Motivational Story: दाल और चावल पर ही नहीं, रामदाने तथा सरसों के दाने पर कलाकृति बनाने वाले चित्रकार राजकुमार वर्मा को जब कोई पुरस्कार मिलता है तो उस के बाद वह कोई ऐसी चित्रकारी करते हैं, जो सब को हैरान कर देती है. मन में कुछ कर गुजरने की चाहत और हौसले बुलंद हों तो मुश्किल से मुश्किल काम भी आसान हो जाता है. इसी बात को सच कर दिखाया है 62 वर्षीय राजकुमार वर्मा ने. उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के राजघाट के मोहल्ला बसंतपुर के रहने वाले राजकुमार ने नंगी आंखों से रामदाने, चावल के दाने, काले तिल और चने की दाल पर छोटे से छोटा चित्र उकेर कर कई पुरस्कार और सम्मान हासिल करने में सफलता हासिल की है.

ऐसा नहीं कि इन्हें यह सफलता और शोहरत रातोंरात मिल गई है, यह सब इन की लगभग 40 सालों की साधना का परिणाम है. राजकुमार वर्मा के हाथों में कैनवास उसी दिन आने के लिए बेताब हो उठा था, जब वह सन 1975 में गोरखपुर महानगर के नगरनिगम हाल में लगी एक प्रदर्शनी देखने गए थे. उस प्रदर्शनी में विभिन्न तरह की दालों पर अलगअलग देवीदेवताओं के तैलीय रंग से उकेरी गई तसवीरें रखी थीं. छोटीछोटी दालों के ऊपर उकेरी गई तसवीरों ने राजकुमार वर्मा के मन में कुछ करने की चाहत पैदा कर दी थी. राजकुमार उस समय इंटरमीडिएट में पढ़ रहे थे. उसी समय उन्होंने तय कर लिया कि वह भी इस माइक्रो आर्ट के जरिए कुछ ऐसा करने की कोशिश करेंगे, जिस की लोग तारीफ करें.

इस के बाद दालों और चावल के दाने पर राजकुमार वर्मा ने चित्रकारी करने की कोशिश शुरू कर दी. शुरुआत में वे असफल रहे. लेकिन उन के मन में कुछ करने की तमन्ना थी, इसलिए उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. करीब एक साल के अभ्यास और अथक परिश्रम के बाद असफलता ने उन की लगन के आगे घुटने टेक दिए और सन 1976 में वह चने की दाल पर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का चित्र बनाने में सफल हो गए. चने की दाल पर बने रवींद्रनाथ टैगोर के रंगीन चित्र को काफी लोगों ने पसंद किया. इस के बाद उन्होंने काले तिल, रामदाने, हाथी दांत, चावल और दाल के दानों पर चित्र बना कर अपनी पहचान बनानी शुरू कर दी.

राजकुमार वर्मा के परिवार में पत्नी के अलावा 4 बच्चे हैं. वह पेशेवर घड़ीसाज हैं और यह धंधा उन्हें विरासत में मिला है. उन के पिता भी एक कामयाब घड़ीसाज थे. शहर में हाल्सीगंज चौराहे के पास उन की छोटी सी दुकान है. पिता से काम सीखने के बाद राजकुमार वर्मा ही अब इस दुकान को संभालते हैं. कठिन परिश्रम और लगन का ही नतीजा था कि राजकुमार ने मुश्किल और कठिनाइयों के साथ आर्थिक तंगी की मार भी झेली, लेकिन वह लगातार प्रयास कर के आगे बढ़ते रहे. सन 1978 में बाम्बे आर्ट सीखने के बाद उन के हाथों में गजब की चमक आ गई. इस चमक का लाभ उन्हें माइक्रो आर्ट के रचनात्मक कार्य में मिला.

इस के बाद उन्होंने चावल, दाल और सरसों के दाने पर महाराणा प्रताप, शिवाजी, अकबर, शाहजहां, बहादुरशाह जफर, गौतमबुद्ध, गुरुनानक, भीमराव अंबेडकर, महात्मा गांधी, राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, सरदार भगत सिंह, नेलसन मंडेला, यासर अराफात, मदर टेरेसा, गोर्वाचोव, जार्ज बुश, सद्दाम हुसैन, श्री राम, श्री कृष्ण, विष्णु, गणेश, ईसा मसीह, जगन्नाथ, सरस्वती और हनुमान के चित्रों के अलावा ताजमहल, कुतुबमीनार, सांची का स्तूप, सुप्रीम कोर्ट, बुद्धमंदिर आदि ऐतिहासिक इमारतों के भी चित्र बनाए.

राजकुमार वर्मा ने गौतम बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं और राम दरबार का डाक टिकट साइज का चित्र बना कर सब को आश्चर्यचकित कर दिया. इस के बाद जब उन्होंने एक बाल को लंबवत 10 भागों में बड़ी सफाई से काट कर दिखाया तो लोग चौंक गए, क्योंकि ऐसा करना मुमकिन ही नहीं, नामुमकिन था. दूसरा इतिहास उन्होंने चावल के दाने पर अंग्रेजी के 550 अक्षर लिख कर रच दिया. काम के प्रति वफादारी और दीवानगी की बदौलत वह इतिहास पर इतिहास रचते गए. दिनरात एक कर के नईनई उपलब्धियां हासिल करने वाले राजकुमार वर्मा को सन 1981 में ‘स्मृति कला प्रतियोगिता गोरखपुर’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन का यह पहला पुरस्कार था.

इसे पा कर वह खुश तो हुए, लेकिन उन की कला के प्रति जिम्मेदारियां और बढ़ गईं. वह समर्पित भाव से अपने काम में लगे रहे. इस का नतीजा यह निकला कि उन्हें 1982 में ‘स्मृति कला प्रतियोगिता’, 1989 में ललित कला संगीत विकास परिषद, पडरौना और 2000 में अंतरराष्ट्रीय श्री सीताराम बैंक सेवा ट्रस्ट अयोध्यापुरी की ओर से विशिष्ट स्वर्ण पदक पुरस्कार प्रदान किए गए. इन पुरस्कारों के अतिरिक्त राजकुमार वर्मा को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी, तत्कालीन खाद्य मंत्री कल्पनाथ राय, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, फिल्म निर्देशक राजकुमार संतोषी और फिल्म अभिनेता आमिर खान की ओर से प्रशंसापत्र प्रदान किए जा चुके हैं.

ख्याति प्राप्त करने की ललक में उन्होंने मात्र डेढ़ सेंटीमीटर की हनुमान चालीसा पुस्तक की रचना की. बाद में लखनऊ के एक नागरिक को राजकुमार वर्मा की यह उपलब्धि इतनी अच्छी लगी कि उस ने डेढ़ लाख रुपए में वह हनुमान चालीसा खरीद लिया. डेढ़ सेंटीमीटर में ही उन्होंने दुरुद शरीफ (कुरान का एक हिस्सा) जैसी अद्भुत पुस्तक अरबी भाषा में लिख कर सभी को चौंका दिया. विश्व इतिहास रचने के लिए राजकुमार ने दूसरी बार हनुमान चालीसा लिखा. इस बार उस का आकार पहले से छोटा यानी 1 सेंटीमीटर था. कुल 50 पृष्ठों वाली इस हनुमान चालीसा में 25 पेजों पर रंगीन चित्र और 25 पेजों में हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, हनुमानाष्टक और आरती लिखी है.

एक सेंटीमीटर के हनुमान चालीसा की सफलता के बाद उन्होंने दुनिया की सब से छोटे आकार .64एमएम की किताब लिखी. इस किताब में दुनिया के 12 सुविख्यात चित्रकारों के रंगीन चित्र और उन का जीवन वृत्तांत है. उन 12 चित्रकारों में कविवर रवींद्रनाथ टैगोर, एम.एफ.हुसैन, शोभा सिंह, राजा रवि वर्मा, हैदर रजा, स्पेन के पाब्लो पिकासो, नीदरलैंड के विनसेंट वान गौग, मैक्सिको के फ्रिडा काहलो, इटली के लियोनार्दो दा विंची, एफ.एन. सूजा, क्लाउड मोनेट, स्पेन के फ्रांसिस्को डी गोया को शामिल किया गया है. प्रथम पृष्ठ पर राष्ट्रचिह्न के साथ अंतिम पृष्ठ पर चित्रकार राजकुमार वर्मा ने अपना परिचय दिया है.

बहरहाल, राजकुमार वर्मा कोई नई कृति तैयार करने की फिराक में हैं. इसी बीच उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया अखिलेश यादव को उन की याद आई. वह भी उन के इस अनूठे कार्य से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने 9 फरवरी, 2015 को उन्हें यश भारती पुरस्कार से सम्मानित किया. इस सम्मान में उन्हें 11 लाख रुपए का चेक, प्रशस्ति पत्र देने के अलावा शाल ओढ़ा कर सम्मानित किया गया. इसी के साथ संस्कृति विभाग में उन्हें जोड़ते हुए बतौर सेवा रूप में 15 हजार रुपए प्रति माह देने की घोषणा की. यह सम्मान पा कर राजकुमार वर्मा बेहद खुश हैं.

इस के बाद पहली मार्च, 2015 को सोनार समिति के अध्यक्ष राकेश वर्मा और आईपीएस अधिकारी कुमार प्रशांत ने भी हासूपुर स्थित सर्राफा भवन में एक कार्यक्रम आयोजित कर उन्हें सम्मानित किया. हर सम्मान पाने के बाद राजकुमार वर्मा अपनी कला के जरिए नया कीर्तिमान बनाते हैं. यश भारती पुरस्कार पाने के बाद वह इसी कोशिश में जुटे हैं. Motivational Story

 

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