Uttar Pradesh Crime : प्रेमिका के भाई को मारा फिर बोरी में बंद कर रेत में दफना डाला

Uttar Pradesh Crime : आजकल के ज्यादातर युवा तो प्यार को जानते हैं और जानना चाहते हैं. उन के लिए शारीरिक आकर्षण ही प्यार होता है. इसी आकर्षण को प्यार समझ कर वे ऐसीऐसी कंदराओं में खो जाते हैं, जो अपने अंदर का अंधेरा उन के जीवन में भर देती हैं. ऐसा ही विकास के साथ भी हुआ. आखिर…  

रोजाना की तरह पूनम उस दिन भी स्कूल जाने के लिए अपनी साइकिल से निकली तो रास्ते में पहले से उस का इंतजार कर रहे विकास ने उस के पीछे अपनी साइकिल लगा दी. पूनम ने विकास को पीछे आते देखा तो अपनी साइकिल की गति और तेज कर दी. विकास अपनी साइकिल की रफ्तार और तेज कर के पूनम के आगे जा कर इस तरह खड़ा हो गया कि अगर वह अपनी साइकिल के ब्रेक लगाती तो जमीन पर गिर जाती. साइकिल संभालते हुए पूनम साइकिल से उतर कर खड़ी हुई और बोली, ‘‘देख नहीं रहे हो, मैं स्कूल जा रही हूं. आज वैसे भी देर हो गई है. अगर हमें किसी ने देख लिया तो बिना मतलब बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगेगी.’’

‘‘जिसे जो बातें बनानी हैं, बनाता रहे. मुझे किसी की परवाह नहीं है.’’ विकास ने बड़े प्यार से अपनी बात कह डाली.

पूनम स्कूल जाने के लिए मन ही मन बेचैन थी. उस ने विकास की तरफ देखा और उस से अनुरोध करते हुए बोली, ‘‘देखो, मुझे देर हो रही है. अभी मुझे स्कूल जाने दो. मैं तुम से बाद में मिल लूंगी. तुम्हें जो बात करनी हो, कर लेना.’’

विकास पूनम की बात सुन कर नरम पड़ गया. वह अपनी साइकिल को साइड में कर के पूनम के चेहरे को देखते हुए बोला, ‘‘पूनम, तुम मेरी आंखों में झांक कर देखो, इस में तुम्हें बेपनाह मोहब्बत नजर आएगी. तुम्हें पता है, तुम्हारी चाहत में मैं सब कुछ भूल गया हूं. मुझे दिनरात बस तुम ही तुम नजर आती हो.’’

‘‘वह सब तो ठीक है विकास, पर तुम्हें यह तो पता है कि हम एक ही जगह के हैं और हमारे तुम्हारे घर के बीच बहुत ज्यादा फासला नहीं है. अगर हम दोनों इस तरह प्यारमोहब्बत की पेंग बढ़ाएंगे तो मोहल्ले वालों से हमारा प्रेम कब तक छिपा रहेगा

‘‘तुम मेरे पिता को तो जानते हो, बातबात में गुस्सा हो जाते हैं. अगर उन्हें हम दोनों के प्रेम की भनक लगी तो मैं बदनाम हो जाऊंगी. फिर मेरे पिता मेरी क्या गत बनाएंगे, यह तो ऊपर वाला ही जाने.’’ वह बोली.

‘‘पूनम, मैं सपने में भी तुम्हें बदनाम करने की नहीं सोच सकता. तुम तो मेरी मोहब्बत हो और मोहब्बत के लिए लोग जाने क्याक्या कर जाते हैं. तुम सिर्फ जरा सी बदनामी से डरती हो. पता है, मैं तुम से मिलने और बातें करने के लिए क्याक्या तिकड़म भिड़ाता हूं

‘‘तब कहीं जा कर तुम से तनहाई में मुलाकात होती है. देखो पूनम, मैं तुम्हें बदनाम नहीं होने ही दूंगा. और हां, मैं ने निर्णय ले लिया है कि शादी करूंगा तो सिर्फ तुम से. मेरी दुलहन तुम्हारे अलावा कोई दूसरी नहीं होगी, फिर बदनामी कैसी.’’

पूनम कुछ देर शांत मन से विकास की बातें सुनती रही. फिर लंबी सांस ले कर बोली, ‘‘अच्छा, अब बस करो, मैं स्कूल जा रही हूं. मुझे काफी देर हो चुकी है.’’

पूनम ने इतना कह कर अपनी साइकिल आगे बढ़ाई ही थी कि विकास मुसकराता हुआ बोला, ‘‘हां जाओ, लेकिन मिलने के लिए थोड़ा समय निकाल लिया करो.’’

पूनम बिना कुछ बोले अपने स्कूल की ओर बढ़ गई. पूनम के स्कूल जाने वाले रास्ते के उस मोड़ के पास विकास अकसर उस का रास्ता रोक कर कभी प्रेम से तो कभी थोड़ा गुस्से में अपने प्रेम का इजहार करने लगता था. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिला रामपुर, थाना स्वार की चौकी मसवासी के अंतर्गत एक मोहल्ला है भूबरा. वीर सिंह अपने परिवार के साथ इसी मोहल्ले में रहता था. परिवार में उस की पत्नी के अलावा 3 बेटे और 2 बेटियां थीं. वीर सिंह और उस की पत्नी प्रेमवती दोनों दिव्यांग थे. वीर सिंह हाईस्कूल पास था. वह मोहल्ले के छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता था. बड़ा बेटा गिरीश नौकरी करता था. बापबेटे मिल कर परिवार का बोझ उठाते थे.

वीर सिंह की बेटी पूनम खूबसूरत भी थी और चंचल भी. वीर सिंह और प्रेमवती उसे बहुत चाहते थे. पूनम एक स्थानीय स्कूल में दसवीं में पढ़ती थी. 15 वर्षीय पूनम उम्र के उस पायदान पर खड़ी थी, जहां शरीर में काफी बदलाव जाते हैं और दिल में उमंग की लहरें हिचकोले लेने लगती हैं. पूनम पहले से ही सुंदर थी, लेकिन जब कुदरत ने उस के बदन को खूबसूरती के सांचे में ढाल कर आकर्षक आकार दिया तो उस की सुंदरता कयामत ढाने लगी, जिस का पूनम को भी अहसास हो गया था. अपनी सुंदरता पूनम को लुभाती तो थी, लेकिन लोगों की चुभती नजरों से बचने के लिए उसे तरहतरह के जतन करने पड़ते थे. वह लोगों की गिद्ध दृष्टि को अच्छी तरह पहचानती थी. लेकिन विकास उन सब से अलग था. उस की आंखों में पूनम को अपने लिए अलग तरह की चाहत दिखती थी. विकास स्मार्ट भी था और खूबसूरत भी.

विकास मौर्य भी भूबरा मोहल्ले में ही रहता था. पूनम के घर से उस के घर की दूरी महज ढाई सौ मीटर थी. विकास के पिता नरपाल मौर्य खेतीकिसानी का काम करते थे. घर में पिता के अलावा उस की मां जगदेवी, एक बड़ा भाई और 3 बहनें थीं. वीर सिंह और नरपाल मौर्य के परिवारों का एकदूसरे के घर आनाजाना था. इसी आनेजाने में जब विकास की नजर जवान होती पूनम पर पड़ी तो वह बरबस उस की ओर आकर्षित होगया और उसे मन ही मन चाहने लगालेकिन पूनम के घर वालों की वजह से उसे अकेले में पूनम से बात करने का मौका नहीं मिल पाता था. विकास हमेशा इस फिराक में रहता था कि मौका मिले तो पूनम से बात करे.

संयोग से एक साल पहले विकास को मौका मिल गया. पूनम के घर वाले किसी शादी समारोह में गए हुए थे. पूनम घर पर अकेली थी. यह पता चलते ही विकास बहाने से वीर सिंह के घर पहुंच गया और दरवाजे पर दस्तक दी. पूनम उस समय पढ़ रही थी. दस्तक सुन कर उस ने दरवाजा खोला तो सामने विकास खड़ा था. विकास को देख वह बोली, ‘‘सब लोग शादी में गए हैं. घर में कोई नहीं है.’’

विकास ने पूनम की बात खत्म होते ही कहा, ‘‘देखो पूनम, आज मैं सिर्फ तुम से ही मिलने आया हूं. चाचा से मिलना होता तो कभी भी मिल लेता.’’

‘‘ठीक है, अंदर जाओ और बताओ मुझ से क्यों मिलना है.’’ पूनम के कहने पर विकास अंदर गया

विकास के अंदर आते ही पूनम फिर से बोली, ‘‘हां विकास, बोलो, क्या कहना चाहते हो?’’

विकास एकटक पूनम की ओर देखते हुए बोला, ‘‘दरअसल, मैं बहुत दिनों से तुम से एकांत में मिलना चाह रहा था. मैं तुम्हें दिल से चाहने लगा हूं. मुझे तुम से प्यार हो गया है. दिल नहीं माना तो तुम से मिलने चला आया.’’

विकास आगे कुछ और बोलता, इस से पहले ही पूनम के होंठों पर हंसी गई. वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘आतेजाते तुम मुझे जिस तरह से देखते थे, उस से ही मुझे आभास हो गया था कि जरूर तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई चाहत है.’’

‘‘इस का मतलब तुम भी मुझे पसंद करती हो. तुम्हारी इन बातों से विश्वास हो गया कि हम दोनों के दिल में एकदूसरे के प्रति प्यार है.’’ विकास कुछ और बोल पाता, तभी पूनम बोल पड़ी, ‘‘मम्मीपापा के आने का समय हो गया है. इसलिए तुम अभी यहां से चले जाओ. मुझे मौका मिला तो मैं फिर बात कर लूंगी.’’

पूनम के इतना कहने के बाद भी विकास वहीं खड़ा रहा और पूनम की खूबसूरती के कसीदे पढ़ता रहा. पूनम से रहा नहीं गया तो वह जबरदस्ती विकास का हाथ पकड़ कर उसे मेनगेट तक ले आई और उसे बाहर कर के मेनगेट बंद कर लिया. लेकिन जातेजाते विकास पूनम को यह याद कराना नहीं भूला कि उस ने बाहर मिलने का वादा किया है. पूनम अपने वादे को नहीं भूली और अगले दिन स्कूल जाते समय रास्ते में विकास दिखा तो उस ने इशारे से बता दिया कि स्कूल से वापस लौटते समय उस से मिलेगीविकास समय से पहले ही पूनम के वापस लौटने वाले रास्ते पर उस का इंतजार करने लगा. पूनम स्कूल से लौटी तो विकास से उस की मुलाकात हुई. उस ने विकास के प्यार को स्वीकार करते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारे प्यार को स्वीकार कर रही हूं और चाहती हूं कि हम बदनाम हों. इसलिए तुम्हें भी सावधान रहना होगा ताकि किसी को हमारे प्यार की भनक लगे.’’

विकास पूनम के हाथों को अपने हाथों में लेता हुआ बोला, ‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो? क्या कभी कोई प्रेमी चाहेगा कि उस की प्रेमिका की समाज में रुसवाई हो? तुम मुझ पर भरोसा रखो.’’

समय बीतता रहा. दोनों लोगों की नजरों से बच कर चोरीछिपे मिलते रहे. दोनों का प्यार इतना बढ़ गया कि वे एकदूसरे के लिए कुछ भी कर सकते थे. यहां तक कि एकदूजे के लिए जान भी दे सकते थे. पर एकदूसरे से अलग होना उन्हें किसी भी हाल में मंजूर नहीं था. बीते 9 दिसंबर को पूनम का सब से छोटा 7 वर्षीय भाई अंश दोपहर 2 बजे के करीब घर के बाहर खेल रहा था, लेकिन अचानक वह लापता हो गया. बडे़ भाई गिरीश ने अपने भाईबहनों के साथ उसे काफी खोजा लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. एक दिन पहले ही किसी अनजान युवक ने अंश को 10 रुपए दिए थे. यह बात अंश ने घर कर बताई थी. लेकिन घर के लोगों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया था, इस के अगले दिन यह घटना घट गई

जब किसी तरह से अंश का पता नहीं चला तो 10 दिसंबर, 2019 को गिरीश ने स्वार थाने जा कर इंसपेक्टर सतेंद्र कुमार सिंह को पूरी बात बताई. सतेंद्र सिंह ने गिरीश की तहरीर पर अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 363 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पुलिस ने गिरीश और उस के पिता के मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगवा दिए, ताकि अपहर्त्ता फिरौती के लिए फोन करें तो ट्रेस किया जा सके. 11 दिसंबर, 2019 को अपहर्त्ता ने वीर सिंह के नंबर पर काल कर के अंश को रिहा करने के एवज में 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. सर्विलांस टीम और अंश के घर वालों द्वारा सूचना देने पर मसवासी चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी अंश के घर गए और उस के घर वालों से पूछताछ की.

जिस नंबर से काल की गई थी, वह फरजी आईडी पर खरीदा गया था. जिस मोबाइल में वह सिम डाला गया था, उस मोबाइल में उस से पहले जो सिम डाले गए थे, उन की जांचपड़ताल करने के बाद पुलिस अपहर्त्ता तक पहुंच गई. वह कोई और नहीं, अंश की बड़ी बहन पूनम का प्रेमी विकास मौर्य था. 12 दिसंबर को इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने मानपुर तिराहे से विकास मौर्य को उस के साथी अनुराग शर्मा के साथ गिरफ्तार कर लिया. दोनों से कड़ाई से पूछताछ की गई तो दोनों ने अपने 3 अन्य साथियों विकास सैनी, रवि सैनी और रोहित के नाम बताए. इन सब ने साथ मिल कर अंश का अपहरण कर हत्या कर देने की बात कबूल कर ली. साथ ही हत्या के पीछे की कहानी भी बयान कर दी

विकास मौर्य और पूनम का प्यार दिनोंदिन परवान चढ़ रहा था, वह भी सब की नजरों से बच कर. लेकिन एक दिन पूनम के छोटे भाई अंश ने दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में एक साथ देख लिया. पूनम ने जैसेतैसे अंश को समझा दिया और उसे अपने साथ घर ले गई, लेकिन विकास इस बात से डर गया कि कहीं वह घर वालों को उन दोनों के बारे में बता दे. इसी वजह से उस ने अंश का अपहरण कर उसे मार देने का फैसला किया. इस बारे में उस ने पूनम को भनक तक नहीं लगने दी. उस ने अपने दोस्तों सीतारामपुर गांव निवासी अनुराग शर्मा, विकास सैनी, रवि सैनी और भूबरा मोहल्ला निवासी रोहित से बात की. दोस्ती की खातिर ये सब विकास का साथ देने को तैयार हो गए.

8 दिसंबर, 2019 को अंश घर के बाहर बच्चों के साथ खेल रहा था. तभी विकास के साथ अनुराग वहां गया. विकास ने अनुराग को अंश की तरफ इशारा कर के उस की पहचान कराई. अनुराग अंश के पास पहुंचा और उस से प्यार से बात की, साथ ही उसे 10 रुपए दिए. मासूम अंश ने उस से 10 रुपए ले लिए. अनुराग उस से दोस्ती कर के चला गया. अंश ने घर जा कर इस अनजान दोस्त से मिले पैसों के बारे में बताया तो किसी ने इस बात को गंभीरता से नहीं लिया. अगले दिन 9 दिसंबर को योजनानुसार दोपहर 2 बजे विकास अनुराग के साथ बाइक से अंश के घर के पास पहुंचा. रोज की तरह उस समय अंश बच्चों के साथ खेल रहा था. विकास ने उस से कहा कि उस के बड़े भैया गिरीश उसे बुला रहे हैं. वह आगे खड़े हैं. मासूम अंश उन के साथ बाइक पर बैठ गया.

आगे कुछ दूरी पर विकास सैनी, रवि और रोहित खड़े थे. अंश को उन के साथ देख कर वे भी उन के साथ हो लिए. अंश को वे बेलवाड़ा गांव के जंगल में ले गए. वहां रुमाल से बनाया फंदा अंश के गले में डाल कर कस दिया, जिस से अंश की दम घुटने से मौत हो गई. इस के बाद अंश की लाश को एक प्लास्टिक की बोरी में डाल कर रेत में दबा दिया. इस के बाद 11 दिसंबर को विकास ने केस की दिशा मोड़ने के लिए फरजी सिम से अंश के पिता को काल कर के 15 लाख रुपए की फिरौती मांगी. इस से केस की दिशा तो नहीं बदली, लेकिन उस के पकड़े जाने का रास्ता जरूर खुल गया. विकास की यह गलती उसे और उस के साथियों को भारी पड़ी.

12 दिसंबर को ही विकास मौर्य और अनुराग शर्मा की निशानदेही पर इंसपेक्टर सतेंद्र सिंह और चौकी इंचार्ज कुलदीप सिंह चौधरी ने एसडीएम राकेश कुमार गुप्ता की मौजूदगी में रेत में दबी अंश की लाश बरामद कर ली. इस के बाद मुकदमे में दर्ज धारा 363 को भादंवि की धारा 364, 302, 201, 34 तरमीम कर दिया गया. पुलिस ने 14 दिसंबर, 2019 को मुंशीगंज तिराहे से विकास सैनी और रवि सैनी को भी गिरफ्तार कर लिया

आवश्यक कानूनी लिखापढ़ी के बाद चारों अभियुक्तों को न्यायालय में पेश किया गया, जहां से सब को जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक रोहित फरार था.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कथा में पूनम परिवर्तित नाम है.

          

 

 

  

Family dispute : दहेज नहीं मिला तो बीवी को लगा दिया HIV इंजेक्शन

Family dispute : उत्तर प्रदेश में एक ऐसा चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जिस ने न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है.

घटना इंसानियत को शर्मसार करने वाली है, जहां एक पति ने महज दहेज में स्कौर्पियो न मिलने की वजह से अपनी ही पत्नी की जिंदगी बरबाद करने की साजिश रच दी और उस ने पत्नी को HIV संक्रमित इंजेक्शन लगा दिया.

क्या है पूरा मामला

घटना यूपी के सहारनपुर जिले की है. पीड़ित महिला का आरोप है कि उस के ससुराल वालों की दहेज की मांग पूरी नहीं हुई तो उसे HIV इंजेक्शन लगा दिया है. इंजेक्शन लगाने के बाद महिला की हालत गंभीर हो गई है.

पुलिस आई हरकत में

पुलिस ने महिला की शिकायत के आधार पर काररवाई करते हुए आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है.

थाना प्रभारी रोजंत त्यागी ने बताया कि महिला के पिता ने बताया कि उन की बेटी की शादी 15 फरवरी, 2023 को हरिद्वार निवासी अभिषेक से हुई थी. शादी के वक्त उन्होंने अपनी क्षमता के अनुसार बेटी को धन दिया, जिस में नगद, ज्वैलरी से ले कर कार भी शामिल थी. इस के बाद भी ससुराल वाले संतुष्ट नहीं थे.
ससुराल वाले 25 लाख रुपए और एक स्कौर्पियो की मांग करते रहते थे. जब उन्होंने उन की यह मांग पूरी करने में असमर्थता जताई तो वह बेटी को प्रताड़ित करने लगे.

पीड़िता के मायके वालों ने आरोप लगाया है कि दहेज की मांग पूरी नहीं करने पर बेटी को ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया और उसे मानसिक व शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने लगे.

पंचायत का हस्तक्षेप

आरोप है कि पंचायत के हस्तक्षेप के बाद जब बेटी दोबारा ससुराल लौटी तो वहां उसे HIV संक्रमित इंजेक्शन लगा कर जान से मारने की कोशिश की गई. इस के बाद बेटी की तबियत बिगड़ने लगी तो परिजनों ने उसे अस्पताल में भरती कराया, जहां जांच में बेटी को एचआईवी पौजिटिव बताया गया.

एसएचओ के अनुसार, पीड़िता के मातापिता ने बेटी के ससुराल वालों पर आरोप लगाया है कि बेटी को जानबूझ कर बेतरतीब दवा दी गई और एचआईवी इंजेक्शन भी लगाया गया, जिस से उस की जान को खतरा है.

पीडिता को चाहिए न्याय

इस के बाद न्याय पाने की तालाश में पीड़िता के परिवार वालों ने 10 फरवरी को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई. इस के बाद 11 फरवरी को गंगोह थाने में पीड़िता के पति, देवर समेत 4 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया है. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है.

Agra Crime : पहले पति को मारा, फिर लाश पर चढ़ा दी कार

Agra Crime : ‘नार नहीं नौरंगी है, ढक ले तो सारे कुल को ढक ले वरना नंगी की नंगी है’ इस कहावत का आशय स्त्री के चाल, चरित्र और चेहरे को दर्शाने से है, जो सही है. भावना की जिंदगी में सब कुछ था, अफसर पति, कोठी, कार और 2 बच्चे, लेकिन उस ने…

मानव मन को समझना आसान नहीं है. इंसान कब किस को प्यार करने लगे और कब प्यार नफरत में बदल जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. ऐसा ही कुछ भावना के साथ भी हुआ. एक अच्छे और संभ्रांत परिवार की बेटी और बहू भावना कुछ ऐसा कर बैठेगी, किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. कहते हैं, विनाश काल में इंसान की सकारात्मक सोच बंद हो जाती है. फिर समय की इस आंधी में सब कुछ तहसनहस हो जाता है. बिना सोचेसमझे भावना ने जो कदम उठाया, उस से कई जिंदगियां तबाह हो गईं और खुशियां मुट्ठी में बंद रेत की तरह फिसल गईं. ताजनगरी आगरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जहां देशविदेश से पर्यटक आते हैं और शाहजहां मुमताज की यादगार मोहब्बत को नमन करते हैं. वहीं मोहब्बत की इस नगरी में खून से लथपथ आशिकी की अनगिनत कहानियां दफन हैं.

आगरा के अशोक विहार में नाथूराम अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिता रहे थे. उन के 3 बेटे थे सुशील, वीरेंद्र और नरेंद्र. नाथूराम सेना में सीनियर औडिटर थे. उन का बड़ा बेटा सुशील भी सेना में ही था. छोटा नरेंद्र पढ़ रहा था और मंझले बेटे वीरेंद्र की नौकरी पंजाब में भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में लग गई थी. कुल मिला कर नाथूराम का अच्छा खुशहाल और आर्थिक रूप से संपन्न परिवार था. लेकिन समय के चक्र के साथ जीवन में बदलाव आते रहते हैं. 14 साल पहले नाथूराम के मंझले बेटे वीरेंद्र की शादी गढ़ी भदौरिया निवासी ओमप्रकाश की बेटी भावना के साथ हुई थी. भावना की 2 बहनें शादीशुदा थीं और खुशहाल जीवन बिता रही थीं. इन का एक भाई था.

वीरेंद्र गंभीर प्रवृत्ति का व्यक्ति था. उस की जिंदगी की गाड़ी ठीक चल रही थी. भावना ने कालांतर में आयुष और शुभि को जन्म दिया. सब कुछ ठीक था, भावना अपने पति और बच्चों के साथ खुश थी. वीरेंद्र भी अपनी सरकारी नौकरी की जिम्मेदारियां निभा रहा था. लेकिन अचानक कालचक्र अपनी धुरी पर उल्टा घूमने लगा. वीरेंद्र ने आगरा की पंचशील कालोनी में अपनी कोठी बनवाई. वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों को खुशहाल जीवन देना चाहता था. करीब 3 साल पहले वीरेंद्र का तबादला आगरा हो गया वह अपने परिवार के साथ पंचशील कालोनी स्थित अपनी कोठी नंबर 12 में रहने लगा. वीरेंद्र बीएसएनएल में जूनियर इंजीनियर के पद पर था. उस की तैनाती आगरा के बिजली घर स्थित बीएसएनएल औफिस में थी. अपने पद के अलावा उस के पास एसडीओ का चार्ज भी था.

वीरेंद्र के पिता फौज की नौकरी से रिटायर हो चुके थे. अपने औफिस जाने से पहले वीरेंद्र पिता के लिए खाना देने उन के अशोक विहार स्थित घर पर जाता था. कालांतर में सुशील भी लांस नायक पद से रिटायर हो गए. जबकि नरेंद्र बीटेक के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. यानी सभी अपनेअपने काम में व्यस्त थे. जिंदगी के रंगों को अचानक छुआ भावना की साड़ी ने

एक दिन वीरेंद्र अपनी पत्नी और बच्चों के साथ किसी शादी समारोह में गया. वहां भावना अचानक उस समय एक युवक से टकरा गई, जब दोनों प्लेट में खाना ले कर निकल रहे थे. युवक ने सौरी कहा. जवाब में भावना ने हंसते हुए कहा, ‘‘कोई बात नहीं, भीड़भाड़ में ऐसा हो जाता है.’’

‘‘लेकिन आप की साड़ी में दाग लग गया है,’’ युवक ने विनम्रता से कहा.

‘‘दाग साड़ी पर ही तो लगा है, धुल जाएगा. बस जीवन पर नहीं लगना चाहिए.’’ भावना बोली.

युवक ने भावना को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी फिलौसफी है आप की मैडम, आप के लिए कुछ लाऊं?’’

भावना को युवक की विनम्रता पसंद आई. वह बोली, ‘‘हां, कुछ मीठा ले आइए.’’

युवक आइसक्रीम ले आया. आइसक्रीम देने के बाद वह बोला, ‘‘मैडम, क्या मैं जान सकता हूं कि आप कहां रहती हैं?’’

‘‘मैं पंचशील कालोनी में रहती हूं,’’ भावना ने इधरउधर देखते हुए कहा, ‘‘अच्छा, मैं जाती हूं, बच्चों ने कुछ खाया है या नहीं?’’ कह कर भावना वहां से चली गई.

वह युवक दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था. नाम था कपिल.

29 साल का कपिल एक रिटायर्ड अफसर का बेटा था. उस के पिता सूरजभान एफसीआई से रिटायर थे.  वह दिल्ली के अशोक विहार में रहते थे. उन का बड़ा बेटा देवेंद्र भी दिल्ली नगर निगम में जूनियर इंजीनियर था, अत: कपिल ने देवेंद्र के पास रह कर ही पढ़ाई की थी. कपिल शनिवार और रविवार की छुट्टियों में घर पर ही रहता था. नौकरी मिलने के बाद उस ने दिल्ली में किराए पर अलग कमरा ले लिया था. कपिल का दोस्त मनीष कपिल के साथ उस के कमरे में रह कर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. वह बीटेक पास कर चुका था और आगरा की पंचशील कालोनी स्थित अपने घर आनाजाना रहता था.

उस दिन शादी समारोह में कपिल और भावना की वह छोटी सी मुलाकात कुछ ऐसा गुल खिलाएगी, जिस में सब कुछ तबाह हो जाएगा, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. दिल्ली आने के बाद कपिल ने मनीष को बताया कि आगरा में शादी समारोह में उसे पंचशील कालोनी की एक महिला मिली थी, जिस से उस की बातचीत भी हुई थी. तुम तो पंचशील कालोनी में ही रहते हो, जरा पता लगाना कि कौन है. मनीष ने ठहाका लगाया, ‘‘तूने मुझे क्या जासूस समझ रखा है? पंचशील में क्या वही एक औरत ही रहती है? अरे भाई, न नाम, न पता, इतनी बड़ी कालोनी में कैसे ढूंढेंगे उसे. वैसे उस औरत में ऐसा क्या है जो उसे तलाश कर उसे तुझ से मिलाना चाहिए.’’

‘‘कुछ नहीं यार, बस जरा यूं ही. उस से एक बार फिर बात करने की इच्छा हो रही है.’’

‘‘ठीक है इस बार आगरा चलेंगे तो कालोनी के चक्कर लगाएंगे, शायद वह कहीं मिल जाए.’’ कह कर मनीष ने बात खत्म की.

भावना का पति वीरेंद्र व्यस्त अधिकारी था. उसे सुबह 10 बजे औफिस पहुंचना होता था और शाम 6 बजे घर लौटता था. सुबहशाम वह पिता को अशोक विहार स्थित घर जा कर खाना भी पहुंचाता था. कुल मिला कर भावना को लगता कि उस का पति आम पतियों की तरह उस की भावनाओं पर ध्यान नहीं देता. फिर अचानक उस के जेहन में शादी समारोह में मिला वह युवक घूमने लगता था. एक दिन अचानक फेसबुक पर भावना को एक फ्रैंड रिक्वेस्ट आई. फोटो देख कर वह चौंकी. अरे यह तो वही युवक है. उस के दिल की धड़कनें तेज होने लगीं. उस ने खुद को आईने में निहारा और सोचा उस के चेहरे पर अभी भी कुछ ऐसा है, जो किसी युवक को आकर्षित कर सकता है.

साड़ी का रंग सोच में उतरने लगा भावना जानती थी कि वह 39 साल की है और 2 बच्चों की मां भी. जबकि युवक काफी कमउम्र का था. समय काटने के लिए दोस्त बना लेने में कोई हर्ज नहीं है. सोच कर उस ने कपिल नाम के उस युवक की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. कपिल बहुत खुश था, उसे मनचाही मुराद मिल गई थी. फेसबुक पर बात का सिलसिला शुरू हो गया, जो निकट भविष्य में कुछ और ही रंग लाने वाला था. चैटिंग के दौरान एक दिन कपिल ने भावना की एक फोटो पर लिख कर भेजा, ‘‘आप बहुत सुंदर हैं.’’

अपनी तारीफ सुन कर भावना का दिल बल्लियों उछलने लगा. उस ने थैंक्स के साथ लिखा कि आज तक मेरी किसी ने तारीफ नहीं की. उस दिन भावना देर तक सोचती रही कि उस ने वीरेंद्र के साथ शादी कर के गलती कर दी थी. पैसा ही सब कुछ नहीं होता. वह उसे कोमल भावनाओं से भरी पत्नी नहीं बल्कि मशीन की तरह इस्तेमाल करता है. वीरेंद्र के प्रति वितृष्णा के भाव मन में आ चुके थे. उस रात काम खत्म कर के जब वह पलंग पर आई तो वीरेंद्र एक फाइल देख रहा था. भावना ने कहा, ‘‘कभी अपनी बीवी के दिल की फाइल भी पढ़ लिया करो.’’

वीरेंद्र हंसते हुए बोला, ‘‘बताओ, क्या है तुम्हारे दिल में?’’

‘‘यह तो तुम भी जानते हो कि पत्नी क्या चाहती है?’’ वह बोली.

‘‘सब कुछ तो है तुम्हारे पास. खर्चे के लिए मैं पैसा भी बराबर देता हूं, जो जरूरत हो ले लो.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘मुझे जो चाहिए, उसे पैसे से नहीं खरीदा जा सकता. क्या तुम अपनी पत्नी की तारीफ में दो मीठे बोल भी नहीं कह सकते. बताओ क्या मैं सुंदर नहीं हूं?’’

‘‘ओह तो यह बात है.’’ वीरेंद्र बोला, ‘‘कभी आईने में खुद को गौर से देखा है. 2 बच्चों की मां हो, उन का भी कुछ खयाल किया करो. तुम जैसी हो वैसी ही रहोगी, तारीफ करने से कुछ भी बदलने वाला नहीं है. अच्छा, अब बहुत रात हो गई है. चलो सो जाओ.’’

पति की बातें भावना को चुभ गईं. उस ने सोचा कि इस से अच्छा तो वह कपिल है जो उस की तारीफ करता है. धीरेधीरे कपिल उस के दिलोदिमाग पर छाने लगा. दोनों में चैटिंग तो होती ही थी दोनों ने फोन नंबर और अपना पता एकदूसरे को बता दिया. इस के बाद कभीकभी कपिल छुट्टी ले कर आगरा आने लगा. मौका देख कर वह भावना से भी मिलने लगा. कपिल को यह बात अच्छी तरह पता चल चुकी थी कि पति और बच्चों के होते हुए भी भावना बिलकुल तनहा है. वह वीरेंद्र के साथ खुश नहीं है. कभीकभी भावना कहती, ‘‘कपिल, यह जिंदगी एक जेल की तरह है और मैं खुद को आजीवन कारावास की सजा पाए हुए कैदी की तरह महसूस करती हूं.’’

‘‘तो फिर निकल जाओ न इस कैद से.’’ नादान कपिल ने सलाह दी.

‘‘मैं एमएससी पास हूं. कुछ कर के अपनी जिंदगी संवार सकती थी, पर पिता ने मुझे बोझ की तरह उतार फेंका. पढ़ाई के बाद कुछ भी मन का नहीं करने दिया और इस जंजाल में फंस गई. बच्चे पैदा कर के उन की आया बन जाओ और दिनरात घर के लोगों के लिए खाना पकाओ. बस, यही जिंदगी है मेरी.’’

भावना की खीझ और कुंठा उस के व्यक्तित्व को घेर रही थी और उस का नादान प्रेमी उन शोलों को हवा दे रहा था. दोनों इस बात से अनजान थे कि यदि ये शोले भड़क गए तो सब जल कर राख हो जाएगा. भावना और कपिल के बीच नाजायज संबंध बन चुके थे. भावना खुद को कपिल की बांहों में सुरक्षित महसूस कर रही थी. वह यह भूल गई थी कि वह उम्र में कपिल से बड़ी है और विवाह जैसे बंधन को अपवित्र कर एक बड़ा गुनाह कर रही है. लेकिन कपिल के प्रति उस की दीवानगी ने उस की सोच पर परदा डाल दिया था. धीरेधीरे वक्त गुजर रहा था और दीवानगी भरी मोहब्बत के बंधन और मजबूत हो रहे थे. भावना पति और बच्चों की परवाह किए बिना कुछ पाने की चाह में खतरनाक राह पर चली जा रही थी.

काश! वीरेंद्र ने स्थिति को संभाला होता वीरेंद्र अभी तक इस खेल से अनजान था. बच्चों को भी कोई जानकारी नहीं थी, पर कोई भी गुनाह ज्यादा दिन तक नहीं छिप पाता. यह गुनाह भी नहीं छिप पाया. एक दिन वीरेंद्र औफिस से कुछ जल्दी ही वापस आ गया. उस ने देखा कि कोई युवक अभीअभी उस के घर से बाहर निकला था. इस से पहले कि वह अपनी गाड़ी लौक कर के उसे पहचान पाता, वह चला गया. वीरेंद्र ने डोरबैल बजाई तो भावना ने दरवाजा खोलते हुए कहा, ‘‘अरे तुम फिर वापस आ गए.’’

लेकिन सामने वीरेंद्र खड़ा था. पति को देखते ही भावना का चेहरा पीला पड़ गया. वीरेंद्र ने उस से पूछा, ‘‘कौन था वह?’’

‘‘कौन..? किस की बात कर रहे हो तुम?’’ वह बोली.

‘‘वही जो अभीअभी घर से निकल कर गया है.’’ वीरेंद्र ने कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हो तुम, यहां से तो कोई नहीं निकला. तुम ने जरूर कहीं और  किसी को देखा होगा. चलो आओ, चाय बनाती हूं.’’ भावना ने बात संभालते हुए कहा.

लेकिन वीरेंद्र के दिल में शक का बीज पड़ चुका था. पिछले कुछ समय से उसे पत्नी का व्यवहार परेशान कर रहा था. अंदर आ कर उस ने देखा कि मेज पर बादाम, काजू की प्लेटें रखी थीं. भावना ने वीरेंद्र की नजरों को भांप लिया. उस ने कहा, ‘‘मैं ने सोचा कि बच्चों के लिए कुछ बनाऊंगी, अभीअभी निकाले हैं. तुम खाओ, मैं चाय लाती हूं.’’ कह कर भावना किचन में चली गई. वीरेंद्र को समस्या और उस के हल को खोजना था. पत्नी किस के साथ दोस्ती पाले हुए है, यह जानना बहुत जरूरी था. इस से पहले कि वीरेंद्र भावना का फोन चैक करता, भावना ने कपिल की दी हुई सिम फोन में से निकाल दी.

भावना और कपिल के संबंधों की जानकारी वीरेंद्र को करीब डेढ़ साल बाद मिली, तब तक नाजायज संबंधों की बेल काफी बढ़ चुकी थी. इतना ही नहीं, बल्कि दोनों का संबंध खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका था. इधर कपिल के पिता सूरजभान ने उस के लिए रिश्ते की तलाश शुरू कर दी, लेकिन कपिल तय कर चुका था कि भावना ही उस की हमसफर बनेगी. एक दिन उस ने मन की बात भावना को बताई तो वह चौंकी.

‘‘ये क्या कह रहे हो तुम? मैं तुम से उम्र में बड़ी हूं और 2 बच्चों की मां भी. ऐसे में मेरे बच्चों का क्या होगा?’’

‘‘बच्चे काफी बड़े हैं. उन्हें उन का बाप देखेगा. और रही उम्र की बात तो तुम्हारी उम्र से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता. तुम तलाक ले लो वीरेंद्र से.’’ कपिल ने साफ कहा.

‘‘ठीक है, मैं सोचूंगी.’’ भावना ने कहा.

इधर वीरेंद्र काफी डर गया था. क्योंकि भावना का रवैया पिछले कुछ दिनों से अच्छा नहीं था. वीरेंद्र जानता था कि वासना से पीडि़त बुद्धिहीन औरत कुछ भी कर सकती है. सुरक्षा के लिहाज से उस ने दरवाजों पर लोहे के जालीदार दरवाजे भी लगवा दिए पर वह यह भी जानता था कि खतरा कहीं बाहर नहीं बल्कि वह तो उस के घर में ही मौजूद है. वीरेंद्र ने अपने कुछ खास परिचितों को बताया भी था कि वह इन दिनों खुद को खतरे में महसूस कर रहा है, पर खतरा कैसा है यह वह किसी को बता नहीं पाया. आखिर एक दिन वीरेंद्र को यह बात पता चल ही गई कि दिल्ली नगर निगम में काम करने वाले कपिल का उस की पत्नी के पास आनाजाना है. यह जान कर वह सन्न रह गया. समस्या को जान लेने के बाद उस का उपचार कैसे किया जाए, यह बात उस की समझ में नहीं आ रही थी.

इधर कपिल इस बात पर जोर दे रहा था कि भावना जल्द से तलाक ले ले. लेकिन भावना जानती थी कि अगर उस ने वीरेंद्र से तलाक ले लिया तो संपत्ति से हाथ धो बैठेगी. उस ने साफ कह दिया कि तलाक तो नहीं ले सकती, कुछ और सोचो. इधर वीरेंद्र ने भी तय किया कि वह पत्नी पर नजर रखेगा. इसलिए वह जबतब अचानक घर आ जाता. पति की इस हरकत से भावना का गुस्सा बढ़ गया. आए दिन दोनों में झगड़ा होता. दोनों बच्चे सहमे हुए रहने लगे. एक दिन वीरेंद्र ने कहा कि भावना इस बार तुम अपना बर्थडे सेलिब्रेट करना, मैं तुम्हें एक अच्छा गिफ्ट दूंगा. वीरेंद्र ने ऐसा ही किया भी. उस ने पत्नी को एक महंगा मोबाइल फोन गिफ्ट किया.

इतना ही नहीं वीरेंद्र ने भावना के लिए कार भी खरीदी. उस ने सोचा कि शायद उस के व्यवहार से प्रभावित हो कर भावना सही रास्ते पर आ जाए और दोनों का वैवाहिक जीवन बिगड़ने से बच जाए. पर भावना पर आशिकी का नशा इतना चढ़ चुका था कि उतरने के लिए किसी बड़ी साजिश का इंतजार कर रहा था. संदेह था वीरेंद्र की हत्या हुई  5 जनवरी, 2020 की रात 3 बजे आगरा के एस.एन. अस्पताल में 2 लोग एक व्यक्ति को जख्मी हालत में लाए. उन्होंने बताया कि वे लोग घायल को पहले साकेत कालोनी के प्रशांत अस्पताल ले गए थे. लेकिन उन्होंने भरती करने से इनकार कर दिया. तब वे उसे दिल्ली गेट स्थित पुष्पांजलि अस्पताल ले गए. लेकिन हालत गंभीर होने के कारण उसे एस.एन. मैडिकल कालेज रैफर कर दिया गया है.

पूछताछ में पता चला कि वह जख्मी व्यक्ति बीएसएनएल का जेटीओ है. जख्मी का डाक्टरों ने परीक्षण किया तो वह मृत पाया गया. प्रथमदृष्टया यह मामला हत्या का था, इसलिए अस्पताल प्रशासन ने तुरंत पुलिस को सूचना दे दी. थाना शाहगंज के इंसपेक्टर अरविंद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ तुरंत अस्पताल पहुंच गए. उन्होंने यह बात उच्चाधिकारियों को भी बता दी. पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. मृतक को इमरजेंसी में लाने वाले मृतक के बड़े भाई सुशील वर्मा और उन का बेटा प्रशांत थे. पोस्टमार्टम के बाद जो रिपोर्ट आई, उस से पता चला कि वीरेंद्र की मौत चेहरे और छाती पर लगे जख्मों और पसलियों के टूटने से हुई थी. पसलियां किसी भारी चीज से तोड़ी गई मालूम होती हैं. संभवत: हत्या को एक्सीडेंट केस बनाने की कोशिश की गई थी. रिपोर्ट में गला दबाना भी बताया गया था.

पूछताछ में सुशील ने पुलिस को बताया कि रात को उस की भाभी भावना का फोन आया कि वीरेंद्र किसी का फोन सुन कर घर से 7 हजार रुपए ले कर पैदल ही चले गए. जब वह नहीं लौटे तो उस ने उन्हें फोन किया. लेकिन काल रिसीव नहीं की गई. फिर फोन स्विच्ड औफ हो गया. भावना ने आगे बताया था कि किसी परिचित ने 10 हजार रुपए मांगे थे, लेकिन घर में 7 हजार रुपए ही थे. सुशील ने बताया कि भावना की बात सुनते ही वह अपने बेटे के साथ भाई को खोजने निकल गया. रात लगभग 3 बजे वीरेंद्र जख्मी हालत में घर से करीब 400 मीटर की दूरी पर दीप इंटर कालेज के पास खाली प्लौट के सामने मिले, जिन्हें वह गाड़ी में डाल कर ले आया.

पुलिस ने सुशील की तहरीर पर आईपीसी की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. सुशील ने पुलिस को बताया कि वीरेंद्र किसी को पैसे देने के लिए रात को एक बजे अकेले ही घर से निकले थे. लेकिन मौकाएवारदात पर पुलिस को कोई पैसा या मोबाइल नहीं मिला था. मृतक की हत्या जिस तरीके से की गई थी, उसे देख कर लूट का मामला तो बिलकुल भी नहीं लग रहा था. यह बात सुशील के गले भी नहीं उतर रही थी, क्योंकि वीरेंद्र शाम के बाद कभी अकेले घर से नहीं निकलते थे. पुलिस ने फूटफूट कर रो रही भावना से पूछताछ की तो उस ने कहा कि उस ने पति को अकेले रात में बाहर निकलने से मना किया था, पर वह नहीं माने और चले गए. भावना के हावभावों से पुलिस को शंका हो रही थी.

मामले की जांच का कार्य एसएसपी बबलू कुमार ने सीओ नम्रता श्रीवास्तव को सौंप दिया. शाहगंज थाने की टीम और सर्विलांस टीम को भी इस केस की जांच में लगाया गया. इसी के साथ हत्याकांड के खुलासे में एसपी (सिटी) बोत्रे रोहन, प्रमोद और उन की टीम भी लग गई. एसपी (सिटी) खुद इंजीनियर हैं, सर्विलांस टीम में भी कई इंजीनियर थे. पुलिस ने सब से पहले मृतक के एक नजदीकी रिश्तेदार से पूछताछ की. उस ने बताया कि भावना की कपिल नाम के एक युवक के साथ दोस्ती थी और कपिल का गहरा दोस्त था मनीष. 2 साल पहले कपिल की नौकरी दिल्ली नगर निगम में लग गई थी. वह अपने दोस्त मनीष के साथ किराए के कमरे में रहता है और मनीष का पूरा खर्च उठाता है.

अब पुलिस का फोकस नाजायज संबंधों पर ठहर गया. पुलिस ने कपिल और मनीष के बारे में जांच कर पता लगा लिया कि आगरा की पंचशील कालोनी में रहने वाला मनीष राम सिंह का बेटा है, जो एक फैक्ट्री में काम कर के परिवार पालता है. मनीष का एक छोटा भाई भी है. पुलिस मनीष को दिल्ली से ले आई और उस से पूछताछ शुरू कर दी. उधर पुलिस की एक टीम पंचशील कालोनी और घटनास्थल के आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच कर रही थी. लेकिन कोहरे के कारण किसी सीसीटीवी कैमरे में कोई फोटो नहीं आ पाई थी, पर कालोनी के लोगों ने बताया कि 5 जनवरी, 2020 की रात में वीरेंद्र के घर पास एक कार देखी गई थी.

वीरेंद्र के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस के फोन की आखिरी लोकेशन कालोनी में ही मिली. पुलिस को गुमराह करने के लिए हत्यारे ने फरजी नामपते पर एक सिम ली थी. साजिश को अंजाम देने के लिए उसी सिम से वीरेंद्र को काल की गई थी. शक होने पर पुलिस ने भावना को भी हिरासत में ले लिया. पुलिस ने मनीष और भावना से सख्ती से पूछताछ की तो उन के टूटने में ज्यादा देर नहीं लगी. इस के बाद कपिल को भी पुलिस दिल्ली से गिरफ्तार कर ले आई. पूछताछ में उन्होंने अपना गुनाह कबूल कर लिया. पता चला कि नाजायज रिश्ते बरकरार रखने और अपनीअपनी खुशियां पाने के लिए उन्होंने हत्या की साजिश एक महीने पहले रची थी और उसे 4 जनवरी को अंजाम दिया था. अपनी खुशी और सुख पाने के लिए भावना इतनी अंधी हो गई थी कि उस ने यह तक नहीं सोचा कि उस के इस कदम के बाद बच्चों का क्या होगा.

योजना के मुताबिक, 5 जनवरी, 2020 को कपिल अपने दोस्त दीपक की कार ले कर मनीष के साथ रात में आगरा पहुंचा. उस समय रात के करीब 12 बज चुके थे. भावना ने अपने घर का बाहरी दरवाजा खुला छोड़ दिया. दोनों अंदर आ गए. उस समय वीरेंद्र सो रहा था. कपिल ने तकिए से उस का मुंह और मनीष ने गला दबाया. भावना ने पति के पैर पकड़ लिए ताकि वह विरोध न कर सके.  जब वीरेंद्र ने छटपटाना बंद कर दिया तो तीनों ने मिल कर उसे कार में डाला और दीप इंटर कालेज के पास एक खाली प्लौट के सामने चार फुटा रोड पर डाल दिया. इस के बाद कई बार उस की लाश पर कार चढ़ाई, जिस से उस की पसलियां टूट गईं.

कोशिश की, लेकिन पुलिस को नहीं लगा एक्सीडेंट बेशक कातिलों ने हत्या को एक्सीडेंट का रूप देने की कोशिश की, पर पुलिस की सूझबूझ से राज खुल ही गया. इश्क की मारी भावना का कोई ड्रामा काम नहीं आया. हत्या के बाद कपिल और मनीष दिल्ली आए थे लेकिन उन दोनों के मोबाइल फोनों की लोकेशन निकलवाई गई तो मनीष के फोन की लोकेशन घटनास्थल पर और फिर दिल्ली की पाई गई. भावना ने फोन की काल डिटेल्स निकाली गई तो हत्या से पहले उस की कपिल से बात होने की पुष्टि हुई. पुलिस ने 48 घंटे में इस हत्याकांड से परदा उठा दिया और तीनों आरोपियों भावना, कपिल और मनीष को गिरफ्तार कर 8 जनवरी, 2020 को पुलिस जब कोर्ट ले गई तो उन्हें देखने के लिए भारी भीड़ जमा हो गई. तीनों को सुरक्षा घेरे में ले कर अदालत में पेश किया गया. जैसे ही अदालत ने उन्हें जेल भेजने के आदेश दिए तो तीनों आरोपी रोने लगे.

अपने सुख के लिए पति नाम के कांटे को रास्ते से हटाने के लिए भावना ने गहरी चाल चली थी. भावना ने सोचा था कि विधवा हो जाने पर उसे सहानुभूति और प्रौपर्टी दोनों ही मिलेंगी, पर इस अपराध के लिए उसे मिली जेल. कुछ रिश्तेदारों और अपनों ने भावना से मुंह फेर लिया. अब उस के पास काली अंधी दुनिया के सिवाय कुछ नहीं है. भावना का बेटा 7वीं कक्षा में और बेटी 6ठी कक्षा में पढ़ती है. उन्हें नहीं मालूम कि मां ने उन्हें अनाथ क्यों किया. एक कातिल मां की इस कारगुजारी का बच्चों पर क्या असर होगा, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा. पर मां ने फिलहाल तो उन से उन के हिस्से की खुशियां छीन ही लीं.

 

 

Extramarital Affair : पत्‍नी से अवैध संबंध बनाने वाले दोस्‍त को मार कर दफनाया

Extramarital Affair : पंकज और आशीष की गहरी दोस्ती थी, इसी दोस्ती के चलते आशीष और पंकज की पत्नी अनीता के बीच नाजायज संबंध बन गए. यह बात जब पंकज को पता चली तो उस ने…

मध्य प्रदेश के जिला नरसिंहपुर की एक तहसील है गोटेगांव. इस तहसील क्षेत्र में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल झोतेश्वर होने की वजह से छोटा शहर होने के बावजूद गोटेगांव खासा प्रसिद्ध है. गोटेगांव के इलाके में ही एक गांव है कोरेगांव. 8 दिसंबर, 2019 की सुबह कोरेगांव का रहने वाला खुमान ठाकुर झोतेश्वर पुलिस चौकी की इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री के पास आया. उस ने अंजलि को बताया कि उस के भाई का बड़ा लड़का आशीष 6 दिसंबर को किसी काम से घर से निकला था, लेकिन वापस नहीं लौटा. उन्होंने उसे गांव के आसपास के अलावा सभी रिश्तेदारों के यहां तलाश किया, लेकिन उस की कोई खबर नहीं मिली. उस ने आशीष की गुमशुदगी दर्ज कर उसे तलाशने की मांग की.

एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान से पूछा, ‘‘आप को किसी पर कोई शक हो तो बताओ.’’ खुमान के साथ आए उस के दामाद कृपाल ने बताया कि 6 दिसंबर को उस ने आशीष को उस के दोस्तों पंकज और सुरेंद्र के साथ खेतों की तरफ जाते देखा था. उस ने यह भी बताया कि आशीष के परिवार के लोगों ने जब पंकज और सुरेंद्र को बुला कर पूछताछ की तो वे इस बात से साफ मुकर गए कि आशीष उन के साथ था. इसलिए हमें उन पर शक हो रहा है. चौकी इंचार्ज अंजलि अग्निहोत्री ने खुमान की शिकायत दर्ज कर इस घटना की सूचना तत्काल एसपी गुरुचरण सिंह, एसडीपीओ (गोटेगांव) पी.एस. बालरे और टीआई प्रभात शुक्ला को दे दी.

एसडीपीओ के निर्देश पर चौकी इंचार्ज एसआई अंजलि अग्निहोत्री ने कोरेगांव में पंकज और सुरेंद्र के घर दबिश तो दोनों घर पर ही मिल गए. उन दोनों से पुलिस चौकी में पूछताछ की गई तो पंकज और सुरेंद्र ने बताया कि हम तीनों दोस्त मछली मारने के लिए गांव से बाहर खेतों के पास वाले नाले पर गए थे. मछली मारते समय नाले के पास से जाने वाली मोटरपंप की सर्विस लाइन से आशीष को करंट लग गया, जिस से उस की मौत हो गई. उन्होंने बताया कि आशीष की इस तरह हुई मौत से वे दोनों घबरा गए. डर के मारे उन्होंने आशीष के शव को नाले के समीप ही गड्ढा खोद कर दफना दिया.

पुलिस को पंकज और सुरेंद्र द्वारा गढ़ी गई इस कहानी पर विश्वास नहीं हुआ. उधर आशीष का छोटा भाई आनंद ठाकुर पुलिस से कह रहा था कि उस के भाई की हत्या की गई है. मामला संदेहपूर्ण होने के कारण पुलिस ने गोटेगांव के एसडीएम जी.सी. डहरिया को पूरे घटना क्रम की जानकारी दे कर दफन की गई लाश को निकालने की अनुमति ली. उसी दिन गोटेगांव एसडीपीओ पी.एस. बालरे, फोरैंसिक टीम सहित दोनों आरोपियों को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. आरोपियों की निशानदेही पर कोरेगांव के नाले के पास खेत में बने एक गड्ढे से लाश निकाली गई.

आशीष के पिता ने लाश के हाथ पर बने टैटू को देखा तो वह फूटफूट कर रोने लगा. लाश के गले पर घाव और खून का निशान था. इस से स्पष्ट हो गया कि आशीष की मौत करंट लगने से नहीं हुई, बल्कि उस की हत्या की गई थी. पुलिस ने मौके की काररवाई पूरी करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए जबलपुर मैडिकल कालेज भेज दी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बताया गया कि आशीष की मौत बिजली के करंट से नहीं, बल्कि किसी धारदार हथियार से गले पर किए गए प्रहार से हुई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट पढ़ कर पुलिस को पूरा यकीन हो गया कि आशीष की हत्या पंकज और सुरेंद्र ने ही की है.

पुलिस ने दोनों आरोपियों से जब सख्ती से पूछताछ की तो पंकज जल्दी ही टूट गया. उस ने पुलिस के सामने आशीष की हत्या करने की बात कबूल ली. आशीष ठाकुर की हत्या के संबंध में उस ने पुलिस को जो कहानी बताई, वह अवैध संबध्ाोंं पर गढ़ी हुई निकली—

आदिवासी अंचल के छोटे से गांव कोरेगांव के साधारण किसान पुन्नूलाल का बड़ा बेटा आशीष और गांव के ही जगदीश ठाकुर के बेटे पंकज की आपस में गहरी दोस्ती थी. हमउम्र होने के कारण दोनों का दिनरात मिलनाजुलना बना रहता था. आशीष पंकज के घर आताजाता रहता था. पंकज ठाकुर की शादी हो गई थी और पंकज की पत्नी अनीता (परिवर्तित नाम) से भाभी होने के नाते आशीष हंसीमजाक किया करता था. एक लड़की के जन्म के बाद भी अनीता का बदन गठीला और आकर्षक था. अनीता आशीष की शादी की बातों को ले कर उस से मजाक किया करती थी. 24 साल का आशीष उस समय कुंवारा था. वह अनीता की चुहल भरे हंसीमजाक का मतलब अच्छी तरह समझता था. देवरभाभी के बीच होने वाली इस मजाक का कभीकभार पंकज भी मजा ले लेता था.

दोस्तों के साथ मोबाइल फोन पर अश्लील वीडियो देख कर आशीष के मन में अनीता को ले कर वासना का तूफान उठने लगा था. इसी के चलते वह अनीता से दैहिक प्यार करने लगा. उसे सोतेजागते अनीता की ही सूरत नजर आने लगी थी. पंकज का परिवार खेतीकिसानी का काम करता था. घर के सदस्य दिन में अकसर खेतों में काम करते थे. इसी का फायदा उठा कर आशीष पंकज की गैरमौजूदगी में अनीता से मिलने आने लगा. करीब 2 साल पहले सर्दियों की एक दोपहर में आशीष पंकज के घर पहुंचा तो अनीता की 2 साल की बेटी सोई हुई थी और अनीता नहाने के बाद घर की बैठक पर कपड़े बदल रही थी.

अनीता के खुले हुए अंगों और उस की खूबसूरती को देखते ही आशीष के अंदर का शैतान जाग उठा. वह घर की बैठक के एक कोने में पड़ी चारपाई पर बैठ गया और अनीता से इधरउधर की बातें करने लगा.

बातचीत के दौरान जैसे ही अनीता उस के पास आई, उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया और बोला, ‘‘भाभी, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं.’’

आशीष के बंधन में जकड़ी अनीता ने उसे समझाते हुए कहा, ‘‘आशीष, छोड़ो, कोई देख लेगा.’’

इस पर आशीष ने उस के गालों को चूमते हुए कहा, ‘‘भाभी, मैं तुम से प्यार करता हूं तो डरना क्या.’’

अनीता कुछ शरमाई तो आशीष ने उसे अपने सीने से दबाते हुए अपने होंठे उस के होंठों पर रख दिए. देखते ही देखते आशीष के कृत्य की इस चिंगारी से उठी वासना की आग ने अनीता को भी अपने आगोश में ले लिया. आपस की हंसीमजाक से शुरू हुआ प्यार का यह सफर वासना के खेल में बदल गया. अनीता अपना सब कुछ आशीष को सौंप चुकी थी. अब जब भी पंकज के घर के लोग काम के लिए निकल जाते, आशीष अनीता के पास पहुंच जाता और दोनों मिल कर अपनी हसरतें पूरी करते. एक बार पंकज ने आशीष को अनीता के साथ ज्यादा नजदीकी से बात करते देख लिया, तब से उस के दिमाग में शक का कीड़ा बैठ गया. उस ने अनीता को आशीष से दूर रहने की हिदायत दे कर आशीष से इस बारे में बात की तो वह दोस्ती की दुहाई देते हुए बोला, ‘‘तुम्हें गलतफहमी हुई है, मैं तो भाभी को मां की तरह मानता हूं.’’

लेकिन प्यार के उन्मुक्त आकाश में उड़ने वाले इन पंछियों पर किसी की बंदिश और समझाइश का कोई असर नहीं पड़ा. आशीष और अनीता के प्यार का खेल बेरोकटोक चल रहा था. जब भी उन्हें मौका मिलता, दोनों अपनी जिस्मानी भूख मिटा लेते थे. पंकज भी अब पत्नी अनीता पर नजर रखने लगा था. पंकज अकसर सुबह को खेतों में काम के लिए निकल जाता और शाम को ही वापस आता था. लेकिन एक दिन जब वह दोपहर में ही घर लौट आया तो अपने बिस्तर पर आशीष और अनीता को एकदूसरे के आगोश में देख लिया. अपनी पत्नी को पराए मर्द की बांहों में देख कर उस का खून खौल उठा. आशीष तो जल्दीसे अपने कपड़े ठीक कर के वहां से चुपचाप निकल गया, मगर क्रोध की आग में जल रहे पंकज ने अपनी पत्नी अनीता की जम कर धुनाई कर दी.

पंकज ने बदनामी के डर से यह बात किसी को नहीं बताई. वह गुमसुम सा रहने लगा और आशीष से मिलनाजुलना भी कम कर दिया. अब उस ने गांव के एक अन्य युवक सुरेंद्र ठाकुर से दोस्ती कर ली. इसी दौरान आशीष की शादी भी हो गई और उस ने अनीता से मिलनाजुलना बंद कर दिया. लेकिन पंकज के दिल में बदले की आग अब भी जल रही थी. उस की आंखों में आशीष और अनीता का आलिंगन वाला दृश्य घूमता रहता था. उस के मन में हर समय यही खयाल आता था कि कब उसे मौका मिले और वह आशीष का गला दबा दे. पंकज सोचता था कि जिस दोस्त के लिए वह जान की बाजी लगाने को तैयार रहता, उसी दोस्त ने उस की थाली में छेद कर दिया.

6 दिसंबर के दिन योजना के मुताबिक सुरेंद्र ठाकुर आशीष को मछली मारने के लिए गांव के बाहर नाले पर ले गया. नाले के पास ही पंकज ठाकुर अपने खेतों पर उन दोनों का इंतजार कर रहा था. उस ने आशीष और सुरेंद्र को नाले में मछती मारते हुए देखा तो वह खेत पर रखे चाकू को जेब में छिपा कर नाले के पास आ गया. आशीष नाले के पानी में कांटा डाले मछली पकड़ने में तल्लीन था. तभी पंकज ने मौका पा कर आशीष के गले पर चाकू से धड़ाधड़ कई वार किए तो आशीष छटपटा कर जमीन पर गिर गया. कुछ देर में उस ने दम तोड़ दिया. यह देख पंकज ने अपने खेतों से फावड़ा ला कर गड्ढा खोदा और सुरेंद्र की मदद से आशीष को दफना दिया. चाकू और फावड़े को इन लोगों ने खेत के पास झाडि़यों में छिपा दिया. फिर कपड़ों पर लगे खून के छींटों को नाले में धोया और दोनों अपनेअपने घर चले गए.

हत्या के बाद दोनों सोच रहे थे कि उन्हें किसी ने नहीं देखा. लेकिन आशीष के जीजा कृपाल ने सुरेंद्र और आशीष को नाले की तरफ जाते देख लिया था. इसी आधार पर घर वालों ने सुरेंद्र और पंकज पर संदेह होने की बात पुलिस को बताई थी. पंकज ने बिना सोचेसमझे बदले की आग में अपने दोस्त पंकज का कत्ल तो कर दिया, लेकिन कानून की पकड़ से नहीं बच सका. पंकज और सुरेंद्र के इकबालिया बयान के आधार पर आशीष ठाकुर की हत्या के आरोप में गोटेगांव थाने में भादंवि की धारा 302, 201, 34 के तहम मामला कायम कर उन्हें न्यायालय में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

जवानी के जोश में अपने दोस्त की पत्नी से अवैध संबंध बनाने वाले आशीष को अपनी जान गंवानी पड़ी तो पंकज ठाकुर और सुरेंद्र ठाकुर को जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Kanpur Crime : कुंभ स्नान ले जाने के बहाने पत्नी और बेटे का कर दिया कत्ल

Kanpur Crime : सुमन ने अपने मातापिता की इज्जत की परवाह न कर के अमित वर्मा से प्रेम विवाह किया था. लेकिन जब अमित वर्मा की जिंदगी में खुशी आई तो उसे प्रेमिका से पत्नी बनी सुमन आंखों में खटकने लगी. आखिरकार…

31 जुलाई, 2019 का दिन था. सुबह के  करीब 10 बज रहे थे. कानपुर जिले की एसपी (साउथ) रवीना त्यागी अपने कार्यालय में मौजूद थीं, तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति उन के पास आया. वह बेहद मायूस नजर आ रहा था. उस के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही थीं. वह हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मेरा नाम मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा है. मैं नौबस्ता थाने के राजीव विहार मोहल्ले में रहता हूं. मेरी बेटी सुमन ने करीब 8 साल पहले राजेश वर्मा के बेटे अमित वर्मा के साथ प्रेम विवाह किया था. चूंकि बेटी ने यह काम हम लोगों की मरजी के खिलाफ किया था, इसलिए हम ने उस से नाता तोड़ लिया था.

बच्चों के लिए मांबाप का दिल बहुत बड़ा होता है. 2 साल पहले जब वह घर लौटी तो हमें अच्छा ही लगा. तब से बेटी ने हमारे घर आनाजाना शुरू कर दिया था. उस के साथ उस का बेटा निश्चय भी आता था. उस ने हमें बताया था कि वह रवींद्रनगर, नौबस्ता में अमित वर्मा के साथ रह रही है. पर दिसंबर, 2018 से वह हमारे घर नहीं आई. हम ने उस के मोबाइल फोन पर बात करने की कोशिश की लेकिन उस का मोबाइल भी बंद मिला. हम ने बेटी सुमन व नाती निश्चय के संबंध में दामाद अमित वर्मा से फोन पर बात की तो वह पहले तो खिलखिला कर हंसा फिर बोला, ‘‘ससुरजी, अपनी बेटी और नाती को भूल जाओ.’’

मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा ने बताया कि अमित वर्मा की बात सुन कर मेरा माथा ठनका. हम ने गुप्त रूप से जानकारी जुटाई तो पता चला कि दिसंबर के आखिरी सप्ताह से सुमन अपने बेटे के साथ घर से लापता हैं. यह भी जानकारी मिली कि 3 माह पहले अमित ने खुशी नाम की युवती से दूसरा विवाह रचा लिया है. वह हंसपुरम में उसी के साथ रह रहा है. मकसूद ने एसपी के सामने आशंका जताई कि अमित वर्मा ने सुमन व नाती निश्चय की हत्या कर लाश कहीं ठिकाने लगा दी है. उस ने मांग की कि अमित के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवा कर उचित काररवाई करें. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की बातों से एसपी रवीना त्यागी को मामला गंभीर लगा. उन्होंने उसी समय थाना नौबस्ता के थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह यादव को अपने औफिस बुलाया.

उन्होंने थानाप्रभारी को आदेश दिया कि इस मामले की तुरंत जांच करें और अगर कोई दोषी है तो उसे तुरंत गिरफ्तार करें. एसपी साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी मकसूद प्रसाद को साथ ले कर थाने लौट गए और उन्होंने मकसूद से इस संबंध में विस्तार से बात की. इस के बाद उन्होंने उसी शाम आरोपी अमित वर्मा को थाने बुलवा लिया. थाने में उन्होंने उस से उस की पत्नी सुमन और बेटे निश्चय के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि 24 दिसंबर, 2018 की रात सुमन अपने बेटे को ले कर बिना कुछ बताए कहीं चली गई थी. अमित वर्मा के अनुसार, उस ने उन दोनों को हर संभावित जगह पर खोजा, लेकिन उन का कुछ पता नहीं चला. तब उस ने 28 दिसंबर को नौबस्ता थाने में पत्नी और बेटे के गुम होने की सूचना दर्ज करा दी थी.

यही नहीं, शक होने पर उस ने पड़ोस में रहने वाली मनोरमा नाम की महिला पर कोर्ट के माध्यम से पत्नी व बेटे को गायब कराने को ले कर उस के खिलाफ धारा 156 (3) के तहत कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज कराया था लेकिन पुलिस ने जांच के बाद उसे क्लीन चिट दे दी थी. थानाप्रभारी ने अमित वर्मा की बात की पुष्टि के लिए थाने का रिकौर्ड खंगाला तो उस की बात सही निकली. थाने में उस ने पत्नी और बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई थी और पड़ोसी महिला मनोरमा पर कोर्ट के आदेश पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था. चूंकि मनोरमा पर आरोप लगा था, अत: थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने मनोरमा को थाने बुलवाया.

उन्होंने उस से सुमन और उस के बेटे निश्चय के गुम होने के संबंध में सख्ती से पूछताछ की. तब मनोरमा ने उन्हें बताया कि अमित वर्मा बेहद शातिरदिमाग है. वह पुलिस को बारबार गुमराह कर के उसे फंसाने की कोशिश कर रहा है. जबकि वह बेकसूर है. मनोरमा ने थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह को यह भी बताया कि 23 दिसंबर, 2018 को उस की सुमन से बात हुई थी. उस ने बताया था कि वह अपने पति के साथ कुंभ स्नान करने प्रयागराज जा रही है. दूसरे रोज वह अमित के साथ चली गई थी. लेकिन वह उस के साथ वापस नहीं आई. शक है कि अमित ने पत्नी व बेटे की हत्या कर उन की लाशें कहीं ठिकाने लगा दी हैं. मनोरमा से पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया गया.

अमित वर्मा की ओर शक की सुई घूमी तो थानाप्रभारी ने सच का पता लगाने के लिए अपने मुखबिर लगा दिए. साथ ही खुद भी हकीकत का पता लगाने में जुट गए. मुखबिरों ने राजीव विहार, गल्लामंडी तथा रवींद्र नगर में दरजनों लोगों से अमित के बारे में जानकारी जुटाई. इस के अलावा मुखबिरों ने अमित पर भी नजर रखी. मसलन वह कहां जाता है, किस से मिलता है और उस के मददगार कौन हैं. 11 अगस्त, 2019 की सुबह 10 बजे 2 मुखबिरों ने थानाप्रभारी को एक चौंकाने वाली जानकारी दी. मुखबिरों ने बताया कि सुमन और उस के बेटे निश्चय की हत्या अमित वर्मा ने अपने दोस्तों के साथ मिल कर की है. दरअसल, अमित वर्मा के नाजायज संबंध देवकीनगर की खुशी नाम की युवती से बन गए थे. इन रिश्तों का सुमन विरोध करती थी. खुशी से शादी रचाने के लिए सुमन बाधक बनी हुई थी.

यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने अमित वर्मा को गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो पहले तो वह पुलिस को बरगलाता रहा लेकिन सख्ती करने पर वह टूट गया और पत्नी सुमन तथा बेटे निश्चय की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उस ने बताया कि पत्नी और 6 साल के बेटे की हत्या उस ने देवकीनगर निवासी संजय शर्मा तथा कबीरनगर निवासी मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री की मदद से की थी. यह पता चलते ही थानाप्रभारी ने पुलिस टीम के साथ संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री को भी गिरफ्तार कर लिया. थाने में जब दोनों का सामना अमित वर्मा से हुआ तो उन्होंने भी हत्या का जुर्म कबूल लिया.

पूछताछ करने पर अमित वर्मा ने बताया कि उस ने सुमन व उस के बेटे की हत्या कौशांबी जिले में लाडपुर के पास एक सुनसान जगह पर की थी और वहीं सड़क किनारे लाशें फेंक दी थीं. दोनों की हत्या किए 7 महीने से ज्यादा बीत गए थे, इसलिए मौके पर लाशें नहीं मिल सकती थीं. उम्मीद थी कि लाशें संबंधित थाने की पुलिस ने बरामद की होंगी. यह सोच कर थानाप्रभारी तीनों आरोपियों और शिकायतकर्ता मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा को साथ ले कर कौशांबी के लिए निकल पड़े. सब से पहले वह लाडपुर गांव की उस पुलिया के पास पहुंचे, जहां आरोपियों ने सुमन को तेजाब से झुलसाने के बाद गला दबा कर उन की हत्याएं कीं और लाशें फेंक दी थीं.

पुलिस ने सड़क किनारे झाडि़यों में सुमन की लाश ढूंढी लेकिन वहां लाश मिलनी तो दूर, उस का कोई सबूत भी नहीं मिला. तीनों आरोपियों ने बताया कि 6 वर्षीय निश्चय की हत्या उन्होंने लोडर के डाले से सिर टकरा कर की थी. इस के बाद उसे निर्वस्त्र कर लाश पुलिया से करीब एक किलोमीटर दूर चमरूपुर गांव के पास सड़क किनारे फेंकी थी. पुलिस उन्हें ले कर चमरूपुर गांव के पास उस जगह पहुंची, जहां उन्होंने बच्चे की लाश फेंकने की बात बताई थी. पुलिस ने वहां भी झाडि़यों वगैरह में लाश ढूंढी, लेकिन लाश नहीं मिल सकी. जिन जगहों पर दोनों लाशें फेंकी गई थीं, वह क्षेत्र थाना कोखराज के अंतर्गत आता था. अत: पुलिस थाना कोखराज पहुंच गई.

थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने कोखराज थाना पुलिस को सुमन व उस के बेटे की हत्या की बात बताई. कोखराज पुलिस ने रिकौर्ड खंगाला तो पता चला 25 दिसंबर, 2018 की सुबह क्षेत्र के 2 अलगअलग स्थानों से 2 लाशें मिली थीं. एक लाश महिला की थी, जिस की उम्र 30 वर्ष के आसपास थी. उस का चेहरा तेजाब डाल कर जलाया गया था. दूसरी लाश निर्वस्त्र हालत में एक बालक की थी, जिस की उम्र करीब 6 वर्ष थी. इन दोनों लाशों की सूचना कोखराज गांव के प्रधान गुलेश बाबू ने दी थी. दोनों लाशों की शिनाख्त नहीं हो पाने पर अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली गई.

थाना कोखराज पुलिस के पास दोनों लाशों के फोटोग्राफ्स मौजूद थे. फोटोग्राफ्स मकसूद प्रसाद को दिखाए तो वह फोटो देखते ही फफक कर रो पड़ा. उस ने बताया कि फोटो उस की बेटी सुमन तथा नाती निश्चय के हैं. सिंह ने उसे धैर्य बंधाया और थाने का रिकौर्ड तथा फोटो आदि हासिल कर थाना नौबस्ता लौट आए. थानाप्रभारी समरबहादुर सिंह ने सारी जानकारी एसपी रवीना त्यागी को दे दी और मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा की तरफ से अमित वर्मा, संजय शर्मा और मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 326 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

एसपी (साउथ) रवीना त्यागी ने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता आयोजित कर मीडिया के सामने इस घटना का खुलासा किया. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद दोहरे हत्याकांड की जो कहानी सामने आई, वह काफी दिलचस्प थी—

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के कस्बा नौबस्ता में एक मोहल्ला है राजीव विहार. मकसूद प्रसाद विश्वकर्मा इसी मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी कमला देवी के अलावा एक बेटी सुमन और 2 बेटे थे. मेहनतमजदूरी कर के वह जैसेतैसे अपने परिवार को पाल रहा था. मकसूद प्रसाद की बेटी सुमन खूबसूरत थी. उस ने जब जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो उस की सुंदरता में और भी निखार आ गया. एक रोज सुमन छत पर खड़ी अपने गीले बालों को सुखा रही थी. तभी उस के कानों में फेरी लगा कर ज्वैलरी की सफाई करने वाले की आवाज आई.

उस की आवाज सुनते ही सुमन छत से नीचे उतर आई. उस की चांदी की पायल गंदी दिख रही थी, वह उन की सफाई कराना चाहती थी, इसलिए फटाफट बक्से में रखी अपनी पायल निकाल कर साफ कराने के लिए ले गई. ज्वैलरी की सफाई करने वाला नौजवान युवक था. खूबसूरत सुमन को देख कर वह प्रभावित हो गया. उस ने सुमन की पायल कैमिकल घोल में डाल कर साफ कर दीं. पायल एकदम नई जैसी चमकने लगीं. पायल देख कर सुमन बहुत खुश हुई. पायल ले कर वह घर जाने लगी तो कारीगर बोला, ‘‘बेबी, पायल पहन कर देख लो, मैं भी तो देखूं तुम्हारे दूधिया पैरों में ये कैसी लगेंगी.’’

अपने पैरों की तारीफ सुन कर सुमन की निगाहें अनायास ही कारीगर के चेहरे पर जा टिकीं. उस समय उस की आंखों में प्यार का समंदर उमड़ रहा था. कारीगर की बात मानते हुए सुमन ने उस के सामने बैठ कर पायल पहनीं तो वह बोला, ‘‘तुम्हारे खूबसूरत पैरों में पायल खूब फब रही हैं. वैसे बुरा न मानो तो एक बात पूछूं?’’

‘‘पूछो, क्या जानना चाहते हो?’’ वह बोली.

‘‘तुम्हारा नाम जानना चाहता हूं.’’ उस ने कहा.

‘‘मेरा नाम सुमन है.’’ कुछ पल रुकने के बाद सुमन बोली, ‘‘तुम ने मेरा नाम तो पूछ लिया, पर अपना नहीं बताया.’’

‘‘मेरा नाम अमित वर्मा है. मैं राजीव विहार में ही रहता हूं. राजीव विहार में मेरा अपना मकान है. मेरे पिता भी यही काम करते हैं. फेरी लगा कर जेवरों की सफाई करना मेरा पुश्तैनी धंधा है.’’

पहली ही नजर में सुमन और अमित एकदूसरे की ओर आकर्षित हो गए. उसी समय दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए थे. फिर सुमन घर चली गई. अमित भी हांक लगाता हुआ आगे बढ़ गया. उस रोज रात में न तो सुमन को नींद आई और न ही अमित को. दोनों ही एकदूसरे के बारे में सोचते रहे. दोनों के दिलों में चाहत बढ़ी तो उन की मुलाकातें भी होने लगीं. मोबाइल फोन पर बात कर के मिलने का समय व स्थान तय हो जाता था. इस तरह उन की मुलाकातें कभी संजय वन में तो कभी किदवई पार्क में होने लगीं. एक रोज अमित ने उस से कहा, ‘‘सुमन, मैं तुम से बेइंतहा प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना अब मैं नहीं रह सकता. मैं तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं.’’

सुमन कुछ पल मौन रही. फिर बोली, ‘‘अमित, मैं भी हर कदम पर तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं.’’

सुमन और अमित का प्यार परवान चढ़ ही रह था कि एक रोज उन के प्यार का भांडा फूट गया. सुमन के भाई दीपू ने दोनों को किदवई पार्क में हंसीठिठोली करते देख लिया. उस ने यह बात अपने मातापिता को बता दी. कुछ देर बाद सुमन वापस घर आई तो मां कमला ने उसे आड़े हाथों लेते हुए खूब डांटाफटकारा. इस के बाद घर वालों ने सुमन के घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन सुमन को प्रतिबंध मंजूर नहीं था. वह अमित के प्यार में इतनी गहराई तक डूब गई थी, जहां से बाहर निकलना संभव नहीं था. आखिर एक रोज सुमन अपने मांबाप की इज्जत को धता बता कर घर से निकल गई. फिर बाराह देवी मंदिर जा कर अमित से शादी कर ली. अमित ने सुमन की मांग में सिंदूर भर कर उसे पत्नी के रूप में अपना लिया.

सुमन से शादी करने के बाद अमित, सुमन को साथ ले कर अपने राजीव विहार स्थित घर पहुंचा तो उस के मातापिता ने सुमन को बहू के रूप में स्वीकारने से मना कर दिया. क्योंकि वह उन की बिरादरी की नहीं थी. हां, उन्होंने दोनों को घर में पनाह जरूर दे दी. सुमन ने अपनी सेवा से सासससुर का मन जीतने की भरसक कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हुई. अमित के पिता राजेश वर्मा को सदैव इस बात का भय बना रहता था कि सुमन को ले कर उस के घर वाले कोई बवाल न खड़ा कर दें. अत: उन्होंने राजीव विहार वाला अपना मकान बेच दिया और नौबस्ता गल्लामंडी में किराए का मकान ले कर रहने लगा.

चूंकि पिता का मकान बिक चुका था, इसलिए अमित भी नौबस्ता के रवींद्र नगर में किराए पर मकान ले कर सुमन के साथ रहने लगा. इधर सुमन के मातापिता भी गायब हुई बेटी को अपने स्तर से ढूंढ रहे थे. उन्होंने बदनामी की वजह से पुलिस में शिकायत नहीं की थी. कुछ समय बाद उन्हें जानकारी हुई कि सुमन ने अमित के साथ ब्याह रचा लिया है. इस का उन्हें बहुत दुख हुआ. इतना ही नहीं, उन्होंने सुमन से नाता तक तोड़ लिया. उन्होंने यह सोच कर कलेजे पर पत्थर रख लिया कि सुमन उन के लिए मर गई है. अमित सुमन को बहुत प्यार करता था. वह हर काम सुमन की इच्छानुसार करता था. सुमन भी पति का भरपूर खयाल रखती थी. इस तरह हंसीखुशी से 3 साल कब बीत गए, उन्हें पता ही नहीं चला. इन 3 सालों में सुमन ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम निश्चय रखा गया.

बेटे के जन्म के बाद सुमन के घरआंगन में किलकारियां गूंजने लगीं. निश्चय जब 3 साल का हुआ तो सुमन ने उस का दाखिला विवेकानंद विद्यालय में करा दिया. सुमन ही निश्चय को स्कूल भेजने व छुट्टी होने पर घर लाने का काम करती थी. कुछ समय बीतने के बाद स्थितियों ने करवट बदली. धीरेधीरे सुमन की मुसकान गायब हो गई. पति न केवल उस से दूर भागने लगा बल्कि बातबात पर उसे डांटनेफटकारने भी लगा. वह देर रात घर लौटता था. कभीकभी तो पूरी रात गायब रहता. यह सब सुमन की चिंता का कारण बन गया.  वह हमेशा उदास रहने लगी. वह सब कुछ सहती रही. आखिरकार जब स्थिति सहन सीमा से बाहर हो गई, तब उस ने पति के स्वभाव में इस परिवर्तन का पता लगाने का निश्चय किया.

सुमन को यह जान कर गहरा सदमा लगा कि उस का पति खुशी नाम की युवती के प्रेम जाल में फंस गया है. उसे खुशी के बारे में यह भी पता चला कि वह जितनी सुंदर है, उतनी ही चंचल और मुंहफट भी है. वह देवकीनगर में किराए के मकान में रहती है. उस के मांबाप नहीं हैं. एक भाई है, जो शराबी तथा आवारा है. बहन पर उस का कोई नियंत्रण नहीं है. फेरी लगाने के दौरान जिस तरह अमित ने सुमन को फांसा था, उसी तरह उस ने खुशी को भी फांस लिया था. वह उस का इतना दीवाना हो गया था कि अपनी पत्नी और बच्चे को भी भूल गया. हर रोज घर में देर से आना और पूछने पर कोई न कोई बहाना बना देना, उस की दिनचर्या बन गई थी.

सुमन पहले तो अमित की बातों पर विश्वास कर लेती थी किंतु जब असलियत का पता चला तो उस का नारी मन विद्रोह पर उतर आया. भला उसे यह कैसे गवारा हो सकता था कि उस के रहते उस का पति किसी दूसरी औरत की ओर आंख उठा कर देखे. वह इस का विरोध करने लगी. लेकिन अमित अपनी हरकतों से बाज नहीं आया. उलटे वह सुमन को ही प्रताडि़त करने लगा. खुशी से नाजायज रिश्तों को ले कर घर में कलह बढ़ने लगी. पतिपत्नी आए दिन एकदूसरे से झगड़ने लगे. इस तनावपूर्ण वातावरण में एक बुराई और घर में घुस आई. अमित को शराब की लत पड़ गई.

शराब पीने के बाद वह सुमन को बेतहाशा पीटता पर सुमन थी कि सब कुछ सह लेती थी. उस के सामने समस्या यह भी थी कि वह किसी से अपना दुखदर्द बांट भी नहीं सकती थी. मांबाप से उस के संबंध पहले ही खराब हो चुके थे. एक दिन तो अमित ने हद ही कर दी. वह खुशी को अपने घर ले आया. उस समय सुमन घर पर ही थी. खुशी को देख कर सुमन का पारा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. उस ने पति को खूब खरीखोटी सुनाई. इतना ही नहीं, उस ने खुशी की बेइज्जती करते हुए उसे भी खूब लताड़ा. बेइज्जती हुई तो खुशी उसी समय वहां से चली गई. उस के यूं चले जाने पर अमित सुमन पर कहर बन कर टूट पड़ा. उस ने सुमन की जम कर पिटाई की. सुमन रोतीतड़पती रही.

सुमन की एक पड़ोसन थी मनोरमा. अमित जब घर पर नहीं होता तब वह मनोरमा के घर चली जाया करती थी. सुमन उस से बातें कर अपना गम हलका कर लेती थी. एक रोज मनोरमा ने सुमन से कहा कि बुरे वक्त में अपने ही काम आते हैं. ऐसे में तुम्हें अपने मायके आनाजाना शुरू कर देना चाहिए. मांबाप बड़े दयालु होते हैं, हो सकता है कि वे तुम्हारी गलती को माफ कर दें. पड़ोसन की यह बात सुमन को अच्छी लगी. वह हिम्मत जुटा कर एक रोज मायके जा पहुंची. सुमन के मातापिता ने पहले तो उस के गलत कदम की शिकायत की फिर उन्होंने उसे माफ कर दिया. इस के बाद सुमन मायके आनेजाने लगी. सुमन ने मायके में कभी यह शिकायत नहीं की कि उस का पति उसे मारतापीटता है और उस का किसी महिला से चक्कर चल रहा है.

इधर ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा था, त्योंत्यों खुशी अमित के दिलोदिमाग पर छाती जा रही थी. वह खुशी से शादी रचा कर उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता था, लेकिन इस रास्ते में सुमन बाधा बनी हुई थी. खुशी ने अपना इरादा जता दिया था कि एक म्यान में 2 तलवारें नहीं रह सकतीं. यानी जब तक सुमन उस के साथ है, तब तक वह उस की जीवनसंगिनी नहीं बन सकती. खुशी का यह फैसला सुनने के बाद अमित परेशान रहने लगा कि वह किस तरह इस समस्या का समाधान करे. अमित वर्मा का एक दोस्त था संजय शर्मा. वह देवकीनगर में रहता था और केबल औपरेटर था. वह भी अमित की तरह अपनी पत्नी से पीडि़त था. उस की पत्नी संजय को छोड़ कर मायके में रह रही थी.

उस ने संजय के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मुकदमा भी दर्ज करा रखा था. अमित ने अपनी परेशानी संजय शर्मा को बताई तो संजय ने सलाह दी कि वह अपनी पत्नी सुमन व उस के बच्चे को खत्म कर दे. तभी उस की समस्या का निदान हो सकता है. खुशी से विवाह रचाने के लिए अमित पत्नीबेटे की हत्या करने को राजी हो गया. उस ने इस बारे में संजय से चर्चा की तो उस ने अमित की मुलाकात मोहम्मद अख्तर उर्फ गुड्डू मिस्त्री से कराई. अख्तर नौबस्ता क्षेत्र के कबीरनगर में रहता था. वह लोडर चलाता था. साथ ही लोडर मिस्त्री भी था. मोहम्मद अख्तर मूलरूप से कौशांबी जिले के कोखराज थाना क्षेत्र के गांव मारूकपुरवा का रहने वाला था. उस की पत्नी मेहरुन्निसा गांव में ही रहती थी.

अमित, संजय व मोहम्मद अख्तर ने सिर से सिर जोड़ कर हत्या की योजना बनाई. संजय ने गुड्डू मिस्त्री से सलाह मशविरा कर अमित से 35 हजार रुपए में हत्या का सौदा कर लिया. अमित ने संजय को 10 हजार रुपए एडवांस दे दिए. चूंकि अब योजना को अंजाम देना था, इसलिए अमित ने सुमन के साथ अच्छा बर्ताव करना शुरू कर दिया. वह उस से प्यार भरा व्यवहार करने लगा. उस ने सुमन से वादा किया कि अब वह खुशी के संपर्क में नहीं रहेगा. पति के इस व्यवहार से सुमन गदगद हो उठी. उस ने सहज ही पति की बातों पर भरोसा कर लिया. यही उस की सब से बड़ी भूल थी.

योजना के तहत 23 दिसंबर, 2018 को अमित वर्मा और संजय मूलगंज बाजार पहुंचे. वहां से अमित ने एक बोतल तेजाब खरीदा. शाम को अमित ने सुमन से कहा कि कल हम लोग कुंभ स्नान को प्रयागराज जाएंगे. सुमन राजी हो गई. उस ने रात में ही प्रयागराज जाने की सारी तैयारी कर ली. योजना के मुताबिक 24 दिसंबर, 2018 की शाम 7 बजे अमित, पत्नी सुमन व बेटे निश्चय को साथ ले कर रामादेवी चौराहा पहुंचा. पीछे से मोहम्मद अख्तर भी लोडर ले कर रामादेवी चौराहा पहुंच गया. उस के साथ संजय शर्मा भी था. लोडर अमित के पास रोक कर अख्तर ने उस से पूछा कि कहां जा रहे हो तुम लोग॒. तब अमित ने कहा, ‘‘हम कुंभ स्नान के लिए प्रयागराज जा रहे हैं.’’

‘‘मैं भी लोडर ले कर प्रयागराज जा रहा हूं, उधर से वापसी के समय लोडर में पत्थर लाऊंगा. अगर तुम लोग चाहो तो मेरे साथ चल सकते हो.’’ मोहम्मद अख्तर बोला.

अमित ने सुमन से कहा कि लोडर चालक उस का दोस्त है. वह प्रयागराज जा रहा है. ऐतराज न हो तो लोडर से ही निकल चलें. किराया भी बच जाएगा. सुमन को क्या पता थी कि यह अमित की चाल है और इस में उस का पति भी शामिल है. वह तो पति पर विश्वास कर के राजी हो गई. उस के बाद अमित वर्मा, पत्नी व बेटे के साथ लोडर में पीछे बैठ गया, जबकि संजय आगे बैठा. उस के बाद मोहम्मद अख्तर लोडर स्टार्ट कर चल पड़ा. मोहम्मद अख्तर ने जीटी रोड स्थित एक ढाबे पर लोडर रोक दिया. वहां अमित, संजय व गुड्डू ने खाना खाया तथा शराब पी. अधिक सर्दी होने का बहाना बना कर अमित ने सुमन को भी शराब पिला दी. इस के बाद ये लोग चल दिए. कौशांबी जिले के लाडपुर गांव के पास पहुंच कर मोहम्मद अख्तर ने एक पुलिया के पास सुनसान जगह पर गाड़ी रोक दी.

संजय और मोहम्मद अख्तर उतर कर पीछे आ गए. इस के बाद संजय व मोहम्मद अख्तर ने सुमन को दबोच लिया और अमित ने सुमन कोतेजाब से  नहला दिया. सुमन जलन से चीखी तो अमित ने उसे गला दबा कर मार डाला. मां की चीख सुन कर 6 साल का बेटा निश्चय जाग गया. संजय ने बच्चे का सिर लोडर के डाले से पटकपटक कर उसे मार डाला. इन लोगों ने सुमन की लाश लाडपुर पुलिया के पास सड़क किनारे फेंक दी तथा वहां से लगभग एक किलोमीटर आगे जा कर निश्चय की निर्वस्त्र लाश भी फेंक दी. इस के बाद तीनों प्रयागराज गए. वहां से दूसरे रोज लोडर पर पत्थर लाद कर वापस कानपुर आ गए.

25 दिसंबर, 2018 की सुबह कोखराज के ग्रामप्रधान गुलेश बाबू सुबह की सैर पर निकले तो उन्होंने लाडपुर पुलिया के पास महिला की लाश तथा कुछ दूरी पर एक मासूम बच्चे की लाश देखी. उन्होंने यह सूचना कोखराज थाना पुलिस को दी. पुलिस ने दोनों लाशें बरामद कर उन की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन उन्हें कोई भी नहीं पहचान सका. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने शव पोस्टमार्टम के लिए भेज दिए. गुलेश बाबू को वादी बना कर पुलिस ने अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

इधर शातिरदिमाग अमित वर्मा ने दोस्त संजय की सलाह पर 28 दिसंबर को थाना नौबस्ता में तहरीर दी कि उस की पत्नी सुमन 24 दिसंबर की रात अपने बेटे निश्चय के साथ बिना कुछ बताए घर से चली गई है. उस का कहीं पता नहीं चल रहा है. इस तहरीर पर पुलिस ने साधारण पूछताछ की, फिर शांत हो कर बैठ गई.  इस के बाद अमित ने पड़ोसी महिला मनोरमा को फंसाने के लिए 156 (3) के तहत कोर्ट से मुकदमा कायम करा दिया. उस ने मनोरमा पर आरोप लगाया कि उस की पत्नी व बच्चे को गायब करने से उस का ही हाथ है. पर जांच में आरोप सही नहीं पाया गया. पूछताछ के बाद पुलिस ने मनोरमा को छोड़ दिया. अप्रैल, 2019 को अमित ने खुशी से शादी कर ली और हंसपुरम में उस के साथ रहने लगा.

सुमन, महीने में एक या 2 बार मायके आ जाती थी. पर पिछले 7 महीने से वह मायके नहीं आई थी, जिस से सुमन के पिता मकसूद प्रसाद को चिंता हुई. उस ने दामाद अमित से बात की तो उस ने बेटी नाती को भूल जाने की बात कही. शक होने पर मकसूद ने 31 जुलाई, 2019 को एसपी रवीना त्यागी को जानकारी दी. इस के बाद ही केस का खुलासा हो सका. 12 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त अमित वर्मा, संजय शर्मा तथा मोहम्मद अख्तर को कानपुर कोर्ट के रिमांड मजिस्ट्रैट की अदालत में पेश किया, जहां से तीनों को जिला कारागार भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

Murder Story : बेइज्‍जती का बदला लेने के लिए गर्लफ्रैंड के भाई को नदी में डुबो कर मार डाला

Murder Story : अजमल आलम ने कल्लू का अपहरण कर के उसे मार डाला था. उस की लाश अजमल ने सतलुज नदी में बहा दी थी निस्संदेह यह बड़ा अपराध था, लेकिन यह भी सच है कि अजमल को ऐसा जघन्य अपराध करने का मौका लल्लू के मातापिता ने ही दिया था, अगर वे समय रहते…

काफी हताश होने के बाद आखिर कन्नू लाल ने तय कर लिया कि अब वह अपने बेटे लल्लू को तलाश करने में समय बरबाद नहीं करेगा और इस के लिए पुलिस की मदद भी लेगा. यह बात उस ने अपनी पत्नी और रिश्तेदारों को भी बताई. फिर उसी शाम वह अपने पड़ोसी भानु को ले कर लुधियाना के थाना डिवीजन नंबर-2 की पुलिस चौकी जनकपुरी जा पहुंचा. कन्नू लाल मूलरूप से गांव मछली, जिला गोंडा, उत्तर प्रदेश का रहने वाला था. कई साल पहले वह काम की तलाश में अपने किसी रिश्तेदार के साथ लुधियाना आया था और काम मिल जाने के बाद यहीं का हो कर रह गया था. काम जम गया तो कन्नू लाल ने गांव से अपनी पत्नी कंचन और बच्चों को भी लुधियाना बुला लिया था.

लुधियाना में वह इंडस्ट्रियल एरिया में लक्ष्मी धर्मकांटा के पास अजीत अरोड़ा के बेहड़े में किराए का कमरा ले कर रहने लगा था. कन्नू लाल के 4 बच्चे थे, 2 बेटे और 2 बेटियां. बड़ी बेटी कुसुम 20 साल की थी और शादी के लायक थी. कन्नू लाल का सब से छोटा बेटा वरिंदर उर्फ लल्लू 11 साल का था, जो कक्षा-4 में पढ़ता था. 27 जुलाई, 2017 को लल्लू दोपहर को अपने स्कूल से लौटा और खाना खाने के बाद गली में बच्चों के साथ खेलने लगा. यह उस का रोज का नियम था. कन्नू की पत्नी कंचन और बाकी बच्चे घर में सो रहे थे. शाम करीब 4 बजे कंचन ने चाय बना कर लल्लू को बुलाने के लिए आवाज दी.

लेकिन लल्लू गली में नहीं था. लल्लू हमेशा अपने घर के आगे ही खेलता था, दूर नहीं जाता था. कंचन ने गली में खेल रहे बच्चों से पूछा तो सभी ने बताया कि लल्लू थोड़ी देर पहले तक उन के साथ खेल रहा था, पता नहीं बिना बताए कहां चला गया. चाय पीनी छोड़ कर सब लल्लू की तलाश में जुट गए. शाम को जब लल्लू को पिता कन्नू लाल काम से लौट कर घर पहुंचा तो वह भी बेटे की तलाश में जुट गया. पूरी रात तलाशने के बाद भी लल्लू का कहीं पता नहीं चला. सभी यह सोच कर हैरान थे कि आखिर 11 साल का बच्चा अकेला कहां जा सकता है. इस के पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था.

अगला दिन भी लल्लू की तलाश में गुजरा. शाम को कन्नू लाल ने लल्लू की गुमशुदगी पुलिस चौकी में दर्ज करा दी. ड्यूटी अफसर हवलदार भूपिंदर सिंह ने धारा 146 के तहत कन्नू की गुमशुदगी दर्ज कर के यह सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. साथ ही लल्लू का हुलिया और उस का फोटो आसपास के सभी थानों में भेज दिया गया. लल्लू की तलाश में न तो पुलिस ने कोई कसर छोड़ी और न उस के मातापिता और रिश्तेदारों ने. पर लल्लू का कहीं से कोई सुराग नहीं मिला. कन्नू लाल गरीब मजदूर था, जो दिनरात मेहनत कर के अपने बच्चों का पालनपोषण करता था, इसलिए फिरौती का तो सवाल ही नहीं था. हां, दुश्मनी की बात सोची जा सकती थी.

दुश्मनी के चक्कर में कोई लल्लू को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर सकता था, इसीलिए पुलिस बारबार कन्नू से यह पूछ रही थी कि उस का किसी से लड़ाईझगड़ा तो नहीं है. लल्लू को गुम हुए एक सप्ताह गुजर चुका था पर कहीं से भी उस का कोई सुराग नहीं मिला. घटना के 9 दिन बाद अचानक कन्नू लाल के मोबाइल फोन पर एक शख्स का फोन आया. फोन करने वाले का कहना था कि लल्लू उस के कब्जे में है. अगर बेटा सहीसलामत और जिंदा चाहिए तो 2 लाख रुपया बैंक एकाउंट नंबर 0003333 में डलवा दो. लल्लू मिल जाएगा. कन्नू लाल ने तुरंत इस फोन की सूचना पुलिस को दे दी. अब मामला केवल लल्लू की गुमशुदगी का नहीं रह गया था. उस का अपहरण फिरौती के लिए किया गया था सो पुलिस हरकत में आ गई.

एडीसीपी गुरप्रीत सिंह के सुपरविजन में एक टीम का गठन किया गया, जिस का इंचार्ज एसीपी वरियाम सिंह को बनाया गया. पुलिस ने पहले दर्ज मामले में धारा 365 और 384 भी जोड़ दीं. अपहरण के 9 दिन बाद 4 अगस्त को लल्लू के पिता कन्नू लाल के मोबाइल पर फोन कर के 2 लाख रुपए फिरौती मांगने के बाद फोनकर्ता ने नंबर स्विच्ड औफ कर दिया था. जांच आगे बढ़ाते हुए कन्नू लाल के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई गई. साथ ही उस के फोन को सर्विलांस पर भी लगा दिया गया. काल डिटेल्स से पता चला कि कन्नू लाल को स्थानीय बसअड्डे से फोन किया गया था. यह सोच कर तुरंत एक पुलिस टीम वहां भेजी गई कि हो न हो कोई संदिग्ध मिल जाए, क्योंकि बसअड्डा क्षेत्र काफी बड़ा और भीड़भाड़ वाला इलाका था. पास में ही रेलवे स्टेशन भी था. लेकिन वहां पुलिस को कुछ नहीं मिला.

पुलिस यह मान कर चल रही थी कि लल्लू का अपहरणकर्ता जो भी रहा हो, वह कन्नू लाल का कोई नजदीकी या फिर रिश्तेदार ही होगा. क्योंकि अपहरणकर्ता ने जो 2 लाख रुपए की फिरौती मांगी थी, वह कन्नू लाल की हैसियत देख कर ही मांगी थी. भले ही कन्नू लाल गरीब था, पर अपने बच्चे के लिए 2 लाख का इंतजाम तो कर ही सकता था. इस के लिए उसे गांव की जमीन भी बेचनी पड़ती तो वह भी बेच देता. अपहर्त्ता जो भी था, कन्नू के परिवार को गांव तक जानता था. इस सोच के बाद पुलिस ने कन्नू लाल और उस के परिवार के हर छोटेबड़े सदस्य से पूछताछ की. कुछ खबरें पड़ोसियों से भी ली गईं. मुखबिरों का भी सहारा लिया गया. आखिर अंदर की बात पता चल ही गई. इस से पुलिस को लगने लगा कि अब वह जल्द ही अपरहणकर्ता तक पहुंच कर लल्लू को सकुशल बचा लेगी.

कन्नू लाल के परिवार से पता चला कि कुछ दिन पहले उन का अजमल आलम से झगड़ा हुआ था. 30 वर्षीय अजमल आलम उन के पड़ोस में ही रहता था और कपड़े पर कढ़ाई का बहुत अच्छा कारीगर था. उस की कमाई भी अच्छी थी और उस का कन्नू के घर काफी आनाजाना था. वह उस के परिवार के काफी करीब था और सभी बच्चों से घुलामिला हुआ था. खासकर कन्नू की बड़ी बेटी कुसुम से. 7 साल पहले जब अजमल आलम की उम्र करीब 22-23 साल थी और कुसुम की 14 साल तभी दोनों एकदूसरे के करीब आ गए थे.  अजमल मूलरूप से गांव भयंकर दोबारी, जिला किशनगंज, बिहार का रहने वाला था. 7 साल पहले उस ने खुद को अविवाहित बता कर कुसुम को अपने प्रेमजाल में फांस लिया था.

इस के 2 साल बाद उस ने कुसुम से शादी करने का झांसा दे कर उस से शारीरिक संबंध भी बना लिए थे. यह सिलसिला अभी तक चलता रहा था. कह सकते हैं कि उस ने 7 वर्ष तक कुसुम का इस्तेमाल अपनी पत्नी की तरह किया था. अजमल से कुसुम के संबंध कितने गहरे हैं, यह बात कन्नू और उस की पत्नी कंचन को भी पता थी. उन की नजरों में अजमल अविवाहित था और अच्छा कमाता था. वह कुसुम से बहुत प्यार करता था और शादी करना चाहता था. कन्नू लाल और उस की पत्नी कंचन को इस पर कोई ऐतराज नहीं था. फलस्वरूप जैसा चल रहा था, उन्होंने वैसा चलने दिया. उन लोगों ने न कभी बेटी पर कोई अंकुश लगाया और न अजमल को अपने घर आने से रोका.

जून 2018 में अचानक किसी के माध्यम से कंचन और कुसुम को पता चला कि अजमल पहले से ही शादीशुदा और 2 बच्चों का बाप था. इतनी बड़ी बात छिपा कर वह कुसुम के साथ लगातार 7 सालों तक दुष्कर्म करता रहा था. हकीकत जान कर मांबेटी के होश उड़ गए. उस समय अजमल अपने कमरे पर ही था. कुसुम और कंचन ने जा कर उस के साथ झगड़ा किया और उस की खूब पिटाई की. यह बात मोहल्ले की पंचायत तक भी पहुंची. पंचायत के कहने पर कंचन ने अजमल को धक्के मार कर मोहल्ले से बाहर निकाल दिया. अजमल ने भी वहां से चुपचाप चले जाने में ही अपनी भलाई समझी. क्योंकि मोहल्ले वालों के सामने हुई जबरदस्त बेइज्जती के बाद वह वहां नहीं रह सकता था, इसलिए वह अपना सामान लिए बिना मोहल्ले से चला गया था.

यह कहानी जान लेने के बाद पुलिस को लगा कि लल्लू के अपहरण के पीछे अजमल का ही हाथ हो सकता है. कुसुम वाले मामले में उस की काफी बेइज्जती हुई थी. यहां तक कि उसे अपना घर भी छोड़ कर भागना पड़ा था. बदला लेने के लिए वह कुछ भी कर सकता था. कन्नू के परिवार के पास अजमल का फोन नंबर था. पुलिस ने वह नंबर सर्विलांस पर लगवा दिया और उस की लोकेशन ट्रेस करने की कोशिश करने लगी. कन्नू को किए गए पहले फोन के 2 दिन बाद फोन कर के उस से दोबारा पैसों की मांग की गई. इस बार फोन कैथल, हरियाणा से आया था. पुलिस टीम फोन की लोकेशन ट्रेस करते हुए जब कैथल पहुंची तो कन्नू को दिल्ली से फोन किया गया.

इस बार फोन करने वाले ने रुपयों की मांग के साथ कुसुम से बात करने की भी इच्छा जताई तो साफ हो गया कि लल्लू के अपरहण में अजमल का ही हाथ है. इस के बाद वह कन्नू को बारबार मैसेज करता रहा. अजमल को पकड़ने के लिए पुलिस की टीमों ने कैथल व दिल्ली में एक साथ 15 जगह रेड डाली लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अब तक की जांच में सामने आया कि जो बैंक खाता नंबर उस ने फिरौती के पैसे डलवाने के लिए दिया था, वह लुधियाना के एक युवक का था. खास बात यह कि उस युवक से अजमल की दूरदूर तक कोई जानपहचान नहीं थी. फिर भी पुलिस ने उसे शक के दायरे में ही रखा. आखिर लंबे चले इस चोरसिपाही के खेल के बाद पुलिस ने अजमल की फोन लोकेशन का पीछा करते हुए उसे 8 अगस्त को दिल्ली से धर दबोचा.

अगले दिन 9 अगस्त को पुलिस ने अजमल को अदालत में पेश कर के लल्लू की बरामदगी और आगामी पूछताछ के लिए उसे 5 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. पूछताछ के दौरान अजमल ने बताया कि लल्लू की हत्या उस ने उसी दिन यानी 27 जुलाई को ही कर दी थी और उस की लाश को सतलुज नदी में बहा दिया था. उस ने बताया कि मोहल्ले से बेइज्जत होने के बाद वह अपनी बहन के पास कैथल चला गया था. लेकिन कुसुम के बिना उस का मन नहीं लग रहा था. उस ने कुसुम से प्यार किया था और वह भी उसे प्यार करती थी, लेकिन अब उस ने बेवफाई की थी. उस का मन बारबार कहता था कि कुसुम और उस की मां से बेइज्जती का हिसाब लिया जाए.

इस के लिए वह लुधियाना छोड़ कर जाने के डेढ़ महीने बाद 27 जुलाई को ट्रेन से लुधियाना आया. दोपहर को जब लल्लू स्कूल से वापस घर जा रहा था तो उस ने उसे रोक कर साथ चलने को कहा, लेकिन उस ने मना कर दिया और घर जा कर अपनी बहन को उस के आने की सूचना दी. बाद में जब लल्लू खेलने के लिए घर से बाहर निकला तो उस ने लल्लू को घुमाने का लालच दिया और आटो में बिठा कर सतलुज नदी पर ले गया. नदी पर पहुंच कर अजमल ने लल्लू को नदी में नहाने और तैरना सिखाने के लिए उकसाया. जब लल्लू नहाने के लिए कपड़े उतार कर अजमल के साथ दरिया में घुसा तो अजमल ने नहाते समय लल्लू की गरदन पकड़ कर उसे पानी में डुबो कर मार दिया और उस की लाश पानी में बहा कर बस द्वारा वापस कैथल चला गया. बाद में वह दिल्ली पहुंच गया था. वहीं से वह कन्नू को फोन पर एसएमएस भेजता था.

अजमल की निशानदेही पर पुलिस ने सतलुज में गोताखोरों की टीम को उतारा. पर लल्लू की लाश नहीं मिली. बरसात के दिन होने के कारण नदी में पानी का तेज बहाव था. ऐसे में संभव था कि लाश पानी में तैरती हुई कहीं दूर निकल गई हो. पुलिस लल्लू की लाश को कई दिनों तक नदी में दूरदूर तक तलाशती रही लेकिन लाश नहीं मिली. रिमांड की अवधि खत्म होने के बाद 13 अगस्त, 2018 को अजमल को फिर से अदालत में पेश कर के न्यायिक हिरासत में जिला जेल भेज दिया गया. खेलखेल में लल्लू की गुमशुदगी से शुरू हुआ यह ड्रामा अंत में इतने भयानक अंजाम तक पहुंचेगा, इस बात की किसी ने कल्पना तक नहीं की थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. कुसुम परिवर्तित नाम है.

 

Extramarital Affair : बहू के अवैध संबंध के चक्कर में मारा गया ससुर

Extramarital Affair : बालेश्वर जो कर रहा था, वह गलत था. लेकिन हकीकत जानने के बाद सोमेश उर्फ सोनू ने जो कदम उठाया, वह भी सही नहीं था. लेकिन सवाल यह है कि वह करता भी तो क्या… 

बा 9 अक्तूबर, 2018 की है. उत्तर प्रदेश के औरैया जिले के थाना बेला के एसओ विष्णु गौतम अपने औफिस में बैठे थे. तभी सुबह करीब 10 बजे एक युवक उन से मिलने आया. वह बेहद घबराया हुआ था. गौतम ने उसे कुरसी पर बैठने का इशारा किया. बैठ जाने के बाद उन्होंने उस से पूछा, ‘‘क्या बात है, तुम कुछ परेशान लग रहे हो? जो भी बात है, बताओ.’’

एसओ की बात सुन कर युवक बोला, ‘‘सर, मेरा नाम सोमेश है. मैं धरमंगदपुर गांव में रहता हूं. रात को किसी ने मेरे पिता और मेरी 4 साल की भांजी की हत्या कर दी है. आप जल्दी मेरे साथ चलें.’’

मामला 2-2 हत्याओं का था, इसलिए एसओ विष्णु गौतम तुरंत पुलिस फोर्स के साथ चल दिए. इस की सूचना उन्होंने उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. धरमंगदपुर गांव थाने से कोई 5 किलोमीटर दूर था. पुलिस को वहां पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगाउस समय घटनास्थल पर गांव वालों की भीड़ जुटी थी. घर में महिलाओं के रोने से कोहराम मचा था. एसओ मकान की दूसरी मंजिल पर स्थित कमरे में पहुंचे. कमरे का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. कमरे के अंदर 2 लाशें पड़ी थीं. एक लाश घर के मुखिया बालेश्वर पांडेय की थी और दूसरी मासूम पलक कीदेख कर लग रहा था कि बालेश्वर के सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार किया गया था. जिस से उन का सिर फट गया था और  ज्यादा खून बहने से उन की मौत हो गई थी.

जबकि पलक के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं था. शायद उस का गला घोंटा गया था. कमरे के अंदर खून फैला था और खून से सनी एक फुंकनी पड़ी थी. बालेश्वर की उम्र 60 साल के आसपास थी जबकि पलक 4 साल की थी. एसओ विष्णु गौतम मौके का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर एसपी त्रिवेणी सिंह, एएसपी नेपाल सिंह तथा सीओ भास्कर वर्मा भी वहां गए. पुलिस अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था. फोरैंसिक टीम ने वहां से सबूत इकट्ठे किए. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने मौकामुआयना करने के बाद बालेश्वर पांडेय के बेटे सोमेश से बात की. एसपी के निर्देश पर एसओ ने मौके की काररवाई निपटा कर दोनों लाशें पोस्टमार्टम के लिए भेज दीं.

इस के बाद एसओ विष्णु गौतम ने मृतक की पत्नी मंजू पांडेय से पूछताछ की तो उस ने बताया, ‘‘बीती रात 8 बजे हम सब ने मिल कर खाना खाया. इस के बाद पति बालेश्वर तथा नातिन पलक दूसरी मंजिल पर बने कमरे में सोने चले गए. बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू भी छत पर जा कर सो गया. वह, मैं और बेटी पूनम नीचे पर बने कमरे में जा कर सो गए. सुबह होने पर पति नहीं जागे तो मैं पूनम के साथ उन्हें जगाने पहुंची. जैसे ही मैं उन के कमरे में दाखिल हुई, चीख निकल गई. दोनों की वहां लाशें पड़ी थीं.’’

‘‘क्या तुम बता सकती हो कि तुम्हारे पति और नातिन की हत्या किस ने की है. तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसओ ने पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है. उन की तो किसी से दुश्मनी थी और ही किसी से लेनदेन का झगड़ा था.’’ मंजू ने जवाब दिया.

पूनम ने बताया, ‘‘साहब, मैं कई महीने से मायके में अपनी बेटी पलक के साथ रह रही हूं. पलक वैसे तो मेरे पास सोती थी, लेकिन कल रात वह नाना के साथ सोने की जिद करने लगी थी. जिद पकड़ने पर पिताजी उसे अपने साथ ले गए थे.’’

‘‘तुम्हारे पिता बेटी का कातिल कौन हो सकता है? तुम्हें किसी पर संदेह है?’’ एसओ ने पूनम से पूछा.

‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर कोई शक नहीं है. मैं नहीं जानती कि इन दोनों को किस ने और क्यों मारा है?’’ पूनम सुबकते हुए बोली.

एसओ ने इस के बाद सोमेश से पूछताछ की तो उस ने भी वही बताया जो उस की मां और बहन ने बताया था. इस के बाद विष्णु गौतम ने पड़ोसियों से बात की तो पता चला कि बालेश्वर पांडेय रिटायर्ड फौजी था. वह शराब का आदी था. उस का अपनी बहू यानी सोमेश की पत्नी से कोई चक्कर चल रहा था. इस बात को ले कर सोमेश का अपने पिता से अकसर झगड़ा होता रहता था. बीती रात भी उस का अपने बाप से झगड़ा हुआ था. एसओ विष्णु गौतम के लिए यह जानकारी बेहद महत्त्वपूर्ण थी. सोमेश उर्फ सोनू शक के घेरे में आया तो पुलिस ने उसे हिरासत में ले लिया और थाने ले जा कर उस से इस दोहरे मर्डर के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया

जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह उन के सवालों के जाल में उलझ गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि दोनों हत्याएं उस ने ही की थीं. हालात ऐसे बन गए कि उसे ऐसा करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इस के बाद उस ने इस दोहरे हत्याकांड की जो कहानी बताई, वह पारिवारिक रिश्तों को तारतार कर देने वाली निकली

औरैया जिले की विधूना तहसील के अंतर्गत एक गांव है धरमंगदपुर. यह गांव बेला विधून मार्ग पर बेला से 4 किलोमीटर दूर बसा हुआ है. पहले यह गांव उजाड़ था लेकिन जब से बिजली, सड़क, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं मुहैया हुईं, तब से गांव संपन्नता की ओर बढ़ने लगा. इस गांव के ज्यादातर लोग किसान हैं. कुछ लोग गल्ले का व्यापार करते हैं तो कुछ दूध के व्यवसाय से भी जुडे़ हैं. इसी धरमंगदपुर गांव में बालेश्वर पांडेय अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी मंजू के अलावा 3 बेटे सोमेश उर्फ सोनू, उमेश उर्फ मोनू, नीरज उर्फ छोटू तथा 2 बेटियां नीलम पूनम थीं. बालेश्वर पांडेय मूलरूप से इटावा जिले के सहसों थाना क्षेत्र के गांव बल्लो गाढि़या का रहने वाला था. वह सेना में नौकरी करता था.

फौज से रिटायर होने के बाद उस ने अपने गांव में एक आलीशान मकान बनवाया था. इस के अलावा कुछ खेती की जमीन भी खरीद ली थी. कुल मिला कर वह साधनसंपन्न था. गांव में उस की तूती बोलती थी. बालेश्वर पांडेय अपनी दोनों बेटियों की शादी कर चुका था. बेटों में सोमेश उर्फ सोनू बड़ा था. वह बचपन से ही गांव छोड़ कर चला गया था. कई सालों तक वह एक शहर से दूसरे शहर की खाक छानता रहा. उस के बाद गांव कर रहने लगाउस ने गांव के आवारा नशेबाज लड़कों से दोस्ती कर ली थी. फौजी बालेश्वर इन आवारों लड़कों से नफरत करता था. वह सोनू के साथसाथ उन्हें भी फटकारता रहता था. जिस से सोमेश की अपने पिता से अकसर तकरार होती रहती थी. उस का छोटा बेटा नीरज उर्फ छोटू इटारसी में रह कर पढ़ाई कर रहा था.

उमेश उर्फ मोनू भाइयों में मंझला था. उस का मन तो पढ़ाई में लगता था और ही किसानी में. बालेश्वर ने सोचा कहीं मोनू गलत रास्ते पर चला जाए, इसलिए उन्होंने उस का ब्याह सीमा से करा दिया था. सीमा और मोनू ने बडे़ प्यार से जिंदगी का सफर शुरू किया. धीरेधीरे 5 साल कब बीत गए, पता ही नहीं चला. पर 5 वर्ष बीतने के बावजूद सीमा मां नहीं बन सकी. इस का मलाल सीमा को भी था और उस की सास मंजू को भी. सीमा को ससुराल में किसी प्रकार की कमी नहीं थी. पर उसे अब 2 चिंताएं सताने लगी थीं. एक तो उस की गोद सूनी थी, दूसरी उस का पति निठल्ला था. वह कोई कामकाज नहीं करता था. सीमा अपने खर्च के लिए सासससुर पर ही निर्भर थी. सीमा ने पहले प्यार से फिर सख्त लहजे में पति को समझाया कि वह शहर जा कर कोई नौकरी करे.

पत्नी के सख्त रुख से मोनू परेशान रहने लगा. अब दोनों के बीच दूरियां बनने लगी थीं. धीरेधीरे उमेश की हालत पागलों जैसी हो गई. वह कभी घर आता तो कभी मंदिर के चबूतरे पर ही रात बिता देता था. बालेश्वर और उस की पत्नी मंजू बेटे की इस हालत पर गंभीर थे. वह उस का इलाज भी करा रहे थे और झाडफूंक भी. उन्हें शक था कि उमेश को कोई शैतानी ताकत परेशान कर रही है. इसी के चलते एक रोज उमेश गुम हो गया. बालेश्वर ने उस की हर संभावित जगह पर तलाश की, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. उमेश उर्फ मोनू को गुम हुए कई साल बीत गए. घर वाले भी उसे भूलने लगे. सीमा को भी पति के जाने का कोई खास दुख था, क्योंकि उस के रहते भी उसे कोई सुख नहीं था. पहले भी वह सासससुर पर निर्भर थी, वही हाल अब भी था. अत: वह पूरी तरह सासससुर की सेवा में जुट गई.

मंजू अकसर बीमार रहती थी. घर की सारी जिम्मेदारी सीमा के कंधों पर गई थी. सीमा ने अब ससुर के सामने लंबा घूंघट करना भी छोड़ दिया था. अब वह सिर्फ हलका परदा करती थी. बेटे के घर से गायब हो जाने के बाद बालेश्वर की नजर बहू सीमा पर पड़ने लगी थी. बालेश्वर पांडेय फौजी था. वह शराब का भी शौकीन था. एक शाम बालेश्वर मल्हौसी बाजार गया, वहां उस ने शराब के ठेके पर जम कर शराब पी. फिर मस्ती के आलम में झूमता हुआ देर रात घर पहुंचा. मंजू बीमार होने के कारण जल्दी सो गई थी. बालेश्वर ने घर पहुंच कर दरवाजा खटखटाया तो सीमा ने ही दरवाजा खोला. फिर कच्ची नींद से उठी सीमा अपने कमरे में सोने चली गई. इधर बालेश्वर कमरे के बाहर पड़ी चारपाई पर जा कर बैठ गया.

लालटेन की रोशनी में वहां से सीमा के कमरे के अंदर का नजारा साफ दिख रहा था. बालेश्वर की नीयत में खोट गया. वह धीरे से उठा, पत्नी मंजू के कमरे में झांक कर देखा तो वह चादर ताने गहरी नींद में थी. वहां से मुड़ कर बालेश्वर सीमा के पलंग के पास खड़ा हुआ. कुछ देर तक वह सीमा का चेहरा ताकता रहा. फिर उस का गाल सहलाने लगा. किसी के स्पर्श का अहसास हुआ तो सीमा जाग गई. बालेश्वर ने तुरंत अपना हाथ खींच लिया और फुसफुसा कर बोला, ‘‘बहू, जरा उठ कर मेरे लिए खाना तो परोस दे.’’

सीमा की आंखें नींद से बोझिल थीं, इसलिए वह ससुर की हरकत की गंभीरता समझ नहीं पाई. वह उठी और रसोई में चली गई. बालेश्वर भी पीछेपीछे वहां जा पहुंचा. एकाएक वह सीमा का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘मैं तुम्हें जगाना नहीं चाहता था लेकिन क्या करूं, जगाना ही पड़ा. जब तक खाने पर तेरा हाथ नहीं लगता, स्वाद नहीं आता.’’ बालेश्वर बेहयाई से हंसा.

सीमा ससुर की इस हरकत पर दूर जा कर खड़ी हो गई. उस ने चुपचाप ससुर को खाना परोसा और उस से बचती हुई रसोई के बाहर निकलने लगी. तभी बालेश्वर ने फिर से अश्लील हरकत कर दी और बोला, ‘‘एक लोटा पानी भी तो देती जा बहू.’’

ससुर की बदनीयती देख कर सीमा को गुस्सा तो बहुत आया पर वह चुपचाप गुस्सा पी गई और पानी का लोटा रख कर अपने कमरे में कर पलंग पर लेट गई. काफी देर तक पड़ीपड़ी वह सोचती रही कि आज ससुर को अचानक क्या हो गया, जो इस तरह की हरकत कर रहे हैं. बालेश्वर ने उस के साथ उस रात दोबारा छेड़छाड़ नहीं की तो सीमा ने सोचा कि शायद नशे में होने की वजह से वह ऐसी हरकत कर बैठे होंगे. पर ऐसा सोचना उस की भूल थी. अब बालेश्वर जब भी उसे अकेली पाता, कहीं कहीं उस के बदन पर हाथ फेर देता था. एक शाम बालेश्वर फिर शराब पी कर आया. रात गहराने लगी तो उस ने एक नजर बीवी पर डाली. वह खर्राटे भर रही थी. यह देख उस की बांछें खिल उठीं. उस ने अपने कपड़े उतार कर खूंटी पर टांग दिए और सिर्फ कच्छा बनियान पहने सीमा के पलंग पर जा पहुंचा.

सीमा उस के इरादों से अनजान नींद में बेसुध पड़ी थी. बालेश्वर उस की बगल में लेट गया और उस के कामुक अंगों को सहलाने लगा. सीमा नींद से जागी और उठ कर बैठने को हुई तो बालेश्वर ने उसे दबोच लिया और कुटिल हंसी हंसते हुए बोला, ‘‘ताकत दिखाने से कोई फायदा नहीं मेरी रानी. अच्छा यही होगा कि चुपचाप ऐसे ही पड़ी रहो. तुम मुझे खुश कर दोगी तो मैं भी जिंदगी भर तुम्हें खुश रखूंगा. रानी बन कर रहना है तो मेरी बात मान लो.’’

सीमा ससुर की बांहों से छूटने का प्रयास करते हुए बोली, ‘‘मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं पिताजी, मुझे छोड़ दो.’’

सीमा गिड़गिड़ाती रही. इज्जत की दुहाई देती रही, पर बालेश्वर पर तो हवस का शैतान सवार था. उस ने अपनी कोशिश जारी रखी. उस की हरकतों से सीमा की सीमाएं भी पिघलने लगीं. वह भी कई सालों से पुरुष सुख से वंचित थी. अंतत: उस ने विरोध करना बंद कर दिया. इस के बाद ससुरबहू के बीच एक नापाक रिश्ता बन गया. उस रात अनीति का पहला अध्याय लिखा गया, तो यह सिलसिला ही बन गया. बालेश्वर बीवी को नींद की गोलियां खिला देता. जब मंजू गहरी नींद में सो जाती तो वह बहू की सेज सजाने पहुंच जाता. सीमा भी उस का भरपूर सहयोग करती थी.

ऐसे काम ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रहते. ससुरबहू की गतिविधियों से पड़ोसियों को शक हुआ तो धीरेधीरे उन की यह बात फैलने लगी. मंजू के कानों में बात पड़ी तो उसे यकीन नहीं हुआ. फिर भी उस ने बहू सीमा से इस बाबत सवालजवाब किया तो सीमा बोली, ‘‘अम्मा, तुम सठिया गई हो जो सुनीसुनाई बातों पर यकीन करती हो. पड़ोसी तुम्हारे कान इसलिए भर रहे हैं ताकि घर में कलह हो.’’

बालेश्वर का बड़ा बेटा सोमेश उर्फ सोनू कई साल बाद घर लौट आया. घर में रह कर वह खेती के काम देखने लगा. जब सोमेश को पता चला कि उस के छोटे भाई की पत्नी सीमा के अपने ससुर से नाजायज संबंध हैं तो उस का माथा ठनका. लेकिन वह सुनीसुनाई बातों पर यकीन नहीं करना चाहता था. वह पिता छोटे भाई की पत्नी सीमा पर नजर रखने लगा. इस का परिणाम यह हुआ कि एक रात सोमेश ने सीमा को आधी रात के बाद पिता के कमरे से बाहर निकलते देख लिया. अब उस का शक यकीन में बदल गया. सोमेश ने जब इन नाजायज रिश्तों के बारे में सीमा से जवाब तलब किया तो उस ने सीधे शब्दों में कह दिया, ‘‘जो पूछना है अपने बाप से पूछो. घर उस का है, मुझे तो उस ने घर की दासी समझ रखा है.’’

सोमेश ने बाप से जब मर्यादा में रहने को कहा तो बालेश्वर भड़क गया, ‘‘तू मुझे नसीहत दे रहा है? यह मेरा घर है, जायदाद मेरी है. ज्यादा बोला तो घर से बेदखल कर दूंगा. एक फूटी कौड़ी भी नहीं दूंगा. अपनी औकात में रह.’’

सोमेश उस समय खामोश हो गया. लेकिन नफरत की आग उस के सीने में दहकने लगी. सोमेश की छोटी बहन पूनम अपने पति नीरज दीक्षित से लड़झगड़ कर अपनी बेटी पलक के साथ मायके गई थी. पूनम के जाने से ससुरबहू के संबंधों में खलल पड़ने लगा था. नाजायज रिश्तों को ले कर बापबेटे में ठन गई थी. जब घर में कलह बढ़ी तो सीमा तुनक कर अपने मायके चली गई. बालेश्वर सीमा को समझाबुझा कर वापस लाना चाहता था, लेकिन सोमेश इस का विरोध कर रहा था. सीमा को ले कर सोमेश बालेश्वर में अकसर झगड़ा होने लगा था. गुस्से में बालेश्वर बेटे सोमेश को पीट भी देता था.

8 अक्तूबर, 2018 की देर शाम भी बालेश्वर सोनू में सीमा को ले कर तूतू मैंमैं हुई. फिर बात इतनी बढ़ी कि बालेश्वर ने सोमेश की पिटाई कर दी. इस पिटाई ने आग में घी का काम किया. सोमेश ने सोचा आज यह पापी बहू को हवस का शिकार बना रहा है, कल को बेटी को भी हवस का शिकार बना सकता है. अत: उस का जिंदा रहना उचित नहीं है. ज्योंज्यों रात गहराती जा रही थी, त्योंत्यों सोमेश का गुस्सा बढ़ता जा रहा था. वह छत पर लेटा था लेकिन नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. आधी रात के बाद वह उठा. पहले वह रसोई में गया. वहां से लोहे की फुंकनी ले कर बाप के कमरे में जा पहुंचा

बालेश्वर गहरी नींद में सो रहा था. उसी के बगल में बहन पूनम की मासूम बेटी पलक सो रही थी. कमरे में पहुंचते ही सोमेश ने बाप के सिर पर फुंकनी से कई प्रहार किए. बालेश्वर चीखा और सदा के लिए शांत हो गया. नाना की चीख से पलक की नींद खुल गई. उस ने मामा का रौद्र रूप देखा तो चीखने लगी. सोमेश ने सोचा कि पलक ने उसे हत्या करते देख लिया है, वह बता देगी तो वह पकड़ा जाएगा. विवेक खो बैठे सोमेश के हाथ पलक की गरदन पर पहुंच गए और उस ने गला घोंट कर उसे भी मार डाला. डबल मर्डर करने के बाद सोमेश खून सनी फुंकनी कमरे में ही छोड़ कर घर से बाहर गया. घर से कुछ दूरी पर तालाब था. वहां जा कर उस ने खून सने हाथपैर धोए, फिर वापस कर छत पर सो गया. सुबह होने पर मंजू पूनम कमरे में पहुंचीं तो उन्हें डबल मर्डर की जानकारी हुई.

फिर सोमेश भी कुछ देर रोनेधोने का नाटक करता रहा और बाद में उस ने थाना बेला जा कर पुलिस को सूचना दे दी. सोमेश उर्फ सोनू से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे 10 अक्तूबर, 2018 को औरैया की कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला जेल भेज दिया गया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Family Crime : मौसी बनी बच्चों की कातिल

Family Crime : राधा ने बहन के पति संजय से आशिकी ही नहीं की बल्कि उस से शादी भी कर ली. लेकिन उस की इस विषैली आशिकी ने उसी की जिंदगी में जहर घोल दिया. उस के साथ जो हुआ वह…

राधा हसीन सपने देखने वाली युवती थी. 2 भाइयों की एकलौती बहन. उसे मांबाप और भाइयों के प्यार की कभी कमी नहीं रही. लेकिन राधा की जिंदगी ही नहीं, बल्कि मौत भी एक कहानी बन कर रह गई, एक दुखद कहानी. राधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की आशिकी इतनी दुखद साबित होगी कि ससुराल और मायके दोनों जगह नफरत के ऐसे बीज बो जाएगी, जिस के पौधों को काटना तो दूर वह उस की गंध से ही तड़प उठेगी. इस कहानी की भूमिका बनी जिला कासगंज, उत्तर प्रदेश के गांव सैलई से. विजय पाल सिंह अपने 3 बेटों मुकेश, सुखदेव और संजय के साथ इसी गांव में खुशहाल जीवन बिता रहा था. विजय पाल के पास खेती की जमीन थी. साथ ही गांव के अलावा कासगंज में पक्का मकान भी था.

मुकेश और सुखदेव की शादियां हो गई थीं. मुकेश गांव में ही परचून की दुकान चलाता था, जबकि सुखदेव कोचिंग सेंटर में बतौर अध्यापक नौकरी करता था. विजय का तीसरे नंबर का छोटा बेटा संजय ट्रक ड्राइवर था. विजय पाल का पड़ोसी केसरी लाल अपने 2 बेटों प्रेम सिंह, भरत सिंह और जवान बेटी तुलसी के साथ सैलई में ही रहता था. पड़ोसी होने के नाते विजय पाल और केसरी लाल के पारिवारिक संबंध थे. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि केसरी लाल की जवान बेटी तुलसी पड़ोस में रहने वाले संजय को इतना चाहने लगेगी कि अपनी अलग दुनिया बसाने के लिए परिवार तक से बगावत कर बैठेगी.

जब केसरी लाल को पता चला कि बेटी बेलगाम होने लगी है तो उस ने तुलसी पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया. लेकिन तुलसी को तो ट्रक ड्राइवर भा गया था, इसलिए वह बागी हो गई. संजय और तुलसी के मिलनेजुलने की चर्चा ने जब गांव में तूल पकड़ा तो केसरी लाल ने विजय पाल से संजय की इस गुस्ताखी के बारे में बताया. विजय पाल ने केसरी लाल से कहा कि वह निश्चिंत रहे, संजय ऐसा कोई काम नहीं करेगा कि उस की बदनामी हो. लेकिन इस से पहले कि विजय पाल कुछ करता, संजय तुलसी को ले कर गांव से भाग गया. घर वालों को ऐसी उम्मीद नहीं थी, पर संजय और तुलसी ने कोर्ट में शादी कर के अपनी अलग दुनिया बसा ली. केसरी लाल को बागी बेटी की यह हरकत पसंद नहीं आई. उस ने तय कर लिया कि परिवार पर बदनामी का दाग लगाने वाली बेटी से कोई संबंध नहीं रखेगा. कई साल तक तुलसी का अपने मायके से कोई संबंध नहीं रहा.

कालांतर में तुलसी ने शिवम को जन्म दिया तो मांबाप का दिल भी पिघलने लगा. तुलसी संजय के साथ खुश थी, इसलिए मांबाप उसे पूरी तरह गलत नहीं कह सकते थे.  इसी के चलते उन्होंने बेटीदामाद को माफ कर के घर बुला लिया. सब कुछ ठीक हो गया था, तुलसी खुश थी. 4 साल बाद वह 2 बच्चों की मां भी बन गई थी. उस ने सासससुर और परिवार वालों के दिलों में अपने लिए जगह बना ली. सैलई में तुलसी के चाचा अयोध्या प्रसाद भी रहते थे, जिन्हें लोग अयुद्धी भी कहते थे. अयुद्धी के 2 बेटे थे दीप और विपिन. साथ ही एक बेटी भी थी राधा. राधा और तुलसी दोनों की उम्र में थोड़ा सा अंतर था. हमउम्र होने की वजह से दोनों एकदूसरे के काफी करीब थीं.

जब तुलसी संजय के साथ भाग गई थी तो राधा खुद को अकेला महसूस करने लगी थी. तुलसी संजय के साथ कासगंज में रहती थी. राधा को उन दोनों के गांव आने का इंतजार रहता था. बहन और जीजा जब भी गांव आते थे, राधा ताऊ के घर पहुंच जाती थी. जीजासाली के हंसीमजाक को बुरा नहीं माना जाता, इसलिए संजय और राधा के बीच हंसीमजाक चलता रहता था. मजाक से हुई शुरुआत धीरेधीरे रंग लाने लगी. संजय स्वभाव से चंचल तो था ही, धीरेधीरे तुलसी से आशिकी का बुखार भी हलका पड़ने लगा था. एक दिन मौका पा कर संजय ने राधा का हाथ पकड़ लिया.

राधा ने खिलखिला कर हंसते हुए कहा, ‘‘जीजा, तुम ने इसी तरह तुलसी दीदी का हाथ पकड़ा था न?’’

‘‘हां, ठीक ऐसे ही.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या इस हाथ को हमेशा पकड़े रहोगे?’’ राधा ने पूछा.

संजय ने हड़बड़ा कर राधा का हाथ छोड़ दिया. राधा ने गंभीर हो कर कहा, ‘‘बड़े डरपोक हो जीजा. अगर लुकछिप कर तुम कुछ पाना चाहते हो तो मिलने वाला नहीं है. हां, बात अगर गंभीर हो तो सोचा जा सकता है. ’’

राधा संजय के दिलोदिमाग में बस चुकी थी. जबकि तुलसी को इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी कि उस की चचेरी बहन ने किस तरह संबंधों में सेंध लगा दी है. राधा उस के जीवन में अचानक घुस आएगी, ऐसा तुलसी ने सोचा तक नहीं था. संजय पर विश्वास कर उस ने अपने मांबाप से बगावत की थी, लेकिन उसे लग रहा था कि संजय के दिल में कुछ है, जो वह समझ नहीं पा रही. दूसरी तरफ राधा सोच रही थी कि क्या सचमुच संजय उस के प्रति गंभीर है या फिर सिर्फ मस्ती कर रहा है. संजय का स्पर्श उस की रगों में बिजली के करंट की तरह दौड़ रहा था. उस ने सोचा कि यह सब गलत है. अब वह अकेले मेें संजय के करीब नहीं जाएगी. उस ने खुद को संभालने की भरपूर कोशिश की लेकिन संजय हर घड़ी, हर पल उस के दिलोदिमाग में मंडराता रहता था.

अगले कुछ दिन तक संजय गांव नहीं आया तो एक दिन राधा ने संजय को फोन कर के पूछा, ‘‘क्या बात है जीजा, दीदी गांव क्यों नहीं आती?’’

‘‘ओह राधा तुम हो, जीजी से बात कर लो, मुझ से क्या पूछती हो? अगर ज्यादा दिल कर रहा है तो हमारे घर आ जाओ. कल ही लंबे टूर से वापस आया हूं.’’

राधा का दिल धड़कने लगा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह अपनी बहन के पति की ओर खिंची चली जा रही है. हालांकि वह जानती थी कि यह गलत है. अगर उस ने संजय से संबंध बनाए तो पता नहीं संबंधों में कितनी मजबूती होगी. संजय मजबूत भी हुआ तो समाज और परिवार के लोग कितनी लानतमलामत करेंगे. ये संबंध कितने सही होंगे, वह नहीं जानती थी. पर आशिकी हिलोरें ले रही थी. लग रहा था जैसे कोई तूफान आने वाला हो. फिर एक दिन राधा अपनी बहन के घर कासगंज आ गई. शाम को जब संजय ने राधा को अपने घर देखा तो हैरानी से पूछा, ‘‘राधा, तुम यहां?’’

‘‘हां, और अब शाम हो रही है. मैं जाऊंगी भी नहीं.’’ राधा ने संजय को गहरी नजर से देखते हुए कहा.

‘‘अरे वाह, तुम्हें देखते ही इस ने रंग बदल लिया. मैं इसे रुकने को कह रही थी तो मान ही नहीं रही थी.’’ तुलसी ने कहा. वह राधा और संजय के मनोभावों से बिलकुल बेखबर थी.

संजय ने चाचा के घर फोन कर के कह दिया कि उन लोगों ने राधा को रोक लिया है, सुबह वह खुद छोड़ आएगा. उस दिन राधा वहीं रुक गई, लेकिन तुलसी के दांपत्य के लिए वह रात कयामत की रात थी. इंटर पास राधा से तुलसी को ऐसी नासमझी की उम्मीद नहीं थी. लेकिन राधा के दिलोदिमाग पर तो जीजा छाया हुआ था. रात का खाना खाने के बाद तुलसी ने राधा का बिस्तर अलग कमरे में लगा दिया और निश्चिंत हो कर सो गई. लेकिन राधा और संजय की आंखों में नींद नहीं थी. देर रात संजय राधा के कमरे में पहुंचा तो राधा जाग रही थी. जानते हुए भी संजय ने पूछा, ‘‘तुम सोई नहीं?’’

‘‘मुझे नींद नहीं आ रही. मुझे यह बताओ जीजा, तुम ने मुझे क्यों रोका है?’’

‘‘क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं.’’

‘‘सोच लो जीजा, साली से प्यार करना महंगा भी पड़ सकता है.’’ राधा ने कहा.

‘‘वह सब छोड़ो, बस यह जान लो कि मैं तुम्हें प्यार करने लगा हूं और तुम्हारे बिना नहीं रह सकता.’’ कह कर संजय ने राधा को गले लगा लिया. इस के बाद दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. जो संबंध संजय के लिए शायद मजाक थे, उन्हें ले कर राधा गंभीर थी. इसीलिए दोनों के बीच 2 साल तक लुकाछिपी चलती रही. फिर एक दिन राधा ने पूछा, ‘‘अब क्या इरादा है? लगता है, मां को शक हो गया है. जल्दी ही मेरे लिए रिश्ता तलाशा जाएगा. मुझे यह बताओ कि तुम दीदी को तलाक दोगे या नहीं?’’

‘‘यह क्या कह रही हो तुम? मैं तुलसी को कैसे तलाक दे सकता हूं? बड़ी मुश्किल से तुलसी को घर वालों ने स्वीकार किया है.’’ संजय बोला.

‘‘तो क्या तुम साली को मौजमस्ती के लिए इस्तेमाल कर रहे हो, यह सब महंगा भी पड़ सकता है जीजा, मुझे बताओ कि अब क्या करना है?’’

‘‘राधा, मैं तुम से प्यार करता हूं. हम दोनों कासगंज छोड़ कर कहीं और रहेंगे और कोर्ट में शादी कर लेंगे. मजबूर हो कर तुलसी तुम्हें स्वीकार कर ही लेगी.’’

‘‘लेकिन तुम ने तो कहा था कि तुम तुलसी को छोड़ दोगे?’’

‘‘पागल मत बनो, वह मेरे 2 बेटों की मां है. लेकिन मैं तुम्हें विश्वास दिलाता हूं कि तुम्हें वे सारे अधिकार मिलेंगे, जो पत्नी को मिलते हैं.’’ संजय ने राधा को समझाने की कोशिश की. आखिर राधा जीजा की बात मान गई और एक दिन संजय के साथ भाग गई. दोनों ने बदायूं कोर्ट में शादी कर ली. अगले दिन राधा के घर में तूफान आ गया. उस की मां को तो पहले से ही शक था. पिता अयुद्धी इतने गुस्से में था कि उस ने उसी वक्त फैसला सुना दिया, ‘‘समझ लो, राधा हम सब के लिए मर गई. आज के बाद इस घर में कोई भी उस का नाम नहीं लेगा.’’

उधर संजय परेशान था कि अब राधा को ले कर कहां जाए. उस ने तुलसी को फोन कर के बता दिया कि उस ने राधा से कोर्टमैरिज कर ली है. अब तुम बताओ, मैं राधा को घर लाऊं या नहीं. तुलसी हैरान रह गई. पति की बेवफाई से क्षुब्ध तुलसी की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने सासससुर को सारी बात बता दी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे. इसी बीच इश्क का मारा घर का छोटा बेटा अपनी नई बीवी को ले कर घर आ गया. तुलसी क्या करती, उसे तो न मायके वालों का सहयोग मिलता और न ससुराल वालों का. अगर वह अपने पति के खिलाफ जाती तो 2-2 बच्चों की मां क्या करती. आखिर तुलसी ने हथियार डाल दिए और सौतन बहन को कबूल कर लिया.

राधा ससुराल आ तो गई, पर उसे ससुराल में वह सम्मान नहीं मिला जो एक बहू को मिलना चाहिए था. साल भर के बाद भी राधा को कोई संतान नहीं हुई तो उस के दिल में एक भय सा बैठ गया कि अगर उसे कोई बच्चा नहीं हुआ तो वह क्या करेगी. इसी के मद्देनजर वह तुलसी और उस के बच्चों के दिल में जगह बनाने की भरसक कोशिश कर रही थी. इसी बीच संजय ने कुछ सोच कर एटा के अवंतीबाई नगर में रिटायर्ड फौजी नेकपाल के मकान में 2 कमरे किराए पर ले लिए और परिवार के साथ वहीं रहने लगा. तुलसी जबतब कासगंज आतीजाती रहती थी.

संजय ने दोनों बच्चों नितिन और शिवम को स्कूल में दाखिल कर दिया गया था. राधा से बच्चे काफी हिलमिल गए थे. तुलसी ने सौतन को अपनी किस्मत समझ लिया था, लेकिन अभी जीवन में बहुत कुछ होना बाकी था. कोई नहीं जानता था कि कब कौन सा तूफान आ जाए. सतही तौर पर सब ठीक था, पर अंदर ही अंदर लावा उबल रहा था. राधा को अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. उस के लिए मायके का दरवाजा बंद हो चुका था. ससुराल वालों से भी अपनेपन की कोई उम्मीद नहीं थी. उसे यह अपराधबोध भी परेशान कर रहा था कि उस ने अपनी ही बहन के दांपत्य में सेंध लगा दी है.

परिवार की बड़ी बहू तो तुलसी ही थी. राधा को जबतब तुलसी के ताने भी सहने पड़ते थे. जिंदगी में सुखचैन नहीं था. आगे देखती तो भी अंधेरा ही नजर आता था. एक संजय का प्यार ही था, जिस के सहारे वह सौतन की भूमिका निभा रही थी. 23 मई, 2016 को संजय को उस के किसी दुश्मन ने गोली मार दी. जख्मी हालत में उसे अलीगढ़ मैडिकल ले जाया गया. उस की हालत गंभीर थी. राधा डर गई कि अगर संजय मर गया तो वह कहां जाएगी. संजय की देखरेख कभी तुलसी करती तो कभी राधा. तभी तुलसी ने राधा से कहा, ‘‘संजय की हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ गई है, तुम जा कर बच्चों को देखो, मैं यहां संभालती हूं.’’

जुलाई महीने में संजय की हालत कुछ सुधरी तो घर वाले उसे कासगंज वाले घर में ले आए. तुलसी अपने पति के साथ थी, जबकि राधा बच्चों के साथ पति से दूर थी. अस्पताल में संजय ने एक बार राधा से कहा, ‘‘मेरी हालत ठीक नहीं है. अगर तुम किसी और से शादी करना चाहो तो कर लो.’’

सुन कर राधा सन्न रह गई, ‘‘यह क्या कह रहे हो संजय, मैं सिर्फ तुम्हारी हूं. तुम्हारे लिए कितना कुछ सह रही हूं. मेरे जैसी औरत से कौन शादी करेगा और कौन मुझे मानसम्मान देगा.’’

उस दिन के बाद से राधा डिप्रेशन में रहने लगी. पति और बच्चा दोनों ही उस की ख्वाहिश थीं. अगर पूरी नहीं होती तो वह कुछ भी नहीं थी. नितिन और शिवम इस बात से अनभिज्ञ थे कि मौसी क्यों परेशान है और उस की परेशानी कौन सा तूफान लाने वाली थी. 19 अगस्त, 2016 को बच्चे स्कूल से आए तो राधा ने उन्हें खाना दिया. फिर दोनों पढ़ने बैठ गए. राधा ने रात के खाने की तैयारी शुरू कर दी. रात का खाना खा कर सब टीवी देखने बैठ गए. किसी को पता ही नहीं चला कि मौत ने कब दस्तक दे दी थी. कुछ देर बाद  राधा ने कहा, ‘‘तुम लोग सो जाओ,सुबह उठ कर स्कूल भी जाना है.’’

कुछ देर बाद बच्चे सो गए. राधा ने संजय को फोन किया, लेकिन घंटी बजती रही. फोन नहीं उठा. यह सोच कर राधा का गुस्सा बढ़ने लगा कि क्या मैं सिर्फ सौतन के बच्चों की नौकरानी हूं. मेरे बच्चे नहीं होंगे तो क्या मुझे घर की बहू का सम्मान नहीं मिलेगा. संजय ने तो परिवार में सम्मान दिलाने का वादा किया था, पर वह मर गया तो?

ऐसे ही विचार उसे आहत कर रहे थे, गुस्सा दिला रहे थे. उस ने देखा शिवम निश्चिंत हो कर सो रहा था. यंत्रचालित से उस के हाथ शिवम की गरदन तक पहुंच गए और जरा सी देर में 4 वर्ष का के शिवम का सिर एक ओर लुढ़क गया. बच्चे की मौत से राधा घबरा गई. उस ने सोचा सुबह होते ही शिवम की मौत की खबर नितिन के जरिए सब को मिल जाएगी. इस के बाद तो पुलिस, थाना, कचहरी और जेल. संजय भी उसे माफ नहीं करेगा, ऐसे में क्या करे? उसे लगा, शिवम के भाई नितिन को भी मार देने में ही भलाई है. उस ने नितिन के गले पर भी दबाव बनाना शुरू कर दिया. नितिन कुछ देर छटपटाया, फिर बेहोश हो गया. राधा ने जल्दी से एक बैग में कपड़े, कुछ गहने, पैसे और सर्टिफिकेट भरे और कमरे में ताला लगा कर बस अड्डे पहुंच गई, जहां मथुरा वाली बस खड़ी थी. वह बस में बैठ गई. मथुरा पहुंच कर वह स्टेशन पर गई, वहां जो भी ट्रेन खड़ी मिली, वह उसी में सवार हो गई.

इधर सुबह जब नितिन को होश आया तो उस ने खिड़की में से शोर मचाया. जरा सी देर में लोग इकट्ठा हो गए. उन्होंने देखा कमरे के दरवाजे पर ताला लगा हुआ था. ताला तोड़ कर जब लोग अंदर पहुंचे तो शिवम मरा पड़ा था. नितिन ने बताया, ‘‘इसे राधा मौसी ने मारा है और मुझे भी जान से मारने की कोशिश की, लेकिन मैं बेहोश हो गया था.’’

लोगों ने कोतवाली में फोन किया, कुछ ही देर में थानाप्रभारी सुधीर कुमार पुलिस टीम के साथ वहां आ गए. पुलिस जांच में जुट गई. शिवम को अस्पताल भेजा गया, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. नितिन ठीक था, उस का मैडिकल परीक्षण नहीं किया गया. बच्चे के पोस्टमार्टम में मौत का कारण दम घुटना बताया गया. इस मामले की सूचना कासगंज में विजय पाल को दे दी गई थी. विजय पाल ने 28 जुलाई, 2016 को थाना एटा में राधा के खिलाफ भादंवि की धारा 307, 302 के तहत रिपोर्ट दर्ज करा दी. राधा के इस कृत्य से सभी हैरान थे. राधा कहां गई, किसी को कुछ पता नहीं था. पुलिस ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को राधा की लोकेशन मथुरा में मिली थी लेकिन आगे की कोई जानकारी नहीं थी.

23 अगस्त, 2016 को लुधियाना के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी ने फोन कर के एटा पुलिस को बताया कि लुधियाना में एक लावारिस महिला मिली है जो खुद को कासगंज की बता रही है. यह खबर मिलते ही पुलिस राधा की गिरफ्तारी के लिए रवाना हो गई. लुधियाना पहुंच कर एटा पुलिस ने राधा को हिरासत में ले लिया और एटा लौट आई. एटा में उच्चाधिकारियों की मौजूदगी में राधा से पूछताछ की गई. उस ने बताया कि वह सौतन के तानों से परेशान थी, जिस के चलते उसे अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा था. अकेले हो जाने के तनाव में उस से यह गलती हो गई. राधा ने यह बात पुलिस के सामने दिए गए बयान में तो कही. लेकिन बाद में अदालत में अपना गुनाह स्वीकार नहीं किया.

केस संख्या 572/2016 के अंतर्गत दायर इस मामले में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रैट द्वारा 5 दिसंबर, 2016 को भादंवि की धारा 307, 302 का चार्ज लगा कर केस सत्र न्यायालय के सुपुर्द कर दिया गया. घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था, राधा ने अपने बचाव में कहा कि उस के खिलाफ रंजिशन मुकदमा चलाया जा रहा है, वह निर्दोष है. उस ने किसी को नहीं मारा. तुलसी ने गवाही में कहा कि उस का राधा के साथ कोई विवाद नहीं है. उसे नहीं मालूम कि शिवम को किस ने मारा. घटना के गवाह मुकेश ने कहा कि उसे जानकारी नहीं है कि राधा ने किस वजह से शिवम की हत्या कर दी और नितिन को भी मार डालने की कोशिश की. मुकेश विजय पाल का मंझला बेटा था.

संजय ने अपनी गवाही में दूसरी पत्नी राधा को बचाने का भरसक प्रयास करते हुए कहा कि उस ने अपनी पहली पत्नी तुलसी की सहमति से राधा से शादी की थी. राधा बच्चों से प्यार करती थी. जब दुश्मनी के चलते किसी ने उसे गोली मार दी तो वह अस्पताल में था. तुलसी भी उस के साथ अलीगढ़ के अस्पताल में थी. घटना वाले दिन राधा घर पर नहीं थी, जिस से सब को लगा कि राधा ही शिवम की हत्या कर के कहीं भाग गई होगी. इसी आधार पर मेरे पिता ने उस के खिलाफ कोतवाली एटा में रिपोर्ट दर्ज कराई थी, पर सच्चाई यह है कि घटना वाले दिन रात में 2 बदमाश घर में घुस आए, जिन्होंने शिवम को मार डाला और नितिन को भी मरा समझ राधा को अपने साथ ले गए. बाद में उन्होंने राधा को कुछ न बताने की धमकी दे कर छोड़ दिया था.

राधा कोतवाली एटा पहुंची और पुलिस  को घटना के बारे में बताना चाहा, लेकिन पुलिस ने उस की बात नहीं सुनी. राधा के अनुसार बदमाशों से डर कर शिवम रोने लगा और उन्होंने शिवम की हत्या कर दी और जेवर लूट लिए. लेकिन अदालत ने कहा कि राधा ने अदालत को यह बात कभी नहीं बताई. पुलिस के अनुसार राधा ने कभी भी अपने साथ लूट और बदमाशों द्वारा शिवम की हत्या की कभी कोई रिपोर्ट नहीं लिखाई, न ही अपने 164 के बयानों में इस बात का जिक्र किया. 8 वर्षीय नितिन ने अपनी गवाही में कहा, ‘‘मां ने बताया कि मुझे अपनी गवाही में कहना है कि राधा ने मेरा गला दबाया था. लेकिन उस ने राधा द्वारा शिवम की हत्या किए जाने के बारे में कुछ नहीं बताया, जबकि वह राधा के साथ ही सो रहा था.’’

सत्र न्यायाधीश रेणु अग्रवाल ने 21 जनवरी, 2019 के अपने फैसले में लिखा कि नितिन की हत्या की कोशिश के कोई साक्ष्य नहीं मिले और न ही नितिन का कोई चिकित्सकीय परीक्षण कराया गया. अत: आईपीसी की धारा 307 से उसे बरी किया जाता है. परिस्थितिजन्य साक्ष्य राधा द्वारा शिवम की हत्या करना बताते हैं. अत: अभियुक्ता राधा जो जेल में है, को आईपीसी की धारा 302 का दोषी माना जाता है. अभियुक्त राधा को भादंवि की धारा 302 के अंतर्गत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास और 20 हजार रुपए के अर्थदंड से दंडित किया जाता है. अर्थदंड अदा न करने की स्थिति में अभियुक्ता को 2 माह की साधारण कारावास की अतिरिक्त सजा भुगतनी होगी.

अर्थदंड की वसूली होने पर 10 हजार रुपए मृतक शिवम की मां तुलसी देवी को देय होंगे. अभियुक्ता की सजा का वारंट बना कर जिला कारागार एटा में अविलंब भेजा जाए. दोषी को फैसले की प्रति नि:शुल्क दी जाए. आजीवन कारावास यानी बाकी का जीवन जेल में गुजरेगा, फैसला सुनते ही राधा का चेहरा पीला पड़ गया. संजय की मोहब्बत और उस के साथ जीने, उस के बच्चों की मां बनने की उम्मीद राधा के लिए सिर्फ एक मृगतृष्णा बन गई थी. जीनेमरने की स्थिति में राधा ने इधरउधर देखा, वहां आसपास कोई नहीं था. संजय उस से कहता था कि वह बेदाग छूट कर बाहर आएगी और वह उसे दुनिया की सारी खुशियां देगा.

बेजान सी राधा ने जेल में अपनी बैरक में पहुंचने के बाद इधरउधर देखा. चलचित्र की तरह सारी घटनाएं उस की आंखों के सामने गुजर गईं. कुछ ही देर में अचानक महिला बैरक में हंगामा मच गया. किसी ने जेलर को बताया कि राधा उल्टियां कर रही है, उस की तबीयत बिगड़ गई है. जेल के अधिकारी महिला बैरक में पहुंच गए. उन के हाथपैर फूल गए. राधा की हालत बता रही थी कि उस ने जहर खाया है, पर उसे जहर किस ने दिया, कहां से आया, यह बड़ा सवाल था. राधा को तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. राधा का मामला काफी संदिग्ध था. उस का विसरा सुरक्षित कर लिया गया और जांच के लिए अनुसंधान शाखा में भेज दिया गया.

राधा के ससुराल और मायके में उस की मौत की खबर दी गई, लेकिन दोनों परिवारों ने शव लेने से इनकार कर दिया. राधा की विषैली आशिकी ने उस के जीवन में ही विष घोल दिया. राधा के शव का सरकारी खर्च पर अंतिम संस्कार कर दिया गया.

 

Extramarital Affair : गहरी खाई में डाल कर पति को जलाया

Extramarital Affair : रिजोश कुरियन और उस की पत्नी लिजी कुरियन की जिंदगी मौज मजे से कट रही थी. लिजी के नौकरी करने के बाद बेटी के भविष्य की चिंता भी खत्म हो गई थी. लेकिन जब लिजी की जिंदगी में वसीम अब्दुल कादिर आया तो पतिपत्नी के संबंधों में ऐसी सेंध लगी कि…

9 नवंबर, 2019 की बात है. दोपहर के यही कोई ढाई बजे थे. नवी मुंबई के उपनगर पनवेल के सीटी पुलिस थाने के थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे को एक अहम खबर मिली. खबर यह थी कि पनवेल के होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग के कमरा नंबर 101 में कोई बड़ा हादसा हो गया है. कमरे के अंदर ठहरे एक दंपति और उन की 2 वर्षीय बच्ची की स्थिति कुछ ठीक नहीं है. यह जानकारी मिलते ही थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अपने सहायक इंसपेक्टर शत्रुघ्न माली, महिला एएसआई सरिता मुसले और कांस्टेबल योगेश मेढ़ को अपने साथ ले कर होटल लाजिंग एंड बोर्डिंग की तरफ रवाना हो गए.

यह होटल नवी मुंबई पनवेल का एक जानामाना होटल था. उस होटल में इस प्रकार की यह पहली घटना थी. इसलिए होटल का पूरा स्टाफ परेशान था. जब यह खबर लोगों के बीच फैली तो होटल में ठहरे लोगों में हलचल मच गई. वे लोग होटल के कमरा नंबर 101 के सामने आ कर जमा हो गए. कमरा नंबर 101 होटल की पहली मंजिल पर था. पुलिस जब उस कमरे में गई तो डबल बेड पर एक महिला और एक पुरुष के अलावा एक बच्ची चित अवस्था में पड़े थे. निरीक्षण में पता चला कि महिला और पुरुष की सांसें तो धीमी गति से चल रही थीं, लेकिन बच्ची की सांस थम चुकी थी. उस के मुंह से झाग निकल रहे थे और पूरा बदन नीला पड़ गया था.

कमरे से उठती कीटनाशक दवा की गंध से पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि आखिर मामला क्या था. थानाप्रभारी ने बिना देरी किए एंबुलेंस बुला कर तीनों को स्थानीय अस्पताल भेज दिया. अस्पताल के डाक्टरों ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया, जबकि बेहोश महिला और पुरुष का प्राथमिक उपचार करने के बाद उन्हें मुंबई के जेजे अस्पताल रेफर कर दिया. उन की हालत काफी चिंताजनक थी. मामला गंभीर था. थानाप्रभारी किसी प्रकार का जोखिम नहीं लेना चाहते थे, इसलिए उन्होंने मामले की जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी और घटना स्थल के निरीक्षण में जुट गए. उन्होंने होटल मैनेजर और वहां के कर्मचारियों से पूछा तो मालूम पड़ा कि वे लोग उस होटल में 2 दिन पहले आ कर ठहरे थे.

होटल के रजिस्टर में उन्होंने अपने आप को दंपति के रूप में दर्ज करवाया था. वे लोग कौन थे, कहां से आए थे. यह जानकारी पुलिस को उस होटल के रजिस्टर और उन के कमरे की तलाशी के दौरान मिल गई. ये लोग मूल रूप से केरला के रहने वाले थे. थानाप्रभारी अजय कुमार लांडगे अभी घटना स्थल का निरीक्षण कर ही रहे थे कि सूचना पा कर पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी वहां आ गए. उन के साथ फोरैंसिक टीम भी थी. फोरैंसिक टीम ने मौके से सबूत जुटाए. इस के बाद थानाप्रभारी ने होटल का कमरा सील कर मृतक बच्ची के शव को पोस्टमार्टम के लिए जेजे अस्पताल भेज दिया. फिर होटल मैनेजर की शिकायत पर केस दर्ज कर जांचपड़ताल शुरू कर दी. जब उन्होंने होटल के कमरे में मिले डोक्यूमेंट्स के आधार पर उन के परिवार वालों से संपर्क किया तो उन के सामने चौंका देने वाला सच सामने आया.

पता चला कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले लोग पतिपत्नी न हो कर प्रेमी और प्रेमिका थे. उन का नाम लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर था और मृतक बच्ची जोहना थी. ये लोग हत्या के आरोपी थे. उन के ऊपर रिजोश कुरियन की हत्या का आरोप था. यह पता चलते ही पुलिस ने लिजी कुरियन और वसीम अब्दुल कादिर को हिरसात में ले लिया. ये लोग केरल के जिला इडुक्की के थाना संथनपारा के रहने वाले थे, इसलिए पनवेल पुलिस ने यह जानकारी संथनपारा पुलिस को दे दी. आपराधिक जानकारी पाते ही केरल के थाना संथनपारा के एसआई विनोद कुमार अपनी टीम के साथ पनवेल पहुंच गए. उन के साथ मुंबई पुलिस की कस्टडी में अभियुक्तों के परिवार वाले भी थे, पनवेल नवी मुंबई की पुलिस और केरल पुलिस टीम ने जब संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश की तो कहानी कुछ इस तरह सामने आई—

36 वर्षीय रिजोश कुरियन केरल के जनपद इडुक्की के थाना संथनपारा के एक छोटे से गांव में रहता था. वह उसी इलाके के एक बड़े रिजोर्ट में काम करता था. परिवार में उस की पत्नी लिजी कुरियन के अलावा एक बेटी थी जोहना. लिजी काम के दौरान ही रिजोश की जिंदगी में आई थी. पहले दोनों में दोस्ती हुई. 4 साल पहले परिवार वालों की सहमति से दोनों ने लव मैरिज कर ली थी. शादी के बाद लिजी और रिजोश कुरियन का दांपत्य जीवन सुचारू रूप से चलने लगा. रिजोश जिस रिसोर्ट में काम करता था, वहां उस का वेतन बहुत ज्यादा नहीं था, लेकिन इतना जरूर था कि किसी तरह घर का खर्च चल जाता था. घर में कभी आर्थिक परेशानी होती तब भी लिजी किसी तरह एडजस्ट कर लेती थी. लेकिन जब लिजी ने एक बेटी को जन्म दिया तो घर के खर्चे कुछ बढ़ गए.

मैनेजर ने लगाई संबंधों में सेंध लिजी कुरियन यह नहीं चाहती थी कि जिन अभावों में वह अपनी जिंदगी गुजार रही थी, उस अभाव का असर उस की बेटी जोहना पर पड़े. यही सोच कर उस ने खुद भी नौकरी करने का मन बनाया. इस के लिए उस ने पति रिजोश से बात की तो उसे पत्नी का यह प्रस्ताव अच्छा नहीं लगा. तब लिजी ने तर्क दिया कि जब हम दोनों कमाएंगे तो हमारी बेटी की पढ़ाई के साथ परवरिश भी अच्छी होगी. रिजोश को पत्नी की बात ठीक तो लगी लेकिन समस्या यह थी कि लिजी के नौकरी पर जाने के बाद जोहना की देखभाल कौन करेगा.

लिजी ने पति को यह कह कर राजी कर लिया कि यहां ऐसे कई पालन घर हैं जो बच्चों को न सिर्फ संभालते हैं बल्कि उन की अच्छी तरह से देखभाल भी करते हैं. आखिरकार न चाहते हुए भी रिजोश को पत्नी की जिद के आगे झुकना पड़ा. तब रिजोश ने अपने ही रिसोर्ट के मशरूम फार्म में लिजी को नौकरी दिलवा दी. लिजी को नौकरी मिल जाने के बाद दोनों साथसाथ घर से निकलते थे. पहले वह अपनी बेटी जोहना को पालन घर छोड़ते, फिर रिसोर्ट जाते. ड्यूटी से लौटते समय ये लोग पालन घर से अपनी बेटी को घर ले आते थे. एक साथ काम करने से पतिपत्नी काफी खुश थे. दोनों के वेतन से धीरेधीरे घर की स्थिति भी सुधर गई. बेटी जोहना के भविष्य के लिए भी वह पैसों की बचत कर रहे थे.

सब कुछ ठीक से चल रहा था, लेकिन उन की खुशी को रिसोर्ट के मैनेजर वसीम अब्दुब्ल कादिर की नजर लग गई. मैनेजर वसीम अब्दुल ने जिस दिन से लिजा को देखा था, उस के दिल में उतर गई थी. वह लिजा को चाहने लगा था. 27 वर्षीय वसीम अब्दुल कादिर भी उसी इलाके में रहता था, जहां रिजोश कुरियन रहता था. वह अविवाहित था. रिसोर्ट में वसीम अब्दुल कादिर की छवि कर्तव्यनिष्ठ और कड़क स्वभाव वाले व्यक्ति की थी लेकिन वह रिजोश और लिजी के प्रति नरम दिल और उदार बन गया. लिजी से नजदीकियां बढ़ाने के लिए वसीम उस के आगेपीछे घूमने लगा. वह लिजी को प्रभावित करने के लिए बनठन कर रिसोर्ट आता और उस के करीब रहने की कोशिश करता था.

जब इस सब का लिजी पर कोई असर नहीं पड़ा तो उस ने एक दूसरा रास्ता अपनाया. उस ने लिजी के पति रिजोश से दोस्ती कर ली. इस के बाद वह उस के घर आनेजाने लगा. कभीकभी पार्टी देने के बहाने वह रिजोश को होटलों में ले जाता, जहां वह उसे जम कर शराब पिलाता. जब रिजोश शराब के नशे में धुत हो जाता था, तो वसीम उसे छोड़ने के बहाने उस के घर आ जाता. घर पहुंच कर वह लिजी से सहानुभुति बटोरने के लिए कहता कि रिजोश नशे में धुत सड़क पर पड़ा था, मैं ने देखा तो उठा कर ले आया. रिजोश को उस के कमरे तक पहुंचाने के लिए वह लिजी की मदद लेता और उसी दौरान लिजी के बदन को स्पर्श कर लेता था. लिजी चाह कर भी उस का विरोध नहीं कर पाती थी.

लिजी जब नशे में चूर रिजोश को आड़े हाथों लेती, तो वह बीचबचाव करने लगता. जब कई बार ऐसा हुआ तो मौका देख कर एक दिन वसीम ने हिम्मत कर के लिजी का हाथ पकड़ लिया. लिजी ने जब हाथ छुड़ाने की कोशिश की तो वसीम ने उस का हाथ नहीं छोड़ा और कहा, ‘‘लिजी मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता.’’

इस पर लिजी ने नाराजगी जताते हुए कहा, ‘‘आप को पता है कि मैं एक बेटी की मां हूं. इसलिए अच्छा यही होगा कि मुझे भूल जाओ.’’

लेकिन वसीम ने हार नहीं मानी. वह लिजी के दिल में अपनी छवि बनाने की कोशिश करता रहा. उस की हमदर्दी और सहानुभूति के चलते लिजी के मन में भी उस के प्रति प्यार का अंकुर फूटने लगा. धीरेधीरे उस का झुकाव भी वसीम अब्दुल कादिर की तरफ हो गया. इस के 2 कारण थे, एक यह कि रिजोश अब पूरी तरह शराब का आदी हो गया था और दूसरा यह कि वह लिजी के तनमन की प्यास बुझाने में नाकाम साबित हो रहा था.

पति की नाक के नीचे पत्नी की अय्याशी यही कारण था कि लिजी ने वसीम के लिए अपने दिल का दरवाजा खोल दिया. इस के बाद तो वसीम बागबाग हो गया. दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ती गईं और फिर एक दिन उन्होंने मौका पा कर अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं. एक बार जब मर्यादा की जंजीर टूटी तो फिर जुड़ी ही नहीं. जब भी उन्हें मौका मिलता, तनमन की प्यास बुझा लेते थे. 2 सालों तक रिजोश की नाक के नीचे उन दोनों के अवैध संबंधों का वृक्ष फलताफूलता रहा, लेकिन उसे भनक तक नहीं लगी. रिजोश को इस का पता नहीं चलता यदि रिसोर्ट के कर्मचारियों के बीच उन के संबंधों की बात न फैलती.

रिजोश को जब पत्नी के बहके कदमों की जानकारी मिली तब तक काफी देर हो चुकी थी. रिजोश विरोध कर नहीं सकता था. इसलिए उस ने पत्नी की ही नौकरी छुड़वा कर उसे घर में बैठने को कहा. लिजी को पति की बात माननी पड़ी. इतना ही नहीं रिजोश ने लिजी को यह भी हिदायत दी कि वह अपने प्रेमी वसीम से न मिले. मुलाकात बंद होने पर वसीम और लिजी परेशान हो गए. किसी तरह एक दिन मौका मिलने पर लिजी ने वसीम से मुलाकात की, उसे बताया कि पति के होते हुए हम लोगों की मुलाकात संभव नहीं हो पाएगी. इसलिए रास्ते का पत्थर बने रिजोश को रास्ते से हटा दो. वसीम भी यही चाहता था. इसलिए दोनों ने रिजोश को ठिकाने लगाने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली.

31 अक्तूबर, 2019 को योजना के अनुसार वसीम अब्दुल कादिर ने लिजी के पति रिजोश को कुछ काम के लिए रिसोर्ट पर बुलाया और वहां उस के साथ दारू पी. उस ने रिजोश को काफी मात्रा में शराब पिलाई. जब रिजोश को ज्यादा नशा हो गया तो वसीम ने उस का गला दबा कर हत्या कर दी. फिर उस के शव को रिसोर्ट के अंदर ही एक गहरी खाई में डाल कर जला दिया. यह जानकारी उस ने लिजी को भी दे दी. जब 3 दिनों तक रिजोश घर नहीं आया तो घर वालों को उस की चिंता हुई. रिजोश के भाई उस की तलाश में जुट गए. काफी तलाश करने के बाद भी जब उस का कहीं पता नहीं चला तो 4 नवंबर, 2019 को रिजोश के भाई और साले थाना संथनपरा पहुंचे. वहां पर उन्होंने रिजोश की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.

मामला गंभीर था. केरल के पुलिस आयुक्त महेश कुमार ने मामले की तफ्तीश थानाप्रभारी प्रदीप कुमार को सौंप दी. थानाप्रभारी प्रदीप कुमार ने एसआई विनोद कुमार के साथ अपनी जांच शुरू की. पुलिस तफ्तीश की पहली सीढ़ी भी नहीं चढ़ पाई थी कि 5 नवंबर, 2019 की सुबह लिजी कुरियन भी अपनी बेटी जोहना के साथ रहस्यमय तरीके से गायब हो गई. मौत ने भी स्वीकारा नहीं पुलिस ने तफ्तीश शुरू की तो पता चला कि लिजी के साथसाथ रिसोर्ट का मैनेजर वसीम अब्दुल कादिर भी गायब है. अब पुलिस के लिए मामला संदिग्ध हो गया था. पुलिस ने जब लिजी और वसीम अब्दुल कादिर का बैकग्राउंड खंगाला तो सब सच सामने आ गया.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि रिजोश कुरियन किसी रहस्यमय साजिश का शिकार हो गया है, जिस की तह में जाना जरूरी था. इस के लिए उन्होंने जब रिसोर्ट कर्मचारियों के साथ कई एकड़ में फैले रिसोर्ट का बारीकी से निरीक्षण किया. फलस्वरूप एक मजदूर की मदद से रिसोर्ट की एक गहरी खाई से रिजोश का अधजला शव बरामद हो गया. 7 नवंबर, 2019 को बरामद हुए रिजोश के शव की शिनाख्त कर उसे पोस्टमार्टम के लिए केरल के मैडिकल कालेज भेज दिया गया. अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गई थी कि रिजोश की हत्या में वसीम का सीधा हाथ था. पुलिस ने इस मामले में वसीम अब्दुल कादिर के परिवार वालों पर अपना शिकंजा कस दिया और वसीम अब्दुल कादिर के भाई को हिरासत में ले कर मामले की तह तक पहुंचने की कोशिश में लग गई.

8 नवंबर, 2019 को जब यह खबर पत्रकारों को मिली तो अखबारों और टीवी न्यूज चैनलों में सुर्खियों में छा गई. लिजी और वसीम ने यह खबर देखी तो उन के चेहरों का रंग उड़ गया. भाई की कस्टडी और मीडिया की सुर्खियों से वसीम को एहसास हो गया था कि अब उन का बच पाना संभव नहीं है. इस के पहले कि पुलिस उन दोनों तक पहुंचती उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ. फलस्वरूप दोनों ने अपना जीवन खत्म करने का फैसला कर लिया. रात को घूमने के बहाने दोनों होटल समीर लाजिंग एंड बोर्डिंग से बाहर आए. बाजार से उन्होंने कीटनाशक दवा खरीदी. इस मामले को ले कर रातभर दोनों परेशान रहे. सुबह 10 बजे उन्होंने उस दवा का स्वयं सेवन किया और उस मासूम बच्ची को भी करा दिया.

बच्ची उस दवा के असर से बच नहीं पाई और उस की मृत्यु हो गई. जबकि वे दोनों बेहोश हो गए. उन्हें उपचार के लिए अस्पताल भेज दिया गया, बाद में वे ठीक हो गए. उधर केरल के संथनपारा थाना पुलिस के थानाप्रभारी वसीम अब्दुल कादिर के भाई का मुंह खुलवाने में कामयाब हो पाते, इस के पहले ही मुंबई पुलिस ने संथनपारा पुलिस से संपर्क कर इस मामले की जानकारी दे दी. नवी मुंबई पुलिस और केरल पुलिस ने संयुक्त रूप से मामले की तफ्तीश कर लिजी कुरियन और वसीम कादिर को मीडिया के समक्ष पेश कर केस का खुलासा कर दिया. रिजोश कुरियन की हत्या के मामले में केरल पुलिस विस्तार से पूछताछ के लिए दोनों को ट्रांजिट रिमांड पर अपने साथ ले गई.

 

Extramarital affair : प्रेमिका के पति को मार कर कुएं में दफनाया

Extramarital affair : नरेंद्र की अच्छीभली गृहस्थी थी. सरकारी नौकरी कर रही बीवी और 2 बच्चे. लेकिन वह रूबी के हुस्न में ऐसा अंधा हुआ कि घरपरिवार छोड़ कर उस के साथ किराए के मकान में रहने लगा. लेकिन जब वही रूबी सिपाही योगेश के इश्क में अंधी हुई तो…

जिला अमरोहा के थाना रजबपुर के गांव शकरपुर निवासी नरेंद्र कुमार 27 सितंबर, 2019 को अपनी पत्नी वालेश देवी की दवा लाने के लिए नजीबाबाद के लिए निकला. दरअसल, उस की पत्नी वालेश को एलर्जी की शिकायत रहती थी, जिस का इलाज वह नजीबाबाद के एक डाक्टर से करा रहा था. नरेंद्र घर से दोपहर 12 बजे निकला था. हर बार की तरह उसे शाम तक घर आ जाना चाहिए था. लेकिन उस दिन जब वह शाम तक घर नहीं लौटा तो पत्नी वालेश को चिंता हुई. उस ने पति को फोन किया तो फोन नहीं लगा. यह कोशिश उस ने कई बार की लेकिन असफलता ही हाथ लगी. रात करीब 12 बजे वालेश ने फिर से पति को फोन लगाया. इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ आया.

वालेश ने सोचा कि संभव है, पति के फोन की बैटरी डिस्चार्ज हो गई हो. इसलिए वह सो गई. अगले दिन वालेश ने फिर से पति का नंबर मिलाया. इस बार भी उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. नरेंद्र को अगर कहीं रुकना होता तो वह बता कर जाता, लेकिन वह ऐसा कुछ भी बता कर नहीं गया था. वालेश ने पति की जानपहचान वालों को फोन कर के पति नरेंद्र के बारे में पूछताछ की. लेकिन उस के बारे कहीं भी कुछ पता नहीं लगा. इस के बाद वालेश ने अपने ससुर समरपाल सिंह को यह जानकारी दे दी. समरपाल सिंह ने अपने सभी रिश्तेदारों, परिचितों में नरेंद्र को ढुंढवाया लेकिन उस का कहीं पर भी पता नहीं लग पाया. देखतेदेखते 8 दिन गुजर गए तो गांव वालों और रिश्तेदारों ने उन्हें थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज कराने की सलाह दी.

6 अक्तूबर, 2019 को वालेश ससुर समरपाल सिंह के साथ थाना रजबपुर पहुंची और थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह को अपने पति नरेंद्र कुमार (30) के गायब होने की बात विस्तार से बता दी. थानाप्रभारी ने उस की गुमशुदगी दर्ज कर ली. कई दिन बीत जाने के बाद भी जब पुलिस ने नरेंद्र का पता नहीं लगाया तो वालेश ने फिर से थानाप्रभारी से संपर्क किया. तब थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने उस से कहा कि पुलिस अपने स्तर से आप के पति को तलाश रही है, इस के अलावा अगर आप को किसी पर शक हो तो बताओ.

‘‘साहब, मुझे अपने पति की रखैल रूबी पर शक है.’’ वालेश ने बताया.

‘‘रूबी रहती कहां है?’’ सत्येंद्र सिंह ने पूछा.

‘‘साहब, वह मुरादाबाद के कांशीराम नगर में रहती है. उस का मकान मालिक योगेश है, जो यूपी पुलिस में सिपाही है. इस समय वह मुरादाबाद के थाना बिलारी में तैनात है. रूबी के चक्कर में कई बार योगेश से उस का झगड़ा भी हुआ था. मुझे पता चला है कि अब रूबी योगेश के साथ खुलेआम घूमती है.’’ वालेश ने बताया. वालेश ने थानाप्रभारी को रूबी का मोबाइल नंबर भी दे दिया. यह जानकारी मिलने के बाद थानाप्रभारी को इस मामले में किसी अप्रिय घटना की आशंका नजर आने लगी. उन्होंने उसी दिन 19 अक्तूबर को नरेंद्र के अपहरण की रिपोर्ट दर्ज कर सूचना अमरोहा के एसपी डा. विपिन टाडा को दे दी.

थानाप्रभारी ने सब से पहले नरेंद्र के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई, तो उस के फोन पर अंतिम काल रूबी ने की थी, जिस की लोकेशन कांशीराम नगर, मुरादाबाद की मिली. पुलिस ने रूबी के फोन को सर्विलांस पर लगवा दिया. पता चला कि रूबी के फोन से एक अन्य फोन नंबर पर भी कई बार बात की गई थी. सिपाही योगेश आया संदेह के घेरे में पुलिस ने उक्त नंबर को ट्रैस किया, तो पता चला, वह नंबर सिपाही योगेश का है. थानाप्रभारी ले उस नंबर पर बात की और योगेश को थाना रजबपुर आने को कहा. योगेश ने थानाप्रभारी से कहा, ‘‘मैं बिलारी थाने में तैनात हूं, बताइए क्या बात करनी है?’’

‘‘कुछ पूछताछ करनी है, जो फोन पर नहीं हो सकती?’’ थानाप्रभारी ने कहा.

इस के बाद योगेश थाना रजबपुर पहुंच गया. थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने उस से पूछा, ‘‘योगेश, क्या तुम नरेंद्र कुमार को जानते हो?’’

‘‘हां सर, वह तो मेरा किराएदार है. वह अपनी पत्नी रूबी के साथ मेरे यहां रहता है. लेकिन पिछले कुछ समय से वह नहीं आ रहा है. उस के कमरे में ताला लगा हुआ है.’’ उस ने बताया.

‘‘पता है, वह कहां है?’’

‘‘सर, मैं तो अपनी ड्यूटी पर बिलारी चला जाता हूं, मुझे कुछ नहीं मालूम.’’

‘‘देखो योगेश, तुम पुलिस में हो. यह तो जानते ही होगे कि पुलिस के हाथ कितने लंबे होते हैं. हमें तुम्हारे और रूबी के फोन की काल डिटेल्स से पता चल चुका है कि रूबी से तुम्हारी लंबीलंबी बातें होती रहती हैं. तुम उसे अपने साथ घुमानेफिराने भी ले जाते थे. इसलिए अपने आप ही बता दो कि नरेंद्र कहां है?’’

‘‘सर, आजकल वह मुझे दिखाई नहीं दे रहा है. दिखाई दिया तो जरूर आप को बताऊंगा.’’ बातचीत के दौरान योगेश के होश उडे़ हुए थे. थानाप्रभारी ने योगेश से फिर कहा, ‘‘योगेश, अब तुम पुलिस की गिरफ्त में हो. अगर सच बता दोगे तो हम तुम्हारे बचाव का रास्ता भी ढूंढ लेंगे.’’

थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह को उसी समय एक मामले में दबिश में जाना था, इसलिए उन्होंने पहरेदार (संतरी) को बुला कर कहा कि ये पुलिस हिरासत में है. इसे हवालात में डाल दो. मैं इस से बाद में बात करूंगा. इतना कह कर वह थाने से बाहर चले गए. थाने में एसएसआई ओमपाल सिंह मौजूद थे. योगेश ने उन्हें बताया कि साहब मैं स्टाफ का आदमी हूं. इंचार्ज साहब को मेरे बारे में कुछ गलतफहमी हो गई है. इस पर एसएसआई ओमपाल सिंह ने कहा, ‘‘देखो योगेश, साहब बहुत सुलझे हुए अफसर हैं. जो भी बात है, उन्हें सचसच बता दो, इसी में तुम्हारी भलाई है. उन्हें तुम्हारे व नरेंद्र की कथित रखैल रूबी के बारे में सब मालूम है.’’

इस पर भी योगेश कुछ नहीं बोला, वह उस समय घबराया हुआ था. थानाप्रभारी आधे घंटे बाद थाने लौटे तो उन्होंने योगेश से पूछताछ की. अंतत: वह टूट गया. उस ने जो कुछ उन्हें बताया, उसे सुन कर थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह के भी होश उड़ गए. योगेश ने उन्हें बताया कि नरेंद्र कुमार अब इस दुनिया में नहीं है. मैं ने रूबी व अपने 2 साथियों के साथ मिल कर उस की हत्या कर दी. हम ने उस की लाश थाना बिलारी के गांव अमरपुर काशी के एक कुएं में मिट्टी डाल कर दफन कर दी थी. इतना सुनते ही थानाप्रभारी सत्येंद्र सिंह ने सब से पहले इस की सूचना एसपी डा. विपिन टाडा को दी. चूंकि हत्यारों ने लाश दूसरे जिले (मुरादाबाद) में ठिकाने लगाई थी, इसलिए एसपी डा. विपिन टाडा ने फोन पर मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक से बात कर नरेंद्र की लाश थाना बिलारी क्षेत्र के कुएं से बरामद कराने के लिए सहयोग मांगा.

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने सीओ (बिलारी) महेंद्र कुमार शुक्ला को केस के बारे में समझा कर अमरोहा पुलिस का सहयोग करने को कहा. नरेंद्र सिंह की लाश बरामद करने के लिए थाना रजबपुर (अमरोहा) की पुलिस आरोपी सिपाही योगेश को उसी बिलारी थाने में ले कर पहुंची, जहां उस की तैनाती थी. योगेश को पुलिस कस्टडी में देख कर वहां सभी चौंके. इस के बाद सीओ महेंद्र कुमार शुक्ला, थानाप्रभारी (बिलारी) गजेंद्र त्यागी और एसआई उमेश कुमार यादव को ले कर अमरपुर काशी में उस सूखे कुएं पर पहुंचे, जहां नरेंद्र कुमार की लाश फेंक कर ऊपर से मिट्टी डाली गई थी.

कई घंटों की मशक्कत के बाद पुलिस ने रात में ही 25 फीट गहरे कुएं से नरेंद्र का शव निकलवा लिया. शव की शिनाख्त मृतक की पत्नी वालेश व उस के पिता समरपाल सिंह ने कर दी. योगेश ने बताए 2 साथियों के नाम थाना रजबपुर पुलिस को योगेश ने हत्या में शामिल अपने 2 दोस्तों के नाम पहले ही बता दिए थे. लिहाजा पुलिस ने योगेश की निशानदेही पर अमरपुर काशी गांव के ही 2 युवकों वीरपाल और विशेष सैनी को हिरासत में ले लिया. इस हत्याकांड में नरेंद्र कुमार की प्रेमिका रूबी अग्रवाल भी शामिल थी. पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. चारों आरोपियों से रजबपुर थाना पुलिस ने विस्तार से पूछताछ की तो उन्होंने नरेंद्र कुमार की हत्या की जो कहानी बताई, वह प्रेम प्रसंग की बुनियाद पर गढ़ी हुई निकली—

नरेंद्र कुमार मूलत: अमरोहा (ज्योतिबा फुले नगर) के थाना रजबपुर के पास स्थित गांव शकरपुर का रहने वाला था. उस के पिता समरपाल सिंह किसान थे. पिता ने सन 2003 में नरेंद्र की शादी अमरोहा जिले के ही कस्बा धनौरा के निकटवर्ती गांव नेकपुर की वालेश के साथ कर दी थी. वालेश स्वास्थ्य विभाग में आशा वर्कर थी. नरेंद्र की घरगृहस्थी ठीक चल रही थी. समय के साथ पर वह एक बेटी व 2 बेटों का पिता बन गया था. उस की सब से बड़ी बेटी 13 साल की थी. नरेंद्र दबंग युवक था. उस की अमरोहा के पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल से घनिष्ठता थी. वह एक तरह से उन का बौडीगार्ड बन कर रहता था. पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल का गजरौला में ‘मेला रेस्टोरेंट’ है, जहां कुछ समय के लिए दिल्ली आनेजाने वाली रोडवेज की बसें रुकती हैं.

इसी रेस्टोरेंट पर नरेंद्र ने जनरल स्टोर खोल ली थी. अपनी दुकान चलाने के अलावा वह पूरे दिन रेस्टोरेंट की देखभाल करता था. उस का धंधा अच्छा चल रहा था. इस रेस्टोरेंट में बने उड़द और खीर बहुत प्रसिद्ध थे. इसी दौरान नरेंद्र का संपर्क रूबी अग्रवाल से हुआ था. रूबी अग्रवाल अकसर उस रेस्टोरेंट पर खाना खाने आती थी. वह मूलत: मुजफ्फरनगर निवासी सुरेश अग्रवाल की बेटी थी. उस के 2 भाई थे. उस के बड़े भाई की शादी गजरौला में हुई थी. शादी के बाद वह गजरौला के बस्ती मोहल्ले में रहने लगा था, जबकि दूसरा भाई पानीपत में रहता था.

रूबी अग्रवाल की शादी हसनपुर निवासी उमेश कुमार अग्रवाल के बेटे संजीव अग्रवाल से हुई थी. रूबी अग्रवाल शुरू से ही खुले विचारों वाली पढ़ीलिखी युवती थी. उसे घर में रहने के बजाय बाहर घूमनाफिरना पसंद था. जबकि पति ऐसा नहीं चाहता था, इसलिए रूबी पति को पसंद नहीं करती थी. वह गजरौला में रहने वाले अपने भाई के पास गई तो उसे पता चला कि मेला रेस्टोरेंट की उड़द और खीर बहुत स्वादिष्ट होती है. जब वह उस रेस्टोरेंट पर गई तो उस की मुलाकात नरेंद्र कुमार से हुई. पहली मुलाकात में ही वह नरेंद्र के मन को भा गई. उस की ससुराल से गजरौला 14 किलोमीटर दूर था, इसलिए वह अकसर रेस्टोरेंट पर जा कर नरेंद्र से मिलने लगी.

रूबी को उस के ससुराल वालों ने कई बार समझाया, लेकिन उस ने अपनी आदत नहीं छोड़ी. उधर नरेंद्र से दोस्ती हो जाने के बाद रूबी की उस से नजदीकियां भी बढ़ गईं. एक तरह से रूबी नरेंद्र पर पूरी तरह फिदा हो गई थी. नरेंद्र के लिए उस ने अपने पति तक को छोड़ने का फैसला कर लिया था. कई बार वह नरेंद्र के साथ रेस्टोरेंट पर ही रुक जाती थी. इस बात को ले कर नरेंद्र व रूबी के ससुराल वालों के बीच कई बार झगड़ा भी हुआ. बात थाने तक पहुंची तो रूबी ने साफ कह दिया कि उस का पति नरेंद्र है. वह उसी के साथ रहेगी. समाज के लोगों ने पंचायत कर दोनों को काफी समझाया लेकिन दोनों में से कोई भी नहीं माना.

घरपरिवार तक छोड़ दिया था रूबी के लिए नरेंद्र और रूबी के संबंधों की जानकारी नरेंद्र के पिता और उस की पत्नी वालेश को भी हो गई थी. दोनों ने उसे बहुत समझाया लेकिन नरेंद्र रूबी का साथ छोड़ने को राजी नहीं हुआ. इस पर उन्होंने लड़झगड़ कर रेस्टोरेंट पर चल रही उस की दुकान भी बंद करवा दी. तब नरेंद्र घर रहने लगा तो रूबी उस के घर पहुंच गई. तब भी घर वालों ने काफी हंगामा किया. इतना ही नहीं नरेंद्र के पिता समरपाल रूबी को थाना रजबपुर ले गए. रूबी ने थाने में भी कह दिया कि वह नरेंद्र को हरगिज नहीं छोड़ेगी. पुलिस ने भी समझाबुझा कर उसे भेज दिया तो वह फिर नरेंद्र के घर ही चली गई.

इस के बाद नरेंद्र रूबी को ले कर गजरौला में किराए का कमरा ले कर रहने लगा. तब रूबी की ससुराल वाले वहां पहुंच गए. उन्होंने रूबी और नरेंद्र से झगड़ा किया. चूंकि रूबी ने अपने पति संजीव अग्रवाल से कानूनन तलाक नहीं लिया था, लिहाजा रूबी की ससुराल वाले थाने पहुंच गए. संजीव अग्रवाल की शिकायत पर गजरौला पुलिस ने नरेंद्र के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर के उसे जेल भेज दिया. करीब 3 महीने बाद उसे जमानत मिली. यह बात करीब 11 साल पहले की है. जेल से बाहर आने के बाद नरेंद्र फिर से रूबी के साथ रहने लगा. उस की खातिर उस ने अपना घरबार बीवीबच्चों तक को छोड़ दिया था. उस की पत्नी वालेश बहुत परेशान रहने लगी. वह बारबार पति के पास आ कर झगड़ती थी, पर नतीजा कुछ नहीं निकला.

आए दिन के झगड़ों से तंग आ कर नरेंद्र ने मुरादाबाद के थाना मझोला क्षेत्र में स्थित कांशीराम नगर में किराए पर एक कमरा ले लिया. यह मकान उत्तर प्रदेश पुलिस के सिपाही योगेश कुमार का था. नरेंद्र अकसर अपने गांव शकरपुर आताजाता रहता था. नरेंद्र शराब पीने का शौकीन था. कुछ ही दिनों में नरेंद्र और योगेश के बीच दोस्ती हो गई. इस के बाद दोनों की घर में ही शराब की महफिल जमने लगी. रूबी खूबसूरत थी. वह योगेश से भी बातें कर लेती थी. योगेश उसे भाभी कहता था और उस से कभीकभी मजाक भी कर लेता था. रूबी उस की बातों का बुरा नहीं मानती थी. इस से योगेश का हौसला बढ़ता गया. वह उसे चाहने लगा.

एक बार बातचीत के दौरान योगेश कुमार ने रूबी को झूठ बोलते हुए बताया, ‘‘भाभी, मैं कुंवारा हूं और मुझे तो बस तुम्हारी जैसी हसीन बीवी चाहिए.’’

जबकि हकीकत यह थी कि वह शादीशुदा था. उस की पत्नी मेरठ के गांव में स्थित ससुराल में एक बच्चे के साथ रहती थी. अपनी तारीफ सुन कर रूबी खुश हुई. धीरेधीरे योगेश ने रूबी को अपनी लच्छेदार बातों में फांस लिया. फिर एक दिन ऐसा भी आया कि योगेश और रूबी के बीच शारीरिक  संबंध बन गए. एक बार शुरुआत हुई तो यह सिलसिला शुरू हो गया. मौका मिलते ही दोनों हसरतें पूरी कर लेते थे. किसी तरह नरेंद्र को योगेश व रूबी के संबंधों का पता चला तो उस ने रूबी से बात की. रूबी ने साफ कह दिया कि अब तुम्हारा मेरा कोई साथ नहीं है. मेरा पीछा छोड़ कर तुम अपनी घरगृहस्थी देखो. मैं ने योगेश से शादी का मन बना लिया है, क्योंकि वह भी कुंवारा है और अपना घर भी बसाना चाहता है. यह बात घटना से एक साल पहले की थी.

नरेंद्र ने योगेश से इस संबंध में बात की. योगेश ने कहा, ‘‘देखो नरेंद्र, अब तुम रूबी का साथ छोड़ कर अपने घर चले जाओ, क्योंकि रूबी अब मेरी है.’’

इस बातचीत के बाद नरेंद्र ने योगेश को दबंगई दिखाते हुए कहा, ‘‘योगेश, तुम मुझे नहीं जानते. मेरे ऊपर पूर्व सांसद देवेंद्र नागपाल का हाथ है. तुम्हें 2 मिनट में उठवा लूंगा.’’

इस के बाद दोनों में झगड़ा इतना बढ़ गया कि मारपीट तक हो गई. उसी दौरान नरेंद्र ने योगेश से कह दिया था कि मैं ने रूबी के चक्कर में अपना घरबार सब कुछ छोड़ा है. तुम मेरे और रूबी के बीच से नहीं हटे तो अंजाम बुरा होगा. योगेश ने उस की धमकी को गंभीरता से नहीं लिया. क्योंकि उसे इस बात का घमंड था कि वह पुलिस में है और नरेंद्र उस का कुछ नहीं कर सकता.  बहरहाल, अब योगेश रूबी को ले कर खुलेआम घूमने लगा. रूबी योगेश के प्यार में पागल थी, क्योंकि वह एक तो सरकारी नौकर था और दूसरे वह उस की हर जरूरत को पूरा कर रहा था.

नरेंद्र की धमकी से डर गया था योगेश एक दिन नरेंद्र ने योगेश से कहा, ‘‘योगेश, तुम मान जाओ, वरना मैं तुम्हारी शिकायत पुलिस के आला अफसरों से कर दूंगा.’’

अधिकारियों से शिकायत की बात सुन कर योगेश सहम गया. यह बात योगेश ने रूबी को बता दी. तब योगेश ने रूबी से अपने घर में बात करनी बंद कर दी. अब उन्होंने बाहर मिलने की प्लानिंग कर ली. रूबी ब्यूटीपार्लर का काम भी जानती थी. वह मोहल्ले की औरतों से यह कह कर घर से निकल जाती थी कि वह ब्यूटीपार्लर के काम के सिलसिले में बाहर जा रही है. नरेंद्र आए तो बता देना. इस के बाद रूबी अपने कथित प्रेमी योगेश के साथ होटलों में रात गुजारती थी. नरेंद्र जब कमरे पर लौटता तो रूबी को न देख कर वह खून का घूंट पी कर रह जाता था. उधर रूबी ने योगेश को बता दिया था कि नरेंद्र दबंग है. वह किसी से डरता नहीं है. रूबी ने नरेंद्र की दबंगई के तमाम किस्से योगेश को बताते हुए कहा कि नरेंद्र नाम के इस कांटे को तुम जल्दी से निकाल फेंको वरना यह बारबार चुभ कर नासूर बना देगा. यह सलाह योगेश को सही लगी. वैसे भी नरेंद्र सिपाही योगेश पर भारी पड़ रहा था.

रूबी व योगेश ने एक योजना बना ली. घटना से 2 महीने पहले योगेश से नरेंद्र की मुलाकात हुई थी. योगेश ने नरेंद्र से कहा कि देखो नरेंद्र भाई, मेरा ट्रांसफर बाहर किसी दूसरे जिले में होने वाला है. मैं अब यहां से चला जाऊंगा. तुम लोग आराम से रहना. इस के बाद उस ने नरेंद्र से मिलनाजुलना छोड़ दिया. रूबी ने भी नरेंद्र से मीठीमीठी बातें करनी शुरू कर दीं. नरेंद्र को दोनों के प्लान का जरा सा भी आभास नहीं हुआ. वैसे भी रूबी का योगेश के साथ रहने पर नरेंद्र अपने गांव अपनी पत्नी के पास चला गया था. रूबी उस से कभीकभी फोन पर बात कर लेती थी.

27 सितंबर, 2019 को नरेंद्र के पास रूबी का फोन आया. उस ने कहा कि तुम मुरादाबाद आ जाओ तो नरेंद्र ने कहा कि मुझे वालेश की दवा के लिए नजीबाबाद (बिजनौर) जाना है. तुम जोया आ जाओ तो साथ चलेंगे. रूबी जोया पहुंच गई. वहां नरेंद्र उस का इंतजार कर रहा था. दोनों जोया में बिजनौर जाने वाली बस का इंतजार कर रहे थे. ठीक उसी समय सिपाही योगेश योजनानुसार कार ले कर वहां आ गया. उस ने पूछा, ‘‘कहां जा रहे हो?’’

नरेंद्र ने कहा कि मुझे दवा लेने नजीबाबाद जाना है. बस का इंतजार कर रहे हैं तो योगेश बोला, ‘‘आओ, तुम दोनों गाड़ी में बैठो. मैं तुम्हें नजीबाबाद छोड़ दूंगा. क्योंकि मुझे भी कोटद्वार जाना है.’’

नरेंद्र से रूबी बोली, ‘‘चलो, बैठो. पता नहीं बस कब तक आएगी.’’

रूबी और नरेंद्र कार में बैठ गए. रास्ते में योगेश बोला, ‘‘नरेंद्र, अब तो मुझ से आप को कोई शिकायत नहीं है?’’

नरेंद्र ने कोई जवाब नहीं दिया. योजना के मुताबिक रास्ते में वीरपाल और विशेष सैनी भी मिल गए, जो योगेश के दोस्त थे. योगेश ने उन्हें भी कार में बैठा लिया. फिर उस ने नरेंद्र से पूछा, ‘‘थोड़ीथोड़ी ले लें क्या?’’

नरेंद्र ने तबीयत ठीक न होने की बात कह कर इनकार कर दिया. पर बारबार कहने पर वह पीने को तैयार हो गया. कार में ही मार डाला नरेंद्र को नरेंद्र और योगेश नूरपुर-मुरादाबाद मार्ग के एक ढाबे पर बैठ कर शराब पीने लगे. योगेश ने योजनानुसार कम पी, नरेंद्र को ज्यादा पिलाई. इस के बाद सभी ने ढाबे पर खाना खाया. नशा चढ़ने पर नरेंद्र कार में सो गया. मौका पा कर रूबी ने नरेंद्र के पैर पकडे़ और योगेश व उस के साथियों ने उस की गला दबा कर हत्या कर दी. इस के बाद वह गाड़ी ले कर मुरादाबाद की तरफ चलते हुए लाश ठिकाने लगाने की जगह देखने लगे. पर उन्हें कहीं मौका नहीं मिला. कई जगह लाश फेंकने की कोशिश भी की गई, लेकिन उसी समय कोई न कोई व्यक्ति दिखाई दे जाता था.

सिपाही की गाड़ी में वीरपाल और विशेष सैनी भी बैठे हुए थे. इन दोनों ने कहा, ‘‘दीवानजी, ऐसे लाश कहीं फेंकेंगे तो पकड़े जाएंगे, क्योंकि दिन का समय है. यह रात में ही ठिकाने लग सकती है.’’

इस के बाद चारों रात होने का इंतजार करने लगे. वे फिर अमरोहा लौटे. शाम हो चुकी थी. वीरपाल और विशेष थाना बिलारी के गांव अमरपुर काशी के रहने वाले थे. उन के कहने पर योगेश लाश सहित कार को अमरपुर काशी ले गया. विशेष ने योगेश से कहा कि नरेंद्र की लाश को इधरउधर डालेंगे तो पकड़े जा सकते हैं. मेरे निजी नलकूप का 25 फीट गहरा कुआं है. नरेंद्र की लाश उसी में डाल देते हैं. ऊपर से मिट्टी डाल देंगे तो किसी को पता भी नहीं चलेगा. इस के बाद योगेश, वीरपाल और विशेष ने मिल कर नरेंद्र की लाश कुएं में डाल दी. ऊपर से कुएं में कूड़ाकरकट डाल दिया. फिर दूसरे दिन एक ट्रौली मिट्टी भी डलवा दी. इस तरह लाश ठिकाने लगा कर सभी निश्चिंत हो गए थे.

योजना को अंजाम देने के बाद योगेश अपनी ड्यूटी पर थाना बिलारी चला गया. रूबी अपने घर चली गई थी. पुलिस ने आरोपी योगेश कुमार, रूबी, वीरपाल और विशेष सैनी से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.