Crime News: जरूरत पड़ने पर अकसर शगुफ्ता खान अरविंद गुप्ता की मदद करती रहीं. फिर ऐसा क्या हुआ कि अरविंद को अपनी मददगार का खून करना पड़ा…
स्कूल से छुट्टी होने के बाद 12 वर्षीया आलिया अपनी 8 वर्षीया छोटी बहन जिया के साथ अपने फ्लैट पर पहुंची तो उस दिन हमेशा की तरह उसे फ्लैट की डोरबेल नहीं बजानी पड़ी, क्योंकि फ्लैट का दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था. वह बहन के साथ अंदर चली गई. ड्राइंगरूम में उसे मम्मी शगुफ्ता खान नहीं दिखाई दीं तो वह उन्हें खोजते हुए बैडरूम में पहुंची. वहां उस ने जो देखा, एकदम से डर गई. बैडरूम में एक लड़का शगुफ्ता खान को दबोचे हुए एक लंबे फल वाले चाकू से उन पर हमला करने की कोशिश कर रहा था.
मम्मी की जान खतरे में देख कर आलिया ने अपना स्कूल बैग उतार कर फेंका और मम्मी को बचाने के लिए उस लड़के के कपड़े पीछे से पकड़ कर खींचते हुए बोली, ‘‘अंकल, मेरी मम्मी को छोड़ दो, उन्हें मत मारो.’’
लेकिन लड़के ने आलिया की बात सुनने के बजाय उसे झटक दिया और उस के सामने ही शगुफ्ता खान की गरदन पर चाकू से वार कर के काट दिया. गरदन कटने से शगुफ्ता खान छटपटाने लगीं और फिर थोड़ी देर में शांत हो गईं. शगुफ्ता खान की हत्या करने के बाद उस लड़के ने आलिया और जिया को वही चाकू दिखा कर बैडरूम के एक कोने में बैठा कर बोला, ‘‘तुम दोनों बहनें चुपचाप यहीं बैठी रहना, वरना तुम्हारी मम्मी की तरह तुम्हारा भी गला काट दूंगा.’’
आलिया और जिया को कोने में बैठा कर वह लड़का एक बार फिर मर चुकी शगुफ्ता खान के पास पहुंचा और उन की कमर में लटक रहा अलमारी की चाबियों का गुच्छा ले कर अलमारी खोली और उस में रखे गहने दी, तथा नगद को एक थैले में डाला और जल्दी से बाहर आ कर इमारत के कंपाउंड में खड़े औटो पर सवार हो कर भाग गया. यह 11 नवंबर, 2014 की घटना थी. हत्यारे के जाने के बाद आलिया और जिया जब थोड़ा सहज हुईं तो आलिया ने सब से पहले इस घटना की जानकारी आस्ट्रेलिया गए अपने पिता सोनू जालान और उस के बाद अपने कार ड्राइवर को दी. इस के बाद दोनों बहनें फ्लैट के बाहर आईं और मदद के लिए शोर मचाने लगीं.
चूंकि कार का ड्राइवर इमारत के कंपाउंड में ही था, इसलिए वह तुरंत भाग कर आलिया और जिया के पास आ गया. उस के आतेआते शोर सुन कर अगलबगल रहने वाले लोग भी आ गए थे. उन लोगों ने आलिया और जिया को संभालने के बाद जो देखासुना, उस से उन का कलेजा मुंह को आ गया. इमारत में रहने वाले इस घटना की सूचना पुलिस को देते, उस के पहले ही थाना मलाड पुलिस घटनास्थल पर आ गई. दरअसल आलिया ने जैसे ही मां की हत्या की बात पापा सोनू जालान को बताई, उन्होंने आस्ट्रेलिया से ही अपने दोस्त विमल अग्रवाल को फोन किया. इस के बाद विमल अग्रवाल ने मुंबई के उपनगर कांदीवली पश्चिम स्थित सीआईडी क्राइम ब्रांच को फोन कर के बताया कि मलाड पश्चिम के रुस्तमजी रिवेरा इमारत की छठवीं मंजिल स्थिति फ्लैट नंबर 64 में एक हत्या हो गई है. वहीं से इस घटना की सूचना थाना मलाड पुलिस को भी दे दी गई थी.
घटना की सूचना मिलने के तुरंत बाद इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव ने इस घटना की जानकारी अपने सीनियर इंसपेक्टर अभिनाश सावंत के साथसाथ पुलिस कंट्रोल रूम एवं उच्चाधिकारियों को भी दे दी थी. इस के बाद अपने साथ सहायक इंसपेक्टर नितिन विचारे, मनोहर हरपुड़े, शरद झीने, सिपाही वुगड़े, मोरे, माने, कोड़े और गोले को ले कर घटनास्थल की ओर चल पड़े थे. घटनास्थल क्राइम ब्रांच सीआईडी औफिस से 4-5 किलोमीटर दूर था, इसीलिए पुलिस की इस टीम को वहां पहुंचने में 20-25 मिनट लगे. तब तक थाना मलाड पुलिस वहां पहुंच चुकी थी. पूछताछ में पता चला कि जिस फ्लैट के अंदर हत्या हुई थी, वह फ्लैट क्रिकेट के एक बड़े बुकी (सट्टेबाज) सोनू जालान का था. हत्या उस की पत्नी शगुफ्ता खान की हुई थी.
उस फ्लैट में शगुफ्ता खान अपनी 2 बेटियों, आलिया एवं जिया के साथ रहती थीं. उस समय किसी बात को ले कर पतिपत्नी में विवाद चल रहा था, जिस की वजह से सोनू जालान अपनी वृद्ध मां के साथ कांदीवली के महावीरनगर में रहता था. इस के बावजूद वह पत्नी और बेटी का पूरा खयाल रखता था. घटना के समय वह आस्टे्रलिया में था. शुरुआती जांच में इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव को मामला काफी रहस्यमय लगा. फ्लैट के बैडरूम में शगुफ्ता खान की लाश पड़ी थी. लाश के पास ही वह चाकू भी पड़ा था, जिस से उस की हत्या की गई थी. ऐसा लगता था, जैसे हत्यारे को मृतका से गहरी नफरत थी. बैडरूम में रखी अलमारी के दोनों पट खुले थे और उस का सारा सामान बिखरा पड़ा था. तिजोरी में चाबियों का गुच्छा लटक रहा था, जिस से स्पष्ट था कि हत्यारे ने हत्या करने के बाद लूटपाट भी की थी.
सीआईडी क्राईम ब्रांच और थाना मलाड पुलिस घटनास्थल और लाश की जांच करने के बाद पूछताछ कर के सुबूत जुटाने की कोशिश कर रही थी कि सीआईडी क्राइम ब्रांच के ज्वाइंट सीपी सदानंद दाते, डीसीपी मोहन कुमार दहिकर, एसीपी सुनील देशमुख, सीनियर इंसपेक्टर अभिनाश सावंत, प्रेस फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट ब्यूरो की टीम भी घटनास्थल पर आ गई थी. प्रेस फोटोग्राफर और फिंगरप्रिंट ब्यूरो ने अपना काम खत्म कर लिया तो अधिकारियों ने भी घटनास्थल का निरीक्षण किया. निरीक्षण के बाद थाना मलाड पुलिस ने घटनास्थल की जरूरी काररवाई निपटा कर शगुफ्ता खान की लाश को पोस्टमार्टम के लिए बोरीवली के भगवती अस्पताल भिजवा दिया. इस के बाद पुलिस आसपड़ोस के लोगों के बयान ले कर थाने आ गई.
शुरुआती जांच में पुलिस को मृतका शगुफ्ता खान के पति सोनू जालान पर शक हुआ. क्योंकि पतिपत्नी के बीच विवाद चल रहा था. हत्या के समय वह देश के बाहर था, इसलिए पुलिस को संदेह हुआ कि कहीं उसी ने पत्नी से छुटकारा पाने के लिए किसी सुपारी किलर से हत्या करा दी है. इस की वजह यह थी कि सोनू जालान क्रिकेट का एक बड़ा बुकी था. उसे सन 2005 से सन 2010 के बीच सीआईडी क्राइम ब्रांच ने 2 बार गिरफ्तार किया था. इस खेल में लाखों का वारान्यारा होता था, जिसे पुलिस ने जब्त भी किया था. उस स्थिति में कई सट्टेबाजों की रकम डूब गई थी. जिस की वजह से सोनू जालान के कई दुश्मन हो गए थे. इस से एक संभावना यह भी बनती थी कि उस के किसी दुश्मन ने इस घटना को अंजाम दिया होगा?
बहरहाल, स्थिति कुछ भी रही हो, जांच टीम के लिए राहत की बात यह थी कि हत्यारा मृतका शगुफ्ता खान की जानपहचान का था और उस के घर आताजाता रहता था. इस बात की जानकारी पड़ोसियों से हुई थी. इमारत में लगे सीसीटीवी कैमरे की फुटेज से उस की शिनाख्त भी हो गई थी. अब पुलिस को उस तक पहुंचने के लिए उस के बारे में अधिक से अधिक जानकारी जुटानी थी. हत्यारे के बारे में पता लगाने के लिए सीआईडी क्राइम ब्रांच के सीनियर इंसपेक्टर अविनाश सावंत ने इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव के नेतृत्व में एक टीम गठित कर दी. चिंभाजी आढ़ाव टीम के साथ जांच की दशादिशा तय कर रहे थे कि मृतका शगुफ्ता खान का पति सोनू जालान अपनी दोनों बेटियों आलिया और जिया के साथ सीआईडी क्राइम ब्रांच के औफिस आ पहुंचा.
पूछताछ में उस ने पुलिस को बताया कि उस की पत्नी की हत्या की सूचना उस की बड़ी बेटी आलिया ने दी थी. उस के बाद सच्चाई का पता लगाने के लिए उस ने अपने दोस्त विमल अग्रवाल को फोन किया था. जब विमल ने हत्या की पुष्टि कर दी तो वह तुरंत फ्लाइट पकड़ सीधे मुंबई आ गया. इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव ने जब उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया कि सन 2010 तक वह क्रिकेट की सट्टेबाजी से जुड़ा रहा. लेकिन उस के बाद उस ने सट्टेबाजी से तौबा कर लिया. इस समय वह औटोपार्ट्स का व्यवसाय कर रहा था. उसी के सिलसिले में वह आस्ट्रेलिया गया था.
रही बात पत्नी से विवाद की तो वह सट्टेबाजी को ही ले कर था. यह काम उस की पत्नी शगुफ्ता खान को पसंद नहीं था. मां से उस की पटती नहीं थी, इसलिए वह यहां अलग रहती थी. सोनू जालान ने हत्यारे का नाम भी बता दिया था. हत्यारे का नाम अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू था, जो गोरेगांव के सिटी सेंटर मौल स्थित शीराज खान की दुकान पर उठताबैठता था. वहीं से शगुफ्ता खान से उस की जानपहचान हुई थी और वह उस के घर भी आनेजाने लगा था. जरूरत पड़ने पर शगुफ्ता खान उस की आर्थिक मदद भी कर दिया करती थी. सोनू जालान और उस की बेटियों से पूछताछ के बाद इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव को जांच की दिशा मिल गई थी. इस के बाद पल भर की भी देर किए बगैर वह गोरेगांव के सिटी सेंटर मौल स्थित शीराज खान की दुकान पर पहुंच गए थे.
अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू के बारे में पूछने पर शीराज खान ने बताया कि वह औटो चलाता था. जब खाली होता था, उस के यहां आ कर बैठ जाता था और इधरउधर की बातें किया करता था. ऐसे में कभीकभार जरूरत पड़ने पर वह उस के छोटेमोटे काम भी कर देता था. काम पड़ने पर ही शीराज खान ने उसे कई बार शगुफ्ता खान के फ्लैट पर भी भेजा था. लेकिन इधर 2, ढाई महीने से वह उसकी दुकान पर नहीं आया था. इस बीच उस की कोई बातचीत भी नहीं हुई थी. जब काफी दिनों से अरविंद दिखाई नहीं दिया तो शीराज खान ने उस के दोस्तों से उस के बारे में पता किया. दोस्तों ने बताया था कि वह कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया से कोई लड़की भगा ले गया था, जिस की वजह से कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया के लड़के उसे खोज रहे थे.
शीराज खान से इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव को कोई काम की जानकारी नहीं मिली. लेकिन उन से उन्हें अरविंद और उस के दोस्तों के बारे में जरूर पता चल गया था. उन्होंने उस के घर वालों और दोस्तों से उस के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि अरविंद कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया की जिस लड़की को भगा कर ले गया था, उस की एक बहन, भाई और एक सहेली रेशमा जनपद थाना के नाला सोपारा में संतोष भवन के आसपास रहती है. रेशमा पश्चिम बंगाल की रहने वाली थी और बांग्लादेश की सीमा पर दलाली करती थी. वह लोगों को सीमा पार कराने का काम करती थी.
यह जान कर मामले की जांच कर रहे इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव के माथे पर बल पड़ गए, क्योंकि अगर अरविंद सीमा पार कर के बांग्लादेश चला जाता तो पकड़ना मुश्किल हो जाता. इस बात को ध्यान में रख कर पुलिस अरविंद के पीछे हाथ धो कर पड़ गई. नालासोपारा में रह रही लड़की की बहन, उस की सहेली रेशमा और उस के भाई से अरविंद के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि घटना से 2-3 दिन पहले वह उन के पास आया था और सीमा पार कराने के लिए कह रहा था. लेकिन उस के बाद न वह आया और न उस का कोई समाचार ही मिला. उन लोगों ने यह जरूर बताया कि घटना वाले दिन सुबह उस लड़की का बांग्लादेश से जरूर फोन आया था, जिसे अरविंद ने कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया से भगाया था. वह अरविंद के बारे में पूछ रही थी. उस का कहना था कि पिछले 2 दिनों से उस का कोई फोन नहीं आया. उस का फोन भी बंद है.
पुलिस ने बांग्लादेश से आए उस लड़की का मोबाइल नंबर ले लिया और उस की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में अरविंद गुप्ता का नया नंबर मिल गया. पुलिस ने जब इस नंबर पर अरविंद की बात उस लड़की की बहन से कराई तो अरविंद ने उस ट्रेन के बारे में बता दिया, जिस से वह पश्चिम बंगाल जा रहा था. अब पुलिस को उस ट्रेन से पहले हावड़ा रेलवे स्टेशन पहुंचना था. इस के लिए टीम ने सीनियर पुलिस अधिकारियों से बात की और हवाईजहाज से ट्रेन से पहले कोलकाता पहुंच गए. पुलिस टीम हवाई अड्डे से टैक्सी से सीधे हावड़ा रेलवे स्टेशन पहुंची और 23 नवंबर, 2014 की सुबह स्थानीय पुलिस की मदद से अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू को ट्रेन से उतरते ही गिरफ्तार कर लिया.
उसी दिन उसे वहां अदालत में पेश किया गया और ट्रांजिट रिमांड पर मुंबई लाया गया. सीनियर अधिकारियों की उपस्थिति में अरविंद से की गई पूछताछ में शगुफ्ता खान की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी. 20 वर्षीया अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू का परिवार मूलरूप से उत्तर प्रदेश के जनपद आजमगढ़ का रहने वाला था. उस के पिता विजय कुमार गुप्ता सालों पहले रोजीरोटी की तलाश में महानगर मुंबई आ गए थे. मुंबई में वह उपनगर गोरगांव के मंगतसिंहनगर में किराए का मकान ले कर रहने लगे थे.
गुजरबसर के लिए विजय कुमार औटो चलाने लगे थे. उन की 5 संतानें हुईं, 3 बेटे और 2 बेटियां. विजय कुमार गुप्ता सीधेसाधे सरल स्वभाव के ईमानदार आदमी थे. परिवार बड़ा था. उन की कमाई ज्यादा नहीं थी. आर्थिक तंगी की ही वजह से वह बच्चों को ज्यादा पढ़ालिखा नहीं सके. इसलिए बेटे जैसेजैसे बड़े होते गए औटो चलाना सिखा दिया. बेटे औटो चलाने लगे तो उन्होंने उन की शादियां कर दीं. बेटियों की भी शादियां हो गईं. अरविंद गुप्ता उर्फ गुड्डू विजय कुमार के बच्चों में सब से छोटा था. छोटा होने की वजह से वह सभी का लाडला था. वह जवान भी हो गया और कमाने भी लगा, इस के बावजूद परिवार के प्रति अपनी कोई जिम्मेदारी नहीं समझता था. वह औटो से जो भी कमाता था, अपने ऊपर उड़ा देता था.
अपनी कमाई की एक फूटी कौड़ी घर वालों को नहीं देता था. उस के दोस्त भी वैसे ही थे. इन की कमाई का अधिक आवारागर्दी, तरहतरह के नशे और शबाब पर हिस्सा खर्च होता था. मौजमजे के लिए कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया जाना इन के लिए आम बात थी. इन सब बातों की जानकारी अरविंद के घर वालों को हुई तो उन्होंने उस पर अंकुश लगाने की कोशिश की, लेकिन तब तक वह इतना आगे निकल चुका था कि उस पर घर वालों के अंकुश का कोई असर नहीं पड़ा. मजबूर हो कर घर वालों ने उसे उस की हालत पर छोड़ दिया.
खाली समय में अरविंद गोरेगांव के सिटी सेंटर मौल स्थित सीराज खान की दुकान पर बैठता था. वह मोबाइल फोन बेचने के साथ रिपेयरिंग का भी काम करते थे. बैठनेउठने में अरविंद और सीराज खान के बीच खासी पटने लगी थी. धीरेधीरे वह उन का विश्वासपात्र बन गया. इस के बाद जरूरत पड़ने पर वह उस के भरोसे दुकान छोड़ कर तो जाने ही लगा, किसी ग्राहक के यहां भी जाना होता तो उसे भेज देता था. शगुफ्ता खान भी सीराज खान की ग्राहक थीं. वह काफी संपन्न और सभ्रांत थीं. सिराज खान की दुकान पर आनेजाने में अरविंद से भी उन की जानपहचान हो गई थी. अरविंद के बातव्यवहार से वह काफी प्रभावित थीं.
सीराज खान के कहने पर वह कई बार उन का सामान ले कर शगुफ्ता खान के घर आयागया तो दोनों में काफी घनिष्ठता हो गई. वह परिवार से भी हिलमिल गया. इसी हिलमिल जाने की ही वजह से जरूरत पड़ने पर शगुफ्ता खान ने कई बार उस की आर्थिक मदद भी की थी. शगुफ्ता खान ने जब अरविंद की कई बार मदद की तो उसे लगा कि अगर वह उन से मोटी रकम भी मांगेगा तो वह दे देंगी. यही सोच कर अरविंद शगुफ्ता खान से एक मोटी रकम मांग भी बैठा, लेकिन उन्होंने देने से मना कर दिया. यह बात अरविंद को काफी बुरी लगी और वह उन से नाराज हो गया.
अरविंद का सोचना था कि शगुफ्ता खान को उस पर विश्वास नहीं है, इसलिए वह उसे पैसा नहीं देना चाहती. अरविंद ने वह मोटी रकम शगुफ्ता खान से उस लड़की की मदद के लिए मांगे थे, जिस से वह प्यार करता था और उस से शादी करना चाहता था. दरअसल, वह दोस्तों के साथ कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया की जिस गली में जाता था, उस गली में रानी नाम की एक नई लड़की आई थी. उसे देख कर वह होश खो बैठा था और उस का दीवाना हो गया था. उस से मिलने के बाद जब उसे उस की मार्मिक कहानी का पता चला तो उस का दिल द्रवित हो उठा था.
रानी बांग्लादेश की रहने वाली थी. उस के घर वाले बहुत गरीब थे. उस की एक बहन पहले से ही मुंबई के नाला सोपारा में रहती थी. लेकिन उस की भी आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं थी, इसलिए वह मांबाप की कुछ खास मदद नहीं कर पाती थी. मांबाप की मदद के लिए रानी भी मुंबई आना चाहती थी, लेकिन समस्या थी सीमा पार करने की. रानी इस बारे में सोचविचार रही थी कि उस की मुलाकात एक ऐसे लड़के से हुई जो गांव की गरीब और भोलीभाली लड़कियों को बहलाफुसला कर मुंबई ले आता था और उन्हें कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया में बेच देता था, जहां उन की जिंदगी में ग्रहण लग जाता था.
रानी को अच्छी नौकरी दिलाने और बहन से मिलाने का वादा कर के वह लड़का उसे मुंबई ले आया और कमाठीपुरा की रेडलाइट एरिया में बेच दिया. रानी को कमाठीपुरा आए कुछ ही दिन हुए थे कि एक दिन अरविंद गुप्ता उस के यहां जा पहुंचा. जब उसे रानी के बारे में पता चला तो उसे उस से सहानुभूति हो गई और वह उसे उस दलदल से बाहर निकालने की कोशिश में जुट गया. लेकिन यह इतना आसान काम नहीं था. 24 घंटे मकान मालकिन और उस के आदमियों की रानी पर नजर रहती थी. अरविंद ने मकान मालकिन से रानी को आजाद करने की बात की तो उस ने 50 हजार रुपए मांगे. इतने रुपए अरविंद के पास नहीं थे. उस ने शगुफ्ता खान से मदद मांगी. छोटीमोटी आर्थिक मदद की बात अलग थी, इतने रुपए वह अरविंद को किस भरोसे पर देतीं, सो उन्होंने रुपए देने से मना कर दिया.
इस के बाद अरविंद के पास एक ही उपाय बचा कि वह किसी तरह मकान मालकिन तथा उस के आदमियों का विश्वास जीते और फिर मौका मिलते ही वह रानी को ले कर कहीं भाग जाए. अरविंद ने ऐसा ही किया. सितंबर महीने में वह रानी को ले कर भाग गया. कमाठीपुरा से भागने के बाद दोनों बांग्लादेश जाना चाहते थे, लेकिन वे सीमा नहीं पार कर सके. मजबूरन उन्हें मुंबई वापस आना पड़ा. मुंबई में वह रानी के साथ नाला सोपारा में रहने वाली उस की बहन के यहां रुका. लेकिन जब अरविंद को पता चला कि रानी की मकान मालकिन और उस के आदमी पागल कुत्तों की तरह उन्हें खोज रहे हैं तो रेशमा की मदद से वह रानी के साथ बांग्लादेश चला गया. अरविंद रानी से शादी कर के बांग्लादेश में बस जाना चाहता था. लेकिन वहां रहने के लिए उसे कामधंधे की जरूरत थी, जिस के लिए पैसे चाहिए थे. अब पैसे कहां से आएं?
इस बारे में अरविंद ने सोचाविचारा तो उसे शगुफ्ता खान की याद आ गई. उसे लगा कि शगुफ्ता खान से उसे इतनी रकम तो मिल ही सकती है, जिस से उस का काम आसानी से चल सकता है. उस ने उस की मदद नहीं की थी, इसलिए वह उसे सबक भी सिखाना चाहता था. वह शगुफ्ता खान के यहां लूटपाट की योजना बना कर मुंबई आ गया. मुंबई आने के बाद अरविंद ने रानी की बहन और सहेली रेशमा से बांग्लादेश की सीमा पार कराने की बात की. उस के बाद बाजार से एक चाकू खरीदा, जिस से शगुफ्ता खान को डराया जा सके. इस के बाद औटो ले कर वह शगुफ्ता खान के घर पहुंच गया. औटो वाले को नीचे खड़ा कर के वह उस के फ्लैट पर पहुंचा. उस समय शगुफ्ता खान अकेली थीं. उसे डराधमका वह उस से अलमारी की चाबी मांगने लगा.
अरविंद शगुफ्ता खान की हत्या नहीं करना चाहता था, लेकिन उसी बीच शगुफ्ता खान की दोनों बेटियां आ गईं तो वह घबरा गया. उस की योजना फेल न हो जाए, उस ने उस की हत्या कर के चाबी ली और अलमारी खोल कर नगद और गहने ले कर नीचे आ गया. औटो उस ने रुकवा ही रखा था, उसी पर सवार हुआ और मलाड स्टेशन जा पहुंचा. वहां से लोकल ट्रेन पकड़ कर वह विलेपार्ले में रहने वाले अपने एक दोस्त के पास गया. उस की मदद से उस ने एक मोबाइल फोन, अपने और रानी के लिए कुछ कपड़े खरीदे. वहीं से उस ने रानी से अपने नए मोबाइल फोन से बात की और कुर्ला लोकमान्य तिलक रेलवे स्टेशन से ज्ञानेश्वरी एक्सपे्रस पकड़ कर कोलकाता के लिए रवाना हो गया.
उस का सोचना था कि अगर वह सीमा पार कर के बांग्लादेश पहुंच जाएगा तो मुंबई पुलिस उस का कुछ नहीं कर पाएगी. लेकिन उस ने गलती यह कर दी कि रानी को उस ट्रेन के बारे में बता दिया, जिस से वह जा रहा था. पूछताछ के बाद इंसपेक्टर चिंभाजी आढ़ाव ने लूट का सारा माल जब्त कर के अरविंद को थाना मलाड पुलिस के हवाले कर दिया. मलाड पुलिस ने उसे अदालत में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.Crime News


 
 
 
            



 
                
                
                
                
                
                
                
               
 
                
                
               
