Social Stories : समलैंगिक प्यार में हुआ परिवार स्वाहा

Social Stories : रोहतक का रहने वाला 20 साल का अभिषेक जब दिल्ली में स्किल कोर्स करने गया तो उस की दोस्ती समलैंगिक कार्तिक से हुई. यह दोस्ती प्यार में बदल गई. कार्तिक से शादी करने के लिए अभिषेक ने अपना लिंग चेंज कराने की ठान ली. लेकिन उस के मातापिता ने अपने इकलौते बेटे को इस की इजाजत नहीं दी. तब समलैंगिक प्यार में अंधे हो चुके अभिषेक ने अपने घर वालों को कुछ इस तरह से सजा दी कि सब की रूह कांप गई.

हरियाणा में रोहतक के विजय नगर में रहने वाला मलिक परिवार, इलाके के संपन्न परिवारों में से एक था. घर के मुखिया प्रदीप मलिक को रोहतक का हर इंसान जानता था. पेशे से वह प्रौपर्टी डीलिंग का काम किया करते थे और हर कोई उन्हें बबलू पहलवान के नाम से जानता था. उन के छोटे से हंसतेमुसकराते  परिवार में उन की पत्नी संतोष देवी उर्फ बबली, उन का एकलौता बेटा अभिषेक मलिक उर्फ मोनू और एकलौती बेटी तमन्ना उर्फ नेहा ही थी. मलिक परिवार में कभी भी किसी भी सदस्य को किसी भी चीज की कमी नहीं थी. घर के दरवाजे पर एक गाड़ी खड़ी रहती, बच्चों के हाथों में उन के मनमुताबिक एप्पल के मोबाइल फोन और तो और दोनों बच्चों के पास एप्पल के ही लैपटौप थे.

इतना संपन्न परिवार होने के बावजूद मलिक परिवार में बीते कुछ समय से अशांति बनी हुई थी. बीते कुछ समय से अभिषेक घर में अपने घर वालों से 5 लाख रुपयों की मांग कर रहा था. हालांकि उस के पिता बबलू पहलवान ने उसे पैसे देने से इंकार नहीं किया था, लेकिन घर में अशांति तब पैदा हुई जब घर वालों को अभिषेक के 5 लाख रुपयों की मांग करने की असली वजह पता चली. घर वालों के लिए ये बात इतनी गंभीर थी कि उन्होंने अभिषेक पर घर में कई तरह की पाबंदियां तक लगा दीं. आखिर वह वजह क्या थी? 27 अगस्त, 2021 के दिन जब अभिषेक को लगा कि उस पर घर वालों के द्वारा लगाई गई पाबंदियां कुछ ढीली पड़ी हैं, तो उस ने तय किया कि वह बाहर घूम कर आएगा.

आखिर वह पिछले 20 दिनों से घर में किसी कैदी की तरह रहने को मजबूर था जिस के साथ कोई भी ढंग से बात करने को राजी नहीं था. यहां तक कि उस की मां और बहन भी उस से नजरें नहीं मिलाते थे. घर में अभिषेक को समझानेबुझाने के लिए उस की नानी रोशनी देवी भी आई थीं. सिर्फ उस की नानी ही उस से इन दिनों बात किया करतीं और उस का खयाल रखा करती थीं. 27 अगस्त को घर में हर कोई मौजूद था. उस के पापा भी उस दिन काम से नहीं निकले थे. करीब सुबह 11 बजे के आसपास अभिषेक ने घर में किसी को कुछ नहीं बताया और घर से थोड़ा टहलने के लिए निकल गया.

विजय नगर के पास ही एक जगह पर उस का दोस्त कार्तिक दिल्ली से उस से मिलने आया था तो अभिषेक वहीं चला गया. जब वह अपने पक्के यार कार्तिक से मिल कर दोपहर को ढाई बजे के करीब घर पर लौटा तो उस ने देखा कि घर में सभी कमरे बाहर से बंद थे. उस ने कमरा खटखटाया लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उस ने अपनी बहन नेहा को फोन मिलाया लेकिन घंटी बजती रही. अभिषेक ने उस के बाद अपनी मां के नंबर पर फोन किया. इस बार रिंगटोन जोर से बजी और ये समझ आया कि फोन घर पर ही है लेकिन किसी ने भी नहीं उठाया. हार मान कर उस ने अपने पिता के नंबर पर फोन किया लेकिन वही हुआ जो अभी तक होता आ रहा था, किसी ने फोन नहीं उठाया और कोई जवाब नहीं मिला.

घर के सदस्यों को लगातार फोन करने का सिलसिला काफी देर तक चलता रहा लेकिन जब अभिषेक को कुछ गड़बड़ होने का अंदेशा हुआ तो उस के दिल में घबराहट पैदा हो गई. अभिषेक ने बिना किसी देरी के अपने पापा के साथ प्रौपर्टी डीलिंग में पार्टनर और उस के मामा प्रवीण, जोकि सांपला के रहने वाले थे, को फोन मिलाया. उस ने हड़बड़ाते हुए कहा, ‘‘मामा, घर पर कोई फोन नहीं उठा रहा, दरवाजा भी लौक हो रखा है. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या हुआ है. अंदर से किसी की आवाज नहीं आ रही है..’’

उस के मामा प्रवीण ने उसे हौसला रखने को कहा, ‘‘अरे चिंता मत कर, मैं देखता हूं एक बार.’’ घर के बाहर जुट गई भीड़ यह कहते हुए प्रवीण ने भी एक एक कर सब के नंबर पर फोन किया. जब उन का फोन भी किसी ने नहीं उठाया तो बिना देरी किए प्रवीण ने अपनी गाड़ी निकाली, उस से तुरंत ही अभिषेक के घर के लिए निकल गए और रास्ते में उन्होंने अभिषेक को फोन किया. प्रवीण ने अभिषेक से कहा, ‘‘सुन अभिषेक, मैं अपने घर से निकल गया हूं वहां आने के लिए. तू घबरा मत. मैं 15 मिनट में पहुंच जाऊंगा. तब तक मैं कुछ जानकारों को फोन कर के वहां पहुंचने के लिए कहता हूं.’’

प्रवीण ने ये कह कर फोन काट दिया और अपनी कार में बैठेबैठे उन्होंने उसी इलाके में अपने जानकारों को फोन कर जल्द से जल्द अभिषेक के घर पर पहुंचने को कहा. उधर देखते ही देखते मलिक परिवार के घर के आगे लोगों की भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी. अभिषेक के साथ मिल कर कुछ लोग घर का दरवाजा तोड़ने में लगे थे, जोकि आसान काम बिलकुल भी नहीं था. अभिषेक के घर से लग कर साथ वाले मकान से तमाशा देख रहे लोगों ने उसे अपनी छत से उस के घर में प्रवेश करने के लिए कहा तो अभिषेक भाग कर उन की छत पर जा पहुंचा और छत फांद कर वह अपने घर में जा घुसा.

घर में घुसते ही उस ने सब से पहले नीचे आ कर मकान का मेन गेट खोला और एकएक कर बाकी लोग उस के घर में आ घुसे. ग्राउंड फ्लोर में जिस कमरे में अभिषेक ने आखिरी बार अपने पापा को देखा था उस के नीचे से खून बह रहा था. ये देख कर अभिषेक की आंखों से आंसू बहने शुरू हो गए और बाकी लोग दंग रह गए. सब लोगों ने मिल कर कमरे का दरवाजा तोड़ा और अंदर प्रदीप मलिक उर्फ बबलू पहलवान की लाश सोफे पर बैठी हालत में मिली. यह देख कर अभिषेक खुद को रोक नहीं पाया और वह जोरजोर से ‘पापा…पापा’ कहते हुए चिल्लाने लगा. इतने में उस के मामा प्रवीण आ पहुंचे और वह अपने बहनोई प्रदीप की लाश देख कर टूट गए.

लेकिन हिम्मत जुटाते हुए उन्होंने अभिषेक को ले कर ऊपर कमरे की ओर जाने को कहा, जहां घर के अन्य सदस्य मौजूद हो सकते थे. अभिषेक ने भी अचानक से अपने आंसू पोंछे और ‘नेहा…नेहा’ चीखतेचिल्लाते हुए वह घर की पहली मंजिल पर बने कमरे में जा पहुंचा.

यह कमरा भी बाहर से बंद था तो सब ने मिल कर दरवाजा तोड़ा और कमरे में घुसते के साथ अभिषेक और प्रवीण समेत बाकी सभी ने जो देखा उसे देख कर सभी के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई. पहली मंजिल के कमरे का दरवाजा टूटा तो अभिषेक ने सब से पहले अपनी मां संतोष देवी, उस के बाद अपनी नानी रोशनी देवी और अंत में अपनी बहन नेहा की लाश देखी. यह देख कर अभिषेक पागलों की तरह रोनेपीटने लगा. प्रवीण समेत मकान में मौजूद कुछ लोग अभिषेक को संभालने में लगे थे. अभिषेक का पूरा परिवार ही उजड़ गया था. वक्त बरबाद न करते हुए प्रवीण ने भीड़ से हटते हुए बाहर निकल कर पुलिस को फोन कर इस घटना की सूचना दी और पलक झपकते ही रोहतक के थाना शिवाजी कालोनी के थानाप्रभारी सुरेश कुमार टीम के साथ वहां पहुंच गए.

पुलिस की टीम के आते ही सब से पहले सभी लोगों को बाहर निकाला गया ताकि वहां से कुछ सबूत जुटाए जा सकें. घटनास्थल की जांच की गई. एकएक कर मृतकों के शरीर को लपेटते हुए बाहर निकाला गया और एक टीम ने इस हत्याकांड में एकमात्र बचे शख्स, अभिषेक का बयान लिया. शुरुआती पूछताछ में अभिषेक ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि प्रौपर्टी डीलर होने की वजह से उस के पिता की लोगों से दुश्मनी थी. उस ने एकदो लोगों के नाम भी पुलिस टीम को दिए. जानकारी मिलते ही शिवाजी कालोनी पुलिस थाने के थानाप्रभारी एसआई सुरेश कुमार ने मामले की जांच तुरंत शुरू कर दी. सभी की हत्या गोली मार कर की गई थी. घटनास्थल की काररवाई पूरी कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

टैक्निकल टीम की मदद ले कर घर के सभी लोगों की लोकेशन का पता लगाया गया और लाश की पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार किया गया. इस केस के जांच अधिकारी इंसपेक्टर बलवंत सिंह ने बारीकी से इस केस के संबंधित हर व्यक्ति की आखिरी लोकेशन का पता लगाया. लेकिन अभिषेक की लोकेशन और उस के द्वारा दिए गए बयान आपस में मेल नहीं खा रहे थे. इस बिंदु को संज्ञान में लेते हुए इंसपेक्टर बलवंत सिंह ने फिर से अभिषेक से पूछताछ की और अभिषेक ने अपना बयान बदल दिया. थानाप्रभारी को अभिषेक पर शक गहराता गया. उसी दौरान जब मृतकों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई तो अभिषेक पर शक की सुई और गहराती चली गई.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार पीडि़तों को गोली मारने का टाइम उस समय का था, जब अभिषेक अपने घर पर ही था. अंत में जब शक की सभी सुई अभिषेक पर आ रुकीं तो अभिषेक को हिरासत में लेते हुए इंसपेक्टर बलवंत सिंह से कड़ाई से पूछताछ की. इस पूछताछ के दौरान भी अभिषेक ने पुलिस टीम को गुमराह करने का प्रयास किया लेकिन उस का यह प्रयास व्यर्थ गया. इंसपेक्टर बलवंत सिंह और थानाप्रभारी रमेश कुमार ने अभिषेक को सब कुछ सचसच बताने को कहा. उन्होंने अभिषेक को बताया कि इस हत्याकांड के सारे सबूत उसी की ओर इशारा कर रहे हैं, बेहतर है की वह अब सच बता दे.

अभिषेक ने भी अंत में हार मान ली और जांच अधिकारी बलवंत सिंह को बताया कि उस ने अपने घर के 4 जनों को गोली मारी थी. इस चौहरे हत्याकांड की जो वजह सामने आई, वह इस प्रकार निकली. बात 3 साल पहले की है. अभिषेक ने जब 12वीं क्लास पास की तो उस के पिता प्रदीप मलिक ने उसे कोई भी एक स्किल कोर्स करने की सलाह दी. वैसे उन के पास पैसों की कभी कोई किल्लत नहीं थी. फिर भी प्रदीप रोहतक में प्रौपर्टी डीलिंग करते थे. वह चाहते थे कि अभिषेक भी खाली न बैठे. इसलिए उन्होंने उसे कुछ भी करने की छूट दे दी थी. तब अभिषेक ने जानबूझ कर रोहतक से दूर दिल्ली में स्थित एक इंस्टीट्यूट में एयरप्लेन कैबिन क्रू का कोर्स करने की जिद की.

प्रदीप मलिक ने अपने इकलौते बेटे की इच्छा का ध्यान रखते हुए उसे कोर्स करने के लिए दिल्ली जाने की इजाजत दे दी. तब अभिषेक ने दिल्ली जा कर एक इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया और उस के एक हफ्ते बाद ही उस की क्लासेज शुरू हो गईं. अभिषेक को उस दौरान पहली बार आजादी महसूस हुई थी. नए लोगों से मिलना उन से बातें करना उसे बेहद अच्छा लगने लगा. इंस्टीट्यूट में उस के बैच में सिर्फ 10-12 स्टूडेंट्स ही थे. सब से उस की अच्छी जानपहचान हो गई थी, लेकिन उन में से कार्तिक उस का करीबी दोस्त बन गया था. वह उत्तराखंड का रहने वाला था और दिल्ली में अपने रिश्तेदार के साथ रहता था.

अलग तरह की होती थी फीलिंग कार्तिक उस के सब से अच्छे दोस्तों में से एक बन गया था. उसे उस के साथ वक्त गुजारना अच्छा लगने लगा. दोनों मिल कर क्लास के बाद दिल्ली के अलगअलग जगहों पर घूमने निकल जाते, अच्छे होटल में खाना खाते. कभी स्टारबक्स, कभी मैकडोनल्डस, कभी केएफसी, कभी बर्गर किंग तरह तरह की जगहों पर अकसर वक्त गुजारते. वह जब कभी भी कार्तिक के साथ मिलता तो उस के शरीर में एक अलग तरह की सिहरन दौड़ जाती थी. उस का चेहरा और उस की बातें, उस की आंखों और दिल को सुकून देती थीं. कार्तिक के लिए उस के मन में एक अजीब तरह की फीलिंग महसूस होने लगी थी.

अभिषेक मन में कार्तिक को छूने की, उस के करीब रहने की बातें घूमती रहती थीं. वह भी उसे एक अच्छा दोस्त समझता था. लेकिन उसे यह नहीं पता था कि जो फीलिंग्स वह कार्तिक के लिए अपने मन में रखता है, क्या वह भी उसे उसी तरह से देखता है या नहीं. 2 सालों तक वह दिल्ली में कार्तिक के साथ इसी तरह से मिला करता था. लेकिन एक दिन अभिषेक ने कार्तिक को अपने घर पर आने का न्यौता दिया. वह उस के घर पर आया. उस के पूरे परिवार से मिला. उस के घर पर सभी को पता था कि वे दोनों बेहद अच्छे दोस्त हैं. ऐसे ही एक दिन जब कार्तिक उस के घर पर आया तो वह दोनों लैपटोप पर फिल्म देख रहे थे. वह अभिषेक से चिपक कर बैठा था. उस का ध्यान फिल्म पर बिलकुल भी नहीं था.

न जाने उसी वक्त उसे क्या हुआ कि उस ने कार्तिक को उस की गरदन पर चूम लिया. खुद को लड़की मानता था अभिषेक अभिषेक की इस हरकत का कार्तिक ने बुरा नहीं माना बल्कि उस ने उस का हाथ पकड़ लिया और उस ने भी अभिषेक की गरदन पर चूम लिया. इस अहसास को अभिषेक ने इस से पहले कभी महसूस नहीं किया था. कुछ इस तरह से उस के और कार्तिक के बीच संबंध बनने शुरू हुए. जिस के बाद वे दोनों अकसर होटल में मिलते और अपनी जरूरतों को पूरा करते. 3 साल का उन का कैबिन क्रू का कोर्स खत्म हुआ तो अभिषेक अपने घर आ गया. तब उस का दिल्ली जा पाना और कार्तिक से मिलना मुश्किल हो गया. तब वह कार्तिक को मिलने के लिए अकसर रोहतक में बुला लिया करता था.

पहले के मुकाबले उन की मुलाकात अब ज्यादा दिनों में होती. बढ़ते गैप के साथसाथ उन दोनों के मन में एकदूसरे के लिए फीलिंग्स और भी ज्यादा बढ़ने लगीं. कार्तिक के बिना उस के लिए एक पल भी गुजारना मुश्किल होने लगा था. अगर वह नहीं मिल पाते तो घंटों फोन पर एकदूसरे से बातें करते. कार्तिक से मिलने के बाद अभिषेक ने खुद को अन्य लोगों से अलग महसूस किया. अकसर उस के मन में आता कि बेशक वह लड़का है, लेकिन अंदर से वह खुद को लड़की मानने लगा था. घर में अकेले होता था तो वह अपनी बहन नेहा के कपड़े पहन कर और मेकअप कर के देखता कि कैसा दिखाई देता है. वह पूरी तरह से खूद को बदलाबदला सा महसूस करता. अभिषेक की अब हलके और चटक रंग के कपड़ों में दिलचस्पी बढ़ने लगी थी. उस की पसंद में पूरी तरह से बदलाव आ गया था.

ऐसे ही साल 2020 के अगस्त के महीने में अभिषेक ने यह तय कर लिया था कि वह खुद को अंदर से जैसा महसूस करता है, वैसा ही वह हकीकत में बनेगा. यानी वह लड़की बनना चाहता था. इस संबंध में उस ने इंटरनेट पर सर्च करना शुरू कर दिया. उसे पता चला कि औपरेशन के जरिए एक इंसान अपना लिंग बदल सकता है. अभिषेक इस बारे में पूरी जानकारी हासिल करना चाहता था, इसीलिए वह घंटों इंटरनेट पर इसी के संबंध में सर्च करता रहता, पढ़ता रहता और वीडियोज देखता. वह भारत में सैक्स चेंज का औपरेशन करने वाले क्लिनिक या हौस्पिटल के बारे में पता करने लगा. धीरेधीरे उस ने इस औपरेशन में आने वाला खर्चा, सारी सावधानियां, सभी ऐहतियात सब के बारे में पता कर लिया.

अब वह अपने जीवन में एक अहम पड़ाव पर आ कर फंस गया था, उसे एक ऐसा फैसला करना था जिस के बाद उस की पूरी जिंदगी बदल जाती. उस ने दिनरात इस के बारे में सोचा. उस ने इस की भनक कार्तिक को बिलकुल भी नहीं होने दी, क्योंकि वह उस के साथ रिश्ते में बंधने के लिए उसे सरप्राइज देना चाहता था. अंत में उस ने फैसला कर ही लिया कि उसे क्या चाहिए. उस ने अपने लिए खुद को चुना, कार्तिक को चुना क्योंकि वही उस की खुशियां बनने वाला था. उस ने औपरेशन के लिए खुद को तैयार कर लिया, लेकिन उस के लिए उसे पैसों की जरुरत थी.

नए साल 2021 की शुरुआत में ही अभिषेक ने अपने पापा से 5 लाख रुपए मांगे. उसे लगा कि हर बार की तरह वह इस बार भी नहीं पूछेंगे कि उसे इतने पैसे किसलिए चाहिए. लेकिन इस बार इतनी बड़ी रकम मांगने पर उन्होंने उस से पूछ ही लिया कि उसे ये पैसे किसलिए चाहिए. तब अभिषेक ने उन से झूठ बोला कि उसे किसी काम के लिए चाहिए तो उन्होंने साफ मना कर दिया. फिर अभिषेक ने पैसों के लिए अपनी मम्मी के पास जा कर एप्रोच किया. मम्मी उसे पैसों के लिए कभी भी मना नहीं करती थीं, लेकिन इतनी बड़ी रकम सुन कर उन्होंने भी मना कर दिया था. बहन को बता दी मन की बात वह पैसों का जुगाड़ नहीं कर पा रहा था. उसे इस औपरेशन के लिए जल्द से जल्द पैसे चाहिए थे.

कार्तिक से दूरी वह अब बरदाश्त नहीं कर पा रहा था. हार मान कर उस ने यह बात अपनी बहन नेहा को बता दी कि उसे किसलिए पैसों की जरूरत है. अभिषेक को लगा कि एक लड़की और मेरी बहन होने के नाते वह उस की फीलिंग्स की कदर करेगी और उस की बातों को समझेगी. लेकिन अफसोस ऐसा नहीं हुआ. जिस रात उस ने नेहा को पैसे मांगने का कारण बताया उस के अगले दिन नेहा ने उस की गैरमौजूदगी में पापा और मम्मी को ये बात बता दी कि अभिषेक पैसे किसलिए मांग रहा है. उस दिन अभिषेक बाहर किसी काम से निकला था, लेकिन जब वह घर लौटा तो पापा और मम्मी का चेहरा देख कर उसे अंदाजा हो गया था कि नेहा ने इन्हें सब कुछ बता दिया है. पापा और मम्मी ने उसे अपने कमरे में बुलाया और उन्होंने उसे यह खयाल अपने दिमाग से निकाल देने की नसीहत दी.

लेकिन अभिषेक नहीं माना. उस ने उन के सामने ही उन की बातों को मानने से इंकार कर दिया. गुस्से में मम्मी तो कमरे से निकल गईं, लेकिन पापा ने उस दिन उसे बहुत मारा. इस के साथ ही उन्होंने अपनी सारी प्रौपर्टी नेहा के नाम कर देने की धमकी भी दे डाली. पापा ने कभी भी अभिषेक पर हाथ नहीं उठाया था लेकिन जब उन्होंने उस दिन उसे पीटा तो उस ने उसी दिन यह तय कर लिया था कि उसे अब किसी भी हालत में अपना सैक्स बदलना है. उस दिन के बाद अभिषेक पर घर में हर काम के लिए बंदिशें लगने लगीं. उसे अपने कमरे के दरवाजे को अंदर से बंद करने के लिए मना कर दिया गया. कुछ दिनों के लिए उस का फोन छीन लिया गया. घर में इंटरनेट कनेक्शन भी कटवा दिया गया.

इतना ही नहीं, उस ने सारे दोस्तों को घर पर आनेजाने के लिए मना कर दिया गया. उसे घर पर हर कोई अजीब नजरों से देखने लगा. यहां तक कि नानी को भी इसलिए बुलाया गया था ताकि वह उसे इस के लिए समझाए कि सैक्स चेंज कराना अच्छी बात नहीं है. अभिषेक को उस के ही घर में ऐसी पैनी और शक भरे अंदाज में देखा जाता था जैसे उस ने यह सोच कर ही कोई बहुत बड़ा गुनाह कर लिया हो. उसे अपने ही घर में घुटन होने लगी थी. उसे लगता था जैसे वह किसी जेल में फंसा है. वह जानता था कि लोग लड़के से लड़के का प्यार करना बरदाश्त नहीं करते, इसलिए उस ने यह सोच रखा था कि वह सैक्स चेंज करवाने के बाद कार्तिक के साथ भारत में नहीं तो किसी दूसरे देश में रह लेगा. क्योंकि भारतीय समाज में समलैंगिकों को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता.

7 अगस्त के दिन अभिषेक ने यह तय कर लिया था कि अगर उस के घर वाले उसे पैसे नहीं देंगे तो वह उन्हें जान से मार देगा. उस ने इस के लिए प्लानिंग कर ली थी. जब उसे उस का फोन दोबारा से दिया गया तो वह अपने घर वालों को जान से मारने के लिए तरह तरह के तरीके इंटरनेट पर सर्च करने लगा. उस ने देखा कि ऐसी चीजें इंटरनेट पर नहीं मिलतीं तो उस ने टीवी पर आने वाले क्राइम शो के एपिसोड गौर से देखने शुरू किए. उस ने कुछ दिनों तक उन शोज को देखा और अंत में उसे आइडिया मिल ही गया कि इस काम को कैसे अंजाम देना है. पिता की पिस्तौल ही बनी कालदूत चूंकि प्रदीप मलिक प्रौपर्टी डीलर थे तो इस धंधे में दुश्मनी होना आम बात थी. उन्होंने अपने पास बिना लाइसैंस वाली पिस्तौल रखी थी.

15-16 साल की उम्र में उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग भी दे दी थी. अभिषेक किसी तरह उस पिस्तौल को ढूंढना चाहता था. ऐसे ही एक दिन जब प्रदीप मलिक घर पर नहीं थे, मम्मी अपने काम में बिजी थीं और नेहा सो रही थी तब अभिषेक ने स्टोर रूम में उस पिस्तौल को ढूंढ निकाला. उसे उस की गोलियां भी उसी डब्बे में रखी मिल गई जिस में वह पिस्तौल छिपाई गई थी. इस के बाद अभिषेक ने वह पिस्तौल अपने पास रख ली और सही मौके का इंतजार करने लगा. 25 अगस्त, 2021 को उस ने कार्तिक को मिलने के लिए रोहतक बुला लिया और अपने घर वालों से काम का बहाना कर उस से मिलने चला गया.

उस दिन कार्तिक से मिल कर अभिषेक ने अपने दिल के सारे अरमान पूरे कर लिए. उस ने उसे बीते कुछ दिनों में उस के साथ क्याक्या हुआ, उस की भनक तक नहीं लगने दी. कार्तिक को तो अंदाजा भी नहीं था कि वह उस के साथ इस रिश्ते में बंधने के लिए कितना बड़ा कदम उठाने जा रहा है. 26 अगस्त, 2021 को जब वह उस से मिल कर अपने घर वापस आया तो रात को उस ने अंतिम फैसला ले लिया कि उसे क्या करना है. वह अगले दिन का इंतजार करने लगा. 27 अगस्त की सुबह करीब साढ़े 11 बजे उस ने सब से पहले अपने कमरे में म्यूजिक सिस्टम को फुल वौल्यूम में किया.

उस के बाद निर्दयी बन चुका अभिषेक सब से पहले नेहा के कमरे में गया. वह गहरी नींद सोई हुई थी. उस ने पिस्तौल अपनी कमर में खोंस रखी थी. उस ने अंदर से नेहा के कमरे का गेट बंद किया, मोटा तकिया लिया और पिस्तौल को पूरी तरह से ढंक लिया ताकि आवाज बाहर न निकल सके. उस के सर के सामने जा कर उस ने उस के भेजे में एक गोली दाग दी. अभिषेक को लगा था कि शायद गोली चलने की आवाज घर में गूंज गई होगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. उस के बाद वह नानी के पास गया और उन्हें बोला कि नेहा उन्हें बुला रही है. नानी थोड़ी देर रुकीं और उस के कमरे की ओर चल पड़ीं.

पीछेपीछे वह भी उन के साथ गया. पहली मंजिल पर कमरे में घुसते के साथ ही उस ने नानी को धक्का दे दिया और दोबारा से तकिया ले कर उन के सर पर उसी तरह से गोली चला दी जैसे नेहा पर चलाई थी. गोली मारने के बाद उसे लगा कि मम्मी उस का नाम ले कर उसे आवाज लगा रही हैं. वह नीचे गया तो मम्मी ने उस से पूछा कि नानी कहां हैं तो अभिषेक ने ऊपर नेहा के कमरे का इशारा कर दिया. उस की मम्मी भी बिना देरी के नेहा के कमरे की ओर चल पड़ीं. मम्मी को भी उस ने नानी की तरह पीछे से धक्का दिया और तकिए का इस्तेमाल कर उन के सर में एक गोली दाग दी.

उस के बाद सिर्फ पापा ही बचे थे. पापा ग्राउंड फ्लोर पर अपने कमरे में दरवाजा लगा कर अपने फोन में यूट्यूब देख रहे थे. वह उन के कमरे में दाखिल हुआ. उन्होंने उसे अंदर आते हुए देखा लेकिन कुछ नहीं कहा. वह चुपचाप उन के पीछे गया. टीवी का रिमोट लेने के बहाने उन के पीछे से सर पर 2 गोलियां दाग दीं. उस ने देखा कि 2 गोलियां लगने के बाद भी पापा का शरीर हरकत कर रहा है तो उस ने एक और गोली उन के सर पर दाग दी. अभिषेक ने क्राइम शो में देखा था कि हत्या करने वाला अकसर घटनास्थल को बिगाड़ देता है ताकि मामला लूट का लगे. उस ने भी वही किया. उस ने पापा के कमरे में सारे सामान को इधरउधर बिखेर दिया.

उस के बाद वह ऊपर गया और नेहा के कमरे में भी ऐसा ही किया. उसी बीच उस ने मां के कानों और गले में पहनी हुई सोने की ज्वैलरी निकाल ली. फिर दरवाजा बंद किया. वह दरवाजा दोनों तरफ से बंद हो जाता था. इस के बाद जिस होटल में कार्तिक रुका हुआ था वहां चला गया. कमरे में कार्तिक के साथ वह हमबिस्तर हुआ और उस के बाद उस ने खाना मंगवाया. लेकिन अभिषेक को भूख नहीं थी, इसलिए उस ने कुछ भी नहीं खाया. दोपहर को करीब दोढाई बजे के आसपास वह घर गया. और दरवाजा न खुलने का नाटक कर के उस ने सोनीपत में रहने वाले मामा प्रवीण को फोन मिलाया. उस ने उन्हें बताया कि घर पर कोई भी फोन नहीं उठा रहा और दरवाजा भी बंद है. बाद में दरवाजा तोड़ा गया तो घटना सामने आई.

कुछ ही देर में पुलिस आई और जब पुलिस ने अभिषेक से पूछताछ की तो विरोधाभासी बयानों से उस की पोल खुल गई. तब अभिषेक ने अपना गुनाह पुलिस के सामने कुबूल कर लिया. पुलिस की टीम ने आरोपी अभिषेक मलिक से विस्तार से पूछताछ कर अस्पताल में उस की जांच कराई तो मनोचिकित्सक ने अपनी प्राथमिक जांच में पाया कि अभिषेक उर्फ मोनू ने अपने पिता प्रदीप मलिक उर्फ बबलू पहलवान, मां बबली, बहन तमन्ना और नानी रोशनी देवी की हत्या पूरे होशोहवास में रहते हुए की थी. इस के बाद पुलिस ने हत्यारोपी अभिषेक को कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया. Social Stories.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Social Stories : वाराणसी की पोश कोलोनी में सजता देह व्यापार

Social Stories : वाराणसी को पौराणिक नगरी के रूप में जाना जाता है. इस के अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते भी शहर का महत्त्व बढ़ गया है. लौकडाउन खुलने के बाद इस शहर में भी जिस्मफरोशी के धंधे में इजाफा हुआ है. मडुआडीह इलाका तो देहव्यापार के रूप में ऐसा उभर रहा है कि…

कोरोना कर्फ्यू का वीकेंड यानी शनिवार का दिन था. चेतगंज की थानाप्रभारी इंसपेक्टर संध्या सिंह लौकडाउन के दौरान सुबहसुबह साढ़े 6 बजे के करीब चाय की चुस्कियों के साथ इलाके का एक बार मुआयना करने की योजना बना रही थीं. तभी अचानक 4 लोग थाने  में आए.

उन्हें देख कर वह बोलीं, ‘‘जी, बताइए मैं आप लोगों की क्या मदद कर सकती हूं?’’

एक आगंतुक दाएंबाएं देखता हुआ हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, हम लोग पिशाचमोचन क्षेत्र के रहने वाले हैं. हमारे मोहल्ले के एक मकान में इन दिनों तरहतरह के लोगों का आनाजाना होने लगा है.’’

‘‘तरहतरह के लोगों से आप का क्या मतलब है?’’ संध्या सिंह ने पूछा.

‘‘हमें संदेह है कि मकान में कोई गलत काम होता है. क्योंकि वहां हमेशा नएनए लोग आतेजाते देखे गए हैं. प्लीज, आप वहां की जांच कीजिए, अपने आप पता चल जाएगा कि बात क्या है.’’

उस व्यक्ति की बात पूरी होते ही साथ में आया दूसरा व्यक्ति बोल पड़ा, ‘‘जी मैडम, वहां की संदिग्ध गतिविधियों का खुलासा हो जाएगा.’’

‘‘वे किस तरह के लोग होते हैं?’’ संध्या को अधिक जानने की जिज्ञासा हुई.

‘‘मैडमजी, आनेजाने वाले लोग दिखने में संभ्रांत लगते हैं, वे 40-45 की उम्र के दिखते हैं. उन के हाथों में रैपर में लिपटा कोई न कोई गिफ्ट पैकेट भी होता है.’’ एक अन्य व्यक्ति बोला. मोहल्ले के लोगों की बातों को गौर से सुनने के बाद संध्या सिंह ने शिकायत करने वालों के नाम और कौन्टैक्ट के लिए मोबाइल नंबर के साथ कुछ पौइंट नोट कर लिए और छानबीन करने का आश्वासन दे कर उन्हें जाने को कहा. पिशाचमोचन मोहल्ले के नागरिकों द्वारा बताई गई बातों पर गौर करते हुए उन्होंने तुरंत एसीपी (चेतगंज) नितेश प्रताप सिंह को भी अवगत करवा दिया. उन्हें शिकायत संबंधी पूरी जानकारी दी.

मामला उत्तर प्रदेश के पौराणिक शहर वाराणसी का था. ऊपर से यह देश के प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र है. इसे देखते हुए पुलिस ने संदिग्ध मकान में छापेमारी की योजना बना ली. संध्या सिंह सहित पुलिस टीम में कुछ और महिला पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. सूचना के आधार पर एक पुलिसकर्मी ने पिशाचमोचन स्थित मकान नंबर सी 21/24 के मुख्य गेट पर दस्तक दी. उस की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. कई बार आवाज लगाने और गेट पीटने के बाद तो एक उम्रदराज व्यक्ति ने मुख्य गेट का चैनल खोल कर बाहर की ओर झांकते हुए तेज आवाज में पूछा, ‘‘कौन है?’’

बाहर पुलिस टीम को देख कर उस की आवाज धीमी पड़ गई. वह धीमे से बोला, ‘‘क्या बात है भई, आप लोग यहां?’’

उस का कोई जवाब दिए बगैर पुलिस टीम गेट को एक झटके में बाहर की ओर खोलते हुए मकान के भीतर धड़धड़ाती हुई घुस गई. कुछ पल में ही पूरी पुलिस टीम एक कमरे में थी. सभी पुलिसकर्मी संदिग्ध निगाहों से कमरे में इधरउधर देखने लगे. संध्या सिंह की पैनी निगाहें कुछ तलाशने की स्थिति में थीं. पुलिस की निगाह कमरे से जुड़े एक दरवाजे की तरफ गई. वहां का परदा हटाते ही एक महिला पुलिसकर्मी अनायास बोल पड़ी, ‘‘मैडमजी, इधर देखिए… ये दुष्ट लोग.’’

जब संध्या ने उस कमरे में जा कर देखा तो उन की आंखें भी फटी की फटी रह गईं. अंदर का नजारा देख कर महिला पुलिसकर्मी शर्म से आंखें झुकाए तुरंत बाहर आ गई. जबकि एसीपी चेतगंज ने फौरन कड़क आवाज में सभी को कपड़े पहन कर बाहर आने को कहा.

एसीपी ने कमरे से बाहर आ कर पूछा, ‘‘मकान का मालिक कौन है?’’

वहीं पास खड़े व्यक्ति ने कहा, ‘‘जी मैं हूं.’’

‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’ एसीपी बोले.

‘‘सुरेश कुमार,’’ वह व्यक्ति बोला.

‘‘ये सब यहां क्या है? कौन हैं  ये लोग?’’

तब तक कई लड़कियां और लड़के अंदर के कमरे से बाहर आ चुके थे. उन की ओर ऊंगली उठाते हुए एसपी ने पूछा. अब सुरेश को काटो तो खून नहीं. वह हक्काबक्का डरी जुबान में बोला, ‘‘साहब, मैं इन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता, केवल इतना जानता हूं कि ये लोग किसी कंपनी में काम करते हैं.’’

मकान मालिक की बात पूरी होने वाली ही थी कि तभी इंसपेक्टर संध्या सिंह एक जोरदार तमाचा जड़ते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारे मकान में कोई इस प्रकार से रह रहा है और तुम्हें कोई जानकारी नहीं. वह भी एकदो नहीं कई लोग.’’

‘‘…जी…जी साहब, मैं सच कह रहा हूं, मुझे कुछ नहीं पता.’’

इतना कहने पर उस के गाल पर दूसरा जोरदार तमाचा पड़ा. लेडी पुलिस से कई लोगों के सामने तमाचा खा कर वह शर्मसार हो गया.

संध्या सिंह बोलीं, ‘‘जब तुम्हें इन लोगों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी तो फिर उन्हें कमरा किराए पर कैसे दे दिया था?’’

इस का जवाब देने के बजाय वह सिर झुकाए खड़ा रहा. पुलिस सभी को थाने ले आई. उन से अलगअलग गहन पूछताछ की जाने लगी.  इस दौरान कालोनी के कई लोग भी काफी संख्या में जमा हो गए. हर कोई जिज्ञासा भरी नजरों से देख रहा था. पूछताछ में कई बातें खुल कर सामने आईं. पुलिस टीम को मौके पर 2 युवतियां व 3 युवक बिलकुल आपत्तिजनक स्थिति में मिले थे. कमरे की तलाशी लेने के दौरान आपत्तिजनक सामग्रियों में कंडोम के पैकेट, 4 मोबाइल फोन व नशीली दवाएं बरामद हुईं. इस तरह से शहर की पौश कालोनी में सैक्स रैकेट गिरोह का परदाफाश हो चुका था. थोड़े समय में इस की खबर पूरे शहर में फैल गई थी. जिस का असर यह हुआ था कि मीडिया के लोग और कुछ समाजसेवी संगठन भी थाने पहुंच गए.

कुछ मानवाधिकार संगठन के लोगों ने चेतगंज थाने जा कर मामले की तह में जाने का दबाव बनाया. इस की सूचना काशी जोन के डीसीपी अमित कुमार को भी दी गई. वे भी चेतगंज थाने पहुंच गए. पूछताछ के दौरान पकड़ी गई 20 से 25 साल के बीच की उम्र वाली दोनों लड़कियों ने बताया, ‘‘उन्होंने नौकरी करने वाली बता कर कमरा किराए पर लिया था.’’

वह जानबूझ कर ऐशोआराम और मौजमस्ती की जिंदगी के लिए इस धंधे में उतरी थी. उसे अपनी शानोशौकत वाली जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए अत्यधिक पैसे की लालसा थी. पुलिस के अनुसार पढ़ाई के साथसाथ वे अन्य कामों के बहाने देह व्यापार के धंधे में उतर आई थीं. पूछताछ के दौरान 25 वर्षीय पारो (बदला हुआ नाम) ने बताया कि वह इस धंधे में पिछले 2 सालों से है. मोबाइल फोन की मदद से वह अपने इस धंधे को अंजाम देती है. इस के लिए उस ने अपना कोडवर्ड बना रखा है. उस के कोडवर्ड को ग्राहक ही समझ पाते हैं.

पारो ने अपने धंधे के बारे में आगे बताया कि उन के इस धंधे में कई लोगों का हिस्सा होता है. उन का वह नाम नहीं जानती है. हां, चेहरा देखने पर जरूर पहचान लेगी. पकड़े गए युवकों में एक रमेश 28 वर्ष, सुमित कुमार 29 वर्ष एवं राठौर 30 वर्ष ने बताया कि वे सभी वाराणसी शहर के ही निवासी हैं. पुलिस हिरासत में आने के बाद वे बारबार अपने बयानों को पलटते हुए अपना सही पताठिकाना बताने से कतराते रहे. उन का कहना था कि उन्हें वहां धोखे से लाया गया था, लेकिन जब पुलिस ने सख्ती दिखाई तब उन्होंने इस धंधे में शामिल होना स्वीकार कर लिया.

इसी प्रकार पुलिस टीम ने पकड़ी गई दूसरी लड़कियों और लड़कों से अलगअलग कमरों में पूछताछ के बाद पांचों के खिलाफ 29 मई, 2021 को देह व्यापार अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. उन की डाक्टरी जांच करवाई गई. बाद में उन्हें न्यायालय में पेश कर न्यायिकहिरासत में भेज दिया गया. कथा के लिखे जाने तक किसी भी आरोपी को जमानत नहीं मिल पाई थी.

—कथा में कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक एवं पुलिस सूत्रों व समाचार पत्रों पर आधारित है

 

Hindi Kahani : अनुराधा सिंह मिंटू ऐसे बनी लेडी डौन

Hindi Kahani : सूरतशक्ल से भले ही बहुत ज्यादा खूबसूरत नहीं है, लेकिन है वह बहुत आकर्षक. कंधे तक झूलते बाल उस के सांवले लंबे चेहरे पर खूब फबते हैं. उस की नाजुक कलाइयों में शायद ही कभी किसी ने चूडि़यां देखी हों. लेकिन एके 47 को वह खिलौने जैसे चलाती थी. अनुराधा सिंह चौधरी जब भी लोगों को नजर आई, पैंट शर्ट या टीशर्ट जींस जैसे वेस्टर्न लुक में नजर आई. साड़ी सरीखा कोई परंपरागत भारतीय परिधान पहने भी उसे किसी ने नहीं देखा.  लंबीदुबली, पतली छरहरी 36 वर्षीय इस महिला के चेहरे से दुनिया भर की मासूमियत टपकती थी लेकिन वह थी कितनी खूंखार इस का अंदाजा उस के गुनाहों की लिस्ट देख कर लगाया जा सकता है.

राजस्थान के सीकर के फतेहपुर के गांव अलफसर के एक मध्यमवर्गीय जाट परिवार में जन्मी अनुराधा का घर का नाम मिंटू रखा गया था. जब वह बहुत छोटी थी, तभी उस की मां चल बसी. पिता रामदेव की कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी, इसलिए वे नन्ही मिंटू को ले कर दिल्ली आ गए. यहां पैसा बरसा तो नहीं लेकिन कभी फांके की नौबत भी नहीं आई. मिंटू जैसेजैसे बड़ी और समझदार होती गई, उसे यह एहसास होता गया कि जिंदगी में अगर कुछ बनना है तो पढ़ाईलिखाई बहुत जरूरी है. लिहाजा उस ने दिल लगा कर पढ़ाई की और वक्त रहते बीसीए और फिर एमबीए की भी डिग्री ले ली.

निश्चित रूप से इस के पीछे उस की लगन का बड़ा हाथ था और तीक्ष्ण बुद्धि का भी जिस से अभावों में रहते और पढ़ते हुए उस ने कभी असफलता का मुंह नहीं देखा.  पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह स्थाई रूप से सीकर वापस आई तो वही हुआ जो इस उम्र में लड़कियों के साथ होना आम बात है. अनुराधा को फैलिक्स दीपक मिंज नाम के युवक से प्यार हो गया. दिल्ली में रहते उस ने फर्राटे से अंगरेजी बोलने के साथसाथ यह भी सीख लिया था कि प्यार निहायत ही व्यक्तिगत मामला है और हर किसी को अपनी जिंदगी के फैसले लेने का हक है. लिहाजा उस ने घर और समाज वालों के विरोध और ऐतराज की कोई परवाह नहीं की और दीपक से लवमैरिज कर ली.

यहां तक अनुराधा ने कुछ गलत नहीं किया था. दीपक के साथ वह खुश थी और आने वाली जिंदगी के सपने आम लड़कियों की तरह देखने लगी थी. शेयर बाजार का घाटा पहला मोड़ दीपक भी अनुराधा की तरह महत्त्वाकांक्षी था, जो सीकर में ही शेयर ट्रेडिंग का कारोबार करता था. अब पढ़ीलिखी अनुराधा भी उस के काम में हाथ बंटाने लगी तो उसे राहत मिली. लेकिन यह राहत जल्द ही आफत बन गई, क्योंकि शेयर मार्केट में खुद के लाखों और अपने क्लाइंट्स के करोड़ों रुपए इन दोनों ने तगड़े मुनाफे की उम्मीद में लगवा दिए थे. गलत नहीं कहा जाता कि शेयर मार्केट किसी का सगा नहीं होता, जिस ने इन दोनों के साथ जरूरत से ज्यादा सौतेलापन दिखाया.

मुनाफा तो रत्ती कौड़ी का भी नहीं हुआ, उलटे जब नुकसान होना शुरू हुआ तो पतिपत्नी दोनों घबरा उठे कि अब क्या करें. लेकिन अब करने को कुछ नहीं बचा था. कर्ज में डूबे दीपक और अनुराधा पर उन के कहने पर शेयरों में पैसे लगाने वाले रोजरोज तकाजा करने लगे थे, जिस से इन का खानापीना सोना तक दूभर हो चला था. अब अनुराधा को जिंदगी के असल मायने समझ आए कि पैसा कमाना कोई बच्चों का खेल नहीं और यूं ही शेखचिल्ली की तरह सपने देख कर कोई रातोंरात रईस नहीं बन जाता. उस की जिंदगी का यह ऐसा मोड़ था, जहां न तो पढ़ाईलिखाई काम आ रही थी और न ही प्यार कोई हिम्मत या ताकत दे पा रहा था. फिर किसी और से किसी तरह की उम्मीद लगाना एक फिजूल की बात थी.

लेनदारों के बढ़ते दबाब से निबटने के लिए उस ने जो रास्ता चुना या वह उसे आसानी और इत्तफाक से मिल गया था, जो हालांकि और भी ज्यादा सरदर्दी वाला था. लेकिन इस राह पर पहला कदम रखते ही उसे लगा कि जिंदगी के तमाम मकसद इसी से पूरे हो सकते हैं और यही रास्ता उसे मंजिल तक ले जा पाएगा जो फौरी तौर पर मौजूदा परेशानी से भी छुटकारा दिला रहा है. यह रास्ता जुर्म का था, जिस ने अनुराधा सिंह नाम की इस युवती की जिंदगी बदल डाली. जिंदगी सिर्फ अनुराधा की ही नहीं बल्कि राजस्थान के कुख्यात गैंगस्टर आनंदपाल सिंह की भी बदल गई, जिस से जुर्म का ककहरा अनुराधा ने सीखा था.

जब दीपक और अनुराधा लेनदारों के डर से मुंह छिपाने को मजबूर हो चले थे, तभी अनुराधा की मुलाकात राजस्थान के हिस्ट्रीशीटर बलबीर बानूड़ा से हुई. बलबीर खुद तो अनुराधा के लिए कुछ नहीं कर सका लेकिन जाने क्या सोच कर उस ने अनुराधा की मुलाकात आनद पाल सिंह से करवा दी. दोनों ने एकदूसरे को देखा, परखा और देखते ही देखते अनुराधा की सारी परेशानियां दूर हो गईं. आनंदपाल सिंह की दहशत राजस्थान में किसी सबूत या पहचान की मोहताज कभी नहीं रही, जिस के रसूख से सियासी गलियारे भी कांपते थे. राजपूत समुदाय के लोग उसे रौबिनहुड आज भी मानते हैं.

दूसरा मोड़ – आनंद की संगत आनंद ने अनुराधा को जुर्म की दुनिया के गुर और उसूल सिखाए तो उस के खुराफाती दिमाग की ट्यूबलाइट जोरों से चमकने लगी. अनुराधा ने देखा और महसूसा कि आनंद अपने रुतबे और दहशत को कैश नहीं करा पाता और थोड़े में ही संतुष्ट हो जाता है. उस का हुलिया और रहनसहन भी आम गुंडेमवालियों जैसा है तो उस ने आनंद को बदलना शुरू कर दिया. देखते ही देखते आनंद का हुलिया, आदतें, रहनसहन सब बदल गया और वह भी अपनी प्रेमिका की तरह फर्राटे से अंगरेजी बोलने लगा. कल तक देसी तरीके से रहने वाला यह जरायमपेशा मुजरिम फिल्मों के उन खलनायकों जैसा नजर आने लगा जो आलीशान इमारतों में रहते हैं. सर पर हैट लगाते टिपटौप दिखते हैं और अपराध करने का उन का अपना एक अलग स्टाइल होता है.

जैसे ही दीपक को पत्नी के एक जरायमपेशा गिरोह में शामिल होने की बात पता चली तो उस ने उस से नाता तोड़ लिया. अनुराधा के लिए भी अपने पहले प्यार के कोई माने नहीं रह गए थे. उस के अंदर की रूमानियत आनंद की संगत में कभी खत्म न होने वाली क्रूरता में बदल चुकी थी. इन दोनों ने फिर एकदूसरे से कभी कोई वास्ता नहीं रखा. हां, इतना जरूर हुआ था कि अब कोई उसे पैसे मांगने तंग नहीं करता था क्योंकि उस की पत्नी राजस्थान के डौन आनंदपाल सिंह की रखैल थी, जिस से पुलिस भी कांपती थी. न कहने की कोई वजह नहीं कि अनुराधा अब न केवल बिनब्याही पत्नी की हैसियत से बल्कि तेजतर्रार आला दिमाग की मालकिन होने की वजह से भी आनंद के गिरोह में नंबर 2 की हैसियत रखने लगी थी. जिस ने जरूरत से कम समय में हथियार चलाना सीख लिए थे.

गैंग और अपराध की दुनिया से जुड़े लोग उसे मैडम मिंज भी कहने लगे थे. यह सरनेम उसे पति से मिला था. अब अनुराधा ही किए जाने वाले अपराधों की प्लानिंग करने लगी थी. आनंद भी उस के ग्लैमर और अभिसार में डूबा अपनी पत्नी राज कंवर और बेटियों योगिता और चरंजीत कंवर चौहान को भूल चुका था. लेकिन तब तक एक बात वह अनुराधा को और अच्छे से सिखा चुका था कि अपराध की दुनिया उस कार सरीखी होती है जिस में रिवर्स गियर नहीं होता. खुद अनुराधा भी अब पीछे मुड़ कर देखने की ख्वाहिशमंद नहीं थी और कभी होती भी तो उस के जुर्मों का बढ़ता ग्राफ और मोटी होती पुलिसिया फाइल उसे ऐसा करने की इजाजत नहीं देते. उसे दौलत चाहिए थी जो उस पर छमाछम बरस रही थी.

बहुत जल्द वह पेशेवर मुजरिम बन गई थी और उस का नाम भी चलने लगा था. वह जहां से गुजरती थी, वहां लोगों के सर अदब से झुकें न झुकें खौफ से जरूर झुक जाते थे. और यही शायद अपनी जिंदगी का मकसद भी उस ने बना लिया था, जिस के अंजाम से भी वह वाकिफ थी लेकिन भयभीत कभी नहीं रही. अब वह धड़ल्ले से वारदातों को अंजाम देने लगी थी, खासतौर से अपहरण कर फिरौती वसूलना उस का पसंदीदा अपराध था जिस की वह विशेषज्ञ हो चली थी. अनुराधा ने पहला अपराध कब किया, यह अब शायद वह भी न बता पाए.

लेकिन बाकायदा वह चर्चा और सुर्खियों में साल 2013 में आई थी, जब उस पर रंगदारी का पहला मामला दर्ज हुआ था. तब पुलिस ने उस पर पहली दफा 10 हजार रुपए का इनाम भी रखा था. इस वक्त तक आनंद के सर कोई 5 लाख रुपए का इनाम घोषित था जो उस की मौत तक बढ़तेबढ़ते 10 लाख रुपया हो गया था. जाहिर है, खुद के नाम से पहला मामला दर्ज होने तक अनुराधा के किए जुर्म आनंद के खाते में दर्ज हो रहे थे. करीब 10 साल इन दोनों ने बिना किसी खास दिक्कत के गुजारे. लेकिन राजस्थान में बबंडर उस वक्त खड़ा हुआ, जब एक चर्चित हत्याकांड के गवाह का अपहरण हो गया.

दरअसल, 27 जून, 2006 को जीवनराम गोदरा नाम के शख्स की हत्या आनंद ने कर दी थी जिस से पूरा राज्य हिल उठा था. वारदात के दिन डीडवाना में जीवनराम जब अपनी दुकान के नीचे कुछ दोस्तों के साथ बैठा था, तभी आनंद और उस के साथियों ने दिनदहाड़े उसे गोलियों से भून दिया था.  तीसरा मोड़ – एक गवाह का अपहरण  दिलचस्प बात यह है कि जीवनराम और आनंद कभी पक्के दोस्त हुआ करते थे. साल 1992 में आनंद की शादी की रस्म बिन्नाइकी या बिंदौरी (एक रस्म जिस में दूल्हा अपने मोहल्ले या गांव में घूमता है)  को कुछ दबंगों ने रोक लिया था, तब जीवनराम ने ही उस की मदद की थी जो उन दिनों छात्र नेता हुआ करता था.

तभी से गुस्साए आनंद ने जुर्म का रास्ता पकड़ लिया था, लेकिन जीवनराम से उस की दुश्मनी की ठोस वजह किसी को नहीं मालूम सिवाय इस के कि बाद में कभी जीवनराम ने उस के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल कर दिया था. इस हत्याकांड की गूंज राजस्थान विधानसभा में भी सुनाई दी थी. जीवनराम का भाई इंद्रचंद्र गोदारा इस हत्याकांड का गवाह था, जिस की गवाही आनंद को लंबा नपवा देती. अपने आशिक को बचाने के लिए अनुराधा ने साल 2014 में इंद्रचंद्र को अगवा कर लिया और पुणे ले गई. तब उस के साथ गिरोह के और मेंबर भी थे. इंद्रचंद्र को पुणे के एक फ्लैट में बंधक बना कर रखा गया था, जिस ने एक दिन मौका पा कर एक पर्ची खिड़की से नीचे फेंक दी, जिस पर लिखा था, ‘मैं किडनैप हो गया हू और मुझे मदद की जरूरत है.’

पर्ची जिस ने भी पढ़ी, उस ने औरों को बताया तो फ्लैट के बाहर भीड़ इकट्ठा हो गई और फ्लैट को घेर लिया. तब अनुराधा और उस के गुर्गे बमुश्किल वहां से भागने में कामयाब हो पाए थे. जैसेतैसे बचतेबचाते वह राजस्थान वापस आ गई और आनंद के जेल में होने के चलते खुद उस का गैंग चलाने लगी. इस दौरान उस ने कारोबारियों को अगवा कर फिरौती से खूब पैसा कमाया. लेकिन उसे झटका तब लगा जब पुलिस ने साल 2017 में एनकाउंटर में नाटकीय तरीके से मार गिराया. इस मौत पर खूब बवाल मचा था. राजनीति भी हुई थी और राजपूत समुदाय के लोगों ने सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन भी किया था. तब प्रशासानिक हलकों खासतौर से पुलिस महकमे में यह चर्चा गर्म रही थी कि आनंद के मरने से उस की दहशत कम नहीं हुई है. क्योंकि उस की वारिस अनुराधा अब इस गैंग की कमान संभालेगी.

लेकिन यह आशंका पूरी तरह सच नहीं निकली, क्योंकि डरीसहमी अनुराधा फरार हो गई. जान बचाने के खौफ और गैंग के टूट जाने से वह इधरउधर भागती रही तो लोग उसे भूलने लगे. क्योंकि आनंद नाम की दहशत से तो राजस्थान आजाद हो ही चुका था. कहते हैं, हर कामयाब मर्द के पीछे किसी औरत का हाथ होता है लेकिन अनुराधा पर यह कहावत उलटी बैठती थी, जिस की कामयाबी के पीछे हर बार मर्द का हाथ रहा. अब तक वह इतनी बदनाम और वांटेड हो चुकी थी कि चाह कर भी जुर्म की दुनिया नहीं छोड़ सकती थी. जिस दिन वह पहचान ली जाती तय है, उसी दिन पुलिस की मेहमानी करती भी नजर आती.

काला से मुलाकात चौथा मोड़ इसी फरारी के दौरान सहारा और संरक्षण ढूंढती अनुराधा लारेंस विश्नोई गैंग में शामिल हो गई. मकसद था जैसे भी हो पुलिस से बचना. हालांकि जुर्म की दुनिया में भी उस के खासे चर्चे और किस्से फैल चुके थे. इस नए गिरोह यानी लारेंस विश्नोई से उस की पटरी ज्यादा नहीं बैठी और जल्द ही वह काला जठेड़ी उर्फ संदीप के संपर्क में आई. आनंद की मौत से आया खालीपन उसे काला जठेड़ी से भरता नजर आया तो इस की वजहें भी थीं. दोनों में डील हुई और अनुराधा बगैर किसी एंट्रेंस एग्जाम के जठेड़ी गैंग में न केवल शामिल हो गई, बल्कि देखते ही देखते इस गैंग में भी उस ने वही जगह और रुतबा हासिल कर लिया, जो उसे आनंद के गैंग में हासिल था.

फर्क इतना भर आया कि दोनों ने इस डील के तहत हरिद्वार के एक मंदिर में विधिविधान से शादी कर ली. यह और बात है कि वे शुरू से ही रह तो पतिपत्नी की तरह ही रहे थे. काला जठेड़ी का असली नाम संदीप काला है, जो हरियाणा के सोनीपत के जठेड़ी गांव का रहने वाला है. गांव का नाम तो उस ने तखल्लुस की तरह जोड़ लिया था. संदीप को कम उम्र से ही जुर्म का चस्का सा लग गया था. 12वीं क्लास में आतेआते वह पेशेवर मुजरिम बन चुका था. पेट पालने के लिए उस ने केबल औपरेटर का काम शुरू किया था, लेकिन साल 2004 में झपटमारी के एक केस में वह पहली बार गिरफ्तार हुआ था.  कुछ साल बाद ही उस का नाम सांपला और गोहाना में हुई कत्ल की वारदातों से जुड़ गया. इस के बाद वह जुर्म की दुनिया का एक अहम और जरूरी नाम बनता गया.

हत्या, अपहरण, लूटपाट, जमीनों पर जायजनाजायज कब्जे और फिरौती वगैरह काला जठेड़ी की जिंदगी के हिस्से और किस्से बनते गए. नई दिल्ली और एनसीआर के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और पंजाब व उत्तराखंड में भी उस की तूती बोलने लगी थी. अपने गैंग में उस ने शूटरों की फौज भर रखी थी, जो उस की असली ताकत हुआ करते थे. पुलिस से आंख मिचौली काला के लिए रोजमर्रा की बात हो चली थी. दिनोंदिन उस का आतंक पुलिस के लिए सरदर्द बनता जा रहा था. क्योंकि ठिकाने बदलने में वह माहिर था. अनुराधा की आपराधिक जन्मपत्री से पूरे 36 गुण उस से मिले थे. उस में और आनंद में कई समानताएं अनुराधा को नजर आई थीं.

काला भी उस के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ था और उस के आला खुराफाती दिमाग का कायल हो गया था. काला की दहशत अपने इलाकों में ठीक वैसी ही थी, जैसी राजस्थान में आनंद की थी. उस के सर अगर 10 लाख का इनाम था तो काला पर भी हरियाणा पुलिस ने 7 लाख रुपए का इनाम रखा था. काला पर भी आनंद की तरह दरजनों मामले दर्ज थे. उस ने अनुराधा को अपने गिरोह में इसलिए भी आसानी से शामिल कर लिया था कि वह आनंद के गिरोह में काम कर चुकी थी इसलिए उसे हालात से निबटने का तजुर्बा था. दोनों को एकदूसरे की जरूरत थी, कारोबारी भी, जिस्मानी भी और जज्बाती भी. काला के गिरोह के मेंबर भी अनुराधा के एके 47 चलाने की स्टाइल से इतने इंप्रैस थे कि उन्होंने उसे रिवौल्वर रानी का खिताब दे दिया था. ठीक वैसे ही जैसे आनंद के गिरोह में मैडम मिंज का खिताब उसे मिला था.

पुलिस और खुफिया एजेंसियों से भी काला जठेड़ी और अनुराधा की जुगलबंदी की बात छिपी नहीं रह गई थी. लेकिन इन शातिरों को गिरफ्तार कर लेना कोई आसान काम भी नहीं था, जिन के खिलाफ मारे डर के कोई मुखबिरी करने भी तैयार नहीं होता था. फिर भी पुलिस की निगाह में तो यह नया क्रिमिनल कपल चढ़ चुका ही था. इंतजार था तो एक मुनासिब मौके का. काला को अनुराधा से एक फायदा आनंद की विरासत का भी मिला. राजस्थान में अब तक लेडी डौन के भी नाम से भी मशहूर हो चली अनुराधा ने फिर से अपहरण की वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया, क्योंकि वह यहां के चप्पेचप्पे से वाकिफ हो गई थी.

कुछ दिन पहले तक यानी आनंद की मौत के बाद अकेले रहते उस की हिम्मत राह चलते आदमी को छेड़ने की नहीं पड़ती थी, पर काला का साथ मिलते ही वह फिर से अपने पुराने फार्म में वापस लौट आई थी. फिर जैसे ही सागर धनखड़ हत्याकांड में नामी पहलवान सुशील कुमार का नाम आया तो दिल्ली फिर गरमा उठी. क्योंकि इस वारदात में एक और गैंगस्टर नीरज बबाना का भी नाम आया और काला जठेड़ी का भी आया, जिस से अपनी जान को खतरा जेल में बंद सुशील पहलवान ने जताया था. (इस हाई प्रोफाइल मामले के बारे में पाठक मनोहर कहानियां के पिछले अंक में पढ़ चुके हैं) अब पुलिस की स्पैशल सेल ने काला की तलाश को मुहिम की शक्ल दे दी तो वह भागता फिरा और देश के कई हिस्सों में उस ने फरारी काटी. इस दौरान अनुराधा उस के साथ ही रही.

जठेड़ी गैंग की दिलचस्पी दिल्ली-एनसीआर की झगड़े वाली जमीनजायदाद पर ज्यादा रहती थी, क्योंकि इस में मुनाफा ज्यादा होता है और रिस्क कम. जमीनों से कब्जे हटवाना और कब्जे करवाना इस गैंग के बाएं हाथ का खेल होता था. इस काम को अंजाम हथियारों के दम पर दिया जाता था. बड़ेबड़े बिल्डर्स से ले कर छोटेमोटे भूमि स्वामी तक जठेड़ी जैसे गैंगस्टर की सेवाएं लेते हैं क्योंकि मामला अगर अदालत में जाए तो वक्त और पैसा दोनों बरबाद होते हैं और जितना पैसा मुकदमेबाजी में लगता है उतने में ये गैंगस्टर रातोंरात पैसा देने वाले के हक में इंसाफ करा देते हैं. क्लाइमेक्स अनुराधा इस काम में सहायक भर थी, लेकिन जैसे ही काला की तलाश में पुलिस की स्पैशल सेल जुटी तो वह फिर चिंतित हो उठी.

क्योंकि अगर आनंद की तरह काला भी किसी एनकाउन्टर में मारा जाता तो वह फिर बेसहारा हो जाती. दूसरे गिरफ्तारी की तलवार अब उस के सर पर भी लटकने लगी थी.  दिल्ली में डर और खतरा इस बात का भी था कि कहीं गैंगवार न हो जाए क्योंकि जेल में बंद रहते अपना गिरोह चला रहे नीरज बबाना गैंग की पुरानी दुश्मनी काला से थी. लेकिन लारेंस विश्नोई के गैंग का साथ उसे मिला हुआ था. यह वही लारेंस विश्नोई है, जिस ने फिल्म अभिनेता सलमान खान को धमकी दे कर खूब सुर्खियां बटोरी थीं. पहलवान से मुजरिम बन चुके सुशील ने भी काला की सेवाएं और सहायता कुछ मामलों में ली थी. सागर धनखड़ की हत्या के वक्त सुशील और उस के साथियों ने एक और शख्स सोनू महाल की पिटाई की थी, जो काला का राइट हैंड है और रिश्ते में उस का भांजा भी लगता है. इसलिए सुशील उस से डरा हुआ था.

इस के पहले 2 फरवरी, 2020 को काला ने पुलिस कस्टडी से फरार हो कर सब को चौंका दिया था. इस दिन गुड़गांव पुलिस उसे एक पेशी के लिए फरीदाबाद अदालत ले गई थी. वापसी में गुड़गांव रोड पर काला के गुर्गों ने फिल्मी स्टाइल में ताबड़तोड़ फायरिंग कर काला को छुड़ा लिया था, जिस से पुलिस की खासी किरकिरी हुई थी. यह मामला डबुआ थाने में दर्ज हुआ था. फरार हो कर वह कहां गया और छिपा, इस का अंदाजा कोई नहीं लगा पा रहा था. लेकिन यह अंदाजा हर किसी को था कि अनुराधा उस के साथ है. इन दोनों के नेपाल में होने का अंदेशा था, जबकि हकीकत में दोनों भारत भ्रमण करते आंध्र प्रदेश के अलावा पंजाब और मुंबई भी गए थे और बिहार के पूर्णिया में भी रुके थे. मध्य प्रदेश के इंदौर और देवास में भी इन्होंने फरारी काटी थी, हर जगह इन्होंने खुद को पतिपत्नी बताया और लिखाया था.

काला को घिरता देख अनुराधा ने 70 – 80 के दशक के मशहूर जासूसी उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के एक किरदार विमल का सहारा लिया, जिस ने पुलिस से बचने के लिए सरदार का हुलिया अपना लिया था. अपनी नई पत्नी के कहने पर काला विमल की तर्ज पर सरदार बन गया. उस ने अपना नया नाम पुनीत भल्ला और अनुराधा का नाम पूजा भल्ला रखा. दिल्ली का होने के चलते दोनों सिख समुदाय के रीतिरिवाजों और बोलचाल के लहजे से खूब वाकिफ थे, इसलिए कोई उन पर आसानी से शक नहीं कर सकता था. सोशल मीडिया पर भी दोनों ने नए नामों से आईडी बना ली थी.

इतना ही नहीं, अनुराधा ने जठेड़ी गैंग के गुर्गों को यह हिदायत भी दी थी कि अगर उन में से कोई कभी पुलिस के हत्थे चढ़ जाए तो काला के बारे में यही बताए कि वह इन दिनों नेपाल में है और वहीं से गैंग चला रहा है. इस हिदायत का मकसद पुलिस को भटकाए और उलझाए रखना था, जिस से वह यह सोचते इन की ढूंढाई में ढील दे दे कि जब वे भारत में हैं ही नहीं तो तलाश में यहां वहां सर खपाने से क्या फायदा. आनंद पाल के गिरोह में रहते अनुराधा कई बार नेपाल भी गई थी और वहां के अड्डों से भी वाकिफ थी, इसलिए वह काला को भी 2 बार नेपाल ले गई थी. मकसद था विदेश भागने की संभावनाएं टटोलना और जमा पैसों की ट्रोल को रोकना.

असल में नेपाल से हवाला के जरिए पैसे कनाडा के एक गैंगस्टर गोल्डी बरार को भेजे जाते थे, जिन्हें गोल्डी ई वालेट के जरिए पैसा इन दोनों को वापस भेज देता था और जांच एजेंसियों को हवा भी नहीं लगती थी कि मनी ट्रोलिंग कैसे और कहांकहां से हो रही है. अनुराधा के इसी खुराफाती दिमाग का आनंद भी कायल था और अब काला भी हो गया था, जिसे अनुराधा ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि वह भारत में फोन पर किसी से भी बात न करे. क्योंकि आजकल मुजरिम तक पहुंचने का सब से आसान और सहूलियत भरा जरिया और रास्ता यही होता है. अब काला को जिस से भी बात करनी होती थी तो वह विदेश में बैठे अपने किसी गुर्गे को बताता था कि उसे अमुक या फलां से बात करनी है.

विदेश में बैठा वह गुर्गा अपने एक फोन से अमुक या फलां को काल करता था और दूसरे से काला को, दोनों फोन के स्पीकर औन कर दिए जाते थे जिस से काला की बात आराम से यानी बिना किसी डर के अमुक या फलां से हो जाती थी. लेकिन इन दोनों को इल्म भी नहीं था कि पुलिस इन्हें पकड़ने के लिए कमर कस चुकी है जिसे आपरेशन ओपीडी- 4 नाम दिया गया है और उस की टीमें इन की टोह ले रही हैं और वही ट्रिक अपना रही हैं, जो इन्होंने अपना रखी है. काला और अनुराधा तक पहुंचने के लिए पुलिस की स्पेशल टीम ने लारेंस विश्नोई को मोहरा बनाया, जो जेल में बंद था. पुलिस ने अपने मुखबिरों के जरिए विश्नोई तक एक फोन पहुंचाया, जिस से वह अपने गुर्गों से बात करता रहा और पुलिस खामोशी से तमाशा देखती रही. एक बार वही हुआ जो पुलिस चाहती थी कि विश्नोई ने काला से भी बात कर डाली.

उस का फोन सर्विलांस पर तो था ही, जिस से उस के सहारनपुर के अमानत ढाबे पर होने की लोकेशन मिली. पुलिस तुरंत हरकत में आई और आसानी से काला और अनुराधा को गिरफ्तार कर लिया. दोनों हतप्रभ थे. उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि वे चूहेदानी में फंस चुके हैं. बिलाशक पुलिस की स्पैशल सेल ने दिमाग से काम लिया, जिसे उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल विश्नोई काला से जरूर बात करेगा और ऐसा ही हुआ भी. अनुराधा खुद को बहुत स्मार्ट और चालाक समझती रही थी, जो यह भूल चुकी थी कि कानून के हाथ वाकई बहुत लंबे होते हैं और यह कहने भर की बात नहीं है.

अब जेल में पड़ेपड़े अपनी गुजरी जिंदगी के बारे में सोचने का उस के पास वक्त ही वक्त है कि कैसे सीकर के छोटे से गांव में जन्मी मिंटू लेडी डौन बन गई और इस से उसे क्या हासिल हुआ.  दीपक से नाता तोड़ने के बाद वह भागती ही रही थी.  आनंद और काला के साथ रहते उसे पैसा तो खूब मिला लेकिन सुकून और औलाद के सुख से वह महरूम रही तो इस की जिम्मेदार भी वही है. जिस ने अपनी मरजी से जुर्म का रास्ता चुना था और दिलचस्प बात यह कि उस के दोनों आशिक भी कहीं के नहीं रहे. पहला एनकाउंटर में मारा गया तो दूसरा उसी की तरह जेल में पड़ा अपने गुनाहों की फेहरिस्त देखता अपने अंजाम का इंतजार कर रहा है. Hindi Kahani

 

Hindi Social stories : रियल लाइफ में तवायफ का किरदार

Hindi Social stories : रील लाइफ में तो कई अभिनेत्रियों ने तवायफ का किरदार निभाया, जिन्हें दर्शकों ने खुले मन से सराहा भी. इस के विपरीत आखिर ऐसी क्या वजह रहीं, जो अनेक अभिनेत्रियों को रियल लाइफ में जिस्मफरोशी के धंधे में उतरना पड़ा…

बौलीवुड की तमाम शीर्ष और सफल अभिनेत्रियां कभी न कभी तवायफ या वेश्या के किरदार में जरूर नजर आई हैं. यहां तक कि स्वस्थ पारिवारिक भूमिकाओं के लिए पहचानी जाने वाली जया बच्चन भी इस से अछूती नहीं रह पाईं. साल 1972 में प्रदर्शित फिल्म ‘बंसी बिरजू’ में वह तवायफ के रोल में नजर आई थीं. इस फिल्म में उन के अपोजिट अमिताभ बच्चन थे, जो उस वक्त फिल्म इंडस्ट्री में जमने के लिए हाथपैर मार रहे थे. ‘बंसी बिरजू’ अच्छे विषय पर आधारित होने के बाद भी चली नहीं और इस के बाद जया बच्चन ने इस शेड को नहीं दोहराया.

तवायफ समाज का जरूरी और महत्त्वपूर्ण हिस्सा शुरू से ही रही है, जिसे फिल्मों में तरहतरह से दिखाया गया है. मीना कुमारी की ‘पाकीजा’ से ले कर रेखा की ‘उमराव जान’ तक फिल्मी तवायफों ने दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है. रेखा ने तो रिकौर्ड दरजन भर फिल्मों में तवायफ की भूमिका निभाई है. ‘मुकद्दर का सिकंदर’ की जोहरा बाई लोगों के जेहन में लंबे वक्त तक बसी रही थी और नीचे के दर्शकों की पहली पसंद थी. पूजा भट्ट ने ‘सड़क’ फिल्म से वाहवाही बटोरी थी तो अपने करियर के उठाव के दौरान रति अग्निहोत्री ने भी ‘तवायफ’ फिल्म से अपने अभिनय की तारीफ उस समय आम दर्शक से करवा ली थी.

इस सवाल का जबाब ढूंढना बड़ा मुश्किल काम है कि क्यों तवायफ की भूमिका लगभग हर किसी एक्ट्रैस ने निभाई और उस रोल में दर्शकों ने उसे पसंद भी किया. फिर वो विद्या बालन अभिनीत ‘बेगम जान’ हो या फिर शर्मीला टैगोर की ‘आराधना’ हो, जिस में एक तवायफ के अंदर की ममता को दर्शक कभी भूल नहीं पाए. बात सिर्फ इन मानवीय और स्त्रियोचित संवेदनाओं की ही नहीं है, बल्कि तवायफों की भूमिका से जुड़ा एक दिलचस्प सच यह भी है कि इस में अभिनय प्रतिभा के प्रदर्शन की संभानाएं दूसरी किसी भूमिका से ज्यादा रहती हैं. यानी अभिनय की संपूर्णता इसी से है.

सच जो भी हो, पर हर फिल्म में यह भी दिखाया गया कि कोई भी औरत अपनी मरजी से तवायफ नहीं बनती, बल्कि मर्दों के दबदबे वाला समाज उसे किसी कोठे की जीनत बनने को मजबूर कर देता है या फिर वह सिर्फ पेट पालने या घर की जिम्मेदारियां निभाने के लिए इस घृणित और गंदे पेशे में आई. यानी यह बात हवाहवाई और फिजूल की है कि हर औरत के अंदर एक वेश्या या तवायफ होती है. हां, यह जरूर हर कोई मानता है कि एक तवायफ के अंदर एक औरत का वजूद हमेशा रहता है. फिल्मों के मद्देनजर तवायफ और वेश्या में एक बड़ा मौलिक फर्क यह है कि जरूरी नहीं कि हर तवायफ जिस्मफरोशी करती ही हो.

जिस्मफरोशी के धंधे पर बनी पहली सार्थक फिल्म ‘मंडी’ थी, जिस में शबाना आजमी, स्मिता पाटिल और नीना गुप्ता जैसी सधी अभिनेत्रियां थीं. श्याम बेनेगल की इस फिल्म का भी अपना अलग फ्लेवर था, जो यह तो एहसास करा गया था कि सभ्य समाज और राजनीति भी देहव्यापार के कितने नजदीक हैं. और नजदीक भी क्या, दरअसल उस का ही तिरस्कृत हिस्सा है, शरीर का ऐसा अंग है जो काट कर फेंक दिए जाने के बाद भी जिंदा रहता है. चेतना से आई क्रांति

‘मंडी’ से भी 13 साल पहले 1970 में बी.आर. इशारा निर्देशित फिल्म ‘चेतना’ प्रदर्शित हुई थी. रेहाना सुलताना और अनिल धवन अभिनीत इस फिल्म में एक वेश्या अपने प्रेमी के साथ घर बसाने का फैसला कर लेती है लेकिन सफल नहीं हो पाती. रेहाना ने कालगर्ल के रोल में जान डाल दी थी. उस समय इस फिल्म के बोल्ड सीन काफी चर्चित हुए थे और लोगों को समझ आया था कि एक मौडल कैसे पैसा कमाने के लिए दूसरों की रातें रंगीन करती है और दिन में धर्मस्थलों में माथा टेकती रहती है. बौक्स औफिस पर पैसा बरसाने बाली ‘चेतना’ फिल्म की दूसरी खूबी यह थी कि इस ने देहव्यापार के धंधे के नए तौरतरीके उधेड़ कर रख दिए थे. 1970 के दशक में कोठे उजड़ने लगे थे और शहर के बदनाम इलाके आबाद होने लगे थे.

इसी दौर में कालगर्ल्स की खेप आनी शुरू हो गई थी, जो मौडर्न और स्टाइलिश होती हैं. वे अपनी मरजी से धंधा करती हैं और अपनी फीस से कोई समझौता नहीं करतीं. यह कालगर्ल पढ़ीलिखी थोड़ी दार्शनिक और थोड़ीथोड़ी बुद्धिजीवी भी होती थीं, जो ग्राहक के साथ मांग पर सैरसपाटे के लिए भी चली जाती थीं. खूबी यह भी थी और है भी कि कालगर्ल इसे एक बेहतर वैकल्पिक प्रोफेशन मानती है और किसी तरह का अपराधबोध नहीं रखती. वह भावनात्मक के साथसाथ पुरुष के सैक्स स्वभाव और जरूरत को भी समझती है, जो इस पेशे की एक जरूरी और अच्छी बात भी है.

रेहाना सुलताना का फिल्मी सफर बहुत लंबा नहीं चला. ‘चेतना’ के बाद वह कम ही फिल्मों में दिखीं. लेकिन जातेजाते युवतियों के लिए यह मैसेज दे गईं कि मौडलिंग और फिल्मी दुनिया में जिस्म को दांव पर लगा कर भी जगह बनाई जा सकती है. जरूरत है बस थोड़े से टैलेंट, खूबसूरती और बड़े जोखिम उठाने की हिम्मत की. 70 के दशक में देश भर से एक्ट्रैस बनने के लिए लड़कियां मुंबई की ट्रेन पकड़ने लगी थीं. इन में से कुछ जगह बना पाने में कामयाब हुईं और कई गुमनामी और कमाठीपुरा जैसे बदनाम रेड लाइट इलाके की गलियों की खिड़की से झांकते ग्राहकों को इशारे करती नजर आईं. मुंबई की चकाचौंध और दौलत व शोहरत की कशिश कभी किसी सबूत की मोहताज नहीं रही.

हीरोइन बनने के लालच में आई अनेक युवतियां कोई भी समझौता करने लगीं. लेकिन मिलने के नाम पर अधिकांश को सी ग्रेड या एक्स्ट्रा के रोल मिले, इस के एवज में भी उन्हें निर्मातानिर्देशकों और दलालों का बिस्तर गर्म करना पड़ा. स्याह पहलू श्वेता का ऐसी ही एक एक्ट्रैस है श्वेता बसु प्रसाद, जिस ने इसी साल जनवरी में जिंदगी के 30 साल पूरे किए हैं. श्वेता हालांकि कोई बड़ा या जानामाना नाम नहीं है लेकिन प्रतिभा उस में है, जिसे उस ने साबित भी किया. महत्त्वाकांक्षी श्वेता ने पत्रकारिता का भी कोर्स किया है और कुछ दिन एक मशहूर अखबार में लेखन भी किया.

जमशेदपुर के मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती इस खूबसूरत लड़की ने पहली बार बाल कलाकार के रूप में ‘मकड़ी’ फिल्म में काम किया था. साल 2002 में प्रदर्शित हुई इस फिल्म के निर्मातानिर्देशक विशाल भारद्वाज थे. भूतप्रेत वाली इस फिल्म में श्वेता चुन्नी और मुन्नी नाम की जुड़वां बहनों के रोल में खासी सराही गई थी. उसे सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार भी मिला था. इस के बाद उस ने कुछ तमिल, तेलुगू और बंगाली फिल्मों में भी काम किया, लेकिन उम्मीद के मुताबिक उसे नाम और दाम नहीं मिला. कुछ टीवी धारावाहिकों में भी वह नजर आई लेकिन इस से भी उस के डगमगाते करियर को सहारा नहीं मिला.

देह व्यापार में क्यों आई श्वेता छोटेमोटे रोल करती श्वेता को लोग भूल ही चले थे कि साल 2014 में हैदराबाद से एक सनसनीखेज खबर आई कि मशहूर एक्ट्रैस श्वेता प्रसाद बंजारा हिल इलाके के एक बड़े होटल से देहव्यापार करती हुई पकड़ी गई. बात सच थी गिरफ्तारी के बाद उसे सुधारगृह भेज दिया गया, जहां वह बच्चों को संगीत और कला का प्रशिक्षण देती रही. मीडिया और बौलीवुड में वह उत्सुकता और आकर्षण का विषय बन गई. हर कोई जानना चाह रहा था कि वह इस घृणित पेशे में क्यों आई. इन्हीं दिनों में श्वेता का एक बयान खूब वायरल हुआ था, जिस में वह यह कहती नजर आ रही थी कि मैं अपने ही कुछ गलत फैसलों के चलते कंगाल हो गई थी.

मुझे अपने परिवार को भी संभालना था और कुछ अच्छे काम भी करने थे. लेकिन मेरे लिए सारे दरवाजे बंद थे, इसलिए कुछ लोगों ने मुझे वेश्यावृत्ति का रास्ता दिखाया. मैं कुछ नहीं कर सकती थी और न ही मेरे पास कोई और चारा था, इसलिए मैं ने यह काम किया. सुधारगृह से छूटने के बाद वह इस बयान से मुकर गई और नएनए बयान देती रही, जिन के कोई खास मायने नहीं थे. लेकिन दाद देनी होगी श्वेता की हिम्मत और आत्मविश्वास को, जो वह देहव्यापार के आरोप में पकड़े जाने के बाद भी टूटी नहीं और उसे जो भी रोल मिला, वह उस ने स्वीकार लिया. साल 2018 में उस ने फिल्मकार रोहित मित्तल से शादी की, लेकिन एक साल बाद ही वह टूट गई.

‘चेतना’ फिल्म की सीमा और श्वेता की असल जिंदगी में काफी समानताएं दिखती हैं, पर फिल्म के और जिंदगी के दुखांत में जमीन आसमान का अंतर होता है, जो दिख भी रहा है. वेश्या होने का दाग आसानी से नहीं धुलने वाला पर श्वेता अभी भी जिस लगन से काम कर रही है. उस के लिए वह शुभकामनाओं की हकदार तो है कि कड़वा अतीत भूल कर मकड़ी जैसा कारनामा एक बार फिर कर दिखाए. कड़वी मिष्ठी  श्वेता को तो हैदराबाद सेशन कोर्ट ने देह व्यापार के आरोप से बाइज्जत बरी कर दिया था, लेकिन सन 2014 में ही एक और एक्ट्रैस मय पुख्ता सबूतों के देहव्यापार के आरोप में रंगेहाथों धरी गई थी, जिस का नाम था मिष्ठी मुखर्जी.

भरेपूरे गुदाज बदन की मालकिन मिष्ठी थी तो बंगाली फिल्मों की सी ग्रेड की अभिनेत्री, लेकिन 2012 में राकेश मेहता निर्देशित एक हिंदी फिल्म ‘लाइफ की तो लग गई’ में वह नजर आई थी और मुंबई में ही बस गई थी. हैरानी की बात यह है कि इस फिल्म की समीक्षाओं में कहीं उस का जिक्र नहीं हुआ. मिष्ठी की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं. मुंबई के पौश मीरा टावर के सी विंग में फ्लैट नंबर 502 में वह परिवार सहित रह रही थी. इस फ्लैट का किराया ही 80 हजार रुपए महीना था. मिष्ठी आलीशान जिंदगी जी रही थी. मीरा टावर में लगभग 75 फ्लैट्स आईएएस और आईपीएस अधिकारियों के हैं. इस अपार्टमेंट में हंगामा 9 जनवरी, 2014 को तब मचा था, जब एक छापामार काररवाई में ओशिवरा पुलिस ने मिष्ठी को अपने बौयफ्रैंड दिल्ली के फैशन डिजाइनर राकेश कटारिया के साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़ा था.

इस छापे में पुलिस ने कोई ढाई लाख ब्लू फिल्मों की सीडी बरामद की थीं. पुलिस के मुताबिक ये सीडी दक्षिण भारत से ला कर मुंबई और ठाणे में बेची जाती थीं. देह व्यापार में सहयोग देने के आरोप में पुलिस ने मिष्ठी, उस की मां सहित पिता चंद्रकांत मुखर्जी और भाई समरत को भी गिरफ्तार किया था. पुलिस के मुताबिक इस फ्लैट का इस्तेमाल ब्लू फिल्में बनाने में भी किया जाता था. बाद में मिष्ठी और उस के परिवारजनों ने सफाई दी थी, लेकिन तब तक एक और एक्ट्रैस के दामन में जिस्मफरोशी का दाग लग चुका था. इस मुकदमे का फैसला हो पाता, इस के पहले ही महज 27 साल की उम्र में मिष्ठी किडनी फेल हो जाने से 4 अक्तूबर, 2020 को इस दुनिया से चल बसी.

लोगों को इस कांड के अलावा यह भर याद रहा कि उस ने कुछ क्षेत्रीय फिल्मों सहित हिंदी फिल्म ‘मैं कृष्णा हूं’ में एक गाना गाया था. बाद में अंदाजा भर लगाया गया, जो सच के काफी करीब है कि अगर वह ब्लू फिल्मों का कारोबार कर रही थी या सैक्स रैकेट चला रही थी तो अपने परिवार के खर्चे पूरे करने के लिए इस गैरकानूनी रास्ते पर चल पड़ी थी. ऐश के ऐश ऐसा ही रास्ता दक्षिण भारत की उभरती एक्ट्रैस ऐश अंसारी ने भी चुना था, जो साल 2013 में जोधपुर के तख्त विलास होटल में रंगेहाथों जिस्मफरोशी करते पकड़ी गई थी. इस छापे में 9 लोग पकड़े गए थे. यह भी एक हाइटेक मामला था और औनलाइन चलता था.

पुलिस के मुताबिक, ऐश अपने ग्राहकों को खुश करने गई थी और इस गिरोह का हिस्सा थी. सैक्सी ऐश ने बचाव में शाहरुख खान के साथ अपनी कुछ तसवीरें पुलिस को दिखाई थीं, जो जाहिर है एक बचकानी और फिजूल की बात थी. दरअसल, वह शाहरुख खान के साथ  ‘ओम शांति ओम’ और ‘चलते चलते’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकी थी. इस के अलावा उस ने साउथ की भी कुछ फिल्मों में काम किया है. ‘बूम बूम’ नाम के म्यूजिक वीडियो से भी उस ने धूम मचाई थी. ऐश ने यह रास्ता परिवार के लिए नहीं, बल्कि जल्द अमीर बनने के चक्कर में चुना था. लेकिन पकडे़ जाने के बाद वह ऐसी गायब हुई कि फिर फिल्मों में नजर नहीं आई. मुमकिन है उस का जमीर उसे कचोटने लगा हो.

ऐश में एक खास बात सैक्सी फिगर के साथसाथ उस के असामान्य उभार हैं जो किसी को भी पागल और मदहोश कर देने के लिए काफी हैं. देह के शौकीनों में उस की डिमांड ज्यादा थी और इस की कीमत वह वसूल भी रही थी. घर को ही बनाया अड्डा पर्यटन स्थलों के रिसोर्ट और भव्य होटलों के अलावा कुछ अभिनेत्रियों ने घर से देह व्यापार करना ज्यादा सुरक्षित समझा. इन में एक उल्लेखनीय नाम साउथ की ही भुवनेश्वरी का है, जो अब से 20 साल पहले तक एक उभरता नाम हुआ करता था. अक्तूबर, 2009 में एक छापे में उसे चेन्नई में गिरफ्तार किया गया था.

बोल्ड सीन देने के लिए पहचानी जाने वाली इस खूबसूरत बला और बाला के गिरोह में कई और सी ग्रेड की एक्ट्रैस भी शामिल थीं. भुवनेश्वरी ने टीवी धारावाहिकों से भी नाम कमाया था.  रियल लाइफ में देहव्यापार करने वाली इस एक्ट्रैस ने रील लाइफ में भी वेश्या का किरदार तमिल फिल्म ‘लड़के’ में निभाया था. अब 46 की हो चुकी भुवनेश्वरी भी गायब है, जिस ने फिल्मों से ज्यादा नाम और दाम वेश्यावृत्ति से कमाया और इसे बेहद सहजता से उस ने लिया और जिया. दक्षिण भारतीय फिल्मों की वैंप के खिताब से नवाजी गई इस एक्ट्रैस ने कभी दुनिया जहान का लिहाज नहीं किया. उस पर भी कभी देहव्यापार के आरोप अदालत में साबित नहीं हो पाए, लेकिन बदनामी से वह खुद को बचा नहीं पाई.

28 साल की होने जा रही तमिल और तेलुगू फिल्मों की अभिनेत्री श्री दिव्या भी घर से ही सैक्स रैकेट चलाते पकड़ी गई थी.  ‘बीटेक बाबू’ उस के करियर की चर्चित फिल्म थी. महज 3 साल की उम्र से परदे पर पांव रख चुकी इस हौट एक्ट्रैस ने कोई डेढ़ दरजन फिल्मों में काम किया, जिन में से कुछ में उस ने अपने अभिनय की छाप भी छोड़ी. साल 2014 में पड़े गुंटूर के चर्चित छापे में पकड़ी गई दिव्या को कुदरत ने अजीम खूबसूरती से नवाजा भी है. लेकिन ज्यादा  पैसों के लालच से वह भी नहीं बच सकी. पतली कमर वाली दिव्या भी गिरोहबद्ध तरीके से जिस्मफरोशी के कारोबार में गले तक डूब चुकी थी. छापे में कई दूसरी मौडल और एक्ट्रैस मय ग्राहकों के पकड़ी गई थीं.

शर्म से दूर शर्लिन चोपड़ा हैदराबादी गर्ल के नाम से मशहूर हुई शर्लिन चोपड़ा फिल्मों से कम, गरमागरम फोटो सेशन और हर कभी वायरल होते अपने कामुक वीडियोज के चलते ज्यादा जानीपहचानी जाती है. विवादों में रहना उस का खास शगल है. प्लेबौय मैगजीन के लिए नग्न फोटो देने वाली 37 वर्षीया इस एक्ट्रैस ने फिल्मों से ज्यादा गौसिप से अपनी पहचान बनाई. रूपेश पाल की थ्री डी फिल्म ‘कामसूत्र’ में उस ने उन्मुक्त दृश्य दिए हैं. रियल्टी शो बिग बौस सीजन-3 की प्रतिभागी भी वह रह चुकी है. उस के नाम छोटे बजट की 3 फिल्में ‘टाइम पास’, ‘रेड स्वास्तिक’ और ‘गेम’ ही हैं जो न के बराबर चलीं.

मौडलिंग से अपने करियर की शुरुआत करने वाली शर्लिन कभी देह व्यापार के किसी छापे में तो नहीं पकड़ी गई, बल्कि उस ने खुद ही उजागर किया था कि वह देह व्यापार करती है और पैसों के लिए कई मर्दों के साथ उस ने सैक्स किया है. सुर्खियों में बने रहने को ऐसे कई विवादों से उस ने खुद को जोड़े रखा.  फिल्मकार साजिद खान पर आरोप लगाते हुए उस ने अप्रैल 2015 में कहा था कि एक मुलाकात में साजिद ने पेंट से अपना प्राइवेट पार्ट निकाल कर उसे छूने के लिए कहा था. तब उस ने बिना घबराए साजिद को कहा था कि मैं जानती हूं कि प्राइवेट पार्ट कैसा होता है और उन से मिलने का उस का ऐसा कोई मकसद या इरादा नहीं है.

इस बयान से फिल्म इंडस्ट्री में तहलका मच गया था, जो सच और झूठ की बाउंड्री लाइन पर खड़ा था. यानी फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा होना न तो नामुमकिन है और न ही ऐसा होने पर कोई मौडल एक्ट्रैस ऐसी आपबीती इतने खुले लफ्जों में बयां कर सकती है. नैतिकता तो लोगों की निगाह में यह है कि ऐसा किसी लड़की के साथ हो भी तो उसे खामोश रहना चाहिए. शर्लिन ने दो टूक कहा तो इसे पब्लिसिटी स्टंट कह कर हवा में उड़ा दिया गया. रियल और रील में फर्क दरजनों और ऐसी फिल्म एक्ट्रैस हैं, जो देहव्यापार करते पकड़ी गई हैं. दिलचस्प बात यह है कि ये सभी सी ग्रेड की असफल और महत्त्वाकांक्षी युवतियां हैं. लगभग सभी ने रियल लाइफ में यह किरदार निभाया तो इस की वजह साफ है कि पैसा कमाने का इस से बेहतर शार्टकट और कोई है भी नहीं.

लग्जरी जिंदगी जीने की आदी इन नायिकाओं के पास अपने खर्च पूरे करने का कोई दूसरा जरिया होता भी नहीं. परदे पर इन्हें देख चुके शौकीन पैसे वाले भी मुंहमांगे दाम इन्हें देने को तैयार रहते हैं. इन तवायफों को एक रात का अपने नाम, हैसियत और शोहरत के मुताबिक एक से 5 लाख रुपया तक मिलता भी है. अब तो बी ग्रेड के शहरों में भी इन की मांग बढ़ने लगी है और ये वहां जाती भी हैं. आनेजाने, हवाई जहाज और फाइवस्टार होटलों में ठहरने का खर्च या तो ग्राहक उठाता है या फिर वह दलाल, जो इन के और ग्राहक के बीच कड़ी का काम करता है. ठीक वैसे ही जैसे ‘चेतना’ फिल्म में रेहाना सुलताना के लिए एक दलाल करता था. Hindi Social stories

Kerala News : 32 किलो सोने की स्‍मलिंग से जुड़े थे हाईप्रोफाइल लोगों के तार

Kerala News : सोने की तसकरी कोई नई बात नहीं है. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर प्राय रोज ही सोन पकड़ा जाता है. लेकिन यूएई से केरल के तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर जो 32 किलो सोना पकड़ा गया, उस का मामला इसलिए चिंता का विषय है, क्योंकि सोने की इस तसकरी के तार मंत्रालय और वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से जुड़े पाए गए. इसी साल जुलाई के पहले सप्ताह की बात है. केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एयर कार्गो से संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के वाणिज्य दूतावास के नाम से कुछ बैगों में राजनयिक सामान आया था.

यूएई का वाणिज्य दूतावास तिरुवनंतपुरम शहर के मनाक में स्थित है. सामान क्या शौचालयों में उपयोग होने वाले उपकरण थे, जो खाड़ी देश से आई फ्लाइट से आए थे. विमान से आए बैग उतार कर कार्गो यार्ड में रख दिए गए. इन बैगों को लेने के लिए 2 दिनों तक कोई भी संबंधित व्यक्ति हवाई अड्डे नहीं पहुंचा, तो कस्टम अधिकारियों ने भारतीय विदेश मंत्रालय से इजाजत ले कर 5 जुलाई को बैगों की जांच की. जांच के दौरान एक बैग में छिपा कर रखा गया 30 किलो से ज्यादा सोना मिला. सोने को इस तरह पिघला कर रखा गया था कि वह शौचालय के सामानों में पूरी तरह फिट हो जाए.

भारतीय बाजार में इस सोने की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई. यूएई के वाणिज्य दूतावास ने बैग में मिला सोना अपना होने से इनकार कर दिया. इस पर सोने को सीज कर सीमा शुल्क विभाग ने मामले की जांच शुरू की. प्रारंभिक जांच में अधिकारियों को यह मामला सोने की तस्करी से जुड़ा होने का संदेह हुआ. अधिकारियों को शक हुआ कि इस संदिग्ध मामले में राजनयिक को मिलने वाली छूट का दुरुपयोग किया गया है. दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा सम्मेलन में लिए गए फैसलों के तहत भारत सरकार की ओर से दूसरे देशों के राजनयिकों को कई तरह की छूट दी गई थीं. इस में उन की और उन के सामान की जांच पड़ताल की छूट भी शामिल है.

जांच शुरू करने के दूसरे दिन 6 जुलाई को कस्टम अधिकारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के वाणिज्य दूतावास के एक पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. से पूछताछ की. पूछताछ के बाद अधिकारियों को रहस्य की परतों में उलझा और दूसरे देशों से जुड़ा यह मामला काफी बड़ा होने का अंदाजा हो गया. इस मामले में एक महिला अधिकारी पर भी शक जताया गया. सीमा शुल्क अधिकारियों ने दूतावास के पूर्व अधिकारी सरित पी.आर. को गिरफ्तार कर शक के दायरे में आई महिला अधिकारी की तलाश शुरू कर दी. कस्टम अधिकारियों की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि सरित पी.आर. ने पहले भी ऐसी कई खेप हासिल की थीं. इस मामले में केरल सरकार की एक महिला अधिकारी स्वप्ना सुरेश भी शामिल थी.

सोने की तस्करी का यह मामला केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की जानकारी तक भी पहुंच गया. मुख्यमंत्री को अपने स्तर पर पता चला कि इस मामले में संदेह के दायरे में आई महिला अधिकारी स्वप्ना के संबंध राज्य के कई वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों से हैं. मुख्यमंत्री खुद भी उस महिला से परिचित थे. हालांकि बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय ने इस बात से इनकार किया कि सीएम उस महिला को जानते थे. विपक्ष ने उठाई आवाज इस बीच, यह मामला राजनीतिक स्तर पर उछल गया. विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस ने प्रदर्शन करते हुए केरल की वाम लोकतांत्रिक मोर्चा की सरकार को घेरने की कोशिश शुरू कर दी.

केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने 7 जुलाई को प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर मुख्यमंत्री कार्यालय में सोना तसकरी गिरोह के कथित प्रभाव की सीबीआई से जांच कराने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि एक महिला इस रैकेट की कथित सरगना है. यह महिला केरल सरकार के आईटी विभाग के तहत केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में आपरेशंस मैनेजर के तौर पर 6 जुलाई, 2020 तक कार्यरत थी. संदेह है कि इस तसकरी की मास्टरमाइंड वही है. इस महिला के केरल के सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर के साथ घनिष्ठ संबंध हैं. यह महिला कई बार मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण आयोजनों में भी नजर आई थी.

महिला का नाम स्वप्ना सुरेश है. सोना तसकरी रैकेट में स्वप्ना सुरेश का नाम आने पर केरल के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री कार्यालय और आईटी सचिव ने स्वप्ना सुरेश का नाम हटाने के लिए अधिकारियों पर दबाव बनाया. शीर्ष स्तर पर संपर्कों के लिए जानी जाने वाली स्वप्ना सुरेश को आईटी सचिव एम. शिवशंकर संरक्षण दे रहे हैं. वे स्वप्ना के आवास पर अक्सर आते जाते हैं. सुरेंद्रन ने स्वप्ना की नियुक्ति की सीबीआई से जांच कराने की भी मांग की. राजनीतिक स्तर पर इस मामले के तूल पकड़ने पर केरल सरकार ने 7 जुलाई को सूचना प्रौद्योगिकी सचिव एम. शिवशंकर को मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटा दिया. पद से हटाए जाने के बाद शिवशंकर एक साल की छुट्टी पर चले गए.

दूसरी ओर, सरकार ने स्वप्ना सुरेश को केरल स्टेट आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर से बर्खास्त कर दिया. मुख्यमंत्री कार्यालय ने स्वप्ना से किसी तरह के संबंध होने से इनकार किया. 8 जुलाई को केरल विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्निथला ने केरल सरकार की ओर से आयोजित स्पेस कौंक्लेव-2020 में पूरा ब्यौरा मीडिया के सामने रखते हुए कहा कि इस कौंक्लेव का प्रबंधन स्वप्ना सुरेश ही संभाल रही थी. स्वप्ना ने ही राज्य सरकार की ओर से गणमान्य लोगों को आमंत्रण पत्र भेजे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि इसरो से संबंधित एक संस्था में कार्यक्रम प्रबंधक के रूप में स्वप्ना की नियुक्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हो सकती है. सोना तस्करी का यह मामला देशभर में चर्चित हो जाने और इस घटना का राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ने की संभावना को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 जुलाई को इस की जांच एनआईए को सौंप दी.

वहीं, भूमिगत हुई स्वप्ना सुरेश ने इस मामले में पहली बार औडियो संदेश जारी कर चुप्पी तोड़ी. उस ने कहा कि इस में मेरी कोई भूमिका नहीं है. मैं ने यूएई के राजनयिक राशिद खमीस के निर्देशों के अनुसार काम किया है. कार्गो परिसर में सामान को जब क्लियर नहीं किया गया, तो राशिद ने मुझे सीमा शुल्क अधिकारियों से संपर्क करने को कहा था. तब तक मुझे पता नहीं था कि यह खेप कहां से आई थी और इस में क्या था? सोना जब्त किए जाने का पता लगने पर राशिद के कहने पर वे बैग वापस भेजने की कोशिश भी की गई थी.

दूसरी ओर, गिरफ्तारी की आशंका से स्वप्ना सुरेश ने 9 जुलाई को केरल हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत की अर्जी दाखिल की. अगले दिन सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने यह याचिका 14 जुलाई तक के लिए टाल दी. एनआईए ने 10 जुलाई को सोने की तस्करी के मामले को आतंकवाद से जोड़ते हुए 4 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. इस मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम 1967 के तहत सरित पीआर, स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर के अलावा एर्नाकुलम के फैसल फरीद को आरोपी बनाया गया. इस के दूसरे ही दिन 11 जुलाई को एनआईए ने स्वप्ना सुरेश को हिरासत में ले लिया. इस के अलावा संदीप नैयर को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

दोनों को अगले दिन 12 जुलाई को एनआईए की विशेष अदालत में पेश किया गया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया. विशेष अदालत ने एनआईए की अर्जी पर दोनों आरोपियों को 13 जुलाई को 8 दिन के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में दे दिया. कहानी में आगे बढ़ने से पहले यह जानना जरूरी है कि सोना तसकरी के मामले में केरल में सियासी भूचाल लाने वाली हाई प्रोफाइल महिला स्वप्ना सुरेश है कौन? बहुत ऊंचे तक थी स्वप्ना सुरेश की पहुंच केरल के राजनीतिक गलियारों और ब्यूरोक्रेट्स के बीच अपना प्रभाव रखने वाली स्वप्ना सुरेश का जन्म यूएई के अबूधाबी में हुआ था. अबूधाबी में ही उस ने पढ़ाई की. इस के बाद उसे एयरपोर्ट पर नौकरी मिल गई. स्वप्ना ने शादी भी की, लेकिन जल्दी ही तलाक हो गया था.

इस के बाद वह बेटी के साथ रहने के लिए केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई. भारत आने के बाद स्वप्ना सुरेश ने तिरुवनंतपुरम में 2011 से 2 साल तक एक ट्रेवल एजेंसी में काम किया. वर्ष 2013 में उसे एयर इंडिया में एसएटीएस में एचआर मैनेजर पद पर नौकरी मिल गई. यह एयर इंडिया और सिंगापुर एयरपोर्ट टर्मिनल सर्विसेज का संयुक्त उद्यम है. साल 2016 में जब केरल पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जालसाजी के एक मामले में उस की जांच शुरू की, तो वह अबूधाबी चली गई. फर्राटेदार अंग्रेजी और अरबी भाषा बोलने वाली स्वप्ना सुरेश ने अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में नौकरी हासिल कर ली. पिछले साल यानी 2019 में उस ने यह नौकरी छोड़ दी.

कहा यह भी जाता है कि उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. बताया जाता है कि एयर इंडिया एसएटीएस और अबूधाबी में यूएई महावाणिज्य दूतावास में काम करते हुए स्वप्ना सुरेश हवाई अड्डों और सीमा शुल्क विभाग के कई अधिकारियों के संपर्क में आ गई थी. उसे राजनयिक खेपों की आपूर्ति और हैंडलिंग के सारे तौरतरीके पता चल गए थे. यूएई के महावाणिज्य दूतावास में की गई नौकरी स्वप्ना सुरेश को जिंदगी के एक नए मोड़ पर ले गई. वहां उस ने बड़ेबड़े लोगों से अपनी जानपहचान बना ली थी. इस दौरान उस के यूएई से केरल आने वाले कई प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भी किया. अबूधाबी में नौकरी से हटने के बाद वह अपने संपर्कों की गठरी बांध कर वापस केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम आ गई.

यूएई के अपने संपर्कों के बल पर इस बार वह तिरुवनंतपुरम में हाई प्रोफाइल तरीके से सामने आई. उस ने राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट्स से अच्छे संबंध बना लिए. केरल के मुख्यमंत्री के सचिव वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एम. शिवशंकर से उस के गहरे ताल्लुकात बन गए. कहा जाता है कि शिवशंकर उस के घर भी आतेजाते थे. आरोप यह भी है कि शिवशंकर की सिफारिश पर ही स्वप्ना को केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड में अनुबंध पर आपरेशंस मैनेजर की नौकरी मिली थी. स्वप्ना सुरेश केरल के बड़े होटलों में होने वाली पार्टियों में अकसर शामिल होती थी. अरबी समेत कई भाषाएं जानने वाली स्वप्ना केरल आने वाले अरब नेताओं की अगुवाई करने वाली टीम में शामिल रहती थी.

सोने की तस्करी का मामला सामने आने के बाद ऐसे कई वीडियो और फोटो वायरल हुए, जिन में स्वप्ना सुरेश केरल के मुख्यमंत्री, अरब नेताओं और वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर के साथ दिखाई दी. एनआईए की हिरासत में भेजे जाने के बाद स्वप्ना सुरेश के बुरे दिन शुरू हो गए. 13 जुलाई को उस के खिलाफ धोखाधड़ी और जालसाजी का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इस मामले में स्वप्ना के साथ 2 कंपनियों प्राइम वाटर हाउस कूपर्स और विजन टेक्नोलोजी को भी आरोपी बनाया गया. आरोप है कि स्वप्ना ने केरल के आईटी विभाग में नौकरी हासिल करने के लिए फर्जी अकादमिक डिग्री का इस्तेमाल किया था.

स्वप्ना के शैक्षणिक दस्तावेजों की जांच करने की जिम्मेदारी कंसल्टिंग एजेंसी प्राइस वाटर हाउस कूपर्स और विजन टैक्नोलोजी पर थी. केरल के आईटी विभाग के अधीन केरल राज्य सूचना प्रौद्योगिकी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड की शिकायत पर दर्ज इस मामले में स्वप्ना पर आरोप है कि उस ने महाराष्ट्र के डा. बाबा साहेब आंबेडकर विश्वविद्यालय की बीकौम की फर्जी डिगरी से नौकरी हासिल की थी. मुख्यमंत्री सचिव शिव शंकर की करीबी थी स्वप्ना 14 जुलाई को यह बात काल डिटेल्स से सामने आई कि केरल के मुख्यमंत्री के सचिव पद से हटाए गए वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर ने स्वप्ना सुरेश सहित सोने की तसकरी के 2 आरोपियों से फोन पर बातचीत की थी.

उसी दिन कस्टम अधिकारियों की एक टीम ने आईएएस अधिकारी शिवशंकर के घर जा कर उन्हें नोटिस दिया और उन से पूछताछ की. बाद में शिवशंकर उसी दिन शाम को तिरुवनंतपुरम में सीमा शुल्क विभाग के कार्यालय पहुंचे, अधिकारियों ने उन से शाम से रात 2 बजे तक 9 घंटे पूछताछ की. कोच्चि से कस्टम कमिश्नर और अन्य अधिकारियों ने भी वीडियो कौंफ्रेंस के जरीए शिवशंकर से पूछताछ की. रात 2 बजे पूछताछ पूरी होने के बाद कस्टम अधिकारियों ने उन्हें घर ले जा कर छोड़ दिया. पूछताछ में शिवशंकर ने स्वीकार किया कि स्वप्ना सुरेश ने उन के पास काम किया था, और सरित पीआर उन का दोस्त है.

कस्टम अधिकारी इस बात की जांच कर रहे हैं कि आईएएस अधिकारी ने अपने पद का दुरुपयोग कर सोना तस्करी के आरोपियों स्वप्ना सुरेश, संदीप नैयर और सरित पीआर को किसी तरह की मदद तो नहीं पहुंचाई थी. इस बीच, कस्टम अधिकारियों ने एक होटल के एक और 2 जुलाई के सीसीटीवी फुटेज हासिल किए, जहां आईएएस अधिकारी शिवशंकर और आरोपी ठहरे थे. कहा जाता है कि शिवशंकर के एक कर्मचारी ने इस होटल में कमरा बुक कराया था. शिवशंकर पर गंभीर आरोप लगने पर मुख्यमंत्री के निर्देश पर केरल के मुख्य सचिव डा. विश्वास मेहता के नेतृत्व में अधिकारियों के एक पैनल ने जांच शुरू कर दी. सोना तस्करों से कथित रूप से तार जुड़े होने की बातें सामने आने के बाद केरल सरकार ने 16 जुलाई को वरिष्ठ आईएएस अधिकारी शिवशंकर को निलंबित कर दिया.

इस मामले की जांच चल ही रही थी कि 17 जुलाई को यूएई वाणिज्य दूतावास से जुड़ा केरल पुलिस का एक जवान जयघोष अपने घर से करीब 150 मीटर दूर बेहोशी की हालत में पड़ा मिला. पुलिस ने संदेह जताया कि उस ने कलाई काट कर आत्महत्या करने की कोशिश की थी. पुलिस ने उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया. जयघोष के परिजनों ने इस से एक दिन पहले ही उस के लापता होने की शिकायत थुंबा थाने में दर्ज कराई थी. परिजनों ने कहा था कि अज्ञात लोगों की ओर से धमकी दिए जाने के कारण वह खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा था. इस से पहले जयघोष ने वट्टियोरकावु थाने में अपनी सर्विस पिस्तौल जमा करा दी थी. जयघोष के मोबाइल पर जुलाई के पहले हफ्ते में स्वप्ना सुरेश ने भी फोन किया था.

केरल सोना तस्करी मामले की जांच कर रही एनआईए ने 18 जुलाई को आरोपी फैजल फरीद के खिलाफ इंटरपोल से ब्लू कौर्नर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया. इस से पहले कोच्चि की विशेष एनआईए अदालत ने फरीद के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था. एनआईए ने विशेष अदालत को बताया था कि वे वारंट को इंटरपोल को सौंप देंगे, क्योंकि फरीद के दुबई में होने का संदेह है. एनआईए ने दावा किया कि फरीद ने ही संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास की फरजी मुहर और फरजी दस्तावेज बनाए थे. एनआईए और कस्टम विभाग की प्रारंभिक जांच में जो तथ्य उभर कर सामने आए, उन के मुताबिक यूएई के वाणिज्य दूतावास के नाम पर सोने की तसकरी करीब एक साल से हो रही थी. इस तसकरी में एक पूरा गिरोह संलिप्त था.

स्वप्ना सुरेश इस गिरोह की मास्टर माइंड थी और गिरोह से दूतावास के कुछ मौजूदा और पूर्व कर्मचारी जुड़े हुए थे. यह गिरोह डिप्लोमैटिक चैनल के जरीए पिछले एक साल में खाड़ी देशों से तस्करी का करीब 300 किलो सोना भारत ला चुका था. तस्करी के सोने की पहली खेप का कंसाइनमेंट डिप्लोमेटिक चैनल के जरीए पिछले साल जुलाई में तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर आया था. इस साल जुलाई के पहले हफ्ते में पकड़े गए सोने सहित 13 खेप लाई गई थीं. सोने की तस्करी के मामले में नाम उछलने पर तिरुवनंतपुरम स्थित यूएई के वाणिज्य दूतावास में तैनात राजनयिक अताशे राशिद खमिस जुलाई के दूसरे हफ्ते में भारत छोड़ कर स्वदेश चले गए.

स्वप्ना सुरेश ने राशिद के इशारे पर ही काम करने की बात कही है. हालांकि, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और कस्टम विभाग सोना तस्करी मामले की जांच कर रहे हैं. मामले में कुछ और प्रभावशाली लोगों की गिरफ्तारियां भी हो सकती हैं. लेकिन चिंता की बात यह है कि सोने की तस्करी में राजनयिक चैनल का दुरुपयोग किया जा रहा था. एक खास तथ्य यह भी है कि भारत में सोने की सब से ज्यादा तसकरी केरल में होती है. हालांकि अब जयपुर का एयरपोर्ट भी सोने की तस्करी का एक नया माध्यम बन कर उभर रहा है. जयपुर में जुलाई के ही पहले हफ्ते में 2 फ्लाइटों से लाया गया 32 किलो सोना पकड़ा गया था. इस मामले में 14 यात्रियों को गिरफ्तार किया गया था. सोने की तसकरी में केरल नंबर एक पर है. इस के अलावा मुंबई, दिल्ली, बैंगलुरु और चेन्नई एयरपोर्ट पर सोने की तसकरी के सब से ज्यादा मामले पकड़े जाते हैं.

 

Suicide Stories : पति के शक के कारण महिला सिपाही ने की आत्महत्या

शकरूपी फांस बड़ी ही खतरनाक होती है. अगर समय रहते इस का समाधान न किया जाए तो यह हंसतीखेलती गृहस्थी को तबाह कर देती है. सिपाही शालू गिरि का पति राहुल अगर इस बात को समझ जाता तो शालू को यह खतरनाक कदम उठाने के लिए मजबूर न होना पड़ता…

उस दिन जून 2020 की 2 तारीख थी. सुबह के 8 बज रहे थे. औरैया जिले की विधूना कोतवाली के प्रभारी निरीक्षक विनोद कुमार शुक्ला अपने कक्ष में आ कर बैठे ही थे कि उन के फोन पर काल आई. उन्होंने काल रिसीव की और बोले, ‘‘मैं विधूना कोतवाली से इंसपेक्टर वी.के. शुक्ला बोल रहा हूं. बताइए, आप ने फोन क्यों किया?’’

‘‘जय हिंद सर, मैं लखनऊ के कैसर बाग थाने से सिपाही सपना गिरि बोल रही हूं. मुझे आप की मदद चाहिए.’’

‘‘कैसी मदद? बताइए, मैं आप की हरसंभव मदद को तैयार हूं.’’ इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने आश्वासन दिया.

‘‘सर, आप के थाने में हमारी छोटी बहन शालू गिरि सिपाही पद पर तैनात है. बीती रात 11 बजे हमारी उस से बात हुई थी. तब वह परेशान लग रही थी और बहकीबहकी बातें कर रही थी. तब मैं ने उसे समझाया था और सो जाने को कहा था. आज मैं सुबह से उस का फोन ट्राई कर रही हूं. लेकिन वह फोेन उठा ही नहीं रही है. सर, किसी तरह आप उस से मेरी बात करा दीजिए.’’

‘‘ठीक है सपना, मैं जल्द ही शालू से तुम्हारी बात कराता हूं.’’ श्री शुक्ला ने सपना को आश्वस्त किया. शालू गिरि नई रंगरूट महिला सिपाही थी. उस की तैनाती 5 महीने पहले ही विधूना थाने में हुई थी. वह तेजतर्रार थी और मुस्तैदी से ड्यूटी करती थी. बीती रात 8 बजे वह ड्यूटी समाप्त कर अपने रूम पर गई थी. इंसपेक्टर विनोद कुमार शुक्ल ने शालू से बात करने के लिए कई बार उसे फोन किया, लेकिन वह काल रिसीव ही नहीं कर रही थी. अत: उन की चिंता बढ़ गई. उन्होंने थाने में तैनात दूसरी महिला सिपाही जीतू कुमारी को बुलाया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हें पता है कि शालू गिरि कहां रहती है?’’

‘‘हां सर, पता है. वह विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रहती है.’’

‘‘तुम किसी सिपाही के साथ उस के रूम पर जा कर देखो कि वह फोन रिसीव क्यों नहीं कर रही है. कहीं वह बीमार तो नही है?’’ इंसपेक्टर शुक्ला ने कहा.

‘‘ठीक है, सर.’’ कह कर जीतू कुमारी सिपाही अजय सिंह के साथ शालू के रूम पर पहुंची. उस के रूम का दरवाजा अंदर से बंद था और कूलर चल रहा था. कमरे के अंदर की लाइट भी जल रही थी. जीतू कुमारी ने दरवाजा पीटना शुरू किया तथा शालू…शालू कह कर आवाज भी लगाई. लेकिन अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. घबराई जीतू कुमारी ने थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को सूचना दी तो वह पुलिस टीम के साथ मौके पर आ गए. फंदे पर झूलती मिली शालू श्री शुक्ला ने भी दरवाजा थपथपाया तथा शालू को पुकारा. पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. किसी अनहोनी की आशंका को भांप कर थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाहियों को शालू के रूम का दरवाजा तोड़ने का आदेश दिया.

आदेश पाते ही 2 सिपाहियों ने दरवाजा तोड़ दिया. इस के बाद थानाप्रभारी रूम में गए तो वह चौंक गए. रूम के अंदर महिला सिपाही शालू का शव फांसी के फंदे पर झूल रहा था. उस ने दुपट्टे का फंदा गले में डाल कर पंखे से लटक कर मौत को गले लगाया था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ल ने सब से पहले मृतका की बड़ी बहन सपना को खबर दी और उसे तत्काल विधूना थाने आने को कहा. इस के बाद उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचना दी और फिर घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण करने लगे. कमरे के अंदर एक प्लास्टिक का स्टूल गिरा पड़ा था. शायद इसी स्टूल पर चढ़ कर शालू ने फांसी का फंदा तैयार किया था और गले में फंदा डाल कर स्टूल को पैर से गिरा दिया था. रूम का बाकी सब सामान अपनी जगह था. रूम के एक ओर पड़ी छोटी टेबल पर पैक खाना रखा था, जिसे उलझन के कारण शायद उस ने नहीं खाया था.

निरीक्षण के दौरान थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला को कमरे के अंदर से एक डायरी तथा मोबाइल फोन बरामद हुआ, जिसे उन्होंने सुरक्षित कर लिया. इस के बाद उन्होेंने शालू के शव को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. चूंकि विभागीय मामला था और अतिसंवेदनशील भी, अत: सूचना मिलते ही औरैया की एसपी सुश्री सुनीति, एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित तथा सीओ (विधूना) मुकेश प्रताप सिंह घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने जहां घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया, वहीं फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए.

घटनास्थल से बरामद शालू की डायरी की पुलिस अधिकारियों ने जांच की तो उन्हें डायरी में 3 पन्ने का सुसाइड नोट मिला. डायरी के एक पन्ने पर शालू ने लिखा था, ‘मेरे प्यारे मांपिताजी, आप ने पालपोस कर मुझे बड़ा किया. पढ़ायालिखाया और प्रदेश सुरक्षा को समर्पित किया. आप के इस बड़प्पन को मैं कभी नहीं भुला सकती. लेकिन मैं अपनी ही जिंदगी से हार गई. मैं ने बहुत कोशिश की कि परेशानियों से उबर जाऊं, पर कामयाब नहीं हुई. इसलिए अपनी जिंदगी से परेशान हो कर आत्महत्या कर रही हूं. प्लीज किसी को परेशान न किया जाए.’

डायरी के दूसरे पन्ने पर शालू गिरी ने प्रभु (ईश्वर) को संबोधित करते हुए पत्र लिखा था और रास्ता सुझाने की बात लिखी थी. उस ने लिखा—

‘हे प्रभु, मुझे रास्ता दिखाओ. बचपन से ले कर आज तक मैं कभी फेल नहीं हुई. फिर मुझे वहां फेल क्यों कर रहे हो, जहां पास होने की सब से ज्यादा जरूरत है. मैं लाइफ में कभी खुश नहीं रह पाऊंगी. मुझे अपने पास बुला लो.’ पुलिस तलाशने लगी आत्महत्या की वजह डायरी के तीसरे पन्ने पर शालू गिरि ने मरने से पहले घर वालों के नाम एक अन्य पत्र लिखा था, जिस में उस ने सिपाही आकाश का जिक्र किया था. उस ने लिखा था— मेरे मरने का दोषी आकाश को न ठहराया जाए. वह सिर्फ मेरा दोस्त था. दोस्ती के नाते हम एकदूसरे को पसंद करते थे. उस की बातों में जादू था. जिस से मुझे सुकून मिलता था. उस ने मुझे समझाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन मैं अपनी परेशानियों से हार गई, इसलिए हताश जिंदगी का अंत कर रही हूं.’

पुलिस अधिकारी सुसाइड नोट पढ़ कर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि सिपाही शालू गिरि ने परेशानियों के चलते आत्महत्या की है. पर वे परेशानियां क्या थीं, जिस से उसे इतना बड़ा कदम उठाना पड़ा. इस का खुलासा उस ने पत्रों में नहीं किया था. इस का खुलासा तभी हो सकता था, जब उस के घर वाले मौके पर आते. पुलिस रिकौर्ड के अनुसार शालू गिरि बागपत जिले के बालौनी थानांतर्गत लतीफपुर दत्त नगर गांव की रहने वाली थी. विधूना थाने में उस की पोेस्टिंग दिसंबर माह में हुई थी. एक माह पहले ही उस की शादी हुई थी. विधूना कस्बे में वह किराए के रूम में रहती थी.

एएसपी कमलेश कुमार दीक्षित ने मृतका शालू का मोबाइल फोन खंगाला तो उस में स्वीट होम, हसबैंड, सिस्टर तथा आकाश के नाम से फोन नंबर सेव थे, जो उस के घर वालों के थे. इन नंबरों पर काल कर केश्री दीक्षित ने घर वालों को घटना की जानकारी दी तथा शीघ्र ही विधूना थाने आने को कहा. शालू ने मौत से पहले अपनी बहन सपना से बात की थी. घटनास्थल पर मकान मालिक तरुण सिंह भी मौजूद था. सीओ मुकेश प्रताप सिंह ने जब उस से पूछताछ की तो उस ने बताया कि सिपाही शालू गिरि ने 2 हफ्ते पहले ही रूम किराए पर लिया था.

दूसरे रूम में पब्लिक डिग्री कालेज विधूना के निदेशक मनोज कुमार सिंह चौहान रहते हैं. उन का परिवार कानपुर में रहता है. कल वह परिवार से मिलने कानपुर चले गए थे. मकान मालिक ने बताया कि शालू गिरि बातचीत में सरल तथा हंसमुख स्वभाव की थी. उस ने आत्महत्या किन परिस्थितियों में की, उसे इस की जानकारी नहीं है. पति करता था शक चूंकि आत्महत्या का यह मामला एक सिपाही का था. अत: पुलिस अधिकारियों ने नायब तहसीलदार को भी सूचना भेज दी थी. सूचना पा कर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा घटनास्थल पर आ गई थीं. उन्होंने घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर पुलिस अधिकारियों से घटना के संबंध में जानकारी हासिल की.

उस के बाद उन्हीं की मौजूदगी में इंस्पेक्टर विनोद कुमार शुक्ला ने सिपाही शालू गिरि के शव का पंचनामा भरा. पंचनामे पर नायब तहसीलदार वंदना कुशवाहा ने हस्ताक्षर किए. उस के बाद शव पोस्टमार्टम हेतु औरैया के जिला अस्पताल भिजवा दिया. देर शाम मृतका शालू गिरि के मांबाप, भाईबहन तथा पति थाना विधूना आ गए. उस के बाद तो थाने में कोहराम मच गया. मां सुमित्रा देवी, पिता राजेंद्र गिरि तथा बहन स्वाति व सपना दहाड़ मार कर रो रही थीं. थानाप्रभारी ने उन्हें धैर्य बंधाया. फिर थानाप्रभारी उन सब को उस रूम में ले गए, जहां शालू ने आत्महत्या की थी.

वहां एक बार फिर कोहराम मच गया. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने आत्महत्या का कारण जानने के लिए सब से पहले मृतका शालू की मां सुमित्रा देवी से पूछताछ की. सुमित्रा देवी ने बताया कि शालू उन की लाडली बेटी थी. वह बेहद खुशमिजाज थी. अभी एक महीना पहले ही उस की शादी पड़ोस में रहने वाले इलम चंद्र के बेटे राहुल से हुई थी. राहुल शालू को खुश नहीं रखता था, जिस से वह परेशान रहने लगी थी. राहुल, शालू पर शक भी करता था. वह उसे मानसिक तौर पर भी टौर्चर करता था. उस के कारण ही शालू ने आत्महत्या की है.

पिता राजेंद्र गिरि ने बताया कि वह किसान हैं. बेटियों को पढ़ाने व उन का भविष्य बनाने के लिए उन्होंने सब कुछ दांव पर लगाया. शालू सिपाही बनी तो बेहद खुशी हुई. इस के बाद शालू की मरजी से उस का विवाह राहुल के साथ कर दिया. लेकिन शादी के बाद उस की खुशी गायब हो गई थी. पहली जून सोमवार को शालू की बात उस की मां सुमित्रा से दिन में ढाई बजे हुई थी. तब वह परेशान थी और जिंदगी से ऊबने की बात कर रही थी. तब हम दोनों ने उसे समझाया था, और जिंदगी को निराशा से आशा में बदलने की बात कही थी. लेकिन उस ने रात में आत्महत्या कर ली.

शालू की बड़ी बहन सपना, जो लखनऊ के कैसर बाग थाने में सिपाही है, ने बताया कि ट्रेनिंग के बाद जब शालू की पहली पोस्टिंग विधूना थाने में हुई तो वह बेहद खुश थी. सप्ताह में एकदो बार उस की उस से बात जरूर होती थी. शादी के पहले वह बेहद खुश रहती थी. हंसहंस कर बतियाती थी और चुहलबाजी भी करती थी. लेकिन शादी के बाद वह गुमसुम रहने लगी थी. उस ने फोन पर बात करना भी बंद कर दिया था. जब कभी बात होती तो कहती कि वह अपनी जिंदगी से खुश नहीं है. जी चाहता है जिंदगी खत्म कर लूं. शायद शालू अपने पति राहुल से खुश नहीं थी. क्योंकि वह शालू पर शक करता था. सिपाही आकाश को ले कर राहुल के मन में गलत धारणा घर कर गई थी.

आकाश को ले कर ही राहुल उसे मानसिक तौर पर परेशान करता था. जबकि शालू और सिपाही आकाश के बीच सिर्फ दोस्ती थी. दोनों एकदूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित थे और आमनासामना होने पर हंसबोल लेते थे. सपना ने बताया कि बीती रात 11 बजे कई बार नंबर मिलाने के बाद उस की शालू से बात हुई थी. तब वह बहकीबहकी बातें कर रही थी. बात करतेकरते उस ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया था. उस के बाद जब सुबह उस ने फोन मिलाया तो शालू फोन रिसीव ही नहीं कर रही थी. तब घबरा कर मैं ने आप को फोन किया था और शालू से बात कराने को कहा था. लेकिन कुछ देर बाद आप ने सूचना दी थी कि शालू ने आत्महत्या कर ली है.

पत्नी की मौत की खबर पा कर राहुल भी अपने पिता इलम चंद्र के साथ थाना विधूना पहुंचा था. थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला ने जब राहुल से पूछताछ की तो उस ने बताया कि उस ने शालू की रजामंदी से उस के साथ प्रेमविवाह किया था. शादी के बाद उसे पता चला कि शालू की दोस्ती किसी आकाश नाम के सिपाही से है. वह मोबाइल फोन पर उस से बतियाती है. आकाश को ले कर उस ने शालू से टोकाटाकी की थी. इस से वह उस से नाराज रहने लगी थी. पर वह आत्महत्या जैसा कदम उठा लेगी, ऐसा तो उस ने कभी सोचा नहीं था.

शालू कौन थी? उस ने आत्महत्या क्यों और किन परिस्थितियों में की? यह सब जानने के लिए हम पाठकों को उस के अतीत की ओर ले चलते हैं. उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालौनी थाना अंतर्गत एक गांव है- लतीफपुर दत्त नगर. इसी गांव में राजेंद्र गिरि अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुमित्रा गिरि के अलावा 3 बेटियां सपना, शालू, स्वाति तथा एक बेटा राजीव था. राजेंद्र गिरि किसान थे. कृषि उपज से ही वह अपने परिवार का भरणपोषण करते थे. खेती के काम में उन का बेटा राजीव भी मदद करता था. उन्होंने अपने सभी बच्चों को उन की इच्छा के अनुसार पढ़ाया.

राजेंद्र की बड़ी बेटी सपना पुलिस विभाग में नौकरी करना चाहती थी. उन्हीं दिनों पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर भरती हो रही थी. सपना ने प्रयास किया तो उस का चयन हो गया. उस की ट्रेनिंग सीतापुर में हुई. बाद में उस की पोस्टिंग लखनऊ के कैसर बाग थाने में हो गई. सपना से छोटी शालू थी. अपनी बड़ी बहन सपना की तरह वह भी पुलिस में भरती होना चाहती थी. इस के लिए उस ने पढ़ाई के अलावा अपने शरीर को चुस्तदुरूस्त बनाने के लिए सुबहशाम दौड़ लगानी शुरू कर दी. राजेंद्र गिरि अपनी लाडली बेटी का सपना पूरा करना चाहते थे, सो वह उसे भरपूर सहयोग कर रहे थे. शालू खूबसूरत थी. उस ने जब 17 बसंत पार किए तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया था.

इसी दौरान राहुल गिरि से उस की दोस्ती हो गई. राहुल शालू के पड़ोस में ही रहता था और किसान इलम चंद्र का बेटा था. शालू के पिता राजेंद्र गिरि तथा राहुल के पिता इलम चंद्र की आपस में खूब पटती थी. राजेंद्र जहां अपनी बेटियों का भविष्य बनाने में जुटे थे, वही इलम चंद्र अपने बेटे राहुल का भविष्य बनाने को प्रयासरत थे. राहुल उन का होनहार बेटा था. उस ने चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री हासिल करने के बाद बीएड की परीक्षा पास कर ली थी और शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) पास कर शिक्षक बनना चाहता था.

शालू और राहुल एक ही गली में खेलकूद कर जवान हुए थे. दोनों में एकदूसरे के प्रति आकर्षण था. यह आकर्षण धीरेधीरे प्यार में बदल गया था. प्यार परवान चढ़ा तो एक रोज राहुल ने प्यार का इजहार कर दिया, ‘‘शालू, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं. मैं ने तुम्हें अपना बनाने का सपना संजोया है. क्या मेरा यह सपना पूरा होगा?’’

‘‘तुम्हारा सपना जरूर पूरा होगा. पर अभी नहीं. अभी समय है अपना कैरियर बनाने का. तुम्हारा सपना है शिक्षक बनने का और मेरा सपना है पुलिस में नौकरी करने का. अपनाअपना सपना पूरा करो फिर हम जीवनसाथी बन जाएंगे. हम दोनों मजे से जीवन गुजारेंगे.’’

शालू की यह बात राहुल को पसंद आ गई. इस के बाद दोनों अपना कैरियर बनाने में जुट गए. कालांतर मे राहुल ने टीईटी की परीक्षा पास की, उस के बाद उस का चयन शिक्षक पद पर हो गया. वह फैजाबाद के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने लगा. इधर शालू का भी चयन पुलिस विभाग में महिला सिपाही के पद पर जनवरी 2019 में हो गया. उस की ट्रेनिंग इटावा में हुई. उस के बाद 16 दिसंबर, 2019 को शालू की पहली पोस्टिंग औरैया जिले के विधूना कोतवाली में हो गई. थाने में ड्यूटी के दौरान शालू की मुलाकात सिपाही आकाश से हुई. कुछ दिनों बाद ही दोनों गहरे दोस्त बन गए.

आकाश हर तरह से शालू की मदद करने लगा. दोनों के मन में एकदूसरे के प्रति चाहत बढ़ गई. 20 मार्च, 2020 को शालू गिरि एक सप्ताह की छुट्टी पर अपने गांव लतीफपुर दत्त नगर आई. पर 24 मार्च की रात से देश में लौकडाउन घोषित हो गया, जिस से शालू भी लौकडाउन में फंस गई. शालू का प्रेमी शिक्षक राहुल भी फैजाबाद से घर आया था. वह भी लौकडाउन में गांव में ही फंस गया था. सादगी से हुई लवमैरिज  गांव में रहते शालू और राहुल का आमनासामना हुआ तो दोनों का प्यार उमड़ पड़ा. अब तक दोनों अपना कैरियर बना चुके थे. अत: जब राहुल ने शालू के समक्ष शादी का प्रस्ताव रखा तो शालू ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. इधर शालू जब लौकडाउन में फंस गई तो पुलिस विभाग ने उसे बालौनी थाने में जौइन करा दिया.

गांव से थाना 9 किलोमीटर दूर था और घर से रोज थाने आनाजाना मुश्किल था. अत: शालू ने बालौनी थाने के पास ही कमरा किराए पर ले लिया और वहीं रह कर ड्यूटी करने लगी. इसी कमरे में आ कर राहुल उस से मिलने लगा. कुछ दिन बाद शालू और राहुल ने अपने घर वालों से शादी की इच्छा जताई तो दोनों के घर वालों ने उन की बात मान ली. दरअसल शालू की मां सुमित्रा देवी को शालू और सिपाही आकाश के बीच बढ़ती दोस्ती की बात पता चल गई थी. वह शालू की शादी गैर बिरादरी में नहीं करना चाहती थीं, सो वह जातिबिरादरी के युवक राहुल से शादी को राजी हो गई थीं.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद 26 अप्रैल, 2020 को लौकडाउन के दौरान ही शालू और राहुल ने एकदूसरे के गले में वर माला पहना कर प्रेम विवाह कर लिया. दोनों परिवारों की मौजूदगी में प्रेम विवाह बालौनी के उसी कमरे में संपन्न हुआ, जिस में शालू रहती थी. शादी के बाद राहुल और शालू पतिपत्नी की तरह उसी कमरे में रहने लगे. पतिपत्नी के बीच दरार तब पड़ी जब सिपाही आकाश का नाम शालू की जुबान पर आया. दरअसल शालू देर रात तक सिपाही आकाश से बतियाती थी. पूछने पर वह आकाश को अपना दोस्त बताती थी. आकाश को ले कर राहुल के मन में शंका पैदा हो गई, जिस से वह उस के चरित्र पर शक करने लगा. शक के कारण दोनों के बीच तनाव की स्थिति रहने लगी.

3 मई, 2020 को बालौनी थाने से शालू को रिलीव कर दिया गया और 5 मई को उस ने वापस विधूना कोतवाली में ड्यूटी जौइन कर ली. इस के बाद उस ने विधूना कस्बे के किशोरगंज मोहल्ले में तरुण सिंह के मकान में किराए पर रूम ले लिया और रहने लगी. शालू शादी कर जब से वापस थाने आई थी तब से वह गुमसुम रहने लगी थी. लेकिन वह अपना दर्द किसी से बयां नहीं करती थी. इस दर्द का कारण उस का पति राहुल ही था. वह जब भी शालू से फोन पर बात करता था. उस के चरित्र पर उंगली उठाता था. इधर जब से शालू ब्याह रचा कर वापस लौटी थी, तब से उस का सिपाही दोस्त आकाश भी उस से कतराने लगा था. उस में अब न पहले जैसी दोस्ती थी और न ही प्यारसम्मान. वह अब दोजख में फंस गई थी.

एक ओर उस का पति मानसिक चोट पहुंचा रहा था, उस के चरित्र पर शक कर रहा था, तो दूसरी ओर सिपाही दोस्त आकाश भी उसे पीड़ा पहुंचा रहा था. ऐसे में शालू परेशान हो उठी. आखिर में उस ने हताश जिंदगी का अंत करने का निश्चय कर लिया. पहली जून, 2020 को शालू ड्यूटी गई और रात 9 बजे वापस अपने रूम पर आई. उस रोज भी वह परेशान थी और निराशा उसे घेरे थी. रात 11 बजे बड़ी बहन सपना का फोन आया तो उस ने उस से बहकीबहकी बातें कीं. फिर फोन डिसकनेक्ट कर दिया.  उस के बाद उस ने सिपाही आकाश को फोन किया, लेकिन उस ने फोन रिसीव ही नहीं किया. इस के बाद शालू ने अपनी डायरी के 3 पन्नों पर सुसाइड नोट लिखा, फिर रात लगभग 12 बजे फांसी के फंदे पर झूल गई.

घटना की जानकारी तब हुई जब सपना ने सुबह विधूना थानाप्रभारी विनोद कुमार शुक्ला के मोबाइल पर जानकारी दी और शालू से बात कराने का आग्रह किया. इस के बाद विनोद कुमार शुक्ला जब शालू के रूम पर पहुंचे, तब शालू फांसी के फंदे पर झूलती मिली. उन्होंने शव को कब्जे में ले कर जांच शुरू की तो शालू की हताश जिंदगी की व्यथा सामने आई. चूकि शालू के पति राहुल के खिलाफ शालू के घर वालों ने कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी, अत: विधूना पुलिस ने इस प्रकरण को बंद कर दिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Madhya Pradesh News : बिजनैसमैन को फसाया और मांगे 20 लाख

Madhya Pradesh News : पिछले दिनों इंदौर और भोपाल में हनीट्रैप के जो मामले सामने आए, उन में बड़ेबड़े लोगों को ब्लैकमेल कर के करोड़ों रुपए वसूले गए थे. पिंकी ने भी इसी तर्ज पर जावरा के बिजनैसमैन मोहित पोरवाल को ब्लैकमेल करने की योजना बनाई. लेकिन तयशुदा रकम मिलने से पहले ही…

घटना मध्य प्रदेश के रतलाम जिले की है. 29 नवंबर, 2019 को दोपहर के 2 बजे का समय था. रतलाम के पास अलकापुरी क्षेत्र में स्थित हनुमान ताल के पास कस्बा जावरा के एक प्रसिद्ध व्यापारी मोहित पोरवाल हाथ में सूटकेस लिए खड़े थे. वह काफी घबराए हुए थे, चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं, डर की छाया साफ दिखाई दे रही थी. चेहरे पर आ रहे पसीने को वह बारबार रूमाल से पोंछ रहे थे. उन की नजर सुनसान सड़क पर लगी हुई थी. जबकि वहां से कुछ दूर सुनसान जगह पर सादा कपड़ों में मौजूद 10 पुलिस वालों की नजरें मोहित कुमार पर जमी हुई थीं. साथ ही वहां आनेजाने वाले व्यक्तियों पर भी थीं.

उसी समय एक पुलिसकर्मी थाना औद्योगिक नगर के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर से संपर्क बनाए हुए था. मोहित के आसपास फैले पुलिसकर्मी उस समय सतर्क हो गए, जब उन्होंने 3 व्यक्तियों को चौकन्ने भाव से मोहित की तरफ आते देखा. वे तीनों मोहित के पास आ कर कुछ पल के लिए रुके और मोहित के हाथ से सूटकेस ले कर जाने के लिए तेजी से मुड़े. वे तीनों भाग पाते उस से पहले ही आसपास छिपे पुलिसकर्मियों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया. उन युवकों ने पूछताछ में अपने नाम शिव उर्फ भोला निवासी लक्ष्मणपुरा, कालू उर्फ अविनाश, दिनेश टका निवासी बिरयाखेड़ी, रतलाम बताए. उन तीनों को पकड़ कर पुलिसकर्मी टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के पास ले आए.

टीआई शिवमंगल सेंगर ने उन से सख्ती से पूछताछ की तो उन्होंने कबूल कर लिया कि उन के गिरोह की सरगना पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी है, जिस ने व्यापारी मोहित को अपने जाल में फंसाया था. साइबर सेल से मिली जानकारी के बाद एसपी रतलाम को पहले से ही शक था कि पिंकी शर्मा उर्फ प्रियांशी इस गिरोह में शामिल है. जब उस का नाम सरगना के तौर पर सामने आया, तो महिला पुलिस के साथ गई टीम ने उसे एमबी नगर स्थित उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. पकड़े जाने पर पिंकी शर्मा ने स्वीकार किया कि पिछले दिनों इंदौर में चर्चाओं में रहे हनीट्रैप कांड की तरह उस ने मोहित को लालच दे कर शिकार बनाया था.

पुलिस ने गिरफ्तार आरोपियों के पास से लूट में प्रयुक्त एक स्कूटर, मोटरसाइकिल, मोहित की सोने की अंगूठी और नकद 2 हजार रुपए के अलावा सोने की बाली, चांदी का कड़ा, खिलौना रिवौल्वर एवं एक चाकू बरामद कर लिया. उन से की गई पूछताछ के बाद ब्लैकमेलिंग करने की पूरी कहानी इस प्रकार सामने आई—

मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के रहने वाले 45 वर्षीय मोहित जावरा के जानेमाने अनाज व्यापारियों में से एक हैं. जमा हुआ खानदानी कारोबार है. शहर के रईसों में इन का नाम भी शुमार है. मोहित छोटी उम्र से ही परिवार का बिजनैस संभाल रहे थे. व्यापार के अलावा वह सोशल मीडिया में भी एक्टिव रहते थे. इसी के चलते कुछ महीने पहले वाट्सऐप पर उन की मुलाकात रतलाम की एमबी कालोनी निवासी आधुनिक विचारों वाली 22 वर्षीय सुंदरी पिंकी शर्मा से हुई. धीरेधीरे यह जानपहचान दोस्ती में बदल गई और समय के साथ इस दोस्ती में वे सब बातें भी होने लगीं, जिन्हें बेहद निजी कहा जा सकता है. धीरेधीरे वह पिंकी में काफी रुचि लेने लगे.

बताते हैं पिंकी से उन की 1-2 मुलाकातें सार्वजनिक स्थानों पर हुईं. फिर वह मोहित को अकेले में मिलने के लिए बुलाने लगी. अब तक परिवार के प्रति ईमानदार रहे मोहित, उस से अकेले में मिलने में कोई रुचि नहीं दिखा रहे थे. लेकिन जवान और खूबसूरत दोस्त का खुला आमंत्रण वह भला कब तक ठुकराते, इसलिए न न करते हुए भी वह एक दिन उस की बताई जगह पर मिलने को तैयार हो गए. मिलने के लिए तारीख तय हुई 24 नवंबर की दोपहर और स्थान था विरियाखेड़ी के ईंट भट्ठों का सुनसान इलाका. मन में कुछ आशंकाएं और ढेर सारे सपने ले कर मोहित तय वक्त पर विरियाखेड़ी पहुंच गए. उन के मन में एक शंका थी कि शायद ही पिंकी उन से मिलने आए. लेकिन यह देख कर उन का दिल खुश हो गया कि पिंकी उन के पहुंचने से पहले ही वहां खड़ी उन का इंतजार कर रही थी.

‘‘कितनी देर कर दी जनाब आने में. क्या इसी तरह इंतजार करवाओगे?’’ पिंकी मुसकरा कर बोली.

‘‘नहीं यार,बस आतेआते टाइम लग गया.’’ मोहित ने कहा.

‘‘ओके चलो, पहली बार देर हुई है, इसलिए माफ करती हूं. मालूम है लड़कों को अपनी गर्लफ्रैंड से मिलने उस से पहले पहुंचना चाहिए.’’ वह बोली.

‘‘लड़कों को न, लेकिन मैं लड़का नहीं हूं.’’ मोहित ने कहा.

‘‘तो क्या हुआ, मेरे बौयफ्रैंड तो हो. लेकिन मैं आप को एक बात बताऊं कि मुझे लड़कों के बजाए परिपक्व मर्दों में रुचि है.’’ पिंकी ने बताया.

‘‘वो क्यों?’’ मोहित ने पूछा.

‘‘सब से बड़ी बात तो यह है कि वह इस मामले में अनुभवी होते हैं. दूसरे लड़कों की तरह ज्यादा परेशान भी नहीं करते.’’ पिंकी ने तिरछी नजरों से मोहित की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘अब ज्यादा समय खराब मत करो. वहां सामने एक घर है, वहां कोई नहीं आताजाता. चलो, वहीं चल कर बात करते हैं.’’

मोहित उस के साथ उस मकान में जाने से मना करना चाहते थे, लेकिन पिंकी को देखने के बाद वह उसे मना नहीं कर सके और उसे साथ ले कर उस के बताए मकान में चले गए. दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई. पिंकी की सैक्सी बातों और हरकतों से मोहित अपना होश खोने लगे. इस से पहले कि वह अपनी हसरतें पूरी कर पाते, तभी दरवाजे पर लात मार कर अंदर घुस आए 3 युवकों को देख कर मोहित घबरा गए. उन का गीला गला एक झटके में रेगिस्तान बन गया.

‘‘क्या हो रहा है बुड्ढे, बेटी की उम्र की लड़की के साथ अय्याशी की जा रही है.’’ उन में से एक युवक ने मोहित से कहा तो उन से कोई जवाब देते नहीं बना.

‘‘चल कर ले अय्याशी, हम तेरा लाइव शो देखेंगे.’’ दूसरा बोला.

‘‘देखिए, ऐसा कुछ नहीं है. हम लोग यहां यूं ही आए थे.’’ मोहित ने थूक गटकते हुए किसी तरह कहा.

लेकिन वे तीनों नहीं माने. उन्होंने चाकू की नोंक पर मोहित और पिंकी के पूरे कपड़े उतरवा दिए और फिर उसी अवस्था में दोनों के अश्लील फोटो और वीडियो अपने कैमरे में कैद करने के बाद बोले, ‘‘अब जाओ, यह वीडियो हम तुम्हारे बीवीबच्चों को भेज देंगे. फिर आराम से बैठ कर सब के साथ देखना.’’

‘‘देखिए, मैं आप के हाथ जोड़ता हूं. हम यहां ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे थे. आप वीडियो और फोटो डिलीट कर दें.’’ मोहित ने उन तीनों से कहा तो उन्होंने इस के बदले में 20 लाख रुपयों की मांग की. उस वक्त मोहित के पास इतना रुपया नहीं था, सो तय हुआ कि हफ्ते भर में मोहित 20 लाख रुपए बदमाशों को दे कर उन से वीडियो और फोटो वापस ले लेंगे. मामला सुलट गया तो पिंकी और मोहित के वहां से जाने के पहले बदमाशों ने मोहित की सोने की अंगूठी और जेब में रखे 2 हजार रुपयों के अलावा पिंकी के जेवर भी लूट लिए.

मोहित जैसेतैसे वापस जावरा पहुंच तो गए लेकिन उन के दिल को पलभर का भी सुकून नहीं था. पिंकी के चक्कर में उन्हें पीढि़यों से बनाई बापदादाओं की इज्जत धूल में मिलती दिखाई दे रही थी. मामला अगर दुनिया के सामने आ जाता तो समाज और अपने परिवार के सामने नजरें ऊंची नहीं कर पाते. इन्हीं सब खयालों से डरे हुए मोहित को रात में नींद भी नहीं आई. पिंकी को याद करने का तो सवाल ही नहीं था. लेकिन अगले ही दिन सुबहसुबह पिंकी का फोन आ गया. उन्होंने बेमन से पिंकी से बात की तो उस ने कल की घटना पर दुख जताया लेकिन उस की बातों से ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे इस बात की कोई टेंशन है. उस समय उन्होंने पिंकी की इस बेफिक्री पर ज्यादा गौर नहीं किया.

इधर दोपहर होते ही बदमाशों का फोन आ गया, जिस में कहा गया कि वह जल्द से जल्द उन्हें 20 लाख रुपए दे दें. इस के कुछ देर बाद पिंकी का भी फोन आ गया. उस ने बताया कि बदमाशों ने उसे भी फोन कर जल्द से जल्द 20 लाख रुपए की मांग की है. साथ ही उस ने सलाह भी दी कि वह जल्द से जल्द बदमाशों की मांग पूरी कर दें वरना अपनी दोस्ती खतरे में पड़ जाएगी. यहां पूरी बनीबनाई इज्जत खतरे में पड़ी थी और पिंकी को अब भी प्यारमोहब्बत की बातें सूझ रही थीं. मोहित को पिंकी पर बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन यह मौका गुस्सा दिखाने का नहीं था, इसलिए वह किसी तरह अपने गुस्से को काबू में किए रहे.

दूसरी तरफ एक के बाद एक तीनों बदमाश उन्हें बारबार फोन कर 20 लाख रुपयों की मांग करते हुए पिंकी के साथ बनाया उन का अश्लील वीडियो वायरल करने की धमकी दे रहे थे. जितनी बार बदमाशों का फोन आता, उतनी ही बार पीछे से पिंकी का फोन आ जाता. वह हर बार मोहित को सलाह देती कि जैसे भी हो, बदमाशों की मांग जल्द पूरी कर दें. इस से मोहित को शक होने लगा कि कहीं पिंकी भी इन बदमाशों से मिली हुई तो नहीं है. क्योंकि वह जानते थे कि अगर बदमाशों ने वीडियो वायरल कर भी दी, तो पिंकी का कुछ नहीं बिगड़ेगा. लेकिन उन की पूरी इज्जत धूल में मिल जाएगी. मीडिया में न तो पिंकी का नाम आएगा और न फोटो लेकिन उन के नाम के तो पोस्टर छप जाएंगे. फिर पिंकी क्यों इतना डर रही है. वह बारबार बदमाशों को रुपए देने का दबाव क्यों बना रही है.

काफी सोचविचार के बाद मोहित ने 4 दिन बाद पूरी कहानी रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को बता दी. मोहित की बात सुन कर एसपी साहब समझ गए कि मोहित किसी ब्लैकमेल कराने वाले गिरोह के शिकार बन गए हैं. इसलिए उन्होंने इस गिरोह को गिरफ्तार करने के लिए औद्योगिक क्षेत्र के टीआई शिवमंगल सिंह सेंगर के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बना दी. पुलिस की साइबर सेल ने पिंकी के मोबाइल की काल डिटेल्स निकाली तो पता चला कि बदमाश जिन फोन नंबरों से मोहित से बात कर रहे थे, उन नंबरों पर काफी दिनों से पिंकी की बारबार बात होती रही है. इस से यह साफ हो गया कि पिंकी ने ही मोहित को हनीट्रैप में फंसा कर ठगने की साजिश रची है. इसलिए एसपी के निर्देश पर जांच अधिकारी शिवमंगल सिंह सेंगर ने योजना बना कर मोहित से आरोपियों को पैसों का इंतजाम हो जाने का फोन करवाया.

बदमाशों ने उन्हें 29 नवंबर, 2019 की दोपहर 2 बजे पैसा ले कर हनुमान ताल पर बुलाया. जिस के बाद योजना अनुसार एसपी रतलाम ने सुबह से ही हनुमान ताल पर सादा लिबास में पुलिसकर्मी तैनात कर दिए. दोपहर में जैसे ही तीनों बदमाश शिव, कालू और दिनेश मोहित से फिरौती के 20 लाख रुपए लेने के लिए आए, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पिंकी के बारे में बताया जाता है कि वह मूलरूप से किला मैदान, झाबुआ की रहने वाली थी. वह रतलाम में एक फाइनैंस कंपनी में नौकरी करती थी. उस कंपनी में राकेश (परिवर्तित नाम) भी नौकरी करता था. वहीं पर दोनों की दोस्ती हुई. राकेश रतलाम के ही  जावरा का रहने वाला था. चूंकि दोनों ही जवान थे, इसलिए जब उन की दोस्ती प्यार में बदली, तब उन्होंने शादी का फैसला कर लिया.

दोनों ने घर वालों की मरजी के बिना लवमैरिज कर ली. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद ही दोनों के बीच मतभेद हो गए. हालांकि इस दौरान पिंकी एक बेटी की मां बन चुकी थी. जब दोनों के बीच ज्यादा ही कलह रहने लगी तो वह बेटी को पति के पास छोड़ कर चली आई. इस दौरान पिंकी की मुलाकात रतलाम के ही रहने वाले सन्ना नाम के बदमाश से हुई. वह सन्ना के साथ रतलाम के चांदनी चौक क्षेत्र में रहने लगी. सन्ना के जरिए पिंकी की जानपहचान लक्ष्मणपुरा, रतलाम के रहने वाले भोला, हाट की चौकी के कालू और बीरियाखेड़ा के दिनेश से हुई. ये सभी आपराधिक सोच वाले युवक थे.

पिछले दिनों इंदौर में हनीट्रैप के मामले में हाईफाई लोगों के फंसने का मामला सामने आया था. उसी से प्रेरित हो कर पिंकी और उस के इन साथियों ने मोटा पैसा कमाने के लिए प्लान बनाया. लिहाजा पिंकी के जरिए वे सब मोटी आसामी को अपने जाल में फांस कर उन्हें ब्लैकमेल करने लगे. पिंकी पिछले 5 सालों से शहर के युवकों को अपने रूपजाल में फंसा कर ठगने का काम कर रही थी. इसी योजना के तहत उस ने मोहित से दोस्ती की और एकांत जगह पर स्थित भट्ठों पर बने कमरे में ले गई और उन्हें अपने रूपजाल में फंसाने का जतन करने लगी. तभी उस के तीनों साथियों ने आ कर मोहित के साथ उस की अश्लील फिल्म बना ली.

मोहित को उस के ऊपर शक न हो इसलिए मोहित के साथ उन्होंने पिंकी के साथ भी लूटपाट का नाटक किया था. लेकिन रतलाम पुलिस ने जल्द ही इस गिरोह के नाटक का परदा गिरा दिया. आरोपी शिव उर्फ भोला, कालू, दिनेश और पिंकी से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

 

 

Inspector ने फेसबुक के जरिए पकड़ा शातिर चोर

इंसपेक्टर (Inspector) अनिरुद्ध सिंह जानते थे कि लड़की के नाम पर बड़ेबड़े फिसल जाते हैं. जबकि आरिफ तो अभी लड़का है. उन्होंने लड़की के नाम से उस के फेसबुक पर प्यार का संदेश भेजा तो सचमुच आरिफ फिसल गया और उन की गिरफ्त में आ गया. बिहार के शहर पटना के मोहल्ला राजापुर के रहने वाले राकेश रंजन को जब भी कामधंधे से

फुरसत मिलती, वह इस का सदुपयोग देश के किसी न किसी पर्यटकस्थल पर जाने के रूप में करते. काफी दिनों से वह जम्मूकश्मीर जा कर वहां वैष्णो देवी के मंदिर का दर्शन करने की सोच रहे थे, इसलिए बरसात खत्म होते ही उन्हें मौका मिला तो उन्होंने अगस्त के अंतिम सप्ताह में जम्मूकश्मीर जाने की तैयारी कर के ट्रेन से आनेजाने का टिकट करा लिया. अपनी पूर्व तैयारी के हिसाब से राकेश रंजन जम्मूकश्मीर पहुंच गए और वैष्णो देवी मंदिर के दर्शन कर के आराम से घूमेफिरे. 15 सितंबर, 2013 को हिमगिरि एक्सप्रेस से उन का वापसी का टिकट था. जम्मू से चल कर हावड़ा तक जाने वाली हिमगिरि एक्सपे्रस जम्मू से रात पौने 11 बजे चलती थी.

राकेश रंजन खाना वगैरह खा कर समय से स्टेशन पर पहुंच गए और सीधे अपने कोच में जा कर पहले से आरक्षित बर्थ पर आराम से लेट गए. जम्मू से लखनऊ तक का उन का सफर आराम से बीता. अगले दिन 16 सितंबर की शाम 4 बजे के आसपास टे्रन लखनऊ पहुंची तो कुछ यात्री उतरे तो कुछ सवार हुए. सवार होने वाले यात्रियों में राकेश रंजन की बगल वाली खाली हुई सीट पर एक युवक आ कर बैठ गया. उस की ऊपर वाली बर्थ थी. वह बातचीत बड़ी शालीनता से कर रहा था, इसलिए जल्दी ही राकेश रंजन उस से हिलमिल गए. दोनों में बातचीत होने लगी.

युवक ने अपना नाम मोहम्मद आरिफ खां बताया. आगे बातचीत में उस ने बताया कि उस के पिता फिरोज खां सेना में सूबेदार मेजर हैं, जो जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में तैनात हैं. वह वाराणसी का रहने वाला है और दिल्ली में रह कर इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहा है. आरिफ बातें बहुत अच्छे ढंग से कर रहा था, इसलिए राकेश रंजन उस से काफी देर तक बातें करते रहे. बातें करतेकरते ही कब 8 बज गए, उन्हें पता ही नहीं चला. हिमगिरि एक्सप्रेस वाराणसी रात के 9 बजे के आसपास पहुंचती थी. राकेश रंजन को रात में ही ट्रेन से उतरना था, इसलिए उन्होंने सोचा कि अगर वह जल्दी सो जाएंगे तो रात में जागने में उन्हें दिक्कत नहीं होगी.

इसीलिए वाराणसी आने से पहले ही उन्होंने खाना मंगा कर खा लिया और अपनी बर्थ पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगे. आरिफ भी कुछ देर तक कोई पत्रिका पलटता रहा, उस के बाद लाइट बंद कर के लेट गया. रात 11 बजे के आसपास ट्रेन बक्सर पहुंच रही थी तो राकेश रंजन को पेशाब लगी. वह पेशाब कर के लौटे तो बर्थ पर लेटने से पहले एक बार अपना सामान चैक करने लगे. सारा सामान यथास्थान रखा था, लेकिन उन्हें लगा कि उन के सामान से उन का एक बैग गायब है. वह सीट के नीचे और अगलबगल बैग को तलाशने लगे, लेकिन बैग उन्हें कहीं दिखाई नहीं दिया. बैग कहीं दिखाई नहीं दिया तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि कोई उन का बैग उठा ले गया है.

राकेश रंजन ने यह सोच कर एसी बोगी बर्थ आरक्षित कराई थी कि रास्ते में उन्हें कोई दिक्कत न उठानी पड़े और सामान भी सुरक्षित रहे. क्योंकि एसी डिब्बों में फालतू लोगों का आनाजाना न के बराबर होता है. एसी कोच में वही यात्री चढ़ते हैं, जिन की बर्थ कनफर्म होती है. राकेश जहां स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे थे, वहीं से उन का बैग चोरी हो गया था.

एसी डिब्बों में प्लेटफार्म का शोरगुल भी नहीं सुनाई देता, इसलिए राकेश रंजन अपनी बर्थ पर आराम से सोए रहे थे. ट्रेन मुगलसराय स्टेशन से कब छूटी थी, उन्हें यह भी पता नहीं चला था. मुगलसराय स्टेशन से गाड़ी के चलने के लगभग घंटे भर बाद राकेश रंजन को पेशाब लगा था. तब उन की आंख खुली थी. जितनी देर उन्होंने पेशाब करने में लगाया था, बस उतनी ही देर के लिए वह अपने सामान के पास से हटे थे. जाते समय उन्होंने अपना सामान नहीं देखा था, इसलिए वह दुविधा में फंसे थे कि उन का बैग पहले गायब हुआ था या बाद में.

उसी बैग में उन का सारा कीमती जरूरी सामान था, इसलिए वह परेशान हो उठे थे. कीमती सामान का मतलब, 3 बैंकों के डेबिट कार्ड और 5-6 हजार रुपए नकद के अलावा कुछ जरूरी कागजात भी थे. संकट के उस समय राकेश रंजन की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें? बैग को कहां तलाशें, उस के बारे में किस से पूछें? उस समय रात के 11 बज रहे थे, डिब्बे के अन्य यात्री अपनीअपनी सीटों पर आराम से सो रहे थे. इसलिए वह बैग के बारे में किसी भी यात्री से पूछने में झिझक रहे थे. लेकिन बैग गायब होने से परेशान राकेश रंजन का मन नहीं माना और उन्होंने अपने कूपे के यात्रियों को जगा कर बैग के बारे में पूछा.

इस पूछताछ में उन्हें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला. सभी ने एक ही जवाब दिया, ‘मैं तो सो रहा था.’ आपस में बात चली तो लखनऊ से चढ़े मोहम्मद आरिफ खां पर सब का ध्यान गया. लोगों ने अंदाजा लगाया कि वह मुगलसराय में उतरा था. कहीं वही तो बैग ले कर नहीं उतर गया. उस समय संदेह व्यक्त करने के अलावा और कुछ नहीं किया जा सकता था, क्योंकि ट्रेन अपनी पूरी रफ्तार से चली जा रही थी. कूपे के यात्रियों ने राकेश रंजन को सलाह दी कि अगले स्टेशन पर उतर कर वह जीआरपी थाने में बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दें. ट्रेन का अगला स्टेशन बक्सर था.

लेकिन वहां ट्रेन केवल 2 मिनट के लिए रुकती थी. इतने कम समय में ट्रेन से उतर कर जीआरपी थाने तक जा कर रिपोर्ट दर्ज करा कर डिब्बे तक वापस आना संभव नहीं था. तब किसी सहयात्री ने सलाह दी कि वह अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट पटना में उतर कर आराम से वहां के जीआरपी थाने में दर्ज कराएं, वहां उन के पास समय ही समय रहेगा, क्योंकि उन्हें वहीं उतरना है. केश रंजन को यह सुझाव ठीक लगा. इसलिए उन्होंने पटना पहुंच कर रिपोर्ट दर्ज कराने का निर्णय लिया. वह लेट तो गए, लेकिन अब उन्हें नींद कहां आ रही थी, करवट बदलते हुए वह पटना जंक्शन आने का इंतजार करने लगे. हिमगिरि एक्सपे्रस 16/17 सितंबर की रात डेढ़ बजे के आसपास पटना पहुंचती थी. लेकिन उस दिन ट्रेन कुछ लेट थी, इसलिए ढाई बजे के बाद पहुंची.

पटना प्लेटफार्म पर उतर कर राकेश रंजन सीधे थाना जीआरपी पहुंचे और थानाप्रभारी से मिल कर अपने बैग के चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी. थानाप्रभारी ने उन से चोरी गए बैग के बारे में पूछताछ कर के उन्हें घर भेज दिया. राकेश रंजन की यह रिपोर्ट 17 सितंबर, 2013 की सुबह 3 बजे के आसपास भादंवि की धारा 379 के तहत पटना के थाना जीआरपी में दर्ज हुई थी. इस के बाद इस रिपोर्ट को जांच के लिए बक्सर के जीआरपी थाना पुलिस को भेज दिया गया, क्योंकि राकेश रंजन का बैग बक्सर सीमाक्षेत्र में चोरी हुआ था. 19 सितंबर को बक्सर के थाना जीआरपी के सबइंसपेक्टर शंकरराम को राकेश रंजन द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट जांच के लिए मिली तो उन्होंने तुरंत राकेश रंजन को फोन किया. पूछताछ में पता चला कि राकेश रंजन के चोरी गए डेबिट कार्ड से अब तक 90 हजार रुपए की खरीदारी हो चुकी थी.

सबइंसपेक्टर (Inspector) शंकरराम समझ गए कि चोर शातिर और चालाक ही नहीं, मंझा हुआ खिलाड़ी भी है. उसे पता है कि किस चीज का उपयोग कैसे हो सकता है. शंकरराम ने जांच आगे बढ़ाई तो पता चला कि चोरी के 24 घंटे के अंदर ही चोर ने डेबिट कार्ड से 90 हजार रुपए की खरीदारी कर ली थी. यह खरीदारी उत्तर प्रदेश के जिला चंदौली के शहर मुगलसराय के एक शोरूम से की गई थी. जांच के लिए सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय स्थित उस शोरूम में पहुंचे और जब उन्होंने वहां पूछताछ की तो पता चला कि युवक ने उस डेबिट कार्ड से सैमसंग के 2 स्मार्ट मोबाइल फोन और कुछ कपड़े खरीदे थे.

खरीदारी के दौरान खरीदार को अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर के साथ पता लिखाना जरूरी होता है, इसलिए शंकरराम को पता था कि चोर का पता, मोबाइल नंबर और ईमेल आर्डडी मिल ही जाएगी. सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम के मैनेजर से मिल कर खरीदार का विवरण मांगा तो मैनेजर ने खरीदार द्वारा दी गई ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता उन्हें दे दिया. शोरूम से मिली जानकारी के अनुसार खरीदार वाराणसी के थाना कैंट के मोहल्ला खजुरी (फुलवरिया) का रहने वाला था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने शोरूम से ही मैनेजर द्वारा दिए गए मोबाइल नंबर पर फोन किया तो पता चला फोन बंद है. इस का मतलब चोर ने मोबाइल नंबर गलत दिया था. अब उस के द्वारा दिए गए पते का सहारा था. सबइंसपेक्टर शंकरराम मुगलसराय से वाराणसी आ गए और चोर द्वारा दिए गए पते पर पहुंच कर उस के बारे में पता किया तो लोगों ने बताया कि इस नाम का कोई आदमी वहां नहीं रहता. इस का मतलब आरिफ ने पता भी गलत लिखाया था.

सबइंसपेक्टर शंकरराम ने खजुरी (फुलवरिया) इलाके में घूमघूम कर तमाम लोगों से आरिफ खां के बारे में पूछताछ की. लेकिन कोई भी उस के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं दे सका. जब आरिफ के बारे में वहां कोई जानकारी नहीं मिली तो शंकरराम निराश हो कर थाना कैंट पहुंचे और थानाप्रभारी इंसपेक्टर अनिरुद्ध कुमार सिंह से मिल कर उन्हें पूरी बात बता कर अनुरोध किया कि उस चोर को पकड़वाने में वह उन की मदद करें. पूरी बात सुनने के बाद इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने राकेश रंजन का पता और मोबाइल नंबर नोट कर के बक्सर पुलिस को मदद का आश्वासन दे कर वापस भेज दिया. इस के बाद वह मामले की जांच में लग गए.

जांच आगे बढ़ाई तो उन्हें भी पता चला कि चोर ने मुगलसराय के एक शोरूम से सैमसंग के 2 स्मार्ट फोन और कपड़े खरीदे थे. उन्होंने शोरूम जा कर मैनेजर से खरीदार के बारे में पूछताछ की तो उस ने खरीदार का जो हुलिया बताया, वह राकेश रंजन द्वारा बताए आरिफ के हुलिए से बिलकुल मिलता था. अनिरुद्ध सिंह को पता था कि आरिफ ने जो पता दिया है, वह फरजी है, इसलिए वहां जाना बेकार है. उन्होंने खुद न जा कर अपने मुखबिरों को खजुरी इलाके में लगा दिया. इस के अलावा उन्होंने आरिफ द्वारा दी गई ईमेल आईडी के अनुसार उस के नाम से फेसबुक पर सर्च किया तो कैंट निवासी आरिफ का फेसबुक एकाउंट दिखाई दे गया.

उस में आरिफ का फोटो लगा था, इसलिए उन्होंने पहचान लिया कि यही वह आरिफ, जिस की उन्हें तलाश है. इस तरह उन्होंने असली आरिफ को खोज निकाला. दरअसल फेसबुक में बैकग्राउंड में वाराणसी के मानसिक चिकित्साल्य की फोटो लगी थी, इसी से पहचानने में उन्हें आसानी हो गई थी. इस के बाद आरिफ तक पहुंचने की उन्होंने एक अलग ही तरकीब सोची. उन्होंने एक लड़की का फोटो लगा कर जोया के नाम से फरजी प्रोफाइल बनाई और आरिफ को दोस्ती का पैगाम भेज दिया. आरिफ ने जोया के पैगाम को स्वीकार कर लिया तो उसे अपने जाल में फंसाने के लिए अनिरुद्ध सिंह उसे प्रेम भरे संदेश भेजने लगे. चैटिंग के दौरान उन्होंने उसे संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मुझे तुम से प्रेम हो गया है.’’

‘‘ऐसा ही कुछ मैं भी महसूस कर रहा हूं.’’ जवाब में आरिफ ने लिखा.

‘‘लेकिन आरिफ, मैं दिल्ली में रहती हूं. तुम कहां रहते हो?’’

‘‘मैं तो वाराणसी में रहता हूं. मैं यहां बीएचयू से इंजीनियरिंग कर रहा हूं. तुम दिल्ली में क्या करती हो? आरिफ ने अपने बारे में झूठा मैसेज भेज कर उस के बारे में पूछा.’

‘‘वाराणसी में तुम कहां रहते हो? मैं दिल्ली से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही हूं.’’

‘‘वाराणसी में मैं हौस्टल में रहता हूं.’’

‘‘तुम दिल्ली आ सकते हो?’’

सोच तो रहा हूं. लेकिन कालेज से छुट्टी नहीं मिल रही है.’’ आरिफ ने जोया को फिर झूठा मैसेज भेजा.

‘‘छुट्टी तो मुझे भी नहीं मिल रही है. लेकिन मैं तुम से मिलना चाहती हूं, इसलिए किसी भी तरह छुट्टी ले लूंगी. क्योंकि अब तुम से मिले बिना रहा नहीं जा रहा है.’’

‘‘जोया, मुझे भी लगता है कि अब मेरी जिंदगी तुम्हारे बिना अधूरी है.’’

‘‘फिर भी मुझ से मिलने के लिए तुम्हारे पास समय नहीं है.’’

‘‘जोया कभीकभी ऐसी मजबूरियां आ जाती हैं कि आदमी चाह कर भी मन की नहीं कर पाता.’’

‘‘खैर, मैं तो अपने मन की करूंगी. क्योंकि मुझे तुम से मिलना है और वाराणसी घूमना है. क्या तुम मुझे वाराणसी घुमाओगे?’’

‘‘क्यों नहीं. तुम आओ तो मैं तुम्हें पूरी वाराणसी घुमाऊंगा.’’

‘‘यह मैं ने इसलिए पूछा, क्योंकि तुम ने कहा था न कि मुझे कालेज से छुट्टी नहीं मिलती.’’

‘‘जोया, तुम आओ तो सही, देखो मैं तुम्हारे लिए कैसे समय निकालता हूं.’’

चैटिंग के दौरान आरिफ ने जोया का मोबाइल नंबर भी मांगा था. लेकिन उसे नंबर कैसे दिया जाता, इसलिए नंबर देने से मना कर दिया गया. उसे संदेश भेजा गया, ‘‘आरिफ, मैं वाराणसी आऊंगी, तब खूब बातें होंगी. तभी नंबर भी दे दूंगी. पहले नंबर दे कर मैं बातें करने की उत्सुकता खत्म नहीं करना चाहती.’’

‘‘इस का मतलब आग दोनों ओर लगी है.’’

‘‘मैं आऊंगी, तब मिल कर तनमन की इस आग को बुझाएंगे.’’

आरिफ ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जोया यहां तक पहुंच जाएगी. दरअसल अनिरुद्ध सिंह आरिफ को उत्तेजित कर के उसे अपने जाल में फंसाना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अगला संदेश भेजा, ‘‘आरिफ, मैं तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘तो वाराणसी आ जाओ. मैं भी तुम से मिलने के लिए बेचैन हूं.’’

‘‘आरिफ, मैं वाराणसी में 2-3 दिन रहना चाहती हूं.’’

इस संदेश पर आरिफ खुशी से फूला नहीं समाया. उस ने संदेश में लिखा, ‘‘अरे भाई, आओगी, तभी तो 2-3 दिन रहोगी.’’

‘‘सही बात तो यह है कि मैं ने अपना रिजर्वेशन करा लिया है. मैं 30 सितंबर को वाराणसी पहुंच जाऊंगी. बताओ, तुम कहां मिलोगे?’’

‘‘वाराणसी में मैं तुम से जेएचवी मौल में दोपहर 11 बजे मिलूंगा.’’

‘‘लेकिन मैं तुम्हें पहचानूंगी कैसे?’’

‘‘मेरी प्रोफाइल में जो फोटो लगा है, उस से तुम मुझे पहचान नहीं सकती?’’

‘‘उस से तो पहचान लूंगी.’’ अनिरुद्ध सिंह ने संदेश भेजा.

आरिफ भी जोया से मिलने के लिए आतुर था. इसलिए उसे 30 सितंबर का बेचैनी से इंतजार था. आखिर 30 सितंबर आ गया. जोया ने 11 बजे जेएचवी मौल में मिलने को कहा था, इसलिए आरिफ समय से पहले ही वहां पहुंच गया. अनिरुद्ध सिंह भी समय से पहले ही बिना वर्दी के अपने 2 सहयोगियों के साथ जीएचवी मौल पहुंच गए थे. आरिफ को देखते ही उन्होंने उसे पहचान लिया. इसीलिए जैसे ही वह गेट के अंदर घुसा, उन्होंने उसे दबोच लिया. पहले तो उस ने अनिरुद्ध सिंह और उन के साथियों को रौब में लेने की कोशिश की, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने अपनी असलियत बता कर उस की भी सच्चाई बताई तो वह शांत हो गया. अनिरुद्ध सिंह उसे थाना कैंट ले आए.

थाने आ कर भी आरिफ पहले अपनी पहचान छिपाते हुए पुलिस को बरगलाने की कोशिश करता रहा, लेकिन जब इंसपेक्टर अनिरुद्ध सिंह ने उसे बताया कि जोया बन कर वही उस से चैटिंग कर रहे थे, तब वह काबू में आ गया. इस के बाद उस ने राकेश रंजन के बैग चुराने का अपना अपराध स्वीकार कर के अपनी पूरी कहानी उन्हें सुना दी. मोहम्मद आरिफ खां वाराणसी के खजुरी के रहने वाले फिरोज खां का बेटा था. सेना में सूबेदार मेजर फिरोज खां की ड्यूटी इस समय जम्मूकश्मीर के उधमसिंहनगर में है. उस की पढ़ाई कैंट के आर्मी पब्लिक स्कूल में शुरू हुई थी. वहां से हाईस्कूल पास करने के बाद उस ने मुगलसराय के एक इंटर कालेज में दाखिला लिया, जहां उस की दोस्ती आवारा लड़कों से हो गई. इस का नतीजा यह निकला कि वह इंटर में 3 बार फेल हुआ. इस के बाद उस ने पढ़ाई छोड़ दी.

कालेज के उन्हीं आवारा दोस्तों के साथ रह कर आरिफ छोटीमोटी चोरियां करने लगा. लेकिन ये चोरियां ऐसी थीं, शायद उन की रिपोर्टें नहीं लिखाई गईं. इसलिए पुलिस से उस का कभी सामना नहीं हुआ. 17 सितंबर को वह लखनऊ से हिमगिरि एक्सप्रेस पर चढ़ा तो बातोंबातों में राकेश रंजन से उस की दोस्ती हो गई. पहले उस का चोरी का कोई इरादा नहीं था. लेकिन खाना खा कर राकेश रंजन सो गए तो पत्रिका पलटते हुए उस की नजर राकेश के बैग पर पड़ी. उसी समय उस की नीयत खराब हो गई. तब उस ने तय कर लिया कि कैसे भी हो, उसे इस बैग पर हाथ साफ करना है.

आरिफ का टिकट वाराणसी तक ही था. लेकिन तब तक कूपे के लोग जाग रहे थे. इसलिए आरिफ का काम नहीं हो सका. तब उस ने सोचा कि वह मुगलसराय तक चला जाए, शायद तब तक लोग सो ही जाएं. मुगलसराय वाराणसी से ज्यादा दूर भी नहीं है. वहां से कभी भी वाराणसी आया जा सकता है. मुगलसराय तक सचमुच सब लोग सो गए. जैसे ही मुगलसराय में ट्रेन रुकी, आरिफ राकेश रंजन का बैग ले कर उतर गया. मुगलसराय से उस ने खरीदारी इसलिए की थी, जिस से पुलिस को लगे कि वह मुगलसराय का रहने वाला है. लेकिन सामान खरीदते समय उस ने भले ही पता गलत दिया था, लेकिन वाराणसी का दे कर गलती तो की ही. इस के अलावा उस ने इस से भी बड़ी गलती अपना सही ईमेल दे कर की.

आरिफ ने अपराध स्वीकार कर लिया तो अनिरुद्ध सिंह ने उस से राकेश रंजन का सामान बरामद कर के उस की गिरफ्तारी की सूचना सबइंसपेक्टर शंकरराम को दे दी. वह उसी दिन   वाराणसी आ गए और चीफ ज्युडीशियल मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के ट्रांजिट रिमांड पर बक्सर ले कर चले गए. कथा लिखे जाने तक आरिफ की जमानत नहीं हुई थी, वह बक्सर की जिला जेल में बंद था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कालगर्ल रैकट की सरगना निकली मास्टरमाइंड

साधारण परिवार में पैदा हुई रिंकी शहजादियों वाला जीवन जीना चाहती थी. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. रेखा ने इसी का फायदा उठाया और उसे ही नहीं, उस के 3 साल के बेटे को भी बेच दिया. लेकिन बाद में जो हुआ, वह कतई ठीक नहीं थी. रात साढ़े 9 बजे के आसपास कुसुम्ही जंगल के वन दरोगा राकेश कुमार गश्त करते हुए बुढि़या माई दुर्गा मंदिर रोड पर मंदिर से थोड़ा आगे बढ़े थे कि वहां लगे खड़ंजे पर उन्हें एक लाश पड़ी दिखाई दी. उन्होंने टार्च की रोशनी में देखा, लाश महिला की थी. वह हरा सूट पहने थी. उस के दोनों पैरों में चांदी की पाजेब थी. लाश के पास ही एक पीले रंग की शौल पड़ी थी.

सिर पर पीछे की ओर किसी धारदार हथियार से वार किया गया था. वहां बने घाव से अभी भी खून बह रहा था. इस से उन्हें लगा कि यह हत्या अभी जल्दी ही की गई है. राकेश कुमार ने फोन द्वारा थाना खोराबार के थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव को लाश पड़ी होने की सूचना दी. वह गायघाट मर्डर केस को ले कर वैसे ही परेशान थे, इस लाश ने उन की परेशानी और बढ़ा दी. बहरहाल उन्होंने यह सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी और खुद पुलिस बल के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही क्षेत्राधिकारी नम्रता श्रीवास्तव, एसपी (सिटी) परेश पांडेय और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार भी घटनास्थल पर पहुंच गए.

मृतका के सिर से बह रहे खून से पुलिस अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि हत्या एकाध घंटे के अंदर हुई है. मृतका की उम्र 24-25 साल थी. घटनास्थल पर संघर्ष के निशान थे. खड़ंजे से कुछ दूरी पर जूते और  दुपहिया वाहन के टायरों के निशान साफ दिखाई दे रहे थे. इस का मतलब हत्यारे मोटरसाइकिल से आए थे. मृतका की छाती पर भी जूते के निशान मिले थे. इस से अंदाजा लगाया गया कि हत्यारे मृतका से नफरत करते रहे होंगे. लाश के निरीक्षण के दौरान मृतका की दाहिनी हथेली पर पुलिस को एक मोबाइल नंबर लिखा दिखाई दिया. पुलिस ने वह मोबाइल नंबर नोट कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज भिजवा दिया.

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मृतका के पास से मिला सामान कब्जे में ले लिया था, ताकि उस की शिनाख्त कराने में मदद मिल सके. यह 21 दिसंबर की रात की बात थी. 22 दिसंबर की सुबह उन्होंने मृतका की हथेली से मिले मोबाइल नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन उठाने वाले नेहैलोकहने के साथ ही उन के बारे में भी पूछ लिया.

‘‘मैं गोरखपुर के थाना खोराबार का थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव बोल रहा हूं.’’ उन्होंने अपना परिचय देते हुए पूछा, ‘‘यह नंबर आप का ही है. आप कहां से और कौन बोल रहे हैं?’’

‘‘साहब मैं अजय गिरि बोल रहा हूं. यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक महिला की हथेली पर लिखा था, जिस की हत्या हो चुकी है.’’

‘‘उस का हुलिया कैसा था?’’ अजय गिरि ने पूछा.

थानाप्रभारी ने हुलिया बताया तो अजय ने छूटते ही कहा, ‘‘साहब, यह हुलिया तो मेरी पत्नी रिंकी का है. क्या उस की हत्या हो चुकी है? दिसंबर, 2013 को छोटे बेटे सुंदरम को ले कर घर से निकली थी. तब से उस का कुछ पता नहीं चला. उसी की तलाश में मैं बड़े भाई की ससुराल मधुबनी आया था.’’

‘‘ऐसा करो, तुम थाना खोराबार जाओ. मरने वाली तुम्हारी पत्नी है या कोई और यह तो यहीं कर पता चलेगा.’’ थानाप्रभारी ने कहा, ‘‘लेकिन मृतका के पास से हमें कोई बच्चा नहीं मिला है. भगवान तुम्हारे साथ अच्छा ही करे.’’ अजय ने पत्नी के साथ बच्चे के होने की बात की थी, जबकि महिला की लाश के पास से कोई बच्चा नहीं मिला था. इस से थानाप्रभारी थोड़ा पसोपेश में पड़ गए कि उस का बच्चा कहां गया

बच्चे की उम्र भी कोई ज्यादा नहीं थी. उन्हें लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हत्यारों ने बच्चे को कहीं दूसरी जगह ले जा कर ठिकाने लगा दिया हो. गुत्थी सुलझने के बजाय और उलझ गई थी. अब यह अजय के आने पर ही सुलझ सकती थी. उसी दिन शाम होतेहोते अजय थाना खोराबार पहुंचा. थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव ने मेज की दराज से कुछ फोटो और लाश से बरामद सामान निकाल कर उस के सामने रखा तो सामान और फोटो देख कर वह रो पड़ा. थानाप्रभारी समझ गए कि मृतका इस की पत्नी रिंकी थी. इस के बाद मैडिकल कालेज ले जा कर उसे शव भी दिखाया गया. अजय ने उस शव की भी शिनाख्त अपनी पत्नी रिंकी के रूप में कर दी. अब सवाल यह था कि उस के साथ जो बच्चा था, वह कहां गया?

थानाप्रभारी श्रीप्रकाश यादव द्वारा की गई पूछताछ में अजय ने बताया, ‘‘रिंकी अपने 3 वर्षीय छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर ननद पुष्पा की ससुराल कुबेरस्थान जाने की बात कह कर घर से निकली थी. वहां जाने के लिए मैं ने ही उसे जीप में बैठाया था. उस ने 2 दिन बाद लौट कर आने को कहा था. 2 दिनों बाद जब वह घर नहीं लौटी तो मैं ने उस के मोबाइल पर फोन किया. उस के मोबाइल का स्विच औफ था. बाद में पता चला कि वह कुबेरस्थान जा कर सीधे गोरखपुर में रहने वाले मेरे बहनोई तेजप्रताप गिरि के यहां चली गई थी. इस के बाद मैं ने उन से रिंकी के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि वह उन के यहां आई तो थी, लेकिन दूसरे ही दिन चली गई थी. उस के बाद उस का कुछ पता नहीं चला.’’

अजय के अनुसार उस का बहनोई तेजप्रताप गिरि शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए पर परिवार के साथ रहता था. पुलिस ने उसी रात उस के घर से उसे पकड़ लिया. थाने ला कर उस से पूछताछ शुरू हुई. तेजप्रताप गिरि कुछ भी बताने को तैयार नहीं था. वह काफी देर तक पुलिस को इधरउधर घुमाता रहा. जब पुलिस को लगा कि यह झूठ बोल रहा है, तब पुलिस ने अपने ढंग से उस से सच्चाई उगलवाई. तेजप्रताप ने पुलिस को जो बताया था, उसी के आधार पर पुलिस ने बबलू और संदीप पाल को गिरफ्तार कर लिया. जबकि मनोज फरार होने में कामयाब हो गया. बबलू और संदीप से पूछताछ की गई तो पता चला कि रिंकी की हत्या के मामले में 2 महिलाएं रंभा उर्फ रेखा पाल और इशरावती भी शामिल थीं.

उसी दिन पुलिस ने उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया. इन की गिरफ्तारी के बाद अजय गिरि का 3 वर्षीय बेटा सुंदरम भी सहीसलामत मिल गया. गिरफ्तार पांचों अभियुक्तों से की गई पूछताछ के बाद रिंकी की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. पुलिस ने लाश बरामद होने पर हत्या का जो मुकदमा अज्ञात हत्यारों के खिलाफ दर्ज किया था, खुलासा होने पर अजय से तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों की जगह मनोज पाल, बबलू, संदीप पाल, तेजप्रताप गिरि, रंभा उर्फ रेखा पाल, इशरावती और सरदार रकम सिंह के नाम डाल कर नामजद कर दिया.

25 वर्षीया रिंकी उर्फ रिंकू, उत्तर प्रदेश के जिला कुशीनगर के थाना तरयासुजान के गांव लक्ष्मीपुर राजा की रहने वाली थी. उस के पिता नगीना गिरि गांव में ही रह कर खेती करते थे. इस खेती से ही उन का गुजरबसर हो रहा था. उन के परिवार में रिंकी के अलावा 3 बच्चे, जियुत, रंजीत और नंदिनी थे. नगीना के बच्चों में रिंकी सब से बड़ी थी. रिंकी खूबसूरत तो थी ही, स्वभाव से भी थोड़ा चंचल थी, इसलिए हर कोई उसे पसंद करता था. नगीना की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह बच्चों को पढ़ाते, इसलिए उन्होंने रिंकी की पढ़ाई छुड़ा दी थी. रिंकी जैसे ही सयानी हुई, गांव के लड़के उस के इर्दगिर्द मंडराने लगे. चंचल स्वभाव की रिंकी शहजादियों की तरह जीने के सपने देखती थी. लेकिन उस के लिए यह सिर्फ सपना ही था. यही वजह थी कि पैसों के लालच में वह दलदल में फंसती चली गई

गांव के कई लड़कों से उस के संबंध बन गए थे. वे लड़के उसे सपनों के उड़नखटोले पर सैर करा रहे थे. जब इस बात का पता उस के पिता नगीना को चला तो उन्होंने इज्जत बचाने के लिए बेटी की शादी कर देना ही उचित समझा. उन्होंने प्रयास कर के कुशीनगर के ही थाना परहरवा के गांव पगरा बसंतपुर के रहने वाले पारस गिरि के बेटे अजय गिरि से उस की शादी कर दी. पारस गिरि भी खेती से ही 7 सदस्यों के अपने परिवार कोे पाल रहे थे. शादी के बाद बड़ा बेटा नौकरी के लिए बाहर चला गया तो उस से छोटा अजय पिता की मदद करने लगा. साथ ही वह एक बिल्डिंग मैटेरियल की दुकान, जहां वेल्डर का भी काम होता था, पर नौकरी करता था. इस नौकरी से उसे इतना मिल जाता था कि उस का खर्च आराम से चल जाता था. पारस ने बेटियों की शादी अजय की मदद से कर दी थी.

पारस ने छोटी बेटी किरण की शादी जिला देवरिया के थाना तरकुलवा के गांव बालपुर के रहने वाले लालबाबू गिरि के सब से छोटे बेटे तेजप्रताप गिरि से की थी. शादी के बाद तेजप्रताप किरण को ले कर गोरखपुर गया था, जहां शाहपुर की द्वारिकापुरी कालोनी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. रिंकी ने शहजादियों जैसे जीने के जो सपने देखे थे, शादी के बाद भी वे पूरे नहीं हुए. वह खूबसूरत और स्मार्ट पति चाहती थी, जो उसे बाइक पर बिठा कर शहर में घुमाता, होटल और रेस्तरां में खाना खिलाता. जबकि रिंकी का शहजादा अजय बेहद सीधासादा, ईमानदार और समाज के बंधनों को मानने वाला मेहनती युवक था. दुनिया की नजरों में वह भले ही रिंकी का पति था, लेकिन रिंकी ने दिल से कभी उसे पति नहीं माना . वह अभी भी किसी शहजादे की बांहों में झूलने के सपने देखती थी.

रिंकी सपने भले ही किसी शहजादे के देख रही थी, लेकिन रहती अजय के साथ ही थी. वह उस के 2 बेटों, सत्यम और सुंदरम की मां भी बन गई थी. इसी के बाद अजय ने छोटी बहन किरन की शादी तेजप्रताप से की तो पहली ही नजर में तेजप्रताप रिंकी को सपने का शहजादा जैसा लगा. फिर आनेजाने में कसरती बदन और मजाकिया स्वभाव के तेजप्रताप पर रिंकी कुछ इस तरह फिदा हुई कि उस से नजदीकी बनाने के लिए बेचैन रहने लगी. तेजप्रताप को रिंकी के मन की बात जानने में देर नहीं लगी. सलहज के नजदीक पहुंचने के लिए वह जल्दीजल्दी ससुराल आने लगा. इस आनेजाने का उसे लाभ भी मिला. इस तरह दोनों जो चाहते थे, वह पूरा हो गया. रिंकी और तेजप्रताप के शारीरिक संबंध बन गए. दोनों बड़ी ही सावधानी से अपनअपनी चाहत पूरी कर रहे थे, इसलिए उन के इस संबंध की जानकारी किसी को नहीं हो सकी थी.

तेजप्रताप पादरी बाजार पुलिस चौकी के पास छोलेभटूरे का ठेला लगाता था. उस की दुकान पर बबलू और संदीप पाल अकसर छोले भटूरे खाने आते थे. बबलू और संदीप में अच्छी दोस्ती थी. उन की उम्र 15-16 साल के करीब थी. तेजप्रताप के वे नियमित ग्राहक तो थे, इसलिए उन में दोस्ती भी हो गई थी. बाद में पता चला कि वे रहते भी उसी के पड़ोस में थे. इस से घनिष्ठता और बढ़ गई. उन का परिवार सहित तेजप्रताप के घर आनाजाना हो गया. एक बार रिंकी अजय के साथ ननद के घर गोरखपुर ननदननदोई से मिलने आई तो संयोग से उसी समय संदीप पाल की मां रंभा उर्फ रेखा पाल भी किसी काम से तेजप्रताप से मिलने गई. रेखा ने रिंकी को गौर से देखा तो महिलाओं की पारखी रेखा को वह अपने काम की लगी.

रिंकी ने तेजप्रताप के घर का रास्ता देख लिया तो उस का जब मन होता, वह किसी किसी बहाने तेजप्रताप से मिलने गोरखपुर आने लगी. रिंकी गोरखपुर अकसर आने लगी तो रंभा उर्फ रेखा से भी जानपहचान हो गई. रेखा के 20 वर्षीय भांजे मनोज पाल की नजर मौसी के घर आनेजाने में रिंकी पर पड़ी तो खूबसूरत रिंकी का वह दीवाना हो उठा. मनोज गोरखपुर में टैंपो चलाता था. वह रहने वाला गोरखपुर के थाना गोला के गांव हरपुर का था. वह मौसी रेखा के यहां इसलिए बहुत ज्यादा आताजाता था, क्योंकि वह उस का खास शागिर्द था. रेखा देखने में जितनी भोलीभाली लगती थी, भीतर से वह उतनी ही खुराफाती थी. उस औरत से पूरा मोहल्ला परेशान था. इस की वजह यह थी कि वह कालगर्ल रैकट चलाती थी.

 उस के इस काम में उस का भतीजा बबलू, बेटा संदीप और भांजा मनोज उस की मदद करते थे. रेखा के अच्छेबुरे सभी तरह के लोगों से अच्छे संबंध थे, इसलिए मोहल्ले वाले सब कुछ जानते हुए भी उस का कुछ नहीं कर पाते थे. रेखा ने रिंकी को पहली बार तेजप्रताप गिरि के यहां देखा था, तभी से वह भांप गई थी कि यह औरत उस के काम की साबित हो सकती है. उस ने तेजप्रताप से रिंकी का मोबाइल नंबर ले कर उस से बातचीत शुरू कर दी थी. बातचीत के दौरान उसे पता चल गया कि रिंकी पैसों के लिए कुछ भी कर सकती है, इसलिए वह उसे पैसे कमाने का रास्ता बताने लगी. फिर जल्दी ही रिंकी उस के जाल में फंस भी गई.

रिंकी जब भी गोरखपुर आती, रेखा से मिलने उस के घर जरूर जाती थी. इसी आनेजाने में अपनी उम्र से छोटे बबलू, संदीप और मनोज से उस के संबंध बन गए. इन लड़कों से संबंध बनाने में उसे बहुत मजा आता था. रेखा का एक पुराना ग्राहक था सरदार रकम सिंह, जो सहारनपुर का रहने वाला था. उस ने रेखा से एक कमसिन, खूबसूरत और कुंवारी लड़की की व्यवस्था के लिए कहा था, जिस से वह शादी कर सके. रेखा को तुरंत रिंकी की याद आ गई. रिंकी भले ही शादीशुदा और 2 बच्चों की मां थी, लेकिन देखने में वह कमसिन लगती थी. कैसे और क्या करना है, उस ने तुरंत योजना बना डाली.

अब तक रिंकी की बातचीत से रेखा को पता चल गया था कि वह अपने सीधेसादे पति से खुश नहीं है. उसे भौतिक सुखों की चाहत थी, जो उस के पास नहीं था. इस के लिए वह कुछ भी करने को तैयार थी. 1 दिसंबर, 2013 को रिंकी छोटे बेटे सुंदरम को साथ ले कर गोरखपुर आई. संयोग से उसी दिन किरन किसी बात पर पति से लड़झगड़ कर बड़ी बहन पुष्पा के यहां कुबेरस्थान (कुशीनगर) चली गई. रिंकी ने वह रात तेजप्रताप के साथ आराम से बिताई. अगले दिन सुबह तेजप्रताप ने रिंकी को उस की ससुराल वापस पटहेरवा भेज दिया. इस के 2 दिनों बाद रेखा ने रिंकी को फोन किया. हालचाल पूछने के बाद उस ने कहा, ‘‘रिंकी मैं ने तुम्हारे लिए एक बहुत ही खानदानी घरवर ढूंढा है. अगर तुम अपने पति को छोड़ कर उस के साथ शादी करना चाहो तो बताओ.’’

रिंकी ने हामी भरते हुए कहा, ‘‘मैं तैयार हूं.’’

‘‘ठीक है, कब और कहां आना है, मैं तुम्हें फिर फोन कर के बताऊंगी.’’ कह कर रेखा ने फोन काट दिया.

8 दिसंबर, 2013 को फोन कर के रेखा ने रिंकी से 11 दिसंबर को गोरखपुर आने को कहा. तय तारीख पर रिंकी अजय से बड़ी ननद पुष्पा के यहां जाने की बात कह कर घर से निकली. शाम होतेहोते वह रेखा के यहां पहुंच गई. उस ने इस की जानकारी तेजप्रताप को नहीं होने दी. रात रिंकी ने रेखा के यहां बिताई. 12 दिसंबर को रेखा ने भतीजे बबलू और भांजे मनोज के साथ उसे सहारनपुर सरदार रकम सिंह के पास भेज दिया और उस के बेटे को अपने पास रख लिया. रिंकी को सिर्फ इतना पता था कि उस की दूसरी शादी हो रही है, जबकि रेखा ने उसे सरदार रकम सिंह के हाथों 45 हजार रुपए में बेच दिया था. रिंकी को वहां भेज कर उस ने उस के बेटे को बेलीपार की रहने वाली भाजपा नेता इशरावती के हाथों 30 हजार रुपए में बेच दिया था. बच्चा लेते समय इशरावती ने उसे 21 हजार दिए थे, बाकी 9 हजार रुपए बाद में देने को कहा था.

दूसरी ओर 2 दिनों तक रिंकी का फोन नहीं आया तो अजय को चिंता हुई. उस ने खुद फोन किया तो फोन बंद मिला. इस से वह परेशान हो उठा. उस ने पुष्पा को फोन किया तो उस ने बताया कि रिंकी तो उस के यहां आई ही नहीं थी. अब उस की परेशानी और बढ़ गई. वह अपने अन्य रिश्तेदारों को फोन कर के पत्नी के बारे में पूछने लगा. जब उस के बारे में कहीं से कुछ पता नहीं चला तो वह उस की तलाश में निकल पड़ा. रिंकी का रकम सिंह के हाथों सौदा कर के रेखा निश्चिंत हो गई थी. लेकिन सप्ताह भर बाद उसे बच्चों की याद आने लगी तो वह रकम सिंह से गोरखपुर जाने की जिद करने लगी. तभी सरदार रकम सिंह को रिंकी के ब्याहता होने की जानकारी हो गई. चूंकि रिंकी खुद भी जाने की जिद कर रही थी, इसलिए उस ने रेखा को फोन कर के पैसे वापस कर के रिंकी को ले जाने को कहा.

अब रेखा और मनोज की परेशानी बढ़ गई, क्योंकि रिंकी आते ही अपने बेटे को मांगती. जबकि वे उस के बेटे को पैसे ले कर किसी और को सौंप चुके थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें. रिंकी के वापस आने से उन का भेद भी खुल सकता था. इसलिए पैसा और अपनी इज्जत बचाने के लिए उन्होंने उसे खत्म करने की योजना बना डाली. 21 दिसंबर, 2013 को बबलू और मनोज सहारनपुर पहुंचे. रकम सिंह के पैसे लौटा कर वे रिंकी को साथ ले कर टे्रन से गोरखपुर के लिए चल पड़े. रात 7 बजे वे गोरखपुर पहुंचे. स्टेशन से उन्होंने रेखा को फोन कर के एक मोटरसाइकिल मंगाई. संदीप उन्हें मोटरसाइकिल दे कर अपने गांव चौरीचौरा गौनर चला गया.

आगे रिंकी के साथ क्या करना है, यह रेखा ने मनोज को पहले ही समझा दिया था. मनोज, बबलू रिंकी को ले कर कुसुम्ही जंगल पहुंचे. मनोज ने उस से कहा था कि वह कुसुम्ही के बुढि़या माई मंदिर में उस से शादी कर लेगा. मंदिर से पहले ही मोड़ पर उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तीनों नीचे उतरे तो मनोज ने बबलू को मोटरसाइकिल के पास रुकने को कहा और खुद रिंकी को ले कर आगे बढ़ाशायद रिंकी मनोज के इरादे को समझ गई थी, इसलिए उस ने भागना चाहा. लेकिन वह भाग पाती, उस के पहले ही मनोज ने उसे पकड़ कर कमर में खोंसा 315 बोर का कट्टा निकाल कर बट से उस के सिर के पीछे वाले हिस्से पर इतने जोर से वार किया कि उसी एक वार में वह गिर पड़ी.

घायल हो कर रिंकी खडं़जे पर गिर कर छटपटाने लगी. उसे छटपटाते देख मनोज ने अपना पैर उस के सीने पर रख कर दबा दिया. जब वह मर गई तो उस की लाश को ठीक कर के दोनों मोटरसाइकिल से घर आ गए. बाद में इस बात की जानकारी तेजप्रताप को हो गई थी, लेकिन उस ने यह बात अपने साले अजय को नहीं बताई थी. कथा लिखे जाने तक रिंकी हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त मनोज कुमार पुलिस के हाथ नहीं लगा था. सरदार रकम सिंह की भी गिरफ्तारी नहीं हो पाई थी. वह भी फरार था. बाकी सभी अभियुक्तों को पुलिस ने जेल भेज दिया थाइस हत्याकांड का खुलासा करने वाली टीम को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रदीप कुमार ने 5 हजार रुपए पुरस्कार देने की घोषणा की है.

कथा पारिवारिक और पुलिस सूत्रों पर आधारित.

दूसरी पत्नी ने कहा पहली पत्नी का गला काटो, तब आऊंगी सुसराल

इंसान अपने स्वाथो के चलते कभीकभी इतना वहशी दरिंदा बन जाता है कि स्वाथो के आगउसे इंसान की जान सस्ती लगती है. इस दोहरे हत्याकांड में भी ऐसा ही कुछ हुआ. ममता और उस का बेटा तो मारे ही गए, बचा वाहिद भी…  

18 मार्च, 2018 को सुबह के यही कोई 10 बजे थे. चिमियावली गांव के निकट गेहूं के खेत में गांव वालों ने एक महिला उस के 100 मीटर दूर एक बच्चे की नग्न अवस्था में सिर कटी लाश पड़ी देखीं. यह गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल के थाना कोतवाली के अंतर्गत आता है. गांव वालों ने यह बात गांव के चौकीदार रामरतन को बताई. चौकीदार रामरतन तुरंत उस खेत में पहुंच गया जहां लाशें पड़ी थीं. 2-2 लाशें देख कर वह भी चौंक गया. उस ने फोन द्वारा इस की सूचना थानाप्रभारी अनिल समानिया को दे दी. 2 लाशों की खबर मिलते ही अनिल समानिया पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए

उन्होंने दोनों लाशों का निरीक्षण किया तो वहां पड़े खून से लग रहा था कि उन की हत्याएं वहीं पर ही की गई थीं. दोनों के सिर धड़ से गायब थे. साथ में उन के ऊपर कोई कपड़ा भी नहीं था. मृत महिला के एक हाथ की खाल भी कुछ जगह से गायब थी. इस से यह अनुमान लगाया कि उस महिला के हाथ पर उस का नाम या पहचान की कोई चीज गुदी हुई होगी. महिला की पहचान हो सके, इसलिए हत्यारे ने हाथ के उतने हिस्से की खाल ही काट दी थी. अपने उच्चाधिकारियों को इस लोमहर्षक मामले की जानकारी देने के बाद थानाप्रभारी आसपास के क्षेत्र में दोनों मृतकों के सिर तलाशने लगे

इस काम में गांव वाले भी उन का साथ दे रहे थे. काफी खोजबीन के बाद भी उन के सिर नहीं मिल सके. लेकिन वहां पर मृतकों के कपड़े और चप्पलें जरूर मिल गईं, 2 जोड़ी चप्पलों के अलावा वहां छोटे बच्चे की एक जोड़ी चप्पलें और मिली. जब मरने वाले 2 लोग हैं तो यह तीसरी जोड़ी चप्पल किस बच्चे की है, यह बात पुलिस नहीं समझ सकी. बिना सिर के लाशों की शिनाख्त करना आसान नहीं था. थानाप्रभारी द्वारा सिरविहीन 2 लाशों की सूचना एसपी रविशंकर छवि और एएसपी पंकज कुमार पांडे को दे दी गई. कुछ देर में दोनों पुलिस अधिकारी भी चिमियावली गांव के उस गेहूं के खेत में पहुंच गए, जहां दोनों लाशें पड़ी थीं

अधिकारियों ने मौका मुआयना करने के बाद गांवों वालों से लाशों की शिनाख्त के लिए बात की उन्हें मृतकों के कपड़े दिखाए. लेकिन कोई भी उन्हें नहीं पहचान सका. मौके पर फोरेंसिक टीम को भी बुला लिया गया. घटनास्थल पर मिले सारे सबूतों को पुलिस ने जब्त कर लिया. घटनास्थल की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने दोनों लाशों को सुरक्षित रखवाने के लिए जिला चिकित्सालय भेज दिया और चौकीदार रामरतन की तरफ से अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

सिर विहीन 2 लाशें मिलने की खबर कुछ ही देर में पूरे शहर में फैल गई. सभी लोग आपस में यही चर्चा कर रहे थे कि पता नहीं शव किस के हैं. मालूम मृतक कहां के रहने वाले थे. उधर थानाप्रभारी भी इस बात को ले कर परेशान थे कि इन लाशों की शिनाख्त कैसे कराई जाए. शिनाख्त के बाद ही हत्यारों तक पहुंचा जा सकता था. लिहाजा शिनाख्त के लिए जिले के समस्त थानों में वायरलैस द्वारा इन अज्ञात लाशों के मिलने की सूचना प्रसारित कर यह जानकारी जाननी चाही कि कहीं किसी थाने में एक महिला और बच्चे की गुमशुदगी तो दर्ज नहीं है. पर पुलिस की इन कोशिशों से भी कोई सफलता नहीं मिली. आखिर पुलिस ने दोनों शवों का पोस्टमार्टम करा कर  उन का अंतिम संस्कार करा दिया.

8-10 दिन बीत गए लेकिन मृतकों के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. थानाप्रभारी के दिमाग में यह बात भी आई कि कहीं दोनों मृतक किसी दूसरे जिले के रहने वाले तो नहीं हैं. इस के बाद एसपी के माध्यम से सिरविहीन 2 लाशों के बरामद करने की सूचना सीमावर्ती जिलों के थानों में भी भेज दी गई. इसी बीच पहली अप्रैल, 2018 को थानाप्रभारी को चिमियावली गांव के पास बहने वाली सोन नदी के किनारे एक महिला का सिर पड़े होने की जानकारी मिली तो वह वहां पहुंच गए और सिर को कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. वह सिर 18 मार्च को बरामद हुई सिरविहीन महिला की लाश का है या नहीं, इस की पुष्टि डीएनए जांच के बाद ही हो सकती थी

इस के 8 दिन बाद यानी 8 अप्रैल को पुलिस ने मोहम्मदपुर मालनी गांव के जंगल से एक बच्चे का सिर बरामद कर लिया. उस का मांस जंगली जानवर खा चुके थे. अब इस बात की आशंका प्रबल हो गई कि यह दोनों सिर पूर्व में बरामद की गई दोनों लाशों के ही होंगे. मुरादाबाद बरेली परिक्षेत्र के एडीजी प्रेमप्रकाश को जब यह जानकारी मिली तो उन्होंने मुरादाबाद रेंज के आईजी विनोद कुमार से बात कर इस मामले को गंभीरता से लेने को कहा. एडीजी प्रेमप्रकाश बहुत सुलझे हुए अफसर थे. जब वह मुरादाबाद के एसएसपी थे तो उन्होंने चर्चित किडनी कांड को सुलझा कर डा. अमित को सलाखों के पीछे पहुंचाया था. इस के अलावा उन्होंने बावन खेड़ी में एक ही परिवार के 7 लोगों की निर्मम तरीके से की गई हत्या के मामले को सुलझा कर शबनम और उस के प्रेमी को जेल भिजवाया था. एडीजी की इस दोहरे मर्डर पर भी निगाह बनी हुई थी.

एडीजी प्रेमप्रकाश का निर्देश मिलते ही आईजी विनोद कुमार ने संभल के एसपी रविशंकर छवि और एएसपी पंकज कुमार पांडे के साथ मीटिंग कर इस केस को जल्द से जल्द खोलने के लिए कहा. इस के बाद तो थानाप्रभारी अनिल समानिया के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम इस केस को खोलने में जुट गई. उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया. 14 अप्रैल को चिमियावली गांव के चौकीदार रामरतन ने थानाप्रभारी अनिल समानिया को सटीक सूचना देते हुए कहा कि गांव के हिस्ट्रीशीटर कलुआ के घर 3-4 साल की एक लड़की आई हुई है. वह लड़की बारबार रोरो कर कहती है कि मुझे मेरी मम्मी से मिलवाओ. यह बात मुझे गांव की औरतों ने बताई है. उन औरतों में भी इस बात की चर्चा है कि कलुआ के परिवार में यह लड़की पता नहीं कहां से गई.

इतना सुनते ही थानाप्रभारी का माथा ठनका. उन के दिमाग में एक बात घूम गई कि उन दोनों के शवों के पास भी पुलिस को 1 छोटे बच्चे की एक जोड़ी चप्पलें मिली थीं. अनिल समानिया ने बगैर देर किए गांव चिमियावली का रुख किया. वह कलुआ के घर पहुंच गए. उन्हें वहां 4 साल की बच्ची दिखी. बच्ची के बारे में उन्होंने पूछा तो कलुआ ने बताया, ‘‘यह बच्ची मेरी खाला की लड़की है.’’

‘‘यह तुम्हारे पास क्यों है?’’ थानाप्रभारी ने पूछा.

‘‘साहब, यह मेरी लड़की अरमाना के साथ गई है. कुछ दिन यहां रह कर अपने घर चली जाएगी.’’

कलुआ पहले बदमाश था. अब वह करीब 80 साल का बुजुर्ग था. उन्होंने सोचा कि शायद यह सच बोल रहा होगा. क्योंकि जवानी में चाहे कितना भी बड़ा अपराधी रहा हो, उम्र की इस ढलान पर आदमी सीधा सच ही चलता हैथानाप्रभारी ने घटनास्थल से जो छोटे बच्चे की चप्पलें बरामद की थीं उन्हें वह अपने साथ लाए थे. वह कार में रखी थीं. एसआई वीरेंद्र सिंह से उन्होंने चप्पलें मंगा कर उस बच्ची को दिखाईं तो वह उन चप्पलों को देख कर खुश हो गई. उस ने कहा, ‘‘यह चप्पलें तो मेरी है.’’ बच्ची फिर बोली, ‘‘मेरी मम्मी कहां हैं.’’

‘‘मम्मी गई, बाहर है.’’ अनिल समानिया ने कहा तो वह बच्ची अपनी मां को देखने के लिए बाहर की तरफ भागी. इस के बाद अनिल समानिया का चेहरा गुस्से से लाल हो गया. वह कलुआ से बोले, ‘‘मुझे तुम से ऐसी उम्मीद नहीं थी कि इस उम्र में भी…’’ इतना सुनते ही कलुआ ने नजरें नीची कर लींवह बोला, ‘‘साहब, मजबूरी ऐसी गई थी कि मैं बेबस हो गया था. क्या बताऊं साहब यह सब करतूत मेरे दामाद वाहिद की है. यदि उस ने मेरी बेटी को धोखा दिया होता तो मुझे इस उम्र में यह सब करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता.’’ 

उस ने इस दोहरे हत्याकांड का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया मरने वाली महिला का नाम ममता था और दूसरा उस का 10 साल का बेटा करनपाल था. ममता उस के दामाद वाहिद की पहली पत्नी थी. इस बहुचर्चित केस के खुलने पर अनिल समानिया ने राहत की सांस ली और इस की जानकारी उच्चाधिकारियों को भी दे दी. केस खुलने की सूचना मिलते ही एसपी रविशंकर छवि थाने पहुंच गए. उन के सामने कलुआ से पूछताछ की गई तो पता चला कि ममता और उस के बेटे की हत्या में कलुआ के अलावा उस की पत्नी सूफिया, बेटी अरमाना, दामाद वाहिद और दामाद का भाई गुड्डू शामिल थे

पुलिस ने दबिश दी तो गुड्डू के अलावा सारे आरोपी गिरफ्त में गए. इन सभी से पूछताछ करने के बाद इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई वह दिल दहला देने वाली थी. ममता मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहांपुर के गांव लहराबल की मूल निवासी थी. उस के पिता अखबारों के हौकर थे. उन के परिवार में पत्नी के अलावा ममता एकलौती बेटी थी. उन की घरगृहस्थी ठीकठाक चल रही थी. लेकिन उसी दौरान वह हत्या के एक मामले में जेल चले गए. उसी दौरान उन की पत्नी का भी देहांत हो गया. ऐसे में ममता बेसहारा हो गई तब नातेरिश्तेदारों ने उस की देखभाल की.

ममता के पिता जब जमानत पर जेल से बाहर आए तो वह शाहजहांपुर से बेटी के साथ गाजियाबाद गए. यह बात करीब 12 साल पहले की है. पिता ने किराए का मकान ले कर मेहनतमजदूरी की. ममता भी जवान हो चुकी थी. इसी दौरान सुनील नाम के एक युवक से ममता की आंखें लड़ गईं. वक्त के साथ दोनों के प्यार के दरिया में बहुत आगे तक तैर चुके थे. बाद में उन्होंने शादी कर ली. सुनील टैक्सी ड्राइवर था. ममता के पिता इस शादी के खिलाफ थे. पर ममता ने उन की भावनाओं की कद्र नहीं की. सुनील के साथ गृहस्थी बसा कर वह खुश थी. वह 2 बच्चों की मां भी बन गई. जिस में बड़ा बेटा करनपाल था और छोटी बेटी मंजू.

बेटी के फैसले से पिता इतने आहत हुए कि उन का भी देहांत हो गया. ममता के पति सुनील में भी बदलाव गया. वह शराब पीने लगा. ममता उसे पीने से मना करती तो वह उस से झगड़ा करता और पिटाई भी कर देता था. अब वह ममता पर शक करने लगा कि उस का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. पति के इस व्यवहार पर ममता भी तनाव में रहने लगी. फिर एक दिन ममता पर ऐसी विपत्ति आन पड़ी, जिस की उस ने कल्पना तक नहीं की थी. जिस सुनील के लिए ममता ने अपने पिता तक को त्याग दिया था, एक दिन वही सुनील ममता और उस के दोनों बच्चों को छोड़ कर कहीं चला गया और फिर कभी वापस नहीं आया.

ममता बेसहारा हो गई थी. अकेली औरत का वैसे भी लोग जीना मुश्किल कर देते हैं. ममता के पास तो 2 बच्चे भी थे. वह घर का खर्चा कहां से और कैसे चलाती. इस मोड़ पर फंस कर वह कई लोगों द्वारा छली गई. ममता ने भी हालात से समझौता कर लिया था. इसी बीच वह मेरठ में रहने वाले कलुआ नाम के औटो ड्राइवर के संपर्क में आईकलुआ के बराबर वाले मकान में वाहिद नाम का युवक रहता था. वाहिद भी आटो चलाता था. वह अविवाहित था इसलिए ममता ने उस के साथ ही गृहस्थी बसाने की सोच ली. वाहिद भी ममता को प्यार करता था. वह उस के साथ निकाह करने को तैयार हो गया

वाहिद ममता और उस के दोनों बच्चों को ले कर मेरठ से नोएडा गया. वहीं पर इसलाम धर्म के रीतिरिवाज से वाहिद ने ममता से निकाह कर लिया. इस से पहले ममता का नाम बदल कर शाहीन रख दिया गया था. बड़े बेटे करनपाल का नाम बदल कर समीर लड़की मंजू का नाम जैनब रख दिया था.  लवाहिद का भाई गुड्डू ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव में रहता था, जो वेल्डिंग का काम करता था. वाहिद, ममता और उस के बच्चे को ले कर वहीं पर पहुंच गया. वह सब रहने लगे. वाहिद आटो चलाने गाजियाबाद चला जाता था, जबकि ममता ग्रेटर नोएडा के फ्लैटों में साफसफाई का काम करने निकल जाती थी. दोनों की कमाई से घर ठीकठाक चल रहा था

वाहिद और ममता की शादी की बात सिर्फ गुड्डू ही जानता था. इस के अलावा वाहिद के घर के किसी भी सदस्य को पता नहीं था कि वाहिद ने 2 बच्चों की मां से शादी कर ली है. वाहिद मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले की तहसील बिसौली के गांव भमौरी का रहने वाला था. वाहिद  ने उस का नाम शाहीन जरूर रख दिया था, लेकिन वह उसे ममता के नाम से ही बुलाता था. एक दिन वाहिद ने ममता उर्फ शाहीन से कहा, ‘‘ममता यहां ग्रेटर नोएडा में महंगाई ज्यादा है. ऐसा करते हैं कि हम लोग उधर ही चलते हैं. वहां गांव में मेरा अपना घर है, जमीनजायदाद भी है, मैं वहीं आटो चला लूंगा.’’

ममता उर्फ शाहीन ने पति वाहिद की बात पर कोई एतराज नहीं किया. इस पर वाहिद ममता और दोनों बच्चों को ले कर बिसौली के नजदीक चंदौसी शहर पहुंच गया. चंदौसी के मोहल्ला वारिश नगर में उस ने एक मकान किराए पर ले लिया. यह करीब 6 महीने पहले की बात है. चूंकि चंदौसी से उस का गांव भी नजदीक ही था, इसलिए वह अकेला अपने मांबाप से मिलने गांव भी जाता रहता था. उसी दौरान वाहिद के घर वालों ने संभल जिले के गांव चिमियावली के रहने वाले कलुआ की बेटी अरमाना से उस का रिश्ता तय कर दिया. उस समय वाहिद ने घर वालों को यह तक बताने की हिम्मत नहीं की थी कि उस ने शादी कर रखी है. रिश्ता तय होने के बाद वह कईकई दिन अपने गांव में रुक कर आता

ममता ने इस बात पर कभी चर्चा तक नहीं की कि वह इतने दिन गांव में क्यों रुकता है. ही उसे उस की शादी तय होने की कोई भनक लगी. वह तो उस पर अटूट विश्वास करती थी. आननफानन में वाहिद का अरमाना से निकाह भी हो गया. इस के बावजूद ममता अनभिज्ञ बनी रही. जब वाहिद हफ्ता दो हफ्ता बाद ममता के पास लौटता तो वह कह देता कि वह मुरादाबाद में रह कर आटो चला रहा है, इसलिए वहीं रुक जाता है. वह ममता को खर्च के पैसे देता रहता थाएक दिन ममता अचानक ही अपने दोनों बच्चों को ले कर वाहिद के गांव भमौरी पहुंच गई. भमौरी गांव चंदौसी के पास ही थी. वहां पर ममता को पता चला कि उस के पति ने उसे धोखे में रख कर संभल की एक लड़की से निकाह कर लिया है

यह जानकारी मिलते ही ममता आगबबूला हो गई. उस ने गांव में हंगामा करना शुरू कर दिया. उस ने पूरे गांव वालों को बताया कि मैं वाहिद की निकाह की हुई बीवी हूं. ससुराल में पहला हक मेरा बनता है. मुझ से तलाक लिए बगैर उस ने दूसरी शादी कैसे कर ली. इतना ही नहीं ममता ने पुलिस से शिकायत करने की धमकी भी दी. उस के हंगामे से पूरा गांव जमा हो गया. इस मामले में गलती वाहिद की ही थी पर ममता के थाने जाने के बाद बात बढ़ने की संभावना थी. इसलिए परिवार वालों ने गांव वालों के सहयोग से ममता को समझाना शुरू कर दिया. उन्होंने कहा कि वाहिद की दूसरी पत्नी के साथ वह भी रह सकती है. उसे घर में रहने के लिए जगह दे दी जाएगी

गांवदेहात में जानवरों के बांधने और उन का चारा रखने की जगह को घेर कहते हैं. ममता को अपना और बच्चों का पेट भरना था, इसलिए वह घेर में रहने के लिए तैयार हो गई. वह वहीं रहने लगी पर वाहिद की दूसरी पत्नी अरमाना को ममता का वहां रहना नागवार लगता था. वह ममता को एक पल भी देखना पसंद नहीं करती थी. जिस की वजह से वाहिद और अरमाना में झगड़ा रहने लगा. रोजाना के झगड़ों से तंग कर अरमाना अपने मायके चिमियावली चली गई. वाहिद कई बार अरमाना को लाने के लिए अपनी ससुराल गया लेकिन अरमाना उस के घर वालों ने साफ मना कर दिया था कि जब तक ममता वहां रहेगी अरमाना यहां से नहीं जाएगी.

वाहिद ने कहा कि ठीक है, वह ममता को चंदौसी में किराए पर लिए कमरे पर पहुंचा देगा. वैसे भी ममता उस से कह भी रही थी कि उसे यहां तबेले में रहना अच्छा नहीं लगता. लेकिन अरमाना इस के लिए भी तैयार नहीं हुई. उस ने पति वाहिद से साफ कह दिया था कि जब तक ममता और उस के बच्चे जीवित रहेंगे वह ससुराल नहीं जाएगी. उसे उन तीनों के मरने का सबूत भी चाहिए. यानी जिस दिन वह उन के कटे हुए सिर उसे दिखा देगा वह उस के साथ चली चलेगी. पत्नी की इस जिद पर वाहिद परेशान हो गया. तब उस के ससुर कलुआ और सास सूफिया ने उसे समझाते हुए कहा कि यह कोई बहुत बड़ा काम नहीं है. थोड़े दिमाग से काम लोगे तो बड़ी आसानी से हो जाएगा. तुम किसी तरह ममता और उस के बच्चों को यहां लाओ, बाकी काम हम देख लेंगे.

उस के बाद वाहिद अपने गांव भमौरी लौट आया. वह ममता को ठिकाने लगाने का प्लान बनाने लगा. अपने प्लान में उस ने अपने भाई गुड्डू को भी शामिल कर लिया था. अपनी योजना से उस ने अपने ससुर कलुआ को भी  अवगत करा दिया. वाहिद की सास सूफिया ने इस के लिए बड़े छुरे का इंतजाम कर लियायोजना के मुताबिक 17 मार्च, 2018 की शाम वाहिद ममता और उस के बच्चों को ले कर भमौरी से बस द्वारा संभल पहुंच गया. गुड्डू भी उस के साथ था. वाहिद ने ममता को बताया था कि उस के दोस्त के यहां दावत है. संभल से वह लोग आटो में चिमियावली गांव के लिए बैठे. रास्ते में वाहिद ममता और बच्चों के साथ आटो से उतर गया और कहा कि अब शौर्टकट से पैदल चलते हैं, जल्दी पहुंच जाएंगे. ममता उस की साजिश से अनजान थी. वह गेहूं के खेत के किनारे के संकरे रास्ते से चलने लगा

पैदल चलने पर ममता के पेट में दर्द हुआ तो वाहिद ने पहले से अपने साथ लाई नशे की गोलियों में से एक गोली ममता को खिला दी. कुछ देर में जब ममता बेहोशी की हालत में गई तो वाहिद ने अपने ससुर कलुआ को आवाज दे कर बुला लिया. कलुआ खेत में छिपा बैठा था. जब ममता निढाल हो कर जमीन पर गिर गई तो गुड्डू, कलुआ और वाहिद ने मिल कर ममता का गला काट कर धड़ से सिर अलग कर दिया. उस समय उस का 10 वर्षीय बेटा करन वहीं खड़ा था. वह डर की वजह से वहां से भागा तो वाहिद ने उसे पकड़ लिया. उन लोगों ने उस बच्चे का भी गला काट कर सिर धड़ से अलग कर दिया. ममता के हाथ पर उस का नाम गुदा हुआ था. पहचान मिटाने के लिए वाहिद ने हाथ की वह खाल ही काट कर अलग कर दी जहां नाम लिखा था

उसी दौरान ममता की 4 वर्षीय बेटी मंजू वाहिद की टांगों से चिपकी खड़ी थी. वह कह रही थी कि पापा चलो भूख लग रही है. पापा मुझे टौफी दिलवाओ. वैसे भी वाहिद रोजाना मंजू के लिए टौफी ले कर आता था. वाहिद सब से ज्यादा प्यार मंजू को ही करता था. वाहिद जब मंजू को भी मारने चला तो कलुआ ने कहा, नहीं यह नासमझ है. इस को हम लोग पाल लेंगे. इस ने क्या बिगाड़ा है. वाहिद ने जेब से बड़ी पालिथिन थैली निकाल कर दोनों के सिर उस में रख लिए और अपनी ससुराल चिमियावली गया. वहां पर वाहिद ने अपनी सास सूफिया पत्नी अरमाना को कटे सिर दिखाए. सिर देखने पर उन्हें उन के मरने का यकीन हुआ. इस के बाद वह उन दोनों सिरों को गांव के नजदीक बहने वाली सोत नदी के किनारे रेत में अलगअलग दबा आया

पुलिस ने वाहिद, कलुआ, अरमाना, सूफिया को गिरफ्तार कर लिया. अभियुक्तों की गिरफ्तारी की सूचना पर एडीजी प्रेमप्रकाश भी बरेली से संभल पहुंच गए. प्रैस कौन्फ्रैंस आयोजित कर उन्होंने इस सनसनीखेज दोहरे हत्याकांड का खुलासा कर पत्रकारों को जानकारी दी. बाद में पुलिस ने सभी अभियुक्तों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक गुड्डू की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

   —कथा पुलिस सूत्रों आधारित