नूनूराम ने पत्नी और बेटे से भी पिंकी के बारे में पूछा. पत्नी ने बताया कि काम खत्म होते ही बहू कमरे में बंद हो जाती थी. फिर वह फोन पर फुसुरफुसुर बातें करती रहती थी. बेटे ने भी कुछ ऐसा ही बताया. उस का कहना था कि एक पत्नी को जिस तरह अपने पति के प्रति समर्पित होना चाहिए, वह समर्पण भाव पिंकी में नहीं था. इन बातों ने साफ कर दिया था कि पिंकी का प्रेमसंबंध नितेश था.
सारी जानकारी जुटा कर नूनूराम ने थाना घनावर में पिंकी को षडयंत्र रच कर गायब करने और उन के परिवार को झूठे मुकदमे में फंसाने का मुकदमा 6 फरवरी, 2013 को केदार राणा, पिंकी, उस के प्रेमी नितेश राय, उस के भाई निरेश राय, पिता चंद्रभानु राय, नितेश की बहन कल्याणी, केदार राणा के दामाद चतुर शर्मा के खिलाफ दर्ज करा दिया. मुकदमा दर्ज होने के बाद पुलिस ने नामजद लोगों से पूछताछ तो की, लेकिन सुबूत न होने की वजह से कोई काररवाई नहीं कर सकी.
नूनूराम ने देखा कि पुलिस कुछ नहीं कर पा रही है तो वह अपने स्तर से नितेश के बारे में पता लगाने लगे. आदमी चाह ले तो कौन सा काम नहीं हो सकता. आखिर नूनूराम ने पता कर ही लिया कि नितेश के पिता चंद्रभानु राय अपने खाते से हर महीने नितेश के खर्च के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. लेकिन वह पैसा कहां ट्रांसफर करते हैं, यह पता नहीं चल रहा था. उन्होंने हार नहीं मानी और अंत में पता कर ही लिया कि वह पैसा कहां जाता है.
नूनूराम ने पता कर लिया था कि निश्चित तारीख पर चंद्रभानु वाराणसी के लिए पैसा ट्रांसफर करते हैं. इस से उन्हें लगा कि नितेश और उन की बहू पिंकी, जिस की हत्या के आरोप में उन का बेटा अरुण जेल में बंद है, वह वाराणसी में कहीं रह रही हैं.
इतने बड़े वाराणसी में उन्हें खोजना आसान नहीं था. लेकिन नूनूराम ने घुटने नहीं टेके और मेहनत कर के पता लगा ही लिया कि नितेश और पिंकी वाराणसी के पांडेपुर में रह रहे हैं. उन्हें यह भी पता चल गया था कि पिंकी अब नितेश के बेटे की मां भी बन चुकी है.
पूरी जानकारी जुटाने के बाद नूनूराम ने इस बात की सूचना इस मामले की जांच कर रहे सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय और थाना घनावर के थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को दे दी. थानाप्रभारी रासबिहारी लाल के लिए इतनी जानकारी काफी थी. उन्होंने सारी बात गिरिडीह के पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार गढ़देसिया को बताई तो उन्होंने पिंकी और नितेश की गिरफ्तारी के लिए सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी, जिस में हेडकांस्टेबल हरेंद्र सिंह, 2 महिला कांस्टेबल सुनीता और सरिता को शामिल किया गया.
पुलिस अधीक्षक क्रांति कुमार ने थाना कैंट के इंस्पेक्टर विपिन राय को फोन कर के इस टीम का सहयोग करने के लिए भी कह दिया. लेकिन वाराणसी से इस पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. क्योंकि नितेश, पिंकी और बेटे को ले कर एक दिन पहले ही गिरिडीह चला आया था.
गिरिडीह पुलिस को नितेश और पिंकी भले ही नहीं मिले, लेकिन यह तो पता चल ही गया था कि पिंकी जिंदा थी और नितेश के साथ रह रही थी. सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ ने वहीं से थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को नितेश और पिंकी के गिरिडीह जाने की सूचना दे दी थी. सूचना मिलते ही उन्होंने तुरंत मुखबिरों को नितेश के घर पर नजर रखने के लिए सहेज दिया.
उन्हीं मुखबिरों में से किसी मुखबिर ने थानाप्रभारी रासबिहारी लाल को सूचना दी कि पिंकी और नितेश गिरिडीह के टावर चौक पर कहीं जाने की फिराक में खड़े हैं. यह सूचना मिलते ही थानाप्रभारी रासबिहारी लाल सहयोगियों के साथ टावर चौक पहुंच गए. महिला सिपाहियों की मदद से पिंकी तो बेटे के साथ पकड़ी गई, लेकिन नितेश फरार होने में कामयाब हो गया. पिंकी को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उस ने जो बताया, वह कुछ इस तरह था.
पिंकी के बताए अनुसार, 11 जून, 2011 को पिंकी अपने पति अरुण के साथ नागपुर जाने के लिए निकली तो योजनानुसार टे्रन के बिलासपुर पहुंचने पर वह चुपके से नितेश के साथ टे्रन से उतर गई. नितेश उसे ले कर रेलवे स्टेशन के बाहर आ गया और वहां से दोनों दिल्ली चले गए. कुछ दिनों तक दोनों दिल्ली से जुड़े गाजियाबाद में किराए का कमरा ले कर रहे. उस के बाद दोनों उत्तर प्रदेश के वाराणसी आ गए, जहां थाना कैंट के मोहल्ला पांडेपुर में किराए का कमरा ले कर रहने लगे. यहीं उन्हें एक बेटा पैदा हुआ.
पिंकी ने थानाप्रभारी को बताया कि वह अरुण से शादी नहीं करना चाहती थी, लेकिन मांबाप के दबाव के आगे उस ने उस से शादी कर ली थी. 11 महीनों तक उस के साथ रही, लेकिन एक दिन के लिए भी वह दिल से उस की नहीं हो सकी. जबकि अरुण और उस के घर वाले उसे पूरा प्यार और सम्मान दे रहे थे. अरुण के साथ रहते हुए वह पल भर के लिए भी नितेश को भूल नहीं पाई. इसीलिए मौका मिलते ही उस के साथ भाग निकली. वह उसी के साथ अपना यह जीवन बिताना चाहती थी.
उस ने यह भी बताया कि उस के मांबाप और भाई को पता था कि वह जीवित है और नितेश के साथ वाराणसी में रह रही है. नितेश उस के साथ रह कर पढ़ाई कर रहा था. उन का खर्च नितेश के पिता चंद्रभानु राय वहन कर रहे थे. यह जो कुछ भी हुआ था, वह उस के परिवार वालों की सहमति से हुआ था.
पिंकी के अपराध स्वीकार कर लेने के बाद थानाप्रभारी रासबिहारी लाल ने 23 दिसंबर, 2013 को उसे न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रीमती अपर्णा कुजूर की अदालत में पेश किया, जहां उस का धारा 164 के तहत कलमबद्ध बयान दर्ज कराया गया. बयान दर्ज कराने के बाद उसे 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में गिरिडीह की जिला जेल भेज दिया गया.
पिंकी को जेल भेजने के बाद थाना घनावर पुलिस ने नामजद अन्य अभियुक्तों में से नितेश को छोड़ कर सभी को गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. कथा लिखे जाने तक नितेश पुलिस के हाथ नहीं लगा था पुलिस उस की तलाश कर रही थी. अरुण को जेल से रिहा कराने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. मामले की जांच सबइंसपेक्टर पशुपतिनाथ राय कर रहे थे.