मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 2

3 दिन बाद आई मौत की खबर

25 सितंबर, 2018 की सुबह 10 बजे थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह क्षेत्र के एक कुख्यात अपराधी की फाइल का निरीक्षण कर रहे थे, तभी उन के मोबाइल पर एक काल आई. उन्होंने काल रिसीव की तो दूसरी तरफ से पूछा गया, ‘‘आप इंसपेक्टर साहब बोल रहे हैं?’’

‘‘जी हां, मैं इंसपेक्टर राजपुर नवीन कुमार सिंह बोल रहा हूं, कहिए क्या बात है?’’

‘‘सर, यहां बंबे में एक लाश उतरा रही है. आप जल्दी आइए.’’

‘‘लाश स्त्री की है या पुरुष की?’’

‘‘सर, लाश न स्त्री की है न पुरुष की. देखने से लगता है लाश किसी 10-12 साल के बच्चे की है.’’

‘‘बच्चे की लाश?’’ सुनते ही थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह का माथा ठनका. नवीन सिंह ने एसआई देशराज सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र तथा आकाश के पिता सुनील विश्नोई को साथ लिया और राजपुर स्थित बंबे पर पहुंच गए. वहां काफी भीड़ जुटी थी, लोग तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह भीड़ को हटा कर बंबे के किनारे पहुंचे. उन्होंने बंबे में तैरती लाश को बाहर निकलवाया. सुनील विश्नोई ने जब लाश देखी तो वह फफक कर रोते हुए बोला, ‘‘साहब, लाश मेरे बेटे आकाश की है.’’ रोते हुए ही उस ने बेटे की हत्या की खबर अपने घर वालों को दी. सुनते ही उस के घर में कोहराम मच गया.

आकाश की लाश की शिनाख्त होने के बाद नवीन कुमार सिंह ने अपहृत आकाश की हत्या करने और लाश मिलने की सूचना पुलिस अधिकारियों को दे दी. सूचना मिलते ही पुलिस कप्तान राधेश्याम विश्वकर्मा और सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने लाश का मुआयना किया.

ऐसा लग रहा था जैसे आकाश की हत्या गला दबा कर की गई हो. या फिर उसे पानी में डुबो कर मारा गया हो. उस के शरीर पर चोटों के निशान नहीं थे.

एसआई देशराज सिंह ने शव को माती स्थित पोस्टमार्टम हाउस भेज दिया. इस के साथ ही आज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज अपहरण के मामले में हत्या की धारा भी जोड़ दी गई. पोस्टमार्टम के बाद आकाश की लाश उस के घर वालों को सौंप दी गई. उसी शाम उस का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

पुलिस इस मामले को काफी संवेदनशील मान कर चल रही थी. हालांकि आकाश एक छोटे व्यवसाई का बेटा था, फिर भी पुलिस को डर था कि कहीं व्यापारी इस के विरोध में न उतर आएं. इसी के मद्देनजर पुलिस अधिकारी सुनील के सीधे संपर्क में थे और उसे आश्वासन दे रहे थे कि जल्दी ही हत्यारों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा.

एसपी राधेश्याम विश्वकर्मा ने आकाश के अपहरण और हत्या के मामले की तह तक पहुंचने के लिए सीओ (अकबरपुर) अर्पित कपूर की निगरानी में एक पुलिस टीम बनाई.

इस टीम में राजपुर थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह, हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र, कांस्टेबल राकेश कुमार, स्वाट टीम प्रभारी रोहित तिवारी, सर्विलांस सेल के राजीव कुमार, प्रहलाद सिंह, मोहित तिवारी, अनूप कुमार तथा प्रशांत को शामिल किया गया.

आकाश के गायब होने के बाद, उस के घर वालों के पास फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया था. न ही पत्र के माध्यम से कोई सूचना आई थी. इस से स्पष्ट था कि उस का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. इस से पुलिस टीम को लग रहा था कि आकाश की हत्या दुश्मनी या किसी अन्य वजह से की गई होगी.

2 लोगों पर जताया शक

आकाश के पिता सुनील विश्नोई का पान, तंबाकू से संबंधित सामान सप्लाई करने का व्यवसाय था. पुलिस ने सोचा कि हो न हो उस की किसी दुश्मनी का खामियाजा उस के बेटे को भुगतना पड़ा हो. इसलिए इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने सुनील विश्नोई से पूछा कि उस की किसी से कोई रंजिश वगैरह तो नहीं है.

‘‘सर, हम लोग छोटे व्यवसाई हैं. रंजिश की बात तो दूर अगर कोई हम से नाराज हो कर चार बातें कह भी जाए तो हम सुन कर चुप रह जाते हैं.’’ सुनील विश्नोई ने दिमाग पर जोर डाल कर बताया कि 3 साल पहले कस्बे के 2 युवकों से उस का माल जबरदस्ती छीनने को ले कर विवाद हुआ था. उन्होंने उसे सबक सिखाने की धमकी भी दी थी.

सुनील विश्नोई के बयान के आधार पर पुलिस बिना देरी किए उन युवकों के घर पहुंच गई. दोनों युवकों को थाने लाया गया पुलिस टीम ने दोनों से अपने तरीके से पूछताछ की. पूछताछ में दोनों बेकसूर लगे तो उन्हें छोड़ दिया गया.

मतलब जांच जहां से शुरू हुई, वहीं आ कर रुक गई. पुलिस अधीक्षक राधेश्याम व सीओ अर्पित कपूर पुलिस टीम के सीधे संपर्क में थे. उन के दिशा निर्देश के बाद टीम ने आकाश के पिता सुनील विश्नोई और मां रानी से पुन: बात की.

दरअसल, पुलिस टीम को जांच आगे बढ़ाने के लिए कहीं से कोई क्लू नहीं मिल रहा था. इसलिए टीम को शक हुआ कि कहीं हत्यारा विश्नोई परिवार का कोई करीबी तो नहीं है. क्योंकि ऐसे लोग अपना काम आसानी से कर जाते हैं और उन पर किसी को शक भी नहीं होता है.

पुलिस टीम ने सुनील, उस की पत्नी रानी व अन्य लोगों से आकाश के गुम होने के बाद परिवार वालों की गतिविधियों के बारे में पूछताछ की. हालांकि इस बात पर सुनील व कुछ अन्य घर वालों ने ऐतराज भी किया. उन का सगा सबंधी या पारिवारिक सदस्य ऐसा क्यों करेगा? लेकिन जब पुलिस टीम ने उन्हें समझाया तो वे पिछली बातें याद करने के लिए दिमाग पर जोर डालने लगे.

कुछ देर बाद सुनील विश्नोई ने बताया कि जब वे लोग आकाश को तलाश कर रहे थे तो घर वाले 2-2, 3-3 के ग्रुप में थे. लेकिन शिवम सब से अलग अकेला घूम रहा था. इतना ही नहीं वह कुछ घबराया हुआ भी दिख रहा था. पति की बात खत्म होते ही रानी ने बताया कि घटना वाली रात जब वह आकाश को देखने शिवम के घर गई थीं तो उस ने उसे दरवाजे पर ही रोक दिया था और खुद घर में देखने चला गया था.

सुनील विश्नोई के मकान के तीसरे नंबर का मकान शिवम का था. पुलिस शिवम के घर पहुंची. उस से पूछताछ की गई तो उस ने कहा, ‘‘आकाश मेरा चचेरा भाई था. मैं उसे बहुत प्यार करता था. भला मैं उस के साथ ऐसा कैसे कर सकता हूं? उसे ढूंढने के लिए मैं ने रात दिन एक कर दिया और आप उसे मारने की बात कह रहे हैं.’’

शिवम ने बिना घबराए जिस तरह अपनी बात कही, उस से पुलिस को लगा कि शायद शिवम सच बोल रहा है. अत: पुलिस ने उसे हिदायत दे कर छोड़ दिया. शिवम पुलिस की पकड़ से बच तो गया, लेकिन अब उसे डर सताने लगा. इसी डर से वह घर में किसी को बिना कुछ बताए फरार हो गया.

मासूम से दुश्मनी : चचेरे भाई ने ले ली जान – भाग 1

स्कूल से घर लौटने के बाद आकाश ने अपना बैग मेज पर रखा और फौरन बाहर की तरफ दौड़ लगा दी. मां रानी ने उसे कई आवाजें  दीं, लेकिन वह यह कहते हुए घर से निकल गया कि खेलने जा रहा है. आकाश अकसर स्कूल से लौटने के तुरंत बाद खेलने चला जाता था. थोड़ी देर खेल कर वह घर लौट आता था. इसलिए रानी उस की ओर से ध्यान हटा कर घर के काम में लग गई. यह 21 सितंबर, 2018 की शाम 4 बजे की बात है.

आकाश आधे एक घंटे में खेल कर घर लौट आता था. लेकिन उस दिन जब वह साढ़े 6 बजे तक नहीं लौटा तो रानी को उसे बुलाने के लिए घर से निकलना पड़ा. घर से कुछ ही दूरी पर पार्क था. पार्क में जो बच्चे खेल रहे थे, उन में आकाश नहीं था. रानी ने बच्चों से आकाश के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आकाश कुछ देर पहले बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था.

आकाश जिन बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहा था, वह भी रानी के पासपड़ोस में रहते थे. रानी उन बच्चों के घर गई तो उन्होंने बताया कि कुछ देर पहले वे खेलबंद कर के घर लौट आए थे. आकाश वहीं रह गया था.

रानी ने अपनी बेटी राधा को साथ लिया और पार्क में खेलने वाले बच्चों और पार्क के आसपास रहने वाले लोगों से आकाश के बारे पता करने लगी. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा. मायूस हो कर घर लौटी रानी ने आकाश के लापता होने की बात अपने पति सुनील विश्नोई को बताई.

सुनील उस समय बाजार में था. बेटे के लापता होने की खबर मिली तो वह आननफानन में घर आ गया. फिर वह भी बेटे को ढूंढने के लिए घर से निकल पड़ा. रानी और उस की बेटी राधा कस्बे की गलियों में आकाश को खोजने लगीं. लेकिन आकाश का कोई पता नहीं लगा, पतिपत्नी दोनों परेशान थे. अचानक रानी ने सोचा कि कहीं आकाश खेल कर शिवम के घर तो नहीं चला गया.

शिवम विश्नोई, रानी के जेठ विनोद विश्नोई का बेटा था. उस का घर रानी के घर से 2 घर छोड़ कर था. घबराई हुई रानी शिवम के घर पहुंची और आकाश के बारे में पूछा. शिवम ने बताया, ‘‘चाची, आकाश आया जरूर था, लेकिन थोड़ी देर बतिया कर चला गया था.’’

तब तक 9 बज चुके थे और रात गहराने लगी थी. आकाश का जब कुछ पता नहीं चला तो उस के पिता सुनील विश्नोई ने पुलिस कंट्रोल रूम के 100 नंबर पर फोन कर के बता दिया कि राजपुर कस्बे की गली नंबर 9 से 12 साल का एक लड़का गायब हो गया है. राजपुर कस्बा कानपुर देहात जिले के थाना राजपुर क्षेत्र में आता है. पुलिस कंट्रोल रूम ने लड़के के गायब होने की सूचना थाना राजपुर को दे दी.

सूचना मिलते ही एसआई देशराज सिंह हेडकांस्टेबल सुरेशचंद्र को साथ ले कर राजपुर कस्बे स्थित सुनील के घर पहुंच गए. सुनील विश्नोई और उस की पत्नी रानी घर पर थे. शिवम भी उन के साथ था. उन्होंने आकाश के गायब होने की जानकारी उन्हें दी. एसआई देशराज सिंह सुनील विश्नोई का बयान दर्ज कर के थाने लौट आए.

थानाप्रभारी नवीन कुमार सिंह उस समय थाने पर मौजूद थे. एसआई देशराज सिंह ने 12 वर्षीय आकाश के गुम होने की जानकारी उन्हें दे दी. उन्होंने अज्ञात लोगों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट दर्ज करवा दी और इस मामले की जांच देशराज सिंह को ही सौंप दी.

एसआई देशराज सिंह आकाश की खोजबीन में जुट गए. सूचना पा कर रानी के मातापिता भी आ गए. उन्होंने रानी से कहा कि वह एक बार ठीक से देख लें कि वह घर में ही तो नहीं सो गया है. रानी ने घर के सारे कमरे छान मारे लेकिन आकाश नहीं मिला. आकाश कहीं शिवम के घर न सो गया हो, यह सोच कर रानी शिवम के घर गई तो वह दरवाजे पर ही मिल गया.

रानी ने जब उस से आकाश को घर में देखने की बात कही तो वह बोला, ‘‘चाची, वैसे तो आकाश यहां से चला गया था, फिर भी तुम कहती हो तो मैं एक बार और देख लेता हूं.’’

शिवम घर में चला गया, जबकि रानी दरवाजे पर ही खड़ी रही. कुछ देर बाद शिवम ने बाहर आ कर बताया कि आकाश यहां नहीं है.

फिरौती के लिए नहीं हुआ अपहरण

इधर इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने आकाश अपहरण पर गहन विचारविमर्श किया. उन के विचार से आकाश का अपहरण फिरौती के लिए नहीं किया गया था. क्योंकि सुनील विश्नोई की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि उस के बेटे का अपहरण 2-4 लाख की फिरौती के लिए किया जाता. दूसरे फिरौती की बात इसलिए भी गले नहीं उतर रही थी, क्योंकि अभी तक अपहर्त्ता का कोई फोन नहीं आया था.

नवीन कुमार सिंह का अनुमान था कि आकाश का अपहरण किसी और कारण से किया गया है. यह कारण क्या हो सकता है, इस का पता लगाना जरूरी था. फिर भी इंसपेक्टर नवीन कुमार सिंह ने पुखरायां, घाटमपुर, भीमसेन रेलवे स्टेशन के अलावा कानपुर देहात के सभी प्रमुख बस अड्डों पर छानबीन के लिए आकाश के फोटो के साथ अलगअलग पुलिस टीमें रवाना कर दीं.

एसआई देशराज सिंह थाना क्षेत्र के नदी, नालों और सड़क किनारे की झाडि़यों पार्कों आदि में इस आशंका से आकाश को खोज कर रहे थे कि कहीं किसी ने उस की हत्या न कर दी हो.

कस्बा राजपुर में सड़क किनारे एक शिव मंदिर था. मंदिर के पास वाले मैदान में बच्चे खेलते थे. पुलिस आकाश की खोज में वहां भी गई, लेकिन उस का पता नहीं चला. पुलिस ने नमाज के समय मसजिद से आकाश के हुलिए सहित उस के गुम होने की सूचना प्रसारित कराई, पर कोई सफलता नहीं मिली.

उधर आकाश के लापता होने से विश्नोई परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि उन की आंखों का चिराग पता नहीं कहां और किस हाल में होगा. वे लोग पूरी रात बैठे रहे. उन के दिमाग में तरहतरह के खयाल आ रहे थे.

अंधेरा छंटते ही वे लोग फिर 2-2, 3-3, के ग्रुप में आकाश की खोज में निकल पड़े. उधर पुलिस ने आकाश के गुम होने की सूचना उस के हुलिए के साथ कानपुर देहात जनपद के सभी थानों को दे दी थी.

ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों  सुनील और उस की पत्नी रानी की चिंता बढ़ती जा रही थी. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आकाश चला कहां गया? रानी बेटे के गम में सब से ज्यादा दुखी थी. उस का रोरो कर बुरा हाल था. उस ने खानापीना भी छोड़ दिया था.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक आकाश का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. पुलिस आकाश की खोज में जीजान से जुटी थी. उस ने क्षेत्र के हर रेलवे स्टेशन व बस अड्डे पर आकाश की फोटो सहित सूचना चस्पा कर दी थी.

पुलिस आपराधिक प्रवृत्ति के युवकों को पकड़ कर थाने लाई और उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन आकाश के बारे में कोई जानकारी हासिल नहीं हुई. आखिर पुलिस को मजबूरन उन युवकों को रिहा करना पड़ा. पुलिस का मुखबिर तंत्र भी आकाश का पता लगाने में नाकाम रहा.

बाहरी प्यार के चक्कर में पति मारा

बाहरी प्यार के चक्कर में पति मारा – भाग 3

एक दिन अनस हाशमी प्रियंका से मिलने उस के घर आया, प्रियंका ने दरवाजा बंद किया और अंदर आ कर उस से बातें करने लगी. कुछ देर में प्रियंका 2 प्याली चाय ले कर आई तो अनस हाशमी ने पूछा, ”भाईजान आए थे क्या?’’

”हां, आए तो थे, लेकिन एक सप्ताह रह कर चले गए.’’ प्रियंका बेमन से बोली.

अनस हाशमी को लगा कि वह रविकांत भाईजान से खुश नहीं है. उस ने मौके का फायदा उठाते हुए कहा, ”भाभी, मैं कुछ कहना चाहता हूं. पर डर लगता है कि कहीं तुम बुरा न मान जाओ.’’

”नहीं, तुम बताओ क्या बात है?’’

”भाभी, सच तो यह है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो और मैं तुम से मोहब्बत करने लगा हूं.’’ अनस हाशमी ने एक ही झटके में अपनी बात कह दी.

प्रियंका बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली, ”क्या मतलब है तुम्हारा और हां प्यार का मतलब जानते हो. फिर मैं तुम्हारे दोस्त की पत्नी हूं. रिश्ते में तुम्हारी भाभी हूं.’’

”हां, लेकिन इस दिल का क्या करूं, जो तुम पर आ गया है. अब तो दिलोदिमाग पर तुम ही छाई रहती हो.’’ कहते हुए अनस हाशमी ने प्रियंका के गले में बांहें डाल दीं.

कैसे हिली रमाकांत की गृहस्थी की नींव

उस दिन के बाद प्रियंका की तो जैसे दुनिया ही बदल गई. अनस हाशमी प्रियंका के घर बेखौफ और बिना रोकटोक आता और दोनों रंगरलियां मनाते. अनस हाशमी जो भी कमाता, वह सब प्रियंका व उस के बच्चों पर ही खर्च करने लगा. प्रियंका भी बेखौफ हो कर अनस हाशमी के साथ घूमने फिरने लगी.

अनस हाशमी का पति की गैरमौजूदगी में प्रियंका के घर आनाजाना पड़ोसियों को खलने लगा. एक पड़ोसिन ने इस की शिकायत प्रियंका की सास से कर दी. शकुंतला बहू को ऊंचनीच सिखाने उस के घर आईं तो प्रियंका सास पर ही हावी हो गई और बोली, ”अम्मा, तुम हमारी फिक्र मत करो. अपने घर का खयाल मैं खुद रख लूंगी. तुम अपना घर संभालो. हमें नसीहत मत दो.’’

कुछ दिनों बाद रविकांत जब घर आया, तो पड़ोसियों ने उस के कान भरे. मां ने भी प्रियंका की शिकायत की. इस से रविकांत को लगा कि जरूर कुछ गड़बड़ है. उस ने प्रियंका से पूछा, ”अनस हाशमी का क्या चक्कर है? वह रोजरोज घर क्यों आता है?’’

पति की बात सुन कर प्रियंका की धड़कनें बढ़ गईं, ”यह क्या कह रहे हो तुम. तुम्हारा दोस्त है. कभीकभी घर आ जाता है. इस में गलत क्या है?’’

रविकांत 4-5 दिन घर रुक कर वापस अपने काम पर चला गया. लेकिन इस बार उस का काम में मन नहीं लगा. उसे लगता था जैसे उस की गृहस्थी की नींव हिल रही है.

एक दिन अचानक रविकांत छुट्टी ले कर बिना बताए घर आ गया. उस ने घर में कदम रखा तो घर में कोई बच्चा दिखाई नहीं दिया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो सन्न रह गया. उस की पत्नी प्रियंका दोस्त अनस हाशमी की बांहों में थी. गुस्से में रविकांत ने प्रियंका की खूब पिटाई की जबकि अनस हाशमी भाग गया.

पिटने के बाद भी प्रियंका के चेहरे पर डर नहीं था. वह गुर्रा कर बोली, ”इस सब में मेरी नहीं, बल्कि तुम्हारी गलती है. मैं ने कहा था न कि मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती. लेकिन तुम ने मेरी भावनाओं का खयाल कहां रखा.’’

रविकांत को गुस्सा तो बहुत आया, लेकिन वह गुस्से को पी गया. उस ने प्रियंका की बात का कोई जवाब नहीं दिया. 3 दिन बाद रविकांत राजकोट चला गया. उस के जाने के बाद प्रियंका और अनस हाशमी फिर रातें रंगीन करने लगे. हां, इतना जरूर था कि अब दोनों सावधानी बरतने लगे थे. अनस हाशमी अब रात के अंधेरे में ही प्रियंका के घर आता था.

इधर रविकांत का मन अब काम में नहीं लगता था. उस ने सोच लिया था कि वह नौकरी छोड़ देगा और बीवीबच्चों के साथ ही रहेगा. 20 अगस्त, 2023 को रविकांत ने प्रियंका से मोबाइल फोन पर बात की और बताया कि उस ने सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी छोड़ दी है और जल्द ही घर वापस आ रहा है. अब वह बच्चों के साथ ही रहेगा.

पति की नौकरी छोडऩे की बात सुन कर प्रियंका परेशान हो उठी. क्योंकि पति के रहने से उसे अनस हाशमी से मिलने का मौका नहीं मिल सकता था. उस ने सारी बात अनस हाशमी को बताई. तब दोनों ने मिल कर रविकांत को ही ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

25 अगस्त, 2023 को रविकांत राजकोट से कानपुर आ गया. रविकांत के आने की जानकारी अनस हाशमी को हुई तो वह उस से मिलने घर आ गया. रविकांत ने नाराजगी जताई और मिलने से इंकार कर दिया. लेकिन बारबार माफी मांगने पर रविकांत पिघल गया और उसे माफ कर दिया. इस के बाद दोनों में दोस्ती हो गई और शराब पार्टी भी होने लगी.

दोस्त क्यों बना कातिल

30 अगस्त, 2023 को रक्षाबंधन था. रविकांत दोपहर बाद अपनी पत्नी व बच्चों के साथ अपनी मां के घर राजे नगर (नौबस्ता) पहुंचा. वहां उस ने अपनी बहन सीमा से राखी बंधवाई और सभी ने मिल कर खाना खाया. शाम को रविकांत घर लौट आया. प्रियंका और अनस हाशमी को अब रविकांत कांटे की तरह चुभने लगा था. वह उन के मिलन में बाधक था, इसलिए दोनों ने जल्द ही इस कांटे को निकालने की योजना बना ली. योजना के तहत अनस हाशमी पहली सितंबर की रात 8 बजे रविकांत के घर पहुंचा और उसे शराब पिलाने के बहाने ले आया.

दोनों गल्ला मंडी पहुंचे. वहां अनस हाशमी ने शराब की बोतल, नमकीन व गिलास खरीदे, फिर दोनों पैदल ही हंसपुरम बंबा की ओर चल दिए.

योजना के तहत अनस हाशमी रविकांत को हंसपुरम बंबा की तीसरी पुलिया पर लाया. यहां सन्नाटा पसरा था. पुलिया के किनारे बैठ कर दोनों ने शराब पी. शराब पीने के दौरान प्रियंका से अवैध संबंधों को ले कर दोनों में बहस होने लगी.

रविकांत गालीगलौज करने लगा तो अनस हाशमी ने उस का गला पकड़ लिया. रविकांत गिर गया, तब उस ने उसे घसीट कर सूखे नाले में फेंक दिया. पर उसे यकीन नहीं हुआ कि रविकांत मर चुका है, इसलिए उस ने अपनी जेब से चाकू निकाला और उस की गरदन रेत दी. इस के बाद रविकांत का मोबाइल फोन बंद कर झाडिय़ों में फेंक दिया तथा खून सना चाकू भी झाडिय़ों में छिपा दिया.

रविकांत को मौत की नींद सुलाने के बाद अनस हाशमी प्रियंका के पास पहुंचा और बताया कि उस ने रविकांत को ठिकाने लगा दिया है.

इस के बाद दोनों ने संबंध बनाए. फंसने के डर से प्रियंका ने सास शकुंतला को फोन पर सूचना दी कि रविकांत घर का सामान लाने बाजार गए थे, लेकिन अब तक लौटे नहीं. शकुंतला तब चिंतित हो उठीं. उन्होंने बेटे को खोजने का प्रयास किया. पता न चलने पर उन्होंने थाना नौबस्ता में गुमशुदगी दर्ज करा दी.

तीसरे रोज उन्हें बेटे की हत्या की सूचना मिली. 5 सितंबर, 2023 को पुलिस ने आरोपी अनस हाशमी और प्रियंका को कानपुर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. प्रियंका के दोनों मासूम बच्चे दादी शकुंतला के पास थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बाहरी प्यार के चक्कर में पति मारा – भाग 2

4 सितंबर, 2023 की सुबह 10 बजे एडीसीपी अंकिता शर्मा ने अनस हाशमी से रविकांत की हत्या के संबंध में पूछताछ की. कुछ देर वह पुलिस को बरगलाता रहा, लेकिन सख्ती करने पर टूट गया और हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. यही नहीं उस ने मृतक रविकांत का मोबाइल फोन तथा हत्या में प्रयुक्त खून सना चाकू भी बरामद करा दिया.

अनस हाशमी और प्रियंका से पुलिस से विस्तार से पूछताछ की तो रविकांत की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह अवैध संबंधों की चाशनी में डूबी निकली—

उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के थाना विधनू के अंतर्गत एक गांव है- मटियारा. इसी गांव में हरविलास शुक्ला अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सरला के अलावा 2 बेटियां राधिका व प्रियंका तथा एक बेटा शिव था. हरविलास किसान थे. वह अपने खेतों में सब्जियां उगाते थे और शहरकस्बे की मंडियों में बेचते थे. इस से होने वाली आमदनी से ही वह परिवार का भरणपोषण करते थे.

बड़ी बेटी का विवाह वह औंग (फतेहपुर) निवासी राधेश्याम तिवारी से कर चुके थे.

सास से क्यों झगड़ती थी प्रियंका

राधिका से छोटी प्रियंका थी. वह भी जवान हुई तो उस के योग्य वर की खोज करने लगे. काफी प्रयास के बाद उन्हें रविकांत पसंद आ गया.

रविकांत के पिता रामबहादुर पांडेय नौबस्ता (कानपुर) के राजे नगर मोहल्ले में सपरिवार रहते थे. परिवार में पत्नी शकुंतला के अलावा 2 बेटे रविकांत, अनूप तथा बेटी सीमा थी. सीमा की शादी हो चुकी थी. बड़ा बेटा रविकांत एक इनवर्टर बनाने वाली कंपनी में काम करता था.

उचित घर वर देख कर रामविलास ने प्रियंका का रिश्ता रविकांत से पक्का कर दिया. इस के बाद 8 फरवरी, 2016 को उन्होंने प्रियंका का विवाह रविकांत से कर दिया.

खूबसूरत पत्नी पा कर रविकांत खुद को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा था. जबकि अपने से अधिक उम्र का पति पा कर प्रियंका खुश नहीं थी. प्रियंका को यह बात हमेशा सालती रहती थी कि उस का पति उम्र में उस से काफी बड़ा है. यही टीस कभी दर्द बन जाती तो पतिपत्नी में झगड़ा हो जाता. हालांकि लड़ाईझगड़ा रविकांत को पसंद नहीं था.

शादी के एक साल बाद प्रियंका ने एक बेटे को जन्म दिया. बेटे के जन्म से प्रियंका की सास शकुंतला भी खुश थी, लेकिन प्रियंका बेटे की परवरिश को ले कर चिंतित रहने लगी थी. दरअसल, रविकांत जो भी कमाता था, वह मां के हाथ पर रखता था. प्रियंका को यह बात अखरती थी. वह चाहती थी कि पति पैसा केवल उसे ही दे ताकि वह बेटे की देखभाल ठीक से कर सके.

प्रियंका को संयुक्त परिवार में रहना भी पसंद न था. इसलिए वह घर में कलह करने लगी थी. किसी न किसी बात को ले कर उस का हर रोज सास से झगड़ा होने लगा था. वह पति पर अलग रहने का भी दबाव डालने लगी थी.

रोज रोज की कलह से परेशान हो कर रविकांत ने मां का घर छोड़ दिया और पत्नी प्रियंका के साथ नौबस्ता गल्ला मंडी में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. इसी बीच प्रियंका ने दूसरे बेटे को जन्म दिया. प्रियंका को आर्थिक परेशानी खलती थी. पति की कमाई इतनी नहीं थी कि वह बच्चों के साथ खुशहाल जिंदगी जी सके.

अनस हाशमी कौन था और क्यों आता था रविकांत के घर

रविकांत जिस इनवर्टर कंपनी में काम करता था, उसी में 20 साल का अनस हाशमी भी काम करता था. साथ काम करते दोनों में दोस्ती हो गई थी.

अनस हाशमी मूलरूप से उत्तर भारत के बलरामपुर जिले के गांव लालपुर का रहने वाला था. रविकांत व अनस हाशमी खानेपीने के शौकीन थे, इसलिए दोनों की महफिल जमती रहती थी.

एक रोज रविकांत ड्यूटी नहीं गया तो अनस हाशमी देर शाम उस का हालचाल लेने उस के घर आ गया. यहां पहली बार प्रियंका की मुलाकात अनस हाशमी से हुई. दोनों एकदूसरे से प्रभावित हुए और उन के बीच बातचीत भी हुई. इस के बाद जबतब अनस हाशमी का रविकांत के घर आनाजाना होने लगा. लेकिन इस बीच प्रियंका व अनस हाशमी मर्यादा में रहे. हालांकि दोनों के दिलों में हलचल शुरू हो चुकी थी.

रविकांत का एक रिश्तेदार अनुज तिवारी था. वह गुजरात के राजकोट में किसी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड था. उसे अच्छा वेतन मिलता था. जनवरी 2021 में रविकांत की पारिवारिक शादी समारोह में अनुज तिवारी से मुलाकात हुई. बातचीत के दौरान रविकांत ने आर्थिक समस्या बताई तो अनुज ने उसे राजकोट में नौकरी दिलाने का वादा किया.

अनुज के साथ रविकांत राजकोट चला गया. वहां अनुज ने एक खिलौना बनाने वाली कंपनी में रविकांत को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी दिलवा दी. इस तरह रविकांत राजकोट में नौकरी करने लगा और प्रियंका दोनों बच्चों के साथ नौबस्ता गल्ला मंडी में रहने लगी. रविकांत को जब छुट्टी मिलती, तभी वह कानपुर आता और हफ्ते भर तक रुक कर वापस चला जाता.

प्रियंका के क्यों बहके थे कदम

अनस हाशमी को जब पता चला कि उस का दोस्त रविकांत दूरदराज शहर में नौकरी करने लगा है तो उस की नीयत में खोट आ गई. वह उस की पत्नी प्रियंका से नजदीकियां बढ़ाने के लिए उस के घर आनेजाने लगा.

वह जब भी आता बच्चों को खानेपीने की चीजें लाता. खानेपीने की चीजें पा कर बच्चे खुश होते. बच्चों ने प्रियंका से अनस हाशमी के बारे में पूछा तो उस ने बच्चों से कहा कि यह तुम्हारे संदीप मामा हैं. प्रियंका भी उसे संदीप कह कर ही बुलाती थी.

अनस हाशमी विवाहित था, लेकिन उस की बीवी की मौत हो गई थी. स्त्री सुख से वंचित होने से वह प्रियंका पर डोरे डालने लगा था. पति के राजकोट जाने के बाद उस के जिस्म की भूख फिर सिर उठाने लगी. वह उदास हो गई. तब उस के दिलोदिमाग में अनस हाशमी घूमने लगा. वह उस से मिलने को उतावली हो उठी.

प्रियंका ने इस का कोई विरोध नहीं किया. इस से अनस की हिम्मत बढ़ गई. इस के बाद प्रियंका भी खुद को नहीं रोक सकी तो मर्यादा तारतार होते वक्त नहीं लगा. जोश उतरने पर जब होश आया तो दोनों में से किसी के भी मन में पछतावा नहीं था.

बाहरी प्यार के चक्कर में पति मारा – भाग 1

एक रोज अनस हाशमी दोपहर में प्रियंका के घर आया और चारपाई पर बैठ कर उस ने इधरउधर की बातें करने लगा. तभी अचानक वह उस  के पास आ कर बोला, ”भाभी, तुम जानती हो कि तुम कितनी सुंदर हो?’’

अनस हाशमी की बात सुन कर पहले तो प्रियंका चौंकी, उस के बाद हंस कर बोली, ”मजाक अच्छा कर लेते हो.’’

”नहीं भाभी, ये मजाक नहीं है, तुम मुझे सचमुच बहुत अच्छी लगती हो. तुम्हें देखने को दिल चाहता है, तभी तो मैं तुम्हारे यहां आता हूं.’’ अनस ने मुसकराते हुए कहा.

अनस की बात सुन कर प्रियंका के माथे पर बल पड़ गए. उस ने कहा, ”तुम यह क्या कह रहे हो अनस? क्या मतलब है तुम्हारा?’’

”कुछ नहीं भाभी, तुम यहां बैठो और यह बताओ कि भाईजान कब आएंगे?’’

”उन्हें छुट्टी कहां मिलती है. तुम सब कुछ जानते तो हो, फिर भी पूछ रहे हो?’’ प्रियंका ने थोड़ा गुस्से में कहा.

”तुम्हारे ऊपर दया आती है भाभी, भाईजान को तो तुम्हारी फिक्र ही नहीं है. अगर उन्हें फिक्र होती तो इतने दिनों बाद घर न आते. वह चाहते तो यहीं कोई दूसरी नौकरी कर लेते.’’ यह कह कर अनस हाशमी ने जैसे प्रियंका की दुखती रग पर हाथ रख दिया.

इस के बाद प्रियंका के करीब आ कर वह उस का हाथ पकड़ते हुआ बोला, ”भाभी, अब तुम चिंता मत करो, सब कुछ ठीक हो जाएगा.’’

उस दिन अनस हाशमी के जाने के बाद प्रियंका देर तक उसी के बारे में सोचती रही कि आखिर अनस चाहता क्या है. उस रात प्रियंका को देर तक नींद भी नहीं आई.

3 सितंबर, 2023 की सुबह 10 बजे कानपुर शहर के थाना नौबस्ता के एसएचओ जगदीश पांडेय को फोन के जरिए सूचना मिली कि हंसपुरम बंबा की पुलिया नंबर 3 के पास माया स्कूल के सामने वाले सूखे नाले में एक युवक की लाश पड़ी है. चूंकि खबर हत्या की थी, इसलिए उन्होंने इस सूचना से पुलिस अधिकारियों को भी अवगत करा दिया. उस के बाद वह सहयोगी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल की ओर रवाना हो गए.

थाना नौबस्ता से घटनास्थल की दूरी 5 किलोमीटर उत्तरपश्चिम दिशा में थी, इसलिए पुलिस को वहां तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. उस समय वहां लोगों की भीड़ थी. पुलिस को देखते ही भीड़ हट गई. पुलिसकर्मियों ने नाले में पड़े शव को बाहर निकाला.

मृतक युवक की उम्र 35 साल के आसपास थी. उस की हत्या किसी तेजधार हथियार से गला रेत कर की गई थी. शव से बदबू आ रही थी, जिस से लग रहा था कि हत्या 1-2 दिन पहले की गई होगी. जामातलाशी में उस के पास से कुछ भी बरामद नहीं हुआ. अब तक तमाम लोग शव को देख चुके थे, लेकिन उस की शिनाख्त नहीं हो पाई थी.

जांच के दौरान ही एसएचओ जगदीश पांडेय को याद आया कि शकुंतला पांडेय नाम की महिला ने उन के थाने में एक दिन पहले अपने बेटे रविकांत की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. कहीं यह लाश उस के बेटे की तो नहीं? यह खयाल आते ही उन्होंने शकुंतला को घटनास्थल पर बुलाने के लिए एसआई आर.के. सिंह और एक सिपाही को भेज दिया.

पुलिस जीप राजे नगर (गल्ला मंडी) स्थित शकुंतला के घर पर रुकी तो वह सकते में आ गईं. उन्होंने पूछा, ”साहब, मेरे बेटे का कुछ पता चला?’’

जवाब देने के बजाय एसआई आर.के. सिंह ने शकुंतला से कहा कि वह उस के साथ चलें. वहां उन्हें सब पता चल जाएगा.

शकुंतला अपने छोटे बेटे अनूप के साथ घटनास्थल पहुंचीं. वहां एसएचओ जगदीश पांडेय ने उन्हें युवक का शव दिखाया तो वह फफक पड़ीं और बोलीं, ”साहब, यह लाश मेरे बड़े बेटे रविकांत की है.’’

अनूप भी भाई का शव देख कर बिलखने लगा.

प्रियंका को पति रविकांत की हत्या की जानकारी हुई तो वह भी घटनास्थल पर पहुंच गई और शव देख कर विलाप करने लगी. शकुंतला ने उसे नफरतभरी नजर से देखा फिर बोली, ”आखिर तुम ने रास्ते का कांटा निकाल ही दिया. अब रोने धोने का नाटक क्यों कर रही हो?’’

प्रियंका ने शकुंतला के कटाक्ष का कोई जवाब नहीं दिया. वह छाती पीटपीट कर रोती रही. एकदो बार उस ने बेहोशी का भी नाटक किया.

इसी चीखपुकार के बीच एडिशनल सीपी (साउथ) अंकिता शर्मा तथा एसीपी अभिषेक पांडेय घटनास्थल पर आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया फिर प्रभारी निरीक्षक जगदीश पांडेय से घटना के संबंध में कुछ जरूरी जानकारी हासिल की.

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मौके पर मृतक की मां शकुंतला पांडेय मौजूद थीं. एडीसीपी अंकिता शर्मा ने उन से पूछा, ”मांजी, तुम्हारे बेटे रवि की हत्या किस ने और क्यों की? क्या तुम्हें किसी पर शक है?’’

”हां जी, मुझे अपनी बहू प्रियंका पर ही शक है.’’ शकुंतला ने बताया.

”वह कैसे?’’ अंकिता शर्मा ने पूछा.

”साहब, प्रियंका बदचलन है. वह लड़ झगड़ कर परिवार से अलग किराए का कमरा ले कर बेटे के साथ रहने लगी थी. बेटा परदेश कमाने गया तो प्रियंका बहक गई. वह अपने आशिक के साथ मौजमस्ती में डूब गई. बेटे ने विरोध जताया तो उसे मौत की नींद सुला दिया. प्रियंका ने ही अपने आशिक के साथ मिल कर मेरे बेटे की हत्या की है. आप उसे गिरफ्तार कर लीजिए वरना वह फरार हो जाएगी.’’ इतना कह कर वह सुबकने लगी.

पुलिस ने मौके की काररवाई कर लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दी.

एडिशनल डीसीपी ने प्रियंका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. उस से पता चला कि प्रियंका की एक मोबाइल नंबर पर लगातार बात होती थी. उस नंबर की जांच की गई तो पता चला कि वह नंबर बलरामपुर जिले के लालपुर गांव निवासी अनस हाशमी का है.

एडीसीपी ने थाने में प्रियंका से अनस हाशमी के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह उस के पति रविकांत का दोस्त है. वह नौबस्ता के कबीर नगर मछरिया में बरकती मसजिद के पास किराए पर रहता है. उस का उस के घर में आनाजाना था.

प्रियंका के मोबाइल फोन में एक युवक की फोटो थी. वह फोटो जब प्रियंका के बच्चों को दिखाई गई तो उन्होंने बताया कि यह फोटो संदीप मामा की है. संदीप के संबंध में पूछने पर प्रियंका ने बताया कि अनस हाशमी ही संदीप है. उस ने बच्चों को अनस हाशमी का नाम संदीप बताया था और कहा था कि यह तुम्हारे मामा है, अत: बच्चे उसे संदीप मामा कहते थे.

अनस हाशमी को गिरफ्तार करने के लिए अंकिता शर्मा ने एसीपी अभिषेक पांडेय की अगुवाई में एक पुलिस टीम का गठन किया. पुलिस टीम ने अनस हाशमी के कबीर नगर (मछरिया) स्थित किराए वाले कमरे पर पहुंची, लेकिन उस के कमरे पर ताला लटका मिला.

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पुलिस टीम जब वापस लौट रही थी तो फारुख अली गली के मोड़ पर पुलिस के मुखबिर ने जीप रुकवाई और बताया कि अनस हाशमी बरकती मसजिद में छिपा बैठा है. कुछ देर बाद वह अपने कमरे पर जाएगा.

मुखबिर की इस सूचना पर पुलिस टीम सतर्क हो गई. रात 12 बजे के आसपास अनस हाशमी जैसे ही मसजिद से बाहर निकला, पुलिस टीम ने उसे दबोच लिया. उसे थाने लाया गया.

यूट्यूबर बना नीम हकीम

शुरू के दिनों में Youtuber Abdulla Pathan लंबाई बढ़ाने के तरीके, शोल्डर की एक्साइज, बौडी बिल्डर कैसे बनें जैसे विषयों पर वीडियो बना बना कर सोशल मीडिया पर पोस्ट करता था. देसी दवाओं के इलाज के बैनर पोस्ट करने पर यूनानी यानी देसी दवाओं का इलाज कराने मरीज उत्तर प्रदेश से ही नहीं, दूसरे सूबों से भी आने लगे.

कुछ ऐसे मरीज भी आए, जो विदेश में रह रहे थे. इन में जो रोगी इलाज से एक महीने में ही सही हो गए, उन का इंटरव्यू अब्दुल्ला पठान ने फेसबुक पर डालने शुरू कर दिए. जिस से इस की शोहरत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ गई.

एक नीम हकीम का इतना बड़ा जलवा देख लोग आश्चर्यचकित रह गए. दवाखाने के बाहर मेला सा लगने लगा. कई तरह के फ्रूट, जूस, मूंगफली, पकौड़ी समोसे आदि सामान बेचने के ठेले लग गए और उन का भी रोजगार चलने लगा. इसी दौरान कुछ शिक्षित लोग इस का दवाखाना बंद करने के लिए अधिकारियों से शिकायत करने लगे.

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उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद की तहसील बिलारी के टाउन कुंदरकी में एक नीम हकीम अब्दुल्ला पठान के दवाने पर 16 अक्तूबर, 2023 को जिले में पहली बार स्वास्थ्य विभाग, आयुर्वेद विभाग, होम्योपैथी विभाग व ड्रग्स विभाग के अधिकारियों की संयुक्त टीम ने मिल कर छापेमारी की. बड़ी संख्या में वहां पर आयुर्वेद दवाएं बिना पैकिंग के पाई गईं, जिन में 36 दवाओं को सील कर के उन के सैंपल जांच के लिए प्रयोगशाला भेजे गए.

पूरे जनपद में यह मामला चर्चा में रहा. तमाम तरह की अफवाहें भी उड़ीं. इस नीम हकीम की दुकान सील कर दी गई. यह बात तो ठीक है कि छापेमारी के दौरान अब्दुल्ला पठान अपनी दुकान पर नहीं मिला था.

ब्लौककुंदरकी के गांव ढकिया (जुम्मा)  निवासी अब्दुल वहीद के 6 बेटे और एक बेटी सहित भरापूरा परिवार है. अब्दुल्ला पठान सहित 4 भाई लंबेचौड़े पहलवान जैसी बौडी के हैं. 2 भाइयों की कदकाठी साधारण है. अब्दुल्ला पठान का एक भाई अब्दुल मलिक इस समय ढकिया जुम्मा का प्रधान है. एक भाई अब्दुल खालिद संविदा पर ब्लौक में जूनियर इंजीनियर है.

एक भाई अब्दुल हफीज का मर्डर लगभग 15 साल पहले हो गया था. उस समय इन का एक चचेरा भाई भी साथ था. दोनों कुंदरकी कस्बे के पास में ही खेत पर काम कर रहे थे. तभी बदमाशों ने दोनों को गोलियों से भून दिया. दरअसल, ये सभी भाई काफी दबंग और हेकड़ प्रवृत्ति के रहे हैं.

जाति से पठान होने के कारण भी ये लोग अपना रुतबा कायम रखना चाहते थे. बताते हैं कि किसी ने उन की ट्रौली चुरा ली थी. चोरी के आरोप में इन्होंने गांव के चौकीदार के भाई को बुरी तरह पीटा था और थाने ले गए थे.

यह मामला तो जैसेतैसे निपट गया था, लेकिन डबल मर्डर केस में इन्होंने अन्य 4 लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई थी. अब्दुल्ला पठान का एक भाई सीआरपीएफ में है और एक पुलिस में है. बहन की शादी हो चुकी है. गांव में रंजिश के चलते ये लोग कस्बा कुंदरकी में लाइनपार मोहल्ले में बस गए थे. गांव में इन की खेतीबाड़ी है.

सभी रिश्तेदार और खानदान के लोग अभी गांव में रहते हैं. गांव में इन का आनाजाना लगा रहता है. इन के पिता अब्दुल वाहिद भी बढ़िया पर्सनालिटी के पहलवान थे. आर्थिक स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं थी. अब्दुल्ला पठान की ननिहाल कुंदरकी की है. अब्दुल्ला पठान और अन्य भाई अपनी नानी के घर रह कर पढ़ाई करते थे. अब्दुल्ला पठान को शारीरिक ताकत दिखाने का शौक लग गया.

करतब देख लोग हो जाते हैरान

पहलवानी और वर्जिश तो वह खूब करता ही था. उस ने तरह तरह के वजन उठाने का सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन करना शुरू कर दिया. अपने एक हाथ से एक आदमी और दूसरे हाथ से दूसरे आदमी को एक साथ उठाए जाने का प्रदर्शन करना काफी चर्चित रहा. उस ने लोगों को ट्रौली खींच कर दिखाई. ट्रक खींच के दिखाया. हाथ से नारियल फोड़ा और भी तरहतरह के प्रदर्शन अपनी शारीरिक ताकत के दिखाता रहा.

इस की इन कलाओं की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं. तब उस ने सोचा कि क्यों न यूट्यूब आदि सोशल मीडिया पर अपना अकाउंट बना लिया जाए. तब उस ने अपनी ताकत के प्रदर्शन की वीडियो और फोटो यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया पर डालनी शुरू कर दीं.

इस से इस की शोहरत बढ़ती चली गई. प्रदेश ही नहीं देश के अन्य प्रदेशों में भी इस की ताकत के प्रदर्शन होने लगे. चैनल पर तरहतरह के लोग सवाल करने लगे. किसी ने पूछा कि आप क्या क्या खाते हो. तब उस ने दिल्ली खारी बावली बाजार में जा कर अपनी वीडियो बनाई, जहां तरहतरह के मेवे, बादाम, काजू, पिस्ता आदि बिकते हैं.

लोगों को दिखाया कि वह यहां से खरीद कर मेवे खाता है. इसी दौरान उसे दिल्ली की आयुर्वेद और यूनानी दवाओं की दुकानों का थोक बाजार दिखाई दिया, जहां से बड़ी संख्या में हकीम और वैद्य दवा खरीद कर ले जाते हैं. उधर यह सोशल मीडिया पर भी हकीमों के और वैद्यों की रील और वीडियो देखता रहता था, जो तरहतरह की बीमारियों के इलाज की दवाएं बताते थे और स्वयं तैयार की गई दवाओं को बेचने का प्रचार भी करते थे.

शोहरत बढ़ जाने से सोशल मीडिया से आमदनी भी होने लगी. तभी इस ने हिकमत की लाइन में अपना भविष्य तलाशना शुरू किया. इस ने अपनी दुकान कुंदरकी के मोहल्ला मेन बाजार में खोली, लेकिन कामयाबी नहीं मिली.

फिर एक पैट्रोल पंप के निकट अपना यूनानी दवाओं का क्लीनिक स्थापित किया. अब्दुल्ला पठान की हिकमत यहां भी नहीं चली. तब उस ने कुंदरकी में ही स्थित जेएलएम इंटर कालेज के पास मेन हाईवे पर अपनी दुकान खोली और सोशल मीडिया पर बड़ी से बड़ी बीमारियों का देसी दवाओं से इलाज करने का प्रचार शुरू किया.

अब्दुल्ला आम इंसान से कैसे बना खास

अब्दुल्ला पठान जानता था कि देसी दवाओं की तरफ देशवासियों का रुझान बढ़ रहा है और इस लाइन में खूब दौलत कमाई जा सकती है. इस ने किसी हकीम के पास, किसी वैद्य के पास पुड़िया बांधने, इलाज करने या उपचार करने का काम कभी नहीं सीखा. सरकारी संस्थान या प्राइवेट संस्थान में आयुर्वेदिक या यूनानी दवा की कोई पढ़ाई भी नहीं की.

इस की शैक्षिक योग्यता इंटरमीडिएट पास बताई गई है. इंजीनियङ्क्षरग लाइन में जाना चाहता था, लेकिन उस में सफलता नहीं मिली. मर्दाना ताकत, धात, नाइटफाल, टाइम बढ़ाना, लिकोरिया, वजन बढ़ाना, बालों का झड़ना, पेट का इलाज, पथरी का इलाज, चेहरे पर पिंपल आदि बीमारियों का इलाज देसी जड़ीबूटियों द्वारा करने का यह प्रचार करने लगा. स्त्री एवं पुरुषों के गुप्त रोगों के इलाज का सोशल मीडिया पर बैनर जारी कर दिया.

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इस से मरीज आने शुरू हो गए. पिछले 2 सालों से यह हालत हो गई कि 3 से 4 सौ मरीज तक प्रतिदिन दवाई लेने इस के पास आते देखे गए. जबकि औनलाइन दवाई मंगाने वालों की भी लंबी सूची प्रतिदिन रहती थी. इस तरह देखते ही देखते अब्दुल्ला पठान करोड़पति हो गया और इस के रसूख बड़ेबड़े लोगों से होने लगे. पुलिस विभाग के अधिकारी हों या स्वास्थ्य विभाग के, सभी से अब्दुल्ला पठान के मधुर संबंध रहते. बड़ीबड़ी पार्टियों और कार्यक्रमों में अब्दुल्ला पठान को बुलाया जाने लगा.

एक केंद्रीय मंत्री के साथ भी इस की मौजूदगी सोशल मीडिया पर जारी वीडियो में देखी गई. और भी वीडियो और फोटो अब्दुल्ला पठान अपने सोशल मीडिया पर जारी करता रहा.

गौशाला के दान ने कैसे किया परेशान

अब्दुल्ला पठान औफिशल नाम के यूट्यूब चैनल पर लगभग 10 लाख 27 हजार सब्सक्राइबर बताए गए हैं. यह चैनल 13 सितंबर, 2017 को रजिस्टर किया गया. इस ने 6 फरवरी, 2018 को पहला वीडियो अपने चैनल पर जारी किया था.

वर्तमान जिलाधिकारी मानवेंद्र सिंह, जिन्होंने कुछ ही महीने पहले मुरादाबाद के जिलाधिकारी का कार्यभार संभाला था. उन्होंने जनपद में गौशालाओं के निर्माण के लिए जनता से सहयोग राशि देने का आह्वान किया था. इस में सहयोग के लिए अब्दुल्ला पठान ने एक लाख रुपए का चैक दिया.

अब्दुल्ला पठान का गौशाला के लिए यह सहयोग समाचार पत्रों और सोशल मीडिया में खूब हाईलाइट हुआ. क्योंकि अब तक यह एक सेलिब्रिटी बन चुका था.

बताते हैं कि जिलाधिकारी ने जांच करवाई कि एक लाख रुपए भेंट करने वाला व्यक्ति क्या करता है? तब पता चला कि यह यूट्यूबर  होने के साथसाथ देसी दवाओं से इलाज करने का धंधा करता है. यानी एक नीम हकीम खतरे जान भी है.

जिलाधिकारी के आदेश पर अब्दुल्ला पठान के क्लीनिक पर छापा मारने की तैयारी की गई और कई विभागों के अधिकारियों की भारीभरकम टीम अब्दुल्ला पठान के शफाखाने पर जांच करने पहुंच गई. काफी संख्या में उस वक्त मरीज भी मौजूद थे.

भारी पुलिस बल और अधिकारियों की टीम देख कर शफाखाने पर अफरातफरी मच गई. लोग दवा ले कर भागते नजर आए. भारी पुलिस बल के साथ पहुंचे अधिकारियों ने क्लीनिक पर कब्जा कर के बड़ी तादाद में रखी देसी जड़ीबूटियों की जांच शुरू कर दी. यह बात 16 अक्तूबर, 2023 की है.

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26 अक्तूबर को यूट्यूब पर अब्दुल्ला पठान ने फिर एक वीडियो जारी कर कहा कि उस का अस्पताल सील नहीं हुआ है. यह अफवाह उड़ाई गई है. किसी तरह की कोई बंदिश नहीं है. स्वास्थ्य विभाग का काम है. वह जांच करते रहते हैं. सैंपल लेते रहते हैं, लेकिन क्लीनिक पर कोई असर नहीं पड़ेगा.

उस ने अपने रोगियों से अपील करते हुए कहा कि सभी मरीज आएं, यहां से दवाई लेने में कोई परेशानी उन्हें नहीं होगी. दूसरे ही दिन यानी 27 अक्तूबर, 2023 को अब्दुल्ला पठान का फेसबुक की रील पर पुलिस की वरदी में एक वीडियो वायरल हुआ. यह बात पुलिस के संज्ञान में पहुंची. तब उस के खिलाफ थाना कुंदरकी में रिपोर्ट दर्ज की गई.

इस बारे में एसपी (देहात) संदीप कुमार ने बताया कि पुलिस की वरदी में वायरल होना संज्ञान में आया है. रिपोर्ट दर्ज हो गई है. जांच कर पुलिस उस के खिलाफ कानूनी काररवाई करेगी. उधर अब्दुल्ला पठान का कहना है कि सोशल मीडिया की रील में वह एक रोल मात्र जैसी है, इस का तात्पर्य पुलिस बन कर किसी को ठगना नहीं है. यह तो वैसा ही है जैसे फिल्मों में पुलिस की वरदी में सीन होते हैं.

बहरहाल, नीम हकीम अब्दुल्ला पठान के खिलाफ इस तरह की काररवाई होने से उस का धंधा लगभग चौपट सा हो गया है. एक चौथाई मरीज भी उस के पास आते नहीं देखे जा रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग की टीम क्या काररवाई करती है, यह जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा.

उधर क्षेत्र के लोगों का कहना है कि ऐसे झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ काररवाई होती है, जो बिना किसी डिग्री या डिप्लोमा के एलोपैथी दवाओं से इलाज करते पाए जाते हैं. उन के क्लीनिक सील होते हैं.

लेकिन ऐसा कोई झोलाछाप डाक्टर नहीं है, जिस ने अपना धंधा बंद कर के कोई दूसरा कारोबार शुरू किया हो. देसी दवाओं से इलाज करने वाले नीम हकीम डाक्टर चाहे वह यूनानी हो या आयुर्वेदिक उन के खिलाफ इस तरह की छापेमारी जनपद में होती पहली बार देखी है.

फरजी डाक्टरों और नीम हकीमों से बचें

डा. मोहम्मद शायगान, एमबीबीएस, एमडी

डा. मोहम्मद शायगान एमबीबीएस, एमडी जनपद मुरादाबाद के कस्बा बिलारी के निवासी हैं. 2 साल तक दिल्ली के एम्स में काम कर चुके हैं और बिलारी में इन का अपना क्लीनिक है. जिला मुख्यालय पर भी प्रैक्टिस करते हैं. इन्होंने सोशल मीडिया पर खुद को हकीम और वैद्य बता कर दवाइयां बनाने वालों, इलाज करने वालों और औनलाइन दवाइयां बेचने वालों पर अपनी बेबाक टिप्पणी की और कहा कि बिना डिग्री डिप्लोमा के क्लीनिक चलाने वालों पर काररवाई अवश्य होनी चाहिए.

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उन्होंने बताया कि हमारी दुनिया में कोई भी कार्य करने के लिए उस के मानक एवं गुणवत्ता निर्धारित किए जाते हैं. कार्य योग्यता अनुसार किए जाते हैं. योग्यता, पढ़ाई और प्रशिक्षण से आती है. अब इसी तथ्य को हम डाक्टरी पेशे में रख कर देख सकते हैं.

समस्त संसार एवं भारतवर्ष में मानव जीवन कल्याण के लिए हमारे पूर्वजों ने कठिन परिश्रम एवं विद्या के अनुसरण से इंसान की विभिन्न बीमारियां ज्ञात कीं और उन के उपचार के लिए अलगअलग औषधियों का गहन अध्ययन किया. उस समय वे लोग वैद्य या हकीम कहलाए.

आज के समय में यह उपाधि प्राप्त करने के लिए पूरी एक नियमित पढ़ाई करनी होती है. इस परिश्रम को सफल करने के बाद ही कोई वैध/हकीम या डाक्टर कहलाता है.

अब कोई व्यक्ति बिना डिग्री या परिश्रम के कोई काम करेगा और वह भी इस प्रकार का, जो सीधे मानव स्वास्थ्य और जीवन को प्रभावित करे तो यह बहुत ही चिंता का विषय है. अब चाहे वह आयुर्वेद हो या एलोपैथ, बिना डिग्री के कार्य करना ऐसा है जैसे बिना ड्राइविंग लाइसेंस के गाड़ी चलाना. दोनों ही परिस्थितियों में जान का खतरा है. ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त काररवाई होनी चाहिए. क्योंकि हम किसी के जीवन को भी अज्ञानता के कारण खतरे में नहीं डाल सकते.

मो. आसिफ कमल ‘एडवोकेट’

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत

प्रेमिका ने पिलाया मौत का जूस

”अजी सुनते हो? मेरा जी सुबह से ही न जाने क्यों घबरा रहा है. कई बार देवांश को फोन लगा चुकी हूं, लेकिन उस का फोन लग ही नहीं रहा. कभी स्विच्ड औफ तो कभी नौट रीचेबल बता रहा है.’’ सीमा परेशान होते हुए बोली.

पत्नी के मुंह से इतना सुनना था कि रामकिशोर यादव तपाक से बोल पड़े, ”तुम भी न बेवजह परेशान होने के साथ दूसरों को भी परेशान कर के रख देती हो.

”अरे बेटा है, अभी 2 दिन ही तो हुए हैं उसे वाराणसी गए कि तुम बेवजह परेशान होने लगी. लड़की तो है नहीं, जो उस की इतनी फिक्र किए जा रही हो. अरे भाई, अपने पुराने यार दोस्तों से मिलने चला गया होगा. मोबाइल बंद है या हो सकता है कि चार्ज न हो. इस में परेशान होने की वाली भला कौन सी बात है?’’

इतना कह कर रामकिशोर अखबार और चश्मा टेबल पर रख कर पत्नी की तरफ घूम गए. फिर भी सीमा का मन नहीं माना तो पति के पास आ कर बोली, ”एक बार आप भी देखें तो उस का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ ही आ रहा है. आज उसे बनारस गए 3 दिन हो गए हैं.’’

पत्नी की बात सुन कर रामकिशोर ने बेवजह पत्नी से बहस करने के बजाए जेब से मोबाइल निकाल कर बेटे देवांश का नंबर मिलाया तो वह स्विच औफ बता रहा था.  कई बार नंबर मिलाने पर भी जब काल नहीं लगी तो उन्होंने सोचा कि हो न हो मोबाइल डिस्चार्ज ही हो गया होगा, इस वजह से वह बंद है. फिर वह पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ”लग रहा है देवांश का मोबाइल चार्ज नहीं है इस वजह से स्विच्ड औफ बता रहा है, चार्ज होते ही बात हो जाएगी.’’

पत्नी को दिलासा दे कर रामकिशोर हाथ में जूट का झोला ले कर रोजमर्रा का सामान लेने के लिए मार्केट की ओर निकल गए थे.

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के मऊ दरवाजा थाना क्षेत्र के कुइयावूट बाईपास निवासी रामकिशोर यादव पेशे से शिक्षक हैं. परिवार में पत्नी, इकलौते बेटे सहित उन का भरापूरा परिवार था.

उन का 22 वर्षीय इकलौता बेटा देवांश यादव बीएससी थर्ड ईयर की पढ़ाई दिल्ली में रह कर कर रहा था. रामकिशोर और उन की पत्नी इकलौते बेटे पर जान छिड़कते थे. 27 मई, 2023 से ही देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ जा रहा था. 25 मई, 2023 को वाराणसी जाने की बात कह कर वह घर (फर्रुखाबाद) से निकला था.

मार्केट से सामान ले कर घर लौटने के बाद रामकिशोर ने पत्नी के कुछ बोलने से पहले ही बेटे देवांश का नंबर डायल किया तो उस समय भी वह स्विच्ड औफ आ रहा था. तभी उन के दिमाग में बेटे के दोस्त श्रीवत्स का खयाल आ गया. फिर उन्होंने श्रीवत्स से संपर्क किया तो पता चला कि श्रीवत्स की देवांश से 26 मई, 2023 की शाम बात हुई तो उस ने (देवांश) बताया था कि वह वाराणसी के अस्सी क्षेत्र स्थित पैराडाइज होटल में कमरा ले कर ठहरा है.

27 मई को श्रीवत्स ने फिर फोन किया तो देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. श्रीवत्स ने होटल के रिसैप्शन पर फोन किया तो पता लगा कि देवांश अपने कमरे में नहीं है. उस का लैपटाप और बैग उस के कमरे में ही हैं. इस के बाद श्रीवत्स ने देवांश की परिचित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) की छात्रा अनुष्का को फोन किया तो अनुष्का ने बताया कि देवांश से उस की लड़ाई हुई थी, इसलिए वह उस के बारे में नहीं जानती.

बेटे को तलाशने गए वाराणसी

श्रीवत्स से बेटे के बारे में इतनी जानकारी पाने के बाद रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा को उस की ज्यादा चिंता होने लगी. इकलौते बेटे को ले कर तरहतरह की आशंकाएं मनमस्तिक में कौंधने लगी थीं.

बहरहाल, इस के बाद भी देवांश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह और उन की पत्नी 29 मई, 2023 को बिना देर किए वाराणसी आ गए. वाराणसी आने के बाद वह पैराडाइज होटल जहां देवांश ठहरा था तथा उस के दोस्त आदि से बेटे के बारे में कोई जानकारी न मिलने पर भेलूपुर थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए.

पुलिस ने कोई काररवाई करने के बजाए उन की तहरीर ले कर रख ली. रामकिशोर और उन की पत्नी बेटे को खोजने के लिए वाराणसी के गलीमोहल्लों से ले कर होटलों की खाक इस उम्मीद के साथ छानते रहे कि कहीं कोई बेटे की खबर मिल जाए.

देवांश के दोस्त और वाराणसी की गलियों को भी खंगालने पर जब कोई जानकारी नहीं हासिल हुई तो रामकिशोर पत्नी को ले कर कानपुर के लिए रवाना हो गए, जहां देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का तिवारी का घर था. कानपुर में उन्हें कोई जानकारी तो नहीं मिली, बल्कि अनुष्का के घर वालों से रामकिशोर और उन की पत्नी को फटकार जरूर मिल गई.

आहत रामकिशोर ने फिर से वाराणसी आ कर भेलूपुर थाने के एसएचओ से मिले. उन्होंने आरोप लगाया कि अनुष्का के घर वालों ने ही देवांश को मारपीट कर हत्या कर उस का शव गायब कर दिया है.

रामकिशोर की तहरीर के आधार पर पुलिस ने कानपुर आउटर की रहने वाली और बीएचयू, वाराणसी की परास्नातक की छात्रा अनुष्का तिवारी, उस के पिता सौरभ तिवारी और चाचा सौजन्य तिवारी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 504, 506 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मुकदमा दर्ज होने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रख कर बैठी रही. उधर देवांश का कोई पता न चलने पर रामकिशोर और उन की पत्नी की हालत बिलकुल बिगड़ने लगी थी. इसी बीच उन की मुलाकात युवा फाउंडेशन से जुड़ी सामाजिक कार्यकत्री सीमा चौधरी से हो गई.

सीमा चौधरी से मिलने के बाद रामकिशोर को आशा की उम्मीद नजर आने लगी. उन्हें लगा कि अब उन की इस लड़ाई में जरूर कुछ न कुछ बात आगे बढ़ेगी.

सीमा चौधरी के साथ रामकिशोर पत्नी को ले कर सीधे वाराणसी से लखनऊ आ गए. सीमा चौधरी के साथ लखनऊ में वह अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह से मिले. रामकिशोर ने अपर पुलिस आयुक्त को देवांश के गायब होने की बात विस्तार से बता दी.

लखनऊ में अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह को आपबीती सुनाने का असर यह हुआ कि वाराणसी पुलिस जो अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठी थी, अचानक से सक्रिय हो गई.

इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसआई चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा, वरुण कुमार शाही, ज्ञानमती तिवारी, दुर्गेश कुमार सरोज, कमांड सेंटर सिगरा, सर्विलांस टीम के इंसपेक्टर अंजनी पांडेय आदि शामिल थे.

मुकदमा दर्ज होने के बाद भी देवांश की कोई खोजखबर न मिलने से रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा पुलिस से खिन्न थे तो वहीं दूसरी ओर मामले की विवेचना में लगे चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा देवांश का पता लगाने के लिए उस होटल में पहुंच गए, जहां देवांश ठहरा हुआ था. उन्होंने वहां जा कर पता लगाने से ले कर उस के दोस्त से भी पूछताछ की, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली.

देवांश आखिरकार गया तो गया कहां?

यह गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती जा रही थी. जांच अधिकारी को देवांश के साथ पढ़ी अनुष्का पर ही शक हो रहा था. इस आशंका से उन्होंने उच्च अधिकारियों को अवगत कराया तो उन्होंने इस केस को हर हाल में सुलझाने और जल्द से जल्द देवांश, चाहे जिस भी हाल में हो, को ढूंढने के निर्देश दिए.

उच्चाधिकारियों की हिदायत का असर यह हुआ कि देवांश प्रकरण में तेजी आ गई. संभावित स्थानों पर मुखबिरों को भी लगा दिया गया था. इसी बीच पुलिस टीम द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों से देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का घेरे में आ रही थी.

इस के बाद पुलिस ने बिना कोई देर किए कानपुर के आवास विकास निवासी 21 वर्षीया अनुष्का तिवारी को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने जौनपुर के गोला बाजार निवासी 21 वर्षीय राहुल सेठ और 25 वर्षीय शादाब आलम को भी गिरफ्तार कर लिया.

तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि देवांश इस समय जीवित नहीं है, उस की हत्या कर दी गई है.

देवांश की हत्या की जो वजह सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण की एक कहानी निकली—

नए प्रेमी के साथ बनाई खूनी योजना

देवांश यादव और अनुष्का तिवारी ने कानपुर नगर के सरस्वती ज्ञान मंदिर इंटर कालेज में कक्षा 6 से 9 तक साथसाथ पढ़ाई की थी, जिस से दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. खुशमिजाज किस्म का देवांश अनुष्का पर जान छिड़कता था. वह पढ़लिख कर कुछ बनने की तमन्ना पाले आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गया तो अनुष्का ने वाराणसी की राह थाम ली थी.

दोनों ने ही अलगअलग शहरों की राह पकड़ ली थी, लेकिन वे एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. फुरसत मिलने पर दोनों काफीकाफी देर तक वीडियो काल कर एकदूसरे का दीदार करने के साथ भविष्य की कल्पनाओं में भी खो जाया करते थे. देवांश यादव जहां अपने प्यार के प्रति गंभीर और पूरे विश्वास में जी रहा था, वहीं अनुष्का वाराणसी आने के बाद से बदलने लगी थी. इस बदलाव का कारण भी कोई और नहीं बल्कि राहुल सेठ का साथ था, जिस से दोस्ती बढ़ने के बाद अनुष्का देवांश को नजर अंदाज करने लगी थी. राहुल सिंह भी वाराणसी में पढ़ाई कर रहा था.

अब अकसर देवांश जब भी अनुष्का से बात करना चाहता था तो वह या तो कोई बहाना बना कर टाल देती या उस की काल ही रिसीव नहीं करती थी. अनुष्का के अंदर अचानक से आए इस बदलाव को देख कर देवांश मन ही मन परेशान होने लगा था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार अनुष्का के अंदर यह परिवर्तन अचानक से कैसे आ गया है? समय बीतने के साथ अनुष्का के अंदर पहले से काफी कुछ बदलाव आ गया था.

अपने प्यार के अंदर अचानक से आए बदलाव को देख कर वह उदास रहने लगा था. मई महीने में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह दिल्ली से अपने घर फर्रुखाबाद गया था. कुछ दिन घर रुकने के बाद वह 25 मई, 2023 को वाराणसी घूमने की बात कह कर वाराणसी आ गया था. वाराणसी आने के बाद उस ने अस्सी क्षेत्र के पैराडाइज होटल में एक कमरा बुक करा लिया था.

राहुल और शादाब ने पूछताछ में बताया कि देवांश यादव अनुष्का तिवारी से जबरदस्ती मिलना चाहता था और उसे परेशान करता था, जिस के कारण अनुष्का काफी परेशान चल रही थी. देवांश यादव की हरकतों से परेशान हो कर तीनों ने देवांश यादव की हत्या की योजना बनाई.

तय योजना के मुताबिक अनुष्का ने पहले देवांश को वाट्सऐप काल कर के वाराणसी बुलाया. 25 मई को जब देवांश वाराणसी आया तो उस ने पैराडाइज होटल में कमरा ले लिया. इसी दौरान उस की अनुष्का से मुलाकात भी हुई. अनुष्का ने योजना के तहत देवांश का भरोसा जीत लिया था.

अनुष्का से मिलते हुए देवांश ने कहा, ”तुम्हें पता है कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं जी सकता.’’

देवांश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनुष्का बीच में ही उस की बात काटते हुए उत्साह से उस का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में लेते हुए बोली, ”मैं भी कैसे जीती हूं तुम्हें क्या पता? पढ़ाई की वजह से मैं बात नहीं कर पा रही थी तो तुम कुछ और ही सोचने लगे थे.’’

”अरे… अरे ऐसी बात नहीं है अनुष्का, तुम जिस दिन बात नहीं करती हो उस दिन मेरा मन किसी काम, पढ़ाईलिखाई में भी नहीं लगता.’’

कुछ देर अनुष्का के साथ बिताने के बाद देवांश होटल के अपने कमरे में चला गया था. अनुष्का के प्रति देवांश जहां पूरी तरह से आश्वस्त हो चला था तो वहीं अनुष्का के मन में चल रही साजिश से वह पूरी तरह से अनजान था.

27 मई, 2023 को अनुष्का ने साजिश के तहत देवांश को अस्सी नाला पुलिया के पास बुलाया, जहां पहले से ही वह इटिओस कार के साथ खड़ी थी. देवांश के करीब पहुंचे ही अनुष्का ने कार का दरवाजा खोल कर पीछे की सीट पर अपने बगल में देवांश को भी बैठा लिया.

गाड़ी शादाब चला रहा था, जबकि राहुल सेठ स्कूटी से कार के पीछेपीछे चल रहा था. कार में बैठने के बाद अनुष्का ने मैंगो जूस देवांश को पीने के लिए दिया, जिसे पीते ही देवांश झपकी लेने लगा था.

दरअसल, देवांश के जूस में अनुष्का ने नींद की गोलियों का पाउडर डाल दिया था, जिसे पीते ही कुछ देर बाद देवांश लुढ़क गया था. देवांश के बेहोश होने पर कार को तेजी से चंदौली की ओर दौड़ा दिया गया था कि इसी बीच देवांश के शरीर में हलचल होती देख अनुष्का घबरा गई. एक सुनसान जगह देख कर शादाब ने गाड़ी रोकी और अनुष्का के साथ मिल कर सड़क के किनारे पड़ी गिट्टियों पर देवांश को पटक दिया. तभी राहुल सेठ ने पेचकस से देवांश के गले और सीने में अनगिनत वार कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को फेंक कर चलते बने.

जहां पर देवांश की लाश को फेंका गया था, वहां सड़क कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. देवांश को मौत की नींद सुलाने के बाद उन्होंने उस के मोबाइल को बिहार की ओर जा रहे एक ट्रक पर फेंक दिया और वापस वाराणसी लौट आए थे. देवांश की हत्या करने के बाद उस की लाश को जिस स्थान पर फेंका गया था, वह चंदौली जिले के सिंघीताली पुलिया के पास का था.

उधर एक युवक की लाश मिलने की जानकारी होने पर चंदौली पुलिस शव को कब्जे में ले कर छानबीन में जुटी हुई थी, लेकिन कोई जानकारी नहीं हो पाई थी. युवक की हत्या क्यों हुई, किस ने और क्यों की, यह रहस्य बना हुआ था, लेकिन वाराणसी जिले के भेलूपुर थाना पुलिस ने इस त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग हत्याकांड का खुलासा करते हुए प्रेमिका सहित 3 को गिरफ्तार कर परतदरपरत देवांश हत्याकांड मामले का खुलासा खुदबखुद होता चला गया. हत्यारे प्रेमीप्रेमिका और एक अन्य युवक को भेलूपुर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम व एडीसीपी चंद्रकांत मीणा के सामने पेश किया तो उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस कर केस का खुलासा कर दिया.

अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल पेचकस व घटना में प्रयुक्त स्कूटी के साथ ही मृतक देवांश की चप्पलें, फटी हुई टीशर्ट का टुकड़ा, लोअर, कड़ा व कलावा भी बरामद कर लिया.

पुलिस ने हत्या के आरोपी राहुल सेठ, शादाब आलम और अनुष्का तिवारी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 3

डा. समीर ने कई मरीजों को क्यों लगाए यूज्ड पेसमेकर

उत्तर प्रदेश के इटावा की रहने वाली 46 साल की नूरबानो को अचानक दिल का दौरा पड़ा. घर वाले फौरन उसे ले कर सैफई के आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे पेसमेकर लगाने की सलाह दी.

लेकिन हद तो तब हो गई कि औपरेशन के बाद सर्जन डा. समीर सर्राफ ने पेसमेकर सीने के अंदर नहीं, बाहर ही चिपका कर छोड़ दिया. इस के बाद नूरबानो के साथसाथ उस के घर वाले भी करीब 24 महीने तक इस पेसमेकर से जूझते रहे और आखिरकार नूरबानो की मौत हो गई.

इटावा की ही रहने वाली 40 साल की नजीमा को भी दिल की बीमारी थी. उस के परिवार वालों ने उसे साईं मैडिकल यूनिवर्सिटी हौस्पिटल में भरती करवाया. उस के इलाज में करीब 4 लाख रुपए खर्च किए. उसे भी डा. समीर सर्राफ ने पेसमेकर लगाया, मगर अंत में नजीमा की भी जान चली गई.

आमतौर पर मरीज डाक्टर पर आंखें मूंद कर विश्वास करते हैं, लेकिन जब कोई डाक्टर चंद नोटों की खातिर अपने पेशे से ही गद्दारी करने लगे, लोगों की जिंदगी को ही दांव पर लगा दे तो कोई क्या ही कर सकता है. डा. समीर सर्राफ की गिरफ्तारी के बाद ऐसी ऐसी हैरतअंगेज कहानियों का खुलासा हो रहा है कि जांच करने वाली पुलिस के साथसाथ समूचा देश भी हैरान हो कर रह गया.

इटावा के एसएसपी संजय कुमार वर्मा के अनुसार, पुलिस को अब तक की जांच में पता चला है कि  डा. समीर सर्राफ ने कुछ मामलों में तो मरीजों को यूज्ड यानी कि इस्तेमाल किए गए पेसमेकर ही धोखे से लगा डाले थे.

यानी कि यदि किसी मरीज की मौत हो गई थी तो धोखे से उस मरीज का पेसमेकर निकाल लिया और फिर उसी पेसमेकर को किसी दूसरे मरीज के अंदर प्लांट कर दिया, जबकि वह दूसरे मरीज से नए और ब्रांडेड पेसमेकर के पैसे पहले से ही वसूल चुका होता था. पुलिस ऐसी अजीबोगरीब और दिल दहला देने वाली शिकायतों को भी वेरीफाई करने में जुटी हुई है.

और भी हो सकते हैं चौंकाने वाले खुलासे

फिलहाल पुलिस को अभी तक की जांच में इस रैकेट में 4 से 5 लोगों के शामिल होने का पता चला है. पुलिस उन सभी की भूमिका की जांच भी कर रही है और बहुत मुमकिन भी है कि जल्द ही कानून के हाथ उन सभी के गरेबान तक भी होंगे. अब तक करीब 600 लोगों को नकली पेसमेकर लगाए जाने की बात सामने आई है.

पुलिस को पेसमेकर वाले करीब 200 मरीजों के मरने की जो जानकारी मिली है, जांच कर पुलिस यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि मरे हुए मरीजों में से कितने नकली पेसमेकर का शिकार बने?

इसी बीच पुलिस ने डा. समीर सर्राफ का पासपोर्ट भी जब्त करने की कोशिश शुरू कर दी है, ताकि अगर कल को यह शातिर अपराधी जमानत पर बाहर भी निकल आए तो उस के लिए विदेश भागना संभव न हो सके.

कथा लिखने तक डा. समीर सर्राफ जेल में ही था. पुलिस की जांच जारी थी. आने वाले दिनों में कई और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं.

(कहानी पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है)

पेसमेकर क्या होता है और यह कैसे करता है काम?

पेसमेकर एक छोटा उपकरण होता है जो असामान्य हृदय लय को नियंत्रित करने में मदद करता है. इसे छाती या पेट के क्षेत्र में लगाया जाता है. पेसमेकर उस व्यक्ति को लगाया जाता है, जो अतालता लक्षणों (बेहोशी, सांस की तकलीफ, थकान) से पीड़ित होता है. अतालता एक ऐसी बीमारी है, जिस में व्यक्ति का दिल बहुत धीमा या बहुत तेज धड़कता है.

पेसमेकर 3 प्रकार के होते हैं, एकल कक्ष पेसमेकर, चेथरूम वाला पेसमेकर और तीसरा बायवेंट्रिकल पेसमेकर. सिंगल कक्ष या एकल पक्ष पेसमेकर में एकएक लीड हार्ट के दाएं वेंट्रिकल और ऊपरी कक्ष (दाएं अलिंद) दोनों से यात्रा होती है.

क्वांटम कक्ष वाले पेसमेकर में 2 लीड हृदय के सिद्धांत (दाएं वेंट्रिकल) और ऊपरी कक्ष (दाएं अलिंद) से अलगअलग जुड़े होते हैं. जबकि तीसरे बायवेंट्रिकल पेसमेकर में 2 या 3 लीड अलगअलग होते हैं. अलगअलग कण (दाएं वेंट्रिकल), ऊपरी कक्ष (दाएं एट्रियम) और हृदय के बाएं वेंट्रिकल दोनों से जुड़े होते हैं.

पेसमेकर में एक कंप्यूटरीकृत बिल्डर, बैटरी और गोदाम होते हैं. अंतिम पेसमेकर के आखिर में सेंसर वाला तार होता है, जिस से व्यक्ति के हृदय की विद्युत गतिविधि का पता लगाया जाता है.

पेसमेकर लगाने की पूरी प्रक्रिया में एक से 2 घंटे का समय लग सकता है. उस के बाद हृदय रोग विशेषज्ञ मरीज की छाती के ऊपरी भाग में प्लास्टर बोन के नीचे एक छोटा सा चीरा लगाता है. चीरा 2-3 इंच का होता है, उस के बाद फ्लोरोस्कोपी की मदद से डाक्टर पेसमेकर की लीड को मरीज के हृदय कक्ष में शामिल करता है.

पेसमेकर से वैसे तो कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार इस को लगाने से जटिलताएं पैदा हो जाती हैं, जो नुकसानदायक होती हैं. मसलन पेसमेकर में लगी चीजों या फिर पेसमेकर लगाने के दौरान दी गई दवाओं से भी मरीज को एलर्जी हो सकती है.

कई मशीनों मसलन, मेटल डिटेक्टर वगैरह शरीर में लगे पेसमेकर की गति में असर डालते हैं, इसलिए अकसर पेसमेकर वाले मरीजो को ऐसी किसी मशीन के इस्तेमाल से या इन से दूर रहने की सलाह दी जाती है. भारत में सब से सस्ता पेसमेकर 40 हजार रुपए का आता है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि पेसमेकर खराब है. हां, अगर पेसमेकर घटिया है तो अवश्य ही जानलेवा हो सकता है.