Crime Story : सोशल साइटों ने देशविदेश की दूरियां मिटा कर कितने ही दिलों को जोड़ा है. लेकिन सोशल साइटों से बने संबंधों के नतीजे हमेशा अच्छे ही निकलें, यह जरूरी नहीं है. रितेश संघवी और सोशलाइट वेंडी अल्बानो के मामले में भी ऐसा ही कुछ हुआ. सोशल साइटों पर दोस्ताना संबंध बनाते वक्त क्या सावधानी बरतना जरूरी नहीं है?
बैंकाक के जिला वात्ताना के शहर ख्लोंग तोई के सुखुमवित रोड नंबर 11 पर स्थित फाइवस्टार होटल फ्रेजर के मैनेजर 3 बजे के करीब होटल के रिसैप्शन पर खड़े कुछ कस्टमर्स से बातें कर रहे थे, तभी होटल के एक वेटर ने उन के पास आ कर बताया कि 17वीं मंजिल के कमरा नंबर 1701 का दरवाजा सुबह से बंद है. काफी कोशिशों के बाद भी न तो उस कमरे के कस्टमर ने दरवाजा खोला और न ही अंदर कोई प्रतिक्रिया हुई. होटल के उस कमरे के बारे में रिसैप्शन से जानकारी ली गई तो पता चला कि उस कमरे में एक अमेरिकी महिला एक भारतीय युवक के साथ ठहरी है.
दोनों पिछले 4 दिनों से उस कमरे में ठहरे थे. रिसैप्शनिस्ट ने होटल मैनेजर को यह भी बताया कि दोनों सुबह अकसर घूमनेफिरने के लिए बाहर निकल जाते थे तो शाम को काफी देर से लौटते थे. लेकिन उस दिन वे वापस नहीं लौटे थे. होटल के रजिस्टर में उन के बाहर आनेजाने की कोई एंट्री भी नहीं थी. इस का मतलब दोनों होटल के कमरे में ही थे. होटल के कमरे में होने के बावजूद उन दोनों ने न तो कमरे का दरवाजा खोला था और न ही अभी तक होटल की कोई सेवा ली थी. यह बात होटल के मैनेजर और उन के स्टाफ की समझ में नहीं आई. होटल मैनेजर कुछ कर्मचारियों को साथ ले कर 17वीं मंजिल पर स्थित कमरा नंबर 1701 के सामने पहुंचे.
कमरा नंबर 1701 के सामने पहुंच कर मैनेजर और रिसैप्शनिस्ट ने भी कमरे की डोरबेल बजाई, दरवाजा खटखटाया. इंटरकौम पर रिंग दी, आवाजें दीं. लेकिन कमरे के अंदर कोई हलचल नहीं हुई. इस से मैनेजर और कर्मचारियों के मन में तरहतरह की आशंकाएं होने लगीं. उन्हें लगा कि कमरे के अंदर कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है. कोई रास्ता न देख मैनेजर ने कमरे की दूसरी चाबी मंगवाई. दरवाजा खोल कर जब वे कमरे में दाखिल हुए तो वहां का दृश्य देख कर स्तब्ध रह गए. कमरे के बाथरूम में महिला कस्टमर का शव औंधे मुंह पड़ा था. शव के आसपास ढेर सारा खून फैला था. उस का साथी कस्टमर कमरे से गायब था.
होटल फ्रेजर बैंकाक का जानामाना होटल है. इस होटल में पहली बार इस तरह की घटना घटी थी, इसलिए होटल का सारा स्टाफ परेशान हो उठा. जाहिर तौर पर यह हत्या का मामला था. होटल मैनेजमेंट ने इस मामले की जानकारी स्थानीय पुलिस को दे दी. लुंपीग थाने की पुलिस ने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया. पुलिस चंद मिनटों में ही घटनास्थल पर पहुंच गई. बाथरूम में औंधे मुंह पड़ी अमेरिकी महिला को उठा कर सीधा किया गया तो पता चला कि उस के सीने और पेट पर कई गहरे घाव थे. हत्यारे ने उस की हत्या बड़ी बेरहमी से की थी. घटनास्थल और मृतका के शव का निरीक्षण करने के बाद लुंपीग थाने की पुलिस ने होटल मैनेजमेंट से पूछताछ की तो पता चला कि जिस कमरे में यह घटना घटी थी, उस कमरे की बुकिंग औनलाइन कराई गई थी.
कस्टमर ने 9 फरवरी, 2012 की शाम 5 बजे होटल आ कर कमरे की चाबी ली थी. कमरे की चाबी लेते समय महिला ने होटल के रजिस्टर में अपना नाम वेंडी अल्बानो और साथ आए युवक का नाम रितेश संघवी लिखवाया था. कमरे की तलाशी लेने पर मृतका वेंडी अल्बानो के समान में उस का पासपोर्ट, लैपटौप और मोबाइल फोन तो मिला, लेकिन उस के साथी रितेश संघवी का कोई सामान वहां नहीं मिला. इस से स्पष्ट हो गया कि रितेश संघवी अल्बानो की हत्या कर के फरार हो गया था. इसीलिए उस ने अपना कोई सुबूत भी वहां नहीं छोड़ा था.
होटल के रजिस्टर और मृतका के पासपोर्ट से जानकारी मिली कि वह फ्लोरिडा, अमेरिका की रहने वाली थी. रितेश संघवी कहां का रहने वाला था, इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी. लेकिन इस के लिए लुंपीग पुलिस को अधिक माथापच्ची नहीं करनी पड़ी. रितेश संघवी का बायोडाटा वेंडी अल्बानो के मोबाइल फोन और लैपटौप में मिल गया. वेंडी के मोबाइल फोन और लैपटौप पर उस के फेसबुक पर जाने से रितेश संघवी की पूरी प्रोफाइल खुल कर सामने आ गई. यह भी पता चल गया कि वह मुंबई का रहने वाला था. रितेश के प्रोफाइल, होटल के कर्मचारियों के बयानों और सीसीटीवी कैमरे की फुटेज को देख कर उस की शिनाख्त हो गई. मृतका वेंडी अल्बानो के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजने के बाद लुंपीग पुलिस थाने लौट आई.
घटना की प्राथमिक औपचारिकता पूरी करने के बाद लुंपीग पुलिस ने वेंडी एस. अल्बानो की हत्या की सारी कडि़यां जोड़ीं और इस मामले की जानकारी अमेरिका की एफबीआई और भारत की खुफिया एजेंसी सीबीआई को दे कर हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया. बैंकाक की लुंपीग पुलिस और अमेरिका की एफबीआई का दबाव देख कर सीबीआई ने इस मामले को गंभीरता से लिया. सीबीआई ने दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट से रितेश संघवी का गिरफ्तारी का वारंट जारी करवा कर मामले की तफ्तीश शुरू कर दी.
रितेश संघवी चूंकि मुंबई का रहने वाला था, इसलिए सीबीआई ने उस की गिरफ्तारी का वारंट मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह को भेज दिया. सत्यपाल सिंह ने यह वारंट क्राइम ब्रांच (सीआईडी) के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर हिमांशु राय को सौंप दिया. हिमांशु राय ने रितेश संघवी की गिरफ्तारी की जिम्मेदारी क्राइम ब्रांच (सीआईडी) की इंटरपोल साइबर सेल की सीनियर इंसपेक्टर शालिनी शर्मा को सौंप दी. इंटरपोल साइबर सेल की सीनियर इंसपेक्टर शालिनी शर्मा ने निर्देश पर रितेश संघवी की तेजी से तलाश शुरू हो गई. उस के हर उस ठिकाने पर छापे मारी की गई, जहांजहां उस के मिलने की संभावना थी. लेकिन यह कवायद साइबर सेल के काम नहीं आई.
इस पर साइबर सेल ने रितेश संघवी के घर वालों से पूछताछ की. उन लोगों ने उस की एक अलग ही कहानी बताई. उन के बताए अनुसार, रितेश संघवी 8 फरवरी 2012 से लापता था. घर से निकलते वक्त वह महाबलेश्वर जाने की बात कह कर गया था, लेकिन वह लौट कर नहीं आया. उस का मोबाइल फोन भी बंद था. जब वे उसे हर जगह तलाश कर के थक गए तो 13 फरवरी 2012 की शाम 6 बजे डीवी मार्ग के पुलिस थाने में उस की गुमशुदगी दर्ज करवा दी थी. सीनियर इंसपेक्टर शालिनी शर्मा ने अपने स्टाफ के साथ बड़े उत्साह से रितेश संघवी की खोज शुरू की थी, लेकिन यह जानने के बाद उन का जोश ठंडा पड़ने लगा. साइबर सेल के भरपूर प्रयासों के बाद भी रितेश संघवी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पा रही थी. धीरेधीरे समय निकलता जा रहा था.
मुखबिरों का नेटवर्क भी फेल होता नजर आ रहा था. इस के पहले कि वह रितेश संघवी तक पहुंच पातीं अथवा नए सिरे से मामले की तफ्तीश शुरू करतीं, मुंबई पुलिस में एक बड़ा फेर बदल हो गया. जिस के चलते रितेश संघवी का मामला दब सा गया. दरअसल, मुंबई पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह अपने पद से इस्तीफा दे कर राजनीति में चले गए थे. उन की जगह मुंबई के नए पुलिस कमिश्नर के रूप में राकेश मारिया की नियुक्ति हुई. राकेश मारिया कई सालों तक मुंबई क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर रह चुके थे. उन्होंने तमाम पेचीदा मामलों को सुलझाया था.
इस बीच रितेश संघवी के मामले को 19 महीने बीत चुके थे. इस केस में कोई प्रगति न होते देख बैंकाक की लुंपीग पुलिस और अमेरिका की एफबीआई ने भारत की खुफिया एजेंसी सीबीआई पर दबाव बनाया. चूंकि बात एक अमेरिकन महिला की हत्या की थी, इस लिए अमेरिका के काउंसलर ने सिंघवी की गिरफ्तारी के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री और मुंबई के मुख्यमंत्री को पत्र भेजा. जब मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया पर कई तरफ से दबाव पड़ा तो उन्होंने इस मामले की तफ्तीश की जिम्मेदारी अतिरिक्त पुलिस कमिश्नर के.एम. प्रसन्ना को सौंप दी.
के.एम. प्रसन्ना ने इसे गंभीरता से लिया. उन्होंने इस केस से जुड़ी सीआईडी की इंटरपोल साइबर सेल की जांच अधिकारी शालिनी शर्मा को अपने औफिस बुला कर पूरे मामले और अब तक की तफ्तीश को समझा. केस की बारीकियों पर विचारविमर्श करने के बाद उन्होंने शालिनी शर्मा को मामले की तफ्तीश नए सिरे से शुरू करने को कहा. इतना ही नहीं, उन्होंने उन की मदद के लिए एक स्पेशल टीम का भी गठन किया. इस स्पेशल टीम में उन्होंने अपने स्टाफ के 4 अनुभवी अफसरों को नियुक्त किया. वे थे क्राइम ब्रांच यूनिट 1 के असिस्टैंट इंसपेक्टर कुंभार, कांस्टेबल जगदाले, यूनिट 2 के इंसपेक्टर प्रकाश कोकणे और कांस्टेबल हृदयनाथ मिश्रा. सीआईडी और क्राइम ब्रांच की नई टीम ने इस मामले को अपनी नाक का सवाल बना कर काररवाई शुरू की तो 15 दिनों में रितेश सिंघवी पुलिस की गिरफ्त में आ गया.
दरअसल, क्राइम ब्रांच की इस टीम ने अपनी तफ्तीश में रितेश के परिवार और उस के दोस्तों को रखा. वजह यह थी कि इस टीम को रितेश संघवी की गुमशुदगी की बात झूठी लग रही थी. कारण यह कि रितेश संघवी को गायब हुए 2 साल के करीब हो गए थे, पर उस के परिवार और उस के दोस्तों के चेहरों पर किसी तरह की शिकन तक नहीं थी. यही सोच कर जांच टीम ने उस के 4-5 करीबी दोस्तों को जांच के दायरे में लिया. जांच टीम उन लोगों के मोबाइल फोन, फेसबुक और बैंक एकाउंट्स पर नजर रखने लगी. जांच अधिकारियों ने जब उन के फेसबुक, वाट्सऐप और बैंक के एकाउंटों की गहराई से जांचपड़ताल की तो पता चला कि रितेश संघवी के गायब होने के कुछ दिनों बाद ही उस के दोस्तों के एकाउंट से उस के एकाउंट में लगभग ढाई लाख रुपए ट्रांसफर हुए थे.
ट्रांसफर हुए रुपए कुछ दिनों के बाद रितेश संघवी के एकाउंट से निकाल लिए गए थे. ये रुपए कहां गए थे, जब इस की जांच की गई तो पता चला कि सारे रुपए गोवा के परभणी गंगाखेड़ क्षेत्र की बैंकों से निकाले गए थे. इस से यह बात साफ हो गई कि रितेश संघवी गोवा स्थित परभणी गंगाखेड़ क्षेत्र में कहीं छिपा हुआ था. लेकिन वह कहां छिपा था, यह पता लगाना समुद्र में मोती ढूंढ़ने की तरह था. फिर भी जांच टीम ने हिम्मत नहीं हारी. पुलिस टीम गोवा के परभणी गंगाखेड़ क्षेत्र में जा कर वहां के होटलों और दुकानों में उस का फोटो दिखा कर उस के बारे में पूछताछ करने लगी.
पुलिस टीम जब परभणी गंगाखेड़ इलाके की गलियों में रितेश संघवी की तलाश में खाक छान रही थी, तभी कांस्टेबल हृदयनाथ मिश्रा के मोबाइल पर एक मैसेज आया. यह मैसेज उन के एक मुखबिर का था. उस ने मैसेज में बताया कि रितेश संघवी परभणी गंगाखेड़ क्षेत्र में कावेरी नाम से मोबाइल फोन की दुकान चला रहा है. मैसेज में इस बात का भी जिक्र था कि रितेश ने अपना नाम और हुलिया बदल कर उसी इलाके में रंजीत के नाम से किराए का मकान ले रखा है. इस सूचना से जांच टीम के सदस्यों के चेहरों पर चमक आ गई. टीम ने कावेरी नाम की उस मोबाइल शौप को खोज निकाला. वहां रितेश संघवी उर्फ रंजीत मिल गया तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.
उस के गिरफ्तार होते ही जांच टीम ने इस बात की जानकारी सीनियर इंसपेक्टर शालिनी शर्मा और एडीशनल पुलिस कमिश्नर के.एम. प्रसन्ना को दे दी. 28 सितंबर, 2014 को जांच टीम ने गिरफ्तार अभियुक्त रितेश संघवी को मुंबई ला कर वरिष्ठ अधिकारियों के सामने पेश कर दिया. एडीशनल पुलिस कमिश्नर के.एम. प्रसन्ना ने उस से खुद विस्तृत पूछताछ की. 25 वर्षीय रितेश नरपतराज संघवी स्वस्थ, सुंदर और स्मार्ट युवक था. वह महानगर मुंबई के ग्रांट रोड पर अपने मातापिता और भाईबहनों के साथ रहता था. उच्चशिक्षित और मिलनसार स्वभाव के रितेश संघवी का स्टेनलैस स्टील का कारोबार था, जिसे वह अपने पिता के साथ चलाता था. खुले विचारों का रितेश नए जमाने के साथ चलने में यकीन रखता था.
उस ने अपना प्रोफाइल फेसबुक और वाट्सऐप पर डाल रखा था. वह फेसबुक और वाट्सऐप पर नएनए दोस्त बना कर उन के साथ चैटिंग किया करता था. करीब 4 साल पहले 2010 के अंत में एक दिन उस ने अपना एकाउंट खोला तो उस में कई लोगों की फ्रैंड रिक्वेस्ट आई हुई थी. रितेश संघवी ने उन की रिक्वेस्ट पढ़ कर उन्हें स्वीकार कर लिया. इस के बाद वह उन लोगों द्वारा पोस्ट किए गए कमेंट्स को पढ़ने लगा. तभी उस के पास एक विदेशी महिला का औनलाइन मैसेज आया. उस महिला ने अपना नाम वेंडी एस. अल्बानो बता कर लिखा था कि उस ने उस का प्रोफाइल देखा, जो उसे बहुत अच्छा लगा. वह उस से फ्रैंडशिप करना चाहती है.
रितेश संघवी को उस विदेशी महिला का मैसेज पढ़ कर खुशी हुई. लेकिन कोई जवाब देने से पहले उस ने उस का प्रोफाइल चैक कर लेना ठीक समझा. उस ने जब अल्बानो का प्रोफाइल देखा तो चौंका. वह अमेरिका के फ्लोरिडा की रहने वाली थी. उस की उम्र 50 साल के आसपास थी और उस की 2 शादियां हो चुकी थीं. साथ ही उस की 2 बेटियां भी थीं, जिन की शादी हो चुकी थी. बेटियां अपने पति के साथ रहती थीं. अल्बानो के पहले पति की एक रोड ऐक्सीडेंट में मौत हो गई थी तो दूसरे पति से उस ने तलाक ले लिया था. वह अपने घर में अकेली ही रहती थी. अपने से दोगुनी उम्र की वेंडी अल्बानो की यह रिक्वेस्ट रितेश संघवी को कुछ अजीब सी लगी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.
पहले तो उस के दिमाग में वेंडी अल्बानो की इस रिक्वेस्ट को रिजेक्ट कर देने की बात आई. लेकिन फिर उस ने यह सोच कर उस की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली कि उम्र के जिस मुकाम पर वह तनहा खड़ी है, वहां उसे एक ऐसे दोस्त की जरूरत है, जिस से बातें कर के वह अपना मन बहला सके. अगर उसे दोस्त बना कर वेंडी के मन को सुकून मिलता है तो इस में बुराई क्या है? काफी सोचविचार कर रितेश संघवी ने वेंडी अल्बानो की रिक्वेस्ट स्वीकार कर ली. इस के बाद रितेश संघवी और वेंडी अल्बानो की औनलाइन चैटिंग शुरू हो गई. पहले दिन वेंडी अल्बानो ने खुद को पेशे से इंटीरियर डिजाइनर बताया था. वह सोशलाइट महिला थी और उस की स्वयं की एक इंटीरियर डिजाइनिंग कंपनी थी, जिस में कई लोग काम करते थे. रितेश संघवी वेंडी अल्बानो से काफी प्रभावित हुआ.
बदले में उस ने भी अपना बायोडाटा उसे बता दिया. इस के बाद दोनों नियमित रूप से एकदूसरे के साथ चैटिंग करने लगे. चैटिंग के जरिए दोनों एकदूसरे के काफी करीब आ गए. दोनों ने अपनेअपने मोबाइल नंबर भी एकदूसरे को दे दिए थे, जिस से दोनों की नजदीकियां और बढ़ गई थीं. जब भी मौका मिलता था, दोनों फोन पर बातें कर लिया करते थे. इस तरह दोनों को मोबाइल पर बातें करते और फेसबुक पर चैटिंग करते लगभग 6 महीने का समय बीत गया. अब तक दोनों एकदूसरे के गहरे दोस्त बन गए थे. शुरूशुरू में रितेश संघवी का वेंडी अल्बानो से कुछ खास लगाव नहीं था. लेकिन जैसेजैसे समय बीतता गया, वैसेवैसे दोनों एकदूसरे से करीब आने के साथ खुलते गए. दोनों के बीच उम्र और मर्यादा जैसी कोई बात नहीं रह गई. दोनों एकदूसरे से खूब खुल कर हंसीमजाक करने लगे.
मार्च, 2011 में वेंडी अल्बानो रितेश संघवी को सरप्राइज देते हुए अचानक मुंबई आ गई. वह होटल ताज में ठहरी थी. उस ने रितेश संघवी को बुला कर पहली बार उस से मुलाकात की. मुंबई घूमने के बाद वह अमेरिका चली गई. इस बीच दोनों के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. रितेश संघवी को वेंडी अल्बानो का मुंबई आना, उस के साथ घूमनाफिरना और उस का व्यवहार काफी अच्छा लगा. यही हाल वेंडी अल्बानो का भी था. इस के बाद अक्टूबर, 2011 में वेंडी अल्बानो ने रितेश संघवी को फोन कर के बताया कि वह फिर से भारत आना चाहती है. इस बार उस का इरादा पूरा भारत घूमने का था. इस में रितेश को क्या ऐतराज हो सकता था. वह आई तो रितेश संघवी ने एयरपोर्ट पर जा कर उस का स्वागत किया.
घर वालों को यह बता कर कि कुछ दिनों के लिए वह एक बिजनैस पार्टी के साथ बाहर जा रहा है, रितेश वेंडी अल्बानो के साथ भारत की सैर पर निकल पड़ा. कुछ दिन भारत में गुजार कर अल्बानो अमेरिका लौट गई. वेंडी अपने घर तो पहुंच गई, पर रितेश संघवी के साथ बिताए क्षणों को वह भुला नहीं पा रही थी. वह पहली ही मुलाकात से उस से दिल लगा बैठी थी. इसी वजह से वह साल भर में 2 बार भारत आई थी और रितेश संघवी के साथ मिल कर मौजमस्ती में अपना समय बिताया था. लेकिन 9 फरवरी, 2012 का आगमन वेंडी अल्बानो के लिए उस की जिंदगी का आखिरी सफर साबित हुआ. क्योंकि अगली बार वेंडी अल्बानो ने भारत न आ कर बैंकाक घूमने की योजना बनाई.
इस के लिए उस ने बैंकाक के जानेमाने होटल फ्रेजर में अपने और रितेश संघवी के ठहरने के लिए औनलाइन डबलबेड वाला कमरा बुक करवाया. इस की जानकारी उस ने रितेश संघवी को भी दे दी. यह जान कर रितेश इसलिए काफी खुश हुआ, क्योंकि बैंकाक जाने की योजना सीधे न जा कर मुंबई हो कर जाने की थी. इसीलिए उस ने रितेश संघवी को मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर बुला लिया था. वहां से दोनों बैंकाक चले गए. वहां होटल फ्रेजर में दोनों की पहले ही बुकिंग थी. पहले की ही तरह इस बार भी रितेश संघवी अपने परिवार वालों से झूठ बोल कर वेंडी अल्बानो के साथ बैंकाक चला गया. वह घर पर कह कर गया था कि वह एक पार्टी के साथ बिजनैस के सिलसिले में महाबलेश्वर जा रहा है, जल्दी ही आ जाएगा.
12 फरवरी, 2012 की रात वेंडी अल्बानो और रितेश संघवी के लिए काफी हसीन और रंगीन थी. उस दिन बैंकाक में घूमनेफिरने के बाद, दोनों जब अपने कमरे आए तो बहुत खुश थे. रात 10 बजे वेंडी अल्बानो ने पहले शराब पी, फिर खाना खाया. खाना खाने के बाद उस ने रितेश संघवी से सैक्स की इच्छा जाहिर की. सैक्स की इच्छा पूरी होने के बाद उस ने रितेश संघवी के सामने जो प्रस्ताव रखा, उसे सुन कर उस के होश उड़ गए. उस का गला सूख गया. वह अपनी जगह से उठा और थोड़ा सा पानी पीने के बाद बोला, ‘‘यह क्या कह रही हैं आप? मेरी और आप की शादी? यह कैसे मुमकिन है. हम दोनों की उम्र में जमीनआसमान का फर्क है.
आप की 2-2 जवान बेटियां और उन के परिवार हैं. अपनी इज्जत की नहीं तो मेरे परिवार की तो सोचो, लोग क्या कहेंगे? हम दोनों की जितनी दोस्ती है, बहुत है. इस से आगे जाना ठीक नहीं है. न मेरे लिए और न आप के लिए.’’
रितेश संघवी ने वेंडी अल्बानो को काफी समझाया. लेकिन वह उस की एक भी बात मानने के लिए तैयार नहीं थी. अब वह शादी के लिए धमकियों पर उतर आई थी. उस का कहना था कि अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो वह इंडिया जा कर उस के परिवार वालों को अपने और उस के संबंधों के बारे में बता देगी. इस के साथ ही वह अपने और उस के सैक्स संबंधों को दुष्कर्म बता कर उस के खिलाफ बैंकाक पुलिस में शिकायत दर्ज करवा देगी और उसे जेल भिजवा देगी. वेंडी अल्बानो की इस धमकी से रितेश संघवी के होश उड़ गए. वह बुरी तरह डर गया. उस ने सोचा कि अगर उस के परिवार वालों को यह बात पता चल गई कि फेसबुक वाली अमेरिकन दोस्त से उस का अवैधसंबंध था और उसी चक्कर में वह बैंकाक पुलिस की हिरासत में है तो उन के दिलों पर क्या बीतेगी. उन की समाज में क्या इज्जत रह जाएगी. वह खुद भी किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.
यह सब सोच कर रितेश मन ही मन काफी डर गया. उस ने सोचा भी नहीं था कि फेसबुक और वाट्सऐप की दोस्ती इंसान को कितनी महंगी पड़ सकती है. बहरहाल अब उसे वेंडी अल्बानो नाम की उस मुसीबत से किसी भी तरह पीछा छुड़ाना था. लेकिन कैसे, यह उस की समझ में नहीं आ रहा था. आखिर काफी सोचनेविचारने के बाद उस ने वेंडी अल्बानो से छुटकारा पाने के लिए एक खतरनाक योजना तैयार कर ली. 12/13 फरवरी, 2012 की रात को जब उस ने घड़ी देखी तो सुबह के 2 बजे रहे थे. नशे में धुत वेंडी अल्बानो गहरी नींद में सो रही थी. रितेश संघवी अपने बिस्तर से उठा और रूम के किचन में जा कर फल काटने वाला चाकू उठा लाया. इस के बाद वह नशे में धुत वेंडी को उठा कर कमरे के बाथरूम में ले गया और चाकू से गोद कर उस की हत्या कर दी.
वेंडी अल्बानो को मारने के बाद उस ने अपने कपड़े वगैरह ठीक किए और अपना सामान ले कर सुबह के 4 बजे चुपचाप होटल से निकल गया. होटल से निकल कर वह सीधा बैंकाक एयरपोर्ट पहुंचा और बिजनैस क्लास का टिकट ले कर हवाई जहाज से कोलकाता आ गया. कोलकाता से घरेलू उड़ान पकड़ कर वह मुंबई स्थित अपने घर आया. घर आ कर उस ने अपने साथ घटी घटना की सारी जानकारी अपने घर वालों को दे दी. घर वालों ने उसे बचाने के लिए भागदौड़ कर के हाईकोर्ट के एक वकील से संपर्क किया. हकीकत जान कर उस वकील ने रितेश को फरार होने की सलाह दी. इस पर रितेश संघवी गोवा चला गया. रितेश के जाने के बाद उस के घर वालों ने उसी शाम 6 बजे डीवी पुलिस थाने में रितेश की गुमशुदगी दर्ज करवा दी.
रितेश संघवी गोवा के परभणी, गंगाखेड़ इलाके में रहने लगा. अपने परिवार और दोस्तों की मदद से उस ने अपने रहने के लिए किराए का एक मकान और बिजनैस के लिए कावेरी नाम से मोबाइल फोन की दुकान खोल ली. उस ने अपना नाम और अपना हुलिया भी बदल लिया था. काफी समय निकल जाने के बाद रितेश को यकीन हो गया था कि पुलिस अब कभी भी उस तक नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन उस के इस यकीन की दीवारें कुछ महीनों बाद ही ढह गईं. आखिर वह मुंबई क्राइम ब्रांच (सीआईडी) की इंटरपोल साइबर सेल की गिरफ्त में आ गया. रितेश संघवी की गिरफ्तारी और उस से पूछताछ करने के बाद इंटरपोल साइबर सेल की सीनियर इंसपेक्टर शालिनी शर्मा की टीम ने उसे अपनी कस्टडी में दिल्ली ला कर सीबीआई को सौंप दिया. सीबीआई ने उसे बैंकाक की लुंपीग पुलिस थाने की पुलिस के हवाले कर दिया.
मुंबई क्राइम ब्रांच सीआईडी की इंटरपोल साइबर सेल की सीनियर इंसपेक्टर शालिनी शर्मा और उन की स्पैशल टीम ने इस मामले को जिस सूझबूझ से सुलझाया, उस के लिए अमेरिकन कांउसलर ने उन्हें प्रशस्तिपत्र दिया. साथ ही मुंबई पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने भी अपनी तरफ से इस टीम को 30 हजार रुपए का इनाम घोषित किया. Crime Story
कथा लिखे जाने तक अभियुक्त रितेश संघवी बैंकाक की जेल में बंद था.