पुत्रवती होने का नुस्खा : छोटा भाई बना हत्यारा

35 वर्षीय शिवकुमार सिंह उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर के गांव लखनेपुर का निवासी था. उस के पिता उदयभान सिंह खेतीबाड़ी का काम करते थे. शिवकुमार के 3 भाई थे. एक बड़ा राजकुमार और 2 छोटे नरेश और देवकुमार. राजकुमार का विवाह हो चुका था, वह पिता के साथ खेती के काम में हाथ बंटाता था. शिवकुमार का विवाह करीब 12 साल पहले उमा से हुआ था. बाद में वह 2 बेटियों की मां बनी.

उमा जब पहली बार गर्भवती हुई, तब उस की चाह बेटे की थी. यह चाहत दूसरी बार भी बनी रही. दोनों बार उमा को निराश होना पड़ा.

शिवकुमार को पता था कि बेटा न होने से उमा दुखी है. वह उसे समझाता भी था, लेकिन वह बेटा न होने के गम में घुलती रहती है. यह अलग बात है कि कई मायनों में बेटियां बेटों से लाख गुना बेहतर होती हैं.

उमा के जी में तो आग लगी रहती कि सब के बेटे हुए, पर उसे नहीं हुआ. उस में ऐसी कौन सी कमी है, जो बेटी पर बेटी हो गई.

बच्चों के बड़े होने पर खर्च तो बढ़ा, लेकिन आमदनी उस हिसाब से नहीं बढ़ी. शिवकुमार बाहर जा कर काम करने की सोचने लगा. उस के गांव के कुछ लोग फरीदाबाद में काम करते थे. शिवकुमार ने उन से बात की तो दोस्तों ने काम पर लगवाने का वादा कर उसे फरीदाबाद बुला लिया. शिवकुमार पत्नी और बच्चों को छोड़ कर फरीदाबाद चला गया.

फरीदाबाद में एक फैक्ट्री में उस की नौकरी लग गई. वहां काम पर लगने के कुछ दिन बाद ही उस ने किराए पर कमरा ले लिया. रहने का सही ठिकाना हुआ तो वह गांव आ कर पत्नी उमा और दोनों बेटियों को अपने साथ फरीदाबाद ले गया. इस तरह उस की गृहस्थी की गाड़ी ठीकठाक चलने लगी.

शिवकुमार का छोटा भाई देवकुमार गांव में बेरोजगार घूमता था. उस ने कुछ दिनों बाद देवकुमार को भी फरीदाबाद बुला लिया. उस ने उसे भी काम पर लगवा दिया. दोनों भाई अच्छा कमाने लगे.

उमा के लिए फरीदाबाद अजनबी शहर था. वह दिन भर कमरे में ही रहती थी और कमरे में 2 ही इंसान थे, जिन से वह बात कर सकती थी, एक पति और दूसरा देवर.

पति से तो उमा सीमित बात करती लेकिन देवर देवकुमार से खूब गपशप करती थी. देवकुमार उमा से आयु में छोटा था और अविवाहित भी. वैसे भी देवरभाभी का रिश्ता होने के कारण उन में खूब पटती थी.

पहले तो उमा के प्रति देवकुमार की नीयत में खोट नहीं थी. लेकिन जब से उमा ने उस के सामने बेटा न होने का राग अलापना शुरू किया, तब से देवकुमार की नीयत डोलने लगी. भाभी की इसी कमजोरी का लाभ उठा कर देवर देवकुमार अपना उल्लू सीधा करने की सोचने लगा.

एक दिन काम से वापस आ कर देवकुमार जब उमा के पास बैठा तो उमा ने फिर अपने दुखड़े का पुलिंदा खोल दिया, ‘‘पता नहीं, मैं ने ऐसा कौन सा अपराध किया था, जिस का दंड बेटियों के तौर पर मुझे मिल रहा है.’’

देवकुमार को अपना उल्लू सीधा करने की दिशा मिल गई, ‘‘भाभी, बेटा और बेटी तो समान होते हैं, फिर तुम्हें बेटियों से चिढ़ क्यों है.’’

‘‘मुझे बेटियों से चिढ़ नहीं, अपने नसीब से शिकायत है.’’ उमा बोली, ‘‘2 बेटियों में से एक भी बेटा हो गया होता तो आज मेरे कलेजे में आग न लगी होती. कम से कम बुढ़ापे का सहारा और चिता में आग देने वाला भी तो कोई होना चाहिए. बेटा न होने से हमारे बाद तुम्हारे भैया का वंश ही खत्म हो जाएगा.’’

‘‘भाभी, विश्वास रखो,’’ देवकुमार ने आकाश की ओर उंगली उठाई, ‘‘नीली छतरी वाले के घर देर है, अंधेर नहीं. भाभी, लगातार 2 बेटियां होने से तुम खुद को दोषी क्यों मानती हो,’’ देवकुमार ने स्वार्थ की बिसात पर शातिर चाल चली, ‘‘तुम्हारी यह इच्छा जरूरी पूरी होगी.’’

उमा ने उस की आंखों में देखा, ‘‘यह तुम किस आधार पर कह रहे हो?’’

‘‘इसलिए कि शायद तुम्हें पता नहीं कि बेटा हो या बेटी, उस के लिए जिम्मेदार मां नहीं पिता होता है.’’

उमा ने चौंक कर उस की ओर देखा,‘‘मैं समझी नहीं, खुल कर बोलो.’’

‘‘भाभी जमीन को जोत कर उस में जिस पौधे का बीज डाला जाए, वही पौधा उगता है.’’ देवकुमार ने कायदे से समझाया, ‘‘अगर बीज खराब हो तो वह अंकुरित नहीं होता, मिट्टी में ही पड़ा रह कर सड़ जाता है.’’

‘‘हां, सड़ जाता है.’’

‘‘और बीज कमजोर होता है, तो उस से निकला पौधा भी कमजोर होता है न.’’

‘‘हां, होता है.’’

‘‘बस बेटियां होने की भी यही वजह है.’’ देवकुमार ने उमा को अपने शब्दों में समझा कर उस की दुखती रग पर उंगली रखी, ‘‘शिवकुमार भैया अंदर से कमजोर हैं. दरजन भर बच्चे पैदा कर लो, लड़की ही होगी. और तुम लड़के के लिए तरसती रहोगी.’’

उमा गहरी सोच में डूब गई. देवकुमार ने उस की भावनाओं पर एक और चोट की, ‘‘मेरी बात का विश्वास न हो तो किसी पढ़े लिखे समझदार व्यक्ति से पूछ लो.’’

उमा की सोच और गहरी हो गई. उमा को इसी भंवर में फंसा छोड़ कर देवकुमार सोने चला गया. मन ही मन खुश होते हुए वह सोच रहा था कि तीर सही निशाने पर लगा है, असर जरूर देखने को मिलेगा. देवकुमार का सोचना सही था. उस की बात ने उमा के दिल पर गहरा असर किया था.

उमा कुछ देर बाद सोच के भंवर से निकली और उस ने तय किया कि वह पता करेगी कि क्या वास्तव में संतान के लिंग धारण का जिम्मेदार पिता होता है.

अगले ही दिन बीमारी का बहाना बना कर उमा एक लेडी डाक्टर के यहां गई. उस ने डाक्टर से पूछा तो उस ने कहा कि संतान के लिंग निर्धारण का उत्तरदायी पिता होता है. डाक्टर ने उमा को एक्सवाई की थ्योरी भी समझा दी.

लेडी डाक्टर के जवाब से उमा के मन पर छाया अपराधबोध छंट गया. अब पति से उसे चिढ़ हो गई. वह सोचने लगी कि जरूर उसे पता होगा कि वह बेटा पैदा करने लायक नहीं. इसीलिए लड़कियों की हिमायत करता है.

उस दिन जब देवकुमार वापस आया तो उमा बोली, ‘‘तुम ने बता कर बहुत अच्छा किया, हकीकत बता कर मेरी आंखें खोल दीं.’’

‘‘भाभी, यह तो अच्छी बात है.’’

‘‘और अच्छी बात तब होगी, जब तुम यह बताओ कि तुम्हारे भैया का इलाज कहां कराऊं, जिस से हमारे आंगन में भी बेटा खेलेकूदे.’’

देवकुमार समझ रहा था कि भाभी बेटा पैदा करने के लिए उतावली है और उस के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है. अत: उस ने जाल फैलाया, ‘‘भाभी, भैया का इलाज तो संभव नहीं है, लेकिन तुम जरूर पुत्रवती हो सकती हो.’’

‘‘वो कैसे?’’ उमा की आंखों में उम्मीद की किरण दिखने लगी.

‘‘तुम्हें किसी दूसरे से नियोग करना होगा.’’ वह बोला.

‘‘नियोग में क्या करना होगा?’’ उमा ने पूछा.

‘‘तुम्हें पराए मर्द के साथ मिलन करना होगा.’’ देवकुमार ने बताया.

‘‘क्या बकवास कर रहे हो’’ उमा आंखें दिखाने लगी, ‘‘ऐसी बात कहते हुए तुम्हें शर्म आनी चाहिए. तुम्हारे भैया ने सुना तो न जाने क्या कर डालेंगे.’’

‘‘तो फिर बेटियों से ही संतोष करो.’’

उमा कई दिन तक सोचती रही. उस ने अपनी इच्छा दबाने का भी प्रयास किया, परंतु नाकाम रही. किसी भी दशा में वह बेटे को जन्म देना चाहती थी. बहुत सोचने के बाद वह पतित होने को तैयार हो गई.

दूसरे दिन उस ने देवकुमार को अपना निर्णय सुना दिया, ‘‘ मैं तुम्हारी सलाह पर अमल करने को तैयार हूं. सवाल यह है कि यह काम होगा कैसे?’’

‘‘भाभी, काम भी हो जाएगा और किसी को भनक तक नहीं लगेगी.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘मैं हूं न, मेरी नसों में भी वही खून है, जो भैया के शरीर में है. खून वही रहेगा, पर शरीर बदल जाएगा. इस तरह भैया की नस्ल भी खराब नहीं होगी.’’

‘‘सोच कर बताऊंगी.’’

उमा ने काफी सोचा. फिर फैसला किया कि उसे हर हाल में बेटा चाहिए, इस के लिए वह देवकुमार से नियोग करेगी. अगले दिन उमा ने देवकुमार को नियोग करने की सहमति दे दी.

देवकुमार बेताब था तो उमा शर्म से गड़ी जा रही थी. देवकुमार ने उसे बांहों में ले कर प्यार करना शुरू किया तो उस की शर्म जाती रही. फिर वे वासना के सागर में गोते लगाने लगे. देवकुमार के नए जोश और उमा के अनुभव ने ऐसा कमाल दिखाया कि इस पहले मिलन से वे एकदूसरे के दीवाने हो गए.

कई महीने बीतने के बाद उमा को देवकुमार से गर्भ नहीं ठहरा, पर अवैध संबंध का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा. उमा तन से देवकुमार की हुई तो उसे मन से भी उस की होते देर नहीं लगी.

कोरोना महामारी के चलते देश में लौकडाउन हुआ तो 24 मई, 2020 को शिवकुमार पत्नी, बच्चों और देवकुमार के साथ फरीदाबाद से गांव वापस आ गया. फरीदाबाद में तो शिवकुमार के न रहने पर दोनों खूब मस्ती करते थे. लेकिन गांव आने पर शिवकुमार के साथसाथ घर के और लोग भी थे. उन सब की नजरों  से बच कर मिलना आसान नहीं था लेकिन दोनों किसी तरह मिल कर मिलन का आनंद ले लेते थे.

14 जुलाई, 2020 की सुबह शिवकुमार की लाश घर से 200 मीटर दूर भीटे में पड़ी मिली. सुबह गांव की महिलाएं उधर गईं तो देखा, तब उन्होंने इस की जानकारी घरवालों को दी. घरवाले वहां पहुंच कर रोनेबिलखने लगे. गांव के ही शुभम सिंह नाम के व्यक्ति ने पुलिस को घटना की सूचना दी.

सूचना पा कर एसओ मनबोध तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मृतक शिवकुमार की लाश का उन्होंने निरीक्षण किया. उस के सिर पर किसी तेज धारदार हथियार के गहरे निशान थे. आसपास का निरीक्षण करने पर घटना से संबंधित कोई सुराग हाथ नहीं लगा.

पूछताछ के दौरान परिजन कुछ भी बताने से हिचक रहे थे. घटना की सूचना देना तो दूर वह लाश का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रहे थे. इस पर एसओ को शक हो गया कि मृतक के घर वाले जानते हैं कि किस ने उन के बेटे की हत्या की है.

लेकिन हत्यारा भी कोई अपना करीबी होने के कारण मुंह नहीं खोल रहे हैं. फिलहाल एसओ मनबोध तिवारी ने घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

पुलिस ने शिवकुमार के पिता उदयभान सिंह की तरफ से अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया.

एसओ मनबोध तिवारी ने घटना के संबंध में गांव वालों से पूछताछ की तो पता चला कि घटना वाले दिन शाम को शिवकुमार का अपने भाई देवकुमार से झगड़ा हुआ था. इस से पहले भी दोनों भाइयों का एकदो बार झगड़ा हो चुका था. देवकुमार घर से फरार भी था. इसलिए एसओ तिवारी का शक देवकुमार पर पुख्ता हो गया.

17 जुलाई, 2020 को उन्होंने मुखबिर की सूचना पर धनपतगंज से देवकुमार को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने अपना जुर्म  स्वीकार कर लिया.

घटना से 3 दिन पहले शिवकुमार ने उमा और देवकुमार को आपत्तिजनक हालत में देख लिया था. जिस के बाद शिवकुमार ने दोनों को मारापीटा. इस के बाद शिवकुमार का देवकुमार से कई बार झगड़ा हुआ.

13 जुलाई को घटना वाली रात भी दोनों में उमा को ले कर झगड़ा हुआ. उसी रात शिवकुमार का अचानक पेट खराब हो गया. उसे दस्त हो गए. वह भीटे (गांव के बाहर स्थित टीले) की तरफ गया. पहले से जाग रहे देवकुमार ने उसे जाते देखा तो उसे भाई को सबक सिखाने का अच्छा मौका मिल गया. उस ने घर में रखी कुल्हाड़ी उठा ली और उस के पीछेपीछे हो लिया.

भीटे में पहुंचते ही देवकुमार ने पीछे से शिवकुमार के सिर पर कुल्हाड़ी से कई वार किए. शिवकुमार जमीन पर गिर कर तड़पने लगा. चंद पलों में ही उस की मौत हो गई. भाई को मारने के बाद देवकुमार घर से फरार हो गया.

लेकिन उस का गुनाह छिप न सका और वह पकड़ा गया. देवकुमार की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी भी बरामद हो गई. आवश्यक कानूनी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद देवकुमार को न्यायालय में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.

(कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित)

सौजन्य: सत्यकथा, अगस्त, 2020

विषाक्त चंदन, जहरीली रूबी

अशोक कुमार      

23मार्च, 2020 को शाम 6 बजे  दरिगापुर आमौर गांव का 30 वर्षीय धर्मेंद्र यादव उर्फ माना सामान लेने आमौर तिराहे पर गया था. धर्मेंद्र देर रात तक घर नहीं लौटा तो घर वाले परेशान हो गए.

धर्मेंद्र मोबाइल भी घर छोड़ गया था. उस के न लौटने और मोबाइल घर छोड़ जाने से घर वालों की चिंता और भी बढ़ गई. कुछ लोगों को साथ ले कर घर वालों ने रात में ही धर्मेंद्र की तलाश शुरू कर दी. वे लोग रात 2 बजे तक उसे इधरउधर खोजते रहे, लेकिन उस का कोई पता नहीं चला. अगले दिन धर्मेंद्र के तहेरे भाई अवधेश कुमार ने सिरसागंज थाने में उस की गुमशुदी दर्ज करा दी.

लापता होने के तीसरे दिन यानी 25 मार्च की दोपहर 12 बजे नगला जीवन के पास आमौर नहर में धर्मेंद्र का शव देखा गया. पूरे इलाके में यह खबर जंगल में आग की तरह फैली तो नहर किनारे लोगों का हुजूम जुट गया.

दरिगापुर आमौर  के लोग भी नहर पर पहुंच गए. घर वाले धर्मेंद्र का फूला हुआ शव नहर के पानी से निकाल कर घर ले आए.

लाश देखते ही परिवार में कोहराम मच गया. इसी बीच किसी ने इस की सूचना सिरसागंज थाने में दे दी. खबर पाते ही थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर पुलिस टीम के साथ गांव पहुंच गए.

धर्मेंद्र के घर पर ग्रामीणों के साथ महिलाएं भी जुटी हुई थीं. उधर सूचना पर पहुंची पुलिस ने कोरोना वायरस के संक्रमण को ध्यान में रखते हुए गांव वालों को वहां से हटाने का प्रयास किया. शव के पास जुटी भीड़ हटाने पर गांव के लोग आक्रोशित हो गए, उन्होंने पुलिस टीम पर पथराव शुरू कर दिया.

पथराव में थानाप्रभारी की गाड़ी के आगे व पीछे के शीशे टूट गए. किसी तरह पुलिस ने ग्रामीणों को समझा कर शांत किया. थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने यह सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पर सीओ डा. ईरज राजा व एसपी (ग्रामीण) राजेश कुमार वहां पहुंच गए.

मृतक के घरवालों ने पुलिस को बताया कि धर्मेंद्र की पत्नी रूबी का एक साल से चंदन नाम के युवक से अफेयर चल रहा था. इस बात को ले कर पतिपत्नी के बीच विवाद होता रहता था. बात बढ़ी तो मामला मारपीट तक पहुंच गया.

इस पर रूबी 3 साल के बेटे को ले कर अपने मायके चली गई. ससुराल वालों ने धर्मेंद्र पर दहेज का मुकदमा कर रखा है. बाद में समझौता होने के बाद रूबी ससुराल वापस आ गई थी. रूबी ने ही अपने प्रेमी व मायके के लोगों के साथ मिल कर धर्मेंद्र की हत्या कराई है.

मृतक धर्मेंद्र के तहेरे भाई अवधेश कुमार ने मुकदमा दर्ज कराने के लिए पुलिस को एक तहरीर दी, जिस में 6 लोगों चंदन निवासी कुतुकपुर, नसीरपुर, बहनोई धर्मवीर निवासी भांडरी, मृतक की पत्नी रूबी, दो सालों ओमवीर, दयानवीर उर्फ छोटा और ससुर सत्यवीर उर्फ सत्यदेव निवासी ग्राम ककरारा के नाम थे. लेकिन पुलिस ने पोस्टमार्टम के बाद स्थिति साफ होने पर केस दर्ज करने को कहा. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने धर्मेंद्र की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल फिरोजाबाद भेज दी.

पति की मौत पर रूबी का रोरो कर बुरा हाल था. ससुराल वालों द्वारा पति की हत्या में उस का हाथ होने की बात से वह बुरी तरह आहत थी.

रूबी ने बताया कि धर्मेंद्र के किसी आदमी पर रुपए उधार थे. 23 मार्च को शाम 6 बजे वह आमौर चौराहे पर उस से पैसे लेने गए थे. घर के लिए कुछ सामान भी लाना था.

घटना के 2 दिन बाद पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मृत्यु का  कारण उस के शरीर पर आई चोटों और पानी में डूबना बताया गया. पोस्ट मार्टमरिपोर्ट आने के बाद 27 मार्च को पुलिस ने अवधेश की ओर से रूबी सहित 6 लोगों के विरूद्ध हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.

रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि मृतक की पत्नी रूबी चरित्रहीन थी, उस के अपने बहनोई धर्मवीर व प्रेमी चंदन से विवाहेतर संबंध थे. धर्मेंद्र इस का विरोध करता था. इसी बात को ले कर धर्मेंद्र और रूबी के बीच अकसर झगड़ा होता था.

पुलिस ने मृतक की पत्नी रूबी के बयानों की सच्चाई जानने के लिए उस के मोबाइल को भी खंगाला. उस के फोन नंबर की काल डिटेल्स में एक ऐसा नंबर शक के दायरे में आया, जिस पर सब से ज्यादा बातें होती थीं. पुलिस ने जब उस नंबर को ट्रैस किया तो वह चंदन का निकला. रूबी के नंबर पर जो अंतिम काल आई थी, वह चंदन की थी.

रूबी को संदेह के दायरे में लाने के लिए इतना ही काफी था. पुलिस ने उसे हिरासत में ले कर पूछताछ की. रूबी बारबार अपने बयान बदलती रही. इस से वह पूरी तरह शक के घेरे में आ गई. महिला सिपाही ने जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो रूबी टूट गई.

उस ने अपना जुर्म कबूल कर लिया. रूबी ने पुलिस को बताया कि चंदन ने उसे फोन किया था कि धर्मेंद्र को 23 मार्च को शाम 6 बजे आमौर चौराहे पर भेज देना. उस ने चंदन के कहे अनुसार पति को आमौर चौराहे पर भेज दिया था. धर्मेंद्र की हत्या चंदन ने कैसे की, यह वही बता सकता है. इस से पुलिस ने अनुमान लगाया कि घटना को योजनाबद्ध तरीके से अंजाम दिया गया था.

रूबी से की गई पूछताछ में पुलिस को कोई खास जानकारी नहीं मिली. सिवाय इस के कि चंदन और रूबी ने धर्मेंद्र की हत्या षडयंत्र रच कर की थी. पुलिस ने मुख्य आरोपी चंदन की जोरशोर से तलाश शुरू कर दी. पुलिस ने नामजद आरोपियों की तलाश में उन के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े.

इस पर पुलिस ने हत्यारों की सुरागरसी के लिए मुखबिरों का जाल फैला दिया. 14 मई की दोपहर सिरसागंज के थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर को एक मुखबिर ने सूचना दी कि घटना का मुख्य आरोपी चंदन गांव धातरी के पेट्रोल पंप पर है.

इस सूचना पर थानाप्रभारी सुनील कुमार तोमर ने पुलिस टीम के साथ उस जगह की घेराबंदी कर के चंदन को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपी चंदन को गिरफ्तार करने वाली टीम में थानाप्रभारी के साथ उपनिरीक्षक अंकित मलिक, कांस्टेबिल विजय कुमार, छविराम व कर्मवीर सिंह शामिल थे.

पुलिस ने रूबी,  उस के प्रेमी चंदन को धर्मेंद्र की हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर के दोनों से पूछताछ की.  पता चला रूबी पति के सीधेपन को कम अक्ल का बता कर प्रेमी चंदन से शादी रचाने का सपना देख रही थी, वहीं चंदन की नजर रूबी को पाने के साथ ही धर्मेंद्र की जमीन व मकान पर भी थी.

धर्मेंद्र की मौत के बाद वह रूबी से शादी कर जमीन जायदाद  पर कब्जा करना चाहता था. साली के प्रेम में दीवाना जीजा धर्मवीर भी राह का रोड़ा बने धर्मेंद्र को रास्ते हटाने को तैयार था.

जीजा और प्रेमी को एक राह पर लाने का काम किया रूबी ने. धर्मवीर, चंदन और रुबी ने मिल कर धर्मेंद्र की हत्या का षडयंत्र रचा. हत्यारोपियों ने इस जघन्य अपराध की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी—

धर्मेंद्र के पिता सत्यभान यादव रिटायर्ड रेलवे कर्मचारी थे. धर्मेंद्र उन का इकलौता बेटा था. गांव में सत्यभान के पास 16 बीघा खेती के अलावा पक्का मकान था. 9 साल पहले उन के बेटे धर्मेंद्र की शादी सत्यवीर उर्फ सत्यदेव की बेटी रूबी के साथ हुई थी. दोनों का 3 साल का बेटा है.

शादी के बाद दोनों के कुछ साल हंसीखुशी से बीते. धर्मेंद्र वैसे तो सीधासादा था लेकिन शराब का शौकीन था. चंदन धर्मेंद्र की मां का दूर का रिश्तेदार था.

इसी रिश्ते की वजह से उस के लिए घर के रास्ते खुले हुए थे. पिछले एक साल से चंदन धर्मेंद्र के घर ज्यादा ही आनेजाने लगा था. साथसाथ शराब पीने से दोनों एकदूसरे के गहरे दोस्त बन गए थे. चंदन का आटो था जिसे वह सिरसागंज में चलाता था.

भरेपूरे बदन की रूबी को देख कर चंदन का मन डोल गया था. वह रूबी को भाभी कहता था. चंदन धर्मेंद्र से हंसी ठिठोली में कह देता था, तुम तो कम अक्ल हो, ताज्जुब है तुम्हें इतनी सुंदर बीबी मिल गई. सीधासादा धर्मेंद्र चंदन की बात को हंस कर टाल देता था. लेकिन चंदन के मुंह से अपनी सुंदरता की बात सुन कर रूबी शरमा जाती.

धर्मेंद्र के दारू पीने के शौक का चंदन ने भरपूर फायदा उठाया. वह जब भी रूबी से मिलने आता अपने साथ शराब की बोतल जरूर लाता. दोनों घर में ही बैठ कर शराब पीते. चंदन धर्मेंद्र को ज्यादा शराब पिलाता. जब वह नशे में बेसुध हो कर सो जाता, चंदन और रूबी घंटों बातें करते.

धीरेधीरे दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता गया. अपने प्यार का इजहार करने के लिए उन के पास पर्याप्त अवसर थे. इसलिए उन्हें न मोहब्बत के इजहार में वक्त लगा न इश्क के इकरार में. जल्दी ही दोनों के बीच अवैध संबंध बन गए. रूबी फोन पर चंदन से लंबीलंबी बातें करने लगी. वह उस के खयालों में खोईखोई सी रहती थी.

प्रेम के हिंडोले में झूलती रूबी चंदन से कहती, ‘‘चंदन मैं दिल दे कर अब पूरी तरह तुम्हारी हो चुकी हूं, तुम भी मेरा साथ निभाना. कभी भूल से भी मेरा दिल मत तोडना.’’

‘‘कैसी बात करती हो रूबी, तुम्हारा दिल अब मेरी जान है और कोई भी अपनी जान को यूं ही नहीं छोड़ता. मैं तुम्हें जल्दी ही ले जाऊंगा. मैं ने भी तुम पर पूरा भरोसा कर के प्यार किया है.’’ चंदन रूबी को विश्वास दिलाता.

लेकिन इस बीच धर्मेंद्र को उन के बीच पक रही खिचड़ी की भनक लग गई थी. वह अपनी पत्नी के चरित्र से भलीभांति परिचित था. उस ने रूबी को कई बार समझाया कि चंदन जब घर आए तो वह उस से बात न करे. लेकिन पति की बातों का रूबी पर कोई असर नहीं होता था.

पतिपत्नी में विवाद बढ़ने के बाद रूबी अपने मायके चली गई. चंदन उस के मायके में भी जाने लगा था. समझौते के बाद रूबी फिर धर्मेंद्र के पास ससुराल आ गई थी. घटना से एक माह पहले धर्मेंद्र के पिता की मृत्यु हो गई थी.

घर में धर्मेंद्र, रूबी, बेटे के अलावा विधवा मां रह गई थीं. ससुराल आने के बाद कुछ दिन तो रूबी का रवैया ठीक रहा लेकिन बाद में उस का प्रेमी चंदन फिर से घर आने लगा. धर्मेंद्र की हत्या से 10 दिन पहले चंदन और धर्मेंद्र में इसी बात को ले कर कहासुनी भी हुई थी.

इस के बाद चंदन  का उस के घर आना बंद हो गया था. अब रूबी चंदन से मोबाइल पर चोरीछिपे बात करने लगी. एक सप्ताह पहले अच्छा मौका देख चंदन ने फोन पर रूबी से बात कर के धर्मेंद्र की हत्या की साजिश रची.

योजना के अनुसार 23 मार्च की शाम 6 बजे रूबी ने धर्मेंद्र को सामान मंगाने के बहाने आमौर चौराहे पर भेज दिया. साथ ही चंदन को भी फोन कर दिया. चंदन चौराहे पर पहुंचा. धर्मेंद्र वहां उसे एक दुकान पर सामान खरीदते मिल गया. उस ने धर्मेंद्र की कमजोर नस को दबाते हुए कहा, ‘‘चलो पार्टी करते हैं.’’

धर्मेंद्र चाह कर भी मना नहीं कर सका. पुराने शिकवेगिले भूल कर धर्मेंद्र चंदन को अपने औटो में बैठा कर आमौर चौराहे वाले शराब के ठेके पर ले गया. वहीं से शराब की बोतल खरीदी.

रास्ते में रूबी का जीजा धर्मवीर भी मिल गया. दोनों ने उसे जम कर शराब पिलाई, साथ ही उस के साथ मारपीट भी की. तब तक अंधेरा घिर आया था. अधिक शराब पीने से धर्मेंद्र बेसुध हो गया तो दोनों धर्मेंद्र को औटो से नगला जीवन के पास आमौर नहर पर ले गए, जहां उसे नहर में धकेल दिया. पानी में डूबने से उस की मौत हो गई. लापता होने के तीसरे दिन धर्मेंद्र की लाश नहर से बरामद हो गई थी.

पुलिस ने गिरफ्तार रूबी व उस के प्रेमी चंदन को न्यायालय में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. प्रेमी चंदन के प्यार में रूबी इस कदर अंधी हो गई थी कि अपने हाथों से ही अपनी हंसतीखेलती दुनिया बरबाद कर ली. अब वह अपने अबोध बेटे से भी दूर हो गई.

सौजन्यसत्यकथा, जून 2020

प्रश्नचिन्ह बनी बेटी

दिनांक: 10 फरवरी, 2020 स्थान: गांव- मिट्ठौली, थाना- नौहझील, जिला- मथुरा, उत्तर प्रदेश  समय: रात 10 बजे रिटायर्ड फौजी चेतराम उर्फ झगड़ू का घर अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा.

किसी अनहोनी की आशंका से गांव वाले जब फौजी के मकान पर पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर सकते में आ गए. रिटायर्ड फौजी चेतराम घर के बाहर खून से लथपथ पड़ा था. फोजी की 17 वर्षीय बेटी अलका हाथ में लोडेड पिस्टल लिए खड़ी थी, उस के कपड़ों पर खून लगा था. गांव वालों को देखते ही अलका ने पिस्टल तानते हुए धमकी दी, ‘‘कोई भी मेरे पास आने की कोशिश न करे. आगे बढ़ा तो गोली मार दूंगी.’’

उस के हाथ में लोडेड पिस्टल देख किसी की भी उस के पास जाने की हिम्मत नहीं हुई. कुछ देर बाद अलका मकान की ऊपरी मंजिल पर चली गई. वहां उस की मां राजकुमारी उर्फ नेहा लहूलुहान पड़ी थी. इसी बीच किसी ने पुलिस को घटना की जानकारी दे दी.

इस सनसनीखेज घटना की जानकारी मिलते ही नौहझील के थानाप्रभारी विनोद कुमार यादव पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. मौकाएवारदात पर पुलिस ने वारदात के बारे में पड़ोसियों से पूछताछ शुरू की.

पुलिस जब घटनास्थल पर पहुंची, तब भी खून से लथपथ फौजी चेतराम घर के बाहर पड़ा था, उस के पास ही पिस्टल पड़ी थी. पुलिस मकान की पहली मंजिल पर पहुंची तो वहां राजकुमारी और बेटी अलका खून से लथपथ पड़ी मिलीं.

मामला एक फौजी परिवार का था, इसलिए पुलिस के उच्चाधिकारियों को भी अवगत करा दिया गया. खबर पा कर एसएसपी शलभ माथुर और सीओ मांट आलोक दूबे घटनास्थल पर पहुंच गए. साथ ही फोरैंसिक टीम भी आ गई. अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.

फौजी के घर में पत्नी के अलावा एक बेटी व एक बेटा था. परिवार के 4 सदस्यों में से 3 को गोलियां लगी थीं. इस वीभत्स गोलीकांड का एकमात्र गवाह फौजी का बेटा आदर्श ही था. इस गवाह को खरोंच तक नहीं आई थी. पुलिस ने फौजी, उस की पत्नी और बेटी को उपचार के लिए मथुरा के नयति अस्पताल भिजवा दिया.

नौहझील पुलिस ने अपने स्तर से जानकारी जुटाने के साथ ही ग्रामीणों से भी पूछताछ की. सूचना पर पहुंची फोरैंसिक टीम ने घर में कारतूस भी तलाशे और दीवारों में फंसी गोलियां भी निकालीं. फोरैंसिक टीम काफी देर तक पूरे घर को खंगालती रही.

टीम ने खून के नमूने और खून आलूदा मिट्टी के नमूने भी लिए. फौजी चेतराम के घर से पिस्टल, 2 खोखे, 3 जिंदा कारतूस, खाली मैगजीन और 4 कारतूसों की एक और मैगजीन बरामद हुई. पुलिस ने पिस्टल को बैलेस्टिक जांच के लिए भेजने हेतु जब्त कर लिया.

इस सनसनीखेज वारदात ने लोगों को हिला कर रख दिया था. गांव वाले चर्चा कर रहे थे कि अलका ने मांबाप को गोली मारने के साथ खुद को भी गोली मार ली. हालांकि यह केवल चर्चा थी. वास्तविकता का किसी को भी पता नहीं था. इस का पता पुलिस को ही लगाना था.

अस्पताल में जांच के बाद डाक्टरों ने बताया कि अस्पताल पहुंचने से पहले ही चेतराम की मौत हो चुकी थी. जबकि घायल मांबेटी की हालत चिंताजनक थी. चेतराम के सीने से और राजकुमारी के सिर से गोली पार हो गई थी, जबकि अलका के पेट में गोली लगी थी. पुलिस ने चेतराम की लाश पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय भेज दी.

45 वर्षीय सेवानिवृत्त चेतराम जाट रेजीमेंट में नायक था. 2014 में वह सेवानिवृत्त हो चुका था. उस के परिवार में 17 वर्षीय बेटी अलका, 15 वर्षीय बेटा आदर्श और 38 वर्षीय पत्नी राजकुमारी उर्फ नेहा थे. अपनी नौकरी के दौरान ही चेतराम ने राइफल और पिस्टल का लाइसैंस ले लिया था. चेतराम चाहता था कि उस की बेटी अलका कोई ऊंचा मुकाम हासिल करे, इस के लिए उस ने दिल्ली में ओला कैब में अपनी गाड़ी लगा रखी थी.

अलका ने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई नौहझील के स्कूल में की थी. इस के बाद उस ने बीएसए कालेज, मथुरा में एडमिशन ले लिया था. फिलहाल वह बीएससी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी और प्रयागराज में कोचिंग ले रही थी. अलका घटना से कुछ दिन पहले ही गांव आई थी. उस का 15 वर्षीय भाई आदर्श मथुरा में ही 9वीं की पढ़ाई कर रहा था.

इस घटना में राजकुमारी के सिर की हड्डी टूट गई थी, चेहरे और आंखों पर भी सूजन थी. उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था. जबकि अलका के पेट में गोली लगने का निशान था.

अलका को सांस लेने में परेशानी हो रही थी. राजकुमारी के सिर की हड्डी गोली से टूटी थी या किसी भारी चीज के प्रहार से, यह स्पष्ट नहीं हो पाया था. वहीं रिटायर्ड फौजी चेतराम को 2 गोलियां लगी थीं. एक सीने में और दूसरी पेट से कुछ ऊपर. यह खुलासा पोस्टमार्टम रिपोर्ट से हुआ.

फौजी चेतराम का पुलिस की मौजूदगी में अंतिम संस्कार कर दिया गया. मुखाग्नि बेटे आदर्श ने दी. गांव वाले इस घटना को ले कर तरहतरह की चर्चाएं कर रहे थे.

मंगलवार 11 फरवरी को चेतराम के छोटे भाई ओमवीर सिंह ने अपनी भतीजी अलका व उस के प्रेमी अंकित के खिलाफ हत्या, हत्या के प्रयास और जान से मारने की धमकी देने के आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया. ओमवीर का कहना था कि अलका का गांव के ही युवक अंकित के साथ प्रेम प्रसंग चल रहा था. चेतराम इस का विरोध करता था. इसी के चलते अलका और उस के प्रेमी अंकित ने मिल कर यह कांड कर डाला.

ओमवीर सिंह की तहरीर में यह बात भी शामिल थी कि गोलीकांड के बाद अंकित को उस ने भाई के घर से निकलते देखा था. इस के बाद वह अंदर गए तो अलका ने कहा, ‘‘मेरे और अंकित के बीच में जो भी आएगा, उसे छोड़ूंगी नहीं.’’

आखिर ऐसा क्या हुआ था कि मां और पिता को गोली लगने के साथसाथ बेटी भी घायल हो गई थी. यह बात अभी साफ नहीं थी कि आखिर गोली किस ने चलाई? इस मामले में सभी बिंदुओं की गहन पड़ताल की गई.

पता चला कि घटना वाली रात पतिपत्नी में विवाद हुआ था. पुलिस को गांव वालों से यह भी पता चला कि अलका का गांव के ही अंकित से प्रेम प्रसंग चल रहा था. यह भी स्पष्ट हो गया था कि गोलीबारी की शुरुआत पहली मंजिल पर हुई थी.

पुलिस ने गहनता से जांच कर पूरी जानकारी और साक्ष्य जुटाए गए. तथ्यों पर आधारित इस घटनाक्रम की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

अंकित और अलका ने नौहझील के स्कूल में इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई एक साथ पूरी की थी. दोनों में पिछले 5 साल से दोस्ती थी और दोनों रिलेशनशिप में थे.

महत्त्वाकांक्षी अलका देखने में स्मार्ट थी. गठे बदन और अच्छी लंबाई के कारण वह सुंदर दिखती थी. आधुनिक विचारों वाली अलका फैशन के हिसाब से कपड़े पहनती थी.

पुलिस जांच में सामने आया कि 31 दिसंबर, 2019 को अलका अचानक घर से लापता हो गई थी. उस  के पिता चेतराम ने उसे काफी तलाश किया. पता न लग पाने पर वह थाने भी पहुंचा. 5 दिन बाद गांव वालों के हस्तक्षेप के बाद अलका घर लौट आई. मगर यह शूल चेतराम के सीने में चुभता रहा. तभी से घर में क्लेश चल रहा था. विपरीत हालात देख अंकित का पिता नेत्रपाल अपने बेटे, बेटी और पत्नी को साथ ले कर गांव से चला गया था. नेत्रपाल भी सेना में था.

बचपन को पीछे छोड़ कर बेटी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी. पिता चेतराम को बेटी के रंगढंग देख कर उस की चिंता होने लगती थी. जबकि अलका के खयालों में हरदम अपने दोस्त से प्रेमी बने अंकित की तसवीर रहती थी. वह चाहती थी कि उस का चाहने वाला हर पल उस की नजरों के सामने रहे. उस के कदमों को बहकते देख चेतराम ने अलका पर पाबंदियां लगा दीं. लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला. वे दोनों चोरीछिपे मिलने लगे.

बेटी की नादानी के लिए चेतराम अपनी पत्नी राजकुमारी को दोषी मानता था. उस का मानना था कि मां की शह के चलते ही बेटी ने इतना बड़ा कदम उठाया और गांव में उस की इज्जत मिट्टी में मिला दी. बेटी के इस कारनामे के चलते वह गांव में किसी से नजर भी नहीं मिला पा रहा था.

सेवानिवृत्त फौजी चेतराम के परिवार में कई महीने से चल रही कलह की जानकारी गांव के लोगों के साथ ही चेतराम के घर वालों और रिश्तेदारों को भी थी. रिश्तेदारों ने कई बार कलह को निपटाने के लिए चेतराम और उस के परिवार वालों से बात की, लेकिन समाधान कोई नहीं निकला. पिता की हिदायत व रोकटोक से अलका बहुत नाराज थी.

घटना से 4 दिन पहले ही नेत्रपाल अपने परिवार सहित गांव वापस आया था. वह यह सोच कर गांव आया था कि हालात सामान्य हो गए होंगे. अलका भी कुछ दिन पहले ही प्रयागराज से गांव आई थी. बिछड़े हुए प्रेमियों ने इतने दिनों बाद एकदूसरे को देखा तो बिना मिले नहीं रह सके. चेतराम यह सब बरदाश्त नहीं कर सका.

घटना की रात चेतराम ने अलका की हत्या का फैसला किया, लेकिन सामने पड़ गई पत्नी राजकुमारी. उस ने पत्नी पर ही गोली चला दी, जिस से वह घायल हो गई. बाद में उस ने बेटी पर भी गोली चलाई जो उस के पेट में लगी. पत्नी को गोली लगने के बाद चेतराम सुधबुध खो बैठा. इस का फायदा उठा कर अलका ने पिस्टल छीन कर उस पर गोलियां दाग दीं. जान बचाने के लिए वह भागा और घर के बाहर जा कर गिर गया.

एसएसपी शलभ माथुर ने प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया कि घटना वाली रात पुलिस को सूचना मिली थी कि गांव मिट्ठौली में बेटी ने अपने पिता और मां को गोली मार दी है. इसी सूचना पर पुलिस गांव पहुंची थी. लेकिन जांच में पता चला कि फौजी की बेटी अलका ने सेल्फ डिफेंस में गोली चलाई थी.

अलका ने अपने बयान में बताया कि उस के पिता ने पहले उस पर गोली चलाई थी. इस दौरान गोली बचाव में आई उस की मां राजकुमारी को लग गई. मां के गिरते ही उस ने दूसरी गोली उस पर चलाई जो उस के पेट से रगड़ती हुई निकल गई, जिस से वह घायल हो गई. जब पिता उस के भाई पर गोली चलाना चाहते थे, मैं ने तेजी से झपट्टा मार कर पिता के हाथ से पिस्टल छीन ली और बचाव में उन के ऊपर गोली चला दी. वह हम सब को मारना चाहते थे.

उधर इस गोलीकांड में मृत फौजी की घायल पत्नी राजकुमारी जो वेंटीलेटर पर थी, ने घटना के 29वें दिन 11 मार्च की रात नयति अस्पताल, मथुरा में दम तोड़ दिया. मां की मौत से कुछ दिन पहले ही अलका के ठीक होने पर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी.

आरोपी अंकित के खिलाफ पुलिस को पर्याप्त सबूत नहीं मिल सके. अलका और उस के भाई आदर्श से पूछताछ में अंकित का कोई जिक्र नहीं आया. जबकि गोली पिता द्वारा चलाए जाने की बात दोनों ने बताई.

बयान लेने के बाद पुलिस ने अलका के घर वालों से उसे सुपुर्दगी में लेने को कहा, लेकिन किसी ने उसे लेने की हामी नहीं भरी. इस पर सिटी मजिस्ट्रेट ने अगले आदेश तक उसे नारी निकेतन भेज दिया.

दुश्मन से जूझने का दमखम रखने वाला चेतराम अपने खून के साथ जीवन की जंग हार गया.

बेटी की नादानी से पिता बुरी तरह टूट गया था. जब बेटी अलका अपने प्रेमी के साथ 5 दिनों तक गायब रही थी, चेतराम ने तभी से खाना छोड़ कर शराब के नशे में डुबो दिया था. वह गहरे सदमे में था.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सौजन्यसत्यकथा, मई 2020

जब सास बनी फांस : बेटे ने ली जान

8 जनवरी की रात को दोनों बापबेटे खेत पर सोने गए थे, जबकि घर पर संजय की पत्नी मायाबाई और मां कसुम थी. सुबह को संजय की पत्नी मायाबाई ने उसे फोन पर बताया कि थोड़ी देर पहले वह सो कर उठी तो उस के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद मिला. मायाबाई ने उसे आगे बताया कि फोन लगाने से पहले उस ने सासू मां को कई आवाजें दी थीं. लेकिन जब उन की तरफ से कोई उत्तर नहीं मिला, तब उस ने उन्हें फोन लगाया.

‘‘कहीं ऐसा तो नहीं कि अम्मा दिशामैदान चली गई हों, तुम इंतजार करो. हो सकता है, थोड़ी देर में आ जाएं.’’ संजय बोला.

‘‘मैं काफी देर से उन का इंतजार कर रही हूं, आज तक वह बाहर से दरवाजा बंद कर के कभी नहीं गईं. आप जल्द दरवाजा खोल दो.’’ मायाबाई ने पति से कहा.

पत्नी की बात सुन कर संजय घर पहुंच गया. उस ने कमरे का दरवाजा खोला तो माया बहुत घबराई हुई थी. संजय ने उस से पूछा तो उस ने कहा कि पता नहीं किस ने कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था.

इस के बाद मियांबीवी दोनों मां के कमरे में गए तो वह कमरे में नहीं थी. कुछ देर तक दोनों ने उस के लौटने का इंतजार किया. काफी देर बाद भी जब वह नहीं लौटी तो संजय ने खेत पर जा कर पिता को यह जानकारी दे दी. मायाबाई भी खेत पर पहुंच गई थी.

पत्नी के गायब होने की बात सुन कर मलुवा चौधरी भी परेशान हो गए. उन के एक खेत में अरहर की फसल खड़ी थी. मायाबाई पति के साथ जब उसी खेत के किनारे से जा रही थी, तभी संजय की नजर अरहर के खेत में पड़ी एक लाश पर गई. वह लाश के नजदीक पहुंचा तो उस की चीख निकल गई. लाश उस की मां कुसुम की थी.

उस की गरदन के आसपास कई जगह कुल्हाड़ी के गहरे घाव थे. खून से सनी कुल्हाड़ी भी वहीं पड़ी थी. इस से लग रहा था कि किसी ने उसी कुल्हाड़ी से उस की हत्या की है.

संजय की चीखपुकार पर पास के खेतों में सो रहे किसान कन्हैयालाल और मांगीलाल भी आ गए. कुछ देर बाद संजय ने यह खबर डायल 100 को दे दी. कुछ देर बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. डायल-100 के एक पुलिसकर्मी ने मामले की जानकारी पवई थाने के टीआई एस.पी. शुक्ला को दे दी.

महिला की हत्या की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी सिपाही संजय को साथ ले कर घटनास्थल पर पहुंच गए. टीआई ने घटनास्थल का निरीक्षण किया. मृतका कुसुम के शव से बहा खून अभी भी सूखा नहीं था. इस से टीआई समझ गए कि घटना सुबह हुई है.

उन्होंने सोचा कि जब कुसुम दिशामैदान के लिए खेत में आई होगी, तभी किसी ने उस की हत्या कर दी. लेकिन शव के पास लोटा वगैरह नहीं था. सवाल यह उठा कि अगर कुसुम शौच के लिए नहीं आई तो खेत पर सुबहसुबह क्यों आई.

हत्या की खबर पा कर एसपी मयंक अवस्थी, डीएसपी (पवई) डी.एस. परिहार भी मौके पर पहुंच गए. उन्होंने भी मौकामुआयना किया. टीआई द्वारा पूछताछ करने पर कुसुम के पति मलुवा और बेटे संजय ने किसी से दुश्मनी होने की बात से इनकार कर दिया. संजय की पत्नी मायाबाई ने भी सारी जानकारी पुलिस को दे दी.

इस के बाद पुलिस ने उन के घर का मुआयना किया. पूछताछ करने पर टीआई को कुसुम के किसी परिचित पर ही हत्या का शक था, क्योंकि जिस कमरे में कुसुम सो रही थी, वहां किसी संघर्ष के कोई निशान नहीं मिले थे. इस से लग रहा था कि कुसुम अपनी मरजी से उठ कर ही बाहर आई थी.

मायाबाई के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद किए जाने को ले कर टीआई का मानना था कि संभव है, कुसुम के गांव के किसी आदमी से अवैध संबंध हों. उस का आशिक रात में कुसुम से मिलने घर आया होगा. कहीं बहू अपने कमरे से निकल कर सास के कमरे में न आ जाए, इसलिए उस ने ही मायाबाई के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया होगा.

इस के बाद किसी बात को ले कर कुसुम का उस के प्रेमी से विवाद हुआ होगा. इसी के चलते उस व्यक्ति ने कुसुम की हत्या कर दी होगी. लेकिन 56 साल की कुसुम का प्रेम पुलिस के गले नहीं उतर रहा था. फिर भी टीआई ने पुष्टि के लिए गांव में कुसुम के चालचलन की जानकारी जुटानी शुरू की.

इस जांच में कुसुम के बारे में तो नहीं लेकिन उस की बहू मायाबाई के बारे में यह जानकारी निकल कर आई कि गांव में सब से ज्यादा सुंदर मानी जाने वाली मायाबाई का चालचलन संदिग्ध था. आसपास के लोगों ने यह भी बताया कि मायाबाई का चक्कर पड़ोस में रहने वाले एक 19 वर्षीय युवक हलके चौधरी के साथ था.

पुलिस पहले भी संजय की पत्नी मायाबाई से पूछताछ कर चुकी थी, लेकिन उस के बयानों में पुलिस को कुछ भी संदिग्ध नहीं लगा था. सिवाय इस के कि बयान देते समय मायाबाई एक हाथ लंबा घूंघट निकाले रहती थी.

इस से टीआई को लगा कि हो सकता है मायाबाई अपने चेहरे के भाव छिपाने के लिए घूंघट का सहारा लेती हो, इसलिए उस के बारे में नई जानकारी मिलने के बाद टीआई शुक्ला ने एक महिला पुलिसकर्मी को मायाबाई से पूछताछ करने को कहा.

महिला पुलिसकर्मी ने उस का घूंघट खुलवा कर उस से घटना वाली रात के बारे में कई सवाल पूछते हुए अचानक से पूछा, ‘‘अच्छा, यह बता कि हलके तेरे पास कितने बजे आया था?’’

हलके का नाम सुनते ही मायाबाई का चेहरा बुझ गया. पहले तो वह सकपकाई फिर बोली, ‘‘कौन हलके? वो मेरे पास क्यों आएगा?’’

‘‘ज्यादा सयानी मत बन. पुलिस को सारी बात पता चल गई है. उस रात हलके तुझ से मिलने आया था, इसलिए सीधेसीधे बता दे कि हलके ने तेरी सास को क्यों मारा? देख, तू सच बता देगी तो पुलिस तुझे छोड़ देगी वरना तुझे जेल जाने से कोई नहीं रोक सकेगा.’’

मायाबाई पुलिस की बातों में आ गई, उस ने स्वीकार कर लिया कि उस रात सास ने उसे उस के प्रेमी हलके के साथ देख लिया था. इस के बाद हालात ऐसे बने कि उस ने प्रेमी के साथ मिल कर सास की हत्या कर दी.

पुलिस पूछताछ में बहू के इश्क में सास के कत्ल की कहानी इस प्रकार सामने आई—

कोई 5 साल पहले मायाबाई जब संजय के साथ ब्याह कर गांव में आई, तब उस की उम्र 21 साल थी. पति के साथ कुछ समय तो उस के दिन अच्छे बीते लेकिन बाद में संजय पत्नी के बजाए खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगा. पत्नी की भावनाओं को नजरंदाज करते हुए वह घर के बजाए रात को खेतों पर ही सोने लगा.

ऐसे में मायाबाई की नजरें पड़ोस में रहने वाले युवक हलके चौधरी से लड़ गईं. वह मायाबाई से 2 साल छोटा था और उसे भौजी कहता था. गांव में मायाबाई के आते ही उस की सुंदरता के चर्चे होने लगे थे. लेकिन उस वक्त हलके इन सब बातों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता था. धीरेधीरे उस की उम्र बढ़ी तो उस के मन में भी मायाबाई की खूबसूरती गुदगुदी करने लगी.

मायाबाई के कच्चे मकान में कच्चा बाथरूम बाहर आंगन में था, जो हलके के घर से साफ दिखाई देता था. इसलिए 20 साल की उम्र तक आतेआते जब हलके के मन में जवानी की तरंगें उछाल मारने लगीं तो वह मायाबाई को नहाते हुए छिप कर देखने लगा.

इसी बीच करीब साल भर पहले एक दिन नहा रही मायाबाई की नजर हलके पर पड़ गई. उस ने उस से कुछ नहीं कहा. वह समझ गई थी कि हलके चौधरी की जवानी अंगड़ाई ले रही है.

फिर मायाबाई के मन में भी चुहल करने की बात घर कर गई. अगले दिन से वह चोरीछिपे ताकाझांकी करने वाले हलके को अपने रूप के और भी खुले दर्शन करवाने लगी. मायाबाई ने यह खेल हलके के मन में आग लगाने के लिए खेला था. लेकिन धीरेधीरे उसे न केवल इस खेल में मजा आने लगा, बल्कि हलके के प्रति उस के मन में भी चाहत पैदा हो गई.

हलके का मायाबाई के घर आनाजाना था, इसलिए जब भी हलके मायाबाई के घर आता तो वह उस से हंसीमजाक करती, जिस से कुछ दिनों में हलके की समझ में भी आ गया कि मायाबाई उस के मन की बात समझ चुकी है.

इसलिए एक दिन दोपहर में वह उस समय मायाबाई के घर पहुंचा, जब वह घर पर अकेली थी. मायाबाई को भी ऐसे ही मौके का इंतजार था. उस रोज मायाबाई ने बातोंबातों में हलके से पूछ लिया, ‘‘हलके, तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारी कोई प्रेमिका है?’’

‘‘नहीं.’’ हलके चौधरी ने जवाब दिया.

‘‘क्यों, अभी तक क्यों नहीं बनाई? तुम्हारा मन तो होता होगा?’’ मायाबाई ने पूछा.

‘‘नहीं.’’ हलके ने झूठ बोला.

‘‘मन नहीं होता तो फिर छिप कर मुझे नहाते क्यों देखते हो? मैं तो समझी थी कि मेरा देवर कई लड़कियों से दोस्ती कर चुका होगा, इसलिए अब मेरे साथ दोस्ती करना चाहता है.’’ मायाबाई मुसकराते हुए बोली.

‘‘वो तो इसलिए कि आप अच्छी लगती हो.’’

‘‘कभी मेरी सुंदरता को पास से देखने का मन नहीं करता तुम्हारा?’’ मायाबाई ने पूछा.

‘‘करता है, लेकिन डर लगता है कि कहीं आप गुस्सा न हो जाओ.’’ हलके ने बताया.

‘‘मैं ने कब कहा कि मैं गुस्सा हो जाऊंगी. अच्छा, एक काम करो अभी तो अम्मा खेत से आने वाली हैं. कल सुबह जल्दी आ जाना फिर देख लेना, अपनी भाभी को एकदम पास से और मन करे तो छू कर भी देखना.’’ इतना कह कर मायाबाई ने नौसिखिया हलके के गाल पर एक पप्पी दे कर उसे उस के घर भेज दिया.

दूसरे दिन हलके चौधरी मायाबाई के घर पहुंच गया. उस समय घर में उन दोनों के अलावा कोई नहीं था. मायाबाई ने इस का फायदा उठाया. उस ने हलके को कामकला का ऐसा पाठ पढ़ाया कि वह उस का मुरीद बन गया. इस के बाद तो दोनों के बीच आए दिन वासना का खेल खेला जाने लगा.

मायाबाई को कम उम्र का प्रेमी मिला तो वह उसे बढ़चढ़ कर वासना के खेल सिखाने लगी. जिस के चलते हलके उस का ऐसा दीवाना हुआ कि हर दिन मायाबाई से अकेले में मिल कर प्यार करने की जिद करने लगा. लेकिन यह रोजरोज कैसे संभव हो पाता. इसलिए मायाबाई ने एक रास्ता निकाला.

रात को जब उस का पति और ससुर खेत की रखवाली करने चले जाते तो सास के सो जाने के बाद आधी रात में वह अपने प्रेमी हलके को कमरे में बुला लेती और फिर पूरी रात उसके संग अय्याशी करने के बाद सुबह होने से पहले वापस भेज देती.

8 जनवरी, 2020 की रात को भी यही हुआ. रात में संजय और उस के पिता मलुवा खेत पर चले गए. फिर सास भी खाना खापी कर गहरी नींद सो गई तो मायाबाई ने हलके को बुला लिया. हलके अब प्यार के खेल में काफी होशियार हो चुका था. वह अपने मोबाइल पर अश्लील फिल्में लगा कर मायाबाई को गुदा मैथुन के लिए मना रहा था लेकिन मायाबाई तैयार नहीं हो रही थी. उस रोज हलके ने जिद की तो मायाबाई गुदा मैथुन के लिए राजी हो गई.

उसी दौरान मायाबाई के मुंह से चीख निकली तो बाहर कमरे में सो रही सास की नींद टूट गई. अनुभवी सास ऐसी चीख का मतलब अच्छी तरह जानती थी, सो उस ने उठ कर चुपचाप बहू के कमरे में झांक कर देखा तो पड़ोसी हलके के साथ बहू को अय्याशी करते देख उस की आंखें फटी रह गईं.

सास ने गुस्से में किवाड़ पर लात मार कर दरवाजा खोला और मायाबाई और हलके को खूब खरीखोटी सुनाई. सास बहू की करतूत अपने बेटे को बताने के लिए रात में ही खेत पर जाने लगी.

यह देख कर मायाबाई के हाथपैर फूल गए. उस ने पास पड़ी कुल्हाड़ी उठा कर हलके के हाथ में पकड़ाते हुए कहा कि वह सास की कहानी खत्म कर दे वरना उन के प्यार की कहानी खत्म हो जाएगी.

हलके के हाथपैर कांपने लगे. उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह बाहर जा कर कुसुम की हत्या कर सके. लेकिन जब मायाबाई भी साथ हो गई तो दोनों ने पीछे से जा कर खेतों पर पहुंच चुकी कुसुम की गरदन पर कुल्हाड़ी से वार किया, जिस से वह वहीं गिर गई. इस के बाद उस के शरीर पर कुल्हाड़ी से कई वार और किए, जिस से कुसुम की मृत्यु हो गई.

कुछ देर बाद मायाबाई के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर हलके चौधरी अपने घर चला गया.

दोनों को भरोसा था कि पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन पवई पुलिस ने 4 दिन में ही दोनों को कानून की ताकत का अहसास करवा दिया.

 

षड्यंत्रकारी साली : प्रेमी बना हत्यारा

राजस्थान के बूंदी जिले का रहने वाला 30 वर्षीय अभिषेक शर्मा राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल था. उस की पोस्टिंग बूंदी की पुलिस लाइन में थी. 28 अगस्त, 2019 की शाम वह अपनी बहन शीतल से यह कह कर गया था कि ड्यूटी पर जा रहा है.

अगले दिन जब वह घर नहीं लौटा तो उस के पिता भगवती प्रसाद ने उस के मोबाइल पर फोन किया लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ था. परेशान हो कर जब उन्होंने पुलिस लाइन में ही तैनात उस के दोस्त इरशाद को फोन कर के अभिषेक के बारे में पूछा तो उस ने जो बताया, उसे सुन कर सब परेशान हो उठे. इरशाद ने बताया कि अभिषेक ड्यूटी पर पहुंचा ही नहीं था.

किसी को बिना कुछ बताए अभिषेक कहां चला गया? उस का मोबाइल क्यों बंद है? यह सोच कर घर में सभी परेशान थे. एक सप्ताह तक परिवार के लोग अपने स्तर पर अभिषेक का पता लगाने की कोशिश करते रहे लेकिन जब उस के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली तो 5 सितंबर को भगवती प्रसाद ने बूंदी कोतवाली पहुंच कर कोतवाल घनश्याम मीणा को बेटे अभिषेक शर्मा के गायब होने की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करा दी. इतना ही नहीं, उन्होंने शक जताया कि अभिषेक को गायब कराने में उस की पत्नी दिव्या पाठक और साली श्यामा शर्मा का हाथ हो सकता है.

चूंकि मामला विभाग के ही कांस्टेबल के गायब होने का था, इसलिए उन्होंने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी. कांस्टेबल अभिषेक शर्मा का पता लगाने के लिए एएसपी सतनाम सिंह ने एक स्पैशल पुलिस टीम गठित की, जिस में सीओ मनोज शर्मा, कोतवाल घनश्याम मीणा, साइबर सेल के हैडकांस्टेबल मुकेंद्र पाल सिंह, अशोक कुमार, कांस्टेबल राकेश बैंसला आदि को शामिल किया गया.

कोतवाल घनश्याम मीणा ने गुमशुदा कांस्टेबल के पिता भगवती प्रसाद को एक बार फिर थाने में बुला कर उस के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि अभिषेक के उस की पत्नी दिव्या पाठक के साथ संबंध ठीक नहीं थे. इस की वजह यह थी कि अभिषेक के प्रेम संबंध दिव्या की फुफेरी बहन श्यामा से हो गए थे.

इस की जानकारी दिव्या को हुई तो उस ने अभिषेक का विरोध किया. लेकिन जब अभिषेक नहीं माना तो दिव्या नाराज हो कर अपने मायके जटवाड़ा चली गई. उस समय वह अपनी डेढ़ साल की बेटी के साथ मायके में ही थी. श्यामा शर्मा बौंली कस्बे में अपने मातापिता के साथ रहती है.

मामला प्रेम प्रसंग का नजर आ रहा था, इसलिए कोतवाल घनश्याम मीणा ने अभिषेक, दिव्या और श्यामा के मोबाइल नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई. उन्होंने जब इन की काल डिटेल्स की जांचपड़ताल कराई तो पता चला कि घटना वाली रात को साढ़े 12 बजे तक अभिषेक का मोबाइल फोन एक्टिव था. इस के बाद उस का फोन विजयगढ़ किले में जा कर स्विच्ड औफ हो गया था.

विजयगढ़ किले में अभिषेक की अंतिम लोकेशन मिलने के बाद कोतवाल घनश्याम मीणा ने उस के घर वालों को इस के बारे में बताया और अभिषेक के संभावित जगहों पर जाने के बारे में पूछताछ की. उन्होंने बताया कि इस जगह से उस की पत्नी दिव्या का मायका जटवाड़ा नजदीक है. शायद वह उस से मिलने वहां गया हो.

इस के बाद पुलिस ने इस मामले को आपसी कलह के ऐंगल से भी देखना शुरू किया, लेकिन जब पुलिस टीम दिव्या पाठक से मिलने उस के गांव पहुंची तो उस ने बताया कि अभिषेक उस से मिलने नहीं आया था. अभिषेक के घर वालों ने अपना शक उस की साली श्यामा पर भी जाहिर किया था, इसलिए पुलिस का ध्यान अब श्यामा पर केंद्रित हो गया.

पुलिस की जांच बड़ी धीमी रफ्तार से बढ़ रही थी. उधर गुमशुदा अभिषेक शर्मा के घर वालों के सब्र का बांध टूटता नजर आ रहा था. वे दिनरात अपने बेटे की सलामती जानने के लिए बूंदी कोतवाली का चक्कर लगा रहे थे. अभिषेक की साली श्यामा शर्मा के मोबाइल की काल डिटेल्स से पता चला कि श्यामा की अभिषेक शर्मा के गायब होने तक रोज उस की लंबीलंबी बातें होती थीं.

लेकिन श्यामा की काल डिटेल्स में एक और भी नंबर शक के दायरे में आया. उस नंबर पर भी श्यामा बात करती थी. इस संदिग्ध फोन नंबर की काल डिटेल्स निकालने के बाद पता चला कि यह नंबर नावेद रंगरेज नामक युवक का है जो श्यामा के गांव बौंली का ही निवासी था.

वह जयपुर में फाइनैंस का काम करता था. इस से कोतवाल मीणा का शक और पुख्ता हो गया और उन्होंने श्यामा और नावेद रंगरेज दोनों को पूछताछ के लिए कोतवाली बुला लिया.

जब श्यामा और नावेद रंगरेज दोनों कोतवाली पहुंचे तो कोतवाल घनश्याम मीणा ने उन दोनों से अभिषेक शर्मा के गायब होने के बारे में पूछा. लेकिन दोनों ने पुलिस को गुमराह करने की भरपूर कोशिश की. उन दोनों के सामने जब अभिषेक और उन दोनों की काल डिटेल्स और लोकेशन दिखा कर मनोवैज्ञानिक तरीके से पूछताछ की तो वे टूट गए. उन्होंने स्वीकार किया कि 28 अगस्त की रात उन्होंने कांस्टेबल अभिषेक शर्मा की हत्या कर उस की लाश गायब कर दी थी.

पुलिस की तहकीकात और मृतक कांस्टेबल अभिषेक शर्मा के घर वालों से पूछताछ के बाद इस हत्याकांड के पीछे की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह कुछ इस प्रकार है—

कांस्टेबल अभिषेक शर्मा अपने मातापिता के साथ राजस्थान के बूंदी शहर स्थित बीबनवा रोड पर रहता था. करीब 11 साल पहले उस की नौकरी राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद पर लगी थी. बाद में उस ने कमांडो की ट्रेनिंग भी ली थी. इन दिनों वह बूंदी की पुलिस लाइन में तैनात था.

अभिषेक की शादी सवाई माधोपुर जिले के जरवाड़ा गांव की दिव्या पाठक से हुई थी. अभिषेक औसत कदकाठी का हैंडसम युवक था. दिव्या उसे अपने पति के रूप में पा कर खुश थी.

ससुराल में पति के अतिरिक्त सासससुर, ननद सभी थे. वहां दिव्या को किसी चीज की कमी नहीं थी. वह खुद को दुनिया की सब से भाग्यशाली औरत समझती थी. शादी के कुछ साल बाद जब उस ने एक लड़की को जन्म दिया तो उस की किलकारियों से घर का वातावरण सुहाना हो गया.

दिव्या की एक फुफेरी बहन थी श्यामा. श्यामा सांवलीसलोनी जरूर थी, लेकिन वह आकर्षक और सैक्सी दिखती थी. वह खुले दिल की युवती थी. उसे टिकटौक पर अपने गाने व वीडियो डालने का शौक था. चूंकि वह किशोर उम्र से वीडियो बना रही थी, इसलिए अब तक वह 300 से अधिक वीडियो अपलोड कर चुकी थी. सवाई माधोपुर में तो वह टिकटौक गर्ल के नाम से मशहूर थी. दिव्या और श्यामा की आपस में बातचीत होती रहती थी.

इस के अलावा श्यामा पढ़ने में भी तेज थी. 12वीं कक्षा में उस ने 75 प्रतिशत अंक हासिल किए थे. उस के पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां आंगनवाड़ी में काम करती थी.

एक बार श्यामा दिव्या से मिलने उस की ससुराल बूंदी पहुंची तो उस की मुलाकात जीजा अभिषेक से हुई. चुलबुली और बला की खूबसूरत साली को देख कर अभिषेक की नीयत डोल गई. वहां कुछ दिनों रहने के बाद उस की अभिषेक से नजदीकियां बढ़ गईं और दोनों के बीच अवैध संबंध भी बन गए.

दिव्या ने पहले तो इसे महज जीजासाली का प्यार समझा, लेकिन बाद में उस ने अभिषेक और श्यामा को रंगेहाथों पकड़ लिया. इस के बाद घर के हालात बदलते देर नहीं लगी. श्यामा को ले कर अभिषेक के साथ उस का झगड़ा हुआ. आननफानन में दिव्या ने श्यामा के भाई को बुला कर श्यामा को उस के साथ उस के घर भेज दिया.

श्यामा के चले जाने के बाद भी अभिषेक और श्यामा के संबंधों में कमी नहीं आई. दोनों फोन पर देर तक लंबीलंबी बातें करते थे. बाद में अभिषेक उस से मिलने उस के गांव भी जाने लगा, जहां वह श्यामा के साथ अपने मन की मुराद पूरी कर लेता था. वहां कई दिन रुकने के बाद वह बूंदी लौट आता था. दिव्या और अभिषेक के बीच इस बात को ले कर रोजरोज दूरियां बढ़ने लगीं तो नौबत मारपीट तक जा पहुंची.

आखिरकार दिव्या ने पति की हरकतों से तंग आ कर बूंदी थाने में पति के खिलाफ मारपीट का मामला दर्ज करा दिया और अपने मायके जरवाड़ा चली गई. अभिषेक ने भी दिव्या के खिलाफ गहने चोरी करने का मामला दर्ज करा दिया और कोर्ट में उस से तलाक की अरजी डाल दी. अब वह श्यामा के साथ शादी कर के उसी के साथ जिंदगी गुजारना चाहता था. वह उस पर शादी करने का दबाव डालने लगा.

उधर श्यामा ने जब अपनी ममेरी बहन का घर उजड़ते देखा तो उसे होश आया. दूसरे अभिषेक उस से उम्र में 10-12 साल बड़ा था. वह उस से किसी भी कीमत पर शादी नहीं करना चाहती थी. इसलिए उस ने अभिषेक से कहा कि वह उस से शादी नहीं करेगी, क्योंकि इस से उस की बहन का घर उजड़ जाएगा. लेकिन अभिषेक किसी भी हाल में उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं था. वह श्यामा पर शादी करने का दबाव बनाने लगा. अभिषेक की इन हरकतों से श्यामा तंग आ गई और अभिषेक से पीछा छुड़ाने के बारे में वह सोचने लगी.

श्यामा का एक और प्रेमी था नावेद. नावेद उस के गांव का ही लड़का था, जिस के साथ पिछले 4-5 सालों से उस के गहरे संबंध थे. अभिषेक की हत्या से 15 दिन पहले श्यामा ने नावेद की मदद से अभिषेक से पीछा छुड़ाने की योजना तैयार की. नावेद भी चाहता था कि श्यामा के संबंध उस के सिवा किसी और लड़के से न हों.

28 अगस्त, 2019 को योजनानुसार श्यामा ने अभिषेक के मोबाइल पर फोन कर उसे मिलने के लिए अपने गांव बौंली बुलाया. साथ ही कहा कि आज उस का बर्थडे है. वह उस के लिए खाना बना कर लाएगी और दोनों कहीं एकांत जगह पर चलेंगे. वहीं जा कर हम दोनों साथसाथ खाना खाएंगे. फिर वहीं रात भर मौजमस्ती करेंगे.

यह सुन कर अभिषेक उस से मिलने के लिए तैयार हो गया. उस दिन शाम 7 बजे वह अपनी बहन शीतल से यह कह कर निकला कि वह ड्यूटी पर जा रहा है. लेकिन वह पुलिस लाइन में ड्यूटी पर न जा कर बूंदी से करीब 136 किलोमीटर दूर साली के गांव बौंली पहुंच गया.

उस के बौंली पहुंचने के बाद श्यामा ने अपने प्रेमी नावेद को फोन कर के विजयगढ़ किले के धीरावती महल में पहुंचने के लिए कहा और खुद अभिषेक की मोटरसाइकिल पर बैठ कर किले की तरफ रवाना हो गई.

वहां पहुंच कर श्यामा अभिषेक को अपने हाथों से खाना खिलाने लगी. उस खंडहर में जाने पर अभिषेक को भी कुछ शक हो रहा था. लेकिन कमांडो ट्रेनिंग कर चुका अभिषेक बहुत सतर्क था. वह बारबार इधरउधर देख रहा था.

आड़ में छिपा नावेद अभिषेक पर हमला करने का मौका देख रहा था, लेकिन उस पर हमला करने से उसे भी डर लग रहा था. उस के हाथ इसलिए कांप रहे थे कि यदि उस का निशाना सही नहीं पड़ा तो अभिषेक उस पर भारी पड़ सकता है.

आखिर हिम्मत जुटा कर नावेद दबेपांव अभिषेक के पीछे पहुंचा और अभिषेक के सिर पर लोहे की पाइप से भरपूर प्रहार कर दिया. सिर पर वार होते ही अभिषेक वहीं लुढ़क गया.

इस के बाद श्यामा और नावेद दोनों ने मिल कर गला घोंट कर उस की हत्या कर दी. फिर उस की लाश को नंगा कर पहले से खोदे गए धीरावती महल के गड्ढे में डाल कर उस के ऊपर मिट्टी और कांटेदार झाडि़यां डाल दीं.

अभिषेक की लाश दफनाने के बाद नावेद श्यामा को उस की मोटरसाइकिल पर बिठा कर लौट आया. उस ने श्यामा को उस के गांव के बाहर छोड़ दिया. फिर मोटरसाइकिल काफी दूर ले जा कर एक सुनसान कुएं में डाल दी. इस के बाद वह घर चला गया. मामला शांत हो जाने के बाद वह श्यामा से शादी कर अपनी दुनिया बसाना चाहता था.

अभिषेक की हत्या को 4 महीने हो चुके थे. श्यामा और नावेद समझ रहे थे कि पुलिस उन दोनों तक नहीं पहुंच पाएगी, लेकिन एएसपी हरनाम सिंह के निर्देशन में बूंदी थाने की पुलिस कड़ी से कड़ी जोड़ते हुए मामले की तह तक पहुंच गई और 18 दिसंबर, 2019 को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

आरोपी श्यामा और उस के प्रेमी नावेद से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें कोर्ट में पेश कर 3 दिन के पुलिस रिमांड पर ले लिया. इस दौरान पुलिस उन की निशानदेही पर कांस्टेबल अभिषेक शर्मा की लाश तक पहुंची, जो कंकाल में बदल चुकी थी. पुलिस ने अभिषेक का कंकाल विजयगढ़ किले के खंडहर हो चुके धीरावती महल से बरामद कर लिया. जबकि उस की मोटरसाइकिल वहां से कुछ दूरी पर एक वीरान कुएं में मिली.

नावेद की निशानदेही पर अभिषेक शर्मा के रक्तरंजित कपड़े एक तालाब से बरामद किए गए. घटना के बाद उस के कपड़े नावेद ने एक पौलीथिन में भर कर फेंक दिए थे.

रिमांड अवधि पूरी होने के बाद कोर्ट के आदेश पर अभिषेक शर्मा हत्याकांड की आरोपी श्यामा शर्मा को नारी सुधारगृह और नावेद को जेल भेज दिया गया. जिस समय अभिषेक की हत्या हुई थी, उस समय श्यामा के 18 साल पूरे होने में केवल 6 दिन बाकी थे, इसलिए कोर्ट ने उसे नाबालिग माना. हालांकि 18 दिसंबर को जब उसे गिरफ्तार किया गया तो वह बालिग हो चुकी थी. बहरहाल, कुछ भी हो, कत्ल करने का दाग उस के दामन पर लग ही गया है.

 

प्यार के भंवर में-भाग 3 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

राममिलन की जब शादी तय हुई थी, तब सुनीता मायके गई हुई थी. वह वहां से वापस आई तब उसे मालूम पड़ा कि देवर की शादी तय हो गई है. उस ने इस बाबत राममिलन से पूछा तो उस ने जवाब दिया कि उस से पूछ कर शादी तय नहीं की गई है. शादी के संबंध में वह कुछ भी नहीं बता सकता. लेकिन सुनीता को शक हुआ कि शादी के लिए राममिलन की रजामंदी है

सुनीता अब अपने भविष्य को ले कर चिंतित रहने लगी. वह सोचती, ‘‘कल को राममिलन की शादी हो जाएगी, तो वह उसे दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल फेंकेगा. वह अपनी रातें तो नईनवेली दुलहन के साथ रंगीन करेगा और वह पूरी रात करवट बदलते बिताएगी.’’

सुनीता जितना सोचती, उतना ही उसे अपना जीवन अंधकारमय लगता. इसी उलझन में सुनीता ने राममिलन से हंसनाबोलना बंद कर दिया. वह उस के प्रणय निवेदन को भी ठुकराने लगी. राममिलन उसे मनाने की कोशिश करता, लेकिन वह उस की कोई बात नहीं सुनती.

सुनीता में आए आकस्मिक परिवर्तन से राममिलन परेशान हो उठा. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह भाभी को कैसे मनाए. एक रोज जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूछा, ‘‘भाभी, मुझ से ऐसी क्या खता हो गई, जो मुझ से नाराज हो. पहले तो तुम खूब हंसती थी, खूब बोलती थी. समर्पण को सदैव तैयार रहती थी. लेकिन अब दूर भागती हो. हंसनाबोलना भी गायब हो गया है. हमेशा चेहरे पर उदासी छाई रहती है. आखिर बात क्या है?’’

‘‘यह तुम अपने आप से पूछो देवरजी, तुम ने मेरे साथ जीनेमरने का वादा किया था. क्या वह वादा तुम शादी करने के बाद निभा सकोगे. शादी के बाद तुम दुलहन के पल्लू में बंध जाओगे और मुझे भूल जाओगे. यही सोच कर मैं उदास रहती हूं. तुम से दूर भागने का भी यही कारण है.’’ सुनीता बोली.

‘‘भाभी, मैं आज भी तुम्हारा हूं और कल भी रहूंगा. साथ जीनेमरने का वादा भी मैं नहीं भूला हूं. रही बात शादी की, तो वह मैं अपनी मरजी से नहीं कर रहा हूं. शादी तो मांबाप ने अपनी मरजी से तय कर दी है.’’
‘‘जो भी हो देवरजी, मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती और घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे. इसलिए हमेंतुम्हें एकदूसरे से किया गया वादा निभाना होगा.’’

‘‘हम वादा निभाने को तैयार हैं.’’ कहते हुए राममिलन ने सुनीता को अपनी बांहों में समेट लिया. उस के बाद उन दोनों ने एक साथ आत्महत्या करने का निश्चय किया. फिर वह समय का इंतजार करने लगे.
30 नवंबर, 2020 को शिवबरन की रिश्तेदारी में असोथर कस्बा में शादी थी. इसी शादी में सम्मिलित होेने के लिए शिवबरन अपने बड़े बेटे हरिओम के साथ शाम 6 बजे घर से निकल गया.

खाना खाने के बाद गेंदावती पोते हर्ष (3 वर्ष) के साथ कमरे में जा कर लेट गई. घर पर काम निपटाने के बाद सुनीता भी अपनी मासूम बेटी क्रांति के साथ कमरे में जा कर लेट गई. लेकिन उस की आंखों से नींद ओेझल थी.

रात लगभग 11 बजे राममिलन, सुनीता के कमरे में आ गया. उन दोनों के बीच बातचीत शुरू हुई. बातचीत के दौरान सुनीता ने कहा, ‘‘देवरजी, अपनी जीवनलीला समाप्त करने का आज सही समय है. तुम मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘तुम्हारे बिना मेरे जीवित रहने का मकसद ही क्या है. अत: मैं भी तुम्हारे साथ ही अपना जीवन समाप्त करूंगा.’’ इस के बाद सुनीता और राममिलन ने छत के कुंडे में साड़ी को बांधा और साड़ी के दोनों सिरों को फांसी का फंदा बनाया. फिर एकएक सिरा गले में डाल कर फांसी के फंदे पर झूल गए. कुछ देर बाद ही दोनों की गरदन लटक गई.

पहली दिसंबर, 2020 की सुबह करीब 7 बजे गेंदावती जागीं तो उन्हें मासूम बच्ची क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह सुनीता के कमरे पर पहुंचीं, तो कमरे का दरवाजा अंदर से बंद था. तब उन्होंने दरवाजे की कुंडी खटखटाई और आवाज दी, ‘‘बहू, दरवाजा खोलो, बच्ची रो रही है. क्या घोड़े बेच कर सो रही हो?’’ पर अंदर से कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. वह राममिलन के कमरे में पहुंची तो वह कमरे में नहीं था.

अब गेंदावती का माथा ठनका. उन के मन में तरहतरह के कुविचार आने लगे. इसी घबराहट में वह सुनीता की चचेरी जेठानी रूपाली को बुला लाई. उस ने भी दरवाजा थपथपाया और आवाज लगाई पर अंदर से कोई हलचल नहीं हुई. शोरशराबा सुन कर पासपड़ोस के लोग भी आ गए.

उसी समय शिवबरन व उस का बेटा हरिओम भी असोथर से आ गए. उन दोनों ने अपने दरवाजे पर भीड़ देखी तो घबरा गए. गेंदावती ने पति व बेटे को बताया कि सुनीता दरवाजा नहीं खोल रही है. राममिलन भी कमरे में नहीं है.

शिवबरन व हरिओम ने भी दरवाजा खुलवाने का प्रयास किया, लेकिन जब दरवाजा नहीं खुला तो दोनों ने कमरे का दरवाजा तोड़ दिया और कमरे के अंदर प्रवेश किया.

कमरे के अंदर का दृश्य बड़ा ही वीभत्स था. पंखे के हुक से साड़ी का फंदा बंधा था. साड़ी के एक छोर पर सुनीता तथा दूसरे छोर पर राममिलन का शव लटक रहा था. सुनीता का चेहरा राममिलन की छाती पर था. सुनीता का एक पैर चारपाई के नीचे लटक रहा था तथा दूसरा पैर चारपाई को छू रहा था.

देवरभाभी द्वारा आत्महत्या करने की खबर लमेहटा गांव में फैल गई. सैकड़ों लोग घटनास्थल पर आ पहुंचे. इसी बीच किसी ने थाना गाजीपुर पुलिस को सूचना दे दी. सूचना पाते ही थानाप्रभारी कमलेश पाल पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर आ गए. उन्होंने पुलिस अधिकारियों को सूचित किया तो एसपी सतपाल, एएसपी राजेश कुमार तथा सीओ संजय कुमार शर्मा आ गए.

पुलिस अधिकारियों ने फोरैंसिक टीम को भी मौके पर बुलवा लिया. पुलिस अधिकारियों ने घटनास्थल का बारीकी से निरीक्षण किया तथा मृतक व मृतका के घर वालों से पूछताछ की. फोरैंसिक टीम ने भी जांच कर साक्ष्य जुटाए. निरीक्षण व पूछताछ के बाद पुलिस ने दोनों शवों को फांसी के फंदे से नीचे उतरवाया. फिर दोनों शवों को पोस्टमार्टम हेतु जिला अस्पताल फतेहपुर भिजवा दिया.

मृतक के पिता शिवबरन निषाद की तहरीर पर गाजीपुर पुलिस ने भादंवि की धारा 309 के तहत सुनीता और राममिलन के खिलाफ मुकदमा तो दर्ज किया, लेकिन दोनों की मौत हो जाने से पुलिस ने इस मामले की फाइल बंद कर दी.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

प्यार के भंवर में-भाग 2 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद होश दुरुस्त हुए, तो सुनीता ने राममिलन की ओर देख कर कहा, ‘‘देवरजी, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो. लेकिन हमारे बीच रिश्तों की दीवार है. अब मैं इस दीवार को तोड़ना चाहती हूं. तुम मुझे बस यह बताओ कि हमारे इस रिश्ते का अंजाम क्या होगा?’’

‘‘भाभी मैं तुम्हें कभी धोखा नहीं दूंगा. तुम अपना बनाओगी तो तुम्हारा ही बन कर रहूंगा. मैं वादा करता हूं कि आज के बाद हम साथ ही जिएंगे और साथ ही मरेंगे.’’ कह कर राममिलन ने सुनीता को बांहों में भर लिया.

ऐसे ही कसमोंवादों के बीच कब संकोच की सारी दीवारें टूट गईं, दोनों को पता ही न चला. उस दिन के बाद राममिलन और सुनीता बिस्तर पर जम कर सामाजिक रिश्तों और मानमर्यादाओं की धज्जियां उड़ाने लगे. वासना की आग ने उन के इन रिश्तों को जला कर खाक कर दिया था.

सुनीता से शारीरिक सुख पा कर राममिलन निहाल हो उठा. सुनीता को भी उस से ऐसा सुख मिला था, जो उसे पति से कभी नहीं मिला था. राममिलन अपनी भाभी के प्यार में इतना अंधा हो गया था कि उसे दिन या रात में जब भी मौका मिलता, वह सुनीता से मिलन कर लेता. सुनीता भी देवर के पौरुष की दीवानी थी. उन के मिलन की किसी को कानोंकान खबर नहीं थी.

कहते हैं वासना का खेल कितनी भी सावधानी से खेला जाए, एक न एक दिन भांडा फूट ही जाता है. ऐसा ही सुनीता और राममिलन के साथ भी हुआ. एक रात पड़ोस में रहने वाली चचेरी जेठानी रूपाली ने चांदनी रात में आंगन में रंगरलियां मना रहे राममिलन और सुनीता को देख लिया. इस के बाद तो देवरभाभी के अवैध रिश्तों की चर्चा पूरे गांव में होने लगी.

हरिओम को जब देवरभाभी के नाजायज रिश्तोें की जानकारी हुई तो उस का माथा ठनका. उस ने इस बाबत सुनीता से बात की तो उस ने नाजायज रिश्तों की बात सिरे से खारिज कर दी. उस ने कहा राममिलन सगा देवर है. उस से हंसबोल लेती हूं. पड़ोसी इस का मतलब गलत निकालते हैं. उन्होंने ही तुम्हारे कान भरे हैं.

हरिओम ने उस समय तो पत्नी की बात मान ली, लेकिन मन में शक पैदा हो गया. इसलिए वह चुपकेचुपके पत्नी पर नजर रखने लगा. परिणामस्वरूप एक रात हरिओम ने सुनीता और राममिलन को रंगरलियां मनाते रंगेहाथों पकड़ लिया. हरिओम ने दोनों की पिटाई की और संबंध तोड़ने की चेतावनी दी.

लेकिन इस चेतावनी का असर न तो सुनीता पर पड़ा और न ही राममिलन पर. हां, इतना जरूर हुआ कि अब वे सतर्कता बरतने लगे. जिस दिन हरिओम, सुनीता को राममिलन से हंसतेबतियाते देख लेता, उस दिन शराब पी कर सुनीता को पीटता और राममिलन को भी गालियां देता. उस ने गांव के मुखिया से भी भाई की शिकायत की. साथ ही राममिलन को भी कहा कि वह घर न तोड़े.

उन्हीं दिनों हरिओम को बांदा जाना पड़ा. क्योंकि उस के ठेकेदार को सड़क निर्माण का ठेका मिला था. चूंकि हरिओम जेसीबी चालक था, सो उसे भी वहीं काम करना था. जाने से पहले वह अपनी मां व पिता को सतर्क कर गया था कि वह सुनीता व राममिलन पर नजर रखें.

सास गेंदावती सुनीता पर नजर तो रखती थी, लेकिन देवर की दीवानी सुनीता सास की आंखों में धूल झोंक कर देवर से मिल कर लेती थी. हरिओम मोबाइल फोन पर मां से बात कर घर का हालचाल लेता रहता था.
वह सुनीता से भी बात करता था और उसे मर्यादा में रहने की हिदायत देता रहता था. लेकिन सुनीता पति की बातों को कोई तवज्जो नहीं देती थी. वह तो देवर के रंग मे पूरी तरह रंगी थी.

एक रात आधी रात को गेंदावती की नींद खुली तो उसे सुनीता की बेटी मासूम क्रांति के रोने की आवाज सुनाई दी. वह उठ कर कमरे में पहुंची तो सुनीता अपने बिस्तर पर नहीं थी.

सास गेंदावती को समझते देर नहीं लगी कि बहू राममिलन के कमरे में होगी. वह दबे पांव राममिलन के कमरे में पहुंची, वहां सुनीता उस के बिस्तर पर थी. उस रात गेंदावती के सब्र का बांध टूट गया. उस ने दोनों की चप्पल से पिटाई की और खूब फटकार लगाई. रंगेहाथ पकड़े जाने से दोनों ने माफी मांग ली.

लगभग एक सप्ताह बाद हरिओम बांदा से घर आया तो गेंदावती ने बहू को रंगेहाथ पकड़ने की बात बेटे को बताई. तब हरिओम ने सुनीता की खूब पिटाई की, राममिलन को भी खूब डांटा फटकारा और समझाया भी. उस ने दोनों को धमकाया भी कि यदि वे न सुधरे तो अंजाम अच्छा न होगा.

लेकिन सुनीता और राममिलन प्यार के भंवर में इतनी गहराई तक समा चुके थे, जहां से बाहर निकलना उन के लिए नामुमकिन था. अत: दोनों ने हरिओम की धमकी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया. उन्हें जब भी मौका मिलता था, शारीरिक मिलन कर लेते थे.

सुनीता और राममिलन के नाजायज रिश्तों ने पूरे घर को चिंता में डाल दिया था. वे इस समस्या से निजात पाने के लिए उपाय खोजने लगे थे. एक रोज गेंदावती ने अपने पति शिवबरन व बेटे हरिओम के साथ बैठ कर मंत्रणा की. फिर तय हुआ कि समस्या से निजात पाने के लिए राममिलन की शादी कर दी जाए. शादी हो जाएगी तो समस्या भी हल हो जाएगी.

शिवबरन निषाद अब राममिलन के लिए गुपचुप तरीके से लड़की की खोज करने लगा. कई माह की दौड़धूप के बाद शिवबरन को असोधर कस्बे में राम सुमेर निषाद की बेटी कमला पसंद आ गई. कमला सांवले रंग की थी. लेकिन शिवबरन व उस की पत्नी गेंदावती ने उसे पसंद कर लिया था.
फिर आननफानन में उन्होंने रिश्ता तय कर दिया. इस रिश्ते के लिए राममिलन ने न ‘हां’ की और न ही इनकार किया. बारात जाने की तारीख तय हुई मई 2021 की 7 तारीख.

प्यार के भंवर में-भाग 1 : देवर भाभी ने क्यों की आत्महत्या

उत्तर प्रदेश के जिला बांदा का एक गांव है-बदौली. रसपाल इसी गांव में रहता था. उस के परिवार में पत्नी चंद्रकली के अलावा एक बेटा भानुप्रताप तथा बेटी सुनीता थी. रसपाल खेती किसानी के साथसाथ ट्यूबवैल मरम्मत का काम करता था. इस से उसे अतिरिक्त आमदनी हो जाती थी.

कुल मिला कर उस का परिवार खुशहाल था. रसपाल ने अपनी बेटी सुनीता का विवाह सन 2016 में हरिओम के साथ कर दिया था. हरिओम के पिता शिवबरन, फतेहपुर जिले के गांव लमेहटा के रहने वाले थे. उन के परिवार में पत्नी गेंदावती के अलावा 2 बेटे हरिओम व राममिलन थे. हरिओम जेसीबी चालक था, जबकि राममिलन पिता के कृषि कार्य में हाथ बंटाता था.

एक तरह से सुनीता और हरिओम की शादी बेमेल थी. हरिओम उम्र में तो बड़ा था, साथ ही वह सांवले रंग का भी था. जबकि सुनीता सुंदर थी और चंचल भी. इस के बावजूद उस के घरवालों ने हरिओम को पसंद कर लिया था. इस की वजह यह थी कि हरिओम जेसीबी चला कर अच्छा पैसा कमाता था.

हरिओम जहां सुनीता को पा कर खुश था, वहीं सुनीता उम्रदराज और सांवले रंग के पति को पा कर जरा भी खुश नहीं थी. शादी से पहले उस के मन में पति को ले कर जो सपने थे, वे चकनाचूर हो गए थे.
शादी के एक साल बाद सुनीता ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम हर्ष रखा. इस के बाद एक बेटी का जन्म हुआ. 2 बच्चों की किलकारियों से सुनीता का घरआंगन गूंजने लगा.

सुनीता की अपने देवर राममिलन से खूब पटती थी. इस की वजह यह थी कि एक तो वह हमउम्र था, दूसरे सुनीता, राममिलन के बात व्यववहार से काफी प्रभावित थी. वह अपने देवर का हर तरह से खयाल रखती थी.

इसी वजह से राममिलन सुनीता के आकर्षण में बंध कर उस के नजदीक आने की कोशिश करने लगा. यही नहीं, वह उस की खूब तारीफ करता और उसे प्रभावित करने के लिए कभीकभार वह उस के लिए कोई उपहार भी ले आता.

हरिओम ड्राइवर था, सो पक्का शराबी था. अकसर वह झूमता हुआ घर वापस आता. वह कभी थोड़ाबहुत खाना खा कर तो कभी बिना खाए ही सो जाता था. सुनीता 2 बच्चों की मां जरूर थी, लेकिन अभी उस में पति का साथ पाने की प्रबल इच्छा थी. लेकिन हरिओम तो बिस्तर पर लेटते ही खर्राटे भरने लगता था. तब सुनीता मन मसोस कर रह जाती थी.

आखिर पति से जब उसे शारीरिक सुख मिलना बंद हुआ तो उस ने विकल्प की खोज शुरू कर दी.
सुनीता स्वभाव से मिलनसार थी. राममिलन भाभी के प्रति सम्मोहित था. जब दोनों साथ चाय पीने बैठते, तब सुनीता उस से खुल कर हंसीमजाक करती. सुनीता का यह व्यवहार धीरेधीरे राममिलन को ऐसा बांधने लगा कि उस के मन में भाभी सुनीता का सौंदर्य रस पीने की कामना जागने लगी.

एक दिन राममिलन खाना खाने बैठा, तो सुनीता थाली ले कर आई और जानबूझ कर गिराए गए आंचल को ढंकते हुए बोली, ‘‘लो देवरजी, खाना खा लो, आज मैं ने तुम्हारी पसंद का खाना बनाया है.’’
राममिलन को भाभी की यह अदा बहुत अच्छी लगी. वह उस का हाथ पकड़ कर बोला, ‘‘भाभी, तुम भी अपनी थाली परोस लो, साथ खाने में मजा आएगा.’’

सुनीता अपने लिए भी खाना ले आई. खाना खाते समय दोनों के बीच बातों का सिलसिला जुड़ा तो राममिलन बोला, ‘‘भाभी, तुम सुंदर व सरल स्वभाव की हो, लेकिन भैया ने तुम्हारी कद्र नहीं की. मुझे पता है, वह अपनी कमजोरी की खीझ तुम पर उतारते हैं. लेकिन मैं तुम्हें प्यार करता हूं.’’

यह कह कर राममिलन ने सुनीता की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सच में सुनीता पति से संतुष्ट नहीं थी. उसे न तो पति से प्यार मिल रहा था और न ही शारीरिक सुख, जिस से उस का मन विद्रोह कर उठा. उस का मन बेईमान हो चुका था. आखिर उस ने फैसला कर लिया कि अब वह असंतुष्ट नहीं रहेगी. चाहे इस के लिए उसे रिश्तों को तारतार क्यों न करना पड़े.

औरत जब जानबूझ कर बरबादी की राह पर कदम रखती है, तो उसे रोक पाना मुश्किल होता है. यही सुनीता के साथ हुआ. सुनीता जवान भी थी और पति से असंतुष्ट भी, अत: उस ने देवर राममिलन के साथ नाजायज रिश्ता बनाने का निश्चय कर लिया.

राममिलन वैसे भी सुनीता का दीवाना था. देवर राममिलन गबरू जवान था, दूसरे कुंवारा था. उस पर दिल आते ही सुनीता उसे अपने प्यार के भंवर में फंसाने की कोशिश करने लगी. भाभीदेवर के रिश्ते की आड़ में सुनीता राममिलन से ऐसेऐसे मजाक करने लगी कि राममिलन के शरीर में सिहरन सी होने लगी. जल्दी ही उस का मन स्त्री सुख के लिए बेचैन होने लगा.

एक शाम सुनीता बनसंवर कर बिस्तर पर लेटी थी, तभी राममिलन आ गया. वह उस की खूबसूरती को निहारने लगा. सुनीता को राममिलन की आंखों की भाषा पढ़ने में देर नहीं लगी. सुनीता ने उसे करीब बैठा लिया और उस का हाथ सहलाने लगी. राममिलन के शरीर में हलचल मचने लगी.

नरमुंड का रहस्य-भाग 3 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

इस तरह टिंकू की हत्या से 4 लोगों को फायदा हो रहा था. पहला फायदा बबलू को था, क्योंकि उस की पत्नी से उस के अवैध संबंध थे. दूसरा फायदा छंगा को था, जिस ने 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या की बात तय कर के 2 लाख रुपए में अपने भतीजे को कौन्ट्रैक्ट दे दिया था. तीसरा फायदा शबाबुल को था, जिसे टिंकू की हत्या पर 2 लाख रुपए छंगा से मिलने थे और 2 लाख नरमुंड देने पर फरीद से मिलने थे. चौथा और सब से बड़ा फायदा गुलाब नबी और सालिम को था, क्योंकि उन्हें दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम से नरमुंड पहुंचाने पर 20 लाख रुपए मिलने थे और उन्होंने 2 लाख में शबाबुल से बात कर ली थी. उन्हें 18 लाख रुपए बच रहे थे.

इस के बाद बबलू टिंकू की हर गतिविधि पर नजर रखने लगा. उसे कहीं से पता चल गया था कि 9 सितंबर की रात टिंकू अपने खेत में पानी लगाने जाएगा. यह बात उस ने छंगा को बता दी. छंगा ने शबाबुल को सूचित कर दिया. पूरी योजना बना कर छंगा, शबाबुल, फरीद, गुलाब नबी और बबलू टिंकू के खेत के पास पहुंच गए. रास्ते में उन्होंने ठेके से शराब खरीदी. बबलू के अलावा उन सब ने खेत के किनारे बैठ कर शराब पी. योजना के अनुसार उन्होंने बबलू के हाथ बांघ कर वहीं बैठा दिया.

9 सितंबर, 2017 की शाम को खाना खाने के बाद यादराम ने अपने दोनों बेटों लक्ष्मण और ओमकार को खेत में पानी लगाने को कहा. क्योंकि उस दिन उन का तीसरा बेटा टिंकू डीसीएम गाड़ी में तोरई भर कर दिल्ली की आजादपुर मंडी गया था. लक्ष्मण और ओमकार अपने चचेरे भाई शिवम को भी साथ ले गए थे. वे अपने साथ टौर्च भी ले गए थे.

जब वे खेत पर पहुंचे तो उन्हें वहां 4 बदमाश मिले और बबलू उन के पास बैठा था. उस के हाथ पीछे की ओर बंधे थे. बदमाशों ने धमकी दे कर उन तीनों को भी बांध दिया. बबलू ने देखा कि उन तीनों में टिंकू नहीं है तो वह चौंका, क्योंकि उसी की हत्या के लिए तो उस ने यह ड्रामा रचा था. बदमाशों ने बबलू के साथ मंत्रणा की. बबलू ने जब देखा कि खेल बिगड़ रहा है तो उस ने बदमाशों को बता दिया कि इन में से जो बीच में है, उसी का काम तमाम कर दिया जाए. बीच में लक्ष्मण था.

इस के बाद एक बदमाश ने लक्ष्मण के हाथ खोल दिए और 3 लोग शबाबुल, फरीद और गुलाम नबी लक्ष्मण को अंधेरे में अपने साथ ले गए. छंगा राइफल लिए बाकी के पास खड़ा रहा. करीब 5 मिनट बाद वे लक्ष्मण को ले कर वापस आ गए. उन्होंने बबलू से फिर बात की और कहा कि लड़का अच्छा है. बबलू ने उन से कहा कि कोई बात नहीं, इसी का काम कर दो. तब शबाबुल, फरीद व गुलाम नबी लक्ष्मण को फिर जंगल में ले गए.

तीनों ने लक्ष्मण को जमीन पर गिरा दिया. लक्ष्मण जान पर खेल कर उन से भिड़ गया. पर वह अकेला तीनों का मुकाबला नहीं कर सका. लिहाजा बदमाशों ने उसे फिर नीचे गिरा दिया. वह उठ न सके, इस के लिए फरीद ने उस के पैर पकड़े और गुलाम नबी ने सिर के बाल पकड़ लिए. तभी शबाबुल ने फरसे से एक ही वार में उस का सिर धड़ से अलग कर दिया. लक्ष्मण चिल्ला भी न सका. उस का सिर कलम कर के वे उन बंधकों के पास आ कर बोले, ‘‘काम हो गया.’’

यह काम करने में उन्हें केवल 20 मिनट लगे थे. इस के बाद वे बंधकों को उलटा लिटा कर उन के ऊपर चादर डाल कर चले गए. वह चादर ओमकार अपने साथ घर से लाया था. शबाबुल ने लक्ष्मण का सिर गुलाम नबी तांत्रिक के हवाले कर दिया. गुलाम नबी ने कैमिकल का लेप लगा कर उस के सिर को डींगरपुर के जंगल में एक बेर के पेड़ के नीचे दबा दिया था.

करीब आधे घंटे बाद ओमकार, बबलू और शिवम ने किसी तरह खुद को खोला और तेजी से गांव की तरफ भागे. उन के शोर मचाने पर गांव वाले जंगल की तरफ बदमाशों की तलाश में निकले. जंगल में लक्ष्मण की लाश मिलने पर बबलू ने ही कुंदरकी पुलिस को फोन कर के सूचना दी थी.

इतनी बड़ी घटना को अंजाम देने के बाद भी बबलू लक्ष्मण की अंतिम क्रिया तक में साथ रहा. सभी कर्मकांडों में उस ने अपना सहयोग दिया. लक्ष्मण की चिता के फूल चुनने के समय भी वह उस के घर वालों के साथ था.

गिरफ्तार किए गए अभियुक्तों से पूछताछ कर पुलिस ने उन की निशानदेही पर फरसा भी बरामद कर लिया. अभियुक्तों की निशानदेही पर पुलिस ने 2 अन्य अभियुक्तों इमरतपुर ऊधौ के राशिद और सालिम को भी गिरफ्तार कर लिया था. सालिम पूर्व ग्रामप्रधान था. इन सभी से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

फरार अभियुक्तों की तलाश में पुलिस ने कई स्थानों पर दबिशें डालीं, पर पुलिस को सफलता नहीं मिल सकी. इसी बीच अभियुक्त छंगा उर्फ अकबर ने 12 अक्तूबर, 2017 को मुरादाबाद की कोर्ट में आत्मसमर्पण कर दिया. पुलिस ने कोर्ट में दरख्वास्त दे कर छंगा को पुलिस रिमांड पर लिया और पूछताछ कर के जेल भेज दिया था.

इस के अलावा पुलिस सीलमपुर दिल्ली के तांत्रिक महफूज आलम को भी तलाश रही थी, जिस ने 20 लाख रुपए में नरमुंड लाने की बात डींगरपुर के तांत्रिक गुलाम नबी से तय की थी. महफूज की गिरफ्तारी के बाद ही यह पता चल सकेगा कि तांत्रिक 20 लाख रुपए में उस कटे हुए सिर को खरीद कर क्या करता? पुलिस जब तांत्रिक के दिल्ली ठिकाने पर पहुंची तो वह फरार मिला. लोगों ने बताया कि महफूज तांत्रिक के पास देश के अलगअलग राज्यों से ही नहीं, बल्कि अरब के शेख भी आते थे.

इस से पुलिस को शक है कि कहीं तांत्रिक ने इस से पहले तो नरमुंड के लिए किसी की हत्या तो नहीं कराई थी. बहरहाल, पुलिस फरार अभियुक्तों की तलाश कर रही है.

नरमुंड का रहस्य-भाग 2 : पत्नी का खतरनाक अवैध संबंध

सर्विलांस से पकड़े गए लक्ष्मण के हत्यारे

पुलिस का पहला काम लक्ष्मण का सिर ढूंढना था. अपने स्तर से वह सिर तलाश रही थी. पीडि़त परिवार के दबाव में पुलिस बबलू को जब थाने बुलाती, कोई न कोई राजनैतिक रसूख वाला उस की हिमायत में थाने पहुंच जाता. पुलिस ने उस से सख्ती से भी पूछताछ की, पर रोरो कर वह खुद को निर्दोष बताता रहा.

इस के बाद उसे इस हिदायत के साथ छोड़ दिया गया कि वह गांव में ही रहेगा और जब भी जरूरत पड़ेगी, उसे थाने आना पड़ेगा. बबलू ने पूरे गांव व पुलिस से कहा था, ‘‘अगर लक्ष्मण की हत्या में मेरा हाथ पाया जाए तो मुझे सरेआम फांसी पर लटका देना. यह बात सभी जानते हैं कि मैं ने इस परिवार की कितनी मदद की है.’’

पुलिस ने बबलू का फोन सर्विलांस पर लगा रखा था. पिछले एक महीने में उस ने जिनजिन नंबरों पर बात की थी, वे सभी सर्विलांस पर थे. जांच में पता चला कि घटना से पहले बबलू के मोबाइल पर छंगा उर्फ अकबर, निवासी इमरतपुर ऊधौ, थाना मैनाठेर से बात हुई थी. पुलिस ने मुखबिर के द्वारा छंगा के बारे में पता कराया तो जानकारी मिली कि वह घर पर नहीं है.

इस हत्याकांड को 27 दिन हो चुके थे, परंतु लक्ष्मण का सिर नहीं मिला था. पुलिस की हिदायत की वजह से बबलू सतर्क था. वह कहीं आताजाता भी नहीं था.

6 अक्तूबर, 2017 को बबलू ने किसी से फोन पर कहा कि वह गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बगीचे में आ जाए, वहीं बात करेंगे. यह बात सर्विलांस टीम को पता चल गई. थानाप्रभारी ने मुखबिर से गांव के बाहर की अमरूद की बाग के बारे में पूछा और उस पर नजर रखने को कहा.

मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने गांव शिमलाठेर के बाहर अमरूद के बाग में दबिश दे कर वहां से बबलू के अलावा 3 अन्य लोगों को हिरासत में ले लिया, जबकि 3 लोग भाग गए. हिरासत में लिए गए लोगों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम शबाबुल निवासी इमरतपुर ऊधौ, फरीद निवासी लालपुर गंगवारी और गुलाम नबी निवासी डींगरपुर बताया.

उन्होंने बताया कि फरार होने वाले छंगा उर्फ अकबर, राशिद निवासी इमरतपुर ऊधौ और पिंटू उर्फ बिंटू निवासी दौलतपुर थे. उन सभी से पुलिस ने सख्ती से पूछताछ की तो न सिर्फ उन्होंने लक्ष्मण की हत्या का अपराध स्वीकार किया, बल्कि उन की निशानदेही पर एक जगह गड्ढे में दबाया हुआ लक्ष्मण का सिर भी बरामद कर लिया. उस पर उन्होंने ऐसा कैमिकल लगा रखा था, जिस से वह करीब एक महीने तक जमीन में दबा रहने के बावजूद खराब नहीं हुआ था. लक्ष्मण की हत्या की उन्होंने जो कहानी बताई, वह चौंकाने वाली थी.

उत्तर प्रदेश के जनपद मुरादाबाद से कोई 18 किलोमीटर दूर है थाना कुंदरकी. इसी थाने के गांव शिमलाठेर में बबलू अपने परिवार के साथ रहता था. वह संपन्न आदमी था. उस के पास 4 ट्रैक्टर और 6 ट्रक हैं. वह टै्रक्टरों से खेतों की जुताई करता है और ट्रकों से मुरादाबाद के रेलवे माल गोदाम में आने वाले सीमेंट को अलगअलग गोदामों तक पहुंचवाता था. इस सब से उसे अच्छी कमाई हो रही थी.

लक्ष्मण का छोटा भाई टिंकू बबलू के ट्रक पर पल्लेदारी करता था. वह मेहनती और ईमानदार था. बबलू उस पर बहुत विश्वास करता था, जिस की वजह से उस का बबलू के घर भी आनाजाना था. बबलू अपने कामधंधे में व्यस्त रहता था, इसलिए बबलू की पत्नी कमलेश टिंकू से ही घर के सामान मंगाती थी. ऐसे में ही कमलेश के टिंकू से संबंध बन गए.

हालांकि दोनों की स्थिति में जमीनआसमान का अंतर था. कमलेश के सामने टिंकू की कोई औकात नहीं थी. इस के बावजूद कमलेश का टिंकू पर दिल आ गया था. शुरू में तो उन के संबंधों पर किसी को शक नहीं हुआ. लेकिन ऐसे संबंधों में कितनी भी सावधानी बरती जाए, देरसवेर उजागर हो ही जाते हैं. कमलेश और टिंकू के संबंधों की बात भी गांव में फैल गई.

3 लाख रुपए में टिंकू की मौत का सौदा

बबलू गांव का रसूखदार व्यक्ति था. टिंकू की वजह से उस की गांव में अच्छीखासी बदनामी हो रही थी. इसलिए उस ने तुरंत टिंकू को पल्लेदारी से हटा दिया. इस के बाद टिंकू का कमलेश के घर आनाजाना बंद हो गया. कमलेश किसी भी हाल में टिंकू को छोड़ना नहीं चाहती थी. लिहाजा फोन पर संपर्क कर के वह टिंकू को अपने खेतों पर बुला लेती. बबलू ने पत्नी को भी समझाया, पर वह नहीं मानी. इस पर बबलू ने टिंकू को ठिकाने लगवाने की ठान ली.

बबलू के गांव के नजदीक ही इमरतपुर ऊधौ गांव है. इसी गांव में अकबर उर्फ छंगा रहता था. वह वहां का माना हुआ बदमाश था. कई थानों में उस के खिलाफ दरजन भर मामले दर्ज थे. बबलू ने उस से बात कर 3 लाख रुपए में टिंकू की हत्या का सौदा कर डाला.

छंगा का एक भतीजा शबाबुल सुपारी किलर था. उस पर भी 10-12 केस चल रहे थे. छंगा ने शबाबुल से बात की. वह मुरादाबाद के जयंतीपुर में अपनी 2 बीवियों के साथ रहता था. उसे अपना मकान बनाने के लिए पैसों की जरूरत थी, इसलिए वह 2 लाख रुपए में टिंकू की हत्या करने को राजी हो गया.

चूंकि शबाबुल पेशेवर अपराधी था, इसलिए उसी बीच लालपुर गंगवारी के फरीद और डींगरपुर के गुलाम नबी ने शबाबुल से किसी नवयुवक के कटे हुए सिर की डिमांड की. इस के लिए उन्होंने शबाबुल को 2 लाख रुपए भी दे दिए. वह नरमुंड उन्हें सालिम के मार्फत दिल्ली के सीलमपुर में रहने वाले एक बड़े तांत्रिक महफूज आलम के पास पहुंचाना था. फरीद संपेरा और तांत्रिक है.

महफूज आलम ने नरमुंड पहुंचाने पर गुलाब नबी और सालिम को 20 लाख रुपए देने की बात कही थी. पर इन दोनों ने शबाबुल से 2 लाख रुपए में ही सौदा कर लिया था. तांत्रिक महफूज उस नरमुंड का क्या करता, यह किसी को पता नहीं था.

शबाबुल को दोहरा फायदा उठाने का मौका मिल गया था. उसे टिंकू की हत्या 2 लाख रुपए में करनी थी. उस का सिर काट कर गुलाम नबी को देना था यानी एक तीर से उस के 2 शिकार हो रहे थे.