Domestic Dispute: रिश्तों का एक रंग ऐसा भी

Domestic Dispute: इंसपेक्टर अमित कुमार की पत्नी दीपमाला ने अपनी छोटी बहन मधु और बहनोई दीपक के बीच बनी खटास को दूर करने की कोशिश की. लेकिन उन्हें क्या पता था कि रिश्तों का यह बदरंग चेहरा एक दिन उन के ही परिवार के लिए खौफनाक बन जाएगा.

अमित कुमार आबकारी विभाग में इंसपेक्टर थे, उन के पास अपनी कार थी. औफिस टाइम के बाद वह शाम 7 बजे तक उत्तमनगर स्थित अपने घर पहुंच जाते थे. उस दिन भी वह रोजाना की तरह 7 बजे घर पहुंच गए थे. कार गैरेज में खड़ी कर के उन्होंने पत्नी दीपमाला को फोन किया कि मार्केट से कुछ मंगाना तो नहीं है. पत्नी के फोन पर घंटी तो जा रही थी, लेकिन वह फोन नहीं उठा रही थी. अमित ने सीढि़यां चढ़तेचढ़ते उन्हें दोबारा फोन किया. लेकिन इस बार भी पत्नी ने फोन नहीं उठाया. उन का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था. सीढि़यां चढ़ कर वह फ्लैट के दरवाजे पर पहुंच गए.

उन के फ्लैट का ताला बंद था. दरवाजे पर ताला लगा देख कर उन्होंने सोचा कि दीपमाला शायद बच्चों के साथ बाजार गई होंगी. दीपमाला के पास २ फोन थे. अमित ने दूसरे नंबर पर भी २ बार फोन किया, लेकिन दीपमाला ने फोन रिसीव नहीं किया. अमित कुमार दिल्ली के आईटीओ पर स्थित चीफ कमिश्नर एक्साइज एंड सर्विस टैक्स कार्यालय में इंसपेक्टर थे. इस से पहले उन की पोस्टिंग दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर थी. वहां से 4-5 महीने पहले ही उन का कमिश्नर औफिस में ट्रांसफर हुआ था. वह अपनी पत्नी और 2 बच्चों के साथ उत्तमनगर के मोहनगार्डन  के जे ब्लौक के एक फ्लैट में किराए पर रह रहे थे. उन की गृहस्थी हंसीखुशी के साथ चल रही थी.

अमित के एक जानकार दीपक अरोड़ा थे, जो उसी बिल्डिंग में तीसरी मंजिल पर रहते थे. वह उन्हीं के घर जा कर बैठ गए. उन्होंने दीपक से अपनी पत्नी और बच्चों के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. थोड़ी देर में दीपमाला घर लौट आएगी, यह सोच कर अमित कुमार  काफी देर तक  दीपक अरोड़ा और उन की पत्नी से बातें करते रहे. बीचबीच में वह पत्नी को फोन भी मिलाते रहे, लेकिन उन की बात नहीं हो पाई.  वह यह सोच कर परेशान हो रहे थे कि आखिर दीपा ऐसी कौन सी जगह गई है कि फोन तक रिसीव नहीं कर रही है. वह वहां बैठे जरूर थे, लेकिन उन की बेचैनी बढ़ती जा रही थी.

हालांकि दीपक अरोड़ा उन्हें बारबार समझाने की कोशिश कर रहे थे कि चिंता न करें, वह थोड़ी बहुत देर में आ जाएंगी. मगर उन के दिल को तसल्ली नहीं हो रही थी. दीपक के घर एक घंटे तक इंतजार करने के बाद दीपक फिर अपने फलैट के दरवाजे पर आ गए. उन्होंने एक बार फिर से पत्नी का फोन मिलाया. इस बार भी उन्हें निराशा ही मिली. अमित को औफिस से लौटे हुए एक घंटे से ज्यादा हो चुका था. अगर दीपमाला बाजार गई होती तो उसे लौट आना चाहिए था. जब अंधेरा घिरने लगा तो अमित का धैर्य जवाब देने लगा. वह अपने फोन की टौर्च जला कर दरवाजे की जाली से कमरे में रौशनी डालते हुए आंख लगा कर कमरे में झांकने लगे.

टौर्च की रौशनी कमरे में अंदर तक पहुंच रही थी, क्योंकि मेन गेट का लकड़ी का दरवाजा खुला था. इस के अलावा अन्य कमरों के दरवाजे भी खुले दिखे. यह देख कर अमित चौंके, क्योंकि दीपा जब भी कहीं जाती थी, लकड़ी और जाली के दोनों दरवाजे बंद कर के जाती थी. ऐसे में अमित की परेशानी बढ़नी स्वभाविक थी. लेकिन समस्या यह थी कि  दरवाजे पर ताला लगा हुआ था और वह अंदर नहीं जा सकते थे. फ्लैट के पीछे वाली साइड बालकनी थी. बालकनी में पड़ोसी के फलैट  से जाया जा सकता था. अमित को परेशान देख कर उन के पड़ोसी भी आ गए थे, अमित का दिल नहीं माना तो वह पड़ोसी के फलैट से हो कर अपने फलैट की बालकनी में पहुंच गए.

फलैट में अंधेरा था. मोबाइल टौर्च की मदद से वह लाइटें जलाने के  लिए स्विच बोर्ड के पास जा रहे थे कि तभी उन्हें बाथरूम के बाहर खून के निशान दिखाई दिए. घर में खून देखकर वह चौंक गए. किचन के साथ बाथरूम था. उस बाथरूम के बराबर में एक बैडरूम था. इस के अलावा एक और बैडरूम था, जिस में बाथरूम अटैच्ड था. इस बैडरूम की अलग से एक लौबी थी. घर में खून कहां से आया, जानने के लिए अमित ने बाथरूम की लाइट जलाई. लाइट जलते ही उन की चीख निकल गई, क्योंकि वहां उन के 9 वर्षीय बेटे सक्षम की लाश पड़ी थी. उस के पास ही उन की 7 साल की बेटी शैली की भी लाश थी. दोनों के गले कटे हुए थे. पूरे बाथरूम में खून ही खून फैला हुआ था.

अपने दोनों बच्चों की यह दशा देख कर अमित जोरजोर से रोने लगे. फ्लैट के अंदर अमित के चीखने और रोने की आवाज सुन कर दरवाजे के बाहर खड़े पड़ोसी समझ गए कि कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. झांक कर उन्होंने अमित से रोने की वजह पूछी तो अमित ने रोतेरोते बताया कि वह बरबाद हो गए, किसी ने उस के दोनों बच्चों को मार डाला है. अमित की बात सुन कर लोग दंग रह गए. वह भी फ्लैट में घुसना चाहते थे, लेकिन दरवाजे पर ताला लगा था. आपस में बात कर के लोगों ने वह ताला तोड़ना शुरू कर दिया. एकदो लोग उसी तरह पड़ोसी के फलैट से बालकनी में चले गए, जैसे अमित गए थे.

उधर अमित पत्नी को तलाशने के लिए एकएक कमरा देखने लगे. जब अटैच्ड बाथरूम वाले कमरे में पहुंचे तो वह एक बार फिर जोरों से चीखे, क्योंकि उस कमरे में बिछे फोल्डिंग पलंग पर उनकी पत्नी दीपमाला उर्फ दीपा की लाश पड़ी थी. दीपा का भी गला कटा हुआ था. उन के पैर पलंग से लटके हुए थे और एक पैर फर्श को छू रहा था. उन का कुर्ता वक्षों तक फटा हुआ था. अमित ने रोतेरोते पत्नी के कपड़े संभाले. तब तक लोगों ने दरवाजे का ताला तोड़ दिया था. वे सब अंदर पहुंचे तो अंदर 3-3 लाशें देख कर हैरान रह गए.

अमित का रोरो कर बुरा हाल था. कुछ लोग उन्हें दिलासा देने लगे. लेकिन यह संभव नहीं था, क्योंकि उन की बसीबसाई गृहस्थी बरबाद हो गई थी. पता नहीं उन से किस ने दुश्मनी निकाली थी. घटना के समय अमित अपने औफिस में थे, इसलिए वह बच गए थे. अगर वह भी घर पर होेते तो शायद जिंदा नहीं बच पाते. इसी दौरान किसी ने इस तिहरे हत्याकांड की सूचना पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी थी. मोहनगार्डन इलाका पश्चिमी दिल्ली के उत्तमनगर थाने के अंतर्गत आता था. इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम से सूचना थाना उत्तमनगर को दे दी गई. थोड़ी देर में इस तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे मोहनगार्डन इलाके में फैल गई. रात होने के बावजूद तमाम लोग अमित कुमार के फ्लैट के पास जुटने लगे.

खबर मिलते ही थानाप्रभारी भगवान सिंह, एसआई गोविंद सिंह, दीपक कुमार, कमल आदि के साथ रामा रोड पर स्थित मोहनगार्डन के जे ब्लौक में पहुंच गए. वहां काफी संख्या में लोग खड़े थे. भगवान सिंह अपनी टीम के साथ अमित के फ्लैट में पहुंचे. उन्होंने सब से पहले वह जगह देखी, जहां लाशें पड़ी थीं. यह बात पहली जून, 2015 की है. एक ही परिवार के 3 लोगों की हत्या पर थानाप्रभारी भी हैरत में रह गए. उन्होंने इस की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी, साथ ही उन्होंने घटनास्थल की जांच होने तक अमित के अलावा सभी लोगों को फ्लैट से बाहर जाने के लिए कह दिया. मामला बड़ा था, इसलिए ज्वांइट सीपी दीपेंद्र पाठक, डीसीपी पुष्पेंद्र कुमार, एडिशनल डीसीपी मोनिका भारद्वाज, एसीपी ओमवती मलिक भी घटनास्थल पर पहुंच गई.

मामले की गंभीरता को देखते हुए डीसीपी ने सीबीआई की सीएफएसएल टीम, एफएसएल टीम, क्राइम इनवैस्टिगेशन टीम को भी बुला लिया. सभी जांच टीमों ने घटनास्थल से जरूरी सबूत जुटाए. उन का काम निपटने के बाद पुलिस अधिकारियों ने पूरे फ्लैट का बारीकी से निरीक्षण किया. इस से पता चला कि दीपमाला उर्फ दीपा और उन के दोनों बच्चों की हत्या किसी तेज धार वाले हथियार से की गई थी. उन तीनों की गरदन एक ही तरह से काटी गई थी. इस से यही अनुमान लगाया गया कि तीनों का हत्यारा एक ही रहा होगा. जिस कमरे में दीपा की लाश पलंग पर पड़ी थी, उस में एक अलमारी भी रखी थी. जिस पलंग पर लाश पड़ी थी, उस पर कुछ कपड़े भी पड़े थे. उन कपड़ों पर भी खून के छींटे पड़े थे.

दीपा के फटे कपड़े और खुले बालों से लग रहा था कि उन्होंने हत्यारे का काफी विरोध किया था. उन की उंगलियों पर भी जख्म था. बाथरूम में 2 बच्चों का गला काटा गया था, वहां पूरे फर्श  पर खून फैला हुआ था. दोनों भाईबहनों की लाशें पासपास ही पड़ी थीं. सक्षम के दाएं  हाथ पर भी तेज धार हथियार की चोट दिख रही थी. बाथरूम के बाहर खून से सने पैरों के निशान थे. जिन की डाइरेक्शन बाथरूम से बाहर आने की थी. पुलिस और एक्सपर्ट टीम यह पता लगाने में जुट गई कि हत्यारे ने सब से पहले किसे मारा. दरअसल बाथरूम से बाहर खून से सने पैरों के निशानों से लग रहा था कि हत्यारे ने पहले बाथरूम में ले जा कर दोनों बच्चों का कत्ल किया होगा. संभावना थी कि उस ने यह सब मां के सामने ही किया होगा. उसी दौरान वह हत्यारे से भिड़ गई होंगी.

ड्राइंगरूम में चाय के 2 खाली कप भी रखे थे. जांच के बाद पुलिस इस नतीजे पर पहुंची की हत्यारा चाहे जो भी रहा होगा, वह कोई परिचित ही होगा. क्योंकि उस की फ्लैट में फ्रेंडली एंट्री हुई थी. वह पहले भी इस फ्लैट में आताजाता रहा होगा. टेबल पर रखे खाली कपों से पता चल रहा था कि दीपा ने उसे चाय पिलाई थी. जिस वक्त पुलिस जांच कर रही थी, उसी समय अमित का भाई जो नोएडा की किसी कंपनी में सीए है, वह भी अपनी पत्नी के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस ने उन से कुछ पूछताछ करनी चाही, लेकिन वह इतने दुखी थे कि कुछ नहीं बोले.

पुलिस अधिकारियों ने अमित से प्रारंभिक पूछताछ की तो उन्होंने पूरी कहानी बता दी. पुलिस ने उन से उन सभी लोगों के नामपते मालूम किए, जिन का उन के फ्लैट में आनाजाना था. हालांकि अमित भी पुलिस के शक के घेरे में थे, लेकिन उस समय पुलिस ने उन से ज्यादा पूछताछ करनी जरूरी नहीं समझी. पुलिस ने पड़ोसियों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि किसी ने अमित के फ्लैट से रोने या चीखने की आवाज नहीं सुनी थी. पुलिस को यह भी पता चला कि अमित का 9 वर्षीय बेटा सक्षम और 7 वर्षीय बेटी शैली शाम को अन्य बच्चों के साथ नीचे जा कर खेलते थे. उस दिन भी वह शाम 5 बजे तक बच्चों के साथ खेले थे. इस से पुलिस ने यही अंदाजा लगाया कि वारदात शाम 5 बजे के बाद हुई थी.

दीपा के दोनों फोन कमरे में ही मिले थे. इस के अलावा कमरे का सारा सामान अपनी अपनी जगह पर था. इससे यही लगा कि हत्यारे का मकसद फ्लैट में लूटपाट करना नहीं था, बल्कि वह सिर्फ हत्या करने के लिए आया था और अपना काम कर के चला गया. दीपा के साथ सैक्सुअल अटैक जैसी आशंका भी नहीं दिखाई दी थी. घटनास्थल की प्रारंभिक काररवाई करने के बाद पुलिस ने तीनों लाशों को पोस्टमार्टम के लिए दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल भिजवा दिया और अमित की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. केस की जांच थानाप्रभारी भगवान सिंह ने अपने हाथ में ले ली.

अगले दिन सहारनपुर से दीपा के मांबाप भी दिल्ली आ गए. पुलिस ने उन से पूछताछ  की तो उन्होंने बताया कि दीपा अपने पति के साथ हंसीखुशी से रह रही थी. उसे पति से कोई शिकायत नहीं थी. 3 जून को वह बच्चों को ले कर मायके आती, मगर उस से पहले ही यह सब हो गया. अमित को उन के सासससुर ने भले ही क्लीन चिट दे दी थी, पर पुलिस को अब भी उन पर शक था. पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने तीनों शव घर वालों के हवाले कर दिए. तीनों लाशों को उन के घर सहारनपुर ले जाया गया. डीसीपी पुष्पेंद्र कुमार ने इस तिहरे हत्याकांड को सुलझाने को 2 पुलिस टीमें बनाईं, पहली टीम विकासपुरी क्षेत्र की एसीपी ओमवती मलिक के नेतृत्व में बनी, जिस में थानाप्रभारी भगवान सिंह, एसआई गोविंद सिंह, दीपक कुमार, हेडकांस्टेबल महावीर सिंह, अजीत सिंह, कांस्टेबल हरीश कुमार और रामकुमार आदि को शामिल किया गया.

दूसरी पुलिस टीम स्पेशल स्टाफ के इंसपेक्टर सुरेंद्र राठी के नेतृत्व में बनी, जिस में एसआई ईश्वर सिंह, चरण सिंह आदि तेजतर्रार पुलिस अफसरों को शामिल किया गया. इस टीम को निर्देशित करने का दायित्व एसीपी औपरेशन दिनेश तिवारी का था. पुलिस को पहला शक आबकारी इंसपेक्टर अमित कुमार पर ही था. इस संदेह को दूर करने के लिए पुलिस ने अमित के फोन की काल डिटेल्स निकलवाईं तो घटना वाले दिन उन के फोन की लोकेशन औफिस के समय तक आईटीओ इलाके में ही मिली. इससे संतुष्टी नहीं हुई तो जांच टीम अमित की गैरमौजूदगी में उनके औफिस पहुंच गई. औफिस में काम करने वालों ने बताया कि पहली जून को अमित सुबह से शाम तक औफिस में ही थे.

अमित पत्नी व बच्चों के अंतिम संस्कार के लिए सहारनपुर गए हुए थे. इस बीच पुलिस ने दीपा के दोनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा ली थी. अमित के दिल्ली लौटने पर पुलिस ने उन से पत्नि व बच्चों की हत्या की बाबत पूछताछ की तो वह खुद को निर्दोष बताते रहे. थानाप्रभारी भगवान सिंह ने जब उन से पूछा कि उन की किसी से कोई रंजिश या दुश्मनी तो नहीं है? यह सुन कर अमित कुछ सोचने लगे, फिर कुछ देर बाद बोले, ‘‘हमारी किसी से दुश्मनी तो नहीं है, लेकिन हमारा छोटा साढू़ दीपक हम लोगों से खुश नहीं था. दूसरे वह पत्नी और बच्चों के अंतिम संस्कार में भी नहीं दिखाई दिया.’’

अमित ने यह भी बताया कि दीपा के मायके वालों को दीपक जब अंतिम संस्कार में भी नहीं दिखा तो उन्होंने उस के घर जा कर पूछताछ की. उस के घर वालों ने बताया कि वह पहली जून को दिल्ली गया था और वहां से रात पौने 12 बजे घर लौटा था. उस समय दीपक दूसरे कमरे में था. दीपा के मायके वालों ने जब दीपक को बुला कर पूछताछ की तो वह इस बात का जवाब नहीं दे पाया कि वह दिल्ली क्यों गया था. वह दिल्ली जाने की बात से साफ नकारता रहा. तब दीपा के मायके वालों ने उस से कह दिया कि वह कहीं नहीं जाए, क्योंकि दिल्ली पुलिस कभी भी उस से पूछताछ करने के लिए आ सकती है.

उन लोगों के जाने के थोड़ी देर बाद दीपक भी अपने घर से निकल गया. दीपक भी सहारनपुर में रहता था. इस से दीपा की छोटी बहन मधु की शादी हुई थी. 5 जून को दीपक की तलाश में एक पुलिस टीम सहारनपुर गई. लेकिन वह घर पर नहीं मिला. उसे ढूंढने के लिए यह टीम सहारनपुर में ही डेरा डाले रही. अगली सुबह यानी 6 जून को दीपक के घर सहारनपुर के ही थाना कुतुबशेर से फोन आया. बताया गया कि अंबाला रेलवे लाइन पर बड़ी नहर के पास दीपक नाम के एक व्यक्ति की लाश मिली है. उस की जेब से जो परची मिली है, उसी पर एक फोन नंबर लिखा था, उसी नंबर पर काल की गई थी.

यह खबर मिलते ही दीपक के घर वाले रोतेबिलखते थाना कुतुबशेर पहुंच गए. वहां से पुलिस उन्हें उस जगह ले गई, जहां रेलवे लाइन के किनारे एक युवक की लाश पड़ी थी. उन लोगों ने उस की शिनाख्त दीपक के रूप में की. लाश का सिर ही क्षतिग्रस्त था. इससे यह पता लगाना मुश्किल था कि उस ने आत्महत्या की थी या फिर उस की साजिशन हत्या कर के लाश को वहां डाला गया था. बहरहाल थाना कुतुबशेर पुलिस ने दीपक की लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतका दीपा के मायके वालों को इस बात का गहरा सदमा पहुंचा. पहली जून को बड़ी बेटी दीपा और उस के दोनों बच्चों को किसी ने मार दिया. इस घटना को अभी हफ्ता भी नहीं हुआ था कि छोटी बेटी मधु भी 25 साल की उम्र में विधवा हो गई थी.

सहारनपुर में मौजूद दिल्ली पुलिस की टीम को जब यह बात पता चली कि जिस दीपक की उन्हें तलाश थी, उस की मौत हो गई है तो टीम को भी निराशा हुई. वह थाना कुतुबशेर पहुंच गई और थानाप्रभारी से बातचीत कर के दिल्ली लौट आई. डीसीपी पुष्पेंद्र कुमार को जब दीपक की मौत की जानकारी मिली तो उन्हें भी लगा कि कहीं उसे किसी साजिश के तहत तो नहीं मार दिया गया. क्योंकि सामने ऐसा कोई क्लू नहीं था, जिस पर काम कर के तफतीश आगे बढ़ाई जा सकती.

डीसीपी ने पुलिस टीम को मृतक दीपक के फोन की काल डिटेल्स खंगालने के  निर्देश दिए. आदेश मिलते ही पुलिस ने दीपक के फोन की काल डिटेल्स निकलवाईं. उस में पहली जून को उस के फोन की लोकेशन दिल्ली की नहीं निकली. जिन लोगों से उस की फोन पर आखिरी मर्तबा बात हुई थी. पुलिस ने उन्हें पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया. वे थे राजेश कुमार और गुलशन. दोनों ही सहारनपुर के रहने वाले थे. पुलिस ने दोनों से दीपा ओर उस के दोनों बच्चों की हत्या और दीपक की रेलवे ट्रैक पर मिली लाश के बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया कि दीपक उन का दोस्त था, लेकिन इन चारों की मौत के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता.

उन दोनों की बातों से पुलिस को लग रहा था कि ये लोग सच्चाई छिपाने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए उन से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने दीपा और उस के दोनों बच्चों की हत्या की पूरी कहानी पुलिस के सामने बयां कर दी. सेंट्रल एक्साइज एंड सर्विस टैक्स इंसपेक्टर अमित कुमार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला सहारनपुर के रहने वाले थे. करीब 12 साल पहले उन की शादी सहारनपुर के दूसरे मोहल्ले में रहने वाली दीपमाला उर्फ दीपा से हुई थी. दीपा भी खूबसूरत और पढ़ीलिखी लड़की थी. कालांतर में दीपा एक बेटे और एक बेटी की मां बनीं.

अमित और दीपा अपने बच्चों की परवरिश पर ध्यान देने लगे. अमित सरकारी अफसर थे. उन के यहां किसी भी चीज का अभाव नहीं था. सुखसुविधाओं के बीच बच्चों की परवरिश हो रही थी. उन्होंने मोहनगार्डन स्थित एक अच्छे स्कूल में उन का दाखिला भी करा दिया था. अमित दिल्ली के आइजीआई एयरपोर्ट पर तैनात थे. उन्होंने पश्चिमी दिल्ली के उत्तमनगर स्थित मोहनगार्डन के जे ब्लौक में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. दीपा हाउस वाइफ थीं. वह बच्चों पर पूरा ध्यान देती थीं. उन का फ्लैट दूसरी मंजिल पर था. शाम को वह बच्चों को पार्क में ले जाती थीं. दीपा एक व्यावाहारिक महिला थीं, इसलिए उस ब्लौक में रहने वाली कई महिलाओं से उन की दोस्ती हो गई थी. कुल मिला कर उन की गृहस्थी हंसीखुशी से चल रही थी.

दीपा से 10 साल छोटी उन की बहन मधु की शादी सहारनपुर के ही रहने वाले दीपक से हुई थी. दीपक एक जूता फैक्ट्री में काम करता था. इसके खिलाफ कुतुबशेर थाने में कई मामले दर्ज थे. जिसकी वजह से उसे 2014 में जिलाबदर कर दिया गया था. शादीशुदा होते हुए भी उस के संबंध दूसरे मोहल्ले की रहने वाली विमला से थे. एक बार मधु ने दीपक और विमला को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था. उस वक्त दीपक ने पत्नि से माफी मांगी तो उसने उसे माफ कर दिया था. लेकिन दीपक ने विमला का साथ नहीं छोड़ा. वह उस से मिलता रहा.

मधु ने इस की शिकायत अपने मांबाप और बहन दीपा से की. सभी ने दीपक को समझाया, पर दीपक पर विमला के इश्क का ऐसा भूत सवार था कि वह विमला को नहीं भुला सका. इसी स्थिति के चलते एक दिन अमित कुमार और दीपा ने सहारनपुर पहुंच कर दीपक को अन्य रिश्तेदारों के सामने चेतावनी दी कि अगर वह नहीं माना तो मधु की तरफ से उस के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी जाएगी. रिश्तेदारों के सामने खुद की बेइज्जती दीपक को बुरी लगी. इस के बाद वह दीपा और उस के पति से खुन्नस रखने लगा. पति के अच्छे पद पर होने की वजह से दीपा बनठन कर रहती थी. नएनए डिजाइन के गहने पहनती थी. जबकि दीपक की तनख्वाह मामूली थी. वह जैसेतैसे घर चला रहा था. उसे अमित और दीपा से ईर्ष्या थी. वह उन्हें सबक सिखाना चाहता था.

जिस जूता फैक्ट्री में दीपक नौकरी करता था, उसी में उस के 2 दोस्त राजेश और गुलशन भी नौकरी करते थे. वे भी सहारनपुर में ही रहते थे. इन से दीपक की ऐसी दोस्ती थी कि वह उन्हें हर बात बता देता था. उस ने अपनी बेइज्जती की बात भी उन दोनों को बताई. उस ने उन से कहा कि दीपा के पास बहुत पैसा है और गहने भी हैं. अगर उसे उस के फ्लैट में मार कर पैसा और ज्वैलरी लूट ली जाए तो इस से एक पंथ दो काज हो जाएंगे. लोग यही सोचेंगे कि किसी ने लूट का विरोध करने पर हत्या की है. राजेश और गुलशन ने यह काम करने के लिए हामी भर दी.

लेकिन योजना को अंजाम देने के लिए दीपक राजेश और गुलशन को बिना बताए पहली जून, 2015 को दिल्ली आ गया. उस के मोबाइल की लोकेशन दिल्ली न आए, इसलिए उस ने अपने फोन को स्विच्ड औफ कर दिया. वह जानता था कि उस के साढू ड्यूटी पर होंगे, जिस से वह अपना काम आसानी से निपटा देगा. शाम 4 बजे वह अमित के फ्लैट पर पहुंचा. घंटी बजने पर दीपा ने दरवाजा खोला. ड्राइंगरूम में बिठा  कर वह उस से बातें कर ने लगी. उन्होंने उसे चाय बना कर पिलाई. दीपक की योजना से अनभिज्ञ दीपा उस दिन भी उसे समझा रही थीं. उस समय उन का 9 वर्षीय बेटा सक्षम और 7 वर्षीय बेटी वैष्णवी उर्फ शैली नीचे बच्चों के साथ खेल रहे थे.

दीपा से बातचीत करते समय दीपक मौके की तलाश में था. जैसे ही दीपा ड्राइंगरूम से उठ कर किचन में गइर्ं तो वह भी उन के पीछे पीछे वहां पहुंच गया. तभी उस ने दीपा के गले में पड़े दुपट्टे को कसना शुरू कर दिया. दीपा भी हट्टीकट्टी थीं. अचानक गला कसने से दीपा घबरा गई. उन्होंने पूरी ताकत लगाते हुए अपनी सुरक्षा करने की कोशिश की. उस समय उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था. शोर मचाते हुए वह अपनी जान बचाने के लिए कमरे की तरफ भागीं.

इस से दीपक घबरा गया. इसलिए वह भी उन के पीछेपीछे कमरे में पहुंच गया और कोई भारी चीज उनक के सिर पर मारी, जिस से वह फोल्डिंग पलंग पर गिर गईं. उन के गिरते ही उस ने साथ लाए चाकू से उन का गला रेत दिया. गला कटते ही खून का फव्वारा फूट पड़ा. जिस से पलंग पर रखे कपड़ों पर भी छींटे पड़ गए. कुछ देर छपपटाने के बाद दीपा का शरीर शांत हो गया. उन के मरने के बाद उस ने उस की अंगूठी और कानों की बालियां निकाल लीं. नीचे शैली और सक्षम अन्य बच्चों के साथ खेल रहे थे, खेलतेखेलते शैली के हाथ में किसी चीज से खरोंच लग गई. उस खरोंच को अपनी मम्मी को दिखाने के लिए वह रोती हुई ऊपर आई. कमरे का दरवाजा बंद था.

शैली ने जैसे ही घंटी बजाई, दीपक डर गया कि पता नहीं कौन आया है. उस ने आने वाले से निपटने की सोच ली. दीपक ने दरवाजा खोला तो बच्ची को देख कर उसे तसल्ली हुई. शैली दीपक को जानती थी. मौसा को देखते ही उसने मुसकराते हुए नमस्ते किया और फिर वह उस से पूछने लगी, ‘‘मौसाजी मम्मी कहां हैं?’’

दीपक ने उस से कहा कि वह बाथरूम में है, वह शैली को हाथ पकड़ कर बाथरूम में ले गया. उस बच्ची को क्या पता था कि उस के साथ क्या होने वाला है. बाथरूम में जाते ही उस ने शैली का गला काट दिया. इसी दौरान अचानक मौसम बदल गया. आंधी आने की वजह से नीचे खेल रहे सभी बच्चे अपनेअपने घर चले गए. सक्षम भी ऊपर अपने घर आ गया. दरवाजा बंद होने पर उस ने घंटी बजाई तो दीपक फिर घबरा गया. उसने सोचा कि इस बार शायद अमित आ गया है. उस ने तय कर लिया था कि इस दौरान जो भी आएगा, वह उस का काम तमाम कर देगा. उस ने दूसरी बार दरवाजा खोला तो सामने सक्षम था.

मौसा को देखते ही सक्षम ने उस के पैर छुए. उस का आदर भाव देख कर दीपक उसे मारना नहीं चाहता था, लेकिन उस को जिंदा छोड़ने पर उस के फंसने की संभावना थी. इसलिए उसे ठिकाने लगाने के लिए वह सक्षम को भी बाथरूम में ले गया. वहां छोटी बहन की लाश देख कर सक्षम घबरा गया. इस बारे में वह अपने मौसा से कुछ पूछने की हिम्मत जुटा पाता, इस से पहले ही दीपक ने उस का भी गला काट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद उस का भी शरीर ठंडा हो गया. 3 हत्याएं करने के बाद दीपक ने बाथरूम में ही खून से सने हाथ धोए और जल्दबाजी में केवल जाली वाले दरवाजे पर ताला लगा कर चला गया.

रात करीब 12 बजे वह अपने घर पहुंचा. अगले दिन उसने फोन कर के अपने दोस्तों राजेश और गुलशन को एक जगह बुला लिया और दीपा व उस के दोनों बच्चों की हत्या करने की पूरी बात बता दी. उसने दीपा की अंगूठी और बालियां उन दोनों को देते हुए कहा कि यह बात किसी से न बताएं. उधर दीपा और उस के बच्चों की हत्या की बात सुन कर दीपा के मायके वाले और दीपक के मातापिता दिल्ली पहुंच गए, लेकिन दीपक का साढू़ के घर नहीं गया. न ही वह उन तीनों के अंतिम संस्कार में शामिल हुआ. इस से दीपा के मातपिता को उस पर शक हो गया. वे दीपक से पूछने उस के घर भी गए. इस के बाद दीपक को लगा कि अब वह बच नहीं पाएगा. शायद इसीलिए उसने रेलवे ट्रैक पर जा कर ट्रेन के आगे आत्महत्या कर ली.

पुलिस ने राजेश और गुलशन को भादंवि की धारा 120 बी के तहत गिरफ्तार कर के 9 जून को तीस हजारी न्यायालय में ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर के 3 दिनों के  पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि में उन की निशानदेही पर उन से दीपक द्वारा दी गई दीपा की ज्वैलरी बरामद की गई. इस के बाद उन्हें 12 जून को पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. Domestic Dispute

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित, कथा में विमला परिवर्तित नाम है

Hindi Stories: अंजानों पर विश्वास का नतीजा

Hindi Stories: संजय गुप्ता सोनू की फितरत समझ नहीं पाए और उस पर विश्वास कर के उस का पुलिस वेरीफिकेशन भी नहीं कराया. शातिर सोनू ने इसी का फायदा उठा कर ऐसा क्या कर डाला कि अब संजय गुप्ता को पछतावा हो रहा है.

उत्तर प्रदेश का नोएडा शहर देश की राजधानी दिल्ली की सीमा से सटे तेजी से विकसित व्यावसायिक नगर के रूप में जाना जाता है. यह शहर एशिया के बड़े औद्योगिक उपनगरों में से एक है. यहां की अधिकांश जमीनों पर बड़ीबड़ी इमारतें बन गईं हैं. विकास की पगडंडियों के बीच यहां रहने वालों की अपनीअपनी जिंदगियां हैं. सेक्टर-41 की कोठी नंबर बी-169 में रहने वाले संजय गुप्ता की पत्नी श्रीमती राखी गुप्ता अच्छी चित्रकार थीं. उन्होंने सैंकड़ों पेंटिंगें बनाई थीं. यह उन का पेशा नहीं, बल्कि शौक था, जिसे पूरा करने के लिए वह कैनवास पर जिंदगी के रंगों को अक्सर उकेरा करती थीं. अभिव्यक्ति के अपने मायने होते हैं, उसे प्रदर्शित करने का सभी का अपना अलगअलग अंदाज होता है.

उस दिन भी सफेद कैनवास पर अपनी अंगुलियों से ब्रश के जरिए जो चित्र उन्होंने उकेरा था, वह एक खुशहाल परिवार का था, जिस में पतिपत्नी और उन के 2 बच्चे प्रसन्न मुद्रा में नजर आ रहे थे. सभी की बांहें एकदूसरे के गले में थीं. ब्रश को किनारे रख कर राखी पेंटिंग को निहारने लगीं. काफी देर तक अपलक निहारने के बाद उन की आंखों में अचानक आंसू छलक आए. आंसुओं ने लुढ़क कर अपना सफर शुरू किया तो राखी ने साड़ी के पल्लू से उन के वजूद को मिटाने की कोशिश की. सोफे पर बैठे संजय की नजर पत्नी पर गई तो नजदीक जा कर उन के कंधे पर हाथ रख कर बोले, ‘‘तुम बारबार परेशान क्यों हो जाती हो?’’

‘‘मेरा दुख तुम जानते हो, फिर भी…’’

‘‘हम कोशिश तो कर रहे हैं. इस तरह हिम्मत नहीं हारते, एक दिन हमारा बेटा अवश्य ठीक हो जाएगा.’’

‘‘पता नहीं कैसा संयोग है. मेरा फूल सा बेटा बिस्तर पर पड़ा है. इंजीनियर बनना था, कितने सपने थे हमारे. काश, इस की जगह मेरी यह हालत हो जाती.’’

‘‘मैं तुम्हारा दर्द समझता हूं राखी. लेकिन इस तरह परेशान होने से भी तो काम नहीं चलेगा.’’ संजय ने कहा.

‘‘फिर भी मैं ने कभी नहीं सोचा था कि हमारा होनहार बेटा इस हाल में होगा. मैं मां हूं, इस का दर्द महसूस करती हूं. वह सब जानतासमझता है, लेकिन अपनी वेदना व्यक्त करने में नाकाम है. जब उस की आंखों में छटपटाती बेबसी देखती हूं तो तड़प कर रह जाती हूं. हर पल इसी के बारे में सोचती रहती हूं. मुझे जिंदगी में कुछ नहीं चाहिए, बस मेरा बेटा ठीक हो जाए.’’ कहने के साथ ही राखी फफक कर रो पड़ीं.

‘‘भरोसा रखो, एक दिन सब ठीक हो जाएगा.’’ संजय ने प्यार से समझाया तो राखी ने हर बार की तरह उस दिन भी सुखद उम्मीदों के साथ अपने दिल को समझाने की नाकाम कोशिश की.

यह एक कड़वी हकीकत है कि जिंदगी कई बार इंसान के साथ बहुत सख्ती से पेश आती है. बेबसी तब तूफान की तरह और भी बढ़ जाती है, जब उसे संभालने की सभी कोशिशें नाकाम हो जाती हैं. इस दर्द को वह शख्स बखूबी महसूस कर सकता है, जो इस से रूबरू हुआ हो. संजय गुप्ता और उन की पत्नी भी पलपल ऐसी पीड़ा से गुजर रहे थे, जहां उन की कोशिशों को ग्रहण सा लग गया था. संजय गुप्ता रियल एस्टेट कारोबार से जुड़े थे. वह मूलरूप से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के रहने वाले थे, लेकिन वर्षों पहले वह वहां से चले आए थे. वह अहमदाबाद में इंडियन स्पेस रिसर्च और्गेनाइजेशन (इसरो) में वैज्ञानिक थे, परंतु कई सालों पहले नौकरी छोड़ कर वह नोएडा में प्रौपर्टी का काम करने लगे थे.

बच्चों को उन्होंने शुरू से ही साथ रखा था. उन के परिवार में पत्नी राखी के अलावा 2 बच्चे थे, जिन में बड़ा बेटा जितार्थ और उस से छोटी बेटी स्मिति. दोनों ही बच्चे पढ़ने में होनहार थे. स्मिति दिल्ली के एक फैशन इंस्टीट्यूट में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही थी, जबकि जितार्थ मणिपाल यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था. संजय के पास किसी चीज की कमी नहीं थी. एक साल पहले तक उन की जिंदगी बहुत खुशहाल थी. किसी की हंसतीखेलती जिंदगी में कब गमों का दरिया बहने लगे, इस बात को कोई नहीं जानता.

3 मार्च, 2013 को गुप्ता परिवार में भी ऐसा ही एक दरिया बह निकला. संजय को सूचना मिली कि उन का बेटा गोवा में एक रोड ऐक्सीडेंट का शिकार हो गया है. संजय वहां पहुंचे. जितार्थ को बे्रन हेमरेज हुआ था. लंबे उपचार के बाद वह हेमरेज से उबरा जरूर, लेकिन उस के चलनेफिरने, बोलने की शक्ति जाती रही.  जितार्थ स्थाई रूप से बिस्तर पर पड़ गया. वह कब तक ऐसा ही रहेगा, इस का जवाब किसी के पास नहीं था. संजय और उन की पत्नी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था. संजय बेटे को नोएडा ले आए और बेहतर से बेहतर इलाज कराया. लेकिन उस की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ.

लिहाजा डाक्टरों की सलाह पर वह उसे घर ले आए. घर के एक कमरे में उस के लिए बैड लगवा दिया गया. वह कोमा जैसी स्थिति में था. सभी दैनिक क्रियाएं वह बिस्तर पर ही करता था. बेटे को ले कर संजय भी परेशान थे और राखी भी. बेटा स्थाई रूप से बिस्तर पर पड़ गया था. उस की देखभाल जरूरी थी, इसलिए संजय ने अक्टूबर, 2014 में उस के लिए नर्सिंग का काम जानने वाले 2 अटेंडैंट रख लिए, क्योंकि 24 घंटे किसी एक अटेंडैंट को घर पर रखा नहीं जा सकता था. दोनों अटेंडैंट की ड्यूटी 12-12 घंटे की हुआ करती थी. सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक अटेंडैंट सोनू जितार्थ की देखभाल करता था तो रात 9 बजे से सुबह 9 बजे तक रहता दूसरा लड़का था. सोनू ने खुद को बदायूं का रहने वाला बताया था. नोएडा में वह मोरना में कहीं किराए पर रहता था.

संजय के पास दौलतशोहरत सब कुछ था, लेकिन बेटे के लिए वह कुछ नहीं कर पा रहे थे. बेटे को ले कर राखी अक्सर परेशान हो जाती थीं. उस दिन भी वह चित्रकारी करतेकरते बेटे के बारे में सोच कर रोने लगी थीं. संजय ने किसी तरह समझा कर उन्हें चुप कराया था. उन का परिवार जिस कोठी में रह रहा था, वह सीमा खन्ना की थी. सीमा खन्ना ग्राउंड फ्लोर पर रहती थीं, जबकि संजय का परिवार पहली मंजिल पर किराए पर रहता था.

बेटे की वजह से राखी पूरे वक्त घर पर ही रहती थीं. वह संवेदनशील महिला थीं. खाली वक्त में वह ऐसे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दिया करती थीं, जो पैसे दे कर ट्यूशन नहीं पढ़ सकते थे. ये बच्चे 3 से साढ़े 3 बजे के बीच राखी के यहां आते थे. राखी का सोचना था कि शिक्षा जीवन का प्राथमिक आधार है, इसलिए सभी को शिक्षित होना चाहिए. राखी गरीबों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहती थीं. मेल नर्स सोनू के आने के बाद संजय सुबह अपने औफिस चले जाते थे. बेटी स्मिति कालेज चली जाती थी. सुबह घर में एक नौकरानी सुनीता काम करने आती थी. 12 बजे तक वह भी चली जाती थी.

इस के बाद घर में राखी गुप्ता, मेल अटेंडैंट सोनू और बेटा जितार्थ ही रह जाते थे. रोज की लगभग यही दिनचर्या थी. किसी शहर के विकास के बीच अपराध की भी अपनी एक चाल होती है. आम दिनों की भांति 6 अप्रैल, 2015 को भी सेक्टर-41 शांत था. लोगों की आवाजाही और उन के काम जारी थे. राजेंद्र प्रसाद के 2 बच्चे राखी के यहां ट्यूशन पढ़ने आते थे. लगभग 3 बजे बच्चे कोठी की पहली मंजिल पर पहुंचे तो दरवाजा खुला हुआ था. वे रोज आते थे, इसलिए उन्हें लगा कि राखी मैडम दरवाजा बंद करना भूल गई होंगी.

वे अंदर दाखिल हुए तो वहां का नजारा देख कर बुरी तरह डर गए. वे उलटे पांव सीधे अपने घर पहुंचे और उन्होंने वहां जो देखा था, पिता राजेंद्र प्रसाद को बताया. बच्चों की बात से वह हैरान रह गए. राजेंद्र तुरंत संजय के घर पहुंचे और पूरी बात मकान मालकिन सीमा खन्ना और आसपास के लोगों को बताई. आपस में विचारविमर्श कर के कुछ लोग हिम्मत कर के पहली मंजिल पर पहुंचे तो वहां की हालत देख कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई. 45 वर्षीया राखी गुप्ता खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थीं. उन के आसपास खून ही खून फैला था. किसी ने उन की नब्ज टटोली तो वह थम चुकी थी. उन का बीमार बेटा जितार्थ भी नीचे पड़ा था. लेकिन वह ठीक था.

सीमा खन्ना ने तुरंत इस मामले की खबर संजय गुप्ता को दी तो वह कुछ ही देर में घर आ गए. राखी की मौत हो चुकी थी. किसी ने उन की गर्दन और शरीर के अन्य हिस्सों पर नुकीली चीज से प्रहार किए थे. जितार्थ चूंकि बिस्तर से गिर गया था, इसलिए वह दर्द से छटपटा रहा था. उस के सिर में चोट लगी थी. उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया. इस बीच पुलिस को भी घटना की सूचना दे दी गई थी. सूचना पा कर कोतवाली सेक्टर-39 के थानाप्रभारी धर्मेंद्र चौहान तुरंत पुलिस बल के साथ मौके पर आ पहुंचे. मामला हत्या का था, इसलिए उन्होंने इस की सूचना अपने आला अधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह और एएसपी विजय ढुल भी मौके पर आ पहुंचे थे.

पुलिस ने मौकामुआयना किया तो हत्या की वजह समझ में नहीं आई. लेकिन यह जरूर लगा कि कातिल का मकसद सिर्फ राखी की हत्या करना नहीं था. क्योंकि थोड़ी नकदी और राखी का मोबाइल गायब था लेकिन घर में रखे अन्य लाखों रुपए बच गए थे. हालांकि जिस लौकर में नकदी रखी थी, उसे तोड़ने की कोशिश जरूर की गई थी. राखी पर किसी नुकीली चीज से प्रहार किए गए थे, लेकिन हत्या में प्रयुक्त वह नुकीली चीज मौके से बरामद नहीं हुई थी. पुलिस ने डौग स्क्वायड और फिंगरप्रिंट एक्सपर्ट की टीम को मौके पर बुलवा लिया था. चौंकाने वाली बात यह थी कि मेल अटेंडैंट सोनू लापता था, जबकि उस समय उसे ड्यूटी पर होना चाहिए था.

पुलिस ने निरीक्षण के बाद पूछताछ शुरू की, ‘‘सब से पहले इस घटना की जानकारी किसे हुई?’’

‘‘मुझे साहब.’’ राजेंद्र प्रसाद ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘कैसे?’’ पुलिस ने पूछा तो जवाब में राजेंद्र प्रसाद ने अपने बच्चों के वहां ट्यूशन पढ़ने आने की बात बता दी.

पुलिस ने संजय गुप्ता से भी पूछताछ की. इस पूछताछ में उन्होंने किसी से भी अपनी दुश्मनी होने से इनकार कर दिया. जितार्थ घटना का चश्मदीद तो था, लेकिन वह कुछ भी बताने लायक नहीं था. हैरानी की बात यह थी कि पड़ोस में भी किसी को घटना के बारे में कुछ पता नहीं चला था. वैसे भी आजकल शहरी जीवनशैली में लोगों की दुनिया अपने तक ही सिमट गई है. संजय गुप्ता के सेक्टर-2 स्थित अपने औफिस चले जाने के बाद घर में कुल 3 लोग ही रह जाते थे. एक राखी गुप्ता, दूसरा उन का 22 वर्षीया बेटा जितार्थ और तीसरा 25 वर्षीय अटेंडैंट सोनू. मकान के जिस हिस्से में संजय गुप्ता का परिवार रहता था, उस में मुख्य दरवाजे पर जाली वाला दरवाजा भी लगा हुआ था.

जाहिर है, अंजान आदमी के लिए दरवाजा नहीं खोला जा सकता था. पुलिस ने सोनू के मोबाइल पर फोन किया तो वह बंद था. इस से उस पर शक हुआ. जबकि संजय यह मानने को तैयार नहीं थे कि सोनू इस तरह हत्या कर सकता है. हत्या के बाद जिस तरह वह गायब था, उसी से संदेह हो रहा था. मकान मालकिन सीमा खन्ना ने पुलिस को बताया कि उन्होंने सोनू को चुपचाप जाते देखा था. उस की तलाश में एक पुलिस टीम मोरना भेजी गई तो उस के मकान मालिक ने बताया कि 1 अप्रैल को वह उन का घर छोड़ कर चला गया था. सवाल यह था कि अगर सोनू ने राखी की हत्या की थी तो इस की वजह क्या थी?

इस बीच पुलिस ने राखी गुप्ता के शव का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और संजय गुप्ता की तहरीर पर सोनू के खिलाफ राखी की हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया गया. दिनदहाड़े हुई हत्या की इस घटना से समूचे इलाके में हड़कंप मच गया था. लोग पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाने लगे थे. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में राखी के शरीर पर नुकीली चीज के 8 घाव पाए गए थे. ये घाव उन के गले, हाथ और कंधे पर थे. ये संभवत: किसी सर्जिकल चीज के थे. मैडिकल ट्रीटमेंट के कुछ सामान जितार्थ के कमरे में रहते थे. हाथों पर घाव पाए जाने से एक बात साफ थी कि राखी ने मरने से पहले संघर्ष किया था. दूसरी ओर गिरने की वजह से जितार्थ के सिर में चोट आई थी. डाक्टरों ने उस का सीटी स्कैन कराया. वह नौर्मल था.

पुलिस का सोनू तक पहुंचना जरूरी था. हैरानी की बात यह थी कि सोनू का कोई स्थाई पता या फोटो गुप्ता परिवार के पास नहीं था. संजय ने पुलिस को बताया कि सोनू का फोटो राखी के मोबाइल में था, जबकि उन के मोबाइल को वह साथ ले गया था. घटना क्यों और कैसे घटी, सोनू ही इस से परदा उठा सकता था. एसएसपी ने एएसपी विजय ढुल के निर्देशन में मामले के खुलासे के लिए 3 पुलिस टीमों को गठन किया. पुलिस ने सोनू के मोबाइल की काल डिटेल्स व लोकेशन निकलवाई. उस की आखिरी लोकेशन सेक्टर-39 की मिली थी. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था.

पुलिस ने सोनू के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटानी शुरू की. पता चला कि संजय ने सोनू को अपने यहां इस के पहले काम करने वाले राजकुमार के माध्यम से नौकरी पर रखा था. पुलिस राजकुमार तक पहुंच गई. राजकुमार से पता चला कि सोनू पहले नोएडा के सेक्टर-40 स्थित एक अस्पताल में 2 साल और एक डाक्टर दंपत्ति के घर करीब एक साल तक काम कर चुका था. उसी बीच उस की उस से मुलाकात हुई थी. इस से ज्यादा उस के बारे में वह भी कुछ नहीं जानता था.

पुलिस ने उस की बताई दोनों जगहों पर जा कर पूछताछ की तो पता चला कि सोनू झगड़ालू स्वभाव का था. एक बार उस ने एक नर्स को जान से मारने की धमकी भी दी थी. हैरानी की बात यह थी कि दोनों ही जगहों पर सोनू का फोटो और पता नहीं मिल सका. इन सभी जगहों पर उसे सोनू शेख या सोनू राघव के नाम से जाना जाता था. यही उस का असली नाम था, यह भी किसी को पता नहीं था. घटना को घटे 2 दिन बीत गए, लेकिन संदिग्ध हत्यारे का कोई सुराग नहीं लग सका. पुलिस ने सोनू के फोटो की तलाश के लिए सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक का भी सहारा लिया. जिस मोबाइल नंबर का इस्तेमाल सोनू करता था, वह फर्जी आईडी पर लिया गया था. इस से उस का पता मिलने की संभावना भी खत्म हो चुकी थी.

सोनू की जो काल डिटेल्स मिली थी, उस में एक नंबर पर उस की सब से ज्यादा बातें हुई थीं. पुलिस ने उस नंबर पर बात की तो वह नंबर कर्नाटक की एक युवती रीतू (परिवर्तित नाम) का था. उस युवती ने बताया कि 2 महीने पहले मिसकाल के जरिए सोनू उस के संपर्क में आया था, तभी से उस से बातें होने लगी थीं. उस के बारे में वह ज्यादा कुछ नहीं जानती. युवती को उस ने अपना नाम सोनू शर्मा बताया था. इलेक्ट्रौनिक सर्विलांस से पुलिस को पता चला कि सोनू ने अपने मोबाइल में नए नंबर का सिम डाल लिया है. उस नंबर की लोकेशन के अनुसार, सोनू नोएडा से दिल्ली होते हुए पश्चिमी बंगाल चला गया था. उस की लोकेशन पुलिस को वहां के मुर्शिदाबाद जिले की मिल रही थी.

उस नंबर से उस ने दिल्ली के एक नंबर पर बात की थी. पुलिस उस नंबर तक पहुंची तो वह नंबर उस की मौसी का निकला. उस से पता चला कि सोनू की मां दिल्ली में ही रहती थी, लेकिन उस ने दूसरा विवाह कर लिया था, इसलिए उस का अपने परिवार से अब कोई ताल्लुक नहीं था. वह लोगों के घरों में साफसफाई का काम करती थी. उस से पुलिस को सोनू के घर का पता मिल गया. वह पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद का रहने वाला था. डीआईजी रमित शर्मा पूरे मामले पर नजर रखे हुए थे. एसएसपी डा. प्रीतिंदर सिंह से उन्होंने केस की प्रगति की पूरी जानकारी ली और एक पुलिस टीम पश्चिम बंगाल रवाना करने के आदेश दिए.

एसएसपी ने थानाप्रभारी धर्मेंद्र चौहान के नेतृत्व में 9 अप्रैल को एक पुलिस टीम वहां के लिए रवाना कर दी. इस पुलिस टीम में सबइंसपेक्टर पतनीश यादव, आलोक सिंह और कांस्टेबल अशोक यादव आदि शामिल थे. अगले दिन पुलिस मुर्शिदाबाद स्थित सोनू के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और अपने साथ नोएडा ले आई. पुलिस के लिए यकीनन यह बड़ी सफलता थी. नोएडा ला कर पुलिस ने उस से पूछताछ की तो राखी की हत्या की जो कहानी निकल कर सामने आई, वह इस प्रकार थी.

सोनू मूलरूप से पश्चिम बंगाल के जिला मुर्शिदाबाद निवासी जिल्ले का बेटा था. जिल्ले मेहनतमजदूरी किया करता था. कई सालों पहले सोनू नौकरी की तलाश में दिल्ली चला आया. कुछ दिन दिल्ली में रहने के बाद वह नोएडा आ गया और छोटेमोटे काम करने लगा. इस के बाद वह एक अस्पताल में वार्डबौय का काम करने लगा. समय के साथ वह काम सीख गया. कुछ अस्पतालों में नौकरी करने के बाद उस ने एक डाक्टर दंपत्ति के यहां भी नौकरी की. सोनू शातिर दिमाग युवक था. वह मुसलमान था, लेकिन किसी को वह अपना नाम सोनू शर्मा तो किसी को सोनू शेख तो किसी को सोनू राघव बताता था.

अपना असली नामपता वह किसी को नहीं बताता था. इस के पीछे वजह यह थी कि वह रातोरात अमीर बनने के सपने देखा करता था और किसी अच्छे मौके की तलाश में था. वह नोएडा में ही किराए का कमरा ले कर रहता था. सन 2015 में गुप्ता परिवार को जितार्थ के लिए मेल अटेंडैंट की जरूरत पड़ी तो राजकुमार ने सोनू के बारे में बताया. उन्होंने बेटे की देखभाल के लिए सोनू से बात की तो वह तैयार हो गया. इस के बाद वह उन के घर आने लगा. गुप्ता परिवार सोनू को परिवार के सदस्य की तरह मानता था. उसे 9 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन पर रखा गया था, लेकिन 2 महीने में ही संजय ने उस की तनख्वाह बढ़ा कर 11 हजार रुपए कर दी थी.

सोनू होशियार तो था ही. वह जानता था कि सब से पहले हर किसी का विश्वास जीतना चाहिए. इसलिए उस ने बातों और काम से पूरे परिवार का विश्वास जीत लिया. वह ड्यूटी के समय जितार्थ के पास ही रहता था. इस बीच या तो टीवी वह देखता था या राखी से बातें कर लिया करता था. शुरू में तो सोनू मन लगा कर काम करता रहा. लेकिन झूठ और दिखावे की चमक बहुत लंबे समय तक बरकरार नहीं रहती. समय के साथ राखी की समझ में आने लगा कि वह दिखावा ज्यादा करता है, काम कम. संजय सोनू को 11 हजार रुपए अपने बेटे की पूरी तरह से देखभाल के लिए दे रहे थे. धीरेधीरे सोनू देखभाल में लापरवाही करने लगा. इस की भी एक वजह थी. दरअसल सोनू इस काम से परेशान हो गया था. वह अमीर बनने के सपने देखता था, लेकिन सपने पूरे होने की उसे कोई राह नहीं दिख रही थी.

3 महीने पहले सोनू का संपर्क मोबाइल के जरिए गलत नंबर लग जाने से कोलकाता की रहने वाली रीतू से हो गया, जो कर्नाटक में रहती थी. वह उस से बातें करने लगा. वह उस से आधाआधा घंटे मोबाइल पर बातें करता रहता. राखी को उस की यह लापरवाही बहुत अखरती थी. शुरूशुरू में तो उन्होंने उसे कुछ नहीं कहा, लेकिन धीरेधीरे उन्होंने सोनू को टोकना शुरू कर दिया. उस का किसी ने पुलिस वेरीफिकेशन नहीं कराया था. संजय गुप्ता ने भी यही गलती की. इस बात से सोनू खुश था.

सोनू की लापरवाही से बेटे की जान भी जा सकती थी. एक दिन राखी ने लापरवाही पर सोनू को न सिर्फ जम कर फटकरा, बल्कि उसे थप्पड़ भी मार दिया. सोनू ने आगे से लापरवाही न करने का वादा किया. वह कभी धोखा दे कर भाग न जाए, इस के लिए राखी ने अपने मोबाइल में उस का फोटो खींच लिया. कुछ समय बाद राखी ने महसूस किया कि सोनू लापरवाही के मामले में बदला नहीं है. जब देखो तब वह मोबाइल पर बातें करने में लगा रहता है. जितार्थ को प्रतिदिन दवाइयां व इंजेक्शन देने होते थे. सोनू इस में भी लापरवाही करने लगा था. सोनू की इस लापरवाही पर राखी उसे खरीखोटी सुना कर थप्पड़ जड़ दिया करती थीं. इस पर सोनू खून का घूंट पी कर रह जाता था.

वक्त के साथ सोनू को राखी का डांटना अखरने लगा. थप्पड़ को ले कर उस के मन में नफरत पैदा होने लगी. सोनू शातिर तो था ही, वह राखी को सबक सिखाने के बारे में सोचने लगा. मन ही मन उस ने सोच लिया कि एक दिन वह राखी के घर को लूट लेगा. इस से उस के थप्पड़ का बदला भी पूरा हो जाएगा और वह मालामाल भी हो जाएगा. सोनू को इस बात का डर नहीं था कि वह पकड़ा जाएगा, क्योंकि उस का रिकौर्ड किसी के पास नहीं था. उस ने अपने मन के गुस्से को जाहिर नहीं होने दिया और आराम से रहता रहा. सोनू का जितार्थ की देखभाल से मन उचट गया था.

वह काम में लापरवाही करने के साथ ही रीतू से मोबाइल पर बातें भी किया करता था. इस पर राखी की सोनू से अकसर नोंकझोंक हो जाया करती थी. सोनू ने लूटने की योजना मन ही मन बना ली थी. इसलिए 1 अप्रैल को उस ने किराए का मकान भी खाली कर दिया. इस के बाद वह उचित मौके की तलाश में रहने लगा. 6 अप्रैल को भी सोनू ने लापरवाही की और मोबाइल पर बातें करने के चक्कर में जितार्थ के गले में कफ निकालने के लिए लगने वाली नली ठीक से नहीं लगाई. इसी बीच राखी कमरे में आ गईं. यह देख कर वह भड़क गईं, ‘‘तुम से कोई भी काम ठीक से नहीं किया जाता?’’

‘‘सौरी मैडम वह…’’ सोनू अपनी बात कह पाता, उस से पहले ही राखी ने उस के गाल पर तमाचा रसीद कर दिया. सोनू पहले ही खार खाए बैठा था. उस दिन वह आगबबूला हो उठा. उस का खून खौल गया. उस ने गालियां देते हुए राखी का हाथ झटक दिया, ‘‘तुम्हारे हाथ बहुत चलते हैं, आज मैं सब से पहले इन का चलना बंद किए देता हूं.’’

कह कर सोनू ने जितार्थ की दवाइयों की ट्रे में रखा सर्जिकल चाकू उठा लिया और राखी की गर्दन पर वार कर दिया. इस अप्रत्याशित हमले से राखी तड़प उठीं. उन्होंने विरोध किया, लेकिन सोनू नौजवान था. उस ने एक के बाद एक राखी पर कई वार कर दिए. राखी नीचे गिर कर तड़पने लगीं. जितार्थ यह सब देख रहा था. वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता था, लेकिन अंदर ही अंदर घुट रहा था. मां को बचाने के लिए उस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी तो हिलने डुलने से बिस्तर से नीचे गिर गया. सोनू ने इस की परवाह नहीं की. राखी के बचने की कोई गुंजाइश न रहे, उस ने और कई वार कर दिए. राखी की मौत हो गई.

इस के बाद सोनू ने राखी का मोबाइल, घड़ी, डीवीडी व सेफ में रखे करीब 10 हजार रुपए उठा कर एक बैग में रख लिए. सोनू जानता था कि राखी के मोबाइल में उस का फोटो है, इसलिए उस ने उसे भी ले लिया था. उस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी अपने पास रख लिया. हत्या के दौरान उस की कमीज पर थोड़ा खून लग गया था. लगभग साढ़े 12 बजे वह वहां से चला गया. उस ने अपना मोबाइल बंद कर दिया और चालू किया तो नया सिमकार्ड उस में डाल लिया. उस रात वह अपने दोस्त के घर रुका. इस से पहले उस ने सर्जिकल चाकू और कमीज को सेक्टर-41 में एक स्थान पर छिपा दिया था.

अगले दिन वह दिल्ली पहुंचा और कालका मेल से कोलकाता होते हुए मुर्शिदाबाद स्थित अपने घर चला गया. सोनू ने सोचा था कि उस का असली नामपता चूंकि किसी के पास नहीं है, इसलिए पुलिस पश्चिम बंगाल तक कभी नहीं पहुंच पाएगी. वह आराम से रह रहा था कि इसी बीच वह पुलिस की गिरफ्त में आ गया. पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त चाकू और खून से सनी कमीज बरामद कर ली थी. पूछताछ और जरूरी कागजी काररवाई कर के पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

गुप्ता परिवार ने सोनू की फितरत को समझने की भूल कर दी. उस का पुलिस वैरीफिकेशन न करा कर भी उन्होंने भूल की. सोनू जैसे लोगों पर विश्वास और गुस्सा दोनों ही खतरनाक साबित हुए. कथा लिखे जाने तक सोनू जेल में था. 28 मई को पुलिस ने उस के खिलाफ अदालत में आरोप पत्र भी दाखिल कर दिया था. Hindi Stories

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Hindi Stories: ‘मैं आज भी अब्बू की बेटी हूं’ – अंजुम आरा

Hindi Stories: अंजुम आरा देश की दूसरी मुसलिम आईपीएस महिला हैं, जो बड़ी बात है. पढि़ए अंजुम के आईपीएस बनने की कहानी उन्हीं की जुबानी  उस रोज मेरे घर में खुशी का माहौल था. मेरे वालिदैन बहुत खुश थे. कुछ इस तरह जैसे कोई नाविक अपनी कश्ती को उस के मुकाम पर पहुंचा कर खुश होता है. मैं भी बहुत खुश थी. खुशी स्वाभाविक ही थी, क्योंकि मुझे मेरी मेहनत का फल मिल गया था और अब्बूअम्मी को अपनी अच्छी परवरिश का. मेरी सफलता का पता चलने के साथ ही नातेरिश्तेदारों के फोन आने शुरू हो गए थे. आसपास के कई लोग ऐसे भी थे, जिन्हें मेरे बारे में पता चल गया था और वे मुबारकबाद देने के लिए सीधे घर चले आए थे.

यूं तो जिंदगी के सफर में छोटीबड़ी खुशियों की लहरें आतीजाती रहती हैं, लेकिन उस रोज उन लहरों की ऊंचाई काफी ऊंची थी. मेरे अब्बू अयूब शेख का चेहरा खुशी से दमक रहा था. उन की आंखों की चमक कुछ जुदाजुदा सी थी. उन के लहजे में गुरूर के बजाय एक पिता के फर्ज का वजन नजर आ रहा था. वह खुद ही लोगों को बता रहे थे कि मेरी बेटी अंजुम आईपीएस बन गई है. यूं भी कामयाबी का यह गुल उन की मेहनत और हौसलाअफजाई की शाख पर ही खिला था.

यकीनन अब्बू के लिए फख्र की बात थी, क्योंकि हमारी पढ़ाई के दरमियान उन्होंने बहुत सी ऐसी बातें सुनी थीं, जो बंदिशें लगाने वाली थीं. लोग खराब जमाने की दुहाई देते थे. कुछ लोगों ने उन्हें उकसाया भी था कि बेटियों को इतना पढ़ा कर कौन से आसमान की सैर कराओगे. लेकिन मेरे अब्बू दकियानूसी सोच वाले नहीं थे. उन्होंने बेटी समझ कर हमारी पढ़ाई और परवरिश में कभी कोई भेदभाव नहीं किया था. वे जानते थे कि दुनिया की किसी भी किताब में यह नहीं लिखा है कि लड़कियों को ऊंची तालीम नहीं दिलाई जा सकती. फिर भी हमारे धर्म में कई लोग बेटियों को ऊंची तालीम दिलाने में परहेज करते हैं, ऐसा हम सुनते आए थे. लेकिन अब्बू ने इस की परवाह नहीं की और हमें ऊंची तालीम दिलाई.

हम ने भी उन की सोच को दिलोदिमाग में गहराई तक बैठा लिया था. पढ़ाई से जुनून की हदों के पार जा कर हम ने खूब मेहनत की थी. यही वजह थी कि जब मेरा रिजल्ट आया था तो मैं ने सब से पहले यह खुशी अब्बू को ही सुनाई थी. मैं ने उन्हें इतना खुश पहले कभी नहीं देखा था. वह पुरानी बातों में जान फूंक कर मेरी अम्मी मोमिना से कह उठे थे, ‘‘देखा, मैं कहता था न कि एक दिन अंजुम हमारा नाम रौशन करेगी. अरे आईपीएस बन गई वह.’’ उन की बात पर अम्मी के दोनों हाथ खुदबखुद इबादत की मुद्रा में उठ गए थे.

अब्बू और अम्मी दोनों के चेहरों पर साफसाफ लिखा था कि उन्हें मुझ पर नाज है. ऐसी खुशियों का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है. हमारे परिवार में अम्मीअब्बू के अलावा हम चार भाई बहन थे. मेरे अलावा सब से बड़े भाई परवेज शेख, 2 बहनें सलमा और रेशमा. मैं भाई के बाद दूसरे नंबर पर आती थी, जबकि सब से छोटी रेशमा थी. मेरे भाई इंजीनियर थे. उन की तालीम धीरेधीरे कमाई का जरिया भी बन गई थी. जबकि सलमा एमबीए और रेशमा एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही थी. हमारे वालिद ने हमें न सिर्फ आजादी से पढ़ने दिया था, बल्कि घर में पढ़ाई का माहौल भी दिया था. बेटियों के साथ जरा भी सौतेला व्यवहार नहीं किया. सचमुच इस मामले में हम खुशनसीब थे.

बेटियों के मामले में वालिदैन का ऐसा रुख खास मायने रखता है. हमारे अब्बू बेटियों को न तो बेटों से जुदा मानते थे और न ही पुरानी सोच के वारिस बन कर हमारी पहरेदारी करते थे. अब्बू तालीम की ताकत को बखूबी जानते थे. वह अकसर कहते थे, ‘‘एक बात हमेशा जेहन में रखो, जो शख्स तालीम की रोशनी में नहाया हो उसे जिंदगी की हर फिक्र से आजाद रहना चाहिए.’’ साथ ही वह ताकीद भी किया करते थे, ‘‘तालीम की रोशनी वाले चिराग को हासिल करने के लिए सब्र का इम्तिहान दे कर बहुत मेहनत करनी पड़ती है.’’

मेरा ख्वाब सिविल सर्विसेज में जाने का था. लंबे इंतजार के बाद 2011 में मेरा यह ख्वाब पूरा हो गया था. सिविल सर्विसेज एग्जामिनेशन का रिजल्ट आने के साथ ही घर में खुशियां पसर गई थीं. हमारी खुशियां रिजल्ट वाले दिन और रात तक ही नहीं सिमटी थीं, बल्कि उन में अगले दिन तब और भी इजाफा हो गया, जब मीडिया में खबरें आईं. खबरों में बताया गया कि अंजुम आरा देश की दूसरी मुसलिम लड़की है, जो आईपीएस बनी है. मैं ने कभी नहीं सोचा था कि एक दिन मेरे लिए खुशियों की इतनी बड़ी सौगात ले कर भी आएगा. कई दिनों तक मुबारकबाद का सिलसिला चलता रहा. कोई घर आता तो अब्बू हमारी तारीफें करते नहीं थकते. अम्मी भी ऐसा ही करतीं. दरअसल मेरे परिवार के इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे भी एक कहानी थी.

मेरे अब्बू इंजीनियर थे. यह नौकरी उन्होंने बड़ी मुश्किल से पाई थी. 1992 में उन की तैनाती उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में हुई. यह जिला लकड़ी के सामान बनाने और उस पर नक्काशी करने के लिए खास माना जाता है. अब्बू गंगोह कस्बे में रहते थे. मेरा जन्म भी वहीं हुआ. मेरी पढ़ाई यहीं हुई. हम 4 भाईबहन थे. परिवार का खर्च चलाने के लिए अब्बू को बहुत काम करना होता था. ड्यूटी से फारिग हो कर वह हमें पढ़ाने के लिए बैठ जाया करते थे. दरअसल वह बचपन के उसी मुकाम पर हमारी बुनियाद को मजबूत कर देना चाहते थे. सहारनपुर के शिशु लोक विद्यामंदिर में प्राथमिक पढ़ाई के बाद मैं ने आर्य कन्या इंटर कालेज से हाईस्कूल व एचआर इंटर कालेज से इंटर तक की पढ़ाई की.

2006 में अब्बू का तबादला लखनऊ हो गया तो वह परिवार के साथ वहीं शिफ्ट हो गए. भाई वहां इंजीनियर की पढ़ाई करने लगा. मैं ने बीटेक की पढ़ाई के लिए अच्छे कालेज में दाखिला ले कर पढ़ाई शुरू कर दी थी. बहनें भी पढ़ रही थीं. सही कहूं तो हमारी पढ़ाई के मामले में हमारे वालिदैन ने कभी कोई समझौता नहीं किया. हमारा ध्यान पढ़ाई पर ही रहे, इसलिए बहुत से मसलों से हमें दूर ही रखा जाता था. लखनऊ की आबोहवा सहारनपुर से जुदा थी. तहजीब का यह शहर हमें बहुत पसंद आया. चूंकि हम बाहरी माहौल से ज्यादा वास्ता नहीं रखते थे, इसलिए हमारा वहां भी मन लग गया. कालेज, घर, भाईबहन इसी में दिन और रात बीत जाते थे.

लेकिन इस का मतलब यह नहीं था कि हम बाहरी दुनिया से कतई अलग हो कर कैद से हो गए थे. मुझे भी आम लड़कियों की तरह घूमनाफिरना, शौपिंग करना पसंद था. इस मामले में अब्बू से इजाजत लेने के लिए हम भाईबहन एक हो जाया करते थे. हमारा ताल्लुक मुसलिम धर्म से था. लिहाजा घर में उस का गहराई से पालन किया जाता था. हम भी उस से रूबरू थे. हमें अदब, फितरत, आदतें, लिबास, इबादत, हुक्म, हिम्मत, फर्ज, तारीफ, इकरार, हद और पाकीजगी की वे बातें समझाई जाती थीं, जिन का जिक्र मजहबी किताबों में होता था. बड़ों को इज्जत दें और अदब से पेश आएं, इस के साथ ही नेकनीयत का सबक भी दिया था. सही मायने में यह मुकम्मल परवरिश थी.

अम्मीअब्बू की तरह हम भाईबहन भी अमन और इबादत पसंद थे. मुझे याद नहीं पड़ता कि अब्बू का कभी किसी से कोई झगड़ा वगैरह हुआ हो. सब का अपनेअपने नजरिए से जिंदगी गुजारने का तरीका होता है, फिर इंसान की अपनी फितरत भी होती है. बड़ी हो कर जब मैं जमाने को थोड़ा जाननेसमझने लगी तो बखूबी समझ में आ गया था कि बेटियों के मामले में भरोसा व चट्टान जैसी मजबूत सोच को कायम रखना बड़ा मुश्किल होता है. वक्तबेवक्त आप को कुछ बातें बेवजह न चाहते हुए भी परेशान करती हैं. अब्बू के साथ भी कुछकुछ ऐसा होता था.

जब हमारी तालीम हो रही थी तो बहुत लोगों को यह बात शायद कांटे की तरह चुभती थी. कई मर्तबा ऐसा भी हुआ, जब अब्बू के साथ टोकाटाकी की गई. लेकिन हमें अपने अब्बू पर फख्र था, जो जमाने से बेपरवाह हो कर भी हमारे ऊपर भरोसा करते थे. वह इस सोच के कतई शिकार नहीं थे कि बेटियों को पढ़ाई से महरूम रखा जाए. वह बेटेबेटियों को बराबर का हक देना चाहते थे. उन की आंखों में बेटियों की कामयाबी के सुनहरे ख्वाब तैरते थे.

सच कहूं तो अब्बू ने अपने दिलोदिमाग में हमारी कामयाबी के ख्वाबों की जैसे एक खूबसूरत सी मीनार बनाई हुई थी. हम भी किसी सूरत में उस मीनार को गिराना नहीं चाहते थे. जब हम भाईबहन आपस में बातें किया करते तो यह भी चर्चा होती थी कि हमें अपने लिए बेहतर मुकाम बनाना ही है. और यह अच्छी तालीम से ही संभव था. इसलिए हम लोग अपना वक्त जाया नहीं करते थे. हमारा ज्यादातर वक्त पढ़ाई में ही बीतता था. हमारा घर किसी जन्नत से कम नहीं था. भाईबहनों अब्बूअम्मी के साथ गुजारे लम्हें कौन भूलना चाहता है. वैसे भी खूबसूरत यादों की उम्र बहुत लंबी होती है. घर में नमाज होती थी. रमजान के पाक महीने में इबादतों का दौर चलता था.

कई मर्तबा ऐसा भी हुआ, जब हम अब्बू के साथ उन के पुश्तैनी गांव कम्हरिया गए. तब हम काफी छोटे थे. यह गांव लखनऊ से दूर आजमगढ़ जिले में था. गांव साधारण था और लोग भी. हम शहर में रहते थे लिहाजा गांव के बच्चों से हमारी रंगत थोड़ा जुदा थी. हमारे दादू इस्माइल शेख और दादी सितारूनिशां गांव में ही रहते थे. हां, बीचबीच में वे हम लोगों के पास भी आया करते थे. दादू को गांव में इज्जत की नजरों से देखा जाता था. गांव की हरियाली, बागबगीचे, खेतखलिहान बहुत कुछ अच्छा तो था, लेकिन हमारा मन वहां कम ही लगता था. अब्बू गांव में घुमाने ले जाते थे तो एक 2-3 कमरों के बरामदे वाले स्कूल की तरफ अंगुली उठा कर बताते थे कि कभी तख्तीबस्ते के साथ उन्होंने भी यहां तालीम ली थी.

तख्ती, लकड़ी की कलम व स्लेट चौक से लिखने जैसी बातें वह बताते थे. राइटिंग को सुधारने का अभ्यास भी उन्होंने इन्हीं चीजों से किया था. हमें यह बेहद रोमांचक लगता था, क्योंकि अपने जमाने में हम ने ये चीजें नहीं देखी थीं. वह बताते थे कि उन्होंने ढिबरी और लालटेन की टिमटिमाती रोशनी में पढ़ाई की थी. अब्बू यह भी बताते थे कि उन्होंने खेतों में काम किया है. पढ़ाई के साथ वह किसानी का काम करते थे. तब हमें यह सब रोमांचक किस्सा ही लगता था. क्योंकि अपनी पैदाइस के बाद हम ने अब्बू को नौकरी करते ही  पाया था. इसलिए हमें उन की नौकरी की बदौलत थोड़ी बेहतर परवरिश मिल गई थी.

गांव के अन्य बच्चों, उन के रहनसहन व लिबास को देख कर हमें अपनी अहमियत का अंदाजा भी हो जाता था. उम्र बढ़ने के साथ ही समझ आ गया था कि अब्बू हमें ऐसी बातें इसलिए बताते थे कि तालीम को ले कर हमारे हौंसले और भी मजबूत हो जाएं. हम उस की अहमियत को जान सकें. वह बताना चाहते थे कि छोटे से गांव से निकल कर उन्होंने किस तरह संघर्ष किया था. अब्बू दादू और दादी को बहुत चाहते थे. उन्होंने उन की जिंदगी में तालीम का चिराग रोशन न किया होता तो शायद कुछ भी मुमकिन नहीं होता. अब्बू की काबिलियत और परिवार को देख कर दादू की आंखों में चमक आ जाती थी. शयद ऐसी बातें हम भाईबहनों के दिमाग में बैठ गई थीं कि हमारे अब्बू इतना कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं.

समय के साथ भाई की इंजीनियरिंग की पढ़ाई कंपलीट हो गई थी. मैं ने बीटेक में फर्स्ट डिवीजन हासिल की थी. मेरी ख्वाहिश थी कि सिविल सर्विस में जाऊं. इस के पीछे एक वजह यह भी थी कि मुझे ज्यादा से ज्यादा लोगों को उन का हक दिलाने और उन की मदद करने का मौका मिल सके. ऐसी ख्वाहिश कभी मेरे दिल में पैदा नहीं हुई थी कि कोई ऐसा पेशा चुना जाए, जिस में खूब पैसा मिले. मैं ने सुना था कि दौलत की चकाचौंध इंसान को कई बार गुमराह भी कर देती है. मैं ने पुलिस सेवा में जाने के अपने इरादे परिवार में जाहिर किए तो सभी को खुशी हुई. अब्बू ने मुझे समझाते हुए कहा, ‘‘मुझे तुम पर नाज है अंजुम, जो ऐसा सोचती हो, लेकिन एक बात का खयाल रखना, इस के लिए तुम्हें मेहनत करनी होगी.’’

‘‘वह मैं कर लूंगी.’’ मैं ने अब्बू को आश्वस्त किया. पढ़ाई के मामले में मैं बचपन से ही अव्वल थी. हाईस्कूल और इंटर भी मैं ने  फर्स्ट डिवीजन से पास किया था. मैं जानती थी कि यह इतना आसान नहीं है. लेकिन परिवार का सपोर्ट था और मैं पढ़ाई के लिए दिमाग को खाली रखती थी. मैं ने कोचिंग लेनी शुरू की.

उस दौरान मेरे दिमाग में देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी का किरदार भी होता था. मैं कामयाब लड़कियों के बारे में सोचती थी कि उन्होंने भी आखिर अपनी मेहनत से ऊंचे मुकाम पाए थे. मैं ने दिनरात एक कर के तैयारी की थी. संघ लोक सेवा आयोग ने एग्जाम कराया. मेरी मेहनत ने गुल खिलाया. उसी का तकाजा था कि मैं ने मनचाहा मुकाम हासिल कर लिया. इंडियन पुलिस सर्विस (आईपीएस) में चयन के बाद मैं ट्रेनिंग के लिए चली गई. एक साल तक ट्रेनिंग चली, ट्रेनिंग लगभग आखिरी मुकाम तक पहुंची तो मेरे लिए रिश्ते की तलाश शुरू हुई. मुझे मणिपुर में पोस्टिंग मिली. दूसरी तरफ मेरे लिए डा. यूनुस को पसंद कर लिया गया. यूनुस खुद भी आईएएस अधिकारी थे और पंजाब प्रांत के रहने वाले थे. रिश्ता सभी को पसंद था. मैं ने भी उन्हें पसंद किया.

शादी की बातों का सिलसिला चला और बहुत जल्द निकाह की तारीख भी मुकर्रर कर दी गई. मैं छुट्टी ले कर घर आई. घर में खुशियों का माहौल था. जम कर खरीदारी हुई. खुशनुमा माहौल के दरमियान 26 मई, 2013 को मैं और डा. यूनुस मुस्लिम रस्मोरिवाज से शौहरबीवी के रिश्ते में बंध गए. यूनुस हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में अतिरिक्त उपायुक्त (एडीसी) थे. बाद में मेरी पोस्टिंग भी शिमला में बतौर असिस्टेंट सुपरिटेंडेट औफ पुलिस (एएसपी) हो गई. इस दरमियान हमारी खुशहाल जिंदगी में 7 मार्च, 2014 को बेटा अरहान आ गया. हम दोनों मिल कर अरहान की देखभाल करते हैं. जिंदगी बिना शिकवाशिकायत के पुरसुकून है. मेरी बेटी होगी तो मैं उसे भी बेटे जैसी परवरिश दे कर ऊंची तालीम दूंगी.

मेरी जिंदगी का सितारा तालीम से चमका और यह मुमकिन हुआ मेरे वालिदैन की सोच और विश्वास से. मनचाही तालीम और मेहनत इंसान को किसी भी मुकाम पर पहुंचा सकती है. मैं अच्छी तरह समझती हूं कि तालीम की रोशनी कभी जाया नहीं जाती. आज सब अब्बू की मिसाल देते हैं कि ‘अयूब तुम ने अपनी बेटियों को कामयाब बना दिया.’ मेरी एक बहन सलमा एमबीए कर रही है, जबकि सब से छोटी रेशमा एमबीबीएस के आखिरी दौर में है.

पुलिस की नौकरी में मैं अपने फर्ज को ले कर हमेशा सजग रहती हूं. ड्यूटी और परिवार के बीच तालमेल बैठाने में थोड़ी मुश्किल जरूर आती है, लेकिन ऐसी सभी मुश्किलें उन तकलीफों से बहुत कम हैं, जो हमारे लिए वालिदैन ने कभी देखी थीं. मेरे पास कोई फरियादी आता है तो उस की बात गहराई से सुनती हूं. फिर कोशिश करती हूं कि उसे राहत मिले और मसला हल हो जाए. क्योंकि पुलिस के पास कोई उसी सूरत में आता है, जब वह निराश होता है. वह चाहता है कि उस की समस्या का समाधान हो.

व्यावहारिक तौर पर फौरी राहत पहुंचाना भी हर पुलिसकर्मी का फर्ज है. सोशल प्रोग्राम होते हैं तो मैं उन में लोगों को समझाती हूं कि तालीम के मामले में वह बेटाबेटी में फर्क न करें. बेटियों को आगे बढ़ने का मौका दें. लोग उन्हें इज्जत दें. यह हकीकत है कि मेरे वालिदैन ने भरोसा कर के मुझे नहीं पढ़ाया होता तो इस मुकाम पर कभी नहीं पहुंचती. Best Stories

—कथा अंजुम आरा से बातचीत पर आधारित

Film: सलमान खान का नया रूप – बजरंगी भाईजान

Film: बड़े फिल्म स्टार तो कई हैं, लेकिन सलमान खान की बात ही अलग है, जब भी उन की कोई नई फिल्म आती है तो दर्शक उत्साह से भर उठते हैं. ईद पर आई उन की फिल्म ‘बजरंगी भाईजान’ को ले कर वह खुद भी उत्साहित हैं और उन के चाहने वाले भी…

शाहरुख खान, आमिर खान, रितिक रोशन, अजय देवगन, अक्षय कुमार और रणबीर कपूर सभी बड़े फिल्मी सितारे हैं. इन सभी की फिल्मों ने 100-100 करोड़ से ज्यादा कमाए हैं लेकिन लोगों में जो क्रेज सलमान खान का है, वह किसी का नहीं. इस मामले में बौलीवुड के बादशाह कहे जाने वाले शाहरुख खान भी कहीं पीछे छूट जाते हैं. इस की वजह शायद यह है कि जो इंसानियत, सहृदयता, संस्कार, मासूमियत, दूसरों की मदद करने का जज्बा, सुगठित बदन, जबरदस्त अभिनय क्षमता और खूबसूरती सलमान में है, वैसा पूरा पैकेज किसी दूसरे हीरो में नजर नहीं आता. इस से भी बड़ी बात है उन की स्क्रिप्ट की समझ, जो शायद उन्होंने अपने पिता सलीम खान से सीखी, जो फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गज लेखक रहे हैं.

शायद इन्हीं खूबियों की वजह से सलमान खान की फिल्म ‘वांटेड’ के बाद लगभग सभी फिल्मों ने सौ करोड़ से ज्यादा कमाए. उन की 2009 में आई ‘वांटेड’, 2010 में आई ‘दबंग’ 2011 में आई ‘रेडी’ और ‘बौडीगार्ड’ ने बहुत मोटी कमाई की. ये सभी उन की सुपरहिट फिल्में थीं.

आजकल बड़े सितारों की फिल्मों का 100-200 और 300 करोड़ क्लब में शामिल होने का क्रेज सा बन गया है. सलमान की लगातार हिट हुई फिल्मों की बात करें तो उन की ‘एक था टाइगर’ ने 198 करोड़, ‘दबंग’ ने 145 करोड़, ‘दबंग-2’ ने 158 करोड़, ‘बौडीगार्ड’ ने 142 करोड़, ‘रेडी’ ने 120 करोड़, ‘जय हो’ ने 111 करोड़ और ‘किक’ ने 233 करोड़ रुपए कमाए. ‘किक’ उन की सर्वाधिक कमाई करने वाली फिल्म थी. इस मामले में शाहरुख खान की ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ 226 करोड़ और ‘हैप्पी न्यू ईयर’ भी 203 करोड़ पर सिमट कर रह गई थीं. हां, आमिर खान की ‘धूम-3’ ने 280 करोड़ और ‘पीके’ ने 339 करोड़ की कमाई कर के जरूर सलमान खान से बाजी मारी.

अब जब सलमान की ‘बजरंगी भाईजान’ रिलीज हो गई है तो उन की चाहत है कि उन की यह फिल्म ‘पीके’ की तरह 300 करोड़ क्लब में शामिल हो. दर्शकों ने जिस तरह फिल्म को हाथोंहाथ लिया है, उस से यह असंभव भी नहीं लगता. निस्संदेह ‘बजरंगी भाईजान’ बहुत अच्छी फिल्म है. इस फिल्म के डाइरैक्टर कबीर खान और सलमान खान इस से पहले भी फिल्म ‘एक था टाइगर’ में साथसाथ काम करचुके हैं, जो इन दोनों की सुपरहिट फिल्म थी. वहीं से दोनों की कैमिस्ट्री भी बनी.

कबीर खान की बात करें तो डाक्युमेंट्री फिल्मों की दुनिया से व्यावसायिक सिनेमा में आए कबीर खान ‘एक था टाइगर’ के अलावा ‘काबुल एक्सप्रेस’ और ‘न्यूयार्क’ फिल्में बना चुके हैं जो हिट फिल्में थीं. कबीर खान पहले यशराज फिल्म्स के लिए काम कर रहे थे. स्वतंत्र रूप से यह उन की पहली फिल्म है, जिस के निर्माता खुद सलमान खान हैं. फिल्म का टाइटल भी कबीर खान ने ही फाइनल किया है. इस फिल्म के लेखक हैं दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुप्रसिद्ध पटकथा लेखक बी. विजेंद्र प्रसाद.

बी. विजेंद्र प्रसाद दक्षिण भारतीय फिल्मों के सुप्रसिद्ध निर्देशक राजमौली के पिता हैं, जिन की फिल्म ‘बाहुबली’ ने पिछले दिनों उत्तर और दक्षिण भारत में ही नहीं, विदेशों तक में खूब धूम मचाई. यह शायद पहली ऐसी भारतीय फिल्म थी जिस का पहले दिन का ही कलेक्शन 60 करोड़ रहा. उम्मीद है यह फिल्म 500 करोड़ तक कमाएगी. यहां यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठता है कि जब फिल्म की कहानी इतनी अच्छी थी तो बी. विजेंद्र प्रसाद ने इसे अपने बेटे राजमौली को क्यों नहीं दिया? दरअसल इस के पीछे भी एक कहानी है.

असल में ‘बजरंगी भाईजान’ की कहानी कुछ इस तरह की थी कि विजेंद्र प्रसाद चाहते थे कि यह फिल्म पहले हिंदी में बने, इस के बाद तमिल या तेलुगू में. विजेंद्र प्रसाद को लग रहा था कि इस फिल्म में हीरो की भूमिका सलमान खान ज्यादा बेहतर ढंग से निभा सकते हैं, इसलिए वह पहले सलमान खान से ही मिले. सलमान को कहानी बहुत पसंद आई क्योंकि इस में हीरो की भूमिका रियल करेक्टर जैसी थी. वह इस कहानी को मुंहमांगी कीमत पर खरीदने को तैयार हो गए, लेकिन विजेंद्र प्रसाद ने शर्त रखी कि वह इस फिल्म में सहनिर्माता बनना चाहते हैं.

यह बात सलमान को मंजूर नहीं थी, सो बात नहीं बनी. इस के बाद विजेंद्र प्रसाद राकेश रोशन से मिले. कहानी उन्हें भी पसंद आई पर बात सहनिर्माता बनने पर अटक गई. अलबत्ता राकेश रोशन कहानी की पूरी कीमत चुकाने को तैयार थे. दोनों जगह बात न बनती देख अंतत: विजेंद्र प्रसाद ने फैसला किया कि जब कहानी ही देनी है तो क्यों न सलमान खान को दी जाए जो कहानी के नायक के किरदार के हिसाब से एकदम फिट हैं. और इस तरह विजेंद्र प्रसाद की कहानी सलमान के हाथों में आ गई. चूंकि स्क्रिप्ट दमदार थी इसलिए सलमान ने इसे खुद ही बनाने का फैसला किया. इस के लिए उन्होंने बतौर डाइरैक्टर चुनाव किया कबीर खान का, जो ‘एक था टाइगर’ के समय से उन के अच्छे दोस्त बन गए थे.

फिल्म की स्टार कास्ट में उन्होंने करीना कपूर, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, 6 वर्षीय बच्ची हर्षाली मल्होत्रा, नजीम खान, अलीकुली मिर्जा, दीप्ति नवल, ओम पुरी और शरत सक्सेना का चुनाव किया. फिल्म में अदनान सामी की एक कव्वाली के अलावा उन्होंने उन का स्पैशल अपीयरेंस भी रखा. वैसे फिल्म की बात करें तो इस की पूरी कहानी सलमान खान यानी (फिल्म में) पवन कुमार  चतुर्वेदी उर्फ बजरंगी और हर्षाली मल्होत्रा यानी मुन्नी के ही इर्दगिर्द घूमती है. यह एक ऐसे साधारण युवक की कहानी है जो अजीब हालात में फंस कर असाधारण काम कर गुजरता है. हर्षाली मल्होत्रा यानी मुन्नी इस फिल्म का अहम किरदार है. फिल्म में यह ऐसी अनपढ़ पाकिस्तानी गूंगी बच्ची है जो भारत में अपनी मां से बिछुड़ गई है. उस के पास कोई पहचान भी नहीं है.

सलमान खान यानी पवन कुमार चतुर्वेदी मुन्नी को कैसे उस के घर वालों तक पहुंचाते हैं, यही फिल्म की कहानी है. मानवीय  रिश्तों वाली इस कहानी को इतनी खूबसूरती से गढ़ा गया है कि ज्यादातर बातें हास्यरस की चाशनी में लपेट कर कही गई हैं ताकि दर्शक बोर न हो और बात सीधे उस के दिल तक जाए. भारत-पाकिस्तान के रिश्ते राजनैतिक स्तर पर भले ही कैसे भी हों, आतंकवाद के समर्थक भले ही भारत में तबाही मचाने के मंसूबे बांधते हों, लेकिन हकीकत यह है कि आम हिंदुस्तानी या आम पाकिस्तानी के मन में किसी तरह का वैरभाव नहीं है.

वैसे भी मेहनत से रोजीरोटी का जुगाड़ करने वालों के पास बिना वजह की दुश्मनी का समय नहीं होता. न ही वे एकदूसरे का बुरा सोचते हैं. उन के बीच इंसानियत का रिश्ता हमेशा कायम रहता है. ‘बजरंगी भाईजान’ में भी इस हकीकत को समझाने का प्रयास किया गया है. इस फिल्म के टाइटल ‘बजरंगी भाईजान’ को ले कर भी खूब होहल्ला मचा. कई शहरों में इस फिल्म का प्रदर्शन रोकने के लिए अदालतों में अर्जियां दी गईं. कई जगह सुनवाई भी हुई. यह सोचेसमझे या देखे बिना ही कि फिल्म में क्या है? बात सिर्फ इतनी सी कि बजरंगी के साथ भाईजान क्यों जोड़ा गया.

जैसे बजरंगी के सारे कौपीराइट हिंदुओं के पास हों और भाईजान मुस्लिमों की प्रौपर्टी. मसलन जैसे मुट्ठी भर कुछ लोग भाईजान जैसे मीठे शब्द, जो शब्द नहीं बल्कि एक भावनात्मक रिश्ता है, को भी मजहबी रंग में रंग देना चाहते हों तो कुछ बजरंगी (हनुमानजी) नाम रखने पर भी पाबंदी लगा देना चाहते हों. यह अलग बात है कि 2-4 बजरंगी हर गांव, कस्बे और शहर में मिल जाएंगे. और भाईजान तो हिंदू और मुस्लिम दोनों में चलता है. वैसे यह सब इसलिए बेकार की बातें हैं क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही निर्देश दे रखा है कि सेंसर द्वारा पास की गई फिल्म का प्रदर्शन रोकने की अपीलों पर ध्यान न दिया जाए.

बहरहाल, तमाम तरह की अफवाहों और विवादों के बावजूद बजरंगी भाईजान पूरी भव्यता से प्रदर्शित हुई और सफल भी रही. लेकिन इस फिल्म का एक भावनात्मक पहलू और भी है, जिसे शायद ही कोई जानता हो. दरअसल, सलमान खान अपने पिता का न केवल बहुत ज्यादा सम्मान करते हैं, बल्कि उन से घबराते भी हैं. उन से पूछे बिना वह कोई भी बड़ा काम नहीं करते. सर्वविदित है कि सलमान के पिता सलीम खान विख्यात पटकथा लेखक रहे हैं, जिन्होंने ‘शोले’ जैसी कालजयी फिल्म लिखी. ऐसे में पटकथा पर उन की गहरी पैठ होना स्वाभाविक ही है. इसी के मद्देनजर सलमान उन से अपनी फिल्म की पटकथाओं पर उन की राय जरूर लेते हैं. इतना ही नहीं, फिल्म बन जाने के बाद प्रीमियर से पहले उन्हें दिखाते भी हैं ताकि उन की राय जानी जा सके.

जब ‘बजरंगी भाईजान’ बन गई तो कबीर खान और सलमान ने घर पर यह फिल्म सलीम साहब को दिखाई. फिल्म देखने के बाद कबीर खान ने सलीम साहब से उन की राय पूछी तो वह बोले, ‘‘यह फिल्म सलमान के 25 साल के कैरियर की सब से बेहतरीन फिल्म है. लेकिन फिल्म के अंत में सलमान और करीना पर जो गाना फिल्माया गया है, वह अनावश्यक है. इस गाने से फिल्म का प्रभाव खत्म हो रहा है.’’ बहरहाल, सलीम साहब की राय मान कर कबीर खान और सलमान ने वह गाना हटा दिया. अब यह फिल्म 2 घंटे 40 मिनट की रह गई है.

‘बजरंगी भाईजान’ भले ही दिल्ली बेस्ड है, लेकिन इसे पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और कश्मीर में फिल्माया गया है. भारत-पाक का बौर्डर होने की वजह से सब से ज्यादा शूटिंग राजस्थान में हुई. फिल्म में सब से खूबसूरत लोकेशन कश्मीर की हैं. यहां गुलमर्ग में ऐसी जगह शूटिंग की गई है, जहां आज तक कोई फिल्मकार नहीं गया था. साथ ही पहलगाम और सोनमर्ग में भी कई सीन फिल्माए गए हैं. फिल्म के लिए अलगअलग जगह शूटिंग इसलिए की गई क्योंकि फिल्म में सलमान बच्ची को उस के घर पहुंचाने के लिए उसे ले कर जगहजगह घूमते हैं.

सलमान खान को दर्शक एक्शन हीरो के रूप में देखना चाहते हैं, लेकिन बजरंगी भाईजान की कहानी एकदम अलग तरह की है, दिल को छू जाने वाली. करीब 2 घंटे 40 मिनट की इस फिल्म में दर्शक आखिर तक बंधा रहता है तो इस की वजह सलमान का रियल कैरेक्टर जैसा अभिनय है. फिल्म के निर्देशक कबीर खान ने भी अपने निर्देशन से कहानी पर कुछ ऐसी पकड़ बनाए रखी है कि पूरी फिल्म में हर वर्ग के दर्शक कहानी के किरदारों से बखूबी बंधे रहते हैं. दरअसल, पाकिस्तान के छोटे से गांव की रहने वाली सईदा (हर्षाली मल्होत्रा) जन्म से गूंगी है. उस के पिता पाकिस्तानी आर्मी में हैं और मां घरेलू महिला. सईदा बोल तो कुछ नहीं सकती लेकिन समझती सब कुछ है.

गांव के कुछ लोग सईदा के अब्बूअम्मी को बताते हैं कि अगर वह दिल्ली जा कर निजामुद्दीन औलिया की दरगाह पर सजदा करे तो उन की बच्ची की जुबान लौट सकती है. परेशानी यह है कि सईदा के अब्बू को पाक आर्मी में होने की वजह से भारत का वीजा नहीं मिल सकता. ऐसी स्थिति में सईदा की अम्मी बेटी को ले कर समझौता एक्सप्रेस से दिल्ली आती है. दरगाह पर सजदा करने के बाद जब वह समझौता एक्सप्रेस से वापस लौटती है तो जरा सी देर के लिए एक सुनसान जगह पर ट्रेन रुकती है. इसी दौरान सईदा मां को छोड़ कर ट्रेन से उतर जाती है. तभी टे्रन चल पड़ती है और सईदा वहीं खड़ी रह जाती है.

सईदा की मां सीमा पार जा कर अपनी बेटी को ढूंढने के लिए भारत आना चाहती है, पर दो देशों की सीमा आड़े आ जाती है जिस की वजह से वह भारत नहीं आ पाती. दूसरी ओर सईदा एक मालगाड़ी में सवार हो कर कुरुक्षेत्र जा पहुंचती है. कुरुक्षेत्र में हनुमान जयंती पर विशाल जुलूस निकल रहा है. इस जुलूस में बजरंगबली के पक्के भक्त पवन कुमार चतुर्वेदी उर्फ बजरंगी (सलमान खान) भी शामिल हैं. इसी जुलूस के दौरान सईदा की मुलाकात बजरंगी से होती है लेकिन गूंगी और अनपढ़ होने की वजह से वह अपने बारे में कुछ भी नहीं बता पाती.

बजरंगी सईदा को ले कर स्थानीय पुलिस स्टेशन में जाता है, लेकिन यह जान कर कि बच्ची गूंगी और अनपढ़ है, पुलिस बजरंगी को हिदायत दे कर वापस भेज देती है. बजरंगी अजीबोगरीब स्थिति में फंस जाता है. उसे न बच्ची का नाम पता होता है, न धर्म और न यह कि वह कहां की रहने वाली है. वह कई तरह के इशारों से उस की हकीकत जानने की कोशिश करता है, लेकिन बच्ची न कुछ समझ पाती है न बता पाती है. बजरंगी दिल्ली में अपने पिता के दोस्त त्रिपाठीजी (शरत सक्सेना) के घर रहता है. त्रिपाठीजी की बेटी रसिका (करीना कपूर) स्कूल टीचर है और बजरंगी से प्यार करती है.

बजरंगी त्रिपाठी और रसिका को बताता है कि वह बच्ची उसे कुरुक्षेत्र में मिली है और हिंदू है. रसिका भी इशारोंइशारों में बच्ची से उस की हकीकत पता लगाने की कोशिश करती है, पर नाकाम रहती है. इस के बाद बजरंगी बच्ची को उस के मांबाप तक पहुंचाने के मिशन में जुट जाता है. अपनी सुविधा के लिए बजरंगी और रसिका बच्ची को मुन्नी कह कर बुलाने लगते हैं. कहानी में मोड़ तब आता है जब बजरंगी और रसिका को पता चलता है कि वह बच्ची पाकिस्तानी है. बजरंगी बच्ची को उस के मांबाप तक पहुंचाने के लिए वीजा लेने की कोशिश करता है लेकिन उसे वीजा नहीं मिलता. इस के बाद वह बच्ची को बिना पासपोर्ट वीजा के ही पाकिस्तान पहुंचाने का फैसला करता है.

बजरंगी बच्ची को ले कर बौर्डर पार भी कर जाता है पर पकड़ा जाता है. यहीं पर उस की मुलाकात पाकिस्तान के लोकल टीवी चैनल के खोजी पत्रकार चांद नवाज (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) से होती है. चांद नवाज को बजरंगी में सच्चाई और इंसानियत का जज्बा नजर आता है. वह हर तरह से बजरंगी की मदद करने का फैसला करता है. अंतत: चांद नवाज की मदद से बजरंगी छिपतेछिपाते सईदा के घर तक पहुंचता है और बच्ची को उस के मांबाप को सौंप देता है. बजरंगी जब सईदा को उस के मातापिता के पास छोड़ कर जाने लगता है और वह उसे माता कह कर पुकारती है तो हर दर्शक भावुक हो जाता है. यानि अंतिम दृश्य में बच्ची बोलने लगती है.

बजरंगी की भूमिका में सलमान खान ने जबरदस्त अभिनय किया है. उन के लिए वाकई यह चैलेंजिंग कैरेक्टर था, जिसे उन्होंने अपने अभिनय से जीवंत बना दिया. एक्टिंग के मामले में नवाजुद्ीन सिद्दीकी भी पीछे नहीं हैं. कई जगह तो वह सलमान पर भी हावी रहे. वह चूंकि फिल्म में सलमान को भाईजान बोलते हैं, इसलिए फिल्म का नाम ‘बजरंगी भाईजान’ रखा गया. हर्षाली मल्होत्रा भले ही 6 साल की बच्ची रही हों पर एक्टिंग के मामले में उस ने कमाल किया है. देखा जाए तो यह पूरी फिल्म सलमान खान, हर्षाली मल्होत्रा और नवाजुद्दीन सिद्दीकी के ही कंधों पर टिकी है. भारतपाक के रिश्ते भले ही चाहे जैसे भी हों लेकिन इस फिल्म के माध्यम से इंसानियत का जो मैसेज दिया गया है, वह दिल को छू लेने वाला है. Film

 

 

 

UP News: पालतू कुत्ते के लिए 2 बहनों ने किया सुसाइड

UP News: एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसे देख लोग भी हैरान हैं. उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में एक कुत्ते के प्यार में 2 बहनों ने आत्महत्या करके जान दे दी. आखिर ऐसा क्या था कि कुत्ते के प्यार ने दोनों बहनों को सुसाइड करने के लिए मजबूर कर दिया था. पूरा सच जानने के लिए पढ़ते हैं पूरी स्टोरी को विस्तार से.

यह दर्दनाक घटना  लखनऊ के पारा की जलालपुर दौदा खोड़ा कालोनी से सामने आई है. यहां एक महीने से पालतू कुत्ता बीमार था. इसी के चलते 22 और 24 साल की दो संगी बहनों जिया सिंह व राधा सिंह ने फिनायल पी कर जान दे दी.

राधा और जिया अपने डॉग से बहुत ही प्यार करती थीं. उस की तबियत में कोई भी सुधार न होने के कारण दोनों ने यह कदम उठा लिया. दोनों को अस्पताल ले जाया गया. जहां पर बड़ी बहन और बाद में छोटी बहन ने दम तोड़ दिया. इन दोनों बहनों ने जरमन शेफर्ड नस्ल का एक डॉग पाल रखा था. उस डॉग का नाम टोनी था और वह एक महीने से बीमार चल रहा था. दोनों बहनों के माइंड में चल रहा था टोनी अब कभी ठीक नहीं होगा. इसी वजह से दोनों डिप्रेशन में चल रही थीं.

बताया जा रहा है कि छोटी बहन की मानसिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. बुधवार को दोनों ने फिनायल पी ली और अपनी मम्मी गुलाबो देवी को बताया. इस के बाद गुलाबो देवी ने अपने बड़े बेटे वीर सिंह को इस की सूचना दी. भाई के घर पहुंचने से पहले पड़ोसी दोनों को लक्ष्मी बाई अस्पताल ले जाया गए थे. इसी दौरान राधा ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. और जिया की अस्पताल में मौत हो गई.

पड़ोसियों ने बताया कि, राधा के पिता कैलाश सिंह रुई धुनाई का काम करते थे. वह 6 महीने से भी ज्यादा समय से बीमार हैं और घर पर बिस्तर पर पड़े रहते हैं. उन का भी इलाज चल रहा है. भाई वीर सिंह प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. उनका एक छोटा भाई भी था, जिस की 7 साल पहले ब्रेन हेमरेज से मौत हो चुकी थी.

इन दोनों बहनों ने क्या सोच कर ऐसा कदम उठा लिया, कुछ पता नहीं चल पा रहा है. राधा और जिया अपने डॉगी टोनी को बहुत प्यार किया करती थीं. टोनी खाना न खाए तो वे दोनों भी खाना छोड़ दिया करती थीं.  पिछले दिनों से जब से कुत्ता बीमार था, तब से वे दोनों बहनें ज्यादा ही डिप्रेशन में रह रही थीं.

इंसपेक्टर सुरेश ने बताया कि कुत्ता 15 दिन से बीमार था, जिस की वजह से दोनों बहनें डिप्रेशन में थीं. उन्होंने अपनी मम्मी से अंतिम समय मे कहा था कि उन के मरने के बाद कुत्ते को घर से बाहर न निकलें. पुलिस मामले की जांच कर रही है. UP News

Hindi Stories: शौक की कोई सीमा नहीं

Hindi Stories: रवि भसीन ने जो काम शौक में शुरू किया था, धीरेधीरे वह उन का जुनून बन गया. इसी का नतीजा है कि आज उन की कोठी दुर्लभ और बेशकीमती चीजों का संग्रहालय बन गई है.

पाकिस्तान में जिला झेलम के गांव लिल्ले खिऊड़ा निवासी बख्शी गोपाल दास भसीन काले नमक की खानों के मालिक थे. इलाके के नामीगिरामी व्यक्ति. इस जगह तैयार होने वाले काले नमक की सप्लाई पूरी दुनिया में होती थी. भसीन साहब के बेटे थे बख्शी ईश्वर दास. कौशल्या देवी से शादी कर के वह 4 लड़कों व 4 लड़कियों के पिता बने. इन में से चौथे नंबर के थे 1945 में जन्मे रविकांत. विभाजन के बाद यह परिवार हिंदुस्तान आ कर शाहाबाद मारकंड में बस गया. यहां परिवार के लोगों ने प्रौपर्टी डीलिंग का व्यवसाय शुरू किया जो खूब फलाफूला. यहीं रहते रविकांत ने मैट्रिक तक की पढ़ाई की.

इस बीच ईश्वर दास ने मनीमाजरा क्षेत्र में चूने के भट्ठे लगा लिए थे. उन का यह काम भी अच्छा चल निकला था. 1964 में ये लोग चंडीगढ़ शिफ्ट कर के सेक्टर-22बी में रहने लगे. जिन दिनों रविकांत कक्षा 8 में था उस के दादा बख्शी गोपालदास ने उसे मुगलकालीन चांदी के कुछ सिक्के दे कर समझाया था, ‘‘इन्हें न खर्च करना न किसी को देना, हमेशा संभाल कर रखना. इतना ही नहीं, बल्कि और भी कोई दुर्लभ वस्तु कहीं से मिले तो उसे भी सहेज कर रखना. ऐसा करने से तुम्हें बड़ा संतोष मिलेगा.’’

रवि पर जुनून की तरह जैसे यही धुन सवार होने लगी. उस के कब्जे में जो भी एंटीक चीजें आईं, उन्हें वह संभालतासहेजता रहा. धीरेधीरे यह उस का शौक बन गया. एक तरह से कारोबार का हिस्सा भी. देखतेदेखते इस तरह की चीजों के संग्रह से रवि भसीन का एक कमरा भर गया. इस संग्रह में पुरातन सिक्कों के अलावा अनेक ऐसी दुर्लभ वस्तुएं भी थीं, जिन्हें देख कर सामने वाला आश्चर्यचकित रह जाता था. 1973 में रविकांत की पूनम से शादी हो गई. पूनम को पति के शौक का पता चला तो उन्होंने भी इसे अपनी पसंद बना कर सहयोग देना शुरू कर दिया. रविकांत ने अब तक अपना अलग प्रौपर्टी डीलिंग का व्यवसाय शुरू कर लिया था. इस के साथ ही एंटीक वस्तुओं की खोज में वह यहांवहां भ्रमण भी किया करते थे.

ऐसी किसी वस्तु की जहां कहीं होने की उन्हें खबर मिलती, वह तुरंत वहां के लिए रवाना हो जाते. आने वाले कुछ ही समय में वह पूरा हिंदुस्तान तो घूम ही लिए, चीन, इंग्लैंड, अमेरिका, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, कुवैत व पाकिस्तान जा कर भी वहां से दुर्लभ वस्तुएं एकत्रित कर लाए. इस के बाद तो उन का घर एंटीक वस्तुओं का अजायबघर सा बन गया. इस के लिए उन्होंने भारी रकम खर्च की थी. इन दुर्लभ वस्तुओं में पाषाण प्रतिमाएं, पैडल से चलने वाला हारमोनियम, केरोसीन से चलने वाले पंखे व रूम हीटर, इटली की पुरातनकालीन पेंटिंग्स, शाही दरबार की क्रौकरी और 1×4 इंच चौड़ी व 3×4 इंच लंबाई वाली हैंडलिथो बुक जैसी पुरानी, लेकिन महत्त्वपूर्ण चीजें घर की शोभा बढ़ाने लगीं

. हैंडलिथो बुक में 56 पन्ने हैं. जिन्हें पढ़ने के लिए कछुए की हड्डी के फ्रेम में लगा मैग्नीफाइंग ग्लास इस्तेमाल किया जाता है. भसीन के पास यह ग्लास भी उपलब्ध है. इस किताब में यूरोप की महान हस्तियों का वर्णन है. सन 1838 में प्रकाशित हुई इस छोटी सी पुस्तक में जहां 6 महान शख्सियतों की जीवनी प्रकाशित की गई है, वहीं इस में हाथ से बनी 8 कलाकृतियां भी मौजूद हैं. इस पुस्तक को पीतल के फोल्डिंग कवर से ढंका गया है. महाराजा रंजीत सिंह के दौर की सिख घड़ी, 200 साल पुराना कैंपर लकड़ी का संदूक व मुगलों के जमाने का हुक्का भी भसीन के संग्रह के बेमिसाल तोहफे हैं. सिख घड़ी आज भी चलती है. इस की अलग तरह की आवाज कानों में मधुर रस घोल देती है.

रवि भसीन के पास फिएट टोपोलेनो 2 सीटर कार भी थी जो उन्होंने सन् 1994 में महाराजा ग्वालियर से खरीदी थी. अभी कुछ साल पहले यह कार उन से अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने खरीद ली थी. रवि के संग्रह में पौन इंच की ‘द इंग्लिश बिजौयस’ बुक भी है तो 1 इंच के आकार की कुरान भी है. उन के पास मुगलकाल, रजवाड़ों और अंगे्रजों के जमाने की अति दुर्लभ वस्तुएं हैं. धातु व कांच के बने बर्तन, शोपीस, ऐतिहासिक ग्रंथ, किताबें, हस्तलिखित धार्मिक पुस्तकें, पुरातनकाल के हथियार, पेंटिंग्स व फर्नीचर वगैरह भी उन के संग्रह में शामिल हैं.

भसीन के पास हाथ से सुनहरी अक्षरों में उर्दू में लिखी खास किस्म के पन्नों वाली ऐसी अद्भुत किताब भी है जिस के बारे में उन का दावा है कि यह कुर्बानी के बकरे की आंतों से निर्मित पन्नों पर सोने की स्याही से लिखी गई है. इस के अलावा उन के पास महाराजा नाभा की सवा 200 साल पुरानी व 36 फीट लंबी जन्मपत्रिका है जिस की बेजोड़ कारीगरी देखते ही बनती है. एक सदी पुराना हस्तलिखित शिवपुराण व 200 साल पहले लिखा गया 7 पन्नों का हस्तलिखित महासार भी उन के संग्रह के नायाब तोहफे हैं. इस की पृष्ठभूमि के बारे में भसीन बताते हैं कि किसी जानवर की हड्डी को घिस कर बनाए गए पत्थरनुमा पन्नों पर गोमूत्र व फूलों से बनी स्याही से लिखा गया है, यह महाभारत सार.

मुगल बादशाहत के दौरान जब किसी को मृत्युदंड दिया जाता था तो अपना हुक्म सुनाते वक्त बादशाह खास किस्म की अंगूठी पहन कर हुक्म सुनाया करता था. अपने हुक्मनामे पर वह इसी अंगूठी को मोहर के रूप में इस्तेमाल कर के ठप्पा लगाता था. यह खास अंगूठी भी रवि भसीन के पास मौजूद है. भसीन के यहां अंगे्रजों के जमाने की बड़ीबड़ी दीवार घडि़यों का तो अच्छाखास संग्रह है. इन में कुकु क्लौक व ग्रैंडफादर क्लौक बहुत मशहूर घडि़यां हैं. ग्रैंडफादर क्लौक वजन से चलती है, जो 7 दिन बाद बंद हो जाती है. इसे फिर से चालू करने के लिए वजन ऊपर खिसकाने पड़ते हैं. पहाड़ी राजा पीतल की जिन बड़ीबड़ी दूरबीनों का इस्तेमाल किया करते थे, वे भी अच्छीखासी मात्रा में रवि भसीन के एंटीक कलैक्शन में शामिल हैं.

इन के अलावा राजाओं द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले पीतल के हमाम, बाएं हाथ का विशाल शंख, गऊमुखी शंख व अंग्रेजों के जमाने के मैडल ही नहीं, बकरे की आंतों की सुराही भी भसीन के यहां आने वालों को सहज ही आकर्षित कर लेती है. अंगे्रजों के जमाने में अंबाला जेल में कैदियों पर चमड़े के जो कोड़े बरसाए जाते थे, उन में से 2 कोड़े व अंगे्रजों के जमाने के अनेक टेलीफोन सेट्स के अलावा रवि भसीन के पास पुरातनकाल के ऐसे वुडन बौक्स भी हैं जो मुस्काफुर (कैंफर) की लकड़ी के बने हैं. आज भी इन के करीब बैठो तो इन में से निकलती भीनीभीनी सुगंध मनमस्तिष्क छा कर मंत्रमुग्ध कर देती है.

भसीन के पास पुरातन तलवारों का भी जखीरा है तो आदिकाल से 20वीं सदी तक के सिक्कों का विशाल संग्रह भी है. सिक्कों का पूरा इतिहास भी रवि भसीन को मालूम है. वह बताते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान जो सिक्के मिले थे और जिन का जिक्र वैदिक ग्रंथों में है, उस से यह बात सामने आई है कि मौखरी, प्रतिहार, कलेचेरी, चालुक्य, चोल, राष्ट्रकूट, पांड्या, गुप्त, मौर्य, कौसल व मुगल शासकों ने अपनी सुविधा, प्रतिष्ठा व संपन्नता के अनुसार सिक्कों में सभी तरह की धातुओं का प्रयोग किया था. इतिहास साक्षी है कि कुषाण शासकों ने सर्वथा पहली दफा यूनानी शैली में सोने का ढला हुआ सिक्का प्रचलित किया. मौर्य शासकों ने पहले टुकड़ों को जोड़ कर, फिर ठप्पे वाले और फिर ढलाई के सिक्के जारी किए.

यह वंश जब तहसनहस हुआ तो अलगअलग तरीकों से अस्तित्व में आईं रियासतों के शासकों ने अपने काल की मुद्राएं भी अलगअलग तरीकों से निकालीं. यहीं से सिक्कों पर राजा के नाम के साथ उस का फोटो उकेरने का प्रचलन शुरू हुआ. कुछ शासकों ने अपने सिक्कों पर धार्मिक चित्र भी उकेरे. 12वीं सदी में तोमरवंश का विनाश करने के बाद मोहम्मद गोरी ने अपना अलग सिक्का जारी किया. मुगल शासन के 1206 ई. से 1526 ई. के कार्यकाल में भी हर शासक ने अपना अलग सिक्का चलाया. इल्तुतमिश ने सिक्कों पर कलमा खुदवाना शुरू किया. फिर टकसाल का नाम व सिक्का बनाने की तिथि अंकित करना शुरू की.

बलवन ने शासन संभालते ही सिक्कों पर से हर तरह के हिंदू चिह्न हटवा दिए. अलाउद्दीन खिलजी का शासन आया तो उस ने सिकंदर द्वितीय की उपाधि सिक्कों पर खुदवा दी. उस वक्त तक मिश्रित धातुओं के सिक्कों का दौर था. शेरशाह सूरी ने यह चलन बंद करवा कर शुद्ध चांदी व तांबे के सिक्के प्रचलित करवाए. पानीपत की ऐतिहासिक लड़ाई में इब्राहीम लोदी को पराजित करने के बाद बाबर ने हिंदुस्तान में मुगल साम्राज्य की नींव रखते ही स्वर्णमुद्रा चलाना आरंभ की और इसे नाम दिया. अशर्फी सम्राट अकबर का दौर आने पर उन्होंने मेहराबी मोहरें चलाईं. जहांगीर ने हिंदू चक्रचिह्न वाला सिक्का चलाया था, मुगलों ने ‘अल्लाह हू अकबर’ भी लिखवाया. उल्लेखनीय है कि जहांगीर काल में नूरजहां के नाम से भी सिक्का चला था.

ब्रिटिश काल में पहले अशर्फी पर और फिर सिक्कों पर ब्रिटिश चिह्न उभारे जाने लगे. महारानी विक्टोरिया के नाम से 1940 ई. में सोनेचांदी के सिक्के प्रचलन में आए. 1876 में भी सिक्कों पर तिथियां उकेरी गई थीं. इस के बाद 1906 में धातु गिलट से सिक्के बनाए जाने लगे. फिर तो पाई, धेला, आना, दुअन्नी, चवन्नी और अठन्नी वगैरह भी अस्तित्व में आ गए. इतनी सारी मुद्राओं का चलन जार्ज सप्तम के कार्यकाल में आम लोगों की सुविधा के लिए किया गया था.

बकौल रवि भसीन उन के पास इस तरह के अनेक सिक्के मौजूद हैं. इतना ही नहीं, अकबर के शासनकाल वाला तांबे का 40 ग्राम के वजन का दमड़ा और महाराजा रंजीत सिंह द्वारा जारी प्रथम सिख सिक्का जिस पर कुछ शब्द अंकित थे, के अलावा उन के संग्रह में तुगलक, अलाउद्दीन खिलजी, बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह, बाबर, अकबर, जहांगीर व शाहजहां के शासनकाल के निहायत ही दुर्लभ सिक्के भी सुरक्षित हैं. इस के अलावा रवि भसीन के पास ईरान का 27 ग्राम का चांदी का सिक्का, पूर्वी अफ्रीका का 1 रुपए का सिक्का व फ्रांस में सन् 1901 व 1906 में जारी हुए सोने के सिक्के भी मौजूद हैं.

अपने इस शौक को समृद्ध बनाने के लिए रवि भसीन ने निरंतर 40 सालों तक बहुत भागदौड़ की, देशदुनिया की खाक छानी, हालांकि इस दौरान उन की सेहत उन्हें धोखा देने लगी थी. वह कई तरह की बीमारियों से घिरने लगे थे. 1985 में उन्हें शुगर की समस्या ने परेशान करना शुरू कर दिया था. 1997 आतेआते उन की किडनियां जवाब देने लगीं. 1999 में उन की दोनों किडनियां फेल होने की रिपोर्ट आ गई. तब रवि की शरीकेहयात पूनम भसीन ने उन्हें अपनी 1 किडनी दे कर उन की जान बचाई. भसीन दंपत्ति का एक ही बेटा है, करन. वह पिछले 5 सालों से ब्रिस्बेन की 1 हास्पिटैलिटी फर्म में अकाउंट्स मैनेजर है. भसीन दंपति पंचकूला के सेक्टर-11बी की अपनी कोठी में रह रहे हैं.

पतिपत्नी दोनों अपने इसी संग्रह को समर्पित हैं. इस के चलते उन की कोठी का नजारा देखते ही बनता है. उन के घर का हर कमरा, फर्श, दीवार यहां तक कि छत और रसोईघर भी उन के इस बेशकीमती खजाने से अटे पड़े हैं. कोठी के मुख्यद्वार के बाहर बागीची में रौक गार्डन निर्माता पदमश्री नेकचंद द्वारा रवि भसीन को भेंट की गई उन की 1 कृति मौजूद है. यहीं 300 साल पुरानी पीतल की बैलगाड़ी रखी है. जहां एक ओर पत्थर की चौखटें व हवेली के स्तंभ जमीन पर लेटाए गए हैं, वहीं गैलरी में लकड़ी का सीलिंगफैन टंगा है. यहीं एक कोने में मिट्टी के तेल से बर्फ जमाने वाला फ्रिज रखा है. भसीन की कोठी के भीतर जा कर इंसान तिलिस्म सरीखी दुनिया से घिर जाता है. Hindi Stories

 

Hindi Crime Story: पति की मौत का फरमान

Hindi Crime Story: कामिनी गांव के ही रहने वाले मार्तंड यादव से शादी करना चाहती थी. लेकिन घर वालों ने उस की शादी पवन से कर दी. इस का परिणाम यह निकला कि निर्दोष पवन मारा गया.

गांव में भागवत कथा होने की वजह से काफी चहलपहल थी. कथा में जाने के लिए हर कोई उत्साहित था, क्योंकि वहां बहुत ही सुंदर कथा होती थी. उस के बाद हवन होता था. कामिनी भी वहां रोजाना अपनी सहेली मीना के साथ कथा सुनने जाती थी. उस दिन वह मीना के साथ कथा सुनने पहुंची तो वहां का नजारा ही कुछ और था. गांव के कई लोग पंडितों द्वारा किए जाने वाले मंत्रोच्चारण के साथ हवन कर रहे थे. उस से जो धुआं उठ रहा था, वातावरण सुगंधित हो रहा था. कामिनी और मीना ने हाथ जोड़ कर सिर झुकाया और वहां बिछी दरी पर बैठ गईं. अचानक कामिनी की नजर दूसरी ओर बैठे एक युवक पर पड़ी, जो एकटक उसी को ताक रहा था. वह कोई और नहीं, उसी के गांव का मार्तंड यादव उर्फ पिंकू था.

कामिनी उम्र के उस दौर में पहुंच गई थी, जब लड़कों का इस तरह ताकना लड़कियों को अच्छा लगता है. यही वजह थी कि कामिनी ने भी उस की ओर उसी तरह ताका. नजरें मिलीं तो मार्तंड मुसकराया, लेकिन कामिनी ने नजरें झुका लीं. लेकिन यह भी सच है कि इस स्थिति में लड़की पहली बार भले ही नजरें झुका ले, लेकिन पलट कर जरूर देखती है. और कहते हैं कि अगर पलट कर देख लिया तो समझो मामला फिट है यानी वह भी चाहती है. कामिनी से रहा नहीं गया, उस ने नजरें उठाईं तो मार्तंड को अपनी ओर ताकते पाया. उसे उस तरह ताकते देख कामिनी को हंसी आ गई.

बस, फिर क्या था, कामिनी की इस हंसी पर मार्तंड मर मिटा. एक तो कामिनी ने पलट कर देखा था, दूसरे हंसी थी, इसलिए मार्तंड को लगा, अब मामला फिट है. अब वह सबकुछ भूल कर सिर्फ कामिनी को ही देख रहा था. कामिनी का भी कुछ ऐसा ही हाल था. उसे इस तरह बारबार उधर देखते देख कर मीना ने पूछा, ‘‘क्या बात है, जो तू बारबार उधर लड़कों की ओर देख रही है?’’

कामिनी इस तरह सिटपिटा गई, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो. उसे जवाब तो देना ही था, इसलिए उस ने मीना को प्यार से झिड़कते हुए कहा, ‘‘यार, तुम भी न जाने क्याक्या सोचती रहती हो? इस तरह की जगहों पर कोई क्या देखेगा? तुम्हारे दिमाग में हमेशा खुराफात ही चलता रहता है.’’

अब तक हवन खत्म हो गया था. प्रसाद ले कर कामिनी मंडप से बाहर आई तो मार्तंड भी उस के पीछेपीछे बाहर आ गया. वह उस से थोड़ी दूरी बना कर चल रहा था. उसे अपने पीछे आते देख कामिनी का दिल तेजी से धड़कने लगा कि मीना के सामने ही वह उसे कुछ कह न दे. अब वह उसे अपना सा लग रहा था. कुछ ऐसा ही मार्तंड को भी महसूस हो रहा था. वह उस से अपने दिल की बेचैनी कहना तो चाहता था, लेकिन मीना की उपस्थिति उसे ऐसा करने से रोक रही थी. कुछ भी रहा हो, मार्तंड की नजरें उसी पर टिकी थीं. कामिनी भी बारबार पलट कर उसे देख रही थी. आखिर मीना ने उस की चोरी पकड़ ही ली. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अच्छा तो यह बात है, अब समझ में आया, यह महाशय हमारे पीछेपीछे क्यों चले आ रहे हैं?’’

‘‘क्या बकवास कर रही है? कोई पीछेपीछे आ रहा है तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि मैं उस पर मर मिटी हूं. चलो, घर चलो, नहीं तो तुम इसी तरह बकवास करती रहोगी.’’ कामिनी ने कहा.

‘‘मैं कहां कह रही हूं कि तुम यहीं रुको. चलो न घर.’’ मीना ने कामिनी का हाथ पकड़ कर कहा और तेजी से घर की ओर चल पड़ी.

मार्तंड कामिनी को तब तक देखता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो गई. घर पहुंच कर कामिनी मार्तंड के खयालों में डूब गई. पता नहीं क्यों वह उस के दिल में बस गया था, जबकि वह बहुत खूबसूरत भी नहीं था. गांव में उस से भी खूबसूरत लड़के थे, जो उस पर मरते थे. लेकिन उस ने कभी किसी को भाव नहीं दिया था. दूसरी ओर मार्तंड भी कामिनी के खयालों में डूबा था. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कामिनी जैसी खूबसूरत लड़की का दिल उस के लिए धड़क सकता है. इसलिए अगले दिन के इंतजार में उसे नींद नहीं आई. वह जानता था कि कामिनी रोज कथा सुनने आती है. इसलिए उस ने तय कर लिया था कि अगर अगले दिन कामिनी मिल गई तो कैसे भी वह उस से अपने दिल की बात जरूर कह देगा.

संयोग से अगले दिन कामिनी अकेली ही वहां आई. शायद उसे विश्वास था कि उस के सपनों का राजकुमार मार्तंड अवश्य वहां आएगा और उस से बात करने की कोशिश भी करेगा. उसे बात करने में कोई संकोच न हो, यही सोच कर वह मीना को साथ नहीं लाई थी. जब वह वहां पहुंची तो उसे यह देख कर हैरानी हुई कि मार्तंड वहीं बैठा था, जहां कामिनी एक दिन पहले बैठी थी. शायद वह उसी का इंतजार कर रहा था. मार्तंड की नजरें उस से मिलीं तो दोनों के होठों पर मुसकान तैर उठी. कामिनी आ कर उस से थोड़ी दूरी पर महिलाओं के झुंड में बैठ गई. दोनों बैठे तो भागवत कथा सुनने थे, लेकिन दोनों के मन में तो कुछ और ही चल रहा था.

आखिर  नहीं रहा गया तो मार्तंड ने कुछ इशरा किया. उस के बाद कामिनी उठ कर चल पड़ी. लोगों की नजरें बचा कर मार्तंड भी उस के पीछेपीछे चल पड़ा. सुरक्षित स्थान पर आ कर जरा भी संकोच किए मार्तंड ने कामिनी का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘कामिनी, अब मुझे यह कहने की जरूरत नहीं है कि मैं तुम से प्यार करता हूं. तुम्हारे हावभाव से ही मुझे पता चल गया है कि तुम भी मुझे प्यार करती हो, इसलिए चलो एकांत में कहीं बैठ कर बातें करते हैं.’’

गांवों में एकांत कहां होता है, बागों या खेतों के बीच. दोनों गेहूं के खेतों के बीच बैठ कर बातें करने लगे. मार्तंड ने उस एकांत में कामिनी के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘कामिनी, यह जिंदगी हमारी है, इसलिए इस के बारे में सिर्फ हमें ही निर्णय लेने का हक है. तुम मुझ से मिलने के लिए रोज यहीं आना. यहां लोगों की नजर हम पर नहीं पड़ेगी. बोलो, आओगी न?’’

‘‘मैं जरूर आऊंगी मार्तंड. तुम मेरा इंतजार करना.’’ कामिनी ने कहा और अपने घर चली गई.

मनचाहा प्रेमी मिल जाने से कामिनी खुश थी. वह मार्तंड की यादों में खोई रहने लगी. अब उसे हमेशा उस समय का बेसब्री से इंतजार रहता, जब उसे मार्तंड से मिलने जाना होता. मार्तंड उस से जब भी रोमांटिक बातें करता, वह शरमा जाती. वह उस की सुंदरता की तारीफें करते हुए कहता, ‘‘तुम्हारी इसी सुंदरता ने मेरा दिल चुरा लिया है. अब मेरे इस दिल को तुम संभाल कर रखना, इसे कभी तोड़ना मत.’’

कामिनी कहती, ‘‘तुम भी कैसी बातें करते हो, मैं भला तुमरे दिल को क्यों तोड़ूंगी, अब तो वह हमारा हो चुका है.’’

‘‘मैं कितना भाग्यशाली हूं, जो तुम जैसी प्यार करने वाली मिल गई. शायद तुम मेरे भाग्य में लिखी थी.’’

ऐसी ही बातें कर के मार्तंड ने कामिनी को लुभा कर उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए. दोनों मन से तो एक थे ही, तन से भी एक हो गए. उत्तर प्रदेश के जिला रायबरेली के थाना शिवगढ़ के निमडवल गांव में रहते थे रामेश्वर प्रसाद. वह खेती कर के अपना गुजरबसर करते थे. उन के परिवार में पत्नी रमा और 2 बेटियां तथा 2 बेटे थे. कामिनी उन के बच्चों में सब से छोटी थी. उन के बाकी बच्चों का विवाह हो चुका था. कामिनी ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था कि उसे मार्तंड से प्यार हो गया.

कामिनी ने गांव के ही सरकारी स्कूल से आठवीं तक पढ़ाई की थी. वह खूबसूरत थी, इसलिए जवान होते ही गांव के मनचले लड़के उसे अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करने लगे थे. उन्हीं में मार्तंड भी था. आखिर में उसी ने बाजी मार ली थी. वह प्रभाकर यादव का बेटा था. वह नल वगैरह ठीक करने का काम करता था. गांवों में इस तरह की बातें ज्यादा दिनों तक छिपी नहीं रह पातीं, इसलिए मार्तंड और कामिनी के संबंध भी उजागर हो गए. जब बेटी की करतूत का पता रामेश्वर प्रसाद को चला तो उन्होंने कामिनी की खूब पिटाई की और सख्त हिदायत दी कि अब वह मार्तंड से बिलकुल नहीं मिलेगी. उस के घर से बाहर निकलने पर भी पाबंदी लगा दी गई.

इस हालत में रामेश्वर जल्द से जल्द कामिनी की शादी के बारे में सोचने लगा. क्योंकि उस की वजह से उन की गांव में बदनामी हो रही थी. रामेश्वर का एक रिश्तेदार हरभजन लखनऊ के थाना नगराम के गांव सेंधूमऊ में रहता था. सेंधूमऊ के बगल में ही एक गांव है बघौली. उसी गांव में ललई प्रसाद अपने परिवार के साथ रहता था. वह भी खेती करता था. उस के परिवार में पत्नी रामकली के अलावा 2 बेटियां और एकलौता बेटा पवन था. उस ने दोनों बेटियों की शादी कर दी थी. बेटे की अभी शादी नहीं हुई थी. वह गोसाईगंज के दयाल इंस्टीट्यूट से बीबीए कर रहा था.

हरभजन पवन से परिचित था. वह जानता था कि पवन बहुत ही नेक और पढ़ालिखा लड़का है. इसलिए उस ने उस से कामिनी से रिश्ते की बात चलाई तो वह बात आगे बढ़ाने को राजी हो गया. उस ने अपने पिता से बात की तो उन की सहमति मिलने के बाद सभी कामिनी को देखने गए. कामिनी के घर वालों को भी पवन और उस का घरपरिवार पसंद था, इसलिए बातचीत के बाद शादी तय हो गई. कामिनी ने पवन के सामने ही विवाह से मना कर दिया था, लेकिन रामेश्वर प्रसाद ने किसी तरह बात संभाल ली थी. 20 मई, 2015 को कामिनी और पवन का विवाह धूमधाम से हो गया. कामिनी को न चाहते हुए भी पवन से विवाह करना पड़ा. जबकि वह मार्तंड से शादी करना चाहती थी.

शादी के बाद भी वह उसे एक पल के लिए नहीं भूल पा रही थी. क्योंकि उस ने उसी के साथ जिंदगी गुजारने का सपना जो देखा था. लेकिन घर वालों ने उस के सपनों को तोड़ दिया था. पग फेरा में कामिनी मायके आई तो मार्तंड से मिली. तब वह उस से गले मिल कर बिलखबिलख कर रोई. मार्तंड की भी आंखें नम हो गईं. कामिनी की हालत देख कर वह बेचैन हो उठा. उस ने कामिनी को ढांढ़स बंधा कर कहा, ‘‘कामिनी हम कभी अलग नहीं होंगे, कोई भी हमें जुदा नहीं कर सकता. हम हमेशा इसी तरह मिलते रहेंगे.’’

इस के बाद मार्तंड ने एक सस्ता सा मोबाइल फोन खरीद कर कामिनी को दे दिया, जिस से उन में बराबर बातें हो सकें. कामिनी जब तक मायके में रही, मार्तंड से बराबर मिलती रही. ससुराल आने पर मिलना तो बंद हो गया, लेकिन मोबाइल से सब की चोरी वह उस से बातें कर लेती थी. 12 अगस्त, 2015 की शाम साढ़े 6 बजे पवन घर लौटा और कपड़े बदल कर आराम करने लगा. रात 8 बजे कामिनी ने उसे सौ रुपए का नोट देते हुए कहा कि उसे कोल्ड ड्रिंक पीनी है, जा कर ला दे. पवन उन्हीं कपड़ों में दहेज में मिली हीरो पैशन प्रो बाइक से कोल्ड ड्रिंक लेने चला गया.

कोल्ड ड्रिंक की दुकान उस के घर से लगभग 3 सौ मीटर की दूरी पर थी. थोड़ी देर बाद पवन का फोन आया कि गांव के बाहर उस की बाइक खड़ी है, किसी से मंगवा लें. वह किसी जरूरी काम से जा रहा है. इस के बाद पवन के पिता वहां गए और गांव के एक लड़के से कह कर बाइक ले आए. सुबह गांव के कुछ बच्चे गांव के बाहर तालाब पर शौच के लिए गए तो उन्होंने वहां झाडि़यों में पवन की लाश पड़ी देखी. बच्चों ने यह बात तुरंत पवन के घर वालों को बताई तो घर वाले रोतेबिलखते वहां पहुंचे. पवन के पिता ललई प्रसाद ने इस घटना की सूचना थाना नगराम पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने के थोड़ी देर बाद थाना नगराम के थानाप्रभारी सुधीर कुमार सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक पवन ने नीले रंग पर सफेद धारी वाली कैपरी और सफेद शर्ट पहन रखी थी. उस के गले और मुंह पर किसी तेज धारदार हथियरा के घाव थे. सुधीर कुमार सिंह घटनास्थल और लाश का निरीक्षण कर रहे थे कि सीओ राकेश नायक भी आ गए. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए लखनऊ मैडिकल कालेज भिजवा कर पूछताछ शुरू की. इस के बाद थाने आ कर सुधीर कुमार सिंह ने मृतक के पिता ललई प्रसाद की ओर से अज्ञात के खिलाफ पवन की हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. थानाप्रभारी मामले की जांच के लिए बघौली गांव जाने की तैयारी कर रहे थे कि किसी ने फोन कर के उन्हें बताया कि मृतक पवन की पत्नी कामिनी अपना सामान बांध कर कहीं जाने की तैयारी कर रही है.

यह सुन कर सुधीर कुमार सिंह को हैरानी हुई. जिस औरत के पति की हत्या हुई हो, अभी उस की लाश भी न दफनाई गई हो, इस दुख की घड़ी में ससुराल वालों का साथ देने के बजाय वह घर से जाने की तैयारी कर रही है. उन्हें लगा, कहीं ऐसा तो नहीं कि इस घटना के पीछे उसी का हाथ हो. सीओ राकेश नायक भी थाने में मौजूद थे. कामिनी के बारे में सीओ साहब को बताया तो उन्होंने भी कामिनी पर शक जाहिर किया. फिर क्या था, थानाप्रभारी ललई प्रसाद के घर जा पहुंचे. उन्हें जो सूचना मिली थी, वह सही थी. कामिनी अपना बैग तैयार कर के बैठी थी. शक के आधार पर सुधीर कुमार सिंह ने बैग की तलाशी ली तो उस में से कपड़ों और व्यक्तिगत सामान के अलावा 1 हजार रुपए, एक सिम और एक युवक की फोटो बरामद हुई. उन्होंने बैग में नीचे लगे पैड के अंदर हाथ डाला तो उस में से एक मोबाइल फोन बरामद हुआ.

घर वालों से उस मोबाइल के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इस के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं है. इस के पास जो मोबाइल था, उसे तो पवन ने पहले ही ले लिया था.

सुधीर कुमार सिंह ने जब कामिनी से उस के पास मिले फोटो के बारे में पूछा तो वह काफी देर तक उस फोटो को देखती रही, उस के बाद बोली, ‘‘यह युवक उस के गांव का रहने वाला है.’’

पुलिस कामिनी को हिरासत में ले कर थाने आ गई. थाने में महिला कांस्टेबल के जरिए उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो उस ने कई नाम बताए. उन सभी को पुलिस ने थाने ला कर पूछताछ की तो पता चला कि वे निर्दोष थे. कामिनी ने जो नाम बताए थे, वे उस के पुराने आशिक थे, जिन्हें वह फंसाना चाहती थी. सुधीर कुमार सिंह ने कामिनी का मोबाइल खंगाला तो उस में सिर्फ एक ही नंबर मिला, जिस से उस में लगभग रोज ही फोन आए थे. घटना वाले दिन भी उस नंबर से अंतिम बार रात 11 बजे फोन आया था. जब उस नंबर के बारे में कामिनी से सख्ती से पूछा गया तो उस ने बताया कि उस नंबर से फोन करने वाला और फोटो वाला युवक एक ही है. उस का नाम मार्तंड यादव उर्फ पिंकू है, जो उस के मायके निमडवल में रहता है.

सुधीर कुमार सिंह ने उसी मोबाइल से उस नंबर पर स्पीकर औन कर  के कामिनी से बात करने को कहा. कामिनी ने उस नंबर पर फोन किया तो दूसरी ओर से फोन रिसीव करने वाले ने कहा, ‘‘सब ठीक कर दिया मैं ने, किसी को शक भी नहीं हुआ.’’

‘‘क्या कह…’’ कामिनी इतना ही कह पाई थी कि सुधीर कुमार सिंह ने उसे कुछ भी बताने से मना कर दिया.

‘‘मैं ने अपने दोस्तों के साथ सब कुछ बहुत सही ढंग से कर दिया है. अब हम एक साथ रह सकेंगे.’’ दूसरी ओर से कहा गया.

‘‘लेकिन यह सब कर के तुम ने मुझे फंसा दिया. पुलिस मुझ पर शक कर रही है. तुम आ कर मुझे बचाओ. तुम कहां हो?’’ कामिनी इतना ही कह पाई थी कि मार्तंड को शायद शक हो गया. उस ने तुरंत फोन काट दिया. दोबारा फोन किया गया तो फोन बंद हो चुका था. इस के बाद मार्तंड के घर छापा मारा गया, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. तब उस के पिता को हिरासत में ले कर थाने लाया गया. लेकिन वह भी मार्तंड के बारे में कुछ नहीं बता सका. उसी दिन यानी 14 अगस्त को एक मुखबिर की सूचना पर दोपहर साढे़ 12 बजे सुधीर कुमार सिंह ने मार्तंड यादव और उस के दोस्त विक्रम यादव को समेसी के पास एक नहर के किनारे से गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ के बाद 15 अगस्त को पुलिस ने मार्तंड के एक अन्य दोस्त सूरजलाल को छतौनी से गिरफ्तार कर लिया. मार्तंड से की गई पूछताछ में पवन की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.

मार्तंड द्वारा दिए गए मोबाइल से कामिनी चोरीछिपे उस से बात कर लिया करती थी, लेकिन किसी दिन पवन ने कामिनी को मोबाइल पर बात करते देख लिया. फिर तो उसे समझते देर नहीं लगी कि कामिनी का किसी के साथ चक्कर चल रहा है. उसी ने यह मोबाइल कामिनी को दिया है. पवन ने कामिनी को मारापीटा ही नहीं, उस का मोबाइल भी छीन लिया. कामिनी वैसे ही मार्तंड से दूर हो कर तड़प रही थी. ऐसे में बात करने का जरिया मोबाइल भी छिन गया तो वह गुस्से से भर उठी. आग में घी का काम किया पवन की पिटाई ने. कामिनी ने किसी तरह मार्तंड तक मोबाइल छिन जाने की बात पहुंचा दी.

इसी के साथ यह भी कहा कि अगर वह किसी तरह पवन को ठिकाने लगा दे तो वह हमेशाहमेशा के लिए उस की हो जाएगी. उस के बाद उन्हें मिलने से कोई नहीं रोक पाएगा. मार्तंड तो हर हाल में कामिनी को अपनी बनाना चाहता था. उस ने कामिनी से कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, मैं जल्द ही उसे ठिकाने लगा दूंगा.’’

मार्तंड ने अपने 2 दोस्तों, विक्रम और सूरजलाल को दोस्ती का वास्ता दे कर पवन की हत्या में साथ देने को कहा तो वे तैयार हो गए. इस के बाद योजना भी बन गई. अपनी उसी योजना के अनुसार, मार्तंड अपने दोस्तों के साथ 2 मोटरसाइकिलों से कामिनी की ससुराल उस समय पहुंचा, जब पवन घर पर नहीं था. यह बात कामिनी ने मार्तंड को पहले ही बता दी थी. जब तीनों वहां पहुंचे तो कामिनी ने अपनी सास रामकली को बताया कि तीनों उस की सगी मौसी के बेटे हैं. रामकली के हटते ही मार्तंड ने एक मोबाइल फोन कामिनी को दे दिया और पूरी योजना बता दी. इस के बाद वह दोस्तों के साथ चला आया.

13 अगस्त की शाम मार्तंड ने कामिनी को फोन किया कि वह रात 8 बजे तक दोस्तों के साथ उस के गांव के बाहर पहुंच जाएगा. शाम साढ़े 6 बजे तक पवन घर आ जाता था. रात 8 बजे जब मार्तंड गांव के बाहर आ गया तो उस ने कामिनी को फोन कर के पवन को भेजने को कहा. इस के बाद कामिनी ने पवन को कोल्डड्रिंक लाने के बहाने बाहर भेज दिया. पवन मोटरसाइकिल से कोल्डड्रिंक ले कर लौट रहा था तो रास्ते मे दोस्तों के साथ मार्तंड ने उसे हाथ दे कर रोक कर कहा, ‘‘भाई मेरी मोटरसाइकिल खराब हो गई है. जरा देख लीजिए.’’

पवन ने अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर के जेब में पड़ी टौर्च निकाली. उस ने टौर्च जलाई तो मार्तंड के चेहरे पर पड़ी. उस का चेहरा देख कर पवन ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें पहचानता हूं, तुम तो मेरी ससुराल के हो, यहां कैसे, कामिनी से मिलने आए थे क्या?’’

‘‘नहीं, यहीं पास में मेरी एक रिश्तेदारी है, वहीं आया था. लेकिन यहां पहुंचते ही मेरी मोटरसाइकिल खराब हो गई.’’

इस के बाद उन में बातें होने लगीं. उसी बीच मार्तंड ने शौच जाने की बात कही तो पवन उसे तालाब की तरफ टौर्च की रोशनी में ले जाने लगा. इस के पहले उस ने फोन कर के अपनी मोटरसाइकिल मंगवा लेने के लिए घर वालों को कह दिया था. मार्तंड पवन से बातें करते हुए तालाब की ओर जा रहा था, तभी पीछेपीछे चल रहे विक्रम ने कपड़ों में छिपा हंसिया निकाल कर पवन की गरदन पर पूरी ताकत से प्रहार कर दिया. अचानक हुए इस हमले से पवन लड़खड़ा कर गिर पड़ा. वह संभल पाता, उस के पहले ही मार्तंड ने विक्रम से हंसिया ले कर पवन पर ताबड़तोड़ कई वार कर दिए.

पवन तड़पने लगा. और फिर बिना चीखेचिल्लाए मौत के मुंह में समा गया. इस के बाद तीनों उसे घसीट कर झाडि़यों में ले गए. वहां उस की जेब से दोनों मोबाइल निकाल कर तालाब में फेंक दिए. हत्या में प्रयुक्त हंसिया भी वहीं झाडि़यों में फेंक दिया. इस के बाद वे मोटरसाइकिल से चले गए. उन्होंने सोचा था कि वे पकड़े नहीं जाएंगे, लेकिन पुलिस ने उन्हें पकड़ ही लिया. सुधीर कुमार सिंह ने उन की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त हंसिया, तीनों मोबाइल, दोनों मोटरसाइकिलें बरामद कर ली थीं. इस के बाद पुलिस ने मुकदमे में धारा 120बी तथा 34 के अलावा एससी/एसटी की धारा 3(2)5 भी बढ़ा दी थी.

पुलिस ने पूछताछ के बाद सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Hindi Crime Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Hindi crime story: नीली फिल्मों का बूढ़ा नायक

Hindi crime story: अय्याश कुंदन कुमार को कमउम्र की लड़कियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने का शौक तो लग ही गया था, दुर्भाग्य से उसे उन के साथ अपने संबंधों की फिल्म बना कर देखने का भी चस्का लग गया था. उस के इसी शौक ने उसे उस की असली जगह तक पहुंचा दिया. पहाड़ों की रानी कहलाने वाले पर्यटनस्थल शिमला के रहने वाले थे सेठ दसौंधामल. मूलरूप से जिला कांगड़ा के गांव काशनी के रहने वाले दसौंधामल ने बरसों पहले शिमला में हार्डवेयर का व्यापार शुरू किया था. उन का यह धंधा इतना बढि़या चला कि उन्होंने शिमला में अपार ख्याति और संपत्ति अर्जित की.

दसौंधामल के परिवार में पत्नी कंचनबाला के अलावा एक बेटा और 6 बेटियां थीं. बेटियों को पढ़ालिखा कर उच्च घरानों में उन की शादियां कर दी गईं, जिन में से 3 तो आज विदेशों में रह रही हैं. 6 बेटियों के बाद एकलौता बेटा था कुंदन कुमार. पढ़लिख कर वह इंडियन एयरफोर्स में पायलट औफिसर बन गया था. साल भर बाद ही मैडिकल ग्राउंड पर नौकरी छोड़ दी और अपने पुश्तैनी धंधे में पिता का हाथ बंटाने के साथसाथ शिमला स्थित पंजाब विश्वविद्यालय से बीए करने लगा. दौरान दिल्ली निवासी मधुपलाल की उच्चशिक्षित बेटी मालारानी से कुंदन कुमार की शादी हो गई, जिस से उसे 3 बेटियां और एक बेटा हुआ.

कहते हैं, जब तक दसौंधामल जिंदा थे, तब तक तो उस पर अंकुश रहा. पिता के मरते ही उस के पंख निकल आए. पैसों का लेनदेन और पूरा कारोबार अब उस के हाथों में था. उस के पास इतना पैसा था कि दोनों हाथों से लुटाता तो भी खत्म होने वाला नहीं था. जमेजमाए कारोबार के अलावा दसौंधामल इतनी प्रौपर्टी छोड़ गए थे कि उस का किराया ही हर महीने लाखों में आता था. इस सब के अलावा कुंदन कुमार की पत्नी मालारानी ऊंचे ओहदे पर सरकारी नौकरी में थीं. उन्हें भी वेतन में मोटी रकम मिलती थी. इसलिए पैसों के लिए उन्हें कभी पति की ओर देखने की जरूरत नहीं थी. 4 बच्चे होने के बाद वह उन का भविष्य संवारने में व्यस्त हो गई थीं.

पिता का अंकुश हटते ही कुंदन क्लबों की रंगीनियों में खोया रहने लगा था. इस के बाद उस की अय्याशी के तार देहधंधा करने वाली औरतों से जुड़ गए. इसी के साथा उस ने कमउम्र की लड़कियों से शारीरिक संबंध बनाने का शौक पाल लिया. बढ़ती उम्र में यौन क्षमता बढ़ाने के लिए वह दवाओं का सहारा ले रहा था. कामवासना से कभी उस का जी नहीं भरता था, इसलिए बिजनैस को नौकरों के सहारे छोड़ कर वह सिर्फ लड़कियां पटाने के तरीके सोचा करता था. धंधेबाज औरतों से मौजमस्ती से जी भर गया तो नौकरी का लालच दे कर कुंदन ने न जाने कितनी लड़कियों को बरबाद किया.

ऐसे में उसे न जाने क्या सूझी कि 4 लड़कियों के साथ के शारीरिक संबंध की उस ने फिल्में बना लीं. इन में एक लड़की अनु थी, जिस के साथ बनाई गई ब्लूफिल्म ने उसे सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उस समय यह मामला अखबारों में खूब उछला था. शहर का हर अखबार इस मामले से जुड़ी खबरों से भरे होते थे. उन दिनों शिमला के एडीशनल एसपी थे कुंवर वीरेंद्र सिंह. कुंदन के इस मामले की विवेचना का जिम्मा उन्हें ही सौंपा गया था. यह मामला पुलिस से पहले मीडिया के पास पहुंच गया था. स्थानीय अखबारों में एक समाचार जोरोंशोरों से छप रहा था कि शिमला के बाजारों में एक अश्लील सीडी धड़ल्ले से बिक रही है, जिस में शहर के एक प्रतिष्ठित घराने के बूढ़े को एक नवयौवना से यौनाचार करते दिखाया गया है.

समाचारों में नीचे यह भी लिखा होता था कि वह बूढ़ा काफी प्रभावशाली है, इसलिए पुलिस इस मामले में कुछ नहीं कर रही है. पुलिस के लिए परेशानी की बात यह थी कि इस मामले में किसी ने कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई थी. बिना शिकायत के पुलिस किसी के खिलाफ क्या और कैसे काररवाई कर सकती थी. फिर भी सीआईडी के तत्कालीन आईजी आई.डी. भंडारी ने उन खबरों को गंभीरता से लेते हुए मामले की गहराई में जाने की जिम्मेदारी सीआईडी स्पैशल ब्रांच के इंसपेक्टर कुशल कुमार को सौंप दी. कुशल कुमार ने अखबार वालों से संपर्क कर खूब दौड़भाग की. मामले की गहराई में जाने के लिए उन्होंने दिनरात एक कर दिया. जांच के लिए वह सीडी जरूरी थी. बाजार में सीडी होने की चर्चा तो खूब थी, लेकिन वह सीडी कुशल कुमार के हाथ नहीं लगी. 3 दिन इसी तरह निकल गए.

चौथे दिन संयोग से किसी अनजान आदमी ने उन्हें फोन कर के बताया, ‘‘सर, आप जिस सीडी के लिए दिनरात परेशान हो रहे हैं, उस की एक कौपी रिज के पास टका बैंच पर रखी है. आप उसे देख कर छानबीन करें तो सारी असलियत सामने आ जाएगी. आप से आग्रह है कि मेरे बारे में पता लगाने की कोशिश मत कीजिएगा.’’

अंधा क्या चाहे, 2 आंखें. कुशल कुमार तुरंत रिज मैदान पहुंच गए. टका बैंच पर उन्हें दीवार के पास कागज का पुराना सा लिफाफा दिखाई दिया. उठा कर देखा तो उस में सीडी थी. अपने औफिस आ कर कंप्यूटर पर उन्होंने उस सीडी को चलाया. सीडी में 15 मिनट की अश्लील फिल्म थी, जिस में एक बूढ़ा एक लड़की के साथ शारीरिक संबंध बना रहा था. सीडी देखने के बाद कुशल कुमार उसे ले कर आईजी श्री भंडारी के पास गए. सीडी देख कर उन्होंने शिमला के पुलिस अधीक्षक जोगराज ठाकुर को एफआईआर दर्ज कर के तत्काल काररवाई करने के आदेश दे दिए.

जोगराज ठाकुर ने कुशल कुमार की ओर से एफआईआर दर्ज करने की संस्तुति कर के मामले की फाइल थाना सदर भेज दी. इसी के साथ एडीशनल एसपी कुंवर वीरेंद्र सिंह को इस मामले की विवेचना की जिम्मेदारी सौंप दी गई थी. थाना सदर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर बृजेश सूद ने भादंसं की धारा 292 के तहत मुकदमा दर्ज कर के इस मामले की जांच अतिरिक्त थानाप्रभारी गोबिंदराम को सौंप दी थी. गोबिंदराम ने सब से पहले शहर के कुछ गणमान्य लोगों को बुला कर उन के सामने उस सीडी को चला कर दिखाया. इस का उद्देश्य ब्लूफिल्म के नायक की पहचान करना था. आखिर उस आदमी की पहचान हो गई. वह कोई और नहीं, कुंदन कुमार था.

उन लोगों ने बताया कि इस की गिनती शहर के प्रमुख कारोबारियों में होती है. इस की पत्नी सरकारी अधिकारी है और इस के बच्चे इंग्लैंड, अमेरिका में पढ़ रहे हैं. सीडी की अश्लील फिल्म के नायक की पहचान हो जाने के बाद पुलिस टीम ने कुंदन कुमार के भव्य निवास पर छापा मारा. उस समय घर पर नौकर मोतीलाल के अलावा और कोई नहीं था. पुलिस ने उसे थाने ला कर गहन पूछताछ की. इस पूछताछ में मोतीलाल ने बताया कि उस का मालिक शराब और शबाब का शौकीन है. पैसे की उसे कोई कमी नहीं है. शिमला में प्रौपर्टी से ही उसे लाखों रुपए महीने किराया आता है. उस की उम्र काफी हो गई है, लेकिन बिना मेहनत के आने वाले पैसों की वजह से इस उम्र में भी उस की आदतें खराब हैं.

मोतीलाल को जब सीडी की फिल्म दिखाई गई तो उस ने उस फिल्म के बूढ़े नायक की पहचान अपने मालिक कुंदन कुमार के रूप में कर दी. लड़की के बारे में उस ने कहा, ‘‘अरे यह तो अनु है. यह साहब के औफिस में नौकरी करती थी.’’

‘‘इस समय यह कहां है?’’ मोतीलाल से पूछा गया.

‘‘अब कहां है, यह मुझे पता नहीं. क्योंकि इस ने साहब के यहां से नौकरी छोड़ दी है.’’ मोतीलाल ने कहा.

इस के बाद मोतीलाल को यह संदेश दे कर छोड़ दिया गया कि वह अपने साहब से कह देगा कि वह खुद थाने आ कर पुलिस जांच में शामिल हो जाए तो ज्यादा ठीक रहेगा, वरना उन्हें भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इस का असर यह हुआ कि पुलिस का संदेश मिलते ही कुंदन कुमार अपने वकील के साथ थाना सदर आ पहुंचा. पुलिस ने उसे उस की ब्लूफिल्म दिखाते हुए उस के बारे में स्पष्टीकरण मांगा तो उस ने कहा, ‘‘अनु मेरे औफिस में नौकरी करती थी. अपनी खूबसूरती के जाल में फंसा कर वह मुझ से पैसे ऐंठती थी. उस के फरेब में आ कर मैं उस के हुस्न के जाल में फंस गया था. जब भी मौका मिलता था, हम संबंध बना लेते थे.

कभीकभी औफिस में भी यह सब हो जाता था. एक दिन मेरे मन में न जाने क्या आया कि मैं ने वैब कैमरे से यह फिल्म बना ली.’’

‘‘फिल्म की सीडी मार्केट में कैसे आई?’’ पुलिस ने पूछा तो जवाब में कुंदन ने कहा, ‘‘कुछ दिनों पहले मेरा कंप्यूटर खराब हो गया था. मिडिल बाजार में मुकेश की कंप्यूटर रिपेयर की दुकान है. अपना कंप्यूटर ठीक करवाने के लिए मैं ने उसे अपने घर बुलवाया. लेकिन घर में कंप्यूटर ठीक नहीं हुआ तो वह सीपीयू अपने साथ ले गया.’’

इतना कह कर कुंदन ने पानी मांगा. 2 गिलास पानी पीने के बाद उस ने आगे कहा, ‘‘अगले दिन मैं मुकेश की दुकान पर गया तो उस ने कहा कि हार्डडिस्क क्रैश हो गई है, इसलिए बदलनी पड़ेगी. मेरे कहने पर उस ने हार्डडिस्क बदल दी. पुरानी हार्डडिस्क उस के पास ही रह गई. मुझे लगता है कि पुरानी हार्डडिस्क को नई में लोड करते समय उस ने मेरी इस फिल्म को देख लिया. उस के बाद पैसा कमाने के लिए उस की सीडी बना कर बाजार में पहुंचा दिया.’’

बृजेश सूद ने कुंदन को अपनी बातों में उलझा लिया और गोबिंदराम 2 सिपाहियों को साथ ले कर कुंदन कुमार की पुरानी हार्डडिस्क बरामद करने मुकेश की दुकान पर जा पहुंचे. कुछ देर बाद आ कर उन्होंने बताया कि दुकान बंद है. लेकिन उन्होंने दुकान सील कर के अपने दोनों सिपाही वहां बैठा दिए हैं. इस के बाद एडीशनल एसपी कुंवर वीरेंद्र सिंह के आदेश पर पुलिस ने कुंदन कुमार के औफिस और घर को सील कर दिया. अगले दिन 2 पार्षदों की उपस्थिति में मुकेश की दुकान खुलवाई गई. कुंदन कुमार भी पुलिस के साथ वहां मौजूद था. उस से दुकान में मिली हार्डडिस्कों से अपनी हार्डडिस्क पहचानने को कहा गया. उस ने इधरउधर देख कर कहा, ‘‘मेरी हार्डडिस्क दुकान में नहीं है.’’

मुकेश भी वहां मौजूद था. जब उस से कहा गया तो उस ने दुकान से 3 हार्डडिस्कें निकाल कर पुलिस के हवाले करते हुए कहा कि ये तीनों हार्डडिस्कें कुंदन कुमार की हैं. साथ ही उस ने यह भी कहा कि उसे नहीं पता कि इन सब में क्या था. उस ने इन के अंदर ताकझांक करने की कोई कोशिश नहीं की थी. पुलिस ने तीनों हार्डडिस्कें कब्जे में ले कर मुकेश की दुकान की गहन तलाशी ली. दुकान में कोई भी आपत्तिजनक चीज नहीं मिली. इस के बाद पुलिस ने कुंदन कुमार के औफिस की तलाशी ली, जहां पुलिस को पुरानी हार्डडिस्कें तो मिली हीं, 87 सीडीज और 25 फ्लौपीज भी मिलीं. जब उन सब को देखा गया तो उन सभी में अश्लील फिल्में थीं. यही नहीं, 4 ब्लूफिल्मों का हीरो खुद कुंदन कुमार था.

अनु के अलावा 3 अन्य लड़कियों के साथ भी उस ने अश्लील फिल्में बना रखी थीं. जिन फिल्मों में कुंदन कुमार खुद हीरो था, उन्हें देख कर साफ लग रहा था कि उन्हें औफिस में ही बनाया गया था. इसलिए फिल्म में दिखाई देने वाला सामान यानी चादर, कुशन, गिलाफ, तकिए और गिलासों के अलावा लकड़ी का वह छोटा सा दीवान भी कब्जे में ले लिया गया, जिस पर शारीरिक संबंध बनाया गया था. इसी के साथ कुंदन कुमार की निशानदेही पर उस के घर से वे कपड़े भी बरामद कर लिए गए थे, जिन्हें उस ने शारीरिक संबंध बनाने से पहले पहन रखे थे. बाद में तो उस ने कपड़े उतार दिए थे. कुंदन चूंकि गंजा था, जवान लड़की को शायद यह बात खल जाती, इसलिए पूरे कपड़े उतारने के बाद भी उस ने सिर पर आकर्षक कैप पहन रखी थी. वह कैप भी पुलिस ने जब्त कर ली थी.

सारी चीजों को कब्जे में लेने के बाद पुलिस ने कुंदन कुमार को थाने ला कर पूछताछ शुरू की. इस पूछताछ में उस ने यह तो खुलासा कर दिया कि वह शराब और शबाब का शौकीन था, खासकर कमउम्र की लड़कियों के साथ उसे बहुत मजा आता था. इसी के साथ उस की एक कमजोरी भी सामने आई कि अकसर वह कमउम्र लड़कियों के साथ शारीरिक संबंध बनाते समय वैब कैमरे से उन की फिल्में बना लिया करता था. इस के लिए उस ने अपने औफिस के निजी कमरे में एक वैबकैम लगवा रखा था. बाद में वह अपनी उन फिल्मों को देख कर रोमांचित होता था.

कुंदन कुमार ने अपनी सारी कमजोरियों को बता कर अपना अपराध स्वीकार कर लिया था, लेकिन किसी भी लड़की के बारे में उस ने कुछ नहीं बताया था. शायद बताना नहीं चाहता था. उस ने पुलिस से कहा, ‘‘ये पेशेवर लड़कियां थीं, जो पैसे के लिए मेरे पास आती थीं. खायापिया, मुझे खुश करने का पैसा लिया और चलती बनीं.’’

‘‘लेकिन अनु तो तुम्हारे यहां नौकरी करती थी?’’ पुलिस ने पूछा.

‘‘जी, मैं ने उसे नौकरी पर रखा था, लेकिन वह भी अन्य लड़कियों की तरह पैसे ऐंठने के लिए खुशीखुशी मेरे साथ संबंध बनाने को राजी हो गई थी.’’ कुंदन कुमार ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, फिलहाल यह बताओ कि अनु जब नौकरी करने आई थी तो उस का बायोडाटा तो तुम ने लिया ही होगा?’’ पुलिस ने थोड़ा सख्त लहजे में पूछा.

कुंदन कुमार ने घबरा कर कहा, ‘‘जी हां, लिया था.’’

इस के बाद पुलिस कुंदन कुमार को उस के औफिस ले गई और अनु का बायोडाटा बरामद कर लिया. उस पर उस का फोटो लगा था. फोटो में वह वाकई निहायत खूबसूरत लग रही थी. वह कस्बा रहेड़ू की रहने वाली थी. बायोडाटा से उस का पता ही नहीं, फोन नंबर भी मिल गया था. पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो फोन अनु के पिता ने रिसीव किया. उन्होंने बताया कि अनु पिछले कई दिनों से कहीं गई हुई है. कहां गई है, इस बारे में वह कुछ नहीं बता पाए. पुलिस ने अनु की तलाश में अपना पूरा जाल बिछा दिया. इसी के साथ उस के घर वालों के अलावा कुंदन कुमार पर पुलिसिया शिकंजा कसा गया तो 2 दिनों में सोलन जिले के कनलख कस्बा के एक घर में अनु मिल गई. पिछले कुछ दिनों से वह वहां छिप कर रह रही थी.

शिमला ला कर पुलिस ने अनु से पूछताछ की तो अनु ने बताया कि एक भाई और 3 बहनों में वह सब से बड़ी थी. 12वीं पास करने के बाद वह पुलिस में भरती हो गई. लेकिन वहां दिल नहीं लगा तो जल्दी ही उस ने वह नौकरी छोड़ दी. इस के बाद वह किसी औफिस में नौकरी तलाश करने लगी. इस के लिए उस ने कंप्यूटर कोर्स भी कर लिया था. एक दिन उसे उस की एक सहेली ने कुंदन कुमार के बारे में बता कर कहा कि उसे औफिस में काम करने के लिए एक लड़की की जरूरत है. कुंदन कुमार के औफिस जा कर अनु उस से मिली तो उस ने उस का बायोडाटा और फोटो लेने के अलावा उस का इंटरव्यू भी लिया. इस के बाद उस से कहा कि वह एक हफ्ते बाद आ कर मिले. हफ्ते भर बाद अनु गई तो उसे अगले हफ्ते आने को कहा.

महीना भर इसी तरह टरकाने के बाद एक दिन कुंदन कुमार ने कहा, ‘‘ऐसा है बेटा, तुम्हारी परफौरमेंस तो अच्छी नहीं है, फिर भी मैं तुम्हें नौकरी पर रखने के बारे में सोच रहा हूं.’’

‘‘थैंक्यू सर,’’ अनु ने चहकते हुए कहा, ‘‘आप ने मुझे यह नौकरी दे दी न सर तो देखिएगा, आप को मेरी तरफ से शिकायत का कोई मौका नहीं मिलेगा. मुझे नौकरी की जरूरत तो है ही, इस के अलावा मैं अपनी मेहनत से जिंदगी में कुछ बनना चाहती हूं.’’

कुंदन कुमार उठे और अनु की पीठ थपथपा कर बोले, ‘‘मैं तुम्हारी भावना से बहुत खुश हूं बेटी. लेकिन पहले मेरी एक बात ध्यान से सुन लो. अभी मैं तुम्हें रैग्युलर नौकरी पर न रख कर ट्रेनी के रूप में रखूंगा. 3 महीने तुम्हें औफिस के कामों की, कंप्यूटर की, सेल्स टैक्स व इनकम टैक्स संबंधी रिटर्न भरने और चुस्तदुरुस्त बनी रहने की ट्रेनिंग दी जाएगी. इस बीच तुम्हें 12 सौ रुपए महीने मिलेंगे. इस बीच तुम ने बढि़या काम किया तो तुम्हारी नौकरी रैग्युलर कर के तुम्हें 5 हजार रुपए महीने तनख्वाह दी जाएगी. हर साल 5 सौ रुपए का इन्क्रीमेंट के अलावा हर साल दीवाली पर 1 महीने की तनख्वाह बोनस में मिला करेगी.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छा है सर.’’

‘‘नहीं, अभी मेरी बात पूरी नहीं हुई. पहले पूरी बात सुन लो.’’

‘‘देखो, तुम्हारा जो ट्रेनिंग पीरियड है, अगर यह संतोषजनक नहीं रहा तो तुम्हें नौकरी से हटा दिया जाएगा या फिर 3 महीने के लिए तुम्हारा ट्रेनिंग पीरियड और बढ़ा दिया जाएगा. अब फैसला तुम्हें करना है.’’

अनु कुछ देर सोचती रही, फिर बोली, ‘‘ठीक है सर, मुझे मंजूर है.’’

इस के बाद अनु मालरोड स्थित कुंदन कुमार के औफिस में नियमित ड्यूटी पर जाने लगी. औफिस में जहां कुंदन कुमार बैठता था, वहीं बगल में कंप्यूटर टेबल रखी थी. उसी पर अनु को बैठना था. वहीं बगल में दीवार से सटा कर छोटा सा दीवान रखा था, जिस पर लेट कर कुंदन कुमार आराम किया करता था. औफिस में कोई खास काम तो था नहीं, लिहाजा कुंदन कुमार बैठा अनु से गप्पें हांकता रहता था. कभीकभी उसे औफिस के कामों के बारे में समझाने बैठ जाता. वह जब भी बैंक में पैसा जमा करने अथवा निकलवाने के लिए जाता, अनु को भी साथ ले जाता. रुपए भी वह उसी से गिनवाता.

औफिस में छोटा सा किचन था. उस में रखे फ्रिज में कई तरह के जूस मौजूद रहते थे. चाय बनाने की भी व्यवस्था थी. कुंदन का जब भी मन होता, अनु से चाय बनवा कर अथवा फ्रिज से जूस मंगवा कर पीता. उस ने अनु से भी कह रखा था कि जब भी उस का मन हो, वह चाय या जूस पी लिया करे. इसी तरह 2 महीने बीत गए. एक दिन कुंदन कुमार बाहर से आया. उस समय अनु कंप्यूटर पर गेम खेल रही थी. कुंदन ने आते ही उस के गाल को गर्मजोशी से चूम कर कहा, ‘‘आज मैं बहुत खुश हूं अनु.’’

अनु ने उस की बात पर ध्यान न देते हुए कुंदन पर सख्त ऐतराज जताते हुए कहा, ‘‘मुझे आप से यह उम्मीद नहीं थी सर. आप ने मुझे किस कर के बहुत गलत किया. आप को ऐसा हरगिज नहीं करना चाहिए था.’’

कुंदन कुमार ने भी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारा गाल चूम लिया तो कौन सा गजब कर दिया. मुझे एक खुशखबरी मिली थी. इसी वजह से खुश हो कर मैं ने तुम्हें अपनी बेटी की तरह किस कर लिया. इस का तुम्हें बुरा लगा तो आगे से मैं ध्यान रखूंगा.’’

अनु के बताए अनुसार, यह बात आईगई हो गई. उसे भी लगा कि शायद कुंदन अपनी जगह ठीक था. वैसे भी उम्र में वह उस के पिता से भी कहीं ज्यादा का था. इसलिए अनु ने उस की ओर से अपना मन साफ कर लिया. मगर इस के लगभग 10 दिनों बाद कुंदन ने अचानक अनु को अपनी बांहों में कस कर भींच लिया. इस बार अनु ने पहले से भी कहीं ज्यादा सख्त लहजे में ऐतराज जताया. यहां तक कि नौकरी छोड़ देने की धमकी भी दी. कुंदन ने इस बार भी उसे यह कह कर मना लिया कि उस की शक्ल हूबहू उस की बेटी जैसी है. जिस तरह ज्यादा खुश होने पर वह अपनी बेटी को बांहों में ले कर प्यार करता था, उसी तरह उस से भी कर बैठा.

इसी के साथ कुंदन कुमार ने कान पकड़ कर अनु से माफी भी मांगी. हालांकि जिस तरह कुंदन कुमार ने अनु को अपनी बांहों में भर कर भींचा था, हर तरह से ऐतराज वाली बात थी. इस के बाद भी कुंदन की बात पर भरोसा कर के अनु ने इस बार भी उस की गलती माफ कर दी थी. कुछ दिनों बाद तो हद ही हो गई. कुंदन कुमार अनु को ले कर बैंक गया था. वहां से कोई फाइल लेने का बहाना कर के उसे अपने घर ले गया. उस समय घर में कोई नहीं था. ताला खोलने के बाद कुंदन कुमार ने उसे ले जा कर एक ऐसे कमरे में बैठा दिया, जहां कंप्यूटर लगा था. उस पर सीडी लगा कर वह बोला, ‘‘मैं अभी आया, तब तक तुम यह फिल्म देखो.’’

इस के बाद वह कमरे से चला गया. अनु ने कंप्यूटर स्क्रीन पर नजरें जमा दीं. कुछ देर में फिल्म चलने लगी. कंप्यूटर स्क्रीन पर जो दृश्य उभरे, उन्होंने अनु के होश उड़ा दिए. वह एक ब्लूफिल्म थी. फिल्म के अश्लील दृश्यों को देख कर अनु घबरा गई, उस का हलक सूख गया. उसे कुछ नहीं सूझा तो वह दरवाजा खोल कर भागी. इस के बाद अनु ने कुंदन कुमार के यहां नौकरी पर जाना बंद कर दिया. वह अपनी तनख्वाह भी लेने नहीं गई. कुंदन कुमार ने भी उस से संपर्क करने की कोशिश नहीं की. इसी तरह करीब 2, ढाई महीने बीत गए. इस बीच अनु कहीं और नौकरी तलाश करती रही, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली.

संयोग से एक दिन लोअर बाजार में कुंदन कुमार से अनु की मुलाकात हो गई. कुंदन कुमार उस की बांह पकड़ कर एक किनारे ले गया और वात्सल्य भरे लहजे में उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला, ‘‘मुझे गलत न समझ बेटी, उस दिन मैं ने तुम्हारे लिए अपनी ओर से वह हिंदी फिल्म लगाई थी, जो उस सुबह ही मैं ने देखी थी. मुझे इस बात की जरा भी जानकारी नहीं थी कि उस सीडी में ब्लूफिल्म है. मेरा यकीन करो बेटी, इस में मेरा जरा भी कुसूर नहीं है.’’

‘‘कुसूर नहीं है तो इस तरह की गंदी फिल्म घर पर ला कर रखी ही क्यों?’’ अनु ने तल्खी से कहा, ‘‘ऐसी फिल्में देखने के बाद, वह भी इस उम्र में, आप क्या समझते हैं कि आप अच्छे कैरेक्टर के मालिक होंगे, कतई नहीं.’’

‘‘अब तुम्हें कैसे समझाऊं बेटी. दरअसल हम जैसे हाईसोसायटी वालों के घरों में यह सब आम बात है. हमारे यहां बच्चे, औरतें सब इस तरह की फिल्में देख कर मनोरंजन करते हैं. तुम मिडिल क्लास की हो, इसलिए तुम्हें यह सब अजीब लग रहा है. उस दिन गलती से ब्लूफिल्म लग गई थी तो कंप्यूटर बंद कर देती या आवाज दे कर मुझे बुला लेती. तुम तो सिर पर पांव रख कर ऐसे भागी, जैसे कोई बम फट गया हो.’’

अनु कुंदन कुमार को बीचबीच में टोकने का प्रयास करती रही, लेकिन कुंदन उसे नजरअंदाज कर के अपनी बात कहता रहा. अंत में उस ने कहा, ‘‘अब मैं तुम्हें कभी बेटी भी नहीं कहूंगा. जब तुम्हें मेरे दिमाग में, मेरे काम में और मेरी हर हरकत में गंदगी ही दिखाई दे रही है तो फिर इस रिश्ते को बदनाम क्यों किया जाए. बस मेरी एक बात ध्यान से सुन लो अनु कि मैं आज भी तुम्हें अपनी बेटी की तरह ही मानता हूं.

‘‘मैं ने जानबूझ कर कोई गलती नहीं की. बेकसूर होते हुए भी मैं तुम्हारी नफरत का शिकार हो गया. अब इस की सजा मैं अपने आप को यह देना चाहता हूं कि तुम्हारे ट्रेनिंग पीरियड का वेतन 2 हजार रुपए महीने कर दूंगा. 3 महीने के बाद नौकरी रैग्युलर कर के तनख्वाह 8 हजार रुपए महीने और हर साल बोनस भी इतना ही दूंगा. ठीक लगे तो कल से औफिस आना शुरू कर दो. तुम्हारी सीट आज भी खाली है.’’

अपनी बात पूरी कर के कुंदन कुमार क्षण भर के लिए भी वहां नहीं रुका. तेज कदमों से चलता हुआ वह पलभर में अनु की नजरों से ओझल हो गया. अनु उस के झांसे में आ कर अगले दिन से उस के औफिस में काम करने लगी. कुछ दिन तो ठीकठाक बीते. एक दिन दोपहर को कुंदन कुमार ने फ्रिज से फ्रूटजूस के 2 टेट्रापैक निकाल कर एक उसे पीने को दिया और एक खुद पीने लगा. जूस पीते ही अनु पर नशा सा छाने लगा. जल्दी ही वह अर्धबेहोशी की हालत में पहुंच गई. कुंदन कुमार ने उसे उठा कर दीवान पर लिटा दिया. इस के बाद कपड़े उतार कर शारीरिक संबंध बनाने लगा.

अनु के साथ कुछ हो रहा है, इस बात की जानकारी तो उसे थी, लेकिन वह विरोध करने की स्थिति में नहीं थी. शाम 6 बजे वह होश में लौटी तो उसे उस सब का कुछकुछ याद आने लगा. उस ने इस बारे में कुंदन कुमार से पूछा तो उस ने उसे उस की ब्लूफिल्म दिखा दी. साथ ही धमकी दी कि इस सब के बारे में किसी को कुछ बताया तो वह उस की ब्लूफिल्म की सीडी बाजार में उतार देगा.  इस से अनु बुरी तरह डर गई. इस के बाद जब भी कुंदन कुमार का मन होता, उस से अपने मन की कर लेता. इस के एवज में वह उस की हर छोटीबड़ी जरूरत का ध्यान रखने लगा. वह सीडी बाजार में कैसे पहुंची, इस बारे में कुंदन कुमार और अनु ने कुछ भी मालूम होने से मना कर दिया. जैसे ही यह सब अखबारों में छपना शुरू हुआ, उस ने काफी पैसे दे कर अनु को छिपा दिया था.

अनु से पूछताछ के बाद कुंदन के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उस हवालात में बंद कर दिया गया. इस के बाद वह पुलिस को धमकियां देने लगा कि वह सभी पुलिस वालों को देख लेगा. लेकिन पुलिस के पास पुख्ता सबूत थे. इस पर भी वह खुद को बेकसूर बता रहा था, साथ ही कह रहा था कि उसे किसी साजिश के तहत फंसाया जा रहा है. उस ने थाने की मैस का खाना खाने से इनकार कर दिया था. कह रहा था कि उस का खाना किसी बढि़या होटल से मंगवाया जाए. एडीशनल एसपी कुंवर वीरेंद्र सिंह ने कहा कि जब तक वह यहां है, उसे यहीं का खाना मिलेगा. जैसेतैसे उस ने थोड़ा सा खाना खा लिया तो आधी रात में दिल का दौरा पड़ने का शोर मचाने लगा. उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां चैकअप के बाद डाक्टरों ने उसे पूरी तरह स्वस्थ बताया.

अगले दिन पुलिस ने उसे न्यायिक दंडाधिकारी के सम्मुख पेश कर के 5 दिनों के कस्टडी रिमांड पर ले कर विस्तारपूर्वक पूछताछ की. रिमांड अवधि में भी वह कभी सीने में दर्द का तो कभी किसी और तरह की परेशानी का ढोंग कर के पुलिस वालों को अस्पतालों के चक्कर लगवाता रहा. आखिर उस की सारी नौटंकियां फ्लौप साबित हुईं. जैसेतैसे पुलिस रिमांड की अवधि समाप्त हुई और पुलिस ने उसे फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जेल भिजवा दिया, जहां से उसे सजा सुनाए जाने तक जमानत नहीं मिली.

चार्जशीट दाखिल होने के बाद इस केस की सुनवाई 2 सालों तक चली. इस मामले में उसे 10 सालों की कैद की सजा हुई. सजा सुनाए जाने के समय विद्वान जज महोदय ने टिप्पणी करते हुए उसे लताड़ा था कि जिस लड़की से दुष्कर्म के आरोप में उसे यह सजा दी जा रही है, वह उस की बेटी से भी कम उम्र की थी. ऐसे में उस के इस घिनौने अपराध के प्रति देश की कोई भी अदालत नरम रवैया अपनाने के बारे में शायद ही सोच सके. खैर, पुलिस ने तो कुंदन को उस के अपराध की सजा दिला दी, लेकिन वह अश्लील सीडी बाजार में कैसे पहुंची, इस रहस्य की तह तक अंत तक नहीं पहुंच सकी और न ही उन 3 अन्य लड़कियों का पता लगा सकी, जिन के साथ कुंदन कुमार की अश्लील फिल्मों की कई सीडी बरामद हुई थीं.

इस मामले से मिडिल क्लास की उन बेरोजगार लड़कियों को सावधान हो जाना चाहिए, जिन्हें नौकरी देने के नाम पर नोचने के लिए इस तरह के कामुक भेडि़ए घात लगाए बैठे रहते हैं. Hindi crime story

—कथा में पात्रों के नाम बदले हुए हैं.

 

Suspense Story: शराब के नशे में शबाब की चाहत

Suspense Story: जय सिंह की नीयत के बारे में जान कर अमरजीत और मीना का खून खौल उठा. इस के बाद जहां जय सिंह अपनी जिद पूरी करने पर अड़ गया वहीं दोनों बहनें भी पीछे नहीं हटीं और…  पि  छले 2 दिनों से हो रही बारिश के थमने के बाद अमेंद्र सिंह 2 मजदूरों को अपने ट्रैक्टर पर बैठा कर खेतों की ओर चल पड़े थे. उन के पास 20 बीघा जमीन थी, जिस में उन्हें गवार की बोआई करनी थी. जैसे ही वह खेतों पर पहुंचे, उन्हें किसी जीव के सड़ने की दुर्गंध महसूस हुई.

अमेंद्र ने इधरउधर नजरें घुमा कर यह जानने की कोशिश की कि यह बदबू आखिर आ कहां से रही है. तभी उन्हें खेतों के नीचे वाले हिस्से में 5-7 कुत्तों का झुंड दिखाई दिया. कुत्ते जमीन के अंदर से कुछ खींच रहे थे. उन्हें लगा कि कोई जानवर मरा पड़ा है, जिसे कुत्ते खा रहे हैं.

उन्होंने गांव के कोटवाल भजनलाल को बुलाने के लिए अपने एक मजदूर को भेज दिया. गांवों में आज भी मृत जानवरों को दफनाने का काम कोटवाल करते हैं. भजनलाल आया तो उस ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘भैयाजी, यह जानवर की नहीं, किसी आदमी की लाश है.’’

आदमी की लाश होने की बात सुन कर खेतों में बुआई कर रहे अमेंद्र चौंके. वह भाग कर लाश के पास पहुंचे. वहां गड्ढा खोद कर दफनाई गई आदमी की लाश को कुत्तों ने पंजों से खोदखोद कर बाहर निकाल लिया था. लाश बाहर आ गई थी, इसलिए बदबू फैल रही थी. मजदूरों को लाश के पास छोड़ कर अमेंद्र सिंह कोटवाल भजनलाल को साथ ले कर तुरंत हनुमानगढ़ जंक्शन के थाना सदर पहुंचे. थानाप्रभारी राजेश कुमार सिहाग से मिल कर उन्होंने खेत के पास लाश पड़ी होने की बात बताई तो थानाप्रभारी ने इस बात की जानकारी पुलिस अधिकारियों को दे कर खुद सहयोगियों के साथ घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.

राजेश कुमार सिहाग ने घटनास्थल पर पहुंच कर देखा कि खेतों के नीचे वाले हिस्से में एक लाश पड़ी है. उस के शरीर की चमड़ी गायब थी. दोनों पैरों की हड्डियां दिखाई दे रही थीं. देखने से ही लग रहा था कि लाश 8-10 दिन पुरानी थी. थानाप्रभारी लाश और घटनास्थल का निरीक्षण कर रहे थे कि सीओ अतर सिंह भी घटनास्थल पर आ पहुंचे. अब तक वहां काफी भीड़ लग गई थी. पूछने पर भीड़ ने बताया कि मृतक यहां का नहीं लगता. इस से पुलिस को लगा कि हत्या कहीं और कर के सबूत मिटाने के लिए लाश को यहां ला कर गाड़ दिया गया है.

अतर सिंह के निर्देश पर डौग स्क्वायड को लाया गया, लेकिन इस से भी पुलिस को कोई लाभ नहीं मिला. इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने थाने आ कर अमेंद्र की तहरीर पर अज्ञात की हत्या का मुकदमा अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज कर लिया. सीओ ने इस मामले की जांच सबइंसपेक्टर राजेश कुमार सिहाग को सौंप दी. मृतक की पहचान के बिना हत्यारे तक पहुंचना बहुत मुश्किल था. लेकिन राजेश कुमार सिहाग का मानना था कि मृतक भले ही यहां का रहने वाला नहीं है, लेकिन हत्यारे यहीं कहीं आसपास के होंगे. मृतक या हत्यारे तक पहुंचना चुनौती था, लेकिन राजेश कुमार ने इस चुनौती को स्वीकार कर आगे की जांच शुरू कर दी.

घटनास्थल पर लाश के अलावा ऐसा कोई सबूत नहीं मिला था, जिस से कुछ मदद मिल सकती. अधिकतर हत्या जैसे मामलों में जरजोरू या जमीन का विवाद सामने आता है. इसी के साथ अधिकतर यह भी देखा गया है कि अपराधी कितना ही शातिर क्यों न रहा हो, वारदात की जगह पर अनजाने में ही सही, कोई न कोई सबूत अवश्य छोड़ जाता है. राजेश कुमार सिहाग इन्हीं दोनों तथ्यों के आधार पर मामले का खुलासा करने में लग गए. राजेश कुमार सिहाग ने जिले के ही नहीं, नजदीक के अन्य प्रदेशों के पुलिस थानों से भी पता किया कि कहीं कोई गुमशुदगी तो नहीं दर्ज है. लेकिन उन्हें कहीं से भी किसी की गुमशुदगी की कोई सूचना नहीं मिली. मृतक की पहचान न होने की वजह से मामले की जांच आगे नहीं बढ़ पा रही थी.

थानाप्रभारी को उम्मीद थी कि घटनास्थल से कोई न कोई ऐसा सूत्र अवश्य मिल जाएगा, जिस से वह हत्यारे को ढूंढ निकालेंगे. इसी उम्मीद पर वह अपने रीडर बृजमोहन मीणा और किसान अमेंद्र सिंह को साथ ले कर एक बार फिर घटनास्थल पर पहुंचे. अमेंद्र के ही नहीं, आसपास के लगभग सभी खेत अभी खाली पडे़ थे. खेतों के चारों ओर एक निर्माणाधीन मकान के अलावा दूरदूर तक कोई मकान या झोपड़ी नहीं थी. राजेश कुमार सिहाग ने सूत्र की तलाश में पूरी ताकत झोंक दी. घटनास्थल के 20-25 मीटर के दायरे को उन्होंने जांच केंद्र बनाया. बरसात हो जाने की वजह से कोई सूत्र मिलने की उम्मीद कम ही थी, इस के बावजूद उन की कोशिश रंग लाई.

उन्होंने गौर से देखा तो लाश जिस गड्ढे में दफनाई गई थी, वहां खेत में गड्ढे से 7-8 फुट की दूरी पर पश्चिम की ओर लग रहा था कि लाश इधर से घसीट कर लाई गई थी. पानी बरस जाने से घसीटे जाने का वह निशान धूमिल तो पड़ गया था, लेकिन अगलबगल की मिट्टी का जो उभार था, वह किसी भारी चीज के घसीटने की चुगली कर रहा था. घसीटे जाने का वह निशान वहां से थोड़ी दूरी पर स्थित उस निर्माणाधीन मकान की ओर जा रहा था. राकेश कुमार को सूत्र मिल गया था. वह मन ही मन प्रफुल्लित हो उठे, क्योंकि जांच को दिशा मिल गई थी. उन्होंने अमेंद्र सिंह से पूछा, ‘‘यह सामने वाला घर किस का है, कौन रहता है यहां?’’

‘‘साहब, यह मकान शृंगारा सिंह बाजीगर का है. 7-8 साल पहले बीकानेर क्षेत्र से आ कर यहां 12 बीघा जमीन खरीद कर बस गया था. 2 साल पहले वह मर चुका है. अब उस की पत्नी और छोटा बेटा यहां रह रहे हैं. लेकिन इस समय उस की 2 बेटियां, जिन की शादी हो चुकी हैं और एक दोहती यहीं हैं.’’

राजेश कुमार सिहाग थाने लौट आए और सारी जानकारी सीओ अतर सिंह को दी. इस जानकारी से संतुष्ट हो कर उन्होंने थानाप्रभारी को अपने विवेक के अनुसार काररवाई करने का आदेश दिया. राजेश कुमार सिंह को शृंगारा सिंह के घर में रहने वालों पर संदेह था, इसलिए उन्होंने काररवाई करने का मन बना लिया. 2 महिला सिपाही साथ ले कर राजेश कुमार शृंगारा सिंह के घर पहुंचे. घर में 4 महिलाएं और एक बच्चा था. उन्होंने घर की मालकिन से पूछा, ‘‘मांजी, पुलिस ने अमेंद्र सिंह के खेत में एक लाश बरामद की थी. आप ने बीते 10-12 दिनों में उन के खेत की ओर किसी आदमी को आतेजाते देखा तो नहीं?’’

‘‘नहीं साहब, मैं ने तो इधर किसी को आतेजाते नहीं देखा.’’ शृंगारा की विधवा ने बताया.

उन्होंने शृंगारा की पत्नी से ही नहीं, बेटियों से भी पूछताछ की. सब ने लगभग एक जैसा जवाब दिया. वह पूछताछ कर रहे थे कि  तभी शृंगारा सिंह की दोहती (बेटी की बेटी) गुलबदन (बदला हुआ नाम) उन के लिए चाय ले कर आई. उन की नजर उस पर गई तो वह उन्हें सहमी हुई सी लगी. उन्होंने बाकी लोगों को बाहर भेज कर उसे रोक लिया. जवानी की दहलीज पर कदज रख रही गुलबदन शृंगारा की बड़ी बेटी की बेटी थी, जो मिडिल स्कूल में पढ़ रही थी और छुट्टियां होने की वजह से नानी के पास आई हुई थी. गेहुंआ रंग की आभा के साथ गुल की सुघड़ शारीरिक बनावट गजब का आकर्षण पैदा कर रही थी. धवल दंत पंक्ति और नितंबों तक लहराते काले बालों की चुटिया 14-15 साल की कमसिन गुल को और ज्यादा आकर्षक बनाती थी.

राजेश कुमार सिहाग के सामने आते ही गुल की रुलाई फूट पड़ी. सुबकते हुए उस ने कहा, ‘‘साहब, मैं ने कुछ नहीं किया. मेरी दोनों मासियां ही कुछ बता सकती हैं.’’

गुल का यह जवाब और चेहरे पर उभरा अपराधबोध का भाव सब कुछ कह गया. राजेश कुमार ने दोनों महिला कांस्टेबलों को इशारा कर के गुल की दोनों मासियां यानी अमरजीत कौर और मीना कौर को पूछताछ के लिए एक बार फिर बुला लिया. सीओ अतर सिंह की मौजूदगी में राजेश कुमार सिहाग ने दोनों बहनों से कहा, ‘‘गुल तो बच्ची थी, लेकिन तुम दोनों समझदार हो. उस ने मुझे सब कुछ साफसाफ बता दिया है. अब अगर तुम झूठ बोलती हो तो वह तुमहारे लिए ही नुकसानदायक साबित होगा. अगर तुम सबकुछ सचसच बता देती हो तो पुलिस तुम्हारी मदद कर सकती है.’’

अंधेरे में फेंका गया उन का यह तीर सही निशाने पर लगा. दोनों बहनों ने बिना किसी हीलहवाली के 5 दिनों पहले कुल्हाड़ी और कस्सी से की गई जय सिंह की निर्मम हत्या का अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उन का कहना था कि जय सिंह अव्वल दर्जे का शराबी और अय्याश था. उसे अपनी ओछी हरकतों की वजह से जान से हाथ धोना पड़ा. पुलिस द्वारा की गई पूछताछ में जय सिंह की हत्या की जो कथा उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी. राजस्थान के जिला बीकानेर की तहसील जामनगर का एक गांव है भरूपावा. इसी गांव में रहता था शृंगारा सिंह बाजीगर. परिवार में पत्नी, 4 बेटियां और एक बेटा था. बेटा सब से छोटा था. बड़ी 2 बेटियों की शादी हो चुकी थी.

मामूली खेतीबाड़ी होने की वजह से शृंगारा सब्जी की दुकान भी लगाता था. उस के कहीं चले जाने पर दुकान का जिम्मा दोनों छोटी बेटियां अमरजीत कौर और मीना कौर संभालती थीं. उस बीच जय सिंह उन का पक्का और नियमित ग्राहक बन गया था. वह ठीकठाक कपड़ों में किसी हीरो से कम नहीं लगता था. जय सिंह मूलरूप से जिला झुंझुनू के बजावा गांव का रहने वाला था और उन दिनों खनन विभाग की रायल्टी वसूलने वाली टीम में नौकरी कर रहा था. उस का पिता बालू सिंह बीकानेर के एक होटल में वाचमैनी करता था. जय सिंह को जो वेतन मिलता था, वह तो मिलता ही था, ऊपरी कमाई भी कर लेता था. उस का ज्यादातर समय दोनों बहनों की सब्जी की दुकान पर ही बीतता था.

उसी बीच उस ने छोटी बहन मीना का मोबाइल नंबर हासिल कर लिया तो उसी से नहीं, अमरजीत से भी फोन से बातें करने लगा. वह दोनों बहनों को उपहार भी देता था. धीरेधीरे उस ने दोनों बहनों से दोस्ती गांठ ली थी. सन 2010 के आसपास शृंगारा सिंह भरूपावा के अपने खेत और मकान बेच कर डबली राठान गांव में 12 बीघा जमीन खरीद ली और वहीं पक्का मकान बना कर रहने लगा. यहीं से उस ने बाकी बची दोनों बेटियों, अमरजीत कौर और मीना कौर की शादियां कर दीं. इस के बाद सन 2014 की शुरुआत में उस की मौत हो गई.

शृंगारा के परिवार में बूढ़ी पत्नी और 8-10 साल का बेटा बचा था. चारों बेटियों ने स्वयं को बेटा समझते हुए मां को संभालने का जिम्मा सा ले लिया. हर बेटी 1-2 महीने के लिए मां के पास आ जाती. जय सिंह के पास मीना का मोबाइल नंबर था ही, इसलिए उस से उस की बातें होती रहती थी. ज्यादातर मीना और अमरजीत एक साथ मायके आती थीं. दोनों बहनों के मायके आने का पता चलते ही जय सिंह उन से मिलने आ जाता. अव्वल दर्जे का शराबी जय सिंह 1-2 दिन रुक कर अपने काम पर लौट जाता. 20 मई को जय सिंह शृंगारा सिंह के घर आ कर 2 दिनों बाद लौट गया था. उसे जब भी आना होता, वह मोबाइल पर बता देता था.

इस बार कुछ दिनों पहले जय सिंह के जाने के बाद गुलबदन गुमसुम सी आंगन में बैठी थी. उस के दाएं गाल पर बड़ा सा चकता उभरा था. उसे इस तरह उदास देख कर अमरजीत ने पूछा, ‘‘क्या बात है गुल, उदास क्यों है? तेरे गाल को क्या हुआ?’’

जवाब देने के बजाए गुल रोने लगी. अमरजीत ने गुल को सीने से लगा कर ढांढ़स बंधाया. आंसू पोंछ कर पूछा, ‘‘सचसच बता क्या बात है?’’

गुल ने सिसकते हुए कहा, ‘‘मौसी कल रात जय मामा रात में मेरी चारपाई पर आ कर बैठ गए. उन्होंने दांतों से यहां काट लिया,’’ चकत्ते पर अंगुली रख कर गुल ने कहा, ‘‘उस के बाद उस ने मेरी सलवार खोलने की कोशिश की. तभी मीना मौसी जाग गईं. अंधेरा होने की वजह से वह मामा को देख नहीं पाईं और वह चुपके से अपनी चारपाई पर चला गया. सुबह उन्होंने कहा कि अगर मैं ने यह बात किसी को बताई तो वह मेरा गला दबा कर मुझे मार देंगे.’’

जय सिंह की इस घिनौनी हरकत के बारे में सुन कर अमरजीत का खून खौल उठा. मीना भी आंगन में आ गई थी. वह तो गुस्से में कांपने लगी थी. अमरजीत ने तुरंत जय सिंह को फोन किया. उस के फोन रिसीव करते ही वह उसे धमकाते हुए बोली, ‘‘तेरी इतनी हिम्मत कि तू ने गुल को हाथ लगा दिया. आइंदा गुल को हाथ लगाना तो दूर, उस की तरफ गंदी नजरों से देखा भी तो तेरी आंखें फोड़ दूंगी. तेरी बोटीबोटी कर के चीलकौवों को खिला दूंगी. मेरी ढाणी की तरफ रुख भी किया तो मेरी जैसी कोई बुरी नहीं होगी.’’

जो मुंह में आया जय सिंह को कह कर अमरजीत ने फोन काट दिया. उस के मुंह बोले भाई जय सिंह ने सफाई देनी चाही, पर मीना और अमरजीत ने फोन रिसीव नहीं किया.  पिछले 4-5 दिनों से जय सिंह फोन कर रहा था, पर उस का फोन रिसीव नहीं किया गया. 2 जून, 2015 को अमरजीत मां के साथ खेतों की ओर गई थी. घर पर मीना और गुल थीं. तभी मोबाइल की घंटी बजी. मीना ने देखा कि जय सिंह का फोन है. उस ने फोन रिसीव कर लिया तो दूसरी ओर से जय सिंह ने कहा, ‘‘देख मीना, तुम दोनों बहनें बेकार ही मुझ पर नाराज हो. मैं ने कोई गलती नहीं की थी. आरोप लगाने और सच्चाई को आंखों से देखने में रातदिन का फर्क होता है. सच्चाई यह है कि उस रात मैं नहीं, गुल मेरी चारपाई पर आ कर लेट गई थी.

वह तो मैं था जो गुल को दुत्कार कर भगा दिया. मेरी जगह कोई और होता तो निश्चय ही अनर्थ हो जाता. और अब आगे सुन, आज रात मैं तेरे घर आ रहा हूं. गुल ने मेरे ऊपर जो झूठा आरोप लगाया था, आज रात मैं उस झूठे आरोप को सच कर दूंगा. तुम दोनों बहनों से जो बन पड़े कर लेना.’’

इस तरह की धमकी दे कर जय सिंह ने फोन काट दिया. लगभग 2 घंटे बाद अमरजीत मां के साथ घर लौटी तो मीना और गुल को डरी देख कर चौंकी. अमरजीत कुछ पूछती, उस के पहले ही मीना ने कहा, ‘‘दीदी, अभी जय सिंह का फोन आया था. वह आज रात आ रहा है. उस का कहना है कि गुल ने उस पर झूठा आरोप लगाया है.’’

‘‘मीना गुल ने झूठा आरोप नहीं लगाया, बल्कि सच्चाई वही है. गुल झूठा आरोप क्यों लगाएगी.’’ अमरजीत ने कहा.

‘‘दीदी, जय सिंह ने धमकी दी है कि वह आज रात गुल के साथ हमारी मौजूदगी में ही मनमानी करेगा.’’ मीना ने कहा.

‘‘अरे, तुम दोनों इस बात को ले कर इतना डरी हुई क्यों हो? मेरे जीतेजी वह मनमानी तो दूर, गुल को छू भी नहीं पाएगा.’’ अमरजीत ने दृढ़ता से कहा.

अमरजीत जय सिंह के जिद्दी स्वभाव को जानती थी. उसे यह भी पता था कि ट्रक चालकों से जानपहचान होने की वजह से वह फोकट में कहीं भी आजा सकता है. अमरजीत भी जय सिंह की इस धमकी से डर गई, इसलिए खलिहान में पड़ी कुल्हाड़ी और कस्सी को ला कर उस ने आंगन में छिपा कर रख दिया. दोनों बहनें अभी जाग रही थीं. रात 12-1 बजे के बीच जय सिंह उन के घर पहुंचा. शराब के नशे में वह लड़खड़ा रहा था. वह सीधे गुल की चारपाई के पास पहुंचा और उसे बांहों में भर कर उठाने की कोशिश करने लगा. लेकिन नशे में होने की वजह से वह खुद ही गिर गया. इस के बाद नींद में गाफिल गुल के बाल पकड़ कर घसीटा तो वह जाग गई. उस के इस रूप को देख कर मासूम गुल ‘बचाओबचाओ’ कह कर रोने लगी.

गुल की करुणामयी पुकार ने अमरजीत और मीना को चंडी बना दिया. अगले ही पल एक ने कुल्हाड़ी तो दूसरी ने कस्सी उठा ली और जय सिंह पर हमला बोल दिया. एक ही वार में वह लुढ़क गया. कुछ देर छटपटा कर उस ने दम तोड़ दिया. लाश ठिकाने लगाने के लिए दोनों बहनें उसे उठा कर खेतों की ओर ले गईं. अमेंद्र के खेत के पास पहुंचतेपहुंचते वे थक गईं. मीना कस्सी लेने घर लौट गईं तो अमरजीत अकेली ही लाश को कई फुट तक घसीट कर ले आई. इसी घसीटने के निशान के आधार पर राजेश कुमार सिहाग उन के घर तक पहुंच गए थे.  कस्सी से दोनों बहनों ने गड्ढा खोदना शुरू किया. मानसिकशारीरिक थकावट की वजह से वे एकडेढ़ फुट से ज्यादा गहरा गड्ढा नहीं खोद पाईं. उसी गड्ढे में लाश दफना कर दोनों बहनें घर आ कर सो गईं.

पुलिस ने दोनों बहनों को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया, जहां से पूछताछ एवं साक्ष्य जुटाने के लिए पुलिस ने 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर ले लिया. रिमांड अवधि के दौरान जांच अधिकारी ने वारदात में प्रयुक्त कस्सी और कुल्हाड़ी बरामद कर ली. रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद दोनों बहनों को पुन: अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. Suspense Story

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Family Crime: चरित्रहीन मां का गैरतमंद बेटा

Family Crime: भुलऊराम ने जो  हरकत की थी, कोई  भी गैरतमंद बेटा   बरदाश्त नहीं कर सकता था तो समयलाल कैसे बरदाश्त करता. आखिर मां की चरित्रहीनता ने उसे कातिल बना दिया. लंबी बीमारी के बाद ढेलाराम की जब मौत हुई तो पत्नी सुरजाबाई के लिए वह संपत्ति के नाम पर 6 बच्चे और एक छोटा सा मकान छोड़ गया था. गनीमत यह थी कि उस समय तक उस का बड़ा बेटा समयलाल 25 साल का हो चुका था. लड़का कमाने लायक हो गया था, इसलिए पति की मौत से सुरजाबाई को दिक्कतों का ज्यादा सामना नहीं करना पड़ा.

सुरजाबाई जवान थी, इसलिए खुद तो मजदूरी करती ही थी, समयलाल ने भी बलौदा बाजार मंडी के सामने साइकिल मरम्मत की दुकान खोल ली थी. मांबेटे की कमाई से किसी तरह खींचखांच कर गुजरबसर होने लगा था. इस की वजह यह थी कि कमाई के साथसाथ बच्चे बड़े हो रहे थे, जिस से खर्च बढ़ता जा रहा था. सुरजाबाई गांव के ही राजमिस्त्री भुलऊराम के साथ मजदूरी करने बलौदा बाजार जाती थी. उस के साथ आनेजाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती थी. वह अपनी साइकिल से उसे साथ ले जाता और ले आता था.

सुरजाबाई अभी अधेड़ थी, इसलिए उसे मर्द की जरूरत महसूस होती थी. दिन तो कामधाम में कट जाता था, लेकिन रातें तनहाई में बेचैन करती थीं. तब जिस्मानी भूख उसे व्याकुल करती तो वह मन ही मन किसी ऐसे मर्द की कल्पना करती थी, जो उस की जिस्मानी भूख को शांत करता. उस की इस कल्पना में सब से पहले जिस का चेहरा आंखों के सामने आया, वह था भुलऊराम का, जिस के साथ वह पूरा दिन रहती थी. लोकलाज के भय से किसी तरह वह अपनी इस भूख को 2 सालों तक दबाए रही. लेकिन किसी भी चीज को आखिर कब तक दबाया जा सकता है. सुरजाबाई भी अपनी इस भूख को नहीं दबा सकी.

भुलऊराम ही सुरजाबाई के सब से करीब था. वह सुबह उस की साइकिल पर बैठ कर घर से निकलती थी तो सूर्यास्त के बाद ही घर लौटती थी. भुलऊराम था भी उस के जोड़ का. एक तो दोनों का हमउम्र होना, दूसरे पूरे दिन साथ रहने का नतीजा यह निकला कि वे एकदूसरे के प्रति आकर्षित होने लगे.

एक दिन काम करते हुए भुलऊराम ने कहा, ‘‘सुरजा, काम तो तुम मेरे साथ करती हो, जबकि मैं देखता हूं तुम्हारा मन कहीं और रहता है.’’

‘‘भुलऊ, तुम ठीक कह रहे हो. दिन तो तुम्हारे साथ गुजर जाता है, लेकिन रात गुजारे नहीं गुजरती. ऐसे में मन तो भटकेगा ही.’’ भुलऊराम को घूरते हुए सुरजाबाई ने कहा.

भुलऊराम ने जानबूझ कर यह बात कही थी. सुरजाबाई ने जवाब भी उसी तरह दिया था. वह कुछ कहता, उस के पहले ही सुरजाबाई बोली, ‘‘भुलऊ, तुम्हारी पत्नी कुछ दिनों के लिए मायके चली जाती है तो तुम्हें कैसा लगता है?’’

भुलऊराम ने सहज भाव से कहा, ‘‘मैं तो 10 दिनों में ही बेचैन हो जाता हूं. नहीं रहा जाता तो ससुराल जा कर ले आता हूं.’’

‘‘तुम 10 दिनों में ही बेचैन हो जाते हो, यहां तो मेरे पति को मरे 2 साल हो गए हैं. मेरी क्या हालत होती होगी, कभी सोचा है?’’ सुरजाबाई ने बेचैन नजरों से ताकते हुए कहा.

भुलऊराम इतना भोला नहीं था, जो सुरजाबाई के मन की बात न समझता. लेकिन वहां और भी तमाम लोग थे, इसलिए दोनों मन मसोस कर रह गए. दोनों ने उस दिन समय से पहले ही काम निपटा दिया और घर की ओर चल पड़े. सावन का महीना था, आसमान में घने काले बादल छाए थे. दोनों आधे रास्ते पहुंचे थे कि हवा के साथ बरसात शुरू हो गई. भुलऊराम ने एक पेड़ के नीचे साइकिल रोक दी. बरसात की वजह से रास्ता सूना हो गया था. दोनों भीग गए  थे, इसलिए उन के शरीर के उभार झलकने लगे थे. उस मौसम में रहा नहीं गया तो भुलऊराम ने सुरजा का हाथ थाम लिया. सुरजा ने उस की आंखों में झांका तो उस ने कहा, ‘‘सुरजा, तुम्हारा बदन तो तप रहा है. तुम्हें बुखार है क्या?’’

सुरजा ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘भुलऊ, यह बुखार की तपन नहीं, यह तपन दिल में जो आग जल रही है, उस की है. आज तुम ने इस आग को और भड़का दिया है. अब तुम्हीं इस आग को बुझा सकते हो. आज रात को मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी. दरवाजा खुला रहेगा और मैं दहलीज में ही लेटूंगी.’’

भुलऊराम ने चाहतभरी नजरों से सुरजा को ताका और फिर साइकिल पर सवार हुआ तो पीछे कैरियर पर सुरजा बैठ गई. गांव आते ही सुरजा अपने घर चली गई तो भुलऊ अपने घर चला गया. कपड़े बदल कर उस ने खाना खाया और सब के सोने का इंतजार करने लगा. गांवों में तो वैसे भी लोग जल्दी सो जाते हैं. भुलऊराम के गांव वाले भी सो गए तो वह सुरजाबाई के घर की ओर चल पड़ा. बरसात होने की वजह से मौसम ठंडा था. बरसाती मेढक टर्रटर्र कर रहे थे तो झींगुरों की तीखी आवाज सन्नाटे को तोड़ रही थी. 5 मिनट बाद वह सुरजाबाई के घर के सामने खड़ा था. उस ने हलके हाथ से दरवाजा ठेला तो वह खुल गया. उस ने धीरे से आवाज दी, ‘‘सुरजा… ओ सुरजा.’’

सुरजा जाग रही थी. इसलिए उस के आवाज देते ही वह उस के सामने आ कर खड़ी हो गई. उस का हाथ थाम कर धीरे से फुसफुसाई, ‘‘बड़ी देर कर दी.’’

‘‘घर वाले जाग रहे थे. जब सब सो गए, तभी निकला. इसी चक्कर में देर हो गई.’’ भुलऊराम ने कहा.

सुरजा भुलऊराम का हाथ पकड़ कर कमरे में ले आई. उसे चारपाई पर बैठा कर खुद भी सट कर बैठ गई. तन की आंखों से भले ही वे एकदूसरे को नहीं देख रहे थे, लेकिन मन की आंखों से वे एकदूसरे का तनमन सब देख रहे थे.

सुरजाबाई ने भुलऊराम का हाथ थाम कर कहा, ‘‘तुम एकदम चुप हो. कुछ सोच रहे हो क्या?’’

भुलऊराम विचारों के भंवर से निकल कर बोला, ‘‘कल की सुरजा में और आज की सुरजा में कितना अंतर है.’’

‘‘तुम कहना क्या चाह रहे हो, मैं समझी नहीं?’’ सुरजा ने पूछा.

‘‘सुरजा थोड़ा ही सही, लेकिन तुम ने खुद को बदला है, यह अच्छी बात है. इंसान के मन को जो अच्छा लगे, वही करना चाहिए.’’

इस के बाद सुरजाबाई का मिजाज बदलने लगा. उसने भुलऊराम के कंधे पर हाथ रखा तो उस के सोए हुए अरमान जाग उठे. उस की पत्नी 15 दिनों से मायके गई हुई थी, इसलिए वह औरत की नजदीकी पाने के लिए बेचैन था. सुरजाबाई तो सालों से प्यासी थी. भुलऊराम पर टूट पड़ी. इस तरह भुलऊराम और सुरजाबाई के बीच नए संबंध बन गए. इस के बाद घरबाहर जहां भी मौका मिलता, दोनों संबंध बना लेते. वैसे भी दोनों दिन भर साथ ही रहते थे. आतेजाते भी साथ थे, इसलिए उन्हें न मिलने में दिक्कत थी, न संबंध बनाने में. इस के अलावा दोनों अपनी मर्जी के ही नहीं, घर के भी मालिक थे, इसलिए उन्हें कोई रोकटोक भी नहीं सकता था.

लेकिन जब दोनों का मिलनाजुलना खुलेआम होने लगा तो उन के संबंधों की चर्चा गांव में होने लगी. इस के बाद सुरजाबाई को बिरादरी वालों ने बाहर कर दिया. दूसरी ओर भुलऊराम की पत्नी भी इस संबंध का विरोध करने लगी. बिरादरी से बाहर किए जाने के बाद सुरजाबाई का बड़ा बेटा समयलाल भी मां के इस संबंध का विरोध करने लगा. इस की एक वजह यह भी थी कि गांव में सब समयलाल का मजाक उड़ाते थे. इसलिए पहले उस ने मां को समझाया. इस पर भी वह नहीं मानी तो उस ने सख्ती की. लेकिन अब तक वह भुलऊराम के साथ संबंधों की आदी हो चुकी थी, इसलिए बेटे के रोकने पर उस ने कहा,

‘‘किस के लिए मैं दिनरात मेहनत करती हूं, तुम्हीं लोगों के लिए न? इतनी मेहनत कर के अगर मुझे किसी के साथ 2 पल की खुशी मिलती है तो तुम लोगों को परेशानी क्यों हो रही है?’’

‘‘तुम जिस तरह मुझे बहका रही हो, मैं सब जानता हूं. इस दुनिया में ऐसी तमाम औरतें हैं, जिन के पति मर चुके हैं, क्या वे सभी तुम्हारी तरह नाक कटाती घूम रही हैं. अपना नहीं तो कम से कम बच्चों का खयाल करो. तुम मां के नाम पर कलंक हो.’’ समयलाल गुस्से में बोला.

‘‘आज तू मुझे सिखा रहा है. कभी सोचा है मैं ने किन परिस्थितियों से गुजर कर तुम लोगों को पाला है. तुम्हारा बाप क्या छोड़ कर गया था? सिर्फ बच्चे पैदा कर के मर गया था. आज जो बकरबकर बोल रहा है, मुझे कुलटा कह रहा है, इस लायक मैं ने ही अपना खून जला कर बनाया है.’’ सुरजा गुस्से में बोली, ‘‘गनीमत है कि मैं तुम लोगों के साथ हूं. अगर छोड़ कर चली गई होती, तो…?’’

‘‘छोड़ कर चली गई होती, तभी अच्छा रहता. लोग आज हमारी हंसी तो न उड़ाते.’’

‘‘मुझे तुम से कोई सीख नहीं लेनी. मैं जैसी हूं, वैसी ही रहने दे. तुझ से नहीं देखासुना जाता तो तू घर छोड़ कर चला जा. और सुन, आज के बाद इस मामले में मुझ से कोई बात भी मत करना.’’ सुरजा ने साफ कह दिया कि कुछ भी हो, वह उन लोगों को छोड़ सकती है, पर भुलऊराम को नहीं छोड़ सकती.

इसी तरह दिन महीने बीतते रहे. न तो भुलऊराम ने अनीति का रास्ता छोड़ा और न ही सुरजाबाई ने. धीरेधीरे 3 साल बीत गए. इस बीच समयलाल ने मां को न जाने कितनी बार समझाया, लेकिन वह अपनी आदत से बाज नहीं आई. समयलाल खून का घूंट पी कर समय से तालमेल बिठाने की कोशिश करता रहा, लेकिन लाख प्रयास के बावजूद वह इस बदनामी को झेल नहीं सका, क्योंकि पानी अब सिर से ऊपर गुजरने लगा था. उस दिन यानी 3 अप्रैल को तो हद हो गई. अभी तक जो चोरीछिपे होता था, उस दिन सब के सामने ही भुलऊराम सुरजा से मिलने आ धमका. हुआ यह कि शाम को बलौदा बाजार से लौटते समय सुरजाबाई और भुलऊराम ने रास्ते में गोश्त और शराब खरीद लिया था.

घर आ कर सुरजा गोश्त बना रही थी कि कपड़े बदल कर भुलऊराम आ गया. इस के बाद दोनों शराब पीने लगे. खाना खातेखाते दोनों ने इतनी पी ली कि भुलऊराम को जहां सुरजाबाई के अलावा कुछ और नहीं दिखाई दे रहा था, सुरजा का भी कुछ वैसा ही हाल था. दोनों की हरकतों से तंग आ कर समयलाल ने भुलऊराम के पास जा कर कहा, ‘‘रात काफी हो गई है, अब तुम अपने घर जाओ. तुम्हारे घर वाले तुम्हारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘मैं घर जाऊं या यहां सोऊं, तुम मुझ से कहने वाले कौन होते हो?’’ भुलऊराम ने कहा.

समयलाल को गुस्सा आ गया. वह अंदर से चारपाई का पाया उठा लाया और उसी से भुलऊराम पर हमला कर दिया. उस ने पूरी ताकत से पाया भुलऊराम के सिर पर मारा तो उस की खोपड़ी पहली ही बार में फट गई. फिर तो उस ने उसे तभी छोड़ा, जब वह मर गया. उसे मार कर वह घर से गायब हो गया. सुबह गांव वाले दिशामैदान के लिए गांव से बाहर निकले तो बाठी में उन्हें एक लाश दिखाई दी. पल भर में इस की चर्चा पूरे गांव में फैल गई. लाश औंधे मुंह पड़ी थी, उस के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था, इस के बावजूद गांव वालों को उसे पहचानने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई. लाश भुलऊराम की थी. भुलऊराम के भाई पुनीतराम ने बलौदा बाजार के थाना सिटी जा कर भाई की हत्या की सूचना दी.

हत्या का मामला था, इसलिए थानाप्रभारी डी.के. मरकाम ने घटनास्थल पर जाने से पहले घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को भी दे दी थी. जिस से उन के घटनास्थल पर पहुंचतेपहुंचते आईएसपी अभिषेक सांडिल्य, एसडीएपी सी.पी. राजभानु भी घटनास्थल पहुंच गए थे. लाश की स्थिति से ही पता चल रहा था कि हत्या बड़ी बेरहमी से की गई थी. हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी गई थी. लाश वहां घसीट कर लाई गई थी. पुलिस जब लाश घसीट कर लाने के निशान की ओर बढ़ी तो वह निशान सुरजाबाई के घर जा कर खत्म हो गया था.

मृतक भुलऊराम की साइकिल वहां से 2 सौ मीटर की दूरी पर खड़ी मिली. पूछताछ में पता चला कि वह उसी के यहां गया था और सुरजाबाई से उस के संबंध थे तो पुलिस के लिए आशंका की कोई बात नहीं रही. पुलिस ने सुरजाबाई और उस के बड़े बेटे समयलाल को हिरासत में ले लिया. इस तरह पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवाने से पहले ही अभियुक्तों को पकड़ लिया था. घटनास्थल की सारी काररवाई निपटा कर पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और मांबेटे को ले कर थाने आ गई.

थाने आ कर पहले मृतक के भाई पुनीतराम की ओर से हत्या का मुकदमा दर्ज किया, उस के बाद समयलाल से पूछताछ शुरू की. सख्ती के डर से उस ने बिना किसी हीलाहवाली के अपना अपराध स्वीकार कर के भुलऊराम की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह इस प्रकार थी. भुलऊराम के उस की मां से संबंध हैं, यह वह जानता ही था. सब कुछ जान कर भी वह चुप था. लेकिन उस दिन तो भुलऊराम ने हद ही कर दी. उस के यहां शराब पी कर खाना खाया. खाना खाने के बाद उस के सामने ही वह उस की मां से अश्लील हरकतें करने लगा. उस ने मना किया तो उस ने अपने सारे कपड़े उतार कर कहा, ‘‘मैं यहीं तेरे सामने ही तेरी मां से संबंध बनाऊंगा, देखता हूं तू क्या करता है.’’

भुलऊराम ने जो कहा था, और जो करने जा रहा था, समयलाल की जगह कोई भी गैरतमंद बेटा होता, बरदाश्त नहीं कर सकता था. उस से भी नहीं बरदाश्त हुआ. उस ने इधरउधर देखा, चारपाई का एक पाया पड़ा दिखाई दिया. उस ने उसे उठाया और भुलऊराम पर पिल पड़ा. इस के बाद तो वहां खून ही खून नजर आने लगा. भुलऊराम खून में डूबता गया. भुलऊराम की हत्या कर के समयलाल अपने दोस्त के यहां चला गया. सुबह जब वह घर पहुंचा तो लाश वहां नहीं थी. लाश बाठी तक कैसे पहुंची, उसे मालूम नहीं.

इस के बाद पुलिस ने सुरजाबाई से पूछताछ की तो उस ने रोते हुए कहा, ‘‘मैं दरवाजे के पास खड़ी सब देख रही थी. मैं पतिता ही सही, पर इस की मां हूं. साहब मेरी वजह से आज यह हत्यारा हो गया है. इसे बचाने के लिए मैं लाश को घसीट कर बाठी में डाल आई और सुबह होने से पहले गोबर से लिपाई कर के खून साफ कर दिया.’’

इस के बाद समयलाल की निशानदेही पर पुलिस ने चारपाई का पाया, खून से सने उस के कपड़े बरामद कर लिए. सारे सबूत जुटा कर पुलिस ने समयलाल और उस की मां सुरजाबाई को कोर्ट में पेश किया, जहां से उस की मां को रायपुर की महिला जेल तो समयलाल को बलौदा बाजार जेल भेज दिया गया. Family Crime