Social Crime : मसाज सर्विस के नाम पर कारोबारियो को जाल में फंसाया जाता

Social Crime :  दिल्ली और एनसीआर में मसाज के नाम पर लोगों को ब्लैकमेल करने का धंधा जोरों पर है. नीरज नारंग को भी एक ब्लैकमेलिंग गैंग ने अपना शिकार बना कर कई लाख रुपए ऐंठ लिए थे. शिकायत पर क्राइम ब्रांच ने गिरोह का परदाफाश किया तो…

नीरज नारंग जिस समय दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी राम गोपाल नाइक के औफिस में पहुंचे तो उन के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. क्योंकि वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि उन के साथ जो हुआ था, उसे डीसीपी को किस तरह बताएं. औफिस में घुसने के बाद उन्होंने जैसे ही डीसीपी का अभिवादन किया तो डीसीपी ने उन्हें सामने पड़ी चेयर पर बैठने का इशारा किया. नीरज नारंग की तरफ देखने के बाद डीसीपी ने उन से पूछा, ‘‘क्या बात है, आप बड़े परेशान लग रहे हो. बताओ क्या समस्या है.’’

‘‘सर, मैं अपनी गलती के कारण कुछ बदमाशों के चक्कर में फंस गया हूं. मुझे उन से बचा लीजिए. वो लोग मुझे ब्लैकमेल कर के मुझ से 3 लाख रुपए ऐंठ चुके हैं और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक ले चुके हैं. अब वो मुझ से फिर एक बड़ी रकम की डिमांड कर रहे हैं. सर, इस तरह से तो मैं बरबाद हो जाऊंगा.’’ नीरज नारंग ने बताया.

‘‘कौन हैं वो लोग. आप घटना विस्तार से बताइए.’’ डीसीपी ने उन से कहा. इस के बाद नीरज नारंग ने उन्हें एक लिखित शिकायत देते हुए अपने साथ घटी घटना बता दी. उसे सुन कर डीसीपी राम गोपाल नाइक को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच की शाखा शकरपुर के इंसपेक्टर विनय त्यागी को सौंप दी और उन्होंने पीडि़त नीरज नारंग को शकरपुर क्राइम ब्रांच औफिस भेज दिया. यह बात 19 सितंबर, 2018 की है. नीरज नारंग क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनय त्यागी के औफिस पहुंच गए. उन्होंने उन्हें अपने साथ घटी जो कहानी बताई वह इस प्रकार थी.

नीरज नारंग दिल्ली के एक बिजनैसमैन हैं. पटपड़गंज इंडस्ट्रियल एरिया में उन की अपनी फैक्ट्री है. एक दिन वह अपने औफिस में लैपटौप पर नेट सर्फिंग कर रहे थे. इस दौरान वह एक गे वेबसाइट देखने लगे. उस साइट को देखने में उन की रुचि बढ़ने लगी. साइट पर उन्होंने एक फोन नंबर देखा. नीरज की उत्सुकता बढ़ी तो उन्होंने उसी समय वह नंबर अपने फोन से मिलाया. कुछ देर घंटी बजने के बाद दूसरी तरफ से एक युवक की आवाज आई. उस युवक ने अपना नाम अरमान शर्मा बताया. उस से कुछ देर बात कर ने के बाद नीरज नारंग ने उस से उसी दिन शाम को पूर्वी दिल्ली के निर्माण विहार में स्थित वीथ्रीएस मौल में मिलने का कार्यक्रम निश्चित कर लिया. निर्धारित समय पर नीरज नारंग वहां पहुंच गए. कुछ देर में अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया.

वहां स्थित मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट में दोनों की मुलाकात हुई. उस ने नीरज को बताया कि वह आधुनिक तरीके की मसाज सर्विस चलता है. उस के पास अलगअलग कैटेगरी की मसाज करने के पैकेज हैं और यह सुविधा अच्छे होटल में उपलब्ध कराई जाती है. नीरज नारंग एक अलग ही मिजाज वाले थे. इसलिए उन्होंने 8 हजार रुपए के पैकेज का चयन कर लिया. मसाज कराने के लिए वह वैशाली में स्थित एक होटल में पहुंच गए. अरमान शर्मा भी वहां पहुंच गया. अरमान ने जिस तरह से नीरज की मसाज की थी वह तरीका नीरज को बहुत पसंद आया. जिस से उन्होंने होटल के खर्च के अलावा 8 हजार रुपए अरमान को खुशीखुशी दे दिए. अरमान शर्मा ने अपनी कुछ मजबूरियां उन्हें बताईं. फिर अरमान के आग्रह करने पर नीरज नारंग ने उसे 3 हजार रुपए अलग से दे दिए.

इस के 10 दिन बाद नीरज नारंग का मन फिर से मसाज कराने का हुआ. वह अरमान को फोन करने के मूड में थे. तभी उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन स्क्रीन पर जो नंबर उभरा उसे देख कर उन की आंखों में अनोखी चमक उभर आई. यह नंबर अरमान शर्मा का था. अरमान ने उन्हें मसाज के लिए उसी होटल में आने के लिए कहा तो शाम के 5 बजे नीरज नारंग वहां पहुंच गए. करीब आधे घंटे के बाद जब होटल के बंद कमरे में नीरज नारंग निर्वस्त्र हो कर अरमान से मसाज करवा रहे थे तभी कमरे के दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई. दस्तक के बाद अरमान ने नीरज को कपड़े पहनने का मौका दिए बिना झट से कमरे का दरवाजा खोल दिया.

दरवाजा खुलते ही धड़धड़ाते हुए 2 युवतियां कमरे में घुस गईं. उन में से एक ने सोफे पर रखे नीरज नारंग के सभी कपड़े अपने कब्जे में ले लिए तो दूसरी अपने मोबाइल फोन से उन का वीडियो बनाने लगी. अरमान शर्मा जो कुछ देर पहले नीरज नारंग की इच्छा के अनुसार तरहतरह से उन की मसाज कर रहा था. उस ने गिरगिट की तरह रंग बदला और वह भी उन युवतियों के पास जा कर खड़ा हो गया. उन में से एक युवती नीरज नारंग को गालियां बकते हुए उन के नग्न वीडियो को सोशल साइट्स पर सार्वजनिक करने की धमकी देने लगी और कहने लगी कि यदि ऐसा नहीं चाहते तो बदले में 10 लाख रुपए देने होंगे.

कहां तो नीरज नारंग अरमान शर्मा के हाथों से मसाज लेते हुए आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और कहां पलक झपकते ही परिस्थितियां उन के विपरीत हो गईं. खुद को इस तरह बेबस पा कर नीरज नारंग सकते में रह गए. उस समय उन के पर्स में एक लाख रुपए थे, जो उन्होंने उस युवती को सौंप दिए और गिड़गिड़ाते हुए अपने कपड़े लौटा देने की गुहार करने लगे. मगर दोनों युवतियां उन्हें प्रताडि़त करते हुए 10 लाख रुपए देने का दबाव बनाती रहीं. उसी समय अरमान ने कमरे में रखी लोहे की रौड से नीरज नारंग को बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया.

मरता क्या नहीं करता. बचने का कोई चारा नहीं देख कर नीरज नारंग ने युवती को बताया कि उन की कार पार्किंग में खड़ी है. उन्होंने युवती को कार का नंबर बताते हुए उसे कार की चाबी सौंपी और उस में रखा ब्रीफकेस लाने के लिए कहा. युवती कार की चाबी ले कर होटल की पार्किंग में पहुंची और उस में रखा उन का ब्रीफकेस ले कर कमरे में लौट आई. नीरज नारंग ने उस में रखे 2 लाख रुपए निकाल कर उसे सौंपे तथा साढ़े 4 लाख रुपए के 3 पोस्ट डेटेड चेक उसे दे दिए. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को बताया कि वह लोग अब फिर से पैसों की डिमांड कर रहे हैं.

इंसपेक्टर विनय त्यागी ने बुरी तरह परेशान दिख रहे नीरज नारंग को ढांढस बंधाया फिर उन का मसाज करने वाले अरमान शर्मा और दोनों युवतियों का हुलिया वगैरह पूछ कर अपनी डायरी में दर्ज कर लिया. इस घटना के बारे में पूरी बात जान लेने के बाद उन्होंने उन्हें सतर्क रहने की हिदायत दे कर घर जाने की इजाजत दे दी. इस के बाद नीरज नारंग अपने औफिस की ओर निकल गया. इंसपेक्टर विनय त्यागी ने इस केस के बारे में एसीपी अरविंद कुमार मिश्रा को बताया. एसीपी ने इस रैकेट का परदाफाश करने के लिए इंसपेक्टर विनय त्यागी के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में एसआई बलविंदर, दिनेश, हवा सिंह, अर्जुन, एएसआई रमेश कुमार, सत्यवान, राजकुमार, मो. सलीम, सतीश पाटिल, हैड कांस्टेबल श्यामलाल, शशिकांत, सुनील कुमार, बाबूराम, दिग्विजय, कांस्टेबल कुलदीप, समीर आदि को शामिल किया गया.

इंसपेक्टर त्यागी ने अपनी टीम के साथ केस के सभी पहलुओं पर विस्तार पूर्वक विचारविमर्श करने के बाद आरोपियों को पकड़ने की एक फूलप्रूफ योजना तैयार की. उन्होंने नीरज नारंग को एक बार फिर अपने औफिस में बुला कर पूरी योजना समझा दी. उन्होंने उन से यह भी कहा कि उन के पास ब्लैकमेलर का जब भी कोई फोन आए तो वह उन्हें सूचित कर दें. इत्तेफाक से अगले ही दिन नीरज नारंग के पास ब्लैकमेलर अरमान शर्मा का फोन आया. उस ने 2 लाख रुपए मांगे थे. उस ने पैसे ले कर दक्षिणी दिल्ली के साकेत में स्थित सेलेक्ट सिटी वाक मौल में शाम को बुलाया था. ऐसा नहीं करने पर उस ने परिणाम भुगतने को धमकी दी थी. नीरज ने इंसपेक्टर विनय त्यागी को फोन कर के यह सूचना दे दी.

नीरज नारंग की बात सुन कर विनय त्यागी ने एसीपी अरविंद मिश्रा को इस जानकारी से अवगत करा दिया. इस के बाद वह उन से आगे की योजना पर विचार करने लगे. थोड़ी देर बाद इंसपेक्टर विनय त्यागी ने नीरज नारंग को फोन कर के आगे की पूरी योजना समझा दी. निर्धारित समय पर नीरज नारंग एक बैग में 2 लाख रुपए ले कर साकेत सेलेक्ट वाक सिटी मौल पहुंच गए और अरमान के वहां आने का इंतजार करने गले. थोड़ी देर बाद अरमान अपनी एक गर्लफ्रैंड के साथ नीरज नारंग के पास पहुंच गया. बातचीत होने के बाद नीरज ने उसे पैसों वाला बैग सौंप दिया. जैसे ही अरमान ने नीरज नारंग से पैसों का बैग लिया सादे वेश में वहां मौजूद क्राइम ब्रांच की टीम ने अरमान और उस की गर्लफ्रैंड को अपने काबू में कर लिया.

उन्होंने उन के पास बैग से 2 लाख रुपए भी बरामद कर लिए. इस के बाद क्राइम ब्रांच टीम उन दोनों को ले कर शकरपुर स्थित औफिस लौट आई. यह बात 20 सितंबर, 2018 की है. हिरासत में लिए गए युवक से पूछताछ की गई तो पता चला कि उस का असली नाम अरमान शर्मा नहीं बल्कि शादाब गौहर है. उस के साथ वाली युवती ने अपना नाम मनजीत कौर बताया. दोनों ने पूछताछ के दौरान अपना अपराध स्वीकार करते हुए ब्लैकमेलिंग के धंधे की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली. 25 साल का शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा मूलरूप से श्रीनगर, कश्मीर के कुमो पदशेनी बाग का रहने वाला था. वहां से 12वीं तक की पढ़ाई करने के बाद उस का रुझान बौडी बिल्डिंग की तरफ हो गया. वह बेहद फैशनेबल युवक था इसलिए खुद के मैनटेन पर बहुत ध्यान देता था.

उस ने जिम जाना शुरू कर दिया. एकदो साल तक तो घर वालों ने उस की बौडी फिटनेस पर पैसे खर्च किए लेकिन बाद में उन्होंने कह दिया कि वह खुद कमाकर अपने ऊपर खर्च करे. शादाब ऐसा कोई काम नहीं जानता था जिस के बूते वह कमाई कर सके. लिहाजा उस ने मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीखना शुरू कर दिया. यह काम सीखने के बाद उस ने श्रीनगर में ही मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान खोल ली. थोड़े ही दिनों में उस का काम चल निकला और इस काम में उसे अच्छी कमाई होने लगी. जेब में पैसे आए तो वह खुद की फिटनैस पर और ज्यादा ध्यान देने लगा. शादाब बहुत खूबसूरत था. अच्छे खानपान और ब्रांडेड कपड़ों के कारण उस की पर्सनैलिटी और भी निखर गई. लेकिन जब कश्मीर के हालात ज्यादा बिगड़े और घाटी में आए दिन उस की दुकान बंद रहने लगी तो वह परेशान हो उठा.

दुकान बंद रहने के कारण उस की आमदनी बंद हो जाती. यानी उसे फिर से रुपयों की किल्लत रहने लगी.  वह परेशान चल रहा था कि एक दिन पत्थरबाजी के दौरान लोगों ने उस की दुकान को आग लगा दी. दुकान के उजड़ जाने के कारण उस की माली हालत बेहद खराब हो गई तो वह काम की तलाश में चंडीगढ़ आ गया और वहां के एक जिम में ट्रेनर की नौकरी कर ली. चंडीगढ़ के जिम में काम करने के दौरान उस की बहुत से ऐसे लड़केलड़कियों से जानपहचान हो गई जो रोजाना वहां एक्सरसाइज के लिए आया करते थे. चूंकि शादाब गौहर एक हैंडसम युवक था इसलिए खूबसूरत लड़कियों से दोस्ती होते देर नहीं लगती थी. मनजीत कौर नाम की एक युवती से उस की अच्छी दोस्ती थी.

गोरीचिट्टी और आकर्षक मनजीत कौर बेहद खूबसूरत युवती थी. वह मूलरूप से दिल्ली की रहने वाली थी और उन दिनों चंडीगढ़ में रह कर पढ़ाई कर रही थी. शादाब मनजीत को अपने साथ चंडीगढ़ के महंगे रेस्टोरेंट में ले जाने लगा. कुछ दिनों में उन के बीच का फासला खत्म हो गया और फिर वह दोनों लिव इन रिलेशन में रहने लगे.  शादाब गौहर ने चंडीगढ़ के सेक्टर-56 में एक फ्लैट किराए पर ले रखा था. अब मनजीत कौर उस के साथ बतौर उस की पत्नी बन कर रहने लगी. अभी दोनों को साथ रहते हुए ज्यादा दिन नहीं गुजरे थे कि इसी बीच उन्हें महसूस होने लगा कि केवल जिम की कमाई भर से उन के वे सपने पूरे नहीं हो सकते जिन की ख्वाहिश वे अपने दिलों में पाले हुए थे.

इस के लिए उन्होंने नएनए उपाय खोजने शुरू कर दिए. दोनों यही योजना बनाते कि कम समय में अमीर कैसे हुआ जाए. इसी बीच एक शाम मनजीत कौर की मुलाकात जिम में आने वाली एक अन्य लड़की शीबा से हुई. जो न केवल उस की ही तरह खूबसूरत और आजाद खयालों वाली थी, बल्कि उस की हसरतें भी जल्द अमीर बनने की थीं. बातों के दौरान मनजीत ने शीबा के मन की बात जानी तो उस के चेहरे पर रौनक आ गई. उस ने शीबा को अपने लिव इन पार्टनर शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा से मिलवाया और अपनी योजनाओं के बारे में बता कर उसे अपने रैकेट में शामिल कर लिया.

अब ये तीनों मुसाफिर एक ही कश्ती में सवार थे. जिस की मंजिल एक थी. जिसे पाने के लिए वे किसी भी हद से गुजरने के लिए तैयार थे. तीनों ने चंडीगढ़ के बजाए दिल्ली चल कर अपनी योजना को अंजाम देने का फैसला किया. 2018 के जुलाई महीने में वे तीनों दिल्ली आ गए और पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर के जवाहर पार्क में एक मकान किराए पर ले कर रहने लगे. यहां के मकान मालिक को शादाब ने बताया कि वे एक इंटरनैशनल काल सेंटर में नौकरी करते हैं. मकान मालिक को अपने किराए से मतलब था. दूसरे इन तीनों की पर्सनेलिटी इतनी प्रभावशाली थी कि उस ने इन से ज्यादा कुछ पूछ ने की जरूरत ही नहीं समझी.

दिल्ली आ कर शादाब गौहर ने एक गे वेबसाइट पर अपना प्रोफाइल अरमान शर्मा के नाम से अपलोड कर के मसाज सर्विस उपलब्ध कराने का विज्ञापन देना शुरू कर दिया. उस की नजर मालदार क्लाइंट पर रहती थी. जिस से वह अधिक से अधिक रुपए ऐंठ सके.  इस के अलावा उस ने अपने रैकेट में 8 कमसिन लड़कों और एक लड़की को भी शामिल कर लिया, जो उस के कहने पर क्लाइंट को मसाज सर्विस देने के लिए दिल्ली और एनसीआर में बताए गए ठिकानों पर जाते थे. ये लड़के अपनेअपने क्लाइंट को मसाज सर्विस दे कर जो भी कमाते थे उन में प्रत्येक सर्विस पर शादाब गौहर अपना कमीशन वसूल करता था. और बीचबीच में मनजीत कौर और शीबा मसाज के दौरान क्लाइंट की वीडियो बना कर उस से मोटी रकम वसूल करती थीं.

सितंबर के पहले हफ्ते में नीरज नारंग वेबसाइट पर दिए गए नंबर पर फोन कर के शादाब उर्फ अरमान के संपर्क में आए और मसाज करवाने के चक्कर में उस के जाल में फंस गए.  3 लाख रुपए नकद और साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक लेने के बावजूद भी शादाब ने नीरज नारंग का पीछा नहीं छोड़ा. वह उन से 2 लाख रुपए की और मांग करने लगा. फिर मजबूर हो कर नारंग ने इस की शिकायत क्राइम ब्रांच के डीसीपी से कर दी. शादाब गौहर उर्फ अरमान शर्मा और मनजीत कौर से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश कर 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस दौरान दोनों आरोपियों के कब्जे से नीरज नारंग से लिए गए पौने 2 लाख रुपए तथा साढ़े 4 लाख रुपए के पोस्ट डेटेड चेक बरामद कर लिए.

रिमांड अवधि खत्म होने के बाद पुलिस ने शादाब गौहर और मनजीत कौर को कोर्ट में पेश किया और वहां से दोनों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. गिरोह में शामिल तीसरी शातिर लड़की शीबा कथा लिखे जाने तक फरार थी.

— कथा में दिए गए कुछ पात्रों के नाम काल्पनिक हैं.

 

गर्लफ्रेंड को जीबी रोड बेचने आए प्रेमी ने की एसएचओ से डील

दिल्ली के थाना कमला मार्केट के थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका के सरकारी मोबाइल फोन पर  लगातार ऐसी काल्स आ रही थीं, जिस में फोन करने वाला अपने बारे में कुछ न बता कर उन से ही पूछता था कि आप कौन हैं और कहां से बोल रहे हैं? जब वह उसे अपने बारे में बताते तो फोन करने वाला तुरंत काल डिसकनेक्ट कर देता.

शुरुआत में तो वह यही समझ रहे थे कि शायद किसी से गलत नंबर लग जा रहा है. पर जब रोजाना ही अलगअलग नंबरों से ऐसी काल्स आने लगीं तो उन्हें शक हुआ. क्योंकि फोनकर्ता पुलिस का नाम सुनते ही फोन काट देता था. वह यह जानना चाहते थे कि आखिर फोन करने वाला कौन है और वह चाहता क्या है. क्योंकि एक ही फोन पर लगातार रौंग काल आने की बात गले नहीं उतर रही थी.

इस के बाद उन के पास एक अनजान नंबर से काल आई तो उन्होंने फोन करने वाले से झूठ बोलते हुए कहा, ‘‘मैं अशोक बोल रहा हूं, आप कौन हैं और किस से बात करनी है?’’

‘‘जी, मैं ने जीबी रोड फोन मिलाया था.’’ उस ने कहा.

जीबी रोड दिल्ली का बदनाम रेडलाइट एरिया है. लेकिन अब इस का नाम बदल कर श्रद्धानंद मार्ग हो गया है. यहां पर मशीनरी पार्ट्स का बड़ा मार्केट है और उन्हीं दुकानों के ऊपर तमाम कोठे हैं, जहां सैकड़ों की संख्या में वेश्याएं धंधा करती हैं. रोड का नाम कागजों में भले ही बदल गया है, लेकिन लोगों की जबान पर आज भी जीबी रोड ही रटा हुआ है.

जैसे ही उस आदमी ने जीबी रोड का नाम लिया, थानाप्रभारी उस के फोन करने का आशय समझ गए. वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोले, ‘‘आप ने सही जगह नंबर मिलाया है. मैं वहीं से बोल रहा हूं. बताइए, किसलिए फोन किया है?’’

‘‘मैं वहां पूरी रात एंजौय करना चाहता हूं, कितना खर्च आएगा.’’ उस ने पूछा.

इस बात पर थानाप्रभारी को गुस्सा तो बहुत आया कि वह पुलिसिया भाषा में उसे सही खुराक दे दें, लेकिन उन्होंने गुस्सा जाहिर करना उचित नहीं समझा. उन्होंने बड़े प्यार से कहा, ‘‘आप यहां आ जाइए. जिस लड़की को पसंद करेंगे, उसी के हिसाब से पैसे बता दिए जाएंगे. आप जब यहां आएंगे तो मैं यकीन दिलाता हूं कि खुश हो कर ही जाएंगे. आप यहां मार्केट में आने के बाद मेरे इसी नंबर पर फोन कर देना, मैं किसी को भेज दूंगा.’’

इतना कह कर थानाप्रभारी ने उस से पूछा, ‘‘वैसे एक बात यह बताओ कि मेरा यह नंबर आप को कहां से मिला?’’

‘‘यह नंबर एक सैक्स साइट पर था. मैं जीबी रोड की एक वीडियो देख रहा था. उसी में यह फोन नंबर था. वहीं से ले कर मैं आप को फोन कर रहा हूं.’’ उस आदमी ने कहा.

सैक्स साइट पर पुलिस का फोन नंबर होने की बात पर थानाप्रभारी चौंके. जब नंबर वहां है तो ऐसे ही लोगों के फोन आएंगे. चूंकि उन की फोन पर बातचीत जारी थी, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘मैं तो यह सोच रहा था कि यह नंबर हमारे किसी कस्टमर ने आप को दिया होगा.’’

‘‘नहीं, कस्टमर ने नहीं दिया, सैक्स साइट से ही लिया है.’’ उस ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, आप जब आएं तो मुझे बता देना. अच्छी व्यवस्था करा दूंगा.’’ उन्होंने कहा और काल डिसकनेक्ट कर दिया.

इस तरह के फोन काल्स से थानाप्रभारी परेशान थे. इस से बचने के 2 ही रास्ते थे. पहला यह कि वह अधिकारियों से बात कर इस नंबर के बदले कोई दूसरा नंबर ले लें और दूसरा यह कि जिस सैक्स साइट पर उन का यह नंबर डाला गया है, वहां से यह नंबर हटवा दें.

इंटरनेट पर सैक्स से संबंधित तमाम साइटें हैं. यह फोन नंबर पता नहीं किस साइट पर है. फिर भी थानाप्रभारी ने गूगल पर कई साइट्स खोजीं, लेकिन उन्हें अपना नंबर नहीं मिला. जिस फोन नंबर से उन के पास फोन आया था, उन्होंने उसी नंबर को रिडायल किया. पर वह नंबर स्विच्ड औफ पाया गया. उन्होंने सोचा कि अब की बार इस तरह का किसी का फोन आएगा तो उस से साइट का नाम भी पूछ लेंगे.

19 नवंबर, 2017 को भी थानाप्रभारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी सुबह करीब पौने 9 बजे उन के मोबाइल पर किसी ने फोन कर के पूछा, ‘‘क्या आप जीबी रोड से बोल रहे हैं?’’

यह सुन कर थानाप्रभारी झुंझलाए लेकिन खुद पर काबू पाते हुए उन्होंने फोन करने वाले से कहा, ‘‘हां, मैं वहीं से बोल रहा हूं. कहिए, कैसे याद किया?’’

‘‘दरअसल, बात यह है कि मेरे पास एक न्यू ब्रैंड टैक्सी है. मैं उसे बेचना चाहता हूं.’’ उस आदमी ने धीरे से कहा.

चूंकि जीबी रोड थाना कमला मार्केट इलाके में ही है. यहां पर टैक्सी धंधा करने वाली महिला को कहते हैं, इसलिए वह समझ गए कि यह किसी लड़की का सौदा करना चाहता है. जो लड़की या महिला यहां लाई जाती है, वह यहीं की हो कर रह जाती है.  उस आदमी की बात से लग रहा था कि वह इस क्षेत्र का पुराना खिलाड़ी है, क्योंकि वह कोड वर्ड का प्रयोग कर रहा था. उस लड़की की जिंदगी बचा कर थानाप्रभारी उस गैंग तक पहुंचना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कहा, ‘‘यह बताओ कि टैक्सी किस हालत में है?’’

‘‘एकदम न्यू ब्रैंड है. बस यह समझ लो कि वह अभी सड़क पर भी नहीं उतरी है.’’ उस ने कहा, ‘‘वह केवल 15 साल की है.’’

15 साल की है तो उसे जरूर प्रेमजाल में फांस कर या नौकरी के बहाने लाया गया होगा. उस की नीयत को भांप कर थानाप्रभारी ने उस से बातचीत जारी रखी, ‘‘ठीक है, हम उसे खरीद लेंगे.’’

‘‘कितने रुपए देंगे उस टैक्सी के?’’ वह बोला.

‘‘देखो भाई, हम बिना देखे उस के दाम कैसे बता सकते हैं. अच्छा, यह बताओ कि वह है कैसी? आप हमें उस के फोटो वगैरह दिखाइए, उस के बाद ही बताया जाएगा.’’

‘‘वह एकदम स्लिम है और लंबाई करीब 5 फुट है.’’ उस ने बताया, ‘‘मैं उस के फोटो भी दिखा दूंगा. कोई लफड़ा तो नहीं होगा.’’

‘‘लफड़ा किस बात का. देखो, तुम्हें बेचना है और हमें खरीदना तो इस में लफड़े की कोई बात ही नहीं है.’’

‘‘आप को एक बात ध्यान रखना है कि किसी भी तरह वह लड़की अपने घर वालों को फोन न कर पाए. अगर उस ने फोन कर दिया तो हम दोनों ही फंसेंगे.’’ उस ने आशंका जताते हुए कहा.

‘‘यहां आने के बाद किसी का भी घर लौटना मुमकिन नहीं होता. और तो और बाद में जब तुम भी यहां आओगे तो वह तुम्हें भी यहां नहीं दिखेगी.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

‘‘तुम से मिलने मैं आ जाऊंगा, तभी बात करते हैं.’’

‘‘ठीक है आ जाना, पर तुम यहां कोठे पर मत आना, क्योंकि इस तरह के सौदे बाहर ही होते हैं. दूसरी जगह कहां मिलना है, इस बारे में हम फोन कर के तय कर लेंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

इस पूरी बातचीत में थानाप्रभारी सुनील ढाका ने यह जाहिर नहीं होने दिया कि वह पुलिस अधिकारी हैं. वह कोठों के दलालों की स्टाइल में ही बात करते रहे.

इस के बाद भी उस दिन 3-4 बार उसी आदमी ने फोन कर इस संबंध में बात की. इस बातचीत में उस ने तय कर लिया कि कल वह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आएगा और वहां बैठ कर आपस में बात की जाएगी.

‘‘ठीक है, तुम वहां आ जाना. मैं 2 लड़कों गुलाब और सुंदर को भेज दूंगा. लड़की का फोटो वगैरह देख कर वे डील फाइनल कर लेंगे. इस के बाद तुम लड़की ले आना और वहीं हम तुम्हें पैसे दे देंगे.’’ थानाप्रभारी ने कहा. इसी के साथ उन्होंने गुलाब का फोन नंबर भी उसे दे दिया.

थानाप्रभारी ने इस मामले की जानकारी एसीपी अमित कौशिक और डीसीपी मंजीत सिंह रंधावा को दे दी. मामला एक लड़की की जिंदगी उजड़ने से बचाना था, इसलिए डीसीपी ने कहा कि वह बातचीत में ऐहतियात बरतें. लड़की बेचने वालों को किसी तरह का शक नहीं होना चाहिए, वरना गड़बड़ हो सकती है.

डीसीपी के निर्देश के बाद सुनील कुमार ढाका ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से उन के पास लड़की का सौदा करने वाले का फोन आया था. उस फोन की लोकेशन गुड़गांव की आ रही थी.

20 नवंबर को थानाप्रभारी उस आदमी से फोन द्वारा संपर्क में रहे. उस ने बताया कि वह दिल्ली के लिए मैट्रो से चल पड़ा है. शाम 4, साढ़े 4 बजे तक वह नई दिल्ली पहुंच जाएगा.

‘‘ठीक है, तुम नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन पहुंचो, मेरे दोनों लड़के गुलाब और सुंदर वहां पहुंच जाएंगे. तुम उन से बात कर लेना.’’ थानाप्रभारी ने कहा.

थानाप्रभारी ने उसे अपने कांस्टेबल गुलाब का फोन नंबर दे दिया था, इसलिए वह गुलाब के संपर्क में आ गया. उस ने बताया कि वे 2 लोग आ रहे हैं और शाम साढ़े 4 बजे मैट्रो के गेट नंबर-4 के बाहर मिलेंगे. कांस्टेबल सुंदर और गुलाब मैट्रो के गेट नंबर 4 के बाहर खड़े हो गए.

मैट्रो ट्रेन से उतरने के बाद उस आदमी ने गुलाब से बात की तो गुलाब ने बताया कि वह मैट्रो के गेट नंबर 4 पर खड़ा है. कुछ देर बाद वहां 2 युवक पहुंचे. उन्होंने अपने नाम अमर और रंजीत बताए. अमर गुलाब से बातें करने लगा और रंजीत वहां से कुछ दूर जा कर खड़ा हो गया. अमर ने अपने मोबाइल फोन में उस लड़की की फोटो गुलाब को दिखाई, जिस का सौदा करना था. 15 साल की वह लड़की वास्तव में खूबसूरत थी. अमर ने उस लड़की के साढ़े 3 लाख रुपए मांगे.

‘‘साढ़े 3 लाख तो बहुत ज्यादा है. मैं कल ही बंगाल से 70-70 हजार में 2 लड़कियां लाया हूं. भाई, जो मुनासिब है ले लो.’’ गुलाब ने कहा.

‘‘देखिए, मेरे पास इस के अलावा 5 लड़कियां और हैं. अगर सही पैसों में तुम से डील हो जाती है तो सारी की सारी तुम्हें ही दे दूंगा.’’ अमर ने कहा.

‘‘हमारे पास भी आल इंडिया से लड़कियां आती हैं. हमारे आदमी हर स्टेट में हैं. वे हम से जुड़ कर मोटी कमाई कर रहे हैं. तुम भी ऐसा कर सकते हो.’’

दोनों ही तरफ से लड़की का मोलभाव होने लगा. अंत में बात 2 लाख 30 हजार रुपए में तय हो गई. अमर ने कहा कि वह लड़की को यहीं ले आएगा और किसी बहाने से उसे छोड़ कर चला जाएगा.

गुलाब और सुंदर अमर और रंजीत से इस तरह बातचीत कर रहे थे, जैसे वे सचमुच में पक्के धंधेबाज हों. गुलाब ने उन के साथ सेल्फी ली और एक दुकान पर बैठ कर चायनाश्ता भी किया. कुछ ही देर की बातचीत में वे सब एकदूसरे से घुलमिल गए. अमर ने बताया कि वह कल 11-12 बजे के बीच लड़की को यहां ले आएगा. लौटते समय गुलाब ने अमर को एक हजार रुपए थमा दिए.

‘‘ये पैसे किस बात के?’’ अमर ने पूछा.

‘‘इन्हें ऐसे ही रख लो. इतनी दूर से आए हो, किराएभाड़े के लिए हैं. घबराओ मत, इन्हें मैं सौदे की रकम से नहीं काटूंगा. वह पैसे तो लड़की के मिलते ही तुम्हें हाथोंहाथ दे दूंगा.’’ गुलाब ने कहा.

इस के बाद अमर और रंजीत मैट्रो से ही वापस चले गए.  कांस्टेबल गुलाब ने विश्वास बनाए रखने के लिए उन से यह भी नहीं पूछा कि वे कहां से आए हैं. अगले दिन दोपहर डेढ़ बजे अमर ने फोन कर के गुलाब से कहा, ‘‘आप लोग गुड़गांव बसअड्डे पर आ जाइए. यहीं पर लड़की भी दिखा दूंगा और पैसे ले कर सौंप भी दूंगा.’’

थानाप्रभारी ने कांस्टेबल गुलाब से पहले ही कह दिया था कि डील करते समय वह किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करेंगे. उन से खरीदार की तरह ही बातचीत करें. इसी बात को ध्यान में रखते हुए गुलाब ने उस दिन गुड़गांव आने से मना कर दिया.

उन्होंने कहा कि हम आज गुड़गांव नहीं आ सकते, क्योंकि आज उन्हें अपने एक रिश्तेदार के यहां शादी में जाना है. अगर ज्यादा जल्दी हो तो वे लड़की को ले कर नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आ जाएं.

कुछ देर सोच कर अमर ने कहा, ‘‘ठीक है, आप लोग कल ही गुड़गांव आ जाइए.’’

‘‘हां, यही ठीक रहेगा.’’ गुलाब ने उस की बात का समर्थन करते हुए कहा.

अमर सुनील कुमार ढाका और गुलाब से फोन पर दिन में कईकई बार बातें कर रहा था, लेकिन अगले दिन यानी 21 नवंबर को उन के पास अमर का कोई फोन नहीं आया. इस से थानाप्रभारी को आशंका हुई कि कहीं उसे उन के पुलिस होने की भनक तो नहीं लग गई.

यदि ऐसा हुआ तो गड़बड़ हो जाएगी. अगर उस ने किसी तरह लड़की कोठे पर पहुंचा दिया तो वहां लड़की को तलाश पाना मुश्किल हो जाएगा.

वह गुलाब से इसी मुद्दे पर बात कर रहे थे कि तभी 11 बजे के करीब अमर का फोन आ गया. उस ने कहा, ‘‘आप लोग गुड़गांव आ जाइए. मैं बसअड्डे के पास आप का इंतजार करूंगा. यहीं पर आप लड़की को देख लेना.’’

थानाप्रभारी ने एएसआई विजय, कांस्टेबल गुलाब और सुंदर को निर्देश दे कर गुड़गांव भेज दिया. तीनों गुड़गांव पहुंच गए. रास्ते भर गुलाब अमर से फोन पर बातचीत करते रहे.

जब वह वहां पहुंचे तो अमर और उस का साथी बसअड्डे के पास ही खड़े मिले. चूंकि वे गुलाब और सुंदर को ही जानते थे, इसलिए एएसआई विजय बसअड्डे के पास एक दुकान पर खड़े हो गए. गुलाब ने अमर से लड़की के बारे में पूछा तो उस ने कहा कि वह अभी उसे ले कर नहीं आया है. उस ने मोबाइल फोन में लड़की के कुछ अन्य फोटो उन्हें दिखाए.

इस बार उस के मोबाइल में लड़की के अलगअलग तरह के फोटो थे. उस ने कहा कि वह लड़की को यहीं ले आता है, वे यहीं पैसे दे कर लड़की को ले जाएं.

‘‘लेकिन अभी हम पैसे नहीं लाए हैं. ऐसी बात थी तो पहले बता देते, हम पैसे ले कर आते. अब बताइए, क्या करें.’’ गुलाब ने कहा.

‘‘करना क्या है, हम चाह रहे थे कि यह मामला आज ही निपट जाए.’’ अमर ने कहा.

‘‘कोई बात नहीं, आज नहीं तो कल निपट जाएगा. लेकिन हम चाहते हैं कि लड़की को ले कर तुम दिल्ली आ जाओ. पैसे वहीं मिल जाएंगे.’’

अगले दिन 22 नवंबर, 2017 को अमर अपने दोस्त और उस लड़की को ले कर मैट्रो से दिल्ली के लिए निकल पड़ा. दिल्ली के लिए निकलने से पहले उस ने गुलाब को फोन कर के बता दिया.

कांस्टेबल गुलाब ने यह बात थानाप्रभारी को बता दी. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम बनाई, जिस में एसआई दिनेश कुंडू, एएसआई सर्वेश, विजय, कांस्टेबल गुलाब, सुंदर, महिला कांस्टेबल मधु को शामिल किया. गवाही के लिए वह किसी स्थानीय आदमी को साथ रखना चाहते थे. इस के लिए उन्होंने मोहम्मद हफीज उर्फ बबलू प्रधान से बात की और उसे अपनी टीम के साथ नई दिल्ली मैट्रो स्टेशन पर ले गए.

चूंकि अमर ने मैट्रो के गेट नंबर 4 के पास मिलने को कहा था, इसलिए उस गेट के आसपास सभी पुलिसकर्मी तैनात हो गए.

दिल्ली पहुंच कर अमर ने गुलाब को फोन किया तो गुलाब अपने साथी सुंदर के साथ वहां पहुंच गए. वह अमर को पहचानते थे, इसलिए मैट्रो के गेट नंबर 4 के पास उन्होंने अमर को खड़े देखा तो वह उस से बड़ी गर्मजोशी से मिले.

उन्होंने उसे 20 हजार रुपए दे कर बाकी के पैसे लड़की सौंपते समय देने को कहा. वहां अमर अकेला था. उस ने लड़की को अपने साथी रंजीत के साथ वहां से थोड़ी दूरी पर खड़ी कर दिया था.

अमर जल्द ही अपनी बकाया की रकम ले कर लड़की को उन के हवाले कर वहां से खिसक जाना चाहता था, इसलिए वह गुलाब को उस जगह ले गया, जहां रंजीत के साथ लड़की खड़ी थी. लड़की को देख कर गुलाब ने अपने सिर को खुजाया. यह उन का इशारा था. इस के बाद थानाप्रभारी सहित उन की टीम के सदस्य वहां पहुंच गए. उन्होंने अमर और उस के साथी को हिरासत में ले लिया.

गुलाब और सुंदर को जीबी रोड कोठे का दलाल समझने वाले अमर और रंजीत को जब पता चला कि वे दलाल नहीं, बल्कि पुलिस वाले हैं तो उन के होश उड़ गए. जिस मनीषा नाम की लड़की को वे बेचने लाए थे, उसे महिला कांस्टेबल मधु ने अपनी हिफाजत में ले लिया.

थाने ले जा कर जब अमर और रंजीत से पूछताछ की गई तो पता चला कि वे दोनों बिहार के रहने वाले थे और वह लड़की भी बिहार की थी.

लड़की को अपने प्यार के जाल में फांस कर उसे रेडलाइट एरिया में बेचने की कोशिश करने की उन्होंने जो कहानी बताई, वह बहुत ही हैरान कर देने वाली थी—

24 साल का अमर मूलरूप से बिहार के सुपौल जिले के इरारी गांव के रहने वाले लक्ष्मण का बेटा था. इसी गांव के रहने वाले रंजीत शाह से उस की अच्छी दोस्ती थी. अमर दिल्ली और गुड़गांव में पहले नौकरी कर चुका था.

मई, 2017 की बात है. अमर बिहार के मोतिहारी जिले में अपने एक जानकार के यहां आयोजित भोज में गया था. वहीं पर मनीषा से उस की मुलाकात हुई. 15 साल की मनीषा खूबसूरत के साथ हंसमुख भी थी. वह भी परिवार के साथ उसी भोज में आई थी. पहली मुलाकात में ही दोनों एकदूसरे से काफी प्रभावित हुए. उसी दौरान उन्होंने अपने फोन नंबर एकदूसरे को दे दिए.

भोज से घर लौटने के बाद अमर के दिलोदिमाग में मनीषा ही घूमती रही. अगले दिन मन नहीं लगा तो उस ने मनीषा को फोन लगा दिया. दोनों में औपचारिक बातें हुईं. इस के बाद उन के बीच बातों का सिलसिला शुरू हो गया. धीरेधीरे बातों का दायरा बढ़ता गया और वह प्यार के बंधन में बंधते गए. दोनों ही एकदूसरे को इतना चाहने लगे कि उन्होंने शादी करने का फैसला ले लिया.

इस के बाद योजना बना कर दोनों 15 अक्तूबर, 2017 को अपनेअपने घरों से भाग निकले. 15 साल की मनीषा अपना घर छोड़ कर मोतिहारी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गई, जहां अमर अपने दोस्त रंजीत के साथ उस का इंतजार कर रहा था.  मोतिहारी से तीनों दिल्ली आ गए. दिल्ली से मैट्रो द्वारा गुड़गांव पहुंच गए. चूंकि गुड़गांव से अमर और रंजीत अच्छी तरह वाकिफ थे, इसलिए गुड़गांव सेक्टर-10 के शक्तिनगर में रह रहे अपने जानकार की मदद से एक कमरा किराए पर ले लिया.

चूंकि अमर ने मनीषा से शादी करने का वादा किया था, इसलिए अपने ही कमरे में 2 दोस्तों के सामने उस ने मनीषा से शादी कर ली. अग्नि के फेरे लगा कर पर मनीषा की मांग में सिंदूर भर दिया. इस के बाद दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे.

शादी के बाद अमर ने मनीषा को बताया कि वह शादीशुदा तो है ही, उस का एक बच्चा भी है. इस पर मनीषा ने हैरानी से कहा, ‘‘तुम ने यह बात पहले क्यों नहीं बताई?’’

‘‘तुम ने कभी पूछा ही नहीं, इसलिए मैं ने नहीं बताया. लेकिन तुम परेशान मत होओ, भले ही मैं शादीशुदा हूं, तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा. पहली पत्नी से मेरा एक बच्चा है. एक बच्चा मैं तुम से चाहता हूं. मैं वादा करता हूं कि तुम्हें हर तरह से खुश रखने की कोशिश करूंगा.’’ अमर ने कहा.

मनीषा बिना सोचेसमझे ऐसा कदम उठा चुकी थी जो उस के लिए नुकसानदायक साबित हुआ था. वह अमर से शादी कर चुकी थी. इसलिए घर वापस जाना उस ने जरूरी नहीं समझा. लिहाजा उस ने तय कर लिया कि अब चाहे जो भी हो, वह अमर के साथ ही रहेगी. आगे जो होगा, देखा जाएगा. वह अमर के साथ हंसीखुशी से रहने लगी.

15-20 दिनों बाद अमर का मनीषा से मन भर गया. अब मनीषा उसे गले की हड्डी लगने लगी. वह उस से छुटकारा पाना चाह रहा था. इस बारे में उस ने दोस्त रंजीत से बात की. उसे अकेली छोड़ कर वह जा नहीं सकता, क्योंकि बाद में मनीषा द्वारा पुलिस से शिकायत करने पर उस के फंसने की आशंका थी. अगर वह उस की हत्या कर देता तो भी उस के जेल जाने की आशंका थी.

ऐसे में रंजीत ने उसे कोठे पर बेचने की सलाह दी. कोठे पर जाने के बाद कोई भी लड़की बाहर नहीं आ सकती और इस में उन्हें अच्छीखासी रकम भी मिल जाती. दोस्त का यह आइडिया अमर को पसंद आ गया. उन्होंने जीबी रोड के कोठों का नाम सुना था. वे उसे दिल्ली के जीबी रोड के किसी कोठे पर बेचना चाहते थे.

वे ऐसे किसी दलाल को नहीं जानते थे, जो उन का यह काम करा देता. वे सीधे कोठे पर यह सोच कर नहीं जा रहे थे कि सौदा न पटने पर कहीं कोठे वाली पुलिस से पकड़वा न दे. लिहाजा वे मनीषा को कोठे पर बेचने का कोई और तरीका खोजने लगे.

आजकल ज्यादातर लोगों के पास स्मार्टफोन है, जिन पर इंटरनेट का खूब प्रयोग होता है. इस स्मार्टफोन ने लोगों को स्मार्ट बना दिया है. उन्हें कोई भी जानकारी चाहिए, झट गूगल पर सर्च करने बैठ जाते हैं. रंजीत के दिमाग में जाने क्या आया कि वह गूगल पर सैक्स से संबंधित साइट्स खोजने लगा. इस के बाद उस ने यूट्यूब पर जीबी रोड रेडलाइट एरिया से संबंधित वीडियो देखीं.

एक वीडियो में जीबी रोड के कोठों के अंदर के दृश्य भी दिखाए गए थे. वीडियो देखते देखते रंजीत की नजर दीवार पर लिखे एक फोन नंबर 8750870424 पर गई, जहां लिखा था कि कोई भी समस्या या शिकायत इस नंबर पर करें.

यह फोन नंबर दिल्ली के कमला मार्केट थाने के थानाप्रभारी का था. यह फोन नंबर मध्य जिला के डीसीपी ने इस आशय से जीबी रोड के कोठों पर लिखवाया था कि किसी जरूरतमंद लड़की से जबरदस्ती धंधा कराए जाने पर वह इस नंबर पर शिकायत कर सके.

रंजीत को यह जानकारी नहीं थी कि यह नंबर पुलिस का है. उस ने सोचा कि यह कोठे के संचालक का होगा. दोनों दोस्तों ने तय कर लिया कि इस फोन नंबर पर बात कर के वे मनीषा को बेचने की कोशिश करेंगे.

रंजीत ने अमर को यह बात पहले बता दी थी कि मनीषा का सौदा जितने रुपयों का होगा, उस में से एक लाख रुपए वह लेगा. इन रुपयों को खर्च करने का प्लान भी उस ने बना लिया था. रंजीत ने तय कर लिया था कि वह कोई पुरानी कार खरीद कर अपने घर ले जाएगा. इस के बाद अमर ने उसी नंबर पर फोन किया.

जैसे ही अमर ने पूछा कि आप जीबी रोड से बोल रहे हैं तो थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका ने हां कह दिया. क्योंकि इस से पहले भी उन के पास ऐसी कई काल आ चुकी थीं. उन्होंने अमर से ऐसे बात की, जैसे वह किसी कोठे के संचालक हों.

उन की इसी समझदारी पर मनीषा कोठे पर बिकने से बच गई. उन्होंने अमर और रंजीत के खिलाफ भादंवि की धारा 120बी, 363, 366ए, 376, 370 और पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया. उन्हें गिरफ्तार कर 23 नवंबर, 2017 को न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी कपिल कुमार के समक्ष पेश कर एक दिन का रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में पूछताछ करने के बाद उन्हें फिर से 24 नवंबर को कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने मनीषा को चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी भेज दिया.

थानाप्रभारी के इस कार्य की पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक, डीसीपी मंदीप सिंह रंधावा ने भी सराहना की है. उन्होंने इसे एक सच्ची समाजसेवा बताया. मनीषा बिहार के मोतिहारी जिले के लौकी थानाक्षेत्र की थी. लिहाजा थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका ने इंटरनेट से मोतिहारी के एसएसपी औफिस का नंबर हासिल किया. फिर उन्होंने एसएसपी औफिस से थाना लौकी का फोन नंबर लिया.

वहां के थानाप्रभारी रामचंद्र चौपाल को उन्होंने मनीषा के बरामद होने की सूचना दी तो उन्होंने बताया कि मनीषा एक गरीब परिवार की है. घर वालों ने उस के भाग जाने की रिपोर्ट तक दर्ज नहीं कराई थी.

बहरहाल, थानाप्रभारी रामचंद्र चौपाल ने मनीषा के घर वालों को मनीषा के दिल्ली से बरामद होने की जानकारी दे दी. कथा संकलन तक मनीषा के घर वाले दिल्ली नहीं पहुंच सके थे. मामले की जांच थानाप्रभारी सुनील कुमार ढाका कर रहे हैं.

जीबी रोड के कोठे में लिखे इस फोन पर भले ही किसी शोषिता ने पुलिस से शिकायत न की हो, पर इस नंबर ने एक लड़की को शोषित होने से जरूर बचा लिया. देश भर के सभी रेडलाइट एरिया में यदि स्थानीय पुलिस के नंबर इसी तरह प्रसारित किए जाएं तो और भी तमाम लड़कियां देह व्यापार के धंधे में जाने से बच सकती हैं.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मनीषा परिवर्तित नाम है.

रेलवे में नौकरी के नाम पर ठगी

चाय की दुकान हो या नाई की या फिर पान की दुकान हो, ये सब ऐसे अड्डे होते हैं, जहां आदमी को तरह तरह की जानकारी ही नहीं मिलती, बल्कि उन पर विस्तार से चर्चा भी होती है. इंटरनेट क्रांति से पहले इन्हीं अड्डों पर इलाके में घटने वाली घटनाओं की जानकारी आसानी से मिल जाती थी.

अब भले ही दुनिया बहुत आगे निकल गई है, लेकिन आज भी ये दुकानें सूचनाओं की वाहक बनी हुई हैं. बाल काटते या हजामत करतेकरते नाई, चाय की दुकान पर बैठे लोग और पान खाने वाले किसी न किसी विषय पर बातें करते रहते हैं.

उत्तर पश्चिम दिल्ली के सराय पीपलथला के रहने वाले सरफराज की भी सराय पीपलथला में बाल काटने की दुकान थी. यह जगह एशिया की सब से बड़ी आजादपुर मंडी से सटी हुई है, इस मंडी में हजारों लोगों को रोजगार मिला हुआ है. इस वजह से उस की दुकान अच्छी चलती थी. उस की दुकान पर हर तरह के लोग आते थे. उन्हीं में से उस का एक स्थाई ग्राहक था ओमपाल सिंह.

ओमपाल सिंह रोहिणी के जय अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रहता था. उस ने आजादपुर मंडी में कुछ लोगों को हाथ ठेले किराए पर दे रखे थे. उन से किराया वसूलने के लिए वह रोजाना शाम को मंडी आता था. किराया वसूल कर वह सरफराज की दुकान पर कुछ देर बैठ कर उस से बातें करता था.

बातों ही बातों में सरफराज को पता चल गया था कि ओमपाल पहले दिल्ली में ही मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम) औफिस में नौकरी करता था, पर अपना काम ठीक से चल जाने के बाद उस ने रेलवे की नौकरी छोड़ दी थी.

एक दिन ओमपाल ने सरफराज को बताया कि डीआरएम औफिस में भले ही वह चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था, पर अधिकारियों से उस की अच्छी जानपहचान थी, जिस का फायदा उठा कर उस ने कई लोगों को रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी दिलवाई थी. यह जान कर सरफराज को लगा कि ओमपाल तो काफी काम का आदमी है, क्योंकि न इस से फायदा उठाया जाए.

दरअसल, सरफराज का एक छोटा भाई था राशिद, जो 12वीं तक पढ़ा था. पढ़ाई के बाद उस ने सरकारी नौकरी के लिए काफी कोशिश की. जब नौकरी नहीं मिली तो भाई की दुकान पर काम करने लगा था. सरफराज ने सोचा कि अगर ओमपाल सिंह की मदद से भाई की नौकरी रेलवे में लग जाए तो अच्छा रहेगा.

इस बारे में सरफराज ने ओमपाल से बात की तो उस ने बताया कि वह राशिद की नौकरी तो लगवा देगा, पर इस में कुछ खर्चा लगेगा.

सरफराज ने पूछा, ‘‘कितना खर्चा आएगा?’’

‘‘ज्यादा नहीं, बस 60 हजार रुपए. डीआरएम औफिस में जिन साहब के जरिए यह काम होगा, उन्हें पैसे देने पड़ेंगे. और रही बात मेरे मेहनताने की तो जब राशिद की नौकरी लग जाएगी तो अपनी खुशी से मुझे जो दोगे, रख लूंगा.’’ ओमपाल ने कहा.

आज के जमाने में चतुर्थ श्रेणी नौकरी के लिए 60 हजार रुपए सरफराज की नजरों में ज्यादा नहीं थे. वह जानता था कि अब सरकारी नौकरी इतनी आसानी से मिलती कहां है.

सरकारी विभाग में क्लर्क की जगह निकलने पर लाखों की संख्या में लोग आवेदन करते हैं. लोग मोटी रिश्वत देने को भी तैयार रहते हैं सो अलग. इन सब बातों को देखते हुए सरफराज ने ओमपाल से अपने भाई की रेलवे में चतुर्थ श्रेणी की नौकरी लगवाने के लिए 60 हजार रुपए देने की हामी भर ली.

‘‘सरफराज भाई, राशिद की नौकरी तो लग ही जाएगी. इस के अलावा तुम्हारे किसी रिश्तेदार या दोस्त का कोई ऐसा बच्चा तो नहीं है, जो रेलवे में नौकरी करना चाहता हो, यदि कोई हो तो बात कर लो. राशिद के साथसाथ उस का भी काम हो जाएगा.’’ ओमपाल ने कहा.

‘‘हां, बच्चे तो हैं. इस के बारे में मैं 1-2 दिन में आप को बता दूंगा.’’ सरफराज ने कहा.

सरफराज के बराबर में गंगाराम की भी दुकान थी. वह दिल्ली के ही स्वरूपनगर में रहते थे. वह सरफराज को अपने बेरोजगार बेटे नीरज के बारे में बताते रहते थे. उस की नौकरी को ले कर वह चिंतित थे. सरफराज ने गंगाराम से उन के बेटे की रेलवे में नौकरी लगवाने के लिए बात की.

सरफराज की बात पर गंगाराम को पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि सरकारी नौकरी इतनी आसानी से भला कहां मिलती है. सरफराज ने जब उन्हें पूरी बात बताई तो गंगाराम को यकीन हो गया. तब उन्होंने कहा कि वह उन के बेटे नीरज के लिए भी बात कर ले.

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इसी तरह सरफराज ने अपने एक और दोस्त अशोक कुमार से बात की, जो शालीमार बाग के  बी ब्लौक में रहते थे. उन की एक बेटी थी, जो नर्सिंग का कोर्स करने के बाद घर पर बैठी थी. बेटी की रेलवे में स्थाई नौकरी लगवाने के लिए अशोक कुमार ने भी 60 हजार रुपए देने के लिए हामी भर दी.

सरफराज ने ओमपाल सिंह की गंगाराम और अशोक कुमार से मुलाकात भी करा दी. ओमपाल से बात करने के बाद अशोक कुमार व गंगाराम को भी ओमपाल की बातों पर विश्वास हो गया. ओमपाल ने तीनों से पैसों का इंतजाम करने के लिए कह दिया.

तीनों दोस्त इस बात को ले कर खुश थे कि उन के बच्चों की नौकरी लग रही है. इस के बाद 13 जून, 2017 को उन्होंने ओमपाल सिंह को 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए. रुपए लेने के बाद ओमपाल ने उन्हें विश्वास दिलाया कि एकडेढ़ महीने के अंदर उन के बच्चों की नौकरी लग जाएगी.

अशोक, गंगाराम व सरफराज एकएक कर दिन गिनने लगे. विश्वास जमाने के लिए ओमपाल ने फार्म वगैरह भी भरवा लिए थे. जब 2 महीने बाद भी बच्चों की नौकरी नहीं लगी तो ओमपाल सभी को कोई न कोई बहाना बना कर टालने लगा. कुछ दिनों तक वे उस की बातों पर विश्वास करते रहे. बाद में ओमपाल ने सरफराज की दुकान पर आना बंद कर दिया तो सभी को चिंता हुई.

फोन नंबर बंद होने पर सरफराज, गंगाराम और अशोक की चिंता बढ़ गई. इस के बाद एक दिन सरफराज, अशोक और गंगाराम ओमपाल के जय अपार्टमेंट स्थित फ्लैट नंबर 131 पर जा पहुंचे, जहां पता चला कि ओमपाल इस फ्लैट को खाली कर के जा चुका है. यह जान कर तीनों के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वे समझ गए कि बड़े शातिराना ढंग से ओमपाल ने उन के साथ ठगी की है.

उन के पास ऐसा कोई उपाय नहीं था, जिस से वे ओमपाल को तलाश करते. मजबूरन वे उत्तर पश्चिम जिले के डीसीपी मिलिंद एम. डुंब्रे से मिले और अपने साथ घटी घटना की जानकारी विस्तार से दी. डीसीपी ने इस मामले की जांच औपरेशन सेल के एसीपी रमेश कुमार को करने के निर्देश दिए.

एसीपी रमेश कुमार ने इस मामले को सुलझाने के लिए स्पैशल स्टाफ के इंसपेक्टर कुलदीप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में तेजतर्रार एसआई अखिलेश वाजपेयी, हैडकांस्टेबल राहुल कुमार, दिलबाग सिंह, विकास कुमार, कांस्टेबल उम्मेद सिंह आदि को शामिल किया. टीम ने सब से पहले ओमपाल के फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

पिछले 6 महीने की काल डिटेल्स का अध्ययन करने के बाद एसआई अखिलेश वाजपेयी ने उन फोन नंबरों को चिह्नित किया, जिन पर ओमपाल की बातें हुई थीं. उन में से कुछ फोन नंबर ओमपाल के रिश्तेदारों के थे.

उन पर दबाव बना कर एसआई अखिलेश वाजपेयी को ओमप्रकाश का वह ठिकाना मिल गया, जहां वह रह रहा था. जानकारी मिली कि वह सोनीपत स्थित टीडीआई कोंडली के सी-3 टौवर में रह रहा था.

ठिकाना मिलने के बाद पुलिस टीम ने 14 नवंबर, 2017 को टीडीआई कोंडली स्थित ओमपाल के फ्लैट पर दबिश दी तो वह वहां मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस दिल्ली लौट आई. स्पैशल स्टाफ औफिस में जब उस से सरफराज, गंगाराम और अशोक कुमार से ठगी किए जाने के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बड़ी आसानी से स्वीकार कर लिया कि उस ने रेलवे में नौकरी लगवाने का झांसा दे कर तीनों से 1 लाख 80 हजार रुपए लिए थे.

सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने यह भी स्वीकार कर लिया कि अब तक वह 20 से ज्यादा लोगों से इसी तरह पैसे ले चुका है. इस से पहले भी ठगी के मामले में वह दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार किया जा चुका है. विस्तार से पूछताछ के बाद इस रेलवे कर्मचारी के ठग बनने की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार है—

उत्तरपूर्वी दिल्ली के मंडोली में रहने वाला ओमपाल सिंह दिल्ली के डीआरएम औफिस में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की यह नौकरी सन 1992 में लगी थी. इस नौकरी से वह अपना घरपरिवार चलाता रहा. जैसेजैसे उस का परिवार बढ़ता जा रहा था, वैसेवैसे खर्च भी बढ़ रहा था, पर आमदनी सीमित थी, जिस से घर चलाने में परेशानी हो रही थी.

ओमपाल सोचता रहता था कि वह ऐसा क्या काम करे, जिस से उस के पास पैसों की कोई कमी न रहे. ओमपाल की साथ काम करने वाले संदीप कुमार से अच्छी दोस्ती थी. वह उस से अपनी परेशानी बताता रहता था. वह भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी था. उस की भी यही समस्या थी, पर वह अपनी यह परेशानी किसी को नहीं बताता था. दोनों ही शौर्टकट तरीके से मोटी कमाई करने के तरीके पर विचार करने लगे.

दोनों ने रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी लगवाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठने शुरू कर दिए. तमाम लोगों से उन्होंने लाखों रुपए इकट्ठे कर लिए, पर किसी की नौकरी नहीं लगी. जिन लोगों ने इन्हें पैसे दिए थे, उन्होंने इन से अपने पैसे मांगने शुरू कर दिए. तब दोनों कुछ दिनों के लिए भूमिगत हो गए. लोगों ने दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच थाने में भादंवि की धारा 420, 406 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. यह बात सन 2011 की है.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद क्राइम ब्रांच ने ओमपाल और उस के दोस्त को भरती घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. इस के बाद रेलवे ने दोनों आरोपियों को बर्खास्त कर दिया. जेल से जमानत पर छूटने के बाद ओमपाल ने रोहिणी में जय अपार्टमेंट में किराए पर फ्लैट ले लिया और आजादपुर मंडी में किराए पर हाथ ठेले देने का धंधा शुरू कर दिया.

इस काम से उसे अच्छी कमाई होने लगी. पर उसे तो चस्का मोटी कमाई का लग चुका था. लिहाजा उस ने फिर से लोगों को रेलवे में नौकरी दिलवाने का झांसा दे कर ठगना शुरू कर दिया. सराय पीपलथला के सरफराज, स्वरूपनगर निवासी गंगाराम और शालीमार बाग के अशोक कुमार ने भी उस के झांसे में आ कर उसे 1 लाख 80 हजार रुपए दे दिए.

पूछताछ में ओमपाल ने बताया कि वह करीब 20 लोगों से रेलवे में नौकरी दिलवाने के नाम पर लाखों रुपए ठग चुका है. उस की निशानदेही पर पुलिस ने रेलवे के आवेदन पत्र, सीनियर डीसीएम, उत्तर रेलवे की मुहर और उन के हस्ताक्षरयुक्त पेपर, रेलवे के वाटरमार्क्ड पेपर आदि बरामद किए.

पूछताछ के बाद ओमपाल को 15 नवंबर, 2017 को रोहिणी न्यायालय में महानगर दंडाधिकारी के समक्ष पेश कर 3 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. इस के बाद उसे पुन: न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया. कथा संकलन तक अभियुक्त जेल में बंद था. मामले की विवेचना एसआई अखिलेश वाजपेयी कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

कैमरे में कैद दर्द-ए-दिल

एक नहीं, बल्कि कई बार डा. रिपुदमन सिंह भदौरिया के दिल में यह खयाल आया था कि बैंक खाते से सारी जमापूंजी निकाल कर और कुछ यहां वहां से जुगाड़ कर 10 लाख रुपए इकट्ठा करे और दे मारे उस कमबख्त ब्लैकमेलर राजाबाबू के मुंह पर, जिस के एक फोन और सीडी ने उन के दिन का चैन और रातों की नींद छीन रखी है.

सोतेजागते, उठतेबैठते और खातेपीते एक ही डर उन के दिलोदिमाग में समाया था कि उन की और उस महाकमबख्त मनीषा की रंगरलियों वाली सीडी सोशल मीडिया पर वायरल हो गई तो क्या होगा. इतना सोचते ही उन के हाथपैर फूल जाते और दिमाग सुन्न हो जाता था.

उन के दिमाग में यह बात भी आई कि अगर सीडी वायरल हो गई तो उन के सारे यारदोस्त, नातेरिश्तेदार, जानपहचान वाले ही नहीं, अंजान लोग भी ढूंढढूंढ कर उन्हें नफरत और तरस भरी निगाहों से देखेंगे. वे उन की खिल्ली उड़ाते हुए कहेंगे कि यही है वह डाक्टर, जो मरीज ठीक करने के बहाने औरतों से अय्याशी करता है.

लानत है इस सरकारी डाक्टर पर, इस के पास तो महिलाओं को ले जाना ही खतरे वाली बात है. यह तो अच्छा करने के बजाय उन्हें हमेशा के लिए बिगाड़ देता है. मरीजों के ब्लडप्रेशर का इलाज करने वाले डा. रिपुदमन सिंह का ब्लडप्रेशर उस वक्त और बढ़ जाता, जब वह सोचते कि हकीकत सामने आने पर सरकार उन्हें सस्पैंड कर के उन का मैडिकल प्रैक्टिस का लाइसेंस भी रद्द कर सकती है.

अगर ऐसा हो गया तो वह किसी काम के नहीं रहेंगे. उन की पूरी मेहनत और इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी. लोग भी उन से कतराने लगेंगे. यारदोस्त भी उन से कन्नी काटने लगेंगे. ब्लैकमेलर राजाबाबू ने उन से जो 10 लाख रुपए मांगे थे, उन के लिए खास बड़ी रकम नहीं थी, पर खौफ और डर इस बात का था कि ये 10 लाख रुपए उसे दे भी दें तो इस बात की क्या गारंटी कि वह उन का पिंड छोड़ देगा.

हो सकता है कि कुछ दिनों बाद वह फिर उसी सीडी का डर दिखा कर उन से और रकम ऐंठने की कोशिश करे, तब क्या होगा.

चंबल इलाके के भिंड जिले के एक सरकारी अस्पताल में डा. रिपुदमन पिछले 4 दिनों से जिस कशमकश से गुजर रहे थे, उस का रास्ता और मंजिल एक ही था कि जिंदगी भर इन ब्लैकमेलर्स के हाथों लुटते रहो और ऐसा नहीं कर सकते तो बेइज्जती का पंचनामा बनवाने को तैयार रहो.

कोई और रास्ता उन्हें समझ नहीं आ रहा था. बात भी कुछ ऐसी थी, जिस की चर्चा या जिक्र वह किसी से नहीं कर सकते थे.

रहरह कर वह 30 अगस्त, 2017 की दोपहर को कोस रहे थे, जब उन की पहली मुलाकात मनीषा पाल नाम की युवती से हुई थी. उस दिन वह मरीजों से फुरसत पा कर अपनी केबिन में आ कर बैठे थे कि एक बेइंतहा खूबसूरत 25-26 साल की युवती उन के केबिन में दाखिल हुई.

युवती की खूबसूरती का उन पर कोई खास असर नहीं हुआ. क्योंकि डाक्टरी पेशे में आए दिन तरहतरह के मरीज डाक्टरों के पास आते रहते हैं, उन का मरीज से रिश्ता 5-6 मिनट का ही होता है. बीमारी देखी, दवा लिखी, हिदायतें दीं और बात खत्म. दोबारा मरीज उसी हालत में आता था, जब उसे फायदा न हुआ हो.

पर यहां बात कुछ और ही थी. मनीषा की तरफ देखते ही रिपुदमन ने निहायत ही पेशेवर अंदाज में कहा, ‘‘कहिए, क्या तकलीफ है?’’

‘‘तकलीफ बहुत है डाक्टर साहब, इसीलिए तो आप के पास आई हूं.’’ मनीषा ने कुछ शोखी और कुछ परेशानी भरे स्वर में जवाब दिया तो रिपुदमन अचकचा उठे.

उन्होंने रूटीनी अंदाज में मनीषा को मरीजों वाले स्टूल पर बैठने का इशारा करते हुए कहा, ‘‘हां बताइए, क्या तकलीफ है?’’

इस थोड़ी सी देर में एक बात जो उन्हें न चाहते हुए भी नोटिस में लेनी पड़ी थी कि युवती की टाइट जींस और उस से भी ज्यादा टाइट टौप उभारों को ढंकने के बजाय उन्हें और ज्यादा दिखा रहे थे.

आजकल की मौडर्न युवतियां छोटे शहरों में भी ऐसी ड्रैस पहनने लगी हैं, इसलिए उन्होंने इस बात से अपना ध्यान झटका और मनीषा की तरफ दोबारा सवालिया निगाहों से देखा तो जवाब में मनीषा ने कहा तो कुछ नहीं, पर जो किया, वह उन की उम्मीद से परे था.

एक झटके में मनीषा ने अपनी टीशर्ट उठाई और उसे कंधों तक ले जाते हुए बोली, ‘‘डाक्टर साहब, सीने में बहुत तेज दर्द है.’’

ऐसे लगा मानो विश्वामित्र के सामने कोई मेनका आ कर अपनी पर उतारू हो आई हो. मनीषा के उन्नत वक्षों को देख कर रिपुदमन ने घबरा कर अपनी दोनों आंखें बंद कर लीं. पर चंद सेकेंड पहले जो नजारा उन्होंने देखा था, वह आंखों से चढ़ कर दिमाग तक पहुंच गया था. आंखें बंद कर लेने से कोई फायदा नहीं हुआ. क्योंकि सब कुछ उन के दिमाग में घूमने लगा.

खुद को संभालने में उन्हें चंद सैकेंड ही लगे और वह संभल कर बोले, ‘‘इस के लिए तो आप को किसी लेडी डाक्टर के पास जाना चाहिए.’’

‘‘क्यों?’’ मनीषा बिंदास स्वर में बोली, ‘‘लेडी डाक्टर ही क्यों, आप क्यों नहीं? क्या आप दिल के दर्द का इलाज नहीं जानते?’’

इस जवाब से उन की समझ में आ गया कि लड़की खब्त मिजाज और बेशर्म भी है. तरहतरह के मरीजों से उन का पाला पड़ता रहता था, लेकिन ऐसी मरीज से पहली दफा वास्ता पड़ा था. समझाने और टरकाने के अंदाज में वह बोले, ‘‘देखिए, कोई लेडी डाक्टर ही आप को देख पाएगी.’’

‘‘ठीक है, दिखा लूंगी, पर हाल फिलहाल तो आप देख लीजिए. दर्द वाकई ज्यादा है, जिसे डाक्टर से छिपाना मैं ठीक नहीं समझती.’’ मनीषा अब दार्शनिकों के से अंदाज में बोली तो रिपुदमन की समझ में यह भी आ गया कि यह सनकी युवती आसानी से उन का पीछा नहीं छोड़ने वाली.

उन्होंने अपना स्टेथकोप उठाया और उसे पीठ व छाती पर जगहजगह लगाया, फिर पर्चे पर कुछ दवाइयां उसे लिख कर दे दीं. इस दौरान मनीषा नादान बनती वाचाल लड़की की तरह अपनी बीमारी से ताल्लुक रखती कई बातें उन से पूछती रही, जिन का वह सब्र से जवाब देते रहे.

मनीषा चली गई तो उन्होंने मीलों लंबी सांस ली. केबिन में बिखरी खुशबू नथुनों और दिमाग में समा रही थी. इसी दौरान दूसरा मरीज आ गया तो वह उसे देखने में व्यस्त हो गए और कुछ देर पहले का नजारा भी दिलोदिमाग से निकल सा गया.

रोजाना की तरह घर आ कर वह अपने कामकाज में लग गए और अस्पताल की बातों को भूल गए. लेकिन देर रात मोबाइल फोन की घंटी से उन की नींद खुली तो वह स्क्रीन पर अंजान नंबर देख झल्ला उठे.

‘क्या पता कौन होगा आधी रात में,’ सोचते हुए उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से बगैर किसी भूमिका के हायहैलो की आवाज आई, ‘‘डाक्टर साहब, दवाइयां लेने के बाद भी दिल का दर्द नहीं जा रहा है, ऐसा लग रहा है, मानो कोई मसल रहा हो.’’

रिपुदमन को पहचानने में देर नहीं लगी कि यह आवाज उसी खूबसूरत युवती यानी मनीषा की है, जो दोपहर में उन के पास आई थी और उन के दिल में हलचल मचा गई थी. फिर भी अंजान बनने की एक्टिंग करते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘कौन बोल रही हैं आप?’’

‘‘अरे, मैं हूं मनीषा, जिसे दोपहर में आप ने चैक किया था. डाक्टर साहब तब मैं ने सब कुछ तो दिखा दिया था, पर दर्द है कि ठीक नहीं हो रहा है. क्या करूं समझ नहीं आ रहा. अब प्लीज, आप ही कुछ कीजिए.’’ उस ने कहा.

आवाज में दर्द कम, एक आमंत्रण ज्यादा था, जिसे डा. रिपुदमन तो क्या कोई मामूली मर्द भी आसानी से भांप सकता था कि युवती चाहती क्या है और उस के कहने का मतलब क्या है. रिपुदमन के दिमाग का फ्यूज इस बार मनीषा की आवाज से उड़ गया था. फिर भी खुद की प्रतिष्ठा और डाक्टरी पेशे की गरिमा को बनाए रखते हुए उन्होंने फोन पर ही मनीषा को दूसरी गोली का नाम लिखाते उसे खा लेने की सलाह दी.

मनीषा का फोन काटने का इरादा नहीं लग रहा था, इसलिए वह बेवजह के सवाल किए जा रही थी. सवाल भी एक पुरुष को भड़काने वाले थे. लंबी द्विअर्थी बातें करने के बाद उन्होंने इतिश्री करते हुए मनीषा को फिर किसी लेडी डाक्टर को दिखाने की सलाह दे डाली.

इति तो नहीं, पर अति जरूर हो रही थी. मनीषा पाल की बातों और खूबसूरती ने फिर बाकी रात रिपुदमन को सोने नहीं दिया.

बारबार उन की आंखों के सामने वह दृश्य घूम उठता था, जब मनीषा ने एक झटके में अपनी गुलाबी टीशर्ट कंधे तक उठा दी थी. फिर थोड़ी देर पहले की गई बातों से तो बिलकुल साफ लग रहा था कि वह उन के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार है.

युवा रिपुदमन की हालत किशोरों जैसी हो गई थी. जैसे ही वह नींद में जाने को होते, गदराई मनीषा उन्हें जगा देती. उस से हुई मुलाकात और बातों से मैडिकल के दौरान फिजियोलौजी नाम के विषय की पढ़ाई हवा हो गई थी. बाकी रात संस्कारों और वासना का युद्ध होता रहा, जिस में रिपुदमन की समझ में नहीं आ रहा था कि कौन भारी पड़ रहा है.

जितना वह मनीषा को अपने से दूर करने की कोशिश करते थे, वह न्यूटन के नियम की तरह वापस उन्हीं की तरफ आ जाती थी. अगले 3 दिन सुकून से कटे. मनीषा का कोई फोन नहीं आया तो रिपुदमन को लगा कि वह लड़की उन की जिंदगी में हवा के महकते झोंके की तरह आई थी और चली गई.

31 अगस्त को छुट्टी ले कर वह अपने घर ग्वालियर आ गए. तीसरे दिन अचानक फिर उन के पास उस का फोन आया. वह पहले की ही तरह बगैर किसी औपचारिकता के बोली, ‘‘अब दर्द में आराम तो है, लेकिन वह पूरी तरह ठीक नहीं हुआ है. इसलिए बेहतर होगा कि आप एक बार और चैक कर लें.’’

‘‘यह तो मुमकिन नहीं है. क्योंकि इस समय मैं ग्वालियर में हूं.’’ डा. रिपुदमन ने कहा.

‘‘वाह क्या हसीन इत्तफाक है,’’ मनीषा चहक कर बोली, ‘‘मैं भी ग्वालियर आई हुई हूं. आप घर का पता दे दें तो मैं वहीं आ कर दिखा दूं.’’

न चाहते हुए भी रिपुदमन ने उसे अपने घर का पता दे दिया. उस वक्त वह घर में अकेले थे. कुछ देर बाद ही मनीषा उन के घर पहुंच गई. उसे घर आया देख कर रिपुदमन घबरा उठे, पर क्या करते. आ बैल मुझे मार वाली बात भी उन्हीं ने पता दे कर की थी. उन्हें घबराया देख कर मनीषा ने साथ लाए बैग से कोल्डड्रिंक की 2 बोतलें निकाल कर कहा, ‘‘आप तो करेंगे नहीं, लीजिए मैं ही आप का स्वागत करती हूं.’’

रिपुदमन के चेहरे पर शंका देख कर वह हंसते हुए बोली, ‘‘अरे बाबा रास्ते में अपने लिए सेनेटरी नैपकिन खरीद रही थी तो दुकान वाले के पास खुल्ले पैसे नहीं थे, इसलिए सोचा कि कोल्डड्रिंक ही ले लूं. कम से कम आप के साथ कोल्डड्रिंक पीने का सौभाग्य तो मिलेगा. यकीन मानें, इस में कोई जहरवहर नहीं है.’’

इस बार मनीषा और भी उत्तेजक कपड़ों में आई थी. वाकई वह कहर ढा रही थी, जिस से रिपुदमन खुद को बचा नहीं पाए और मनीषा के हाथों कोल्डड्रिंक पी लिया. कोल्डड्रिंक पीने के कुछ देर बाद ही धीरेधीरे उन पर बेहोशी छाने लगी और इस के बाद उन्हें कुछ होश नहीं रहा कि कमरे में क्याक्या हुआ.

जब होश आया तो मनीषा वहां नहीं थी. रिपुदमन याद करने की कोशिश भर करते रहे कि क्या हुआ था, पर याद्दाश्त ने उन का एक हद से ज्यादा साथ नहीं दिया. अच्छी बात यह थी कि घर का सारा सामान सलामत था यानी मनीषा कोई चोरनी या लुटेरन नहीं थी. यह बात सुकून देने वाली थी.

छुट्टी बिता कर वह ग्वालियर से भिंड चले आए, लेकिन फिर मनीषा का कोई फोन नहीं आया न ही चैक कराने या दिखाने वह खुद आई तो उन्हें स्वाभाविक तौर पर हैरानी हुई. धीरेधीरे रिपुदमन फिर अपने अस्पताल की जिंदगी में व्यस्त हो गए और मनीषा की यादों का काफिला भी धीमा होता चला गया.

8 सितंबर, 2017 को एक अंजान आदमी का फोन उन के पास आया. उस ने बेहद शातिर और दबी आवाज में इतना कह कर फोन काट दिया कि मैं राजाबाबू बोल रहा हूं. शाम तक एक पार्सल आप को मिलेगी, उस में एक सीडी है उसे देख लेना कि कैसे आप एक महिला मरीज का इलाज कर रहे हैं. और हां, 10 लाख रुपयों का इंतजाम भी कर के रखना, नहीं तो बहुत जल्द यह सीडी हर कोई देख रहा होगा. फैसला आप के हाथ में है.

इतना सुनते ही रिपुदमन के हाथों के तोते उड़ गए. पलभर में ही वह सारा वाकिया और माजरा समझ गए. धौंस सुनते ही उन का गला सूखने लगा और वह शाम होने का इंतजार करने लगे. फोन करने वाले ने गलत कुछ नहीं कहा था, सचमुच शाम तक सीडी उन के पते पर आ गई थी.

जैसे हाईस्कूल के बच्चे अपने रिजल्ट का इंतजार करते हैं, वैसे ही डा. रिपुदमन सीडी कंप्यूटर में लगा कर इंतजार करने लगे कि आखिर इस में है क्या. पांव तले जमीन खिसकना किसे कहते हैं, यह उन्हें सीडी देख कर समझ में आ गया, जिस में वह और मनीषा एकदम निर्वस्त्र हालत में पलंग पर थे और बिलकुल ब्लू फिल्मों जैसी हरकतें कर रहे थे. उन के और मनीषा के कुछ नग्न हालत के फोटो भी सीडी में थे.

अब सोचनेसमझने के लिए कुछ नहीं रह गया था. एक गलती इतनी भारी पड़ेगी, यह उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. 4 दिन तो उधेड़बुन में उन्होंने किसी तरह गुजार दिए, पर यह तय नहीं कर पाए कि अब क्या करें और कैसे इज्जत बचाएं. यह तो उन्हें साफ समझ में आ गया था कि मनीषा अकेली नहीं है. चूंकि फोन किसी मर्द ने किया था, इसलिए जाहिर था उस के और भी साथी थे. अब रिपुदमन को लगा कि वह एक गिरोह के चक्रव्यूह में फंस कर अभिमन्यु जैसे छटपटा रहे हैं.

जब बदनामी झेलनी ही है तो क्यों न एक दफा पुलिस की मदद ले कर देखी जाए, यह सोचते ही उन्हें उम्मीद की एक किरण नजर आई कि शायद पुलिस वाले उन की मदद कर बेड़ा पार लगा दें. आखिर कोशिश करने में जाता ही क्या है. नहीं तो मनीषा और फोन पर अपना नाम राजाबाबू बताने वाला शख्स तो जोंक की तरह उन का खून चूसते रहेंगे.

13 सितंबर, 2017 की दोपहर डा. रिपुदमन सिंह हिम्मत जुटा कर ग्वालियर के एसपी डा. आशीष कुमार से व्यक्तिगत रूप से मिले और उन्हें सारी बात बताई. तजुर्बेकार एसपी साहब को माजरा समझते देर न लगी कि डा. रिपुदमन सिंह ब्लैकमेलर्स गिरोह के चंगुल में फंस गए हैं. लिहाजा उन्होंने तुरंत क्राइम ब्रांच के टीआई दिलीप सिंह को मामला सौंपते हुए रिपोर्ट दर्ज कर काररवाई करने के निर्देश दिए.

तेजतर्रार इंसपेक्टर दिलीप सिंह ने डा. रिपुदमन सिंह की सारी कहानी सुनी. चूंकि डा. रिपुदमन ने ब्लैकमेलर्स को अभी कोई पैसे नहीं दिए थे, इसलिए उन्होंने तुरंत योजना बना डाली कि बेहतर होगा कि राजाबाबू नाम के ब्लैकमेलर को उन से रकम लेते दबोचा जाए. दिलीप सिंह ने अपनी टीम में एएसआई गंभीर सिंह, धर्मेंद्र और हरेंद्र के अलावा लेडी कांस्टेबल अर्चना कसाना को शामिल किया.

योजना के मुताबिक, अगले दिन डा. रिपुदमन सिंह ने राजाबाबू को फोन कर दिया कि वह उन से पैसे ले कर मामले को निपटा दे. तयशुदा स्थान पर जैसे ही राजाबाबू रिपुदमन सिंह से ब्लैकमेलिंग के पैसे ले रहा था, आसपास छिपी पुलिस टीम ने उसे रंगेहाथों धर दबोचा.

खुद को पुलिस की गिरफ्त में आया देख कर राजाबाबू की समझ में आ गया कि अब खेल खत्म हो चुका है, इसलिए मार ठुकाई से बचने के लिए यही बेहतर है कि संगी साथियों के बारे में बता दिया जाए. लिहाजा उस ने अपने साथियों के नाम पुलिस को बता दिए. उस की जानकारी के आधार पर जल्द ही पुलिस टीम ने मनीषा पाल के साथसाथ इन के तीसरे साथी अनिल वाल्मीकि को भी गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में पता चला कि राजाबाबू का असली नाम कृष्णकुमार और मनीषा का असली नाम नेहा कुशवाह है. नेहा कुशवाह शादीशुदा है और वह उत्तर प्रदेश के उरई की रहने वाली है. उस ने पुलिस को बताया कि उस ने नर्सिंग का कोर्स किया है. नेहा की गिरफ्तारी की बात जब उस के घर वालों को बताई गई तो उस का पति रामलखन उरई से ग्वालियर पहुंच गया.

उस ने बताया कि अब से करीब 13 साल पहले नेहा ने उस से लवमैरिज की थी. मूलरूप से सूरत, गुजरात की रहने वाली नेहा को सूरत में ही औटोरिक्शा चलाने वाले रामलखन से प्यार हो गया था. दोनों शादी कर के उरई आ कर बस गए थे.

रामलखन ने यह भी बताया कि नेहा ने नर्सिंग का कोर्स नहीं किया है, बल्कि वह उरई के एक नर्सिंगहोम में काम करने लगी थी और धीरेधीरे नर्सिंग का काम सीख कर नर्स कहलाने लगी थी. पुलिस वाले भी यह जान कर दंग रह गए कि एकदम लड़कियों सी दिखने वाली नेहा 2 बच्चों की मां है. उरई के नर्सिंगहोम में ही नेहा की मुलाकात वहां के सफाईकर्मी अनिल वाल्मीकि से हुई थी.

यहां काम करतेकरते दोनों ने महसूस किया था कि डाक्टर लोग खूब रंगीनमिजाजी करते हैं. कुछ दिनों बाद नेहा की पहचान अनिल के जरिए राजाबाबू उर्फ कृष्णकुमार से हुई और फिर कृष्णकुमार के जरिए वह विकास गुप्ता के संपर्क में आई. नेहा कब कैसे ब्लैकमेलिंग के धंधे में आ गई, इस बारे में रामलखन ने अनभिज्ञता जाहिर की.

इस शातिर चौकड़ी ने योजना बनाई कि क्यों न डाक्टरों की रंगीनमिजाजी की वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल किया जाए. इस योजना में तय हुआ कि नेहा मरीज बन कर डाक्टरों के पास जा कर उन्हें फंसाएगी और उन के साथ की गई रंगीनमिजाजी और शारीरिक संबंधों की फिल्म बनाएगी. ब्लैकमेलिंग और पैसा वसूली का काम बाकी के 3 लोग करेंगे.

आइडिया चल निकला. कैमरा चलाना सीख कर नेहा उसे ऐसी जगह फिट कर देती थी, जहां से उस की और डाक्टर के शारीरिक संबंधों की फिल्म आसानी से शूट हो सके. पूछताछ में पता चला कि इस गिरोह ने पहली फिल्म विकास गुप्ता की साली की बनाई थी. पर तब उन का मकसद केवल उस की शादी तोड़ना था.

दरअसल, विकास के संबंध अपनी साली से थे, जिस की शादी लहार के एक डाक्टर से तय हो गई थी. उस डाक्टर को नेहा के जरिए इन्होंने फंसाया था. इस के बाद तो इन के हौसले बुलंद हो गए और ये चारों इसे फुलटाइम जौब बना बैठे.

नेहा ने अपना नाम और पहचान बदल कर मनीषा पाल रख लिया. विकास जो इस गिरोह का मास्टरमाइंड था, उस ने उस का फरजी आधार कार्ड मनीषा पाल के नाम से बनवा दिया था.

नेहा दिल की मरीज बन कर डाक्टर के पास जाती थी और अपनी खूबसूरती के जाल में डाक्टरों को फंसा कर उन्हें शारीरिक संबंध बनाने के लिए उकसाती थी. डाक्टर भी तो आखिरकार मर्द ही है, इसलिए जल्द ही नेहा के देहजाल में उलझ जाता था. यह गिरोह ग्वालियर, चंबल में ही अब तक 2 डाक्टरों से लगभग 15 लाख रुपए ऐंठ चुका है.

भोपाल के एक नामी डाक्टर से 25 लाख रुपए ऐंठने की बात भी इन्होंने कबूली. इस के अलावा 20 और ऐसे डाक्टरों के नाम बताए, जो इन का अगला शिकार बनने वाले थे. इन डाक्टरों से संबंधित सारी जानकारी विकास ने कंप्यूटर में डाल रखी थी. इन में ग्वालियर, झांसी और विदिशा के डाक्टरों के नाम हैं. यानी इस ब्लैकमेलर गिरोह के रोडमैप में सैंट्रल रेलवे के स्टेशन खास मुकाम थे.

ये लोग फंसाए जाने वाले डाक्टर की पूरी जानकारी पहले से ही हासिल कर लेते थे, जिस से शिकार करने में आसानी हो. प्राथमिकता उन डाक्टरों को ही दी जाती थी, जो कुंवारे हों या अकेले रहते हों और वे जल्द ही खूबसूरत महिलाओं के मुरीद हो जाते हों.

पूछताछ में नेहा ने भी सारा सच उगल दिया. उस की निशानदेही पर पुलिस ने उस का स्पाई कैमरा यानी खुफिया कैमरा भी जब्त कर लिया. नेहा ने यह भी बताया कि उसे अब तक महज 5 हजार रुपए ही दिए गए हैं. बाकी रकम विकास गुप्ता के पास है. पुलिस ने विकास की गिरफ्तारी के लिए कई जगहों पर दबिशें दीं, पर वह नहीं मिला.

नेहा, अनिल और कृष्णकुमार उर्फ राजाबाबू से रिमांड पर पूछताछ करने के बाद जेल भेज दिया गया. रिपुदमन ने हिम्मत दिखाते हुए पुलिस की मदद ली तो न केवल खुद को बल्कि अपनी बिरादरी के और भी डाक्टरों को बचा लिया, जिन्हें लाखों का चूना यह गिरोह लगाने वाला था.

यह सबक दूसरे डाक्टरों को मिल गया कि वे दिलफेंक और नेहा जैसी बड़े दिल की मरीजों के सामने अपने दिल को काबू में रखें, नहीं तो जो हश्र ऐसे मामलों में होता है, उस से बच पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है. रिपुदमन का झूठ ग्वालियर में चर्चा का विषय है कि कैसे एक बेहोश आदमी पूरे जोश से सैक्स क्रियाएं कर रहा है, लेकिन ऐसी रिपोर्ट लिखाना शायद उन की मजबूरी हो गई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित और रिपुदमन सिंह परिवर्तित नाम है.

हाईवे के लुटेरे का अंत

उस दिन तारीख थी 27 अक्तूबर, 2017. दोपहर के करीब 2 बज रहे थे. राजस्थान के रानीवाड़ा – सांचौर सड़क मार्ग पर वाहन आ जा रहे थे. उन्हीं वाहनों में से एक स्कौर्पियो तेज गति से चली जा रही थी. उसे चला रहा थाभरत राजपुरोहित. भरत के पास अगली सीट पर भीम सिंह भाटी बैठा था. दोनों घबराए से लग रहे थे. शायद उन्हें अंदेशा हो गया था कि आंध्र प्रदेश पुलिस उन का पीछा कर रही है.

भरत और भीम सिंह ने पुरजोर कोशिश की कि वह गाड़ी भगा ले जाएं, लेकिन आंध्रा पुलिस की गाड़ी बराबर उन का पीछा कर रही थी. चूहेबिल्ली का खेल खेलती गाडि़यां सड़क पर दौड़ते हुए जब लाछड़ी-हाड़ेतर के बीच पहुंची तो अचानक गोलियां चलने की आवाज से आसपास का इलाका थर्रा उठा. लोगों की समझ में नहीं आया कि क्या हो रहा है?

जब लोग उस जगह पर पहुंचे तो पता चला कि आंध्रा पुलिस ने साढ़े 5 करोड़ रुपए के लुटेरे भीम सिंह भाटी भीनमाल को एनकाउंटर में मार गिराया है. थोड़ी दूर सड़क पर एक महिला शांति देवी जोगी की भी लाश पड़ी थी, जो गाड़ी के आगे आने से मर गई थी.

भीम सिंह ने धोन ग्रामीण थाना एरिया जिला करनूल, आंध्र प्रदेश में एक मारवाड़ी का अपहरण कर के साढ़े 5 करोड़ रुपए लूटे थे. करनूल पुलिस काफी दिनों से आरोपी भीम सिंह के पीछे लगी थी. 27 अक्तूबर को जब वह सांचौर-गुजरात बौर्डर पर नजर आया तो आंध्रा पुलिस उस के पीछे लग गई.

भीम सिंह व भरत ने पुलिस पर फायरिंग करनी शुरू की तो जवाब में करनूल पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. इसी बीच लाछड़ी-हाड़ेतर के बीच पुलिस की गाड़ी ने ओवरटेक कर के साइड से ही आरोपियों की स्कौर्पियो पर 8-9 राउंड फायर किए. उन में से 2 गोलियां भीम सिंह को लगीं. एक गोली भीम की बांह पर लगी और दूसरी सीने को पार कर गई, जिस से उस की मौत हो गई.

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 भीम सिंह

एक गोली आरोपी भीम की स्कौर्पियो चला रहे बिछीवाड़ी निवासी हिस्ट्रीशीटर भरत को लगी, वह घायल हो गया. उसे इलाज के लिए डीसा (गुजरात) भेजा गया. उसी बीच आरोपियों की गाड़ी से राह चलती महिला शांति देवी पत्नी बाबूनाथ जोगी भी चपेट में आ गई, जिस की मौत हो गई.

घटना की सूचना मिलने पर सांचौर पुलिस मौके पर पहुंची और शव अस्पताल में रखवा दिया. सूचना पा कर मृतक के परिजन तथा काफी संख्या में लोगों की भीड़ जमा हो गई. लोगों ने इसे फरजी एनकाउंटर बताते हुए धरनाप्रदर्शन शुरू कर दिया. जालौर के एसपी विकास कुमार छुट्टी पर थे, इसलिए आईजी हवा सिंह घुमरिया ने बाड़मेर के एसपी गगनदीप सिंगला को मौके पर भेजा और खुद भी रात में सांचौर पहुंच गए.

करनूल पुलिस ने एनकाउंटर के बाद भीम सिंह, भरत व शांति को सांचौर अस्पताल पहुंचाया. तब तक भीम सिंह व शांति की मौत हो चुकी थी. सांचौर के एएसपी जस्साराम बोस, डीएसपी फाऊलाल मीणा, तहसीलदार पीतांबरदास राठी भी वहां पहुंच गए थे. काफी संख्या में लोग भी वहां आ गए और फरजी एनकाउंटर का आरोप लगा कर धरनाप्रदर्शन करने लगे. मृतक के भाई खुशाल सिंह भी वहां आ गए थे.

वहां इकट्ठा लोग आरोप लगा रहे थे कि पुलिस के इशारा करने पर भीम सिंह ने गाड़ी रोक दी थी. इस के बाद एनकाउंटर के नाम पर पुलिस ने भीम की हत्या कर दी. रात तक आईजी हवा सिंह घुमरिया और बाड़मेर के एसपी गगनदीप सिंगला लोगों को समझाने में लगे रहे.

सांचौर चौराहे से दिनदहाड़े फायरिंग और तेज गति से दौड़ रही गाडि़यों की आवाज सुन कर वहां से गुजर रहे लोगों में अफरातफरी मच गई थी. ये गाडि़यां रानीवाड़ा की ओर भागी जा रही थी. थोड़ी देर में सांचौर पुलिस की गाडि़यां भी उधर से दौड़ती हुई निकलीं. उस के करीब 15 मिनट बाद रास्ते में ही आरोपी की गाड़ी रोड से उतरी हुई मिली.

लोगों ने देखा कि चालक जख्मी था और पास बैठा भीम सिंह खून से लथपथ था. उन की गाड़ी भी 8-9 गोलियां लगने से छलनी हो गई थी और कांच टूट गए थे. जबकि पुलिस की गाड़ी पर गोली का एक भी निशान नहीं था. करनूल पुलिस के इंसपेक्टर जी. राजशेखर, जिन्होंने आरोपी भीम सिंह का एनकाउंटर किया था, उन्होंने स्थानीय पुलिस को बताया कि भीम सिंह ने इसी साल करनूल के अक्षय जैन व निलेश जैन मारवाड़ी का अपहरण कर साढ़े 5 करोड़ रुपए लूटे थे.

इन के खिलाफ अपहरण, लूट व हत्या के प्रयास का मुकदमा दर्ज है. 2-3 दिनों से पुलिस भीम को तलाश कर रही थी. 27 अक्तूबर को उस के आबू रोड की ओर आने की सूचना मिली तो वे मौके पर मुस्तैद हो गए. माखुपुरा-धानेरा चैकपोस्ट की ओर से आरोपी की गाड़ी आई. उसे रुकने का इशारा किया गया तो आरोपी फायरिंग करने लगे. पुलिस की जवाबी फायरिंग में भीम सिंह की मौत हो गई.

सांचौर के एएसपी जस्साराम बोस ने बताया कि उन्होंने हथियारबंद लोगों के गाडि़यां दौड़ाने की सूचना पर स्थानीय पुलिस को भेजा था. पुलिस के पहुंचने से पहले ही घटना घटित हो चुकी थी. इसी घटनाक्रम में एक राह चलती महिला शांति भी मर गई थी.

पुलिस ने आरोपी व आंध्र प्रदेश पुलिस की गाडि़यों की जांच की तो पता चला कि महिला की मौत भीम सिंह की गाड़ी की चपेट में आने से हुई थी. हालांकि लोगों का कहना था कि शांति की मौत पुलिस की गाड़ी से कुचल कर हुई थी.

करनूल में मारवाड़ी के अपहरण व साढ़े 5 करोड़ की लूट की वारदात में आरोपियों को पकड़ने आई पुलिस ने जालौर पुलिस को सूचना नहीं दी थी. करनूल पुलिस 2 दिन से आरोपियों की तलाश में घूम रही थी. हालांकि लूट की घटना की पूरी जानकारी एडीजी एन.आर.के. रेड्डी को थी, क्योंकि करनूल पुलिस ने उन्हें वारदात की जानकारी दे दी थी.

इस मामले में करनूल पुलिस का सहयोग करने के लिए आईजी एम.एन. दिनेश दोनों राज्यों की पुलिस को कोऔर्डिनेट कर रहे थे.  भीनमाल के थानाधिकारी कैलाशचंद्र मीणा ने बताया कि भीम सिंह उर्फ राजू पुत्र शंभू सिंह भाटी उर्फ छोटू सिंह पर विभिन्न तरह के 15 मामले दर्ज थे. इस के अलावा महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक में भी उस पर कई मुकदमे थे.

भीम के पिता शंभू सिंह भी लूट, नकबजनी सहित विभिन्न वारदातों के 23 मामलों में आरोपी है. भीम सिंह का साथी भरत, जो गाड़ी चला रहा था, उस के खिलाफ भी लूट और अपहरण जैसे 18 मुकदमे दर्ज थे. भरत थाने का हिस्ट्रीशीटर था. आईजी हवा सिंह घुमरिया ने बताया कि साढ़े 5 करोड़ की लूट के आरोपी भीम सिंह व पीछा करते समय पुलिस में क्रौस फायरिंग हुई थी, जिस में भीम सिंह की मौत हो गई और भरत घायल हुआ.

भीम सिंह की गाड़ी से शांति नाम की एक महिला कुचल गई. पुलिस अधिकारियों के समझाने पर मृतका शांति के परिजन किसी तरह मान गए, तब पुलिस ने भीम सिंह का शव सांचौर से जालौर के सरकारी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया.

जैसे ही उस की लाश सरकारी अस्पताल पहुंची, मारवाड़ी राजपूत महासभा के अध्यक्ष हनुमान सिंह खांगटा, कांग्रेसी नेता ऊभ सिंह चांदराई, श्री राजपूत करणी सेना के जिलाध्यक्ष चंदन सिंह कोराणा, श्री राजपूत करणी सेना जोधपुर के जिलाध्यक्ष विजय सिंह मेड़तिया, रतन सिंह दूदवा, सज्जन सिंह सहित राजपूत समाज के तमाम लोग अस्पताल पहुंच गए. उन का आरोप था कि यह मुठभेड़ नहीं थी, बल्कि पुलिस ने भीम सिंह की हत्या की है.

इस मामले की निष्पक्ष जांच कराने की मांग को ले कर सभी मोर्चरी के बाहर 27 अक्तूबर की रात भर धरने पर बैठे रहे. 28 अक्तूबर को दोपहर बाद मैडिकल बोर्ड बना कर भीम के शव का पोस्टमार्टम किया गया.

जालौर जिला अस्पताल के पीएमओ डा. एस.पी. शर्मा ने पोस्टमार्टम के बाद बताया कि भीम सिंह की मौत हेमरेजिक शौक से हुई थी. उसे गोली सामने से मारी गई थी, जो बाएं फेफड़े में घुस कर पीछे की पसली को तोड़ कर रुक गई थी. इस दौरान फेफड़ा डैमेज होने व खून जमा होने से उस की मौत हो गई.

डा. शर्मा ने बताया कि एक गोली भीम के बाएं हाथ को छू कर निकल गई. इस से पूर्व किए गए एक्सरे में दूसरी कोई चोट या फ्रैक्चर नहीं मिला. भीम सिंह हाईवे का लुटेरा था. उस ने 13 सितंबर, 2017 की रात आंध्र प्रदेश के करनूल जिले के धोन थाना एरिया में मनी ट्रांसपोर्ट कंपनी के कार चालक का अपहरण कर साढ़े 5 करोड़ रुपए लूटे थे.

लूट की इस वारदात में उस के अलावा उस के 5 और साथी शामिल थे. उस ने लूट की पूरी रकम में से सिर्फ 75 लाख रुपए एक साथी को दिए थे, बाकी के रुपए उस ने खुद रख लिए थे. इस के बाद वह राजस्थान आ गया था. करनूल के डीएसपी हुसैन जैदी भीम सिंह को गिरफ्तार करने के मकसद से राजस्थान में कैंप किए हुए थे. उन्हें एक सप्ताह पहले भीम सिंह के जोधपुर में छिपे होने की सूचना मिली थी.

वह अपनी टीम के साथ जोधपुर पहुंचे. यह जानकारी उन्होंने आईजी रेंज व पुलिस कमिश्नर को दी. सर्विलांस टीम से उन्हें पता चला कि भीम सिंह की लोकेशन चौपासनी हाउसिंग बोर्ड, जोधपुर है. वह 2 दिनों तक चौपासनी हाउसिंग बोर्ड एरिया में उसे तलाशते रहे, लेकिन वह पुलिस को चकमा दे कर निकल गया.

करनूल की दूसरी पुलिस टीम गुजरात में थी. घटना से 2 दिन पहले इस टीम को भीम सिंह की लोकेशन जालौर में मिली. दरअसल, 27 अक्तूबर को जब भीम सिंह ने फोन चालू कर भरत को गुजरात चलने को कहा और वह होटल पर उसे लेने गया, तब करनूल पुलिस ने उसे ट्रेस कर लिया और पीछे लग गई.

करनूल के एसपी गोपीनाथ जट्टी ने बताया कि उन की टीम ने भीम सिंह को आत्मसमर्पण करने को कहा, लेकिन वह फायर करते हुए गाड़ी भगा ले गया. उन्होंने बताया कि उस की मौत क्रौस फायरिंग से हुई थी.

भीम सिंह के गैंग ने जो रुपया लूटा था, वह अहमदनगर के ज्वैलर अक्षय राजेंद्र लूणावत का था. उस ने यह पैसा बंगलुरु पहुंचाने के लिए हैदराबाद की ट्रांसपोर्ट कंपनी के नीलेश नंदलाल को सौंपा था. नीलेश ने अपने ड्राइवर करण चौबे व सुपरवाइजर अरविंद कुमार को पैसों का बौक्स दे कर भेजा था.

वे थाना धोन एरिया में चाय पीने के लिए रुके, वहीं से भीम सिंह की गैंग पीछे लग गई और उन्होंने हथियारों के बल पर उन का अपहरण कर लिया. दोनों को करीब 150 किलोमीटर दूर नागपुर में छोड़ा और पैसे ले कर भाग गए. करनूल के एसपी गोपीनाथ ने केस को सुलझाने के लिए 5 पुलिस टीमें बनाईं.

जांच में पुलिस को पता चला कि इस लूटकांड में कुख्यात बदमाश भीम सिंह का हाथ है तो पुलिस टीमें उस की तलाश में जुट गईं. लेकिन उस का पता नहीं चल सका.

इसी बीच पुलिस ने हैदराबाद व नागपुर में कार सहित 3 लोगों को गिरफ्तार किया तो उन्होंने भी बताया कि गैंग का लीडर भीम सिंह था और लूट की सारी रकम वही ले गया है. इस के बाद करनूल के डीएसपी हुसैन पीरा के नेतृत्व में 2 पुलिस टीमें उस की तलाश करते हुए राजस्थान व गुजरात पहुंचीं.

पोस्टमार्टम के बाद भीम सिंह का शव उस के भाई खुशाल सिंह को सौंप दिया गया. अगले दिन उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया. अंतिम संस्कार में सर्वसमाज के सैकड़ों लोग मौजूद थे. राजस्थान पुलिस हर घटना पर निगाह रखे हुए थी. जैसा माहौल आनंदपाल एनकाउंटर में हुआ था, पुलिस ने वैसा माहौल नहीं बनने दिया.

उधर सांचौर थाने में हाईवे के लुटेरे भीम सिंह के एनकाउंटर मामले में 3 केस दर्ज हो गए. पहला मुकदमा आंध्र प्रदेश के करनूल जिले की पुलिस की ओर से भीम सिंह व उस के साथी भरत के खिलाफ दर्ज हुआ.

दूसरा भरत के बयान पर एनकाउंटर करने वाले इंसपेक्टर व उन की टीम के खिलाफ और तीसरा मुकदमा राह चलती महिला शांति के परिजनों की रिपोर्ट पर दर्ज हुआ, जिस की भीम सिंह की गाड़ी की चपेट में आने से मौत हुई थी.

एनकाउंटर सही है या फरजी, यह तो जांच के बाद ही पता चल सकेगा. सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर, 2014 में एनकाउंटर मामलों में 16 बिंदुओं की गाइडलाइन जारी की थी. गाइडलाइन के मुताबिक ऐसे मामलों की जांच मजिस्ट्रैट अथवा सीआईडी या फिर अन्य स्वतंत्र एजेंसी करती है. जांच पूरी होने तक एनकाउंटर में शामिल पुलिस टीम के किसी भी सदस्य को गैलेंट्री प्रमोशन नहीं मिलता.

जोधपुर रेंज के आईजी हवा सिंह घुमरिया ने बताया कि सभी मुकदमों की बारीकी से जांच कराई जाएगी और पीडि़त पक्ष को पूरी तरह संतुष्ट कराया जाएगा. इंसपेक्टर राजशेखर की ओर से दर्ज मुकदमे में घायल भरत पुरोहित भी आरोपी है. उस ने भीम सिंह को भगाने का भी प्रयास किया था. भरत का डीसा में पुलिस निगरानी में इलाज चल रहा था. ठीक होने पर उसे हत्या के प्रयास व सरकारी काम में बाधा डालने के मुकदमे में गिरफ्तार किया जाएगा.

27 साल का भीम सिंह उर्फ राजू महज 5वीं कक्षा तक ही पढ़ा था. पिता शंभू सिंह की आपराधिक छवि का असर उस पर बचपन से ही पड़ गया था, जिस का नाम धीरेधीरे अपने पिता के अपराध के साथ भी जुड़ता गया. इस से उस के हौसले बुलंद हुए और वह खुल कर अपराध की दुनिया में कूद गया. मोहल्ले में रहने वाली दूसरी जाति की एक युवती से भीम को प्यार हुआ तो घर वालों की मरजी के खिलाफ उस से शादी कर ली.

दूसरी जाति की लड़की से शादी करने से उस की अपने पिता से दूरियां बढ़ गईं. पिता शंभू सिंह अपने परिवार के साथ भागलभीम, जिला जालौर में स्थित अपने खेत पर रहने लगा. वहीं भीम सिंह अपनी पत्नी के साथ भीनमाल में किराए के मकान में रहने लगा, जहां उस की 2 बेटियों का जन्म हुआ.

नाराजगी के चलते उस ने अपनी बीवीबच्चों को परिवार से भी नहीं मिलाया. परिवार से उस की दूरी बनी रही और वह कर्नाटक, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश तक आपराधिक वारदातें करने लगा. जालौर जिले के ही 7-8 लोग उस की गैंग में थे.

उन्होंने जब साढ़े 5 करोड़ रुपए की लूट की तो पुलिस ने इस केस को चुनौती मान कर भीम सिंह का पीछा जारी रखा और आखिर वह मारा गया. फिलहाल यह एनकाउंटर है या हत्या? यह जांच के बाद ही पता चलेगा. मगर हाईवे के लुटेरे का अंत जरूर हो गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

19 साल बाद खुला हत्या का राज

छठी क्लास में पढ़ने वाले महादेवन का स्कूल घर से कई किलोमीटर दूर था. वह पैदल ही स्कूल आताजाता था, जबकि उस के साथ पढ़ने वले कई छात्र साइकिल से आतेजाते थे. उस का मन करता था कि उस के पास भी साइकिल हो. उस ने अपने पिता विश्वनाथन आचारी से कई बार साइकिल दिलाने का अनुरोध किया, लेकिन वह अभी उसे साइकिल दिलाना नहीं चाहते थे.

इस की वजह यह थी कि महादेवन की उम्र अभी केवल 13 साल थी. 3 बेटियों के बीच वह उन का अकेला बेटा था, इसलिए वह कोई रिस्क नहीं उठाना चाहते थे. वह चाहते थे कि 2-3 साल में बेटा जब थोड़ा बड़ा और समझदार हो जाएगा तो उसे साइकिल खरीदवा देंगे.

मगर महादेवन को पिता की बात अच्छी नहीं लगी. उस ने साइकिल खरीदवाने की जिद पकड़ ली. वैसे विश्वनाथन आचारी के पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उन की केरल के चंगनाशेरी के निकट मडुमूला में उदया स्टोर्स के नाम से एक दुकान थी. दुकान से उन्हें अच्छीखासी आमदनी हो रही थी और परिवार भी उन का कोई ज्यादा बड़ा नहीं था. परिवार में पत्नी विजयलक्ष्मी के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा महादेवन था.

चूंकि वह एकलौता बेटा था, इसलिए घर के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे. सभी का लाडला होने की वजह से उस की हर मांग पूरी की जाती थी. विश्वनाथन ने उस के जन्मदिन पर एक तोला सोने की चेन गिफ्ट की थी, जिसे वह हर समय पहने रहता था. वह उसे साइकिल खरीदवाने के पक्ष में तो थे, लेकिन अभी उस की उम्र कम होने की वजह से फिलहाल मना कर रहे थे.

लेकिन बेटे की जिद और मायूसी के आगे विश्वनाथन को झुकना पड़ा. आखिर उन्होंने बेटे को एक साइकिल खरीदवा दी. साइकिल पा कर महादेवन की खुशी का ठिकाना न रहा. यह बात सन 1995 की है. इस के बाद महादेवन दोस्तों के साथ साइकिल चलाने लगा. जब वह अच्छी तरह से साइकिल चलाना सीख गया तो उसी से स्कूल आनेजाने लगा.

महादेवन 2 सितंबर, 1995 को भी घर से साइकिल ले कर निकला था, लेकिन तब से आज तक वह वापस नहीं लौटा. दरअसल स्कूल से लौटने के कुछ समय बाद महादेवन साइकिल ले कर निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे में घर लौट आता था.

उस दिन वह कई घंटे बाद भी घर नहीं लौटा तो मां विजयलक्ष्मी को चिंता हुई. उन्होंने उसे उन जगहों पर जा कर देखा, जहां वह साइकिल चलाता था. महादेवन नहीं मिला तो विजयलक्ष्मी ने दुकान पर बैठे पति के पास बेटे के गायब होने की खबर भिजवा दी.

बेटे के घर न लौटने की बात सुन कर विश्वनाथन आचारी दुकान से सीधे घर चले आए. उन्होंने बेटे को इधरउधर ढूंढना शुरू किया और उस के यारदोस्तों से पूछा, परंतु उन्हें बेटे के बारे में कहीं से कोई जानकारी नहीं मिली.

एकलौते बेटे का कोई पता न चलने से मां का रोरो कर बुरा हाल था. चारों तरफ से हताश होने के बाद विश्वनाथन पत्नी के साथ थाना चंगनाशेरी पहुंचे और थानाप्रभारी को बेटे के गुम होने की बात बताई. लेकिन थानाप्रभारी ने मामले को गंभीरता से नहीं लिया. उन्होंने बस उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली.

थाने में बच्चे के गुम होने की सूचना दर्ज कराने के बाद भी आचारी अपने स्तर से बेटे को ढूंढते रहे. काफी खोजने के बाद भी उन के हाथ निराशा ही लगी. बच्चे के गायब होने के 4-5 दिनों बाद आचारी के घर पर एक चिट्ठी आई. चिट्ठी पढ़ कर वह सन्न रह गए. उस चिट्ठी में लिखा था, ‘‘तुम्हारा बेटा महादेवन हमारे कब्जे में है. अगर तुम्हें वह जिंदा चाहिए तो मोटी रकम का इंतजाम कर लो.’’

पैसे पहुंचाने के लिए चिट्ठी में एक पता लिखा था. आचारी बेटे के लिए कुछ भी करने को तैयार थे. उन्होंने तय कर लिया कि अपहर्त्ता उन से चाहे जितने पैसे ले लें, लेकिन उन्हें बेटा सही सलामत मिले. मामला कहीं उलटा न हो जाए, इसलिए उन्होंने चिट्ठी वाली बात पुलिस को नहीं बताई.

पैसे इकट्ठे करने के बाद वह अकेले ही चिट्ठी में दिए पते पर नियत समय पर पहुंच गए. जिस कलर के कपड़े पहने हुए व्यक्ति को पैसे सौंपने की बात पत्र में लिखी थी, उस कलर के कपड़े पहने वहां कोई भी नहीं दिखा. आचारी ने चारों तरफ नजरें घुमा कर देखा. फिर भी उन्हें उस रंग के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं दिखा. उन्होंने वहां कुछ देर इंतजार किया. इस के बाद भी उस कलर के कपड़े पहने कोई शख्स नहीं आया तो वह निराश हो कर घर लौट आए.

फिर आचारी ने अगले दिन अपहर्त्ताओं द्वारा भेजी गई चिट्ठी के बारे में पुलिस को बता दिया. पत्र से पुलिस को भी यकीन हो गया कि महादेवन का किसी ने पैसों के लिए अपहरण किया है. पत्र द्वारा पुलिस ने अपहर्त्ताओं तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन सफलता नहीं मिली.

इधरउधर हाथ मारने के बाद पुलिस को कामयाबी नहीं मिली तो उस ने इस संवेदनशील मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया. आचारी थाने के चक्कर लगाते रहे, लेकिन पुलिस ने उन की बातें पर तवज्जो नहीं दी.

13 वर्षीय महादेवन को घर से गए हुए महीने, साल बीत गए. बेटे की याद में रोतेरोते विजयलक्ष्मी की आंखों के आंसू सूख चुके थे तो पुलिस अधिकारियों के पास चक्कर लगाते लगाते आचारी के जूते घिस चुके थे. इस के बाद भी आचारी ने हिम्मत नहीं हारी. वह बेटे को खोजने का दबाव पुलिस पर बनाए रहे.

आचारी को जब लगा कि पुलिस बेटे को ढूंढने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही तो उन्होंने उच्च न्यायालय की शरण ली. हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया और इस केस की जांच क्राइम ब्रांच से कराने के आदेश दिए. हाईकोर्ट के आदेश पर क्राइम ब्रांच के एडीजीपी विल्सन एम. पौल ने पुलिस अधीक्षक के.जी. साइमन के नेतृत्व में एक जांच टीम बनाई. इस टीम में एसआई के. एफ. जोब, ए.बी. पोन्नयम, नंगराज आदि को शामिल किया गया.

इस के बाद क्राइम ब्रांच ने महादेवन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की तफ्तीश शुरू की. चूंकि उस को गायब हुए कई साल बीत चुके थे, इसलिए काफी मशक्कत के बाद भी क्राइम ब्रांच को ऐसा कोई सूत्र नहीं मिल सका, जिस से पता चल सकता कि महादेवन कहां गया था?

अपने एकलौते बेटे के गम में विश्वनाथन आचारी की हालत ऐसी हो गई थी कि सन 2006 में उन्होंने दम तोड़ दिया. 54 साल की उम्र में पति के गुजर जाने के बाद विजयलक्ष्मी के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. बेटे के गम में वह पहले से ही काफी कमजोर हो गई थी. बाद में उस की भी तबीयत खराब रहने लगी और सन 2009 में उस ने भी दम तोड़ दिया.

महादेवन को गायब हुए 14 साल हो चुके थे. उस की चिंता में मांबाप चल बसे थे और जो 3 बहनें थीं, वे भी भाई के गम में अकसर रोती रहती थीं. उधर क्राइम ब्रांच के लिए यह केस एक चुनौती के रूप में था. क्राइम ब्रांच ने एक बार फिर केस की जांच महादेवन के घर से ही शुरू की.

इस बार क्राइम ब्रांच की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि आचारी की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी. फिर यह पता लगाया कि महादेवन जब साइकिल ले कर घर से निकला था तो उस के साथ कौन था.

इस बारे में टीम ने उस के दोस्तों और मोहल्ले के लोगों से भी बात की. इस पर मोहल्ले के कुछ लोगों ने बताया कि उस दिन महादेवन को हरि कुमार की साइकिल की दुकान पर देखा गया था. इस बात की पुष्टि महादेवन की दुकान पर काम करने वाले एक युवक ने भी की.

इस से क्राइम ब्रांच के शक की सुई हरि कुमार की तरफ घूम गई. हरि कुमार की मडुमूला जंक्शन के पास साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. क्राइम ब्रांच टीम ने पूछताछ के लिए हरि कुमार को बुलवा लिया. लेकिन उस ने टीम को यही बताया कि महादेवन अपनी साइकिल ठीक कराने अकसर उस की दुकान पर आता रहता था. उस दिन भी उस की साइकिल खराब हो गई थी. साइकिल ठीक करा कर वह उस के यहां से चला गया था.

पुलिस टीम को लग रहा था कि हरि कुमार सही बात नहीं बता रहा था. लिहाजा उस दिन उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. इसी बीच टीम ने हरि कुमार की लिखावट का नमूना ले लिया था. आचारी के पास फिरौती का जो लैटर आया था, वह पुलिस फाइल में लगा हुआ था. क्राइम ब्रांच ने उस पत्र की राइटिंग और हरि कुमार की राइटिंग को जांच के लिए फोरैंसिक लैबोरेटरी भेजा.

फोरैंसिक जांच में दोनों राइटिंग एक ही व्यक्ति की पाई गईं. इस से स्पष्ट हो गया कि आचारी के पास फिरौती का जो पत्र आया था, वह हरि कुमार ने ही भेजा था. इस का मतलब हरि कुमार ने ही महादेवन का अपहरण किया था. हरि कुमार के खिलाफ पक्का सुबूत मिलने पर क्राइम ब्रांच ने उसे पूछताछ के लिए फिर उठा लिया.

चूंकि टीम को अब पुख्ता सुबूत मिल चुका था, इसलिए टीम ने इस बार उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने स्वीकार किया कि उस ने महादेवन की हत्या कर दी थी. 19 साल पहले उस ने एक नहीं, बल्कि 2-2 हत्याएं की थीं. 2-2 हत्याएं करने का राज उस ने उगल दिया था. दूसरा कत्ल उस ने अपने एक नजदीकी दोस्त का किया था. उस दोस्त की गुमशुदगी भी आज तक रहस्यमय बनी हुई थी.

महादेवन की हत्या की उस ने जो कहानी बताई, वह हैरान कर देने वाली थी.

विश्वनाथन ने बेटे की जिद के आगे झुक कर उसे साइकिल दिला तो दी थी, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि यही साइकिल हमेशा के लिए बेटे को उन से दूर कर देगी.

महादेवन की मुराद पूरी हो चुकी थी, इसलिए वह फूला नहीं समा रहा था. स्कूल भी वह साइकिल से ही आनेजाने लगा. इस के अलावा स्कूल से लौटने के बाद वह यार दोस्तों के साथ साइकिल चलाता था. मडुमूला जंक्शन के पास हरि कुमार की साइकिल रिपेयरिंग की दुकान थी. जब कभी महादेवन की साइकिल खराब होती, वह हरि कुमार की दुकान पर जा कर ठीक कराता था.

महादेवन एक खातेपीते परिवार से था. वह हर समय गले में सोने की चेन पहने रहता था. जबकि हरि कुमार आर्थिक परेशानी झेल रहा था. साइकिल रिपेयरिंग की दुकान से उसे कोई खास आमदनी नहीं होती थी. 13 साल के महादेवन के गले में सोने की चेन देख कर हरि कुमार के मन में लालच आ गया. उस पर अपना विश्वास जमाने के लिए हरि कुमार उस से बड़े प्यार से बात करनी शुरू कर दी.

2 सितंबर, 1995 को स्कूल से घर लौटने के बाद महादेवन ने खाना खाया और साइकिल ले कर घर से निकल गया. ऐसा वह रोजाना करता था और 1-2 घंटे बाद लौट आता था. उस दिन घर से निकलने के बाद महादेवन की साइकिल खराब हो गई. वह साइकिल ठीक कराने हरि कुमार की दुकान पर गया. चूंकि उस समय दुकान पर कई ग्राहक पहले से बैठे थे, इसलिए हरि कुमार ने साइकिल अपने यहां खड़ी कर ली और उस से थोड़ी देर बाद आने को कहा.

कुछ देर बाद महादेवन साइकिल लेने पहुंचा तो उस समय हरि कुमार दुकान पर अकेला था. महादेवन से सोने की चेन छीनने का अच्छा मौका देख कर हरि कुमार ने उसे दुकान में बुला लिया. जैसे ही महादेवन दुकान में घुसा, हरि कुमार ने उस के गले से चेन निकालने की कोशिश की. महादेवन ने इस का विरोध किया और चीखने लगा. तभी हरि कुमार ने दुकान बंद कर दी और उस का गला दबाने लगा.

गले पर दबाव बढ़ा तो महादेवन का दम घुटने लगा. कुछ ही पलों में दम घुटने से उस बच्चे की मौत हो गई. उस की हत्या करने के बाद हरि ने उस के गले से एक तोला वजन की सोने की चेन निकाल ली.

उस का मकसद पूरा हो चुका था. अब उस के सामने समस्या लाश को ठिकाने लगाने की थी. इस के लिए उस ने अपने दोस्त कोनारी सली और साले प्रमोद को दुकान पर ही बुला लिया.

महादेवन की हत्या की बात उस ने उन्हें बता दी. तीनों ने लाश को ठिकाने लगाने की योजना बनाई. योजना के बाद उन्होंने लाश को एक बोरे में भरा और आटो में रख कर उसे कोट्टायम के निकट एक तालाब में डाल आए. लाश ठिकाने लगा कर हरि कुमार निश्चिंत हो गया. लेकिन यह उस की भूल थी.

उस के दोस्त कोनारी सली ने ही उसे ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया. पुलिस को हत्या की बात बताने की धमकी दे कर वह उस से पैसे ऐंठने लगा. हरि कुमार उस का मुंह बंद करने के लिए उस की डिमांड पूरी करता रहा.

उसी दौरान हरि कुमार ने सवा लाख रुपए में अपनी जमीन बेची. कोनारी सली को जब यह बात पता लगी तो उस ने हरि कुमार से 50 हजार रुपए की मांग की. अब हरि कुमार उसे कोई पैसा नहीं देना चाहता था. वह जानता था कि अगर उसे पैसे देने को साफ मना कर देगा तो कोलारी पुलिस के सामने हत्या का राज खोल सकता है. इस बारे में हरि ने अपने साले प्रमोद से बात की और दोनों ने कोनारी सली से हमेशा के लिए छुटकारा पाने का प्लान बना लिया.

योजना के अनुसार, हरि ने वाशपल्लि में त्यौहार के दिन शाम 7 बजे कोनारी सली को शराब पीने के लिए अपनी दुकान में बुला लिया. लालच में कोनारी सली वहां पहुंच गया. दुकान में ही तीनों ने शराब पीनी शुरू की. उसी दौरान उन्होंने कोनारी सली के पैग में साइनाइड मिला दिया. जहर मिली शराब पीने से कुछ ही देर मे कोनारी सली की मौत हो गई.

दोनों उस की लाश को बोरे में भर कर एक आटो से कोट्टायम मरयपल्लि के पास ले गए. यहां पास में ही कोनारी सली का घर था. वहीं पास में स्थित एक पानी भरे गहरे तालाब में वह बोरी डाल दी. इसी तालाब में इन्होंने महादेवन की भी लाश डाली थी. इस तालाब को लोग प्रयोग नहीं करते थे.

उस की लाश ठिकाने लगाने के बाद दोनों अपनेअपने काम में जुट गए. कोनारी सली की हत्या महादेवन की हत्या के करीब डेढ़ साल बाद की गई थी.

उधर जब कोनारी सली कई दिनों बाद भी घर नहीं लौटा तो उस के घर वालों ने थाने में गुमशुदगी दर्ज कराई. काफी छानबीन के बाद भी जब वह घर नहीं आया तो घर वालों ने यही सोचा कि वह बिना बताए घर छोड़ कर कहीं भाग गया है. इस के कुछ दिनों बाद हरि कुमार के साले प्रमोद की भी बाथरूम में फिसल जाने के बाद मौत हो गई. उस की मौत भी एक रहस्य बन कर रह गई.

जुर्म के दोनों राजदारों की मौत के बाद हरि कुमार बेखौफ हो गया. अब उसे किसी का कोई डर नहीं रहा.

इस पूछताछ के बाद जब लोगों को पता चला कि हरि कुमार ने न केवल महादेवन की, बल्कि अपने दोस्त कोनारी सली की भी हत्या की थी, सैकड़ों की संख्या में लोग थाने पर जमा हो गए. वे हरि कुमार को सौंप देने की मांग कर रहे थे, ताकि वे अपने हाथों से उसे सजा दे सकें. लेकिन पुलिस ने ऐसा नहीं किया.

महादेवन को खोजते खोजते उस के मांबाप गुजर चुके थे. अब उस की 3 बहनें सिंघु, स्वप्ना और स्मिता ही बची थीं. भाई की हत्या का राज खुलने के बाद वे भी थाने गईं. उन्होंने पुलिस से अनुरोध किया कि उन के घर को तबाह करने वाले हत्यारे हरि कुमार के खिलाफ सख्त से सख्त काररवाई की जाए.

पुलिस हत्यारे हरि कुमार को उस जगह भी ले गई थी, जहां उस ने दोनों लाशें ठिकाने लगाई थीं. चूंकि हत्याएं किए हुए 18-19 साल बीत चुके थे, जिस से वहां से लाशों से संबंधित कोई चीज नहीं मिली.

अपराधी चाहे कितना भी शातिर क्यों न हो, अगर पुलिस कोशिश करे तो अपराधी तक पहुंच ही जाती है. सुबूत खत्म करने के बाद हरि कुमार भले ही पुलिस से 19 साल तक बचता रहा, लेकिन पुलिस के हाथ उस तक पहुंच ही गए. लाख कोशिश करने के बाद भी हत्यारा पुलिस से बच नहीं सका.

क्राइम ब्रांच ने उसे गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों और जनचर्चा पर आधारित

-आर. जयदेवान/  डा. अनुराधा पी. के.

फांसी के फंदे पर लटके नोट

सलोनी से करीब 6 किलोमीटर दूर आलबरस गांव है जो दुर्ग जिले में आता है. इस गांव में हर साल 23 दिसंबर को मड़ई मेला लगता है. यह मेला आसपास के जिलों में बहुत प्रसिद्ध है.

मेले में हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. रुद्र नारायण को उस के दूर के जीजा पंचराम देशमुख ने मेला देखने को बुलाया तो वह अपने पिता की साइकिल उठा कर आलबरस चौक पर पहुंच गया, जहां पंचराम उस का इंतजार कर रहा था.

रुद्र को देखते ही पंचराम चहका, ‘‘तुम तो बड़े होशियार निकले, बिल्कुल समय पर आ गए.’’

साइकिल खड़ी कर रुद्र नारायण पंचराम की ओर उन्मुख हुआ, ‘‘जीजा, बचपन में मैं एक बार मेला देखने आया था. कितने साल गुजर गए, फिर दोबारा नहीं आ पाया. आज आप के कहने पर आया हूं.’’

पंचराम ने उस से पूछा, ‘‘किसी को बताया है कि सीधे चले आए हो.’’

‘‘नहीं जीजा,’’ किसी को नहीं बताया. बताता तो, पिताजी अकेले आने देते क्या? देखो न कितनी दूर से साइकिल चला कर आया हूं.’’ रुद्र के स्वर में गर्व था.

यह सुन कर पंचराम ने मन ही मन खुश होते कहा, ‘‘शाबाश, तुम ने बहुत अच्छा किया, जो घर पर किसी को नहीं बताया. तुम कोई चिंता मत करना मैं हूं ना, मैं तुम्हें मड़ाई मेला घुमाऊंगा, खिलाऊंगा…और पिलाऊंगा भी?

‘‘क्या मतलब जीजा.’’ रुद्र ने पूछा.

‘‘रुद्र, अब तुम कोई बच्चे नहीं रहे…अच्छा बताओ, तुम ने कभी शराब पी है कि नहीं.’’

‘‘एक बार पी थी दोस्तों के साथ. उस के बाद फिर कभी नहीं पी.’’ रुद्र नारायाण ने आंखें नीची कर के झिझकते हुए कहा.

‘‘तो इस में शरमाने की क्या बात है, शराब पीना तो मर्दों की निशानी है.’’ पंचराम ने उसे उत्साहित किया, तो रुद्र खिल उठा.

‘‘चलो आज मैं तुम्हें दुनिया का आनंद दिलाता हूं. पहले थोड़ा मजा लेंगे फिर मड़ई घूमेंगे. आज मेरे साथ रहने पर देखना कितना आनंद आता है.’’ पंचराम ने कहा, फिर उसे ले कर वह शराब की दुकान पर गया.

शराब और पास की एक दुकान से खाने के लिए कुछ सामान ले कर दोनों एक खेत के पास बैठ गए. वहां पर दोनों ने शराब पीनी शुरू कर दी. पंचराम देशमुख ने रुद्र नारायण को योजनानुसार ज्यादा शराब पिला दी.

न न करते भी, सोचीसमझी साजिश के तहत, रुद्र नारायण को पंचराम शराब पिलाता रहा. अबोध रुद्र नारायण मुंह बोले जीजा की इधरउधर की बातों में डूबा शराब पी कर मदमस्त हो गया. उस पर इतना नशा चढ़ा कि वह आंखें बंद कर वहीं लेट गया.

पंचराम यही चाहता था. शराब के नशे में चूर हो चुके रुद्र को अर्ध चेतना अवस्था में लेटा छोड़ कर वह अपनी साइकिल में बंधी रस्सी खोल लाया और मौके का फायदा उठा कर उस ने रुद्र के गले में रस्सी का फंदा बना कर उस का गला घोंट दिया.

गले में फंदा कसते ही रुद्र ने आंखें खोल कर पंचराम को देखा और मौत के आगोश में समा गया.

रुद्र की हत्या करने के बाद पंचराम ऐसे खुश हुआ जैसे उस की वर्षों की साध पूरी हो गई हो. रुद्र ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उस का मुंह बोला जीजा, पंचराम देशमुख उस की उस तरह बेदर्दी से हत्या कर देगा.

पंचराम ने रुद्र नारायण के गले में पड़ी रस्सी निकाल कर जोरों से अट्टहास लगाया. उसे लग रहा था कि अब उस की मुराद पूरी हो जाएगी. अब उसे लखपति बनने से कोई नहीं रोक सकता. दरअसल उस के गुरु समान मित्र और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम ने बताया था कि अगर वह फांसी की रस्सी उस के पास ले कर आएगा तो वह देखते ही देखते उसे रुपयोंपैसों से मालामाल कर देगा.

पंचराम देशमुख जिला दुर्ग के आलबरस गांव का रहने वाला था. उस ने होश संभाला तो उस के पास एक ही हुनर था वाल पेंटिंग बनाने का. यही काम कर के वह जीवनयापन करने लगा.

मगर अब पेंटर का काम कम मिलने लगा था, क्योंकि प्रिंटिंग की दुनिया में फ्लेक्स प्रिंटिंग का युग आ चुका था और लोग कम दर पर फ्लेक्स प्रिंट करवा लेते थे. आमदनी कम हाने पर उस के तंगहाली में दिन कटने लगे. परिवार पालना भी मुश्किल हो गया.

पंचराम की ससुराल बलोद जिले के गांव सलोनी में थी. एक बार जब वह अपनी ससुराल गया तो वहीं पर उस की मुलाकात धनराज नेताम से हुई, जो गांव सलोनी में बंदर भगाने के लिए तांत्रिक क्रिया करने आया था. पंचराम को किसी ने धनराज के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ा तांत्रिक है.

उस ने बताया कि गांव में बंदरों का आतंक है, जाने कहां से इतने सारे बंदर आ गए जिन से गांव वाले परेशान हैं. कई प्रयास किए गए, मगर बंदरों से छुटकारा नहीं मिला. तब तांत्रिक धनराज को विशेष रूप से बुलाया गया है. धनराज से मिलने के बाद पंचराम बहुत खुश हुआ. चूंकि पंचराम को गांव के लोग दामाद जैसा ही सम्मान देते थे. इसलिए तांत्रिक के साथ पंचराम की भी अच्छी खातिरदारी हुई.

जब एक साथ जाम छलके तो पंचराम और तांत्रिक की दोस्ती हो गई. बातोंबातों में धनराज ने उस से कहा, ‘‘मैं ने जो तंत्र क्रिया की है, उस का कमाल देखना. इस के बाद गांव में एक भी बंदर नहीं दिखेगा.’’

यह सुन कर पंचराम आश्चर्य चकित रह गया. उस ने तंत्रमंत्र के बारे में सुना था मगर किसी तांत्रिक से मुलाकात पहली बार हुई थी. धनराज ने आगे कहा, ‘‘मैं किसी को भी लखपति बना सकता हूं.’’

‘‘कैसे?’’ यह सुन कर बरबस पंचराम ने पूछा.

‘‘मुझे बस एक फांसी की रस्सी ला दो… फिर देखो, रुपए बरसेंगे.’’ धनराज नेताम ने शराब का गिलास होंठों पर लगा कर कहा.

‘‘यह कौन सी बड़ी बात है.’’ पंचराम ने बोला, ‘‘फांसी की रस्सी तो मैं ला सकता हूं.’’

‘‘तो लाओ, फिर देखना, कैसे पत्तों की तरह आकाश से नोट बरसाऊंगा.’’

धनराज नेताम की आश्चर्य मिश्रित बातें सुन कर पंचराम देशमुख उस का मुरीद बन गया. दूसरे दिन आश्चर्यजनक घटना हुई कि गांव में धनराज द्वारा की गई तांत्रिक किया के बाद किसी को एक भी बंदर देखने को नहीं मिला. यह चमत्कार नहीं, संयोग था. मगर इस से धनराज के प्रति पंचराम देखमुख की आस्था बढ़ गई.

पंचराम उस का भक्त बन गया और लखपति बनने के लिए फांसी की रस्सी ढूंढने की कोशिश तेज कर दी. एक दिन दुर्ग जिले के अंडा थाने में तैनात एक कांस्टेबल से दूर का संबंध निकाल कर पंचराम उस के पास पहुंच गया और उस से कहा, ‘‘भैया, क्या फांसी की रस्सी मिल सकती है?’’

उस की बात सुनते ही कांस्टेबल ने चौंकते हुए कहा, ‘‘क्या करोगे तुम उस का वह भला तुम्हें कैसे मिल सकती है, वह तो जल्लाद के पास मिलेगी. और जल्लाद तुम्हें वो क्यों देगा.’’

यह सारी जानकारी मिलने पर वह निराश हो गया. पंचराम का चेहरा लटक गया तो कांस्टेबल ने पूछा ‘‘अच्छा यह तो बाताओ, फांसी की रस्सी का क्या करोगे?’’

‘‘अब तुम से क्या छिपाना. सुना है कि फांसी की रस्सी मिल जाए तो रुपए बरसते हैं.’’ पंचराम ने बताया.

यह सुन कर कांस्टेबल हंसने लगा और उसे समझाया, ‘‘ऐसा नहीं हो सकता. यदि ऐसा होता तो सारे जल्लाद करोड़पति होते. ये सब फालतू की बातें हैं.’’

मगर पंचराम के दिमाग से यह बात इतनी आसानी से कैसे निकल सकती थी. वह तो करोड़पति बनने के सपने देख रहा था. इसलिए वह फांसी की रस्सी की ताक में लगा रहा.

जब चारों तरफ निराशा मिली तो एक दिन उस की निगाह रुद्र नारायण पर पड़ी. 15 वर्षीय रुद्र नारायण उस की ससुराल वाले गांव सलोनी में रहता था. वह उसे  जीजा कहता था. पंचराम सोचने लगा कि क्यों न उसे मार कर फांसी की रस्सी तैयार कर ले.

उस ने तांत्रिक धनराज नेताम को इस बारे में बताया तो उस ने स्वीकृति देते हुए कहा, ‘‘चलेगा, बस रस्सी फांसी की हो.’’ इस के बाद पंचराम ने पिलेश्वर देखमुख के घर आनाजाना बढ़ा दिया.

पंचराम गांव वालों की निगाह में दामाद बाबू था, पिलेश्वर देशमुख उस का सम्मान करता और अपने दुखसुख की बातें साझा करता था. इसी का फायदा उठा कर पंचराम ने 23 दिसंबर, 2019 को योजनानुसार रुद्र को मड़ई मेला घुमाने के लिए बुलाया और मौका देख कर उस के गले में रस्सी का फंदा डाल उस की हत्या कर दी.

फिर उसी दिन शाम को वह घटनास्थल पर दोबारा पहुंचा और उस की लाश के ऊपर केरोसिन डाल कर, आग लगा दी.

29 दिसंबर, 2019 शनिवार को दोपहर दुर्ग जिले के थाना अंडा के टीआई राजेश झा को किसी ने फोन कर के सूचना दी कि गांव आलबरस के पास एक खेत में लाश पड़ी है.

लाश मिलने की सूचना पा कर राजेश झा चौंके, क्योंकि साल के अंतिम दिन चल रहे थे और क्षेत्र में यह वारदात हो गई थी. खबर मिलते ही वह एक एसआई और 2 कांस्टेबलों को साथ ले कर मौके की तरफ रवाना हो गए.

साल के अंतिम महीने और अंतिम दिनों में पुलिस विभाग सारे पेंडिंग पड़े प्रकरणों का निवारण करता है, जिस की वजह से काफी व्यस्तता रहती है. व्यस्तता अंडा थाने में भी थी, मगर टीआई काम छोड़ कर तत्काल घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. उन्होंने घटना स्थल का सूक्ष्मता से अवलोकन किया.

अधजली लाश के पास शराब की खाली 3 बोतलें, गिलास मिले, नीले रंग की टीशर्ट का एक जला हुआ टुकड़ा, बेल्ट और जूते भी पड़े मिले. लाश किसी बालक की थी. घटनास्थल पर मौजूद कोई भी ग्रामीण उस लाश की शिनाख्त नहीं कर सका था.

मामला संगीन दिखाई पड़ रहा था. उन्हें लग रहा था कि जरूर किसी ने बालक के साथ अनाचार किया होगा और उसे जला कर साक्ष्य छिपाने की कोशिश की है. टीआई ने उच्च अधिकारियों एएसपी (ग्रामीण) लखन पटले व एसएसपी अजय कुमार यादव को घटना की जानकारी दे दी. उच्च अधिकारियों के निर्देश पर टीआई ने मौके की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

हत्या का केस दर्ज होते ही टीआई राजेश झा ने इस मामले की जांच शुरू कर दी. सब से पहले उन्होंने अपने जिले के सभी थानों के अलावा सीमावर्ती जिला बालोद के थानों में भी अज्ञात बालक की लाश मिलने की सूचना भेज कर और जानना चाहा कि उन के क्षेत्र से इस आयु वर्ग का कोई बालक लापता तो नहीं है.

टीआई झा को बालोद जिले के अर्जुंदा थाने से खबर मिली कि 26 दिसंबर, 2019 को एक 15 साल के किशोर रुद्र नारायण देशमुख के लापता होने की सूचना वहां थाने में दर्ज है. पता चला कि रुद्र 23 दिसंबर को अपने गांव सलानी से कहीं गया था. गुमशुदगी की सूचना रुद्र के पिता ने दर्ज कराई थी.

टीआई राजेश झा ने रुद्र के पिता पिलेश्वर व परिजनों को अंडा थाने बुलवाया और घटनास्थल पर मिली बेल्ट, टीशर्ट का टुकड़ा आदि दिखाया. उन चीजों को देखते ही पिलेश्वर देशमुख फफक कर रो पड़ा. वह बोला, ‘‘साहब, यह मेरे बेटे रुद्र की टीशर्ट का ही टुकड़ा है, बेल्ट भी उसी की है. मुझे बच्चे की लाश दिखाई जाए.’’

टीआई ने एक एसआई के साथ पिलेश्वर व परिजनों को हास्पिटल भेजा जहां की मोर्चरी में रुद्र की लाश रखी थी. पिलेश्वर और उस के साथ आए लोगों ने लाश की शिनाख्त रुद्र नारायण देशमुख के रूप में की. इस के बाद लाश का पोस्टमार्टम कराया गया.

डाक्टरों ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया कि रुद्र की हत्या रस्सी के फंदे से गला घोट कर की गई थी. गले पर रस्सी के रेशे भी पाए गए. पोस्ट मार्टम रिपोर्ट से साफ हो चुका था कि किसी ने रुद्र की हत्या गला घोट कर की और बाद में जला दी. मगर यह हत्या क्यों की गई? पुलिस के सामने यह एक बड़ा सवाल था.

टीआई राजेश झा ने मृतक के पिता पिलेश्वर जो कि एक किसान है से पूछा कि क्या आप की किसी से कोई दुश्मनी वगैरह तो नहीं है. या किसी पर कोई शक है, जो रुद्र की हत्या कर सकता है?

इस पर पिलेश्वर ने बताया कि उस की किसी से रंजिश नहीं है. साथ ही उस ने यह भी बताया कि रुद्र का दूर के जीजा पंचराम देशमुख से बहुत लगाव था. वह उस से काफीकाफी देर तक फोन पर भी बातें करता था. कल पंचराम का हमारे पास फोन आया था, वह पूछ रहा था कि क्या कोई आरोपी पकड़ा गया है? पुलिस इस केस में अब क्या कर रही है?

पिलेश्वर के मुंह से यह सुनते ही टीआई राजेश झा का ध्यान पंचराम की तरफ केंद्रित हो गया. उन्होंने पंचराम के बारे में पिलेश्वर से सारी जानकारी ली और पंचराम को फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था.

तब पुलिस टीम के साथ वह आलबरस गांव स्थित उस के घर पहुंच गए. लेकिन वह घर से गायब था. उस की पत्नी ने बताया कि वह तो 24 दिसंबर से घर नहीं आए हैं.

अब टीआई राजेश झा को इस मामले में अपराध की बू आती दिखने लगी. उन्होंने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई तो चौंकाने वाली जानकारी मिली. उस की लोकेशन धमतरी जिले के किसी गांव की मिली.

उन्होंने आरक्षक वीरनारायण, राजकुमार चंद्रा, डी. राव, अलाउद्दीन और राजकुमार दिवाकर की टीम को पंचराम की गिरफ्तारी के लिए भेजा. यह टीम 6 घंटों का सफर कर के धमतरी जिले के गांव गुटकेल पहुंची. यह टीम फोन के टावर की मदद से तांत्रिक धनराज के घर पहुंच गई. वहां पुलिस टीम को पता चला कि धनराज और पंचराम जंगल में चूहा मारने गए हुए हैं.

पुलिस टीम जाल बिछा कर पंचराम का इंतजार करने लगी. 31 दिसंबर, 2019 को जब पंचराम व धनराज जंगल से 2 बड़े चूहे पकड़ कर घर लौटे तभी पुलिस ने उन्हें दबोच लिया और हिरासत में ले कर अंडा थाने ले आई. दोनों से पूछताछ की गई तो पंचराम ने स्वीकार कर लिया कि रस्सी से गला घोट कर उस ने ही रुद्र की हत्या की थी.

उस ने बताया कि वह लखपति बनना चाहता था, तांत्रिक धनराज ने उसे बताया था कि फांसी की रस्सी, नारियल, सिंदूर ला दे तो एक सप्ताह में वह हवा में पत्तों की तरह नोटों की वर्षा कर सकता है, इसीलिए उस ने रस्सी से गला घोंट कर रुद्र की हत्या की थी.

पुलिस ने आरोपी पंचराम देशमुख और तथाकथित तांत्रिक धनराज नेताम के इकबालिया बयान दर्ज कर के उन्हें भादंवि की धारा 302, 120 बी, 34 के तहत गिरफ्तार कर प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रैट श्रीमती प्रतीक्षा शर्मा के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

ड्रग माफिया की कठपुतली बनी शिवानी की कहानी

मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला कभी डकैतों की पनाहगाह हुआ करता था, जो ग्वालियर, भिंड और मुरैना जिलों से घिरा हुआ है. लेकिन अब वही शिवपुरी बदनाम है देह व्यापार और ड्रग्स के कारोबार के लिए. उड़ता पंजाब की तर्ज पर शिवपुरी को लोग उड़ता शिवपुरी कहने लगे हैं, क्योंकि यहां के गांव देहातों तक में जिस्म के बाद जो चीज आसानी से जरूरतमंदों के लिए मिल जाती है, वह है ड्रग.

17 वर्षीय शिवानी शर्मा बेइंतहा खूबसूरत लड़की थी, जिस पर नजर डालने के बाद लोग पलक झपकाना भूल जाते थे. भरेपूरे और गदराए जिस्म की मालकिन इस युवती की जिंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. जब वह बहुत छोटी थी, तब उस के पिता का निधन हो गया था. विधवा हो जाने के बाद उस की युवा मां को समझ आ गया था कि एक नन्ही बच्ची के साथ स्वाभिमान और और सम्मानपूर्वक तरीके से रह पाना किसी भी लिहाज से मुमकिन नहीं है.

फिर एक दिन वह अपने जिगर के टुकड़े को सास की गोदी में डाल कर चली गई. कहां गई, इस का ठीकठाक पता किसी को नहीं, लेकिन कुछ दिन बाद उड़ती उड़ती खबर यह आई कि उस ने दूसरी शादी कर ली है.

इस तरह शिवानी अपनी दादी लक्ष्मीबाई की गोद में पलीबढ़ी, जिन के पास नाम के मुताबिक लक्ष्मी कहने भर को भी नहीं थी. क्योंकि अपनी और नन्ही पोती की गुजर के लिए उन्हें दूसरों के घरों में काम करना पड़ता था, तब कहीं जा कर दो वक्त की रोटी नसीब होती थी.

अभावों में पलती शिवानी बड़ी होती गई, लेकिन इन 17 सालों में जो कई बातें उसे समझ आई थीं, उन में अहम यह थी कि गरीबी दुनिया का सब से बड़ा अभिशाप है. लक्ष्मीबाई ने अपनी तरफ से उस की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी थी. उस ने शिवानी को शिवपुरी के सरस्वती स्कूल में दाखिला दिला दिया था. पढ़ाई में औसत रही शिवानी को यह भी समझ आ गया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, उस की दरिद्रता दूर नहीं होने वाली है.

अपने मांबाप की कहानी उस ने दादी और कुछ रिश्तेदारों के मुंह से सुनी थी, जो कभीकभार दिखावे के लिए आ जाते थे. नहीं तो किसी को न तो उन से मतलब था और न ही फुरसत थी. बड़ी होती शिवानी को कभी किसी ने अपनी बाहों में झुला कर अपनी प्रिंसेस बिटिया या नन्ही परी नहीं कहा था. वह तो बस हैरानी से अपने आसपास की दुनिया देखते हुए बड़ी होती गई थी.

बूढ़ी दादी की आंखों से शिवानी की मनोदशा छिपी नहीं थी, लेकिन इस के बाद भी उन्हें उम्मीद थी कि पोती सुंदर है, एक न एक दिन उस के भी दिन फिरेंगे और कोई अच्छे खाते पीते घर का लड़का उसे ब्याह कर ले जाएगा.

ड्रग्स से कर ली सगाई

ऐसा कुछ हुआ नहीं, उलटे लक्ष्मीबाई कुछ महीनों पहले उस वक्त सन्न रह गई, जब उन्हें यह अहसास हुआ कि शिवानी ड्रग्स का नशा करने लगी है. उन्हें अपने सपने टूटते नजर आए. लेकिन इस के आगे क्याक्या होना है, इस का अंदाजा वे नहीं लगा पाईं और अगर लगा भी लिया होगा तो बेबसी के चलते कसमसा कर रह जातीं.

दरअसल, ड्रग्स तो शिवानी कई दिनों से ले रही थी लेकिन लत उसे अभीअभी लगी थी और इस तरह लगी थी कि स्मैक की एक पुडि़या के लिए वह अपना जिस्म तक परोसने के लिए तैयार रहने लगी थी.

हकीकत यह थी कि जवानी की सीढि़यों पर पहला कदम रखते ही शिवानी एक ऐसे गिरोह के चक्कर में फंस गई थी, जो षडयंत्रपूर्वक उन लड़कियों को फंसाता था, जिन पर कोई पारिवारिक नियंत्रण नहीं होता था. शिवानी इस काम के लिए ड्रग माफिया को बहुत सौफ्ट टारगेट लगी थी.

कुछ दिन पहले ही शिवानी के यहां एक युवक का आनाजाना शुरू हुआ था, जिस का नाम चिक्की पाठक था. ब्राह्मण होने के नाते दादी ने चिक्की के आनेजाने को असहज ढंग से नहीं लिया. दादी के पास बैठ कर उन से घंटों बतियाने वाला चिक्की असल में मोहरा था, जिसे शिवानी को फंसाने के लिए भेजा गया था.

उम्मीद के मुताबिक शिवानी जल्द ही चिक्की के प्रेमजाल में फंस गई. फिर वह उस के साथ बाहर घूमने फिरने जाने लगी. आने वाली जिंदगी को ले कर वह सुनहरे सपने देखने लगी. चिक्की भी उस के सपनों को हवा देता रहा.

धीरेधीरे चिक्की उसे अपनी 2 परिचितों जूली भार्गव और रूबी जाटव के यहां ले जाने लगा. इन दोनों के घर और आजाद जिंदगी देख कर शिवानी भी ऐसी ही जिंदगी के ख्वाब देखने लगी, जिस में उस का अपना घर है, चिक्की है और रोमांस ही रोमांस है.

भोलीभाली शिवानी तब इन सब की हकीकत नहीं जानती थी. जब भी वह चिक्की के साथ इन के यहां जाती थी तो जूली और रूबी उन दोनों को एकांत में छोड़ देती थीं. आग और बारूद आमने सामने होंगे तो वर्जनाएं टूटने में देर नहीं लगती. यही शिवानी के साथ हुआ. धीरेधीरे ही सही, चिक्की ने कब उसे पूरी तरह अपना बना लिया, इस का उसे अहसास ही नहीं हुआ.

कच्चे उम्र की शिवानी ज्यादा दिनों तक खुद को रोके नहीं रख पाई और एक दिन पूरी तरह चिक्की की हो गई. फिर यह सुख रोजरोज नएनए तरीके से उसे मिलने लगा तो वह इसकी आदी हो गई. शिवानी नाम की अनछुई कली देखते ही देखते खिला हुआ फूल बन गई.

सेक्स की लत के बाद चरणबद्ध तरीके से चिक्की, रूबी और जूली ने उसे शराब और सिगरेट पिलानी शुरू कर दी. शिवानी ने महसूस किया कि ये दोनों चीजें न केवल रोमांस और सैक्स का बल्कि जिंदगी का भी असली लुत्फ देती हैं. लिहाजा वह बेहिचक शराब पीने लगी.

घर में कोई उसे रोकनेटोकने वाला नहीं था और जो बूढ़ी दादी थीं, शिवानी के लिए उन के वहां होने न होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ता था. वह तो एक ऐसी दुनिया में जा पहुंची थी, जहां प्यार, रोमांस और सैक्स के अलावा कुछ नहीं होता था.

इसी दौरान चिक्की ने उस का परिचय अपने और दोस्तों यानी गिरोह के सदस्यों रजक, विकास, गोलू और परमार से भी करवा दिया था. ये चारों भी उसे रूबी और जूली की तरह भले लगे. फिर एक दिन उसे दुनिया के सब से हसीन नशे स्मैक की खुराक दी गई.

शिवानी को लगा कि यह नशा बड़ा अद्भुत है, जिसे ले कर आदमी अपने सारे रंजोगम और परेशानियां भूल जाता है. एक ऐसा नशा जिस की तलब उतरने के बाद से ही लगने लगती है.

धीरेधीरे ग्रुप बना कर ये सभी लोग यह नशा करने लगे, जिस में कोई बंदिश नहीं थी. थी तो सिर्फ एक ऐसी आजादी जो हर युवा का सपना होती है. एक बार इन ड्रग्स की लत शिवानी को लगी तो फिर उस ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस ने बूढ़ी दादी के बारे में भी कुछ नहीं सोचा, जिस ने अपना बुढ़ापा जला कर उसे बड़ा किया था.

आ गई देह व्यापार में ऐसा नहीं कि अनुभवी लक्ष्मीबाई को कुछ समझ नहीं आ रहा था, लेकिन शिवानी की हालत अब उस उफनती बरसाती नदी की तरह हो गई थी, जिसे बांधे रखने में कम से कम कोई जर्जर बांध तो कतई कामयाब नहीं होता.

जवान बेटे को खो चुकी लक्ष्मीबाई अब जवान होती पोती का हाल देख रही थीं. लेकिन कुछ कर पाने में असमर्थ थीं, क्योंकि बेटे की तरह वह उस की अमानत को नहीं खोना चाहती थीं.

जिस मकसद से शिवानी को चिक्की ने फंसाया था वह पूरा हो चुका था. बिना ड्रग्स के अब वह एक दिन भी नहीं रह पाती थी और तलब लगने पर खुद उस के या दूसरे साथियों की तरफ खिंची चली आती थी.

यह सब इतने जल्दीजल्दी और सुनियोजित तरीके से हुआ था कि शिवानी को कुछ सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिला था और कभी मिला भी होगा तो उसे यह भी समझ आ गया होगा कि अब कुछ नहीं हो सकता.

जो एक बार ड्रग्स के नशे की राह पर चल पड़ता है, वह चाह कर भी वापस नहीं लौट सकता. यही हाल शिवानी का था. फिर एक दिन उसे बताया गया कि जिस मौजमस्ती की लत उसे पड़ चुकी है, वह मुफ्त नहीं मिलती है, इस के लिए दाम भी चुकाना पड़ता है.

दाम चुकाने के लिए शिवानी के पास फूटा धेला भी नहीं था, लेकिन इन्हीं लोगों ने उसे बताया कि उस के पास जो है, वह करोड़ोंअरबों का है. अगर वह चाहे तो दौलत पैरों में लोटने लगेगी.

चूंकि चिक्की को इस पर कोई ऐतराज नहीं था, इसलिए मजबूरी की मारी शिवानी देहव्यापार के लिए भी तैयार हो गई. और सचमुच शिवानी की देह पैसा उगलने लगी. वह अब पूरी तरह कालगर्ल बन चुकी थी, जो पैसों की जरूरत पूरी करने के लिए हर उस शख्स यानी ग्राहक का बिस्तर गर्म करने को तैयार रहती थी, जिस के पास उस के गिरोह के सदस्य ले जाते थे.

देखते ही देखते शिवानी के रंगढंग बदल गए. वह महंगी ड्रेस पहनने लगी. हाथ में 30 हजार रुपए का मोबाइल आ गया और सब से बड़ी बात ड्रग्स के लिए पैसों का जुगाड़ सहूलियत से होने लगा. इस धंधे में पूरी तरह उतरने के बाद उसे पता चला कि कई पुलिस वाले भी इस गिरोह के साथ हैं, जिन में से वह कुछ का बिस्तर गर्म भी कर चुकी थी.

अब शिवानी की जिंदगी में कुछ नहीं रह गया था. वह अपनी जवानी कैश करा रही थी तो सिर्फ नशे की खुराक के लिए, जिस के बगैर उस का दिमाग सनसनाने लगता था, शरीर सुन्न पड़ने लगता था. घबराहट और उलटियां भी होने लगती थीं. अब तो वह कई कई दिन बाहर रहने लगी थी.

फिर एक दिन… देवानंद अभिनीत और निर्देशित 70 के दशक की चर्चित और हिट फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ की जीनत अमान बन चुकी शिवानी ने अपने रोल से समझौता कर लिया था कि वह सिर्फ नशे और मौजमस्ती के लिए पैदा हुई है, इस से आगे दुनिया में कोई सच नहीं है.

यह और बात है कि फिल्म की तरह उस का कोई भाई उसे गिरोह और नशे की दलदल से वापस निकालने नहीं आया क्योंकि यह हकीकत थी, फिल्म नहीं.

पूरी तरह गिरोह का हिस्सा बन जाने के बाद औरों की तरह शिवानी को भी पता नहीं चल पाया कि आखिरकार इस का कर्ताधर्ता कौन है. वह तो एक ऐसी कठपुतली बन गई थी, जो चिक्की के इशारों पर नाचती थी. उस के लिए सुकून देने वाली इकलौती बात यही थी कि चिक्की अब भी उसे चाहता था और शादी करने को भी तैयार था.

खुद फंसने के बाद उसे यह जरूर समझ आ गया था कि ये लोग कितनी चालाकी से शिकार चुनते हैं, फिर उसे फांसते हैं और उस से पैसा कमाते हैं. नशे की दुनिया के कारोबार के इस गोरखधंधे का उद्गम स्थल कहां है, यह भी उसे नहीं मालूम था और यह सब जानने की जरूरत या इजाजत उसे भी नहीं थी. उस की दुनिया तो एक खुराक में सिमट कर रह गई थी.

चिक्की खुद भी नशेड़ी था और एक बार इलाज के लिए उसे ग्वालियर के नशा मुक्ति केंद्र भी भेजा गया था, लेकिन वहां से वह भाग आया था और फिर नशे की दुनिया का हिस्सा बन गया था.

उस के पिता धर्मेंद्र पाठक शिवपुरी की जानीमानी शख्सियत हैं. जूली के बारे में उसे पता चला था कि जूली अपने पति को छोड़ चुकी है और रूबी हालांकि अपने परिवार के साथ रहती है, लेकिन यह रहना ठीक वैसा ही है, जैसा उस का दादी के साथ रहना.

इसी दौरान शिवानी को यह भी पता चला था कि ड्रग्स शिवपुरी की गलीगली में मिलती है और कई जगह तो बाकायदा इन की किट बिकती है, जिन में नशे के इंजेक्शन के साथ सीरींज वगैरह भी होती है. यह और ऐसे कई गिरोह खासतौर से युवाओं को कैसे फांसते हैं, इस की बेहतर मिसाल तो वह खुद ही थी.

पुलिस से की शिकायत लक्ष्मीबाई की बूढ़ी आंखों से अब कुछ छिपा नहीं रह गया था. वह रूबी, जूली, चिक्की और गिरोह के बारे में काफी कुछ जान चुकी थीं कि इन्होंने ही उन की पोती को फंसा कर उस की जिंदगी नर्क बना दी है.

लिहाजा वह अपनी एक नजदीकी रिश्तेदार को ले कर एक दिन थाने जा पहुंचीं और फरियाद लगाई, जिस की कोई सुनवाई नहीं हुई तो उन्हें समझ आ गया कि इस गिरोह में पुलिस वाले भी शामिल हैं.

इधर ‘दम मारो दम मिट जाए गम…’ गाने की धुन पर झूमती शिवानी बीती 5 जुलाई को घर आई तो दादी को लगा कि वह रुकेगी, लेकिन शिवानी अपना आधार कार्ड और कुछ कपड़े ले कर वापस चली गई. तब उस के साथ जूली और रूबी के अलावा एक पुलिस वाला भी था. वह बेबसी से पोती को जाते देखती रहीं.

5 जुलाई, 2019 को कोई खास बात थी, जो शिवानी खूब सजीसंवरी थी. शाम होने तक वह नशे की 2 खुराक ले चुकी थी. दरअसल इस गिरोह के हाथ एक डील के तहत बड़ी रकम हाथ लगने वाली थी, जिस के लिए शिवानी को कई सफेदपोश लोगों को खुश करना था. शिवानी कहीं बीच में कुछ ऐसावैसा न बोल दे, इसलिए उसे तीसरी खुराक भी दे दी गई थी.

रंगीन रात परवान चढ़ पाती, इस के पहले ही ड्रग्स के ओवरडोज के चलते शिवानी की हालत बिगड़ने लगी तो बाकी लोग घबरा उठे. उन्होंने पहले तो उस के चेहरे पर पानी के छींटे मार कर उसे होश में लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाब नहीं हुए तो उन्हें लगा कि शिवानी का बचना अब मुश्किल है.

6 जुलाई, 2019 की सुबह जब शिवपुरी की कृष्णापुरम कालोनी में लोग बाहर आए तो यह देख सन्न रह गए कि नामी कारोबारी जगदीश मंगल के चबूतरे पर एक जवान लड़की पड़ी है. लड़की ने जींस और गुलाबी रंग का टौप पहन रखा था. उस का एक हाथ चबूतरे के नीचे हवा में झूल रहा था और मुंह से झाग निकल रहा था.

साफ समझ आ रहा था कि वह युवती जिंदा नहीं, बल्कि लाश है. जमा भीड़ में से किसी ने 100 नंबर पर पुलिस को खबर कर दी तो सिटी कोतवाली के टीआई बादाम सिंह यादव टीम सहित घटनास्थल पर जा पहुंचे. आग की तरह युवती की संदिग्ध मौत की खबर शहर भर में फैली तो कुछ ही देर में एएसपी गजेंद्र सिंह कंवर भी पहुंच गए.

सामने आई सच्चाई इसी बीच भीड़ में से ही किसी ने युवती की शिनाख्त भी कर दी कि वह नवाब साहब रोड  पर रहने वाली शिवानी शर्मा है. इस के बाद पुलिस को कोई खास मशक्कत नहीं करनी पड़ी, क्योंकि जिस चबूतरे पर लाश पड़ी थी, उस घर में सीसीटीवी कैमरे लगे थे.

इन कैमरों की रिकौर्डिंग देख पता चला कि पिछली रात कोई डेढ़ बजे एक आटोरिक्शा जगदीश मंगल के घर के सामने रुका था. थोड़ी देर खड़ा रहने के बाद उस में से एकएक कर 4 युवक उतरे और इधरउधर देखने के बाद उन्होंने आटोरिक्शा की पिछली सीट के पायदान से एक युवती को बाहर निकाल कर चबूतरे पर लिटा दिया और वापस चले गए.

इधर जैसे ही लक्ष्मीबाई को पोती की मौत की खबर लगी तो उन का रोरो कर बुरा हाल हो गया. हुआ वही, जिस का उन्हें अंदेशा था. रोरो कर उन्होंने पुलिस को बताया कि पिछले कुछ दिनों से शिवानी नशेडि़यों की संगत में पड़ गई थी. वह कुछ ऐसी लड़कियों के चंगुल में फंसी थी, जो ड्रग्स का कारोबार करती थीं. उन्होंने जूली उर्फ अपर्णा भार्गव और रूबी जाटव के नाम भी बताए.

लक्ष्मीबाई ने यह भी बताया कि शिवानी का प्रेम प्रसंग चिक्की पाठक से चल रहा था और दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चिक्की के घर वाले इस के लिए राजी नहीं थे. इस के बाद भी दोनों ने छिप कर शादी कर ली थी. शिवानी पहली जुलाई को ही घर छोड़ कर चली गई थी और 5 जुलाई को थोड़ी देर के लिए घर आई थी. उन्होंने आरोप लगाया कि शिवानी की हत्या इन्हीं लोगों ने की है.

चूंकि सीसीटीवी से सच बाहर आ चुका था, इसलिए पुलिस ने आईपीसी की धाराओं 302, 201, 120बी और 34 का मामला दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ शुरू कर दी. इसी बीच पुलिस को एक मुखबिर ने खबर दी कि आरोपी शिवपुरी से भागने की फिराक में हैं और फतेहपुर रोड पर पुलिया के पास खड़े हैं.

मुखबिर की सूचना पर तुरंत दबिश दे कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. विकास सोनी, परमार सिंह, रूबी जाटव, गोलू रजक और जूली ने बताया कि शिवानी की मौत नशे के ओवरडोज के चलते हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट से भी इस की पुष्टि हुई.

इस कांड से शिवपुरी में फैलते नशे और देह व्यापार के कारोबार की जम कर चर्चा हुई. कुछ पुलिस वालों की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई, जिन्हें सस्पेंड कर दिया गया. चिक्की फरार हो चुका था, लेकिन 11 जुलाई, 2019 को एक पैट्रोल पंप के पास से उसे गिरफ्तार कर लिया गया.

इस तरह शिवानी की जिंदगी और कहानी दोनों खत्म हुए, लेकिन एक सबक छोड़ गई कि लोग अपने बच्चों को नशे के इन सौदागारों से बचा कर रखें, नहीं तो उन का अंजाम भी शिवानी जैसा हो सकता है.  तमाम हंगामों के बाद भी पुलिस इस गिरोह के सरगनाओं के गिरेहबानों तक नहीं पहुंच पाई तो साफ दिख रहा है कि प्यादे फंसे हैं वजीर और बादशाह तो बेखौफ और बदस्तूर अपने धंधे में लगे हैं और नए शिकार ढूंढ रहे हैं.

जयपुर का आदर्श कोऔपरेटिव सोसायटी फ्रॉड

राजस्थान पुलिस (Rajasthan) के स्पैशल औपरेशन गु्रप ‘एसओजी’ के जयपुर मुख्यालय (Jaipur Head Office) पर अगस्त 2018 में एक शिकायत मिली थी. शिकायत में कहा गया था कि आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी (Adarsh Credit Cooperative Society) अहमदाबाद (Ahmedabad) की ओर से निवेशकों का पैसा नहीं लौटाया जा रहा है.

कंपनी की देश के 28 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में करीब 800 से ज्यादा शाखाएं हैं. इन में 309 शाखाएं अकेले राजस्थान में हैं. राजस्थान में कंपनी ने करीब 20 लाख सदस्य बनाए थे. इन में लगभग 10 लाख निवेशक सदस्य शामिल हैं. इन से करीब 8 हजार करोड़ रुपए का निवेश करवाया गया. यह राशि आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी ने अपनी शैल यानी फरजी कंपनियों में निवेश कर निवेशकों की राशि का दुरुपयोग किया है.

शिकायत में बताया गया कि पहले यह कंपनी राजस्थान के सिरोही शहर में पंजीकृत थी. कुछ साल पहले कंपनी ने अहमदाबाद में मुख्यालय बना लिया था. मल्टीस्टेट कंपनी हो जाने के कारण यह राजस्थान के कोऔपरेटिव रजिस्ट्रार के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गई थी.

मामला गंभीर था. एसओजी के महानिदेशक ने पूरे मामले की जांच पड़ताल कराई. इस बीच, राजस्थान के कोऔपरेटिव रजिस्ट्रार आईएएस अधिकारी नीरज के. पवन ने भी एसओजी को शासकीय पत्र लिख कर आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी के घोटाले की जानकारी दी.

उन्होंने पत्र के साथ करीब 200 पेज की एक जांच रिपोर्ट भी एसओजी को सौंपी. जांच रिपोर्ट में कहा गया था कि इस कंपनी ने निवेशकों का पैसा ले कर वापस नहीं लौटाया. कंपनी ने निवेशकों का पैसा रियल एस्टेट और फरजी कंपनियों में लगा दिया है.

इस संबंध में कोऔपरेटिव विभाग को कई शिकायतें मिली थीं. इस पर कोऔपरेटिव रजिस्ट्रार कार्यालय के अधिकारियों ने कंपनी के अधिकारियों को तलब कर उन्हें निवेशकों का पैसा लौटाने को कहा था. इस के बावजूद कंपनी ने निवेशकों का पैसा वापस नहीं लौटाया.

एसओजी की प्रारंभिक जांचपड़ताल में आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी की ओर से फरजीवाड़ा कर निवेशकों का पैसा हड़पने की पुष्टि हो गई. इस पर जयपुर में एसओजी थाने में 28 दिसंबर, 2018 को कंपनी के खिलाफ भादंवि की धारा 406, 409, 420, 467, 468, 471, 477ए और 120बी में मामला दर्ज कर लिया गया.

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रिपोर्ट दर्ज किए जाने के बाद एसओजी के अधिकारियों ने इस मामले में पूरी तरह जांचपड़ताल प्रारंभ की. चूंकि कंपनी का कारोबार 28 राज्यों और 4 केंद्रशासित प्रदेशों में फैला हुआ था, इसलिए जांच का काम कई महीने तक चलता रहा. व्यापक जांचपड़ताल के बाद इसी साल 25 मई को एसओजी के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक डा. भूपेंद्र यादव ने इस फरजीवाड़े का खुलासा कर दिया.

उन्होंने बताया कि कंपनी ने मोटा मुनाफा देने के नाम पर करीब 20 लाख सदस्य बनाए. इन सदस्यों की ओर से निवेश की गई करीब 8 हजार करोड़ रुपए की राशि कंपनी के पदाधिकारियों ने 187 फरजी कंपनियों में लगा दी. जांच में सामने आया कि आदर्श सोसायटी को अपने निवेशकों के करीब 14 हजार 682 करोड़ रुपए लौटाने हैं.

एसओजी ने इस घोटाले में 25 मई को आदर्श कंपनी के 11 मौजूदा और पूर्व पदाधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया. इन में सिरोही निवासी कंपनी के पूर्व चेयरमैन वीरेंद्र मोदी और कमलेश चौधरी, चेयरमैन ईश्वर सिंह, मुंबई निवासी पूर्व मैनेजिंग डायरैक्टर प्रियंका मोदी व सीनियर वाइस प्रेसीडेंट वैभव लोढ़ा, अहमदाबाद निवासी चीफ फाइनैंस औफिसर समीर मोदी, जयपुर निवासी असिस्टेंट मैनेजिंग डायरैक्टर रोहित मोदी, सिरोही निवासी पूर्व मैनेजिंग डायरैक्टर ललिता राजपुरोहित, आदित्य प्रोजैक्ट के निदेशक भारत मोदी, टैक्टोनिक इंफ्रा के निदेशक भारत दास और 6 कंपनियों के डायरैक्टर विवेक पुरोहित शामिल थे.

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एसओजी को जांच में यह भी पता चला कि सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी (Mukesh Modi) और उन का भतीजा राहुल मोदी पहले ही आर्थिक अपराध के मामले में दिल्ली में गिरफ्तार हैं. इन दोनों को सीरियस फ्रौड इनवैस्टीगेशन सेल एसएफ.आईओ ने दिल्ली में कुछ माह पहले गिरफ्तार किया था.

कंपनी के 11 पदाधिकारियों की गिरफ्तारी के दूसरे दिन 26 मई को एसओजी ने एक और आरोपी राजेश्वर सिंह को गिरफ्तार कर लिया. जयपुर में वैशाली नगर के हनुमान नगर में रहने वाले राजेश्वर सिंह के पिता महावीर सिंह रिटायर्ड आईएएस अधिकारी हैं. राजेश्वर सिंह एक अन्य कंपनी का डायरैक्टर है.

इस बीच, सोसायटी के संस्थापक मुकेश मोदी के भाई पूर्व चेयरमैन वीरेंद्र मोदी (Virender Modi) ने एसओजी की गिरफ्त में सीने में दर्द की शिकायत की. उसे जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल के कार्डियक आईसीयू में भरती कराया गया.

वीरेंद्र मोदी को 26 मई को अदालत में पेश किया जाना था, लेकिन अस्पताल में भरती होने के कारण वह अदालत नहीं पहुंचा, तो उस के बीमार होने की सच्चाई जानने के लिए न्यायाधीश अरविंद जांगिड़ अदालत से चल कर खुद अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने डाक्टरों से वीरेंद्र मोदी के स्वास्थ्य की जानकारी लेने के बाद उसे एक दिन के रिमांड पर एसओजी को सौंप दिया.

गिरफ्तार आरोपियों से पूछताछ और एसओजी की जांचपड़ताल में आदर्श घोटाले की जो कहानी उभर कर सामने आई, उस से पता चलता है कि हमारे देश में लोगों को मोटे मुनाफे का लालच दे कर किस तरह लूटा जा रहा है.

एक बाबू और उस के टैक्सी ड्राइवर भाई ने अपने दिमाग से खेल रच कर लोगों को बेवकूफ बनाया. वह महज 34 साल में अरबों रुपए के मालिक बन गए. मुकेश मोदी ने अपने भाइयों, बेटे बेटी और दामाद सहित परिवार के लोगों के अलावा दोस्तों को भी कंपनी में शामिल कर अथाह पैसों के सागर में डुबकी लगवाई.

कहानी की शुरुआत करीब 34 साल पहले वर्ष 1985 में हुई थी. सिरोही में प्रकाशराज मोदी रहते थे. वह ग्रामसेवक की सरकारी नौकरी से रिटायर थे. वह रिटायरमेंट के बाद भारतीय किसान संघ से जुड़ गए और उन्हें सिरोही का जिला संयोजक बना दिया गया.

प्रकाशराज मोदी के 3 बेटे हैं, मुकेश मोदी, वीरेंद्र मोदी और भारत मोदी. मुकेश मोदी पहले उद्योग केंद्र में बाबू था. बाद में वह लाइफ और जनरल इंश्योरेंस कंपनियों में बीमा एजेंट के रूप में लंबे समय तक जुड़ा रहा. कहा जाता है कि उस समय मुकेश मोदी मवेशियों की फरजी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पेश कर बीमा क्लेम दिलवाने के मामले में मास्टरमाइंड था. बीमा के इस फरजी खेल में उसे अच्छाखासा कमीशन मिलता था.

सन 1985 में मुकेश मोदी और उस के भाइयों ने आदर्श प्रिंटर्स एंड स्टेशनरी कोऔपरेटिव सोसायटी लिमिटेड की शुरुआत की थी. इस सोसायटी में मुकेश मोदी ने खुद को दस्तावेज लेखक और बाइंडर बताया था.

भारत मोदी इस सोसायटी में मशीनमैन, इन का ड्राइवर ईश्वर सिंह भी मशीनमैन और मां सुशीला मोदी बाइंडर थी. इस सोसायटी में उस समय 18 सदस्य बनाए गए. खास बात यह है कि अधिकांश सदस्य बाद में आदर्श क्रेडिट सोसायटी से जुड़ गए.

जब इस सोसायटी का गठन हुआ था, उस समय प्रकाशराज मोदी का एक बेटा वीरेंद्र मोदी कैसेट रिकौर्डर का काम करता था. कैसेट रिकौर्डर का काम बंद हो गया, तो उस ने स्टेशनरी की दुकान खोल ली. इस के बाद वह टैक्सी चलाने लगा.

बाद में आदर्श प्रिंटर्स एंड स्टेशनरी कोऔपरेटिव सोसायटी पर करोड़ों रुपए की स्टेशनरी बिना टैंडर सप्लाई करने के आरोप लगे. एक बार हुई औडिट में सामने आया था कि यह सोसायटी स्टेशनरी कहीं और से खरीद कर बिल अपने पेश करती है. कहा जाता है कि इस सोसायटी के कामकाज से ही मोदी परिवार के दिन बदलने शुरू हो गए थे.

इस दौरान प्रकाशराज मोदी वर्ष 1989 से 1993 तक सिरोही अरबन कौमर्शियल बैंक के चेयरमैन रहे. उन का बेटा वीरेंद्र मोदी निदेशक था. प्रकाशराज की मौत के बाद मुकेश मोदी पहले प्रबंध समिति का सदस्य बना. फिर वह बैंक का चेयरमैन बन गया. इस बीच मोदी परिवार ने वर्ष 1999 में आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी की शुरुआत की.

उस समय इस की 50 शाखाएं खोली गईं. उस समय निवेशकों का करीब 7-8 करोड़ रुपया जमा हुआ था. कुछ कारणों से करीब 9 महीने बाद ही इसे बंद कर दिया गया और निवेशकों के पैसे लौटा दिए गए.

बाद में इन्होंने रिजर्व बैंक को अरजी दे कर सिरोही अरबन कौमर्शियल बैंक का नाम बदल कर माधव नागरिक सहकारी बैंक रख लिया. यह नाम आरएसएस के दूसरे सरसंघ चालक माधव सदाशिव गोलवलकर के नाम पर रखा गया था. मुकेश मोदी के इस कदम ने उसे आरएसएस के नजदीक खड़ा कर दिया.

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सहकारी संस्थाओं की कमान संभालने और राजनीतिक संरक्षण हासिल होने से मुकेश मोदी और उस के भाई वीरेंद्र मोदी का सिरोही क्षेत्र में लगातार रुतबा बढ़ता गया. वे करोड़ों रुपए में खेलने लगे. सहकारिता के क्षेत्र में प्रभाव बढ़ने और अनापशनाप पैसा आने से वीरेंद्र मोदी की राजनीतिक इच्छाएं जागृत होने लगीं.

वह सन 1999 में सिरोही नगर पालिका का चेयरमैन बन गया. बाद में सन 2003 में सिरोही नगर पालिका चेयरमैन का पद एससी कैटेगरी के लिए आरक्षित हो गया, तो वीरेंद्र मोदी ने अपने चपरासी सुखदेव को नगरपालिका का चेयरमैन बनवा दिया.

इस बीच सन 2002 में केंद्र सरकार ने एक से ज्यादा राज्यों में चल रहे सहकारी बैंकों के लिए बने कानूनों में बदलाव कर दिया. इसे मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी एक्ट-2002 नाम दिया गया. अब तक माधव नागरिक सहकारी बैंक पर मोदी परिवार का एकाधिकार हो चुका था. वीरेंद्र मोदी भी इस में शामिल हो गया था.

सन 2005 में इन्होंने पूरी प्लानिंग के साथ आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी को फिर से शुरू किया तो इन के वारेन्यारे होने लगे. आदर्श सोसायटी को मल्टीस्टेट कोऔपरेटिव सोसायटी एक्ट में पंजीकृत करा कर इस का मुख्यालय सिरोही से अहमदाबाद बना दिया गया.

यह वह समय था, जब गांवों और दूरदराज के इलाकों में बैंकिंग व्यवस्था कमजोर थी. आदर्श क्रेडिट सोसायटी ने बैंकिंग व्यवस्था का विकल्प दिया. उन्होंने पौंजी स्कीम के जरिए अपने पैर जमा कर सरकारी और निजी बैंकों की तुलना में लोगों को ज्यादा ब्याज देने का लालच दिया.

इस का नतीजा यह हुआ कि मध्यम वर्ग और कालेधन के लेनदेन से जुड़े लोगों ने सोसायटी की योजना में अरबोंखरबों रुपए का निवेश किया.

साल 2009 में आदर्श सोसायटी ने गुजरात के घाटे में चल रहे 2 सहकारी बैंकों का अधिग्रहण कर लिया. इन में डीसा नागरिक सहकारी बैंक और सुरेंद्रनगर का मर्केंटाइल सहकारी बैंक शामिल था. इस से आदर्श सोसायटी ने गुजरात में अपने पैर जमा लिए.

कहते हैं कि इंसान के पास जब पैसा और प्रभाव हो, तो वह अपराध करने में भी नहीं झिझकता. वीरेंद्र मोदी के खिलाफ सिरोही में 12 से ज्यादा मामले दर्ज हैं. सिरोही में वीरेंद्र मोदी की पहचान वीरू मोदी के रूप में थी. वीरेंद्र का पहली पत्नी शकुंतला से तलाक हो चुका है. शकुंतला से उस के 2 बेटे हैं. बाद में वीरेंद्र मोदी ने बक्षा नाम की महिला से शादी कर ली. उस से एक बेटा है.

सिरोही के आदर्श नगर में वीरेंद्र मोदी का 10 हजार वर्गफीट एरिया में फैला आलीशान बंगला है. इस में स्विमिंग पूल, गार्डन सहित सभी सुखसुविधाएं हैं. वहां हाईमास्ट लाइट भी लगी हैं. इस लाइटों के बिल का भुगतान पहले नगर पालिका अदा करती थी.

वीरेंद्र के पास काले रंग की रेंज रोवर सहित कई लग्जरी कारें हैं. वह कछुए सहित कई पालतू जानवर रखने का भी शौकीन है. बंगले पर गनमैन तैनात रहता है. घोटाला उजागर होने पर वन विभाग ने वीरेंद्र मोदी के सिरोही स्थित बंगले से दुर्लभ प्रजाति के 21 स्टार कछुए बरामद किए. वन विभाग ने वीरेंद्र के खिलाफ केस भी दर्ज कर लिया था.

आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी का पूरा काम मुकेश मोदी संभालता था, जबकि रियल एस्टेट का काम वीरेंद्र मोदी देखता था. मुकेश मोदी ने अपनी बेटी प्रियंका मोदी और दामाद वैभव लोढ़ा के अलावा भाईभतीजों और निकटस्थ लोगों को इस सोसायटी में पदाधिकारी बना रखा था.

राजस्थान में 2017 में उजागर हुए जम्मूकश्मीर के फरजी हथियार लाइसैंस मामले में भी मुकेश मोदी और उस का बेटा राहुल मोदी आरोपी हैं. दोनों को एटीएस मुख्यालय जयपुर बुला कर फरजी हथियार लाइसैंस मामले में पूछताछ की गई थी. बाद में इन्होंने अग्रिम जमानत करा ली थी.

दिल्ली में मुकेश मोदी और उन के बेटे की गिरफ्तारी के बाद से वीरेंद्र मोदी ही सोसायटी का मुख्य कर्ताधर्ता था. एसओजी की ओर से गिरफ्तार किया गया आदर्श क्रेडिट सोसायटी का चेयरमैन ईश्वर सिंह पहले कभी वीरेंद्र मोदी के साथ ही टैक्सी चलाता था.

पहली जून को एसओजी ने 4 आरोपियों को अदालत से 5 दिन के रिमांड पर दोबारा लिया. इन में वीरेंद्र मोदी, रोहित मोदी, विवेक पुरोहित और भरत वैष्णव शामिल थे. एक आरोपी ईश्वर सिंह को अदालत ने न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था. इस से एक दिन पहले वैभव लोढ़ा को भी अदालत से पुलिस रिमांड पर लिया गया.

रिमांड के दौरान एसओजी की टीम वीरेंद्र मोदी और भरत वैष्णव को ले कर सिरोही पहुंची. इन के आवासों की तलाशी में जमीनों और निवेश से जुड़े दस्तावेज जब्त किए गए. वीरेंद्र मोदी के बंगले से करीब डेढ़ हजार प्लौटों के पट्टे मिले. ये पट्टे अलगअलग नाम से थे और सिरोही व आसपास के इलाकों में काटी गई कालोनियों के थे. इन पट्टों की कीमत करीब 300 करोड़ रुपए के आसपास आंकी गई.

एसओजी की जांच में यह भी पता चला कि आदर्श क्रेडिट कोऔपरेटिव सोसायटी के संचालक की बेटी प्रियंका मोदी और दामाद वैभव मोदी का हर महीने वेतन डेढ़ करोड़ रुपए था. शादी होने से पहले प्रियंका मोदी 5 साल के दौरान करीब 75 करोड़ रुपए तो वेतन के एवज में ही ले चुकी थी.

शादी के बाद प्रियंका के पति वैभव मोदी को डेढ़ करोड़ रुपए महीने के हिसाब से वेतन दिया जा रहा था. वह करीब 45 करोड़ रुपए सैलरी ले चुका था. प्रियंका और वैभव मुंबई में रहते थे, लेकिन उन्हें गुरुग्राम स्थित कंपनी में काम करना बता रखा था.

दरअसल, आदर्श सोसायटी के देश भर में विस्तार के बाद इस के संचालकों ने निवेशकों के पैसे का घोटाला करने के लिए शैल कंपनियां यानी फरजी कंपनियां बना लीं. गुड़गांव के सुशांत लोक फेज-1 की एक बिल्डिंग में मुकेश मोदी, उस के परिवार के सदस्यों और सहयोगियों के नाम पर कुल 33 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं.

असल में इस पते पर 12×15 की एक छोटी सी दुकान है. एसओजी ने जब इस पते पर छापा मारा तो यहां बंगाल का रहने वाला मोती उल मलिक मिला. उस ने बताया कि वह सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक यहां बैठता है. वह इस पते पर आने वाली सारी डाक एकत्र कर गुड़गांव में ही दूसरे औफिस पर पहुंचा देता है. एसओजी को जांच में पता चला कि इस दुकान की मालिक मुकेश मोदी की बेटी प्रियंका मोदी है.

जांच में यह भी पता चला कि मुकेश मोदी महावीर कंसलटेंसी नामक कंपनी में नौकरी कर एक करोड़ रुपए मासिक वेतन लेता था. महावीर कंसलटेंसी को आदर्श सोसायटी ने कंसलटेंसी का काम सौंप रखा था. इस कंसलटेंसी कंपनी में मुकेश मोदी की पत्नी मीनाक्षी मोदी और दामाद वैभव लोढ़ा साझीदार थे.

आदर्श सोसायटी की बैलेंसशीट के मुताबिक सोसायटी ने महावीर कंसलटेंसी को 3 साल के दौरान ही 6 अरब 60 करोड़ 73 लाख 68 हजार 938 रुपए का भुगतान किया था. इस में वर्ष 2015-16 में 59 करोड़ 36 लाख रुपए, वर्ष 2016-17 में एक अरब 94 करोड़ रुपए और वर्ष 2017-18 में 4 अरब 6 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया.

इस कंपनी का रजिस्ट्रेशन वर्ष 2013-14 में कराया गया था. उस समय इस कंपनी का टर्नओवर शून्य था. यानी एक रुपए का भी व्यापार नहीं हुआ था, लेकिन 3 साल बाद ही सन 2017 में इस कंपनी का टर्नओवर 500 करोड़ रुपए पहुंच गया.

नोटबंदी के दौरान मोदी परिवार ने 223 करोड़ 77 लाख रुपए कैश इन हैंड बताए थे. इस राशि को खपाने के लिए भी कई फरजीवाड़े किए गए. इस में परिचितों व परिवार के लोगों को फरजी कंपनियों के शेयर होल्डर बना कर उन के खातों में आरटीजीएस के माध्यम से लेनदेन किया गया. बाद में इस राशि से कपड़ों की खरीदारी बताई गई. यह कपड़ा कहां से आया और कहां गया, इस की कोई जानकारी एसओजी को नहीं मिली.

इस के अलावा मोदी बंधुओं ने सोसायटी में बिना किसी मोर्टगेज (गिरवी/रेहन) प्रक्रिया के लोन के नाम पर अपने रिश्तेदारों और जानकारों को अरबों रुपए बांट दिए. गिरवी के नाम पर कोई चलअचल संपत्ति के दस्तावेज नहीं होने से लोन लेने वालों ने यह राशि सोसायटी को नहीं लौटाई.

पुलिस रिमांड पर चल रहे आदर्श सोसायटी घोटाले के पांचों आरोपियों वीरेंद्र मोदी, वैभव लोढ़ा, रोहित मोदी, विवेक पुरोहित और भरत वैष्णव को एसओजी ने 5 जून को जयपुर में अदालत में पेश किया. अदालत ने इन्हें न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया. इस से पहले इस मामले में गिरफ्तार अन्य 7 आरोपियों को भी जेल भेजा जा चुका था.

इस के बाद एसओजी ने आदर्श सोसायटी घोटाले के मुख्य सूत्रधार मुकेश मोदी और उस के भतीजे राहुल मोदी पर शिकंजा कसा. इन दोनों को सीरियस फ्राड इनवैस्टीगेशन सेल (एसएफ.आईओ) ने दिल्ली में दिसंबर 2018 में गिरफ्तार किया था.

एसएफआईओ ने मुकेश और राहुल मोदी के अलावा इन के सहयोगी को आदर्श सोसायटी में गड़बडि़यां कर निवेशकों से करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी करने तथा फरजी कंपनियां बना कर उन को ऋण दे कर हेराफेरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. बाद में एक बार छूटने के बाद इन्हें दोबारा गिरफ्तार किया गया. ये दोनों हरियाणा की गुड़गांव जेल में बंद थे.

एसओजी 10 जून को मुकेश और राहुल मोदी को प्रोडक्शन वारंट पर गिरफ्तार कर जयपुर ले आई. इन्हें अगले दिन जयपुर की अदालत में पेश कर 5 दिन के रिमांड पर लिया गया. मुकेश मोदी ही आदर्श सोसायटी का संस्थापक अध्यक्ष है.

मुकेश और राहुल मोदी से एसओजी ने 5 दिन तक पूछताछ की, लेकिन घोटाले और निवेशकों की रकम के बारे में कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी. इस पर एसओजी ने इन्हें दोबारा रिमांड पर लिया.

इस दौरान उन्हें जयपुर से अहमदाबाद भी ले जाया गया. रास्ते में पाली जिले के बर चौराहे पर एसओजी के पुलिसकर्मियों ने दोनों आरोपियों की खातिरदारी भी की. सड़क पर कराए गए चायनाश्ते की तसवीरें वायरल होने पर एसओजी को बदनामी भी झेलनी पड़ी थी. अहमदाबाद में आदर्श सोसायटी के मुख्यालय पर दस्तावेजों की जांच की गई.

रिमांड अवधि पूरी होने पर एसओजी ने मुकेश और राहुल मोदी को 22 जून, 2019 को जयपुर में अदालत में पेश किया. अदालत ने उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

एसओजी अभी इस मामले की जांचपड़ताल में जुटी हुई है. आदर्श सोसायटी के खिलाफ  राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश के पीडि़त निवेशकों ने 50 से अधिक एफआईआर दर्ज कराई है. इस के अलावा इसी सोसायटी के खिलाफ  दायर करीब 300 परिवादों की जांच की जा रही है. गुजरात व मध्य प्रदेश में भी इस सोसायटी के खिलाफ पुलिस में मामले दर्ज हुए हैं.

आदर्श सोसायटी का घोटाला सामने आने के बाद मुकेश मोदी के भतीजे राहुल मोदी की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ एक फोटो भी खूब वायरल हो रही है. इस फोटो में राहुल प्रधानमंत्री से बातचीत करते नजर आ रहा है. फोटो महाराष्ट्र के नासिक की है. इस में प्रधानमंत्री मोदी आदर्श सोसायटी की नासिक शाखा पर मौजूद हैं. प्रधानमंत्री के साथ केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी दिखाई दे रहे हैं.

आदर्श सोसायटी के जरिए अरबों रुपए में खेलने वाले मुकेश मोदी और उन के भाई वीरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षा राजनीति में आने की भी रही है. सन 2004 के लोकसभा चुनाव में मुकेश मोदी ने सिरोही से भाजपा टिकट हासिल करने के प्रयास किए थे, लेकिन तब उन के विरोधियों ने माधव सहकारी नागरिक बैंक में वित्तीय गड़बडि़यों का पुलिंदा भाजपा आलाकमान तक पहुंचा दिया था. इस से मुकेश मोदी हाथ मलता रह गया था.

बाद में 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सिरोही में मुकेश मोदी के पोस्टर और होर्डिंग लगाए गए थे. उस समय मुकेश ने भाजपा से लोकसभा टिकट हासिल करने की पूरी कोशिशें की थीं, लेकिन विरोधियों ने इस बार भी कई तरह के दस्तावेज आलाकमान को भेज कर उन के अरमानों पर पानी फेर दिया था.

आयकर विभाग 2009-10 और 2018 में आदर्श सोसायटी के ठिकानों पर छापे मार कर काररवाई कर चुका है. आयकर विभाग को पहली बार के छापे में यह लग गया था कि सोसायटी में कालेधन के लेनदेन को ले कर गलत तरीके से निवेश हो रहा है. उस समय आदर्श सोसायटी के अनेक लौकर्स से भारी मात्रा में कालाधन बरामद किया गया था.

जून 2018 में आदर्श सोसायटी के अहमदाबाद, जोधपुर, सिरोही सहित 15 ठिकानों पर 100 से ज्यादा अफसरों ने करीब 10 दिन तक छापे की काररवाई की थी. एसओजी ने भले ही आदर्श सोसायटी के घोटाले का भंडाफोड़ कर इन के कर्ताधर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है, लेकिन सोसायटी में अपनी मेहनत की जमापूंजी लगाने वाले निवेशकों को उन का पैसा वापस मिलता नजर नहीं आ रहा है. इस का कारण कानून की कमियां हैं.

आयकर विभाग ने भी मोदी बंधुओं की काफी संपत्तियां जब्त कर रखी हैं. आदर्श सोसायटी के 187 ऋण खातों में 31 मार्च 2019 को 146 अरब 82 करोड़ 24 लाख 42 हजार 239 रुपए बकाया चल रहे थे.

एक धूर्त का बैंड बाजा बारात

25 मई, 2019 की बात है. राजस्थान के जिला सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर से मिलने के लिए एक अधेड़ उम्र का आदमी उन के औफिस पहुंचा. उस आदमी ने अपना नाम सुशील कुमार शर्मा निवासी सीकर शहर बताया. सुशील ने करीब आधे घंटे तक एसपी को अपनी दास्तान सुनाई.

सुशील की बातें सुन कर एसपी डा. कपूर हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि मेरी पुलिस की अब तक की नौकरी में पहली बार इस तरह का अनोखा मामला सामने आया है. आप पुलिस थाने जा कर रिपोर्ट दर्ज करवा दीजिए. हम उस धोखेबाज और उस के साथियों का पता लगा कर कानून के मुताबिक सजा दिलवाएंगे.

सुशील को आश्वासन देने के बाद एसपी डा. कपूर ने उसी समय कोतवाली प्रभारी को फोन कर कहा कि आप के पास सुशील कुमार जी आएंगे. उन की रिपोर्ट दर्ज कर किसी होशियार अधिकारी से पूरे मामले की जांच कराइए और इस मामले में जो भी प्रोग्रेस हो, मुझे बताते रहिए.

एसपी की बातें सुन कर सुशील कुमार को कुछ उम्मीद जगी. एसपी साहब से मिलने के बाद वह सीधे थाने पहुंच गए. वहां मौजूद थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह को उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहा कि उन्हें एसपी साहब ने भेजा है.

थानाप्रभारी ने सुशील को सम्मान से बिठाया, फिर पूछा कि आप लिखी हुई रिपोर्ट लाए हैं या यहां बैठ कर लिखेंगे. सुशील ने बताया कि वह पहले ही रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए तहरीर लिख कर लाए हैं. इसी के साथ सुशील ने अपने बैग से 2-3 कागज निकाल कर थानाप्रभारी को दे दिए.

थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह ने तसल्ली से उन कागजों को पढ़ा. फिर अपने मातहत अधिकारी को बुला कर उन्हें कागज सौंपते हुए एफआईआर दर्ज करने को कहा. जब तक कंप्यूटर पर रिपोर्ट दर्ज करने की काररवाई चलती रही, तब तक थानाप्रभारी ने फौरी तौर पर सुशील से केस संबंधी कई बातें पूछ लीं, ताकि मुलजिमों को जल्द पकड़ा जा सके.

रिपोर्ट दर्ज करने की काररवाई में तकरीबन एक घंटे का समय लग गया. एफआईआर की एक कौपी सुशील शर्मा को दे कर थानाप्रभारी ने भरोसा दिया कि अपराधियों को जल्द से जल्द पकड़ने का प्रयास किया जाएगा.

सुशील कुमार की ओर से पुलिस थाने में दर्ज कराई गई रिपोर्ट का लब्बोलुआब यह था कि इमरान नाम के युवक ने फरजी तरीके से ब्राह्मण बन कर कबीर शर्मा के नाम से उन की बेटी सुमन से धोखे से शादी रचा ली थी. शादी के लिए इमरान ने फरजी परिवार और फरजी ही बाराती तैयार किए थे. ये सभी लोग कबीर की शादी में माथे पर तिलक छाप लगा कर ब्राह्मण के रूप में शामिल हुए थे.

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रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू की. सुशील शर्मा और उन के परिवार के बयान और प्रारंभिक जांच में सामने आया कि कुछ साल पहले इमरान भाटी ने कबीर शर्मा के नाम से फरजी फेसबुक आईडी बनाई थी. फेसबुक पर उस ने सीकर की रहने वाली युवती सुमन शर्मा से दोस्ती की. उस समय सुमन सीकर जिले के एक निजी कालेज में पढ़ती थी.

फेसबुक पर दोस्ती हुई तो दोनों में चैटिंग करने लगे. बाद में मोबाइल पर भी बातें होने लगीं. सुमन को कबीर की बातों से यह अहसास नहीं हुआ कि वह किसी दूसरी जातिधर्म का है. सुमन उस की बातों और उस के व्यक्तित्व से प्रभावित थी. कबीर ने इस का फायदा उठाया और सुमन को अपने प्रेमजाल में फंसा लिया. सुमन उस से प्यार करने लगी.

कबीर इस खेल में माहिर था. वह सुमन को नित नए सपने दिखाने लगा. सुमन उन सतरंगी सपनों की कल्पना में खो कर मन ही मन कबीर से विवाह करने की सोचने लगी. लेकिन वह संस्कारी युवती थी. उसे अपने मातापिता की इज्जत प्यारी थी. वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाना चाहती थी, जिस से उस के परिवार की प्रतिष्ठा पर जरा सी भी आंच आए. इस बीच वह एक निजी कालेज में जौब करने लगी थी.

सुमन कालेज स्तर तक पढ़लिख चुकी थी. उस की उम्र भी शादी लायक हो गई थी. कालेज में जौब करने से वह आत्मनिर्भर भी हो गई थी. मांबाप अब उस के हाथ पीले करने की सोच रहे थे. इस के लिए उन्होंने अपने नाते रिश्तेदारों से भी सुमन के लिए अच्छा वर तलाशने को कह दिया था. घर में जब सुमन की शादी के लिए लड़का देखने की बातें होने लगीं तो नवंबर 2018 में एक दिन उस ने अपने मातापिता को कबीर के बारे में बताया. सुमन ने मोबाइल पर कबीर की फोटो दिखा कर उस से शादी करने की इच्छा जताई.

पिता को सुमन की यह बात जरा भी बुरी नहीं लगी. उन्होंने सुमन से कहा कि अगर कबीर शर्मा उस की नजर में अच्छा और सज्जन लड़का है तो उन्हें उस से शादी करने में कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन पहले कबीर से मिल कर उस के मातापिता, परिवार और खानदान वगैरह के बारे में पता लगाएंगे.

सुमन ने भी इस पर सहमति जता कर कहा कि मैं कबीर से आप की बात करा दूंगी. सुमन ने कबीर को फोन कर अपने पिता की इच्छा के बारे में बता दिया. इस के 1-2 दिन बाद ही कबीर ने सुशील शर्मा को फोन कर खुद का परिचय दिया.

सुशील के पूछने पर कबीर ने खुद को जयपुर निवासी गौड़ ब्राह्मण बताया. कबीर ने विदेश में खुद का बिजनैस होने का हवाला दे कर कहा कि वह जनवरी में जयपुर आएगा.

इस के बाद कबीर की सुशील शर्मा से 1-2 बार और बात हुई. सुमन से तो उस की प्राय: बात रोज ही बात होती थी. सुमन को भी उम्मीद थी कि परिवार की सहमति से उस की शादी उस के सपनों के राजकुमार कबीर से हो जाएगी.

इसी साल जनवरी में एक दिन जयपुर में लड़का लड़की देखने का कार्यक्रम तय हो गया. तय कार्यक्रम के मुताबिक सीकर से सुमन, उस के पिता और परिवार के अन्य लोग जयपुर के निवारू रोड पर स्थित साउथ कालोनी के एक फ्लैट पर पहुंच गए.

फ्लैट पर कबीर ने सुशील शर्मा और उन के परिवार के लोगों को अपने चाचा रामकुमार शर्मा, चाची संतोष और भतीजे मनन से मिलवाया. उस समय फ्लैट पर कई अन्य लोग भी मौजूद थे. कबीर ने उन्हें भी अपना रिश्तेदार बताया.

कबीर ने सुमन के पिता को बताया कि उस के पिता रामेश्वर शर्मा जयपुर में ही पीतल फैक्ट्री के पास शास्त्रीनगर में रहते हैं. पिता ने दूसरी शादी की है. सौतेली मां के कारण पिता उस के पास नहीं आते.

उसे यह फ्लैट चाचा रामकुमार ने दिलवाया है. कबीर के पिता के दूसरी शादी करने और अलग रहने पर सुशील शर्मा को कुछ शंका हुई कि रामेश्वरजी शादी में शरीक होंगे या नहीं. यह शंका जताने पर कबीर ने सुशील शर्मा को आश्वस्त किया कि वह उन्हें मना लेगा.

बातचीत में सुशील शर्मा को बेटी सुमन के लिए कबीर उपयुक्त लड़का लगा. ब्राह्मण कुल के कबीर के चाचाचाची और अन्य रिश्तेदारों से मिल कर वह उन के घर परिवार के बारे में संतुष्ट हो गए.

फिर भी सुशील शर्मा ने कबीर की जन्मकुंडली का मिलान कराने की बात कही. कबीर ने पहले से तैयार अपनी जन्मकुंडली सुमन के पिता को सौंप दी. दूसरी तरफ, कबीर के रिश्तेदार भी सुमन को अपने घर की बहू बनाने को तैयार हो गए.

सुशील शर्मा ने सीकर आ कर कबीर की जन्मकुंडली पंडित को दिखाई तो उस में कोई दोष नजर नहीं आया. जन्मपत्री के मुताबिक कबीर मांगलिक था और सुमन भी मांगलिक थी. मांगलिक युवती की शादी मांगलिक युवक से ही हो सकती है, यह बात इमरान उर्फ कबीर को पता थी.

सुमन को प्रेमजाल में फांसने के बाद जब इमरान को सुमन के मांगलिक होने का पता चला तो उस ने फरजी नाम, जातिधर्म व पते वाली मांगलिक दोष की जन्मपत्री बनवा कर रख ली थी. यही जन्मपत्री कबीर ने सुमन के पिता को दी थी.

जन्मपत्री का मिलान होने पर सुशील शर्मा ने कबीर से शादी की बात आगे बढ़ाई. इस पर कबीर ने कहा कि हमारे सारे रिश्तेदार जयपुर में रहते हैं. वे सब सीकर नहीं आ सकते, आप को जयपुर आ कर शादी करनी होगी. जयपुर में शादी की सारी व्यवस्था हम लोग कर देंगे. आप केवल पैसों और जेवरों का इंतजाम कर लेना. सुशील शर्मा चाहते तो यही थे कि बेटी की शादी सीकर से ही धूमधाम से हो लेकिन वरपक्ष की इच्छा को देखते हुए वह जयपुर में शादी करने को तैयार हो गए.

बातचीत के बाद तय हुआ कि 12 फरवरी को जयपुर में सगाई करेंगे और इस के अगले ही दिन विवाह का सही मुहूर्त है, इसलिए 13 फरवरी की शादी तय हो गई.

कुछ दिन बाद कबीर ने सुशील शर्मा को जयपुर बुला कर शादी के लिए लोहामंडी में मातेश्वरी रिसोर्ट दिखाया. सुशील शर्मा को व्यवस्था ठीकठाक लगी तो उन्होंने 12 और 13 फरवरी के लिए रिसोर्ट बुक करवा दिया. शादी के लिए बैंड, कैटरिंग, सजावट, घोड़ी, पंडित, वीडियो फोटोग्राफर और अन्य सारी व्यवस्थाएं करने की जिम्मेदारी कबीर ने ले ली थी.

शादी में कबीर की ओर से छपवाए गए शादी के कार्ड में उस के पिता का नाम रामेश्वर शर्मा और दादा का नाम भागीरथ शर्मा लिखा था. कार्ड में जयपुर के पीतल फैक्ट्री शास्त्रीनगर निवारू रोड का पता और 2 मोबाइल नंबर भी लिखे हुए थे.

12 फरवरी, 2019 को जयपुर के मातेश्वरी रिसोर्ट में पारंपरिक रीतिरिवाज से कबीर और सुमन की सगाई  हो गई. रिंग सेरेमनी में सुमन और कबीर ने एकदूसरे को अंगूठी पहनाई. सगाई के दस्तूर में कबीर के वे सारे रिश्तेदार शामिल हुए, जो जनवरी में फ्लैट में मिले थे. वधू पक्ष से भी सीकर से कई लोग वहां पहुंचे थे.

इस के दूसरे ही दिन 13 फरवरी, 2019 को इसी रिसोर्ट में धूमधाम से कबीर और सुमन की शादी हो गई. वधूपक्ष के लोगों ने वरपक्ष के रिश्तेदारों के बारे में पूछा तो किसी को कबीर का चाचा, किसी को जीजा और किसी को भतीजा बताया गया. स्टेज पर वरवधू को आशीर्वाद देने का कार्यक्रम हुआ. बाद में हिंदू रीतिरिवाज से अग्नि के समक्ष फेरे लिए गए.

धूमधाम से शादी होने पर सुमन के पिता सुशील शर्मा ने रात को ही सारी व्यवस्थाओं के बिल ले कर कबीर को 11 लाख रुपए नकद दिए. रिसोर्ट के किराए के डेढ़ लाख रुपए और खाने के करीब पौने 2 लाख रुपए अलग से दिए.

इस के अलावा उन्होंने बेटी को शादी में करीब 5 लाख रुपए की ज्वैलरी कपड़े वगैरह दिए. एकलौती बेटी होने के कारण सुशील शर्मा ने दिल खोल कर दानदहेज दिया था. वैवाहिक रस्में पूरी होने के बाद तड़के सुशील शर्मा ने बेटी सुमन को ससुराल के लिए विदा कर दिया. सुमन की ससुराल निवारू रोड पर साउथ कालोनी के उसी फ्लैट में बताई गई थी, जहां पहली बार लड़का लड़की देखने की रस्म हुई थी.

शादी के कुछ दिनों बाद सुमन अपने पीहर सीकर आ गई. दामाद कबीर शर्मा कुछ दिन बाद सीकर आया तो उस की खूब आवभगत की गई. इस दौरान कबीर ने सुशील शर्मा से कारोबार के लिए 5 लाख रुपए की आवश्यकता बताई. सुशील ने कुछ दिन पहले ही बेटी की शादी की थी, इसलिए वह पैसों की व्यवस्था नहीं कर सके.

1-2 दिन ससुराल में खातिरदारी कराने के बाद जमाई राजा कबीर जयपुर जाने की बात कह कर सुमन के साथ चला गया. बाद में कबीर फोन कर सुमन के पिता पर पैसों का इंतजाम करने का दबाव डालने लगा. थक हार कर सुशील शर्मा ने अपने परिचित से ढाई लाख रुपए उधार लिए. यह रुपए ला कर उन्होंने घर में रख दिए और कबीर को बता दिया.

कबीर और सुमन 14 मई को सीकर आए और उसी रात करीब 3 बजे कबीर वे ढाई लाख रुपए और घर में रखे जेवर चुरा कर सुमन के साथ वहां से भाग गया.

अगले दिन सुबह जब सुशील शर्मा को दामाद और बेटी घर में नहीं मिले तो वह समझ नहीं पाए कि अचानक बिना बताए कहां चले गए. बाद में घर में पैसे और जेवर भी गायब मिले तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने कबीर और सुमन के मोबाइल पर काल किया, लेकिन उन के फोन स्विच्ड औफ मिले.

सुशील को बड़ा ताज्जुब हुआ. वह समझ नहीं पा रहे थे कि माजरा क्या है. 1-2 दिन इंतजार करने के बाद भी दामाद और बेटी से बात नहीं हुई तो सुशील शर्मा ने शादी में मोबाइल द्वारा खींची गई फोटो अपने परिचितों और कुछ जानकारों को दिखाईं. फोटो देख कर उन्हें जो बातें पता चलीं, उसे सुन कर उन के पैरों तले से जमीन खिसक गई.

लोगों ने बताया कि जिस युवक को आप कबीर शर्मा बता रहे हैं, उस का असली नाम इमरान भाटी है. वह सीकर के ही वार्ड 28 में अंजुमन स्कूल के पास अपने बीवीबच्चों के साथ रहता है, परिवार में पत्नी के अलावा 3 बच्चे हैं.

कबीर शर्मा के इमरान भाटी होने और फरजी जातिधर्म, नकली परिवार और बाराती बना कर फरजीवाड़े से शादी रचाने की बात पता चलने के बाद सुशील शर्मा ने 25 मई, 2019 को सीकर के एसपी डा. अमनदीप सिंह कपूर से मुलाकात की. इस के बाद ही उन की रिपोर्ट दर्ज हुई.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद एडिशनल एसपी डा. देवेंद्र शर्मा के नेतृत्व में पुलिस ने जांचपड़ताल शुरू कर दी. पुलिस ने सीकर शहर में इमरान भाटी के घर पहुंच कर उस के घर वालों से पूछताछ की. पता चला कि इमरान की पत्नी और तीनों बच्चे मुंबई गए हुए हैं. इमरान के मोबाइल की काल डिटेल्स भी निकलवाई गई. साथ ही उस के मोबाइल को सर्विलांस पर लगा दिया गया.

जांचपड़ताल में पता चला कि इमरान सीकर में जयपुर रोड स्थित एक कार शोरूम में मार्केटिंग की नौकरी करता था. बाद में पैसों की हेराफेरी करने पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. कार शोरूम में नौकरी करते हुए भी उस ने एक युवती का एमएमएस बना लिया था. फिर उसे धमकी दे कर मोटी रकम ऐंठी थी. बदनामी के डर से युवती ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई थी.

इमरान की शादी सन 2005 में सीकर के रोशनगंज मोहल्ले में रहने वाली सईदा से हुई थी. सईदा पढ़ीलिखी है. उस के 3 बच्चे हैं. बड़ा बेटा 13 साल, उस से छोटा 11 साल का और सब से छोटी बेटी 7 साल की है. इमरान के पिता इकबाल भाटी ने पुलिस को बताया कि इस साल फरवरी में इमरान ने कहा था कि उस का ट्रांसफर जयपुर हो गया है, इसलिए अब वह जयपुर में ही रहेगा.

जयपुर जाते समय इमरान उन से 4 लाख रुपए ले कर गया था. इकबाल भाटी ने बताया कि उन के बेटे इमरान ने सीकर की सुमन शर्मा से जयपुर में दूसरी शादी कर ली, इस का पता उन्हें बाद में लगा था. इमरान की पत्नी सईदा और उस के पीहर व ननिहाल वालों को भी इस बात की जानकारी मिल गई थी.

पति द्वारा दूसरी शादी करने का पता चलने पर सईदा मुंबई में अपने पीहर वालों के पास चली गई. उस ने यह बात मायके वालों को बताई तो उन्हें भी उस की इस करतूत पर हैरत हुई.

सईदा ने बताया कि उस के लिए इमरान मर चुका है. उस ने मेरा और बच्चों का जीवन बरबाद कर दिया. जातिधर्म बदल कर फरजी तरीके से दूसरी शादी कर के उस ने अब हमें कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ा.

बेटे इमरान की करतूतें सामने आने पर पिता इकबाल भाटी ने भी उसे अपनी प्रौपर्टी से बेदखल कर दिया. जो मकान इमरान के नाम था, उसे बहू सईदा और उस के बच्चों के नाम गिफ्ट डीड करवा दिया. एक गैराज में से इमरान का हिस्सा बहू और उस के बच्चों के नाम कर दिया.

फरजीवाड़े से दूसरी शादी करने के बाद इमरान ने एक दिन सईदा को फोन कर कहा, ‘‘मैं 40 दिन की जमात पर जा रहा हूं. इस दौरान मैं धर्म के काम में व्यस्त रहूंगा, इसलिए मुझे फोन मत करना.’’ लेकिन जब बाद में सईदा को असलियत पता चली तो इमरान ने उसे फोन नहीं किया.

जांच में यह भी पता चला कि अय्याश किस्म का इमरान भाटी उर्फ कबीर शर्मा चेन स्मोकर और शराबी है. उस ने सीकर के अपने कई दोस्तों से भी लाखों रुपए उधार ले रखे थे. वह देर रात तक मोबाइल पर लड़कियों से चैटिंग करता था. रात को शराब पी कर घर आने पर पत्नी सईदा और मां से झगड़ा करता था.

जातिधर्म बदल कर फरजीवाड़े से शादी करने के मामले में पुलिस किसी भी आरोपी को नहीं पकड़ पाई थी, इस से लोगों में आक्रोश बढ़ता जा रहा था. सर्वसमाज के लोग पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने के लिए लामबंद हो गए. 31 मई को सर्वसमाज के प्रमुख लोगों ने सीकर में बैठक कर कहा कि मामले में जल्द काररवाई नहीं की गई तो सड़क पर उतरना पड़ेगा.

जनाक्रोश को देखते हुए पुलिस ने जांचपड़ताल तेज कर दी. आरोपी इमरान उर्फ कबीर शर्मा की तलाश में 4 पुलिस टीमें जयपुर, पुणे, दिल्ली व मुंबई भेजी गईं. पुलिस ने कई लोगों से इमरान के संभावित ठिकाने के बारे में पूछताछ की, लेकिन उस का सुराग नहीं मिला.

वह बी चबीच में मोबाइल बंद रख कर अपने ठिकाने बदलता रहा, जिस से पुलिस को उस की लोकेशन नहीं मिल पा रही थी. सुमन का मोबाइल फोन भी बंद था. इमरान अपने परिवार, किसी दोस्त से फोन, इंटरनेट या सोशल साइट्स के जरिए भी संपर्क नहीं कर रहा था.

एडिशनल एसपी डा. देवेंद्र कुमार शर्मा और सीओ सिटी सौरभ तिवाड़ी के नेतृत्व में पुलिस टीमें लगातार भागदौड़ कर इमरान के बारे में सूचनाएं हासिल कर रही थीं, लेकिन उस का पता नहीं चल पा रहा था. पुलिस ने इमरान की शादी में ब्राह्मण के रूप में नकली बाराती बन कर पहुंचे लोगों को भी तलाश कर पूछताछ की गई.

इस बीच 2 जून को इस मामले में उस वक्त नया मोड़ आ गया, जब सुमन के 2 वीडियो यूट्यूब पर अपलोड किए गए, जो कुछ ही देर में वायरल हो गए. वीडियो में सुमन ने एक दल और अपने परिवार वालों से खुद और इमरान की जान को खतरा बताया था. सुमन ने यह भी कहा कि मैं इमरान को 6 साल से जानती हूं. यह भी जानती हूं कि वह शादीशुदा है और उस के 3 बच्चे हैं.

इन में एक वीडियो 8.21 मिनट का और दूसरा 7.40 मिनट का था. दोनों वीडियो में 17 कट थे. वीडियो देख कर महसूस हो रहा था कि जैसे सुमन कोई लिखी हुई स्क्रिप्ट पढ़ रही है. इस से यह माना गया कि सुमन पर दबाव बना कर यह वीडियो बनाया और जारी किया गया.

वीडियो में सुमन का कहना था कि वह 18 मार्च को एएसपी के सामने पेश हुई थी, वहां परिजनों ने उस से एक प्रार्थनापत्र दिलवाया था. लेकिन असल में एएसपी 18 मार्च को खाटू श्यामजी के मेले में ड्यूटी पर थे और अगले दिन 19 मार्च को वह अवकाश पर थे. इस से सुमन की कहानी में झूठ पकड़ में आ गया.

पुलिस ने वायरल हुए वीडियो के संबंध में भी जांच शुरू कर दी, लेकिन वीडियो से उन के ठिकाने के बारे में कोई अनुमान नहीं लग सका. वीडियो वायरल होने के बाद सर्वसमाज और भगवा रक्षा वाहिनी ने 3 जून, 2019 को मामले में जल्द गिरफ्तारी की मांग करते हुए तहसीलदार को मुख्यमंत्री के नाम एक ज्ञापन दिया. ज्ञापन में कहा गया कि आरोपियों ने युवती को डराधमका कर झूठा वीडियो वायरल करवाया है. लगातार भागदौड़ के बाद पुलिस को इमरान के मुंबई में होने का पता चला.

मुंबई में पहले से ही सीकर पुलिस की टीम इमरान और सुमन की फोटो ले कर होटलों व अन्य स्थानों पर उस की तलाश में जुटी हुई थी. पुलिस को पता चला कि 3 व 4 जून की रात इमरान अपनी बीवी के साथ मुंबई के पालघर इलाके में नियामतनगर के एक फ्लैट पर आएगा. पुलिस ने उस फ्लैट पर निगरानी रखी.

रात करीब 2 बजे इमरान जब सुमन के साथ उस फ्लैट पर पहुंचा तो पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. यह फ्लैट इमरान के एक परिचित का था. पुलिस दल 4 जून की सुबह दोनों को ले कर सीकर के लिए रवाना हो गई.

पुलिस पूछताछ में इमरान ने बताया कि 15 मई, 2019 को सीकर से भागने के बाद वे दोनों दिल्ली चले गए. दिल्ली में काफी पैसे खर्च हो गए थे. बाद में सुमन को साथ ले कर इमरान अपने दोस्त के पास शरण लेने के लिए पुणे चला गया. लेकिन पुणे में वह दोस्त नहीं मिला. तब इमरान अपने सौतेले भाई की पत्नी के पास मुंबई के नियामत नगर आ गया.

सौतेले भाई की पत्नी इन दोनों के आने से परेशान हो गई. इस पर इमरान और सुमन सुबह जल्दी उस के फ्लैट से निकल जाते और आधी रात के बाद वापस आते थे. दिन में वे रेलवे स्टेशन पर छिप कर रहते और शाम को किराए का मकान तलाशते थे.

इस बीच इमरान को सुमन के पिता की ओर से पुलिस में मुकदमा दर्ज कराने का पता चल गया था. इमरान ने खुद को बचाने के लिए सुमन से 6 पेज में वे सारी बातें लिखवाईं जो उस के पक्ष में हो सकती थीं. इस के बाद उस ने सुमन को डराधमका कर दोनों वीडियो बनवाए.

इमरान ने कई बार वीडियो रुकवा कर उस से अपने मन मुआफिक बातें बुलवाईं. वीडियो बनवा कर इमरान ने ही यूट्यूब पर अपलोड कर दिए. फिर अपने दोस्तों को लिंक शेयर कर वीडियो वायरल करा दिए. दोनों वीडियो पुणे में बनाए गए थे.

सुमन ने पुलिस को बताया कि इमरान उसे डराधमका कर ले गया था. पुलिस को सुमन के बैग से 6 पेज की वह स्क्रिप्ट भी मिल गई जो इमरान ने वीडियो बनाने के लिए उस से लिखवाई थी. सुमन के पास जेवर व अन्य दस्तावेज भी मिल गए. बाद में सुमन को उस की इच्छा पर मां के साथ भेज दिया गया.

6 जून, 2019 को पुलिस ने इमरान को अदालत में पेश कर 4 दिन के रिमांड पर लिया. रिमांड के दौरान पूछताछ में उस ने बताया कि जयपुर में फरजी ब्राह्मण परिवार और रिश्तेदारों की व्यवस्था करने के लिए उस ने एक इवेंट कंपनी को ठेका दिया था. इवेंट कंपनी के मालिक रामकुमार शर्मा को ही उस ने अपना चाचा बना कर सुमन के परिजनों के सामने पेश किया था.

सगाई और शादी में भी रामकुमार ने ही कबीर के रिश्तेदारों के नाम पर किराए के लोगों की व्यवस्था की और उन्हें किराए के ही सूटबूट पहना दिए. इन में किसी को जीजा, किसी को मामा और फूफा बताया गया.

पूछताछ में इमरान से पता चला कि सुमन परिवार में एकलौती थी, इसलिए उस की नजर सुमन के मातापिता की संपत्ति पर थी. इमरान ने पहली बीवी सईदा से पीछा छुड़ाने के लिए फरवरी में जयपुर जाने से पहले खुद के नाम की संपत्ति सईदा और बच्चों के नाम कर दी थी. इमरान की करतूतों का ही परिणाम था कि ईद वाले दिन वह अपने शहर में पुलिस की गिरफ्त में था, लेकिन ईद पर उस से मिलने के लिए कोई नहीं आया.

पुलिस ने 7 जून, 2019 को सुमन शर्मा के बयान अदालत में मजिस्ट्रैट के समक्ष दर्ज कराए. बयान में उस ने अपहरण और शादी से पहले दुष्कर्म करने की बात कही. यह भी कहा कि हिंदू रीतिरिवाज से शादी करने के बाद इमरान उसे दिल्ली ले गया, वहां निजामुद्दीन में एक मसजिद में जबरन निकाह भी किया. इमरान ने उस पर जबरन धर्म बदल कर अपने साथ रहने का दबाव बनाया.

बयान में उस ने कहा कि 15 मई की रात इमरान ने साथ चलने को कहा तो उस ने मना कर दिया था. इस पर इमरान ने धमका कर कहा कि तूने मुझ से शादी की है, अपराध में तू भी बराबर की भागीदार है. मेरे साथ तू भी जेल जाएगी. इस के बाद डराधमका कर घर से जेवर और नकदी निकाल कर वे दोनों रात करीब 3 बजे चले गए थे.

सुमन ने बयान में कहा कि इमरान से उस का परिचय 6 साल पहले तब हुआ, जब वह सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ में पढ़ाई करती थी. इमरान ने जयपुर में एक होटल में ले जा कर उस के साथ दुष्कर्म किया था. बाद में भी उस ने यह काम कई बार किया था.

बयानों के आधार पर पुलिस ने सुमन का मैडिकल परीक्षण कराया. इस में दुष्कर्म की पुष्टि हुई. नतीजतन मुकदमे में दुष्कर्म की धाराएं भी जोड़ दी गईं. केस की जांच भी एसआई अमित कुमार से बदल कर थानाप्रभारी श्रीचंद सिंह को सौंप दी गई.

पुलिस ने 9 जून, 2019 को इमरान उर्फ कबीर शर्मा का पोटेंसी टेस्ट कराया. इस में वह पूरी तरह स्वस्थ और सक्षम पाया गया. पुलिस ने जयपुर में उस होटल पर पहुंच कर भी जांच-पड़ताल की, जहां इमरान ने युवती के साथ दुष्कर्म किया था. सुमन और इमरान के फोन नंबरों की काल डिटेल्स की भी जांच की गई.

रिमांड अवधि पूरी होने पर पुलिस ने 10 जून, 2019 को इमरान उर्फ कबीर शर्मा को अदालत में पेश कर फिर से 2 दिन के रिमांड पर लिया. पुलिस ने इमरान से फरजी रिश्तेदारों और बारातियों के बारे में पूछताछ की. उसे शादी का वीडियो दिखा कर उन की पहचान कराई गई. कथा लिखे जाने तक पुलिस मामले की जांच कर रही थी.

—कथा में सुशील कुमार शर्मा और सुमन शर्मा परिवर्तित नाम हैं