मां की भूमिका में चमेली : क्यों की दामाद की हत्या

छत्तीसगढ़ का शहर बिलासपुर हाईकोर्ट होने की वजह से न्यायधानी के नाम से जाना जाता है. दिनेश अपने परिवार के साथ बिलासपुर के जरहाभाटा के मंझवापारा में रहता था. वह अपने ही मोहल्ले की किशोरी वीना कौशिक को भगा ले गया था. यह भी कह सकते हैं कि वीना दिनेश के साथ जीनेमरने की कसम खा कर अपने घर की देहरी लांघ आई थी और उस के साथ लिवइन रिलेशन में रहने लगी थी.

वीना के पिता जवाहर कौशिक अपनी पत्नी चमेली और बेटी वीना से अलग दूसरे मोहल्ले में रहते थे. सिर्फ मां चमेली ही वीना की एकमात्र गार्जियन थी. वीना अभी 18 वर्ष की हुई थी कि उसे दिनेश से प्रेम हो गया. फिर एक दिन वह घर से बिना बताए गायब हो गई.

दिनेश के पिता रविशंकर श्रीवास की हेयर कटिंग सैलून थी जिस से वे परिवार का भरण पोषण करते थे. दिनेश भी पिता की दुकान पर काम करता था. वह अल्पायु में ही पढ़ाई छोड़ चुका था. फिलहाल वह 21 वर्ष का था. दिनेश और वीना एकदूसरे का हाथ थाम कर घर से निकले तो कुछ दिन रायपुर में बिताने के बाद बिलासपुर आ गए. इस शहर में वह तिफरा में किराए का मकान ले कर रहने लगे.

दिनेश एक सैलून में नौकरी करने लगा, ताकि वीना की और अपनी जिंदगी को हसीन बना सके. लेकिन यह संभव न हो सका. दिनेश के पिता रविशंकर और मां नूतन को यह पता चला कि बेटा वीना के साथ सुखपूर्वक रह रहा है तो वे मौन रह गए. लेकिन वीना की मां चमेली मौन नहीं रह सकी.

एक दिन जब दिनेश काम पर गया हुआ था, तो वीना की मां आ धमकी. वीना ने मां को बैठाया, चायपानी को पूछा. दोनों की बातचीत हुई तो चमेली आंसू बहाते हुए कहने लगी, ‘‘बेटी, तुम ने यह क्या कर दिया, हमारी तो सारी इज्जत ही मिट्टी में मिल गई.’’

वीना मां की बातें सुनती रही. बातोंबातों में चमेली ने पूछा, ‘‘बेटा, तुम ने दिनेश से ब्याह कहां किया? गवाह कौनकौन थे?’’इस पर वीना का सिर झुक गया, वह बोली, ‘‘मां, हम ने अभी तक विवाह नहीं किया है.’’

इस पर चमेली स्तब्ध रह गई. बोली, ‘‘तुम बिना विवाह के दिनेश के साथ कैसे रह सकती हो? यह तो पाप है बेटी.’’

वीना चुपचाप मां की बातें सुनती रही. चमेली ने आगे कहा, ‘‘तुम खुश तो हो न? मैं तुम्हारी शादी दिनेश से ही करा दूंगी. ऊंचनीच तुम क्या जानो, औरत के लिए मंगलसूत्र और सिंदूर का बड़ा महत्त्व होता है. समाज में रह कर उसी के हिसाब से जीना पड़ता है और उस के नियमकायदे मानने होते हैं. तुम अगर मेरी बात नहीं मानोगी तो पछताओगी.’’

वीना कुछ दिन दिनेश के साथ रह कर समझ गई थी कि प्यार के शुरुआती आकर्षण वाले मीठे सपने जब हकीकत के कठोर धरातल पर टकराते हैं, तब टूट कर किरचाकिरचा बिखर जाते हैं. उसे मां का सहारा मिला तो वह फट पड़ी और आंखों में आंसू लिए मां की गोद में सिर रख कर रोने लगी.

मां ने उसे ढांढस बंधाया, फिर बोली, ‘‘बेटा, तुम ने गलती तो बहुत बड़ी की है. लेकिन मैं मां हूं. मैं तुम्हें माफ नहीं करूंगी तो कौन करेगा.’’

वीना मां की ओर आशा भरी निगाहों से देखने लगी. चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अब तू दिनेश के साथ खुश है या नहीं, साफसाफ बता.’’

वीना ने बहुत सोचा, फिर कहा, ‘‘मां, मुझे लगता है कि मैं ने भूल की है. मुझे दिनेश के लिए घर नहीं छोड़ना चाहिए था. बताओ, अब मैं क्या करूं?’’

चमेली ने कहा, ‘‘अच्छा, अभी तुम मेरे साथ चलो, बाद में देखेंगे कि क्या करना है.’’ वीना तैयार हो गई. घर में ताला लगा कर उस ने चाबी पड़ोस की एक महिला को दे दी. इस के बाद वह मां चमेली के साथ घर मन्नाडोला चली गई.

रात में जब दिनेश काम से घर लौटा तो वहां ताला लगा था. पड़ोस से पता चला कि वीना की मां आई थी, वह उसे अपने साथ ले गई है. उस ने घर का ताला खोला और चुपचाप लेट गया. उस की आंखों के आगे अंधेरा फैला हुआ था, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला तो 2 पुलिस वाले खड़े थे. उन्हें देख दिनेश डर गया. पुलिस वाले उसे थाना सिविल लाइंस ले गए.

एक पुलिस वाले ने उसे बताया कि उस पर वीना नाम की लड़की को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का आरोप है. केस दर्ज हो चुका है. यह सुन कर दिनेश घबरा गया. उस ने पुलिस को बताया कि वह और वीना अपनी मरजी से घर छोड़ कर नई जिंदगी बसर करने के लिए निकले थे और तिफरा में किराए का मकान ले कर खुशीखुशी रह रहे थे. आज उस की मां चमेली यहां आई और बिना बताए उसे अपने साथ ले गई.

लेकिन पुलिस ने दिनेश की एक नहीं सुनी. उस के खिलाफ थाने में भादंवि की धारा 363 के अंतर्गत वीना को बहलाफुसला कर भगा ले जाने का मुकदमा दर्ज था. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर के जेल भेज दिया. दिनेश गम का घूंट पी कर रह गया.

वह यह भी साबित नहीं कर सका कि उस ने वीना के साथ विवाह किया था. वैसे भी वीना से अपने पक्ष की कोई उम्मीद रखना बेवकूफी थी, क्योंकि अब वह अपनी मां चमेली के प्रभाव में थी. वह वही कहती जो उस की मां चाहती.

दिनेश के जेल जाने की खबर जब उस के घर वालों को मिली तो उन्होंने एक वकील से इस मामले की पैरवी कराई. फलस्वरूव वह 2 महीने में जेल से बाहर आ गया. जो होना था, वह हो चुका था. दिनेश अब वीना को भुलाने की कोशिश करते हुए अपने परिवार के साथ रहने लगा. इसी बीच एक दिन गोल बाजार में उसे वीना मिल गई.

दिनेश उस से जानना चाहता था कि उस ने उसे किस बात की सजा दिलाई, इसलिए वह उसे एक कौफी हाउस में ले गया. बातचीत हुई तो दोनों के गिलेशिकवे शुरू हो गए. दिनेश ने वीना का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘वीना, जो भी हुआ, मैं उसे भूलने को तैयार हूं.’’

वीना ने आंखें नीची कर के कहा, ‘‘तुम ने मेरे साथ बहुत गलत किया है.’’

दिनेश ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘क्या गलत किया मैं ने?’’

‘‘तुम ने मुझ से शादी नहीं की, मुझे प्यार के बहकावे में रख कर मेरा शोषण करते रहे. क्या यह तुम्हारा फर्ज नहीं था कि मुझ से विवाह कर के अपने घर ले जाते?’’

‘‘देखो वीना, मैं ने जो भी किया, तुम्हारी मरजी से किया. मैं ने कभी जबरदस्ती नहीं की, फिर भी तुम ने मेरे खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करा कर मुझे जेल भिजवा दिया, क्या यह सही था?’’

‘‘तुम्हारी नीयत मुझे ठीक नहीं लगी, मां ने मुझे बताया कि शादी के बाद लड़की को सुरक्षा मिलनी चाहिए. तुम तो मुझे मंगलसूत्र और सिंदूर तक नहीं दे सके. अगर तुम मुझे छोड़ कर भाग जाते तो मैं तो बरबाद हो जाती. न इधर की रह जाती, न उधर की. तुम मुझ से प्यार करते थे तो शादी क्यों नहीं की?’’

दिनेश निरुत्तर रह गया. उसे अपनी भूल का अहसास हो रहा था. उसे वीना से ब्याह कर लेना चाहिए था. वह संभल गया, ‘‘अच्छा, मुझ से गलती हो गई. मैं अब तुम से शादी करूंगा, ठीक है.’’

वीना मौन बैठी थी. दिनेश ने उसे आश्वस्त करते हुए कहा, ‘‘तुम मुझ पर अविश्वास कैसे कर सकती हो. क्या मैं बेवफा हूं? मैं तुम्हारे साथ सारी जिंदगी हंसीखुशी गुजारने को तैयार हूं.’’

इस पर वीना ने धीमे स्वर में कहा, ‘‘मैं सोच कर बताऊंगी. एक बार गलती कर चुकी हूं. इसलिए अब मैं दोबारा कोई गलती करना नहीं चाहती.’’

बहरहाल दिनेश और वीना में सहमति बनी कि दोनों एक बार फिर से एकदूसरे को समझेंगे, जानेंगे, तब कोई कदम उठाएंगे ताकि पहले की तरह कोई भूल न हो. अब जो भी कदम उठाएंगे, सोचसमझ कर उठाएंगे.

दोनों एक बार फिर घरपरिवार के बंधनों को भूल कर मिलने लगे, भविष्य के सपने बुनने लगे. वीना दिनेश के प्रभाव में आ गई थी. वह जब चाहता, उसे एकांत में ले जा कर संबंध बना लेता और फिर उसे उस के घर छोड़ जाता. लेकिन इस बार भी चमेली दिनेश और वीना के बीच आ कर खड़ी हो गई. इस बार कुछ ऐसा भयावह हो गया, जिस की कल्पना किसी ने नहीं की होगी.

19 जून, 2019 की सुबह दिनेश के मोबाइल की घंटी बजी. देखा वीना की काल थी. उस ने काल रिसीव की. उधर से वीना चहकी, ‘‘आज कोर्ट में तुम्हारी पेशी है न? मैं कोर्ट आऊंगी और मजिस्ट्रैट के सामने तुम्हारे ही पक्ष में बयान दे दूंगी.’’

वीना की बात सुन कर दिनेश श्रीवास खुश हो कर बोला, ‘‘मैं तुम से कब से बोल रहा था कि आ कर मजिस्ट्रैट के सामने बयान दे दो, लेकिन तुम टालती जा रही थी.’’

‘‘मैं मां के कितने प्रेशर में हूं, तुम नहीं जानते. मां ने मेरा जीना हराम कर रखा है. एक तरह से मैं घर में कैद सी हो गई हूं. मां मेरी हर गतिविधि पर निगाह रखती हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से काल की है और आऊंगी भी. मां आज बाहर जाने वाली हैं न…’’ वीना ने ऐसे कहा जैसे उत्साह से भरी हो.

‘‘चलो, कम से कम तुम को सद्बुद्धि तो आई.’’ दिनेश ने हंसते हुए कहा.

19 जून, 2019 को पूर्वाह्न लगभग 11 बजे दिनेश श्रीवास न्यायालय परिसर में पहुंच गया. अब उसे अपने वकील और वीना के आने का इंतजार था. लेकिन पता चला कि उस का वकील नहीं आएगा. पेशी की तारीख आगामी किसी दिन की ली जाएगी. इस से उसे बेचैनी होने लगी. थोड़ी देर में उसे वीना आती दिखाई दी, लेकिन वह अकेली नहीं थी. उस के साथ उस की मां चमेली भी थी.

दिनेश श्रीवास ने वीना को अगली पेशी की तारीख बता कर कहा, ‘‘हमारे वकील साहब बीमार हैं, इसलिए नहीं आए. तुम्हें अगली बार आना होगा, तभी बयान हो पाएगा.’’

वीना कुछ कहती, इस से पहले ही चमेली ने बातों का सिरा अपने हाथों में ले लिया. वह बोली, ‘‘दिनेश, बयान तो हो जाएगा. लेकिन तुम्हें क्या लगता है, वीना का जीवन बरबाद कर के तुम खुश रह पाओगे. मैं ने सुना है तुम कहीं और ब्याह करने की सोच रहे हो?’’

‘‘नहींनहीं, मैं नहीं मेरे पिताजी बात चला रहे हैं.’’ दिनेश ने बात घुमानी चाही.

‘‘और तुम..? तुम क्या करोगे?’’ चमेली ने दिनेश से पूछा.

‘‘मैं क्या करूंगा, मुझे भी नहीं मालूम. मैं पिताजी को नाराज नहीं कर पाऊंगा. उन्होंने मुझे जेल से निकलवाया, मुझे माफ किया. मुझे लगता है आप ने ठीक ही किया, जो वीना को उस दिन घर से ले आईं. बिना ब्याह हम लोगों का एक साथ रहना हमारे और हमारे परिवारों के लिए कलंक बन जाता.’’ दिनेश ने नजरें झुका कर कहा.

‘‘मगर बेटा,’’ चमेली ने प्यार से कहा, ‘‘फिर तो वीना का भविष्य बरबाद हो गया मानूं. अब उस के साथ कौन शादी करेगा?’’

यह सुन कर दिनेश कनखियों से वीना की ओर देखने लगा. बोला कुछ नहीं. चमेली बोली, ‘‘मैं और मेरी बेटी दोनों कोर्ट में तुम्हारे हक में बयान दे देंगे, मगर तुम्हें वीना को सम्मान के साथ ब्याह कर उसे स्वीकार करना होगा.’’

दिनेश चमेली की बात सुन अनसुनी कर के दूसरी तरफ देखने लगा. चमेली को उस का यह व्यवहार बुरा लगा. उस ने पुचकारते हुए कहा, ‘‘दिनेश, आज क्यों न हम पिकनिक पर चलें. एकदूसरे से बातें भी हो पाएंगी और समझनेसमझाने का मौका भी मिल जाएगा. नहीं तो हमारे रास्ते अलगअलग तो हैं ही.’’

चमेली की बात सुन दिनेश ने हामी भर दी. कोर्ट परिसर में से एक आटो ले कर तीनों पिकनिक मनाने और एकदूसरे को समझने के लिए चमेली के बताए उसलापुर सकरी की ओर निकल गए.

5 जुलाई, 2019 को बिलासपुर सिटी के थाना सिविल लाइंस के दरजनों बार चक्कर लगाने के बाद दिनेश श्रीवास के पिता रविशंकर व मां नूतन अंतत: आईजी कार्यालय में अपना प्रार्थना पत्र ले कर पहुंचे. प्रार्थना पत्र में उन्होंने लिखा था—

हमारा बेटा दिनेश श्रीवास विगत 19 जून, 2019 से लापता है. हमें शक है कि उस के साथ कुछ अनिष्ट हो गया है. हमें यह भी अंदेशा है कि उसे गायब करने में हमारी पड़ोसी वीना और चमेली का हाथ है. हम दरजनों बार सिविल लाइंस थानाप्रभारी से मिले और गुजारिश की कि हमारे बच्चे को ढूंढें, लेकिन वह हमें टाल कर घर भेज देते हैं.

आईजी प्रदीप गुप्ता अपने औफिस में बैठे थे. अर्दली ने अंदर जा कर रविशंकर और नूतन के नाम का पेपर दे दिया. उन्होंने दोनों को तत्काल बुलाया और सामने बैठा कर पूछा, ‘‘बताइए, क्या बात है?’’

इस पर दिनेश की मां ने लिखा हुआ प्रार्थना पत्र उन्हें दे कर निवेदन करते हुए कहा, ‘‘साहब, हमें न्याय दिलाएं, हमारा बेटा गायब है.’’

नूतन ने आंसू बहाते हुए जब आईजी से थाने आनेजाने की आपबीती बताई तो आईजी साहब नाराज हो गए. उन्होंने तत्काल थानाप्रभारी सिविललाइंस से फोन पर बात की. उन्होंने थानाप्रभारी कलीम खान को डांटते हुए कहा, ‘‘इस संवेदनशील मामले में 24 घंटे के अंदर एफआईआर दर्ज कर रिपोर्ट मेरे सामने पेश करें.’’

आईजी प्रदीप गुप्ता के आदेश पर थाना सिविल लाइंस में हड़कंप मच गया. थानाप्रभारी कलीम खान ने तत्काल 2 सिपाही भेज कर वीना और उस की मां को थाने बुला लिया. दोनों थाने आईं तो पुलिस ने सख्ती से पूछताछ करनी शुरू कर दी, लेकिन वीना ने स्पष्ट इनकार करते हुए कहा कि वह दिनेश श्रीवास से बहुत दिनों से नहीं मिली है.

मोबाइल फोन की काल डिटेल्स खंगालने पर इस बात का खुलासा हो गया कि 19 जून तक दिनेश और वीना के बीच मोबाइल पर बातें हो रही थीं. एक सूत्र ने पुलिस को बताया कि 19 तारीख को तीनों कोर्ट में एक साथ दिखाई दिए थे. इसी सूत्र के आधार पर कलीम खान ने कोर्ट में लगे सीसीटीवी की फुटेज खंगालनी शुरू कर दी. एक फुटेज में तीनों को आटो में बैठ कर जाते देखा गया.

पुलिस को बहुत बड़ा सूत्र मिल गया था. इस पर जांच आगे बढ़ाई गई तो वीना की मां चमेली ने 19 जून, 2019 को तीनों के पिकनिक जाने की बात स्वीकार करते हुए उस की हत्या की बात स्वीकार कर ली.

चमेली ने अपने बयान में बताया कि बेटी की जिंदगी बरबाद होते देख वह परेशान रहने लगी थी. उसलापुर सकरी में पिकनिक के दौरान दिनेश श्रीवास ने जब स्पष्ट रूप से हाथ खड़े कर लिए कि अब वह वीना का साथ नहीं निभा सकेगा, तब उस ने और वीना ने मिल कर उस की हत्या कर दी.

दिनेश जब दोपहर को आंखें बंद कर के लेटा था तो उन दोनों ने उस के सिर पर पत्थर दे मारा, जिस से वह बुरी तरह घायल हो गया. बाद में उन्होंने धारदार हंसिया से दिनेश का गला रेत दिया. साथ ही एक पत्थर मार कर उस का चेहरा विकृत कर दिया और उसे वहीं फेंक कर वापस आ गईं.

दिनेश को कोई पहचान न सके, इसलिए उस का मोबाइल वीना ने अपने पास रख लिया. पुलिस ने चमेली और वीना के बयान के आधार पर दिनेश की खोजबीन की तो उन्हें उसलापुर के कोकने नाला में दिनेश का क्षतविक्षत शव मिल गया.

पुलिस ने वीना और चमेली को गिरफ्तार कर लिया. उन के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302, 120बी के तहत केस दर्ज किया गया. पूछताछ के बाद दोनों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें सेंट्रल जेल बिलासपुर भेज दिया गया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित. वीना परिवर्तित नाम है.

पहलवान का वार : अनजान लड़की बनी मौत का कारण

11अगस्त, 2019 को सुबह करीब साढ़े 5 बजे का वक्त था. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के बसंतपुर तिगेला

गांव के लोग खेतों की तरफ जा रहे थे, तभी उन्हें गांव के कच्चे रोड पर किसी व्यक्ति की डैडबौडी पड़ी दिखी. किसी ने इस की सूचना फोन द्वारा चंदला थाने को दे दी.

सुबहसुबह लाश मिलने की सूचना मिलते ही टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए. जब वह घटनास्थल पर पहुंचे तो कच्ची सड़क पर एक आदमी का खून से लथपथ शव पड़ा था. इस की सूचना टीआई ने एसपी (छतरपुर) तिलक सिंह को दे दी. टीआई वीरेंद्र बहादुर सिंह ने लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर गोलियों के घाव दिखे. मृतक की उम्र 40-45 साल के बीच रही होगी.

चूंकि वहां मौजूद लोगों में से कोई भी उसे नहीं पहचान सका, इसलिए लगा कि उसे कहीं दूसरी जगह से ला कर यहां मारा गया था. पहनावे से वह मुसलमान लग रहा था. पुलिस ने इस की पुष्टि के लिए उस के कपड़े हटा कर देखे तो साफ हो गया कि मृतक मुसलिम ही है.

तलाशी लेने पर मृतक की जेब में एक मोबाइल फोन मिला. उस मोबाइल की काल हिस्ट्री देखी गई तो पता चला कि 10 अगस्त को उस ने एक नंबर पर आखिरी बार बात की थी. जिस नंबर पर आखिरी बार बात हुई थी, टीआई वीरेंद्र सिंह ने उस नंबर पर बात की.

वह नंबर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के बसेला गांव में रहने वाले ताहिर खान का निकला. ताहिर खान ने टीआई को बताया कि यह नंबर उस के पिता आशिक अली का है, जो इन दिनोें पन्ना जिले के धरमपुर में रहते हैं.

यह जानने के बाद टीआई सिंह ने बरामद शव का फोटो खींच कर ताहिर के वाट्सऐप पर भेजा. फोटो देखते ही ताहिर ने शव की पहचान अपने पिता आशिक अली के रूप में कर दी. टीआई ने ताहिर को चंदला थाने पहुंचने को कहा और जरूरी काररवाई कर के लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी.

अगले दिन ताहिर अपने रिश्तेदारों के साथ मध्य प्रदेश के चंदला थाने पहुंच गया. पुलिस ने मोर्चरी में रखी लाश ताहिर और उस के घर वालों को दिखाई तो वे सभी लाश देखते ही रोने लगे. उन्होंने उस की शिनाख्त आशिक अली के रूप में की.

इस के बाद टीआई ने ताहिर खान से उस के पिता और परिवार के बारे में विस्तार से बात की तो कई चौंकाने वाली जानकारियां मिलीं.

पता चला कि मरने वाला आशिक अली दूध का धुला नहीं था. वह हमीरपुर का तड़ीपार बदमाश था, जो जिलाबदर होने के बाद पन्ना जिले के धरमपुर कस्बे में आ कर रहने लगा था. कहावत है कि चोर चोरी करना भले ही छोड़ दे लेकिन हेराफेरी से बाज नहीं आता.

साफ था कि आशिक अली ने धरमपुर आ कर अपने पुराने कामों से पूरी तरह संन्यास नहीं लिया होगा, धरमपुर में भी उस की कुछ तो आपराधिक गतिविधियां जरूर रही होंगी. इसलिए एसपी छतरपुर को मृतक के संबंध में पूरी जानकारी देने के बाद उन के निर्देश पर टीआई वीरेंद्र सिंह मामले की जांच करने के लिए पुलिस टीम ले कर धरमपुर पहुंच गए.

धरमपुर पन्ना जिले का छोटा सा मुसलिम बाहुल्य कस्बा है. कुछ समय पहले वीरेंद्र सिंह इस जिले में तैनात रह चुके थे, इसलिए उन्हें उस क्षेत्र की अच्छी जानकारी थी. धरमपुर पहुंच कर उन्होंने अपने तरीके से आशिक अली के बारे में जानकारी जुटाई तो जल्दी ही उस की पूरी जन्मकुंडली उन के सामने आ गई.

हमीरपुर से जिलाबदर कर दिए जाने के बाद अपने समाज के लोगों की बहुतायत देख कर आशिक अली धरमपुर आ कर बस गया था, जहां उसी के समाज के कुछ लोगों ने उस की मदद की.

दोनों बदमाशों की मिली कुंडली वहां पैर जमने के बाद आशिक अली ठेके और बंटाई पर जमीन ले कर खेतीकिसानी करने लगा. उस ने कुछ घोड़े भी पाल लिए थे, जिन का उपयोग वह शादीविवाह में करता था. फिर वह घोड़ों की खरीदबिक्री का काम भी करने लगा था. यहां आ कर वह सीधे तौर पर तो किसी अपराध से नहीं जुड़ा था, लेकिन पुराना अपराधी होने की ठसक उस के अंदर से पूरी तरह से गई नहीं थी. जिले के अलावा आसपास के दूसरे कई बदमाशों से उस की दोस्ती हो गई थी.

लोगों ने बताया कि लगभग 3-4 महीने से आशिक अली ने अपने घर पर छतरपुर जिले के लवकुश नगर निवासी बफाती पहलवान को पनाह दी हुई थी. दोनों की कुंडली मिलने का बड़ा कारण यह था कि बफाती भी आशिक अली की तरह छतरपुर का जिलाबदर बदमाश था. इसलिए बफाती के आ जाने के बाद दोनों मिल कर बदमाशी के क्षेत्र में उठापटक करने लगे थे.

बफाती अपने साथ लगभग 14 साल की निहायत ही खूबसूरत लड़की सलमा खातून को ले कर आया था. पहले तो लोगों का अनुमान यही था कि सलमा खातून बफाती की बेटी होगी, लेकिन ऐसा नहीं था. सलमा बफाती की बेटी की उम्र की थी. वह सलमा को भगा कर लाया था. यह बात वहां के लोगों को अच्छी नहीं लगी, पर बफाती का विरोध करने की हिम्मत कोई नहीं कर सका. अलबत्ता कुछ लोगों ने आशिक अली से जरूर इस बारे में समाज की नापसंद जाहिर कर दी.

इतनी जानकारी टीआई वीरेंद्र सिंह को यह समझने के लिए काफी थी कि आशिक की हत्या की कहानी इसी प्रेम कहानी में कहीं छिपी हो सकती है. लेकिन इस के लिए यह जानना जरूरी था कि बफाती के साथ आई किशोर उम्र की सलमा खातून आखिर कौन थी और वह बफाती के हाथ कैसे लगी. इस बारे में जानकारी जुटाने पर पता चला कि आशिक, बफाती और सलमा खातून के गांव से एक साथ गायब होने से कुछ दिन पहले महोबा थाने का एक सिपाही सलमा खातून के बारे में पूछताछ करता हुआ धरमपुर आया था.

इस पर टीआई वीरेंद्र सिंह ने महोबा पुलिस से संपर्क किया, जिस में पता चला कि छतरपुर से जिलाबदर होने के बाद बफाती महोबा की कांशीराम कालोनी में बिच्छू पहाड़ी के पास किराए के मकान में रह रहा था.

सलमा खातून उस के पड़ोसी परिवार की बेटी थी. बफाती ने सलमा खातून को अपने जाल में फांस लिया था, जिस के बाद जून महीने में वह उसे महोबा से ले कर लापता होने के बाद धरमपुर में आशिक अली के साथ रह रहा था.

टीआई सिंह ने सलमा खातून की मां मुबीन और पिता मकबूल हुसैन से भी पूछताछ की, जिस में उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले एक अज्ञात आदमी ने उन्हें फोन कर हमारी बेटी के धरमपुर में होने की खबर दी थी. यह जानकारी हम ने महोबा पुलिस को दे दी थी.

कहीं वह अज्ञात व्यक्ति आशिक अली ही तो नहीं था, जिस ने सलमा के मातापिता को खबर दी थी? क्योंकि बफाती और सलमा को ले कर गांव के लोग आशिक अली से अपना विरोध जता चुके थे.

अब पुलिस को बफाती पर शक होने लगा. गांव के कुछ लोगों ने बताया कि घटना वाले दिन 11 अगस्त को सुबह 4-5 बजे बफाती, आशिक और सलमा एक ही बाइक से कहीं जाते हुए देखे गए थे. इस से बफाती पर शक और गहरा गया. टीआई वीरेंद्र सिंह अपनी टीम के साथ बफाती की तलाश में जुट गए.

इस के लिए उन्होंने बफाती के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई, जिस से पता चला कि आशिक अली की लाश मिलने के बाद बफाती ने अपने नंबर से सलमा खातून की मां और उस के बाप को फोन किया था. इस के बाद उस का मोबाइल बंद हो गया था. टीआई ने इन दोनों से पूछताछ की, जिस में उन्होंने चौंका देने वाली बात बताई.

सलमा खातून की मां मुबीन और बाप मकबूल हुसैन ने बताया कि उन्हें बफाती ने फोन पर बताया था कि आशिक अली ने हमारी मुखबिरी कर के अपनी मौत को बुलावा दिया है. इसलिए मैं ने उस का कत्ल कर दिया है. अब तुम भी अपनी बेटी सलमा को भूल जाओ वरना तुम्हें भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा.

बफाती छंटा हुआ पुराना बदमाश था. पुलिस से बचने के लिए उस ने अपना मोबाइल बंद कर रखा था, इसलिए टीआई उस तक पहुंचने के दूसरे रास्तों की निगरानी करने लगे. जिस के चलते पुलिस को जल्द ही बफाती द्वारा एटीएम से पैसे निकालने की जानकारी मिली. यह छोटा सा सुराग बड़ी सफलता का साधन बन सकता था.

पुलिस को पता कि बफाती ने जिस एटीएम से पैसे निकाले हैं, वह पन्ना जिले में छानी गांव के पास है. टीम छानी पहुंच गई. वहां के लोगों को पुलिस ने बफाती का फोटो दिखा कर पूछताछ की तो वहां के एक दुकानदार ने बताया कि यह आदमी कुछ दिन पहले उस की दुकान पर आया था. लोगों से उस की मोटरसाइकिल का नंबर भी मिल गया. आरटीओ से जानकारी ली गई तो पता चल गया कि मोटरसाइकिल बफाती खान के नाम से रजिस्टर्ड है.

पुलिस को देख कर डरा नहीं बफाती बफाती छानी में था, इसलिए टीआई वीरेंद्र सिंह भी वहां पहुंच गए. जिस के बाद एकएक कदम बढ़ाते हुए वह गांव के बाहर खेत में बने अल्ताफ के टपरे तक जा पहुंचे, जहां एक कोने में बफाती बेसुध सो रहा था. आहट होने पर उस की आंखें खुल गईं.

अपने सामने पुलिस देख वह चौंका तो लेकिन डरा नहीं. उस ने पास में छिपा कर रखा हथियार निकालने की कोशिश की तो टीआई ने उसे कब्जे में ले लिया. सलमा भी यहीं थी. पुलिस ने उसे भी हिरासत में ले लिया. बफाती की तलाशी ली गई तो उस के पास 315 बोर का देशी कट्टा और 6 जिंदा कारतूस बरामद हुए. पुलिस उसे गिरफ्तार कर थाने ले आई.

थाने ला कर टीआई वीरेंद्र सिंह ने बफाती से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने आशिक की हत्या करने की बात कबूल कर ली. बफाती ने यह भी बताया कि आशिक अली ने सलमा के मामले में उस की मुखबिरी सलमा के मातापिता से की थी. इसी वजह से उस ने उस का कत्ल कर दिया. बफाती के एक नामी पहलवान से कातिल बनने की कहानी इस प्रकार सामने आई.

बफाती मूलरूप से छतरपुर जिले के लवकुश नगर कस्बे का रहने वाला था. मजबूत कदकाठी का होने के कारण उसे छोटी सी उम्र में ही पहलवानी का शौक लग गया था. कहते हैं कि 16 साल की उम्र में आतेआते वह पहलवानी में इतना माहिर हो गया कि अपने से डेढ़ गुना बड़ी उम्र के पहलवान को पलक झपकते धूल चटा देता था. इस से जल्द ही पूरे जिले में उस के नाम की तूती बोलने लगी. लंगोट कस कर बफाती अखाड़े में उतरता तो लोग तालियों और शोरशराबे से उस का स्वागत करते थे.

लेकिन वह पहलवानी के दांवपेंच में जितना पक्का था, लंगोट का उतना ही कच्चा. उस के संबंध कई कमसिन उम्र की लड़कियों से थे. गांव में एक तो ऐसे मामले खुल कर सामने नहीं आ पाते, दूसरे किसी को भनक लगती तो वह उस की पहलवानी की ताकत के डर से मुंह नहीं खोलता था. इस से कुछ समय बाद बफाती को अपनी ताकत पर घमंड हो गया.

धीरेधीरे बफाती का डंका पूरे इलाके में बजने लगा तो कुछ राजनीतिक लोग बाहुबल के लिए बफाती का इस्तेमाल करने लगे. जिस का फायदा उठा कर वह गैरकानूनी कामों से पैसा बनाने लगा. फिर जल्द ही वह इलाके में अवैध शराब के कारोबार का सरगना बन गया. ऐसे में दूसरे बदमाशों से उस का टकराव हुआ भी तो बफाती ने अपने बाहुबल पर सब को किनारे लगा दिया.

किसी के साथ भी मारपीट करना उस के लिए आम बात हो गई थी, जिस के चलते धीरेधीरे बफाती के खिलाफ लवकुश नगर थाने में दर्ज मामलों की गिनती बढ़ने लगी. साथ ही उस के अपराध भी गंभीर होते गए.

बफाती के आपराधिक रिकौर्ड के कारण मध्य प्रदेश में 2018 के विधानसभा चुनावों से पहले उसे छतरपुर से जिलाबदर कर दिया गया. इस के बाद वह पास ही उत्तर प्रदेश के मुसलिम बाहुल्य महोबा शहर में जा कर वहां की कांशीराम कालोनी में किराए पर रहने लगा.

नाबालिग लड़कियों का शौकीन था बफाती महोबा के बफाती के घर के ठीक सामने 14 वर्षीय सलमा खातून अपने मातापिता के साथ रहती थी. बफाती कमसिन उम्र की लड़कियों को अपने जाल में फांसने में एक्सपर्ट था. खूबसूरत सलमा को देख कर वह उस का दीवाना हो गया. सलमा के मातापिता गरीब थे और बफाती के पास अवैध कमाई की दौलत थी. उस ने सलमा के पिता मकबूल हुसैन को दूल्हाभाई कहते हुए सलमा का मामू बन कर उस के घर में पैठ बना ली.

इस दौरान वह सलमा खातून के घर पर काफी पैसा लुटाते हुए उस पर डोरे डालता रहा, जिस से सलमा जल्द ही उस के जाल में फंस गई. इस के बाद वह जबतब उस के घर जाने लगा. मौका मिलने पर वह सलमा को अपने कमरे पर भी बुला लेता. फिर एक दिन वह उसे ले कर महोबा से फरार हो गया.

सलमा के लापता हो जाने से मोहल्ले में हल्ला मच गया. रिपोर्ट हुई तो पुलिस ने मोहल्ले के कई लड़कों को शक के आधार पर कई दिनों तक थाने में बैठाए रखा. सलमा खातून को बफाती ले कर भागा है, यह बात काफी दिनों बाद लोगों की समझ में आई.

इधर सलमा खातून को ले कर बफाती सीधे पन्ना के धरमपुर में रहने वाले आशिक अली के पास पहुंचा. आशिक खुद भी जिलाबदर होने के कारण धरमपुर में रह रहा था. बफाती से उस की पुरानी दोस्ती थी, इसलिए उस ने उसे अपने घर में शरण दे दी.

धरमपुर मुसलिम बाहुल्य कस्बा है, जिस से वहां के लोगों ने जिस तरह कभी आशिक को हाथोंहाथ लिया था, वैसे ही बफाती की भी मदद की. दरअसल वे सलमा खातून को बफाती की बेटी समझे थे. लेकिन जब उन्होंने सलमा के साथ उस की हरकतें देखीं तो उन्हें बफाती संदिग्ध लगा.

गांव में सलमा खातून की उम्र की कई लड़कियां थीं, जिन से उस की दोस्ती भी हो गई थी. गांव वालों को लगा कि अपने बाप की उम्र के मर्द के साथ रखैल के रूप में रहने वाली सलमा की संगत का असर उन के बच्चों पर भी हो सकता है, इसलिए उन्होंने अपनी बेटियों के उस से मिलने पर पाबंदी लगा दी.

चूंकि आशिक ने बफाती को शरण दी थी, इसलिए गांव वाले इस स्थिति के लिए आशिक को दोषी मानने लगे. उन्होंने इस की शिकायत आशिक से की. उन्होंने कहा कि वह अपने इस दोस्त को यहां से रवाना करे.

दोस्त बना दुश्मन आशिक खुद भी बफाती की इस हरकत से परेशान था. क्योंकि वह कभी भी कहीं भी सलमा के साथ अय्याशी करने लगता था. इस के लिए वह किसी की शर्मलिहाज नहीं करता था. हालांकि बफाती के आने से आशिक को कई फायदे हुए थे. उस के मजबूत कसरती बदन के कारण लोग आशिक अली से भी डरने लगे थे.

फिर भी आशिक अली को उस का सलमा के साथ रहना अखरने लगा था. उस ने इस बात का बफाती से सीधे विरोध करने के बजाय दूसरा रास्ता निकाला. सलमा खातून आशिक को मामू कहती थी, इस बात का फायदा उठा कर उस ने धीरेधीरे सलमा से उस के घर का पता पूछ लिया. साथ ही उस ने बफाती के कुछ पुराने कर्मों की जानकारी भी सलमा को दी ताकि वह बफाती से नफरत करने लगे.

यह जानने के बाद आशिक ने अपने महोबा  के एक दोस्त द्वारा सलमा खातून के धरमपुर में होने की जानकारी उस के मातापिता को भिजवा दी. खबर पा कर कुछ रोज पहले महोबा पुलिस का एक सिपाही धरमपुर आ कर सलमा खातून से पूछताछ करने लगा.

इस बात की जानकारी मिलने पर बफाती चौंका. क्योंकि सलमा कहां की रहने वाली है, यह बात उस ने आशिक को भी नहीं बताई थी. इसलिए उस ने खुद सलमा से गुप्त तरीके से जानकारी ली, जिस में उस ने बता दिया कि आशिक मामू ने उस से पूछा था इसलिए उस ने बता दिया कि वह महोबा के कांशीराम कालोनी की रहने वाली है.

यहीं से बफाती को शक हो गया कि आशिक ने ही उस की मुखबिरी की है. संयोग से इसी बीच सलमा ने बफाती से पहले उस की प्रेमिका रही एक दूसरी नाबालिग लड़की के बारे में पूछा तो बफाती को पूरा भरोसा हो गया कि आशिक उसे डबलक्रौस कर रहा है.

बफाती ने दुश्मन को माफ करना सीखा ही नहीं था. इसलिए सलमा को अपनी रखैल बनाए रखने के लिए उस ने धरमपुर छोड़ने के साथसाथ आशिक को भी ठिकाने लगाने की ठान ली.

इस काम को अंजाम देने के लिए बफाती ने आशिक को जरा भी शक नहीं होने दिया कि उस ने उसे सबक सिखाने के लिए क्या योजना बना रखी है. 11 अगस्त, 2019 को उस ने आशिक से कहा कि महोबा पुलिस को मेरी जानकारी लग चुकी है, इसलिए अब इस गांव में रहना ठीक नहीं है. उस ने गांव छोड़ने की बात कहते हुए दोस्ती के नाते आशिक को भी साथ चलने को कहा.

बफाती के गांव से जाने की बात सुन कर आशिक खुश हो गया. लेकिन बफाती अपना इरादा न बदल दे, इसलिए उस के साथ गांव छोड़ने को राजी भी हो गया. उस का विचार था कि बफाती कहीं और जम जाएगा तो वह खुद धरपुर वापस आ जाएगा, लेकिन बफाती ने कुछ और ही सोच रखा था. 11 अगस्त को सुबह लगभग 4-5 बजे बफाती अपनी बाइक पर सलमा और आशिक को ले कर गांव से निकल पड़ा.

लगभग एक घंटे के बाद बसंतपुर तिगेला आ कर बफाती ने गुटखा खाने के बहाने बाइक रोक दी, जिस के बाद बाइक से नीचे उतरते ही कमर में खोंस कर रखे देशी कट्टे से आशिक के ऊपर एक के बाद एक 3 गोलियां दागीं, जिस से उस की मौत हो गई. उस की लाश को वहीं पड़ा छोड़ कर वह सलमा के साथ पन्ना के छानी गांव में रहने वाले अपने दोस्त अल्ताफ के पास चला गया.

पुलिस ने बफाती की मदद करने के आरोप में अल्ताफ के खिलाफ भी भादंवि की धारा 212 एवं 216 के तहत काररवाई की. पुलिस ने बफाती से पूछताछ के बाद उसे व उस के दोस्त अल्ताफ को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. कथा लिखने तक महोबा पुलिस भी बलात्कार, अपहरण एवं पोक्सो एक्ट के तहत बफाती को अदालत से रिमांड पर ले कर महोबा ले जाने की काररवाई कर रही थी.द्य

—कथा में सलमा खातून परिवर्तित नाम है

सेक्स स्केंडल : ब्लैकमेलिंग से हुए कई शिकार

यह देह व्यापार और ब्लैकमेलिंग का वैसा और कोई छोटामोटा मामला नहीं है, जिस में लोगों को पता चल जाए कि पकड़े गए लोगों के नाम, वल्दियत और मुकाम क्या हैं, बल्कि इस हाईप्रोफाइल मामले की हैरतअंगेज बात यह है कि इस में उन औरतों के नाम और पहचान उजागर हो जाना है, जो अपने हुस्न के जाल में मध्य प्रदेश के कई नेताओं और आईएएस अफसरों को फंसा कर करोड़ों रुपए कमा चुकी हैं.

खूबसूरत, स्टायलिश, सैक्सी और जवान औरत किसी भी मर्द की कमजोरी हो सकती है, लेकिन जब वे मर्द अहम ओहदों पर बैठे हों तो चिंता की बात हो जाती है. क्योंकि इन की न केवल समाज में इज्जत और रसूख होता है, बल्कि ये वे लोग हैं जो सरकार की नीतियांरीतियां बनाते हैं.

इन के कहने पर करोड़ों का लेनदेन होता है. सूटबूट में चमकते दिखने वाले इन खास लोगों में बस एक बात आम लोगों जैसी होती है, वह है जवान औरत का चिकना शरीर देखते ही उस पर बिना सोचेसमझे फिसल जाना.

फिसल तो गए, लेकिन अब इन का गला सूख रहा है. नींद उड़ी हुई है और हलक के नीचे निवाला भी नहीं उतर रहा. वजह यह डर है कि खुदा न खास्ता अगर नाम और रंगरलियां मनाते वीडियो उजागर और वायरल हो गए तो कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रह जाएंगे.

जांच एजेंसियां यह भी पूछेंगी कि इन बालाओं पर लुटाने के लिए ढेर सारी रकम आई कहां से थी और ब्लैकमेलिंग से बचने के लिए इन्हें कैसे उपकृत किया गया. यानी ब्लैकमेलिंग की रकम का बड़ा हिस्सा एक तरह से सरकार दे रही थी.

यह है मामला इंदौर नगर निगम के एक इंजीनियर हरभजन सिंह ने 17 सितंबर, 2019 को पुलिस में रिपोर्ट लिखाई कि 2 औरतें उसे ब्लैकमेल कर रही हैं. पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर मामले की जांच शुरू कर दी. इंजीनियर हरभजन से भोपाल की आरती दयाल की दोस्ती थी. आरती एक एनजीओ चलाती है. इस ने कृषि, ग्रामीण व पंचायत विभाग से एनजीओ के नाम पर मोटी फंडिंग ली थी.

बल्लभ भवन के ग्राउंड फ्लोर पर बैठने वाले एक आईएएस, भोपाल-इंदौर में कलेक्टर रहे एक आईएएस के अलावा और कई अफसर और नेताओं से उस के नजदीकी संबंध थे. सबंध भी इतने गहरे कि भोपाल व इंदौर में कलेक्टर रह चुके एक आईएएस अफसर ने तो उसे मीनाल रेजिडेंसी जैसे पौश इलाके में एक महंगा फ्लैट दिला दिया था. यह आईएएस अफसर भोपाल और इंदौर के कलेक्टर भी रह चुके हैं.

आरती इस अफसर को ब्लैकमेल कर रही थी, जिस से पीछा छुड़ाने के लिए इस अफसर ने उसे होशंगाबाद रोड पर एक प्लौट भी दिलाया था. आरती ने इस के बाद भी उस का पीछा छोड़ा या नहीं, यह तो वही जाने लेकिन आरती ने दूसरा शिकार हरभजन सिंह को बनाया.

उस ने हरभजन की दोस्ती नरसिंहगढ़ की 18 साल की छात्रा मोनिका यादव से करा दी. कम उम्र में ही दुनियादारी में माहिर हो गई मोनिका ने हरभजन को अपना दीवाना बना लिया, जिस के चलते हरभजन उस का भजन करने लगा और आरती उतारने के लिए एक दिन उसे एक होटल के कमरे में ले गया.

मोनिका और उस की गुरुमाता आरती ने प्यार के इस पूजापाठ को कैमरे में कैद कर लिया ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए. उधर मोनिका के गुदाज बदन और नईनई जवानी का रस चूस रहे हरभजन को पता ही नहीं चला कि सैक्स करते वक्त वह कैसा लगता है और कैसीकैसी हरकतें करता है.

यह सब मोनिका और आरती ने उसे चलचित्र के जरिए दिखा कर अपनी दक्षिणा, जिसे ब्लैकमेलिंग कहते हैं, मांगी तो वह सकपका उठा.  बेचारा साबित हो गया हरभजन 8 महीने ईमानदारी से पैसे देता रहा. लेकिन हद तब हो गई जब इन दोनों ने एक बार में ही 3 करोड़ रुपए की मांग कर डाली. इस भारीभरकम मांग से उस के सब्र का बांध टूट गया तो उस ने इंदौर के पलासिया थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी.

पुलिस को मामला इतना दिलचस्प लगा कि उस ने बिना हेलमेट वालों के चालान वगैरह बनाने जैसा अपना पसंदीदा काम एक तरफ रखते हुए तुरंत काररवाई शुरू कर दी.

ऐसे मौकों पर पुलिस जाने क्यों समझदार हो जाती है. उस ने प्लान बनाया और मोनिका व आरती को रकम की पहली किस्त 50 लाख रुपए लेने इंदौर बुलाया. ये दोनों इंदौर पहुंचीं तो विजय नगर इलाके में इन्हें यू आर अंडर अरेस्ट वाला फिल्मी डायलौग मारते हुए गिरफ्तार कर लिया.

2-2 श्वेताएं जिसे पुलिस कहानी का खत्म होना मान रही थी, दरअसल वह कहानियों की शुरुआत थी. पूछताछ में आरती ने बताया कि ब्लैकमेलिंग के इस खेल में और भी महिलाएं शामिल हैं, जिन में से 2 के एक ही नाम हैं यानी श्वेता जैन. पहली श्वेता जैन 39 साल की है. वह भाजपा में सक्रिय है. इस ने अपने हुस्नजाल में एक पूर्व सीएम को फंसाया, जिस ने उसे भोपाल के मीनाल रेजिडेंसी में एक फ्लैट दिलवाया था.

यह बुंदेलखंड, मालवा-निमाड़ के एक पूर्वमंत्री की भी करीबी है. इन्हीं संबंधों का फायदा उठा कर इस ने एक एनजीओ को फंडिंग भी कराई थी. इसे सागर के एक कलेक्टर के संग उन की पत्नी ने पकड़ा था. उस के पति का नाम विजय जैन है. जबकि दूसरी श्वेता जैन के पति का नाम स्वप्निल जैन है.

48 साल की यह श्वेता भोपाल की सब से महंगी टाउनशिप रिवेरा में रहती है. तलाकशुदा आरती ने बड़ी शराफत और पूरी ईमानदारी से बताया कि वह छतरपुर की रहने वाली है और वहां भी 10 लोगों को ब्लैकमेल कर चुकी है. यानी यह उस का फुलटाइम जौब है.

भोपाल पुलिस ने भी सड़क चलते वाहन चालकों को बख्शते हुए इन श्वेताओं को गिरफ्तार कर लिया. ये दोनों भी बड़ी शानोशौकत वाली निकलीं. सागर की रहने वाली श्वेता जैन के यहां से पुलिस ने 14 लाख 17 हजार रुपए बरामद किए.

यह श्वेता एक इलैक्ट्रिक कंपनी की भी मालकिन निकली. इस के पास से 2 महंगी कारें मर्सिडीज और औडी भी मिलीं. इस श्वेता ने सन 2013 में सागर विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए भाजपा से टिकट भी मांगा था. लेकिन भाजपा के ही एक बड़े नेता ने उस का टिकट कटवा दिया था. इस के बावजूद भी उस के भाजपा नेताओं से अच्छे और गहरे संबंध थे.

दूसरी श्वेता (स्वप्निल वाली) के पास से भी एक औडी कार मिली. यह भी पता चला कि वह मूलत: जयपुर की रहने वाली है और उस का पति पेशे से थेरैपिस्ट है, जिसे अकसर पब पार्टियों में देखा जाता है.

इस श्वेता ने एक पूर्व सांसद की सीडी बनवा कर 2 करोड़ रुपए वसूले थे. भाजपा के एक कद्दावर नेता ने तो ब्लैकमेलिंग पर चुनाव के पहले इसे दुबई भेज दिया था, जहां से वह 10 महीने बाद लौटी थी. फिलहाल 3 कलेक्टरों के तबादलों में इस की अहम भूमिका रही थी.

इन दोनों को भाजपा विधायक बृजेंद्र सिंह ने मकान किराए पर दिया था. इस के पहले ये एक दूसरे भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार के मकान में किराए पर रहते थे. इस मकान में इन दिनों भोपाल की सांसद साध्वी प्रज्ञा भारती रह रही हैं.

पूरी छानबीन का सार यह रहा कि दोनों खूबसूरत श्वेताओं के पास बेशुमार दौलत और जायदाद है. साथ ही ऐशोआराम के तमाम सुखसाधन भी मौजूद हैं.

2-2 मास्टरमाइंड इतना होने के बाद और भी महिलाओं के नाम सामने आए, इन में से असली मास्टरमाइंड कौन है, यह तय होना अभी बाकी है. कुछ लोग सागर वाली श्वेता को ही मास्टरमाइंड  मान रहे हैं तो कुछ की नजर में असली सरगना बरखा भटनागर है.

बरखा अपने पहले पति को तलाक दे चुकी है और उस ने दूसरी शादी अमित सोनी से की है. अमित सोनी कभी कांगे्रस के आईटी सेल से जुड़ा था और सन 2015 में बरखा भी कांग्रेस में आ गई थी.

ये दोनों भी एक एनजीओ चलाते हैं जो एग्रीकल्चर से जुड़े प्रोजेक्ट लेता है. सन 2014 में बरखा का नाम देह व्यापार के एक मामले में आया था. तब से वह सक्रिय राजनीति से अलग हो गई थी. इसी दौरान उस की मुलाकात श्वेता जैन से हुई थी.

बरखा वक्तवक्त पर कई कांग्रेसी दिग्गजों के साथ अपने फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करती रहती थी. वर्तमान में 2 मंत्रियों और एक पूर्व प्रदेश अध्यक्ष से इस के अच्छे संबंध हैं. अपनी पहुंच के चलते इस ने एनजीओ के लिए काफी डोनेशन भी लिया था. सागर वाली श्वेता को एक बार सागर में एक कलेक्टर साहब की पत्नी ने रंगेहाथों पकड़ा था.

नरसिंहगढ़ निवासी बीएससी में पढ़ रही मोनिका यादव को आरती ने गिरोह में शामिल किया था, जो जवान थी और जल्द ही अफसरों और नेताओं को अपने हुस्न जाल में फंसाने में माहिर हो गई थी. कई नेताओं के यहां भी उस का आनाजाना था. आरती ने ही इसे अपने साथ जोड़ा था.

इन पर नकाब क्यों जब राज खुलने शुरू हुए तो यह भी पता चला कि इन पांचों की तूती प्रशासनिक गलियारों में भी बोलती थी. इन के कहने पर तबादले होते थे, नियुक्तियां भी होती थीं और ठेके भी मिलते थे. ये 3 पूर्व मंत्रियों सहित 7 आईएएस अफसरों को ब्लैकमेल कर रही थीं, वह भी पूरी दिलेरी से.

हाल तो यह भी था कि इन के पकड़े जाने के बाद कई अफसर पुलिस हेड क्वार्टर फोन कर पुलिस अधिकारियों के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि उन का नाम सामने न आए. इन के मोबाइलों में कइयों की ब्लू फिल्में हैं.

लेकिन पुलिस उन के नाम उजागर नहीं कर रही है. आमतौर पर जैसा कि ऊपर बताया गया है कि ऐसे मामलों में पुलिस महिलाओं के नाम छिपाती है और पुरुषों के उजागर कर देती है. पर यह मामला ऐसा है जिस में महिलाओं के नाम और फोटो उजागर किए गए लेकिन उन महापुरुषों के नहीं, जिन की वजह से रायता फैला.

पुलिस इन सफेदपोशों के चेहरों पर क्यों नकाब ढके हुए है, यह बात भी उजागर है कि कथित आरोपी महिलाओं को उस ने गुनहगार मान कर उन की जन्म कुंडलियां मीडिया के जरिए बांच दीं, लेकिन अय्याश और रंगीनमिजाज नेताओं और अफसरों को वह बचा रही है.

जबकि जनता को पूरा हक है कि वह इन के बारे में जानें. ऐसा होगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि सरकार नहीं चाहती कि इन सफेदपोशों की बदनामी हो.

महज हरभजन द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर पर सारी काररवाई होना पुलिस की नीयत और मंशा को शक के कटघरे में खड़ी कर रही है. जिनजिन रसूखदारों के साथ इन के आपत्तिजनक फोटो व वीडियो मिले हैं, उन के नाम उजागर हों तो समझ आए कि वाकई ये ब्लैकमेलर हैं.      द्य

 

अन्नपूर्णा : सिंदूर की जगह खून

कानपुर स्थित दलहन अनुसंधान केंद्र का सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह सुबह 8 बजे ड्यूटी पूरी कर अपने घर जा रहा था. जब वह बैरीबागपुर जाने वाली लिंक रोड पर पहुंचा तो उस ने रोड के किनारे एक युवती का शव पड़ा देखा. के.पी. सिंह ने यह सूचना जीटी रोड से गुजर रहे राहगीरों को दी तो कुछ ही देर में वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई. इसी बीच के.पी. सिंह ने फोन द्वारा सड़क किनारे लाश पड़ी होने की सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. यह बात 17 अप्रैल, 2019 की है.

सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह पुलिस टीम के साथ बताई गई जगह पर पहुंच गए. युवती की उम्र 20-22 साल के आसपास थी. उस के सिर और चेहरे पर ईंटपत्थर या किसी अन्य वजनी चीज से वार किया गया था.

सिर से निकले खून से जमीन लाल हो गई थी. युवती के गले में दुपट्टा लिपटा था. ऐसा लग रहा था कि हत्यारे ने उस का गला भी घोंटा हो. उस के हाथों में चोट के निशान भी थे. थानाप्रभारी ने इस की सूचना वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दे दी थी.

घटनास्थल पर सैकड़ों लोगों की भीड़ थी, लेकिन कोई भी युवती को पहचान नहीं पाया. थानाप्रभारी अभी घटनास्थल की जांच कर ही रहे थे कि इसी बीच एक युवक वहां आया. उस ने पहले युवती की लाश को गौर से देखा, फिर फफक कर रो पड़ा. वह वहां मौजूद थानाप्रभारी से बोला, ‘‘साहब, यह मेरे भाई राकेश कुरील की बेटी अन्नपूर्णा है. इस की तो कल बारात आने वाली थी, पता नहीं किस ने इस की हत्या कर दी.’’

शादी से एक दिन पहले दुलहन की हत्या की बात सुन कर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह स्तब्ध रह गए. उन्होंने लाश की शिनाख्त करने वाले युवक से पूछताछ की तो उसने अपना नाम राजेश कुरील बताया. विनोद कुमार ने उस से बात कर कुछ जरूरी जानकारी हासिल की. इसी बीच सूचना पा कर एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन तथा सीओ (कल्याणपुर) अजय कुमार सिंह भी आ गए. अधिकारियों ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुला लिया था.

राजेश ने अपनी भतीजी अन्नपूर्णा की हत्या की खबर घर वालों को दी तो घर में कोहराम मच गया. घर में चल रही शादी की तैयारियां मातम में बदल गईं. राकेश की पत्नी शिवदेवी तथा बेटियां प्रियंका, प्रगति, नेहा तथा परिवार के अन्य सदस्य रोतेबिलखते घटनास्थल पर आ गए. शिवदेवी व उस की बेटियां अन्नपूर्णा के शव को देख फूटफूट कर रोने लगीं.

मोहल्ले में किसी ने नहीं सोचा था कि जिस घर में बारात आने की तैयारी हो रही हो, वहां से अर्थी उठेगी. मृतका अन्नपूर्णा की होने वाली सास लक्ष्मी भी उस की मौत की खबर पा कर पति शिवबालक व बेटे पुनीत के साथ घटनास्थल पर आ गई थी. वह कह रही थी, हमें तो बारात ले कर बहू को लेने आना था, लेकिन अर्थी देखने को मिली. पुनीत भी होने वाली पत्नी के शव को टुकुरटुकुर देख रहा था.

घटनास्थल पर कोहराम मचा था. पुलिस अधिकारियों ने किसी तरह रोतेबिलखते घर वालों को धैर्य बंधाया. घटनास्थल की काररवाई निपटा कर पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए लाजपतराय चिकित्सालय भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस अधिकारियों ने मृतका के पिता राकेश कुमार कुरील से कहा कि वह थाना बिठूर जा कर बेटी की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराए.

लेकिन राकेश तथा उस के घर वाले हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करने लगे. इस पर पुलिस अधिकारियों को संदेह हुआ कि आखिर वे लोग रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराना चाहते. उन्हें लगा कि कहीं यह मामला औनर किलिंग का तो नहीं है.

शक हुआ तो एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन ने राकेश कुरील से पूछताछ की. राकेश ने बताया कि उस ने अन्नपूर्णा की शादी कुरसौली गांव निवासी पुनीत के साथ तय की थी. 14 अप्रैल, 2019 को उस की गोदभराई तथा तिलक का कार्यक्रम संपन्न हुआ था, 18 अप्रैल को बारात आनी थी.

16 अप्रैल की शाम वह पत्नी शिवदेवी के साथ खरीदारी करने मंधना बाजार चला गया था. रात 9 बजे जब वह घर लौटा तो पता चला अन्नपूर्णा घर में नहीं है. यह सोच कर कि वह पड़ोस में रहने वाली अपनी बुआ के घर पर रुक गई होगी, इसलिए किसी ने ध्यान नहीं दिया. सुबह उस की मौत की खबर मिली.

‘‘तुम्हें किसी पर शक है?’’ एसपी ने पूछा. ‘‘नहीं साहब, मुझे किसी पर शक नहीं है, मेरी किसी से दुश्मनी भी नहीं है.’’ राकेश ने बताया.

राकेश खुद आया शक के घेरे में राकेश की बात सुन कर वहां खड़े सीओ अजय कुमार सिंह झल्ला पड़े, ‘‘राकेश, जब तुम्हें किसी पर शक नहीं है. कोई तुम्हारा दुश्मन भी नहीं है तो तुम्हारी बेटी की हत्या किस ने की? तुम्हीं लोगों ने उसे मौत के घाट उतार दिया होगा?’’

‘‘नहीं साहब, भला हम अपनी बेटी को क्यों और कैसे मारेेंगे?’’

‘‘इसलिए कि अन्नपूर्णा किसी दूसरे लड़के से प्यार करती होगी और उसी लड़के से शादी करने की जिद कर रही होगी, लेकिन तुम ने उस की बात न मान कर शादी दूसरी जगह तय कर दी होगी. जब उस ने तुम्हारा कहा नहीं माना तो तुम लोगों ने उसे मार डाला. इसीलिए तुम लोग उस की हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी कर रहे हो.’’ सीओ अजय कुमार ने कहा.

खुद को फंसता देख राकेश घबरा कर बोला, ‘‘साहब, हम बेटी के कातिल नहीं हैं. हम रिपोर्ट दर्ज कराने को तैयार हैं, लेकिन नामजद नहीं करा सकते.’’ इस के बाद राकेश ने थाने पहुंच कर भादंवि की धारा 302 के तहत अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही हत्या का शक हरिओम पर जाहिर किया.

पुलिस अधिकारियों ने राकेश से हरिओम के संबंध में पूछताछ की तो उस ने बताया कि हरिओम गूवा गार्डन कल्याणपुर में रहता है और ट्रांसपोर्टर है. पहले उस के दफ्तर में उस की बेड़ी बेटी प्रियंका काम करती थी. प्रियंका की शादी हो जाने के बाद छोटी बेटी अन्नपूर्णा वहां काम करने लगी थी. हरिओम का उस के घर आनाजाना था. अन्नपूर्णा और हरिओम के बीच दोस्ती थी.

यह पता चलते ही पुलिस ने हरिओम को हिरासत में ले लिया. थाने में जब उस से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में पूछा गया तो वह साफ मुकर गया. उस ने बताया कि अन्नपूर्णा उस के औफिस में काम करती थी. दोनों के बीच दोस्ती भी थी. दोनों के बीच अकसर फोन पर बातें भी होती थीं.

हत्या से पहले भी अन्नपूर्णा ने उसे फोन किया था और बाजार से कपड़े खरीदने की बात कही थी. लेकिन अपने काम में व्यस्त होने की वजह से वह उस के साथ नहीं जा सका. हरिओम ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या में उस का कोई हाथ नहीं है.

पुलिस को लगा औनर किलिंग का मामला पूछताछ के बाद पुलिस अधिकारियों को लगा कि हरिओम सच बोल रहा है तो उन्होंने उसे थाने से यह कह कर भेज दिया कि जब भी उसे बुलाया जाएगा, उसे थाने आना पडे़गा. साथ ही उसे हिदायत भी दी गई कि वह बिना पुलिस को बताए कहीं बाहर न जाए.

अब तक की जांच से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या या तो अवैध संबंधों की वजह से हुई है या फिर यह औनर किलिंग का मामला है. उन्होंने इन्हीं दोनों बिंदुओं पर जांच आगे बढ़ाई. अगले दिन पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अन्नपूर्णा के शरीर पर 15 चोटें पाई गई थीं. 12 चोटें सिर व चेहरे पर मिलीं जबकि 3 चोटें हाथ व कमर पर थीं. उस की मौत अधिक खून बहने व सिर की हड्डी टूटने से हुई थी. दुष्कर्म की आशंका के चलते 2 स्लाइडें भी बनाई गईं.

पुलिस को मृतका का मोबाइल फोन न तो घटनास्थल से मिला था और न ही घर वालों ने उस की जानकारी दी थी. पुलिस ने इस बारे में मृतका की मां शिवदेवी तथा उस की बेटियों से पूछताछ की.

शिवदेवी ने कहा कि अन्नपूर्णा के पास मोबाइल नहीं था. लेकिन जब उस की बेटियों से अलग से पूछताछ की गई तो उन्होंने बताया कि उस के पास मोबाइल था.

अगर उस के पास मोबाइल था, तो शिवदेवी ने क्यों मना किया, यह बात पुलिस की समझ से परे थी. लिहाजा पुलिस ने जब अपने तेवर सख्त किए तो घर वालों से पुलिस ने 3 मोबाइल फोन बरामद किए.

पुलिस ने जब तीनों फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवाई तो एक फोन की डिटेल्स से पता चला कि अन्नपूर्णा हरिओम के अलावा कई अन्य युवकों से भी बात करती थी. काल डिटेल्स के आधार पर पुलिस ने 3 युवकों को पूछताछ के लिए उठाया.

इन में एक सोनू था, जो मृतका का पड़ोसी था. जांचपड़ताल से पता चला कि सोनू और अन्नपूर्णा के बीच प्रेमसंबंध थे. सोनू का उस के घर भी आनाजाना था.

सोनू अन्नपूर्णा पर खूब खर्चा करता था, यह पता चलते ही पुलिस ने 2 युवकों को तो छोड़ दिया पर सोनू से सख्ती से पूछताछ की. सोनू ने अन्नपूर्णा के साथ अपने प्रेमसंबंधों को तो स्वीकर किया लेकिन हत्या से साफ इनकार कर दिया. पुलिस ने उसे हिदायत दे कर थाने से भेज दिया.

पुलिस अधिकारियों को औनर किलिंग का भी शक था. उन का शक यूं ही नहीं था. उस के कई कारण थे. पहला कारण तो यह था कि परिजनों द्वारा बेटी की खोजबीन करना तो दूर पुलिस को सूचना तक नहीं दी थी. दूसरा कारण हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराने में आनाकानी करना था और तीसरा कारण मोबाइल के लिए झूठ बोलना था.

हत्या के रहस्य को उजागर करने के लिए पुलिस ने मृतका की मां शिवदेवी, बुआ सुमन तथा बहन प्रियंका, प्रगति व नेहा से अलगअलग पूछताछ की. इन सभी के बयानों में विरोधाभास तो था, लेकिन हत्या की गुत्थी फिर भी नहीं सुलझ पाई. पड़ोसियों से भी पूछताछ की गई, पर पुलिस ऐसा कोई सबूत हासिल नहीं कर सकी, जिस से हत्या की गुत्थी सुलझ पाती.

हत्याकांड का खुलासा करने के लिए पुलिस अधिकारियों ने जब बेंजीडीन टेस्ट कराने का निश्चय किया. बेंजीडीन टेस्ट से खून के उन धब्बों का पता चल जाता है, जो मिट गए हों या धोपोंछ कर मिटा दिए गए हों. इस टेस्ट में एक महीने बाद तक खून के निशान का पता चल जाता है. अन्नपूर्णा की हत्या हुए एक सप्ताह बीत गया था. अत: बेंजीडीन टेस्ट से खुलासा संभव था.

29 अप्रैल, 2019 को एसपी (पश्चिम) संजीव कुमार सुमन थाना बिठूर पहुंचे. थाने पर उन्होंने बेंजीडीन टेस्ट के लिए फोरेंसिक टीम को भी बुलवा लिया. इस के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने मृतका के घर वालों को थाने बुलवा लिया. थाने में फोरैंसिक टीम ने मृतका के मातापिता, भाई व बड़ी बहन पर टेस्ट किया तो रिपोर्ट पौजिटिव आई.

हत्या का शक परिवार वालों पर गहराया तो पुलिस अधिकारियों ने राकेश, उस की पत्नी शिवदेवी, बेटी प्रियंका तथा बेटे अमित को एक ही कमरे में आमनेसामने बिठा कर कहा कि तुम लोगों के खिलाफ हत्या का सबूत मिल गया है. बेंजीडीन टेस्ट में तुम लोगों के हाथों में मृतका के खून के रक्तकण मिले हैं. इसलिए तुम लोग सच बता दो कि तुम ने अन्नपूर्णा की हत्या क्यों की?

बेटी की हत्या के आरोप में अपने परिवार को फंसता देख राकेश हाथ जोड़ कर बोला, ‘‘साहब, मैं ने या मेरे परिवार के किसी सदस्य ने अन्नपूर्णा की हत्या नहीं की. हम सब निर्दोष हैं. रही बात बेंजीडीन टेस्ट की तो अन्नपूर्णा की लाश उठाते समय हाथों में खून लग गया होगा. मेरी पत्नी व बेटी ने भी रोते समय अन्नपूर्णा के सिर पर हाथ रखा होगा, जिस से खून लग गया होगा.’’

चुनावों की वजह से लटक गई जांच पुलिस अधिकारियों को लगा कि राकेश जो कह रहा है, वह सच भी हो सकता है. अत: उन्होंने उन सभी को गिरफ्तार करने के बजाए थाने से घर भेज दिया. पुलिस जांच को आगे बढ़ाती उस के पहले ही लोकसभा चुनाव का आगाज हो गया.

पुलिस चुनाव की वजह से व्यस्त हो गई. जिस से जांच एकदम ढीली पड़ गई. या यूं कहें कि अन्नपूर्णा हत्याकांड की जांच ठंडे बस्ते में चली गई. लगभग डेढ़ माह तक पुलिस चुनावी चक्कर में व्यस्त रही.

चुनाव निपट जाने के बाद पुलिस अधिकारियों को अन्नपूर्णा हत्याकांड की फिर से याद आई. पुलिस अधिकारियों ने एक बार फिर समूचे घटनाक्रम पर विचारविमर्श किया. साथ ही जांच रिपोर्ट का अध्ययन किया गया. इस के बाद पुलिस इस निष्कर्ष  पर पहुंची कि अन्नपूर्णा की हत्या औनर किलिंग का मामला नहीं है. उस की हत्या प्रेमसंबंधों में की गई थी.

अन्नपूर्णा के 2 युवकों से घनिष्ठ संबंध थे. एक ट्रांसपोर्टर हरिओम, जिस के दफ्तर में वह काम करती थी और दूसरा उस का पड़ोसी सोनू, जिस का उस के घर आनाजाना था. दोनों के प्यार के चर्चे भी आम थे. पुलिस अधिकारियों का मानना था कि हरिओम और सोनू में से कोई एक है जिस ने प्यार के प्रतिशोध में अन्नपूर्णा की हत्या की है.

पुलिस ने सब से पहले हरिओम को थाने बुलवाया और उस से करीब 4 घंटे तक सख्ती से पूछताछ की. लेकिन हरिओम ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. पुलिस को लगा कि हरिओम कातिल नहीं है तो उसे जाने दिया गया.

इस के बाद पुलिस ने सोनू को थाने बुलवाया और उस से भी कई राउंड में सख्ती से पूछताछ की गई. लेकिन सोनू टस से मस नहीं हुआ. सोनू को 3 दिन तक थाने में रखा गया और हर रोज सख्ती से पूछताछ की गई. पर सोनू ने हत्या का जुर्म नहीं कबूला. मजबूरन उसे भी थाने से घर भेज दिया गया.

लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस को सफलता नहीं मिल रही थी. अंतत: पुलिस ने खुफिया तंत्र का सहारा लिया. थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने नारामऊ, मंधना और बिठूर क्षेत्र में अपने खास मुखबिर लगा दिए और खुद भी खोजबीन में लग गए.

2 अगस्त, 2019 की सुबह करीब 10 बजे एक मुखबिर ने थानाप्रभारी को अन्नपूर्णा हत्याकांड के बारे में जो जानकारी दी उसे सुन कर उन के चेहरे पर मुसकान तैर आई. मुखबिर ने बताया कि अन्नपूर्णा के प्रेमी सोनू ने उस की हत्या अपने 2 अन्य साथियों के साथ मिल कर की थी. इन में उस का एक दोस्त नारामऊ गांव का विनीत है. जबकि दूसरे का नाम शिवम है. वह रामादेवीपुरम, पचौर रोड मंधना में रहता है.’’

मुखबिर की बात सुनने के बाद थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने सोनू के दोस्त विनीत व शुभम को गिरफ्तार कर लिया. थाने ला कर जब उन दोनों से अन्नपूर्णा की हत्या के संबंध में सख्ती से पूछताछ की गई तो दोनों ने हत्या का जुर्म कबूल कर लिया. उन दोनों ने बताया कि अन्नपूर्णा की हत्या उस के प्रेमी सोनू ने ही की थी. उन्होंने तो दोस्ती में उस का साथ दिया था.

इस के बाद थानाप्रभारी ने सोनू के घर से उसे भी गिरफ्तार लिया. थाने में जब उस का सामना दोस्तों से हुआ तो वह सबकुछ समझ गया. उस ने बिना हीलाहवाली के अन्नपूर्णा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह ने अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा करने तथा कातिलों को पकड़ने की जानकारी एसपी (पश्चिम) संजीव सुमन को दी तो उन्होंने अपने कार्यालय में प्रैसवार्ता कर अन्नपूर्णा हत्याकांड का खुलासा कर दिया.

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर से करीब 20 किलोमीटर दूर जीटी रोड पर एक कस्बा है मंधना. यह बिठूर थाने के अंतर्गत आता है. राकेश कुमार कुरील अपने परिवार के साथ इसी कस्बे के मोहल्ला नारामऊ में  रहता था.

उस के परिवार में पत्नी शिवदेवी के अलावा 4 बेटियां प्रियंका, अन्नपूर्णा, विनीता, नेहा तथा बेटा अमित था. राकेश कुमार एक फैक्ट्री में नौकरी करता था. वहां से मिलने वाले वेतन से ही वह अपने परिवार का भरण पोषण करता था. वह बड़ी बेटी प्रियंका का विवाह कर चुका था.

प्रियंका से छोटी अन्नपूर्णा थी. तीखे नयननक्ख और गोरी रंगत वाली अन्नपूर्णा अपनी अन्य बहनों से अधिक सुंदर थी. समय के साथ जैसे-जैसे उस की उम्र बढ़ रही थी, वैसेवैसे उस की सुंदरता में और निखार आता जा रहा था.

बहन की जगह नौकरी मिली अन्नपूर्णा को अन्नपूर्णा ने मंधना स्थित सरस्वती महिला इंटर कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास कर ली थी. इस के बाद वह गूवा गार्डन निवासी ट्रांसपोर्टर हरिओम के औफिस में काम करने लगी थी. इस के पहले उस की बड़ी बहन प्रियंका हरिओम के औफिस में काम करती थी. प्रियंका की जब शादी हो गई तब उस ने छोटी बहन अन्नपूर्णा को औफिस के काम पर लगा दिया था.

खूबसूरत अन्नपूर्णा ने अपनी चंचल अदाओं से ट्रांसपोर्टर हरिओम के दिल में हलचल मचा दी थी. हरिओम उसे चाहने लगा था. इतना ही नहीं वह अन्नपूर्णा पर पैसे खर्च करने लगा था.

अन्नपूर्णा के माध्यम से हरिओम ने उस के घर में भी पैठ बना ली थी. घर वाले आनेजाने पर विरोध न करें, इस के लिए उस ने अन्नपूर्णा के पिता को कर्ज के तौर पर रुपए भी दे दिए थे. धीरेधीरे हरिओम और अन्नपूर्णा नजदीक आते गए और दोनों के बीच मधुर संबंध बन गए.

अन्नापूर्णा औफिस के लिए घर से बनसंवर कर इतरातीइठलाती निकलती थी. एक रोज औफिस जाते समय अन्नपूर्णा पर सोनू की निगाह पड़ गई. वह उसे तब तक देखता रहा, जब तक वह आंखों से ओझल नहीं हो गई. सोनू अन्नपूर्णा के पड़ोस में ही रहता था. ऐसा नहीं था कि सोनू ने अन्नपूर्णा को पहली बार देखा था. लेकिन उस दिन वह उसे बहुत खूबसूरत लगी थी. उस दिन उस के मन में चाहत की लहर उठी थी.

सोनू, दबंग युवक था. अपने क्षेत्र में वह सट्टा और जुआ खिलवाता था. इस काले धंधे से उसे मोटी कमाई होती थी. उस के कई विश्वासपात्र दोस्त थे जिन्हें वह पैसे दे कर अपने साथ मिलाए रखता था. रहता भी खूब ठाटबाट से था. अन्नपूर्णा सोनू के मन को भायी तो वह उस का दीवाना हो गया. आतेजाते जब कभी नजरें टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे.

सोनू की आंखो में अपने प्रति चाहत देख कर अन्नपूर्णा का मन भी विचलित हो उठा. वह भी उसे चाहने लगी. चाहत जब दोनों ओर से बढ़ी तो एक रोज सोनू ने अपने प्यार का इजहार कर दिया.

सोनू की बात सुन कर अन्नापूर्णा के दिल में गुदगुदी होने लगी. शरमाते हुए वह बोली, ‘‘सोनू, जो हाल तुम्हारा है वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

उस दिन के बाद सोनू और अन्नपूर्णा का प्यार परवान चढ़ने लगा. अन्नपूर्णा औफिस से छुट्टी के बाद सोनू के साथ सैरसपाटे के लिए निकल जाती. सोनू अन्नपूर्णा पर दिल खोल कर पैसे खर्च करने लगा. अन्नपूर्णा जिस चीज की डिमांड करती, सोनू उसे ला कर दे देता था.

सोनू के मार्फत अन्नपूर्णा ने ज्वैलरी भी बनवा ली थी और बैंक बैलेंस भी बना लिया था. दोनों के दिल का रिश्ता जुड़ा तो फिर देह का रिश्ता बनने में देर नहीं लगी.

हरिओम को जब पता चला कि अन्नपूर्णा सोनू के साथ घूमती है तो उस ने अन्नपूर्णा को लताड़ा. साथ ही उस की शिकायत उस के मातापिता से भी कर दी. हरिओम ने तो यहां तक कह दिया कि अन्नपूर्णा के पैर डगमगा गए हैं बेहतर होगा कि उस की शादी कर दी जाए. शादी में लाख डेढ़ लाख का जो भी खर्च आएगा, वह दे देगा.

राकेश को बेटी के डगमगाते कदमों की जानकारी हुई तो उस के होश उड़ गए. उसे लगा कि यदि अन्नपूर्णा सोनू के साथ भाग गई तो समाज में उस की नाक कट जाएगी. पूरे समाज में उस की बदनामी होगी. अत: उस ने उस के हाथ पीले करने का फैसला कर लिया.

उस ने इस बाबत पत्नी शिवदेवी से बात की. पत्नी ने भी उस की शादी करने पर सहमति जता दी. इस के बाद राकेश बेटी के लिए लड़का खोजने लगा. थोड़ी मशक्कत के बाद उसे पुनीत पसंद आ गया.

पुनीत के पिता शिवबालक कुरील बिठूर थाना क्षेत्र के गांव कुरसौली में रहते थे. वहां उन की पुश्तैनी जमीन थी. उन के 3 बच्चों में पुनीत सब से बड़ा था. वह पढ़ालिखा स्मार्ट युवक था. साथ ही एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी भी करता था. राकेश ने विनीत को देखा तो उस ने उसे अपनी बेटी अन्नपूर्णा के लिए पसंद कर लिया. इस के बाद पुनीत और अन्नपूर्णा ने एकदूसरे को देखा. फिर शादी के लिए दोनों राजी हो गए.

14 अप्रैल, 2019 को गोद भराई, तिलक तथा 18 अप्रैल को शादी की तारीख तय हुई. इस के बाद दोनों परिवार शादी की तैयारी में जुट गए.

सोनू नहीं चाहता था कि अन्नपूर्णा शादी करे उधर सोनू को जब अन्नपूर्णा का विवाह तय हो जाने की जानकारी हुई तो उस ने अन्नपूर्णा पर शादी तोड़ देने की दबाव बनाया. लेकिन अन्नपूर्णा ने पारिवारिक मामला बता कर शादी तोड़ने से इनकार कर दिया. सोनू उस पर दबाव बनाता रहा और अन्नपूर्णा इनकार करती रही.

अन्नपूर्णा ने मां के कहने पर नौकरी भी छोड़ दी थी और सोनू से मिलना भी बंद कर दिया था. उस के दोनों प्रेमी हरिओम और सोनू शादी में मदद देने के बहाने उस के घर आते रहते थे, लेकिन वह उन से मिलने को मना कर देती थी.

14 अप्रैल को मंधना स्थित गेस्ट हाउस में पहले गोद भराई की रस्म पूरी हुई फिर देर शाम धूमधाम से तिलक समारोह संपन्न हुआ. इस समारोह में हरिओम और सोनू भी शामिल हुए. समारोह के दौरान सोनू ने अन्नपूर्णा से मिलने का भरसक प्रयास किया, लेकिन वह मिल न सकी.

राकेश के घर में शादी की चहलपहल शुरू हो गई थी. रिश्तेनातेदारों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था. घर में मंडप गड़ चुका था और मंडप के नीचे ढोलक की थाप पर मंगल गीत गाए जाने लगे थे.

इधर ज्योंज्यों शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, त्योंत्यों सोनू की बेचैनी बढ़ रही थी. उसे अन्नपूर्णा की बेवफाई पर गुस्सा भी आ रहा था. आखिर जब उस की बेचैनी ज्यादा बढ़ी तो उस ने अन्नपूर्णा से आखिरी बार आरपार की बात करने का निश्चय किया.

उस ने इस बाबत अपने दोस्त विनीत और शुभम से बात की तो दोनों उस का साथ देने को राजी हो गए. विनीत नारामऊ में रहता था और उस की मोबाइल शौप थी. जबकि शुभम पंचोर रोड पर रहता था. दोनों को जब भी पैसों की जरूरत पड़ती, सोनू उन की मदद कर देता था. जिस से वह उस के अहसान तले दबे थे.

16 अप्रैल, 2019 की रात 8 बजे सोनू मोटरसाइकिल से अन्नपूर्णा के घर के पास पहुंचा. उस के साथ उस के दोस्त विनीत और शुभम भी थे. सोनू ने मोटरसाइकिल सड़क किनारे ठेली लगा कर अंडे बेचने वाले के पास खड़ी कर दी. फिर उस ने विनीत को समझाबुझा कर अन्नपूर्णा को बुलाने भेजा.

विनीत अन्नपूर्णा के घर पहुंचा तो संयोग से वह उसे घर के बाहर ही मिल गई. विनीत ने उसे सोनू का संदेश दे कर साथ चलने को कहा. लेकिन अन्नपूर्णा ने साथ जाने और सोनू से बात करने से साफ इनकार कर दिया. इस पर विनीत ने अपने फोन पर अन्नपूर्णा की बात सोनू से कराई.

अन्नपूर्णा ने सोनू से फोन पर बात की और मिलने से साफ इनकार कर दिया. इस पर सोनू ने उस से कहा कि वह आखिरी बार उस से मिलना चाहता है. साथ ही धमकी भी दी कि यदि वह उस से मिलने न आई तो वह शादी वाले दिन ही उस के घर पर आत्महत्या कर लेगा.

प्रेमी बन गया कातिल अन्नपूर्णा सोनू की धमकी से डर गई और उस से आखिरी बार मिलने को राजी हो गई. अन्नपूर्णा विनीत के साथ मोटरसाइकिल पर बैठ कर सोनू के पास पहुंची. सोनू अन्नपूर्णा और अपने दोनों दोस्तों के साथ मोटरसाइकिल से दलहन अनुसंधान केंद्र के पास लिंक रोड पर पहुंच गया. वहां उस ने मोटरसाइकिल रोक दी. तब तक रात के 9 बज चुके थे और लिंक रोड पर सन्नाटा पसरा था.

विनीत और शुभम तो मोटरसाइकिल से उतर कर किनारे खड़े हो गए. जबकि सोनू अन्नपूर्णा से बतियाने लगा. बातचीत के दौरान सोनू बोला, ‘‘अन्नपूर्णा तुम ने मेरे साथ बेवफाई क्यों की? प्यार मुझसे किया और शादी किसी और से कर रही हो, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने तुम पर लाखों रुपए खर्च किए हैं. उपहार में ज्वैलरी दी है. या तो तुम मेरे रुपए ज्वैलरी वापस कर दो या फिर मुझ से शादी करो.’’

सोनू की बात सुन कर अन्नपूर्णा गुस्से में बोली, ‘‘सोनू, रुपए ज्वैलरी दे कर तुम ने मुझ पर कोई एहसान नहीं किया है. उस के बदले तुम ने मेरे शरीर का भी तो शोषण किया था. अब हिसाबकिताब बराबर. मेरा रास्ता अलग और तुम्हारा रास्ता अलग.’’

‘‘अन्नू, अभी हिसाबकिताब बरबार नहीं हुआ है. तुम मेरी दुलहन नहीं हुई तो मैं तुम्हें किसी और की दुलहन नहीं बनने दूंगा.’’ इतना कह कर सोनू ने मोटरसाइकिल से लोहे की रौड निकाली जिसे वह साथ लाया था और अन्नपूर्णा के सिर पर भरपूर प्रहार कर दिया. अन्नपूर्णा जमीन पर बिछ गई. इस के बाद उस ने 2-3 प्रहार और किए.

इसी बीच उस की नजर ईंट पर पड़ी. उस ने ईंट से प्रहार कर उस का सिर मुंह, कुचल डाला. उस ने हाथ व कमर पर भी प्रहार किए. अन्नपूर्णा कुछ देर तड़पी फिर सदा के लिए शांत हो गई. सोनू का रौद्र रूप देख कर विनीत और शिवम डर गए. इस के बाद सोनू दोस्तों के साथ घटनास्थल से भाग गया.

इधर सुबह 8 बजे दलहन अनुसंधान केंद्र के सुरक्षाकर्मी के.पी. सिंह ने लिंक रोड के किनारे एक युवती की लाश पड़ी देखी तो यह सूचना थाना बिठूर पुलिस को दे दी. सूचना पाते ही बिठूर थानाप्रभारी विनोद कुमार सिंह घटनास्थल पहुंचे और जांच शुरू कर दी.

लेकिन पुलिस जांच में उलझ गई. आखिर 3 महीने बाद अन्नपूर्णा की हत्या का खुलासा हुआ और कातिल पकड़े गए. अभियुक्तों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन की निशानदेही पर लोहे की रौड, खूनसनी ईंट तथा सोनू की मोटरसाइकिल भी बरामद कर ली.

3 अगस्त, 2019 को पुलिस ने अभियुक्त सोनू, विनीत व शुभम को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया.

कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

 

शिवानी की मर्डर मिस्ट्री

शादी के कुछ सालों के बाद पतिपत्नी के रिश्तों में ठंडापन आने लगता है. समझदार लोग उस समय को अपनी बातों से गरमा कर बोरियत से निजात पा लेते हैं. लेकिन पुष्कर और शिवानी जैसे लोगों की कमी नहीं है, जो अपने ही जीवनसाथी की कमतरी ढूंढने लगते हैं.

विश्वप्रसिद्ध ताज नगरी आगरा के थाना शाहगंज क्षेत्र के मोहल्ला पथौली निवासी पुष्कर बघेल की शादी अप्रैल, 2016 में आगरा के सिकंदरा की सुंदरवन कालोनी निवासी गंगासिंह की 21 वर्षीय बेटी शिवानी के साथ हुई थी. पुष्कर दिल्ली के एक प्रसिद्ध मंदिर के सामने बैठ कर मेहंदी लगाने का काम कर के परिवार की गुजरबसर करता था. बीचबीच में उस का आगरा स्थित अपने घर भी आनाजाना लगा रहता था. पुष्कर के परिवार में कुल 3 ही सदस्य थे. खुद पुष्कर उस की पत्नी शिवानी और मां गायत्री.

20 नवंबर, 2018 की बात है. सुबह जब पुष्कर और उस की मां सो कर उठे तो शिवानी घर में दिखाई नहीं दी. उन्होंने सोचा पड़ोस में कहीं गई होगी. लेकिन इंतजार करने के बाद भी जब शिवानी वापस नहीं आई तब उस की तलाश शुरू हुई. जब वह कहीं नहीं मिली तो पुष्कर ने अपने ससुर गंगासिंह को फोन कर के शिवानी के बारे में पूछा. यह सुन कर गंगासिंह चौंके. क्योंकि वह मायके नहीं आई थी. उन्होंने पुष्कर से पूछा, ‘‘क्या तुम्हारा उस के साथ कोई झगड़ा हुआ था?’’

इस पर पुष्कर ने कहा, ‘‘शिवानी के साथ कोई झगड़ा नहीं हुआ. सुबह जब हम लोग जागे, शिवानी घर में नहीं थी. इधरउधर तलाश किया, जब वह कहीं नहीं मिली तब फोन कर आप से पूछा.’’

बाद में पुष्कर को पता चला कि शिवानी घर से 25 हजार की नकदी व आभूषण ले कर लापता हुई है. ससुर गंगासिंह ने जब कहा कि शिवानी मायके नहीं आई है तो पुष्कर परेशान हो गया. कुछ ही देर में मोहल्ले भर में शिवानी के गायब होने की खबर फैल गई तो पासपड़ोस के लोग पुष्कर के घर के सामने जमा हो गए.

उस ने पड़ोसियों को शिवानी द्वारा घर से नकदी व आभूषण ले जाने की बात बताई. इस पर सभी ने पुष्कर को थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी.

जब शिवानी का कहीं कोई सुराग नहीं मिला, तब पुष्कर ने 23 नवंबर को थाना शाहगंज में शिवानी की गुमशुदगी दर्ज कराई. पुष्कर ने पुलिस को बताया कि शिवानी अपने किसी प्रेमी से मोबाइल पर बात करती रहती थी.

दूसरी तरफ शिवानी के पिता गंगासिंह भी थाना पंथौली पहुंचे. उन्होंने थाने में अपनी बेटी शिवानी के साथ ससुराल वालों द्वारा मारपीट व दहेज उत्पीड़न की तहरीर दी. गंगासिंह ने आरोप लगाया कि ससुराल वाले दहेज में 2 लाख रुपए की मांग करते थे.

कई बार शिवानी के साथ मारपीट भी कर चुके थे. उन्होंने ही उन की बेटी शिवानी को गायब किया है. साथ ही तहरीर में शिवानी के साथ किसी अनहोनी की आशंका भी जताई गई.

गंगासिंह ने पुष्कर और उस के घर वालों के खिलाफ थाने में दहेज उत्पीड़न व मारपीट का केस दर्ज करा दिया. जबकि पुष्कर इस बात का शक जता रहा था कि शिवानी जेवर, नकदी ले कर किसी के साथ भाग गई है.

पुलिस ने शिवानी के रहस्यमय तरीके से गायब होने की जांच शुरू कर दी. थाना शाहगंज और महिला थाने की 2 टीमें शिवानी को आगरा के अछनेरा, कागारौल, मथुरा, राजस्थान के भरतपुर, मध्य प्रदेश के मुरैना, ग्वालियर में तलाशने लगीं.

लेकिन शिवानी का कहीं कोई पता नहीं चल सका. काफी मशक्कत के बाद भी शिवानी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. कई महीनों तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही फिर भी उसे कुछ हासिल नहीं हुआ.

शिवानी का लापता होना पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था. लेकिन पुलिस के अधिकारी इसे एक बड़ा चैलेंज मान रहे थे. पुलिस अधिकारी हर नजरिए से शिवानी की तलाश में जुटे थे, लेकिन शिवानी का कोई पता नहीं चल पा रहा था.

यहां तक कि सर्विलांस की टीम भी पूरी तरह से नाकाम साबित हुई. कई पुलिसकर्मी मान चुके थे कि अब शिवानी का पता नहीं लग पाएगा. सभी का अनुमान था कि शिवानी अपने किसी प्रेमी के साथ भाग गई है और उसी के साथ कहीं रह रही होगी.

उधर गंगासिंह को इंतजार करतेकरते 6 महीने बीत चुके थे, पर अभी तक न तो बेटी लौट कर आई थी और न ही उस का कोई सुराग मिला था. ज्योंज्यों समय बीतता जा रहा रहा था, त्योंत्यों गंगासिंह की चिंता बढ़ रही थी. शिवानी के साथ कोई अप्रिय घटना तो नहीं हो गई, इस तरह के विचार गंगासिंह के मस्तिष्क में घूमने लगे थे.

उन्होंने बेटी की खोज में रातदिन एक कर दिया था. रिश्तेनाते में भी जहां भी संभव हो सकता था, फोन कर के उन सभी से पूछा. उधर पुलिस ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया था. लेकिन गंगासिंह ने हिम्मत नहीं हारी.

इस घटना ने गंगासिंह को अंदर तक तोड़ दिया था. वह गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहे थे. न्याय न मिलता देख गंगासिंह ने प्रयागराज हाईकोर्ट की शरण ली. जिस के फलस्वरूप जुलाई 2019 में हाईकोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया. माननीय हाईकोर्ट ने आगरा के एसएसपी को कोर्ट में तलब कर के उन्हें शिवानी का पता लगाने के आदेश दिए. कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस हरकत में आई.

एसएसपी बबलू कुमार ने इस मामले को खुद देखने का निर्णय लेते हुए शिवानी के पिता गंगासिंह को अपने औफिस में बुला कर उन से शिवानी के बारे में पूरी जानकारी हासिल की. इस के बाद बबलू कुमार ने एक टीम का गठन किया. इस टीम में सर्विलांस टीम के प्रभारी इंसपेक्टर नरेंद्र कुमार, इंसपेक्टर (सदर) कमलेश कुमार, इंसपेक्टर (ताजगंज) अनुज कुमार के साथ क्राइम ब्रांच को भी शामिल किया गया था.

पुलिस टीम ने अपनी जांच तेज कर दी. लापता शिवानी की तलाश में पुलिस की 2 टीमें उत्तर प्रदेश के अलावा राजस्थान के जिलों में भेजी गईं. पुलिस ने शिवानी के मायके से ले कर ससुराल पक्ष के लोगों से जानकारियां जुटाईं. फिर कई अहम साक्ष्यों की कडि़यों को जोड़ना शुरू किया. शिवानी के पति पुष्कर के मोबाइल फोन की घटना वाले दिन की लोकेशन भी चैक की.

करीब एक साल तक पुलिस शिवानी की तलाश में जुटी रही. जांच टीम ने शिवानी के लापता होने से पहले जिनजिन लोगों से उस की बात हुई थी, उन से गहनता से पूछताछ की. इस से शक की सुई शिवानी के पति पर जा कर रुकने लगी थी.

जांच के दौरान पुष्कर शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उसे थाने बुला लिया और उस से हर दृष्टिकोण से पूछताछ की. लेकिन ऐसा कोई क्लू नहीं मिला, जिस से लगे कि शिवानी के गायब होने में उस का कोई हाथ था.

पुष्कर पर शक होने के बाद जब पुलिस ने उस से पूछताछ की तो वह कुछ नहीं बोला. तब पुलिस ने उस का नार्को टेस्ट कराने की तैयारी कर ली थी. नार्को टेस्ट कराने के डर से पुष्कर टूट गया और उस ने 2 नवंबर, 2019 को अपना जुर्म कुबूल कर लिया.

पुष्कर दिल्ली में रहता था, जबकि उस की पत्नी शिवानी आगरा के शाहगंज स्थित अपनी ससुराल में रहती थी. वह कभीकभी अपने गांव जाता रहता था. उस की गृहस्थी ठीक चल रही थी. लेकिन शादी के 2 साल बाद भी शिवानी मां नहीं बनी तो इस दंपति की चिंता बढ़ने लगी.

पुष्कर ने पत्नी का इलाज भी कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. इस के बाद बच्चा न होने पर दोनों एकदूसरे को दोषी ठहराने लगे. लिहाजा उन के बीच कलह शुरू हो गई. अब शिवानी अपना अधिकतर समय वाट्सऐप, फेसबुक पर बिताने लगी.

पुष्कर जब दिल्ली से घर आता तब भी वह उस का ध्यान नहीं रखती. वह पत्नी के बदले व्यवहार को वह महसूस कर रहा था. वह शिवानी से मोबाइल पर ज्यादा बात करने को मना करता था. लेकिन वह उस की बात को गंभीरता से नहीं लेती थी. इस बात को ले कर दोनों में अकसर झगड़ा भी होता था.

पुष्कर को शक था कि शिवानी के किसी और से नाजायज संबंध हैं. घर में कलह करने के अलावा शिवानी ने पुष्कर को तवज्जो देनी बंद कर दी तो पुष्कर ने परेशान हो कर शिवानी को ठिकाने लगाने का फैसला ले लिया. इस बारे में उस ने अपनी मां गायत्री और वृंदावन निवासी अपने ममेरे भाई वीरेंद्र के साथ योजना बनाई.

योजनानुसार 20 नवंबर, 2018 को उन दोनों ने योजना को अंजाम दे दिया. उस रात जब शिवानी सो रही थी. तभी पुष्कर शिवानी की छाती पर बैठ गया. मां गायत्री ने शिवानी के हाथ पकड़ लिए और पुष्कर ने वीरेंद्र के साथ मिल कर रस्सी से शिवानी का गला घोंट दिया. कुछ देर छटपटाने के बाद शिवानी की मौत हो गई.

हत्या के बाद पुष्कर की आंखों के सामने फांसी का फंदा झूलता नजर आने लगा. पुष्कर और वीरेंद्र सोचने लगे कि शिवानी की लाश से कैसे छुटकारा पाया जाए. काफी देर सोचने के बाद पुष्कर के दिमाग में एक योजना ने जन्म लिया.

पकड़े जाने से बचने के लिए रात में ही पुष्कर ने शिवानी की लाश एक तिरपाल में लपेटी. फिर लाश को अपनी मोटरसाइकिल पर रख कर घर से 10 किलोमीटर दूर ले गया. वीरेंद्र ने लाश पकड़ रखी थी.

वीरेंद्र और पुष्कर शिवानी की लाश को मलपुरा थाना क्षेत्र की पुलिया के पास लेदर पार्क के जंगल में ले गए, जहां दोनों ने प्लास्टिक के तिरपाल में लिपटी लाश पर मिट्टी का तेल छिड़क कर आग लगा दी. प्लास्टिक के तिरपाल के कारण शव काफी जल गया था.

इस घटना के 17 दिन बाद मलपुरा थाना पुलिस को 7 दिसंबर, 2018 को लेदर पार्क में एक महिला का अधजला शव पड़ा होने की सूचना मिली. पुलिस भी वहां पहुंच गई थी.

पुलिस ने लाश बरामद कर उस की शिनाख्त कराने की कोशिश की लेकिन शिनाख्त नहीं हो सकी. शिनाख्त न होने पर पुलिस ने जरूरी काररवाई कर वह पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. साथ ही उस की डीएनए जांच भी कराई.

पुष्कर द्वारा अपराध स्वीकार करने के बाद मलपुरा थाना पुलिस को भी बुलाया गया. पुष्कर पुलिस को उसी जगह ले कर गया, जहां उस ने शिवानी की लाश जलाई थी.

इस से पुलिस को यकीन हो गया कि हत्या उसी ने की है. मलपुरा थाना पुलिस ने 7 दिसंबर, 2018 को यह बात मान ली कि महिला की जो लाश बरामद की गई थी, वह शिवानी की ही थी.

उस की निशानदेही पर पुलिस ने घटनास्थल से हत्या के सुबूत के रूप में पुलिया के नीचे कीचड़ में दबे प्लास्टिक के तिरपाल के अधजले टुकड़े, जूड़े में लगाने वाली पिन, जले और अधजले अवशेष व पुष्कर के घर से वह मोटरसाइकिल बरामद कर ली, जिस पर लाश ले गए थे. डीएनए जांच के लिए पुलिस ने शिवानी के पिता का खून भी अस्पताल में सुरक्षित रखवा लिया.

पुलिस ने पुष्कर से पूछताछ के बाद उस की मां गायत्री को भी गिरफ्तार कर लिया लेकिन वीरेंद्र फरार हो चुका था. दोनों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया गया. जबकि हत्या में शामिल तीसरे आरोपी वीरेंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो सकी थी.

इश्क की फरियाद : परिवार का अंत

25अप्रैल, 2019 को कोराना गांव के लोगों ने बाकनाला पुल के नीचे एक युवक का शव पड़ा देखा.

कोराना गांव लखनऊ के थाना मोहनलालगंज के अंतर्गत आता है, जो  लखनऊ मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर है. ग्रामीणों ने जब नजदीक जा कर देखा तो उन्होंने मृतक को पहचान लिया.

वह 45 वर्षीय आशाराम रावत का शव था, जो डलोना गांव का रहने वाला था. वह मोहनलालगंज में राजकुमार का टैंपो किराए पर चलाता था. उसी समय किसी ने इस की सूचना थाना मोनहलालगंज पुलिस को दे दी तो कुछ ही देर में थानाप्रभारी गऊदीन शुक्ल एसआई अनिल कुमार और हैडकांस्टेबल राजकुमार व लाखन सिंह को साथ ले कर घटनास्थल की तरफ रवाना हो गए.

पुलिस दल जब घटनास्थल पर पहुंचा तो उन्होंने शव देखते ही पहचान लिया क्योंकि वह टैंपो चालक आशाराम रावत का था. उस के हाथपैर लाल रंग के अंगौछे से बंधे थे और गला कटा हुआ था. उस के रोजाना मोहनलालगंज क्षेत्र में सवारी टैंपो चलाने के कारण पुलिस वाले भी उस से परिचित थे.

वहां से एक किलोमीटर दूरी पर स्थित अवस्थी फार्महाउस के पास एक टैंपो लावारिस हालत में मिला. टैंपो की तलाशी लेने पर जो कागज बरामद हुए, उस से पता चला कि वह टैंपो इंद्रजीत खेड़ा के रहने वाले राजकुमार का है. लोगों ने बताया कि यह वही टैंपो है, जिसे आशाराम चलाता था.

यह हत्या का मामला था. यह भी लग रहा था कि आशाराम की हत्या किसी अन्य स्थान पर कर के उस का शव यहां फेंका गया था. क्योंकि वहां पर खून भी नहीं था.

पुलिस ने मृतक के घर सूचना भिजवाई तो उस की पत्नी रामदुलारी उर्फ निरूपमा रोतीबिलखती मौके पर आ गई. उस ने उस की पहचान अपने पति आशाराम रावत के रूप में की. वह रोजाना की तरह कल सुबह करीब 8 बजे टैंपो ले कर घर से निकले थे.

देर रात तक जब वह घर न लौटे तो बड़े बेटे 16 वर्षीय सौरभ ने उन्हें फोन लगाया तो आशाराम ने कुछ देर बाद लौटने को कहा था. काफी देर बाद भी जब वह घर नहीं आया तो निरूपमा ने भी पति को फोन कर के जानना चाहा कि वह कहां हैं. किंतु फोन बंद होने के कारण बात नहीं हो सकी. तब रात में ही मोहनलालगंज और निकटतम पीजीआई थाने जा कर निरूपमा ने पति के बारे में मालूमात की लेकिन कुछ पता न चलने पर वह निराश हो कर घर लौट आई थी.

लाश की शिनाख्त हो जाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. निरूपमा की तरफ से पुलिस ने गांव के दबंग मोहित साहू, उस के भाई अंजनी साहू, दोस्त अतुल रैदास निवासी जिला कटनी, मध्य प्रदेश और अब्दुल हसन निवासी सीतापुर के खिलाफ भादंवि की धारा 302, 201, 506 और 3(2)(5) एससी/एसटी एक्ट के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली.

मामला एससी/एसटी उत्पीड़न का था, इसलिए इस की जांच एसपी द्वारा सीओ राजकुमार शुक्ला को सौंपी गई. रिपोर्ट नामजद थी इसलिए पुलिस ने आरोपियों के ठिकानों पर दबिश डाली. लेकिन वे पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े. तब पुलिस ने मुखबिरों को सतर्क कर दिया.

आरोपी लिए हिरासत में पुलिस ने आरोपियों के फोन नंबरों की काल डिटेल्स निकलवा कर उस का अध्ययन किया तो उस से उन सब के 24 अप्रैल की रात के एक साथ होने की पुष्टि मिली. इसी बीच 26 अप्रैल को पुलिस ने मुखबिर की सूचना पर मोहित साहू और उस के भाई अंजनी साहू को गिरफ्तार कर लिया.

दोनों भाइयों से आशाराम रावत की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो उन्होंने उस की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. पूछताछ के बाद हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार निकली—

लखनऊ-रायबरेली राजमार्ग पर शहर की व्यस्ततम कालोनी के बाहर लखनऊ एवं उन्नाव की सीमा पर थाना पीजीआई है. इसी थाने के अंतर्गत गांव डलोना है. इसी गांव में आशाराम रावत का परिवार रहता है. आशाराम का विवाह करीब 9 साल पहले डलोना गांव के ही प्रीतमलाल की सब से बड़ी बेटी रामदुलारी उर्फ निरूपमा के साथ सामाजिक रीतिरिवाज के साथ हुआ था.

रामदुलारी का जीवन ससुराल में हंसीखुशी के साथ अपने पति के साथ बीत रहा था. धीरेधीरे वह 2 बेटों और एक बेटी की मां बन गई. इस समय बड़े बेटे सौरभ की उम्र लगभग 16 साल है. हालांकि आशाराम मूलरूप से लखनऊ के थाना गोसाईगंज के गांव कमालपुर का रहने वाला था, किंतु कामधंधे की तलाश में वह डलोना आ कर रहने लगा. यहां वह टैंपो चलाने लगा.

निरूपमा गोरे रंग की स्लिम शरीर वाली युवती थी. उस के चेहरे पर आकर्षण था. आशाराम टैंपो चालक होने के कारण व्यस्त रहता था. इसलिए घर के सारे काम वह ही करती थी, जिस की वजह से उसे घर से बाहर आनाजाना पड़ता था. तब गांव के कुछ लड़कों की नजरें निरूपमा को चुभती हुई महसूस होती थीं. लेकिन वह उन की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती थी.

निरूपमा के पीछे पड़ गया था मोहित उन्हीं लड़कों में से एक मोहित साहू तो जैसे उस के पीछे पड़ गया था. मोहित की दूध डेयरी थी. दूध देने के बहाने वह निरूपमा के पास जाया करता था. इस से पहले निरूपमा ने उस की डेयरी पर करीब डेढ़ साल तक काम भी किया था. उसी दौरान वह निरूपमा के प्रति आकर्षित हो गया था. वह उसे मन ही मन प्यार करने लगा था. फिर एक दिन उस ने अपने मन की बात निरूपमा से कह भी दी.

निरूपमा ने उसे झिड़कते हुए कहा कि तुम ने मुझे समझ क्या रखा है. आइंदा मेरे रास्ते में आने की कोशिश मत करना वरना अंजाम बुरा होगा. निरूपमा की इस बेरुखी पर वह काफी आहत हुआ. लेकिन इस के बावजूद मोहित ने उस का पीछा करना नहीं छोड़ा. उसे देख कर निरूपमा आगबबूला हो उठती थी.

अकसर मोहित के द्वारा फब्तियां कसने पर निरूपमा ने कई बार उस की पिटाई कर दी थी किंतु इश्क में अंधे मोहित पर इस का कोई असर नहीं हुआ.

निरूपमा उस से तंग आ चुकी थी. एक दिन उस ने अपने पति आशाराम को मोहित की हरकतों से अवगत कराया तो आशाराम ने निरूपमा को ही चुप रहने की सलाह दी. उस ने कहा कि वह आतेजाते मोहित को समझा देगा कि गांवघर की बहूबेटियों की इज्जत पर इस तरह कीचड़ उछालना अच्छा नहीं है.

एक दिन आशाराम ने मोहित से बात की और अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए कहा कि आइंदा वह ऐसा न करे.

कुछ दिन तक तो मोहित शांत रहा किंतु वह अपनी आदतों से मजबूर था. उस का बस एक ही मकसद था कि किसी भी तरह निरूपमा को पाना. कामधंधा छोड़ कर वह दीवानगी में इधरउधर निरूपमा की तलाश में लगा रहता. अंतत: उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

22 अप्रैल, 2019 की रात को गांव में सन्नाटा पसरा हआ था. लोग गरमी से बेहाल थे. कुछ तो घर के आंगन में तो कुछ अपनी छतों पर सोने का प्रयास कर रहे थे. निरूपमा भी घर के आंगन में पड़ी चारपाई पर अपने छोटे बेटे के साथ लेटी थी.

मोहित ने फांदी दीवार गरमी की वजह से उस की आंखों से नींद कोसों दूर थी और बेचैनी से वह इधरउधर करवटें बदल रही थी. तभी अचानक घर में किसी के कूदने की आहट सुनाई दी. धीरेधीरे वह काला साया उस की ओर बढ़ने लगा तो निरूपमा ने पहचानने की कोशिश करते हुए पूछा, ‘‘कौन?’’

निरूपमा की आवाज सुन कर काला साया कुछ क्षणों के लिए ठिठक गया. उस की खामोशी देख कर निरूपमा का माथा ठनका. उस ने सोचा कि यह मोहित ही होगा. उस ने पास आ कर देखा तो वह मोहित ही निकला.

उस रात मोहित काफी देर तक निरूपमा से मिन्नतें करता रहा कि वह एक बार उस की बात मान ले. किंतु निरूपमा ने उसे बुरी तरह डपट दिया. शोरशराबे से उस का पति आशाराम भी जाग गया. आशाराम ने भी मोहित को डांट दिया. उस दिन मोहित को अत्यधिक विरोध सहना पड़ा, जिस से वह अपमानित हो कर तिलमिला कर रह गया.

मोहित अपनी बेइज्जती पर भलाबुरा कहता हुआ उलटे पैरों वापस लौट गया. लेकिन मोहित ने तय कर लिया था कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा.

अगले दिन शाम के समय उस ने अपने भाई अंजनी, दोस्त अतुल रैदास और अब्दुल हसन को सारी बात बताई और कहा कि वह आशाराम को रास्ते से हटाना चाहता है. भाई और दोनों दोस्तों ने घटना को अंजाम देने के लिए उस का साथ देने की हामी भर दी.

इश्क के जुनून में अंधे मोहित ने निरूपमा का प्यार पाने के लिए अब कुचक्र रचना शुरू कर दिया. 24 अप्रैल, 2019 को शाम के वक्त आशाराम घर डलोना जाने वाली सवारियों का इंतजार कर रहा था. उसी समय मोहित अपने भाई अंजनी के साथ उस के टैंपो में आ कर बैठ गया. तभी मोहित ने ड्राइविंग सीट पर बैठे आशाराम से पीछे वाली सीट पर आ कर बैठने को कहा.

आशाराम मोहित साहू के पास बैठ कर बोला, ‘‘जरा सवारी ढूंढ लूं. तब तक तुम लोग बैठो, मैं अभी आता हूं.’’

‘‘नहीं यार, आज गाड़ी में कोई और नहीं चलेगा, हम तीनों ही चलेंगे. लो, पहले यह जाम पियो.’’ मोहित ने उस की तरफ शराब से भरा डिस्पोजेबल ग्लास बढ़ाते हुए कहा.

‘‘नहीं, मैं दिन में शराब नहीं पीता हूं, सवारियों को ऐतराज होता है.’’ आशाराम टैंपो की पिछली सीट से उतरते हुए बोला.

‘‘नहीं, तुम्हें आज मेरे साथ बैठ कर तो पीनी ही पड़ेगी.’’ मोहित ने जोर देते हुए कहा.

साजिशन पिलाई शराब कोई बखेड़ा खड़ा न हो जाए, यही सोच कर वह फिर से पिछली सीट पर आ कर बैठ गया. पिछले दिनों हुई कहासुनी को नजरअंदाज करते हुए मोहित के हाथ से गिलास ले कर एक ही सांस में वह शराब पी गया.

इस के बाद मोहित ने उसे 2 पेग और पिलाए. मोहित आशाराम को देख कर भौचक्का रह गया. फिर उस ने अंजनी को पैसे देते हुए कहा, ‘‘ले भाई, अंगरेजी की एक बोतल और ले आओ. अब हम लोग अतुल रैदास के कमरे पर चलेंगे, फिर वहीं बैठ कर पीएंगे.’’

अंजनी थोड़ी देर में दारू की बोतल ले आया. तब मोहित ने आशाराम से कहा, ‘‘अब तुम हम लोगों को अतुल रैदास के यहां छोड़ आओ, फिर अपने घर को चले जाना.’’

आशाराम उन से विवाद मोल नहीं लेना चाहता था. यही सोच कर वह उन दोनों के साथ गांव की ओर रवाना हो गया.

उस समय शाम के लगभग 7 बज चुके थे. जब वह घर नहीं पहुंचा तो उस के बडे़ बेटे सौरभ ने काल की. उस समय आशाराम ने उस से कहा था कि वह थोड़ी देर में घर आ जाएगा.

मोहित और उस के भाई अंजनी को अतुल रैदास के कमरे पर पहुंचाने के बाद जब आशाराम घर लौटने लगा तो मोहित ने आशाराम को रोक लिया और कहा कि अब यहां हम लोग जम कर पिएंगे. आशाराम मना नहीं कर सका. उन्होंने आशाराम को जम कर शराब पिलाई. जब वह नशे में धुत हो गया तब मोहित, अंजनी और अतुल ने आशाराम के गमछे से हाथपैर बांधने के बाद उस का गला घोंट कर हत्या कर दी. इस के बाद उन्होंने चाकू से उस का गला रेत दिया. अब्दुल हसन भी वहां आ चुका था. अब्दुल हसन उत्तर प्रदेश के जिला सीतापुर का रहने वाला था. वहां रह कर मजदूरी करता था.

इन लोगों ने मिल कर आशाराम के शव को उसी के टैंपो में लाद कर कोराना गांव के पास बाकनाला पुल के नीचे जा कर फेंक दिया. तब तक काफी रात हो चुकी थी, जिस से लाश ठिकाने लगाते समय उन्हें किसी ने नहीं देखा. उस का टैंपो उन्होंने अवस्थी फार्महाउस के पास खड़ा कर दिया था, जो बाद में पुलिस ने बरामद कर लिया था.

सुबह होने पर लोगों ने आशाराम की लाश देखी तो सूचना पुलिस को दी गई. उन की निशानदेही पर पुलिस ने अतुल रैदास के कमरे से वह चाकू भी बरामद कर लिया, जिस से आशाराम का गला काटा गया था. मोहित साहू और अंजनी साहू से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई. इस के 3 दिन बाद ही अब्दुल हसन व अतुल रैदास को 30 अप्रैल, 2019 को गिरफ्तार कर लिया गया. इन्होंने भी अपना अपराध स्वीकार कर लिया. इन दोनों से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने इन्हें भी जेल भेज दिया. कथा लिखने तक सभी हत्यारोपी जेल में बंद थे.

कुंवारा था कुंवारा ही रह गया

वीरू सैनी अपनी पत्नी शारदा और बच्चों के साथ मुरादाबाद के मोहल्ला झांझनपुर में रहते थे. उन के परिवार में 2 बेटों संजय कुमार और प्रदीप कुमार के अलावा 2 बेटियां थीं. बेटियों की वह शादी कर चुके थे. वैसे वीरू सैनी मूलरूप से उत्तर प्रदेश के ही जिला संभल के शहर चंदौसी के रहने वाले थे, जो करीब 30 साल पहले काम की तलाश में मुरादाबाद आ गए थे.

वह एक अच्छे कुक थे, इसलिए मुरादाबाद दिल्ली रोड पर पीएसी के सामने स्थित त्यागी ढाबे पर उन की नौकरी लग गई थी. कुछ साल पहले उन के बड़े बेटे संजय की भी शहर की आशियाना कालोनी स्थित एक होटल में नौकरी लग गई थी.

घर में सब कुछ ठीक चल रहा था, इसी बीच उन की पत्नी शारदा की तबीयत खराब हो गई और फिर मौत हो गई. पत्नी की मृत्यु के बाद घर में खाना बनाने की परेशानी होने लगी. इसलिए वीरू ने संजय की शादी करने की सोची.

वैसे भी एकदो साल बाद उस की शादी करनी ही थी. बेटे की जल्द शादी कराने के लिए उन्होंने अपने नातेरिश्तेदारों से भी कह दिया. उन्होंने कह दिया कि लड़की चाहे गरीब परिवार से हो, लेकिन घर के कामकाज करने वाली होनी चाहिए.

एक दिन वीरू सैनी के दूर के रिश्ते का भांजा राजपाल उन के यहां आया. वह संभल के सरायतरीन मोहल्ले में रहता था. वीरू ने उस से संजय के लिए कोई लड़की बताने को कहा तो राजपाल ने बताया, ‘‘मामाजी, बरेली में एक ठेकेदार मेरे जानकार हैं. उन्होंने मुझ से एक लड़की की चर्चा की थी. लड़की अपनी ही जाति की है. उस के मांबाप नहीं हैं और अपनी मौसी के साथ रहती है. गरीब लोग हैं. चाहो तो उसे देख लो. बात बन गई तो आप को ही दोनों तरफ की शादी का खर्च उठाना होगा.’’

वीरू ने सोचा कि लड़की गरीब घर की है तो वह जिम्मेदारी के साथ घर को संभाल लेगी. लिहाजा उन्होंने लड़की देखने की हामी भर दी. उन्होंने यह भी पूछा कि लड़की की मौसी को शादी के लिए कितने पैसे देने होंगे. तब राजपाल ने कहा कि केवल 35 हजार दे देना. उसी में वह काम चला लेगी. क्योंकि शादी तो मंदिर में होनी है. इन पैसों से तो वह केवल लड़की के लिए कपड़े वगैरह खरीदेगी. और हां, लड़की पसंद आ जाए, पैसे तभी देना. वीरू इस के लिए तैयार हो गया.

इस के बाद 27 जुलाई, 2019 को वीरू, उन के चारों बच्चे, दोनों दामाद और बहन लड़की देखने के लिए राजपाल के साथ बरेली पहुंच गए. तय हुआ कि पुराने किले के पास स्थित हनुमान मंदिर के नजदीक लड़की दिखा दी जाएगी. लिहाजा वे सभी हनुमान मंदिर के पास पहुंच गए. कुछ देर बाद एक महिला और एक आदमी लड़की के साथ वहां पहुंचे. राजपाल ने बताया कि लड़की का नाम पूजा है और साथ में उस की मौसी आशा है.

सब को लड़की आ गई पसंद वीरू और उन के बच्चों, दोनों दामादों ने लड़की को देखते ही पसंद कर लिया. चूंकि वीरू को राजपाल ने पहले ही बता दिया था कि लड़की पसंद आने पर शादी के लिए 35 हजार रुपए उन्हें ही देने होंगे, इसलिए वीरू ने 35 हजार रुपए उसी समय राजपाल को दे दिए. राजपाल ने वह रकम लड़की पूजा की मौसी आशा को दे दी.

इस के बाद राजपाल ने कहा कि इस की मौसी जल्द से जल्द पूजा की शादी करना चाहती हैं, इसलिए आप पंडित से बात कर के शादी की तारीख निकलवाओ. वीरू को तो शादी की वैसे भी जल्दी थी. वह चाह रहे थे कि पूजा जल्द ही बेटे की बहू बन कर घर आ जाए.

मुरादाबाद लौटने के बाद वीरू ने पंडितजी को बेटे संजय और पूजा की कुंडली दिखाई तो दोनों की कुंडली मिल गई. पंडित ने शादी के लिए 2 अगस्त, 2019 की तारीख बताई. यह खबर उन्होंने राजपाल के माध्यम से लड़की की मौसी आशा तक भिजवा दी. उन्होंने यह भी कह दिया कि शादी झांझनपुर, मुरादाबाद के बालाजी मंदिर के प्रांगण में होगी.

शादी की तारीख निश्चित हो जाने के बाद वीरू बेटे की शादी की तैयारी में जुट गए. धीरेधीरे वह तारीख भी आ गई, जिस का उन्हें इंतजार था. झांझनपुर स्थित बालाजी मंदिर के प्रांगण में वीरू ने पंडाल लगा कर शादी की सारी व्यवस्था कर ली थी. 2 अगस्त की सुबह ही बरेली से आशा पूजा को ले कर बालाजी मंदिर पहुंच गई थी.

मंदिर प्रांगण में हिंदू रीतिरिवाज से पूजा और संजय सैनी का विवाह हो गया. वहीं पर वीरू ने अपने मोहल्ले वाले व अन्य लोगों के लिए खाने की व्यवस्था की थी. कन्यादान पूजा की मौसी आशा ने किया था.

शादी की सभी रस्में पूरी होने के बाद संजय सैनी पत्नी पूजा को विदा करा कर अपने घर ले आया. पूजा की मौसी भी बरेली वापस जाने के बजाए वीरू के यहां आ गई. उस ने कहा कि वह 2 दिन बाद चली जाएगी.

नईनवेली दुलहन के घर आने से खुशी का माहौल था. शादी का घर था, संजय के रिश्तेदार, बहन, भांजीभांजे भी घर पर थे. अगले दिन यानी 3 अगस्त को घर में शादी के बाद की रस्में शुरू हो गईं. अगली सुबह नईनवेली दुलहन पूजा ने घर पर रुके सभी रिश्तेदारों के लिए खाना बनाया. उस ने आलू बड़ी की सब्जी व कचौड़ी बनाई थी. उस के बनाए खाने की घर में रुके सभी रिश्तेदारों ने तारीफ की.

दिन में बहू की मुंहदिखाई की रस्म भी हुई. इस रस्म में पूजा के पास कई हजार रुपए इकट्ठे हो गए थे, जो उस ने अपने पास ही रखे. 3 अगस्त की शाम को पूजा ने खाना बनाया. शाम के खाने में उस ने कढ़ीचावल और रोटी बनाई. सभी ने हंसीखुशी खाना खाया.

पूजा की मौसी आशा ने कढ़ीचावल नहीं खाए. वह बोली कि मैं कढ़ी नहीं खाती. इसलिए उस ने सुबह की बची कचौड़ी व आलू बड़ी की सब्जी खाई.

वीरू सैनी जिस ढाबे पर काम करते थे, अपना खाना वह वहीं से पैक कर के ले आए थे. उन्होंने घर पर शराब के 2 पैग ले कर खाना खाया. खाना खा कर वह अपने कमरे में जा कर सो गए. खाना खा कर घर के अन्य सदस्य व मेहमान भी अलगअलग कमरों में जा कर सो गए.

उस रात संजय की सुहागरात थी, इसलिए वह मारे खुशी के फूले नहीं समा रहा था. वह भी अपने कमरे में पहुंच गया, जहां उस की पत्नी उस का पलक पांवड़े बिछाए इंतजार कर रही थी.

पूरे घर में केवल एक ही बाथरूम था, जो ग्राउंड फ्लोर पर था. संजय के बहनोई विनोद कुमार पहली मंजिल पर स्थित कमरे में बच्चों के साथ सोए थे. उन्हें रात 3 बजे के करीब लघुशंका के लिए जब पहली मंजिल से नीचे आना पड़ा तो उन्होंने देखा कि घर का मुख्य दरवाजा खुला है.

उन्होंने बाहर आ कर देखा तो सब सुनसान था. उन्होंने नीचे कमरे में सो रहे अपने ससुर वीरू सैनी को जगाते हुए कहा कि मेनगेट खुला पड़ा है, क्या कोई बाहर गया हुआ है?

दुलहन पूजा ने खेला खेल वीरू सैनी ने संजय के कमरे में आवाज दी तो कोई प्रतिक्रिया नहीं आई. फिर उन्होंने संजय को जोरजोर आवाजें लगाईं तो संजय तो नहीं उठा लेकिन पिता की आवाज से ऊपर के कमरे में सोया उन का छोटा बेटा प्रदीप जरूर जाग गया.

वह नीचे उतर कर आया और संजय के कमरे में जा कर देखा, संजय बेसुध अवस्था में सोया हुआ था. उस ने उसे उठाना चाहा तो वह नहीं उठा. वह बेहोशी की हालत में था.

घर से नईनवेली दुलहन पूजा व उस की मौसी आशा गायब थीं. दूसरे कमरे में संजय की बहनें व भांजेभांजियां भी बेहोशी की हालत में थे. इस के बाद तो पूरे घर में कोहराम मच गया. शोर सुन कर आसपड़ोस के लोग भी जाग गए थे.

उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के पुलिस कंट्रोल रूम को भी सूचना दे दी गई. थोड़ी देर में पुलिस कंट्रोल रूम की गाड़ी वहां पहुंच गई.

पुलिस वालों को मामला समझने में देर नहीं लगी और वे घर में बेहोशी की हालत में पड़े संजय, उस की बहनें मंजू व लक्ष्मी तथा उन के बच्चों चंचल व अंकित को अपनी गाड़ी से दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल ले गए.

अस्पताल में भरती सभी 5 लोगों की हालत नाजुक बनी हुई थी. डाक्टर उन के इलाज में जुटे थे. सूचना पा कर थाना सिविल लाइंस के प्रभारी शक्ति सिंह व क्षेत्राधिकारी राजेश कुमार भी अस्पताल पहुंच गए. अगले दिन उन्हें होश आया तो थानाप्रभारी ने उन से पूछताछ की.

संजय सैनी ने उन्हें बताया कि उस की नईनवेली पत्नी पूजा ने उसे खाना खिलाया. खाना खाने के बाद उसे बेहोशी सी छाने लगी थी. इस के बाद उसे पता नहीं रहा. आंखें खुलीं तो उस ने खुद को अस्पताल में पाया. तब घर वालों ने बताया कि पूजा और उस की मौसी घर का कीमती सामान ले कर लापता हो चुकी हैं.

इस के बाद संजय के बहनोई और मोहल्ले के लोग पूजा और उस की मौसी को ढूंढने के लिए रेलवे स्टेशन, बसअड्डा आदि जगहों पर चले गए. लेकिन उन दोनों में से कोई भी नहीं मिला. निराश हो कर वे घर लौट आए.

पुलिस ने जब वीरू सैनी से गायब सामान के बारे में पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि दुलहन पूजा और उस की मौसी घर से 16 हजार रुपए नकद, सोने की चेन, सोने के कुंडल, पेंडल समेत अन्य जेवर और कीमती कपड़े ले गई हैं.

वीरू सैनी की तहरीर पर पुलिस ने पूजा और उस की मौसी आशा के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली. रिपोर्ट दर्ज होते ही पुलिस हरकत में आ गई.

 

मुरादाबाद के एसएसपी अमित पाठक ने लुटेरी दुलहन और उस के गैंग के लोगों को गिरफ्तार करने के लिए एसपी (सिटी) अंकित मित्तल के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई. टीम में थानाप्रभारी शक्ति सिंह, हरथला पुलिस चौकी इंचार्ज वीरेंद्र कुमार राणा आदि को शामिल किया गया.

राजपाल नाम के जिस बिचौलिए के मार्फत संजय की शादी कराई गई थी, पुलिस ने उस का फोन मिलाया लेकिन फोन स्विच्ड औफ मिला. साथ ही पूजा की मौसी का फोन भी नहीं लग रहा था.

इसी बीच थानाप्रभारी शक्ति सिंह का ट्रांसफर हो गया. उन की जगह इंसपेक्टर नवल मारवाह ने थाने का कार्यभार संभाला. वह इस केस की जांच में जुट गए. पुलिस ने आरोपियों के फोन सर्विलांस पर लगा दिए. इस के अलावा मुखबिरों को भी सक्रिय कर दिया.

इस काररवाई के आधार पर पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को बरेली के कस्बा बहेड़ी के मोहल्ला महादेवपुरा से अभियुक्त पूजा को गिरफ्तार कर लिया. पूजा के घर से पुलिस को एक अन्य युवती भी मिली. उस का नाम जयंती था.

जयंती से पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह जिला ऊधमसिंह नगर के कस्बा सितारगंज के शक्ति फार्म की निवासी है. वह एक बेटी की मां है. अपने पति को उस ने छोड़ रखा है. उस ने बताया कि वह भी पूजा की तरह शादी करने के बाद लोगों को लूटती है. यह काम वह मौसी आशा के इशारे पर करती है. पुलिस पूजा और जयंती को गिरफ्तार कर मुरादाबाद ले आई.

थाने ला कर उन से पूछताछ की गई तो जयंती ने बताया कि मौसी आशा ने जन्माष्टमी से 2 दिन पहले 22 अगस्त, 2019 को अरुण नामक युवक से मंदिर में उस की शादी करवाई थी. इस शादी के बदले आशा ने उसे 10 हजार रुपए देने का वादा किया था.

शादी के बाद घूमने के बहाने वह और उस का कथित पति अरुण व मौसी आशा के साथ ऊधमसिंह नगर के एक होटल में आ कर ठहरे थे. वहां पर आशा ने अरुण से और पैसों की मांग की. अरुण के पास उस समय पैसे नहीं थे. उस ने कहा कि वह पैसे कल दे देगा. जब अरुण सो गया तो आशा मौसी और वह उसे सोता छोड़ कर भाग गए थे.

जयंती भी शामिल थी इस गिरोह में   जयंती ने बताया कि वह मूलरूप से पश्चिम बंगाल की रहने वाली है. उस की शादी एक जेल वार्डन के बेटे से हुई थी. समस्या यह थी कि ससुराल में नौनवेज कोई नहीं खाता था, जबकि जयंती मीट, मछली खाने की शौकीन थी. यह बात उसने अपने पति से बताई तो उस ने भी कह दिया कि यहां नौनवेज खाना तो दूर, पकाने तक पर भी प्रतिबंध है.

ऐसी हालत में जयंती का वहां रहना मुश्किल था, लिहाजा वह वहां से रिश्ता तोड़ कर चली आई और किसी के जरिए आशा मौसी के संपर्क में आई. फिर आशा ने उसे अपने गिरोह में शामिल कर लिया.

जयंती के पास से पुलिस को 2 जोड़ी पाजेब, नाक का एक फूल, सोने की एक अंगूठी मिली. अभियुक्त पूजा उर्फ कविता की शादी पीलीभीत में हुई थी. पूजा का 6 साल का एक बेटा भी है, जो पिता के पास ही रहता है. पुलिस छानबीन में पता चला कि उक्त गिरोह में 6 लोग शामिल हैं, जोकि लोगों को ठगी का शिकार बनाने के लिए अलगअलग शहरों में किराए का मकान ले कर ऐसे परिवारों के सदस्य का पता लगाते थे, जिस की शादी नहीं हो पा रही हो.

ये लोग ऐसे लोगों को अपने जाल में फंसा कर पहले लड़की दिखाते हैं. लड़की पसंद आने के बाद इस गिरोह का मास्टरमाइंड बरेली का एक कथित ठेकेदार राम सिंह एडवांस में मोटी रकम ऐंठ लेता है. वही शादी की तारीख देता है. तय समय में शादी हो जाती थी.

जब बहू विदा हो कर ससुराल जाती थी तो इन की कथित मौसी आशा बहू के साथ रह जाती थी. वही कन्यादान भी करती थी. रात के खाने में नशीला पदार्थ मिला कर परिवार के लोगों को खिलाया जाता. फिर जब सब नशे में बेहोश हो जाते तो दोनों जेवर, रुपए व कीमती कपड़े ले कर फरार हो जातीं.

अभी तक पुलिस को इस गिरोह के 6 लोगों का पता चला है. पुलिस ने 30 अगस्त, 2019 को दोनों लुटेरी दुलहनों पूजा उर्फ कविता और जयंती को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जिला जेल भेज दिया गया.

मामले की विवेचना मौजूदा थानाप्रभारी नवल मारवाह कर रहे हैं. कथा लिखने तक पुलिस अन्य आरोपियों की सरगरमी से तलाश रही थी.

मकड़जाल में फंसी जुलेखा

जुलेखा लखनऊ के आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. नाम की रियल एस्टेट कंपनी में नौकरी करती थी. वह रोजाना की तरह 3 अगस्त, 2019 को भी हंसखेड़ा स्थित अपने घर से ड्यूटी के लिए निकली, लेकिन शाम को निर्धारित समय पर घर नहीं पहुंची तो मां शरबती को चिंता हुई.

भाई नफीस ने जुलेखा के मोबाइल नंबर पर फोन किया, लेकिन उस का फोन स्विच्ड औफ मिला. कई बार कोशिश करने के बाद भी जब जुलेखा से फोन पर संपर्क नहीं हो सका तो उस ने मां शरबती को समझाते हुए कहा, ‘‘अम्मी, हो सकता है कंपनी के काम में ज्यादा व्यस्त होने की वजह से जुलेखा ने अपना फोन बंद कर लिया हो. आप परेशान न हों, देर रात तक घर लौट आएगी.’’

कभीकभी औफिस में ज्यादा काम होने पर जुलेखा को घर लौटने में देर हो जाती थी. तब वह घर पर फोन कर के सूचना दे दिया करती थी. लेकिन उस दिन उस ने देर से लौटने की कोई सूचना घर वालों को नहीं दी थी, इसलिए सब को चिंता हो रही थी.

जुलेखा का एक दोस्त था श्रेयांश त्रिपाठी. नफीस ने सोचा कि कहीं वह उस के साथ तो नहीं है, इसलिए उस ने बहन के बारे में जानकारी लेने के लिए श्रेयांश को फोन किया. लेकिन उस का फोन भी बंद मिला.

देर रात तक नफीस, उस की मां शरबती और पिता शरीफ अहमद जुलेखा के लौटने का इंतजार करते रहे लेकिन वह नहीं लौटी. सुबह होने पर नफीस ने पिता से कहा कि हमें यह सूचना जल्द से जल्द पुलिस को दे देनी चाहिए.

लेकिन मां शरबती ने कहा, ‘‘इस मामले में जल्दबाजी करना ठीक नहीं है. थाने जाने से पहले उस के औफिस जा कर कंपनी के मालिक संजय यादव से पूछताछ कर ली जाए कि उन्होंने उसे कंपनी के किसी काम से बाहर तो नहीं भेजा है.’’

नफीस के दिमाग में बात आ गई. उस ने बहन के औफिस जा कर कंपनी मालिक संजय यादव से संपर्क किया तो उस ने बताया कि जुलेखा कल वृंदावन कालोनी स्थित किसी दूसरी कंस्ट्रक्शन कंपनी में इंटरव्यू देने गई थी. वह तेलीबाग के चौराहे तक उसे अपनी कार में ले गया था और वहां पास ही स्थित वृंदावन कालोनी के गेट पर कार से उतर गई थी. उस के बाद वह कहां गई, उसे पता नहीं है. वह वृंदावन सोसायटी में रहने वाली बड़ी बहन रूबी के पास जाने को भी कह रही थी.

‘‘वह रूबी के यहां नहीं पहुंची.’’ नफीस बोला.  ‘‘हो सकता है वह कहीं और चली गई हो. उस के आने का इंजजार करो. हो सकता है 2-4 दिन में लौट आए.’’

संजय से भरोसा मिलने के बाद नफीस घर लौट आया. लेकिन उस का मन कई प्रकार की आशंकाओं से भर उठा. नफीस और उस के मातापिता 3 दिन तक जुलेखा के घर आने का इंतजार करते रहे. जब वह नहीं आई तो 5 अगस्त, 2019 को नफीस थाना पारा पहुंचा और थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिल कर जुलेखा के बारे में उन्हें विस्तार से बताया.

थानाप्रभारी की टालमटोल अमित इंफ्रा हाइट्स कंपनी का नाम सुन कर थानाप्रभारी टालमटोल करते हुए बोले कि 2 दिन और देख लो. 2 दिन बाद भी वह न आए तो थाने आ जाना.

थानाप्रभारी के आश्वासन पर नफीस घर चला गया. 2 दिन बाद भी जुलेखा नहीं आई तो 7 अगस्त, 2019 को नफीस फिर से थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह से मिला और रिपोर्ट दर्ज कर बहन को तलाश करने की मांग की. लेकिन उन्होंने उसे समझाबुझा कर अगले दिन आने को कह दिया. उन्होंने रिपोर्ट दर्ज नहीं की.

इस के बाद नफीस 9 अगस्त, 2019 को एसएसपी कलानिधि नैथानी से मिला और जुलेखा के गायब होने की बात बताते हुए कहा कि जुलेखा आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी में काम करने वाले संजय यादव, अवधेश यादव, गुड्डू यादव और अजय यादव के संपर्क में रहती थी.

इन दिनों पैसों के लेनदेन को ले कर जुलेखा का कंपनी मालिक संजय यादव से मनमुटाव चल रहा था. उसे शक है कि इन लोगों ने उस की बहन को कहीं गायब कर दिया है.

नफीस का दुखड़ा सुनने के बाद एसएसपी ने पारा के थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को आदेश दिया कि जुलेखा वाले मामले में जांच कर दोषियों के खिलाफ काररवाई करें. कप्तान साहब का आदेश पाते ही थानाप्रभारी हरकत में आ गए. उन्होंने सब से पहले नफीस और उस के मातापिता से बात की. इस के बाद जुलेखा का मोबाइल नंबर सर्विलांस पर लगा दिया.

काल डिटेल्स से पता चला कि जुलेखा ने अंतिम बार श्रेयांश त्रिपाठी को फोन किया था. त्रिपाठी ने उसे कंपनी में काम करने के बारे में बुला कर बात की थी. चौकी हंसखेड़ा के प्रभारी सुभाष सिंह ने श्रेयांश त्रिपाठी को बुला कर जुलेखा के बारे में उस से पूछताछ की.

इस के बाद थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह एसआई रामकेश सिंह, सुभाष सिंह, धर्मेंद्र कुमार, सिपाही मयंक मलिक, आशीष मलिक और राजेश गुप्ता को साथ ले कर आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस पहुंचे. वहां कंपनी मालिक संजय यादव का साला गुड्डू यादव निवासी बिजनौर तथा आलमबाग आजादनगर के रहने वाले एक दरोगा का बेटा अजय यादव मिला.

पुलिस सभी को थाने ले आई. सीओ आलमबाग लालप्रताप सिंह की मौजूदगी में उन सभी से पूछताछ की गई तो उन्होंने स्वीकार कर लिया कि उन्होंने जुलेखा की हत्या कर के उस की लाश हरचंद्रपुर में साई नदी के किनारे फेंक दी थी.

यह सुनने के बाद थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम आरोपियों को साथ ले कर हरचंद्रपुर में साई नदी के पास उस जगह पहुंच गई, जहां जुलेखा के शव को ठिकाने लगाया था.

पुलिस को नदी किनारे कीचड़ में एक शव मिला. शव एक युवती का था और पूरा गल गया था. हड्डियों के अलावा वहां लेडीज कपड़े मिले. जुलेखा के भाई नफीस और मां शरबती ने कपड़ों से उस की शिनाख्त जुलेखा के रूप में की. पिता शरीफ अहमद ने बताया कि जुलेखा के ये कपड़े उन्होंने ईद पर खरीद कर दिए थे.

पुलिस ने जरूरी काररवाई कर जुलेखा के कंकाल को पोस्टमार्टम व डीएनए जांच के लिए भिजवा दिया. जुलेखा की हत्या और अपहरण में मुख्य आरोपी संजय यादव के साले गुड्डू यादव व अजय यादव से जुलेखा के संबंध में पूछताछ की तो उन्होंने जुलेखा का अपहरण कर उस की हत्या करने की जो कहानी बताई, वह बड़ी सनसनीखेज थी—

शरीफ अहमद अपने परिवार के साथ लखनऊ के थाना पारा के अंतर्गत आने वाली कांशीराम कालोनी नई बस्ती में रहता था. बुद्धेश्वर चौराहे पर उस की आटो पार्ट्स की दुकान थी. परिवार में उस की पत्नी शरबती के अलावा 2 बेटियां रूबी व जुलेखा और एक बेटा नफीस था. बड़ी बेटी रूबी का पास के ही वृंदावन में विवाह हो चुका था.

नफीस पिता के काम में हाथ बंटाता था. सन 2013 में उस ने छोटी बेटी जुलेखा की शादी मुंबई के रहने वाले एक युवक से कर दी थी. जुलेखा महत्त्वाकांक्षी थी. वह आत्मनिर्भर रह कर जीना चाहती थी. शादी के 2 साल बाद जुलेखा ने एक बेटे को जन्म दिया.

जुलेखा ने भरी उड़ान बेटे के जन्म के बाद जुलेखा अपने मन की कमजोरी को छिपा कर न रख सकी क्योंकि वह स्वच्छंद जीवन जीने की आदी थी, जबकि उस का शौहर उस की आदतों के खिलाफ था. अंतत: एक दिन पति से लड़झगड़ कर वह अपने मायके आ गई. सन 2019 में पति ने भी जुलेखा को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह एकदम आजाद हो गई थी.

जुलेखा चारदीवारी में बैठने के बजाए नौकरी कर के आत्मनिर्भर होना चाहती थी, जिस से अपने बेटे की ढंग से परवरिश कर सके. पढ़ीलिखी होने के साथसाथ उसे कंप्यूटर की जानकारी थी. लिहाजा उस ने प्राइवेट कंपनियों में नौकरी ढूंढनी शुरू कर दी.

थोड़ी कोशिश के बाद उसे आलमबाग स्थित अमित इंफ्रा हाइट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में 15 हजार रुपए प्रतिमाह की तनख्वाह पर कंप्यूटर औपरेटर की नौकरी मिल गई.

यह कंपनी राजधानी के बारह विरवा में काकोरी निवासी संजय यादव की थी. कुछ दिनों तक वह कंपनी में डाटा एंट्री का काम करती रही. इस दौरान वह संजय यादव के साले सरोजनीनगर निवासी गुड्डू यादव और आलमबाग आजादनगर के रहने वाले दरोगा के बेटे अजय यादव और अवधेश यादव के संपर्क में आई.

उस का संपर्क रियल एस्टेट कंपनी में प्लौट की बुकिंग कराने वाले कमीशन एजेंटों से भी होता था. कंपनी में ज्यादा काम होने की वजह से जुलेखा को आए दिन देर रात तक रुकना पड़ता था, जो जुलेखा को पसंद नहीं था.

मनमाफिक माहौल न पा कर वहां से जुलेखा का मन ऊबने लगा. देर रात तक कंपनी के औफिस के काम को निपटाना और रोजाना देर से घर पहुंचना उस की आदत सी हो गई थी. इस दिनचर्या से वह तंग आ चुकी थी.

जुलेखा की परेशानी अवधेश यादव से छिपी न रह सकी. एक दिन अवधेश ने संजय यादव के साले गुड्डू से जुलेखा को एकांत में बुलवा कर समझाया, ‘‘जुलेखा, तुम यहां कंप्यूटर टाइपिंग का जो काम करती हो, इस से तुम्हारा कैरियर नहीं बन पाएगा. तुम्हें बंधीबंधाई जो सैलरी मिलती है, उस से तुम क्याक्या कर सकती हो. यह बात तो तुम जानती ही हो कि रियल एस्टेट के काम में अच्छा पैसा है. तुम यहां कंपनी के प्लौट बुक कराने शुरू कर दोगी तो अच्छा कमीशन मिलेगा. साथ ही देर रात तक चलने वाले कंप्यूटर के काम से निजात मिल जाएगी.’’

इस के बाद कंपनी के मालिक संजय यादव ने भी जुलेखा को प्लौट बुकिंग से मिलने वाले कमीशन के बारे में बताया. संजय यादव की बात जुलेखा की समझ में आ गई. उस ने कंपनी के कई प्लौट बुक कराए. जब एक महीने में पहले की अपेक्षा ज्यादा कमाई हुई तो जुलेखा और ज्यादा मेहनत करने लगी.

जुलेखा ने काफी मेहनत से काम किया. वह हर महीने 2-3 प्लौट बिकवा देती थी, जिस से उस का अच्छा कमीशन बन जाता था.

जुलेखा को संजय यादव की रियल एस्टेट कंपनी में काम करते हुए लगभग एक साल हो चुका था. इसी बीच अगस्त, 2019 में फेसबुक के माध्यम से उस की श्रेयांश त्रिपाठी से दोस्ती हुई. बाद में उन की दोस्ती बढ़ी तो मिलनाजुलना भी शुरू हो गया. इस के बाद श्रेयांश भी जुलेखा के काम में हाथ बंटाने लगा.

वह भी प्लौट खरीदने वाले जरूरतमंदों को जुलेखा के पास लाता था. इस काम में संजय यादव उस की काफी मदद करता था. धीरेधीरे संजय यादव से जुलेखा के घनिष्ठ संबंध हो गए, जो अवैध संबंधों तक पहुंचे.

संजय यादव पर जुलेखा के करीब 25 लाख रुपए हो गए. यह रकम प्लौट की कमीशन की थी. जुलेखा जब भी उस से पैसे मांगती, वह टाल देता था. आशनाई की आड़ में वह जुलेखा की कमीशन की रकम हड़पना चाहता था.

संजय यादव के इरादे भांप कर जुलेखा अपने 25 लाख रुपए जल्द देने की जिद पर अड़ गई तो संजय परेशान हो गया. उस ने साफ कह दिया कि अभी उस के पास पैसे नहीं हैं. जबकि जुलेखा उस पर एक पाई भी नहीं छोड़ना चाहती थी. इस बात को ले कर उस का संजय यादव से काफी विवाद हुआ.

पैसे का विवाद बना बड़ा कारण उसी समय अवधेश यादव वहां आ गया. उस के कहने पर संजय यादव ने 3 लाख रुपए का चैक बना कर जुलेखा को दे दिया. उस के 22 लाख रुपए बाकी रह गए थे. विरोध जताते हुए जुलेखा ने वह चैक लौटा दिया और उस से पूरी रकम देने को कहा.

झगड़ा बढ़ने पर संजय यादव ने उसे धमकी दी कि जो पैसे मिल रहे हैं, उन्हें रख लो नहीं तो मुझे केवल 3-4 लाख रुपए खर्च करने पड़ेंगे. फिर तुम्हारा पता भी नहीं चलेगा कि कहां गई.

संजय यादव से हुए इस विवाद के बाद जुलेखा ने दूसरी कंपनी जौइन करने का मन बना लिया. उस ने संजय को धमकी दी कि वह कोर्ट के माध्यम से अपने पैसे ले कर रहेगी.

जुलेखा की इस धमकी से संजय यादव परेशान हो गया. उस ने अवधेश यादव, अजय यादव और अपने साले गुड्डू यादव के साथ मिल कर इस समस्या पर विचारविमर्श किया. इन लोगों ने फैसला लिया कि जुलेखा को हमेशा के लिए ही निपटाना सही रहेगा, वरना यह आगे चल कर परेशानी खड़ी करती रहेगी.

योजना के अनुसार 3 अगस्त, 2019 को अवधेश यादव ने जुलेखा से कहा, ‘‘संजय पर तुम्हारे जो 25 लाख रुपए बकाया हैं, वह मैं तुम्हें दिलवा दूंगा. लेकिन तुम यहां से नौकरी छोड़ कर मत जाओ.’’

अवधेश यादव के बुलाने पर जुलेखा घर से कंपनी औफिस जाने को निकली. उस ने रास्ते में अपने दोस्त श्रेयांश त्रिपाठी को फोन कर के बाइक से बारह विरवा बुला लिया. उस की बाइक पर बैठ कर जुलेखा अमित इंफ्रा हाइट्स प्रा.लि. कंपनी के औफिस जाने के लिए नहर से नीचे मुड़ी ही थी, तभी सामने से अजय यादव कार से आता दिखाई दिया. कार अजय यादव चला रहा था और पीछे की सीट पर अवधेश यादव बैठा था.

उसे देखते ही संजय ने कार रोक दी. अवधेश ने बाइक पर बैठी जुलेखा से कहा कि वह कार में बैठ जाए, जिस से वह संजय से उस का हिसाब करा सके.

लालच में जुलेखा कार में पीछे वाली सीट पर बैठ गई. उस ने अपने दोस्त श्रेयांश से कह दिया कि इन लोगों से बात करने के बाद वह बड़ी बहन रूबी के पास चली जाएगी. कुछ दूर तक श्रेयांश बाइक से कार के पीछेपीछे गया, तभी कार में बैठी जुलेखा ने उसे जाने का इशारा किया तो श्रेयांश अपने घर लौट गया.

कार में बैठी जुलेखा अवधेश से बात कर रही थी. उसी समय रास्ते में अचानक बंगला बाजार पकरी के पास संजय यादव का साला गुड्डू यादव मिल गया. कार रुकते ही वह भी कार में बैठ गया. उसे देख कर वह भड़क गई. वह कार से उतर रही थी, तभी अवधेश ने उसे समझा कर रोक लिया. फिर गुड्डू भी जुलेखा के बगल में बैठ गया. वह अवधेश से अपने पैसों के बारे में बातें कर रही थी.

लाश लगा दी ठिकाने उन की बातों में गुड्डू भी कूद पड़ा. बातों के दौरान गुड्डू और जुलेखा का वाकयुद्ध शुरू हो गया. अजय ने कार रोक दी, फिर अजय और गुड्डू ने जुलेखा के बाल पकड़ कर सीट पर झुका दिया और जुलेखा के ही दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया, जिस से उस की मृत्यु हो गई.

जुलेखा की लाश को ले कर वे तीनों रायबरेली के निकट हरचंद्रपुर में साई नदी के पास पहुंचे. उस समय रात के करीब 8 बज चुके थे. गुड्डू यादव और अजय यादव ने अवधेश के सहयोग से जुलेखा की लाश नदी में फेंक दी. उस के बाद टोल प्लाजा होते हुए वह लखनऊ लौट आए.

जुलेखा की हत्या के बाद गुड्डू यादव, अवधेश यादव व अजय यादव पूरी तरह से निश्चिंत थे कि पुलिस उन तक नहीं पहुंचेगी. लेकिन वे पुलिस की गिरफ्त में आ ही गए. गुड्डू यादव का कहना था कि जुलेखा ने उस के बहनोई संजय यादव से अवैध संबंध बना लिए थे, जिस की वजह से उस की बहन का घरपरिवार उजड़ रहा था.

दिनरात घर में कलह होती थी. इसी वजह से वह उस के दिमाग में खटक रही थी. इस बात को ले कर वह जुलेखा से रंजिश रखने लगा था. 3 अगस्त, 2019 को कार में हुए विवाद में जुलेखा की गला दबा कर हत्या कर दी गई.

अभियुक्त गुड्डू यादव और अजय यादव से पूछताछ के बाद उन्हें भादंवि की धारा 147, 364, 302, 201, 376, 34 के तहत गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया. इस के बाद पुलिस अन्य आरोपियों की तलाश में जुट गई.

थानाप्रभारी त्रिलोकी सिंह को सिपाही कृष्ण बंसल एवं हलका एसआई सुभाष सिंह के द्वारा सूचना मिली कि मुख्य आरोपी संजय यादव न्यायालय में आत्मसमर्पण करने के लिए पहुंचा है, तो थानाप्रभारी के नेतृत्व में गठित टीम ने 13 अगस्त, 2019 को संजय यादव को न्यायालय परिसर से गिरफ्तार कर लिया.

पूछताछ में संजय ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. उसे भी पुलिस ने कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया. अब एक अभियुक्त अवधेश यादव शेष बचा है. उस के ठिकानों पर भी पुलिस ने दबिश दी. जब वह 28 अगस्त को कोर्ट में आत्मसमर्पण करने जा रहा था, पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार कर लिया. उस ने भी पूछताछ में अपना अपराध स्वीकार कर लिया. उसे भी जेल भेज दिया गया.

फेसबुक से निकली मौत

22जून, 2019 की सुबह पुणे शहर के पौश इलाके में स्थित मुढ़वा की रहने वाली 40 वर्षीय राधा अग्रवाल घर से अपनी स्कूटी ले कर निकली थी. उस ने घर पर बताया था कि वह अपनी सहेलियों के साथ साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में घर लौट आएगी. घर से निकलते समय वह अपने सारे गहने पहने हुई थी. जब वह 25 जून तक नहीं लौटी तो पति किशोरचंद्र अग्रवाल ने उस का फोन मिलाया. लेकिन राधा का फोन स्विच्ड औफ मिला.

राधा के 16 वर्षीय बेटे मानव अग्रवाल ने इस बारे में अपनी मां की सहेलियों से बात की तो उन्होंने बताया कि वह तो शिरडी गई ही नहीं थी, न ही उन्हें राधा के शिरडी जाने की कोई जानकारी है.

राधा की सहेलियों से यह जानकारी मिलने पर परिवार के लोग परेशान हो गए. चूंकि उस दिन राधा अग्रवाल गहने पहन कर गई थी, इसलिए उन की चिंता और भी बढ़ गई. 25 जून की शाम को ही मानव अग्रवाल अपने 3-4 सगेसंबंधियों के साथ थाना मुढ़वा पहुंच गया. उस ने वहां मौजूद थानाप्रभारी संपतराव भोसले को अपनी मां के लापता होने की विस्तार से जानकारी दे दी.

राधा अग्रवाल शहर के करोड़पति रियल एस्टेट कारोबारी किशोरचंद्र अग्रवाल की पत्नी थी. मानव अग्रवाल की बात सुन कर थानाप्रभारी भी आश्चर्य में पड़ गए कि आशा अग्रवाल आखिर अपनी मरजी से कहां चली गई.

बहरहाल, उन्होंने राधा अग्रवाल की डिटेल्स लेने के बाद मानव को भरोसा दिया कि पुलिस उन्हें अपने स्तर से ढूंढने की कोशिश करेगी.

चूंकि मामला एक प्रतिष्ठित परिवार की महिला से जुड़ा था, इसलिए थानाप्रभारी ने इस की सूचना अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दे दी. इस के बाद उन्होंने राधा अग्रवाल की गुमशुदगी की काररवाई शुरू कर दी. उन्होंने फोटो सहित उस का हुलिया पुणे शहर के सभी पुलिस थानों को भिजवा दिया. इस के अलावा उन्होंने मुखबिरों को भी लगा दिया.

थानाप्रभारी ने मामले की जांच के लिए एसआई अमोल गवली, स्वप्निल पाटील, हैडकांस्टेबल कैलाश चह्वाण, निलेश जगताप, श्रीनाथ जाधव, अमोल चह्वाण और एस.ए. काकड़े को शामिल कर एक टीम बनाई. पुलिस टीम अपने स्तर से राधा अग्रवाल को तलाशने लगी.

जांच में पता चला कि राधा अग्रवाल शादी के पहले से ही खुले विचारों वाली थी. वह किसी प्रकार के बंधनों को नहीं मानती थी. शादी के बाद उसे परिवार भी वैसा ही मिला था. घर में उसे किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी. अभाव केवल एक यह था कि पति का ज्यादा संग नहीं मिल पाता था, क्योंकि पति किशोरचंद्र अग्रवाल अपने रियल एस्टेट कारोबार में ज्यादा व्यस्त रहते थे. एक बेटा था जो पढ़ाई कर रहा था.

सोशल मीडिया पर रहने का शौक  राधा के पास भले ही रुपएपैसों की कमी नहीं थी, लेकिन वह पति का साथ चाहती थी जो उसे नहीं मिल पाता था. वह कसे हुए बदन की सुंदर महिला थी. एक युवक की मां होने के बाद भी उस का शारीरिक आकर्षण बरकरार था. यही वजह थी कि राधा ने अपना मन बहलाने के लिए जब सोशल मीडिया का सहारा लिया तो कुछ ही दिनों में उस के हजारों फालोअर्स और सैकड़ों दोस्त बन गए थे.

राधा ने घूमने के लिए एक स्कूटी ले रखी थी, जिस से वह अपने दोस्तों और सहेलियों से मिलने जाया करती थी. वह तरहतरह के पोज में खींचे गए अपने फोटो फेसबुक पर डाल दिया करती थी, जिस से उसे काफी प्रशंसा मिलती थी. सोशल मीडिया से जुड़ने के बाद राधा अग्रवाल के चेहरे पर अकसर चमक दिखाई देती थी. वह अपनी इस जिंदगी से काफी खुश रहने लगी थी.

यह जानकारी मिलने के बाद जांच अधिकारी को इस बात का पूरा भरोसा हो गया कि राधा अग्रवाल की गुमशुदगी के पीछे कोई गहरा रहस्य है, जिस का परदा उठाना जरूरी है. पुलिस ने राधा अग्रवाल का मोबाइल नंबर ले कर उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो अंतिम लोकेशन पुणे के ही भोसले नगर, रेंज हिल इलाके की मिली.

पुलिस वहां पहुंच गई और इधरउधर खोजबीन करने लगी. वहां पर एक स्कूटी मिली, जो राधा अग्रवाल की ही थी. पुलिस ने स्कूटी की डिक्की खोल कर देखी तो उस में राधा का मोबाइल फोन मिला. फोन डिस्चार्ज हो चुका था.

जब मोबाइल को चार्ज कर औन किया किया तो वाट्सऐप और फेसबुक पर महिला और युवक दोस्तों की लंबी फेहरिस्त देख पुलिस टीम हैरान रह गई. राधा अग्रवाल के फोन पर जिस नंबर से आखिरी बार बातचीत हुई थी, पुलिस ने उस नंबर की जांच की तो वह नंबर आनंद निगम का निकला, जो कर्नाटक का रहने वाला था. पुलिस टीम उस के घर पहुंच गई लेकिन वह घर से फरार मिला. परिवार वालों से पूछताछ कर के आखिरकार पुलिस उस के पास पहुंच ही गई. आनंद निगम को हिरासत में ले कर पुलिस पुणे लौट आई.

आनंद निगम से थाने में पूछताछ की जानी थी, इसलिए सूचना पा कर डीसीपी सुहास बाबचे और एसीपी सुनील देशमुख भी थाना मुढ़वा पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों के सामने थानाप्रभारी संपतराव भोसले ने आनंद निगम से राधा अग्रवाल के बारे में पूछताछ की तो पहले तो वह यही कहता रहा कि राधा अग्रवाल नाम की किसी महिला को नहीं जानता.

लेकिन पुलिस ने जब वाट्सऐप और फेसबुक पर उस की और राधा की चैटिंग दिखाई तो वह सहम गया. वह चाह कर भी अपना झूठ नहीं छिपा सका. सख्ती से की गई पूछताछ में उस ने स्वीकार कर लिया कि वह राधा अग्रवाल की हत्या कर चुका है.

हत्या की बात सुनते ही पुलिस चौंक गई. आनंद से उस की लाश के बारे में पूछा गया तो उस ने बता दिया कि लाश ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में है. हत्या करने के बाद वह उस के सभी गहने और नकदी ले भागा था.

पुलिस को किसी भी तरह राधा अग्रवाल की बौडी बरामद करनी थी. उसे संशय था कि कहीं जंगली जानवरों ने शव को नष्ट न कर दिया हो. इसलिए पुलिस आनंद निगम को ले कर 12 जुलाई, 2019 को ताम्हिणी वर्षा घाट के जंगल में जा पहुंची.

लेकिन जंगल में राधा अग्रवाल के केवल अस्थिपंजर और कपड़े मिले. उस का मांस जंगली जानवर नोंचनोंच कर खा चुके थे. पुणे पुलिस ने स्थानीय पुलिस के सहयोग से कंकाल बरामद कर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस आनंद निगम को ले कर पुणे लौट आई.

पूछताछ करने पर आनंद निगम ने राधा अग्रवाल की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस तरह थी.

आनंद की अपनी कहानी  31 वर्षीय आनंद निगम मूलरूप से कर्नाटक का रहने वाला था. उस के पिता का नाम शिवाजी निगम था. परिवार में उस के मातापिता के अलावा एक छोटी बहन थी. परिवार की माली स्थिति साधारण थी.

जब उस के पिता का निधन हो गया तो घर की जिम्मेदारी आनंद पर आ गई. वह रोजीरोटी की तलाश में परिवार के साथ पुणे आ गया और वहां की वृंदावन कालोनी के तापकीर नगर में रहने लगा. पुणे में रहते हुए उस की मां ने एक दूसरे आदमी का हाथ पकड़ लिया था. बहन जवान हुई तो उस ने भी लवमैरिज कर ली. इस के बाद आनंद ने भी अंतरजातीय विवाह कर अपना घर बसा लिया. समय गुजरता गया और वह 2 बच्चों का बाप बन गया.

अपनी रोजीरोटी के लिए उस ने एक पुरानी कार ले ली और लोगों को कार चलाना सिखाने लगा. उस के पास ड्राइविंग सीखने के लिए ज्यादातर महिलाएं आती थीं. व्यवहारकुशल होने के नाते अधिकतर महिलाएं उस के प्रभाव में आ जाती थीं, जो उस की दोस्त बन जाती थीं. वह उन से फेसबुक, वाट्सऐप के माध्यम से चैटिंग किया करता था, जिस का असर उस के व्यवसाय पर पड़ने लगा था.

यह बात जब उस की पत्नी को मालूम हुई तो उस ने उसे आड़ेहाथों लिया. विवाद इतना बढ़ा कि उसे अपना कार ड्राइविंग का धंधा बंद करना पड़ा. इस के बाद उसे परिवार चलाने के लिए कोई काम तो करना ही था. उस ने अपने जानपहचान वालों और दोस्तों से ब्याज पर पैसे ले कर भोसले नगर के रेंज हिल इलाके में एक टी-स्टाल शुरू कर दिया. स्टाल पर वह बीड़ीसिगरेट भी बेचता था.

इस काम में उस की मां भी मदद किया करती थी. पूरा दिन खपाने के बाद भी इस काम में कोई खास आमदनी नहीं हो पाती थी. घर का खर्च भी बमुश्किल चलता था. ऐसे में उसे कर्ज उतारना भी मुश्किल हो गया था. नतीजा यह हुआ कि उस का कर्ज बढ़तेबढ़ते 2 लाख के करीब पहुंच गया. वह इसी चिंता में रहता कि कर्ज कैसे उतारे.

आनंद सोशल साइट्स पर एक्टिव रहता था. एक दिन उस ने फेसबुक पर राधा अग्रवाल का प्रोफाइल देखा तो उस पर मोहित हो गया. उस ने बिना देर किए फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज दी. राधा अग्रवाल ने भी आनंद निगम का फोटो देखते ही उस की फ्रैंड रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली.

हालांकि राधा अग्रवाल और आनंद निगम की उम्र में काफी अंतर था. राधा अग्रवाल आनंद निगम से करीब 10 साल बड़ी थी. लेकिन दोनों को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा. कुछ दिनों की चैटिंग के दौरान दोनों में गहरी दोस्ती हो गई और धीरेधीरे वे एकदूसरे के करीब आने लगे.

राधा अग्रवाल के पास पैसों की कमी नहीं थी. खर्च करने के लिए उस के पास पैसा ही पैसा था. जबकि कहीं आनेजाने के लिए स्कूटी थी. वह आनंद निगम के संपर्क में आ कर कुछ इस प्रकार फिसली कि अपनी मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं को भी लांघ गई. जब भी मौका मिलता, दोनों पुणे शहर के किसी भी होटल में जा कर मौजमजे कर लेते थे.

समय अपनी गति से चल रहा था. राधा अग्रवाल अब पूरी तरह से आनंद निगम पर आंख मूंद कर भरोसा करने लगी थी. आनंद निगम उस से जो भी कहता, उसे वह तहेदिल से स्वीकार करती थी. आनंद निगम को जब इस बात का पूरा यकीन हो गया कि राधा पूरी तरह उस की दीवानी है, तो उस ने अपने ऊपर चढ़े कर्जे को उतारने की एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. वैसे तो राधा अग्रवाल लाख दो लाख रुपए उसे ऐसे ही दे सकती थी. लेकिन आनंद अपने ऊपर किसी प्रकार का बोझ नहीं रखना चाहता था. इस से रिश्ता खराब होने पर राधा अग्रवाल भी उस से अपना पैसा मांग सकती थी. यही सब सोच कर वह सिर्फ अपनी योजना पर ध्यान देने लगा.

योजना को अंजाम देने के लिए एक दिन उस ने राधा से कहा, ‘‘राधा, तुम इतनी खूबसूरत हो कि अगर किसी मैगजीन में तुम्हारे फोटो भेजे जाएं तो वे कवर पेज पर छप सकते हैं.’’

यह सुन कर खुश होते हुए राधा बोली, ‘‘सच!’’  ‘‘हां, क्या तुम ने अपने फोटोजेनिक चेहरे को कभी गौर से नहीं देखा?’’ आनंद बोला,  ‘‘देखो, मैं चाहता हूं कि किसी नैचुरल जगह पर तुम्हारा फोटोशूट कर के फोटो मैगजीन वगैरह में भेजे जाएं.’’

‘‘ठीक है, मैं इस के लिए तैयार हूं.’’ राधा बोली.  ‘‘तो ठीक है, तुम कल अपने सारे गहने पहन कर आ जाओ. हम पुणे से कहीं दूर चलेंगे.’’

राधा उस पर आंखें मूंद कर भरोसा करती ही थी. इसलिए 22 जून की सुबह अपने सारे गहने पहन कर घर से निकली. घर वालों से उस ने कह दिया कि वह अपनी सहेलियों के साथ स्कूटी से साईंबाबा के दर्शन करने शिरडी जा रही है. 2 दिन में लौट आएगी.

इस के बाद वह स्कूटी ले कर आनंद द्वारा बताई गई जगह पर पहुंच गई. आनंद वहां पहले ही खड़ा था. वहां से आनंद ने राधा की स्कूटी संभाली और राधा उस के पीछे चिपक कर बैठ गई.

राधा छली गई ग्लैमर के चक्कर में दोनों आपस में हंसीमजाक करते हुए कब पुणे से 80 किलोमीटर दूर निकल गए, पता ही नहीं चला. और जब पता चला तो वह ताम्हिणी के वर्षाघाट के जंगलों में पहुंच गए थे. आनंद निगम को अपनी योजना के अनुसार वह जगह उपयुक्त लगी. उस ने स्कूटी एक तरफ खड़ी कर दी. इस के बाद उस ने राधा से फोटो सेशन के लिए तैयार होने को कहा.

राधा अग्रवाल खुशीखुशी अपना फोटो सेशन कराने के लिए तैयार हो गई. सड़क से कुछ दूर जंगल में जा कर आनंद अलगअलग ऐंगल से उस के फोटो खींचने लगा. फिर आनंद ने राधा से एकदो हौरर फोटो खींचने के लिए अनुरोध किया. हौरर फोटो सेशन करने के लिए आनंद ने राधा की सहमति से पहले उस की आंखों पर पट्टी बांधी. फिर उस के हाथपैर बांध कर फोटो खिंचवाने को कहा.

राधा उस के कहने के अनुसार करती रही. हाथपैर बांधने के बाद आनंद ने उस के सारे गहने उतार कर अपने पास रख लिए. इस के बाद उस ने साथ छिपा कर लाए गए तेज धारदार चाकू से राधा अग्रवाल का गला रेत दिया. राधा अग्रवाल की एक मार्मिक चीख निकल कर निर्जन जंगल में खो गई.

राधा अग्रवाल की हत्या करने के बाद आनंद निगम ने उस का मोबाइल फोन स्कूटी की डिक्की में रख दिया. उस के हैंडबैग से नोटों से भरा पर्स निकाल लिया और स्कूटी ले कर पुणे की तरफ लौट पड़ा था. ताम्हिणी वर्षा घाट से कुछ दूर आनंद ने पर्स से सारे पैसे निकालने के बाद उसे भी फेंक दिया.

इस के बाद वह घोरपेड़ फाटक पर आ कर एक पान की दुकान पर रुका. वहां पर उस ने एक सिगरेट पी.

वहां से आनंद निगम अपने घर न जा कर सीधे अपने टी-स्टाल पर पहुंचा. उस समय रात का एक बजा था. चारों तरफ सन्नाटा था. उस ने राधा की स्कूटी अपने टी-स्टाल के पीछे खड़ी कर चाकू टी-स्टाल के अंदर छिपा दिया. फिर वह निश्चिंत हो कर अपने घर चला गया.

2 दिन निकल जाने के बाद राधा अग्रवाल के लूटे गए गहनों में से 7 तोले सोने के गहनों को वह अपने एक रिश्तेदार के यहां छिपा कर रख आया. बाकी बचे गहनों को ज्वैलर्स के यहां बेच कर अपना कर्ज उतार दिया. इतना करने के बाद वह पुणे शहर को छोड़ कर कर्नाटक में अपने गांव निकल गया.

आनंद निगम से विस्तार से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस की निशानदेही पर हत्या में इस्तेमाल चाकू और राधा अग्रवाल के गहने बरामद कर लिए. उसे भादंवि की धारा 302, 201, 363, 364(ए) के तहत गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उसे पुणे की यरवडा जेल भेज दिया गया.

—कथा में किशोरचंद्र और मानक नाम परिवर्तित हैं.

दगाबाज दोस्त, बेवफा पत्नी

रघुनाथ सिंह लोधी

दौलत व शोहरत की दौड़ में दबंगता के साथ आगे बढ़ते रहे मिक्की बख्शी को अपने अतीत पर ज्यादा रंज नहीं था. यह जरूर था कि वह ऐसा कोई काम नहीं करना चाहता था जिस से उसे फिर से जेल जाना पड़े. अपराध के क्षेत्र के जानेमाने चेहरे अब भी उस के नाम से खौफ खाते थे.

वह रसूखदार लोगों की महफिलों में शिरकत करने लगा था. उस ने साफसुथरी जिंदगी का नया सफर शुरू करने का संकल्प ले लिया था. अब वह पढ़ीलिखी बीवी व एकलौते बेटे को कामयाबी के शिखर पर देखना चाहता था.

उस ने बीवी के नाम न केवल घर कारोबार कर दिया था, बल्कि नई चमचमाती कार की चाबी भी सौंप दी थी. जिस बीवी के लिए उस ने इतना सब कुछ किया, वही उस के जिगरी दोस्त ऋषि खोसला के साथ मिल कर उस के सीने में छुरा घोंपेगी, उस ने कभी सोचा भी नहीं था.

नागपुर ही नहीं मध्यभारत में कूलर कारोबार में खोसला कूलर्स एक बड़ा नाम है. जानेमाने कूलर ब्रांड के संचालक ऋषि खोसला का भी अपना अलग ठाठ रहा है. हैंडसम, स्टाइलिश पर्सनैलिटी के तौर पर वह यारदोस्तों की महफिलों की शान हुआ करता था. कई छोटीमोटी फिल्मों में भी वह दांव आजमा चुका था. इन दिनों जमीन कारोबार में मंदी का दौर सा चल रहा है, लेकिन ऋषि मंदी के दौर में भी जमीन कारोबार में अच्छा कमा रहा था. लोग उसे बातों का धनी भी कहते थे. वह अपना कारोबार बढ़ाने की कला अच्छी तरह जानता था.

47 वर्षीय ऋषि नागपुर के जिस बैरामजी टाऊन परिसर में रहता था, उसे करोड़पतियों की बस्ती भी कहा जाता है. उस बस्ती में लग्जीरियस लाइफ स्टाइल के शख्स रहते थे. ऋषि का छोटा सा परिवार था. परिवार में पत्नी के अलावा एक बेटा व एक बेटी थे. 18 वर्षीय बेटा विदेश में रह कर पढ़ाई कर रहा था, जो छुट्टी मनाने घर आया हुआ था.   20 अगस्त, 2019 की रात करीब 9 बजे की बात है. ऋषि का भाई मनीष और बेटा शिरडी में साईं बाबा के दर्शन कर घर लौट रहे थे. ऋषि अपने कारोबार के जरूरी काम निपटा कर समय से पहले ही घर पहुंच गया था. घर पर उस ने बेटे व भाई से मुलाकात की. भूख लगी थी सो पत्नी को खाना लगाने को कहा. इसी बीच ऋषि खोसला के पास मधु का फोन आया.

मधु उस की खास महिला मित्र थी. वह उस के अजीज दोस्त विक्की बख्शी की पत्नी थी. कारोबार में भी मधु ऋषि की मदद लिया करती थी. मधु ने उस से कहा कि कड़बी चौक के नजदीक उस की गाड़ी पंक्चर हो गई है. आप तुरंत आ जाइए.

‘‘तुम वहीं रहो, मैं 5 मिनट में पहुंचता हूं.’’ कह कर ऋषि बिना खाना खाए ही घर से निकल गया. मधु का घर कड़बी चौक के पास कश्मीरी गली में था. कश्मीरी गली को नागपुर की सब से प्रमुख पंजाबियों की बस्ती भी कहा जाता है. यहां बड़े कारोबारियों के बंगले हैं. कुछ देर में ऋषि मधु के पास पहुंच गया और मधु को घर पहुंचा आया. मधु को घर छोड़ने के बाद ऋषि अपनी कार नंबर पीबी08ए एक्स0909 से घर लौटने लगा.

ऋषि खोसला ने चुकाई भारी कीमत  रात के करीब 11 बजे होंगे. ऋषि किसी काम से कड़बी चौक पर खड़ा था, तभी वहां खड़ी उस की कार में एक आटोरिक्शा चालक ने टक्कर मार दी. ऋषि ने आटो चालक को फटकार लगाई तो आटो से उतर कर आए 3 युवक ऋषि से झगड़ा करने लगे. चौक पर वाहनों का आनाजाना चल रहा था. झगड़ा होता देख वहां लोग जमा होने लगे.

ऋषि की नजर आटोरिक्शा में बैठे एक शख्स पर गई. उसे देख कर ऋषि को यह समझने में देर नहीं लगी कि आटो में आए लोग संदिग्ध हैं और वे उस के साथ कुछ भी कर सकते हैं.

कई दिनों से उसे हमला होने का अंदेशा था. ऋषि ने चतुराई से काम लिया. वह उन लोगों से झगड़ने के बजाए कार ले कर सीधे घर की ओर चल पड़ा. वह काफी घबराया हुआ था. बैरामजी टाउन में ऋषि के घर से कुछ देरी पर गोंडवाना चौक है. ऋषि ने अचानक कार रोकी. उसे लग रहा था कि आटो वाले लोग उसे खोजते हुए उस के घर भी पहुंच सकते हैं.

वह अपने बचाव के लिए कहीं भाग जाना चाहता था. ऋषि कार से उतरा. भागने की फिराक में उस ने मोबाइल निकाल कर अपनी दोस्त मधु को जानकारी देने के लिए फोन किया. उस ने मधु को बताया कि उस के घर से लौटते समय कड़बी चौक में उस पर हमला होने वाला था.

वह इस के आगे कुछ कहता, इस से पहले ही आटो और बाइक पर आए लोगों ने ऋषि पर हमला कर दिया. फरसे के पहले ही वार में ऋषि की चीख निकल गई. मोबाइल उस के हाथ से छूट कर 10 फीट दूर जा कर गिरा.

इस के बाद भी उन लोगों ने ऋषि पर कई वार किए. अपना काम कर के हमलावर आटोरिक्शा से फरार हो गए. एक हमलावर वहां से ऋषि की कार ले गया ताकि कोई कार से उसे इलाज के लिए अस्पताल न ले जा सके. उस ने ऋषि की कार सदर क्षेत्र के एलबी होटल के पास ले जा कर खड़ी कर दी. हथियार भी उन्होंने वहीं आसपास डाल दिए थे.

ऋषि की फोन पर मधु से बात चल रही थी लेकिन जब अचानक बातचीत बंद हो गई तो वह घबरा गई. वह उसी समय गोंडवाना चौक पहुंच गई. उस समय वहां काफी लोग जमा थे. वहां पड़ी ऋषि की लाश को देख कर वह चीख पड़ी. इसी बीच किसी ने फोन से पुलिस को सूचना दे दी थी.

सूचना पा कर सदर पुलिस थाने की पुलिस वहां पहुंच गई. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू भी वहां पहुंच गईं. मधु ने पुलिस को बताया कि ऋषि उस का प्रेमी था और उस की हत्या उस के पति मिक्की बख्शी व भाई सुनील भाटिया ने की है.

ऋषि को मेयो अस्पताल ले जाया गया, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया. इधर पुलिस लोगों से पूछताछ कर ही रही थी कि तभी मधु आत्महत्या के लिए निकल पड़ी.

वह फुटाला तालाब की ओर जा रही थी. पुलिस उपायुक्त विनीता साहू समझ गईं कि वह कोई आत्मघाती कदम उठाने जा रही है, इसलिए उन्होंने उसे रोक कर समझाया. विनीता ने मधु को आश्वस्त किया कि मिक्की व सुनील को जल्द ही पकड़ लिया जाएगा.

तब तक पुलिस आयुक्त डा. भूषण कुमार उपाध्याय भी वहां पहुंच गए थे. डीसीपी विनीता साहू ने उन्हें पूरी जानकारी से अवगत कराया. पुलिस कमिश्नर डा. उपाध्याय मिक्की की प्रवृत्ति से भलीभांति अवगत थे. क्योंकि वह आपराधिक प्रवृत्ति का था. उन्होंने उसी समय थाना सदर के प्रभारी को आदेश दिया कि मिक्की को इसी समय उठवा लो.

मिक्की बख्शी राजनगर में रहता था. थानाप्रभारी ने एक पुलिस टीम मिक्की के घर भेज दी. घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटाने के बाद थाना सदर पुलिस मधु को ले कर थाने लौट आई. मधु से कुछ जरूरी पूछताछ के बाद उसे घर भेज दिया.

उधर पुलिस टीम मिक्की बख्शी के घर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. उसे हिरासत में ले कर पुलिस थाने ले आई. पुलिस ने मिक्की से ऋषि खोसला की हत्या के बारे में पूछताछ की तो वह कहता रहा कि ऋषि तो उस का दोस्त था, भला वह अपने दोस्त को क्यों मारेगा. उस की बात पर पुलिस को यकीन नहीं हो रहा था.

पुलिस जानती थी कि वह ढीठ किस्म का अपराधी है, इसलिए पुलिस ने उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सच उगल दिया. उस ने स्वीकार किया कि ऋषि खोसला की हत्या उस ने अपने जानकार लोगों से कराई थी. उस की हत्या कराने की उस ने जो कहानी बताई, वह काफी दिलचस्प थी—

मिक्की कैसे बना दबंग  रूपिंदर सिंह उर्फ मिक्की बख्शी नागपुर शहर का काफी चर्चित व्यक्ति था. करीब 2 दशक पहले शहर में प्रौपर्टी के कारोबार में उस का सिक्का चलता था. विवादित जमीनों से कब्जा खाली कराने के लिए उस के पास अच्छेबुरे हर किस्म के लोग आतेजाते थे.

शुरुआत में मिक्की ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में कांस्टेबल की नौकरी की थी. उस की तैनाती नक्सल प्रभावित क्षेत्र गढ़चिरौली के भामरागढ़ में थी. उसी दौरान निर्माण ठेकेदारों और सरकार के लोगों की फिक्सिंग का विरोध करते हुए उस ने नौकरी छोड़ दी थी. बाद में नागपुर में उस ने बीयरिंग बेचने का व्यवसाय किया.

मिक्की दबंग स्वभाव का तो था ही, जल्द ही उस के पास दबंग युवाओं की टीम तैयार हो गई. शहर ही नहीं, शहर के आसपास भी उस का नाम चर्चाओं में आ गया. वह कारोबारियों का मददगार होने का दावा करता था, लेकिन उस की पहचान वसूलीबाज अपराधी की भी बनने लगी थी.

बाद में मिक्की ने यूथ फोर्स नाम का संगठन तैयार किया. यूथ फोर्स के माध्यम से उस ने युवाओं की टीम का विस्तार किया गया. उस के संगठन में बाउंसर युवाओं की संख्या बढ़ने लगी. यही नहीं यूथ फोर्स के नाम पर मिक्की ने युवाओं के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी शुरू कर दिया. बाद में उस ने यूथ फोर्स नाम की सिक्युरिटी एजेंसी खोल ली.

शहर में सब से महंगी व अच्छी सिक्युरिटी एजेंसी के तौर पर यूथ फोर्स की अलग पहचान बन गई. इस एजेंसी में अब भी करीब 3000 सिक्युरिटी गार्ड हैं. 2 दशक पहले शहर में ट्रक व्यवसाय को ले कर बड़ा विवाद हुआ था. कई ट्रक कारोबारी बातबात पर पुलिस व आरटीओ से उलझ पड़ते थे.  आरोप था कि ट्रक कारोबारियों को जानबूझ कर परेशान किया जा रहा है. उन से अंधाधुंध वसूली हो रही है. उस स्थिति में मिक्की ने उत्तर नागपुर के महेंद्रनगर में यूथ फोर्स संगठन का कार्यालय खोला. उस के कार्यालय में ट्रक कारोबारी फरियाद ले कर जाते थे. मिक्की ने अपने स्तर से कई मामले सुलझा दिए. दरअसल, पुलिस विभाग में मिक्की के कई दुश्मन थे तो कई दोस्त भी थे.

नाम चला तो पैसा भी आने लगा. मिक्की कारों के काफिले में घूमने लगा. 20-25 युवक उस की निजी सुरक्षा में रहते थे. सार्वजनिक जीवन में अपना नाम बढ़ाने का प्रयास करते हुए मिक्की ने एक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया.

राजनीति के क्षेत्र में भी उस ने पैर जमाने की कोशिश की. लगभग सभी प्रमुख पार्टियों के बड़े नेताओं से उस के करीबी संबंध बन गए थे. उन पर वह खुले हाथों से पैसे खर्च करता था. मिक्की ने भाजपा के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के समर्थक के तौर पर पहचान बना रखी थी. वह गडकरी के जन्मदिन पर एक भंडारे का आयोजन करता था.

दोस्त ने ही जोड़ा था रिश्ता  सन 2002 की बात है. तब तक मिक्की की पहचान सेटलमेंट कराने के एवज में बड़ी वसूली करने वाले अपराधी के तौर पर हो गई थी. एक मामले में तत्कालीन पुलिस कमिश्नर एस.पी.एस. यादव ने मिक्की को गिरफ्तार करा कर सड़क पर घुमाया था. उस की आपराधिक छवि के कारण उस की शादी भी नहीं हो पा रही थी. शादी की उम्र निकलने लगी थी. उस के दोस्तों ने उस के लिए इधरउधर रिश्ते की बात छेड़ी. उस के दोस्तों में ऋषि खोसला व सुनील भाटिया प्रमुख थे.

तीनों ने शहर के हिस्लाप कालेज में साथसाथ पढ़ाई की थी. ऋषि खोसला मिक्की का दोस्त ही नहीं, बतौर कार्यकर्ता भी काम करता था. कई मामलों में वह मिक्की के लिए प्लानर की भूमिका निभाता था. हरदम साए की तरह उस के साथ लगा रहता था.

ऋषि को अभिनय का भी शौक था. उस ने कुछ फिल्मों में अभिनय भी किया. हिंदी फिल्म ‘आशा: द होप’ में उस ने मुख्य विलेन का किरदार निभाया था. उस फिल्म में अभिनेता शक्ति कपूर थे. शक्ति कपूर से ऋषि खोसला के पारिवारिक संबंध भी बन गए थे.

सुनील भाटिया मिक्की व ऋषि के साथ ज्यादा नहीं रहता था, लेकिन कम समय में उस ने सट्टा कारोबार में बड़ी पहचान बना ली थी. यह वही सुनील भाटिया था जो आईपीएल मैच स्पौट फिक्सिंग के मामले में दिल्ली में पकड़ा गया था. तब सुनील के गिरफ्तार होने के बाद भारतीय क्रिकेट टीम के कुछ क्रिकेटर भी जांच की चपेट में आए थे.

बताते हैं कि सुनील भाटिया ने क्रिकेट सट्टा की बदौलत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करोड़ों की दौलत एकत्र की थी. वह आए दिन विदेश में रहता था. पिछले कुछ समय से वह स्वयं को साईंबाबा के भक्त के तौर पर स्थापित कर रहा था. उस ने नागपुर में कड़बी चौक परिसर में  साईं मंदिर भी बनवाया था. वहां हर गुरुवार को वह बड़ा भंडारा कराता था.

शिरडी साईंबाबा के दर्शन के लिए उस ने नागपुर से वातानुकूलित बस की नि:शुल्क सेवा उपलब्ध करा रखी थी. क्रिकेट और राजनीति के अलावा भाटिया के आपराधिक क्षेत्र में भी देशदुनिया के कई बड़े लोगों से सीधे संबंध थे.  मिक्की के लिए रिश्ते की बात चल रही थी. लेकिन सामान्य संभ्रांत परिवार से कोई रिश्ता नहीं आ रहा था. अपराधी के हाथ में कोई अपनी बेटी का हाथ देने को तैयार नहीं था. ऐसे में ऋषि खोसला को न जाने क्या सूझी, एक दिन उस ने दोस्तों की पार्टी में कह दिया कि मिक्की भाई के लिए चिंता करने की जरूरत नहीं है.

कहीं बात नहीं बन रही है तो हम कब काम आएंगे. शादी के लिए सुनील भाई की बहन मधु भी तो है. सुनील भाटिया की बहन मधु ने एमबीए कर रखा था. कहा गया कि वह मिक्की ही नहीं, उस के कारोबार को भी अच्छे से संभाल लेगी. बात व प्रस्ताव पर विचार हुआ.

उस समय सुनील भाटिया हत्या के एक मामले में जेल में था. मधु मिक्की से उम्र में 10 साल छोटी थी. इस के बावजूद वह मिक्की से शादी के लिए राजी हो गई. लिहाजा बड़ी धूमधाम से दोनों की शादी हुई. कई जानीमानी हस्तियां शादी समारोह में शरीक हुई थीं. मधु का मिजाज भी दबंग किस्म का था. शादी के कुछ दिनों बाद ही उस ने मिक्की के संगठन यूथ फोर्स के कारोबार में दखल देना शुरू कर दिया. वह सुरक्षा प्रशिक्षण अकादमी की संचालक बन गई.

मिक्की कारोबार की जिम्मेदारी से मुक्त हो कर अपनी नई दुनिया को संवारने लगा. राजनीति में भी उस का दबदबा कायम होने लगा. सन 2007 व 2012 के महानगर पालिका के चुनाव में मिक्की ने यूथ फोर्स का पैनल लड़ाया. पैनल के उम्मीदवार तो नहीं जीते लेकिन मिक्की की पहचान उभरते नेता के तौर पर बनने लगी थी.

हत्याकांड ने बदल दी जिंदगी  इस बीच एक ऐसा कांड हुआ, जिस ने मिक्की की जिंदगी के सुनहरे रंगों को ही छीन लिया. सन 2012 की बात है. कोराड़ी रोड पर जमीन विवाद के एक मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता गणेश मते का अपहरण कर लिया गया. बाद में उन की हत्या कर लाश कलमना में रेलवे लाइन पर डाल दी गई. इस हत्या का सूत्रधार मिक्की ही था. मामला 2 करोड़ की वसूली का था. तब राज्य में कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेतृत्व की सरकार थी. गृहमंत्री राष्ट्रवादी कांग्रेस के ही थे.

सत्ताधारी पार्टी के नेता की हत्या के मामले को स्थानीय से ले कर प्रदेश स्तर के नेताओं ने चुनौती के तौर पर लिया. मिक्की बचाव का प्रयास करता रह गया. उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.

वह करीब 3 साल तक जेल में रहा. जेल से छूटा तो मिक्की के लिए सारा नजारा बदल सा गया था. उस की पत्नी मधु ने यूथ फोर्स सिक्युरिटी एजेंसी का कारोबार न केवल संभाल लिया था बल्कि अधिकृत तौर पर उसे अपने नाम कर लिया था. मिक्की के साथ साए की तरह रहने वाले ऋषि खोसला के व्यवहार में भी बदलाव आ गया था. ऋषि उस के बजाए उस की पत्नी मधु से ज्यादा लगाव दिखाने लगा था.

जेल में रहते मिक्की की सेहत में भी काफी बदलाव आ गया था. वह सेहत सुधारने के लिए सुबहशाम सदर स्थित जिम में जाया करता था. मधु अकसर ऋषि के साथ घर से गायब रहती थी. कभी किसी पार्टी में तो कभी क्लबों में वह ऋषि के साथ दिखती.

पहले तो मिक्की को लग रहा था कि पारिवारिक संबंध होने के कारण मधु ऋषि से अधिक घुलीमिली है. वैसे भी दोनों की शादी से पहले की पहचान थी, लेकिन संदेह हुआ तो एक दिन मिक्की ने मधु पर पाबंदी लगाने का प्रयास किया. मजाक में उस ने कह दिया कि ऋषि से ज्यादा चिपकना ठीक नहीं है. यहां कौन किस का सगा है, सब ने सब को ठगा है.

मिक्की की नसीहत का मधु पर कोई फर्क नहीं पड़ा. एक दिन जब मिक्की और मधु के बीच किसी बात को ले कर विवाद हुआ तो सब कुछ खुल कर सामने आ गया. मधु ने साफ कह दिया कि ऋषि से उस के प्रेम संबंध हैं. ऋषि से उसे वह सारी खुशी मिलती है, जिन की हर औरत को जरूरत होती है.

घूम गया मिक्की का दिमाग  यह सुनते ही मिक्की का दिमाग घूम गया. मधु ने यह भी बता दिया कि जब तुम जेल में थे, तब ऋषि कैसे काम आता था. कोर्टकचहरी के चक्कर लगाने से ले कर कई मामलों में ऋषि ने अपने घरपरिवार की जिम्मेदारी की परवाह तक नहीं की. उस समय ऋषि ही उस का एकमात्र सहारा था. अब वह किसी भी हालत में ऋषि को खोना नहीं चाहती.

मिक्की ने पत्नी को बहुत समझाया लेकिन वह नहीं मानी. तब मिक्की ने मधु के भाई सुनील भाटिया को सारी बात बता दी  सुनील की समाज में काफी इज्जत ही नहीं बल्कि रुतबा भी था, इसलिए उस ने भी बहन मधु को समझाने की कोशिश की पर मधु तो ऋषि खोसला की दीवानी हो चुकी थी, इसलिए उस ने अपने प्रेमी की खातिर पति और भाई की इज्जत को धूमिल करने में हिचक महसूस नहीं की. वह बराबर ऋषि से मिलती रही.

अपनी बहन मधु पर जब सुनील का कोई वश नहीं चला तो वह तैश में आ गया. उस ने न केवल ऋषि को धमकाया बल्कि उस की पत्नी को भी चेतावनी दी कि वह पति को समझा दे या फिर अपनी मांग का सिंदूर पोंछ ले. मधु और मिक्की के बीच विवाद बढ़ता गया तो मधु ने कश्मीरी गली वाला मिक्की का फ्लैट हड़प कर उस में रहना शुरू कर दिया. वह उसी फ्लैट में रह कर कारोबार संभालती रही.

समय का चक्र नया मोड़ ले आया. एक ऐसा मोड़ जहां शेर की तरह जीवन जीने वाले व्यक्ति को भी भीगी बिल्ली की तरह रहना पड़ रहा था. मिक्की बख्शी नाम के जिस शख्स का नाम सुन कर अच्छेअच्छे तुर्रम खां डर के मारे पानी मांगने लगते थे, वह खुद को एकदम लाचार, असहाय समझने लगा.

मिक्की ने बीवी को क्या कुछ नहीं दिया था. उस ने अपनी आधी से अधिक दौलत उस के नाम कर दी थी. अपने सैकड़ों समर्थकों व चेलों को उस के निर्देशों का गुलाम बना दिया था. वही बीवी अब निरंकुश हो गई थी.

मिक्की ने दोहरी पहचान के साथ इज्जत का महल खड़ा किया था. एक तरफ अपराध क्षेत्र के भाई लोग उस की चरण वंदना करते थे तो वहीं नामचीन व रुतबेदार लोगों के बीच भी उस का उठनाबैठना था.

बन गई योजना जब मधु ने ऋषि खोसला का साथ नहीं छोड़ा तो अंत में मिक्की और सुनील ने फैसला कर लिया कि ऋषि को ठिकाने लगाना ठीक रहेगा. मिक्की जब जेल में बंद था तो उस की जानपहचान गिरीश दासरवार नाम के 32 वर्षीय बदमाश से हो गई थी. मिक्की ने ऋषि खोसला को निपटाने के लिए गिरीश से बात की. इस के बदले में मिक्की ने उसे अपने एक धंधे में पार्टनर बनाने का औफर दिया. गिरीश इस के लिए तैयार हो गया.

सौदा पक्का हो जाने के बाद गिरीश ने ऋषि खोसला की हत्या करने के संबंध में अपने शागिर्दों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, निवासी जीजामातानगर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, निवासी बीड़गांव, आरिफ इनायत खान निवासी खरबी नंदनवन और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद निवासी हसनबाग से बात की.

ये सभी गिरीश का साथ देने को तैयार हो गए. इस के बाद ये सभी ऋषि खोसला की रेकी करने लगे. 20 अगस्त, 2019 को उन्हें यह मौका मिल गया, तब उन्होंने गोंडवाना चौक पर उस की फरसे से प्रहार कर हत्या कर दी.

मिक्की बख्शी से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने गिरीश दासरवार को गिरफ्तार कर लिया. पूछताछ करने पर उस ने भी अपना जुर्म स्वीकार कर लिया. चूंकि इन दोनों से और पूछताछ करनी थी, इसलिए मिक्की व गिरीश को प्रथम श्रेणी न्याय दंडाधिकारी एस.डी. मेहता की अदालत में पेश कर 31 अगस्त तक पुलिस रिमांड मांगा. बचाव पक्ष के वकील प्रकाश नायडू ने पुलिस रिमांड का विरोध किया.

दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत ने दोनों को 25 अगस्त तक का पुलिस रिमांड दे दिया. घटना के 3 दिन बाद अन्य आरोपियों राहुल उर्फ बबन राजू कलमकर, कुणाल उर्फ चायना सुरेश हेमणे, आरिफ इनायत खान और अजीज अहमद उर्फ पांग्या अनीस अहमद को भी बाड़ी क्षेत्र के एक धार्मिक स्थल की इमारत की छत से गिरफ्तार कर लिया. इन आरोपियों पर हत्या, डकैती, सेंधमारी, अपहरण व मारपीट सहित अन्य मामले दर्ज थे.

हत्याकांड को अंजाम देने वाले गिरीश दासरवार पर हत्या के 4 मामले दर्ज थे. सन 2011 में गिरीश दासरवार ने अपने दोस्त जगदीश के साथ मिल कर दिनेश बुक्कावार नामक चर्चित प्रौपर्टी डीलर की हत्या कर दी थी. हत्या के बाद दिनेश के शव को उस ने अपने घर में ड्रम के अंदर छिपा कर रखा था.

आरोपियों में कुछ ओला कैब चलाते हैं. डीसीपी विनीता साहू के नेतृत्व में गठित पुलिस टीम में एसीपी, पीआई महेश बंसोडे, अमोल देशमुख के अलावा विनोद तिवारी, सुशांत सालुंखे, सुधीर मडावी, संदीप पांडे, बालवीर मानमोडे शामिल थे. पुलिस ने सभी अभियुक्तों से पूछताछ के बाद उन्हें न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.