Cyber Crime : जिस तरह से देश के अलगअलग हिस्सों से साइबर ठगी की खबरें आ रही हैं, वह बेहद चिंताजनक हैं. साइबर ठगी के शिकार वे उम्रदराज लोग ज्यादा हो रहे हैं, जिन्होंने जीवन भर की गाढ़ी कमाई अपने बुढ़ापे के सहारे के लिए जोड़ रखी होती है. करोड़ों की इस ठगी को रोकने में सरकारी सिस्टम क्यों हो रहा है फेल?
उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर (नोएडा) के सेक्टर-75 की गार्डनिया गेटवे सोसाइटी में 78 साल के विराज कुमार सरकार अपनी पत्नी के साथ रहते थे. उन्होंने रिजर्व बैंक औफ इंडिया से अपने करिअर की शुरुआत की थी. बाद में वह एक निजी बैंक के फाइनैंस मैनेजर के पद से रिटायर्ड हुए. 25 फरवरी, 2025 को दोपहर में वह टीवी पर कोई प्रोग्राम देख रहे थे, तभी उन के मोबाइल नंबर पर एक अनजान नंबर से काल आई. उन्होंने इस काल को जैसे ही रिसीव किया, दूसरी तरफ से आवाज आई, ”हैलो, मैं ट्राई से बोल रहा हूं, क्या 8989433333 आप का कोई दूसरा मोबाइल नंबर है?’’
”नहीं यह नंबर वर्तमान में मेरा नहीं है, इस नंबर का सिमकार्ड मेरे पास पहले था, जिस का उपयोग मैं ने 6 महीने पहले बंद कर दिया था.’’ विराज कुमार बोले.
”देखिए मिस्टर, झूठ मत बोलिए यह नंबर ट्राई में विराज कुमार सरकार के नाम से रजिस्टर्ड है.’’ धमकाते हुए उस व्यक्ति ने कहा.
”आप मेरी बात भी तो सुनिए…’’
विराज कुमार आगे बोलते इस के पहले ही काल करने वाले ने कहा, ”आप के खिलाफ कोलाबा, मुंबई में शिकायत दर्ज हुई है. खन्ना सर लाइन पर हैं, उन से बात कर लीजिए.’’ कालर ने विराज कुमार को कोलाबा पुलिस स्टेशन से जोड़ते हुए कहा. कोलाबा पुलिस स्टेशन से कथित आईपीएस विजय खन्ना ने उन से बातचीत की. इस के बाद केस को सीबीआई में ट्रांसफर किया गया, जहां से अपने आप को सीबीआई अधिकारी बताते हुए राहुल गुप्ता ने बातचीत करते हुए कहा, ”नरेश गोयल को आप जानते हैं? आप के मोबाइल नंबर का प्रयोग मनी लौंड्रिंग और निवेश में धोखाधड़ी करने के लिए किया गया है, इस के लिए आप को कोलाबा पुलिस स्टेशन आना पड़ेगा.’’
”देखिए, मेरी उम्र 78 साल हो चुकी है और अब अकेले कहीं आनेजाने में मुझे शारीरिक परेशानी होती है.’’ विराज कुमार सरकार ने अपनी बीमारी और ऐज फैक्टर का हवाला देते हुए कहा.
काल करने वालों ने कहा, ”आप की उम्र को देखते हुए हम औनलाइन इस मामले को हैंडल कर सकते हैं. इस के लिए आप को कल यानी 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के सामने औनलाइन पेश किया जाएगा.’’
ऐसे ठगे 3.14 करोड़ रुपए
इस के बाद ऐसा ही हुआ. 26 फरवरी को उन लोगों ने विराज कुमार को स्काइप काल पर लिया और मुख्य न्यायाधीश के सामने पेश किया. जज के गेटअप में बैठे व्यक्ति ने उन के सभी अकाउंट, एफडी को फ्रीज करने और पैसों को एसएसए (सीक्रेट सुपरविजन अकाउंट) में डालने का आदेश सुना दिया. विराज इतना डर गए कि मजिस्ट्रैट के सामने कुछ नहीं बोल पाए. इस के बाद काल करने वाले विजय खन्ना और राहुल गुप्ता ने उन्हें धमकी दी कि ये सारी बात सीक्रेट रखें और किसी से शेयर न करें, क्योंकि यह राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं और हमें जानकारी मिलती है तो तत्काल आप की गिरफ्तारी होगी.
यही नहीं, आप की जान को भी खतरा हो सकता है, इसलिए जैसा हम कहते हैं वैसा करते जाएं. इस के बाद विराज कुमार उन के बताए गए खातों में पैसा ट्रांसफर करते चले गए. इन 15 दिनों में करीब 3.14 करोड़ रुपए उन के बताए गए खातों में ट्रांसफर किए. विराज कुमार को काल करने वालों ने भरोसा दिया था कि एक बार इन पैसों का सत्यापन होने के बाद उन का पैसा उन के खाते में वापस आ जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 15 दिनों में कभी विनय कुमार तो कभी आकाश कुल्हारी नाम के व्यक्ति कैमरे पर नजर रखते हुए उन से बातचीत करते थे.
3 मार्च, 2025 को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश (स्पष्टीकरण पत्र) विराज को फोन पर भेजा, जिस में कहा गया था कि उन के सभी फंड वैध और बेदाग हैं. कोर्ट ने यह माना है कि ”नरेश गोयल मनी लौंड्रिंग मामले में मेरे धन की कोई संलिप्तता नहीं पाई है, इसलिए 6 से 7 दिनों के भीतर उन के पैसे वापस अकाउंट में आ जाएंगे.’’
विराज कुमार को काल करने वालों ने कहा, ”6-7 दिनों में पैसा वापस आ जाएगा.’’
एक सप्ताह इंतजार करने के बाद भी पैसा नहीं आया. इस के बाद भी वो लोग फोन पर बातचीत करते रहे और जल्दी पैसा वापस आने की बात कहते रहे. अंत में विराज कुमार को समझ में आ गया कि उन के साथ ठगी हुई है. उन्होंने साइबर सेल के 1930 नंबर पर औनलाइन शिकायत की. इस के बाद 19 मार्च 2025 को साइबर सेल नोएडा में मुकदमा दर्ज किया गया.
ठगी का शिकार हुए पीडि़त बुजुर्ग को ठगी पर भरोसा नहीं हो रहा है. पीडि़त विराज कुमार सरकार ने अपनी नौकरी की शुरुआत कोलकाता में आरबीआई अधिकारी के रूप में की थी. करीब 5 सालों तक वहां काम किया. इस के बाद वह भारत सरकार के पूर्ण स्वामित्व वाली ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी में शामिल हो गए. यहां पर करीब 31 साल तक काम करने के बाद उन्हें प्रमोशन दे कर जनरल मैनेजर के कैडर की जिम्मेदारी सौंपी गई. बाद में ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी के बोर्ड में एक एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर के रूप में प्रमोट किया गया.
ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी से रिटायर होने के बाद वह एक निजी कंपनी में काम करने लगे. बैंकिंग सेक्टर में इतना लंबा जीवन बिताने के बाद उन्हें यकीन नहीं हो रहा कि एक दिन उन के साथ इस तरह की घटना होगी. बुजुर्ग दंपति को 26 फरवरी से 12 मार्च 2025 तक के15 दिनों के बीच लगातार वीडियो कौन्फ्रेंसिंग के जरिए डिजिटल अरेस्ट कर के रखा गया. 15 दिनों तक साइबर ठगों ने केवल खाने और दैनिक कार्यों की ही अनुमति दी. विराज कुमार को जब पता चला कि उन के साथ फ्रौड हुआ है तो उन्होंने राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल (एनसीसीपी) पर शिकायत दर्ज करवाई है. अब मामले की जांच थाना सेक्टर 36 साइबर सेल कर रही है.
नोएडा साइबर सेल की डीसीपी प्रीति यादव ने बताया कि शिकायत मिलते ही पुलिस ने तत्काल काररवाई करते हुए एफआईआर दर्ज कर ली है. अब पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही है कि जिन खातों में पैसा ट्रांसफर किया गया था, वे किन के नाम पर हैं और उन्हें किनकिन तरीकों से औपरेट किया जा रहा था. डीसीपी (साइबर) प्रीति यादव ने बताया कि जिन खातों में ठगी की रकम ट्रांसफर हुई, उन की जांच करने के दौरान पता चला है कि ठगी की रकम असम और पश्चिम बंगाल के खातों में ट्रांसफर हुई है. पुलिस ने बैंक से संपर्क कर करीब 32 लाख रुपए फ्रीज करा दिए. बाकी रकम को भी फ्रीज कराने का प्रयास किया जा रहा है.
पुलिस की 2 टीमें असम और पश्चिम बंगाल में जा कर ठगी में इस्तेमाल हुए खातों की जानकारी एकत्र कर रही हैं. आशंका यह भी जताई जा रही है कि इस ठगी में किराए के खातों का इस्तेमाल हुआ हो. आरोपियों की तलाश की जा रही है.
रिटायर्ड कर्नल से ठगे 3.41 करोड़
आमतौर पर देखा गया है कि डिजिटल अरेस्ट के मामलो में वीडियो कालिंग के जरिए ठगी को अंजाम दिया जाता है. वीडियो काल में फरजी पुलिस थाना और अफसर दिखाए जाते हैं. लेकिन चंडीगढ़ में इस से एक कदम आगे जा कर साइबर ठगी की गई है. वीडियो काल के जरिए बुजुर्गों को बुरी तरह डराया और एक नकली कोर्ट में नकली जज बिठाया दिखाया गया. इस दौरान वकील और अन्य लोग भी खड़े हुए दिखाए गए. रिटायर्ड 82 वर्षीय भारतीय सेना अधिकारी कर्नल दिलीप सिंह और उन की पत्नी को 10 से 12 दिन तक डिजिटल अरेस्ट रखा.
कर्नल दिलीप सिंह बाजवा और उन की पत्नी रनविंदर कौर बाजवा पंजाब के चंडीगढ़ सेक्टर 2 में रहते हैं. 18 मार्च, 2025 को इंटरनैशनल नंबर से उन्हें एक काल आई. जैसे ही उन्होंने काल रिसीव की तो काल करने वाले ने पूछा, ”क्या आप नरेश गोयल को जानते हैं?’’
इस पर कर्नल ने जवाब दिया, ”हम नहीं जानते.’’
इस के बाद कालर ने उन से कहा, ”नरेश गोयल मनी लौंड्रिंग मामले में जेल में बंद है. उस के घर से 247 एटीएम कार्ड मिले हैं. उस में एक कार्ड में आप का नाम भी है, जिस में 20 लाख रुपए आए हैं. कुल 2 करोड़ की मनी लौंड्रिंग हुई है. यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है. आप को अरेस्ट किया जा सकता है.’’
इस के बाद 19 मार्च को एक बार फिर इंटरनैशनल नंबर से काल आई. इस बार उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फरजी लेटर भेजा, जहां अरेस्ट करने वाली टीम आ रही थी. दंपति को डराते हुए उन से जुड़ी हर एक जानकारी ले ली गई. इस में बैंक बैलेंस, घर में पड़ा सोना, प्रौपर्टी के कागजात सब जानकारी दंपति से ले ली गई और दंपति को डिजिटल अरेस्ट कर लिया गया. डिजिटल अरेस्ट के दौरान वीडियो के जरिए दंपति को कोर्ट रूम दिखाया गया.
पीडि़त कर्नल दिलीप ने बताया, ”मुझे 9 बार डिजिटल अरेस्ट किया गया. 27 मार्च को दोपहर 3 बजे वीडियो काल पर कोर्ट रूम दिखाया गया, जहां जज पुलिस औफिसर और 2 आरोपी नजर आ रहे थे. इस दौरान जज ने मुझे कहा कि आप की बेल गारंटीड है, लेकिन 2 करोड़ का बेल वारंट भरना होगा.
”इस पर मैं ने जवाब दिया कि हमारे पास अब पैसे नहीं बचे हैं. तब जज ने मुझे किसी भी तरह पैसों का इंतजाम करने के लिए कहा. सुप्रीम कोर्ट का डर दिखाया. डिजिटल अरेस्ट के दौरान संपत्ति को सुप्रीम कोर्ट का डर दिखाते हुए 8 लाख अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिए. मुझ से कुल 5 अलगअलग खातों में कुल 3. 41 करोड़ रुपए ट्रांसफर करवाए गए.’’
डिजिटल अरेस्ट के दौरान पीडि़त को ठगों ने किसी को कुछ भी न बताने की धमकी दी. ठगों ने दंपति को नकली कोर्ट, नकली पुलिस और जज वीडियो काल में दिखाया और लगातार दंपति को धमकाते रहे. पैसों की भरपाई करने के लिए कर्नल दिलीप बाजवा ने अपने कुछ रिश्तेदारों से पैसे उधार लेने की कोशिश की. इस पर रिश्तेदारों ने कर्नल को डिजिटल ठगी की बात कही. इस के बाद उन्होंने कुछ वकीलों से संपर्क किया. ठगी का अहसास होने पर दंपति ने 28 मार्च, 2025 को थाने में शिकायत दर्ज कराई.
साइबर ठगों ने कर्नल दिलीप सिंह को 18-27 मार्च तक 10 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट रखा. उन को घर के अंदर रहने और किसी से संपर्क न करने के लिए भी मजबूर किया गया. ठगी के बाद उन्होंने चंडीगढ़ पुलिस के साइबर सेल में शिकायत दर्ज कराई. पीडि़त कर्नल ने शिकायत में लिखा है कि उन से ठगे गए पैसे वापस दिलाए जाएं, क्योंकि वे अपनी आजीविका के लिए इसी पर निर्भर हैं. उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील की.
उन्होंने कहा, ”युवा होने के नाते मैं ने अपना जीवन राष्ट्र की सेवा में समर्पित कर दिया. अब अपने जीवन के अंतिम वर्षों में धोखेबाजों के हाथों अपना सब कुछ खो दिया है. यह एक क्रूर विडंबना है. मेरी एकमात्र उम्मीद चंडीगढ़ साइबर सेल पर टिकी है. मुझे उम्मीद है कि पुलिस धोखेबाजों को पकडऩे के लिए पर्याप्त कौशल से लैस है. मैं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से भी अपील करता हूं कि वे हस्तक्षेप करें और हमारी खोई हुई रकम दिलाने में मदद करें.’’
एसपी (साइबर क्राइम) गीतांजलि खंडेलवाल ने बताया कि मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है. उन्होंने पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराई थी और हम ने तुरंत इस पर काररवाई की. हम ने धनराशि को फ्रीज कर दिया, जो हम तुरंत कर सकते थे. चूंकि राशि का लेनदेन 10-12 दिनों की अवधि में अलगअलग तरीके से किया जा रहा था. इस मामले में राशि को देश भर के विभिन्न खातों में भेजा गया और चैक का उपयोग कर के भुनाया गया. हम ट्रेस पर काम कर रहे हैं.
बुजुर्ग महिला से हुई 97 लाख की ठगी
आए दिन साइबर फ्रौड की घटनाएं पूरे देश में सामने आ रही हैं, जो पुलिस के लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं. हाल ही में सेंट्रल साइबर सेल ने 26 वर्षीय एक युवती को गिरफ्तार किया है. इस युवती ने सीबीआई अधिकारी बन कर 69 वर्षीय एक बुजुर्ग महिला को डिजिटल गिरफ्तारी की धमकी देकर इन से 97 लाख रुपए की ठगी की थी. युवती का नाम नाजुक मदन लोचन है, जो मलाड की रहने वाली है और इसे सेंट्रल साइबर सेल की पीआई मौसमी पाटिल के नेतृत्व में गिरफ्तार किया गया है.
जांच में पता चला कि आरोपी उन लाभार्थियों में से एक है, जिन के खाते में साइबर ठगों ने 20 लाख जमा किए थे और बाद में उन के खाते से उक्त रकम निकाल ली गई. हालांकि ठगी की यह रकम 97 लाख रुपए बताई जा रही है. पीडि़ता वडाला निवासी 69 वर्षीय सेवानिवृत्त महिला हैं, जिन्हें गिरोह ने सरकारी अधिकारियों का रूप धारण कर और डिजिटल अरेस्ट की धमकी दे कर 5 जनवरी, 2025 को निशाना बनाया था. शिकायत के मुताबिक, पीडि़ता के पास 5 जनवरी को एक व्यक्ति का फोन आया, जिस ने खुद को दिल्ली मुख्यालय के वरिष्ठ दूरसंचार अधिकारी विजय शर्मा के रूप में पेश किया. कालर ने झूठा दावा किया कि उस के आधार कार्ड का दुरुपयोग कर दिल्ली में एक फरजी मोबाइल नंबर सक्रिय किया गया था.
2 माह तक रखा डिजिटल अरेस्ट, ठगे 20 करोड़
इस के बाद उस ने काल बाराखंबा पुलिस स्टेशन के एक कथित कथित अधिकारी को ट्रांसफर कर दी, जिस ने खुद को इंसपेक्टर प्रदीप सिंह बताते हुए हुए पीडि़ता से कहा कि उस के एक दस्तावेज का उपयोग कर एक बैंक में खाता खोला गया था, जिस का लिंक मनी लौंड्रिंग और मानव तस्करी के मामलों से है और इस की जांच सीबीआई कर रही है. इस के बाद उस ने वाट्सऐप पर नकली कानूनी नोटिस भेज कर उस का पीडि़ता से बैंक में जमापूंजी को दूसरे अनजान एकाउंट में ट्रांसफर करने के लिए मजबूर कर दिया. इस बारे में जब पीडि़ता के परिवार वालों को पता चला तो उन्हें अहसास हुआ कि पीडि़ता के साथ साइबर धोखाधड़ी की गई है. उस ने इस की शिकायत सेंट्रल साइबर पुलिस स्टेशन में की.
इस केस की जांच के दौरान पुलिस ने रकम के लेनदेन की जांच की और इस आधार पर पुलिस अंधेरी के लोखंडवाला में एक महिला के घर पहुंची. पूछताछ करने पर उस ने बताया कि उस के बैंक खाते का संचालन उस की मित्र नाजुक मदन लोचन (26 वर्ष) कर रही थी. पुलिस ने तकनीकी जांच के जरिए नाजुक मदन लोचन तक पहुंच गई और उसे सबूत मिलने पर साइबर ठगी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. मुंबई में साइबर फ्रौड का हैरान कर देने वाला केस सामने आया है, जहां एक बुजुर्ग महिला को करीब 2 महीने तक डिजिटल अरेस्ट रखा और उस के बैंक अकाउंट से 20 करोड़ रुपए उड़ा दिए. इस दौरान उन्हें डरायाधमकाया और बच्चों को गिरफ्तार करने की तक की धमकी दे दी.
साइबर ठगी की शुरुआत एक अनजान नंबर की काल से हुई. काल करने वाले ने खुद का नाम संदीप राव बताया और कहा कि वह एक सीबीआई औफिसर है, जो असल में एक साइबर ठग था. इस के बाद उस ने आरोप लगाए कि विक्टिम महिला के नाम और डाक्यूमेंट का इस्तेमाल कर के एक बैंक अकाउंट है, जिस का इस्तेमाल गैरकानूनी एक्टिविटी में किया है. उस बैंक खाते के जरिए मनी लौंड्रिंग कर जेट एयरवेज के फाउंडर नरेश गोयल को रुपए भेजे हैं. फेक सीबीआई औफिसर ने महिला को बताया कि इस केस को सीबीआई स्पैशल इनवेस्टीगेशन टीम को सौंप दिया गया है और कंप्लेंट दर्ज हो चुकी है. वाट्सऐप काल के दौरान महिला को डराया गया कि इस केस में उन के बच्चों को गिरफ्तार किया जा सकता है और उन का बैंक अकाउंट फ्रीज कर दिया जाएगा.
इस के बाद आरोपी ने महिला को धमकाया कि उस के पास अरेस्ट वारंट है. कालर ने विक्टिम महिला को बताया कि वह अगर जांच में सहयोग नहीं करेंगी तो पुलिस उन के घर पर पहुंच जाएगी. महिला को समझाया गया कि डिजिटल इंडिया मूवमेंट के तहत बिना पुलिस स्टेशन जाए ईइनवेस्टीगेशन में मदद कर सकती हैं और अपना बयान दर्ज करा सकती हैं. इस के बाद विक्टिम महिला से जांच के नाम पर बैंक डिटेल्स और अन्य जरूरी डिटेल्स मांगी गई. फिर महिला को डिजिटल अरेस्ट किया गया और रिश्तेदारों से बात न करने की सलाह दी गई.
इस के बाद महिला ने अपने बिजनैस और फैमिली मेंबर्स की जानकारी दी. यह कथित सीबीआई अफसर और राजीव रंजन नाम के शख्स महिला को 2-3 घंटे के दौरान काल करते और उन की लोकेशन पूछते. उन्होंने विक्टिम महिला को बताया कि अगर उन्हें अपना नाम इस केस से हटवाना है तो उस का एक प्रोसेस है. उन्होंने विक्टिम महिला से कहा कि उन को अपने बैंक अकाउंट में मौजूद सभी रकम को कोर्ट के अकाउंट में ट्रांसफर करनी होगी. साइबर ठगों ने एक फरजी वादा भी किया कि जांच पूरी होने के बाद उन के रुपए वापस कर दिए जाएंगे. हालांकि इस के बाद उन को कुछ वापस नहीं मिला.
बुजुर्ग महिला के घर में काम करने वाली महिला ने मालकिन के स्वभाव में बदलाव देखा, काम करने वाली महिला ने बताया कि बुजुर्ग अपने रूम में रहतीं, कभीकभी चिल्लातीं और सिर्फ खाने के लिए रूम से बाहर आतीं. यह जानकारी काम करने वाली महिला ने बुजुर्ग महिला की बेटी को दी. बेटी ने महिला को समझाते हुए पुलिस स्टेशन में शिकायत करने की सलाह दी. इस के बाद 4 मार्च, 2025 को उन्होंने शिकायत दर्ज कर कराई, जिस के बाद पुलिस ने 20 मार्च को 2 युवकों को मीरा रोड से गिरफ्तार कर लिया. ठगी को अंजाम देने वाले इन युवकों की उम्र करीब 20-21 साल थी.
मध्य प्रदेश के मिनी मुंबई कहे जाने वाले शहर इंदौर में लगातार साइबर ठगी की वारदातें अलगअलग तरह से सामने आ रही हैं. सितंबर 2024 में रिटायर्ड प्रोफेसर 70 साल के रवींद्र बापट के साथ साइबर ठगों ने सीबीआई व अलगअलग अधिकारी बन कर 33 लाख रुपए की ठगी की वारदात को अंजाम दिया था.
पुलिस ने रिफंड कराए 26 लाख रुपए
रिटायर्ड प्रोफेसर ने पूरे मामले की शिकायत पुलिस से की थी. पुलिस ने विभिन्न तरह से जांचपड़ताल कर उन के 26 लाख रुपए अलगअलग बैंक अकाउंट फ्रीज करवा कर रिफंड करवाए हैं.
साइबर ठगी के बाद रवींद्र बापट ने इंदौर क्राइम ब्रांच के औफिस में जा कर एडिशनल डीसीपी राजेश दंडोतिया से मुलाकात की और अपने साथ हुई 33 लाख रुपए की ठगी के बारे में जानकारी दी. रवींद्र बापट का उस समय महाराष्ट्र में औपरेशन के जरिए लिवर ट्रांसप्लांट होना था. इसी के चलते उन्होंने अपने अकाउंट में इतने रुपयों की सेविंग की थी, लेकिन इसी दौरान उन्हें एक अनजान नंबर से फोन आया और उस ने इस बात की जानकारी दी कि आप के द्वारा जो कुरिअर मलेशिया भेजा जा रहा है, उस में ड्रग्स सहित तमाम देशों के पासपोर्ट मौजूद हैं. रवींद्र के मना करने के वावजूद भी उस व्यक्ति ने अलगअलग अधिकारियों से बात कराई.
रवींद्र बापट ने बताया कि दिल्ली साइबर क्राइम से संबंधित एक अधिकारी बताते हुए शख्स ने भी उन से वीडियो काल पर बात की. वहीं सीबीआई, आरबीआई और कस्टम अधिकारी बन कर कई लोगों ने उन से बात कर उन्हें डिजिटल अरेस्ट कर उन के 33 लाख रुपए अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिए. साइबर ठगों ने उन से पूरे मामले में जांच कर जल्दी पैसा लौटाने की बात कही थी. लेकिन इस के बाद उन की आरोपियों से कोई बात नहीं हुई. फिर उन्होंने पूरे मामले की जानकारी अपने कुछ परिचितों को दी.
परिचितों की सलाह पर उन्होंने थाने में शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने भी इस पूरे मामले में काफी बारीकी से जांचपड़ताल की. इस बीच 6 राज्यों की बैंकों के 49 बैंक खातों को चिह्निïत कर उन को फ्रीज करवाया गया. इस के बाद रिटायर्ड प्रोफेसर के 26 लाख 45 हजार रुपए रिफंड करवाए गए. जिन्हें पा कर पीडि़त रिटायर्ड प्रोफेसर खुश हो गए. उन का कहना है कि अब वह इन रुपयों से अपना लिवर ट्रांसप्लांट करवा सकेंगे. इंदौर में इस तरह की धोखाधड़ी के मामले पहले भी कई बार सामने आ चुके हैं. पुलिस के द्वारा समय पर एडवाइजरी भी जारी की जाती है, लेकिन उस के बाद भी साइबर ठग अलगअलग तरह से रोजाना धोखाधड़ी की वारदातों को अंजाम दे रहे हैं.
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट
कानूनी तौर पर डिजिटल अरेस्ट नाम का कोई शब्द पुलिस की डिक्शनरी में नहीं है. यह एक फ्रौड करने का तरीका है, जो साइबर ठग अपना रहे हैं. इस का सीधा मतलब होता है ब्लैकमेलिंग, जिस के जरिए ठग अपने टारगेट को ब्लैकमेल करता है. डिजिटल अरेस्ट में कोई आप को वीडियो कालिंग के जरिए घर में बंधक बना लेता है. वह आप पर हर वक्त नजर रख रहा होता है.
डिजिटल अरेस्ट के मामलों में ठग कोई सरकारी एजेंसी के अफसर या पुलिस अफसर बन कर आप को वीडियो काल करते हैं. ठगी करने वाले ये लोग फर्राटेदार अंगरेजी में बात करते हैं कि किसी को भी यह शक नहीं होता कि ये लोग सरकारी जांच एजेंसी के फरजी अफसर हैं. इस तरह के मामलों में फ्रौड करने वाले इतने शातिर तरीके से आप को अपने जाल में फंसा कर बातों में उलझाए रखते हैं कि आप को सोचनेसमझने का मौका ही नहीं मिलता.
इस के बाद ठग आप को कहते हैं कि आप का आधार कार्ड, सिम कार्ड या बैंक अकाउंट का इस्तेमाल किसी गैरकानूनी गतिविधि के लिए हुआ है. ऐसे मामलों में वह आप को फरजी गिरफ्तारी का डर दिखा कर घर में ही कैद कर देते हैं और झूठे आरोप लगाते हैं और जमानत की बातें कह कर पैसे ऐंठ लेते हैं. अपराधी इस दौरान आप को वीडियो काल से हटने भी नहीं देते हैं और न ही किसी को काल करने देते हैं. डिजिटल अरेस्ट के इस तरह के मामले आए दिन अलगअलग स्थानों से सामने आते रहते हैं.
हजारों किलोमीटर दूर बैठ कर साइबर ठग लोगों को अपना शिकार बना लेते हैं. स्काइप आईडी, वीचैट और वीडियो कालिंग से आप से संपर्क करते हैं. ऐसे में पुलिस को 3 से 6 महीने तो आरोपियों का डाटा, यूआरएल जानकारी लेने के लिए समय लग जाता है. इतने समय पर साइबर ठग अपनी लोकेशन बदल लेते हैं. अधिकतर एप्लीकेशंस के सर्वर विदेशों में हैं, जहां से जानकारी जुटाने में पुलिस को कड़ी मशक्कत करना पड़ती है और कई महीनों तक पुलिस को जानकारी नहीं मिल पाती.
साइबर ठगों द्वारा किए जा रहे डिजिटल हाउस अरेस्ट के नए तौरतरीके एक गंभीर चिंता का विषय है. इस के जरिए स्कैमर्स द्वारा पीडि़तों को उन के जाल में फंसा कर आसानी से पैसे निकाला जाता है. पुलिस नागरिकों को साइबर अपराधियों से एक नए घोटाले के बारे में सतर्क रहने के लिए जागरूक करती है.
साइबर फ्रौड के लिए जिम्मेदार कौन
पूरे देश में ऐसे अनेक मामले दर्ज किए जा रहे हैं. ये धोखेबाज धमकी भरे पत्र भेजने और पुलिस विभाग के जाली लेटरहेड बनाने के लिए बेहतर अंगरेजी के लिए अनुवाद टूल का उपयोग करते हैं. वे अन्य स्रोतों से आधार कार्ड खरीदते हैं. ठग आमतौर पर उम्रदराज लोगों और महिलाओं को निशाना बनाते हैं.
साइबर फ्रौड रोकने में सरकारी एजेंसियां नाकामयाब साबित हो रही हैं. साइबर फ्रौड के लिए सब से ज्यादा जिम्मेदार तो सरकारी नीतियां हैं. सरकार ने ही मोबाइल के जरिए जनता को सरकारी संदेश भेजने का तरीका जनता पर थोपा है. सरकार बहुत सी सूचनाएं मोबाइल से दे रही है. मोबाइल के जरिए आने वाले सरकारी संदेश और फ्रौड करने वाले के काल से लोगों को समझ नहीं आता कि इस तरह आई काल सरकार की एजेंसी से है या फ्रौड करने वालों की.
साइबर फ्रौड से बचने को ले कर जागरूक करने वाले सरकारी विज्ञापनों में यह कहीं नहीं लिखा होता कि सरकार मोबाइल को संदेश देने के लिए इस्तेमाल ही नहीं करती. आधार अपडेट से ले कर, बैंक केवाईसी, टैक्स जमा करने, रसोई गैस कनेक्शन, स्कूलकालेज में मिलने वाली स्कौलरशिप, किसानों को अपनी फसल समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए होने वाले पंजीकरण जैसे हर तरह के कामों में ओटीपी आता है. और भी कितने ही तरह के ओटीपी मोबाइल में सरकार या रिजर्व बैंक या नौकरी देने वाली एजेंसियों से आते हैं.
जब मोबाइल सरकारी संदेशों का लीगल तरीका है तो फ्रौड की शिकार तो जनता होगी ही. मोबाइल पर आने वाले संदेश और काल पर भी ट्राई जैसी संस्थाओं का किसी तरह का नियंत्रण नहीं है. मोबाइल कंपनियों की सरकार की खुली छूट है कि वे बिना मतलब के काल और संदेश जनता को भेजें और उन के पर्सनल डाटा में सेंध लगाएं. इसी तरह बैंक जा कर आम जनता 50 हजार रुपए से ज्यादा का ट्रांजैक्शन करती है तो बैंक के कर्मचारी तरहतरह के सवालजवाब करते हैं, मगर साइबर फ्रौड करने वाले ठग लाखों रुपए अकाउंट से उड़ा देते हैं, तब बैंक अपने हाथ खड़े कर देते हैं.
देश के प्रधानमंत्री डिजिटल अरेस्ट पर चिंता जताते हुए जुमले तो उछालते हैं, लेकिन इस तरह के फ्रौड रोकने के लिए कोई उपाय नहीं निकाल पाते. कथा पुराण कहने वाले प्रवचनकर्ताओं की तरह सरकार बचाव के उपदेश भर देती है. लोगों को साइबर फ्रौड से बचाने की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ सरकार की है.