22 साल से लापता बेटा जब संन्यासी बन कर लौटा

किसी चमत्कार के इंतजार में सालों से दिन गुजार रहे रतिपाल और घर वालों को 22 साल बाद साधु वेश में अपना खोया बेटा पिंकू मिला तो सब की आंखें छलक उठीं थीं. बेटा मिलने की खुशी में रतिपाल ने दिल्ली से अपनी पत्नी माया देवी को भी बुला लिया. खोए बेटे पिंकू को साधु वेश में देखते ही मां भावुक हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

दरअसल, संन्यासी की पारंपरिक पोशाक में आए एक युवक ने सारंगी बजा कर भिक्षा देने की गुहार लगा कर जैसे ही एक रुदन गीत गाना शुरू किया तो उसे सुन कर बड़ी संख्या में गांववाले एकत्र हो गए. जोगी ने अपने आप को गांव के ही रहने वाले रतिपाल सिंह का गायब हुआ बेटा बताया. रुदन गीत सुन कर गांव की महिलाओं और पुरुषों के साथ ही रतिपाल के घर वालों की आंखों से आंसू झरने लगे.

दरअसल, 22 साल से लापता अरुण उर्फ पिंकू के लौटने की खुशी में पूरा गांव रो पड़ा. घर वालों के आंसू तो थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. यह दृश्य उत्तर प्रदेश के अमेठी जिले के थाना जायज के गांव खरौली का था. तारीख थी 28 जनवरी, 2024.

Jogi or Sathi ke Ane Par Ekatra Ganv Wale

बताते चलें कि साधु के वेश में अपने एक साथी के साथ आया वह युवक गांव के ही रतिपाल सिंह का बेटा अरुण उर्फ पिंकू था, जो 22 साल से अधिक समय तक लापता रहने के बाद अब संन्यासी के वेश में उन के सामने था. जब पिंकू लापता हुआ, उस समय वह 11 साल का था. अब पिंकू जोगी बन कर अपने गांव में मां से भिक्षा लेने पहुंचा था. इतने लंबे समय बाद अपने खोए बेटे को संन्यासी के रूप में सामने देख पिता व अन्य परिजन भावुक हो गए.

मां माया देवी, पिता रतिपाल के अलावा पिंकू की बुआओं उर्मिला व नीलम ने भी साधु वेश में आए पिंकू से गृहस्थ जीवन में लौटने की मिन्नतें कीं. लेकिन युवक की जुबान पर एक ही रट थी, ‘आप से भिक्षा लिए बिना मेरी दीक्षा पूरी नहीं होगी. गुरु का आदेश है कि मां के हाथ से भिक्षा पाने के बाद ही योग सफल होगा.’ उस ने कहा, ‘मां, यदि आप भिक्षा नहीं दोगी तो मैं दरवाजे की मिट्टी को ही भिक्षा के रूप में स्वीकार कर चला जाऊंगा.’

अब बेटा नहीं संन्यासी हूं मैं

साधु ने कहा, ”माई, मैं अब आप का बेटा पिंकू नहीं, बल्कि संन्यासी हूं. मैं भिक्षा ले कर वापस झारखंड स्थित पारसनाथ मठ में दीक्षा पूरी करने के लिए चला जाऊंगा.’’

साधु की बातें सुन कर रतिपाल और उन की पत्नी का कलेजा बैठ गया. उन्होंने उसे मनाने के साथ ही कहीं भी जाने से मना किया.

साधु खरौली गांव में 22 जनवरी, 2024 से ही आनेजाने लगा था. वह साथी के साथ आधे गांव में चक्कर लगा कर सारंगी व ढपली पर भजन गाता था. इस के बाद शाम होते ही वापस चला जाता.

रतिपाल मूलरूप से गांव खरौली के रहने वाले हैं. गांव में उन का छोटा भाई जसकरन सिंह, भतीजे व अन्य लोग रहते हैं. गांव में उन की खेती की जमीन भी है. 11वीं पास करने के बाद उन की शादी हो गई थी. साल 1986 में वह दिल्ली आ गए. यहां उन के एक बेटा हुआ, जिस का नाम उन्होंने अरुण रखा. घर में सभी प्यार से उसे पिंकू के नाम से पुकारते थे.

Arun Pankoo Birthday Par Kek Khata Huaa

                                      पिंकू के बचपन की तस्वीर

जब पिंकू 5-6 साल का था, उस की मां भानुमति बीमार हो गई. 3 साल तक उन का दिल्ली में इलाज चलता रहा, लेकिन उन की मृत्यु हो गई. रतिपाल ने बच्चे की परवरिश व अपनी आगे की जिंदगी के लिए वर्ष 1998 में माया देवी से दूसरी शादी कर ली. सब कुछ ठीक चल रहा था.

डांटने से गुस्से में घर से चला गया था पिंकू

कंचे खेलने पर मां की डांट से गुस्से में आ कर साल 2002 में 11 साल की उम्र में पिंकू अपने घर से कहीं चला गया. उस समय वह दिल्ली के शहादतपुर स्थित स्कूल में 5वीं कक्षा में पढ़ता था. घर वालों ने पिंकू को काफी तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिलने पर पिता रतिपाल ने दिल्ली के थाना खजूरी खास में उस की गुमशुदगी दर्ज कराई.

समय गुजरता गया लेकिन लापता बेटा नहीं मिला. रतिपाल हफ्ते दस दिन में थाने जा कर पुलिस से अपने खोए बेटे के बारे में जानकारी लेते, लेकिन उन्हें हर बार एक ही जबाव मिलता कि तलाशने पर भी आप का बच्चा नहीं मिल रहा है.

रतिपाल ने अपने स्तर से भी बच्चे को तलाश किया, लेकिन उस का कोई सुराग नहीं मिला. अपने इकलौते बेटे के इस तरह घर से चले जाने पर मातापिता ने कलेजे पर पत्थर रख कर सब्र कर लिया.

27 जनवरी, 2024 को खरौली में रह रहे भतीजे दीपक ने दिल्ली रतिपाल के पास फोन किया, ”चाचा, साधु भेष में एक युवक 22 जनवरी से गांव में आया हुआ है, जो अपने को आप का खोया हुआ बेटा अरुण उर्फ पिंकू बता रहा है. जब उस से पिंकू की कोई पहचान बताने को कहा तो उस ने कहा कि पिता जब खुद देख कर बताएंगे, तभी पहचान सभी गांव वालों को दिखाऊंगा. चाचा, आप गांव आ कर देख लो. साधु कल आने की बात कह कर रायबरेली से लगभग 30 किलोमीटर दूर बछगांव स्टेशन जाने की बात कह कर चला गया है.’’

बेटे से मिलने की चाहत और मन में ढेरों सवाल लिए रतिपाल अपनी बहन नीलम के साथ दिल्ली से गांव खरौली 28 जनवरी को ही पहुंच गए. दूसरे दिन वह साधु अपने एक साथी के साथ सुबह 11 बजे गांव आया. आधे गांव का चक्कर लगाता और सारंगी पर भजन गाते हुए साधु रतिपाल के घर पर पहुंचा.

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पिंकू निकला नफीस

साधु ने देखते ही पापा व बुआओं को पहचान लिया. साधु ने उन्हें बताया कि वह वास्तव में उन का बेटा पिंकू है. वह संन्यासी हो गया है, भिक्षा मांगने आया हुआ है. रतिपाल ने उस के पेट पर बचपन की चोट के निशान को देखने के बाद अपने खोए बेटे अरुण उर्फ पिंकू के रूप में उस की पहचान की.

बेटे की खातिर रतिपाल सब कुछ न्यौछावर करने को हो गया तैयार

बचपन में खोए बेटे को 22 साल बाद दरवाजे पर देख पिता व परिजनों की उम्मीद लौट आई थी. आंखों से आंसुओं की धारा फूट पड़ी. स्नेह ऐसा जागा कि भींच कर उसे सीने से लगा लिया. बेटे को घर लाने के लिए पिता सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार था.

खोए बेटे के मिलने पर रतिपाल ने घर पर साधु व उस के साथी के साथ भोजन भी किया. अब साधु रतिपाल को पापा तथा रतिपाल उसे पिंकू कह कर पुकारने लगे थे. रतिपाल ने खोए बेटे के मिलने की खुशखबरी अपनी रिश्तेदारी में भी दे दी थी. इस पर कई रिश्तेदार गांव आ गए थे.

एक सप्ताह तक वह जोगी अपने साथी के साथ रोजाना गांव आता और शाम होते ही वापस चला जाता. इस दौरान उस की रतिपाल और परिजनों से बातें भी होतीं. भोजन भी पापा के साथ करता. अपने पापामम्मी व अन्य घर वालों के प्यार को देख कर पिंकू का झुकाव भी उन की ओर होने लगा.

वहीं रतिपाल की बूढ़ी आंखों ने अपने खोए बेटे को 22 साल बाद देखा तो प्यार फफक पड़ा. खोए बेटे को किसी भी तरह वापस पाने के लिए परिवार तड़प उठा. सभी के प्रयास विफल होने पर रतिपाल ने जोगी से किसी भी तरह घर लौटने की गुजारिश की.

इस पर उस ने कहा, ”पापा, आप मेरे गुरु महाराज से बात कर मुझे आश्रम से छुड़ा लो.’’

”पापा, आश्रम से गुरुजी ने मुझे दीक्षा के दौरान लंगोटी, कमंडल व अंगवस्त्र दिए हैं. मठ की प्रक्रिया पूरी करनी होगी. मठ का सामान वापस करना होगा.’’

तब रतिपाल ने कहा, ”बेटा, तुम गुरुजी से बात कर प्रक्रिया के बारे में बताना. मैं तुम्हें घर लाने के लिए प्रक्रिया पूरी कर दूंगा.’’

अनाज व नकदी दे कर किया विदा

दिल पर पत्थर रख कर घर वालों व गांव वालों ने भिक्षा के रूप में उसे 13 क्ंिवटल अनाज और रतिपाल ने जोगी बने बेटे पिंकू को संपर्क में बने रहने के लिए एक नया मोबाइल फोन व नकदी दे कर पहली फरवरी को विदा किया. रतिपाल की बाराबंकी में रहने वाली बहन निर्मला ने पिंकू द्वारा बताए खाते में 11 हजार रुपए की रकम ट्रांसफर कर दी.

पिंकू ने कहा कि वह यहां से सभी सामान ले कर अयोध्या जाएगा, जहांं साधुओं को भंडारा कराएगा. सामान पहुंचाने के लिए रतिपाल ने एक वाहन का इंतजाम कर दिया. पहली फरवरी, 2024 को जोगी अपने साथी के साथ सामान ले कर चला गया. रतिराम, पत्नी माया देवी परिजनों के साथ ही गांव वालों ने भारी मन से जोगी को विदा किया.

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घर से भिक्षा ले कर जाने के बाद संन्यासी बेटे पिंकू का मन पसीज गया. दूसरे दिन उस ने फोन कर पिता से घर लौटने की इच्छा जताई. बेटे के गृहस्थ जीवन में लौटने की बात सुन कर रतिराम की खुशी का पारावार नहीं रहा. उस ने बताया कि गुरु महाराज का कहना है कि गृहस्थ आश्रम में लौटने के लिए दीक्षा के रूप में 10.80 लाख रुपए चुकाने पड़ेंगे.

रतिपाल ने इतनी बड़ी रकम देने में असमर्थता जताई. इतना ही नहीं, पिंकू ने पिता की मठ के गुरु महाराज से फोन पर बात भी कराई. लेकिन इतनी बड़ी रकम देने की उन की हैसियत नहीं थी. तब 4.80 लाख देने की बात कही गई.

गुरुओं की दीक्षा चुकाने की शर्त पर पिता ने आखिरकार बेटे को पाने के लिए 3 लाख 60 हजार रुपए में हां कर दी.

मठ का खाता न बताने पर हुआ शक

बेटे को वापस पाने के लिए मजबूर पिता ने 14 बिस्वा जमीन का सौदा गांव के ही अनिल कुमार वर्मा से 11 लाख 20 हजार रुपए में तय कर लिया. 3-4 दिन रतिपाल को पैसों का इंतजाम करने में लग गए.

इस के बाद साधु पिंकू की ओर से बताए गए आईसीआईसीआई बैंक खाते में पैसा ट्रांसफर करने भाई जसकरन व भतीजे धर्मेश के साथ पहुंचे. रतिपाल ने बताया, बैंक मैनेजर ने उन से कहा कि एक दिन में 25 हजार से ज्यादा रुपए ट्रांसफर नहीं हो सकते. पिंकू ने यूपीआई से भुगतान करने को कहा.

रतिपाल ने पिंकू से कहा कि अपने मठ के ट्रस्ट का बैंक खाते का नंबर दे दो, उस पर भुगतान कर देंगे. इस के बाद वहां आ कर तुम्हें अपने साथ घर ले आएंगे तो साधु ने मना कर दिया. यहीं से रतिपाल को कुछ शक होने लगा. तब प्रशासन से उन्होंने मदद मांगी.

रतिपाल सिंह समझ गए कि बेटे पिंकू के रूप में आया जोगी कोई ठग है. उस ने उन की भावनाओं का सौदा किया है. रतिपाल ने 10 फरवरी, 2024 को थाना जायस में 2 अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ भादंवि की धारा 420, 419 के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कराई.

एसएचओ देवेंद्र सिंह ने रिपोर्ट दर्ज करने के बाद इस केस की जांच बहादुरपुर चौकी प्रभारी राजकुमार सिंह को सौंपी. आरोपी का मोबाइल बंद आने पर उसे सर्विलांस पर लगा दिया गया.

इस के बाद रतिपाल को जब शंका हुई तो उन्होंने अपने स्तर से जांचपड़ताल करनी शुरू कर दी. उन के हाथ उसी साधु बने युवक के कई फोटो और वीडियो लग गए हैं. रतिपाल ने बताया कि उन्होंने झारखंड के एसपी से फोन पर बात की. पूरा प्रकरण बताया. एसपी को जोगी का मोबाइल नंबर भी दिया.

उन्होंने अपने स्तर से जांच कराई फिर फोन कर बताया कि यह नंबर झारखंड में नहीं, बल्कि गोंडा में चल रहा है. इस के साथ ही झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. उन्होंने कहा कि उसे पकड़ा जाए और यदि वह गलत है तो सजा मिले.

जोगी की सच्चाई पता करने के लिए रतिपाल ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. जिस गुरु का नाम बताया, वह भी गलत निकला. दीक्षा में मिले 13 क्विंटल अनाज व अन्य सामान को पिकअप में ले कर साधु अयोध्या जाने की कह कर गया था. पिकअप चालक  के साथ रतिपाल अयोध्या पहुंचे तो वहां कोई नहीं मिला. पिकअप चालक ने बताया कि अरुण अयोध्या न जा कर उसे गोंडा ले गया था, वहीं सारा सामान उतरवाया था.

गोंडा की जिस आईसीआईसीआई बैंक के खाते का नंबर साधु ने रतिपाल को दिया था वह खाता आशीष कुमार गुप्ता, आशीष जनरल स्टोर मुंबई का निकला. बाराबंकी में रहने वाली रतिपाल की बहन निर्मला ने उसी खाते में 11 हजार रुपए की धनराशि ट्रांसफर की थी.

रतिपाल ने बताया कि उन्होंने पुलिस को बैंक स्टेटमेंट सौंप दिया है. उन्होंने बताया कि उन्हें मीडिया के माध्यम से पता चला है कि साधु के भेष में आया युवक जो अपने को उन का खोया बेटा पिंकू बताता था, उस युवक का नाम नफीस है.

ठगी के लिए साधु का वेश धारण किया

सीओ (तिलोई) अजय सिंह ने बताया कि मामला ठगी से जुड़ा हुआ है. पूरे मामले पर मुकदमा पंजीकृत कर मामले की छानबीन की जा रही है. जल्द से जल्द इस पूरे मामले में कड़ी से कड़ी काररवाई की जाएगी. उन्होंने बताया कि 10 फरवरी को जायस थाना क्षेत्र के खरौली गांव निवासी रतिपाल सिंह ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

गोंडा के एसपी विनीत जायसवाल ने बताया, ”टिकरिया गांव में रहने वाले कई लोगों द्वारा जोगी बन कर जालसाजी करने की शिकायत मिली है. 2 आरोपियों द्वारा अमेठी जिले में भी साधु वेश बना किसी को झांसा देने का मामला प्रकाश में आया है. पुलिस को तलाश के निर्देश दिए गए हैं.’’

रिपोर्ट दर्ज होने और उच्चाधिकारियों के निर्देश के बाद जायस थाने की पुलिस सक्रिय हो गई. रतिपाल ने बताया कि 16 फरवरी, 2024 को एक प्राइवेट वाहन से जायस पुलिस के साथ गोंडा कोतवाली देहात की सालपुर पुलिस चौकी पहुंचे. वहां के चौकी इंचार्ज पवन कुमार सिंह से मिले, उन्होंने जांच में पूरा सहयोग करने की बात कही. इस चौकी से कुछ दूरी पर ही टिकरिया गांव है.

उन्होंने कहा कि गोंडा की सालपुर चौकी पर उन्हें 5 घंटे तक बैठाया गया. कहा कि आप यहीं बैठो, पुलिस दबिश देने जा रही है. नफीस के घर पहुंची पुलिस टीम सब से पहले नफीस के परिवार से मिली. उस समय घर पर बुजुर्ग महिलाएं ही थीं. उन्होंने बताया कि 25 वर्षीय नफीस करीब एक महीने से घर से बाहर है.

पुलिस को आया देख कर आरोपी गन्ने के खेत में भाग गया था. पुलिस ने उसे पकडऩे का प्रयास किया, लेकिन वह हाथ नहीं आया. पुलिस ने बताया, पिंकू बन कर घर पहुंचा ठग टिकरिया निवासी सिजाम का बेटा नफीस है, जो ठगी के मामले में पहले भी जेल जा चुका है.

जबकि उस का भाई राशिद 29 जुलाई, 2021 को जोगी बन कर मिर्जापुर के गांव सहसपुरा परसोधा निवासी बुधिराम विश्वकर्मा के यहां उन का 14 साल पहले लापता हुआ बेटा रवि उर्फ अन्नू बन कर पहुंचा था. मां से भिक्षा मांगी ताकि उस का जोग सफल हो जाए. परिजनों ने बेटा मान कर उसे घर में रख लिया. कुछ दिन बाद वह लाखों रुपए ले कर फरार हो गया था. बाद में पकड़ा गया और जेल गया.

पुलिस की दस्तक के चलते नफीस, उस के दोनों भाई दिलावर और राशिद समेत अधिकांश तथाकथित साधु अंडरग्राउंड हो गए. उस का एक रिश्तेदार असलम भी ऐसे मामले में वांछित चल रहा है. नफीस का मोबाइल बंद है.

पड़ताल में सामने आया कि नफीस के ससुर का भाई असलम उर्फ लंबू घोड़ा भी वाराणसी में जेल जा चुुका है. तब पुलिस ने शिकायत के आधार पर एक परिवार को इसी तरह जोगी का झांसा दे कर ठगने के बाद उसे दबोच लिया था.

पेट के टांकों को देख कर की पहचान

रतिपाल ने बताया कि 22 साल पहले उस का 11 वर्षीय बेटा अरुण उर्फ पिंकू घर से कहीं चला गया था. एक बार वह सीढ़ी से गिर गया था, जिस से उस के पेट में अंदरूनी चोट आई थी. इस बात का 6 माह तक पता नहीं चला. पिंकू की आंत सड़ गई थी, जिस के चलते उस का औपरेशन दिल्ली के कृष्णा नगर स्थित होली चाइल्ड अस्पताल में हुआ था. उस के 14 टांके आए थे.

साधु के भेष में आए व्यक्ति ने उन्हें टांकों के निशान दिखाए थे. लेकिन वे असली थे या बनाए हुए थे, ये नहीं पता. रतिपाल सिंह पहले अपनी बहन नीलम के साथ खरौली गांव पहुंचे थे. खबर दिए जाने पर बहन उर्मिला भी आ गई थी. उन्होंने अपनी पत्नी माया देवी को घर पर ही बच्चों की देखभाल के लिए छोड़ दिया था. खोए पिंकू की पहचान हो जाने के बाद उन्होंने पत्नी को भी गांव बुला लिया था.

रतिपाल की दूसरी शादी के बाद 4 बच्चे हुए. 2 बेटी व 2 बेटे हैं. बड़ी बेटी 24 वर्ष की है. दोनों बेटियों की शादी हो चुकी है. एक बेटा 12वीं तथा सब से छोटा 9वीं में पढ़़ रहा है. वे घर पर ही बर्थडे में बच्चों के लगाए जाने वाली कैप बनाने का कार्य पत्नी के सहयोग से कर गुजरबसर करते हैं.

पूरा परिवार जिस युवक को अपना खोया बेटा पिंकू मान कर प्यार लुटा रहा था. असल में वह जालसाज गोंडा जिले के टिकरिया गांव  का नफीस निकला. टिकरिया के 20-25 लोगों का गैंग कई राज्यों में सक्रिय है. वह खोए बच्चों के बारे में जानकारी करने के बाद परिजनों की भावनाओं से खिलवाड़ कर ठगी करने का काम करते हैं.

साइबर सेल प्रभारी बृजेश सिंह का कहना है कि किसी गांव में बच्चों के खोने या लापता होने पर परिजन खुद उस का प्रचार प्रसार करते हैं. इस प्रचार से उन्हें आस होती है कि शायद कोई व्यक्ति उन की खोई संतान को वापस मिला देगा. पैंफ्लेट व अखबारों से भी पहचान के लिए चोट के निशानों का उल्लेख किया जाता है. ठगों का यह गैंग स्थानीय स्तर पर जानकारी एकत्र कर इसी का फायदा उठा कर ठगी करता है.

मातापिता की भावनाओं से खेल कर संपत्ति व धन हड़पने का नफीस का षडयंत्र विफल हो गया. 22 साल पहले लापता बेटा पिंकू बन कर गांव जायसी पहुंचा साधु वेशधारी पुलिस जांच में गोंडा के गांव टिकरिया निवासी नफीस और उस का साथी पट्टर  निकला. गांव वालों ने वायरल वीडियो में भी दोनों की तस्दीक की. पुलिस की सक्रियता से ठगी की मंशा का खुलासा हुआ तो ठग और उस का साथी दोनों फरार हो गए.

गोंडा में पड़ताल करने पर पता चला कि टिकरिया गांव के कुछ परिवार इस तरह की ठगी करते हैं. उन का एक गैंग ठगी का काम करता है. ठगी जेल तक जा चुकी है. उन्हीं में से एक नफीस का भी परिवार है.

नफीस मुकेश (मुसलिम) का दामाद है. उस की पत्नी का नाम पूनम है. उस का एक बेटा अयान है. ठग साधु कहता था कि उस ने झारखंड के पारसनाथ मठ में दीक्षा ली है. मठ के गुरु का आदेश था कि अयोध्या में दर्शन के बाद गांव जा कर अपनी मां से भिक्षा मांगना, तभी दीक्षा पूरी होगी. सच यह है कि झारखंड में पारसनाथ नाम का कोई मठ है ही नहीं. बेटा बन कर अब तक नफीस कई लोगों को चूना लगा चुका है.

रतिपाल का कहना है कि दोनों ठगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी है. दोनों ठग अब तक पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं. जिस बैंक खाते में 11 हजार रुपए बहन निर्मला ने जमा कराए थे, उस खाते वाले को पकड़ा जाए, जिस से स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और इन ठगों का गैंग पकडऩे में मदद मिलेगी.

पुलिस फरार चल रहे दोनों साधु वेशधारी ठगों की सरगरमी से तलाश में जुटी है. पुलिस का कहना है कि समय रहते इन ठगों का भेद खुल जाने से रतिपाल व उन का परिवार बहुत बड़ी ठगी व मुसीबत से बच गए.

पिता रतिपाल को पुत्र वियोग और मिलन के बाद उसे दोबारा पाने की चाह है, लेकिन किसी षडयंत्र की आशंका भी है. उन का कहना है कि खोया हुआ बेटा इस समय 33 वर्ष का होता.

—कथा पुलिस व परिजनों से की गई बातचीत पर आधारित

प्यार में हुई संतकबीर नगर की नेत्री की हत्या

भीड़ समझ नहीं पा रही थी कि रोते रोते आरती राजभर ने कमरे की ओर इशारा क्यों किया? आखिर वहां  क्या हो सकता था? कुछ गांव वाले हिम्मत कर के कमरे की ओर बढ़े तो कमरे के अंदर का दिल दहला देने वाला नजारा देख कर कांप उठे.

फर्श पर चारों ओर खून फैला था और नंदिनी राजभर (Nandini Rajbhar) अपने ही खून में सनी पड़ी थी. किसी ने नंदिनी का कत्ल कर दिया था, वह मर चुकी थी. दिनदहाड़े नंदिनी (Nandini Rajbhar Murder) की हत्या की खबर सुनते ही वहां भीड़ जमा होने लगी थी.

हत्या किसी आम इंसान की नहीं हुई थी, बल्कि एक राजनीतिक पार्टी (Political Party) की प्रदेश महासचिव की हुई थी. देखते ही देखते पलभर में यह खबर जंगल में आग की तरह समूचे संतकबीर नगर (Sant Kabir Nagar)  जिले में फैल गई थी. उसी भीड़ में से किसी ने पुलिस कंट्रोलरूम को फोन कर के घटना की सूचना दे दी थी.

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संतकबीर नगर जिले की कोतवाली थाने के अंतर्गत एक गांव पड़ता है (Digha) डीघा. इस गांव में अधिकांश लोग राजभर बिरादरी के रहते हैं. इसी गांव में बालकृष्ण राजभर अपने परिवार के साथ रहते थे. परिवार में पतिपत्नी के अलावा 2 बेटे थे, जो परदेश में जा कर कमाते थे.

क्षेत्र में बालकृष्ण की गिनती मजबूत हैसियतदार और बड़े काश्तकारों में होती थी. लेकिन उन का रहन सहन मध्यमवर्गीय परिवार जैसा ही था. उन्हें देख कर कोई यह नहीं कह सकता था कि वह दौलतमंद इंसान होंगे. इन्हीं की बहू थी नंदिनी राजभर, जो घरपरिवार और गांव समाज का नाम रोशन कर रही थी.

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28 वर्षीय नंदिनी ओमप्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (महिला प्रकोष्ठ) की प्रदेश महासचिव थी. नंदिनी जितनी सौम्य और गंभीर थी, उतनी ही खूबसूरत भी थी. किसी जन्नत की हूर से कम नहीं थी वह. उसे अपनी खूबसूरती पर बहुत नाज और गुरूर भी था.

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खैर, वह राजनीति की एक नवोदित नेत्री थी, जो अपनी मेहनत की बदौलत वटवृक्ष का रूप ले रही थी. उस के गांव समाज को उस पर नाज था. क्योंकि नंदिनी गांव की बहू होने के साथ दबे कुचले और मजलूमों का एक मजबूत सहारा बनी हुई थी तो एक बुलंद आवाज भी.

गांव के किसी भी व्यक्ति को कोई तकलीफ होती तो वह एक पैर उन के साथ खड़ी रहती थी. तभी तो गांव वाले उसे अपनी पलकों पर बिठा कर रखते थे और उसे एक मंत्री बनते हुए देखना चाहते थे.

खैर, बात 10 मार्च, 2024 की शाम की है, जब नंदिनी की सास आरती देवी बाहर काम से अपने घर लौटी थीं. उस समय शाम के 4 बजे थे. बाहर का दरवाजा आपस में भिड़का हुआ था. जब वह पहुंचीं तो दरवाजे पर खड़ी हो कर ही बहू नंदिनी को 3-4 बार आवाज दी. भीतर से कोई आवाज नहीं आई.

उन्हें लगा कि शायद बहू दरवाजा बंद कर सो रही है. कई बार आवाज देने के बाद जब बहू नंदिनी ने दरवाजा नहीं खोला तो आरती देवी ने दरवाजे को हल्का सा धक्का दिया. धक्का देते ही दरवाजे के दोनों पट भीतर की ओर खुल गए.

थकी प्यासी आरती देवी बाहर से आई थीं. जोरों की प्यास और भूख भी लगी थी, इसलिए धड़धड़ाती हुई वह कमरे में दाखिल हुईं. उन्हें बहू पर गुस्सा आ रहा था कि इतनी देर से वह उसे बुला रही हैं, लेकिन वो है कि जवाब ही नहीं दे रही. आखिर कर क्या रही है?

बरामदे से होती हुई वह सीधा बहू नंदिनी के कमरे में दाखिल हुईं. कमरे में पूरी तरह से अंधेरा था. वह दरवाजे पर खड़ी हो गईं और वहीं खड़ी हो कर भीतर का जायजा लेने लगीं. भीतर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था तो दरवाजे के दाईं ओर लगे बोर्ड से स्विच औन किया.

स्विच औन होते ही कमरा रोशनी से भर गया. आरती देवी ने कमरे में इधर उधर देखा. फिर जैसे ही उन की नजर बेड के नीचे फर्श पर पड़ी तो उन के मुंह से एक दर्दनाक चीख निकल पड़ी. वह चीखती हुई उल्टे पांव बाहर की ओर भागीं.

आरती देवी की चीख सुन कर पासपड़ोस के लोग वहां जमा हुए थे. वे समझ नहीं पा रहे थे कि अचानक से उन्हें क्या हो गया जो इतनी जोरजोर से चीख रही थीं. वह कमरे की ओर इशारा कर गश खा कर जमीन पर दोहरी होती हुई गिर पड़ीं.

मौके पर जमा लोग जब कमरे में पहुंचे तो वहां आरती देवी की बहू नंदिनी राजभर लहूलुहान हालत में मृत पड़ी थी. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि दिनदहाड़े किस ने घर में घुस कर उन्हें चाकू से गोद डाला.

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस भी आश्चर्यचकित रह गई. आननफानन में पुलिस कंट्रोल रूम ने घटना की जानकारी कोतवाली थाने के इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल को देते हुए फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंचने को कह दिया.

घटना की सूचना मिलते ही इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल आननफानन में फोर्स के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन्होंने घटनास्थल का जायजा लिया. मृतका नंदिनी राजभर की खून में लथपथ लाश का मुआयना करने लगे.

इस बीच घटना की सूचना सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष और योगी सरकार में मंत्री बने ओमप्रकाश राजभर को मिल गई थी. सूचना मिलते ही वह भी स्तब्ध रह गए कि नंदिनी अब इस दुनिया में नहीं रही. खुद को संभालते हुए उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओं को घटना की जानकारी दी और मौके पर पहुंचने का आदेश दिया.

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                    लोगों को सांत्वना देते अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर

अध्यक्ष ओमप्रकाश का आदेश मिलते ही पार्टी कार्यकर्ता मौके पर जुट गए और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. इधर इंसपेक्टर पटेल घटनास्थल की जांच करने में जुटे हुए थे. उन्होंने बड़ी बारीकी से मौके का जायजा लिया. हत्यारों ने चाकू से गला रेत कर नंदिनी की हत्या की थी. शरीर पर चाकू के कई निशान मौजूद थे.

क्राइम सीन स्टडी करने से यही लग रहा था जैसे हत्यारा मृतका से काफी खार खाए हुए था, तभी तो उस ने चाकू से ताबड़तोड़ वार कर उसे निर्ममतापूर्वक मौत के घाट उतार दिया था. यही नहीं हत्यारे ने किसी भारी चीज से उसके सिर पर भी वार किया था, क्योंकि मृतका के सिर के पिछले वाले हिस्से पर चोट के निशान मौजूद थे और वहां का खून उस समय भी हलका हलका गीला था.

कमरे की छानबीन करने पर सभी चीजें अपनी जगह पर तरीके से रखी मिलीं, बस मृतका का मोबाइल फोन ही कहीं नहीं दिख रहा था. आशंका जताई जा रही थी कि सबूत छिपाने के लिए हत्यारे उसे अपने साथ ले गए होंगे, ताकि पुलिस उस तक आसानी से पहुंच न सके.

एक बात तो साफ जाहिर हो रही थी कि हत्यारों का निशाना सिर्फ नंदिनी ही थी. इसीलिए उन्होंने घर के किसी भी सामान को हाथ नहीं लगाया था. इस बीच फोरैंसिक टीम ने भी मौके पर पहुंच कर घटनास्थल की जांच कर ली थी. टीम फर्श पर पड़े खून को एक छोटी डिब्बी में तेज चाकू से खुरच कर रख रही थी. मौके से उन्हें कोई फिंगरप्रिंट नहीं मिला था.

पुलिस और फोरैंसिक टीम अपनी काररवाई में जुटी थी. तब तक डीएम महेंद्र सिंह तंवर, एसपी सत्यजीत गुप्ता, एएसपी शशिशेखर सिंह, सांसद प्रवीण निशाद सहित कई थानों की पुलिस मौके पर पहुंच चुकी थी. पुलिस लाश का पंचनामा भर कर जैसे ही पोस्टमार्टम के लिए बौडी ले कर जाने के लिए तैयार हुई, तभी गांव वाले गुस्से में आ गए और लाश को हाथ लगाने से पुलिस को मना कर दिया.

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इधर गुस्साए सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के कार्यकर्ता अपनी नेता नंदिनी राजभर के हत्यारों को तुरंत गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. उन का कहना था कि जब तक नंदिनी के हत्यारों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक पुलिस लाश को यहां से ले कर नहीं जा सकती. आंदोलनकारियों और गांव वालों ने गांव के ही एक यादव परिवार पर अपने नेता की हत्या किए जाने का आरोप लगाया.

ससुर के हत्यारों से जुड़े नंदिनी केस के तार

दरअसल, 10 दिन पहले 29 फरवरी, 2024 की सुबह खलीलाबाद रेलवे लाइन के पास नंदिनी के चचिया ससुर बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध अवस्था में लाश पाई गई थी. पहली नजर में यह मामला हत्या का लग रहा था, लेकिन परिस्थितियां आत्महत्या की ओर भी संकेत कर रही थीं. लेकिन उन के आत्महत्या किए जाने की बात किसी के गले से नहीं उतर था.

इस के पीछे का तर्क यह था कि बालकृष्ण ने गांव के श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव से अपनी जमीन का सौदा किया था. यादव बंधुओं ने जमीन की कीमत पहले से कम आंकी थी और पैसे देते वक्त तय रकम में से भी औनेपौने दाम दे कर जमीन पर कब्जा जमा लिया.

अपने साथ हुए धोखे से बालकृष्ण राजभर काफी दुखी थे. उन्होंने अपनी बात बहू नंदिनी से बता कर न्याय की गुहार भी लगाई. चूंकि नंदिनी की पहुंच सत्ता के गलियारों तक थी. उन्हें यकीन था कि उन की बहू राजनीतिक दबाव बना कर उन के पैसे दिलवा देगी. नंदिनी ने चचेरे ससुर को विश्वास भी दिलाया था कि वह उन के साथ अन्याय नहीं होने देगी, यादव बंधुओं से बकाए की रकम दिलवा कर ही दम लेगी.

अभी ये सलाहमशविरा हो ही रहा था कि 29 फरवरी को बालकृष्ण के आत्महत्या करने की बात सामने आ गई. उन के आत्महत्या करने पर किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था.

नंदिनी ने श्रवण यादव, धु्रवचंद यादव और पन्ने यादव के खिलाफ कोतवाली थाने में ससुर बालकृष्ण राजभर की हत्या किए जाने का मुकदमा दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज करा कर उन्हें जेल भेजने के लिए पुलिस पर दबाव डालने लगी थी. तीनों आरोपियों में से एक श्रवण यादव गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया था. बाकी दोनों आरोपी फरार थे.

इस के ठीक 10वें दिन दिनदहाड़े नंदिनी की भी हत्या हो गई. इसीलिए ग्रामीणों ने नंदिनी की हत्या का आरोप यादव बंधुओं पर लगा कर उन्हें तत्काल गिरफ्तार करने की मांग की. इस के बाद ही मृतका का शव वहां से ले जाने की बात कही थी.

पुलिस, ग्रामीण और आंदोलनकारियों के बीच मान मनौवल का खेल करीब 6 घंटों तक चलता रहा. एसपी सत्यजीत गुप्ता ने आक्रोशित लोगों को विश्वास दिलाया कि उन के साथ न्याय होगा. दोषियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वो कितने भी ताकतवर क्यों न हों, उन्हें उन के किए की सजा कानून से मिल कर ही रहेगी.

फिर एसपी गुप्ता ने मंत्री ओमप्रकाश राजभर से बात कर न्यायिक कार्य में सहयोग करने की अपेक्षा रखी. मंत्री राजभर ने कार्यकर्ताओं को भरोसा दिलाया कि उन के प्रिय नेता के साथ न्याय होगा और हत्यारे पकड़े जाएंगे. पुलिस को उन का काम करने दें. तब कहीं जा कर रात 11 बजे आंदोलनकारियों ने पुलिस को पोस्टमार्टम के लिए शव ले जाने दिया.

इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल ने लाश कब्जे में ले कर पोस्टमार्टम के लिए संतकबीर नगर जिला अस्पताल भिजवा दी और मृतका की सास आरती देवी की लिखित तहरीर पर 5 आरोपियों आनंद यादव, धु्रव यादव, श्रवण यादव, पन्ने यादव और निर्मला यादव के खिलाफ हत्या की धारा 302 का मुकदमा दर्ज कर उन की गिरफ्तारी के लिए दबिश देनी शुरू कर दी थी. उक्त नामजद आरोपियों में श्रवण यादव, बालकृष्ण राजभर की संदिग्ध मौत के आरोप में पहले से ही जेल में बंद था.

अगले दिन 11 मार्च को पुलिस ने अन्य नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए उन के घरों पर सुबहसुबह दबिश दी थी. मौके से धु्रव यादव, पन्ने यादव और निर्मला पकड़ लिए गए. चौथा आरोपी आनंद यादव फरार हो गया था.

आनंद ही नंदिनी को धमकी दे रहा था कि वह बालकृष्ण की मौत की अदालत में पैरवी करना बंद कर दे, चुपचाप अपनी राजनीति करे, वरना इस का अंजाम बहुत बुरा हो सकता है.

कुल मिलाजुला कर पुलिस ने मृतका नंदिनी राजभर हत्याकांड में नामजद 5 आरोपियों में से 4 को गिरफ्तार कर घटना की इतिश्री कर दी थी. गिरफ्तार चारों आरोपियों से कोतवाली थाने में सख्ती से पूछताछ जारी थी.

काल डिटेल्स से क्यों घूम गई जांच

आरोपी रट्टू तोते की तरह एक ही जवाब दिए जा रहे थे कि नंदिनी की हत्या से उन का कोई लेनादेना नहीं है. उन्होंने उसे नहीं मारा है, लेकिन पुलिस आरोपियों के जवाब को सिरे से नकार रही थी और अपने हिसाब से जितनी सख्ती बरती जानी थी, उतनी सख्ती से पेश आने में किसी किस्म का गुरेज नहीं कर रही थी.

क्योंकि बालकृष्ण राजभर की मौत में यादव परिवार का तार जुड़ चुका था, ऊपर से नंदिनी को धमकी भी इसी परिवार मिल रही थी, इसलिए पुलिस अपनी जगह कायम थी कि नंदिनी की हत्या में इसी परिवार का हाथ है. धमकी आनंद यादव दे रहा था, जो मौके से फरार था.

परिस्थितिजन्य साक्ष्यों से आईने की तरह घटना साफ हो चुकी थी कि नंदिनी राजभर की हत्या यादव परिवार ने की है. लेकिन फिर भी पुलिस को पता नहीं ऐसा क्यों लग रहा था जैसे घटना आईने की तरह साफ होते हुए भी साफ नहीं है. मसलन यह कि उन की नजरों से कुछ छूट रहा है. जो दिख रहा है, आधा सच है, फिर आधा सच और क्या हो सकता है?

खैर, पुलिस इधर जांच के दौरान ही कहानी में एक नया मोड़ आया. डीआईजी (रेंज बस्ती) आर.के. भारद्वाज ने इंसपेक्टर बृजेंद्र पटेल से घटना में हुई लापरवाही के एवज में थानेदारी छीन ली थी और उन्हें अपने दफ्तर से अटैच कर दिया था. इस लापरवाही की जांच एएसपी शशिशेखर सिंह को सौंप दी गई थी.

साथ ही हत्याकांड की जांच और भूमाफियाओं के द्वारा जबरन जमीन लिखवाने वालों को चिह्नित कर काररवाई करने लिए एसआईटी गठित की गई थी और इस की मौनिटरिंग खुद डीआईजी रेंज आर.के. भारद्वाज ने अपने हाथों में ले ली थी, ताकि काररवाई की पलपल की सूचना उन्हें मिलती रहे.

पुलिस अपनी जांच की दिशा सही मान कर उसी दिशा की ओर फूंकफूंक कर कदम बढ़ा रही थी. जांच को और तेज करते हुए उस ने सब से पहले मृतका के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगाली तो तमाम नंबरों में 2 ऐसे नंबर मिले जो संदिग्ध थेे.

उन दोनों नंबरों में से एक नंबर से नंदिनी की लंबी लंबी और सब से ज्यादा बातें हुुई थीं, जबकि दूसरे नंबर पर थोड़ा कम. घटना वाले दिन भी घटना से कुछ देर पहले उसी पहले वाले नंबर से नंदिनी की बात हुई थी. इसीलिए पुलिस ने उस नंबर की मृतका के पति विजय से पहचान कराई, लेकिन वह नंबर पहचान नहीं पाया.

पुलिस ने दोनों नंबरों की डिटेल्स निकलवाई. एक नंबर आनंद यादव के नाम से आवंटित था, जिस पर थोड़ी बातचीत हुई थी जबकि दूसरा नंबर किसी साहुल राजभर का था, जिस से मृतका (नंदिनी) की लंबीलंबी बातें होती रहती थीं.

पुलिस ने विजय को थाने बुला कर साहुल के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि साहुल पड़ोसी तेनू राजभर का साला है. उस की बहन की शादी उस से हुई है और वो यहीं (डीघा गांव) रहता है. यहीं रह कर मैडिकल स्टोर चलाता है.

साहुल राजभर के बारे में पूरी जानकारी हासिल करने के बाद कोतवाली पुलिस ने विजय को घर भेज दिया. पुलिस नंदिनी और साहुल के बीच के रिश्ते को खंगालने में जुट गई थी. तकनीकी साक्ष्य और मुखबिर के जरिए पुलिस को दोनों के रिश्तों के बारे में चौंकाने वाली एक ऐसी सूचना मिली, जिस से उस के पैरों तले से जमीन खिसकती नजर आई.

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            आरोपी साहुल राजभर

पता चला कि नंदिनी और साहुल के बीच करीब एक साल से प्रेम संबंध चल रहा था. किसी बात को ले कर इन दिनों उन के बीच अनबन चल रही थी और घटना वाले दिन भी दोनों के बीच फोन पर काफी विवाद हुआ था. इस जानकारी ने घटना की दिशा ही मोड़ दी. मसलन नंदिनी की हत्या जमीनी विवाद में नहीं, बल्कि प्रेम प्रसंग में हुई थी.

ये जानकारी इंसपेक्टर शैलेष सिंह ने कप्तान सत्यजीत गुप्ता को दी तो वह भी चौंक गए थे. उन्होंने शैलेष सिंह को कुछ जरूरी हिदायत दे कर जल्द से जल्द केस वर्कआउट करने का आदेश दिया.

इंसपेक्टर सिंह ने ऐसा ही करने का वायदा किया और आगे की प्रक्रिया में जुट गए थे. उन्होंने मृतका नंदिनी और साहुल के रिश्तों की बाबत जानकारी जुटाई तो मुखबिर की बात सच निकली. फिर क्या था, 21 मार्च, 2024 की सुबह डीघा गांव में उस के बहनोई के घर से साहुल को गिरफ्तार कर लिया और पूछताछ के लिए कोतवाली थाने ले आए.

प्रेमी ने क्यों की नंदिनी की हत्या

करीब 2 घंटे चली कड़ी पूछताछ के बाद साहुल ने अपना अपराध कुबूल कर लिया कि उसी ने अपनी प्रेमिका नंदिनी की हत्या की थी. उस ने हत्या की वजह का विस्तार करते हुए आगे बताया कि उस ने उस के साथ धोखा किया था, इसलिए उसे मौत के घाट उतार दिया. और फिर पूरी कहानी विस्तार से पुलिस के सामने बयान करता चला गया.

12 दिनों से जो नंदिनी हत्याकांड विवादों के चक्रव्यूह में उलझा हुआ था, पुलिस ने उस की गुत्थी सुलझा ली थी. आननफानन में उसी दिन (21 मार्च) शाम 3 बजे एसपी सत्यजीत गुप्ता ने पुलिस लाइंस में प्रैसवार्ता का आयोजन किया और पत्रकारों के सामने नंदिनी की हत्या का खुलासा कर दिया.

उस के बाद पुलिस ने आरोपी साहुल राजभर को अदालत में पेश किया. अदालत ने आरोपी साहुल को 14 दिनों की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजने का आदेश दिया. आरोपी ने प्रेमिका नंदिनी की हत्या की जो कहानी पुलिस के सामने बयां की थी, वह कुछ इस तरह थी.

27 वर्षीय साहुल राजभर की बहन ममता की शादी डीघा गांव निवासी तेनू राजभर के साथ हुई थी. बीते कई सालों से साहुल अपने बहनोई तेनू के घर रहता था. वहीं रह कर वह एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी करता था. पढ़ालिखा तो था ही, ऊपर से काफी जीनियस भी था. उस के घर की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी. अच्छी नौकरी की तलाश में वह यहांवहां हाथपैर मार रहा था. लेकिन उसे अच्छी नौकरी नहीं मिली. जब उस के मनमुताबिक अच्छी नौकरी नहीं मिली तो उस ने एक मैडिकल स्टोर पर नौकरी कर ली थी, क्योंकि उसे पैसों की सख्त जरूरत थी.

बात घटना से करीब डेढ़ साल पहले की है. नंदिनी राजभर नाम की एक बेहद खूबसूरत युवती ने साहुल की जिंदगी में दबे पांव कदम रखा तो जैसे उस को जीवन जीने के लिए संजीवनी मिल गई हो. नीरस हो चुके जीवन में बहार आ चुकी थी.

एक दिन की बात है. सुबह का समय था. दुकान पर उस समय कोई ज्यादा भीड़ नहीं थी. एकदो ग्राहक ही दवा लेने पहुंचे थे. उस समय वह दुकान पर अकेला ही था और स्टाफ अभी आए नहीं थे, आने वाले ही थे. खैर, जैसे ही वह एक ग्राहक को दवा देने के लिए पलटा, एक मीठी आवाज उस के कानों के परदे से टकराई, ”एक्सक्यूज मी, भाईसाहब.’’

आवाज सुनते ही साहुल के कदम वहीं रुक गए, जहां वह खड़ा था. पलट कर सामने देखा तो पिंक साड़ी में गोरीचिट्टी और बला की खूबसूरत एक युवती खड़ी थी और उस ने ही आवाज दी थी. उस खूबसूरत युवती को देख कर एक पल के लिए जैसे उस ने अपनी सुधबुध खो दी थी, ”आ रहा हूं दवा ले कर, एक सेकेंड रुकिए.’’ साहुल ने मुसकराते हुए जवाब दिया.

”कोई बात नहीं, मैं वेट करती हंू. आप इन को दवा दे दीजिए.’’ युवती ने भी मुसकराते हुए जवाब दिया.

वह युवती कोई और नहीं नंदिनी राजभर थी. कुछ पल बाद वह दवा ग्राहक को दे कर वह नंदिनी की ओर मुखातिब हुआ. उस समय नंदिनी दुकान पर अकेली थी.

”जी मैम, बताएं मैं आप की क्या सेवा कर सकता हूं?’’ साहुल ने नंदिनी की ओर देखते हुए कहा.

”ये दवा चाहिए थी मुझे.’’ नंदिनी ने दवा की परची उस की तरफ बढ़ा कर पूछा, ”क्या ये दवा मिल सकती है, अर्जेंट था?’’

साहुल ने परची ले कर उस में लिखी दवा का नाम पढ़ा और दवा निकाल कर उसे दे दी. दवा ले कर नंदिनी वहां से चली गई. साहुल अपलक उसे तब तक निहारता रहा, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हुई थी.

ऐसे पनपा नंदिनी और साहुल का प्यार

नंदिनी दवा ले कर चली तो गई थी, लेकिन साहुल उस की खूबसूरती के तीर से घायल हो गया था. पहली ही नजर में साहुल नंदिनी को दिल दे बैठा. अभी भी उस की आंखों के सामने नंदिनी का मुसकराता हुआ गोरा मुखड़ा थिरक रहा था. कुछ पल सोचने के बाद उस के चेहरे पर मुसकान थिरक उठी और मुसकराता हुआ वह अपने काम में जुट गया.

उस दिन के बाद साहुल हर सुबह नंदिनी के आने की राह ताकता रहता था और दिल से पुकारता था कि उस की एक झलक दिख जाए. जिस दिन नंदिनी का दीदार नहीं होता था, साहुल दिन भर बेचैन रहता था. जैसे ही उसे देखता, उस की खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहता था. मन नाच उठता था उस का.

दवा की दुकान पर आतेजाते नंदिनी और साहुल दोनों के बीच एक मधुर परिचय बन गया था. साहुल उसे जान भी गया था और पहचान भी गया था. जिस दिन से उस ने नंदिनी को देखा था और उस की सलोनी सूरत दिल में घर कर गया था, उस दिन के बाद से उस ने उस के बारे में सारी जानकारियां जुटानी शुरू कर दी थीं.

साहुल जान चुका था कि वह एक बड़ी पौलिटिकल हस्ती है और सुहेलदेव भारतीय समाजवादी पार्टी की प्रदेश महासचिव भी. उसी गांव में वह भी रहती है, जिस गांव में वह रहता है. वह यही सोचता था कि नंदिनी भले ही किसी ब्याहता हो, इस से उसे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है. अब से नंदिनी पर सिर्फ मेरा हक होगा, सिर्फ मेरा, किसी भी कीमत पर उसे पा कर रहूंगा. चाहे इस के लिए कोई भी कुरबानी क्यों न देनी पड़े, पीछे नहीं हटूंगा.

नंदिनी कोई दूधपीती बच्ची नहीं थी, जो साहुल के मंसूबे को नहीं समझती. वह जान चुकी थी कि साहुल उसे प्यार करता है. धीरेधीरे वह भी उस की ओर आकर्षित होती चली गई. बातचीत करने के लिए दोनों ने अपने मोबाइल नंबर एकदूसरे को दे दिए. मोबाइल नंबर मिल जाने के बाद दोनों फोन पर प्यार भरी लंबीलंबी बातें करते थे. फोन पर ही दोनों ने अपने प्यार का इजहार भी किया था.

आहिस्ता आहिस्ता दोनों का प्यार परवान चढऩे लगा. साहुल प्रेमिका नंदिनी को ले कर उस के साथ प्यार का घरौंदा बसाने का आंखों में सुनहरा सपना संजोने लगा. कहते हैं खुली आंखों से दिन में देखे गए सपने कभी पूरे नहीं होते. फिर ये सपने सिर्फ साहुल के थे, जिसे खुली आंखों से वह दिन में देख रहा था.

प्यार जब परवान चढ़ा तो प्रेमिका अपनी छोटी छोटी जरूरतों के लिए प्रेमी साहुल से पैसों की डिमांड करने लगी. ये प्यार प्यार नहीं था, बल्कि नंदिनी के लिए साहुल एक एटीएम मशीन बन कर रह गया था. जब चाहती प्यार का कार्ड डाल कर कैश कर लेती थी.

दिल की गहराइयों से प्यार करने वाला, प्यार में अंधा साहुल उसे पैसे दे देता था. पैसों के साथसाथ उस ने 25 हजार रुपए का सैमसंग  कंपनी का एक मोबाइल फोन भी उसे गिफ्ट किया था.

नंदिनी जितनी खूबसूरत दिखती थी, उस का प्यार उतना ही खूबसूरत छलावा था. दिखावे के तौर पर वह साहुल से प्यार का नाटक कर रही थी, उस के दिल को खिलौना समझ कर खेल रही थी. ऐसे नहीं वह राजनीति का चमकता हुआ सितारा कहलाती थी. उस की झोली में साहुल जैसे न जाने कितने आशिक पड़े रहे होंगे, जो उस के हुस्न के दीवाने थे, लेकिन उस ने किसी को भी घास नहीं डाली थी.

वह बखूबी जानती थी कि इश्क के राज से जब परदा उठेगा तो समाज में कितनी बदनामी होगी. मुंह दिखाना दुश्वार हो जाएगा. लोग क्या कहेंगे? वह तो बस उस के लिए एक टाइम पास है, जब तक दिल चाहेगा, इश्क का छलावा करती रहूंगी, फिर उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह अपने जिंदगी से निकाल फेंकूंगी.

ऐसी सोच रखती थी नंदिनी अपने प्रेमी साहुल के लिए, जबकि साहुल तो उस के प्यार में मजनू बना फिरता था. उस की रगों में बहने वाले खून की धारा में नंदिनी समाई हुई थी. दिल के हरेक पन्ने पर प्रेमिका नंदिनी का नाम लिख दिया था. उसी के नाम से सुबह होती थी तो रात भी उसी के नाम से.

नंदिनी के प्यार से साहुल की जिंदगी महक उठी थी. उसे क्या पता था कि जिसे वह प्यार की देवी समझ रहा है, जिस पर अपनी जान छिड़कता है, उस के दिल में उस के लिए कितना प्यार है, वह तो जहरीली नागिन से कम नहीं है.

साहुल को क्यों हुआ प्रेमिका पर शक

बहरहाल, साहुल के प्रति नंदिनी का प्यार धीरेधीरे कम होता गया और अब उसे देख कर वह रास्ता बदल लेती थी. उस से पीछा छुड़ाने के लिए वह दूरियां भी बनाती गई और तो और साहुल उसे जब भी काल करता, उस का फोन व्यस्त मिलता था.

यह देख उसे गुस्सा भी आता और परेशान भी रहता था. उस के मन में नंदिनी के प्रति शक का बीज अंकुरित हो गया था. उसे यह शक हो चला था कि नंदिनी का किसी और के साथ चक्कर चल रहा है. तभी तो वह इतनी लंबी लंबी बातचीत करने में व्यस्त रहती है. इसीलिए उस से दूरियां बढ़ानी शुरू की है.

नंदिनी के इस बर्ताव से साहुल टूट गया था. वह उस से मिल कर अनजाने में हुए सारे गिलेशिकवे दूर करना चाहता था, लेकिन नंदिनी उस से बात करने के लिए तैयार नहीं थी, न ही फोन पर और न ही मिल कर. उस की इस हरकत से साहुल और भी गुस्से से पागल हो गया था.

इसी गुस्से में आ कर उस ने उसे जो भी गिफ्ट, पैसे और मोबाइल फोन दिया था, उसे वापस करने के लिए उस पर दबाव बनाने लगा था. नंदिनी ने उसे कुछ भी वापस लौटाने से इंकार कर दिया था. फिर साहुल ने उसे गिफ्ट वापस न लौटाने पर बुरा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहने की धमकी भी दी.

कल तक नंदिनी पर जान छिड़कने वाला प्रेमी साहुल अब बदले की आग में धधकने लगा था. उसे हर कीमत पर पाना चाहता था. उस ने यह भी निश्चय कर लिया था कि उस का दिल कोई खिलौना नहीं था, जिसे जब तक चाहा खेला और जब जी भर गया तो तोड़ दिया. अगर वह मेरी नहीं हुई तो किसी और की भी नहीं होगी. उसे तो मरना ही होगा.

इश्क की आग में जलता हुआ प्रेमी साहुल 10 मार्च, 2024 को दोपहर करीब 2 बजे नंदिनी के घर पहुंचा. उसे पता था उस समय घर पर उस के सिवाय कोई और नहीं है. घर के सभी सदस्य अपनेअपने काम से बाहर गए हुए थे.

दोपहर का समय होने की वजह से घर के आसपास गहरा सन्नाटा भी फैला हुआ था. नंदिनी घर पर अपने कमरे में अकेली बैड पर लेटी हुई थी. कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. साहुल ने इधर उधर देखा, जब उसे कोई नहीं दिखाई दिया तो दबे पांव कमरे में घुस गया और भीतर से दरवाजे पर सिटकनी चढ़ा दी ताकि कमरे में कोई आ न सके.

दरवाजे की सिटकनी बंद होने की आवाज सुन कर नंदिनी उठ बैठी. देखा तो सामने साहुल खड़ा था. यह देख कर नंदिनी गुस्से से चिल्ला उठी, ”तुम्हारी इतनी हिम्मत कि बिना आवाज लगाए मेरे कमरे में घुस आए! तुम जानते नहीं कि मैं कौन हूं और तुम्हारी इस बदतमीजी की क्या सजा दे सकती हूं?’’

”जानता हूं, अच्छी तरह जानता हूं, तुझ जैसी दो टके की औरतों को. जिस का न तो कोई ईमान होता है और न कोई धर्म.’’ साहुल आग की दरिया में धधकता हुआ आगे बोला, ”आज मैं तुम से कोई बहस करने नहीं आया हूं. अपने प्यार का हिसाब करने आया हूं. मेरे सवालों का सीधासीधा जवाब दे दो, मैं यहां से चुपचाप चला जाऊंगा…’’

”और जवाब न दिया तो…’’ नंदिनी बीच में बात काटती हुई बोली.

इतना सुनते ही साहुल को गुस्सा आ गया. उस ने आव देखा न ताव, कमर में खोंसा फलदार चाकू निकाला. चाकू देख कर नंदिनी बुरी तरह डर गई और जान बचाने के लिए बैड से कूद कर नीचे भागी.

लेकिन अपने मजबूत हाथों से साहुल ने उसे पकड़ लिया और फर्श पर पटक दिया और फलदार चाकू से शरीर पर ताबड़तोड़ वार तब तक करता रहा, जब तक उस की मौत न हुई. इतने पर भी उस का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो उस ने बैड के पास रखे हथौड़े से उस के सिर पर वार किया.

जब उसे यकीन हो गया कि नंदिनी मर चुकी है तो उस ने उस का फोन और हथौड़ा अपने कब्जे में लिया और चुपके से दरवाजा खोल कर फुरती से बाहर निकला और तेजी से चला गया. न तो उसे आते हुए किसी ने देखा था और न ही जाते हुए.

इधर कमरे के फर्श पर नंदिनी अपने ही खून में सनी मरी पड़ी थी. शाम 4 बजे जब उस की सास आरती देवी बाहर से घर लौटीं तो बहू को खून में सना देखा.

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कहानी लिखे जाने तक पुलिस ने प्यार में धोखा खाए प्रेमी साहुल राजभर के खिलाफ आरोपपत्र अदालत में दाखिल करने की तैयारी कर ली थी. हत्या में इस्तेमाल किया गया चाकू और हथौड़ा भी पुलिस ने आरोपी की निशानदेही पर बरामद कर लिया. साहुल जेल में बंद अपने किए की सजा काट रहा था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

कलयुगी बेटे ने पीट पीट कर की पिता की हत्या

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर है तहसील मोहनलालगंज, इसी तहसील के कोराना गांव में 70 साल के बाबूलाल रावत अपने इकलौते बेटे रामकिशुन उर्फ कालिया, उस की पत्नी रेखा और बच्चों के साथ रहते थे. बाबूलाल खेतीकिसानी  कर के परिवार का गुजारा करते थे. इस गांव के तमाम लोग नशा करने के आदी हो गए थे.

गांव के लोगों की संगत का असर रामकिशुन पर भी हुआ. वह भी शराब के अलावा दूसरी तरह के नशीले पदार्थों का सेवन करने लगा. लंबे समय तक नशे में रहने का प्रभाव रामकिशुन के शरीर और सोच पर भी पड़ रहा था. वह पहले से अधिक गुस्से में रहने लगा था.

चिड़चिड़े स्वभाव की वजह से वह बातबात पर मारपीट करने लगता. केवल बाहर के लोगों के साथ ही नहीं बल्कि घर में भी वह पत्नी और बच्चों से झगड़ कर मारपीट करता था. उस की नशे की लत से घर के ही नहीं, मोहल्ले के लोग भी परेशान रहते थे.

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रात में जब वह ठेके से शराब पी कर चलता तो गांव में घुसते ही गाली देनी शुरू कर देता था. चीखचीख कर गाली देने से गांव वालों को उस के घर लौटने का पता चल जाता था. घर पहुंचते ही वह घर में मारपीट करने लगता था, कभी पिता से कभी पत्नी से तो कभी बेटे के साथ.

जून, 2019 के पहले सप्ताह की बात है. रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. पत्नी रेखा ने उसे समझाना शुरू किया, ‘‘इतनी रात गए शराब पी कर घर आते हो, ऊपर से लड़ाई झगड़ा करते हो, यह कोई अच्छी बात है क्या. जानते हो, तुम्हारी वजह से गांव वाले कितना परेशान होते हैं.’’

रामकिशुन भी लड़खड़ाई आवाज में बोला, ‘‘मैं शराब अपने पैसे से पीता हूं. इस से गांव वालों का क्या लेना देना. किसी के कहने का मेरे ऊपर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. तुम भी कान खोल कर सुन लो, मुझे ज्यादा समझाने की कोशिश मत करो. बस अपना काम करो.’’

रेखा भी मानने वाली नहीं थी. उसे पता था कि वह अभी नशे में है. ऐसी हालत में समझाने का उस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि सुबह नशा उतरने पर वह सब भूल जाएगा. इस से बेहतर तो यह है कि इस से कल दिन में बात की जाए.

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अगले दिन रेखा ने घर वालों के सामने पति रामकिशुन को समझाना शुरू किया. शुरुआत में तो वह इधर उधर की बातें कर के खुद को बचने की कोशिश करता रहा, इस के बाद भी जब रेखा ने रात के नशे की बात को ले कर बवाल जारी रखा तो रामकिशुन झगड़ा करने लगा. रेखा भी चुप रहने वालों में नहीं थी. उस ने झगड़े के बीच ही अपना फैसला सुना दिया, ‘‘अगर तुम नहीं सुधर सकते तो अपना घर संभालो, मैं अपने मायके चली जाऊंगी.’’

रेखा की धमकी ने 1-2 दिन तो असर दिखाया, इस के बाद रामकिशुन फिर से नशा कर के आने लगा. अब पानी सिर से ऊपर जा रह था, रेखा ने सोचा कि समझौता करने से कोई लाभ नहीं. उसे घर छोड़ कर चले जाना चाहिए. इस के बाद रेखा पति और बेटे को छोड़ कर अपने मायके चली गई.

रामकिशुन नशे का आदी था. पत्नी के घर छोड़ कर जाने का उस के ऊपर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि पत्नी के जाने के बाद तो वह और भी अधिक आजाद हो गया. वह देर रात तो वापस आता ही, अब वह दिन में भी नशा करने लगा था.

नशे में वह घर में सभी से मार पिटाई करता था. उस की पत्नी रेखा 15 दिन बीत जाने के बाद भी घर वापस नहीं आई थी. ऐसे में घर की जिम्मेदारी भी रामकिशुन के ऊपर आ गई थी. जिस से वह और भी अधिक चिड़चिड़ा हो गया था. 18 जून, 2019 की शाम 5 बजे रामकिशुन नशे में धुत हो कर घर आया. सुबह वह अपने बेटे रामकरन को घर के कुछ काम करने के लिए कह कर गया था, वह काम पूरे नहीं हुए तो गुस्से में आ कर रामकिशुन ने बेटे रामकरन की पिटाई शुरू कर दी.

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                         रामकिशुन

अपने पोते की पिटाई होते देख रामकिशुन के पिता बाबूलाल गुस्से में आ गए. उन्हें नशा करने की वजह से बेटे पर गुस्सा तो पहले से था. अब यह गुस्सा और भी अधिक बढ़ गया था.

वह बोले, ‘‘पत्नी घर छोड़ कर चली गई, इस के बाद भी तुम्हें समझ नहीं आया कि शराब छोड़ दो. ध्यान रखो, यदि नशा करना बंद नहीं किया तो एकएक कर के सारा परिवार तुम्हें छोड़ देगा. बेटे को पीटते हुए तुम्हें शर्म नहीं आ रही.’’

रामकिशुन ने पिता की बात को दरकिनार कर के बेटे की पिटाई जारी रखी. वह बोला, ‘‘जब मैं इसे समझा कर गया था तो इस ने काम क्यों नहीं किया? इस की मां घर छोड़ कर चली गई है तो बदले में इसे ही काम करना होगा.’’

बाबूलाल अपने पोते को बचाने के लिए आए तो वह बोला, ‘‘देखो, यह मामला हमारे बापबेटे के बीच का है. तुम बीच में मत बोलो.’’ यह कह कर उस ने पिता को झगड़े से दूर रहने को कहा.

बाबूलाल के हाथ में कुल्हाड़ी थी. वह जंगल से लकड़ी काट कर वापस आ रहे थे. पोते की पिटाई का विरोध करते और उसे बचाने के प्रयास में कुल्हाड़ी रामकिशुन को लग गई. इस से उस की आंखों के पास से खून निकलने लगा. रामकिशुन को इस बात की गलतफहमी हो गई कि पिता ने उस पर कुल्हाड़ी से हमला किया है. आंख के पास से खून बहता देख कर वह पिता पर आगबबूला हो गया.

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                              मृतक बाबूलाल

रामकिशुन बेटे को पीटना छोड़ कर पिता बाबूलाल की तरफ बढ़ गया. उस ने पिता के हाथ से कुल्हाड़ी ले कर फेंक दी और डंडे से पिता की पिटाई शुरू कर दी. पिटाई में बाबूलाल का सिर फूट गया पर इस बात का खयाल रामकिशुन को नहीं आया. बेतहाशा पिटाई से बाबूलाल की हालत खराब हो गई. रामकिशुन उन्हें मरणासन्न अवस्था में छोड़ कर भाग निकला.

बाबूलाल की खराब हालत देख कर पोता रामकरन बाबा को इलाज के लिए सिसेंडी कस्बे के एक निजी अस्पताल ले गया, जहां डाक्टरों ने बाबूलाल की खराब हालत और पुलिस केस देख कर जवाब दे दिया. वहां से निराश हो कर रामकरन बाबा को ले कर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, मोहनलालगंज ले गया.

वहां डाक्टरों ने बाबूलाल की गंभीर हालत देखते हुए उन्हें लखनऊ के ट्रामा सेंटर रेफर कर दिया. ट्रामा सेंटर के डाक्टरों ने बाबूलाल को एडमिट कर इलाज शुरू कर दिया. बाबा के इलाज में पैसा खर्च होने लगा. रामकरन के पास जो पैसे थे वह जल्दी ही खत्म हो गए.

रामकरन ने पैसों के इंतजाम के लिए प्रयास किए, पर कोई मदद करने वाला नहीं था. लोगों ने समझाया कि पैसे नहीं हैं तो अब बाबूलाल को यहां रखना ठीक नहीं है. अच्छा होगा कि घर पर ही रखा जाए. वहीं इन की सेवा की जाए.

इलाज का कोई रास्ता न देख कर रामकरन ने डाक्टरों से कहा कि उस के पास पैसे खत्म हो चुके हैं ऐसे में हम बाबा को अपने गांव वापस ले जाना चाहते हैं. डाक्टरों से मिन्नतें कर के रामकरन अपने बाबा को अस्पताल से डिस्चार्ज करा कर घर ले आया. उसी दिन देर रात बाबूलाल ने अपने घर पर दम तोड़ दिया.

बाबूलाल की मौत के बाद सुबह को रामकरन ने पूरे मामले की सूचना मोहनलालगंज पुलिस को दे दी तो इंसपेक्टर जी.डी. शुक्ला बाबूलाल के घर पहुंच गए.

जरूरी काररवाई कर के पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी. पुलिस ने रामकरन की सूचना पर उस के पिता रामकिशुन के खिलाफ गैरइरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज कर के उस की पड़ताल शुरू कर दी. इंसपेक्टर जी.डी. शुक्ला ने एक पुलिस टीम का गठन कर के रामकिशुन की तलाश शुरू कर दी.

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इसी बीच पुलिस को पता चला कि रामकिशुन गांव के बाहर छिपा हुआ है, पुलिस ने पिता बाबूलाल की हत्या के आरोप में रामकिशुन को गांव के बाहर से गिरफ्तार कर लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया. अगर रामकिशुन नशे का आदी नहीं होता तो वह पिता की हत्या नहीं करता और न ही उसे जेल जाना पड़ता. नशे की आदत ने पूरे परिवार को तबाह कर दिया.

रेनू जिंदा है तो वो कौन थी?

23 नवंबर, 2018 को कार्तिक पूर्णिमा थी. उस रोज उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के करमैनी घाट पर मेला लगा हुआ था. यहां पर यह मेला हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगता है. इस दिन दूरदूर से लोग नदी में नहाने आते हैं. मेले में भारी भीड़ जुटती है. इसी जिले के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली 18 वर्षीया रेनू साहनी भी अपने दोनों भांजों के साथ मेला देखने आई थी.

रेनू अपनी बड़ी बहन लीलावती के साथ उस की ससुराल मूसाबार (पीपीगंज) में रहती थी. जबकि उस की मां चंद्रावती और पिता ब्रह्मदेव रामूघाट गांव में ही रहते थे. उस का एक भाई था जो कानपुर में रह कर वहीं नौकरी करता था.

बहरहाल, रेनू कई दिन पहले से मेला देखने की तैयारी कर रही थी. चूंकि मूसाबार से करमैनी घाट की दूरी ज्यादा नहीं थी, इसलिए वह अपनी बहन लीलावती के दोनों बेटों को साथ ले घर से खुशी खुशी पैदल ही मेला देखने चली गई थी.

रेनू को घर से निकले करीब 6 घंटे बीत चुके थे, लेकिन वह वापस नहीं लौटी थी. लीलावती को बेटों को ले कर फिक्र हो रही थी. जब दोपहर के 2 बज गए और रेनू घर नहीं लौटी तो लीलावती ने पति इंद्रजीत से पता लगाने को कहा. उस दिन इंद्रजीत घर पर ही था. वैसे इंद्रजीत ने रेनू से कहा भी था कि अकेले जाने के बजाए वह उस के साथ मेला देखने चले. लेकिन रेनू ने बहन और बहनोई से कहा कि वह मेला देख कर थोड़ी देर में घर लौट आएगी. इसलिए वह दोनों भांजों को अपने साथ ले कर चली गई थी.

रेनू की बात मान कर लीलावती और इंद्रजीत ने उसे मना नहीं किया और बच्चों के साथ जाने की अनुमति दे दी. जब काफी देर बाद भी वह घर नहीं आई तो इंद्रजीत बाइक ले कर साली रेनू और बच्चों को ढूंढने करमैनी घाट जा पहुंचा. इंद्रजीत ने अपनी बाइक खड़ी कर के बच्चों और साली को ढूंढने के लिए पूरा मेला छान मारा लेकिन न बच्चे मिले और न रेनू.

रहस्यमय ढंग से गायब हुई रेनू

इंद्रजीत परेशान हो गया. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. कुछ नहीं सूझा तो वह घाट से थोड़ी दूर स्थित करमैनी पुलिस चौकी जा पहुंचा. वहां पहुंचते ही वह चौंक गया. क्योंकि वहां उस के दोनों बच्चे कुरसी पर बैठे रो रहे थे. पुलिस वाले उन्हें चुप कराने की कोशिश कर रहे थे. बच्चों ने जब अपने पिता को देखा तो भावावेश में और जोर जोर से रोने लगे.

इंद्रजीत ने झट से दोनों बच्चों को सीने से लगा लिया. जब वे चुप हुए तो उन से उन की रेनू मौसी के बारे में पूछा. बच्चों ने बताया कि रेनू मौसी मेले में कहीं गायब हो गईं. नहीं मिलीं तो हम रोने लगे. पुलिस वालों ने इंद्रजीत से पूछा कि बात क्या है? मेले में बच्चे रोते हुए दिखे तो हम यहां ले आए. इस के बाद इंद्रजीत ने पुलिस वालों को पूरी बात बता दी और उन से रेनू को ढूंढने में मदद मांगी.

चूंकि मामला एक अविवाहित लड़की से जुड़ा हुआ था इसलिए पुलिस वालों ने उसे समझाया कि पहले घर जा कर देख लें. हो सकता है कि वह घर पहुंच गई हो. अगर वह घर पर नहीं मिले तो गुमशुदगी की सूचना कैंपियरगंज थाने में लिखवा दे. बच्चों के मिल जाने से इंद्रजीत को थोड़ी तसल्ली तो हुई लेकिन साली के न मिलने पर वह परेशान था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि घर जा कर वह पत्नी और फिर सासससुर को क्या जवाब देगा.

इंद्रजीत बच्चों को बाइक पर बैठा कर घर पहुंचा. घर पहुंच कर उस ने सब से पहले पत्नी से रेनू के बारे में पूछा. लीलावती ने मना कर दिया तो वह और परेशान हो गया. उस ने पत्नी से बता दिया कि रेनू मेले से गायब हो गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा.

छोटी बहन के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जानकारी मिलते ही लीलावती रोने लगी. वह बारबार एक ही बात दोहरा रही थी कि मां जब रेनू के बारे में पूछेगी तो उन्हें क्या जवाब देगी.

इंद्रजीत पत्नी के साथ उसी शाम अपनी ससुराल रामूघाट पहुंचा और उस ने सासससुर को रेनू के गायब होने की पूरी बात बता दी. बेटी के गायब होने की जानकारी मिलते ही वे दोनों परेशान हो गए. उन्होंने अपनी रिश्तेदारियों में कई जगह फोन कर के रेनू के बारे में पूछा पर वह किसी भी रिश्तेदारी में नहीं पहुंची थी.

धीरेधीरे शाम ढल गई और रात पांव पसारने लगी. फिर धीरेधीरे रात पूरी बीत गई. न रेनू घर लौटी और न ही उस की कोई खबर मिली. जवान बेटी के घर से गायब होने की पीड़ा क्या होती है, चंद्रावती महसूस कर रही थी. उस ने बेटी की चिंता में पूरी रात आंखोंआंखों में काट दी थी.

दूसरा दिन भी रेनू की तलाश में बीत गया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. 25 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की गुमशुदगी की सूचना दे दी. रेनू की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद पुलिस हरकत में आई. 3 दिन बाद 28 नवंबर, 2018 को कैंपियरगंज थाने के माधोपुर बांध के पास झाड़ी से एक युवती की लाश बरामद हुई.

उस के गले में रस्सी कसी हुई थी. स्थानीय समाचारपत्रों ने इस समाचार को प्रमुखता से प्रकाशित किया. अखबार में प्रकाशित खबर इंद्रजीत साहनी ने भी पढ़ी. युवती की लाश उसी इलाके से बरामद हुई थी, जहां से रेनू गायब हुई थी. उस के मन में बुरेबुरे खयाल आने लगे थे.

30 नवंबर को इंद्रजीत सास चंद्रावती को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने जा कर विक्रम सिंह से मिला. उस ने मेले से रेनू के गायब होने की बात उन्हें बताई. थानेदार साहब ने मालखाने से युवती के कपड़े और फोटो मंगवाए.

फोटो देखते ही चंद्रावती और इंद्रजीत फफक फफक कर रोने लगे. उन्होंने युवती की लाश की शिनाख्त रेनू के रूप में कर दी. लाश की शिनाख्त होने के बाद पुलिस ने थोड़ी राहत की सांस ली और मोर्चरी में रखी लाश पोस्टमार्टम के बाद घर वालों के सुपुर्द कर दी. इस के बाद घर वालों ने रेनू का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी के दाह संस्कार के 2 दिनों बाद चंद्रावती दामाद इंद्रजीत के साथ कैंपियरगंज थाने पहुंची और बेटी की हत्या की नामजद तहरीर थानेदार को सौंप दी. तहरीर में उस ने बताया कि उस की बेटी रेनू की हत्या उस के पट्टीदार रेलकर्मी रामसजन साहनी और उस के फौजी बेटे ज्ञानेंद्र साहनी ने मिल कर की है. पुलिस ने तहरीर के आधार पर रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र साहनी के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर के आवश्यक काररवाई शुरू कर दी.

रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए रामूघाट स्थित उन के घर पहुंची तो दोनों ही घर पर नहीं मिले. घर वालों से पता चला कि दोनों अपनी ड्यूटी पर गए हैं. रामसजन रोज सुबह नौकरी पर निकल जाते हैं और बेटा सीमा पर तैनात है. यह बात पुलिस को बड़ी अजीब सी लगी कि फौज में सीमा पर तैनात ज्ञानेंद्र ने यहां आ कर हत्या कैसे कर दी?

थानेदार ने यह जानकारी एसएसपी डा. सुनील गुप्ता, एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ (कैंपियरगंज) रोहन प्रमोद बोत्रे को दी. एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय को आरोपियों को गिरफ्तार करने के निर्देश दिए.

इस के बाद एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पहले घटनास्थल का दौरा किया, जहां से रेनू गायब हुई थी और उस स्थान का भी मुआयना किया, जहां उस की लाश पाई गई थी.

जांच के दौरान अधिकारियों के गले से एक बात नहीं उतर रही थी कि जब मेले में रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर गई थी, तो भीड़भाड़ वाली जगह से रेनू का अपहरण करने वालों ने बच्चों का अपहरण क्यों नहीं किया?

उधर थानेदार को एक चौंकाने वाली बात पता चली. घटना वाले दिन रामसजन और उस का बेटा ज्ञानेंद्र सचमुच गांव में नहीं थे. दोनों अपनी अपनी ड्यूटी पर थे. इस से पुलिस को लगा कि उन दोनों को रंजिश के तहत फंसाया जा रहा है. इधर चंद्रावती आरोपियों को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस अधिकारियों पर दबाव बनाए हुई थी.

एसएसपी डा. सुनील गुप्ता ने अपने औफिस में एक जरूरी बैठक बुलाई. बैठक में एसपी (नौर्थ) अरविंद पांडेय, सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे और थानेदार विक्रम सिंह शामिल थे. मीटिंग में जांच के उन सभी पहलुओं पर चर्चा हुई जो विवेचना के दौरान प्रकाश में आए थे. इन बिंदुओं में बच्चों का अपहरण न होना प्रमुख था.

पुलिस को लग रहा था जैसे चंद्रावती और उस का दामाद इंद्रजीत कुछ छिपा रहे हों. जिस घर में एक जवान बेटी की मौत हुई हो, उस घर में पुलिस को मातम जैसी कोई बात नहीं दिख रही थी. बेटी की मौत का गम न तो मां चंद्रावती के चेहरे पर था और न ही लीलावती या इंद्रजीत के चेहरे पर.

यह बात पुलिस को बुरी तरह उलझा रही थी, इसीलिए  एसएसपी गुप्ता ने अपने मातहतों से चंद्रावती और उस के परिवार पर नजर रखने के लिए कह दिया था. धीरेधीरे 6 महीने का समय बीत गया.

बात अप्रैल, 2019 की है. मुखबिर ने पुलिस को एक बेहद चौंका देने वाली सूचना दी. उस ने पुलिस को बताया कि चंद्रावती और उस का परिवार एक अनजान व्यक्ति से बराबर बातें करते हैं. रात के अंधेरे में एक औरत और मर्द आते हैं और फिर रात में ही वे लौट जाते हैं.

मुखबिर की यह बात पुलिस को हैरान कर देने वाली लगी. थानेदार ने यह बात सीओ बोत्रे से बताई तो उन्होंने एसपी साहब से बात कर के चंद्रावती का मोबाइल फोन सर्विलांस पर लगवा दिया. सर्विलांस के जरिए पुलिस को एक ऐसे नंबर का पता चला, जिस की लोकेशन 23 नवंबर को करमैनी घाट की मिली. इस का मतलब यह हुआ कि उस दिन रेनू मेले से जब गायब हुई थी तो वह व्यक्ति भी मेले में मौजूद था.

जांच करने पर वह नंबर जिला अयोध्या के थाना इनायतनगर के गांव पलिया रोहानी निवासी आनंद यादव का निकला. फिलहाल उस की लोकेशन कानपुर के काकादेव इलाके में आ रही थी.

रेनू निकली जीवित

जांचपड़ताल में एक बेहद चौंकाने वाली सूचना मिली. जिस रेनू की हत्या किए जाने की बात कही जा रही थी दरअसल वह जिंदा थी. रेनू के जिंदा होने वाली बात जैसे ही पुलिस अधिकारियों को पता चली तो वे आश्चर्यचकित रह गए. पुलिस ने यह बात अपने तक गुप्त रखी क्योंकि वह रेनू को किसी भी हालत में जिंदा ही पकड़ना चाहती थी.

पुलिस की एक टीम आनंद यादव को पकड़ने के लिए कानपुर रवाना कर दी गई. पता नहीं कैसे आनंद को पुलिस के आने की भनक मिल गई. वह काकादेव इलाका छोड़ कर कहीं और जा कर छिप गया.

पुलिस कई दिनों तक आनंद की तलाश में कानपुर की गलियों की खाक छानती रही. लेकिन वह पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा, लिहाजा पुलिस खाली हाथ गोरखपुर लौट आई.

बहरहाल 14 मई, 2019 की रात करीब 9 बजे मुखबिर ने थानेदार विक्रम सिंह को रेनू के बारे में एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी. सूचना मिलते ही थानेदार पुलिस टीम के साथ कैंपियरगंज रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर-1 पर पहुंच गए.

वहां एक कोने में समीज सलवार पहने रेनू एक युवक के साथ बैठी मिली. पुलिस ने दोनों को हिरासत में ले लिया. पूछताछ करने पर रेनू ने बताया कि जिस युवक के साथ है, वह उस का पति आनंद यादव है. पुलिस दोनों को थाने ले आई.

थाने ला कर दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने जो जानकारी पुलिस को दी, वह वाकई हैरान कर देने वाली थी.

कैंपियरगंज पुलिस के हाथ बड़ी कामयाबी लगी थी. जिस रेनू की परिवार वालों ने हत्या किए जाने का दावा किया था, वह जिंदा मिल गई थी. रेनू हत्याकांड की गुत्थी सुलझा कर पुलिस की बांछें खिल उठीं. बाद में थानेदार ने अधिकारियों को सूचना दे दी.

अगले दिन 15 मई, 2019 को एसपी (नौर्थ) अरविंद कुमार पांडेय और सीओ रोहन प्रमोद बोत्रे ने पत्रकारवार्ता आयोजित की. इस पत्रकारवार्ता में रेनू के घर वालों को भी बुलाया गया था. वे वहां उपस्थित थे.

पत्रकारों के सामने पुलिस ने रेनू और आनंद को पेश किया तो गोरखपुर के 2 पुराने मामलों शिखा दूबे और वैशाली श्रीवास्तव उर्फ ब्यूटी कांड की यादें ताजा हो गई थीं. उस के बाद रेनू ने खुद पूरी घटना पत्रकारों के सामने बयान कर दी, जिसे सुन कर मीडियाकर्मी भी चौंक गए. रेनू के घर वालों ने जब वहां रेनू को देखा तो उन के चेहरे का रंग उड़ गया.

पत्रकारवार्ता के बाद पुलिस ने दोनों प्रेमी युगल रेनू साहनी उर्फ कनक मिश्रा और आनंद यादव उर्फ आनंद मिश्रा को हिरासत में ले कर जेल भेज दिया.

रेनू के साथसाथ उस की मां चंद्रावती, बड़ी बहन लीलावती और जीजा इंद्रजीत साहनी को भी गिरफ्तार कर लिया गया. तीनों ने मिल कर एक बड़ी साजिश रची थी. अपनी कुटिलता से वे पुलिस को नाहक परेशान करते रहे. आखिर उन्होंने इतनी बड़ी साजिश क्यों रची, पूछने पर एक रोमांचक कहानी सामने आई—

18 वर्षीय रेनू साहनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के पीपीगंज इलाके के रामूघाट की रहने वाली थी. उस के पिता का नाम ब्रह्मदेव साहनी था. ब्रह्मदेव के 3 बच्चों में रेनू सब से छोटी थी. रेनू से बड़ा एक भाई और बहन लीलावती थी. ब्रह्मदेव दोनों बच्चों की शादी कर चुके थे. अब केवल रेनू की शादी करनी बाकी थी.

ब्रह्मदेव कानपुर में नौकरी करते थे और परिवार के साथ रहते थे. वह जिस मोहल्ले में किराए पर रहते थे, वहीं पर पड़ोस में आनंद यादव अकेला रहता था. वह अयोध्या जिले के इनायतनगर के पलिया रोहानी का रहने वाला था. आनंद के परिवार वाले अयोध्या में रहते थे. जबकि वह कानपुर में रह कर प्राइवेट नौकरी करता था. दोनों के मकान ठीक आमने सामने थे.

स्मार्ट और कसरती बदन वाले आनंद की नजरें घर से निकलते हुए कभीकभार बालकनी में खड़ी खूबसूरत रेनू से टकरा जाती थीं. नजर पड़ते ही वह हौले से मुसकराते हुए आगे बढ़ जाता था. बदले में रेनू भी उसी अंदाज में मुसकरा कर जवाब दे दिया करती थी. बात आई गई हो गई, न तो आनंद ने इसे दिल से लिया था और न ही रेनू ने.

लेकिन पड़ोसी होने के नाते आनंद कभीकभार रेनू के घर चला जाया करता था. दरअसल रेनू का एक भाई आनंद की उम्र का था. उस से आनंद की अच्छी निभती थी. रेनू के भाई की वजह से ही आनंद का उस के घर में आनाजाना शुरू हुआ था. यह बात सन 2016 की है.

घर आनेजाने से आनंद की नजर रेनू पर पड़ जाती थी. नजदीक से जब उस ने रेनू को देखा तो उस के दिल में चाहत पैदा हो गई. गजब की खूबसूरत रेनू उस के दिल में उतरती चली गई. उसे रेनू से प्यार हो गया था. ऐसा नहीं था कि यह प्यार एकतरफा था. रेनू भी आनंद में आनंद लेने लगी थी. वह भी उस से प्यार करने लगी थी.

मौका देख कर दोनों ने एकदूसरे से प्यार का इजहार कर लिया था. इस के बाद आनंद का रेनू के घर आनेजाने का सिलसिला बढ़ गया था. अचानक आनंद का घर में ज्यादा आनाजाना शुरू हुआ तो ब्रह्मदेव को कुछ अजीब लगा. अनुभवी ब्रह्मदेव ने पत्नी से कह दिया कि आनंद घर में जब भी आए, तो उस पर नजर रखना. मामला कुछ गड़बड़ लगता है. मुझे उस के लक्षण कुछ अच्छे नहीं दिख रहे.

पति की बातों को चंद्रावती ने भी गंभीरता से लिया. जल्द ही सब कुछ सामने आ गया था. पति का शक नाहक नहीं था. रेनू और आनंद के बीच में कुछ खिचड़ी जरूर पक रही थी. बेटी की हरकतें देख कर चंद्रावती का पारा सातवें आसमान को छू गया. फिर उस ने सोचा कि गुस्से से नहीं, ठंडे दिमाग से काम लेना चाहिए. क्योंकि बेटी सयानी है, कहीं कुछ ऊंचनीच हो गया तो समाजबिरादरी को क्या मुंह दिखाएंगे.

मां ने समझाया रेनू को

एक दिन चंद्रावती ने बेटी को समझाने के लिए अपने पास बुला कर कहा, ‘‘बेटी, मैं एक बात पूछती हूं. सच बताएगी क्या?’’

‘‘पूछो मां, क्या बात है?’’ रेनू बोली.

‘‘रेनू, मैं देख रही हूं कि आजकल तुम्हारे पांव कुछ ज्यादा ही बहक रहे हैं.’’ चंद्रावती बोली.

‘‘तुम कहना क्या चाहती हो मां, मैं कुछ समझी नहीं.’’ रेनू ने उत्तर दिया.

‘‘नहीं समझ रही तो मैं समझाए देती हूं. मैं यह कह रही हूं कि तुम्हारे पापा को तुम्हारी करतूतों के बारे में सब पता चल चुका है. आनंद से मेलजोल बढ़ाने की जरूरत नहीं है. अभी भी वक्त है, अपने बहके हुए कदमों को रोक लो वरना कयामत आ जाएगी.’’ मां की बातें सुनते ही रेनू सन्न रह गई और सोचने लगी कि मां को उस के प्यार के बारे में कैसे पता चल गया.

‘‘क…कौन आनंद?’’ हकलाती हुई रेनू मां के पास से उठ खड़ी हुई और आगे बोली, ‘‘मेरा आनंद से कोई लेनादेना नहीं है मां. फिर तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मेरा आनंद के साथ कोई चक्कर है. क्या तुम्हें अपनी बेटी पर भरोसा नहीं है?’’

‘‘भरोसा ही तो टूटता हुआ दिखाई दे रहा है बेटी, तभी तो तुम्हें आगाह कर रही हूं कि अभी भी वक्त है. तुम खुद को संभाल लो, नहीं तो आगे तुम खुद ही भुगतोगी.’’ मां ने एक तरह से चेतावनी भी दी.

मां की बात अनसुनी करते हुए रेनू कमरे में चली गई. वह ये सोच कर हैरान थी कि मां को उस के रिश्तों के बारे में आखिर कैसे पता चला. रेनू ने यह बात आनंद से बता कर उसे सावधान कर दिया कि उन के प्यार के बारे में उस के घर वालों को पता चल चुका है, इसलिए सतर्क हो जाए नहीं तो हमारा मिलना बहुत मुश्किल हो जाएगा.

रेनू के समझाने पर आनंद मान गया था. इस के बाद उस ने उस के घर आनाजाना कम कर दिया. वह कभी जाता भी था तो केवल रेनू के भाई से बातचीत कर के थोड़ी देर में अपने कमरे पर वापस लौट आता था. इसी बीच आनंद ने सब से नजरें बचाते हुए एक एंड्रायड मोबाइल फोन खरीद कर रेनू को गिफ्ट कर दिया था ताकि घर वालों के पाबंदी लगाए जाने पर उस से उस की लगातार बातें होती रहें.

रेनू पर लगा दी गई पाबंदी

रेनू के मांबाप ने उस पर सख्त पाबंदी लगा दी थी. इस के बावजूद भी उन्हें महसूस हो गया था कि लाख मना करने के बावजूद रेनू ने आनंद से मिलनाजुलना बंद नहीं किया है. अब तो पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा था. क्योंकि वह खुलेआम आनंद से मिलती और बातें करती थी.

रेनू की ये हरकतें उन से सहन नहीं हो रही थीं. वे अपनी मानमर्यादा को बचाने में लगे हुए थे. उन्हें इस बात का डर था कि बेटी के साथ कहीं ऊंचनीच हो गई तो वे समाज में क्या मुंह दिखाएंगे.

आखिर बेटी की हरकतों से परेशान हो कर ब्रह्मदेव ने कानपुर छोड़ गोरखपुर लौटने का फैसला कर लिया. सन 2018 के अक्तूबर के पहले हफ्ते में नौकरी छोड़ कर ब्रह्मदेव बच्चों के साथ गोरखपुर वापस आ गया.

गोरखपुर आने के बाद चंद्रावती ने रेनू को अपनी बड़ी बेटी लीलावती के पास उस की ससुराल मूसावार, कैंपियरगंज भेज दिया. सोचा कि वह बड़ी बहन के पास रहेगी तो उस का मन भी लगा रहेगा और निगरानी भी करती रहेगी.

जैसेतैसे एक सप्ताह बीता. रेनू अपने प्रेमी आनंद से मिलने के लिए बेताब हो रही थी. वह जानती थी कि ऐसा कदापि संभव नहीं है लेकिन वह उस की यादों में तिलतिल कर तड़प रही थी. वह फोन से बातें कर के अपने मन को समझाबुझा लेती थी. रेनू जानती थी कार्तिक पूर्णिमा के दिन कैंपियरगंज के करमैनी घाट पर बड़ा मेला लगता है. घर से भागने के लिए उसे वही उचित समय लगा. सोचा कि मेला देखने के बहाने वह घर से निकल जाएगी.

महीनों इंतजार के बाद आखिरकार वह दिन भी आ गया. 23 नवंबर, 2018 को करमैनी घाट पर कार्तिक पूर्णिमा का मेला लगा हुआ था. मेला के एक दिन पहले 22 नवंबर, 2018 को रेनू ने प्रेमी आनंद को फोन कर के साथ भागने के लिए गोरखपुर करमैनी घाट में पहुंचने के लिए कह दिया था.

प्रेमिका का फोन आते ही आनंद उसी रात ट्रेन द्वारा कानपुर से गोरखपुर पहुंच गया. फिर वहां से बस द्वारा कैंपियरगंज चला गया. वहां से सवारी कर के करमैनी घाट मेला पहुंचा और निर्धारित जगह पर रेनू का इंतजार करने लगा. बहाने से रेनू दोनों भांजों को साथ ले कर मेला देखने के बहाने करमैनी घाट पहुंच गई.

भांजों को थोड़ी देर मेला घुमाने के बाद उन्हें खाने के सामान दिलवा दिए और थोड़ी देर में लौट आने को कह कर वह बच्चों को मेले में एक जगह छोड़ कर प्रेमी आनंद से मिलने चली गई, जो करमैनी पुलिस चौकी से कुछ दूर खड़ा उसी का इंतजार कर रहा था.

रेनू जैसे ही प्रेमी आनंद के पास पहुंची तो वह खुश हो गया. फिर वे दोनों वहां से टैंपो में सवार हुए और सीधे कैंपियरगंज बस स्टाप पहुंचे. वहां से बस में सवार हो कर गोरखपुर आए. गोरखपुर से ट्रेन से अगले दिन कानपुर पहुंच गए.

इधर रेनू को घर से निकले करीब 5-6 घंटे बीत चुके थे. जब रेनू घर नहीं लौटी तो घर वाले परेशान हो गए थे. बाद में उन्होंने गुमशुदगी की सूचना थाने में लिखवा दी.

रेनू के गायब होने के चौथे दिन 27 नवंबर, 2018 को चंद्रावती के पास एक अनजान नंबर से फोन आया. फोन आनंद यादव ने किया था. उस ने रेनू की मां को बता दिया कि उस की बेटी रेनू उस के पास सुरक्षित है. उस ने यह भी कहा कि हम दोनों ने कानपुर के बारादेई मंदिर में आर्यसमाज विधि से विवाह कर लिया है.

यह सुन कर चंद्रावती के होश उड़ गए. उस ने कोई जवाब नहीं दिया. आनंद खुद को आनंद मिश्रा और रेनू को कनक मिश्रा के रूप में लोगों को परिचय देता था. अगले दिन 28 नवंबर को कैंपियरगंज के करमैनी घाट के माधोपुर बांध की झाड़ी से एक 18 वर्षीया युवती की लाश पाई गई.

इस खबर के बाद चंद्रावती के दिमाग में एक कपोलकल्पित कहानी उपज गई. उस ने सोचा कि रेनू घर वालों के मुंह पर कालिख पोत कर भागी है, तो क्यों न उसे सदा के लिए मरा मान लिया जाए. दामाद इंद्रजीत से पूरी बात बता कर उस से ऐसा ही करने को कहा तो इंद्रजीत सास की बात टाल न सका. उस ने वही किया जो उसे सास ने करने के लिए कहा था.

फिर 30 नवंबर को चंद्रावती दामाद इंद्रजीत को साथ ले कर कैंपियरगंज थाने पहुंची. 2 दिन पहले माधोपुर बांध से पाई गई लाश को अपनी बेटी की लाश बता उस का अंतिम संस्कार कर दिया.

बेटी का अपहरण और अपहरण के बाद हत्या का आरोप चंद्रावती ने अपने पट्टीदार रामसजन और उस के बेटे ज्ञानेंद्र पर लगाया. दरअसल चंद्रावती और रामसजन के बीच जमीन को ले कर काफी दिनों से विवाद चल रहा था. इसी विवाद का लाभ चंद्रावती उठाना चाहती थी.

रामसजन पर झूठा मुकदमा दर्ज करा कर वह उस से पैसे ऐंठने की फिराक में भी थी. लेकिन उस की दाल नहीं गली. फिर अंत में 7 महीने बाद 14 मई, 2019 को रेनू की हत्या की झूठी कहानी से राजफाश हो गया. पुलिस ने चंद्रावती सहित पांचों अभियुक्तों को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया.

अब सवाल यह उठ रहा था कि जिस युवती को रेनू की लाश समझा जा रहा था, वह तो जिंदा निकली तो फिर वह कौन थी जिस की लाश का चंद्रावती ने अंतिम संस्कार किया था. पुलिस इस रहस्यमय गुत्थी को सुलझाने में लगी हुई है. देखना यह है कि क्या पुलिस उस युवती की हत्या के मामले को सुलझाने में कामयाब हो सकेगी या यूं ही यह मामला रहस्य की चादर में लिपटा रह जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्रेम प्रतिशोध : गोली पर लिखा प्यार

कैलामऊ गांव के 2 युवक राजू और कमल पुलिस में भरती होने की तैयारी कर रहे थे. इस के लिए वह रोजाना सुबह के समय दौड़ लगाते थे. 16 अप्रैल को सुबह करीब पौने 5 बजे दोनों दौड़ लगाने घर से निकले तो उन्होंने गांव के बाहर एक खेत में 2 लाशें पड़ी देखीं.

लाशें देखते ही दोनों दौड़ते हुए गांव आए और उन्हें जो भी मिला उसे 2 लाशें पड़ी होने की सूचना दी. इस के बाद गांव के लोग खेत की तरफ दौड़ पड़े. कुछ ही देर में वहां भीड़ जुट गई. गांव वालों ने लाशें देखीं तो तुरंत पहचान गए. दोनों रामकिशोर की बेटियां संध्या और शालू थीं.

किसी ने यह खबर रामकिशोर को दी तो बेटियों की हत्या की खबर सुनते ही रामकिशोर परेशान हो गया. उस के घर में चीखपुकार मच गई. वह जल्दी ही अपनी पत्नी जयदेवी के साथ घटनास्थल पहुंच गया. दोनों बेटियों के शव देख कर मियांबीवी फूटफूट कर रोने लगे. जितेंद्र भी अपनी बहनों की लाशें देख कर दहाड़ मार कर रोने लगा. यह बात 16 अप्रैल प्रात: 5 बजे की है.

सूरज का उजाला फैला तो 2 सगी बहनों की हत्या की खबर कैलामऊ के आसपास के गांवों में भी फैल गई. कुछ ही देर बाद वहां देखने वालों का तांता लग गया. इसी बीच किसी ने फोन द्वारा यह सूचना थाना बसरेहर पुलिस को दे दी. सुबहसुबह डबल मर्डर की खबर पा कर थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को यह सूचना दे दी. फिर वह पुलिस टीम के साथ कैलामऊ गांव पहुंच गए.

उन्होंने घटनास्थल को पीले फीते से कवर किया ताकि साक्ष्यों से छेड़छाड़ न हो सके. उसी समय एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी, एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह आ गए. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया था. भारी भीड़ को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस फोर्स मंगवा ली.

पुलिस अधिकारियों ने लाशों का मुआयना किया तो पता चला कि दोनों बहनों की हत्या गोली मार कर की गई थी. दोनों के सीने में गोली मारी गई थी, जो आरपार हो गई थी. मृतका संध्या की उम्र 18 वर्ष के आस पास थी, जबकि उस की छोटी बहन शालू की उम्र लगभग 15 वर्ष थी. शवों के पास ही शराब की खाली बोतल, तमंचा, 5 जीवित कारतूस, खाली खोखे, टौर्च, चप्पलें और एक मोबाइल पड़ा था.

फोरैंसिक टीम ने शराब की बोतल, तमंचा तथा टौर्च से फिंगरप्रिंट लिए. इस के साथ ही अन्य साक्ष्य भी जुटाए गए. पुलिस ने घटनास्थल पर मिली सभी चीजें बरामद कर लीं. पुलिस अधिकारियों ने मृतक बहनों के पिता रामकिशोर से घटना से संबंध में जानना चाहा तो वह फफक पड़ा.

उस ने बताया कि बीती रात वह फसलों की रखवाली के लिए खेतों पर था. सुबह उस का बेटा जितेंद्र रोतेपीटते आया और बताया कि संध्या व शालू को किसी ने मार डाला है. इस के बाद वह पत्नी को घर से ले कर घटनास्थल पर पहुंचा.

‘‘क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बेटियों की हत्या किस ने और क्यों की?’’ एसएसपी ने रामकिशोर से पूछा.

‘‘साहब, हम गरीब किसान हैं. हमारी किसी से न तो कोई रंजिश है और न ही किसी से लेनदेन का झगड़ा है. पता नहीं मेरी बच्चियों ने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो उन्हें मार डाला.’’

इस के बाद उन्होंने रामकिशोर के बेटे जितेंद्र से पूछताछ की तो उस ने कहा, ‘‘सर सोमवार की शाम मैं घर पर ही था. देर शाम संध्या और शालू मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकली थीं. काफी देर तक जब वे घर वापस नहीं आईं तो मैं ने मां से पूछा. मां ने कहा कि पड़ोस में रहने वाले ज्ञान सिंह के यहां तिलक का कार्यक्रम है. शायद दोनों वहीं चली गई होंगी. इस के बाद मैं सो गया. सुबह गांव में हल्ला मचा तो पता चला कि संध्या और शालू की हत्या हो गई है.

प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस ने जब शवों को पोस्टमार्टम हाउस भिजवाने की काररवाई शुरू की तो लोगों ने विरोध शुरू कर दिया. दरअसल लोगों को शक था कि संध्या और शालू को दरिंदों ने पहले हवस का शिकार बनाया और भेद न खुले इसलिए दोनों को मार डाला. भीड़ ने धमकी भरे लहजे में पुलिस अधिकारियों से कहा कि जब तक क्षेत्रीय विधायक, सांसद या जिलाधिकारी घटनास्थल पर नहीं आते, तब तक दोनों शवों को नहीं उठने देंगे.

पुलिस ने मामले को शांत करने के लिए  सदर विधायक व जिलाधिकारी को पूरे मामले की जानकारी दी और मौके पर आने का अनुरोध किया. मामले की गंभीरता को देखते हुए सदर विधायक सरिता भदौरिया और पूर्व सांसद रघुराज शाक्य मौके पर पहुंच गए. सरिता भदौरिया ने उत्तेजित लोगों को शांत कराया तथा आश्वासन दिया कि पीडि़त परिवार को जो भी सरकारी मदद संभव होगी दिलवाई जाएगी. एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी ने भी आश्वासन दिया कि हत्यारों को जल्दी ही पकड़ लिया जाएगा.

विधायक सरिता भदौरिया के आश्वासन पर लोग शांत हो गए. इस के बाद एसएसपी ने आननफानन में मृतका संध्या और शालू के शव का पंचनामा भरवाया और दोनों शवों को पोस्टमार्टम हाउस, इटावा भिजवा दिया. ऐहतियात के तौर पर उन्होंने गांव में पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

थाना पुलिस ने रामकिशोर की तरफ से भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. इस के बाद थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने कई संदिग्ध अपराधियों को पकड़ कर उन से पूछताछ की.

मृतका संध्या तथा शालू के शवों का पोस्टमार्टम डाक्टरों के पैनल ने किया. इस पैनल में डा. वीरेंद्र सिंह, डा. पीयूष तिवारी तथा डा. पल्लवी दीक्षित सम्मलित रहीं. उन्होंने रिपोर्ट में बताया कि दोनों बहनों की मौत 16 से 18 घंटे पहले सीने में गोलियां लगने से हुई थी.

दोनों के मरने में 3 से 5 मिनट का अंतर रहा होगा. गोलियां दिल के आरपार हो गई थीं. शरीर और नाजुक अंगों पर चोटों के निशान नहीं पाए गए. किशोरियों और हत्यारों के बीच हाथापाई के निशान भी नहीं मिले. अर्थात उन दोनों के साथ बलात्कार नहीं किया गया था.

एसएसपी अशोक त्रिपाठी ने इस डबल मर्डर के खुलासे के लिए एक सशक्त पुलिस टीम गठित की. इस टीम में 4 तेजतर्रार इंस्पेक्टरों, 6 सबइंसपेक्टरों तथा एक दरजन कांसटेबिलों को सम्मिलित किया गया. सहयेग के लिए सर्विलांस टीम को भी लगाया गया. एडीशनल एसपी डा. रामयश सिंह की अगुवाई में पुलिस टीम ने हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

पुलिस टीम ने सब से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया फिर मृतक बहनों के मातापिता व भाई के बयान दर्ज किए. भाई जितेंद्र के बयानों से पुलिस टीम को पता चला कि पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला विनीत उर्फ जीतू आवारा किस्म का युवक है. घटना से लगभग 3 महीने पहले उस ने संध्या से छेड़खानी की थी. विरोध पर उस ने उसे सबक सिखाने की धमकी दी थी.

विनीत उर्फ  जीतू पुलिस टीम के रडार पर आया तो पुलिस ने उसे तलाशना शुरू किया. लेकिन वह घर से फरार था. उस का मोबाइल सर्विलांस पर लगा दिया गया था. साथ ही उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई गई, जिस से पता चला कि 15 अप्रैल, 2019 की शाम 7 बजे उस ने जिस फोन नंबर पर बात की थी. वह नंबर कैलाशमऊ के आनंद का है.

पुलिस टीम ने आंनद को पकड़ लिया. घटनास्थल से पुलिस को संध्या का जो मोबाइल फोन मिला था, पुलिस ने उसे चैक किया, तो उस में आनंद का नंबर मिला. इस से पुलिस टीम समझ गई कि आनंद ने ही फोन कर संध्या को खेत पर बुलाया था.

पुलिस ने थाने ले जा कर आनंद से सख्ती से पूछताछ की तो वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि वह इस दोहरे हत्याकांड में शामिल था. उस ने बताया कि हत्या का मुख्य किरदार विनीत उर्फ जीतू है. उस ने अपने दोस्त अतिवीर और रंजीत के साथ मिल कर हत्या की योजना बनाई थी. बाद में वह भी उस में शामिल हो गया था.

पुलिस टीम ने आनंद से कहा कि  वह जीतू से फोन पर बात करे, जिस से उस की लोकेशन ट्रेस हो जाए. पुलिस के दबाव में आनंद ने जीतू से बात की तो उस ने बताया कि वह सिविल लाइंस इटावा में है. लेकिन देर रात अपने घर नगरा पहुंच जाएगा. यह पता चलते ही पुलिस टीम ने रात में दबिश दे कर विनीत उर्फ जीतू को पकड़ लिया.

इस के बाद पुलिस ने उस के दोस्त अतिवीर व रंजीत को हिरासत में ले लिया. इन सब का आमना सामना थाने में हुआ तो सभी के चेहरे उतर गए. बाद में सभी ने जुर्म कबूल कर लिया.

पुलिस टीम ने हत्याओं का परदाफाश कर अभियुक्तों को पकड़ने की जानकारी एसएसपी अशोक कुमार त्रिपाठी को दी. त्रिपाठी ने आननफानन में प्रैसवार्ता की और हत्यारों को मीडिया के सामने पेश कर डबल मर्डर के बारे में सब कुछ बता दिया.

चूंकि सभी ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था, इसलिए थानाप्रभारी आर.के. सिंह ने विनीत उर्फ जीतू आनंद, रंजीत व अतिवीर को विधिसम्मत गिरफ्तार कर लिया.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बसरेहर थाना अंतर्गत एक गांव है कैलामऊ. इसी गांव में रामकिशोर अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी जयदेवी के अलावा 3 बेटियां तथा एक बेटा जितेंद्र था.

रामकिशोर के पास थोड़ी सी खेती की जमीन थी. उसी से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था. रामकिशोर की आर्थिक स्थिति भले ही कमजोर थी. लेकिन समाज के लोग उस की बहुत इज्जत करते थे. वह बिरादरी की पंचायत का मुखिया था. रामकिशोर अपनी बड़ी बेटी का विवाह औरैया जिले में कर चुका था. रामकिशोर की 3 बेटियों में संध्या मंझली बेटी थी. वह अपनी अन्य बहनों से कुछ ज्यादा ही तेजतर्रार थी. वह खूबसरत तो थी ही.

संध्या जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही चंचल और पढ़ने में तेज थी. हाईस्कूल की परीक्षा पास करने के बाद वह आगे पढ़ना चाहती थी, लेकिन उस के मांबाप ने उसे आगे पढ़ाने से साफ  मना कर दिया था. मजबूरन उसे पढ़ाई छोड़नी पड़ी. इस के बाद वह मां के साथ घरेलू काम में हाथ बंटाने लगी.

संध्या पर वैसे तो गांव के कई युवक फिदा थे लेकिन पड़ोसी गांव नगरा का रहने वाला 23 वर्षीय विनीत उर्फ  जीतू उस के नजदीक आने के लिए कुछ ज्यादा ही उतावला था. विनीत के पिता धनाढ्य किसान थे. गांव में उन का दबदबा था. विनीत आवारा किस्म का युवक था. वह बाप की कमाई पर ऐश करता था. उस ने गांव के कई हमउम्र लड़कों से दोस्ती गांठ रखी थी.

संध्या के भाई जितेंद्र से भी विनीत उर्फ जीतू की जानपहचान थी. कभीकभी दोनों के बीच गपशप भी हो जाती थी. ऐसे ही एक रोज सुबह को विनीत संध्या के घर आया और घर के बाहर पड़ी कुरसी पर बैठ गया.

फिर संध्या के भाई जितेंद्र से उस की बातचीत होने लगी. संध्या उस समय चबूतरे पर झाड़ू लगा रही थी. उस की नजरें विनीत से टकरा जातीं तो वह मुसकरा देता. यह देख संध्या नजरें झुका लेती.

विनीत के मन में आया कि वह उस के सौंदर्य की जी भर कर प्रशंसा करे, मगर संकोच के झीने परदे ने उस के होंठों को हिलने से रोक लिया. हालांकि उस के मनमस्तिष्क में जज्बातों की खुशनुमा हवाएं काफी देर तक हिलोरें लेती रहीं.

विनीत के मनमस्तिष्क में इधर सुखद विचारों का मंथन चल रहा था. उधर संध्या के दिलोदिमाग में एक अलग तरह की हलचल मची हुई थी. उन्हीं विचारों में खोई संध्या भाई के कहने पर किचन में गई और 2 कप चाय बना कर ले आई.

उस रोज संध्या के हाथों की बनी चाय पीते समय विनीत की आंखें लगातार उस के शवाबी जिस्म का जायजा लेती रहीं. दिन के उजाले में ही विनीत की आंखें उस के हुस्न के दरिया में डूब जाने के सपने देखने लगीं.

इस  मुलाकात में संध्या की मोहब्बत की आस में उस पर ऐसी दीवानगी सवार हुई कि वह उसे अपनी आंखों का काजल बना बैठा. कुछ ही दिनों में आंखों से उठ कर संध्या ने विनीत की रूह में आशियाना बना लिया. विनीत जैसा ही हाल संध्या का भी था. रात को वह सोने के लिए लेटती तो विनीत का मुसकराता चेहरा पलकों में आ कर छुप जाता.

संध्या का स्वयं के प्रति रुझान देख कर विनीत की उस के प्रति दीवानगी बढ़ती गई. जब भी उसे संध्या की याद आती वह उस से मिलने के लिए उस के घर पहुंच जाता. विनीत को देख कर संध्या का चेहरा खिल उठता. वह उस का दिल खोल कर स्वागत करती.

प्रेम, बंधन में स्वतंत्रता तो देता है, लेकिन सामाजिक वर्जनाएं अप्रत्यक्ष रूप से दीवार की तरह खड़ी होने लगती हैं. जिन्हें प्रेमी युगल अकसर नजरअंदाज कर भावनाओं में बहते रहते हैं. बाद में उस के परिणाम बडे़ भयावह होते है.

वैसे प्यार पाना व देना हर व्यक्ति चाहता है. यह बहार हर व्यक्ति की जिंदगी में जरूर आती है, लेकिन कुछ की जिंदगी में यह आ कर ठहर जाती है. जबकि कुछ की जिंदगी से बिना स्पर्श किए निकल जाती है. कुछ ऐसे भी होते हैं जिन की जिंदगी इस बहार से गुलजार होती है, ठहरती भी है.

यही हाल संध्या और विनीत की जिंदगी का भी हुआ. जब दोनों का प्यार परवान चढ़ा तो संध्या के मातापिता को शक हुआ. वह विनीत के घर पर आने का विरोध करने लगे लेकिन संध्या और विनीत ने मिलनाजुलना बंद नहीं किया. अंतत: संध्या की हरकतों से परेशान उस के मातापिता उस से सख्ती से पेश आने लगे.

एक रोज शाम के धुंधलके में संध्या के भाई जितेंद्र ने संध्या व विनीत को गांव के बाहर बगीचे में हंसतेबतियाते देख लिया. उस ने उस समय तो संध्या से कुछ नहीं कहा, लेकिन कुछ देर बाद जब वह घर लौटी तो जितेंद्र ने उस की पिटाई की फिर गुस्से से बोला, ‘‘संध्या, तू क्यों घर की इज्जत नीलाम कर रही है. उस आवारा, गुंडे जीतू से तुझे इश्क फरमाते शरम नहीं आती. कान खोल कर सुन ले, आज के बाद तू उस से नहीं मिलेगी.’’

उस रोज भाई की पिटाई से आहत संध्या काफी देर तक सिसकती रही. उस के बाद मां जयदेवी कमरे में आई और उस के आंसुआें को पोंछते हुए बोली, ‘‘बेटी, तेरा भाई, तेरा दुश्मन नहीं है. उस ने तुझ से जो भी कहा, वह सही है. जीतू आवारा लड़का है. ऐसे लड़कों से दूर रहने में ही भलाई है.’’

भाई की डांटडपट और मां की नसीहत ने संध्या के मन में हलचल पैदा कर दी. वह सोच ने लगी कि शायद मां और भाई सही कह रहे हैं. अत: उस ने निश्चय कर लिया कि अब वह विनीत के झांसे में नहीं आएगी और उससे दूरी बना कर रखेगी. संध्या ने जो सोचा उस पर अमल करना भी शुरू कर दिया. अब वह विनीत से कन्नी काटने लगी.

संध्या ने जब विनीत से बातचीत बंद कर दी तो वह परेशान रहने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने किसी तरह संध्या से मुलाकात की और पूछा कि वह उस से दूर क्यों भाग रही है. इस पर संध्या ने दो टूक जवाब दिया, ‘‘जीतू, हमारे तुम्हारे विचार मेल नहीं खाते. हमारी तुम्हारी नहीं निभ सकती. इसलिए तुम मुझे भूल जाओ.’’

संध्या की बात सुन कर विनीत सन्न रह गया. उस के प्रेम संबंधों को संध्या ने एक ही झटके में तोड़ दिया. इस के पहले कि वह गुस्से से बेकाबू होता, संध्या वहां से चली गई. विनीत उसे देखता रह गया.

घर पहुंचने पर विनीत को लगने लगा कि संध्या ने उस के प्रेम को यों ही नहीं ठुकराया, जरूर उस के जीवन में कोई दूसरा आ गया होगा. वह दूसरा कौन है वह इस का पता लगाने में जुट गया. एक रोज संध्या उसे अपने खेत पर दिखी. कुछ देर बाद वह घर वापस जाने लगी तो विनीत ने उस का रास्ता रोक लिया और पूछा, ‘‘क्या तुम्हारे जीवन में कोई दूसरा आ गया है?’’

संध्या ने तपाक से कहा, ‘‘हां, आ गया है. तुम्हें क्या करना है?’’ संध्या ने उस से साफ  कह दिया कि अब उस का उस से कोई वास्ता नहीं है. वह उस के रास्ते में न आए.

संध्या के तीखे तेवरों से विनीत पूरी तरह  टूट गया. उस के मन को गहरी चोट लगी. विनीत के 3 जिगरी दोस्त थे आंनद, रंजीत व अतिवीर. ये तीनों कैलामऊ गांव में ही रहते थे.

दोस्तों को जब उस की हालत का पता चला तो उन्होंने विनीत को समझाया कि तेरे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. जीवन में ऐेसे मोड़ तो आते रहते हैं. लेकिन विनीत अपना आत्मविश्वास खोता जा रहा था और प्रतिशोध की आग में जलने लगा था.

विनीत अब जब भी दोस्तों के साथ बैठ कर शराब पीता, तो संध्या की वेवफाई की चर्चा जरूर होती थी. बात वेवफाई से शुरू हो कर प्रतिशोध पर खत्म होती थी. चूंकि उस के दोस्तों को मुफ्त में शराब पीने को मिलती थी, सो वह विनीत की हां में हां मिलाते थे और उस का साथ देने का वादा करते थे.

जनवरी 2019 के प्रथम सप्ताह में एक रोज विनीत अपने दोस्तों रंजीत, आंनद व अतिवीर के साथ गांव के बाहर बगीचे में बैठा शराब पी रहा था. तभी उसे खेत की तरफ से आती संध्या दिखाई दी. वह खेत से टोकरी में आलू ले कर घर लौट रही थी. संध्या को देख कर विनीत अपने दोस्तों के साथ उस के पास पहुंचा और उस से छेड़खानी करने लगा.

विनीत के साथ 3 दोस्तों को देख कर संध्या घबरा गई. वह आलू की टोकरी फेंक कर सिर पर पैर रख कर घर की ओर भागी. लेकिन उन शैतानों ने उसे पुन: पकड़ लिया और उस के नाजुक अंगों के साथ छेड़खानी करने लगे. संध्या चीखनेचिल्लाने लगी.

उस की चीख सुन कर खेतों पर काम कर रही महिलाएं व पुरुष उस की तरफ  दौडे़ तब वे चारों उसे छोड़ कर भाग निकले.

संध्या आंसू बहाते घर पहुंची और अपने साथ हुई छेड़खानी की बात अपने मांबाप व भाई को बताई. घर वालों ने उन लोगों से झगड़ना उचित नहीं समझा और वे संध्या को ले कर थाना बसरेहर पहुंच गए. उन्होंने संध्या की तरफ  से विनीत व उस के साथियों के विरुद्ध छेड़खानी की रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस ने त्वरित काररवाई करते हुए विनीत, रंजीत आनंद व अतिवीर को पकड़ लिया और जेल भेज दिया. एक सप्ताह के अंदर ही उन की जमानत हो गई. इस घटना के बाद संध्या डरी सी रहने लगी. अब वह जहां भी जाती अपनी छोटी बहन शालू को साथ ले जाती थी.

इधर जमानत पर आने के बाद विनीत को पता चला कि संध्या अब गांव के संजय नामक युवक से प्यार करती है. यह पता चलते ही विनीत प्रेम प्रतिशेध के लिए उतावला रहने लगा. उस ने निश्चय किया कि संध्या यदि उस की न हुई तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा.

उस ने प्रतिशोध की बात दोस्तों से साझा की तो वह विनीत का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद विनीत व उस के दोस्तों ने संध्या की हत्या की योजना बनाई. साथ ही तमंचा व कारतूसों का भी इंतजाम कर लिया.

15 अप्रैल, 2019 की शाम योजना के अनुसार विनीत उर्फ  जीतू शराब की बोतल ले कर अपने दोस्त आनंद, रंजीत व अतिवीर के साथ गांव के बाहर खेत पर पहुंचा. विनीत लोडिड तमंचा कमर में खोंसे था. वहां बैठ कर चारों शराब पीने लगे. जब अंधेरा घिरने लगा तब विनीत ने आंनद के फोन से संध्या को फोन कराया.

विनीत ने संध्या को फोन उस समय खरीद कर दिया था जब दोनों का प्रेम संबंध चल रहा था. आनंद ने संध्या से बात की और कहा कि वह और विनीत उस से माफी मांगना चाहते हैं. दोनों छेड़खानी के मुकदमे में उससे समझौता करना चाहते हैं.

संध्या ने पहले तो इनकार कर दिया, लेकिन जब आनंद ने उस से पैर छू कर माफी मांगने की बात कहीं तो वह राजी हो गई. इस के बाद उस ने अपनी छोटी बहन शालू को साथ लिया और मां से जंगल जाने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

अंधेरा घिर आया था, सो उस ने टौर्च भी ले ली थी. छोटी बहन शालू के साथ संध्या गांव के बाहर खेत पर पहुंची. वहां आनंद और विनीत के अलावा रंजीत व अतिवीर भी थे.

खेत पर विनीत व आनंद ने मुकदमे से संबंधित कोई चर्चा नहीं की और न ही माफी मांगी. उलटे विनीत उसे धमकाने लगा कि वह संजय से रिश्ता तोड़ कर उस से रिश्ता जोडे़. इस पर संध्या ने कहा कि वह उस से नफरत करती है. इसलिए इस बारे में उस से बात न करे.

यह सुनते ही विनीत का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने कहा, ‘‘संध्या यदि तू मेरी नहीं हुई तो तुझे किसी और की भी नहीं होने दूंगा.’’ कहते हुए विनीत ने कमर में खोंसा तमंचा निकाला और संध्या पर 2 फायर झोंक दिए. गोली संध्या के दिल को चीरती हुई पार निकल गई. संध्या खून से लथपथ हो कर जमीन पर गिर पड़ी और उस ने दम तोड़ दिया.

बड़ी बहन की मौत का मंजर देख कर शालू की घिग्घी बंध गई. फिर भी वह भागी. लेकिन रंजीत और अतिवीर ने उसे यह कह कर दबोच लिया कि यह तो संध्या की हत्या की गवाह है. यह बच गई तो हम सब पकडे़ जाएंगे.

अत: आनंद ने विनीत के हाथ से तमंचा ले कर शालू के सीने पर भी 2 गोलियां दाग दीं. शालू भी खून से लथपथ हो कर संध्या के शव के पास धराशायी हो गई और दम तोड़ दिया. दोनों बहनों की हत्या करने के बाद विनीत तमंचा, कारतूस आदि मौके पर छोड़ कर साथियों सहित भाग गया.

इधर रात में संध्या और शालू के घर वालों ने उन की तलाश नहीं की. इस की वजह यह थी कि पड़ोस में ज्ञान सिंह के यहां तिलक समारोह था. घर वालों ने सोचा कि दोनों बहनें वहीं चली गई होंगी. लेकिन सुबह जब शोर मचा, तब घर वालों को जानकारी हुई. पुलिस ने अभियुक्त विनीत उर्फ  जीतू, रंजीत, आनंद तथा अतिवीर को इटावा कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

नफरत की आग : महिला वकील की बेटी की निर्मम हत्या

बात 18 फरवरी, 2019 की है. शाम करीब 5 बजे रमाशंकर गुप्ता एडवोकेट पदमा गुप्ता  के केशव नगर स्थित घर पहुंचे तो उन के मकान का मेनगेट बंद था. गेट के बाहर 2 युवक खड़े थे. दोनों आपस में बतिया रहे थे. रमाशंकर ने उन युवकों से पूछताछ की तो उन्होंने अपने नाम क्रमश: मोहित और शुभम बताए.

उन्होंने बताया कि वे दोनों औनलाइन शौपिंग कुरियर डिलिवरी बौय हैं. स्नेह गुप्ता ने औनलाइन कोई सामान बुक कराया था, वह उस सामान को देने आए हैं. लेकिन आवाज देने पर वह न तो गेट खोल रही हैं और न ही फोन रिसीव कर रही हैं.

रमाशंकर गुप्ता स्नेह के मौसा थे. वह उसी से मिलने आए थे. कुरियर बौय मोहित की बात सुन कर रमाशंकर का माथा ठनका. उन्होंने भी स्नेह का मोबाइल नंबर मिलाया. लेकिन फोन रिसीव नहीं हुआ. इस के बाद रमाशंकर ने स्नेह की मां एडवोकेट पदमा गुप्ता को फोन किया. वह उस समय कचहरी में थीं. पदमा गुप्ता ने उन्हें बताया कि स्नेह घर पर ही है. शायद वह सो गई होगी, जिस की वजह से काल रिसीव नहीं कर रही होगी.

रमाशंकर गुप्ता ने किसी तरह गेट खोला और अंदर गए. उन्होंने स्नेह को कई आवाजें दीं लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. मेनगेट से लगा बरामदा था. बरामदे में पदमा का पालतू पामेरियन कुत्ता टहल रहा था. 2 कमरों के दरवाजे भी खुले थे.

रमाशंकर स्नेह को खोजते हुए पीछे वाले कमरे में पहुंचे तो उन के मुंह से चीख निकल गई. स्नेह खून से लथपथ फर्श पर पड़ी थी. उस की सांसें चल रही थीं या थम गईं, कहना मुश्किल था. स्नेह की यह हालत देख कर कुरियर बौय मोहित व शुभम भी घर के अंदर पहुंच गए. कमरे में एक लड़की की लाश देख कर वह भी आश्चर्यचकित रह गए.

रमाशंकर ने पुलिस को खबर देने के लिए कई बार 100 नंबर पर काल की, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया तो वह डिलिवरी बौय की मोटर साइकिल पर बैठ कर उस्मान पुलिस चौकी पहुंचे और उन्होंने वारदात की सूचना दी. चौकी से सूचना थाना नौबस्ता को दे दी गई. उस के बाद थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह पुलिस टीम के साथ डब्ल्यू ब्लौक केशव नगर स्थित एडवोकेट पदमा गुप्ता के घर पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी.

थानाप्रभारी उस कमरे में पहुंचे, जहां 24 वर्षीय स्नेह खून से लथपथ पड़ी थी. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. स्नेह के पैर दुपट्टे से बंधे थे और दोनों हाथों की कलाइयां किसी तेजधार वाले हथियार से काटी गई थीं. सिर पर किसी भारी वस्तु से प्रहार किया गया था, जिस से सिर फट गया था. गरदन को रेता गया था और चेहरे पर भी कट का निशान था.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने स्नेह के दुपट्टे से बंधे पैर खुलवाए फिर जीवित होने की आस में एंबुलैंस मंगवा कर तत्काल चकेरी स्थित कांशीराम ट्रामा सेंटर भिजवाया. लेकिन वहां डाक्टरों ने स्नेह को देखते ही मृत घोषित कर दिया था. थानाप्रभारी ने पदमा गुप्ता की बेटी की घर में घुस कर हत्या करने की जानकारी पुलिस के बड़े अधिकारियों को दी तो हड़कंप मच गया.

इधर पदमा गुप्ता कचहरी से सीधे अपने साथियों के साथ कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंचीं और बेटी का शव देख कर गश खा कर गिर पड़ीं. महिला पुलिसकर्मी व उन के सहयोगी वकीलों ने उन्हें संभाला. होश आने पर वह दहाड़ें मार कर रोने लगीं.

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                                         रोती बिलखती एडवोकेट पदमा गुप्ता

चूंकि मामला एक वकील की जवान बेटी की हत्या का था. अत: सूचना पाते ही एसएसपी अनंतदेव तिवारी, एसपी (साउथ) रवीना त्यागी, एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (गोविंद नगर) आर.के. चतुर्वेदी घटनास्थल पर पहुंच गए. एसएसपी अनंत देव ने मौके पर डौग स्क्वायड तथा फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया.

सूचना पा कर आईजी आलोक सिंह अस्पताल पहुंचे और उन्होंने पदमा गुप्ता को धैर्य बंधाया. उन्होंने उन्हें आश्वासन दिया कि हत्यारा कितना भी पहुंच वाला क्यों न हो, बच नहीं पाएगा. इस के बाद आईजी घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया. कमरे में खून ही खून फैला था. कमरे में अंदर रखी अलमारी खुली थी और सामान पलंग पर बिखरा पड़ा था. पालतू कुत्ता बरामदे से ले कर गेट तक चहलकदमी कर रहा था. वह डरासहमा नजर आ रहा था.

पुलिस अधिकारियों ने अलमारी खुली होने व सामान बिखरे पड़े होने से अनुमान लगाया कि हत्या शायद लूट के इरादे से की गई होगी. शव के पास मृतका का मोबाइल फोन पड़ा था, जिसे पुलिस ने अपने पास सुरक्षित रख लिया.

फोरैंसिक टीम ने भी घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. टीम ने अलमारी व पलंग और कई जगह से फिंगरप्रिंट लिए. घटनास्थल के पास ही खून सनी एक ईंट पड़ी थी. इस ईंट से भी टीम ने फिंगरप्रिंट लिए और जांच हेतु ईंट को भी सुरक्षित कर लिया. टीम को वाशिंग मशीन पर रखा पानी से धुला एक चाकू मिला. इस धुले चाकू की जब टीम ने जांच की तो पुष्टि हुई कि उस पर लगा खून धोया जा चुका है. टीम ने चाकू को भी अपने पास सुरक्षित कर लिया.

खोजी कुतिया ‘जूली’ घटनास्थल को सूंघ कर भौंकते हुए पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी के घर जा घुसी. उस के घर के अंदर चक्कर काटने के बाद जूली वापस आ गई. पुलिस ने संदेश चतुर्वेदी से बात की लेकिन उन से हत्या के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिली.

एसएसपी अनंतदेव तिवारी तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी मृतका की मां पदमा गुप्ता से पूछताछ करना चाहते थे. अत: वह कांशीराम ट्रामा सेंटर पहुंच गए. वह बेटी के शव के पास बदहवास बैठी थीं. उन के आंसू थम नहीं रहे थे. उस समय उन की स्थिति ऐसी नहीं थी कि उन से कुछ पूछताछ की जा सके. जरूरी काररवाई के बाद पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया.

पुलिस अधिकारियों को इस बात का अंदेशा था कि कहीं वकील उग्र न हो जाएं, अत: उन्होंने पोस्टमार्टम हाउस पर पुलिस फोर्स तैनात कर दी.

भारी पुलिस सुरक्षा के बीच दूसरे दिन 3 डाक्टरों के पैनल ने स्नेह का पोस्टमार्टम किया. पैनल में डिप्टी सीएमओ राकेशपति तिवारी, कांशीराम ट्रामा सेंटर के डा. अभिषेक शुक्ला और विधनू सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के डा. श्रवण कुमार शामिल रहे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सिर के पीछे भारी वस्तु के प्रहार करने, चाकू से गले पर वार करने के 3 निशान और चेहरे पर एक निशान मिला. इस के अलावा रिपोर्ट में यह भी बताया कि उस के दोनों हाथों की कलाइयां चाकू से काटी गई थीं. बताया कि स्नेह की मौत खून ज्यादा मात्रा में निकलने की वजह से हुई थी. वहीं दुष्कर्म की आशंका के चलते स्लाइडें भी बना ली गईं.

महिला एडवोकेट की बेटी की हत्या का समाचार दैनिक समाचार पत्रों की सुर्खियां बना तो कानपुर कचहरी खुलते ही वकीलों में रोष छा गया. एडवोकेट पंकज कुमार सिंह, ताराचंद रुद्राक्ष, रतन अग्रवाल, टीनू शुक्ला, डी.एन. पाल, संजीव कनौजिया, शरद कुमार शुक्ला आदि अधिवक्ता भवन पर एकत्र हुए.

इस के बाद इन वकीलों ने हत्या के विरोध में न्यायिक काम ठप करा दिया. इस के बाद वकीलों ने एसएसपी कार्यालय के बाहर सड़क पर वाहन खड़े कर रास्ता बंद कर दिया, जिस से लंबा जाम लग गया.

एसएसपी अनंत देव ने सीओ (कोतवाली) राजेश पांडेय को प्रतिनिधि के रूप में वकीलों के पास भेजा. श्री पांडेय ने उग्र वकीलों को आश्वासन दिया कि स्नेह के हत्यारे जल्द ही पकड़ लिए जाएंगे. इस आश्वासन पर वकील शांत हुए.

कानपुर बार एसोसिएशन ने इस बात का भी फैसला लिया कि स्नेह के हत्यारोपियों की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा. अब तक पदमा गुप्ता सामान्य स्थिति में आ चुकी थीं. अत: एसपी (साउथ) रवीना त्यागी उन से पूछताछ करने उन के आवास पर पहुंचीं.

पूछताछ में पदमा गुप्ता ने बताया कि 18 फरवरी की सुबह सब कुछ सामान्य था. बेटी स्नेह ने खाना बनाया और उसे टिफिन लगा कर दिया. इस के बाद वह कोर्ट चली गईं. शाम सवा 5 बजे बहनोई रमाशंकर द्वारा ही उन्हें बेटी की हत्या के बारे में सूचना मिली.

‘‘आप की बेटी की हत्या किस ने की? आप को किसी पर शक है?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, मुझे 2-3 लोगों पर शक है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

‘‘किस पर?’’ एसपी ने पूछा.

‘‘पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी और उस के बेटे सूरज तथा मोहल्ले के शोहदे अन्नू अवस्थी पर.’’

‘‘वह कैसे?’’ रवीना त्यागी ने पूछा.

पदमा गुप्ता ने बताया, ‘‘संदेश चतुर्वेदी और उस का बेटा पिछले 3 महीने से उन के साथ विवाद कर रहे हैं. दोनों बापबेटे हर समय झगड़ा व मारपीट के लिए उतारू रहते हैं. इन लोगों ने सन 2012 में उन पर जानलेवा हमला भी करवाया था और मोहल्ले का शोहदा अन्नू अवस्थी उन की बेटी से छेड़छाड़ करता था. लोकलाज के कारण उस की शिकायत नहीं की. इन्हीं कारणों से इन लोगों पर शक है.’’

‘‘घर में क्या लूटपाट भी हुई?’’ एसपी रवीना त्यागी ने पूछा.

‘‘हां, अलमारी से कुछ गहने व मामूली नकदी गायब है.’’ पदमा गुप्ता ने बताया.

पदमा गुप्ता से पूछताछ के बाद एसपी रवीना त्यागी ने स्नेह की हत्या के खुलासे के लिए एक विशेष टीम गठित की. इस टीम में क्राइम ब्रांच, सर्विलांस टीम व सिविल पुलिस के तेजतर्रार दरजन भर पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया.

पदमा गुप्ता ने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी, उस के बेटे सूरज तथा एक अन्य युवक अन्नू अवस्थी को उठा लिया. पुलिस टीम को यह भी संदेह था कि किसी बेहद नजदीकी ने ही स्नेह की हत्या की है.

अत: पुलिस ने मृतका स्नेह के मौसा रमाशंकर को भी उठा लिया. क्योंकि रमाशंकर ही सब से करीबी रिश्तेदार थे और उन का स्नेह के घर आनाजाना था. दूसरे वह अचानक घटना वाले दिन स्नेह के घर पहुंचे भी थे.

पुलिस द्वारा पूछताछ करने पर संदेश चतुर्वेदी ने पदमा गुप्ता से विवाद की बात तो स्वीकार की लेकिन हत्या करने या कराने से साफ इनकार कर दिया. पूछताछ और बौडी लैंग्वेज से पुलिस को भी लगा कि संदेश व उस के बेटे सूरज का स्नेह की हत्या में हाथ नहीं है. अत: इस हिदायत के साथ उन्हें छोड़ दिया कि जरूरत पड़ने पर उन्हें फिर से थाने आना पड़ सकता है.

शोहदे अन्नू अवस्थी से भी टीम ने सख्ती से पूछताछ की. अन्नू ने स्वीकार किया कि वह स्नेह से एकतरफा प्यार करता था. उस ने उस के साथ एकदो बार छेड़खानी भी की थी, पर हत्या जैसा जघन्य अपराध उस ने नहीं किया है.

पुलिस ने उस के मोबाइल को चैक किया तो घटनास्थल वाले दिन उस की लोकेशन स्नेह के घर के आसपास की मिली. इस शक के आधार पर पुलिस टीम ने पुन: उस से सख्त रुख अपना कर पूछताछ की लेकिन उस से कोई खास जानकारी नहीं मिली. पुलिस किसी निर्दोष को जेल नहीं भेजना चाहती, अत: अन्नू अवस्थी को भी हिदायत के साथ छोड़ दिया.

रमाशंकर गुप्ता, मृतका स्नेह का मौसा थे और वह बेहद करीबी रिश्तेदार भी थे. पुलिस ने जब उन से पूछा कि घटना वाले दिन वह अचानक स्नेह के घर क्यों और कैसे पहुंचे.

इस पर रमाशंकर ने बताया कि स्नेह ने उन से मोबाइल पर बतियाते हुए कहा था कि 20 फरवरी को उस के इंस्टीट्यूट में कोई कार्यक्रम है. उसे भी कार्यक्रम में हिस्सा लेना है, अत: कुछ पैसे चाहिए. मैं ने उसे पैसे देने का वादा कर लिया था.

18 फरवरी को वह रतनलाल नगर आए थे. यहीं उन्हें याद आया कि स्नेह ने उन से पैसे मांगे थे. इसलिए वह रतनलाल नगर से सीधा डब्ल्यू ब्लौक केशवनगर स्थित स्नेह के घर पहुंचे. वहां 2 युवक कुरियर लिए खड़े थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि वह काफी देर से गेट खटखटा रहे हैं. न तो दरवाजा खुल रहा है और न ही स्नेह फोन रिसीव कर रही है. इस के बाद जब वह घर में गए तो वहां स्नेह की लाश देखी.

रमाशंकर पुलिस की निगाह में संदिग्ध थे. इसलिए उन की सच्चाई जानने के लिए पुलिस टीम ने पदमा गुप्ता से उन के बारे में जानकारी ली. पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट देते हुए कहा कि वह उस की बहन का सुहाग है. समयसमय पर वह उन की मदद करते रहते हैं. स्नेह को वह बेटी जैसा प्यार करते थे. स्नेह भी उन से खूब हिलीमिली थी. वह उन से अकसर फोन पर बतियाती रहती थी.

पदमा गुप्ता ने रमाशंकर को क्लीन चिट दी तो पुलिस ने भी रमाशंकर को छोड़ दिया. इस के बाद पुलिस टीम ने कुरियर बौय मोहित और शुभम को उठाया. पुलिस को शक था कि कहीं वारदात को अंजाम दे कर दोनों बाहर तो नहीं आ गए और तभी रमाशंकर के आ जाने पर उन्होंने कहानी बनाई हो.

पुलिस ने मोहित से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह किदवईनगर में रहता है, जबकि उस का साथी शुभम यशोदा नगर में रहता है. स्नेह ने औनलाइन कोई सामान मंगाया था. उसी का पैकेट ले कर वह दोनों उस के घर गए थे. पैकेट पर स्नेह का मोबाइल नंबर लिखा था. उस नंबर को उस ने कई बार मिलाया. लेकिन उस ने काल रिसीव नहीं की.

वे दोनों जाने ही वाले थे कि रमाशंकर आ गए. उन्होंने सारी बात उन्हें बताई. पुलिस को कुरियर बौय की बातों पर विश्वास हो गया तो दोनों कुरियर बौय की डिटेल्स ले कर उन्हें भी थाने से भेज दिया.

स्नेह के मोबाइल से पुलिस टीम को 10 संदिग्ध फोन नंबर मिले. जांच करने पर पता चला कि यह नंबर स्नेह के घर काम कर चुके राजमिस्त्री, मजदूर, टिन शेड डालने वाले लोगों के थे. पुलिस ने इन नंबरों पर बात की और एकएक को थाने बुला कर सख्ती से पूछताछ की.

इन में से एक नंबर ऐसा था, जो बंद था. इस नंबर को पुलिस ने सर्विलांस पर लगाया तो पता चला कि यह नंबर घटना वाली शाम से बंद है. लेकिन उस रोज उस नंबर से दूसरे एक नंबर पर बात हुई थी. इस नंबर को पुलिस ने ट्रैस किया तो पता चला कि यह नंबर दबौली निवासी अमित का है. पुलिस टीम अमित की तलाश में जुट गई.

आखिर टीम ने नाटकीय ढंग से अमित को धर दबोचा. थाना नौबस्ता ला कर जब अमित से सख्ती से पूछताछ की तो अमित टूट गया. उस ने बताया कि बंद मोबाइल नंबर जुबेर आलम का है, जो मेहरबान सिंह पुरवा में रहता है. रतनलाल नगर में उस की वैल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान है. जावेद ने उसे बताया कि उस ने स्नेह की हत्या कबाड़ी सुरेश वाल्मिकी की मदद से की थी.

अमित के बयान से पुलिस टीम की टेंशन दूर हो गई. अमित के सहयोग से पुलिस ने महादेव नगर निवासी सुरेश वाल्मिकी को पकड़ लिया. पुलिस ने उस के पास से सोने के 4 कंगन भी बरामद कर लिए, जो उस ने पदमा गुप्ता के यहां से चुराए थे.

इस के बाद पुलिस टीम ने जुबेर आलम के मेहरबान सिंह पुरवा स्थित किराए के मकान पर छापा मारा लेकिन वह वहां नहीं मिला. वहां पता चला कि जुबेर आलम मकान खाली कर मुरादाबाद में अपने किसी रिश्तेदार के घर चला गया है. अब जुबेर आलम को पकड़ने के लिए पुलिस टीम ने गहरा जाल बिछाया. साथ ही मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

7 मार्च, 2019 को प्रात: 8 बजे एक खास मुखबिर से पुलिस टीम को पता चला कि जुबेर आलम अपनी दुकान का सामान निकालने व उसे बेचने आया है. वह इस समय चिंटिल इंग्लिश मीडियम स्कूल के पास मौजूद है. मुखबिर की सूचना पर पुलिस वहां पहुंच गई और घेराबंदी कर उसे दबोच लिया.

थाने में जब उस का सामना सुरेश वाल्मिकी से हुआ तो वह सब समझ गया. फिर उस ने बिना किसी हीलाहवाली के पदमा गुप्ता की बेटी स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल लिया. जुबेर आलम ने चुराए गए जेवरों में से झुमका और एक अंगूठी दबौली के एक ज्वैलर्स के यहां बेची थी. पुलिस ने ज्वैलर्स के यहां से अंगूठी व झुमके बरामद कर लिए. साथ ही जुबेर के पास से 900 रुपए भी बरामद कर लिए.

चूंकि सुरेश और जुबेर आलम ने स्नेह की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया था और उन से जेवर, नकदी भी बरामद हो गई थी, इसलिए पुलिस ने स्नेह की हत्या के जुर्म में जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को गिरफ्तार कर लिया.

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            पुलिस हिरासत में अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी

यह जानकारी एसएसपी अनंतदेव तथा एसपी (साउथ) रवीना त्यागी को हुई तो दोनों अधिकारी थाने पहुंच गए और उन्होंने टीम की सराहना करते हुए 25 हजार रुपए ईनाम देने की घोषणा की. फिर एसएसपी अनंतदेव ने प्रैस वार्ता कर इस चर्चित हत्याकांड का खुलासा पत्रकारों के समक्ष किया. पत्रकार वार्ता के दौरान अभियुक्तों ने स्नेह की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के महानगर कानपुर के नौबस्ता थानांतर्गत एक मोहल्ला केशवनगर पड़ता है. इसी मोहल्ले के डब्ल्यू ब्लौक में एडवोकेट पदमा गुप्ता अपनी बेटी स्नेह के साथ रहती थीं. यह उन का निजी मकान था. पदमा गुप्ता के पति राजकुमार गुप्ता अलग रहते हैं. दांपत्य जीवन में मनमुटाव के चलते उन्होंने पदमा को तलाक दे दिया था.

पदमा गुप्ता कानपुर कोर्ट में वकालत करती हैं. स्नेह की उम्र जब एक साल से भी कम थी, तभी उन के पति ने उन का साथ छोड़ दिया था.

पिता के प्यार से वंचित स्नेह की पदमा गुप्ता ने बड़े ही लाड़प्यार से परवरिश की थी. स्नेह बेहद खूबसूरत थी. पढ़ाई में भी तेज थी. उस ने हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की थी. इस के बाद उस ने पौलिटेक्निक में प्रवेश पा लिया था. वह महिला पौलिटेक्निक से फार्मेसी की पढ़ाई कर रही थी.

पदमा गुप्ता अपने पड़ोसी संदेश चतुर्वेदी से दुखी रहती थीं. वह और उस का बेटा सूरज हमेशा झगड़े पर उतारू रहते थे. पदमा गुप्ता मोहल्ले के अन्नू अवस्थी से भी परेशान थीं. पौलिटेक्निक आतेजाते वह स्नेह को परेशान करता था.

हालांकि स्नेह कड़े मिजाज की थी और वह अन्नू को पास नहीं फटकने देती थी. लेकिन अन्नू एकतरफा प्यार में पागल था, जिस से वह उस से छेड़छाड करने से बाज नहीं आता था. पदमा गुप्ता अन्नू को सबक तो सिखाना चाहती थीं, किंतु लोकलाज के कारण चुप बैठ जाती थीं.

पदमा गुप्ता की बहन जरौली निवासी रमाशंकर गुप्ता को ब्याही थी. रमाशंकर पीओपी कारोबारी थे. उन का पदमा गुप्ता के घर आनाजाना था. घर बाहर का कोई काम हो वह रमाशंकर के बिना नहीं कराती थी.

अक्तूबर 2018 में पदमा गुप्ता ने अपने मकान का निर्माण कराया था. इस में राजमिस्त्री, मजदूर, कारपेंटर आदि की व्यवस्था रमाशंकर ने ही कराई थी. प्लास्टिक की शेड डालने का ठेका रमाशंकर ने जुबेर आलम को दिया था. जुबेर आलम मूलरूप से उत्तर प्रदेश के शहर हापुड़ का रहने वाला था. कानपुर में वह परिवार सहित रहता था.

रतनलाल नगर में उस की वेल्डिंग करने, जेनरेटर व कूलर मरम्मत की दुकान थी. वह शेड डालने का भी काम करता था. पदमा गुप्ता के घर शेड डालने का ठेका उस ने 14 हजार रुपए में लिया था. काम खत्म होने पर जुबेर आलम को पदमा गुप्ता ने 12 हजार रुपए दे कर उस के 2 हजार रुपए रोक लिए थे.

पदमा गुप्ता के घर के सामने शशि शुक्ला का मकान था. काम के दौरान पदमा गुप्ता ने जुबेर आलम को उन के यहां लोहे की जाली लगाने का ठेका दिलवा दिया था. साथ ही तय रकम भी दिलवा दी थी. लेकिन जुबेर आलम ने आधा काम किया. शशि शुक्ला पदमा को उलाहना देती थी. स्नेह के पास सभी कामगारों के फोन नंबर थे. वह जब भी जुबेर आलम को शशि शुक्ला के यहां जाली लगाने का काम पूरा करने को कहती तो वह बहाना बना देता था.

जुबेर आलम का एक दोस्त सुरेश वाल्मिकी था. सुरेश कबाड़ का काम करता था. सुरेश जुबेर की दुकान से भी कबाड़ खरीदता था. सो दोनों में दोस्ती हो गई. दोनों की अकसर शराब की महफिल जमती थी.

दोनों पर लाखों का कर्ज था. सुरेश को कबाड़ के काम में घाटा हो गया था जबकि जुबेर आलम का बेटा बीमारी से जूझ रहा था, जिस से उस पर कर्ज हो गया था. दोनों कर्ज चुकाने की जुगत में परेशान रहते थे.

इधर एकडेढ़ माह से जुबेर आलम अपने 2 हजार रुपए मांगने स्नेह के घर आने लगा था. स्नेह उसे यह कह कर पैसा देने से मना कर देती थी कि पहले शशि आंटी के घर का काम पूरा करो. बारबार पैसा मांगने पर जब स्नेह ने पैसे नहीं दिए तो वह नफरत से भर उठा.

वह सोचने लगा कि वकील की लड़की जानबूझ कर उस की बेइज्जती कर रही है और उसे उस की मेहनत का पैसा नहीं दे रही. उस ने इस बाबत दोस्त सुरेश से सलाहमशविरा किया फिर निश्चय किया कि इस बार अगर उस ने पैसे देने से इनकार किया तो वह अपनी बेइज्जती का बदला ले कर ही रहेगा. इस के बाद उस ने 2 दिन स्नेह के घर की रेकी कर सुनिश्चित कर लिया कि सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच स्नेह घर में अकेली रहती है.

18 फरवरी, 2019 की दोपहर जुबेर आलम स्कूटर से अपने दोस्त सुरेश के साथ स्नेह के घर पहुंचा. जुबेर आलम ने गेट खटखटाया तो स्नेह ने गेट खोला. स्नेह उस समय घर पर अकेली थी. उस की मां पदमा गुप्ता कोर्ट गई हुई थीं.

जुबेर आलम का साथी सुरेश गेट के बाहर स्कूटर लिए खड़ा रहा और जुबेर आलम बरामदे में पहुंच गया. जुबेर को देख कर स्नेह का कुत्ता भौंका तो स्नेह ने इशारा कर के कुत्ते को शांत करा दिया. फिर स्नेह ने जुबेर से पूछा, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘बेबी, मुझे रुपयों की सख्त जरूरत है, इसलिए हिसाब का बाकी 2 हजार रुपए लेने आया हूं.’’

‘‘देखो जुबेर, तुम्हें बाकी पैसा तभी मिलेगा जब तुम शशि शुक्ला आंटी का काम पूरा कर दोगे. वैसे भी मां घर पर नहीं हैं. शाम को जब वह आ जाएं, तब हिसाब लेने आ जाना.’’ स्नेह कड़ी आवाज में बोली.

जुबेर गिड़गिड़ा कर बोला, ‘‘बेबी, मेरा बेटा बीमार है. उसे दिखाने डाक्टर के पास जाना है. पूरा पैसा न सही 500 रुपए ही दे दो.’’

‘‘मुझे तुम्हारे बेटे की बीमारी से क्या लेनादेना. इस समय मैं तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगी. समझे.’’ वह बोली.

स्नेह की बात सुन कर जुबेर तिलमिला उठा. उस की आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक उठी. जुबेर अभी यह सोच ही रहा था कि वह इस बदमिजाज लड़की को सबक कैसे सिखाए, तभी स्नेह बोल पड़ी, ‘‘जुबेर, मुझे पलंग के पास एक अलमारी बनवानी है. उस की नाप ले लो.’’

इस के बाद वह जुबेर को अंदर के कमरे में ले गई. जुबेर ने स्नेह को इंचटेप पकड़ाया और वह पलंग पर चढ़ कर नाप लेने लगी. इसी समय नफरत से भरे जुबेर आलम की नजर जीने में रखी ईंट पर पड़ गई. उस ने लपक कर ईंट उठाई और भरपूर वार स्नेह के पीछे सिर में किया. स्नेह का सिर फट गया और वह पलंग के नीचे आ गिरी.

इसी समय खून से लथपथ पड़ी स्नेह के पैर उस ने उसी के दुपट्टे से बांध दिए. फिर रसोई में जा कर चाकू उठा लाया. इस के बाद उस ने चाकू से उस के गले को रेत दिया तथा दोनों हाथों की कलाइयों की नसें काट दीं. उस ने उस के चेहरे पर भी चाकू से वार कर दिया.

स्नेह को मौत के घाट उतारने के बाद जुबेर ने अलमारी का सामान पलंग पर बिखेर दिया और अलमारी से सोने के 4 कंगन, एक जोड़ी झुमके, एक अंगूठी और 900 रुपए निकाल लिए. यह सब ले कर वह घर के बाहर आ गया.

बाहर उस का दोस्त सुरेश स्कूटर स्टार्ट किए खड़ा था. इस के बाद स्कूटर से दोनों भाग गए. लेकिन शास्त्री चौक पर उस का स्कूटर खराब हो गया. तब उस ने मोबाइल फोन पर अपने एसी मैकेनिक दोस्त दबौली निवासी अमित को सारी घटना बताई और मोटरसाइकिल ले कर आने को कहा. लेकिन अमित घबरा गया. उस ने दोबारा फोन न करने की चेतावनी दे कर अपना फोन बंद कर दिया.

इस के बाद सुरेश ने स्कूटर ठीक कराया और जुबेर को उस के घर छोड़ा. जुबेर ने 4 कंगन तो सुरेश को दे दिए तथा झुमके और अंगूठी उस ने उसी शाम दबौली के ज्वैलर के यहां 24 हजार रुपए में बेच दिए और रात में ही मिनी ट्रक पर सामान लाद कर पत्नी बच्चों सहित मुरादाबाद में रिश्तेदार के यहां रवाना हो गया. इधर घटना की जानकारी तब हुई जब कुरियर देने मोहित व शुभम आए.

8 मार्च, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त जुबेर आलम व सुरेश वाल्मिकी को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से दोनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा संकलन तक उन की जमानत स्वीकृत नहीं हुई थी. अमित को पुलिस ने सरकारी गवाह बना लिया था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

बेलघाट अरुण मर्डर केस : ऐसी बहन किसी की ना हो

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर में एक गांव है बनकट, जो थाना बेलघाट के क्षेत्र में आता है. पश्चिम बंगाल में कोयले की खदान में काम करने वाला रामसिधारे अपने परिवार के साथ बनकट गांव में रहता था.

रामसिधारे के परिवार में पिता वंशराज के अलावा 3 बेटियां और एक बेटा था. उस की पत्नी विमला की करीब 5 साल पहले मृत्यु हो गई थी. उस ने अपनी बड़ी बेटी माधुरी की शादी पत्नी की मौत के कुछ दिनों बाद पड़ोस के गांव बरपरवा बाबू के रहने वाले जितेंद्र के साथ कर दी थी. रामसिधारे के कंधों पर 3 बच्चों की जिम्मेदारी बची थी.

चूंकि रामसिधारे पश्चिम बंगाल में रहता था, इसलिए बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी उस के पिता वंशराज के ऊपर थी. वह ही उन की परवरिश कर रहे थे. रामसिधारे के घर पर न रहने के बावजूद तीनों बच्चे ठीक पढ़ रहे थे. बेटा अरुण और बेटी साधना हाईस्कूल में थे और मंझली बेटी पूजा स्नातक पास कर चुकी थी. घर में रह कर वह कंपीटिशन की तैयारी कर रही थी.

बीच बीच में रामसिधारे बच्चों की कुशलक्षेम लेने घर आता रहता था, ताकि बच्चों को मां की कमी न खले. कुछ दिन बच्चों के बीच बिता कर वह फिर नौकरी पर लौट जाता था. पिता के प्यार और दुलार से बच्चों को कभी मां की कमी नहीं खली थी.

31 जनवरी, 2019 की बात है. रात 10 बजे घर के सभी लोगों ने साथ बैठ कर खाना खाया और फिर सोने के लिए अपने अपने कमरे में चले गए. बच्चों के दादा वंशराज दालान में सो रहे थे, जबकि पूजा, साधना और अरुण अलगअलग कमरों में सो रहे थे.

अगली सुबह पूजा और साधना रोजाना की तरह सुबह 6 बजे उठीं. घर का मुख्यद्वार खोल कर उन्होंने बाहर जाना चाहा तो दरवाजा नहीं खुला. किसी ने शायद बाहर से दरवाजे पर कुंडी लगा दी थी.

काफी प्रयास के बाद जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों बहनें यह सोच कर भाई अरुण के कमरे में गईं कि उस से कह कर दरवाजा खुलवाने का प्रयास करेंगी. लेकिन अरुण अपने कमरे में नहीं मिला. यह देख दोनों बहनें हैरान रह गईं कि बिना किसी को कुछ बताए इतनी सुबह वह कहां चला गया. उन्होंने घर का कोनाकोना छान मारा, लेकिन अरुण कहीं नहीं मिला.

तब दोनों बहनें दालान में सो रहे दादा वंशराज के पास पहुंचीं, उन्हें जगा कर दोनों ने अरुण के बारे में पूछा तो उन्होंने अनभिज्ञता जताते हुए कहा कि उन्हें कोई जानकारी नहीं है और न ही उसे बाहर जाते हुए देखा. बुजुर्ग वंशराज भी पोते के अचानक गायब होने से स्तब्ध थे.

अरुण के रहस्यमय ढंग से गायब हो जाने से घर वाले परेशान हो गए. ऊपर से मकान का मेनगेट भी बाहर से बंद था. अंतत: साधना ने पड़ोस में रहने वाले चचेरे बाबा नंदू को फोन किया और बाहर से लगी मेनगेट की कुंडी खोलने को कहा. उस ने नंदू बाबा को यह भी बताता कि किसी ने शरारतवश कुंडी लगा दी होगी. कुछ देर में वह दरवाजे की कुंडी खोल कर अंदर आए.

उन्हें अरुण के गायब होने की बात पता चली तो वह भी परेशान हो गए. घर के सभी लोग अरुण को गांव में ढूंढने लगे. कुछ ही देर में पूरे गांव में अरुण के गायब होने की बात फैल गई. यह बात किसी के गले नहीं उतर रही थी कि घर में सोया अरुण आखिर गायब कैसे हो गया?

अरुण की तलाश में दादा वंशराज, नंदू, पूजा और साधना अलगअलग दिशाओं में निकल गए. इस से पहले पूजा और साधना ने अपने रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को फोन कर के अरुण का पता लगा लिया था.

बहरहाल, अरुण की तलाश करते करते 3 घंटे बीत गए. उस के न मिलने से सभी परेशान थे. उसे ले कर उन के मन में बुरे खयाल आ रहे थे. पता नहीं नंदू के मन में क्या आया कि वह अपने आलू के खेत की तरफ मुड़ गए. आलू का वह खेत वंशराज के घर से मात्र 50 मीटर दूर था.

नंदू आलू के खेत में पहुंचे तो उन्हें खेत के बीचोबीच कोई औंधे मुंह पड़ा दिखा. जब वह उस के नजदीक पहुंचे और ध्यान से देखा तो चौंके. क्योंकि वह अरुण का शव था. किसी ने गला रेत कर उस की हत्या कर दी थी. नंदू दौड़ेदौड़े गांव पहुंचे और यह जानकारी बड़े भाई वंशराज को दी.

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              अरुण

अरुण की हत्या की बात सुन कर घर में रोनापीटना शुरू हो गया. वंशराज और उन की दोनों पौत्रियां पूजा और साधना रोते बिलखते आलू के खेत में पहुंचीं, जहां अरुण की रक्तरंजित लाश पड़ी थी. अरुण की हत्या की सूचना मिलते ही गांव वाले भी मौके पर पहुंच गए. इसी बीच किसी ने इस घटना की सूचना बेलघाट थाने को दे दी.

सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सुरेशचंद्र राम पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. वहां पहुंच कर उन्होंने सीओ (गोला) सतीशचंद्र शुक्ला और एसपी (दक्षिण) विपुल कुमार श्रीवास्तव को भी सूचना दे दी. सूचना मिलने पर दोनों पुलिस अधिकारी मौकाएवारदात पर पहुंच गए.

पुलिस ने घटनास्थल की जांच की तो पता चला हत्यारों ने अरुण की हत्या किसी तेज धारदार हथियार से गला रेत कर की थी. उस का कसरती बदन देख कर लगता था कि हत्यारों की संख्या 2 से 3 रही होगी क्योंकि वह अकेले आदमी के वश में नहीं आ सकता था. खेत में संघर्ष का कोई निशान भी नहीं मिला था. इस बात ने मामले को और भी पेचीदा बना दिया था.

पुलिस ने मौके की और गहराई से जांच की. जिस जगह पर अरुण की लाश पड़ी थी, वहां खून सूख कर काला पड़ चुका था. इस से यही अनुमान लगाया जा रहा था कि घटना को 8-10 घंटे पहले अंजाम दिया गया होगा. लाश के अलावा पुलिस को मौके पर कुछ और नहीं मिला था.

पुलिस ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए बाबा राघवदास मैडिकल कालेज, गुलरिहा भिजवा दी. मृतक अरुण की बड़ी बहन पूजा उर्फ सोनाली ने गांव के ही 5 व्यक्तियों पर हत्या का आरोप लगाते हुए थानाप्रभारी सुरेशचंद्र राम को नामजद तहरीर दी.

पूजा की तहरीर के आधार पर पुलिस ने अशोक मौर्या, चंद्रशेखर मौर्या, इंद्रजीत मौर्या, विनोद मौर्या और दशरथ मौर्या के खिलाफ भादंवि की धाराओं 147, 148, 149, 302, 506, 120बी और 3(1) एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

चूंकि यह मामला एससीएसटी एक्ट से जुड़ा था, इसलिए जांच की जिम्मेदारी सीओ सतीशचंद्र शुक्ला को सौंप दी गई. सीओ साहब ने सब से पहले वादी पूजा उर्फ सोनाली से अरुण की हत्या के संबंध में जानकारी ली. पूजा ने बताया कि करीब डेढ़ साल पहले अरुण को दशरथ मौर्या ने जेल भिजवाया था. वह उस की बेटी कंचन से प्यार करता था. कंचन भी उस से प्रेम करती थी. एक दिन दोनों ही घर छोड़ कर भाग गए थे.

दशरथ मौर्या ने नाबालिग बेटी कंचन को बहलाफुसला कर भगा ले जाने की रिपोर्ट बेलघाट थाने में दर्ज करा दी थी. पुलिस ने कोशिश कर के अरुण और कंचन को ढूंढ निकाला और अरुण को जेल भेज दिया था. जुलाई, 2018 में वह जमानत पर छूट कर जेल से बाहर आया था.

भाई के जेल से आने के बाद से ही ये लोग उस की जान के पीछे पड़े थे. पूजा ने उन्हें बताया कि दशरथ मौर्या ने अपने चारों बेटों अशोक, चंद्रशेखर, इंद्रजीत और विनोद के साथ मिल कर अरुण की हत्या कर दी है.

सीओ सतीशचंद्र शुक्ला ने पूजा के बयान की पड़ताल की तो उस की बात सच निकली. इस के बाद सतीशचंद्र पुलिस टीम के साथ दशरथ मौर्या के घर पहुंच गए. मौके से अशोक, चंद्रशेखर और इंद्रजीत दबोच लिए गए. विनोद और उस का पिता दशरथ पुलिस के पहुंचने से पहले फरार हो गए थे. तीनों को हिरासत में ले कर वह थाने आ गए.

सीओ शुक्ला ने हिरासत में लिए गए अशोक मौर्या से दशरथ और विनोद के ठिकाने के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘सर, अरुण की हत्या हम ने नहीं की और न ही मेरे पिता फरार हैं. वह तो छोटे भाई विनोद के साथ घटना से 2 दिन पहले कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज चले गए थे.’’

अशोक मौर्या ने आगे बताया, ‘‘साहब, अरुण पिछले साल मेरी बहन कंचन को बहलाफुसला कर घर से भगा ले गया था. उस के खिलाफ बेलघाट थाने में मुकदमा भी दर्ज कराया गया था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जुलाई में अरुण जमानत पर जेल से आ गया. उस के बाद से हम खुद ही कंचन की निगरानी करते रहे. फिर दोबारा वह कंचन से कभी नहीं मिला और हम ने भी यह बात भुला दी. फिर हम उस की हत्या भला क्यों करेंगे?’’

अशोक के बयान ने सीओ शुक्ला को सोचने पर विवश कर दिया था. इधर 2 फरवरी को अरुण की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि उस की हत्या पहले गला दबा कर की गई. फिर किसी तेज धार हथियार से उस का गला रेता गया था.

उधर जांच में यह बात भी सामने आ गई कि दशरथ मौर्या और उस का बेटा विनोद मौर्या वाकई घटना से 2 दिन पहले यानी 29 जनवरी को कुंभ स्नान करने प्रयागराज गए थे.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट को पढ़ने और घटना की पड़ताल करने के बाद सीओ सतीशचंद्र शुक्ला के गले से यह बात नीचे नहीं उतरी कि जब आरोपी दशरथ मौर्या और उस का बेटा विनोद 2 दिन पहले ही घटनास्थल से 200 किलोमीटर दूर प्रयागराज चले गए थे तो वह भला हत्या कैसे कर सकते थे? इस में जरूर कोई बड़ा पेंच था.

इस के बाद सीओ सतीशचंद्र शुक्ला ने एक बार फिर से पूजा को थाने बुला कर पूछताछ की और जांचपड़ताल के लिए उस का मोबाइल फोन मांगा. सीओ शुक्ला के फोन मांगने पर पूजा सकपका गई और फोन देने में आनाकानी करने लगी.

पूजा की यह हरकत सतीश शुक्ला को थोड़ी अजीब लगी. उन्होंने पूछताछ कर के उसे घर भेज दिया. इस के बाद उन्होंने पूजा के मोबाइल फोन नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेलस की जांच में पता चला कि उस के फोन पर घटना वाली रात में 11 बज कर 58 मिनट तक बातचीत हुई थी. फिर उसी नंबर पर सुबह करीब सवा 7 बजे भी बात हुई थी.

पूजा की जिस फोन नंबर पर बात हुई थी, पुलिस ने उस फोन नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई. वह नंबर बेलघाट थाने के बरपरवा बाबू निवासी धर्मेंद्र कुमार का निकला.

धर्मेंद्र मृतक अरुण के सगे बहनोई का छोटा भाई था. पुलिस ने धर्मेंद्र को हिरासत में ले लिया. थाने में उस से सख्ती से पूछताछ की गई. धर्मेंद्र कोई पेशेवर अपराधी नहीं था, इसलिए उस ने बड़ी आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया.

उस ने पुलिस को बताया कि अरुण की हत्या उस ने अपने प्रेमिका पूजा उर्फ सोनाली के साथ मिल कर की थी. धर्मेंद्र के बयान के बाद पुलिस उसे जीप में बैठा कर पूजा को गिरफ्तार करने बनकट गांव पहुंची.

दरवाजे पर पुलिस को आया देख पूजा के दादा वंशराज ने पुलिस से अरुण के हत्यारों के बारे में पूछताछ की तो पुलिस ने उन्हें भरोसा दिया कि पुलिस अपना काम कर रही है. हत्यारे जल्द ही सलाखों के पीछे होंगे. फिर उन्होंने उन से पूजा के बारे में पूछताछ की. पूजा उस समय घर में ही थी.

पुलिस के वहां आने की जानकारी होते ही पूजा भी कमरे से बाहर निकल आई. तभी महिला कांस्टेबल ने पूजा को जीप में बैठा लिया. यह देख कर वंशराज हैरान रह गए. वह भी नहीं समझ पाए कि पुलिस पूजा को अपने साथ क्यों और कहां ले जा रही है.

लेकिन जैसे ही पूजा की नजरें जीप में बैठे युवक पर पड़ीं तो वह चौंक गई. क्योंकि वह उस का ही प्रेमी था. अब पूजा को यह समझते देर नहीं लगी कि उस की रची हुई कहानी से परदा उठ चुका है. पुलिस अरुण के कातिलों तक पहुंच चुकी थी.

पुलिस ने थाने में पूजा और धर्मेंद्र को आमनेसामने बैठा कर अरुण की हत्या के बारे में पूछताछ की तो पूजा ने खुद पुलिस के सामने घुटने टेक दिए. उस ने अपना जुर्म कबूल करते हुए कहा कि उस ने प्रेमी धर्मेंद्र के साथ मिल कर अपने एकलौते भाई को मार डाला. पूजा के बयान से उस के भाई अरुण की रूह कंपाने वाली जो कहानी सामने आई, इस प्रकार निकली—

21 वर्षीय पूजा थी तो इकहरे बदन और साधारण शक्लसूरत की, लेकिन उस के नैननक्श तीखे थे. पूजा के पिता पश्चिम बंगाल में नौकरी करते थे. दादा वंशराज ही बच्चों की देखभाल करते थे. पूजा की बड़ी बहन माधुरी की शादी बनकट से थोड़ी दूर बरपरवा बाबू के जितेंद्र के साथ 5 साल पहले हुई थी.

जितेंद्र सीआरपीएफ में नौकरी करता था. जितेंद्र से छोटे 4 भाई और थे. इन में तीसरे नंबर का भाई धर्मेंद्र था. ग्रैजुएशन करने के बाद धर्मेंद्र ने पुलिस में भरती होने की तैयारी शुरू कर दी थी. पिता पंजाब में काम करते हैं.

बड़े भाई की ससुराल आतेजाते 4 साल पहले धर्मेंद्र और पूजा के बीच नजदीकी बढ़ गई थी. धर्मेंद्र पूजा की खूबसूरती पर मर मिटा था. चूंकि दोनों के बीच रिश्ता भी मजाक का था, इसलिए मजाक मजाक में वह खूबसूरत साली पूजा को छेड़ता रहता था. इसी छेड़छाड़ के दौरान दोनों में कब प्यार के अंकुर फूटे, न पूजा ही जान सकी और न ही धर्मेंद्र.

                    हत्यारी बहन पूजा

पूजा से प्यार होने के बाद धर्मेंद्र का भाई की ससुराल में आना जाना कुछ ज्यादा ही हो गया था. पूजा के गांव के बगल वाले गांव में धर्मेंद्र की ननिहाल थी. वह जब भी अपनी ननिहाल आता तो पूजा से मिलने जरूर आता था. धर्मेंद्र को देखते ही पूजा का चेहरा खुशी से खिल उठता था. उसे देख कर वह भी खुशी से झूम उठता था.

पूजा और धर्मेंद्र यह जान कर बेहद खुश रहते थे कि पिछले 4 सालों से उन के प्यार पर किसी की नजर नहीं गई थी. पर शायद यह दोनों की बहुत बड़ी भूल थी. पूजा के छोटे भाई अरुण को बहन और जीजा के भाई धर्मेंद्र के रिश्तों पर शक हो गया था.

वह समझ गया था कि दोनों के बीच कुछ खिचड़ी पक रही है. लेकिन वह यह सोच कर चुप हो जाता था कि दोनों के बीच मजाक का रिश्ता है, ऐसा थोड़ाबहुत तो चलता ही है जबकि उन के बीच तो कोई दूसरी ही खिचड़ी पक रही थी.

जब से अरुण को धर्मेंद्र पर शक हुआ था, तब से वह उसे देखते ही अंदर ही अंदर जलभुन जाता था. वह नहीं चाहता था कि धर्मेंद्र वहां आए. अरुण पूजा को भी उस से दूर रहने के लिए समझाता था. उस के हावभाव से पूजा समझ गई थी कि अरुण को उस पर शक हो गया है. ये बात उस ने प्रेमी धर्मेंद्र को बता कर सतर्क कर दिया था.

उस दिन के बाद से धर्मेंद्र जब भी पूजा से मिलने भाई की ससुराल आता तो अरुण को देख कर सतर्क हो जाता और पूजा से कम ही बातचीत करता, जिस से अरुण को लगे कि उन के बीच कोई ऐसीवैसी बात नहीं है.

धर्मेंद्र और पूजा को अब अरुण प्यार के बीच का कांटा लगने लगा था. इतना ही नहीं, प्यार में अंधी पूजा धर्मेंद्र के साथ मिल कर एकलौते भाई को रास्ते से हटाने का ताना बाना बुनने लगी थी. ऐसी खतरनाक योजना बनाते हुए उसे एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि जिस भाई की कलाई पर वह राखी बांधती रही, उसी भाई की जान लेने पर क्यों तुली हुई है.

बहरहाल, बात 31 जनवरी, 2019 की है. रात 10 बजे के करीब घर के सभी लोग खाना खा कर अपनेअपने कमरे में सो रहे थे. उस रोज भाई की ससुराल में धर्मेंद्र भी रुका था. वह अपनी ननिहाल आया था. वहां से वह रात में पैदल ही ससुराल पहुंच गया.

धर्मेंद्र अपने साले अरुण के साथ उसी के बिस्तर पर सो रहा था. रात 2 बजे के करीब अरुण की अचानक आंखें खुल गईं. उसे किसी के खुसरफुसर की आवाजें आ रही थीं. उस ने जब अपने बिस्तर पर देखा तो चौंका क्योंकि उस के साथ सो रहा धर्मेंद्र वहां नहीं था.

दबे पांव अरुण पूजा के कमरे में पहुंच गया. कमरे के अंदर का नजारा देख का उस का खून खौल उठा. धर्मेंद्र पूजा को अपनी बांहों में भरे आलिंगनबद्ध था. यह देख कर अरुण जोर से धर्मेंद्र को भद्दीभद्दी गालियां देने लगा.

अरुण को वहां देख कर दोनों घबरा गए और डर भी गए कि कहीं घर वाले जाग गए तो उन की पोल खुल जाएगी और बदनामी होगी. तभी धर्मेंद्र ने अरुण के मुंह पर कस कर हाथ रख लिया. यह देख घबराती हुई पूजा बोली, ‘‘तुम चिल्लाओ मत, हम दोनों जल्द ही एकदूसरे से शादी करने वाले हैं.’’

यह सुन कर अरुण उस पर भड़कते हुए बोला, ‘‘मैं अपने जीते जी ऐसा नहीं होने दूंगा.’’

पूजा ने भाई को बातों में उलझा कर उस के गले में अपना दुपट्टा डाल दिया. फिर धर्मेंद्र और पूजा फुरती से उस दुपट्टे को पकड़ कर खींचने लगे, जिस से गला घुट कर अरुण की मौत हो गई.

अरुण मर चुका है. यह सोच कर दोनों के हाथपांव फूल गए. पूजा और धर्मेंद्र लाश को ठिकाने लगाने को ले कर परेशान थे. दोनों सोच रहे थे कि सुबह होते ही भाई की अचानक मौत हो जाने से घर वाले परेशान हो जाएंगे. बात पुलिस तक पहुंच गई तो पकड़े भी जा सकते हैं.

तभी पूजा को अरुण और दशरथ मौर्या की बेटी कंचन की प्रेम कहानी याद आ गई. खुद को बचाने के लिए पूजा ने यह कहानी बना डाली. इस कहानी से वह 2 निशाने साध रही थी. पहला अरुण की हत्या का दोष दशरथ और उस के परिवार पर लग जाता. क्योंकि कंचन और अरुण को ले कर दोनों परिवारों के बीच विवाद चल रहा था. दूसरा उन दोनों पर किसी को शक भी नहीं होता.

खैर, पूजा की मदद से अरुण की लाश को ठिकाने लगाने के लिए धर्मेंद्र ने उसे अपनी पीठ पर उठा लिया और घर से 50 मीटर दूर नंदू के आलू के खेत में फेंक आया. कहीं भाई जीवित तो नहीं रह गया, यह जानने के लिए पूजा ने अरुण की नब्ज टटोली, उसे शक हुआ कि उस की सांस चल रही है.

फिर क्या था, वह दौड़ी दौड़ी कमरे में आई और डिब्बे में रखा ब्लेड निकाल कर खेत पर पहुंच गई. अपने ही हाथों से उस ने भाई का गला रेत दिया. फिर दोनों घर आ गए. खून से सने हाथपैर धो कर दोनों निश्चिंत हो गए. सुबह होते ही धर्मेंद्र घर लौट गया. घर जाते समय वह पूजा के घर के मेनगेट की कुंडी बाहर से बंद कर गया था ताकि लोगों को यही लगे कि दशरथ और उस के घर वालों ने उसे धोखे से बुला कर हत्या कर लाश आलू के खेत में फेंक दी.

केस का खुलासा हो जाने के बाद पुलिस ने दशरथ मौर्या और उस के बेटों के नाम रोजनामचे से हटा कर पूजा और धर्मेंद्र को आरोपी बनाते हुए उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कंचन नाम परिवर्तित है.

अपना कातिल ढूंढने वाली औरत

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय देश भर में प्रसिद्ध है. थाना कृष्णानगर क्षेत्र में आने वाले इस विश्वविद्यालय की पार्किंग बाउंड्री वाल के बाहर है. 23 मार्च, 2019 को जब मौर्निंग वाक पर निकले कुछ लोग उधर से गुजरे तो उन की निगाह फुटपाथ पर पड़े एक बड़े से बैग पर चली गई.

सामान्य रूप से लोगों ने समझा कि या तो कोई अपना बैग वहां रख कर भूल गया है या मौर्निंग वाक पर आए किसी व्यक्ति ने उसे वहां रख दिया है, जो वापस लौटते वक्त ले लेगा. हालांकि बैग का बड़ा साइज इन संभावनाओं को नकार रहा था.

लेकिन लोगों की यह सोच तब बदल गई, जब लौटते समय भी उन्होंने बैग को वहीं पड़े देखा. बैग में विस्फोटक रखे होने की आशंका के चलते किसी ने भी उसे हाथ लगाने की हिम्मत नहीं की. इस से बेहतर यही था कि पुलिस को बुला लिया जाए. ऐसा ही किया भी गया.

सूचना मिलते ही थाना कृष्णानगर के थानाप्रभारी दिनेश मिश्रा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने बैग खोला तो उस के होश उड़ गए. बैग में 30-40 साल की किसी महिला का सिर, दोनों पैर और दोनों हाथ थे. बैग में 521 प्रीमियम राइस की 25 किलो की बोरी और बेबी क्लब का बैग निकले. चावल की बोरी में महिला के पैर और सिर था, जबकि बेबी क्लब के बैग में दोनों हाथ रखे हुए थे. मृतका ने सोने की अंगूठी पहन रखी थी और एक हाथ पर टैटू गुदा हुआ था.

हाल फिलहाल पुलिस के सामने सब से बड़ा सवाल यह था कि उस महिला के धड़ को कहां और कैसे खोजा जाए. पुलिस और क्राइम ब्रांच की टीमों ने धड़ को खोजने की कोशिश की. इस के लिए डौग स्क्वायड की भी मदद ली गई. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.

एसएसपी कलानिधि नैथानी और सीओ लालप्रताप सिंह भी वहां पहुंच गए थे. उन्होंने भी लाश के टुकड़ों और उस जगह को अपने नजरिए से देखा समझा. प्रथम संभावना में उस महिला को घरेलू हिंसा की शिकार माना गया.

अंतत: यह तय हुआ कि बरामद अंगों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया जाए और जितनी भी संभावनाएं हों, सभी की सिलसिलेवार जांच की जाए. पुलिस ने केस दर्ज कर के आसपास के सीसीटीवी कैमरों की फुटेज भी खंगाली. साथ ही जो भी तरीके हो सकते थे, पुलिस ने उन तरीकों से भी महिला की पहचान कराने की कोशिश की. साथ ही धड़ की खोजबीन भी जारी रखी.

जिस जगह पर बैग रखा मिला था, उस के आसपास की छानबीन में पुलिस को लाल स्याही से हाथ से लिखे एक पत्र के दरजनों टुकड़े मिले, जिन्हें समेट कर सावधानी से रख लिया गया. एक प्रत्यक्षदर्शी ने बताया कि अलसुबह 4 बजे जब वह मौर्निंग वाक पर जा रहा था तो उस ने एक व्यक्ति को पीठ पर बोरा लाद कर ले जाते देखा था. इतना ही नहीं, उस ने फुटपाथ पर बोरा भी उस के सामने ही रखा था.

पुलिस द्वारा सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखी गईं तो उन में से एक फुटेज में एक व्यक्ति को पीठ पर बैग लाद कर ले जाते हुए देखा गया. लेकिन बैग ले जा रहे व्यक्ति का चेहरा साफ नहीं था, इसलिए उसे पहचानना संभव नहीं था.

महिला की पहचान के लिए कोई रास्ता न निकलता देख पुलिस ने महिला के हाथ में पहनी अंगूठी, हाथ पर बने टैटू, लाश वाला बैग, उस के अंदर मिली चावल की बोरी और बेबी क्लब का बैग वगैरह चीजों का कोलाज बना कर जारी किया. साथ ही घोषणा की कि उस महिला की पहचान करने या उस के बारे में सूचना देने वाले को 25 हजार रुपए का नकद ईनाम दिया जाएगा.

25 मार्च रविवार की सुबह बीबीखेड़ा निवासी महिला कीर्ति सिंह जब दूध ले कर लौट रही थी तो उस ने न्यू कांशीराम कालोनी के पास स्थित हैमिल्टन स्कूल के पीछे से गुजरते समय तेज बदबू महसूस की. उस ने देखा तो पौलीथिन में कुछ लिपटा नजर आया. कीर्ति ने घर जा कर यह बात अपने पति अमरेंद्र सिंह को बताई. अमरेंद्र ने पुलिस कंट्रोल रूम को फोन कर के सूचना दे दी.

पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना पारा को दी. पुलिस ने वहां पहुंच कर देखा तो पौलीथिन में लिपटा उसी महिला का धड़ मिला, जिस का सिर और हाथपांव डा. राममनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के बाहर पार्किंग में पड़े थैले में रखे मिले थे. हत्यारे ने महिला के धड़ को लाल काले रंग की दरी में लपेट कर प्लास्टिक की बोरी में डाला था ताकि खून न बहे.

एसपी (पूर्व) सुरेशचंद रावत सहित क्राइम ब्रांच, फोरैंसिक टीम और डौग स्क्वायड भी मौके पर पहुंचे. थाना पारा और थाना कृष्णानगर की पुलिस तो वहां थी ही. कृष्णानगर थानाक्षेत्र जहां महिला का सिर और पैर मिले थे, वहां से थाना पारा का वह इलाका जहां धड़ मिला था, के बीच 6 किलोमीटर की दूरी थी.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे ने कृष्णानगर या पारा के आसपास किसी घर में महिला की हत्या की होगी और लाश के टुकड़ों को 2 जगहों पर इसलिए फेंका होगा कि पुलिस असमंजस में पड़ जाए कि हत्या कृष्णानगर क्षेत्र में हुई या पारा क्षेत्र में. यह सब उस ने पुलिस से बचने के लिए किया होगा. पुलिस का यह भी अनुमान था कि हत्यारा कोई एक ही व्यक्ति रहा होगा.

प्राथमिक काररवाई के बाद पुलिस ने धड़ को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. धड़ और अन्य अंग एक ही महिला के हैं, इस का पता लगाने के लिए डीएनए कराने को लिखा गया. घटना का खुलासा जल्दी हो, इस के लिए एसएसपी कलानिधि नैथानी ने एसपी (पूर्वी) सुरेशचंद्र रावत के नेतृत्व में सीओ क्राइम, सीओ कृष्णानगर और डीसीआरबी प्रभारी को खुलासे की जिम्मेदारी सौंपते हुए 3 पुलिस टीमें बनाईं.

इन टीमों ने उसी दिन यानी 24 मार्च की शाम तक 20 सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखीं. इस के साथ ही पुलिस अधिकारियों ने लखनऊ जोन के सभी जिलों के थानों में दर्ज महिलाओं की गुमशुदगी व अपहरण के मुकदमों की जानकारी मांगी. गहन छानबीन के मद्देनजर बीट के 100 सिपाहियों को घूमघूम कर महिला की पहचान कराने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में भेजा गया. महिला से संबंधित जानकारी पुलिस को देने के लिए जगहजगह पोस्टर भी लगवाए गए.

पारा क्षेत्र में रहने वाले बाबूलाल कनौजिया ने 25 मार्च को थाना पारा में गुमशुदगी दर्ज कराई कि उस का भाई सुनील कनौजिया 2 हफ्ते से लापता है. बाबूलाल ने यह भी बताया कि सुनील पिछले 4-5 महीने से अपनी पत्नी भारती पांडेय के साथ हंसखेड़ा, न्यू कांशीराम कालोनी में किराए के मकान में रह रहा था.

सुनील की कोई जानकारी न मिलने पर उस के भाई बाबूलाल ने थाना चौकी के चक्कर लगाने शुरू कर दिए थे. इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर ने सुनील के फोटो लगा पोस्टर छपवा कर विभिन्न जगहों पर लगवाने को कहा.

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         हत्यारा पति सुनील कनौजिया

लेकिन बाबूलाल के पास सुनील का कोई फोटो नहीं था. अंतत: सुनील के गुम होने के 11वें दिन यानी 4 अप्रैल को फोटो की तलाश में जांच अधिकारी बाबूलाल के साथ सुनील के कमरे पर पहुंचे. ताला तोड़ने के अलावा उन के पास कोई विकल्प नहीं था.

ताला तोड़ कर कमरे के अंदर छानबीन की गई तो यह रहस्य सामने आया कि सुनील की पत्नी भारती पांडेय भी लापता थी. पुलिस ने कमरे से मिले सुनील और भारती पांडेय के सामूहिक फोटो और कृष्णानगर क्षेत्र में मिली लाश के अंगों के फोटो आसपड़ोस के लोगों को दिखाए तो कई लोगों ने सोने की अंगूठी, टैटू और चेहरा पहचान लिया. ये चीजें भारती पांडेय की ही थीं.

पुलिस ने कमरे को खंगाला तो टंकी के पाइप में रखे युवक के गीले कपड़ों पर खून के धब्बे नजर आए. इस के साथ ही यह बात भी साफ हो गई कि जिस महिला का धड़, सिर और अन्य अंग मिले थे, उस की हत्या इसी कमरे में की गई थी यानी वह भारती पांडेय ही थी.

छानबीन में भारती के बारे में कई जानकारियां मिलीं

पुलिस ने मकान मालिक दिलीप कुमार को बुला कर इस मामले में पूछताछ की. उस ने बताया कि भारती पांडेय नाम की महिला ने 5 महीने पहले 18 सौ रुपए महीने पर उन के मकान का कमरा किराए पर लिया था. उस ने आईडी की प्रति देते हुए बताया था कि वह नाका क्षेत्र की एक कंपनी में काम करती है. आईडी में भारती के पति का नाम रामगोपाल पांडेय और नाका के होलीग्राम स्कूल आर्यनगर का पता दर्ज था.

इसपर पुलिस ने नाका क्षेत्र में रामगोपाल की तलाश शुरू की. जांच के दौरान खुलासा हुआ कि पश्चिम बंगाल के कोलकाता की मूल निवासी भारती पांडेय 12 साल पहले अपने बेटे राजकुमार के साथ लखनऊ आई थी. उस ने रामगोपाल पांडेय से दूसरी शादी की थी. बाद में उस ने रामगोपाल को छोड़ कर सुनील से शादी कर ली थी. सुनील से भारती को कोई बच्चा नहीं था.

भारती ने पहली शादी कोलकाता में और दूसरी गोंडा के कर्नलगंज निवासी रामगोपाल पांडेय जो होलीग्राम स्कूल का रिक्शाचालक था, से की थी. रामगोपाल पांडेय ने भारती के बेटे राजकुमार को अपना लिया था. तीनों लोग नेवाजखेड़ा में रहने लगे थे. भारती इलाके की एक चाऊमीन फैक्ट्री में काम कर के घर के खर्च में हाथ बंटाने लगी थी. इस बीच उस ने 2 बेटियों चांदनी व लक्ष्मी को जन्म दिया था.

शव की शिनाख्त के लिए पुलिस की एक टीम भारती पांडेय के दूसरे पति रामगोपाल पांडेय की तलाश में गोंडा भेजी गई. पुलिस रामगोपाल व उस की एक बेटी को लखनऊ ले आई. रामगोपाल ने बैग में मिले शरीर के टुकड़ों की पहचान अपनी पूर्वपत्नी भारती पांडेय के रूप में कर दी.

रामगोपाल ने पुलिस को जानकारी दी कि भारती के पहले पति का बेटा राजकुमार पश्चिम बंगाल में अपनी ननिहाल में रहता है. कोलकाता से आई भारती 8 साल रामगोपाल की पत्नी बन कर उस के साथ रही. इस के बाद उस के संबंध सुनील कनौजिया से हो गए. भारती का हाथ थामने से पहले सुनील ने अपनी पहली पत्नी से नाता तोड़ लिया था.

बाबूलाल व अन्य लोगों से पूछताछ में खुलासा हुआ कि सुनील की पहली पत्नी इंदिरानगर इलाके में रहती है. भारती पांडेय की हत्या के बाद सुनील के पहली पत्नी के पास लौटने की संभावना को देखते हुए पुलिस ने जांच की, लेकिन सुनील वहां नहीं मिला.

छानबीन में पता चला कि चाऊमीन फैक्ट्री में काम करने के दौरान दिलफेंक भारती की आंखें फ्रेमिंग का काम करने वाले सुनील कनौजिया से लड़ गई थीं. सुनील एल्युमीनियम के फ्रेम तैयार करने वाली जिस दुकान में काम करता था, वह चाऊमीन फैक्ट्री के सामने थी. जब भी भारती फैक्ट्री से निकलती, उस की नजर दुकान पर काम करते सुनील पर ही टिकी होतीं. जब कभी नजरें मिल जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. यह सिलसिला काफी दिनों तक चला. इस बीच दोनों की बातचीत होने लगी और फिर दोस्ती हो गई.

कोलकाता से साथ लाए बेटे और रामगोपाल से पैदा अपनी दोनों बेटियों को छोड़ कर भारती ने साढ़े 3 साल पहले सुनील का हाथ थाम लिया था.

रामगोपाल ने दोनों बच्चियों की देखरेख के लिए भारती को काफी समझाया. लेकिन उस के सिर पर चढ़े इश्क के भूत के आगे उसे हार माननी पड़ी. भारती को समझाने का कोई नतीजा न निकलने पर वह तीनों बच्चों को ले कर गोंडा स्थित अपने घर चला गया.

भारती करीब ढाई साल सुनील के साथ लिवइन रिलेशनशिप में रही. पिछले साल दोनों ने राजाजीपुरम की महिला शक्ति कल्याण समिति द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह कार्यक्रम में शादी कर ली थी.

पुलिस ने भारती व सुनील की शादी कराने वाली संस्था की अध्यक्ष रजनी यादव व कालोनी में रहने वाले भारती के पड़ोसियों से पूछताछ की. पता चला कि भारती का फिर किसी से अफेयर हो गया था और वह अकसर फोन पर बातचीत करती रहती थी, जिसे ले कर उस का पति सुनील उस पर शक करता था. वह उसे फोन पर बात करने से मना करता था, लेकिन भारती पर इस का कोई असर नहीं होता था.

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    मृतका भारती पांडेय

भारती के आचरण पर शक

इसी बात को ले कर दोनों में आए दिन झगड़ा होने लगा था. इस पर भारती ने पति को छोड़ कर दिलीप कुमार के मकान में किराए का अलग कमरा ले लिया था. कई दिन तक भारती के न मिलने पर सुनील उस की तलाश करता रहा और आखिरकार किसी तरह उस के कमरे तक पहुंच ही गया.

सुनील ने उस से पूछा कि वह उसे अकेला छोड़ कर बिना बताए क्यों चली आई? इस बात को ले कर उस ने भारती को डांटाफटकारा, जिस ले कर दोनों में झगड़ा हो गया. हालांकि बाद में वह भारती के पास ही रहने लगा था. हालांकि कमरा लेते वक्त भारती ने मकान मालिक को बताया था कि उस का पति बाहर काम करता है और वह यहां अकेली रहेगी.

पुलिस ने भारती पांडेय के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने के बाद सुनील के भाई बाबूलाल से गहराई से पूछताछ की. सुनील अपने भाई बाबूलाल की दुकान पर ही काम करता था. पुलिस ने उसी दुकान के शीशा कटिंग व फ्रेमिंग के कारीगर प्रेमप्रकाश व नरेंद्र को हिरासत में ले कर पूछताछ की, ये दोनों भारती से परिचित थे.

पड़ताल में जुटे पुलिस अफसरों का मानना था कि तीसरा पति सुनील कनौजिया भारती की अन्य लोगों से नजदीकी से नाराज था, इसीलिए उस ने उस की हत्या की थी. हत्या में अन्य लोगों के शामिल होने की भी पुलिस गहनता से जांच में लग गई. पुलिस ने आशंका व्यक्त की कि फ्रेमिंग के लिए एल्युमीनियम काटने वाली आरी से भारती के शव के टुकड़े किए गए थे.

पुलिस का मानना था कि फोन पर बातचीत को ले कर हुए विवाद के बाद 23 मार्च की रात में सुनील ने भारती की गला दबा कर हत्या की होगी और उस के बाद आरी से उस के टुकड़े किए होंगे. बाद में वह उन टुकड़ों को 2 अलगअलग जगहों पर फेंक कर फरार हो गया होगा. जांच के दौरान यह भी पता चला कि भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हो गया था.

सुनील के बड़े भाई बाबूलाल ने पुलिस को बताया कि सुनील 24 मार्च की रात में उस के घर आया था. इस दौरान उस ने खाना भी खाया था. भतीजी ने जब सुनील से पूछा, ‘‘चाचा, चाची को साथ क्यों नहीं लाए?’’ तो सुनील ने कहा, ‘‘तुम्हारी चाची भारती अपने मायके गई हुई है.’’

सुनील ने 25 मार्च को अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था. जिस के बाद से उस का कोई सुराग नहीं लग पा रहा था.

कमरे में टंकी के पाइप पर सुनील की पीली जींस व काली शर्ट पर खून के हलके धब्बों के अलावा कोई साक्ष्य नहीं मिला. इस पर एसएसपी कलानिधि नैथानी ने फोरैंसिक टीम भेज कर जांच कराई.

बेंजिडाइन टेस्ट में कमरे में रखे वाइपर, प्लास्टिक के टब, स्टील के मग और फर्श पर खून के धब्बे नजर आने लगे. फोरैंसिक जांच में सुनील की जींस और टीशर्ट पर मिले खून के धब्बों में भारती के ब्लड सेल्स मिलने की पुष्टि हुई. हालांकि सुनील ने पूरा कमरा साफ कर दिया था, लेकिन बेंजिडाइन टेस्ट की वजह से खून के धब्बे मिल ही गए.

पुलिस व क्राइम ब्रांच की टीम ने इस बीच विधि विश्वविद्यालय की तरफ जाने वाले विभिन्न मार्गों के सीसीटीवी कैमरों के 22 मार्च की शाम से 23 मार्च की सुबह तक के फुटेज खंगाले, लेकिन सुनील या अन्य कोई संदिग्ध नजर नहीं आया.

एक फुटेज में बैग लादे एक युवक दिखा भी, लेकिन उस का चेहरा साफ नहीं दिखाई दे रहा था. अपर पुलिस अधीक्षक नगर (पूर्वी) का कहना है कि मार्ग से गुजरे एक आटो को संदेह के घेरे में लिया गया है. आशंका है कि सुनील 22 मार्च की रात आटो या किसी अन्य वाहन से भारती पांडेय के हाथ, पैर व सिर से भरा बैग ले कर राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के सामने उतरा होगा और वहां बैग को छोड़ कर चला गया होगा.

भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले दिन कृष्णानगर इलाके में बैग में महिला के शरीर के टुकड़े और 24 मार्च को पारा इलाके में बोरी में धड़ बरामद होने की खबर विभिन्न अखबारों में छपी, टीवी चैनलों के साथ सोशल मीडिया पर भी वायरल हुई, लेकिन भारती के किसी भी दोस्त ने उस की सुध नहीं ली.

पुलिसकर्मियों ने उस के हाथ व चेहरे के फोटो ले कर कांशीराम कालोनी के लोगों से संपर्क किया, पोस्टर लगवाए, लेकिन उसे किसी ने नहीं पहचाना. न भारती के लापता होने की जानकारी पुलिस को दी. भारती का जेठ बाबूलाल भी चुप्पी साधे रहा. सुनील कनौजिया के मोबाइल की काल डिटेल्स खंगालने पर पुलिस को पता चला कि उस ने 25 मार्च को अपने भाई बाबूलाल कनौजिया से बात करने के बाद फोन बंद कर लिया था.

इस पर पुलिस ने बाबूलाल से कड़ाई से पूछताछ की, तब खुलासा हुआ कि भारती की अन्य युवकों से दोस्ती के चलते सुनील बेहद नाराज था. जब सुनील 24 मार्च को भाई के घर खाना खाने आया तब उस ने पत्नी की हत्या की कोई जानकारी नहीं दी थी.

सुनील ने 25 मार्च को बाबूलाल को फोन किया था. उस ने बताया, ‘‘भाई, मैं ने अपनी भारती की हत्या कर दी है. उस के शव को भी ठिकाने लगा दिया है.’’

सुनील ने आगे कहा, ‘‘अब वह आत्महत्या करने जा रहा है.’’

बाबूलाल ने बताया कि वह सुनील से कुछ कहता, इस से पहले ही सुनील ने फोन काट दिया था. फिर उस ने अपना फोन बंद कर दिया था. इस के बाद ही बाबूलाल ने पारा थाने में सुनील की गुमशुदगी दर्ज कराई थी. भारती का मोबाइल 22 मार्च को बंद हुआ. इस के अगले ही दिन कृष्णानगर में बैग में उस की लाश मिली.

भारती की हत्या कर शव के टुकड़े करने के मामले में पुलिस आरोपित पति सुनील की लोकेशन का पता नहीं लगा पाई. हालांकि 25 मार्च के बाद से आरोपित का मोबाइल बंद है. इस मामले में पुलिस ने कई जगहों पर दबिश दी, लेकिन लापता कथित हत्यारे पति सुनील का कोई सुराग नहीं मिला.

इंसपेक्टर कृष्णानगर दिनेश मिश्रा के मुताबिक मामले की छानबीन की जा रही है. महिला के जेठ बाबूलाल से कई चरणों में पूछताछ की गई.

कपड़ों की तरह प्रेमियों को बदलने वाली स्वार्थी भारती ने अपने बच्चों की तरफ भी ध्यान नहीं दिया. उन्हें छोड़ कर उस ने अपने तीसरे प्रेमी के साथ शादी रचा ली. लेकिन जब वह चौथे प्रेमी से इश्क लड़ाने लगी तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ी. उस के तीसरे पति ने उस की हत्या कर उस की लाश को टुकड़ों में बांट दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

रिश्तों की आग में जली संजलि – भाग 3

तहेरा भाई योगेश ही था संदिग्ध

शाम को शहर में एक दुकान पर वैसा ही लाइटर मिला. इस के पीछे एसएसपी का मकसद था कि जिस दुकान पर लाइटर मिला है, वहां आसपास के सीसीटीवी कैमरे खंगाले जाएं. शायद कोई सुराग मिल जाए.

संजलि के तहेरे भाई योगेश पर पुलिस को पहले से ही शक था. उस के खुदकुशी कर लिए जाने से पुलिस का काम कुछ आसान हो गया. पुलिस को उस पर शक इसलिए हुआ था क्योंकि पहले दिन आगरा अस्पताल में जहां संजलि भरती थी, उस ने आईसीयू में घुसने का प्रयास किया था. उस की मौत के बाद फोरैंसिक टीम को योगेश के मकान की छत के ऊपर बने कमरे से कीटनाशक मिला.

पुलिस ने जब उस के परिजनों से खुदकुशी की वजह पूछी तो वह कुछ नहीं बता पाए. पुलिस द्वारा योगेश के जब्त किए गए मोबाइल की जांच के दौरान फोन में कुछ नहीं मिला. तब पुलिस ने मोबाइल को डेटा रिकवरी के लिए लेबोरेटरी भेज दिया. इस के साथ ही योगेश के घर की गहन तलाशी भी ली गई.

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योगेश

गांव में यह भी चर्चा थी कि योगेश संजलि के परिवार के ज्यादा करीब था. योगेश ने संजलि को मौडल बनाने का सपना दिखाया था. इस के लिए उस ने संजलि के कई वीडियो भी शूट कराए, फोटो भी खिंचवाए.

कुछ दोस्तों को बुलाया, बताया कि नोएडा से आए हैं जो संजलि का वीडियो बनाएंगे. घर पर ही वीडियो शूट कराया गया, लेकिन वह संजलि को मौडल नहीं बनवा सका. इस के बाद दोनों के बीच बातचीत कम ही होती थी.

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लैबोरेटरी में जांच के दौरान योगेश के मोबाइल का सारा डेटा रिकवर हो गया. वाट्सऐप चैट में चैटिंग देख कर पुलिस अधिकारी चौंके. संजलि द्वारा एक मैसेज योगेश को भेजा गया था. मैसेज में 23 नवंबर को पिता पर हुए हमले के संबंध में संजलि ने कहा था, ‘‘क्या तुम ने ही पापा पर हमला किया था?’’

इस से पुलिस को जांच की दिशा मिल गई. योगेश के कमरे की तलाशी ली गई. तलाशी के दौरान पुलिस को उस के कमरे से एक कौपी मिली, जिस के कुछ पन्ने फाड़े गए थे. इन पन्नों का प्रयोग पत्र लिखने के लिए किया गया था, वह पत्र भी मिल गए. इस के साथ ही एक साइकिल की रसीद और संजलि के नाम का एक प्रमाणपत्र भी मिला.

पुलिस ने कर दिया खुलासा

दिल दहला देने वाले संजलि हत्याकांड का पुलिस ने कड़ी मेहनत के बाद 8वें दिन 25 दिसंबर को परदाफाश कर दिया. यह खुलासा चौंकाने वाला था.

संजलि की मौत के कुछ घंटे बाद ही खुदकुशी कर लेने वाला उस का तहेरा भाई ही मास्टरमाइंड योगेश था. इस जघन्य वारदात की वजह यह रही थी कि संजलि ने उसे वाट्सऐप चैट में ‘लूजर’ कह दिया था. इसी से आहत हो कर योगेश ने यह साजिश रची थी.

उस के मन में प्रतिशोध की भावना घर कर गई थी. इस साजिश के लिए उस ने 15-15 हजार रुपए का लालच दे कर अपने 2 रिश्तेदार युवकों को शामिल कर लिया. 25 दिसंबर को पुलिस ने इन दोनों युवकों को गिरफ्तार कर लिया. इन में विजय निवासी कलवारी, जगदीशपुरा, आगरा जो योगेश के मामा का बेटा है तथा आकाश निवासी मनिया, मलपुरा हाल निवासी लखनपुर, शास्त्रीपुरम, आगरा जो विजय की बहन का देवर है, शामिल थे.

संजलि को अपने जाल में फंसाने के लिए ही योगेश ने उसे साइकिल खरीद कर दी थी. उस ने घर पर बताया था कि संजलि ने यह साइकिल प्रतियोगिता में जीती है. इस प्रतियोगिता का सर्टीफिकेट भी योगेश ने अपने कंप्यूटर से तैयार किया था. भाई योगेश की हरकतों और गलत इरादों का पता चलने पर संजलि ने उस से दूरी बनाने के साथ ही अपने घर आने से भी मना कर दिया था. योगेश ने उसे मौडल बनाने का सपना भी दिखाया.

कुछ दिनों तक संजलि भाई के गलत इरादे नहीं भांप सकी. जब योगेश की नीयत का अहसास हुआ तो वह विरोध करने लगी. योगेश को यह नागवार गुजरा, इसीलिए उसे सबक सिखाने का निर्णय लिया.

23 नवंबर को योगेश ने ही संजलि के पिता पर हमला कराया था. उस के बाद उस ने संजलि को जलाने की योजना बनाई. अपनी इस योजना में उस ने अपने दोनों रिश्तेदारों को पैसों का लालच दे कर शामिल कर लिया.

18 दिसंबर को उस ने ममेरे भाई विजय को रेकी के लिए लगाया. छुट्टी के बाद संजलि जब स्कूल से निकली, वह उस के पीछे लग गया. पैशन प्रो बाइक पर विजय हैलमेट लगाए अलग चल रहा था. जबकि सफेद रंग की अपाचे बाइक जिसे आकाश चला रहा था, के पीछे योगेश बैठा था. दोनों हेलमेट पहने हुए थे. रास्ते में संजलि पर योगेश ने ही पैट्रोल डाला और लाइटर से आग लगा दी.

आरोपियों की निशानदेही पर पुलिस ने घटना में प्रयुक्त दोनों बाइक, वारदात के दौरान प्रयोग किए हैलमेट, मौकाएवारदात पर संजलि का फोटो, योगेश का बैग, जिस में वह कपड़े ले कर गया था, साइकिल की रसीद जो संजलि के पास थी, योगेश के घर पर मिला सर्टिफिकेट जैसा एक सर्टिफिकेट संजलि के घर पर भी मिला. संजलि को लिखे लवलेटर जो वह संजलि को नहीं दे सका था, आदि पुलिस ने बरामद कर लिए.

एसएसपी अमित पाठक ने बताया कि योगेश संजलि से एकतरफा प्यार कर उसे हासिल करना चाहता था. इस के लिए उस ने मौडल बनवाने का सपना दिखा कर उसे अपने जाल में फंसाने का प्रयास किया. यहां तक कि अपनी ओर से उसे एक साइकिल भी खरीद कर दी. प्रतियोगिता का फरजी प्रमाणपत्र उस ने अपने कंप्यूटर पर तैयार किया था.

योगेश ने टीवी पर क्राइम सीरियल देख कर संजलि की हत्या की ऐसी साजिश रची थी कि कई बार पुलिस भी गच्चा खा गई. वह एकतरफा मोहब्बत में संजलि को हासिल करना चाहता था. लेकिन जब वह सफल नहीं हुआ तो उस ने घटना को अंजाम दे कर भाईबहन के पवित्र रिश्ते को कलंकित कर दिया.

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संजलि की बड़ी बहन अंजलि को भी उस ने नौकरी लगाने का झांसा दिया था. बाद में मना कर दिया कि तुम्हारी नौकरी नहीं लग सकती. इस पर अंजलि नाराज हुई तो नौकरी के लिए दिए गए उस के सभी शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की फोटोकौपी उस ने जला दीं.

यूट्यूब पर मोटिवेशनल चैनल चलाने वाले योगेश की युवाओं में मोटिवेशन गुरू के रूप में पहचान थी. सभी उस की गंभीरता की मिसाल देते थे. मगर उस गंभीर चेहरे के पीछे शातिर क्राइम मास्टर दिमाग छिपा था.

योगेश चलाता था यूट्यूब चैनल

आरोपी आकाश ने बताया कि योगेश पैट्रोल पंप से बोतल में पैट्रोल नहीं लाया था, बल्कि उस ने बाइक में ही अलग से 60 रुपए का पैट्रोल भरवाया था. इस से पहले उस ने 150 रुपए का तेल भरवाया था. योगेश अपने घर से ही प्लास्टिक की बोतल लाया था. पैट्रोल पंप से कुछ दूर जा कर उस ने बोतल में पैट्रोल निकाल लिया.

आग जलाते समय कहीं हाथ न जल जाएं, इसलिए वह खास तरह के दस्ताने ले कर गया था. संजलि के आग में जलने के दौरान योगेश के कपड़ों में भी आग लग गई थी, तब उस ने दस्ताने पहने हाथ से आग बुझाई.

इसी दौरान उस के हाथ से लाइटर मौके पर ही गिर गया, जिसे पुलिस ने बरामद कर लिया. आरोपी विजय ने बताया कि योगेश घटना के बाद सारे सबूत जलाता चला गया.

योगेश ने जो कपड़े वारदात के समय पहने थे, जला दिए, उस के साथ ही विजय और आकाश के पहने कपड़े भी जलवा दिए. बाइक वह अपने एक दोस्त से मांग कर लाया था, वह उस ने लौटा दी. यह सब उस ने पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए किया था.

योगेश की साजिश में यह बात शामिल थी कि संजलि को जलाए जाते वक्त सब खामोश रहेंगे. ऐसा ही किया गया, इस के पीछे योजना थी कि यदि संजलि बच जाए तो उसे पता न चले कि किस ने जलाया है. विजय को अकेला बाइक पर रेकी के लिए लगाया गया था.

विजय को घटना के बाद कुछ देर रुक कर पूरे हालात की जानकारी ले कर योगेश को देनी थी. बाद में जब वे लोग मिले, तो विजय ने घटना के बारे में बताया कि संजलि मरी नहीं है.

आकाश और विजय ने बताया कि वारदात के बाद उन्हें 15-15 हजार रुपए मिलने थे, वह भी उस ने नहीं दिए थे. दोनों ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस ने दोनों आरोपियों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

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