रिश्तों की आग में जली संजलि – भाग 2

लोगों ने श्रद्धांजलि के साथ साथ मांगें भी बढ़ा दीं

गांव में एकत्र लोगों ने मांगों को ले कर हंगामा कर दाह संस्कार रोक दिया. परिवार व संगठनों की मांग थी कि परिवार के एक सदस्य को नौकरी व एक करोड़ रुपए का मुआवजा दिया जाए. पुलिस भीड़ के सामने खुद को असहाय महसूस कर रही थी.

यह देख एसएसपी ने वहां भारी संख्या में पुलिस फोर्स भेज दी. भीड़ ने हंगामा किया तो कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए पुलिस को हलका बल प्रयोग करना पड़ा. पुलिस अधिकारियों के काफी समझाने के बाद रात साढ़े 9 बजे संजलि का अंतिम संस्कार हो सका.

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संजलि की मौत के बाद स्कूलों कालेजों के साथ विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने हत्यारों को गिरफ्तार कर संजलि को इंसाफ दिलाने की मांग को ले कर कैंडिल मार्च निकाले. संजलि के शोक में लालऊ का बाजार भी बंद रहा.

इस घटना में नया मोड़ तब आया, जब संजलि की मौत से दुखी हो कर उस के ताऊ के 24 साल के बेटे योगेश ने एक दिन बाद ही 20 दिसंबर की सुबह जहर खा लिया. उसे परिवार वाले अस्पताल ले गए, जहां उपचार के दौरान उस की मौत हो गई.

योगेश द्वारा अचानक आत्महत्या कर लिए जाने से सभी दुखी व स्तब्ध थे. पुलिस की संदिग्धों की सूची में योगेश पहले से ही शक के घेरे में था. पुलिस उस का मोबाइल जब्त कर के छानबीन करने लगी.

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संजलि के परिवार के नजदीकी लोगों का कहना था कि संजलि डेली डायरी लिखती थी. उसे जो भी अच्छा लगे, बुरा लगे, उसे डायरी में लिखती थी. 15 दिन पहले उस के साथ छेड़छाड़ की जो घटना हुई थी, उस के बारे में उस ने अपने घर वालों को नहीं बताया था.

लेकिन उस ने अपनी डायरी में जरूर लिखा होगा. पुलिस ने उस के घर पर डायरी खोजी लेकिन डायरी घर में नहीं मिली. उस की सहेलियों ने बताया कि वह डायरी को अपने बस्ते में रखती थी, जो घटना में जल कर राख हो चुका था.

मौत से पहले संजलि ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में डबडबाई आंखों और थरथराते होंठों से मां से कहा था, ‘‘मां, यदि मैं ठीक हो गई तो हमलावरों को छोड़ूंगी नहीं, उन्हें सबक जरूर सिखाऊंगी. और अगर मैं मर गई तो हमलावरों को छोड़ना मत, उन्हें सजा जरूर दिलाना. मेरे साथ बहुत बुरा हुआ है, ऐसा किसी के साथ न हो.’’

नेताओं ने लगाए संजलि के घर के चक्कर

संजलि को पैट्रोल डाल कर जिंदा जलाने की घटना की गूंज प्रदेश की विधानसभा तक पहुंच गई. 21 दिसंबर को लालऊ में हरेंद्र सिंह के घर दिन भर नेताओं के आने का तांता लगा रहा.

प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा ने पीडि़त परिजनों से मुलाकात कर उन्हें जहां सांत्वना दी, वहीं न्याय का भी पूरा भरोसा दिलाया. संजलि के पिता हरेंद्र सिंह की मांग थी कि बड़ी बेटी अंजलि को सरकारी नौकरी और परिवार को आर्थिक सहायता दी जाए.

उपमुख्यमंत्री ने 5 लाख रुपए की आर्थिक सहायता सरकार की ओर से देने की घोषणा की. घटना के 3 दिन बाद भी संजलि के हत्यारों के न पकड़े जाने से गांव में गमगीन माहौल था. ग्रामीणों व विभिन्न संगठनों का आक्रोश बढ़ता जा रहा था. प्रदेश ही नहीं, देश में सनसनी फैला चुके इस जघन्य हत्याकांड के गुनहगार पुलिस की गिरफ्त से दूर थे.

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संजलि की जघन्य हत्या पर केवल आगरा में ही नहीं, बल्कि मैनपुरी, फिरोजाबाद, शिकोहाबाद, मथुरा, एटा, बुलंदशहर, लखनऊ, देश की राजधानी दिल्ली में भी आक्रोश था.

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राहुल गांधी के निर्देश पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर संजलि के घर वालों से मिलने गांव पहुंचे. उन्होंने सरकार से इस मामले की सीबीआई जांच की मांग करते हुए पीडि़त परिवार को 50 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दिए जाने की बात कही.

संजलि को जिंदा जला कर मार देने की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी, जिस से पुलिस पर दबाव बढ़ता जा रहा था. लेकिन पुलिस अपने काम में जुटी रही. पुलिस की जांच सही दिशा में आगे बढ़ रही थी.

पुलिस को मिली जांच की दिशा

संजलि को जिन 2 बाइक सवारों ने जलाया था, पुलिस उन में योगेश को पुलिस मुख्य संदिग्ध मान रही थी, पर उस ने आत्महत्या कर ली थी. उस का दूसरा साथी कौन था, यह जानकारी पुलिस को नहीं मिल पा रही थी. गुत्थी उलझने से पुलिस असमंजस में थी.

पुलिस के आला अधिकारी इस हत्याकांड को सुलझाने में जुटे थे. इस के लिए एक दरजन से अधिक टीमें बनाई गईं. इन टीमों को अलगअलग काम सौंपे गए. हत्यारों का पता लगाने के लिए पुलिस ने शहरी क्षेत्रों में सूत्र तलाशने के साथ ही संजलि के स्कूल के आसपास के पैट्रोल पंपों व रास्ते के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी.

संजलि के गांव में भी सादा कपड़ों में महिला पुलिस लगा दी गई. इस के साथ ही योगेश के दोस्तों की सूची बना कर उन पर निगाह रखी जाने लगी.

पुलिस ने इस जघन्य वारदात को अंजाम देने के मामले में लालऊ व आसपास के गांवों से 20 युवकों को हिरासत में ले कर उन से पूछताछ की. लेकिन घटना के कई दिन बाद भी आरोपियों के संबंध में कोई ठोस सुराग नहीं मिल सका. पुलिस गोपनीय तरीके से जांच में जुटी रही.

इस बीच 22 दिसंबर को एसएसपी अमित पाठक ने विधिविज्ञान प्रयोगशाला, आगरा की टीम को घटनास्थल पर बुलाया. फोरैंसिक वैज्ञानिक अरविंद कुमार के नेतृत्व में विशेषज्ञों की एक टीम ने शनिवार को क्राइम सीन रीक्रिएट किया. साथ ही खाई से सड़क तक की दूरी नापी.

यह जानने के लिए पैट्रोल पंप पर लगे सीसीटीवी फुटेज भी खंगाले गए कि वहां से किस ने बोतल में पैट्रोल लिया. लेकिन पुलिस को कोई ऐसा सबूत नहीं मिला, जिस से इस केस के आरोपी पकड़े जा सकें.

फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम ने बताया कि संजलि को अचानक रोक कर उस पर पैट्रोल नहीं डाला गया बल्कि कुछ दूरी से उस पर पैट्रोल फेंका गया था. पैट्रोल में मोबिल औयल मिला हुआ था, यह सड़क पर जहां जहां गिरा, वहां निशान अभी तक बने हुए थे.

घटना के पांचवें दिन आगरा निवासी एक युवक जो आरओ का काम करता है, ने एसएसपी अमित पाठक को बताया कि 18 दिसंबर को वह अपनी बाइक से जगनेर जा रहा था. नामील के पास उस के मोबाइल की घंटी बजी. जब वह फोन पर बात कर रहा था, तभी बाइक सवार 2 युवकों ने एक लड़की के ऊपर पैट्रोल छिड़क कर आग लगा दी.

दोनों युवक पैशन प्रो बाइक पर थे. इसी बीच छात्रा चीखी और उस के शरीर से आग की लपटें उठने लगीं. उन में से एक युवक काले रंग की जैकेट पहने था. डर की वजह से वह भी घटनास्थल से चुपचाप आगे बढ़ गया. पुलिस ने संजलि के स्कूल के पास एक शोरूम के बाहर लगे सीसीटीवी की फुटेज भी देखी.

फुटेज में संजलि साइकिल से जाती हुई दिखाई दे रही थी. एक बाइक पर 2 युवक व दूसरी बाइक पर एक युवक हैलमेट लगाए उस का पीछा करते दिखाई दिए. पुलिस को अब तक की गई जांच में यह पता चल गया था कि इस हत्याकांड को पूरी प्लानिंग से अंजाम दिया गया था.

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घटनास्थल से जो लाइटर मिला, वह गन शेप में था. एसएसपी अमित पाठक ने उस लाइटर को विभिन्न वाट्सऐप ग्रुप में शेयर किया और यह भी पूछा कि लालऊ आगरा शहर में किन किन दुकानों पर ऐसा लाइटर मिलता है. पुलिस भी इस जांच में जुट गई.

पुलिस सदर, नामनेर, चर्चरोड, किनारी बाजार आदि जगहों की उन दुकानों पर पहुंची, जहां गैस चूल्हे और लाइटर मिलते हैं. सभी जगह से लाइटर के फोटोग्राफ लिए गए.

रिश्तों की आग में जली संजलि – भाग 1

18 दिसंबर, 2018 को मंगलवार था. स्कूल की छुट्टी के बाद संजलि अपनी सहेलियों के साथ साइकिल से घर जाने के लिए निकली. सहेलियों से बातचीत करती हुई वह चौराहे पर पहुंची. वहां से वह अपने गांव की सड़क की तरफ मुड़ गई. उस की सहेलियां दूसरी सड़क पर चली गईं.

संजलि ने सहेलियों से अगले दिन मिलने का वादा किया था, लेकिन उस के साथ रास्ते में एक ऐसी घटना घट गई, जो दिल को दहलाने वाली थी. रास्ते में 2 बाइक सवार युवकों ने पैट्रोल डाल कर उसे जिंदा जला दिया.

यह घटना उत्तर प्रदेश के विश्वप्रसिद्ध आगरा शहर में घटी. यहां के थाना मलपुरा का एक गांव है लालऊ. हरेंद्र सिंह अपने परिवार के साथ लालऊ गांव में ही रहते थे. संजलि उन्हीं की मंझली बेटी थी. हरेंद्र सिंह सिकंदरा स्थित एक जूता फैक्टरी में जूता कारीगर थे. उन की 15 वर्षीय बेटी संजलि घर से करीब डेढ़ किलोमीटर दूर नौमील गांव स्थित अशरफी देवी छिद्दा सिंह इंटर कालेज में 10वीं कक्षा में पढ़ती थी.

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हर रोज की तरह उस दिन भी स्कूल की छुट्टी दोपहर डेढ़ बजे हुई. छुट्टी के बाद संजलि को चले अभी 10-15 मिनट ही हुए थे. जब वह घर से 500 मीटर पहले जगनेर रोड पर लालऊ नाले के पास पहुंची, तभी 2 बाइक सवार युवक पीछे से संजलि की साइकिल के बराबर में आए.

यह देख कर वह डर गई और साइकिल की गति तेज कर दी. क्योंकि कुछ दिन पहले भी 2 युवकों ने उस के साथ छेड़छाड़ की थी. वह बात उस ने अपने घर वालों को नहीं बताई थी. साइकिल की गति तेज होते ही युवकों की बाइक की गति तेज हो गई. पीछा करने वाले कौन हैं और क्या चाहते हैं, यह सोच कर संजलि परेशान थी. इस से पहले कि वह कुछ समझ पाती, बाइक पर पीछे बैठे युवक ने हाथ में पकड़ी प्लास्टिक की बोतल से संजलि के ऊपर पैट्रोल डाला और फुरती से लाइटर से आग लगा दी.

इतना ही नहीं, हमलावरों ने जलती हुई संजलि को सड़क किनारे खाई में धक्का दे दिया, इस से वह खाई में जा गिरी. दोनों युवक वारदात को अंजाम दे कर वहां से फरार हो गए.

संजलि आग की लपटों से घिर गई थी, उस के खाई में गिरने से वहां की झाडि़यों ने भी आग पकड़ ली. आग में घिरी संजलि हिम्मत कर के जैसे तैसे सड़क पर पहुंची, उस की मर्मांतक चीख सुन कर कई राहगीर रुक गए. जलती हुई लड़की को देख कर उन के होश उड़ गए.

संजलि ने जमीन पर लेट कर आग बुझाने की कोशिश की. तब तक आग से उस की पीठ पर लटका स्कूली बैग पूरी तरह जल चुका था. उसी समय वहां से एक बस गुजर रही थी. दिल दहलाने वाला मंजर देख कर बस चालक मुकेश ने बस वहीं रोक ली और बस में रखा अग्निशमन यंत्र ले कर दौड़ा लेकिन दुर्भाग्य से वह चल नहीं पाया. इस पर वह बस में रखा दूसरा यंत्र ले कर आया और आग बुझाई. इस बीच बस की सवारियां व अन्य राहगीर भी वहां एकत्र हो गए, आग बुझाने के प्रयास में बस चालक मुकेश के हाथ भी झुलस गए थे.

वहां से अजय नाम का एक युवक भी गुजर रहा था. उस ने जलन से तड़पती संजलि को पहचान लिया और फोन से संजलि के घर खबर कर दी. घटना की जानकारी मिलते ही उस के मातापिता के होश उड़ गए. वे गांव के लोगों के साथ बदहवास से घटनास्थल पर पहुंचे. आग से झुलसी संजलि ने पूरे घटनाक्रम की जानकारी अपने घर वालों को दे दी.

इसी बीच किसी ने 100 नंबर पर फोन कर के इस घटना की सूचना पुलिस को दे दी थी. सूचना मिलते ही पुलिस कंट्रोल रूम की टीम वहां पहुंच गई. पुलिस ने संजलि को आगरा के एस.एन. मैडिकल कालेज के आईसीयू में भरती कराया. डाक्टरों ने बताया कि वह 75 फीसदी जल चुकी है.

उस समय प्रदेश के डीजीपी ओ.पी. सिंह आगरा में ताजमहल के पास स्थित अमर विलास होटल में आगरा रेंज के अधिकारियों के साथ मीटिंग में थे. वहां मौजूद अधिकारियों को सरेराह एक छात्रा को जिंदा जलाने की घटना की सूचना मिली तो पुलिस अधिकारियों के होश उड़ गए.

एडीजी अजय आनंद, डीआईजी लव कुमार और एसएसपी अमित पाठक अस्पताल पहुंच गए. उधर घटनास्थल पर भी थाना पुलिस पहुंच गई थी. पुलिस टीम ने घटनास्थल से प्लास्टिक की एक खाली बोतल व लाइटर जब्त किया.

पुलिस अधिकारियों ने संजलि से बात कर पूरे घटनाक्रम की जानकारी ली. झुलसी अवस्था में वह रुकरुक कर बात कर पा रही थी. उस ने बताया कि 15 दिन पहले 2 युवकों ने उस का पीछा किया था. वह उन्हें नहीं जानती.

पुलिस को संजलि के घर वालों से पता जला कि 23 नवंबर को संजलि के पिता हरेंद्र पर मलपुरा नहर के पास 2 अज्ञात लोगों ने हमला किया था, जिस में हरेंद्र को मामूली चोटें आई थीं. लेकिन उन्होंने इस की थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई थी. मारपीट करने वाले कौन थे, हरेंद्र पहचान नहीं पाए थे.

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कुछ नहीं समझ पा रही थी पुलिस

पुलिस की एक टीम मौके पर जांचपड़ताल करने लगी, जबकि दूसरी टीम हमलावर बाइक सवारों की तलाश में निकल गई. पुलिस पिता पर हमले की कडि़यों को बेटी के साथ हुई घटना से जोड़ कर देखने का प्रयास कर रही थी. साथ ही यह भी पता लगाने का प्रयास कर रही थी कि कुछ दिन पूर्व संजलि के साथ छेड़छाड़ करने वाले 2 युवक कौन थे.

15 साल की किशोरी की किसी से क्या दुश्मनी हो सकती है, जिस की वजह से उसे जिंदा जलाने की कोशिश की गई. पुलिस ने संजलि की सहेलियों व स्कूल स्टाफ से इस संबंध में पूछताछ की. पुलिस अनुमान लगा रही थी कि आरोपी संजलि के परिचित हो सकते हैं. ऐसा इसलिए माना जा रहा था कि दोनों ने हैलमेट लगाया था, ऐसा उन्होंने पहचान छिपाने के लिए किया होगा.

जिस स्थान पर वारदात हुई, वह घर से करीब आधा किलोमीटर पहले और स्कूल से एक किलोमीटर दूरी पर था. माना यह भी जा रहा था कि हमलावर स्कूल से ही अंजलि के पीछे लगे होंगे. संजलि और उस के परिवार वालों से पूछताछ के बाद भी पुलिस को ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से घटना का खुलासा हो सके.

गांव के लोग भी कुछ नहीं बता रहे थे, न पुलिस को ऐसा कोई व्यक्ति मिल रहा था जिस ने हमलावरों को भागते हुए देखा हो. पुलिस ने अज्ञात हमलावरों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

गंभीर रूप से जली किशोरी की गंभीर हालत को देखते हुए उसी दिन शाम 6 बजे उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया. सफदरजंग अस्पताल के डाक्टर संजलि के इलाज में जुट गए. उन का कहना था कि 48 घंटे गुजर जाने के बाद ही उस की हालत के बारे में कुछ कहा जा सकता है.

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आखिर 36 घंटे बाद 19 नवंबर की रात डेढ़ बजे संजलि जिंदगी की जंग हार गई. उसी दिन पोस्टमार्टम के बाद उस का शव शाम साढ़े 5 बजे उस के गांव लालऊ पहुंचा. संजलि जब दिल्ली के अस्पताल में जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रही थी, उस समय कई सामाजिक संगठनों व ग्रामीणों ने हमलावरों की गिरफ्तारी व पीडि़ता को आर्थिक सहायता दिए जाने की मांग को ले कर जुलूस भी निकाले थे. इसलिए संजलि के शव के साथ ही बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स उस के गांव पहुंच गई थी.

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल – भाग 3

गड़े धन के लालच में क्यों फंसा अजय शुक्ला

परिवार व गांव वालों ने नीरज विश्वकर्मा को ले कर अजय शुक्ला के कान भरने शुरू किए तो उस ने उस के घर आने पर पूरी तरह से रोक लगा दी. इस के बाद संतोष कुमारी ने प्रेम प्रसंग में बाधा बन रहे पति को समझाने की काफी कोशिश की, लेकिन उस ने उस की एक भी बात नहीं मानी.

संतोष कुमारी जानती थी कि उस का पति गड़े धन के लालच में कुछ भी कर सकता है. क्योंकि इस से पहले भी वह गड़े धन की लालसा में कई बार तांत्रिकों से मिल चुका था.

उस के बाद भी वह गड़ा धन पाने के लिए कुछ न कुछ हरकतें करता ही रहता था. इस के लालच में वह कहीं भी जा सकता है, जिस के सहारे उसे मौत की नींद सुलाना भी बहुत ही आसान काम था. प्रेमी को पाने के लिए उस ने उस के पति को ठिकाने लगाने का फैसला कर लिया.

इस के बाद वह एक दिन नीरज विश्वकर्मा की दुकान पर जा कर मिली और उसे अपनी योजना के बारे में बताया. नीरज विश्वकर्मा तो पूरी तरह से संतोष कुमारी का दीवाना हो चुका था. वह उसे पाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था. संतोष कुमारी की बात सुनते ही वह उस का साथ देने को तैयार हो गया.

फिर उसी योजना के तहत एक दिन गड़े धन का लालच दे कर नीरज ने अजय शुक्ला से बात की. कहीं पर गड़े धन की जानकारी मिलते ही अजय शुक्ला उस के साथ जाने के लिए तैयार हो गया.

यह बात अजय शुक्ला ने अपनी पत्नी संतोष कुमारी को बताई तो उस ने भी उस की हां में हां कर दी. वह तो पहले से ही चाहती थी कि वह किसी तरह से उस के प्रेमी नीरज विश्वकर्मा के साथ चला जाए.

योजना बनाने के बाद नीरज विश्वकर्मा और उस की प्रेमिका संतोष ने टीवी पर क्राइम स्टोरीज के सीरियल देखने शुरू किए. क्राइम सीरियलों में हमेशा ही अपराध करना और उस से बचने के उपायों को बहुत ही अच्छे तरीके से समझाया जाता है. उन सीरियलों को देख कर संतोष कुमारी को पूरा विश्वास हो गया था कि वह भी अपने पति की हत्या करवा कर उस के जुल्म से पूरी तरह से बच जाएगी.

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10 बच्चे कैसे हुए अनाथ 

एक दिन नीरज विश्वकर्मा का फोन आते ही अजय घर से बाइक उठा कर चलने को तैयार हुआ तो संतोष कुमारी ने उस का मोबाइल घर पर ही यह कह कर रखवा लिया कि कहीं रात में गिर गया तो कहां कहां ढूंढोगे.

संतोष कुमारी जानती थी कि पुलिस मोबाइल की लोकेशन निकाल कर उस का पता कर सकती है. अगर उस के पास मोबाइल नहीं होगा तो उस के मरने के बाद पुलिस भी उस का अता पता नहीं कर पाएगी और जंगली जानवर उस की लाश को खा जाएंगे.

पत्नी के कहने पर अजय शुक्ला ने मोबाइल घर पर ही छोड़ दिया. उस के बाद वह सीधा नीरज विश्वकर्मा की दुकान पर जा कर उस से मिला. उस वक्त तक शाम हो चुकी थी. अजय शुक्ला के दुकान पर पहुंचते ही नीरज विश्वकर्मा अपनी बाइक से अजय शुक्ला के साथ चल दिया. नीरज कुमार ने अपनी बाइक रास्ते में पडऩे वाले पैट्रोल पंप पर खड़ी कर दी.

फिर वह अजय शुक्ला की बाइक पर बैठ कर उसे ले कर रामसनेही घाट कोतवाली के प्रतापपुरवा के जंगल में ले गया. वहां पर जा कर नीरज विश्वकर्मा ने अजय शुक्ला को एक जगह दिखाते हुए बताया कि गड़ा धन इसी जगह के नीचे है. इस जगह को किसी तरह से खोदना होगा.

अजय शुक्ला गड़े धन के लालच में पूरी तरह से पागल सा हो गया था. उस के मन में अमीर बनने के सपने घूमने लगे थे. जैसे ही अजय शुक्ला अपनी बाइक से उतर कर उस जगह की तरफ को जाने लगा तो पीछे से मौका पाते ही नीरज विश्वकर्मा ने उसी के हेलमेट से उस के सिर पर जोरदार वार कर दिया.

अचानक सिर पर ताबड़तोड़ हैलमेट की चोट से अजय शुक्ला बेहोश हो कर जमीन पर गिर पड़ा. उस के बाद नीरज ने चाकू से उस की हत्या कर दी.

अजय शुक्ला की हत्या करने के बाद नीरज विश्वकर्मा अपने घर चला आया. अजय शुक्ला की हत्या करने के बाद नीरज शुक्ला ने उसी के नंबर पर फोन कर उस की सूचना अपनी प्रेमिका संतोष कुमारी को दी, ताकि अगर यह भेद खुलता भी है तो पुलिस उस की बीवी पर शक न कर सके.

इस केस के खुलते ही पुलिस ने अपने पति की हत्या की साजिश रचने वाली संतोष्ज्ञ कुमारी और नीरज विश्वकर्मा को अजय शुक्ला को अगवा कर उस की हत्या करने के आरोप में कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया था.

इस मामले में मृतक अजय शुक्ला की पत्नी की तरफ से 5 लोगों के खिलाफ दर्ज कराई गई रिपोर्ट में बदलाव किया गया. उसी अभियोग में धारा 34 भादंवि को जोड़ दिया गया तथा आलाकत्ल चाकू की बरामदगी के आधार पर धारा 4/25 आम्र्स ऐक्ट व धारा 120 बी/201 भी जोड़ दी गई. भले ही अपने प्रेम प्रसंग को छिपाने और अपने प्रेम में बाधा बने अजय शुक्ला को उसी की पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिल कर षडयंत्र के तहत रास्ते से हटा दिया था, लेकिन पुलिस की सतर्कता के चलते दोनों ही जेल की सलाखों के पीछे चले गए थे.

उन के जेल जाते ही 10 बच्चे पूरी तरह से अनाथ हो गए थे. आरोपी नीरज विश्वकर्मा के भी 5 बच्चे थे और संतोष कुमारी के भी 5.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल – भाग 2

इस कहानी की शुरुआत होती है उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के थाना असंद्रा के एक छोटे से गांव मल्लपुर मजरे सुपामऊ से. 40 वर्षीय अजय शुक्ला इसी गांव का रहने वाला था और वह किसी तरह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. उस की शादी कई साल पहले संतोष कुमारी के साथ हुई थी.

समय के साथसाथ संतोष कुमारी 5 बच्चों की मां बनी. घर में बच्चों के हो जाने के बाद अजय शुक्ला बहुत ही खींचतान कर बच्चों का लालनपालन कर पाता था.

घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने से वह लगभग 15 लाख रुपयों के कर्ज के बोझ में दब गया था. नशे और जुए का आदी होने के कारण उस ने अपनी जुतासे की जमीन भी बेच डाली थी. लेकिन जमीन बेच कर उस ने पैसे जुए और शराब में उड़ा दिए. जिस के बाद उस की पत्नी हर वक्त उस से खफा रहती थी.

अब से लगभग 6 साल पहले संतोष कुमारी कुछ सामान खरीदने के लिए महमूदपुर गई थी. नीरज कुमार विश्वकर्मा महमूदपुर में ही एक घड़ी और मोबाइल की दुकान चलाता था. अपने घर का सामान खरीदने के बाद वह जैसे ही अपने घर वापस आ रही थी, उस की नजर एक मोबाइल की दुकान पर बैठे नीरज कुमार पर पड़ी.

संतोष कुमारी का चलते वक्त मोबाइल नीचे गिर गया था, जिस के कारण उस का मोबाइल का स्क्रीन गार्ड टूट गया था. वह स्क्रीन गार्ड लगवाने के लिए उस के पास पहुंची. उसी दौरान दोनों की पहली मुलाकात हुई थी. नीरज कुमार के व्यवहार से संतोष कुमारी पहली ही मुलाकात में काफी प्रभावित हुई थी.

जब तक नीरज कुमार ने उस के मोबाइल पर स्क्रीन गार्ड लगाया, तब तक उस ने नीरज से सारी जानकारी जुटा ली थी. उस के बाद वह उस का मोबाइल नंबर भी ले आई थी.

उस दिन के बाद नीरज कुमार संतोष कुमारी के दिल में बस गया. संतोष कुमारी उस से बात करने के लिए बेचैन हो उठी. उस ने कई बार उसे फोन मिलाने की कोशिश की, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह किस बहाने से उसे फोन करे.

आखिरकार उस ने एक दिन हिम्मत कर के उस ने फोन मिलाया. नीरज कुमार तुरंत ही उस की आवाज पहचान गया. फिर उस दिन दोनों की काफी समय तक बात हुई. दोनों के बीच एक बार फोन पर बात हुई तो आगे यह सिलसिला बढ़ता ही गया.

दरअसल, संतोष कुमारी को नीरज कुमार से प्यार हो गया, जिस से वह अकसर उस से घंटों घंटों तक बात करने लगी थी. उस के बाद दोनों ही मिलने के लिए बेचैन रहने लगे थे. संतोष कुमारी उस से मिलने के लिए कोई न कोई बहाना बना कर घर से निकल जाती और फिर उस की दुकान पर पहुंच जाती. अजय शुक्ला तो सुबह ही रिक्शा ले कर घर से निकल जाता और देर शाम को ही घर पहुंचता था.

इस दौरान संतोष कुमारी नीरज कुमार को फोन करती. वह नीरज कुमार से अपने घर आने के लिए कहती, लेेकिन नीरज अपनी दुकान के चलते उस के पास नहीं आ पाता था. फिर उस के घर आने पर उस के अन्य परिवार वाले भी ऐतराज उठा सकते थे.

हसरतों ने इस तरह भरी उड़ान

इसी सब से बचने के लिए संतोष कुमारी के दिमाग में एक आइडिया आया. उस ने सोचा कि अगर किसी तरह से उस के पति की दोस्ती नीरज कुमार से हो जाए तो उस के घर आने की सारी बाधाएं खत्म हो जाएंगी. यही सोच कर उस ने एक दिन अपने मोबाइल का स्क्रीन गार्ड जानबूझ कर तोड़ दिया.

अगली सुबह जब उस का पति अजय शुक्ला घर से निकल रहा था तो उस ने कहा, ”तुम महमूदपुर में तो आते जाते रहते हो. मेरा मोबाइल ले जाओ.’’

उस के बाद उस ने नीरज कुमार की दुकान का हवाला देते हुए कहा, ”आप उस पर नीरज की दुकान से स्क्रीन गार्ड लगवा लाना.’’

अजय शुक्ला अपनी बीवी का मोबाइल ले कर नीरज कुमार की दुकान पर पहुंचा. उस के पहुंचने से पहले ही संतोष कुमारी ने नीरज को फोन कर समझा दिया था कि आज मेरे पति तुम्हारी दुकान पर आएंगे. किसी भी तरह से तुम उन के साथ दोस्ती गांठ लेना. अगर तुम ने उन से दोस्ती कर ली तो हमारा मिलनेजुलने का रास्ता साफ हो जाएगा.

अजय शुक्ला के दुकान पर पहुंचते ही नीरज कुमार ने उस के साथ मीठीमीठी बातें की, जिस के बाद अजय शुक्ला भी उस से काफी प्रभावित हुआ. फिर जल्दी ही दोनों के बीच दोस्ती भी हो गई. उसी दोस्ती की आड़ में नीरज कुमार उस के घर आनेजाने लगा था. जिस के बाद दोनों प्रेमियों के बीच मिलने का रास्ता साफ हो गया था.

अजय शुक्ला हमेशा ही शाम को शराब के नशे में धुत हो कर अपने घर पहुंचता था. उस के बाद नीरज कुमार भी अपनी दुकान बंद कर के अजय शुक्ला के घर आ जाता था. देखते ही देखते दोनों में दांत काटी दोस्ती हो गई, जिस के बाद वह अजय शुक्ला के हर दुखसुख में काम आने लगा था.

कभी कभार ज्यादा रात हो जाने के कारण नीरज कुमार अजय शुक्ला के घर पर ही रुक जाता था. इस दौरान जब कभी भी अजय शुक्ला को पैसे की जरूरत होती तो नीरज ही उस के काम आता था.

धीरेधीरे अजय शुक्ला नीरज कुमार का लाखों रुपयों का कर्जदार हो गया था. जिस के कारण अजय शुक्ला नीरज कुमार के अहसानों तले दबता चला गया, जिस का नीरज कुमार भरपूर लाभ ले रहा था.

जब नीरज कुमार विश्वकर्मा का उस के घर कुछ ज्यादा ही आनाजाना हो गया तो उस के परिवार वाले ऐतराज करने लगे. उन्होंने कई बार इस बात की शिकायत अजय शुक्ला से की, लेकिन उस ने हर बार उन की बातों को एक कान सुना और दूसरे से निकाल दिया.

यही बात जब घर से निकल कर गांव में फैलनी शुरू हुई तो अजय शुक्ला को थोड़ा बुरा लगने लगा. उस के बाद उसे भी अपनी पत्नी और नीरज विश्वकर्मा के बीच अवैध संबंधों का शक हो गया था. जिस के बाद अजय शुक्ला अकसर ही अपनी पत्नी से झगडऩे लगा था, जिस की जानकारी संतोष कुमारी ने नीरज विश्वकर्मा को भी दे दी थी.

अजय ने कई बार नीरज को अपने घर आने जाने से रोकना चाहा तो उस ने उस से साफ कहा कि भाई मेरा पैसा मुझे वापस कर दो. मैं तुम्हारे घर क्या तुम्हारे गांव की तरफ नहीं आऊंगा. लेकिन अजय शुक्ला को उस समय बहुत ही मजबूरी थी. न तो वह जुआ खेलना ही छोड़ सकता था और न ही वह बिना शराब के रह सकता था.

सुख की चाह में संतोष बनी कातिल – भाग 1

लाश की सूचना पाते ही पुलिस घटनास्थल पर पहुंची. पुलिस ने देखा तो वहां पर एक व्यक्ति की लाश क्षतविक्षत हालत में पड़ी हुई थी. पुलिस ने वहां पर मौजूद लोगों से उस लाश की शिनाख्त करानी चाही लेकिन किसी ने भी उसे नहीं पहचाना. उस के बाद पुलिस को ध्यान आया कि उसी दिन के अखबारों में एक व्यक्ति की गुमशुदगी की खबर छपी थी.

इस बात के सामने आते ही पुलिस ने सब से पहले असंद्रा थाने से संपर्क किया, क्योंकि वह गुमशुदगी की खबर उसी थाने की थी. असंद्रा थाने से संपर्क होते ही पुलिस ने उस फोटो से मृतक का चेहरा मिलाया तो शिनाख्त हुई कि मृतक अजय शुक्ला ही था.

पुलिस काररवाई कर रही थी कि उसी समय संतोष कुमारी नाम की महिला रोती बिलखती अपने 5 बच्चों के साथ घटनास्थल पर पहुंची.

लाश को देखते ही संतोष कुमारी अपना आपा खो बैठी. क्योंकि वह लाश उस के पति अजय शुक्ला की थी. वह पति की लाश से लिपट लिपट कर बुरी तरह से रोने चिल्लाने लगी. उस के बच्चों का भी रोरो कर बुरा हाल था. पुलिस ने किसी तरह से संतोष कुमारी को शांत कराया. उस के बाद पुलिस ने जांचपड़ताल की तो अजय शुक्ला के सिर व पेट पर चोटों के काफी निशान थे.

इस से एक दिन पहले ही संतोष कुमारी 18 दिसंबर, 2023 की शाम के वक्त बाराबंकी जिले के थाना असंद्रा पहुंची थी. उस ने एसएचओ संतोष कुमार सिंह को बताया था कि वह मल्लपुर मजरे सुपामऊ गांव की रहने वाली है. सुबह लगभग 11 बजे उस के पति अजय कुमार शुक्ला बाइक से किसी काम से मस्तान बाबा की कुटी पर जाने के लिए निकले थे. लेकिन उस के बाद वह वापस नहीं लौटे.

उस ने बताया था कि जाने से पहले वह अपना मोबाइल भी घर पर ही भूल गए थे. एसएचओ ने संतोष कुमारी से उस के पति के बारे में कुछ और जानकारी हासिल करने के बाद अजय कुमार की गुमशुदगी की सूचना दर्ज कर ली थी.

उसी जांचपड़ताल के तहत सब से पहले एसएचओ पुलिस टीम के साथ गांव मल्लपुर मजरे सुपामऊ से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर रह रहे मस्तान बाबा की कुटिया पर पहुंचे. कुटिया पर पहुंच कर उन्होंने वहां पर अजय कुमार शुक्ला के बारे में जानकारी ली तो पता चला कि अजय कुमार शुक्ला वहां पर आया ही नहीं था. उस के बाद पुलिस ने अजय कुमार शुक्ला की हर जगह तलाश की, लेकिन कहीं भी उस का अतापता नहीं चला.

इस के बाद पुलिस ने उस के गुमशुदा होने की सूचना स्थानीय अखबारों में छपवाई, लेकिन उस के बाद भी पुलिस को कोई सफलता नहीं मिली. इस सब का कारण था कि अजय शुक्ला अपने साथ मोबाइल नहीं ले गया था, जिस के कारण उसे तलाशने में पुलिस के सामने बड़ी समस्या आ खड़ी हुई थी.

उसी दौरान 19 दिसंबर, 2023 को गांव प्रताप पुरवा के पास एक व्यक्ति की लाश पड़ी होने की सूचना रामसनेही घाट कोतवाली को मिली. सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंच गई. रामसनेही घाट पुलिस ने इस की सूचना असंद्रा थाने में भी दे दी थी, क्योंकि उस थाने के एक लापता व्यक्ति की सूचना अखबार में छपी थी.

इस जानकारी के मिलते ही सब से पहले असंद्रा पुलिस ने उस की पत्नी संतोष कुमारी को इस की जानकारी दी. उस के तुरंत बाद ही असंद्रा थाने के एसएचओ भी उस जगह पहुंच गए, जहां पर अजय शुक्ला की लाश मिली थी. संतोष कुमारी ने उस लाश की शिनाख्त अपने पति अजय शुक्ला के रूप में कर ली.

घटनास्थल से समस्त जानकारी जुटाने के बाद पुलिस ने अपनी काररवाई आगे बढ़ाई. फिर उस की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. उस के बाद पुलिस ने संतोष कुमारी से पूछा कि गांव में तुम्हारे पति की किसी से कोई दुश्मनी तो नहीं थी.

यह बात सुनते ही संतोष कुमारी पहले तो चुप्पी साध गई, फिर उस ने बताया कि उस के पति का गांव के ही कुछ लोगों से जमीन को ले कर विवाद चल रहा था, जिस के कारण ही उन लोगों ने उन की हत्या की होगी.

संतोष कुमारी के शक के आधार पर पुलिस ने गांव के ही 5 लोगों माताबदल, महेश, रामकुमार, बाबा सोनी व प्रदीप को हिरासत में ले लिया. पुलिस ने संतोष कुमारी की तरफ से शक के आधार पर इन पांचों पर भादंवि की धारा 302/34 के तहत मामला दर्ज कर लिया.

इन पांचों से पुलिस ने कड़ी पूछताछ की, लेकिन किसी ने भी उस की हत्या की जिम्मेदारी नहीं ली. पुलिस ने इस मामले में उन के गांव जा कर अन्य लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि पांचों ही लोग बेहद ही शरीफ और सज्जन इंसान थे.

गांव वालों की जानकारी से पुलिस को भी लगने लगा था कि कहीं न कहीं ये पांचों निर्दोष हैं. उसी दौरान गांव वालों का संतोष कुमारी पर दबाव बना तो वह भी उन की गिरफ्तारी को ले कर कुछ ढीली नजर आई. उस के बाद वह भी उन की पैरवी पर उतर आई थी, जिस के बाद अजय शुक्ला की हत्या के शक की सूई संतोष कुमारी की ओर ही घूम गई थी.

फिर पुलिस ने उस के परिवार वालों के साथसाथ गांव वालों से भी उस के चरित्र के बारे में जानकारी हासिल की तो पता चला कि अजय शुक्ला के एक दोस्त नीरज विश्वकर्मा का उस के घर पर आनाजाना था. वह अजय शुक्ला की गैरमौजूदगी में भी उस के घर आयाजाया करता था. उस के बाद संतोष कुमारी स्वयं ही पुलिस की शक की निगाहों में चढ़ गई थी.

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पुलिस को मृतक की पत्नी पर क्यों हुआ शक

शक की सूई संतोष कुमारी की तरफ घूमते ही पुलिस ने उस के और मृतक अजय शुक्ला और उस की पत्नी के मोबाइल नंबरों को सर्विलांस पर लगाया. इस से पुलिस को एक खास जानकारी मिली.

तहकीकात के दौरान पता चला कि संतोष कुमारी काफी समय से महमूदपुर निवासी नीरज कुमार विश्वकर्मा से मोबाइल पर बात करती थी. घटना वाले दिन भी संतोष कुमारी ने नीरज कुमार से बात की थी.

इस बात की जानकारी मिलते ही सब से पहले पुलिस नीरज कुमार के घर पहुंची, लेकिन नीरज कुमार घर से लापता मिला. उस के बाद पुलिस ने उस के मोबाइल पर कई बार काल की तो पहले तो उस ने उठाया नहीं, दूसरी बार करने पर उस ने फोन स्विच्ड औफ कर दिया. इस के बावजूद भी पुलिस ने उस की लोकेशन के आधार पर उसे अपनी हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने उस से अजय शुक्ला की हत्या के संबंध में कड़ी पूछताछ की तो उस ने हत्या करने की बात स्वीकार कर ली. फिर उस ने हत्या के पीछे की जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली निकली—

संतोष कुमारी भले ही पढ़ीलिखी नहीं थी, लेकिन उस का दिमाग इतना तेज था कि वह अपने पति अजय शुक्ला को कुछ भी नहीं समझती थी. अजय शुक्ला एक रिक्शाचालक था. उस के 5 बच्चे थे, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से नहीं हो पा रही थी. उस के साथ ही उस में शराब पीने की लत भी थी.

यही कारण रहा कि उस ने नीरज कुमार विश्वकर्मा के साथ दोस्ती होते ही अपने पति को अपनी जिंदगी का कांटा समझ कर उसे हटाने के लिए एक सुनियोजित रास्ता चुना. लेकिन पुलिस के लंबे हाथों से वह बच नहीं पाई.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 3

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आला कत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.

हेमराज का मन न तो खेती किसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचार प्रसार के लिए उस ने कुछ युवक युवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने का निश्चय कर लिया.

हर होली दिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.

21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएं बाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक दोनों की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 2

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथ पांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थानाप्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.

मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 1

ज्योंज्यों अंधेरा घिरता जा रहा था, त्योंत्यों मुकेश की परेशानी बढ़ती जा रही थी. वह कभी दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देखता तो कभी टिकटिक करती घड़ी की सुइयों को निहारने लगता. दरअसल, बात ही कुछ ऐसी थी जिस से मुकेश परेशान था. उस की 2 साल की बेटी कंचन अचानक गायब हो गई थी. शाम को वह घर के बाहर खेल रही थी. पर वह वहां से अचानक कहां गुम हो गई, किसी को पता न चला. यह बात 21 मार्च, 2019 की है.

उस दिन होली का त्यौहार था. नंदापुर गांव के लोग रंगों से सराबोर थे. फाग गाने वालों की टोली अपना जलवा अलग से बिखेर रही थी. कई लोग ऐसे भी थे, जो नशे में झूम रहे थे. कंचन का पिता मुकेश भी फाग गाता था. फाग गा कर मुकेश जब घर लौटा, तब उसे मासूम कंचन के गुम होने की जानकारी हुई थी. उस के बाद वह कंचन को ढूंढने निकल गया.

लेकिन उस का कुछ भी पता न चल पा रहा था. धीरेधीरे गांव में जब कंचन के गुम होने की खबर फैली तो लोग स्तब्ध रह गए. आज भी अनेक गांवों में ऐसी परंपरा है कि किसी के दुख तकलीफ में लोग एकदूसरे की मदद करते हैं. फाग गाने वाली टोलियों को जब मुकेश की बेटी के गायब होने की जानकारी मिली तो टोलियों ने फाग गाना बंद कर दिया. इस के बाद वे मुकेश के घर पहुंच गए.

घर पर मुकेश की पत्नी संध्या का रोरो कर बुरा हाल था. परिवार की महिलाएं उसे सांत्वना दे रही थीं. लेकिन संध्या का हाल बेहाल था. उस के मन में तमाम तरह की आशंकाएं उमड़ने लगीं.

उधर कंचन की खोज के लिए पूरा गांव एकजुट हो गया था. मुकेश के चाचा रामखेलावन ने 10-10 लोगों की टीमें बनाईं. चारों टीमों ने टौर्च व लालटेन की रोशनी में अलगअलग दिशाओं में कंचन की खोज शुरू कर दी. गांव के हर खेत, बागबगीचे, नदीनाले व झुरमुटों के बीच टीमों ने कंचन की खोज की लेकिन उस का कुछ भी पता नहीं चला.

एक आशंका यह भी थी कि कहीं कंचन भटक कर गांव के बाहर न पहुंच गई हो और कोई जंगली जानवर उसे उठा ले गया हो. अत: इस दिशा में भी गांव के आसपास के जंगल व ऊंचीनीची जमीन के बीच कंचन की खोज की गई, लेकिन ऐसा कोई सबूत नही मिला. रात भर कंचन की खोज हुई. परंतु कंचन के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

जब मासूम कंचन का कुछ भी पता नहीं चला तो मुकेश अपने चाचा रामखेलावन के साथ थाना बिंदकी पहुंच गया. थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को उस ने अपनी 2 वर्षीय बेटी कंचन के लापता होने की जानकारी दे दी.

थानाप्रभारी ने कंचन की गुमशुदगी दर्ज कर जरूरी काररवाई करनी शुरू कर दी. उन्होंने फतेहपुर के समस्त थानों को वायरलैस से 2 साल की कंचन के गुम होने की खबर भेजवा दी. थानाप्रभारी को लगा कि जब कंचन तलाश करने के बाद भी कहीं नहीं मिली है तो जरूर उस का किसी ने अपहरण कर लिया होगा और अपहरण फिरौती के लिए नहीं बल्कि किसी रंजिश या दूसरे किसी इरादे से किया होगा.

इस की 2 वजह थीं. पहली यह कि मुकेश कुशवाहा की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं थी कि कोई फिरौती के लिए उस की बेटी का अपहरण करे. दूसरी वजह यह थी कि 2 दिन बीत जाने के बाद भी मुकेश के पास किसी का फिरौती के लिए फोन नहीं आया था. रंजिश का पता लगाने के लिए थानाप्रभारी चंदेल, मुकेश के गांव नंदापुर पहुंचे.

वहां उन्होंने मुकेश से कुछ देर तक रंजिश के संबंध में पूछताछ की. मुकेश ने बताया कि गांव में उस की किसी से कोई रंजिश नहीं है. रुपयों के लेनदेन तथा जमीन से जुड़ा कोई विवाद भी नहीं है.

इस के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को शक हुआ कि कहीं मासूम का अपहरण किसी सिरफिरे या नशेबाज ने दुष्कर्म के इरादे से तो नहीं कर लिया. फिर दुष्कर्म के बाद उस की हत्या कर दी हो और शव को किसी नदी नाले या झाडि़यों में छिपा दिया हो.

इस प्रकार का शक उन्हें इसलिए हुआ, क्योंकि होली का त्यौहार था. नशेबाजी जम कर हो रही थी. हो सकता है कि किसी नशेबाज की नजर बच्ची पर पड़ी हो और वह उसे गलत इरादे से उठा कर ले गया हो. शक के आधार पर उन्होंने पुलिस टीम के साथ नदीनालों, जंगल, झाडि़यों आदि में कंचन की खोज की. लेकिन कंचन का सुराग नहीं मिला.

इधर कंचन के लापता होने से कुशवाहा परिवार की आंखों की नींद उड़ी हुई थी. घर के सभी लोगों को इस बात की चिंता सता रही थी कि कंचन पता नहीं कहां और किस हाल में होगी. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था त्योंत्यों मुकेश व उस की पत्नी संध्या की चिंता बढ़ती जा रही थी.

धीरेधीरे 3 दिन बीत गए, लेकिन अब तक कंचन का पता न तो घर वाले लगा पाए थे और न ही पुलिस को सफलता मिली थी. तब मुकेश अपने सहयोगियों के साथ फतेहपुर के एसपी कैलाश सिंह से मिलने गया. लेकिन एसपी से उस की मुलाकात नहीं हो सकी. तब मुकेश ने एसपी कपिलदेव मिश्रा से मुलाकात की और अपनी व्यथा व्यक्त की.

एएसपी ने उसी समय थाना बिंदकी के थानाप्रभारी से बात की और कंचन को हर हाल में खोजने का आदेश दिया. इस के बाद थानाप्रभारी जीजान से कंचन को ढूंढने में जुट गए. उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. पुलिस टीम ने क्षेत्र के आपराधिक प्रवृत्ति के कुछ लोगों को उन के घरों से उठा लिया और थाने  ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की. लेकिन उन से कंचन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो उन्हें छोड़ना पड़ा.

नाले में मिला कंचन का शव

25 मार्च, 2019 की शाम 4 बजे चरवाहे सैमसी नाले के पास बकरियां चरा रहे थे. तभी उन की निगाह नाले में उतराते हुए एक सफेद रंग के कपड़े पर पड़ी. लग रहा था उस में किसी बच्चे की लाश हो.

चरवाहे नंदापुर व सैमसी गांव के थे, अत: उन्होंने भाग कर गांव वालों को यह बात बता दी. यह खबर मिलते ही सैमसी व नंदापुर गांव के लोग नाले की ओर दौड़ पड़े. मुकेश भी बदहवास हालत में वहां पहुंचा. उसी दौरान किसी ने फोन कर के यह सूचना बिंदकी थाने में दे दी.