MP News : साधना पटेल नहीं बन पाई बैंडिट क्वीन

MP News : पिछड़े तबके के बुद्धिविलास पटेल मध्य प्रदेश के विंघ्य इलाके के चित्रकूट के गांव बगहिया पुरवा के बाशिंदे थे. उन की 3 औलादों में साधना सब से बड़ी थी. हालांकि साधना पढ़ाईलिखाई में होशियार थी, लेकिन उस की ख्वाहिश जिंदगी में कुछ ऐसा करने की थी, जिस से लोग उसे याद रखें.

जिस उम्र में लड़कियां कौपीकिताबें सीने से लगाए शोहदों से बचती जमीन में आंखें धंसाए स्कूल जा रही होती थीं, उस उम्र में साधना अपने किसी बौयफ्रैंड के साथ जंगल में कहीं मौजमस्ती कर रही होती थी. जाहिर है कि बहुत कम उम्र में ही वह रास्ता भटक बैठी थी तो इस के जिम्मेदार पिता बुद्धिविलास भी थे, जिन के घर आएदिन डाकुओं का आनाजाना लगा रहता था. नामी और इनामी डाकू चुन्नी पटेल का तो उन से इतना याराना था कि जिस दिन वह घर आता था, तो तबीयत से दारू, मुरगा की पार्टी होती थी.

चुन्नी पटेल को साधना चाचा कह कर बुलाती थी और अकसर उस की उंगलियां बंदूक से खेला करती थीं. साधना की हरकतें देख चुन्नी पटेल अकसर कहा करता था कि एक दिन यह लड़की पुतलीबाई से भी बड़ी डाकू बनेगी. ऐसा हुआ भी और उजागर 18 नवंबर, 2019 को हुआ, जब सतना पुलिस ने 50,000 इनामी की इस दस्यु सुंदरी, जिसे ‘जंगल की शेरनी’ भी कहा जाता था, को कडियन मोड़ के जंगल से गिरफ्तार कर लिया.

ऐसे बनी डाकू

एक मामूली से घर की बला की खूबसूरत दिखने व लगने वाली साधना पटेल के डाकू बनने की कहानी भी उस की जिंदगी की तरह कम दिलचस्प नहीं. कम उम्र में ही साधना पटेल को सैक्स का चसका लग गया था, जिस से पिता बुद्धिविलास परेशान रहने लगे थे. बेटी को रास्ते पर लाने के लिए उन्होंने उसे अपनी बहन के घर भागड़ा गांव भेज दिया, लेकिन इस से कोई फायदा नहीं हुआ. उलटे, वह यह जान कर हैरान हो उठी कि चुन्नी चाचा का आनाजाना यहां भी है और उन के उस की बूआ से नाजायज संबंध हैं. तब साधना को पहली बार सैक्स को ले कर मर्दों की कमजोरी सम झ आई थी.

लेकिन सैक्स की अपनी लत और कमजोरी से वह कोई सम झौता नहीं कर पाई. बूआ के यहां कोई रोकटोक नहीं थी, इसलिए उस के जिस्मानी ताल्लुकात एक ऐसे नौजवान से बन गए, जो उस का मुंहबोला भाई था. एक दिन बूआ ने हमबिस्तरी करते दोनों को रंगेहाथ पकड़ लिया, तो साधना घबरा उठी. साधना को डर था कि बूआ के कहने पर चुन्नीलाल उसे और उस के आशिक को मार डालेगा, इसलिए वह जान बचाने के लिए बीहड़ों में कूद पड़ी.

यह साल 2015 की बात है, जब उस की मुलाकात नामी डकैत नवल धोबी से हुई. नवल धोबी औरतों के मामले में बड़ा सख्त था. उस का मानना था कि औरतें डाकू गिरोहों की बरबादी की बड़ी वजह होती हैं, इसलिए वह गिरोह में उन्हें शामिल नहीं करता था. कमसिन साधना पटेल को देखते ही नवल धोबी का मन डोल उठा और अपने उसूल छोड़ते हुए उस ने साधना को न केवल गिरोह में, बल्कि जिंदगी में भी शामिल कर लिया. अब तक साधना कपड़ों की तरह आशिक बदलती रही थी, लेकिन नवल की हो जाने के बाद उस ने इसी बात में बेहतरी और भलाई सम झी कि अब कहीं और मुंह न मारा जाए. कुछ दिन बड़े इतमीनान और सुकून से कटे.

इसी दौरान साधना ने डकैती के कई गुर और सलीके से हथियार चलाना सीखा. नवल के साथ मिल कर उस ने कई वारदातों को अंजाम भी दिया. नवल के साथ साधना का नाम भी चल निकला, लेकिन एक दिन पुलिस ने नवल को कई साथियों समेत गिरफ्तार कर लिया, जिस से उस का गिरोह तितरबितर हो उठा. नवल की गिरफ्तारी साधना की बैंडिट क्वीन बन जाने की ख्वाहिश पूरी करने वाली साबित हुई.

साधना ने गिरोह के बाकी सदस्यों को ले कर अपना खुद का गिरोह बना डाला और बेखौफ हो कर वारदातों को अंजाम देने लगी. गिरोह के सभी सदस्य हालांकि उसे ‘साधना जीजी’ कहते थे, लेकिन कई मर्दों से वह सैक्स संबंध बनाती रही.

फिर आया एक मोड़

अपना खुद का गिरोह बनाने के शुरुआती दौर में साधना रंगदारी वसूलती थी, लेकिन यह भी उसे सम झ आ रहा था कि अगर नामी डाकू बनना है और खौफ बनाए रखना है तो जरूरी है कि किसी ऐसी वारदात को अंजाम दिया जाए जिस की चर्चा दूरदूर तक हो. इसी गरज से साल 2018 में साधना ने नयागांव थाने के तहत आने वाले पालदेव गांव के छोटकू सेन को अगवा कर लिया. छोटकू सेन से वह गड़े खजाने के बारे में पूछती रहती थी. लेकिन वह कुछ नहीं बता पाया तो साधना ने बेरहमी से उस की उंगलियां काट दीं.

साधना की गिरफ्त से छूट कर छोटकू ने उस के खिलाफ मामला दर्ज कराया तो इस कांड की चर्चा वाकई वैसी ही हुई जैसा कि वह चाहती थी. इस कांड के बाद साधना के नाम का सिक्का बीहड़ों में चल निकला और इसी दौरान उस की जिंदगी में पालदेव गांव का ही नौजवान छोटू पटेल आया. छोटू के पिता ने बेटे की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में लिखाते समय उस के अगवा हो जाने का अंदेशा जताया था.

कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि छोटू साधना का नया आशिक है और उसे अगवा नहीं किया गया है, बल्कि वह अपनी मरजी से साधना के साथ रह रहा है, तो पुलिस ने उसे भी डकैत घोषित कर उस के सिर 10,000 रुपए का इनाम रख दिया. छोटू 6 अगस्त, 2019 को गायब हुआ था, लेकिन हकीकत में इस के पहले भी वह साधना से मिला करता था और दोनों जंगल में रंगरलियां मनाते थे. बाद में छोटू गांव वापस लौट आता था.

सच जो भी हो, लेकिन यह तय है कि साधना वाकई छोटू से दिल लगा बैठी थी और उस की ख्वाहिश पूरी करने के लिए कभीकभी जींसशर्ट उतार कर साड़ी भी पहन लेती थी. छोटू भी उस पर जान देने लगा था, इसलिए उस के साथ रहने लगा था. सितंबर, 2019 में पुलिस ने नामी और 7 लाख रुपए के इनामी डाकू बबली कोल को उस के साथ व साले लवकेश को ऐनकाउंटर में मार गिराया तो राज्य में खासी हलचल मची थी. बबली कोल गिरोह के दबदबे और चर्चों के चलते साधना को कोई भाव नहीं देता था. अब तक हालांकि उस के खिलाफ आधा दर्जन मामले दर्ज हो चुके थे, लेकिन बबली के कारनामों के सामने वे कुछ भी नहीं थे.

बहरहाल, बबली कोल की मौत के बाद विंध्य के बीहड़ों में 21 साला साधना का एकछत्र राज हो गया, लेकिन जिस फुरती से पुलिस डाकुओं का सफाया कर रही थी, उस से घबराई साधना पटेल को अंडरग्राउंड हो जाना ही बेहतर लगा. छोटू के साथ वह  झांसी और दिल्ली में रही और पूरी तरह घरेलू औरत बन कर रही. हालांकि यह जिंदगी वह 4 महीने ही जी पाई. बड़े शहरों के खर्चे भी ज्यादा होते हैं, लिहाजा जब पैसों की तंगी होने लगी, तो उस ने फिर वारदात की योजना बनाई और बीहड़ लौट आई.

पुलिस को मुखबिरों के जरीए जब यह बात मालूम हुई तो उस ने जाल बिछा कर 17 नवंबर, 2019 को उसे गिरफ्तार कर लिया. उत्तर प्रदेश में भी साधना पटेल कई वारदातों को अंजाम दे चुकी थी, लेकिन वहां किसी थाने में उस के खिलाफ किसी ने मामला दर्ज नहीं कराया था. इस के बाद भी पुलिस ने उस पर 30,000 रुपए के इनाम का ऐलान किया था.

अब साधना पटेल जेल में बैठी मुकदमोें की सुनवाई और सजा के इंतजार में काट रही है, लेकिन उस की कहानी बताती है कि उस के डाकू बनने में सब से बड़ी गलती तो उस के पिता की ही है, जिन की मौत के बाद साधना बेलगाम हो गई थी.

Bihar Crime News : मौत का सौदागर – लालच ने बनाया हत्यारा

Bihar Crime News : 25नंवबर, 2020 को देव दिवाली का त्यौहार होने के कारण एक ओर जहां रतलाम के लोग अपने आंगन में गन्ने से बने मंडप तले शालिग्राम और तुलसी का विवाह उत्सव मना रहे थेवहीं दूसरी ओर शहर भर के बच्चे दीवाली की बची आतिशबाजी खत्म करने में लगे थे. चारों तरफ धूमधड़ाके का माहौल था. लेकिन इस से अलग औद्योगिक थाना इलाके में कब्रिस्तान के पास बसे राजीव नगर में युवक बेवजह ही सड़क पर यहां से वहां चक्कर लगाते हुए कालोनी के एक तिमंजिला मकान पर नजर लगाए हुए थे.

 

यह मकान गोविंद सेन का था. लगभग 50 वर्षीय गोविंद सेन का स्टेशन रोड पर अपना सैलून था. उन का रिश्ता ऐसे परिवार से रहा जिस के पास काफी पुश्तैनी संपत्ति थी. पारिवारिक बंटवारे में मिली बड़ी संपत्ति के कारण उन्होंने राजीव नगर में यह आलीशान मकान बनवा लिया था. इस की पहली मंजिल पर वह स्वयं 45 वर्षीय पत्नी शारदा और 21 साल की बेटी दिव्या के साथ रहते थे. जबकि बाकी मंजिलों पर किराएदार रहते थे. उन की एक बड़ी बेटी भी थीजिस की शादी हो चुकी थी.

इस परिवार के बारे में आसपास के लोग जितना जानते थेउस के हिसाब से गोविंद सिंह की पत्नी घर पर अवैध शराब बेचने का काम करती थी. जबकि उन की बेटी को खुले विचारों वाली माना जाता था. लोगों का मानना था कि दिव्या एक ऐसी लड़की है जो जवानी में ही दुनिया जीत लेना चाहती थी. उस की कई युवकों से दोस्ती की बात भी लोगों ने देखीसुनी थी. पिता के सैलून चले जाने के बाद वह दिन भर घर में अकेली रहती थी. मां शारदा और बेटी दिव्या से मिलने आने वालों की कतार लगी रहती थी. मोहल्ले वाले यह सब देख कर कानाफूसी करने के बाद हमें क्या करना’ कह कर अनदेखी करते देते थे.

25 नवंबर की रात जब चारों ओर देव दिवाली की धूम मची हुई थी. राजीव नगर की इस गली मे घूम रहे युवक कोई साढे़ बजे के आसपास गोविंद के घर के सामने से गुजरे और सीढ़ी चढ़ कर ऊपर चले गए. सामने के मकान से देख रहे युवक ने जानबूझ कर इस बात पर खास ध्यान नहीं दिया. जबकि उन का चौथा साथी गोविंद के घर जाने के बजाय कुछ दूरी पर जा कर खड़ा हो गया. रात कोई सवा बजे थकाहारा गोविंद दूध की थैली लिए घर लौटा. गोविंद सीढि़यां चढ़ कर ऊपर पहुंच गया. इस के कुछ देर बाद वे तीनों युवक उन के घर से निकल कर नीचे आ गए.

जिस पड़ोसी ने उन्हें ऊपर जाते देखा थासंयोग से उस ने तीनों को वापस उतरते भी देखा तो यह सोच कर उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई कि घर लौटने पर उन युवकों को अपने घर में मौजूद देख कर गोविंद सेन की मन:स्थिति क्या रही होगी. तीनों युवकों ने नीचे खड़ी दिव्या की एक्टिवा स्कूटी में चाबी लगाने की कोशिश कीलेकिन संभवत: वे गलत चाबी ले आए थे. इसलिए उन में से एक वापस ऊपर जा कर दूसरी चाबी ले आयाजिस के बाद वे दिव्या की एक्टिवा पर बैठ कर चले गए.

26 नवंबर की सुबह के बजे रतलाम में रोज की तरह सड़कों पर आवाजाही शुरू हो गई थी. लेकिन गोविंद सेन के घर में अभी भी सन्नाटा पसरा हुआ था. कुछ देर में उन के मकान में किराए पर रहने वाली युवती ज्वालिका अपने कमरे से बाहर निकल कर दिव्या के घर की तरफ गई. दिव्या की हमउम्र ज्वालिका एक प्राइवेट अस्पताल में नौकरी करती थी. गोविंद की बेटी भी एक निजी कालेज से बीएससी की पढ़ाई के साथ नर्सिंग का कोर्स कर रही थी. महामारी के कारण आजकल क्लासेस बंद थींइसलिए वह अपनी बड़ी बहन की कंपनी में नौकरी करने लगी थी.

ज्वालिका और दिव्या एक ही एक्टिवा इस्तेमाल करती थीं. जब जिस को जरूरत होतीवही एक्टिवा ले जाती. लेकिन इस की चाबी हमेशा गोविंद के घर में रहती थी. सो काम पर जाने के लिए एक्टिवा की चाबी लेने के लिए ज्वालिका जैसे ही गोविंद के घर में दाखिल हुईचीखते हुए वापस बाहर आ गई. उस की चीख सुन कर दूसरे किराएदार भी बाहर आ गए. उन्हें पता चला कि गोविंद के घर के अंदर गोविंदउस की पत्नी और बेटी की लाशें पड़ी हैं. घबराए लोगों ने यह खबर नगर थाना टीआई रेवल सिंह बरडे को दे दी.

कुछ ही देर में वह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए और मामले की गंभीरता को देखते हुए इस तिहरे हत्याकांड की खबर तुरंत एसपी गौरव तिवारी को दी. कुछ ही देर में एसपी गौरव तिवारी एएसपी सुनील पाटीदारएफएसएल अधिकारी अतुल मित्तल एवं एसपी के निर्देश पर माणकचौक के थानाप्रभारी अयूब खान भी मौके पर पहुंच गए. तिहरे हत्याकांड की खबर पूरे रतलाम में फैल गईजिस से मौके पर जमा भारी भीड़ जमा हो गई. मौकाएवारदात की जांच में एसपी गौरव तिवारी ने पाया कि शारदा का शव बिस्तर पर पड़ा थाजिस के सिर में गोली लगी थी.

उन की बेटी दिव्या की लाश किचन के बाहर दरवाजे पर पड़ी थी. दिव्या के हाथ में आटा लगा हुआ था और आधे मांडे हुए आटे की परात किचन में पड़ी हुई थी. इस से साफ हुआ कि पहले बिस्तर पर लेटी हुई शारदा की हत्या हुई होगी. गोली की आवाज सुन कर दिव्या बाहर आई होगी तो हत्यारों ने उसे भी गोली मार दी होगी. गोविंद की लाश दरवाजे के पास पड़ी थीइस का मतलब उस की हत्या सब से बाद में हुई थी. उन के पैरों में जूते थे और हाथ में दूध की थैली.

पुलिस ने अनुमान लगाया कि हत्यारे हत्या करने के बाद भागना चाहते होंगेलेकिन भागते समय ही गोविंद घर लौट आएजिस से उन की भी हत्या कर दी गई होगी. पड़ोसियों ने गोविंद को बजे घर आते देखा था. उस के बाद लोगों को घर से बाहर जाते देखा. इस से यह साफ हो गया कि शारदा और दिव्या की हत्या बजे के पहले की गई होगी. जबकि गोविंद की हत्या बजे हुई होगी. पुलिस ने जांच शुरू की तो गोविंद सेन के परिवार के बारे में जो जानकरी निकल कर सामने आईउस से पुलिस को शक हुआ कि हत्याएं प्रेम प्रसंग या अवैध संबंध को ले कर की गई होंगी.

लेकिन गोविंद के एक रिश्तेदार ने इस बात को पूरी तरह गलत करार देते हुए बताया कि गोविंद ने कुछ ही समय पहले 30 लाख रुपए में गांव की अपनी जमीन बेची थी. दूसरा घटना के दिन ही शारदा और दिव्या ने डेढ़ लाख रुपए की ज्वैलरी की खरीदारी की थीजो घर में नहीं मिली. इस कारण पुलिस लूट के एंगल से भी जांच करने में जुट गई. चूंकि मौके पर संघर्ष के निशान नहीं थे और हत्यारे गोविंद की बेटी की एक्टिवा भी साथ ले गए थे. इस से यह साफ हो गया कि वे जो भी रहे होंगेपरिवार के परिचित रहे होंगे और उन्हें गाड़ी की चाबी रखने की जगह भी मालूम थी.

हत्यारों ने वारदात का दिन देव दिवाली का सोचसमझ कर चुना. इसलिए आतिशबाजी के शोर में किसी ने भी पड़ोस में चलने वाली गोलियों की आवाज पर ध्यान नहीं दिया था. मामला गंभीर था इसलिए आईजी राकेश गुप्ता ने मौके का निरीक्षण करने के बाद हत्यारों की गिरफ्तारी पर 30 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा कर दी.

वहीं एसीपी गौरव तिवारी ने 10 थानों के टीआई और लगभग 60 पुलिसकर्मियों की एक टीम गठित कर दीजिस की कमान  थानाप्रभारी अयूब खान को सौंपी गई. इस टीम ने इलाके के पूरे सीसीटीवी कैमरे खंगालेइस के अलावा घटना के समय राजीव नगर में स्थित मोबाइल टावर के क्षेत्र में सक्रिय 70 हजार से अधिक फोन नंबरों की जांच शुरू की.

दिव्या को एक बोल्ड लड़की के रूप में जाना जाता था. उस की कई लड़कों से दोस्ती थी. कुछ दिन पहले उस ने एक अलबम मैनूं छोड़ के…’ में काम किया था. इस अलबम में भी उस की एक दुर्घटना में मौत हो जाती है. पुलिस ने उस के साथ काम करने वाले युवक अभिजीत बैरागी से भी पूछताछ की लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. घटना वाले दिन से ले कर चंद रोज पहले तक दिव्या ने जिन युवकों से फोन पर बात की थीउन सभी से पुलिस ने पूछताछ की. गोविंद सेन की एक्टिवा देवनारायण नगर में लावारिस खड़ी मिली. तब पुलिस ने वहां भी चारों ओर लगे सीसीटीवी कैमरों के फुटेज जमा कर हत्यारों का पता लगाने की कोशिश शुरू की.

जिस में दोनों जगहों के फुटेज से संदिग्ध युवकों की पहचान कर ली गईजिन्हें घटना से पहले इलाके में पैदल घूमते देखा गया था. और बाद में वही युवक दिव्या की एक्टिवा पर जाते हुए सीसीटीवी कैमरे में कैद हुए. जाहिर है हर बड़ी घटना के आरोपी भले ही कितनी भी दूर क्यों न भाग जाएंवे घटना वाले शहर में पुलिस क्या कर रही है. इस बात की जानकारी जरूर रखते हैंयह बात एसपी गौरव तिवारी जानते थे. इसलिए उन्होंने जानबूझ कर जांच के दौरान मिले महत्त्वपूर्ण सुराग को मीडिया के सामने नहीं रखा था.

दरअसलजब पुलिस सीसीटीवी के माध्यम से हत्यारों के भागने के रूट का पीछा कर रही थी तभी देवनारायण नगर में आ कर दोनों संदिग्धों ने दिव्या की एक्टिवा छोड़ दी थी. वहां पहले से एक युवक स्कूटर ले कर खड़ा थाजिसे ले कर वे वहां से चले गए. जबकि स्कूटर वाला युवक पैदल ही वहां से गया था. इस से एसपी को शक था कि तीसरा युवक स्थानीय हो सकता हैजो आसपास ही रहता होगा. बात सही थीवह अनुराग परमार उर्फ बौबी थाजो विनोबा नगर में रहता था.

इंदौर से बीटेक करने के बाद भी उस के पास कोई काम नहीं था. वह इस घटना में शामिल था और पुलिस की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था. इसलिए जब उसे पता चला कि पुलिस को उस का कोई फुटेज नहीं मिला तो वह लापरवाही से घर से बाहर घूमने लगा. जिस के चलते नजर गड़ा कर बैठी पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर पूछताछ की. उस से मिली जानकारी के दिन बाद ही पुलिस ने दाहोद (गुजरात) से लाला देवल निवासी खरेड़ी गोहदा और वहीं से रेलवे कालोनी रतलाम निवासी गोलू उर्फ गौरव को गिरफ्तार कर लिया. उन से पता चला कि पूरी घटना का मास्टरमांइड दिलीप देवले हैजो खरेड़ी गोहद का रहने वाला है.

यही नहीं पूछताछ में यह भी साफ हो गया कि जून 20 में दिलीप देवल ने ही अपने ताऊ के बेटे सुनीत उर्फ सुमीत चौहान निवासी गांधीनगररतलाम और हिम्मत सिंह देवल निवासी देवनारायण के साथ मिल कर डा. प्रेमकुंवर की हत्या की थी. जिस से पुलिस ने सुनीत और हिम्मत को भी गिरफ्तार कर लिया. इन से पता चला कि तीनों हत्याएं लूट के इरादे से की गई थीं. दिलीप के बारे में पता चला कि वह रतलाम में ही छिप कर बैठा है. पुलिस को यह भी पता चला कि वह मिडटाउन कालोनी में किराए के मकान में रह रहा है. और पुलिस तथा सीसीटीवी कैमरे से बचने के लिए पीछे की तरफ टूटी बाउंड्री से आताजाता है.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस ने पीछे की तरफ खाचरौद रोड पर उसे घेरने की योजना बनाईजिस के चलते दिसंबर, 2020 को वह पुलिस को दिख गया. पुलिस टीम ने उसे ललकारा तो दिलीप ने पुलिस पर गोलियां चलानी शुरू कर दींजवाबी काररवाई में पुलिस ने भी गोलियां चलाईं. कुछ ही देर में मास्टरमाइंड दिलीप मारा गया. इस प्रकार असंभव से लगने वाले तिहरे हत्याकांड के सभी आरोपियों को पुलिस ने महज दिन में सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. इस में टीम प्रभारी अयूब खान और एसआई सहित पुलिसकर्मी भी घायल हुए.

लौकडाउन में घर में सैलून चलाना महंगा पड़ा गोविंद को गोविंद सेन पिछले 22 साल से स्टेशन रोड पर सैलून चलाते थे. लौकडाउन के दौरान वह चोरीछिपे अपने घर बुला कर लोगों की कटिंग करते रहे. दिलीप भी उन से कटिंग करवाने घर जाया करता था. जहां उस ने गोविंद की अमीरी देख कर उन्हें शिकार बनाने की योजना बनाई थी. दिलीप के साथियों ने बताया कि शारदा और दिव्या की हत्या करने की योजना तो वे पहले से ही बना कर आए थे. लेकिन अंतिम समय में गोविंद भी अपनी दुकान से लौट कर आ गए थे. इसलिए उन की भी हत्या करनी पड़ी. आरोपियों ने बताया कि उस के घर से उन्हें 30 लाख रुपए मिलने की उम्मीद थी. लेकिन उन्हें केवल 20 हजार नकद और कुछ जेवर ही मिले थे.

दिलीप अपने कारनामों का कोई सबूत नहीं छोड़ना चाहता था. इसलिए लूट के दौरान सामने वाले की सीधे हत्या कर देता था. दिलीप अब तक एक ही तरीके से हत्याएं कर चुका थाइसलिए पुलिस उसे साइकोकिलर मानती थी. दिलीप के साथियों का कहना था कि पुलिस से बचने के लिए हत्या तो करनी ही पड़ेगी मर्डर इज मस्ट. Bihar Crime News

Short love Story in Hindi : प्यार का ऐसा अंजाम तो सपने में भी नहीं सोचा

Short love Story in Hindi : सोशल मीडिया पर जहां मी टू जैसे कैंपेन चल रहे हैं, वहीं एक मौडल को इस की कीमत अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी. वजह, फेसबुक फ्रैंड ने ही मौडल बनने आई कुलीग के साथ ऐसी हरकत कर डाली कि उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. मलाड (पश्चिम) में माइंडस्पेस के पास झाड़ियों के बीच ट्रैवल बैग में 20 साल की मौडल की लाश मिलने से हड़कंप मच गया. बैग के अंदर एक महिला की लाश थी जिस के सिर पर चोट थी. उस के शव को कुशन और बेडशीट से कवर किया हुआ था.

हालांकि सीसीटीवी फुटेज में एक कार दिखी है जिस के अंदर बैठे एक शख्स ने सड़क किनारे सूटकेस फेंका था. इसी के आधार पर पुलिस ने आरोपी की पहचान की और उसे उस की बिल्डिंग से पकड़ लिया गया. आरोपी की पहचान 20 साला मुजम्मिल सईद के रूप में हुई. आरोपी सेकंड ईयर का छात्र है. वह मिल्लत नगर अंधेरी (पश्चिम) में रहता था. वहीं मृतका का नाम मानसी दीक्षित है जो राजस्थान से मुंबई मौडल बनने का सपना ले कर आई थी.

पुलिस के मुताबिक, मानसी राजस्थान के कोटा शहर की रहने वाली थी, आरोपी मुजम्मिल सईद हैदराबाद का रहने वाला है. मानसी आरोपी से इंटरनेट के जरीए मिली थी. दोनों ने अंधेरी स्थित आरोपी के फ्लैट में मुलाकात की थी. दोपहर में दोनों के बीच किसी बात पर बहस हो गई, जिस के बाद मुजम्मिल सईद ने गुस्से में मानसी को किसी चीज से सिर पर मारा जिस से उस की मौत हो गई.

घटना को अंजाम देने के बाद सईद ने मानसी के शव को बैग में भरा और अंधेरी से मलाड तक एक प्राइवेट कैब बुक की. इस के बाद उस ने मलाड के माइंडस्पेस के पास झाड़ियों में बैग को फेंक दिया और वहां से फरार हो गया. पुलिस को इस घटना की जानकारी कैब ड्राइवर ने दी. कैब ड्राइवर ने सईद को झाड़ियों में बैग फेंक कर आटोरिक्शा में फरार होते देखा था. पुलिस ने तुंरत मौके पर पहुंच कर मामले की जांच शुरू की और मानसी का शव बरामद कर लिया.

मुजम्मिल ने बताया कि हादसे के दौरान मानसी उस के फ्लैट में थी. उस ने गुस्से में मानसी के सिर पर स्टूल मार दिया जिस से अनजाने में मानसी की मौत हो गई. आरोपी ने हत्या की बात कबूल कर ली है.

Honey Trap : खिलाड़ियों का शिकार

Honey Trap : विनोद दीक्षित उस मीटिंग में जाने की तैयारी कर रहे थे, तभी उन के पास 32-33 साल का एक युवक शिकायत ले कर आया. उस ने टीआई साहब को शिकायती पत्र दिया. उसे पढ़ कर टीआई विनोद दीक्षित चौंके. क्योंकि मामला हनीट्रैप का था. हनीट्रैप का एक मामला वैसे भी पूरे प्रदेश में हलचल मचाए हुए था. यह मामला भी कहीं चर्चित न हो जाए, इसलिए टीआई ने उस युवक की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए यह सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी.

एसएसपी के आदेश पर टीआई ने शिकायतकर्ता राजेश गहलोत की तहरीर पर आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा कर इस की जांच एसआई दिलीप देवड़ा को सौंप दी. एसआई दिलीप देवड़ा ने जब राजेश सोलंकी ने बताया कि इंदौर की द्वारिकापुरी सोसाइटी निवासी दुर्गेश सेन और उस की लिवइन पार्टनर गायत्री सिसोदिया ने पहले उसे धोखे से अपने देहजाल में फंसाया और फिर चोरीछिपे उस की अश्लील वीडियो बना ली.

उसी वीडियो से ब्लैकमेल कर के वह उस से 45 हजार रुपए वसूल चुके हैं. लेकिन इस के बाद भी उन की पैसों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. राजेश गहलोत ने ब्लैकमेल करने के कुछ सबूत भी जांच अधिकारी को सौंपे. एसआई दिलीप देवड़ा ने सबूतों का अध्ययन कर के राजेश गहलोत से बात करने के बाद सारी जानकारी टीआई विनोद दीक्षित व सीएसपी पुनीत गहलोत को दे दी. इस के बाद उन्होंने नामजद आरोपियों को गिरफ्तार करने की योजना बनानी शुरू कर दी. अगले दिन पुलिस टीम ने द्वारिकापुरी सोसाइटी से दुर्गेश को गिरफ्तार कर लिया. तलाशी में दुर्गेश के पास एक भरा हुआ पिस्तौल ओर 3 जिंदा कारतूस भी मिले.

दुर्गेश से पूछताछ की गई तो उस ने खुद को निर्दोष बताया. इतना ही नहीं उस ने राजेश गहलोत को पहचानने से भी इनकार कर दिया. लेकिन जब एसआई देवड़ा ने गहलोत द्वारा उपलब्ध कराए सबूत उस के सामने रखे तो दुर्गेश की बोलती बंद हो गई. अब उस के बोलने की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी. लिहाजा उसे सच्चाई बताने के लिए मजबूर होना पड़ा. एसआई देवड़ा ने उस से जानकारी ले कर तत्काल जवाहर नगर देवास में दबिश दी और गायत्री सिसोदिया को भी गिरफ्तार कर लिया. गायत्री ने भी नाटकबाजी करते हुए राजेश गहलोत को पहचानने से इनकार कर दिया.

जांच अधिकारी ने गायत्री सिसोदिया का मोबाइल जब्त कर उस की जांच की तो राजेश के साथ ही नहीं बल्कि कई अन्य युवकों के साथ भी उस की अश्लील वीडियो मिलीं. इस से साफ हो गया कि गायत्री दुर्गेश के साथ मिल कर पैसे वाले युवकों को अपने जिस्म के जाल में फंसा कर उन्हें ब्लैकमेल करने का काम कर रही थी. चूंकि उन के खिलाफ सुबूत मिल चुके थे और उन्होंने अपना अपराध भी स्वीकार कर लिया था, इसलिए पुलिस ने दोनों को अदालत में पेश कर दुर्गेश को रिमांड पर ले लिया जबकि कोर्ट के आदेश पर गायत्री को जेल भेज दिया गया. इस के बाद हनीट्रैप की जो कहानी सामने आई, इस प्रकार थी—

मध्य प्रदेश के जनपद देवास के रहने वाले राजेश गहलोत का टूव्हीलर

शोरूम था. जिस मोहल्ले में राजेश रहते थे, उसी मोहल्ले में दुर्गेश नाम का एक शख्स रहता था जो एक निजी कंपनी की बस में ड्राइवर था. दुर्गेश चालाक इंसान था. उस ने नरसिंहपुर में रहने वाली गायत्री नाम की युवती से अच्छी दोस्ती कर ली थी. यह दोस्ती उन्हें अवैध संबंधों तक ले गई. दरअसल गायत्री इंदौर के एक कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. वह अकसर दुर्गेश की बस से कालेज जाती थी. उसी समय उन दोनों की दोस्ती हो गई थी. बाद में दुर्गेश उस की आर्थिक मदद भी करने लगा था. उन के संबंध इतने गहरे हो गए थे कि दुर्गेश ने द्वारिकापुरी में किराए पर एक फ्लैट ले लिया और उस के साथ लिव इन रिलेशन में रहने लगा.

इस के पीछे गायत्री की यह सोच थी कि उसे पढ़ाई का खर्च तो घर से मिलता रहेगा, बाकी ऐश के लिए दुर्गेश उस का खर्च उठाएगा. लेकिन एक बस ड्राइवर अपनी प्रेमिका पर कितना खर्च कर सकता था. सो जल्द ही गायत्री को लगने लगा कि ऐश करने के लिए उसे ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा. इस बीच उस ने देखा कि उस के कालेज की कई लड़कियां जो बाहर के शहरों से पढ़ने के लिए इंदौर में आ कर अकेली रहती हैं, अपने ऊपरी खर्च निकालने के लिए एक साथ कई लड़कों को अपना प्रेमी बनाए हुए हैं.

लेकिन उन में और गायत्री में अंतर था. दूसरी लड़कियों को रोकटोक करने वाला कोई नहीं था, जबकि दुर्गेश गायत्री पर नजर रखता था. इसलिए काफी सोचसमझ कर गायत्री ने एक दिन दुर्गेश को जल्द अमीर होने की योजना बताई. उस ने कहा कि क्यों न वे युवकों को हनीट्रैप में फंसा कर उन से मोटी कमाई करें. दुर्गेश को गायत्री की यह योजना पसंद आ गई. दुर्गेश खुद भी गायत्री के साथ यही कर रहा था. वह उसे अन्य युवकों के साथ सुलाने के लिए तैयार हो गया. इस योजना में दुर्गेश ने अपने दोस्त राकेश सोलंकी को भी शामिल कर लिया.

गायत्री ने सब से पहले युवकों को फंसाने की शुरुआत अपने कालेज से की. वहां से वह युवकों को अपने जाल में फंसा कर कमरे पर लाती, जहां दुर्गेश चोरीछिपे उन की अश्लील फिल्म बनाने के बाद गायत्री और राकेश की मदद से ब्लैकमेल करता. लेकिन जल्द ही इन दोनें की समझ में आ गया कि कालेज बौय को फंसाने में 10-15 हजार से ज्यादा की रकम नहीं मिल पाती. इसलिए वह मालदार आसानी को शिकार बनाने की फिराक में रहने लगे. इस बीच गायत्री ने कालेज में ऐसी लड़कियां तलाश कर लीं, जिन की न केवल कई युवकों से दोस्ती थी बल्कि किसी भी युवक के साथ एकदो दिन के लिए इंदौर से बाहर घूमने के लिए जाने को तैयार रहती थीं.

गायत्री ने ऐसी लड़कियों से दोस्ती कर एक वाट्सऐप ग्रुप बना कर सब को साथ जोड़ लिया. इस के बाद उस ने इन में से काम की कुछ लड़कियों का चयन कर उन्हें अपने सांचे में ढाल लिया. इस काम में दुर्गेश भी उस की मदद कर रहा था. अब उस के ग्रुप की लड़कियां किसी मालदार युवक को अपने रूपजाल में फंसा कर गायत्री के कमरे में लातीं जहां गायत्री और दुर्गेश मिल कर युवती के साथ युवक का अश्लील वीडियो बनाने के बाद उस से बड़ी रकम झटक लेते. इस काम के लिए गायत्री के गिरोह की लड़कियों ने कई कोड वर्ड भी तैयार कर लिए थे. जैसे कि लड़की बोलती कि एक फोटो फ्रेम कर ली है तो इस का मतलब होता था कि एक युवक जाल में फंस चुका है.

जांच में सामने आया कि गायत्री राकेश और दुर्गेश ने कई युवकों को इस तरह से ब्लैकमेल कर उन से बड़ी रकम लूटी. पुलिस ने गायत्री के वाट्सऐप ग्रुप से जुड़ी कुछ लड़कियों के भी बयान दर्ज किए, जिन में उन्होंने स्वीकार किया कि गायत्री उन से लड़कों को फंसा कर अपने घर पर लाने का दबाव डालती थी लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया था.

देवास निवासी राजेश गहलोत गायत्री के जाल में कैसे फंसा इस की कहानी भी काफी रोचक है. हुआ यह कि राजेश को देवास स्थित अपने टूव्हीलर शोरूम पर एकाउंट का काम संभालने के लिए किसी स्मार्ट लड़की की जरूरत थी. इस बारे में राजेश ने दुर्गेश की मौजूदगी में अपने दोस्त से बात की तो दुर्गेश का दिमाग चल गया. राजेश के पास काफी पैसा है यह बात दुर्गेश जानता था.

उस ने सोचा कि अगर गायत्री से राजेश को मिलवा दिया जाए तो लाखों रुपए हाथ आ जाएंगे, यह सोच कर उस ने राजेश से कहा, ‘‘इंदौर में मेरी परिचित एक युवती है. स्मार्ट भी है उसे काम की जरूरत है. तुम कहो तो इंटरव्यू के लिए मैं उसे बुला देता हूं. अगर समझ में आए तो देख लेना. मुझे लगता है कि वो काफी सुलझी हुई लड़की है, जो तुम्हारा सारा शोरूम संभाल सकती है.’’

‘‘ठीक है, उसे 2 दिन बाद बुला लो, क्योंकि कल मुझे एक जरूरी काम से इंदौर जाना है.’’ राजेश बोले.

‘‘ठीक है न, वो इंदौर में ही रहती है. तुम कहो तो वहीं तुम्हारी मुलाकात उस से करवा दूंगा.’’ दुर्गेश ने राजेश से कहा तो राजेश इस के लिए तैयार हो गया.

दूसरे दिन दुर्गेश अपनी ड्यूटी पर नहीं गया और इंदौर में बैठ कर गायत्री के साथ राजेश को सांचे में उतारने की तैयारी में जुट गया. राजेश चूंकि दुर्गेश की नजर में काफी मोटी आसामी था, इसलिए राजेश से मिलने से पहले उस ने गायत्री को ब्यूटीपार्लर भेज कर तैयार करवाया. इस के बाद उस ने राजेश को फोन लगाया. राजेश ने कहा कि अभी वह व्यस्त है. उस ने युवती को 2 दिन बाद देवास भेजने को कह दिया. लेकिन जब दुर्गेश ने उस पर दबाव डाला तो वह काम से फ्री होने के बाद युवती का इंटरव्यू लेने को राजी हो गया. फिर शाम के समय दुर्गेश राजेश को ले कर गायत्री के पास आ गया. राजेश को गायत्री के साथ फ्लैट में छोड़ कर वह किसी काम के बहाने वहां से चला गया.

राजेश ने सजीधजी गायत्री को देखा तो वह उसे कहीं से भी नौकरी की तलबगार नहीं लगी. उस ने गायत्री से पूछा, ‘‘आप ने इस के पहले कहीं काम किया है?’’

‘‘जी नहीं, आप पहले हैं, जिन के साथ मैं काम करूंगी.’’ गायत्री ने मुसकरा कर जवाब दिया.

ऐसा कहते हुए गायत्री ने ‘काम’ शब्द पर जिस तरह जोर दिया उस से राजेश को लगने लगा कि गायत्री का इरादा ठीक नहीं है. एक बार तो राजेश का मन हुआ कि वहां से उठ कर चला जाए लेकिन फिर उसे लगा कि शायद उस का ऐसा सोचना गलत है. संभव है कि लड़की का वह मतलब न हो, जो वह समझ रहा है. जबकि गायत्री का मतलब सचमुच वही था. यह बात उस की समझ में तब आई जब कुछ देर बाद गायत्री के साथ उस के कपड़े भी कमरे के फर्श पर पड़े थे.

कमरे में आया सांसों का तूफान थम चुका था. ऐसा कर के राजेश खुद को शर्मिंदा महसूस कर रहा था इसलिए अपनी शर्म छिपाने के लिए उस ने गायत्री से कहा, ‘‘ठीक है, तुम पहली तारीख से काम पर आ जाना.’’

इस के बाद दोनों अपनेअपने घर चले गए. इस के 2 दिन बाद गायत्री राजेश के शोरूम पर आई. राजेश ने नजरें चुराते हुए उसे काम समझाया. लेकिन गायत्री बोली, ‘‘लेकिन अब मुझे काम की कोई जरूरत ही नहीं है.’’

‘‘क्यों’’ राजेश ने चौंकते हुए पूछा.

‘‘क्योंकि आप मुझे जितना वेतन साल दो साल में देते वो तो अब आप मुझे ऐसे ही 2 मिनट में दे देंगे.’’ गायत्री ने गरदन टेढ़ी कर कहा.

‘‘यह देखिए हमारे प्यार की फिल्म.’’  कहते हुए गायत्री ने उसे वह वीडियो दिखा दी जो उस ने राजेश के साथ हकीकत में किया था.

वीडियो देख कर राजेश को पसीना आ गया. लेकिन गायत्री ने चुटकी लेते हुए कहा, ‘‘क्या सैक्सी ऐक्ट करते हो यार. बाजार में इस वीडियो को बेच दूं तो लाख दो लाख तो यूं ही मिल जाएंगे.’’

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम.’’ राजेश थूक गटकते हुए बोला.

‘‘यही कि इस वीडियो को आप खरीदना पसंद करोगे या फिर किसी और को बेचूं?’’ वह शब्दों पर जोर देते हुए बोली.

‘‘तुम मुझे ब्लैकमेल कर रही हो?’’

‘‘तुम ने भी तो यही किया. नौकरी देने के नाम पर मेरी इज्जत लूट ली.’’

‘‘पहल तो तुम ने ही की थी.’’

‘‘लेकिन पुलिस इस बात को नहीं मानेगी, न कानून मानेगा. छोड़ो इसे कानून गया तेल लेने. मैं अपने बनाए कानून से चलती हूं. मेरी अदालत में गवाह भी मैं हूं और जज भी मैं. सीधी बात करो. 2 लाख दो और अपनी इज्जत बचा लो.’’ गायत्री ने सौदेबाजी की.

राजेश रोयागिड़गिड़ाया लेकिन गायत्री को दया नहीं आई. इसलिए राजेश ने अपने पर्स में रखे 25 हजार रुपए उसे दिए और उस से अपनी जान छुड़ाई. राजेश समझ गया कि राकेश और दुर्गेश भी इस पूरे खेल में शामिल हैं, लेकिन अपनी इज्जत के डर से वह चुप रहा. इधर दूसरे दिन ही गायत्री ने उस से और पैसों की मांग की तो राजेश ने उसे 15 हजार रुपए और दे दिए, जबकि गायत्री 2 लाख पर अड़ी रही. इतना ही नहीं जब राजेश ने आनाकानी की तो एक दिन राजेश के शोरूम पर आ कर वह तकरीबन 70 हजार रुपए की एक नई गाड़ी ले कर चली गई. राजेश ने सोचा कि अब शायद गायत्री उस का पीछा छोड़ देगी. लेकिन कुछ दिनों बाद गायत्री के साथ दुर्गेश भी उसे पैसा देने के लिए धमकाने लगा.

संयोग से इसी बीच राजेश की मुलाकात इंदौर निवासी अपने एक पत्रकार मित्र से हो गई. राजेश को परेशान देख कर उस ने कारण पूछा तो राजेश ने उसे सारी बात सुना दी. इस पर पत्रकार दोस्त ने उसे पुलिस की मदद लेने की सलाह दी. साथ ही उस ने पुलिस के पास जाने से पहले कुछ पुख्ता सबूत जमा कर लेने को कहा. जिस के चलते 15 नवंबर के आसपास जब गायत्री ने फोन कर और पैसों की मांग की तो राजेश ने कहा कि ठीक है कल शाम को फूटी कोठी के पास मिलो, वहां मैं तुम्हें पैसा दे दूंगा. गायत्री आई तो राजेश उसे पहले से तैयार रखे गए एक मकान में ले गया, जहां उस ने गायत्री के साथ हुई पैसों के लेनदेन की बात रिकौर्ड कर ली. इस के बाद कुछ देर में एटीएम से पैसा निकालने की बोल कर वह वहां से वापस आ गया और वह सीधे पुलिस के पास पहुंच गया.

टीआई विनोद दीक्षित के नेतृत्व में मामले की जांच कर रहे एसआई दिलीप देवड़ा ने 24 घंटे में ही दोनों आरोपियों दुर्गेश और बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा गायत्री को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. जबकि राकेश फरार था. पुलिस जांच में पूर्व विधायक के एक नजदीकी व्यक्ति व ओम प्रकाश साखला का नाम भी सामने आया. पुलिस ने पूछताछ करने के लिए दोनों के घर में दबिश डालीं, लेकिन ये फरार मिले. कथा लिखने तक पुलिस फरार आरोपियों की तलाश में जुटी थी. Honey Trap

Crime News : क्या मिला प्रियंका तनेजा को हनीप्रीत बनकर

Crime News : प्रियंका तनेजा को भले ही कम लोग जानते हैं, लेकिन हनीप्रीत की चर्चा आज घरघर में हो रही है. हनीप्रीत का नाम लेते ही मेकअप से लकदक जो लुभावना चेहरा आंखों के सामने आता है, वह दुष्कर्म के जुर्म में 20 साल की सजा पाए कथित संत गुरमीत राम रहीम द्वारा बनाई गई फिल्मों की नायिका ही नहीं, उन की सहनिर्देशक एवं सहनिर्मात्री भी थी. लेकिन सब के बीच बाबा गुरमीत राम रहीम उसे अपनी दत्तक पुत्री कहते थे.

बाबा के जेल जाते ही हनीप्रीत अचानक गायब हो गई. कई राज्यों की पुलिस उस की तलाश में मारीमारी फिरती रही, पर उस के बारे में पता नहीं कर सकी. उस के नेपाल में होने की आशंका पर वहां भी उस की तलाश की गई, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. उसी बीच वकील प्रदीप कुमार आर्य ने हनीप्रीत की ओर से दिल्ली हाईकोर्ट में 25 सितंबर, 2017 को एक याचिका दाखिल की, जिस में हनीप्रीत 3 सप्ताह की अंतरिम ट्रांजिट जमानत मांग रही थी. इस याचिका में उस ने कहा था कि उस की जान को खतरा है. इस याचिका में उसे अदालत में पेश न होने की अनुमति मिल गई थी.

26 सितंबर की सुबह साढ़े 10 बजे वकील प्रदीप कुमार आर्य ने कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल के सम्मुख पेश हो कर कहा था कि उन की मुवक्किल हनीप्रीत को जान का खतरा है, इसलिए उन्हें 3 सप्ताह के लिए अंतरिम ट्रांजिट जमानत दी जाए. अदालत द्वारा जब पूछा गया कि हनीप्रीत को किस से जान का खतरा है तो वकील प्रदीप कुमार आर्य ने बताया, ‘‘ड्रग माफिया से. वे हनीप्रीत को ढूंढ रहे हैं और मिलते ही उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं.’’

‘‘पर पूरा देश तो यह जानना चाहता है कि हनीप्रीत कहां है? सिंगल बेंच आप के मामले की सुनवाई करेगा. सब को नोटिस भेजे जा चुके हैं.’’ यह कहते हुए जस्टिस गीता मित्तल ने वकील प्रदीप कुमार आर्य को फारिग कर दिया. दोपहर बाद पौने 3 बजे जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल की अदालत में इस मामले की सुनवाई शुरू हुई. दिल्ली पुलिस की ओर से स्टैंडिंग काउंसिल राहुल मेहरा, एपीपी अनिल अहलावत, वकील जैमल अख्तर तथा हरियाणा सरकार की ओर से एएजी अनिल ग्रोवर, वकील नूपुर सिंघल के साथ पेश हुए. वकील प्रदीप कुमार आर्य के साथ उन के आधा दरजन से ज्यादा सहयोगी वकील भास्कर भारद्वाज,राजकरन शर्मा, कपिल ढाका, राणा कुनाल, अमरेश आनंद, अश्विन कालरा और के.के. छाबड़ा आए थे.

बहस शुरू होते ही वकील प्रदीप कुमार आर्य ने अदालत के सामने दलील रखी कि हनीप्रीत के खिलाफ कोई सबूत नहीं है, सिर्फ बयानों से कोई अपराधी नहीं बन जाता. वह एक शांतिप्रिय और कानून को मानने वाली नागरिक है. ड्रग माफिया से उसे पहले से ही खतरा था और अब उस पर ये आरोप लगा दिए गए हैं. इस के जवाब में राहुल मेहरा ने कहा, ‘‘किसी भी आरोपी की मदद करना ठीक नहीं है. हनीप्रीत तो कहती है कि उस के पिता भगवान हैं, फिर उसे खतरा किस बात का है?’’

अनिल ग्रोवर का कहना था कि हनीप्रीत को सिर्फ अपनी गिरफ्तारी का खतरा है, बाकी उसे किसी से कोई खतरा नहीं है. उस पर पंचकूला में हिंसा करवाने का गंभीर आरोप है, इसीलिए पुलिस उस की तलाश कर रही है. दोनों तरफ की दलीलें सुन कर जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल ने कहा कि जमानत देने के बाद भी हनीप्रीत को पंजाब अथवा हरियाणा की कोर्ट में जाना पड़ेगा. इसलिए वह सीधे वहीं क्यों नहीं जाती. जाने में 4 घंटे तो ही लगेंगे. आत्मसमर्पण ही उस के लिए सब से आसान रास्ता है. कोर्ट ने हनीप्रीत की जमानत याचिका पर कोई फैसला सुनाने के बजाय उसे रिजर्व कर लिया. हनीप्रीत का क्या हुआ, यह जानने से पहले आइए थोड़ा उस के बारे में जान लेते हैं.

कौन है हनीप्रीत हनीप्रीत का असली नाम प्रियंका तनेजा उर्फ अनु था. सन 1975 में वह रामानंद तनेजा के घर पैदा हुई थी. हरियाणा के नगर फतेहाबाद के जगजीवनपुरा के रहने वाले रामानंद का नैशनल हाइवे पर किसान टायर्स नाम से शोरूम था. रामानंद के पिता यानी प्रियंका के दादाजी सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के प्रबल अनुयायी थे और नियमित वहां जाते थे. धीरेधीरे इस परिवार के सभी लोग डेरा से जुड़ गए. हनीप्रीत भी घर वालों के साथ डेरे पर जाती थी. जल्दी ही प्रियंका डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम इंसां की करीबी बन गई. बाबा उसे पसंद करते थे, इसलिए उसे खुश करने की कोशिश करते रहते थे. उसी बीच बाबा ने उसे अपनी दत्तक पुत्री घोषित कर के उस का नया नाम रखा हनीप्रीत इंसां.

सन 1999 में बाबा ने डेरा के ही एक अनुयायी के बेटे विश्वास गुप्ता से हनीप्रीत की शादी करा दी. बाबा जहां हनीप्रीत को अपनी दत्तक पुत्री कहते थे, वहीं विश्वास गुप्ता को बेटा कहते थे. जबकि विश्वास गुप्ता का कहना है कि उस के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ था. कहने को हनीप्रीत उस की ब्याहता थी, लेकिन उस के बाबा गुरमीत राम रहीम से संबंध थे. विश्वास गुप्ता के अनुसार, बाबा ने एक दिन कहा कि डेरे के खास लोगों के साथ वह ‘बिग बौस’ खेलेंगे. उस में बाबा के परिवार के भी लोग शामिल थे. हनीप्रीत और विश्वास गुप्ता खास लोगों में थे, इसलिए उन्हें भी शामिल किया गया था. खेल की शर्तों में था कि खेल में जिस से भी कोई गलती होगी, उसे बाबा की गुफा में बैठ कर उन के नाम का जाप करना होगा.

विश्वास गुप्ता का कहना है कि हनीप्रीत जानबूझ कर गलती करती और नियम के अनुसार बाबा की गुफा में चली जाती, जहां से एक रास्ता बाबा के बैडरूम तक जाता था. इस तरह वह जानबूझ कर गलतियां कर रही थी, जिस की वजह से उसे घंटों गुफा में रहना पड़ता था. जब हनीप्रीत हो गई बाबा गुरमीत राम रहीम की विश्वास गुप्ता के बताए अनुसार, उसे हनीप्रीत की इन हरकतों से लगा कि कहीं बाबा और उस के बीच कोई खिचड़ी तो नहीं पक रही है. लेकिन उस समय वह किसी से कुछ कहने की स्थिति में नहीं था. क्योंकि उस ने अपनी आंखों से कुछ गलत देखा भी नहीं था, इसलिए कुछ कहना उचित भी नहीं था. उस ने मन ही मन तय कर लिया कि जब तक वह अपनी आंखों से ऐसा कुछ देख नहीं लेता, तब तक वह किसी से कुछ नहीं कहेगा.

विश्वास गुप्ता के अनुसार, डेरे में खेले गए बिग बौस का शो समाप्त होतेहोते हनीप्रीत पूरी तरह बाबा गुरमीत राम रहीम की हो गई थी. कहने को सोती वह उस के साथ थी, लेकिन रात में गुप्त दरवाजे से निकल कर वह बाबा के पास पहुंच जाती थी. पूरी रात बाबा के पास बिता कर वह सुबह उस के पास आ जाती थी. न चाहते हुए भी विश्वास गुप्ता ने एक दिन इस बारे में हनीप्रीत से पूछ लिया तो उस ने तुनक कर जवाब दिया कि पिताजी की तबीयत ठीक नहीं रहती, इसलिए वह उन की सेवा के लिए जाती है. इस के बाद उस ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने उस पर इस तरह बेवजह शक किया तो वह पिताजी से यह बात बता देगी. उस के बाद वह उसे जान से मरवा देंगे.

बाबा गुरमीत राम रहीम सिंह इंसां के कहने पर विश्वास गुप्ता डेरे पर ही रहने लगा था. बाबा हनीप्रीत को बेटी कहता था, इसलिए विश्वास गुप्ता को दामाद कहता था. उसे डेरे में कहीं भी घूमनेफिरने की पूरी आजादी थी. यहां तक कि वह बाबा की गुफा में भी बिना अनुमति के आजा सकता था. इस से उसे बाबा की कई करतूतों की जानकारी हो गई थी. बाबा ने अपने बैडरूम के बगल वाले कमरे को विश्वास गुप्ता का बैडरूम बनवा दिया था. इन दोनों कमरों के बीच एक गुप्त दरवाजा था, जिस से रात में हनीप्रीत बाबा के बैडरूम में चली जाती थी. विश्वास गुप्ता अपने बैडरूम में करवटें बदलते हुए रात बिताता था.

दूसरी ओर उस की ब्याहता बाबा के साथ मौजमस्ती कर रही होती. एक रात विश्वास गुप्ता हिम्मत कर के बाबा के बैडरूम में चला गया तो दोनों को आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. बस, उसी दिन के बाद विश्वास गुप्ता के बुरे दिन शुरू हो गए. उस से साफ कह दिया गया कि जैसा चल रहा है, आगे भी वैसा ही चलता रहेगा. आंखें मूंद कर उसे चुपचाप यह सब सहन करना होगा. अगर उस ने इस बारे में किसी से कुछ कहा या विरोध जताने की कोशिश की तो यह उस के लिए ठीक नहीं होगा. उसे गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं. विश्वास गुप्ता हनीप्रीत का पति था. पत्नी की हरकतें उस के लिए बरदाश्त से बाहर थीं.

न चाहते हुए भी हलकाफुलका ही सही, हनीप्रीत और बाबा के संबंधों पर वह अंगुली उठाने लगा. फिर क्या था, उसे परेशानियों ने घेरना शुरू कर दिया. उसे जान का खतरा भी महसूस होने लगा. ऐसे में उसे हनीप्रीत से भी ज्यादा परिवार की चिंता सताने लगी. उस के पिता का अच्छाखासा चलता कारोबार था, जिसे बाबा ने बिकवा कर करोड़ों की सारी रकम अपने डेरे में निवेश करवा दी थी. उस के बाद उस के घर वाले घरबार बेच कर डेरा सच्चा सौदा में ही रहने लगे थे. डेरे की बदली स्थिति देख कर विश्वास गुप्ता हनीप्रीत को वहीं छोड़ कर किसी तरह अपने मांबाप के साथ डेरे से निकलने में कामयाब हो गया. पंचकूला में किराए का मकान ले कर एक बार फिर व्यवस्थित होने की कोशिश करने लगा. भले ही वह पंचकूला आ गया था, लेकिन हनीप्रीत ने उस का पीछा नहीं छोड़ा.

हनीप्रीत ने विश्वास गुप्ता के खिलाफ ही नहीं, उस के पूरे परिवार के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा के अलावा डेरे की ओर से डीफेमेशन व चैक बाउंस के मुकदमे दर्ज करवा दिए गए. विश्वास गुप्ता द्वारा बताए अनुसार, इन मुकदमों में जब वह विचाराधीन कैदी के रूप में पटियाला की सैंट्रल जेल में बंद था तो बाबा गुरमीत राम रहीम ने 10 लाख रुपए की सुपारी दे कर उसे जेल में मरवाने की कोशिश की थी. लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद बलवंत सिंह राजोआना ने उसे बचा लिया था.

विश्वास गुप्ता उस से अकसर बातें किया करता था. उसे विश्वास के बारे में सारी जानकारी थी. उसे पता था कि बाबा गुरमीत राम रहीम ने उस की पत्नी को हथिया कर उसे झूठे आरोपों में फंसा कर जेल भिजवा दिया है. जेल में अपराधी गिरोहों को 10 लाख रुपए की सुपारी दे कर उस की हत्या की कोशिश चल रही है. इसलिए यह बात उस ने जेलर को तो बता ही दी थी. यही नहीं, उस ने विश्वास गुप्ता की जान भी बचाई. बाबा के 10 लाख रुपए भी वापस भिजवा दिए गए थे.

हनीप्रीत ने बरबाद कर दिया ससुराल वालों को विश्वास गुप्ता ने जो बताया, उस के अनुसार, इस के बाद भी हनीप्रीत और बाबा गुरमीत राम रहीम ने ऐसेऐसे हथकंडे अपनाए कि वह परिवार के साथ बुरी तरह टूट गया. बाबा उन की करोड़ों की संपत्ति तो डकार ही गया था, झूठे मुकदमे दर्ज करवा कर सभी को खूब प्रताडि़त भी करवाया. विश्वास गुप्ता ने पत्नी हनीप्रीत को कभी कुछ नहीं कहा था, इस के बावजूद उस ने उस के परिवार को तरहतरह की धमकियां दे कर खूब परेशान किया.

डेरे के कोप से बचने के लिए विश्वास गुप्ता के सामने 2 शर्तें रखी गईं. पहली शर्त यह थी कि सत्संग के वक्त वह अपने परिवार को ले कर डेरे में आएगा और वह और उस के पिता डेरे के लाखों श्रद्धालुओं के सामने रोते हुए बाबा गुरमीत राम रहीम से माफी मांगेंगे. दूसरी शर्त यह थी कि वह हनीप्रीत से तलाक ले लेगा. यह सन 2009 की बात है. विश्वास गुप्ता ने बाबा की ये दोनों ही शर्तें मानते हुए परिवार के साथ डेरे में जा कर बाबा से माफी भी मांगी और हनीप्रीत को तलाक भी दे दिया. इस के बाद उसे और उस के परिवार को डेरे की ओर कभी न देखने की चेतावनी दे कर भगा दिया गया था.

इस के बाद हनीप्रीत और उस का परिवार डेरे में ही रहने लगा था. उस के पिता रामानंद ने बेटे साहिल के साथ मिल कर सीड्स प्लांट का कारोबार शुरू कर दिया. हनीप्रीत की छोटी बहन निशा की शादी फतेहाबाद निवासी संजू बजाज से हुई तो डेरे की ओर से इस शादी में उम्मीद से बढ़ कर मदद की गई. कहते हैं, धीरेधीरे हनीप्रीत इस तरह बाबा की चहेती बन गई कि डेरा में बाबा के बाद उसी का हुक्म चलता था. बाबा के परिवार में भी अगर किसी को किसी चीज की जरूरत होती थी तो वह बिना हनीप्रीत की अनुमति के नहीं मिलती थी. पैसों तक के लिए उन्हें हनीप्रीत के सामने हाथ फैलाने पड़ते थे.

बाबा गुरमीत राम रहीम जहां अपने घर वालों से भी कम मिलते थे, वहीं हनीप्रीत हमेशा उन के साथ रहती थी. बाबा जब फिल्में बनाने लगे तो हनीप्रीत को उन फिल्मों की नायिका बनाने के साथसाथ उन की सहनिर्देशक और सहनिर्मात्री भी बनाया गया. कैटरीना कैफ बनने के सपने देख रही थी हनीप्रीत कहा जाता है कि हनीप्रीत खुद को परदे पर अभिनय करते हुए देखने को बेताब थी. वह कैटरीना कैफ बनने के सपने देख रही थी. उस की इसी इच्छा पूरी करने के लिए बाबा ने फिल्में बनाई थीं. कहते हैं, हनीप्रीत ने ही बाबा के मन में यह बात बैठा दी थी कि वह इतना बढि़या अभिनय करते हैं कि बड़ेबड़े फिल्मी सितारे उन के सामने बेकार हैं. इसी के बाद करोड़ों रुपए खर्च कर के बाबा फिल्में बनाने लगे थे.

बाबा अकसर हनीप्रीत को साथ ले कर मुंबई जाते थे,जहां दोनों ने कई फिल्मी सितारों से अच्छे रिश्ते बना लिए थे. उन के हिसाब से सब बहुत बढि़या चल रहा था. धार्मिक डेरे के नाम पर उन्होंने अपना ऐसा साम्राज्य स्थापित कर लिया था, जहां राजाओंमहाराजाओं जैसी सुखसुविधाएं उपलब्ध थीं. उन्हें लगता था कि जल्दी फिल्म इंडस्ट्री में भी उन की तूती बोलने लगेगी. हनीप्रीत नायिका के रूप में सलमान खान के साथ एक ऐसी फिल्म में आना चाहती थी, जो तमाम भव्यता से बनाई जाए. उसे अपना यह सपना जल्दी पूरा होता भी नजर आ रहा था. क्योंकि इस फिल्म में बाबा गुरमीत राम रहीम को ही पैसा लगाना था, जो अकूत संपत्ति के मालिक तो थे ही, वह फिल्म पर पैसा लगाने को भी तैयार थे.

लेकिन एक बात यह भी सच है कि इंसान जैसे कर्म करता है, उसे वैसे ही फल भी भोगने पड़ते हैं. अपने बारे में ये लोग कुछ भी कहते रहे, पर सच्चाई यह थी कि इन के बुरे दिन शुरू हो गए थे. लोग कहने भी लगे थे कि बाबा गुरमीत राम रहीम ने जिंदगी में जो बुरे कर्म किए हैं, अब उन्हें उन का परिणाम भुगतने के लिए तैयार हो जाना चाहिए.

ऐसा ही हुआ भी. बाबा के खिलाफ चल रहे कई आपराधिक मामलों में डेरे की 2 साध्वियों से दुष्कर्म वाला मामला अंतिम चरण में था. 25 अगस्त, 2017 को 100 से ज्यादा गाडि़यों के काफिले के साथ बाबा पंचकूला पहुंचे तो हनीप्रीत भी उन के साथ थी. बाबा को अदालत द्वारा दोषी करार दिए जाने के बाद पंचकूला में दंगे भड़क उठे. इस बीच बाबा को एक हेलीकौप्टर में बिठा कर रोहतक की सुनारिया जेल ले जाया गया तो हनीप्रीत भी उन के साथ हेलीकौप्टर से गई थी.

रात में वह सफेद रंग की कार नंबर एचआर 26बीएस 5426 पर कुछ लोगों के साथ सवार हो कर सिरसा के लिए चल पड़ी थी. यहां तक अधिकांश लोगों को उस के बारे में यही जानकारी थी कि वह बाबा गुरमीत राम रहीम की मुंहबोली बेटी थी और अदालत से अनुमति ले कर अपने कथित पिताजी के साथ उन्हें जेल तक छोड़ने गई थी. लेकिन इस के बाद हनीप्रीत का नाम रोज ही चर्चा में आने लगा. इस की वजह यह थी कि सिरसा स्थित डेरे पर पहुंचने के बाद वह गायब हो गई थी. दरअसल, बाबा की गिरफ्तारी के बाद पंचकूला में भड़के दंगों के आरोप में मुकदमे दर्ज कर के पुलिस ने गिरफ्तार किए गए लोगों से पूछताछ की तो पता चला कि इन दंगों के पीछे डेरे के कुछ प्रमुख लोगों के अलावा मुख्यरूप से हनीप्रीत का हाथ था.

लिहाजा पुलिस की वांछित सूची में हनीप्रीत का नाम सब से ऊपर था. इस मामले की तह में जाने के लिए पुलिस की एसआईटी का गठन किया गया. 21 सितंबर को इस टीम के कुछ सदस्यों ने सिरसा जा कर डेरे पर छापा मार कर हनीप्रीत के बारे में जानकारियां जुटाने का प्रयास किया तो पता चला कि वह वहां रुकी तो थी, लेकिन पुलिस के आने से पहले ही निकल गई थी. पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में पता चला था कि इस दंगे की प्लानिंग पहले ही हो चुकी थी. डेरा ने 8 दिनों पहले ही पंचकूला का सर्वे करा लिया था. इसे ले कर कुल 10 मीटिंग हुई थीं.

23 सितंबर तक पंचकूला में हुई हिंसा को ले कर साढ़े 11 सौ लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी थी. लेकिन हनीप्रीत के बारे में कहीं से कोई पुख्ता जानकारी नहीं मिल रही थी. उसी दिन बौलीवुड अदाकारा राखी सावंत के भाई राकेश सावंत ने सार्वजनिक रूप से खुलासा किया कि हनीप्रीत अब जिंदा नहीं है. चूंकि वह बाबा गुरमीत राम रहीम के कई राज जानती थी, इसलिए बाबा ने उसे मरवा दिया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द की हनीप्रीत की जमानत याचिका हरियाणा के डीजीपी बी.एस. संधू को पूरी उम्मीद थी कि हनीप्रीत जल्दी ही पकड़ी जाएगी. उन्होंने संकेत भी दिया था कि अगर वह पकड़ी न गई तो पुलिस उसे भगोड़ा घोषित कर देगी.

25 सितंबर को बाबा की ओर से उस के वकीलों ने सीबीआई द्वारा सुनाई 20 साल कैद की सजा को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में चुनौती दी. उसी दिन बाबा गुरमीत राम रहीम के बेटे जसमीत की पत्नी खुशप्रीत के ममेरे भाई भूपेंद्र सिंह गोरा ने हनीप्रीत की सूचना देने वाले को 5 लाख रुपए रकद ईनाम देने की घोषणा कर दी. उसी दिन दिल्ली के हाईकोर्ट में हनीप्रीत की ओर से 3 हफ्ते का ट्रांजिट बेल हासिल करने की याचिका दायर कर दी गई, जिस पर  26 सितंबर को सुनवाई हुई. जस्टिस संगीता ढींगरा सहगल ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया.

रात में पौने 8 बजे सुनाए अपने फैसले में सक्षम न्यायाधीश ने हनीप्रीत को अंतरिम ट्रांजिट बेल देने की याचिका रद्द कर दी. उस की ओर से दी जाने वाली एक भी दलील को अदालत ने नहीं माना. उन्होंने कहा कि अगर हनीप्रीत खुद को कानून की इज्जत करने वाला मानती है तो आगे आ कर जांच में मदद करे.  पर हनीप्रीत तो शायद दूसरी मिट्टी की बनी थी. वह छिपतीछिपाती दिल्ली के लाजपतनगर स्थित वकील प्रदीप कुमार आर्य के औफिस पहुंच गई और वहां 2 घंटे तक रुकी पर आत्मसमर्पण नहीं किया. वह अच्छी तरह जानती थी कि पुलिस ने कुछ लोगों के साथ उस का भी गिरफ्तारी वारंट हासिल कर लिया है. किसी बात की चिंता किए बगैर हनीप्रीत ट्रांजिट बेल की अर्जी रद्द होने के बाद एक बार फिर अंडरग्राउंड हो गई.

3 अक्तूबर की सुबह अचानक ‘आजतक’ टीवी चैनल पर उस का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू शुरू हुआ, जो दिन भर बारबार दिखाया जाता रहा. यह भी बताया गया कि पिछली रात साढ़े 11 बजे हनीप्रीत का इंटरव्यू करने के लिए आजतक के औफिस में इस निर्देश के साथ फोन आया कि इंटरव्यू की खातिर सिर्फ एक रिपोर्टर व एक फोटोग्राफर ही बताई गई जगह पर पहुंचेंगे. रिपोर्टर सतिंदर चौहान अपने कैमरामैन के साथ तय जगह पर पहुंच गए, जहां उन के चेहरों पर काले मास्क चढ़ा कर उन्हें दूसरी गाड़ी में बैठा कर ले जाया गया. जहां इन के चेहरों से मास्क हटाया गया तो वहां हनीप्रीत मौजूद थी.

बिना मेकअप के हनीप्रीत पहचान में नहीं आ रही थी. साक्षात्कार में ज्यादातर रोते हुए वह खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश कर रही थी. इंटरव्यू के अंत में रिपोर्टर ने उसे सलाह दी कि 38 दिनों से वह जो लुकाछिपी का खेल खेल रही है, उस के लिए बेहतर यही है कि वह आत्मसमर्पण कर दे. जब हनीप्रीत चढ़ी पुलिस के हत्थे पर हनीप्रीत ने ऐसा नहीं किया. अब तक वह नेपाल सहित 7 राज्यों की पुलिस को गच्चा दे चुकी थी. उसका सोचना था कि पुलिस उस तक पहुंच नहीं पाएगी. लिहाजा शिमला रोड पर पंचकूला को पार कर के पटियाला जाने के लिए वह जीरकपुर क्रौस कर गई. 3 अक्तूबर की दोपहर को वह जीरकपुर से थोड़ा आगे गई थी कि पंचकूला पुलिस के हत्थे चढ़ गई. उस समय उस के साथ एक अन्य महिला थी. वह बठिंडा की सुखप्रीत कौर थी, जिस का पति हनीप्रीत का ड्राइवर था.

शुरुआती पूछताछ में हनीप्रीत बस एक ही बात कहती रही कि उसे कुछ याद नहीं है और वह तथा बाबा गुरमीत राम रहीम निर्दोष हैं. अगले दिन उसे सीजेएम की अदालत पर पेश कर के 6 दिनों के कस्टडी रिमांड पर लिया गया. लेकिन पुलिस उस से कुछ भी उगलवा नहीं सकी. 3 दिनों का रिमांड और बढ़ाया गया. आखिर हनीप्रीत टूट गई और उस ने माना कि बाबा गुरमीत राम रहीम को छुड़ा कर भगाने की खातिर ही पंचकूला में दंगा करवाने की योजना बनाई गई थी, जिस में वह भी शामिल थी.

दरअसल, पहले तो उन्हें लगता ही नहीं था कि दुष्कर्म के आरोप में बाबा को सजा होगी. उस ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि वे तो यह सोच कर चले थे कि खुशीखुशी पंचकूला जाएंगे और खुशीखुशी लौट आएंगे. लेकिन उन्हें इस बात की भी आशंका थी कि अगर अदालत ने बाबा को दोषी ठहराते हुए जेल भेज दिया तो बड़ी बदनामी होगी. इसी आशंका के तहत जो योजना बनाई गई, उस का संचालन हनीप्रीत और कुछ अन्य लोगों को करना था. इस संबंध में डेरे के अंदर कई बैठकें हुईं. 17 अगस्त, 2017 को जो अंतिम निर्णय लिया गया, उस के लिए 5 करोड़ रुपए मुहैया कराए गए.

योजना के अनुसार, 25 अगस्त को पंचकूला की सीबीआई कोर्ट के पास लाखों लोगों को इकट्ठा करना था. उन लोगों को यही कहना था कि वे अपने गुरुजी के दर्शन को आए हैं. चूंकि सभी लोग खाली हाथ रहेंगे, इसलिए धार्मिक भावना के चलते उन से ज्यादा टोकाटाकी नहीं होगी. आने वालों को प्रति व्यक्ति एक हजार रुपए अदा करना था. अगर बाबा बरी हो जाते तो वे बाबा की जयकार करते हुए उन्हें ट्राइसिटी में घुमाते. लेकिन अगर कहीं अदालत बाबा को दोषी करार देते हुए गिरफ्तार करने का आदेश देती तो वे हंगामा शुरू कर देते.

पुलिस इन्हें संभालने लगती तो उसी बीच हथियारों से लैस गुंडे आ कर बाबा को छुड़ा ले जाते. उन गुंडों को मोटी रकम दी गई थी. पूछताछ में हनीप्रीत ने माना कि दंगा करवाने के लिए उस ने उन्हें सवा करोड़ रुपए एडवांस दिए थे. असलियत सामने लाने के लिए पुलिस हनीप्रीत का ब्रेन मैपिंग करवाना चाहती है. कस्टडी रिमांड के दौरान 8 अक्तूबर को हनीप्रीत ने करवाचौथ का व्रत रखा. यह व्रत किस के लिए रखा, इस बारे में उस ने किसी को कुछ नहीं बताया. बाद में पता चला कि दोपहर में ही उस ने व्रत तोड़ कर खाना खा लिया था.

हनीप्रीत ने बनाई थी दंगे की योजना पुलिस पूछताछ में हनीप्रीत ने 10 अक्तूबर को बताया कि बाबा को दोषी करार दिए जाने से पहले ही समर्थक पंचकूला पहुंचने लगे थे. वहां से वीडियो बना कर हनीप्रीत को भेजी जाती रही. हनीप्रीत देखती रही कि कहां समर्थक ज्यादा हैं और कहां लोगों को व्यवस्थित करना है. इस के बाद वह दोबारा वीडियो बना कर उसे वायरल करती.

इस तरह दिन में 10-12 वीडियो बनवाए जाते थे. हनीप्रीत ने माना कि दुनिया से हिंदुस्तान का नक्शा मिटाने का वीडियो बना कर उसी ने वायरल किया था. उस की निशानदेही पर पुलिस ने कई दस्तावेज बरामद किए. सिरसा डेरे से उस का निजी मोबाइल और लैपटौप भी बरामद किया गया. एक बार डेरे की चेयरपरसन विपासना इंसां को भी हनीप्रीत के सामने बैठा कर साढ़े 4 घंटे तक पूछताछ की गई.

सुनारिया जेल, रोहतक से निकल कर पहले वह सिरसा स्थित डेरे पर आई और वहां तमाम दस्तावेज नष्ट कर के वह कुछ दस्तावेजों और धनदौलत के साथ राजस्थान से ले कर नेपाल तक कई स्थानों पर छिपती रही. उस ने ज्यादातर समय बठिंडा में अपने ड्राइवर की पत्नी सुखदीप कौर के यहां बिताया, जो आखिर तक उस के साथ रही और दोषी को पनाह देने के आरोप में गिरफ्तार की गई. अन्य आरोपों के अलावा हनीप्रीत पर देशद्रोह का केस भी दर्ज है.

13 अक्तूबर को कस्टडी रिमांड की समाप्ति पर हनीप्रीत और सुखदीप कौर को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में अंबाला की सैंट्रल जेल भेज दिया गया. हनीप्रीत अदालत से रोरो कर एक ही गुहार लगाती रही कि उसे कहीं और न भेज कर बाबा गुरमीत राम रहीम वाली जेल में भेजा जाए. उसी बीच खबर आई कि 16 अक्तूबर को बाबा गुरमीत राम रहीम के परिवार के लोग उस से मिलने सुनारिया जेल पहुंचे तो बाबा अपनी पत्नी हरजीत कौर से मिल कर फूटफूट कर रोया. उस के बाद परिवार के अन्य सदस्यों से मिला. उस की दाढ़ी और सिर के बाल सफेद हो चुके थे. चेहरे पर झुर्रियां भी झलकने लगी थीं.

18 अक्तूबर को डीजीपी (जेल) के.पी. सिंह से अनुमति ले कर हनीप्रीत के पिता रामानंद तनेजा, मां आशा तनेजा, भाई साहिल तनेजा, भाभी सोनाली और कजिन सिद्धार्थ सिंगला उस से मिलने अंबाला की जेल पहुंचे. यहां हनीप्रीत को जेल की .32 चक्की की 11 नंबर सैल में कड़ी सुरक्षा में रखा गया था. मिठाई और मोमबत्ती ले कर वहां पहुंचे घर वालों से उस की मुलाकात कांच के मोटे शीशे के पीछे से और बातचीत इंटरकौम पर करवाई गई.

हनीप्रीत से की गई पूछताछ के आधार पर गिरफ्तार हो रहे हैं लोग हनीप्रीत द्वारा की गई पूछताछ के आधार पर लगभग रोज ही किसी न किसी को गिरफ्तार किया जा रहा है. 19 अक्तूबर को गिरफ्तार किए गए डेरे से जुड़े 2 लोगों सी.पी. अरोड़ा और लालचंद ने पूछताछ में बताया कि बिगड़ते हालात को देख कर जब सरकार ने इंटरनेट बंद करने के आदेश दिए तो उन लोगों ने 100 वायरलैस सैट मंगवा लिए थे, जिन की फ्रीक्वेंसी कई किलोमीटर की एरिया में काम करती थी.

पंचकूला के सैक्टर-3 में एक कंट्रोल रूम बनाया गया था, ताकि संदेश आराम से फ्लैश हो सके. इन सेटों के इस्तेमाल के लिए एक खास टीम लगाई गई थी, जो उन लोगों से संपर्क करती थी, जिन्हें 17 अगस्त को डेरा में हुई विशेष मीटिंग के दौरान हनीप्रीत और डेरा के डा. आदित्य इंसां ने जिम्मेदारियां सौंपी थीं. ऐसे ही एक सेट से सी.पी. अरोड़ा ने सैक्टर 2 और 4 की डिवाइडिंग रोड पर दंगा भड़काने का संदेश प्रसारित करवाया था.

उसी के बाद ढकौली की ओर जाने वाले हाईवे पर इकट्ठा हुए लोगों को पता चला था कि बाबा को दोषी करार दे दिया गया है. इस के बाद बाबा के समर्थकों की भीड़ भड़क उठी थी, जिस में आ मिले असामाजिक तत्वों ने भयंकर गुंडागर्दी शुरू कर दी थी. पकड़े गए लोगों के अनुसार, हनीप्रीत के निर्देश पर सारा काम प्लानिंग के अनुसार किया गया था. अगर उन की यह योजना सफल हो जाती तो आज बाबा गुरमीत राम रहीम जेल में न होता. हनीप्रीत भी खुला घूम रही होती.

हनीप्रीत के घर के कुछ लोगों को आज इस बात का भारी अफसोस है कि उन की सीधीसादी और भोलीभाली प्रियंका तनेजा ने हनीप्रीत बन कर खुद को परेशानियों के दलदल में झोंक दिया है. शादी के बाद उस ने घर संभाल रखा होता तो आज वह जवान हो रहे बच्चों की मां होती. चमकदमक के चक्कर में फंसी हनीप्रीत ने हमदर्दी वाला कोई काम नहीं किया. ? Crime News

सौजन्य- सत्यकथा, नवंबर 2017

Mumbai News : मुंबई का असली सिंघम समीर वानखेडे

Mumbai News : आज बौलीवुड के फिल्म स्टार्स की लेट नाइट पार्टी को युवाओं की पार्टी कहा जाने लगा है. इस की वजह यह है कि आजकल जो पार्टियां हो रही हैं, वे हौट सैक्स, शराब और ड्रग के साथ होती हैं. इन में नई उम्र के फिल्म स्टार्स, प्रोड्यूसर्स, फाइनेंसर और मुंबई, दिल्ली, दुबई के संपन्न घरों के 20-22 साल के टीनएजर होते हैं. पार्टी में आने वाले ये टीनएजर लास वेगास, पेरिस और लंदन की सैक्स पार्टी की नईनई स्टाइल अपनाते हैं. इस में ‘गे’ और ‘लेस्बियन’ भी शामिल होते हैं.

पार्टी में आने वाली फिल्म कलाकारों की बेटियां तो नाममात्र के ही कपड़े पहने होती हैं. मजे की बात यह है कि पहले इन पार्टियों के बारे में सुना जाता था या कभीकभार किसी अखबार में पढ़ने को मिल जाता था.

पर अब तो इन पार्टियों के तमाम वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते मिल जाते हैं, जिन में हाथों में टकीला, रम और दुनिया की प्रसिद्ध शराबों की प्यालियां थामे एकदूसरे से बेशरमी से चिपके खड़े युवकयुवतियों के मदहोश स्थिति में ग्रुप फोटो देते दिखाई देते हैं.

ऐसी पार्टियों में जिन्हें ड्रिंक्स, ड्रग्स और सैक्स में अधिक रुचि होती है, वे यह पहले से ही तय कर के आते हैं. कुछ लोग तो जब पार्टी में भाग ले कर घर चले जाते हैं, तब आधी रात को 2 बजे के बाद सैक्स और शराब की रेलमपेल के साथ असली पार्टी जमती है, जो सुबह तक चलती है.

बड़े स्टार, राजनेता, अधिकारी, कारपोरेट हस्तियां या कुख्यात डौन की संतानें इस तरह की पार्टियों में होते हैं. इसलिए अधिकतर इस तरह की पार्टियों पर पुलिस छापा नहीं मारती.

इस की वजह यह होती है कि छोटेमोटे पुलिस अधिकारियों की हिम्मत ही नहीं होती वहां जाने की. पर बौलीवुड में इधर कुछ सालों से हलचल मची है, इस का एकमात्र कारण हैं मुंबई नारकोटिक्स विभाग के जोनल डायरेक्टर ‘सिंघम’ के रूप में माने जाने वाले तेजतर्रार अधिकारी समीर वानखेडे.

फिल्मी डौन (शाहरुख खान) को पकड़ना भले ही 11 मुल्कों की पुलिस के लिए असंभव रहा हो, पर फिल्मी दुनिया के बादशाह, बाजीगर और किंग माने जाने वाले शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को पकड़ने का काम भले ही कोई पुलिस वाला नहीं कर सका, पर एनसीबी के मुंबई के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे ने उसे पकड़ कर दिखाया ही नहीं, बल्कि जेल तक पहुंचा दिया.

एनसीबी के जोनल डायरेक्टर समीर वानखेडे ही एक ऐसे अधिकारी हैं, जिन्होंने न सिर्फ शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को गिरफ्तार कर जेल भेजा बल्कि दीपिका पादुकोण, श्रद्धा कपूर और सारा अली खान को ड्रग के सेवन और वे यह ड्रग वे कहां से लेती हैं, इस बारे में पूछताछ के लिए अपने औफिस में बुलाने की हिम्मत दिखाई थी.

उन की छवि एक सख्त अधिकारी की है. उन के सामने कितना भी बड़ा सेलिब्रिटी क्यों न हो, बिना किसी दबाव के वह अपना काम करते हैं. उन्हीं के नेतृत्व में एनसीबी ने बौलीवुड की सेलिब्रिटीज पर काररवाई की है.

सुशांत सिंह राजपूत केस और अब बौलीवुड के किंग खान यानी शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान केस में चर्चा में रहने वाले एनसीबी के जोनल डायरेक्टर इंडियन रेवेन्यू सर्विस (आईआरएस) के 2008 बैच के अधिकारी समीर वानखेडे का जन्म सन 1984 में मायानगरी मुंबई में हुआ था. उन के पिता भी एक पुलिस अधिकारी थे.

स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने सिविल सर्विस परीक्षा पास की और आईआरएस अधिकारी बन गए. बौलीवुड के गोरखधंधों, घोटालों और दंभ पर उन्हें खासी नाराजगी है.

इस के पहले उन की पोस्टिंग मुंबई के छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर डिप्टी कस्टम कमिश्नर के रूप में हुई थी. यहां उन्होंने बेहतरीन काम किया और नियमों को सख्ती से लागू किया.

मुंबई का छत्रपति शिवाजी इंटरनैशनल एक ऐसा एयरपोर्ट है, जहां लगातार सेलिब्रिटीज का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कभी उन पर यह फर्क नहीं पड़ा कि सामने कौन है.

उन्होंने विदेश से आनेजाने वाले बौलीवुड सेलिब्रिटीज के कस्टम चुकाए बिना कीमती सामानों, करेंसी, सोना, ज्वैलरी और गहनों को पकड़ कर दंड के साथ रकम वसूली थी.

तुनकमिजाज और पौवर का रौब दिखाते हुए ऊपर से कराए गए फोन पर वानखेडे ने कभी ध्यान नहीं दिया. पौप गायक मिका सिंह को विदेशी मुद्रा के साथ उन्होंने ही गिरफ्तार किया था.

नारकोटिक्स विभाग में पोस्टिंग होने के बाद पिछले साल नवंबर में जब वह अपने 5 अफसरों के साथ देर रात गोरेगांव में केरी मेंडिस नामक ड्रग पैडलर को पकड़ने जा रहे थे, तब उन पर लगभग 60 ड्रग पैडलरों ने जानलेवा हमला किया था.

यह भी माना जाता है कि फिल्मी दुनिया को ड्रग सप्लाई करने का मुख्य चेन यही गैंग है. मुंबई पुलिस को साथ ले कर बाद में उन्होंने केरी मेंडिस को गिरफ्तार किया था.

41 वर्षीय समीर वानखेडे फिल्म और क्रिकेट के बेहद शौकीन हैं. पर इस क्षेत्र में जो गंदगी घुसी है, उस के खतरनाक सूत्रधारों से उन्हें बेहद नफरत है.

एयरपोर्ट पर भी नहीं बख्शा किसी को

मुंबई एयरपोर्ट पर जब वह डिप्टी कमिश्नर बन कर आए तो उन्होंने अपने साथ काम करने वाले छोटे से छोटे कर्मचारी से कह दिया था कि एयरपोर्ट पर कोई भी सेलिब्रेटी आए तो उस का आटोग्राफ या उस के साथ सेल्फी कतई नहीं लेना है.

उस से प्रभावित हुए बिना सामान्य यात्री की अपेक्षा अधिक शक की नजरों से उन के सामान को, उन के पहने हुए गहनों को, एसेसरीज को चैक करना है.

बिल मांगने और शंका होने पर जरा भी दबाव में आए बगैर उन्हें अलग केबिन में ले जा कर पूछताछ करनी है. अगर कस्टम ड्यूटी भरने की बात आए तो दंड के साथ वसूल करनी है.

एयरपोर्ट पर नियम है कि हर यात्री को अपना सामान खुद ही ट्रौली में रख कर एयरपोर्ट से बाहर निकलना होता है. सेलिब्रिटी या रौबदार यात्री अपना सामान अपने साथ यात्रा करने वाले अपने व्यक्तिगत स्टाफ को सौंप कर बाहर निकलते हैं.

समीर वानखेडे ने सेलिब्रिटीज के लिए भी नियम बना दिया कि सेलिब्रिटी भी अपना सामान अपने साथ ले कर एयरपोर्ट के हर एग्जिट पौइंट से निकलेंगे.

कभीकभी यह होता था कि सेलिब्रिटी अपने असिस्टैंट के नाम पर शंकास्पद सामान,  यह कह कर खुद को निर्दोष साबित करने की चालाकी करते थे कि यह असिस्टैंट का बैग है. समीर वानखेडे ने इस पर रोक लगा दी थी.

एक बार एक बड़े क्रिकेटर और उस की पत्नी तथा एक फिल्म स्टार ने एयरपोर्ट पर पूछताछ के दौरान वानखेडे से अपमानजनक भाषा में बात करते हुए बहस करने के साथ धमकी दी थी कि उन के सीनियर को फोन कर के उन की नौकरी खतरे में डाल देंगे.

तब समीर वानखेडे ने उन से सख्त शब्दों में कहा था कि इस समय एयरपोर्ट पर सब से सीनियर अधिकारी वह खुद ही हैं. अगर आप ने सहयोग नहीं किया तो मैं तत्काल आप को गिरफ्तार कर सकता हूं. वानखेडे के इतना कहने के बाद सारे सेलिब्रिटी बकरी बन कर उन का सहयोग करने लगे थे.

एक बार ऐसा हुआ था कि साउथ अफ्रीका से एक क्रिकेटर भारत खेलने आया था. रात 3 बजे उस की फ्लाइट मुंबई एयरपोर्ट पर उतरी. सामान क्लीयरेंस काउंटर पर साउथ अफ्रीका के उस क्रिकेटर ने समीर वानखेडे को फोन देते हुए कहा था कि ‘भारत की टीम का बहुत ही सीनियर क्रिकेटर इस पर लाइन पर है और आप से बात करना चाहता है.’

फिल्म अभिनेत्री से की शादी

भारत के उस क्रिकेटर, जिस के देश में करोड़ों प्रशंसक हैं और समीर वानखेडे खुद भी उस के प्रशंसक हैं, उस ने फोन पर कहा था कि ‘साउथ अफ्रीका से आया क्रिकेटर मेरा दोस्त है. वह वाइन की 18 बोतलें ले कर आया है. इसे ड्यूटी के झंझट से मुक्त कर के एयरपोर्ट के बाहर जाने दीजिए.’

तब समीर वानखेडे ने कुछ कहे बगैर फोन रख दिया था. वाइन की 18 बोतलों में से नियम के अनुसार वाइन की 2 बोतलों की ड्यूटी छोड़ कर बाकी की 16 बोतलों पर ड्यूटी वसूल की थी. साउथ अफ्रीका के क्रिकेटर को झेंपते हुए वह ड्यूटी उसी समय भरनी पड़ी थी.

समीर वानखेडे के अनुसार अजय देवगन एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं, जो सचमुच प्रामाणिक आदमी हैं. कभी टैक्स न भरने की वजह नहीं बताते और न ही धौंस जमाते हैं. वह सचमुच सिंघम जैसे ही वास्तविक जीवन में भी हैं. उसी तरह मराठी अभिनेत्री क्रांति रेडकर की भी इमेज थी.

एयरपोर्ट पर आनेजाने के दौरान ही अभिनेत्री क्रांति रेडकर उन के दिल को भा गई थीं और ऐसी ही लड़की से उन्हें विवाह करने की इच्छा हुई थी. उन्होंने क्रांति से दोस्ती की और उस से विवाह की बात की तो क्रांति सहर्ष तैयार हो गई. सन 2017 में दोनों ने विवाह कर लिया.

क्रांति भी मुंबई में ही पैदा हुई हैं. इस बात की कम ही लोगों को जानकारी है कि समीर की पत्नी क्रांति रेडकर एक मशहूर अभिनेत्री हैं.

क्रांति ने अजय देवगन के साथ फिल्म ‘गंगाजल’ में काम किया था. इस के अलावा वह कई टीवी सीरियलों में भी काम कर चुकी हैं. क्रांति ने हिंदी फिल्मों की अपेक्षा मराठी फिल्मों और सीरियलों में ज्यादा काम किया है. इस के अलावा उन्होंने अंगरेजी फिल्मों में काम करने के साथसाथ निर्देशन की भी कोशिश की है.

मुंबई एयरपोर्ट के बाद समीर वानखेडे की पोस्टिंग महाराष्ट्र सर्विस टैक्स डिपार्टमेंट में हुई थी. उस समय महाराष्ट्र राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि कर चोरी में 200 सेलिब्रिटीज सहित 2500 बड़े लोगों के खिलाफ जांच शुरू हुई थी.

एनआईए में भी किए थे अच्छे काम

2 सालों में उन्होंने सर्विस टैक्स की चोरी के 87 करोड़ रुपए अकेले मुंबई से वसूल किए थे. उन के कामों को ही देखते हुए ही पहले उन्हें आंध्र प्रदेश फिर दिल्ली भेजा गया था.

नैशनल इनवैस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) में भी उन की पोस्टिंग हुई थी. आतंकवादी हमले की योजना का खुलासा करने वाली जानकारी उन्होंने एंटी टेरर विभाग को देनी थी. इस दौरान उन्होंने कई जानकारियां किस तरह दीं, यह गुप्त रखा गया है.

इस के बाद समीर वानखेडे को बौलीवुड में ड्रग रैकेट खत्म करने की जिम्मेदारी के साथ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर के रूप में पोस्टिंग दी गई.

सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय मौत में ड्रग एंगल उन्हें दिखाई दिया तो उन्होंने रिया चक्रवर्ती, दीपिका पादुकोण, सारा अली, रकुल प्रीत सिंह सहित कई अभिनेत्रियों को पूछताछ के लिए अपने औफिस में बुलाया.

इस के बाद बौलीवुड में तहलका मच गया. 100 से अधिक ड्रग पैडलरों को उन्होंने जेल में डाला है. 25 से अधिक हस्तियां जमानत पर हैं.

वह देश के करोड़ों लोगों को यह संदेश देने में कामयाब हुए हैं कि आप जिन्हें पूजते हैं, वे स्टार्स, सेलिब्रिटी कितने दंभी, देशद्रोही और आपराधिक चेहरे वाले हैं.

ड्रग का रैकेट चलाने वाले भारत के ही दुश्मन देशों या गैंगस्टरों से जुड़े हुए हैं और उन से तमाम स्टार्स जुड़े हैं.

समीर ने अपनी पत्नी या परिवार के हर सदस्य से कह रखा है कि उन के नाम से आने वाली कोई भी पार्सल उन की गैरमौजूदगी में न लिया जाए. क्योंकि उन्हें घूस लेने के आरोप में फंसाने का षडयंत्र उन के दुश्मन कभी भी रच सकते हैं.

समीर और उन की पत्नी क्रांति को जिया और ज्यादा नाम की 2 जुड़वां बेटियां हैं.

कौमेडी कलाकार भारती के घर से भी की थी ड्रग बरामद

ऐसा नहीं है कि समीर वानखेडे सनसनी फैलाने वाले मेगा स्टार्स को ही पकड़ कर हीरो बनना चाहते हैं. उन्होंने टीवी कौमेडी शो की कलाकार भारती सिंह के घर छापा मार कर ड्रग बरामद किया था. भारती सिंह और उस का पति इस समय जमानत पर हैं.

समीर का काम देर रात के बाद का ही है, इसलिए वह मात्र 2 घंटे ही सो पाते हैं. कभी भी उन पर जानलेवा हमला हो सकता है, फिर भी वह अपने फर्ज में पीछे नहीं हटते. नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर के रूप में उन की पोस्टिंग को 2 साल से अधिक हो गए हैं. इस दौरान उन्होंने 17 हजार करोड़ का ड्रग पकड़ा है.

पिछले एक साल में उन्होंने 105 से अधिक मुकदमे दर्ज करा कर 300 से अधिक गिरफ्तारियां की हैं. जिन में से गिनती के 4-5 मामले ही बौलीवुड के हैं. इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि वह मात्र बौलीवुड को ही टारगेट करते हैं. पर मात्र बौलीवुड के मामले ही पब्लिसिटी पाते हैं.

आर्यन की गिरफ्तारी के 2 दिन पहले ही उन के विभाग ने 5 करोड़ की ड्रग के साथ कुछ लोगों को पकड़ा था, तब मीडिया का ध्यान उन की ओर नहीं गया. अब तक उन की टीम के द्वारा करीब एक दरजन गैंगों को पकड़ा गया है.

समीर वानखेडे तो अपना काम पूरी ईमानदारी, हिम्मत और प्राथमिकता से कर रहे हैं. कोर्ट में केस किस तरह कमजोर हो जाता है, इस की हताशा उन्होंने कभी अपने काम पर नहीं आने दी है. वह तो अपने लक्ष्य पर लगे रहते हैं. Mumbai News

Crime Story in Hindi : बच्चे की ख्वाहिश बनी जिंदगी की तबाही

Crime Story in Hindi : रमन की शादी हुए 6 साल हो गए, मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई. चूंकि दोनों पतिपत्नी धार्मिक स्वभाव के थे, इसलिए वे देवीदेवता से मन्नतें मांगते रहते थे, लेकिन तब भी बच्चा न हुआ. तभी उन्हें पता चला कि एक चमत्कारी बाबा आए हैं. अगर उन का आशीर्वाद मिल जाए, तो बच्चा हो सकता है. यह जान कर रमन और उस की बीवी सीमा उस बाबा के पास पहुंचे. सीमा बाबा के पैरों पर गिर पड़ी और कहने लगी, ‘‘बाबा, मेरा दुख दूर करें. मैं 6 साल से बच्चे का मुंह देखने के लिए तड़प रही हूं.’’

‘‘उठो, निराश मत हो. तुम्हें औलाद का सुख जरूर मिलेगा…’’ बाबा ने कहा, ‘‘अच्छा, कल आना.’’

अगले दिन सीमा ठीक समय पर बाबा के पास पहुंच गई. बाबा ने कहा, ‘‘बेटी, औलाद के सुख के लिए तुम्हें यज्ञ कराना पड़ेगा.’’

‘‘जी बाबा, मैं सबकुछ करने को तैयार हूं. बस, मुझे औलाद हो जानी चाहिए,’’ सीमा ने कहा, तो बाबा ने जवाब दिया, ‘‘यह ध्यान रहे कि इस यज्ञ में कोई भी देवीदेवता किसी भी रूप में आ कर तुझे औलाद दे सकते हैं, इसलिए किसी भी हालत में यज्ञ भंग नहीं होना चाहिए, नहीं तो तेरे पति की मौत हो जाएगी.’’

‘‘जी बाबा,’’ सीमा ने कहा और बाबा के साथ एकांत में बने कमरे में चली गई. वहां बाबा खुद को भगवान बता कर उस के अंगों के साथ खेलने लगा. सीमा कुछ नहीं बोली. वह समझी कि बाबाजी उसे औलाद का सुख देना चाहते हैं, इसलिए वह चुपचाप सबकुछ सहती रही. लेकिन शरद ऐसे बाबाओं के चोंचलों को अच्छी तरह जानता था, इसलिए जब उस की बीवी टीना ने कहा, ‘‘हमें भी बच्चे के लिए किसी साधुसंत से औलाद का आशीर्वाद ले लेना चाहिए,’’ तब शरद बोला, ‘‘औलाद केवल साधुसंत के आशीर्वाद से नहीं होती है. इस के लिए जब तक पतिपत्नी दोनों कोशिश न करें, तब तक कोई बच्चा नहीं दे सकता.’’

‘‘मगर हम यह कोशिश पिछले 5 साल से कर रहे हैं. हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है?’’ टीना ने पूछा.

‘‘इस की जांच तो डाक्टर से कराने पर ही पता चल सकती है कि हमें बच्चा क्यों नहीं हो रहा है. समय मिलते ही मैं डाक्टर से हम दोनों की जांच कराऊंगा.’’

टीना ने कहा, ‘‘ठीक है.’’

दोपहर को टीना की सहेली उस से मिलने आई, जो उसे एक नीमहकीम के पास ले गई. नीमहकीम ने टीना से कुछ सवाल पूछे, जिस का उस ने जवाब दे दिया. इस दौरान ही उस नीमहकीम ने यह पता लगा लिया था कि टीना को माहवारी हुए आज 14वां दिन है, इसलिए वह बोला, ‘‘तुम्हारे अंग की जांच करनी पड़ेगी.’’

‘‘ठीक है, डाक्टर साहब. मैं कब आऊं?’’ टीना ने पूछा.

‘‘जांच आज ही करा लो, तो अच्छा रहेगा,’’ नीमहकीम ने कहा, तो टीना राजी हो गई.

तब वह नीमहकीम टीना को अंदर के कमरे में ले गया, फिर बोला, ‘‘आप थोड़ी देर यहीं बैठिए और इस थर्मामीटर को 5 मिनट तक अपने अंग में लगाइए.’’

टीना ने ऐसा ही किया.

5 मिनट बाद डाक्टर आया. उस के एक हाथ में अंग फैलाने का औजार और दूसरे हाथ में एक इंजैक्शन था, जिस में कोई दवा भरी थी, जिसे देख कर टीना ने पूछा, ‘‘यह क्या है डाक्टर साहब?’’ ‘‘इस से तुम्हारे अंग की दूसरी जांच की जाएगी,’’ कह कर नीमहकीम ने टीना से थर्मामीटर ले लिया और टीना को मेज पर लिटा दिया. इस के बाद वह उस के अंग में औजार लगा कर जांच करने लगा.

जांच के बहाने नीमहकीम ने टीना के अंग में इंजैक्शन की दवा डाल दी और कहा, ‘‘कल फिर अपनी जांच कराने आना.’’ टीना अभी तक घबरा रही थी, मगर आसान जांच देख कर खुश हुई. फिर दूसरे दिन भी यही हुआ. मगर उस दिन इंजैक्शन को अंग में आगेपीछे चलाया गया था. इस के बाद उसे 14 दिन बाद आने को कहा गया.

टीना जब 14 दिन बाद नीमहकीम के पास गई, तब वह सचमुच मां बनने वाली थी.

यह जान कर टीना बहुत खुश हुई. मगर जब यही खुशी उस ने अपने पति शरद को सुनाई, तो वह नाराज हो गया.

‘‘बता किस के पास गई थी?’’ शरद चीख पड़ा.

‘‘यह मेरा बच्चा नहीं है. मैं ने कल ही अपनी जांच कराई थी. डाक्टर का कहना है कि मेरे शरीर में बच्चा पैदा करने की ताकत ही नहीं है. तब मैं बाप कैसे बन गया?’’ शरद ने कहा.

शरद के मुंह से यह सुनते ही टीना सब माजरा समझ गई. वह जान गई कि नीमहकीम ने जांच के बहाने उस के अंग में अपना वीर्य डाल दिया था. मगर अब क्या हो सकता था. टीना औलाद के नाम पर ठगी जा चुकी थी. आज के जमाने में औलाद पैदा करने की कई विधियों का विकास हो चुका है. परखनली से भी कई बच्चे पैदा हो चुके हैं. यह सब विज्ञान के चलते मुमकिन हुआ है. फिर भी लोग पुराने जमाने में जीते हुए ऐसे धोखेबाजों के पास बच्चा मांगने जाते हैं. इस से बढ़ कर दुख की बात और क्या हो सकती है. Crime Story in Hindi

Crime News : जैंट्स पार्लरों में चलता जिस्म का खेल

Crime News : बिहार की राजधानी पटना के तकरीबन हर इलाके में जैंट्स पार्लरों की भरमार सी है. चमचमाते और रंगबिरंगे पार्लर मनचले नौजवानों और मर्दों को खुलेआम न्योता देते रहते हैं. इन पार्लरों के आसपास गहरा मेकअप किए इठलातीबलखाती और मचलती लड़कियां मोबाइल फोन पर बातें करती दिख जाती हैं. अपने परमानैंट ग्राहकों को सैक्सी बातों से रिझातीपटाती नजर आ ही जाती हैं. वैसे, इन पार्लरों में हर तरह की ‘सेवा’ दी जाती है. कुरसी के हैडरैस्ट के बजाय लड़कियों के सीने पर सिर रख कर शेव बनवाने और फेस मसाज का मजा लीजिए या फिर लड़कियों के गालों पर चिकोटियां काटते हुए मसाज का मजा लीजिए.

फेस मसाज, हाफ बौडी मसाज से ले कर फुल बौडी मसाज की सर्विस हाजिर है. जैसा काम, वैसी फीस यानी पैसा फेंकिए और केवल तमाशा मत देखिए, बल्कि खुद भी तमाशे में शामिल हो कर जिस्मानी सुख का भरपूर मजा उठाइए.

जैंट्स पार्लरों में ग्राहकों से मनमाने दाम वसूले जाते हैं. शेव बनवाने की फीस 5 सौ से एक हजार रुपए तक है. फेस मसाज कराना है, तो एक हजार से 2 हजार रुपए तक ढीले करने होंगे. हाफ बौडी मसाज के लिए 3 हजार से 5 हजार रुपए देने पड़ेंगे और फुल बौडी मसाज के तो कोई फिक्स दाम नहीं हैं.

पटना के बोरिंग रोड, फ्रेजर रोड, ऐक्जिबिशन रोड, डाकबंगला रोड, कदमकुआं, पीरबहोर, मौर्यलोक कौंप्लैक्स, स्टेशन रोड, राजा बाजार, कंकड़बाग, एसके नगर वगैरह इलाकों में जैंट्स मसाज पार्लरों की भरमार है.

पिछले कुछ महीनों में पुलिस की छापामारी से जैंट्स पार्लरों का धंधा कुछ मंदा तो हुआ?है, पर पूरी तरह से बंद नहीं हुआ है. थानों की मिलीभगत से जैंट्स पार्लरों का खेल चल रहा है.

कुछ साल पहले तक मसाज पार्लरों में नेपाली और बंगलादेशी लड़कियों की भरमार थी, पर अब उन की तादाद कम हुई है. बिहार और उत्तर प्रदेश की  लड़कियां अब उन में काम कर रही हैं. इन में ज्यादातर गरीब घरों की लड़कियां ही होती हैं, जो पेट की आग बुझाने के लिए यह धंधा करने को मजबूर हैं.

फ्रेजर रोड के एक पार्लर में काम करने वाली सलमा बताती है कि उस का शौहर उसे छोड़ कर मुंबई भाग गया. अपनी 7 साल की बेटी को पालने के लिए उसे मजबूरी में मसाज पार्लर में काम करना पड़ा.

इसी तरह पति की मौत हो जाने के बाद ससुराल वालों की मारपीट की वजह से रोहतास से भाग कर पटना पहुंची सोनी काम की खोज में बहुत भटकी, पर उसे कोई काम नहीं मिला. बाद में उस की सहेली ने उसे जैंट्स पार्लर में काम दिलाया.

सोनी बताती है कि पहले तो उसे मर्दों की सैक्सी निगाहों और हरकतों से काफी शर्म आती थी. कई बार यह काम छोड़ने का मन किया, पर अब इन सब की आदत हो गई है.

समाजसेवी प्रवीण सिन्हा कहते हैं कि ऐसे पार्लरों में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियों और औरतों के पीछे बेबसी और मजबूरी की कहानी होती है. कुछ लड़कियां ही ऐसी होती हैं, जो ऐशमौज करने और महंगे शौक पूरा करने के लिए मसाज करने और जिस्म बेचने का काम करती हैं.

वहां आसपास रहने वाले लोगों की कई शिकायतों के बाद कभीकभार पुलिस जागती है और एकसाथ कई मसाज पार्लरों पर छापामारी कर कई लड़कियों, पार्लर चलाने वालों और दर्जनों ग्राहकों को पकड़ कर ले जाती है.

पुलिस देह धंधा करने के आरोप में लड़कियों और ग्राहकों की धरपकड़ करती है. 2-3 दिनों तक तो पार्लर पर ताला दिखता है और फिर पुलिस, कानून और समाज के ठेकेदारों को ठेंगा दिखाते हुए धंधा चालू हो जाता है और बेधड़क चलता रहता है.

पुलिस के एक आला अफसर कहते हैं कि जिस्मानी धंधे की शिकायत मिलने के बाद ही पुलिस छापामारी करती है. प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट के तहत शिकायतों के बाद छापामारी की जाती है. पार्लर से पकड़ी गई लड़कियां या औरतें यह नहीं बताती हैं कि उन्हें जबरदस्ती या लालच दे कर काम कराया जा रहा है. वे तो पुलिस को यही बयान देती हैं कि वे अपनी मरजी से काम कर रही हैं. अगर वे देह बेचने को मजबूर नहीं की गई हैं, तो प्रिवैंशन औफ इम्मोरल ट्रैफिक ऐक्ट बेमानी हो जाता है. इस से कानून कुछ नहीं कर पाता है.

पुलिस के एक रिटायर्ड अफसर की मानें, तो ऐसे पार्लरों पर छापामारी पुलिस के लिए पैसा उगाही का जरीया भर है. पुलिस को पता है कि ऐसे मसाज पार्लरों पर कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है, वह महज रोबधौंस दिखा कर ‘वसूली’ कर लड़कियों और संचालकों को छोड़ देती है. जो पार्लर सही समय पर थानों में चढ़ावा नहीं चढ़ाते हैं, वहीं छापामारी की जाती है.

पटना हाईकोर्ट के वकील उपेंद्र प्रसाद कहते हैं कि जिस्म के धंधे और यौन शोषण की शिकायत पर कानूनी कार्यवाही तभी हो सकती है, जब वह दबाव बना कर कराया जा रहा हो. जब किसी औरत का जबरन या खरीदफरोख्त के लिए यौन शोषण नहीं किया जा रहा है, तो वह कानूनन देह धंधा नहीं माना जाएगा.

मसाज पार्लरों से पकड़ी गई लड़कियां कभी यह नहीं कहती हैं कि उन से जबरन कोई काम कराया जा रहा है, फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि किसी जैंट्स पार्लर में जिस्मफरोशी का धंधा चलता है? Crime News

MP News : कामुक तांत्रिक और शातिर बेगम की खौफनाक कहानी

MP News : मध्य प्रदेश के जिला देवास की एक तहसील है खातेगांव, जहां से 5-7 किलोमीटर दूर स्थित है गांव सिराल्या. इसी गांव में रूप सिंह पत्नी मीराबाई और एकलौती बेटी सत्यवती के साथ झोपड़ी बना कर रहता था. रूप सिंह को कैंसर होने की वजह से उस के इलाज से ले कर पेट भरने और तन ढकने तक की जिम्मेदारी मीराबाई उठा रही थी.

आदमी कितना भी गरीब क्यों न हो, जान पर बन आती है तो सब कुछ दांव पर लगा कर जान बचाने की कोशिश करता है. मीराबाई भी खानेपहनने से जो बच रहा था, पति रूप सिंह के इलाज पर खर्च कर रही थी. लेकिन उस की बीमारी मीराबाई की कमाई लील कर भी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही थी.

जब सारी जमापूंजी खर्च हो गई और कोई फायदा नहीं हुआ तो रूप सिंह दवा बंद कर के तंत्रमंत्र से अपनी जीवन की बुझती ज्योति को जलाने की कोशिश करने लगा. वह एक मुसीबत से जूझ ही रहा था कि अचानक एक और मुसीबत उस समय आ खड़ी हुई, जब जुलाई, 2016 के आखिरी सप्ताह में एक दिन उस की 16 साल की बेटी सत्यवती अचानक गायब हो गई. एकलौती होने की वजह से सत्यवती ही मीराबाई और रूप सिंह के लिए सब कुछ थी.

उस के अलावा पतिपत्नी के पास और कुछ नहीं था. इसलिए बेटी के गायब होने से दोनों परेशान हो उठे. रूप सिंह बीमारी की वजह से लाचार था, इसलिए मीराबाई अकेली ही बेटी की तलाश में भटकने लगी. जब बेटी का कहीं कुछ पता नहीं चला तो आधी रात के आसपास वह रोतीबिलखती थाना खातेगांव जा पहुंची.

मीराबाई ने पूरी बात ड्यूटी अफसर को बताई तो उन्होंने तुरंत इस बात की जानकारी थानाप्रभारी तहजीब काजी को दे दी. वह तुरंत थाने आ पहुंचे और मीराबाई को शांत करा कर पूरी बात बताने को कहा.

मीराबाई ने जवानी की दहलीज पर खड़ी अपनी बेटी सत्यवती के लापता होने की पूरी बात तहजीब काजी को बताई तो उन्हें समझते देर नहीं लगी कि सत्यवती भले ही नाबालिग थी, लेकिन इतनी छोटी भी नहीं थी कि उस के गायब होने के पीछे किसी बुरी घटना की आशंका न हो, जबकि आजकल तो लोग दूधपीती बच्चियों को भी नहीं छोड़ रहे हैं.

तहजीब काजी को प्रेमप्रसंग को ले कर सत्यवती के भाग जाने की आंशका थी. लेकिन जब इस बारे में उन्होंने मीराबाई से पूछताछ की तो उन की यह आशंका निराधार साबित हुई, क्योंकि मीराबाई का कहना था कि सत्यवती की न तो गांव के किसी लड़के से दोस्ती थी और न ही किसी लड़के का उस के घर आनाजाना था.

बस, एक MP News राशिद बाबा का उस के घर आनाजाना था. यही वजह थी कि गांव वालों ने उस के परिवार का सामाजिक बहिष्कार कर रखा था. लेकिन नेमावर के रहने वाले राशिद बाबा पांचों वक्त नमाजी और पक्के मजहबी हैं, इसलिए उन पर शंका नहीं की जा सकती. फिर वह सत्यवती के दादा की उम्र के भी हैं. इसलिए मासूम बच्ची पर नीयत खराब कर के वह अपना बुढ़ापा क्यों बेकार करेंगे.

बहरहाल, सत्यवती की उम्र को देखते हुए उस की तलाश करना जरूरी था. इसलिए तहजीब काजी पूछताछ करने के लिए रात में ही मीराबाई के गांव जा पहुंचे, जहां उन्हें चौकाने वाली बात यह पता चली कि राशिद बाबा के आनेजाने से लगभग पूरा गांव रूप सिंह से नाराज था. इस की वजह यह थी कि एक तो वह दूसरे मजहब का था, जो गांव वालों को पसंद नहीं था, इस के अलावा वह तंत्रमंत्र करता था, जिस से गांव वाले उस से डरते थे.

राशिद के तांत्रिक होने की जानकारी होते ही तहजीब काजी को उसी पर शक हुआ. क्योंकि पुलिस की अब तक की नौकरी से उन्हें यह अच्छी तरह पता चल चुका था कि तंत्रमंत्र कुछ नहीं है, सिर्फ मन का वहम है. इसलिए जो लोग खुद को तांत्रिक होने का दावा करते हैं, सीधी सी बात है कि वे बहुत ही शातिर किस्म के होते हैं.

तांत्रिकों द्वारा महिलाओं और मासूम लड़कियों के यौनशोषण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यही सब सोच कर तहजीब काजी को राशिद बाबा पर शक हुआ. उन्होंने तुरंत एसपी शशिकांत शुक्ला और एएसपी राजेश रघुवंशी को घटना के बारे में बता कर दिशानिर्देश मांगे.

अधिकारियों के आदेश पर समय गंवाए बगैर वह 15 किलोमीटर दूर स्थित राशिद के घर जा पहुंचे, लेकिन वह घर पर नहीं मिला. इस से उन का शक और बढ़ गया. घर वालों से पूछताछ कर के वह वापस आ गए.

तहजीब काजी सत्यवती की तलाश में तत्परता से जुट गए थे. उन्होंने अपने मुखबिरों को भी राशिद बाबा की तलाश में लगा दिया था. उन की इस सक्रियता का ही नतीजा था कि अगले दिन नेमावर की ही रहने वाली कमला सत्यवती को ले कर थाने आ पहुंची.

कमला ने बताया कि किसी बात को ले कर कल मीराबाई ने सत्यवती को डांट दिया था, जिस से नाराज हो कर यह उस के पास आ गई थी. सुबह उसे पता चला कि इसे पुलिस खोज रही है तो वह इसे ले कर इस के घर पहुंचाने आ गई.

बेटी को देख कर मीराबाई तो सब भूल गई, लेकिन तहजीब काजी को याद था कि पूछताछ में मीराबाई ने सत्यवती के साथ डांटडपट वाली बात से मना करते हुए कहा था कि वही तो उस की सब कुछ है, इसलिए उस ने या उस के पति ने इसे डांटनेडपटने की कौन कहे, इस की तरफ कभी अंगुली तक उठा कर बात नहीं की.

इसीलिए तहजीब काजी को लगा कि कमला सत्यवती को ले कर आई है, यह तो ठीक है, लेकिन जो बता रही है, वह झूठ है. क्योंकि कमला जिस अंदाज में बात कर रही थी, उस से उन्होंने अनुमान लगाया कि यह काफी शातिर किस्म की औरत है. वह समझ गए कि मामला कुछ और ही है.

तहजीब काजी जानते थे कि यह औरत सच्चाई बता नहीं सकती, इसलिए उन्होंने सत्यवती से सच्चाई जानने की जिम्मेदारी एसआई रविता चौधरी को सौंप दी.

एसआई रविता चौधरी थानाप्रभारी के मकसद को भली प्रकार समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने जल्दी ही बातों ही बातों में सत्यवती का विश्वास जीत कर उस से सचसच बताने को कहा तो उस ने कमला और राशिद बाबा की जो सच्चाई बताई, उसे सुन कर सभी हक्केबक्के रह गए.

मीराबाई को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था कि जिस राशिद बाबा को वह भला आदमी समझ कर पूज रही थी, वही उस की बेटी को गंदा कर रहा था. सत्यवती के बयान से साफ हो गया था कि राशिद बाबा के जुर्म में कमला भी बराबर की हकदार थी, इसलिए पुलिस ने उसे तो गिरफ्तार कर ही लिया, उस की निशानदेही पर राशिद बाबा को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

पकड़े जाने के बाद राशिद ने दीनईमान की बातों में उलझा कर तहजीब काजी को प्रभावित करने की काफी कोशिश की, लेकिन उन्होंने राशिद और कमला के खिलाफ दुष्कर्म एवं धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर उन्हें अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

राशिद, उस की सहयोगी कमला और सत्यवती के बयान के आधार पर तंत्रमंत्र के नाम पर सत्यवती के यौनशोषण की जो कहानी उभर कर सामने आई, वह इस प्रकार थी—

नेमावर के अपने घर में साइकिल सुधारने और छोटीमोटी जरूरत के सामानों की दुकान चलाने वाला राशिद बाबा जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही कामुक और शातिर प्रवृत्ति का हो गया था. उस का निकाह जल्दी हो गया था, परंतु बीवी के आ जाने के बाद भी उस की आदत में कोई सुधार नहीं हुआ था.

कहा जाता है कि राशिद के मन में किशोर उम्र की लड़कियों के प्रति अजीब सी चाहत थी, इसलिए उम्र बढ़ने पर भी वह लड़कियों को हसरत भरी नजरों से देखता रहता था. दुकान पर आने वाली लड़कियों से भी वह छेड़छाड़ करता रहता था. यही वजह थी कि गांव की कुछ आवारा किस्म की औरतों से उस के संबंध बन गए थे. उन्हीं में एक कमला भी थी.

कमला राशिद के पड़ोस में ही रहती थी. कहा जाता है कि राशिद के संबंध कमला से तो थे ही, उस के माध्यम से उस ने कई अन्य औरतों से भी संबंध बनाए थे. लेकिन बढ़ती उम्र की वजह से अब औरतें उस के पास आने से कतराने लगी थीं.

इस से परेशान राशिद को अखबारों से ऐसे तांत्रिकों के बारे में पता चला, जो तंत्रमंत्र की ओट में महिलाओं का यौनशोषण करते थे. उस ने वही तरीका अपनाने की ठान कर कमला से बात की तो वह उस का साथ देने को राजी हो गई. राशिद जानता था कि तांत्रिक बनने में डबल फायदा है. एक तो नईनई औरतें अय्याशी के लिए मिलेंगी, दूसरे कमाई भी होगी.

इस के बाद पूरी योजना बना कर उस ने दाढ़ी बढ़ा ली और पांचों वक्त का नमाजी बन गया. इस के अलावा यहांवहां से कुछ तंत्रमंत्र सीख कर वह तांत्रिक बन गया. इस में कमला ने उस का पूरा साथ दिया. अगर वह मदद न करती तो शायद राशिद की तंत्रमंत्र की दुकान इतनी जल्दी न जम पाती.

दरअसल, कमला ने ही गांव की औरतों में यह बात फैला दी कि राशिद बाबा को रूहानी ताकत ने तंत्रमंत्र की शक्ति दी है, इसलिए उन की झाड़फूंक से बड़ी से बड़ी समस्या और बड़ी से बड़ी बीमारी दूर हो जाती है. अगर इस तरह की बातें फैलानी हों तो औरतों की मदद ले लो, फिर देखो इस तरह की बात फैलते देर नहीं लगेंगी.

राशिद के मामले में भी यही हुआ था. कमला ने नमकमिर्च लगा कर देखतेदेखते राशिद को आसपास के गांवों में बड़ा तांत्रिक के रूप में घोषित कर दिया. फिर क्या था, राशिद बाबा के यहां अपनी समस्याओं के हल और बीमारियों के इलाज के लिए औरतों की भीड़ लगने लगी.

राशिद ने तो योजना बना कर ही काम शुरू किया था. उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान कुछ इस तरह जमाई कि उस के पास समस्या ले कर आने वाली महिलाओं से पहले कमला बात करती थी, उस के बाद कमला उस की पूरी बात राशिद बाबा को बता देती थी.

समस्या ले कर आई महिला राशिद बाबा के सामने जाती थी तो वह उस के बिना कुछ कहे ही उस की समस्या के बारे में बता देता था. गांव की भोलीभाली औरतें समझ नहीं पातीं कि बाबा को यह बात कमला ने बताई होगी. वे तो बाबा को अंतरयामी मान कर उन के चरणों में गिर जाती थीं.

बाबा उन की पीठ पर हाथ फेर कर उन्हें ढेरों आशीर्वाद देता. जबकि असलियत में शातिर राशिद आशीर्वाद देने के बहाने वह अपनी ठरक मिटा रहा होता था.

इस दौरान वह महिला के हावभाव पर पूरी नजर रखता था. इसी पहले स्पर्श में वह समझ जाता था कि किस महिला के साथ कैसे पेश आना है. जो महिला उस के चंगुल में फंस सकती थी, उस के लिए वह कमला को इशारा कर देता था. कमला उस औरत को धीरेधीरे बाबा की विशेष सेवा के लिए राजी कर लेती थी. इस तरह कमला की मदद से राशिद बाबा की दुकानदारी बढि़या चल रही थी, साथ ही उसे अय्याशी के लिए नईनई औरतें भी मिल रही थीं.

राशिद पैसा भी कमा रहा था और मौज भी कर रहा था. कमला को भी इस का फायदा मिल रहा था, इसलिए वह आसपास के गांवों में ऐसी महिलाओं पर नजर रखती थी, जो किसी न किसी परेशानी में होती थीं. वह ऐसी औरतों को पकड़ती थी, जो बाबा पर पैसा भी लुटा सकें और जरूरत पड़ने पर बाबा को मौज भी करा सकें.

कमला को जब मीराबाई के पति रूप सिंह की बीमारी के बारे में पता चलने के साथ यह भी पता चला कि उस के घर युवा हो रही बेटी भी है तो वह मीराबाई से मिली और उसे राशिद बाबा के बारे में खूब बढ़ाचढ़ा कर बताया.

मीराबाई परेशान तो थी ही, उस ने कमला के पैर पकड़ कर कहा कि अगर वह उस के पति की बीमारी ठीक करवा दे तो वह जिंदगी भर उस का एहसान मानेगी. कमला ने उसे भरोसा दिलाया कि वह बाबा से रूप सिंह की बीमारी ठीक करवा देगी.

इस के बाद कमला बाबा को ले कर अगले ही दिन मीराबाई के घर आ पहुंची. दुर्भाग्य से जिस समय राशिद मीराबाई के घर पहुंचा, सत्यवती सजीधजी कहीं जाने को तैयार थी. उसे देखते ही राशिद की नीयत डोल गई. उस ने मीराबाई और रूप सिंह से मीठीमीठी बातें कर के तंत्रमंत्र का नाटक करते हुए कहा कि साल भर में वह उस की बीमारी ठीक कर देगा. लेकिन इस के लिए उसे उस के यहां से दवा ला कर खानी होगी.

रूप सिंह तो चलफिर नहीं सकता था, मीराबाई उस की देखाभाल में लगी रहती थी, इसलिए तय हुआ कि सत्यवती हर सप्ताह बाबा के यहां दवा लेने जाएगी. इस के अलावा जरूरत पड़ने पर बाबा खुद आ कर रूप सिंह की झाड़फूंक कर देगा.

सत्यवती हर सप्ताह दवा के लिए नेमावर जाने लगी. राशिद बाबा ने कमला की मदद से सत्यवती पर जाल फेंकना शुरू कर दिया. उस ने सत्यवती से कहा कि उस की सरकारी अफसरों से अच्छी जानपहचान है. अगर वह चाहे तो वह उस की सरकारी नौकरी ही नहीं लगवा सकता, बल्कि अच्छे लड़के से उस की शादी भी करवा सकता है. शादी की बात सुन कर सत्यवती लजाई तो बाबा ने हंस कर उसे सीने से लगा लिया और आशीर्वाद देने के बहाने कभी पीठ तो कभी कंधे पर हाथ फेरने लगा.

सत्यवती के कंधे से सरक कर राशिद बाबा का हाथ कब नीचे आ गया, सत्यवती को पता ही नहीं चला. इसी तरह एक दिन उस ने पूजा के नाम पर उसे निर्वस्त्र कर के उस के साथ जबरदस्ती शारीरिक संबंध बना डाला. वह रोने लगी तो राशिद ने उसे धमकी दी कि अगर उस ने इस बारे में किसी को कुछ बताया या दवा लेने नहीं आई तो वह अपने तंत्रमंत्र से न केवल उस के पिता की जान ले लेगा, बल्कि उस के शरीर में कोढ़ भी पैदा कर देगा.

मासूम सत्यवती को राशिद ने तो डराया ही, कमला ने भी कसर नहीं छोड़ी. उस ने सत्यवती से कहा कि बाबा ने उस के साथ जो किया है, उस से उस की किस्मत खुल गई है. बाबा जल्दी ही उस की सरकारी नौकरी लगवा देगा. उस के पिता भी एकदम ठीक हो जाएंगे. उस ने भी यह बात किसी को बताने से मना किया.

पिता की मौत और खुद को कोढ़ हो जाने के डर से सत्यवती ने बाबा के पाप को मां से छिपा लिया तो राशिद बाबा की हिम्मत बढ़ गई. सत्यवती जब भी उस के यहां दवा लेने आती, कमला की मदद से वह उस से अपनी हवस मिटाता.

बाबा की यह पाप लीला न जाने कब तक चलती रहती. लेकिन बरसात में बाबा का रंगीन मन कुछ ज्यादा ही मचल उठा. कमला को भेज कर उस ने चुपचाप सत्यवती को बुला लिया. सत्यवती घर में बता कर नहीं आई थी, इसलिए मांबाप परेशान हो उठे.

इधरउधर तलाशने पर सत्यवती नहीं मिली तो मीराबाई पुलिस तक पहुंच गई. उस के बाद तांत्रिक राशिद बाबा की पोल खुल गई. राशिद बाबा की सारी हकीकत सामने आने के बाद थानाप्रभारी तहजीब काजी ने उसे और उस की सहयोगी कमला को अदालत में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. MP News

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. सत्यवती बदला हुआ नाम है.

महिला ने लगाया आरोप काली गाड़ी में हुआ गैंगरेप

Gang Rape Case  : नगेश शर्मा, रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर झूठा आरोप लगा कर उन्हें ब्लैकमेल करना चाहता था. इस के लिए उस ने शालू को मोहरा बनाया, शालू ने दोनों पर बलात्कार का आरोप भी लगाया पर…

19 फरवरी 2014 की बात है. करीब 8 बजे गाजियाबाद, हापुड़ रोड पर सड़क किनारे बने एक स्थानीय बस स्टैंड के पास 25-26 साल की एक लड़की के रोने की आवाज सुन कर लोगों का ध्यान उस की ओर चला गया. लग रहा था कि लड़की किसी हादसे का शिकार हुई है. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे और वह नशे की वजह से ठीक से नहीं बोल पा रही थी. उस की हालत देख कर किसी व्यक्ति ने इस की सूचना 100 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. कुछ ही देर में इलाकाई गश्ती पुलिस की जीप वहां पहुंच गई. पुलिस को आया देख वहां मौजूद तमाशबीन इधरउधर हट गए. पुलिस ने लड़की से पूछताछ की तो उस ने अपना नाम शालू शर्मा बताया. वह मेरठ की रहने वाली थी.

शालू ने बताया कि वह आज सुबह ही काम की तलाश में गाजियाबाद आई थी. यहां कुछ लोगों ने उस का अपहरण कर के उस के साथ बलात्कार किया और उसे एक काली गाड़ी से यहां फेंक कर भाग गए. सामूहिक दुष्कर्म की बात सुन कर पुलिस टीम ने इस घटना की सूचना उच्चाधिकारियों को दे दी और पीडि़ता को जीप में बिठा कर महिला थाना ले आई. अभी पुलिस शालू से पूछताछ कर ही रही थी कि एक अन्य महिला पीडि़ता को ढूंढते हुए थाने पहुंच गई. उस औरत ने अपना नाम बृजेश कौशिक बताते हुए कहा कि वह मेरठ की रहने वाली है और शालू की चाची है.

बृजेश के अनुसार वह शालू को ढूंढ रही थी. तभी उसे बस स्टैंड के पास अस्तव्यस्त हालत में मिली एक लड़की के बारे में पता चला तो वह थाने आ गई. इस मामले की सूचना पा कर थाना कविनगर के थानाप्रभारी अरुण कुमार सिंह, सीओ (द्वितीय) अतुल कुमार यादव, एसपी (सिटी) शिवहरि मीणा व एसएसपी धर्मेंद्र कुमार यादव भी महिला थाना आ गए. पीडि़ता ने पूछताछ में बताया कि उस का नाम सुनीता शर्मा उर्फ शालू शर्मा है और वह पति से अनबन की वजह से अलग किराए के मकान में रहती है. आज सुबह ही वह काम की तलाश में मेरठ से गाजियाबाद आई थी.

बेहोश करके किया सामूहिक दुष्कर्म

गाजियाबाद में कलेक्ट्रेट के पास उस की मुलाकात कामेश सक्सेना नाम के व्यक्ति से हुई, जिस ने उसे काम दिलाने का भरोसा दिया. बातचीत के बाद वह उसे अपनी मोटरसाइकिल पर बिठा कर लोनी स्थित विधि विभाग के औफिस ले गया. इस के बाद वह उसे कुछ उच्च अधिकारियों से मिलवाने का बहाने बैंक कालोनी गाजियाबाद स्थित मित्रगण सहकारी आवास समिति के औफिस ले गया. वहां शाम 6 बजे कामेश ने उसे रविंद्र कुमार सैनी व कुछ अन्य लोगों से यह कह कर मिलवाया कि ये सब गाजियाबाद के बड़े लोग हैं. ये काम भी दिलवाएंगे और पैसा भी देंगे. वहीं पर उसे एक कप चाय पिलाई गई, जिसे पी कर वह बेहोश हो गई. बेहोशी की ही हालत में उन सभी ने उस के साथ सामूहिक Gang Rape Case दुष्कर्म किया. बाद में वे उसे एक काली कार मे डाल कर हापुड़ रोड पर गोविंदपुरम के पास फेंक कर भाग गए.

शालू जिस तरह बात कर रही थी, उस से पुलिस को कतई नहीं लग रहा था कि उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है. दूसरे बिना किसी सूचना के उस की चाची का थाने आना भी पुलिस को अजीब लग रहा था. इसलिए पुलिस ने आगे बढ़ने से पहले दोनों से ठीक से पूछताछ कर लेना उचित समझा. पूछताछ में शालू ने बताया था कि पति से अलग रहने की वजह से उस का और उस के बेटे का खर्चा नहीं चल पा रहा था. उसे नौकरी की तलाश थी. उस ने नौकरी के लिए अपने पड़ोस में रहने वाली अपनी चाची बृजेश कौशिक से कह रखा था. वह चूंकि समाजसेविका थी और उस के संपर्क भी अच्छे लोगों से थे इसलिए वह उसे नौकरी दिला सकती थी.

काम दिलाने के नाम पर ले गया

19 फरवरी की सुबह उस की चाची का फोन आया कि वह गाजियाबाद आ जाए. वह उसे नौकरी दिला देगी. उस ने यह भी कहा कि वह उसे गाजियाबाद कलेक्ट्रेट के पास मिलेगी. चाची के कहने पर ही वह गाजियाबाद कलेक्ट्रेट पहुंची थी. वहां चाची तो नहीं मिली, कामेश सक्सेना मिल गया. वह काम दिलाने के नाम पर उसे अपने साथ ले गया था. उधर बृजेश ने बताया था कि जब वह कलेक्ट्रेट पहुंची तो शालू उसे वहां नहीं मिली. उस के बाद वह दिन भर उसे ढूंढती रही. उसे शालू की बहुत चिंता हो रही थी. फिर रात गए जब उसे पता चला कि हापुड़ रोड के एक बसस्टैंड के पास एक लड़की पड़ी मिली है और उसे महिला थाने ले जाया गया है तो वह यहां आ गई. यहां पता चला कि वह लड़की शालू ही थी और उस के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था.

शालू और बृजेश के बयानों में काफी विरोधाभास था. पुलिस को शक हुआ तो उस ने शालू और बृजेश से पूछा कि जब दोनों के पास मोबाइल फोन थे तो उन्होंने एकदूसरे से फोन पर बात क्यों नहीं की. इस पर दोनों नेटवर्क का रोना रोने लगीं. यह बात पुलिस के गले नहीं उतरी, जिस से उसे शालू और बृजेश की बातों पर कुछ शक हुआ. बहरहाल, पुलिस ने शालू शर्मा के बयान के आधार पर नामजद अभियुक्तों के खिलाफ रात साढ़े 8 बजे धारा 342, 506 व 376 के तहत केस दर्ज कर लिया. इस के साथ ही उसे मैडिकल जांच के लिए जिला अस्पताल भेज दिया गया. मैडिकल जांच में इस बात की पुष्टि हो गई कि शालू के साथ दुष्कर्म हुआ था. चूंकि शालू गैंगरेप की बात कर रही थी, इसलिए मामले की गंभीरता को समझते हुए पुलिस उच्चाधिकारियों ने मीटिंग की और इस की जांच का जिम्मा सीओ (द्वितीय) अतुल यादव को सौंप दिया. उन्हें निर्देश दिया गया कि आरोपियों को गिरफ्तार कर के जल्द से जल्द मामले का खुलासा करें.

पुलिस को हुआ शालू की बातों पर शक

सीओ अतुल कुमार यादव, थानाप्रभारी कविनगर अरुण कुमार सिंह, महिला थानाप्रभारी अंजू सिंह तेवतिया व सबइंस्पेक्टर अमन सिंह ने इस मामले पर आपस में विचारविमर्श किया तो उन्हें शालू और बृजेश के बयानों में विरोधाभास नजर आया. रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना के फोन नंबर शालू से ही मिल गए. पुलिस ने उन से संपर्क किया तो बात भी हो गई. दोनों ही सम्मानित व्यक्ति थे. रविंद्र सैनी प्रौपर्टी का काम करते थे, जबकि कामेश सक्सेना बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर थे. चूंकि Gang Rape Case दुष्कर्म का मामला दर्ज हो चुका था, इसलिए पुलिस ने रात में ही रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना को थाने बुला लिया. दोनों का ही कहना था कि उन पर यह झूठा आरोप लगाया जा रहा है, पुलिस चाहे तो उन की काल डिटेल्स रिकलवा कर उन की लोकेशन पता कर सकती है. चूंकि पुलिस को शालू की बातों पर शक था, इसलिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का उस से आमनासामना नहीं कराया.

इस की जगह उन्होंने एक बार फिर पीडि़ता शालू से गहन पूछताछ का मन बनाया, ताकि सच्चाई सामने आ सके. लेकिन इस से पहले पुलिस टीम में पीडि़ता और दोनों नामजद आरोपियों के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवा कर चैक कर लिया. तीनों की काल डिटेल्स की पड़ताल से पता चला कि पूरे दिन शालू और कामेश सक्सेना के फोन लोकेशन कलेक्ट्रेट या लोनी के आसपास नहीं थी. जबकि शालू अपने बयान में दावा कर रही थी कि वह कामेश से कलक्ट्रेट पर मिली थी. काल डिटेल्स से यह भी पता चला कि रविंद्र सैनी का कामेश सक्सेना या पीडि़ता से एक बार भी मोबाइल फोन से संपर्क नहीं हुआ था. इस से पुलिस को लगा कि शालू संभवत: कामेश सक्सेना और रविंद्र सैनी को जानती ही नहीं है.

पुलिस ने काल डिटेल्स निकलवाई तो किसका नंबर निकला

ऐसी स्थिति में इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता था कि हो न हो शालू किसी लालच के तहत या किसी के कहने पर रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना पर आरोप लगा रही हो. इस सच्चाई का पता लगाने के लिए पुलिस ने रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना सहित 8 लोगों को शालू के सामने खड़ा कर के पूछा कि वह दुष्कर्मियों को पहचाने. लेकिन वह रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना में से किसी को नहीं पहचान सकी. इस का मतलब वह झूठ बोल रही थी. पुलिस की इस काररवाई ने जांच की दिशा ही बदल दी. अब शालू खुद ही जांच के दायरे में आ गई. दोनों आरोपियों की काल डिटेल्स से यह साबित हो गया था कि वे दोनों भी एकदूसरे के संपर्क में नहीं थे. जबकि पीडि़ता ने अपने बयान में कहा था कि कामेश ने ही उसे रविंद्र से सोसाइटी के औफिस में मिलवाया था. अगर ऐसा होता तो दोनों के बीच बातचीत जरूर हुई होती.

इसी बात को ध्यान में रख कर जब शालू की काल डिटेल्स को फिर से जांचा गया तो उस में एक खास नंबर पर पुलिस की निगाह पड़ी. शालू ने मेरठ से गाजियाबाद आने के बाद उस नंबर पर दिन में कई बार बात की थी. काल डिटेल्स से यह बात भी सामने आ गई थी कि शालू और उस नंबर से फोन करने वाले की ज्यादातर लोकेशन नवयुग मार्केट, गाजियाबाद के आसपास थी. शालू की तथाकथित चाची बृजेश के मोबाइल नंबर की भी काल डिटेल्स निकलवाई गई थी. जांच में पता चला कि दिनभर वह भी उस नंबर के संपर्क में रही थी. उस नंबर से उस के मोबाइल पर कई बार फोन आए थे. जब उस संदिग्ध फोन नंबर की आईडी निकलवाई गई तो पता चला कि वह नंबर नगेशचंद्र शर्मा, निवासी गांव रामपुर, जिला हापुड़ का है.

पुलिस ने उस नंबर पर फोन किया तो वह बंद मिला. इस से पुलिस को पक्का यकीन हो गया कि इस मामले में कोई न कोई झोल जरूर है. अगले दौर की पूछताछ के लिए शालू उर्फ सुनीता शर्मा को एक बार फिर से तलब किया गया. इस बार शालू से जब उस के फोन की काल डिटेल्स को आधार बना कर पूछताछ की गई तो वह अधिक देर तक पुलिस के सवालों का सामना नहीं कर सकी. उस ने इस फरजी दुष्कर्म कांड का सारा राज खोल दिया. मेरठ रोड, नई बस्ती निवासी तेजपाल शर्मा की बेटी सुनीता शर्मा उर्फ शालू भले ही अभावों में पलीबढ़ी थी, लेकिन थी महत्त्वाकांक्षी, जब वह 16 साल की थी, तभी उस की शादी मेरठ के ही प्रवीण शर्मा से हो गई. मायके में तो गरीबी थी ही, शालू की ससुराल की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी. शादी के 2 साल बाद ही शालू प्रवीण के बेटे की मां बन गई.

शालू और प्रवीण में वैचारिक मतभेद रहते थे, जो धीरेधीरे बढ़ते गए. जब दोनों में झगड़ा रहने लगा तो शालू ससुराल छोड़ कर अपने बेटे के साथ मायके में रहने आ गई. अपने और बेटे के पालनपोषण के लिए चूंकि नौकरी करना जरूरी था, इसलिए वह नौकरी की तलाश में लग गई. नौकरी तो उसे नहीं मिली, पर राजकुमार गुर्जर उर्फ राजू भैया जरूर मिल गया, जो बसपा के टिकिट पर जिला पंचायत का चुनाव लड़ रहा था. राजनीति की नैया पर सवार हो कर आगे बढ़ने की चाह में शालू ने राजकुमार गुर्जर से नजदीकियां बना लीं और उस के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगी. लेकिन कुछ दिनों बाद शालू को लगने लगा कि उसे अपने और अपने बेटे के लिए नौकरी तो करनी ही पड़ेगी. नौकरी की जरूरत महसूस हुई तो शालू ने पड़ोस में रहने वाली अपनी रिश्ते की चाची बृजेश कौशिक से मदद मांगी. उस के कहने पर ही वह गाजियाबाद आई थी.

पुलिस को दिए अपने इकबालिया बयान में शालू शर्मा ने बताया था कि वह अपनी चाची बृजेश कौशिक के माध्यम से नगेशचंद्र शर्मा को जानती थी और उसी के बुलाने पर 19 फरवरी को मेरठ से गाजियाबाद आई थी. नगेशचंद्र का औफिस नवयुग मार्केट में था. उस के नवयुग मार्केट स्थित औफिस पहुंचने के कुछ देर बाद उस की चाची बृजेश कौशिक भी वहां आ गई थी. नगेशचंद्र शर्मा ने शालू को एक परचा लिख कर दिया, जिस पर 2 आदमियों के नाम व फोन नंबर लिखे थे. इन में एक नाम रविंद्र सैनी का और दूसरा कामेश सक्सेना का था. नगेश ने उन दोनों के फोटो शालू को दिखा कर कहा कि उसे उन के खिलाफ दुष्कर्म का मुकदमा दर्ज कराना है. जब वह एफआईआर दर्ज करा देगी तो उसे 20 हजार रुपए दिए जाएंगे. उस कागज को पढ़ कर शालू ने चाची की ओर देखा तो उस ने कहा कि अगर पैसों की ज्यादा जरूरत है तो यह काम कर दे. इस काम में वह भी उस की मदद करेगी.

अर्द्धबेहोशी की हालत में किया दुष्कर्म

इस के बाद नगेश ने फोन कर के लोनी के एक लड़के शहजाद को बुलाया. उस के आने के बाद नगेश ने उसे कप में डाल कर चाय पिलाई, जिसे पी कर शालू अर्द्धबेहोशी की हालत में आ गई. इस बीच नगेश शहजाद को वहीं छोड़ कर चाची के साथ बाहर चला गया. अर्द्धबेहोशी की हालत में शहजाद ने उस के साथ दुष्कर्म किया. शालू ने आगे बताया कि उस ने अपनी पहली एफआईआर में रविंद्र सैनी और कामेश सक्सेना का नाम नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर लिखवाया है, जिन्हें वह जानती तक नहीं थी. शालू शर्मा के इस इकबालिया बयान को अगले दिन धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराया गया. शालू के इस बयान के बाद इस मामले की सभी बिखरी कडि़यां जुड़ गई थीं.

पुलिस ने मुखबिरों की निशानदेही और फोन लोकेशन के आधार पर जाल बिछा कर 20 फरवरी, 2014 की सुबह साढ़े 9 बजे बसअड्डे के सामने संतोष अस्पताल के गेट के पास से नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद निवासी बंगाली पीर, कस्बा लोनी और बृजेश कौशिक निवासी शिवपुरम, मेरठ को गिरफ्तार कर लिया. उस समय ये तीनों काली वैगनआर कार से कहीं भागने की फिराक में थे. तीनों को थाने ला कर पूछताछ की गई तो नगेश चंद्र शर्मा ने बताया कि वह रविंद्र सैनी व कामेश सक्सेना को पहले से ही जानता था. दोनों ही करोड़पति हैं. उन्हें वह दुष्कर्म के झूठे केस में फंसा कर मोटी रकम वसूलना चाहता था. नगेशचंद्र शर्मा खुद को एटूजेड न्यूज चैनल का पत्रकार बताता था. इसी नाम से उस ने नवयुग मार्केट में औफिस भी खोल रखा था. जबकि शहजाद फोटोग्राफर था और नगेशचंद्र शर्मा के साथ ही रहता था. वैसे एटूजेड चैनल का कहना है कि उस ने नगेशचंद्र शर्मा को काफी पहले निकाल दिया था.

बहरहाल, आरोपी शहजाद ने बताया कि उस ने जो भी किया, नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था, वह भी रविंद्र और कामेश को नहीं जानता था. बृजेश कौशिक का भी यही कहना था कि उस ने भी जो किया वह नगेशचंद्र शर्मा के कहने पर किया था. वह भी रविंद्र सैनी या कामेश सक्सेना को नहीं जानती थी. 66 वर्षीय रविंद्र सैनी अपने परिवार के साथ सैक्टर 9, राजनगर गाजियाबाद में रहते थे. उन के दोनों बेटे उच्च शिक्षा प्राप्त थे और अपनेअपने परिवार के साथ अमेरिका और बंगलूरु में रहते थे. रविंद्र सैनी स्टेट बैंक औफ इंडिया की महाराजपुर, गाजियाबाद शाखा से 1998 में रिटायर हुए थे. डिप्टी मैनेजर के पद पर कार्य करते हुए उन्होंने रिटायर होने से पहले एक आवासीय समिति बनाई थी. यह उस समय की बात है, जब दिल्ली और एनसीआर में जमीनों के दाम बहुत कम थे. तब जमीनें आसानी से उपलब्ध थीं.

उसी जमाने में रविंद्र सैनी ने किसानों से 14 एकड़ जमीन खरीद कर एक सोसायटी बनाई, जिस का नाम रखा गया राष्ट्रीय बैंककर्मी एवं मित्रगण आवास समिति. यह आवासीय समिति सदरपुर गाजियाबाद के पास है. इस आवास समिति के पहले चुनाव में प्रमोद कुमार त्यागी को अध्यक्ष व रविंद्र सैनी को सचिव पद के लिए चुना गया था. इस समिति के 203 सदस्य हैं. इस समिति ने जो आवासीय कालोनी बनाई उस का नाम संयोगनगर रखा गया. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि समिति के पहले चुनाव में ही रविंद्र सैनी को सर्वसम्मति से आजीवन सचिव बनाया गया था. इस पद पर कार्य करते हुए अध्यक्ष प्रमोद त्यागी को जब कई तरह की वित्तीय अनियमितताओं में लिप्त पाया गया तो 2005 के चुनाव में उन्हें पद से हटा दिया गया. उन की जगह वीरेंद्र त्यागी को अध्यक्ष चुना गया. प्रमोद त्यागी ने पद से हटाए जाने का कारण रविंद्र सैनी को माना और उन से रंजिश रखने लगे.

करीब 2 साल तक चुप रहने के बाद प्रमोद त्यागी ने अधिगृहीत जमीन के किसानों के साथ मिल कर कई तरह की अनियमितताओं की शिकायतें जीडीए व अन्य सरकारी विभागों में कीं. लेकिन जब कोई सफलता नहीं मिली तो उन्होंने अपने एक दोस्त विजय पाल त्यागी द्वारा सितंबर, 2010 में रविंद्र सैनी के खिलाफ गाजियाबाद की सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दर्ज कराया. इस में कहा गया था कि रविंद्र सैनी ने गाजियाबाद के डूंडाहेड़ा इलाके में उन्हें एक भूखंड दिलाने की एवज में 3 किश्तों में 16 लाख 10 हजार रुपए लिए थे, जिन्हें हड़प लिया है और जमीन की रजिस्ट्री भी नहीं कराई है. यह मुकदमा आज भी अदालत में विचाराधीन है. 18 अक्टूबर 2013 को दोपहर करीब 1 बजे रविंद्र सैनी को जैन नाम के किसी व्यक्ति ने फोन कर के कहा कि वह उन का मकान किराए पर लेना चाहता है.

लेकिन रविंद्र सैनी जब वहां पहुंचे तो बंदूक और रिवाल्वर की नोक पर उन्हें बंधक बना कर उन के बैंक कालोनी स्थित मकान की तीनों मंजिलों की रजिस्ट्री उन के नाम करने, 15 लाख रुपए नकद देने तथा समिति के सचिव पद से हट जाने को कहा गया. ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई. इस घटना की तहरीर उसी दिन देर शाम रविंद्र सैनी ने थाना कविनगर में दर्ज कराने की कोशिश की. लेकिन पुलिस ने रिपोर्ट लिखने से इनकार कर दिया. इस पर रविंद्र सैनी ने अदालत की शरण ली. अदालत के आदेश पर नामजद अभियुक्तों प्रमोद कुमार त्यागी और विजय पाल त्यागी के खिलाफ 18 अक्तूबर, 2013 को भादंवि की धारा 384, 323, 386, 452, 504 व 506 के तहत मुकदमा दर्ज तो कर लिया गया, लेकिन कोई भी काररवाई नहीं की गई.

कोई काररवाई न होती देख रवींद्र सैनी ने अपनी व्यथा एसएसपी गाजियाबाद, डीआईजी मेरठ जोन, मंडलायुक्त मेरठ, डीजीपी लखनऊ, मानव अधिकार आयोग व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तक भी पहुंचाई. लेकिन सिवाय आश्वासनों के उन्हें कुछ नहीं मिला. अभी तक यह लड़ाई और रंजिश व्यक्तिगत थी, लेकिन अब उन्हें एक और झूठे दुष्कर्म केस में फंसाने की कोशिश की गई. इस मामले में नाम आने पर रवींद्र सैनी और उन के परिवार की काफी बदनामी होती, लेकिन पुलिस की तत्परता से वह बालबाल बच गए. इस कथित दुष्कर्म कांड में नामजद दूसरे आरोपी कामेश सक्सेना, गाजियाबाद के बिजली विभाग में कार्यरत हैं और परिवारसहित विजयनगर में रहते हैं.

20 फरवरी, 2014 को रवींद्र सैनी द्वारा दी गई तहरीर के आधार पर भादंवि धारा 384/511 व 120बी के तहत एक एफआईआर दर्ज की गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद व बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इसी मामले में एक अन्य एफआईआर कथित पीडि़ता सुनीता शर्मा उर्फ शालू द्वारा भी दर्ज कराई गई, जिस में नगेशचंद्र शर्मा, शहजाद और बृजेश कौशिक को आरोपी बनाया गया. इन के खिलाफ धारा 376, 342, 506 व 120बी के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई. गिरफ्तार किए गए तीनों आरोपियों को उसी दिन गाजियाबाद कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित है