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विजयशंकर दुबे उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में पीलीभीत बाईपास पर स्थित महानगर कालोनी में अपने परिवार के  साथ रहते थे. वह एक राष्ट्रीयकृत बैंक की स्थानीय शाखा में मैनेजर थे. 50 साल की उम्र में भी वह काफी रंगीन मिजाज थे. नई उम्र की युवतियों से दोस्ती करना, उन के साथ घंटों चैटिंग करना, उन्हें काफी पसंद था. वह कहीं पार्टी या समारोह में भी जाते तो उन की नजरें सिर्फ युवा लड़कियों पर ही टिकी रहती थीं. वह खुद उन के पास पहुंच कर अपना परिचय दे कर उन से बातें करनी शुरू कर देते थे.

कुछ लड़कियां कैरियर एंबिशस होती हैं और कुछ ऐसी होती हैं जो पैसे वालों को अपने जाल में फंसाने की कोशिश करती हैं. इस तरह की लड़कियों से विजयशंकर की मुलाकात होती तो वह उन से खुशी के साथ बातें करते. इसी दौरान वह उन लड़कियों को अपना फोन नंबर दे देते. इस के बाद उन का लड़कियों से बातचीत करने का सिलसिला शुरू हो जाता.

इस तरह फेसबुक और वाट्सएप मैसेंजर जैसी सोशल साइटों पर अनगिनत महिला दोस्तों से वह रोजाना काफी देर तक बातें करते थे. चाहे बैंक का औफिस हो या घर का स्टडी रूम, उन की इस बुरी आदत से हर कोई वाकिफ था. जितनी देर वह घर में रहते, उन का ध्यान घर के लोगों की बातों के बजाय मोबाइल पर अधिक होता था. बैंक हो या घर, वही सर्वेसर्वा थे, इसलिए उन पर कोई उंगली उठाने की सोचता भी नहीं था. उन पर किसी प्रकार की कोई रोकटोक नहीं थी.

एक दिन देर शाम विजयशंकर घर के स्टडी रूम में बैठे मोबाइल पर वाट्सएप चला रहे थे कि अचानक एक अनजान नंबर से उन के वाट्सएप पर मैसेज आया. उस नंबर की प्रोफाइल में एक खूबसूरत युवती की फोटो लगी थी. विजयशंकर ने उस के एकाउंट की डिटेल्स खोली तो उस में उस का नाम आरती लिखा था. वह बिजनौर की रहने वाली थी.

उस ने मैसेज में लिखा था, ‘‘हाय हनी, मैं आरती हूं और बिजनौर से हूं. मैं एमबीए की स्टूडेंट हूं. मुझे आप का प्रोफाइल काफी पसंद आया, इसलिए मैं आप से दोस्ती करना चाहती हूं. क्या आप मेरी दोस्ती कुबूल करेंगे?’’

विजयशंकर ने पढ़ा तो उन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. एक नवयौवना खुद उन्हें दोस्ती का औफर दे रही थी. इस खुशी ने उन के दिमाग पर ऐसा कब्जा कर लिया कि वह इस के अलावा कुछ सोच ही नहीं सके कि आखिर एक नई उम्र की युवती उन से दोस्ती करने को इतना बेचैन क्यों है.

दोनों की उम्र में काफी अंतर था. एक तरह से वह जिंदगी की ढलती शाम थे, तो वह युवती जिंदगी की सुबह का उजाला. उन में कोई मेल नहीं था. मैसेज पढ़ते ही वह आरती को उस की दोस्ती कुबूल करने का पैगाम भेजने को आतुर हो उठे. उन्होंने फटाफट आरती को मैसेज कर दिया, ‘‘यस स्वीटी, मुझे तुम्हारी दोस्ती कुबूल है.’’

इस के बाद उन के बीच बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. दोनों एकदूसरे को मैसेज भेजते रहते थे.

इस तरह उन के बीच गहरी दोस्ती हो गई. एक दिन विजयशंकर ने आरती से फोन पर बात की. उस से बात कर के वह बहुत प्रभावित हुए. वह जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही प्यारी और उस की सुरीली आवाज. आवाज में इतना मीठापन था कि जैसे किसी ने मिश्री घोल दी हो. आरती से बात कर के विजयशंकर का दिल बल्लियों उछल रहा था. इस के बाद उन के मन में उस से रूबरू होने की लालसा बढ़ गई.

दोनों के बीच फोन पर लंबीलंबी बातें होने लगीं. इस बीच उन्होंने अपने मन की बात बता दी तो उन की बातचीत मर्यादाओं की सीमाएं लांघने लगीं. अश्लील वार्तालाप से शर्मसंकोच की सारी दीवारें ढहती चली गईं. अब विजयशंकर के सब्र का पैमाना छलकने लगा. वह आरती पर मिलने के लिए जोर देने लगे, लेकिन आरती हर बार किसी तरह उसे बातों में टाल देती. वह शायद विजयशंकर की बेचैनी और बढ़ाना चाहती थी.

कुछ समय तक के लिए टालने के बाद आरती ने आखिर मिलने के लिए हां कर दी. दोनों ने 16 सितंबर, 2014 को बरेली में मिलने का टाइम निश्चित कर लिया. 16 सितंबर आने में अभी 4 दिन बाकी थे. आरती से मिलन में यह 4 दिन का अंतर उन्हें बहुत लंबा लग रहा था. वह बड़ी बेसब्री से उस दिन का इंतजार करने लगे.

आखिर 16 सितंबर का दिन भी आ गया. निर्धारित जगह पर विजयशंकर समय से पहले ही पहुंच गए. लेकिन काफी देर इंतजार करने के बाद भी जब आरती नहीं आई तो विजयशंकर ने उसे कई बार फोन किया. आरती ने उन का फोन नहीं उठाया तो वह निराश हो कर घर लौट आए. उन के दिमाग में बारबार यही बात घूम रही थी कि आरती ने उन का फोन क्यों नहीं उठाया.

देर शाम को उन्होंने आरती को फिर फोन किया. इस बार आरती ने फोन उठाया तो विजयशंकर ने नाराजगी जताई. इस पर आरती ने कहा कि कालेज में बिजी होने की वजह से उस का वहां से निकलना नहीं हो सका. इस के लिए उस ने विजयशंकर से माफी भी मांग ली. फिर मिलने के लिए अगली तारीख की बात आई तो उस ने 18 सितंबर निश्चित कर दी. इस बार आरती ने हर हाल में आने का वादा किया.

18 सितंबर को वादे के मुताबिक आरती निश्चित समय पर उन से मिलने बरेली आ गई. विजयशंकर उस से मिले तो उस की खूबसूरती देख कर मन ही मन खुश हो उठे. जिस से मिलने के लिए वह इतने बेचैन हो रहे थे, वह उन के पास थी. लेकिन उस के साथ एक युवक भी था. उस युवक के बारे में उन्होंने आरती से पूछा तो उस ने बताया कि वह उस का चचेरा भाई है और मुरादाबाद में रह कर एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है.

विजयशंकर मन ही मन सोचने लगे कि आरती को इस कबाब में हड्डी लाने की क्या जरूरत थी. आरती शायद उन के मन की बात समझ गई थी, वह उन्हें एक तरफ ले जा कर हंसते हुए बोली, ‘‘चिंता मत करो, इसे हम दोनों के बारे में सब पता है. हमारे मिलने पर इसे कोई ऐतराज नहीं होगा.’’

यह सुन कर विजयशंकर के होंठों पर मुसकराहट आ गई. विजयशंकर उन दोनों को अपनी कार में बैठा कर अपने साथ पीलीभीत बाईपास पर बने एक मौल में ले गए. मौल में पहुंचते ही आरती का चचेरा भाई उन से अलग हो कर घूमने लगा.

विजयशंकर आरती का हाथ पकड़ कर माल में घूमने लगे. वह मौका मिलते ही उस से शारीरिक छेड़छाड़ भी कर लेते थे. कुछ देर टहलने के बाद वह आरती को ले कर डीडीपुरम स्थित अपने पुराने मकान पर पहुंच गए. वहां उन लोगों के अलावा कोई नहीं था. एकांत मिलते ही विजयशंकर ने आरती को अपनी बांहों मे जकड़ लिया. कुछ ही देर में उन दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं और जिस्मानी संबंध बन गए.

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