कहा, ‘‘ममता मैडिकल रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट के अनुसार मेरे अंदर बाप बनने की क्षमता नहीं है. मैं संतान पैदा करने में सक्षम नहीं हूं.’’

ममता की समझ में नहीं आया कि उस का पति अपने नपुंसक होने की बात इतना खुश हो कर क्यों बता रहा है.