प्रेमिका ने पिलाया मौत का जूस

”अजी सुनते हो? मेरा जी सुबह से ही न जाने क्यों घबरा रहा है. कई बार देवांश को फोन लगा चुकी हूं, लेकिन उस का फोन लग ही नहीं रहा. कभी स्विच्ड औफ तो कभी नौट रीचेबल बता रहा है.’’ सीमा परेशान होते हुए बोली.

पत्नी के मुंह से इतना सुनना था कि रामकिशोर यादव तपाक से बोल पड़े, ”तुम भी न बेवजह परेशान होने के साथ दूसरों को भी परेशान कर के रख देती हो.

”अरे बेटा है, अभी 2 दिन ही तो हुए हैं उसे वाराणसी गए कि तुम बेवजह परेशान होने लगी. लड़की तो है नहीं, जो उस की इतनी फिक्र किए जा रही हो. अरे भाई, अपने पुराने यार दोस्तों से मिलने चला गया होगा. मोबाइल बंद है या हो सकता है कि चार्ज न हो. इस में परेशान होने की वाली भला कौन सी बात है?’’

इतना कह कर रामकिशोर अखबार और चश्मा टेबल पर रख कर पत्नी की तरफ घूम गए. फिर भी सीमा का मन नहीं माना तो पति के पास आ कर बोली, ”एक बार आप भी देखें तो उस का मोबाइल लगातार स्विच्ड औफ ही आ रहा है. आज उसे बनारस गए 3 दिन हो गए हैं.’’

पत्नी की बात सुन कर रामकिशोर ने बेवजह पत्नी से बहस करने के बजाए जेब से मोबाइल निकाल कर बेटे देवांश का नंबर मिलाया तो वह स्विच औफ बता रहा था.  कई बार नंबर मिलाने पर भी जब काल नहीं लगी तो उन्होंने सोचा कि हो न हो मोबाइल डिस्चार्ज ही हो गया होगा, इस वजह से वह बंद है. फिर वह पत्नी की ओर मुखातिब होते हुए बोले, ”लग रहा है देवांश का मोबाइल चार्ज नहीं है इस वजह से स्विच्ड औफ बता रहा है, चार्ज होते ही बात हो जाएगी.’’

पत्नी को दिलासा दे कर रामकिशोर हाथ में जूट का झोला ले कर रोजमर्रा का सामान लेने के लिए मार्केट की ओर निकल गए थे.

उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले के मऊ दरवाजा थाना क्षेत्र के कुइयावूट बाईपास निवासी रामकिशोर यादव पेशे से शिक्षक हैं. परिवार में पत्नी, इकलौते बेटे सहित उन का भरापूरा परिवार था.

उन का 22 वर्षीय इकलौता बेटा देवांश यादव बीएससी थर्ड ईयर की पढ़ाई दिल्ली में रह कर कर रहा था. रामकिशोर और उन की पत्नी इकलौते बेटे पर जान छिड़कते थे. 27 मई, 2023 से ही देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ जा रहा था. 25 मई, 2023 को वाराणसी जाने की बात कह कर वह घर (फर्रुखाबाद) से निकला था.

मार्केट से सामान ले कर घर लौटने के बाद रामकिशोर ने पत्नी के कुछ बोलने से पहले ही बेटे देवांश का नंबर डायल किया तो उस समय भी वह स्विच्ड औफ आ रहा था. तभी उन के दिमाग में बेटे के दोस्त श्रीवत्स का खयाल आ गया. फिर उन्होंने श्रीवत्स से संपर्क किया तो पता चला कि श्रीवत्स की देवांश से 26 मई, 2023 की शाम बात हुई तो उस ने (देवांश) बताया था कि वह वाराणसी के अस्सी क्षेत्र स्थित पैराडाइज होटल में कमरा ले कर ठहरा है.

27 मई को श्रीवत्स ने फिर फोन किया तो देवांश का मोबाइल फोन स्विच्ड औफ था. श्रीवत्स ने होटल के रिसैप्शन पर फोन किया तो पता लगा कि देवांश अपने कमरे में नहीं है. उस का लैपटाप और बैग उस के कमरे में ही हैं. इस के बाद श्रीवत्स ने देवांश की परिचित बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) की छात्रा अनुष्का को फोन किया तो अनुष्का ने बताया कि देवांश से उस की लड़ाई हुई थी, इसलिए वह उस के बारे में नहीं जानती.

बेटे को तलाशने गए वाराणसी

श्रीवत्स से बेटे के बारे में इतनी जानकारी पाने के बाद रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा को उस की ज्यादा चिंता होने लगी. इकलौते बेटे को ले कर तरहतरह की आशंकाएं मनमस्तिक में कौंधने लगी थीं.

बहरहाल, इस के बाद भी देवांश के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो वह और उन की पत्नी 29 मई, 2023 को बिना देर किए वाराणसी आ गए. वाराणसी आने के बाद वह पैराडाइज होटल जहां देवांश ठहरा था तथा उस के दोस्त आदि से बेटे के बारे में कोई जानकारी न मिलने पर भेलूपुर थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने पहुंच गए.

पुलिस ने कोई काररवाई करने के बजाए उन की तहरीर ले कर रख ली. रामकिशोर और उन की पत्नी बेटे को खोजने के लिए वाराणसी के गलीमोहल्लों से ले कर होटलों की खाक इस उम्मीद के साथ छानते रहे कि कहीं कोई बेटे की खबर मिल जाए.

देवांश के दोस्त और वाराणसी की गलियों को भी खंगालने पर जब कोई जानकारी नहीं हासिल हुई तो रामकिशोर पत्नी को ले कर कानपुर के लिए रवाना हो गए, जहां देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का तिवारी का घर था. कानपुर में उन्हें कोई जानकारी तो नहीं मिली, बल्कि अनुष्का के घर वालों से रामकिशोर और उन की पत्नी को फटकार जरूर मिल गई.

आहत रामकिशोर ने फिर से वाराणसी आ कर भेलूपुर थाने के एसएचओ से मिले. उन्होंने आरोप लगाया कि अनुष्का के घर वालों ने ही देवांश को मारपीट कर हत्या कर उस का शव गायब कर दिया है.

रामकिशोर की तहरीर के आधार पर पुलिस ने कानपुर आउटर की रहने वाली और बीएचयू, वाराणसी की परास्नातक की छात्रा अनुष्का तिवारी, उस के पिता सौरभ तिवारी और चाचा सौजन्य तिवारी के खिलाफ भादंवि की धारा 364, 504, 506 के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मुकदमा दर्ज होने के बाद भी पुलिस हाथ पर हाथ रख कर बैठी रही. उधर देवांश का कोई पता न चलने पर रामकिशोर और उन की पत्नी की हालत बिलकुल बिगड़ने लगी थी. इसी बीच उन की मुलाकात युवा फाउंडेशन से जुड़ी सामाजिक कार्यकत्री सीमा चौधरी से हो गई.

सीमा चौधरी से मिलने के बाद रामकिशोर को आशा की उम्मीद नजर आने लगी. उन्हें लगा कि अब उन की इस लड़ाई में जरूर कुछ न कुछ बात आगे बढ़ेगी.

सीमा चौधरी के साथ रामकिशोर पत्नी को ले कर सीधे वाराणसी से लखनऊ आ गए. सीमा चौधरी के साथ लखनऊ में वह अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह से मिले. रामकिशोर ने अपर पुलिस आयुक्त को देवांश के गायब होने की बात विस्तार से बता दी.

लखनऊ में अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय एवं अपराध) संतोष कुमार सिंह को आपबीती सुनाने का असर यह हुआ कि वाराणसी पुलिस जो अभी तक हाथ पर हाथ धरे बैठी थी, अचानक से सक्रिय हो गई.

इस केस को सुलझाने के लिए डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम ने एक पुलिस टीम बनाई. इस टीम में एसआई चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा, वरुण कुमार शाही, ज्ञानमती तिवारी, दुर्गेश कुमार सरोज, कमांड सेंटर सिगरा, सर्विलांस टीम के इंसपेक्टर अंजनी पांडेय आदि शामिल थे.

मुकदमा दर्ज होने के बाद भी देवांश की कोई खोजखबर न मिलने से रामकिशोर और उन की पत्नी सीमा पुलिस से खिन्न थे तो वहीं दूसरी ओर मामले की विवेचना में लगे चौकी इंचार्ज (अस्सी) राजकुमार वर्मा देवांश का पता लगाने के लिए उस होटल में पहुंच गए, जहां देवांश ठहरा हुआ था. उन्होंने वहां जा कर पता लगाने से ले कर उस के दोस्त से भी पूछताछ की, लेकिन कोई खास सफलता नहीं मिली.

देवांश आखिरकार गया तो गया कहां?

यह गुत्थी सुलझने के बजाय उलझती जा रही थी. जांच अधिकारी को देवांश के साथ पढ़ी अनुष्का पर ही शक हो रहा था. इस आशंका से उन्होंने उच्च अधिकारियों को अवगत कराया तो उन्होंने इस केस को हर हाल में सुलझाने और जल्द से जल्द देवांश, चाहे जिस भी हाल में हो, को ढूंढने के निर्देश दिए.

उच्चाधिकारियों की हिदायत का असर यह हुआ कि देवांश प्रकरण में तेजी आ गई. संभावित स्थानों पर मुखबिरों को भी लगा दिया गया था. इसी बीच पुलिस टीम द्वारा जुटाए गए साक्ष्यों से देवांश की परिचित छात्रा अनुष्का घेरे में आ रही थी.

इस के बाद पुलिस ने बिना कोई देर किए कानपुर के आवास विकास निवासी 21 वर्षीया अनुष्का तिवारी को हिरासत में ले लिया. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने जौनपुर के गोला बाजार निवासी 21 वर्षीय राहुल सेठ और 25 वर्षीय शादाब आलम को भी गिरफ्तार कर लिया.

तीनों से पूछताछ की गई तो पता चला कि देवांश इस समय जीवित नहीं है, उस की हत्या कर दी गई है.

देवांश की हत्या की जो वजह सामने आई, वह प्रेम त्रिकोण की एक कहानी निकली—

नए प्रेमी के साथ बनाई खूनी योजना

देवांश यादव और अनुष्का तिवारी ने कानपुर नगर के सरस्वती ज्ञान मंदिर इंटर कालेज में कक्षा 6 से 9 तक साथसाथ पढ़ाई की थी, जिस से दोनों एकदूसरे से प्यार करने लगे थे. खुशमिजाज किस्म का देवांश अनुष्का पर जान छिड़कता था. वह पढ़लिख कर कुछ बनने की तमन्ना पाले आगे की पढ़ाई के लिए दिल्ली आ गया तो अनुष्का ने वाराणसी की राह थाम ली थी.

दोनों ने ही अलगअलग शहरों की राह पकड़ ली थी, लेकिन वे एकदूसरे को दिलोजान से चाहते थे. फुरसत मिलने पर दोनों काफीकाफी देर तक वीडियो काल कर एकदूसरे का दीदार करने के साथ भविष्य की कल्पनाओं में भी खो जाया करते थे. देवांश यादव जहां अपने प्यार के प्रति गंभीर और पूरे विश्वास में जी रहा था, वहीं अनुष्का वाराणसी आने के बाद से बदलने लगी थी. इस बदलाव का कारण भी कोई और नहीं बल्कि राहुल सेठ का साथ था, जिस से दोस्ती बढ़ने के बाद अनुष्का देवांश को नजर अंदाज करने लगी थी. राहुल सिंह भी वाराणसी में पढ़ाई कर रहा था.

अब अकसर देवांश जब भी अनुष्का से बात करना चाहता था तो वह या तो कोई बहाना बना कर टाल देती या उस की काल ही रिसीव नहीं करती थी. अनुष्का के अंदर अचानक से आए इस बदलाव को देख कर देवांश मन ही मन परेशान होने लगा था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार अनुष्का के अंदर यह परिवर्तन अचानक से कैसे आ गया है? समय बीतने के साथ अनुष्का के अंदर पहले से काफी कुछ बदलाव आ गया था.

अपने प्यार के अंदर अचानक से आए बदलाव को देख कर वह उदास रहने लगा था. मई महीने में कुछ दिनों की छुट्टी ले कर वह दिल्ली से अपने घर फर्रुखाबाद गया था. कुछ दिन घर रुकने के बाद वह 25 मई, 2023 को वाराणसी घूमने की बात कह कर वाराणसी आ गया था. वाराणसी आने के बाद उस ने अस्सी क्षेत्र के पैराडाइज होटल में एक कमरा बुक करा लिया था.

राहुल और शादाब ने पूछताछ में बताया कि देवांश यादव अनुष्का तिवारी से जबरदस्ती मिलना चाहता था और उसे परेशान करता था, जिस के कारण अनुष्का काफी परेशान चल रही थी. देवांश यादव की हरकतों से परेशान हो कर तीनों ने देवांश यादव की हत्या की योजना बनाई.

तय योजना के मुताबिक अनुष्का ने पहले देवांश को वाट्सऐप काल कर के वाराणसी बुलाया. 25 मई को जब देवांश वाराणसी आया तो उस ने पैराडाइज होटल में कमरा ले लिया. इसी दौरान उस की अनुष्का से मुलाकात भी हुई. अनुष्का ने योजना के तहत देवांश का भरोसा जीत लिया था.

अनुष्का से मिलते हुए देवांश ने कहा, ”तुम्हें पता है कि तुम्हारे बगैर मैं नहीं जी सकता.’’

देवांश की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अनुष्का बीच में ही उस की बात काटते हुए उत्साह से उस का हाथ पकड़ कर अपने हाथों में लेते हुए बोली, ”मैं भी कैसे जीती हूं तुम्हें क्या पता? पढ़ाई की वजह से मैं बात नहीं कर पा रही थी तो तुम कुछ और ही सोचने लगे थे.’’

”अरे… अरे ऐसी बात नहीं है अनुष्का, तुम जिस दिन बात नहीं करती हो उस दिन मेरा मन किसी काम, पढ़ाईलिखाई में भी नहीं लगता.’’

कुछ देर अनुष्का के साथ बिताने के बाद देवांश होटल के अपने कमरे में चला गया था. अनुष्का के प्रति देवांश जहां पूरी तरह से आश्वस्त हो चला था तो वहीं अनुष्का के मन में चल रही साजिश से वह पूरी तरह से अनजान था.

27 मई, 2023 को अनुष्का ने साजिश के तहत देवांश को अस्सी नाला पुलिया के पास बुलाया, जहां पहले से ही वह इटिओस कार के साथ खड़ी थी. देवांश के करीब पहुंचे ही अनुष्का ने कार का दरवाजा खोल कर पीछे की सीट पर अपने बगल में देवांश को भी बैठा लिया.

गाड़ी शादाब चला रहा था, जबकि राहुल सेठ स्कूटी से कार के पीछेपीछे चल रहा था. कार में बैठने के बाद अनुष्का ने मैंगो जूस देवांश को पीने के लिए दिया, जिसे पीते ही देवांश झपकी लेने लगा था.

दरअसल, देवांश के जूस में अनुष्का ने नींद की गोलियों का पाउडर डाल दिया था, जिसे पीते ही कुछ देर बाद देवांश लुढ़क गया था. देवांश के बेहोश होने पर कार को तेजी से चंदौली की ओर दौड़ा दिया गया था कि इसी बीच देवांश के शरीर में हलचल होती देख अनुष्का घबरा गई. एक सुनसान जगह देख कर शादाब ने गाड़ी रोकी और अनुष्का के साथ मिल कर सड़क के किनारे पड़ी गिट्टियों पर देवांश को पटक दिया. तभी राहुल सेठ ने पेचकस से देवांश के गले और सीने में अनगिनत वार कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को फेंक कर चलते बने.

जहां पर देवांश की लाश को फेंका गया था, वहां सड़क कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा था. देवांश को मौत की नींद सुलाने के बाद उन्होंने उस के मोबाइल को बिहार की ओर जा रहे एक ट्रक पर फेंक दिया और वापस वाराणसी लौट आए थे. देवांश की हत्या करने के बाद उस की लाश को जिस स्थान पर फेंका गया था, वह चंदौली जिले के सिंघीताली पुलिया के पास का था.

उधर एक युवक की लाश मिलने की जानकारी होने पर चंदौली पुलिस शव को कब्जे में ले कर छानबीन में जुटी हुई थी, लेकिन कोई जानकारी नहीं हो पाई थी. युवक की हत्या क्यों हुई, किस ने और क्यों की, यह रहस्य बना हुआ था, लेकिन वाराणसी जिले के भेलूपुर थाना पुलिस ने इस त्रिकोणीय प्रेम प्रसंग हत्याकांड का खुलासा करते हुए प्रेमिका सहित 3 को गिरफ्तार कर परतदरपरत देवांश हत्याकांड मामले का खुलासा खुदबखुद होता चला गया. हत्यारे प्रेमीप्रेमिका और एक अन्य युवक को भेलूपुर पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर डीसीपी (काशी) आर.एस. गौतम व एडीसीपी चंद्रकांत मीणा के सामने पेश किया तो उन्होंने प्रैस कौन्फ्रैंस कर केस का खुलासा कर दिया.

अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने आलाकत्ल पेचकस व घटना में प्रयुक्त स्कूटी के साथ ही मृतक देवांश की चप्पलें, फटी हुई टीशर्ट का टुकड़ा, लोअर, कड़ा व कलावा भी बरामद कर लिया.

पुलिस ने हत्या के आरोपी राहुल सेठ, शादाब आलम और अनुष्का तिवारी को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 3

डा. समीर ने कई मरीजों को क्यों लगाए यूज्ड पेसमेकर

उत्तर प्रदेश के इटावा की रहने वाली 46 साल की नूरबानो को अचानक दिल का दौरा पड़ा. घर वाले फौरन उसे ले कर सैफई के आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के अस्पताल में ले गए, जहां डाक्टरों ने उसे पेसमेकर लगाने की सलाह दी.

लेकिन हद तो तब हो गई कि औपरेशन के बाद सर्जन डा. समीर सर्राफ ने पेसमेकर सीने के अंदर नहीं, बाहर ही चिपका कर छोड़ दिया. इस के बाद नूरबानो के साथसाथ उस के घर वाले भी करीब 24 महीने तक इस पेसमेकर से जूझते रहे और आखिरकार नूरबानो की मौत हो गई.

इटावा की ही रहने वाली 40 साल की नजीमा को भी दिल की बीमारी थी. उस के परिवार वालों ने उसे साईं मैडिकल यूनिवर्सिटी हौस्पिटल में भरती करवाया. उस के इलाज में करीब 4 लाख रुपए खर्च किए. उसे भी डा. समीर सर्राफ ने पेसमेकर लगाया, मगर अंत में नजीमा की भी जान चली गई.

आमतौर पर मरीज डाक्टर पर आंखें मूंद कर विश्वास करते हैं, लेकिन जब कोई डाक्टर चंद नोटों की खातिर अपने पेशे से ही गद्दारी करने लगे, लोगों की जिंदगी को ही दांव पर लगा दे तो कोई क्या ही कर सकता है. डा. समीर सर्राफ की गिरफ्तारी के बाद ऐसी ऐसी हैरतअंगेज कहानियों का खुलासा हो रहा है कि जांच करने वाली पुलिस के साथसाथ समूचा देश भी हैरान हो कर रह गया.

इटावा के एसएसपी संजय कुमार वर्मा के अनुसार, पुलिस को अब तक की जांच में पता चला है कि  डा. समीर सर्राफ ने कुछ मामलों में तो मरीजों को यूज्ड यानी कि इस्तेमाल किए गए पेसमेकर ही धोखे से लगा डाले थे.

यानी कि यदि किसी मरीज की मौत हो गई थी तो धोखे से उस मरीज का पेसमेकर निकाल लिया और फिर उसी पेसमेकर को किसी दूसरे मरीज के अंदर प्लांट कर दिया, जबकि वह दूसरे मरीज से नए और ब्रांडेड पेसमेकर के पैसे पहले से ही वसूल चुका होता था. पुलिस ऐसी अजीबोगरीब और दिल दहला देने वाली शिकायतों को भी वेरीफाई करने में जुटी हुई है.

और भी हो सकते हैं चौंकाने वाले खुलासे

फिलहाल पुलिस को अभी तक की जांच में इस रैकेट में 4 से 5 लोगों के शामिल होने का पता चला है. पुलिस उन सभी की भूमिका की जांच भी कर रही है और बहुत मुमकिन भी है कि जल्द ही कानून के हाथ उन सभी के गरेबान तक भी होंगे. अब तक करीब 600 लोगों को नकली पेसमेकर लगाए जाने की बात सामने आई है.

पुलिस को पेसमेकर वाले करीब 200 मरीजों के मरने की जो जानकारी मिली है, जांच कर पुलिस यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि मरे हुए मरीजों में से कितने नकली पेसमेकर का शिकार बने?

इसी बीच पुलिस ने डा. समीर सर्राफ का पासपोर्ट भी जब्त करने की कोशिश शुरू कर दी है, ताकि अगर कल को यह शातिर अपराधी जमानत पर बाहर भी निकल आए तो उस के लिए विदेश भागना संभव न हो सके.

कथा लिखने तक डा. समीर सर्राफ जेल में ही था. पुलिस की जांच जारी थी. आने वाले दिनों में कई और भी चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं.

(कहानी पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है)

पेसमेकर क्या होता है और यह कैसे करता है काम?

पेसमेकर एक छोटा उपकरण होता है जो असामान्य हृदय लय को नियंत्रित करने में मदद करता है. इसे छाती या पेट के क्षेत्र में लगाया जाता है. पेसमेकर उस व्यक्ति को लगाया जाता है, जो अतालता लक्षणों (बेहोशी, सांस की तकलीफ, थकान) से पीड़ित होता है. अतालता एक ऐसी बीमारी है, जिस में व्यक्ति का दिल बहुत धीमा या बहुत तेज धड़कता है.

पेसमेकर 3 प्रकार के होते हैं, एकल कक्ष पेसमेकर, चेथरूम वाला पेसमेकर और तीसरा बायवेंट्रिकल पेसमेकर. सिंगल कक्ष या एकल पक्ष पेसमेकर में एकएक लीड हार्ट के दाएं वेंट्रिकल और ऊपरी कक्ष (दाएं अलिंद) दोनों से यात्रा होती है.

क्वांटम कक्ष वाले पेसमेकर में 2 लीड हृदय के सिद्धांत (दाएं वेंट्रिकल) और ऊपरी कक्ष (दाएं अलिंद) से अलगअलग जुड़े होते हैं. जबकि तीसरे बायवेंट्रिकल पेसमेकर में 2 या 3 लीड अलगअलग होते हैं. अलगअलग कण (दाएं वेंट्रिकल), ऊपरी कक्ष (दाएं एट्रियम) और हृदय के बाएं वेंट्रिकल दोनों से जुड़े होते हैं.

पेसमेकर में एक कंप्यूटरीकृत बिल्डर, बैटरी और गोदाम होते हैं. अंतिम पेसमेकर के आखिर में सेंसर वाला तार होता है, जिस से व्यक्ति के हृदय की विद्युत गतिविधि का पता लगाया जाता है.

पेसमेकर लगाने की पूरी प्रक्रिया में एक से 2 घंटे का समय लग सकता है. उस के बाद हृदय रोग विशेषज्ञ मरीज की छाती के ऊपरी भाग में प्लास्टर बोन के नीचे एक छोटा सा चीरा लगाता है. चीरा 2-3 इंच का होता है, उस के बाद फ्लोरोस्कोपी की मदद से डाक्टर पेसमेकर की लीड को मरीज के हृदय कक्ष में शामिल करता है.

पेसमेकर से वैसे तो कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार इस को लगाने से जटिलताएं पैदा हो जाती हैं, जो नुकसानदायक होती हैं. मसलन पेसमेकर में लगी चीजों या फिर पेसमेकर लगाने के दौरान दी गई दवाओं से भी मरीज को एलर्जी हो सकती है.

कई मशीनों मसलन, मेटल डिटेक्टर वगैरह शरीर में लगे पेसमेकर की गति में असर डालते हैं, इसलिए अकसर पेसमेकर वाले मरीजो को ऐसी किसी मशीन के इस्तेमाल से या इन से दूर रहने की सलाह दी जाती है. भारत में सब से सस्ता पेसमेकर 40 हजार रुपए का आता है, लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि पेसमेकर खराब है. हां, अगर पेसमेकर घटिया है तो अवश्य ही जानलेवा हो सकता है.

प्रेमलीला ने लील ली जान

ओमप्रकाश जितना सीधासादा था, उतना ही मेहनती भी था. गांव में इधरउधर बैठने के बजाय वह अपने खेती के काम में लगा रहता  था. उस के खेतों में अच्छी पैदावार होती थी. इसी वजह से गांव के लोग उस की पीठ पीछे भी तारीफ करते थे. ओमप्रकाश के घर के पास ही संतोष रावत रहता था. शादीशुदा होते हुए भी दूसरी महिलाओं से नजदीकी बढ़ाना उस की आदत में शुमार था.

एक दिन वह ओमप्रकाश के घर गया. वहां उस की पत्नी सुनीता मिली. वह उस से ओमप्रकाश की तारीफ  करते हुए बोला, ‘‘भाभी, तुम भैया को ऐसा क्या खिलाती हो कि दिनरात खेतों में जुटे रहते हैं, फिर भी नहीं थकते. मेरे घर वाले कहते हैं कि मेहनत करने का सबक ओमप्रकाश से सीखो.’’

पति की प्रशंसा सुन कर सुनीता मुसकराई, लेकिन बोली कुछ नहीं. संतोष ने समझा कि वह पति की तारीफ सुन कर मन ही मन गदगद हो रही है. इसलिए उस ने ओमप्रकाश की तारीफ के पुल बांधना जारी रखा.

‘‘सुबह से देर शाम तक खेत में ही तो जुटे रहते हैं. जबकि आदमी को घर की तरफ ध्यान देना भी जरूरी होता है. घर में जो काम करना चाहिए, वह तो करते नहीं.’’ सुनीता ने कहा.

संतोष के दिमाग में बिजली सी कौंधी. वह सोचने लगा कि ऐसा कौन सा काम है, जो भैया घर पर नहीं करते. जिज्ञासा शांत करने के लिए वह बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी बात समझा नहीं. ऐसा कौन सा काम है जो भैया नहीं करते?’’

मन की भड़ास निकालने के लिए सुनीता ने जैसे ही मुंह खोला, तभी उस की जेठानी कमला आ गई. वे दोनों आपस में बतियाने लगीं तो संतोष वहां से चला गया.

ओमप्रकाश उत्तर प्रदेश के जिला बाराबंकी के गांव सलोनीपुर मजरा खिजना का रहने वाला था. उस का विवाह करीब 6 साल पहले सीतापुर के महमूदाबाद थाना के जसमंडा गांव की रहने वाली सुनीता से हुआ था. सुनीता खूबसूरत थी, इसलिए उस से शादी कर के ओमप्रकाश बहुत खुश था. बाद में सुनीता 2 बेटों और 1 बेटी की मां बनी.

संतोष ओमप्रकाश को बड़ा भाई मानता था. ओमप्रकाश भी छोटा भाई मान कर उस का पूरा खयाल रखता था. इसी वजह से संतोष उस के घर आताजाता रहता था. सुनीता और संतोष में खूब पटती थी. उन के बीच हंसीमजाक भी चलता रहता था.

सुनीता द्वारा कही गई बात संतोष के जेहन में घूम रही थी. वह समझ गया था कि सुनीता ओमप्रकाश से संतुष्ट नहीं है. अगर वह संतुष्ट होती तो पति की तारीफ सुन कर खुश हो जाती और कुछ न कुछ जरूर कहती. वह किस वजह से असंतुष्ट थी, यह तो वही जानती होगी. लेकिन संतोष का मन कह रहा था कि वह दैहिक रूप में असंतुष्ट होगी. लेकिन ऐसा होता तो उस के आंगन में 3 बच्चे नहीं खेल रहे होते.

संतोष ने काफी सोचा, लेकिन वह सुनीता की असंतुष्टि का कारण नहीं जान पाया. हकीकत जानने के लिए अगले दिन दोपहर में वह सुनीता के घर जा पहुंचा.

उस समय सुनीता घर में अकेली थी. संतोष उस के पास जा कर बैठ गया. दोनों ने मुसकान बिखेर कर एकदूसरे के प्रति मन की खुशी जाहिर की. बातचीत का सिलसिला जुड़ा तो संतोष के मन की बात होंठों पर आ गई, ‘‘भाभी, कल तुम जो बात कह रही थीं, कमला भाभी के आ जाने की वजह से अधूरी रह गई थी. आखिर वह क्या बात है?’’

सुनीता ने गहरी नजरों से संतोष को देखा. फिर वह मुसकरा कर बोली, ‘‘लगता है कि कल से तुम इसी उधेड़बुन में लगे हो.’’

‘‘नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है, लेकिन कोई बात अधूरी रह जाए तो मन को मथती रहती है.’’ संतोष बोला.

‘‘उसी बात को जानने के लिए बेचैन हो?’’ सुनीता ने पूछा.

‘‘हां भाभी,’’ संतोष बोला.

‘‘मान लो, मैं बता भी दूंगी तो उस से क्या फायदा होगा? जो काम वह नहीं करते, उसे तुम कर दोगे?’’ सुनीता ने उस की आंखों में आंखें डाल कर कहा.

सुनीता की आंखों में छाए नशे और बातों से संतोष अच्छी तरह समझ गया कि वह क्या चाहती है. इसलिए वह भी उसी अंदाज में बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हारी हर तरह की सेवा करने को मैं तैयार हूं. कुछकुछ तुम्हारी भावनाओं को समझ भी रहा हूं.’’

‘‘संतोष सोच लो, तुम शादीशुदा हो. बीवी के होते हुए तुम मेरे लिए टाइम निकाल पाओगे?’’

‘‘उस की चिंता मत करो. उसे भनक तक नहीं लगेगी. सच तो यह है कि भाभी, मैं तुम्हें बहुत दिनों से प्यार करता हूं, लेकिन तुम से कहने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.’’ संतोष ने सुनीता के नजदीक आते हुए कहा.

उस समय कमरे में उन दोनों के अलावा कोई और नहीं था. इसलिए दोनों खुद पर काबू न रख सके और उन्होंने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. अवैध संबंधों की राह बहुत ढलवां होती है. कोई भी आदमी इस पर एक बार कदम रख देता है तो वह फिसलता ही जाता है. संतोष और सुनीता ने शादीशुदा होते हुए भी ऐसे रास्ते पर कदम रखा था, जिस का खामियाजा हमेशा गलत ही होता है. दोनों ही अपनेअपने जीवनसाथी को धोखा दे कर अपना स्वार्थ पूरा करते रहे. उन्होंने वासना की आग में सारी मर्यादाओं को जला कर राख कर दिया.

पाप की गठरी अधिक दिनों तक बंधी नहीं रहती. एक न एक दिन उस की गांठ खुल ही जाती है. धीरेधीरे दोनों के नाजायज संबंधों की भनक गांव के लोगों को भी लग गई. गांव में अपनी बदनामी होते देख सुनीता संतोष से दूरी बनाने लगी. लेकिन संतोष उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं था. वह जबतब उस के यहां आता रहा.

इसी साल मार्च में ओमप्रकाश का भांजा विकास घर आया. 18 साल का विकास उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के गांव इब्राहीमपुर में रहता था. विकास शारीरिक रूप से मजबूत था.

उसे देख कर पथभ्रष्ट हो चुकी सुनीता के मन में लालच के बीज अंकुरित होने लगे. इस से पहले भी उस ने विकास को कई बार देखा था, लेकिन इस बार उस की सोच बदल गई थी. सुनीता ने विकास की खूब आवभगत की. वह कई दिनों तक मामा के घर रुका रहा. इस दौरान सुनीता विकास के इर्दगिर्द मंडराती रही. मौका देख वह उस से हंसीमजाक भी करती थी.

कुछ दिन रुकने के बाद जब विकास वापस जाने लगा तो सुनीता विकास का हाथ थाम कर बोली, ‘‘विकास, अब कब आओगे?’’

मामी के इस तरह हाथ पकड़ने से विकास के शरीर में सनसनाहट सी दौड़ गई. उस का मन तो कर रहा था कि वह वहां से अभी न जाए, लेकिन पापा का फोन आ गया था, जिस से उसे वहां से उसी समय जाना पड़ रहा था. उस ने सुनीता को मन की बात बताते हुए कहा, ‘‘मामी, वैसे तो मेरा यहां से जाने का मन नहीं कर रहा है. लेकिन मैं जल्दी ही लौट आऊंगा.’’

‘‘ठीक है, मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.’’

विकास ने मामी के खूबसूरत चेहरे पर नजरें जमाईं तो उस की आंखों में प्यार का मूक आमंत्रण था.

विकास अपने घर तो वापस आ गया, लेकिन उस के मनमस्तिष्क में मामी का खूबसूरत बदन और उस के द्वारा कहे शब्द ही घूम रहे थे. उस का घर पर भी मन नहीं लग रहा था. कुछ दिनों बाद ही वह अपने मन में मामी की नजदीकी हासिल करने के सपने संजोए उस के घर आ गया.

विकास को आया देख सुनीता की खुशी का ठिकाना न रहा. वह अब जल्द ही अपनी हसरतें पूरी करना चाहती थी. एक दिन उस ने विकास से पूछा, ‘‘विकास क्या तुम ने किसी लड़की से प्यार किया है?’’

‘‘क्यों.’’ विकास ने मुसकरा कर पूछा.

‘‘बताओ तो सही.’’ कह कर सुनीता विकास के करीब आ गई.

‘‘एक है, लेकिन पता नहीं वह भी मुझ से प्यार करती है या नहीं.’’

‘‘तुम्हें उस के सामने प्यार का इजहार करना चाहिए.’’ सुनीता ने कहा.

‘‘सोचा कहीं बुरा न मान जाए. अच्छा मामी यह बताओ, अगर उस की जगह तुम होती तो क्या करतीं?’’

‘‘मेरे ऐसे भाग्य कहां.’’ कह कर सुनीता उदास हो गई.

‘‘फिर भी बताओ तो सही. तुम्हारा क्या जवाब होता?’’

‘‘तो मैं तुम्हारे गले में बांहों का हार पहना देती. मगर विकास तुम यह मुझ से क्यों पूछ रहे हो?’’ सुनीता ने मासूमियत से पूछा.

‘‘क्योंकि वह और कोई नहीं, तुम ही हो. मैं तुम से प्यार करता हूं और तुम्हें बांहों में भर कर खूब प्यार लुटाना चाहता हूं.’’ विकास की आंखों में वासना के लाल डोरे उभर आए थे.

‘‘बिलकुल बुद्धू हो, औरत की आंखों की भाषा पढ़ना भी नहीं जानते.’’

सुनीता की बात सुन कर विकास ने उसे अपनी बांहों में भर कर उस के चेहरे को चूम लिया. सुनीता ने भी उसे अपने अनुभव के जलवे दिखाने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में उन के बीच ऐसे संबंधों ने जन्म ले लिया, जिसे समाज अवैध कहता है.

विकास का वहां ज्यादा दिनों तक रहना रिश्तों में शक पैदा कर सकता था, इसलिए कुछ दिनों बाद वह वहां से चला गया और थोड़ेथोड़े दिनों बाद मामी से मिलने आने लगा. इस तरह उन का यह खेल लंबे समय तक चलता रहा. ओमप्रकाश को इस की भनक तक न लगी. 24 अगस्त, 2013 को सीतापुर जिले की महमूदाबाद थाना पुलिस को गांव याकूबनगर के पास एक आदमी की लाश पड़ी होने की सूचना मिली.

लाश की खबर मिलते ही थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. लाश याकूबनगर से पैतेपुर गांव जाने वाली सड़क पर पड़ी थी. उन्होंने देखा कि उस की गरदन पर गहरे घाव थे, जबकि बाकी शरीर पर भी कई जगह चोटों के निशान थे. घाव किसी धारदार हथियार के लग रहे थे. वहां पर तमाम लोग इकट्ठा थे. पुलिस ने उन से लाश की शिनाख्त करानी चाही, लेकिन कोई भी उसे नहीं पहचान सका. थानाप्रभारी ने आवश्यक काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय, सीतापुर भेज दिया.

अगले दिन समाचारपत्रों में लाश मिलने का समाचार फोटो सहित छपा, इस के बावजूद लाश की शिनाख्त के लिए कोई थाने नहीं आया. लाश की शिनाख्त होने के बाद ही केस की काररवाई संभव थी. इसलिए पुलिस यह पता लगाने में जुट गई कि कहीं आसपास के जिलों के किसी थाने से इस हुलिया का आदमी तो लापता नहीं है. पुलिस की इस काररवाई का भी कोई नतीजा नहीं निकला.

13 सितंबर  को देशराज रावत नाम का एक आदमी थाना महमूदाबाद पहुंचा. उस ने बताया कि वह बाराबंकी के बड्डूपुर थानाक्षेत्र में सलोनीपुर गांव का रहने वाला है. उस का बेटा संतोष 23 अगस्त से गायब है.

थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने याकूबनगर के पास से जो अज्ञात लाश बरामद की थी, उस के कपड़े और फोटो देशराज को दिखाए. कपड़े और फोटो देखते ही देशराज रोने लगा. उस ने कहा कि यह सब सामान उस के बेटे का ही है. लाश की शिनाख्त होने पर थानाप्रभारी ने राहत की सांस ली. उन्होंने देशराज रावत से मालूमात की तो उस ने बताया कि संतोष 23 अगस्त को घर से गायब हुआ था. गांव में ही रहने वाले ओमप्रकाश की पत्नी सुनीता के साथ उस के नाजायज संबंध थे. उस ने शक जताया कि उस के बेटे की हत्या सुनीता या उस के घर वालों ने की होगी.

देशराज रावत से अहम जानकारी मिलने के बाद इंसपेक्टर सुभाषचंद्र तिवारी ने अपनी तहकीकात शुरू की तो इस बात की पुष्टि हो गई कि संतोष और सुनीता के बीच अवैध संबंध थे. उन्हें यह भी पता चला कि संतोष के गायब होने के एक दिन पहले ही वह अपने मायके आ गई थी. उस का मायका महमूदाबाद थानाक्षेत्र के जसमंडा गांव में था. संतोष की लाश उस के गांव से कुछ दूर मिलने से जाहिर होता था कि उस की हत्या में सुनीता का हाथ हो सकता है.

पुलिस सुनीता की तलाश में जुट गई और मुखबिर की सूचना पर उसे 19 सितंबर को मोतीपुर गांव से गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने संतोष की हत्या करने का जुर्म स्वीकार कर लिया. उस ने बताया कि संतोष की हत्या में उस के साथ उस का भांजा व प्रेमी विकास और उस का जेठ सियाराम भी शामिल था.

पूछताछ में सुनीता ने बताया कि संतोष उस के गले की हड्डी बनता जा रहा था. उस की वजह से वह पूरे गांव में बदनाम हो गई थी, लेकिन वह था कि उस का पीछा छोड़ने को तैयार नहीं तैयार था. उस से पीछा छुड़ाने के लिए उस ने उसे मौत के घाट उतारने की योजना बनाई.

यह सब अकेली सुनीता के बस की बात नहीं थी. इस के लिए उस ने विकास को तैयार करने का मन बनाया. उस ने रोते हुए विकास से कहा, ‘‘विकास, संतोष ने मेरा जीना हराम कर दिया है. जहां भी जाती हूं, उस की वजह से मुझे बदनामी झेलनी पड़ती है. वह मेरा किसी हाल में पीछा नहीं छोड़ रहा है.’’

सुनीता को रोते देख कर विकास का दिल भर आया. उस ने कहा, ‘‘रोओ मत मामी, मैं हूं न. अगर वह तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ रहा तो उसे यह दुनिया ही छोड़नी पड़ेगी.’’ कहते हुए विकास के चेहरे पर कठोरता आ गई.

यह देख कर सुनीता मन ही मन खुश हुई, लेकिन फिर संभल कर बोली, ‘‘तुम सही कह रहे हो, यही एक तरीका है. लेकिन इस के लिए मेरे जेठ यानी तुम्हारे बड़े मामा सियाराम को भी तैयार करना होगा. तीन लोगों के साथ होने से संतोष बच के नहीं निकल पाएगा.’’

विकास ने सहमति दे दी. इस के बाद उस ने बड़े मामा सियाराम से बात की और घर की इज्जत को बचाने का वास्ता दे कर उसे साथ देने के लिए राजी कर लिया. फिर तीनों ने बैठ कर संतोष को ठिकाने लगाने की योजना बनाई.

योजनानुसार 22 अगस्त, को सुनीता अपने बच्चों के साथ विकास और सियाराम को ले कर अपने मायके आ गई. 23 अगस्त को सुनीता ने संतोष को फोन कर के मिलने के लिए गांव जसमंडा बुलाया. सुनीता के बुलाने पर संतोष तुरंत बाराबंकी से बस द्वारा लखनऊ होते हुए पहले सीतापुर के कस्बा महमूदाबाद पहुंचा और वहां से सुनीता द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गया.

विकास और सियाराम उस जगह पर पहले ही छिप कर बैठ गए थे. उस समय रात के करीब 9 बज रहे थे. वादे के अनुसार सुनीता संतोष को निश्चित जगह पर मिल गई और उस से बातें करती हुई चलने लगी. वह याकूबपुर गांव के पास पहुंचे ही थे कि अंधेरे का फायदा उठा कर पीछेपीछे आ रहे विकास और सियाराम ने संतोष को दबोच कर जमीन पर गिरा लिया. इस के बाद उन्होंने बांके से उस पर ताबड़तोड़ वार करने शुरू कर दिए. कुछ ही देर में संतोष की मौत हो गई. बांके को वहीं पास की झाडि़यों में छिपा कर तीनों वहां से फरार हो गए.

अगले दिन 20 सितंबर को विकास और सियाराम को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर उन से पूछताछ की. उन्होनें भी अपना जुर्म कुबूल कर लिया. थानाप्रभारी सुभाषचंद्र तिवारी ने सुनीता, विकास और सियाराम के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर के उन्हें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 2

कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंपी, जिस में डा. समीर सर्राफ द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का खुलासा हुआ. कार्डियोलौजी विभाग की पैथ लैब में एक से डेढ़ साल का सामान होने के बावजूद डा. समीर सहित भ्रष्टाचार में संलिप्त लोगों ने 2019 में मनमानी कर करीब एक करोड़ की गैरजरूरी खरीद कर डाली थी.

विश्वविद्यालय प्रशासन की जांच से इस बात की पुष्टि होने पर तत्कालीन कुलपति ने भुगतान पर रोक लगा दी. जनवरी, 2020 से ही डा. समीर सर्राफ द्वारा खरीदा गया सामान विश्वविद्यालय के स्टोर में अभी भी रखा हुआ है. मगर पिछले 2 सालों से कभी भी इस का इस्तेमाल नहीं किया गया. अब ये सामान एक्सपायर होने वाला है.

डा. समीर सर्राफ ने भ्रष्टाचार की सभी सीमाएं पार कर डाली थीं. एक तरफ उस ने मरीजों से धोखाधड़ी कर घटिया पेसमेकर लगा दिए और इस के एवज में मरीजों से अधिक पैसा भी वसूला तो दूसरी तरफ उस ने प्रधानमंत्री की महत्त्वाकांक्षी ‘आयुष्मान भारत योजनाÓ के तहत भरती हुए मरीजों से भी ज्यादा पैसा वसूल किया.

7 फरवरी, 2022 को प्रोफेसर (डा.) आदेश कुमार, चिकित्सा अधीक्षक यूपीयूएमएस सैफई, इटावा द्वारा सैफई थाने में डा. समीर सर्राफ पुत्र जितेंद्र सर्राफ निवासी सिविल लाइंस, जनपद ललितपुर, तत्कालीन असिस्टेंट प्रोफेसर कार्डियोलौजी विभाग यूपीयूएमएस सैफई, इटावा के खिलाफ अनावश्यक आर्बिटरी खरीद, पेसमेकर धोखाधड़ी, अनावश्यक विदेश यात्राएं, गहन भ्रष्टाचार कर के सैफई आयुर्वेद विश्वविद्यालय को लाखों रुपए की वित्तीय हानि तथा मरीजों को भी धोखाधड़ी का शिकार बनाए जाने के संबंध में मुकदमा दर्ज कराया गया.

यह मुकदमा धारा 7/8/9/13/14 भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 व भादंवि की धारा 467/468/471 और 420 के तहत दर्ज कर लिया गया.

अपर पुलिस महानिदेशक (कानपुर जोन) आलोक जैन एवं पुलिस महानिरीक्षक (कानपुर परिक्षेत्र) प्रशांत कुमार के निर्देशन व एसएसपी (इटावा) संजय कुमार वर्मा के पर्यवेक्षण एवं सीओ (सैफई) नागेंद्र कुमार चौबे के नेतृत्व में थाना सैफई में एक विशेष पुलिस टीम का गठन किया गया.

जिस में थाना सैफई के एसएचओ मोहम्मद कामिल, एसएसआई पवन कुमार शर्मा, एसआई संतोष कुमार और कांस्टेबल विपुल कुमार को शामिल किया गया. इस के बाद पुलिस टीम आरोपी की तलाश में जुट गई. फिर एक गुप्त सूचना के आधार पर पुलिस ने 7 नवंबर, 2023 को दुमिला बौर्डर के पास से आरोपी 42 वर्षीय डा. समीर सर्राफ को गिरफ्तार कर लिया गया.

पेसमेकर बनाने वाली कंपनी ने भी क्यों की शिकायत

पुलिस को जांच में पता चला कि पेसमेकर बनाने वाली कंपनी ने वाइस चांसलर को सबूतों के साथ चेताया भी था. एसए हेल्थटेक कंपनी, लखनऊ ने 17 मार्च, 2020 को तत्कालीन कुलपति डा. राजकुमार को लिखित शिकायत दे कर कहा था कि एमआरआई पेसमेकर घोटाला आप के सैफई स्थित विश्वविद्यालय में धड़ल्ले से हो रहा है.

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि मरीज सुदामा लाल को 21 मई, 2018 को पेसमेकर लगाया गया था. जिस का एसपीजीआई आरसी रेट 96,844 रुपए था, जबकि डा. समीर सर्राफ ने मरीज के घर वालों से एक लाख 85 हजार रुपए वसूले थे.

इसी प्रकार डा. समीर सर्राफ ने एक और मरीज गुड्डी देवी से पेसमेकर इंप्लांट के एक लाख 85 हजार रुपए वसूले, जबकि उस का आरसी रेट 94,484 रुपए था. डाक्टर ने मरीजों को गलत तरीके से बताया कि यह एमआरआई संगत है, जो सही नहीं है.

इन मरीजों के एमआरआई से गुजरने पर मौत काफी रिस्की हो जाती है, आगे रिपोर्ट में लिखा गया था कि मैं ने ही समीर सर्राफ से यह अनुरोध भी किया था कि वह इस तरह से मरीजों को धोखा न दें और उन्हें असली सच्चाई से अवगत कराएं. लेकिन उल्टा डा. समीर सर्राफ ने मुझे ब्लैकमेल और धमकाना शुरू कर दिया और आगे से मुझे एमआरआई पेसमेकर कीमत पर अधिक नौन एमआरआई लाने को कहा. लेकिन भ्रष्टाचार के कारण, पेसमेकर की आपूर्ति ही बंद कर दी.

मरीज के जीवन को बचाने के लिए उन को गलत तरीके से वित्तीय लाभ लेने के लिए बताया कि एमआरआई संगत पेसमेकर है. इस शिकायती पत्र के साथ आडियो रिकौर्डिंग और सीडी भी संलग्न कर के तत्कालीन कुलपति को सौंपी गई थी.

इस के बाद तत्कालीन चिकित्सा अधीक्षक डा. आदेश कुमार ने 2 मार्च, 2021 और 11 मार्च, 2021 को तत्कालीन कुल सचिव सुरेशचंद्र शर्मा को लिखे गए गोपनीय पत्र में यह कहा था कि आप के कार्डियोलौजी विभाग की एक सदस्यीय और 5 सदस्यीय कमेटी की पूरी जांच हो चुकी है, जिस में प्रथमदृष्टया यह साबित हुआ है कि डा. समीर सर्राफ द्वारा मरीजों को एमआरआई पेसमेकर बता कर घटिया पेसमेकर लगाए गए थे, जिस से उन मरीजों की जान को खतरा बना हुआ है.

सीबीटीएस विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डा. अमित सिंह के द्वारा 3 बार जांच करने पर डा. समीर सर्राफ को दोषी सिद्ध किया था. खुद को फंसता देख डा. समीर ने बचने का उपाय खोजा और अपने पैसे और रुतबे का फायदा उठा कर उस ने न्यायालय के आदेश पर सैफई थाने में डा. अमित सिंह के ही खिलाफ मुकदमा दर्ज करवा दिया.

विभागीय जांच में डा. समीर सर्राफ को निलंबित कर दिया था. उस के निलंबित होने के बाद सैफई स्थित आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय की ओपीडी पूरे 17 महीनों तक बंद रही थी. यहां पर आने वाले दिल के मरीजों को तब इलाज न मिलने के कारण कानपुर और लखनऊ जाने को विवश होना पड़ा था.

जांच अधिकारी सीओ नागेंद्र चौबे ने बताया कि जांच में सहयोग करने के लिए उन्होंने डा. समीर को नोटिस दिया तो वह अंडरग्राउंड हो गया. फिर 12 सितंबर 2023 को विश्वविद्यालय में कार्यसमिति की बैठक हुई, जिस के बाद डा. समीर 40 दिनों की लंबी छुट्टी पर चला गया था.

डा. समीर ने यूपी के बाहर कैसे फैलाया जाल

विश्वविद्यालय के पेसमेकर घोटाले के आरोपी डा. समीर सर्राफ का उत्तर प्रदेश के साथ राजस्थान के अस्पतालों में नेटवर्क फैला हुआ था. वह राजस्थान में अपना नाम बदल कर मरीजों का औपरेशन किया करता था.

पुलिस को जांच में पता चला कि डा. समीर सर्राफ ने विश्वविद्यालय प्रशासन की अनुमति के बिना 8 बार विदेश यात्राएं की थीं. ये विदेश यात्राएं चिकित्सा उपकरण बनाने वाली कंपनियों द्वारा प्रायोजित थीं.

मूलरूप से ललितपुर का रहने वाला डा. समीर सर्राफ दवा बनाने वाली कंपनियों से सांठगांठ रखता था. उस के माध्यम से दवा व उपकरण बनाने वाली कंपनियां बेहिसाब कमाई भी करती थीं. डा. समीर अपने बेटे की जन्मदिन की पार्टी भी विदेश में करता था. इस संबंध में जांच अधिकारी मरीजों के बयान लेने के साथ ही विश्वविद्यालय से और भी अन्य जानकारियां एवं रिकौर्ड इकट्ठा कर रहे थे.

घटिया पेसमेकर से 200 की मौत – भाग 1

तकरीबन 200 से अधिक मरीजों की दर्दनाक मौत कोई इत्तफाक नहीं, बल्कि इन मौतों के पीछे लालच, धोखा और हैवानियत की एक ऐसी कहानी छिपी है, जिस पर यकीन करना भी मुश्किल है. इन सभी  मरीजों का इलाज एक ही डाक्टर ने किया था और उस निर्दयी डा. समीर सर्राफ ने चंद रुपयों के लालच में मरीजों को घटिया क्वालिटी के पेसमेकर लगा दिए थे. जिस का नतीजा यह हुआ कि कुछ दिनों तक सस्ते और घटिया पेसमेकर से जूझने के बाद करीब 200 मरीजों की जान चली गई.

सरकारी अस्पतालों में आमतौर पर पेसमेकर लगाने में 75 हजार रुपए से ले कर डेढ़ लाख रुपए तक खर्च आता है, लेकिन डा. समीर पेसमेकर लेने और इस के लिए अलग से रुपए खर्च करने की सलाह देता था. इस तरह वह एक मरीज से 4 से 5 लाख रुपए तक चार्ज कर लिया करता था.

हाल ही में एक दिल को झकझोर देने वाली खबर देश के सब से बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से सामने आई है. यह खबर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के पिता स्व. मुलायम सिंह यादव और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का गढ़ कहे जाने वाले सैफई से है.

उत्तर प्रदेश के सैफई में एक डाक्टर की काली करतूत पूरे देश और समूचे विश्व के सामने आई है. सैफई की मैडिकल यूनिवर्सिटी के डाक्टर की काली करतूत ने भारत को समूचे विश्व के सामने शर्मसार कर के रख दिया है. डा. समीर सर्राफ, जो मैडिकल यूनिवर्सिटी का हार्ट स्पैशलिस्ट था, उसे घटिया और नकली पेसमेकर लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है.

सैफई मैडिकल यूनिवर्सिटी में तैनात रहे कार्डियोलौजिस्ट डा. समीर सर्राफ पर बेहद संगीन आरोप लगा है कि उस ने 600 मरीजों में खराब पेसमेकर इंप्लाट किए थे, जिन में से अब तक करीब 200 मरीजों की मौत हो चुकी है. डा. समीर सर्राफ पर मरीजों से अधिक पैसे वसूलने सहित कई संगीन आरोप भी लगे हैं.

कैसे खुला नकली पेसमेकर लगाने का मामला?

नकली पेसमेकर लगाने का मामला तब प्रकाश में आया, जब मोहम्मद ताहिर ने यह मामला मीडिया और पुलिस के सामने उजागर किया. मोहम्मद ताहिर ने 12 जून, 2019 को अपनी बीवी रेशमा की तबीयत खराब होने और कमजोरी महसूस होने पर सैफई यूनिवर्सिटी में भरती कराया था. उन की गैरमौजूदगी में डाक्टर ने उन्हें पेसमेकर लगा दिया.

पेसमेकर लगाने के बाद ताहिर से एक लाख 85 हजार रुपए ले लिए गए. ताहिर ने जब डाक्टर से रसीद की मांग की तो दूसरे दिन कानपुर के कृष्णा हेल्थकेयर (फर्म) की हस्तलिखित रसीद थमा दी गई.

डा. समीर सर्राफ ने ताहिर से ये बात कही थी कि जो पेसमेकर हम ने आप की पत्नी रेशमा के शरीर पर प्रत्यारोपित किया है, वह पूरे 20 साल चलेगा, लेकिन महज 2 महीने बाद ही वह 20 साल गारंटी वाला पेसमेकर खराब हो गया था.

एक दिन रेशमा अपने घर पर ही बेहोश हो कर गिर गई. 24 अगस्त, 2019 को रेशमा को घर वालों ने फिर गंमीर हालत में सैफई मैडिकल कालेज में भरती कराया तो वहां पर डाक्टर ने बताया गया कि इन का पेसमेकर खराब हो गया है. वहां पर एक दूसरा पेसमेकर उन्हें लगवाया गया और 5 दिन तक सैफई मैडिकल कालेज में भरती होने के बाद रेशमा को 29 अगस्त, 2019 को बाहर ले जाने के लिए रेफर कर दिया गया.

पत्नी को बाहर किसी अच्छे अस्पताल में रेफर किए जाने के बाद घर वाले उसे ले कर दिल्ली के होली फैमिली हौस्पिटल में ले गए, वहां पर 11 डाक्टरों की एक पूरी टीम ने रेशमा का पूरा चेकअप किया और फिर उन्होंने बताया कि पेसमेकर लगाने के कारण ही रेशमा की ऐसी बद से बदतर हालत हुई है. क्योंकि जो पेसमेकर उन्हें लगाया गया, वह बहुत ही खराब क्वालिटी का था.

दिल्ली के होली फैमिली अस्पताल में रेशमा का पूरे 13 दिन कोमा की हालत में इलाज किया गया और उस के बाद 10 सितंबर, 2019 को रेशमा को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया.

करीब एक महीने बाद 9 अक्तूबर, 2019 को रेशमा की तबीयत एक बार फिर से बहुत सीरियस हो गई. घर वाले उसे ले कर आगरा के एक अस्पताल में ले गए. आगरा में एशिया के जानेमाने न्यूरोसर्जन आर.सी. मिश्रा ने रेशमा को देखा.

उन्होंने भी जांच करने के बाद यही बताया कि पेसमेकर अच्छी क्वालिटी का नहीं था. उसी की वजह से आज उन की यह स्थिति हो गई है और उन का दिमाग डेड हो चुका है. इस के बाद रेशमा की मृत्यु हो गई.

डा. समीर सर्राफ पर आरोप लगाने वाले केवल मोहम्मद ताहिर ही नहीं, बल्कि अन्य कई लोग भी हैं, जिन्होंने उस पर गंभीर आरोप लगाए हैं. जनपद मैनपुरी निवासी रेनू चौहान ने बताया कि 24 सितंबर, 2019 को उस के पति चेतन चौहान की तबीयत खराब होने पर सैफई मैडिकल कालेज ले गए थे. कार्डियोलौजी विभाग में मौजूद असिस्टेंट प्रोफेसर डा. समीर सर्राफ ने अस्पताल में उन्हें भरती कर लिया. फिर 26 सितंबर, 2019 को पेसमेकर लगा दिया और अगले दिन 27 सितंबर को अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया.

रेनू ने बताया कि जब हम कानपुर में अपने पति को दिखाने के लिए ले गए तो वहां पर जांच के दौरान पता चला कि पति के नौन एमआई पेसमेकर डाला गया है. रेनू ने इस की शिकायत सैफई के विश्वविद्यालय प्रशासन से कई बार की, मगर उस की सुनवाई नहीं हुई.

विश्वविद्यालय प्रशासन ने क्यों नहीं की थी काररवाई

इस के बाद उस ने मुख्यमंत्री के जन सुनवाई पोर्टल पर भी शिकायत की. पति का इलाज करवाते करवाते वह साहूकारों की कर्जदार हो गई, लेकिन पति आज भी बीमार हैं. एक अन्य मरीज सोमवंशी का पेसमेकर डा. समीर सर्राफ ने 12 अगस्त, 2017 को डाला था. खराब गुणवत्ता के कारण वह बाहर निकल आया. यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में भी गया था.

इसी तरह 20 दिसंबर, 2017 को मरीज दिनेशचंद्र के परिजनों ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल पर शिकायत संख्या 60000170119949 पर शिकायत की थी. इस में डा. समीर सर्राफ के खिलाफ लापरवाही बरतने से मरीज की मौत होने की बात कही गई थी.

9 मई, 2018 को मरीज रामप्रकाश ने भी मुख्यमंत्री पोर्टल जन सुनवाई संख्या 40016118007850 के अंतर्गत डा. समीर सर्राफ के खिलाफ पेसमेकर की अनुचित कीमत के संदर्भ में शिकायत दर्ज कराई थी.

मरीजों के हेल्थ कार्ड होने के बावजूद क्यों लिया पैसा

डा. समीर सर्राफ के खिलाफ जब शासनप्रशासन तक शिकायतें पहुंचने लगीं तो 24 दिसंबर, 2021 को सैफई थाने में डा. समीर सर्राफ व अन्य लोगों के खिलाफ वित्तीय अनियमितता करने का मुकदमा दर्ज किया गया था. मामले की जांच के लिए सैफई आयुर्वेद विश्वविद्यालय प्रशासन ने 5 सदस्यीय जांच कमेटी गठित की थी.

प्रेमिका पर विश्वास का उल्टा नतीजा

पहली ही मुलाकात में रश्मि और मनोज एकदूसरे के प्रति आकर्षित हुए तो चंद दिनों में ही उन के  दिलों में चाहत पैदा हो गई थी. यही वजह थी कि दोस्ती के बीच प्यार के खुशनुमा रंग कब भर गए, उन्हें पता नहीं चला था. मनोज और रश्मि एक ही फैक्ट्री में एकसाथ काम करते थे. दिनभर साथ रहने से भी उन का मन नहीं भरता था, इसलिए फैक्ट्री के बाहर भी दोनों मिलने लगे थे. वैसे तो दोनों एक ही मोहल्ले में रहते थे. लेकिन उन के घरों के बीच काफी दूरी थी, इसलिए रश्मि से मिलने के लिए मनोज को बहाने से उस के घर आना पड़ता था.

मनोज जब भी रश्मि के घर आता, घंटों बैठा बातचीत करता रहता. इसी आनेजाने में मनोज की दोस्ती रश्मि के पति सोनू सोनकर से भी हो गई थी. रश्मि की नजदीकी पाने के लिए मनोज अपनी कमाई का ज्यादा हिस्सा सोनू पर लुटाने लगा था. इसी से सोनू मनोज को अपना अच्छा दोस्त समझने लगा था.

सोनू से दोस्ती होने के बाद मनोज रोज ही रश्मि के घर जाने लगा. देर रात तक दोनों साथ बैठ कर खातेपीते. उस के बाद सोनू मनोज को अपने घर पर ही रुक जाने के लिए कह देता. सोनू मनोज को अपना अच्छा दोस्त मानता था, इसलिए उसे काफी महत्त्व देता था.

मनोज सोनू के साथ उठताबैठता है और खातापीता है, जब इस बात की जानकारी उस के बड़े भाई विनोद को हुई तो उस ने मनोज को रोका. लेकिन मनोज नहीं माना. तब उस ने मनोज को घर से भगा दिया. जब इस बात की जानकारी सोनू और रश्मि को हुई तो सहानुभूति दिखाते हुए सोनू ने उसे अपना छोटा भाई मान कर अपने साथ रख लिया. इस की एक वजह यह भी थी कि मनोज सोनू के लिए दुधारू गाय की तरह था.

मनोज के साथ रहने से रश्मि बहुत खुश हुई थी. फिर तो कुछ ही दिनों में मनोज और रश्मि के बीच शारीरिक संबंध बन गए. रश्मि से शारीरिक सुख पा कर मनोज उस का दीवाना हो गया. हर पल वह रश्मि के आसपास छाया की भांति मंडराता रहता. यही सब देख कर पड़ोसियों को उन पर शक हुआ तो लोग आपस में चर्चा करने लगे.

लोगों की चिंता किए बगैर मनोज और रश्मि एकदूसरे में इस तरह डूबे रहे कि उन्हें जैसे किसी बात की परवाह ही नहीं थी. इस प्रेम कहानी का अंत क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा इस कहानी के पात्रों के बारे में जान लेते हैं.

रश्मि कानपुर के जूही के रतूपुरवा की रहने वाली थी. 18 साल की होते ही वह हवा में उड़ने लगी. इस उम्र की लड़कियों की तरह रश्मि भी भावी जीवन के युवराज के बारे में तरहतरह की कल्पनाएं संजोने लगी. उस का मन करता कि एक सुंदर और जोशीला युवराज उसे पलकों पर बिठा कर अपने घर ले जाए और खूब प्यार करे. इन्हीं कल्पनाओं के बीच कानपुर के ही बादशाही नाका के रहने वाले बेदी सोनकर पर उस की नजर पड़ी.

गठीले बदन का खूबसूरत बेदी उस के पड़ोसी के यहां आताजाता था. इसी आनेजाने में रश्मि की आंख लड़ी तो पहली ही नजर में वह उसे अपना दिल दे बैठी. वही क्यों, बेदी भी उस पर कुछ इस तरह फिदा हुआ कि वह भी उस की एक झलक पाने के लिए उस के घर के चक्कर लगाने लगा. चाहत दोनों ओर थी, इसलिए दोनों एकदूसरे की ओर तेजी से बढ़ने लगे.

उस समय रश्मि अल्हड़ उम्र के दौर से गुजर रही थी. इसलिए दिमाग के बजाए दिल की भावनाओं के प्रबल प्रवाह में तेजी से बहती गई. यह भी सच है कि प्यार छिपता नहीं. मोहल्ले में रश्मि और बेदी के प्यार के भी चर्चे होने लगे. जैसे ही इस बात की खबर रश्मि के घर वालों को लगी, उन्होंने उस का घर से निकलना बंद कर दिया. लेकिन वह बेदी के प्यार में पागल हो चुकी थी, इसलिए वह बगावत पर उतर आई और घर वालों के मना करने के बावजूद वह बेदी से मिलतीजुलती रही.

मातापिता ने बहुत समझाया कि बेदी शहर का कुख्यात बदमाश है, इसलिए उस से मिलनाजुलना ठीक नहीं है. उस की वजह से उस की जिंदगी बरबाद हो सकती है, लेकिन बेदी के प्यार में अंधी रश्मि बेदी से लगातार मिलतीजुलती रही.

बेदी दूसरों के लिए भले ही कितना भी बड़ा बदमाश रहा हो, रश्मि के लिए वह बहुत ही सीधा, सरल और भावुक युवक था. वह देखने में काफी हैंडसम था, इसलिए रश्मि उस पर जान छिड़कती थी. रश्मि को बेकाबू होते देख उस के मातापिता उस के विवाह के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे.

जब इस बात की जानकारी रश्मि और बेदी को हुई तो साथ रहने के लिए उन्होंने एक योजना बना डाली. फिर उसी योजना के तहत एक दिन रश्मि चुपके से मातापिता का घर छोड़ कर बेदी के घर रहने आ गई और बिना विवाह के ही उस के साथ पत्नी की तरह रहने लगी.

बेदी से रश्मि को 2 बच्चे पैदा हुए. दोनों की जिंदगी आराम से कट रही थी. लेकिन सब्जी मंडी में जबरन वसूली के विवाद में 2003 में बेदी की हत्या हो गई. बेदी की मौत के बाद रश्मि की जिंदगी में अंधेरा छा गया. पति की मौत के बाद भी रश्मि अपने दोनों बच्चों के साथ बेदी के मातापिता के साथ रहती रही.

बेदी की मौत के करीब 2 सालों के बाद बेदी का चाचा श्यामप्रकाश उर्फ सोनू उस के घर आया तो वह रश्मि को देख कर उस पर लट्टू हो गया. इस के बाद किसी न किसी बहाने वह उस से मिलने उस के घर आने लगा. सोनू रश्मि के उम्र का ही था और देखने में भी स्वस्थ और सुंदर था, इसलिए रश्मि को भी वह भा गया.

यही वजह थी कि जब सोनू ने उस से अपने प्यार का इजहार किया तो उस के प्यार को स्वीकार कर के रश्मि बेदी के दोनों बचों को छोड़ कर सोनू के साथ आर्य समाज मंदिर में सन् 2008 में शादी कर ली. शादी के बाद कानपुर में ही वह सोनू के साथ रहने लगी. साल भर बाद ही वह सोनू के बेटे की मां बन गई. सोनू के साथ रहते हुए ही रश्मि की मुलाकात साथ काम करने वाले मनोज से हुई तो वह उसे दिल दे बैठी.

मनोज को जब पता चला कि रश्मि उसी की जाति की है तो वह उसे और अधिक प्यार करने लगा. यही नहीं, वह उसे पत्नी का दर्जा देने को भी तैयार हो गया. इस के बाद उस ने यह भी कहा कि जब उस के मातापिता और भाई को पता चलेगा कि उस ने अपने ही जाति के लड़के से शादी कर ली है तो वे भी उसे अपना लेंगे.

मनोज के इस प्रस्ताव पर रश्मि गंभीर हो गई, क्योंकि वह सोनू के साथ खुश नहीं थी. आखिर काफी सोचविचार कर रश्मि एक बार फिर मनोज के साथ भाग कर जिंदगी बसर करने का सपना देखने लगी. इस के बाद वह मनोज का कुछ ज्यादा ही खयाल रखने लगी. जब इस ओर सोनू का ध्यान गया तो उसे रश्मि और मनोज पर शक होने लगा.

सोनू भी अपराधी किस्म का आदमी था. सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने एक योजना बनाई. फिर उसी योजना के तहत एक दिन उस ने रश्मि से कहा कि वह अपने घर सीतापुर जा रहा है. यह कह कर वह 2 बजे दोपहर को घर से निकला, लेकिन वह सीतापुर गया नहीं. शहर में ही इधरउधर घूमता रहा. रात 11 बजे वह वापस आया और अपने कमरे के दरवाजे की झिर्री पर कान लगा कर अंदर की आहट लेने लगा. अंदर से आने वाली आवाजों से उस ने समझ लिया कि उस की योजना सफल हो गई है.

फिर तो वह जोर से चीखा, ‘‘जल्दी दरवाजा खोलो, अंदर क्या हो रहा है, मैं जान गया हूं.’’

सोनू की आवाज सुन कर कमरे के अंदर तेज हलचल हुई. उस के बाद एकदम से सन्नाटा पसर गया. लेकिन दरवाजा नहीं खुला.

सोनू एक बार फिर दरवाजा खुलवाने के लिए चिल्लाया, ‘‘दरवाजा खोल रही है या तोड़ डालूं?’’

रश्मि के दरवाजा खोलते ही सोनू अंदर आ गया. बल्ब जलाने पर दोनों के झुके सिर देख कर वह सारा माजरा समझ गया. उस ने गालियां देते हुए मनोज की लातघूसों से पिटाई शुरू कर दी.

इस के बाद उसे कमरे से भगा कर रश्मि की जम कर पिटाई की. मारपीट कर उस ने रश्मि से मनोज और उस के अवैध संबंधों की सारी सच्चाई उगलवा ली. जब रश्मि ने उसे बताया कि मनोज उसे भगा कर ले जाने वाला था तो सोनू को उस पर इतना गुस्सा आया कि उस ने मनोज की हत्या करने का निश्चय कर लिया.

सोनू ने रश्मि से कहा कि कल रात वह मनोज को यह कह कर बुलाए कि वह शराब के नशे में गुमराह हो गया था. सुबह समझाने पर उसे अपनी गलती का एहसास हो गया है, इसलिए वह माफी मांग कर पहले की तरह अपने साथ रखना चाहता है. क्योंकि मनोज ने दोस्ती के नाम पर उसे जो धोखा दिया था, उस की हत्या कर के वह उसे उस की सजा देना चाहता था. रश्मि को उस ने धमकाते हुए कहा कि अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह उस के प्रेमी मनोज के साथ उस की भी हत्या कर के हमेशा के लिए कानपुर छोड़ कर चला जाएगा.

रश्मि असमंजस में फंस गई थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

चूंकि रश्मि मनोज को दिल से चाहती थी, इसलिए अगले दिन फैक्ट्री में मनोज उसे मिला तो उस ने उसे सोनू की साजिश के बारे में बता कर कहीं बाहर चले जाने के लिए कह दिया. उस ने मनोज से यह भी कहा था कि सोनू सीतापुर में एक पीएसी कंपनी कमांडर की हत्या कर के यहां छिप कर रह रहा है, इसलिए ऐसे आदमी पर भरोसा नहीं किया जा सकता. वह उसे ढूंढ़ कर निश्चित उस की हत्या कर देगा.

रश्मि की बात सुन कर मनोज डर गया और उसी समय वह कानपुर छोड़ कर जिला फतेहपुर स्थित अपने गांव चला गया. शाम को रश्मि अकेली घर आई तो सोनू ने पूछा, ‘‘मनोज कहां है?’’

‘‘वह उसी रात अपने गांव भाग गया था.’’ रश्मि ने कहा.

रश्मि की बात पर सोनू को विश्वास नहीं हुआ. उस ने रश्मि को गालियां देते हुए कहा, ‘‘वह खुद नहीं भागा, तूने उसे भगाया है. तुझ से रहा नहीं गया होगा. तू ने मेरी योजना के बारे में बता कर उसे भगा दिया होगा.’’

सोनू को रश्मि की इस धोखेबाजी से उस से भी नफरत हो गई. अब वह रोज शराब पी कर उस की पिटाई करने लगा. रश्मि को पिटाई करते हुए वह कहता भी था, ‘‘जब तक तू मनोज को नहीं बुलाती और मैं उस की हत्या नहीं कर देता, तब तक तुझे इसी तरह नियमित मारता पीटता रहूंगा.’’

रोजरोज की मारपीट से तंग आ कर आखिर एक दिन रश्मि ने अपने सहकर्मी के फोन से मनोज को फोन कर के कहा कि सोनू उस पर बहुत अत्याचार कर रहा है. इसलिए अब वह उस के साथ रहना नहीं चाहती और भाग कर उस के पास आ रही है. अब वह उसी के साथ उस की बन कर रहना चाहती है.

मनोज ने रश्मि को समझाते हुए कहा, ‘‘मैं यहां गांव में रह रहा हूं. यहां किसी तरह 2 जून की रोटी मिल जाती है, बाकी यहां कमाई का कोई जरिया नहीं है. इसलिए तुम थोड़ा इंतजार करो. मैं कोई व्यवस्था कर के तुम्हें जल्दी ही यहां बुला लूंगा. उस के बाद तुम्हें अपनी पत्नी बना कर साथ रखूंगा.’’

मनोज की इन बातों से रश्मि का कलेजा बैठ गया. वह जिंदगी के ऐसे मोड़ पर खड़ी थी, जहां उस के लिए चारों ओर अंधेरा ही अंधेरा था. काफी सोचविचार कर उस ने सोनू के साथ ही जिंदगी गुजारने का इरादा बना लिया. फिर उस ने सोनू से माफी मांगी और भविष्य में किसी तरह की कोई गलती न करने की कसम खाई. लेकिन सोनू मनोज की हत्या से कम पर उसे माफ करने को तैयार नहीं था.

जिंदगी और भविष्य के लिए रश्मि को सोनू की जिद के आगे झुकना पड़ा. वह मनोज की हत्या की साजिश में पति का साथ देने को तैयार हो गई. इस के बाद योजना के अनुसार सोनू ने नटवनटोला, किदवईनगर का अपना वह किराए का कमरा खाली कर के जूही गढ़ा में सुरजा के मकान में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. रश्मि मनोज को फोन कर के बुलाने लगी. लेकिन मनोज कानपुर आने को तैयार नहीं था.

रश्मि के बारबार आग्रह पर मनोज को जब रश्मि से मिलने वाले सुख की याद आई तो 29 जनवरी को रश्मि से मिलने के लिए वह कानपुर आ गया. सोनू और रश्मि ने पहले की ही तरह मनोज को हाथोंहाथ लिया. दोनों उस से इस तरह हंसहंस कर बातें कर रहे कि उसे लगा सोनू ने सचमुच उसे माफ कर दिया है.

मनोज रश्मि और सोनू के जाल में पूरी तरह फंस गया. रात 8 बजे के आसपास सोनू उसे शराब के ठेके पर ले गया, जहां दोनों ने थोड़ीथोड़ी शराब पी. इस के बाद 2 बोतल ले कर वह घर आ गया. उस ने रश्मि से कहा, ‘‘आज बढि़या खाना बनाओ, बहुत दिनों बाद मेरा दोस्त आया है. आज देर रात तक हम दोनों की महफिल जमेगी.’’

रश्मि को खाना बनातेबनाते रात के 11 बज गए. इस के बाद उस ने सोनू और मनोज के लिए खाना परोसा. सोनू ने होशियारी से मनोज को बड़ेबड़े पैग बना कर ज्यादा शराब पिला दी थी. ज्यादा नशा होने की वजह से मनोज खाना खा कर अपने लिए लगे बिस्तर पर लेटते ही बेसुध हो कर सो गया.

सोनू को उस के सोने का इंतजार था. रात साढ़े 12 बजे उस ने रश्मि को अपने पास बुला कर मनोज के सिर के ऊपर से रजाई हटाने को कहा. रश्मि ने जैसे ही मनोज के सिर से रजाई हटाई, सोनू गड़ासे से उस के सिर और गरदन पर लगातार वार करने लगा.

मनोज ने अपने ऊपर हुए इस प्राणघातक हमले से बचने की कोशिश तो की, लेकिन रश्मि उस के सिर के बाल पकड़ कर नीचे दबाए थी, इसलिए वह उठ नहीं सका. लगातार वार होने से मनोज की गरदन कट गई तो वह मर गया. उस के मरते ही सोनू ने उस के हाथपैर समेट कर रस्सी से बांध दिए, ताकि वह अकड़ न जाए, क्योंकि अकड़े हुए शव को घर से बाहर ले जाने में काफी परेशानी होती.

मनोज की हत्या कर उस की लाश को ठिकाने लगाने के बारे में पूरी रात सोनू और रश्मि सोचते विचारते रहे. सोनू ने सोचा कि अगर लाश को रजाई में लपेट कर दिन में रिक्शे से बाहर ले जाया जाए तो कोई शक नहीं करेगा.

यही सोच कर उस ने मनोज की लाश को रजाई में लपेटा और रस्सी से बांध कर रजाई भराने की बात कह कर एक रिक्शा बुलाया.  रजाई में बंधी मनोज की लाश उस ने रिक्शे के पायदान पर रखा और रश्मि तथा 5 साल के बेटे के साथ रिक्शे पर बैठ कर वह स्वदेशी कौटन मिल की ओर चल पड़ा.

स्वदेशी कौटन मिल के पास सड़क के किनारे की एक चाय की दुकान पर कुछ लोगों ने रिक्शे पर रखी उस रजाई को देखा तो उन्हें शक हुआ. उन्होंने रिक्शा रोक कर सोनू से उस के बारे में पूछा तो वह सकपका गया.

एकदम से वह जवाब नहीं दे सका. काफी देर बाद उस ने कहा कि इसे वह भरवाने ले जा रहा है. उन लोगों में से किसी ने कहा, ‘‘इस तरह रस्सी से बांध कर रुई तो नहीं ले जाई जाती, इस में जरूर कुछ और है.’’

यह कह कर उस आदमी ने रजाई के अंदर हाथ डाला तो एकदम से चिल्लाया, ‘‘अरे यह रुई नहीं, किसी की लाश है.’’

सभी सोनू को पकड़ कर लातघूसों से पिटाई करने लगे. उसी बीच मौका पा कर रश्मि अपने बेटे को ले कर भाग गई. किसी ने इस बात की सूचना थाना जूही पुलिस को दी तो पुलिस ने मौके पर आ कर लाश और सोनू को कब्जे में ले लिया. थाना जूही पुलिस ने मौके की काररवाई कर के लाश को पोस्टमार्टम के लिए हैलेट अस्पताल भिजवा दी. उस के बाद थाने ला कर सोनू से पूछताछ की गई. सोनू ने मनोज की हत्या का अपना अपराध स्वीकार करते हुए पूरी कहानी पुलिस को सुना दी, जिसे आप पहले ही पढ़ चुके हैं.

पूछताछ के बाद सबइंस्पेक्टर आमोद कुमार ने सोनू की निशानदेही पर उस के कमरे से शराब की 2 खाली बोतलें, खून से सनी साड़ी, वह गड़ासा, जिस से मनोज की हत्या की गई थी और मनोज का मोबाइल फोन बरामद कर लिया. इस के बाद उन्होंने उस के खिलाफ मनोज की हत्या का मुकदमा दर्ज कर 30 जनवरी को अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अगले दिन पुलिस ने रश्मि को भी उस समय गिरफ्तार कर लिया, जब वह कमरे पर अपने और बच्चे के कपड़े लेने आई थी. पूछताछ कर के पुलिस ने उसे भी अदालत में पेश किया, जहां से उसे भी जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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