Uttarakhand Crime : संजय बालियान ने हर्षित के अपहरण और फिरौती की जो योजना बनाई थी, उस में वह कामयाब भी रहा. लेकिन इस पूरे मामले में भूल कहां हुई कि अपराध की सफलता का जश्न मनाने के पहले ही वह साथियों समेत पकड़ा गया. भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) में सहायक निदेशक के पद पर तैनात गिरीश तायल का परिवार उत्तराखंड की राजधानी देहरादून के पौश इलाके इंजीनियर्स एनक्लेव स्थित आलीशान कोठी में रहता था. उन के परिवार में पत्नी लक्ष्मी तायल के अलावा 2 बड़ी बेटियां और एक बेटा हर्षित था. गिरीश तायल की तैनाती उत्तर प्रदेश के जिला मुजफ्फरनगर में थी, इसलिए वह कभीकभी ही घर आ पाते थे.

आर्थिक रूप से समृद्ध तायल का बेटा हर्षित शहर के ही एक प्रतिष्ठित स्कूल में कक्षा 12 में पढ़ता था. व्यक्ति कितना भी अमीर व गरीब क्यों न हो, समय उस के साथ अपने हिसाब से ही चाल चलता है. 29 नवंबर की ठंडक भरी शाम के करीबन सवा 7 बजे का वक्त था. 18 वर्षीय हर्षित तायल स्कूटी से अपने मोबाइल को रिचार्ज कराने के लिए जीएमएस रोड की तरफ घर से निकला. गिरीश तायल उस दिन घर पर ही थे. हर्षित को घर से निकले लगभग एक घंटा हो गया. इतनी देर तक वह वापस नहीं आया तो गिरीश को उस की चिंता हुई. उन के दिमाग में यह भी  खयाल आया कि कहीं वह अपने दोस्तों के साथ बातचीत में तो नहीं लग गया.

कुछ समय और बीता तो फिक्र की डगर पर चलना उन की मजबूरी हो गई. उन्होंने उस का मोबाइल मिलाया, लेकिन पूरी घंटी जाने के बाद भी उस ने फोन नहीं उठाया. उन्होंने दोबारा फोन किया तो उस का फोन बंद मिला. इस के बाद उन्होंने जितनी बार फोन किया, हर बार उस का फोन स्विच औफ ही बताया. गिरीश तायल परेशान हो गए कि हर्षित का फोन स्विच औफ क्यों हो गया है? लड़का हो या लड़की, जब तक बाहर जाने के बाद घर न आ जाए, तब तक मातापिता को चिंता सताती है. अगले आधे घंटे तक भी हर्षित घर नहीं आया तो गिरीश ने अपने परीचितों को यह बात बताई. परिचित उन के घर आ गए और हर्षित की खोज में निकल पड़े.

घर से निकलते समय हर्षित ने जीएमएस रोड की तरफ जाने की बात कही थी, इसलिए सभी जीएमएस रोड पर स्थित बाजार पहुंचे. परंतु वह वहां कहीं दिखाई नहीं दिया. बीचबीच में सभी उस के मोबाइल पर फोन भी कर रहे थे. जब वे वापस आने लगे तो एनक्लेव के सामने सड़क किनारे खड़ी हर्षित की स्कूटी देख कर चौंके. आश्चर्य की बात यह थी कि स्कूटी का लौक खुला था. गिरीश तायल ने इधरउधर देखा. हर्षित का कुछ पता नहीं था. चौंकाने वाली एक और बात यह थी कि हर्षित की चप्पलें भी वहीं पड़ी थीं. यह देख कर गिरीश व उन के परिचितों का दिल अनहोनी की आशंका से धड़कने लगा.

गिरीश हताशपरेशान थे. करीब आधा घंटे बाद उन्होंने फिर से बेटे का मोबाइल नंबर मिलाया. घंटी गई तो गिरीश की परेशानी थोड़ा कम हुई. उन्हें लगा कि अब बेटे से बात हो कर वास्तविक स्थिति पता चल जाएगी. लेकिन इस बार भी घंटी बजने के बावजूद फोन रिसीव नहीं किया गया. बुरे खयालों का तूफान गिरीश को परेशान करने लगा. घर में विचारविमर्श के बाद गिरीश थाना बसंत विहार पहुंचे और थानाप्रभारी प्रदीप चौहान से बेटे के लापता होने की बात बताई. उन की शिकायत पर पुलिस ने गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया. मामला एक अधिकारी के बेटे के लापता होने का था. थानाप्रभारी ने एसएसपी अजय रौतेला व एसपी (सिटी) अजय सिंह को भी बच्चे के गायब होने की बात बता दी.

एसएसपी ने थानाप्रभारी को जरूरी काररवाई के निर्देश दे कर उन के साथ स्पेशल औपरेशन गु्रप (एसओजी) की टीम को भी लगा दिया. एसओजी प्रभारी रवि कुमार व सबइंस्पेक्टर मुकेश त्यागी मामले की जांच में जुट गए. गिरीश तायल थाने से घर लौटे ही थे कि उन के मोबाइल की घंटी बजी. फोन हर्षित का था. उन्होंने जल्दी से रिसीव किया, ‘‘हैलो बेटा हर्षित, तुम कहां हो, क्या हुआ?’’

दूसरे ही पल तायल को झटका लगा. उधर से आवाज हर्षित की नहीं, बल्कि किसी और की थी, उस ने भारीभरकम आवाज में कहा, ‘‘आप का प्यारा बेटा नहीं, हम बोल रहे हैं.’’

‘‘कौन हो तुम और मेरा बेटा कहां है? वह ठीक तो है न?’’ गिरीश ने घबरा कर पूछा.

‘‘इतने सवालों का जवाब तो हम एकसाथ नहीं दे सकते.’’ कुछ पल रुक कर फोनकर्ता बोला, ‘‘आप इतना समझ लो कि अभी तक आप का बेटा बिलकुल सेफ है. उसे आगे भी सेफ रखना है या नहीं, यह आप मुझे बता देना. हम क्या चाहते हैं, यह बाद में फोन कर के बता देंगे. फिलहाल तुम इतना जान लो कि पुलिस के चक्कर में ज्यादा मत पड़ना, वरना…’’ इस के बाद उस ने फोन काट दिया. अब गिरीश व उन के घर वालों को यह समझते देर नहीं लगी कि उन के बेटे का अपहरण हो चुका है. घर वाले इस बात को ले कर परेशान हो रहे थे कि पता नहीं हर्षित किस हाल में होगा.

हर्षित रहस्यमय परिस्थितियों में लापता हुआ था. मामले की जांच के लिए पुलिस टीम भी उन के यहां पहुंच गई थी. गिरीश की अपहर्ता से जो बात हुई थी, पुलिस को नहीं बताई. इसी बीच हर्षित के मोबाइल से दोबारा फोन आया. गिरीश फोन ले कर पुलिस से हट कर दूसरे कमरे में चला गया. उस ने पूछा, ‘‘कैसा है मेरा बेटा?’’

‘‘वह बिलकुल ठीक है. अगर उसे ठीक देखना है तो हमें 5 करोड़ रुपए दे दो.’’

‘‘क…क…क्या..?’’ तायल के पैरों तले से जमीन खिसक गई. वह बोले, ‘‘मेरे पास इतने रुपए पूरे जन्म में भी नहीं होंगे.’’

‘‘कैसी बात करते हो इंजीनियर साहब, माल तो बहुत कमाया है तुम ने.’’

‘‘तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है. मैं कोई इंजीनियर नहीं हूं. मैं तो बीएसएनएल में हूं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ फोनकर्ता चौंका.

‘‘हां, मैं बिलकुल सच कह रहा हूं. इतनी रकम मैं भला कहां से लाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, तुम्हें दोबारा फोन करता हूं.’’ फोन कट गया. गिरीश को लग रहा था कि गलतफहमी के चलते उन के बेटे का अपहरण हुआ है. उन की आशंका सही साबित हुई. जब फोन दोबारा आया तो उस ने कहा, ‘‘हम ने पता किया है कि आप इंजीनियर नहीं हैं, लेकिन इस से कोई फर्क नहीं पड़ता. इतना जान लो कि रकम मोटी चाहिए. पुलिस के चक्कर में मत पड़ना, वरना उस की जान हमारे हाथ में है. पैसा कब और कहां पहुंचाना है, बाद में वाट्सऐप पर बता देंगे.’’

इतना कह कर अपहर्त्ता ने फिर फोन काट दिया. इस दौरान एसएसपी अजय रौतेला व एसपी भी तायल के घर पहुंच गए थे. तब तायल ने दबी जुबान से पुलिस को बता दिया कि हर्षित का अपहरण कर लिया गया है और करोड़ों रुपए की फिरौती मांगी जा रही है. पुलिस के लिए मामला बेहद गंभीर था. एसएसपी ने आला अधिकारियों को सनसनीखेज घटना की जानकारी दे दी. सूचना मिलते ही अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी) राम सिंह मीणा व डीआईजी संजय गुंज्याल ने एसएसपी से मंत्रणा की. अधिकारियों ने हर्षित के घर वालों से भी बात की, लेकिन उन के रवैये ने पुलिस को निराश कर दिया. वह पुलिस को सहयोग करने को तैयार नहीं थे.

इस के बावजूद भी पुलिस ने अपने हिसाब से काररवाई करने का फैसला किया. पुलिस ने गुमशुदगी के मामले को अपहरण में बदल दिया. हर्षित के अपहरण की बात धीरेधीरे दबी जबान से खुली तो अगले दिन अखबारों की सुर्खियां बन गई. उत्तराखंड में फिरौती के लिए बड़ी वारदात थी. कानूनव्यवस्था को ले कर भी सवाल उठ रहे थे. प्रदेश की राजधानी से मामला जुड़ा होने के चलते मुख्यमंत्री हरीश रावत के संज्ञान में भी मामला आ गया. उन्होंने पुलिस महानिदेशक बी.एस. सिद्धू को अविलंब कार्रवाई करने के साथ ही हर्षित की सकुशल रिहाई के निर्देश दिए.

एडीजी राम सिंह मीणा के निर्देश पर हर्षित की बरामदगी के लिए पुलिस दलों का गठन का निर्णय लिया गया. पुलिस, एसटीएफ व एसओजी की टीमें जांच में जुट गईं. एसटीएफ टीम की कमान उस के एसएसपी डा. सदाकांत दाते ने संभाली. पुलिस टीम में सीओ (सिटी) मनोज कत्याल व कई थानाप्रभारियों के अलावा दरजन भर से भी ज्यादा पुलिसकर्मियों को शामिल किया गया. पुलिस अपने काम में लग चुकी थी. पुलिस ने गिरीश को भी किसी तरह सहयोग करने के लिए तैयार कर लिया. पुलिस ने हर्षित के मोबाइल की लोकेशन हासिल की तो वह हरिद्वार की निकली. उस का मोबाइल स्विच्ड औफ था. इस से साफ था कि अपहर्त्ता उसे हरिद्वार ले गए हैं.

एक पुलिस टीम हरिद्वार के लिए रवाना कर दी गई. इस बीच अपहर्ता अलगअलग नंबरों से गिरीश तायल से बात करते रहे. अपहर्ताओं ने हर्षित का एक विडियो भी तायल को भेजा. वीडियो में वह बेहद डरा हुआ था और खुद को बचाने की गुहार कर रहा था. पुलिस को अपहर्त्ताओं की लोकेशन कभी देहरादून, कभी हरिद्वार, कभी सहारनपुर तो कभी मुजफ्फरनगर जिले की मिल रही थी. सभी जगह पुलिस टीमें भेज दी गई थीं. पुलिस के सामने परेशानी यह थी कि अपहर्त्ता बेहद चालाक थे और वह हर काल के बाद सिम कार्ड बदल देते थे. मोबाइल नंबरों के जो पते मिल रहे थे, वे सब फरजी निकल रहे थे.

फिरौती को ले कर अपहर्त्ता गिरीश तायल से सौदेबाजी करने लगे. तायल के गिड़गिड़ाने के बाद किसी तरह बात 34 लाख रुपए पर तय हो गई. डील पक्की हो जाने के बाद अपहर्त्ता ने कहा, ‘‘सारी रकम हजार के नोटों में होनी चाहिए और उसे लाल रंग के सूटकेस में लाना. पैसे कहां पहुंचाने हैं, हम बाद में बता देंगे.’’

इस के बाद तायल ने इधरउधर से उधार ले कर व आभूषण बेच कर फिरौती की रकम का इंतजाम कर लिया और वे पैसे लाल रंग के एक सूटकेस में रख लिए. शाम के समय फिर अपहर्त्ताओं का फोन आया, ‘‘इंतजाम हुआ?’’

‘‘हो गया.’’

‘‘ठीक है, तुम रात को रेलवे स्टेशन से लाहौरी एक्सप्रैस से हरिद्वार की तरफ चलना. रास्ते में हम तुम्हें बता देंगे कि सूटकेस कहां फेंकना है. तुम अकेले ही आओगे. तुम्हारे साथ कोई दूसरा नहीं होना चाहिए.’’

‘‘मैं ऐसा ही करूंगा.’’

अपहर्त्ता बेहद चालाकी बरत रहे थे और कई फोन का इस्तेमाल अलगअलग इलाकों से कर रहे थे. इस से पुलिस अधिकारी सकते में आ गए थे. पुलिस की योजना थी कि फिरौती लेते समय अपहर्ताओं को दबोच लेंगे, लेकिन वह फिरौती लेने का अलग ही तरीका अपना रहे थे. पुलिस महानिदेशक राम सिंह मीणा भी पुलिस औपरेशन पर बराबर नजर रख रहे थे. डीआईजी संजय गुंज्याल की नजर सर्विलांस पर थी, जबकि एसएसपी अजय रौतेला व एसटीएफ के एसएसपी डा. सदाकांत के निर्देशन में पुलिस टीमें काम कर रही थीं.

पुलिस किसी भी तरह हर्षित की सकुशल बरामदगी के साथ अपहर्त्ताओं तक पहुंचना चाहती थी. पुलिस टीमों ने वाट्सऐप पर अपना एक ग्रुप बना लिया, ताकि एकदूसरे को सूचना आदि शेयर की जा सके. सादी वरदी में पुलिसकर्मियों को रेलवे स्टेशन के अलावा लाहौरी एक्सपे्रस के कोच में तैनात करने का निर्णय लिया गया. ऐसा भी हो सकता था कि अपहर्त्ता स्टेशन पर ही फिरौती वसूल कर लेते. शाम के समय तायल स्टेशन पहुंच गए. रात्रि 1 बजे वह लाहौरी एक्सप्रैस में सवार हो गए. उसी डिब्बे में तायल से दूरी बना कर सादी वरदी में पुलिस टीम सीओ मनोज कात्याल के नेतृत्व में सवार हो गई. रेल ने रफ्तार पकड़ी तो अपहर्त्ता ने तायल को फोन किया,

‘‘मोतीचूर रेलवे स्टेशन के पास एक रेलवे पुल आएगा. वहां हम टौर्च की रोशनी दिखाएंगे. तुम्हें सूटकेस बाईं तरफ नीचे फेंकना है.’’

‘‘ठीक है, मैं ऐसा ही करूंगा, लेकिन मेरा बेटा…’’

‘‘वह कल सुबह सकुशल तुम्हें मिल जाएगा. कोई भी चालाकी नहीं, समझे.’’ अपहर्त्ता ने गुर्रा कर कहा.

‘‘कुछ देर में रेलवे पुल आया. गिरीश तायल ने डिब्बे के गेट पर जा कर बाहर की तरफ देखा. उन्हें हाथ से हिलती हुई टौर्च की रौशनी का संकेत नजर आया तो उन्होंने सूटकेस नीचे फेंक दिया. यह इलाका सुनसान था. अंधेरा इतना था कि कोई दिखाई नहीं दिया. सूटकेस फेंकने के बाद सूटकेस फेंकने की बात उन्होंने अपहर्त्ता को बता दी.

उधर टे्रन में बैठे सीओ ने यह बात एसएसपी को बताई. चूंकि पुलिस टीम वाट्सऐप पर एकदूसरे से संपर्क में थी, इसलिए पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर आननफानन में पुलिसकर्मी वहां पहुंचे, लेकिन तब तक सूटकेस कोई ले जा चुका था. तायल हरिद्वार जा कर रेल से उतर गए और वापस घर आ गए. पुलिस की सर्विलांस टीम अपहर्त्ताओं के फोन नंबरों के सहारे उन के पास तक पहुंचने की कोशिश में लगी थी.

अगली सुबह यानी पहली दिसंबर को तड़के तायल के पास एक अंजान नंबर से फोन आया. उन्होंने रिसीव किया तो दूसरी तरफ से हर्षित की आवाज आई. उस की आवाज सुनते ही तायल खुश हो गए. तायल ने उस से बात की तो उस ने बताया कि उसे अपहर्त्ताओं ने 5 बजे हरिद्वार सब्जी मंडी के पास छोड़ दिया था. वहां से पैदल चल कर वह एक चाय वाले के पास पहुंचा और उस से मोबाइल मांग कर उस ने उन्हें फोन किया. बेटे से बात करने के बाद वह पुलिस व घर वालों के साथ उस के पास पहुंच गए. बेटे को सकुशल पा कर तायल खुश थे. हर्षित की रिहाई सकुशल हो गई थी. अब पुलिस को अपहर्त्ताओं तक पहुंचना था. अपहर्त्ताओं ने जितने भी नंबरों का इस्तेमाल किया था, वे सभी नंबर सर्विलांस पर थे.

सभी नंबर बंद हो गए, लेकिन उन्होंने उन मोबाइलों में जो नए सिम डाले, वे पकड़ में आ गए. पुलिस को उन की लोकेशन हरिद्वार के जगजीतपुर की मिल रही थी. एसएसपी अजय रौतेला ने हरिद्वार की एसएसपी स्वीटी अग्रवाल से संपर्क कर सहयोग मांगा तो स्वीटी अग्रवाल ने जिला पुलिस की एक टीम को देहरादून पुलिस के साथ लगा दिया. लोकेशन के सहारे पुलिस टीमें एक घर तक पहुंच गईं. पुलिस के दस्तक देने पर एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला. पुलिस को अपने सामने देख कर उस व्यक्ति के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं.

‘‘रकम का बंटवारा हो गया या अभी बाकी है.’’ उस व्यक्ति को घूरते हुए पुलिस ने पूछा और अंदर दाखिल हो गई. घर के अंदर अन्य लोग भी थे. अपने सामने पुलिस को देख कर सभी की हालत हारे हुए जुआरी जैसी हो गई थी. उन से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया. पुलिस ने सभी 5 अपहर्त्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. उन में एक युवती भी थी. अपहर्त्ताओं में हरिद्वार के जगजीतपुर निवासी संजय बालियान, उस का बेटा आशीष, बेटी मीनाक्षी, गुरदासपुर, पंजाब का आशी डेनियल व अमृतसर निवासी सरनजीत सिंह शामिल थे.

आशीष देहरादून में ही एक अस्पताल में फार्मासिस्ट था, जबकि सरनजीत सिंह देहरादून में ठेकेदरी के काम में मुंशी था. प्राथमिक पूछताछ के बाद अपहर्त्ताओं के पास से पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल की गईं 2 कारें, 6 मोबाइल फोन व फिरौती की रकम भी बरामद कर ली. एक और चौंकाने वाली बात यह भी थी कि संजय बालियान ने वारदात में अपनी बेटी मीनाक्षी व बेटे आशीष को भी शामिल किया था. पुलिस सभी को गिरफ्तार कर के देहरादून ले आई. देहरादून पुलिस के लिए निस्संदेह यह बड़ी सफलता थी. अधिकारियों ने अपहर्त्ताओं से विस्तृत पूछताछ की तो हर्षित के अपहरण की बड़ी ही दिलचस्प कहानी सामने आई.

दरअसल, मुख्य आरोपी संजय बालियान सरकारी विभागों में ठेकेदारी करता था. वह मूलरूप से जनपद मुजफ्फरनगर के गांव किचौरी शाहपुर का रहने वाला था, लेकिन कई सालों से हरिद्वार में रहने लगा था. उस ने देहरादून व हरिद्वार के कई विभागों में सड़क, शौचालय व छोटेमोटे कामों की ठेकेदारी करने के साथ ही प्रौपर्टी का काम भी शुरू कर दिया. इन कामों में उस ने काफी पैसा कमाया. पैसा आने पर उस की लाइफस्टाइल बदल गई. वह शानोशौकत की जिंदगी जीने लगा. अपने बच्चों को भी उस ने ऐसी ही आदत डाल दी. जिस से उस के खर्चे बढ़ गए. इसी दौरान उसे ठेकेदारी में घाटा हो गया.

धंधा सही चल रहा था तो उस ने करोड़पति बनने का जो सपना देखा था, वह उसे धूमिल होता नजर आ रहा था. वक्त ने उसे ऐसे आर्थिक झटके दे दिए कि वह उन से उबर नहीं पाया. वह दिनरात इसी उधेड़बुन में लगा रहता था कि आखिर मोटी रकम कैसे कमाई जाए. उस का व्यवहार अपने बच्चों से दोस्ताना था. उस ने उन्हें अपने तरीके से जीने की पूरी आजादी दे रखी थी. इस का नतीजा यह निकला था कि बेटा आशीष अपने अंदाज में जिंदगी जीता था और बेटी मीनाक्षी अपने अंदाज में. आशीष के कदम बहक चुके थे. उस के अपने आवारा दोस्तों की मंडली थी. संजय के दिमाग में हर वक्त कोई लंबा हाथ मार कर रातोंरात करोड़पति बनने की ख्वाहिश हिलोरें लेती रहती थीं.

एक बार उस के दिमाग में विचार आया कि क्यों न किसी अमीर बाप के बेटे का अपहरण कर लिया जाए. इस काम में उस ने अपने बेटाबेटी को भी लालच दे कर शामिल कर लिया.

‘‘वह सब तो ठीक है, लेकिन हम अपहरण करेंगे किस का?’’ आशीष बोला.

‘‘मैं एक ऐसे आदमी को जानता हूं, जिस ने मोटा माल कमा रखा है. उसी के बेटे का हम अपहरण कर लेंगे.’’ संजय बालियान ने मुसकरा कर कहा.

‘‘कौन है वह?’’

‘‘देहरादून में एक इंजीनियर आर.के. राजा का बेटा. हमें उस से करोड़ों रुपए मिल सकते हैं.’’

‘‘लेकिन पापा क्या वह इस लायक होगा कि करोड़ों दे सके, क्योंकि लाखों के लिए तो काम करना बेकार है.’’‘‘वह मजबूत हैसियत वाला है. मैं ने भी उस का रसूख देखा है. देहरादून के इंजीनियर एनक्लेव में आलीशान कोठी है उस की.’’

‘‘तो क्या हम वहां से..?’’ आशीष ने जिज्ञासु बन कर पूछा तो संजय ने बताया, ‘‘हां हम यह काम देहरादून से ही करेंगे.’’

अपहरण की पृष्ठभूमि तैयार करने के बाद उन्होंने तय किया कि इस में देहरादून के भी किसी व्यक्ति को शामिल किया जाए. संजय पहले से ही अस्पताल में नौकरी करने वाले डेनियल व मुंशी सरनजीत को जानता था. डेनियल से संजय की मुलाकात अस्पताल आनेजाने के दौरान हुई थी. बाद में वह मीनाक्षी का भी दोस्त बन गया था. सरनजीत को संजय इसलिए जानता था, क्योंकि ठेकेदारी के दौरान वह मुंशी था. संजय ने बेटा, डेनियल व सरनजीत को करोड़पति बनने का सपना दिखा कर अपने साथ शामिल कर लिया. वे खुशीखुशी तैयार हो गए.

फिर सभी ने अपहरण की फूलप्रूफ योजना बना ली. योजना को सफलता के अंजाम तक पहुंचाने के लिए कई बार बौलीवुड की फिल्में किडनैप और अपहरण देखीं. बीएससी कर रही मीनाक्षी को कंप्यूटर की अच्छी जानकारी थी. उस ने हाईटैक ढंग से पुलिस को चकराने की सोची और पुलिस के सर्विलांस सिस्टम को अच्छे से समझा. फिरौती की रकम मांगने के लिए उन्होंने कई कंपनियों के सिमकार्ड भी खरीद लिए. सभी सिम फरजी आईडी पू्रफों पर अलगअलग जिलों से लिए गए थे. पुलिस को चकमा देने के लिए हरिद्वार के अलावा देहरादून, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर व छुटमलपुर जा कर फोन करने का प्लान बनाया.

इंजीनियर आर.के. राजा के बारे में संजय को ठेकेदारी करने के दौरान देहरादून में पता चल गया था कि वह बहुत अमीर है और उस का एक ही बेटा है. उस ने यह भी सुना था कि वह इंजीनियर्स एनक्लेव की किसी आलीशान कोठी में रहता है. अपहरण के लिए मीनाक्षी खुद मोहरा बनने को तैयार थी. वह कई बार देहरादून गई, लेकिन उन्होंने इंजीनियर राजा की कोठी समझ कर जिस कोठी को टारगेट किया, वह कोठी गिरीश तायल की थी. सभी रास्तों का नक्शा भी उस ने दिमाग में बैठा लिया. राजा के बेटे के रूप में उन्होंने हर्षित तायल की पहचान कर ली.

योजना को अंजाम देने के लिए सभी अकसर हरिद्वार से देहरादून जा कर सुबह दोपहर व शाम को एनक्लेव के बाहर ऐसी जगह खड़े हो जाते थे, जहां से तायल की कोठी दिखाई दे. उन की नजर में वह कोठी इंजीनियर राजा की थी. उन्होंने देखा कि हर्षित शाम को अकसर घर से बाहर निकलता है. ऐसे ही मौके पर उन्होंने उस का अपहरण करने की ठान ली. इस के लिए उन्होंने 21 नवंबर, 2014 की तारीख तय कर दी. अपहरण के लिए कार का इंतजाम जरूरी था. उन्होंने 2 कारों का इंतजाम करने की सोची. यह इसलिए सोचा कि अगर किसी एक पर शक हो जाए तो दूसरी का इस्तेमाल किया जाए.

21 नवंबर को संजय ने अपने एक परिचित से उस की सैंट्रो कार विवाह में जाने के बहाने मांग ली और देहरादून आ गया. मीनाक्षी का देहरादून में एक फेसबुक दोस्त था एहतेशाम. एहतेशाम ने दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय से पढ़ाई कर के देहरादून में अपना फाइनेंस व प्रौपर्टी का काम शुरू कर दिया था. उस के पास हुंडई वरना कार थी. मीनाक्षी अपने भाई के साथ उस से मिली और एक दिन के लिए उस से कार देने को कहा. एहतेशाम ने उसे इनकार नहीं किया और अपनी कार उसे खुशीखुशी दे दी. सभी लोग कारों में सवार हो कर इंजीनियर्स एनक्लेव के बाहर पहुंच गए.

शाम के वक्त हर्षित स्कूटी ले कर निकला. मीनाक्षी बाहर निकल कर खड़ी हो गई, बाकी लोग उस के वापस आने का इंतजार करने लगे. लगभग आधे घंटे बाद हर्षित फोन रिचार्ज करा कर वापस आ रहा था. जैसे ही वह एनक्लेव के बाहर पहुंचा, वहां पहले से खड़ी मीनाक्षी ने उसे हाथ दे कर रोका. हर्षित ने स्कूटी रोकी. मीनाक्षी ने दिलकश अंदाज में अपनी बात कह कर एक कागज का टुकड़ा आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘क्या आप मुझे यह पता बता देंगे?’’

हर्षित ने पता पढ़ कर कहा, ‘‘यह थोड़ा आगे पड़ेगा.’’

‘‘प्लीज, आप मुझे वहां तक छोड़ दीजिए, नहीं तो मैं अकेली भटक जाऊंगी.’’

मीनाक्षी के अंदाज पर हर्षित इंकार नहीं कर सका. उस की मूक सहमति पा कर मीनाक्षी उस की स्कूटी पर बैठ गई. हर्षित उस के बताए पते पर उसे छोड़ने के लिए चल दिया. तब बाकी लोगों ने कारों से उस का पीछा करना शुरू कर दिया. थोड़ा आगे जाने पर मीनाक्षी ने मोबाइल पर बात करने का नाटक किया. उस ने इस तरह बातें कीं, जैसे सिग्नल न आने की वजह से बात करने में दिक्कत पेश आ रही हो. सुनसान जगह मिलते ही उस ने हर्षित से कहा, ‘‘प्लीज, 2 मिनट के लिए स्कूटी रोकिए, सिग्नल नहीं आ रहे. मुझे जरूरी बात करनी है.’’

हर्षित को जरा भी अंदाजा नहीं था कि वह जाल में उलझ चुका है. उस ने स्कूटी रोक दी. तभी एक कार में सवार अन्य लोग वहां आ कर रुके और उन्होंने बिना समय गंवाए हर्षित को खींच कर कार में डाल लिया. इस दौरान हर्षित की चप्पलें भी पैरों से निकल गईं. कार में आते ही डेनियल ने उस की पीठ में बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया. अस्पताल में नौकरी करने के चलते उसे बेहोशी के इंजेक्शन की जानकारी थी. इस बीच हर्षित के मोबाइल पर कई बार उस के पापा का फोन आया. फोन में नंबर पापा के नाम से फीड था. लगातार फोन आने पर अपहर्त्ताओं ने उस का मोबाइल बंद कर दिया. वह उसे ले कर हरिद्वार में जगजीतपुर स्थित संजय के घर पहुंच गए. सभी को विश्वास था कि उठाया गया शिकार राजकीय निर्माण निगम के इंजीनियर आर.के. राजा का बेटा है.

लेकिन जब उन्होंने 5 करोड़ की फिरौती मांगी तो पता चला कि उन्होंने आर.के. राजा के बेटे के धोखे में गिरीश तायल के बेटे हर्षित तायल का अपहरण कर लिया है. तब उन्होंने तायल से 5 के बजाए 2 करोड़ रुपए मांगे. बाद में डील 34 लाख रुपए में तय हो गई. योजना के अनुसार संजय मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, छुटमलपुर, देहरादून आदि जगहों से हर्षित के पिता को फोन किए. फिरौती की रकम मिलने पर अगले दिन अल सुबह वह हर्षित की आंखों पर पट्टी बांध कर कार से ले कर निकले. उसे किराए के लिए 200 रुपए दिए और सब्जी मंडी के पास छोड़ कर वापस आ गए.

अपना काम पूरा हो जाने के बाद उन्होंने अपहरण की बातचीत में इस्तेमाल किए गए मोबाइल सिमकार्ड तोड़ दिए. वाट्सऐप से हुई बातचीत का डाटा भी डिलीट कर दिया. अपनी सफलता से वे खुश थे, लेकिन अपराध की सफलता का जश्न बनाने से पहले ही पुलिस के शिकंजे में आ गए. पूछताछ के बाद सभी अभियुक्तों को अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया. उत्तराखंड पुलिस की यह बड़ी सफलता थी. मुख्यमंत्री हरीश रावत ने खुलासा करने वाली टीम को एक लाख रुपए का इनाम देने की घोषणा की.

कथा लिखे जाने तक किसी भी आरोपी की जमानत नहीं हो सकी थी. चार दिनों बाद पुलिस ने 2 अभियुक्तों संजय व डेनियल को 12 घंटे की पुलिस रिमांड पर लिया. उन की निशानदेही पर हर्षित का हेलमेट व अन्य साक्ष्य एकत्र किए. बाद में संजय व डेनियल को न्यायालय में पेश कर के जेल भेज दिया. पुलिस मामले की तफ्तीश कर रही है. Uttarakhand Crime

—कथा पुलिस सूत्रों पर आ

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...