हनी ट्रैप से बुझी बदले की आग

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 3

प्रदेश भर में गूंजा रीता हत्याकांड

इस के बाद तो मामले की गूंज प्रदेश भर में गूंजने लगी थी. कंकाल की खबर इलैक्ट्रौनिक और प्रिंट मीडिया में प्रमुखता से छाने लगी. 3 साल से इटावा के अस्पताल की मोर्चरी के डीप फ्रीजर में कैद एक युवती की लाश (कंकाल) जिस का 2-2 बार डीएनए टेस्ट कराने के बाद भी मामला अधर में लटका हुआ था.

इटावा के जिला चिकित्सालय की मोर्चरी में पिछले 3 साल से डीप फ्रीजर में बंद कंकाल के लावारिस हालत में पड़े होने की जानकारी को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गंभीरता से लिया.

26 अक्तूबर, 2023 को हाईकोर्ट ने समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लेते हुए अपना निर्णय देते हुए मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर, न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने सरकार और पुलिस अधिकारियों से पूछा कि आमतौर पर शव गृहों में रखे गए शवों के अंतिम संस्कार की क्या प्रथा है? इटावा के इस मामले में इतना विलंब होने की क्या वजह है? क्या ऐसा कोई नियम है, जिस के तहत सरकार को निश्चित समय में शवों का अंतिम संस्कार करना होता है?

कोर्ट ने प्रकरण में विवेचना की स्थिति और शव संरक्षित करने की स्थिति, शव संरक्षित करने की पूरी टाइम लाइन बताने का निर्देश दिया. इस के साथ ही केस डायरी और डीएनए जांच के लिए भेजे गए सैंपल और उस की रिपोर्ट के बारे में भी जानकारी मांगी.

मृतका की मम्मी भगवान देवी व घर वालों की भावनाओं को देखते हुए न्यायालय ने पुलिस को हैदराबाद की लैब में डीएनए टेस्ट कराने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई की तिथि 31 अक्तूबर, 2023 निश्चित कर दी.

उच्च न्यायालय ने बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा को इस प्रकरण में न्याय मित्र नियुक्त करते हुए उन से न्यायालय का सहयोग करने के लिए कहा.

मामले का स्वत:संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और इटावा के पुलिस अधिकारियों से विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराने के लिए कहा है. कोर्ट ने कहा कि कानूनव्यवस्था का मूल्यांकन न केवल जीवित लोगों के साथ उस के व्यवहार के तरीके से किया जाना चाहिए, बल्कि मृतकों को देने वाले सम्मान से भी किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा कि मृतकों की प्रतिष्ठा और जीवितों की प्रतिष्ठा जैसा कोई भी विभाजन प्रतिष्ठा को उस के अर्थ से वंचित कर देगा. मृत्यु जीवन की तुच्छता को दर्शाती है. प्रतिष्ठा जीवन की सार्थकता की गवाही देती है. यदि मृतकों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा सुरक्षित नहीं है.

यदि मृतकों की प्रतिष्ठा को महत्त्व नहीं दिया जाता है तो जीवित लोगों की प्रतिष्ठा को भी महत्त्व नहीं दिया जाता है. संविधान मृतकों का संरक्षक है, कानून उन का सलाहकार है और अदालतें उन के अधिकारों की प्रहरी हैं.

बारबार क्यों कराया गया डीएनए टेस्ट

कोर्ट के आदेश के बाद इटावा पुलिस ने कंकाल के साथ ही रीता के मम्मीपापा के सैंपल ले कर दिसंबर, 2023 में सेंट्रल फोरैंसिक साइंस लैबोरेटरी, हैदराबाद को भेजा गया.

इस लैब से जनवरी, 2024 को जो रिपोर्ट पुलिस को प्राप्त हुई, वह पौजीटिव थी. रिपोर्ट में कहा गया था कि कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल की जांच से स्पष्ट हो गया कि कंकाल के मम्मीपापा भगवान देवी व कुंवर सिंह ही हैं.

कंकाल बेटी रीता का ही है, इस बात की जानकारी मिलते ही घर वालों ने राहत की सांस ली. डीप फ्रीजर में कैद रीता का कंकाल, जो पिछले 40 महीने से अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा था, को घर वालों द्वारा लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कैद से मुक्त करा लिया गया.

31 जनवरी, 2024 को पुलिस ने रीता की मम्मी भगवान देवी को तहसील बुलाया. वह घर के अन्य सदस्यों के साथ तहसील पहुंची तो उन सब से तहसील अधिकारियों ने कहा कि बेटी का कंकाल ले जाओ और खामोशी से इसे दफना दो. इस के बाद कंकाल उन को सौंप दिया गया.

डीएम इटावा के निर्देश पर 4 सदस्यीय टीम जिस में एसडीएम दीपशिखा, तहसीलदार भूपेंद्र सिंह, एसएचओ कपिल दुबे, क्राइम इंसपेक्टर रमेश सिंह शामिल थे, रीता के परिवार के चक सलेमपुर स्थित खेत पर पहुंचे, जहां उन की देखरेख में भाई राजीव व उस के चचेरे भाई ने गड्ढा खोदने के बाद खामोशी से कंकाल को दफना दिया.

पुलिस शुरू से ही क्यों रही लापरवाह

मृतका के बड़े भाई राजीव व छोटे भाई सौरभ उर्फ बंटी ने बताया कि पुलिस शुरू से ही मामले में ढील डाले रही. शुरू में गुमशुदगी दर्ज कराई थी, उस में किसी को नामजद नहीं किया गया था, लेकिन लाश (कंकाल) मिलने के बाद पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम बताए थे.

लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों  के ढुलमुल रवैए के चलते किसी भी आरोपी को हिरासत में नहीं लिया गया. नामजद किए गए आरोपी भनक लगते ही घटना के 11वें दिन अपने घर ताला लगा कर रात में ही फरार हो गए.

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                                                                        आरोपी रामकुमार

यदि पुलिस मुख्य आरोपी रामकुमार को हिरासत में ले कर पूछताछ करती तो हत्या का राज उसी समय खुल जाता, लेकिन तत्कालीन पुलिस अधिकारियों ने पूछताछ करना भी जरूरी नहीं समझा और आरोपियों को हत्या के सबूत नष्ट करने का समय दे दिया.

यहां तक कि आरोपी रामकुमार ने साल 2021 में अपना जसवंतनगर का प्लौट व सिरसा में खेती की जमीन भी बेच दी. यह सब उन लोगों ने षडयंत्र के तहत ही किया है.

45 वर्षीय रामकुमार मूलरूप से इटावा जिले के सिरसा का रहने वाला है. लगभग 20-22 साल पहले वह गांव चक सलेमपुर में आ कर मकान बना कर पत्नी के साथ रहने लगा था. वह शटरिंग का काम करता था.

एसएसपी संजय कुमार शर्मा ने बताया कि इस मामले की जांच नए सिरे से शुरू की गई है. जांच के लिए सर्विलांस सहित 3 टीमों को लगाया गया है. जल्द ही हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी कर मामले का परदाफाश किया जाएगा. रिपोर्ट में जो लोग नामजद हैं, उन के बारे में भी गहराई से छानबीन की जाएगी. गुनहगारों को उन की सही जगह पहुंचाया जाएगा.

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                                                     आरोपी मिथिलेश कुमारी

इसी बीच मृतका रीता के कंकाल का डीएनए उस के मम्मीपापा से मैच हो जाने की जानकारी मिलते ही हत्या के आरोपी रामकुमार व उस की पत्नी मिथलेश ने 2 फरवरी, 2024 को इटावा की अदालत में आत्मसमर्पण के लिए प्रार्थनापत्र दिया, लेकिन इसी दौरान मिथिलेश को चोट लग गई, जिस के चलते केवल रामकुमार ही आत्मसमर्पण कर सका.

न्यायालय ने उसे न्यायायिक हिरासत में लेने के बाद जेल भेज दिया. जबकि 28 फरवरी, 2024 को आरोपी रामकुमार के बेटे मोहित गौतम ने भी आत्मसमर्पण के साथ जमानत के लिए प्रार्थनापत्र दिया. न्यायालय ने जमानत प्रार्थनापत्र पर 4 मार्च, 2024 को सुनवाई करते हुए जमानती प्रार्थनापत्र अस्वीकार करते हुए मोहित को जेल भेज दिया.

जांच अधिकारी इंसपेक्टर रमेश सिंह ने बताया कि इस सोशल क्राइम के 2 आरोपियों रामकुमार और मोहित ने न्यायालय में आत्मसमर्पण कर दिया है. दोनों इस समय जेल में हैं. तीसरी आरोपी रामुकमार की पत्नी मिथिलेश कुमारी फरार चल रही है. पुलिस सरगर्मी से उसे तलाश रही है. मुखबिर भी लगा दिए गए हैं, उसे शीघ्र गिरफ्तार कर जेल भेजा जाएगा.

—कथा पुलिस सूत्रों और मृतका के घर वालों से हुई बातचीत पर आधारित

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 2

कोर्ट के आदेश पर जागी पुलिस

सभी तरफ से निराश होने के बाद भी भगवान देवी चुप नहीं बैठी. अपनी बेटी के लापता होने के बाद उस की हत्या होने के कारण वह दुखी थी. लगभग 2 साल तक थाने व पुलिस के उच्चाधिकारियों के चक्कर काटने के बाद भगवान देवी की हिम्मत जबाव दे गई.

जब अपनी बेटी के शव (कंकाल) को प्राप्त करने के लिए घर वाले परेशान हो गए, तब मां भगवान देवी ने न्याय के लिए साल 2022 में हाईकोर्ट, इलाहाबाद का दरवाजा खटखटाया.

रीता की मां भगवान देवी ने अपनी रिट याचिका में पुलिस पर आरोप लगाया कि पुलिस को कई बार प्रार्थनापत्र देने के बाद भी अब तक आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है, साथ ही डीएनए रिपोर्ट भी नहीं दी गई है. भगवान देवी ने न्यायालय से इस संबंध में एसएसपी, इटावा को निर्देश जारी करने की अपील की.

इस पर न्यायालय ने भगवान देवी की रिट पर सुनवाई करते हुए 11 जुलाई, 2022 के अपने आदेश  में एसएसपी इटावा को भगवान देवी द्वारा 22 सितंबर, 2020 को गुमशुदगी की जो सूचना थाना जसवंतनगर में दर्ज कराई थी. पुलिस पूछताछ में आरोपियों के नाम भी बताए थे.

इस के बाद 26 सितंबर को जब बाजरा के खेत में कंकाल मिला, तब कपड़ों व अन्य चीजों से कंकाल की पहचान बेटी रीता के रूप में की थी. इसी गुमशुदगी को प्रथम सूचना रिपोर्ट के रूप में आरोपियों के खिलाफ परिवर्तित करने तथा दोबारा डीएनए टेस्ट कराने और 2 माह में डीएनए रिपोर्ट और जांच प्रगति रिपोर्ट न्यायालय में दाखिल करने के आदेश दिए.

कोर्ट के आदेश के बाद सोई हुई पुलिस सक्रिय हुई और घटना के लगभग 2 साल बाद 22 जुलाई, 2022 को गांव चक सलेमपुर निवासी शटङ्क्षरग का काम करने वाले रामकुमार, उस की पत्नी मिथिलेश कुमारी, बेटा मोहित व थाना बलरई के गांव ज्वालापुर निवासी सत्येंद्र कुमार के खिलाफ पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी, 506, 3(2)बी एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

क्षतविक्षत कंकाल और एक परिवार के दावों के बीच फंसी पुलिस ने कोर्ट के आदेश के बाद कंकाल का दोबारा डीएनए कराने का फैसला किया. भगवान देवी व उस के पति कुंवर सिंह का ब्लड सैंपल फोरैंसिक टीम द्वारा लेने के बाद लखनऊ लैब 18 अगस्त, 2022 को डीएनए जांच के लिए भेजा गया.

पुलिस द्वारा कई रिमाइंडर देने पर 11 महीने बाद 10 जुलाई, 2023 को दूसरी बार मिले डीएनए रिपोर्ट इस आधार पर बेनतीजा रही कि शव का नमूना मैच नहीं हो रहा. लैब की इस रिपोर्ट ने पुलिस को चकित और भगवान देवी को परेशान कर दिया. क्योंकि लाश (कंकाल) भगवान देवी के परिवार से जुड़ी नहीं थी.

सामान रीता का, कंकाल किसी और का                            

पुलिस का कहना था कि 11 महीने बाद जो दूसरी रिपोर्ट प्राप्त हुई है, वह मृतका के मम्मीपापा के डीएनए से मैच नहीं हो रही है. पुलिस ने मृतका का मातापिता न मानते हुए कंकाल देने से इंकार कर दिया. 2-2 बार डीएनए की रिपोर्ट सही न आने के बाद मामला फिर ठंडे बस्ते में चला गया.

जांचकर्ताओं ने यह संदेह करते हुए कि कंकाल के पास से मिले सामान जरूरी नहीं हैं कि मृतक रीता के ही हों. हो सकता है कि हत्यारों ने पुलिस को चकमा देने के लिए रीता के कपड़ों व पहने गहनों के साथ किसी दूसरे का शव वहां ला कर डाल दिया हो. इस बात की भी आशंका व्यक्त की गई कि कहीं रीता का अपहरण तो नहीं कर लिया गया?

जांचकर्ताओं ने शव (कंकाल) को डीएनए मैच न होने पर इन्हीं आशंकाओं के चलते सौंपने से इंकार कर दिया. चंूकि हत्या के संभावित मामले में क्षतविक्षत मानव अवशेष ही एकमात्र सुराग थे, इसलिए पुलिस ने यह सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव सावधानी बरती कि सबूत प्रभावित न हों और अच्छी तरह से सुरक्षित हों.      

भगवान देवी ने आरोप में कहा कि रामकुमार की रीता के साथ दोस्ती थी. वह अकसर उस के मोबाइल पर फोन कर के उस से बात करता था. दोनों चोरीछिपे मिलते भी थे. हम लोगों को इस बात की जानकारी रीता का कंकाल मिलने के बाद उस समय हुई, जब पुलिस ने उस के मोबाइल की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स से पता चला कि उस की आखिरी बार रामकुमार से ही बात हुई थी.

जब रामकुमार की पत्नी मिथलेश को इन संबंधों की जानकारी हुई तो सभी आरोपियों ने षडयंत्र के तहत रीता को फोन कर के 19 सितंबर, 2020 को अपने घर बुलाया और मिल कर उस की हत्या कर दी. रात के समय वे उसे बाजरा के खेत में डाल आए. शव को कैमिकल डाल कर जलाया गया था, ताकि उस की पहचान न हो सके.

पुलिस ने आरोपियों को क्यों नहीं किया गिरफ्तार

रीता के मोबाइल की काल डिटेल्स से भी स्पष्ट हो गया कि आखिरी बार रीता के पास रामकुमार के बेटे का ही फोन आया था. उस के पास अधिकतर रामकुमार के ही फोन आते थे.

रीता के बड़े भाई राजीव का कहना था कि यदि कंकाल उस की बहन रीता का नहीं है, तो रीता का क्या हुआ? वह कहां है? पुलिस अब तक उस का पता क्यों नहीं लगा सकी?

दूसरी ओर अपने दावे में दम दिखाने के लिए भगवान देवी ने भी इटावा के एसएसपी को एक प्रार्थना पत्र दे कर नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की.

इस पर तत्कालीन जांच अधिकारी संजय कुमार सिंह ने कहा कि जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि कंकाल तुम्हारी बेटी रीता का है, तब तक कैसे किसी को आरोपी मान लिया जाए?

भगवान देवी ने तत्कालीन पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया कि गिरफ्तारी न होने का फायदा उठा कर बेटी के हत्यारे खुलेआम गांव में घूमते रहे, बाद में मौका पा कर वे फरार हो गए.

इसी बीच गांव में भी इस बात की चर्चा चलने लगी कि रीता और रामकुमार के बीच प्रेम संबंध थे. वे चोरीछिपे मुलाकात करने लगे. धीरेधीरे मुलाकात दोस्ती में बदल गई. कहने को दोनों की उम्र में दोगुने का फर्क था. रामकुमार 45 साल का और रीता 22 साल की थी, लेकिन रामकुमार की मीठीमीठी बातों में आ कर रीता बहक गई थी.

दोनों के बीच प्रेम संबंधों की किसी को भनक तक नहीं लगी. दोनों अकसर एकदूसरे से फोन पर बात कर लेते थे. जब दोनों के प्रेम संबंधों की जानकारी रामकुमार की पत्नी मिथिलेश को हुई तो उस ने सुनियोजित ढंग से अंजाम दे कर रीता की हत्या करवा दी. इस के लिए घटना वाले दिन उस ने बेटे मोहित के मोबाइल से रीता को फोन कर के बुला लिया.

इस बात को भगवान देवी ने भी बातचीत के दौरान स्वयं स्वीकार किया है. उस ने बताया कि कंकाल मिलने के बाद रामकुमार ही हमदर्द बन कर खड़ा रहा, यहां तक कि कंकाल मिलने से पहले रीता की तलाश में भी वह उन के साथ रहा. लेकिन बाद में रामकुमार की भूमिका को ले कर जब सवाल खड़े होने लगे, तब रामकुमार पर शक जाहिर करते उस के खिलाफ प्रार्थनापत्र दिए और कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस ने नामजद रिपोर्ट दर्ज की.

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पुलिस गोपनीय तरीके से क्यों कर रही थी अंतिम संस्कार

कोर्ट के आदेश पर दूसरी बार कराए गए डीएनए टेस्ट का मैच न होने के बाद पुलिस ने अदालत को रिपोर्ट भेज दी और गुपचुप तरीके से कंकाल की अंत्येष्टि की योजना बनाई. श्मशान में पुलिस ने 5 फीट गहरा तथा 6 फीट लंबा गड्ढा खुदवा कर तैयार कर लिया.

इस की भनक जैसे ही भगवान देवी को हुई तो उस ने पुलिस के सामने हंगामा कर दिया. उस ने पुलिस को चेतावनी दी कि यदि उस की बेटी के संबंध में पूरी काररवाई से पहले कंकाल का अंतिम संस्कार लावारिस की तरह किया गया तो वह इसी गड्ढे में आत्महत्या कर लेगी. भगवान देवी के उग्र तेवर देख कर पुलिस को अपने कदम पीछे करने पड़े.

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इटावा के मुख्य चिकित्साधिकारी डा. गीताराम ने बताया कि डीएनए जांच के लिए सैंपल भेजा गया था. लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट न आने पर पूरा कंकाल मंगाया गया. इस के बाद भी 2 बार सैंपल भेजे. अभी तक डीएनए रिपोर्ट नहीं आई है. फिर से डीएनए सैंपल न लेना पड़े, इसलिए कंकाल को पुलिस ने डीप फ्रीजर में सुरक्षित रखा है.

40 महीने कैद में रहा कंकाल – भाग 1

बाजरे के खेत में शव मिलने की खबर पूरे गांव में फैल गई. शव को कैमिकल डाल कर इस कदर जला दिया गया था कि लाश कंकाल में बदल गई थी. मृतक की पहचान होनी नामुमकिन थी. लाश के नाम पर शरीर के कुछ भाग की हड्डियां मात्र थीं. कंकाल के पास चप्पलें, कपड़े व अन्य सामान पड़े थे. सामान से लग रहा था कि यह कंकाल किसी महिला का है.

भगवान देवी ने कंकाल के पास मिली चप्पलें, पीले रंग का हेयर क्लिप, हाथ में बंधा कलावा, चांदी की 2 अंगूठियां, लाल रंग का कंगन, सलवार कुरता व अन्य सामान को देख कर कंकाल की पहचान अपनी बेटी रीता उर्फ मोनी के रूप में की.

भगवान देवी और उन के पति कुंवर सिंह थाने से ले कर पुलिस के उच्चाधिकारियों, यहां तक कि अदालत तक की दौड़ लगा रहे थे. लेकिन उन्हें बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की हत्या के बाद उस का कंकाल (लाश) अंतिम संस्कार के लिए पिछले 40 महीनों से पुलिस नहीं दे रही थी.

वे चाहते थे कि बेटी की लाश जो कंकाल के रूप में बरामद हुई थी, मिल जाए तो वे उस का विधिविधान से अंतिम संस्कार कर दें. वह कंकाल उन की बेटी की है, इस के उन्होंने पुलिस को सबूत भी जुटा दिए थे. फिर भी पुलिस कंकाल उन की बेटी का नहीं मान रही थी.

उत्तर प्रदेश का एक जिला है (Eetawah) इटावा.  यहीं स्थित डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय की मोर्चरी में रखे एक डीप फ्रीजर में बेटी की लाश कंकाल (Imprisoned Skeleton) के रूप में पिछले 40 महीने से कैद थी. ऐसा पुलिस के लापरवाह रवैए की वजह से हो रहा था.

पोस्टमार्टम और 2 बार डीएनए टेस्ट के बाद भी पुलिस जांच अधूरी रह गई थी. क्योंकि डीएनए के लिए जो नमूने 2 बार भेजे गए थे, वह सही तरीके से नहीं लिए गए थे. इस के बाद भगवान देवी ने एसएचओ के साथ ही एसएसपी (इटावा) को  22 अक्तूबर, 2020 तथा 22 फरवरी, 2021 व 26 अगस्त, 2021 को प्रार्थनापत्र दिए. इन में आरोपियों के नाम का खुलासा भी किया गया था.

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डा. भीमराव अंबेडकर संयुक्त चिकित्सालय 

लेकिन बारबार प्रार्थनापत्र देने के बावजूद न तो पुलिस ने एफआईआर दर्ज की और न डीएनए रिपोर्ट ही दी गई. भगवान देवी लगातार बेटी का कंकाल देने की गुहार लगाती रही, लेकिन पुलिस हाथ पर हाथ रखे बैठी रही. उस के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

मोर्चरी के डीप फ्रीजर में 40 माह से कैद रीता उर्फ मोनी के कंकाल के साथ एक ऐसी घटना हुई, जिस से सभी चौंक गए. उस का कंकाल एक ही झटके में डीप फ्रीजर की कैद से मुक्त हो गया और घर वालों ने उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.

2 बार डीएनए टेस्ट से पहचान न होने के बाद अचानक ऐसा क्या चमत्कार हुआ कि मरने वालीे लड़की के कंकाल की पहचान होने के बाद उसे उस के वास्तविक मम्मीपापा को सौंप दिया गया.

आइए, पूरी घटना आप को सिलसिलेेवार बताते हैं. यह खौफनाक घटना आज से लगभग 40 महीने पहले शुरू हुई थी.

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के जसवंतनगर थाना क्षेत्र का एक गांव है चक सलेमपुर. इसी गांव का निवासी है कुंवर सिंह. उस के परिवार में पत्नी भगवान देवी के अलावा 5 बच्चे थे. इन में 3 बेटियां व 2 बेटों में सब से बड़ी बेटी अंजलि, राजीव, ज्योति की शादी हो चुकी है. चौथे नंबर की रीता कुमारी उर्फ मोनी थी. सब से छोटा सौरभ उर्फ बंटी है, जो बीएससी कर चुका है. पिता के पास जमीन थी, जिस पर वह अपने बेटों राजीव व सौरभ की मदद से खेती करते थे.

कुंवर सिंह की 22 वर्षीय बेटी रीता कुमारी उर्फ मोनी की एक सप्ताह बाद सगाई होनी थी. घर में खुशी का माहौल था. घर वाले शादी की तैयारी में व्यस्त थे. 19 सितंबर, 2020 को मोनी की तबियत ढीली थी. वह दोपहर 12 बजे अपनी दवा लेने घर से जसवंतनगर की कह कर गई थी. उसे गए हुए 3 घंटे बीत चुके थे, मगर वह वापस घर नहीं आई थी. इस पर घर वालों को चिंता होने लगी. उन्होंने उसे तलाशना शुरू कर दिया.

गांव में उस के साथ पढऩे वाली सहेलियों के घर के अलावा गांव में जिस स्थान पर वह सिलाई सीखती थी, वहां भी पता लगाया. लेकिन उस का कोई पता नहीं चला और रात हो गई, वह लौट कर घर नहीं आई. रीता अपना मोबाइल, जिस में 2 सिम कार्ड थे, ले कर घर से गई थी. उस का फोन भी स्विच्ड औफ आ रहा था.

रीता जसवंतनगर के एक कालेज में 11वीं कक्षा में पढ़ रही थी. उस के लापता होने पर उसे तलाशने में उस के घर वालों से ले कर गांव के लोगों ने अपनी पूरी कोशिश की. शुरुआती कोशिश में उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली. इस तरह कई दिन गुजर गए.

रीता उर्फ मोनी के गायब होने के बाद गांव में तरहतरह की चर्चाएं शुरू हो गईं. जितने मुंह उतनी बातें. कोई कह रहा था कि रीता अपने प्रेमी के साथ भाग गई है. कोई कह रहा था कि वह इस रिश्ते से खुश नहीं थी, इसलिए कहीं और चली गई है.

थकहार कर रीता उर्फ मोनी की मम्मी भगवान देवी ने थाना जसवंतनगर में बेटी की गुमशुदगी की सूचना 22 सितंबर, 2020 को लिखा दी. गुमशुदगी दर्ज होने के साथ ही इस की जांच तत्कालीन एसआई संजय कुमार सिंह को सौंपी गई.

खेत में मिला बेटी का कंकाल

रीता के लापता होने के सातवें दिन 26 सितंबर को अचानक रीता का सुराग मिला. रीता के घर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर बाजरे के एक खेत में मानव कंकाल मिला. घास लेने गए कुछ लोगों ने खेत में पड़े कंकाल को देख कर शोर मचाया, इस पर गांव वाले एकत्र हो गए.

गांव वालों से खेत में कंकाल मिलने की जानकारी होते ही रीता के घर वाले दौड़ेदौड़े खेत में पहुंचे. उन्होंने वहां मिले कपड़ों और अन्य सामान से उस की शिनाख्त रीता के रूप में कर ली.

रीता की मम्मी भगवान देवी ने बताया कि घर से जाते समय रीता यही सब पहने हुए थी. बेटी की लाश को इस अवस्था में देखते ही भगवान देवी बेहाल हो गई. उस के आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उस ने रोते हुए पुलिस को बताया कि उस की बेटी की हत्या कैमिकल डाल कर हत्यारों ने की है.

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     मृतका रीता के ग़मगीन परिजन

उस ने बताया कि उस की गांव में किसी से कोई दुश्मनी भी नहीं है फिर बेटी का यह हाल किस ने और क्यों किया? बेटी की हत्या से परिवार में कोहराम मच गया. रीता के सामान तो मिले थे, लेकिन उस का मोबाइल फोन नहीं मिला.

खेत में कंकाल मिलने की सूचना पर घटनास्थल पर पुलिस, फोरैंसिक टीम के साथ पहले ही पहुंच गई थी. पुलिस ने लाश का निरीक्षण किया. कंकाल की हालत देख कर पुलिस ने अनुमान लगाया कि कंकाल के कुछ हिस्से को कुत्ते या जंगली जानवर खींच कर ले गए होंगे. लाश को किसी कैमिकल से जलाया गया था. इस से उस की पहचान होनी भी मुश्किल हो गई थी.

कंकाल के पास मिले सामान इस बात की गवाही दे रहे थे कि एक सप्ताह पहले लापता हुई गांव की युवती रीता का ही कंकाल है. गांव के जितेंद्र कुमार, बेबी, राजीव आदि ने भी इन चीजों को देख कर रीता के रूप में कंकाल की शिनाख्त की.

फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल से सबूत इकट्ठे किए. पुलिस ने पंचनामा भरने के बाद कंकाल को पोस्टमार्टम के लिए जिला चिकित्सालय की मोर्चरी भिजवा दिया.

कंकाल की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या का कारण न आने तथा पहचान न होने पर पुलिस ने कंकाल का डीएनए टेस्ट कराने का निर्णय लिया. पुलिस कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर रीता के बड़े भाई राजीव के साथ 29 सितंबर, 2020 को विधि विज्ञान प्रयोगशाला, लखनऊ गई थी.

लखनऊ लैब के अधिकारियों ने उन्हें यह कह कर लौटा दिया कि पूरे कंकाल की जरूरत नहीं है. केवल कंकाल से सैंपल ले कर व कंकाल के रंगीन फोटो विधिवत भिजवाएं. 2 दिन बाद वापस ला कर कंकाल को वहीं रख दिया गया. राजीव ने बताया कि गाड़ी किराए पर ले जाने में उस के 8 हजार रुपए खर्च हो गए थे.

इस के 4-5 दिनों बाद पुलिस ने डीएनए टेस्ट के लिए कंकाल व मम्मीपापा के सैंपल ले कर लखनऊ लैब भिजवाए, जिस की रिपोर्ट 26 मार्च, 2022 को कई रिमाइंडर भेजने के बाद मिली, जो सैंपल सही तरीके से न भेजने के कारण स्पष्ट (क्लीयर) नहीं थी.

मां भगवान देवी इस बात की जिद पर अड़ी थी कि कंकाल उस की बेटी का ही है. सैंपल सही से नहीं लिए जाने से लखनऊ लैब की रिपोर्ट स्पष्ट नहीं आई है.

इस पर पुलिस से आगरा की लैब में टेस्ट कराने की बात हुई. छोटा भाई सौरभ आगरा की लैब कंकाल व मातापिता के सैंपल ले कर 4 अगस्त, 2022 को पुलिस के साथ गया. आगरा फोरैंसिक लैब वालों ने यह कह कर सैंपल लौटा दिया कि यह हमारे क्षेत्र का मामला नहीं है. जिस क्षेत्र से संबंधित हो, वहां की लैब में जांच कराओ.

‘बूगी वूगी’ शो की विनर फंसी खुद के बुने जाल में

नाइट्रोजन गैस से सजा ए मौत

केनिथ स्मिथ को नाइट्रोजन हाईपौक्सिया के जरिए मृत्युदंड दिया जाना तय था. इस के तहत व्यक्ति को  नाइट्रोजन के एक सिलिंडर से जोड़ कर एक मास्क पहनाया जाता है, जो धीरेधीरे उसे औक्सीजन से वंचित कर देता है.

इसे एक तरह की यातना भी कह सकते हैं. यह नाइट्रोजन हाइपौक्सिया से मृत्युदंड देने की पहली कोशिश होगी. इस से भारी पीड़ा हो सकती है और मुमकिन है कि इस से यातना और सजा के दूसरे क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक तरीकों पर प्रतिबंध का उल्लंघन भी हो सकता है यानी नाइट्रोजन हाइपौक्सिया की वजह से एक दर्दनाक और अपमानजनक मौत मिलनी तय थी.

अमेरिका के रहने वाले 58 वर्षीय केनिथ स्मिथ को साल 1996 में एक धर्म उपदेशक की पत्नी की हत्या के जुर्म में उम्रकैद की सजा हुई थी. कुछ समय बाद उस के जुर्म की क्रूरता का आकलन करने के बाद उम्रकैद की सजा ‘मृत्युदंड’ में बदल दी गई थी. वह तभी से अमेरिका में अलबामा के हौलमैन जेल के सुधार गृह में कैद था.

उसे इस सजा के लिए 23 जनवरी, 2024 की सुबह ठीक सवा 7 बजे सुधार गृह के भीतर बने ‘डेथ सेल’ में ले जाया गया था. इसे जेल प्रशासन होल्डिंग यूनिट कहता है. यहां मृत्युदंड के सजायाफ्ता कैदी की सजा को अंजाम देने से 2 दिन पहले रखा जाता है.

यानी कि स्मिथ को अच्छी तरह से मालूम हो गया था कि वह मृत्युकक्ष से लगभग 20 फीट की दूरी पर है, जहां 48 घंटे के बाद आखिरी मिनट पर 25 जनवरी, 2024 को हथकड़ी और पैरों में बेडिय़ों से बांध कर ले जाया जाएगा. और फिर वैसी नई तकनीक का उपयोग कर न्यायिक रूप से मौत की नींद सुला दिया जाएगा, जिस का प्रयोग पहली बार होगा.

वह तकनीक नाइट्रोजन गैस सुंघाने की थी. हालांकि पहले भी एक अन्य तकनीक के तौर पर उसे जहर की सुइयां चुभो कर इस सजा को अंजाम देने का प्रयास किया गया था.

केनिथ की मानसिक स्थिति सामान्य थी. वह जानता था कि उस की मौत निकट चंद घंटों में सुनिश्चित है. वह पहले भी नवंबर 2022 में डेथ सेल या कहें मृत्युकक्ष में रह चुका था. तब उसे जहरीले इंजेक्शन द्वारा मौत देने की तैयारी की गई थी. उसे मौत की नींद सुलाने के लिए नस नहीं खोजी जा सकी थी. वह 4 घंटे तक रस्सी से बंधा रहा. उस दौरान उस के हाथ और पैर में छेद कर दिए थे.

केनिथ उस दौर की प्रक्रिया को याद कर सिहर गया था. कारण, जब वह होल्डिंग यूनिट में था, तब उस ने अपनी मां और अपने पोते को अलविदा कहा था. अपना अंतिम भोजन किया था. फिर उसे मृत्युकक्ष में ले जाया गया था. वहां उस ने 4 घंटे तक कूड़ेदान में बिताए थे, क्योंकि जेल अधिकारियों ने नस ढूंढने की असफल कोशिश की थी. उसे ‘हौलमैन करेक्शनल फैसिलिटी’ नाम की जेल के एक ‘डेथ चैंबर’ में ले जा कर जहरीले रसायन के इंजेक्शन लगाए जाने थे.

नस न मिल पाने की वजह से इंजेक्शन नहीं दिए जा सके और उसी रोज यानी नवंबर 2022 को रात के 12 बजे डेथ वारंट निरस्त हो गया. यहां तक कि उसे कुछ मिनट तक उलटा लटकाया गया था. वह तब तक उलटा झूलता रहा, जब तक कि मौत देने वाले अधिकारियों ने हार नहीं मानी और फांसी बंद नहीं की. तब तक उस के शरीर में कई छेद किए जा चुके थे. वह मौत के काफी करीब जा कर लौट आया था.

इस के 14 महीने बाद उसे फिर से मृत्युकक्ष में डालने की तैयारी शुरू हो चुकी थी. वह फिर से इन सब से गुजरने वाला था. अब नई तकनीक से उस की मौत कितनी सहज, सुखद और दर्दरहित होगी, इस बारे में कहना मुश्किल था. सिर्फ तरहतरह के वैज्ञानिक दावे किए जा रहे थे.

हालांकि इस बार प्रोटोकाल अलग था. फिर भी उसे एक ऐसी विधि से फांसी का सामना करना था, जिस का उपयोग अमेरिका के मृत्युदंड में पहले कभी नहीं किया गया था. यह एक ऐसी तकनीक है, जिसे सुअरों के अलावा अधिकांश जानवरों की इच्छामृत्यु के लिए पशु चिकित्सकों द्वारा नैतिक आधार पर खारिज कर दिया गया था.

पहली मौत के तरीके से कैसे बचा केनिथ

होल्डिंग यूनिट में केनिथ को बाहरी फोन काल करने के लिए 15 मिनट का समय मिल गया था. इस समय में उस की बात घर वालों के अलावा मीडियाकर्मियों से भी हुई थी. हालांकि स्मिथ ने हौलमैन जेल से अमेरिका के बड़े अखबार ‘गार्जियन’ से भी संपर्क किया था. उस ने उन्हें अपनी असली स्थिति का वर्णन करते हुए कहा था कि वह एक फांसी से बच गया था, किंतु उसे दूसरी बार जिस प्रक्रिया से गुजरना है वह बिलकुल ही प्रयोग में नहीं है.

”क्या वह इस के लिए तैयार है?’’ इस सवाल के जवाब में उस ने साफतौर पर कहा, ”मैं इस के लिए किसी भी तरह से तैयार नहीं हूं. मैं अभी तैयार नहीं हूं, भाई..!’’

दरअसल, वह पहले का मृत्युदंड असफल होने पर काफी मानसिक तनाव से भर गया था. इस दौरान जेल मनोचिकित्सक ने पाया था कि वह अनिद्रा, चिंता और अवसाद से पीडि़त है. इसे ध्यान में रखते हुए इसे दूर करने के लिए उस का उपचार किया गया, दवाइयां दी गईं. उस की शरीरिक क्षमता संतुलित बनाए रखने और माइग्रेन को नियंत्रित करने के लिए कई दवाओं का एक काकटेल दिया गया था.

इस बारे में उस ने बताया कि उसे बारबार बुरे सपने आते थे, इस कारण सो नहीं पाता था. फांसी के पहले प्रयास के बाद उसे मृत्युकक्ष से वापस ले जाने का बुरा सपना बारबार आता था. उस ने कहा, ‘मुझे बस सपने में कमरे में चलना फिरना था, मैं बिलकुल डरा हुआ था,  नहीं चाहते हुए भी बुरे सपने आते ही रहे.’

इसी के साथ उस ने यह भी कहा, ”जब 25 जनवरी को दूसरी बार फांसी की तारीख दी गई, तब से बुरे सपनों का एक नया दौर शुरू हो गया था. मुझे सपना आने लगा कि वे मुझे लेने आ रहे हैं.’’

अब फांसी के कक्ष से उस की दूसरी मुलाकात होनी थी. जैसेजैसे वह उस के करीब आ रही थी, वैसेवैसे उस की बेचैनी बढऩे लगी थी. उस ने महसूस किया कि उस की शारीरिक और मानसिक स्थिति बिगड़ रही है.

उस ने पेट खराब होने की शिकायत की, साथ ही बताया कि उसे उल्टी भी होती रहती थी. यानी वह कई तरह की मानसिक और शारीरिक परेशानियों के दौर से गुजर रहा था. हालांकि अस्पताल की नर्स ने भी उसे तनाव में डाल दिया था. वह आघात पर आघात झेलते हुए एक असामान्य दौर में था.

उस ने कहा, ”अस्पताल के पुरुष नर्स ने मुझे संभलने का मौका ही नहीं दिया. मैं अभी भी पहली फांसी से पीडि़त हूं और अब हम इसे दोबारा कर रहे हैं. वह मुझे बीते हुए बुरे सपने, पुरानी यादों की अनुभूतियों और सदमे से वापस आने नहीं दे रहे हैं, जिस से मेरी व्याकुलता बढ़ जाती है. मूड खराब हो जाता है. आप सभी जानते हैं कि यह निरंतर चलने वाला तनाव है.’’

केनिथ ने इसे ले कर कल्पना करने को कहा, ”क्या होगा यदि दुव्र्यवहार के शिकार व्यक्ति के साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार किया जाए? या फिर उस तरह के माहौल में वापस जाने के लिए मजबूर किया जाए, जिस से उसे आघात पहुंचा हो. जिस व्यक्ति ने ऐसा किया, उसे एक राक्षस के रूप में देखा जाएगा.’’

इस हाल में क्यों पहुंचा केनिथ

बात 18 मार्च, 1988 ही है. अलबामा के कोलबर्ट काउंटी में एक पादरी की पत्नी एलिजाबेथ डोरलीन थार्न सेनेट की उन के घर में चाकू मार कर हत्या कर दी गई थी. एक हफ्ते बाद उस के पति चाल्र्स सेनेट, जोकि चर्च औफ क्राइस्ट में मंत्री थे, ने खुदकुशी कर ली थी.

इस की जांच शुरू हुई और मामला अदालत में गया. वहां मालूम हुआ कि चाल्र्स सेनेट कर्ज में डूबा हुआ था. उस की पत्नी के नाम पर बीमा था. हालांकि जांच में यह भी पाया गया कि चाल्र्स के किसी के साथ अवैध संबंध थे.

एलिजाबेथ डोरलीन सेनेट अमेरिका के क्लीवलैंड, कुयाहोगा काउंटी, ओहियो की रहने वाली थी. उस के जन्म की तरीख 10 दिसंबर, 1942 थी और 45 वर्ष की उम्र में उस की अलबामा के शेफील्ड, कोलबर्ट काउंटी में हत्या कर दी गई थी. उसे डेंपसी कब्रिस्तान, रेड बे, फ्रैंकलिन काउंटी, अलबामा में दफनाया गया था.

उस की मौत की जांच में पाया गया कि वह पति के द्वारा ही मार डाली गई थी. इस के लिए पति ने भाड़े के हत्यारे की मदद ली थी. उस के सीने में 8 और गरदन के दोनों तरफ एकएक बार चाकू से वार किया गया था. शरीर पर कई खरोंचें और कट के निशान थे. दोनों भाड़े के हत्यारों ने पहले उसे चाकू मारा और फिर पीटपीट कर मार डाला था.

जांच में इस हत्या का दोषी केनिथ स्मिथ ठहराया गया. उसे भाड़े का हत्यारा साबित कर दिया गया था. बदले में चाल्र्स सेनेट ने उसे और एक अन्य व्यक्ति फोरेस्ट पार्कर को 1,000 डालर दिए थे. हालांकि जब संदेह की सुई उस की ओर घूमी, तब उस ने अपनी ही जान ले ली.

पार्कर को दोषी पाए जाने के बाद 2010 में जहरीला इंजेक्शन दे कर मौत की सजा दे दी गई थी. स्मिथ ने दावा किया था कि वह उस जगह मौजूद जरूर था, जहां हत्या हुई, लेकिन उस का हत्या में कोई हाथ नहीं था. इस के बाद जांच की लंबी प्रक्रिया में साल 1996 में उसे मौत की सजा सुना दी गई थी.

शुरुआती जांच के सिलसिले में सेनेट ने दावा किया कि उस की पत्नी एलिजाबेथ सेनेट कोलबर्ट काउंटी में कून डौग कब्रिस्तान रोड पर अपने घर में मृत पड़ी थी. उसे चाकू मार दिया गया था और उस की पिटाई की गई थी. जांचकर्ताओं ने घटनास्थल की गहनता से जांच की. अपनी जांच में उन्होंने पाया कि पादरी ने घटनास्थल पर आक्रमण और चोरी की तरह दिखाने वाले दृश्य बना रखे थे.

तमाम नाटकीय घटनाक्रमों के तहत की गई पूछताछ और जांच प्रक्रिया में आखिरकार  केनिथ स्मिथ ने अंत में जौन फारेस्ट पार्कर और इस की व्यवस्था करने वाले एक तीसरे व्यक्ति के साथ अपनी भूमिका कुबूल कर ली. केनिथ को शुरू में 1989 में दोषी ठहराया गया था और एक जूरी ने मौत की सजा की सिफारिश करने के लिए 10-2 से वोट दिया था, जिसे एक न्यायाधीश ने लगाया था. 1992 में अपील पर उन की सजा को पलट दिया गया था.

उस पर दोबारा मुकदमा चलाया गया और 1996 में उसे फिर से दोषी ठहरा दिया गया. इस बार जूरी ने 11-1 के वोट से आजीवन कारावास की सिफारिश की, लेकिन एक न्यायाधीश ने जूरी की सिफारिश को खारिज कर दिया और उसे मौत की सजा सुना दी.

मामला अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. केनिथ ने फांसी रोकने का अनुरोध किया, जो खारिज कर दिया गया.

क्या हुआ मौत को करीब से देख कर

मौत को एक बार फिर करीब आता देख कर केनिथ की आखिरी प्रतिक्रिया थी, ”काश! मैं ने चीजें अलग तरीके से की होतीं.’’

उस ने 35 साल जेल में बिताए थे. जेल में उस के व्यवहार में कोई आक्रामकता नहीं देखी गई. न अधिकारियों के साथ और न ही किसी अन्य के साथ… एक भी लड़ाई नहीं, एक भी विवाद नहीं. फिर भी अलबामा और पूरे अमेरिका में कई लोगों का मानना था कि उस ने जो किया, वह कतई माफी के लायक नहीं.

केनिथ के वकीलों ने भी कहा है कि इस तरीके का अभी तक परीक्षण नहीं हुआ है और यह अमेरिकी संविधान के ‘क्रूर और असामान्य सजाओं’ के प्रतिबंध का उल्लंघन कर सकता है. उन्होंने यह भी कहा है कि किसी भी तरीके से दूसरी बार मृत्युदंड देने की कोशिश भी असंवैधानिक है.

हालांकि अमेरिका में मृत्युदंड के अधिकांश मामलों में बारबिटुरेत नाम की दवा की घातक डोज दी जाती है, लेकिन कुछ राज्यों को यूरोपीय संघ के एक प्रतिबंध की वजह से यह दवा हासिल करने में दिक्कत आने के कारण संघ ने दवा कंपनियों को जेलों में मृत्युदंड देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाएं बेचने से प्रतिबंधित कर दिया है.

केनिथ स्मिथ को डेथ सेल में तय कार्यक्रम के मुताबिक 25 जनवरी की शाम को ले जाया गया, जबकि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा को ले कर पूरे अमेरिका में विरोध हो रहा था. इस दौरान केनिथ के आध्यात्मिक सलाहकार रेवरेंड जेफ हुड वहां मौजूद थे.

उन्होंने केनिथ को मौत के आगोश में समाते हुए देखा और जो महसूस किया. फिर उस बारे में मीडिया से जिक्र किया. पहली प्रतिक्रिया के रूप में वह बोले, ”यह डरावनी फिल्म जैसा था. मरने में 22 मिनट लगे, तब तक तड़पता रहा शख्स.’’

जैफ हुड ने बताया, ”इस दौरान केनिथ स्मिथ ने अपनी मुट्ठियां भींच रखी थीं और उस के पैर कांप रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे वह सांस लेने के लिए तड़प रहा हो.

”उसे देख कर ऐसा लग रहा था, जैसे वह एक मछली है, जिसे पानी से निकाल दिया गया है. वहां मौजूद सभी लोगों के चेहरे पर डर था. नाइट्रोजन गैस देते ही वह करीब 4 मिनट तक छटपटाता रहा. हम ने जो देखा वह कुछ मिनटों में किसी को अपने जीवन के लिए संघर्ष करते हुए देखना था.’’

अलबामा के जेल अधिकारियों के मुताबिक सब से पहले केनिथ को एक चैंबर में ले जा कर स्ट्रेचर पर बांध दिया था. उस के मुंह पर एक इंडस्ट्रियल मास्क पहनाया गया था. इस में नाइट्रोजन गैस छोड़ी गई. इसे सूंघते ही यह गैस पूरे शरीर में फैल गई और उस के बाद पूरे शरीर ने काम करना बंद कर दिया. इस से स्मिथ की मौत हो गई.

हालांकि मास्क पहना कर नाइट्रोजन गैस सुंघाने से उल्टी भी हो सकती थी, इस से मौत की सजा देने की प्रक्रिया बाधित हो सकती थी. ऐसा स्मिथ के वकील ने दलील दी थी. इस से बचने के लिए जेल अधिकारियों ने केनिथ को सुबह 10 बजे के बाद से खाली पेट रखा था. उसे कुछ भी खाने को नहीं दिया गया था.

स्थानीय समयानुसार शाम 7.57 बजे से रात 8.01 बजे के बीच, केनिथ को दर्द और ऐंठन होने लगी. उस ने गहरी सांसें लीं, उस का शरीर जोरजोर से कांपने लगा और उस की आंखें घूम रही थीं.

केनिथ की मौत हो जाने के बाद अलबामा के सुधार आयुक्त जौन हैम ने बाद में एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया. उस में उन्होंने बताया कि ऐसा प्रतीत हुआ कि केनिथ स्मिथ जब तक संभव हो सका, अपनी सांसें रोके हुए था.

इस अनोखी सजा पर क्या थीं प्रतिकियाएं

सीएनएन के जरिए सामान्य लोगों तक अलबामा के अटौर्नी जनरल स्टीव मार्शल का यह संदेश पहुंचाया गया कि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा दिए जाने के तरीके की टेस्टिंग हो चुकी है. यह सही साबित हुआ है. राज्य में 43 और लोगों को इसी तरह मौत की सजा दी जाएगी. कई और राज्य भी इस पर विचार कर रहे हैं. हम इस में मदद करने के लिए भी तैयार हैं.

दूसरी तरफ यूनाइटेड नैशन, यूरोपीय यूनियन और वाइट हाउस ने भी इसे ले कर चिंता जताई. वाइट हाउस प्रवक्ता कैरीन जीन पियरे का कहना था कि मौत की सजा देने के लिए नाइट्रोजन गैस का इस्तेमाल परेशान करने वाला है. राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इसे ले कर चिंता जताई.

ईयू के  प्रवक्ता के अनुसार यह खासतौर पर क्रूर और असामान्य सजा है. इस में ह्यूमन राइट्स चीफ वोल्कर टर्क ने प्रतिक्रिया दी कि नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा को ले कर कोई टेस्टिंग नहीं हुई है. यह मुमकिन है कि ऐसा किया जाना टौर्चर और अमानवीय ट्रीटमेंट भी.

नाइट्रोजन से ही क्यों दी मौत?

जिस नई विधि से केनिथ को मृत्युदंड देने की योजना बनाई गई, नाइट्रोजन हाइपौक्सिया के रूप में जाना जाता है. इस में कैदी को शुद्ध नाइट्रोजन गैस सांस लेने के लिए मजबूर करना शामिल है, एक गैस जो प्राकृतिक रूप से हवा में इतनी उच्च सांद्रता में मौजूद होती है कि इस से औक्सीजन की कमी हो जाती है और अंत में मृत्यु हो जाती है. नाइट्रोजन एक प्राकृतिक रूप से  पाई जाने वाली गंधहीन और रंगहीन गैस है.

यह प्रचुर मात्रा में है. पृथ्वी के वायुमंडल और मिट्टी में पाई जाती है और इस का उपयोग भोजन को तरल रूप में तेजी से जमा करने के लिए किया जा सकता है. इसे भी रसायनशास्त्र के सूत्र के रूप में औक्सीजन (ह्र२) की तरह (हृ२) लिखा जाता है.

इसी गैस को एक उचित मात्रा में औक्सीजन के साथ मिलाए बगैर सांस के साथ अंदर लेने पर शरीर के भीतर प्रतिकूल प्रभाव देती है, जिस से असामान्य थकान, सांस लेने में तकलीफ, उल्टी और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है.

इस के इसी गुण को देखते हुए नाइट्रोजन गैस को मृत्युदंड के एक तरीके के तौर पर चुना गया. डाक्टर की सलाह के अनुसार अलबामा जेल के अधिकारियों ने औक्सीजन के साथ मिश्रण किए बिना शुद्ध नाइट्रोजन गैस देने की योजना बनाई.

नाइट्रोजन को किसी भी मात्रा में औक्सीजन या कहें किसी भी मात्रा में हवा के साथ मिलाए जाने की स्थिति में इस से मौत होने में समय लगता है.

यह कहें कि यह कभी भी मृत्यु का कारण नहीं बन सकती है.  इसे देखते हुए ही केनिथ की कानूनी टीम ने एक संघीय न्यायाधीश के सामने तर्क दिया था कि नाइट्रोजन हाइपौक्सिया का उपयोग क्रूर होने के साथ साथ असामान्य सजा पर संवैधानिक प्रतिबंध का उल्लंघन होगा.

स्मिथ की ओर से गवाही देने वाले एक एनेस्थीसियोलौजिस्ट ने तब कहा था कि उसे उल्टी हो सकती है, जिस से उस का दम घुट सकता है, दम घुटने की अनुभूति हो सकती है या उस के बेहोश होने की आशंका बन भी सकती है. बहरहाल, केनिथ स्मिथ को नाइट्रोजन गैस से मौत की सजा देने की दुनिया भर में चर्चा हो रही है.

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 3

कंचन के हत्यारों को पकड़ने तथा आला कत्ल बरामद करने की जानकारी थानाप्रभारी ने पुलिस अधिकारियों को दी. सूचना पाते ही डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी थाने में पहुंच गए.

पुलिस अधिकारियों ने अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास से घटना के संबंध में विस्तार से पूछताछ की. इस के बाद डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने आननफानन में प्रैसवार्ता आयोजित कर कंचन की हत्या का खुलासा किया.

चूंकि अभियुक्त हेमराज व शिवप्रकाश ने कंचन की हत्या का जुर्म स्वीकार कर लिया था, अत: थानाप्रभारी ने दोनों को अपहरण और हत्या के आरोप में विधिसम्मत बंदी बना लिया. पुलिस जांच और अभियुक्तों के बयानों के आधार पर अंधविश्वास और लालच में मासूम बच्ची कंचन की हत्या की सनसनीखेज कहानी इस प्रकार निकली—

उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के थाना बिंदकी के अंतर्गत एक गांव है नंदापुर. इसी गांव में मुकेश कुशवाहा अपने परिवार के साथ रहता था. उस के परिवार में पत्नी संध्या के अलावा एक बेटी रमन थी. मुकेश के पास 3 बीघा खेती की जमीन थी. इसी की उपज से वह अपने परिवार का भरणपोषण करता था.

संध्या चाहती थी बेटा

बेटी के जन्म के बाद संध्या एक बेटा भी चाहती थी. लेकिन बेटी रमन 8 साल की हो गई थी, उसे दूसरा बच्चा नहीं हो रहा था. जिस की वजह से संध्या चिंतित रहने लगी थी. अपनी मनोकामना पूरी होने के लिए वह वह विभिन्न मंदिरों में जाने लगी थी. वह हर सोमवार घाटमपुर स्थित कुष्मांडा देवी मंदिर जाती. एक तरह से वह धार्मिक विचारों वाली हो गई थी.

इसी बीच वह सितंबर 2016 में गर्भवती हो गई और मई 2017 में संध्या ने एक सुंदर सी बच्ची को जन्म दिया. इस बच्ची का नाम उस ने कंचन रखा. संध्या को हालांकि बेटे की चाह थी लेकिन दूसरी बच्ची के जन्म से उसे इस बात की खुशी हुई कि उस की कोख तो खुल गई. मुकेश भी कंचन के जन्म से बेहद खुश था. खुशी में उस ने अपने समाज के लोगों को भोज भी कराया.

नंदापुर गांव के पास ही एक किलोमीटर की दूरी पर सैमसी गांव बसा हुआ है. दोनों गांवों के बीच एक नाला बहता है, जो सैमसी नाले के नाम से जाना जाता है. सैमसी गांव में हेमराज रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. उस की अपने भाइयों से पटती नहीं थी. अत: वह उन से अलग रहता था.

जमीन का बंटवारा भी तीनों भाइयों के बीच हो गया था. हेमराज झगड़ालू प्रवृत्ति का था अत: गांव के लोग उस से दूरी बनाए रखते थे. उस के अन्य भाइयों की शादी हो गई थी, जबकि हेमराज की नहीं हुई थी.

हेमराज का मन न तो खेती किसानी में लगता था और न ही किसी कामधंधे में. उस ने अपनी जमीन भी बंटाई पर दे रखी थी. वह तंत्रमंत्र के चक्कर में पड़ा रहता था. कानपुर, उन्नाव और फतेहपुर शहर के कई तांत्रिकों के पास उस का आनाजाना रहता था.

इन तांत्रिकों से वह तंत्रमंत्र करना सीखता था. तंत्रमंत्र की किताबें भी पढ़ने का उसे शौक था. किताबों में लिखे मंत्रों को सिद्ध करने के लिए वह अकसर देर रात को पूजापाठ भी करता रहता था.

तांत्रिकों की संगत में रह कर हेमराज ने अंधविश्वासी लोगों को ठगने के सारे हथकंडे सीख लिए थे. उस के बाद वह अपने गांव सैमसी में तंत्रमंत्र की दुकान चलाने लगा. प्रचार प्रसार के लिए उस ने कुछ युवक युवतियों को लगा दिया, जो गांवगांव जा कर उस का प्रचार करते थे. इस के एवज में वह उन्हें खानेपीने की चीजों के अलवा कुछ रुपए भी दे देता था.

अंधविश्वासी आने लगे हेमराज के पास

शुरूशुरू में तो उस की तंत्रमंत्र की दुकान ज्यादा नहीं चली लेकिन ज्योंज्यों उस का प्रचार होता गया, उस का धंधा भी चल निकला. फरियादी उस के दरबार में आने लगे और चढ़ावा भी चढ़ने लगा. हेमराज के तंत्रमंत्र के दरबार में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं का आनाजाना अधिक होता था. क्योंकि महिलाएं अंधविश्वास पर जल्दी भरोसा कर लेती हैं.

उस के दरबार में ऐसी महिलाएं आतीं, जिन के संतान नहीं होती. तांत्रिक हेमराज उन्हें संतान देने के नाम पर बुलाता और उन से पैसे ऐंठता. कोई कमजोर कड़ी वाली औरत मिल जाती तो उस का शारीरिक शोषण करने से भी नहीं चूकता था. लोकलाज के डर से वह महिला अपनी जुबान नहीं खोलती थी. सौतिया डाह, बीमारी, भूतप्रेत जैसी समस्याओं से ग्रस्त महिलाएं भी उस के पास आती रहती थीं. अंधविश्वासी पुरुषों का भी उस के पास आनाजाना लगा रहता था.

वह आसपास के शहरों में प्रसिद्ध हो गया तो उस के कई चेले भी बन गए. लेकिन सेलावन गांव का शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास उस का सब से विश्वासपात्र चेला था. शिवप्रकाश हृष्टपुष्ट व स्मार्ट था. वह दूध का धंधा करता था. आसपास के गांवों से दूध इकट्ठा कर उसे शहर जा कर बेचता था.

शिवप्रकाश एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़ गया था. बताया जाता है कि तब तांत्रिक हेमराज ने उसे तंत्रमंत्र की शक्ति से ठीक किया था. तब से वह तांत्रिक हेमराज का खास चेला बन गया था. फुरसत के क्षणों में शिवप्रकाश हेमराज के दरबार में पहुंच जाता था.

20 मार्च को होली थी. होली के 8 दिन पहले एक रात हेमराज को सपना आया कि उस के खेत में काफी सारा धन गड़ा है. इस धन को पाने के लिए उसे तंत्रसाधना करनी होगी और मां काली के सामने बच्चे की बलि देनी होगी. सपने की बात को सच मान कर हेमराज के मन में लालच आ गया और उस ने खेत में गड़ा धन पाने के लिए किसी बच्चे की बलि देने का निश्चय कर लिया.

हर होली दिवाली पर चढ़ाता था बलि

तांत्रिक हेमराज वैसे तो हर होली दिवाली की रात मुर्गे या बकरे की बलि देता था, लेकिन इस बार उस ने धन पाने के लालच में किसी मासूम की बलि देने की ठान ली. इस बाबत हेमराज ने अपने खास चेले शिवप्रकाश से बात की तो वह भी उस का साथ देने को तैयार हो गया. फिर गुरुचेला किसी मासूम की तलाश में जुट गए.

शिवप्रकाश उर्फ ननकू का नंदापुर गांव में आनाजाना था. वहां वह दूध व खोया की खरीद के लिए जाता था. होली के 2 दिन पहले ननकू, नंदापुर गांव गया तो उस की निगाह मुकेश कुशवाहा की 2 वर्षीय बेटी कंचन पर पड़ी. वह दरवाजे के पास खड़ी थी और मंदमंद मुसकरा रही थी. शिवप्रकाश ने इस मासूम के बारे में अपने गुरु हेमराज को खबर दी तो उस की बांछें खिल उठीं. फिर दोनों कंचन की रैकी करने लगे.

21 मार्च को होली का रंग खेला जा रहा था तथा फाग गाया जा रहा था. शाम 5 बजे के लगभग शिवप्रकाश अपने गुरु हेमराज को साथ ले कर अपनी मोटरसाइकिल से नंदापुर गांव पहुंचा फिर फाग की टोली में शामिल हो गया.

शाम 7 बजे के लगभग दोनों मुकेश कुशवाहा के दरवाजे पर पहुंचे. उस समय कंचन घर के बाहर खेल रही थी. तांत्रिक हेमराज ने दाएं बाएं देखा फिर लपक कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया. इस के बाद बाइक पर बैठ कर दोनों निकल गए.

रात के अंधेरे में हेमराज कंचन को अपने घर लाया और नशीला दूध पिला कर उसे बेहोश कर दिया. इस के बाद उस ने बेहोशी की हालत में कंचन का शृंगार किया. शरीर पर भभूत और सिंदूर लगाया. पांव में महावर लगाई, माथे पर टीका तथा गले में फूलों की माला पहनाई. फिर तंत्रमंत्र वाले कमरे में ला कर उसे मां काली की मूर्ति के सामने लिटा दिया. कमरे में हेमराज के अलावा उस का चेला शिवप्रकाश भी था.

हेमराज ने कंचन की पूजाअर्चना की तथा कुछ मंत्र बुदबुदाता रहा. इस के बाद वह गंडासा लाया और मां काली के सामने हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘मां, मैं बच्चे की बलि आप को भेंट कर रहा हूं. इस बलि को स्वीकार कर के आप मेरी इच्छा पूरी करना.’’

कहते हुए हेमराज ने गंडासे से कंचन का एक हाथ व एक पैर काट दिया. इस के बाद उस ने उस बच्ची का पेट भी चीर दिया. ऐसा होते ही खून कमरे में फैलने लगा. वह कुछ क्षण छटपटाई, फिर दम तोड़ दिया.

दूसरी रात उस ने कंचन के शव को सफेद कपड़े में लपेटा और शिवप्रकाश के साथ गांव के बाहर नाले में फेंक आया. इधर मुकेश फाग गा कर घर आया तो उसे कंचन नहीं दिखी, तो उस ने उस की खोज शुरू कर दी. दूसरे दिन उस के चाचा ने थाना बिंदकी में गुमशुदगी दर्ज कराई.

पुलिस ने तथाकथित तांत्रिक हेमराज और उस के चेले शिवप्रकाश से विस्तार से पूछताछ करने के बाद उन्हें 28 मार्च, 2019 को रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया. कथा संकलन तक दोनों की जमानत नहीं हुई थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

सोने की चेन ने बनाया कातिल

अंधविश्वास में दी मासूम बच्ची की बलि – भाग 2

सूचना पा कर थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल पुलिस टीम के साथ नाले की ओर रवाना हो गए. थाना बिंदकी से सैसमी गांव करीब 5 किलोमीटर दूर है. कुछ ही देर में पुलिस वहां पहुंच गई. थानाप्रभारी ने नाले में तैरते हुए उस सफेद कपड़े को बाहर निकलवाया, जिस में कुछ बंधा था. पुलिस ने जैसे ही वह कपड़ा हटाया तो उस में वास्तव में एक बच्ची की लाश निकली. उस लाश को देखते ही वहां खड़ा मुकेश कुशवाहा दहाड़ मार कर रो पड़ा. वह लाश उस की मासूम बच्ची कंचन की ही थी.

2 वर्षीय मासूम कंचन की लाश जिस ने भी देखी, उसी ने दांतों तले अंगुली दबा ली. क्योंकि कंचन की हत्या किसी रंजिश के चलते नहीं की गई थी. बल्कि उस की बलि दी गई थी. उस बच्ची का शृंगार किया गया था. पैरों में महावर (लाल रंग) तथा माथे पर टीका लगा था. उस का एक हाथ व एक पैर काटा गया था. उस का पेट भी फटा हुआ था.

बच्ची की बलि चढ़ाई जाने की खबर जंगल की आग की तरह पासपड़ोस के गांवों में फैली तो घटनास्थल पर भीड़ और बढ़ गई. बलि चढ़ाए जाने के विरोध में भीड़ उत्तेजित हो गई और शव रख कर हंगामा करने लगी. भीड़ तब और उग्र हो गई जब थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह ने भीड़ को यह कह कर समझाने का प्रयास किया कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है.

लोगों को उत्तेजित देख कर थानाप्रभारी के हाथ पांव फूल गए. उन्होंने उपद्रव की आशंका को देखते हुए कंचन का शव ग्रामीणों से छीन लिया और थाने में ले आए. पुलिस की इस काररवाई से लोग और भड़क गए. तब लोग ट्रैक्टर ट्रौलियों में भर कर बिंदकी थाने पहुंचने लगे.

कुछ ही समय बाद सैकड़ों लोग थाने में जमा हो गए. ग्रामीणों ने थाने का घेराव कर दिया. उन्होंने ट्रैक्टर ट्रौलियों को सड़क पर आड़ेतिरछे खड़ा कर मुगल रोड जाम कर दिया. इस से कई किलोमीटर तक जाम लग गया. घटना के विरोध में लोग हंगामा कर पुलिस विरोधी नारे लगाने लगे.

थानाप्रभारी की वजह से भड़क गए लोग

थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल को यकीन था कि वह हलका बल प्रयोग कर ग्रामीणों को शांत करा देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ. बल प्रयोग के बावजूद उत्तेजित भीड़ ने पुलिस के कब्जे से कंचन का शव छीन लिया और उसे सड़क पर रख कर हंगामा करने लगे. मजबूरन थानाप्रभारी को हंगामा व सड़क जाम की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को देनी पड़ी. उन्होंने अधिकारियों से अतिरिक्त पुलिस फोर्स भेजने का भी आग्रह किया.

कुछ ही समय बाद एसपी कैलाश सिंह, डीएसपी कपिलदेव मिश्रा, सीओ (सदर) रामप्रकाश तथा सीओ (बिंदकी) अभिषेक तिवारी भारी पुलिस बल के साथ बिंदकी थाने पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने उत्तेजित ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि जिस ने भी मासूम की बलि दी है, उसे बख्शा नहीं जाएगा.

उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने यदि कोताही बरती है तो संबंधित पुलिसकर्मी के खिलाफ भी काररवाई की जाएगी. डीएसपी कपिलदेव मिश्रा ने कहा कि आप लोग सिर्फ 2 दिन का समय दें. इस बच्ची का कातिल आप लोगों के सामने होगा.

पुलिस अधिकारियों के आश्वासन पर उत्तेजित ग्रामीणों ने कंचन का शव पुलिस को सौंप दिया और जाम हटा दिया. फिर पुलिस अधिकारियों ने आननफानन में कंचन के शव को पोस्टमार्टम हाउस फतेहपुर भिजवा दिया. साथ ही बवाल की आशंका को देखते हुए नंदापुर गांव में पुलिस तैनात कर दी.

थाना बिंदकी पुलिस को आशंका थी कि कंचन की मौत नाले में डूबने से हुई है. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पुलिस की आशंका को खारिज कर दिया. रिपोर्ट के अनुसार कंचन की हत्या की गई थी. उस के एक हाथ व एक पैर को किसी धारदार हथियार से काटा गया था. पेट को किसी नुकीली चीज से फाड़ा गया था. अधिक खून बहने से ही उस की मौत होने की बात कही गई थी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी तेजबहादुर सिंह चंदेल ने मुकेश के चाचा रामखेलावन की तरफ से भादंवि की धारा 364, 302 के तहत अज्ञात हत्यारों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली और मासूम कंचन के हत्यारों की तलाश शुरू कर दी.

तांत्रिक ने स्वीकारी बलि देने की बात

चूंकि कंचन की बलि देने की बात कही जा रही थी और बलि किसी न किसी तांत्रिक ने ही दी होगी. अत: थानाप्रभारी ने तंत्रमंत्र करने वालों की खोज शुरू कर दी. इस के लिए उन्होंने अपने खास मुखबिर भी लगा दिए. मुखबिरों ने नंदापुर व उस के आसपास के गांवों में अपना जाल फैला दिया. जल्द ही उस का परिणाम भी सामने आ गया.

27 मार्च, 2019 की शाम 7 बजे मुखबिर ने थानाप्रभारी को बताया कि सैमसी गांव का हेमराज तंत्रमंत्र करता है. उस के यहां लोगों का आनाजाना लगा रहता है. लेकिन कंचन के गुम होने के बाद उस ने अपनी तंत्रमंत्र की दुकान बंद कर दी है. गांव के लोगों को शक है कि हेमराज ने ही मासूम की बलि चढ़ाई होगी.

मुखबिर की सूचना मिलने के बाद थानाप्रभारी अपनी टीम के साथ रात 10 बजे सैमसी गांव में हेमराज के घर पहुंच गए. वह घर पर ही मिल गया तो वह उसे हिरासत में ले कर थाने आ गए.

हेमराज से कंचन की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने कहा कि वह तंत्रमंत्र करता है और होली, दिवाली जैसे बडे़ त्यौहारों पर बलि देता है. लेकिन इंसान की बलि नहीं देता. वह तो साधना के बाद मुर्गा या बकरा की बलि देता है. फिर मांस को प्रसाद के तौर पर अपने खास मित्रों में बांट देता है. कंचन की बलि देने का उस पर झूठा आरोप लगाया जा रहा है.

तांत्रिक हेमराज ने जिस तरह से अपने बचाव में दलील दी थी, उस से श्री चंदेल को एक बार ऐसा लगा कि हेमराज सच बोल रहा है. लेकिन दूसरे ही क्षण वह सोचने लगे कि अपराधी अपने बचाव में ऐसी दलीलें अकसर ही पेश करता है. अत: उन्होंने उस की बात को नकारते हुए उस से पुलिसिया अंदाज में पूछताछ शुरू की. लगभग एक घंटे की मशक्कत के बाद रात करीब 12 बजे तांत्रिक हेमराज टूट गया और उस ने कंचन की बलि देने की बात कबूल कर ली.

तांत्रिक हेमराज ने बताया कि उस ने तंत्रमंत्र सिद्ध करने तथा जमीन में गड़ा धन प्राप्त करने के लिए ही कंचन की बलि दी थी. तंत्रसाधना के इस अनुष्ठान में सेलावन गांव का रहने वाला उस का चेला शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास भी शामिल था.

लालच में चढ़ाई थी बलि

उसी की मोटरसाइकिल पर कंचन के शव को रख कर गांव के बाहर नाले में फेंक दिया था. तांत्रिक हेमराज के चेले शिवप्रकाश उर्फ ननकू रैदास को पकड़ने के लिए रात के अंतिम पहर में पुलिस ने उस के घर दबिश दी. वह भी घर पर मिल गया और उसे बंदी बना लिया गया. उसे भी थाने ले आए.

थाने में जब उस की मुलाकात हेमराज से हुई तो वह सब समझ गया. अत: उस ने आसानी से अपना जुर्म कबूल कर लिया. हेमराज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त गंडासा बरामद कर लिया, जिसे उस ने अपने घर में छिपा दिया था.

पुलिस ने हेमराज के कमरे से पूजन सामग्री, फूल माला, भभूत, सिंदूर, तंत्रमंत्र की किताबें आदि बरामद कीं. पुलिस ने शिवप्रकाश की वह मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली, जो उस ने शव ठिकाने लगाने में प्रयोग की थी.

हनी ट्रैप से बुझी बदले की आग – भाग 3

आसिफ खान को मादीपुर से वजीराबाद आए हुए 3 साल बीत चुके थे लेकिन मेहताब और उस के भाइयों द्वारा की गई पिटाई को वह भुला नहीं सका था. जब भी वह उस घटना को याद करता, अपमान का जख्म फिर से ताजा हो जाता था.

मादीपुर उस के यहां से काफी दूर था. वह अब कोई ऐसा जरिया ढूंढने लगा जिस से मेहताब उस की मनमुताबिक जगह पर आ जाए, जहां वह उसे अच्छी तरह से सबक सिखा सके.

इस काम के लिए उसे परवीन जहां ही सही लगी. उसे विश्वास था कि परवीन उस के बताए किसी काम को करने से मना नहीं करेगी. इस साल जुलाई के महीने में उस ने मेहताब से बदला लेने की बात परवीन जहां को बताई. तब परवीन ने उसे भरोसा दिया कि वह हर तरह से उस की सहायता करने को तैयार है. परवीन की बात सुन कर आसिफ ने एक योजना बनाई.

योजना के अनुसार उस ने बिहार के तौहीर नाम के व्यक्ति के नाम से बने फरजी वोटर आईडी से आइडिया कंपनी का सिमकार्ड ले लिया. वह कार्ड अपने मोबाइल फोन में डाल कर परवीन को दे दिया. इस के अलावा उस ने अपने दुश्मन मेहताब का फोन नंबर उसे देते हुए कहा कि वह किसी भी तरह से मेहताब को अपने रूपजाल में फांस ले. इस के लिए उस ने परवीन को 5 हजार रुपए भी दिए.

परवीन के लिए यह काम बहुत आसान था. उस ने अगले दिन दोपहर के समय मेहताब को मिस काल की. मेहताब उस समय खाली था. बात शुरू हुई तो मेहताब को भी परवीन की बातों में दिलच्सपी आने लगी. उसे उस की बातें अच्छी लगने लगीं.

अगले दिन रात के समय परवीन जहां ने मेहताब को फिर फोन किया. चूंकि दोनों का परिचय हो चुका था इसलिए इधरउधर की बातें करते हुए परवीन बातों का दायरा बढ़ाने लगी. मेहताब भी अविवाहित था. वह उस की बातों के आधार पर ही उस के रूपसौंदर्य की कल्पना करने लगा. इस तरह दोनों के बीच अब रोजाना बातें होने लगीं.

परवीन उस से जल्द मुलाकात कर अपने हुस्न का दीदार करा देना चाहती थी. इसलिए एक दिन उन्होंने पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर-1 पर मुलाकात करने की योजना बना ली.

मेहताब मादीपुर से पंजाबी बाग मेट्रो स्टेशन के गेट नंबर एक पर पहुंच चुका था. वहां पहुंचने पर उसे कोई महिला दिखाई नहीं दी. वह इधरउधर देखने लगा कि कहीं परवीन आड़ में तो नहीं खड़ी है. इधरउधर नजर दौड़ाने के बाद वह नहीं दिखी तो उस ने परवीन को फोन किया. परवीन ने बताया कि वह अभी रास्ते में है. 5 मिनट में पंजाबी बाग पहुंच जाएगी. मेहताब वहीं पर खड़ा परवीन का बड़ी बेसब्री से इंतजार करने लगा.

वह मन ही मन सोच रहा था कि पता नहीं परवीन कैसी शक्लोसूरत की होगी. कुछ देर बाद उसे मेट्रो स्टेशन से उतर कर एक महिला आती दिखाई दी जो गेट नंबर-1 की सीढि़यों के पास आ कर रुक गई. कढ़ाईदार जामुनी रंग का सूट पहने वह महिला बहुत सुंदर थी. अब मेहताब सोचने लगा कि पता नहीं यह परवीन है या कोई और.

पुष्टि करने के लिए उस ने उसी समय अपने फोन से परवीन का नंबर मिलाया. घंटी बजने के बाद उस महिला ने अपने हाथ में थामे छोटे पर्स से मोबाइल निकाला और बात करने लगी.

यह देख कर मेहताब खुश हो गया क्योंकि परवीन की जैसी कल्पना उस ने अपने दिमाग में की थी, वह उस से कहीं ज्यादा खूबसूरत निकली. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा पड़े.

वहां कुछ देर बात करने के बाद मेहताब उसे पंजाबी बाग के एक रेस्टोरेंट में ले गया. वहां उस ने उस की खूब खातिरदारी की. पहली मुलाकात से दोनों ही खुश थे. दोनों ने वहां खूब बातें कीं. इस के बाद परवीन वहां से मेट्रो द्वारा घर लौट गई.

मेहताब से मिलने के बाद परवीन को विश्वास हो गया कि वह अपने मकसद में सफल हो जाएगी. घर लौटने के बाद उस ने आसिफ को सारी बातें बता दीं.

परवीन जहां से मिलने के बाद मेहताब के दिल की धड़कनें और तेज हो गईं. अब तो जब भी उसे फुरसत होती वह परवीन जहां का नंबर मिला देता. फिर उन की काफी देर तक बातें होती रहतीं. इस तरह दिन में कई कई बार वह फोन पर बतियाते.

उन के बीच बातों का दायरा बढ़ता गया. वे एकांत में भी मिलने लगे जिस से उन के बीच की दूरियां भी मिट गईं. यानी उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. इस के बाद उन के बीच यह सिलसिला चलता रहा.

परवीन ने अपने हुस्न के जाल में मेहताब को पूरी तरह काबू कर लिया था. मेहताब को यह बात पता नहीं थी कि परवीन का असली मकसद क्या है. वह उसे अपनी प्रेमिका समझता था.

जुलाई, 2014 के अंतिम सप्ताह में परवीन ने आसिफ से कहा, ‘‘मछली जाल में फंस गई है. अब यह बताओ उस का शिकार कब और कहां करना है?’’

‘‘परवीन, अभी 29 जुलाई को ईद है. ऐसा करते हैं ईद के बाद तुम उसे शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन ले आना. वहां से हम उसे कहीं और ले जाएंगे.’’ आसिफ ने उसे बताया.

आसिफ खान ने मेहताब से बदला लेने की पूरी योजना बना ली. योजना में उस ने अपने दोस्त जाहिद उर्फ सलमान और शाहरुख को भी शामिल कर लिया.

3 अगस्त, 2014 को योजना के अनुसार परवीन जहां ने मेहताब को सुबह 10 बजे फोन कर के शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पर मिलने के लिए बुलाया. मेहताब उस से मिलने के लिए तैयार हो गया. उस ने कहा कि वह एकडेढ़ बजे तक शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंच जाएगा. परवीन ने यह बात आसिफ खान को बता दी.

आसिफ ने योजना के अनुसार, अपनी सैंट्रो कार में एक रस्सी का टुकड़ा और जूट की बोरी रख ली. इस के बाद उस ने शाहरुख को अपने घर बुलाया. शाहरुख उस के पास पहुंच गया तो उसे कार में बिठा कर वह जाहिद के घर की तरफ चल दिया. जाहिद को उस के घर से बुला कर उसे भी कार में बिठा लिया. दोनों दोस्तों को ले कर वह दोपहर साढ़े 12 बजे शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंच गया.

परवीन जहां शास्त्री पार्क में रहती ही थी. वह भी उधर से मेट्रो स्टेशन पहुंच गई. वह मेहताब से फोन द्वारा संपर्क बनाए हुए थी. करीब डेढ़ बजे मेहताब शास्त्री पार्क मेट्रो स्टेशन पहुंचा. परवीन भी मेट्रो स्टेशन पहुंच गई. वह मेहताब से बातें करते हुए उसे स्टेशन से नीचे उतार कर आसिफ की कार के पास ले आई. जैसे ही मेहताब कार के नजदीक पहुंचा जाहिद और शाहरुख ने उसे कार में खींच कर उस का मुंह दबोच लिया. फिर तमंचा दिखा कर उसे चुप रहने को कहा.

आसिफ ने तुरंत कार चला दी. इस से पहले उस ने परवीन का मोबाइल अपने पास रख लिया था. वह तेज गति से कार चलाता हुआ मेरठ की तरफ निकल गया. रास्ते में शाहरुख और जाहिद ने मेहताब की बहुत पिटाई की. मेरठ से निकलते ही आसिफ पिछली सीट पर आ गया और जाहिद कार चलाने लगा.

आसिफ के दिल में बदले की चिंगारी सुलग रही थी. उस ने अपने हाथों से मेहताब की पिटाई करनी शुरू कर दी. मेहताब के शरीर पर तमाम गंभीर चोटें आई थीं जिस से उसे बहुत दर्द हो रहा था. दर्द उस की सहनशक्ति से बाहर हो गया तो उस ने चिल्लाना शुरू कर दिया. उसी दौरान आसिफ ने कार में रखे रस्सी के टुकड़े से उस का गला घोंट दिया.

मेहताब की हत्या करने के बाद उन्होंने उस की लाश कार में पहले से रखी जूट की बोरी में डाल दी और जिस रस्सी से गला घोंटा था, उस से बोरी का मुंह बांध दिया. उन्होंने खतौली के पास से गुजर रही गंगनहर में वह बोरी डाल दी. वहीं पर उन्होंने मेहताब और परवीन के मोबाइल फोन भी फेंक दिए. लाश ठिकाने लगा कर वे सभी अपने घर लौट आए.

मेहताब से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 13 सितंबर को ही उस के साथियों जाहिद उर्फ सलमान, शाहरुख और परवीन जहां को भी गिरफ्तार कर लिया. सभी अभियुक्तों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने 14 सितंबर को उन्हें तीसहजारी न्यायालय में पेश कर उन का 3 दिनों का पुलिस रिमांड लिया.

रिमांड अवधि में पुलिस उन्हें खतौली ले गई और गोताखोरों के माध्यम से मेहताब की लाश ढूंढनी शुरू कर दी. कई किलोमीटर तक गोताखोर उस की लाश ढूंढते रहे लेकिन लाश नहीं मिली.

16 सितंबर को सभी आरोपियों को फिर से न्यायालय में पेश किया जहां से आसिफ को एक दिन के पुलिस रिमांड पर दे कर अन्य अभियुक्तों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया. पुलिस ने आसिफ की निशानदेही पर उस की सैंट्रो कार भी बरामद कर ली.

आसिफ से विस्तार से पूछताछ करने के बाद न्यायालय में पेश कर उसे भी जेल भेज दिया. कथा लिखने तक सभी अभियुक्त जेल में बंद थे. मामले की विवेचना इंसपेक्टर राजीव विमल कर रहे थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. मुमताज परिवर्तित नाम है.