Ludhiana News : केवल शारीरिक सुख की चाह में 2 बच्चों की मां सुनीता ने अपने किराएदार नरेश की बांहें थाम लीं. पति कृष्णलाल ने उसे समझाने की कोशिश की तो सुनीता और नरेश ऐसा अपराध कर बैठे कि…
कृष्णलाल और सुनीता ने जैसेतैसे कर के अपना एक छोटा सा घर बना लिया था. अपना घर बन जाने से पतिपत्नी बहुत खुश थे. खुश भी क्यों न होते, अपना घर हो जाने से मकान मालिक की किचकिच से छुटकारा जो मिल गया था. अब वे अपने घर में निश्चिंत हो कर रह सकते थे. हर महीने एक मोटी रकम किराए के रूप में देने के बाद और सुबहशाम सिर झुकाने के बाद भी मकान मालिक टोकते रहते, ‘यहां मत बैठो, यहां मत लेटो, नल खुला छोड़ देते हो, तुम्हारे बच्चे शोर बहुत मचा रहे हैं. आज तुम्हारे यहां कौन आया था?’ अपना मकान हो जाने से कम से कम इस तरह की बातें तो सुनने को नहीं मिलेंगी.
कृष्णलाल के पिता रामआसरे लगभग 30 साल पहले रोजीरोटी की तलाश में लुधियाना आए थे. वहां उसे एक फैक्ट्री में चौकीदारी की नौकरी मिल गई तो गांव से वह पत्नी रामदुलारी को भी ले आया था. लुधियाना में रहते हुए ही वह 2 बच्चों, बेटा कृष्णलाल और बेटी सविता का बाप बना. अपनी सामर्थ्य के अनुसार रामआसरे ने बच्चों को पढ़ाना चाहा, लेकिन वे हाईस्कूल से आगे नहीं पढ़ पाए. सविता को घर के कामकाज और सिलाईकढ़ाई सिखा कर सन 2003 में उस की शादी कर दी. सविता का पति मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जिला गोंडा का रहने वाला था. जालंधर में वह एक जानेमाने होटल में काम करता था.
कृष्णलाल ने पढ़ाई छोड़ दी तो रामआसरे ने काम सीखने के लिए उसे कई फैक्ट्रियों में भेजा, पर वह कहीं कोई काम न सीख सका. तब उस ने उसे एक स्कूटर मैकेनिक के पास भेजना शुरू किया. लगभग 3 सालों तक उस के यहां काम सीखने के बाद उस ने थाना सलेमटाबरी में जालंघर बाईपास के पास अपनी एक छोटी सी दुकान खोल ली. इस बीच रामआसरे की पत्नी रामदुलारी की मौत हो गई, जिस से खाना वगैरह उन्हें खुद ही बनाना पड़ता था. बाप बूढ़ा था, इसलिए कृष्णलाल पर कुछ ज्यादा ही जिम्मेदारियां आ गई थीं. घर के कामों की वजह से दुकान पर दिक्कत होने लगी तो रामआसरे ने दुलीचंद की बेटी सुनीता से बेटे की शादी तय कर दी.
दुलीचंद मूलरूप उत्तर प्रदेश के जिला सुल्तानपुर का रहने वाला था. लेकिन अब उस का पूरा परिवार लुधियाना में रहता था. सुनीता और कृष्णलाल की शादी धूमधाम से हो गई थी. सुनीता जैसी खूबसूरत पत्नी पा कर कृष्णलाल फूला नहीं समाया था. सुनीता जितनी सुंदर थी, घर के कामकाज में भी उतनी ही कुशल थी. सांवलासलोना रंग, सुतवा नाक, हिरनी जैसी आंखें, पुष्ट उरोज एवं गदराया भरापूरा बदन दिल की धड़कनें बढ़ा देता था. शादी के बाद कई दिनों तक कृष्णलाल सुनीता की बांहों में खोया रहा, जिस से उस का नयानया काम डगमगा गया. वह अपने काम को संभाल पाता, अचानक पिता की ऐसी तबीयत खराब हुई कि वह उठ नहीं सका. पिता की मौत के बाद कृष्णलाल पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा.
चारों ओर खर्च ही खर्च दिखाई देता था. शादी पर लिए कर्ज को अलग से भरना था. लेकिन कृष्णलाल ने हिम्मत नहीं हारी और पिता का क्रियाकर्म कर के पूरी लगन से अपने काम में जुट गया. दिनरात मेहनत कर के 3 सालों में उस ने हर किसी की पाईपाई अदा कर दी. उसी बीच वह 2 बच्चों, बेटे मनीष और बेटी ज्योति का बाप बन गया. अब उस का भरापूरा परिवार हो गया था. कर्ज अदा कर के कृष्णलाल अपना धंधा व्यवस्थित कर के पैसे जमा करने लगा. अब उस की 2 ही तमन्नाएं थीं, एक अपना खुद का घर और दूसरे बच्चों की पढ़ाई. इस के लिए वह हाड़तोड़ मेहनत कर रहा था. आखिर उस की मेहनत रंग लाई. छोटा ही सही, कृष्णलाल ने अपना खुद का मकान बना लिया. जिस दिन वे अपने मकान में रहने गए, पतिपत्नी बहुत खुश थे.
समय अपनी गति से बीतता रहा. कृष्णलाल के दोनों बच्चे स्कूल जाने लगे. दोनों बच्चों को स्कूल पहुंचाते हुए वह दुकान पर चला जाता था. पति और बच्चों के जाने के बाद घर में सुनीता अकेली रह जाती थी. सोने और टीवी देखने के अलावा उस के पास कोई दूसरा काम नहीं होता था. सोने और टीवी देखने की भी एक सीमा होती है. सुनीता कभीकभी ज्यादा ही बोर हो जाती थी. एक दिन उस ने कृष्णलाल से कहा, ‘‘बुरा न मानो तो एक बात कहूं?’’
‘‘हां… हां, कहो.’’
‘‘हमारा छोटा परिवार है, बच्चे भी छोटे हैं, अभी हमारा गुजर नीचे के ही दोनों कमरों में हो जाता है. ऊपर वाला कमरा खाली पड़ा रहता है. क्यों न हम उसे किराए पर उठा दें. हर महीने कुछ रुपए भी आएंगे और किराएदार के आने से मेरा मन भी लगा रहेगा.’’
‘‘बात तो तुम्हारी ठीक ही है. किराएदार रखने में हर्ज ही क्या है. कोई किराएदार देख कर कमरा किराए पर उठा दो.’’
कृष्णलाल की ओर से हरी झंडी मिलने के बाद सुनीता ने अपने पड़ोसियों से अपना कमरा किराए पर देने की बात कह दी तो कुछ दिनों बाद 26-27 साल का एक युवक सुनीता का कमरा किराए पर लेने आ गया. सुनीता से मिल कर उस ने कहा, ‘‘मेरा नाम नरेश है. मैं माधोपुरी की शौल फैक्टरी में नौकरी करता हूं. मुझे एक कमरे की जरूरत है. मुझे पता चला है कि आप का एक कमरा खाली है. अगर आप उसे मुझे किराए पर दे दें तो..?’’
‘‘कमरा तो मुझे किराए पर देना ही है, लेकिन पहले तुम कमरा तो देख लो.’’
सुनीता ने कहा और नरेश को ऊपर ले कर कमरा दिखाया. लैट्रीन, बाथरूम, पानी आदि के बारे में बता कर किराया जो बताया, नरेश को उचित लगा. सारी बातें तय हो गईं तो सुनीता ने पूछा, ‘‘तुम्हारे परिवार में कितने लोग हैं?’’
‘‘अभी तो मैं अकेला ही हूं. शादी की बात चल रही है. शादी हो जाएगी तो पत्नी को ले आऊंगा.’’
‘‘इस का मतलब अभी तुम अकेले ही हो?’’ सुनीता ने कहा.
दरअसल किसी अकेले लड़के को जल्दी कोई किराए पर कमरा नहीं देना चाहता. इसी वजह से जब सुनीता को पता चला कि नरेश अकेला है तो उस ने कमरा देने से मना कर दिया था. लेकिन जब नरेश ने गुजारिश की तो न जाने क्या सोच कर उस ने हामी भर दी. एडवांस किराया दे कर नरेश उसी दिन रहने आ गया. नरेश सुंदर, स्वस्थ्य और हृष्टपुष्ट युवक था. उस की शादी भी नहीं हुई थी. उस की बलिष्ठ भुजाएं देख कर सुनीता का दिल धड़क उठता. लेकिन वह खुद को यह सोच कर रोके हुए थी कि वह शादीशुदा ही नहीं 2 बच्चों की मां भी है. शायद इसी वजह से उस ने यह जानने की कभी कोशिश नहीं की कि बच्चों के पैदा होने के बाद उस की सुंदरता में कितना निखार आ गया है.
उस के शरीर में इतना कसाव था, जो जल्दी कुंवारी लड़कियों में देखने को नहीं मिलता. शायद घर के झंझटों में फंस कर वह खुद को देख नहीं पाती थी. अभी भी उस के शरीर में ऐसी कशिश थी कि किसी का भी मन डोल सकता था. इसीलिए पहली नजर में ही नरेश उस का दीवाना हो उठा था. लेकिन शादीशुदा और मकान मालकिन होने की वजह से वह डरता था. केवल छिपछिप कर देखने के अलावा उस के पास कोई दूसरा उपाय नहीं था. यह सन 2012 के जून महीने की दोपहर की बात है. उन दिनों नरेश की नाइट शिफ्ट चल रही थी. दिनभर वह घर में ही रहता था. सुनीता के दोनों बच्चे स्कूल से लौटने के बाद पिता को खाना देने दुकान पर चले जाते थे तो शाम को ही लौटते थे.
उस दिन घर का काम निपटा कर सुनीता गरमी से परेशान हो कर आंगन में ही नहाने बैठ गई. बाहर का दरवाजा उस ने बंद कर दिया था और उसे पता था कि इस समय नरेश अपने कमरे में सो रहा होगा. इसलिए निश्चिंत हो कर आराम से वह सारे कपड़े उतार कर नहाने लगी. वैसे तो वह समय नरेश के सोने का ही था, लेकिन ना जाने कैसे उस दिन उस की आंखें खुल गईं. आंखें मलते हुए वह अपने कमरे से बाहर आया तो आंगन में सुनीता को उस हालत में देख कर जड़ बन गया. उस की नजरें सुनीता पर पड़ीं तो चिपक कर रह गईं. वह तन्मयता से सुनीता के एकएक अंग का जायजा लेने लगा. उस के लिए यह एक नया और अद्भुत नजारा था. इस के पहले उस ने जीवन में कभी ऐसा नजारा नहीं देखा था.
सुनीता इस बात से बेखबर नहाने में मस्त थी. अचानक उसे अपने सामने किसी परछाई का आभास हुआ तो उस ने तुरंत नजरें उठा कर ऊपर देखा. छत पर खड़े नरेश को देख कर वह शरम से लाल हो गई. अपने दोनों हाथों से वक्षों को ढांपने की नाकाम कोशिश करते हुए वह कमरे की ओर भागी. सुनीता को उस हालत में देख कर नरेश खुद को रोक नहीं सका और सीढि़यां उतर कर उस के कमरे में जा पहुंचा. हैरानपरेशान सुनीता जस की तस खड़ी थी. नरेश ने आगे बढ़ कर सुनीता को अपनी बलिष्ठ भुजाओं में भर लिया. सुनीता ने कसमसा कर छूटने का हलका सा विरोध किया, लेकिन नरेश की मर्दानगी के आगे उस की एक न चली.
नरेश ने उस की खुली पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं भाभी. मैं तुम्हें इतनी खुशियां और सुख दूंगा, जिस की तुम ने कल्पना भी न की होगी.’’
नरेश की बांहों में सुनीता जिस सुख का अनुभव कर रही थी, वह उसे काफी दिनों से नहीं मिला था. क्योंकि इधर कृष्णलाल अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ ढोतेढोते इस कदर थक चुका था कि बाकी सब कुछ भूल चुका था. सही मायने में वह बूढ़ा हो चुका था. पत्नी या उस के अरमानों की भी उसे चिंता नहीं थी. जबकि सुनीता बेचैन रहती थी. यही वजह थी कि नरेश ने जब उसे बांहों में भरा तो सुनीता के सोए अरमान जाग उठे. उस की तमन्नाएं अंगड़ाइयां लेने लगीं और अंदर सोई औरत ने अपना सिर उठा लिया. वह भी अमरबेल की तरह नरेश से लिपट गई. इस के बाद उन्माद का ऐसा तूफान आया, जिस में सारी मर्यादाएं बह गईं. इस के बाद वह नरेश की मर्दानगी की दीवानी हो गई.
दोनों के बीच यह खेल शुरू हुआ तो रोज का किस्सा बन गया. कृष्णलाल के काम पर और बच्चों के स्कूल जाने के बाद सुनीता के घर के दरवाजे बंद हो जाते. उन बंद दरवाजों के पीछे मकान मालकिन और उस के युवा प्रेमी के बीच इस शिद्दत से वासना का खेल खेला जाने लगा कि उस की धमक पड़ोसियों तक जा पहुंची. चूंकि कृष्णलाल एक शरीफ और मेहनती आदमी था. पूरा मोहल्ला उस की इज्जत करता था, इसलिए गली के कुछ लोगों ने इशारोंइशारों में उसे समझा दिया कि उस की पीठ पीछे सुनीता क्या गुल खिला रही है? कृष्णलाल ने जब सुनीता से उस बारे में पूछा तो उस ने विरोध जताते हुए कहा, ‘‘मोहल्ले वालों की झूठी बातों में आ कर आप ने मुझ पर शक किया?’’
‘‘मैं शक नहीं कर रहा सुनीता, केवल पूछ रहा हूं.’’
‘‘पूछना क्या है, अगर आप को मुझ से ज्यादा मोहल्ले वालों की बातों पर विश्वास है तो बेशक आज ही नरेश से कमरा खाली करा लीजिए. उस के यहां रहने, न रहने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’
सुनीता की बातों पर विश्वास कर के कृष्णलाल शांत हो गया. वह जानता था कि सुनीता इस तरह का गलत काम नहीं कर सकती. लेकिन यह उस की भूल थी. एक दिन कृष्णलाल के पास दिल्ली के स्पेयर पार्ट्स के किसी व्यापारी को पैसों के लिए आना था. कृष्णलाल को उसे 27 हजार रुपए देने थे. सुबह जल्दबाजी में दुकान पर आते समय वह पैसे ले जाना भूल गया. व्यापारी आया तो उसे दुकान पर बैठा कर वह रुपए लेने घर आ पहुंचा. इत्तफाक से उस दिन सुनीता मुख्य दरवाजा बंद करना भूल गई थी. उस ने केवल कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया था.
कृष्णलाल मुख्य दरवाजा खोल कर अंदर पहुंचा तो उसे सुनीता के कमरे में हंसने की आवाज सुनाई दी. दरवाजा खुलवाने के बजाय उस ने कमरे की खिड़की की झिरी से अंदर झांका तो अंदर का हाल देख कर दंग रह गया. मारे गुस्से के उस का शरीर कांपने लगा. लेकिन वह कुछ बोला नहीं. लगभग 10 मिनट तक उसी तरह खड़ा रहा. उस के बाद दरवाजा खुलवाया तो दरवाजा खुलते ही नरेश तो भाग गया, जबकि सुनीता उस के पैरों पर गिर कर माफी मांगने लगी. उस ने बच्चों की कसम खा कर कहा कि भविष्य में अब वह ऐसी गलती नहीं करेगी.
सुनीता को माफ करने के अलावा कृष्णलाल के पास दूसरा कोई उपाय नहीं था. बात बढ़ाने से उस का घर ही नहीं बच्चों की भी जिंदगी बरबाद होती. कृष्णलाल ने उसे माफ कर दिया और नरेश से कमरा खाली करवा लिया. नरेश के जाने के बाद सुनीता अकेली पड़ गई. वह जल बिन मछली की तरह छटपटाती रहती थी. एक दिन दोपहर को चुपके से नरेश उस के यहां आया और अपने नए कमरे का पता और मोबाइल नंबर दे गया. इस के बाद सुनीता खुद उस के कमरे पर जाने लगी. कईकई घंटे सुनीता घर से गायब रहने लगी तो कृष्णलाल को उस पर शक हुआ. उस ने सुनीता से पूछा तो वह झूठ बोल गई.
कृष्णलाल ने सुनीता की काफी निगरानी की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ. वह किसी न किसी तरह चोरी से नरेश तक पहुंच जाती थी. कृष्णलाल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. काम देखे, बच्चों खयाल करे या सुनीता की निगरानी करे. उस का गुस्सा सीमा पार करने लगा. तभी एक घटना घट गई. नरेश ने जो नया कमरा किराए पर लिया था, वह सुभाषनगर में था. एक दिन कृष्णलाल को उसी मोहल्ले में अपने किसी ग्राहक का स्कूटर देने के लिए जाना पड़ा. वह जैसे ही उस मोहल्ले में पहुंचा, उसे सुनीता जाती दिखाई दी.
कृष्णलाल ने छिप कर उस का पीछा किया. वह नरेश के कमरे पर जा पहुंची. कृष्णलाल पीछे से वहां पहुंच गया. उस दिन नरेश के कमरे पर खूब हंगामा हुआ. कृष्णलाल ने सुनीता और नरेश की जम कर पिटाई की और सब के सामने कहा कि अगर दोनों अपनी हरकतों से बाज नहीं आए तो वह उन की हत्या कर देगा. इस घटना के बाद लगभग 2 महीने तक शांति रही. सुनीता ने नरेश से मिलना बंद दिया. कृष्णलाल को भी विश्वास हो गया कि सुनीता सुधर गई है. 28 अगस्त, 2014 की बात है. उस दिन सुबह से ही मूसलाधार बारिश हो रही थी, जिस की वजह से चारों ओर पानी ही पानी भर गया था.
रोज की तरह कृष्णलाल के दोनों बच्चे मनीष और ज्योति खाना ले कर दुकान पर पहुंचे तो वहां कृष्णलाल की खून से लथपथ लाश देख कर दोनों बच्चे डर के मारे रोने लगे. बच्चों को रोते देख पड़ोसी दुकानदार भाग कर आए तो कृष्णलाल की हालत देख कर पुलिस को सूचना दी. सूचना पा कर थाना बस्ती जोधेवाल के अतिरिक्त थानाप्रभारी इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. घटनास्थल के निरीक्षण के दौरान उन्होंने देखा कि स्कूटर का एक इंजन मृतक के शरीर के ऊपर पड़ा है तो दूसरा चेनपुली से बंधा उस के सिर के ठीक ऊपर लटक रहा है.
मृतक का सिर फटा था. वहां से बहा खून पूरी दुकान में फैला था. देखने से यही लगता था कि स्कूटर का भारी इंजन ऊंचाई से मृतक के सिर पर आ गिरा था, जिस की वजह से उस का सिर फट गया था और मौत हो गई थी. लेकिन इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह को यह मामला सिर पर गिरे इंजन द्वारा मौत होने का नहीं लगा. उन्हें यह मामला हत्या का लग रहा था. इस की वजह यह थी कि एक इंजन चैन से बंधा लटक रहा था. अगर मृतक के शरीर पर दूसरा इंजन गिरा था तो वह कहां बंधा था, क्योंकि दुकान में केवल एक ही चैनपुली थी. बहरहाल, इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने लाश का पंचनामा तैयार कर पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया और थाने आ कर इस मामले की रिपोर्ट दर्ज कर जांच शुरू कर दी.
इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह को साफ लग रहा था कि मृतक की मौत हादसा नहीं, बल्कि सोचीसमझी साजिश के तहत हत्या का मामला है. उन्होंने पड़ोसी दुकानदारों से पूछताछ की. सभी ने कहा कि मृतक एक शरीफ और मेहनती आदमी था. उस की किसी से कोई दुश्मनी नहीं थी. बारिश होने की वजह से उस दिन सभी अपनीअपनी दुकान के अंदर थे, इसलिए किसी को पता नहीं चल सका कि कृष्णलाल की दुकान में क्या और कैसे हुआ. यही बातें मृतक की पत्नी सुनीता ने भी बताई थीं. उस के अनुसार उस के पति का कोई दुश्मन नहीं था. इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने महसूस किया था कि बताते समय सुनीता के रोने में दुख कम, अभिनय अधिक था. उन्होंने मृतक कृष्णलाल के दोनों बच्चों से भी अलगअलग पूछताछ की. वे कुछ बताना चाहते थे, लेकिन डर की वजह से कुछ कह नहीं पा रहे थे.
अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया कि कृष्णलाल की मौत किसी चीज के गिरने या टकराने से नहीं हुई थी, बल्कि उस की हत्या सिर पर कोई भारी चीज मार कर की गई थी. अब सवाल यह था कि कृष्णलाल जैसे सीधेसादे इंसान की जान का दुश्मन कौन हो सकता था? इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने अपने कुछ खास मुखबिरों को सुनीता के पीछे लगा दिया और खुद सुनीता के पड़ोसियों से पूछताछ शुरू कर दी. इस पूछताछ में उन्हें कृष्णलाल की हत्या से जुड़ी कई अहम बातें पता चलीं तो उन्होंने लेडी हेडकांस्टेबल जसप्रीत कौर को भेज कर पूछताछ के लिए सुनीता को थाने बुलवा लिया.
पहले तो सुनीता कृष्णलाल की हत्या के बारे अनभिज्ञता प्रकट करती रही, लेकिन जब जसप्रीत कौर ने थोड़ी सख्ती की तो उस ने स्वीकार कर लिया कि कृष्णलाल की हत्या नरेश ने की है. और हत्या की योजना दोनों ने मिल कर बनाई थी. सुनीता की निशानदेही पर तुरंत नरेश को हिरासत में ले लिया गया. दोनों से हुई पूछताछ के बाद कृष्णलाल की हत्या की जो कहानी प्रकाश में आई, वह इस प्रकार थी. दरअसल, कृष्णलाल द्वारा की जाने वाली निगरानी से सुनीता तंग आ चुकी थी. जबकि अब वह नरेश के बिना बिलकुल नहीं रह सकती थी. नरेश भी उस के लिए पागल था. सुनीता को नरेश से जो शारीरिक सुख मिल रहा था, कृष्णलाल वैसा सुख कभी नहीं दे सका था. इसलिए वह नरेश की खातिर अपने पति और बच्चों तक को छोड़ने को तैयार थी.
लेकिन कृष्णलाल के रहते यह संभव नहीं था. इस के अलावा सुनीता और नरेश यह भी चाहते थे कि यह मकान भी उन के हाथ से न निकले. इसलिए काफी सोचविचार कर दोनों ने योजना बनाई कि कृष्णलाल की हत्या कर दी जाए. उस के न रहने पर मकान अपनेआप सुनीता को मिल जाएगा, उस के बाद दोनों शादी कर लेंगे. जिस दिन यानी 28 अगस्त, 2014 कृष्णलाल की हत्या हुई, उस से बात करने के बहाने नरेश दोपहर को उस की दुकान पर जा पहुंचा. उस समय तेज बारिश हो रही थी. सड़कें सूनी पड़ी थीं. ग्राहक न आने पर कृष्णलाल भी आराम करने की नीयत से दुकान की फर्श पर दरी बिछा कर लेटा हुआ था.
जिस समय नरेश उस की दुकान पर पहुंचा था, उस समय कृष्णलाल सो रहा था. कृष्णलाल को आभास नहीं हुआ कि मौत दबे पांव उस के सिरहाने आ कर खड़ी हो गई है. कृष्णलाल को सोते हुए पा कर नरेश का काम आसान हो गया. बिना कोई आहट किए वह दुकान में चला गया और वहां रखा भारी हथौड़ा उठा कर कृष्णलाल के सिर पर दे मारा. नरेश का यह वार इतना सटीक और शक्तिशाली था कि उसी एक वार में कृष्णलाल की मौत हो गई. इस के बावजूद उस ने उस पर कई वार कर दिए थे.
नरेश जिस तरह दबे पांव दुकान में आया था, कृष्णलाल को मौत के घाट उतार कर उसी तरह लौट गया. संयोग से दुकान से निकलते हुए उसे कृष्णलाल के बच्चों ने देख लिया था. लेकिन सुनीता ने उन्हें डरा दिया था कि अगर उन्होंने यह बात किसी को बताई तो पुलिस उन्हें पकड़ ले जाएगी. इसीलिए दोनों बच्चे डरे हुए थे. नरेश और सुनीता के अपराध स्वीकार कर लेने के बाद इंसपेक्टर सुरेंद्र सिंह ने कृष्णलाल की हत्या के आरोप में नरेश तथा साजिश रचने के आरोप में सुनीता को गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर के 2 दिनों के पुलिस रिमांड पर लिया. रिमांड अवधि के दौरान वह हथौड़ा भी बरामद कर लिया गया, जिस से कृष्णलाल की हत्या की गई थी.
रिमांड अवधि समाप्त होने के बाद दोनों अभियुक्तों को एक बार फिर अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. सुनीता अगर परपुरुष की बांहों में अपना सुख न तलाशती तो आज उस का और उस के बच्चों का भविष्य सुरक्षित रहता. उस की बेलगाम इच्छा ने उस का घर तो बरबाद किया ही, साथ ही उस के दोनों बच्चों का भविष्य भी अंधकारमय बना दिया. उस के दोनों बच्चे नानानानी के पास जालंधर में रह रहे हैं. Ludhiana News